अपनेमोबाइल फोन की स्क्रीन पर नंबर देखते ही वसंत उठ खड़ा हुआ. बोला, ‘‘नंदिता, तुम बैठो, वे लोग आ गए हैं, मैं अभी मिल कर आया. तुम तब तक सूप खत्म करो. बस, मैं अभी आया,’’ कह कर वसंत जल्दी से चला गया. उसे अपने बिजनैस के सिलसिले में कुछ लोगों से मिलना था. वह नंदिता को भी अपने साथ ले आया था.
वे दोनों ताज होटल में खिड़की के पास बैठे थे. सामने गेटवे औफ इंडिया और पीछे लहराता गहरा समुद्र, दूर गहरे पानी में खड़े विशाल जहाज और उन का टिमटिमाता प्रकाश. अपना सूप पीतेपीते नंदिता ने यों ही इधरउधर गरदन घुमाई तो सामने नजर पड़ते ही चम्मच उस के हाथ से छूट गया. उसे सिर्फ अपना दिल धड़कता महसूस हो रहा था और विशाल, वह भी तो अकेला बैठा उसे ही देख रहा था. नंदिता को यों लगा जैसे पूरी दुनिया में कोई नहीं सिवा उन दोनों के.
नंदिता किसी तरह हिम्मत कर के विशाल की मेज तक पहुंची और फिर स्वयं को सहज करती हुई बोली, ‘‘तुम यहां कैसे?’’
‘‘मैं 1 साल से मुंबई में ही हूं.’’
‘‘कहां रह रहे हो?’’
‘‘मुलुंड.’’
नंदिता ने इधरउधर देखते हुए जल्दी से कहा, ‘‘मैं तुम से फिर मिलना चाहती हूं, जल्दी से अपना नंबर दे दो.’’
‘‘अब क्यों मिलना चाहती हो?’’ विशाल ने सपाट स्वर में पूछा.
नंदिता ने उसे उदास आंखों से देखा, ‘‘अभी नंबर दो, बाद में बात करूंगी,’’ और फिर विशाल से नंबर ले कर वह फिर मिलेंगे, कहती हुई अपनी जगह आ कर बैठ गई.
विशाल भी शायद किसी की प्रतीक्षा में था. नंदिता ने देखा, कोई उस से मिलने आ गया था और वसंत भी आ गया था. बैठते ही चहका, ‘‘नंदिता, तुम्हें अकेले बैठना पड़ा सौरी. चलो, अब खाना खाते हैं.’’
पति से बात करते हुए नंदिता चोरीचोरी विशाल पर नजर डालती रही और सोचती रही अच्छा है, जो आंखों की भाषा पढ़ना मुश्किल है वरना बहुत से रहस्य खुल जाएं. नंदिता ने नोट किया विशाल ने उस पर फिर नजर नहीं डाली थी या फिर हो सकता है वह ध्यान न दे पाई हो.
आज 5 साल बाद विशाल को देख पुरानी यादें ताजा हो गई थीं. लेकिन वसंत के सामने स्वयं को सहज रखने के लिए नंदिता को काफी प्रयत्न करना पड़ा.
वे दोनों घर लौटे तो आया उन की 3 वर्षीय बेटी रिंकी को सुला चुकी थी. वसंत की मम्मी भी उन के साथ ही रहती थीं. वसंत के पिता का कुछ ही अरसा पहले देहांत हो गया था.
उमा देवी का समय रिंकी के साथ अच्छा कट जाता था और नंदिता के भी उन के साथ मधुर संबंध थे.
वसंत भी सोने लेट गया. नंदिता आंखें बंद किए लेटी रही. उस की आंखों के कोनों से आंसू निकल कर तकिए में समाते रहे. उस ने आंखें खोलीं. आंसुओं की मोटी तह आंखों में जमी थी. अतीत की बगिया से मन के आंगन में मुट्ठी भर फूल बिखेर गई विशाल की याद जिस के प्यार में कभी उस का रोमरोम पुलकित हो उठता था.
नंदिता को वे दिन याद आए जब वह अपनी सहेली रीना के घर उस के भाई विशाल से मिलती तो उन की खामोश आंखें बहुत कुछ कह जाती थीं. वे अपने मन में उपज रही प्यार की कोपलों को छिपा न सके थे और एक दिन उन्होंने एकदूसरे के सामने अपने प्रेम का इजहार कर दिया था.
लेकिन जब वसंत के मातापिता ने लखनऊ में एक विवाह में नंदिता को देखा तो देखते ही पसंद कर लिया और जब वसंत का रिश्ता आया तो आम मध्यवर्गीय नंदिता के मातापिता सुदर्शन, सफल, धनी बिजनैसमैन वसंत के रिश्ते को इनकार नहीं कर सके. उस समय नौकरी की तलाश में भटक रहे विशाल के पक्ष में नंदिता भी घर में कुछ कह नहीं पाई.
उस का वसंत से विवाह हो गया. फिर विशाल का सामना उस से नहीं हुआ, क्योंकि वह फिर मुंबई आ गई थी. रीना से भी उस का संपर्क टूट चुका था और आज 5 साल बाद विशाल को देख कर उस की सोई हुई चाहत फिर से अंगड़ाइयां लेने लगी थी.
नंदिता ने देखा वसंत और रिंकी गहरी नींद में हैं, वह चुपचाप उठी, धीरे से बाहर आ कर उस ने विशाल को फोन मिलाया. घंटी बजती रही, फिर नींद में डूबा एक नारी स्वर सुनाई दिया, ‘‘हैलो.’’
नंदिता ने चौंक कर फोन बंद कर दिया. क्या विशाल की पत्नी थी? हां, पत्नी ही होगी. नंदिता अनमनी सी हो गई. अब वह विशाल को कैसे मिल पाएगी, यह सोचते हुए वह वापस बिस्तर पर आ कर लेट गई. लेटते ही विशाल उस की जागी आंखों के सामने साकार हो उठा और बहुत चाह कर भी वह उस छवि को अपने मस्तिष्क से दूर न कर पाई.वसंत के साथ इतना समय बिताने पर भी नंदिता अब भी रात में नींद में विशाल को सपने में देखती थी कि वह उस की ओर दौड़ी चली जा रही है. उस के बाद खुले आकाश के नीचे चांदनी में नहाते हुए सारी रात वे दोनों आलिंगनबद्ध रहते. उन्हें देख प्रकृति भी स्तब्ध हो जाती. फिर उस की तंद्रा भंग हो जाती और आंखें खुलने पर वसंत उस के बराबर में होते और वह विशाल को याद करते हुए बाकी रात बिता देती.