Story in Hindi

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भारत में औरतों का बांझ होना सब से बड़ा शाप है और बांझ औरत का पिता होना उस से भी बड़ा शाप है. ममता के पिता राकेश मोहन किसान मंडी में एक आढ़त पर मुनीम हैं. 10,000 रुपए महीना पगार है और हर महीने 4,000-5,000 रुपए यहांवहां से कमा लेते हैं. सरकारी स्कूल, सरकारी अस्पताल और सरकारी राशन के भरोसे किसी तरह बच्चों को पालपोस कर बड़ा किया.
राकेश मोहन ने अपनी पूरी जमापूंजी से किसी तरह से बड़ी बेटी ममता की शादी रेलवे के ड्राइवर से करा दी थी. सरकारी नौकरी वाले दामाद के लालच में इस शादी पर 5 लाख रुपए खर्च हो गए थे. अब कोई बचत नहीं थी, क्योंकि परिवार में दामाद के आने से दिखावे पर खर्च बढ़ गया था.
राकेश मोहन अपनी छोटी बेटी शिखा को बीएड कराने के बाद नौकरी मिलने का इंतजार कर रहे थे. उन्हें पूरी उम्मीद थी कि शिखा की सरकारी नौकरी लग जाएगी और उन्हें उस की शादी पर एक पाई भी नहीं खर्च करनी होगी.
फिलहाल तो उन के माली हालात डांवांडोल थे. शिखा की पढ़ाई और मोबाइल का खर्च भी दीदी और जीजाजी से मिलने वाले उपहार पर निर्भर था.
दामाद बड़ी बेटी का पूरा खयाल रखता था. उस तरफ से कोई चिंता नहीं थी. शिखा की शादी में दामादजी पैसे लगा देंगे, एक उम्मीद इस बात की भी थी.
असली मुसीबत या कहना चाहिए कि मुसीबतों का पहाड़ तब टूटा जब शादी के 2 साल तक ममता मां नहीं बन सकी और इस मुसीबत ने पूरे परिवार को झकझोर दिया.
गनीमत थी कि ममता अपने पति के साथ शहर में रेलवे क्वार्टर में रहती थी. सास के ताने मोबाइल फोन पर उसे बराबर सुनने पड़ते थे. राकेश मोहन का ममता से भी बुरा हाल था. ममता की सास तलाक की धमकी दे कर उन का खून सुखा देती थी.
ममता की सास के ताने शादी में मनचाहा दहेज न मिलने से शुरू हो कर बच्चा न होने पर खत्म होते थे. ममता के पूरे मायके को अभागा, मनहूस कहा जाने लगा था.
ममता की छोटी बहन शिखा को भी इस झगड़े में लपेट लिया गया. ममता की सास शिखा से कहती थी कि जरूर ममता की परवरिश ठीक से नहीं की गई, बचपन की गलत आदतों के चलते वह बांझ हो गई है.
ममता की सास ने कानूनी सलाह भी ले ली थी. ममता की मां को एक दिन कह रही थीं कि कोर्ट में साबित हो जाएगा कि ममता उन के बेटे को शारीरिक सुख और संतान सुख नहीं दे सकती है. इस वजह से उसे आसानी से तलाक मिल जाएगा. उन्हें हर्जाखर्चा नहीं देना होगा.
ममता की मां इन बातों को सुन कर कई दिन तक कुछ भी नहीं खा सकीं. वे यह सोच कर मरी जा रही थीं कि दामादजी ने अगर ममता को छोड़ दिया तो उस का क्या होगा. ममता की दूसरी शादी करने के लिए पैसे तो बचे नहीं हैं और फिर दूसरा आदमी शादी करेगा क्यों?
ममता और उस के पति राजीव को डाक्टर ने बताया कि राजीव के वीर्य में शुक्राणुओं की कमी है और उन्हें डोनर शुक्राणुओं से ‘इन विट्रो फर्टिलाईजेशन’ या ‘इंट्रा यूटेराइन इंसेमिनेशन’ कराना चाहिए, पर दकियानूस राजीव तैयार नहीं हुआ. जब अपना खून या अपना वंश नहीं है तो संतान से क्या फायदा?
राजीव के शुक्राणुओं को बढ़ाने के लिए डाक्टर ने 2 महीने तक हर हफ्ते अमोनिया एन 13 इंजैक्शन लगाया, उस के बाद डाक्टर ने उन्हें वीटा कवर और विटामिन डी की गोली खाने को दी और परहेज में एंटीऔक्सिडैंट फूड लेने के लिए कहा.
पर जब इस उपाय का असर नहीं हुआ तो एक महीना आयुर्वेदिक ट्रीटमैंट चलाया. डाक्टर ने राजीव को अश्वगंधा और जिनसैंग की औषधि दी. पर जब किसी भी डाक्टरी इलाज से काम नहीं बना तो मां के बताए हुए उपाय देशी नुसखे को अपनाया गया.
ममता ने मुलहठी, देवदारू और सिरस के बीज को बराबर मात्रा में ले कर काली गाय के दूध के साथ पीस लिया और इस मिश्रण को 5 दिन तक सेवन किया और 5 दिनों के बाद पति के साथ मिलन किया. मिलन के समय कूल्हे के नीचे तकिया लगा लिया, ताकि ज्यादा से ज्यादा शुक्राणु गर्भाशय तक पहुंच सकें. कामसूत्र से पढ़ कर कई तरह के आसन आजमाए, पर इन सारे उपाय से भी कोई फर्क नहीं पड़ा.
पति की पगार समय पर आए या न आए, ममता की माहवारी ठीक 28वें दिन आ जाती थी. पतिपत्नी एकदूसरे को बेहद प्यार करते थे और एकदूसरे की कमी बताते नहीं थे. असलियत यह थी कि ममता के पति राजीव की सैक्स में दिलचस्पी नहीं थी.
ममता पति को रिझाने की पूरी कोशिश करती थी. सहेलियों की सीख के मुताबिक ममता ने पति को बहुत मेहनत से कुकुर आसन में सैक्स करना सिखाया. सहेलियों ने बताया था कि इस आसन में वीर्य गर्भाशय के बेहद नजदीक पहुंच जाता है और शुक्राणुओं के अंडाणु से मिलने की उम्मीद बढ़ जाती है. राजीव को इस खेल में मजा तो आता था, पर वह ममता को मां नहीं बना सका.
इस के बाद राजीव के दोस्तों के सुझाव के मुताबिक मिशनरी आसन किया गया. इस में राजीव ने ममता को बिस्तर पर सीधा लिटाने के बाद ऊपर से अपने अंग को प्रवेश कराया. तर्क यह था कि इस से अंग को योनि में गहराई तक प्रवेश करा सकेंगे, पर यह कोशिश भी बेकार गई.
इस के बाद टोटके का सहारा लिया गया. मंगलवार के दिन पतिपत्नी ने कुम्हार के घर जा कर पुत्र प्राप्ति के लिए प्रार्थना की और एक डोरी, जिस से वह मिट्टी के बरतन बनाता है, मांग लाए. घर आने के बाद एक गिलास में पानी भर कर वह डोरी उस में डाल दी. एक हफ्ते तक वह डोरी उस पानी में भिगो कर रखी. अगले मंगलवार को गिलास में से डोरी निकाल कर पतिपत्नी ने वह पानी पी लिया और इस के बाद वह डोरी हनुमान मंदिर जा कर हनुमान जी के चरणों में समर्पित कर दी.
उस रात उन्होंने बहुत देर तक सैक्स किया. ममता पसीने से लथपथ थी और राजीव किसी घोड़े की तरह हांफ रहा था. उस रात उन्हें जिंदगी में पहली बार इतना मजा आया था. ममता बहुत देर उसी तरह बिना कपड़ों के बिस्तर पर पड़ी रही, क्योंकि वह कोई जोखिम लेना नहीं चाहती थी. शुक्राणुओं और अंडाणुओं को मिलने में कोई परेशानी न हो, इस बात का पूरा खयाल रखा गया.
28वें दिन जब ममता को पीरियड नहीं आया तो राजीव दौड़ कर प्रैग्नैंसी टैस्ट किट ले आया. पर यह कोशिश भी नाकाम रही. 29वें दिन खाना बनाते समय ममता को पीरियड हो गया. उसे पैड लगाने का भी समय नहीं मिला और सूती साड़ी पर निशान आ गया.
राजीव की बहन ने एक टोटके को आजमाया. अपने बच्चे का पहला टूटा हुआ दूध का दांत एक काले कपड़े में बांध कर काले धागे की मदद से भाभी की कमर पर बांध दिया. जब तक वे गर्भधारण न कर लें, इस धागे को किसी भी कीमत पर न उतारने की कठोर हिदायत दी गई.
दूध के दांत को कमर पर बांधे हुए भी 3 महीने का समय हो चुका था. सैक्स के लिए चूहा आसन से हाथी आसन तक सैकड़ों आसनों को आजमाया जा चुका था और अभी भी ममता की कोख सूनी थी.
राजीव भी अब ममता को ही बच्चा न होने के लिए कुसूरवार मानने लगा था. ससुराल पक्ष की मौसी, नानी, बूआ, ताई सभी ममता को ताने देने लगे थे. ममता के पास खुदकुशी करने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा था. मरने की सोचना आसान है, पर मरना आसान नहीं.
कहते हैं कि मुसीबतें इनसान को बहुत ही शातिर और धोखेबाज बना देती हैं. ममता का देवर मैथली 2 साल इलाहाबाद में कोचिंग के बाद राजीव और ममता के साथ रहने आया था. शहर में उस के सरकारी नौकरियों के एग्जाम थे. इस हफ्ते दारोगा अगले महीने रेलवे, उस के बाद पीसीएस, फिर पीजीटी.
ममता को मैथली के आने से बहुत राहत हो गई. राजीव और उस की मां को अब ममता पर चिल्लाने का मौका नहीं मिलता था.
देवर और भाभी की खूब बनती थी. ऐसा लगता था जैसे दोनों जन्मजन्मांतर के दोस्त थे. मैथली के हर काम का समय तय था. 4 बजे जागना, योगासन, कसरत, बादाम का दूध, 4 किलोमीटर की दौड़ फिर दोपहर घंटों तक सोना और रात 12 बजे तक पढ़ाई. भाभी पीछे असिस्टैंट की तरह खड़ी रहती और देवर की हर फरमाइश को मुंह से निकलने से पहले पूरा कर देती.
भैया के घर आने के बाद उन की मोटरसाइकिल से दोनों खरीदारी के बहाने निकल जाते थे. ममता को शादी के 2 साल बाद पता चल रहा था कि वह किस गली और किस महल्ले में रह रही थी, शहर में कौनकौन सी घूमने की जगह थी. शहर में आइसक्रीम की दुकान कहां है और शहर में कितने पार्क हैं.
प्रेम को पनपने के लिए इतनी जगह बहुत है. दोपहर को मैथली के उठने का समय हो गया था. ममता उस के लिए चाय बना लाई, लेकिन उठाया नहीं बल्कि उस के हाथपैरों को सहलाने लगी उस के बालों में उंगलियां फिराने लगी.
मैथली ने एक झटके में ममता को खींच कर सीने से सटा लिया और फिर वे एकदूसरे में खो गए. अगले दिन भाभी और देवर नजर नहीं मिला पा रहे थे, पर उन के बरताव से साफ समझ आ रहा था कि दोनों बहुत खुश थे.
मैथली ने रसोईघर में जा कर भाभी की कमर में पीछे से हाथ डाला और कूल्हों को सहलाया तो ममता ने गुस्से में उस के पीठ पर हलके से चिमटे से मार दिया. उसे लिमिट में रहने की हिदायत दी और जब मैथली बुरा मान गया तो तुरंत ही ममता ने कान पकड़ कर माफी मांग ली.
ममता का खुराफाती दिमाग पूरी कुशलता से काम कर रहा था. उस रात ममता ने राजीव को बताया कि इन दिनों वह शिवलिंगी बीज एक भाग तथा पुत्रजीवक बीज 2 भाग को मिश्री के साथ खा रही है. ननद का दिया टोटका बंधा ही है तो आज अच्छी उम्मीद है. फिर रात में देर तक उस ने राजीव के साथ भी संबंध बनाया.
यह कई दिनों तक चलता रहा. दोपहर में मैथली और रात में राजीव के साथ प्यार. माहवारी आने के 5 दिन पहले उस ने दोनों से दूरी बना ली. इस बार उन की कोशिश रंग लाई. शाम को ममता ने राजीव की पसंदीदा कौफी और पकोड़े बनाए और उसे यह खुशखबरी सुनाते हुए उस की गोद में बैठ गई, तो राजीव ने उसे ढेर सारा प्यार किया.
ममता के सारे दुख दूर हो चुके थे. वह परिवार की लाड़ली बहू बन चुकी थी. ममता की सास को अब कोई शिकायत नहीं थी. ममता की हर फरमाइश को सब से पहले पूरा किया जाने लगा.
मैथली, जो अपने एग्जाम दे कर वापस इलाहाबाद चला गया था, ममता ने प्रैग्नैंसी के आखिरी दिनों में वापस बुला लिया. अब दिनभर बेरोकटोक मैथली अपनी प्यारी भाभी के साथ रह सकता था और एग्जाम की तैयारी भी कर सकता था.
ठीक ममता के डिलीवरी के दिन मैथली का पीसीएस का रिजल्ट आ गया. मैथली को सरकारी नौकरी मिल गई. ममता के बच्चे की आंखें ममता से मिलती थीं. कान, नाक, ठुड्डी ससुराल के किसी न किसी सदस्य से मिलते थे.
मैथली के लिए एक से एक अमीर घरों के रिश्ते आ रहे थे, बहुत सारा दहेज भी मिल रहा था, लेकिन मैथली ने लड़की देखने से साफ मना कर दिया. ममता ने मैथली को अपनी बहन शिखा से शादी के लिए मना लिया.
मैथली को भी इसी शहर में नौकरी मिल गई है. दोनों परिवार एकसाथ बहुत प्यार से रहते हैं. ममता दोबारा मां बनने वाली है और इस महीने शिखा की माहवारी भी नहीं हुई है.
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बाहर सड़क किनारे, बिजली के खंभे के नीचे पड़े, पेड़ के एक तने पर ही बैठ कर गोपाल की बाकी की पढ़ाई शुरू हो गई थी और तब तक चलती रही जब तक अगले दिन के इम्तिहान की तैयारी पूरी नहीं हो गई.
कुछ दिन बाद जब इंटरमीडिएट इम्तिहान का नतीजा निकला तो गोपाल को खुद भी विश्वास नहीं हुआ कि उस ने पूरे उत्तर प्रदेश राज्य में पहला नंबर हासिल किया था.
रिजल्ट देख कर बड़े भैया भी खुश हुए और बोले, ‘‘तुम्हारे नंबर अच्छे आए हैं, अब तुम्हे कहीं न कहीं क्लर्क की नौकरी तो मिल ही जाएगी. चलो, मैं कल ही कहीं बात करता हूं.’’
गोपाल ने तुरंत कहा, ‘‘नहींनहीं, मुझे नौकरी नहीं करनी है, बल्कि मुझे आगे पढ़ाई करनी है और मां के सपने को पूरा करना है. वे चाहती हैं कि मैं खूब पढ़ाई कर के एक बड़ा अफसर बनूं.’’
बड़े भैया ने कुछ अनमने से हो कर कहा था, ‘‘अब मैं तुम्हारा खर्चा और नहीं उठा सकता हूं. समय आ गया है कि अब तुम खुद कुछ कमाना शुरू करो.’’
यह सुन कर गोपाल को अच्छा नहीं लगा था, पर इतने अच्छे नंबर और बोर्ड में पहला नंबर आने से उस का आत्मविश्वास बढ़ गया था, ‘‘पर भैया, मैं ने बोर्ड में टौप किया है. मुझे लगता है कोई न कोई कालेज तो
मेरी फीस माफ कर ही देगा. आप मुझे बस 50 रुपए दे दीजिए.’’
‘‘अच्छा ठीक है. जब मुझे ट्यूशन के पैसे मिलेंगे, मैं तुम्हे दे दूंगा,’’ भाई की यह बात सुन कर गोपाल का दिल बल्लियों उछलने लगा था.
अगले महीने की पहली तारीख को बड़े भैया ने गोपाल के हाथ में 50 रुपए रख दिए और उस ने उसी रात कानपुर की ट्रेन पकड़ ली थी. उस ने कानपुर के डीएवी कालेज के प्रिंसिपल कालका प्रसाद भटनागर के बारे में बहुत अच्छी बातें सुनी थीं. बस अपनी जिंदगी बनाने के लिए वह कानपुर चला आया था.
गरमी की छुट्टियां चालू हो गई थीं, पर प्रिंसिपल साहब अपने दफ्तर में बैठे थे. उस की हाई स्कूल और इंटरमीडिएट की मार्कशीट देखी तो बोले, ‘‘तुम्हे कहीं जाने की जरूरत नहीं है. तुम्हारा एडमिशन बस यहां हो गया है. तुम्हारी फीस माफ और होस्टल का खर्चा भी. हमारे कालेज को तुम्हारे जैसे बच्चों की जरूरत है. मुझे पूरा यकीन है कि तुम हमारे कालेज का नाम रोशन करोगे.’’
प्रिंसिपल साहब के कमरे से निकला तो गोपाल का दिल खुशी से फूला न समा रहा था. अपना टिन का बक्सा उठाए वह होस्टल पहुंच गया और अपने 4 साल उस ने इसी कमरे में बिताए थे. बीए के इम्तिहान में फर्स्ट डिवीजन आई तो उस की एमए की फीस भी माफ हो गई थी और आज एम ए का रिजल्ट भी आने वाला था.
‘अरे ओ भैया. यहां बैठ कर क्या दिन में ही सपने देख रहे हो.. चलोचलो, जल्दी चलो. प्रिंसिपल साहब अपने दफ्तर में आप को बुलाए हैं,’’ दफ्तर का चपरासी गोपाल को बुलाने आया था.
गोपाल तत्काल उठा और भाग कर कमरे में जा कर कमीज पहन कर आ गया. उस का दिल तेजी से धड़क रहा था कि प्रिंसिपल साहब ने उसे क्यों बुलाया है? शायद रिजल्ट आ गया होगा. अगर रिजल्ट अच्छा न हुआ तोड़ अगर फर्स्ट डिवीजन न आई तो क्या होगा? क्या उसे होस्टल खाली करना पड़ेगा? इम्तिहान देते हुए तबीयत इतनी खराब थी…
दफ्तर के पास पहुंच कर गोपाल ने देखा कि उस का सब से बड़ा प्रतिद्वंद्वी विद्या चरण भी वहां पहुंचा हुआ था. उसे भी दफ्तर में बुलाया गया था. दोनों की आंखें मिलीं तो लगा कि वे एकदूसरे को नापने की कोशिश कर रहे थे.
चपरासी ने दोनों को अंदर आने का इशारा किया.
प्रिंसिपल साहब बहुत गंभीर स्वभाव के इनसान थे. उन्होंने अपना चश्मा एडजस्ट किया और दोनों को देखा.
उन के स्वभाव के उलट आज उन के चेहरे पर मंद मुसकराहट थी, ‘‘तुम लोगों का रिजल्ट आ गया है. तुम ने हमारे कालेज का सिर गर्व से ऊंचा कर दिया है. मैं ने सोचा कि तुम्हे खुद ही बता दूं…’’
ऐसा कहते हुए प्रिंसिपल अपनी कुरसी से उठ कर आगे आए और विद्या चरण से हाथ मिलाते हुए बोले,
‘‘मुबारक हो विद्या, तुमने कालेज में टौप किया है.’’
विद्या चरण का चेहरा खुशी से चमक उठा और वह तुरंत प्रिंसिपल साहब के पैर छूने को झुक गया. साथ ही वह तिरछी नजर से उसे भी देख रहा था मानो कह रहा हो, ‘ले बेटा, बड़ा चौड़ा हो रहा था कि फर्स्ट तो मैं ही आऊंगा. पता लग गई अपनी औकात.’
गोपाल का फर्स्ट आने का सपना चकनाचूर हो गया था, पर आंखें झुकाए वह वहां खड़ा रहा था. किसी तरह आंसू छिपाने की कोशिश कर रहा था.
उस का प्रतिद्वंद्वी आखिरकार उस से जीत गया था.
गोपाल वहां खड़ा हुआ अपने पैर के अंगूठे को देखे जा रहा था और उस ने ध्यान भी नहीं दिया कि कब प्रिंसिपल साहब उस के पास आकर खड़े हो गए और उसे अपने गले लगा लिया, ‘‘और तुम तो मेरे चमत्कारी बच्चे हो. तुम ने हम सब की छाती चौड़ी कर दी है. तुम ने यूनिवर्सिटी में टौप किया है. पहली बार हमारे कालेज से किसी लड़के ने यूनिवर्सिटी में टौप किया है. जल्दी ही अपना गोल्ड मैडल लेने के लिए तैयार हो जाओ.’’
यह सुन कर गोपाल सकते में आ गया. उसे अपने कानों पर यकीन ही नहीं हो रहा था. आंखों में आए दुख के आंसू अब खुशी के आंसुओं में बदल गए थे.
प्रिंसिपल साहब ने बात आगे बढ़ाई, ‘‘हमारे कालेज में एक लैक्चरर की जगह खाली है. मैं चाहता हूं कि तुम यहां जौइन कर लो. मुझे पता है कि तुम प्रशासनिक सेवाओं में जाना चाहते हो पर तुम्हारी उम्र अभी कम है. अगले साल तक यहीं पढ़ाओ और अपनी तैयारी भी करो.
कालेज का भी फायदा और तुम्हारा भी. क्या खयाल है?’’
‘‘जैसी आप की आज्ञा सर,’’ कहते हुए गोपाल ने हाथ जोड़ कर सिर झुका दिया और उस के हाथ प्रिंसिपल साहब के पैरों की ओर बढ़ गए.
प्रिंसिपल साहब के दफ्तर से जब गोपाल बाहर निकला, उस की दुनिया पूरी तरह बदल चुकी थी. कड़ी मेहनत, दृढ निश्चय और कुछ कर दिखाने की इच्छा और उन सब के पीछे थी उस की मां की उम्मीदें जिन की ताकत ने आज उसे एक कामयाब जिंदगी की चौखट पर ला कर खड़ा कर दिया था.
धीरेधीरे वह अपनेआप में सिमटने लगी थी. उस का आत्मविश्वास हिल चुका था. वह हर समय अपनेआप में ही उलझी रहने लगी थी. क्लास में टीचर जब समझातीं तो सबकुछ उस के सिर के ऊपर से निकल जाता.
वह हकलाने लगी थी. मां के सामने जाते ही वह कंपकंपाने लगती. पिता की अपनी दुनिया थी. वे उसे प्यार तो करते थे, पिता को देख कर गूंज खुश तो होती थी लेकिन बात नहीं कर पाती थी. वह कभीकभी प्यार से उस के सिर पर अपना हाथ फेर देते तो वह खुशी से निहाल हो उठती थी.
उधर मां की कुंठा बढती जा रही थी. वे नौकरों पर चिल्लातीं, उन्हें गालियां देतीं और फिर गूंज की पिटाई कर के स्वयं रोने लगतीं,”गूंज, आखिर मुझे क्यों तंग करती रहती हो?‘’
तब वह ढिठाई से हंस देती थी. उसे मालूम था कि ज्यादा से ज्यादा मां फिर से उस की पिटाई कर देंगी और क्या? पिटपिट कर वह मजबूत हो चुकी थी. अब पिटने को ले कर उस के मन में कोई खौफ नहीं था.
वह कक्षा 7वीं में थी. गणित के पेपर में फेल हो गई थी. जुलाई में उस की फिर से परीक्षा होनी थी. वह स्कूल से अपमानित हो कर आई थी, क्योंकि गणित के कठिन सवाल उस के दिमाग में घुसता ही नहीं था.
घर के अंदर घुसते ही सभी के व्यंग्यबाणों से उस का स्वागत हुआ था,”अब तो घर में नएनए काम होने लगे हैं… गूंज से इस घर में झाड़ूपोंछा लगवाओ. वह इसी के लायक है…”
एक दिन ताईजी ने भी गूंज को व्यंग्य से कुछ बोलीं तो वह उन से चिढ़ कर कुछ बोल पङी. फिर क्या था, उसे जोरदार थप्पड़ पङे थे.
इस घटना के बाद उस की आंखों के आंसू सूख चुके थे… अब वह मां को परेशान करने के नएनए तरीके सोच रही थी. कुछ देर में मां आईं और फूटफूट कर रोने लगीं थीं. कुछ देर तक उस के मन में यह प्रश्न घुमड़ता रहा कि जब पीट कर रोना ही है तो पीटती क्यों हैं?
मां के लिए उस के दिल में क्रोध और घृणा बढ़ती गई थी.
लेकिन उस दिन पहली बार मां के चेहरे पर बेचारगी का भाव देख कर वह व्याकुल हो उठी थी.
व्यथित स्वर में वे बोली थीं, “गूंज, पढ़लिख कर इस नरक से निकल जाओ, मेरी बेटी.‘’
उस दिन मजबूरी से कहे इन प्यारभरे शब्दों ने उस के जीवन में पढ़ाई के प्रति रुचि जाग्रत कर दी थी.
अब पढ़ाई में रुझान के कारण उस का रिजल्ट अच्छा आने लगा तो मां की शिकायत दूर हो गई थी.
वह 10वीं में थी. बोर्ड की परीक्षा का तनाव लगा रहता था… साथ ही अब उस की उम्र की ऐसी दहलीज थी, जब किशोर मन उड़ान भरने लगता है. फिल्म, टीवी के साथसाथ हीरोहीरोइन से जुड़ी खबरें मन को आकर्षित करने लगती हैं.
पड़ोस की सुनिता आंटी का बेटा कमल भैया का दोस्त था. अकसर वह घर आया करता था. वह बीएससी में था, इसलिए वह कई बार उस से कभी इंग्लिश तो कभी गणित के सवाल पूछ लिया करती थी.
वह उस के लिए कोई गाइड ले कर आया था. उस ने अकसर उसे अपनी ओर देख कर मुसकराते हुए देखा था. वह भी शरमा कर मुसकरा दिया करती थी.
एक दिन वह उस के कमरे में बैठ कर उसे गणित के सवाल समझा रहा था. वह उठ कर अलमारी से किताब निकाल रही थी कि तभी उस ने उसे अपनी बांहों में भर लिया था. वह सिटपिटा कर उस की पकड़ से छूटने का प्रयास कर रही थी कि तभी कमरे में कमल भैया आ गए और बस फिर तो घर में जो हंगामा हुआ कि पूछो मत…
वह बिलकुल भी दोषी नहीं थी लेकिन घर वालों की नजरों मे सारा दोष उसी का था…
“कब से चल रहा है यह ड्रामा? वही मैं कहूं कि यह सलिल आजकल क्यों बारबार यहां का चक्कर काट रहा है… सही कहा है… कहीं पर निगाहें कहीं पर निशाना…
मां ने भी उस की एक नहीं सुनी, न ही कुछ पूछा और लगीं पीटने,”कलमुंही, पढ़ाई के नाम पर तुम्हारा यह नाटक चल रहा है…”
वह पिटती रही और ढिठाई से कहती रही,”पीट ही तो लोगी… एक दिन इतना मारो कि मेरी जान ही चली जाए…”
मां का हाथ पकड़ कर अपने गले पर ले जा कर बोलती,”लो मेरा गला दबा दो… तुम्हें हमेशाहमेशा के लिए मुझ मुक्ति मिल जाएगी.”
उस दिन जाने कैसे पापा घर आ गए थे… उस को रोता देख मां से डांट कर बोले,”तुम इस को इतना क्यों मारती हो?”
तो वे छूटते ही बोलीं,”मेरी मां मुझे पीटती थीं इसलिए मैं भी इसे पीटती हूं.”
पापा ने अपना माथा ठोंक लिया था.
अब मां के प्रति उस की घृणा जड़ जमाती जा रही थी. वह उन के साथ ढिठाई से पेश आती. उन से बातबात पर उलझ पड़ती.
मगर गुमसुम रह कर अपनी पढाई में लगी रहती. वह मां का कोई कहना नहीं मानती न ही किसी की इज्जत करती. उस की हरकतों से पापा भी परेशान हो जाते. दिनबदिन वह अपने मन की मालिक होती जा रही थी.
उस के मन में पक्का विश्वास था कि यह पूजापाठ, बाबा केवल पैसा ऐंठने के लिए ही आते हैं… यही वजह थी कि वह पापा से भी जबान लड़ाती. वह किसी भी हवनपूजन, पूजापाठ में न तो शामिल होती और न ही सहयोग करती.
इस कारण अकसर घर में कहासुनी होती लेकिन वह अपनी जिद पर अड़ी रहती.
इसी बीच उस का हाईस्कूल का रिजल्ट आया. उस की मेहनत रंग लाई थी. उस ने स्कूल में टौप किया था. उस के 92% अंक आए थे. बस, फिर क्या था, उस ने कह दिया कि उसे कोटा जा कर आगे की पढ़ाई करनी है. इस बात पर एक बार फिर से मां ने हंगामा करना शुरू कर दिया था,”नहीं जाना है…किसी भी हालत में नहीं…”
लेकिन पापा ने उसे भेज दिया और वहां अपने मेहनत के बलबूते वह इंजीनियरिंग की प्रतियोगिता पास कर बाद में इंजीनियर बन गई.
उधर पापा की अपनी लापरवाही के कारण उन का स्टाफ उन्हें धोखा देता रहा… वे सत्संग में मगन रह कर पूजापाठ में लगे रहे.
जब तक पापा को होश आया उन का बिजनैस बाबा लोगों द्वारा आयोजित पूजापाठ, चढ़ावे के हवनकुंड में स्वाह हो चुका था. अब वे नितांत अकेले हो गए. फिर उन्हें पैरालिसिस का अटैक हुआ. कोई गुरूजी, बाबा या फिर पूजापाठ काम नहीं आया. तब गूंज ने खूब दौड़भाग की लेकिन निराश पापा जीवन की जंग हार गए…
मां अकेली रह गईं तो वह बीना को उन के पास रख कर उस ने अपना कर्तव्य निभा दिया.
गूंज का चेहरा रोष से लाल हो रहा था तो आंखों से अश्रुधारा को भी वह रोक सकने में समर्थ नहीं हो पाई थी.
‘’पार्थ, आई हेट हर…’’
“आई अंडरस्टैंड गूंज, तुम्हारे सिवा उन का इस दुनिया में कोई नहीं है, इसलिए तुम्हें उन के पास जाना चाहिए. शायद उन के मन में पश्चाताप हो, इसलिए वे तुम से माफी मांगना चाहती हों…यदि तुम्हें मंजूर हो तो उन्हें बैंगलुरू शिफ्ट करने में मैं तुम्हारी मदद कर सकता हूं. यहां के ओल्ड एज होम का नंबर मुझे मालूम है. यदि तुम कहो तो मैं बात करूं?”
“पार्थ, मैं उन की शक्ल तक देखना नहीं चाहती…”
“मगर डियर, सोचो कि एक मजबूर बुजुर्ग, वह भी तुम्हारी अपनी मां, बैड पर लेटी हुईं तुम्हारी ओर नजरें लगाए तुम्हें आशा भरी निगाहों से निहार रही हैं…”
वह बुदबुदा कर बोली थी, ‘’कहीं पहुंचने में हम लोगों को देर न हो जाए.‘’
गूंज सिसकती हुई मोबाइल से फ्लाइट की टिकट बुक करने में लग गई…