कोरोनाकाल में सेक्स करें या न करें

 डा. गौतम बंगा

सैक्स मानव समाज की मुख्य जरूरतों में से एक है जिसे नियंत्रित करना संभव नहीं. कोरोनाकाल में सैक्स को ले कर कई सवाल और अधपके तथ्य खड़े हुए हैं, जिन के सही जवाब मिलने जरूरी हैं. तो आइए जानें कोरोनाकाल में सैक्स के बारे में.

यौन संचारित संक्रमण या एसटीआई यानी सैक्सुअली ट्रांसमिटेड इन्फैक्शन की रोकथाम के संदर्भ में सुरक्षित सैक्स का अभ्यास करना महत्त्वपूर्ण है. संभोग करते समय यौन संचारित संक्रमण होने की आशंका होती है. आप ऐसे कदम उठा सकते हैं जो ऐसे जोखिम से बचने के लिए या उसे कम करने में कारगर साबित हों. सभी को अपने निर्णय स्वयं लेने और अपने शरीर को सुरक्षित रखने का सब से बेहतर तरीका सुनिश्चित करने का अधिकार है. हालांकि, सुरक्षित सैक्स में थोड़ा जोखिम जरूर है लेकिन कोई भी सावधानी न बरतने की तुलना में यह काफी सुरक्षित है.

सुरक्षित सैक्स का मतलब है स्वयं को और अपने साथी को एसटीडी (सैक्स ट्रांसमिटेड डिजीजेज) यौन संचारित रोगों से बचाने के उपाय करना. दूसरे शब्दों में, ऐसा यौन संबंध स्थापित करना है जिस में साथियों के बीच वीर्य, योनितरल पदार्थ या रक्त का आदानप्रदान शामिल न हो. यौन संबंध रखने की सुरक्षित प्रथाओं को अपनाना आप को स्वस्थ रखने व आप का यौन जीवन बेहतर बनाने में मददगार साबित हो सकता है.

सैक्स या यौन स्वास्थ्य जानकारी, गलत जानकारी, मिथक और इस संदर्भ की वास्तविकताओं को वर्जित सम झा जाता है और ऐसा बहुतकुछ है जिसे उजागर करने की जरूरत है. सैक्स पर लगे कलंक की वजह से लोग सैक्स या उस से संबंधित विषयों, जैसे यौन स्वास्थ्य और यौन संचारित रोगों के बारे में बात करने से बचते हैं. जब किसी संदर्भ में ढेर सारी जानकारी सर्वत्र फैली हुई हो तो सही और गलत का भेद बताना मुश्किल हो सकता है और ज्यादातर समय लोग शिकंजे में फंस कर मिथकों पर विश्वास कर लेते हैं. परिणामस्वरूप, वे अपना यौन स्वास्थ्य खो बैठते हैं और अपने समग्र स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाते हैं.

अमेरिकन सैक्सुअल हैल्थ एसोसिएशन के मुताबिक, यौनरूप से सक्रिय 2 लोगों में से एक को 25 वर्ष की आयु तक एसटीआई जरूर होगा. इस का एक प्रमुख कारण यौन स्वास्थ्य के बारे में अज्ञानता हो सकता है.

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क्या कोविड-19 यौन संचारित हो सकता है?

कोविड-19 यौन संचारित संक्रमण (एसटीआई) भी हो सकता है. हालांकि, संक्रमित व्यक्ति की लार सहित नाक और मुंह से निकलने वाली बूंदों के संपर्क में आने से यह विषाणु संक्रमित होता है. यह दूसरों के साथ निकट संपर्क के माध्यम से भी हो सकता है. इस का मतलब यह है कि जब आप यौन संबंध रखते हैं या किसी व्यक्ति के बहुत करीब होते हैं तो कोविड-19 से संक्रमित होने की संभावना बहुत ज्यादा बढ़ जाती है. इसीलिए अगर आप या आप के साथी में कोविड-19 के लक्षण हों, जैसे बुखार, सूखी खांसी, थकान, स्वाद या गंधग्रहण की क्षमता में कमी तो आप को एकदूसरे के बीच 14 दिनों तक दूरी बनाए रखनी चाहिए ताकि विषाणु का संक्रमण न हो सके. इस अंतराल में आप को यौन संबंध बनाने या शारीरिक रूप से करीब आने, जैसे चुंबन या आलिंगन देने जैसी क्रियाओं से दूर रहना चाहिए.

क्या कोविड-19 से संक्रमित 2 लोगों का यौन संबंध रखना सुरक्षित है?

ऐसे समय में जब आप के साथी का सौहार्द और उस की सोहबत आप के दिल का बो झ हलका करने में अहम भूमिका निभा सकते हैं तब यह भी खयाल रहे कि यौन संबंध रखने से कोविड-19 संक्रमण का खतरा हो सकता है. कोरोना विषाणु शायद यौन संचारित रोग हो भी, लेकिन अपने साथी के करीब जाने पर यह निश्चितरूप से संक्रमित कर सकता है. लेकिन अगर आप अपने साथी के साथ ही रह रहे हैं और आप दोनों में ऐसे कोई लक्षण नहीं हैं तो आप संबंध रख सकते हैं. लेकिन अगर दोनों में से एक साथी भी बाधित, लेकिन लक्षणहीन है, तो यौन संबंध कम से कम 14 दिनों तक नहीं बनाए जाने चाहिए. आदर्श रूप से यह सलाह दी जाती है कि कोविड से संक्रमित लोगों को आपस में यौन संबंध नहीं रखने चाहिए लेकिन अगर वे फिर भी ऐसा करना चाहते हैं तो उन्हें सुरक्षा के सारे नियमों का पालन करना चाहिए.

कोविड-19 महामारी के माहौल में सुरक्षित यौन संबंध कैसे रखें?

कोविड-19 नैगेटिव वाले 2 लोगों के बीच यौन संबंधों को सुरक्षित माना गया है, हालांकि कुछ एहतियाती कदम उठाने से संक्रमण का खतरा और भी कम हो सकता है. सैक्स के दौरान कंडोम या डैंटल डैम का इस्तेमाल करें. यौन संबंध रखने का सब से सही समय तब है जब दोनों साथी कोविड-19 से पूरी तरह नजात पा चुके हों. संबंध रखने के लिए कोविड-19 से संक्रमित होने के कम से कम 2 हफ्तों बाद तक रुकना चाहिए. सैक्स के बाद नहाना और शरीर के अंगों की अच्छी तरह से सफाई करने से कोरोना संक्रमण का खतरा और कम किया जा सकता है.

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क्या कोविड-19 से नपुंसकता हो सकती है?

एक हालिया इतालवी अध्ययन (वेबएमडी) से पता चला है कि कोविड-19 की वजह से स्तंभन दोष (इरैक्टाइल डिसफंक्शन या ईडी) के उत्पन्न होने का जोखिम लगभग 6 गुना बढ़ जाता है. कोविड-19 के संक्रमण को बढ़ाने वाले मधुमेह, मोटापा और धूम्रपान ईडी के लिए भी जिम्मेदार साबित हो सकते हैं. डेटा अनुमानों के अनुसार, कोरोना से संक्रमित हुए पुरुषों में स्तंभन दोष (ईडी) उत्पन्न होने के आसार 5.66 गुना बढ़ जाते हैं. यह समस्या अल्पकालिक या दीर्घकालिक भी हो सकती है.

हालांकि, स्तंभन दोष से पुरुष बाधित होते हैं और इसे ‘पुरुषों वाली’ समस्या के रूप में देखा जाता है लेकिन संबंधों में मौजूद महिला पर भी इस का असर पड़ता है. एक हालिया सर्वेक्षण के अनुसार,

56 प्रतिशत पुरुष अपने संबंधों को सुधारने के लिए अपने साथियों के साथ स्तंभन दोष के बारे में चर्चा करना पसंद करते हैं जबकि स्तंभन दोष से नजात पाने के लिए अगर उन का साथी कोई कदम नहीं उठाता तो 28 प्रतिशत महिलाएं अपने साथी से अलग होना पसंद करती हैं.

(लेखक सैंटर फौर रिकंस्ट्रक्टिव यूरोलौजी एंड एंड्रोलौजी, दिल्ली में रिकंस्ट्रक्टिव यूरोलौजिस्ट एंड एंड्रोलौजिस्ट हैं.)

जीवन की मुसकान

बात बहुत पुरानी है. मेरी दीदी के दो बच्चे बौबी एवं सीमा बेंगलुरु के  एक कौन्वेंट स्कूल में क्लास फर्स्ट एवं सेकंड में पढ़ते थे. एक बार रिसेस होने पर दोनों बच्चे पानी पीने नल पर गए. वहां बौबी का पैर फिसलने के कारण वह पानी से भरे टैंक में जा गिरा. सीमा ने देखा बौबी पानी में गिर गया है, घबरा कर उसे निकालने के लिए वह भी तुरंत पानी में कूद गई. यह देख आसपास खड़े उन के साथी बच्चे जोरजोर से रोने लगे.

यह घटना दूसरी मंजिल पर पढ़ रहे सातवीं क्लास के बच्चे रौबर्ट चौधरी ने देखी. वह एक पल भी गंवाए बिना ‘फादर हैल्प, फादर हैल्प’ चिल्लाता हुआ क्लास के बाहर दौड़ पड़ा एवं पानी से भरे टैंक में कूद पड़ा.

उस की आवाज सुन कर सब क्लास के बाहर उस के पीछेपीछे दौड़े. हालांकि रौबर्ट भी छोटा बच्चा था परंतु उसे तैरना आता था. सब की मदद से उस ने बौबी और सीमा दोनों को बाहर निकाला.

दोनों बच्चों का पेट दबा कर उन्होंने पानी निकाला एवं डाक्टर को बुलाया.

सब ठीकठाक होने पर फादर ने सीमा से पूछा, ‘‘आप स्वयं टैंक में क्यों कूद गईं. अगर भैया पानी में गिर गया था तो आप को सिस्टर को बताना था जो आप की क्लास की मेम थी.’’

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‘‘फादर, अगर मैं भैया को टैंक से बाहर नहीं निकालती, तो पापा मुझे मारते. सौरी फादर…’’ नन्ही सी सीमा की बातें सुन कर फादर का दिल भर आया और वे चुप हो गए. कुछ देर बाद फादर ने रौबर्ट की पीठ ठोक कर कहा, ‘‘आय एम प्राऊड औफ यू माय बौय. तुम्हारे कारण एक बड़ा हादसा होने से टल गया.’’

इस के बाद मेरे जीजाजी को स्कूल बुलाया गया. सारी घटना जान कर जीजाजी की आंखें भर आईं. उन्होंने रौबर्ट को सीने से लगा लिया और कहा, ‘‘आज स्कूल को आप के जैसे बच्चे की आवश्यकता है. इतने छोटे होने के बावजूद भी आप ने बहुत बड़ा काम कर के दिखाया.’’

‘‘अंकल, यह तो मेरा फर्ज था,’’ रौबर्ट ने जवाब दिया.’’ उस की बात सुन कर जीजाजी ने एक बार फिर उसे सीने से लगा लिया एवं उसे पुरस्कृत भी किया.

भीगी पलकों के साथ जीजाजी के चेहरे पर जीवन की मुस्कान लौट आई थी. उन्होंने स्कूल में सभी को धन्यवाद दिया एवं अपने दोनों मासूमों को ले कर खुशीखुशी घर आ गए. यह घटना हमारे लिए अविस्मरणीय है.

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आइये आपको संजना और श्वेता का किस्सा सुनाते हैं. मगर रुकिये, संजना और श्वेता न तो बहनें थीं, न घनिष्ठ सहेलियां. इन्हें तो एक-दूसरे के वजूद के बारे में भी कुछ पता नहीं था. ये तो हम इनका दो पात्रों के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं. खैर आगे बढ़ते हैं. इन दोनों लड़कियों में कुछ बातें बिल्कुल एक जैसे थी, कुछ एक दूसरे से अलग. पहली जो बात एक जैसे थी, वह यह कि ये दोनों मोटी थीं. कुछ ज्यादा मोटी कि चाहे तो आप बेडौल भी कह सकते हैं. लेकिन इस मोटोप के अलावा इनमें सब कुछ एक दूसरे से बिल्कुल अलग था. संजना गहरे सांवले रंग की थी, तो श्वेता अपने नाम की ही तरह गोरी. श्वेता के जहां नाक-नक्श तीखे और आकर्षक थे, वहीं संजना की नाक मोटी थी, आंखें छोटी थी और होंठ भी मोटे. मतलब यह कि मजाक उड़ाने के लिए व्यंग्य में जो कुछ भी कहा जा सकता था, संजना उन सबकी मालकिन थी.

सिर्फ इन दोनों लड़कियों के व्यक्तित्व में ही फर्क नहीं था, उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि भी एक दूसरे से भिन्न थी. श्वेता के पिता एक मध्यम दर्जे के के सरकारी मुलाजिम थे. वेतन कम तो नहीं था, लेकिन एक जमाने में उसके मुकाबले सपने इतने बड़े थे कि इस वेतन से कभी वो संतुष्ट ही नहीं हुए. श्वेता की मां भी किसी चिड़चिड़ी गृहिणी का जीता जागता किरदार थी, शायद उसमें ये चिड़चिड़ापन श्वेता के मोटापे को लेकर बनी असुरक्षा से ही पैदा हुआ था. उसे श्वेता तो फूटी आंख भी नहीं सुहाती थी, कारण कि उसे लगता था उसकी कभी शादी नहीं होगी.

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दूसरी तरफ संजना की पृष्ठभूमि बिल्कुल अलग थी. संजना अपने माता-पिता की दो संतानों में एक थीं. उसका छोटा भाई अपने में मस्त रहने वाला खुशमिजाज लड़का था. मां स्कूल में पढ़ाती थी और पिता एक प्राइवेट कंपनी में प्रोडक्शन मैनेजर थे. घर में पढ़ने लिखने के साथ-साथ जागरूकता का माहौल था. संजना के मम्मी पापा ने बचपन से लेकर जवानी तक उसे कभी यह एहसास दिलाने की कोशिश नहीं की थी कि मोटापा उसके भावी वैवाहिक जीवन के लिए अशुभ है बल्कि उसे हमेशा इस बात के लिए प्रेरित किया था कि वह अपनी मोटापे पर सोचने की जगह अपने अंदर तमाम गुण विकसित करे और संजना ने ऐसा ही किया था. श्वेता की हीनभावना और उसके परिवार का उसे लेकर असुरक्षाबोध ने जहां उसके दिल दिमाग में ऐसा दबाव बनाया कि वह 12वीं के आगे पढ़ ही न सकी. वहीं संजना ने न सिर्फ कौलेज से मास्टर डिग्री हासिल की बल्कि वह हमेशा लीडर की तरह रही.

परिवार के वातावरण के चलते संजना में गजब का आत्मविश्वास था. अगर कभी किसी ने उसके मोटापे को लेकर कोई ताना मारा तो वह पलटकर ऐसा करारा जबाव देती कि मजाक करने वाले को दोबारा ऐसे मजाक के नाम से भी घबराहट होती. घर के माहौल से मिले आत्मविश्वास के कारण संजना ने अपनी काया को हमेशा ऐसे सकारात्मक नजरिये से देखा कि उसे कभी सपने भी इस सुरक्षाबोध ने नहीं दबोचा कि उसकी शादी नहीं होगी. दूसरी तरफ न सिर्फ श्वेता इस असुरक्षा से बल्कि उसके मां-बाप भी हर समय इसी असुरक्षाबोध से ग्रस्त रहते कि उनकी लड़की से भला कौन शादी करेगा. बहरहाल जिंदगी ने फिर सबक देने वाला खेल खेला. दोनो लड़कियों की शादी हुई. दोनों के लिए ही लड़के उनके मां-बाप ने चुने थे. संयोग से श्वेता और संजना दोनो को ही उनकी उम्मीदों से ज्यादा बेहतर वर मिले. श्वेता का पति सर्वगुण संपन्न एक बड़ी कंपनी में इंजीनियर था, तो संजना का पति भी हंसमुख, उसी की तरह आत्मविश्वास से लबालब एक सरकारी विभाग में हेड क्लर्क था. लड़कियों के विपरीत दोनो ही लड़के सामान्य वजन के थे और आश्चर्यजनक ढंग से अपनी पत्नियों को लेकर खुश थे. दोनो में से किसी को पत्नियों के मोटापे को लेकर कोई समस्या नहीं थी.

संजना के तो जीवन में चार चांद लग गये. शादी के रात से ही दोनों में ऐसी बनी कि लोग उन्हें दो जिस्म, एक जान कहने लगे. लेकिन श्वेता यहां भी अपने असुरक्षाबोध के चलते परेशान ही रही. संजना ने जहां अपनी सुशिक्षित मां के मार्गदर्शन में अपने भावी वैवाहिक जीवन की तैयारियां की थीं और सेक्स को उसने एक विज्ञान की तरह लिया था, वहीं श्वेता ने हर समय इसे डर और दहशत के रूप में अपने दिल दिमाग में पाला था. संजना ने जहां अपने मोटे होने की समस्या को यौन जीवन में आड़े नहीं आने दिया, वह जब भी अपने पति से अगतंरंग हुई, खुलकर हुई और जो समस्याएं आयीं उनके विकल्प ढूंढ़ लिये. वहीं श्वेता ने छप्पर फाड़कर मिली खुशी को भी मन ही मन घुलने वाले दुख में बदल दिया. श्वेता के मन में अपने मोटापे को लेकर मौजूद हीनग्रंथियों ने उसके पति की तमाम अच्छाईयों, संवेदनशीलता को भी बेमतलब कर दिया. श्वेता के पति का उसके मोटापे से कोई समस्या नहीं थी. उसने एक बार भी मोटापे के चलते उसके प्रति आकर्षित न हुआ हो, ऐसा कभी नहीं हुआ. उसने हमेशा बिस्तर में अपने से ज्यादा श्वेता का ख्याल रखा. श्वेता के प्रति उसके पति में पूर्ण समर्पण था. लेकिन श्वेता ने कभी बिस्तर में खुशी ही नहीं जतायी. हमेशा उसका मूड थका थका बिगड़ा बिगड़ा रहा. भले वह पति से कभी लड़ी न हो, लेकिन धीरे धीरे दोनो के बीच सेक्स दहशत का विषय बन गया.

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श्वेता के मन में कभी यौन उत्सुकता ही नहीं जगी.  अपनी बौडी को लेकर हीनभावना ने हमेशा उसे डरा डरा, बुझा बुझा रखा. वह जब भी बाथरूम में होती शीशे में अपने आपको देखकर कहती ‘तुझे कोई प्यार नहीं करता’, तुझे तो खुश करने के लिए समर्पण की भीख दी जा रही है’. मतलब यह कि उसने अपने पति के सारे अच्छे व्यवहार को भी शून्य कर दिया. जबकि हकीकत यह थी कि श्वेता का पति सचमुच उसकी तमाम खूबियों पर मोहित था. उसके दिमाग में कभी मोटापे की बात आती नहीं थी. वह तो उसके गोरे बदन, चमकती त्वचा, तीखे नाक-नक्श और उसकी सुरीली आवाज पर फिदा था. लेकिन वह उसे अपने व्यवहार से कभी खुश ही नहीं कर सका. अंत में उसे श्वेता को यौन मनोचिकित्सक के पास ले जाना पड़ा और करीब एक साल की थैरेपी के बाद श्वेता अपने जीवन में वह सब पा सकी जो पहले से ही मौजूद था.

दो स्थूलकाय लड़कियों की यह कहानी हमें बताती है कि हमारे यौन जीवन की सफलता में काया से ज्यादा काया के प्रति हमारी धारणाओं में निहित. दरअसल हम सेक्स और काया का कुछ ज्यादा ही रिश्ता जोड़ते हैं. जबकि ऐसा कुछ होता नहीं. वास्तव में काया के प्रति हमारी यह धारणा जिसे मनोवैज्ञानिक बौडी इमेज कहते हैं, यह हमारे अपने, हमारे इर्दगिर्द के लोगों और उस समाज की बनायी हुई होती है, जहां हमारी परवरिश होती है. हकीकत में इसका यौन जीवन की बाधाओं से कोई लेना देना नहीं है. हमारे रूप, रंग और मोटे, पतले का हमारे सेक्स लाइफ से उतना ज्यादा रिश्ता नहीं है, जितना बौडी इमेज की धारणा से है. सकारात्मक ‘बौडी इमेज’ हमें सुख और सफलता देती है और नकारात्मक ‘बौडी इमेज’ हमारी सुख और सफलताओं को भी दुख और असफलताओं में बदल देती है. अपनी काया को आप अपनी नजरों में कितनी खूबसूरत देखती हैं या कितना बदसूरत समझती हैं कि इस बात से ही हमारी खुशी और हमारे यौन जीवन के आनंद का रिश्ता होता है.

यौन विशेषज्ञों का मानना है कि यौन संतुष्टि का रिश्ता सांचे में ढले बदन या दूध जैसी रंगत से नहीं होता बल्कि हमारी सोच से होता है. ऐसा होता तो यूरोप के बाहर की लड़कियां कभी खुश ही नहीं होतीं, विशेषकर अफ्रीकन लड़कियां क्योंकि वो तो काली भी होती हैं, मोटी भी होती हैं और कई देशों में बहुत दुबली भी होती हैं. मगर अमरीका में 35 फीसदी से ज्यादा मौडल अश्वेत हैं, चाहे वह लड़कियां हों या लड़के. अनेक मोटे नाक-नक्श वाली अफ्रो-अमरीकी लड़कियों को पूरे आत्मविश्वास के साथ सौंदर्य प्रतियोगिताओं में शामिल होते देखा जा सकता है. इनमें लबलबाता हुआ आत्मविश्वास उनके हर अंदाज से झलकता है. अमरीका की विश्व प्रसिद्ध टीवी प्रेेजेन्टर ओपरो विनफ्रे को ही देख लीजिए अगर हम सुंदरता के पारंपरिक पैमाने पर परखें तो उसकी दशा एक ऐसी मोटी, भद्दी और काली लड़की की होनी चाहिए, जो अपनी ‘असुंदरता’ के कारण हीनभावना से ग्रस्त होकर घर के से निकलते हुए घबराए. जबकि ओपरा के लिए पुरुषों की दीवानगी का एक जमाने में आलम यह रहा है कि जाने कितने करोड़पति युवकों ने उसके सामने शादी का प्रस्ताव रखा और ओपरा ने उन्हें ठुकरा दिया.

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कुछ लोग अपने मोटापे के कारण विपरीत लिंगियों के समक्ष हीनभावना के एहसास से ग्रस्त रहते हैं, तो कुछ लोगों की यही परेशानी उनके जरूरत से ज्यादा दुबलेपन के कारण रहती है. कोई लड़की अपने छोटे कद को लेकर अपने आपको पुरुष के योग्य नहीं मानती, तो कोई युवक अपने भद्दे नाक-नक्श के आधार पर यह मान बैठता है कि कोई लड़की उससे अपनी खुशी से शादी करना नहीं चाहेगी. ये सब एक नकारात्मकता के कारण जमीनी सच्चाई से वे अपना संबंध तोड़ बैठते हैं. उपरोक्त सारे तथ्यों को गहराई से देखें तो इनका आपके जीवन विशेषकर यौन जीवन से कोई विशेष फायदा या नुकसान नहीं होता. अगर आप (स्त्री या पुरुष) साधारण चेहरे-मोहरे वाले हैं, अगर आपकी कद-काठी आदर्श कही जा सकने के योग्य नहीं है या अगर आपने जीवन के मैदान में कोई बड़ा तीर नहीं मारा है, तो इस बात को लेकर नकारात्मक ‘बौडी इमेज’ बनाने की जरूरत बिल्कुल नहीं है. आपका साधारण, काला, मोटा या अत्यधिक दुबला होना यौन जीवन के लिए कोई बाधा नहीं है.

कोरोनावायरस: यौन संबंध बनाने से पहले इन बातों का रखें ध्यान

सैक्स में खुलापन जरूरी है. जितना इसे मन के अंदर दबाएंगे उतना ही यह उभर कर सामने आएगा. लेकिन सैक्स भी अब संभल कर करना होगा. सैक्स करने से पहले अपने को तैयार करना जरूरी होता है. लेकिन सैक्स के बाद भी आप को कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए. उन में सब से अहम है सैक्सुअल आइसोलेशन. अकसर हमारे देश में अपने प्राइवेट पार्ट के बारे में लोग नहीं सोचते. आइसोलेशन का महत्त्व नहीं समझते. उन का ध्यान उस तरफ नहीं जाता, क्योंकि ये बातें बचपन में भी नहीं सिखाई जातीं. लेकिन अब वक्त बदल रहा है. ऐसे में आप को सैक्सुअली आइसोलट होना बहुत जरूरी है. पूरा विश्व इस समय कोरोना महामारी की चपेट में है. सोशल डिस्टैंसिंग पर जोर दिया जा रहा है. ऐसे में सैक्स करते समय कैसे सुरक्षित रहें इस पर ध्यान देने की जरूरत है. अगर मैं सैक्स करता हूं तो क्या मुझे कोरोना हो जाएगा? आप के जेहन में यह बात कई बार आई होगी, लेकिन आप शर्मिंदगी के डर से यह पूछ नहीं पा रहे हैं तो आइए हम आप को बताते हैं कि कैसे बचें कोरोना से सैक्स करते समय.

रिलेशनशिप पर असर

अगर आप रिलेशनशिप में हैं और किसी शख्स के साथ रह रहे हैं तो थोड़ी दूरी बना कर रहिए. अगर आप में से किसी को भी कोरोना के लक्षण दिख रहे हैं तो अपने को आइसोलेट कर लेना चाहिए. इस में पार्टनर को बुरा नहीं मानना चाहिए. इस से दोनों सुरक्षित रहेंगे. ध्यान रहे सैक्स का मजा तभी ले पाएंगे जब आप बचे रहेंगे.

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किस पर पाबंदी लगाएं

अब आप को किस करने से पहले सोचना पड़ेगा. पहले तो किस को प्यार की निशानी माना जाता था. लेकिन अब यह एक भयानक बीमारी का रास्ता भी हो सकता है. इस का मतलब यह नहीं कि आप किस करें ही न. किस करें लेकिन वो सांकेतिक होना चाहिए. हां अगर आप में खांसीजुकाम के लक्षण दिखाई देते हैं और आप जानते हैं कि आप ने हाल में ही किसी को किस किया है तो आप को उन्हें यह बात बता देनी चाहिए. अगर आप ने किसी ऐसे को किस किया है जिस में अब लक्षण दिख रहे हैं तो आप को खुद को सैल्फ आइसोलेशन में डाल लेना चाहिए. अगर आप किसी के जननांग छूते हैं तो यह मुमकिन है कि आप ने उसे किस भी किया हो. आप को मालूम है कि यह वायरस सलाइवा से फैलता है. अत: किस करना जोखिम भरा है. ऐसे में जिस पार्टनर के साथ आप रह नहीं रहे हैं उन के साथ कौंटैक्ट मत रखिए.

अच्छी सैक्स लाइफ जीएं

इस महामारी ने लोगों को यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि एक अच्छी सैक्स लाइफ क्या है. इस बीमारी के कारण जो लोग आइसोलेशन में हैं वे इस मौके और दूरी का फायदा उठा रहे हैं. वे क्रिएटिव हो गए हैं. अगर आप और आप के पार्टनर को एक ही घर में आइसोलेशन में रहना पड़ रहा है तो इस दौरान आप अपने पार्टनर के बारे में काफी कुछ जान सकते हैं. एकदूसरे की पसंदनापसंद को समझ सकते हैं. दूर रहिए लेकिन दिल को जोड़े रखिए.

इंटर कोर्स में सावधानी बरतें

कोरोना किसी को पहचानता नहीं. वह तो बस एक रास्ता खोजता है. इंटरकोर्स की वजह से किसी भी तरह के इंफैक्शन का खतरा न रहे इस के लिए आप को सतर्क रहना पड़ेगा. यानी साफसफाई से जुड़ी कुछ बातों को अपनी आदत में शुमार कर लेना चाहिए. सैक्स लाइफ में सैक्सुअल हाइजीन उतनी ही जरूरी है जितना कि हमारे जीवन में साफसफाई. एक सेहतमंद दांपत्य जीवन के लिए यौन संबंधों से पहले और बाद में सफाई रखना जरूरी है. अकसर लोग सैक्सुअल हाइजीन के बारे में कम ही ध्यान देते हैं जिस से यूटीआई यानी यूरिनरी ट्रैक्ट इंफैक्शन का खतरा दोनों ही पार्टनर को बना रहता है. इसलिए साफसफाई का ध्यान रखना चाहिए. सैक्स के बाद आप दोनों को कितनी ही नींद क्यों न आ रही हो लेकिन अगर आप हाइजीन से समझौता करेंगे तो आप को इंफैक्शन होने की आशंका बढ़ जाएगी. यहां यह भी ध्यान देना होगा कि आप को या आप के पार्टनर को सर्दीजुकाम तो नहीं हुआ है. ऐसे में आप को आइसोलेट करना ही होगा क्योंकि थोड़े से मजे के लिए जीवन को खतरे में नहीं डाल सकते.

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सैक्सुअल वाशिंग

सैक्स से पहले और सैक्स के बाद अच्छी तरह से हैंड वाश करना भी बेहद जरूरी है, क्योंकि बैक्टीरिया और कीटाणु आमतौर पर हमारे हाथों से ही फैलते हैं. सैक्स के दौरान अकसर हम अपना या पार्टनर का जैनिटल एरिया पेनिट्रेट करने के लिए हाथों का इस्तेमाल करते हैं. ऐसे में अगर आप के हाथ गंदे होंगे तो प्राइवेट पार्ट में बैक्टीरिया ट्रांसफर होने का खतरा बना रहेगा. लिहाजा सैक्स से पहले और इंटरकोर्स के बाद हाथों को अच्छी तरह से रगड़ कर करीब 20 सैकेंड तक साफ करें. यौन संबंध बनाने से पहले और बाद में अपने जननांगो को अच्छी तरह साफ जरूर करें.

संक्रमित प्राइवेट पार्ट

सैक्स के बाद अपने प्राइवेट पार्ट की सफाई करना भी बेहद जरूरी है. किसी भी तरह के बैक्टीरिया को फैलने से रोकने के लिए बेहद जरूरी है कि इंटरकोर्स के बाद पानी से प्राइवेट पार्ट की सफाई की जाए. आप चाहें तो पानी के साथ माइल्ड साबुन का भी इस्तेमाल कर सकते हैं. लेकिन अगर आप की स्किन सैंसिटिव है तो आप को इरिटेशन की समस्या हो सकती है. प्राइवेट पार्ट की सफाई के लिए फैंसी लोशन या परफ्यूम का इस्तेमाल करने की बजाए कुनकुने पानी से इसे धोएं. पार्टनर संग इंटरकोर्स के बाद जब आप बाथरूम में क्लीनिंग के लिए जाएं तो टौयलेट करना न भूलें. इस का मकसद यह है कि आप का ब्लैडर खाली होना चाहिए क्योंकि अगर सैक्स के दौरान किसी तरह का बैक्टीरिया आप के यूरेथा तक पहुंच गया होगा तो टौयलेट के दौरान वह शरीर से बाहर निकल जाएगा. सैक्स के बाद एक गिलास पानी पी कर मन को शांत कर सकते हैं.

कौंडम ही बचाव है

कोरोना वायरस के कारण दुनिया के कई देशों में लौकडाउन है. कौंडम बनाने वाली कंपनियां भी इस से अछूती नहीं हैं. ऐसे में कौंडम की सप्लाई कम हो रही है दुनियाभर में इस की भारी कमी हो गई है, जिस से बाजार में लोगों को यह नहीं मिल पा रहा है. अगर आप भी इस स्थिति से गुजर रहे हैं तो कामेच्छा पर काबू रखें. लाइफ पार्टनर से खुल कर इस विषय पर बात करें. दोनों मिल कर रास्ता ढूंढ़ें. अगर आप सैक्सुअल अर्ज को कंट्रोल नहीं कर पा रहे हैं तो वह कई तरह से इस पर नियंत्रण पाने में आप की मदद कर सकती हैं. अपने विचारों पर काबू करने की कोशिश करें. हर बार यौन संबंधों के बारे में सोचेंगे तो आप की कामेच्छा को काबू करना नामुमकिन हो जाएगा. बेहतर यही है कि जब भी ऐसा कोई खयाल आए तो दिमाग को तुरंत किसी और थौट की ओर डायवर्ट करने की कोशिश करें. सैक्सुअल ऊर्जा को किसी क्रिएटिव कार्य में लगा दें. रोमांस और प्यार का मतलब सिर्फ यौन संबंध ही नहीं होता है.

मोटे पुरुष और महिला दूर ही रहें

कुछ दिनों पहले हुई एक स्टडी से पता चलता है कि पुरुष जिन का वजन अधिक होता है वे ज्यादा सैक्स करते हैं. ऐंगलिया रस्किन यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों और अनुसंधानकर्ताओं ने ब्रिटेन के करीब 5 हजार सैक्सुअली ऐक्टिव पुरुषों का विश्लेषण किया है और फिर इस नतीजे पर पहुंचे कि मोटे पुरुष, दुबलेपतले पुरुषों की तुलना में ज्यादा सैक्स करते हैं. सिर्फ पुरुषों में ही नहीं बल्कि महिलाओं में भी यही बात देखने को मिली. अनुसंधानकर्ताओं ने पाया कि ओवरवेट महिलाओं ने भी कम वजन वाली महिलाओं की तुलना में 16 प्रतिशत ज्यादा सैक्स किया. कोरोना के प्रकोप से बचे रहें इसलिए मोटे लोग सैक्स विचारों से बचें.

संगृहीत नहीं होता वीर्य, इसके तमाम पहलुओं को युवाओं को समझना जरूरी है

आलोक के सासससुर व मातापिता परेशान हो गए. आलोक की बीवी उस के घर आने को तैयार नहीं थी. उसे बहुत समझाया, मगर वह मानी नहीं. इस की पूरी पड़ताल की गई. तब सचाई का पता चला कि आलोक अपनी बीवी के साथ हमबिस्तरी करने से दूर भागता था, इस कारण उस की बीवी उस के पास रहना नहीं चाहती थी.

आलोक के दोस्तों से बात करने पर पता चला कि आलोक अपनी ताकत नहीं खोना चाहता था. इस कारण वह अपनी बीवी से दूर भागता था.

उस का कहना था, ‘‘वीर्य बहुत कीमती होता है. उसे नष्ट नहीं करना चाहिए. इस के संग्रह से ताकत बढ़ती है.’’ यह जान कर आलोक के मातापिता ने अपना सिर पीट लिया.

ऐसे कई उदाहरण मिल जाएंगे जिन में हमें इस बात का पता चलता है कि यह भ्रम कितनी व्यापकता से फैला हुआ है, इस भ्रम की वजह से कई खुशहाल परिवार उजड़ जाते हैं. इन उजड़े हुए अधिकांश परिवारों के व्यक्तियों का मानना होता है कि वीर्य संगृहीत किया जा सकता है. क्या इस के संग्रह से ताकत आती है? क्या वाकई यह भ्रम है या यह हकीकत है. हम यहां इस को समझने का प्रयास करते हैं.

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आलोक के मातापिता समझदार थे. वे आलोक को डाक्टर के पास ले गए. डाक्टर यह सुन कर मुसकराया. उन्होंने आलोक से कहा, ‘‘तुम्हारी तरह यह भ्रम कइयों को होता है.’’

डाक्टर ने आलोक को कई उदाहरण दे कर समझाया तब उस की समझ में आया कि उस ने वास्तव में एक भ्रम पाल रखा था, जिस के कारण उस का परिवार टूटने की कगार पर पहुंच गया था. उस के परिवार और उस की खुशहाल जिंदगी को डाक्टर साहब और उस के मातापिता ने अपनी सूझबूझ से बचा लिया. नतीजतन, वह आज अपनी बीवी और 2 बच्चों के साथ खुशहाल जिंदगी जी रहा है.

शरीर विज्ञान और प्राकृतिक विज्ञान के अपने नियम हैं. उन के अपने सिद्धांत हैं. वे उन्हीं का पालन करते हैं. नियम कहता है कि वीर्य को संगृहीत नहीं किया जा सकता है. जिस तरह एक भरे हुए गिलास में और पानी नहीं भरा जा सकता है वैसे ही वीर्यग्रंथि में एक सीमा के बाद और वीर्य नहीं भरा जा सकता है. यदि शरीर में वीर्य बनना जारी रहा तो वह किसी न किसी तरह शरीर से बाहर निकल जाता है.

वीर्य का गुणधर्म है बहना

वीर्य शरीर से बहने और बाहर निकलने के लिए शरीर में बनता है. वह किसी न किसी तरह बहेगा ही. यदि आप हमबिस्तरी कर के पत्नी के साथ आनंददायक तरीके से बहा दें तो ठीक से बह जाएगा, यदि ऐसा नहीं करोगे तो वह स्वप्नदोष के जरिए बह कर निकल जाएगा.

वीर्य का कार्य प्रजनन चक्र को पूरा करना होता है. बस, वहीं उस का कार्य और वही उस की उम्र होती है. उस में उपस्थित शुक्राणु औरत के शरीर में जाने और वहां अंडाणु से मिल कर शिशु उत्पन्न करने के लिए ही बनते हैं. उन की उम्र 2 से 3 दिन के लगभग होती है. यदि उस दौरान उन का उपयोग कर लिया जाए तो वे अपना कार्य कर लेते हैं अन्यथा वे मृत हो जाते हैं.

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मृत शुक्राणु अन्य शुक्राणु को मारने का काम भी करते हैं. इसलिए इस को जितना बहाया जाए, शरीर में उतने स्वस्थ शुक्राणु पैदा होते हैं. शरीर मृत शुक्राणुओं को शरीर से बाहर निकालता रहता है. इस से शरीर की क्रिया बाधित नहीं होती है.

शरीर को ताकत यानी ऊर्जा वसा और कार्बोहाइड्रेट से मिलती है. हम शरीर की मांसपेशियों को जितना मजबूत करेंगे, हम उतने ताकतवर होते जाएंगे. यही शरीर का गुणधर्म है. इसी वजह से शारीरिक मेहनत करने वाला 40 किलो का एक हम्माल 100 किलोग्राम की बोरी उठा लेता है जबकि 100 किलोग्राम का एक व्यक्ति 40 किलोग्राम की बोरी नहीं उठा पाता. इसलिए यह सोचना कि वीर्य संग्रह से ताकत आती है, कोरा भ्रम है.

सेक्स लाइफ बेहतर बनाने के लिए करें ये आसान काम

हम अपना वजन कम करने के लिए क्या नहीं करते हैं. इसके लिए हम डाइटिंग भी करते है. जिससे लिए हम कम से कम खाना खाते हैं, लेकिन आप जानते हैं कि कम खाना खाने से कई फायदे हैं. इन्हीं में से एक फायदा है सेक्स लाइफ. कम खाना खाने से आपकी सेक्स लाइफ बेहतर रहती है. यह बात एक शोध में सामने आई.

अगर आप कैलोरी के प्रति सचेत हैं और अतिरिक्त वजन घटाने के लिए स्वास्थ्यवर्धक भोजन ग्रहण करते हैं तो आपके खुश होने का एक और बड़ा कारण मिल गया है. एक दिलचस्प शोध में यह पता चला है कि कम खाने से न सिर्फ लोगों को वजन कम करने में मदद मिलती है, बल्कि यह मूड को भी बेहतर बनाता है और तनाव को कम करता है, जिससे आपकी सेक्स लाइफ बेहतर होती है.

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इस निष्कर्ष तक पहुंचने के लिए लुइसियाना के पेनिंगटन बॉयोमेडिकल रिसर्च सेंटर के शोधकर्ताओं ने 218 स्वस्थ वयस्कों का दो साल तक अध्ययन किया. उन्होंने उन लोगों को दो समूहों में बांटा. एक समूह को 25 फीसदी कम कैलोरी ग्रहण करने को कहा गया. वहीं, दूसरे समूह को अपने सामान्य भोजन को लेने को कहा गया.

शोधकर्ताओं में से एक कोर्बी मार्टिन ने पाया कि जिस समूह ने कम कैलोरी ली थी, उनकी सेक्स लाइफ बेहतर हो गई. कम कैलोरी ग्रहण करने वाले समूह के लोगों की नींद बेहतर हुई और उनका वजन भी घट गया. मोटापे के शिकार लोग अगर कम कैलोरी लें तो उनकी नींद और उनकी यौन प्रणाली बेहतर होती है. यह अध्ययन जामा इंटरनल मेडिसिन जर्नल में प्रकाशित हुआ है.

शोधकर्ताओं का कहना है, “हमारे शोध से पता चला है कि अगर स्वस्थ लोग दो साल तक कम कैलोंरी लें तो इससे उनके लिए उल्टे नतीजे आते हैं अत: यह केवल मोटापे से ग्रस्त लोगों पर ही लागू होता है.”

हाल के एक अध्ययन में पाया गया कि जो लोग बेहद कम भोजन करने वाले/वाली जीवनसाथी के साथ रहते हैं, उनके मोटापा कम करने की संभावना ज्यादा होती है.

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न्यूसाउथवेल्स स्कूल ऑफ साइकोलॉजी विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं के मुताबिक आपके साथ भोजन करने वाला कितना खाना खाता है, यह आप पर गहरा असर डालता है. इसलिए कम खाने वालों के साथ रहने पर आप अपना वजन घटा सकते हैं और जीवनसाथी के साथ संबंधों को बेहतर कर सकते हैं. यह प्रभाव पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं में ज्यादा देखने को मिला है.

सोशल इंफ्लूएंस जर्नल में प्रकाशित इस शोध के मुताबिक, “इसका कारण यह है कि महिलाओं को इस बात की ज्यादा परवाह होती है कि भोजन के दौरान दूसरे उनके बारे में क्या सोचते हैं.”

मुझे मास्टरबेशन की आदत है, 10 सेकेंड में इजैक्युलेट हो जाता हूं. क्या करूं?

सवाल

मैं 28 साल का हूं, 16 साल की उम्र से ही मैंने मास्टरबेशन करना शुरू कर रहा हूं. मुझे लगता है कि इससे मेरी सेक्स लाइफ प्रभावित हो रही है. अब मैं 10 सेकेंड में ही इजैक्युलेट कर देता हूं. इसके अलावा मुझे पौर्न देखने की बुरी आदत है. सोते वक्त मुझे कभी-कभी सेक्स के सपने आते हैं और मेरा इजैक्युलेशन हो जाता है. मैं मास्टरबेशन की इस उत्तेजना को कैसे कम करूं?

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 जवाब 

आपने जो टिप्स मांगे हैं उनसे आपको सेक्शुअल एक्सपीरियंस को बेहतर तरीके से समझने में मदद मिलेगी. आप बिल्कुल सही कह रहे हैं कि आपको अपने सेक्शुअल बिहेवियर को सुधारने की जरूरत है. हालांकि इसमें कुछ महीने का समय लग जाएगा. अब यह आपके ऊपर निर्भर करता है कि आप अपने तरीकों में बदलाव लाएं और जो उद्देश्य है उसे पाने की कोशिश करें. इस संबंध में सेक्स एक्सपर्ट या फिर काउंसलर आपकी मदद कर सकता है.

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Dr Ak Jain: क्या करें जब पुरुषों में घटने लगे बच्चा पैदा करने की ताकत

बेऔलाद जोड़ों की तादाद में तेजी से बढ़ोतरी देखी गई है क्योंकि नामर्दी के चलते मर्द अपनी पत्नी को पेट से करने में नाकाम होते हैं. वैसे, अगर गर्भनिरोधक उपाय आजमाए बगैर एक साल तक हमबिस्तरी करने पर भी जब बच्चा नहीं ठहरता है तो इसे शुक्राणुओं की समस्या के चलते नामर्दी मान लिया जाता है.

आमतौर पर इस तरह की समस्या  कमजोर शुक्राणु के चलते होती है जबकि बच्चा ठहरने के लिए शुक्राणु

की ही जरूरत पड़ती है. ऐसे मामलों में औरतों की फैलोपियन ट्यूब तक शुक्राणु पहुंच ही नहीं पाते हैं और कई कोशिशों के बावजूद औरत पेट से होने में नाकाम रहती है.

इस समस्या के लिए कई बातें जिम्मेदार होती हैं. खास वजह धूम्रपान और ज्यादा मात्रा में शराब का सेवन करना है. ज्यादातर मामलों में देखा गया है कि गठीला बदन बनाने के लिए लड़के कम उम्र से ही स्टेरौयड और दूसरी दवाओं का सेवन करने लग जाते हैं. इस वजह से बाद की उम्र में उन्हें इस समस्या का सामना करना पड़ जाता है. बहुत ज्यादा कसरत और डायटिंग के लिए भूखे रहने जैसी आदतें भी इस की खास वजहें हैं.

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नौजवानों में तेजी से बढ़ते तनाव और डिप्रैशन के साथसाथ प्रदूषण और गलत लाइफस्टाइल के चलते एनीमिया की समस्या भी मर्दों में नामर्दी की वजह बनती है. इनफर्टिलिटी से जुड़े सब से बुरे हालात तब पैदा होते हैं जब मर्द के वीर्य में शुक्राणु नहीं बन पाते हैं. इस को एजूस्पर्मिया कहा जाता है. तकरीबन एक फीसदी मर्द आबादी भारत में इसी समस्या से पीडि़त है.

हमारे शरीर को रोज थोड़ी मात्रा में कसरत की जरूरत होती है, भले ही वह किसी भी रूप में क्यों न हो. इस से हमारे शारीरिक विकास को बढ़ावा मिलता है.

अगर आप भी ऐसी ही किसी समस्या से जूझ रहे हैं तो संपर्क करिए लखनऊ के डॉक्टर ए. के. जैन से जो पिछले 40 सालों से इन समस्याओं का इलाज कर रहे हैं.

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हालांकि कसरत के कई अच्छे पहलू भी हैं. मगर इस के कुछ बुरे पहलुओं पर भी ध्यान देने की जरूरत है जिन की तरफ कम ही लोगों का ध्यान जाता है. मसलन, औरतों का ज्यादा कसरत करना बांझपन की वजह भी बन सकता है. वैसे, कसरत करने के कुछ फायदे इस तरह से हैं:

दिल बने मजबूत : हमारे दिल की हालत सीधेतौर पर इस बात से जुड़ी होती है कि हम शारीरिक रूप से कितना काम करते हैं. जो लोग रोजाना शारीरिक रूप से ज्यादा ऐक्टिव नहीं रहते हैं, दिल से जुड़ी सब से ज्यादा बीमारियां भी उन्हीं लोगों को होती हैं खासतौर से उन लोगों के मुकाबले जो रोजाना कसरत करते हैं.

अच्छी नींद आना : यह साबित हो चुका है कि जो लोग रोजाना कसरत करते हैं, उन्हें रात को नींद भी अच्छी आती है. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि कसरत करने की वजह से हमारे शरीर की सरकेडियन रिदम मजबूत होती है जो दिन में आप को ऐक्टिव बनाए रखने में मदद करती है और जिस की वजह से रात में आप को अच्छी नींद आती है.

शारीरिक ताकत में बढ़ोतरी : हम में से कई लोगों के मन में कसरत को ले कर कई तरह की गलतफहमियां होती हैं, जैसे कसरत हमारे शरीर की सारी ताकत को सोख लेती है और फिर आप पूरे दिन कुछ नहीं कर पाते हैं. मगर असल में होता इस का बिलकुल उलटा है. इस की वजह से आप दिनभर ऐक्टिव रहते हैं, क्योंकि कसरत करने के दौरान हमारे शरीर से कुछ खास तरह के हार्मोंस रिलीज होते हैं, जो हमें दिनभर ऐक्टिव बनाए रखने में मदद करते हैं.

आत्मविश्वास को मिले बढ़ावा : नियमित रूप से कसरत कर के अपने शरीर को उस परफैक्ट शेप में ला सकते हैं जो आप हमेशा से चाहते हैं. इस से आप के आत्मविश्वास में भी बढ़ोतरी होती है.

रोजाना कसरत करने के कई सारे फायदे हैं इसलिए फिजिकल ऐक्टिविटी को नजरअंदाज करने का तो मतलब ही नहीं बनता, लेकिन बहुत ज्यादा कसरत करने का हमारे शरीर पर बुरा असर भी पड़ सकता है खासतौर से आप की फर्टिलिटी कम होती है, फिर चाहे वह कोई औरत हो या मर्द.

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ऐसा कहा जाता है कि बहुत ज्यादा अच्छाई भी बुरी साबित हो सकती है. अकसर औरतों में एक खास तरह के हालात पैदा हो जाते हैं जिन्हें एमेनोरिया कहते हैं. ऐसी हालत तब पैदा होती है, जब एक सामान्य औरत को लगातार 3 महीने से ज्यादा वक्त तक सही तरीके से माहवारी नहीं हो पाती है.

कई औरतों में ऐसी हालत इस वजह से पैदा होती है क्योंकि वे शरीर को नियमित रूप से ताकत देने के लिए जरूरी कैलोरी देने वाली चीजों का सेवन किए बिना ही जिम में नियमित रूप से किसी खास तरह की कसरत के 3 से 4 सैशन करती हैं.

शरीर में कैलोरी की कमी का सीधा असर न केवल फर्टिलिटी पर पड़ता है, बल्कि औरतों की सेक्स इच्छा पर भी बुरा असर पड़ता है. साथ ही मोटापा भी इस में एक अहम रोल निभाता है क्योंकि ज्यादातर मोटी औरतें वजन घटाने के लिए कई बार काफी मुश्किल कसरतें भी करती हैं. इस वजह से भी उन की फर्टिलिटी पर बुरा असर पड़ता है.

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इनफर्टिलिटी की समस्या से जूझ रहे जोड़े शारीरिक और मानसिक तनाव की हालत में पहुंच जाते हैं. अकसर देखा गया है कि ऐसे मामलों में या तो शुक्राणु की मात्रा कम होती है या स्पर्म की ऐक्टिविटी बहुत कम रहती है. लिहाजा ऐसे शुक्राणु औरत के अंडाणु को गर्भाधान करने में नाकाम रहते हैं.

वैसे अब इनफर्टिलिटी से नजात पाने के लिए कई उपयोगी इलाज मुहैया हैं. ओलिगोस्पर्मिया में स्पर्म की तादाद बहुत कम पाई जाती है और एजूस्पर्मिया में तो वीर्य के नमूने में स्पर्म होता ही नहीं है. एजूस्पर्मिया में मर्द के स्खलित वीर्य से स्पर्म नहीं निकलता है जिसे जीरो स्पर्म काउंट कहा जाता है. इस का पता वीर्य की जांच के बाद ही लग पाता है.

कुछ मामलों में जांच के दौरान तो स्पर्म नजर आता है लेकिन कुछ रुकावट होने के चलते वीर्य के जरीए यह स्खलित नहीं हो पाता है. स्पर्म न पनपने की एक और वजह है वैरिकोसिल. इस का इलाज सर्जरी से ही मुमकिन है.

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कुछ समय पहले तक पिता बनने के लिए या तो दाता के स्पर्म का इस्तेमाल करना पड़ता था या किसी बच्चे को गोद लेना पड़ता था, लेकिन अब चिकित्सा विज्ञान में स्टेम सैल्स टैक्नोलौजी की तरक्की ने लैबोरेटरी में स्पर्म बनाना मुमकिन कर दिया है.

लैबोरेटरी में  मरीज के स्टेम सैल्स का इस्तेमाल करते हुए स्पर्म को बनाया जाता है, फिर इसे विट्रो फर्टिलाइजेशन तरीके से औरत पार्टनर के अंडाशय में डाल कर अंडाणु में फर्टिलाइज किया जाता है. इस तरीके से वह औरत पेट से हो सकती है.

लखनऊ के डॉक्टर ए. के. जैन, पिछले 40 सालों से इन सभी समस्याओं का इलाज कर रहे हैं. तो आप भी पाइए अपनी सभी  सेक्स समस्या का बेहतर इलाज अंतर्राष्ट्रीय ख्याति एवं मान्यता प्राप्त डॉ. जैन द्वारा. 

Dr Ak Jain: नामर्द नहीं हैं बांझ पुरुष, जानें उपाय

चिकित्सा विशेषज्ञों का कहना है कि देश में लगभग 4 करोड़ पुरुषों के बांझ होने का अनुमान है. संतान सुख से वंचित जोड़ों के पुरुष सदस्य शर्म के मारे इलाज के लिए आगे नहीं आते और अपनी निर्दोष पत्नियों को जीवन भर बांझ होने का उलाहना सुनने के लिए बाध्य कर देते हैं  यह जरूरी नहीं है कि जो पुरुष बांझ हो वह नपुंसक भी हो. किसी व्यक्ति का नपुंसक होना और बांझ होना 2 अलगअलग बातें हैं. संभोग न कर पाना नपुंसकता है, लेकिन संभोग शक्ति होते हुए भी स्त्री को गर्भवती न कर पाना बांझपन कहलाता है. कई व्यक्ति, जो ऊपर से स्वस्थ, हृष्टपुष्ट होते हैं और सफल संभोग करते हैं, वे भी संतान सुख से वंचित रहते हैं.

पुरुषों में बांझपन कई कारणों से हो सकता है. कई बार एकसाथ अनेक कारण मिल कर पुरुषों को बांझ कर देते हैं, तो कई बार एक ही कारण इतना सशक्त होता है कि पुरुष बांझ रह जाता है. पुरुषों में बांझपन का सब से बड़ा कारण वीर्य दोष होता है. यदि पुरुष स्वस्थ है तो वीर्य की 15 बूंदों में ही साढ़े 7 करोड़ शुक्राणु होने चाहिए. इन में अधिकांश शुक्राणु स्वस्थ और सक्रिय होने आवश्यक हैं. यदि इन शुक्राणुओं में अधिकांश अस्वस्थ या निष्क्रिय होंगे तो गर्भधारण नहीं होगा.

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शुक्राणु कमजोर होने की वजह से पुरुष अपनी पत्नी को गर्भवती करने में असमर्थ रहते हैं. पुरुषों में बांझपन का सब से बड़ा कारण वीर्य दोष ही होता है.

वीर्य दोष के कई कारण हो सकते हैं जैसे आहारविहार, चोट, मानसिक परेशानी, गलसुआ, बेरिकोसील और एक्सरे के कुप्रभाव की वजह से पुरुष का वीर्य दूषित हो जाता है और वह प्रजनन करने लायक नहीं रह जाता. कई बार यह भी होता है कि शुक्राणु निर्माण की प्रक्रिया बराबर चल रही होती है, लेकिन वीर्य में वे अनुपस्थित रहते हैं तो इस का मतलब यह है कि शुक्राणुओं के वीर्य में मिलने के मार्ग में कहीं अवरोध है. इस अवरोध को आपरेशन द्वारा ठीक कराया जा सकता है.

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मानसिक नपुंसकता

पुरुषों में बांझपन का एक कारण उन का नपुंसक होना भी हो सकता है. शारीरिक संरचना में कोई जन्मजात विकार हो तो व्यक्ति संबंध बनाने में सफल नहीं हो पाता. कई बार मानसिक नपुंसकता की वजह से भी वह बांझ रहता है. मानसिक नपुंसकता की वजह से वह संभोग ही नहीं कर पाता है और हर बार वह असफल रहता है. मानसिक नपुंसकता 2 प्रकार की हो सकती है. एक तो यह कि समय पर अंग उत्तेजित ही न हो, इस वजह से संभोग ही न कर पाए. दूसरी स्थिति में जैसेतैसे उत्तेजित तो हो जाता है, लेकिन संबंध बनाने से पूर्व ही वीर्य स्खलित हो जाता है. शीघ्रपतन भी बांझपन का एक कारण बनता है, क्योंकि इस में संबंध बनाने के प्रयास में ही वीर्यपात हो जाता है और ऐसे में शुक्राणु व अंडाणु का संपर्क ही नहीं हो पाता है.

कई बार तो यह भी देखा गया है कि पतिपत्नी दोनों संतानोत्पात्त के लिए पूर्णत: योग्य होते हैं और किसी में कोई दोष नहीं होता, फिर भी बच्चा नहीं होता. इस का सब से बड़ा कारण है कि वे सही समय पर संबंध नहीं बनाते. यह एक संयोग हो सकता है कि जब वे संबंध बनाते हों, उस समय स्त्री के अंडाणु नहीं बनते हों. मानसिक स्थिति और संबंध बनाने के बीच बड़ा नाजुक संबंध है. यदि आप किसी चिंता या तनाव को पालें अथवा व्यग्र या भयग्रस्त हो कर संबंध बनाएंगे, तो स्त्री को गर्भ ठहरना मुशकिल होगा.

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अत्यधिक तनाव

तंबाकू और सिगरेट के अत्यधिक सेवन से वीर्य में शुक्राणुओं की बनावट और संख्या पर दुष्प्रभाव से पुरुषों में बांझपन का खतरा बढ़ा है. पुरुष जननेंद्रिय को गरम कर देने वाले वातावरण में काम करने से भी पुरुष बांझ हो सकता है. यही कारण है कि जिन कारखानों में भट्टियों, जहरीले रसायन तथा एक्सरे जैसी किरणों का प्रयोग होता है, वहां के श्रमिकों के बांझ होने के आसार ज्यादा रहते हैं. लगातार नाइलोन का जांघिया पहनने से भी पुरुष बांझ हो सकते हैं. कई मामलों में पाया गया है कि घर और बाहर के झंझटों से महिलाएं और पुरुष इतने तनावग्रस्त रहते हैं कि शारीरिक क्षमताओं के बावजूद बेमेल मानसिक दशाओं के कारण गर्भधारण नहीं हो पाता. परीक्षणों से यह सिद्ध हुआ है कि ऐसे तनावग्रस्त दंपतियों को यदि एक माह घर से दूर खुशनुमा माहौल में रखा जाए, तो उन्हें संतान प्राप्त हो सकती है.

मधुमेह से भी पुरुषों में बांझपन आ सकता है. इसी प्रकार थायराइड जैसी बीमारी भी पुरुष बांझपन का कारण बन सकती है. जन्मजात शारीरिक नपुंसकता के लिए पुरुषों को चाहिए कि वे किसी कुशल चिकित्सक को बताएं. आजकल चिकित्सा विज्ञान काफी उन्नत है और आपरेशनों के जरिए जन्मजात विकृतियों को ठीक भी किया जा सकता है.

सफल संभोग जरूरी

मानसिक नपुंसकता केवल मनोवैज्ञानिक बीमारी है. शरीर स्वस्थ हो, लेकिन मन अशांत हो तो बात नहीं बन सकती. सफल संभोग के लिए शरीर एवं मन दोनों से व्यक्ति को स्वस्थ एवं प्रसन्न होना चाहिए. तभी वह कुछ कर सकता है. अत: अपने मन से पूर्व अनुभव को त्याग कर पूर्ण आत्मविश्वास के साथ संबंध बनाना चाहिए. फिर देखिए, सारी नपुंसकता छूमंतर. जब भी संबंध बनाएं, दोनों प्रसन्नचित्त हो कर और सारी चिंताओं से मुक्त हो कर भयरहित वातावरण में बनाएं. हो सकता है बात बन जाए. पुरुषों में नपुंसकता और बांझपन दूर करने और संतानसुख का शर्तिया दावा करने वाले अनेक बोगस किंतु आकर्षक विज्ञापन अखबारों में छपते हैं और दीवारों पर पोस्टर के रूप में भी लगते हैं. ये नीमहकीम आप का धन लूटते हैं. यदि आप में कोई कमजोरी है तो किसी योग्य, कुशल एवं अनुभवी चिकित्सक से परीक्षण एवं उपचार कराना चाहिए.

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वीर्य को पुष्ट बनाने तथा शुक्राणुओं की संख्या बढ़ाने के लिए कुछ समय के लिए उपचार किया जाता है. इन से शुक्राणु स्वस्थ व गतिशील हो जाते हैं तथा उन की संख्या बढ़ जाती है और वे गर्भधारण कराने में सक्षम हो जाते हैं.

टोनेटोटकों से परहेज

एक बात और जादूटोने से बांझपन दूर नहीं होता. कितने ही टोटके कर लिए जाएं, जब तक पतिपत्नी दोनों पूरी तरह सामान्य नहीं होते, संतान नहीं हो सकती. इसी प्रकार यज्ञ, हवन, व्रत, उपवास और सूर्य उपासना आदि से संतान नहीं हो सकती. यदि कोई खराबी है तो वह उचित उपचार से ही दूर हो सकती है. यदि व्रत और सूर्य उपासना से संतान होती तो आज विश्व में सभी औलाद वाले होते. यदि किसी दंपती को संभोगरत रहने के बावजूद संतान सुख नहीं मिल पा रहा है, तो सब से पहले पुरुष को अपनी जांच करानी चाहिए, क्योंकि पुरुष की जांच सब से सरल है व कम समय में पूरी हो जाती है. यदि जांच में सब कुछ ठीक निकले तो स्त्री की जांच करानी चाहिए.

बांझ दंपतियों के लिए टेस्ट ट्यूब द्वारा बच्चे को जन्म देने की पद्धति एक वरदान है, किंतु अत्यधिक खर्चीली होने के कारण गरीब और मध्यवर्गीय दंपतियों के लिए टेस्ट ट्यूब बेबी पाना एक सपना हो गया है. इस प्रणाली में लगभग 40 हजार रुपए लगभग खर्च आता है. चूंकि इस पद्धति में  20% मामलों में ही सफलता मिलती है इसलिए बेहतर है कि बांझ दंपती इस खर्चीली विधि को अपनाने के बजाय बच्चा गोद लेने की सामाजिक प्रथा को अपनाएं.

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लखनऊ के डॉक्टर ए. के. जैन, पिछले 40 सालों से इन सभी समस्याओं का इलाज कर रहे हैं. तो आप भी पाइए अपनी सभी  सेक्स समस्या का बेहतर इलाज अंतर्राष्ट्रीय ख्याति एवं मान्यता प्राप्त डॉ. जैन द्वारा. 

Dr Ak Jain: मर्दों में बढ़ती शीघ्रपतन की समस्या, पढ़ें खबर

आज के दौर में हर उम्र के मर्दों में शीघ्रपतन की समस्या देखने में आ रही है. आम भाषा में इसे जल्दी पस्त हो जाना और अंगरेजी में इसे प्रीमैच्योर इजैकुलेशन या अर्ली इजैकुलेशन कहा जाता है. ऐसा अकसर अंग में प्रवेश से पहले या उस के तुरंत बाद हो सकता है. इस की वजह से दोनों पार्टनर सेक्स संबंधों के लिहाज से असंतुष्ट रहते हैं. दरअसल, शीघ्रपतन आदमियों में सेक्स की आम समस्याओं में से एक है. शायद हर मर्द अपनी जिंदगी में कभी न कभी इस परेशानी से घिरता है. अगर अंग में डालने से पहले ही मर्द का वीर्य गिर जाता है, तो ऐसे में उस जोड़े में बच्चे पैदा न होने की समस्या भी पेश आती है.

शीघ्रपतन की समस्या का असर आदमी की सेक्स लाइफ पर देखने को मिलता है. इस समस्या के चलते आदमी अपनी लाइफ पार्टनर या प्रेमिका को सेक्स सुख नहीं दे पाता. इस से नाजायज संबंध भी बन जाते हैं, जिस का नतीजा कई बार परिवार के टूटने के रूप में भी होता है. इस समस्या के हल के लिए लोग नीमहकीमों के चंगुल में भी फंस जाते हैं, जो उन को लूटते हैं और समस्या को सुलझाने के बजाय और बढ़ा देते हैं. ज्यादा हस्तमैथुन करने से शरीर के बायोलौजिकल क्लौक का सैट हो जाना है. इस की वजह से आदमी को क्लाइमैक्स पर पहुंचने की जल्दी होती है और वह जल्दी से जल्दी मजा पाना चाहता है.

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* सेक्स के बारे में ज्यादा सोचना भी शीघ्रपतन के लिए जिम्मेदार होता है. सेक्स फैंटेसी या पोर्न फिल्में देखने से भी आदमी ज्यादा जोश में आ जाता है और जल्दी ही पस्त हो जाता है.

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* शराब के ज्यादा सेवन या डायबिटीज की वजह से भी शीघ्रपतन की समस्या पैदा हो सकती है.

* सेक्स संबंध बनाने के शुरुआती दिनों में भी इस तरह की समस्या पैदा हो जाती है.

* नया पार्टनर होने के चलते जोश में जल्दी वीर्य गिर सकता है.

* जल्दी पस्त होना इस बात पर भी निर्भर करता है कि जोश देने का तरीका कैसा है.

* ओरल सेक्स से भी आदमी जल्दी डिस्चार्ज हो सकता है.

क्या करें?

अगर शीघ्रपतन की समस्या आप की जिंदगी में भी तनाव की वजह बन चुकी है, तो इसे चुपचाप सहन न करते रहें, बल्कि अपने डाक्टर से मिलें. वह आप की शारीरिक जांच कर इस की वजह पता लगाने की कोशिश करेगा. डाक्टर के साथ खुल कर अपनी सेक्स लाइफ के बारे में बात करें और अगर कभी किसी बीमारी से पीडि़त हैं, तो उस के बारे में भी किसी तरह की जानकारी न छिपाएं.

ये उपाय भी आजमाएं

* जल्दी पस्त होना रोकने के लिए लंबी सांसें लें.

* जब भी वीर्य निकलने का समय हो, अपने साथी को लंबी सांसें लेने को कहें. इस से धड़कनों की रफ्तार कम होगी और वीर्य जल्दी नहीं निकलेगा.

* सेक्स के पहले इस प्रक्रिया के बारे में उसे अच्छे से समझाएं.

* ‘निचोड़ने की विधि’ के तहत अपने साथी के अंग को नीचे से जोर से दबाएं. ऐसा तब करें, जब आप के साथी का वीर्य निकलने वाला हो. इस से उस के अंग का इरैक्शन कम होगा और वीर्य नहीं निकलेगा.

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* जल्द वीर्य को गिरने से रोकने के लिए स्टौप एंड स्टार्ट विधि अपनाएं. इस के तहत अपने साथी को 3 से 4 बार हस्तमैथुन करने के लिए कहें, जिस में वीर्य निकलने के समय पर उस का रुकना जरूरी है. इस से उसे पता चलेगा कि किस समय इजैकुलेशन होता है और वह इस पर अच्छे से काबू भी कर सकता है.

शीघ्रपतन और दवाएं

ऐसा नहीं है कि शीघ्रपतन होने से हर किसी के मन में तनाव की भावना पैदा हो जाती है. कुछ लोग इसे ले कर ज्यादा नहीं सोचते और इस का हल अपने तरीके से निकालते हैं. लेकिन अगर आप को लगता है कि इस से आप के मजे में कमी आ रही है, तो आप जोलोफ्ट, प्रोजाक जैसी दवाओं का सेवन कर सकते हैं. ये दवाएं शीघ्रपतन रोकने में आप की मदद करती हैं व आप का साथी बिस्तर पर आने से कई घंटे पहले भी इन दवाओं का सेवन कर सकता है.

एक बार इस दवा का सेवन कर लेने पर जब आप दोनों अच्छा वक्त बिताना शुरू कर रहे हों, तो उस समय मर्द की कामुकता में इजाफा होगा. इस से न सिर्फ वीर्य निकलने से रुकेगा, बल्कि पहले के मुकाबले आप के सेक्स संबंध भी बेहतर होंगे.

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इन दवाओं के सेवन के लिए बेहतर यही होगा कि आप किसी माहिर सेक्स डाक्टर से सलाह लें. इस के अलावा जोश रोकने के लिए अंग पर लोकल एनैस्थैटिक क्रीम या स्प्रे का भी इस्तेमाल किया जा सकता है. अंग में जोश में कमी आने से वीर्य गिरने में देरी आएगी. कुछ मर्दों में कंडोम का इस्तेमाल भी इसी तरह जोश घटाने में मददगार होता है.

आमतौर पर आदमी वीर्य गिरने को कंट्रोल करना सीख लेते हैं. इस बारे में जानकारी हासिल करना और कुछ आसान उपायों को अपनाने से हालात पूरी तरह सामान्य हो जाते हैं, लेकिन लंबे समय तक शीघ्रपतन की समस्या का जारी रखना आदमी में डिप्रैशन या एंग्जाइटी की वजह से हो सकता है. किसी मनोवैज्ञानिक से मिल कर इन परेशानियों को दूर किया जा सकता है.

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Dr Ak Jain: जानें क्या है एजुस्पर्मिया और इसके लक्षण

अनुसंधान तथा सर्वेक्षण से यह ज्ञात हो गया है कि 5% पुरुष एजुस्पर्मिक होते हैं, यानी उन के वीर्य में शुक्राणु होते ही नहीं. इस स्थिति को एजुस्पर्मिया कहा जाता है. दूसरी ओर, जब शुक्राणु की संख्या सामान्य से कम होती है, तो उसे ओलिगोस्पर्मिया कहा जाता है. इन दोनों परिस्थितियों वाले पुरुषों के जरिए सामान्यतया प्रैग्नैंसी की संभावना नहीं होती, क्योंकि वीर्य में शुक्राणुओं की संख्या 60-120 मिलियन प्रति मि.ली. के बीच होनी चाहिए.

यहां यह बता दें कि वीर्य परीक्षण में शुक्राणुओं के नहीं पाए जाने का यह अर्थ कदापि नहीं होता कि अंडकोष में स्पर्म का निर्माण हो ही नहीं रहा है या कभी होगा ही नहीं. वीर्य में स्पर्म की कमी या नहीं पाए जाने के कई कारण हो सकते हैं. अधिकतर स्थितियों में उन के कारणों का इलाज करा देने के बाद शुक्राणुओं की संख्या सामान्य हो जाती है और पुरुष पिता बनने की स्थिति में आ जाता है.

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शुक्राणुओं की कमी के कई कारण हो सकते हैं. जैसे, ऐसा हो सकता है कि अंडकोष की कोशिकाओं में शुक्राणु निर्माण की पर्याप्त क्षमता हो पर सहायक हारमोन के स्राव में कमी से निर्माण नहीं हो पा रहा हो या यह भी हो सकता है कि अंडकोष में इन का निर्माण पर्याप्त संख्या में हो रहा हो, पर संवहन नलिकाओं में गड़बड़ी या अवरोध के कारण आगे नहीं बढ़ पा रहे हों और अंडकोष या संग्राहक थैली में ही जमा हो जाते हों. एक तीसरी संभावना यह भी हो सकती है कि सहवास के दौरान लिंग द्वारा स्खलन के बजाय वीर्य पीछे की ओर स्थित मूत्र थैली में चला जाता हो और शुक्राणु गर्भाशय में जाने से वंचित रह जाते हों.

ऐसा क्यों होता है

शुक्राणुओं के निर्माण में आने वाली इन बाधाओं के कई कारण हो सकते हैं, जिन में हारमोन के स्राव की समस्या, टेस्टिकुलर फेल्योर, टेस्टिस में सप्लाई करने वाली रक्त नलियों में सूजन तथा संक्रमण आदि प्रमुख हैं.

मस्तिष्क में स्थित एक विशेष ग्रंथि, जिसे पिट्यूटरी ग्लैंड कहते हैं, से एक विशेष हारमोन, जिसे फौलिकल स्टिमुलेटिंग हारमोन कहते हैं, का स्राव होता है जो रक्त के माध्यम से टेस्टिस में पहुंच कर उस की कोशिकाओं को शुक्राणुओं का निर्माण करने के लिए प्रेरित करता है. इस में किसी तरह की गड़बड़ी या इस के स्राव में कमी हो जाने की वजह से शुक्राणुओं का निर्माण प्रभावित होता है. अंडकोष को सप्लाई करने वाली रक्त नलियों में किसी कारणवश सूजन हो जाने की स्थिति में भी कई बार स्पर्म का निर्माण प्रभावित होता है.

जननांगों में संक्रामक रोग, जैसे मंप, टी.बी. गुप्त रोग की वजह से भी टेस्टिस की सामान्य क्रियाशीलता प्रभावित होती है. यह सिकुड़ कर छोटा हो जाता है, जिस से शुक्राणुओं का निर्माण बाधित हो जाता है. अत्यधिक धूम्रपान, खैनी, जरदा, सिगरेट, शराब, गुटका आदि का सेवन करने वालों में भी इस तरह की कमी आमतौर पर देखने को मिलती है. जननांगों में संक्रमण से भी प्रजनन क्षमता प्रभावित होती है. ई.कोलाई, टी.बी., विषाणु, गुप्त रोग के कारण भी प्रजनन तथा शुक्राणु निर्माण की क्षमता प्रभावित होती है.

पर्याप्त संख्या में शुक्राणुओं के निर्माण के लिए यह भी जरूरी है कि अंडकोष अपनी सही पोजिशन में हो तथा उस का तापमान शारीरिक तापमान से कम हो. इस में थोड़ी सी भी गड़बड़ी होने से इस से शुक्राणु निर्माण में बाधा होती है. वे पुरुष, जो गरम जगहों पर काम करते हैं, जैसे ब्लास्ट फर्नेस, फायर एरिया, अंडरग्राउंड खदान, जहां का तापमान ज्यादा होता है, उन में इस तरह की शिकायत आमतौर पर देखने को मिलती है. जो पुरुष टाइट अंडरपैंट पहनते हैं या जिन्हें रक्त नलियों में सूजन की बीमारी होती है, उन में भी इस तरह की शिकायत देखने को मिल सकती है. टेस्टिस में रचनागत खराबी, टी.बी., गुप्त रोग, चोट लगने, संक्रमण या फिर सूजन हो जाने की स्थिति में भी इस तरह की समस्या देखने को मिल सकती है. शुक्राणुओं को वहन करने वाली नालियों में अवरोध या विकृति आ जाने की स्थिति में, जैसे हर्निया के औपरेशन के बाद उस से बनने वाले निशान से भी कई बार इस तरह की दिक्कतें आ सकती हैं.

पुरानी बीमारियों के कारण अंडकोष में कई बार अवांछित विषैले पदार्थ की मात्रा बढ़ जाती है, जिसे ऐंटीबौडी कहते हैं. यह शुक्राणुओं के साथ चिपक कर उन की गतिशीलता को प्रभावित करता है. इस की वजह से कई शुक्राणु आपस में चिपक कर बेकार हो जाते हैं.

कई बार ऐसा होता है कि टेस्टिस में कोई गड़बड़ी नहीं होती, फिर भी वीर्य में शुक्राणु नहीं पाए जाते. ऐसी स्थिति में यह पता लगाना जरूरी हो जाता है कि कहीं इस के संवहन के रास्ते में किसी तरह की गड़बड़ी तो नहीं है.

इस की मुख्यतया 2 वजहें होती हैं- डक्ट सिस्टम तथा इजेकुलेशन की प्रक्रिया में गड़बड़ी. स्पर्म कैरियर डक्ट नहीं होने या इस के ब्लाक होने के कारण स्पर्म आगे की ओर नहीं  बढ़ पाते हैं. ऐसा वास डिफरेंस नामक नली में जन्मजात खराबी होने या फिर इपिडिडाइमिस, प्रोस्टेट और सेमिनल वैजाइकल में संक्रमण के कारण होने वाली रुकावट की वजह से हो सकता है. कई बार हर्निया या फिर हाइड्रोसील के कारण भी इस में खराबी आ जाती है.

अब आइए जानें कि शुक्राणुओं के इजेकुलेशन की राह में कौनकौन सी समस्याएं हो सकती हैं? सहवास के दौरान इजेकुलेशन के पहले वीर्य को युरेथ्रा में जमा होना जरूरी है. लेकिन कई बार तंत्रिकातंत्र में गड़बड़ी होने के कारण ऐसा हो नहीं पाता. यह समस्या प्रजनन अंगों की सर्जरी, डायबिटीज या फिर रीढ़ की हड्डी में चोट लगने की वजह से हो सकती है. कई बार कई तरह की दूसरी समस्याएं आने के कारण वीर्य आगे की ओर न जा कर पीछे की राह पकड़ लेता है. वह मूत्र थैली में जमा होने लगता है और पेशाब के साथ बाहर निकल जाता है.

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एजुस्पर्मिक पुरुष भी बन सकते हैं पिता

आज जमाना बदल चुका है और विज्ञान ने काफी तरक्की कर ली है. बांझपन को भी दूर करने के ऐसेऐसे उपाय निकल गए हैं, जिन की पहले कल्पना नहीं की जा सकती थी. इसलिए ऐसे लोगों को घबराने या निराश होने की जरूरत नहीं है. ऐसे दंपती को सब से पहले किसी अच्छे अस्पताल में अपनी पूरी जांच करानी चाहिए. पूरी तहकीकात कर उन्हें ऐसे संस्थानों में जाना चाहिए, जहां इस तरह की समस्या की जांच और इलाज की उच्च स्तरीय व्यवस्था हो.

जांच के दौरान यदि हारमोन संबंधी किसी भी तरह की गड़बड़ी होती है, तो इस के लिए दवा दे कर इस के लेवल को बढ़ाया जाता है. यदि टेस्टिस में किसी तरह का ट्यूमर, सिस्ट या किसी तरह की रचनागत खराबी होती है, तो औपरेशन द्वारा इसे ठीक किया जाता है. कई बार इस में संक्रमण होने के कारण भी कई तरह के विकार उत्पन्न हो जाते हैं, जिस को ऐंटिबायोटिक्स या दूसरी दवाएं दे कर ठीक किया जाता है. शुक्राणुओं को संवहन करने वाली नलियों में विकार होने की स्थिति में उसे रिप्रोडक्टिव सर्जरी के द्वारा ठीक किया जाता है.

कई बार ऐसा होता है कि वीर्य में शुक्राणुओं की संख्या अत्यधिक कम होती है और वह टेस्टिस में ही जमा होता है. ऐसी स्थिति में माइक्रो सर्जरी के द्वारा वहां से निकाल कर लैब में कृत्रिम विधि से ओवम में इंजेक्ट कर के फर्टिलाइजेशन कराया जाता है और फिर उसे फैलोपियन ट्यूब में प्रतिस्थापित कर दिया जाता है. इस विधि को इंट्रा साइटोप्लाज्मिक स्पर्म इंसेमिनेशन कहते हैं. कई बार वीर्य में अवांछित तत्त्व होने के कारण ट्यूब में फर्टिलाइजेशन की क्रिया संपन्न नहीं हो पाती है.ऐसी स्थिति में स्पर्मवाश कर इन विट्रो फर्टिलाइजेशन विधि से ट्यूब या यूटरस में प्रतिस्थापित कर दिया जाता है.

यदि किसी कारणवश किसी मरीज में शुक्राणु एकदम से बनता ही नहीं हो, तो उस के भी उपाय चिकित्सा विज्ञान ने ढूंढ़ निकाले हैं, जिस में डोनर स्पर्म की सहायता से आर्टिफिशियल इंसेमिनेशन विधि या फिर आई.वी.एफ. की सहायता से कृत्रिम गर्भाधान कराया जा सकता है और संतान की कमी को दूर किया जा सकता है.

लखनऊ के डॉक्टर ए. के. जैन, पिछले 40 सालों से इन सभी समस्याओं का इलाज कर रहे हैं. तो आप भी पाइए अपनी सभी  सेक्स समस्या का बेहतर इलाज अंतर्राष्ट्रीय ख्याति एवं मान्यता प्राप्त डॉ. जैन द्वारा. 

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