पहल: क्या शीला अपने मान-सम्मान की रक्षा कर पाई? – भाग 3

‘‘तेरे यार सब तो भाग गए.’’ पिंटू चुटकी बजाते हुए व्यंग्य से बोला, ‘‘तू कौन सा तीर मार लेगी, अयं?’’

‘‘किन्नरों को मामूली न समझियो,’’ शकीला ताली पीटती हुई अदा से खिलखिलाई, ‘‘हमारे 2 किन्नरों ने तो महाभारत का किस्सा ही बदल डाला था. एक थे शिखंडी महाराज, दूसरे बिरहनला (बृहन्नला).’’

ये नोंकझोंक चल ही रही थी कि तभी उस हिस्से में बूटपौलिश वाला एक लड़का हवा के झौंके की तरह आ पहुंचा. दसेक साल की उम्र. काला स्याह बदन. बाईं कलाई में पौलिश वाला बक्सा झुलाए, दाएं हाथ से ठोस ब्रश को बक्से पर ठकठकाता, ‘‘पौलिश साब.’’

‘‘तू कहां से आ टपका रे? चल फूट यहां से,’’ अतुल ने रिवौल्वर उस की ओर तान दिया. लड़का तनिक भी न घबराया. पूरा माजरा भांपते एक पल भी नहीं लगा उसे. खीखी करता खीसें निपोर बैठा, ‘‘समझा साब, कोई शूटिंग चल रहेला इधर. अपुन डिस्टप नहीं करेगा साब. थोड़ा शूटिंग देखने को मांगता. बिंदास…’’

‘‘इस को रहने दो बड़े भाई,’’ पिंटू ने मसका लगाया, ‘‘तुम लगते ही हीरो जैसे हो.’’

शकीला के रसीले बतरस और पौलिश वाले लड़के के आगमन से तीनों का ध्यान शीला की ओर से कुछ देर के लिए हट गया. शीला के भीतर एक बवंडर जन्म लेने लगा. कैसा हादसा होने जा रहा है यह? इन की नीयत गंदी है, यह तो स्पष्ट हो चुका है, पार्टी के नाम पर अगवा करने की कुत्सित योजना. उफ.

इस तरह की विषम परिस्थितियों में अकेली लड़की के लिए बचाव के क्या विकल्प हो सकते हैं भला? सहायता के लिए ‘बचाओ, बचाओ’ की गुहार लगाने पर सचमुच कोई दौड़ा चला आएगा? डब्बे में बैठे यात्रियों का पलायन तो देख ही रही है वह. फिर? इन निर्मम, नृशंस और संवेदनहीन युवकों के आगे हाथ जोड़ कर गिड़गिड़ाने से भी कोई लाभ होने वाला नहीं. इन के लिए तो हर स्त्री सिर्फ मादा भर ही है. हर रिश्तेनाते से परे. सिर्फ मादा.

शीला सतर्क नजरों से पूरी स्थिति का जायजा लेती है. डब्बे में शकीला और पौलिश वाला लड़का ही रह गए थे. भावावेश में शकीला की ओर देखती है वह. तभी आंखों के आगे धुंध छाने लगती है, ‘अरे, बृहन्नला के भीतर से यह किस की आकृति फूट रही है? अर्जुन, हां, अर्जुन ही हैं जो कह रहे हैं, नारी सशक्तीकरण की सारी बातें पाखंड हैं री. पुरुषवादी समाज नारियों को कभी भी सशक्त नहीं होने देगा. सशक्त होना है तो नारियों को बिना किसी की उंगली थामे स्वयं ही पहल करनी होगी.’

शीला अजीब से रोमांच से सिहर उठती है. नजरें वहां से हट कर पौलिश वाले लड़के पर टिक जाती हैं. पौलिश वाले लड़के का चेहरा भी एक नई आकृति में ढलने लगता है, ‘बचपन में लौटा शम्बूक. होंठों पर आत्मविश्वास भरी निश्छल हंसी, ‘ब्राह्मणवादी, पुरुषवर्चस्ववादी व्यवस्था’ ने नारियों व दलितों को कभी भी सम्मान नहीं दिया. अपने सम्मान की रक्षा के लिए तुम्हारे पास एक ही विकल्प है, पहल. एक बार मजबूत पहल कर लो, पूरा रुख बदल जाएगा.’

शीला असाधारण रूप से शांत हो गई. भीतर का झंझावात थम गया. आसानी से तो हार नहीं मानने वाली वह. मन ही मन एक निर्णय लिया. तीनों युवक शकीला के किसी मादक चुटकुले पर होहो कर के हंस रहे थे कि अचानक जैसे वह पल ठहर गया हो. एकदम स्थिर. शीला ने दाहिनी हथेली को मजबूत मुट्ठी की शक्ल में बांधा और भीतर की सारी ताकत लगा कर मुट्ठी को पास खड़े यादव की दोनों जांघों के संधिस्थल पर दे मारा.

उसी ठहरे हुए स्थिर पल में शकीला के भीतर छिपे अर्जुन ने ढोलक को लंबे रूप में थामा और पूरी शक्ति लगा कर चमड़े के हिस्से वाले भाग से पिंटू के माथे पर इतनी जोर से प्रहार किया कि ढोलक चमड़े को फाड़ती उस की गरदन में फंस गई. और उसी ठहरे हुए स्थिर पल में पौलिश वाले लड़के के भीतर छिपे शंबूक ने दांतों पर दांत जमा कर हाथ के सख्त ब्रश को अतुल की कलाई पर फेंक मारा. इतना सटीक निशाना कि रिवौल्वर छिटक कर न जाने कहां बिला गया और ओहआह करता वह फर्श पर लुढ़क कर तड़पने लगा.

पलक झपकते आसपास के डब्बों से आए यात्रियों की खासी भीड़ जुट गई वहां और लोग तीनों पर लातघूंसे बरसाते हुए फनफना रहे थे, ‘‘हम लोगों के रहते एक मासूम कोमल लड़की से छेड़खानी करने का साहस कैसे हुआ रे?’’

प्यार की राह में : क्या पूरा हुआ अंशुला- सुनंदा का प्यार – भाग 3

मैं अपना वादा नहीं निभा पाया. मैं तुम से शादी नहीं कर सकता हूं. मैं अपने मातापिता का दिल दुखा कर तुम्हें खुशी नहीं दे पाऊंगा. ‘अगर मैं ने तुम से शादी की, तो मेरी मां अपनी जान दे देंगी. मैं अपनी मां की मौत की वजह नहीं बनना चाहता. तुम अपना ध्यान रखना. यूपीएससी की तैयारी मन लगा कर करना. मुझे उम्मीद है कि तुम एक अच्छी आईएएस साबित होगी. किसी काबिल लड़के से शादी कर के जिंदगी में आगे बढ़ जाना.’ खत पढ़ते हुए सुनंदा की आंखों से लगातार आंसू बहने लगे. आंसुओं से खत भी भीग गया. सुनंदा के खत पढ़ने के बाद वह औरत बोली,

‘‘अब रोना बंद करो और अंशुल को भुला कर अपनी जिंदगी में आगे बढ़ो.’’ इतना कह कर जब वह औरत मुड़ कर अपनी कार की तरफ जाने लगी, सुनंदा ने पीछे से आवाज लगाई, ‘‘शालिनी दीदी…’’ इतना सुन कर उस औरत के कदम थम गए और वह पीछे मुड़ी. वह कुछ कहती, इस से पहले सुनंदा बोली, ‘‘मैं आप को पहचान गई हूं दीदी. मैं ने जरूर आप को कभी नहीं देखा, लेकिन जिस तरह अंशुल के शब्दों से, बातों से आप मेरी आकृति पहचान गईं, ठीक वैसे ही मैं ने भी आप की छवि पा ली. ‘‘यहां से जाने से पहले बस इतना बता दीजिए कि अंशुल कैसा है और कहां है? मैं आप से वादा करती हूं कि मैं कभी भी उस से मिलने की कोशिश नहीं करूंगी.’’ सुनंदा के इतना कहते ही शालिनी की आंखें भर आईं और वे लंबी सांस लेते हुए बोलीं, ‘‘सुनंदा… सच तो यह है कि अंशुल तुम से बेइंतहा प्यार करता था और तुम से ही शादी करना चाहता था, लेकिन जब उस ने मम्मीपापा को तुम्हारे बारे में बताया, तो वे दोनों ही इस शादी के लिए राजी नहीं हुए.

‘‘मम्मी ने अंशुल को धमकी दी कि अगर वह तुम से शादी करेगा, तो वे अपनी जान दे देंगी. हार कर अंशुल ने मम्मी से वादा किया कि न तो वह तुम से बात करेगा और न शादी, लेकिन बात यहां पर खत्म नहीं हुई. अंशुल के वादा करते ही मम्मीपापा ने उस से बिना पूछे उस की शादी तय कर दी. अंशुल इस शादी के लिए तैयार नहीं था, लेकिन मम्मी ने जिद पकड़ ली और अंशुल शादी के लिए मान गया. ‘‘शादी के ठीक एक रात पहले अंशुल ने मुझे यह चिट्ठी दी और कहा कि मैं यह चिट्ठी तुम तक पहुंचा दूं.

मुझे नहीं पता था कि उस की शादी का जोड़ा उस का कफन बन जाएगा और शादी का जश्न मातम में बदल जाएगा. ‘‘अंशुल ने इस बेरहम दुनिया को अलविदा कहने के लिए अपनी ही शादी का दिन चुना. बरात निकलने से पहले अंशुल ने जहर खा लिया और लाख कोशिशों के बावजूद उसे बचाया नहीं जा सका.’’ इतना कह कर शालिनी तेज कदमों से चल कर कार में जा बैठी और वहां से चली गई. सुनंदा जिंदा लाश सी वहीं खड़ी रही. ‘‘मैडमजी, आप की अदरकइलायची वाली चाय….’’ औफिस बौय के ऐसा कहने पर सुनंदा की तंद्रा भंग हुई. आज पूरे 7 साल के बाद सुनंदा फिर उसी शहर में थी, जहां से उस ने अपनी पढ़ाई पूरी की थी और आज वह एसपी बन गई है. अंशुल आज भी सुनंदा के दिल में उस की धड़कन बन कर जिंदा है और वह अपनी जिंदगी के रास्ते पर बिना किसी हमराही के अकेले चल रही है.

फलक से टूटा इक तारा: सान्या का यह एहसास- भाग 2

अभी एक महीना बीता था कि सान्या को मुंबई से डांस शो के फाइनल्स के लिए बुलावा आ गया. उस के पैर तो बिन घुंघरू के ही थिरकने लगे थे. वह तो एकएक दिन गिन रही थी फिर से मुंबई जाने के लिए. अब डांस फाइनल्स शो का भी दिन आ ही गया.

फिर से वही स्टेज की चमकदमक और उस के मातापिता दर्शकों की आगे की पंक्ति में बैठे थे और शो शुरू हुआ. नतीजा तो जैसे सान्या ने स्वयं ही लिख दिया था. उसे पूरा विश्वास था कि वही जीतेगी. और डांस शो की प्रथम विजेता भी सान्या ही बनेगी. फिर क्या था, सान्या का नाम व तसवीरें हर अखबार व मैग्जीन के मुखपृष्ठ पर थीं. अब उसे हिंदी धारावाहिकों के लिए प्रस्ताव आने लगे थे. सभी बड़े नामी उत्पादों की कंपनियां उसे अपने उत्पादों के विज्ञापन के लिए प्रस्ताव देने लगी थीं.

अब तो सान्या आसमान में उड़ने लगी थी. उस की मां व पिताजी उस से कहते, ‘‘बेटी, इस चमकदमक के पीछे न दौड़ो, पहले अपनी पढ़ाई पूरी कर लो.’’ लेकिन सान्या कहती, ‘‘पिताजी, ऐसे सुनहरे अवसर बारबार थोड़े ही मिलते हैं. मुझे मत रोकिए, पिताजी, उड़ जाने दीजिए मुझे आजाद परिंदे की तरह और कर लेने दीजिए मुझे अपने ख्वाब पूरे.’’

मांपिताजी ने उसे बहुत समझाया, पिताजी तो कई बार नाराज भी हुए, उसे डांटाडपटा भी, लेकिन सान्या को तो मुंबई जाना ही था. सो, मातापिता की मरजी के खिलाफ जिद कर एक दिन उस ने मुंबई की ट्रेन पकड़ ली, लेकिन मातापिता अपनी बेटी को कैसे अकेले छोड़ते, सो हार कर उन्होंने भी उस की जिद मान ही ली. कुछ दिन तो मां उस के साथ एक किराए के फ्लैट में रही, लेकिन फिर वापस अपने घर आ गई. सान्या की छोटी बहन व पिता को भी तो संभालना था.

सान्या को तो एक के बाद एक औफर मिल रहे थे, कभी समय मिलता तो मां को उचकउचक कर फोन कर सब बात बता देती. मां भी अपनी बेटी को आगे बढ़ते देख फूली न समाती. एक बार मां 7 दिनों के लिए मुंबई आई. जगहजगह होर्डिंग्स लगे थे जिन पर सान्या की तसवीरें थीं. विभिन्न फिल्मी पत्रिकाओं में भी उस की तसवीरें आने लगी थीं. वह मां को अपने साथ शूटिंग पर भी ले कर गई. सभी डायरैक्टर्स उस का इंतजार करते और उसे मैडममैडम पुकारते.

मां बहुत खुश हुई, लेकिन मन ही मन डरती कि कहीं कुछ गलत न हो जाए, क्या करती आज की दुनिया है ही ऐसी. अपनी बेटी के बढ़ते कदमों को रोकना भी तो नहीं चाहती थी वह. पूरे 5 वर्ष बीत गए. रुपयों की तो मानो झमाझमा बारिश हो रही थी. इतनी शोहरत यानी कि सान्या की मेहनत और काबिलीयत अपना रंग दिखा रही थी. हीरा क्या कभी छिपा रहता है भला?

जब सान्या को किसी नए औफर का एडवांस मिलता तो वह रुपए अपने मांपिताजी के पास भेज देती. साथ ही साथ, उस ने मुंबई में भी अपने लिए एक फर्निश्ड फ्लैट खरीद लिया था. कहते हैं न, जब इंसान की मौलिक जरूरतें पूरी हो जाती हैं तो वह रुपया, पैसा, नाम, शोहरत, सम्मान आदि के लिए भागदौड़ करता है. तो बस, अब सबकुछ सान्या को हासिल हो गया तो उसे तलाश थी प्यार की.

वैसे तो हजारों लड़के सान्या पर जान छिड़कते थे किंतु उस की नजर में जो बसा था, वह था देव जो उसे फिल्मी पार्टी में मिला था और मौडलिंग कर रहा था. दोनों की नजरें मिलीं और प्यार हो गया.

कामयाबी दोनों के कदम चूम रही थी. जगहजगह उन के प्यार के चर्चे थे. आएदिन पत्रिकाओं में उन के नाम और फोटो सुर्खियों में होते. सान्या की मां कभीकभी उस से पूछती तो सान्या देव की तारीफ करती न थकती थी. मां सोचती कि अब सान्या की जिंदगी उस छोटे से कसबे के साधारण लोगों से बहुत ऊपर उठ चुकी है और वह तो कभी भी साधारण लोगों जैसी थी ही नहीं. सो, उस के मांपिताजी ने भी उसे छूट दे दी थी कि जैसे चाहे, अपनी जिंदगी वह जी सकती है. देव और सान्या एकदूसरे के बहुत करीब होते जा रहे थे.

देव जबतब सान्या के घर आतेजाते दिखाई देता था. कभीकभी तो रात को भी वहीं रहता था. धीरेधीरे दोनों साथ ही रहने लगे थे और यह खबर सान्या की मां तक भी पहुंच चुकी थी. यह सुन कर उस की मां को तो अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हुआ. जब मां ने सान्या से पूछा तो वह कहने लगी, ‘‘मां, यहां मुंबई में ऐसे ही रहने का चलन है, इसे लिवइन रिलेशन कहते हैं और यहां ऐसे रहने पर कोई रोकटोक नहीं. मेरे दूसरे दोस्त भी ऐसे ही रहते हैं और मां, मैं ने और देव ने शादी करने का फैसला भी कर लिया है.’’

मां ने जवाब में कहा, ‘‘अब जब फैसला कर ही लिया है तो झट से विवाह भी कर लो और साथ में रहो, वरना समाज क्या कहेगा?’’ सान्या बोली, ‘‘हां मां, तुम ठीक ही कहती हो, मैं देव से बात करती हूं और जल्द ही तुम्हें शादी की खुशखबरी देती हूं.’’

अगले दिन जैसे ही देव ने सान्या के मुंह से शादी की बात सुनी, वह कहने लगा, ‘‘हांहां, क्यों नहीं, शादी तो करनी ही है लेकिन इतनी जल्दी भी क्या है सान्या, थोड़ा हम दोनों और सैटल हो जाएं, फिर करते हैं शादी. तुम भी थोड़ा और नाम कमा लो और मैं भी. फिर बस शादी और बच्चे, हमारी अपनी गृहस्थी होगी.’’

देव की प्यारभरी बात सुन कर सान्या मन ही मन खुश हो गईर् और अगले ही पल वह उस की आगोश में आ गई. सान्या को पूरा भरोसा था अपनेआप पर और उस से भी ज्यादा भरोसा था देव पर. वह जानती थी कि देव पूरी तरह से उस का हो चुका है.

अब उन का मिलनाजुलना पहले से ज्यादा बढ़ गया था, कभी मौल में, तो कभी कैफे में दोनों हाथ में हाथ डाले घूमते नजर आ ही जाते थे. उन का प्यार परवान चढ़ने लगा था. सान्या तो तितली की तरह अपने हर पल को जीभर जी रही थी. यही जिंदगी तो चाहती थी वह, तभी तो उस छोटे से कसबे को छोड़ कर मुंबई आ गई थी और उस का सोचना गलत भी कहां था, शायद ही कोई विरला होगा जो मुंबई की चमकदमक और फिल्मी दुनिया की शानोशौकत वाली जिंदगी पसंद न करता हो.

अभी 2-3 महीने बीते थे और देव अब सान्या के फ्लैट में ही रहने लगा था. रातदिन दोनों साथ ही नजर आते थे. लेकिन यह क्या, देव अचानक से अब उखड़ाउखड़ा सा, बदलाबदला सा क्यों रहता है? सान्या देव से पूछती, ‘‘देव कोई परेशानी है तो मुझे बताओ, तुम्हारे व्यवहार में मुझे फर्क क्यों नजर आ रहा है? हर वक्त खोएखोए रहते हो. कुछ पूछती हूं तो खुल कर बात करने के बजाय मुझ पर झल्ला पड़ते हो.’’

देव ने जवाब में कहा, ‘‘कुछ नहीं, तुम ज्यादा पूछताछ न किया करो, मुझे अच्छा नहीं लगता है.’’

रिश्ता : कैसे आई सूनी बगिया में बहार

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अधूरे प्यार की टीस: क्यों हुई पतिपत्नी में तकरार – भाग 2

‘‘अभी पता नहीं कि छुट्टी कब तक मिलेगी. डाक्टर बाईपास सर्जरी कराने के लिए जोर डाल रहे हैं.’’

‘‘मैं तो अभी इंडिया नहीं आ सकती हूं. नन्हे रितेश की तबीयत ठीक नहीं चल रही है. तुम अपनी देखभाल के लिए एक नर्स का इंतजाम जरूर कर लेना.’’

‘‘ठीक है.’’

‘‘अपने अकाउंट में भी उस का नाम जुड़वा दो.’’

‘‘ठीक है.’’

‘‘मैं तो कहती हूं कि आपरेशन कराने के बाद तुम भी यहीं रहने आ जाओ. वहां अकेले कब तक अपनी बेकद्री कराते रहोगे?’’

‘‘तुम मेरी फिक्र न करो और अपना ध्यान रखो.’’

‘‘मेरी तुम ने आज तक किसी मामले में सुनी है, जो अब सुनोगे. वकील को जल्दी बुला लेना. रवि के यहां वापस लौटने से पहले दोनों काम हो जाने…’’

राकेशजी को अचानक अपनी पत्नी की आवाज को सुनना बहुत बड़ा बोझ लगने लगा तो उन्होंने झटके से संबंध काट कर फोन का स्विच औफ कर दिया. कल रात को अपनेआप से किया यह वादा उन्हें याद नहीं रहा कि वे अब अतीत को याद कर के अपने मन को परेशान व दुखी करना बंद कर देंगे.

‘इस औरत के कारण मेरी जिंदगी तबाह हो गई.’ यह एक वाक्य लगातार उन के दिमाग में गूंज कर उन की मानसिक शांति भंग किए जा रहा था.

कुछ देर बाद जब रवि ने उन के कमरे में कदम रखा तब राकेशजी के चेहरे पर तनाव के भाव साफ नजर आ रहे थे.

‘‘इतनी टेंशन में किसलिए नजर आ रहे हो, पापा?’’ रवि ने माथे में बल डाल कर सवाल पूछा.

‘‘तुम्हारी मम्मी का फोन आया था,’’ राकेशजी का स्वर नाराजगी से भरा था.

‘‘ऐसा क्या कह दिया उन्होंने जो आप इतने नाखुश दिख रहे हो?’’

‘‘मकान तुम्हारे नाम करने और मेरे अकाउंट में तुम्हारा नाम लिखवाने की बात कह रही थी.’’

‘‘क्या आप को उन के ये दोनों सुझाव पसंद नहीं आए हैं?’’

‘‘तुम्हारी मां का बात करने का ढंग कभी ठीक नहीं रहा, रवि.’’

‘‘पापा, मां ने मेरे साथ इन दोनों बातों की चर्चा चलने से पहले की थी. इस मामले में मैं आप को अपनी राय बताऊं?’’

‘‘बताओ.’’

‘‘पापा, अगर आप अपना मकान अंजु आंटी और नीरज को देना चाहते हैं तो मेरी तरफ से ऐसा कर सकते हैं. मैं अच्छाखासा कमा रहा हूं और मौम की भी यहां वापस लौटने में बिलकुल दिलचस्पी नहीं है.’’

‘‘क्या तुम को लगता है कि अंजु की इस मकान को लेने में कोई दिलचस्पी होगी?’’ कुछ देर खामोश रहने के बाद राकेशजी ने गंभीर लहजे में बेटे से सवाल किया.

‘‘क्यों नहीं होगी, डैड? इस वक्त हमारे मकान की कीमत 70-80 लाख तो होगी. इतनी बड़ी रकम मुफ्त में किसी को मिल रही हो तो कोई क्यों छोड़ेगा?’’

‘‘मुझे यह और समझा दो कि मैं इतनी बड़ी रकम मुफ्त में अंजु को क्यों दूं?’’

‘‘पापा, आप मुझे अब बच्चा मत समझो. अपनी मिस्टे्रस को कोई इनसान क्यों गिफ्ट और कैश आदि देता है.’’

‘‘क्यों देता है?’’

‘‘रिलेशनशिप को बनाए रखने के लिए, डैड. अगर वह ऐसा न करे तो क्या उस की मिस्टे्रस उसे छोड़ क र किसी दूसरे की नहीं हो जाएगी.’’

‘‘अंजु मेरी मिस्टे्रस कभी नहीं रही है, रवि,’’ राकेशजी ने गहरी सांस छोड़ कर जवाब दिया, ‘‘पर इस तथ्य को तुम मांबेटा कभी सच नहीं मानोगे. मकान उस के नाम करने की बात उठा कर मैं उसे अपमानित करने की नासमझी कभी नहीं दिखाऊंगा. नीरज की पढ़ाई पर मैं ने जो खर्च किया, अब नौकरी लगने के बाद वह उस कर्जे को चुकाने की बात दसियों बार मुझ से कह…’’

‘‘पापा, मक्कार लोगों के ऐसे झूठे आश्वासनों को मुझे मत सुनाओ, प्लीज,’’ रवि ने उन्हें चिढ़े लहजे में टोक दिया, ‘‘अंजु आंटी बहुत चालाक और चरित्रहीन औरत हैं. उन्होंने आप को अपने रूपजाल में फंसा कर मम्मी, रिया और मुझ से दूर कर…’’

‘‘तुम आज मेरे मन में सालों से दबी कुछ बातें ध्यान से सुन लो, रवि,’’ इस बार राकेशजी ने उसे सख्त लहजे में टोक दिया, ‘‘मैं ने अपने परिवार के प्रति अपनी सारी जिम्मेदारियां बड़ी ईमानदारी से पूरी की हैं पर ऐसा करने के बदले में तुम्हारी मां से मुझे हमेशा अपमान की पीड़ा और अवहेलना के जख्म ही मिले.

‘‘रिया और तुम भी अपनी मां के बहकावे में आ कर हमेशा मेरे खिलाफ रहे. तुम दोनों को भी उस ने अपनी तरह स्वार्थी और रूखा बना दिया. तुम कल्पना भी नहीं कर सकते कि तुम सब के गलत और अन्यायपूर्ण व्यवहार के चलते मैं ने रातरात भर जाग कर कितने आंसू बहाए हैं.’’

‘‘पापा, अंजु आंटी के साथ अपने अवैध प्रेम संबंध को सही ठहराने के लिए हमें गलत साबित करने की आप की कोशिश बिलकुल बेमानी है,’’ रवि का चेहरा गुस्से से लाल हो उठा था.

‘‘मेरा हर एक शब्द सच है, रवि,’’ राकेशजी जज्बाती हो कर ऊंची आवाज में बोलने लगे, ‘‘तुम तीनों मतलबी इनसानों ने मुझे कभी अपना नहीं समझा. दूसरी तरफ अंजु और नीरज ने मेरे एहसानों का बदला मुझे हमेशा भरपूर मानसम्मान दे कर चुकाया है. इन दोनों ने मेरे दिल को बुरी तरह टूटने से…मुझे अवसाद का मरीज बनने से बचाए रखा.

‘‘जब तुम दोनों छोटे थे तब हजारों बार मैं ने तुम्हारी मां को तलाक देने की बात सोची होगी पर तुम दोनों बच्चों के हित को ध्यान में रख कर मैं अपनेआप को रातदिन की मानसिक यंत्रणा से सदा के लिए मुक्ति दिलाने वाला यह निर्णय कभी नहीं ले पाया.

‘‘आज मैं अपने अतीत पर नजर डालता हूं तो तुम्हारी क्रूर मां से तलाक न लेने का फैसला करने की पीड़ा बड़े जोर से मेरे मन को दुखाती है. तुम दोनों बच्चों के मोह में मुझे नहीं फंसना था…भविष्य में झांक कर मुझे तुम सब के स्वार्थीपन की झलक देख लेनी चाहिए थी…मुझे तलाक ले कर रातदिन के कलह, लड़ाईझगड़ों और तनाव से मुक्त हो जाना चाहिए था.

‘‘उस स्थिति में अंजु और नीरज की देखभाल करना मेरी सिर्फ जिम्मेदारी न रह कर मेरे जीवन में भरपूर खुशियां भरने का अहम कारण बन जाता. आज नीरज की आंखों में मुझे अपने लिए मानसम्मान के साथसाथ प्यार भी नजर आता. अंजु को वैधव्य की नीरसता और अकेलेपन से छुटकारा मिलता और वह मेरे जीवन में प्रेम की न जाने कितनी मिठास भर…’’

राकेशजी आगे नहीं बोल सके क्योंकि अचानक छाती में तेज दर्द उठने के कारण उन की सांसें उखड़ गई थीं.

रवि को यह अंदाजा लगाने में देर नहीं लगी कि उस के पिता को फिर से दिल का दौरा पड़ा था. वह डाक्टर को बुलाने के लिए कमरे से बाहर की तरफ भागता हुआ चला गया.

राकेशजी ने अपने दिल में दबी जो भी बातें अपने बेटे रवि से कही थीं, उन्हें बाहर गलियारे में दरवाजे के पास खड़ी अंजु ने भी सुना था. रवि को घबराए अंदाज में डाक्टर के कक्ष की तरफ जाते देख वह डरी सी राकेशजी के कमरे में प्रवेश कर गई.

राकेशजी के चेहरे पर गहन पीड़ा के भाव देख कर वह रो पड़ी. उन्हें सांस लेने में कम कष्ट हो, इसलिए आगे बढ़ कर उन की छाती मसलने लगी थी.

‘‘सब ठीक हो जाएगा…आप हिम्मत रखो…अभी डाक्टर आ कर सब संभाल लेंगे…’’ अंजु रोंआसी आवाज में बारबार उन का हौसला बढ़ाने लगी.

राकेशजी ने अंजु का हाथ पकड़ कर अपने हाथों में ले लिया और अटकती आवाज में कठिनाई से बोले, ‘‘तुम्हारी और अपनी जिंदगी को खुशहाल बनाने से मैं जो चूक गया, उस का मुझे बहुत अफसोस है…नीरज का और अपना ध्यान रखना…अलविदा, माई ल…ल…’’

समस्या का अंत : बेचारा अंबर, करे तो क्या करे – भाग 3

दूसरे दिन छुट्टी के बाद अंबर फिर रूपाली से मिला और उसे पूरी बात बताई. थोड़ी देर बाद रूपाली बोली, ‘‘यार, तुम्हारी समस्या वास्तव में गंभीर हो गई है. अच्छा, तुम्हारे जीजाजी काम क्या करते हैं?’’

‘‘स्टार इंडिया में यूनिट इंचार्ज हैं.’’

‘‘वहां के जनरल मैनेजर तो मेरे जीजाजी के दोस्त हैं.’’

‘‘तो क्या हुआ?’’

‘‘हुआ कुछ नहीं, पर अब होगा. रोज का उन के घर आनाजाना  है. रास्ता मिल गया, अब तुम देखते जाओ.’’

अंबर, रूपाली से मिल कर घर पहुंचा तो पूरे मेकअप के साथ इठलाती, बलखाती लाली चाय, नमकीन सजा कर ले आई.

‘‘चाय लीजिए, साहब.’’

‘‘नहीं चाहिए, अभी बाहर से पी कर आ रहा हूं.’’

‘‘तो क्या हुआ? अब यहां एक प्याली मेरे हाथ की भी पी लीजिए.’’

‘‘नहीं, और नहीं चलेगी,’’ इतना कह कर वह अपने कमरे में जा कर आगे के बारे में योजना बनाने लगा.

2 3 दिन और बीत गए. इधर घर में वही तनाव, उधर रूपाली का मुंह बंद. अंबर को लगा वह पागल हो जाएगा. चौथे दिन जब घर लौटा तो फिर सन्नाटा ही मिला. दीदी का बुरा हाल था. बिस्तर में पड़ी रो रही थीं. जीजाजी सिर थामे बैठे थे, मांबेटी की कोई आवाज नहीं आ रही थी. कमरे का परदा पड़ा था. उसे देख दीदी आंसू पोंछ उठ बैठीं.

‘‘मुन्ना, फ्रेश हो ले. मैं चाय लाती हूं.’’

‘‘नहीं, दीदी, पहले बताओ क्या हुआ, जो घर में सन्नाटा पसरा है?’’

‘‘साले बाबू, भारी परेशानी आ पड़ी है. तुम तो जानते ही हो कि हमारी बिल्ंिडग निर्माण की कंपनी है. बिलासपुर के बहुत अंदर जंगली इलाके में एक नई यूनिट कंपनी ने खोली है, वहां मुझे प्रमोशन पर भेजा जा रहा है.’’

‘‘जीजाजी, प्रमोशन के साथ… यह तो खुशी की बात है. तो दीदी रो क्यों रही हैं. आप का भी चेहरा उतरा हुआ है.’’

‘‘तुम समझ नहीं रहे हो साले बाबू, वह घनघोर जंगल है. वहां शायद टेंट में रहना पडे़गा…बच्चों का स्कूल छुड़ाना पड़ेगा, नहीं तो उन को होस्टल में छोड़ना पडे़गा. तुम्हारी बिन्नी दीदी ने जिद पकड़ ली है कि मेरे पीछे वह मां व लाली के साथ अकेली नहीं रहेंगी, अब मैं क्या करूं, बताओ?’’

‘‘इतनी परेशानी है तो आप जाने से ही मना कर दें.’’

‘‘तुम उस श्रीवास्तव के बच्चे को नहीं जानते. प्रमोशन तो रोकेगा ही, हो सकता है कि डिमोशन भी कर दे, मेरा जूनियर तो जाने के लिए बिस्तर बांधे तैयार बैठा है. और ऐसा हुआ तो वह आफिसर की नजरों में आ जाएगा.’’

‘‘तो फिर आप क्या चाहते हैं?’’

‘‘मैं बिन्नी से कह रहा था कि यहां जैसा है वैसा चलता रहे और मैं अकेला ही चला जाऊं.’’

‘‘जीजाजी, आप के और भी तो 2 भाई हैं, उन के पास भी ये दोनों रह सकती हैं.’’

‘‘कौन रखेगा इन को? यह तो मैं ही हूं जो इन के अत्याचार को सहन करती हूं,’’ बिन्नी का स्वर उभरा.

‘‘न, अब मैं ने भी फैसला ले लिया है कि इन को 4-4 महीने के हिसाब से तीनों के पास रहना होगा.’’

‘‘ठीक है, पर अब क्या होगा?’’

‘‘मैं साथ चलूंगी,’’ बिन्नी दीदी बोलीं, ‘‘तंबू क्या, मैं तो इन के साथ जंगल में भी रह लूंगी.’’

रात को खाने की मेज पर दीदी की सास बड़बड़ाईं, ‘‘यह सब इस करमजली की वजह से हो रहा है. जब से इस घर में आई है नुकसान और क्लेश…चैन तो कभी मिला ही नहीं.’’

लेकिन जीजाजी ने दीदी का समर्थन किया, ‘‘मां, अब तुम बारीबारी से अपने तीनों बेटों के पास रहोगी. मेरे पास 12 महीने नहीं. बिन्नी को भी थोड़ा आराम चाहिए.’’

‘‘ठीक है, मथुरा, हरिद्वार कहीं भी जा कर रह लूंगी पर लाली का ब्याह पहले अंबर से करा दे.’’

‘‘अंबर को लाली पसंद नहीं तो कैसे करा दूं.’’

इतना सुनते ही सास ने जो तांडव करना शुरू किया तो वह आधी रात तक चलता रहा था.

दूसरे दिन मिलते ही रूपाली हंसी.

‘‘हाल कैसा है जनाब का?’’

‘‘अरे, यह क्या कर डाला तुम ने?’’

‘‘जो करना चाहिए, घर बसाना है मुझे अपना.’’

‘‘दीदी का घर उजाड़ कर?’’

‘‘उस बेचारी का घर बसा ही कब था पर अब बस जाएगा…आइसक्रीम मंगाओ.’’

‘‘जीजाजी को जाना ही पडे़गा, ऐसे में दीदी का क्या हाल करेंगी ये लोग, समझ रही हो.’’

‘‘आराम से आइसक्रीम खाओ. आज जब घर जाओगे तब सारा क्लेश ही कट चुका होगा.’’

‘‘वह कैसे?’’

‘‘यह तो मैं नहीं जानती कि वह कैसे क्या करेंगे, पर इतना जानती हूं कि ऐसा कुछ करेंगे कि उस से हम सब का भला होगा.’’

अंबर चिढ़ कर बोला, ‘‘मुझे तो समझना पडे़गा ही क्योंकि समस्या मेरी है.’’

‘‘थोड़ा धैर्य तो रखो. मैदान में उतरते ही क्या जीत हाथ में आ जाएगी,’’ रूपाली अंबर को शांत करते हुए बोली.

घर पहुंच कर अंबर थोड़ा हैरान हुआ. वातावरण बदलाबदला सा लगा. दीदी खुश नजर आ रही थीं, तो जीजाजी बच्चों के साथ बच्चा बने ऊधम मचा रहे थे. मुंहहाथ धो कर वह निकला भी नहीं कि गरम समोसों के साथ दीदी चाय ले कर आईं.

‘‘मुन्ना, चाय ले. तेरी पसंद के काजू वाले समोसे.’’

‘‘अरे, दीदी, यह तो चौक वाली दुकान के हैं.’’

‘‘तेरे जीजाजी ले कर आए हैं तेरे लिए.’’

अंबर बात समझ नहीं पा रहा था. जीजाजी भी आ कर बैठे, उधर दीदी की सास कमरे में बड़बड़ा रही थीं.

‘‘जीजाजी, आप की ट्रांसफर वाली समस्या हल हो गई क्या?’’

‘‘समस्या तो अभी बनी हुई है पर उस का समाधान तुम्हारे हाथ में है.’’

‘‘मेरे हाथ में, वह कैसे?’’

‘‘तुम सहायता करो तो यह संकट टले.’’

‘‘ऐसी बात है तो मैं वचन देता हूं, मुझ से जो होगा मैं करूंगा.’’

‘‘पहले सुन तो लो, पहले ही वचन मत दो.’’

‘‘कहिए, मुझे क्या करना होगा?’’

‘‘ज्यादा कुछ नहीं…ब्याह करना होगा.’’

‘‘ब्याह…किस से?’’

‘‘हमारे बौस की एक मुंहबोली बहन है, वह चाहते हैं कि तुम्हारा रिश्ता उस के साथ हो जाए.’’

‘‘मैं…मेरे साथ…पर…न देखी…न भाली.’’

‘‘लड़की देखने में सुंदर है. बैंक में अच्छे पद पर है, यहां अपने जीजा के साथ रहती है. ग्वालियर से ही ट्रांसफर हो कर आई है.’’

अंबर ने चैन की सांस ली पर ऊपर से तनाव बनाए रखा.

‘‘आप के भले के लिए मैं जान भी दे सकता हूं पर जातपांत सब ठीक है न? मतलब आप अम्मां को तो जानते ही हैं न. पंडित की बेटी ही चाहिए उन को.’’

‘‘ठाकुर है.’’

‘‘तब तो…’’

‘‘तू उस की चिंता मत कर मुन्ना. तू बस, अपनी बात कह. बूआ को मैं मना लूंगी.’’

‘‘तुम्हारा भला हो तो मैं कुछ भी करने को तैयार हूं.’’

‘‘तब तो समस्या का समाधान हो ही गया.’’

‘‘पर, आप की मां तो…’’

‘‘मेरा ट्रांसफर रुका, यही बड़ी बात है. अब परसों ही भाई के घर पहुंचा रहा हूं दोनों को. 4-4 महीने तीनों के पास रहना पड़ेगा…बिन्नी ने बहुत सह लिया.’’

दूसरे दिन रूपाली से मिलते ही अंबर ने कहा, ‘‘मान गए तुम को गुरु. आज जो चाहे आर्डर दो.’’

‘‘चलो, माने तो. अपना कल्याण तो हो गया.’’

‘‘साथ ही साथ दीदी का भी भला हो गया. नरक से मुक्ति मिली, बेचारी को. 4-4 महीने के हिसाब से तीनों के पास रहेंगी उस की सासननद.’’

खिलाड़ियों के खिलाड़ी : मीनाक्षी की जिंदगी में कौन था आस्तीन का सांप – भाग 2

मीनाक्षी अपने प्लान में कामयाब हो रही थी. वह पूरी तैयारी के साथ यहां पर आई थी. उस ने विशाल कुमार से हुई पहली मुलाकात में ही उस की नजरों में छलकती उस की ‘खास मंशा’ को भांप लिया था. कहते हैं कि औरतों में ‘सिक्स्थ सैंस’ भी होता है जो पुरुष की आंखों के भावों को अनायास ही समझ लेता है.

मीनाक्षी ने अपने बालों में लगे गजरे के बीच एक ‘हाई पावर माइक्रो कैमरा’ छिपाया था जिस का आकार हेयरपिन की तरह था. पहले जाम टकराए, मीनाक्षी ने बड़े प्यार से विशाल को दोएक जाम ज्यादा पिला दिए और स्वयं बेसिन में हाथ धोने के बहाने अपना प्याला खाली कर देती. इस के बाद डिनर हुआ और डिनर के बाद दोनों बैडरूम में पहुंच गए.

नशे में धुत विशाल भूखे भेड़िए की तरह उस पर टूट पड़ा था. मीनाक्षी ने बहुत ही सावधानी से शूटिंग कर ली. फिर बाथरूम जाने का बहाना बना कर कैमरेरूपी हेयरपिन को अपने पर्स में संभाल कर रख दिया.

मीनाक्षी विजयी मुद्रा में देररात अपने घर पहुंची. 2 ही दिनों के बाद विशाल का फोन आ गया कि उस ने डीआईजी से बात कर ली है. अरुण नाईक की जल्दी ही रिहाई हो जाएगी. डीआईजी के प्रमोशन के लिए विशाल ने ही मुख्यमंत्री से सिफारिश की थी, इसलिए उसे यकीन था कि डीआईजी उस का यह काम जरूर कर देंगे. डीआईजी को भी विशाल के उपकारों का कर्ज उतारना था, उन्होंने विशाल का काम कर दिया और कुछ ही दिनों में अरुण नाईक जेल से रिहा हो गया.

अपने पति की रिहाई के एक दिन बाद विशाल ने मीनाक्षी को फोन किया, ‘मीनाक्षी तुम्हारा काम हो गया है न, मुझे धन्यवाद देने नहीं आओगी?’

‘आऊंगी न सर, जरूर आऊंगी. आप ने जो काम किया है उस का दाम भी तो चुकाना पड़ेगा न,’ मीनाक्षी ने हंसते हुए कहा.

‘ठीक है, कल शाम को आ जाना. हम तो तुम्हारा बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं. मीनाक्षी, तुम ने तो हम पर जादू कर दिया है,’ खुशी से उछलते हुए विशाल ने कहा.

विशाल और मीनाक्षी की दोस्ती गहरी होती जा रही थी जिस का पूरापूरा फायदा अरुण नाईक उठा रहा था. वह अपनी रिहाई के बाद शहर में सांड की तरह घूमने लगा और छोटेमोटे अपराध करने शुरू कर दिए. अरुण नाईक को भी यह यकीन हो गया था कि अब मीनाक्षी अपनी पहुंच से उस को बचा लेगी. उधर मीनाक्षी ने विशाल के साथ अपनी खास दोस्ती का फायदा उठाना शुरू कर दिया. अब उस का उठनाबैठना हाई सोसाइटी में होने लग गया था. वह अफसर या किसी भी मंत्री की केबिन में सहज शिरकत कर सकती थी. मगर विशाल इस बात से अनजान था.

एक दिन विशाल ने बातोंबातों में मीनाक्षी से कहा, ‘मीनाक्षी, चीफ सैक्रेटरी का मेरा प्रमोशन अटका हुआ है. मेरी फाइल उन के पास पड़ी हुई है. फिर आजकल मुख्यमंत्री महोदय मु?ा से नाराज चल रहे हैं. एक बार मैं तुम्हें उन से इंट्रोड्यूस करवाना चाहता हूं. क्या तुम उन से मिलना चाहोगी? एक बार उन से तुम्हारी दोस्ती हो जाएगी तो तुम्हें आगे बहुत फायदा होता रहेगा और मेरी फाइल भी…’

विशाल अपनी बात समाप्त करे इस से पहले मीनाक्षी मुसकराते हुए बोली, ‘सम?ा गई विशाल, मैं और किसी के लिए नहीं पर तुम्हारे लिए उन से जरूर मिलूंगी.’ यह कहते हुए वह विशाल की बांहों में ?ाम गई.

मीनाक्षी को यह पता था कि 2-3 साल पहले मुख्यमंत्री की पत्नी का निधन हो गया था, उन का एक ही बेटा है जो यूएस में पढ़ाई कर रहा है. मुख्यमंत्री अकेले ही रहते हैं. एक दिन विशाल ने अपने जन्मदिन की छोटी सी पार्टी में मुख्यमंत्री से मीनाक्षी की मुलाकात करवा दी. विशाल ने देखा कि मुख्यमंत्री मीनाक्षी को ऐसे देख रहे थे मानो वे नजरों से ही उसे निगल जाएंगे. विशाल के चेहरे पर मुसकान की एक महीन लकीर फैल गई. कुछ ही दिनों बाद मीनाक्षी और मुख्यमंत्री में मुलाकातें बढ़ने लगीं. मीनाक्षी ने मुख्यमंत्री पर अपने हुस्न का ऐसा जादू किया कि 4 दिनों में ही विशाल राज्य का चीफ सैक्रेटरी बन गया.

अपने प्रमोशन से अपार खुश विशाल तो अब मीनाक्षी की उंगलियों पर नाचने लगा था. वहीं, मीनाक्षी के पास वीडियोरूपी दोचार ब्रह्मास्त्र थे जिन का उपयोग वह आपातकालीन हालात में कर सकती थी.

एक दिन मीनाक्षी ने विशाल को फोन किया. ‘हैलो विशाल, कौंग्रेचुलेशन. पार्टी कब दे रहे हो?’

‘थैंक्यू मीनाक्षी, तुम ने तो कमाल कर दिया. जो फाइल 6 महीने तक नहीं हिल रही थी, उसे तुम ने 6 दिनों में निबटा दिया. ग्रेट जौब, तुम बताओ पार्टी कब चाहिए?’

‘शुभस्य शीघ्रम. कल ही हो जाए.’

‘व्हाई नौट, मीनाक्षी.’

अब तो मीनाक्षी की आएदिन पार्टियां हो रही थीं. कभी किसी अफसर के साथ तो कभी किसी मंत्री के साथ, कई बार मुख्यमंत्री भी उसे अपने बंगले पर बुला लेते. अब मीनाक्षी का रहनसहन बदल गया था. अरुण नाईक ने भी महसूस किया कि मीनाक्षी के बरताव में अब बदलाव आ रहा है, मगर उस ने ज्यादा ध्यान नहीं दिया. वह तो अपनी अपराध की दुनिया में निश्ंिचत हो कर मौजमस्ती लूटने में मशगूल था. उसे पता था कि अब मीनाक्षी की पहुंच मुख्यमंत्री तक है, तो उस का कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता.

मगर इधर मीनाक्षी के दिमाग में अलग खिचड़ी पक रही थी. वह अब अरुण की करतूतों से तंग आ चुकी थी. उस के छोटेमोटे अपराधों के कारण जबजब उसे जेल हो जाती थी या उस पर मुकदमा चलता था तबतब उसे छुड़ाने के लिए उसे कभी किसी पुलिस के आला अफसर या मंत्री के साथ हमबिस्तर होना पड़ता था. एक दिन उस ने अपने मन की बात विशाल को बताई कि वह अरुण से अब दूर होना चाहती है. उस के आपराधिक जीवन से अब उसे घृणा हो गई है. विशाल कुमार की मदद से उस ने एक योजना बनाई कि किसी मुठभेड़ में फर्जी एनकाउंटर से अरुण का सफाया कर दिया जाए.

पहले तो विशाल ने इस के लिए स्पष्ट रूप से मना कर दिया, पर मीनाक्षी ने जब उसे एक वीडियो क्लिप की झलक दिखाई तो उस के पसीने छूट गए. वह घबरा कर बोला, ‘मीनाक्षी, यह वीडियो तुम ने कब  शूट किया?’

मीनाक्षी ने मुसकराते हुए कहा, ‘जनाब, यह तो अपनी पहली मुलाकात का वीडियो है. ऐसे और भी वीडियो मेरे पास हैं. इसलिए, तुम मेरे रास्ते से अरुण को हटाने का इंतजाम कर दो, वरना ये वीडियो वायरल करने में मुझे ज्यादा समय नहीं लगेगा.’

पोर्न स्टार : क्या सुहानी को खूबसूरती के कारण जॉब मिली?- भाग 3

कुछ दिनों के बाद देश में चुनावी माहौल गरमाने लगा था. सभी नेता अपनेअपने वोट बैंक को भुनाने में लगे हुए थे. एक शाम सुहानी को 2 बहुत ही खास लोगों का ध्यान रखने और मन बहलाने के लिए बुलाया गया. इन दोनों लोगों में से एक नेता मुसलिम पार्टी का कोई बड़ा नेता था और देश के पिछड़ेगरीब मुसलमानों का रहनुमा कहलाता था और दूसरा नेता किसी हिंदूवादी पार्टी से जुड़ा था. दोनों ही लोगों के चेहरे पर अधपकी दाढ़ी थी.

सुहानी उन दोनों को एकसाथ ऊपर के  कमरे में ले गई और बोली, “आप दोनों तो अलगअलग समुदाय और अलगअलग राजनीतिक पार्टी से आते हैं और आप दोनों में बड़ा मतभेद भी है, तो फिर यहां आप दोनों एकसाथ कैसे?”

“अरे मैडम, वे सब मतभेद तो बाहर की भोलीभाली जनता को बेवकूफ बनाने के लिए हैं, असल में हम दोनों हर काम एकदूसरे की सलाह के बिना नहीं करते हैं,” खीसे निपोरते हुए हिंदूवादी नेता बोला, जबकि मुसलिम नेता मुसकराते हुए अपने चश्मे को साफ कर रहा था.

“तो क्या आप दोनों यहां भी एकसाथ ही निबटेंगे या अलगअलग?” सुहानी ने कहा.

“हम तो आप को पहले ही बता चुके हैं कि हम दोनों अपने सारे काम एकसाथ ही करते है, इसलिए यहां भी… एकसाथ ही,” बेशर्मी से मुसलिम नेता बोला.

दोनों विरोधी दल के नेता सुहानी के साथ सभी मतों पर सहमत हो रहे थे और उस के साथ रंगीली रात का मजा लूट रहे थे. उन दोनों का आपस में ऐसा प्यार देख कर सुहानी भी मुसकराए बिना न रह सकी.

ऐसे न जाने कितने ही लोग सुहानी की जिंदगी में आते गए जिन में से बहुत से लोगों से सुहानी को वक्तीतौर पर लगाव भी हो गया और जिन से उस ने बाद में भी मुलाकातें जारी रखीं.

आज सुबह से सुहानी को कुछ उबकाइयां सी आ रही थीं. डाक्टर को दिखाया तो उलटा उस ने बधाई देनी शुरू कर दी, “बधाई हो, आप मां बनने वाली हैं.”

डाक्टर के ये शब्द सुन कर सुहानी के पैरों तले जमीन खिसक गई.

‘अगर कोई आदमी कंडोम नहीं लाता था, तो मैं उसे खुद कंडोम देती थी, फिर यह धोखा कब और कैसे हो गया… मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है,’ सुहानी सोचविचार के भंवर में उलझ गई. पहलेपहल तो उस ने बच्चे को गिराना चाहा, पर डाक्टरों ने उसे कुछ मैडिकल पेचीदगियों का हवाला दे कर ऐसा न करने की सलाह दी.

काफी सोचने के बाद सुहानी के मन में भी इस बच्चे को जन्म देने की भावना ने जन्म लिया और उस ने निश्चय कर लिया कि वह बच्चे को जन्म देगी और उस के बाद एक सामान्य और शांत जिंदगी जीने की कोशिश करेगी, पर ऐसा करने में एक समस्या आ रही थी कि दिल्ली आने के बाद सुहानी ने जो भी पैसे कमाए थे, उन्हें उस ने अपने साजसिंगार, मकान के किराए, गाड़ी के खर्च वगैरह पर खुले हाथों से लुटाया था और अब एक बच्चे को जन्म दे कर उस का खर्चा उठा पाने की ताकत सुहानी के पास नहीं थी, क्योंकि बच्चे को जन्म देने के कुछ सालों तक उस की कमाई बंद हो जाएगी और बच्चे की देखरेख के लिए उसे एक नर्स भी रखनी पड़ेगी. पर इतना सारा पैसा कहां से आएगा? यह सवाल भी सुहानी के सामने मुंहबाए खड़ा था.

कई दिन तक काम पर न जाने के बाद एक दिन सुहानी ने सोचा कि क्यों न वह उन लोगों से कुछ पैसे मांग ले जो पिछले कुछ समय में उस के संपर्क में आए हैं. ऐसा सोच कर सुहानी ने फोन कर के कई लोगों से मदद मांगी.

लोग सुहानी से पहले तो अच्छी तरह से रसीली बात करते, पर जैसे ही वह पैसे की बात कहती तो वे कन्नी काट जाते. कुछ लोगों ने तो सुहानी को कई तरह की राय देनी भी शुरू कर दीं कि उसे अपने खर्चे सीमित कर के आमदनी के साधनों को बढ़ाना होगा.

मर्द कितने स्वार्थी होते हैं, यह सुहानी को आज पता लग रहा था. क्या ये वही लोग थे जो सुहानी को रातरात भर अपनी बांहों में लिए पड़े रहते थे और आज उस की मदद करने से कतरा रहे हैं?

सुहानी ने अपने बौस से उसे मैटरनिटी लीव और कुछ एडवांस के लिए बात की, तो एडवांस देना तो बहुत दूर उलटा बौस ने उसे नौकरी छोड़ने को ही कह दिया, क्योंकि उन्हें तो अपने यहां सिर्फ कुंआरी लड़कियों की ही जरूरत होती है.

आज पहली बार सुहानी का मन भर आया था. एक समय था कि उस के पास फालतू खर्चे के लिए भी काफी पैसे हुआ करते थे, पर आज जब वह अपने बच्चे को जन्म देना चाहती है, तो उस के पास पैसे ही नहीं हैं.

सुहानी को अपना घर याद आने लगा. वे मांबाप उस की नजरों के सामने घूमने लगे, जिन्हें वह अकेला छोड़ आई थी. सुहानी का मन कर रहा था कि उस के मांबाप यहां आ कर उसे अपने गले से लगा लें और कहें कि चलो जो हुआ सो हुआ अब आगे से कोई गलती मत करना और हमें अकेले छोड़ कर कभी मत जाना. पर यह तो उस का एक ऐसा हसीन ख्वाब था, जो पूरा नहीं हो सकता. अब सुहानी के पास खुदकुशी करने के अलावा कोई दूसरा चारा नहीं था.

अभी सुहानी यह सोच ही रही थी कि तभी कमरे की घंटी बजी. सुहानी ने झल्ला कर पूछा, “कौन है?”

“जी मैडम, मैं जितेश…” यह नाम सुन कर सुहानी ने दरवाजा खोला, तो सामने जितेश खड़ा मुसकरा रहा था.

“उस दिन आप होटल की लौबी में काफी परेशान दिख रही थीं. मैं ने छिप कर आप की मोबाइल पर कई लोगों से होने वाली बातें भी सुन ली थीं और मैं यह समझ पाया हूं कि आप को पैसों की सख्त जरूरत है.

“मैडम, वैसे तो मेरी सैलरी बहुत कम है, पर फिर भी आप सही समझें तो मैं आप की मदद कर सकता हूं… बताइए आप को कितने पैसे चाहिए?”

जितेश के मुंह से ऐसी बातें सुन कर सुहानी की आंखें छलछला आईं. ऐसा पहली बार हो रहा था, जब कोई मर्द उस से बिना किसी लालच के कुछ दे रहा था.

“पर जितेश, तुम मेरी मदद क्यों करना चाहते हो?”

“क्योंकि मैं प्यार करता हूं आप से…हिचक के चलते कुछ कह नहीं पाया आप से. पर आज कह रहा हूं और यह भी कह रहा हूं कि मैं आप से शादी करना चाहता हूं.”

“पर तुम्हें तो पता है न मेरे काम के बारे में और फिर मैं एक बच्चे की मां भी बनने वाली हूं. ऐसे में तुम मुझे किस तरह अपना सकोगे?”

“जी मैडम… वह सब मुझे पता है, क्योंकि मैं ने आप की सारी बातें सुन ली थीं. बस, आप अपना फैसला सुना दो… हां या न?” जितेश ने पूछा.

सुहानी को पहली बार सही माने में प्यार मिल रहा था. उस ने आगे बढ़ कर जितेश के कंधे पर अपना सिर रख दिया.

अगले दिन ही जितेश और सुहानी बिना किसी को कुछ बताए सुहानी के शहर चले गए, क्योंकि जितेश चाहता था कि सुहानी अपने पहले बच्चे को अपने मायके में ही जन्म दे.

पोर्न स्टार : क्या सुहानी को खूबसूरती के कारण जॉब मिली?- भाग 2

“मेरी पत्नी तो बिस्तर पर भी शरमाती रहती है और अपने अंगों के साथसाथ अपना मुंह भी बंद किए रहती है, पर तुम ने जबरदस्त ढंग से मेरा साथ दिया है सुहानी… मैं ने आज तक तुम्हारी जैसी खुल कर सैक्स करने वाली लड़की नहीं देखी… तुम तो पोर्न स्टार को भी मात करती हो, इसलिए यह लो अपना इनाम,” यह कह कर बौस ने बड़े नोटों की एक गड्डी सुहानी की तरफ उछाल दी.

इतने सारे नोट देख कर सुहानी की आंखें खुशी से फैल गईं. यह पहला मौका था जब उस का कौमार्य भंग हुआ था और जिस के बदले उसे इतने सारे पैसे भी मिले थे.सुहानी ने इन पैसों से घर के लिए कई  जरूरी सामान खरीदे और अपने पापा को उन के शराब के शौक को जारी रखने के लिए पैसे भी दिए.

बेटी के इस तरह से अचानक खूब पैसे लाने पर मांबाप को खुशी भी हो रही थी और हैरानी भी. सुहानी की मां ने एक बार दबी जबान से पूछा भी तो उस के पापा ने यह कह कर चुप करा दिया, “अब सुहानी नौकरी करने लगी है, इसलिए अब पैसों की कमी थोड़े ही रहेगी हमें.”

कुछ दिन ही बीते थे कि सुहानी की कंपनी में एक विदेशी क्लाइंट आया. सुहानी को इस क्लाइंट को कंपनी के गैस्ट हाउस में छोड़ कर आने की जिम्मेदारी दी गई, जिसे सुहानी ने बखूबी निभाया भी.

उस विदेशी पर भी सुहानी ने अपने हुस्न का जादू चला दिया. गाड़ी से नीचे उतरते समय सुहानी के सीने पर उस क्लाइंट की कुहनी का दबाव बढ़ता चला गया. इस बात पर जहां सुहानी को विरोध करना चाहिए था, वह सिर्फ मुसकरा कर रह गई. इस के बाद तो आंखों ही आंखों में विदेशी क्लाइंट ने सुहानी से सैक्स करने का औफर दिया, जिसे सुहानी ने स्वीकार भी कर लिया. वह रातभर उस विदेशी के साथ रही और सुबह होते ही उस क्लाइंट से मुसकरा कर पैसे मांगने लगी, “माई फीस प्लीज…”

उस विदेशी ने भी सुहानी को उस की उम्मीद से कहीं ज्यादा पैसे दिए. सुहानी को यह सब काम बहुत अच्छा लग रहा था, क्योंकि उस के हुस्न की कीमत तो उसे अब मिल रही थी.

इस तरह से सुहानी को एक झटके में ही इतने पैसे मिल जाते थे, जितने औफिस में कई महीने सिर खपा कर भी नहीं मिलते थे, इसलिए सुहानी ने आने वाले 2-3 साल तक अपने बौस, कंपनी के मेहमानों और क्लाइंटों के साथ रात गुजारने का कोई मौका नहीं जाने दिया, जिस से उसे ढेर सारे पैसे मिले.

18 साल की सुहानी अब 21 साल की हो गई थी और उस का रंगरूप और भी खिल गया था. पर इन बीते सालों में अपनी बेटी के बदलते रंगढंग को देख कर सुहानी की मां को उस के चालचलन पर शक हो गया था, पर सुहानी के पापा को शराब के लिए रोज पैसे मिल रहे थे, इसलिए उन्हें इस बात से कोई मतलब नहीं था कि सुहानी क्या काम कर के ये पैसे कमा रही है, लिहाजा जब भी सुहानी की मां उसे कुछ कहती तो पापा सुहानी को ही सपोर्ट करते.

“सुहानी, तू यह जोकुछ कर रही है न, वह सब अच्छा नहीं है.”

“अरे सुहानी की मां, अब हमारी बेटी बालिग हो चुकी है. वह अपने अच्छेबुरे का फैसला खुद कर सकती है, इसलिए हमें उस के काम में ज्यादा टांग नहीं अड़ानी चाहिए,” कह कर पापा मां को चुप करा देते.

पापा का सहारा मिलते देख सुहानी के मन को बल मिला, पर उस की इच्छाएं यहीं एक छोटे शहर तक सीमित नहीं थीं, बल्कि वह तो अपनी खूबसूरती के बल पर नाम और पैसा दोनों कमाना चाहती थी और इस के लिए उसे एक बड़े प्लेटफार्म की जरूरत थी, जो उसे यहां छोटे शहर में नहीं मिलने वाला था.

पिछले 3 सालों की नौकरी में सुहानी का परिचय कई रसूख वाले लोगों से हो गया था. उन्हीं लोगों में से एक आदमी था जीत सिंह, जो दिल्ली पुलिस में एक बड़ा अफसर था और जब वह पिछली बार किसी काम से सुहानी की कंपनी में गया था, तो उस ने भी सुहानी के जिस्म को भोगा था, इसलिए जब सुहानी ने उस से दिल्ली में किसी जौब के बारे में पूछा, तो उस ने बताया कि अगर वह दिल्ली आ जाए तो उस के काम का दायरा तो बढ़ेगा ही, साथ ही आगे बढ़ने के मौके भी मिलते जाएंगे.

सुहानी अच्छी तरह जानती थी कि अगर उस ने दिल्ली जाने के बारे में  अपने मांबाप को बताया तो उसे कभी इजाजत नहीं मिलेगी, इसलिए उस ने एक रात को अपना सारा सामान पैक किया और अपने मांबाप को बिना कुछ बताए दिल्ली भाग गई.

दिल्ली पहुंच कर सुहानी ने जीत सिंह से मुलाकात की. जीत सिंह ने उसे अपने फ्लैट में रुकने की जगह दी.

यह एक फाइव स्टार होटल था, जहां सुहानी की नई जौब लगी थी. उस की नौकरी लगवाने में जीत सिंह का ही योगदान था. सुहानी यहां पर होस्टैस थी और वीआईपी मेहमानों का हर तरह से ध्यान रखना ही उस का खास काम था.

सुहानी ने यहां पर भी अपना जादू बिखेरना शुरू कर दिया था. सब से पहले वहां के मैनेजर ने सुहानी पर डोरे डालने शुरू कर दिए और वह उस को किसी न किसी बहाने छूने की कोशिश करने लगा. भला सुहानी को इस सब से क्या एतराज होने वाला था.

“सुहानी, तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो. मैं तुम्हारे साथ एक रात  बिताना चाहता हूं,” मैनेजर बेबाकी से कहता जा रहा था.

“हां, पर इस दुनिया में हर चीज की कीमत देनी पड़ती है,” सुहानी ने मुसकराते हुए कहा.

“मैं तुम्हारे लिए हर कीमत देने को तैयार हूं.”

“ठीक है तो 50,000 रुपए पेशगी के तौर पर तुम्हें अभी देने होंगे…”

“तुम पेशगी मांग रही हो?”

हां, क्योंकि मर्द और मौसम का मिजाज एकजैसा होता है… कब बदल जाए, कुछ भरोसा नहीं होता,” बेशर्मी दिखाते हुए सुहानी ने कहा.

मैनेजर ने तुरंत 50,000 रुपए का चैक सुहानी को पकड़ा दिया.

रात में जब सुहानी मैनेजर के कमरे में पहुंची, तो वह पूरी तरह से नशे में चूर था. सुहानी को देख कर वह उस पर टूट पड़ा और उसे बेतहाशा चूमने लगा. उस ने सुहानी के सारे कपड़े उतार दिए और उस के होंठों को चूमने लगा.

मैनेजर के हाथ जैसे ही सुहानी के सीने की ओर बढ़े, तो सुहानी उसे रोकते हुए बोली, “अगर इन्हें छूना है तो कीमत चुकानी होगी…”

“पर मैं तो तुम्हें एडवांस पहले ही दे चुका हूं…” मैनेजर बोला.

“हां, पर उस में इन दोनों कबूतरों की कीमत नहीं शामिल है. अगर तुम इन्हें पकड़ना चाहते हो तो 10,000 रुपए अलग से देने होंगे,” सुहानी ने कहा.

“तुम तो बहुत लालची हो… तुम्हारी कीमत में तो मैं एक पोर्न स्टार के साथ रात गुजार लेता,” मैनेजर ने कहा.

“तो क्या… मैं भी तो किसी पोर्न स्टार से कम नहीं और अब समय खराब मत करो, जो करना है जल्दी करो, मुझे देर हो रही है,” सुहानी ने कहा.

बेचारा मैनेजर अजीब हालत में था. सुहानी ने एक ऐसे समय उस से पैसे की डिमांड रखी थी, जब उस के बदन पर एक भी कपड़ा नहीं था. उस का जोश भी हद पर था, इसलिए उस ने अपने गले की सोने की मोटी चेन को निकाल कर सुहानी के हाथ में पकड़ा दिया और बड़ी बेदर्दी से अपने दोनों  हाथों को उस के सीने पर कस दिया.

मैनेजर की यह हालत देख कर सुहानी बिना मुसकराए न रह सकी. कुछ देर बाद मैनेजर की हवस शांत हो गई और वह निढाल हो कर एक ओर लुढ़क गया.

अब तो होटल में काम करने के बाद सुहानी तकरीबन हर रात नए लोगों के साथ हमबिस्तर होती. उन में से ज्यादातर लोग इस होटल में आए वीआईपी लोग थे. सुहानी कहीं न कहीं एक कालगर्ल में तबदील हो चुकी थी.

उसी होटल में काम करने वाला एक सुपरवाइजर जितेश, जिस की उम्र 25 साल थी, सुहानी के हर अच्छेबुरे काम पर नजर रख रहा था और उसे हैरानी भी होती थी कि सुहानी जैसी खूबसूरत, टैलेंटेड और सुशील सी दिखने वाली लड़की को भला इस तरह का गंदा काम करने की क्या जरूरत है? कई बार उस ने सुहानी से पूछना भी चाहा, पर सुहानी के रुतबे के आगे वह कुछ कह नहीं सका और मनमसोस कर रह गया.

इसी को कहते हैं जीना : कैसा था नेहा का तरीका -भाग 2

अभी हम फाइलें देख ही रहे थे कि ललिताजी वापस चली आईं और अपने साथ नेहा को भी लेती आई थीं.

‘‘बहुत तेज बुखार है इसे. मैं साथ ही ले आई हूं. बारबार उधर भी तो नहीं न जाया जाता.’’

ललिताजी नेहा को दूसरे कमरे में सुला आई थीं और अब शर्माजी को समझा रही थीं,  ‘‘देखिए न, अकेली बच्ची वहां पड़ी रहती तो कौन देखता इसे. बेचारी के मांबाप भी दूर हैं न…’’

‘‘दूर कहां हैं…हम हैं न उस के मांबाप…हर शहर में हमारी कम से कम एक औलाद तो है ही ऐसी जिसे तुम ने गोद ले रखा है. इस शहर में नहीं थी सो वह कमी भी दूर हो गई.’’

‘‘नाराज क्यों हो रहे हैं…जैसे ही बुखार उतर जाएगा वह चली जाएगी. आप भी तो बीमार हैं न…आप का खानापीना भी देखना है. 2-2 जगह मैं कै से देखूं.’’

मैं ने भी उसी पल उन्हें ध्यान से देखा था. बहुत ममतामयी लगी थीं वह मुझे. बहुत प्यारी भी थीं.

लगभग 4 घंटे उस दिन मैं शर्माजी के घर पर रहा था और उन 4 घंटों में शर्मा दंपती का चरित्र पूरी तरह मेरे सामने चला आया था. बहुत प्यारी सी जोड़ी है उन की.  ललिताजी तो ऐसी ममतामयी कि मानो पल भर में किसी की भी मदद करने को तैयार. शर्माजी पत्नी की इस आदत पर ज्यादातर खुश ही रहते.

मेरे साथ भी मां जैसा नाता बांध लिया था ललिताजी ने. सचमुच कुछ लोग इतने सीधेसरल होते हैं कि बरबस प्यार आने लगता है उन पर.

‘‘देखो बेटा, मनुष्य को सदा इस  भावना के साथ जीना चाहिए कि मेरा नाम कहीं लेने वालों की श्रेणी में तो नहीं आ रहा.’’

‘‘मांजी, मैं समझा नहीं.’’

‘‘मतलब यह कि मुझे किसी का कुछ देना तो नहीं है न, कोई ऐसा तो नहीं जिस का कर्ज मेरे सिर पर है, रात को जब बिस्तर पर लेटो तब यह जरूर याद कर लिया करो. किसी से कुछ लेने की आस कभी मत करो. जब भी हाथ उठें देने के लिए उठें.’’

मंत्रमुग्ध सा देखता रहता मैं  ललिताजी को. जब भी उन से मिलता था कुछ नया ही सीखता था. और उस से भी ज्यादा मैं यह सीखने लगा था कि नेहा के करीब कैसे पहुंचा जाए. नेहा अपना कोई न कोई काम लिए ललिताजी के पास आ जाती और मैं उस के लिए कुछ सोचने लगता.

‘‘बहुत अच्छी लड़की है, पढ़ीलिखी है, मेरा जी चाहता है उस का घर पुन: बस जाए.’’

‘‘मांजी, उस का पति वापस आ गया तो. ऐसी कोई तलाक जैसी प्रक्रिया तो नहीं गुजरी न दोनों में. पुन: शादी के बारे में कैसे सोचा जा सकता है.’’

शर्माजी के घर से शुरू हुई हमारी जानपहचान उन के घर के बाहर भी जारी रही और धीरेधीरे हम अच्छे दोस्त बन गए.

ललिताजी से मिलना कम हो गया और हर शाम मैं और नेहा साथसाथ रहने लगे. मार्च का महीना था जिस वजह से आयकर रिटर्न का काम भी नेहा ने मुझे सौंप दिया. कभी नया राशन कार्ड बनाना होता और कभी पैन कार्ड का चक्कर. उस के घर की किस्तें भी हर महीने मेरे जिम्मे पड़ने लगीं. 2-3 महीने में नेहा के सारे काम हो गए. कभीकभी मुझे लगता, मैं तो उस का नौकर ही बन गया हूं.

कुछ दिन और बीते. एक दिन पता चला कि ललिताजी को भारी रक्तस्राव की वजह से आधी रात को अस्पताल में भरती कराना पड़ा. शर्माजी छुट्टी पर चले गए. उन के  बच्चे दूर थे इसलिए उन्हें परेशान न कर वह पतिपत्नी सारी तकलीफ खुद ही झेल रहे थे.

मेरा परिवार भी दूर था सो कार्यालय के बाद मैं भी अस्पताल चला आता था, उन के पास.

नेहा अस्पताल में नहीं दिखी तो सोचा, हो सकता है वह ललिताजी का घर संभाल रही हो. ललिताजी का आपरेशन हो गया. मैं छुट्टी ले कर उन के आसपास ही रहा. नेहा कहीं नजर नहीं आई. एक दिन शर्माजी से पूछा तो वह हंस पड़े और बताने लगे :

‘‘जब से तुम उस के काम कर रहे हो तब से वह मुझ से या ललिता से मिली कब है, हमें तो अपनी सूरत भी दिखाए उसे महीना बीत गया है. बड़ी रूखी सी है वह लड़की.’’

मुझ में काटो तो खून नहीं. क्या सचमुच नेहा अब इन दोनों से मिलती- जुलती नहीं. हैरानी के साथसाथ अफसोस भी होने लगा था मुझे.

ललिताजी अभी बेहोशी में थीं और शर्माजी उन का हाथ पकड़े बैठे थे.

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