
नई-नवेली पत्नी उर्मि को पा कर मोहन बहुत खुश था. हो भी क्यों न, आखिर हूर की परी जो मिली थी उसे. सच में गजब का नूर था उर्मि में. अगर उसे बेशकीमती पोशाक और लकदक गहने पहना दिए जाते तो वह किसी रानीमहारानी से कम न लगती. लेकिन बेचारी गरीब मांबाप की बेटी जो ठहरी, तो कहां से उसे यह सब मिलता भला, पर सपने उस के भी बहुत ऊंचेऊंचे थे.
अब सपने तो कोई भी देख सकता है न. तो बेचारी वह भी ऊंचेऊंचे सपना देखती थी कि उस का राजकुमार भी सफेद छोड़े पर चढ़ कर उसे ब्याहने आएगा और उसे दुनियाभर की खुशियों से नहला देगा.
लेकिन जब उर्मि ने अपने दूल्हे के रूप में मोहन को देखा तो उस का मन बुझाबुझा सा हो गया क्योंकि मोहन उस के सपनों के राजकुमार से कहीं भी मैच नहीं बैठ रहा था. खैर, चल पड़ी वह अपने पति मोहन के साथ जहां वह उसे ले गया.
‘‘जब शादी हो ही गई है तो अब अपनी जिम्मेदारी भी संभालना सीखो…’’ पिता का यह हुक्म मान कर मोहन उर्मि को ले कर शहर आ गया और काम की तलाश करने लगा.
लेकिन मोहन को कहीं भी कोई ढंग का काम नहीं मिल पा रहा था. दिहाड़ी पर मजदूरी कर के वह किसी तरह कुछ पैसे कमा लेता, मगर उतने से क्या होगा और दोस्त के घर भी वह कितने दिन ठहरता भला?
आखिर मोहन को काम न मिलता देख उस दोस्त ने सलाह दी कि क्यों न वह बड़ी सब्जी मंडी से सब्जियां ला कर बेचे. इस से उस की अच्छी कमाई हो जाएगी और रोज काम न मिलने की फिक्र भी नहीं रहेगी.
किसी तरह जोड़ेजुटाए पैसों से मोहन बड़ी सब्जी मंडी जा कर सब्जियां खरीद लाया और उन्हें लोकल बाजार में जा कर बेचने लगा.
अब मोहन का रोज का यही काम था. अंधेरे मुंह सुबहसवेरे उठ कर वह बड़ी सब्जी मंडी चला जाता और वहां से थोक भाव में खूब सारी फलसब्जियां खरीद कर उन्हें लोकल बाजार में जा कर बेचता.
अब मोहन की कमाई इतनी होने लगी थी कि पतिपत्नी के लिए अच्छे से दालरोटी जुट जाती थी. बेचारा मोहन, जब फलसब्जियां बेच कर थकाहारा घर आता तो उस के माथे पर पसीने का मुकुट और सीने में धड़कनों का जंगल होता, लेकिन फिर भी वह अपनी खूबसूरत पत्नी का मुखड़ा देख कर अपनी सारी थकान भूल जाता.
लेकिन उस की उर्मि जाने उस से क्या चाहती थी. वह कभी खुश ही नहीं रहती थी.
नहीं, वैसे तो वह खुश रहती थी, पर मोहन को देखते ही ठुनकने लगती थी कि उसे क्याक्या कमी है.
बेचारा मोहन हर तरह से कोशिश करता कि उर्मि को खुश रखे, पर उस की मांगें रोजाना बढ़ती ही जाती थीं.
मोहन मेहनत के चार पैसे इसलिए ज्यादा कमाना चाहता था ताकि उर्मि को ज्यादा से ज्यादा खुश रख सके, मगर उर्मि को इस बात की जरा भी परवाह नहीं थी. वह तो अपने ही पड़ोस के एक बांके नौजवान धीरुआ के साथ नैनमटक्का कर रही थी.
तेलफुलेल, चूड़ी, बिंदी वगैरह बेचने वाला धीरुआ पर उस का दिल आ गया था. जब भी वह उसे देखती, उसे कुछकुछ होने लगता.
सोचती, काश, धीरुआ उस का पति होता तो कितना मजा आता. पता नहीं, क्यों उस के मांबाप ने उस से 10 साल से भी ज्यादा बड़े मोहन के साथ उसे ब्याह दिया?
उधर धीरुआ भी जब उर्मि को देखता तो देखता रह जाता. उस के गठीले बदन के उभार को देख कर उस के मुंह से लार टपकने लगती. उसे लगता, कैसे वह उसे अपने ताकतवर हाथों में समेट ले और फिर कभी छोड़े ही न. और वैसे भी वह अभी तक कुंआरा था.
जब भी उर्मि उस की दुकान पर आती, धीरुआ उसे ही निहारते रहता. यह बात उर्मि भी समझ रही थी इसलिए तो बहाना बना कर वह उस की दुकान पर अकसर जाती रहती थी.
धीरुआ अपने मोबाइल फोन में उर्मि को बढि़याबढि़या प्यार वाले गाने सुनाता और वीडियो भी दिखाता. प्यार वाले गाने सुन कर वह ऐसे मंत्रमुग्ध हो जाती कि पूछो मत. वह खुद को उस गाने की हीरोइन ही समझने लगती और धीरुआ को हीरो.
एक दिन उर्मि ने ठुनकते हुए मोहन से मोबाइल फोन की मांग कर दी. हैसियत तो नहीं थी बेचारे की, लेकिन फिर भी एक सस्ता सा मोबाइल, जिस से सिर्फ बात हो सकती थी, उर्मि के लिए खरीद लाया.
मोबाइल फोन देख कर उर्मि बहुत खुश तो नहीं हुई, पर लगा चलो बात तो होगी न इस से. अब उस का जब भी मन करता, धीरुआ को फोन लगा देती और खूब बातें करती. पर अपने पति मोहन से कभी सीधे मुंह बात नहीं करती थी.
न जाने क्यों उर्मि बातबात पर मोहन पर चढ़ जाती और बेचारा मोहन भी उस के गुस्से को शरबत समझ कर चुपचाप हंसतेहंसते पी जाता.
सोचता, उम्र कम है इसलिए समझ भी थोड़ी कम है. मगर उसे तो मोहन जरा भी भाता ही नहीं था. उस का दिल तो अपने आशिक धीरुआ के दिल से जा कर अटक गया था.
किसी तरह हिचकोले खाते हुए मोहन और उर्मि की गृहस्थी चल रही थी. लेकिन कहते हैं न, वक्त कब करवट ले, कह नहीं सकते. अचानक एक दिन लोगों में हड़कंप देख कर मोहन चौंक गया. देखा तो सब अपनेअपने सामान समेट कर भागने लगे हैं.
‘‘अरे, क्या हुआ भाई?’’ मोहन ने पास में अपनी सब्जियां समेट रहे सब्जी वाले से पूछा.
‘‘अरे, क्या हुआ क्या, तुम भी अपना सामान जल्दी से उठा कर भागो. तुम देख नहीं रहे कब्जा हटाने के लिए नगर प्रशासन का दस्ता आया हुआ है,’’ उस सब्जी वाले ने कहा.
‘‘नगर प्रशासन का दस्ता… पर वह क्यों भाई?’’ मोहन ने उस सब्जी वाले से हैरानी से पूछा.
‘‘क्योंकि यहां सब्जियां बेचना गैरकानूनी है,’’ झुंझलाते हुए उस सब्जी वाले ने कहा.
‘‘गैरकानूनी… पर यहां शहर के बीचोंबीच कुछ लोगों ने जो मौल और होटल बना रखे हैं, वे भी आधे से ज्यादा सरकारी जमीन पर हैं तो उन्हें ये प्रशासन वाले क्यों कुछ नहीं कहते? क्या इन लोगों पर कभी कोई कार्यवाही नहीं होती? हम गरीब ही मिले हैं इन्हें सताने को?’’ मोहन ने गुस्से से कहा.
‘‘अरे भाई, वे अमीर लोग हैं. पैसा और पहुंच बहुत है उन की. फिर उन के खिलाफ क्यों कोई कार्यवाही होने लगी? चल, मैं तो चला, तू भी निकल ले जल्दी से,’’ कह कर वह सब्जी वाला चलता बना.
मोहन भी खुद में भुनभुनाते हुए अपनी सब्जियां समेटने लगा, लेकिन तभी किसी की कड़क आवाज से वह कांप उठा और उस के हाथ थरथर कांपने लगे.
‘‘क्यों बे, अब तुझे क्या अलग से न्योता देता… हां, बोल?’’ कह कर उस में से एक ने उस की टोकरी में ऐसी लात मारी कि वह लुढ़कती हुई दूर चली गई. सारे टमाटर सड़क पर छितरा गए.
तभी एक दूसरा अफसर उस की तरफ बढ़ा ही था कि मोहन हाथ जोड़ कर विनती करते हुए कहने लगा, ‘‘साहब, मैं अभी उठाए लेता हूं सारी सब्जियां, दया माईबाप दया…’’
लेकिन मोहन की बातों को अनसुना कर एक बड़े अफसर ने कड़क आवाज में कहा, ‘‘इन का तो यह रोज का नाटक है. जब तक इन्हें सबक नहीं सिखाओगे, समझेंगे नहीं,’’ कह कर उस ने उस की बचीखुची सब्जियां भी फेंक दीं.
बेचारा मोहन उन सब के सामने गिड़गिड़ाता रह गया. वह अपने आंसू पोंछते हुए जो भी सब्जियां बची थीं, ले कर घर चला गया, पर वहां भी उर्मि की जहरीली बातों ने उसे मार डाला.
‘‘तो क्या करूं… बोल न? क्या गरीब होना मेरी गलती है या वहां जा कर सब्जियां बेच कर मैं ने कोई गुनाह कर दिया, बोलो?’’ मोहन रोंआसी आवाज में बोला.
‘‘वह सब मुझे नहीं पता… तुम चोरी करो, डकैती करो, जेब काटो चाहे जो भी करो मुझे तो बस पैसे चाहिए घर चलाने के लिए,’’ जख्म पर महरम लगाने के बदले उर्मि अपनी बातों से उसे और जख्म देने लगी.
अब क्या करता बेचारा, पैसे तो थे नहीं जो फिर से कोई धंधा शुरू करता. कहीं सचमुच में उर्मि उसे छोड़ कर भाग न जाए, इस वजह से मोहन ने गलत रास्ता अख्तियार कर लिया.
अब सब्जियां बेचने के बजाय लोगों की जेबें काटने लगा और छोटीमोटी चोरियां भी करने लगा.
शुरूशुरू में तो मोहन को बहुत बुरा लगता था ये सब काम करने में, लेकिन फिर धीरेधीरे उसे भी यह सब करने में मजा आने लगा.
घर में सामानपैसा आते रहने से उर्मि भी अब खुश रहने लगी थी. उस के ठाठ देख आसपड़ोस की औरतें जल मरतीं और उर्मि उन्हें देख और इतराती. लेकिन उन के पास यह सुख भी ज्यादा दिनों तक टिका न रह सका.
एक दिन मोहन चोरी करते हुए पुलिस के हत्थे चढ़ गया और उसे जेल भेज दिया.
मोहन के जेल जाने से उर्मि को कोई खास फर्क नहीं पड़ा, बल्कि उस की तो और मौज हो गई. अब वह खुल कर धीरुआ के साथ आंखें चार करने लगी.
धीरुआ उसे जबतब अपने घर ले जाता और दोनों खूब मस्ती करते. अपनी मोटरसाइकिल पर वह उर्मि को खूब घूमाताफिराता, सिनेमा दिखाता. जब लोग कुछ कहते तो उर्मि उन्हें दोटूक जवाब दे कर चुप कर देती.
इधर बिना गुनाह साबित हुए ही मोहन महीनों तक जेल में पड़ा सड़ता रहा, क्योंकि कोई उस की जमानत कराने नहीं आया इसलिए. जब जान लिया उर्मि ने कि अब मोहन नहीं आने वाला, तो एक दिन वह धीरुआ के साथ भाग गई.
बिना गुनाह साबित हुए ही महीनों जेल में गुजारने की बात जब एक कैदी दोस्त ने सुनी तो उसे मोहन पर दया आ गई. छूटते ही उस कैदी दोस्त ने मोहन की जमानत तो करवा दी, लेकिन महीनों जेल में पड़े रहने से वह बहुत कमजोर हो गया. जब पत्नी के बारे में जाना तो उस का दिल और टूट गया. लगा जिस के लिए उस ने इतना सबकुछ सहा, वही उस का साथ छोड़ गई.
अब मोहन बीमार और बेसहारा हो गया था. न तो अब वह कोई काम करने लायक रहा और न ही चोरीजेबकतरी के ही लायक रह गया. कोई कुछ दे जाता तो खा लेता, वरना भूखे पेट ही सो जाता. उसे लग रहा था कि उस के लिए तो जेल भी वैसी ही थी जैसा घर.
अनन्य पार्किंग में अपनी कार खड़ी कर के उतर ही रहा था कि सामने से स्कूटी से उतरती लड़की को देख कर ठगा सा रह गया. उस लड़की ने बड़ी अदा से हैलमेट उतार कर बालों को झटका तो मानो बिजली सी कौंध गई.
उस के स्कूटी खड़ा कर आगे बढ़ने तक वह बड़े ध्यान से उसे देखता रहा. सलीके से पहनी हैंडलूम की साड़ी, कंधों तक लहराते काले बाल और एकएक कदम नापतौल कर रखती गरिमा से भरी चाल उस के व्यक्तित्व को अद्भुत आभा प्रदान कर रहे थे.
अपनी मौसेरी बहन के बेटे चिरायु के जन्मदिन की पार्टी में शामिल होने के लिए अनन्य उत्सव रिजोर्ट आया था. वह लड़की भी उत्सव की ओर जा रही थी. अनन्य को कुछ और देर तक उसे निहारने का सुख मिल गया.
उत्सव के गेट में घुसते ही वह लपक कर लिफ्ट की ओर दौड़ गई. जब तक अनन्य को होश आता, लिफ्ट ऊपर जा चुकी थी. अनन्य के पास अब इंतजार करने के अलावा दूसरा कोई चारा भी नहीं था. पहली बार उसे धीमी गति से चलने के कारण खुद पर गुस्सा आया.
जब वह तीसरी मंजिल पर पार्टी वाले हौल में पहुंचा तो उसी लड़की को अपनी बहन सुजाता से बात करते देख हैरान रह गया. उसे देखते ही सुजाता खिलखिला कर हंस दी.
‘‘तुम शायद इसी की शिकायत कर रही हो. यही पीछा कर रहा था न तुम्हारा? ठहरो, अभी इस के कान पकड़ती हूं,’’ सुजाता नाटकीय अंदाज में बोली थी.
‘‘मैं खुद कान पकड़ता हूं, दीदी. मैं किसी का पीछा नहीं कर रहा था. मैं तो चिरायु के जन्मदिन की पार्टी में आ रहा था. कोई मेरे आगे चल रहा हो तो मैं क्या करूं.’’
‘‘मैं ऐसे दिलफेंक लड़कों के लटके- झटके खूब समझती हूं. जरा पूछिए इन से कि ये महाशय मेरे पीछे ही क्यों चल रहे थे? तेज कदमों से चल कर मेरे आगे क्यों नहीं निकल गए थे?’’
‘‘अनन्य, तुम्हें अवनि के इस सवाल का जवाब तो देना ही पड़ेगा. अब बोलो, क्या कहना है तुम्हारा?’’ सुजाता को न्यायाधीश बनने में आनंद आने लगा था.
‘‘ऐसा कोई नियम है क्या दीदी कि सड़क पर किसी लड़की के पीछे नहीं चल सकते?’’ अनन्य ने जवाब में सवाल खड़ा कर दिया.
‘‘नियम तो नहीं है, पर इसे पीछा करना कहते हैं, बच्चू. और इस के लिए दंड भुगतना पड़ता है,’’ सुजाता मुसकराते हुए बोली.
‘‘ठीक है, आप का यही निर्णय है तो मैं दंड भुगतने के लिए तैयार हूं,’’ अनन्य जोर से हंसा, पर तभी चिरायु आ धमका था और बात बीच में ही रह गई थी.
‘‘मामा, कितनी देर से आए हो. मेरा गिफ्ट कहां है?’’ चिरायु अनन्य की बांहों में झूल गया.
अनन्य ने छोटा सा पैकेट निकाल कर चिरायु को थमा दिया था.
‘‘इतना छोटा सा गिफ्ट?’’ चिरायु ने मुंह बनाया.
‘‘खोल कर तो देख. आंखें खुली की खुली रह जाएंगी.’’
चिरायु ने बड़े यत्न से कागज में लपेटा हुआ पैकेट एक झटके में फाड़ा तो उस की खुशी का ठिकाना न रहा.
‘‘ओह, वाह वीडियो गेम? मामा, आप सचमुच ग्रेट हो. पापा, देखो, अनु मामा मेरे लिए क्या लाए हैं.’’
ध्रुव वीडियो गेम को देखने में व्यस्त हो गए. सुजाता भी दूसरे मेहमानों की आवभगत में जुट गई.
अनन्य का ध्यान फिर पास ही बैठी अवनि की ओर आकर्षित हो गया. उस के लिए मानो अन्य अतिथि वहां हो कर भी नहीं थे. उस का मन कर रहा था कि वह बस अवनि को निहारता रहे. एकदो बार कनखियों से देखते हुए उस की दृष्टि अवनि से मिली तो लगा जैसे उस की चोरी पकड़ी गई हो.
जन्मदिन का उत्सव समाप्त होते ही उस ने सुजाता से पूछा, ‘‘दीदी, कौन है वह? पहले तो उसे कभी नहीं देखा.’’
‘‘किस की बात कर रहा है तू?’’ सब कुछ समझते हुए भी सुजाता मुसकराई.
‘‘वही जो आप से मेरी शिकायत कर रही थी,’’ अनन्य भी मुसकरा दिया.
‘‘तुझे क्या करना है? तू तो विवाह के नाम से ही दूर भागता है. कैरियर बनाना है. जीवन में आगे बढ़ने के रास्ते में तो विवाह तो सब से बड़ी बाधा है न?’’ सुजाता ने अनन्य के ही शब्द दोहरा दिए थे.
‘‘पर दीदी अवनि को देखते ही मैं ने अपना खयाल बदल दिया है. पता नहीं क्या जादू है उस के व्यक्तित्व में. कुछ बताइए न उस के बारे में.’’
‘‘यही तो रोना है…जिस अवनि को देख कर तुम सम्मोहित हुए हो उस ने अपने चारों तरफ वैराग्य और वासनारहित ऐसा आवरण ओढ़ रखा है कि उस तक पहुंचना कठिन ही नहीं असंभव है. और क्यों न हो, इस संसार ने भी तो उस के साथ ऐसा ही व्यवहार किया है,’’ सुजाता का दर्दीला स्वर सुन कर अनन्य चौंक उठा.
‘‘ऐसा क्या कर दिया संसार ने अवनि के साथ?’’ क्षणमात्र में ही अब तक की सुनी हुई समस्त अनहोनी घटनाएं अनन्य के मानसपटल पर कौंध गई.
‘‘पता नहीं तुम्हें याद है या नहीं, हमारे पुराने गौलीगुड़ा वाले घर के सामने डा. निशीथ राय रहा करते थे…’’
‘‘खूब याद है,’’ अनन्य सुजाता की बात पूरी होने से पहले ही बोल उठा, ‘‘हां, बचपन में बीमार पड़ने पर मां उन्हीं के पास इलाज के लिए ले जाती थीं.’’
‘‘वे हमारे दूर के रिश्ते के चाचा थे. अवनि उन की बहन सुनंदा की छोटी बेटी है.’’
‘‘लेकिन हुआ क्या उस के साथ?’’ अनन्य उतावला हो बैठा. वह उस के बारे में सब कुछ जान लेना चाहता था.
‘‘5 वर्ष पहले की बात है. अवनि का विवाह एक बड़े संपन्न परिवार में तय हुआ था. गोदभराई की रस्म के बाद जब वर पक्ष के लोग वापस लौट रहे थे तो उन की कार को सामने से आते ट्रक ने टक्कर मार दी. उस दुर्घटना में भावी वर और उस के पिता दोनों की मौत हो गई.’’
‘‘ओह, कितना अप्रत्याशित रहा होगा यह सब?’’
‘‘अप्रत्याशित? यह कहो कि बिजली गिरी थी अवनि और उस के परिवार पर. अवनि तो पत्थर हो गई थी यह सब देख कर. उस के मातापिता सांत्वना देने गए थे पर वर पक्ष ने उन का मुंह भी देखना पसंद नहीं किया, बैठने के लिए पूछना तो दूर की बात है,’’ सुजाता ने बताया.
‘‘कितना संताप झेलना पड़ा होगा बेचारी को,’’ अनन्य बुझे स्वर में बोला.
‘‘2-3 वर्ष इलाज करवाया गया अवनि का तब कहीं जा कर वह सामान्य हुई. अब भी छोटी सी बात से डर जाती है. जैसे तुम उस के पीछे चल रहे थे पर उस को लगा कि तुम उस का पीछा कर रहे थे. कोई जोर से बोल दे या रात के सन्नाटे के उभरते स्वर, सब से वह छोटी बच्ची की तरह डर जाती है.’’
‘‘मातापिता ने फिर से विवाह की कोशिश नहीं की?’’
‘‘की थी, पर उस के अपशकुनी होने की बात कुछ ऐसी फैल गई थी कि कोई तैयार ही नहीं होता था. मातापिता ने उसे बहुत प्रोत्साहित किया, ढाढ़स बंधाया तब कहीं जा कर फिर से उस ने पढ़ाई प्रारंभ की. अर्थशास्त्र में एमफिल करते ही यहां महिला कालेज में व्याख्याता बन गई. मुश्किल से 6 माह हुए हैं यहां आए. कालेज के छात्रावास में ही रहती है. कहीं खास आनाजाना भी नहीं है. कभी बहुत आग्रह करने पर हमारे यहां चली आती है.’’
‘‘कितने दुख की बात है. जीवन ने उस के साथ बड़ा क्रूर उपहास किया है,’’ अनन्य को उस से हमदर्दी हो आई थी.
‘‘जीवन से अधिक क्रूर मजाक तो उस के अपनों ने किया है. 2 बड़े भाई हैं, एक बड़ी बहन है. तीनों अपनी गृहस्थी में इतने मगन हैं कि छोटी बहन के संबंध में सोचते तक नहीं. मेरी बूआ यानी अवनि की मां बिलकुल अकेली पड़ गई हैं. एक ओर बीमार पति की तीमारदारी तो दूसरी ओर अवनि की समस्या. उन का हाल पूछने वाला तो कोई है ही नहीं,’’ सुजाता का गला भर आया. आंखें भीग गईं.
‘‘जो हुआ, बहुत दुखद था, पर दीदी, इस का अर्थ यह तो नहीं कि पूरा जीवन एक दुर्घटना की भेंट चढ़ा दिया जाए,’’ अनन्य को अपनी बात कहने के लिए शब्द नहीं मिल रहे थे.
‘‘तुम सही कह रहे हो अनन्य, पर यह सब उसे बताएगा कौन? अभी तक तो सब ने उस के घावों पर नमक छिड़कने का ही काम किया है.
एक दिन अचानक वह मुझ से मिलने चली आई. बातों ही बातों में पता चला कि तैयार हो कर कालेज के लिए निकली तो कुछ छात्राएं उस के सामने पड़ गईं.
अवनि को देखते ही वे आपस में ऊंचे स्वर में बातें करने लगीं कि आज सवेरेसवेरे अवनि मैडम का मुंह देख लिया है, पता नहीं दिन कैसा गुजरेगा. यह बताते हुए वह रो पड़ी,’’ सुजाता ने बताया.
‘‘इस तरह कमजोर पड़ने से काम कैसे चलेगा. उन छात्राओं को तभी इतनी खरीखोटी सुनानी चाहिए थी कि फिर से ऐसी बेहूदा बात कहने का साहस न कर पाएं,’’ अनन्य क्रोध से भर उठा.
‘‘कहना बहुत सरल होता है, अपनी ही बात ले लो. कुछ ही देर पहले तुम अवनि के व्यक्तित्व से पूर्णतया अभिभूत लग रहे थे. पर मुझे नहीं लगता कि यह सब कुछ जानने के बाद भी तुम्हारे मन में उस के प्रति वही भावनाएं होंगी?’’ सुजाता व्यंग्यपूर्ण स्वर में बोली.
‘‘आप के इस प्रश्न का उत्तर अभी तो मेरे पास नहीं है. सबकुछ जाननेसमझने के लिए समय तो चाहिए न दीदी,’’ अनन्य के हर शब्द में गहराई थी, अवनि के प्रति सहानुभूति थी.
सुजाता बस मुसकरा कर रह गई थी. अनन्य के जाने के बाद सुजाता सोच में डूब गई.
उस के मन में विचारों का तेजी से मंथन चल रहा था. कभी वह अनन्य के बारे में सोचती तो कभी अवनि के बारे में.
‘‘कब तक यों ही बैठी रहोगी? ढेरों काम पड़े हैं,’’ तभी ध्रुव ने उस की तंद्रा भंग की.
‘‘क्या करूं, फिर वही कहानी दोहराई जा रही है. पता नहीं अवनि को कोई सहारा देने का साहस जुटा पाएगा या नहीं?’’ निराश स्वर में बोल सुजाता उठ खड़ी हुई.
‘‘इस चिंता में घुलना छोड़ दो सुजाता. अवनि पढ़ीलिखी है, समझदार है, आत्मनिर्भर है. धीरेधीरे अपने बलबूते जीना सीख जाएगी,’’ ध्रुव ने समझाना चाहा था.
कुछ माह भी नहीं बीते थे कि एक दिन अचानक ही शुभदा मौसी का फोन आ गया. इधरउधर की बात करने के बाद वे बोलीं, ‘‘क्या कहूं सुजाता, मन रोने को हो रहा है. पर सोचा पहले तुम से बात कर लूं. शायद तुम्हीं कोई राह सुझा सको.’’
‘‘क्या हुआ, मौसी? सब खैरियत तो है?’’ सुजाता बोली.
‘‘मेरी कुशलता की इतनी चिंता कब से होने लगी तुम्हें? काश, तुम ने मुझे समय से सचेत कर दिया होता.’’
‘‘क्या कह रही हो मौसी? मेरी समझ में तो कुछ नहीं आ रहा,’’ सुजाता परेशान हो उठी.
‘‘मैं उस मुई अवनि की बात कर रही हूं. पता नहीं कब से प्रेमलीला चल रही है दोनों की. अब अनन्य जिद ठाने बैठा है कि विवाह करेगा तो अवनि से ही, नहीं तो कुंआरा रहेगा.’’
‘‘मेरा विश्वास करो मौसी. मुझे तो इस संबंध में कुछ भी पता नहीं है.’’
‘‘पर अनन्य तो कह रहा था कि वह अवनि से पहली बार चिरायु के जन्मदिन पर ही मिला था.’’
‘‘उस समारोह में तो बहुत से लोग आमंत्रित थे. कहां क्या चल रहा था, मैं कैसे बता सकती हूं.’’
‘‘ठीक है, मान ली तुम्हारी बात. पर अब तो कुछ करो, सुजाता. मेरा तो एक ही बेटा है. उसे कुछ हो गया तो मैं बरबाद हो जाऊंगी,’’ शुभदा फोन पर ही रो पड़ीं.
‘‘ऐसा मत बोलो मौसी, ऐसा कुछ नहीं होगा. क्या पता इस में भी कोई अच्छाई ही हो,’’ सुजाता ने उन्हें ढाढ़स बंधाया.
‘‘इस में क्या अच्छाई होगी. मेरी तो सारी उमंगों पर पानी फिर गया. इस से तो अनन्य कुंआरा ही रह जाता तो मैं संतोष कर लेती. सुजाता, वादा कर कि तू अनन्य को समझा लेगी.’’
‘‘ठीक है, मैं प्रयत्न करूंगी मौसी. पर कोई वादा नहीं करती. तुम तो जानती ही हो, आजकल कौन किस की सुनता है. जब अनन्य तुम्हारी बात नहीं मान रहा तो मेरी क्या मानेगा,’’ सुजाता ने अपनी विवशता जताई थी.
‘‘प्रयत्न करने में क्या बुराई है? तुझे तो बहुत मान देता है. शायद मान जाए. अपनी मौसी के लिए तू इतना भी नहीं करेगी?’’ शुभदा ने जोर डालते हुए कहा था.
‘‘क्यों शर्मिंदा करती हो, मौसी. मैं अपनी ओर से पूरी कोशिश करूंगी.’’
सुजाता ने शुभदा को आश्वस्त तो कर दिया पर अति व्यस्तता के कारण अगले 2 महीने तक अवनि और अनन्य से मिलने तक का समय नहीं निकाल पाई. पर एक दिन अचानक शुभदा मौसी को आया देख उस के आश्चर्य की सीमा न रही.
‘‘आओ मौसी, तुम्हारा फोन आने के बाद व्यस्तता के कारण अनन्य से मिलने का समय ही नहीं निकाल पाई. मैं आज ही अनन्य से मिलने की कोशिश करूंगी,’’ सुजाता मौसी को अचानक आया देख वह अचकचा कर बोली.
‘‘अब उस की कोई आवश्यकता नहीं, बेटी. मैं तो उन दोनों के विवाह का निमंत्रण देने आई हूं. अनन्य को बहुत समझायाबुझाया, लेकिन वह माना ही नहीं. पता नहीं उस जादूगरनी ने क्या जादू कर दिया. बेटे की जिद के आगे झुकना ही पड़ा,’’ शुभदा मौसी भरे गले से बोलीं और निमंत्रणपत्र दे कर उलटे पांव लौट गईं. बहुत प्रयत्न करने पर भी उन्हें रोक नहीं पाई सुजाता. शायद वे अनन्य और अवनि के विवाह के लिए सुजाता को भी दोषी मान रही थीं.
शुभदा मौसी तो निमंत्रणपत्र दे कर चली गईं पर सुजाता के मन में बेचैनी हो रही थी कि आखिर अनन्य क्यों अवनि के बारे में सबकुछ जानने के बाद विवाह के लिए राजी हो गया और अवनि कैसे अपनी पुरानी यादों को भूल कर विवाह के लिए तैयार हो गई? सुजाता ने अनन्य और अवनि से बात की तो दोनों ने ही कहा, ‘‘दीदी, हम दोनों ने एकदूसरे को अच्छी तरह समझ लिया है. साथ ही हम यह भी समझ गए हैं कि शकुनअपशकुन कुछ नहीं होता. जीवनसाथी अगर अच्छा हो तो जिंदगी अच्छी गुजरती है. अत: एकदूसरे को समझने के बाद ही हम ने शादी का फैसला लिया है.
सुजाता ने अपने में कई ताजगी का अनुभव किया.
अनन्य और अवनि का विवाह बड़ी धूमधाम से संपन्न हुआ था. य-पि शुभदा मौसी किसी अशुभ की आशंका से सोते हुए भी चौंक जाती थीं.
अनन्य और अवनि के विवाह को अब 5 वर्ष का समय बीत चुका है. 2 नन्हेमुन्नों के साथ दोनों अपनी गृहस्थी में कुछ ऐसे रमे हैं कि दीनदुनिया का होश ही नहीं है उन्हें. पर शुभदा मौसी हर परिचित को यह समझाना नहीं भूलतीं कि शकुनअपशकुन कुछ नहीं होता. यह तो केवल पंडों का फैलाया वहम है.
भादों महीने की काली अंधेरी रात थी. हलकी रिमझिम चालू थी. हवा चलने से मौसम में ठंडक थी. रात में लगभग एक बज रहा था. दिनभर तरहतरह की आवाजें उगल कर महानगर लखनऊ 3-4 घंटे के लिए शांत हो गया था.
गोमती नदी के किनारे बसी एक कालोनी के अपने मकान की ऊपरी मंजिल के कमरे में शेखर मुलायम बिस्तर पर करवटें बदल रहा था. उस की नजर बगल में बैड पर गहरी नींद में सो रही रमा पर पड़ी, जो आराम से सो रही थी.
घड़ी पर नजर डालते हुए शेखर मन ही मन बड़बड़ाया, ‘4 घंटे बाद रमा के जीवन में कितना बड़ा तूफान आने वाला है, जिस से वह बेचारी अनजान है. यह तूफान तो रमा के घरेलू जीवन को ही उजाड़ देगा और वह पूरी जिंदगी उसी के भंवर में डूबतीउतराती रहेगी. दुनिया कहां से कहां पहुंच गई और रमा पुराने विचारों पर ही भरोसा रखती है. समय के साथ ताल मिला कर चलना सीखा होता और मैं क्या चाहता हूं, यह समझा होता तो आज उसे छोड़ने का यह समय तो न आता.’
शेखर उस अंधेरे में देखते हुए सोच रहा था, ‘3 घंटे बाद 4 बजेंगे. मैं बैडरूम से निकल कर दबेपांव घर से बाहर जा कर टैक्सी पकड़ूंगा और अमौसी हवाई अड्डे पर पहुंच जाऊंगा. वहां साढ़े 5 फुट की निशि ग्रे रंग की जींस और लाल रंग का टौप पहन कर खड़ी होगी. मुझे देखते ही अपने केशों को एक खास अंदाज में झटकते हुए अपने गुलाबी होंठों से मोनालिसा की तरह मुसकराते हुए इंग्लिश में कहेगी, ‘गुडमौर्निंग शेखर. मुझे विश्वास था कि तुम देर जरूर करोगे’ और मैं निशि के मरमरी हाथ को अपने हाथ में ले कर कहूंगा, ‘सौरी डार्लिंग.’
यह सब सोच कर शेखर के होंठों पर हंसी तैर गई. उस की आंखों के सामने औफिस की कंप्यूटर औपरेटर निशि तैर गई. 22 साल की परी जैसी मोहक देह के बारे में सोचते ही शेखर के शरीर में रोमांच की लहर दौड़ गई.
एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में एग्जीक्यूटिव के रूप में काम करने वाले खुले विचारों के शेखर को रमा की सादगी अखरती थी. रमा पतिपरायण पत्नी थी. पति के अस्तित्व में अपने अस्तित्व को देखने वाली पत्नी, जो आज के समय में मिलना मुश्किल है. पर शेखर, रमा की सादगी से काफी नाखुश था.
शेखर को अकसर लगता कि रमा उस जैसे कामयाब आदमी के लायक नहीं है, गांव की सीधी, सरल और संस्कारी लड़की से शादी कर के उस ने बहुत बड़ी भूल की है. फैशनपरस्ती भी कोई चीज होती है.
अतिआधुनिक लड़कियों की तसवीर रमा में ढूंढ़ने वाला शेखर कभी चिढ़ कर कहता, ‘रमा, आदमी को यौवन से मदमाती औरत अच्छी लगती है. बर्फ बन जाने वाली ठंडी पत्नी नहीं. पुरुष को सहचरी चाहिए, सेविका नहीं.’
रमा फिर भी शेखर की चाहत पूरी कर पाने वाली आधुनिका नहीं बन सकी. शेखर उंगली रख कर रमा का दोष बता सके, इस तरह का नहीं था. रमा अपने काम, पति के प्रति वफादारी और चरित्र की कसौटी पर एकदम खरी उतरती थी.
शेखर की निगाह उस के विभाग में नईनई आई 22 साल की खूबसूरत, मस्त और कदमकदम पर सुंदरता बिखेरती कंप्यूटर औपरेटर निशि पर जम गई.
निशि समय की ठोकर खाई युवती थी. उस ने देखा कि औफिस के एग्जीक्यूटिव और विभाग के अधिकारी शेखर की नजर उस की सुंदरता पर जमी है और उस की कृपादृष्टि से वह औफिस में स्थायी हो सकती है व उन्नति भी पा सकती है, इसलिए समय और मौके के मूल्य को समझते हुए व शेखर की नजरों में अपने प्रति चाहत देख कर उस के करीब पहुंच गई. थोड़े समय में ही शेखर और निशि नजदीक आ गए.
निशि के साथ रहने के कारण शेखर घर देर से पहुंचने लगा. रमा ने इस बारे में कभी शेखर से पूछा भी नहीं कि इतनी देर तक वह कहां रहता है. उलटे शेखर से प्रेम से पूछती, ‘लगता है, आजकल औफिस में काम बढ़ गया है, जो इतनी देर हो जाती है. लाइए आप का सिर और पैर दबा दूं.’
रमा के इस व्यवहार से शेखर सोचने लगता कि यह औरत भी अजीब है. कभी इस के मन में किसी तरह का अविश्वास, शंका नहीं आती. रमा के इस तरह के व्यवहार से उस का अहं घायल हो जाता.
शेखर निशि को 3-4 बार अपने घर भी ले आया. रमा ने निशि की खूब खातिर की. शेखर ने सोचा था कि रमा निशि से उस के संबंध के बारे में पूछताछ करेगी, मगर उस की यह धारणा गलत निकली.
निशि अपनी मुसकान से, अदाओं से और बातों से शेखर का मन बहलाने लगी. शेखर ने उस की नौकरी सालभर में ही पक्की करवा दी और वेतन भी लगभग तीनगुना करवा दिया. नौकरी पक्की होते ही शेखर को लगा कि अब निशि धीरेधीरे उस के प्रति लापरवाह होती जा रही है. जब भी मिलने को कहो तो किसी न किसी काम का बहाना कर के मिलने को टाल जाती है.
इस बीच, उस ने अंदाज लगाया कि निशि उस के बजाय निखिल से अधिक मिलतीजुलती है. उस से कुछ अधिक ही संबंध गहरा हो गया है. उस का दिमाग चकराने लगा. वह उदास हो गया.
एक दिन शेखर ने निशि से पूछ ही लिया, ‘निशि, तुम्हारे और निखिल के संबंधों को मैं क्या समझूं?’
निशि ने कंधे उचकाते हुए कहा, ‘निखिल मेरा दोस्त है. क्या मैं औरत होने के नाते किसी पुरुष से दोस्ती नहीं कर सकती?’
‘मैं इतने तंग विचारों वाला आदमी नहीं हूं, फिर भी मैं किसी और पुरुष के साथ तुम्हारी नजदीकी बरदाश्त नहीं कर सकता.’
‘आप का मैं कितना सम्मान करती हूं, यह आप भी जानते हैं. पर एक ही आदमी में अपनी सारी दुनिया देखना मेरी आदत में नहीं है’, निशि ने शेखर का हाथ अपने हाथ में ले कर मुसकराते हुए कहा, ‘आप मुझे अपनी जागीर समझें. मैं जीतीजागती महिला हूं, मेरे भी कुछ अपने अरमान हैं.’
शेखर ने खुश होते हुए कहा, ‘निशि, तुम मुझे उतना ही प्यार करती हो, जितना मैं तुम से करता हूं?’
‘चाहत को भी भला तौला जा सकता है?’ निशि हंस?? कर बोली.
‘निशि, चलो, हम दोनों विवाह कर लेते हैं.’
निशि चौंकी, फिर गुलाबी होंठों पर मुसकान बिखेरती हुई बोली, ‘लेकिन आप तो शादीशुदा हैं. दूसरी शादी तो कानूनन हो नहीं सकती. यदि आप अकेले होते तो मेरा समय अच्छा होता.’
‘निशि, अपने प्रेम के लिए मैं अपना घरेलू जीवन तोड़ने को तैयार हूं. प्लीज, इनकार मत करना. कल सुबह दिल्ली के लिए हवाई जहाज से 2 टिकट बुक करा लेता हूं. सुबह साढ़े 5 बजे अमौसी हवाई अड्डे पर आ जाना. अब देर करना ठीक नहीं है. मुझे रमा और निशि के बीच भटकना नहीं है. तुम सुबह आना, मैं इंतजार करूंगा.’
तब निशि केवल इतना ही बोल सकी, ‘ठीक है.’
बैड पर करवट बदल रहे शेखर यह सोच कर मुसकरा पड़ा कि कुछ घंटे बाद ही निशि हमेशा के लिए मेरी होगी.
शेखर ने घड़ी में समय देखा, 2.30 बजे थे.
तभी फोन की घंटी बज उठी. निशि का ही होगा. मैं भूल न जाऊं, यही याद दिलाने के लिए उस ने फोन किया होगा. सचमुच निशि कितनी अच्छी है. एकदम सच्चा प्रेम करती है मुझ से.
शेखर ने धीरे से उठ कर फोन का रिसीवर उठा लिया, ‘‘हैलो, मैं शेखर बोल रहा हूं.’’
‘‘शेखर, मैं निशि बोल रही हूं.’’
‘‘मैं पहले ही जान गया था कि तुम्हारा फोन होगा. इतनी उतावली क्यों हो रही हो? मैं भूला नहीं हूं. एकएक पल गिन रहा हूं, नींद नहीं आ रही है क्या.’’
‘‘ऐसी बात नहीं है. दरअसल, मैं कल आप की हालत देख कर संकोचवश कुछ कह नहीं सकी. काफी सोचने के बाद मुझे लगा कि एक शादीशुदा पुरुष की रखैल बनने के बदले निखिल की पत्नी बन जाना मेरे और तुम्हारे दोनों के लिए अच्छा रहेगा.
‘‘निखिल से विवाह कर के उस की पत्नी के रूप में मैं समाज में प्रतिष्ठा भी पाऊंगी और रमा बहन जैसी बेकुसूर औरत का संसार भी नहीं उजड़ेगा. तुम हवाई अड्डे जाने के लिए घर से निकलो, उस के पहले ही मैं और निखिल यह शहर छोड़ चुके होंगे. हम दोनों अभी नैनीताल जा रहे हैं. वहीं शादी कर के हनीमून मनाएंगे.
‘‘मुझे उम्मीद है कि तुम मुझे माफ कर दोगे. रमा दीदी सुंदर, सुशील हैं, उन्हें प्रेम दे कर उन से प्रेम पा सकते हो. एक औरत हो कर भी मैं ने रमा दीदी के साथ बहुत अन्याय किया है. अब इस से अधिक अन्याय मैं नहीं कर सकती. बात मेरी समझ में आ गई, भले ही थोड़ी देर से आई है. इसलिए अब मैं प्रेम के अंधेरे रास्ते पर नहीं चलना चाहती. अब आप मेरा इंतजार मत कीजिएगा.’’
फोन कट गया. शेखर का दिमाग चकराने लगा. उसे लगा वह रो पड़ेगा. लड़खड़ाते हुए बालकनी में आया. संभाल कर रखे जहाज के दोनों टिकटों को फाड़ कर हवा में उछाल दिया. उस के बाद आ कर कमरे में लेट गया. उस की नजर बगल में बेखबर सो रही रमा पर पड़ी. शेखर आंख बंद कर रमा और निशि की आपस में तुलना करने लगा.
4 बजे का अलार्म बजा. रमा ने आंख बंद कर के लेटे शेखर को झकझोरा, ‘‘उठो, 4 बज गए हैं. दिल्ली नहीं जाना क्या? तुम जल्दी से तैयार हो जाओ, मैं चाय बना कर ला रही हूं.’’
शेखर रमा को ताकने लगा. उसे लगा कि उस ने आज तक रमा को प्रेमभरी नजरों से देखा ही नहीं था. वाकई सीधीसादी होने के बावजूद रमा निशि से सुंदरता में बीस ही है. सादगी का भी अपना अलग सौंदर्य होता है.
‘‘इस तरह क्या देख रहे हो? क्या आज से पहले मुझे नहीं देखा था? चलो, जल्दी तैयार हो जाओ, देर हो रही है.’’
शेखर ने रमा को बांहों में बांध लिया और बोला, ‘‘रमा, मैं अब दिल्ली नहीं जाऊंगा.’’
रमा ने शेखर का यह व्यवहार सालों बाद अनुभव किया था. शेखर भी महसूस कर रहा था कि आज जब वह रमा को दिल से प्यार कर रहा है तो रमा की मदमाती अदाओं में कुछ अलग कशिश है. बीता वक्त लौट तो नहीं सकता था लेकिन उसे संवारा तो जा सकता था.
Story in Hindi
आईएएस यानी भारतीय प्रशासनिक सेवा में आने के बाद आनंद अभी बेंगलुरु में एक ऊंचे प्रशासनिक पद पर काम कर रहा है. महात्मा गांधी की पुकार पर साल 1942 के आंदोलन में स्कूल छोड़ कर देश की आजादी के लिए कूद पड़ने वाले करमना गांव के आदित्य गुरुजी के पोते आनंद को देश और समाज के प्रति सेवा करने की लगन विरासत में मिली है. आनंद बचपन से ही अपने तेज दिमाग, बड़ेबुजुर्गों के प्रति आदर और हमउम्र व बच्चों के बीच मेलजोल के साथ पढ़नेलिखने व खेलनेकूदने में भाग लेने के चलते बहुत लोकप्रिय था.
गांवसमाज के हर तीजत्योहार, शादीब्याह, रीतिरिवाज में आनंद को उमंग के साथ हिस्सा लेने में बहुत खुशी होती थी. केवल छात्र जीवन में ही नहीं, बल्कि प्रशासनिक सेवा में आने के बाद भी होलीदशहरा में वह गांव आने का मौका निकाल ही लेता था.
इस बार मार्च महीने में दफ्तर के कुछ काम से उसे पटना जाना था. पटना आने के बाद आनंद ने एक दिन गांव जाने का प्रोग्राम बनाया.
आनंद को गांव आ कर काफी अच्छा लगता है, पर अब यहां बहुतकुछ बदल गया है.
यह बात आज के बच्चे सोच भी नहीं सकते कि जहां पहले कभी कच्ची सड़क पर बैलगाड़ी और टमटम के अलावा कोई दूसरी सवारी नहीं हुआ करती थी, वहां अब पक्की रोड पर बसें और आटोरिकशा 12 किलोमीटर दूर रेलवे स्टेशन तक जाने के लिए हर 15 मिनट पर तैयार मिल जाते हैं.
यहां तक कि पटना से निकलने वाले सभी अखबार अब इस गांव में आते हैं और हौकर इन्हें घरघर तक पहुंचा जाता है. साथ ही, टैलीविजन पर भी अब हर छोटीबड़ी खबर और मनोरंजन के तमाम कार्यक्रमों समेत नईपुरानी फिल्में भी देखने को मिल जाती हैं.
अब आनंद के बाबूजी तो रहे नहीं, पर चाचा और चाची रहते हैं. उसे देखते ही उन के चेहरे पर खुशी की चमक आंखों में नमी लिए पसर गई.
आनंद ने चाचा के पैर छुए. उन्होंने उस के सिर को दोनों हाथों में ले कर चूमते हुए ढेर सारा आशीर्वाद दिया.
चाची दोनों की बातें सुनते हुए अंदर से बाहर आ गई थीं. आनंद ने उन के भी पैर छुए.
चाची ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘हम कह रहे थे कि आनंद हम को देखे बिना जा ही नहीं सकता.’’
‘‘कैसे हैं आप लोग?’’ आंखों में भर आए आंसुओं को रूमाल से पोंछते हुए आनंद ने पूछा.
‘‘तुम्हारे जैसे बेटे के रहते हमें क्या हो सकता है? हम भलेचंगे हैं. लो, कुछ चायनाश्ता कर के थोड़ा आराम कर लो, तब तक मैं खाना तैयार कर लेती हूं,’’ कह कर चाची अंदर चल पड़ीं.
‘‘बहुत परेशान न होइएगा चाची. सादा खाना ही ठीक रहेगा,’’ आनंद ने कहा और चायनाश्ता करते हुए चाचा
से अपने खेतखलिहान के साथ ही साफ बागबगीचे, गांवसमाज की बातें करने लगा.
चाची के हाथ का बना खाना खाते हुए आनंद को बरबस ही बचपन की यादें ताजा हो आईं.
खाना खाने के बाद आनंद ने कुछ देर आराम किया. शाम को चाचा ने फागू को बुलाया. उन्होंने सरसों के सूखे डंठलों को खलिहान से मंगवा कर परिवार के सदस्यों की संख्या के हिसाब से एक ज्यादा होल्लरी यानी लुकाठी बनवाई.
होलिका दहन के लिए गांव की तय जगह पर लोग समय पर इकट्ठा हो गए थे. आनंद भी चाचा के जोर देने पर वहां पहुंच गया था.
वैसे, होली के इस मौके पर होने वाली हुल्लड़बाजी और नशे के असर से सहीगलत न समझ पाने वाले नौजवानों की हरकतों को आनंद बचपन से ही नापसंद करता रहा है.
आनंद को यह बात तो अच्छी लगती कि होलिका दहन में गांवमहल्ले की बहुत सी गंदगी, बेकार की चीजें, जो सही माने में बुराई की प्रतीक हैं, जला कर आबोहवा को कुछ हद तक साफ करने में मदद मिलती है. परंतु वह यह भी मानता है कि होलिका दहन के ढेर से उठती आग की लपटों से कभीकभार आसपास के हरेभरे पेड़ों और मकानों को पहुंचने वाले नुकसान से इस को मनाने के सही ढंग पर नए सिरे से सोचना चाहिए.
आनंद को देख कर गांव के बहुत से नौजवान लड़के उस के पास आ गए. उन सभी लड़कों ने अपने मातापिता से आनंद के बारे में पहले ही बहुतकुछ सुन रखा था. वे अपने बच्चों को आनंद जैसा बनने की सीख देते थे.
आनंद को भी उन से मिल कर बहुत अच्छा लगा.
आनंद ने उन नौजवानों से दोस्त की तरह कई बातें कीं, फिर होलिका दहन के बारे में भी अपने मन की बातें उन से साझा कीं. वे सभी आनंद जैसे एक बड़े ओहदे वाले शख्स की इतनी अपनेपन भरी बातों से बहुत ज्यादा प्रभावित थे.
एक लड़के सुंदर ने आगे आते हुए कहा, ‘‘आनंद अंकल, हम आप से वादा करते हैं कि आगे से सावधान रहेंगे और किसी भी दुर्घटना की नौबत नहीं आने देंगे.’’
सुधीर ने भी भरोसा दिलाते हुए कहा, ‘‘अंकल, आज होली के नाम पर न तो कोई गंदे गाने गाएगा और न ही गंदी हरकत करेगा.’’
और सच में ही उस शाम के होलिका दहन को बड़ी सादगी से मनाया गया.
आनंद ने सभी को होली की मिठाई खिलाई. उस के बाद वह अपने चाचा के साथ घर लौट आया.
चैत्र पूर्णिमा की रात थी. दालान में चारपाई पर लेटे आनंद को चांदनी में नहाई रात काफी अच्छी लग रही थी. नींद की गहराई में धीरेधीरे उतरते हुए भी आनंद के कानों में होली के गीत सुनाई पड़ रहे थे.
अचानक ही तभी कुत्तों के भूंकने की आवाजों को बीच गांव के लोगों की घबराहट भरी आवाजों का शोर जोर पकड़ता हुआ सुनाई पड़ा.
‘‘मालिक, गोलीबंदूक के साथ बसहा गांव वाले फसल लगे खेतों की सीमा पर आ कर लड़नेमरने को तैयार खड़े हैं,’’ दीनू को अपने चाचा से यह कहते हुए सुन कर चौंकता हुआ आनंद झटके से उठ बैठा.
आनंद ने अपने मोबाइल फोन से कुछ संबंधित बड़े पुलिस अफसरों से बात करने की कोशिश की.
रास्ते में दीनू ने बताया कि आधी रात के बाद गांव के कुछ अंधविश्वासी लोग देवी मां के मंदिर में जमा हुए थे.
तांत्रिक इच्छा भगत ने पहले देवी मूर्ति की लाल उड़हुल के फूलों, रोली, अबीरगुलाल से पूजा की थी, उस के बाद एक तगड़ा काला कुत्ता भैरों के रूप में वहां लाया गया.
वहां जुटे लोगों ने खुद शराब पीने के साथसाथ उस कुत्ते को भी शराब पिलाई और फूलमाला से पूजा की गई.
नए साल में अपने गांव की खुशहाली और पुराने साल आई मुसीबतों को हमेशा के लिए भगाने के लिए उन्होंने करायल, अरंडी का तेल, पीली सरसों, लाल मिर्च, सिंदूर, चावल वगैरह को एक छोटे मिट्टी के बरतन में ढक कर भैरों कहे जाने वाले कुत्ते की गरदन में बांध दिया.
तांत्रिक इच्छा भगत ने मंदिर से एक जलता हुआ दीया उठा कर कुत्ते की गरदन में सामान समेत बंधे मिट्टी के बरतन में सावधानीपूर्वक रख दिया. फिर दीए की गरमी से परेशान कुत्ता भूंकता हुआ बसहा गांव की तरफ दौड़ पड़ा.
इच्छा भगत और कुछ लोग इस बात को पक्का करना चाहते थे कि वह कुत्ता वापस उन के अपने गांव में न लौटे.
उधर खेतों की रखवाली कर रहे बसहा गांव के कुछ किसानों ने दूसरे छोर पर आग की लपटों के साथ कुत्ते की गुर्राहट भरी आवाज सुनी. कुछ ही देर में पकने को तैयार गेहूं की फसल लपटों में झुलसने लगी थी.
रखवाली कर रहे किसानों को पूरा माजरा समझने में ज्यादा समय नहीं लगा. उन्होंने दौड़ कर तमाम गांव वालों को बुला लिया. ट्यूबवैल चला कर पानी से आग बुझाने के साथसाथ कुछ लोग गोलीबंदूक के साथ इस घटना के पीछे रहे करमना गांव को सबक सिखाने को ललकारने लगे थे. हवा में गोलियों की आवाजें गूंजने लगी थीं.
इस से पहले कि करमना गांव के कुछ अंधविश्वासी और नासमझ तत्त्वों की शरारत के कारण पड़ोसी गांव वालों की होली की खुशी खूनखराबे और मातम की भेंट चढ़ जाती, आनंद अपने साथ जिला मजिस्ट्रेट और एसपी की टीम मौके पर ले कर पहुंच गया. उस ने गुस्साए लोगों को समझाबुझा कर शांत किया.
अंधविश्वास में ‘भैरव टोटका’ करने वाले इच्छा भगत व दूसरे लोगों को पुलिस पकड़ कर वहां थोड़ी ही देर में पहुंच गई.
आनंद के कहने पर उन लोगों ने बसहा गांव के लोगों से अपने गलत अंधविश्वास के चलते किए गए काम के लिए माफी मांगी.
‘‘हम आप के पैर पकड़ते हैं भैया, हमें माफ कर दीजिए. हम शपथ लेते हैं कि आगे से नासमझी और अंधविश्वास से भरा कोई काम नहीं करेंगे.’’
तब तक आग बुझाने के लिए फायर ब्रिगेड की टीम भी वहां आ चुकी थी.
तेजी से किए गए बचाव काम से आग को ज्यादा फैलने के पहले ही बुझाने में कामयाबी मिल गई थी.
आनंद ने गांव वालों की ओर से हुई गलती के लिए माफी मांगते हुए कहा, ‘‘रघुवीर, मैं तुम्हारे जज्बात को अच्छी तरह समझ सकता हूं… अपनी जिस फसल को खूनपसीना बहा कर तुम ने तैयार किया है, उस के खेत में इस तरह जल जाने के चलते हुए दिल के घाव को भरना किसी के लिए मुमकिन नहीं है. फिर भी करमना गांव के लोगों की ओर से मैं खुद जिम्मेदारी लेता हूं कि तुम्हें जो भी नुकसान हुआ है, उसे हमारे द्वारा कल ही पूरा किया जाएगा.’’
अपने खेत की तैयार फसल के जलने से नाराज रघुवीर कुसूरवारों को सबक सिखाने पर आमादा था, पर अपने स्कूल के दिनों में सही बात से आगे बढ़़ने की प्रेरणा देने वाले आदित्य गुरुजी जैसे आनंद के रूप में अभी वहां आ खड़े हो गए थे, इसलिए वह अपने गुस्से पर काबू कर गया.
रघुवीर आनंद के पैरों पर झुकता हुआ बोला, ‘‘माफ करें सर. आप की हर बात मेरे सिरआंखों पर.’’
आनंद ने रघुवीर को गले लगाते हुए कहा, ‘‘उठो रघुवीर, अब बसहापुर गांव और करमना गांव आपस में
मिल कर एकदूसरे की मुसीबतों को मिटाते हुए खुशियां लाने के लिए हमेशा तैयार रहेंगे. तुम बिलकुल चिंता मत करो.
‘‘इस बार गांव के स्कूल वाले मैदान में करमना और बसहा दोनों गांव मिल कर एकसाथ होली मनाएंगे.’’
वहां जमा दोनों गांवों के लोगों के चेहरे पर खुशी की लाली चमक उठी. ‘हांहां’ के साथ ‘होली है होली है’ की आवाजें चिडि़यों की चहचहाहट भरे माहौल में गूंज उठीं.
उसी समय गांव के पूर्वी आकाश में सूरज एक लाल कमल की तरह खिलता नजर आ रहा था.
‘‘इतनी टेंशन में किसलिए नजर आ रहे हो, पापा?’’ रवि ने माथे में बल डाल कर सवाल पूछा.
‘‘तुम्हारी मम्मी का फोन आया था,’’ राकेशजी का स्वर नाराजगी से भरा था.
‘‘ऐसा क्या कह दिया उन्होंने जो आप इतने नाखुश दिख रहे हो?’’
‘‘मकान तुम्हारे नाम करने और मेरे अकाउंट में तुम्हारा नाम लिखवाने की बात कह रही थी.’’
‘‘क्या आप को उन के ये दोनों सुझाव पसंद नहीं आए हैं?’’
‘‘तुम्हारी मां का बात करने का ढंग कभी ठीक नहीं रहा, रवि.’’
‘‘पापा, मां ने मेरे साथ इन दोनों बातों की चर्चा चलने से पहले की थी. इस मामले में मैं आप को अपनी राय बताऊं?’’
‘‘बताओ.’’
‘‘पापा, अगर आप अपना मकान अंजु आंटी और नीरज को देना चाहते हैं तो मेरी तरफ से ऐसा कर सकते हैं. मैं अच्छाखासा कमा रहा हूं और मौम की भी यहां वापस लौटने में बिलकुल दिलचस्पी नहीं है.’’
‘‘क्या तुम को लगता है कि अंजु की इस मकान को लेने में कोई दिलचस्पी होगी?’’ कुछ देर खामोश रहने के बाद राकेशजी ने गंभीर लहजे में बेटे से सवाल किया.
‘‘क्यों नहीं होगी, डैड? इस वक्त हमारे मकान की कीमत 70-80 लाख तो होगी. इतनी बड़ी रकम मुफ्त में किसी को मिल रही हो तो कोई क्यों छोड़ेगा?’’
‘‘मुझे यह और समझा दो कि मैं इतनी बड़ी रकम मुफ्त में अंजु को क्यों दूं?’’
‘‘पापा, आप मुझे अब बच्चा मत समझो. अपनी मिस्टे्रस को कोई इनसान क्यों गिफ्ट और कैश आदि देता है.’’
‘‘क्यों देता है?’’
‘‘रिलेशनशिप को बनाए रखने के लिए, डैड. अगर वह ऐसा न करे तो क्या उस की मिस्टे्रस उसे छोड़ क र किसी दूसरे की नहीं हो जाएगी.’’
‘‘अंजु मेरी मिस्टे्रस कभी नहीं रही है, रवि,’’ राकेशजी ने गहरी सांस छोड़ कर जवाब दिया, ‘‘पर इस तथ्य को तुम मांबेटा कभी सच नहीं मानोगे. मकान उस के नाम करने की बात उठा कर मैं उसे अपमानित करने की नासमझी कभी नहीं दिखाऊंगा. नीरज की पढ़ाई पर मैं ने जो खर्च किया, अब नौकरी लगने के बाद वह उस कर्जे को चुकाने की बात दसियों बार मुझ से कह…’’
‘‘पापा, मक्कार लोगों के ऐसे झूठे आश्वासनों को मुझे मत सुनाओ, प्लीज,’’ रवि ने उन्हें चिढ़े लहजे में टोक दिया, ‘‘अंजु आंटी बहुत चालाक और चरित्रहीन औरत हैं. उन्होंने आप को अपने रूपजाल में फंसा कर मम्मी, रिया और मुझ से दूर कर…’’
‘‘तुम आज मेरे मन में सालों से दबी कुछ बातें ध्यान से सुन लो, रवि,’’ इस बार राकेशजी ने उसे सख्त लहजे में टोक दिया, ‘‘मैं ने अपने परिवार के प्रति अपनी सारी जिम्मेदारियां बड़ी ईमानदारी से पूरी की हैं पर ऐसा करने के बदले में तुम्हारी मां से मुझे हमेशा अपमान की पीड़ा और अवहेलना के जख्म ही मिले.
‘‘रिया और तुम भी अपनी मां के बहकावे में आ कर हमेशा मेरे खिलाफ रहे. तुम दोनों को भी उस ने अपनी तरह स्वार्थी और रूखा बना दिया. तुम कल्पना भी नहीं कर सकते कि तुम सब के गलत और अन्यायपूर्ण व्यवहार के चलते मैं ने रातरात भर जाग कर कितने आंसू बहाए हैं.’’
‘‘पापा, अंजु आंटी के साथ अपने अवैध प्रेम संबंध को सही ठहराने के लिए हमें गलत साबित करने की आप की कोशिश बिलकुल बेमानी है,’’ रवि का चेहरा गुस्से से लाल हो उठा था.
‘‘मेरा हर एक शब्द सच है, रवि,’’ राकेशजी जज्बाती हो कर ऊंची आवाज में बोलने लगे, ‘‘तुम तीनों मतलबी इनसानों ने मुझे कभी अपना नहीं समझा. दूसरी तरफ अंजु और नीरज ने मेरे एहसानों का बदला मुझे हमेशा भरपूर मानसम्मान दे कर चुकाया है. इन दोनों ने मेरे दिल को बुरी तरह टूटने से…मुझे अवसाद का मरीज बनने से बचाए रखा.
‘‘जब तुम दोनों छोटे थे तब हजारों बार मैं ने तुम्हारी मां को तलाक देने की बात सोची होगी पर तुम दोनों बच्चों के हित को ध्यान में रख कर मैं अपनेआप को रातदिन की मानसिक यंत्रणा से सदा के लिए मुक्ति दिलाने वाला यह निर्णय कभी नहीं ले पाया.
‘‘आज मैं अपने अतीत पर नजर डालता हूं तो तुम्हारी क्रूर मां से तलाक न लेने का फैसला करने की पीड़ा बड़े जोर से मेरे मन को दुखाती है. तुम दोनों बच्चों के मोह में मुझे नहीं फंसना था…भविष्य में झांक कर मुझे तुम सब के स्वार्थीपन की झलक देख लेनी चाहिए थी…मुझे तलाक ले कर रातदिन के कलह, लड़ाईझगड़ों और तनाव से मुक्त हो जाना चाहिए था.
‘‘उस स्थिति में अंजु और नीरज की देखभाल करना मेरी सिर्फ जिम्मेदारी न रह कर मेरे जीवन में भरपूर खुशियां भरने का अहम कारण बन जाता. आज नीरज की आंखों में मुझे अपने लिए मानसम्मान के साथसाथ प्यार भी नजर आता. अंजु को वैधव्य की नीरसता और अकेलेपन से छुटकारा मिलता और वह मेरे जीवन में प्रेम की न जाने कितनी मिठास भर…’’
राकेशजी आगे नहीं बोल सके क्योंकि अचानक छाती में तेज दर्द उठने के कारण उन की सांसें उखड़ गई थीं.
रवि को यह अंदाजा लगाने में देर नहीं लगी कि उस के पिता को फिर से दिल का दौरा पड़ा था. वह डाक्टर को बुलाने के लिए कमरे से बाहर की तरफ भागता हुआ चला गया.
राकेशजी ने अपने दिल में दबी जो भी बातें अपने बेटे रवि से कही थीं, उन्हें बाहर गलियारे में दरवाजे के पास खड़ी अंजु ने भी सुना था. रवि को घबराए अंदाज में डाक्टर के कक्ष की तरफ जाते देख वह डरी सी राकेशजी के कमरे में प्रवेश कर गई.
राकेशजी के चेहरे पर गहन पीड़ा के भाव देख कर वह रो पड़ी. उन्हें सांस लेने में कम कष्ट हो, इसलिए आगे बढ़ कर उन की छाती मसलने लगी थी.
‘‘सब ठीक हो जाएगा…आप हिम्मत रखो…अभी डाक्टर आ कर सब संभाल लेंगे…’’ अंजु रोंआसी आवाज में बारबार उन का हौसला बढ़ाने लगी.
राकेशजी ने अंजु का हाथ पकड़ कर अपने हाथों में ले लिया और अटकती आवाज में कठिनाई से बोले, ‘‘तुम्हारी और अपनी जिंदगी को खुशहाल बनाने से मैं जो चूक गया, उस का मुझे बहुत अफसोस है…नीरज का और अपना ध्यान रखना…अलविदा, माई ल…ल…’’
जिम्मेदारियों व उत्तरदायित्वों के समक्ष अपने दिल की खुशियों व मन की इच्छाओं की सदा बलि चढ़ाने वाले राकेशजी, अंजु के लिए अपने दिल का प्रेम दर्शाने वाला ‘लव’ शब्द इस पल भी अधूरा छोड़ कर इस दुनिया से सदा के लिए विदा हो गए थे.
अपनी जिंदगी के अहम फैसले उन के दोनों बच्चों ने कभी उन के साथ सलाह कर के नहीं लिए थे. जवान होने के बाद वे अपने पिता को अपनी मां की खुशियां छीनने वाला खलनायक मानने लगे थे. उन की ऐसी सोच बनाने में सीमा का उन्हें राकेश के खिलाफ लगातार भड़काना महत्त्वपूर्ण कारण रहा था.
उन की बेटी रिया ने अपना जीवनसाथी भी खुद ढूंढ़ा था. हीरो की तरह हमेशा सजासंवरा रहने वाला उस की पसंद का लड़का कपिल, राकेश को कभी नहीं जंचा.
कपिल के बारे में उन का अंदाजा सही निकला था. वह एक क्रूर स्वभाव वाला अहंकारी इनसान था. रिया अपनी विवाहित जिंदगी में खुश और सुखी नहीं थी. सीमा अपनी बेटी के ससुराल वालों को लगातार बहुतकुछ देने के बावजूद अपनी बेटी की खुशियां सुनिश्चित नहीं कर सकी थी.
शादी करने के लिए रवि ने भी अपनी पसंद की लड़की चुनी थी. उस ने विदेश में बस जाने का फैसला अपनी ससुराल वालों के कहने में आ कर किया था.
राकेश को इस बात से बहुत पीड़ा होती थी कि उन के बेटाबेटी ने कभी उन की भावनाओं को समझने की कोशिश नहीं की. वे अपनी मां के बहकावे में आ कर धीरेधीरे उन से दूर होते चले गए थे.
इन परिस्थितियों में अंजु और उस के बेटे के प्रति उन का झुकाव लगातार बढ़ता गया. उन के घर उन्हें मानसम्मान मिलता था. वहां उन्हें हमेशा यह महसूस होता कि उन दोनों को उन के सुखदुख की चिंता रहती है.
इस में कोई शक नहीं कि उन्होंने नीरज की इंजीनियरिंग की पढ़ाई का लगभग पूरा खर्च उठाया था. सीमा ने इस बात के पीछे कई बार कलहक्लेश किया पर उन्होंने उस के दबाव में आ कर इस जिम्मेदारी से हाथ नहीं खींचा था. वह अंजु से उन के मिलने पर रोक नहीं लगा सकी थी क्योंकि उसे कभी कोई गलत तरह का ठोस सुबूत इन के खिलाफ नहीं मिला था.
राकेशजी को पहला दिल का दौरा 3 साल पहले और दूसरा 5 दिन पहले पड़ा था. डाक्टरों ने पहले दौरे के बाद ही बाईपास सर्जरी करा लेने की सलाह दी थी. अब दूसरे दौरे के बाद आपरेशन न कराना उन की जान के लिए खतरनाक साबित होगा, ऐसी चेतावनी उन्होंने साफ शब्दों में राकेशजी को दे दी थी.
पिछले 5 दिनों में उन के अंदर जीने का उत्साह मर सा गया था. वे खुद को बहुत अकेला महसूस कर रहे थे. उन्हें बारबार लगता कि उन का सारा जीवन बेकार चला गया है.
मोबाइल फोन की घंटी बजी तो राकेशजी यादों की दुनिया से बाहर निकल आए थे. उन की पत्नी सीमा ने अमेरिका से फोन किया था.
‘‘क्या रवि ठीकठाक पहुंच गया है?’’ सीमा ने उन का हालचाल पूछने के बजाय अपने बेटे का हालचाल पूछा तो राकेशजी के होंठों पर उदास सी मुसकान उभर आई.
‘‘हां, वह बिलकुल ठीक है,’’ उन्होंने अपनी आवाज को सहज रखते हुए जवाब दिया.
‘‘डाक्टर तुम्हें कब छुट्टी देने की बात कह रहे हैं?’’
‘‘अभी पता नहीं कि छुट्टी कब तक मिलेगी. डाक्टर बाईपास सर्जरी कराने के लिए जोर डाल रहे हैं.’’
‘‘मैं तो अभी इंडिया नहीं आ सकती हूं. नन्हे रितेश की तबीयत ठीक नहीं चल रही है. तुम अपनी देखभाल के लिए एक नर्स का इंतजाम जरूर कर लेना.’’
‘‘ठीक है.’’
‘‘अपने अकाउंट में भी उस का नाम जुड़वा दो.’’
‘‘ठीक है.’’
‘‘मैं तो कहती हूं कि आपरेशन कराने के बाद तुम भी यहीं रहने आ जाओ. वहां अकेले कब तक अपनी बेकद्री कराते रहोगे?’’
‘‘तुम मेरी फिक्र न करो और अपना ध्यान रखो.’’
‘‘मेरी तुम ने आज तक किसी मामले में सुनी है, जो अब सुनोगे. वकील को जल्दी बुला लेना. रवि के यहां वापस लौटने से पहले दोनों काम हो जाने…’’
राकेशजी को अचानक अपनी पत्नी की आवाज को सुनना बहुत बड़ा बोझ लगने लगा तो उन्होंने झटके से संबंध काट कर फोन का स्विच औफ कर दिया. कल रात को अपनेआप से किया यह वादा उन्हें याद नहीं रहा कि वे अब अतीत को याद कर के अपने मन को परेशान व दुखी करना बंद कर देंगे.
‘इस औरत के कारण मेरी जिंदगी तबाह हो गई.’ यह एक वाक्य लगातार उन के दिमाग में गूंज कर उन की मानसिक शांति भंग किए जा रहा था.
कुछ देर बाद जब रवि ने उन के कमरे में कदम रखा तब राकेशजी के चेहरे पर तनाव के भाव साफ नजर आ रहे थे.
‘‘यह फ्लैट मुझे मुख्यमंत्री ने अपने विशेष कोटे से अलौट किया है जिस में उन के और मेरे खास दोस्त ही ठहर सकते हैं. तुम कुछ दिन वहां रह लो, फिर मैं मुख्यमंत्री से बात कर के तुम्हें निराश्रित और आर्थिकरूप से कमजोर विधवा बता कर तुम्हारे नाम से एक आलीशान फ्लैट भी अलौट करवा दूंगा जहां तुम आराम से रहना, फिर रूपयोंपैसों की तो तुम्हारे पास कमी है नहीं. अगर जरूरत पड़ जाए तो हम लोग हैं ही.’’
‘‘लो, तुम्हारे सामने ही मैं वे सभी वीडियो डिलीट कर देती हूं,’’ कहते हुए मीनाक्षी ने अपना मोबाइल निकाला और विशाल के सामने सारे वीडियो डिलीट कर दिए, फिर लैपटौप में सेव किए हुआ वीडियोज का एक फोल्डर भी डिलीट कर दिया.
विशाल बड़े ध्यान से सब देख रहा था मगर उस ने मीनाक्षी के साथ जिस तरह की दोस्ती थी उस से उस ने यह जरूर जान लिया था कि मीनाक्षी बहुत शातिर है. जितनी सहजता से वह सब डिलीट कर रही है, इस का मतलब यही है कि उस ने ये सब कहीं और जरूर छिपा कर रखा होगा. विशाल ने देखा कि मीनाक्षी अपने लैपटौप और अन्य कुछ इलैक्ट्रौनिक डिवाइसेज हरे रंग के एक छोटे से बैग में रख कर उसे लाल रंग के सूटकेस में रख रही है.
विशाल ने मीनाक्षी के सामने सुनहरे सपनों का एक महल खड़ा कर दिया था. वह बेहद खुश हो गई थी. विशाल की बातें सुन कर मीनाक्षी खयालों में खो गई और अपने सुरक्षित एवं सुखद भविष्य की कल्पना करने लगी. कल्पना की दुनिया में खोई मीनाक्षी सोचने लगी कि उस ने अरुण के साथ हमेशा तनावग्रस्त जिंदगी जी है, अरुण उस के साथ बहुत अत्याचार करता था, अपनी जान बचाने के लिए वह अपनी पत्नी का उपयोग करने से भी बाज नहीं आता था. अब उसे इस तरह की घिनौनी जिंदगी से छुटकारा मिल जाएगा.
लेकिन, मीनाक्षी अपने गिरेबान में नहीं ?ांक रही थी. उस ने भी तो अरुण के नाम से बहुत फायदा उठाया था. ऐशोआराम की जिंदगी जीने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी. महंगी कारों में घूमने और बड़े होटलों में पार्टियों से उसे फुरसत कहां मिलती थी. जब से उस ने सैक्रेटियट में एंट्री की थी तब से उस का रोब और भी बढ़ गया था. कई अफसरों व मंत्रियों से उस के बैडरूम कौन्टैक्ट्स भी थे. उस ने मुख्यमंत्री तक को अपना मोहरा बना कर रखा था.
मीनाक्षी 2 दिनों बाद विशाल के वीआईपी फ्लैट में रहने के लिए चली गई. अब मीनाक्षी बहुत खुश थी और सोच रही थी कि अब उस के दिन बदल रहे हैं. मगर वह मुख्यमंत्री और विशाल के बीच जो खिचड़ी पक रही थी, उस से नावाकिफ थी. मुख्यमंत्री को उन के बहुत ही करीबी एक मीडियाकर्मी दोस्त ने सावधान करते हुए कहा था कि विरोधी पार्टी ने मीनाक्षी को उन के खेमे में सेंध लगाने के लिए भेजा है. विरोधी पार्टी के एक बड़े नेता के घर में मीनाक्षी का आनाजाना बढ़ गया है. उस ने यहां तक सुना है कि अगर वह सरकार गिराने मे सहयोग करेगी तो उसे मंत्री भी बनाया जा सकता है. कहते हैं कि राजनीति में कोई किसी का दोस्त नहीं होता. आप का जिगरी दोस्त तक आप की आस्तीन का सांप बन जाता है.
एक दिन मुख्यमंत्री ने विशाल को अपने बंगले पर बुलाया और सारी बातें बताते हुए सचेत रहने की सलाह दी. फिर दोनों ने यह तय किया कि मीनाक्षी को रास्ते से हटाना ही उन के हित में होगा. दोनों ने रात देर तक बातें कर के अपने प्लान को अंतिम रूप दिया और एकदूसरे से गले मिलते हुए जुदा हुए.
4 दिनों बाद विशाल ने मीनाक्षी को फोन किया, ‘‘हैलो मीनाक्षी, कैसी हो, कोई परेशानी तो नहीं हो रही है तुम्हें?’’
‘‘नहीं तो, यहां तो बहुत अच्छा लग रहा है. मु?ो कोई तकलीफ नहीं है,’’ मीनाक्षी ने खुश होते हुए कहा.
‘‘मीनाक्षी, दरअसल, मैं ने इसलिए फोन किया कि मुख्यमंत्री के 2 खास दोस्त कल अपनी फैमिली के साथ यूएस से किसी बहुत ही जरूरी काम के लिए उन से मिलने आ रहे हैं. वे केवल 4 दिन इंडिया में रुकेंगे. मुख्यमंत्री उन से सीक्रेटली’ मिलना चाहते हैं. इस के लिए उन्होंने मुझ से अनुरोध किया है कि उन के ठहरने की व्यवस्था वीआईपी फ्लैट में करूं. मैं उन के अनुरोध को टाल नहीं सकता. तुम्हें थोड़ी परेशानी तो होगी मगर क्या कर सकते हैं.
‘‘प्लीज, मेरे लिए तुम्हें थोड़ी तकलीफ उठानी पड़ेगी. बस, 4 दिन की बात है. तुम अपना बहुत जरूरी सामान ले कर होटल हिलटोन में पहुंच जाना. वहां मैं ने तुम्हारे लिए एक डीलैक्स सूट 4 दिन के लिए तुम्हारे नाम से ही बुक करवा दिया है. सारा पेमैंट मैं ने एडवांस में ही पेड कर दिया है. तुम्हें वहां 4 दिन तक एक भी पैसा अपनी जेब से खर्च नहीं करना है. मुख्यमंत्री के दोस्त जैसे ही यूएस के लिए रवाना होंगे, तुम अपने फ्लैट में लौट जाना.’’
‘‘हां, क्यों नहीं विशाल, 4 दिन की ही तो बात है. मैं कल सुबह ही चली जाऊंगी, डोंट वरी.’’ शहर के सब से बड़े फाइवस्टार होटल में 4 दिन तक शान से मुफ्त में रहने को मिलेगा, इस खुशी में उछलते हुए मीनाक्षी ने आगे कहा, ‘‘थैंक्यू.’’
विशाल ने फोन काट दिया और तुरंत मुख्यमंत्री को सारी बात बता दी.
‘‘वैरी गुड विशाल, तुम अब तैयार हो जाओ. हम दोनों आज रात 11 बजे की फ्लाइट से उदयपुर मेरे पिता से मिलने जा रहे हैं. उन की तबीयत बहुत खराब है. हमारे टिकट बुक हो चुके हैं,’’ मुख्यमंत्री ने खुश होते हुए कहा.
विशाल की समझ में नहीं आ रहा था कि मुख्यमंत्री अचानक उदयपुर जाने के लिए क्यों कह रहे हैं. प्लान तो कुछ अलग बना था. खैर, वह तैयार हो कर निश्चित समय पर एअरपोर्ट पहुंच गया. रात में करीब एक बजे वे दोनों उदयपुर पहुंच गए. मुख्यमंत्री के पिताजी बिलकुल स्वस्थ लग रहे थे, घर के बाकी सभी सदस्य भी ठीक लग रहे थे.
विशाल ने मुख्यमंत्री की तरफ देखा, तो उन्होंने अपनी बाईं आंख दबाते हुए कहा, ‘‘विशाल, एवरी थिंग इज गोइंग वैल. डोंट वरी. जा कर अपने कमरे में सो जाओ, सुबह बात करेंगे.’’
विशाल सुबह जल्दी उठ कर तैयार हो गया. मगर मुख्यमंत्री देर तक सोते रहे. वे 10 बजे के बाद उठे और करीब 12 बजे तक नहाधो कर तैयार हुए. बाहर हौल में आ कर उन्होंने विशाल से कहा, ‘‘विशाल, जरा टीवी लगा कर समाचार तो सुनो.’’
विशाल ने जल्दी से टीवी औन किया, एक न्यूज चैनल लगाया जिस पर ब्रेकिंग न्यूज आ रही थी- ‘कुख्यात गैंगस्टर अरुण नाईक की पत्नी मीनाक्षी नाईक की एक सड़क दुर्घटना में मौत. वे अपनी कार खुद चला रही थीं. एक विकट मोड़ पर उन की कार एक ट्रक से टकरा गई. कार का पैट्रोल टैंक फट जाने से उन का पूरा शरीर जल गया तथा कार में रखा सामान भी जल कर राख हो गया.’’
मुख्यमंत्री विशाल की पीठ पर हाथ रखते हुए बोले, ‘‘विशाल, हम भी पहुंचे हुए खिलाड़ी हैं. हम ने कच्ची गोटियां नहीं खेली हैं. तुम ने जिस लाल सूटकेस को हमारे लिए खतरा बताया था, उसे मीनाक्षी कार में अपने साथ ले जा रही थी. पलभर में खेल खत्म हो गया और हम दोनों शहर से बाहर हैं.’’ यह कहते हुए मुख्यमंत्री ने जोर से ठहाका लगाया और ताली के लिए अपना हाथ आगे बढ़ाया.
विशाल ने भी ठहाका लगा कर उन्हें ताली देते हुए कहा, ‘‘सरजी, आप केवल खिलाड़ी नहीं, आप तो खिलाडि़यों के भी खिलाड़ी हैं.’’
‘‘हो सके तो कुछ दिनों के लिए मेरे साथ वक्त बिताने के लिए तुम भी बीजिंग आ जाना. आओगी तो अच्छा लगेगा मुझे, तुम्हारी मेहरबानी होगी मुझ पर,’’ शरद ने दुबई एयरपोर्ट पर मुझ से विदाई लेते हुए कहा. उन का काम के सिलसिले में देशविदेश जानाआना लगा रहता था. वे जहां भी जाते थे, उम्मीद करते कि कुछ ही दिनों के लिए ही सही, मैं भी उन्हें जौइन करूं.
‘सूरत देखी है अपनी शीशे में, मैं घर में तो तुम्हारे साथ 5 मिनट बैठना पसंद नहीं करती, फिर बीजिंग में क्या खाक करने आऊंगी. मैं तो तुम्हारे साथ उम्र काट रही हूं उम्रकैद की तरह,’ मैं ने दिल ही दिल में सुलगते हुए सोचा और शरद की बात को तवज्जुह दिए बिना कार से उन का लगेज निकालने में उन की मदद करने लगी. फिर बिना उन की तरफ देखे ही गुडबाय कर, टाइम से अपने औफिस पहुंचने के लिए कार स्टार्ट कर दी.
शेख जायद रोड ट्रैफिक से पटी हुई थी. ‘लगता है फिर औफिस के लिए देर हो जाएगी और नगमा की स्कैन करती हुई आंखें फिर से बरदाश्त करनी होंगी. क्या दोटके की जिंदगी है मेरी,’ मैं मन ही मन भन्नाई. तभी एक हौर्न की आवाज ने मेरी सोच में बाधा डाली. सामने ग्रीन लाइट हो चुकी थी. मैं ने यंत्रवत ब्रैक से पैर हटा कर कलच पर दबाव डाला. मेरी कार आगे बढ़ने लगी और मेरी सोच भी.
इंडिया में मेरे भैया सोचते हैं कि मेरी झोली चांदसितारों से भरी हुई है. उन्हें क्या पता कि हालात मुझे न्यूट्रौन में बदल चुके हैं, न कोई खुशी न गम. जी रही हूं एक उदासीन सी जिंदगी क्योंकि हाथ में उम्र की लंबी सी लकीर ले कर पैदा हुई हूं. ढो रही हूं नीम पर चढ़े हुए करेले सी कड़वी बेनूर, अनचाही शादी को.
‘‘कुछ खोईखोई सी हैं आप आज,’’ औफिस पहुंचते ही नगमा ने आदतानुसार कटाक्ष किया.
‘‘तुम्हें तो पता है कि मैं शौकिया तौर पर शायरी लिखती हूं, इसलिए सोचते रहना मेरा काम है. सोचूंगी नहीं तो लिखूंगी कैसे,’’ मैं ने स्थिति संभालते हुए सफाई पेश की.
‘‘आज तो तुम्हारा चेहरा कोई औटोबायोग्राफिकल शेर सुनाता सा लग रहा है. ऐसा लग रहा है कि किसी ने तुम्हारे दिल की तनहाइयों में पत्थर फेंक कर वहां उथलपुथल मचा दी हो.’’
‘‘आप भी कौन सी कम हैं, दूसरों की जिंदगी में हस्तक्षेप करकर के उन की जिंदगी की खामियों के नगमें दुनिया में गागा कर अपना नाम सार्थक करती रहती हैं,’’ मैं ने नहले पर दहला मारा क्योंकि मैं जानती थी कि सीधी भाषा नगमा को समझ में नहीं आती है.
‘‘तुम जानो, तुम्हारा काम जाने. मेरे पास भी फालतू वक्त नहीं है तुम्हारे जैसों पर जाया करने के लिए,’’ नगमा खिसियाई बिल्ली सी मुझे अकेला छोड़ कर चली गई. दिन काम की व्यस्तताओं में गुजर गया. शाम का इंतजार करने की जरूरत नहीं हुई. सीधे घर जाने की इच्छा नहीं हो रही थी, घर जा कर कौन से गीत गाऊंगी. वही रोज का बेनूर रूटीन- खाना बनाओ, डिशवाशर लोड करो, डिनर कर के किचन साफ करो और फिर नहाधो कर बैडरूम में एक बोरियतभरी रात काटो.
मन ज्यादा दुखी होता तो यूट्यूब पर सफल प्रेमकहानियां देख कर खुश होने की नाकाम कोशिश कर लेती. इन प्रेमकहानियों में अपने होने की कल्पना करती. और काल्पनिक ही सही, पर कुछ पल प्यार से जीने की कोशिश करती. फिर याद आया कि शरद तो हैं ही नहीं, इसलिए आज रास्ते में ही कुछ खा कर चलती हूं. अकेले अपने लिए क्या पूरी कुकिंग करने की तकलीफ उठानी.
वर्ल्ड ट्रेड सैंटर स्थित जेपेनगो कैफे में मैंगू स्मूदी के घूंट भरते हुए अनमने मन से सामने पड़े हुए अखबार के पन्ने आखिरी पेज की तरफ से पलटने लगी. जब से नौकरी ढूंढ़नी शुरू की थी, अखबार को आखिरी पेज की तरफ से पलटने की आदत पड़ गई थी. नौकरी तो करीब सालभर पहले मिल गई थी मगर आदत आज भी वैसी की वैसी बनी हुई है.
डिनर करने के बाद भी सीधे घर जाने की इच्छा नहीं हो रही थी. औफिस के बाद आसपास की फ्लोरिस्ट शौप में यों ही चक्कर लगाना मुझे अच्छा लगता था. आज मैं फिर से वहां फूलों को निहारने के लिए पहुंच गई.
फूलों को देखतेदेखते अचानक मुझे महसूस हुआ कि आंखों की कोरों से मैं ने किसी जानेपहचाने चेहरे को आसपास देखा है. कोई ऐसा चेहरा जो पहले कभी मेरे बहुत करीब रहा है. मैं तुरंत ही फ्लोरिस्ट शौप से बाहर निकल आई. मैं ने चारों ओर नजर घुमा कर देखा. मगर दूरदूर तक कोई भी परिचित चेहरा नजर न आया. शायद मुझे कोई गलतफहमी हुई है. यह सोचती हुई मैं कार पार्किंग की ओर बढ़ने लगी, तो देखा कि टैक्सीस्टैंड पर जोसफीन खड़ी थी.
जोसफीन यहां और वह भी ब्राइन के बिना, यह कैसे संभव है. हैरान सी मैं लपक कर उस की तरफ भागी. मुझे देख कर जोसफीन उत्साह से भर कर मेरे गले लग गई. परिचित मुसकराहट से सराबोर उस का चेहरा कई वर्षों के बाद देखने को मिल रहा था.
‘‘इन से मिलो, ये हैं मेरे नए पार्टनर जैकब,’’ जोसफीन ने अपने साथ खड़े आदमी की तरफ इशारा करते हुए कहा.
‘‘पार्टनर, क्या मतलब? तुम्हारी और ब्राइन की कंपनी में कोई पार्टनर भी हुआ करता था, ये तो तुम ने पहले कभी बताया ही नहीं,’’ मैं ने कुतूहल से पूछा.
‘‘नहींनहीं, मेरा वह मतलब नहीं है. मेरे कहने का मतलब है जैकब मेरे डी- फैक्टो पार्टनर हैं और हम लिविंग टूगेदर रिलेशन में हैं.’’
मैं ने एक गहरी नजर जैकब महाशय पर डाली. मेरे होंठ कुछ बोलने को हिले. मगर शब्द बाहर न आ सके.
आखिर जोसफीन ने ही बात को आगे बढ़ाते हुए कहा, ‘‘काफी समय से तुम से बातचीत नहीं हो पाई है. तुम तो बिना कुछ बताए ही सिडनी से गायब हो ली थीं. लाइफ काफी बदल चुकी है तब से. अभी हम यहां एक हफ्ते और रुकेंगे. अगर मौका मिला तो तुम्हारे साथ कौफी पीने आऊंगी. मुझे अपना फोन नंबर दे दो.’’
मैं ने ज्यादा कुछ सोचे बिना हैंडबैग से अपना कार्ड निकाल कर उस की ओर बढ़ा दिया. तभी एक टैक्सी आ गई. जोसफीन ने एक बार फिर से मुझे अपने गले लगाया और जैकब के साथ टैक्सी में बैठ कर चली गई. मैं हैरानपरेशान सी टैक्सी को अपनी आंखों से ओझल होने तक देखती रही.
ब्राइन सिडनी का जानामाना व्यक्ति था. उस की खनिज तेल और खनन कंपनी थी जो कि आस्ट्रेलिया, टर्की, अफ्रीका और अमेरिका तक फैली हुई थी. उस की रईसी उस के सिडनी के पौइंट पाइपर उपनगर स्थित निवास में ही सिमटी हुई नहीं थी, बल्कि पूरे सैलाब के साथ हर तरफ छलकीछलकी पड़ती थी. धन की अधिकता के साथसाथ उस की हर बात बड़ी थी. वह अपने धन को अपने बैंक खाते तक ही सीमित नहीं रखता था, मानवीय कामों पर भी जम कर लुटाता था. उस के नाम और काम की चर्चा शहर के कोनेकोने में इज्जत के साथ होती थी.
ब्राइन के किसी से मिलने के पहले ही उस की प्रसिद्धि उस तक पहुंच जाती. विश्वविद्यालय को रिसर्च और जरूरतमंद छात्रों की उच्चशिक्षा के लिए अनुदान देना उस के पसंदीदा लोकोपकारी काम थे.
इन तमाम मानवतावादी कामों के साथसाथ उसे अपने लिए जीना भी बखूबी आता था. वह गोताखोरी, नौकायन, पैराग्लाइडिंग का बेहद शौकीन था.
जोसफीन और ब्राइन की मुलाकातों का सिलसिला नीले आकाश के आंचल में हुआ था. जोसफीन क्वान्टाज एयरलाइंस में एयरहोस्टेस थी. और ब्राइन अपने देशविदेश में फैले हुए व्यापार के सिलसिले में ज्यादातर हवाईयात्रा करने वाला यात्री.
अपनी मुसकराहट की जादूगरी से यात्रियों की लंबीलंबी यात्राओं को सुखद बनाने वाली नीलगगन की परी सी थी जोसफीन. उस की फ्लाइट में उस की सेवा में उड़ने वाले यात्री उसे कभी न भुला पाते और अपनी हर यात्रा में उसी की सेवा में उड़ने की चाहत रखते. एक तरफ आकर्षक रूपसागर था तो दूसरी तरफ भव्य जिंदगी जीने वाला प्रभावशाली व्यापारी. दोनों ही एकदूसरे के आकर्षण से ज्यादा समय तक न बच पाए और कुछ महीनों की मुलाकातों के बाद वे एकदूसरे के हो गए.
जब मैं पहली बार जोसफीन और ब्राइन से मिली थी तब तक उन की शादी को 10 साल पूरे हो चुके थे जबकि मेरी और शरद की शादी को केवल 3 साल ही हुए थे. उन के 10 साल की शादी में भी प्यार का महासागर उमड़ पड़ता था. उन के बीच की कैमिस्ट्री को देख कर मेरे जैसों को ईर्ष्या से अछूता रहना नामुमकिन था क्योंकि मेरी 3 साल की शादी में प्यार का अकाल सदाबहार था.
शरद और मेरी हर बात, हर शौक में नौर्थ और साउथ पोल का फर्क था. जोसफीन और ब्राइन के हर शौक, हर तरीके एकजैसे थे. वे दोनों खूब शौक से साथसाथ गोताखोरी पर जाया करते थे. 3-4 साल पहले गोताखोरी के दौरान रीढ़ की हड्डी में चोट लगने से ब्राइन के शरीर का निचला हिस्सा बेकार हो गया. जिस से वह ज्यादा लंबा चलने की शक्ति गवां बैठा. मगर प्यार तो प्यार होता है. सो, यह हादसा भी उन दोनों के प्यार के महासागर से एक बूंद भी कम न कर पाया. कम करता भी कैसे, आखिर उन्होंने नीले आकाश को साक्षी मान कर उम्रभर साथ निभाने के वादे जो किए थे.
वे दोनों एकदूसरे के बने थे अपनी खुशी से, उन्हें एकदूसरे पर थोपा नहीं गया था. उन के प्यार में समर्पण था, ढोए जाने वाला सामाजिक बंधन नहीं. उन की शादी उन के प्यार की परिणति थी, महज निभाए जाने वाली रस्म नहीं. मेरी और शरद की शादी तो वह जैकपौट थी जिस में लौटरी शरद की लगी थी. मेरी स्थिति तो जुए में अपना सबकुछ हारे हुए जुआरी जैसी थी.
जब भी मैं जोसफीन और ब्राइन को साथसाथ देखती तो मेरे दिल का दर्द पूरी शिद्दत पर पहुंच जाता. मैं सोचती, काश, मेरी भी शादीशुदा जिंदगी उन की शादीशुदा जिंदगी की तरह एक परीकथा होती. मैं उन के सामने बैठ कर स्वयं को बहुत आधाअधूरा महसूस करती. जब यह बरदाश्त से बाहर हो गया तो हीनभावना से बचने के लिए मैं ने उन से किनारा करना शुरू कर दिया. उन के सामने सुखी विवाहित जीवन का झूठा आवरण ओढ़ेओढ़े मैं अब थकने लगी थी.
इस झूठे नाटक में मेरे चेहरे के भावों ने मेरा साथ देना बंद कर दिया था. मेरे दिल के दर्द की लहरें मेरे सब्र के बांध को तोड़ कर पूरे बहाव के साथ उमड़ने लगी थीं. इस सैलाब को दिल में जज्ब करना नामुमकिन होता जा रहा था. इसलिए जब शरद को दुबई में एक बेहतर जौब मिला तो मेरे दिल को एक अजब सा सुकून मिला. मेरी खुशी शरद को बेहतर जौब मिलने की वजह से कम और सिडनी को हमेशा के लिए छोड़ कर जाने की वजह से ज्यादा थी.
‘चलो, न तो यह ‘मेड फौर इच अदर’ जोड़े से सामना होगा, न ही मेरे दिल के जख्मों में टीस उठेगी.’ यह सोच कर चैन की सांस ली थी उस वक्त मैं ने, और जोसफीन को बिना बताए ही सिडनी से दुबई चली आई थी.
दुबई आ कर मैं अगले जन्म में मनचाहे हमसफर की कामना करती हुई अपनी जिंदगी की रेलगाड़ी को आगे खींचने लगी. मन लगाने के लिए मैं ने एक कंपनी में रिसैप्शनिस्ट की नौकरी कर ली थी. सोचा, न मेरे पास खाली वक्त होगा न जिंदगी की कमियों को ले कर मन को भटकने का मौका मिलेगा. अपनी व्यस्तताओं में मैं जोसफीन-ब्राइन और उन की परीकथा को भूल सी चुकी थी.
मगर आज शाम वर्ल्ड ट्रेड सैंटर में जोसफीन फिर से सामने आ गई थी. इस बार वह मुझे अपनी सहेली न लग कर, कोई पहेली सी लगी थी. जोसफीन से अचानक रूबरू होने के बाद घर वापस आने पर भी मन जोसफीन, ब्राइन, जैकब त्रिकोण में उलझा रहा. क्या ब्राइन मर चुका है? अगर नहीं तो फिर जोसफीन नए डीफैक्टो पार्टनर के साथ क्यों है? ये एकदूसरे के प्यार में सिर से पांव तक डूबे रहने वाला जोड़ा ऐसे कैसे अलग हो सकता है? कितनी कशिश थी दोनों में, क्या हुआ उस कशिश का? सोचतेसोचते मेरा सिर चकराने लगा. इस ट्रायंगल के तीनों कोणों का आकलन करतेकरते आखिर मैं निढाल हो कर सो गई.
सुबह उठी तो सिर कुछ भारी सा लग रहा था. कुछ देर यों ही बिस्तर में लेटी रही, समझ में नहीं आ रहा था कि औफिस जाऊं या नहीं. अंत में हमेशा की तरह मेरे आलस की जीत हुई. मैं ने औफिस न जाने का निश्चय कर लिया और मुंह पर चादर ढक कर थोड़ी देर ऊंघने के लिए लेट गई.
आधे घंटे में जब टैक्सट मैसेज की आवाज से आंख खुली तो मैं ने अनमने भाव से मोबाइल उठाने के लिए हाथ बढ़ाया. बेमन से मैं ने अपनी अधखुली आंखें मोबाइल पर गड़ाईं तो देखा कि जोसफीन का मैसेज आया था. वह लंच के समय मुझ से कहीं पर मिलना चाहती थी.
मैसेज देखते ही मेरी आंखें पूरी तरह से खुल गईं और मैं ने बिना एक पल गंवाए, आए हुए मैसेज के नंबर को दबा दिया. मैं जोसफीन के बारे में सबकुछ जानने को बेताब थी. मैं ने उसे बताया कि आज मैं पूरे दिन घर में ही हूं, इसलिए वह किसी भी समय मुझ से मिलने आ सकती है. पूरे उत्साह के साथ मैं नहाधो कर घर को ठीक करने में लग गई और जोसफीन निश्चित समय पर आ पहुंची.
‘‘तुम्हारे वो, मेरा मतलब है जैकब महाशय कहां रह गए?’’ मैं ने इधरउधर नजर घुमाते हुए पूछा.
‘‘जैकब को तो एक कौन्फ्रैंस में जाना था. वैसे भी हम उस के होते हुए तो खुल कर बातचीत भी नहीं कर पाते. मैं अकेले ही तुम से मिलने आना चाहती थी,’’ जोसफीन ने अपनी चिरपरिचित मुसकराहट के साथ जवाब दिया.
मैं भी कौन सा जैकब से मिलने को इच्छुक थी. मेरे मन में तो ब्राइन की खैरियत को ले कर उथलपुथल मची हुई थी कि अगर वह जोसफीन के साथ नहीं तो फिर कहां और कैसा है? एक लंबा अरसा बीत चुका था हमें मिले हुए. बहुतकुछ कहने और सुनने को था, मगर मैं अपनी तरफ से बात को कुरेदना नहीं चाहती थी. मैं ने इंतजार करना ही ठीक समझा. काफी देर इधरउधर की बातें करने के बाद आखिर ब्राउन का जिक्र आ ही गया.
‘‘मेरे और ब्राइन के तलाक को 4 साल हो चुके हैं,’’ जोसफीन ने बिना किसी संवेदना के परदाफाश किया.
‘‘4 साल मतलब, जैसे ही मैं ने सिडनी छोड़ा उस के कुछ ही समय बाद तुम दोनों अलग हो गए. मगर ऐसा कैसे हो गया? तुम्हें तो हमेशा ही इस बात का गुमान था कि ब्राइन अमेरिका में अपने सारे रिश्तेनाते छोड़ कर मीलों दूर आस्ट्रेलिया में तुम्हारे और सिर्फ तुम्हारे लिए आ कर बस गया था,’’ मैं ने एक सांस में कई सवाल दाग दिए.
‘‘तो क्या हुआ, मैं ने भी तो उस की विकलांगता को वर्षों तक झेला और अपनी जिंदगी का गोल्डन टाइम उस पर बरबाद कर दिया,’’ जोसफीन ने कहा.
‘‘बरबाद कर दिया, क्या मतलब, वह हादसा तो शादी के बाद में हुआ था और उस के बाद भी तो तुम ने उस के साथ कई साल खुशहाली के साथ बिताए… और फिर तुम ही तो कहती थीं कि हादसे तो हादसे होते हैं, उन पर किसी का वश कहां. ये कहीं भी और किसी के भी साथ हो सकते हैं और फिर यह सही बात है कि हादसे तो हादसे होते हैं,’’ मैं ने एकएक शब्द पर जोर दे कर कहा.
‘‘हां, तो, जब मैं ने ये सब कहा था तब कम से कम ब्राइन के पास एक लाइफस्टाइल, एक स्टेटस तो था,’’ वह लापरवाही के साथ बोली.
‘‘एक स्टेटस था? क्या मतलब है तुम्हारा इस ‘था’ से?’’ मेरे स्वर में अब घबराहट घुल चुकी थी.
जोसफीन ने सबकुछ शुरू से आखिर तक कुछ ऐसे बताया :
‘‘अब से करीब 8 साल पहले ब्राइन ने अपनी कंपनी को आगे बढ़ाने के लिए धातुओं के अन्वेषण, खानों की खोज आदि के लिए बैंकों और वित्तीय संस्थाओं से भारी कर्ज ले लिया था. ऐसा करने के कुछ समय के बाद दुनियाभर में खनिज तेल और लौह अयस्क की कीमतें गिरने लगीं और वित्तीय संस्थाओं ने कर्ज की वापसी के लिए दबाव डालना शुरू कर दिया. दूसरी तरफ पहले से चल रहे अन्वेषण को आगे जारी रखने के लिए भी फंड की जरूरत पड़ने लगी. जिस के लिए भी वित्तीय संस्थाओं ने हाथ खड़े कर दिए. ब्राइन की कंपनी ने नई इक्विटी निकाल कर शेयर बाजार से फंड बनाने की कोशिश भी की लेकिन वह प्रयास भी असफल रहा.
‘‘अब वित्तीय संस्थान पुराने मूलधन और ब्याज की वापसी के लिए जोर डालने लगे थे. दूसरी तरफ पहले से चल रहीं अन्वेषण और खनन परियोजनाएं धन के अभाव में बंद होने लगीं.
‘‘ब्राइन ने अन्य कंपनियों और अपने व्यवसायी मित्रों से भी मदद लेने की कोशिश की, मगर हर जगह नाकामी ही हासिल हुई. हार कर उस ने अपने एकमात्र मुनाफे में चल रहे कंस्ट्रक्शन व्यवसाय को बेचने का फैसला किया परंतु इस में भी ट्रेड यूनियन और फौरेन इनवैस्टमैंट एप्रूवल बोर्ड ने चाइनीज खरीदार को बेचने के लिए स्वीकृति देने पर अड़ंगा लगा दिया.
‘‘आखिरकार सब तरफ से मायूस हो कर बोर्ड औफ डायरैक्टर ने कंपनी को लिक्विडेशन में ले जाने का फैसला कर लिया. इस के साथ ही ब्राइन और मेरी जिंदगी के सुनहरे दिनों का भी लिक्विडेशन हो गया,’’ जोसफीन ने एक गहरी सांस छोड़ते हुए कहा.
‘‘ब्राइन के दिवालिया होने और तुम्हारे उस से तलाक लेने का क्या संबंध है?’’ मैं ने चिड़चिड़ा कर पूछा.
‘‘सीधा संबंध था, मैं ने सालों उस की विकलांगता को झेला. अब उस के पास बचा भी क्या था मुझे बांधे रखने के लिए. मैं कोई बेवकूफ थोड़े ही हूं जो कि किसी दिवालिया पर अपनी जिंदगी बरबाद कर दूं,’’ जोसफीन बोली.
‘‘और यह जैकब? यह क्या मार्केट में तुम्हारे लिए तैयार बैठा था जो ब्राइन के व्यापार के फेल होते ही तुम इस के साथ रहने लगीं?’’ मैं ने सवाल किया.
‘‘हां, ऐसा ही कुछ समझो. कुछ साल से हम दोस्त थे. ब्राइन के शहर से बाहर होने के दौरान हम ने कई बार कैजुअल समय बिताया था. ब्राइन जैसे व्हीलचेयरमैन के पास था ही क्या मुझे देने के लिए. जब मुझे जैकब जैसा रियल मैन मिल सकता है तो फिर मुझे किसी व्हीलचेयरमैन के साथ समय गुजारने की क्या जरूरत थी. आखिर कुदरत ने हमें जिंदगी जीने के लिए ही दी है, किसी की मजबूरियों पर बरबाद करने के लिए थोड़े ही दी है,’’ इतना कह कर जोसफीन जोर का कहकहा लगा कर हंस दी.
जिंदगी में पहली बार मुझे उस की हंसी को देख कर घृणा महसूस हुई. मैं हतप्रभ सी उसे देखती रह गई. मैं ने अपने काले, घुंघराले बालों को मुट्ठी में भर कर हलके से खींच कर देखा कि मैं होश में तो हूं. हां, होश था मुझ को क्योंकि बालों के खिंचने पर मैं ने दर्द महसूस किया. फिर भी जब पक्का भरोसा न हुआ तो इस बार मैं ने बाएं हाथ की हथेली में दाएं हाथ के अंगूठे का नाखून गड़ा कर देखा, दर्द का आभास मुझे अब भी हुआ.
यह साबित हो चुका था कि मैं पूरी तरह होश में थी. इस का सीधासीधा मतलब था कि जो मुझे सुनाई दे रहा था वह सच था, मेरे मन का वहम नहीं. मगर यह तो रंगबिरंगी दुनिया है. यहां कुछ भी संभव है. यहां रोज किसी न किसी के साथ अनहोनी होती है, अप्रत्याशित घटता है.
स्टील, लोहे और तेल की बढ़ती कीमतों को देखते हुए ब्राइन बहुत ही महत्त्वाकांक्षी हो उठा था. उस के मन में एक लालसा जाग उठी थी जल्दी से जल्दी फौरचून फाइव हंड्रैड की लिस्ट में अपनी कंपनी का नाम देखने की. इस लालसा से वशीभूत हो कर और स्टील, लोहे व खनिज तेल की कीमतों को बढ़ते देख कर उस ने कई देशों में नई खानों और तेल की खोज के अधिकार प्राप्त कर लिए थे. मगर औयल, गैस और खनिज की गिरती कीमतों ने उस के व्यापार को पूरी तरह से डुबो कर रख दिया.
वह शरीफ आदमी यह नहीं जानता था कि फौरचून फाइव हंड्रैड की लिस्ट की जगह, समय उसे हर तरह से बरबाद करने के लिए उस के कदम के इंतजार में था. जिस जोसफीन को उस ने खुद से ज्यादा प्यार किया था, उस ने बुरे वक्त में उस का संबल बनने की जगह उसे हर तरह से तोड़ कर रख दिया.
आसमानी परी की मुसकान के पीछे कितना शातिर दिमाग काम कर रहा था, मैं कभी समझ ही नहीं पाई. मैं ने जाना कि गिरगिट ही नहीं, इंसान भी रंग बदलते हैं. मैं ने जाना कि शादी परिवार द्वारा तय की गई हो या स्वयं की इच्छा से की गई हो, उसे सफलअसफल लोग स्वयं बनाते हैं. मैं मैदान के एक किनारे पर खड़ी हो कर सोचती रही कि दूसरे किनारे की तरफ सिर्फ हरियाली ही हरियाली है.
मृगतृष्णा में फंसी मैं कभी देख ही न सकी कि असली हरियाली मेरे पैरों तले थी, जरूरत थी तो सिर्फ सही दृष्टिकोण की. हां, जिंदगी जीने के लिए ही होती है पर किसी दूसरे के जज्बातों को रौंद कर अपने ख्वाब सजाने के लिए भी नहीं. प्यार और त्याग एकदूसरे के पर्याय हैं. त्याग किए बिना प्यार हासिल नहीं किया जा सकता. प्यार, प्यार है, भौतिक जरूरतों का गुणाभाग नहीं. भौतिकता के लाभहानि के गणित से अर्जित किया गया प्यार, त्याग का नहीं बल्कि वासना का पर्याय होता है.
मुझे जिंदगी का घिनौना चेहरा देखने को मिला. मुझे समझ में आया कि कभीकभी आंखों को जो दिखता है और कानों को सुनाई देता है, वह भी गलत हो सकता है. पता लगा कि हर शख्स आवरण ही ओढ़े हुए जी रहा है अपनेअपने झूठ का. खैर, मुझे यह आवरण और नहीं ओढ़ना है. जिंदगी को जिंदगी के जैसे ही जीना है, मृगतृष्णा की तरह नहीं. जिंदगी को जिंदगी बनाना मेरे अपने हाथ में था. मृगतृष्णा तो सिर्फ छल है, धोखा है अपनेआप से.
जोसफीन के विदा होते ही मैं ने शरद को फोन किया बताने के लिए कि मैं बीजिंग आ रही हूं उन के पास मृगतृष्णा को छोड़ कर, अपनी और उन की जिंदगी को मुकम्मल बनाने के लिए.