खिलाड़ियों के खिलाड़ी : मीनाक्षी की जिंदगी में कौन था आस्तीन का सांप – भाग 4

‘‘यह फ्लैट मुझे मुख्यमंत्री ने अपने विशेष कोटे से अलौट किया है जिस में उन के और मेरे खास दोस्त ही ठहर सकते हैं. तुम कुछ दिन वहां रह लो, फिर मैं मुख्यमंत्री से बात कर के तुम्हें निराश्रित और आर्थिकरूप से कमजोर विधवा बता कर तुम्हारे नाम से एक आलीशान फ्लैट भी अलौट करवा दूंगा जहां तुम आराम से रहना, फिर रूपयोंपैसों की तो तुम्हारे पास कमी है नहीं. अगर जरूरत पड़ जाए तो हम लोग हैं ही.’’

‘‘लो, तुम्हारे सामने ही मैं वे सभी वीडियो डिलीट कर देती हूं,’’ कहते हुए मीनाक्षी ने अपना मोबाइल निकाला और विशाल के सामने सारे वीडियो डिलीट कर दिए, फिर लैपटौप में सेव किए हुआ वीडियोज का एक फोल्डर भी डिलीट कर दिया.

विशाल बड़े ध्यान से सब देख रहा था मगर उस ने मीनाक्षी के साथ जिस तरह की दोस्ती थी उस से उस ने यह जरूर जान लिया था कि मीनाक्षी बहुत शातिर है. जितनी सहजता से वह सब डिलीट कर रही है, इस का मतलब यही है कि उस ने ये सब कहीं और जरूर छिपा कर रखा होगा. विशाल ने देखा कि मीनाक्षी अपने लैपटौप और अन्य कुछ इलैक्ट्रौनिक डिवाइसेज हरे रंग के एक छोटे से बैग में रख कर उसे लाल रंग के सूटकेस में रख रही है.

विशाल ने मीनाक्षी के सामने सुनहरे सपनों का एक महल खड़ा कर दिया था. वह बेहद खुश हो गई थी. विशाल की बातें सुन कर मीनाक्षी खयालों में खो गई और अपने सुरक्षित एवं सुखद भविष्य की कल्पना करने लगी. कल्पना की दुनिया में खोई मीनाक्षी सोचने लगी कि उस ने अरुण के साथ हमेशा तनावग्रस्त जिंदगी जी है, अरुण उस के साथ बहुत अत्याचार करता था, अपनी जान बचाने के लिए वह अपनी पत्नी का उपयोग करने से भी बाज नहीं आता था. अब उसे इस तरह की घिनौनी जिंदगी से छुटकारा मिल जाएगा.

लेकिन, मीनाक्षी अपने गिरेबान में नहीं ?ांक रही थी. उस ने भी तो अरुण के नाम से बहुत फायदा उठाया था. ऐशोआराम की जिंदगी जीने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी. महंगी कारों में घूमने और बड़े होटलों में पार्टियों से उसे फुरसत कहां मिलती थी. जब से उस ने सैक्रेटियट में एंट्री की थी तब से उस का रोब और भी बढ़ गया था. कई अफसरों व मंत्रियों से उस के बैडरूम कौन्टैक्ट्स भी थे. उस ने मुख्यमंत्री तक को अपना मोहरा बना कर रखा था.

मीनाक्षी 2 दिनों बाद विशाल के वीआईपी फ्लैट में रहने के लिए चली गई. अब मीनाक्षी बहुत खुश थी और सोच रही थी कि अब उस के दिन बदल रहे हैं. मगर वह मुख्यमंत्री और विशाल के बीच जो खिचड़ी पक रही थी, उस से नावाकिफ थी. मुख्यमंत्री को उन के बहुत ही करीबी एक मीडियाकर्मी दोस्त ने सावधान करते हुए कहा था कि विरोधी पार्टी ने मीनाक्षी को उन के खेमे में सेंध लगाने के लिए भेजा है. विरोधी पार्टी के एक बड़े नेता के घर में मीनाक्षी का आनाजाना बढ़ गया है. उस ने यहां तक सुना है कि अगर वह सरकार गिराने मे सहयोग करेगी तो उसे मंत्री भी बनाया जा सकता है. कहते हैं कि राजनीति में कोई किसी का दोस्त नहीं होता. आप का जिगरी दोस्त तक आप की आस्तीन का सांप बन जाता है.

एक दिन मुख्यमंत्री ने विशाल को अपने बंगले पर बुलाया और सारी बातें बताते हुए सचेत रहने की सलाह दी. फिर दोनों ने यह तय किया कि मीनाक्षी को रास्ते से हटाना ही उन के हित में होगा. दोनों ने रात देर तक बातें कर के अपने प्लान को अंतिम रूप दिया और एकदूसरे से गले मिलते हुए जुदा हुए.

4 दिनों बाद विशाल ने मीनाक्षी को फोन किया, ‘‘हैलो मीनाक्षी, कैसी हो, कोई परेशानी तो नहीं हो रही है तुम्हें?’’

‘‘नहीं तो, यहां तो बहुत अच्छा लग रहा है. मु?ो कोई तकलीफ नहीं है,’’ मीनाक्षी ने खुश होते हुए कहा.

‘‘मीनाक्षी, दरअसल, मैं ने इसलिए फोन किया कि मुख्यमंत्री के 2 खास दोस्त कल अपनी फैमिली के साथ यूएस से किसी बहुत ही जरूरी काम के लिए उन से मिलने आ रहे हैं. वे केवल 4 दिन इंडिया में रुकेंगे. मुख्यमंत्री उन से सीक्रेटली’ मिलना चाहते हैं. इस के लिए उन्होंने मुझ से अनुरोध किया है कि उन के ठहरने की व्यवस्था वीआईपी फ्लैट में करूं. मैं उन के अनुरोध को टाल नहीं सकता. तुम्हें थोड़ी परेशानी तो होगी मगर क्या कर सकते हैं.

‘‘प्लीज, मेरे लिए तुम्हें थोड़ी तकलीफ उठानी पड़ेगी. बस, 4 दिन की बात है. तुम अपना बहुत जरूरी सामान ले कर होटल हिलटोन में पहुंच जाना. वहां मैं ने तुम्हारे लिए एक डीलैक्स सूट 4 दिन के लिए तुम्हारे नाम से ही बुक करवा दिया है. सारा पेमैंट मैं ने एडवांस में ही पेड कर दिया है. तुम्हें वहां 4 दिन तक एक भी पैसा अपनी जेब से खर्च नहीं करना है. मुख्यमंत्री के दोस्त जैसे ही यूएस के लिए रवाना होंगे, तुम अपने फ्लैट में लौट जाना.’’

‘‘हां, क्यों नहीं विशाल, 4 दिन की ही तो बात है. मैं कल सुबह ही चली जाऊंगी, डोंट वरी.’’ शहर के सब से बड़े फाइवस्टार होटल में 4 दिन तक शान से मुफ्त में रहने को मिलेगा, इस खुशी में उछलते हुए मीनाक्षी ने आगे कहा, ‘‘थैंक्यू.’’

विशाल ने फोन काट दिया और तुरंत मुख्यमंत्री को सारी बात बता दी.

‘‘वैरी गुड विशाल, तुम अब तैयार हो जाओ. हम दोनों आज रात 11 बजे की फ्लाइट से उदयपुर मेरे पिता से मिलने जा रहे हैं. उन की तबीयत बहुत खराब है. हमारे टिकट बुक हो चुके हैं,’’ मुख्यमंत्री ने खुश होते हुए कहा.

विशाल की समझ में नहीं आ रहा था कि मुख्यमंत्री अचानक उदयपुर जाने के लिए क्यों कह रहे हैं. प्लान तो कुछ अलग बना था. खैर, वह तैयार हो कर निश्चित समय पर एअरपोर्ट पहुंच गया. रात में करीब एक बजे वे दोनों उदयपुर पहुंच गए. मुख्यमंत्री के पिताजी बिलकुल स्वस्थ लग रहे थे, घर के बाकी सभी सदस्य भी ठीक लग रहे थे.

विशाल ने मुख्यमंत्री की तरफ देखा, तो उन्होंने अपनी बाईं आंख दबाते हुए कहा, ‘‘विशाल, एवरी थिंग इज गोइंग वैल. डोंट वरी. जा कर अपने कमरे में सो जाओ, सुबह बात करेंगे.’’

विशाल सुबह जल्दी उठ कर तैयार हो गया. मगर मुख्यमंत्री देर तक सोते रहे. वे 10 बजे के बाद उठे और करीब 12 बजे तक नहाधो कर तैयार हुए. बाहर हौल में आ कर उन्होंने विशाल से कहा, ‘‘विशाल, जरा टीवी लगा कर समाचार तो सुनो.’’

विशाल ने जल्दी से टीवी औन किया, एक न्यूज चैनल लगाया जिस पर ब्रेकिंग न्यूज आ रही थी- ‘कुख्यात गैंगस्टर अरुण नाईक की पत्नी मीनाक्षी नाईक की एक सड़क दुर्घटना में मौत. वे अपनी कार खुद चला रही थीं. एक विकट मोड़ पर उन की कार एक ट्रक से टकरा गई. कार का पैट्रोल टैंक फट जाने से उन का पूरा शरीर जल गया तथा कार में रखा सामान भी जल कर राख हो गया.’’

मुख्यमंत्री विशाल की पीठ पर हाथ रखते हुए बोले, ‘‘विशाल, हम भी पहुंचे हुए खिलाड़ी हैं. हम ने कच्ची गोटियां नहीं खेली हैं. तुम ने जिस लाल सूटकेस को हमारे लिए खतरा बताया था, उसे मीनाक्षी कार में अपने साथ ले जा रही थी. पलभर में खेल खत्म हो गया और हम दोनों शहर से बाहर हैं.’’ यह कहते हुए मुख्यमंत्री ने जोर से ठहाका लगाया और ताली के लिए अपना हाथ आगे बढ़ाया.

विशाल ने भी ठहाका लगा कर उन्हें ताली देते हुए कहा, ‘‘सरजी, आप केवल खिलाड़ी नहीं, आप तो खिलाडि़यों के भी खिलाड़ी हैं.’’

मृगतृष्णा : मुझे अपनी शादी से क्यों होने लगी कोफ्त

‘‘हो सके तो कुछ दिनों के लिए मेरे साथ वक्त बिताने के लिए तुम भी बीजिंग आ जाना. आओगी तो अच्छा लगेगा मुझे, तुम्हारी मेहरबानी होगी मुझ पर,’’ शरद ने दुबई एयरपोर्ट पर मुझ से विदाई लेते हुए कहा. उन का काम के सिलसिले में देशविदेश जानाआना लगा रहता था. वे जहां भी जाते थे, उम्मीद करते कि कुछ ही दिनों के लिए ही सही, मैं भी उन्हें जौइन करूं.

‘सूरत देखी है अपनी शीशे में, मैं घर में तो तुम्हारे साथ 5 मिनट बैठना पसंद नहीं करती, फिर बीजिंग में क्या खाक करने आऊंगी. मैं तो तुम्हारे साथ उम्र काट रही हूं उम्रकैद की तरह,’ मैं ने दिल ही दिल में सुलगते हुए सोचा और शरद की बात को तवज्जुह दिए बिना कार से उन का लगेज निकालने में उन की मदद करने लगी. फिर बिना उन की तरफ देखे ही गुडबाय कर, टाइम से अपने औफिस पहुंचने के लिए कार स्टार्ट कर दी.

शेख जायद रोड ट्रैफिक से पटी हुई थी. ‘लगता है फिर औफिस के लिए देर हो जाएगी और नगमा की स्कैन करती हुई आंखें फिर से बरदाश्त करनी होंगी. क्या दोटके की जिंदगी है मेरी,’ मैं मन ही मन भन्नाई. तभी एक हौर्न की आवाज ने मेरी सोच में बाधा डाली. सामने ग्रीन लाइट हो चुकी थी. मैं ने यंत्रवत ब्रैक से पैर हटा कर कलच पर दबाव डाला. मेरी कार आगे बढ़ने लगी और मेरी सोच भी.

इंडिया में मेरे भैया सोचते हैं कि मेरी झोली चांदसितारों से भरी हुई है. उन्हें क्या पता कि हालात मुझे न्यूट्रौन में बदल चुके हैं, न कोई खुशी न गम. जी रही हूं एक उदासीन सी जिंदगी क्योंकि हाथ में उम्र की लंबी सी लकीर ले कर पैदा हुई हूं. ढो रही हूं नीम पर चढ़े हुए करेले सी कड़वी बेनूर, अनचाही शादी को.

‘‘कुछ खोईखोई सी हैं आप आज,’’ औफिस पहुंचते ही नगमा ने आदतानुसार कटाक्ष किया.

‘‘तुम्हें तो पता है कि मैं शौकिया तौर पर शायरी लिखती हूं, इसलिए सोचते रहना मेरा काम है. सोचूंगी नहीं तो लिखूंगी कैसे,’’ मैं ने स्थिति संभालते हुए सफाई पेश की.

‘‘आज तो तुम्हारा चेहरा कोई औटोबायोग्राफिकल शेर सुनाता सा लग रहा है. ऐसा लग रहा है कि किसी ने तुम्हारे दिल की तनहाइयों में पत्थर फेंक कर वहां उथलपुथल मचा दी हो.’’

‘‘आप भी कौन सी कम हैं, दूसरों की जिंदगी में हस्तक्षेप करकर के उन की जिंदगी की खामियों के नगमें दुनिया में गागा कर अपना नाम सार्थक करती रहती हैं,’’ मैं ने नहले पर दहला मारा क्योंकि मैं जानती थी कि सीधी भाषा नगमा को समझ में नहीं आती है.

‘‘तुम जानो, तुम्हारा काम जाने. मेरे पास भी फालतू वक्त नहीं है तुम्हारे जैसों पर जाया करने के लिए,’’ नगमा खिसियाई बिल्ली सी मुझे अकेला छोड़ कर चली गई. दिन काम की व्यस्तताओं में गुजर गया. शाम का इंतजार करने की जरूरत नहीं हुई. सीधे घर जाने की इच्छा नहीं हो रही थी, घर जा कर कौन से गीत गाऊंगी. वही रोज का बेनूर रूटीन- खाना बनाओ, डिशवाशर लोड करो, डिनर कर के किचन साफ करो और फिर नहाधो कर बैडरूम में एक बोरियतभरी रात काटो.

मन ज्यादा दुखी होता तो यूट्यूब पर सफल प्रेमकहानियां देख कर खुश होने की नाकाम कोशिश कर लेती. इन प्रेमकहानियों में अपने होने की कल्पना करती. और काल्पनिक ही सही, पर कुछ पल प्यार से जीने की कोशिश करती. फिर याद आया कि शरद तो हैं ही नहीं, इसलिए आज रास्ते में ही कुछ खा कर चलती हूं. अकेले अपने लिए क्या पूरी कुकिंग करने की तकलीफ उठानी.

वर्ल्ड ट्रेड सैंटर स्थित जेपेनगो कैफे में मैंगू स्मूदी के घूंट भरते हुए अनमने मन से सामने पड़े हुए अखबार के पन्ने आखिरी पेज की तरफ से पलटने लगी. जब से नौकरी ढूंढ़नी शुरू की थी, अखबार को आखिरी पेज की तरफ से पलटने की आदत पड़ गई थी. नौकरी तो करीब सालभर पहले मिल गई थी मगर आदत आज भी वैसी की वैसी बनी हुई है.

डिनर करने के बाद भी सीधे घर जाने की इच्छा नहीं हो रही थी. औफिस के बाद आसपास की फ्लोरिस्ट शौप में यों ही चक्कर लगाना मुझे अच्छा लगता था. आज मैं फिर से वहां फूलों को निहारने के लिए पहुंच गई.

फूलों को देखतेदेखते अचानक मुझे महसूस हुआ कि आंखों की कोरों से मैं ने किसी जानेपहचाने चेहरे को आसपास देखा है. कोई ऐसा चेहरा जो पहले कभी मेरे बहुत करीब रहा है. मैं तुरंत ही फ्लोरिस्ट शौप से बाहर निकल आई. मैं ने चारों ओर नजर घुमा कर देखा. मगर दूरदूर तक कोई भी परिचित चेहरा नजर न आया. शायद मुझे कोई गलतफहमी हुई है. यह सोचती हुई मैं कार पार्किंग की ओर बढ़ने लगी, तो देखा कि टैक्सीस्टैंड पर जोसफीन खड़ी थी.

जोसफीन यहां और वह भी ब्राइन के बिना, यह कैसे संभव है. हैरान सी मैं लपक कर उस की तरफ भागी. मुझे देख कर जोसफीन उत्साह से भर कर मेरे गले लग गई. परिचित मुसकराहट से सराबोर उस का चेहरा कई वर्षों के बाद देखने को मिल रहा था.

‘‘इन से मिलो, ये हैं मेरे नए पार्टनर जैकब,’’ जोसफीन ने अपने साथ खड़े आदमी की तरफ इशारा करते हुए कहा.

‘‘पार्टनर, क्या मतलब? तुम्हारी और ब्राइन की कंपनी में कोई पार्टनर भी हुआ करता था, ये तो तुम ने पहले कभी बताया ही नहीं,’’ मैं ने कुतूहल से पूछा.

‘‘नहींनहीं, मेरा वह मतलब नहीं है. मेरे कहने का मतलब है जैकब मेरे डी- फैक्टो पार्टनर हैं और हम लिविंग टूगेदर रिलेशन में हैं.’’

मैं ने एक गहरी नजर जैकब महाशय पर डाली. मेरे होंठ कुछ बोलने को हिले. मगर शब्द बाहर न आ सके.

आखिर जोसफीन ने ही बात को आगे बढ़ाते हुए कहा, ‘‘काफी समय से तुम से बातचीत नहीं हो पाई है. तुम तो बिना कुछ बताए ही सिडनी से गायब हो ली थीं. लाइफ काफी बदल चुकी है तब से. अभी हम यहां एक हफ्ते और रुकेंगे. अगर मौका मिला तो तुम्हारे साथ कौफी पीने आऊंगी. मुझे अपना फोन नंबर दे दो.’’

मैं ने ज्यादा कुछ सोचे बिना हैंडबैग से अपना कार्ड निकाल कर उस की ओर बढ़ा दिया. तभी एक टैक्सी आ गई. जोसफीन ने एक बार फिर से मुझे अपने गले लगाया और जैकब के साथ टैक्सी में बैठ कर चली गई. मैं हैरानपरेशान सी टैक्सी को अपनी आंखों से ओझल होने तक देखती रही.

ब्राइन सिडनी का जानामाना व्यक्ति था. उस की खनिज तेल और खनन कंपनी थी जो कि आस्ट्रेलिया, टर्की, अफ्रीका और अमेरिका तक फैली हुई थी. उस की रईसी उस के सिडनी के पौइंट पाइपर उपनगर स्थित निवास में ही सिमटी हुई नहीं थी, बल्कि पूरे सैलाब के साथ हर तरफ छलकीछलकी पड़ती थी. धन की अधिकता के साथसाथ उस की हर बात बड़ी थी. वह अपने धन को अपने बैंक खाते तक ही सीमित नहीं रखता था, मानवीय कामों पर भी जम कर लुटाता था. उस के नाम और काम की चर्चा शहर के कोनेकोने में इज्जत के साथ होती थी.

ब्राइन के किसी से मिलने के पहले ही उस की प्रसिद्धि उस तक पहुंच जाती. विश्वविद्यालय को रिसर्च और जरूरतमंद छात्रों की उच्चशिक्षा के लिए अनुदान देना उस के पसंदीदा लोकोपकारी काम थे.

इन तमाम मानवतावादी कामों के साथसाथ उसे अपने लिए जीना भी बखूबी आता था. वह गोताखोरी, नौकायन, पैराग्लाइडिंग का बेहद शौकीन था.

जोसफीन और ब्राइन की मुलाकातों का सिलसिला नीले आकाश के आंचल में हुआ था. जोसफीन क्वान्टाज एयरलाइंस में एयरहोस्टेस थी. और ब्राइन अपने देशविदेश में फैले हुए व्यापार के सिलसिले में ज्यादातर हवाईयात्रा करने वाला यात्री.

अपनी मुसकराहट की जादूगरी से यात्रियों की लंबीलंबी यात्राओं को सुखद बनाने वाली नीलगगन की परी सी थी जोसफीन. उस की फ्लाइट में उस की सेवा में उड़ने वाले यात्री उसे कभी न भुला पाते और अपनी हर यात्रा में उसी की सेवा में उड़ने की चाहत रखते. एक तरफ आकर्षक रूपसागर था तो दूसरी तरफ भव्य जिंदगी जीने वाला प्रभावशाली व्यापारी. दोनों ही एकदूसरे के आकर्षण से ज्यादा समय तक न बच पाए और कुछ महीनों की मुलाकातों के बाद वे एकदूसरे के हो गए.

जब मैं पहली बार जोसफीन और ब्राइन से मिली थी तब तक उन की शादी को 10 साल पूरे हो चुके थे जबकि मेरी और शरद की शादी को केवल 3 साल ही हुए थे. उन के 10 साल की शादी में भी प्यार का महासागर उमड़ पड़ता था. उन के बीच की कैमिस्ट्री को देख कर मेरे जैसों को ईर्ष्या से अछूता रहना नामुमकिन था क्योंकि मेरी 3 साल की शादी में प्यार का अकाल सदाबहार था.

शरद और मेरी हर बात, हर शौक में नौर्थ और साउथ पोल का फर्क था. जोसफीन और ब्राइन के हर शौक, हर तरीके एकजैसे थे. वे दोनों खूब शौक से साथसाथ गोताखोरी पर जाया करते थे. 3-4 साल पहले गोताखोरी के दौरान रीढ़ की हड्डी में चोट लगने से ब्राइन के शरीर का निचला हिस्सा बेकार हो गया. जिस से वह ज्यादा लंबा चलने की शक्ति गवां बैठा. मगर प्यार तो प्यार होता है. सो, यह हादसा भी उन दोनों के प्यार के महासागर से एक बूंद भी कम न कर पाया. कम करता भी कैसे, आखिर उन्होंने नीले आकाश को साक्षी मान कर उम्रभर साथ निभाने के वादे जो किए थे.

वे दोनों एकदूसरे के बने थे अपनी खुशी से, उन्हें एकदूसरे पर थोपा नहीं गया था. उन के प्यार में समर्पण था, ढोए जाने वाला सामाजिक बंधन नहीं. उन की शादी उन के प्यार की परिणति थी, महज निभाए जाने वाली रस्म नहीं. मेरी और शरद की शादी तो वह जैकपौट थी जिस में लौटरी शरद की लगी थी. मेरी स्थिति तो जुए में अपना सबकुछ हारे हुए जुआरी जैसी थी.

जब भी मैं जोसफीन और ब्राइन को साथसाथ देखती तो मेरे दिल का दर्द पूरी शिद्दत पर पहुंच जाता. मैं सोचती, काश, मेरी भी शादीशुदा जिंदगी उन की शादीशुदा जिंदगी की तरह एक परीकथा होती. मैं उन के सामने बैठ कर स्वयं को बहुत आधाअधूरा महसूस करती. जब यह बरदाश्त से बाहर हो गया तो हीनभावना से बचने के लिए मैं ने उन से किनारा करना शुरू कर दिया. उन के सामने सुखी विवाहित जीवन का झूठा आवरण ओढ़ेओढ़े मैं अब थकने लगी थी.

इस झूठे नाटक में मेरे चेहरे के भावों ने मेरा साथ देना बंद कर दिया था. मेरे दिल के दर्द की लहरें मेरे सब्र के बांध को तोड़ कर पूरे बहाव के साथ उमड़ने लगी थीं. इस सैलाब को दिल में जज्ब करना नामुमकिन होता जा रहा था. इसलिए जब शरद को दुबई में एक बेहतर जौब मिला तो मेरे दिल को एक अजब सा सुकून मिला. मेरी खुशी शरद को बेहतर जौब मिलने की वजह से कम और सिडनी को हमेशा के लिए छोड़ कर जाने की वजह से ज्यादा थी.

‘चलो, न तो यह ‘मेड फौर इच अदर’ जोड़े से सामना होगा, न ही मेरे दिल के जख्मों में टीस उठेगी.’ यह सोच कर चैन की सांस ली थी उस वक्त मैं ने, और जोसफीन को बिना बताए ही सिडनी से दुबई चली आई थी.

दुबई आ कर मैं अगले जन्म में मनचाहे हमसफर की कामना करती हुई अपनी जिंदगी की रेलगाड़ी को आगे खींचने लगी. मन लगाने के लिए मैं ने एक कंपनी में रिसैप्शनिस्ट की नौकरी कर ली थी. सोचा, न मेरे पास खाली वक्त होगा न जिंदगी की कमियों को ले कर मन को भटकने का मौका मिलेगा. अपनी व्यस्तताओं में मैं जोसफीन-ब्राइन और उन की परीकथा को भूल सी चुकी थी.

मगर आज शाम वर्ल्ड ट्रेड सैंटर में जोसफीन फिर से सामने आ गई थी. इस बार वह मुझे अपनी सहेली न लग कर, कोई पहेली सी लगी थी. जोसफीन से अचानक रूबरू होने के बाद घर वापस आने पर भी मन जोसफीन, ब्राइन, जैकब त्रिकोण में उलझा रहा. क्या ब्राइन मर चुका है? अगर नहीं तो फिर जोसफीन नए डीफैक्टो पार्टनर के साथ क्यों है? ये एकदूसरे के प्यार में सिर से पांव तक डूबे रहने वाला जोड़ा ऐसे कैसे अलग हो सकता है? कितनी कशिश थी दोनों में, क्या हुआ उस कशिश का? सोचतेसोचते मेरा सिर चकराने लगा. इस ट्रायंगल के तीनों कोणों का आकलन करतेकरते आखिर मैं निढाल हो कर सो गई.

सुबह उठी तो सिर कुछ भारी सा लग रहा था. कुछ देर यों ही बिस्तर में लेटी रही, समझ में नहीं आ रहा था कि औफिस जाऊं या नहीं. अंत में हमेशा की तरह मेरे आलस की जीत हुई. मैं ने औफिस न जाने का निश्चय कर लिया और मुंह पर चादर ढक कर थोड़ी देर ऊंघने के लिए लेट गई.

आधे घंटे में जब टैक्सट मैसेज की आवाज से आंख खुली तो मैं ने अनमने भाव से मोबाइल उठाने के लिए हाथ बढ़ाया. बेमन से मैं ने अपनी अधखुली आंखें मोबाइल पर गड़ाईं तो देखा कि जोसफीन का मैसेज आया था. वह लंच के समय मुझ से कहीं पर मिलना चाहती थी.

मैसेज देखते ही मेरी आंखें पूरी तरह से खुल गईं और मैं ने बिना एक पल गंवाए, आए हुए मैसेज के नंबर को दबा दिया. मैं जोसफीन के बारे में सबकुछ जानने को बेताब थी. मैं ने उसे बताया कि आज मैं पूरे दिन घर में ही हूं, इसलिए वह किसी भी समय मुझ से मिलने आ सकती है. पूरे उत्साह के साथ मैं नहाधो कर घर को ठीक करने में लग गई और जोसफीन निश्चित समय पर आ पहुंची.

‘‘तुम्हारे वो, मेरा मतलब है जैकब महाशय कहां रह गए?’’ मैं ने इधरउधर नजर घुमाते हुए पूछा.

‘‘जैकब को तो एक कौन्फ्रैंस में जाना था. वैसे भी हम उस के होते हुए तो खुल कर बातचीत भी नहीं कर पाते. मैं अकेले ही तुम से मिलने आना चाहती थी,’’ जोसफीन ने अपनी चिरपरिचित मुसकराहट के साथ जवाब दिया.

मैं भी कौन सा जैकब से मिलने को इच्छुक थी. मेरे मन में तो ब्राइन की खैरियत को ले कर उथलपुथल मची हुई थी कि अगर वह जोसफीन के साथ नहीं तो फिर कहां और कैसा है? एक लंबा अरसा बीत चुका था हमें मिले हुए. बहुतकुछ कहने और सुनने को था, मगर मैं अपनी तरफ से बात को कुरेदना नहीं चाहती थी. मैं ने इंतजार करना ही ठीक समझा. काफी देर इधरउधर की बातें करने के बाद आखिर ब्राउन का जिक्र आ ही गया.

‘‘मेरे और ब्राइन के तलाक को 4 साल हो चुके हैं,’’ जोसफीन ने बिना किसी संवेदना के परदाफाश किया.

‘‘4 साल मतलब, जैसे ही मैं ने सिडनी छोड़ा उस के कुछ ही समय बाद तुम दोनों अलग हो गए. मगर ऐसा कैसे हो गया? तुम्हें तो हमेशा ही इस बात का गुमान था कि ब्राइन अमेरिका में अपने सारे रिश्तेनाते छोड़ कर मीलों दूर आस्ट्रेलिया में तुम्हारे और सिर्फ तुम्हारे लिए आ कर बस गया था,’’ मैं ने एक सांस में कई सवाल दाग दिए.

‘‘तो क्या हुआ, मैं ने भी तो उस की विकलांगता को वर्षों तक झेला और अपनी जिंदगी का गोल्डन टाइम उस पर बरबाद कर दिया,’’ जोसफीन ने कहा.

‘‘बरबाद कर दिया, क्या मतलब, वह हादसा तो शादी के बाद में हुआ था और उस के बाद भी तो तुम ने उस के साथ कई साल खुशहाली के साथ बिताए… और फिर तुम ही तो कहती थीं कि हादसे तो हादसे होते हैं, उन पर किसी का वश कहां. ये कहीं भी और किसी के भी साथ हो सकते हैं और फिर यह सही बात है कि हादसे तो हादसे होते हैं,’’ मैं ने एकएक शब्द पर जोर दे कर कहा.

‘‘हां, तो, जब मैं ने ये सब कहा था तब कम से कम ब्राइन के पास एक लाइफस्टाइल, एक स्टेटस तो था,’’ वह लापरवाही के साथ बोली.

‘‘एक स्टेटस था? क्या मतलब है तुम्हारा इस ‘था’ से?’’ मेरे स्वर में अब घबराहट घुल चुकी थी.

जोसफीन ने सबकुछ शुरू से आखिर तक कुछ ऐसे बताया :

‘‘अब से करीब 8 साल पहले ब्राइन ने अपनी कंपनी को आगे बढ़ाने के लिए धातुओं के अन्वेषण, खानों की खोज आदि के लिए बैंकों और वित्तीय संस्थाओं से भारी कर्ज ले लिया था. ऐसा करने के कुछ समय के बाद दुनियाभर में खनिज तेल और लौह अयस्क की कीमतें गिरने लगीं और वित्तीय संस्थाओं ने कर्ज की वापसी के लिए दबाव डालना शुरू कर दिया. दूसरी तरफ पहले से चल रहे अन्वेषण को आगे जारी रखने के लिए भी फंड की जरूरत पड़ने लगी. जिस के लिए भी वित्तीय संस्थाओं ने हाथ खड़े कर दिए. ब्राइन की कंपनी ने नई इक्विटी निकाल कर शेयर बाजार से फंड बनाने की कोशिश भी की लेकिन वह प्रयास भी असफल रहा.

‘‘अब वित्तीय संस्थान पुराने मूलधन और ब्याज की वापसी के लिए जोर डालने लगे थे. दूसरी तरफ पहले से चल रहीं अन्वेषण और खनन परियोजनाएं धन के अभाव में बंद होने लगीं.

‘‘ब्राइन ने अन्य कंपनियों और अपने व्यवसायी मित्रों से भी मदद लेने की कोशिश की, मगर हर जगह नाकामी ही हासिल हुई. हार कर उस ने अपने एकमात्र मुनाफे में चल रहे कंस्ट्रक्शन व्यवसाय को बेचने का फैसला किया परंतु इस में भी ट्रेड यूनियन और फौरेन इनवैस्टमैंट एप्रूवल बोर्ड ने चाइनीज खरीदार को बेचने के लिए स्वीकृति देने पर अड़ंगा लगा दिया.

‘‘आखिरकार सब तरफ से मायूस हो कर बोर्ड औफ डायरैक्टर ने कंपनी को लिक्विडेशन में ले जाने का फैसला कर लिया. इस के साथ ही ब्राइन और मेरी जिंदगी के सुनहरे दिनों का भी लिक्विडेशन हो गया,’’ जोसफीन ने एक गहरी सांस छोड़ते हुए कहा.

‘‘ब्राइन के दिवालिया होने और तुम्हारे उस से तलाक लेने का क्या संबंध है?’’ मैं ने चिड़चिड़ा कर पूछा.

‘‘सीधा संबंध था, मैं ने सालों उस की विकलांगता को झेला. अब उस के पास बचा भी क्या था मुझे बांधे रखने के लिए. मैं कोई बेवकूफ थोड़े ही हूं जो कि किसी दिवालिया पर अपनी जिंदगी बरबाद कर दूं,’’ जोसफीन बोली.

‘‘और यह जैकब? यह क्या मार्केट में तुम्हारे लिए तैयार बैठा था जो ब्राइन के व्यापार के फेल होते ही तुम इस के साथ रहने लगीं?’’ मैं ने सवाल किया.

‘‘हां, ऐसा ही कुछ समझो. कुछ साल से हम दोस्त थे. ब्राइन के शहर से बाहर होने के दौरान हम ने कई बार कैजुअल समय बिताया था. ब्राइन जैसे व्हीलचेयरमैन के पास था ही क्या मुझे देने के लिए. जब मुझे जैकब जैसा रियल मैन मिल सकता है तो फिर मुझे किसी व्हीलचेयरमैन के साथ समय गुजारने की क्या जरूरत थी. आखिर कुदरत ने हमें जिंदगी जीने के लिए ही दी है, किसी की मजबूरियों पर बरबाद करने के लिए थोड़े ही दी है,’’ इतना कह कर जोसफीन जोर का कहकहा लगा कर हंस दी.

जिंदगी में पहली बार मुझे उस की हंसी को देख कर घृणा महसूस हुई. मैं हतप्रभ सी उसे देखती रह गई. मैं ने अपने काले, घुंघराले बालों को मुट्ठी में भर कर हलके से खींच कर देखा कि मैं होश में तो हूं. हां, होश था मुझ को क्योंकि बालों के खिंचने पर मैं ने दर्द महसूस किया. फिर भी जब पक्का भरोसा न हुआ तो इस बार मैं ने बाएं हाथ की हथेली में दाएं हाथ के अंगूठे का नाखून गड़ा कर देखा, दर्द का आभास मुझे अब भी हुआ.

यह साबित हो चुका था कि मैं पूरी तरह होश में थी. इस का सीधासीधा मतलब था कि जो मुझे सुनाई दे रहा था वह सच था, मेरे मन का वहम नहीं. मगर यह तो रंगबिरंगी दुनिया है. यहां कुछ भी संभव है. यहां रोज किसी न किसी के साथ अनहोनी होती है, अप्रत्याशित घटता है.

स्टील, लोहे और तेल की बढ़ती कीमतों को देखते हुए ब्राइन बहुत ही महत्त्वाकांक्षी हो उठा था. उस के मन में एक लालसा जाग उठी थी जल्दी से जल्दी फौरचून फाइव हंड्रैड की लिस्ट में अपनी कंपनी का नाम देखने की. इस लालसा से वशीभूत हो कर और स्टील, लोहे व खनिज तेल की कीमतों को बढ़ते देख कर उस ने कई देशों में नई खानों और तेल की खोज के अधिकार प्राप्त कर लिए थे. मगर औयल, गैस और खनिज की गिरती कीमतों ने उस के व्यापार को पूरी तरह से डुबो कर रख दिया.

वह शरीफ आदमी यह नहीं जानता था कि फौरचून फाइव हंड्रैड की लिस्ट की जगह, समय उसे हर तरह से बरबाद करने के लिए उस के कदम के इंतजार में था. जिस जोसफीन को उस ने खुद से ज्यादा प्यार किया था, उस ने बुरे वक्त में उस का संबल बनने की जगह उसे हर तरह से तोड़ कर रख दिया.

आसमानी परी की मुसकान के पीछे कितना शातिर दिमाग काम कर रहा था, मैं कभी समझ ही नहीं पाई. मैं ने जाना कि गिरगिट ही नहीं, इंसान भी रंग बदलते हैं. मैं ने जाना कि शादी परिवार द्वारा तय की गई हो या स्वयं की इच्छा से की गई हो, उसे सफलअसफल लोग स्वयं बनाते हैं. मैं मैदान के एक किनारे पर खड़ी हो कर सोचती रही कि दूसरे किनारे की तरफ सिर्फ हरियाली ही हरियाली है.

मृगतृष्णा में फंसी मैं कभी देख ही न सकी कि असली हरियाली मेरे पैरों तले थी, जरूरत थी तो सिर्फ सही दृष्टिकोण की. हां, जिंदगी जीने के लिए ही होती है पर किसी दूसरे के जज्बातों को रौंद कर अपने ख्वाब सजाने के लिए भी नहीं. प्यार और त्याग एकदूसरे के पर्याय हैं. त्याग किए बिना प्यार हासिल नहीं किया जा सकता. प्यार, प्यार है, भौतिक जरूरतों का गुणाभाग नहीं. भौतिकता के लाभहानि के गणित से अर्जित किया गया प्यार, त्याग का नहीं बल्कि वासना का पर्याय होता है.

मुझे जिंदगी का घिनौना चेहरा देखने को मिला. मुझे समझ में आया कि कभीकभी आंखों को जो दिखता है और कानों को सुनाई देता है, वह भी गलत हो सकता है. पता लगा कि हर शख्स आवरण ही ओढ़े हुए जी रहा है अपनेअपने झूठ का. खैर, मुझे यह आवरण और नहीं ओढ़ना है. जिंदगी को जिंदगी के जैसे ही जीना है, मृगतृष्णा की तरह नहीं. जिंदगी को जिंदगी बनाना मेरे अपने हाथ में था. मृगतृष्णा तो सिर्फ छल है, धोखा है अपनेआप से.

जोसफीन के विदा होते ही मैं ने शरद को फोन किया बताने के लिए कि मैं बीजिंग आ रही हूं उन के पास मृगतृष्णा को छोड़ कर, अपनी और उन की जिंदगी को मुकम्मल बनाने के लिए.

अब कोई नाता नहीं : अतुल-सुमित कौन बना अपना – भाग 3

कांता प्रसाद और राम प्रसाद की नम आंखों में भी हंसी चमक उठी. कांता प्रसाद ने अतुल को इशारे से अपने करीब बुलाया और अपने पास बैठाते हुए कहा, “समझे. मैं जल्दी ही वकील से यह दुकान तुम्हारे नाम करवाने के लिए बात कर लूंगा.’’

अतुल बीच में बोल पड़ा, ‘‘नहीं ताऊजी, मेरी अपनी दुकान अच्छी चल रही है. प्लीज, आप ऐसा न करें.’’

‘‘अरे अतुल, मुझे पता है, तेरी दुकान कितनी अच्छी चलती है, एक कोने में तेरी छोटी सी दुकान है और अस्पताल से बहुत दूर भी. बस, तू मेरी बात मान ले. अपने ताऊजी से बहस न कर,’’ कांता प्रसाद ने मुसकराते हुए अतुल को डांट दिया.

‘‘भाईसाहब, आप ऐसा न करें, दुकान भले ही चलाने के लिए हमें किराए पर दे दें पर इसे अतुल के नाम पर न करें, सुमित…’’

राम प्रसाद भविष्य का विचार करते हुए सुझाव देने लगे तो कांता प्रसाद किंचित आवेश में बीच में बोल पड़े, ‘‘अरे रामू, यह मेरी प्रौपर्टी है, मैं चाहे जिसे दे दूं. सुमित से अब हम कोई नाता नहीं रखना नहीं चाहते हैं. अब वह हमारा नहीं रहा. सुमित ने तो अपनी अलग दुनिया बसा ली है. उसे हम दोनों की कोई जरूरत नहीं है. अब तो अतुल ही हमारा बेटा है.’’

कांता प्रसाद की आंखें फिर छलक गईं. राम प्रसाद ने इस समय बात को और आगे बढ़ाना उचित न समझा.

कुछ ही देर में निशा और दिशा किचन से नाश्ता ले कर बाहर आ गईं. रमा ने निशा और दिशा को अपने पास बैठाया. दोनों रमा के दाएंबाएं बैठ गईं. रमा ने दोनों के सिर पर हाथ रखते हुए कहा, ‘‘ये जुड़वां बहनें जब छोटी थीं तब दोनों छिपकली की तरह मुझ से चिपकी रहती थीं. रात को सरला बेचारी सो नहीं पाती थी. तब मैं एक को अपने पास सुलाती थी. इन का पालनपोषण करना सरला के लिए तार पर कसरत करने के समान था.

‘‘देखो, अब ये कितनी बड़ी हो गई हैं.’’ यह कहते हुए रमा निशा और दिशा का माथा चूमने लगी, फिर कांता प्रसाद की ओर मुखातिब होते हुए बोली, ‘‘आप ने बहुत बातें कर लीं जी, अब मेरी बात भी सुन लो. मैं ने निशा और दिशा का कन्यादान करने का निर्णय लिया है. इन दोनों के विवाह का संपूर्ण खर्च मैं करूंगी. अतुल इन्हें जितना पढ़ना है, पढ़ने देना और अगर तुम प्राइवेटली आगे पढ़ना चाहो तो पढ़ सकते हो. अब तुम्हें और तुम्हारे मम्मीपापा को निशादिशा की चिंता करने की जरूरत नहीं है.’’

‘‘रमा, तुम ने तो मेरे मुंह की बात छीन ली है. मैं भी यही कहने वाला था. हम तो बेटी के लिए तरस रहे थे. ये अपनी ही तो बेटियां हैं.’’

कांता प्रसाद ने उत्साहित होते हुए कहा तो उन का चेहरा खुशी से चमक उठा मगर उन की बातें सुन कर राम प्रसाद और मूकदर्शक बन कर बैठी सरला की आंखों से आंसुओं की धारा धीरेधीरे बहने लग गई.

माहौल फिर गंभीर बन रहा था, इस बार निशा ने माहौल को हलकाफुलका करते हुए कहा, ‘‘आप सब तो बस बातें करने में ही मशगूल हो गए हैं. चाय की ओर किसी का ध्यान ही नहीं है. देखो, यह ठंडी हो गई है. मैं फिर से गरम कर के लाती हूं.’’ यह कहते हुए निशा उठी तो उस के साथसाथ दिशा भी खड़ी हो गई. दिशा ने सभी के सामने रखी नाश्ते की खाली प्लेटें उठाईं तो निशा ने ठंडी चाय से भरे कप उठाए. फिर दोनों किचन की ओर मुड़ गईं जिन्हें कांता प्रसाद और रमा अपनी नजरों से ओझल हो जाने तक डबडबाई आंखों से देखते रहे.

फलक से टूटा इक तारा: सान्या का यह एहसास- भाग 3

सान्या सोचने लगी, ‘कल तक जो देव मेरी हर बात का दीवाना हुआ करता था उसे आज अचानक से क्या हो गया है?’ यदि सान्या उस से बात करना भी चाहती तो वह मुंह फेर कर चल देता. अब सान्या मन ही मन बहुत परेशान रहने लगी थी. बारबार सोचती, कुछ तो है जो देव मुझ से छिपा रहा है. अब वह देव पर नजर रखने लगी थी और उसे मालूम हुआ कि देव का उस से पहले भी एक लड़की से प्रेमप्रसंग था और अब वह फिर से उस से मिलने लगा है.

सान्या सोचने लगी, ‘तो क्या देव, मुझे शादी के झूठे सपने दिखा रहा है.’ यदि अब वह देव से शादी के बारे में बात करती तो देव उसे किसी न किसी बहाने से टाल ही देता. और आज तो हद ही हो गई, जब सान्या ने देव से कहा, ‘‘हमारी शादी का दिन तय करो.’’ देव उस की यह बात सुन  मानो तिलमिला गया हो. वह कहने लगा, ‘‘तुम्हारा दिमाग तो ठिकाने है, आज हम शादी कर लें और कल बच्चे? इतना बड़ा पेट ले कर घूमोगी तो कौन से धारावाहिक वाले तुम्हें काम देंगे. तुम्हारे साथसाथ मेरा भी कैरियर चौपट जब सब को पता लगेगा कि मैं ने तुम से शादी कर ली है.’’

सान्या कानों से सब सुन रही थी लेकिन जो देव कह रहा था उस पर उसे विश्वास नहीं हो रहा था. उस की आंखों के सामने अंधेरा छा गया था. वह तो सोच भी नहीं सकती थी कि देव उस के साथ ऐसा व्यवहार करेगा. वह तो शादी के सपने संजोने लगी थी. उसे नहीं मालूम था कि देव उस के सपने इतनी आसानी से कुचल देगा. तो क्या देव सिर्फ उस का इस्तेमाल कर रहा था या उस के साथ टाइमपास कर रहा था. उस का प्यार क्या एक छलावा था. वह सोचने लगी कि ऐसी क्या कमी आ गई अचानक से मुझ में कि देव मुझ से कटने लगा है.

कई धारावाहिकों में अपनी मनमोहक छवि और मुसकान के लिए सब का चहेता देव, क्या यही है उस की असलियत? जिस देव की न जाने कितनी लड़कियां दीवानी हैं क्या उस देव की असलियत इतनी घिनौनी है? वह मन ही मन अपने फैसले को कोस रही थी और अंदर ही अंदर टूटती जा रही थी, लेकिन उस ने सोच लिया था कि देव उस से इस तरह पीछा नहीं छुड़ा सकता. अगले दिन जब देव शूटिंग खत्म कर के घर जा रहा था, सान्या भी उस के साथ कार में आ कर बैठ गई और उस ने पूछा, ‘‘देव, क्या तुम किसी और से प्यार करते हो? मुझे सचसच बताओ क्या तुम मुझ से शादी नहीं करोगे?’’

आज देव के मुंह से कड़वा सच निकल ही गया, ‘‘क्यों तुम हाथ धो कर मेरे पीछे पड़ गई हो, सान्या? मेरा पीछा छोड़ो,’’ यह कह देव अपनी कार साइड में लगा कर वहां से पैदल चल दिया. लेकिन सान्या क्या करती? वह भी दौड़ कर उस के पीछे गई और कहने लगी, ‘‘मैं ने तुम से प्यार किया है, देव, क्या तुम ने मुझे सिर्फ टाइमपास समझा? नहीं देव, नहीं, तुम मुझे इस तरह नहीं छोड़ सकते. बहुत सपने संजोए हैं मैं ने तुम्हारे साथ. क्या तुम मुझे ठुकरा दोगे?’’

देव को सान्या की बातें बरदाश्त से बाहर लग रही थीं और उसी गुस्से में उस ने सान्या के गाल पर तमाचा जड़ते हुए कहा, ‘‘तुम मेरा पीछा क्यों नहीं छोड़ती?’’ सान्या वहां से उलटे कदम घर चली आई.

अब तो सान्या की रातों की नींद और दिन का चैन छिन गया था. न तो उस का शूटिंग में मन लगता था और न ही कहीं और. इतनी जानीमानी मौडल, इतने सारे नामी धारावाहिकों की हीरोइन की ऐसी दुर्दशा. यह हालत. वह तो इस सदमे से उबर ही नहीं पा रही थी. पिछले 4 दिनों से न तो वह शूटिंग पर गई और न ही किसी से फोन पर बात की. कई फोन आए पर उस ने किसी का भी जवाब नहीं दिया.

आज उस ने देव को फोन किया और कहा, ‘‘देव, क्या तुम मुझे मेरे अंतिम समय में भी नहीं मिलोगे? मैं इस दुनिया को छोड़ कर जा रही हूं, देव,’’ इतना कह फोन पर सान्या की अवाज रुंध गई. देव को तो कुछ समझ ही न आया कि वह क्या करे? वह झट से कार ले कर सान्या के घर पहुंचा. लिफ्ट न ले कर सीधे सीढि़यों से ही सान्या के फ्लैट पर पहुंचा.

दरवाजा अंदर से लौक नहीं था. वह सीधे अंदर गया, सान्या पंखे से झूल रही थी. उस ने झट से पड़ोसियों को बुलाया और सब मिल कर सान्या को अस्पताल ले कर गए. लेकिन वहां सान्या को मृत घोषित कर दिया गया.

सान्या इस दुनिया से चली गई, उस दुनिया में जिस में उस ने सुनहरे ख्वाब देखे थे, वह दुनिया जिस में वह देव के साथ गृहस्थी बसाना चाहती थी, वह दुनिया जिस की चमकदमक में वह भूल गई कि फरेब भी एक शब्द होता है और देव से जीजान से मुहब्बत कर बैठी या फिर वह इस दुनिया के कड़वे एहसास से अनभिज्ञ थी. उसे लगता था कि ये बड़ीबड़ी हस्तियां, बडे़ स्टेज शो, पार्टियों में चमकीले कपड़े पहने लोग और बड़ी ही पौलिश्ड फर्राटेदार अंगरेजी बोलने वाले लोग सच में बहुत अच्छे होते हैं, लेकिन उसे यह नहीं मालूम था कि उस दुनिया और हम जैसे साधारण लोगों की दुनिया में कोई खास फर्क नहीं. हमारी दुनिया की जमीन पर खड़े हो जब हम आसमान में चमकते सितारे देखते हैं तो वे कितने सुंदर, टिमटिमाते हुए नजर आते हैं. किंतु उन्हीं सितारों को आसमान में जा कर तारों के धरातल पर खड़े हो कर जब हम देखें तो उन सितारों की चमक शून्य हो जाती है और वहां से हमारी धरती उतनी ही चमकती हुई दिखाई देती है जितनी कि धरती से आसमान के तारे. फिर क्यों हम उस ऊपरी चमक से प्रभावित होते हैं?

ये चमकदार कपड़े, सूटबूट सब ऊपरी दिखावा ही तो है दूसरों को रिझाने के लिए. तभी तो सान्या इन सब के मोहपाश में पड़ गई और देव से सच्चा प्यार कर बैठी. वह यह नहीं समझ पाई कि इंसान तो इंसान है, मुंबई के फिल्मी सितारों की दुनिया हो या छोटे से कसबे के साधारण लोगों की दुनिया, इंसानी फितरत तो एक सी ही होती है चाहे वह कितनी भी ऊंचाइयां क्यों न हासिल कर ले. लेकिन कहते हैं न, दूर के ढोल सुहावने. खैर, अब किया भी क्या जा सकता था.

लेकिन हां, हर पल मुसकराने वाली सान्या जातेजाते सब को दुखी कर गई और छोड़ गई कुछ अनबूझे सवाल. झूठे प्यार के लिए अपनी जान देने वाली सान्या अपनी जिंदगी को कोई दूसरा खूबसूरत मोड़ भी तो दे सकती थी. इतनी गुणी थी वह, अपने जीवन में बहुतकुछ कर सकती थी. सिर्फ जीवन के प्रति सकारात्मक सोच को जीवित रख लेती और देव को भूल जीवन में कुछ नया कर लेती. काश, वह समझ पाती इस दुनिया को. कितनी नायाब होती है उन सितारों की चमक जो चाहे दूर से ही, पर चमकते दिखाई तो देते हैं. सभी को तो नहीं हासिल होती वह चमक. तो फिर क्यों किसी बेवफा के पीछे उसे धूमिल कर देना. काश, समझ पाती सान्या. खैर, अब तो ऐसा महसूस हो रहा था जैसे फलक से एक चमकता तारा अचानक टूट गया हो.

अधूरे प्यार की टीस: क्यों हुई पतिपत्नी में तकरार – भाग 3

जिम्मेदारियों व उत्तरदायित्वों के समक्ष अपने दिल की खुशियों व मन की इच्छाओं की सदा बलि चढ़ाने वाले राकेशजी, अंजु के लिए अपने दिल का प्रेम दर्शाने वाला ‘लव’ शब्द इस पल भी अधूरा छोड़ कर इस दुनिया से सदा के लिए विदा हो गए थे.

राकेशजी अपनी पत्नी सीमा को भरपूर प्यार व सम्मान देते थे और उस की जरूरतों का भी काफी खयाल रखते थे पर सीमा के मन में एक ऐसी शंका ने जन्म ले लिया जिस की वजह से उन की गृहस्थी बिखर गई.

राहट में डा. खन्ना को नए जोश, ताजगी और खुशी के भाव नजर आए तो उन्होंने हंसते हुए पूछा, ‘‘लगता है, अमेरिका से आप का बेटा और वाइफ आ गए हैं, मिस्टर राकेश?’’

‘‘वाइफ तो नहीं आ पाई पर बेटा रवि जरूर पहुंच गया है. अभी थोड़ी देर में यहां आता ही होगा,’’ राकेशजी की आवाज में प्रसन्नता के भाव झलक रहे थे.

‘‘आप की वाइफ को भी आना चाहिए था. बीमारी में जैसी देखभाल लाइफपार्टनर करता है वैसी कोई दूसरा नहीं कर सकता.’’

‘‘यू आर राइट, डाक्टर, पर सीमा ने हमारे पोते की देखभाल करने के लिए अमेरिका में रुकना ज्यादा जरूरी समझा होगा.’’

‘‘कितना बड़ा हो गया है आप का पोता?’’

‘‘अभी 10 महीने का है.’’

‘‘आप की वाइफ कब से अमेरिका में हैं?’’

‘‘बहू की डिलीवरी के 2 महीने पहले वह चली गई थी.’’

‘‘यानी कि वे साल भर से आप के साथ नहीं हैं. हार्ट पेशेंट अगर अपने जीवनसाथी से यों दूर और अकेला रहेगा तो उस की तबीयत कैसे सुधरेगी? मैं आप के बेटे से इस बारे में बात करूंगा. आप की पत्नी को इस वक्त आप के पास होना चाहिए,’’ अपनी राय संजीदा लहजे में जाहिर करने के बाद डा. खन्ना ने राकेशजी का चैकअप करना शुरू कर दिया.

डाक्टर के जाने से पहले ही नीरज राकेशजी के लिए खाना ले कर आ गया.

‘‘तुम हमेशा सही समय से यहां पहुंच जाते हो, यंग मैन. आज क्या बना कर भेजा है अंजुजी ने?’’ डा. खन्ना ने प्यार से रवि की कमर थपथपा कर पूछा.

‘‘घीया की सब्जी, चपाती और सलाद भेजा है मम्मी ने,’’ नीरज ने आदरपूर्ण लहजे में जवाब दिया.

‘‘गुड, इन्हें तलाभुना खाना नहीं देना है.’’

‘‘जी, डाक्टर साहब.’’

‘‘आज तुम्हारे अंकल काफी खुश दिख रहे हैं पर इन्हें ज्यादा बोलने मत देना.’’

‘‘ठीक है, डाक्टर साहब.’’

‘‘मैं चलता हूं, मिस्टर राकेश. आप की तबीयत में अच्छा सुधार हो रहा है.’’

‘‘थैंक यू, डा. खन्ना. गुड डे.’’

डाक्टर के जाने के बाद हाथ में पकड़ा टिफिनबौक्स साइड टेबल पर रखने के बाद नीरज ने राकेशजी के पैर छू कर उन का आशीर्वाद पाया. फिर वह उन की तबीयत के बारे में सवाल पूछने लगा. नीरज के हावभाव से साफ जाहिर हो रहा था कि वह राकेशजी को बहुत मानसम्मान देता था.

करीब 10 मिनट बाद राकेशजी का बेटा रवि भी वहां आ पहुंचा. नीरज को अपने पापा के पास बैठा देख कर उस की आंखों में खिं चाव के भाव पैदा हो गए.

‘‘हाय, डैड,’’ नीरज की उपेक्षा करते हुए रवि ने अपने पिता के पैर छुए और फिर उन के पास बैठ गया.

‘‘कैसे हालचाल हैं, रवि?’’ राकेशजी ने बेटे के सिर पर प्यार से हाथ रख कर उसे आशीर्वाद दिया.

‘‘फाइन, डैड. आप की तबीयत के बारे में डाक्टर क्या कहते हैं?’’

‘‘बाईपास सर्जरी की सलाह दे रहे हैं.’’

‘‘उन की सलाह तो आप को माननी होगी, डैड. अपोलो अस्पताल में बाईपास करवा लेते हैं.’’

‘‘पर, मुझे आपरेशन के नाम से डर लगता है.’’

‘‘इस में डरने वाली क्या बात है, पापा? जो काम होना जरूरी है, उस का सामना करने में डर कैसा?’’

‘‘तुम कितने दिन रुकने का कार्यक्रम बना कर आए हो?’’ राकेशजी ने विषय परिवर्तन करते हुए पूछा.

‘‘वन वीक, डैड. इतनी छुट्टियां भी बड़ी मुश्किल से मिली हैं.’’

‘‘अगर मैं ने आपरेशन कराया तब तुम तो उस वक्त यहां नहीं रह पाओगे.’’

‘‘डैड, अंजु आंटी और नीरज के होते हुए आप को अपनी देखभाल के बारे में चिंता करने की क्या जरूरत है? मम्मी और मेरी कमी को ये दोनों पूरा कर देंगे, डैड,’’ रवि के स्वर में मौजूद कटाक्ष के भाव राकेशजी ने साफ पकड़ लिए थे.

‘‘पिछले 5 दिन से इन दोनों ने ही मेरी सेवा में रातदिन एक किया हुआ है, रवि. इन का यह एहसान मैं कभी नहीं उतार सकूंगा,’’ बेटे की आवाज के तीखेपन को नजरअंदाज कर राकेशजी एकदम से भावुक हो उठे.

‘‘आप के एहसान भी तो ये दोनों कभी नहीं उतार पाएंगे, डैड. आप ने कब इन की सहायता के लिए पैसा खर्च करने से हाथ खींचा है. क्या मैं गलत कह रहा हूं, नीरज?’’

‘‘नहीं, रवि भैया. आज मैं इंजीनियर बना हूं तो इन के आशीर्वाद और इन से मिली आर्थिक सहायता से. मां के पास कहां पैसे थे मुझे पढ़ाने के लिए? सचमुच अंकल के एहसानों का कर्ज हम मांबेटे कभी नहीं उतार पाएंगे,’’ नीरज ने यह जवाब राकेशजी की आंखों में श्रद्धा से झांकते हुए दिया और यह तथ्य रवि की नजरों से छिपा नहीं रहा था.

‘‘पापा, अब तो आप शांत मन से आपरेशन के लिए ‘हां’ कह दीजिए. मैं डाक्टर से मिल कर आता हूं,’’ व्यंग्य भरी मुसकान अपने होंठों पर सजाए रवि कमरे से बाहर चला गया था.

‘‘अब तुम भी जाओ, नीरज, नहीं तो तुम्हें आफिस पहुंचने में देर हो जाएगी.’’

राकेशजी की इजाजत पा कर नीरज भी जाने को उठ खड़ा हुआ था.

‘‘आप मन में किसी तरह की टेंशन न लाना, अंकल. मैं ने रवि भैया की बातों का कभी बुरा नहीं माना है,’’ राकेशजी का हाथ भावुक अंदाज में दबा कर नीरज भी बाहर चला गया.

नीरज के चले जाने के बाद राकेशजी ने थके से अंदाज में आंखें मूंद लीं. कुछ ही देर बाद अतीत की यादें उन के स्मृति पटल पर उभरने लगी थीं, लेकिन आज इतना फर्क जरूर था कि ये यादें उन को परेशान, उदास या दुखी नहीं कर रही थीं.

अपनी पत्नी सीमा के साथ राकेशजी की कभी ढंग से नहीं निभी थी. पहले महीने से ही उन दोनों के बीच झगड़े होने लगे थे. झगड़ने का नया कारण तलाशने में सीमा को कोई परेशानी नहीं होती थी.

शादी के 2 महीने बाद ही वह ससुराल से अलग होना चाहती थी. पहले साल उन के बीच झगड़े का मुख्य कारण यही रहा. रातदिन के क्लेश से तंग आ कर राकेश ने किराए का मकान ले लिया था.

अलग होने के बाद भी सीमा ने लड़ाईझगड़े बंद नहीं किए थे. फिर उस ने मकान व दुकान के हिस्से कराने की रट लगा ली थी. राकेश अपने दोनों छोटे भाइयों के सामने सीमा की यह मांग रखने का साहस कभी अपने अंदर पैदा नहीं कर सके. इस कारण पतिपत्नी के बीच आएदिन खूब क्लेश होता था.

3 बार तो सीमा ने पुलिस भी बुला ली थी. जब उस का दिल करता वह लड़झगड़ कर मायके चली जाती थी. गुस्से से पागल हो कर वह मारपीट भी करने लगती थी. उन के बीच होने वाले लड़ाईझगड़े का मजा पूरी कालोनी लेती थी. राकेश को शर्म के मारे सिर झुका कर कालोनी में चलना पड़ता था.

फिर एक ऐसी घटना घटी जिस ने सीमा को रातदिन कलह करने का मजबूत बहाना उपलब्ध करा दिया.

उन की शादी के करीब 5 साल बाद राकेश का सब से पक्का दोस्त संजय सड़क दुर्घटना का शिकार बन इस दुनिया से असमय चला गया था. अपनी पत्नी अंजु, 3 साल के बेटे नीरज की देखभाल की जिम्मेदारी दम तोड़ने से पहले संजय ने राकेश के कंधों पर डाल दी थी.

राकेशजी ने अपने दोस्त के साथ किए वादे को उम्र भर निभाने का संकल्प मन ही मन कर लिया था. लेकिन सीमा को यह बिलकुल अच्छा नहीं लगता था कि वे अपने दोस्त की विधवा व उस के बेटे की देखभाल के लिए समय या पैसा खर्च करें. जब राकेश ने इस मामले में उस की नहीं सुनी तो सीमा ने अंजु व अपने पति के रिश्ते को बदनाम करना शुरू कर दिया था.

इस कारण राकेश के दिल में अपनी पत्नी के लिए बहुत ज्यादा नफरत बैठ गई थी. उन्होंने इस गलती के लिए सीमा को कभी माफ नहीं किया.

सीमा अपने बेटे व बेटी की नजरों में भी उन के पिता की छवि खराब करवाने में सफल रही थी. राकेश ने इन के लिए सबकुछ किया पर अपने परिवारजनों की नजरों में उन्हें कभी अपने लिए मानसम्मान व प्यार नहीं दिखा था.

वो भूली दास्तां लो फिर याद आ गई: भाग 3

‘नहीं, मैं अमित को हर्ट कर के रवीश से बदला लेना चाहती थी, क्योंकि उस की वजह से ही रवीश ने मुझे इनकार किया था.’

‘क्या तुम सचमुच रवीश से प्यार करती हो?’

मेरे इस सवाल से वह चिढ़ गई और गुस्से में खड़ी हो गई.

‘यह कैसा सवाल है? हां, मैं उस से प्यार करती हूं, तभी तो उस के यह कहने पर कि मैं उस के प्यार के तो क्या दोस्ती के भी लायक नहीं. यह सुन कर मुझे बहुत हर्ट हुआ और मैं घर क्या अपना शहर छोड़ कर जा रही हूं.’

‘पर जिस समय तुम ने रवीश से अपना बदला लेने की सोची, प्यार तो तुम्हारा उसी वक्त खत्म हो गया था, प्यार में सिर्फ प्यार किया जाता है, बदले नहीं लिए जाते और वह दोनों तो तुम्हारे सब से अच्छे दोस्त थे?’

मेरी बात सुन कर वह सोचती हुई फिर से कुरसी पर बैठ गई. कुछ देर तक तो हम दोनों में से कोई कुछ नहीं बोला. कुछ देर बाद उस ने ही चुप्पी तोड़ी और बोली, ‘मुझ में क्या कमी थी, जो उसे मुझ से प्यार नहीं हुआ?’ और यह कहतेकहते वह मेरे कंधे पर सिर रख कर रोने लगी.

‘हर बार इनकार करने की वजह किसी कमी का होना नहीं होता. हमारे लाख चाहने पर भी हम खुद को किसी से प्यार करने के लिए मना नहीं सकते. अगर ऐसा होता तो रवीश जरूर ऐसा करता,’ मैं ने भी उस के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा.

‘सब मुझे बुरा समझते हैं,’ उस ने बच्चे की तरह रोते हुए कहा.

‘नहीं, तुम बुरी नहीं हो. बस टाइम थोड़ा खराब है. तुम अपनी शिकायत वापस क्यों नहीं ले लेतीं?’

‘इस से मेरी औफिस में बहुत बदनामी होगी. कोई भी मुझ से बात तक नहीं करेगा?’

‘हो सकता है कि ऐसा करने से तुम अपनी दोस्ती को बचा लो और क्या पता, रवीश तुम से सचमुच प्यार करता हो और वह तुम्हें माफ कर के अपने प्यार का इजहार कर दे,’ मैं ने उस का मूड ठीक करने के लिए हंसते हुए कहा.

यह सुन कर वह हंस पड़ी. बातों ही बातों में वक्त कब गुजर गया, पता ही नहीं चला. मेरी फ्लाइट जाने में अभी 2 घंटे बाकी थे और उस की में एक घंटा.

मैं ने उस से कहा, ‘बहुत भूख लगी है. मैं कुछ खाने को लाता हूं,’ कह कर मैं वहां से चला गया.

थोड़ी देर बाद मैं जब वापस आया, तो वह वहां नहीं थी. लेकिन मेरी सीट पर मेरे बैग के नीचे एक लैटर था, जो उस ने लिखा था:

‘डियर,

‘आज तुम ने मुझे दूसरी गलती करने से बचा लिया, नहीं तो मैं सबकुछ छोड़ कर चली जाती और फिर कभी कुछ ठीक नहीं हो पाता. अब मुझे पता है कि मुझे क्या करना है. तुम अजनबी नहीं होते, तो शायद मैं कभी तुम्हारी बात नहीं सुनती और मुझे अपनी गलती का कभी एहसास नहीं होता. अजनबी ही रहो, इसलिए अपनी पहचान बताए बिना जा रही हूं. शुक्रिया, सहीगलत का फर्क समझाने के लिए. जिंदगी ने चाहा, तो फिर कभी तुम से मुलाकात होगी.’

मैं खत पढ़ कर मुसकरा दिया. कितना अजीब था यह सब. हम ने घंटों बातें कीं, लेकिन एकदूसरे का नाम तक नहीं पूछा. उस ने भी मुझ अजनबी को अपने दिल का पूरा हाल बता दिया. बात करते हुए ऐसा कुछ लगा ही नहीं कि हम एकदूसरे को नहीं जानते और मैं बर्गर खाते हुए यही सोचने लगा कि वह वापस जा कर करेगी क्या?

फोन की घंटी ने मुझे मेरे अतीत से जगाया. मैं अपना बैग उठा कर एयरपोर्ट से बाहर निकल गया. लेकिन निकलने से पहले मैं ने एक बार फिर चारों तरफ इस उम्मीद से देखा कि शायद वह मुझे नजर आ जाए. मुझे लगा कि शायद जिंदगी चाहती हो मेरी उस से फिर मुलाकात हो. यह सोच कर मैं पागलपन पर खुद ही हंस दिया और अपने रास्ते निकल पड़ा.

अच्छा ही हुआ, जो उस दिन हम ने अपने फोन नंबर ऐक्सचेंज नहीं किए और एकदूसरे का नाम नहीं पूछा. एकदूसरे को जान जाते, तो वह याद आम हो जाती या वह याद ही नहीं रहती.

अकसर ऐसा होता है कि हम जब किसी को अच्छी तरह जानने लगते हैं, तो वो लोग याद आना बंद हो जाते हैं. कुछ रिश्ते अजनबी भी तो रहने चाहिए, बिना कोई नाम के.

खिलाड़ियों के खिलाड़ी : मीनाक्षी की जिंदगी में कौन था आस्तीन का सांप – भाग 3

विशाल के पैरोंतले की जमीन खिसकने लगी. उस ने गिडगिड़ाते हुए कहा, ‘मीनाक्षी, प्लीज इसे डिलीट कर दो. मैं तुम्हारा काम कर दूंगा.’

‘डोंट वरी विशाल, पहले मेरा यह काम कर दो, फिर मैं इसे तुम्हारे सामने ही डिलीट कर दूंगी,’ मीनाक्षी ने शरारती मुसकान बिखेरते हुए कहा.

विशाल का गला सूख गया, बदन पसीने से तरबतर हो गया. उस के सामने अंधकार छा गया. उसे नहीं पता था कि मीनाक्षी ने कोई वीडियो बनाया है. विशाल ने तुरंत हाथपैर मारना शुरू कर दिया. अपने डीआईजी दोस्त से बात की. फिर मुख्यमंत्री को जैसेतैसे पटाया. अरुण इन दिनों पुलिस कस्टडी में ही था. उसे तारीख के मुताबिक कोर्ट ले जाना पड़ता था. पुलिस मौके की तलाश में थी.

एक दिन पुलिस अरुण को उस की बीमार मां से मिलवाने के लिए गांव ले जा रही थी. रात को लौटते समय अरुण लघुशंका के बहाने पुलिस वैन से उतरा. उस ने उतरते समय एक पुलिस अधिकारी की पिस्तौल छीन ली और जंगल में भाग गया. वह पुलिस पर गोली चलाने लगा. जवाबी कार्रवाई में पुलिस द्वारा की गई फायरिंग में अरुण ढेर हो गया. इस बार विशाल के नसीब से मुठभेड़ असली हुई जिस में अरुण नाईक मारा गया. मगर प्रैस ने इस मामले को नकली एनकाउंटर बता कर बहुत उछाला. कुछ दिनों तक मामला मीडिया में छाया रहा, बाद में धीरेधीरे ठंडा हो गया.

मीनाक्षी को पता नहीं चल सका कि अरुण नाईक की मौत फर्जी एनकाउंटर में हुई है या वह पुलिस पर गोलियां चलाते समय जवाबी कार्रवाई में मारा गया मगर इस का सारा श्रेय विशाल ने ले लिया. मीनाक्षी ने भी यह मान लिया कि विशाल के इशारे पर ही अरुण नाईक का सफाया किया गया है.

अरुण नाईक की मौत के बाद मीनाक्षी ने उस की सारी जायदाद बेच कर दूसरे शहर में बसने का मन बना लिया. वह चाहती थी कि अब वह एक साफसुथरी जिंदगी जिए. जब अरुण नाईक के गैंग के बाकी गुंडों को इस बारे में पता चला तो वे मीनाक्षी से उस जायदाद में अपना हिस्सा मांगने लगे. उन का कहना था कि वे अरुण नाईक के लिए ही काम करते थे, हफ्तावसूली और फिरौती से प्राप्त सारी रकम अरुण के पास जमा होती थी. वे उसी के लिए तो किसी का अपहरण, हत्या, मारपीट आदि करते थे. बंटवारे को ले कर गैंग के लोगों में मारपीट हो गई और गोलियां भी चलीं. मीनाक्षी ने सभी को सम?ाने की कोशिश की. मगर सभी एकदूसरे की जान लेने पर उतारू हो रहे थे.

मीनाक्षी ने इस मामले में विशाल की मदद लेना उचित समझ. इसीलिए वह बारबार विशाल को फोन लगा रही थी.

‘‘मिस्टर विशाल, तुम्हारा ध्यान कहां है?’’ मुख्यमंत्री ने क्रोधित हो कर तेज आवाज में कहा तो विशाल अतीत से वर्तमान में लौटे, बोले, ‘‘सर कहीं नहीं, बस यों ही थोड़ा ध्यान भटक गया था फैमिली मैटर में.’’

मीटिंग खत्म होने के बाद विशाल ने मीनाक्षी को फोन लगाया, ‘‘क्या बात है मीनाक्षी, मैं मुख्यमंत्री के साथ एक मीटिंग में बिजी था.’’

‘‘विशाल, मैं इन गुंडों के बीच बुरी तरह फंस गई हूं. मुझे इन से छुटकारा दिलाओ यार, नहीं तो मैं एक दिन सब को गोली मार दूंगी,’’ गुस्से से तमतमाते हुए मीनाक्षी ने कहा.

‘‘ओह, मीनाक्षी, थोड़ा धीरज रखो. मैं ने डीआईजी से बात कर ली है. वे एक दिन सब को अंदर डाल देंगे. तब तुम आराम से रहना. अपनी सारी जायदाद भी बेच देना,’’ विशाल ने समझाते हुए कहा.

मगर मीनाक्षी राजी नहीं हुई. वह जानती थी कि विशाल का एक फ्लैट खाली पड़ा है जिस में वह इन गुंडों का खात्मा होने तक कुछ दिनों के लिए रह सकती है. मगर विशाल नहीं चाहता था कि मीनाक्षी इस फ्लैट में रहे. यह फ्लैट उस के औफिस के ठीक सामने वाली बिल्डिंग में था.

विशाल चाहता था कि मीनाक्षी और अरुण नाईक के गुंडों में जल्दी ही रजामंदी हो जाए, इस के लिए वह अपने लैवल पर बहुत कोशिश कर रहा था. उस ने इस बारे में पुलिस के आला अफसरों से भी बात कर ली थी. मीनाक्षी आएदिन उसे फोन करकर के परेशान कर रही थी.

एक दिन रात को करीब 2 बजे मीनाक्षी बिना पूर्व सूचित किए अपने 4 बैग ले कर विशाल के बंगले पर पहुंच गई. उस ने बताया कि अरुण नाईक के गुंडे उसे जान से मारने का प्लान बना रहे हैं. अब वह एक दिन भी अरुण नाईक के घर में नहीं रहेगी.

‘‘मीनाक्षी, अरे तुम इतनी रात को अचानक कैसे आ गईं. लोग देखेंगे तो क्या कहेंगे? हमारे बंगलों के आसपास मीडिया वाले दिनरात मंडराते रहते हैं. कोई प्रैस वाला देख लेगा, तो हमारी शामत आ जाएगी, नौकरी से हाथ तो धोने पड़ेंगे और बदनामी होगी, सो अलग,’’ विशाल ने परेशान होते हुए कहा.

‘‘विशाल, वे लोग मुझे जान से मार डालेंगे. उन्हें पता चल गया है कि मैं उन को पकड़वाने या मरवाने की कोशिश कर रही हूं. उन्हें यह भी मालूम हो गया है कि अब मेरी ऊपर तक पहुंच है,’’ कहते हुए मीनाक्षी दोनों हाथ जोड़ कर अपने जीवन की भीख मांगने लगी.

विशाल भी कोई कच्चा खिलाड़ी नहीं था. राज्य का चीफ सैक्रेटरी होने के कारण उस का कई तरह के लोगों से पाला पड़ता था. आज ऊंट पहाड़ के नीचे आ रहा था. विशाल इस मौके का पूरापूरा फायदा उठाना चाहता था. वह बहुत प्यार से बोला, ‘‘मीनाक्षी, बिलकुल चिंता न करो, कोई तुम्हारा बाल तक बांका नहीं कर सकता है. मैं हूं न.’’

विशाल आगे बोल ही रहा था कि मीनाक्षी सिसकते हुए विशाल से लिपट गई. विशाल ने उस की जुल्फों में उंगलियां फेरते हुए कहा, ‘‘पर मीनाक्षी, पहले मेरा एक काम कर दो न, वह वीडियो क्लिप डिलीट कर दो न जो तुम्हारे पास है. सुना है तुम ने मुख्यमंत्री के साथ वालों का भी वीडियो बनाया है, उसे भी डिलीट कर दो. अगर तुम दोनों वीडियो ईमानदारी से डिलीट कर देती हो तो मैं मुख्यमंत्री से बात कर के तुम्हारे लिए अपने फ्लैट में रहने की व्यवस्था कर सकता हूं.

अपने जैसे लोग : नीरज के मन में कैसी थी शंका – भाग 3

एक इतवार को दोपहर का शो देखने का प्रोग्राम था. मैं नहा कर जल्दी से कपड़े बदल आई थी और घर में पहनने वाली अपनी साधारण सी धोती को मैं ने बरामदे में ही रस्सी पर डाल दिया. नीरज कुछ देर पीछे वाली कोठियों की ओर बड़े ध्यान से देखता रहा, फिर मेरी धुली धोती को उस ने रस्सी से उतार फेंका और बोला, ‘‘इस बीस रुपल्ली की धोती को इन लोगों के सामने सुखाने मत डाला करो. देखो, वह 6 नंबर वाली देखदेख कर कैसे हंस रही है, यह देख कर कि तुम्हारे पास ऐसी ही सस्ती धोती है पहनने को. क्या कहेंगे ये सब लोग? इसे सुखाना ही था तो उधर बाहर बगीचे में तार पर डाल देतीं.’’

‘‘आप तो बेकार हर समय वहम करते हैं, उलटा ही सोचते हैं. किसी को क्या मतलब है इतनी दूर से यह देखने का कि हमारी घर में पहनी जाने वाली धोती कीमती है या सस्ती? कोई किसी की ओर इतना ध्यान क्यों देगा भला.’’ मैं भी जरा क्रोध में बोलती हुई धोती को उठा कर बाहर डाल आई थी. बहुत दुख हुआ था नीरज के सोचने के ढंग पर. फिल्म देखते हुए भी दिल उखड़ाउखड़ा रहा. परंतु मैं ने भी हिम्मत न हारी. तीसरे दिन शाम को 6 नंबर वाली रमा हमारे यहां आईं तो मुझे आश्चर्य हुआ. पर वे बड़े प्रेम से अभिवादन कर के बैठते हुए बोलीं, ‘‘शीलाजी, आप कलम चलाने के साथसाथ कढ़ाई में भी अत्यंत निपुण हैं, यह तो हमें अभी सप्ताहभर पहले ही सौदामिनीजी ने बताया है. सच, परसों दोपहर आप ने बरामदे में जो धोती सुखाने के लिए डाल रखी थी, उस पर कढ़े हुए बूटे इतने सुंदर लग रहे थे कि मैं तो उसी समय आने वाली थी लेकिन आप उस दिन फिल्म देखने चली गईं.’’

नीरज उस समय वहीं बैठा था. रमा अपनी बात कह रही थीं और हम एकदूसरे के चेहरों को देख रहे थे. मैं अपनी खुशी को बड़ी मुश्किल से रोक पा रही थी और नीरज अपनी झेंप को किसी तरह भी छिपाने में समर्थ नहीं हो रहा था. आखिर उठ कर चल दिया. रमा जब चली गईं तो मैं ने उस से कहा, ‘‘अब बताओ कि वे मेरी धोती के सस्तेपन पर हंस रही थीं या उस पर कढ़े हुए बेलबूटों की सराहना कर रही थीं.’’ ‘‘हां, भई, चलो तुम्हीं ठीक हो. मान गए हम तुम्हें.’’ पहली बार उस ने अपनी गलती स्वीकारी. उस के बाद एक आत्मसंतोष का भाव उस के चेहरे पर दिखाई देने लगा.

इस कालोनी में रहने का एक बड़ा लाभ मुझे यह हुआ कि मध्यम और उच्च वर्ग, दोनों ही प्रकार के लोगों के जीवन का अध्ययन करने का अवसर मिला. मैं ने अनुभव किया बड़ीबड़ी कोठियों में रहने वाले व धन की अपार राशि के मालिक होते हुए भी अमीर लोग कितनी ही समस्याओं व जटिलताओं से जकड़े हुए हैं. उधर अपने जैसे मध्यम वर्ग के लोगों की भी कुछ अपनी परेशानियां व उलझनें थीं. मेरे लिए खुशी की बात तो यह थी कि प्रत्येक महिला बड़ी ही आत्मीयता से अपना सुखदुख मेरे सम्मुख कह देती थी क्योंकि मैं समस्याओं के सुझाव मौखिक ही बता देती थी या फिर अपनी लेखनी द्वारा पत्रिकाओं में प्रस्तुत कर देती थी. परिणामस्वरूप, कई परिवारों के जीवन सुधर गए थे.

मेरे घर के द्वार हर समय हरेक के लिए खुले रहते. अकसर महिलाएं हंस कर कहतीं, ‘‘आप का समय बरबाद हो रहा होगा. हम ने तो सुना है कि लेखक लोग किसी से बोलना तक पसंद नहीं करते, एकांत चाहते हैं. इधर हम तो हर समय आप को घेरे रहती हैं…’’

‘‘यह आप का गलत विचार है. लेखक का कर्तव्य जनजीवन से भागने का नहीं होता, बल्कि प्रत्येक के जीवन में स्वयं घुस कर खुली आंखों से देखने का होता है. तभी तो मैं आप के यहां किसी भी समय चली आती हूं.’’ मैं बड़ी नम्रता से उत्तर देती तो महिलाएं हृदय से मेरे निकट होती चली गईं. धीरेधीरे उन के साथ उन के पति भी हमारे यहां आने लगे. नीरज को भी उन का व्यवहार अच्छा लगा और वह भी मेरे साथ प्रत्येक के यहां जाने लगा. मुझे लगने लगा वास्तव में सभी लोग अपने जैसे हैं…न कोई छोटा न बड़ा है. बस, दिल में स्थान होना चाहिए, फिर छोटे या बड़े निवासस्थान का कोई महत्त्व नहीं रहता.

अभी 3 दिनों पहले ही पंकज का जन्मदिन था. हमारी इच्छा नहीं थी कि धूमधाम से मनाया जाए, परंतु एक बार जरा सी बात मेरे मुंह से निकल गई तो सब पीछे पड़ गए, ‘‘नहीं, भई, एक ही तो बच्चा है, उस का जन्मदिन तो मनाना ही चाहिए.’’ हम दोनों यही सोच रहे थे कि जानपहचान वाले लोग कम से कम डेढ़ सौ तो हो ही जाएंगे. कैसे होगा सब? इतने सारे लोगों को बुलाया जाएगा तो पार्टी भी अच्छी होनी चाहिए.

‘‘इतने बड़े लोगों को मुझे तो अपने यहां बुलाने में भी शर्म आ रही है और ये सब पीछे पड़े हैं. कैसे होगा?’’ नीरज बोला. ‘‘फिर वही बड़ेछोटे की बात कही आप ने. कोई किसी के यहां खाने नहीं आता. यह तो एक प्रेमभाव होता है. मैं सब कर लूंगी.’’ मैं ने अवसर देखते हुए बड़े धैर्य से काम लिया. सुबह ही मैं ने पूरी योजना बना ली.

आशा देवी की आया व कमलाजी के यहां से 2 नौकर बुला लिए. लिस्ट बना कर उन्हें सहकारी बाजार से सामान लाने को भेज दिया और मैं तैयारी में जुट गई. घंटेभर बाद ही सामान आ गया. मैं ने घर में समोसे, पकोड़े, छोले व आलू की टिकिया आदि तैयार कर लीं. मिठाई बाजार से आ गई.

बैठने का इंतजाम बाहर लौन में कर लिया गया. फर्नीचर आसपास की कोठियों से आ गया. सभी बच्चे अत्यंत उत्साह से कार्य कर रहे थे. गांगुली साहब ने अपनी फर्म के बिजली वाले को बुला कर बिजली के नन्हें, रंगबिरंगे बल्बों की फिटिंग पार्क में करवा दी. मैं नहीं समझ पा रही थी कि सब कार्य स्वयं ही कैसे हो गया. रात के 12 बजे तक जश्न होता रहा. सौदामिनीजी के स्टीरियो की मीठी धुनों से सारा वातावरण आनंदमय हो गया. पंकज तो इतना खुश था जैसे परियों के देश में उतर आया हो. इतने उपहार लोगों ने उसे दिए कि वह देखदेख कर उलझता रहा, गाता रहा. सब से अधिक खुशी की बात तो यह थी कि जिस ने भी उपहार दिया उस ने हार्दिक इच्छा से दिया, भार समझ कर नहीं. मैं यदि इनकार भी करती तो आगे से उत्तर मिलता, ‘‘वाह, पंकज आप का बेटा थोड़े ही है, वह तो हम सब का बेटा है.’’ यह सुन कर मेरा हृदय गदगद हो उठता.

रात के 2 बज गए. बिस्तर पर लेटते ही नीरज बोला, ‘‘आज सचमुच मुझे पता चल गया है कि व्यक्ति के अंदर योग्यता और गुण हों तो वह कहीं भी अपना स्थान बना सकता है. तुम ने तो यहां बिलकुल ऐसा वातावरण बना दिया है जैसे सब लोग अपने जैसे ही नहीं, बल्कि अपने ही हैं, कहीं कोई अंतर ही नहीं, असमानता नहीं.’’

‘‘अब मान गए न मेरी बात?’’ मैं ने विजयी भाव से कहा तो वह प्रसन्नता से बोला, ‘‘हां, भई, मान गए. अब तो सारी आयु भी इन लोगों को छोड़ने का मन में विचार तक नहीं आएगा और छोड़ना भी पड़ा तो अत्यंत दुख होगा.’’ ‘‘तब इन लोगों की याद हम साथ ले जाएंगे,’’ कह कर मैं निश्ंचिंत हो कर बिस्तर पर लेट गई.

वादियों का प्यार: कैसे बन गई शक की दीवार – भाग 3

और मैं ने अचानक निश्चय कर लिया कि मैं अभी इसी वक्त अपने मायके चली जाऊंगी. साकेत से मुझे कोई स्पष्टीकरण नहीं चाहिए. इतना बड़ा धोखा मैं कैसे बरदाश्त कर सकती थी? और मैं दोपहर को ही बिना किसी से कुछ कहेसुने अपने मायके के लिए चल पड़ी. आते समय एक नोट जल्दी में गुस्से में लिख कर अपने तकिए के नीचे छोड़ आई थी :

‘मैं जा रही हूं. वजह तुम खुद जानते हो. मुझे धोखे में रख कर तुम सुख चाहते थे पर यह नामुमकिन है. अपने जीवनसाथी के साथ विश्वासघात करते तुम को शर्म नहीं आई? क्या मालूम और कितनी लड़कियां ऐसे फांस चुके हो. मुझे तुम से नफरत है. मिलने की कोशिश मत करना.   -सुनीता’

घर आ कर मम्मीपापा को मैं ने यह सब बताया तो उन्होंने सिर धुन लिया. पापा गुस्से में बोले, ‘उस की यह हिम्मत, इतना बड़ा जुर्म और जबान तक न हिलाई. अब मैं भी उसे जेल भिजवा कर रहूंगा.’

मैं यह सब सुन कर जड़ सी हो गई. यद्यपि मैं साकेत को जेल भिजवाना नहीं चाहती थी पर पापा मुकदमा करने पर उतारू थे.

मेरी समझ को तो जैसे लकवा मार गया था और पापा ने कुछ दिनों बाद ही साकेत पर इस जुर्म के लिए मुकदमा ठोंक दिया. मैं भी पापा के हर इशारे पर काम करती रही और साकेत को दूसरा विवाह करने के अपराध में 3 वर्षों की सजा हो गई.

मेरे सासससुर ने साकेत को बचाने के लिए बहुत हाथपैर मारे, पर सब बेकार.

इस फैसले के बाद मैं गुमसुम सी रहने लगी. कोर्ट में आए हुए साकेत की उखड़ीउखड़ी शक्ल याद आती तो मन भर आता, न जाने किन निगाहों से एकदो बार उस ने मुझे देखा कि घर आने पर मैं बेचैन सी रही. न ठीक से खाना खाया गया और न नींद आई.

साकेत के साथ बिताया, हुआ हर पल मुझे याद आता. क्या सोचा था और क्या हो गया.

इन सब उलझनों से मुक्ति पाने के लिए मैं ने स्थानीय माध्यमिक विद्यालय में अध्यापिका की नौकरी कर ली.

दिन गुजरते गए और अब स्कूल की तरफ से ही शिमला आ कर मुझे पिछली यादें पागल बनाए दे रही थीं.

बाहर लड़कियों के खिलखिलाने के स्वर गूंज रहे थे. मैं अचानक वर्तमान में लौट आई. निर्मला जब मेरे करीब आई तो वह हंसहंस कर ऊंचीनीची पहाडि़यों से हो कर आने की और लड़कियों की बातें सुनाती रही और मैं निस्पंद सी ही पड़ी रही.

दूसरे दिन से एनसीसी का काम जोरों से शुरू हो गया. लड़कियां सुबह होते ही चहलपहल शुरू कर देतीं और रात तक चुप न बैठतीं.

एक दिन लड़कियों की जिद पर उन्हें बस में मशोबरा, फागू, कुफरी और नालडेरा वगैरह घुमाने ले जाया गया. हर जगह मैं साकेत की ही याद करती रही, उस के साथ जिया हरपल मुझे पागल बनाए दे रहा था.

हमारे कैंप के दिन पूरे हो गए थे. आखिरी दिन हम लोग लड़कियों को ले कर माल रोड और रिज की सैर को गए.

मैं पुरानी यादों में खोई हुई हर चीज को घूर रही थी कि सामने भीड़ में एक जानापहचाना सा चेहरा दिखा. बिखरे बाल, सूजी आंखें, बढ़ी हुई दाढ़ी पर इस सब के बावजूद वह चेहरा मैं कभी भूल सकती थी भला? मैं जड़ सी हो गई. हां, वह साकेत ही थे. खोए, टूटे और उदास से.

मुझे देख कर देखते ही रहे, फिर बोले, ‘‘क्या मैं ख्वाब देख रहा हूं? तुम और यहां? मैं तो यहां तुम्हारे साथ बिताए हुए क्षणों की याद ताजा करने के लिए आया था पर तुम? खैर, छोड़ो. क्या मेरी बात सुनने के लिए दो घड़ी रुकोगी?’’

मेरी आंखें बरस पड़ने को हो रही थीं. निर्मला से सब लड़कियों का ध्यान रखने को कह कर मैं भीड़ से हट कर किनारे पर आ गई. मुझे लगा साकेत आज बहुतकुछ कहना चाह रहे हैं.

सड़क पार कर साकेत सीढि़यां उतर कर नीचे प्लाजा होटल में जा बैठे, मैं भी चुपचाप उन के पीछे चलती रही.

साकेत बैठते ही बोले, ‘‘सुनीता, तुम मुझ से बगैर कुछ कहेसुने चली गईं. वैसे मुझे तुम को पहले ही सबकुछ बता देना चाहिए था. उस गलती की मैं बहुत बड़ी सजा भुगत चुका हूं. अब यदि मेरे साथ न भी रहना चाहो तो मेरी एक बात जरूर सुन लो कि मेरी शादी मधु से हुई जरूर थी पर पहले दिन ही मधु ने मेरे पैर पकड़ कर कहा था, ‘आप मेरा जीवन बचा सकते हैं. मैं किसी और से प्यार करती हूं और उस के बच्चे की मां बनने वाली हूं. यह बात मैं अपने पिताजी को समझासमझा कर हार गई पर वे नहीं माने. उन्होंने इस शादी तक मुझे एक कमरे में बंद रखा और जबरदस्ती आप के साथ ब्याह दिया.

‘‘‘मैं आप की कुसूरवार हूं. मेरी वजह से आप का जीवन नष्ट हो गया है पर मैं आप के पैर पड़ती हूं कि मेरे कारण अपनी जिंदगी खराब मत कीजिए. आप तलाक के लिए कागजात ले आइए, मैं साइन कर दूंगी और खुद कोर्ट में जा कर सारी बात साफ कर दूंगी. आप और मैं जल्दी ही मुक्त हो जाएंगे.’

‘‘यह कह कर मधु मेरे पैरों में गिर पड़ी. मेरी जिंदगी के साथ भी खिलवाड़ हुआ था पर उस को जबरदस्ती अपने गले मढ़ कर मैं और बड़ी गलती नहीं करना चाहता था, इसलिए मैं ने जल्दी ही तलाक के लिए अरजी दे दी. मुझे तलाक मिल भी जाता, पर तभी तुम जीवन में आ गईं.’’

‘‘मैं स्वयं चाह कर भी अपनी तरफ से तुम्हें मैसेज नहीं लिख रहा था पर जब तुम्हारा मैसेज आया तो मैं समझ गया कि आग दोनों तरफ लगी है और मैं अनचाहे ही तुम्हें भावभरे मैसेज भेजता गया.

‘‘फिर तुम्हारे पापा ने जब सगाई करनी चाही तो मैं अपनी बात कहने के लिए इसलिए मुंह नहीं खोल पाया कि कहीं इस बात से बनीबनाई बात बिगड़ न जाए और मैं तुम्हें खो न बैठूं.

‘‘बस, वहीं मुझ से गलती हुई. तुम्हें पा जाने की प्रबल अभिलाषा ने मुझ से यह जुर्म करवाया. शिमला की रंगीनियां कहीं फीकी न पड़ जाएं, इसलिए यहां भी मैं ने तुम्हें कुछ नहीं बताया. उस के बाद मुझे लगा कि यह बात छिपाई जा सकती है और तलाक मिलने पर तुम्हें बता दूंगा पर वह नौबत ही नहीं आई. तुम अचानक कहीं चली गईं और मिलने से भी मना कर गईं.

‘‘जेल की जिंदगी में मैं ने जोजो कष्ट सहे, वे यह सोच कर दोगुने हो जाते थे कि अब तुम्हारा विश्वास कभी प्राप्त न कर सकूंगा और इस विचार के आते ही मैं पागल सा हो जाता था.

‘‘पिछले महीने ही मैं सजा काट कर आया हूं पर घर में मन ही नहीं लगा. तुम्हारे साथ बिताए हर पल दोबारा याद करने के लालच में ही मैं यहां आ गया.’’

और साकेत उमड़ आए आंसुओं को अपनी बांह से पोंछने लगे, फिर झुक कर बोले, ‘‘हाजिर हूं, जो सजा दो, भुगतने को तैयार हूं. पर एक बार, बस, इतना कह दो कि तुम ने मुझे माफ कर दिया.’’

मैं बौराई हुई सी साकेत की बातें सुन रही थी. अब तक सिर्फ श्रोता ही बनी रही. भर आए गले को पानी के गिलास से साफ कर के बोली, ‘‘क्या समझते हो, मैं इस बीच बहुत सुखी रही हूं? मुझे भी तुम्हारी हर याद ने बहुत रुलाया है. बस, दुख था तो यही कि तुम ने मुझ से इतनी बड़ी बात छिपाई.

‘‘यदि एक बार, सिर्फ एक बार मुझे अपने बारे में खुल कर बता देते तो यहां तक नौबत ही न आती. पतिपत्नी में जब विश्वास नाम की चीज मर जाती है तब उस की जगह नफरत ले लेती है. इसी वजह से मैं ने तुम्हें मिलने को भी मना कर दिया था पर तुम्हारे बिना रह भी नहीं पाती थी.

‘‘जब तुम्हें सजा हुई तब मेरे दिल पर क्या बीती, तुम्हें क्या बताऊं. 3-4 दिनों तक न खाना खाया और न सोई, पर खैर उठो…जो हुआ, सो हुआ, विश्वास के गिर जाने से जो खाई बन गई थी वह आज इन वादियों में फिर पट गई है. इन वादियों के प्यार को हलका न होने दो.’’

और हम दोनों एकएक कप कौफी पी कर हाथ में हाथ डाले होटल से बाहर आ गए माल रोड की चहलपहल में खो जाने के लिए, एकदूसरे की जिंदगी में समा जाने के लिए.

अनोखी जोड़ी: विशाल ने अवंतिका को तलाक देने से क्यों मना कर दिया? -भाग 3

सभा में देर हो गई, रात ठंडी थी और गजब का कोहरा था. चूंकि अवंतिका का घर पास में था इसलिए उस ने अपने साथियों को रात बिताने को अपने घर बुला लिया.

गुस्से में विशाल को भी हंसी आ गई. जोर से बोला, ‘‘नहीं, प्रिये.’’

हेमंत मुसकरा दिया.

सुबह हेमंत ने उस की कंपनी की खूब प्रशंसा की, ‘‘अवश्य तुम्हारी पदोन्नति होगी. किंतु क्या अवंतिका एक लायक पत्नी साबित होगी? वह तो हर आंदोलन में अगुआ बन नारे लगाने वालों में मिल जाती है. क्यों?’’

‘‘वह मेरी पत्नी है और मैं उस से प्रेम करता हूं. वह जो चाहे करे, मुझे कोई भी आपत्ति नहीं होगी. चाहे बिकनी पहने हुए भी नारे लगाए.’’

हेमंत की आंखें चमक गईं, ‘‘तुम्हारी कंपनी के खिलाफ भी?’’

विशाल ने जवाब नहीं दिया.

हेमंत आगे बढ़ा, ‘‘आज शाम हमारी बैठक होगी. तुम अवश्य आना. उस में तुम्हारा निजी हित होगा.’’

शाम को हेमंत ने सभा को संबोधित किया, ‘‘सज्जनो, आप को जान कर खुशी होगी कि आज मुंबई की एक बड़ी तेल कंपनी के उच्च पदाधिकारी विशालजी हमारे साथ हैं जो अपने नाम को सार्थक करते हुए विशाल हृदय रखते हैं और उन्होंने अपनी पत्नी अवंतिका को अनुमति दे दी है कि वह हमारे इस आंदोलन में केवल बिकनी पहन कर कलाकेंद्र के खिलाफ आवाज उठाएं. क्या आप लोग मेरे साथ हैं?’’

सब ने हाथ उठा कर आवाज लगाई, ‘‘जी, हां.’’

अवंतिका घबरा गई. इतना साहसिक कदम तोउस ने सोचा ही न था. समाचारपत्र क्या लिखेंगे, क्या दिखाएंगे?

अवंतिका को लगा कि विशाल को नीचा दिखाने के लिए यह हेमंत की कोई चाल है इसलिए वह बोली, ‘‘हेमंत, तुम्हारा बड़ा तुच्छ विचार था. मैं विशाल से सलाह लूंगी. अगर उसे अच्छा न लगा तो मुझे भूल जाना.’’

विशाल ने सीधे आफिस पहुंच कर विवेक को जब आंदोलन के बारे में समय और जगह बताई तो वह चकरा गया, क्योंकि  उसी समय मुंशी साहब पत्नी समेत दिल्ली एक बैठक में भाग लेने आ रहे थे. दोनों मित्रों ने दिमाग दौड़ाए. समाचारपत्र के ऊपरी पृष्ठ पर ताजा समाचार था कि अंतर्राष्ट्रीय संघ के 2 अफसरों की तेल के दाम के सिलसिले में इटली के सिसली प्रांत में माफिया वालों ने हत्या कर दी. विशाल को एक विचार आया और उस ने विवेक को उस के बारे में बताया.

शाम को विशाल जब अवंतिका के साथ बैठा था तभी फोन आया. फोन विवेक ने किया था. विशाल ने नाटक शुरू किया, ‘‘मुंशी साहब, आप ने तो 30 दिन अवकाश का वचन दिया था और अब आप कल ही मुझे सिसली जाने को कह रहे हैं. क्या…क्या…प्रधानमंत्री के आफिस से हुक्म आया है? जी, जी…तब तो जाना ही पड़ेगा. वैसे मैं इतना होनहार तो नहीं हूं, आप मुझे कुछ अधिक ही योग्यता प्रदान कर रहे हैं. ठीक है साहब, कागजात भिजवा दीजिएगा.’’

अवंतिका विशाल का चेहरा देख चिंतित हो गई, ‘‘यह तुम्हें कहां भेजा जा रहा है…सिसली…मना कर दो. वहां तो जान का खतरा है.’’

विशाल उसे सांत्वना दे ही रहा था कि विवेक ने प्रवेश किया, ‘‘मैं कान्फिडेंशल सेल से आया हं. यह कागजात, पिस्तौल और साइनाइट की टिकिया है. और हां, ये 2 टिकिट रोम के हैं. अंतिम जानकारी वहां दी जाएगी.’’

विवेक के जाने के बाद विशाल ने समझाया कि रोम तक वह भी चल सकती है तो अवंतिका मान गई.

हेमंत ने विवेक को अवंतिका के घर से निकलते देखा तो उसे कुछ शक हुआ और थोड़ी दूर पर विवेक को पकड़ कर बोला, ‘‘मैं प्रधानमंत्री के गुप्तचर विभाग से हूं. यह विशाल क्यों आंदोलनकर्ताओं से मिल रहा है? बताओ…वरना…’’ और हेमंत की घुड़की काम कर गई. विवेक ने पूरी कहानी उगल दी.

हवाई अड्डे से अब मुंशी दंपती निकल रहे थे तो विशाल और अवंतिका दिखाई दिए. विशाल ने अवंतिका को वहीं रुकने को कह कर मुंशी साहब का अभिनंदन किया, ‘‘साहब, श्रीमतीजी की मां मौत के मुंह में हैं, इसलिए जाना पड़ रहा है.’’

उधर हेमंत ने मौका मिलते ही अवंतिका को विशाल की झूठ पर आधारित पूरी योजना समझा दी. फिर क्या था, गुस्से से लाल होते हुए उस ने विशाल को परची लिखी, ‘‘माफ करना, मैं रोम नहीं जा सकती. आंदोलन में भाग लेना है. तुम चाहो तो साइनाइड की टिकिया खा सकते हो.’’

मुंशी दंपती और विवेक सभा भवन के पास पहुंच रहे थे कि देखा बिकनी पहने एक महिला घोड़े पर सवार है और विशाल उस से कुछ कहने की कोशिश कर रहा है. हेमंत व पुलिस के 2 सिपाही उसे रोकने की कोशिश कर रहे हैं. विशाल को जब तीनों ने दबोचा तो संवाददाताओं व फोटोग्राफरों ने अपनेअपने कार्य मुस्तैदी से किए.

मुंशी साहब घबरा कर बोले, ‘‘अरे, यह तो विशाल की पत्नी है और विशाल कर क्या रहा है?’’

विवेक ने जवाब दिया, ‘‘साहब, वह मां के दुख से पागल लगती है. विशाल उसे संभाल रहा है.’’

पुलिस ने सब को हिरासत में ले लिया.

अगले दिन अदालत में न्यायाधीश ने अवंतिका व हेमंत की गवाही सुन उन्हें मुक्त कर दिया फिर विशाल की तरफ मुड़े, ‘‘आप की सफाई के बारे में आप के वकील को कुछ कहना है?’’

विवेक के वकील ने दलील पेश की कि उस का मुवक्किल एक प्रसिद्ध तेल कंपनी का उच्च पदाधिकारी है और अपने मालिक से मिलने बैठक में जा रहा था कि रास्ते में उसे अश्लील वस्त्र पहने पत्नी दिखी जो उस की कंपनी को बदनाम करने पर उतारू थी. अब जज साहब ही निर्णय दें कि क्या उस का अपनी पत्नी को बेहूदी हरकत से बचाने का कार्य गैरकानूनी था?’’

वकील के बयान पर जज को कुछ शक हुआ तो उन्होंने सीधे विशाल से पूछा, ‘‘क्यों मिस्टर विशाल स्वरूप, क्या आप के वकील का बयान सच है?’’

‘‘बिलकुल झूठ, जज साहब. रत्ती भर भी सच नहीं है,’’ और विशाल ने 8 वर्ष से तब तक की पूरी कहानी सुनाई. अवंतिका ने भी चुपचाप अदालत में उस की कहानी सुनी.

विशाल ने अंत में कहा, ‘‘जज साहब, मैं अपनी कंपनी के प्रबंधक का आभारी हूं कि उन्होंने मेरा साथ अंत तक निभाया. किंतु उन्हें यह करने की कोई जरूरत नहीं थी. मैं ने अपना त्यागपत्र उन्हें कल ही भेज दिया है. मेरी पत्नी इस तरह के आंदोलन में विश्वास रखती है, मैं नहीं रखता. किंतु सब से महत्त्वपूर्ण बात यह है कि मैं उस से प्रेम करता हूं. कल जो मैं ने किया उसे रोकने के लिए नहीं बल्कि उसे यह बताने के लिए कि उस का पति बना रहना ही मेरा सब से बड़ा ध्येय व पद है.’’

जज साहब हंस दिए, ‘‘मैं आशा करता हूं कि आप अपने ध्येय में सफल रहें और फिर कभी पत्नी से अलग न हों. मुकदमा बरखास्त.’’

मुंशी साहब विशाल से हाथ मिलाते हुए बोले, ‘‘तुम्हारा त्यागपत्र स्वीकार होने का सवाल ही नहीं उठता. कल तुम और अवंतिका रोम, पैरिस व लंदन के लिए रवाना हो जाओ.’’

न्यायालय से बाहर निकलते समय विवेक का हेमंत से टकराव हो गया, ‘‘माफ कीजिएगा, आप ने अपना परिचय नहीं दिया.’’

हेमंत ने हाथ बढ़ाते हुए जवाब दिया, ‘‘इंस्पेक्टर जयकर, दिल्ली गुप्तचर विभाग.’’

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