एक कदम आगे – भाग 1

ऐक्सीडैंट की खबर मिलते ही जुबेदा के तो होश उड़ गए. इमरान से शादी को अभी 3 ही साल हुए थे. इमरान की बाइक को किसी ट्रक ने टक्कर मार दी थी. घर के सभी लोगों के साथ जुबेदा भी अस्पताल पहुंची थी. सिर पर गंभीर चोट लगी थी. जिस्म पर भी काफी जख्म थे. औपरेशन जरूरी था. उस के लिए 1 लाख चाहिए थे. जुबेदा ससुर के साथ घर आई. फौरन 1 लाख का चैक ले कर अस्पताल पहुंचीं, पर तब तक उस की दुनिया उजड़ चुकी थी. इमरान अपनी आखिरी सांस ले चुका था. जुबेदा सदमे से बेहोश हो गई. अस्पताल की काररवाई पूरी होने और लाश मिलने में 5-6 घंटे लग गए.

घर पहुंचते ही जनाजा उठाने की तैयारी शुरू हो गई. जुबेदा होश में तो आ गई थी पर जैसे उस का दिलदिमाग सुन्न हो गया था. उस की एक ही बहन थी कहकशां. वह अपने शौहर अरशद के साथ पहुंच गई थी. जैसे ही जनाजा उठा, जुबेदा की फूफी सास सरौते से उस की चूडि़यां तोड़ने लगीं.

कहकशां ने तुरंत उन्हें रोकते हुए कहा, ‘‘चूडि़यां तोड़ने की क्या जरूरत है?’’

‘‘हमारे खानदान में रिवायत है कि जैसे ही शौहर का जनाजा उठता है, बेवा की चूडि़यां तोड़ कर उस के हाथ नंगे कर दिए जाते हैं,’’ फूफी सास बोलीं.

जुबेदा की खराब हालत देख कर कहकशां ने ज्यादा विरोध न करते हुए कहा, ‘‘आप सरौता हटा लीजिए. मैं कांच की चूडि़यां उतार देती हूं.’’

मगर फूफी सास जिद करने लगीं, ‘‘चूडि़यां तोड़ने का रिवाज है.’’ तब कहकशां ने रूखे लहजे में कहा, ‘‘आप का मकसद बेवा के हाथ नंगे करना है, फिर चाहे चूडि़यां उतार कर करें या उन्हें तोड़ कर, कोई फर्क नहीं पड़ता है,’’ और फिर उस ने चूडि़यां उतार दीं और सोने की 2-2 चूडि़यां वापस पहना दीं.

इस पर भी फूफी सास ने ऐतराज जताना चाहा तो कहकशां ने कहा, ‘‘आप के खानदान में चूडि़यां फोड़ने का रिवाज है, पर सोने की चूडि़यां तो नहीं तोड़ी जाती हैं. इस का मतलब है सोने की चूडि़यां पहनी जा सकती हैं.’’

फूफीसास के पास इस तर्क का कोई जवाब न था.

जुबेदा को सफेद सलवारकुरता पहनाया गया. फिर उस पर बड़ी सी सफेद चादर ओढ़ा कर उस की सास उसे एक कमरे में ले जा कर बोलीं, ‘‘अब तुम इद्दत (इद्दत शौहर के मरने के बाद बेवा को साढ़े चार महीने एक कमरे में बैठना होता है. किसी भी गैरमर्द से मिला नहीं जा सकता) में हो. अब तुम इस कमरे से बाहर न निकलना.’’

जुबेदा को भी तनहाई की दरकार थी. अत: वह फौरन बिस्तर पर लेट गई. कहकशां उस के साथ ही थी, वह उस के बाल सहलाती रही, तसल्ली देती रही, समझाती रही.

जुबेदा की आंखों से आंसू बहते रहे. उस की आंखों के सामने उस का अतीत जीवित हो उठा. उस के वालिद तभी गुजर गए थे जब दोनों बहनें छोटी थीं. उन की अम्मां ने कहकशां और जुबेदा की बहुत प्यार से परवरिश की. दोनों को खूब पढ़ाया लिखाया. पढ़ाई के बाद कहकशां की शादी एक अच्छे घर में हो गई. जुबेदा ने एमएससी, बीएड किया. उसे सरकारी गर्ल्स स्कूल में नौकरी मिल गई. जिंदगी बड़े सुकून से गुजर रही थी. किसी मिलने वाले के जरीए जुबेदा के लिए इमरान का रिश्ता आया. इमरान अच्छा पढ़ालिखा और प्राइवेट कंपनी में नौकरी करता था. अम्मां ने पूरी मालूमात कर के जुबेदा की शादी इमरान से कर दी. अच्छा खानदान था. भरापूरा घर था.

इमरान बहुत चाहने वाला शौहर साबित हुआ. मिजाज भी बहुत अच्छा था. दोनों ने 1 महीने की छुट्टी ली थी. उमंग भरे खुशी के दिन घूमनेफिरने और दावतों में पलक झपकते ही गुजर गए. दोनों ने अपनीअपनी नौकरी जौइन कर ली. इमरान सवेरे 9 बजे निकल जाता. उस के बाद जुबेदा को स्कूल के लिए निकलना होता. घर में सासससुर और इमरान से बड़ा भाई सुभान, उस की बीवी रूना और उन के 2 छोटे बच्चों के अलावा कुंआरी ननद थी, जो कालेज में पढ़ रही थी.

अभी तक जुबेदा किचन में नहीं गई थी. इतना वक्त ही न मिला था. बस एक बार उस से खीर पकवाई गई थी. वे घूमने निकल गए. उस के बाद दावतों में बिजी हो गए. आज किचन में आने का मौका मिला तो उस ने जल्दीजल्दी परांठे बनाए. भाभी ने आमलेट बना दिया. नाश्ता करतेकराते काफी टाइम हो गया. इमरान नाश्ता कर के चला गया. आज लंच बौक्स तैयार न हो सका, क्योंकि टाइम ही नहीं था. दोनों शाम को ही घर आ पाते थे.

शाम को दोनों घर पहुंचे. जुबेदा ने अपने लिए व इमरान के लिए चाय बनाई. बाकी सब पी चुके थे. चाय पीतेपीते वह दूसरे दिन के  लंच की तैयारी के बारे में प्लान कर रही थी. तभी सास की सख्त आवाज कानों में पड़ी, ‘‘सारा दिन बाहर रहती हो… कुछ घर की भी जिम्मेदारी उठाओ… रूना अकेली कब तक काम संभालेगी. उस के 2 बच्चे भी हैं… उन का भी काम करना पड़ता है. फिर हम दोनों की भी देखभाल करनी पड़ती है. अब कल सुबह से नाश्ता और खाना बना कर जाया करो. समझ गई?’’

जुबेदा दूसरे दिन सुबह जल्दी उठ गई. सब के लिए परांठे बनाए. भाभी ने दूसरी चीजें बनाईं. उस ने जल्दीजल्दी एक सब्जी बनाई. फिर थोड़ी सी रोटियां बना कर दोनों के लंच बौक्स तैयार कर लिए. जल्दी करतेकरते भी देर हो गई. इसी तरह जिंदगी की गाड़ी चलने लगी. कभी दाल नहीं बन पाती तो कभी पूरी रोटियां पकाने का टाइम नहीं मिलता. हर दूसरेतीसरे दिन सास की सलवातें सुननी पड़तीं. शाम को बसों के चक्कर में इतना थक जाती कि शाम को कुछ खास नहीं कर पाती. बस थोड़ी बहुत रूना भाभी की मदद कर देती.

छुट्टी के दिन कहीं आनेजाने का या घूमने का प्रोग्राम बन जाता तो सब के मुंह फूल जाते. सास सारा गुस्सा जुबेदा पर उतारतीं, ‘‘पूरा हफ्ता तो घर से बाहर रहती हो छुट्टी के दिन तो घर रहा करो. कुछ अच्छी चीजें पकाओ… पर तुम्हें तो उस दिन भी मौजमस्ती सूझती है. जबकि छुट्टी के दिन तो हफ्ते भर के  काम करने को होते हैं.’’

जुबेदा जवाब नहीं देती. सास खुद ही बकझक कर के चुप हो जातीं. इमरान सारे हालात देख रहा था. जुबेदा भरसक कोशिश करती पर काम निबटाना मुश्किल था. करने वाले 2 थे. काम ज्यादा लोगों का था और रूना भाभी के बच्चे भी छोटे थे. इमरान ने एक खाना पकाने वाली औरत का इंतजाम कर दिया. उस का वेतन जुबेदा देती थी. अब उसे राहत हो गई थी. वह बस सुबह के परांठे बनाती. तब तक बाई आ जाती. वह सास की सब्जी बना देती. बाकी बाद का काम भी संभाल लेती. रूना भाभी को भी आराम हो गया. दिन सुकून से गुजर रहे थे.

मुश्किल यह भी कि सास पुराने ख्यालात की थीं. उन्हें जुबेदा का नौकरी करना बुरा लगता था. वे और जगह खुले हाथ से खर्च करती थीं पर घर खर्च में कुछ नहीं देती थीं. इमरान सुभान के बराबर घर खर्च में पैसे देता था. फिर अब्बा की पेंशन भी थी. उस में से सास बचत कर लेती थीं और बेवजह ही घर तंगी का रोना रोतीं. हां, जुबेदा कभी फ्रूट्स ले आती तो कभी नाश्ते का सामान. खास मौके पर सब को तोहफे भी देती. तब सास खूब खुश हो जातीं पर टोकने का कोई मौका नहीं छोड़तीं.

जुबेदा काफी खूबसूरत और नाजुक सी थी. इमरान उस पर जान देता था. उस का बहुत खयाल रखता. यह भी अम्मां को बहुत अखरता था कि उन का लाड़ला उन के अलावा किसी और से मुहब्बत करता है.

बकरा – भाग 3 : मालिक के चंगुल में मोहन

माधव चप्पू को तेजी से चला कर नाव को भगाने लगा. मोहन से नाव दूर निकल गई.मोहन पानी में हाथपैर मार कर बचने की कोशिश करने लगा, लेकिन वह डूबने लगा था. तभी पानी के बहाव में उसे एक पेड़ की टहनी बहती हुई मिली. उस ने वह टहनी जोर से पकड़ ली और वह टहनी के साथ बहने लगा.

तभी कुछ दूर एक नाव उसे आती हुई दिखी.‘‘बचाओ… बचाओ…’’ मोहन जोर से चिल्लाने लगा. उस की आवाज सन्नाटे को चीरती हुई नाविक तक पहुंच गई. नाव चलाने वाला मोहन का दोस्त बिरजू था.किसी डूबते आदमी को बचाने के लिए उस ने नाव तेजी से चलाई.

वह जल्दी ही मोहन तक पहुंच गया.‘‘अरे, मोहन तुम…’’ बिरजू चिल्लाया. उस ने मोहन को पानी से नाव पर खींच लिया. मोहन बेहद डरा हुआ था.‘‘आखिर, तुम यहां कैसे आए?’’ बिरजू ने मोहन को झकझोरते हुए पूछा.‘‘मालिक ने नदी के उस पार के बाजार से मुझे बासमती चावल लाने भेजा था.

जिस नाव पर मैं सवार था, उसे माधव नाम का नाविक चला रहा था. बीच मझधार में उस ने मुझे धक्का दे कर नदी में गिरा दिया.‘‘मैं डूबने लगा था कि तभी पेड़ की एक टहनी को पकड़ कर कुछ दूर नदी के बहाव के साथ बहा, फिर अपनी ओर एक नाव को आते देखा.

‘‘अगर बिरजू तुम नहीं मिलते तो शायद…,’’ मोहन का गला रुंध गया. बिरजू चप्पू को तेज रफ्तार से चला कर नाव को किनारे तक ले आया.‘‘माधव को तुम पहचानते थे?’’ बिरजू ने पूछा. ‘‘नहीं, मेरा मालिक उसे जानता था,’’ मोहन ने कहा.‘‘अब समझा. माधव भाड़े का अपराधी था. मालिक के इशारे पर तुम्हें नदी में डुबो कर मारना चाहता था,’’ बिरजू ने कहा.‘‘लेकिन मालिक ने ऐसा क्यों किया?’’

मोहन ने मासूमियत से पूछा.‘‘शायद किसी बात के शक में उस ने यह खतरनाक कदम उठाया होगा,’’ बिरजू ने कहा.‘‘किस बात का शक? मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा है,’’ मोहन ने कहा.‘‘वह अपनी बीवी और तुम्हारे बीच नाजायज संबंध को ले कर शक कर रहा होगा,’’ बिरजू घटना की तह तक जाने लगा.‘‘मोहन, तुम दिलीप साव के घर जाते थे न? कोई नजदीकी आदमी ने उस की बीवी के साथ संबंध बनाया होगा.

उस की बीवी पेट से रह गई होगी और वह तुम पर शक कर बैठा,’’ बिरजू ने अंधेरे में तीर चलाया.‘‘अरे हां, मालिक का भाई सुजीत अपनी भाभी के साथ गलत संबंध बनाता था. मैं ने किवाड़ की सुराख से छिप कर देवरभाभी को मजे लेते अपनी आंखों से देखा था,’’

जैसे मोहन नींद से जागा हो.‘‘मोहन, तुझे दिलीप साव ने बलि का बकरा बना दिया,’’ बिरजू ने हंस कर कहा.‘‘अब हम क्या करें?’’ मोहन खौफ में था.‘‘मालिक को कुछ मत बताना, नहीं तो तबाही की सूनामी आ जाएगी.‘‘देखो, कोई बहाना बना देना. नाव से अचानक नदी में गिर गया था.

जान बच गई, बस,’’ बिरजू ने समझाया.‘‘और अपराधी माधव के बारे में?’’ मोहन ने आगे पूछा.‘‘कह देना कि माधव को पता नहीं चला कि मैं नदी में गिर गया था. वह नाव ले कर कहीं दूर निकल गया,’’ बिरजू बोला.‘‘अब मैं दिलीप साव के किराने की दुकान पर काम नहीं करूंगा,’’

मोहन ने अपना फैसला सुनाया.‘‘इस महीने तक काम कर लो, मगर मालिक से सावधान रहना. इस महीने की तनख्वाह ले कर काम छोड़ देना,’’ बिरजू ने कहा.‘‘उस के बाद मैं क्या करूंगा?’’ मोहन ने पूछा.‘‘मेरे चाचा का ढाबा कोलकाता में है. वहीं चले जाना.

ढाबे पर एक आदमी की जरूरत है,’’ बिरजू ने कहा.मोहन और बिरजू बातें करते हुए अपने घर चले गए.दूसरे दिन मोहन किराने की दुकान पर पहुंचा.

दिलीप साव उसे जिंदा देख कर घबरा गया. माधव ने तो उसे नदी में डुबा दिया था.दिलीप साव ने संभल कर पूछा, बासमती चावल का क्या हुआ?’’‘‘मैं नदी में गिर गया था. बस, जान बच गई. ये लीजिए, आप के 5,000 रुपए,’’ मोहन ने रुपए दे दिए.‘‘अरे बाप रे, बड़ी घटना घट जाती तो… चलो, जान तो बच गई,’’ दिलीप साव के बोल बड़े मीठे थे.

तब तक दुकान पर 1-2 ग्राहक आ गए थे. मोहन उन्हें सामान देने लगा.रात को दिलीप साव दुकान बढ़ा कर घर पहुंचा. वह पलंग पर दीपा के साथ लेटा हुआ था. वह सोना चाहता था, लेकिन उस की आंखों से नींद गायब थी. मोहन का जिंदा वापस लौट आना उस की चिंता का सबब था.दीपा ने बांहों में भर कर दिलीप साव को चूम लिया. ‘‘चलो हटो, मुझे सोने दो,’’ दिलीप साव ने बेरूखी से कहा.‘‘मुझ से नाराज लग रहे हैं,’’ दीपा ने उसे अपने ऊपर खींच लिया,

‘‘हां, अब तो अपना काम कर के सोओ,’’ उस ने प्यार से कहा.दिलीप साव ने इस बार तकिए के नीचे से कंडोम नहीं निकाला. अब इस की जरूरत ही कहां थी.

वह सैक्स करने लगा. दोनों संतुष्ट हो कर गहरी नींद में सो गए.महीना बीत चुका था. आज पहली तारीख थी. मोहन ने दिलीप साव से महीने की तनख्वाह मांगी.‘‘मालिक, आज एक तारीख है. महीने की तनख्वाह चाहिए थी,’’ मोहन ने मालिक से खुशामद की.

‘‘हांहां, क्यों नहीं,’’ दिलीप साव ने गल्ले से रुपए निकाल कर मोहन को दे दिए. उस ने अपनी तनख्वाह संभाल कर रख ली.‘‘मालिक, आज रात मेरी कोलकाता जाने की ट्रेन है. टिकट हो गया है,’’ मोहन ने कहा.‘‘तुम कोलकाता क्यों जा रहे हो?’’ मालिक ने पूछा.‘‘मेरी कोलकाता में नौकरी लगी है. कमाने जा रहा हूं.’’ मोहन ने कहा.‘‘तब यहां दुकान में कौन काम करेगा?’’

मालिक घबरा कर बोला.‘‘यह सब मैं क्या जानूं. यह अब आप को समझना है.’’इतना कह कर मोहन किराने की दुकान से बाहर निकल गया. मालिक ठगा सा उसे जाते देखता रह गया.रात में मोहन को रेलवे स्टेशन पर छोड़ने बिरजू आया था. कोलकाता जाने वाली टे्रन स्टेशन पर लगी हुई थी. थोड़ी देर में टे्रन ने जोरदार सीटी बजाई.ट्रेन धीमी रफ्तार से स्टेशन पर आगे बढ़ने लगी.

बिरजू ने ट्रेन की खिड़की के पास बैठे मोहन को समझाया, ‘‘कोलकाता में भोलाभाला बन कर मत रहना, नहीं तो कोई भी लड़की, औरत तुझे बुद्धू बना देगी. फिर बिरजू क्या करेगा…’’मोहन और बिरजू ठहाका लगा कर हंसने लगे.हंसतेहंसते बिरजू स्टेशन पर अकेला रह गया. ट्रेन स्टेशन से चली गई थी. वह उदास दिल से घर लौट आया.

दिलीप साव अकेले किराने की दुकान संभालने लगा था. उस की परेशानी तब बढ़ जाती थी, जब वह ग्राहकों की भीड़ में घिर जाता था. तब उसे मोहन खूब याद आता था.इस तरह 9 महीने बीत गए. आज दिलीप साव के घर खुशियां लौटी थीं.

दीपा ने एक खूबसूरत बच्चे को जन्म दिया था.‘‘यह लीजिए, आप का खूबसूरत बेटा,’’ दीपा ने बच्चे को दिलीप साव के गोद में दे दिया. उस ने बच्चे को प्यार से चूम लिया. बच्चे का चेहरा उस के छोटे भाई सुजीत से हूबहू मिल रहा था.दिलीप साव के चेहरे पर एक अनकहा दर्द उभर आया.

उस ने मोहन पर बेवजह शक किया. यह तो सुजीत की करतूत निकली. दिलीप साव की आंखों में बेबसी के आंसू भर आए.सुजीत भाभी के साथ खुशियां मना रहा था. अब दिलीप साव कर भी क्या सकता था. वह भी बुझे मन से सब के साथ खुशियों में शामिल हो गया.

बकरा – भाग 2 : मालिक के चंगुल में मोहन

दीपा ने झटपट कपड़े पहन लिए. अपने बिखरे बालों को ठीक किया. सुजीत अपने कमरे में जा कर किताबें उलटनेपुलटने लगा.

तब मोहन ने फिर से दरवाजा खटखटाया. इस बार दीपा ने दरवाजा खोल दिया.मोहन ने अभी जोकुछ देखा था, उस से वह अनजान ही बना रहा.

‘‘मालिक ने हीटर मांगा है,’’ मोहन ने कहा.‘‘अभी लाती हूं,’’ कह कर दीपा ने स्टोर से हीटर ला कर दे दिया. मोहन हीटर ले कर किराने की दुकान पर पहुंचा.

‘‘यह लीजिए हीटर,’’ कह कर मोहन ने दिलीप साव को हीटर दे दिया.मोहन किराने की दुकान पर ग्राहकों को सामान देने लगा. वह मन ही मन सोचता रहा कि दीपा और सुजीत की कारगुजारी दिलीप साव को नहीं बताएगा, नहीं तो वह उसे दुकान से निकाल देगा.जाड़े की कंपकंपाती ठंड पड़ रही थी.

आधी रात को दीपा दिलीप साव की बांहों में थी. दोनों में सैक्स की भूख जगी थी. सैक्स करने से पहले दिलीप साव ने तकिए के नीचे से कंडोम निकाल कर अपने अंग पर पहना.तब दीपा ने थोड़ा विरोध किया, ‘‘कब तक इसे पहनाते रहेंगे?’’‘‘अभी हम बच्चा नहीं चाहते हैं. प्यार ऐसे ही चलता रहेगा,

’’ दिलीप साव ने कहा.दीपा यह दिलीप साव जवाब सुन कर मुसकरा दी. वह कंडोम पहन कर ही सैक्स करने लगा. संतुष्ट होने के बाद थक कर दोनों सो गए.दिन बीत रहे थे. दीपा की सुजीत के साथ प्रेमलीला बददस्तूर जारी थी.

दीपा दिन में सुजीत के साथ और रात में दिलीप साव के साथ मजे ले रही थी.इस बीच एक दिन जब रात को दुकान बढ़ाने के बाद दिलीप साव घर लौटा, तब दीपा ने उसे खुशखबरी सुनाई, ‘‘मैं मां बनने वाली हूं.’’यह खुशखबरी सुनते ही दिलीप साव के पैरों के तले की जमीन खिसक गई.

‘‘मैं तो कंडोम इस्तेमाल करता था, फिर बच्चा कैसे ठहर गया?’’ दिलीप साव ने दीपा से पूछा.‘‘बच्चा आप का ही है. बेवजह शक मत कीजिए,’’ दीपा ने जोर दे कर कहा. दिलीप साव माथा पकड़ कर पलंग पर बैठ गया.‘‘मैं ने सोचा कि आप को पता चलेगा तो आप खुश होंगे, लेकिन यहां आप ही मुझ पर इलजाम लगाने लगे,’’ दीपा सुबक कर रोने लगी.दिलीप साव चुप लगा गया.

अगले दिन वह दुकान पर उदास बैठा था. उस के दिल और दिमाग में दीपा की बात गूंज रही थी, ‘मैं मां बनने वाली हूं.’‘आखिर यह किस की करतूत हो सकती है? मेरा भाई सुजीत तो ऐसा नहीं है,’ दिलीप साव गहरी सोच में डूबा था.मोहन ग्राहक को सामान देने में मशगूल था.

दिलीप साव के शक की सूई मोहन पर आ कर ठहर गई.‘‘हां, यही तो रुपए पहुंचाने दीपा के पास जाता था. मुझ से ही गलती हो गई. मैं ही मोहन को घर भेजता था,’’ दिलीप साव बड़बड़ाया.दिलीप साव को अब मोहन पर बेहद गुस्सा आ रहा था. शक की वजह से मोहन उसे बुरा लगने लगा था.‘क्यों नहीं मोहन को दुकान से निकाल दूं?’

दिलीप साव मन ही मन सोच रहा था.तभी मोहन ने कहा, ‘‘मालिक, मुझे 2,000 रुपए एडवांस चाहिए थे. मोबाइल खरीदना है.’’‘‘मोबाइल का क्या करोगे?’’ दिलीप साव ने गुस्से को दबाते हुए पूछा.‘‘मेरा दोस्त बिरजू है न, उस से बात करूंगा. मालकिन को भी घर पर कोई काम रहेगा तो वे मुझे फोन कर देंगी,’’ मोहन निश्छल भाव से बोला.दिलीप साव का शक और भी पुख्ता होने लगा.

‘एक बार तो मोहन मुझे बेवकूफ बना चुका है, अब दीपा से बात कर के वह मजे लेता रहेगा,’ दिलीप साव कुछ सोच कर बोला, ‘‘2-3 दिन बाद रुपए दे दूंगा.’’‘‘अच्छा मालिक,’’ कह कर मोहन अपने काम में लग गया. 2-3 दिन में दिलीप साव एक खतरनाक साजिश का तानाबाना बुन चुका था.

उस समय किराना दुकान पर कोई ग्राहक नहीं था. मोहन इतमीनान से बैठा था. इधरउधर ताक कर दिलीप साव ने मोहन से कहा, ‘‘सोन नदी के उस पार के बाजार से 3-4 बोरियां बासमती चावल लाना है. वहां चावल सस्ता मिलता है. मुनाफा अच्छा मिलेगा.‘‘ये लो 7,000 रुपए हैं. 5,000 रुपए चावल के लिए और 2,000 तुम्हारे एडवांस के रुपए.’’मोहन ने 7,000 रुपए मालिक से ले लिए. वह एडवांस के रुपए पा कर खुश हो गया था. वह अब मोबाइल खरीद सकेगा.‘‘अच्छा, चलता हूं,’’

कह कर मोहन जाने लगा. मोहन जैसे ही जाने लगा तभी एक शख्स लुंगी और ढीलाढाला कुरता पहने किराने की दुकान पर आया.‘‘अरे, रुको मोहन,’’ दिलीप साव ने आवाज लगाई.मोहन रुक गया.‘‘यह माधव है. नाव चलाता है. नाव से तुम्हें सोन नदी पार करा देगा,’’ दिलीप साव ने उस शख्स का परिचय मोहन से कराया.मोहन ने नजर उठा कर ध्यान से माधव को देखा.

एक अनजान सा खुरदरा चेहरा, जिसे उस ने कभी इस इलाके में नहीं देखा था.‘‘अच्छा, हम लोग जाते हैं,’’ मोहन ने कहा. वे दोनों साथसाथ चल दिए. दिलीप साव के होंठों पर एक जहरीली मुसकान खेल गई.वे दोनों सोन नदी के किनारे पहुंचे. किनारे पर माधव की नाव लगी थी.

सोन नदी अपनी मस्त चाल में बह रही थी.‘‘बैठो,’’ माधव खूंटे से बंधी नाव की रस्सी खोलने लगा. मोहन नाव पर बैठ गया.माधव चप्पू के सहारे नाव आगे बढ़ाने लगा. नाव थोड़ी दूर आगे बढ़ी, तब केवल पानी ही पानी नजर आने लगा. पानी का बहाव भी तेज होने लगा.

माधव सधे नाविक की तरह नाव चला रहा था. मोहन सोन नदी के खूबसूरत नजारों में खोया नाव पर बैठा हुआ था.अब नाव सोन नदी के बीच में पहुंच गई थी. पानी के बहाव में और तेजी आ गई थी. माधव दबे पैर उठा और मोहन को जोर से धक्का दे दिया. मोहन सोन नदी की बहती धार में गिर गया. पानी में गिरते ही उस ने नाव को पकड़ना चाहा. लेकिन माधव ने चप्पू को तेज चला कर नाव को उस की पकड़ से दूर कर दिया.‘‘बचाओ… बचाओ…’’ डर के मारे मोहन चिल्लाने लगा.

बकरा – भाग 1 : मालिक के चंगुल में मोहन

ठेले वाले ने चिल्ला कर कहा, ‘‘मोहन, माल आ गया है.’’ मोहन ने किराने की दुकान से झांक कर देखा. ठेले पर आटे, चावल और दाल की बोरियां रखी थीं.किराने की दुकान का मालिक दिलीप साव खाते का हिसाबकिताब करने में मशगूल था. उस ने खाते का हिसाब करते हुए कहा,

‘‘मोहन, माल उतार लो.’’दुकान पर 2-3 ग्राहक थे, जिन्हें निबटा कर मोहन बोरियां उतारने लगा. ठेले वाले ने भी बोरियां उतारने में उस की मदद कर दी.बड़ी सड़क के किनारे ही दिलीप साव की किराने की दुकान थी. मोहन उस की दुकान पर काम करता था. वह सीधासादा नौजवान था.

वह अपने काम से मतलब रखता था. दुकान से महीने की तनख्वाह मिल जाती थी. उस से वह गुजारा कर लेता था.दिलीप साव की किराने की दुकान अच्छी चलती थी, जिस से वह खुशहाल जिंदगी जी रहा था. एक साल पहले उस की शादी दीपा से हुई थी.दीपा बेहद खूबसूरत थी.

वह काफी गोरीचिट्टी थी. उस की आंखें हसीन थीं. उस की काली जुल्फें मदहोश कर देती थीं. उस के पतले होंठों पर मुसकान खिली रहती थी. वह एक ताजा कली के समान थी.दिलीप साव का एक छोटा भाई था सुजीत. वह कालेज में पढ़ता था.

दीपा का दिल उस से बहल जाता था. वह अपने देवर के साथ हंसीमजाक कर के मजे से दिन गुजार लेती थी.रात तो दीपा की अपनी थी ही. जब दुकान बढ़ा कर रात को दिलीप साव घर लौटता तब दीपा पति के साथ मौजमस्ती करती थी. वह भी दीपा जैसी पत्नी पा कर बेहद खुश था.

उस की तो मजे से जिंदगी कट रही थी.मोहन किराने की दुकान का काम खत्म कर के घर लौट रहा था. रास्ते में उस का एक दोस्त बिरजू मिल गया. बिरजू नाविक था.

वह सोन नदी में नाव चलाता था. सोन नदी इस इलाके से महज आधा किलोमीटर दूर बहती थी. बिरजू नाव से लोगों को सोन नदी पार कराने का काम करता था.मोहन ने पूछा, ‘‘कैसे हो बिरजू?’’‘‘ठीक हूं. तुम अपनी सुनाओ?’’ बिरजू ने कहा.‘‘कुछ खास नहीं, बस…’’ मोहन ने धीरे से कहा.‘‘कब तक सीधेसादे बने रहोगे. चलो, तुम्हें कोलकाता घूमा दूं,’’ बिरजू ने कहा.‘‘वहां क्यों?’’ मोहन ने पूछा.

‘‘अरे यार, मैं तुम्हें कोलकाता के सोनागाछी इलाके में ले चलूंगा. उस इलाके में खूबसूरत लड़कियां इशारे कर के बुलाती हैं. उन के नजदीक चले जाओ, फिर मजा ही मजा लूटो.’’मोहन झेंप कर बोला, ‘‘कभी और देखा जाएगा यार.’’‘‘हां, तब तक भोलाभाला बने रहो. देखना एक दिन औरतें और लड़कियां तुझे बुद्धू बना देंगी,’’ बिरजू ने झल्ला कर कहा.मोहन हंसते हुए घर चला गया.

दिलीप साव किराने की दुकान से रात को लौटा था. वह अपने कमरे के पलंग पर लेटा हुआ था. दीपा भी उस के साथ लेटी हुई थी. बत्ती बुझी हुई थी. कमरे में अंधेरा था. अंधेरे कमरे में वे दोनों एकदूसरे को चूमने लगे थे. बदन की आग धीमेधीमे सुलगने लगी थी.

दीपा के उभार उस पर कहर बरपा रहे थे. दोनों ने एकदूसरे को अपनी बांहों में जकड़ लिया था.दिलीप साव ने तकिए के नीचे से कंडोम निकाला और अपने अंग पर पहन लिया.‘‘आप कब तक बच्चा नहीं चाहते हैं?’’ दीपा ने धीमे से पूछा. ‘‘अभी तो हमारी शादी को एक साल ही हुआ है.

मुझे 3 साल के बाद बच्चा चाहिए,’’ दिलीप साव धीमे से बोला.‘‘आप तो परिवार नियोजन के पक्के हिमायती हैं.’’‘‘हां, बिलकुल हूं,’’ दिलीप साव ने कहा.दीपा ने प्यार से हलकी चपत उस के गाल पर लगाई. हलकी चपत लगते ही वे दोनों सैक्स करने लगे. कुछ देर में पतिपत्नी के चेहरे पर संतुष्टि के भाव थे. शरीर की भूख मिट जाने के बाद वे दोनों गहरी नींद में सो गए थे.

अगले दिन दिलीप साव के किराने की दुकान पर ग्राहकों की भीड़ थी. मोहन ने सारे ग्राहकों को जरूरत के मुताबिक सामान दे दिया था. दिलीप साव ने अभी गल्ले में रखे रुपयों की गिनती की थी.‘20,000 रुपए,’ दिलीप साव ने मन ही मन सोचा.‘‘ये लो 20,000 रुपए. मालकिन को जा कर दे दो,’’ दिलीप साव ने मोहन से कहा.मोहन रुपए का थैला ले कर मालकिन के पास जा पहुंचा और बोला, ‘‘ये 20,000 रुपए हैं. मालिक ने दिए हैं.’’‘‘ठीक है,’’ दीपा ने रुपए ले लिए और अपने कमरे में चली गई.

दीपा ने कमरे का परदा हटाया तो वहां से उस का देवर सुजीत अपने कमरे की तरफ भागा. मोहन को शक हुआ कि दीपा के कमरे में सुजीत क्या कर रहा है? उसे दाल में काला नजर आाया.अमूमन कालेज के लड़के अपने कमरे में पढ़ते हैं. भाभी के कमरे में जा कर वह कौन सी पढ़ाई पढ़ता है?

लेकिन मोहन चुप लगा गया. उसे दिलीप साव के किराने की दुकान पर नौकरी जो करनी थी. वह वहां से सीधा दुकान पर चला आया.जाड़े के दिन आ गए थे.

शाम को ठंड बढ़ जाती थी, जिस से दिलीप साव को दुकान पर ठंड लगती थी. उस ने घर के स्टोर में एक हीटर रखा हुआ था.‘‘मोहन, मालकिन से हीटर मांग कर लेते आओ. ठंड बढ़ गई है,’’ दिलीप साव ने कहा.‘‘अभी जा कर ले आता हूं,’’ कह कर मोहन हीटर लाने चला गया.

मोहन मालिक के घर पहुंचा. घर का दरवाजा दीपा ने अंदर से बंद कर रखा था. मोहन ने आवाज लगाई, ‘‘मालकिन, दरवाजा खोलिए. मालिक ने हीटर मंगाया है.’’लेकिन दीपा ने दरवाजा नहीं खोला. शायद उस ने सुना ही नहीं था. तब मोहन ने दरवाजे के सुराख से अंदर झांक कर देखा.दीपा के कमरे का दरवाजा खुला था. वह पलंग पर लेटी हुई थी.

सुजीत उसे बांहों में भर कर चूम रहा था. पलभर में दीपा ने अपने कपड़े उतार दिए. उस के उभार देख कर सुजीत उस पर झपट पड़ा और वे दोनों सैक्स करने लगे.मोहन यह देख कर हैरान रह गया. इस सीन में उसे भी मजा आने लगा था. कुछ देर तक दोनों देवरभाभी सैक्स का मजा लेते रहे, फिर संतुष्ट हो कर अलग हो गए.

एक सांकल सौ दरवाजे – भाग 6 : क्या हेमांगी को मिला पति का मान

पल्लव जी शायद अपने मन की बात बेतकल्लुफ से कह गए थे और तुरंत वे अपनी कुछ बातें वापस छिपाना चाहते थे. शरमा कर वे चुप से हो गए और अपनी उंगलियों को मरोड़ने लगे.

मुझे ही क्या, भाई को भी लग रहा था कि पल्लव जी ममा के साथ जिंदगी में आगे बढ़ना चाहते हैं. मैं ने जिम्मेदारी समझते हुए कहा- ‘अंकल, ममा की जिंदगी में आप जैसा कोई सीधासच्चा इंसान आ जाए, तो उन की जिंदगी संवर जाए. उन की 21 साल की शादी में…’

‘मैं जानता हूं हेमा का दुख, तुम्हारी ममा का…’ ‘अंकल, आप हेमा ही कहिए, हमें अच्छा ही लगेगा.’ पल्लव जी मुसकराए, उन की दुविधा हम ने कम जो कर दी थी.

वे बोले, ‘एक दोस्त की तरह उस ने अपनी जिंदगी मुझ से कुछ हद तक साझा की है. और मैं ने भी. लेकिन बच्चो, यह खेल नहीं है. हेमा का मन मैं अब तक नहीं समझ सका. वह ऐसे विषय से अब तक बचती रही है. क्या वह तुम्हारे पापा को पाना चाहती है? क्या मालूम…’ पल्लव जी कुछ अनजानी उदासी से घिर गए थे.

मैं अचानक उठी और पल्लव जी के पैर छू लिए. भाई को यह अव्वल दर्जे की नाटकीयता लगी. वह मुंह में भोंपू ठूंसे अवाक सा मुझे निहारता रहा. अंकल भी कुछ सकपका से गए. लेकिन मेरे हाथों को अपने हाथों में ले कर मेरे प्रति उन्होंने कृतज्ञता दिखाई.

मैं ने कहा, ‘अंकल, ममा मेरे पापा के पास लौट कर अपने पैर पर कुल्हाड़ी नहीं मारेगी. सच तो यह भी है कि हम भी अब उस नरक में कभी वापस नहीं जाना चाहेंगे. पापा खुद के सिवा किसी को नहीं जानते, अंकल. और हमें ऐसा स्वभाव फूटी आंख नहीं सुहाता.’

‘वह तो ठीक है बेटा. लेकिन आप की ममा के लिए मैं क्या हूं, जब तक न यह समझूं, कैसे आगे बढ़ें. फिर कुंदन की क्या राय है?’

भाई बेचारे ने सिर झुका लिया. उस के आगे जैसे ढेरों दृश्य एकसाथ भागे जा रहे थे और वह सकपकाया खड़ा ताक रहा था.

मैं ने कहा- ‘अंकल, भाई अभी उतना समझ नहीं सकता. मेरी राय ही उस की राय है. मैं ममा का मन पता करने का दायित्व लेती हूं, आप निश्चिंत रहें. और जैसा मैं कहूं, आप वैसा करें.’

पल्लव जी राजी हो गए. और हम अपने कमरे में आ कर मंसूबों को सच करने की हिम्मत बांधने लगे. ममा वापस कालेज से आ कर सब की देखभाल में लग गई, जैसा घर पर भी किया करती थी. मैं एक अवसर की तलाश में थी जब पल्लव जी को ले कर ममा का मन जान सकूं. रात को डरडर कर छेड़ ही दिया मैं ने. ‘ममा, पल्लव अंकल बहुत अच्छे हैं.’ सो जाओ तुम दोनों,’ ममा रोक रही थी मुझे.

‘ममा, तुम अपनी जिंदगी से मुंह मोड़ रही हो. चलो वह भी सही लेकिन यह तो हमारी जिंदगी का भी सवाल है न.’ ‘मैं तुम लोगों के साथ एक किराए के कमरे में चली जाऊंगी. तुम लोग चिंतित मत हो. मैं अलग से ट्यूशन भी कर लूंगी.’ ‘ममा, तुम ने पल्लव अंकल का मन कभी पढ़ा है?’

‘कंकन, मैं ने एक का पढ़ा, तुम्हारे पापा का,बहुत पढ़ लिया. अब और नहीं. मैं खुश हूं अपनी इस जिंदगी में. मुझे ज्यादा की चाह नहीं.’

ममा तो बड़ी जिद्दी है. जो सोचेगी, वही करेगी. मगर मैं ने तो पल्लव जी को समझा है, फिर मेरी ममा को जिंदगी में कभी पति का प्रेम और सम्मान मिला नहीं, काटने को तो काट लेंगी जिंदगी, लेकिन हम दोनों भाईबहन के अपनी जिंदगी में बस जाने के बाद क्या ममा पीछे नहीं छूट जाएगी? कैसे समझूं ममा के दिल की सच्ची बात?

दूसरे दिन ममा के शाम को कालेज से वापस आने के बाद घर में कुहराम सा मचा था.

पहले तो सबकुछ शांत ही था. अचानक जैसे समंदर में ज्वार सा उठने लगा.

कालेज से आने के बाद ममा नहाधो कर पल्लव जी के कमरे में जाती थी. उन का प्लास्टर चढ़ा हुआ पैर देखती, दोपहर को नर्स या डाक्टर, जो भी आते, से फोन पर पल्लव जी का हाल पूछती, दवाई पूछती, फिर चाय के लिए जाती.

आज भी जब पल्लव जी के कमरे में गई और पलंग पर उन्हें न पा कर सोचा, नौकर कविराज की मदद से जरूर वे बाथरूम गए होंगे.

जब आधा घंटा उन के इंतजार का हो गया और पल्लव जी बाथरूम से निकले नहीं, तो वह परेशान हर ओर ढूंढने लगी.

रसोइए ने अनभिज्ञता जताई. कविराज, शुभा और उसकी मां ने भी. हम दोनों भाईबहन तो पूछने के काबिल भी कहां थे. हमें तो 2 दिन ही हुए थे यहां आए. इस घर का ओरछोर तक हमें मालूम नहीं था. आखिर थकहार कर सब ओर ढूंढ कर ममा हमारे कमरे में आई और हम से पल्लव जी के बारे में पूछा.

मैं ने उलटा पूछा- ‘क्यों, इतनी भी क्या जल्दी है उन के मिलने की? गए होंगे कहीं. बच्चे तो नहीं है न, कोई उन्हें कहीं ले गया होगा.’

‘कोई नहीं है उन का मेरे सिवा. उन की पैर की हड्डी टूटी है, कैसे जाएंगे?’

‘तुम्हारे सिवा कोई नहीं है और उन्हें छोड़ कर तुम किराए के मकान में जाना चाहती हो.’

‘कंकन, तुम नहीं समझोगी. बताओ जल्दी, गए कहां वे?’

‘मैं क्या जानूं?’

ऊपरी मंजिल पर जबकि पल्लव जी का जाना दूभर था, फिर भी ममा उधर भी देख आई. मैं कमरे से अब बाहर आ कर ममा पर नजर रखे थी.

अंत में इतनी दौड़धूप के बाद उन की आंखों में आसूं आ गए. वह निचली मंजिल में अपने कमरे में जा कर दरवाजा भिड़ा कर अंदर हो गई.

मैं ने चुपके से दरवाजे की आड़ से देखा, वह अपने बिस्तर पर बैठी लगातार बह रहे आंसुओं को क्रोध से भरी हुई पोंछ रही थी.

मैं सूचित कर आई और अपना कविराज व्हीलचेयर ठेलता पल्लव जी को ले ममा के कमरे में हाजिर हुआ. मैं अधखुली खिड़की के बाहर खड़ी देख रही थी. पल्लव जी को ममा के सामने छोड़ कविराज निकलने को हुआ ही था कि ममा की नजर पल्लव जी पर पड़ी. वह उठ कर खड़ी हो गई. पहले तो ऐसा लगा कि वह पल्लव जी से लिपट कर रो पड़ेगी लेकिन वह खड़ी की खड़ी रह गई. फिर जैसे उन्हें होश आया और वह कविराज पर बिफर पड़ी.

कविराज को स्वीकारना पड़ा कि इस मकान के पीछे बने कविराज के अपने छोटे से कमरे में पल्लव जी रुके थे. और यह कि पूरा प्लौट कंकन यानी मेरा लिखा गया है.

कविराज मुझ पर पूरा नाटक चढ़ा कर मंच से उतर गया. अभी मैं अपने आगे के किरदार को समझ पाती, मेरे सामने एक अनुपम दृश्य आया. पल्लव जी अपनी हेमा की ओर अग्रसर हुए. उन की हेमा उन्हें निहारती स्थिर चित्र की तरह अपनी जगह खड़ी रही. पल्लव ने हेमा का हाथ अपने हाथ में लिया, कहा, ‘कहो, तुम मेरी फिक्र नहीं करतीं, मेरी चिंता नहीं करतीं. मुझे हमेशा के लिए भुला कर रह पाओगी?’

‘आप क्यों गए पल्लव उधर? मुझे तकलीफ़ देने की इच्छा हुई या मुझे परखना चाहते थे?’

‘नहीं तो, कभी नहीं. बिटिया ने कहा कि ममा समझ नहीं पा रही कि वह आप के बिना एक पल भी नहीं रह सकती. उन्हें यह बात समझाना होगा. और इसलिए बिटिया की बात मुझे माननी पड़ी.’

पल्लव ने अपनी प्रेयसी के गाल पर 2 उंगलियों से छेड़ते हुए कहा, ‘अब समझ रही हो न खुद को? अब मेरे बच्चों को मुझ से दूर तो न करोगी?’

व्हीलचेयर पर बैठे पल्लव की गोद में हेमा ने अपना सिर रख दिया था. पल्लव धीरेधीरे उस के सिर पर हाथ फिराने लगे.

सांकल खुल चुकी थी.

ममा ने बिना कुछ लिएदिए हमारे पापा अजितेश को तलाक दे दिया था. और कानूनी रूप से हेमा और पल्लव एक हो गए थे.

हमें एक मनोरम आज और प्यारा निश्चित कल मिला था.

मुझे खुशी थी कि मैं ने बंद कोठरी की एक सांकल खोलने की जिद की, तो स्वतंत्रता, सम्मान और प्रेम के लिए आगे के सौ पुश्तों के सौ दरवाजे भी खुल गए. आशा की सैकड़ों रश्मियों के लिए दरवाजे खुल गए.

9 महीने की उमर

इदा चाहती कुछ थी, कहती कुछ थी और करती कुछ थी. वह मजबूर थी अपने हालात से, अपने माहौल से. दिखने में तो वह खुद एक बच्ची लगती थी, मगर उस का अपना एक 5 साल का बच्चा था.वह करीम से कहती थी, ‘‘तुम्हें शर्म नहीं आती? किसी और की बीवी को इस तरह परेशान करते हो? वह भी तब, जब वह तुम से 5 साल बड़ी है? उस का अपना एक बच्चा है, वह भी 5 साल का?’’

ये सारी बातें वह एक सांस में कह जाती थी, बिना रुके.करीम उस की बातें सुन कर कहता था, ‘‘क्या करूं… किसी और की बीवी इतनी खूबसूरत हो और मु?ा से प्यार करती हो, तो शर्म कहां से आए?’’करीम की बातें सुन कर इदा हंस देती थी और कहती थी, ‘‘तुम बहुत अच्छे हो करीम.’’करीम को यह सुन कर बड़ी तसल्ली मिलती थी.

वह अपनी बातें कहने में मगन रहता था. इदा उस की कुछ बातों को यों ही हंसी में उड़ा देती थी, मगर जब करीम उस से मिलने की बात करता था, तब उस के चेहरे की हंसी गायब हो जाती थी.वह कहती थी, ‘‘करीम, मैं भी तुम से मिलना चाहती हूूं. तुम्हारे साथ रहना चाहती हूं.

मगर ऐसा हो नहीं सकता है न. मैं किसी और की हूं.’’फिर इदा रोने लगती थी. करीम उसे अपने हिसाब से हौसला देता था. उसे सम?ाता था. दूर से ही सही, उस के आंसू पोंछने की कोशिश करता था.करीम को यह बात सम?ा में नहीं आती थी कि यह दुनिया ऐसी क्यों है? यह समाज ऐसा क्यों है? उसे इदा बहुत पसंद थी. इदा को भी वह बहुत पसंद था. मगर वह किसी और की थी.

वह चाह कर भी करीम की नहीं हो सकती थी. करीम इदा के बिना नहीं रह सकता था. अब किया क्या जाए? किसी को कोई रास्ता नहीं सू?ाता था. न इदा को और न करीम को.इदा तो रो कर अपना गम आंसुओं में बहा देती थी और शांत हो जाती थी.

वह उस से मिलने नहीं आ सकती, यह सुन कर करीम जिद करना छोड़ देता था. मगर बारबार अपने दिल को सम?ाना इतना आसान काम नहीं होता. करीम का दिल रहरह कर इदा के लिए बेचैन हो उठता था और फिर से उसे बुलाना शुरू कर देता था.इदा ने कई बार कोशिश भी की कि वह करीम से मिल ले, मगर ये मुलाकातें बस कुछ पलों की ही हो सकी थीं, जैसे सड़क पर, अपने बच्चे को स्कूल छोड़ने के रास्ते में या फिर किसी किताब की दुकान में.

यह कुछ पलों का मिलना करीम को और बेचैन कर देता था. एक बार तो जब इदा ने जाने के लिए हाथ मिलाया, तो सड़क पर ही करीम ने उस का हाथ इस तरह पकड़ लिया, जैसे अब छोड़ेगा ही नहीं.इदा अब परेशान होने लगी थी. वह कहने लगी, ‘‘करीम, तुम अब मु?ो बहका रहे हो.’’करीम का ऐसा कोई इरादा नहीं था. वह तो बस उस का हाथ नहीं छोड़ना चाहता था.

उसे समाज के बनाए नियम सम?ा नहीं आते थे. वह तो बस अपनी इदा को जाने नहीं देना चाहता था. मगर इदा जिस समाज में रहती थी, वहां इस मुहब्बत को कभी नहीं सम?ा जा सकता था. यह बात इदा अच्छी तरह जानती थी और इसी बात की वजह से वह करीम से दूर रहना चाहती थी. लेकिन करीम बारबार उस के रास्ते में आ जाता था.

एक बार इदा अपने बच्चे को स्कूल छोड़ने गई थी. करीम भी वहीं था.अपने बच्चे को स्कूल में छोड़ कर इदा करीम से मिली और उस से पूछा, ‘‘करीम, इस वक्त यहां किसलिए?’’करीम ने कहा, ‘‘बस, तुम्हें देखने का मन किया, तो चला आया.’’इदा करीम की इस दीवानगी से बहुत घबराती थी, मगर वह उस के रास्ते में बारबार आ ही जाता था.इदा सोचती थी कि ये मर्द ऐसे ही होते हैं.

मगर करीम ऐसा नहीं था. इदा उस की नसों में बस चुकी थी. खून बन कर जिस्म में बह रही थी. करीम के लिए और कुछ नहीं था, सिर्फ इदा और बस इदा. उस की पूरी दुनिया इदा थी और इदा की दुनिया में करीम के लिए कोई जगह नहीं थी.करीम बस इदा की सांसों में रह सकता था. उस के ख्वाबों में रह सकता था, मगर हकीकत में इदा अपने घर में करीम का नाम भी नहीं ले सकती थी. यह बात करीम को खाए जा रही थी.करीम की हालत इदा के लिए दिनोंदिन बिगड़ती जा रही थी.

इदा भी परेशान थी कि क्या करे? करीम इदा के ख्वाब देखता था, फिर इदा से कहता था कि यह ख्वाब पूरा कर दो…. मगर करीम के ख्वाबों में इदा होती थी… और हकीकत में इदा नहीं होती थी. इदा बस करीम से बातें करती थी. बातें हर तरह की. बातें ऐसी कि मियांबीवी भी क्या करें. मगर यह सब करीम की वजह से था. इदा बहुत खूबसूरत थी. यह करीम की परेशानी थी. करीम को इदा के अलावा कुछ सू?ाता ही नहीं था.इदा स्कूटी चलाती थी. करीम को इस बात पर यकीन नहीं हुआ था.

इस बात का उसे तब पता चला था, जब वह इदा के पीछे स्कूटी पर बैठा था. तब हवा के एक ?ोंके ने इदा का दुपट्टा थोड़ा सा सरका दिया था और उस के दाएं कंधे के पास एक तिल है, जो करीम को दिख गया था.फिर करीम से रहा नहीं गया. उस ने आंखें बंद कीं और दुनिया की परवाह किए बगैर अपने होंठ इदा के तिल पर रख दिए. यह पहली बार था,

जब करीम ने इदा को इस तरह छुआ था. इदा घबरा गई. उस ने कहा, ‘‘करीम, मैं गिर जाऊंगी…’’करीम ने दूसरी बार उस तिल को उसी तरह छू लिया. अब इदा को लगा कि रुकना पड़ेगा और वह रुक गई.अब करीम को स्कूटी से उतरना था. उतरते हुए उस ने इदा की कमर पर हाथ रख दिया था. इदा को यह बात भूली नहीं.इदा चाहती थी कि करीम खुद को संभाले, मगर करीम चाहता था कि अब इदा उसे संभाले. करीम उस वक्त चाहता था कि इदा के खूबसूरत होंठों को छू ले, मगर इदा ने कहा,

‘‘यहां नहीं करीम…’’करीम को लगा कि इदा फिर किसी मौके की बात कर रही है और उस ने खुद को सम?ा लिया और इदा चली गई.उस रात इदा की नींद उड़ गई थी और करीम को पहली बार ठीक से नींद आई थी. मगर इदा ने खुद को संभाल लिया और दोबारा ऐसा न हो, इस की पुरजोर कोशिश करने लगी. उस ने करीम से मिलने की बात पर हां कहना छोड़ दिया और करीम, जो यह सोच कर खुश हो रहा था कि इदा ने कहा है कि यहां नहीं… इस का मतलब वह किसी और जगह मिलेगी, के सपने चूरचूर हो गए, जब इदा ने कहा, ‘‘अब मैं तुम्हें अपनी स्कूटी पर नहीं बैठने दूंगी.

’’यहां एक नया सिलसिला शुरू हुआ. दोनों में बातें कम हो गईं, मगर दोनों ने एकदूसरे के बारे में सोचना और ज्यादा कर दिया. अब इदा को रात में अचानक ?ाटके आते थे. वह चौंक कर उठ जाती थी. करीम सपने देखता था, जिन में इदा बिना कपड़ों के होती थी. अगले दिन जब करीम किसी तरह कोशिश कर के इदा को बात करने के लिए मना लेता था,

तब इदा प्यार से उस के ख्वाब सुनती थी. जब करीम कहता कि ‘इदा, इस ख्वाब को सच कर दो,’ तब दोनों में बहस हो जाती थी. ?ागड़ा हो जाता था. फिर कईकई दिन बातें नहीं हो पाती थीं. करीम परेशान हो जाता था. इदा से बात करने के लिए वह अजीबअजीब तरकीबें निकालता था. अपने दफ्तर से फोन करता था. पीसीओ से फोन करता था और इदा जब फोन उठाती थी, तब कहता था,

‘‘फोन मत रखना…’’फिर वही सिलसिला शुरू होता था. इदा का रूठना, करीम का मनाना. इदा का आंसू बहाना और फिर करीम का अपने दिल को सम?ाना. इस तरह दोनों का रिश्ता एक अजीब दौर से गुजरने लगा. ?ां?ालाहट और ?ाल्लाहट से भर गया था करीम का दिल. उधर इदा खुद को सम?ाती रहती थी कि यह गलत है. वह करीम को भी सम?ाती थी.करीम को यह नहीं सम?ा में आता था कि इदा फिर उन बातों पर क्यों बात करती थी,

जो बातें उसे गलत लगती हैं?करीम इदा को चाहता था, मगर इस कीमत पर नहीं कि इदा की जिंदगी उस की वजह से किसी मुसीबत में पड़ जाए. करीम इस बात का हमेशा खयाल रखता था. वह इदा को दूर से देख कर तसल्ली कर लेता था, मगर अब यह सब भारी होता जा रहा था. दिल बो?िल होता जा रहा था.इदा बारबार करीम से कहती थी,

‘‘तुम क्यों आए मेरी जिंदगी में करीम? तुम दूर चले जाओ मेरी जिंदगी से… दूर, बहुत दूर.’’यह करीम का ही कलेजा था, जो यह सब बरदाश्त करता था. फिर एक दिन करीम ने एक ख्वाब देखा और इदा से कहा, ‘‘यह मेरी आखिरी ख्वाहिश है. इसे पूरी कर दो, फिर मैं तुम्हारी जिंदगी से हमेशा के लिए चला जाऊंगा.’’तब इदा को जैसे धक्का सा लगा…उस दिन इदा खूब रोई थी, क्योंकि करीम का ख्वाब ही ऐसा था. उस ने देखा था कि इदा और वह मिलते हैं… उन के जिस्म मिलते हैं.

फिर एक बच्चा होता है. इदा उसे बड़े प्यार से पालती है.इतना ख्वाब सुन कर इदा को हंसी आई थी. उस ने कहा था, ‘‘करीम… तुम भी न… पागल हो तुम… अच्छा, फिर क्या हुआ?’’‘‘फिर मैं चला गया,’’ करीम ने कहा.अब इदा ने पूछा, ‘‘चला गया मतलब?’’करीम ने कहा, ‘‘मैं चला गया. हमेशा के लिए. मगर एक बच्चे की शक्ल में फिर से तुम्हारे पास आ गया तुम्हारे बेटे के रूप में…’’इदा को यह बात बिलकुल भी अच्छी नहीं लगी थी.मगर करीम ने उसे ठीक से सम?ाया,

‘‘देखो इदा, तुम मेरे पास नहीं आ सकती. मैं तुम्हारी जिंदगी में नहीं आ सकता. मैं तुम्हारे बिना जी नहीं सकता. तुम अपनी बसीबसाई दुनिया छोड़ नहीं सकती और तुम्हें छोड़ना भी नहीं चाहिए. लेकिन एक काम हो सकता है. हमें मिले हुए आज 9 महीने हुए हैं. 9 महीने में तो कुछ होता है न? वही कर दो… मु?ो 9 महीने की उमर दे दो. ‘‘मैं 9 महीने और जिंदा रहना चाहता हूं.

फिर चला जाऊंगा तुम्हारी जिंदगी से… हमेशा के लिए. यही चाहती हो न तुम? यही एक रास्ता निकाला है मैं ने. ‘‘तुम मु?ा से एक बार तसल्ली से मिल लो. फिर तुम एक बच्चा पैदा करो, जो मेरी निशानी हो. मैं तुम से दूर नहीं रह सकता. मैं तुम्हारे पास रहना चाहता हूं और नियमकानून वाली इस दुनिया में एक बच्चे के ऊपर कोई शक नहीं करता. ‘‘मैं एक बच्चे की शक्ल में तुम्हारे पास रहूंगा. एकदम पास. तुम्हारे सीने से लिपट कर सोऊंगा. यही तो मैं चाहता था हमेशा.’’इदा करीम की बात बड़े ध्यान से सुन रही थी. उस का चेहरा पीला पड़ गया था. उसे सम?ा नहीं आ रहा था कि करीम के इस ख्वाब को कैसे सच करे? वह करीम को अब क्या जवाब दे?

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