बकरा – भाग 1 : मालिक के चंगुल में मोहन

ठेले वाले ने चिल्ला कर कहा, ‘‘मोहन, माल आ गया है.’’ मोहन ने किराने की दुकान से झांक कर देखा. ठेले पर आटे, चावल और दाल की बोरियां रखी थीं.किराने की दुकान का मालिक दिलीप साव खाते का हिसाबकिताब करने में मशगूल था. उस ने खाते का हिसाब करते हुए कहा,

‘‘मोहन, माल उतार लो.’’दुकान पर 2-3 ग्राहक थे, जिन्हें निबटा कर मोहन बोरियां उतारने लगा. ठेले वाले ने भी बोरियां उतारने में उस की मदद कर दी.बड़ी सड़क के किनारे ही दिलीप साव की किराने की दुकान थी. मोहन उस की दुकान पर काम करता था. वह सीधासादा नौजवान था.

वह अपने काम से मतलब रखता था. दुकान से महीने की तनख्वाह मिल जाती थी. उस से वह गुजारा कर लेता था.दिलीप साव की किराने की दुकान अच्छी चलती थी, जिस से वह खुशहाल जिंदगी जी रहा था. एक साल पहले उस की शादी दीपा से हुई थी.दीपा बेहद खूबसूरत थी.

वह काफी गोरीचिट्टी थी. उस की आंखें हसीन थीं. उस की काली जुल्फें मदहोश कर देती थीं. उस के पतले होंठों पर मुसकान खिली रहती थी. वह एक ताजा कली के समान थी.दिलीप साव का एक छोटा भाई था सुजीत. वह कालेज में पढ़ता था.

दीपा का दिल उस से बहल जाता था. वह अपने देवर के साथ हंसीमजाक कर के मजे से दिन गुजार लेती थी.रात तो दीपा की अपनी थी ही. जब दुकान बढ़ा कर रात को दिलीप साव घर लौटता तब दीपा पति के साथ मौजमस्ती करती थी. वह भी दीपा जैसी पत्नी पा कर बेहद खुश था.

उस की तो मजे से जिंदगी कट रही थी.मोहन किराने की दुकान का काम खत्म कर के घर लौट रहा था. रास्ते में उस का एक दोस्त बिरजू मिल गया. बिरजू नाविक था.

वह सोन नदी में नाव चलाता था. सोन नदी इस इलाके से महज आधा किलोमीटर दूर बहती थी. बिरजू नाव से लोगों को सोन नदी पार कराने का काम करता था.मोहन ने पूछा, ‘‘कैसे हो बिरजू?’’‘‘ठीक हूं. तुम अपनी सुनाओ?’’ बिरजू ने कहा.‘‘कुछ खास नहीं, बस…’’ मोहन ने धीरे से कहा.‘‘कब तक सीधेसादे बने रहोगे. चलो, तुम्हें कोलकाता घूमा दूं,’’ बिरजू ने कहा.‘‘वहां क्यों?’’ मोहन ने पूछा.

‘‘अरे यार, मैं तुम्हें कोलकाता के सोनागाछी इलाके में ले चलूंगा. उस इलाके में खूबसूरत लड़कियां इशारे कर के बुलाती हैं. उन के नजदीक चले जाओ, फिर मजा ही मजा लूटो.’’मोहन झेंप कर बोला, ‘‘कभी और देखा जाएगा यार.’’‘‘हां, तब तक भोलाभाला बने रहो. देखना एक दिन औरतें और लड़कियां तुझे बुद्धू बना देंगी,’’ बिरजू ने झल्ला कर कहा.मोहन हंसते हुए घर चला गया.

दिलीप साव किराने की दुकान से रात को लौटा था. वह अपने कमरे के पलंग पर लेटा हुआ था. दीपा भी उस के साथ लेटी हुई थी. बत्ती बुझी हुई थी. कमरे में अंधेरा था. अंधेरे कमरे में वे दोनों एकदूसरे को चूमने लगे थे. बदन की आग धीमेधीमे सुलगने लगी थी.

दीपा के उभार उस पर कहर बरपा रहे थे. दोनों ने एकदूसरे को अपनी बांहों में जकड़ लिया था.दिलीप साव ने तकिए के नीचे से कंडोम निकाला और अपने अंग पर पहन लिया.‘‘आप कब तक बच्चा नहीं चाहते हैं?’’ दीपा ने धीमे से पूछा. ‘‘अभी तो हमारी शादी को एक साल ही हुआ है.

मुझे 3 साल के बाद बच्चा चाहिए,’’ दिलीप साव धीमे से बोला.‘‘आप तो परिवार नियोजन के पक्के हिमायती हैं.’’‘‘हां, बिलकुल हूं,’’ दिलीप साव ने कहा.दीपा ने प्यार से हलकी चपत उस के गाल पर लगाई. हलकी चपत लगते ही वे दोनों सैक्स करने लगे. कुछ देर में पतिपत्नी के चेहरे पर संतुष्टि के भाव थे. शरीर की भूख मिट जाने के बाद वे दोनों गहरी नींद में सो गए थे.

अगले दिन दिलीप साव के किराने की दुकान पर ग्राहकों की भीड़ थी. मोहन ने सारे ग्राहकों को जरूरत के मुताबिक सामान दे दिया था. दिलीप साव ने अभी गल्ले में रखे रुपयों की गिनती की थी.‘20,000 रुपए,’ दिलीप साव ने मन ही मन सोचा.‘‘ये लो 20,000 रुपए. मालकिन को जा कर दे दो,’’ दिलीप साव ने मोहन से कहा.मोहन रुपए का थैला ले कर मालकिन के पास जा पहुंचा और बोला, ‘‘ये 20,000 रुपए हैं. मालिक ने दिए हैं.’’‘‘ठीक है,’’ दीपा ने रुपए ले लिए और अपने कमरे में चली गई.

दीपा ने कमरे का परदा हटाया तो वहां से उस का देवर सुजीत अपने कमरे की तरफ भागा. मोहन को शक हुआ कि दीपा के कमरे में सुजीत क्या कर रहा है? उसे दाल में काला नजर आाया.अमूमन कालेज के लड़के अपने कमरे में पढ़ते हैं. भाभी के कमरे में जा कर वह कौन सी पढ़ाई पढ़ता है?

लेकिन मोहन चुप लगा गया. उसे दिलीप साव के किराने की दुकान पर नौकरी जो करनी थी. वह वहां से सीधा दुकान पर चला आया.जाड़े के दिन आ गए थे.

शाम को ठंड बढ़ जाती थी, जिस से दिलीप साव को दुकान पर ठंड लगती थी. उस ने घर के स्टोर में एक हीटर रखा हुआ था.‘‘मोहन, मालकिन से हीटर मांग कर लेते आओ. ठंड बढ़ गई है,’’ दिलीप साव ने कहा.‘‘अभी जा कर ले आता हूं,’’ कह कर मोहन हीटर लाने चला गया.

मोहन मालिक के घर पहुंचा. घर का दरवाजा दीपा ने अंदर से बंद कर रखा था. मोहन ने आवाज लगाई, ‘‘मालकिन, दरवाजा खोलिए. मालिक ने हीटर मंगाया है.’’लेकिन दीपा ने दरवाजा नहीं खोला. शायद उस ने सुना ही नहीं था. तब मोहन ने दरवाजे के सुराख से अंदर झांक कर देखा.दीपा के कमरे का दरवाजा खुला था. वह पलंग पर लेटी हुई थी.

सुजीत उसे बांहों में भर कर चूम रहा था. पलभर में दीपा ने अपने कपड़े उतार दिए. उस के उभार देख कर सुजीत उस पर झपट पड़ा और वे दोनों सैक्स करने लगे.मोहन यह देख कर हैरान रह गया. इस सीन में उसे भी मजा आने लगा था. कुछ देर तक दोनों देवरभाभी सैक्स का मजा लेते रहे, फिर संतुष्ट हो कर अलग हो गए.

एक सांकल सौ दरवाजे – भाग 6 : क्या हेमांगी को मिला पति का मान

पल्लव जी शायद अपने मन की बात बेतकल्लुफ से कह गए थे और तुरंत वे अपनी कुछ बातें वापस छिपाना चाहते थे. शरमा कर वे चुप से हो गए और अपनी उंगलियों को मरोड़ने लगे.

मुझे ही क्या, भाई को भी लग रहा था कि पल्लव जी ममा के साथ जिंदगी में आगे बढ़ना चाहते हैं. मैं ने जिम्मेदारी समझते हुए कहा- ‘अंकल, ममा की जिंदगी में आप जैसा कोई सीधासच्चा इंसान आ जाए, तो उन की जिंदगी संवर जाए. उन की 21 साल की शादी में…’

‘मैं जानता हूं हेमा का दुख, तुम्हारी ममा का…’ ‘अंकल, आप हेमा ही कहिए, हमें अच्छा ही लगेगा.’ पल्लव जी मुसकराए, उन की दुविधा हम ने कम जो कर दी थी.

वे बोले, ‘एक दोस्त की तरह उस ने अपनी जिंदगी मुझ से कुछ हद तक साझा की है. और मैं ने भी. लेकिन बच्चो, यह खेल नहीं है. हेमा का मन मैं अब तक नहीं समझ सका. वह ऐसे विषय से अब तक बचती रही है. क्या वह तुम्हारे पापा को पाना चाहती है? क्या मालूम…’ पल्लव जी कुछ अनजानी उदासी से घिर गए थे.

मैं अचानक उठी और पल्लव जी के पैर छू लिए. भाई को यह अव्वल दर्जे की नाटकीयता लगी. वह मुंह में भोंपू ठूंसे अवाक सा मुझे निहारता रहा. अंकल भी कुछ सकपका से गए. लेकिन मेरे हाथों को अपने हाथों में ले कर मेरे प्रति उन्होंने कृतज्ञता दिखाई.

मैं ने कहा, ‘अंकल, ममा मेरे पापा के पास लौट कर अपने पैर पर कुल्हाड़ी नहीं मारेगी. सच तो यह भी है कि हम भी अब उस नरक में कभी वापस नहीं जाना चाहेंगे. पापा खुद के सिवा किसी को नहीं जानते, अंकल. और हमें ऐसा स्वभाव फूटी आंख नहीं सुहाता.’

‘वह तो ठीक है बेटा. लेकिन आप की ममा के लिए मैं क्या हूं, जब तक न यह समझूं, कैसे आगे बढ़ें. फिर कुंदन की क्या राय है?’

भाई बेचारे ने सिर झुका लिया. उस के आगे जैसे ढेरों दृश्य एकसाथ भागे जा रहे थे और वह सकपकाया खड़ा ताक रहा था.

मैं ने कहा- ‘अंकल, भाई अभी उतना समझ नहीं सकता. मेरी राय ही उस की राय है. मैं ममा का मन पता करने का दायित्व लेती हूं, आप निश्चिंत रहें. और जैसा मैं कहूं, आप वैसा करें.’

पल्लव जी राजी हो गए. और हम अपने कमरे में आ कर मंसूबों को सच करने की हिम्मत बांधने लगे. ममा वापस कालेज से आ कर सब की देखभाल में लग गई, जैसा घर पर भी किया करती थी. मैं एक अवसर की तलाश में थी जब पल्लव जी को ले कर ममा का मन जान सकूं. रात को डरडर कर छेड़ ही दिया मैं ने. ‘ममा, पल्लव अंकल बहुत अच्छे हैं.’ सो जाओ तुम दोनों,’ ममा रोक रही थी मुझे.

‘ममा, तुम अपनी जिंदगी से मुंह मोड़ रही हो. चलो वह भी सही लेकिन यह तो हमारी जिंदगी का भी सवाल है न.’ ‘मैं तुम लोगों के साथ एक किराए के कमरे में चली जाऊंगी. तुम लोग चिंतित मत हो. मैं अलग से ट्यूशन भी कर लूंगी.’ ‘ममा, तुम ने पल्लव अंकल का मन कभी पढ़ा है?’

‘कंकन, मैं ने एक का पढ़ा, तुम्हारे पापा का,बहुत पढ़ लिया. अब और नहीं. मैं खुश हूं अपनी इस जिंदगी में. मुझे ज्यादा की चाह नहीं.’

ममा तो बड़ी जिद्दी है. जो सोचेगी, वही करेगी. मगर मैं ने तो पल्लव जी को समझा है, फिर मेरी ममा को जिंदगी में कभी पति का प्रेम और सम्मान मिला नहीं, काटने को तो काट लेंगी जिंदगी, लेकिन हम दोनों भाईबहन के अपनी जिंदगी में बस जाने के बाद क्या ममा पीछे नहीं छूट जाएगी? कैसे समझूं ममा के दिल की सच्ची बात?

दूसरे दिन ममा के शाम को कालेज से वापस आने के बाद घर में कुहराम सा मचा था.

पहले तो सबकुछ शांत ही था. अचानक जैसे समंदर में ज्वार सा उठने लगा.

कालेज से आने के बाद ममा नहाधो कर पल्लव जी के कमरे में जाती थी. उन का प्लास्टर चढ़ा हुआ पैर देखती, दोपहर को नर्स या डाक्टर, जो भी आते, से फोन पर पल्लव जी का हाल पूछती, दवाई पूछती, फिर चाय के लिए जाती.

आज भी जब पल्लव जी के कमरे में गई और पलंग पर उन्हें न पा कर सोचा, नौकर कविराज की मदद से जरूर वे बाथरूम गए होंगे.

जब आधा घंटा उन के इंतजार का हो गया और पल्लव जी बाथरूम से निकले नहीं, तो वह परेशान हर ओर ढूंढने लगी.

रसोइए ने अनभिज्ञता जताई. कविराज, शुभा और उसकी मां ने भी. हम दोनों भाईबहन तो पूछने के काबिल भी कहां थे. हमें तो 2 दिन ही हुए थे यहां आए. इस घर का ओरछोर तक हमें मालूम नहीं था. आखिर थकहार कर सब ओर ढूंढ कर ममा हमारे कमरे में आई और हम से पल्लव जी के बारे में पूछा.

मैं ने उलटा पूछा- ‘क्यों, इतनी भी क्या जल्दी है उन के मिलने की? गए होंगे कहीं. बच्चे तो नहीं है न, कोई उन्हें कहीं ले गया होगा.’

‘कोई नहीं है उन का मेरे सिवा. उन की पैर की हड्डी टूटी है, कैसे जाएंगे?’

‘तुम्हारे सिवा कोई नहीं है और उन्हें छोड़ कर तुम किराए के मकान में जाना चाहती हो.’

‘कंकन, तुम नहीं समझोगी. बताओ जल्दी, गए कहां वे?’

‘मैं क्या जानूं?’

ऊपरी मंजिल पर जबकि पल्लव जी का जाना दूभर था, फिर भी ममा उधर भी देख आई. मैं कमरे से अब बाहर आ कर ममा पर नजर रखे थी.

अंत में इतनी दौड़धूप के बाद उन की आंखों में आसूं आ गए. वह निचली मंजिल में अपने कमरे में जा कर दरवाजा भिड़ा कर अंदर हो गई.

मैं ने चुपके से दरवाजे की आड़ से देखा, वह अपने बिस्तर पर बैठी लगातार बह रहे आंसुओं को क्रोध से भरी हुई पोंछ रही थी.

मैं सूचित कर आई और अपना कविराज व्हीलचेयर ठेलता पल्लव जी को ले ममा के कमरे में हाजिर हुआ. मैं अधखुली खिड़की के बाहर खड़ी देख रही थी. पल्लव जी को ममा के सामने छोड़ कविराज निकलने को हुआ ही था कि ममा की नजर पल्लव जी पर पड़ी. वह उठ कर खड़ी हो गई. पहले तो ऐसा लगा कि वह पल्लव जी से लिपट कर रो पड़ेगी लेकिन वह खड़ी की खड़ी रह गई. फिर जैसे उन्हें होश आया और वह कविराज पर बिफर पड़ी.

कविराज को स्वीकारना पड़ा कि इस मकान के पीछे बने कविराज के अपने छोटे से कमरे में पल्लव जी रुके थे. और यह कि पूरा प्लौट कंकन यानी मेरा लिखा गया है.

कविराज मुझ पर पूरा नाटक चढ़ा कर मंच से उतर गया. अभी मैं अपने आगे के किरदार को समझ पाती, मेरे सामने एक अनुपम दृश्य आया. पल्लव जी अपनी हेमा की ओर अग्रसर हुए. उन की हेमा उन्हें निहारती स्थिर चित्र की तरह अपनी जगह खड़ी रही. पल्लव ने हेमा का हाथ अपने हाथ में लिया, कहा, ‘कहो, तुम मेरी फिक्र नहीं करतीं, मेरी चिंता नहीं करतीं. मुझे हमेशा के लिए भुला कर रह पाओगी?’

‘आप क्यों गए पल्लव उधर? मुझे तकलीफ़ देने की इच्छा हुई या मुझे परखना चाहते थे?’

‘नहीं तो, कभी नहीं. बिटिया ने कहा कि ममा समझ नहीं पा रही कि वह आप के बिना एक पल भी नहीं रह सकती. उन्हें यह बात समझाना होगा. और इसलिए बिटिया की बात मुझे माननी पड़ी.’

पल्लव ने अपनी प्रेयसी के गाल पर 2 उंगलियों से छेड़ते हुए कहा, ‘अब समझ रही हो न खुद को? अब मेरे बच्चों को मुझ से दूर तो न करोगी?’

व्हीलचेयर पर बैठे पल्लव की गोद में हेमा ने अपना सिर रख दिया था. पल्लव धीरेधीरे उस के सिर पर हाथ फिराने लगे.

सांकल खुल चुकी थी.

ममा ने बिना कुछ लिएदिए हमारे पापा अजितेश को तलाक दे दिया था. और कानूनी रूप से हेमा और पल्लव एक हो गए थे.

हमें एक मनोरम आज और प्यारा निश्चित कल मिला था.

मुझे खुशी थी कि मैं ने बंद कोठरी की एक सांकल खोलने की जिद की, तो स्वतंत्रता, सम्मान और प्रेम के लिए आगे के सौ पुश्तों के सौ दरवाजे भी खुल गए. आशा की सैकड़ों रश्मियों के लिए दरवाजे खुल गए.

9 महीने की उमर

इदा चाहती कुछ थी, कहती कुछ थी और करती कुछ थी. वह मजबूर थी अपने हालात से, अपने माहौल से. दिखने में तो वह खुद एक बच्ची लगती थी, मगर उस का अपना एक 5 साल का बच्चा था.वह करीम से कहती थी, ‘‘तुम्हें शर्म नहीं आती? किसी और की बीवी को इस तरह परेशान करते हो? वह भी तब, जब वह तुम से 5 साल बड़ी है? उस का अपना एक बच्चा है, वह भी 5 साल का?’’

ये सारी बातें वह एक सांस में कह जाती थी, बिना रुके.करीम उस की बातें सुन कर कहता था, ‘‘क्या करूं… किसी और की बीवी इतनी खूबसूरत हो और मु?ा से प्यार करती हो, तो शर्म कहां से आए?’’करीम की बातें सुन कर इदा हंस देती थी और कहती थी, ‘‘तुम बहुत अच्छे हो करीम.’’करीम को यह सुन कर बड़ी तसल्ली मिलती थी.

वह अपनी बातें कहने में मगन रहता था. इदा उस की कुछ बातों को यों ही हंसी में उड़ा देती थी, मगर जब करीम उस से मिलने की बात करता था, तब उस के चेहरे की हंसी गायब हो जाती थी.वह कहती थी, ‘‘करीम, मैं भी तुम से मिलना चाहती हूूं. तुम्हारे साथ रहना चाहती हूं.

मगर ऐसा हो नहीं सकता है न. मैं किसी और की हूं.’’फिर इदा रोने लगती थी. करीम उसे अपने हिसाब से हौसला देता था. उसे सम?ाता था. दूर से ही सही, उस के आंसू पोंछने की कोशिश करता था.करीम को यह बात सम?ा में नहीं आती थी कि यह दुनिया ऐसी क्यों है? यह समाज ऐसा क्यों है? उसे इदा बहुत पसंद थी. इदा को भी वह बहुत पसंद था. मगर वह किसी और की थी.

वह चाह कर भी करीम की नहीं हो सकती थी. करीम इदा के बिना नहीं रह सकता था. अब किया क्या जाए? किसी को कोई रास्ता नहीं सू?ाता था. न इदा को और न करीम को.इदा तो रो कर अपना गम आंसुओं में बहा देती थी और शांत हो जाती थी.

वह उस से मिलने नहीं आ सकती, यह सुन कर करीम जिद करना छोड़ देता था. मगर बारबार अपने दिल को सम?ाना इतना आसान काम नहीं होता. करीम का दिल रहरह कर इदा के लिए बेचैन हो उठता था और फिर से उसे बुलाना शुरू कर देता था.इदा ने कई बार कोशिश भी की कि वह करीम से मिल ले, मगर ये मुलाकातें बस कुछ पलों की ही हो सकी थीं, जैसे सड़क पर, अपने बच्चे को स्कूल छोड़ने के रास्ते में या फिर किसी किताब की दुकान में.

यह कुछ पलों का मिलना करीम को और बेचैन कर देता था. एक बार तो जब इदा ने जाने के लिए हाथ मिलाया, तो सड़क पर ही करीम ने उस का हाथ इस तरह पकड़ लिया, जैसे अब छोड़ेगा ही नहीं.इदा अब परेशान होने लगी थी. वह कहने लगी, ‘‘करीम, तुम अब मु?ो बहका रहे हो.’’करीम का ऐसा कोई इरादा नहीं था. वह तो बस उस का हाथ नहीं छोड़ना चाहता था.

उसे समाज के बनाए नियम सम?ा नहीं आते थे. वह तो बस अपनी इदा को जाने नहीं देना चाहता था. मगर इदा जिस समाज में रहती थी, वहां इस मुहब्बत को कभी नहीं सम?ा जा सकता था. यह बात इदा अच्छी तरह जानती थी और इसी बात की वजह से वह करीम से दूर रहना चाहती थी. लेकिन करीम बारबार उस के रास्ते में आ जाता था.

एक बार इदा अपने बच्चे को स्कूल छोड़ने गई थी. करीम भी वहीं था.अपने बच्चे को स्कूल में छोड़ कर इदा करीम से मिली और उस से पूछा, ‘‘करीम, इस वक्त यहां किसलिए?’’करीम ने कहा, ‘‘बस, तुम्हें देखने का मन किया, तो चला आया.’’इदा करीम की इस दीवानगी से बहुत घबराती थी, मगर वह उस के रास्ते में बारबार आ ही जाता था.इदा सोचती थी कि ये मर्द ऐसे ही होते हैं.

मगर करीम ऐसा नहीं था. इदा उस की नसों में बस चुकी थी. खून बन कर जिस्म में बह रही थी. करीम के लिए और कुछ नहीं था, सिर्फ इदा और बस इदा. उस की पूरी दुनिया इदा थी और इदा की दुनिया में करीम के लिए कोई जगह नहीं थी.करीम बस इदा की सांसों में रह सकता था. उस के ख्वाबों में रह सकता था, मगर हकीकत में इदा अपने घर में करीम का नाम भी नहीं ले सकती थी. यह बात करीम को खाए जा रही थी.करीम की हालत इदा के लिए दिनोंदिन बिगड़ती जा रही थी.

इदा भी परेशान थी कि क्या करे? करीम इदा के ख्वाब देखता था, फिर इदा से कहता था कि यह ख्वाब पूरा कर दो…. मगर करीम के ख्वाबों में इदा होती थी… और हकीकत में इदा नहीं होती थी. इदा बस करीम से बातें करती थी. बातें हर तरह की. बातें ऐसी कि मियांबीवी भी क्या करें. मगर यह सब करीम की वजह से था. इदा बहुत खूबसूरत थी. यह करीम की परेशानी थी. करीम को इदा के अलावा कुछ सू?ाता ही नहीं था.इदा स्कूटी चलाती थी. करीम को इस बात पर यकीन नहीं हुआ था.

इस बात का उसे तब पता चला था, जब वह इदा के पीछे स्कूटी पर बैठा था. तब हवा के एक ?ोंके ने इदा का दुपट्टा थोड़ा सा सरका दिया था और उस के दाएं कंधे के पास एक तिल है, जो करीम को दिख गया था.फिर करीम से रहा नहीं गया. उस ने आंखें बंद कीं और दुनिया की परवाह किए बगैर अपने होंठ इदा के तिल पर रख दिए. यह पहली बार था,

जब करीम ने इदा को इस तरह छुआ था. इदा घबरा गई. उस ने कहा, ‘‘करीम, मैं गिर जाऊंगी…’’करीम ने दूसरी बार उस तिल को उसी तरह छू लिया. अब इदा को लगा कि रुकना पड़ेगा और वह रुक गई.अब करीम को स्कूटी से उतरना था. उतरते हुए उस ने इदा की कमर पर हाथ रख दिया था. इदा को यह बात भूली नहीं.इदा चाहती थी कि करीम खुद को संभाले, मगर करीम चाहता था कि अब इदा उसे संभाले. करीम उस वक्त चाहता था कि इदा के खूबसूरत होंठों को छू ले, मगर इदा ने कहा,

‘‘यहां नहीं करीम…’’करीम को लगा कि इदा फिर किसी मौके की बात कर रही है और उस ने खुद को सम?ा लिया और इदा चली गई.उस रात इदा की नींद उड़ गई थी और करीम को पहली बार ठीक से नींद आई थी. मगर इदा ने खुद को संभाल लिया और दोबारा ऐसा न हो, इस की पुरजोर कोशिश करने लगी. उस ने करीम से मिलने की बात पर हां कहना छोड़ दिया और करीम, जो यह सोच कर खुश हो रहा था कि इदा ने कहा है कि यहां नहीं… इस का मतलब वह किसी और जगह मिलेगी, के सपने चूरचूर हो गए, जब इदा ने कहा, ‘‘अब मैं तुम्हें अपनी स्कूटी पर नहीं बैठने दूंगी.

’’यहां एक नया सिलसिला शुरू हुआ. दोनों में बातें कम हो गईं, मगर दोनों ने एकदूसरे के बारे में सोचना और ज्यादा कर दिया. अब इदा को रात में अचानक ?ाटके आते थे. वह चौंक कर उठ जाती थी. करीम सपने देखता था, जिन में इदा बिना कपड़ों के होती थी. अगले दिन जब करीम किसी तरह कोशिश कर के इदा को बात करने के लिए मना लेता था,

तब इदा प्यार से उस के ख्वाब सुनती थी. जब करीम कहता कि ‘इदा, इस ख्वाब को सच कर दो,’ तब दोनों में बहस हो जाती थी. ?ागड़ा हो जाता था. फिर कईकई दिन बातें नहीं हो पाती थीं. करीम परेशान हो जाता था. इदा से बात करने के लिए वह अजीबअजीब तरकीबें निकालता था. अपने दफ्तर से फोन करता था. पीसीओ से फोन करता था और इदा जब फोन उठाती थी, तब कहता था,

‘‘फोन मत रखना…’’फिर वही सिलसिला शुरू होता था. इदा का रूठना, करीम का मनाना. इदा का आंसू बहाना और फिर करीम का अपने दिल को सम?ाना. इस तरह दोनों का रिश्ता एक अजीब दौर से गुजरने लगा. ?ां?ालाहट और ?ाल्लाहट से भर गया था करीम का दिल. उधर इदा खुद को सम?ाती रहती थी कि यह गलत है. वह करीम को भी सम?ाती थी.करीम को यह नहीं सम?ा में आता था कि इदा फिर उन बातों पर क्यों बात करती थी,

जो बातें उसे गलत लगती हैं?करीम इदा को चाहता था, मगर इस कीमत पर नहीं कि इदा की जिंदगी उस की वजह से किसी मुसीबत में पड़ जाए. करीम इस बात का हमेशा खयाल रखता था. वह इदा को दूर से देख कर तसल्ली कर लेता था, मगर अब यह सब भारी होता जा रहा था. दिल बो?िल होता जा रहा था.इदा बारबार करीम से कहती थी,

‘‘तुम क्यों आए मेरी जिंदगी में करीम? तुम दूर चले जाओ मेरी जिंदगी से… दूर, बहुत दूर.’’यह करीम का ही कलेजा था, जो यह सब बरदाश्त करता था. फिर एक दिन करीम ने एक ख्वाब देखा और इदा से कहा, ‘‘यह मेरी आखिरी ख्वाहिश है. इसे पूरी कर दो, फिर मैं तुम्हारी जिंदगी से हमेशा के लिए चला जाऊंगा.’’तब इदा को जैसे धक्का सा लगा…उस दिन इदा खूब रोई थी, क्योंकि करीम का ख्वाब ही ऐसा था. उस ने देखा था कि इदा और वह मिलते हैं… उन के जिस्म मिलते हैं.

फिर एक बच्चा होता है. इदा उसे बड़े प्यार से पालती है.इतना ख्वाब सुन कर इदा को हंसी आई थी. उस ने कहा था, ‘‘करीम… तुम भी न… पागल हो तुम… अच्छा, फिर क्या हुआ?’’‘‘फिर मैं चला गया,’’ करीम ने कहा.अब इदा ने पूछा, ‘‘चला गया मतलब?’’करीम ने कहा, ‘‘मैं चला गया. हमेशा के लिए. मगर एक बच्चे की शक्ल में फिर से तुम्हारे पास आ गया तुम्हारे बेटे के रूप में…’’इदा को यह बात बिलकुल भी अच्छी नहीं लगी थी.मगर करीम ने उसे ठीक से सम?ाया,

‘‘देखो इदा, तुम मेरे पास नहीं आ सकती. मैं तुम्हारी जिंदगी में नहीं आ सकता. मैं तुम्हारे बिना जी नहीं सकता. तुम अपनी बसीबसाई दुनिया छोड़ नहीं सकती और तुम्हें छोड़ना भी नहीं चाहिए. लेकिन एक काम हो सकता है. हमें मिले हुए आज 9 महीने हुए हैं. 9 महीने में तो कुछ होता है न? वही कर दो… मु?ो 9 महीने की उमर दे दो. ‘‘मैं 9 महीने और जिंदा रहना चाहता हूं.

फिर चला जाऊंगा तुम्हारी जिंदगी से… हमेशा के लिए. यही चाहती हो न तुम? यही एक रास्ता निकाला है मैं ने. ‘‘तुम मु?ा से एक बार तसल्ली से मिल लो. फिर तुम एक बच्चा पैदा करो, जो मेरी निशानी हो. मैं तुम से दूर नहीं रह सकता. मैं तुम्हारे पास रहना चाहता हूं और नियमकानून वाली इस दुनिया में एक बच्चे के ऊपर कोई शक नहीं करता. ‘‘मैं एक बच्चे की शक्ल में तुम्हारे पास रहूंगा. एकदम पास. तुम्हारे सीने से लिपट कर सोऊंगा. यही तो मैं चाहता था हमेशा.’’इदा करीम की बात बड़े ध्यान से सुन रही थी. उस का चेहरा पीला पड़ गया था. उसे सम?ा नहीं आ रहा था कि करीम के इस ख्वाब को कैसे सच करे? वह करीम को अब क्या जवाब दे?

एक सांकल सौ दरवाजे- भाग 5 : क्या हेमांगी को मिला पति का मान

‘समय के साथ हम में एक सहज सी दोस्ती हो गई थी. हम दोनों एकदूसरे के साथ जब कभी बैठते या 2 कप कौफी के लिए कैंटीन ही जाते, हम अच्छा सा महसूस करते, जैसे एकदूसरे के लिए हम कोई टौनिक थे. ‘कालेज से निकलते वक्त पल्लव मुझे अपना फोन नंबर और पता दे गए थे.

यह छोटा सा आदानप्रदान लगातार जारी रहा. और हम जैसेतैसे इस महीने से संपर्कसूत्र को बनाए रखने में सफल हुए. कह लो, एक सीधीसादी, अच्छी दोस्ती जहां कुछ न हो कर भी बहुतकुछ… चलो छोड़ो, तुम लोग अपनी खबर सुनाओ.’

मेरा दिल धुकपुक कर रहा था. भाई के चेहरे पर डर, कुंठा, असमंजस सब झलक आया था. आखिर ममा हमें क्या कहते रुक गई थी.

हम दोनों मां की खुशियां चाहते थे. लेकिन कहीं यह खुशी परिवार टूटने से ही जुड़ी हो, तो?

परिवार टूटने का ग़म कम तो नहीं होता ममा इस बीच पल्लव जी के पास गई और रसोइए ने जो खाना पहुंचाया, उसे उन्हें खिला कर हमारे पास आ गई. हम तीनों आज बड़े दिनों बाद साथ खाना खा रहे थे और पुराने दिनों से कहीं बेहतर मनोदशा में. तब तो खाने पर मां के बैठते ही पापा की कटूक्ति और ताने शुरू हो जाते.

आज हमारा खाना हम दोनों भाईबहनों की अपनी पसंद का था. भाई की पसंद का छोलेभटूरे, मेरी पसंद की वेज बिरयानी, पनीर दोप्याजा.

‘ममा, यह मकान तो पल्लव जी का होगा, है न?’ मेरे इतना पूछते ही ममा ने कहना शुरू किया-

‘मेरे बच्चे, मैं अभी यहां फिलहाल 25 हजार रुपए प्रतिमाह की नौकरी करती हूं. तुम्हें लगता है कि सालभर में मैं 2 करोड़ रुपए का यह दोमंजिला मकान खरीद पाऊंगी? बच्चे, यह पल्लव जी का ही मकान है.’

‘ममा, इन की पत्नी? परिवार…?’

‘इन की कोई संतान नहीं. पत्नी है, लेकिन…’

‘लेकिन, क्या ममा?’

‘शायद इन की पत्नी के बारे में मेरा कुछ भी कहना सही नहीं होगा.’

एक कशमकश सी भर रही थी मेरी सांसों में.

आखिर पल्लव जी और मेरी मां का रिश्ता कैसा था? हमारा भविष्य क्या था? क्या हमें पापा के पास लौट कर फिर से उन्हीं जिल्लतों में जीना होगा? पल्लव जी और ममा साथ हों, तो क्या यह सही निर्णय होगा?

मैं यही सब सोच रही थी. ममा हमारे पास वाले कमरे में सोने चली गई. कुंदन ने पूछा धीरे से- ‘दीदी, ममा अगर पल्लव जी से शादी कर लें तो तुम्हें कैसा लगेगा?’

‘देख भाई, ममा को कभी वह प्यार व सम्मान मिला नहीं, जिन की वह हकदार थी. आज अगर पल्लव जी से मां को वह सब मिल सकता है जिस से उस की बाकी जिंदगी सुख से बीते, तो इस में हमें भी खुश ही होना चाहिए. हमारी ममा ऐसी नहीं कि वह हमारी फिक्र न करे.’

‘ममा तो कुछ बताएंगी नहीं. क्या कल जब ममा कालेज चली जाएं तो हम पल्लव जी से बात करें?’

सुबह ममा के कालेज जाने के बाद हम दोनों को पल्लव जी ने अपने साथ नाश्ते पर बुलाया. उन की देखभाल में शुभा और रसोइए के साथ एक और लड़का था जो शायद रात को उन के कमरे में देखभाल के लिए रहता था.

पल्लव जी उसे कविराज बुला रहे थे. मैं ने पूछा- ‘अंकल, यह कैसा नाम है?’

‘यह नाम मैं ने दिया है बेटा. वह, दरअसल, बहुत बढ़िया कविता लिखता है. मैं ने सोचा है यह मन भर कर लिख ले, फिर इस की कविताओं की किताब छपवा दूंगा. इस का नाम तो वैसे रतन है.’

‘वाकई, आप सभी का बहुत ख़याल रखते हैं अंकल. ममा आप की बहुत तारीफ कर रही थी.’

‘अच्छा, किस बारे में?’ पल्लव जी के चेहरे पर सौ दीए एकसाथ जल उठे जैसे.

‘वही, शुभा और उन की मां के बारे में,’ मैं ने अपनी झिझक संभाली.

पल्लव जी ने कुछ और सुनने की उम्मीद रखी थी शायद. उन्होंने ‘अच्छा’ कह कर अपने नाश्ते की प्लेट पर खुद को केंद्रित किया.

भाई ने अपनी कुहनी से मुझ पर दबाव बनाते हुए मुझे संकेत देना चाहा कि मैं इस मौके का जल्द सदुपयोग करूं.

‘अंकल, दरअसल, मैं आप से कुछ कहना चाहती हूं. समझ नहीं आता इतनी सारी बातें आप से…’

‘अरे बेटा, आप लोग मुझे अपने पापा की जगह पर रख कर कहो. मतलब, अंकल हूं न?’ पल्लव जी अपनी बात का मर्मार्थ समझ कर झेंपते हुए संभल से गए.

भाई का सब्र जाता रहा था. वह बिना देर किए तुरंत कह पड़ा- ‘अंकल, हमें कुछ समझ नहीं आ रहा. हम तो पापा से बिना कुछ कहे ही यहां आ गए. बाद में पापा के दीदी को संदेश भेजने पर दीदी ने कहा कि हम ममा के पास चले आए हैं. पापा ने हमें दोबारा न लौटने की धमकी दी. इधर ममा ठीक से कुछ बता नहीं रही हैं. हम बहुत परेशान हैं.’

पल्लव जी अत्यंत कुशाग्र थे. वे समझ रहे थे हम कहना क्या चाहते हैं, जानना क्या चाहते हैं.

उन्होंने शांत स्वर में कहना शुरू किया और हम उन की कहानी में डूबते चले गए.

‘मैं कई सारी बातें आप को साफ ही कहूंगा. आप अब बड़े हो गए हो, चिंतित होना वाजिब है. जिंदगी को आप समझते हो.

‘मैं अकेला अब भी हूं, तब भी था जब मेरी शादी हुई थी.’

हम दोनों की चौड़ी हुई आंखों को देख पल्लव जी कुछ पल को रुक गए. वे समझ गए थे कि हम क्यों उत्सुक हैं.

उन्होंने फिर बोलना शुरू किया- ‘मेरी पूर्व पत्नी ने मेरी खानदानी धनसंपत्ति देख मुझ से शादी की और मेरे मातापिता की मृत्यु के बाद मेरा ही अकेला वारिस रह जाना उसे बड़ा आल्हादित किया.

‘लेकिन कुछ समय बाद से ही उसे महसूस होने लगा कि उस ने अपने क्लर्क प्रेमी को छोड़ मुझ से शादी कर के बड़ी गलती कर दी है. उस का क्लर्क प्रेमी भले ही उस की शादी से पहले छोटी सी नौकरी की वजह से वर की लिस्ट से निकाला गया था, लेकिन उस की मेरे साथ 4 साल की शादी में जब मैं दुनियाभर के लोगों की मदद में उस की समझ से पैसे उड़ा रहा था, उस के प्रेमी ने अपनी नौकरी के सदुपयोग द्वारा लोगों के काम कर देने के बदले यानी पब्लिक सर्विस के एवज में उलटे हाथ से न सिर्फ दोगुने पैसे कमाए, बल्कि खुद का फ्लैट और गाड़ी भी ले ली.

‘मेरी पत्नी को खुद के ठगे जाने का ज्ञान हुआ और अपनी ग़लती सुधारने के लिए उस ने अपने पूर्व प्रेमी से धीरेधीरे संपर्क बढ़ाया. उस का प्रेमी क्लर्क कह कर दुत्कारे जाने से अब गजब की इच्छाशक्ति से भर गया था. और जब उस की पूर्व प्रेमिका ने उस के आगे नाक रगड़ी, तो मेरी पत्नी को दोबारा जीत ले जाने का लोभ वह न संभाल सका. जबकि, मैं ऐसी प्रतियोगिता वाले दृश्य में कभी था ही नहीं. मेरी पूर्व पत्नी और उस के प्रेमी को एक बार फिर से साथ हो कर मुझे सबक सिखाने का बराबर का आंनद आया. प्रेमी ने अपने चोट खाए अहं पर मलहम लगा सा लिया. और पत्नी ने मेरे पैसे उड़ाने जैसी गलत आदत के एवज में मुझे सबक सिखाया. वैसे, मैं ने सीखा नहीं सबक, मेरे लिए मेरे पैसे मेरे अकेले के सुखभोग के लिए नहीं हैं. जब भी मैं ऐसे किन्हीं को देखूंगा जिन्हें मेरी या मेरे पैसों की जरूरत होगी, मैं नहीं रुकूंगा.

मैं खुश हूं कि हेमा, माफ़ करना तुम्हारी ममा, मुझे समझती है. और वह खुद भी वैसी ही स्त्री है जिसे मैं चाह सकता हूं. मतलब…’

एक सांकल सौ दरवाजे- भाग 4 : क्या हेमांगी को मिला पति का मान

अब तक ममा बाहर आ गई थी. पूरे एक साल बाद हम ममा को देख रहे थे. पीली जयपुरी प्लाजो सूट में भव्य लग रही थी. आंखों में चमक वापस आ गई थी. गालों में लाली थी. रंग भी फिर से निखर गया था. हम दोनों को उस ने गर्मजोशी से गले लगा लिया. आंखों में आंसू भर आए थे.

हम ममा को पा कर आश्वस्त थे, लेकिन क्या पता मैं जाने क्यों कुछ आशंकित सी महसूस कर रही थी. क्या यह ममा का अपना घर है? या ममा का घर बस रहा है और हम घरविहीन हो रहे हैं धीरेधीरे? भाई को मेरी धड़कनें तुरंत महसूस हो जाती हैं. उस ने सशंकित सा मुझे देखा.

ममा ने शुभा से कहा कि हमें वह हमारा कमरा दिखा दे और फ्रैश होने के लिए बाथरूम में हमारे जरूरत का सामान रख दे.

‘ममा,’ मैं ने आवाज लगाई थी. ममा ने कहा- ‘सब बताती हूं, यह जल्दीबाजी की बात नहीं है.’ ममा मन की बात खूब समझती है. वह फिर उसी शीघ्रता में दूसरे किनारे बने एक कमरे में दाखिल हो गई.

शुभा हमारे कमरे से लगे बाथरूम में सबकुछ व्यवस्थित कर रही थी. भाई ने कहा- ‘दीदी, मुझे बहुत अजीब लग रहा है. क्या ममा भी पापा के जैसे…’

मैं ने उसे रोकते हुए कहा- ‘ममा पर हमें विश्वास नहीं खोना चाहिए. वह पापा की तरह नहीं है. उस में सचाई है, हमारे लिए चिंता भी. रुको जरा.’

हमारा यह कमरा दूसरी मंजिल पर है. 2 अगलबगल पलंग पर सफेद फुलकारी वाली चादर के साथ आकर्षक बिस्तर लगे हैं. बगल की अलमारी में कुछ अच्छी चुनिंदा किताबें रखी हैं. पास ही टेबलकुरसी और एक कपड़ों की छोटी अलमारी है.

शुभा जाने को हुई, तो मैं ने उसे रोका.

‘शुभा, क्या तुम बता सकती हो हम यह कहां आए हैं?’

तभी ममा ने शुभा को नीचे से आवाज दी और वह कहने को कुछ होती हुई भी नीचे चली गई.

हम अपने घर में हमेशा त्रिशंकु की तरह रहे. न मान की ऊंचाई मिली, न प्रेम का आधार. बीच में रहे हमेशा असुरक्षित, अशांत, असहाय से.

यह हमारा अपना घर नहीं था. लेकिन शायद ममा का निडरभाव हमें सुरक्षा का आभास दे रहा था.

2 घंटे बाद यानी करीब रात के 8 बजे वह हमारे कमरे में आई. उस ने हमें पुचकारा. मगर हम दोनों भाईबहन अब संतोष मनाने की हिम्मत खो चुके थे. हमारे मन में उलझनों की घटाएं घनी हो आई थीं.

मैं ने तुरंत कहा- ‘ममा, क्या यह घर तुम्हारा है?’

‘चलो आओ मेरे साथ. तुम्हारे सारे सवाल के उत्तर वहीं मिल जाएंगे.’

हम निचली मंजिल के उसी किनारे वाले कमरे में दाखिल हुए जहां ममा को शाम को हम ने जाते देखा था.

सुंदर नक्काशीदार पौलिश किए हुए दरवाजे से अंदर जाते ही एक गरिमापूर्ण, सुसज्जित कमरा हमारे सामने था. कमरे के बीचोंबीच सागवान लकड़ी की चारों ओर से स्टैंड लगी पलंग लगी थी.

इस पलंग पर 45 के आसपास के एक शांतचित्त पुरुष लेटे थे जिन के एक पैर पर प्लास्टर चढ़ा था और यह पैर पलंग से जुड़े एक स्टैंड से बंधा था.

ममा ने पुकारा उन्हें, ‘पल्लव, मेरे दोनों बच्चे आए हैं.’

मैं अजीब सा महसूस करने लगी. ममा को हमें बताना चाहिए था कि हम कहां लाए गए हैं.

पल्लव जी तो ममा के दोस्त हैं, क्या यह इन्हीं का घर है? इन्हें चोट कैसे आई?

ढेरों सवाल मुझे तंग करने लगे थे.

पल्लव जी ने हमारी ओर देखा. क्या जादू सा था उन की आंखों में. गेहुंए वर्ण में आकर्षक चेहरा और ऊंचाई भी तकरीबन 6 फुट के आसपास होगी. हम ने कभी ऐसा शांत चेहरा देखा नहीं था.

पल्लव जी यथासंभव हमारी ओर मुड़े, हम दोनों के हाथ पकड़े, कहा- ‘तुम दोनों को कब से देखना चाहता था. हेमा इन्हें यहां आराम से रहने को कहो. जब मैं ठीक हो जाऊंगा, इन्हें भोपाल में ही अच्छे स्कूलकालेज में भरती करवा दूंगा, तब तक इन के रिज़ल्ट आ जाएं.’

ममा ने पल्लव जी से पूछा- ‘अभी और किसी चीज की जरूरत तो नहीं. शुभा को यहीं आसपास रुकने को कहती हूं. मैं जरा बच्चों के साथ हूं. कुछ जरूरत हो, तो फोन से बुला लेना.’

‘हांहां, ज़रूर. अभी तुम इन के साथ रहो.’

हम ऊपर अपने कमरे में चले आए थे. रहस्य की जाने कितनी परतें अभी उघड़नी बाकी थीं. मैं और भाई बेसब्र हुए जा रहे थे.

‘शुभा कौन है ममा?’ मैं ने पूछ लिया.

‘इन के कालेज के चपरासी की बेटी है. चपरासी का 5 वर्षों पहले निधन हो गया, तो उस की बीवी और बच्ची मुश्किल में आ गई थीं. पल्लव जी ने पड़ोस में मांबेटी को छोटा सा घर खरीद कर दे दिया. इस की मां इस घर में साफसफाई का काम कर लेती है और पल्लव जी इस के लिए उसे ठीकठाक तनख्वाह देते हैं. शुभा 11वीं में है. उस की पढ़ाई का भी पल्लव जी इंतजाम देखते हैं.’

‘इन्हीं पल्लव जी के कालेज में तुम लैक्चरर हो न?’

‘सही पहचाना. मेरे पुराने दोस्त हैं और अब ये हमारे कालेज के प्रिंसिपल हैं. इन्हीं का कालेज है.’

अब तक हम अपने कमरे के पलंग पर पसर कर बैठ चुके थे. ममा भाई के सिर को अपनी गोद में रख कर आराम से हमारे पास बैठ गई थी.

‘ममा, हम जानना चाहते हैं कि तुम यहां क्यों हो? तुम तो होस्टल में रहती थीं? तुम ने कहा था, तुम ने किराए का एक मकान देख रखा है और हमारे आते ही हम सब वहां रहने लगेंगे?’

‘यही तय था. लेकिन 2 दिनों पहले पल्लव जी का ऐक्सिडैंट में पैर टूट जाने के बाद डाक्टर के कहने पर मुझे आज यहां आ जाना पड़ा है. और चूंकि इन का अपना कोई जिम्मेदारी लेने वाला है नहीं, मुझे ही देखभाल के लिए रुकना होगा. पल्लव जी दिल के बड़े प्यारे और सच्चे इंसान हैं. सुना न, तुम्हारे लिए उन्होंने क्या कहा? तुम लोग यहां कुछ दिन शांति से रहो, एकाध महीने में पल्लव जी ठीक होने लगें तो हम किसी अच्छे मकान में चले जाएंगे और तुम दोनों को यहीं अच्छे स्कूल और कालेज में भरति कर देंगे.’

‘ममा, पल्लव जी के बारे में कुछ और बात कहो न, जो अब तक तुम ने नहीं कहा?’

‘पल्लव जी कालेज में 2 वर्ष मुझ से सीनियर थे. इन का भी विषय इकोनौमिक्स था. मेरे कई दोस्त पढ़ाई में इन से मदद लेते, तो मैं भी इन से मदद लेने लगी थी. बाद में इन्होंने हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से डाक्ट्रेट किया था.

जीवन संघर्ष -भाग 3 : एक मां की दर्दभरी दास्तान

पर मेरी ननद में इतनी बुद्धि नहीं थी कि लड़कियों की अच्छी देखभाल करे, पढ़ाई करवाए, सासससुर की सेवा करे. पति थकाहारा आए तो उस के लिए खना बनाए. मायके में भी आए तो हंसतेखेलते शांति से आए. 41 साल की हो गई थी. इतनी अक्ल तो होनी चाहिए थी न.

न ही मेरे सासससुर उसे कुछ कहते थे.मुझे ठीक से खाना न मिलने के चलते छाती में दूध ठीक से नहीं आता था. मैं भी अपनी भूख को बरदाश्त कर लेती, लेकिन जब मेरा मेहुल छाती को मुंह में डालता, तो उस में कुछ नहीं आता. यह मैं बरदाश्त नहीं कर पाती. मैं छाती को जोर से दबाती तो कुछ दूध आता. मैं खुश हो जाती, लेकिन फिर वह भूख के चलते अपनी उंगली मुंह में डाल कर चूसता रहता.

मैं ने पति को भी इस के बारे बताया, लेकिन वे कुछ नहीं बोले. उन्हें भी मेरा शरीर नोचने के अलावा और कोई मतलब नहीं था.मेरे लिए सब से बड़ी समस्या मेरी ननद थी. मैं ने उसे घर से निकालने की ठान ली. मैं बीमार होने का बहाना करने लगी. घर का सारा काम ननद को करना पड़ता.

मेहुल के लिए श्रेया ने ऊपर का फीड देने के लिए फैरेक्स ला दिया था. मैं उसे दूध में मिला कर देती रही. मन में तसल्ली थी कि बच्चे का पेट भर रहा है. मैं भी चुपचाप खाना चोरी कर के अपने कमरे में ला कर खा लेती. सीधी उंगली से घी न निकले, तो उंगली टेढ़ी करनी पड़ती है.

ननद भी रोजरोज घर का काम करने से तंग आ गई थी. उस ने आव देखा न ताव अपना सामान पैक किया और अपनी ससुराल चली गई. जब तक यहां रही वह ताने देती रही. मेहुल रोता था तो मैं दौड़ कर उसे संभालने चली जाती. गोद में उठाती, फैरेक्स देती और खेलने के लिए अपने साथ ले आती. मेरी सास और ननद मुझे सुना कर आपस में बातें करतीं, ‘यह बच्चे को बिगाड़ रही है.

हम ने भी बच्चे पैदा किए हैं. हम ने कभी ऐसा नहीं किया.’मैं ने बहुत कोशिश की कि एक कान से सुनूं और दूसरे कान से निकाल दूं, लेकिन शब्द इतने तीखे होते कि सीधे दिल पर लगते.मेहुल 5 महीने का हो गया था. एक दिन मैं कमरे में बैठी रो रही थी. इतने में श्रेया आई.

उस ने बातोंबातों में मेरे हुनर के बारे पूछा. ‘‘मैं खाना बहुत अच्छा बनाती हूं,’’ मैं बोली.उस ने यूट्यूब पर अपने वीडियो अपलोड करने के लिए कहा. इस से आमदनी बढ़ेगी. हाथ में चार पैसे होंगे. सब के मुंह बंद हो जाएंगे.उस ने मुझे मोबाइल पर काम कैसे करना है, सब समझाया. मैं अपने पति और सास से छिप कर काम करने लगी और बिजी रहती. मेहुल को ठीक से देख नहीं पाती थी.मेहुल जैसेजैसे बड़ा होता गया, अच्छी खुराक मिलने से प्यारा लगने लगा.

सभी उसे प्यार करने लगे. ससुरजी उस के लिए खिलौने ले कर आने लगे. ननद को पता चला तो उस ने अपने पिता को बुरी तरह डांटा, ‘‘बच्चे पर इतना पैसा बरबाद करने की कोई जरूरत नहीं है.’’उस के बाद ससुरजी ने कुछ भी लाना छोड़ दिया. मैं ने अपनी सास को अपनी कमाई के बारे में बताया. वे परेशान तो हुईं, लेकिन पैसा आने से खुश भी हो गईं. मैं ने एक दिन बैंक से पैसा निकाला. अपनी सास के लिए एक जोड़ी पायल, अपने मेहुल के लिए अच्छेअच्छे कपड़े लिए.

अपने पति के लिए 2 शानदार कमीजें लीं और रात को पहनने के लिए पाजामाकुरता भी लिया. अपने और इन के लिए अंडरगारमैंट भी लिए.घर आ कर सभी को दिखाया, तो वे बहुत खुश हुए. उन्हें एहसास होने लगा कि बहू समझदार है. पति, सासू मां, ससुरजी को एहसास होने लगा कि खुद की बेटी की भी ससुराल है. उस का अपना घर है. उसे यहां हमारे घर में बोलने का कोई हक नहीं है.

एक दिन किसी बात पर ननद ने मुझे ले कर झगड़ा किया, तो न केवल मेरे पति ने, बल्कि सासू मां और ससुरजी ने साफ शब्दों में समझा दिया कि उसे हमारे घर में बोलने की जरूरत नहीं है. वह ऐसी रूठी कि फिर लौट कर नहीं आई.मेरे पति और सासू मां मुझे सहयोग करने लगे.

मेहुल का खयाल रखा जाने लगा. मेरी माली हालत अच्छी होने लगी, लेकिन मैं अपने मन के भीतर की इस टीस को कभी नहीं भूल पाई कि मेरी मां और मामा ने मुझे बेच दिया है. बीच में दलाली खाई है. यह भी कि मेरा पति अधेड़ उम्र का है. जब मैं जवान होऊंगी तो यह बूढ़ा हो जाएगा.

मेरी जवान हसरतों और उमंगों का क्या होगा? मन के भीतर की इच्छाओं को कैसे दबाऊं कि मुझे रात को बूढ़े मर्द की नहीं, बल्कि जवान मर्द की जरूरत होगी? इस हालत को कैसे संभाल पाऊंगी? इन सवालों के जवाब नहीं मिलते हैं. मैं जिंदगी के आखिरी पलों तक संघर्ष करती रहूंगी.

चिनम्मा- भाग 3 : कौन कर रहा था चिन्नू का इंतजार ?

हड़बड़ा कर उठी तो देखा, अप्पा आज भी मछली पकड़ने नहीं गया. वह रोज कोई न कोई बहाना बना कर घर में ही पड़ा रहता है. कौफी पी कर चिन्नू जल्दीजल्दी घर का सारा काम निबटाने लगी. उसे 9 बजे स्कूल पहुंचना होता है. स्कूल पहुंची, तो देखा स्कूल गेट के पास खड़ा साई उसे तिरछी नजर से देख रहा है. अपना सिर नीचे ?ाका लिया, पर न जाने क्यों दिल को अच्छा लगा.

3 बजे स्कूल की छुट्टी हुई. स्कूल के अधिकांश बच्चे घर चले गए. पर चिनम्मा और उस की कक्षा के कुछ बच्चे स्कूल के राव सर से ट्यूशन पढ़ने के लिए रुक गए. ट्यूशन खत्म होने के बाद सभी अपनेअपने गांव की ओर चल दिए. चिनम्मा भी तेज कदमों से घर की ओर चल पड़ी. तभी उसे लगा कि किसी ने पुकारा ‘चिन्नू’. बढ़ते कदम एकाएक थम गए. पीछे मुड़ कर देखा, साई उस के पीछेपीछे चला आ रहा है.

वह घबरा गई कि कहीं अप्पा ने देख लिया तो? उस की घबराहट देख कर साई ने हंसते हुए कहा, ‘मैं कोई भूत हूं क्या, जो तु?ो खा जाऊंगा?’

चिनम्मा के मुंह से निकला ‘लेकिन अप्पा?’

‘अरे अप्पा की चिंता मत कर तू, दुकान पर बैठ मस्त हो कर दारू पी रहा है. उसे देख कर इस बात की गारंटी है कि अभी कम से कम 2 घंटे तक घर पहुंचने वाला नहीं है वह. और तेरी अम्मा तो इस समय काम पर गई हुई है.’

‘तु?ो ये सारी बातें कैसे पता?’ चिनम्मा ने आश्चर्य से पूछा.

मैं सब चैक कर के आया हूं, साई ने अपनी शरारतभरी आवाज में इस ढंग से कहा कि चिनम्मा को हंसी आ गई. दोनों ही एकसाथ खिलखिला कर हंस पड़े.

चिनम्मा ने कहा, ‘तू इस जन्म में कभी नहीं सुधरेगा साई.’

फिर दोनों साथसाथ चलने लगे. कुछ कदम चलने पर जब चिनम्मा थोड़ी आश्वस्त सी हुई, तो धीरे से बोली, ‘‘एक बात पूछूं, पिछले 3 सालों से कहां था रे तू?’’ मु?ो तो लगा कि अब तो तू लौट कर आएगा ही नहीं अपने गांव.’’

साई बताने लगा, ‘‘मेरी शरारतों और शिकायतों से तंग आ कर अम्मा अचानक मु?ो मामा के पास हैदराबाद ले कर चली गई थी. मेरा मामा वहां मछली की दुकान चलाता है. अच्छा कमाताखाता है. अम्मा ने अपने भाई से कहा कि तू इस की पढ़ाई करवा दे और बदले में यह सुबहशाम तुम्हारी दुकान पर काम कर दिया करेगा मुफ्त में. जब लायक बन जाए तो भाई तेरी बेटी को मैं अपनी बहू बना लूंगी बिना दहेज के. (यहां पाठकों को यह बताना आवश्यक है कि दक्षिण भारत के कुछ राज्यों के सभी धर्मों में सगे ममेरेफुफेरे भाईबहनों की शादी को समाज द्वारा स्वीकृति है).

‘‘मामा खुश हो गया यह सुन कर. उस ने मेरा नाम टीवी रिपेयरिंग डिप्लोमा कोर्स’ में लिखवा दिया. मैं भी खुशीखुशी जाने लगा. खूब बड़ा शहर है हैदराबाद, चारों तरफ मोटरगाडि़यां और चकाचौंध करने वाली भीड़. जब तक अम्मा हैदराबाद रही, सबकुछ ठीकठाक चलता रहा. पर जैसे ही वह मु?ो छोड़ कर गांव चली आई, मामी का व्यवहार मेरे लिए बदल गया. वह रोज किसी न किसी बहाने मु?ो पढ़ने जाने से रोकने की कोशिश करती. वह मामा और मु?ा से लड़ाई भी करती रहती. उसे और उस की बेटी को मेरा वहां रहना, खाना और मामा द्वारा मेरी फीस भरना बिलकुल नहीं भाता था. कारण, मामी अपने सगे भाई के बेटे से अपनी बेटी की शादी करना चाहती थी. मैं उसे गंवार और निकम्मा लगता था.

‘‘उन दिनों मु?ो पहली बार अपने अम्माअप्पा और गांव की बहुत याद आई. जब मामा के घर में रहना मुश्किल हो गया तो एक दिन चुपचाप मैं घर से भाग गया किसी अनजान महल्ले में. एक संकल्प के साथ कि जीवन में कुछ बन कर मामी और उस की बेटी को दिखा दूंगा. उस के बाद से अपना खर्चा चलाने के लिए मैं सुबह क्लास करता और शाम के समय दुकान में नौकरी करता. इसी तरह मैं ने टीवी रिपेयरिंग डिप्लोमा कोर्स के बाद धीरेधीरे मोबाइल और कंप्यूटर रिपेयरिंग कोर्स भी कर लिया और पिछले एक साल से हैदराबाद की एक बड़ी दुकान में काम कर रहा हूं. छुट्टी ले कर अम्मा को देखने आया हूं.’’

चिनम्मा ने साई को छेड़ते हुए कहा, ‘‘तेरी बातें सुन कर लगता है कि अब तो बड़ा सयाना और सम?ादार हो गया है रे तू तो. अच्छा बता, इतने दिनों बाद गांव आ कर तु?ो कैसा लग रहा है, कहीं वापस तो नहीं चला जाएगा शहर फिर से?’’

साई उस के जरा नजदीक आ कर बोला, ‘‘सच कहूं, तो ज्यादा कुछ अच्छा नहीं लगा यहां आ कर. कहीं कुछ भी तो नहीं बदला है इस इलाके में. मेरा अप्पा देशी शराब पीपी कर बेमौत मर गया और तेरे अप्पा जैसे लोग मरने की तैयारी में हैं. मैं तो वापस जाने की सोच रहा था पर समय की कृपा से तभी कल तू दिख गई रामुलु अन्ना की दुकान पर. और तब से अब सबकुछ अच्छा लगने लगा है मु?ो.’’ यह कह कर साई ने प्यार से चिनम्मा का हाथ पकड़ लिया.

‘‘धत,’’ कह कर चिनम्मा ने अपना हाथ छुड़ाया और शरमा कर घर भाग आई.

फिर कई दिनों तक दोनों स्कूल से लौटते वक्त किसी न किसी बहाने मिलते रहे. एकदूसरे के साथ रहना अच्छा लगने लगा था उन्हें. शायद प्यार का अंकुर फूट चुका था दोनों के दिलों में.

बातों ही बातों में साई ने बताया कि वह गांव की अपनी ?ोंपड़ी बेच कर शहर में दुकान खोलने जा रहा है टीवी, मोबाइल और कंप्यूटर रिपेयरिंग की, क्योंकि अब उसे अच्छा अनुभव हो गया है अपने काम का.

चिनम्मा ने भी जब भविष्य में अपने टीचर बनने की बात बताई साई को तो साई ने पूछा, ‘‘लेकिन तू टीचर बनेगी कैसे? तु?ो तो शहर जाना पड़ेगा टीचर बनने का कोर्स (टीचर्स ट्रेनिंग) करने, और तेरा अप्पा तो पक्का नहीं भेजेगा तु?ो.’’

‘‘हां, यह बात तो मैं भी जानती हूं, पर मैं कर भी क्या सकती हूं?’’ निराशाभरे स्वर में चिनम्मा ने कहा.

‘‘एक उपाय है,’’ साई ने कहा.

‘‘वह कौन सा है, बता तो जरा?’’ चिनम्मा ने उत्सकुता से पूछा.

‘‘तू मु?ा से शादी कर ले और चल शहर मेरे साथ आगे की पढ़ाई करने,’’ पता नहीं कैसे साई अपने मन की बात बोल गया अचानक.

‘‘बुद्धू, यह कैसे हो सकता है भला? हम दोनों 2 धर्म के हैं, तू हिंदू और मैं ईसाई. अगर दोनों के घरवालों और समाज को पता चल गया तो तेरीमेरी खैर नहीं, मार कर फेंक देंगे हमें,’’ कह कर चिनम्मा चुप हो गई.

‘‘2 धर्म के हुए तो क्या हुआ, दिल तो मिलता है न अपना. शादी के बाद तू अपना धर्म मानेगी और मैं अपना. हम चर्च और मंदिर दोनों जगह जाया करेंगे, क्या फर्क पड़ता है इन बेबुनियादी बातों से. अगर हिम्मत और हौसला हो तो कोई परिवार और समाज नहीं रोक सकता हम दोनों को,’’ फिल्मी हीरो की तरह बोला साई.

‘‘पर ऐसा करने से तो अप्पा की इज्जत चली जाएगी. मेरे साथ मेरी अम्मा को भी मार डालेगा वह. मु?ो नहीं जाना अपने अम्माअप्पा को छोड़ कर किसी अनजान शहर में कहीं दूर तेरे साथ,’’ चिनम्मा ने छोटे बच्चे की तरह कहा.

उस का डरना स्वाभाविक ही था. असल जिंदगी में वह अपने गांव, चर्च और आसपास के इलाके को छोड़ कर कहीं नहीं गई थी अभी तक.

साई हंसने लगा. फिर गंभीर स्वर में बोला, ‘‘तू बेवकूफ और डरपोक है चिन्नू, जिंदगी में कुछ बनना तो चाहती है पर हिम्मत करने से डरती है. अगर मैं भी तेरी तरह मामी की गालियों और जुल्मों से डर जाता तो कभी भी अपने पैरों पर खड़ा नहीं हो पाता. बस, मामा की दुकान का एक नौकर बन कर रह जाता.’’

कुछ दिनों बाद साई चला गया, पर जातेजाते अपना, फोन नंबर दे गया अपनी चिन्नू को. यह कह कर, ‘‘जब दिल करे फोन कर लेना दोस्त सम?ा कर.’’ एकदो बार उस का दिल किया साई को फोन करने का, पर अप्पा का खयाल कर वह डर गई.

3 महीने बीत गए. 12वीं की परीक्षा के फौर्म भरने के लिए चिनम्मा को रुपयों की जरूरत थी. अप्पा से तो मांगने का प्रश्न ही नहीं था. बदले में उसे इतनी गालियां मिलतीं, इस का अनुमान कर के ही कांप जाती. पर वह अपना एक साल बरबाद भी नहीं करना चाहती थी. वह रुपए लाए कहां से. बड़ी हिम्मत कर के दबी जबान से अम्मा को बता रही थी, तभी पता नहीं कहां से अप्पा आ गया. आते ही बोला, ‘‘क्या बातें कर रही हो दोनों मांबेटी?’’ अम्मा के बताने पर उस ने तुरंत पूछा, ‘‘कितने रुपए चाहिए तु?ो 12वीं पास करने के लिए?’’

चिनम्मा अवाक रह गई जब अप्पा ने 100-100 के 4 नोट उस के हाथ पर रख दिए. ‘अप्पा के पास इतने रुपए आए कहां से,’ सोचते हुए उस ने पैसे ले लिए. अगले दिन स्कूल जा कर परीक्षा का फौर्म भर दिया चिनम्मा ने. पर उस ने यह भी महसूस किया कि आजकल अप्पा बहुत खुश रहता है और उसे डांटतामारता भी नहीं. तो उस का मन शंका से भर उठा.

12वीं की फाइनल परीक्षा शुरू हो चुकी थी. अंतिम परीक्षा दे कर स्कूल से आने के बाद चिनम्मा ने देखा अम्माअप्पा बड़े मेलमिलाप से धीरेधीरे कुछ बातें कर रहे हैं. उत्सुकता हुई तो दवेपांव अंदर आ कर वह उन की बातें सुनने लगी.

अप्पा अम्मा से कह रहा था कि परसों सोमवार को तू छुट्टी ले ले अपने काम से. शहर जाना है.

अम्मा बोली, ‘‘मगर क्यों?’’

अप्पा ने कहा, ‘‘चिन्नू का पासपोर्ट बनवाना है.’’

‘‘12वीं परीक्षा पास करने के लिए पासपोर्ट बनवाना पड़ता है क्या?’’ अम्मा ने भोलेपन से पूछा.

‘‘अरे नहीं रे, बिलकुल पागल है तू तो,’’ अम्मा को ?िड़कते हुए अप्पा ने कहा, ‘‘मैं ने चिन्नू की शादी तय कर दी है, अपनी मुंहबोली बहन पद्मा अक्का के बेटे नागन्ना से.’’

‘‘वही नागन्ना जो पुलिस के डर से अपनी बीवी और दुधमुंहे बच्चे को छोड़ कर कहीं गायब हो गया था कुछ सालों पहले,’’ अम्मा ने घबरा कर कहा.

‘‘अरे, अब वह पुराना वाला नागन्ना कहां रहा. दुबई में काम करता है. अच्छा कमाताखाता है. पुलिस भी उस का कुछ नहीं कर सकती अब तो. अक्का बता रही थी कि जब वह देश आएगा तो पैसे खर्च कर सारा मामला दबा देगा,’’ अप्पा ने जवाब दिया.

‘‘नहीं करना मु?ो अपनी चिन्नू की शादी ऐसे मवाली से, फिर तेरी पद्मा अक्का कौन सी भली औरत है,’’ यह कह कर अम्मा सुबकने लगी.

‘‘बहुत पैसा है नागन्ना के पास, अपनी चिन्नू राज करेगी वहां. फिर सोच, इस जमाने में बिना दहेज के कौन शादी करेगा हमारी बेटी से. नागन्ना ने दहेज मांगने के बजाय उलटे कहा है कि अगर शादी हो गई तो वह हमें भी हर महीने कुछ पैसे भेजा करेगा अपनी कमाई के. सोच, फिर तु?ो कहीं काम पर भी जाना नहीं पड़ेगा, घर पर आराम से रहेगी तू मेरी रानी बन कर,’’ अप्पा लाड़ से बोला.

‘‘शादी कब होगी?’’ अम्मा के पूछने पर अप्पा बोला, ‘‘12वीं के बाद अपनी चिन्नू दुबई चली जाएगी पद्मा अक्का के साथ. जहां नागन्ना काम करता है. शादी भी वहीं जा कर होगी दोनों की. इसलिए पासपोर्ट बनवाना जरूरी है.’’

यह सुन कर अम्मा शांत हो गई भविष्य में मिलने वाले सुख की कल्पना कर के. गरीबी और अभावभरी जिंदगी होती ही ऐसी है कि जरा सी सुख की चाहत इंसान से हर तरह के सम?ौते करवा लेती है.

यह सब सुन कर सन्न रह गई चिनम्मा. अब उसे सम?ा आ गया कि अप्पा ने पैसे क्यों दिए थे फौर्म भरने के लिए, क्यों खुश रहता है वह आजकल? यह सोच कर कि अप्पा ने उस का सौदा किया है अपने पीने के वास्ते, रातभर रोती रही तकिए में मुंह छिपा कर वह. मन फट गया था उस का अप्पाअम्मा की तरफ से. नहीं माननी है उसे अप्पा की कोई बात, नहीं करनी है उसे उस आपराधिक प्रवृत्ति वाले नागन्ना से शादी, चाहे कितने भी पैसे हों उस के पास या अपने ही धर्म का हो. यह सब सोच कर उस की आंखों से बहने वाले आंसुओं की धार तेज हो गई और उन आंसुओं के साथ धीरेधीरे उस की भय, चिंता और परेशानी सब बह गए.

सुबह उठी, तो दिल और दिमाग थोड़ा शांत था. उसे बारबार साई की कही बात याद आने लगी थी, ‘तू बेवकूफ और डरपोक है चिन्नू, जिंदगी में कुछ बनना तो चाहती है पर हिम्मत करने से डरती है,’ ठीक ही तो कह रहा था साई. मु?ा में हिम्मत की कमी थी अब तक. पर अब नहीं. अब वह किसी से भी नहीं डरेगी, अपने अप्पा से तो बिलकुल नहीं.

ऐसा निश्चय कर पूर्ण आत्मविश्वास के साथ चिनम्मा चुपचाप निकल पड़ी साई को फोन करने.

पता नहीं, क्या बात हुई दोनों में, 2 दिनों बाद पासपोर्ट बनवाने विशाखापट्टनम गई चिनम्मा अचानक गायब हो गई. अम्माअप्पा ने बहुत ढूंढ़ा, पर कुछ पता नहीं चला. रोतेबिलखते दोनों गांव वापस आ गए. कुछ दिनों तक उस के गायब होने की चर्चा होती रही, फिर सबकुछ शांत हो गया. 6 वर्षों बाद वह लौटी अपने साई के साथ उसी स्कूल की मैडम बन कर, जहां वह पढ़ती थी. उस की गोद में एक नन्ही सी गुडि़या भी थी.

जंजाल – भाग 3: मां की आशिकी ले डूबी बेटी को

‘‘ठीक है. ये लो 25,000 रुपए. पीछे के दरवाजे से बाहर चले जाओ,’’ आंटी ने हुक्म दिया.

रवि ने रुपए संभाल कर रख लिए. वह चुपचाप कोठे से बाहर निकल गया.

सोनम कमरे में अकेली बैठी थी. आंटी ने उसे नमकीन और चाय दी.

‘‘रवि को भी बुलाइए. वह कहां है?’’ सोनम ने कहा.

‘‘रवि थोड़ी देर में आएगा, तब तक तुम नाश्ता करो. मैं ने उसे दुकान से पान लाने भेजा है,’’ आंटी ने चतुराई से कहा.

सोनम ने अनमने ढंग से नमकीन खा कर चाय पी ली थी.

2 घंटे बीत गए, लेकिन रवि नहीं आया. सोनम अब घबराने लगी. तभी आंटी कमरे में आई.

‘‘रवि अभी तक नहीं आया. वह कहां है?’’ सोनम ने पूछा.

‘‘अब वह नहीं आएगा. तुझे बेच कर चला गया,’’ आंटी ने बेदर्दी से कहा.

सोनम आंटी की बात सुन कर हैरान रह गई. रवि इतना बड़ा धोखेबाज निकला. बेबसी में उस की आंखों में आंसू छलक आए.

‘‘अब रोने से कुछ नहीं होगा. कोठे पर ग्राहकों को खुश करना होगा,’’ आंटी ने आंखें तरेर कर कहा.

‘‘मोहिनी, अंजू, डौली यहां आना तो,’’ आंटी ने आवाज लगाई.

आंटी के अगलबगल आ कर कई लड़कियां खड़ी हो गईं.

‘‘यह सोनम है. कोठे पर नई आई है. कोठे के सारे कायदे इसे समझा दो,’’ कह कर आंटी कमरे से बाहर चली गई.

लड़कियां ग्राहकों को खुश करने के गुर सोनम को सिखाने लगीं. वे सोनम को कोठे की जरूरी पाठ पढ़ा कर अपने धंधे में लग गईं.

सोनम कमरे में डरीसहमी बुत

सी बैठी थी. वह किसी चिडि़या की तरह पिंजरे में कैद थी. आंटी के

खौफ से कोठे की लड़कियां डरीसहमी रहती थीं.

आंटी ने सोनम पर निगरानी रखी हुई थी. खिड़की के पास आंटी खड़ी थी. तभी कोठे पर एक ग्राहक आया था. आंटी सोनम को दिखा कर ग्राहक को बताने लगी, ‘‘यह लड़की आज ही कोठे पर आई है. बड़ी कमसिन है. छुईमुई है बाबू. छूने पर मुरझा जाएगी.’’

ग्राहक ने सोनम को ऊपर से नीचे तक देखा. उस की कामुक नजर से सोनम घबरा गई. उसे लगा कि वह कोठे के पिंजरे को तोड़ कर कहीं भाग जाए, पर वह बेबस थी.

ग्राहक ने रुपए आंटी को दे दिए. सोनम के साथ रात बिताने को अब वह तैयार था.

‘‘इस के साथ उस कमरे में चली जाओ,’’ आंटी ने सोनम की तरफ इशारा कर के कहा.

ग्राहक सोनम का हाथ पकड़ कर तकरीबन खींचते हुए कमरे में ले गया. आंटी रुपए गिनते हुए अपने कमरे में चली गई.

ग्राहक ने सोनम से कहा, ‘‘कपड़े उतार दो.’’

सोनम ने धीमे से कहा, ‘‘धीरज रखो, मैं बाथरूम से 2 मिनट में आती हूं. उस के बाद कपड़े उतारूंगी.’’

ग्राहक उस की बात मान गया.

सोनम का दिमाग बड़ी तेजी से काम कर रहा था. उस ने बाहर निकल कर कमरे की सिटकनी धीरे से बंद कर दी. इधरउधर ताक कर वह दबे पैर कोठे से बाहर निकल गई. बाहर 2-3 शोहदे बैठे थे. शोहदों के सामने से निकलना आसान नहीं था.

सोनम शोहदों से छिपते हुए कोठे के पिछवाड़े चली गई. वहां घना अंधेरा

था. अंधेरे में वह कोठे की चारदीवारी फांद गई.

अब सोनम सड़क पर थी. वह बेतहाशा भागने लगी. वह रास्ते से तो अनजान थी, लेकिन कोठे से दूर निकल जाना चाहती थी. उसे डर था कि कहीं आंटी के पाले हुए गुंडे उसे दबोच न ले.

सोनम सुनसान सड़क पर भागी जा रही थी. कुछ दूर जाने पर उसे एक चौराहा मिला. चौराहे पर स्ट्रीट लाइट की भरपूर रोशनी थी.

सोनम बस का इंतजार करने लगी. तभी एक बस आ कर रुकी.

‘‘यह बस कहां जा रही है?’’ सोनम ने कंडक्टर से पूछा.

‘‘बस पटना जाएगी. चलना है क्या?’’ कंडक्टर ने पूछा.

‘‘हां, मुझे जाना है,’’ कह कर सोनम बस में चढ़ गई और एक खाली सीट पर बैठ गई.

बस में सोनम सुकून महसूस कर रही थी. उस ने दहशत के माहौल को बहुत पीछे छोड़ दिया था.

सोनम जब कुछ देर तक कमरे में नहीं आई, तब ग्राहक दरवाजा पीटने लगा. आवाज सुन कर आंटी दौड़ी आई. उस ने झटपट कमरे की सिटकनी

खोल दी.

‘‘सोनम कहां है?’’ आंटी ने ग्राहक से पूछा.

‘‘बाथरूम जाने का बहाना कर वह भाग गई,’’ ग्राहक ने कहा.

यह सुन कर आंटी के पसीने छूट गए. जाल में फंसी चिडि़या उड़ गई थी.

‘‘असलम, गौतम, रमेश…’’ आंटी ने जोर से चिल्ला कर शोहदों को पुकारा. शोहदे आंटी की आवाज सुन कर

दौड़े आए.

‘‘जो नई लड़की आई थी, वह कोठे से भाग गई है. पकड़ कर लाओ उसे. मैं उस की खाल उधेड़ दूंगी,’’ आंटी गुस्से में बोली.

शोहदे सड़कों पर इधरउधर खाक छानते रहे, लेकिन सोनम नहीं मिली.

शोहदे सिर झुकाए आंटी के पास खड़े थे.

‘‘सब जगह देखा. वह लड़की नहीं मिली, ‘‘एक ने कहा.

आंटी ने यह सुन कर अपना सिर पीट लिया.

रात के 11 बज रहे थे. पटना के बसअड्डे पर आ कर बस रुक गई थी. सोनम रिकशे से अपनी गली के नुक्कड़ पर उतर गई.

आसपास के घरों की बत्तियां बुझी हुई थीं. लोग सो गए थे. गली में अंधेरा था. वह तेज कदमों से घर तक पहुंच गई.

सोनम ने अपने घर का दरवाजा खटखटाया. आवाज सुन कर उस की मां जाग गई.

‘‘कौन है इतनी रात को?’’ मां ने डर कर पूछा.

‘‘मैं सोनम हूं मां. दरवाजा खोलो.’’

मां ने दरवाजा खोल दिया, तब तक उस के बापू भी जाग गए थे.

सोनम मां से लिपट कर रोने लगी, ‘‘मां, मुझे माफ कर दो.’’

‘‘कहां चली गई थी इतने दिन?’’ मां ने पूछा.

‘‘रवि ने मुझ से शादी करने का नाटक किया. धोखे से कोठे पर ले जा कर मुझे बेच दिया. किसी तरह कोठे से जान बचा कर भाग आई,’’ सोनम सुबकने लगी.

‘‘रवि कहां रहता है? मैं उसे छोड़ूंगा नहीं,’’ बापू ने कड़क कर कहा.

‘‘वह गंगा किनारे की झोंपड़पट्टी में रहता है. गैराज में गाड़ी साफ करने का काम करता है,’’ सोनम ने कहा.

‘‘ठीक है, मैं उसे देखता हूं,’’ बापू ने गुस्से में कहा. सोनम अपनी मां के पास सो गई.

सुबह हुई. केशव और सुहागी के लिए यह सुबह खुशियां लाई थी. उन की लापता बेटी घर लौट आई थी.

अगले दिन सोनम स्कूल गई. मां उसे स्कूल तक छोड़ने गई. अब वह काम पर से लौटती, तब स्कूल से सोनम को साथ ले कर घर आती.

केशव कुछ दिनों तक मजदूरी करने नहीं गया. वह झोंपड़पट्टी के इलाके में जा कर रवि पर नजर रखता था. एक दिन केशव को थाने में जाते देखा गया. किसी को नहीं मालूम कि उस ने थाने में क्या कहा.

शाम में सोनम और उस की मां बैठे हुए थे. उसी समय केशव घर में आया. आते ही उस ने खुशखबरी सुनाई, ‘‘रवि को पुलिस पकड़ कर ले गई है. चोरी की मोटरसाइकिल खरीदने और बेचने के जुर्म में पुलिस ने उसे जेल भेज

दिया है.’’

यह सुन कर सोनम मारे खुशी के मां से लिपट गई, ‘‘रवि को सजा मिल गई मां. आज मुझे बड़ी खुशी मिली है.’’

केशव को अनूठी मजदूरी मिली थी. वह बेहद खुश था. सुहागी के दिल का डर खत्म हो गया था. सोनम अब बेफिक्र हो कर स्कूल जा सकेगी.

दूसरे दिन सुहागी महेश के घर काम करने गई थी. जब उस का काम खत्म हो गया, तब वह घर जाने लगी. तभी महेश ने सुहागी का हाथ पकड़ लिया. अपनी ओर खींचते हुए महेश ने सुहागी को चूमना चाहा, लेकिन सुहागी ने उस की पकड़ से खुद को छुड़ा लिया.

‘‘नहीं साहब, अब और नहीं.’’

‘‘क्यों…? ये 1,000 रुपए हैं. रख लो,’’ महेश साहब ने रुपए दिखाते हुए कहा.

‘‘साहब, ये रुपए मुझे नहीं चाहिए. महीने की पगार से मेरा काम चल जाता है,’’ सुहागी यह कह कर दरवाजे से बाहर निकल गई.

 

बींझा- भाग 3 : सोरठ का अमर प्रेम

इसी तरह 6 महीने गुजर गए. राव खंगार ने सोरठ के प्यार में डूब कर राजकाज का सारा काम छोड़ दिया. राज्य व्यवस्था बिगडऩे लगी. आखिर उस की खुमारी टूटी तो उस ने सोरठ से कहा, ‘‘तुझे छोड़ कर जाने का मन तो नहीं करता, लेकिन मजबूर हूं, राज्य का काम तो संभालना ही पड़ेगा. मेरे आने तक तेरा दिल कैसे बहलेगा?’’

“आप ऊदा ढोली को हुकुम देते जाओ, दिनरात मेरे महल के नीचे बैठा रहे, मुझे गाना सुनाए.’’ सोरठ ने कहा. राव खंगार देश भ्रमण के लिए रवाना हो गया. एक दिन सोरठ अपने महल में बैठी सिर गुंथवा रही थी, नीचे ऊदा ढोली मांड राग में विरह का गीत ‘ओलू घणी आवै…’ गा रहा था. सोरठ ने झरोखे से देखा, उसे चौक में बींझा नजर आया. इतने में ऊदा

ढोली ने दोहा गाया, ‘जिन सांचे सोरठ घड़ी, घडिय़ो राव खडग़ार. वो सांचो तो गल गई, लद ही गई लुहार. (जिस सांचे में सोरठ जैसी स्त्री और राव खंगार जैसा आदमी गढ़ा, वह सांचा ही गल गया और उस सांचे को बनाने वाला लुहार ही मर गया.)

दोहा सुनते ही सोरठ के आग लग गई. ‘कहां तो जवानी से भरपूर सुघड़ बींझा और कहां आधा बूढ़ा राव खंगार. मेरी जोड़ी का तो बींझा है, राव खंगार नहीं.’ सोरठ ने बींझा को बुलावा भेजा, बींझा हिचकिचाया. सोरठ ने दूसरा बुलावा भेजा. तब बींझा सोरठ के महलों में आया. सोरठ ने कहा, ‘‘बींझा, तेरे विरह की वेदना मुझ से अब सही नहीं जा रही है. तू नित्य मेरे महल में आयाजाया कर.’’

उस ने बींझा से अपने मन की दशा बताई, ‘‘राव खंगार ने मुझे अपने महल में रख रखा है. वह मेरे शरीर का मालिक हो सकता है, मेरे दिल का नहीं. शरीर का मालिक मन का मालिक नहीं होता. हकीकत यह है कि मन का मालिक ही सब का स्वामी होता है.’’

यह सुन कर बींझा को लगा कि जैसे आकाश में अमृत की वर्षा हो रही है, धन्य हो कर बींझा ने सोरठ का हाथ अपने हाथ में ले लिया. सोरठ ने कहा, ‘‘हाथ तो पकड़ रहे हो, उम्र भर प्रीत निभा पाओगे?’ भस्म हो कर बींझा की राख में मिल गई सोरठ

बींझा ने भी सूरज को साक्षी बनाते हुए प्रीत निभाने का वचन दिया. सोरठ और बींझा तो एकदूसरे से ऐसे मिल गए, जैसे फूल और सुगंध. “सोरठ, तुझ में अनेक गुण हैं, लेकिन एक बड़ा भारी अवगुण भी है. जिस पुरुष के मन में तू बस जाती है, उस के शरीर पर रक्त और मांस नहीं चढ़ता, वह तेरे विरह में सूखता ही जाता है.’’ बींझा ने कहा. सोरठ ने यह सुनते ही नाक चढ़ाई तो बींझा ने फिर कहा, ‘‘मुझे चाहे मारो या जिंदा रखो, आप मालिक हो, आप की मरजी.’’

राव खंगार अब क्या करता भला? उसे एक तरकीब सूझी. बींझा को देश निकाला दे देना चाहिए. दूसरे ही दिन बींझा को काली पोशाक पहना कर और काले घोड़े पर बैठा कर देश निकाला दे दिया. सिपाहियों को हुकुम दिया कि उसे गिरनार की सीमा पार निकाल कर आओ.

सोरठ अपने महल के झरोखे में खड़ी बींझा को जाते अपलक देखती रही. उस के वियोग में सोरठ ने खानापीना छोड़ दिया. सिर में तेल लगाए महीनों बीत गए. नाइन उबटन करने आती तो उसे उलटे पांव लौटा देती. माली हारगजरे लाए तो उन्हें कमरे के कोने में फिंकवा देती. सुगंधित इत्र की शीशियां भिजवाई जातीं तो उन्हें फोड़वा देती. तंबोलन पान ले कर आए तो उन्हें बंटवा देती.

उस के मुंह पर सावन की घटा जैसी उदासी छाई रही, आंखों से सावनभादों जैसी आंसुओं की झड़ी लगी रहती. आखिर उस से रहा नहीं गया. ऊदा ढोली को बुला कर बींझा को संदेश भेजा. ऊदा ने जा कर बींझा के सामने दोहा गाया, ‘‘सोरठ नागण को रही, ज्यू छेड़े ज्यू खाय. आजा बड़ा गारनड़ी, ले जा कंठ लगाय (तेरे प्रेम में उन्मत सोरठ नागिन हो रही है. जो छेड़ता है, उसे डस रही है. बींझारूपी गरुड़ अपनी नागिन को कंठ से लगा कर ले जाए).

यह दोहा सुनते ही बींझा पागल हो गया. उसे भलीबुरी ठीकगलत कुछ नहीं सूझी. सीधा सिंध के नवाब के पास पहुंचा. बींझा ने नवाब से सारी बातें कह सुनाईं. नवाब उसी समय बींझा की मदद को तैयार हो गया. सिंध के नवाब ने गढ़ गिरनार को जा घेरा. घमासान युद्ध हुआ. नवाब की ओर से बींझा बहुत बहादुरी से लड़ा. राव खंगार की हार हुई. बींझा सोरठ को लेने उस के महल पहुंचा, लेकिन नवाब ने पहले ही सोरठ को अपने कब्जे में कर लिया था. उस ने

बींझा को उसे देने से इनकार कर दिया. बींझा निराश हो कर पागल सा हो गया. सोरठ के महल की दीवारों से सिर पटकपटक कर मरणासन्न हो कर गिर पड़ा. नवाब ने सोरठ को बहुत लालच दिया. उसे डराया- धमकाया, लेकिन बींझा के प्रेम पर उसे अटल देख नवाब ने उस के सामने सिर झुका दिया.

नवाब ने सोरठ से पूछा, ‘‘बोल, तू कहां जाना चाहती है राव खंगार के पास, अपने बाप चंपा कुम्हार के पास या रूढ़ बनजारे के पास?’’ सोरठ ने रोते हुए कहा, ‘‘कहीं नहीं. जहां बींझा है, मुझे भी वहीं भेज दो आप की बड़ी मेहरबानी होगी.’’ सुन कर नवाब बोला, ‘‘बींझा तो तुम्हारी याद में पागल हो कर सिर दीवारों से पटक कर मर चुका है. उस का तो अंतिम

क्रियाकर्म भी कब का हो गया. अब भी बींझा के पास जाना चाहोगी?’ “हां, मुझे उसी जगह पर ले जा कर छोड़ दो, जहां पर बींझा को जलाया गया.’नवाब ने सोरठ को छोड़ दिया. वह उस जगह पर पहुंची और सूर्य के सामने खड़ी हो कर हाथ जोड़ कर प्रार्थना की, ‘‘हे सूर्य, तू सर्वव्यापी है, तेरे से कोई चीज छिपी हुई नहीं है. मैं ने बींझा से मन, वचन और कर्म से प्रेम किया है. अगर तू मुझे शुद्ध और

सती मानता है तो तू अग्नि प्रकट कर के मुझे अपने बींझा के पास पहुंचा दे.’’ कहते हैं कि उसी वक्त सूरज की किरणों से अग्नि प्रज्जवलित हुई, बींझा की भस्म के साथ सोरठ भी भस्म में मिल गई. ऊदा ढोली जब तक जिंदा रहा, गांवगांव में घूम कर सोरठ-बींझा के गीत गाए और उन के प्यार की कहानी को अमर कर दिया. राजस्थान में ढोली लोग आज भी बींझा-सोरठ के दोहे अकसर सुनाते हैं. दोहे व प्रेम कहानी सुन कर ऐसा लगता है जैसे यह कल की ही कहानी है.

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