संकट की घड़ी: क्यों डर गया था नीरज

उस ने घड़ी देखी. 7 बजने को थे. मतलब, वह पूरे 12 घंटों से यहां लगा हुआ था. परिस्थिति ही कुछ ऐसी बन गई थी कि उसे कुछ सोचनेसमझने का अवसर ही नहीं मिला था.

जब से वह यहां इस अस्पताल में है, मरीज और उस के परिजनों से घिरा शोरगुल सुनता रहा है. किसी को बेड नहीं मिल रहा, तो किसी को दवा नहीं मिल रही. औक्सीजन का अलग अकाल है. बात तो सही है. जिस के परिजन यहां हैं या जिस मरीज को जो तकलीफ होगी, यहां नहीं बोलेगा, तो कहां बोलेगा. मगर वह भी किस को देखे, किस को न देखे. यहां किसी को अनदेखा भी तो नहीं किया जा सकता. बस किसी तरह अपनी झल्लाहट को दबा सभी को आश्वासन देना होता है. किसी को यह समझने की फुरसत नहीं कि यहां पीपीई किट पहने किस नरक से गुजरना होता है. इसे पहने पंखे के नीचे खड़े रहो, तो पता ही नहीं चलता कि पंखा चल भी रहा है या नहीं. और यहां सभी को अपनीअपनी ही पड़ी है.

ठीक है कि सरकारी अस्पताल है और यहां मुसीबत में हारीबीमारी के वक्त ही लोग आते हैं. मगर इस कोरोना के चक्कर में तो जैसे मरीजों की बाढ़ आई है. और यहां न फिजिकल इंफ्रास्ट्रक्चर है और न ह्यूमन रिसोर्सेज हैं. सप्लाई चेन औफ मेडिसिन का कहना ही क्या! किसी को कहो कि मरीज के लिए दवा बाहर से खरीदनी होगी या औक्सीजन का इंतजाम करना होगा, तो वह पहली नजर में ऐसे देखता है, मानो उसी ने अस्पताल से दवाएं या औक्सीजन गायब करवा दिया हो या वही उस की ब्लैक मार्केटिंग करवा रहा हो.

ऐसी खबरें अखबारों और सोशल मीडिया में तैर भी रही हैं. मगर फिर भी ऐसे में एक डाक्टर करे तो क्या. उस का काम मरीजों का इलाज करना है, न कि ब्लैक मार्केटियरों को पकड़ना या सुव्यवस्था कायम करना है. आखिर किस समाज में अच्छेबुरे लोग नहीं होते. फिर भी दवाएंऔक्सीजन आदि की व्यवस्था करा भी दें, तो ऐसे देखेंगे, मानो उसी पर अहसान कर रहा हो.

सैकंड शिफ्ट में आई नर्स मीना के साथ वह वार्ड का एक चक्कर लगा वापस लौटा. थोड़ी देर बाद उस ने उस से पूछा, “डाक्टर भानु आए कि नहीं?” “सर, उन्होंने फोन किया था कि थोड़ी देर में बस पहुंचने ही वाले हैं.”

“देखो, मैं अभी निकल रहा हूं. 10 घंटे से यहां लगा हुआ हूं. अगर और रुका, तो मैं कहीं बेहोश ना हो जाऊं, ऐसा मुझे लग रहा है.”

“ठीक है सर, मैं आप की हालत देख रही हूं. आप घर जाइए.” उस ने सावधानी से पहले पीपीई किट्स को और उस के बाद अपने गाउन और दस्ताने को खोला. इन्हें खोलते हुए उसे ऐसा लगा जैसे वह किसी दूसरी दुनिया से बाहर निकला हो. इस के बाद उस ने स्वयं को सैनिटाइज करना शुरू किया. वहां से बाहर निकल कर अपनी कार के पास आया. वहां थोड़ी भीड़ कम थी. फिर भी उस ने मास्क हटा जोर से सांस खींच फेफड़ों में हवा भरी.

विगत समय के डाक्टर यही तो गलती करते थे कि अपने कमरे में जा कर गाउन, दस्ताने के साथ मास्क को भी हटा लेते थे. जबकि वहां के वातावरण में वायरस तो होता ही था, जो उन्हें अपनी चपेट में ले लेता था.

कार को सावधानी के साथ चलाते हुए वह मुख्य मार्ग पर आया. हालांकि शाम 7 बजे से लौकडाउन है. फिर भी कुछ दुकानें खुली हैं और लोग चहलकदमी करते नजर आ रहे हैं. ‘कब समझेंगे ये लोग कि वे किस खतरनाक दौर से गुजर रहे हैं ’ वह बुदबुदाया, ‘भयावह हो रहे हालात, प्रशासन की चेतावनी और सख्ती के बावजूद परिस्थितियों को समझ नहीं रहे हैं ये लोग.’

अपने घर के पास पहुंच कर उस ने चैन की सांस ली. उस ने हार्न बजा कर ही अपने आने की सूचना दी.  घर का दरवाजा खुला था और ढाई वर्ष का बेटा नीरज बरामदे में ही खेल रहा था. “पापा आ गए मम्मी,” कहते हुए वह दौड़ कर गेट तक आ गया था. मीरा घर से बाहर निकली और गेट को पूरी तरह से खोल दिया था. उस ने सावधानी से कार को घर के सामने पार्क किया. तब तक नीरज कार के चारों ओर चक्कर लगाता रहा. उस के कार के उतरते ही वह उस से चिपट पड़ा, तो उस ने उसे जोर से ढकेला और चिल्लाने लगा, “मीरा, तुम्हें अक्ल नहीं है, जो बच्चे को इस तरह खुले में छोड़ दिया.

“मैं अस्पताल से आ रहा हूं और यह मुझ से चिपक रहा है. दिनभर घर में टैलीविजन पर सीरियल देखती रहती हो. तुम्हें क्या पता कि वहां क्या चल रहा है. हमेशा जान जोखिम में डाल कर काम करना होता है वहां. संभालो नीरज को. और बाथरूम में गीजर औन किया है कि नहीं. कि मुझे ही वहां जा कर उसे औन करना होगा.”

“कहां का गुस्सा कहां उतारते हो,” धक्का खा कर गिरे बेटे को उठाते हुए मीरा बोली, “यह बच्चा क्या समझेगा कि बाहर क्या चल रहा है. प्ले स्कूल भी बंद है. घर में बंदबंद बच्चा आखिर करे क्या?” बाथरूम में जा कर उस ने अपने सारे कपड़े उतार कर एक टब में छोड़ दिए. फिर इस गरमी में भी पानी के गरम फव्वारे से साबुन लगा स्नान करने लगा.

नहाधो कर जब वह बाहर आया, तो उसे कुछ चैन मिला. एक कोने में उस की नजर पड़ी तो देखा कि नीरज अभी तक सुबक रहा था. वह उस की उपेक्षा कर अपने कमरे में चला तो गया, मगर उसे ग्लानि सी महसूस हो रही थी. बच्चे को उसे इस तरह ढकेलना नहीं चाहिए था.

मगर, क्या उस ने गलत किया. अस्पताल के परिसर में दिनभर कार खड़ी थी. वह खुद कोरोना पेशेंटों से जूझ कर आया था. कितनी भी सावधानी रख लो, इस वायरस का क्या ठिकाना कि कहां छुप कर चिपका बैठा हो. वह तो उस ने उसी के भले के लिए उसे किनारे किया था. नहींनहीं, किनारे नहीं किया था, बल्कि उसे ढकेल दिया था.

जो भी हो, उस ने उस के भले के लिए ही तो ऐसा किया था. अस्पताल से आने के बाद उस का दिमाग कहां सही रहता है. कोई बात नहीं, वह उसे मना लेगा. बच्चा है, मान जाएगा.  इसी प्रकार के तर्कवितर्क उस के दिमाग में चलते रहे .वह ड्राइंगरूम में आया. मीरा उस के लिए ड्राइंगरूम में चायनाश्ता रख गई.

12 साला बेटी मीनू उसे आ कर बस देख कर चली गई. और वह वहां अकेला ही बैठा रहा. फिर वह उठा और नीरज को गोद में उठा लाया.  पहले तो वह रोयामचला और उस की गिरफ्त से भाग छूटने की कोशिश करने लगा. अंततः वह उस की बांहों में मुंह छुपा कर रोने लगा. मीरा उसे चुपचाप देखती रही. उस का मुंह सूजा हुआ था. रोज की तो यही हालत है. वह क्या करे, कहां जाए. उस की इसी तुनकमिजाजी की वजह से उस ने अपनी स्कूल की लगीलगाई नौकरी छोड़ दी थी. और इन्हें लगता है कि मैं घर में बैठी मटरगश्ती करती हूं.

उस ने मीरा को आवाज दी, तो वह आ कर दूसरे कोने में बैठ गई.“तुम मुझे समझने की कोशिश करो,” उसी ने चुप्पी तोड़ी, “बाहर का वातावरण इतना जहरीला है, तो अस्पताल का कैसा होगा, इस पर विचार करो. वहां से कब बुलावा आ जाए, कौन जानता है.” “दूसरे लोग भी नौकरी करते हैं, बिजनेस करते हैं,” मीरा बोली, “मगर, वे अपने बच्चों को नहीं मारते… और न ही घर में उलटीसीधी बातें करते हैं.”

“अब मुझे माफ भी कर दो बाबा,” वह बोला, “अभी अस्पताल की क्या स्थिति है, तुम क्या जानो. रोज लोगों को अपने सामने दवा या औक्सीजन की कमी में मरते देखता हूं. मैं भी इनसान हूं. उन रोतेबिलखते, छटपटाते परिजनों को देख मेरी क्या हालत होती है, इसे समझने का प्रयास करो. और ऐसे में जब तुम लोगों का ध्यान आता है, तो घबरा जाता हूं.”

“मैं ने कब कहा कि आप परेशान नहीं हैं. तभी तो इस घर को संभाले यहां पड़ी रहती हूं. फिर भी आप को खुद पर नियंत्रण रखना चाहिए. ऐसा क्या कि नन्हे बच्चे पर गुस्सा उतारने लगे.” मीरा वहां से उठी और एक बड़ा सा चौकलेट ला कर उसे छिपा कर देती हुई बोली, “ये लीजिए और नीरज को यह कहते हुए दीजिए कि आप खास उस के लिए ही लाए हैं. बच्चा है, खुश हो जाएगा.”

मीरा की तरकीब काम कर गई थी. उस के हाथ से चौकलेट ले कर नीरज बहल गया था. पहले उस ने चौकलेट के टुकड़े किए. एकएक टुकड़ा पापामम्मी के मुंह में डाला. फिर एक टुकड़ा बहन को देने चला गया.  फिर पापा के पास आ कर उस की बालसुलभ बातें शुरू हो गईं. वह उसे ‘हांहूं’ में जवाब देता रहा. उस ने घड़ी देखी, 9 बज रहे थे. और उस पर थकान और नींद हावी हो रही थी. अचानक नीरज ने उसे हिलाया और कहने लगा, “अरे, आप तो सो रहे हैं. मम्मीमम्मी, पापा सो रहे हैं.”

मीरा किचन से निकल कर उस के पास आई और बोली, “आप बुरी तरह थके हैं शायद. इसीलिए आप को नींद आ रही है. मैं खाना निकालती हूं. आप खाना खा कर सो जाइए.” डाइनिंग टेबल तक वह किसी प्रकार गया. मीरा ने खाना निकाल दिया था. किसी प्रकार उस ने खाना खत्म किया और वापस कमरे में आ कर अपने बेड पर पड़ रहा. नीरज उस के पीछेपीछे आ गया था. उसे मीरा यह कहते हुए अपने साथ ले गई कि पापा काफी थके हैं. उन्हें सोने दो.

सचमुच थकान तो थी ही, मगर अब चारों तरफ शांति है, तो उसे नींद क्यों नहीं आ रही. वह उसी अस्पताल में क्यों घूम रहा है, जहां हाहाकार मचा है. कोई दवा मांग रहा है, तो किसी को औक्सीजन की कमी हो रही है. बाहर किसी जरूरतमंद मरीज के लिए उस के परिवार वाले एक अदद बेड के लिए गुहार लगा रहे हैं, घिघिया रहे हैं. और वह किंकर्तव्यविमूढ़ हो विवश सा खड़ा है.

दृश्य बदलता है, तो बाहर कोई सरकार को, तो कोई व्यवस्था को कोस रहा है. कैसेकैसे बोल हैं इन के, ‘ये लालची डाक्टर, इन का कभी भला नहीं होगा… इस अस्पताल के बेड के लिए भी पैसा मांगते हैं… सारी दवाएं बाजार में बेच कर कहते हैं कि बाजार से खरीद लाओ… और औक्सीजन सिलिंडर के लिए भी बाजार में दौड़ो… क्या करेंगे, इतना पैसा कमा कर? मरने के बाद ऊपर ले जाएंगे क्या? इन के बच्चे कैसे अच्छे होंगे, जब ये कुकर्म कर रहे हैं?’

“नीरज… नीरज, मीनू कहां हो… कहां हो तुम,” वह चिल्लाया, तो मीरा भागीभागी आई, “क्या हुआ जी…? क्यों घबराए हुए हो…? कोई बुरा सपना देखा क्या…?”वह बुरी तरह पसीने से भीगा थरथर कांप रहा था. मीनू और नीरज भयभीत नजरों से उसे देख रहे थे. वह नीरज को गोद में भींच कर रोने लगा था. बेटी मीनू का हाथ उस के हाथ में था. मीरा उसे सांत्वना दे रही थी, “चिंता मत कीजिए. यह संकट की घड़ी भी टल जाएगी. सब ठीक हो जाएगा.”

अम्मा-आखिर अम्मा वृद्धाश्रम में क्यों रहना चाहती थी

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मन : खून के रिश्तों से जुड़ी एक कहानी

मेरे हाथों में मेहंदी लगी देख सुदेश ने सवाल उछाल दिया, ‘‘यह मेहंदी किस खुशी में लगाई है? कोई शादीब्याह, तीजत्योहार या व्रतउपवास है क्या?’’

जवाब में मैं ने भी प्रश्न ही उछाल दिया, ‘‘आप को मालूम है…मधु की शादी तय हो गई है?’’

‘‘कौन मधु?’’

‘‘आप भी न कमाल करते हैं. अरे, हमारे पड़ोसी विपिनजी की बेटी, जिसे आप बचपन से देखते आ रहे हैं. सुंदर, सुशील, प्रतिभाशाली और काम में निपुण…’’ मेरी बात अधूरी ही रह गई जब सुदेश ने बात काटते हुए प्रश्न किया, ‘‘वही मधु न जिसे विपुल ने रिजेक्ट कर दिया था?’’

‘‘रिजेक्ट नहीं किया था,’’ मैं तमतमा उठी. मानो मेरा अपना अपमान हुआ हो. ‘‘उसे सौम्या पसंद थी. उस से प्यार करता था वह. खैर, वे सब पुरानी बातें हो गईं. मुझे तो खुशी है मधु को भी अच्छा घरवर मिल गया. शादी अच्छे से संपन्न हो जाए.’’

‘‘हुंह…बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना. तुम्हें हमेशा दूसरों के सुखचैन की पड़ी रहती है,’’ कहते हुए उन्होंने फाइलों में मुंह छिपा लिया. मैं सोच में डूब गई. शायद बेटा विपुल और ये ठीक ही कहते हैं. न जाने क्यों मुझ से किसी का बुरा सोचा ही नहीं जाता. चाहे वह आत्मीय हो या अजनबी, हमेशा हर एक के लिए दुआ ही निकलती है.

सुदेश तो कई बार समझाने भी लग जाते हैं कि तुम्हें थोड़ा व्यावहारिक होना चाहिए. सांसारिक दृष्टिकोण रखना कोई बुरी बात नहीं है. पर मैं चाह कर भी अपनेआप को बदल नहीं पाती.

विपुल हंसते हुए कहता है, ‘पापा, हमारी मम्मी इस ग्रह की नहीं हैं, किसी दूसरे ग्रह की प्राणी लगती हैं.’ मैं भी उन के मजाक में शामिल हो जाती. पर मुझे हमेशा यही लगता कोई इनसान इतना आत्मकेंद्रित कैसे हो सकता है? आखिर इनसानियत भी तो कोई चीज है.  मधु के साथ अनजाने में मुझ से जो अपराध हुआ था, वह मुझे हमेशा सालता रहता था. दरअसल सुंदर, गुणी मधु से मैं हमेशा से प्रभावित थी और उसे अपनी बहू बनाने का सपना भी देखती थी. जाने- अनजाने अपना यह सपना मैं मधु और उस के घर वालों पर भी प्रकट कर चुकी थी और वे भी इस रिश्ते से मन ही मन बेहद खुश थे. सुदर्शन, इंजीनियर दामाद उन्हें घर बैठे जो मिल रहा था.

विपुल दूसरे शहर में नौकरी करने लगा था. इस बार जब वह छुट्टी ले कर आया तो मैं ने अपना मंतव्य उस पर प्रकट कर दिया. हालांकि पहले भी मैं उसे मधु को ले कर छेड़ती रहती थी, लेकिन इस बार जब उस ने मुझे गंभीर और शादी की तिथि निश्चित करने के लिए जोर डालते देखा तो वह भी गंभीर हो उठा.‘मम्मी, मैं अपनी सहकर्मी सौम्या से प्यार करता हूं और उसी से शादी करूंगा.’

मुझे झटका सा लगा था, ‘पर बेटे…’

‘प्लीज मम्मी, शादी मेरा निहायत व्यक्तिगत मामला है. मैं इस में आप की पसंद को अपनी पसंद नहीं मान सकता. मुझे उस के साथ पूरी जिंदगी गुजारनी है.’

‘मधु हर तरह से तुम्हारे लिए उपयुक्त है, बेटा. निहायत शरीफ…’ मैं ने अपना पक्ष रखना चाहा.  ‘आई एम सौरी, जिस लड़की से मैं प्यार नहीं करता उस से शादी नहीं कर सकता,’ विपुल इतना कह चला गया. मैं बिलकुल टूट सी गई थी. लेकिन सुदेश ने भी मुझे ही दोषी ठहराया था, ‘गलती तुम्हारी है इंदु. तुम्हें मधु या उस के घर वालों से कोई भी वादा करने से पहले विपुल से पूछ लेना चाहिए था.’

मैं ने अपनी गलती मान ली थी. मधु और उस के घर वालों के सम्मुख वस्तुस्थिति स्पष्ट करते हुए मैं ने क्षमा भी मांग ली थी. मधु ने तो मेरी मजबूरी समझ ली थी. हालांकि उस के चेहरे से लग रहा था कि उसे गहरा धक्का लगा है पर उस के घरवाले काफी उत्तेजित हो गए थे. खूब खरीखोटी सुनाई उन्होंने मुझे. मैं ने गरदन झुका कर सबकुछ सुन लिया था. आखिर गलती मेरी थी. ऊपर से संबंध भले ही फिर से सामान्य हो गए थे पर कहीं कोई गांठ पड़ गई थी. पहले वाली बेतकल्लुफी और अपनापन कहीं खो सा गया था.

विपुल की शादी में वे शामिल नहीं हुए. पूरा परिवार ही शहर से बाहर चला गया था. इरादतन या संयोगवश, मैं आज तक नहीं जान पाई. स्वभाववश मैं ने हमेशा की तरह यही कामना की थी कि मधु को भी जल्दी ही अच्छा घरवर मिल जाए. और एक दिन मधु की मां खुशीखुशी शादी का कार्ड पकड़ा गई थीं. मैं ने उन्हें गले से लगा लिया था.

‘‘सच कहूं बहन, आप से भी ज्यादा आज मैं खुश हूं,’’ और इसी खुशी में मैं ने अपने हाथों में मेहंदी रचा ली थी. ‘बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना’ जैसा पति का व्यंग्य भी मेरी खुशी को कम नहीं कर सका था. बहुत उत्साह से मैं ने शादी की सभी रस्मों में भाग लिया और फिर भारी मन से बेटी की तरह मधु को विदा किया.

मधु की शादी के बाद विपुल और सौम्या घर आए तो मैं मधु की विदाई का गम भूल उन के सत्कार में लग गई. सौम्या भी बहुत अच्छी लड़की थी. मुझे उस पर भी बेटी सा स्नेह उमड़ आता था. बापबेटे हमेशा की तरह मुझ पर हंसते थे. ‘मम्मी को सब में अच्छाइयां ही नजर आती हैं. परायों से भी रिश्ता जोड़ लेती हैं. फिर तुम तो उन की इकलौती बहू हो. तुम पर तो जितना प्यार उमड़े कम है.’  सच, उन के साथ पूरा सप्ताह कैसे गुजर गया, पता ही नहीं चला. उन के जाने के बाद एक दिन बाजार में मुझे मधु मिल गई. उसे देखते ही मेरा चेहरा एकदम खिल उठा, लेकिन गौर से उसे देखा तो जी धक से रह गया. सूनी मांग, सूनी कलाइयां, सूना माथा और भावनाशून्य चेहरा… मुझे चक्कर सा आने लगा. पास के खंभे को पकड़ अपने को संभाला.

‘‘कब आईं तुम? और यह क्या है?’’ वह फफक उठी. देर तक फूटफूट कर रोती रही, ‘‘सब खत्म हो गया आंटी, एक दुर्घटना में वे चल बसे. ससुराल वालों ने अशुभ कह कर दुर्व्यवहार आरंभ कर दिया. मैं यहां आ गई. दोचार दिन तो सब ने हाथोंहाथ लिया. पर अब भाभीभैया अवहेलना करने लगे हैं. आखिर हूं तो मैं बोझ ही. मां सबकुछ देखतीसमझती हैं पर कर कुछ नहीं पातीं. जीवन बोझ लगने लगा है. मरने का मन करता है.’’

‘‘पागल हो गई हो? ऐसा कभी सोचना भी मत. चलो, मेरे साथ घर चलो,’’ उस का मुंह धुला कर मैं ने उसे चाय पिलाई. जब उस का मूड कुछ ठीक हो गया तो मैं ने बात आगे बढ़ाई.

‘‘तुम तो काफी पढ़ीलिखी हो. पति की जगह नौकरी पर क्यों नहीं लग जातीं?’’

‘‘सोचा था. पता चला, उस जगह देवर लगने का प्रयास कर रहे हैं.’’

‘‘लेकिन पहला हक तुम्हारा है. यदि तुम आत्मसम्मान की जिंदगी जीना चाहती हो तो तुम्हें अपने हक के लिए लड़ना होगा.’’

‘‘लेकिन मुझे तो कुछ भी नहीं मालूम…कैसे क्या करना है?’’

‘‘हूं… एक आइडिया है. विपुल उसी शहर में है. मैं उस से कहती हूं, वह तुम्हारी मदद करेगा.’’

विपुल पहले तो एकदम बिदक गया, ‘‘क्या मां, आप हर किसी के फटे में टांग डालती रहती हो.’’ पर जवाब में मेरी ओर से कोई आवाज सुनाई नहीं दी तो तुरंत मेरी मनोस्थिति ताड़ गया, ‘‘ठीक है मम्मी, मैं प्रयास करता हूं.’’  विपुल के प्रयास रंग लाए और मधु को नौकरी मिल गई. वह बेहद खुश थी. उस की मुसकान देख कर मुझे लगा कि मेरी गलती का आंशिक पश्चात्ताप हो गया है. उस के जाने के बाद एक दिन उस की मां मिल गईं. उन्होंने  यह कहते हुए मेरा बड़ा एहसान माना कि मैं ने मधु को नई जिंदगी दी है.

‘‘मैं तो चाहती हूं उस का फिर से घर भी बस जाए. अभी उस की उम्र ही क्या है?’’ मेरी जबान फलीभूत हुई. मधु की मां ने ही एक दिन बताया कि मधु ने अपने एक सहकर्मी से आर्यसमाज में शादी कर ली है. उस के भाईभाभी ऊपर से तो रोष जता रहे हैं, लेकिन मन ही मन खुश हैं कि चलो, बला टली.

‘‘यह दुनिया ऐसी ही है बहन. आप के बेटेबहू कोई अपवाद नहीं हैं.’’

‘‘लेकिन आप तो अपवाद हैं. अपनों की तो हर कोई सोचता है लेकिन आप तो परायों के लिए भी…’’

‘‘अपनापराया कुछ नहीं होता. रिश्ते तो मन के होते हैं. जिस से मन जुड़ जाए वही अपना लगने लगता है. मधु को मैं ने हमेशा अपनी बेटी की तरह चाहा है. उस के लिए कुछ करने से मुझे कभी रोकना मत.’’

वैसे प्यार तो मुझे सौम्या से भी बहुत हो गया था. सच कहूं, मुझे हर वक्त उस की चिंता लगी रहती थी. पतली, नाजुक, छुईमुई सी लड़की कैसे आफिस और घर दोनों जिम्मेदारियां संभालती होगी? विपुल से जब भी बात होती मैं उसे सौम्या की मदद करने की सीख देना नहीं भूलती.  और जब से मुझे पता चला कि वह गर्भवती है तो एक ओर तो मैं हर्ष से फूली नहीं समाई, लेकिन दूसरी ओर उस की चिंता मुझे दिनरात सताने लगी. मैं ने डरतेडरते सुदेश से अपने मन की बात कही, ‘‘मैं चली जाती हूं दोनों के पास उन्हें संभालने. सौम्या बेचारी, कैसे मैनेज कर रही होगी?’’

‘‘इंदु, तुम्हारा इतना संवेदनशील और लचीला होना मुझे बहुत अखरता है. अभी उसे मात्र 2 महीने हुए हैं. उसे 9 महीने इसी अवस्था में गुजारने हैं. तुम कब तक उन की देखभाल करोगी? वे बच्चे नहीं हैं. अपनेआप को और अपने घर को संभाल सकते हैं. उन्हें तुम्हारे हस्तक्षेप, जिसे तुम सहयोग कहती हो, की जरूरत नहीं है. जरूरत होगी, तब वे अपनेआप तुम्हें बुला लेंगे और तभी तुम्हारा जाना सार्थक और सम्मानजनक होगा.’’

मैं कहना चाहती थी, भला अपनों के काम आने में क्या सम्मान और सार्थकता देखना, पर जानती थी ऐसा कहना एक बार फिर मेरी व्यावहारिक नासमझी को ही दर्शाएगा. इसलिए चुप्पी लगा गई. पर गुपचुप छिटपुट तैयारियां करना मैं ने आरंभ कर दिया था. बहू के लिए खूब सारे सूखे मेवे खरीद लाई थी. कोई जाएगा तो साथ भिजवा दूंगी. फोन पर हिदायतों का दौर तो जारी था ही.  इसी बीच खबर लगी कि मधु भी गर्भवती है. मैं ने मधु की मां से मिल कर उन्हें बधाई दी. पता चला कि वे मधु के पास ही जा रही थीं.  मैं तुरंत घर लौटी. मेवे का पैकेट खोल कर उस के 2 पैकेट बनाए और तुरंत मधु की मां को ला कर थमा दिए, ‘‘यह एक पैकेट विपुल आ कर ले जाएगा और दूसरा मधु के लिए है.’’  डबडबाई आंखों से उन्होंने दोनों पैकेट थाम लिए. समय के साथसाथ सौम्या की तबीयत संभलने लगी थी. मैं विपुल से फोन पर हमेशा यही कहती, ‘‘जरा सी भी दिक्कत हो तो मुझे निसंकोच फोन कर देना. मैं तुरंत पहुंच जाऊंगी.’’

‘‘बिलकुल मां, यह भी भला कोई कहने की बात है?’’

सौम्या की डिलीवरी का समय पास आ गया था. उस ने अब आफिस से छुट्टियां ले ली थीं. आपस में सलाह- मशविरा कर उन्होंने हमें सूचित किया कि डिलीवरी के समय मैं सौम्या के पास रहूं इसलिए सुदेश के खाने का प्रबंध कर मैं उन के पास रहने चली गई. तय हुआ कि डिलीवरी के बाद कुछ वक्त गुजार कर मैं लौट आऊंगी और तब सौम्या की मां आ कर सब संभाल लेंगी.

सौम्या का समय पूरा हो चुका था पर उसे अभी तक लेबरपेन आरंभ नहीं हुआ था. डाक्टर की सलाह पर हम ने उसे अस्पताल में भरती करवा दिया. अभी हम पूरी तरह व्यवस्थित भी नहीं हो पाए थे कि पास लाई गई दूसरी प्रसूता को देख मैं चौंक उठी. यह तो मधु थी. वह दर्द से कराह रही थी. उसे आसपास का जरा भी होश न था. उस की मां उसे संभालने का असफल प्रयास कर रही थीं. मैं ने उन्हें धीरज बंधाया. जल्दी ही मधु को लेबर रूम में ले जाया गया और कुछ समय बाद ही उस ने एक बेटे को जन्म दे दिया. भावातिरेक में उस की मां मेरे गले लग गईं. अब बस सौम्या की चिंता थी. डाक्टर ने चेकअप किया. सामान्य प्रसव के कोई आसार न देख आपरेशन से बच्चा पैदा करने का निर्णय लिया गया. मैं बारबार सौम्या के सुरक्षित प्रसव की कामना कर रही थी. मधु और उस की मां ने मेरी बेचैनी देखी तो मुझे धीरज बंधाया.

‘‘सब अच्छा ही होगा. आप जैसे भले लोगों के साथ कुदरत हमेशा भला ही करेगी.’’

जब तक सौम्या आपरेशन थिएटर में बंद रही और विपुल बाहर चक्कर काटता रहा उस दौरान मधु की मां ने बातों से मेरा दिल बहलाए रखा. साथ ही मधु और अपने नवासे को भी संभालती रहीं. लेडीडाक्टर ने जब जच्चाबच्चा दोनों के सुरक्षित होने की सूचना दी तब ही मुझे चैन पड़ा. घर में पोती आई थी. मैं बहुत खुश थी, लेकिन यह जान कर मेरी चिंता बढ़ गई कि नवजात बच्ची बहुत कमजोर है. सौम्या की हालत भी ज्यादा अच्छी नहीं थी. फिर उसे दूध भी नहीं उतर रहा था. अस्पताल में नर्सरी आदि की सुविधा नहीं थी. डाक्टर के अनुसार बच्ची को यदि कुछ समय तक किसी नवप्रसूता का दूध मिल जाए तो उस की स्थिति संभल सकती थी.

‘‘आप को एतराज न हो तो मैं इसे दूध पिला देती हूं,’’ मधु ने स्वयं को प्रस्तुत किया तो हम एकबारगी तो चौंक गए.

‘‘नेकी और पूछपूछ,’’ कहते हुए उस की मां ने बच्ची को तुरंत मधु की गोद में डाल दिया. मधु ने उसे प्यार से आंचल में ढांप लिया और दूध पिलाने लगी. मैं उस के इस ममतामयी रूप पर निछावर हो गई.

2 दिन हो गए थे. सुदेश भी आ गए थे. मधु जितनी बार अपने बेटे को दूध पिलाती, याद से गुडि़या को भी पिला देती. तीसरे दिन डाक्टर ने चेकअप किया. मधु की अस्पताल से छुट्टी हो चुकी थी. गुडि़या की तबीयत संभल गई थी, लेकिन सौम्या को अभी कुछ दिन और अस्पताल में रहना था. उस के घाव अभी भरे नहीं थे. बड़ी असमंजस की स्थिति थी. गुडि़या को मां से दूर भी नहीं किया जा सकता था और अभी कुछ दिन उसे और ऊपर के दूध के साथ मां के दूध की जरूरत थी. हम सोच ही रहे थे कि क्या किया जाए कि मधु बोल पड़ी, ‘‘हमारा घर पास में ही है. मैं इसे दूध पिलाने आती रहूंगी. साथ ही ऊपर का दूध भी बना कर लाती रहूंगी.’’

‘‘हां हां, आप चिंता मत कीजिए. हम सब संभाल लेंगे,’’ मधु की मां भी तुरंत बोल पड़ीं.

3-4 दिन तक मांबेटी का यही क्रम चलता रहा. मधु न केवल गुडि़या को दूध पिला जाती बल्कि ताजा गुनगुना दूध बना कर भी ले आती. कभी सौम्या के लिए खिचड़ी, दलिया आ जाता.  मधु की मां जो दवा मधु के लिए बनातीं उस की एक खुराक आ कर सौम्या को भी खिला जातीं. विपुल और उस के पापा ये सब देख कर अचंभित रह जाते. अपनी अब तक की सोच पर शर्मिंदगी के भाव उन के चेहरे पर स्पष्ट परिलक्षित होते थे. मैं मधु को बारबार कहती, ‘‘तुम्हें इतना श्रम अभी नहीं करना चाहिए. तुम्हें आराम की जरूरत है.’’

‘‘मुझे ये सब करने से इतना आराम मिल रहा है कि मैं आप को बता नहीं सकती,’’ वह मुसकरा कर कहती. एक नर्स ने तो मुझ से पूछ भी लिया था, ‘‘क्या रिश्ता है आप का इस लड़की से?’’

‘‘इनसानियत का रिश्ता, जिस के तार मन से जुड़े होते हैं,’’ यह कहते हुए मेरे चेहरे पर असीम तृप्ति के भाव थे.

Mother’s Day Special- प्रश्नों के घेरे में मां

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समाधान: मातृत्व को तरसती बेचारी ममता

भारत में औरतों का बांझ होना सब से बड़ा शाप है और बांझ औरत का पिता होना उस से भी बड़ा शाप है. ममता के पिता राकेश मोहन किसान मंडी में एक आढ़त पर मुनीम हैं. 10,000 रुपए महीना पगार है और हर महीने 4,000-5,000 रुपए यहांवहां से कमा लेते हैं. सरकारी स्कूल, सरकारी अस्पताल और सरकारी राशन के भरोसे किसी तरह बच्चों को पालपोस कर बड़ा किया.

राकेश मोहन ने अपनी पूरी जमापूंजी से किसी तरह से बड़ी बेटी ममता की शादी रेलवे के ड्राइवर से करा दी थी. सरकारी नौकरी वाले दामाद के लालच में इस शादी पर 5 लाख रुपए खर्च हो गए थे. अब कोई बचत नहीं थी, क्योंकि परिवार में दामाद के आने से दिखावे पर खर्च बढ़ गया था.

राकेश मोहन अपनी छोटी बेटी शिखा को बीएड कराने के बाद नौकरी मिलने का इंतजार कर रहे थे. उन्हें पूरी उम्मीद थी कि शिखा की सरकारी नौकरी लग जाएगी और उन्हें उस की शादी पर एक पाई भी नहीं खर्च करनी होगी.

फिलहाल तो उन के माली हालात डांवांडोल थे. शिखा की पढ़ाई और मोबाइल का खर्च भी दीदी और जीजाजी से मिलने वाले उपहार पर निर्भर था.

दामाद बड़ी बेटी का पूरा खयाल रखता था. उस तरफ से कोई चिंता नहीं थी. शिखा की शादी में दामादजी पैसे लगा देंगे, एक उम्मीद इस बात की भी थी.

असली मुसीबत या कहना चाहिए कि मुसीबतों का पहाड़ तब टूटा जब शादी के 2 साल तक ममता मां नहीं बन सकी और इस मुसीबत ने पूरे परिवार को झकझोर दिया.

गनीमत थी कि ममता अपने पति के साथ शहर में रेलवे क्वार्टर में रहती थी. सास के ताने मोबाइल फोन पर उसे बराबर सुनने पड़ते थे. राकेश मोहन का ममता से भी बुरा हाल था. ममता की सास तलाक की धमकी दे कर उन का खून सुखा देती थी.

ममता की सास के ताने शादी में मनचाहा दहेज न मिलने से शुरू हो कर बच्चा न होने पर खत्म होते थे. ममता के पूरे मायके को अभागा, मनहूस कहा जाने लगा था.

ममता की छोटी बहन शिखा को भी इस झगड़े में लपेट लिया गया. ममता की सास शिखा से कहती थी कि जरूर ममता की परवरिश ठीक से नहीं की गई, बचपन की गलत आदतों के चलते वह बांझ हो गई है.

ममता की सास ने कानूनी सलाह भी ले ली थी. ममता की मां को एक दिन कह रही थीं कि कोर्ट में साबित हो जाएगा कि ममता उन के बेटे को शारीरिक सुख और संतान सुख नहीं दे सकती है. इस वजह से उसे आसानी से तलाक मिल जाएगा. उन्हें हर्जाखर्चा नहीं देना होगा.

ममता की मां इन बातों को सुन कर कई दिन तक कुछ भी नहीं खा सकीं. वे यह सोच कर मरी जा रही थीं कि दामादजी ने अगर ममता को छोड़ दिया तो उस का क्या होगा. ममता की दूसरी शादी करने के लिए पैसे तो बचे नहीं हैं और फिर दूसरा आदमी शादी करेगा क्यों?

ममता और उस के पति राजीव को डाक्टर ने बताया कि राजीव के वीर्य में शुक्राणुओं की कमी है और उन्हें डोनर शुक्राणुओं से ‘इन विट्रो फर्टिलाईजेशन’ या ‘इंट्रा यूटेराइन इंसेमिनेशन’ कराना चाहिए, पर दकियानूस राजीव तैयार नहीं हुआ. जब अपना खून या अपना वंश नहीं है तो संतान से क्या फायदा?

राजीव के शुक्राणुओं को बढ़ाने के लिए डाक्टर ने 2 महीने तक हर हफ्ते अमोनिया एन 13 इंजैक्शन लगाया, उस के बाद डाक्टर ने उन्हें वीटा कवर और विटामिन डी की गोली खाने को दी और परहेज में एंटीऔक्सिडैंट फूड लेने के लिए कहा.

पर जब इस उपाय का असर नहीं हुआ तो एक महीना आयुर्वेदिक ट्रीटमैंट चलाया. डाक्टर ने राजीव को अश्वगंधा और जिनसैंग की औषधि दी. पर जब किसी भी डाक्टरी इलाज से काम नहीं बना तो मां के बताए हुए उपाय देशी  नुसखे को अपनाया गया.

ममता ने मुलहठी, देवदारू और सिरस के बीज को बराबर मात्रा में ले कर काली गाय के दूध के साथ पीस लिया और इस मिश्रण को 5 दिन तक सेवन किया और 5 दिनों के बाद पति के साथ मिलन किया. मिलन के समय कूल्हे के नीचे तकिया लगा लिया, ताकि ज्यादा से ज्यादा शुक्राणु गर्भाशय तक पहुंच सकें. कामसूत्र से पढ़ कर कई तरह के आसन आजमाए, पर इन सारे उपाय से भी कोई फर्क नहीं पड़ा.

पति की पगार समय पर आए या न आए, ममता की माहवारी ठीक 28वें दिन आ जाती थी. पतिपत्नी एकदूसरे को बेहद प्यार करते थे और एकदूसरे की कमी बताते नहीं थे. असलियत यह थी कि ममता के पति राजीव की सैक्स में दिलचस्पी नहीं थी.

ममता पति को रिझाने की पूरी कोशिश करती थी. सहेलियों की सीख के मुताबिक ममता ने पति को बहुत मेहनत से कुकुर आसन में सैक्स करना सिखाया. सहेलियों ने बताया था कि इस आसन में वीर्य गर्भाशय के बेहद नजदीक पहुंच जाता है और शुक्राणुओं के अंडाणु से मिलने की उम्मीद बढ़ जाती है. राजीव को इस खेल में मजा तो आता था, पर वह ममता को मां नहीं बना सका.

इस के बाद राजीव के दोस्तों के सुझाव के मुताबिक मिशनरी आसन किया गया. इस में राजीव ने ममता को बिस्तर पर सीधा लिटाने के बाद ऊपर से अपने अंग को प्रवेश कराया. तर्क यह था कि इस से अंग को योनि में गहराई तक प्रवेश करा सकेंगे, पर यह कोशिश भी बेकार गई.

इस के बाद टोटके का सहारा लिया गया. मंगलवार के दिन पतिपत्नी ने कुम्हार के घर जा कर पुत्र प्राप्ति के लिए प्रार्थना की और एक डोरी, जिस से वह मिट्टी के बरतन बनाता है, मांग लाए. घर आने के बाद एक गिलास में पानी भर कर वह डोरी उस में डाल दी. एक हफ्ते तक वह डोरी उस पानी में भिगो कर रखी. अगले मंगलवार को गिलास में से डोरी निकाल कर पतिपत्नी ने वह पानी पी लिया और इस के बाद वह डोरी हनुमान मंदिर जा कर हनुमान जी के चरणों में समर्पित कर दी.

उस रात उन्होंने बहुत देर तक सैक्स किया. ममता पसीने से लथपथ थी और राजीव किसी घोड़े की तरह हांफ रहा था. उस रात उन्हें जिंदगी में पहली बार इतना मजा आया था. ममता बहुत देर उसी तरह बिना कपड़ों के बिस्तर पर पड़ी रही, क्योंकि वह कोई जोखिम लेना नहीं चाहती थी. शुक्राणुओं और अंडाणुओं को मिलने में कोई परेशानी न हो, इस बात का पूरा खयाल रखा गया.

28वें दिन जब ममता को पीरियड नहीं आया तो राजीव दौड़ कर प्रैग्नैंसी टैस्ट किट ले आया. पर यह कोशिश भी नाकाम रही. 29वें दिन खाना बनाते समय ममता को पीरियड हो गया. उसे पैड लगाने का भी समय नहीं मिला और सूती साड़ी पर निशान आ गया.

राजीव की बहन ने एक टोटके को आजमाया. अपने बच्चे का पहला टूटा हुआ दूध का दांत एक काले कपड़े में बांध कर काले धागे की मदद से भाभी की कमर पर बांध दिया. जब तक वे गर्भधारण न कर लें, इस धागे को किसी भी कीमत पर न उतारने की कठोर हिदायत दी गई.

दूध के दांत को कमर पर बांधे हुए भी 3 महीने का समय हो चुका था. सैक्स के लिए चूहा आसन से हाथी आसन तक सैकड़ों आसनों को आजमाया जा चुका था और अभी भी ममता की कोख सूनी थी.

राजीव भी अब ममता को ही बच्चा न होने के लिए कुसूरवार मानने लगा था. ससुराल पक्ष की मौसी, नानी, बूआ, ताई सभी ममता को ताने देने लगे थे. ममता के पास खुदकुशी करने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा था. मरने की सोचना आसान है, पर मरना आसान नहीं.

कहते हैं कि मुसीबतें इनसान को बहुत ही शातिर और धोखेबाज बना देती हैं. ममता का देवर मैथली 2 साल इलाहाबाद में कोचिंग के बाद राजीव और ममता के साथ रहने आया था. शहर में उस के सरकारी नौकरियों के एग्जाम थे. इस हफ्ते दारोगा अगले महीने रेलवे, उस के बाद पीसीएस, फिर पीजीटी.

ममता को मैथली के आने से बहुत राहत हो गई. राजीव और उस की मां को अब ममता पर चिल्लाने का मौका नहीं मिलता था.

देवर और भाभी की खूब बनती थी. ऐसा लगता था जैसे दोनों जन्मजन्मांतर के दोस्त थे. मैथली के हर काम का समय तय था. 4 बजे जागना, योगासन, कसरत, बादाम का दूध, 4 किलोमीटर की दौड़ फिर दोपहर घंटों तक सोना और रात 12 बजे तक पढ़ाई. भाभी पीछे असिस्टैंट की तरह खड़ी रहती और देवर की हर फरमाइश को मुंह से निकलने से पहले पूरा कर देती.

भैया के घर आने के बाद उन की मोटरसाइकिल से दोनों खरीदारी के बहाने निकल जाते थे. ममता को शादी के 2 साल बाद पता चल रहा था कि वह किस गली और किस महल्ले में रह रही थी, शहर में कौनकौन सी घूमने की जगह थी. शहर में आइसक्रीम की दुकान कहां है और शहर में कितने पार्क हैं.

प्रेम को पनपने के लिए इतनी जगह बहुत है. दोपहर को मैथली के उठने का समय हो गया था. ममता उस के लिए चाय बना लाई, लेकिन उठाया नहीं बल्कि उस के हाथपैरों को सहलाने लगी उस के बालों में उंगलियां फिराने लगी.

मैथली ने एक झटके में ममता को खींच कर सीने से सटा लिया और फिर वे एकदूसरे में खो गए. अगले दिन भाभी और देवर नजर नहीं मिला पा रहे थे, पर उन के बरताव से साफ समझ आ रहा था कि दोनों बहुत खुश थे.

मैथली ने रसोईघर में जा कर भाभी की कमर में पीछे से हाथ डाला और कूल्हों को सहलाया तो ममता ने गुस्से में उस के पीठ पर हलके से चिमटे से मार दिया. उसे लिमिट में रहने की हिदायत दी और जब मैथली बुरा मान गया तो तुरंत ही ममता ने कान पकड़ कर माफी मांग ली.

ममता का खुराफाती दिमाग पूरी कुशलता से काम कर रहा था. उस रात ममता ने राजीव को बताया कि इन दिनों वह शिवलिंगी बीज एक भाग तथा पुत्रजीवक बीज 2 भाग को मिश्री के साथ खा रही है. ननद का दिया टोटका बंधा ही है तो आज अच्छी उम्मीद है. फिर रात में देर तक उस ने राजीव के साथ भी संबंध बनाया.

यह कई दिनों तक चलता रहा. दोपहर में मैथली और रात में राजीव के साथ प्यार. माहवारी आने के 5 दिन पहले उस ने दोनों से दूरी बना ली. इस बार उन की कोशिश रंग लाई. शाम को ममता ने राजीव की पसंदीदा कौफी और पकोड़े बनाए और उसे यह खुशखबरी सुनाते हुए उस की गोद में बैठ गई, तो राजीव ने उसे ढेर सारा प्यार किया.

ममता के सारे दुख दूर हो चुके थे. वह परिवार की लाड़ली बहू बन चुकी थी. ममता की सास को अब कोई शिकायत नहीं थी. ममता की हर फरमाइश को सब से पहले पूरा किया जाने लगा.

मैथली, जो अपने एग्जाम दे कर वापस इलाहाबाद चला गया था, ममता ने प्रैग्नैंसी के आखिरी दिनों में वापस बुला लिया. अब दिनभर बेरोकटोक मैथली अपनी प्यारी भाभी के साथ रह सकता था और एग्जाम की तैयारी भी कर सकता था.

ठीक ममता के डिलीवरी के दिन मैथली का पीसीएस का रिजल्ट आ गया. मैथली को सरकारी नौकरी मिल गई. ममता के बच्चे की आंखें ममता से मिलती थीं. कान, नाक, ठुड्डी ससुराल के किसी न किसी सदस्य से मिलते थे.

मैथली के लिए एक से एक अमीर घरों के रिश्ते आ रहे थे, बहुत सारा दहेज भी मिल रहा था, लेकिन मैथली ने लड़की देखने से साफ मना कर दिया. ममता ने मैथली को अपनी बहन शिखा से शादी के लिए मना लिया.

मैथली को भी इसी शहर में नौकरी मिल गई है. दोनों परिवार एकसाथ बहुत प्यार से रहते हैं. ममता दोबारा मां बनने वाली है और इस महीने शिखा की माहवारी भी नहीं हुई है.

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