शक- भाग 3: ऋतिका से क्यों रिश्ता तोड़ना चाहता था राघव

राघव को यह उचित लगा, क्योंकि ऋतिका 5 बजे की चार्टर्ड बस से चली जाएगी. अत: उस के बाद वह इतमीनान से नमनजी के पास जा सकता है.

6 बजे के बाद नमनजी कागज ले कर जब वह लौट रहा था तो लिफ्ट का इंतजार करती ऋतिका मिल गई.

‘‘तुम अभी तक घर नहीं गईं?’’ वह पूछे बगैर नहीं रह सका.

‘‘एक प्रोजैक्ट रिपोर्ट पूरी करने के चक्कर में रुकना पड़ा. लेकिन तुम कहां गायब थे रविवार के बाद से?’’

‘‘सोम की शाम को अचानक टूर पर हैदराबाद जाना पड़ गया, आज ही लौटा हूं.’’

‘‘अच्छा किया जाने से पहले घर नहीं आए वरना मम्मी न जाने कितने पार्सल पकड़ा देतीं अपनी सखीसहेलियों के लिए.’’

‘‘पार्सल तो फिर भी ले कर गया था बड़े साहब की बहन डा. माधुरी के लिए,’’ राघव ने पैनी दृष्टि से ऋतिका को देखा, ‘‘तुम तो जानती होगी डा. माधुरी को?’’

ऋतिका के चेहरे पर कोई भाव नहीं आया और वह लापरवाही से कंधे झटक कर बोली, ‘‘कभी नाम भी नहीं सुना. पापा को फोन कर दूं कि वे सीधे घर चले जाएं मैं तुम्हारे साथ आ रही हूं. पहले कहीं कौफी पिलाओ, फिर घर चलेंगे.’’

राघव मना नहीं कर सका और फिर घर पर डा. माधुरी का नाम बता कर प्रकाश और रमा की प्रतिक्रिया देखने की जिज्ञासा भी थी.

रमा के चेहरे पर तो डा. माधुरी का नाम सुन कर कोई भाव नहीं आया, मगर प्रकाश जरूर सकपका सा गए. रमा के आग्रह के बावजूद राघव खाने के लिए नहीं रुका और यह पूछने पर कि फिर कब आएगा उस ने कुछ नहीं कहा. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि मांबेटी सफल अदाकारा की तरह डा. माधुरी को न जानने का नाटक कर रही थीं या उन्हें बगैर कुछ बताए प्रकाश साहब अबौर्शन की व्यवस्था करने गए थे.

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कुछ भी हो ऋतिका को निर्दोष तो नहीं कहा जा सकता. लेकिन चुपचाप सब बरदाश्त भी तो नहीं हो सकता. यह भी अच्छा ही था कि अभी न तो सगाई हुई थी और न इस बारे में परिवार के अलावा किसी और को पता था, इसलिए धीरेधीरे अवहेलना कर के किनारा कर सकता है. रात इसी उधेड़बुन में कट गई.

सुबह वह अखबार ले कर बरामदे में बैठा ही था कि प्रकाश की गाड़ी घर के सामने रुकी. उन का आना अप्रत्याशित तो नहीं था, मगर इतनी जल्दी आने की संभावना भी नहीं थी.

‘‘रात तो खैर अपनी थी जैसेतैसे काट ली, लेकिन दिन को तो तुम्हें भी काम करना है और मुझे भी और उस के लिए मन का स्थिर होना जरूरी है, इसलिए औफिस जाने से पहले तुम से बात करने आया हूं,’’ प्रकाश ने बगैर किसी भूमिका के कहा, ‘‘यहीं बैठेंगे या अंदर चलें?’’

‘‘अंदर चलिए अंकल,’’ राघव विनम्रता से बोला और फिर नौकर को चाय लाने को कहा.

‘‘मैं नहीं जानता डा. माधुरी ने तुम से क्या कहा, मगर जो भी कहा होगा उसे सुन कर तुम्हारा विचलित होना स्वाभाविक है,’’ प्रकाश ने ड्राइंगरूम में बैठते हुए कहा, ‘‘और यह सोचना भी कि तुम से यह बात क्यों छिपाई गई. वह इसलिए कि किसी की जिंदगी के बंद परिच्छेद बिना वजह खोलना न मुझे पसंद है और न ऋतु को. मैं ने अपनी भतीजी रुचि को हैदराबाद में एक सौफ्टवेयर कंपनी में जौब दिलवाई थी.

वह हमारे साथ ही रहती थी.

‘‘सौफ्टवेयर टैकीज के काम के घंटे तो असीमित होते हैं, इसलिए हम ने रुचि के देरसवेर आने पर कभी रोक नहीं लगाई और इस गलती का एहसास हमें तब हुआ जब रुचि ने बताया कि वह मां बनने वाली है, उस की सहेली का भाई उस से शादी करने को तैयार है, लेकिन कुछ समय यानी पैसा जोड़ने के बाद, क्योंकि उस की जाति में दहेज की प्रथा है और उस के मातापिता बगैर दहेज के विजातीय लड़की से उसे कभी शादी नहीं करने देंगे. पैसा जोड़ कर वह मांबाप को दहेज दे देगा.

‘‘फिलहाल रुचि को गर्भपात करवाना पड़ेगा. हम भी नहीं चाहते थे कि रुचि के मातापिता को इस बात का पता चले. अत: मैं ने गर्भपात करवाने की जिम्मेदारी ले ली. जिन अच्छे डाक्टरों से संपर्क किया उन्होंने साफ मना कर दिया और झोला छाप डाक्टरों से मैं यह काम करवाना नहीं चाहता था. बहुत परेशान थे हम लोग. तब हमें परेशानी से उबारा ऋतु और ऋषभ ने.

‘‘ऋतु को आईआईएम अहमदाबाद में एमबीए में दाखिला मिल गया था और ऋषभ भी अमेरिका जाने की तैयारी कर रहा था. दोनों ने कहा कि जो पैसा हम ने उन की पढ़ाई पर लगाना है, उसे हम रुचि को दहेज में दे कर उस की शादी तुरंत प्रशांत से कर दें. और कोई चारा भी नहीं था. मुझ में अपने भाईभाभी की नजरों में गिरने और लापरवाह कहलवाने की हिम्मत नहीं थी. अत: इस के लिए मैं ने अपने बच्चों का भविष्य दांव पर लगा दिया.

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‘‘खैर, रुचि की शादी हो गई, बच्चा भी हो गया और उस के बाद दोनों को ही बैंगलुरु में बेहतर नौकरी भी मिल गई. ऋतु ने भी पत्राचार से एमबीए कर लिया और ऋषभ भी आस्ट्रेलिया चला गया. इस में रुचि और प्रशांत ने भी उस की सहायता करी.’’

‘‘मगर मेरा हैदराबाद में रहना मुश्किल हो गया. लगभग सभी नामीगिरामी

डाक्टरों के पास मैं गया था और उन सभी से गाहेबगाहे क्लब या किसी समारोह में आमनासामना हो जाता था. वे मुझे जिन नजरों से देखते थे उन्हें मैं सहन नहीं कर पाता था. मैं ने कोशिश कर के दिल्ली बदली करवा ली. सोचा था वह प्रकरण खत्म हो गया. लेकिन वह तो लगता है मेरी बेटी की ही खुशियां छीन लेगा.

‘‘तुम्हें मेरी कहानी मनगढंत लगी हो तो मैं रुचि को यहां बुला लेता हूं. उस के बच्चे की उम्र और डा. माधुरी की बताई तारीखों से सब बात स्पष्ट हो जाएगी.’’

‘‘इस सब की कोई जरूरत नहीं है पापा.’’

अभी तक अंकल कहने वाले राघव के ऋतिका की तरह पापा कहने से प्रकाश को लगा कि राघव के मन में अब कोई शक नहीं है.

शक- भाग 1: ऋतिका से क्यों रिश्ता तोड़ना चाहता था राघव

राघव ऋतिका से बहुत प्यार करता था. उस ने अपने प्यार का इजहार भी कर दिया था, जिसे ऋतिका ने भी स्वीकार लिया था.

ऋतिका हंसमुंख और मिलनसार स्वभाव की तो थी ही, पुरुष सहकर्मियों के साथ भी बेहिचक बात करती थी. साथ काम करने वाली लड़कियों के साथ शौपिंग पर भी चली जाती थी और वहां खानेपीने का बिल भी दे देती थी. लेकिन जब कोई लड़की उसे अपने घर पर बुलाती थी तो वह मना कर देती थी.

‘‘लगता है इस के घर में जरूर कुछ गड़बड़ है तभी यह नहीं चाहती कि कोई इस के घर आए और यह किसी के घर जाए,’’ आरती बोली.

‘‘मुझे भी यही लगता है, क्योंकि फिल्म देखने या रेस्तरां चलने को कहो तो तुरंत मान जाती है और बिल भरने को भी तैयार रहती है,’’ मीता ने जोड़ा, तो सोनिया और चंचल ने भी सहमति में सिर हिलाया.

‘‘इतनी अटकलें लगाने की क्या जरूरत है?’’ पास बैठे राघव ने कहा, ‘‘ऋतिका बीमार है, इसलिए आप सब उसे देखने के बहाने उस का घर देख आओ.’’

‘‘उस के पापा टैलीफोन विभाग के आला अफसर हैं और शाहजहां रोड की सरकारी कोठी में रहते हैं, इतनी जानकारी तो जाने के लिए काफी नहीं है,’’ मीता ने लापरवाही से कहा.

बात वहीं खत्म हो गई. अगले सप्ताह ऋतिका औफिस आ गई. उस के पैर में मोच आ गई थी, इसलिए चलने में अभी भी दिक्कत हो रही थी. शाम को उसे छुट्टी के बाद भी काम करते देख कर राघव ने कहा, ‘‘मैं ने आप का कोई काम भी पैंडिंग नहीं रहने दिया था, फिर क्यों आप देर तक रुकी हैं?’’

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‘‘धन्यवाद राघवजी, मैं काम नहीं नैट सर्फिंग कर रही हूं.’’

‘‘मगर क्यों?’’

‘‘मजबूरी है. चार्टर्ड बस तक चल कर नहीं जा सकती और पापा को लेने आने में अभी देर है.’’

‘‘तकलीफ तो लगता है आप को बैठने में भी हो रही है?’’

‘‘हो तो रही है, लेकिन पापा मीटिंग में व्यस्त हैं, इसलिए बैठना तो पड़ेगा ही.’’

‘‘अगर एतराज न हो तो मेरे साथ चलिए.’’

‘‘इस शर्त पर कि आप चाय पी कर जाएंगे.’’

‘‘ठीक है, अभी और्डर करता हूं.’’

‘‘ओह नो… मेरा मतलब है मेरे घर पर.’’

‘‘इस में शर्त काहे की… किसी के भी घर जाने पर चायनाश्ते के लिए रुकना पड़ता ही है.’’

ऋतिका ने पापा को मोबाइल पर आने को मना कर दिया. फिर राघव के साथ घर पहुंच गई. मां भी विनम्र थीं. कुछ देर बाद ऋतिका के पापा भी आ गए. वे भी राघव को ठीक ही लगे. कुल मिला कर घर या परिवार में कुछ ऐसा नहीं था जिसे ऋतिका किसी से छिपाना चाहे. बातोंबातों में पता चला कि वे लोग कई वर्षों से हैदराबाद में रह रहे थे और उन्हें वह शहर पसंद भी बहुत था.

‘‘इन की तो विभिन्न जिलों में बदली होती रहती थी, लेकिन मैं बच्चों के साथ हमेशा हैदराबाद में ही रही. बहुत अच्छे लोग हैं वहां के… अकेले रहने में कभी कोई परेशानी नहीं हुई,’’ ऋतिका की मां ने बताया.

‘‘यहां तो अभी आप की जानपहचान नहीं हुई होगी?’’ राघव ने कहा.

‘‘पासपड़ोस में हो गई है. वैसे रिश्तेदार बहुत हैं यहां, लेकिन अभी उन से मिले नहीं हैं. ऋतु पत्राचार से एमबीए की पढ़ाई कर रही है, इसलिए औफिस के बाद का सारा समय पढ़ाई में लगाना चाहती है और हम भी इसे डिस्टर्ब नहीं करना चाहते. मिलने के बाद तो आनेजाने का सिलसिला शुरू हो जाएगा न.’’

राघव को ऋतिका की सहेलियों से मेलजोल न बढ़ाने की बात तो समझ आ गई, लेकिन एमबीए करने की बात छिपाने की नहीं.

यह सुन कर कि राघव के मातापिता सऊदी अरब में और बहन अपने पति के साथ सिंगापुर में रहती है और वह यहां अकेला, ऋतिका की मां ने आग्रह किया, ‘‘कभी घर वालों की याद आए तो आ जाया करो बेटा, अच्छा लगेगा तुम्हारा आना.’’

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‘‘जी जरूर,’’ कह राघव ऋतिका की ओर मुड़ा, ‘‘आप डिस्टर्ब तो नहीं होंगी न?’’

‘‘कभीकभार कुछ देर के लिए चलेगा,’’ ऋतिका शोखी से मुसकाराई, ‘‘मगर यह एमबीए वाली बात औफिस में किसी को मत बताइएगा प्लीज.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘क्योंकि चंद घंटों की पढ़ाई के बाद सफलता की कोई गारंटी तो होती नहीं तो क्यों व्यर्थ में ढिंढोरा पीट कर अपना मजाक बनाया जाए. पास हो गई तो पार्टी कर के बता दूंगी.’’

राघव ने औफिस में किसी को ऋतिका के घर जाने की बात भी नहीं बताई. कुछ दिनों के बाद ऋतिका ने उसे डिनर पर आने को कहा.

‘‘आज मेरे छोटे भाई ऋषभ का बर्थडे है. वह तो आस्ट्रेलिया में पढ़ रहा है, लेकिन मम्मी उस का जन्मदिन मनाना चाहती हैं पकवान बगैरा बना कर… अब उन्हें खाने वाले भी तो चाहिए… आप आ जाएं… पापा के औफिस और पड़ोस के कुछ लोग होंगे… मम्मी खुश हो जाएंगी,’’ ऋतिका ने आग्रह किया.

न जाने का तो सवाल ही नहीं था. ऋतिका ने अन्य मेहमानों से उस का परिचय अपने सहकर्मी के बजाय अपना मित्र कह कर कराया. उसे अच्छा लगा.

अगले सप्ताहांत चंचल ने सभी को बहुत आग्रह से अपने भाई की सगाई में बुलाया तो सब सहर्ष आने को तैयार हो गए.

‘‘माफ करना चंचल, मैं नहीं आ सकूंगी,’’ ऋतिका ने विनम्र परंतु इतने दृढ़ स्वर में कहा कि चंचल ने तो दोबारा आग्रह नहीं किया, लेकिन राघव ने मौका मिलते ही अकेले में कहा, ‘‘अगर आप अकेले जाते हुए हिचक रही हों तो मुझे आप ने मित्र कहा है, मित्र के साथ चलिए.’’

‘‘मित्र कहा है सो बता देती हूं कि मैं इस तरह के पारिवारिक समारोहों में कभी नहीं जाती.’’

‘‘क्यों?’’

शक- भाग 2: ऋतिका से क्यों रिश्ता तोड़ना चाहता था राघव

‘‘क्योंकि ऐसे समारोहों में ही सहेलियों की मामियां, चाचियां अपने चहेतों के लिए लड़कियां पसंद करती हैं. सहेलियों के भाई और उन के दोस्त तो ऐसी दावतों में जाते ही लड़कियों को लाइन मारने लगते हैं. वैसे सुरक्षित लड़के भी नहीं हैं, कुंआरी कन्याओं के अभिभावक भी गिद्ध दृष्टि से शिकार का अवलोकन करते हैं.’’

‘‘आप मुझे डरा रही हैं?’’

‘‘कुछ भी समझ लीजिए… जो सच है वही कह रही हूं.’’

‘‘खैर, कह तो सच रही हैं, फिर भी मुझे तो जाना ही पड़ेगा, क्योंकि औफिस से आप के सिवा सभी जा रहे हैं.’’

कुछ रोज बाद राघव को एक दूसरी कंपनी में अच्छी नौकरी मिल गई. ऋतिका बहुत खुश हुई.

‘‘अब हम जब चाहें मिल सकते हैं… औफिस की अफवाहों का डर तो रहा नहीं.’’

राघव की बढि़या नौकरी मिलने की खुशी और भी बढ़ गई. मुलाकातों का सिलसिला जल्दी दोस्ती से प्यार में बदल गया और फिर राघव ने प्यार का इजहार भी कर दिया.

ऋतिका ने स्वीकार तो कर लिया, लेकिन इस शर्त के साथ कि शादी सालभर बाद भाई के आस्ट्रोलिया से लौटने पर करेगी. राघव को मंजूर था क्योंकि उस के पिता को भी अनुबंध खत्म होने के बाद ही अगले वर्ष भारत लौटने पर शादी करने में आसानी रहती और वह भी नई नौकरी में एकाग्रता से मेहनत कर के पैर जमा सकता था.

भविष्य के सुखद सपने देखते हुए जिंदगी मजे में कट रही थी कि अचानक उसे टूर पर हैदराबाद जाना पड़ा. औफिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने उसे वहां अपनी बहन को देने के लिए एक पार्सल दिया.

‘‘मेरी बहन और जीजाजी डाक्टर हैं, उन का अपना नर्सिंगहोम है, इसलिए वे तो कभी दिल्ली आते नहीं किसी आतेजाते के हाथ उन्हें यहां की सौगात सोहन हलवा, गज्जक बगैरा भेज देता हूं. तुम मेरी बहन को फोन कर देना. वे किसी को भेज कर सामान मंगवा लेंगी.’’

मगर राघव के फोन करने पर डा. माधुरी ने आग्रह किया कि वह डिनर उन के साथ करे. बहुत दिन हो गए किसी दिल्ली वाले से मिले हुए… वे उसे लेने के लिए गाड़ी भिजवा देंगी.

माधुरी और उस के पति दिनेश राघव से बहुत आत्मीयता से मिले और दिल्ली के बारे में दिलचस्पी से पूछते रहे कि कहां क्या नया बना है बगैरा. फिर उस के बाद उन्होंने अजनबियों के बीच बातचीत के सदाबहार विषय राजनीति और भ्रष्टाचार पर बात शुरू कर दी.

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‘‘कितने भी अनशन और आंदोलन हो जाएं, कानून बन जाएं या सुधार हो जाएं सरकार या सत्ता से जुड़े लोग नहीं सुधरने वाले,’’ माधुरी ने कहा, ‘‘उन के पंख कितने भी कतर दिए जाएं, उन का फड़फड़ाना बंद नहीं होता.’’

‘‘प्रकाश का फड़फड़ाना फिर याद आ गया माधुरी?’’ दिनेश ने हंसते हुए पूछा.

राघव चौंक पड़ा. यह तो ऋतिका के पापा का नाम है. उस ने दिलचस्पी से माधुरी की ओर देखा, ‘‘मजेदार किस्सा लगता है दीदी, पूरी बात बताइए न?’’

माधुरी हिचकिचाई, ‘‘पेशैंट से बातचीत गोपनीय होती है, मगर वे मेरे पेशैंट नहीं थे,

2-3 साल पुरानी बात है और फिर आप तो इस शहर के हैं भी नहीं. एक साहब मेरे पास अबौर्शन का केस ले कर आए. पर मेरे यह कहने पर कि हमारे यहां यह नहीं होता उन्होंने कहा कि अब तो और कुछ भी नहीं हो सकेगा, क्योंकि वे टैलीफोन विभाग में चीफ इंजीनियर हैं. मैं ने बड़ी मुश्किल से हंसी रोक कर उन्हें बताया कि हमारे यहां तो प्राय सभी फोन, रिलायंस और टाटा इंडिकौम के हैं, सरकारी फोन अगर है भी तो खराब पड़ा होगा. उन की शक्ल देखने वाली थी. मगर फिर भी जातेजाते अन्य सरकारी विभागों में अपनी पहुंच की डुगडुगी बजा कर मुझे डराना नहीं भूले.’’

तभी नौकर खाने के लिए बुलाने आ गया. खाना बहुत बढि़या था और उस से भी ज्यादा बढि़या था स्नेह, जिस से मेजबान उसे खाना खिला रहे थे. लेकिन वह किसी तरह कौर निगल रहा था.

होटल के कमरे में जाते ही वह फूटफूट कर रो पड़ा कि क्यों हुआ ऐसा उस के साथ? क्यों भोलीभाली मगर संकीर्ण स्पष्टवादी ऋतिका ने उस से छिपाया अपना अतीत? वह संकीर्ण मानसिकता वाला नहीं है.

जवानी में सभी के कदम बहक जाते हैं. अगर ऋतिका उसे सब सच बता देती तो वह उसे सहजता से सब भूलने को कह कर अपना लेता. ऋतिका के परिवार का रिश्तेदारों से न मिलनाजुलना, ऋतिका का सहेलियों के घर जाने से कतराना और उन के परिवार के लिए सटीक टिप्पणी करना, डा. माधुरी के कथन की पुष्टि करता था.

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लौटने पर राघव अभी तय नहीं कर पाया था कि ऋतिका से कैसे संबंधविच्छेद करे. इसी बीच अकाउंट्स विभाग ने याद दिलाया कि अगर उस ने कल तक अपने पुराने औफिस का टीडीएस दाखिल नहीं करवाया तो उसे भारी इनकम टैक्स भरना पड़ेगा.

राघव ने तुरंत अपने पुराने औफिस से संपर्क किया. संबंधित अधिकारी से उस की अच्छी जानपहचान थी और उस ने छूटते ही कहा कि तुम्हारे कागजात तैयार हैं, आ कर ले जाओ. पुराने औफिस जाने का मतलब था ऋतिका से सामना होना जो राघव नहीं चाहता था.‘‘औफिस के समय में कैसे आऊं नमनजी, आप किसी के हाथ भिजवा दो न प्लीज.’’

‘‘आज तो मुमकिन नहीं है और कल का भी वादा नहीं कर सकता. वैसे मैं तो आजकल 7 बजे तक औफिस में रहता हूं, अपने औफिस के बाद आ जाना.’’

हाय हैंडसम – भाग 3 : प्रेम की दिवानी गौरी का क्या हुआ

मैं ने मन में सोच लिया, मैं अपना मोबाइल नंबर बदल लूंगा और कुछ समय के लिए फेसबुक चलाना भी बंद कर दूंगा. उसी समय मु?ो याद आया, गौरी ने मु?ा से कहा था, अगर मु?ो जिंदा देखना चाहते हो तो मु?ो कभी फेसबुक से अलग मत करना.’ मैं ने मन में सोचा, अगर गौरी ने ऐसावैसा कुछ कर लिया तो? नहीं, वह ऐसावैसा कुछ नहीं करेगी. मु?ो थोड़ाबहुत बुराभला कहेगी और फिर नौर्मल हो जाएगी. इसी बहाने कमसेकम उस के दिलोदिमाग से प्यार का भूत तो उतर जाएगा. मैं ने ऐसा ही किया. दिल्ली से वापस आने के बाद अपना मोबाइल नंबर, जो गौरी के पास था बंद करवा कर दूसरा नंबर ले लिया और फेसबुक भी चलाना बंद कर दिया.

4 वर्षों बाद अब अचानक एक दिन मेरे व्हाटसऐप पर एक मैसेज आया, ‘‘हम तो आप को धोखेबाज, चालबाज और बेवफा भी नहीं कह सकते क्योंकि आप ने तो हमें कभी प्यार किया ही नहीं था. प्यार तो हम ने आप से किया था और वह भी बेइंतहा, हद से भी ज्यादा. हां, आप से यह जरूर पूछेंगे, आप ने ऐसा क्यों किया? आप का प्यार पाने के लिए हम ने रातदिन पढ़ाई कर के इंटर की परीक्षा में टौप किया, उस के बाद बीएससी भी फर्स्ट डिवीजन से पास कर ली. आप को नहीं मालूम, जब हम ने इंटर में टौप किया था तो हम कितने खुश थे. कितने ख्वाब देख डाले थे हम ने आप के लिए. हमें पूरा यकीन था आप अपना वादा निभाने के लिए हमारे पास जरूर आएंगे. हमें यह नहीं मालूम था आप ने हम से ?ाठ बोला था. हम ने सैकड़ों बार आप को फोन लगाया, आप ने अपना फोन नंबर बदल दिया. फेसबुक पर भी हमारा कोई मैसेज नहीं पढ़ा, क्यों? क्यों किया आप ने ऐसा? हमारी भावनाओं के साथ आप ने खिलवाड़ क्यों किया?

‘‘हैंडसम, आप अच्छे इंसान हैं, इस बात का अंदाजा हमें तभी हो गया था जब हम आप से मिले थे और आप ने हमारी बेपनाह खूबसूरती को नजरभर कर भी नहीं देखा था. न आप ने हमारी खूबसूरती की तारीफ की थी. उसी दिन हम सम?ा गए थे आप उन आदमियों में से नहीं हैं जो किसी भी लड़की को देख कर अपना आपा खो देते हैं. आप की शालीनता और गंभीरता के कायल तो हम आज भी हैं. लेकिन हमें आप से यह उम्मीद नहीं थी कि आप हम से इस तरह किनारा कर जाएंगे.’’

व्हाट्सऐप पर गौरी का लंबा मैसेज पढ़ कर मैं असमंजस में पड़ गया. समझ नहीं आ रहा था, मैं गौरी के मैसेज का क्या जवाब दूं? जवाब दूं भी या नहीं? सोचा, अगर जवाब दूंगा तो बात आगे बढ़ जाएगी और नहीं दिया तो वह अपना आपा खो बैठेगी. फिर मेरी मुश्किलें बढ़ जाएंगी. फिर सोचा, मु?ो गौरी से बात कर के उसे सम?ा देना चाहिए.

मैं ने गौरी को मैसेज किया, ‘‘गौरी, तुम ने मेरे कहने से इंटर में टौप किया और फिर बीएससी भी फर्स्ट डिवीजन से पास किया, यह जान कर मु?ो बेहद खुशी हो रही है. रही बात तुम से बात न करने की, तो सुनो, दिल्ली से वापस आने के बाद मु?ो किन्हीं कारणों से अपनी नौकरी छोड़नी पड़ी. इसलिए कंपनी ने अपना सिम भी वापस ले लिया. उसी में तुम्हारा नंबर था. और फेसबुक मैं इसलिए नहीं देख पाया, क्योंकि मैं भी 4 सालों से काफी परेशान रहा, मेरी पत्नी एक्सपायर हो गई थीं.’’

‘‘ओह, सो सैड. यू नो हैंडसम, मेरी मम्मी भी नहीं रहीं. वे भी…’’ गौरी भावुक हो गई.

‘‘अरे, फिर तो बड़ी मुश्किल हो गई होगी?’’

‘‘हां, और पापा ने हमारी शादी कर दी,’’ उस ने कहा.

‘‘इतनी जल्दी?’’

‘‘हां, जानते हो हैंडसम, हमारे हसबैंड बहुत अच्छे इंसान हैं. बिलकुल आप के जैसे. बड़े बिजनैसमैन हैं. बहुत प्यार करते हैं हम से. पर हम ने उन से कह दिया, हम अपने हैंडसम से प्यार करते हैं.’’

‘‘गौरी, यह तुम ने गलत किया, तुम्हें ऐसा नहीं करना चाहिए.’’

‘‘क्यों नहीं करना चाहिए? हम किसी को धोखे में नहीं रखना चाहते, इसीलिए हमारे मन में जो था, वह हम ने कह दिया.’’

‘‘एक बात कहूं गौरी, तुम मु?ो बहुत प्यार करती हो न?’’

‘‘यह भी कोई पूछने वाली बात है. हम तो आप को खुद से भी ज्यादा प्यार करते हैं.’’

‘‘तो सुनो, अपना यह प्यारव्यार वाला चक्कर छोड़ कर अपने हसबैंड से प्यार करो. उसी में अपनी दुनिया और अपनी खुशियों को बसाओ. तुम्हें उसी में सबकुछ मिल जाएगा.’’

‘‘लेकिन आप तो नहीं मिलोगे. हैंडसम, हम अपने हसबैंड से साफ कह चुके हैं कि जब तक हम अपने हैंडसम से नहीं मिल लेंगे तब तक हम किसी के नहीं हो पाएंगे और उन्होंने हमारी बात मान भी ली.’’

‘‘अपनी यह नादानी छोड़ दो. गौरी. ऐसा पागलपन अच्छा नहीं होता. गौरी, कागज की नाव में सवार हो कर भावनाओं का सफर तय नहीं हो सकता और अब तो तुम्हारी शादी भी हो गई है. अब तुम्हें तुम्हारी खुशियां तुम्हारे हस्बैंड में ही मिलेंगी, कहीं और नहीं.’’

‘‘हैंडसम, एक बार, बस, एक बार आप हमें अपने सीने से लगा कर आई लव यू बोल दो. यकीन करना, आप फिर जैसा कहोगे, हम वैसा ही करेंगे.’’

‘‘नहीं, यह नामुमकिन है, गौरी. तुम मु?ा से यह उम्मीद मत करो. मैं ऐसा कुछ नहीं कह पाऊंगा. तुम अच्छी तरह जानती हो, मैं अपने परिवार से बहुत प्यार करता हूं. मैं अपने परिवार को धोखा नहीं दे सकता और तुम्हारे लिए तो बिलकुल भी नहीं, क्योंकि मैं ने तुम्हें कभी उस नजर से देखा ही नहीं.’’

‘‘ठीक है, जब हम आप के नहीं हो पाए तो किसी और के भी नहीं हो पाएंगे. हम अपनी गाड़ी को सड़क के डिवाइडर से लड़ा देंगे और मर जाएंगे. हम सच कह रहे हैं, हैंडसम. इसे हमारी धमकी मत सम?ा लेना. जब हमारा दिल ही टूट गया, तो हम जी कर क्या करेंगे.’’

गौरी की बात सुन कर मैं एकदम घबरा गया. मैं ने कहा, ‘‘अच्छा ठीक है, अगर मेरे मिलने और आई लव यू बोलने से तुम्हें खुशी मिल रही है तो मैं बोल दूंगा लेकिन उस के बाद तुम कोई और जिद  नहीं करोगी.’’

‘‘हां, हम वादा करते हैं, आप के मिलने और आई लव यू बोलने के बाद हम आप से फिर कभी कोई जिद नहीं करेंगे. लेकिन फोन पर नौर्मल बात तो कर ही सकते हैं?’’

‘‘हां, ठीक है, तुम जब चाहो, मु?ा से मिल सकती हो.’’

‘‘हैंडसम, आप को नहीं मालूम कि आज हम कितने खुश हैं. आप से मिलने और प्यार के तीन शब्द ‘आई लव यू’ सुनने के लिए हम कल ही आप के पास आ रहे हैं.’’

‘‘ओके, मैं तुम्हारा इंतजार करूंगा.’’

खूबसूरत लम्हे – भाग 3 : दो प्रेमियों की कहानी

संगीता तब इठलाती हुई बोली, ‘‘नींद के मामले में मैं बहुत लक्की हूं, जहां भी रहूं, सोने से पहले जिस आखिरी इंसान से मेरी मुलाकात होती है वह हो तुम, बस, आंखें बंद कर लेती हूं और सो जाती हूं,’’ इतना कह कर उस ने अपनी मस्त नजरों से मुझे निहारा.

शेखर ने भी तब भावुकता में बहते हुए कहा, ‘‘मैं सुबह उठ कर सब से पहले बंद आंखों से जिस का चेहरा देखता हूं, वह हो सिर्फ तुम.’’

बातों ही बातों में संगीता ने बताया, ‘‘आज सुबह ही मम्मीपापा आए थे, डाक्टर ने डिस्चार्ज करने को कहा. दरअसल, वे लोग किसी रिश्तेदार के यहां फंक्शन में गए हैं सुबह मुझे लेने आएंगे.’’

‘‘मतलब एक रात और तुम्हें मरीज बन कर यहां रहना पड़ेगा,’’ शेखर ने कहा.

‘‘नहीं, अब तुम आ गए हो न. अब डाक्टर से इजाजत ले लेती हूं, पेपर वगैरा सब तैयार हैं.’’

‘‘पर डाक्टर पूछेगा कि कौन लेने आया है तो क्या बोलोगी?’’ शेखर ने जिज्ञासा प्रकट की.

‘‘हां, बोलूंगी कि मेरी सगी बहन के सगे भाई के जीजाजी आए हैं?’’

‘‘मतलब?’’ शेखर ने आश्चर्यचकित हो कर पूछा.

‘‘मतलब तुम समझो, मैं चली डाक्टर से मिलने.’’

संगीता फौरन डाक्टर से इजाजत ले कर आ गई और अपना सब सामान समेटने लगी. फिर शेखर ने बैग उठाया और दोनों हौस्पिटल से बाहर निकल पड़े.

रिकशा बुलाने से पहले ही संगीता ने पूछा, ‘‘कहां चल रहे हैं?’’

‘‘तुम्हें तुम्हारे घर छोड़ दूंगा और मैं उसी रिकशे से वापस आ जाऊंगा,’’ शेखर ने सहज भाव से कहा.

‘‘नहीं, कहीं घूमने चलो न,’’ संगीता का आग्रह भरा स्वर था.

‘‘अभी तुम्हारी तबीयत नाजुक है. चुपचाप घर चलो,’’ शेखर ने समझाते हुए कहा.

‘‘अच्छा, चलो लस्सी पिला दो,’’ संगीता बच्चे की तरह जिद करती हुई बोली.

शेखर तब भड़क गया, ‘‘तुम्हारा दिमाग तो ठीक है न, अभी फीवर से उठी हो और ठंडा?’’

संगीता तपाक से बोली, ‘‘जब तक तुम नहीं मिलते दिमाग ठीक रहता है.’’

‘‘अगर मैं कभी न मिलूं तब तो तुम बिलकुल ठीक रहोगी?’’ शेखर ने जानबूझ कर ऐसा सवाल किया.

तब संगीता घबराते हुए बोली, ‘‘अरे, ऐसा सोचना भी मत वरना तुम आगरा में मुमताज का ताजमहल निहारते रहोगे और मैं आगरा के पागलखाने में रहूंगी. वैसे भी आजीवन साथ रहना मुश्किल है, मेरे डैडी बहुत ही सख्त हैं, कुछ लमहे तो जी लूं.’’

शेखर उस की बकबक से तंग आ कर बोला, ‘‘प्लीज, अब रिकशे में बैठो. रास्ते में थोड़ी देर जूली पार्क में बैठेंगे फिर तुम्हें घर छोड़ दूंगा.’’

थोड़ी देर बाद दोनों जूली पार्क में थे. शाम गहरा गई थी. सूरज की लालिमा अंतिम चरण में थी, अत: अंधकार गहराता जा रहा था. शेखर पेड़ से टिक कर बैठा और संगीता उस की गोद में सिर रख लेट गई.

शेखर की उंगलियां संगीता की कालीघनी जुल्फों से अठखेलियां करने लगीं. शेखर बिना बोले अपनी नई रचना सुनाता रहा और संगीता उस की गोद में सुकून से सोती रही. वह वाकई में सो जाती लेकिन शेखर ने उसे जगाते हुए चलने को कहा.

दोनों दोबारा रिकशे में बैठ गए. आज संगीता काफी खुश थी. उस का सारा रोग ही काफूर हो गया था. शेखर भी संगीता से मिलने के बाद खुद को काफी तरोताजा महसूस करने लगा था.

शेखर ने संगीता को उस के घर के सामने ड्रौप करने के लिए रिकशा रुकवाया. उसे सामने संगीता के मम्मीपापा दिखे. उन की आंखों में उसे भरपूर आक्रोश और नफरत दिखी. कुछ कहने से पहले ही संगीता के पापा आगे बढ़ने लगे, पर उस की मां ने उन्हें रोक लिया. संगीता भी माहौल को देखते हुए बिलकुल खामोश रही और रिकशे से उतर कर चुपचाप घर के अंदर चली गई.

शेखर का रिकशा आगे बढ़ गया. रास्ते में मजाक में कही संगीता की बात शेखर को बारबार कचोटती रही कि कहीं दोनों का प्यार धर्म की भेंट न चढ़ जाए?

दूसरे दिन शेखर डरतेडरते संगीता के घर के सामने गया. संगीता के पड़ोसियों से पता चला कि सभी लोग पंजाब चले गए हैं. शेखर बस ठगा सा रह गया.

शेखर उन्हीं खूबसूरत लमहों के सहारे जी रहा था, पर आज अचानक संगीता से मुलाकात, उस के पति का सामीप्य, उस की उपेक्षा. थोड़ी देर के लिए वह उदास हो गया, लेकिन गुजरे हुए खूबसूरत लमहों के संग जीने की उस की चाह कम न हुई. उस के पास अब रह गई थीं बस, संगीता की यादें और कुछ खूबसूरत लमहे.

वे 3 दिन – भाग 3 : इंसान अपनी सोच सेे मौडर्न बनता है

बूआ की ऐसी हालत देख कर नव्या को लगा कि दाल में कुछ काला है. जब दवा देने पर भी फर्क नहीं पड़ा तो अब नव्या की भी चिंता बढ़ गई.

‘‘चलिए बूआ, मैं आप को डाक्टर को दिखा लाती हूं. यहां पास में ही सरकारी अस्पताल है, कोई न कोई डाक्टर तो मिल ही जाएगा.’’

‘‘पड़ोस में से किसी को बुला ला, इतनी रात गए हम अकेली कैसे जाएंगी?’’

‘‘बूआ, आप चिंता छोडि़ए, मैं सब संभाल लूंगी,’’ नव्या ने बूआ को सहारा देने के लिए उन का हाथ पकड़ना चाहा, तो निकिता ने झटके से उसे अपने से दूर कर दिया.

‘‘आप… आप भी सच में हद करती हैं. मैं गाड़ी निकालती हूं, आप ताला लगा कर बाहर आइए. रस्सी जल गई, पर बल नहीं गया,’’ भुनभुनाते हुए नव्या बाहर निकल गई.

‘‘पर, गाड़ी को तू धक्का मार कर अस्पताल तक ले जाएगी क्या?’’

‘‘नहीं बूआ चला कर,’’ नव्या को ड्राइविंग सीट पर बैठे देख निकिता बूआ ऐसे हैरान हुईं जैसे उन्होंने किसी दूसरे ग्रह के प्राणी को ड्राइविंग करते देख लिया हो.

अस्पताल में नाइट ड्यूटी पर तैनात स्टाफ को सोते देख नव्या ऐसे भड़की कि रिसैप्शनिस्ट से ले कर नर्स तक सब हरकत में आ गए. उन्होंने ड्यूटी डाक्टर को उठाया.

इस छोटे से शहर का सरकारी अस्पताल भी ठीकठाक था. डाक्टर ने जरूरी टैस्ट के बाद सोनोग्राफी की.

‘‘इन्हें अपैंडिक्स का दर्द है. मैं यह दर्द रोकने के लिए एक इंजैक्शन लगा देती हूं,’’ डाक्टर बोलीं.

नव्या को लगा, अब बूआ अपनी तबीयत के चलते 2 दिन अपने सारे नियमकानून ताक पर रख देंगी, पर उस के अंदाजे के उलट सुबह उठते ही वे वही रोबीली बूआ थीं.

उन्होंने उठते ही अपनी बेटी को फोन लगाया और उसे सारे हालात के बारे में बताया.

‘‘पूजा, तेरे पापा तो टूर पर गए हैं, पर तू अभी कोई बस पकड़ कर यहां आ जा.’’

‘‘मां, मैं अकेली कैसे आऊंगी? यहां से बसस्टैंड तक जाना, बस में बैठना…’’ बूआ चुप थीं, क्योंकि वे जानती थीं कि बस से यहां अकेले आना तो दूर उन्होंने तो बेटी को अपनी गली से भी कभी अकेले नहीं निकलने दिया. हमेशा उसे छुईमुई बना कर रखा. पर अब क्या हो सकता था. एक दिन में तो कुछ भी बदला नहीं जा सकता.

कल से आज तक का सारा घटनाक्रम बूआ के जेहन में चलने लगा. न चाहते हुए भी वे अपनी बेटी की तुलना नव्या से करने लगीं. कितना दंभ था उन्हें अपने दिल्ली जैसे शहर में रहने का. अपने स्टाइलिश कपड़ों का, नएनए होटलों में घूमने का, बच्चों के हाईफाई स्कूलों का. इन के बूते पर वे अपने भाईभाभी को नीचे दिखाने का कोई मौका नहीं छोड़ती थीं.

इतने में नव्या चाय और बिसकुट लिए उन के सामने खड़ी मुसकरा रही थी. उस ने सबकुछ सुन लिया था. अब चौंकने की बारी नव्या की थी. निकिता बूआ ने उसे अपने गले से लगा लिया.

‘‘मेरी बहादुर बच्ची, तू ने मेरी आंखें खोल दीं. जिस तरह से तू ने कल रात को मुसीबत में मुझे संभाला, तेरी उम्र का कोई लड़का भी क्या संभाल पाता. मुझे तुझ पर गर्व है.’’

‘‘कहां तो मैं तेरा खयाल रखने आई थी, उलटा तुझे एक दिन में परेशान कर डाला. मुझे माफ कर दे,’’ कहते हुए निकिता बूआ रोंआसी हो गईं.

तीसरे दिन नव्या के मम्मीपापा के आते ही निकिता बूआ उस की तारीफों के पुल बांधने लगीं, ‘‘भाभी, आप ने बहुत अच्छी परवरिश की है नव्या की. इन 3 दिनों में उस ने मुझे अच्छे से सिखा दिया कि ‘वे 3 दिन’ औरत के लिए सजा नहीं, उस की सहने की ताकत को मापने का पैमाना है.

‘‘नव्या ने मुझे जिंदगी का वह गूढ़ मंत्र भी दे दिया, जो मैं इतने सालों में भी नहीं सीख पाई. इनसान बड़े शहरों में रहने से, सुखसुविधाएं अपना लेने से मौडर्न नहीं बनता, बल्कि वह मौडर्न बनता है अपनी नई सोच से.

‘‘मैं भी घर पहुंचते ही अपनी बेटी को ड्राइविंग स्कूल में भेज दूंगी और सोच रही हूं मौका मिलते ही महीनेभर उसे आप के पास भेज दूं. कुछ दिन नव्या के पास रहेगी, तो वह भी थोड़ी स्मार्ट बनेगी.

‘‘लगता है कि मेरे कठोर अनुशासन ने उसे दब्बू बना दिया है,’’ कहते हुए बूआ ने नव्या को गले लगा लिया.

‘‘मैं अपनी सोच पर बहुत शर्मिंदा हूं भाभी. किसी ने सही कहा है कि हमारे समाज में औरत ही औरत की दुश्मन है.’’

मम्मी अपनी ननद के मुंह से ये सब बातें सुन कर चकित सी नव्या की तरफ देखने लगीं, तो उन्होंने पाया कि उन की दबंग बेटी अपना कौलर ऊंचा किए मुसकरा रही थी. वह मैचो गर्ल थी न, पापा की.

हाय हैंडसम – भाग 2 : प्रेम की दिवानी गौरी का क्या हुआ

अगले दिन सुबह मैं बस में बैठ कर जा रहा था. मन किसी अनजाने भय से भयांकित था. सोच रहा था, पता नहीं क्या होगा? मेरे साथ कहीं कुछ गलत न हो जाए. अगर ऐसा कुछ हो गया तो पत्नी और बच्चों को कैसे सम?ाऊंगा? मैं तो कहीं भी मुंह दिखाने लायक नहीं रह जाऊंगा, मेरी इज्जत का ढिंढोरा बीच बाजार पिट जाएगा? एक मन कह रहा था, मैं गौरी से न मिलूं, तो एक मन कह रहा था, मिल लो, मिलने से स्थिति साफ हो जाएगी. यही सब सोचते हुए मैं मुरादाबाद पहुंच गया. कपूर कंपनी चौराहे पर बस रुकी. मैं बस से उतरा ही था, गौरी मेरे सामने आ कर बोली, ‘हाय हैंडसम.’ मैं उसे देख कर सकपका गया.

‘जनाब, पूरे 9 बजे से यहां खड़ी आप का इंतजार कर रही हूं,’ उस ने जताया.

मैं ने बस, उस से इतना ही कहा, ‘तुम ने मु?ो पहचान लिया?’

‘हां तो, इस में चौंकने की क्या बात है. बौडीशौडी तो बिलकुल फोटो जैसी है. बस, सिर के बाल ही तो थोड़े सफेद हुए हैं.’

मैं खामोश ही रहा.

‘हम चलें?’ उस ने सड़क किनारे खड़ी अपनी लाल रंग की बड़ी कार की तरफ इशारा कर के कहा.

‘हम कार से चलेंगे?’

‘हां कार भी हमारी, रैस्त्रां भी हमारा और लस्सी भी हमारी होगी, आप हमारे मेहमान जो हो.’

मैं उस की कार में बैठ गया. कार वही चला रही थी. हम मुरादाबाद से करीब 7 किलोमीटर दूर बिजनौर रोड पर एक रैस्टोरैंट में आ कर बैठ गए. उस ने 2 कुल्हड़ वाली लस्सी और 2 सैंडविच का और्डर दे दिया. वहां बैठे लोग मु?ो और उस को अजीब निगाहों से घूरने लगे. मु?ो अजीब लगा, तो मैं ने अपने हावभाव ऐसे कर लिए जैसे मैं उस का कोई रिश्तेदार हूं. वह बहुत उतावली हो रही थी. टेप रिकौर्डर की तरह पटरपटर बोले जा रही थी. वह क्या बोल रही थी, मैं कुछ सुन नहीं पा रहा था क्योंकि मेरा दिलोदिमाग उस की बातों में नहीं लग रहा था. मैं, बस, उसे देखे जा रहा था. फिर उस ने अपने दोनों हाथों की हथेलियों में अपने दोनों गालों को रोका और कुहनियों को मेज पर टिका कर हसरत से मु?ो ऐसे देखने लगी जैसे कोई अनोखी चीज देख रही हो. फिर मुसकराने लगी.

मैं ने कहा, ‘अरे, ऐसे क्यों देख रही हो मु?ो?’

वह उसी तरह मुसकराते हुए बोली, ‘एक बात बोलूं हैंडसम, मेरे दिल ने आप को चाह कर कोई गलती नहीं की. आप तो कल्पना से भी अधिक स्मार्ट और हैंडसम हैं. दिन में 10 बार देखते हैं आप की तसवीर को.’

‘अच्छा, ऐसा क्या है उस तसवीर में?’ मेरे कहते ही वह अपने महंगे मोबाइल फोन पर मेरा फेसबुक अकाउंट खोल कर मेरी डीपी को मु?ो दिखाते हुए बोली, ‘‘हमारी निगाहों से देखिए अपनी इस तसवीर को. कैसे अपने दोनों हाथों को ऊपर कर के मंदमंद मुसकरा रहे हैं. इसी मुसकराहट ने हमारी जान ले ली.’’

मैं कभी अपनी फोटो देख रहा था, तो कभी उस को.

‘आप की लस्सी गरम हो रही है, पीजिए इसे,’ उस ने अधिकार से कहा.

मैं ने लस्सी का कुल्हड़ उठाया और एक घूंट भर कर कहा, ‘गौरी, तुम ने कहा था तुम मु?ा से मिलना चाहती हो, तो मैं तुम से मिल लिया. तुम ने यह भी कहा था मिलने के बाद मैं जो कहूंगा, तुम उस को मानोगी?’

‘तो कहिए न, हम आप की बात सुनेंगे भी और मानेंगे भी,’ वह तपाक से बोली.

मैं ने कहा, ‘अब तुम न तो मु?ो कभी फोन करोगी और न ही फेसबुक पर मु?ो कोई मैसेज करोगी.’

‘आप से प्यार तो करूंगी या वह भी नहीं करूंगी. सुनिए हैंडसम, हम आप को अब न फोन करेंगे, न आप से फेसबुक पर चैट करेंगे लेकिन एक शर्त पर, एक बार, बस, एक बार आप हम से मुसकरा कर आई लव यू कह दीजिए.’

मैं ने मन में सोचा, यह लड़की बहुत जिद्दी है. ऐसे मानने वाली नहीं है. इस के लिए कुछनकुछ तो करना ही पड़ेगा. मैं ने कहा, ‘ठीक है, मैं तुम से सचमुच प्यार करने लगूंगा, तुम्हें आई लव यू भी बोलूंगा, लेकिन तब जब तुम अच्छे से अपनी पढ़ाई करोगी और फर्स्ट डिवीजन से अपनी इंटर की परीक्षा पास कर लोगी. उस से पहले, न तुम मु?ो फोन करोगी और न ही मु?ा से चैट करोगी.’

‘ओके हैंडसम, हमें आप की शर्त मंजूर है. अब हम खूब जम कर पढ़ाई करेंगे. हालांकि, यह सब करना हमारे लिए मुश्किल हो जाएगा क्योंकि जो शर्त आप ने हमारे सामने रखी है वह हमारे लिए किसी सजा से कम नहीं है. फिर भी हम इस सजा को आप की मोहब्बत का तोहफा सम?ा कर स्वीकार कर लेते हैं, पर आप हमें भूल मत जाना.’

मेरे ड्राइवर ने मु?ो फोन कर के कहा कि वह मुरादाबाद पहुंच गया है. ड्राइवर का फोन आते ही मैं ने गौरी से विदा ली. विदा लेते समय गौरी का चेहरा उतर गया. वह बहुत भावुक हो गई थी. उस की आंखों की चमक कम हो गई. वह एकदम छुईमुई सी दिखाई देने लगी. उस ने मुसकराने की कोशिश की, मगर उस के होंठ कांपने लगे. उस की आंखों में आंसू तैरने लगे. उस ने अपनी उंगली से आंख में लटके आंसू की उस बूंद को उठा लिया, जो टपक कर उस के गाल पर गिरने ही वाली थी.

मैं अपने ड्राइवर को गौरी के बारे में कुछ पता नहीं चलने देना चाहता था, इसलिए मैं गौरी से कुछ दूर चला गया. गौरी मु?ो अभी भी अपलक देख रही थी.

मैं कार में बैठ गया. ड्राइवर ने गाड़ी आगे बढ़ाई, तो गौरी ने अपना एक हाथ थोड़ा सा ऊपर उठा कर मु?ो बाय का इशारा किया. बदले में मैं ने कुछ नहीं किया. गाड़ी की पिछली सीट पर बैठा मैं पीछे घूम कर काफी दूर तक गौरी को देखता रहा. वह भी मु?ो यों ही देखती रही और अपनी उंगलियों से अपनी आंखों के आंसू पोंछती रही.

गौरी से मिलने के बाद एक बात तो पूरी तरह साफ हो गई कि वह बहुत ही मासूम और भोली लड़की थी. उस के मन में मेरे लिए कोई छलकपट नहीं था. दिल की भी साफ थी. पता नहीं कैसे वह मेरी तरफ आकर्षित हो गई. कोई बात नहीं, अगर उस से यह भूल हो गई तो मु?ो उस की भूल को सुधारना होगा.

वे 3 दिन – भाग 2 : इंसान अपनी सोच से मौडर्न बनता है

‘तब आप बदन के दर्द के साथसाथ हुई इस बेइज्जती के दर्द से घबरा कर रोने लगी थीं और वह भी तब जब आप अपनी गलती से बिलकुल अनजान थीं.

‘‘तब मम्मी ही आप को अपने साथ अपने कमरे में ले गई थीं. आप के आंसुओं को पोंछ कर गले से लगा लिया था. तभी दादी भी कमरे में आ गई थीं और मम्मी को आप के पास बैठा देख बहुत गरम हुई थीं.

‘‘तब मम्मी ही थीं, जिन्होंने आप को मानसिक संबल दे कर इन दिनों रखने वाली हाइजीन के बारे में सबकुछ समझाया था.

‘‘यही नहीं, दादी ने आप को 3 दिन बिलकुल अलगथलग कर दिया था, तब आप शर्म से कितनी दुखी हुई थीं. तब मम्मी ही थीं, जो भरी ठंड में भी दादी द्वारा आप को जमीन पर बिछाने के लिए दिए पतले से बिछौने से उठा कर ले आई थीं और आप को अपने पास ही सुला लिया था.’’

‘‘बसबस, चुप कर… देख रही हूं कि बहुत पटरपटर जबान चलने लगी है तेरी. और तू तो ऐसे कह रही है, जैसे यह सब तू ने अपनी आंखों से देखा हो…’’

‘‘बूआ, चाहे यह सब देखने को मैं वहां मौजूद नहीं थी, पर मम्मी ने ये सब बातें मुझे तब बता दी थीं, जब मैं 12 साल की थी, जिस से मैं इस बदलाव से घबरा नहीं जाऊं और इस के लिए दिमागी रूप से तैयार रहूं.’’

‘‘जो भी हो, उस समय मैं नादान थी, मुझे अच्छेबुरे की परख नहीं थी, पर अब मैं एक जिम्मेदार बहू, बेटी और मां हूं. बरसों से हमारे समाज द्वारा बनाई गई कुछ सामाजिक परंपराएं हैं, जिन के मानने में हमारा ही फायदा है और जब तक मैं ही इन परंपराओं का पालन नहीं करूंगी, तो आने वाली पीढ़ी को किस मुंह से सिखाऊंगी,’’ बूआ ने कहा.

‘‘बूआ, आप जिन रिवाजों की बात कर रही हैं, वे काफी समय पहले बनाए गए थे. वे सब ढकोसले थे. पंडों की सिखाई बातें थीं. हम लोग सचाई की तह तक जाए बिना या लकीर के फकीर बन कर उन हालात का बोझ ढोते चले जा रहे हैं.’’

‘‘देख रही हूं, तेरी मां ने तुझे कुछ ज्यादा ही छूट दे रखी है. छोटी जगह है, इनसान जैसे माहौल में रहे, उसी के हिसाब से बरताव करना चाहिए. क्या कहेंगी आसपड़ोस की औरतें, जब उन्हें पता चलेगा कि इस घर में ऐसा घोर अनर्थ हो रहा है? मैं नहीं मानती, पता चलने के बाद कोई इस घर का पानी भी पीएगा.

‘‘अरे इनसान तो क्या, ऐसे घर में तो पितर भी अन्न ग्रहण नहीं करते, इसीलिए तो इतने पूजापाठ के बाद भी तेरी मां की कोख ने बेटा नहीं जना. बस, अब तू मेरा ज्यादा मुंह मत खुलवा,’’ निकिता बूआ ने अपने हाथ नचाते हुए कहा.

‘‘बूआ, अभीअभी तो आप ने कहा कि इनसान को अपने माहौल के मुताबिक बदलाव करना चाहिए, तो मैं ने तो सुना है कि पंजाबी औरतों को इन 3 दिनों के दरमियान भी गुरुद्वारे जाने की छूट है, फिर आप इतने साल दिल्ली में रह कर भी अपनी सोच को क्यों नहीं बदल पाईं?

‘‘आप ने उन का पहनावा, रहनसहन तो अपना लिया, पर दिल में आप अभी भी छोटी सोच को अपनाए हुए हो,’’ कहते हुए नव्या की आंखें छलक आईं.

कहना तो वह और भी बहुतकुछ चाहती थी, पर उस की शिक्षा ने उसे इस की इजाजत नहीं दी. बूआ तो पापा के इतना बुलाने पर यहां आई थीं, इसलिए उस ने अपना मुंह बंद कर लिया.

बातों की इस चोट से एक पल के लिए तो निकिता बूआ तिलमिला उठीं, पर अगले ही पल हालात को भांपते हुए थोड़ी नरम पड़ते हुए वे कहने लगीं, ‘‘देख बेटी, यह हमारे शरीर की गंदगी होती है. यह गंदगी जो बाहर आती है तो थोड़ाबहुत तो शुद्धअशुद्ध का विचार तो रखना ही चाहिए न? यह तो तू भी मानती होगी?’’

‘‘गंदगी कैसी बूआ? यह तो हमारे बदन की दूसरी हरकतों की ही तरह एक आम हरकत है. कुदरत का औरत को प्रदान किया गया तोहफा है. इसे मर्द को नहीं दिया गया है. इस के दम पर तो एक औरत को मां बनने का मौका मिलता है और यह सृष्टि चलती रहती है. अगर यह इतनी जरूरी चीज है, तो इस से इतनी ज्यादा चिढ़ क्यों?’’

‘‘चल, अब पहले मैं नहा कर आती हूं.’’

नव्या समझ गई थी कि वह इतनी देर से भैंस के आगे बीन बजा रही थी. बूआ को समझाने का कोई मतलब नहीं है. निकिता बूआ रसोई से बाहर आईं तो उन्होंने देखा कि नव्या डाइनिंग टेबल पर खाना लगा रही थी.

‘‘यह सब क्या करने लगी तू?’’

‘‘बूआ देखो, आप के लिए मैं ने पसंदीदा छोलेभटूरे बनाए हैं. चख कर बताइए कि कैसे बनाए हैं?’’

‘‘अभी तो तुझे मैं ने इतना समझाया, लगता है कि तेरे दिमाग में कुछ नहीं बैठा दिखता है.’’

‘‘आखिर भतीजी किस की हूं. पापा तो मुझे बातबात पर कहते हैं कि मैं बिलकुल अपनी बूआ पर गई हूं. आप जिद्दी तो मैं महाजिद्दी,’’ नव्या ने अपने कंधे उचकाते हुए कहा.

‘‘तेरी यह जिद तेरी मां के सामने ही चलती होगी. जब तक मैं यहां हूं, मेरी ही मरजी चलेगी. बाद में तुम लोग जानो और तुम्हारा काम जाने.’’

‘‘बूआ, मैं ने इतने मन से बनाए हैं. आज के दिन मान जाइए, कल से वही होगा जो आप चाहेंगी,’’ नव्या के हथियार डाल देने पर भी निकिता बूआ नहीं पिघलीं. गुस्से में नव्या ने वह खाना कूड़े की बालटी में डाल दिया.

रात में नव्या अपनी बूआ के गुस्से के डर से बैडरूम में न सो कर ड्राइंगरूम में ही लेट गई. पर बाद में रसोई में होने वाली खटरपटर से उस की नींद खुल गई.

‘‘क्या हुआ बूआ, आप को कुछ चाहिए क्या?’’ नव्या ने बूआ को आवाज लगाते हुए पूछा.

‘‘कुछ नहीं, हींग ढूंढ़ रही थी. पेट में बहुत दर्द है. गैस हो गई दिखती है.’’

‘‘बूआ, आप को हींग नहीं मिलेगी, लाइए, मैं निकाल देती हूं,’’ कहते हुए नव्या रसोई में घुस गई.

‘‘तू बाहर ही खड़ी रह. बोल कर भी तो बता सकती है कि कहां रखी है.’’

उस के बाद भी नव्या ने महसूस किया कि बूआ सोई नहीं हैं. वे बेचैन सी पल में बैठ रही थीं और दूसरे पल फिर से लेट जाती थीं.

हाय हैंडसम – भाग 1 : प्रेम की दिवानी गौरी का क्या हुआ

प्यार आजाद है, उम्र नहीं देखता. यह किसी भी उम्र में, किसी से भी हो सकता है.  कमसिन उम्र की गौरी दिल लगा बैठी थी अपनी उम्र से ढाईगुना बड़े व्यक्ति से. प्रेम में दीवानी गौरी का यह महज बचपना था या वाकई उस के प्यार में कोई अलग बात थी?

‘प्यार दीवाना होता है, मस्ताना होता है, हर खुशी से हर गम से बेगाना होता है…’ मैं जब इस फिल्मी गाने को सुनता था तो मन में यही सोचता था, क्या वाकई प्यार दीवाना और मस्ताना होता है? लेकिन जब प्यार में दीवानीमस्तानी, हर खुशी हर गम से बेगानी एक लड़की से मुलाकात हुई तो यकीन हो गया, वास्तव में प्यार दीवाना और मस्ताना होता है.

4 साल पहले मैं फेसबुक खूब चलाता था. उसी दौरान मेरे मैसेंजर बौक्स में एक मैसेज आया, ‘हैलो…’

मैं ने मैसेज बौक्स के ऊपर नजर डाली, नाम था गौरी. इतनी देर में दूसरा मैसेज आ गया, ‘हैलो, आप कहां से हैं?’

मैं ने मैसेज में अपने शहर का नाम टाइप किया, साथ ही उस से पूछा, ‘आप कौन?’

‘जी, मेरा नाम गौरी है.’

‘ओके. कहां से हो?’ मैं ने मैसेज का जवाब दिया.

‘जी, मैं मुरादाबाद से हूं. क्या मैं आप से बात कर सकती हूं?’ उस ने अगला मैसेज किया.

‘बात तो आप कर ही रही हैं,’ मैं ने मजाकिया अंदाज में मैसेज किया.

‘जी, मेरा मतलब है, आप मु?ो अपना मोबाइल नंबर देंगे?’

‘मोबाइल नंबर क्यों?’

‘आप से बात करनी है.’

‘तुम करती क्या हो?’ मैं ने पूछा.

‘स्टडी, मैं इंटरमीडिएट के एग्जाम की तैयारी कर रही हूं.’

‘तुम इंटरमीडिएट में पढ़ती हो?’ मैं चौंका.

‘हां, लेकिन आप को हैरानी क्यों हो रही है?’

‘वो… बस, ऐसे ही. तुम मु?ा से क्या बात करोगी, मेरी उम्र मालूम है तुम्हें?’

‘जी, मैं ने आप की प्रोफाइल देखी है, आप की उम्र करीब 50 साल है.’

‘उम्र ही मेरी 50 साल नहीं है, मेरे 2 बच्चे भी हैं, वे भी तुम से बड़े.’

‘इस में आश्चर्य की क्या बात है. शादी के बाद बच्चे तो सभी के होते हैं. आप के भी हैं. एक बात बोलूं, आप बहुत हैंडसम हैं.’

‘फोटो में तो सभी हैंडसम दिखते हैं.’

‘सुनिए, मु?ो आप से प्यार हो गया है.’

‘क्या कहा तुम ने?’ मु?ो अपने कानों पर यकीन नहीं हुआ.

‘आई लव यू… आई लव यू सो मच,’ उस ने फिर मैसेज किया.

‘तुम पागल तो नहीं हो?’

‘हां, मैं आप की प्रोफाइल फोटो देख कर पागल हो गई हूं.’

‘ज्यादा इमोशनल होने की जरूरत नहीं है. मेरी एक बात ध्यान से सुनो, बेटा.’

‘हाय… क्या कहा, बेटा… कितना अजीब इत्तफाक है, मेरे पापा भी मेरी मम्मी को प्यार से बेटा ही बुलाते हैं. आप के मुंह से बेटा शब्द सुन कर अच्छा लगा,’ उस ने रोमांटिक अंदाज में मैसेज भेजा.

‘तुम नादानी में कुछ भी बोले जा रही हो.’

‘मैं होशोहवास में बोल रही हूं.’

‘चलो, फिर से बेटा, अच्छा चलो, ऐसे ही बोलो आप.’

‘तुम चाहती क्या हो?’

‘इतनी जल्दी है आप को यह सुनने की?’

उस की बात से मैं ?ोंप गया था, फिर संभल कर मैं ने उस से कहा, ‘अगर तुम्हारे मम्मीपापा को तुम्हारे बारे में पता चला कि तुम किसी भी इंसान से ऐसी बातें करती हो तो उन पर क्या…’

‘सुनिए हैंडसम, अब मैं आप को हैंडसम ही बोला करूंगी और आप मु?ो बेटा,’ उस ने मेरी बात को बीच में ही काटते हुए कहा, ‘‘हां तो हैंडसम, मैं कह रही थी, मैं हर किसी से ऐसे नहीं बोलती हूं, आप से ऐसे बोलने का मन हुआ, तो बोल रही हूं. दूसरी बात, मेरे मम्मीपापा के मु?ो ले कर जो भी ड्रीम्स हैं उन्हें तो मैं हंड्रैड परसैंट पूरे करूंगी. पर ड्रीम्स से दिल का क्या लेनादेना. उसे तो इन सब चीजों से दूर रखिए. बेचारा मेरा नन्हामुन्ना, प्यारा सा एक ही तो दिल था उसे भी आप ने चुरा लिया.’

‘फालतू बातें मत करो.’

‘प्लीज हैंडसम, मु?ो अपना नंबर दो न, मु?ो आप से बहुत सारी बातें करनी हैं.’

‘नहीं, मैं तुम्हें नंबर नहीं दूंगा और तुम भी अब मु?ो मैसेज मत करना.’

‘सुनिए, औफलाइन मत होना, प्लीज.’

‘चुप रहो, मु?ो तुम से कोई बात नहीं करनी है.’

‘ऐसा मत कहिए, प्लीज, अपना नंबर दे दो न.’

‘कहा न, मैं तुम्हें नंबर नहीं दूंगा और न ही आज के बाद कोई मैसेज करूंगा,’ यह मैसेज भेजते हुए मैं ने फेसबुक लौगआउट कर दिया.

अगले दिन मैं औफिस टूअर पर कई दिनों के लिए दिल्ली चला गया. इस बीच मैं ने फेसबुक ओपन नहीं किया. दिल्ली से वापस आने के बाद रात को मैं ने लैपटौप पर फेसबुक लौगइन किया. मैसेज बौक्स में कई मैसेज मेरा इंतजार कर रहे थे. उन मैसेजेस में गौरी का मैसेज भी था. उस के मैसेज को देख कर मेरा दिल धक्क से हो गया. मन में सोचने लगा, यह लड़की जरूर सिरफिरी या पागल है. मैं तो इसे भूल गया था और यह? मैं ने उस के मैसेज पर क्लिक कर दिया. वही हंसतामुसकराता मासूम सा चेहरा सामने आ गया. मैसेज में लिखा था, ‘कहां हो हैंडसम, अपना नंबर दो न प्लीज.’ उस के मैसेज का मैं ने कोई रिप्लाई नहीं किया.

कई दिनों बाद मेरे मोबाइल पर एक अनजानी कौल आई. मैं ने कौल रिसीव की. दूसरी तरफ से खिलखिलाती हंसी सुनाई दी. उस के बाद आवाज आई, ‘हाय हैंडसम.’

उस आवाज को सुन कर मैं एकदम सकते में आ गया. दूसरी तरफ से फिर आवाज आई.

‘आप ने क्या सम?ा था, आप फेसबुक से दूर हो गए तो हम आप को अपने दिल से दूर कर देंगे. नहीं हैंडसम, ऐसा नहीं होगा. आप ने गौरी का दिल चुराया है. उस का चैन, उस की रातों की नींद चुराई है तो हम आप को कैसे भूल जाएंगे. हैंडसम, हम ने आप से सच्चा प्यार किया है. आप ने नंबर नहीं दिया तो क्या हुआ, आप फेसबुक से दूर हो गए तो क्या हुआ, हम तो आप से दूर नहीं हुए. हम ने आप का नंबर ढूंढ़ ही लिया. कोई बात नहीं, आप दुखी मत होइए. हम आप को परेशान भी नहीं करेंगे. क्या करें, हम आप पर मरमिटे हैं, इसलिए कभीकभार हम से बात कर लिया करो, ताकि हम जिंदा रह सकें.

क्या करें हैंडसम, हम तो दिल के हाथों मजबूर हो गए. दिल तो दिल ही है, कर बैठा आप से प्यार, तो कर बैठा. वैसे, आप हमारे ऊपर आंख मूंद कर भरोसा कर सकते हैं. हमें गर्व होता है अपनेआप पर जब हम सोचते हैं हमें प्यार भी हुआ तो एक मशहूर लेखक से. कभी तो हम भी उस की कहानी का हिस्सा बनेंगे. क्या हुआ… आप की खामोशी बता रही है, आप हमारी बेस्वादी बातों को सुन कर बोर हो रहे हैं. तभी तो कुछ बोल नहीं रहे हैं, हम ही बोले जा रहे हैं.’

‘क्या चाहती हो तुम?’ मैं ने ?ां?ालाते हुए कहा तो वह तपाक से बोली, ‘आप से मिलना चाहते हैं एक बार बस. एक बार हम से मिल लो, फिर आप जैसा कहोगे, हम वैसा ही करेंगे. हैंडसम प्लीज, न मत करना. हम जानते हैं आप बहुत सज्जन हैं. हम से बात करते हुए आप को ?ि?ाक होती है. पर हम सचमुच आप से प्यार करने लगे हैं.

आप हम से बिलकुल भी न घबराएं. हम न चालबाज हैं, न धोखेबाज. हमें आप से फोन रिचार्ज भी नहीं करवाना है, और न ही आप को ब्लैकमेल करना है. उम्र भी हमारी 20 साल है. आप को हम से कैसी भी कोई टैंशन नहीं मिलेगी. एक बार आप से मिलने की तमन्ना है. बस, वह पूरी कर दीजिए. हैंडसम, हम जानते हैं हमें ऐसी गलती नहीं करनी चाहिए.

‘हम यह भी नहीं चाहते कि हमारी गलती की सजा आप को मिले. आप हमारे बारे में कैसेकैसे अनुमान लगा रहे होंगे, हम कौन हैं, कहीं हम आप को गुमराह तो नहीं कर रहे हैं. हम लड़की हैं भी या नहीं, कहीं हम आप को किसी जाल में तो नहीं फांस रहे हैं. क्योंकि, आजकल ऐसा हो रहा है.

सोशलसाइट पर फेक आईडी बना कर लोग लोगों को ब्लैकमेल करते हैं, पर हम ऐसे नहीं हैं. हम सीधीसादी लड़की हैं. पैसे की भी हमारे पास कमी नहीं है. मम्मीपापा दोनों बिजनैस में हैं. हम उन की इकलौती, वह भी लाड़ली, संतान हैं. बहुत प्यार करते हैं मम्मीपापा हमें. पर क्या करें हम आप को प्यार करने लगे. आप का प्रोफाइल फोटो देख कर हमारा दिल हमारे काबू में नहीं रहा. आप के मन में हमें ले कर जो भी भ्रम हैं, वह हम मिल कर दूर कर लेंगे. हैंडसम, हमें इग्नोर मत करना वरना हमारा नन्हा सा, मासूम सा दिल टूट जाएगा.’

मैं ने उस से पीछा छुड़ाने की गरज से कह दिया, ‘अच्छा ठीक है. मैं अगले सप्ताह औफिस के काम से दिल्ली जाते वक्त तुम से मिल लूंगा.’ इतना सुनते ही वह खुशी से उछल पड़ी और बोली, ‘‘हैंडसम, आना जरूर, धोखा मत देना.’’

‘ठीक है, इस बीच तुम भी मु?ो फोन मत करना, मैं खुद तुम्हें फोन कर लूंगा.’

‘ठीक है, हमे मंजूर है, नहीं करेंगे हम आप को फोन.’

‘हां, मैं ने भी कह दिया तो जरूर आऊंगा.’

मैं ने गौरी से कह तो दिया लेकिन मेरे जेहन में उस की बातें उथलपुथल मचाने लगीं. कभी सोचता, मैं कहां फंस गया, कभी अपने मन में उस की काल्पनिक तसवीर बनाने लगता, वह ऐसी दिखती होगी, वह वैसी दिखती होगी. एक बार मन में आया, मैं घर में पत्नी को बता दूं. फिर सोचा, पत्नी ने मेरी बातों पर यकीन नहीं किया तो… फालतू में बात का बतंगड़ बन जाएगा. घर में हंगामा खड़ा हो जाएगा. नहीं, मैं पत्नी को नहीं बताऊंगा. मु?ो नहीं लगता कि वह लड़की गलत हो. वह भटक गई है, उस से मिल कर मु?ो उस को सम?ाना होगा, वरना उलटेसीधे हाथों में पड़ कर वह अपना जीवन बरबाद कर सकती है.

एक दिन जब मैं ने उस को फोन कर के बताया कि मैं कल सुबह 11 बजे तक उस के पास पहुंच जाऊंगा, मु?ो मिल जाना, तो वह खुशी से जैसे पागल हो गई. कई बार एक सांस में, ‘आई लव यू… आई लव यू सो मच…’ बोलती चली गई. मैं ने बिना किसी प्रतिक्रिया के फोन डिसकनैक्ट कर दिया.

रात को औफिस के ड्राइवर का फोन आया, ‘सर, सुबह को कितने बजे गाड़ी ले कर आऊं?’

मैं ने सोचा, अगर ड्राइवर के साथ मैं गौरी से मिलूंगा तो ड्राइवर औफिस में सब को बता देगा और फिर यह बात घर तक भी पहुंच जाएगी. इसलिए मैं ने ड्राइवर से ?ाठ बोला. मैं ने कहा, ‘मैं तो मुरादाबाद में ही हूं. रात को यहीं रुकना पड़ेगा. ऐसा करो, तुम कल दोपहर को 12 बजे तक यहां आ जाना, हम यहीं से दिल्ली चलेंगे.’

‘ठीक है सर,’ कह कर ड्राइवर ने फोन काट दिया.

वे 3 दिन – भाग 1 : इंसान अपनी सोच से मौडर्न बनता है

‘‘मेरी प्यार बूआ, आप तो एकदम जंच रही हो, बिलकुल पंजाबी लड़कियों की तरह. पंजाबी सलवार… लिपस्टिक… क्या बात है,’’ नव्या ने दिल्ली से आई अपनी बूआ को कुहनी मारते हुए छेड़ा और फिर उन के गले लग गई और उन के गालों को चूम लिया.

नव्या की बूआ निकिता को उन के भैया ने कल फोन कर तुरंत बुढ़ाना आ जाने को कहा था.

‘हैलो निकिता, हम लोग 3 दिन के लिए शिमला जा रहे हैं. नव्या के फाइनल एग्जाम हैं और साथ में उस की तबीयत भी ठीक नहीं है. तुम हमारे पीछे से उस के पास आ जातीं, तो हमें परेशानी नहीं होती. अब जवान लड़की है, तो अकेले या आसपड़ोस वालों के भरोसे भी छोड़ कर जाने को मन नहीं मान रहा है.’

‘नहीं भाईसाहब, आप बिलकुल बेफिक्र हो कर जाइए, मैं कल सुबह की किसी बस से शाम तक वहां पहुंच जाऊंगी.’

‘‘क्या हुआ री नव्या तुझे? भाई साहब बता रहे थे कि तेरी तबीयत ठीक नहीं है,’’ निकिता बूआ ने आते ही चिंतित आवाज में पूछा, ‘‘और तू ने यह क्या पहन रखा है… यह फटी जींस और कटे शोल्डर वाला टौप. तुम यह सब कब से पहनने लगी?’’

‘‘अरे, कुछ नहीं बूआ, वही मंथली पीरियड…’’

‘‘मतलब, तू टाइम से है?’’ निकिता बूआ उछल कर खड़ी हो गईं और अपना गाल पोंछने लगीं, जहां पर एक मिनट पहले नव्या ने चूमा था. जैसे उन के गाल पर किसी ने कीचड़ मल दिया हो.

‘‘तेरी मां ने तुझे इतना भी नहीं सिखाया है कि इन दिनों में किसी नहाएधोए को छूना नहीं चाहिए. अब मुझे फिर से नहा कर आना पड़ेगा.’’

‘‘सौरी बूआ, आप पहले चाय तो ले लीजिए. मैं ने आप के लिए अदरक वाली चाय बना दी है और साथ में आप की पसंद के पालक के पकौड़े भी हैं,’’ बूआ का मूड अच्छा करने की गरज से नव्या ने बात बदलते हुए कहा.

‘‘तेरा दिमाग खराब हो गया है क्या? 3 दिन रसोई में जाना तो दूर उस के आसपास भी नहीं फटकना चाहिए. तुझे लगता है कि मैं तेरे हाथ का छुआ पानी भी पीऊंगी?’’ अब निकिता बूआ की आवाज कुछ कठोर हो गई थी.

नव्या को बूआ के गरममिजाज और दकियानूसी विचारों के बारे में मालूम था, जो दिल्ली में रहते हुए भी मानो बुढ़ाना में रह रही थीं, पर उन का ऐसा रूप देखने का मौका पहली बार पड़ा था.

नव्या कुछ समय के लिए सहम गई, फिर माहौल को बदलने के लिए अपनी बूआ को लाड़ लड़ाते हुए उन का हाथ पकड़ कर उन्हें सोफे पर बिठाने लगी.

‘‘अरे, तुझे अभी तो मना किया था मुझे छूने को… पर तू है कि तुझे कोई बात समझ ही नहीं आ रही है,’’ बूआ चिल्लाईं.

‘‘बूआ, मुझे इन सब चीजों की आदत नहीं है न, तो बारबार भूल जाती हूं,’’ नव्या ने निकिता के कंधे से अपना हाथ हटा लिया और उन के साथसाथ खुद भी सोफे पर बैठ गई.

नव्या के बैठते ही बूआ फिर से तुनक गईं, ‘‘अगर ये 3 दिन तुम थोड़ेबहुत नियम मान लोगी, तो तुम पर आसमान टूट कर गिर जाएगा क्या?

‘‘अच्छा है, अम्मां यह सब देखने से पहले ही इस दुनिया से विदा हो गईं, नहीं तो वे यह सब देख कर जीतेजी मर जातीं. तेरी मां का राज आते ही पूरे घर में अपवित्रता आ गई.

‘‘मुझे कहना तो नहीं चाहिए, पर जिस घर में ऐसा पाप हो रहा हो, वहां कहां से कुलदीपक आता. अब चाहे देवीदेवताओं की लाख मन्नतें कर लो, कुछ हासिल नहीं होने वाला है, जब घर में ही ऐसा अनर्थ.

‘‘अम्मां थीं तब तक शहर से ब्याह कर आई तेरी संस्कारहीन मां को सबकुछ मानना पड़ा, चाहे डंडे के जोर पर ही. पर अब तो लगता है, यहां जंगल राज आ गया है.’’

निकिता बूआ इस बार 8-9 साल बाद बुढ़ाना आई थीं. घर का खाका ही बदल गया था. तख्त की जगह सोफा था, टीवी भी नया था.

अब तक सब्र से काम लेती हुई नव्या को भी गुस्सा आ गया. घर से निकलते हुए उस की मम्मी द्वारा दी गई सारी नसीहतों को भी वह भूल गई, क्योंकि अब बात उस की मम्मी के संस्कारों पर आ गई थी.

‘‘बूआ, मम्मी के संस्कारों की तो आप बात न ही करें तो बेहतर होगा. भूल गईं आप अपना समय… जब पहली बार अपने कपड़ों पर धब्बे देख कर कितना डर गई थीं आप.

आप को लगा था कि आप कैंसर जैसी किसी खतरनाक बीमारी की चपेट में आ गई हैं. आप रोतेरोते दादी के पास गई थीं और पूजा करती हुई दादी ने आप के कपड़े देख कर आप को पुचकारने के बजाय अपने से दूर धकेल दिया था.

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