एक मौका और दीजिए : बहकने लगे सुलेखा के कदम – भाग 2

उधर मनीष, नीलेश के प्रति अपने व्यवहार के लिए स्वयं को धिक्कार रहा था. पहली बार ऐसा हुआ था कि कोई प्रोग्राम बनने से पूर्व ही अधर में लटक गया था पर वह करता भी तो क्या करता. नीलेश की बातें सुन कर उस के दिल में  शक का कीड़ा कुलबुला कर नागफनी की तरह डंक मारते हुए उसे दंशित करने लगा था.

वह जानता था कि उसे महीने में 10-12 दिन घर से बाहर रहना पड़ता है. ऐसे में हो सकता है सुलेखा की किसी के साथ घनिष्ठता हो गई हो. इस में  कुछ बुरा भी नहीं है पर उसे यही विचार परेशान कर रहा था कि सुलेखा ने उस सुयश नामक व्यक्ति से उसे क्यों नहीं मिलवाया, जबकि नीलेश के अनुसार वह उस से मिलती रहती है. और तो और उस ने उस का नीलेश से अपना ममेरा भाई बता कर परिचय भी करवाया…जबकि उस की जानकारी में उस का कोई ममेरा भाई है ही नहीं…उसे समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे पर सिर्फ अनुमान के आधार पर किसी पर दोषारोपण करना उचित भी तो नहीं है.

एक दिन जब सुलेखा बाथरूम में थी तो वह उस का सैलफोन सर्च करने लगा. एक नंबर  उसे संशय में डालने लगा क्योंकि उसे बारबार डायल किया गया था. नाम था सुश…सुश. नीलेश की जानकारी में सुलेखा का कोई दोस्त नहीं है फिर उस से बारबार बातें क्यों किया करती है और अगर उस का कोई दोस्त है तो उस ने उसे बताया क्यों नहीं. मन ही मन मनीष ने सोचा तो उस के अंतर्मन ने कहा कि यह तो कोई बात नहीं कि वह हर बात तुम्हें बताए या अपने हर मित्र से तुम्हें मिलवाए.

पर जीवन में पारदर्शिता होना, सफल वैवाहिक जीवन का मूलमंत्र है. अपने अंदर उठे सवाल का वह खुद जवाब देता है कि वह तुम्हारा हर तरह से तो खयाल रखती है, फिर मन में शंका क्यों?

‘शायद जिसे हम हद से ज्यादा प्यार करते हैं, उसे खो देने का विचार ही मन में असुरक्षा  पैदा कर देता है.’

‘अगर ऐसा है तो पता लगा सकते हो, पर कैसे?’

मन तर्कवितर्क में उलझा हुआ था. अचानक सुश और सुयश में उसे कुछ संबंध नजर आने लगा और उस ने वही नंबर डायल कर दिया.

‘‘बोलो सुलेखा,’’ उधर से किसी पुरुष की आवाज आई.

पुरुष स्वर सुन कर उसे लगा कि कहीं गलत नंबर तो नहीं लग गया अत: आफ कर के पुन: लगाया, पुन: वही आवाज आई…

‘‘बोलो सुलेखा…पहले फोन क्यों काट दिया, कुछ गड़बड़ है क्या?’’

उसे लगा नीलेश ठीक ही कह रहा था. सुलेखा उस से जरूर कुछ छिपा रही है… पर क्यों, कहीं सच में तो उस के पीछे उन दोनों में… अभी वह यह सोच ही रहा था कि सुलेखा नहा कर आ गई. उस के हाथ में अपना मोबाइल देख कर बोली, ‘‘कितनी बार कहा है, मेरा मोबाइल मत छूआ करो.’’

‘‘मेरे मोबाइल से कुछ नंबर डिलीट हो गए थे, उन्हीं को तुम्हारे मोबाइल से अपने में फीड कर रहा था,’’ न जाने कैसे ये शब्द उस की जबान से फिसल गए.

अपनी बात को सिद्ध करने के लिए वह ऐसा ही करने लगा जैसा उस ने कहा था. इसी बीच उस ने 2 आउटगोइंग काल, जो सुश को करे थे उन्हें भी डिलीट कर दिया, जिस से अगर वह सर्च करे तो उसे पता न चले.

अब संदेह बढ़ गया था पर जब तक सचाई की तह में नहीं पहुंच जाए तब तक वह उस से कुछ भी कह कर संबंध बिगाड़ना नहीं चाहता था. उस की पत्नी का किसी के साथ गलत संबंध है तथा वह उस से चोरीछिपे मिला करती है, यह बात भी वह सह नहीं पा रहा था. न जाने उसे ऐसा क्यों लगने लगा कि वह नामर्द तो नहीं, तभी उस की पत्नी को उस के अलावा भी किसी अन्य के साथ की आवश्यकता पड़ने लगी है.

‘तुम इतने दिन बाहर टूर पर रहते हो, अपने एकाकीपन को भरने के लिए सुलेखा किसी के साथ की चाह करने लगे तो इस में क्या बुराई है?’ अंतर्मन ने पुन: प्रश्न किया.

‘बुराई, संबंध बनाने में नहीं बल्कि छिपाने में है, अगर संबंध पाकसाफ है तो छिपाना क्यों और किस लिए?’

‘शायद इसलिए कि तुम ऐसे संबंध को स्वीकार न कर पाओ…सदा संदेह से देखते रहो.’

‘क्या मैं तुम्हें ऐसा लगता हूं…नए जमाने का हूं…स्वस्थ दोस्ती में कोई बुराई नहीं है.’

‘सब कहने की बात है, अगर ऐसा होता तो तुम इतने परेशान न होते… सीधेसीधे उस से पूछ नहीं लेते?’

‘पूछने पर मन का शक सच निकल गया तो सह नहीं पाऊंगा और अगर गलत निकला तो क्या मैं उस की नजरों में गिर नहीं जाऊंगा.’

‘जल्दबाजी क्यों करते हो, शायद समय के साथ कोई रास्ता निकल ही आए.’

‘हां, यही ठीक रहेगा.’

इस सोच ने तर्कवितर्क में डूबे मन को ढाढ़स बंधाया…उन के विवाह को 10 महीने हो चले थे. वह अपने पी.एफ. में उसे नामिनी बनाना चाहता था, उस के लिए सारी औपचारिकता पूरी कर ली थी. बस, सुलेखा के साइन करवाने बाकी थे. एक एल.आई.सी. भी खुलवाने वाला था, पर इस एपीसोड ने उसे बुरी तरह हिला कर रख दिया. अब उस ने सोचसमझ कर कदम उठाने का फैसला कर लिया.

यद्यपि सुलेखा पहले की तरह सहज, सरल थी पर मनीष के मन में पिछली घटनाओं के कारण हलचल मची हुई थी. एक बार सोचा कि किसी प्राइवेट डिटेक्टर को तैनात कर सुलेखा की जासूसी करवाए, जिस से पता चल सके कि वह कहां, कब और किस से मिलती है पर जितना वह इस के बारे में सोचता, बारबार उसे यही लगता कि ऐसा कर के वह अपनी निजी जिंदगी को सार्वजनिक कर देगा…आखिर ऐसी संदेहास्पद जिंदगी कोई कब तक बिता सकता है. अत: पता तो लगाना ही पड़ेगा, पर कैसे, समझ नहीं पा रहा था.

हफ्ते भर में ही ऐसा लगने लगा कि वह न जाने कितने दिनों से बीमार है. सुलेखा पूछती तो कह देता कि काम की अधिकता के कारण तबीयत ढीली हो रही है…वैसे भी सुलेखा का उस की चिंता करना दिखावा लगने लगा था. आखिर, जो स्त्री उस से छिप कर अपने मित्र से मिलती रही है वह भला उस के लिए चिंता क्यों करेगी?

उस दिन मनीष का मन बेहद अशांत था. आफिस से छुट्टी ले ली थी. सुलेखा ने पूछा तो कह दिया, ‘‘तबीयत ठीक नहीं लग रही है, अत: छुट्टी ले ली.’’

सुलेखा ने डाक्टर को दिखाने की बात कही तो वह टाल गया. आखिर बीमारी मन की थी, तन की नहीं, डाक्टर भी भला क्या कर पाएगा. रात का खाना भी नहीं खाया. सुलेखा के पूछने पर कह दिया कि बस, एक गिलास दूध दे दो, खाने का मन नहीं है. सुलेखा दूध लेने चली गई. उस के कदमों की आहट सुन कर उसे न जाने क्या सूझा कि अचानक अपनी छाती को कस कर दबा लिया तथा दर्द से कराहने लगा.

जानें आगे क्या हुआ कहानी के अगले भाग में…

गुप्त रोग: रूबी और अजय के नजायज संबंधों का कैसे हुआ पर्दाफाश – भाग 2

अपने बनाए हुए प्लान में रूबी और अजय सिंह कामयाब हो रहे थे और वे ये सोच कर खुश हो रहे थे कि रणबीर को अपने गुप्त रोगी होने का एहसास होगा और अब वह रूबी के शरीर को हाथ नहीं लगा पाएगा और गुजरात जल्द वापस लौट जाएगा, जबकि दूसरी तरफ रणबीर बहुत परेशान था.

रणबीर अपनी पत्नी से भले ही महीनों दूर रहता था, पर किसी भी बाजारू औरत से कभी भी उस ने संबंध नहीं बनाए थे. ऐसे में उस के शरीर पर किसी भी प्रकार के इंफैक्शन का हो जाना उसे परेशानी और हैरत में डाल रहा था और उस पर उस की पत्नी भी उसे बारबार गुप्त रोगी होने का ताना दे रही थी, इसलिए वह सीधा शहर के एक अच्छे डाक्टर के पास पहुंचा और अपनी समस्या बताई.

”क्या आप ने सड़क के किनारे तंबू लगा कर दवा या तेल बेचने वालों से किसी तरह की दवा ली है?” डाक्टर ने पूछा.

”नहीं सर, नीमहकीम से तो बिलकुल नहीं, पर, एक दोस्त ने जरूर एक तेल दिया था, जिसे मैं ने ताकत बढ़ाने वाला तेल समझ कर लगा लिया है. ये घाव और जलन तब से ही हैं,” रणबीर ने अपनी पत्नी का नाम छिपा लिया, क्योंकि उस की पत्नी ने ही उस के अंग पर तेल से मसाज की है, ऐसा कहने में भी उसे शर्म लग रही थी.

उस डाक्टर ने रणबीर को हिम्मत दी और वह तेल उन्हें ला कर दिखाने को कहा, ताकि वे उस को जांच सकें.

जब रणबीर ने तेल की वह शीशी डाक्टर को ला कर दिखाई, तो तेल का शुरुआती टैस्ट करते ही डाक्टर चौंक गए. उन्होंने रणबीर को जो बताया, उसे सुन कर रणबीर के पैरों तले जमीन ही खिसक गई.

”यह एक ऐसा तेल है, जिस के पीएच का मान बहुत कम है और इतने कम पीएच का कोई भी मलहम या तेल हमारी चमड़ी को नुकसान पहुंचा सकता है. साथ ही, इस में कुछ हानिकारक कैमिकल भी मिले हुए हैं. इतना ही नहीं, बल्कि इस के रोजाना इस्तेमाल से आप नामर्द भी हो सकते हैं,” डाक्टर ने कहा.

‘रूबी तो मेरे साथ ऐसा नहीं कर सकती, तो क्या रूबी के साथ किसी ने नकली तेल दे कर धोखा किया है?’ इसी सोचविचार में उलझा रणबीर घर आया, तो उस ने रूबी को फोन पर किसी से बात करते हुए पाया.

रूबी उस समय अजय सिंह से ही बात कर रही थी. रणबीर को अचानक घर आया देख कर वह हड़बड़ा सी गई और उस ने फोन काट दिया.

परेशान रणबीर सोफे पर पसर गया और रूबी से एक कप चाय बना लाने को कहा. वह खुद अपनी मर्ज की दवा ढूंढऩे के लिए इंटरनैट खंगालने लगा, पर उस का मोबाइल हैंग कर रहा था, इसलिए रणबीर ने किचन में जा कर रूबी का मोबाइल मांगा, तो रूबी के चेहरे का रंग ही उतर गया.

रूबी ने मोबाइल देने में हिचकिचाहट भी दिखाई, पर भारी मन से उस ने अपना मोबाइल रणबीर को दे दिया. उस की यह परेशानी रणबीर से भी छिपी न रह सकी, इसलिए मोबाइल को अपने हाथ में लेते ही रणबीर ने मोबाइल के हाल में डायल किए गए नंबरों पर सरसरी नजर डाली, तो उस में पिछले डायल किए गए एक नंबर को ‘फ्रैंड’ नाम से सेव किया गया था.

उत्सुकतावश रणबीर ने मोबाइल के ह्वाट्सएप पर ‘फ्रैंड’ नाम की डीपी देखी, तो वह एक आदमी की तसवीर थी.

‘भला यह आदमी कौन है, जिस का नंबर रूबी के मोबाइल में ‘फ्रैंड’ के नाम से सेव है?’ यह सवाल बारबार रणबीर के मन में शक पैदा कर रहा था.

रणबीर ने घाटघाट का पानी पी रखा था. उसे कुछ शक हुआ, तो मोबाइल काल की रिकौर्डिंग सुनने लगा और ‘फ्रैंड’ नाम के आदमी से हुई कई काल की रिकौर्डिंग रणबीर ने सुन डाली और उसे सारा माजरा समझते देर नहीं लगी. उस की नसों में बहता खून बारबार उस की कनपटियों तक जोर मार रहा था. उस का मन कर रहा था कि वह जा कर रूबी की गरदन मरोड़ दे, पर कुछ सोच कर उस ने ऐसा नहीं किया.

रणबीर ने शांत भाव से मोबाइल को टेबल पर रख दिया और अपनी आंखें बंद कर के बैठ गया.

रूबी जब चाय ले कर आई, तो उस ने रणबीर को सोता हुआ देखा तो उस की जान में जान आई. उस ने अपना मोबाइल अपने कब्जे में कर लिया.

1-2 दिन तक रणबीर बहुत ही शांत रहा और अपने को खुश दिखाता रहा, फिर एक दिन उस ने रूबी से कहा, ”मैं काम के सिलसिले में 2 दिन के लिए बाहर जा रहा हूं, इस बीच तुम अपना ध्यान रखना.”

 

15 अगस्त स्पेशल: फौजी के फोल्डर से एक सैनिक की कहानी – भाग 2

‘मेरी बहन ने, जब से राखी पोस्ट की है तभी से मां के पीछे पड़ी है, भैया से पूछो न, कैसी लगी? आप तो जानते हैं एक संडे ही मिलता हैं फोन करने को, ऊपर से इतनी लंबी लाइन रहती है कि 4-5 मिनट से ज्यादा बात ही नहीं हो सकती. इसलिए सोचा कि आप की आ गई होगी तो हमारी डाक भी आ ही गई होगी. जाऊं डाक का पता कर के आ जाऊं?’

‘आज शुक्रवार है. अगर शाम तक मिल गई तो ठीक, वरना संडे को मीतू से कह देना कि राखी मिल गई, बहुत सुंदर है. तुम्हारी बहन तो अभी छोटी है. यही 10-11 साल की होगी. है न? उसे फुसलाना आसान है. मगर मेरी बहन तो मुझ से केवल 2 साल छोटी है और मुझे ही चरा देती है. पिछले साल मैं ने यही बोला था तो कहने लगी, लिफाफे का कलर बताओ, राखी पर क्या लिखा है, बताओ?’ बड़ी मुश्किल से मैं ने फोन की लंबी लाइन का बहाना बना मां को फोन देने को कहा था.

‘हां सर, ये बहनों की आदत होती है. हर बात की उन्हें पूरी डिटेल चाहिए’ मोहित और मैं दोनों ही हंस पड़े थे.

‘किस बात पर हंस रहे हो दोनों?,’ सोमेश ने कमरे में प्रवेश कर पूछा था,

‘यहां बहनों की आदतों पर चर्चा हो रही है.’

‘मेरी तो कोई भी बहन है नहीं, और न ही कोई भाई. तभी तो मां पूरे समय मेरी ही चिंता करती रहती हैं, यदि होती तो वे अपना ध्यान उन की तरफ कर लेतीं. वे तो हर समय खड़कवासला आने को, मेरा मतलब यहां आने को तैयार बैठी रहती हैं. वे तो पापा मना करते हैं कि 6 महीने में घर तो आ ही जाता है, वहां जा कर क्या करोगी? सिवा उसे डिस्टर्ब करने के, तो पता है क्या कहती हैं?’

‘क्या?’

‘यही, कि पता नहीं वहां कैसे रहता है. मनपसंद खाने को मिलता भी है कि नहीं. मैं ढेर सारा सूखा नाश्ता बना कर ले चलूंगी. उसे मेरे हाथ के बेसन की पिन्नियां बहुत पसंद हैं. वहां उस का रूम भी देखूंगी कि कैसे रहता है. पापा ने समझाबुझा कर रखा है कि अभी इतनी दूर पंजाब से जाओगी, 1-2 घंटे से ज्यादा अंदर रह भी नहीं पाओगी और वह हमारे साथ भी नहीं आ सकता. फिर क्या करोगी जा कर? मगर मां, हर 15-20 दिनों बाद अपनी तैयारियां शुरू कर देती हैं और रोधो कर शांत बैठ जाती हैं.’

‘यह हाल तो मेरी बहन का है. अभी मेरी पासिंगआउट परेड के 2 साल बाकी हैं मगर मेरी बहन की रोज ड्रैस फाइनल हो जाती है कि मुझे यह पहनना है तो कभी वह पहनना है. पापा कहते हैं भाईर् की परेड होगी या तेरी?’ मोहित की बात सुन दोनों हंस पड़े.

‘अरे भाई, हम दोनों की तो 4 महीने बाद ही पासिंगआउट परेड है. सोच रहा हूं, इस वीकैंड पुणे से एक बढि़या कैमरा खरीद लूं. जातेजाते कुछ यादगार रिकौर्डिंग और फोटो तो सहेज ही लूं. जब अपनी परेड होगी तो बहन को पकड़ा दूंगा वह पूरी रिकौर्डिंग कर ही देगी,’ राघव ने अपना प्लान बताया.

‘सर, आप लोग तो सीनियरमोस्ट बैच के हो, आप तो कैमरा रख सकते हैं. सर, मेरे भी कुछ फोटो खींच लीजिएगा और मुझे मेल कर दीजिएगा. वैसे भी सर, आप को ही सब से ज्यादा फोटोग्राफी का शौक है. आप ही हर बार फोटोग्राफर से सब से ज्यादा फोटो खरीदते हैं,’ मोहित ने कहा.

‘हां, मेरी बहन भी चिढ़ाती हुए कहती है कि भाईर् की उंगली भी अगर किसी फोटो में दिख जाए तो वे फोटो खरीद लेंगे. हर 6 महीने में इतनी फोटो जमा कर लेता हूं कि अब तक 200 फोटो तो हो ही गई होंगी. अभी मां से कैमरे के लिए पूछूंगा तो कहेंगी, घर में कैमरा है तो हम वही ले आएंगे. मगर मुझे उस पुराने कैमरे से नहीं, बल्कि लेटैस्ट मौडल के कैमरे से फोटो खींचनी है, आखिर 15 यादगार दिनों की फोटो जो सहेज कर रखनी हैं,’ राघव बोला.

‘ठीक कह रहा है यार, तेरे कैमरे से ही फोटो खीच लेंगे. बाद में तू छांट कर अच्छी वाली मेल कर देना हम सब को,’ सोमेश बोला.

‘ठीक है, यार.’

अब फोटो ही तो बची हैं केवल. मोहित और सोमेश दोनों ही शहीद हो चुके हैं. अपने फोल्डर को खोल कर राघव सोचने लगा. उस की पहली पोस्ंिटग उड़ी में हुई थी. मोहित और सोमेश की भी पहली पोस्ंिटग बौर्डर की थी. वे लगातार आतंकवादी हमले और सीजफायर उल्लंघन झेलते रहे. उन की शहादत पर वह फड़फड़ा कर रह गया था. दोनों को ताबूत में विदा कर कितना रोया था. यह साथ इतना छोटा होगा, उसे अंदाजा नहीं था. मौत यहां हरपल मंडराती रहती है. कब उस पार से बरसे मोर्टार्स किस का खून पिएंगे, कुछ पता नहीं चलता.

यहां तो नहीं, हां, देहरादून में कितने शौक से उस ने अपनी पासिंगआउट परेड के लिए कैमरा भी खरीदा और खूब रिकौर्डिंग भी की और अपनी बहन महिमा को यह कह कर पकड़ा दिया था, ‘इस का 4 जीबी मैमोरी कार्ड भर गया है. इसे संभाल कर रखना और इस 8 जीबी के नए मैमोरी कार्ड से अपनी फोटो खींचना. दोनों कार्ड की फोटो अलग भी रहेंगी और सुरक्षित भी.’ मगर उस ने वह मैमोरी कार्ड ही कहीं गुम कर दिया. आईएमए देहरादून की सारी फोटो चली गईं. लखनऊ पहुंच कर जब उसे पता चला कि मैमोरी कार्ड ही खो दिया महिमा ने, तो लगातार 2 दिनों तक अपनी बहन पर चिल्लाता रहा था और उस बेचारी की रोरो कर आंखें सूज गईं. फिर तो मां बहन के पक्ष में आ गईं.

‘क्या आफत हो गई है. कल से तेरा ड्रामा चल रहा है, क्या हो गया? अगर मैमोरी कार्ड खो भी गया तो क्या हो गया,’ मां गुस्से में बोली.

‘अरे मम्मी, मैं ने कैमरा खरीदा ही इसलिए था कि मैं अपनी परेड, अपने साथियों और सब से महत्त्वपूर्ण वह यादगार पल जब आप और पापा ने मेरे कंधे पर लैफ्टिनैंट के स्टार लगाए, की फोटो खींच सकूं. वे सभी फोटो महिमा की लापरवाही से चले गए.’

‘ठीक है. एक बार बोला, दो बार बोला और कितनी बार कहेगा उसे? उसे भी तो अपनी गलती पता है. माफी भी मांग चुकी है और तू है कि चिल्लाता ही जा रहा है.’

जानें आगे की कहानी अगले भाग में…

एक मौका और दीजिए : बहकने लगे सुलेखा के कदम – भाग 1

नीलेश शहर के उस प्रतिष्ठित रेस्टोरेंट में अपनी पत्नी नेहा के साथ अपने विवाह की दूसरी सालगिरह मनाने आया था. वह आर्डर देने ही वाला था कि सामने से एक युगल आता दिखा. लड़की पर नजर टिकी तो पाया वह उस के प्रिय दोस्त मनीष की पत्नी सुलेखा है. उस के साथ वाले युवक को उस ने पहले कभी नहीं देखा था.

मनीष के सभी मित्रों और रिश्तेदारों से नीलेश परिचित था. पड़ोसी होने के कारण वे बचपन से एकसाथ खेलेकूदे और पढ़े थे. यह भी एक संयोग ही था कि उन्हें नौकरी भी एक ही शहर में मिली. कार्यक्षेत्र अलग होने के बावजूद उन्हें जब भी मौका मिलता वे अपने परिवार के साथ कभी डिनर पर चले जाते तो कभी किसी छुट्टी के दिन पिकनिक पर. उन के कारण उन दोनों की पत्नियां भी अच्छी मित्र बन गई थीं.

मनीष का टूरिंग जाब था. वह अपने काम के सिलसिले में महीने में लगभग 10-12 दिन टूर पर रहा करता था. इस बार भी उसे गए लगभग 10 दिन हो गए थे. यद्यपि उस ने फोन द्वारा शादी की सालगिरह पर उन्हें शुभकामनाएं दे दी थीं किंतु फिर भी आज उसे उस की कमी बेहद खल रही थी. दरअसल, मनीष को ऐसे आयोजनों में भाग लेना न केवल पसंद था बल्कि समय पूर्व ही योजना बना कर वह छोटे अवसरों को भी विशेष बना दिया करता था.

मनीष के न रहने पर नीलेश का मन कोई खास आयोजन करने का नहीं था किंतु जब नेहा ने रात का खाना बाहर खाने का आग्रह किया तो वह मना नहीं कर पाया. कार्यक्रम बनते ही नेहा ने सुलेखा को आमंत्रित किया तो उस ने यह कह कर मना कर दिया कि उस की तबीयत ठीक नहीं है पर उसे इस समय देख कर तो ऐसा नहीं लग रहा है कि उस की तबीयत खराब है. वह उस युवक के साथ खूब खुश नजर आ रही है.

नीलेश को सोच में पड़ा देख नेहा ने पूछा तो उस ने सुलेखा और उस युवक की तरफ इशारा करते हुए अपने मन का संशय उगल दिया.

‘‘तुम पुरुष भी…किसी औरत को किसी मर्द के साथ देखा नहीं कि मन में शक का कीड़ा कुलबुला उठा…होगा कोई उस का रिश्तेदार या सगा संबंधी या फिर कोई मित्र. आखिर इतनेइतने दिन अकेली रहती है, हमेशा घर में बंद हो कर तो रहा नहीं जा सकता, कभी न कभी तो उसे किसी के साथ की, सहयोग की जरूरत पड़ेगी ही,’’ वह प्रतिरोध करते हुए बोली, ‘‘न जाने क्यों मुझे पुरुषों की यही मानसिकता बेहद बुरी लगती है. विवाह हुआ नहीं कि वे स्त्री को अपनी जागीर समझने लगते हैं.’’

‘‘ऐसी बात नहीं है नेहा, तुम ही तो कह रही थीं कि जब तुम ने डिनर का निमंत्रण दिया था तब सुलेखा ने कह दिया कि उस की तबीयत ठीक नहीं है और अब वह इस के साथ यहां…यही बात मन में संदेह पैदा कर रही है…और तुम ने देखा नहीं, वह कैसे उस के हाथ में हाथ डाल कर अंदर आई है तथा उस से हंसहंस कर बातें कर रही है,’’ मन का संदेह चेहरे पर झलक ही आया.

‘‘वह समझदार है, हो सकता है वह दालभात में मूसलचंद न बनना चाहती हो, इसलिए झूठ बोल दिया हो. वैसे भी किसी स्त्री का किसी पुरुष का हाथ पकड़ना या किसी से हंस कर बात करना सदा संदेहास्पद क्यों हो जाता है? फिर भी अगर तुम्हारे मन में संशय है तो चलो उन्हें भी अपने साथ डिनर में शामिल होने का फिर से निमंत्रण दे देते हैं…दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा.’’

नेहा ने नीलेश का मूड खराब होने के डर से बीच का मार्ग अपना लेना ही श्रेयस्कर समझा.

‘‘हां, यही ठीक रहेगा,’’ किसी के अंदरूनी मामले में दखल न देने के अपने सिद्धांत के विपरीत नीलेश, नेहा की बात से सहमत हो गया. दरअसल, वह उस उलझन से मुक्ति पाना चाहता था जो उस के दिल और दिमाग को मथ रही थी. वैसे भी सुलेखा कोई गैर नहीं, उस के अभिन्न मित्र की पत्नी है.

वे दोनों उठ कर उन के पास गए. उन्हें इस तरह अपने सामने पा कर सुलेखा चौंक गई, मानो वह समझ नहीं पा रही हो कि क्या कहे.

‘‘दरअसल सुलेखा, हम लोग यहां डिनर के लिए आए हैं. वैसे मैं ने सुबह तुम से कहा भी था पर उस समय तुम ने कह दिया कि तबीयत ठीक नहीं है पर अब जब तुम यहां आ ही गई हो तो हम चाहेंगे कि तुम हमारे साथ ही डिनर कर लो. इस से हमें बेहद प्रसन्नता होगी,’’ नेहा उसे अपनी ओर आश्चर्य से देखते हुए भी सहजता से बोली.

‘‘पर…’’ सुलेखा ने झिझकते हुए कुछ कहना चाहा.

‘‘पर वर कुछ नहीं, सुलेखाजी, मनीष नहीं है तो क्या हुआ, आप को हमेंकंपनी देनी ही होगी…आप भी चलिए मि…आप शायद सुलेखाजी के मित्र हैं,’’ नीलेश ने उस अजनबी की ओर देखते हुए कहा.

‘‘यह मेरा ममेरा भाई सुयश है,’’ एकाएक सुलेखा बोली.

‘‘वेरी ग्लैड टू मीट यू सुयश, मैं नीलेश, मनीष का लंगोटिया यार, पर भाभी, आप ने कभी इन के बारे में नहीं बताया,’’ कहते हुए नीलेश ने बडे़ गर्मजोशी से हाथ मिलाया.

‘‘यह अभी कुछ दिन पूर्व ही यहां आए हैं,’’ सुलेखा ने कहा.

‘‘ओह, तभी हम अभी तक नहीं मिले हैं, पर कोई बात नहीं, अब तो अकसर ही मुलाकात होती रहेगी,’’ नीलेश ने कहा.

अजीब पसोपेश की स्थिति में सुलेखा साथ आ तो गई पर थोड़ी देर पहले चहकने वाली उस सुलेखा तथा इस सुलेखा में जमीनआसमान का अंतर लग रहा था…जितनी देर भी साथ रही चुप ही रही, बस जो पूछते उस का जवाब दे देती. अंत में नेहा ने कह भी दिया, ‘‘लगता है, तुम को हमारा साथ पसंद नहीं आया.’’

‘‘नहीं, ऐसी बात नहीं है. दरअसल, तबीयत अभी भी ठीक नहीं लग रही है,’’ झिझकते हुए सुलेखा ने कहा.

बात आईगई हो गई. एक दिन नीलेश शौपिंग मौल के सामने गाड़ी पार्क कर रहा था कि वे दोनों फिर दिखे. उन के हाथ में कुछ पैकेट थे. शायद शौपिंग करने आए थे. आजकल तो मनीष भी यही हैं, फिर वे दोनों अकेले क्यों आए…मन में फिर संदेह उपजा, फिर यह सोच कर उसे दबा दिया कि वह उस का ममेरा भाई है, भला उस के साथ घूमने में क्या बुराई है.

मनीष के घर आने पर एक दिन बातोंबातों में नीलेश ने कहा, ‘‘भई, तुम्हारा ममेरा साला आया है तो क्यों न इस संडे को कहीं पिकनिक का प्रोग्राम बना लें. बहुत दिनों से दोनों परिवार मिल कर कहीं बाहर गए भी नहीं हैं.’’

‘‘ममेरा साला, सुलेखा का तो कोई ममेरा भाई नहीं है,’’ चौंक कर मनीष ने कहा.

‘‘पर सुलेखा भाभी ने तो उस युवक को अपना ममेरा भाई बता कर ही हम से परिचय करवाया था, उसे सुलेखा भाभी के साथ मैं ने अभी पिछले हफ्ते भी शौपिंग मौल से खरीदारी कर के निकलते हुए देखा था. क्या नाम बताया था उन्होंने…हां सुयश,’’ नीलेश ने दिमाग पर जोर डालते हुए उस का नाम बताते हुए पिछली सारी बातें भी उसे बता दीं.

‘‘हो सकता है, कोई कजिन हो,’’ कहते हुए मनीष ने बात संभालने की कोशिश की.

‘‘हां, हो सकता है पर पिकनिक के बारे में तुम्हारी क्या राय है?’’ नीलेश ने फिर पूछा.

‘‘मैं बाद में बताऊंगा…शायद मुझे फिर बाहर जाना पडे़,’’ मनीष ने कहा.

नीलेश भी चुप लगा गया. वैसे नीलेश की पारखी नजरों से यह बात छिप नहीं पाई कि उस की बात सुन कर मनीष परेशान हो गया है. ज्यादा कुछ न कह कर मनीष कुछ काम है, कह कर उस के पास से हट गया. उस दिन उसे पहली बार महसूस हुआ कि दोस्ती चाहे कितनी भी गहरी क्यों न हो पर कुछ बातें ऐसी होती हैं जिन्हें व्यक्ति किसी के साथ शेयर नहीं करना चाहता.

जानें आगे क्या हुआ कहानी के अगले भाग में…

Friendship Day Special: दिये से रंगों तक-दोस्ती और प्रेम की कहानी- भाग 3

मैं छाया के पास आ गई. मेरे कंधे पर सिर रख कर वह सिसकने लगी. उस का हाथ अपने हाथ में ले कर मैं ने कहा, ‘‘पढ़ेलिखे मातापिता ऐसे कैसे हो सकते हैं?’’

उस ने जो कहा वह बहुत सही बात थी. वह बोली, ‘‘बच्चे को पालने के लिए दिल में प्रेम चाहिए, दिमाग के किताबी ज्ञान से कुछ नहीं होता है.’’

‘‘छाया, खुद को इतना परेशान मत कर. सुबह तरुण आ रहे हैं. तुम मुझ से एक वादा करो, वीकैंड में तुम मेरे साथ बैडमिंटन जरूर खेलोगी.’’ उस की आंखों ने मुझ से वादा किया और अगले दिन वह अपने घर चली गई.

जब साहिल को मैं ने उस के बारे में बताया तो साहिल बोले, ‘‘शैली, तुम छाया से कुछ मत पूछना. वह आज भी सदमे में है जिस दिन वह खुद बात करे उस दिन उसे समझाना.’’

रविवार की शाम छाया क्लब आई तो बोली, ‘‘आज खेलना नहीं है. चलो न, बातें करते हैं.’’

हम वहीं सीढि़यों पर बैठ गए. छाया ने सीधे ही मुझ से सवाल किया, ‘‘क्या साहिल यह सब जानते हैं? तुम ने उन्हें यह सब कब बताया?’’

‘‘शादी से पहले यह सब साहिल को मां ने बताया था. साहिल ने मुझे हमारे किसी रिश्तेदार के घर देखा था. जब साहिल अपने मातापिता के साथ आए तो उन की मां ने कहा, ‘हमें तो शैली पसंद है. आप चाहें, तो हम अभी बात पक्की कर लेते हैं.’’’

‘‘मां तैयार थीं इस के लिए. मां ने कहा, ‘पहले मैं साहिल से अकेले में बात करना चाहती हूं.’

‘‘मां साहिल को अपनेसाथ अंदर कमरे में ले गईं और उन्होंने मेरे साथ जो हुआ उन्हें सब बताया. फिर बोलीं, ‘बेटा, शादी करो या न करो पर यह बात अपने तक ही रखना. वरना हमारी बेटी की शादी होनी मुश्किल हो जाएगी.’

‘‘उस दिन साहिल ने मां के कंधे पर हाथ रख कर कहा था, ‘मां, मेरी शिक्षा बेकार है, यदि मैं उस दर्द को नहीं समझ पाया. मुझे शैली से ही शादी करनी है. यह बात मेरे अलावा किसी और तक कभी नहीं जाएगी.’

‘‘साहिल मुझ से मिलने कमरे में आए. कमरे का माहौल बहुत गमगीन हो गया था. वे, बस, इतना ही कह पाए, ‘शैली, मेरा हाथ थाम कर आज से जिंदगी शुरू करना, पीछे कुछ था ही नहीं. इसलिए कभी मुड़ कर मत देखना.’’’

मेरी बात पूरी हुई और छाया बोल पड़ी, ‘‘यही तो बात है, तरुण कुछ नहीं जानते हैं. उन से सबकुछ छिपा कर शादी तो करनी पड़ी पर मेरा अपराधबोध मुझे कचोटता है.’’

‘‘पर अब देर हो चुकी है, छाया.’’ यदि तरुण ने साथ रहने से मना कर दिया तो?’’

‘‘कोई बात नहीं, अपनी रिसर्च के लिए, एक जिंदगी भी कम है. मैं फिर से उसी में जुट जाऊंगी. शैली, आज बताती हूं उस दिन क्या हुआ था.’’

उस ने बहुत सहजता से कहना शुरू किया, ‘‘मैं बौटनी में रिसर्चस्कौलर थी. सब से ज्यादा फैलोशिप भी मुझे ही मिलती थी. विपिन राय, जो नंबर दो पर था, मुझ से बहुत चिढ़ता था. वह शादीशुदा था.

‘‘मुझ से पीछे रहने के अपमान का बदला उस ने मुझे चोट पहुंचा कर लिया. एक दिन उस ने मुझे फोन किया, ‘कुछ जरूरी काम है.’

‘‘छुट्टी का दिन था. वह अकेला मेरा इंतजार कर रहा था. जब मैं वहां पहुंची तो अकेलेपन का फायदा उठा कर उस ने मुझे बहुत मारा, गालियां दीं और कहा, ‘आज के बाद तू उस लैब में नहीं आ पाएगी. यहां आने की सोच भी तेरे ख्वाब में नहीं आएगी. मेरे खिलाफ पुलिस केस करने की गलती मत करना. 10 साल कोर्ट के चक्कर लगाएगी, फिर भी हो सकता है मैं यह साबित कर दूं कि तूने मेरा बलात्कार किया है.’

‘‘वह दरिंदा जीत गया. मेरे परिवार की नजर में मेरी इज्जत चली गई थी.

2 महीने के अंदर तरुण से मेरी शादी हो गई.

‘‘वह दिन, पिता की नफरत, मां का मुझ से ज्यादा समाज और छोटी बहन की चिंता करना मुझे आज तक रुलाता है. घाव पर मरहम लगाने वाला कोई तो चाहिए. यहां तो घाव नासूर बन गया जो आज तक…’’

आज हम दोनों की आंखों में आंसू नहीं थे. शैली उठ खड़ी हुई और बोली, ‘‘चलो, घर चलते हैं, तरुण को आज सबकुछ बताना है.’’

मुझे छाया की चिंता हो रही थी. मैं ने कहा, ‘‘तरुण का जवाब जो भी हो, मैं और साहिल अब तुम्हारा परिवार हैं. तुम तरुण को अपनी बात बताने से पहले मेरे और साहिल के बारे में बता देना. तुम चाहो तो साहिल भी…’’

‘‘तू चिंता मत कर. जो भी होगा उस का सामना करने की हिम्मत है मुझ में.’’

मैं घर तो आ गई पर मेरा मन बहुत बेचैन था. सुबह भी उस का फोन नहीं आया. साहिल काम पर चला गया. मैं घर में अकेली बैठी छाया के फोन का इंतजार करने लगी.

दीवाली के अगले दिन शुरू हुआ दोस्ती का यह सफर 5 महीने का रास्ता तय कर चुका था. क्या होगा? कहीं मेरे कारण छाया हमेशा के लिए अकेली न हो जाए. वह चाहे जो कहे, अब तनहा जीना आसान नहीं होगा. उसे भी तरुण के साथ की आदत पड़ चुकी थी.

शाम के 5 बज गए. फोन की घंटी बजी. देखा, तरुण का फोन है. मैं ने डरते हुए फोन उठाया. उधर से आवाज आई, ‘‘हैलो, शैली, तुम्हारा बहुतबहुत शुक्रिया.’’ उस के बाद छाया से जो बात हुई उस का एक शब्द भी याद नहीं. वैसे भी, अब शब्दों का कोई महत्त्व नहीं था. एक खुशी का एहसास. लगा मेरा पूरा शरीर रोशनी से भर गया हो.

मेरे कमजोर पलों में मेरा साथ मेरे परिवार व साहिल ने दिया था. आज किसी को मैं ने हिम्मत दी और वह भी जिंदगी की दौड़ में जीत गया. छाया की जीत का एहसास मेरे लिए कुछ ऐसा था जैसे मां को अपने बच्चे की जीत के लिए होता है.

अगले दिन छाया और तरुण 2 दिनों के लिए सिंगापुर जा रहे हैं. जाते समय तरुण ने साहिल से कहा, ‘‘साहिल, मंगलवार को होली की पार्टी का इंतजाम कर लेना, पार्टी हमारे घर पर होगी.’’

साहिल ने कहा, ‘‘तुम थके हुए आओगे, पार्टी हमारे घर पर रख लेते हैं. मैं और शैली सारा इंतजाम कर लेंगे.’’

छाया ने कहा, ‘‘नहीं साहिल, इस बार पार्टी हमारे घर होने दो. दीपक की रोशनी से उस रात तुम्हारा घर जगमगाया था, इस बार रंगों को हमारे घरआंगन में छिटकने दो.’’

होली की पार्टी से घर लौटते समय मेरे और साहिल के मोबाइल पर एक संदेश आया, ‘शैली, तुम्हारे मातापिता जैसा साहस और प्रेम हर मातापिता में हो तो तुम जैसी बेटियां न जाने कितनी छाया को अंधेरों से खींच लाएंगी. और हर दर्दभरे दिल को अपना साहिल मिल ही जाएगा…’

Friendship Day Special: दिये से रंगों तक-दोस्ती और प्रेम की कहानी- भाग 2

फिल्म खत्म होने के बाद रेस्तरां में खाना खाते समय तरुण बोले, ‘‘साहिल, औफिस के बाहर, सर और आप कुछ नहीं चलेगा. यहां हम भी दोस्त हैं छाया और शैली की तरह.’’

खाना खा कर हम बाहर निकले. एकदूसरे से विदा ली. हम चारों खुश थे. हां, सब की खुशी के कारण अलगअलग थे. अब मैं और छाया एकदो दिनों में हलकीफुलकी बातें कर लिया करते थे.

तरुण ने आज एकसाथ 2 अच्छी खबरें दीं. पहली, मुझे एक क्लब की सदस्यता तरुण ने दिलवा दी जहां मेरे दोनों शौक पूरे हो जाएंगे. दूसरी, तो इस से भी बड़ी थी, तरुण 2 दिनों के लिए सिंगापुर जा रहे हैं तो छाया हमारे साथ रहना चाहती है.

अगले दिन, तरुण को साहिल ने एयरपोर्ट छोड़ा और छाया हमारे साथ घर आ गई.

घर आते ही मैं ने छाया से पूछा, ‘‘कौफी के साथ पौपकौर्न लोगी या भेल?’’

उस ने बच्चों की तरह कहा, ‘‘दोनों.’’ उस का ऐसे बोलना मुझे बहुत अच्छा लगा. वह बोली, ‘‘रुको, मैं भी आती हूं, मिल कर बनाएंगे.’’

साहिल अपने औफिस के काम में व्यस्त थे. वे जानते थे स्वयं को हमें व्यस्त दिखाना ही सही होगा.

छाया और मेरे हाथ में कौफी थी. मैं ने टीवी चला दिया. पर मैं जानती थी यहां चलना तो कुछ और ही है.

बात मैं ने शुरू की, ‘‘क्या हुआ था?’’

‘‘पहले तुम बोलो, शैली, मुझ में बोलने की हिम्मत शायद तुम्हारे बाद ही आ पाए.’’

अपनी दोस्त को उस अंधेरे से बाहर निकालने के लिए मुझे उस गहरी खाई में फिर से जाना पड़ेगा. मन पक्का किया और मैं ने बताना शुरू किया, ‘‘उस शाम मैं हमेशा की तरह बैडमिंटन खेल कर ड्रैसिंगरूम में गई. वहां से मुझे पूल में जाना था. सबकुछ शायद पहले से ही सैट था. 2 लड़के बाहर घूम रहे थे, जिन को देख कर मैं ने अनदेखा कर दिया.

मैं रुक कर आगे बोली, ‘‘अंदर एक लड़का था जिसे ड्रैसिंगरूम में देख कर मैं चौंक गई. ‘महिलाओं के चेंजिंगरूम में लड़का कैसे?’ यह खयाल आया. मुझे देखते ही उस ने मेरे पास आ कर मुझे छूना चाहा. मैं बहुत घबरा गई, जोर से चिल्लाई और बाहर निकलने के लिए मुड़ी. उस जानवर ने मेरे मुंह में कपड़ा डाल दिया. बहुत छीनाझपटी हुई.

‘‘मैं घसीटतेघसीटते दरवाजे तक आ भी गई. काश, उस दिन दरवाजा खुल गया होता, जो बाहर से बंद था. एक को मारपीट कर मैं शायद भाग जाती मगर वक्त और इंसानियत सब शायद दरवाजे के बाहर ही छूट गए थे. बाहर वाले भी बारीबारी से अंदर आए. मेरे शरीर में संघर्ष की ताकत व होश सबकुछ खत्म हो गया था. उसी बेहोशी की हालत और रात के अंधेरे में वे मुझे मेरे घर के बाहर फेंक गए.

‘‘उन दर्दनाक पलों को मैं फिर से भुगत रही हूं किसी को जीना सिखाने के लिए. मम्मीपापा रात तक मेरे घर न आने पर और फोन बंद होने पर बहुत परेशान थे. वे दोनों मुझे ढूंढ़ने बाहर निकले तो देखा घर के दरवाजे पर मैं बेहोश पड़ी थी.

‘‘मुझे देख कर मां भी बेहोश हो गईं. 3 दिनों तक डाक्टर आंटी हमारे घर में रहीं.’’

वे 3 जानवर जिन को मैं जानती ही नहीं थी, उन्हें ढूंढ़ना, मीडिया को मसाले के साथ सबकुछ परोसना मेरे भविष्य को बरबाद करने जैसा ही था. मम्मीपापा और आंटी ने निर्णय लिया कि सबकुछ भुला कर जीना ही बेहतर है.

‘‘मगर इतना सब होने के बाद जीना इतना आसान भी नहीं, उन दर्दनाक यादों से खुद को अलग करना बहुत मुश्किल है, पर नामुमकिन नहीं.’’ कहते हुए मैं ने अपने आंसू पोंछे. छाया भी आंसुओं से भीग चुकी थी.

सामने देखा दरवाजे पर साहिल खड़े थे. हमें देखते हुए बोले, ‘‘अब सो जाओ, रात के 3 बज रहे हैं. सुबह काम पर जाना है.’’

उन्होंने कमरे की लाइट व टीवी बंद कर दिया.

सोतेसोते छाया बोली, ‘‘इतना समझदार पति, शैली, तुम्हारे पति की जितनी तारीफ की जाए, कम है.’’

‘‘छाया, तरुण भी बहुत अच्छे हैं. बस, इतना याद रखना कि यदि तुम उस सब से बाहर नहीं निकली तो जिंदगी का अतीत वर्तमान को भी काला कर देगा. तरुण महीने में 10 दिन बाहर रहते हैं. बहुत लोगों से मिलते भी होंगे. दोस्ती और प्रेम के बीच एक महीन सी दीवार ही होती है. पता नहीं कब वह दीवार टूट जाए, उस से पहले अपनी पीठ से अतीत की लाश को फेंक देना.’’

सुबह नींद खुली 9 बजे किचन की खटपट की आवाज से. छाया, हम तीनों के लिए नाश्ता बना रही थी और साहिल वहीं बैठे उस से बातें कर रहे थे.

छाया मुझे सहज और खुश लगी. हम तीनों अपने काम पर चले गए. रात का खाना हम दोनों ने मिल कर बनाया. खाना खा कर कमरे में आते ही छाया बोली, ‘‘इस सब के बाद तुम्हारे मातापिता ने क्या कहा?’’

‘‘मैं ने बोला तो था मां बेहोश हो गई थीं. एक दिन मैं पलंग पर सो रही थी, पापा भी मेरे पास बैठे थे. मां कुरसी पर बैठी मेरे बाल सहला रही थीं कि अचानक मैं रोने लगी और मेरे मुंह से निकला, ‘मैं मैली हो गई, सचमुच मेरी इज्जत चली गई.’

‘‘सुन कर मां को जैसे करंट लगा, ‘शरीर को अपमानित करने के लिए किसी ने तुम पर जुल्म और ज्यादती की, उस को तुम अपना गुनाह कैसे मान सकती हो? तुम पर जुल्म हुआ वह भी अनजाने में, धोखे से. औरत के मन और शरीर को तारतार करने वाले किस जालिम ने अपने गुनाह को औरत की इज्जत से जोड़ा? हम आज भी इन शब्दों को अपने पैरों की बेडि़यां बना कर जी रहे हैं.’ मां बोलतेबोलते खड़ी हो गईं. वे गुस्से से कांप रही थीं और रो रही थीं.

‘‘पापा की आंखों में भी आंसू थे. वे बोले, ‘बेटा, तुम हमारी बहादुर बेटी हो, शरीर के घाव तो भर जाएंगे पर उन को अपने मन में जगह मत देना. हम दोनों की जिंदगी और खुशी तेरे ही दिल में रहती है.’’’

कहतेकहते मेरी आंखों में भी आंसू आ गए. न जाने कितनी बार हम तीनों साथसाथ रोए थे. मैं ने अपनी बात जारी रखते हुए कहा, ‘‘2 महीने के लिए मैं मौसी के पास गई थी. जब वापस आई तो पापा के साथ खेलने भी जाती थी. धीरेधीरे सब सामान्य हो गया.’’

गुस्से और नफरत से छाया बोली, ‘‘मेरी तो मां ने ही कहा था, यह क्या कर आई? खानदान के नाम पर कलंक. खुद की नहीं, छोटी की भी सोचो. यह रोनाधोना बंद करो. चुपचाप काम पर जाना शुरू करो. किसी से कुछ कहने की जरूरत नहीं है. तब से आज तक मेरे घाव खुले ही हैं और टीसते हैं. उन्हें भरने वाला कोई नहीं मिला. तरुण से भी यह सब छिपा कर शादी हुई जो मुझे बहुत ग्लानि से भर देती है. क्या करती, मां के आगे कुछ नहीं बोल पाई.’’

मैं ने कहा, ‘‘तुम्हारे पिता तो कालेज में प्रोफैसर हैं. उन की प्रतिक्रिया कैसी थी?’’

‘‘‘यह अपवित्र हो गई है,’ पापा ने मेरे सामने मां को डांटते हुए कहा, ‘इस से कह देना, आज के बाद मंदिर में हाथ न लगाए.’’’

एक और बलात्कारी : क्या सुमेर सिंह से बच पाई रूपा

रूपा पगडंडी के रास्ते से हो कर अपने घर की ओर लौट रही थी. उस के सिर पर घास का एक बड़ा गट्ठर भी था. उस के पैरों की पायल की ‘छनछन’ दूर खड़े बिरजू के कानों में गूंजी, तो वह पेड़ की छाया छोड़ उस पगडंडी को देखने लगा.

रूपा को पास आता देख बिरजू के दिल की धड़कनें तेज हो गईं और उस का दिल उस से मिलने को मचलने लगा.

जब रूपा उस के पास आई, तो वह चट्टान की तरह उस के रास्ते में आ कर खड़ा हो गया.

‘‘बिरजू, हट मेरे रास्ते से. गाय को चारा देना है,’’ रूपा ने बिरजू को रास्ते से हटाते हुए कहा.

‘‘गाय को तो तू रोज चारा डालती है, पर मुझे तो तू घास तक नहीं डालती. तेरे बापू किसी ऐरेगैरे से शादी कर देंगे, इस से अच्छा है कि तू मुझ से शादी कर ले. रानी बना कर रखूंगा तुझे. तू सारा दिन काम करती रहती है, मुझे बिलकुल भी अच्छा नहीं लगता.’’

‘‘गांव में और भी कई लड़कियां हैं, तू उन से अपनी शादी की बात क्यों नहीं करता?’’

‘‘तू इतना भी नहीं समझती, मैं तो तुझ से प्यार करता हूं. फिर और किसी से अपनी शादी की बात क्यों करूं?’’

‘‘ये प्यारव्यार की बातें छोड़ो और मेरे रास्ते से हट जाओ, वरना घास का गट्ठर तुम्हारे ऊपर फेंक दूंगी,’’ इतना सुनते ही बिरजू एक तरफ हो लिया और रूपा अपने रास्ते बढ़ चली.

शाम को जब सुमेर सिंह की हवेली से रामदीन अपने घर लौट रहा था, तो वह अपने होश में नहीं था. गांव वालों ने रूपा को बताया कि उस का बापू नहर के पास शराब के नशे में चूर पड़ा है.

‘‘इस ने तो मेरा जीना हराम कर दिया है. मैं अभी इसे ठीक करती हूं,’’ रूपा की मां बड़बड़ाते हुए गई और थोड़ी देर में रामदीन को घर ला कर टूटीफूटी चारपाई पर पटक दिया और पास में ही चटाई बिछा कर सो गई.

सुबह होते ही रूपा की मां रामदीन पर भड़क उठी, ‘‘रोज शराब के नशे में चूर रहते हो. सारा दिन सुमेर सिंह की मजदूरी करते हो और शाम होते ही शराब में डूब जाते हो. आखिर यह सब कब तक चलता रहेगा? रूपा भी सयानी होती जा रही है, उस की भी कोई चिंता है कि नहीं?’’

रामदीन चुपचाप उस की बातें सुनता रहा, फिर मुंह फेर कर लेट गया. रामदीन कई महीनों से सुमेर सिंह के पास मजदूरी का काम करता था. खेतों की रखवाली करना और बागबगीचों में पानी देना उस का रोज का काम था.

दरअसल, कुछ महीने पहले रामदीन का छोटा बेटा निमोनिया का शिकार हो गया था. पूरा शरीर पीला पड़ चुका था. गरीबी और तंगहाली के चलते वह उस का सही इलाज नहीं करा पा रहा था. एक दिन उस के छोटे बेटे को दौरा पड़ा, तो रामदीन फौरन उसे अस्पताल ले गया.

डाक्टर ने उस से कहा कि बच्चे के शरीर में खून व पानी की कमी हो गई है. इस का तुरंत इलाज करना होगा. इस में 10 हजार रुपए तक का खर्चा आ सकता है.

किसी तरह उसे अस्पताल में भरती करा कर रामदीन पैसे जुटाने में लग गया. पासपड़ोस से मदद मांगी, पर किसी ने उस की मदद नहीं की.

आखिरकार वह सुमेर सिंह के पास पहुंचा और उस से मदद मांगी, ‘‘हुजूर, मेरा छोटा बेटा बहुत बीमार है. उसे निमोनिया हो गया था. मुझे अभी 10 हजार रुपए की जरूरत है. मैं मजदूरी कर के आप की पाईपाई चुका दूंगा. बस, आप मुझे अभी रुपए दे दीजिए.’’

‘‘मैं तुम्हें अभी रुपए दिए दे देता हूं, लेकिन अगर समय पर रुपए नहीं लौटा सके, तो मजदूरी की एक फूटी कौड़ी भी नहीं दूंगा. बोलो, मंजूर है?’’

‘‘हां हुजूर, मुझे सब मंजूर है,’’ अपने बच्चे की जान की खातिर उस ने सबकुछ कबूल कर लिया.

पहले तो रामदीन कभीकभार ही अपनी थकावट दूर करने के लिए शराब पीता था, लेकिन सुमेर सिंह उसे रोज शराब के अड्डे पर ले जाता था और उसे मुफ्त में शराब पिलाता था. लेकिन अब तो शराब पीना एक आदत सी बन गई थी. शराब तो उसे मुफ्त में मिल जाती थी, लेकिन उस की मेहनत के पैसे सुमेर सिंह हजम कर जाता था. इस से उस के घर में गरीबी और तंगहाली और भी बढ़ती गई.

रामदीन शराब के नशे में यह भी भूल जाता था कि उस के ऊपर कितनी जिम्मेदारियां हैं. दिन पर दिन उस पर कर्ज भी बढ़ता जा रहा था. इस तरह कई महीने बीत गए. जब रामदीन ज्यादा नशे में होता, तो रूपा ही सुमेर सिंह का काम निबटा देती.

एक सुबह रामदीन सुमेर सिंह के पास पहुंचा, तो सुमेर सिंह ने हुक्का गुड़गुड़ाते हुए कहा, ‘‘रामदीन, आज तुम हमारे पास बैठो. हमें तुम से कुछ जरूरी बात करनी है.’’

‘‘हुजूर, आज कुछ खास काम है क्या?’’ रामदीन कहते हुए उस के पास बैठ गए.

‘‘देखो रामदीन, आज मैं तुम से घुमाफिरा कर बात नहीं करूंगा. तुम ने मुझ से जो कर्जा लिया है, वह तुम मुझे कब तक लौटा रहे हो? दिन पर दिन ब्याज भी तो बढ़ता जा रहा है. कुलमिला कर अब तक 15 हजार रुपए से भी ज्यादा हो गए हैं.’’

‘‘मेरी माली हालत तो बदतर है. आप की ही गुलामी करता हूं हुजूर, आप ही बताइए कि मैं क्या करूं?’’

सुमेर सिंह हुक्का गुड़गुड़ाते हुए कुछ सोचने लगा. फिर बोला, ‘‘देख रामदीन, तू जितनी मेरी मजदूरी करता है, उस से कहीं ज्यादा शराब पी जाता है. फिर बीचबीच में तुझे राशनपानी देता ही रहता हूं. इस तरह तो तुम जिंदगीभर मेरा कर्जा उतार नहीं पाओगे, इसलिए मैं ने फैसला किया है कि अब अपनी जोरू को भी काम पर भेजना शुरू कर दे.’’

‘‘लेकिन हुजूर, मेरी जोरू यहां आ कर करेगी क्या?’’ रामदीन ने गिड़गिड़ाते हुए कहा.

‘‘मुझे एक नौकरानी की जरूरत है. सुबहशाम यहां झाड़ूपोंछा करेगी. घर के कपड़ेलत्ते साफ करेगी. उस के महीने के हजार रुपए दूंगा. उस में से 5 सौ रुपए काट कर हर महीने तेरा कर्जा वसूल करूंगा.

‘‘अगर तुम यह भी न कर सके, तो तुम मुझे जानते ही हो कि मैं जोरू और जमीन सबकुछ अपने कब्जे में ले लूंगा.’’

‘‘लेकिन हुजूर, मेरी जोरू पेट से है और उस की कमर में भी हमेशा दर्द रहता है.’’

‘‘बच्चे पैदा करना नहीं भूलते, पर मेरे पैसे देना जरूर भूल जाते हो. ठीक है, जोरू न सही, तू अपनी बड़ी बेटी रूपा को ही भेज देना.

‘‘रूपा सुबहशाम यहां झाड़ूपोंछा करेगी और दोपहर को हमारे खेतों से जानवरों के लिए चारा लाएगी. घर जा कर उसे सारे काम समझा देना. फिर दोबारा तुझे ऐसा मौका नहीं दूंगा.’’

अब रामदीन को ऐसा लगने लगा था, जैसे वह उस के भंवर में धंसता चला जा रहा है. सुमेर सिंह की शर्त न मानने के अलावा उस के पास कोई चारा भी नहीं बचा था.

शाम को रामदीन अपने घर लौटा, तो उस ने सुमेर सिंह की सारी बातें अपने बीवीबच्चों को सुनाईं.

यह सुन कर बीवी भड़क उठी, ‘‘रूपा सुमेर सिंह की हवेली पर बिलकुल नहीं जाएगी. आप तो जानते ही हैं. वह पहले भी कई औरतों की इज्जत के साथ खिलवाड़ कर चुका है. मैं खुद सुमेर सिंह की हवेली पर जाऊंगी.’’

‘‘नहीं मां, तुम ऐसी हालत में कहीं नहीं जाओगी. जिंदगीभर की गुलामी से अच्छा है कि कुछ महीने उस की गुलामी कर के सारे कर्ज उतार दूं,’’ रूपा ने अपनी बेचैनी दिखाई.

दूसरे दिन से ही रूपा ने सुमेर सिंह की हवेली पर काम करना शुरू कर दिया. वह सुबहशाम उस की हवेली पर झाड़ूपोंछा करती और दोपहर में जानवरों के लिए चारा लाने चली जाती.

अब सुमेर सिंह की तिरछी निगाहें हमेशा रूपा पर ही होती थीं. उस की मदहोश कर देनी वाली जवानी सुमेर सिंह के सोए हुए शैतान को जगा रही थी. रूपा के सामने तो उस की अपनी बीवी उसे फीकी लगने लगी थी.

सुमेर सिंह की हवेली पर सारा दिन लोगों का जमावड़ा लगा रहता था, लेकिन शाम को उस की निगाहें रूपा पर ही टिकी होती थीं.

रूपा के जिस्म में गजब की फुरती थी. शाम को जल्दीजल्दी सारे काम निबटा कर अपने घर जाने के लिए तैयार रहती थी. लेकिन सुमेर सिंह देर शाम तक कुछ और छोटेमोटे कामों में उसे हमेशा उलझाए रखता था. एक दोपहर जब रूपा पगडंडी के रास्ते अपने गांव की ओर बढ़ रही थी, तभी उस के सामने बिरजू आ धमका. उसे देखते ही रूपा ने अपना मुंह फेर लिया.

बिरजू उस से कहने लगा, ‘‘मैं जब भी तेरे सामने आता हूं, तू अपना मुंह क्यों फेर लेती है?’’

‘‘तो मैं क्या करूं? तुम्हें सीने से लगा लूं? मैं तुम जैसे आवारागर्दों के मुंह नहीं लगना चाहती,’’ रूपा ने दोटूक जवाब दिया.

‘‘देख रूपा, तू भले ही मुझ से नफरत कर ले, लेकिन मैं तो तुझ को प्यार करता ही रहूंगा. आजकल तो मैं ने सुना है, तू ने सुमेर सिंह की हवेली पर काम करना शुरू कर दिया है. शायद तुझे सुमेर सिंह की हैवानियत के बारे में पता नहीं. वह बिलकुल अजगर की तरह है. वह कब शिकारी को अपने चंगुल में फंसा कर निगल जाए, यह किसी को पता नहीं.

‘‘मुझे तो अब यह भी डर सताने लगा है कि कहीं वह तुम्हें नौकरानी से रखैल न बना ले, इसलिए अभी भी कहता हूं, तू मुझ से शादी कर ले.’’ यह सुन कर रूपा का मन हुआ कि वह बिरजू को 2-4 झापड़ जड़ दे, पर फिर लगा कि कहीं न कहीं इस की बातों में सचाई भी हो सकती है.

रूपा पहले भी कई लोगों से सुमेर सिंह की हैवानियत के बारे में सुन चुकी थी. इस के बावजूद वह सुमेर सिंह की गुलामी के अलावा कर भी क्या सकती थी. इधर सुमेर सिंह रूपा की जवानी का रसपान करने के लिए बेचैन हो रहा था, लेकिन रूपा उस के झांसे में आसानी से आने वाली नहीं थी.

सुमेर सिंह के लिए रूपा कोई बड़ी मछली नहीं थी, जिस के लिए उसे जाल बुनना पड़े.

एक दिन सुमेर सिंह ने रूपा को अपने पास बुलाया और कहा, ‘‘देखो रूपा, तुम कई दिनों से मेरे यहां काम कर रही हो, लेकिन महीने के 5 सौ रुपए से मेरा कर्जा इतनी जल्दी उतरने वाला नहीं है, जितना तुम सोच रही हो. इस में तो कई साल लग सकते हैं.

‘‘मेरे पास एक सुझाव है. तुम अगर चाहो, तो कुछ ही दिनों में मेरा सारा कर्जा उतार सकती हो. तेरी उम्र अभी पढ़नेलिखने और कुछ करने की है, मेरी गुलामी करने की नहीं,’’ सुमेर सिंह के शब्दों में जैसे एक मीठा जहर था.

‘‘मैं आप की बात समझी नहीं?’’ रूपा ने सवालिया नजरों से उसे देखा.

सुमेर सिंह की निगाहें रूपा के जिस्म को भेदने लगीं. फिर वह कुछ सोच कर बोला, ‘‘मैं तुम से घुमाफिरा कर बात नहीं करूंगा. तुम्हें आज ही एक सौदा करना होगा. अगर तुम्हें मेरा सौदा मंजूर होगा, तो मैं तुम्हारा सारा कर्जा माफ कर दूंगा और इतना ही नहीं, तेरी शादी तक का खर्चा मैं ही दूंगा.’’

रूपा बोली, ‘‘मुझे क्या सौदा करना होगा?’’

‘‘बस, तू कुछ दिनों तक अपनी जवानी का रसपान मुझे करा दे. अगर तुम ने मेरी इच्छा पूरी की, तो मैं भी अपना वादा जरूर निभाऊंगा,’’ सुमेर सिंह के तीखे शब्दों ने जैसे रूपा के जिस्म में आग लगा दी थी.

‘‘आप को मेरे साथ ऐसी गंदी बातें करते हुए शर्म नहीं आई,’’ रूपा गुस्से में आते हुए बोली.

‘‘शर्म की बातें छोड़ और मेरा कहा मान ले. तू क्या समझती है, तेरा बापू तेरी शादी धूमधाम से कर पाएगा? कतई नहीं, क्योंकि तेरी शादी के लिए वह मुझ से ही उधार लेगा.

‘‘इस बार तो मैं तेरे पूरे परिवार को गुलाम बनाऊंगा. अगर ब्याह के बाद तू मदद के लिए दोबारा मेरे पास आई भी तो मैं तुझे रखैल तक नहीं बनाऊंगा. अच्छी तरह सोच ले. मैं तुझे इस बारे में सोचने के लिए कुछ दिन की मुहलत भी देता हूं. अगर इस के बावजूद भी तू ने मेरी बात नहीं मानी, तो मुझे दूसरा रास्ता भी अपनाना आता है.’’

सुमेर सिंह की कही गई हर बात रूपा के जिस्म में कांटों की तरह चुभती चली गई. सुमेर सिंह की नीयत का आभास तो उसे पहले से ही था, लेकिन वह इतना बदमाश भी हो सकता है, यह उसे बिलकुल नहीं पता था.

रूपा को अब बिरजू की बातें याद आने लगीं. अब उस के मन में बिरजू के लिए कोई शिकायत नहीं थी.

रूपा ने यह बात किसी को बताना ठीक नहीं समझा. रात को तो वह बिलकुल सो नहीं पाई. सारी रात अपने वजूद के बारे में ही वह सोचती रही.

रूपा को सुमेर सिंह की बातों पर तनिक भी भरोसा नहीं था. उसे इस बात की ज्यादा चिंता होने लगी थी कि अगर अपना तन उसे सौंप भी दिया, तो क्या वह भी अपना वादा पूरा करेगा? अगर ऐसा नहीं हुआ, तो अपना सबकुछ गंवा कर भी बदनामी के अलावा उसे कुछ नहीं मिलेगा.

इधर सुमेर सिंह भी रूपा की जवानी का रसपान करने के लिए उतावला हो रहा था. उसे तो बस रूपा की हां का इंतजार था. धीरेधीरे वक्त गुजर रहा था. लेकिन रूपा ने उसे अब तक कोई संकेत नहीं दिया था. सुमेर सिंह ने मन ही मन कुछ और सोच लिया था.

यह सोच कर रूपा की भी बेचैनी बढ़ती जा रही थी. उसे खुद को सुमेर सिंह से बचा पाना मुश्किल लग रहा था. एक दोपहर जब रूपा सुमेर सिंह के खेतों में जानवरों के लिए चारा लाने गई, तो सब से पहले उस की निगाहें बिरजू को तलाशने लगीं, पर बिरजू का कोई अतापता नहीं था. फिर वह अपने काम में लग गई. तभी किसी ने उस के मुंह पर पीछे से हाथ रख दिया.

रूपा को लगा शायद बिरजू होगा, लेकिन जब वह पीछे की ओर मुड़ी, तो दंग रह गई. वह कोई और नहीं, बल्कि सुमेर सिंह था. उस की आंखों में वासना की भूख नजर आ रही थी.

तभी सुमेर सिंह ने रूपा को अपनी मजबूत बांहों में जकड़ते हुए कहा, ‘‘हुं, आज तुझे मुझ से कोई बचाने वाला नहीं है. अब तेरा इंतजार भी करना बेकार है.’’

‘‘मैं तो बस आज रात आप के पास आने ही वाली थी. अभी आप मुझे छोड़ दीजिए, वरना मैं शोर मचाऊंगी,’’ रूपा ने उस के चंगुल से छूटने की नाकाम कोशिश की.

पर सुमेर सिंह के हौसले बुलंद थे. उस ने रूपा की एक न सुनी और घास की झाड़ी में उसे पूरी तरह से दबोच लिया.

रूपा ने उस से छूटने की भरपूर कोशिश की, पर रूपा की नाजुक कलाइयां उस के सामने कुछ खास कमाल न कर सकीं.

अब सुमेर सिंह का भारीभरकम बदन रूपा के जिस्म पर लोट रहा था, फिर धीरेधीरे उस ने रूपा के कपड़े फाड़ने शुरू किए.

जब रूपा ने शोर मचाने की कोशिश की, तो उस ने उस का मुंह उसी के दुपट्टे से बांध दिया, ताकि वह शोर भी न मचा सके.

अब तो रूपा पूरी तरह से सुमेर सिंह के शिकंजे में थी. वह आदमखोर की तरह उस पर झपट पड़ा. इस से पहले वह रूपा को अपनी हवस का शिकार बना पाता, तभी किसी ने उस के सिर पर किसी मजबूत डंडे से ताबड़तोड़ वार करना शुरू कर दिया. कुछ ही देर में वह ढेर हो गया.

रूपा ने जब गौर से देखा, तो वह कोई और नहीं, बल्कि बिरजू था. तभी वह उठ खड़ी हुई और बिरजू से लिपट गई. उस की आंखों में एक जीत नजर आ रही थी.

बिरजू ने उसे हौसला दिया और कहा, ‘‘तुम्हें अब डरने की कोई जरूरत नहीं है. मैं इसी तरह तेरी हिफाजत जिंदगीभर करता रहूंगा.’’ रूपा ने बिरजू का हाथ थाम लिया और अपने गांव की ओर चल दी.

Friendship Day Special: दिये से रंगों तक-दोस्ती और प्रेम की कहानी- भाग 1

हम दोनों चेन्नई में 2 महीने पहले ही आए थे. मेरे पति साहिल का यहां ट्रांसफर हुआ था. मेरे पास एमबीए की डिगरी थी. सो, मुझे भी नौकरी मिलने में ज्यादा दिक्कत न आई. हमारे दोस्त अभी कम थे. यही सोच कर दीवाली के दूसरे दिन घर में ही पार्टी रख ली. अपने और साहिल के औफिस के कुछ दोस्तों को घर पर बुलाया था. दीवाली के अगले दिन जब मैं शाम को दिये और फूलों से घर सजा रही थी तो साहिल बोले, ‘‘शैली, कितने दिये लगाओगी? घर सुंदर लग रहा है. तुम सुबह से काम कर रही हो, थक जाओगी. अभी तुम्हें तैयार भी तो होना है.’’

मैं ने साहिल की तरफ  प्यार से देखते हुए कहा, ‘‘मैं क्यों, तुम भी तो मेरे साथ बराबरी से काम कर रहे हो. बस, 10 मिनट और, फिर तैयार होते हैं.’’

हम तैयार हुए कि दोस्तों का आना शुरू हो गया. पहली बार घर में इतनी चहलपहल अच्छी लग रही थी. जब टेबल पर सूप, समोसे, पकौड़े रखे तो सब खुश हो कर बोले, ‘‘वाह, चेन्नई में ये सब खाने को मिल जाए तो बहुत मजा आ जाता है.’’

फिर दौर चला बातों का, मिठाइयों का और नाचगाने का. सब ने पार्टी को खूब एंजौय किया.

पार्टी में हमारे साथ थे साहिल के बौस और उन की पत्नी छाया. रात के 2 बजे पार्टी खत्म हुई. सभी दोस्तों ने हमें इस पार्टी के लिए धन्यवाद दिया.

दिनभर की थकान के बाद भी आंखों में नींद नहीं थी. मैं और साहिल बालकनी में बैठ गए बातें करने के लिए. खामोश रात और रंगीन जुगनुओं की चमक से चमकता शहर बहुत सुंदर लग रहा था.

‘‘साहिल, एक बात गौर की तुम ने कि तुम्हारे बौस की बीवी कितनी चुप थीं. न तो वे खाना खाते समय कुछ बोलीं और न खेलते समय. ऐसा लग रहा था जैसे एक मशीन की तरह सबकुछ कर रही हैं. वे सुंदर तो थीं पर खुश नहीं लग रही थीं.’’

‘‘तुम भी न शैली, यार वे बौस की बीवी हैं. इतनी उछलकूद नहीं मचाएंगी. बड़े लोग जूनियर सहकर्मियों से एक दूरी बना कर चलते हैं.’’

‘‘तुम्हारे बौस तो बड़े जिंदादिल हैं. तुम ने देखा नहीं, वे डांस के समय अपनी बीवी को बड़े प्यार से देख रहे थे. पर मैडम का ध्यान उन की तरफ नहीं था.’’

साहिल ने हंसते हुए कहा, ‘‘अच्छा, तो तुम मेरे साथ डांस कर रही थीं पर तुम्हारी नजर…तुम उन को इतने गौर से क्यों देख रही थीं?’’

साहिल के मजाक से अनजान मैं ने कहा, ‘‘साहिल, मुझे कुछ टूटा सा लग रहा है.’’

‘‘छोड़ो शैली, यदि तुम सही हो, तो भी हमें क्या करना?’’

अपनी धुन में मैं कह गई, ‘‘नहीं साहिल, इसे नहीं छोड़ पाऊंगी. अब मुझे याद आया, छाया कालेज में मेरे साथ थी. वह मुझे बहुत पहचानी सी लग रही थी.’’

साहिल को मनाते हुए मैं ने आगे कहा, ‘‘मुझे छाया से दोस्ती करनी है.’’

‘‘यार, बौस से दोस्ती बढ़ाने का एक ही मतलब होता है, चमचागीरी. छोड़ दो उस गुमसुम सी छाया को.’’

‘‘प्लीज, बस एक बार मिलवा दो. मैं वादा करती हूं, अगली बार छाया खुद मुझ से मिलना चाहेगी.’’

‘‘तुम अपनी बात मनवाना जानती हो. चलो, देखते हैं. सुबह के 4 बज गए हैं. उठो, सुबह औफिस भी जाना है.’’

अगले शनिवार जब साहिल औफिस से आया तो बोला, ‘‘मैडम, आप का काम हो गया. बौस तैयार हो गए हैं. रविवार को पहले फिल्म और फिर डिनर, ठीक है.’’ ‘‘ठीक नहीं, सुपर प्लान है. साहिल तुम बहुत अच्छे हो.’’

साहिल ने मुसकरा कर मेरा हाथ थाम लिया, बोला, ‘‘मैं जानता हूं असली खिलाड़ी कभी हारते नहीं.’’

दुख का एक पल मेरे अंदर आया, पर मैं ने उसे झटक कर दूर किया और साहिल के लिए चाय बनाने चली गई. मैं शादी से पहले हमेशा बैडमिंटन खेलने की शौकीन रही हूं. खेल के बाद तैराकी मुझे बहुत सुकून देती है. सूरत में तो वीकैंड में क्लब में जाती थी. यहां चेन्नई में ऐसी जगह अभी तक मिल नहीं पाई. अधिकतर क्लबों की मैंबरशिप बहुत महंगी है. अभी तो मुझे रविवार का इंतजार था.

रविवार की शाम हम चारों मिले. आज मैं ने मिलते ही सब से पहले छाया को याद दिलाया, ‘‘आप को याद नहीं, हम एक ही कालेज में पढ़े हैं. उस दिन मुझे आप का चेहरा बहुत पहचाना सा लग रहा था. फिर बाद में याद आया.’’

छाया ने खुश होते हुए कहा, ‘‘जब पुराने दोस्त मिल गए हैं तो ‘आप’ नहीं शैली, ‘तुम’ ही अच्छा लगेगा.’’

हम साथ में हंस दिए. जब तरुण ने ये सब सुना तो बोले, ‘‘शैली, आप छाया से दोस्ती कर ही लो. उस का भी मन लग जाएगा यहां.’’

साहिल मेरी ओर देख कर मुसकरा पड़े, उन की निगाहों ने कहा, ‘जीत गई न तुम.’

सिनेमाहौल में मैं और छाया पासपास बैठे थे. एक समय आया जब स्क्रीन पर बलात्कार का सीन चल रहा था. नायिका चीखचिल्ला रही थी, रो रही थी, भाग रही थी, उस जगह से बाहर निकलने का रास्ता ढूंढ़ रही थी. उस सीन ने मुझे दहला दिया. साहिल ने मेरे हाथ को अपने दोनों हाथों से थाम लिया था. अचानक मेरी निगाह छाया की तरफ गई, उस ने कस कर आंखें बंद की हुई थीं.

बस, यही बात थी जो मुझे छाया के करीब लाई थी. इसीलिए मैं उस से दोस्ती करना चाहती थी.

फिल्म के मध्यांतर में खाने के लिए स्नैक्स ‘हम दोनों ही लाएंगे’ कह कर मैं छाया को अपने साथ बाहर ले आई.

एक कोने में जा कर हम खड़े हुए, मैं ने उस से कहा, ‘‘जिस सीन को देख कर तुम ने आंखें बंद की थीं, उस काले, घिनौने वक्त से मैं भी गुजर चुकी हूं. बस, फर्क इतना है तुम उस वक्त अकेली थी और साहिल ने अपने दोनों हाथों से मेरा हाथ थामा था. मैं ने उस के कंधे पर अपना सिर टिका दिया था.’’

छाया की आंखें भय से फैल गईं. वह बोली, ‘‘क्या बोल रही हो? तुम्हें देख कर तो कोई सपने में भी नहीं सोच सकता है कि तुम दर्द के उस दरिया से निकल कर आई हो.’’

‘‘दर्द के दरिया को पार कर मैं भी आई हूं, छाया. पर उस के पानी से मेरे कपड़े आज भीगे नहीं हैं. तुम आज भी भीगी हो और कांप रही हो.’’

हम दोनों भूल चुके थे कि हम कहां खड़े हैं और क्या लेने आए हैं. हमारे सामने साहिल खड़ा था. हाथ में स्नैक्स की ट्रे लिए. वह जानता था उस समय यहां क्या बात हो रही है. वह सिर्फ इतना बोला, ‘‘चलो, फिल्म शुरू हो गई है.’’

तांकझांक तो बुरी आदत है पर क्या करूं, आज तो मैं ने भी वही किया. देख कर अच्छा लगा, छाया तरुण का हाथ थामें बैठी थी. इस से ज्यादा ध्यान देना तो ठीक नहीं था. मैं ने अपना ध्यान फिल्म में लगा दिया.

गुप्त रोग: रूबी और अजय के नजायज संबंधों का कैसे हुआ पर्दाफाश – भाग 1

‘अब छोड़ो भी, जाने दो मुझे. मेरे पति रणबीर का फोन आता ही होगा,” रूबी ने अजय सिंह की बांहों में कसमसाते हुए कहा.

”अच्छा… तो अपने पति के वापस आते ही मुझ से नखरे दिखाने लगी हो तुम,” अजय सिंह ने रूबी के सीने पर हाथ का दबाव बढ़ाते हुए कहा.

“क्या बताऊं, जब से मेरा मरद गुजरात से कमाई कर के लौटा है, तब से वह सैक्स का भूखा भेड़िया बन गया है. रात में भी मुझे सोने नहीं देता,” रूबी ने एक मादक अंगड़ाई लेते हुए कहा.

“तो तुम भी सैक्स के मजे लो, इस में परेशानी की क्या बात है भला?” एक भद्दी सी मुसकराहट के साथ अजय सिंह ने कहा.

”रात में उस का बिस्तर गरम करूं और दिन में तुम्हारे जोश को ठंडा करूं, अरे, मैं एक औरत हूं, कोई ‘सैक्स डौल’ नहीं, और फिर मैं प्यार तो तुम से करती हूं न, मेरा वह तोंद वाला मोटा पति मुझे कतई पसंद नहीं,” यह कह कर रूबी ने अजय सिंह को अपनी बांहों में भर लिया.

तीखे नैननक्श और भरे बदन वाली रूबी पर महल्ले के मनचलों की नजर रहती थी. जब रूबी नाभि प्रदर्शना ढंग से साड़ी पहन कर बाहर निकलती तो लोग फटी आंखों से उसे घूरते रह जाते. अपनी इस खूबसूरती का अच्छी तरह एहसास भी था रूबी को और मौका पड़ने पर वह इस का फायदा उठाने से भी नहीं चूकती थी.

रूबी इस मकान में अकेली रहती थी, जबकि उस के पति को गुजरात में काम के सिलसिले में कई महीनों तक बाहर रुकना पड़ जाता था.

रूबी को अपने पति के मोटे होने से चिढ़ थी, इसलिए उस ने कई बार रणबीर से खुल कर कहा भी, पर उस के पति को पैसे से इतना प्यार था कि वह अपने शरीर पर बिलकुल ध्यान नहीं देता था.

अपने पति की गैरमौजूदगी में जब भी रूबी की तबीयत कुछ खराब होती तो  वह  महल्ले के नुक्कड़ पर बने अस्पताल में दवा लेने चली जाती थी.

तनहाई की मारी हुई जवान और खूबसूरत रूबी की जानपहचान जल्दी ही उस अस्पताल में काम करने वाले कंपाउंडर अजय सिंह से हो गई.

रूबी और अजय सिंह एकदूसरे से प्यार करने लगे. रूबी को एक आदमी का सहारा मिला, तो वह और भी निखर गई.

अजय सिंह का डाक्टर जब कभी भी अस्पताल से बाहर कहीं जाता, तो अजय सिंह रूबी को फोन कर के अस्पताल में बुला लेता. दोनों साथ में ही खातेपीते और अस्पताल में ही जिस्मानी सुख का मजा भी लेते.

दोनों की जिंदगी मजे से गुजर रही थी, पर इसी बीच रूबी के पति रणबीर के गुजरात से वापस लौट आने से उस की आजादी पर ब्रेक सा लग गया था.

अगले दिन रूबी ने भरे गले से अजय सिंह को फोन कर के बताया कि वह अब उस से मिलने नहीं आ पाएगी, क्योंकि उस का पति रणबीर उसे ले कर हमेशा ही बिस्तर पर पड़ा रहता है और पोर्न फिल्में दिखा कर अपनी ‘सैक्स फैंटेसी’ पूरी करने के लिए उस पर दबाव डालता रहता है.

रूबी को उस का पति परेशान कर रहा था, यह बात अजय सिंह को अच्छी नहीं लग रही थी. रूबी का पति उसे एक दुश्मन की तरह लग रहा था.

एक तो रूबी से दूरी अजय सिंह को सहन नहीं हो रही थी, ऊपर से ये बातें सुन कर अजय सिंह को गुस्सा आ रहा था, इसलिए मन ही मन अजय सिंह रूबी के पति को उस से दूर रखने के लिए कुछ ऐसा प्लान सोचने लगा, जिस से सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे.

फिर एक दिन अजय सिंह ने रूबी को अस्पताल में बुलाया. अस्पताल आते ही रूबी ने कहा, ”बड़ी मुश्किल से आ पाई हूं, जल्दी से बताओ कि क्या बात है?”

”यह लो, यह एक किस्म का तेल है, जिस में मैं ने कई तरह की दवाएं मिला रखी हैं… इस तेल को तुम्हें अपने पति के प्राइवेट पार्ट यानी अंग पर मलना है,” अजय सिंह ने एक छोटी सी शीशी रूबी की ओर बढ़ाते हुए कहा.

अजय सिंह की बातें सुन कर रूबी चौंक पड़ी थी.

”पर, इस से भला क्या होगा?” रूबी ने पूछा.

”मैं ने इस तेल में कुछ ऐसे कैमिकल मिलाए हैं, जिन का पीएच मान बहुत कम होता है और यदि कम पीएच मान वाली चीजों को चमड़ी पर 2-4 दिन तक लगाया जाए, तो चमड़े पर हलका घाव या इंफैक्शन हो सकता है,” अपनी आंखों को शरारती अंदाज में दबाते हुए अजय सिंह ने कहा.

”ओह, इस का मतलब है कि इसे लगाते ही रणबीर को इंफैक्शन हो जाएगा और फिर वह मुझे सैक्स के लिए तंग नहीं करेगा. पर, फिर यह तेल मेरे हाथ पर भी घाव बना सकता है न,” रूबी ने अपनी घबराहट दिखाई.

”वैरी स्मार्ट, यह काम तुम दस्ताने पहन कर करोगी, ये लो ग्लव्स.”

”पर, इस तरह से तो रणबीर को मुझ पर शक हो जाएगा,” रूबी ने शक जाहिर करते हुए पूछा, तो अजय सिंह खीज उठा, “उफ्फ, बहुत ही नासमझ हो. तुम्हें मोटे पति के साथ न सोना पड़े, इस का एकमात्र यही रास्ता था… अब आगे का सफर कैसे तय करना है, वह सब तुम्हें सोचना है.”

”ठीक है बाबा… मैं ही कुछ सोचती हूं,” कहते हुए रूबी ने तेल की शीशी अपने बैग में रख ली.

रोज रात की तरह रणबीर फिर से रूमानी होने लगा, तो रूबी ने महीना होने का झूठ बोला. इस पर रणबीर ने बुरा सा मुंह बना लिया.

”अरे, अब तुम नाराज मत हो, मेरे पास तुम्हें खुश करने के और भी बहुत से तरीके हैं, मैं तुम्हारे पैरों में तेल से मसाज कर देती हूं, तुम्हें अच्छी नींद आ जाएगी,” कह कर रूबी ने रणबीर की आंखों पर एक दुपट्टा बांध दिया.

रणबीर मन ही मन कल्पना के गोते लगाने लगा कि न जाने उस की पत्नी उस के साथ क्या करने जा रही है. इस समय वह अपनेआप को किसी इंगलिश फिल्म का हीरो समझ रहा था.

रणबीर को लिटा कर रूबी ने हाथों में ग्लव्स पहन लिए और उस की टांगों पर चढ़ कर बैठ गई. रणबीर के पैरों और घुटनों में सादा यानी बिना मिलावट वाला तेल लगाया, जबकि अजय सिंह के द्वारा दिए गए तेल को रणबीर के प्राइवेट अंग में लगा कर धीरधीरे मालिश करने लगी.

रणबीर आंखें बंद कर के आनंद के सागर में गोते लगा रहा था, क्योंकि इस मसाज से एक अजीब सा असर हो रहा था उसे.

”रूबी, तुम ने कल जिस तेल से मसाज की थी… मुझे बहुत अच्छी लगी. तुम आज भी ठीक वैसी ही मसाज देना,” रणबीर ने सुबह उठते ही कहा, जिस पर रूबी मुसकरा कर रह गई.

रणबीर ने 3-4 दिन ये मसाज करवा कर मजा लिया, पर उस बेचारे को क्या पता था कि उस के साथ क्या होने

वाला है.

एक दिन सुबह जब रणबीर सो कर उठा, तो उस के अंग में हलकी सी जलन हो रही थी. उस ने ध्यान दिया कि अंग पर लाललाल दाने हैं, जिस में खुजली भी हो रही थी. दानों को खुजला भी दिया था रणबीर ने, जिस के चलते ऊपर की चमड़ी से हलका सा खून निकलने लगा था.

”रूबी, जब से तुम ने मेरे अंग पर मसाज की है, तब से वहां एलर्जी सी हो गई है, देखो तो क्या हाल हो गया है मेरा,” रणबीर ने शिकायती लहजे में रूबी से कहा.

”देखिए, इस में मेरी कोई गलती नहीं है, आप महीनों घर से बाहर रहते हैं. पत्नी का साथ आप को नसीब नहीं होता. ऐसे में धंधेबाज औरतों से संबंध भी आप जरूर ही बनाते होंगे, आप को किसी भी तरह का गुप्त रोग होना तो लाजिमी ही है,” रूबी ने नाकभौं सिकोड़ते हुए उपेक्षित लहजे में कहा.

अपनी पत्नी से रणबीर को हमदर्दी की उम्मीद थी, पर उसे तो नफरत मिल रही थी.

15 अगस्त स्पेशल: फौजी के फोल्डर से एक सैनिक की कहानी – भाग 1

कैप्टन राघव सर्जिकल स्ट्राइक को ले कर टैलीविजन पर चल रही बहस और श्रेय लेने की होड़ से ऊब कर, अपना लैपटौप खोल कर बैठ गए. महीनेभर की भागादौड़ी से फुरसत पा कर, आज यह शाम का समय मिला है कि वे कुछ अपने मन की करें. उड़ी आतंकवादी घटना के बाद से ही मन विचलित हो गया था. मगर यह पूरा माह अत्यंत व्यस्त था, इसलिए जागते समय तो नहीं, किंतु सोते समय अवश्य उन मित्रों के चेहरे नजरों के सामने तैरने लगते थे जो इस साल आतंकियों से लोहा लेते शहीद हो गए थे. आज वे लैपटौप में उस पिक्चर फोल्डर को खोल कर बैठ गए जो उन्होंने एनडीए में ट्रेनिंग के दौरान फोटोग्राफर से लिया था. उस फोटोग्राफर को भी केवल खास मौकों पर अंदर आ कर फोटो लेने की इजाजत मिलती थी, वरना वहां कैमरा और मोबाइल रखने की किसी भी कैडेट को इजाजत नहीं थी.

12वीं की परीक्षा के बाद जहां उस के सहपाठी इंजीनियरिंग और मैडिकल कालेज के परिणामों का इंतजार कर रहे थे वहीं वह बेसब्री से एनडीए के परिणाम का इंतजार कर रहा था. हालांकि मां की खुशी के लिए यूपीटीयू के अलावा उस ने और भी अन्य प्रतियोगी परीक्षाएं भी दी थीं मगर इंतजार एनडीए के परिणाम का ही था. यदि लिखित में पास हो गया तो फिर एसएसबी (साक्षात्कार) के लिए तो वह जीजान लगा देगा.

मां को तो पूरा विश्वास था कि वह इस में पास नहीं हो सकता, इसलिए उन्होंने उस परीक्षा को एक बार में ही पास करने की शर्त रख दी थी. उस दिन नीमा मौसी ने मां से बोला भी था, ‘तुम अपने इकलौते बेटे के सेना में जाने से रोकती क्यों नहीं?’ और मां ने कहा, ‘अरे, परीक्षा दे कर उसे अपना शौक पूरा कर लेने दो. परीक्षा में लाखों बच्चे बैठते हैं, लेकिन सिलैक्शन तो 3-4 सौ का ही हो पाता है. कौन सा इस का हो ही जाएगा. मैं तो यही सोच कर खुश हूं कि इसे ही लक्ष्य मान परीक्षा की तैयारियां तो करता है वरना यह भी सड़क पर अन्य नवयुवकों के संग बाइक ले कर स्टंट करता घूमता.’

मौसी चुप हो गईं. मां व मौसी की ये बातें सुन कर मैं जीजान से तैयारी में जुट गया कि कहीं पहली बार में पास नहीं कर पाया तो फिर मां को बहाना मिल जाएगा सेना में न भेजने का. मां हमेशा फुसलातीं, ‘बेटा, सरकारी इंजीनियरिंग कालेज न मिले तो कोई बात नहीं, तुम यहीं लखनऊ के ही किसी प्राइवेट इंजीनियरिंग कालेज में ऐडमिशन ले लेना, घर से ही आनाजाना हो जाएगा.’ मैं कहता, ‘मां, मुझे इंजीनियरिंग करनी ही नहीं, आप समझती क्यों नहीं.’

सोमेश भी तो यही कहता था. यहां आने वाले हर दूसरे कैडेट की यही कहानी है. किस की मां अपने कलेजे के टुकड़े को गोलियों की बौछार के आगे खड़ा कर खुश होगी. सोमेश तो अपने मातापिता की इकलौती औलाद था. उस की मां तो एनडीए में ऐडमिशन के समय साथ ही आई थी. एक हफ्ते पुणे में रुकी रही कि शायद सोमेश का मन बदल जाए तो वे उसे अपने साथ ले कर वापस लौट जाएंगी. भले ही अब जुर्माना भी क्यों न भरना पड़े पर सोमेश न लौटा और उस की मां ही लौट गईं. उस दिन वे कितना रो रही थीं, शायद उन के मन को आभास हो गया था.

मैं और सोमेश एक ही हाउस में थे. शुरू के 3 महीने तो सब से कठिन समय था. कब आधी रात को दौड़ना पड़ जाए, कब तपतपाती गरमी में सड़क पर बदन को रोल करना पड़ जाए, कब दसियों बार रस्सी पर अपडाउन करने का फरमान आ जाए और कब किस समय कौन सा कानून भंग हो जाए, पता ही नहीं चलता था. मगर सजा देने वाले सीनियर के पास पूरा हिसाब रहता और उस सीनियर को सजा देने का हक उस के सीनियर का रहता. हर 6 महीने में एक नया बैच जौइन करता और उसी के साथ अगला बैच सीनियर बन जाता और सब से पुराना बैच, 3 साल पूरे कर पासिंगआउट परेड कर रवाना हो जाता आर्मी गु्रप आइएमए उत्तराखंड के देहरादून में, नेवी ग्रुप अलगअलग अपने जहाज में और एयरफोर्स ग्रुप एयरफोर्स एकेडमी, बेंगलुरु में. बस, यहीं से सभी कैडेट जैंटलमैन में बदल अपनी अलग औफिसर ट्रेनिंग के लिए एकदूसरे से विदा लेते.

प्रवेश के प्रांरभिक 3 महीने सब से कठिन होते. उस समय में जो कैडेट एनडीए में टिक गया, वह फिर जिंदगीभर अपने कदम पीछे नहीं कर सकता. मां की सहेली का भाईर् यहां से महीनेभर में ही वापस चला गया था. तभी से उन के मन में एक भयंकर तसवीर बन गई थी, उसी कठोर प्रशिक्षण के बारे में सुन कर ही वे मुझे यहां नहीं भेजना चाहती थीं. पर वैसे भी, किस की मां खुशीखुशी भेजती है.

सोमेश ने बताया था कि जब वह पहले सैमेस्टर के बाद घर गया तो मां के सामने शर्ट नहीं उतारता था कि वे कहीं पीठ पर बने निशान न देख लें जो डामर रोड पर रोलिंग करने से बन गए थे, वरना वे फिर से हायतौबा मचा कर मुझे वापस ही न आने देतीं. यही हाल मेरी मां का भी था. हर वक्त यही कहती थीं, ‘कितना चुप रहने लगा है, कुछ बताता क्यों नहीं वहां की बात. पहले तो बहुत बोलता था, अब क्या हुआ?’ क्या बोलता मैं, अगर यहां की कठिन दिनचर्या बताता तो फिर वे मुझे भूल कर भी वापस न आने देतीं.

बहन सुनीति बोली थी, ‘मैं ने सुना, 3 साल में आप को वहां से जेएनयू की डिगरी मिलेगी,’

‘हां, तो,’ मैं ने लापरवाही से कहा.

‘वाह, पुणे में रहते हुए, आप को जेएनयू की डिगरी मिल जाएगी, दिल्ली भी जाना नहीं पड़ेगा,’ सुनीति चहकी थी.

‘हां, हम जेएनयू नहीं, बल्कि जेएनयू हमारे पास आएगा,’ मैं ने उसे चिढ़ाया था.

‘अजी, मजे हैं आप के भाई,’ सुनीति बोली.

‘तू भी आ जा, तुझे भी मिल जाएगी,’ मैं ने कहा.

‘न भाई न, मेरे अंदर इतना स्टैमिना नहीं है कि मैं मीलों दौड़ लगाऊं. वह भी पीठ पर वजन लाद कर. न सोने का ठिकाना, न खाने का. इस के बजाय मैं अपनी डिगरी मौज काटते हुए ले लूंगी. आप की तरह मुझे अपने शरीर को कष्ट नहीं देना. इस से कई गुना मस्त हमारी यूनिवर्सिटी है जहां सालभर नारेबाजी, धरना, प्रदर्शन और फैशन परेड ही चलती रहती है.’

बहन और भाई के रिश्ते में प्यार है, तकरार भी. एक को कुछ कष्ट हो तो  दूसरे को बरदाश्त नहीं हो पाता. वह मेरी कठिन ट्रेनिंग से हमेशा विचलित हो जाती. जब मैं ने उस से कहा, ‘अब मैं कमांडो ट्रेनिंग पर भी जाऊंगा,’ तो गुस्सा हो गई. ‘क्या जरूरत है इतनी कठिन ट्रेनिंग पर जाने की, आप शांति से अपनी जौब करते रहो, अब और कहीं जाने की जरूरत नहीं.’

शुरुआत में सोमेश तो फिर भी बहुत स्ट्रौंग था पर मोहित अकसर उदास हो जाता था. उस की स्थिति डावांडोल होने लगी थी. एक दिन कहता, ‘घर जाना है’ तो दूसरे ही दिन, ‘यहीं रहना है,’ का राग अलापता. सोमेश उसे समझाबुझा कर मना ही लेता. फिर तो हम तीनों की बहुत अच्छी जमने लगी थी. मोहित हमारा जूनियर था, मगर मौका पा हमारे रूम में झांक ही जाता, ‘सर, कुछ लाना तो नहीं, मैं कैंटीन जा रहा हूं?’

एक दिन आ कर बोला, ‘सर, आ की राखी आ गई?’

‘नहीं, अभी तो बहुत दिन हैं राखी आने के, आ जाएगी, क्यों परेशान हो?’

जानें आगे की कहानी अगले भाग में…

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