Short Story : सुखिया की जवानी का सबने लिया मजा

Short Story : सुरेंद्र सुखिया की जवानी पर फिदा था. उस के भरे उभारों, मांसल जिस्म और तीखे नैननक्श को देख कर दूसरे लोगों की तरह ही कई बार सुरेंद्र की नीयत भी बिगड़ गई थी. पिछले दिनों सुखिया के पति की ट्रक की टक्कर से मौत हो गई थी. जमींदार के बिगड़े बेटे सुरेंद्र के लिए तो यह सोने पे सुहागा हो गया था, इसलिए कई बार वह सुखिया से अपने दिल की बात कह चुका था.

इस बीच सुखिया लोगों के घर बरतन मांज कर कुछ पैसे कमा लेती थी. एक वकील ने उस से मिल कर उस के पति के बीमे के पैसे के लिए उसे तैयार किया और केस लगा दिया था.

एक दिन सुरेंद्र ने सुखिया से कहा, ‘‘तू कोर्टकचहरी के चक्कर में कहां पड़ी है. जितना तुझे बीमा से मिलेगा, उस से दोगुना मैं तुझे देता हूं. बस, तू एक बार राजी हो जा.’’

सुखिया उस की बात को अनसुना कर देती. सुखिया की गरीबी और जवानी का हर कोई फायदा उठाना चाहता था, इसलिए एक दिन वकील ने कहा, ‘‘सुखिया, तेरा केस लड़तेलड़ते मैं थक गया हूं. अब एक दिन घर आ जा, तो थकान मिट जाए.’’

सुखिया एक दिन कचहरी आ रही थी, तभी उस का केस देखने वाला जज सामने टकरा गया और बोला, ‘‘सुखिया, तेरा केस तो एक ही बार में खत्म कर दूंगा और पैसा भी बहुत दिलवा दूंगा. बस, तू मुझ से मिलने आ जा.’’

लेकिन सुखिया किसी की बात पर कोई ध्यान नहीं देती. बस, अपने चेहरे पर दिलफेंक मुसकराहट ला देती. आखिरकार जज साहब ने 2 लाख रुपए के मुआवजे का फैसला ले लिया. जज और वकील की मिलीभगत थी, इसलिए और्डर की कौपी वकील ने ले ली और हिसाब पूरा करने के बाद उसे सुखिया को देने के लिए राजी हो गया.

कचहरी में चैक बनाने वाले बाबू ने जब सुखिया को देखा, तो उस का भी ईमान डोल गया. वह सुखिया को चैक देने के बहाने बुलाने लगा और सामने बैठा कर उस के उभारों पर नजर गड़ाए रखता.

एक दिन बाबू ने कहा, ‘‘तेरी फाइल और चैक के ऊपर सभी के दस्तखत होंगे, तभी मिलेगा.’’ सुखिया ने परेशान हो कर कहा, ‘‘बाबू, कुछ पैसा चाहिए तो ले लो, क्यों रोजरोज परेशान करते हो?’’

इस पर बाबू उसे अपनी बातों में बहला लेता था. एक दिन जब सुखिया आई, तब बाबू ने कहा, ‘‘मैं फाइल और चैक तैयार रखूंगा. तुम आ जाना, फिर वहीं सब के दस्तखत करा कर चैक दे देंगे.’’ सुखिया इस के लिए तैयार हो गई.

यह खबर जब दारोगा को मिली, तो वह भी इस में शामिल हो गया. इस से यह डर भी खत्म हो गया कि अगर सुखिया ने कहीं शिकायत वगैरह की, तो कुछ नहीं होगा. बाबू की पत्नी मायके गई थी, इसलिए सुखिया को उसी के कमरे में बुलाया.

सुखिया ने वहां पहुंच कर परेशान होते हुए कहा, ‘‘अब तो चैक पर दस्तखत कर के दे दो, क्यों इतना परेशान कर रहे हो?’’ कचहरी के बाबू ने कुटिल हंसी हंसते हुए कहा, ‘‘सुखिया, ऐसी भी क्या जल्दी है, थोड़ा रुको तो.’’

इधर सुखिया कसमसाती रही, उधर फाइलचैक पर दस्तखत होते रहे.

Family Story : देह की भूख ने बर्बाद कर दिया परिवार

Family Story : मनोहरा की पत्नी मोहिनी बड़ी शोख और चुलबुली थी. अपनी अदाओं से वह मनोहरा को हमेशा मदहोश किए रहती थी. उस को पा कर मनोहरा को जैसे पंख लग गए थे और वह हमेशा आकाश में उड़ान भरने को तैयार हो उठता था. मोहिनी उस की इस उड़ान को हमेशा ही सहारा दे कर दुनिया जीतने का सपना देखती रहती थी.

अपने मायके में भी मोहिनी खुली हिरनी की तरह गांवभर में घूमती रहती थी. इस में उसे कोई हिचक नहीं होती थी, क्योंकि उस की मां बचपन में ही मर गई थी और सौतेली मां का उस पर कोई कंट्रोल न था.

मोहिनी छोटेबड़े किसी काम में अपनी सीमा लांघने से कभी भी नहीं हिचकती थी. शादी से पहले ही उस का नाम गांव के कई लड़कों से जोड़ा जाता था. वैसे, ब्याह कर अपने इस घर आने के बाद पहले तो मोहिनी ने अपनी बोली और बरताव से पूरे घर का दिल जीत लिया, पर जल्दी ही वह अपने रंग में आ गई.

मनोहरा के बड़े भाई गोखुला की सब से बड़ी औलाद एक बेटी थी, जो अब सयानी और शादी के लायक हो चली थी. उस का नाम सलोनी था. गोखुला के 2 बेटे अभी छोटे ही थे. गोखुला की पत्नी पिछले साल हैजे की वजह से मर गई थी.

मोहिनी के सासससुर और गोखुला अब कभीकभी सलोनी की शादी कर देने की चर्चा छेड़ देते थे, जिस से वह डर जाती थी. उस की शादी में अच्छाखासा खर्च होने की उम्मीद थी.

मोहिनी चाहती थी कि अगर किसी तरह उस का पति अपने भाई गोखुला से अलग होने को राजी हो जाए, तो होने वाले इस खर्च से वह बच निकलेगी.

मोहिनी ने माहौल देख कर मनोहरा को अपने मन की बात बताई. मनोहरा एक सीधासादा जवान था. वह घर के एक सामान्य सदस्य की तरह रहता और दिल खोल कर कमाता था. वह इन छलप्रपंचों से कोसों दूर था.मोहिनी की बातों को सुन कर पलभर के लिए तो मनोहरा को बहुत बुरा लगा, पर मोहिनी ने जब इन सारी बातों की जिम्मेदारी अपने ऊपर छोड़ देने की बात कही, तो वह चुप हो गया.

यही तो मोहिनी चाहती थी. अब वह आगे की चाल के बारे में सोचने लग गई. पहले कुछ दिनों तक तो उस ने सलोनी से खूब दोस्ती बढ़ाई और उसे घूमनेफिरने, खेलनेखिलाने वगैरह की पूरी आजादी दे दी, फिर खुद ही अपने सासससुर से उस की शिकायत भी करने लगी.

1-2 बार उस ने सलोनी को गुपचुप उसी गांव के रहने वाले अपने चहेते पड़ोसी रामखिलावन के साथ मेले में भेज दिया और पीछे से ससुर को भी भेज दिया.

सलोनी के रंगे हाथ पकड़े जाने पर मोहिनी ने उस घर में रहने से साफ इनकार कर दिया. सासससुर और गांव वाले उसे समझासमझा कर थक गए, पर उस ने तब तक कुछ नहीं खायापीया, जब तक कि पंचों ने अलग रहने का फैसला नहीं ले लिया.

अब तो मोहिनी की पौबारह थी. अकेले घर में उसे सभी तरह की छूट थी. न दिन में कोई देखने वाला, न रात में कोई उठाने वाला. अब तो वह अपनी नींद सोती और अपनी नींद जागती थी. मनोहरा तो उस के रूप और जवानी पर पहले से ही लट्टू था, बंटवारा होने के बाद से तो वह उस का और भी एहसानमंद हो गया था.

मनोहरा दिनभर अपने खेतों में काम करता और रात में खापी कर मोहिनी के रूपरस का पान कर जो सोता, तो 4 बजे भोर में ही पशुओं को चारापानी देने के लिए उठता.

इस बीच मोहिनी क्या करती है, क्या खातीपीती है, कहां उठतीबैठती है, इस का उसे बिलकुल भी एहसास न था और न ही चिंता थी.

मोहिनी ने एक मोबाइल फोन खरीद लिया. कुछ ही दिनों में उस ने अपने पुराने प्रेमी से फोन पर बात की, ‘‘सुनो कन्हैया, अब मैं यहां भी पूरी तरह से आजाद हूं. तुम जब चाहो समय निकाल कर यहां आ सकते हो, केवल इतना ध्यान रखना कि मेरे गांव के पास आ कर पहले मुझ से बातचीत कर के ही घर पर आना… समझे?’’

‘क्यों, अब मेरे रात में आने से तुझे अपनी नींद में खलल पड़ती है क्या? दिन में बारबार तुम्हारे यहां आने से नाहक लोगों को शक होगा,’ कन्हैया ने कहा.

‘‘रात के अंधेरे में तो सभी काला धंधा चलाते हैं, पर दिन के उजाले में भी कुछ दिन अपना काला धंधा चला कर मजा लेने में क्या हर्ज है. रात को पशुशाला में गोबर की बदबू के बीच वह मजा कहां, जो दिन के उजाले में अपने मर्द के बिछावन पर मिलेगा.’’

‘ठीक है, मोहिनी. तुम्हारी बातों को मैं ने कब काटा है. यह आदेश भी सिरआंखों पर, लेकिन जोश के साथ होश कभी नहीं खोना चाहिए… ठीक है, कल दोपहर बाद…’ कन्हैया बोला.

दूसरे दिन सवेरे ही मोहिनी ने मनोहरा को चायनाश्ता करा कर, दोपहर का खाना दे कर खेत पर काम करने इस तरह विदा किया, जैसे कोई मां अपने बच्चे को तैयार कर पढ़ने के लिए भेजती है.

ठीक साढ़े 12 बजे मोबाइल फोन की घंटी बजने लगी. भीतरबाहर, अगलबगल देख कर मोहिनी ने कन्हैया को घर पर आने का सिगनल दे दिया.

कन्हैया सावधानी से उस के दरवाजे तक आ गया और वहां से उसे अपने आंगन तक ले जाने के लिए तो मोहिनी वहां मौजूद थी ही. तकरीबन 2 घंटे तक कन्हैया वहां रह कर मौजमजा लेता रहा, फिर जैसे आया था वैसे ही लौट गया.

ठीक उसी समय अलग हुए बराबर के घर में सलोनी अपने छोटे भाई रमुआ के साथ पशुओं को खूंटे से बांध रही थी. आज रमुआ अपने साथ दोपहर का खाना नहीं ले जा सका था, इसी वजह से वह सवेरे ही पशुओं को हांक लाया था.

सलोनी ने चाची के घर से निकल कर एक अजनबी को जाते देखा, तो उसे कुछ अटपटा सा लगा, पर वह चुप लगा गई.

दूसरे दिन भी जब सलोनी बैलों को पानी पिलाने के लिए दरवाजे पर आई, तो गांव के ही रामखिलावन को मोहिनी के घर से निकलते देखा. देखते ही वह पहचान गई कि यह वही रामखिलावन है, जिस के साथ चाची उसे बदनाम कर के दादादादी और उन से अलग हुई थी.

अब तो सलोनी के मन में कुछ उथलपुथल सी होने लगी. उस ने अपने मन को शांत कर एक फैसला लिया और मुसकराने लगी.

अब सलोनी बराबर चाचा के घर की निगरानी करने लगी. वह अपने आंगन से निकल कर चुपके से चाचाचाची के घर की ओर देख लेती और लौट जाती. एक दिन उसे फिर एक नया अजनबी उस आंगन से निकलते हुए दिखा.

अब सलोनी से रहा नहीं गया. उस ने अपनी दादी से सारी बातें बताईं. वह बूढ़ी अपनी एक खास जवान पड़ोसन से मदद ले कर इस बात की जांच में जुट गई.

तीनों मिल कर छिपछिप कर एक हफ्ते तक निगरानी करती रहीं. सलोनी की बात सोलह आने सच साबित हुई. फिर दादी ने अपने बड़े बेटे गोखुला और अपने पति से सहयोग ले कर एक नई योजना बनाई और 2-4 दिनों तक और इंतजार किया.

दूसरी ओर मोहिनी इन सभी बातों से अनजान मौजमस्ती में मशगूल रहती थी. वैसे, उस के घर में जो भी मर्द आता था, वह कोई कीमती चीज उसे दे जाता था.

कन्हैया को आए जब कई दिन हो गए, तो मोहिनी के मन की तड़प बढ़ गई, दिल जोरों से धड़कने लगा. उसे खयाल आया कि सिकंदर भी आने से मना कर चुका है, तो क्यों न आज फिर एक बार कन्हैया को ही बुला लिया जाए. उस ने झट से मोबाइल फोन उठा लिया.

दूसरी ओर से कन्हैया ने पूछा, ‘हां मोहिनी, क्या हालचाल है? तुम वहां खुश तो हो न?’

‘‘क्या खाक खुश रहूंगी. तुम तो इधर का जैसे रास्ता ही भूल बैठे. दिनभर बैठी रहती हूं मैं तुम्हारी याद में और तुम तो जैसे डुमरी का फूल बन गए हो आजकल.’’

‘बोलो क्या हुक्म है?’

‘‘आज तुम दोपहर के 12 बजे मेरे घर आ जाओ.’’

‘हुजूर का हुक्म सिरआंखों पर,’ कहते हुए कन्हैया ने फोन काट दिया.

मोहिनी ने तो अपनी योजना बना ली थी, पर उसे भनक तक नहीं थी कि कोई उस पर नजर रखे हुए है. कन्हैया पर नजर पड़ते ही सभी सावधान हो गए. वह एक ओर से आ कर मोहिनी के आंगन में घुस गया. लोगों ने देखा कि मोहिनी उसे दरवाजे से भीतर ले गई.

सलोनी ने दादी के कहने पर मनोहरा चाचा को भी बुला कर अपने दरवाजे पर बैठा लिया था. धीरेधीरे कुछ और लोग आ गए और जब तकरीबन आधा घंटा बीत गया होगा, तब मनोहरा को आगे कर सभी लोग उस के दरवाजे पर पहुंच गए.

दस्तक देने पर जब दरवाजा नहीं खुला, तब लोगों ने मनोहरा को ऊंची आवाज लगा कर मोहिनी को बुलाने को कहा. उस की आवाज को पहचान कर मोहिनी को कुछ शक हुआ, क्योंकि आज उसे धान के खेत की निराईगुड़ाई करनी थी. आज उसे शाम में भी देर से आने की उम्मीद थी. वह कन्हैया संग पलंग पर प्रेम की पेंगें भर रही थी.

ज्यों ही मोहिनी ने दरवाजा खोला, सामने मनोहरा के संग पासपड़ोस के लोगों को देख कर उस के होश उड़ गए. वह कुछ बोलती, इस से पहले ही पूरा हुजूम उस के आंगन में घुस गया और कन्हैया को भी धर दबोचा.

पत्नी मोहिनी के सामने हमेशा भीगी बिल्ली बना रहने वाला मनोहरा आज न जाने कैसे बब्बर शेर बन कर दहाड़ता हुआ उस पर पिल पड़ा और चिल्लाया, ‘‘आज मैं इस को जान से मार कर ही चैन की सांस लूंगा.’’

उस दिन के बाद से फिर न तो मोहिनी कभी वापस गांव में दिखी और न ही उस का प्रेमी. सुना था कि वह शहर जा कर कई घरों में बरतन मांज कर फटेहाल गुजारा कर रही है.

Crime Story : हुस्न और हवस का खूनी खेल

Crime Story : मिस्टर महेश का कारोबार अच्छा चल रहा था. उन की गारमैंट की कंपनी थी. उन के बनाए सामान का एक बड़ा हिस्सा ऐक्सपोर्ट होता था. मिस्टर महेश थोड़े नाटे और मोटे थे और रंग भी सांवला था, पर उन की पढ़ाईलिखाई और कारोबार करने की चतुराई लाखों में एक थी. मिस्टर महेश ने अमेरिका की हौर्वर्ड यूनिवर्सिटी से एमबीए करने के बाद अपने पिता का कारोबार संभाला था. वे तकरीबन 50 साल के हो चुके थे. उन की शादी भी हो चुकी थी. बीवी काफी खूबसूरत और स्मार्ट थी, पर 5 साल बाद ही उन्हें छोड़ कर किसी और के साथ विदेश जा बैठी थी. उस के बाद उन्हें शादी में कोई खास दिलचस्पी नहीं थी. पर कुछ महीने पहले ही तकरीबन 25 साल की चंचल से उन की दूसरी शादी हुई थी.

चंचल अपनी निजी जिंदगी में भी काफी चंचल थी. 20 साल की उम्र में उस ने जानबूझ कर रवि से शादी की थी. रवि को कैंसर था और वह 3 साल के अंदर चल बसा.

रवि वैसे तो ज्यादा अमीर नहीं था, फिर भी 2 कमरे का एक फ्लैट, बीमा की रकम और कुछ बैंक बैलैंस मिला कर तकरीबन 2 लाख रुपए और साथ में एक स्कूटर वह छोड़ गया था.

पर वह रकम चंचल जैसी मौडर्न लड़की के लिए ज्यादा नहीं थी. धीरेधीरे वह रकम भी खत्म हो रही थी. इसी बीच उस ने मिस्टर महेश को अपने जाल में फांस लिया था. वह उन की कंपनी में सैक्रेटरी बन कर आई और फिर उन की लाइफ पार्टनर बन बैठी.

चंचल ने शादी के बाद नौकरी छोड़ दी. अब वह मिस्टर महेश के आलीशान बंगले में रहती थी और कार के भरपूर मजे ले रही थी.

इसी बीच मनीष नाम का एक नौजवान मिस्टर महेश की कंपनी में चंचल की जगह सैक्रेटरी बन कर आया.

चंचल और मिस्टर महेश की जिंदगी कुछ दिनों तक सामान्य रही थी. वह पेट से भी हुई थी, पर मिस्टर महेश को इस की भनक भी नहीं होने दी और उस ने बच्चा गिरवा लिया. उस की नजर मिस्टर महेश के कारोबार पर थी.

उधर मनीष अकसर मिस्टर महेश से मिलने घर पर भी आया करता था. चंचल उस की खूब खातिरदारी करती थी. उस के साथ बैठ कर बातें किया करती थी.

बातों के दौरान चाय का कप बढ़ाते समय वह अपना आंचल जानबूझ कर गिरा देती और अपने उभार दिखाती, तो कभी टेबल के नीचे से मनीष के पैरों से खेलती.

धीरेधीरे मनीष भी चंचल की ओर खिंचने लगा था. अब तो वह मनीष के साथ घूमने भी जाया करती थी.

कभीकभार खुद मिस्टर महेश भी मनीष को चंचल के साथ शौपिंग के लिए भेज देते थे. चंचल ने खुश हो कर मनीष को भी बिलकुल अपने जैसा एक कीमती मोबाइल फोन खरीद कर दिया था.

चंचल मनीष को शहर से थोड़ी दूर हाईवे पर बने एक रिसोर्ट पर ले जाती, वहां घंटों उस के साथ समय बिताती और उस के साथ बिस्तरबाजी भी करती. जो देहसुख उसे मिस्टर महेश से नहीं मिलता था, वह मनीष से पा रही थी.

मिस्टर महेश को कारोबार के सिलसिले में शहर से बाहर भी जाना होता था. ऐसे में तो चंचल और मनीष को पूरी छूट होती थी.

खून, खांसी और खुशी छिपाए नहीं छिपते हैं. धीरेधीरे उन दोनों के किस्से दफ्तर से होतेहोते मिस्टर महेश के कानों में भी पड़े, पर उन्होंने इसे चंचल के सामने कभी जाहिर नहीं होने दिया. वैसे, कुछ सचेत चंचल भी हो गई थी.

कुछ दिनों बाद मिस्टर महेश को फिर शहर से बाहर जाना पड़ा था. चंचल मनीष को जीप में बिठा कर फिर किसी रिसोर्ट में मजे ले रही थी.

उसी समय मिस्टर महेश का फोन चंचल के फोन पर आया था. मनीष ने अपना फोन समझ कर ‘हैलो’ कहा.

ठीक इसी बीच चंचल भी बोल उठी, ‘‘किस का फोन है डियर?’’

मिस्टर महेश की आवाज सुन कर मनीष ने फोन चंचल को पकड़ा दिया. बात कर के चंचल ने फोन रख दिया, पर दोनों के चेहरों पर चिंता की लकीरें खिंच आई थीं. उन की मौजमस्ती के आलम में खलल पड़ गया था.

चंचल ने कहा, ‘‘हमें इसी वक्त चलना होगा. मिस्टर महेश 2-3 घंटे में घर आने वाले हैं.’’

रिसोर्ट में आम के बाग थे. चंचल ने 10 किलो आम पैक कराए, तो मनीष पूछ बैठा, ‘‘इतने आमों का तुम क्या करोगी?’’

‘‘तुम आम खाओ, गुठली गिनने की क्या जरूरत है?’’ और दोनों ने एकएक आम जीप में बैठेबैठे खाया.

दोनों अब घर लौट रहे थे. जीप चंचल चला रहा थी. जिस ओर मनीष बैठा था, सड़क के ठीक नीचे गहरी खाई थी. एक जगह जीप को धीमा कर चंचल बाईं ओर पड़ी रेत के ढेर पर कूद गई और जीप का स्टीयरिंग थोड़ा खाई की तरफ ही काट दिया.

मनीष जीप के साथ खाई में जा गिरा था. चंचल की बांह पर मामूली खरोंचें आई थीं. थोड़ी दूर जा कर उस ने लिफ्ट ली और आगे टैक्सी ले कर घर पहुंची, तो देखा कि मिस्टर महेश सोफे पर बैठे कौफी पी रहे थे और टैलीविजन देख रहे थे.

मिस्टर महेश ने पूछा, ‘‘बड़ी देर कर दी… कहां गई थीं?’’

‘‘रिसोर्ट के बाग में फ्रैश आम की सेल लगी थी, वहीं चली गई थी.’’

इसी बीच टैलीविजन पर खबर आई कि एक जीप खाई में गिरी है. उस में सवार एक नौजवान की मौत हो गई है. उस जीप में आमों से भरा एक बैग भी था.

मिस्टर खन्ना बोल उठे, ‘‘तुम्हें तो चोट नहीं आई? मैं मनीष को नौकरी से निकालने ही वाला था. कमबख्त काम के समय दफ्तर से लापता रहता था. मौत ने उसे दुनिया से ही निकाल बाहर कर दिया.’’

इधर शिकारी चंचल अपनी साड़ी पर चिपकी रेत झाड़ रही थी.

Social Story : परमानंद क्या कर पाया क्लेम का आवदेन

Social Story : जब आंखें खुलीं, तो परमानंद ने देखा कि दिन निकल आया था. रात को सोते समय उस ने सोचा था कि सुबह वह जल्दी उठेगा. आटोरिकशा वालों की हड़ताल थी, वरना कुछ कमाई हो जाती. वैसे, आज के समय तांगा कौन लेता है? सभी तेज भागने वाली सवारी लेना चाहते हैं. आटोरिकशा वालों की हड़ताल से कुछ उम्मीद बंधी थी, पर सिर भारी हो रहा था. बुखार सा लग रहा था. इच्छा हुई, आराम कर ले, पर कमाएगा नहीं तो खाएगा क्या? और उस का रुस्तम? उस का क्या होगा?

परमानंद जल्दी से उठा और रुस्तम को चारापानी डाल कर तैयार होने के लिए चल दिया. जल्दीजल्दी सबकुछ निबटा कर उस ने तांगा तैयार किया और सड़क पर जा पहुंचा.

जल्दी ही सवारी भी मिल गई. 2 लोगों ने हाथ दिखा कर उसे रोका. उन में एक अधेड़ था और दूसरा नौजवान.

‘‘कलक्ट्रेट चलना है?’’ अधेड़ आदमी ने पूछा.

‘‘जी, चलेंगे,’’ परमानंद बोला.

‘‘क्या लोगे? पहले तय कर लो,नहीं तो बाद में झंझट करोगे,’’ नौजवान ने कहा.

‘‘आप ही मुनासिब समझ कर दे दीजिएगा. झंझट किस बात का?’’

‘‘नहींनहीं, पहले तय हो जाना चाहिए. हम 30 रुपए देंगे. चलना हैतो बोलो, नहीं तो हम दूसरी सवारी देखते हैं.’’

‘‘ठीक है साहब,’’ परमानंद बोला.

‘‘और देखो, कलक्ट्रेट के भीतर पहुंचाना होगा. बीच में ही मत छोड़ देना.’’

‘‘गांधी मैदान का भाड़ा ही 30 रुपए होता है. भीतर अंदर तक तो 50 रुपए होगा.’’

‘‘देखो, हम ने जो कह दिया, सो कह दिया. चलना है तो चलो,’’ नौजवान की आवाज सख्त थी.

परमानंद इनकार करने ही जा रहा था कि बुजुर्ग ने तांगे पर चढ़ते हुए कहा, ‘‘चलो, तुम 40 रुपए ले लेना. हम भी तो परेशानी में पड़े हैं.’’ अब परमानंद इनकार न कर सका. उस के सिर का दर्द बढ़ता जा रहा था और वह तकरार के मूड में नहीं था.

‘‘ठीक है, 40 रुपए ही सही,’’ परमानंद ने धीरे से कहा. तांगा सड़क पर सरपट दौड़ने लगा. आटोरिकशा वालों की हड़ताल से सड़क खाली सी थी. रुस्तम भी रात के आराम से तरोताजा हो कर तेजी से दौड़ रहा था.दोनों सवारी आपस में बातें कर रहे थे. पता चला, वे एक परिवार के नहीं हैं, बल्कि अलगअलग परिवारों से हैं. शायद दूर का रिश्ता हो. दोनों बाढ़ के नुकसान के अनुदान के सिलसिले में कलक्टर साहब के दफ्तर जा रहे थे.

थोड़ा आगे जाने पर सड़क की दूसरी ओर एक गिरजाघर दिखाई पड़ा. परमानंद ने देखा कि अंधेड़ ने बड़ी श्रद्धा और भक्ति से सिर झुकाया.

नौजवान ने हैरानी से पूछा, ‘‘आप ईसाई गिरजाघर को प्रणाम करते हैं?’’

अधेड़ ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘पता नहीं, किस देवी या देवता का आशीर्वाद मिल जाए और काम बन जाए?’’

वे अधेड़ बता रहे थे, ‘‘इस क्लेम को पाने के लिए मैं 50-60 हजार रुपए खर्च कर चुका हूं. क्लेम 2 लाख रुपए का किया है. अपने एकमंजिला मकान को दोमंजिला दिखाया है. खेती का नुकसान भी दोगुना दिखाया है,’’ और एक लंबी आह भरते हुए उन्होंने आगे जोड़ा, ‘‘देखें, कितना पास होता है और मिलता क्या है?’’

नौजवान ने हामी भरी, ‘‘मैं ने भी अपना नुकसान खूब बढ़ाचढ़ा कर दिखाया है. मुखिया तो मानता ही न था. 30 हजार रुपए दे कर उसे किसी तरह मनाया. मुलाजिम और चपरासी के हाथ अलग से गरम करने पड़े.

‘‘और कलक्ट्रेट में तो खुलेआम लूट है. सभी मुंह खोले रहते हैं. बिना पैसा लिए कोई काम ही नहीं करता. फाइल आगे बढ़ाने के लिए हर बार चपरासी को चढ़ावा देना पड़ता है. लगता है कि सभी बाढ़ और सूखे के लिए भगवान से प्रार्थना करते रहते हैं.’’

आगे गंगा किनारे एक मंदिर था. उन्होंने तांगा रुकवाया, उतर कर बगल की दुकान से तमाम तरह की मिठाइयां खरीदीं और मंदिर में प्रवेश किया.

जब वे वापस आए, तो नौजवान ने कहा, ‘‘इतनी सारीमिठाइयां चढ़ाने की क्या जरूरत थी?’’‘‘सुना नहीं… जितनी ज्यादा शक्कर डालोगे, हलवा उतना ही मीठा होगा. लंबाचौड़ा क्लेम है, चढ़ावा तो बड़ा करना ही होगा. पंडितजी ने कहा है कि जितना ज्यादा चढ़ावा चढ़ाओगे, तो जल्दी फल मिलेगा.’’

इस बाढ़ में तो परमानंद ने अपना सबकुछ खो दिया है. उस का सारा परिवार, उस की प्यारी पत्नी, उस के 2 छोटेछोटे बच्चे, उस का बूढ़ा पिता. सब को इस बाढ़ ने निगल लिया था. एक छोटा सा मिट्टी का घर था, गंगा किनारे सरकारी जमीन पर. सबकुछ, सारे लोग, घर का सारा सामान, रात के अंधेरे में गंगा में समा गए. कुछ भी नहीं बचा.

यह तो रुस्तम की मेहरबानी थी कि वह बच गया, नहीं तो वह भी गंगा की भेंट चढ़ गया होता. पता नहीं, जानवरों को कैसे आने वाली मुसीबत का पता चल जाता है? शायद उसी के चलते उस दिन रुस्तम, जो बाहर बंधा था, रस्सी तोड़ कर जोरों से हिनहिनाते हुए भाग खड़ा हुआ. परमानंद उस के पीछे दौड़ा. दौड़तेभागते वे दूर निकल गए.

रुस्तम लौटने को तैयार ही नहीं था, इसलिए परमानंद भी वहीं रह गया. जब वह लौटा, तो सबकुछ खत्म हो गया था. तेज धारा के कटाव से उस का घर गंगा में बह गया था. तब उस के जीने की इच्छा भी मर गई थी.

वह तो जिंदा रहा सिर्फ रुस्तम के लिए, जो उस का घोड़ा नहीं, बल्कि परिवार का हिस्सा था. वह उस का बेटा था और अब तो उस की जिंदगी बचाने वाला भी.

‘‘जरा जल्दी चलो, दिनभर ले लोगे क्या?’’ नौजवान ने झुंझलाते हुए कहा, ‘‘पहले ही इतनी देरी हो गई है.’’

तांगा तेजी से भाग रहा था… और दिनों से कहीं ज्यादा तेज.

‘क्या उड़ा कर ले चलें? तांगा ही तो है, मोटरगाड़ी नहीं,’ परमानंद ने मन ही मन कहा, पर उन लोगों को खुश रखने के लिए उस ने घोड़े को ललकारा, ‘‘चल बेटा, अपनी चाल दिखा. साहब लोगों को देर हो रही है.’’

लेकिन उस ने चाबुक नहीं उठाया. वह रुस्तम को कभी भी नहीं मारता था.जल्दी ही वे दोनों कलक्ट्रेट पहुंच गए. अधेड़ ने सौ का नोट निकाला, ‘‘बाकी के 60 रुपए दे दो भाई.’’ छुट्टे के नाम पर परमानंद के पास फूटी कौड़ी भी नहीं थी.

‘‘मैं छुट्टे कहां से लाऊं?’’ उस ने आसपास नजर दौड़ाई. छुट्टे पैसे देने वाला उसे कोई न दिखा.

‘‘छुट्टे ले कर चलना चाहिए न?’’ नौजवान बोला. अपने बटुए से उस ने 30 रुपए निकाले, ‘‘मेरे पास तो बस यही छुट्टे हैं.’’

‘‘ले लो भाई. आज ये ही रख लो. बाकी फिर कभी ले लेना,’’ अधेड़ ने कहा.

परमानंद ने वे 30 रुपए ले लिए. पहली सवारी में ही घाटा. फिर उस ने रुस्तम को देखा और उस की पीठ थपथपाते हुए कहा, ‘‘चलो, तेरे लिए चारापानी का इंतजाम तो हो गया.’’

परमानंद सोच रहा था कि बाढ़ के अनुदान का अधिकार इन लोगों से ज्यादा तो उस का था. उस का इन लोगों से ज्यादा नुकसान हुआ था, पर वह कोई क्लेम नहीं कर सका था. घूस देने के लिए उस के पास पैसे न थे. जमीनजायदाद न थी. उस का घर मिट्टी का था, जो सरकारी जमीन पर बना था. मुखिया 10 हजार रुपए मांग रहा था. मुलाजिम की मांग अलग थी और कलक्ट्रेट का खर्च अलग. कहां से लाता वह यह सब? बाढ़ में सबकुछ खो देने के बाद उसे कुछ भी मुआवजा नहीं मिला. किसी ने सुझाया था, ‘रुस्तम को बेच दो.’

ऐसा परमानंद कैसे कर सकता था? कोई अपने बेटे को बेच सकता है भला? उस ने अपने रुस्तम को प्यार से थपथपाया, ‘‘मेरा क्लेम तो तू ही है. मेरी सारी जरूरतों को तू ही पूरा करता है.’’ रुस्तम ने गरदन हिला कर सहमति जताई. गले में बंधी घंटियां बज उठीं और परमानंद के कानों में मधुर संगीत गूंज उठा.

Family Story : समय के साथ

Family Story : रामलाल की सचिवालय में चपरासी की ड्यूटी थी. वह अपने परिवार के साथ मंत्रीजी के बंगले पर ही रहता था. जब वह सरकारी नौकरी में लगा था, तब गांव में उस की 2 बीघा जमीन थी और एक छोटा सा टूटाफूटा घर था, मगर आज 50 बीघा जमीन और 2-2 आलीशान मकान हैं. तीजत्योहार के अलावा शादीब्याह में जब रामलाल अपनी शानदार कार से बीवीबच्चों के साथ गांव में आता है, तब उसे देख कर कोई यह कह नहीं सकता कि वह चपरासी है. उस के बीवीबच्चों के कीमती कपड़ों को देख कर लोग यही समझते हैं कि वे सब किसी बड़े सरकारी अफसर के परिवार वाले हैं.

एक बार रामलाल गांव में अपने फार्महाउस पर था, तभी वहां पर किसी गांव के बड़े सरकारी स्कूल में चपरासी की नौकरी करने वाला उस के गांव का भोलाराम आया.

भोलाराम बोला, ‘‘रामलालजी, हम लोग एक ही समय पर सरकारी नौकरी में लगे थे, मगर तुम आज कहां से कहां पहुंच गए और मैं गरीब चपरासी ही रह गया हूं. तुम्हारी इस तरक्की के बारे में मुझे भी कुछ बताओ भाई.’’

‘‘मेरी तरक्की का राज यही है कि मैं सचिवालय में नौकरी करते हुए समय के साथ चलने लगा था और तुम गांव में ही रह कर अपनी पुरानी दकियानूसी बातों के कारण यह फटेहाल जिंदगी बिता रहे हो…

‘‘मैं ने अपनी दोनों बेटियों को शहर में खूब पढ़ायालिखाया और तुम ने अपनी बेटियों को घर में ही बिठा रखा है. अगर वे शहर में पढ़तीं, तो आज अच्छी नौकरियां कर रही होतीं. मेरी एक बेटी अब तहसीलदार होने वाली है और दूसरी बेटी कलक्टर,’’ रामलाल ने उसे अपनी तरक्की का राज बताया, तो भोलाराम उस से बोला, ‘‘तो मुझे भी अब अपनी दोनों बेटियों के लिए क्या करना चाहिए ’’

‘‘तुम अपनी दोनों बेटियों को हमारे साथ शहर भेज दो. मेरी दोनों बेटियां उन्हें कुछ ऐसा सिखा देंगी कि उन की और तुम्हारी जिंदगी बन जाएगी. कुछ ही दिनों में वे उन्हें ऐसा बदल देंगी कि उन्हें देख कर तुम यह कह ही नहीं पाओगे कि वे दोनों तुम्हारी ही बेटियां हैं…’’

रामलाल की इन बातों को सुन कर भोलाराम ने अपनी दोनों बेटियों को उन के साथ भेजने की हां कर दी.

भोलाराम ने अपने घर जा कर ये सभी बातें अपनी बीवी सावित्री को बताईं, तो वह उस से बोली, ‘‘शहर में जा कर हमारी दोनों बेटियां कहीं शहर की लड़कियों की तरह मौजमस्ती करने न लग जाएं ’’

‘‘मौजमस्ती तो हमारी ये दोनों बेटियां अपने गांव में रहते हुए भी कर रही हैं. कहने को उन की उम्र 16 और 18 साल है, लेकिन अभी से उन में आवारा लड़कों के साथ मजे लेने की आदत पड़ चुकी है.’’

सावित्री बोली, ‘‘तुम अपनी बेटियों के बारे में यह सब क्यों कह रहे हो ’’

‘‘कुछ दिन पहले जब मैं दोपहर में अपने खेतों पर गया था, तब बाजरे के खेतों में हमारी ये दोनों बेटियां उषा और शर्मिला बिलकुल नंगधड़ंग हो कर गांव के 2 लड़कों के साथ वही सब कर रही थीं, जो पति अपनी पत्नी के साथ करता है. मैं ने ये सब बातें तुम्हें इसलिए नहीं बताईं कि सुन कर तुम्हें दुख होगा.’’

सावित्री यह सुन कर दंग रह गई.

भोलाराम उस से बोला, ‘‘हमारी दोनों बेटियों को लड़कों के साथ सोने का चसका लग गया है. अगर वे किसी के साथ घर से भाग गईं, तो इस से हमारी गांव में इतनी बदनामी होगी कि हम लोग किसी को मुंह दिखाने नहीं रहेंगे, इसलिए उन्हें रामलाल के साथ शहर भेज देते हैं.’’

सावित्री बोली, ‘‘लेकिन, रामलाल के बारे में हमारी पड़ोसन माला कह रही थी कि वह अपनी लड़कियों को मंत्रीअफसरों के अलावा ठेकेदारों के साथ सुलाता है, तभी तो आज वह उन की कमाई से इतना पैसे वाला बना है. जब उस की दोनों बेटियां छोटी थीं, तब वह अपनी बीवी रीना को उन के साथ सुलाता था.’’

‘‘अपनी बीवी और बेटियों को पराए मर्दों के साथ सुला कर रामलाल ने आज अपनी हैसियत बना ली है. वे सभी लोग आज ऐशोआराम की जिंदगी जी रहे हैं और हम लोग अपनी दकियानूसी बातों के चलते गांव में ऐसी फटेहाल जिंदगी बिता रहे हैं…’’ भोलाराम थोड़ा रुक कर बोला, ‘‘हमें भी अब रामलाल की तरह समय के साथ चलना चाहिए. हमारी दोनों बेटियां गांव के लड़कों को मुफ्त में ही अपनी जवानी के मजे दे रही हैं.

‘‘अगर ये दोनों शहर में मंत्रीअफसरों व ठेकेदारों को मजे देंगी, तो हम लोग भी रामलाल की तरह पैसे वाले हो जाएंगे और फिर उन दोनों की अच्छे घरों में शादियां कर देंगे. आजकल लोग आदमी का किरदार नहीं, बल्कि उस की हैसियत देखते हैं.’’

सावित्री ने अपनी दोनों बेटियों को रामलाल के साथ शहर भेजने का मन बना लिया.

शहर भेजने की ये बातें जब उन की दोनों बेटियों ने सुनी, तो वे खुशी से झूम उठीं.

सावित्री ने उन दोनों को खुल कर कह दिया, ‘‘यहां पर तुम दोनों बहनें बाजरे के खेतों में चोरीछिपे लड़कों के साथ सोती हो, लेकिन शहर में पैसे कमाओगी. लेकिन जरूरी उपाय करना मत भूलना.’’

दोनों बहनें मन ही मन सोच रही थीं कि बाजरे के खेत में तो किसी के आने के डर से वे पूरे मजे नहीं ले पाती थीं. उन्हें हमेशा यह डर लगा रहता था कि कभी कोई वहां पर आ कर उन्हें देख न ले. शहर में तो एसी लगे कमरे होते हैं, वहां पर किसी के आने का उन्हें डर भी नहीं रहेगा.

जब वे दोनों बहनें रामलाल और उस के परिवार के साथ उन की एसी कार में बैठीं, तो एसी की ठंडीठंडी हवा खाते हुए उन्हें कब नींद आ गई, पता नहीं लगा.

रामलाल की बेटियों में से एक ने ही उन्हें जगा कर कहा, ‘‘अब शहर आने वाला है. वहां के एक मौल से तुम्हारे लिए कुछ ढंग के कपड़े लेने हैं, जिन्हें पहन कर तुम दोनों बहनें खूबसूरत लगोगी.’’

जब वे लोग शहर पहुंचे, तो एक बड़े से मौल में उन दोनों के लिए ढंग के कपड़े खरीदे गए. वहीं पर उन के बाल सैट करा कर उन्हें वे कपड़े पहनाए गए. आईने में खुद को देख कर वे दोनों बहनें बड़ी इतरा रही थीं.

जब वे दोनों रामलाल के घर आईं, तो मंत्रीजी भी उन्हें देख कर चौंक गए. उन दोनों को नहला कर मैकअप करा कर जब रामलाल की बेटी उन्हें मंत्रीजी के कमरे में छोड़ने गई, तो मंत्रीजी भूखे भेडि़ए की तरह उन पर झपट पड़े थे.

कुछ ही देर में मंत्री के साथ भी वही हुआ, जो बाजरे के खेत में उन लड़कों से होता था. मंत्री की तो खुशी की कोई सीमा ही नहीं थी. उन्होंने कुछ दिन बाद दोनों बहनों को एक ठेकेदार से एक लाख रुपए दिलवा दिए.

अपनी दोनों बेटियों की एक लाख रुपए की कमाई देख कर भोलाराम तो खुशी से पागल ही हो गया था. भोलाराम ने भी अब समय के साथ चलना सीख लिया था, पर उसे यह नहीं मालूम था कि यह मौज कितने दिन चलेगी. जैसे ही लड़कियों में कुछ बीमारी हुई नहीं या और दूसरी जवान लड़कियां दिखी नहीं कि वे वापस गांव में नजर आएंगी.

Family Story : मरियम अब बड़ी हो गई थी

Family Story : जब वह छोटी थी, तो मां यह कह कर उसे बहला दिया करती थी कि पापा परदेश में नौकरी कर रहे हैं और उस के लिए ढेर सारा पैसा ले कर आएंगे. लेकिन मरियम अब बड़ी हो गई थी और स्कूल जाने लगी थी.

एक बार मरियम ने मां से कहा, ‘‘मम्मी, न तो पापा खुद आते हैं, न ही कभी उन का फोन आता है. क्या वे हम से नाराज हैं?’’

मरियम के इस सवाल पर फिरदौस कहतीं, ‘‘नहीं बेटी, तुम्हारे पापा तो दुनिया में सब से अच्छे पापा हैं. वे हम लोगों से बहुत प्यार करते हैं, लेकिन वे जहां नौकरी करते हैं, वहां छुट्टी नहीं मिलती है, इसीलिए आ नहीं पाते हैं.’’

मां की बातों से मरियम को तसल्ली तो मिल जाती, लेकिन पिता की याद कम नहीं हो पाती थी.

समय हवा के झोंके की तरह बीतता रहा. मरियम अब 5वीं जमात की एक समझदार बच्ची बन चुकी थी.

एक दिन स्कूल की छुट्टी के समय मरियम ने देखा कि उस के स्कूल की एक छात्रा सुमन ने दौड़ कर अपने पापा के गले से लिपट कर कहा कि आज हम पहले आइसक्रीम खाएंगे, उस के बाद घर जाएंगे.

यह देख कर मरियम को अपने पापा की याद बहुत आई. वह स्कूल से घर आई, तो बगैर कुछ खाएपीए सीधे अपने कमरे में जा कर लेट गई.

घर के काम निबटा कर फिरदौस मरियम के पास आ कर बैठ गईं और उस के काले खूबसूरत बालों में हाथ से कंघी करते हुए पूछा, ‘‘क्या बात है, आज हमारी बेटी कुछ उदास लग रही है?’’

फिरदौस का इतना पूछना था कि मरियम फफक कर रो पड़ी, ‘‘मम्मी, आप मुझ से झूठ बोलती हैं न कि पापा दुबई में नौकरी करते हैं? अगर वे दुबई में हैं, तो फोन पर हम लोगों से बात क्यों नहीं करते हैं?’’

अब फिरदौस के लिए सचाई को छिपा कर रख पाना बहुत मुश्किल हो गया.

‘‘अच्छा, पहले तुम खाना खा लो. आज मैं तुम्हें सबकुछ सचसच बता दूंगी,’’ कहते हुए फिरदौस मरियम के लिए खाना लेने चली गईं.

जब फिरदौस खाना ले कर कमरे आईं, तो मरियम ने उन से कहा, ‘‘मम्मी, आप को पापा के बारे में जोकुछ बताना है, बताती जाइए. मैं खाना खाती हूं.’’

‘‘बेटी, तुम्हारे पापा इंजीनियर थे और दुबई में नौकरी करते थे. मैं भी उन्हीं के साथ रहती थी.’’

‘‘मम्मी, आप बारबार ‘थे’ शब्द का क्यों इस्तेमाल कर रही हैं? क्या पापा अब इस दुनिया में नहीं हैं?’’ इतना कह कर वह रोने लगी.

‘‘नहीं बेटी, पापा जिंदा हैं.’’

मरियम तुरंत आंसू पोंछ कर चुप हो गई. उसे डर था कि कहीं मम्मी सचाई बताए बगैर चली न जाएं.

फिरदौस ने बात का सिलसिला फिर से शुरू करते हुए कहा, ‘‘12 साल पहले की बात है, जब तुम्हारे पापा और मैं दुबई से भारत आए थे. हम दोनों ही बहुत खुश थे, लेकिन हमें क्या पता था कि इस के बाद हम सब एक ऐसी मुसीबत में पड़ जाएंगे, जिस से छुटकारा पाना नामुमकिन हो जाएगा.’’

‘‘शहर में दंगा हो गया. हिंदू और मुसलमान एकदूसरे के खून के प्यासे हो गए थे.

‘‘जैसेतैसे कर के जब फसाद थोड़ा थमा, तो हम दुबई जाने के लिए तैयार हो गए. यह भी एक अजीब इत्तिफाक था कि जिस दिन हमारी फ्लाइट थी, उसी दिन शहर में बम धमाके हो गए. इस में काफी लोगों की जानें चली गईं.

‘‘हम लोग दुबई तो पहुंच गए, लेकिन भारत से आने वाली हर खबर बड़ी संगीन थी. बम धमाकों के अपराधियों में तुम्हारे पापा का नाम भी आ रहा था.

‘‘तुम्हारे पापा को यह बात नामंजूर थी कि उन्हें कोई देशद्रोही या आतंकवादी समझे. उन्होंने किसी तरह भारत में रहने वाले अपने घरपरिवार और दोस्तों के जरीए पुलिस तक यह बात पहुंचाई कि वे बेकुसूर हैं और अपनी बेगुनाही साबित करने के लिए भारत आना चाहते हैं. कुछ दिनों के बाद तुम्हारे पापा भारत आ गए.

‘‘फिर वही हुआ, जिस का डर था. पुलिस ने हाथ आए तुम्हारे बेगुनाह मासूम पापा को उन बम धमाकों का मास्टरमाइंड बना कर जेल की सलाखों के पीछे डाल दिया.

‘‘पिछले 12 सालों से तुम्हारे पापा जेल में हैं,’’ इतना कह कर फिरदौस फूटफूट कर रोने लगीं.

मरियम ने किसी संजीदा शख्स की तरह पूछा, ‘‘क्या मैं अपने पापा से मिल सकती हूं?’’

‘‘हां बेटी, जरूर मिल सकती हो,’’ फिरदौस ने जवाब दिया, ‘‘मैं हर रविवार को तुम्हारे पापा से मिलने जेल जाती हूं. अब तुम भी मेरे साथ चल सकती हो.’’

12 साल की बेटी जब सामने आई, तो शहजाद ने अपना चेहरा छिपा लिया. अपनी बेटी के सामने वे एक अपराधी की तरह जेल की सलाखों के पीछे खड़े हो कर जमीन में धंसे जा रहे थे.

‘‘पापा, क्या आप सचमुच अपराधी हैं?’’ मरियम के इस सवाल पर शहजाद घबरा गए.

‘‘बेटी, तुम्हारे पापा बेकुसूर हैं. उन्होंने कोई जुर्म नहीं किया है. बस, हालात ने जेल की सलाखों के पीछे ला कर खड़ा कर दिया है,’’ इतना कह कर शहजाद बेटी की तरफ देखने लगे.

‘‘पापा, आप निश्चिंत हो जाइए. चाहे सारी दुनिया आप को अपराधी समझे, पर बेटी की नजर में आप एक ईमानदार नागरिक और देशभक्त रहेंगे.’’

अब मरियम हर रविवार को अपने पापा से मिलने जेल जाने लगी. वह जब भी पापा से मिलने जाती, तो उन की पसंद की खाने की कोई न कोई चीज बना कर ले जाती और अपने हाथों से खिलाती.

बापबेटी की इस मुलाकात को 10 साल और गुजर गए. 22 साल की मरियम अब स्कूल से निकल कर कालेज में जाने लगी थी.

पिछले 10 सालों से जेल का पूरा स्टाफ पिता और बेटी का मुहब्बत भरा मेलमिलाप बड़े शौक से देखता चला आ रहा था.

शहजाद ने अपनी जिंदगी के 22 साल जेल में कुछ इस तरह बिता दिए कि दुश्मन भी दोस्त बन गए. अनपढ़ कैदियों को पढ़ाना, बीमार कैदियों की सेवा करना व जरूरतमंद कैदियों की मदद करने की आदत ने उन्हें जेल में मशहूर बना दिया था.

कानून अंधा होता है, यह सिर्फ कहावत ही नहीं, बल्कि सच भी है. वह उतना ही देखता है, जितना उसे दिखाया जाता है. कानून के रखवालों ने शहजाद को एक आतंकवादी बना कर पेश किया था. उन के खिलाफ जो तानाबाना बुना गया, वह इतना मजबूत था कि इस अपराध से छुटकारा पाना उन के लिए नामुमकिन हो गया.

वैसे भी जिस पर आतंकवाद का ठप्पा लग जाए, फिर उस की सुनता कौन है? शहजाद के साथ मुल्क के नामीगिरामी वकील थे, लेकिन सब मिल कर भी उन्हें बेगुनाह साबित करने में नाकाम रहे.

निचली अदालत से ले कर सुप्रीम कोर्ट तक ने मौत की सजा को बरकरार रखा. मरियम और फिरदौस की दया की अपील को राष्ट्रपति महोदय ने भी ठुकरा दिया. फांसी की तारीख तय हो गई.

सुबह 4 बजे शहजाद को फांसी दी जानी थी. मरियम और फिरदौस के साथ जेल के कैदी भी उदास थे.

फिरदौस और मरियम आखिरी दीदार के लिए शहजाद की कोठरी में भेजे गए. बेटी और बीवी को देख शहजाद की आंखों की वीरानी और बढ़ गई.

मरियम ने बाप की हालत देख कर कहा, ‘‘पापा, आप की मौत का हम लोग जश्न मनाएंगे. लीजिए, आखिरी बार बेटी के हाथ की बनी खीर खा लीजिए.’’

शहजाद एक फीकी मुसकराहट के साथ करीब आए, तो मरियम ने अपने हाथों से उन्हें खीर खिलाई.

2 चम्मच खीर खाने के बाद ही शहजाद का चेहरा जर्द पड़ने लगा. मुंह से खून की उलटी शुरू हो गई.

शहजाद को उलटी करते देख जहां फिरदौस घबरा गईं, वहीं मरियम ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘पापा, आप की बेगुनाही तो साबित न करा सकी, लेकिन आप को फांसी से बचा लिया.

‘‘अब दुनिया यह न कह सकेगी कि आतंकवाद के अपराध में शहजाद को फांसी पर लटका दिया गया. आप को इज्जत की जिंदगी तो न मिल सकी, पर हां, इज्जत की मौत जरूर मिल गई.’’

फिरदौस की चीख सुन कर जब तक पहरेदार शहजाद की खबर लेते, तभी मरियम ने भी जहरीली खीर के 2 चम्मच खा लिए. जेल की उस काल कोठरी में अब 2 लाशें पड़ी थीं. एक को अदालत ने आतंकवादी होने की उपाधि दी थी, तो दूसरी को समाज ने आतंकवादी की बेटी करार दिया था. दोनों ही समाज और दुनिया से अब आजाद हो चुके थे.

Crime Story : सरेआम लूटी गई दो बहनों की इज्जत

Crime Story : रात का दूसरा पहर. दरवाजे पर आहट सुनाई पड़ी. कोई दरवाजा खोलने की कोशिश कर रहा था. आहट सुन कर नीतू की नींद उचट गई. वह सोचने लगी कि कहीं कोई जानवर तो नहीं, जो रात को अपने शिकार की तलाश में भटकता हुआ यहां तक आ पहुंचा हो?

तभी उसे दरवाजे के बाहर आदमी की छाया सी मालूम हुई. उस के हाथ दरवाजे पर चढ़ी सांकल को खोलने की कोशिश कर रहे थे.

यह देख नीतू डर कर सहम गई. उस के पास लेटी उस की छोटी बहन लच्छो अभी भी गहरी नींद में सो रही थी. उस ने उसे जगाया नहीं और खुद ही हिम्मत बटोर कर दरवाजे तक जा पहुंची.

सांकल खोलने के साथ ही वह चीख पड़ी, ‘‘मलखान तुम… इतनी रात को तुम मेरे दरवाजे पर क्या कर रहे हो?’’

नीतू को समझते देर नहीं लगी कि इतनी रात को मलखान के आने की क्या वजह हो सकती है. वह कुछ और कहती, इस से पहले मलखान ने अपने हाथों से उस का मुंह दबोच लिया.

‘‘आवाज मत निकालना, वरना यहीं ढेर कर दूंगा,’’ कह कर मलखान पूरी ताकत लगा कर नीतू को बाहर तक घसीट लाया.

आंगन के बाहर अनाज की एक छोटी सी कोठरी थी, जिस में भूसा भरा हुआ था. मलखान ने जबरदस्ती नीतू को भूसे के ढेर में पटक दिया. उस की चौड़ी छाती के बीच दुबलीपतली नीतू दब कर रह गई. मलखान उस पर सवार था.

‘‘पहले ही मान जाती, तो इतनी जबरदस्ती नहीं करनी पड़ती,’’ मलखान ने अपना कच्छा और लुंगी पहनते हुए कहा.

लच्छो, जो नीतू से 2 साल छोटी थी, उस ने करवट ली, तो नीतू को अपनी जगह न पा कर उठ बैठी. दरवाजा भी खुला पड़ा था. उसे कुछ अनजाना डर सा लगा.

मलखान पहले लच्छो के बदन से खेलने के चक्कर में था. 2 दिन पहले लच्छो ने उस के मुंह पर थूक दिया था, जब उस ने जामुन के पेड़ के नीचे उसे दबोचने की कोशिश की थी.

वह नीतू से ज्यादा ताकतवर और निडर थी. पर उस ने घुमा कर एक ऐसी लात मलखान की टांगों के बीच मारी कि वह ‘मर गया’ कह कर चीख पड़ा था.

अचानक हुए इस हमले से मलखान बौखला गया था. वह सोच भी नहीं पाया था कि लच्छो इस तरह का हमला अचानक कर देगी. उस की मर्दानगी तब धरी की धरी रह गई थी. एक तरह से लच्छो ने उसे चुनौती दे डाली थी.

लच्छो उठी और दालान में पड़े एक डंडे को उठा लिया. वह धीरेधीरे आगे बढ़ने लगी. उस का शक सही निकला कि दीदी किसी मुसीबत में फंस गई हैं.

मलखान उस समय अंधेरे में भागने की कोशिश कर रहा था कि अचानक लच्छो ने घुमा कर डंडा उस के सिर पर जड़ दिया.

डंडा पड़ते ही वह भागने लगा और भागतेभागते बोला, ‘‘सुबह देख लूंगा.’’

‘‘क्या हुआ दीदी, तुम ने मुझे उठाया क्यों नहीं? कम से कम तुम मुझे आवाज ही लगा देतीं,’’ लच्छो रोते हुए बोली.

‘‘2 रोज पहले ही मैं ने इस की हजामत बना डाली थी, जब इस ने मुझ से छेड़छाड़ की थी.’’

‘‘क्या…?’’ यह सुन कर नीतू तो चौंक गई.

‘‘हां दीदी, कई दिनों से वह मेरे पीछे पड़ा हुआ था. उस दिन भी वह मुझ से छेड़छाड़ करने लगा. उस दिन तो मैं ने उसे छोड़ दिया था, वरना उसी दिन उसे सबक सिखा देती,’’ लच्छो ने नीतू को सहारा दे कर उठाया और कमरे में ले गई.

दोनों बहनें एकसाथ रह कर प्राइमरी स्कूल के बच्चों को पढ़ाया करती थीं. कुछ साल पहले उन के पिता की मौत दिल का दौरा पड़ने से हो गई थी. वह बैंक में मुलाजिम थे.

पिता की मौत के बाद उन की मां श्यामरथी देवी को वह नौकरी मिल गई थी. चूंकि बैंक गांव से काफी दूर शहर में था, इसलिए दोनों बेटियों को गांव में अकेले ही रहना पड़ रहा था. मां कभीकभार छुट्टी के दिनों में गांव आ जाया करती थीं.

मलखान की नाक कट गई थी. एक को तो वह अपनी हवस का शिकार बना ही चुका था, पर दूसरी से बदला लेने के लिए तड़प रहा था.

एक दिन शाम के 7 बज रहे थे. दोनों बहनें खाना बनाने की तैयारी में थीं. मलखान ने अपने कुछ दोस्तों को जमा किया और लच्छो के घर पर धावा बोल दिया.

‘‘बाहर निकल, अब देख मेरा रुतबा. गांव में तेरी कैसी बेइज्जती करता हूं,’’ मलखान अपने साथियों के साथ लच्छो के घर में घुसता हुआ बोला.

घर के अंदर मौजूद दोनों बहनें कुछ समझ पातीं, इस से पहले ही मलखान के साथियों ने लच्छो को पकड़ लिया और घसीटते हुए बाहर तक ले आए.

गांव की इज्जत गांव वालों के सामने नंगी होने लगी. मलखान गांव वालों के बीच चिल्लाचिल्ला कर कह रहा था, ‘‘ये दोनों बहनें जिस्मफरोशी करती हैं. इन की वजह से ही गांव की इज्जत मिट्टी में मिल गई है. हम लच्छो का मुंह काला कर के, इस का सिर मुंड़ा कर इसे गांव में घुमाएंगे.’’

दोनों बहनों का बचपन गांव वालों के बीच बीता था. गांव वालों के बीच पलबढ़ कर वे बड़ी हुई थीं. उन्हीं लोगों ने उन का तमाशा बना दिया था.

योजना के मुताबिक, गांव का हज्जाम भी समय पर हाजिर हो गया.

नीतू को अपनी छोटी बहन के बचाव का तरीका समझ में नहीं आ रहा था कि कैसे इन जालिमों के चंगुल से उसे बचाया जाए? वह सोच रही थी कि किसी तरह लच्छो की इज्जत बचानी है, यह सोच कर नीतू घर से निकल पड़ी.

नीतू भीड़ को चीरते हुए अपनी बहन के पास जा कर खड़ी हो गई.

भीड़ में से आवाज उठी, ‘‘इस का भी सिर मुंड़वा दो.’’

नीतू पहले तो गांव वालों के बीच खूब रोईगिड़गिड़ाई. उस ने अपनेआप को बेकुसूर साबित करने के दावे पेश किए, पर किसी ने उस की एक न सुनी. बड़ेबूढ़े भी चुप्पी साध गए.

नीतू अपने घर से एक तेज खंजर उठा लाई थी. बात बिगड़ती देख उस ने वह खंजर तेजी से अपने पेट में घुसेड़ लिया.

देखते ही देखते खून का फव्वारा फूट पड़ा. वह चीख कर कहे जा रही थी, ‘‘हम दोनों बहनें बेकुसूर हैं. मलखान ने ही एक दिन मेरी इज्जत लूट ली थी.’’

इसी बीच पुलिस की जीप वहां से गुजरी और वहां हो रहे तमाशे को देख कर रुक गई.

नीतू ने मरने से पहले सारी बातें इंस्पैक्टर को बता दीं. कुसूरवार लोग पकड़े गए. पर नामर्द गांव वालों ने गांव की इज्जत को अपने ही सामने लुटते देखा. यह कलियुग का चीरहरण था.

Social Story : ऐसे हुआ अंधविश्वास का अंत

Social Story : शहर के किनारे काली माता का मंदिर बना हुआ था. सालों से वहां कोई पुजारी नहीं रहता था. लोग मंदिर में पूजा तो करने जाते थे, लेकिन उस तरह से नहीं, जिस तरह से पुजारी वाले मंदिर में पूजा की जाती है. एक दिन एक ब्राह्मण पुजारी काली माता के मंदिर में आए और अपना डेरा वहीं जमा लिया. लोगों ने भी पुजारीजी की जम कर सेवा की. मंदिर में उन की सुखसुविधा का हर सामान ला कर रख दिया. पहले तो पुजारीजी बहुत नियमधर्म से रहते थे, सत्यअसत्य और धर्मअधर्म का विचार करते थे, लेकिन लोगों द्वारा की गई खातिरदारी ने उन का दिमाग बदल दिया. अब वे लोगों को तरहतरह की बातें बताते, अपनी हर सुखसुविधा की चीजों को खत्म होने से पहले ही मंगवा लेते.

काली माता की पूजा का तरीका भी बदल दिया. पहले पुजारीजी काली माता की सामान्य पूजा कराते थे, लेकिन अब उन्होंने इस तरह की पूजा करानी शुरू कर दी, जिस से उन्हें ज्यादा से ज्यादा चढ़ावा मिल सके.

धीरेधीरे पुजारीजी ने काली माता पर भेंट चढ़ाने की प्रथा शुरू कर दी. वे पशुओं की बलि काली माता को भेंट करने के नाम पर लोगों से बहुत सारा पैसा ऐंठने लगे. जब कोई किसी काम के लिए काली माता की भेंट बोलता, तो पुजारीजी उस से बकरे की बलि चढ़ाने के नाम पर 5 हजार रुपए ले लेते और बाद में कसाई से बकरे का खून लाते और काली माता को चढ़ा देते.

बकरे के नाम पर लिए हुए 5 हजार रुपए पुजारीजी को बच जाते थे, जबकि बकरे का मुफ्त में मिला खून काली माता की भेंट के रूप में चढ़ जाता था.

धीरेधीरे दूरदूर के लोग भी काली माता के मंदिर में आने शुरू हो गए. पुजारीजी दिनोंदिन पैसों से अपनी जेब भर रहे थे. लोग सब तरह के झंझटों से बचने के लिए पुजारीजी को रुपए देने में ही अपनी भलाई समझते थे.

लेकिन कुछ ऐसे भी लोग थे, जो पुजारीजी की इस प्रथा का विरोध करते थे. लेकिन पुजारीजी के समर्थकों की तुलना में ये लोग बहुत कम थे, इसलिए उन्हें ऐसा काम करने से रोक न सके.

जब पुजारीजी के ढोंग की हद बढ़ गई, तो कुछ लोगों ने पुजारी की अक्ल ठिकाने लगाने की ठान ली. शहर में रहने वाले घनश्याम ने इस का बीड़ा उठाया.

घनश्याम सब से पहले पुजारीजी के भक्त बने और 2-4 झूठी समस्याएं उन्हें सुना डालीं. साथ ही बताया कि उन के पास पैसों की कमी नहीं है, लेकिन इतना पैसा होने के बावजूद भी उन्हें शांति नहीं मिलती. अगर किसी तरह उन्हें शांति मिल जाए, तो वे किसी के कहने पर एक लाख रुपए भी खर्च कर सकते हैं.

एक लाख रुपए की बात सुन कर पुजारीजी की लार टपक गई. उन्होंने तुरंत घनश्याम को अपनी बातों के जाल में फंसाना शुरू कर दिया.

पुजारी बोला, ‘‘देखो जजमान, अगर तुम इतने ही परेशान हो, तो मैं तुम्हें कुछ उपाय बता सकता हूं.

‘‘अगर तुम ने ये उपाय कर दिए, तो समझो तुम्हें मुंहमांगी मुराद मिल जाएगी. लेकिन इस सब में खर्चा बहुत होगा.’’

घनश्याम ने पुजारीजी को अपनी बातों में फंसते देखा, तो झट से बोल पड़े, ‘‘पुजारीजी, मुझे खर्च की चिंता नहीं है. बस, आप उपाय बताइए.’’ पुजारीजी ने काली माता की पूजा के लिए एक लंबी लिस्ट तैयार कर दी. घनश्याम पुजारीजी की कही हर बात  मानता गया. पुजारीजी ने काली माता की भेंट के लिए 2 बकरों का पैसा भी घनश्याम से ले लिया. साथ ही, उन्हें घर में एक पूजा कराने को कह दिया.

पुजारीजी की इस बात पर घनश्याम तुरंत तैयार हो गए. तीसरे दिन घनश्याम के घर पर पूजा की तारीख तय हुई, जबकि भेंट चढ़ाने के लिए पैसे तो पुजारीजी उन से पहले ही ले चुके थे. तीसरे दिन पुजारीजी घनश्याम के घर जा पहुंचे. पुजारीजी ने अमीर जजमान को देख हर बात में पैसा वसूला और घनश्याम अपनी योजना को कामयाब करने के लिए पुजारी द्वारा की गई हर विधि को मानते गए. जोरदार पूजा के बाद घनश्याम ने पुजारीजी के लिए स्वादिष्ठ पकवान बनवाए, बाजार से भी बहुत सी स्वादिष्ठ चीजें मंगवाई गईं.

पुजारीजी ने जम कर खाना खाया. उन्होंने आज तक इतना लजीज खाना नहीं खाया था. जब पुजारीजी खाना खा चुके, तो उन्होंने घनश्याम से पूछा, ‘‘घनश्याम, तुम ने हमें इतना स्वादिष्ठ खाना खिला कर खुश कर दिया. ये कौन सा खाना है और किस ने बनाया है?

पुजारी के पूछने पर घनश्याम ने जवाब दिया, ‘‘पुजारीजी, कुछ खाना तो बाजार से मंगवाया था और कुछ यहीं पकाया था. सारा खाना ही बकरे के मांस से बना हुआ था.’’

घनश्याम ने बकरे के मांस का नाम लिया, तो पुजारीजी की सांसें अटक गईं, लेकिन उन्होंने सोचा कि शायद घनश्याम मजाक कर रहे हैं. वे बोले, ‘‘जजमान, आप मजाक बहुत कर लेते हैं, लेकिन हमारे सामने मांसाहारी चीज का नाम मत लो. हम तो मांसमदिरा को छूते भी नहीं, खाना तो बहुत दूर की बात है.’’

घनश्याम ने अपनी बात पर जोर देते हुए कहा, ‘‘मैं सच कह रहा हूं पुजारीजी. आप चाहें तो जिस बावर्ची ने खाना बनाया है, उस से पूछ लें.’’

घनश्याम की बात सुन पुजारीजी का दिल बैठ गया. मन किया कि उलटी कर दें. नफरत से भरे मन में घनश्याम के लिए गुस्सा भी बहुत था. घनश्याम ने आवाज दे कर बावर्ची को बुला कर कहा, ‘‘जरा पुजारीजी को बताओ तो कि तुम ने क्या बनाया था.’’

बावर्ची अपने बनाए हुए खाने को बताने लग गया. सारा खाना बकरे के मांस से बनाया गया था. पुजारीजी पैर पटकते हुए गुस्से से भरे घनश्याम के घर से चले गए. घर के बाहर आ कर उन्होंने गले में उंगली डाली और खाए हुए खाने को अपने पेट से खाली कर दिया, लेकिन मन की नफरत इतने से ही शांत नहीं हुई.

पुजारीजी ने बस्ती में हंगामा कर लोगों को जमा कर लिया, जिन में ज्यादातर उन के भक्त थे. उन्होंने घनश्याम द्वारा की गई हरकत सब लोगों को बताई, तो हर आदमी घनश्याम की इस हरकत पर गुस्सा हो उठा. अब लोग पुजारीजी समेत घनश्याम के घर जा पहुंचे. सब ने घनश्याम को भलाबुरा कहा.

घनश्याम ने सब लोगों की बातें चुपचाप सुनीं, फिर अपना जवाब दिया, ‘‘भाइयो, मैं किसी भी गलती के लिए माफी मांगने के लिए तैयार हूं, लेकिन आप पहले मेरी बात ध्यान से सुनें,

उस के बाद जो आप कहेंगे, वह मैं करूंगा.’’

सब लोग शांत हो कर घनश्याम की बात सुनने लगे. घनश्याम ने बोलना शुरू किया, ‘‘देखो भाइयो, जब मैं पुजारीजी के पास गया और अपनी परेशानी बताई, तो इन्होंने मुझ से 2 बकरों की भेंट काली माता पर चढ़ाने के लिए रुपए लिए थे. साथ ही, मुझ से यह भी कहा था कि मैं घर में पूजा कराऊं.’’

‘‘मैं ने पुजारीजी के कहे मुताबिक ही पूजा कराई और घर में बकरे के मांस से बना खाना परोसा. पुजारीजी ने मुझ से पूछा नहीं और मैं ने बताया नहीं.’’ भीड़ में से एक आदमी ने लानत भेजते हुए कहा, ‘‘तो भले आदमी, तुम को तो सोचना चाहिए कि पुजारी को मांस खिलाना कितना अधर्म का काम है. क्या तुम यह नहीं जानते थे?’’

घनश्याम ने शांत लहजे में जवाब दिया, ‘‘भाइयो, मुझे नहीं लगता कि यह कोई अधर्म का काम है. जब ब्राह्मण पुजारी अपनी आराध्य काली माता पर बकरे की बलि चढ़ा सकता है, तो उस बकरे के मांस को खुद क्यों नहीं खा सकता? क्या पुजारी की हैसियत भगवान से भी ज्यादा है या भगवान ब्राह्मण से छोटी जाति के होते हैं?’’

लोगों में सन्नाटा छा गया. घनश्याम की बात पर किसी से कोई जवाब न मिल सका. पुजारीजी का सिर शर्म से झुक गया. उन्होंने यह बात तो कभी सोची ही नहीं थी. लोग खुद इस बात को सोचे ही बिना काली माता के लिए बकरे की बलि देते रहे थे.

आज पंडितजी की समझ में आया कि भला भगवान किसी जानवर का मांस क्यों खाने लगे? वे तो किसी भी जीव की हत्या को बुरा मानते हैं, वहां मौजूद सभी लोग घनश्याम की बात का समर्थन करने लगे. भीड़ के लोगों ने पुजारीजी को ही फटकार कर काली माता का मंदिर छोड़ देने की चेतावनी दे दी. उस दिन से काली माता के मंदिर पर पशु बलि की प्रथा बंद हो गई.

पुजारीजी का धर्म भ्रष्ट हो चुका था, ऊपर से लोगों की नजरों में उन की इज्जत न के बराबर हो गई थी. उन्होंने वहां से भाग जाने में ही अपनी भलाई समझी. अब मंदिर वीरान हो गया था. अब वहां जानवर बंधने लगे थे.

Patriotic Story : देशभक्ति की “बू”

Patriotic Story : मैं ने नींद में देखा, लोग मुझ को घेर कर खड़े हुए हैं और मैं भयभीत निकल भागने का रास्ता ढूंढ रहा हूं. भीड़ मेरी और कुत्सित भाव से देख रही है, मानो आज मुझे अपने हाथों से दंड देकर अपना कर्तव्य, धर्म भीड़ निभाएगी .मैं सहमा इधर उधर तक रहा हूं.मगर भागने या बचाव का कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा है.

जी हां! मुझ पर, आज कल का प्रचलित सबसे गर्मा गर्म  आरोप लगा दिया गया है, मुझे देश द्रोही करार दिया गया है. और भीड़ मेरी और ऐसे देख रही है जैसे मैं उसका जानी दुश्मन हूं और भीड मुझको ठीक करके ही सुख पाएगी.

दरअसल, हुआ यह की मैंने सीधे सरल शब्दों में माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी व गृहमंत्री अमित शाह की शैली पर प्रश्नचिन्ह लगा दिए .मैं ने कल्पना नहीं की थी कि मेरे दो शब्द के बोल, मुझे देशद्रोही बना देंगे.मैं ने जैसे ही कहा की हमारे प्रधानमंत्री देश को एक प्रयोगशाला बना चुके हैं और मोदी और शाह मिलकर आर एस एस के एजेंडे पर देश को एक दिन हिंदू राष्ट्र घोषित कर देंगे .उन लोगों ने मेरी तरफ कुछ इस दृष्टि से देखा मानो मैं ने कोई राष्ट्रीय अपराध कर दिया है.

मेरी बातें अभी खत्म ही नहीं हुई की एक आदमी ने कहा- तुम्हारी बातों से हम इत्तेफाक नहीं रखते.

एक दूसरे ने कहा- तुम्हारी बात में देशद्रोह की “बू” आती है.

मैं मुस्कुराया और बोला- भाई ! देश प्रेम की परिभाषा क्या है.

एक व्यक्ति चिल्लाया- तुम्हें इतना भी नहीं मालूम तुम्हें इस देश से चले जाना चाहिए। तुम्हें एक पल भी यहां रहने का अधिकार नहीं है.

मैंने कहा- मगर मैं कहां जाऊं और क्यों जाऊं ? मैं तो यहीं पैदा हुआ हूं,मैं यही मरूंगा.

इस पर एक शख्स चीखा- तो फिर तुम अपने को सीमा के भीतर क्यों नहीं रखते अगर तुम पजामे से बाहर जाओगे तो फिर हम नहीं जानते, तुम देशद्रोही कहलाओगे और हम तुम्हें…

हमारे बीच कहासुनी चलती रही मैं, मेरे तर्क उनके सामने भोथरे सिद्ध हो गए उन्होंने एक स्वर में कहा- तुम अकेले हो और अकेले आदमी की कोई बखत नहीं होती. हम बहुसंख्यक हैं, तुम वही करोगे, जो हम चाहेंगे. अगर ज्यादा होशियारी दिखाई तो तुम्हें पाकिस्तान भेज देंगे.

मैं घबराया, मगर साहस के साथ अपनी बात को एक दफे उनके समक्ष रखने का प्रयास किया.मैं ने भोलेपन  से  कहा- भाई! तुम मुझे पाकिस्तान भेजने की बात कह रहे हो, मगर मैं तो एक विशुद्ध भारतीय हूं मैं भला क्यों कहीं जाऊं.

वे ठठाकर हंसने लगे- देखो ! संसार मे सबसे ताकतवर शै है भीड़ ! अगर भीड़ ने कुछ ठान लिया तो फिर न तुम जैसे बुद्धिजीवी की चलती है, न ही सरकार की चलती है. भीड सब को साफ करके, आगे बढ़ जाती है.भीड़ के लिए कानून कोई मायने नहीं रखता. हम स्वयं अपना कानून है.

मैं गंभीर हो गया .एक आदमी ने मेरे सर पर हाथ रख स्नेह पूर्ण  शब्दों में कहा- देखो ! अभी भी सुधर जाओ, नहीं तो पाकिस्तान जाने से तुम्हें कोई रोक नहीं सकेगा… नहीं जाओगे तो तुम्हें यहीं मार-मार कर दुरुस्त कर दिया जाएगा .

मैं बोला- तो… तो मैं क्या करूं.

एक व्यक्ति ने कहा- कुछ नही बस हां में हां मिलाते रहो. मन को कस लो.चार आदमी जो कहें, उसे सुनो और प्रत्ति उत्तर मत दो .सवाल जवाब मत करो. अगर भीड़ के स्वर के खिलाफ जाओगे तो तुम्हें देश की पुलिस कानून और भगवान भी नहीं बचा सकता .

– मगर मैं क्यों गलत बात स्वीकार करूंगा. मैं तो रामधारी सिंह दिनकर का मुरीद हूं जिन्होंने कहा था ” जो तटस्थ रहेगा समय लिखेगा उसका भी अपराध ” तो मैं मर जाऊंगा मगर चुप नहीं रहूंगा.

मैं चुप हुआ तो भीड़ ने मेरी ओर घृणा से देखा और चिल्लाई यह बहुत बड़ा देशद्रोही है रे ! बहुत बड़ा.यह हमारी ताकत नहीं जानता या फिर यह सिरफिरा है इसको ठीक कर दो.जब भीड़ मेरी ओर मुट्ठी तान कर आगे बढ़ी तो मैं कांप गया.

मैं इधर-उधर देखने लगा की कैसे भीड़ के हाथों अपनी जान बचाऊं . मन ही मन सोचने लगा- प्रभु ! बचाओ! काश यह स्वपन हो… मैं सवा रुपए का प्रसाद चढ़ाऊगा प्रभु ! मैं यह कहते- कहते पसीने से लथपथ हो चला था भीड़ दांत किटकिटाते मुट्ठी भींचे मेरी ओर बढ़ रही थी.

Cyber Fraud : 50 लाख का इनाम

Cyber Fraud : ‘सर, हमारी मोबाइल कंपनी ने लकी ड्रा में आप को विजेता चुना है. मुंबई में होने वाले शानदार समारोह में आप को 50 लाख रुपए का इनाम दिया जाएगा. कृपया उस के अग्रिम टैक्स और प्रोसैसिंग फीस के रूप में 25 हजार रुपए आज ही 11 बजे तक कंपनी के बैंक अकाउंट 18760… में जमा करा दें. अगर आप 11 बजे तक यह रकम जमा नहीं करा पाते हैं, तो यह इनाम किसी दूसरे शख्स को दे दिया जाएगा.’

कामता प्रसाद के मोबाइल फोन पर सुबहसुबह यह संदेश आया. उसे पढ़ कर वे खुशी से झूम उठे.

कामता प्रसाद के गांव से बैंक तकरीबन 15 किलोमीटर दूर शहर में था. वे रुपए ले कर फौरन बैंक की ओर चल दिए. 11 बजे से पहले उन्होंने बैंक में रुपए जमा करा दिए.

कामता प्रसाद का बेटा रमन राजधानी के एक नामी इंजीनियरिंग कालेज में पढ़ता था. वह उसी दिन अपने एक दोस्त सुकेश के साथ गांव आ गया.

कामता प्रसाद ने जब 50 लाख का इनाम जीतने की बात बताई, तो वह बोला, ‘‘पिताजी, बैंक में रुपए जमा कराने से पहले आप ने मुझे बताया क्यों नहीं?

‘‘जरा से पैसों के लालच में आप ने अपनी पूंजी भी गंवा दी,’’ रमन ने अफसोस के साथ कहा.

‘‘क्या मतलब…?’’ कामता प्रसाद ने हैरानी से पूछा.

‘‘चाचाजी, कोई मोबाइल कंपनी इस तरह के इनाम नहीं बांटती है. यह ठगी का नया तरीका है, जिस में आप जैसे भोलेभाले लोग फंस जाते हैं,’’ सुकेश ने कहा.

ठगी की बात जान कर कामता प्रसाद परेशान हो उठे. सुकेश ने उन्हें समझाया, ‘‘आप परेशान मत होइए. मेरे मामाजी पुलिस इंस्पैक्टर हैं. हम लोग उन के साथ बैंक जा कर पता करते हैं.’’

कामता प्रसाद को समझाबुझा कर रमन और सुकेश उसी समय शहर की ओर चल दिए.

सुकेश के मामा देवांशु राय पुलिस स्टेशन में ही थे. पूरी बात सुन कर वे फौरन बैंक की ओर चल दिए.

बैंक मैनेजर ने अपने कंप्यूटर पर उस अकाउंट की जांच की, फिर बोला, ‘‘इस खाते में औनलाइन बैंकिंग होती है. इस में आज सुबह से 5 आदमियों ने 25-25 हजार की रकम जमा कराई है और यह सारी रकम थोड़ी ही देर बाद निकाल ली गई है.’’

‘‘इस का मतलब है कि कई लोग इस ठगी के शिकार हुए हैं,’’ इंस्पैक्टर देवांशु राय ने कहा.

‘‘जी हां, इस खाते की पिछली जानकारी बता रही है कि इस में पिछले कई दिनों से 25-25 हजार की रकम जमा हो रही है और वह थोड़ी ही देर में औनलाइन ट्रांसफर कर दी जाती है,’’ मैनेजर ने बताया.

‘‘क्या आप हमें इस के खाताधारी का पता दे सकते हैं?’’ रमन ने कहा.

‘‘हांहां, क्यों नहीं,’’ मैनेजर ने खाताधारी का पता प्रिंट कर के दे दिया.

रमन इंस्पैक्टर देवांशु राय की ओर मुड़ते हुए बोला, ‘‘अंकल, मुझे पूरी उम्मीद है कि यह पता फर्जी होगा, लेकिन फिर भी वहां चल कर एक बार जांच कर लेनी चाहिए.’’

‘‘ठीक है,’’ देवांशु राय ने सिर हिलाया, फिर मैनेजर से बोले, ‘‘आप यह खाता फ्रीज कर दीजिए.’’

‘‘आप चिंता मत कीजिए,’’ मैनेजर ने कहा.

रमन और सुकेश इंस्पैक्टर देवांशु राय के साथ उस पते पर चल दिए. जैसा कि अंदाजा था, वह पता फर्जी निकला.

‘‘अंकल, जिस मोबाइल फोन से एसएमएस आया था, उस के दफ्तर में चल कर पता करना चाहिए कि यह नंबर किस का है,’’ रमन ने अपनी राय दी.

‘‘ओके,’’ इंस्पैक्टर देवांशु राय ने कहा.

वहां से पता चला कि यह नंबर सिविल लाइंस में रहने वाले गिरिजा कुमार का था. वहां से सभी लोग सीधे गिरिजा कुमार के घर पहुंचे. वे तकरीबन 55 साल के शख्स थे.

इंस्पैक्टर देवांशु राय ने उन्हें मोबाइल नंबर बताते हुए पूछा, ‘‘मिस्टर गिरिजा कुमार, इस मोबाइल नंबर से आज सुबह आप ने किसकिस को एसएमएस किया था?’’

‘‘इंस्पैक्टर साहब, यह मोबाइल नंबर मेरा नहीं है,’’ गिरिजा कुमार ने कहा.

‘‘यह कैसे हो सकता है. मोबाइल कंपनी ने हमें बताया है कि पिछले हफ्ते यह सिम कार्ड आप ने खरीदा है,’’ इंस्पैक्टर देवांशु राय ने कहा.

‘‘जरूर कोई गलतफहमी हुई है. मैं ने पिछले हफ्ते इस कंपनी का सिम कार्ड जरूर खरीदा था, लेकिन उस का नंबर दूसरा है,’’ गिरिजा कुमार ने अपना मोबाइल नंबर दिखाते हुए कहा.

‘‘इस का मतलब है कि आप ने एक नहीं, 2 सिम कार्ड खरीदे हैं. आप की भलाई इसी में हैं कि दूसरा मोबाइल भी चुपचाप हमारे हवाले कर दें,’’ इंस्पैक्टर देवांशु राय की आवाज सख्त हो गई.

‘‘इंस्पैक्टर साहब, मेरा विश्वास कीजिए. मैं ने एक सिम कार्ड ही खरीदा है,’’ गिरिजा कुमार ने मजबूती से अपनी बात रखी.

रमन ने इंस्पैक्टर देवांशु को अलग ले जा कर कहा, ‘‘अंकल, ये शख्स शरीफ आदमी मालूम पड़ते हैं. कहीं ऐसा तो नहीं कि इन्होंने सिम कार्ड खरीदते समय जो आईडी दी हो, उस पर ही दूसरा सिम कार्ड बेच दिया गया हो.’’

‘‘ऐसा हो भी सकता है, लेकिन इस की जांच कैसे की जाए? हमारे पास इस समय और कोई सूत्र भी तो नहीं है,’’ इंस्पैक्टर देवांशु ने कुछ सोचते हुए कहा.

‘‘जिन लोगों ने उस खाते में 25-25 हजार रुपए जमा करवाए हैं, अगर उन से किसी तरह संपर्क हो सके तो पता लगाया जा सकता है कि उन को एमएमएस किस मोबाइल नंबर से आया था. उस के बाद शायद हमें कोई और सूत्र मिल सके,’’ रमन ने अपना विचार बताया.

‘‘उन सब के संपर्क सूत्र बैंक मैनेजर से मिल सकते हैं,’’ इंस्पैक्टर देवांशु राय ने कहा. वे गिरिजा कुमार के पास आए और बोले, ‘‘फिलहाल तो हम आप के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं कर रहे हैं, लेकिन आप शक के घेरे में हैं, इसलिए बिना पुलिस की इजाजत के शहर से बाहर मत जाइएगा.’’

इस के बाद सभी लोग बैंक मैनेजर के पास वापस आए. मैनेजर ने कहा, ‘‘जिन लोगों ने पैसे जमा किए हैं, उन के  पते तो नहीं हैं, लेकिन मोबाइल नंबर जरूर मिल जाएंगे. क्योंकि फार्म में मोबाइल नंबर का कौलम होता है.’’

‘‘इतना ही काफी होगा,’’ इंस्पैक्टर देवांशु राय ने कहा, तो मैनेजर ने सारे फार्म मंगवा दिए. इंस्पैक्टर ने उन में से 5 लोगों के नंबर नोट कर लिए.

इंस्पैक्टर देवांशु राय ने उन नंबरों पर फोन किया, तो पता चला कि उन में से 2 लोगों को उसी नंबर से एसएमएस आया था, जिस से कामता प्रसाद को फोन आया था. बाकी 3 लोगों को दूसरे नंबरों से एसएमएस आया था. इस समय वे सारे नंबर स्विच औफ चल रहे थे.

‘‘अंकल पता कीजिए, अगर इन सारे नंबरों के सिम कार्ड एक ही दुकान से बेचे गए हैं, तो समझिए कि हम अपराधियों तक पहुंच गए हैं,’’ रमन ने अपनी राय दी.

‘‘वह कैसे?’’ इंस्पैक्टर देवांशु राय ने हैरानी से पूछा.

‘‘आप पता तो कीजिए,’’ रमन ने जोर देते हुए कहा.

इंस्पैक्टर देवांशु राय ने पुलिस स्टेशन आ कर पूछताछ कराई, तो रमन का अंदाजा सही निकला. ये सारे नंबर न केवल एक ही कंपनी के थे, बल्कि उन के सिम कार्ड भी एक ही शोरूम से बेचे गए थे. वे रमन और सुकेश को ले कर उस शोरूम में पहुंच गए.

रमन के कहने पर उन्होंने शोरूम के मालिक को उन नंबरों को नोट कराते हुए कहा, ‘‘इन नंबरों के सिम कार्ड खरीदने के लिए जो फार्म भरे गए थे, आप उन्हें अभी मंगवाइए.’’

शोरूम के मालिक ने थोड़ी ही देर में फार्म मंगवा दिए. रमन ने उन्हें देखते हुए कहा, ‘‘ये सारे फार्म एक ही हैंडराइटिंग में भरे गए हैं. क्या आप बता सकते हैं कि इन्हें आप के किसी मुलाजिम ने भरा है या कस्टमर ने खुद भरा है?’’

शोरूम के मालिक ने उन फार्मों को गौर से देखा, फिर बोला, ‘‘यह हमारे मुलाजिम रमेश की हैंडराइटिंग है.’’

‘‘आप अभी रमेश को बुलवाइए,’’ इंस्पैक्टर देवांशु राय ने कहा. वे रमन की बात समझ गए थे.

रमेश के आने पर इंस्पैक्टर देवांशु राय ने उसे वे फार्म दिखाते हुए पूछा, ‘‘यह फार्म तुम ने भरे हैं?’’

‘‘जी,’’ रमेश ने हां में सिर हिलाया.

‘‘तुम ने क्यों भरे हैं?’’

‘‘ग्राहकों की मदद के लिए ज्यादातर फार्म हम लोग ही भरते हैं.’’

‘‘इन फार्मों के साथ ग्राहकों के जो आईडी लगे हैं, वे तुम कहां से लाए थे?’’ रमन ने पूछा.

‘‘इन्हें ग्राहकों ने खुद ही दिया था,’’ रमेश ने कहा.

‘‘इन मोबाइल नंबरों का इस्तेमाल अपराध के लिए किया गया है. तुम्हारी भलाई इसी में है कि सचसच बता दो, वरना तुम्हें भी इन अपराधों में शामिल माना जाएगा,’’ इंस्पैक्टर देवांशु राय ने सख्त लहजे में कहा.

‘‘जी, मैं सच कह रहा हूं.’’

‘‘मिस्टर रमेश, हमें शक है कि आप ने किन्हीं दूसरे ग्राहकों के आईडी को इन सिम कार्डों को बेचने में इस्तेमाल किया है, इसलिए मेरा कहना मानिए और पुलिस के साथ सहयोग कीजिए,’’ रमन ने अपनी आंखें रमेश के चेहरे पर गड़ाते हुए कहा.

यह सुन कर रमेश घबरा उठा. थोड़ी सख्ती करने पर उस ने कबूल कर लिया कि जो ग्राहक इस दुकान से सिम कार्ड खरीदते थे, उन के ही आईडी की फोटोकौपी करवा कर उस ने 2-2 हजार रुपए में ये सिम कार्ड एक शख्स को बेचे थे, पर उसे उस शख्स का नाम और पता नहीं मालूम था.

‘‘तुम्हें अंदाजा भी नहीं होगा कि तुम ने कितना खतरनाक काम किया है,’’ इंस्पैक्टर देवांशु राय ने रमेश पर गुस्से से भरी नजर डाली, फिर अफसोस के साथ बोले, ‘‘अगर उस शख्स का नाम या पता मालूम होता, तो उसे पकड़ा जा सकता था, लेकिन अब तो कुछ भी नहीं हो सकता.’’

‘‘अभी भी बहुतकुछ हो सकता है,’’ रमन हलका सा मुसकराया, फिर रमेश से बोला, ‘‘इस शोरूम में सीसीटीवी कैमरे लगे हैं. जिन दिनों ये सिम कार्ड बेचे गए, क्या उन दिनों की रेकौर्डिंग देख कर तुम उस आदमी को पहचान सकते हो?’’

‘‘जी, मैं तुरंत पहचान लूंगा,’’ रमेश ने पछतावे के साथ कहा.

रमेश ने रेकौर्डिंग देख कर उस आदमी को पहचान लिया. इंस्पैक्टर देवांशु राय ने रेकौर्डिंग की एक कौपी ले ली, फिर अपने बड़े अफसर से बात कर उस आदमी का फोटे न्यूज चैनलों पर चलवा दिया.

थोड़ी ही देर में इंस्पैक्टर देवांशु राय के पास एक आदमी का फोन आ गया कि यह अपराधी उस के पड़ोस में रहता है.

इंस्पैक्टर देवांशु राय ने उस का पता नोट कर तुरंत वहां छापा मार कर उसे गिरफ्तार कर लिया. उस के घर से भारी मात्रा में नकदी बरामद हुई. थोड़ी सख्ती होते ही उस ने कबूल कर लिया कि इनाम का एसएमएस भेज कर उस ने काफी लोगों को ठगा था.

इंस्पैक्टर देवांशु राय ने उस आदमी को जेल भेज दिया. अपने पैसे वापस मिलने पर कामता प्रसाद ने रमन और सुकेश को जी भर कर आशीर्वाद दिया.

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