कम्मो डार्लिंग : इच्छाओं के भंवरजाल में कमली

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ठोकर: आखिर सरला ने गौरिका के विश्वास को क्यों तोड़ दिया?

विश्वास आईने की तरह होता है. हलकी सी दरार पड़ जाए तो उसे जोड़ा नहीं जा सकता. ऐसा ही विश्वास किया था गौरिका ने सरला पर. उस ने सपने में भी नहीं सोचा था कि जिस पर वह अपनों से ज्यादा भरोसा करने लगी है वह उस के विश्वास को इस तरह चकनाचूर कर देगी.

गौरिका ने आंखें खोलीं तो सिर दर्द से फटा जा रहा था. एक क्षण के लिए तो सबकुछ धुंधला सा लगा, मानो कोई डरावना सपना देख रही हो. उस ने कराहते हुए इधरउधर देखने की कोशिश की थी.

‘सरला, ओ सरला,’ उस ने बेहद कमजोर स्वर में अपनी सेविका को पुकारा. लेकिन उस की पुकार छत और दरवाजों से टकरा कर लौट आई.

‘कहां मर गई?’ कहते हुए गौरिका ने सारी शक्ति जुटा कर उठने का यत्न किया. तभी खून में लथपथ अपने हाथ को देख कर उसे झटका सा लगा और वह सिरदर्द भूल कर ‘खूनखून…’ चिल्लाती हुई दरवाजे की ओर भागी थी.

गौरिका की चीख सुन कर पड़ोस के दरवाजे खुलने लगे और पड़ोसिनें निशा और शिखा दौड़ी आई थीं.

‘क्या हुआ, गौरिका?’ दोनों ने समवेत स्वर में पूछा. खून में लथपथ गौरिका को देखते ही उन के रोंगटे खड़े हो गए थे. गौरिका अधिक देर खड़ी न रह सकी. वह दरवाजे के पास ही बेसुध हो कर गिर पड़ी.

तब तक वहां अच्छीखासी भीड़ जमा हो गई थी. निशा और शिखा बड़ी कठिनाई से गौरिका को उठा कर अंदर ले गईं. वहां का दृश्य देख कर वे भय से कांप उठीं. दीवान पूरी तरह खून से लथपथ था.

गौरिका के सिर पर गहरा घाव था. किसी भारी वस्तु से उस के सिर पर प्रहार किया गया था. शिखा ने भी सरला को पुकारा था पर कोई जवाब न पा कर वह स्वयं ही रसोईघर से थोड़ा जल ले आई थी और उसे होश में लाने का यत्न करने लगी थी.

निशा ने तुरंत गौरिका के पति कौशल को फोन कर सूचित किया था. अन्य पड़ोसियों ने पुलिस को सूचना दे दी थी. सभी इस घटना पर आश्चर्य जाहिर कर रहे थे. बड़े से पांचमंजिला भवन में 30 से अधिक फ्लैट थे. मुख्यद्वार पर 2 चौकीदार दिनरात उस अपार्टमेंट की रखवाली करते थे. नीचे ही उन के रहने का प्रबंध भी था.

इस साईं रेजिडेंसी के ज्यादातर निवासी वहां लंबे समय से रह रहे थे और भवन को पूरी तरह सुरक्षित समझते थे. अत: इस प्रकार की घटना से सभी का भयभीत होना स्वाभाविक ही था.

आननफानन में कौशल आ गया. उस का आफिस अधिक दूर नहीं था. पर आज आफिस से फ्लैट तक पहुंचने का 15 मिनट का समय उसे एक युग से भी लंबा प्रतीत हुआ था. अपने घर का दृश्य देखते ही कौशल के हाथों के तोते उड़ गए. घर का सामान बुरी तरह बिखरा हुआ था. लोहे की अलमारी का सेफ खुला पड़ा था और सामान गायब था.

‘सरला…सरला,’ कौशल ने भी घर में घुसते ही उसे पुकारा था पर उसे न पा कर एक झटका सा लगा उस भरोसे को जो उन्होंने सरला को ले कर बना रखा था.

सरला को गौरिका और कौशल ने सेविका समझा ही नहीं था. वह घर का काम करने के साथ ही गौरिका की सहेली भी बन बैठी थी. कौशल का पूरा दिन तो दफ्तर में बीतता था. घर लौटने में रात के 9-10 भी बज जाते थे.

कौशल एक साफ्टवेयर कंपनी में ऊंचे पद पर था. वैसे भी काम में जुटे होने पर उसे समय का होश कहां रहता था.

गौरिका से कौशल का विवाह हुए मात्र 10 माह हुए थे. गौरिका एक संपन्न परिवार की 2 बेटियों में सब से छोटी थी. पिता बड़े व्यापारी थे, अत: जीवन सुख- सुविधाओं में बीता था. मातापिता ने भी गौरिका और उस की बहन चारुल पर जी भर कर प्यार लुटाया था. ‘अभाव’ किस चिडि़या का नाम है यह तो उन्होंने जाना ही नहीं था.

कौशल का परिवार अधिक संपन्न नहीं था पर उस के पिता ने बच्चों की शिक्षा में कोई कोरकसर नहीं उठा रखी थी. विवाह में गौरिका के परिवार द्वारा किए गए खर्च को देख कर कौशल हैरान रह गया था. 4-5 दिनों तक विवाह का उत्सव चला था. 3 अलगअलग स्थानों पर रस्में निभाई गई थीं. उस शानो- शौकत को देख कर मित्र व संबंधी दंग रह गए थे. पर सब से अधिक प्रभावित हुआ था कौशल. उस ने अपने परिवार में धन का अपव्यय कभी नहीं देखा था. जहां जितना आवश्यक हो उतना ही व्यय किया जाता था, वह भी मोलतोल के बाद.

सुंदर, चुस्तदुरुस्त गौरिका गजब की मिलनसार थी. 10 माह में ही उस ने इतने मित्र बना लिए थे जितने कौशल पिछले 5 सालों में नहीं बना सका था.

अब दिनरात मित्रों का आनाजाना लगा रहता. मातापिता ने उपहार में गौरिका को घरेलू साजोसामान के साथ एक बड़ी सी कार भी दी थी. कौशल कार्यालय आनेजाने के लिए अपनी पुरानी कार का ही इस्तेमाल करता था. गौरिका अपनी मित्रमंडली के साथ घूमनेफिरने के लिए अपनी नई कार का प्रयोग करती थी.

मायके में कभी तिनका उठा कर इधरउधर न करने वाली गौरिका ने मित्रों के स्वागतसत्कार के लिए इस फ्लैट में आते ही 3 सेविकाओं का प्रबंध किया था. घर की सफाई और बरतन मांजने वाली अधेड़ उम्र की दमयंती साईं रेजिडेंसी से कुछ दूरी पर झोंपड़ी में रहती थी. कपड़े धोने और प्रेस करने वाली सईदा सड़क पार बने नए उपनगर में रहती थी.

सरला को गौरिका ने रहने के लिए निचली मंजिल पर कमरा दे रखा था. वह भोजन बनाने, मित्रों का स्वागतसत्कार करने के साथ ही उस के साथ खरीदारी करने, सिनेमा देखने जाती थी. 4-5 माह में ही सरला कुछ इस तरह गौरिका की विश्वासपात्र बन बैठी थी कि उस के गहने संभालने, दूध, समाचारपत्र आदि का हिसाबकिताब करने जैसे काम भी वह करने लगी थी.

कुछ दिनों के लिए कौशल के मातापिता बेटे की गृहस्थी को करीब से देखने की आकांक्षा लिए आए थे और नौकरों का एकछत्र साम्राज्य देख कर दंग रह गए थे. उस की मां ने दबी जबान में कौशल को समझाया भी था, ‘बेटा, 2 लोगों के लिए 3 सेवक? तुम्हारी पत्नी तो तुम्हारा सारा वेतन इसी तरह उड़ा देगी. अभी से बचत करने की सोचो, नहीं तो बाद में कुछ भी हाथ नहीं लगेगा.’

‘मां, गौरिका हम जैसे मध्यम परिवार से नहीं है. उस के यहां तो नौकरों की फौज रखना साधारण सी बात है. हम उस से यह आशा तो नहीं कर सकते कि वह बरतन मांजने और घर की सफाई करने जैसे कार्य भी अपने हाथों से करेगी,’ कौशल ने उत्तर दिया था.

‘कपड़े धोने के लिए मशीन है, बेटे,’ मां बोलीं, ‘साफसफाई के लिए आने वाली दमयंती भी ठीक है, पर दिन भर घर में रहने वाली सरला मुझे फूटी आंखों नहीं भाती. कपडे़, गहने, रुपएपैसे आदि की जानकारी उसे भी है. किसी तीसरे को इस तरह अपने घर के भेद देना ठीक नहीं है. उस की आंखें मैं ने देखी हैं… घूर कर देखती है सबकुछ. काम रसोईघर में करती है, पर उस की नजरें पूरे घर पर रहती हैं. मुझे तो तुम्हारी और गौरिका की सुरक्षा को ले कर चिंता होने लगी है.’

‘मां, यह चिंता करनी छोड़ो. चलो, कहीं घूमने चलते हैं. सरला 6 माह से यहां काम कर रही है पर कभी एक पैसे का नुकसान नहीं हुआ. गौरिका को तो उस पर अपनों से भी अधिक विश्वास है,’ कौशल ने बोझिल हो आए वातावरण को हलका करने का प्रयत्न किया था.

‘रहने भी दो, अब बच्चे बड़े हो गए हैं. अपना भलाबुरा समझते हैं. हम 2-4 दिनों के लिए घूमने आए हैं. तुम क्यों व्यर्थ ही अपना मन खराब करती हो,’ कौशल के पिताजी ने बात का रुख मोड़ने का प्रयत्न किया था.

‘क्या हुआ? सब ऐसे गुमसुम क्यों बैठे हैं,’ तभी गौरिका वहां आ गई थी.

‘कुछ नहीं, मां को कुछ पुरानी बातें याद आ गई थीं,’ कौशल हंसा था.

‘बातें बाद में होती रहेंगी, हम लोग तो पिकनिक पर जाने वाले थे, चलिए न, देर हो जाएगी,’ गौरिका ने कुछ ऐसे स्वर में अनुनय की थी कि सब हंस पड़े थे.

सरला ने चटपट भोजन तैयार कर दिया था. थर्मस में चाय भर दी थी. पर जब गौरिका ने सरला से भी साथ चलने को कहा तो कौशल ने मना कर दिया था.

‘मांपापा को अच्छा नहीं लगेगा, उन्हें परिवार के सदस्यों के बीच गैरों की उपस्थिति रास नहीं आती,’ कौशल ने समझाया था.

‘मैं ने सोचा था कि वहां कुछ काम करना होगा तो सरला कर देगी.’

‘ऐसा क्या काम पड़ेगा. फिर मैं हूं ना, सब संभाल लूंगा,’ सच तो यह था कि खुद कौशल को भी परिवार में सरला की उपस्थिति हर समय खटकती थी पर कुछ कह कर गौरिका को आहत नहीं करना चाहता था.

कौशल के मातापिता कुछ दिन रह कर चले गए थे पर कौशल की रेनू बूआ, जो उसी शहर के एक कालिज में व्याख्याता थीं, दशहरे की छुट्टियों में अचानक आ धमकी थीं. चूंकि  कौशल घर में सब से छोटा था इसकारण वह बूआ का विशेष लाड़ला था.

गौरिका से बूआ की खूब पटती थी. पर सरला को कर्ताधर्ता बनी देख वह एक दिन चाय पीते ही बोल पड़ी थीं, ‘गौरिका, नौकरों से इतना घुलनामिलना ठीक नहीं है. तुम्हें शायद यह पता नहीं है कि तुम अपनी सुरक्षा को किस तरह खतरे में डाल रही हो. आजकल का समय बड़ा ही कठिन है. हम किसी पर विश्वास कर ही नहीं सकते.’

‘मैं जानती हूं बूआजी, इसीलिए तो मैं ने किसी पुरुष को काम पर नहीं रखा. मैं अपनी कार के लिए एक चालक रखना चाहती थी. अधिक भीड़भाड़ में कार चलाने से बड़ी थकान हो जाती है. पर देखिए, हम दोनों स्वयं ही अपनी कार चलाते हैं.’

रेनू बूआ चुप रह गई थीं. वह शायद बताना चाहती थीं कि पुरुष हो या स्त्री कोई भी विश्वास के योग्य नहीं है. फिर भी उन्होंने गौरिका से यह आश्वासन जरूर ले लिया कि भविष्य में वह रुपएपैसे, गहनों से सरला को दूर ही रखेगी.

गौरिका ने रेनू बूआ का मन रखने के लिए उन्हें आश्वस्त कर दिया पर उसे सरला पर अविश्वास करने का कारण समझ में नहीं आता था. उस के अधिकतर पड़ोसी एक झाड़ ूबरतन वाली से काम चलाते थे लेकिन वह सोचती थी कि उस का स्तर उन सब से ऊंचा है.

कौशल ने सब से पहले गौरिका को पास के नर्सिंग होम में भरती कराया था. सिर पर घाव होने के कारण वहां टांके लगाए गए थे. निशा और शिखा ने गौरिका के पास रहने का आश्वासन दिया तो कौशल घर आ गया और आते ही उस ने अपने और गौरिका के मातापिता को सूचित कर दिया. कौशल ने रेनू बूआ को भी सूचित कर दिया. बूआ नजदीक थीं और वह अच्छी तरह से जानता था कि उस पर आई इस आफत को सुनते ही बूआ दौड़ी चली आएंगी.

प्रथम सूचना रिपोर्ट लिखा कर कौशल दोबारा नर्सिंग होम चला गया था. सिर में टांके लगाने के लिए गौरिका के एक ओर के बाल साफ कर दिए गए थे. हाथ में पट्टी बंधी थी, पर वह पहले से ठीक लग रही थी.

‘कौशल, मेरे कपड़े बदलवा दो. सरला से कहना अलमारी से धुले कपडे़ निकाल देगी,’ गौरिका थके स्वर में बोली थी.

‘नाम मत लेना उस नमकहराम का. कहीं पता नहीं उस का. तुम्हें अब भी यह समझ में नहीं आया कि तुम्हारी यह दशा सरला ने ही की है,’ कौशल क्रोधित हो उठा था.

‘क्या कह रहे हो? सरला ऐसा नहीं कर सकती.’

‘याद करने की कोशिश करो, हुआ क्या था तुम्हारे साथ? पुलिस तुम्हारा बयान लेने आने वाली है.’

गौरिका ने आंखें मूंद ली थीं. देर तक आंसू बहते रहे थे. फिर वह अचानक उठ बैठी थी.

‘मुझे कुछ याद आ रहा है. मैं आज सरला के साथ बैंक गई थी. 50 हजार रुपए निकलवाए थे. घर आ कर सरला खाना बनाने लगी थी. मैं ने उस से एक प्याली चाय बनाने के लिए कहा था. चाय पीने के बाद क्या हुआ मुझे कुछ पता नहीं,’ गौरिका सुबकने लगी थी, ‘2 दिन बाद तुम्हारे जन्मदिन पर मैं तुम्हें उपहार देना चाहती थी.’

तभी रेनू बूआ आ पहुंची थीं. उन के गले लग कर गौरिका फूटफूट कर रोई थी.

‘देखो बूआजी, क्या हो गया? मैं ने सरला पर अपनों से भी अधिक विश्वास किया. सभी सुखसुविधाएं दीं. उस ने मुझे उस का यह प्रतिदान दिया है,’ गौरिका बिलख रही थी.

रेनू बूआ चुप रह गई थीं. वह जानती थीं कि कभीकभी मौन शब्दों से भी अधिक मुखर हो उठता है. वह यह भी जानती थीं कि बहुत कम लोग दूसरों को ठोकर खाते देख कर संभलते हैं, अधिकतर को तो खुद ठोकर खा कर ही अक्ल आती है.

सरला 50 हजार रुपए के साथ ही घर में रखे गौरिका के गहनेकपड़े भी ले गई थी. लगभग 5 माह बाद वह अपने 2 साथियों के साथ पकड़ी गई थी और तभी गौरिका को पता चला कि वह पहले भी ऐसे अपराधों के लिए सजा काट चुकी थी. सुन कर गौरिका की रूह कांप गई थी. कौशल, मांबाप तथा घर के अन्य सभी सदस्यों ने उसे समझाया था कि भाग्यशाली हो जो तुम्हारी जान बच गई. नहीं तो ऐसे अपराधियों का क्या भरोसा.

इस घटना को 5 वर्ष बीत चुके हैं. फैशन डिजाइनर गौरिका का अपना बुटीक है. पर पति, 3 वर्षीय बंटी और बुटीक सबकुछ गौरिका स्वयं संभालती है. दमयंती अब भी उस का हाथ बंटाती है पर सब पर अविश्वास करना और अपना कार्य स्वयं करना सीख लिया है गौरिका ने.

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Mother’s Day Special- मोहपाश : बच्चों से एक मां का मोहभंग

जब से कुमार साहब ने औफिस से 2 महीने की छुट्टी ले कर नैनीताल जाने का मन बनाया था, तब से ही विभा परेशान थी. उस ने पति को टोका भी था, ‘‘अजी, पूरी जवानी तो हम ने घर में ही काट दी, अब भला बुढ़ापे में कहा घूमने जाएंगे.’’

‘‘अरे भई, यह किस डाक्टर ने कहा है कि जवानी में ही घूमना चाहिए, बुढ़ापे में नहीं,’’ कुमार साहब भी तपाक से बोले.

विभा के गिरते स्वास्थ्य को देख कर कुमार साहब बड़े चिंतित थे. उन्होंने कई डाक्टरों को भी दिखाया था. सभी ने एक ही बात कही थी कि दवा के साथसाथ उन्हें अधिक से अधिक आराम की भी जरूरत है.

काफी सोचविचार के बाद कुमार साहब ने 2 महीने नैनीताल में रहने का प्रोग्राम बनाया था कि इस बहाने कुछ समय के लिए ही सही, शहर के प्रदूषित वातावरण से मुक्ति मिलेगी और घर के झमेलों से दूर रह कर विभा को आराम भी मिलेगा.

कुमार साहब का कोई लंबाचौड़ा परिवार न था. 2 बेटे थे, दोनों ही इंजीनियर. बड़ी कंपनियों में कार्यरत थे. विवाह के बाद दोनों ने अपने अलगअलग आशियाने बना लिए थे. शायद यह घर उन्हें छोटा लगने लगा था. वैसे भी एक गली के पुराने घर में रहना उन के स्तर के अनुकूल न था.

जब से बेटे अलग हुए, तब से ही विभा का स्वास्थ्य दिन पर दिन गिरता गया. विभा ने बच्चों को ले कर अनेक सुनहरे सपने बुन रखे थे, पर बच्चों के जीवन में शायद मां का कोईर् स्थान ही न था. विभा इस सदमे को बरदाश्त नहीं कर पा रही थी. बच्चों के व्यवहार ने विभा के सारे सपनों को चकनाचूर कर दिया था.

महीने में 1-2 बार बच्चे उन से मिलने आते थे और कुछ देर बैठ कर औपचारिक बातें कर के चले जाते थे. इसी तरह समय बीतता गया. बच्चों से मिलनाजुलना अब पहले से भी कम हो गया. इसी बीच वे 1 पोते व 1 पोती के दादादादी भी बन गए.

दोनों बहुएं पढ़ीलिखी थीं. उन्होंने भी अपने लिए नौकरी ढूंढ़ ली. अब पहली बार उन्हें अपनी भूल का एहसास हुआ कि उन्हें मांबाबूजी से अलग घर नहीं बसाना चाहिए था. मां घर में होतीं तो बच्चों को संभाल लेतीं.

बड़ी बहू नंदिता तो एक दिन बेटे गौतम को ले कर सास के पास पहुंच भी गई. बहू, पोते को देख कर विभा निहाल हो गई.

‘अमित नहीं आया?’ उस ने शिकायती लहजे में बहू से पूछा.

‘क्या करूं मांजी, उन्हें तो दिनभर औफिस के काम से ही फुरसत नहीं है. कितने दिन से कह रही थी कि मांबाबूजी से मिलने की बड़ी इच्छा है, औफिस से जल्दी आ जाना, पर आ ही नहीं पाते. आखिर परेशान हो कर मैं अकेली ही गौतम को ले कर आ गई.’

‘बहुत अच्छा किया बहू,’ गदगद स्वर में विभा बोली और गौतम को खिलाने लगीं.

‘मांजी, आप को यह जान कर खुशी होगी कि मैं ने नौकरी कर ली है.’

‘हां बेटी, बात तो खुशी की ही है. भला हर किसी को नौकरी थोड़े ही मिलती है? जो नौकरी लायक होता है, उसे ही नौकरी मिलती है. मेरी बहू इतनी काबिल है, तभी तो उसे नौकरी मिली,’ विभा ने खुश होते हुए कहा.

‘पर मांजी, एक समस्या है, अब गौतम को तो आप को ही संभालना पड़ेगा. मैं चाहती हूं कि आप और बाबूजी हमारे साथ रहें. इस घर को किराए पर दे देंगे.’

‘नहीं बेटी, यह तो संभव नहीं है. इस घर से मेरी बहुत सी यादें जुड़ी हैं. इस घर में मैं ब्याह कर आई थी. इसी घर में मेरी गोद भरी थी. इस घर के कोनेकोने में मेरे अमित और विजय की किलकारियां गूंजती हैं. इसी घर में तुम और स्मिता आईं और यह घर खुशियों से भर गया. अकेली होने पर यही यादें मेरा सहारा बनती हैं. इस घर को मैं नहीं छोड़ सकती.’

विभा ने साफ मना किया तो नंदिता बोली, ‘ठीक है मांजी, फिर मैं औफिस जाते समय गौतम को यहां छोड़ जाया करूंगी और लौटते समय ले जाया करूंगी.’

‘यह ठीक रहेगा,’ विभा ने अपनी सहमति देते हुए कहा. हालांकि उन का स्वास्थ्य ठीक नहीं था, पर वह अपने एकाकी जीवन से बहुत ऊब चुकी थी. अब दिन भर गौतम उस के साथ रहेगा. इस कल्पना मात्र से ही वह खुश थी.

जब कुमार साहब को इस बात पता चला कि दिनभर गौतम की देखभाल विभा करेगी तो उन्हें यह अच्छा न लगा. अतएव झुंझला कर बोले, ‘जिम्मेदारी लेने से पहले अपना स्वास्थ्य तो देखा होता. दिनभर एक बच्चे को संभालना कोई आसान काम है?’

‘अपने बच्चे हैं. अपने बच्चों के हम ही काम नहीं आएंगे तो कौन आएगा?’ विभा ने समझाने की कोशिश करते हुए कहा.

‘गौतम यहां रहेगा तो क्या मुझे अच्छा नहीं लगेगा? मुझे भी अच्छा लगेगा, पर मुझे दुख तो इस बात का है कि तुम्हारे ये स्वार्थी बच्चे काम पड़ने पर तो अपने बन जाते हैं, पर काम निकलते ही पराए हो जाते हैं,’ कुमार साहब बोले तो विभा ने चुप रहने में ही भलाई समझी.

जैसे ही छोटी बहू स्मिता को पता चला कि गौतम दिनभर मांजी के पास रहा करेगा, वैसे ही उस ने भी अपनी बेटी ऋचा को वहां छोड़ने का निर्णय ले लिया.

2 दिनों बाद से ही गौतम और ऋचा पूरा दिन अपनी दादी के साथ बिताने लगे. विभा का पूरा दिन उन दोनों के छोटेछोटे कामों में कैसे निकल जाता था, पता ही नहीं चलता था. कुछ महीने हंसीखुशी बीत गए, पर जैसेजैसे वे बड़े हो रहे थे, विभा के लिए समस्याएं बढ़ती जा रही थीं. अब बच्चे आपस में लड़तेझगड़ते तो थे ही, पूरे घर को भी अस्तव्यस्त कर देते थे, जिसे फिर से जमाने में विभा को काफी मशक्कत करनी पड़ती थी.

विभा अपनी परेशानियों को कुमार साहब से छिपाने का लाख प्रयत्न करती, पर उन से कुछ छिपा न रहता था. एक दिन वे औफिस से लौटे तो देखा कि विभा के पैर में पट्टी बंधी थी.

‘क्या हुआ पैर में?’ कुछ परेशान होते हुए उन्होंने पूछा.

‘कुछ नहीं,’ विभा ने बात टालने का प्रयत्न किया, पर तभी पास खेलती ऋचा तुतलाती आवाज में बोली, ‘‘दादाजी, दौतम ने तांच ता दिलाछ तोल दिया. दादीमां तांच उथा लही थी. तबी इनते पैल में तांच लद दया. दादाजी, आप दौतम को दांतिए. वह भोत छलालती है. दादीमां को भोत तंग कलता है,’’ ऋचा गौतम की शिकायत लगाते हुए लाड़ से दादाजी के गले में झूल गई.

ऋचा की प्यारीप्यारी तुतलाती बातें सुन कर कुमार साहब मुसकरा दिए,  ‘और तू भी अपनी दादीमां को तंग करती है,’ उन्होंने कहा तो वह तुरंत गरदन हिलाते हुए बोली, ‘नहींनहीं, मैं तभी इन्हें पलेछान नहीं तलती. मैं तो हमेछा इनता ताम ही तरती हूं. बले ही पूछ लो दादीमां छे.’

अभी कुमार साहब और विभा ऋचा की प्यारीप्यारी बातों का आनंद उठा ही रहे थे कि तभी गौतम के चिल्लाने की आवाज आई.

‘अरे, क्या हुआ?’ कहती हुई विभा दूसरे कमरे में भागी. गौतम वहां आंखों में आंसू भरे अपने पैर को पकड़ कर बैठा था.

‘क्या हुआ बेटा?’ विभा ने उसे पुचकारते हुए पूछा.

‘दादीमां, मैं तो स्टूल पर चढ़ कर अलमारी की सफाई कर रहा था, पर पता नहीं स्टूल कैसे खिसक गया और मैं गिर पड़ा,’ गौतम ने सफाई देते हुए कहा.

‘पैर पकड़े क्यों बैठा है? क्या पैर में चोट लग गई?’

‘हां दादीमां, पैर मुड़ गया,’ पैर को और जोर से पकड़ते हुए वह बोला.

विभा ने गौतम को खड़ा कर के चलाने का प्रयास किया, पर दर्द काफी था, वह चल नहीं सका.

‘लगता है गौतम के पैर में मोच आ गई है,’ विभा ने कुमार साहब को बताया तो वे उसे ले कर तुरंत डाक्टर के पास पहुंचे.

मन ही मन वे झुंझला रहे थे कि अब बुढ़ापे में यही काम रह गया हमारा. सचमुच गौतम के पैर में मोच आ गई थी. रात को नंदिता गौतम को लेने के लिए पहुंची तो उस के पैर में मोच आई देख कर वह भी परेशान हो उठी.

कुमार साहब और विभा ने जब नंदिता को गौतम से यह पूछते हुए सुना कि तुम्हारी दादीमां क्या कर रही थीं जो तुम्हें चोट लग गई तो वे सन्न रह गए.

‘अभी भी तुम्हारा मोहभंग हुआ या नहीं?’ कुमार साहब ने उदास सी मुसकान बिखेरते हुए पूछा, पर विभा मौन थी मानो उसे कुछ सुनाई ही नहीं दिया था. पर बहू का वह वाक्य  ‘तुम्हारी दादीमां क्या कर रही थीं जो तुम्हें चोट लग गई,’ उस के कानों में बारबार गूंज रहा था.

ममता की मारी विभा को बच्चों के मोहपाश ने बुरी तरह जकड़ रखा था. वह उस से निकलने का जितना प्रयास करती, उस की जकड़न उतनी ही ज्यादा बढ़ती जाती. स्थिति यहां तक पहुंची कि विभा ने बिस्तर ही पकड़ लिया.

पिछले कई दिनों से विभा को बुखार था. कुमार साहब ने अमित को फोन कर दिया, ‘बेटा अमित, तुम्हारी मां की तबीयत काफी खराब है. आज तुम गौतम को यहां मत भेजना, वह संभाल नहीं सकेगी. विजय को भी कह देना कि वह भी ऋचा को न भेजे.’

‘पर बाबूजी, ऐसे कैसे चलेगा? नंदिता की नईनई नौकरी है, उसे तो छुट्टी नहीं मिल सकती. मैं कोशिश करूंगा, यदि मुझे छुट्टी मिल गई तो आज मैं गौतम को रख लूंगा. विजय को भी मैं बता दूंगा.’

अगले दिन अमित और विजय के ड्राइवर आ कर दोनों बच्चों को विभा के पास छोड़ गए, साथ ही कह गए कि उन्हें छुट्टी नहीं मिली. मजबूर हो कर कुमार साहब ने छुट्टी ली और दोनों बच्चों की देखभाल की. दिनभर उन की शरारतों से वे परेशान हो गए.

शाम के समय जब विभा की तबीयत कुछ संभली, तब कुमार साहब ने उसे फिर समझाया, ‘देख लिया अपने बच्चों को? तुम उन के बच्चे पालने में दिनभर खटती रहती हो और तुम्हारी दोनों में से एक बहू से भी यह न हुआ कि 1 दिन की छुट्टी ले कर तुम्हारी देखभाल कर लेती.’

‘क्या करें, उन की भी कोई मजबूरी होगी,’ कह विभा ने करवट बदल ली.

रात को दोनों बेटे बच्चों को लेने आए. जितनी देर वे वहां बैठे, अपनी सफाईर् पेश करते रहे.

‘मां, नंदिता के औफिस में आज बाहर से कोई पार्टी आई हुई थी, इसलिए उसे छुट्टी नहीं मिली और मुझे भी जरूरी मीटिंग अटैंड करनी थी.’

अमित ने कहा तो विजय भी कैसे चुप रहता. बोला, ‘मां, स्मिता ने भी छुट्टी लेने की बहुत कोशिश की, पर उस के कालेज में आजकल परीक्षाएं चल रही हैं. और मैं तो अभी शाम को ही टूर से लौटा हूं.’

कुमार साहब यह अच्छी तरह समझ गए थे कि यहां रह कर विभा को आराम नहीं मिलेगा. उस के स्वार्थी बेटे और बहुएं उस की ममता का नाजायज फायदा उठाते रहेंगे. इसलिए उन्होंने कुछ समय के लिए घर से बाहर जाने की सोची थी.

विभा सोच रही थी कि यदि वे नैनीताल चले जाएंगे तो गौतम और ऋचा की देखभाल कौन करेगा. उस ने अपने मन की बात कुमार साहब से कही तो वह भड़क उठे,  ‘‘अरे, जिन के अपने शहर में नहीं रहते उन के बच्चे क्या नहीं पलते? तुम्हारे बेटेबहू इतना कमाते हैं, क्या बच्चों के लिए नौकर नहीं रख सकते? क्या इस शहर में शिशुगृहों की कमी है? तुम ने उन के बच्चों की जिम्मेदारी ले रखी है क्या? उन्हें अपनेआप संभालने दो अपने बच्चों को.’’

जब अमित और विजय को मालूम हुआ कि मां और बाबूजी नैनीताल जा रहे हैं तो वे परेशान हो उठे.

‘‘मांजी, 2 महीने बाद मेरे कालेज में छुट्यिं हो जाएंगी. आप तब चली जाना नैनीताल. यदि आप चली गईं तो बच्चों को कौन संभालेगा,’’ स्मिता ने अपनी परेशानी बताते हुए विभा से कहा.

विभा क्या उत्तर देती, वह तो स्वयं परेशान थी. तभी पास बैठे कुमार साहब बोले, ‘‘बेटी, यदि हम नैनीताल नहीं जाएंगे तब भी तुम्हारी सास की तबीयत ऐसी नहीं है कि वह 2-2 बच्चों को संभाल सके. यह भला किस का सहारा बनेगी, इसे तो स्वयं सहारे की जरूरत है.’’

बाबूजी की बात सुन कर सब चुप थे. पहली बार उन्हें एहसास हो रहा था कि  उन्हें मांबाबूजी कि कितनी जरूरत थी. कुमार साहब और विभा नैनीताल के लिए रवाना हो गए. विभा उदास थी. कुमार साहब भी खुश न थे. उन के सामने अपने बच्चों के परेशान चेहरे घूम रहे थे. कुमार साहब को उदास देख कर विभा ने पूछा, ‘‘आप उदास क्यों हैं? आप को खुश होना चाहिए, हम नैनीताल जा रहे हैं.’’

‘‘तुम क्या सोचती हो कि बच्चों को परेशान देख कर मुझे अच्छा लगता है? पर मैं यह नहीं चाहता कि बच्चे हमारे प्यार का गलत फायदा उठाएं. इस के लिए उन्हें सबक देना जरूरी है और इस के लिए कठोर भी होना पड़े तो झिझकना नहीं चाहिए.’’

कुमार साहब की बात सुन कर विभा संतुष्ट थी. उस के चारों ओर घिरे उदासी के बादल छंटने लगे थे. वह समझ गई थी कि इस मोहपाश में जकड़ कर वह मां का कर्तव्य पूरा नहीं कर पाएगी. आज पहली बार उसे अनुभव हुआ कि जिस मोहपाश में वह अब तक घिरी थी, उस की जकड़न स्वत: ही ढीली हो रही है.

बुढ़ापे में जो दिल बारंबार खिसका-भाग 3

नेहा ने पलक झपकते ही कहे पर अमल किया और बाकी सहेलियों को आंख मारी. ‘‘हांहां, क्यों नहीं, अंकल, जरूर. हम 4 हैं, आप भी 4 स्कूटी पर बैठ सकेंगे? तो आइए, आप लोग भी क्या याद करेंगे.’’ ‘‘बुड्ढों का चौगड्डा खुशी की बौखलाहट में जल्दी ही एकएक कर के चारों लड़कियों के पीछे मजे लेने बैठ गया. लड़कियों ने आपस में एकदूसरे को आंख मारी, तो बुड्ढों ने अपने साथियों को. सब के अपने मंसूबे थे. लड़कियों ने जो झटके से स्कूटी स्टार्ट की तो अंकल लोगों की मानो हलक में सांस अटक गई. और जो स्पीड पकड़ी तो वे लाललाल हुए मुंह से रोकने के लिए चिल्लाते रहे. लड़कियां आज दूर निकल कर पहाड़ी के पीछे झरने के पास तक चली गईं, जिसे देखने की तमन्ना तो थी पर अकेली वे वहां जाने से डरती थीं. आज मौका मिल गया, एक पंथ दो काज. वे सोचने लगीं कि काश, जयंति भी साथ आ पाती तो कितना मजा आता.

‘‘अंकल, आप लोग यहां पत्थरों पर चैन से बैठो. हम थोड़ा दूसरी ओर से भी देख कर आती हैं.’’ उन्होंने कहा. ‘‘ओके गर्ल्स,’’ बुड्ढे मस्त थे.

‘‘हां जयंति, तुम्हारे कहे अनुसार हम ने चारों बुड्ढों को वहीं झरने के पास धोखे से छोड़ दिया है. अब हम वापस आ रही हैं, आधे घंटे में मिलते हैं, ओके,’’ आगे बढ़ कर नेहा ने जयंति को मिशन पहाड़ी सफल हुआ बता दिया था.

अंकल लोग तो अभी अपनी सांसें ही ठीक कर रहे थे, वे दूसरी ओर के दूसरे रास्ते से निकल कर वापस पार्क पहुंच कर देर तक मजा लेती रहीं. जयंति वहीं इंतजार कर रही थी. मोबाइल पर सारा डायरैक्शन उन्हें वही दे रही थी. ‘‘काश, तू भी साथ चल सकती तो सब की बिगड़ी शक्लें देखती.’’

‘‘कोई नहीं, अब घर पर बिगड़ी शक्लों के साथ बुरी हालत भी देख लूंगी, वह हंसी थी.’’ ‘‘बुरे फंसे सारे बुढ़ऊ. वहां न कोई सवारी, न कोई आदमी. पैदल जब इतनी दूर चल कर आएंगे हांफतेकांपते, तब असली मजा आएगा.’’

‘‘आज अच्छी तरह ले लिया होगा लड़कियों के संग सैर का मजा.’’ ‘‘अब शायद सुधर जाएं और हमें छेड़ने की हिमाकत न करें,’’ सब अपने मिशन पर खूब हंसीं.

अब यह देखो, चारचांद लगाने के लिए और क्या लाई हूं.’’ जयंति बैग से कुछ निकालने लगी तो सभी उत्सुकतावश देखने लगीं. ‘‘अरे वाह, कैप्स, स्कार्फ. कितना प्यारा रैड कलर. पर एक ही कलर क्यों? किस के लिए? हमारे लिए?’’ शिखा, सीमा, नेहा, ज्योति सब खुश भी थीं, हैरान भी.

‘‘अब सीक्रेट सुनो, मेरे फादर इन लौ नई कैप के लिए मेरे हबी से कह रहे थे. मैं ने कहा कि मैं ले आऊंगी, और मैं एक नहीं, 4-4 लाल रंग की टोपियां उठा लाई, इसी चौकड़ी के लिए. जानती हो क्यों? क्योंकि मस्ताना, द हीरो, को लाल रंग से सख्त चिढ़ है. कल पार्क में आ कर बैठने तो दो बुड्ढों को. जब ज्यादा लोग टहल के चले जाते हैं, पार्क तकरीबन खाली हो जाता है. ये बुड्ढे तब भी बैठे मजे ले रहे होते हैं. बस, तभी इन्हें ये गिफ्ट पहना कर और फिर उन्हें मजा दिलाएंगे. आइडिया कैसा लगा?’’ ‘‘हां, स्कार्फ की गांठ जरा कस के लगाना सभी, ताकि जल्दी खोल न सकें वे,’’ शिखा ने कहा तो सभी हंस पड़ीं.

‘‘हां, मैं और शिखा पार्क के दोनों गेट बंद कर के रखेंगी,’’ नेहा ने योजना को सफल बनाने में एक और टिप जोड़ा. ‘‘और मस्ताना को पार्क के अंदर छोड़ कर वहां से थोड़ी देर के लिए बाहर निकल जाऊंगी. फिर मस्ताना अपना काम करेगा और मैं 5-7 मिनट बाद लौट आऊंगी स्थिति संभालने,’’ हाहा, सब खूब हंसीं.

‘‘बुढ़ापे में जब रेबीज की कईकई सुइयां लगेंगी, तो सारी लोफरी निकल जाएगी.’’ उन के सम्मिलित ठहाकों से पार्क गुंजायमान हो उठा. दूसरे दिन कांड हो चुका था. टोपियां संभालते स्कार्फ खोलने की कोशिश में गिरतेपड़तेचिल्लाते उन आशिकमिजाज बुड्ढों की हालत देखने लायक थी. बाकी खड़े लोगों ने भी लड़कियों का साथ दिया.

‘‘जो हुआ, ठीक हुआ इन के साथ.’’ ‘‘अच्छा सबक है. सभी को तंग कर रखा था.’’

‘अच्छा हुआ, सबक तो मिला. जोर किस का बुढ़ापे में जो दिल खिसका,’ रेवती भी चिढ़ से बुदबुदा उठी. पास खड़ी जयंति ने सुना, उन की आंखों में कोई दर्द भी न दिखा तो उसे राहत मिली कि वह उन की दोषी नहीं है. पास के अस्पताल में रोज इंजैक्शन लगवाने जाते दोस्त आंसुओं में कराहते हुए मिलते, पर कुछ न कह पाते न आपस में, न घर वालों से, न ही और किसी से. जयंति की टीम ने उन्हें एक नारे से सावधान कर दिया था, ‘जब तक बहूबेटियों के लिए इज्जत आप के पास, तब तक खैर मनाओ आप…वरना और भी तरीके हैं अपने पास…’

रणवीर सोच रहा था चारों में से किसी के घर वालों ने रिपोर्ट क्यों नहीं की. उस ने आंगन में मस्ताना के साथ बैठी पेपर पर कुछ लाइनें खींचती जयंति की ओर देखा तो पास चला आया, देखा तो वह मुसकराने लगा. पार्क में कैपस्कार्फ में गिरतेपड़ते मस्ताना के डर से भाग रहे उन चारों बुड्ढों का कितना सटीक कार्टून बनाया था जयंति ने.

कम्मो डार्लिंग – भाग 3 : इच्छाओं के भंवरजाल में कमली

कौफी पीते समय आकाश ने मुझ से कहा था, ‘‘भाभीजी, उस दिन आप वह गुलाबी रंग की साड़ी नहीं खरीद पाईं. इस का मुझे आज भी अफसोस है. मेरा तो मन था कि वह साड़ी मैं आप को गिफ्ट कर दूं, लेकिन मैं आप के पति की वजह से ऐसा नहीं कर पाया था.’’

मैं ने आकाश से कहा था, ‘‘छोडि़ए आकाशजी, मेरे नसीब में वह साड़ी नहीं थी.’’

आकाश बोला था, ‘‘बात नसीब की नहीं होती है भाभीजी, बात होती है प्यार की. काश, आप मेरी पत्नी होतीं, तो मैं आप के लिए एक साड़ी तो क्या दुनियाजहान की खुशियां ला कर आप के कदमों में डाल देता. सचमुच, आप की हर ख्वाहिश, पूरी करता.’’

‘‘आकाश की आंखों में अपने लिए इतना प्यार देख कर मैं खुद को रोक नहीं पाई. मैं ने कहा था, ‘‘आकाश, सचमुच अगर मैं तुम्हारी पत्नी होती, तो तुम मुझ से इतना ही प्यार करते…?’’

वह बोला था, ‘‘भाभीजी, एक बार आप मेरे प्यार की गहराई नाप कर तो देखिए, आप को खुद पता चल जाएगा कि इस दिल में आप के लिए कितना प्यार है.’’

‘‘बस, उसी दिन से मैं आकाश के प्यार में डूबती चली गई.’’

‘‘नीतेश, मैं तो तुम्हें छोड़ कर आकाश के पास चली गई थी, लेकिन वह चाहता था कि मैं तुम्हें अंधेरे में न रख कर अपने प्यार के बारे में बता दूं. मगर मैं तुम्हें कुछ भी बताने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही थी, इसीलिए मुझे शराब का सहारा लेना पड़ा.’’

‘‘कमली, मैं तुम से यह नहीं कहूंगा कि तुम ने मेरे साथ बेवफाई की है, क्योंकि यह सब कहने का कोई फायदा भी नहीं होगा. हां, इतना जरूर कहूंगा कि आकाश जैसे पैसे वाले लोगों के पास दिल नहीं होता है, वे अपनी दौलत के बल पर तुम जैसी बेवकूफ और लालची औरतों के जिस्म से तो खेल सकते हैं, लेकिन उन्हें अपनी जिंदगी में शामिल नहीं कर सकते.’’

‘‘आकाश उन लोगों में से नहीं है. वह मुझ से सच्ची मुहब्बत करता है.’’

‘‘ऐसा तुम इसलिए कह रही हो, क्योंकि इस समय तुम्हारे दिमाग पर आकाश और उस की दौलत का नशा छाया हुआ है, पर हकीकत जल्दी ही तुम्हारे सामने आ जाएगी. लिहाजा, कोई भी कदम उठाने से पहले एक बार अच्छी तरह सोच लेना.’’

इतना कह कर नीतेश कमली के पास से उठ कर दूसरे कमरे में चला गया. उस ने सोचा कि जब कमली का नशा उतर जाएगा, तो उसे अपनी भूल का एहसास जरूर होगा और वह कोई भी गलत कदम नहीं उठाएगी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं. अगले दिन सुबह जब नीतेश सो कर उठा, तो कमली को दुलहन की ड्रैस में देख कर चौंक गया. वह कमली से कुछ कहता, इस से पहले ही वह बोल पड़ी,

‘‘नीतेश, अच्छा हुआ तुम जाग गए, वरना मैं तुम से मिले बिना ही चली जाती.’’

‘‘चली जाती…. कहां चली जाती?’’ ‘‘आज आकाश ने मुझे एक अलग फ्लैट ले कर दे दिया है. मैं और वह साथ रहेंगे.’’

कमली की यह बात सुन कर नीतेश को ऐसा झटका लगा, जैसे उस के कान पर किसी ने बम फोड़ दिया हो. उसी समय आकाश ने कार का हौर्न बजा दिया, जिसे सुन कर कमली उठ खड़ी हुई और अपना ब्रीफकेस उठा कर बोली, ‘‘मैं जा रही हूं. हो सके, तो मुझे माफ कर देना.’’

नीतेश चुपचाप उसे जाता हुआ देखता रह गया. वह चाहता तो उसे रोक भी सकता था, फिर भी उस ने ऐसा नहीं किया, क्योंकि वह जानता था कि जिस कमली ने अपनी इच्छाओं को पूरा करने की गरज से उस की भावनाओं को भी नहीं समझा, उसे रोकने से भी क्या फायदा.

‘‘नीतेश…’’ कमली की आवाज ने नीतेश की यादों की कड़ी को तोड़ दिया. ऐसा लगा, जैसे 15 साल पहले मिले जख्म फिर से हरे हो गए, जिन की टीस को वह बरदाश्त नहीं कर पाया और चुपचाप वहां से उठ कर जाने लगा.कमली ने मायूस हो कर कहा, ‘‘नीतेश, जो जख्म मैं ने तुम्हें दिए हैं, मैं उन की दवा तो नहीं बन सकती, लेकिन इतना जरूर है कि बेवफाई का जो जहर मैं ने तुम्हारी जिंदगी में घोला था, उस की कड़वाहट से मेरा वजूद जरूर कसैला हो चुका है.’’

‘‘तुम ने ठीक ही कहा था नीतेश कि अमीरजादों के पास धनदौलत और ऐश करने की चीजें तो होती हैं, लेकिन प्यार करने वाला दिल नहीं होता. काश, उस समय मैं तुम्हारी बात मान लेती और अपनी इच्छाओं को काबू कर पाती, तो आकाश जैसा धोखेबाज, चालबाज और मक्कार इनसान मेरी जिंदगी बरबाद नहीं कर पाता.

वह मुझे बड़ेबड़े सपने दिखा कर तब तक मेरी जिंदगी से खेलता रहा, जब तक मुझ से उस का दिल नहीं भर गया. इस के बाद उस ने मुझे उस दलदल में धकेलने की कोशिश की, जहां औरत मर्दों का दिल बहलाने वाला खिलौना बन कर रह जाती है. लेकिन मैं उस के नापाक इरादों को भांप गई और उस के चंगुल से निकल आई.’’

‘‘यहां आ कर मैं एक अनाथ आश्रम में गरीब और बेसहारा बच्चों की देखभाल करने लगी, क्योंकि इस के अलावा मैं कुछ कर भी नहीं सकती थी. तुम्हारे पास आने के सारे हक मैं पहले ही खो चुकी थी, इसलिए तुम्हारे पास आने की भी हिम्मत नहीं जुटा पाई.’’

‘‘मैं जीना नहीं चाहती थी, पर यही सोच कर अब तक जिंदा थी कि कभी तुम से मुलाकात होगी, तो तुम से माफी मांग कर मरूंगी. तुम चाहते, तो मुझे आकाश के साथ जाने से रोक सकते थे. मेरे साथ मारपीट भी कर सकते थे, पर तुम ने ऐसा नहीं किया. चुपचाप अपनी दुनिया को लुटता हुआ देखते रहे, सिर्फ मेरी खुशी के लिए.

‘‘नीतेश, मैं ने तुम्हारी हंसतीखेलती दुनिया को बरबाद किया है, हो सके तो मुझे माफ कर देना.’’ नीतेश ने ज्यादा बात नहीं की, उसे समझ नहीं आ रहा था कि क्या कहे, क्या करे. वह खुद कमली के जाने के बाद अकेला था, पर उसे मालूम न था कि कमली पर भरोसा करा जा सकता है.

उस ने उठ कर कहा, ‘‘अच्छा, मैं चलता हूं. फिर आऊंगा, तब बात करेंगे.’’

कमली ने कहा, ‘‘चलो, मैं आटोस्टैंड तक छोड़ आती हूं. मुझे लौटते हुए कुछ खरीदना भी है.’’

दोनों चाल से बाहर आए. नीतेश का ध्यान कमली की बातों में था और उस ने देखा ही नहीं कि बाएं से एक बस तेजी से आ रही है. वह बस उसे कुचल देती कि कमली ने उसे अपनी ओर खींच लिया. उस की जान बच गई, पर कमली को दाएं से आते एक आटो ने जोर से टक्कर मार दी.

यह देख नीतेश घबरा गया और तुरंत उसे अस्पताल ले गया. कई घंटों की मेहनतमशक्कत के बाद डाक्टरों ने कमली को खतरे से बाहर बताया, तो नीतेश ने राहत की सांस ली. इन घंटों में वह कमली के पास बैठा यही सोचता रहा कि जितनी गुनाहगार कमली है, उतना ही गुनाहगार वह खुद भी है. क्योंकि कमली तो दुनिया की भीड़ में भटक गई थी, लेकिन उस ने भी तो उसे सही रास्ता नहीं दिखाया. हो सकता है, उस समय वह उसे आकाश के पास जाने से रोक लेता, तो शायद आज कमली को घर छोड़ने जैसा काम करने की जरूरत ही न होती.

हलकी सी कराह के साथ कमली ने आंखें खोलीं, तो नीतेश ने उस से कहा, ‘‘अब कैसा महसूस कर रही हो?’’ ‘‘तुम ने मुझे क्यों बचाया? मुझे मर जाने दिया होता.’’

‘‘पगली कहीं की. एक गलती के बाद दूसरी गलती. यह कहां की समझदारी है. अरे, अपने बारे में नहीं तो कम से कम मेरे बारे में तो सोचा होता.’’ नीतेश की इस बात पर कमली हैरान सी आंखें फाड़ कर उसे देखने लगी.

उसे इस तरह अपनी तरफ देखते हुए नीतेश ने कहा, ‘‘हां कमली, तुम से मिलने के बाद और तुम्हारी सचाई जानने के बाद तो मैं ने भी जीने का मन बना लिया.’’ इतना सुनते ही कमली खुद को रोक नहीं पाई और नीतेश से लिपट कर सिसक पड़ी.

उजली परछाइयां- भाग 3: क्या अंबर और धरा का मिलन हुआ?

उस के बाद के अब तक के साल कैसे बीते, यह धरा और अंबर दोनों ही जानते हैं. दूर रह कर भी न तो दूर रह सके, न साथ रह सके दोनों. वे महीनों के अंतराल में मिलते, किट्टू के बड़े होने और साथ जीने के सपने देखते और एकदूसरे की हिम्मत बढ़ाते. लेकिन कभी उन की नजदीकियां ही जब उन्हें कमजोर बनातीं तो दोनों खुद ही टूटने भी लगते और फिर संभलते. रिश्तेदारों, पड़ोस, महल्ले वालों सब से क्या कुछ नहीं सुनना और सहना पड़ा था दोनों को. लेकिन, उन्होंने हर पल हर कदम एकदूसरे को सपोर्ट किया था. बस, कभी शादी की बात नहीं की.

धरा के घर वाले कुछ सालों तक शादी के लिए बोलते रहे. लेकिन बाद में उस ने अपने घर वालों को समझा लिया था कि वे जिस इंडस्ट्री में हैं, वहां शादी इतना माने नहीं रखती है और उस के सपने अलग हैं.  इस बीच, उस ने न कभी अंबर और उस के घर वालों का साथ छोड़ा, न किसी और से रिश्ता जोड़ा. वह अंबर से ले कर उस के बेटे किट्टू तक के बारे में सब खबर रखती थी.

‘‘छुट्टी का टाइम हो गया, मैडमजी,’’ चपरासी की आवाज से धरा की तंद्रा टूटी.

कुछ मिनटों बाद किट्टू को आता देख धरा ने उसे पुकारा, तो किट्टू के चेहरे पर गुस्से और नफरत के भाव उभर आए. फेसबुक पर देखा है उस ने धरा को. यही है वह जिस से शादी करने के लिए पापा हमें छोड़ कर चले गए, ऐसा ही कुछ सुनता आया है वह इतने सालों से मां और नानी से और जब बड़ा हुआ तो उस की नफरत और गुस्सा भी उतना ही बढ़ता गया. अंबर से कभीकभार फोन पर बात होती, तो, बस, हांहूं करता रहता था.

‘‘तुम यहां क्या कर रही हो?’’ किट्टू गुस्से में घूरते हुए कहा.

‘‘जरूरी बात करनी है, तुम्हारे पापा से रिलेटेड है,’’ धरा ने शांत स्वर में कहा. 2 दिनों बाद तुम्हारे पापा का बर्थडे है, मैं चाहती हूं कि तुम उस दिन उन के पास रहो…’’

‘‘और मैं तुम्हारी बात क्यों सुनूं?’’ उस की बात पूरी होने से पहले ही किट्टू ने चिढ़ कर जवाब दिया.

‘‘क्योंकि वे भी इतने सालों से तुम्हें उतना ही मिस कर रहे हैं जितना कि तुम करते हो. यह उन की लाइफ का बैस्ट गिफ्ट होगा क्योंकि तुम उन के लिए सब से बढ़ कर हो,’’ धरा ने किट्टू से कहा, ‘‘क्या तुम मेरे साथ कल देहरादून चलोगे?’’

किट्टू का कोल्डड्रिंक जैसा ठंडा स्वर उभरा, ‘‘इतना ही कीमती हूं तो मुझे वे छोड़ कर क्यों गए थे? मैं उन से नहीं मिलना चाहता. वे कभी मेरे बर्थडे पर नहीं आए…या…या फिर तुम्हारी वजह से नहीं आए. मुझे तुम से बात ही नहीं करनी. तुम गंदी औरत हो.’’ अपना बैग उठाते हुए लगभग सुबकने वाला था किट्टू.

‘‘तुम जाना चाहते हो तो चले जाना लेकिन, बस, एक बार ये देख लो,’’ कह कर धरा ने सारे पुराने मैसेज और चैट के प्रिंट किट्टू के सामने रख दिए जिन में घूमफिर कर एक ही तरह के शब्द थे अंबर के कि ‘किट्टू से बात करा दो,’ या ‘मैं मिलने आना चाहता हूं’ या ‘डाइवोर्स मत दो.’ और रोशनी के भी शब्द थे, ‘मैं तुम्हारे परिवार के साथ नहीं रह सकती,’ या ‘शादी जल्दबाजी में कर ली लेकिन तुम्हारे साथ और नहीं रहना चाहती,’ ‘किट्टू से तुम्हें नहीं मिलने दूंगी…’ ऐसा ही और भी बहुतकुछ था.

किट्टू की तरफ देखते हुए धरा ने कहा, ‘‘मेरे पास कौल रिकौर्डिंग्स भी हैं. अगर तुम सुनना चाहो तो. तुम्हारे पापा कभी नहीं चाहते कि तुम अपनी मां के बारे में थोड़ा सा भी बुरा सोचो या सच जान कर तुम्हारा दिल दुखे. इसलिए आज तक उन्होंने तुम्हें सच नहीं बताया. लेकिन मैं उन्हें इस तरह और घुटता हुआ नहीं देख सकती. और हां, हम एकदूसरे से प्यार करते हैं, लेकिन हम ने कभी शादी नहीं की. जानते हो क्यों? क्योंकि तुम्हारे पापा को लगता था कि शादी करने पर तुम उन्हें और भी गलत समझोगे.  क्या अब भी तुम मेरे साथ कल देहरादून नहीं चलोगे?’’ यह कह कर धरा ने हौले से किट्टू के सिर पर हाथ फेरा.

‘‘चलो, चल कर मम्मी को बोलते हैं कि पैकिंग कर दें,’’ किट्टू को जैसे अपनी ही आवाज अजनबी लगी.

जब धरा के साथ किट्टू घर पहुंचा तो सभी की आंखें फैल गईं. नानी की तरफ देखते हुए किट्टू ने अपनी मां से कहा, ‘‘मैं पापा के बर्थडे पर धरा के साथ 2-3 दिनों के लिए देहरादून जा रहा हूं, मेरी पैकिंग कर दो.’’

रोशनी और बाकी सब समझ गए थे कि किट्टू अभी किसी की नहीं सुनेगा. सुबह उसे लेने आने का बोल धरा होटल के लिए निकल गई. पूरे रास्ते धरा सोचती रही कि आगे न जाने क्या होगा, किट्टू न जाने कैसे रिऐक्ट करेगा. वह अंबर से कैसे मिलेगा और अब क्या सबकुछ ठीक होगा? सुबह दोनों देहरादून की फ्लाइट में थे. किट्टू ने धरा से कोई बात नहीं की.

अगली सुबह का सूरज अंबर के लिए दुनियाजहान की खुशियां ले कर आया. किट्टू को सामने देख एकबारगी तो किसी को यकीन ही नहीं हुआ और अगले ही पल अंबर ने अपने बेटे को गोद में उठा कर कुछ घुमाया. जैसे वह अभी भी 14 साल का नहीं, बल्कि उस का 4 साल का छोटा सा किट्टू हो. पूरे 9 साल बाद आज वह अपने बच्चे को अपने पास पा कर निहाल था और घर में सभी नम आंखों से बापबेटे के इस मिलन को देख रहे थे.

अंबर का इतने सालों का इंतजार आज पूरा हुआ था, अंबर के साथ आज धरा को भी अपना अधूरापन पूरा लग रहा था. शाम में किट्टू ने बर्थडे केक अपने हाथ से कटवाया था और सब से पहला टुकड़ा अंबर ने किट्टू के मुंह में रखा, तो एक बार फिर अंबर और किट्टू दोनों की आंखें नम हो गईं. तभी किट्टू ने अंबर की बगल में खड़ी धरा को अजीब नजरों से देखा तो वह वहां से जाने लगी. अचानक उसे किट्टू की आवाज सुनाई दी, ‘‘पापा, केक नहीं खिलाओगे धरा आंटी को?’’ और धरा भाग कर उन दोनों से लिपट गई.

अगली सुबह धरा जल्दी ही निकल गई थी. उस ने बताया था कि कोई जरूरी काम है बस जाते हुए 2 मिनट को किट्टू से मिलने आई थी. दोपहर में अंबर को धरा का मैसेज मिला, ‘तुम्हें तुम्हारा किट्टू मिल गया. मैं कल आखिरी बार तुम से उस जगह मिलना चाहती हूं जहां हम ने चांदनी रात में साथ जाने का सपना देखा था.’

अंबर जानता था धरा ने उसे जबलपुर में धुआंधार प्रपात के पास बुलाया है. उस ने पढ़ा था कि शरद पूर्णिमा की रात चांद की रोशनी में प्रकृति धुआंधार में अपना अलौकिक रूप दिखाती है. तब से उस का सपना था कि चांदनी रात में नर्मदा की सफेद दूधिया चट्टानों के बीच तारों की छांव में वह अंबर के साथ वहां हो. अगली शाम में जब अंबर भेड़ाघाट पहुंचा तो किट्टू भी साथ था. वहां उन्हें एक लोकल गाइड इंतजार करता मिला जिस ने बताया कि वह उन लोगों को धुआंधार तक छोड़ने के लिए आया है.

करीब 9 बजे जब अंबर वहां पहुंचा तो धरा दूर खड़ी दिखाई दी. चांद अपने पूरे रूप में खिल आया था और संगमरमर की चट्टानों के बीच धरा, यह प्रकृति,? सब उसे अद्भुत और सुरमई लग रहे थे. वह धरा के पास पहुंचा और उस का हाथ पकड़ कर बेचैनी से बोला, ‘‘मुझे छोड़ कर मत जाओ, धरा. मैं नहीं रह सकता तुम्हरे बिना. अब तो सब ठीक हो चुका है. देखो, किट्टू भी तुम से मिलने आया है.’’

धरा ने धीरे से अपना हाथ अंबर के हाथ से छुड़ाया, तो अंबर के चेहरे पर हताशा फैल गई. किट्टू ने धरा की तरफ देखा और दोनों शरारत से मुसकराए. दूर क्षितिज में आसमान के तारे और शहर की लाइट्स एकसाथ झिलमिला रही थीं. तभी धरा ने एक गुलाब निकाला और घुटने पर बैठ कर कहा, ‘‘मुझे भी अपने परिवार का हिस्सा बना लो, अम्बर. क्या अब से रोज सुबह मेरे हाथ की चाय पीना चाहोगे?’’

खुशी और आंसुओं के बीच अंबर ने धरा को जोर से गले लगा लिया था और किट्टू अपने कैमरे से उन की फोटो खींच रहा था.

उन का इतने सालों का इंतजार आज खत्म हुआ था. अंबर के साथसाथ धरा का अधूरापन भी हमेशा के लिए पूरा हो गया था. आज उसे उस का वह क्षितिज मिल गया था जहां अतीत की गहरी परछाइयां वर्तमान का उजाला बन कर जगमगा रही थीं, वह क्षितिज जहां 10 साल के लंबे इंतजार के बाद अंबरधरा भी एक हो गए थे.

बुढ़ापे में जो दिल बारंबार खिसका-भाग 2

रणवीर और जयंति का तकरीबन रोज ही मिलना हो जाता. दोनों को एकदूसरे का बरसों बाद मिला साथ अच्छा लगने लगा था. एक दिन जब जयंति ने रणवीर से कहा, ‘‘यार, इतने दिन हो गए कई बार कहा भी, घर में तो सब से मिलवाओ, मेरा तो कोई है नहीं, लेदे के एक वही मस्ताना डौग है, वैसे वह भी मिलने लायक चीज है, चलोगे, मिलोगे?’’ वह हंसी थी.

‘‘चलूंगा, पर आज नहीं. मैं तुम्हें कुछ बताना चाहता हूं जयंति कि क्यों मैं तुम्हें घर नहीं ले जा पाता,’’ रणवीर ने पिता की वजह से घरबाहर फैले रायते को जयंति के सामने रख दिया. ‘‘छि, बड़ी शर्म आती है मुझे, घर से बाहर निकलते लोगों से मिलते. सब बाप की तरह बेटे को भी समझते होंगे. क्या करूं कोई उपाय सूझ नहीं पाता. मैं खुद उस घर में नहीं जाना चाहता.

सिर्फ मां की वजह से वहां हूं. मां से अलग घर, मैं सोच भी नहीं पाता. ऐसे पिता की वजह से न घर में कोई आता है न ही हम किसी को बुलाने की हिम्मत कर पाते हैं. मां की तो पूरी जिंदगी ही उन्होंने खराब कर दी, वही अब मेरे साथ भी कर रहे हैं. रानी दी ने तो सही किया, लड़की थीं, निकल गईं जंजाल से. पर मैं तो बेटा हूं, इन्हें छोड़ भी नहीं सकता, बुढ़ापे में मां को इन से अलग भी नहीं कर सकता. साथ रख कर ही पालना पड़ेगा. जब तक इन की हरकतें रहेंगी, ये जिंदा रहेंगे, तब तक कुछ नहीं हो सकता. कितना भी कर लूं, पर न मैं ऐसे में खुश रह सकता हूं, न मां को या किसी को खुशी दे सकता हूं. शादी के बारे में तो सोच ही नहीं सकता.’’

‘‘ओह, तो यह बात है जरा सी, जो तुम सब को कब से परेशान किए हुए है.’’

‘‘तुम्हें यह जरा सी बात लगती है?’’ ‘‘इसीलिए तुम ने शादी न करने का फैसला कर लिया है,’’ वह बोली.

‘‘ऊं, न, नहीं, ऐसा कुछ नहीं. पर कुछ हद तक सही ही है. जहां खुद मेरा दम घुटता हो वहां किसी को लाने की मैं सोच भी कैसे सकता हूं.’’ ‘‘लग तो कुछ ऐसा ही रहा है,’’ वह मुसकराई, तुम शादी तो करो, यार, मैं उसे ऐसे गुरुमंत्र दूंगी कि बस, फिर तुम कमाल देखते ही रहना. आई प्रौमिस यू, तुम तो जानते ही हो, जो मैं कहती हूं वह जरूर कर के रहती हूं.’’

‘‘कोई और क्यों, तुम क्यों नहीं. जानता हूं कि असलियत जान कर किसी को मुझ से शादी करना मंजूर नहीं होगा,’’ वह कुछ संकुचाते हुए बोल ही गया. उस के संबल में उसे एक उम्मीद की किरण सी उसे दिखने लगी. पर जयंति अचानक दिए इस प्रपोजल पर हैरान थी. अपनी हैसियत से उसे ऐसी सपने में भी कल्पना न थी. जल्दी में कुछ न सूझा तो वह बोल पड़ी, ‘‘मेरे ऊपर तो बड़ी जिम्मेदारी है जो कभी पीछा नहीं छोड़ेगी.’’

‘‘अभी तो तुम ने कहा, कोई नहीं रहता, तुम अकेले हो?’’ ‘‘भूल गए, मस्ताना, उस का भी कोई नहीं मेरे सिवा,’’ वह अमिताभ की फिल्म ‘द ग्रेट गैम्बलर’ के अंदाज में गा उठी.

‘‘मैं मजाक नहीं कर रहा, पूरी तरह से सीरियस हूं.’’ ‘‘अच्छा, चलो, फिर कर लेते हैं, पर समझ लो, मैं तुम्हारी हस्ती से मैच भी करूंगी? एक पहिया गाड़ी का, एक स्कूटी का. आड़ातिरछा चलाचला के झूम…’’ और वह हंसने लगी. रणवीर की गंभीर गुस्से वाली मुद्रा देख कर वह फिर बोली, ‘‘अच्छा, अब सीरियस हो जाती हूं. मां से तो मिलवाओगे या सीधे कोर्ट मैरिज कर के घर ले चलना है.’’ वह फिर से हंसने वाली थी, अपने को रोक कर मुसकराई.

जयंति रणवीर की मां रेवती से मिली, आशीर्वाद लिया और फिर शहनाइयां बज उठीं. जयंति ब्याह कर रणवीर के घर आ गई. उस के साथ मस्ताना भी था. रेवती, रणवीर दोनों ही ने उसे साथ लाने को कहा था. रेवती ने देखा, हमेशा गंभीर दिखने वाले बेटे के चेहरे पर खुशी साफ झलक रही थी. मस्ताना की चमकती आंखें रामशरण को लगता उन्हें ही घूर रही हैं. वह अपनी लहरदार, घनी पूंछ जब पटकता तो लगता उन्हें धमकी दे रहा हो. कई बार रामशरण मस्ताना की वजह से ताकझांक करते हुए, कहीं चोरी पकड़ी न जाए, गिरतेगिरते बचते क्योंकि मस्ताना कहीं न कहीं से उन्हें देख लेता. लहराती दुम उठा कर जो वह जोरजोर से भूंकना शुरू करता तो रुकने का नाम ही न लेता. जयंति को मालूम हो गया था कि ससुरजी मस्ताना से थोड़ा डरते हैं. वह अकसर उन्हें मस्ताना से काफी दूर घूम कर जाते हुए देखती तो मुसकराती. कोई शरारत उस के खुराफाती दिमाग में दौड़ने लगी थी. कुछ तो करना ही पड़ेगा घर में सब के सुकून के लिए.

सुबहशाम जयंति भी ससुरजी के टाइम पर ही मस्ताना को टहलाने के लिए जाने लगी. पहले बहुत जिद की थी पापाजी से, ‘‘आप ही उसे अपने साथ ले जाया कीजिए पापाजी, मैं मां का हाथ बंटा लूंगी. फिर औफिस भी जाना होता है.’’ पर रामशरण किसी न किसी बहाने से टाल गए. अगले वीक उस की छुटटी सैंक्शन हो गई. जितनी भी छुट्टियां बची थीं, सब ले डालीं. रणवीर तो उसे यह जौब छोड़ कर उसे अपना पसंदीदा एनीमेशन कोर्स कर कुछ बड़ा करने पर जोर दे रहा था जिसे वह अपने घर की परेशानियों के चलते पूरा न कर सकी थी.

‘‘अब ये सब करने की क्या जरूरत है? जो चाहती थी वह कर डालो न.’’ ‘‘ओ थैंक्स डियर, तुम्हें अब भी याद है? मेरा तो सपना ही था. अभी कुछ दिन रुक जाओ, फिर देखती हूं.’’

रणवीर की आंखों में असीमित प्यार देख कर वह निहाल हुई जा रही थी. उसे सब याद आया कि वह ब्लैकबोर्ड पर, कौपी में अकसर सहपाठियों, टीचर के कार्टून बना दिया करती, हूबहू कोई भी पहचान लेता. एक बार प्रिंसिपल शशिपुरी का भी कार्टून बना डाला. अचानक मैम राउंड पर आ गईं. सभी बच्चे हंसी से लोटपोट हुए जा रहे थे. मैम ने अपना कार्टून पहचान लिया और औफिस बुला कर उसे खूब झाड़ा. उस दिन मिस खुराफाती को पहली बार किसी ने रोते देखा था. सब बच्चों को तो मजा आया पर जाने क्यों रणवीर को अच्छा नहीं लगा था, जबकि उस ने उसे कितनी ही बार चिढ़ाया, कितने ही नाम दिए थे. वह सोचता, ‘इसे तो आज इस अनोखी प्रतिभा के लिए इनाम मिलना चाहिए था.’

जयंति के मस्ताना के साथ सुबह टहलने जाने से पार्क में रामशरण और उन के दोस्तों की मस्ती थोड़ी कम हो गई थी. एक तो साथियों में से वह एक की बहू थी, उस पर से उस का खूंखार नजरों से घूरता अल्सेशियन डौग मस्ताना. कभी जयंति शाम को जल्दी घर आती तो वह शाम को भी मस्ताना को ले कर निकल पड़ती सखियों के पास टहलते हुए. फिर तो रामशरण और उन के दोस्तों की शाम भी खराब होती. चाटगोलगप्पे वालों के यहां उन का लड़कियों से छेड़खानीचुहल करने का मजा किरकिरा हो जाता. जयंति अपने मस्तमौला स्वभाव के कारण जल्दी ही नेहा, शिखा आदि लड़कियों से घुलमिल गई. इतवार व छुट्टियों के दिनों में अकसर वे सुबह अपनीअपनी स्कूटी पर पास की पहाड़ी की ओर खुली हवा में सैर कर आतीं. इन बुड्ढों के दिल में हूक उठती, पार्क में रौनक जो नहीं दिखती.

एक दिन आखिर एक बुड्ढे ने कमैंट कर ही दिया, ‘‘अरे, कहां जाती हो घूमने अकेलेअकेले, हमें भी तो कभी घुमा दिया करो, तरस खाओ हम पे.’’ सुन लिया था जंयति ने भी. मस्ताना को ले कर वह थोड़ा आगे बढ़ गई थी नेहा के पास. उस ने नेहा से धीरे से कहा, ‘‘बोल दो, ‘हांहां, एकएक बैठ जाओ स्कूटी पर’ तुम चारों अपनीअपनी स्कूटी पे इन्हें वहीं पहाड़ी के पीछे झरने के पास दूर छोड़ कर वापस आ जाना. आज इन्हें मजा चखा ही देते हैं. फिर सारी आशिकी भूल जाएंगे. मैं फोन पर कौंटैक्ट में रहूंगी. ससुर हैं एक, इसलिए मैं नहीं जा सकती. तब तक मैं घर जा कर वापस मस्ताना को दोबारा टहलाने यहां आती हूं.’’

उजली परछाइयां- भाग 2: क्या अंबर और धरा का मिलन हुआ?

मन साफ सच्चा हो तो सूरत को भी हसीन बना देता है. धरा के चेहरे की खूबसूरती में गजब का आकर्षण था. अभी 23 वर्ष की पिछले महीने ही तो हुई थी. दूसरी ओर धरा जबजब अंबर को देखती तो सोचती थी कि कितना प्यार करता है अपनी बीवी को. काश, मुझे भी ऐसा ही कोई मिले. तलाक की बात सुन कर पहली बार अंबर को रोते देखा था धरा ने और उस के शब्द कानों में अब तक गूंज रहे थे कि ‘मर जाऊंगा लेकिन तलाक नहीं दूंगा. मैं नहीं रह सकता उस के बिना.’

अंबर की गहरी भूरी आंखों में दर्द भरा रहता था. 30 की उम्र हो गई थी लेकिन पर्सनैलिटी उस की ऐसी थी कि देखने वाला प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता था. धरा समझ नहीं पाती थी कि रोशनी को अंबर में ऐसी क्या कमी नजर आई थी जो उसे छोड़ गई.

जुलाई में धरा की दीदी देहरादून घूमने आई थी और उस की खूब खातिर की गई. देहरादून का मौसम खुशगवार था. इसलिए घूमनेफिरने का अलग मजा था. अंबर भी उसे पूछ कर ही सारे प्रोग्राम बना रहा था. प्राकृतिक सौंदर्य के लिए मसूरी, सहस्रधारा, चकराता, लाखामंडल तथा डाकपत्थर देखने का प्रोग्राम अंबर ने झटपट बना डाला. अंबर का किसी और को इंपौर्टेंस देते देख न जाने क्यों धरा के मन में जलन हुई और उसे पहली बार एहसास हुआ कि अनजाने में ही वह अंबर को चाहने लगी है. लेकिन क्यों, कब, कैसे, इस की वजह वह खुद नहीं जानती थी. इस की वजह शायद अंबर का इतना प्यारा इंसान होना था या फिर शायद इतनी गहराई से अपनी बीवी के लिए प्यार था कि धरा खुद उस के प्यार में पड़ गई थी.

धरा के दिल में अंबर ने अनजाने में जगह बना ली थी वहीं धरा जिस तरह सब का खयाल रखती और खुश रहती, वह अंबर के घर वालों को अपना बना रही थी. उस की ये आदतें सब के साथ अंबर को भी उस की तरफ खींच रही थीं. जब कोई चीज हमारे पास न हो तो उस की कमी ज्यादा ही लगती है, घर में भी सब को धरा को देख कर बहू की कमी कुछ ज्यादा ही अखरने लगी थी.

अंबर अकसर धरा को तंग करता रहता, कभी उलझे हुए बालों को खींचता तो कभी गालों पर हलकी चपत लगा देता. दोनों के दिलों में अनकही मोहब्बत जन्म ले चुकी थी जिस का एहसास उन्हें जल्दी ही हुआ. एक दिन धरा ने अंबर को छेड़ते हुए कहा, ‘मुझे तंग क्यों करते रहते हो, सब के लिए आप के दिल में प्यार है, फिर मुझ से ही क्या झगड़ा है?’ इस पर अंबर की मां ने जवाब दिया, ‘वह इसलिए गुस्सा करता है कि तू हमें पहले क्यों नहीं मिली.’ इन चंद शब्दों ने सब के दिलों का हाल बयां कर दिया था.

वह अचानक यह सुन कर बाहर भाग गई थी, बाहर बालकनी में रेलिंग पकड़ कर खड़ी थी. सांसें ऊपरनीचे हो रही थीं. अंबर ने पास आ कर कहा, ‘मैं ने और मेरे घर वालों ने तुम्हारी जैसी पत्नी और बहू का सपना देखा था.’ अंबर ने आगे कहा, ‘पता नहीं कब से, लेकिन मैं तुम से बहुत प्यार करता हूं. हां, मगर मैं तुम से शादी नहीं कर सकता क्योंकि अगर मैं ने ऐसा किया तो अपने बेटे को हमेशा के लिए खो सकता हूं.’

धरा का सुर्ख होता चेहरा सफेद पड़ गया था. उस ने नजरें उठा कर अंबर को देखा, तो अंबर की आंखों में आंसू थे, ‘मेरे पास जीने की वजह सिर्फ यह है कि कभी मेरा बेटा मुझे मिलेगा. मैं तुम से शादी नहीं कर सकता लेकिन अपना बुढ़ापा जरूर सिर्फ तुहारे साथ बिताना चाहूंगा. सुबहसुबह तुम्हारे हाथ की चाय पिया करूंगा,’ उस वक्त दोनों की सांसें महसूस कर सकती थी धरा जब अंबर ने ये शब्द कहे थे जिन्होंने एक पल में ही उस को आसमान पर ले जा कर वापस नीचे धरातल पर पटक दिया था.

एक पल को धरा को लगा यह कैसा प्यार है और कैसी बेतुकी बात कही है अंबर ने, लेकिन दूसरे ही पल उसे भविष्य में अंबर में एक हारा और टूटा हुआ पिता नजर आया जिस का बेटा उसे कह रहा था कि तुम ने दूसरी शादी के लिए मुझे और मेरी मां को छोड़ा. शायद सही भी थी अंबर की बात. 4 साल का बच्चा जब मां के साथ रहता है तो वह उतना ही सच समझेगा जितना उसे बताया जाएगा.

जिस से प्यार करती है उसे अपनी वजह से ही टूटा हुआ कैसे देखती धरा. अगर अंबर बेटे के लिए उस का इंतजार कर सकता है तो धरा भी तो अंबर का इंतजार कर सकती है. फिर अंबर मान भी जाता लेकिन अपने ही घर वालों को मनाना भी तो धरा के लिए आसान नहीं था.

अंबर का हाथ पकड़ कर धरा बोली, ‘अगर सच में हमारे बीच प्यार है तो एक दिन हम जरूर मिलेंगे. मैं इंतजार करूंगी उस दिन का जब सबकुछ सही होगा और रही शादी की बात, तो राधाकृष्णा की भी शादी नहीं हुई थी लेकिन आज भी उन का नाम साथ ही लिया जाता है.’

लेकिन शर्तें तो दिमाग लगाता है, दिल नहीं और सब हालात को जानतेसमझते भी उन दोनों के तनमन भी दूर नहीं रह सके. शादी की बात तो दोबारा नहीं हुई, लेकिन दोनों के ही घर वालों को उन के बीच पनपे रिश्ते का अंदाजा हो गया था. ऐसे ही साथ रहते 2 साल निकल गए थे. अब भी अंबर अपने बेटे किट्टू से बात करने को तरसता था. सबकुछ वैसा ही चल रहा था.

धरा ने जौब जौइन कर ली और एक फ्रैंड की शादी में गई थी. वहां से आ कर एक बार फिर उस के दिल में अंबर से शादी करने की चाहत करवट लेने लगी. बहुत मुश्किल था उस का अंबर के इतने पास होते हुए भी दूर होना और इसीलिए उस का प्यार और उस की छुअन को अपने एहसासों में बसा कर धरा देहरादून छोड़ मुंबई आ गई थी. अब एक ही धुन थी उसे, टीवी इंडस्ट्री में नाम की और बहुत सारे पैसे कमाने की जिस से शादी न सही कम से कम सफल हो कर अपने घर वालों के प्रति कर्तव्य निभा सके.

कम्मो डार्लिंग – भाग 2 : इच्छाओं के भंवरजाल में कमली

मां ने उस से कहा था, ‘बेटा, कमली मुझे बहुत अच्छी लगती है. तेरे पीछे वह जिस तरह मेरी देखभाल करती है, उस तरह तो मेरी अपनी बेटी होती, तो वह भी नहीं कर पाती. मैं ने सोच लिया है कि तेरी शादी मैं कमली से ही कराऊंगी, क्योंकि मुझे पूरा यकीन है कि वह तेरा घर अच्छी तरह संभाल लेगी. नीतेश मन से अभी शादी करने को तैयार नहीं था. उस की इच्छा थी कि पहले वह अच्छा पैसा कमाने लगे. शहर में किराए के मकान को छोड़ कर अपना मकान बना ले, कुछ पैसा इकट्ठा कर ले, ताकि भविष्य में पैसों के लिए किसी का मुंह न ताकना न पड़े. लेकिन मां की खुशी के लिए उसे अपनी इच्छाओं का गला घोंट कर कमली से शादी करनी पड़ी.

शादी के कुछ ही महीनों बाद अचानक नीतेश की मां की तबीयत बिगड़ गई. काफी इलाज के बाद भी वे बच नहीं पाईं. नीतेश कमली को अपने साथ शहर ले आया. वहां कमली के रहनसहन, खानपान, बोलचाल और पहननेओढ़ने में एकदम बदलाव आ गया. उसे देख कर लगता ही नहीं था कि वह गांव की वही अल्हड़ और सीधीसादी कमली है, जो कभी सजनासंवरना भी नहीं जानती थी.

कमली में आए इस बदलाव को देख कर नीतेश को जितनी खुशी होती, उतना ही दुख भी होता था, क्योंकि वह दूसरों की बराबरी करने लगी थी. पड़ोस की कोई औरत 2 हजार रुपए की साड़ी खरीदती, तो वह 3 हजार रुपए की साड़ी मांगती. किसी के घर में 10 हजार रुपए का फ्रिज आता, तो वह 15 हजार वाले फ्रिज की डिमांड करती. नीतेश ने कई बार कमली को समझाया भी कि दूसरों की बराबरी न कर के हमें अपनी हैसियत और आमदनी के मुताबिक ही सोचना चाहिए, लेकिन उस के ऊपर कोई असर नहीं हुआ, जिस का नतीजा यह निकला कि वह अपनी इच्छाओं को पूरा करने की खातिर एक ऐसे भंवरजाल में जा फंसी, जिसे नीतेश ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था.

एक दिन शाम को नीतेश अपनी ड्यूटी से वापस आया, तो घर के दरवाजे पर ताला लटका हुआ था. उस ने सोचा कि कमली किसी काम से कहीं चली गई होगी, इसलिए वह बाहर खड़ा हो कर उस का इंतजार करने लगा. इस बीच उस ने कई बार कमली को फोन भी मिलाया, लेकिन उस का फोन बंद था. रात के तकरीबन 12 बज चुके थे, तभी उस के दरवाजे के सामने एक चमचमाती कार आ कर रुकी, जिस में से कमली नीचे उतरी. उस के कदम लड़खड़ा रहे थे. उस के लड़खड़ाते कदमों को देख कर कार में बैठा शख्स बोला, ‘‘कम्मो डार्लिंग, संभल कर.’’

कमली उस की ओर देख कर मुसकराई. वह शख्स भी मुसकराया और बोला, ‘‘ओके कम्मो डार्लिंग, बाय.’’ इतना कह कर वह वहां से चला गया. यह देख कर नीतेश हैरान रह गया. उस का दिल टूट गया. उसे कमली से नफरत हो गई. उस के जी में तो आया कि वह अपने हाथों से उस का गला घोंट दे, मगर…

कमली शराब के नशे में इस कदर चूर थी कि उसे घर का ताला खोलना भी मुश्किल हो रहा था. नीतेश ने उस से चाबी छीनी और दरवाजा खोल कर अंदर चला गया. विचारों की कश्ती में सवार सोफे पर बैठा नीतेश खुद से सवाल कर रहा था और खुद ही उन के जवाब दे रहा था. उसे खामोश देख कर कमली ने कहा, ‘‘नीतेश, मुझ से यह नहीं पूछोगे कि मैं इतनी रात को कहां से आ रही हूं? मेरे साथ कार में कौन था और मैं ने शराब क्यों पी है?’’

‘‘कमली, अगर बता सकती हो तो सिर्फ इतना बता दो कि मेरे प्यार में ऐसी कौन सी कमी रह गई थी, जिस ने तुम्हें कमली से कम्मो डार्लिंग बनने के लिए मजबूर कर दिया?’’

‘‘नीतेश, मैं तुम्हें अंधेरे में नहीं रखना चाहती. सबकुछ साफसाफ बता देना चाहती हूं. मैं आकाश से प्यार करने लगी हूं.’’

‘‘प्यार…?’’ चौंकते हुए नीतेश ने कहा. ‘‘हां, नीतेश. यह वही आकाश है, जिस के साड़ी इंपोरियम से हम एक बार साड़ी खरीदने गए थे. तुम्हें याद होगा िमैं ने गुलाबी रंग की साड़ी पसंद की थी और तुम ने उस साड़ी को महंगा बता कर खरीदने से इनकार कर दिया था.

तब आकाश ने तुम से कहा था कि साड़ी महंगी बता कर भाभीजी का दिल मत तोड़ो. भाभीजी की खूबसूरती के सामने 3 हजार तो क्या 20 हजार की साड़ी भी सस्ती होगी. लेकिन तुम आकाश की बातों में नहीं आए, जिस से मेरा दिल टूट गया.’’

‘‘दिल टूट गया और तुम आकाश से प्यार करने लगीं?’’ ‘‘नीतेश, हर लड़की की तरह मेरे भी कुछ सपने हैं. मैं भी ऐश की जिंदगी जीना चाहती हूं. महंगी से महंगी साड़ी और गहने पहनना चाहती हूं.

मगर मैं जानती हूं कि तुम जैसे तंगदिल और दकियानूसी इनसान के साथ रह कर मेरा यह अरमान कभी पूरा नहीं होगा, इसलिए मैं सोचने लगी कि काश, मैं आकाश की पत्नी होती. वह कितने खुले दिन का इनसान है. कितनी खुशनसीब होगी वह लड़की, जो आकाश की पत्नी होगी.

कितना प्यार करता होगा आकाश अपनी पत्नी को. लेकिन आकाश शादीशुदा नहीं है, यह तो मुझे तब पता चला, जब एक दिन आकाश से अचानक मेरी मुलाकात बाजार में हो गई और उस ने मुझ से अपने साथ कौफी पीने को कहा. मैं खुद को रोक नहीं पाई और उस के साथ कौफी पीने चली गई.’’

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