जयेश को जब अपनी मांग पूरी न होने का कोई रास्ता सूझा तो वह कालेज के प्रतिनिधि चुनाव में कूद गया. उस का प्रतिद्वंद्वी अनुरंजन नावे था जो सब की पसंद था. हौल में डिबेट हुई तो अनुरंजन के जोशीले भाषण से जयेश के हाथपैर ठंडे पड़ गए.