नई शुरुआत : भाग 2

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12वीं जमात में फेल होते ही आभास को उस के पिता ने अपने मछली कारोबार में लगा दिया. आभा स्कूल मास्टर की बेटी थी. वह जहां भी जाती, आभास उसे छोड़ने का एक भी मौका नहीं छोड़ता था. पिता की मौत के बाद हालात ऐसे बने कि आभा व आभास की शादी हो गई. फिर आभा की नौकरी एक स्कूल में लग गई, जहां विनय नाम का एक मास्टर उस के नजदीक आ गया. दोनों में संबंध बने और आभा पेट से हो गई.

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 ‘‘मेरी जरूरतें वैसी नहीं थीं. वह तो औरत की कमजोरी है, जो जरा सा प्यार मिलने पर पिघल जाती है. तुम अपनी बीवी को भी धोखा दे रहे थे. मेरे पास सिर्फ ऐयाशी के लिए आते थे.’’

‘‘तुम कुछ भी समझ सकती हो,’’ विनय बोला.

‘‘हां, कुछ भी कहने से तुम्हें कोई फर्क नहीं पड़ता है, क्योंकि तुम बेशर्म हो. तुम एक नंबर के बुजदिल भी हो. अभी तुम्हारी करतूत तुम्हारी बीवी को बता दूं, तो पतलून गीली हो जाएगी. जाओ, दफा हो जाओ. दोबारा अपना चेहरा मत दिखाना. थूकती हूं तुम पर.

‘‘मैं चाहूं तो कानूनन इस बच्चे का हक भी दिला सकती हूं, पर मैं इतनी कमजोर भी नहीं, जितना तुम ने सोचा होगा,’’ आभा गुस्से में इतना कुछ बोल गई.

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विनय तो चला गया, पर आभा बहुत देर तक रोती रही. वह स्कूल जाती. विनय से सामना भी होता, पर कोई बात नहीं होती. लेकिन विनय का खोट उस की कोख में बारबार चोट मारता था. कुछ ही दिनों के बाद अचानक आभास आया. आभा उसे पहचान न सकी. वह बिलकुल बदल गया था. अच्छे कपड़ों में वह सजासंवरा लग रहा था.

आभास बोला, ‘‘कैसी हो आभा? तुम तो पहले से भी ज्यादा खूबसूरत लग रही हो.’’

आभा बोली, ‘‘मैं ने पैसे तो भेज दिए थे. अब क्या चाहिए तुम्हें? मेरा पीछा छोड़ो.’’

‘‘अरे, तुम मेरी बीवी हो. मैं तुम्हें कैसे छोड़ दूंगा?’’ आभास ने इतना बोल कर जबरन उसे खाट पर बिठा दिया और खुद बगल में बैठ गया.

आभा बोली, ‘‘आज कोई जबरदस्ती की, तो मैं शोर मचाऊंगी.’’

‘‘तुम शोर मचा लो, लेकिन मैं कोई जबरदस्ती नहीं करने जा रहा हूं.’’

‘‘देखो, मैं बहुत परेशान हूं. मुझे और तंग न करो.’’

‘‘मैं तुम्हारी परेशानी जानता हूं. जैसा भी हूं, तुम्हारा पति हूं, तुम्हें मुसीबत से बचाने आया हूं. मैं सब जानता हूं.’’ आभा हैरानी से उस की ओर देख कर बोली, ‘‘क्या जानते हो तुम?’’

आभास बड़े ही सब्र से बोला, ‘‘तुम मां बनने वाली हो.’’

आभा को बड़ी हैरानी हुई. वह बोली, ‘‘तुम्हें यह सब कैसे पता चला?’’

‘‘वह सब मैं रास्ते में बताऊंगा. तुम स्कूल जा कर एक हफ्ते की छुट्टी ले लो, फिर आ कर जौइन कर लेना.’’

आभास और आभा टैक्सी से फतुहा जा रहे थे. आभा के पूछने पर आभास बोला, ‘‘तुम्हें जो लड़का सुबहसुबह दूध और अखबार पहुंचाता है, उसे मैं अच्छी तरह से जानता हूं. मैं बीचबीच में यहां भी आता रहा हूं. मास्टर बाबू की मोटरसाइकिल भी तुम्हारे घर के सामने कई बार देख चुका हूं और बाकी खबर उस लड़के से फोन पर लेता रहता हूं. उसी लड़के ने बताया था कि तुम औरतों की डाक्टर से मिलने भी गई थीं.’’

आभास ने आभा का हाथ अपने हाथ में ले लिया. आभा की आंखों से आंसू की बूंदें उस की हथेली पर गिर रही थीं.

आभा बोली, ‘‘तुम इतना बदल कैसे गए?’’

‘‘जब मैं तुम्हारे पास रुपए मांगने गया था, तब तुम्हारी फटकार से मुझे बहुत दुख हुआ. मैं ने 2 साल का आईटीआई का इलैक्ट्रिकल ट्रेड कोर्स में दाखिला लिया. उस के बाद अपनी एक इलैक्ट्रिकल सामान की दुकान खोली और नए बन रहे घरों में वायरिंग का काम किया.

‘‘बाद में पटना में अपार्टमैंट्स में वायरिंग का ठेका लेने लगा. अब तो कुछ ठेके सरकार से भी मिलने लगे हैं. यह सब तुम्हारी वजह से ही हुआ है.’’

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आभा उस से सटते हुए बोली, ‘‘मुझे माफ करना. मुझ से भूल हो गई.’’

‘‘माफीवाफी छोड़ो. घर चल कर तुम भूल कर भी उस मास्टर का नाम न लेना. मां जानती हैं कि मैं बीचबीच में इसलामपुर तुम्हारे पास आता रहता हूं. किसी को तुम्हारे पेट से होने को ले कर कोई शक नहीं होगा.’’

‘‘मगर, यह बच्चा तो विनय का ही है.’’

‘‘यह बच्चा सिर्फ हम दोनों का होगा. तुम कहो, तो मास्टर की टांगें तुड़वा दूं?’’

‘‘नहीं, ऐसा कुछ नहीं करना,’’ आभा बोली.

आभास बोला, ‘‘जैसा तुम कहो.’’

आभा अपनी ससुराल आ गई थी. अब घर पहले से काफी साफसुथरा लगता था. रात में जब आभास उस के पास आया, तो वह बोली, ‘‘आज मछली की बदबू नहीं आ रही है.’’

आभास बोला, ‘‘अब सरकार ने मछली वाला ठेका दूसरी पार्टी को दे दिया है. यहां का विधायक मेरी पहचान का है. वही शिक्षा मंत्री भी है. सोच रहा हूं कि उस से बोल कर तुम्हारा ट्रांसफर यहीं करवा दूं.

‘‘कुछ महीने में तुम्हारा काम हो जाएगा. तब तक वहीं काम करती रहो. अगर तुम चाहो, तो नौकरी छोड़ भी सकती हो.’’

आभा बोली, ‘‘आभास, अब मैं जिंदगी के उतारचढ़ाव से थक गई हूं. अब एक सीधीसादी जिंदगी जीने का मन कर रहा है.’’

आभास ने उस से पूछा, ‘‘अच्छा, सचसच बताना कि क्या सारी गलती मेरी ही थी?’’

‘‘कुछ तुम्हारी, कुछ मेरी और कुछ हम दोनों की.’’

‘‘तब क्यों न पुरानी बातों को भूल कर एक नई जिंदगी की शुरुआत करें… आज से और अभी से?’’

यह सुनते ही आभा आभास की बांहों में समा गई.

एक रात : भाग 3

लेखक- मृणालिका दूबे

‘‘क्या हुआ? क्या टूट गया विक्रम?’’ कहती हुई नीता हाल में आई तो उस ने देखा, विक्रम पागलों की तरह टीवी स्क्रीन को घूर रहा था और उस का कप नीचे गिर कर टूट चुका था.

नीता ने झुक कर टूटा कप सावधानी से उठाया और चिंतित स्वर में बोली, ‘‘तबीयत तो ठीक है न तुम्हारी? दूसरी चाय बना कर लाऊं?’’

विक्रम ने सिर हिलाते हुए मना कर दिया. फिर जल्दी से मोबाइल उठा कर साहिल को काल लगाने लगा. साहिल के काल पिक करते ही विक्रम ने कंपकंपाते हुए स्वर में धीरे से कहा, ‘‘हैलो साहिल, तुम ने न्यूज देखी क्या अभी की?’’

उधर से साहिल की अलसाई आवाज आई, ‘‘ओह यार, मैं तो अब तक सो ही रहा था. क्यों, क्या न्यूज है ऐसी, जो इतना परेशान हो कर काल कर रहा है तू?’’

‘‘ओफ्फोह साहिल, प्लीज जल्दी से टीवी औन कर और न्यूज देख अभी.’’ विक्रम ने किसी तरह कहा और काल कट कर मोबाइल टेबल पर रख दिया.

नीता यह सब देखसुन कर हैरान होते हुए बोली, ‘‘ओह तो इस लड़की की हत्या की खबर से तुम इतने परेशान हो रहे हो. क्या तुम जानते थे इसे?’’

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‘‘मैं? न..नहीं तो. भला मैं कैसे जानूंगा इस लड़की को?’’ विक्रम ने हकलाते हुए कहा.

तभी विक्रम का मोबाइल बज उठा.

हड़बड़ाते हुए विक्रम ने मोबाइल उठा कर देखा तो एक अनजान नंबर था. उस ने काल पिक करते हुए धीरे से हैलो कहा.

तो दूसरी ओर से एक रूखी आवाज आई, ‘‘मिस्टर विक्रम बोल रहे हैं? आप को अभी 11 बजे बांद्रा पुलिस स्टेशन में बुलाया है हमारे साब ने.’’

विक्रम के कुछ कहने से पहले ही काल कट हो गई.

‘‘ओह गौड, मैं तो भूल ही गया था. कल रात मिले पुलिस अफसर के बारे में.’’ विक्रम बुदबुदाया.

फिर नीता के कुछ पूछने से पहले ही वाशरूम में घुस गया.

जब विक्रम तैयार हो कर वाशरूम से बाहर आया तो नीता ब्रेकफास्ट सर्व कर चुकी थी. वह विक्रम से बोली, ‘‘आप जल्दी से ब्रेकफास्ट कर लो फिर थोड़ा मार्केट जाएंगे. अभी तो आप की ड्यूटी जाने के लिए 3-4 घंटे हैं.’’

विक्रम ने जल्दी से चाय पी फिर बोला, ‘‘सौरी, मुझे एक बेहद जरूरी काम के सिलसिले में अभी निकलना होगा. मैं उधर से ही औफिस चला जाऊंगा.’’

नीता ने मुंह बनाया और फिर गुस्से से कप ले कर अंदर चली गई.

और कोई दिन होता तो विक्रम यूं गुस्से में भरी नीता को मनाए बिना घर से बाहर कदम नहीं रखता, पर अभी तो विक्रम के दिलोदिमाग में बस कल रात की घटना और आज सुबह की न्यूज ही घूम रही थी.

विक्रम ने बिल्डिंग के बाहर निकल कर साहिल को काल किया, ‘‘हैलो साहिल, तुम्हें पुलिस स्टेशन से काल आया क्या 11 बजे पहुंचने का?’’

साहिल ने घबराते हुए कहा, ‘‘ओह यार, मैं अभी तुझे ही काल करने वाला था. टीवी पर उस रात वाली लड़की की डैडबौडी देख कर तो मेरे छक्के छूट गए. और उस पर पुलिस स्टेशन का बुलावा…पता नहीं यार मेरा तो दिल बैठा जा रहा है.’’

विक्रम ने जल्दी से कहा, ‘‘सुन, मैं तेरे स्टौप पर पहुंच रहा हूं. फिर साथ में ही चलेंगे हम.’’

कुछ देर बाद विक्रम और साहिल पुलिस स्टेशन में कल रात मिले पुलिस अफसर के सामने बैठे थे.

औफिसर ने दोनों को घूरते हुए देखा. फिर कड़क लहजे में बोला, ‘‘तो आखिर मार ही डाला आप ने उस मासूम लड़की को. मुझे तो कल रात ही डाउट हो गया था कि आप दोनों के इरादे ठीक नहीं, पर तब मुझे अर्जेंट मिशन पर जाना था. ओह काश! मैं कल ही दोनों को अरेस्ट कर लेता तो आज वो बेचारी जिंदा होती.’’

विक्रम घबरा कर जोर से बोला, ‘‘नहींनहीं सर, हम भला क्यों उस लड़की को मारेंगे? हम तो उसे जानते भी नहीं.’’

‘‘अच्छा, तो फिर कल रात क्यों कहा कि वो लड़की तुम्हारे बौस मिस्टर कबीर की मंगेतर है?’’ औफिसर ने सख्ती से कहा.

अब साहिल बेहद नरमी से बोला, ‘‘सर, हम बिलकुल सच कह रहे हैं कि उस लड़की को हम जानते तक नहीं और न ही कभी पहले देखा था. वही अचानक कल रात हमें औफिस के बाहर मिल गई थी और फिर बाद में खुद उस ने ही लिफ्ट देने की पेशकश की.’’

औफिसर ने व्यंग से कहा, ‘‘ओह अच्छा, फिर लिफ्ट देने के बदले में आप ने उस लड़की ने जान ले ली. क्यों है न?’’

विक्रम और साहिल कुछ बोलते कि तभी सामने से हैरानपरेशान मिस्टर कबीर आ खड़े हुए.

बौस को देखते ही विक्रम और साहिल चौंक कर उन्हें विश करते हुए बोले, ‘‘गुड मौर्निंग सर, आप और यहां?’’

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जवाब औफिसर ने दिया, ‘‘मिस्टर कबीर को मैं ने ही यहां बुलवाया है. क्योंकि कल रात आप दोनों ने कहा था न कि वो लड़की मिस्टर कबीर की फियांसे है. तो अब इन से पूछताछ तो करनी ही थी.’’

‘‘फियांसे? मेरी…कौन है वो?’’ मिस्टर कबीर ने हैरत से पूछा.

औफिसर ने न्यूजपेपर उठा कर उस लड़की का फोटो मिस्टर कबीर को दिखाया. फिर कहा, ‘‘तो बताइए मिस्टर कबीर कि ये लड़की क्या सच में आप की फियांसे है? इस ने कल रात अपना नाम सुनैना साहनी बताया था, जबकि जांच से पता चला है कि इस का नाम निया है और ये एक स्ट्रगलिंग एक्ट्रैस है.’’

कबीर ने उस फोटो को एक नजर देखा फिर गंभीर स्वर में बोला, ‘‘इस लड़की को तो मैं ने कभी देखा भी नहीं है. और मेरी फियांसे सिंगापुर में रहती है. शीना नाम है उस का. वहां एक बड़ी कंपनी में सीनियर एग्जीक्यूटिव है वो.’’

‘‘अब? अब क्या कहना है दोनों का?’’ औफिसर ने घेरते हुए विक्रम और साहिल से पूछा.

विक्रम और साहिल दोनों के चेहरों पर मायूसी गहरा उठी. वे समझ गए कि इस केस में वे बुरी तरह से फंस गए हैं.

उन्हें खामोश देख कर मिस्टर कबीर ने जोर से कहा, ‘‘ये क्या बकवास फैला रहे हो तुम दोनों मेरे खिलाफ? भूलो मत कि तुम्हारी नौकरी मेरे रहमोकरम पर ही टिकी है.’’

‘‘सर, हम सच कह रहे हैं. वह लड़की कल रात आप के ही बारे में पूछती हुई औफिस के बाहर मिली थी हमें. और उस ने ही बताया था कि वह आप की फियांसे है.’’ साहिल ने बेचारगी से कहा.

मिस्टर कबीर ने उन की ओर बिना देखे ही औफिसर से पूछा, ‘‘सर, अगर अब आप को तसल्ली हो गई हो तो मैं जाऊं? मुझे और भी बहुत से इंर्पोटेंट काम निपटाने हैं.’’

अफसर के सिर हिलाते ही मिस्टर कबीर तेजी से वहां से निकल गए.

अफसर ने अब विक्रम और साहिल की ओर हंस कर देखा, ‘‘क्यों बच्चू, बड़े चालाक समझ रहे हो खुद को? पर अगर मैं एक मिनट को मान भी लूं कि तुम सच्चे हो तो क्या जरूरत थी तुम्हें एक अनजानी लड़की से लिफ्ट लेने की? क्या तुम किसी कैब में नहीं आ सकते थे?’’

विक्रम और साहिल तो लगभग रो ही पड़े.

तभी औफिसर बोला, ‘‘अभी ये बात मैं ने किसी भी दूसरे औफिसर या मीडिया को नहीं बताई है कि कल रात तुम दोनों उस लड़की के साथ ही थे. नहीं तो सोचो कि ये बात पता चलते ही तुम्हें तो जमानत भी नहीं मिलने वाली. और कल के न्यूजपेपर में तुम दोनों की ही फोटोज हेडलाइन की शोभा बढ़ाएंगी.’’

‘‘नहीं, नहीं सर, प्लीज ऐसा मत करिए आप.’’ कहते हुए विक्रम और साहिल औफिसर के आगे गिड़गिड़ाने लगे.

औफिसर कुछ देर मौन टहलता रहा. फिर अचानक ही विक्रम और साहिल के करीब आते हुए बोला, ‘‘ओके, मैं तुम्हारी हेल्प करूंगा. पर…एक हेल्प तुम्हें भी करनी पड़ेगी.’’

‘‘बोलिए सर, हम कुछ भी करने को तैयार हैं.’’ विक्रम और साहिल ने हाथ जोड़ कर कहा.

‘‘मर्डर…एक मर्डर करना है तुम दोनों को. और वो भी आज ही.’’ अफसर ने धीमे किंतु सख्त लहजे में कहा.

‘‘मर्डर? क्या बोल रहे हैं सर आप?’’ विक्रम ने घबराहट भरे स्वर में कहा.

साहिल भी रुआंसा हो कहने लगा, ‘‘सर, हम कोई मर्डरर नहीं हैं. हम तो बस कंपनी के एंप्लाइज हैं.’’

औफिसर ने अब दोनों को जलती नजरों से घूरा. फिर कठोर शब्दों में बोला, ‘‘यहां कोई डिबेट नहीं चल रहा है, जो तुम दोनों अलगअलग तर्कवितर्क देते बैठे हो. ये तुम्हारे पास एक लास्ट चांस है जीने का. अगर जीना चाहते हो तो मेरी बात मान लो, नहीं तो फिर एक बार अगर मैं कल रात की दास्तान दूसरे औफिसर्स को बता दी तो फिर कोई भी तुम्हें बचा नहीं सकेगा.’’

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रूम में एकदम सन्नाटा छा गया.

कुछ पलों बाद विक्रम हताश स्वर में बोला, ‘‘किस का मर्डर करवाना चाहते हैं आप?’’

‘‘मिस्टर कबीर का.’’ औफिसर ने ठंडे लहजे में कहा.

‘‘क्याऽऽ मिस्टर कबीर का मर्डर? पर क्यों?’’ साहिल और विक्रम दोनों ही जोर से बोल पड़े.

‘‘अब क्यों, किसलिए, ये सब सवाल न ही पूछो तो अच्छा रहेगा. तुम्हारे लिए यह जानना जरूरी है कि कब? कत्ल कब करना है?’’ औफिसर ने एकएक शब्द चबाते हुए कहा.

एक रात : भाग 2

लेखक- मृणालिका दूबे

साहिल और विक्रम गाड़ी से उतर कर मन ही मन भुनभुनाते हुए धक्का लगाने लगे, तभी रात के सन्नाटे में एकदम से पुलिस सायरन की आवाज गूंज उठी.

कुछ ही पलों में एक पुलिस जीप आ कर निया की गाड़ी के पास रुक गई.

विक्रम और साहिल ठिठक कर जीप की ओर देखने लगे. उस में से एक पुलिस अफसर उतरा और इन दोनों के करीब आता हुआ कड़क लहजे में बोला, ‘‘आधी रात के वक्त इस सुनसान सड़क पर क्या कर रहे हो तुम लोग?’’

विक्रम ने मुंह बनाते हुए कहा, ‘‘करेंगे क्या, अपनी किस्मत को कोसते हुए इस बंद पड़ी गाड़ी को धकेल रहे हैं.’’

अफसर का लहजा अब और सख्त हो गया, ‘‘सीधेसीधे बताओ कि बात क्या है? यूं फिलासफी झाड़ने के लिए नहीं कहा मैं ने.’’

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अब निया गाड़ी से बाहर निकलती हुई नरमी से बोली, ‘‘सर, हम औफिस से घर जा रहे थे कि रास्ते में अचानक ही गाड़ी बंद पड़ गई.’’

‘‘ओह तो ये बात है…’’ पुलिस अफसर ने घूरते हुए कहा.

फिर अपने साथ खड़े कांस्टेबल से बोला, ‘‘जरा तलाशी तो लो इस गाड़ी की अच्छे से.’’

कांस्टेबल तुरंत आगे बढ़ कर गाड़ी की तलाशी लेने लगे. अफसर ने निया से गाड़ी के पेपर्स मांगे तो निया हिचकते हुए बोली, ‘‘सर, प्लीज आप बिनावजह तलाशी ले रहे हैं. देखिए न कितनी रात हो चुकी है. और मैं अकेली लड़की…’’

‘‘अकेली? अकेली कहां हैं आप…ये दोनों भी तो आप ही के साथ हैं न?’’ अफसर ने जोर देते हुए कहा.

फिर गाड़ी के पेपर्स देखते ही एकदम चौंक कर बोला, ‘‘सुनैना साहनी? आप सुनैना हो, वो फेमस रिपोर्टर?’’

अफसर की बात सुनते ही विक्रम और साहिल चौंक गए, ‘‘सुनैना… पर इस ने तो अपना नाम निया बताया था हमें. क्या ड्रामा कर रही है ये लड़की.’’

निया ने बहुत धीमी आवाज में अफसर से कहा, ‘‘सौरी सर, पर मेरा नाम सुनैना ही है. और मैं घर जा रही थी कि अचानक बीच रास्ते में गाड़ी खराब हो गई. वो तो अच्छा हुआ कि ये दो भले लोग मिल गए मुझे धक्का मारने के लिए.’’

अब तो विक्रम लगभग बरस ही पड़ा, ‘‘क्या? हम तुम्हें रास्ते में मिल गए? अरे, हम दोनों को तो तुम्हीं ने लिफ्ट दी थी न हमारे औफिस के पास से? और तुम ने तो अपना नाम निया बताया था.’’

यह सुनते ही औफिसर की आंखें सिकुड़ गईं. उस ने घूरते हुए निया उर्फ सुनैना को देखा और गंभीर स्वर में बोला, ‘‘ये क्या ड्रामा चल रहा है? सचसच बताइए, माजरा क्या है आखिर?’’

निया हाथ जोड़ कर रुआंसे हो कहने लगी, ‘‘सर, आप ही बताइए कि क्या आधी रात को कोई अकेली लड़की दो अजनबी युवकों को अपनी गाड़ी में लिफ्ट देगी?’’

औफिसर कुछ कहता कि साहिल चिढ़ कर बोला, ‘‘हद होती है झूठ की भी. सर, हम सच कह रहे हैं कि ये लड़की हमें हमारे औफिस के बाहर मिली थी और हम से कहा कि ये हमारे बौस मिस्टर कबीर की फियांसे है. और इस ने ही सामने से औफर किया कि हम उस की गाड़ी में चलें.’’

अब वो लड़की एकदम से चिल्लाते हुए कहने लगी, ‘‘ये क्या बकवास कर रहे हो तुम लोग? मैं क्या पागल हूं जो इतनी रात गए 2 लड़कों को लिफ्ट दूंगी? और ये किस कबीर की बात कर रहे हो तुम दोनों? मैं न तो किसी कबीर को जानती और न ही अब तक मेरी किसी से भी इंगेजमेंट हुई है.’’

अब तो विक्रम और साहिल हतप्रभ हो उस लड़की को घूरने लगे.

तभी अफसर ने जोर से कहा, ‘‘आप तीनों अपना नाम एड्रैस और मोबाइल नंबर नोट कराइए और कल सुबह जब आप को थाने बुलाया जाएगा, तब शराफत से चले आना. अब बाकी पूछताछ कल थाने में ही होगी. अभी मुझे एक क्रिमिनल के अड्डे पर रेड डालना है. चलो, अब निकलो यहां से.’’

विक्रम और साहिल पैर पटकते हुए वहां से चल दिए. कुछ दूर जा कर साहिल ने मोबाइल निकाल कर कैब बुक कराई और लोकेशन सेंड कर वे दोनों कैब का वेट करने लगे.

पुलिस की गाड़ी तेजी से आगे बढ़ गई. विक्रम ने साहिल से कहा, ‘‘उस लड़की ने तो हमें अच्छा उल्लू बनाया. खामख्वाह ही हम पुलिस के झंझट में फंस गए.’’

साहिल चिढ़े स्वर में बोला, ‘‘कल तो मैं पक्का पुलिस स्टेशन में उस लड़की की अच्छी खबर लूंगा.’’

विक्रम कुछ कहता कि तभी कैब आती हुई दिखी. जल्दी ही दोनों कैब में बैठ उस लड़की के बारे में सोचते हुए अपने घर की ओर चल दिए.

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पहले साहिल अपने स्टौप पर उतर गया और फिर विक्रम अपने एड्रैस की ओर चल पड़ा. कैब से उतर कर जब विक्रम अपनी बिल्डिंग की ओर बढ़ा तो वहां के गेट पर खड़े सिक्योरिटी गार्ड ने हैरानी से कहा, ‘‘क्या बात है साब, आज तो आप ने घर लौटने में बड़ी देर लगा दी.’’ विक्रम बिना कुछ बोले लिफ्ट की ओर बढ़ गया.

जैसे ही अपने फ्लैट का दरवाजा खोल वह अंदर पहुंचा तो लाइट्स जलती हुई देख हैरान रह गया. सोफे पर नाइटी पहने नीता गुस्से से भरी मोबाइल अपने हाथ में लिए बैठी थी.

विक्रम को देखते ही नीता एकदम से चिल्ला कर बोली, ‘‘ये कोई वक्त है घर आने का? ढाई बज चुके हैं. इस से तो अच्छा होता कि आप अपने औफिस में ही सो जाते.’’

विक्रम ने अपने को संभालते हुए बड़ी नरमी से नीता का हाथ पकड़ा और प्यार से बोला, ‘‘ओह बेबी, तुम क्यों जाग रही थी इतनी रात तक? तुम्हें तो सो जाना चाहिए था न.’’

नीता गुस्से से उबल पड़ी, ‘‘ओह तो आप भूल गए न कि आज हमारी शादी को एक महीने पूरे हो गए. मुझे लगा था कि कम से कम आज तो आप जल्दी आओगे. पर आज तो आप ने सारी लिमिट ही क्रौस कर दी.’’ और वह फूटफूट कर रोने लगी.

विक्रम सब भूल कर नीता को शांत करने में जुट गया. फिर उसे प्यार से अपनी बांहों में भरते हुए बोला, ‘‘आई एम रियली वेरी सौरी बेबी. वो आज तो मैं जल्दी ही घर आने वाला था, पर औफिस की कैब खराब होने की वजह से इतना लेट हो गया.’’

नीता ने गुस्से से विक्रम को देखा, फिर तुनकते हुए बोली, ‘‘हुंह, अभी तो एक महीना ही हुआ है शादी को और अभी से तुम्हारा ये हाल है तो पता नहीं आगे क्या होगा.’’

विक्रम ने उस का हाथ पकड़ना चाहा पर नीता हाथ झटक कर चल दी और बैडरूम में लाइट औफ कर दरवाजा बंद कर सो गई.

विक्रम ने उसे कई बार पुकरा पर नीता ने कोई जवाब नहीं दिया. आखिर थकाहारा विक्रम वहीं रखे सोफे पर सो गया.

‘‘विक्रम, उठो और चाय पी लो.’’ नीता की आवाज सुनते ही विक्रम ने अपनी आंखें खोलीं. उस की नजर घड़ी पर गई. वो बुदबुदाया, ‘‘ओह गौड! आज तो बहुत देर तक सोता रहा मैं.’’

फिर चाय का कप उठा विक्रम चाय पीने लगा. नीता अब तक नाराज लग रही थी. उस ने टीवी औन कर के न्यूज चैनल लगाया और फिर अंदर किचन में चली गई.

चाय पीते हुए विक्रम का ध्यान अचानक ही टीवी पर गया, वहां न्यूज रीडर कल रात की हैरतअंगेज घटना का जिक्र कर रहा था.

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न्यूज रीडर कह रहा था, ‘‘कल आधी रात को एक जवान लड़की निया की लाश उस की गाड़ी में मिली है. लड़की की हत्या उस की गरदन काट कर की गई है. पता नहीं वो कौन निर्मम हत्यारा है, जिसे इतनी खूबसूरत लड़की की गरदन काटते हुए जरा भी दया नहीं आई. पुलिस सरगरमी से हत्यारे की तलाश में जुटी है.’’

विक्रम के दिल की धड़कनें तेज हो गईं. फिर जब टीवी स्क्रीन पर उस लड़की की लाश दिखाई गई तो विक्रम के हाथ से कप छूट कर नीचे जमीन पर जा गिरा, ‘ये तो उसी लड़की की लाश थी, जिस ने कल रात उन्हें लिफ्ट दी थी. तो क्या उस का असली नाम निया ही था?’

एक रात : भाग 1

लेखक- मृणालिका दूबे

विक्रम ने टाइम देखा और बेचैन होते हुए अपनी बगल में बैठे साहिल से बोला, ‘‘ओफ्फ!

आज भी काम खत्म करतेकरते 11 बज ही गए.’’

‘‘तो इस में नई बात क्या है यार, रोज ही तो देर हो जाती है हमें.’’ साहिल कंप्यूटर औफ करते हुए लापरवाही से बोल पड़ा.

‘‘ओहो साहिल, इतना भी नहीं समझते कि रात देर हो जाने पर हमारे विक्रम को घर पर नीता भाभी की डांट सुननी पड़ती है,’’ सामने से अपना बैग लिए आते हुए रोहित ने विक्रम को छेड़ते हुए मजाक किया.

दरअसल, विक्रम की पिछले महीने ही शादी हुई थी. उस की बीवी नीता एक बेहद सुंदर और स्मार्ट युवती थी. विक्रम की उस से मुलाकात एक रात अचानक ही एक शेयरिंग कैब में हुई, जब वह रात को ड्यूटी के बाद अपने घर जा रहा था. नीता भी अपनी ड्यूटी खत्म कर घर जाने के लिए निकली थी.

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पहली मुलाकात में ही नीता की मासूमियत और भोलेपन ने विक्रम का दिल चुरा लिया. वह हैरान था कि मुंबई में रह कर लेट नाइट जौब करने वाली नीता एकदम बच्चे की तरह मासूम थी. जल्दी ही उन की मुलाकातें बढ़ने लगीं जो सीधे शादी के मंडप तक जा पहुंची. नीता को अपना हमसफर बना कर विक्रम खुद को दुनिया का सब से भाग्यशाली इंसान समझता था.

इस एक महीने में ही नीता ने विक्रम को अपने प्यार के सागर में इस कदर डुबोया था कि विक्रम का रोमरोम नीता का गुलाम बन गया था.

हर दिन विक्रम सोचता कि आज रात वह जल्दी जा कर नीता को सरप्राइज देगा, पर लाख कोशिशों के बाद भी उस का काम खत्म होतेहोते 11 बज ही जाते और फिर जब 12 बजे तक वह घर पहुंचता, नीता उसे गहरी नींद में सोई हुई मिलती.

इसलिए विक्रम और नीता दोनों ही बड़ी बेसब्री से वीकेंड का इंतजार करते. और इन दो दिनों में ही पूरे हफ्ते की कसर निकाल लेते. सैटरडे संडे बस घूमनाफिरना, बाहर खाना और जी भर के प्यार करना.

‘‘क्या हुआ विक्रम? कहां खो गए?’’ साहिल की आवाज सुनते ही विक्रम ने चौंकते हुए उसे देखा.

फिर गरदन झटकते हुए बोला, ‘‘कुछ नहीं यार, बस थोड़ा खयालों में खो गया था. चल, अब चलते हैं.’’

साहिल और विक्रम दोनों ही बैग लिए औफिस के बाहर निकले. रोहित का काम बाकी होने से वह रुक गया था. औफिस के बाहर रात का गहरा अंधकार और सन्नाटा पसरा हुआ था. गाडि़यों की आवाजाही बहुत कम हो चुकी थी. बस कुछ आवारा कुत्तों के भौंकने का स्वर गूंज रहा था.

विक्रम ने देखा, बाहर पार्किंग में औफिस की कैब नजर नहीं आ रही थी. वह झल्लाते हुए साहिल से बोला, ‘‘हद है यार, ये कैब ड्राइवर को कितनी बार कहा है कि रात को 10 बजे ही आ कर औफिस की पार्किंग में खड़ा रहे, पर नहीं. कभी भी टाइम पर तो आएगा ही नहीं वो.’’

‘‘कूल डाउन यार, क्यों झुंझला रहा है तू.’’ साहिल ने उस के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा.

विक्रम कुछ कहने ही वाला था कि अचानक ही दूर से एक लड़की आती हुई दिखी, वे दोनों ध्यान से उधर ही देखने लगे.

लड़की जब करीब आई तो विक्रम और साहिल उसे देख अवाक रह गए. वह 20-22 साल की अत्यंत खूबसूरत लड़की थी. गोरा दमकता रंग, खुले घुंघराले काले बाल, बड़ीबड़ी आंखें और सुर्ख लाल होंठ.

उस लड़की ने पिंक टौप और ब्लू स्कर्ट पहन रखी थी, जिस में वह एक खूबसूरत गुलाब की तरह नजर आ रही थी. विक्रम और साहिल को यूं आंखें फाड़े स्टैच्यू बने हुए देख वह लड़की पहले तो थोड़ी सकुचाई, फिर चुटकी बजा उन का ध्यान आकर्षित करते हुए बोली, ‘‘एक्सक्यूज मी, क्या मिस्टर कबीर अभी औफिस में हैं? एक्चुअली उन का मोबाइल आउट औफ कवरेज आ रहा है.’’

साहिल ने उस लड़की की ओर ध्यान से देखा, फिर बोला, ‘‘मिस्टर कबीर तो हमारे बौस हैं. आप को उन से क्या काम है, जरा बताएंगी आप?’’

वह लड़की कुछ पल मौन रही. फिर धीमे स्वर में बोली, ‘‘मैं निया हूं, कबीर की फियांसे. पिछले हफ्ते मैं लंदन गई थी. आज शाम ही वापस आई हूं. तब से अब तक कबीर का नंबर ही नहीं लग रहा है. मैं उस के घर गई तो वहां भी नहीं है. नौकर ने बताया कि वह तो आज सुबह से ही बाहर चले गए हैं. मुझे उन से बहुत अर्जेंट काम है, इसलिए उन से मिलने यहां औफिस में चली आई.’’

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साहिल ने निया की बात खत्म होते ही तुरंत कहा, ‘‘पर मिस्टर कबीर तो आज औफिस नहीं आए हैं. हां, उन का मेल जरूर आया था सुबह कि आज वह औफिस नहीं आने वाले.’’

निया का सुंदर चेहरा एकदम उतर सा गया. वह कुछ पल मौन रही फिर चिंतित स्वर में बोली, ‘‘समझ नहीं आ रहा कि कबीर यूं अचानक गया कहां? आज तक तो कभी भी वह मुझे बिना इनफौर्म किए कहीं बाहर नहीं जाता था. और फिर उस का मोबाइल… वो क्यों आउट औफ कवरेज आ रहा है आखिर?’’

‘‘आप परेशान मत होइए मिस निया, मिस्टर कबीर को जरूर कोई अर्जेंट काम आया होगा, इसलिए वह आज औफिस भी नहीं आए. रात बहुत हो चुकी है, मेरा खयाल है आप को अब घर चले जाना चाहिए.’’ विक्रम समझाते हुए बोला.

विक्रम की बात सुनते ही निया अचानक सिसकने लगी. उस की बड़ीबड़ी आंखों में आंसू छलक पड़े.

तभी साहिल का मोबाइल बज उठा, उस ने देखा कि कैब ड्राइवर की काल थी.

साहिल के हैलो कहते ही उधर से कैब ड्राइवर बोला, ‘‘साब, हमारी गाड़ी तो स्टार्ट ही नहीं हो रही है. पता नहीं क्या प्राब्लम आ गई इंजन में. आप लोगों को अब कोई दूसरी कैब कर के घर जाना पड़ेगा.’’

साहिल ने मुंह बनाते हुए ‘ओके’ कहा फिर काल डिसकनेक्ट करते हुए विक्रम से कहा, ‘‘चलो यार, अब इतनी रात को हमें कैब बुलानी पड़ेगी, तब घर जा पाएंगे. हमारी वाली कैब तो खराब हो गई है.’’

‘‘ओह गौड, अब पता नहीं कब तो दूसरी कैब आएगी और कब हम घर पहुंच पाएंगे. इस से अच्छा तो चलो रोड पर आतीजाती किसी टैक्सी या आटो में ट्राई करते हैं.’’ विक्रम ने चिढ़ते हुए कहा.

अभी साहिल और विक्रम कुछ तय कर पाते कि अचानक निया बोली, ‘‘अगर आप लोगों को औब्जेक्शन न हो तो मेरी गाड़ी यहां से कुछ दूरी पर खड़ी है. मैं आप दोनों को ड्रौप कर देती हूं आप के घर तक.’’

‘‘ओह नो, आप क्यों तकलीफ करेंगी इतनी रात गए. हम चले जाएंगे.’’ साहिल बोल पड़ा.

निया एकदम से बोली, ‘‘देखिए, पहले ही इतनी ज्यादा रात हो चुकी है, अब इस वक्त भला कौन सी कैब या टैक्सी मिलेगी आप लोगों को. इसलिए आप लोग फार्मैलिटीज के चक्कर में मत पडि़ए और चलिए मेरे साथ.’’

साहिल और विक्रम दोनों ने ही एकदूसरे को देखा, फिर चल पड़े निया की गाड़ी की ओर.

निया ड्राइविंग सीट पर बैठ कर सीट बेल्ट लगाती हुई बोली, ‘‘आप लोग जल्दी से बैठ जाइए और बताइए कहां ड्रौप करूं मैं आप लोगों को?’’

विक्रम और साहिल पिछली सीट पर बैठ गए और निया को अपना एड्रेस बता दिया. फर्राटे से गाड़ी सुनसान सड़क पर दौड़ने लगी.

अभी कोई 10 मिनट ही हुए होंगे कि अचानक ही गाड़ी हिचकोले खा कर रुक गई.

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‘‘ओह, क्या हुआ ये?’’ निया बड़बड़ाई.

फिर गाड़ी को स्टार्ट करने की कोशिश करने लगी. पर कोई फायदा नहीं हुआ. हार कर निया विक्रम और साहिल से बोली, ‘‘प्लीज, आप लोग जरा धक्का लगाएंगे. देखिए न पता नहीं कैसे इंजन एकदम बंद पड़ गया.’’

दिल आशना है : पहला भाग

लेखक- सिराज फारूकी

‘‘लोग सऊदी अरब जा रहे हैं, तुम भी चले जाओ…’’  एक दिन मुबीना ने अपने शौहर के होंठों पर अपनी उंगलियां फिराते हुए मशवरा दिया.

मुबीना 25-26 साल की, दरमियाना कद, गोरी रंगत, गोल चेहरा, बड़ीबड़ी आंखें, सुतवां नाक, सुराहीदार गरदन, लंबे बालों वाली औरत थी. मांसलता और मादकता उस के पोरपोर में समाई हुई थी.

30-32 साला अकील जिस का कद लंबा, गेहुआं रंग, छोटीछोटी आंखें, चौड़ा चेहरा, जिस पर मर्दानगी को नई ऊंचाइयां देती लंबी घनेरी मूंछें और दाढ़ी से पाक चेहरा, ने माथे को चिंता से सिकोड़ते हुए कहा, ‘‘हां, मैं भी यही सोचता हूं. एक बार हो आऊं, तो हालात सुधर जाएं.

‘‘अब देखो न, आसिफ 2 साल के लिए गया था. कैसा चकाचक हो कर आया है. यहां आ कर एक गाला भी खरीद लिया है और 700 स्क्वायर फुट का फ्लैट भी. लौरी ले कर किस शान से कारोबार कर रहा है…?’’

मुबीना ने अकील के सीने पर अपना सिर रखते हुए कहा, ‘‘आसिफ को ही क्यों देख रहे हो? इस्माईल को भी देखो न. पहले क्या था उस के पास? और लतीफ को भी ले लीजिए, उस की भी पौबारह हो गई है…’’

‘‘हां, पहले सब फटीचर ही थे…’’ अकील ने मुबीना के गुलाबी गालों को सहलाया. मुबीना ने आंखें मूंद कर उस की छुअन का लुत्फ लेते हुए कहा, ‘‘और अब इज्जतदार…’’

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‘‘दौलत जो आ गई है…’’

मुबीना अकील के पास लेटी हुई थी. वह शोख नजरों से उस की गदराई जवानी और सुडौल जिस्म को देख कर बोला, ‘‘लेकिन, तू मेरे बिना रह पाएगी…’’ और उसे खींच कर अपने ऊपर ले लिया.

‘‘क्यों…?’’ वह उस के ऊपर आ कर शरारत से देखते हुए बोली.

‘‘क्योंकि, तेरे को हर रात मर्द जो लगता है…’’

‘‘अब ऐसी भी बात नहीं है… है तो ठीक, वरना कोई बात नहीं…’’ मुबीना की नजरों में नाराजगी के भाव थे.

‘‘चलेगा न…?’’ अकील ने मुबीना को सवालिया निगाहों से घूरा.

‘‘हां, फिर… कुछ पाने के लिए कुछ खोना तो पड़ता ही है…’’

‘‘बहुत समझदार है…’’ अकील ने प्यार की चपत उस के गाल पर जड़ी और सीने में भींच लिया.

दोनों में यह तय हो गया कि अकील को सऊदी अरब जाना ही चाहिए. उरण नाके पर उन की एक छोटी सी किराने की दुकान थी, जो बहुत कम चलती थी या इतनी चलती थी कि गुजारा होना मुश्किल था. 2 छोटेछोटे बच्चे थे. उन का भी भविष्य सामने था.

अकील का मन तो विदेश जाने के लिए नहीं होता था, मगर विदेशी दीनार और रियाल की चमकदमक उसे अपनी ओर बराबर खींचती रहती थी, क्योंकि वह जानता था कि आज जमाना रुपएपैसे वालों का है. जिस के पास रुपएपैसे नहीं हैं, समाज में उस की इज्जत नहीं है. इसलिए उस ने मन में इरादा कर लिया कि वह विदेश जा कर खूब दौलत कमाएगा.

लेकिन अकील के सामने एक बड़ा मसला था, उस की बीवी और बच्चों का. अगर वह चला गया तो इन का रखवाला कौन होगा? अगर कुछ ऊंचनीच हो गई तो सोचतेसोचते उस की नजरें तौफीक पर गईं, जो उस का खास दोस्त था और विश्वासी भी. उस ने उस से बात की तो उस ने कहा, ‘‘जाओ…बेफिक्र हो कर…मैं हूं न… सब संभाल लूंगा…’’

‘‘यार, तेरा ही तो सहारा है…’’ अकील ने खुश होते हुए उस का हाथ गर्मजोशी से पकड़ लिया, ‘‘तेरी ही वजह से मैं ऐसा कर रहा हूं, वरना मेरी हिम्मत नहीं होती…’’

‘‘बिंदास जाओ यार, मैं हूं न… अरे, वह दोस्त ही क्या, जो दोस्त के काम न आए…’’ तौफीक ने हौसला बढ़ाया.

अकील उस की बातों से खुश हो गया और फिर एक दिन मुबीना और तौफीक उसे एयरपोर्ट तक छोड़ने आए.

अकील के चले जाने के बाद मुबीना आंख में आए आंसुओं को पोंछने लगी, तो तौफीक ने दिलासा दिया, ‘‘भाभी, रोइए मत… मैं हूं न…’’ और उस ने उस के छोटे बेटे अदील को गोद में उठा लिया.

अकील के जाने के बाद तौफीक हर रोज उस के घर जाता और हालचाल पूछ आता. आनाजाना तो उस का पहले भी था, मगर इतना नहीं, जितना अब. शायद वह फर्ज की अदायगी के लिए इसे जरूरी समझता था.

मुबीना उसे जानती थी. वह उस के पति का खास दोस्त है. मगर उस की बेतकल्लुफी न थी. लेकिन, जब शौहर हुक्म दे गया, ‘जो सुखदुख होगा, बिना खौफ उस से कहना. मेरे बाद यही तुम्हारा मददगार है. यही समझना कि अब यह तुम्हारा छोटा भाई है. इस के सिवा किसी पर यकीन मत करना…’ तो अब उस से झिझक कैसी? और इस शहर में कोई और है भी नहीं, इसलिए अब वह अपनी हर छोटीबड़ी बात उस से शेयर करती और वह भी उस के हुक्म की तामील करता.

धीरेधीरे उन दोनों में नजदीकियां बढ़ती गईं. तौफीक घर में आता तो बच्चों के साथ घंटों बैठा रहता. ऐसी हालत में मुबीना चाय बना कर दे जाती. अब किस के दिल में क्या है, किसी को क्या मालूम. समय आहिस्ताआहिस्ता रेंगता रहा.

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एक रात मुबीना ने महसूस किया, उसे मर्द की जरूरत है. यह जज्बा इतना जोर पकड़ा कि वह खुद को कोसने लगी. नाहक ही उन्हें भेजा. बड़ी गलती हुई. नहीं भेजना चाहिए था. पैसे का तो सुख मिल रहा है, मगर जिंदगी का. मर्द नहीं तो औरत की जिंदगी क्या है? उस ने करवट बदलते हुए विचार किया. औरतें 2-2 साल बिना मर्दों के कैसे रह लेती हैं? अभी तो अपने को सिर्फ

6 महीने हुए हैं और यह हालत हुई

जाती है.

एक रात फोन पर मुबीना ने इस बात की शिकायत की, तो अकील ने कहा, ‘‘मैं जल्दी ही वापस आऊंगा. बस, थोड़े दिनों की बात है. जब अच्छे दिन नहीं रहते तो बुरे दिन भी नहीं रहेंगे…’’

‘‘ठीक है…’’ मुबीना ने अपने मचलते हुए आंसुओं को उंगलियों की पोरों पर लेते हुए सर्द आह भरी और फिर अलमारी के पास जा कर नोटों की गड्डियों को देख कर कहा, ‘‘इन का क्या करूं? अचार डालूं या चाटूं?’’

न जाने फिर क्या खयाल कर के उस ने अपने सारे कपड़े उतार डाले और नोटों के बंडलों को बिस्तर पर फैला कर बोली, ‘‘आओ… मेरे साथ सोओ…’’ और वह बिस्तर पर लेट कर उन नोटों के बंडलों को अपने जिस्म के ऊपर रखरख कर ठंडीठंडी आहें भरने लगी, ‘‘यह सच है, जो काम एक मर्द से हो सकता है, रुपएपैसों से नहीं. और यह भी सच है कि जो रुपएपैसों से हो सकता है, वह इनसान भी नहीं कर सकता…’’

यह बुदबुदा कर मुबीना रोने लगी और बिन जल मछली की तरह तड़पने लगी. उस के तनमन में एक ज्वाला सी उठने लगी. ऐसा लगा जैसे उस का खूबसूरत, नाजुक बदन इस बेरहम आग में जल कर राख हो जाएगा और वह रहरह कर उन नोटों को अपने शरीर पर सजाती रही, ‘‘आओ…आओ, मेरा दिल बहलाओ… मेरे शौहर गए हैं तुम्हारे लिए… तुम आ गए, मगर वे नहीं आए हैं…जब तक वे नहीं आते हैं… तुम ही मेरी सेवा करो…’’ और वह उन्हें चूमचूम कर सीने से लगाती, चेहरे से रगड़ती और जिस्म के दूसरे अंगों से घिसड़ती रही, मगर जिस्म की आग शांत होने के बजाय और भड़कती जाती थी.

आखिरकार खीझ कर रोते हुए वह उन बंडलों को उठाउठा कर फेंकने लगी, ‘‘हटो…तुम मेरी नजरों से दूर हो जाओ… नहीं चाहिए मुझे ये नोट… ये बंडल… नहीं चाहिए.’’

जब सुबह हुई तो मुबीना ने जिस्म की अकड़नजकड़न निकालते हुए बिस्तर को छोड़ा. बिस्तर छोड़ने का दिल तो नहीं कर रहा था, मगर उठना भी जरूरी था. वह शर्मसार सी कपड़े पहनने लगी और जमीन पर पड़े हुए नोटों के बंडलों को उठाने लगी.

अभी मुबीना उन बंडलों को चुन कर अलमारी में रख ही रही थी कि तौफीक आ गया.

उस की आंखों के सुर्ख डोरों को देख कर उस ने कहा, ‘‘क्या हुआ भाभी…? तबीयत तो ठीक है न…?’’

‘‘कहां रे…’’ और वह टूटते बदन के साथ बैड पर गिर गई.

‘‘क्या हुआ…?’’ तौफीक ने हैरान लहजे में कहा, ‘‘डाक्टर को बुलाऊं…?’’

‘‘नहीं रे… यह मर्ज अलग है…’’ और उस का हाथ पकड़ कर सीने पर रख लिया.

‘‘तो दवा भी अलग होगी…’’ तौफीक ने थोड़ा मुसकरा कर कहा.

‘‘हां…’’ इतना कह कर मुबीना ने आंखें बंद कर लीं.

तौफीक इतना नादान तो नहीं था, वह समझ गया. उस की भी कब से इस पर नजर थी. मगर कह नहीं सका था. या यों कहें कि मर्यादा के कच्चे धागे में बंधा हुआ था. मगर इस आस में जरूर था. कभी न कभी तो सिगनल मिलेगा और गंगा नहा लेगा.

आज शायद वही दिन था. वह जल्दी से किवाड़ बंद कर आया और शर्ट के बटन खोलते हुए बोला, ‘‘भाभी, इलाज शुरू करूं…’’

‘‘नेकी वह भी पूछपूछ…’’ मुबीना ने आंखें बंद किए हुए मादक लहजे में जवाब दिया.

उस के बाद पवित्रता की एक नाव हवस के गहरे समंदर में गर्क हो गई.

विदेश से पैसा तो आ रहा था, अब उस में तौफीक का भी हिस्सा हो गया था. मुबीना अब उस का पूरा खर्च चलाती थी. उस ने उसे मोटरसाइकिल भी खरीद कर दे दी थी.

अब वह उसी के साथ मोटरसाइकिल पर सवार घूमने निकल जाती. होटल में खाना खाती. एक तरह से वह शौहर को भूल सी गई थी. याद था तो बस इतना कि वह रियाल कमाने वाला एक गुलाम है.

अब उस का फोन आता है तो वह उस से दर्देदिल की शिकायत नहीं करती है और जल्दी से आ जाने की गुजारिश भी नहीं करती है, बल्कि वह कहती है कि और कमाओ, अभी मत आओ…

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दिन पूरे हो रहे हैं तो वीजा की तारीख बढ़वा लो. अभी एक फ्लैट लिया है. एक दुकान भी मेन मार्केट में ले लूं तो आना. बालबच्चों का भविष्य सुरक्षित करना है. उन्हें इंगलिश मीडियम स्कूल में दाखिल करवा रही हूं.

पति समझदार था. सोचा, बीवी ठीक कहती है. उसे और कमाना चाहिए. एक बार आ गया है तो कमा कर ही जाए. उसे अपनी बीवी पर पूरा भरोसा था और वह वीजा की तारीख बढ़वा कर और कमाने लगा.

एक दिन मुबीना और तौफीक एक गार्डन में इश्कबाजी कर रहे थे और दोनों बच्चे जरा दूर हट कर खेल रहे थे. मुबीना ने पूछा, ‘‘तुझ से से मेरी शादी क्यों नहीं हुई रे…?’’

‘‘हट…छोड़ शादी को…’’ तौफीक नखरा दिखाते हुए बोला, ‘‘क्या शादी करती तो इतना लुत्फ आता…?’’

‘‘शायद नहीं…’’ मुबीना हंस कर बोली.

एक दिन मुबीना ने उस की बाजुओं में झूलते हुए कहा था, ‘‘मुझे कभीकभी बड़ा डर लगता है.’’

‘‘सच…’’ तौफीक मखौल उड़ाने के लहजे में बोला.

‘‘हां…’’ मुबीना ने इकरार किया.

‘‘एक बात कहूं…?’’ तौफीक ने उसे घूर कर देखा.

‘‘हां, कहो…’’

‘‘मुझे भी डर लगता है… सोचता हूं कि अगर अकील को मालूम हो गया तो क्या होगा…?’’

‘‘वही तो…’’ मुबीना थोड़ा चिंतित हुई, ‘‘मैं औरत हूं… फंस जाऊंगी… और तू मर्द है… निकल जाएगा…’’

‘‘नहीं रे… तू औरत है निकल जाएगी… और मैं मर्द हूं… फंस जाऊंगा…’’

‘‘क्यों…?’’

‘‘औरत के त्रियाचरित्र होते हैं…’’

‘‘लेकिन, मेरे पास तो नहीं हैं…’’

‘‘फिर मुझे फंसाया कैसे…?’’

‘‘वही है…’’ मुबीना मासूमियत से बोली.

‘‘हां…’’

‘‘एक बात कहूं? मैं ने तुझे फंसाया नहीं… तू पहले से ही फंसा था…’’

‘‘गलत…’’

‘‘सच कह, मेरे सिर की कसम खा कि तू मुझे चाहता नहीं था…’’ और उस ने उस का हाथ अपने सिर पर रख

लिया.

‘‘सच कहूं…’’ तौफीक उस की झील सी गहरी आंखों में झांकते हुए बोला, ‘‘तुझे जब मैं ने पहली बार देखा था, तब से ही मेरे दिल में तेरी खूबसूरती और जवानी का कांटा चुभ गया था…’’

‘‘देखा, मैं न कहती थी… तू पहले से ही फंसा था…’’ मुबीना बुलबुल सी चहक कर बोली थी, ‘‘बस, मेरे इशारे की देर थी… पके हुए फल की तरह गिर गया…’’

‘‘सच बोली…’’ तौफीक हंस पड़ा.

‘‘यानी, हम दोनों बराबर के गुनाहगार हैं…’’

‘‘गुनाह कैसा…’’ तौफीक के माथे पर परेशानी के बल पड़ गए कि तू मुझे चाहती है और मैं तुझे. कोई जोरजबरदस्ती है क्या…?

‘‘नहीं…’’

‘‘तो फिर गुनाह कैसा…?’’ तौफीक ने उस की कोमल उंगलियों को सहलाते हुए जोर से दबा दिया.

‘‘लेकिन, बीच में जो अकील है…’’ मुबीना के सामने चिंता का चांद प्रकट हो गया.

‘‘यही बात तो है…’’ तौफीक ने मस्ती से उसे अपने करीब खींचते हुए कहा, ‘‘चल छोड़, ये सब बातें कल की हैं. जब तक मौका है, मजा कर लिया जाए. बाद में देखा जाएगा…’’

‘‘लेकिन, इस का अंजाम क्या होगा…?’’

‘‘ऊपर वाला जाने…’’

‘‘और हम क्या जानते हैं…?’’

‘‘कुछ भी तो नहीं…’’

‘‘लेकिन, मेरा दिल कभीकभी डरता है…’’ यह कहतेकहते मुबीना ने अपना हाथ सीने पर रख लिया.

‘‘रोजरोज नहीं न…’’ तौफीक मखौल उड़ाने के लहजे में बोला था.

‘‘नहीं…’’

‘‘तो डरने वाली कोई बात नहीं है. गब्बर सिंह क्या बोला है, जो डर गया, समझो मर गया…’’ और उस ने हंस कर मुबीना की गरदन में हाथ डाल कर उसे अपनी ओर खींच लिया.

दोनों बच्चे हरीहरी घास में खेल रहे थे. तौफीक उन्हें देखते हुए बोला, ‘‘सोचता हूं, तुझ से मेरी भी कोई औलाद हो जाए तो अच्छा रहे…’’

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‘‘नामुमकिन…’’ वह जैसे चौंक गई और जल्दी से खड़ी हो कर कपड़े ठीक करने लगी.

तौफीक ने हंसते हुए कहा, ‘‘क्या हुआ रानी…?’’

‘‘कुछ नहीं…’’ वह थोड़ा मुसकरा कर बोली, ‘‘अब कोई किसी के खेत को चर ले, यह और बात है, मगर कोई कहे कि उस के खेत में फसल भी उगा ले तो नामुमकिन…’’

‘‘अच्छा…’’

‘‘और क्या…?’’ मुबीना ने शोखी से उसे देखा, ‘‘बड़े चालाक हैं…’’

‘‘तुझ से जरा कम…’’ तौफीक खड़ा हो कर मुसकराया और उसे खींच कर अपनी बांहों में भर लिया.

अकील ने तौफीक को फोन किया. उस समय तौफीक उसी के नए फ्लैट में उस की बीवी के साथ रंगरलियां मना रहा था. उस ने अपनी सांसों पर काबू पा कर फोन उठा लिया, ‘‘हैलो अकील, कैसे हो…’’

‘अच्छा हूं… क्या हुआ सांसें क्यों फूल रही हैं…?’

‘‘घर से बाहर खड़ा था. आप का फोन आया तो भाग कर आया हूं…’’

‘अच्छा… सब खैरियत तो है न…? अकील नरम लहजे में बोला.’

‘‘हां.’’

‘मेरी बीवीबच्चों का खयाल रखना…’

‘‘वह तो रखता ही हूं…’’ उस के दिल में आया कह दे कि अभी खातिरदारी में मसरूफ हूं, मगर चुप रहा.

‘मेरी बीवी तुम्हारी बहुत तारीफ करती है…’

उस के दिल में आया कि कह दे कि हूं न इस काबिल, लेकिन ऐसा नहीं कह सका. बस इतना सा कहा, ‘‘यह उन की जर्रानवाजी है…’’ और अपने नीचे बिस्तर सी बिछी उस की बीवी के नाजुक अंगों को चिकोटी काट ली.

मुबीना के मुंह से ‘सी’ की आवाज निकल गई.

फिर मुबीना के गुलाबी होठों को मसल कर बोला, ‘‘आप की बीवी बहुत अच्छी हैं…’’

अकील अपनी बीवी की तारीफ सुन कर खुश हो गया और बोला, ‘हां, यह बात तो है…’ फिर थोड़ा रुक कर बोला, ‘उस का खयाल रखना…’

‘‘वह तो रख ही रहा हूं…’’ उस ने मुबीना के शरीर से फिर छेड़छाड़ की.

‘तौफीक…’ उधर से गमगीन सी आवाज आई, ‘सोचता हूं, अब वतन आ जाऊं… बहुत दिन हो गए हैं… अब बीवीबच्चों की बहुत याद सताती है… बहुत कमा लिया… क्या करेंगे ज्यादा कमा कर…?’

क्या मुबीना और तौफीक की ऐयाशी पकड़ी गई? अकील के साथ आगे क्या होने वाला था? पढि़ए अगले अंक में…

दिल आशना है : दूसरा भाग

लेखक- सिराज फारूकी

पिछले अंक में आप ने पढ़ा था : अकील अपने 2 बच्चों और खूबसूरत पत्नी मुबीना के साथ रह रहा था. उस की किराने की छोटी सी दुकान थी. चूंकि आमदनी कम थी, इसलिए मुबीना के कहने पर वह अपने जिगरी दोस्त तौफीक के भरोसे अपने परिवार को छोड़ कर कामधंधे के लिए सऊदी अरब चला गया. धीरेधीरे मुबीना और तौफीक में जिस्मानी रिश्ता बन गया. इसी बीच अकील ने भारत लौटने की सोची तो मुबीना की चिंता बढ़ गई.  अब पढि़ए आगे…

‘‘सोतो है…’’ तौफीक ने एक बार फिर मुबीना के नंगे शरीर पर चिकोटी काटी. वह उस दर्द को पी गई.

‘अच्छा फोन रखता हूं… कंपनी भी अब बंद होने वाली है. बहुत गड़बड़ चल रही है… देखते हैं, आगे क्या होता है…?’ अकील बोला.

‘‘तो चले आओ न…’’ तौफीक ने बेदिली से कहा.

‘यही तो सोच रहा हूं… यह बात तुम मुबीना से मत कहना, वरना उसे दुख होगा…’

‘‘हां… शायद…?’’ वह मुबीना की तरफ देख कर मुसकराया.

फोन कट गया. फोन बंद होने के बाद तौफीक हंसते हुए बोला, ‘‘तुम्हारे शौहर का फोन था रानी साहिबा…’’ और उस ने शरारत से उस के गालों को खींच लिया.

‘‘क्या कहा उन्होंने…?’’ मुबीना ने सवाल किया.

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‘‘वह कह रहा था कि मेरी बीवी का खूब खयाल रखना…’’

‘‘तो तुम ने क्या कहा?’’

‘‘यही कि खयाल ही रख रहा हूं…’’

‘‘अच्छा खयाल रख रहे हैं…’’ मुबीना उसे चूमते हुए बोली.

थोड़ी देर बाद मुबीना का मोबाइल फोन बज उठा. अकील का फोन था.

तौफीक बोला, ‘‘लगता है, आज यह चैन से रहने नहीं देगा…’’

मुबीना ने फोन उठा लिया.

उधर से कुछ दर्द और खुशी में मिलीजुली आवाज आई, ‘हैलो मेरी रानी, कैसी हो…?’

‘‘पूछो मत…’’ वह तौफीक के दबाव से कराहते हुए बोली और उसे अपने ऊपर से धकेलने की नाकाम कोशिश की लेकिन उस ने अपनी पकड़ मजबूत कर ली थी.

अकील बोला, ‘मेरी याद आ रही है…?’

‘‘क्यों नहीं जी…’’

‘जाग रही हो अभी तक…’

‘‘हां, आप की यादों में करवटें बदल रही हूं… फोटो के सहारे…?’’

अकील हंसा, ‘फोटो के सहारे…’’ और उसे जैसे मजाक सूझा. उस ने कहा, ‘अरे मेरा दोस्त है न तौफीक… वह किस दिन काम देगा. बुलवा लिया होता…’

मुबीना को काटो तो खून नहीं. उस के दिल पर घूंसा सा लगा. उस ने सोचा ‘क्या अकील को पता चल गया है?’ मुबीना के दिल में आया कि कह दे, बुलवा लिया है. लेकिन उस ने कहा, ‘‘क्या गंदा मजाक करते हैं आप भी…’’

‘हाहा… तुम सही मान गई क्या…?’

‘‘नहीं…’’ मुबीना ने कहा, ‘‘सोचो, अगर ऐसा हो गया तो…?’’

‘मार डालूंगा उसे…’ अकील ने गुस्सा दिखाया.

‘‘और मुझे…?’’ मुबीना ने सवाल उठाया.

‘तुझे तो जिंदा दफन कर दूंगा…’ उस का लहजा सख्त था.

मुबीना सहम सी गई.

‘बीवी शौहर की अमानत होती है. उसे हर हालत में अपनी आबरू बचा कर रखनी चाहिए…’

‘‘बचा कर रखूंगी… आप बेफिक्र रहिए…’’ मुबीना सहम कर बोली.

‘हां, मुझे यही उम्मीद है. मैं तो बात की बात कर रहा था.’

‘‘ठीक है… कोई बात नहीं…’’

‘अच्छा, फोन रखूं…?’

‘‘हां… रखिए…’’

‘अपना और बच्चों का खयाल रखना. और हां, रकम की जरूरत पड़े तो तौफीक को भी दे देना. पहले तो वह मांगेगा नहीं. अगर मांगे तो मना मत कहना…’

अकील ने दुख भरे लहजे में कहा, ‘मुबीना, मैं जिस कंपनी में काम कर रहा था. वह बहुत जल्द बंद होने वाली है… अब मेरा भी दिल यहां नहीं लगता है… सोचता हूं, वतन चला आऊं… तुम्हारे पास आने को दिल हर घड़ी मचलता रहता है…’

‘‘मत आओ…’’ मुबीना हड़बड़ा कर बोली, ‘‘अभी कितने प्रोजैक्ट अधूरे हैं. अगर तुम वापस आ गए तो सब अधूरा रह जाएगा… अगर वह कंपनी बंद हो रही है, तो कहीं और काम तलाश करो. ज्यादा नहीं, बस 1-2 साल और रह लो. उस के बाद आ जाओ. मैं तुम्हारी हूं. कहीं भागी थोड़ी जा रही हूं. कुछ पाने के लिए कुछ खोना ही पड़ता है.’’

‘सो तो ठीक है रानी…’ वह कुम्हलाई हुई आवाज में बोला, ‘कोशिश करता हूं. मगर मुमकिन नहीं लगता है…’ और सर्द आह भर कर वह बोला, ‘मुबीना, मेरी रानी… तुम्हारी याद बहुत सताती है…’

मुबीना हलके से सिसकी. पता नहीं, तौफीक के शरीर का दबाव था या कुछ और ही. मगर यह सिसकी इतनी धीमी थी कि मोबाइल से आवाज अकील तक नहीं पहुंच पाई.

अकील ने सवाल किया, ‘मुबीना, तुम पहले से और हसीन हो गई हो या…?’

मुबीना मुसकरा पड़ी, ‘‘आ कर देख लेना…’’

‘बता दो न…’ उस ने जैसे बाल हठ किया.

‘‘हूं…’’ मुबीना ने तौफीक के दबाव को कम करने की कोशिश की. अकील समझा शरमा रही है.

फोन कट गया.

मुबीना का मूड खराब हो चुका था. उस ने तौफीक से कहा, ‘‘लगता है, वह आएगा…’’

तौफीक ने कहा, ‘‘उसे रोको…’’

‘‘वही तो कोशिश कर रही थी…’’

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‘‘वह आएगा तो हमारा काम बिगड़ जाएगा…’’

‘‘शायद…?’’

फिर थोड़ा गंभीर होते हुए मुबीना ने कहा, ‘‘लगता है… अब हम को यह खेल बंद कर देना चाहिए…’’

‘‘नामुमकिन…’’ तौफीक ने कहा.

‘‘क्यों…?’’ वह झुंझला सी गई.

‘‘मैं तुम को भूल नहीं पाऊंगा…’’

‘‘वही हाल तो अब अपना भी है… तुम्हारे बगैर नींद नहीं आती है… जिस्म को चैन नहीं मिलता है…’’

‘‘तो फिर क्या होगा…?’’

‘‘तुम उसे तलाक दे दो…’’

‘‘नामुमकिन…’’

‘‘क्यों…?’’

‘‘आखिर कोई तो वजह हो…’’

‘‘निकालो न…’’ तौफीक ने उस की नाक को पकड़ कर हिलाया और कहा, ‘‘तुम औरत हो… कहते हैं औरत के पास त्रिया चरित्र होता है…’’

‘‘होगा किसी और के पास… लेकिन मेरे पास नहीं है…’’

तौफीक ने सिर पकड़ लिया, ‘‘बड़ा गंभीर मसला है…’’

और फिर दोनों करवट बदल कर लेट गए. लेटेलेटे तौफीक ने कहा, ‘‘इस नए फ्लैट का उद्घाटन तो महंगा पड़ा…’’

‘‘हां…’’ मुबीना ने उस के पीछे से लिपट कर कहा, ‘‘इश्क में अड़ंगा लग गया…’’

कुछ पल के बाद जैसे मुबीना को मजाक सूझा, उस ने उसे अपनी ओर खींचते हुए उस के सीने पर सिर रख कर कहा, ‘‘आखिर दोस्त की बीवी को कब तक खाओगे…?’’

‘‘जब तक जिंदा रहूंगा…’’ तौफीक ने ढिठाई से जवाब दिया और झपट कर उसे अपनी बांहों में भींच लिया.

मुबीना ने चुहल करने के अंदाज में कहा, ‘‘हराम का माल खाने का मजा ही कुछ और है…क्यों?’’

‘‘हां, फिर…’’ तौफीक बेशर्मी से मुसकराया.

‘‘एक बात बताओ… तुम्हें शर्म आती है…’’

‘‘नहीं…’’ तौफीक उस के गालों को नीबू के जैसे निचोड़ते हुए बोला, ‘‘तुम को आती है…?’’

‘‘हां…’’

वह उसे घूरने लगा था.

मुबीना कुछ पल रुक कर बोली, ‘‘थोड़ीथोड़ी…’’

‘‘बड़ी बेशर्म हो…’’

‘‘क्यों…?’’

‘‘शौहर के दोस्त के साथ ऐयाशी करती हो…’’

मुबीना कुछ नाराज होते हुए बोली, ‘‘और तुम को नहीं आती, तो दोस्त की बीवी के साथ गुलछर्रे उड़ाते हो…’’

तौफीक ने उस की बातों का कोई जवाब नहीं दिया और उस का सिर पकड़ कर जोरों से अपने में समाने लगा. उस के बाद हवस तूफान में ऐसे गोते खाने लगा, जैसे फिर मिलें या न मिलें. शायद दोनों का एक ही हाल था.

मुबीना आज कई दिनों से सोचविचार कर रही थी. उसे यह रिश्ता रखना चाहिए या नहीं? धीरेधीरे उस का ध्यान उन सब औरतों की ओर चला गया, जिन के शौहर परदेश में हैं. कैसे अपनी इज्जत की हिफाजत करती हैं? क्या वे मेरी ही तरह ढोंग रचाती हैं तो कोई बात नहीं. लेकिन नहीं रचातीं तो…?

मगर, मैं ऐसा नहीं कर सकी. मैं कितनी कमजोर औरत हूं. क्या मैं रुक सकती थी? आखिर इस में गुनाहगार कौन है? तौफीक या वह या मैं? कौन ज्यादा कुसूरवार है?

वह इस नतीजे पर पहुंची कि सब से ज्यादा उस का शौहर ही कुसूरवार है, जो इतने दिनों से परदेश में पड़ा है. मैं ने लाख मना किया, मगर उसे आना चाहिए था. भूखीप्यासी अगर बकरी है तो रस्सी जरूर तुड़ाएगी और अगर तुड़ा कर सामने का हरा चारा खा लिया तो कुसूर किस का है? हरे चारे का या खाने वाले का?

मेरा खयाल है घर मालिक का, जिस ने अपने जानवर को भरपेट चारा नहीं खिलाया. बस एक बार नांद में चारा डाल दिया और रफूचक्कर हो गया.

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आखिरकार मुबीना इस नतीजे पर पहुंची कि उसे यह रिश्ता नहीं रखना चाहिए. अभी वक्त है. कुछ बिगड़ा नहीं है. कितनी ऐसी औरतों और लड़कियों को वह जानती है, जो शादी से पहले और बाद में बहक गई थीं. मगर छुपा ले गई और आज इज्जतदार औरत बन कर समाज के सिंहासन पर बैठी शान से राज कर रही हैं.

जानें आगे क्या हुआ कहानी के अगले भाग में…

दिल आशना है : तीसरा भाग

लेखक- सिराज फारूकी

यह खयाल कर के वह बाग में इधर से उधर टहलते हुए तौफीक से बोली, ‘‘आज से हम यह रिश्ता नहीं रखेंगे…’’

‘‘फिर कौन सा रखेंगे…?’’

‘‘वह पहले वाला…’’

‘‘मुमकिन है…?’’

‘‘मुमकिन नहीं है… लेकिन, मुमकिन बनाया जा सकता है…’’ मुबीना ने बड़े ही आत्मविश्वास से कहा.

‘‘देखेंगे…’’ तौफीक ने लापरवाही से कहा.

‘‘देखेंगे नहीं…’’ मुबीना ने तौफीक की खुली शर्ट का बटन लगाते हुए कहा, ‘‘देखो तौफीक, वह तुम्हारा भी जिगरी दोस्त है और मेरा तो शौहर ही है. हम को इस चीज पर गंभीरता से सोचना होगा. इस में तुम्हारी भी इज्जत का सवाल है और मेरी भी.

‘‘आज तक जो हम लोगों ने किया, अब भूल जाएं. मुझे अब बहुत डर लग रहा है. वह कह रहा था कि उस की कंपनी बंद होने वाली है. अब तो वह कभी भी आ सकता है…’’

‘‘आने दो…’’ तौफीक ने सीना फुला कर कहा.

‘‘नहीं, ऐसा मत कहो… जुदा हो जाओ…’’ मुबीना के चेहरे पर खौफ का साया आ गया था.

‘‘अरे, हम तो जुदा ही हैं…’’ तौफीक ने उस के कान से मुंह लगा कर शरारती लहजे में कहा, ‘‘आने दो उसे…चांस मारते रहेंगे गाहेबगाहे… क्या वह तुम्हारे साथ चौबीसों घंटे रहेगा…?’’

‘‘नहीं, अब छोड़ो भी. मुझे डर लगने लगा है…’’ मुबीना ने उस से दूरी बनाई.

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‘‘तुम बुजदिल हो…’’ तौफीक उसे घूरते हुए बोला.

मुबीना को जैसे यह बात बुरी लगी. उस ने नाक सिकोड़ कर कहा, ‘‘नहीं, दमदार हूं. तभी तो यह रिश्ता रखा और इतने दिनों तक निभाया… लेकिन, अब नहीं होता है. किसी को उतना ही छलो, जितना वह समझ न सके…’’

‘‘हां, तुम एक काम करो. मुझे

2 लाख रुपए दे दो…’’

‘‘क्यों…?’’ मुबीना ऐसे चौंकी, जैसे बिच्छू ने डंक मार दिया हो.

‘‘तुम को भूल जाने की कीमत…?’’

‘‘तो क्या यह तुम्हारे प्यार की कीमत है…?’’

‘‘नहीं जानता… बस मुझे रुपए चाहिए…’’

मुबीना को उस की यह बात बुरी लगी. उस ने गुर्रा कर कहा, ‘‘तुम ने दोस्त की बीवी को भोगा, उस के पैसे इस्तेमाल किए. अब उस की हड्डियों का गूदा भी खाना चाहते हो… शर्म नहीं आती…नमकहराम…’’

यह सुन कर वह कुछ नहीं बोला. बस मुंह बिसुरता खड़ा रहा.

मुबीना ने दोनों बच्चों का हाथ पकड़ा और बाग से ले कर जाने लगी और घूर कर बोली, ‘‘तुम अब मुझे कभी नहीं मिलोगे…’’

तौफीक हाथ बांधे मुसकराता खड़ा रहा.

मुबीना अपने दोनों बच्चों का हाथ पकड़े घसीटती चली जा रही थी.

तौफीक उस के पीछे खड़ा उसे जाते हुए देखता रहा और मन में कहा, ‘औरत कितना हसीन धोखा है. अब इसे देख कर कोई कह सकता है? यह धोखेबाज है… बदमाश है… कल को इस का शौहर आएगा और उस के साथ ऐसे घुलमिल कर रहेगी, जैसे कुछ हुआ ही नहीं…?’

अब मुबीना तौफीक से नहीं मिलती है. फोन आता है तो काट देती है. दरवाजे पर आने के बाद दरवाजा नहीं खोलती है. उस ने पक्का इरादा कर लिया है कि वह उस से नहीं मिलेगी.

एक दिन मुबीना बाजार से गुजर रही थी, तो तौफीक ने उसे देख लिया और दौड़ कर उस के करीब आ कर बोला, ‘‘मुबीना… सुनो तो… सुनो तो सही…’’

मगर वह रुकी नहीं और अनसुना कर के चलती रही. वह लपक कर उस के आगे आ गया, ‘‘अरे रुको तो… ऐसा लगता है, जैसे मुझे जानती ही नहीं…’’

‘‘हां बिलकुल, मैं तुम्हें नहीं जानती…’’ मुबीना दांत पीस कर बोली, ‘‘और जानना भी नहीं चाहती हूं…’’ वह तकरीबन चिल्लाने के लहजे में बोली. गुस्सा उस के सिर चढ़ कर बोल रहा था.

तौफीक डर कर इधरउधर देखने लगा. बाजार का मामला था. लोग आजा रहे थे. उसे खौफ हुआ. कहीं उस की ऊंची आवाज सुन कर लोग जमा हो गए और पूछ बैठे तो हो गई धुनाई.

उस ने जरा धीमे लहजे में कहा, ‘‘अरे, जरा धीरे तो बोल…’’

‘‘क्यों…?’’ मुबीना और जोर से चिल्लाई.

वह सहम कर उस का मुंह देखता रह गया और समझ गया कि अब दाल नहीं गलने वाली है. मुबीना का चेहरा तमतमाया हुआ था. ऐसा लग रहा था कि वह बहुत गुस्से में है.

तौफीक डरते हुए बोला, ‘‘मिलती भी नहीं… फोन भी नहीं उठाती… दरवाजे पर जाओ तो दरवाजा भी नहीं खोलती…’’

‘‘क्यों…?’’ वह घूर कर बोली, ‘‘तू मेरा क्या लगता है…?’’

‘‘पहले क्या लगता था…?’’ तौफीक ने भी गुस्सा दिखाया.

‘‘वह सब खत्म…’’

‘‘इतना जल्दी…?’’

‘‘हां…’’

‘‘सोच लो…?’’

‘‘क्या धमका रहे हो…?’’

‘‘नहीं, समझा रहा हूं…’’

‘‘एक बात याद रख, जो कुछ हुआ सो हुआ. अच्छा या बुरा सपना समझ कर भुला दें. और मैं भी भुला दूं. मेरा शौहर आज या कल आने वाला है. मैं यह नहीं चाहती. तू भी जलील हो और मैं भी. अब मुझे गुनाह के दलदल में घसीटने की कोशिश मत कर.

हट जा, वरना एक बार चिल्ला दूंगी तो जूते इतने पड़ेंगे कि जिंदा भी नहीं रह पाएगा…’’

मुबीना की यह धमकी कारगर साबित हुई और तौफीक रास्ते से हट गया. मुबीना ने उसे जाते हुए देख कर कहा, ‘‘और अब कभी मुझे फोन मत करना… कहीं देखा तो पीछा भी मत करना. आज से तू यह समझ कि मैं तेरी कोई नहीं हूं और तू मेरा कोई नहीं है… हम दोनों एकदूसरे के लिए मर गए हैं और वह रिश्ता भी खत्म हो गया है…समझा…’’

मुबीना जब घर आई तो उसे उलटियां होने लगीं. वह चौंक गई, अरे यह कैसे…? वह शक के गहरे कुएं में गिर गई. हम ने तो पूरी एहतियात बरती थी. अगले दिन वह ‘नर्सिंगहोम’ गई, तो मालूम हुआ 2 महीने का पेट है. वह हैरान हुई. पसीना आने लगा.

लेडी डाक्टर ने सवाल किया, ‘‘क्या हुआ? अपना ही है न…?’’

न…न करते हां कर दी, ‘‘हां, अपना ही है…’’

‘‘तो इस में घबराने वाली कौन सी बात है…?’’

‘‘नहीं…’’ वह हकलाते हुए बोली, ‘‘मैं फैमिली प्लानिंग अपना रही थी, तो कैसे हो गया…?’’

‘‘क्या अपनाया था…’’ लेडी डाक्टर ने सवाल किया.

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‘‘कंडोम…’’

‘‘कंडोम…’’ लेडी डाक्टर ने संतोष की सांस ली, ‘‘आप को एक बात बताऊं. कोई भी चीज सौ फीसदी सेफ नहीं है…’’

‘‘अब देखो न… 2 महीने हो रहे हैं. मुझे पता ही न चला. कल जब उलटी हुई तो शक हुआ. वैसे, यह कई दिनों से एहसास हो चला था. मगर मैं समझी नहीं…’’

‘‘कोई दिक्कत… अभी भी बहुतकुछ हो सकता है…’’

‘‘हो सकता है…?’’ मुबीना ने तड़प कर सवालिया निगाहों से डाक्टर को देखा.

‘‘हां… लेकिन थोड़ा रिस्क है…’’

‘‘रिस्क को पूरी जिंदगी ही है…’’ मुबीना मन में बुदबुदाई और गंभीर हो गई.

लेडी डाक्टर ने उसे कुछ सोचता देख कर कहा, ‘‘क्या हुआ मैडम…?’’

वह कुछ नहीं बोली. बस थके कदमों से घर की ओर चल पड़ी.

मुबीना कई बार इस अस्पताल में आई थी. मगर ऐसा हाल कभी नहीं हुआ था. खुशीखुशी आई थी और खुशीखुशी गई थी. उस के दोनों बच्चे इसी अस्पताल में हुए थे.

आज जब थके कदमों से जा रही थी तो ऐसा लग रहा था, कब्रिस्तान की तरफ जा रही है. घर जाने का उस का मन कतई नहीं हो रहा था. वह नीम बेहोशी की हालत में एक अलग ही रास्ते पर निकल गई. जब उसे एहसास आया तो काफी अंधेरा हो चुका था. सड़कों की पीली लाइटें रोशन हो चुकी थीं.

अचानक उसे खयाल आया कि उस के बच्चे घर में अकेले हैं. और मां की ममता ने जोर मारा और वह रिकशा पकड़ कर सीधा अपने घर में पहुंची, जब

वह घर पहुंची तो बच्चे चिल्लाचिल्ला कर सो गए थे. उस ने मासूम बच्चों को देखा. उन की पेशानी पर उड़ आए बालों को हटाया और उन का माथा बड़े ही प्यार से चूम लिया.

अगले दिन अकील का फोन आया, ‘मैं कल आ रहा हूं…’

बारबार मुबीना के कानों में उस की आवाज गूंज रही थी, ‘मैं कल आ रहा हूं… मैं कल आ रहा हूं…’

उस ने खयाल किया कि कल सुबह अकील एयरपोर्ट से घर में होगा. फिर उसे खयाल आया कि 2 महीने का पेट… अब क्या होगा…? वह अपने शौहर को क्या मुंह दिखाएगी…? वह इतने दिनों बाद आ रहा है. वह उसे क्या देगी? जूठा प्यार. जूठी औरत. रौंदा हुआ शरीर. कुचली हुई जवानी.

मुबीना छत पर घूमते हुए पंखे को बारबार देखती रही और शरीर पसीने में भीगता रहा. सुबह अकील टैक्सी से अपनी बिल्डिंग के सामने आ पहुंचा. वहां उस ने देखा कि लोगबाग जमीन पर पड़ी किसी चीज को गौर से देख रहे थे. वह टैक्सी से उतर कर भीड़ को चीरता हुआ आगे बढ़ा.

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अकील की नजर जैसे ही उस चीज पर गई, उस के पैरों के नीचे की जमीन खिसक गई, क्योंकि उस की बीवी मुबीना वहां मुरदा पड़ी थी. उस की नाक व मुंह से खून बह रहा था.

एक रात : भाग 5

लेखक- मृणालिका दूबे

हैरानपरेशान विक्रम ने नीता को काल लगाया तो उस के मोबाइल की रिंग बैडरूम में ही बज उठी. नीता अपना मोबाइल घर पर ही छोड़ कर गई थी.

अब तो विक्रम की हालत खराब हो गई. वह कुछ देर स्तब्ध बैठा रहा फिर लपक कर साहिल को काल करने लगा, ‘‘हैलो…हैलो साहिल, प्लीज जल्दी आओ यहां.’’

विक्रम की घबराहट महसूस कर साहिल भी बदहवास हो गया. उस ने जल्दी से कहा, ‘‘ओके, मैं बस अभी आया.’’

साहिल को देखते ही विक्रम फूटफूट कर रो पड़ा, ‘‘मेरी नीता…नीता पता नहीं कहां चली गई है यार.’’

साहिल ने सारी स्थिति का मुआयना किया. फिर सोचते हुए बोला, ‘‘देखे विक्रम, मुझे तो लगता है कि नीता तुझ से नाराज हो कर घर छोड़ कर चली गई है. तूने उस के परिवार वालों और दोस्तों से पूछताछ की?’’

हताश स्वर में विक्रम ने कहा, ‘‘मुझे तो उस के किसी रिश्तेदार के बारे में कुछ भी नहीं पता यार. उस ने बताया था कि वह अनाथ है. और नीता की तो कोई भी सहेली दोस्त नहीं था.’’

साहिल ने यह सुनते ही कहा, ‘‘कमाल है यार, ऐसे कैसे अचानक ही घर छोड़ कर चली गई नीता भाभी.’’

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विक्रम की हालत इस कदर बिगड़ गई कि साहिल को उसे दिलासा भी देते नहीं बन पा रहा था. वाचमैन से सिर्फ इतना ही पता चल सका कि नीता शाम 4 बजे एक बड़ा बैग लिए बिल्डिंग से बाहर चली गई.

रात के 9 बजने वाले थे विक्रम और साहिल सोच के सागर में डूब उतरा रहे थे कि अचानक ही विक्रम का मोबाइल बजने लगा.

उस ने जल्दी से लपक कर देखा तो उस के कलीग रोहित का काल था.

विक्रम ने बड़ी बेजारी से कहा, ‘‘हैलो.’’

उधर से रोहित की धीमी आवाज सुनाई दी, ‘‘फौरन पहुंचो इंटरनैशनल एयरपोर्ट पर. मैं गेट नंबर 2 पर इंतजार कर रहा हूं.’’

विक्रम ने तुरंत कहा, ‘‘सौरी रोहित, मैं इस वक्त बड़ी परेशानी में हूं, नहीं आ सकता.’’ रोहित अब जोर देते हुए बोला, ‘‘इसी वक्त निकलो घर से, नहीं तो फिर सारी उम्र पछताते रहोगे.’’ और काल कट हो गई.

हैरान विक्रम ने साहिल को जब बताया इस बारे में तो वह भी हैरत में पड़ गया. फिर सोचते हुए कहा, ‘‘विक्रम, चल जल्दी से चलते हैं एयरपोर्ट. रोहित ने जरूर ही किसी खास वजह से वहां बुलाया है.’’

गेट के करीब बड़ा सा काउबाय हैट और गौगल्स लगाए एक सैलानी दिखा, जो विक्रम को देखते ही उस की ओर बढ़ा. विक्रम और साहिल के करीब पहुंच उस ने इशारे में उन्हें अपने पीछे आने का संकेत दिया. साहिल और विक्रम दोनों ही अचरज में डूबे उस सैलानी के पीछेपीछे चल दिए.

जल्दी ही वे सब एयरपोर्ट के अंदर लाउंज की ओर बढ़ने लगे. तभी सैलानी ने विक्रम का हाथ दबाते हुए सामने इशारा किया. विक्रम ने जैसे ही उधर देखा, उस के तो होश ही उड़ गए. सामने कुछ दूरी पर ही एक ताबूत के पास काले वस्त्रों में नीता बैठी थी.

विक्रम की आंखें फैल गईं. उस का दिमाग जैसे ब्लैंक हो गया. उस के पैरे लड़खड़ाने लगे. उस ने सहारे के लिए साहिल का कंधा थामा.

साहिल तो खुद ही सामने का नजारा देख हतप्रभ खड़ा था.

तभी सैलानी ने अपना मोबाइल निकाला और कुछ इंस्ट्रक्शन दिए. पलक झपकते ही कई पुलिसकर्मी नीता के चारों ओर पहुंच गए.

नीता हड़बड़ाती हुई उठ खड़ी हुई. उस के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं. तभी सैलानी ने अपना हैट और गौगल्स उतार दिया.

उस का असली रूप देखते ही विक्रम और साहिल चिल्लाए, ‘‘रोहित…’’

रोहित ने मुसकराते हुए सिर हिलाया. फिर नीता के कुछ समझने से पहले ही पुलिसकर्मी उसे ताबूत सहित अरेस्ट कर पुलिस हैडक्वार्टर ले आए.

विक्रम और साहिल भी रोहित के साथ वहां पहुंच गए. विक्रम ने हैरानी से नीता का हाथ पकड़ते हुए पूछा.

‘‘नीता, क्यों छोड़ कर जा रही थी मुझे तुम? और ये सब क्या है? ये ताबूत किस का है?’’ नीता ने बस एक हिकारत भरी नजर विक्रम पर डाली और दूसरी ओर देखने लगी.

अब वहां खड़े एक सीनियर औफिसर ने कहा, ‘‘विक्रम, ये तुम्हारी बीवी नीता दरअसल कबीर की फियांसे शीना है.’’

‘‘शीनाऽऽ…’’ विक्रम चीखते हुए बोला, ‘‘यह कैसे हो सकता है सर? मैं ने पिछले महीने ही इस से शादी की है.’’

तभी एक दूसरा औफिसर बोल पड़ा, ‘‘ये नीता नहीं शीना ही है. सिंगापुर की कंपनी में 500 करोड़ का घपला कर के भाग कर इंडिया आ गई. और यहां पहचान छिपाने के लिए नीता बन कर तुम से शादी कर ली ताकि वह पुलिस और कानून की नजर में न आ सके. और कबीर के साथ उस का संपर्क आराम से बना रहे.’’

अब सीनियर औफिसर ने इशारा किया और 2 पुलिसकर्मियों ने ताबूत को खोल दिया. उस में कबीर जिंदा लेटा हुआ था. वह ताबूत खुलते ही वहां से भाग निकलने की कोशिश करते हुए चीखा, ‘‘मुझे जाने दो यहां से. तुम लोग जानते नहीं हो कि मैं क्या चीज हूं.’’

औफिसर ने मुसकराते हुए कबीर की बांह मरोड़ते हुए कहा, ‘‘हम बहुत अच्छी तरह जानते हैं कबीर कि तुम कितने बड़े फ्रौड हो. अपनी फियांसे शीना को अपनी 300 करोड़ की इंश्योरेंस पौलिसी को नौमिनेट बना कर तुम ने एक टुच्चे भ्रष्ट पुलिस वाले को अपनी योजना में मिला कर ये पूरा खेल रचा.

‘‘तुम्हें लगा था कि नकली गोली से मरने का नाटक कर तुम उस पुलिस वाले की मदद से पोस्टमार्टम का ड्रामा कर डेथ सर्टिफिकेट ले लेंगे और तुम 300 करोड़ के मालिक बन जाओगे. क्यों, सच कहा न?’’

अब कबीर चीखते हुए बोला, ‘‘हां, मैं ने ही प्लान बनाया था ये सब. शीना जब सिंगापुर से भाग कर यहां आई तो मैं ने उस से कहा कि वह विक्रम से शादी कर ले.

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ताकि वह मेरे करीब भी रह सके और हम विक्रम के जरिए अपने प्लान को अंजाम दे सकें. इसलिए एक स्ट्रगलिंग ऐक्ट्रैस निया को बुक किया ताकि वह विक्रम को मूर्ख बना कर उलझा सके. पर उस को कहां पता था कि हमारे प्लान की कामयाबी के लिए उस को मरना था.’’

‘‘पर एक गड़बड़ हो गई तुम से.’’ रोहित ने आगे बढ़ कर कहा, ‘‘जब कल रात विक्रम और साहिल उस ऐक्ट्रैस निया की गाड़ी में लिफ्ट ले कर चले तो थोड़ी देर बाद मैं भी घर जाने के लिए अपनी बाइक से निकला था. रास्ते में मैं ने देखा कि पुलिस उस गाड़ी को घेर कर सवालजवाब कर रही थी. मैं ने असलियत जानने के लिए अपनी बाइक दूर पार्क की और पैदल ही चल पड़ा.

लेकिन तभी साहिल और विक्रम गुस्से में पैदल जाते दिखे, इसलिए मैं यह सोच कर अपनी बाइक लेने चला गया कि उन्हें बाइक पर उन के घर छोड़ दूंगा. पर जब बाइक के पास पहुंच कर मैं ने पलट कर देखा तो दंग रह गया.

वह पुलिस वाला उस लड़की के गले पर चाकू से वार कर रहा था.

‘‘यह देख हालत इतनी खराब हो गई कि वहीं स्टैच्यू की तरह जम गया. जब बाइक ले कर मैं वहां पहुंचा तो लड़की मरी हुई पड़ी थी, और पुलिस जीप जा चुकी थी.’’

एक सीनियर औफिसर ने कहना शुरू किया, ‘‘मिस्टर रोहित ने जैसे ही इस बारे में हमें सूचना दी, हम समझ गए कि ये कोई बड़ा ड्रामा खेला जा रहा है.

हम ने उस भ्रष्ट औफिसर की हर बात रिकौर्ड करवाई. पर हम इस कबीर और शीना को रंगेहाथ पकड़ना चाहते थे, इसीलिए हम पूरी सतर्कता से हर कदम आगे बढ़ा रहे थे.

‘‘और जैसे ही हमें पता चला कि उस मक्कार पुलिस वाले ने कबीर की बौडी शीना उर्फ नीता को सौंप दी है तो हम शीना का पीछा करते हुए एयरपोर्ट आ गए. आज आधी रात की फ्लाइट से ये दोनों दुबई जाने वाले थे. पर अब…अब इन की पूरी जिंदगी कालकोठरी में बीतेगी.’’

तभी कुछ पुलिसकर्मी उस भ्रष्ट पुलिस औफिसर को गिरफ्तार कर के ले आए. उस ने जब कबीर और शीना को देखा तो समझ गया कि उस का खेल खत्म हो चुका है.

जल्दी ही विक्रम और साहिल दोनों रोहित के साथ पुलिस हेडक्वार्टर से निकल कर अपने घर की ओर चल पड़े.

तीनों के ही दिल में शीना उर्फ नीता की मासूम छवि घूम रही थी. किस कदर जहरीली थी ये मासूमियत.

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