माला केवल पैसे ऐंठने के लिए शलभ पर डोरे डाल रही थी. उस की तनिक भी रुचि नहीं थी शलभ में. पर एक दिन शलभ अपना संयम खो बैठा और माला के सामने प्रणय निवेदन करने लगा. पहले तो माला घबरा गई फिर उसे विचित्र नजरों से घूरने लगी फिर बोली, ‘‘जीजू फौरन 10 हजार रुपयों का इंतजाम करो, नहीं तो मैं आप का कच्चाचिट्ठा रमा दीदी के सामने खोलती हूं…’’
मरता क्या न करता. रुपए पा का माला प्रसन्न हुई. फिर उस का लोभ बढ़ता गया. उस ने रमा पर भी अपना भावनात्मक दबाव बढ़ा दिया. शीघ्र ही रमा के घर में आर्थिक तंगी शुरू हो गई. त्रस्त हो कर रमा ने अनुभा मौसी को वस्तुस्थिति से अवगत कराते हुए शीघ्र ही रुपए भेजने को कहा तो उन्होंने तमक कर उत्तर दिया, ‘‘छोटी बहन मानती हो न उसे. थोड़ी सी सहायता कर दी तो मुझ से पैसे मांगने लगीं तुम.’’
रमा ने फिर सारी बात मां को बताई तो मां ने भी उसे जम कर खरीखोटी सुना दी, ‘‘मुझ से पहले सलाह क्यों नहीं ली पैसे लुटाने के बाद अब उस का रोना क्यों रो रही हो अनुभा और उस के परिवार के काले कारनामों से त्रस्त हो कर हम ने सदा के लिए उन्हें त्याग दिया है.’’
रमा के दिलोदिमाग से मायके के रिश्तेदारों का नशा काफूर हो चुका था. उधर शलभ का मन माला की ओर से उचट हो गया था. लेकिन वे न तो पत्नी को सत्य बताने की हिम्मत जुटा पाए थे, न ही माला की रोज बढ़ती मांगों को पूरा कर पा रहे थे. उन की स्थिति चक्की के दो पाटों में फंसे अनाज जैसी थी. जिस की यंत्रणा वे भोग रहे थे. उन की नींद व चैन छिन गए थे. उन के द्वारा मुंबई की एक फर्म में भेजे गए आवेदनपत्र का अभी तक कोई जवाब भी नहीं आया था.
धीरेधीरे माला ने पुन: कौलसैंटर में कार्य करना शुरू कर दिया. महेश ने एक सिविल ठेकेदार के जूनियर सुपरवाइजर के रूप में काम पकड़ लिया. पर आय कम थी, उन के खर्चे अधिक. धीरेधीरे दोनों की जीवन की गाड़ी पटरी पर आने लगी.
तभी अचानक एक दिन माला कौलसैंटर से अचानक गायब हो गई. काम पर गई तो अपने घर नहीं लौटी. पुलिस ने चप्पाचप्पा छान मारा पर वह कहीं नहीं मिली. पता चला कि वह उस दिन कौलसैंटर पहुंची ही नहीं थी. बदहवास महेश इधरउधर मारामारा फिरता रहा. फिर कुछ दिनों बाद वह भी कहीं चला गया. लोगों ने अंदाजा लगाया कि वह अपने मातापिता के पास लौट गया होगा. पड़ोस के घर में सन्नाटा पसर गया. इस दंपती का क्या हश्र हुआ होगा, इस के बारे में लोग तरहतरह की अटकलें लगाने लगे. सब को अपना पैसा डूबने का दुख तो था ही, इस खूबसूरत युवा जोड़े का चले जाना भी कम दुखद नहीं था सब के लिए.
तभी अनुभा मौसी ने शलभ और रमा पर इलजाम मढ़ दिया कि इन्हीं दोनों की मिलीभगत ने मेरी बेटी और दामाद को गायब कर दिया है. बड़ी मुश्किल से जानपहचान वालों के हस्तक्षेप से ये दोनों पुलिस के चंगुल में आने से बचे.
अचानक एक दिन मुंबई की फर्म से इंटरव्यू के लिए शलभ को बुलावा आ गया. बच्चों की छुट्टियां थी. इंटरव्यू के साथ घूमना भी हो जाएगा, इस उद्देश्य से शलभ ने रमा और दोनों बच्चों को भी अपने साथ ले लिया.
पहले दिन इंटरव्यू संपन्न होने के बाद अगले दिन के लिए शलभ ने टूरिस्ट बस में चारों के लिए बुकिंग करवा ली. अगले दिन सुबह 10 बजे चारों मुंबई भ्रमण के लिए टूरिस्ट बस में सवार हो कर निकल पड़े. भ्रमण में फिल्म की शूटिंग दिखलाना भी तय था. पास ही के एक गांव में ग्रामीण परिवेश में एक लोकनृत्य का फिल्मांकन हो रहा था. करीब 75 बालाएं रंगबिरंगे आकर्षक ग्रामीण परिधानों में सजी संगीत पर थिरक रही थीं.
अचानक नन्हा दीपू चीख पड़ा, ‘‘मम्मा, वह देखो, सामने माला मौसी…’’
उसे पहचानने में रमा को देर नहीं लगी. वही चिरपरिचित खूबसूरत मासूम चेहरा. वह पति के कान में फुसफुसाई, ‘‘मैं इसे अनुभा मौसी को लौटा कर अपने नाम पर लगा हुआ दाग अवश्य मिटाऊंगी…’’
लताड़ लगाई शलभ ने, ‘‘खबरदार, अब इस पचड़े से दूर रहो. बाज आया मैं तुम्हारे रिश्तेदारों से…’’
लेकिन रमा नहीं मानी. पति की इच्छा के विरुद्ध उस ने टूरिस्ट बस का बकाया भ्रमण कैंसिल कर के टैक्सी किराए पर ले ली और शूटिंग के उपरांत उस का पीछा करते उस के घर जा पहुंची.
शलभ और रमा को एकाएक सामने पा कर माला अनजान बन गई. दोनों को पहचानने से इनकार कर दिया उस ने. सब्र का बांध टूट गया रमा का. क्रोध से चीखी वह, ‘‘तू यहां ऐश कर रही है और तेरी मां ने हम दोनों को पुलिस के हवाले कर दिया कि तुझे गायब करने में हमारा हाथ है. चल अभी मेरे साथ इसी वक्त. तुझे मैं मौसी के पास ले चलती हूं.’’
माला ने मौन व्रत धारण कर लिया. क्रोध से आपा खो बैठी रमा. उस के केश पकड़ कर चिल्लाई, ‘‘जो अपने पति की नहीं हुई हमारी कैसे होती. तुझे मालूम है तेरे जाने के बाद तेरा महेश बदहवास हालत में लुटालुटा सा तुझे खोजा करता था. पता नहीं कहां है वह बेचारा.’’
माला ने अचानक चुप्पी तोड़ी और चीखने लगी, ‘‘बचाओ, बचाओ…’’
उस की चीखपुकार सुनते ही वहां भीड़ इकट्ठा होने लगी. घबरा कर रमा ने माला के केश छोड़ दिए. वहां रुकना उचित न समझ कर शलभ ने रमा की बांह पकड़ी और उसे टैक्सी की ओर खींच कर ले चला.
चलतेचलते वह बोला, ‘‘यहां तमाशा खड़ा न कर के हमें चुपचाप मेरठ में इस के तमाम कर्जदारों को इस का अतापता बता देना चाहिए, वही आगे की कार्यवाही करेंगे.’’
‘‘अतापता ’’ इधरउधर देखते हुए दोहराया रमा ने, ‘‘अरे, यह कौन सी जगह है हमें तो मालूम ही नहीं. रुको अभी आती हूं घर का नंबर, गलीमहल्ला सब पता कर के…’’
रमा जैसे ही पलट कर माला के घर के पास पहुंची तो जड़ हो गई. माला ताली पीटपीट कर हंसते हुए पूछ रही थी, ‘‘कहो मां, कैसी थी मेरी ऐक्टिंग छुट्टी कर दी न मैं ने माला दीदी की अब इधर आने की दोबारा जुर्रत नहीं करेंगी…’’
अनुभा मौसी ने शाबासी दी बेटी को, ‘‘मान गए भई, तू ने तो टौप हीरोइंस को भी मात कर दिया. क्या ऐक्टिंग थी तेरी. अब तो तू हीरोइन बनेगी…’’
सामने खड़े हीही कर रहे थे महेश व माला के पिता. रमा को काटो तो खून नहीं. उस में कुछ पूछने और सुनने की शक्ति नहीं थी. लौट कर आ बैठी कार में. पति को सारा वृत्तांत सुना कर वह फफकफफक कर रो पड़ी. सब की मिलीभगत थी. धोखा दे कर पैसा ऐंठने की अपनी सफलता पर जश्न मना रहे थे वे सब. बड़ी ही मासूमियत से सरल हृदयी लोगों की सहानुभूति प्राप्त कर के छला था माला महेश ने.