वर्क फ्रॉम होम के दौर में ऑफिस का क्या

स्पैशलिस्ट स्टाफिंग फर्म एक्सफीनो द्वारा किए गए सर्वे के अनुसार, प्राइवेट कंपनियों में काम करने वाले ज्यादातर लोग इस साल के अंत तक घर से ही काम करना चाहते हैं. 10 में से केवल 3 कर्मचारी औफिस जाना चाहते हैं. कंपनी ने 15 इंडस्ट्रीज के 550 संस्थानों में यह सर्वे किया.

सर्वे के तहत एक्सफीनो ने 1,800 कर्मचारियों से संपर्क किया. 70 फीसदी कर्मचारियों ने कहा कि वे इस साल के अंत तक वर्क फ्रौम होम करना पसंद करेंगे. सर्वे में टौप भारतीय आईटी सर्विस फर्मों, एमएनसी, ईकौमर्स, औटोमोटिव कंपनियों और प्रमुख बैंकों को शामिल किया गया.

कोविड-19 में वर्क फ्रौम होम कौन्सैप्ट काफी उपयोगी साबित हुआ है. आईटी के अलावा नानआईटी सैक्टर की कंपनियों ने भी इसे अपनाया है.

देश में कई बड़ी कंपनियां मौजूदा हालात को देखते हुए वर्क फ्रौम होम को तवज्जुह दे रही हैं. काम करने का यह कल्चर आगे भी जारी रहेगा. फैलती महामारी के बीच कंपनियां केवल उन्हीं कर्मचारियों को दफ्तर बुलाएंगी जिन की मौजूदगी बहुत जरूरी है.

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बहुत से प्रोफैशनल्स अब अपने घर के एक हिस्से को औफिस का लुक दे रहे हैं ताकि उन्हें औफिस जैसा माहौल व सुविधाएं मिल सकें. कुछ लोग ऐसे भी हैं जो घर के किसी रूम, बालकनी या छत पर कुछ रुपए खर्च कर अपने वर्किंग स्पेस का सैटअप तैयार करा रहे हैं ताकि औफिस टेबल, रिवौल्ंिवग चेयर, कंप्यूटर, प्रिंटर और व्हाइट बोर्ड आदि के साथ उचित तरीके से काम कर सकें. वे बेहतर नैटवर्क के लिए हाईस्पीड डेटा कनैक्शन या वाईफाई भी लगवा रहे हैं. इस से काम करने में सुविधा होती है और डिस्टर्बैंस भी नहीं होता.

कर्मचारियों का प्रोडक्टिविटी लैवल बढ़ा

एक स्टडी के मुताबिक, दफ्तर के मुकाबले कर्मचारी घर से ज्यादा बेहतर काम करते हैं. दफ्तर में कर्मचारी ब्रेक ज्यादा लेते हैं. वहीं वर्क फ्रौम होम में महीने में 1.4 दिन ज्यादा काम कर रहे हैं. लौकडाउन के दौरान ज्यादातर कर्मचारियों का प्रोडक्टिविटी लैवल बढ़ गया है. इस से एम्प्लौयर्स भी वर्क फ्रौम होम की संभावनाओं पर गौर कर रहे हैं. उन्हें भी इस में फायदे नजर आ रहे हैं. कामकाज के इस नए तरीके से कतरा रही कंपनियां अब संभावनाएं तलाशने लगी हैं. लाभ का सौदा होने की बात भी कर रही हैं. एक तरफ कर्मचारी ज्यादा मेहनत कर रहे हैं तो दूसरी तरफ औफिसों में होने वाले बिजली, पानी, कागज, फर्नीचर और दूसरे रखरखाव के सामानों पर होने वाले खर्चे भी बच रहे हैं.

इधर कर्मचारियों का भी आनेजाने में लगने वाला समय और किराया दोनों बच रहा है. यही नहीं, आमतौर पर कर्मचारियों को वर्कलाइफ और पर्सनललाइफ के बीच तालमेल बिठाने में दिक्कतें होती हैं. लेकिन वर्क फ्रौम होम के चलते अब यह आसान हो गया है. वे घर के काम देखते हुए औफिस की जिम्मेदारियां भी सहजता से निभा पा रहे हैं. औफिस में कई बार काम करने की इच्छा होने पर भी शोरगुल या हंसीमजाक के बीच काम निबटाना संभव नहीं होता. वहां दोस्तों के बीच काम से ब्रेक भी ज्यादा ले लिए जाते हैं मगर घर में अपनी सुविधानुसार रात तक बैठ कर काम निबटाया जा सकता है .

महिलाओं के लिए वर्क फ्रौम होम अधिक सुविधाजनक है. 31 फीसदी से ज्यादा महिलाएं बच्चे के बाद कैरियर में ब्रेक लेती हैं क्योंकि उन के लिए औफिस जाना, पूरे दिन बच्चे से दूर रहना और फिर थकेहारे घर लौट कर बच्चे को संभालना आसान नहीं होता. वर्क फ्रौम होम के नतीजे में वे घर और बच्चों के साथसाथ औफिस के काम भी संभाल पा रही हैं और वर्कफोर्स में बनी रह पा रही हैं. फ्लैक्सिबल वर्क कल्चर के कारण उन की जिंदगी बदल गई है.

वर्क फ्रौम होम है आज की जरूरत

कोरोना महामारी के बीच आईटी, बीपीओ सैक्टर और अन्य सेवाप्रदाता कंपनियों के कर्मचारी अब 31 दिसंबर तक वर्क फ्रौम होम यानी घर से काम कर सकेंगे, दूरसंचार विभाग ने इस के आदेश जारी कर दिए हैं. आईटी कंपनियों में करीब 90 फीसदी कर्मचारी घर से काम कर रहे हैं. केवल अतिमहत्त्वपूर्ण कार्य करने वाले कर्मचारी ही कार्यालय जा रहे हैं.

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नैसडैक में लिस्टेड बीपीओ और एनालिटिक्स कंपनी ईएक्सएल के 70 फीसदी कर्मचारी घर से काम कर रहे हैं.

हाल ही में ट्विटर के सीईओ जैक डोर्सी ने कहा है कि उन के कर्मचारी जब तक चाहें वर्क फ्रौम होम कर सकते हैं. ट्विटर हेडऔफिस सैनफ्रान्सिस्को, कैलिफोर्निया में है. अटलांटा, न्यूयौर्क, लास एंजिल्स और अमेरिका के कई शहरों में भी इस के दफ्तर हैं. 20 देशों में ट्विटर के कुल 35 औफिस हैं. वहीं, फेसबुक ने कहा है कि उस के औफिस तो खुल गए हैं लेकिन कर्मचारी दिसंबर के आखिर तक वर्क फ्रौम होम करते रहेंगे.

तकनीकी क्षेत्र की दिग्गज कंपनी गूगल ने तो वर्क फ्रौम होम को अगले साल जून तक बढ़ा दिया है. यह अवधि गूगल के उन स्टाफ के लिए बढ़ाई गई है जिन्हें औफिस में रह कर काम करने की जरूरत नहीं है.

दुनियाभर में गूगल के हजारों कर्मचारी हैं. गूगल के स्टाफ की वर्क फ्रौम होम सेवा को जनवरी 2021 में खत्म किया जाना था. गूगल का ताजा निर्णय अन्य टैक फर्मों और बड़े नियोक्ताओं को कोरोना से बचाव के लिए ऐसी ही नीति अपनाने के लिए प्रेरित कर सकता है. इस बीच ट्विटर कंपनी ने कहा है

कि वह अपने सभी कर्मचारियों को अनिश्चितकाल तक रिमोट वर्क की अनुमति देने जा रही है.

हमारे देश भारत में कोरोना के मामले लगातार बढ़ रहे हैं. इन हालात में भारतीय कंपनियां भी किसी तरह का जोखिम नहीं उठाना चाहती हैं. वे कर्मचारियों के लिए वर्क फ्रौम होम की सुविधा को बढ़ा रही हैं.

सिटीबैंक, बोस्टन कंसल्ंिटग ग्रुप, एचयूएल, केपीएमजी, आरपीजी ग्रुप, कौग्निजैंट, फिलिप्स और पिडिलाइट इंडस्ट्रीज उन कंपनियों में शुमार हैं जो केवल जरूरी स्टाफ को ही दफ्तर आने के लिए कह रही हैं. अमेजन वर्क फ्रौम पौलिसी को अक्तूबर 2020 से बढ़ा कर जनवरी 2021 कर चुकी है.

इसी तरह केपीएमजी में करीब 5 फीसदी कर्मचारी औफिस आ रहे हैं. जब तक स्थिति में सुधार नहीं होता है, तब तक कंपनी वर्क फ्रौम होम को जारी रखेगी.

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क्या परिवर्तन हैं संभव

अभी वैक्सीन बनने की संभावना नहीं. अगले साल तक वैक्सीन आ भी जाती है तो सामान्य लोगों तक पहुंचने में समय लगेगा. वैसे भी वैक्सीन बनने और मिलने के बाद भी लोग वर्क फ्रौम होम करने के इतने आदी हो जाएंगे कि उन्हें दफ्तर जा कर काम करने की आदत ही नहीं रह जाएगी. संभव है अगले 2-3 सालों में कुछ दफ्तरों की बिल्ंिडगों में जाले लगने लगें, दफ्तर की टेबलकुरसियों पर धूलमिट्टी जम जाए, ड्रायर और अलमारियों के दरवाजे जाम हो जाएं, तसवीरों पर धूल की मोटी परत जम जाए और शीशे गंदे दिखने लगें.

संभव है कि कुछ दफ्तरों की विशालकाय बिल्ंिडगों के 1-2 फ्लोर पर तो थोड़ेबहुत कर्मचारी आ रहे हों पर बाकी फ्लोर खाली पड़े हों जिन्हें किराए पर दूसरे काम के लिए उठा दिया जाए. कोरोना के खतरे को देखते हुए अब ज्यादातर कर्मचारी घर से काम करना चाह रहे हैं और एम्प्लौयर खुद भी इस व्यवस्था से संतुष्ट हैं. वे कोरोना वायरस को देखते हुए कोई खतरा मोल लेना नहीं चाहते हैं. ऐसे में जाहिर है कि वे अपने औफिस को या तो खाली छोड़ना मंजूर करेंगे या किसी और काम के लिए किराए पर दे देंगे.

कई छोटेमोटे प्राइवेट औफिसों के मालिकों ने मौके की नजाकत को देखते हुए पूर्णरूप से औनलाइन काम करवाना शुरू कर दिया है और अब उन्होंने औफिस वाली जगह या तो बेच दी है या निश्ंिचत हो कर किसी और काम में ले लिया है. कई कंपनियां पूरी तरह बंद भी हो रही हैं. ज्यादातर कंपनियां अभी आर्थिक संकट के दौर से गुजर रही हैं, इसलिए या तो कर्मचारियों के वेतन में कटौती की जा रही है या ऐसे लोगों को हटाया जा रहा है जिन के बगैर काम चल सकता है. वेतन में कटौती के कारण भी लोग वर्क फ्रौम होम को प्रैफरैंस दे रहे हैं.

आने वाले समय में औफिस के बजाय रीजनल हब बनाने पर जोर दिया जा सकता है जहां ज्यादातर एम्प्लौइज रहते हों. यानी, ऐसी जगहों पर छोटेछोटे कोवर्किंग स्पेस डैवलप किए जा सकते हैं जहां एम्पलौइज कम समय में सहूलियत से आवश्यकतानुसार पहुंच कर जरूरी काम निबटा सकें और बाकी काम घर से करते रहें.

ज्यादातर औफिस मीटिंग्स अब वीडियोकौल और जूम मीटिंग आदि के रूप में ही कराई जा रही हैं. वैसे भी अब एम्प्लौइज ज्यादा टैक्नोफ्रैंडली बन चुके हैं. जिन लोगों को औनलाइन काम करने की आदत नहीं थी उन्होंने भी इतने समय में सबकुछ सीख लिया है. वीडियो चैट द्वारा स्टाफ अब खुद को एकदूसरे के ज्यादा करीब महसूस कर पाते हैं. लंबे समय तक ईमेल, जूम और वीडियो चैटिंग के जरिए ही मीटिंग के उद्देश्य पूरे कर लिए जाएंगे और औफिस जाने की जरूरत महसूस नहीं होगी.

औफिस बिल्ंिडग एक बड़े कौन्फ्रैंस सैंटर के रूप में तब्दील हो सकती हैं. बहुत संभव है कि आने वाले समय में औफिस बिल्ंिडग का मकसद बदल जाए. भविष्य में हो सकता है कि औफिस का प्रयोग महज बड़ी मीटिंग्स या औफिशियल गैदरिंग के लिए किया जाए और बाकी काम वर्क फ्रौम होम होता रहे. यानी, औफिस का उपयोग अब मीटिंग्स, कौन्फ्रैंसिंग और कंपनी के दूसरे इवैंट्स के लिए गैदरिंग स्पेस के तौर पर अधिक हो.

रिलेशनशिप: ब्रेकअप से टूटता है पुरुषों का दिल भी

समीर (बदला हुआ नाम) कुछ महीनों से काफी डिप्रैशन में रहने लगा है. हंसमुख मिजाज का और दूसरों को भी खुश रखने वाला समीर न तो अब किसी से ज्यादा बातें करता है और न ही कहीं आताजाता है. औफिस से आते ही वह अपने कमरे में बंद हो जाता है. कारण, कुछ महीने पहले उस का अपनी गर्लफ्रैंड से ब्रेकअप हो गया, जिस के कारण वह काफी डिप्रैस्ड रहने लगा है. समीर का कहना है जब उस की गर्लफ्रैंड से उस का ब्रेकअप हुआ तो लगा मानो उस की पूरी दुनिया ही उजड़ गई. वह अपने ब्रेकअप के दर्द से बाहर नहीं आ पा रहा है.

यह कहना गलत नहीं होगा कि भागतीदौड़ती जिंदगी के बीच रिश्ते भी बहुत तेजी से बदल रहे हैं, आजकल जितनी जल्दी लोगों को प्यार हो जाता है, उतनी ही जल्दी रिश्ते टूट भी जाते हैं. लव अफेयर में जब ब्रेकअप होता है, तो इस का महिलाओं के जीवन पर बहुत बुरा असर होता है. वे डिप्रैशन और असुरक्षा की भावना का शिकार हो जाती हैं. उन में उदासी घर कर जाती है. ब्रेकअप के कारण कई बार वे सुसाइड जैसे खतरनाक कदम भी उठा लेती हैं, क्योंकि पुरुषों की तुलना में महिलाएं अधिक भावुक और संवेदनशील होती हैं.

वहीं माना जाता है कि पुरुषों पर ब्रेकअप का कुछ खास असर नहीं पड़ता. लेकिन ऐसा नहीं है. कई बार पुरुष भी ब्रेकअप से प्रभावित होते हैं. फर्क सिर्फ इतना है कि ब्रेकअप होने पर महिलाएं अपना दर्द व्यक्त कर पाती हैं, जिस से उन के दिल का बोझ कुछ कम हो जाता है, जबकि पुरुष अंदर ही अंदर घुटते रहते हैं और ब्रेकअप के दर्र्द अकेले ही झेलते हैं. कईर् बार पुरुष ब्रेकअप से इस कदर टूट जाते हैं कि वे लोगों से मिलनाजुलना खानापीना तक छोड़ देते हैं.

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ब्रेकअप का पुरुषों पर असर

खुद को दोषी मानने लगना : ब्रेकअप होने के बाद ज्यादातर पुरुष खुद को ही दोषी मानने लगते हैं. भले ही लोगों के सामने वे कुछ भी कह लें, पर मन ही मन ब्रेकअप के लिए खुद को ही जिम्मेदार मानते हैं. इस से वे गहरे तनाव में आ जाते हैं. अधिक तनाव में रहने के कारण उन के सोचनेसमझने की क्षमता पर नैगेटिव असर पड़ने लगता है. जो पुरुष अधिक संवेदनशील होते हैं, वे अपने पार्टनर की गलती होते हुए भी, उस की गलती न मान कर खुद को ही दोषी ठहरा देते हैं. ब्रेकअप के बाद ऐसे संवेदनशील लोग भीतर से टूट जाते हैं.

अकेलापन : पुरुष ब्रेकअप के बाद अकसर ज्यादा अकेलापन महसूस करते हैं. वे अपना दुख जाहिर नहीं कर पाते और ऐसे में उन्हें सांत्वना देने वाला कोई नहीं होता. जबकि महिलाएं अपने दिल का हाल अपनों से बांट लेती हैं. इस से उन का दर्द कम हो जाता है. पर पुरुषों के साथ ऐसा नहीं होता है.

नशे का सहारा लेते हैं : ब्रेकअप के बाद तनाव और डिप्रैशन का शिकार सिर्फ महिलाएं ही नहीं होतीं, बल्कि पुरुष भी होते हैं. भले ही ब्रेकअप के तुरंत बाद वे आजादी महसूस करते हों, पर धीरेधीरे वे अकेलापन और तनाव महसूस करने लगते हैं. इस के कारण वे खुद को शराबसिगरेट में डुबो लेते हैं. उस से उन का तनाव घटता नहीं, बल्कि और बढ़ता जाता है.

गलतियां दोहराते हैं : पुरुष ब्रेकअप के बाद खुद को दोषी जरूर मानते हैं, लेकिन वे खुद में बिलकुल सुधार नहीं करते हैं. जहां ब्रेकअप के बाद महिलाएं किसी नए रिलेशनशिप में नहीं पड़ना चाहतीं, वहीं पुरुष ब्रेकअप के गम को भुलाने के लिए किसी दूसरे पार्टनर की तलाश में लग जाते हैं, जबकि कई बार यह तलाश सही साबित नहीं होती है. लेकिन पुरुष किसी सहारे की खोज में होते हैं, अगर उन्हें कोईर् पार्टनर मिल भी जाता है तो ब्रेकअप के बाद पुरुष जल्दी उस पर भरोसा नहीं कर पाते और टाइमपास करने लगते हैं. ऐसे रिलेशन ज्यादा समय तक नहीं टिकते और फिर टूट जाते हैं.

अपने एक्स को याद कर के बेचैन हो जाना : यह देखा गया है कि ब्रेकअप के बाद भी ज्यादातर पुरुष को यह उम्मीद होती है कि उन की प्रेमिका फिर लौट कर उन के पास वापस आएगी और इस के लिए वे प्रयास भी करते हैं. इस मामले में वे काफी धैर्य दिखाते हैं. मौका मिलने पर वे अपनी एक्स से माफी भी मांग लेते हैं ताकि रिश्ता फिर से सुधारा जा सके.

काम से लेते हैं ब्रेक : कई पुरुष ब्रेकअप के बाद इतने दुख में डूब जाते हैं कि उन्हें कुछ करने का मन नहीं होता, यहां तक कि औफिस में भी उन का मन नहीं लगता और वे काम से छुट्टी ले लेते हैं. लेकिन इस से भी उन्हें चैन नहीं मिलता, क्योंकि खाली बैठेबैठे फिर वही ब्रेकअप की बातें उन्हें परेशान करने लगती हैं और उन का दर्र्द घटने के बजाय और बढ़ने लगता है, वहीं, महिलाएं मानसिक परेशानी के बावजूद अपने काम बेहतर ढंग से करती रहती हैं.

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ब्रेकअप के दर्द से कैसे उबरें पुरुष

किसी भी रिश्ते को भुलाना आसान नहीं होता. उस से हमारी भावनाएं जुड़ी होती हैं. खासकर जब रिश्ता प्यार का हो. जब हम किसी अपने से अलग होते हैं, तो उस दर्द को बरदाश्त कर पाना आसान नहीं होता. हम उस रिश्ते से निकलना चाहते हैं, पर हमारी भावनाएं हम पर हावी रहती हैं. यही भावनाएं डिप्रैशन का कारण बनती हैं. हम उसे भुलाने की कोशिश करते हैं, पर बारबार उस की याद आती है.

ऐसे में अकसर हम वे गलतियां कर जाते हैं जो हमें नहीं करनी चाहिए. जैसे, बारबार हम अपने एक्स को फोन लगाते हैं, उसे मैसेज करने लगते हैं. कभी खुद को कमरे में बंद कर लेते हैं, तो कभी नशे में डूब जाते हैं. ब्रेकअप का वक्त बहुत बुरा होता है. हम किसी से इतने इमोशनली अटैच होते हैं कि हर वक्त उस की आदत होती है और जब वह अचानक साथ छोड़ जाता है, तो यह हम से बरदाश्त नहीं होता है. मन की उदासी सारी ताकत चूस लेती है. लेकिन यह सचाई स्वीकार करनी होगी कि अब वह आप के साथ नहीं है और अब आप को जीवन में आगे बढ़ना होगा.

भूलने की कोशिश न करें : अपने प्यार को भुलाना आसान नहीं होता. तो आप उसे भूलने की कोशिश भी न करें, क्योंकि ऐसा करने से उस की और ज्यादा याद आएगी. उसे अपने और दोस्तों की तरह ही समझें, ताकि आप के मन में उस के लिए कुछ अलग महसूस न हो.

अकेले न रहें : ब्रेकअप के बाद अकसर लोग अकेले रहना पसंद करते हैं. यह सही नहीं है. दोस्तों से मिलें, परिवार को समय दें, उन के साथ थोड़ा वक्त बिताएं. घूमने जाएं. इस से आप के मन में सुकून मिलेगा और आप खुश भी रहेंगे.

अपने कैरियर पर ध्यान दें : ब्रेकअप का असर कभी भी अपने कैरियर पर न पड़ने दें. अकसर लोग ब्रेकअप के बाद अपने काम में मन नहीं लगाते और पर्सनल के साथ प्रोफैशनल लाइफ भी खराब कर लेते हैं. यह गलती करने से बचें, क्योंकि जिसे आप के जीवन से जाना था, चला गया. तो, उसे भूल जाएं और अपने काम पर फोकस करें.

खुद को दोष देना बंद करें : आप का ब्रेकअप हुआ है, इस का यह मतलब नहीं कि सारी गलती आप की ही थी. हर इंसान का अपनाअपना नेचर होता है. हो सकता है आप दोनों का नेचर मेल नहीं खाता हो, इसलिए आप दोनों का ब्रेकअप हो गया, तो यह तो एक दिन होना ही था, ऐसा सोचिए और कि जो कल होना था, आज हो गया. सो, अब अपनी गलतियों से सीख लें और सैल्फ गिल्ट में न जीएं.

हमेशा पौजिटिव रहें : यह सोचें कि जो हुआ, अच्छा हुआ, जो होगा, अच्छा ही होगा, की सोच के साथ खुद को खुश रखने की कोशिश करें. कहते हैं, हम जैसा सोचते हैं, वैसे ही होता है. इसलिए, हमेशा पौजिटिव सोच रखें.

जरा सोशल बनें : खुद को अच्छा महसूस कराने के लिए वह करें जिस से आप को खुशी मिली है. आप अपनी पसंद की कोई हौबी चुनें और उस में व्यस्त रहें.

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परिस्थिति का सामना करना सीखें: अपनी परिस्थिति को स्वीकार कर आगे बढ़ने में ही भलाई है. इसलिए पिछली कड़वी यादों को भुला दें. इस सोच के साथ आगे बढ़ें कि जो होगा, सही होगा.

नशे को दोस्त न बनाएं : अकसर लोग ब्रेकअप के बाद उसे भुलाने के लिए नशे का सहारा लेने लगते हैं, जो गलत है. ब्रेकअप हुआ, कोई जिंदगी खत्म नहीं हो गई. रास्ते और भी हैं. बस, चलने की ताकत रखिए. नशे में कुछ देर तक अपने एक्स को भुलाया जा सकता है, लेकिन उस के बाद फिर क्या. इसलिए नशे से खुद को दूर रखिए.

अपनी कमियों को सुधारें : आप का ब्रेकअप क्यों हुआ? यह सोचें और सबक लें, ताकि आगे यह गलती न हो पाए. ज्यादा पजैसिव न हों.

साइकोलौजिस्ट की सलाह लें : अपनी फीलिंग्स हर किसी से शेयर न करें. क्योंकि जितने मुंह उतनी बातें

होंगी, जाने कौन आप की बातें किस तरह से ले. अच्छा है आप किसी अच्छे साइकोलौजिस्ट से कंसल्ट करें, वे आप को सही सलाह देंगे.

आप बीमार नहीं हैं, यह याद रखें : हर बात पर दवाइयां लेना उचित नहीं. इसलिए डिप्रैशन की दवाइयों में न उलझें. यह परिस्थिति ऐसी है जो धीरेधीरे वक्त के साथ ठीक हो जाएगी, अगर नींद नहीं आती है तो किसी अच्छे लेखक की किताब पढि़ए, पत्रिकाएं पढि़ए, म्यूजिक सुनिए. याद रखिए. जब वह वक्त नहीं रहा, तो यह वक्त भी गुजर जाएगा.

ब्रेकअप को करें सैलिब्रेट : हर छोटीबड़ी खुशियों को सैलिब्रेट करना जैसे जरूरी है, वैसे ही अपने ब्रेकअप को भी एंजौय करें. खुद को ट्रीट दें. आप को अच्छा महसूस होगा.

आप को शायद पता नहीं, फेसबुक डेटा से साबित हो चुका है कि एक खास दिन को प्रेमी, एकदूसरे से अलग होने का उत्सव मनाते हैं. यह दिन है 11 दिसंबर, जब कई प्रेमी युगलों ने रिश्ता खत्म किया होगा. साइकोलौजिस्ट के मुताबिक, जो एकतरफा प्यार में होते हैं वे लोग साल के अंत में यानी दिसंबर में अपना रिश्ता खत्म कर देते हैं. इस वजह से दिसंबर में ब्रेकअप डे मनाया जाता है.

रिश्ता दिल से

क्या प्यार की कोई सही उम्र होती है? क्या प्यार के लिए कोई छोटा और कोई बूढ़ा होता है? जी नहीं, प्यार की कोई उम्र, कोई सीमा नहीं होती. प्रसिद्ध लेखिका मारिया एजवर्थ ने कहा था कि इंसानी दिल किसी भी उम्र में उस दिल के आगे खुलता है जो बदले में अपने दिल का रास्ता खोल दे. तकरीबन 2 शतक पूर्व कही गई उन की बात आज भी सटीक साबित होती है. शायद इसी बात की मार्मिकता को समझते हुए गजल सम्राट जगजीत सिंह ने फिल्म ‘प्रेम गीत’ (1981) के एक गीत ‘होठों से छू लो तुम…’ की कुछ पंक्तियों में कहा है, ‘न उम्र की सीमा हो… न जन्मों का हो बंधन, जब प्यार करे कोई तो देखे केवल मन…’ चार दशक पहले लिखा यह गीत आज भी प्रासांगिक है. तब प्यार की जो नई परिभाषा कल्पना में पिरो कर शब्दों से सजाई गई थी, आज वह समाज की हकीकत बन गई है.

मनोवैज्ञानिक अदिति सक्सेना कहती हैं, ‘‘हम उम्र के हर पड़ाव में भावनात्मक रूप से जुड़ने की क्षमता को महसूस करते हैं और चाहते हैं कि कोई हो जो हमारा ध्यान करे, हमारी इज्जत करे, हम से प्यार करे.’’

बौलीवुड की फिल्मों का तो यह औलटाइम फेवरेट विषय रहा है. असंख्य फिल्में व गीत प्रेम की मधुरता, प्रेमी से विरह और प्यार में जीनेमरने की स्थितियों को गुनगुनाते सुने व देखे जाते रहे हैं. एक आम आदमी के जीवन में प्यार कभी उस के जीवन की मजबूत कड़ी बनता है, तो कभी मृगतृष्णा की भांति जीवनभर छलावा देता है. ढाई अक्षर के इस शब्द में जीवन की संपूर्णता है.

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जवानी दीवानी

हमारे समाज में जवानी को बहुत महत्त्व दिया जाता है. कुछ इस तरह का माहौल बना रहता है कि यदि जवानी बीत गई तो जीवन ही समाप्त समझो. जीवन की ऊर्जा, उस की क्षमता और उस का उत्साह, सबकुछ जवानी अपने साथ ले जाती है. शायद इसीलिए जवानी जाने के बाद भी अकसर लोग जवान बने रहना चाहते हैं. लेकिन बढ़ती उम्र इतनी बुरी भी नहीं और इस का सब से बड़ा कारण है कि उम्र के साथ हमारे पास अनुभवों का खजाना बढ़ता जाता है जिस से हमारी जिंदगी पहले के मुकाबले और रंगीन व रोचक हो जाती है.

यह जरूरी नहीं कि प्यार पाने के लिए आप जवान ही हों. प्यार किसी भी उम्र में हो सकता है. यह तो वह अनुभूति है जो जिसे छू जाए वही इस का सुख, इस का नशा जानता है. कितनी बार हम यह सोचते हैं कि अब हम प्यार के लिए बूढ़े हो चुके हैं खासकर कि महिलाएं. महिलाएं अकसर रोमांस या नए रिश्ते खोजने में डरती हैं और सोचती हैं कि अब हमारी उम्र निकल चुकी है, अब हमें कौन मिलेगा. लेकिन जरूरी नहीं कि प्यार जवानी में ही मिले.

एक उम्र गुजार देने के बाद जो प्यार मिलता है वह छोटी उम्र के प्यार से बेहतर होता है. आप सोचेंगे कैसे? वह ऐसे कि जब हम जवान होते हैं या कम उम्र होते हैं तो हमारे पास केवल उतनी ही उम्र का तजरबा होता है. जबकि उम्र बढ़ने के साथसाथ हमारे अनुभव बढ़ते हैं, हमारी गलतियां बढ़ती हैं और उन गलतियों से हमारी सीखें भी बढ़ती हैं. इसलिए बड़ी उम्र का प्यार वह गलतियां नहीं करने देता जो छोटी उम्र वाले आशिक अकसर कर बैठते हैं. उम्र गुजार देने के बाद हम अपनी गलतियों से शिक्षा ले आगे की राह सुगम बनाने लगते हैं. हमें पता चल जाता है कि हमें क्या चाहिए और क्या नहीं.

मर्दों को अकसर आत्मविश्वासी औरतें बहुत भाती हैं जिन्हें यह पता हो कि उन्हें खुद से और सामने वाले से क्या चाहिए. इसलिए आजकल ऐसे कई उदाहरण हैं जिन में आशिकों की उम्र में अंतर तो होता है लेकिन साथियों में बड़ी उम्र की औरत होती है और कम उम्र का मर्द. आजकल आप कई ऐसे जोड़े देखेंगे जिन में अधिक उम्र की महिलाओं के साथ कम उम्र के मर्द दिखाई देते हैं.

साइकोलौजिस्ट डा. पल्लवी जोशी कहती हैं, ‘‘प्यार के लिए आपसी सामंजस्य, समझदारी, समर्पण व सम्मान की जरूरत है न कि उम्र की.’’  डा. जोशी के अनुसार ऐसे रिलेशनशिप (जो बड़ी उम्र में बनते हैं) कोई नई बात नहीं है. लेकिन अब जो बदलाव आ रहे हैं उन में यह देखने को मिल रहा है कि महिलाएं ऐसे रिश्तों में ज्यादा खुल कर सामने आ रही हैं.

दिल तो बच्चा है जी

दिल की मासूमियत कभी खत्म नहीं होती. फिर चाहे आप 15 के हों, 30 के, या फिर 55 के ही क्यों न हों. दिल तो हमेशा बच्चा होता है और वह उसी तरह बचपना कर के जिंदगी का आनंद लेता रहता है. दिल कभी भी यह नहीं सोचता कि आप की उम्र क्या है या जिस से आप की आंखें चार होने वाली हैं उस की उम्र और उस का मजहब क्या है. यह सब से अच्छा होता है. सब से खूबसूरत और जिंदादिल होता है. दिल हमेशा जवां होता है, जिसे अपने सब से करीब पाता है, बस, वह उसी का होने को बेताब हो जाता है.

मशहूर सिंगर मैडोना ने 61 वर्ष की उम्र में अपने से 36 वर्ष छोटे लड़के विलियम से प्यार किया. हालांकि, विलियम के मातापिता तक उम्र में मैडोना से छोटे हैं पर वे इस रिश्ते को स्वीकार कर चुके हैं और कहते हैं कि प्यार की कोई उम्र नहीं होती.

मिसेज इंडिया फेम रह चुकीं मीनाक्षी माथुर का कहना है, ‘‘हमारा समाज काफी बदल रहा है. समाज की तरफ से कई ऐसे आयामों को स्वीकृति मिल रही है जो पहले नहीं थी, जैसे बड़ी उम्र का प्यार या लिव इन रिलेशनशिप. लेकिन अब भी हमारे समाज में उतनी मैच्योरिटी नहीं आई है जितनी कि पाश्चात्य समाज में है. पश्चिम के लोग यह जानते हैं कि वे क्या कर रहे हैं. पहले किसी को पसंद करना, फिर उस के साथ रह कर यह देखना कि निबाह हो सकता है या नहीं और फिर शादी का निर्णय लेना. ये सभी परिपक्व सोच की निशानियां हैं.’’

मैच्योर लव

एक सफल रिश्ते के लिए किसी एक का मैच्योर होना महत्त्व रखता है, रूप से नहीं, दिमाग से ताकि रिश्ता संपूर्ण समझदारी व धैर्य से निभाया जा सके. एक मैच्योर साथी धैर्य से रिश्ते की कमजोरियों पर गौर करता है. ठंडे दिमाग से अपनी व अपने प्रियतम की खामियों को दूर करने की पहल करता है. हमें नहीं भूलना चाहिए कि रूप, यौवन एक वक्त के बाद ढल ही जाता है, फिर चाहे वह स्त्री का हो या पुरुष का. तब ताउम्र जो आप के साथ रहता है वह है आप का प्यार, आपसी सामंजस्य, विश्वास, एकदूसरे की परवा व समझदारी. इन की नींव पर खड़ा रिश्ता जिंदगी के आखिरी पड़ाव में आप का हाथ थामे रखता है चूंकि उस की बुनियाद उम्र नहीं, आप का सच्चा प्यार होता है.

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समाजशास्त्री टेसू खेवानी कहती हैं कि स्त्री और पुरुष दोनों एकदूसरे के पूरक होते हैं. दोनों एकदूसरे की तरफ अट्रैक्ट होते ही हैं. जीवन में यदि कोई ऐसा आप को मिलता है जिस से मिलने के बाद आप खुद को पूरा समझने लगते हैं, आप का माइंडसैट, नेचर, बिहेवियर, खूबियां व खामियां सब वह अच्छे से समझता है या कहें कि आप को लगता है कि उस के साथ सब मैच करता है तो आप को बेझिझक आगे बढ़ना चाहिए.

जब प्यार मिलता है तो वह उम्र की सीमाएं नहीं नापता. वह तो बस एक तूफान की तरह आता है और अपने उफान में हमें डुबो लेता है. ऐसे में हमें सच्चे प्यार का आनंद लेना चाहिए. उस का सुख उठाना चाहिए और यह शुक्र मनाना चाहिए कि हमारे साथ यह इस समय हो रहा है. प्यार में पड़ कर भले ही हम 50 के हों किंतु हमें अनुभूति 19 की भी हो सकती है, 25 की भी हो सकती है और 38 की भी.

देशी भी पीछे नहीं

प्यार वह एहसास है जो उम्र को बखूबी हरा सकता है. इस का एक बेहद खूबसूरत उदाहरण है झाबुआ जिले के परगट गांव में रहने वाले बादू सिंह और भूरी की प्रेम कहानी. भूरी का पति शराब पी कर उस से अकसर मारपीट किया करता था जबकि बादू सिंह की पत्नी का देहांत हो चुका था और वह एकाकी जीवन जी रहा था. दोनों मजदूरी करने गुजरात गए और वहीं इन की मुलाकात हुई. मिलने पर इन्हें लगा कि हम दोनों एकदूसरे के लिए सही हैं. बस, यहीं से प्यार की कोंपलें फूटने लगीं.

लेकिन कहानी में असली ट्विस्ट यह रहा कि ये दोनों ही 70 पार की उम्र के हैं. जिस उम्र में हमारा समाज अपने बुजुर्गों को हाथ में माला फेरने और भगवान में मन लगा कर अपनी उम्र पूरी होने की नसीहत देता है, उस उम्र में इन दोनों ने बेखौफ हो कर प्यार किया और समाज की परवा न करते हुए आगे बढ़ चले. दिल के हाथों मजबूर हो कर अपने प्यार को पाने के लिए इन दोनों ने लिवइन में रहना शुरू कर दिया. भूरी कोई आधुनिका नहीं, किसी पौइंट को प्रूव करने के लिए नहीं, किसी संस्था की सदस्य नहीं बल्कि केवल अपने दिल की सुनते हुए ऐसा कर गुजरी.

समाजशास्त्री टेसू खेवानी कहती हैं कि जब हम अपने किसी निर्णय पर अडिग होते हैं तो समाज भी उसे स्वीकार कर ही लेता है. हमारे अपने आत्मविश्वास को देखते हुए जब हमारी अंतरात्मा हमारा साथ देती है तो बाहरी समाज भी खूबसूरती से उसे अपना लेता है. इसलिए जरूरी है कि हम जो निर्णय लें उस पर पूरा विश्वास रखें और डटे रहें.

मनोवैज्ञानिक आधार पर रोमांटिक रिलेशनशिप

मनोवैज्ञानिक आधार पर देखा जाए तो एक सुदृढ़ रिश्ते, जिस में एक अच्छा रोमांटिक रिलेशनशिप भी आता है, का असर हमारे शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा पड़ता है. और इस कारणवश यह जानना बेहद जरूरी हो जाता है कि एक सफल रोमांटिक रिश्ता किन कारणों से बन सकता है. बढ़ती उम्र की आबादी के लिए यह जान लेना स्वास्थ्यवर्धक रहेगा.

जब हम जवान होते हैं तो अपने रिश्ते की नकारात्मकता पर कम ध्यान देते हैं. इस कारण कई बार हम गलत रिश्ते भी बना बैठते हैं. लेकिन बढ़ती उम्र के साथ हम यह समझने लगते हैं कि हमें एक रिश्ते से क्या चाहिए और क्या नहीं. रिश्ते बनाने में भले ही हम अपनी गति धीमी कर लें लेकिन गलती करने से बचना चाहते हैं. संभवतया इसीलिए औरतें रिश्तों में आगे बढ़ने से कतराती हैं. उन्हें ऐसा लगता है कि अब समय बीत चुका है, अब उन्हें उन का साथी नहीं मिलेगा, और वे रोमांटिक रिश्ता ढूंढ़ने में घबराने लगती हैं. लेकिन, साथ ही एक सचाई यह भी है कि बढ़ती उम्र की औरत अपने साथी में कमी न ढूंढ़ कर, उसे ‘जैसा है वैसा ही’ स्वीकार सकती है जबकि एक जवान स्त्री अपने साथी को अपनी तरह बनाने की कोशिश करती रहती है.

58 साल की बेथनी को जब उन का मनपसंद साथी मिला तो दोनों ने एकसाथ रहने का निर्णय किया. न्यूयौर्क में स्थित हडसन रिवर के पास जब उन्होंने अपने घर में एकसाथ रहना शुरू किया तो बेथनी ने अपने अंदर जवानी के दिनों के मुकाबले एक भारी बदलाव महसूस किया. वे कहती हैं, ‘अब तक की सारी जिंदगी में जब भी किसी पुरुष ने मुझ से भिन्न कोई कार्य किया तो मैं ने उसे अपने सांचे में ढालना चाहा. लेकिन, अब एक उम्र निकल जाने के बाद मुझ में यह बदलाव आया है कि अपने से भिन्न तरीके पर मेरी प्रतिक्रिया होती है. अच्छा, यह ऐसे भी हो सकता है, यह तो मैं ने सोचा ही नहीं था. यह तरीका बेहतर है क्योंकि इस में तनाव नहीं.’ बेथनी कहती हैं कि जिंदगी छोटी है और मौत एक दिन जरूर आएगी, और प्यार सच है. इसलिए हम वर्तमान के एकएक पल का लुत्फ उठाना चाहते हैं.

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बहुत हैं उदाहरण

सैलिब्रिटीज की बात करें तो बढ़ती उम्र में प्यार तलाशने वालों की कमी नहीं है. जहां उर्मिला मातोंडकर, प्रीति जिंटा ने 40 पार करने पर शादियां कीं, संजय दत्त ने 48 साल की उम्र में तीसरी शादी की जो उन का सच्चा प्यार साबित हुई. वहीं, सुहासिनी मुले जैसी खूबसूरत अभिनेत्री ने 60 पार करने के बाद और कबीर बेदी ने 70 पार करने के बाद शादियां कीं. नीना गुप्ता जैसी प्रखर स्वभाव की महिला को अपना सच्चा प्यार 43 वर्ष की आयु में मिला. जब वे एक प्लेन में यात्रा कर रही थीं तब उन की मुलाकात पेशे से चार्टर्ड अकाउंटैंट विवेक मेहरा से हुई. 6 साल लिवइन रिलेशनशिप में रहने के बाद उन्हें विश्वास हो गया कि यही उन का सच्चा साथी है और 49 वर्ष की आयु में उन्होंने अपने दिल की आवाज को सुना और विवाह कर लिया.

राजनीति के क्षेत्र में भी ऐसे उदाहरण देखने को मिल जाते हैं. ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जौनसन ने 54 साल की उम्र में एक बार फिर अपने दिल की राह पकड़ी. भारत में भी ऐसा एक किस्सा कांग्रेस के दिग्गज नेता दिग्विजय सिंह का मिलता है जिन्होंने 67 वर्ष की आयु में प्यार की डगर चुनी और अमृता राय से विवाह किया.

हालांकि, ऐसे किस्से कई बार इंटरनैट पर काफी ट्रोल होते हैं. बढ़ती उम्र में प्यार का हाथ थामने वालों को समाज में बहिष्कार और मखौल का पात्र बनना पड़ता है. किंतु जब प्यार किया तो डरना क्या? प्यार का साथ जिस उम्र में भी मिले, बिना संकोच करें बढ़ा हुआ हाथ थाम लेना चाहिए.

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दैनिक आहार में कुछ महत्त्वपूर्ण खाद्यपदार्थ शामिल कर आप अपने उन खास पलों के रोमांच को किस तरह बढ़ा सकते हैं, जरूर जानिए:

सामन:

सामन ओमेगा-3 फैटी ऐसिड डीएचए और ईपीए का एक ज्ञात प्राकृतिक स्रोत है. इस से मस्तिष्क में डोपामाइन स्तर बढ़ने में मदद मिलती है, जिस से उत्तेजना पैदा होती है. ओमेगा-3 डोपामाइन की उत्पादन क्षमता बढ़ाता है. यह मस्तिष्क के लिए एक महत्त्वपूर्ण रसायन है, जो व्यक्ति के चरमसुख की भावना को ट्रिगर करता है.

कद्दू के बीज:

कद्दू के बीज जस्ता (जिंक) का एक बड़ा स्रोत हैं, जो टेस्टोस्टेरौन को बढ़ा देते हैं. इन में आवश्यक मोनोअनसैचुरेटेड वसा भी होती है, जिस से शरीर में कोलैस्ट्रौल बनता है. यौन हारमोन को ठीक से काम करने के लिए कोलैस्ट्रौल की जरूरत पड़ती है.

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बैरीज:

स्ट्राबैरी, ब्लैकबैरी, नीले जामुन ये सभी प्राकृतिक मूड बूस्टर हैं. स्ट्राबैरी में पर्याप्त विटामिन सी और बी होता है. ब्लैकबैरी और नीले जामुन फाइटोकैमिकल युक्त होते हैं, जो व्यक्ति के मूड को रामांटिक बनाते हैं.

केला:

केला पोटैशियम का प्राकृतिक स्रोत है. पोटैशियम एक महत्त्वपूर्ण पोषक तत्त्व है, जो मांसपेशी संकुचन को बढ़ाता है और उन खास पलों में बहुत अहम होता है. साथ ही केला ब्रोमेलैन से समृद्ध होता है, जो टेस्टोस्टेरौन उत्पन्न करने के लिए जिम्मेदार होता है.

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तरबूज:

तरबूज में 92% पानी है, लेकिन बाकी 8% पोषक तत्त्वों से भरा होता है. तरबूज का शांत प्रभाव रक्तवाहिकाओं को शांत करता है. यह स्त्री और पुरुष दोनों के अंगों में रक्तप्रवाह सुधारता है.

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लहसुन:

रोजमर्रा के जीवन में इस्तेमाल किए जाने वाला खास आहार लहसुन ऐलिकिन समृद्ध होता है, जो पुरुषों और महिलाओं दोनों के यौन अंगों में रक्तप्रवाह को बढ़ाता है. रात में शहद में भिगो कर रखा गया कच्चा लहसुन खाना लाभप्रद होता है.

सेक्स लाइफ बेहतर बनाने के लिए करें ये आसान काम

हम अपना वजन कम करने के लिए क्या नहीं करते हैं. इसके लिए हम डाइटिंग भी करते है. जिससे लिए हम कम से कम खाना खाते हैं, लेकिन आप जानते हैं कि कम खाना खाने से कई फायदे हैं. इन्हीं में से एक फायदा है सेक्स लाइफ. कम खाना खाने से आपकी सेक्स लाइफ बेहतर रहती है. यह बात एक शोध में सामने आई.

अगर आप कैलोरी के प्रति सचेत हैं और अतिरिक्त वजन घटाने के लिए स्वास्थ्यवर्धक भोजन ग्रहण करते हैं तो आपके खुश होने का एक और बड़ा कारण मिल गया है. एक दिलचस्प शोध में यह पता चला है कि कम खाने से न सिर्फ लोगों को वजन कम करने में मदद मिलती है, बल्कि यह मूड को भी बेहतर बनाता है और तनाव को कम करता है, जिससे आपकी सेक्स लाइफ बेहतर होती है.

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इस निष्कर्ष तक पहुंचने के लिए लुइसियाना के पेनिंगटन बॉयोमेडिकल रिसर्च सेंटर के शोधकर्ताओं ने 218 स्वस्थ वयस्कों का दो साल तक अध्ययन किया. उन्होंने उन लोगों को दो समूहों में बांटा. एक समूह को 25 फीसदी कम कैलोरी ग्रहण करने को कहा गया. वहीं, दूसरे समूह को अपने सामान्य भोजन को लेने को कहा गया.

शोधकर्ताओं में से एक कोर्बी मार्टिन ने पाया कि जिस समूह ने कम कैलोरी ली थी, उनकी सेक्स लाइफ बेहतर हो गई. कम कैलोरी ग्रहण करने वाले समूह के लोगों की नींद बेहतर हुई और उनका वजन भी घट गया. मोटापे के शिकार लोग अगर कम कैलोरी लें तो उनकी नींद और उनकी यौन प्रणाली बेहतर होती है. यह अध्ययन जामा इंटरनल मेडिसिन जर्नल में प्रकाशित हुआ है.

शोधकर्ताओं का कहना है, “हमारे शोध से पता चला है कि अगर स्वस्थ लोग दो साल तक कम कैलोंरी लें तो इससे उनके लिए उल्टे नतीजे आते हैं अत: यह केवल मोटापे से ग्रस्त लोगों पर ही लागू होता है.”

हाल के एक अध्ययन में पाया गया कि जो लोग बेहद कम भोजन करने वाले/वाली जीवनसाथी के साथ रहते हैं, उनके मोटापा कम करने की संभावना ज्यादा होती है.

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न्यूसाउथवेल्स स्कूल ऑफ साइकोलॉजी विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं के मुताबिक आपके साथ भोजन करने वाला कितना खाना खाता है, यह आप पर गहरा असर डालता है. इसलिए कम खाने वालों के साथ रहने पर आप अपना वजन घटा सकते हैं और जीवनसाथी के साथ संबंधों को बेहतर कर सकते हैं. यह प्रभाव पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं में ज्यादा देखने को मिला है.

सोशल इंफ्लूएंस जर्नल में प्रकाशित इस शोध के मुताबिक, “इसका कारण यह है कि महिलाओं को इस बात की ज्यादा परवाह होती है कि भोजन के दौरान दूसरे उनके बारे में क्या सोचते हैं.”

बारिश में इश्क की खुमारी!

मानसून के मदमाते मौसम में तो उन का प्यार सावन के झड़ी बन कर एकदूसरे पर बरस जाता है. कल की ही बात है. दोनों सुबह ऑफिस जाने के लिए तैयार हो चुके थे. रीना साड़ी पहने हुई थी जबकि रंजन ने फॉर्मल पैंटशर्ट. इसी बीच बारिश ने अपना रंग दिखा दिया. पहले रिमझिम, उस के बाद तेज बरसात. रीना अपनी बालकनी में जा कर आसमान से बरसते पानी का लुत्फ़ लेने लगी. थोड़ी देर में वह भूल गई कि उसे ऑफिस जाना है. बेखयाली में वह थोड़ा सा भीग गई.

रंजन अपने ड्राइंगरूम में बैठा उस का भीगना देख रहा था. बेटी बैडरूम में सो रही थी. रीना का भीगना रंजन में इश्क का बवंडर उठा गया. वह चुपके से रीना के पास गया और उसे अपने आगोश में ले लिया. फिर क्या था, बारिश ने दो जवां दिलों में ऐसी आग लगाई की उन्होंने ऑफिस की सिरदर्दी भूल कर प्यार करने का भरपूर मजा लिया.

गलती उन दोनों की नहीं थी, कसूर तो उस सावन का था जिस ने पतिपत्नी को रोमांटिक होने का मौका दिया. रंजन और रीना ने उस मौके पर शानदार चौका मारा.

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साहिल और प्रियंका तो मानसून में प्यार करने के लिए ऑफिस से कुछ दिन की छुट्टी ले कर शार्ट ट्रिप पर कहीं निकल जाते हैं. अपनी गाड़ी से लौंग ड्राइव पर पार्टनर के साथ जाना उन्हें बेहद पसंद है. ऐसे में भरी बरसात में किसी सुनसान जगह पर कुछ देर कार में ही प्यार करना उन की रूटीन की जिंदगी में रस भर देता है.

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पिछली बारिश के दौरान तो साहिल और प्रियंका ने उत्तराखंड की हरीभरी वादियों में वॉटरप्रूफ टेंट के अंदर खुले आसमां के नीचे एकदूसरे में खोने का भरपूर मजा लिया था जिसे वे कभी भूल नहीं पाएंगे.

मनोज और माही के लिए तो मॉनसून में सब से बेहतरीन आइडिया पार्टनर संग बारिश में भीगते हुए प्यार करना होता है. वे एक मल्टीस्टोरी अपार्टमेंट्स में टॉप फ्लोर पर रहते हैं. वहां उन के अलावा कोई तीसरा झांक भी नहीं सकता है. ऐसे में वे खुले आसमान के नीचे बारिश में भीगते हुए सेक्स का मजा लेते हैं.

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कहने का मतलब है कि दो जवां लोगों में सावन की झड़ी ऐसी आग लगा देती है कि वे ऐसे खूबसूरत पलों का भरपूर मजा लेने से नहीं चूकते हैं. और अगर यह भीगना रात का हो और रेडियो पर गाना ‘भीगीभीगी रातों में, ऐसी बरसातों में…’ बज रहा हो तो प्यार का ज्वार अपनी हद पर होगा, लिख लीजिए.

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