story in hindi

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एकसाथ 3 दिन की छुट्टी देखते हुए पापा ने मसूरी घूमने का प्रोग्राम जब राहुल को बताया तो वह फूला न समाया. पहाड़ों की रानी मसूरी में चारों तरफ ऊंचेऊंचे पहाड़, उन पर बने छोटेछोटे घर, चारों ओर फैली हरियाली की कल्पना से ही उस का मन रोमांचित हो उठा.
राहुल की बहन कमला भी पापा द्वारा बनाए गए प्रोग्राम से बहुत खुश थी. पापा की हिदायत थी कि वे इन 3 दिन का भरपूर इस्तेमाल कर ऐजौंय करेंगे. एक मिनट भी बेकार न जाने देंगे, जितनी ज्यादा जगह घूम सकेंगे, घूमेंगे.
निश्चित समय पर तैयार हो कर वे नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पहुंच गए. सुबह पौने 7 बजे शताब्दी ऐक्सप्रैस में बैठे तो राहुल काफी रोमांचित महसूस कर रहा था, उस ने स्मार्टफोन उठाया और साथ की सीट पर बैठी कमला के साथ सैल्फी क्लिक की.
तभी पापा ने बताया कि वे रास्ते में हरिद्वार में उतरेंगे और वहां घूमते हुए रात को देहरादून पहुंच जाएंगे. फिर वहां रात में औफिस के गैस्ट हाउस में रुकेंगे और सुबह मसूरी के लिए रवाना होंगे.
यह सुन कर राहुल मायूस हो गया. हरिद्वार का नाम सुनते ही जैसे उसे सांप सूंघ गया. उसे लग रहा था सारा ट्रिप अंधविश्वास की भेंट चढ़ जाएगा. यह सुनते ही वह कमला से बोला, ‘‘शिट् यार, लगता है हम घूमने नहीं तीर्थयात्रा करने जा रहे हैं.’’
‘‘हां, पापा आप भी न….’’ कमला ने कुछ कहना चाहा लेकिन कुछ सोच कर रुक गई.
लगभग 12 बजे हरिद्वार पहुंच कर उन्होंने टैक्सी ली, जो उन्हें 2-3 जगह घुमाती हुई शाम को गंगा घाट उतारती और फिर वहां से देहरादून उन के गैस्ट हाउस छोड़ देती.
राहुल ट्रिप के मजे में खलल से आहत चुपचाप चला जा रहा था. शाम को हरिद्वार में गंगा घाट पर घूमते हुए प्राकृतिक आनंद आया, लेकिन गंगा के घाट असल में उसे लूटखसोट के अड्डे ज्यादा लगे. जगहजगह धर्म व गंगा के प्रति श्रद्धा के नाम पर पैसा ऐंठा जा रहा था. उसे तब और अचंभा हुआ जब निशुल्क जूतेचप्पल रखने का बोर्ड लगाए उस दुकानदार ने उन से जूते रखने के 100 रुपए ऐंठ लिए. इस सब से उस के मन का रोमांच काफूर हो गया. फिर भी वह चुपचाप चला जा रहा था.
रात को वे टैक्सी से देहरादून पहुंचे और गैस्टहाउस में ठहरे. पापा ने गैस्टहाउस के रसोइए के जरिए मसूरी के लिए टैक्सी बुक करवा ली. टैक्सी सुबह 8 बजे आनी थी. अत: वे जल्दी खाना खा कर सो गए ताकि सुबह समय से उठ कर तैयार हो पाएं.
वे सफर के कारण थके हुए थे, सो जल्दी ही गहरी नींद में सो गए और सुबह गैस्टहाउस के रसोइए के जगाने पर ही जगे. तैयार हो कर अभी वे खाना खा ही रहे थे कि टैक्सी आ गई. राहुल अब भी चुप था. उसे यात्रा में कुछ रोमांच नजर नहीं आ रहा था.
टैक्सी में बैठते ही पापा ने स्वभावानुसार ड्राइवर को हिदायत दी, ‘‘भई, हमें कम समय में ज्यादा जगह घूमना है इसलिए भले ही दोचार सौ रुपए फालतू ले लेना, लेकिन देहरादून में भी हर जगह घुमाते हुए ले चलना.’’
ज्यादा पैसे मिलने की बात सुन ड्राइवर खुश हुआ और बोला, ‘‘सर, उत्तराखंड में तो सारा का सारा प्राकृतिक सौंदर्य भरा पड़ा है, आप जहां कहें मैं वहां घुमा दूं, लेकिन आप को दोपहर तक मसूरी पहुंचना है इसलिए एकाध जगह ही घुमा सकता हूं. आप ही बताइए कहां जाना चाहेंगे?’’
पापा ने मम्मी से सलाह की और बोले, ‘‘ऐसा करो, टपकेश्वर मंदिर ले चलो. फिर वहां से साईंबाबा मंदिर होते हुए मसूरी कूच कर लेना.’’
‘‘क्या पापा, आप भी न. हम से भी पूछ लेते, सिर्फ मम्मी से सलाह कर ली… और हम क्या तीर्थयात्रा पर हैं, जो मंदिर घुमाएंगे,’’ कमला बोली.
तभी नाराज होता हुआ राहुल बोल पड़ा, ‘‘क्या करते हैं आप पापा, सारे ट्रिप की वाट लगा दी. बेकार हो गया हमारा आना. अभी ड्राइवर अंकल ने बताया कि उत्तराखंड प्राकृतिक सौंदर्य से भरा पड़ा है और एक आप हैं कि देखने को सूझे तो सिर्फ मंदिर, जहां सिर्फ ठगे जाते हैं. आप की सोच दकियानूसी ही रहेगी.’’
पापा कुछ कहते इस से पहले ही ड्राइवर बोल पड़ा, ‘‘आप का बेटा ठीक कह रहा है सर, घूमनेफिरने आने वाले ज्यादातर लोग इसी तरह मंदिर आदि देख कर यात्रा की इतिश्री कर लेते हैं और असली यात्रा के रोमांच से वंचित रह जाते हैं. तिस पर अपनी सोच भी बच्चों पर थोपना सही नहीं. तभी तो आज की किशोर पीढ़ी उग्र स्वभाव की होती जा रही है. हमें इन की भावनाओं की कद्र करनी चाहिए.
‘‘यहां प्राकृतिक नजारों की कमी नहीं. आप कहें तो आप को ऐसी जगह ले चलता हूं जहां के प्राकृतिक नजारे देख आप रोमांचित हुए बिना नहीं रहेंगे. इस समय हम देहरादून के सैंटर में हैं. यहां से महज 8 किलोमीटर दूर अनार वाला गांव के पास स्थित एक पर्यटन स्थल है, ‘गुच्चूपानी,’ जिसे रौबर्स केव यानी डाकुओं की गुफा भी कहा जाता है.
‘‘गुच्चूपानी एक प्राकृतिक पिकनिक स्थल है जहां प्रकृति का अनूठा अनुपम सौंदर्य बिखरा पड़ा है. दोनों ओर ऊंचीऊंची पहाडि़यों के मध्य गुफानुमा स्थल में बीचोंबीच बहता पानी यहां के सौंदर्य में चारचांद लगा देता है. दोनों पहाडि़यां जो मिलती नहीं, पर गुफा का रूप लेती प्रतीत होती हैं.
‘‘यहां पहुंच कर आत्मिक शांति मिलती है. प्रकृति की गोद में बसे गुच्चूपानी के लिए यह कहना गलत न होगा कि यह प्रेम, शांति और सौंदर्य का अद्भुत प्राकृतिक तोहफा है.
‘‘गुच्चूपानी यानी रौबर्स केव लगभग 600 मीटर लंबी है. इस के मध्य में पहुंच कर तब अद्भुत नजारे का दीदार होता है जब 10 मीटर ऊंचाई से गिरते झरने नजर आते हैं. यह मनमोहक नजारा है. इस के मध्य भाग में किले की दीवार का ढांचा भी है जो अब क्षतविक्षत हो चुका है.’’
‘‘गुच्चूपानी…’’ नाम से ही अचंभित हो राहुल एकदम रोमांचित होता हुआ बोला, ‘‘यह गुच्चूपानी क्या नाम हुआ?’’
तभी साथ बैठी कमला भी बोल पड़ी, ‘‘और ड्राइवर अंकल, इस का नाम रौबर्स केव क्यों पड़ा?’’
मुसकराते हुए ड्राइवर ने बताया, ‘‘दरअसल, गुच्चूपानी इस का लोकल नाम है. अंगरेजों के जमाने में इसे ‘डकैतों की गुफा’ के नाम से जाना जाता था. ऐसा माना जाता है कि उस समय डाकू डाका डालने के बाद छिपने के लिए इसी गुफा का इस्तेमाल करते थे. सो, अंगरेजों ने इस का नाम रौबर्स केव रख दिया.’’
‘‘तो क्या अब भी वहां डाकू रहते हैं. वहां जाने में कोई खतरा तो नहीं है?’’ कमला ने पूछा.
‘‘नहींनहीं, अब वहां ऐसी कोई बात नहीं बल्कि इसे पर्यटन स्थल के रूप में विकसित कर दिया गया है. अब इस का रखरखाव उत्तराखंड सरकार द्वारा किया जाता है,’’ ड्राइवर ने बताया, फिर वह हंसते हुए बोला, ‘‘हां, एक डर है, पैरों के नीचे बहती नदी का पानी. दरअसल, पिछले साल जनवरी में भारी बरसात के कारण अचानक इस नदी का जलस्तर बढ़ गया था, जिस से यहां अफरातफरी मच गई थी. यहां कई पर्यटक फंस गए थे, जिस से काफी शोरशराबा मचा.
‘‘फिर मौके पर पहुंची एनडीआरएफ की टीमों ने पर्यटकों को सकुशल बाहर निकाला था. इस में महिलाएं और बच्चे भी थे. इसलिए जरा संभल कर जाइएगा.’’
‘‘अंकल आप भी न, डराइए मत, बस पहुंचाइए, ऐसी अद्भुत प्राकृतिक जगह पर,’’ राहुल रोमांचित होता हुआ बोला.
‘‘पहुंचाइए नहीं, पहुंच गए बेटा,’’ कहते हुए ड्राइवर ने टैक्सी रोकी और इशारा कर बताया कि उस ओर जाएं. जाने से पहले अपने जूते उतार लें व यहां से किराए पर चप्पलें ले लें.’’
राहुल और कमला भागते हुए आगे बढ़े और वहां बैठे चप्पल वाले से किराए की चप्पलें लीं. इन चप्पलों को पहन कर वे पहुंच गए गुच्चूपानी के गेट पर. यहां 25 रुपए प्रति व्यक्ति टिकट था. पापा ने सब के टिकट लिए और सब ने पानी में जाने के लिए अपनीअपनी पैंट फोल्ड की व ऐंट्री ली.
चारों ओर फैले ऊंचे पहाड़ों के बीच बसा यह क्षेत्र अद्भुत सौंदर्य से भरा था. पानी में घुसते ही दिखने वाला वह 2 पहाडि़यों के बीच का गुफानुमा रास्ता और मध्य में बहती नदी के बीच चलना, जैसा ड्राइवर अंकल ने बताया था, उस से भी अधिक रोमांचित करने वाला था.
मम्मीपापा भी यह नजारा देख स्तब्ध रह गए थे. पहाड़ों के बीच बहते पानी में चलना उन्हें किसी हौरर फिल्म के रौंगटे खड़े कर देने वाले दृश्य की भांति लगा, जैसे अभी वहां छिपे डाकू निकलेंगे और उन्हें लूट लेंगे.
अत्यंत रोमांचक इस मंजर ने उन्हें तब और रोमांचित कर दिया जब बिलकुल मध्य में पहुंचने पर ऊपर से गिरते झरने ने उन का स्वागत किया. राहुल तो पानी में ऐसे खेल रहा था मानो उसे कोई खजाना मिल गया हो. सामने खड़ी किले की क्षतविक्षत दीवार के अवशेष उन्हें काफी भा रहे थे. इस मनोरम दृश्य को देख किस का मन अभिभूत नहीं होगा.
इस पूरे नजारे की उन्होंने कई सैल्फी लीं. एकदूसरे के फोटो खींचे और वीडियो क्लिप भी बनाई. पानी में उठखेलियां करते जब वे बाहर आ रहे थे तो पापा भी कह उठे, ‘‘अमेजिंग राहुल, वाकई तुम ने हमारी आंखें खोल दीं. हम तो सिर्फ मंदिर आदि देख कर ही लौट जाते. प्रकृति का असली आनंद व यात्रा की पूर्णता तो वाकई ऐसे नजारे देखने में है.’’
फिर बाहर आ कर उन्होंने ड्राइवर का भी धन्यवाद किया ऐसी अनूठी जगह का दीदार करवाने के लिए. साथ ही हिदायत दी कि मसूरी में भी धार्मिक स्थलों पर आस्था के नाम पर लूट का शिकार होने के बजाय ऐसे स्थान देखेंगे. इस पर जब राहुल ने ठहाका लगाया तो पापा बोले, ‘‘बेटा, हमें मसूरी के ऐसे अद्भुत स्थल ही देखने चाहिए. जल्दी चलो, कहीं समय की कमी के कारण कोई नजारा छूट न जाए.’’
अब टैक्सी मसूरी की ओर रवाना हो गई थी. टैक्सी की पिछली सीट पर बैठे राहुल और कमला रहरह कर गुच्चूपानी में ली गईं सैल्फी, फोटोज और वीडियोज में वहां के अद्भुत दृश्य देख कर रोमांचित हो रहे थे, इस आशा के साथ कि मसूरी यानी पहाड़ों की रानी में भी ऐसा ही रोमांच मिलेगा.
संजू की दादी का मन सुबह से ही उखड़ा हुआ था. कारण यह था कि जब वे मंदिर से पूजा कर के लौट रही थीं तो चौराहे पर उन का पैर एक बुझे हुए दीए पर पड़ गया था. पास ही फूल, चावल, काली दाल, काले तिल तथा सिंदूर बिखरा हुआ था. वे डर गईं और अपशकुन मनाती हुई अपने घर आ पहुंचीं .
घर पर संजू अकेला बैठा हुआ पढ़ रहा था. उस की मां को बाहर काम था. वे घर से जा चुकी थीं. पिताजी औफिस के काम से शहर से बाहर चले गए थे. उन्हें 2 दिन बाद लौटना था.
दादी के बड़बड़ाने से संजू चुप न रह सका. वह अपनी दादी से पूछ बैठा, ‘‘दादी, क्या बात हुई? क्यों सुबहसुबह परेशान हो रही हो?’’
अंधविश्वासी दादी ने सोचा, ‘संजू मुझे टोक रहा है.’ इसलिए वे उसे डांटती हुई फौरन बोलीं, ‘‘संजू, तू भी कैसी बातें करता है. बड़ा अपशकुन हो गया. किसी ने चौराहे पर टोनाटोटका कर रखा था. उसी में मेरा पैर पड़ गया. उस वक्त से मेरा जी बहुत घबरा रहा है.’’
संजू बोला, ‘‘दादी, अगर ऐसा है तो मैं डाक्टर को बुला लाता हूं.’’ पर दादी अकड़ गईं और बोलीं, ‘‘तेरा भेजा तो नहीं फिर गया कहीं. ऐसे टोनेटोटके में डाक्टर को बुलाया जाता है या ओझा को. रहने दे, मैं अपनेआप संभाल लूंगी. वैसे भी आज सारा दिन बुरा निकलेगा.’’
संजू ने उन की बात पर कोई ध्यान न दिया और अपना होमवर्क करने लगा. संजू स्कूल चला गया तो दादी घर पर अकेली रह गईं. पर दादी का मन बेचैन था. उन्हें लगा कि कहीं किसी के साथ कोई अप्रिय घटना न घट जाए, क्योंकि जब से चौराहे में टोनेटोटके पर उन का पैर पड़ा था, वे अपशकुन की आशंका से कांप रही थीं. तभी कुरियर वाला आया और उन से हस्ताक्षर करवा उन्हें एक लिफाफा थमा कर चला गया. अब तो उन का दिल ही बैठ गया. लिफाफे में एक पत्र था जो अंगरेजी में था और अंगरेजी वे जानती नहीं थीं. उन्हें लगा जरूर इस में कोई बुरी खबर होगी.
इसी डर से उन्होंने वह पत्र किसी से नहीं पढ़वाया. दिन भर परेशान रहीं कि कहीं इस में कोई बुरी खबर न हो. शाम को जब संजू और उस की मां घर लौटे, तब दादी कांपते हाथों से संजू की मां जानकी को पत्र देती हुई बोलीं, ‘‘बहू, जरूर कोई बुरी खबर है. अपशकुन तो सुबह ही हो गया था. अब पढ़ो, यह पत्र कहां से आया है और इस में क्या लिखा है? जरूर कोई संकट आने वाला है. हाय, अब क्या होगा?’’
जानकी ने तार खोल कर पढ़ा लिखा था, ‘‘बधाई, संजय ने छात्रवृत्ति परीक्षा उत्तीर्ण कर ली है.’’
पढ़ कर जानकी खिलखिला उठीं और अपनी सास से बोलीं, ‘‘मांजी, आप बेकार घबरा रही थीं, खबर बुरी नहीं बल्कि अच्छी है. हमारे संजू को छात्रवृत्ति मिलेगी. उस ने जो परीक्षा दी थी, उत्तीर्ण कर ली.’’ तब दादी का चेहरा देखने लायक था. किंतु दादी अंधविश्वास पर टिकी रहीं. वे रोज मंदिर जाया करती थीं. एक रोज सुबहसुबह दादी मंदिर गईं. थाली में नारियल, केला और लड्डू ले गईं. थाली मूर्ति के सामने ही रख दी और आंखें बंद कर के मन ही मन जाप करने लगीं. इसी बीच वहीं पेड़ पर बैठा एक बंदर पेड़ से उतरा और चुपके से केला व लड्डू ले कर पेड़ पर चढ़ गया.
दादी ने जब आंखें खोलीं और थाली में से केला व लड्डू गायब पाया तो खुश हो कर अपनेआप से बोलीं, ‘‘प्रभु, चमत्कार हो गया. आज आप ने स्वयं ही भोजन ग्रहण कर लिया.’’ वे खुशीखुशी मंदिर से घर लौट आईं. घर पर जब उन्हें सब ने खुश देखा तो संजू कहने लगा, ‘‘दादी, आज तो लगता है कोई वरदान मिल गया?’’
दादी प्रसन्न थी, बोलीं, ‘‘और नहीं तो क्या?’’
फिर दादी ने सारा किस्सा कह सुनाया. संजू खिलखिला कर हंस पड़ा तथा यह कहता हुआ बाहर दौड़ गया, ‘‘इस महल्ले में चोरउचक्कों की भी कमी नहीं है. फिर पिछले कुछ समय से यहां काफी बंदर आए हुए हैं लगता है प्रसाद कोई बंदर ही ले गया होगा.’’ सुन कर दादी ने मुंह बिचकाया. फिर सोचने लगीं कि आज शुभ दिन है. आज मेरी मनौती पूरी हुई. मैं चाहती थी कि मेरा बुढ़ापा सुखचैन से बीते. रोज की तरह उस शाम को दादी टहलने निकल गईं. वे पार्क में जाने के लिए सड़क के किनारे चली जा रही थीं. साथ ही सुबह हुए चमत्कार के बारे में सोच रही थीं.
तभी एक किशोर स्कूटी सीखता हुआ आया और दादी को धकियाता हुआ आगे बढ़ गया. दादी को पता ही नहीं चला, वे लड़खड़ा कर हाथों के बल सड़क पर जा गिरीं. हड़बड़ाहट में उठ तो गईं, पर घर आतेआते उन के दाएं हाथ में सूजन आ गई. वे दर्द के मारे कराहने लगीं. उन्हें फौरन डाक्टर को दिखाया गया. एक्सरे करने पर पता चला कि कलाई की हड्डी चटक गई है
एक माह के लिए प्लास्टर बंध गया. दादी ‘हाय मर गई, हाय मर गई’ की दुहाई देती रहीं.संजू चुटकी लेता हुआ दादी से बोला, ‘‘दादी, यही है वह चमत्कार, जिस के लिए आप सुबह से ही खुश हो रही थीं. तुम्हारी दोनों बातें गलत निकलीं. इसलिए भविष्य में ऐसे अंधविश्वासों के चक्कर में मत पड़ना.’’ दादी रोंआसी हो कर बोलीं, ‘‘हां बेटा, तुम ठीक कहते हो. हम ने तो सारी जिंदगी ही ऐसे भ्रमों में बिता दी पर मैं अब कभी शेष जीवन में इन खोखले चमत्कारों के जाल में नहीं पडूंगी.’’
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मोनू की भाभी का पूरा बदन जैसे कच्चे दूध में केसर मिला कर बनाया गया था. चेहरा मानो ताजा मक्खन में हलका सा गुलाबी रंग डाल कर तैयार किया गया था. उन की आवाज भी मानो चाशनी में तर रहती थी.वे बिहार के एक बड़े जमींदार की बेटी थीं. उन की शादी भैया के फौज में चुने जाने से पहले ही हो गई थी.भैया के नौकरी पर जाने के बाद अम्मां और बस 2 जने ही परिवार में रह गए थे.
कभीकभी शादीशुदा बड़ी बहन भी आ जाती. भाभी के आ जाने से अब 3 जने हो गए थे. मोनू के पिताजी की मौत उस के पैदा होने के पहले ही एक कार हादसे में हो गई थी. उस के परिवार की गिनती इलाके के बड़े जमींदारों में होती थी. कोठिया के कुंवर साहब का नाम दूरदूर तक मशहूर था.पहले कुछ दिन मोनू भाभी से डरता था. तब वह छोटा भी था. डरता तो अब भी है, लेकिन अब डर इस बात का रहता है कि कहीं नाराज हो कर वे उस से बोलना ही बंद न कर दें.एक बार गरमी का मौसम था.
बगीचे में आम लदे हुए थे. भाभी ने कहा, ‘‘मोनू चलो बाग देख आएं. ?ोला ले चलो, आम भी ले आएंगे.’’मोनू ने कहा, ‘‘भाभी, थोड़ा रुको. मैं बगीचे से सभी को भगा दूं, तब आप को ले चलूंगा.’’थोड़ी देर बाद मोनू आया, तो बोला, ‘‘चलिए भाभी.’’भाभी ने पूछा, ‘‘कहां गए थे?’’मोनू बोला, ‘‘मैं सभी को बाग से भगा कर आया हूं.’’‘‘क्यों भगा दिया?’’ भाभी ने पूछा.‘‘भाभी,
आप नहीं जानतीं, किसी की नजर लग जाती तो…’’भाभी हंसने लगीं. अम्मां भी वहां आ गईं और पूछने लगीं, ‘‘क्या हुआ बहू?’’‘‘अम्मां, मोनू बगीचे में जा कर सभी को भगा आया है. कहता है कि आप नहीं जानतीं, किसी की नजर लग जाएगी.
’’यह सुन कर अम्मां भी हंसने लगीं और बोलीं, ‘‘तेरे पीछे पागल है बहू. इस की चले, तो किसी को देखने ही न दे.’’बगीचे में पहुंचे अभी थोड़ी ही देर हुई थी. मोनू आमों से ?ोला भर चुका था, तभी आंधी आ गई. मोनू बोला, ‘‘भाभी, पेड़ों के नीचे से इधर आ जाओ.’’भाभी बोलीं, ‘‘आंधी तो चली गई मोनू, शायद बवंडर था.’’मोनू की आंखें आंसुओं से भरी थीं.भाभी ने पूछा, ‘‘मिट्टी गिर गई है क्या आंख में?’’मोनू बोला, ‘‘आंखों में कुछ नहीं पड़ा है भाभी.’’‘‘तब रो क्यों रहे हो?’’‘‘आप के ऊपर कितनी धूलमिट्टी पड़ गई है.’’भाभी हंसने लगीं, ‘‘अभी चल कर नहा लूंगी.’’अम्मां पूछने लगीं, ‘‘चोट तो नहीं लगी बहू?’’भाभी बोलीं, ‘‘मां, मोनू रो रहा था. कहता है कि तुम्हारे ऊपर धूलमिट्टी पड़ गई है.’’
ऐसा सुन कर अम्मां भी हंसने लगीं.मई का महीना था. गरमी अपने शबाब पर थी. मोनू कहने लगा, ‘‘20 मई को मेरा रिजल्ट आएगा भाभी.’’भाभी बोलीं, ‘‘मोनू, अगर तू फर्स्ट डिविजन लाया, तो मैं तु?ो इनाम दूंगी.’’‘‘क्या दोगी भाभी?’’‘‘अभी नहीं बताऊंगी, लेकिन बहुत मजेदार तोहफा रहेगा.’’‘‘रुपयापैसा दोगी भाभी?’’ मोनू ने खुश होते हुए पूछा.
‘‘हम लोग कोई जुआरी तो हैं नहीं और न ही बनियामहाजन हैं.’’‘‘तब क्या दोगी भाभी?’’ उस ने चिरौरी की, ‘‘बता दो भाभी.’’मोनू के जिद करने पर भाभी बोलीं, ‘‘मैं तु?ो अपने पास सुलाऊंगी.’’‘‘सोता तो मैं आप के पास रोज ही हूं. जब पढ़ते हुए मु?ो नींद आ जाती है, तो आप के पास ही तो मैं सो जाता हूं. फिर आप के जगाने पर ही मैं अपने बिस्तर पर जाता हूं.’’भाभी हंसने लगीं, ‘‘अरे, वैसा नहीं, जैसा तेरे भैया के साथ सोती हूं, वैसा…’’मोनू की सम?ा में ज्यादा कुछ तो नहीं आया, लेकिन वह 20 मई का बेसब्री से इंतजार करने लग गया.20 मई आई, तो सुबहसवेरे मोनू को दहीभात खिला कर अम्मां ने शहर भेज दिया. वह अपने किसी दोस्त की मोटरसाइकिल से रिजल्ट देखने चला गया था.
भाभी को तो चैन ही नहीं पड़ रहा था. दोपहर के 12 बजे के बाद से ही भाभी 4-5 जगह फोन कर के मोनू का रोल नंबर लिखवा चुकी थीं. 3 बजे किसी ने फोन पर बताया कि मोनू फर्स्ट डिवीजन में पास हो गया है. उन की आंखों से खुशी के आंसू निकल आए.मोनू रात के 9 बजे घर लौटा, तो हाथ में अखबार लिए भाभी के पास जा रहा था. अम्मां बोलीं, ‘‘पहले खाना खा ले, तब भाभी के पास जाना. पड़ोस में रात का कीर्तन शुरू हो गया होगा. मैं 2 घंटे बाद ही लौटूंगी.
वैसे, तेरा रिजल्ट तो बहू को पता है कि तू पास हो गया है. हो गया है न…?’’मोनू जल्दीजल्दी खाना खाने लगा, तो अम्मां बोलीं, ‘‘बेटा, दरवाजा बंद कर लेना. मैं जा रही हूं.’’आधा खाना खा कर मोनू ने हाथमुंह धोए और अखबार उठा कर भाभी के पास पहुंच गया. भाभी सो रही थीं. गरमी होने की वजह से उन्होंने ब्लाउज भी नहीं पहना हुआ था. आंचल भी बिस्तर पर गिर गया था.
मोनू उन्हें इस हालत में ठगा सा खड़ा देख रहा था. वह सोच ही रहा था कि वह देखता रहे या लौट जाए, तभी भाभी को शायद आहट लगी, उन्होंने आंखें खोलीं और पूछा, ‘‘अभी तक कहां था मोनू?’’‘‘मोटरसाइकिल वाले दोस्त ने बहुत देर कर दी भाभी.’’‘‘खाना खा लिया क्या तुम ने?’’‘‘हां भाभी. अम्मां बोल कर गई हैं कि 2 घंटे बाद लौटेंगी.’’भाभी ने कहा, ‘‘तुम्हारा रिजल्ट तो मु?ो दोपहर में ही पता चल गया था. अब जा कर सो जाओ. मु?ो नींद आ रही है.’’
‘‘मेरा इनाम भाभी?’’यह सुन कर भाभी हंसने लगीं, ‘‘अच्छा जा कर दरवाजा लगा आ.’’‘‘वह तो लगा दिया है भाभी.’’‘‘तु?ो गरमी नहीं लगती मोनू? अपने सब कपड़े निकाल दे.’’‘‘कच्छी रहने दूं भाभी?’’‘‘नहीं, सब निकाल दे. इतनी तो उमस है अभी, फिर पहन लेना.’’‘‘ठीक है.’’‘‘अब आ कर इधर लेट जा.’’16 साल का गोराचिट्टा सेहतमंद किशोर मोनू बगल में लेटा था. भाभी ने उस का चेहरा अपने हाथों में ले लिया और होंठों को चूमने लगीं, फिर उसे उठा कर अपने ऊपर ही लिटा लिया और बोलीं,
‘‘जैसा मैं ने किया है, वैसा ही तू भी कर मोनू.’’मोनू ने डरतेडरते उन के गालों को चूमा, फिर होंठों को मुंह में ले कर चूसने लगा. थोड़ी ही देर में वह अपनी मंजिल तक पहुंच गया.अलग होने के बाद भाभी देर तक मोनू को दुलारती रहीं. वे बोलीं, ‘‘अब कपडे़ पहन लो मोनू और जा कर सो जाओ.’’भैया की शादी हुए 7 साल हो रहे थे, लेकिन अभी तक कोई बच्चा नहीं था. अम्मां अकसर कहतीं, ‘‘इस बार दोनों जा कर अपनी जांच करा लो.’’भाभी हंसने लगतीं, ‘‘मु?ो क्या तकलीफ है अम्मां? उन से कह दो, वे अपनी जांच करा लें.’’अम्मां कहतीं कि तु?ो कोई फिक्र नहीं है बहू,
तो भाभी बहुत दुखी हो जातीं. वे बोलतीं, ‘‘बताओ, मैं क्या करूं अम्मां?’’20 मई के बाद से ही भाभी के चेहरे की रौनक दोगुनी हो गई थी. वे कहतीं, ‘‘मोनू, अब मैं तु?ो पढ़ा नहीं पाऊंगी. तेरे लिए कोई मास्टर लगा दूंगी. अब मेरे पास सोने भी न आया करो. यहां अब तुम्हारा लड़का सोएगा.’’मोनू पूछता, ‘‘कहां है मेरा लड़का भाभी?’’ तो वे हंसने लगतीं और कहतीं,
‘‘जब आएगा, तब देख लेना.’’एक शाम को भैया आ गए. वे खुश होते हुए भाभी से बोले, ‘‘अब मोनू को मोटरसाइकिल दिला देते हैं, वह तुम्हें भी घुमा लाया करेगा.’’भाभी नाराज होने लगीं, ‘‘अभी रहने दो. अभी मोनू को बाइक दे कर आप उसे मौत के मुंह में ढकेल देंगे. जब इंटर पास करेगा, तब दिला देना मोटरसाइकिल.’’भैया ने पूछा, ‘‘तुम मोनू को पढ़ाती कैसे थीं? साइंस तो तुम ने पढ़ी ही नहीं है.’’भाभी बोलीं, ‘‘उस की किताबें पढ़ लेती थी. थोड़े नोट्स भी मिल गए थे.’’भैया हंसने लगे, ‘‘मैं तो सम?ाता था कि यह साल भी उस का बरबाद ही होगा, लेकिन तुम ने तो कमाल ही कर दिया.’’वे बोलीं,
‘‘अब नहीं पढ़ा पाऊंगी, कोई मास्टर लगा दूंगी.’’भैया को वापस गए 3 महीने से ज्यादा हो रहा था. मोनू कभी हाथ जोड़ कर चिरौरी कर के, पैर पकड़ कर या भूख हड़ताल कर के 3-4 बार ऐसा ही इनाम ले चुका था. एक दिन आंगन में लगे हैंडपंप के पास वे उलटी कर रही थीं. मोनू हैरान सा खड़ा उन्हें देख रहा था. पूछने लगा, ‘‘उलटी की दवा ले आऊं भाभी?’’वे हंसते हुए बोलीं, ‘‘सब शरारत तो तुम्हारी ही है मोनू. यह इनाम भी तो तुम ने ही दिया है.’’अम्मां भी वहां आ गईं. बहू को उलटी करते देखा, तो अनुभवी आंखें खुशी से चमक उठीं.अम्मां ने भैया को भी सूचना दे देने को कहा,
तो भाभी मुश्किल से ही तैयार हुई थीं.अम्मां ने कहा, ‘‘बहू, अब कामधाम रहने दो. कोई तकलीफ हो, तो मोनू को भेज कर दवा मंगा लेना.’’मोनू की सम?ा में यह बदलाव नहीं आ रहा था. भाभी से पूछा, तो वे बोलीं, ‘‘कुछ दिन बाद तुम खुद जान जाओगे.’’कसबे की डाक्टरनी भी आ कर बता गईं, ‘‘अम्मां, अब बहू को दिन में 4-5 बार हलका भोजन दिया करो. फल तो जितना मन हो खाए, दूधदही भी रोज देती रहना. कोई तकलीफ हो, तो मु?ो घर पर ही बुला लेना. बहू कोई दवा अपनेआप न खाए.’’एक दिन गांव का ही एक आदमी नगाड़ा लिए बधाई बजाने आ गया. तमाम औरतेंबच्चे उसे घेरे खड़े थे.मोनू ने पूछा, ‘‘भाभी, यह क्यों बजा रहा है?’’भाभी ने कहा, ‘‘शायद, अम्मां ने बुलाया होगा.’’‘‘क्यों?’’ मोनू ने पूछा.‘‘अरे, तुम्हारे लड़के का स्वागत नहीं करेंगी…’’ भाभी ने हंसते हुए बताया.
‘‘किरण, क्या तुम मु?ा से नाराज हो?’’
‘‘नहीं तो.’’
‘‘तो फिर तुम ने मु?ा से अचानक बोलना क्यों बंद कर दिया?’’
‘‘यों ही.’’
‘‘मु?ा से कोई गलती हो गई हो, तो बताओ… मैं माफी मांग लूंगा.’’
‘‘ऐसा कुछ नहीं है सुदीप. अब मैं सयानी हो गई हूं न, इसलिए लोगों को मु?ा पर शक होने लगा है कि कहीं मैं गलत रास्ता न पकड़ लूं,’’ किरण ने उदास मन से कहा.
‘‘जब से तुम ने मु?ो अपने से अलग किया है, तब से मेरा मन बेचैन रहने लगा है.’’
सुदीप की बातें सुन कर किरण बोली, ‘‘अभी तक हम दोनों में लड़कपन था, बढ़ती उम्र में जिम्मेदारियां भी बढ़ जाती हैं. दूसरों के कहने पर यह सब सम?ा में आया.’’
‘‘तुम ने कभी मेरे बारे में सोचा है कि मैं कितना बेचैन रहता हूं?’’
‘‘घर का काम निबटा कर जब मैं अकेले में बैठती हूं, तो दूसरे दोस्तों की यादों के साथसाथ तुम्हारी भी याद आती है. हम दोनों बचपन के साथी हैं. अब बड़े हो कर भी लगता है कि हम एकदूसरे के हमजोली बने रहेंगे.’’
‘‘तो दूरियां मत बनाए रखो किरण,’’ सुदीप ने कहा.
यह सुन कर किरण चुप हो गई.
जब सुदीप ने अपने दिल की बात कही, तो किरण का खिंचाव उस की ओर ज्यादा बढ़ने लगा.
दोनों अपने शुरुआती प्यार को दुनिया की नजरों से छिपाने की कोशिश करने लगे. लेकिन जब दोनों के मिलने की खबर किरण की मां रामदुलारी को लगी, तो उस ने चेतावनी देते हुए कहा कि वह अपनी हद में ही रहे.
उसी दिन से सुदीप का किरण के घर आनाजाना बंद हो गया.
लेकिन मौका पा कर सुदीप किरण के घर पहुंच गया. किरण ने बहुत कहा कि वह यहां से चला जाए, लेकिन सुदीप नहीं माना. उस ने कहा, ‘‘मैं ने तुम से दिल लगाया, तुम डरती क्यों हो? मैं तुम से शादी करूंगा, मु?ा पर भरोसा करो.’’
‘‘सुदीप, प्यार तो मैं भी तुम से करती हूं, लेकिन… जैसे अमीर और गरीब का रिश्ता नहीं होता, इसी तरह से ब्राह्मण और नीची जाति का रिश्ता भी मुमकिन नहीं, इसलिए हम दोनों दूर ही रहें तो अच्छा होगा.’’
सुदीप पर इस बात का कोई असर नहीं पड़ा.
वह आगे बढ़ा और किरण को बांहों में भर कर चूमने लगा. पहले तो किरण को अच्छा लगा, लेकिन जब सुदीप हद से ज्यादा बढ़ने लगा, तो वह छिटक कर अलग हो गई.
‘‘बस सुदीप, बस. ऐसी हरकतें जब बढ़ती हैं, तो अनर्थ होते देर नहीं लगती. अब तुम यहां से चले जाओ,’’ नाखुश होते हुए किरण बोली.
‘‘इस में बुरा मानने की क्या बात है किरण, प्यार में यही सब तो होता है.’’
‘‘होता होगा. तुम ने इतनी जल्दी कैसे सम?ा लिया कि मैं इस के लिए राजी हो जाऊंगी?’’
‘‘बस, एक बार मेरी प्यास बु?ा दो. मैं दोबारा नहीं कहूंगा. शादी से पहले ऐसा सबकुछ होता है.’’
‘‘नहीं सुदीप, कभी नहीं.’’
इस तरह सुदीप ने किरण से कई बार छेड़खानी की कोशिश की, पर कामयाबी नहीं मिली.
कुछ दिन बाद किरण के मातापिता दूसरे गांव में एक शादी में जातेजाते किरण को कह गए थे कि वह घर से बाहर नहीं निकलेगी और न ही किसी को घर में आने देगी.
उस दिन अकेली पा कर सुदीप चुपके से किरण के घर में घुसा और अंदर
से किवाड़ बंद कर किरण को बांहों में कस लिया.
अपने होंठ किरण के होंठों पर रख कर वह देर तक जबरदस्ती करता रहा, जिस से दोनों के जिस्म में सिहरन पैदा हो गई, दोनों मदहोश होने लगे.
किरण के पूरे बदन को धीरेधीरे सहलाते हुए सुदीप उस की साड़ी ढीली कर के तन से अलग करने की कोशिश करने लगा.
किरण का ध्यान टूटा, तो उस ने जोर से धक्का दे कर सुदीप को चारपाई से अलग किया और अपनी साड़ी ठीक करते हुए गरजी, ‘‘खबरदार, जो तुम ने मेरी इज्जत लूटने की कोशिश की. चले जाओ यहां से.’’
‘‘चला तो जाऊंगा, लेकिन याद रखना कि तुम ने आज मेरी इच्छा पूरी नहीं होने दी,’’ सुदीप गुस्से में चला गया.
उस के जाने के बाद किरण की आंखों से आंसू निकल आए.
मां के लौटने पर किरण ने सारी सचाई बता दी. रामदुलारी ने उसे चुप रहने को कहा.
किरण के पिता सुंदर लाल से रामदुलारी ने कहा, ‘‘लड़की सयानी हो गई है, कुछ तो फिक्र करो.’’
‘‘तुम इसे मामूली बात सम?ाती हो? आजकल लड़की निबटाने के लिए गांठ भरी न हो, तो कोई बात नहीं करेगा. भले ही उस लड़के वाले के घर में कुछ
न हो.’’
‘‘तो क्या यही सोच कर हाथ पर हाथ धर बैठे रहोगे?’’
‘‘भरोसा रखो. वह कोई गलत काम नहीं करेगी.’’
सुंदर लाल की दौड़धूप रंग लाई और एक जगह किरण का रिश्ता पक्का हो गया.
किरण की शादी की बात जब सुदीप के कानों में पहुंची, तो वह तड़प उठा.
एक रात किरण अपने 8 साला भाई के साथ मकान की छत पर सोई थी. उस के बदन पर महज एक साड़ी थी.
किरण और सुदीप के मकानों के बीच दूसरे पड़ोसी का मकान था, जिसे पार करता हुआ सुदीप उस की छत पर चला गया.
सुदीप किरण की बगल में जा कर लेट गया. किरण की नींद खुल गई. देखा कि वह सुदीप की बांहों में थी. पहले तो उस ने सपना सम?ा, पर कुछ देर में ही चेतना लौटी. वह सबकुछ सम?ा गई. उस ने सुदीप की बेजा हरकतों पर ललकारा.
‘‘चुप रहो किरण. शोर करोगी, तो सब को पता चल जाएगा. बदनामी तुम्हारी होगी. मैं तो कह दूंगा कि तुम ने रात में मु?ो मिलने के लिए बुलाया था,’’ कहते हुए सुदीप ने किरण का मुंह हथेली से बंद कर दिया.
इस के बाद सुदीप किरण के साथ जोरजबरदस्ती करता रहा और वह चुपचाप लेटी रही.
किरण की आंखें डबडबा गईं. उस ने कहा, ‘‘सुदीप, आज तुम ने मेरी सारी उम्मीदों को खाक में मिला दिया. आज तुम ने मेरे अरमानों पर गहरी चोट पहुंचाई है. मैं तुम से प्यार करती हूं, करती रहूंगी, लेकिन अब मेरी नजरों से दूर हो जाओ,’’ कह कर वह रोने लगी.
उसी समय पास में सोए किरण के छोटे भाई की नींद खुली.
‘मांमां’ का शोर करते हुए वह छत से नीचे चला गया और वहां का देखा हाल मां को सुनाया. सुंदर लाल भी जाग गया. दोनों चिल्लाते हुए सीढ़ी से छत की ओर भागे. उन की आवाज सुन कर सुदीप किरण को छोड़ कर भाग गया.
दोनों ने ऊपर पहुंच कर जो नजारा देखा, तो दोनों के रोंगटे खड़े हो गए. मां ने बेटी को संभाला. बाप छत पर से सुदीप को गालियां देता रहा.
दूसरे दिन पंचायत बैठाने के लिए किरण के पिता सुंदर लाल ने ग्राम प्रधान राजेंद्र प्रसाद से गुजारिश करते हुए पूरा मामला बतलाया और पूछा, ‘‘हम लोग पुलिस थाने में शिकायत दर्ज कराना चाहते हैं. आप हमारे साथ चलेंगे, तो पुलिस कार्यवाही करेगी, वरना हमें टाल दिया जाएगा.’’
‘‘सुंदर लाल, मैं थाने चलने के लिए तैयार हूं, लेकिन सोचो, क्या इस से तुम्हारी बेटी की गई इज्जत वापस लौट आएगी?’’
‘‘फिर हम क्या करें प्रधानजी?’’
‘‘तुम चाहो, तो मैं पंचायत बैठवा दूं. मुमकिन है, कोई रास्ता दिखाई पड़े.’’
‘‘आप जैसा ठीक सम?ों वैसा करें,’’ कहते हुए सुंदर लाल रोने लगा.
दूसरे दिन गांव की पंचायत बैठी.
गांव के कुछ लोग ब्राह्मणों के पक्ष में थे, तो कुछ दलितों के पक्ष में.
कुछ लोगों ने सुदीप को जेल भिजवाने की बात कही, तो कुछ ने सुदीप से किरण की शादी पर जोर डाला.
शादी की बात पर सुदीप के पिता बिफर पड़े, ‘‘कैसी बातें कहते हो?
कहीं हम ब्राह्मणों के यहां दलित
ब्याही जाएगी.’’
कुछ नौजवान शोर मचाने लगे, ‘जब तुम्हारे बेटे ने दलित से बलात्कार किया, तब तुम्हारा धर्म कहां था?’
‘‘ऐसा नहीं होगा. पहली बात तो यह कि सुदीप ने ऐसा किया ही नहीं. अगर गलती से किया होगा, तो धर्म नहीं बदल जाता,’’ सुदीप की मां बोली.
‘‘तो मुखियाजी, आप सुदीप को जेल भिजवा दें, वहीं फैसला होगा,’’ किरण की मां रामदुलारी ने कहा.
ग्राम प्रधान राजेंद्र प्रसाद ने पंचों की राय जानी, तो बोले, ‘पंचों की राय है कि सुदीप ने जब गलत काम किया है, तो अपनी लाज बचाने के लिए किरण से शादी कर ले, वरना जेल जाने के लिए तैयार रहे.’
यह सुन कर ब्राह्मण परिवार सन्न रह गया.
पंचायत ने किरण की इच्छा जानने की कोशिश की. किरण ने भरी पंचायत में कहा, ‘‘मेरी इज्जत सुदीप ने लूटी है. इस वजह से अब मु?ो उसी के पास अपनी जिंदगी महफूज नजर आती है.
‘‘गंदे बरताव की वजह से मैं सुदीप से शादी नहीं करना चाहती थी, लेकिन अब मैं मजबूर हूं, क्योंकि इस घटना को जानने के बाद अब मु?ा से कोई शादी नहीं करना चाहेगा.’’
सुदीप के पिता ने दुखी मन से कहा, ‘‘मेरी इच्छा तो किरण की शादी वहशी दरिंदे सुदीप के साथ करने की नहीं थी, फिर भी मैं किरण की शादी सुदीप से करने को तैयार हूं.’’
किरण व सुदीप के घरपरिवार में शादी पर रजामंदी हो जाने पर पंचायत ने भी यह गुनाहों का रिश्ता मान लिया
Story in hindi
निराशा से भरे कटु स्वर में वरुण ने कहा, ‘‘वह तो स्पष्ट है. चलो कोई बात नहीं. कुछ और पसंद कर लो.’’
निशा को वरुण की निराशा का एहसास हुआ था, पर मां के कानून से बंधी थी. सोच कर बोली, ‘‘कोई परफ्यूम ले लेती हूं. कपड़े तो बहुत हैं और फिर रोज कुछ न कुछ बन ही रहा है.’’
‘‘कौन सा लोगी?’’ वरुण ने कहा, ‘‘कल मैं ने टीवी पर एक नए परफ्यूम का विज्ञापन देखा था. नाम जोरदार था और जिन लड़कियों ने लगाया था उन के आसपास खड़े 6 से 60 वर्ष तक के जवान हवा में सूघंते हुए उड़ रहे थे.’’
‘‘सच?’’ निशा ने व्यग्ंयभरी हंसी से कहा, ‘‘बड़ा खतरनाक था तब तो. क्या नाम था?’’
‘‘अरब की लैला,’’ वरुण मुसकराया, ‘‘चलो देखते हैं. शायद मिल जाए.’’
एक बड़ी दुकान पर यह परफ्यूम मिल भी गया. पूरे 500 रुपए की शीशी थी. वरुण ने सोचा, कोई बात नहीं, 1,750 रुपए से तो कम की है. वरुण ने नमूने के तौर पर निशा की गरदन के थोड़ा नीचे एक फुहार डाली. बड़ी मतवाली सुगंध थी.
अंदर गहरी सांस खींचते हुए निशा ने कहा, ‘‘यहां नहीं, मजनुओं का जमघट लग जाएगा.’’
वरुण ने कटाक्ष किया, ‘‘मेरे सासससुर के सामने मत लगाना. तुम्हारे घर की छत जरा नीची है.’’
निशा ने कृत्रिम क्रोध से कहा, ‘‘जरा भी शर्म नहीं आती आप को. मांबाप का सम्मान करना चाहिए.’’
वरुण के दिल पर चोट लगी. अभी से इतना तीखा बोलती है तो आगे क्या होगा? एकाएक गंभीर हो गया और चुप भी. निशा ने महसूस किया पर उस की गलती क्या थी? यह बात भी मन में आई कि इस आदमी से अब तक 3-4 बार झगड़ा सा हो
चुका है. क्या जीवनभर ऐसे ही झगड़ता रहेगा? यों तो घर में भी मांबाप के बीच कुछ न कुछ तूतूमैंमैं होती रहती है, पर अपने जीवन में ऐसी कल्पना नहीं कर पा रही थी.
कुछ देर बाद वरुण ने ही मौन तोड़ा, ‘‘तुम गुफा में गई हो?’’
‘‘गुफा?’’ निशा ने आश्चर्य से उत्तर दिया, ‘‘नहीं, अभी तक तो नहीं गई. अजंता, एलोरा जातेजाते रह गए हम लोग. भारी वर्षा के कारण पुणे से ही लौट आए. अब आप के साथ चलूंगी.’’
वरुण ने गहरी सांस ली, ‘‘तुम्हारे सामान्य ज्ञान पर बड़ा तरस आता है. यह देखो, ऊपर इतना बड़बड़ा क्या लिखा है?’’
निशा ने सिर उठा कर देखा. जिस रेस्तरां के सामने खड़ी थी उस का नाम था ‘गुफा’
झेंपते हुए बोली, ‘‘होटलों में कहां जाते हैं हम लोग. मां को बिलकुल पसंद नहीं है.’’
‘‘मां…’’ वरुण के मुंह से कटु शब्द निकलने ही वाला था, पर तुरंत होंठ सी लिए.
निशा ने घूर कर देखा, पर वरुण दरवाजा खोल कर अंदर जा रहा था. जल्दी से पीछे हो ली. वेटर ने एक खाली मेज की तरफ इशारा किया. बैठते ही वेटर ने पानी के गिलास रखे और मैन्यू कार्ड सामने रख दिया. आदेश की प्रतीक्षा में खड़ा हो गया.
‘‘क्या लोगी?’’ वरुण ने पूछा.
‘‘जो आप चाहें,’’ निशा ने संकोच से मैन्यू कार्ड पर निगाह डालते हुए कहा, ‘‘मेरी समझ में तो कुछ नहीं आता.’’
व्यंग्य से वरुण ने कहा, ‘‘तुम्हारी शिक्षा अधूरी है. काफीकुछ सिखाना पड़ेगा. मां ने यही नहीं सिखाया.’’
कोई कड़वी बात न कह दे, इसलिए निशा ने होंठ दांतों से दबा लिया. इस पुरुष के साथ तो मस्ती का माहौल ही नहीं बनता. इतना पढ़ीलिखी है, पर उस की दृष्टि में बस गंवार ही है. वह भी तो बातबात में मांमां करती है.
मैन्यू कार्ड पर नजरें दौड़ाते हुए वरुण ने आश्चर्य से कहा, ‘‘अरे, यहां तो कढ़ी भी मिलती है.’’
‘‘कढ़ी?’’ निशा ने प्रश्न सा किया.
‘‘क्यों, नाम नहीं सुना कढ़ी का?’’ वरुण ने कहा, ‘‘मुझे बहुत अच्छी लगती है. तुम्हें बनानी आती है?’’
‘‘थोड़ाबहुत,’’ निशा के स्वर में अनिश्ंिचतता थी.
‘‘क्या मतलब?’’ वरुण ने कहा, ‘‘अरे, या तो बनाना आता है या नहीं.’’
निशा ने पूरी गंभीरता से कहा, ‘‘मां नहीं बनातीं. कहती हैं कि कढ़ी खाने से पेट में दर्द होता है. वैसे भी गरमी में तो बेसन की बनी कोई चीज नहीं खानी चाहिए. इसीलिए हमारे यहां कढ़ी नहीं बनती.’’
‘‘ऐसा सोचना है तुम्हारी मां का?’’ वरुण ने कटु व्यंग्य से पूछा, ‘‘और अगर मैं चाहूं कि कढ़ी बने तो क्या मां बनाएंगी?’’
‘‘पता नहीं,’’ निशा ने सरलता से सचाई सामने रख दी और कंधे हिला दिए.
‘‘मेरी पसंदीदा चीजों की सूची भी लंबी हो सकती है, जो मां को पसंद नहीं?’’ वरुण ने मुंह बनाते हुए कहा, ‘‘मैं ने तो सुना है कि ससुराल में दामाद की बड़ी खातिर होती है?’’
वरुण ने जिद में आ कर कढ़ी तो मंगाई ही, साथ ही वह कुछ और भी मंगाया जिसे खाना शायद निशा को अच्छा नहीं लगा. निशा ने साथ तो दिया पर यह भी जाना कि खाने के मामलों में भी वे दोनों उत्तरदक्षिण की तरह थे.
‘‘और कुछ नहीं खाओगी?’’ वरुण ने पूछा, ‘‘तुम ने तो कुछ खाया ही नहीं?’’
‘‘इतना ही खाती हूं,’’ निशा ने हंसने का असफल प्रयत्न किया, ‘‘शादी से पहले शरीर का ध्यान रखना है न.’’
‘‘और शादी के बाद?’’ वरुण ने कटुता से पूछा.
‘‘शादी के बाद बेफिक्री,’’ निशा मुसकराई.
‘‘यह भी तुम्हारी मां ने कहा होगा,’’ वरुण ने पूछा.
निशा की मुसकराहट गायब हो गई, ‘‘हर बात में आप मां को क्यों ले आते हैं?’’
‘‘मैं ले आता हूं?’’ वरुण ने कड़वाहट से कहा, ‘‘या तुम ले आती हो?’’
निशा ने वरुण के चेहरे को देखा और चुप हो गई.
घर के सामने निशा को छोड़ कर वरुण जैसे ही जाने लगा, निशा ने पूछा, ‘‘अंदर नहीं आएंगे? मां को बुरा लगेगा और मेरे ऊपर गुस्सा भी होंगी.’’
‘‘आज नहीं,’’ वरुण ने रूखेपन से कहा, ‘‘मेरी ओर से मां से क्षमा मांग लेना.’’
‘‘फिर कब आएंगे?’’
‘‘पता नहीं, पिताजी से पूछ कर बताऊंगा,’’ वरुण ने कहा और तेज कदम बढ़ाता हुआ आंखों से ओझल
हो गया.
‘पिताजी से पूछ कर बताऊंगा,’ निशा ने समझ लिया कि शादी के सिलसिले में मांबाप जितने महत्त्वपूर्ण होते हैं, उतने ही महत्त्वहीन भी होते हैं. क्या विडंबना है. अगले 10-12 दिनों तक कोई संपर्क न होने से निशा और परिवार वालों को चिंता होने लगी. होने वाले दामाद का शादी से पहले आनाजाना बना रहे तो सब निश्चिंत रहते हैं. बस, बेटी का जाना संदेह के दायरे में घिरा होता है. शादी होने तक मानसम्मान बना रहे, बाद में तो कोई बात नहीं. निशा के दिल में तो विशेषकर एक खटका सा लगा रहा. कहीं वरुण नाराज तो नहीं हो गया?
अंत में चिंतामुक्त होने के लिए वरुण को दावतनामा भेज दिया. वरुण ने कई बहाने बेमन से बनाए, पर फिर राजी हो गया. आखिर उसे भी तो निशा से मिलने की उतनी ही बेकरारी थी.
दोपहर के भोजन के बाद वरुण ने निशा से घूमने चलने को कहा.
‘‘मां से पूछ कर आती हूं,’’ निशा ने मुड़ते हुए कहा.
‘‘और अगर मना कर दिया?’’
‘‘हो भी सकता है.’’
मां ने मुंह तो बनाया पर जल्दी लौट आने की चेतावनी भी दे दी. बोली तो अंदर थी, पर इस तरह कि वरुण के कान में पड़ जाए. वरुण के माथे पर लकीरें पड़ गईं.
काफी देर तक दोनों सड़क पर पैदल चलते रहे. कोई बातचीत नहीं, लगभग एक शीतयुद्ध सा.
निशा ने ही मौन तोड़ा, ‘‘इतने दिनों तक आए क्यों नहीं? सब को चिंता हो रही थी.’’
मानो इसी प्रश्न की प्रतीक्षा में था. वरुण ने शीघ्रता से उत्तर दिया, ‘‘पिताजी से पूछा नहीं था.’’
उत्तर का अभिप्राय समझते हुए भी निशा ने प्रश्न किया, ‘‘क्यों नहीं पूछा? इतना डरते हैं आप?’’
‘‘हां,’’ वरुण ने एकएक शब्द पर जोर देते हुए कहा, ‘‘और तुम्हें भी डरना पड़ेगा.’’
‘‘जिन से लोग डरते हैं,’’ निशा ने कहा, ‘‘उन का सम्मान भी नहीं करते.’’
‘‘ओह,’’ वरुण ने तीखेपन से कहा, ‘‘तो तुम मेरे पिताजी का सम्मान नहीं करोगी?’’
‘‘ऐसा तो मैं ने नहीं कहा.’’
‘‘बात एक ही है.’’
‘‘क्या हर बात का गलत अर्थ निकालना आप की आदत है?’’
‘‘अपनीअपनी समझ है,’’ वरुण ने आते आटोरिकशा को रोकते हुए कहा.
निशा ने पूछा, ‘‘कहां जाना है?’’
‘‘जहां चलो,’’ वरुण ने हंस कर कहा, ‘‘वैसे तो चांद पर जाने की तमन्ना है.’’
‘‘सुना है चांद की सतह में बहुत गहरे खड्डे हैं,’’ निशा ने अर्थभरी मुसकान से कहा.
‘‘हां, हैं तो,’’ वरुण ने उत्तर दिया, ‘‘पर दिल्ली की सड़कों से कम.’’ और तभी एक गढ्डा सामने आने से आटोरिकशा उछल पड़ा और निशा वरुण के ऊपर जा गिरी. जब गति सामान्य हुई तो निशा ने अपने को संभाला, और फिर हंस पड़ी, ‘‘क्या गढ्डा है.’’
‘‘हां,’’ वरुण भी मुसकराया, ‘‘गढ्डे भी कभीकभी एकदूसरे को मिला देते हैं.’’
‘‘विशेषकर,’’ निशा ने अर्थपूर्ण मुसकराहट से कहा, ‘‘तब जबकि ये गढ्डे मांबाप ने न खोदे हों.’’
मीठे व्यंग्य से वरुण ने पूछा, ‘‘इतनी अच्छी शिक्षा तुम्हें किस ने दी?’’
‘‘मां ने,’’ निशा ने तत्परता से कहा और पूछा, ‘‘आप को गढ्डे में गिरने के बारे किस ने बताया?’’
‘‘पिताजी ने,’’ वरुण ने उसी तत्परता से उत्तर दिया, ‘‘कहते हैं कि शादी एक गढ्डा है.’’
फिर एकदूसरे को देख कर दोनों खुल कर हंसने लगे.
सुना है कि इस के बाद दोनों ने कभी भी अपनेअपने मांबाप की चर्चा नहीं की और सारा जीवन हंसी खुशी से बिताया.
‘‘आज आप के तथाकथित गुरुजी कहां गए. आप की देखभाल करने क्यों नहीं आए वे. जिन के कारण आप ने अपनी बसीबसाई गृहस्थी में आग लगा दी. आज उन्होंने अपनी करामात क्यों नहीं दिखाई? मुझ से क्या चाहते हैं आप. क्यों मुझे फोन किया गया था?’’ अपर्णा आवेश से भरे स्वर में बोली. तभी देवर अरुण आ गया. उस ने जो बताया, उसे सुन कर अपर्णा दंग रह गई.
‘‘आप के जाने के बाद भैया एकदम निरंकुश हो गए. गुरुजी के आश्रम में कईकई दिन पड़े रहते. घर पर ताला रहता और भैया गुरुजी के आश्रम में. गुरुजी के साथ ही दौरों पर जाते. गुरुजी के आश्रम में सेविकाएं
भी आती थीं. गुरुजी सेविकाओं से हर प्रकार की सेवा करवाते थे. कई बार गुरुजी के कहने पर भैया ने भी अपनी सेवा करवाई. बस, उसी समय कोई इन्हें तोहफे में एड्स दे गई. गुरुजी और उन के आश्रम के लोगों को जैसे ही भैया की बीमारी के बारे में पता चला, उन्होंने इन्हें आश्रम से बाहर कर दिया. और आज 3 साल से कोई खैरखबर भी नहीं ली है.’’
अपर्णा मुंह खोले सब सुन रही थी. उस ने नितिन की ओर देखा तो उस ने अपने दोनों हाथ जोड़ दिए मानो अब तक की सारी काली करतूतों को एक माफी में धो देना चाहता हो.
अपर्णा कुछ देर सोचती रही, फिर नितिन की ओर घूम कर बोली, ‘‘नितिन, मेरातुम्हारा संबंध कागजी तौर पर भले ही न खत्म हुआ हो पर दिल के रिश्ते से बड़ा कोई रिश्ता नहीं होता. जब मेरे दिल में ही तुम्हारे लिए कोई जगह नहीं है, तो कागज क्या करेगा? जहां तक माफी का सवाल है, माफी तो उस से मांगी जाती है जिस ने कोई गुनाह किया हो. तुम ने आज तक जो कुछ भी मेरे साथ किया, उसे भुलाना तो मुश्किल है, पर हां, माफ करने की कोशिश करूंगी. पर अब तुम मुझ से कोई उम्मीद मत रखना.
मैं तुम्हारे लिए कुछ नहीं कर सकती. हां, इंसानियत के नाते तुम्हारी बीमारी के इलाज में जो पैसा लगेगा, मैं देने को तैयार हूं. बस, अब और मुझे कुछ नहीं कहना. मैं तुम्हें सारे बंधनों से मुक्त कर के जा रही हूं,’’ यह कह कर मैं ने पर्स में से एक छोटा पैकेट, वह मैली लाल डोरी निकाल कर नितिन के तकिए पर रख दी, ‘‘लो अपनी अमानत, अपने पास रखो.’’
यह कह कर अपर्णा तेजी से कमरे से बाहर निकल गई. नितिन टकटकी लगाए उसे जाते देखता रहा.
लिहाजा, अब मोहन ने अपने गांव जाना ही छोड़ दिया था, ताकि लोगों को उसे जवाब न देना पड़े. लेकिन अभी भी उसे एक उम्मीद थी कि उस की रोली उस के पास जरूर आएगी, क्योंकि वह उस से प्यार जो बहुत करता था.
मगर एहसानफरामोश रोली ने तो रितेश की दी गई सुखसुविधा में मोहन को ही भुला दिया. वह मजे से रितेश के साथ उस के बढि़या से 2 कमरे के घर में रहने लगी, जहां पलंग, सोफा, बड़ा सा टैलीविजन और क्याक्या नहीं था.
एक बार रितेश उसे हवाईजहाज से मुंबई भी घुमाने ले गया था, जहां हीरोहीरोइन के बड़ेबड़े घर देख कर रोली की आंखें चौंधिया गई थीं. उस के शरीर के बदले रितेश उसे काफीकुछ दे भी रहा था.
मगर जब रितेश रोली की छोटी जाति को ले कर तंज कसता तो रोली का दिमाग गरम हो जाता था. एक बार तो अपने एक दोस्त के सामने ही रितेश ने बोल दिया कि यह तो छोटी जाति की औरत है, फिर दोनों ठहाके लगा कर हंस पड़े थे.
उस दिन रोली का दिमाग ऐसा गरमाया कि मन किया कि उन दोनों के मुंह पर गरम चाय फेंक दे और कहा कि फिर क्यों आते हो मेरे पास अपनी भूख शांत करने? जाओ न कोई ऊंची जाति की औरत के पास? लेकिन वह चुप रही.
एक दिन जब शराब के नशे में रितेश रोली के करीब आया तो वह उसे परे धकेलते हुए बोली, ‘‘आज मेरा मन नहीं है.’’
‘‘मन नहीं है… साड़ी, कपड़ा और पैसे लेते समय तो नहीं कहती कि मन नहीं है…’’ उसे अपनी तरफ खींचते हुए रितेश बोला.
‘‘देखो, मुझे छोड़ दो, नहीं तो मैं चिल्लाऊंगी और कहूंगी कि तुम मेरा रेप करने की कोशिश कर रहे हो,’’ अपना आंचल रितेश की पकड़ से छुड़ाते हुए रोली बोली.
‘‘चिल्लाएगी? तो चिल्ला. देखता हूं कि कौन सुनता है तुम्हारी बात…’’ शराब की पूरी बोतल एक बार में ही गटकते हुए रितेश रोली पर झपटा, लेकिन वह पीछे खिसक गई, तो वह नीचे गिर पड़ा.
अब रोली से रितेश के ताने बरदाश्त के बाहर थे और सच बात तो यह थी कि उस ने इस हैवान को पहचानने में ही गलती कर दी थी. जरा से सुख की खातिर वह एक सच्चेसरल इनसान को धोखा दे कर इस राक्षस के पास रहने आ गई.
लेकिन अब नहीं. ताकत बटोर कर रितेश फिर उठा ही था कि रोली ने उस के मुंह में शराब से भरी बोतल घुसेड़ दी और तब तक पिलाती रही, जब तक कि उस की सांस नहीं रुक गई. फिर उसे घसीटते हुए ले जा कर एक नाले में फेंक आई.
पुलिस और लोग तो यही समझेंगे न कि ज्यादा शराब पीने से मर गया डूब कर. वैसे भी लोग शराब पीपी कर मर रहे हैं, अंधे हो रहे हैं, तो एक यह भी सही. चलो, जान तो छूटी रोली की इस से.लेकिन अब वह जाएगी कहां? कौन है यहां अब उस का सिवा मोहन के. लेकिन क्या वह अब उसे अपनाएगा? माफ करेगा उसे? उसे तो अपने रंगरूप का इतना घमंड था कि कभी उस ने मोहन को अपने आगे कुछ समझा ही नहीं. अपने मन में ही सोचतेसोचते रोली वहीं पहुंच गई जहां वह अपने मोहन के साथ रहती थी.
कुछ पल तक रोली वहीं दरवाजे के बाहर ही खड़ी रही. उस के मन में डर और हलचल मची थी कि पता नहीं मोहन उसे देख कर क्या कहेगा? कहीं वह उसे धक्के मार कर बाहर न निकाल दे? फिर कहां जाएगी वह?
‘नहींनहीं, मैं उस के पैरों में गिर पड़ूंगी. रोऊंगी, गिड़गिड़ऊंगी, कहूंगी
कि मारेपीटे जो करे, लेकिन मुझे एक कोना दे दे रहने के लिए अपने घर में. लेकिन अगर फिर भी उस का दिल नहीं पसीजा तो…’
एक मन कहता रोली का कि मोहन कभी भी उसे माफ नहीं करेगा और दूसरा मन कहता, ‘क्यों नहीं माफ करेगा? वह अपनी रोली को अब भी बहुत प्यार करता है. सुबह का भूला अगर शाम को घर वापस लौट आए तो उसे भूला नहीं कहते. और रोली तो अब भी मोहन की ब्याहता है, तो हक है उस का इस घर पर…’
आखिरकार रोली दरवाजा ठेल कर घर के अंदर चली गई. लेकिन मोहन घर पर नहीं था. आज उस ने अपने मोहन की दी गुलाबी साड़ी पर वही मैचिंग गुलाबी मोतियों की माला पहन रखी थी. सजसंवर कर वह दरवाजे पर खड़ी अपने मोहन का इंतजार कर रही थी.
घर लौटे मोहन ने अपने सामने जब रोली को देखा तो पहले तो उसे अपनी आंखों पर यकीन ही नहीं हुआ, लेकिन फिर यह कह कर उस ने अपना मुंह फेर लिया कि अब क्यों आई है यहां?
लेकिन रोली आंसुओं का सैलाब बहाते हुए उस के कदमों पर गिर पड़ी और कहने लगी, ‘‘मुझे माफ कर दो. मुझ से बड़ी भूल गई. उस इनसान ने मुझे बरगला दिया था. तुम्हारे खिलाफ भड़का दिया था. लेकिन अब मुझे अपनी भूल का एहसास हो चुका है.
‘‘मेरा अपराध माफी के लायक नहीं है, इसलिए अब मेरा मर जाना ही बेहतर है,’’ कह कर वह जाने ही लगी थी कि मोहन ने उसे रोक लिया और उसे अपने सीने से लगा कर बिलख पड़ा.
रोली भी मोहन के सीने से लग कर फफक पड़ी. आज सच में उसे अपनी गलती का एहसास हो रहा था और मोहन ने भी दिल से उसे माफ कर दिया था.