परछाई: मायका या ससुराल, क्या था माही का फैसला?- भाग 1

माही को 2 शादियों के कार्ड एकसाथ मिले. एक भाई की बेटी की शादी का और एक जेठजी की बेटी की शादी का. दोनों शादियां भी एक ही दिन थीं और दोनों ही रिश्ते ऐसे कि शादी में जाना टाला नहीं जा सकता था. माही कार्ड को उलटपुलट कर ऐसे देखने लगी, जैसे ध्यान से देखने पर कोई न कोई सुराग मिल जाएगा या कोई दूसरी तारीख मिल जाएगी. या फिर कोई दूसरी सूरत मिल जाएगी दोनों शादियां अटैंड करने की. वह क्या करेगी अब?

भाई की बेटी की शादी में शामिल नहीं हो पाएगी तो भैयाभाभी की नाराजगी झेलनी पड़ेगी और अगर जेठजी की बेटी की शादी में शामिल नहीं हुई तो जेठजेठानी उस की मजबूरी समझ कर कुछ कहेंगे नहीं पर उन के प्यार भरे उलाहने का सामना कैसे करेगी?

किंकर्तव्यविमूढ़ सी वह पास पड़ी कुरसी पर बैठ गई. विभव से पूछेगी तो वे तपाक से कह देंगे कि जो तुम्हें ठीक लगता है वह करो. वह फिर दोराहे पर खड़ी हो जाएगी. या फिर बहुत अच्छे मूड में होंगे तो कह देंगे कि तुम अपने

भाई की बेटी की शादी में शामिल हो जाओ और मैं अपने भाई की बेटी की शादी में शामिल हो जाता हूं. लेकिन वह ऐसा नहीं कर सकती. शाम होने को थी, अंधेरा धीरेधीरे चारों तरफ फैल रहा था.

उस का दिल वहां पहुंच गया जब उमंगें थीं, रंगीन इंद्रधनुषी सपने थे, मातापिता थे. उस की कुलांचे भरने वाली उम्र थी. वे 2 भाईबहन थे. मातापिता की इकलौती लाडली बेटी. भाई के बाद लगभग 10 सालों के बाद हुई, इसलिए भाई का भी लाड़प्यार भरपूर मिला. वह 20 साल की थी जब भाई की शादी हुई. आम लड़कियों की तरह उस के भी कई अरमान थे भाई की शादी के… काफी लड़कियां देखने के बाद सिमरन पसंद आ गई. भाई के सेहरा बांधे देख हर बहन की तरह वह भी खुश थी.

भाभी ने जब घर में कदम रखा तो खुशियां जैसे उन के घर के दरवाजे पर हाथ बांधे खड़ी हो गईं. भाभी 23 साल की थीं, उम्र का फासला कम था. उसे लगा उसे हमउम्र एक सहेली मिल गई. अभी तक तो घर में सभी बडे़ थे. 3 साल उसे भाभी के सान्निध्य में रहने का मौका मिला. 23 साल की उम्र में उस की भी शादी हो गई. पहले मां काम करती थीं तो वह निश्चिंत हो कर अपनी पढ़ाई करती थी. मां भाभी की भी किचन में पूरी मदद करती थीं. पर भाभी न जाने क्यों उस से हमेशा चिढ़ी सी ही रहती थीं. शायद उन्हें लगता था कि यह आराम से अपनी पढ़ाई कर रही है. बाकी सारा काम मुझे ही करना पड़ता है. नई होने के कारण वे अधिक नहीं बोल पाती थीं पर भावभंगिमाओं से सब जता देती थीं.

भाभी के हावभाव समझ कर वह भी किचन में हाथ बंटाने की कोशिश करने लगी तो मां ने टोक दिया, ‘तू जा…अपनी पढ़ाई कर… ये काम तो जिंदगी भर करने हैं…’ वह जाने को हुई तो भाभी बोल पड़ीं, ‘पर काम आएगा नहीं तो आगे करेगी कैसे?’ उसे समझ नहीं आया कि भाभी की बात माने कि मां की. वह एम.एससी. कर रही थी. पढ़ने में वह हमेशा कक्षा में अच्छे विद्यार्थियों में गिनी जाती रही. भाभी अपनी चुप्पी के पीछे से भी पूरी दबंगता दिखा देती थीं. भाई भी उस से अब पहले की तरह बेतकल्लुफ नहीं रहते थे. पहले की तरह भाई से फरमाइश करने की उस की अब हिम्मत नहीं पड़ती थी.

भाई कहीं बाहर तो जाते तो भाभी के लिए कई चीजें खरीद कर लाते. वह बहुत उम्मीद से देखती कि शायद उस के लिए भी कुछ खरीद कर लाए हों, पर ऐसा होता नहीं था. उसे किसी बात की कमी नहीं थी पर भाई का कुछ न लाना जता देता कि अब उन की जिंदगी में उस की कोई अहमियत नहीं रह गई है. उस ने यह मासूम सी शिकायत मां से की तो उन्होंने उसे ही समझा दिया, ‘ऐसा तो होता ही है पगली. तेरी शादी होगी तो तेरा पति भी तेरे लिए ऐसे ही लाएगा, पति के लिए पत्नी सब कुछ होती है.’

‘और लोग कुछ नहीं होते?’

‘होते हैं… पर पत्नी से कम ही होते हैं.’ 2 साल तक भाभी का व्यवहार समझते हुए भी उस ने अधिक ध्यान नहीं दिया. उस के लिए भाभी फिर भी अपनी थीं पर भाभी उसे कभी अपना नहीं समझ पाईं. उस के 23 की होतेहोते मातापिता ने उस के लिए लड़का देखना शुरू कर दिया. विभव बैंक में अफसर थे. उन के घर में 2 भाई व 1 बहन और मां थीं. वहां सब कुछ अच्छा देख कर उस का रिश्ता तय हो गया और फिर उस की शादी हो गई. उस ने सोचा कि अब भाभी के साथ उस के रिश्ते सहज हो जाएंगे, जब वह कभीकभी आएगी तो भाभी भी उसे पूरा सम्मान देंगी.

ससुराल में सभी ने उसे हाथोंहाथ लिया पर घर में जेठानी का ही राज था. वे पूरे परिवार पर छाई हुई थीं. सास, ननद व यहां तक की उस के पति के दिलोदिमाग पर भी वही राज कर रही थीं. वह अनायास ही ईर्ष्या से भर उठी. मायके जाती तो वहां सब कुछ भाभी का तो यहां सब कुछ जेठानी का.

धीरेधीरे न चाहते हुए भी उस के मन में जेठानी के प्रति ईर्ष्या की भावना घर कर गई. पति से कुछ भी पूछती तो एक ही जवाब मिलता कि भाभी से पूछ लो.

‘साड़ी खरीदनी है साथ चलो,’ तो उसे जवाब मिलता, ‘भाभी के साथ चली जाओ’ या फिर, ‘चलो भाभी को भी साथ ले चलते हैं, उन की पसंद बहुत अच्छी है.’’

‘खाने में क्या बनाऊं…’

‘भाभी से पूछ लो.’

उन दोनों का सच : क्या पति के धोखे का बदला ले पाई गौरा- भाग 3

तभी उन्हीं दिनों कोविड के प्रकोप से आई विश्वव्यापी मंदी की वजह से पलाश की छंटनी हो गई. एक तरफ उस की महंगी महंगी दवाओं का खर्च, दूसरी तरफ घरगृहस्थी के सौ खर्चे. पलाश की उड़ाऊ आदत और अस्पताल में उस के इलाज पर हुए खर्चे के चलते उस के पास बचत भी कोई खास न थी. नौकरी के दिनों में बिब्बो से अफेयर चलातेचलाते वह उस पर महंगेमहंगे तोहफों के रूप में अपनी तनख्वाह की एक बड़ी रकम उस पर खर्च करता आया था, लेकिन अब उस के बेरोजगार होने पर वह उस पर पहले की तरह उपहारों की बारिश नहीं कर पाता. सो उस की कड़की देख कर उस ने भी पलाश से आंखें फेर ली और किसी दूसरे मुरगे की तलाश में जुट गई. वक्त के साथ अब पलाश के घर उस का आना न के बराबर रह गया था.

पिछले 1 साल से गौरा की मां अपने पड़ोस में किराए पर रहने वाले 10-15 लड़कों के लिए 2 वक्त के खाने का टिफिन भेजने का काम कर रही थी, जो दिनोंदिन बढ़ता ही जा रहा था. गौरा की मां पाककला में निपुण थीं. एक बार जो भी उन का बनाया खाना, खासकर सब्जी, दाल चख लेता, उन के स्वाद का दीवाना बने न रहता. वक्त के साथ गौरा की मां के टिफिन के और्डर बढ़ते ही जा रहे थे. काम इतना बढ़ता जा रहा था कि उन से अकेले सिमट नहीं पा रहा था.

तभी घर में पलाश की नौकरी जाने की दशा में गौरा की मां ने गौरा से भी यह काम शुरू करने के लिए कहा, और अपने कुछ और्डर उसे दे दिए. गौरा भी कुकिंग में अपनी मां की तरह सिद्धहस्त थी. गौरा ने पूरी मेहनत और लगन से यह काम शुरू किया और मां की तरह उस की टिफिन सर्विस भी अच्छी चल निकली.
वक्त का फेर, पलाश की नौकरी गए 6 माह होने आए, लेकिन उसे कोई दूसरी अच्छी नौकरी नहीं मिली. नौकरी गई, माशूका गई और इस के साथ ही आर्थिक स्वतंत्रता जाने के साथसाथ पलाश अब गौरा पर पूरी तरह से आश्रित हो गया.

उस की महंगीमहंगी दवाएं सालभर तक चलने वाली थीं. परिस्थितियों के इस मोड़ पर उसे बिब्बो और गौरा के बीच का अंतर स्पष्ट दिखाई देने लगा था. गौरा मुंह से कुछ न कहती, न जताती लेकिन उस के प्रति किए गए अपने अन्याय के एहसास से वह अब उस से आंखें न मिला पाता. उस के मन का चोर उसे हर लमहा शर्मिंदा करता.

वक्त के साथ गौरा की टिफिन सर्विस का काम अच्छाखासा बढ़ता जा रहा था. अब उसने रसोई में अपनी मदद के लिए 2 सहायिकाएं रख लीं थीं, जो पूरे काम में उस की मदद करतीं. उसे अब अपनी जिंदगी का मकसद मिल गया था. पति की बेशर्म बेवफाई के बाद यह एक सुखद परिवर्तन था.उधर जिंदगी के इस कठिन दौर ने पलाश को भी एहसास दिला दिया था कि गौरा खरा सोना है और बिब्बो जैसी मतलबपरस्त, चरित्रहीन औरत के लिए उस की बेकद्री कर के उस ने अपनी जिंदगी की महत भूल की थी.
अब वह गौरा के प्रति अपने दुर्व्यवहार को ले कर बेहद शर्मिंदा महसूस करता. इतना कुछ हो जाने के बाद भी गौरा के पति के प्रति पूर्ण समर्पण और परवाह में कोई कमी नहीं आई थी.

वह एक परंपरावादी महिला थी, जो पति के साथ हर हाल में एक छत के नीचे रहने में विश्वास रखती थी. पलाश की बचत लगभग खत्म होने आई थी. अब घर का खर्च पूरी तरह से गौरा की टिफिन सर्विस की आमदनी से चलता. पलाश की महंगीमहंगी दवाओं का आना बदस्तूर जारी रहा. डाक्टरों के निर्देशों के मुताबिक उस के त्वरित स्वास्थ्य लाभ के लिए उस की थाली में भरपूर महंगेमहंगे पोषक खाद्य पदार्थ रहते. उन में किसी तरह की कोई कमी एक दिन के लिए भी नहीं आई. कमी आई थी तो महज पति के प्रति उस के व्यवहार में.

पति के निर्लज्ज प्रेम प्रसंग से उस का उस से मन पूरी तरह से फट गया. उसे उस की शक्ल तक देखना गवारा नहीं था. वह दिनदिन भर मात्र अपनी टिफिन सर्विस के काम में अपने होंठ भींचे व्यस्त रहती. पति के साथ उस की बोलचाल मात्र हां या न तक सीमित रह गई. उस की उस से बात करने की तनिक भी इच्छा न होती.

पति के बेशर्म आचरण से क्षतविक्षत आहत मन उस ने अपनेआप को मौन के अभेद्य खोल में समेट लिया था. पलाश कभी उस से बात भी करता तो वह मात्र हूंहां कर वहां से इधरउधर हो जाती. पिछले कुछ समय से पत्नी के इस नितांत शुष्क और रूखे व्यवहार से पलाश बेहद बेचैनी का अनुभव कर रहा था.

उस दिन गौरा की दोनों सहायिकाओं ने अचानक किसी जरूरी काम से छुट्टी ले ली. गौरा को खुश करने की मंशा से पलाश भी रसोई में घुस गया. उस ने पूरे वक्त एक पैर पर खड़े रह पत्नी की यथासंभव मदद की. अपनी गलती का मन से एहसास कर वह एक बार फिर से पत्नी से अपने संबंध सामान्य बनाना चाहता था. जब से बिब्बो उन दोनों के बीच आई थी, गौरा दोनों बच्चों के साथ दूसरे बैडरूम में सोने लगी थी. गौरा बच्चों के साथ उन के बैडरूम में लेटी हुई थी कि पलाश ने दोनों सोते हुए बच्चों को गोद में उठा कर अपने बैडरूम के पलंग पर सुलाया और खुद पत्नी के बगल में लेट गया.

तभी उसे पलंग पर आया देख गौरा ने उठने का उपक्रम किया ही था कि पलाश ने उसे खींच कर अपने सीने पर गिरा दिया और उस की आंखों में झांकते हुए उस से बोला, “गौरा और कितने दिन मुझ से गुस्सा रहोगी? अब गुस्सा थूक भी दो. मुझे अपनी गलतियों का एहसास हो गया है.

“बिब्बो जैसी औरत के लिए मैं ने तुम्हारी बेकद्री की. मुझ से बड़ी भूल हुई. प्लीज, मुझे माफ कर दो,” पति की यह बातें सुन कर गौरा की आंखों में आंसुओं का सैलाब उतर आया और रुंधे गले से वह बोली, “तुम्हारी गलती की कोई माफी नहीं है. तुम ने बिब्बो जैसी सस्ती औरत के लिए मुझे खून के आंसू रुलाए. मैं तुम्हें जिंदगी भर माफ नहीं करूंगी. तुम ने मेरा बहुत जी दुखाया है. अब मुझ से माफी की उम्मीद मत रखो.”

पलाश के पास पत्नी के इस कड़वे उलाहने का कोई जवाब नहीं था. उस ने बेबस करवट बदल कर आंखें मूंद लीं. गोरा की आंखों में खून के आंसू थे तो पलाश की आंखों में पश्चाताप के. अब शायद आंसू ही उन दोनों की नियति थी, उन दोनों का सच था.

उन दोनों का सच : क्या पति के धोखे का बदला ले पाई गौरा – भाग 2

उस मुश्किल घड़ी में पति की यह हालत देख वह बेहद घबरा गई. वह सोच नहीं पा रही थी कि आखिरकार पति को उस के पीछे एसी की बाहरी यूनिट को साफ करने की जरूरत क्या आन पड़ी और वह भी तब, जब वह घर पर नहीं थी.

उधर पलाश गिरने के बाद पूरी तरह से मौन हो गया था. उस ने गिरने के बाद गौरा से बिलकुल कोई भी बात नहीं की. वह बस वीरान निगाहों से शून्य में ताक रहा था. एक तरफ उस की यह हालत देख उस का कलेजा मुंह में था, वहीं दूसरी ओर उस के प्रति गुस्से का भाव भी था कि आखिर वह बेवजह एसी की बाहरी यूनिट साफ करने उस ऊंचे स्टूल पर चढ़ा ही क्यों जिस से आज उसे अस्पताल में धक्के खाने की नौबत आ गई. उस नाजुक वक्त में बिब्बो ने उसे बहुत सहारा दिया.

बिब्बो भी ग्रैजुएट ही थी, लेकिन दुनिया देखीभाली, खेलीखाई महिला थी. पुरुषों से बेहद धड़ल्ले से बातें करती. सो पलाश के इलाज के सिलसिले में डाक्टरों से बातचीत करने में वही आगे रही .

अस्पताल के डाक्टर मिहिर और उन की टीम ने पलाश का ट्रीटमैंट शुरू किया. गौरा तो बस बेहद घबराई हुई कलेजा मुंह में लिए डाक्टरों और बिब्बो की बातें सुनती रहती. तभी डाक्टर मिहिर ने गौरा से कहा, “गौरा, आप के हसबैंड के ब्रेन का सीटी स्कैन और एमआरआई करवाना पड़ेगा, यह देखने के लिए कि कहीं उन्हें कोई अंदरूनी चोट तो नहीं पहुंची.”

“ठीक है डाक्टर साहब, आप जो ठीक समझें”, गौरा ने डॉक्टर से कहा.

“डाक्टर साहब, पलाश के ब्रेन का सीटी स्कैन और एमआरआई होगा? एक बात बताइए डाक्टर साहब, इन की गरदन के पीछे कुछ दाने हो रहे हैं. सीटी स्कैन और एमआरआई में कोई दिक्कत तो नहीं आएगी?” बिब्बो के मुंह से अनायास यह शब्द निकले ही थे कि अगले ही क्षण अपनी जीभ काटते हुए वह चुप हो गई.

यह वह क्या कह बैठी, अगले ही क्षण उसे एहसास हुआ और वह घबरा गई.

“नहींनहीं, उस की वजह से कोई परेशानी नहीं होगी,” डाक्टर ने जवाब दिया.

इधर बिब्बो के मुंह से पति की गरदन के पीछे हुए दानों के बारे में सुन कर गौरा के जेहन में घंटी बजी, यह बिब्बो को पलाश की गरदन के पीछे के दानों के बारे में कैसे पता? वह एक असहज बेचैनी में डूब गई. बारबार एक ही प्रश्न उस के दिलोदिमाग को मथने लगा, ‘आखिर बिब्बो ने यह बात कैसे बोली?’

पलाश के ब्रेन का सीटी स्कैन और एमआरआई हुआ और उन की रिपोर्ट से पता चला कि पलाश के ऊंचाई से गिरने की वजह से उस के ब्रेन में तीव्र हेमरेज हुआ था. दोनों जांचों की रिपोर्ट आने के बाद डाक्टर ने उस की हालत बेहद गंभीर बताई.

पति की गंभीर हालत के विषय में सुन कर गौरा के हाथों के तोते उड़ गए. डाक्टर ने उसे यह भी कहा कि पलाश की हालत बहुत नाजुक है. अगले ढाई घंटों में कुछ भी हो सकता है.”

आखिरकार डाक्टरों का इलाज रंग लाई. ढाई घंटे सकुशल बिना किसी अनहोनी के बीत गए. उस के बाद पलाश की हालत में शीघ्रता से सुधार हुआ. करीब 1 सप्ताह आईसीयू में रहने के बाद पलाश को एक अलग कमरे में शिफ्ट किया गया. अस्पताल में गुजरा वह समय गौरा के लिए बेहद उथलपुथल भरा रहा, पर वहां बीता आखिरी दिन उसे एक जबरदस्त झटका दे गया.

उस दिन पलाश को अस्पताल से छुट्टी मिलने वाली थी. उसे डिस्चार्ज करने के पहले डाक्टर मिहिर उसे उस की दवाओं और घर पर ली जाने वाली सावधानियों के बारे में बताने के लिए अपने चैंबर ले गए. आधे घंटे बाद डाक्टर से बात कर गौरा जैसे ही पलाश के कमरे में घुसी, यह देख कर उस के पांवों तले जमीन न रही कि पलाश अपनी आंखें मूंदे बिब्बो के दोनों हाथों को अपने हाथों में थामे हुए उन्हें चूम रहा था और बुदबुदा रहा था, “तुम ने मेरी जान बचा दी. अगर तुम मुझे उस दिन वक्त पर अस्पताल नहीं लातीं तो न जाने क्या होता?”

उस के अचानक कमरे में पहुंचने पर बिब्बो ने सकपका कर अपने हाथ पलाश के हाथों की गिरफ्त से छुड़ाने की कोशिश की, लेकिन पलाश ने उस के हाथ नहीं छोड़े और गौरा पर एक घोर उपेक्षा की दृष्टि डाल वह बिब्बो से इधरउधर की बातें करता रहा.

एक ओर पति की गंभीर शारीरिक हालत, तो दूसरी ओर उस का निर्लज्ज आचरण गौरा के सीने में छुरियां चला रहा था. वह सोच नहीं पा रही थी कि जिंदगी के इस कठिन मुकाम पर वह उन विपरीत परिस्थितियों का सामना कैसे करे? बिस्तर पर पड़े पलाश और बिब्बो का अनवरत प्रेमालाप देख उस का खून उबल उठता, लेकिन वह हालातों के आगे बेबस थी. आर्थिक तौर पर वह पूरी तरह से पलाश पर आश्रित थी.

एक दिन तो हद ही हो गई. उस दिन पलाश अपने 5 साल के बेटे और 7 साल की बेटी के सामने ही गौरा द्वारा परोसी गई लौकी की सब्जी को परे हटा बिब्बो की लाई सब्जी की चटखारे लेते खा रहा था और बिब्बो की कुकिंग की प्रशंसा कर रहा था, “बिब्बो से सीखो सब्जी बनाना. तुम्हें तो तुम्हारी मां ने महज हींगजीरे का छौंक लगाना सिखाया है. बिब्बो के हाथ की बनी यह पनीर की सब्जी खा कर देखो तो समझ आएगा कुकिंग किसे कहते हैं.”

पलाश की इस बात से गौरा का चेहरा स्याह हो आया और उस दिन वह अपनेआप पर काबू नहीं रख पाई और बिब्बो के अपने घर जाते ही घोर आवेश में आ उस से बोल पड़ी, “बिब्बो के हाथ की बनी सब्जी तो बहुत अच्छी लग रही है आप को. उस की तरह मैं भी किसी गैर मर्द के साथ इश्क के पेंच लड़ाऊं तो भी आप को बहुत अच्छा लगेगा न?”

गौरा की यह हिमाकत देख पलाश आगबबूला हो गया और गुस्से में गौरा पर फट पड़ा, “मैं जो चाहे करूं, तुम होती कौन हो मुझे आंख दिखाने वाली? मेरा ही खाती है और मुझ पर ही गुर्राती है बदजात? इतनी ही ऊंची नाक है तो चली जा अपनी मां के घर.”

गौरा के पास पति की प्रताड़ना को सहने के अलावा और कोई चारा न था. एक बार को तो उस का मन किया कि वह सबकुछ छोड़छाड़ मां के घर चली जाए, लेकिन वृद्धा विधवा मां जो अपना और एक बेटी का गुजारा बड़ी मुश्किल से कर रही हो वह उसे किस दम पर संभालती? सो बस आंखों में पानी भर उस ने पति के इस तिरस्कार को खून के घूंट पीते हुए सहा, लेकिन उस दिन उस ने जिंदगी में पहली बार अपने आत्मनिर्भर होने की दिशा में सोचा.

उन दोनों का सच : क्या पति के धोखे का बदला ले पाई गौरा – भाग 1

“बिब्बो…बिब्बो…” पलाश ने अपने फ्लैट की साइड की बालकनी से अपनी माशूका बिब्बो के बैडरूम से लगी बालकनी में कूद कर उस के बैडरूम के दरवाजे पर दस्तक दी, लेकिन भीतर से कोई जवाब नहीं आया.

उसे उस के दरवाजे को खटखटाते 5 मिनट हो गए कि तभी पलाश ने देखा बिब्बो के फ्लैट के ठीक सामने ड्यूटी पर तैनात उन की सोसाइटी का गार्ड शायद उस की दस्तक की आवाज सुन कर उसी तरफ चला आ रहा था. उसी की वजह से वह बिब्बो के घर मेन दरवाजे से नहीं घुस पाता था. गार्ड को अपनी ओर आता देख कर पलाश के पसीने छूट गए. वह अपनेआप को उस से छिपाने के उद्देश्य से झट से नीचे बैठ गया.

करीब 5 मिनट बाद उस ने धीमे से उचकते हुए देखा, गार्ड जा चुका था. उस ने चैन की सांस ली. तभी उसे खयाल आया वह बिब्बो को फोन ही कर देता. वह उसे फोन लगा कर धीमे से फुसफुसाया “बिब्बो… दरवाजा खोलो भई. कितनी देर से तुम्हारी बालकनी में खड़ा हूं.”

“सौरी जानू, नहा रही थी.”

“अब दरवाजा तो खोलो.”

“अभी आई.”

तभी दरवाजा खुला और पलाश झपट कर भीतर घुस गया और चैन की सांस लेते हुए बोला, “यह कमीना गार्ड, इतनी सी देर में उस ने यहां के 10 चक्कर लगा लिए. कुछ ज्यादा ही चौकीदारी करता है यह.”

“ओ जानू, क्यों अपसेट हो रहे हो. जाने दो, उस का तो काम ही है चौकीदारी करना. अब वह तो करेगा ही न. चलो अब यह बताओ जरा, आज मैं कैसी लग रही हूं?”

“गजब ढा रही हो जानेमन. तुम तो हमेशा ही बिजली गिराती हो स्वीटू. तभी तो मैं तुम पर फिदा हूं. चलो अब दूरदूर रह कर मुझे टौर्चर मत करो,” यह कहते हुए पलाश ने हाथ बढ़ा कर बिब्बो को अपनी ओर खींच लिया और बांहों में भर उसे बेहताशा चूमने लगा.

करीब घंटे भर तक प्रेम सागर में गोते लगा कर एकदूसरे से तृप्त हो कर दोनों प्रेमियों को समय का भान हुआ तो पलाश बोला, “1 बजने आए. मैं चलता हूं. गौरा आ जाएगी.”

“गौरा कहां गई है?”

“उस की मां बीमार है. उन्हें देखने गई है.”

“अच्छा.”

“तो ठीक है जान, कल मिलते हैं.”

“ओके स्वीटहार्ट, बायबाय”, यह कहते हुए पलाश बालकनी में आया. वह बालकनी की नीची दीवार पर पैर रखते हुए नीचे कूदा, लेकिन न जाने कैसे उस का संतुलन बिगड़ गया और वह पलक झपकते ही अपनी बालकनी में उतरने की बजाय उसके बाहर अपनी सोसाइटी के कैंपस में गिर गया.

उसे यों सोसाइटी के कैंपस में गिरते देख अपनी बालकनी में खड़ी बिब्बो आननफानन में लगभग दौड़ती हुए बदहवास उस के पास पहुंची. पलाश को यों अविचल जमीन पर पड़े देख बिब्बो का कलेजा मुंह में आ गया और उस ने उस का हाथ पकड़ कर हिलाया, “पलाश…पलाश… आंखें खोलो,” लेकिन उस के शरीर में कोई हरकत नहीं हुई.

तभी वह दौड़ कर भीतर अपने फ्लैट में गई और एक गिलास में पानी ले आई और उस के चेहरे पर छींटे मारने लगी. 5 मिनट में उसे होश आ गया, लेकिन वह सामान्य नहीं लग रहा था. वह फटीफटी निगाहों से बिब्बो को देख रहा था. उस की शून्य में ताकती दृष्टि से परेशान हो बिब्बो ने उसे झिंझोड़ा और उस से कहा, “पलाश उठो, क्या हुआ? कैसे गिर गए? अपना बैलेंस लूज कर दिया तुम ने,” लेकिन पलाश कुछ नहीं बोला.
इस बार तनिक घबराते हुए उस ने उस के कंधों को थाम उसे उठाने का प्रयास किया, “उठो पलाश, प्लीज उठो. तुम्हें यहां गिरा हुआ देख कर लोग बातें बनाएंगे.”

संयोग से अभी तक पलाश को वहां गिरते हुए किसी ने नहीं देखा था. उस वक्त गार्ड भी अपनी जगह पर नहीं था. उन दोनों को यों साथ देख लेने के खौफ से बिब्बो का घबराहट से बहुत बुरा हाल था. उस ने अपना पूरा दम लगा कर उसे उठाया और अपना सहारा दे उसे उस के फ्लैट में पहुंचा दिया.

पलाश अभी तक सामान्य नहीं था. उसे यों फटीफटी निगाहों से अपने चारों ओर ताकते देख वह बेहद घबरा गई. ‘उसे कोई अंदरूनी चोट तो नहीं लगी’, इस सोच ने उसे बेहद परेशान कर दिया.

वह सोचने लगी, ‘पलाश सामान्य बिहेव नहीं कर रहा. उस के ऊंचाई से गिरने की बात उसकी पत्नी गौरा को बिना बताए नहीं चलने वाला, लेकिन उसे वह कैसे बताए कि वह अपनी बालकनी से उस की बालकनी में कूदने की कोशिश में गिरा. यह तो वह बुरी फंसी.’

घबराहट से उस के होश फाख्ता होने लगे कि तभी पलाश की बालकनी में रखे झाड़न और एक ऊंचे स्टूल को देख कर उस ने सोचा, ‘मैं गौरा से कह दूंगी, पलाश अपनी बालकनी में लगे एसी के ऐक्सटर्नल यूनिट को साफ करने के लिए स्टूल पर चढ़ा था और वह उस से गिर गया. उस समय संयोग से वह भी अपनी बालकनी में थी और वह उस के सामने गिरा था.’

तनिक देर तक सोचविचार कर उस ने सोचा, ‘हां यही बहाना ठीक रहेगा,’ इस खयाल से उस की व्यग्रता तनिक कम हुई और उस ने झट से पलाश से कहा, “पलाश, मैं अभी बिब्बो को फोन करने जा रही हूं. वह तुम से पूछे कि तुम कैसे गिरे तो तुम्हें कहना है कि तुम उस स्टूल पर एसी की यूनिट साफ करने के लिए चढ़े थे और वहां से गिर गए. ठीक है न? प्लीज, यही बहाना बनाना ठीक रहेगा. और कुछ मत कहना. ओके पलाश, तुम मुझे सामान्य नहीं लग रहे. तुम्हें चैकअप के लिए अस्पताल ले ही जाना होगा, कहीं कोई अंदरूनी चोट न आई हो,” उस से यह कहते हुए बिब्बो ने गौरा को फोन कर उसे फौरन घर आने की ताकीद की.

10-15 मिनट में तो गौरा अपनी मां के घर से लौट आई. पलाश को गिरे हुए करीब घंटा बीत चला था, लेकिन वह अभी भी सामान्य नहीं हुआ था. उस की यह हालत देख कर गौरा पलाश को घर के निकट एक अस्पताल ले गई. बिब्बो उस के साथ साथ अस्पताल गई. उस के मन में अपराध भावना थी कि पलाश उस की वजह से दुर्घटनाग्रस्त हुआ. उस आड़े वक्त में बिब्बो उस के साथसाथ रही. वह अपने घर से एक बड़ी रकम अपने साथ ले गई.

पलाश की पत्नी गौरा मात्र बीए पास, सीधीसादी घरेलू किस्म की औरत थी जिस की दुनिया महज घरगृहस्थी, पति, बच्चों तक ही सीमित थी. वह पुरुषों से पूरे आत्मविश्वास से बात न कर पाती. यहां जयपुर में उस का ऐसा कोई रिश्तेदार न था जो इस मुश्किल घड़ी में अस्पताल के मसलों में उस की मदद कर पाता.

गौरा के मायके में मात्र वृद्धा विधवा मां थी जो अपनी किशोरवय की बेटी के साथ रहतीं. वह बड़ी मुश्किल से लोगों के कपड़े सील कर अपना और अपनी बेटी का पेट पालती. उस के ससुराल में भी उस के मात्र वयोवृद्ध ससुर थे, जो जयपुर के पास के एक गांव में अपनी वृद्धा बहन के साथ रहा करते. इसलिए गौरा को दोनों ही पक्षों से किसी तरह के सहारे की कोई उम्मीद न थी .

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भरमजाल : रमेश ने कैसे बरबाद की अपनी जिंदगी

आज पार्क जा कर जौगिंग करने में मेरा बिलकुल भी मन नहीं लगा. हालांकि, रमेश को छोड़ कर बाकी सभी दोस्त थे, मगर रमेश से मेरी कुछ ज्यादा ही पटती थी.

25 सालों से हम दोनों एकसाथ इस पार्क में जौगिंग करने आते रहे हैं. कुछ तो वैसे ही रमेश का न होना मुझे एक अधूरेपन का एहसास करा रहा था और कुछ दोस्तों ने जब उस के बारे में उलटीसीधी बात करनी शुरू की, तो मेरा मन और भी परेशान हो गया.

‘‘4 महीने बाद 60वां जन्मदिन होने वाला था रमेश का. उम्र के इस पड़ाव पर ऐसा काम करते हुए उसे जरा भी शर्म नहीं आई. देखने में कितना धार्मिक लगता था और काम देखो कैसा किया. सारा समाज थूथू कर रहा है उस पर,’’ एक दोस्त ने कहा.

दूसरे दोस्त ने नाकभौं सिकोड़ते हुए कहा, ‘‘मुझे तो भाभीजी पर तरस आ रहा है. अच्छा हुआ दोनों लड़कों ने घर से निकाल दिया ऐसे बाप को…’’

इस से ज्यादा सुनने की ताकत मुझ में नहीं थी.

‘‘कुछ काम है…’’ कह कर मैं वापस घर आ गया और रमेश के बारे में सोचने लगा.

रमेश और मेरी कारोबार के सिलसिले में एकदूसरे से जानपहचान हुई थी. यह जानपहचान कब दोस्ती और फिर गहरी दोस्ती में बदल गई, पता ही नहीं चला.

रमेश बहुत ही साफदिल, अपने काम में ईमानदार और सामाजिक इनसान था. उस के इन्हीं गुणों के चलते हमारी दोस्ती इतनी बढ़ी कि 25 साल तक हम रोजाना एकसाथ जौगिंग करने जाते रहे.

हम दोनों अपनी सारी बातें जौगिंग के दौरान ही कर लेते थे. कई बार तो दूसरे दोस्त हमें लैलामजनू कह कर चिढ़ाते थे.

इतने सालों में रमेश ने अपना कारोबार काफी बढ़ा लिया था. ट्रांसपोर्ट के कारोबार के साथ ही अब उस ने दिल्ली के पौश इलाके में पैट्रोल पंप भी खोल लिया था.

एक तरफ लक्ष्मी उस पर पैसा बरसा रही थी, वहीं दूसरी तरफ उस की सुंदर सुशील पत्नी ने 2 बेटे उस की गोद में दे कर दुनिया का सब से अमीर इनसान बना दिया था.

जिंदगी ने अच्छी रफ्तार पकड़ ली थी, मगर सब से अमीर आदमी सुखी भी हो, ऐसा जरूरी नहीं होता. वह लालच के ऐसे दलदल में धंसता चला जाता है कि जब तक उसे एहसास होता है, तब तक काफी देर हो चुकी होती है.

2 साल पहले बाजार में गिरावट आई, तो सभी के कारोबार ठप हो गए. रमेश किसी भी तरह कारोबार को चलाना चाहता था. उस ने अपने पैट्रोल पंप पर पैट्रोल भरने के लिए लड़कियां रख लीं और वाकई उस के पैट्रोल पंप की कमाई पहले से काफी ज्यादा बढ़ गई.

ग्राहक वहां पैट्रोल लेने के बहाने लड़कियां देखने ज्यादा आने लगे. अब रमेश हर तीसरे महीने पहली लड़की को हटा कर किसी नई और खूबसूरत लड़की को काम पर रखता.

मुझे उस की इस सोच से नफरत हुई. मैं ने उसे समझाने की कोशिश भी की, तो उस ने कहा ‘आल इज फेयर इन बिजनेस’.

मैं अपनी आंखों से देख रहा था कि पैसा कैसे एक सीधेसादे इनसान की अक्ल मार देता है.

ज्यादातर उस के मैनेजर ही इन लड़कियों को काम पर रखते थे. पर वे लड़कियां काम कैसा कर रही हैं, यह देखने के लिए रमेश कभीकभार अपने पैट्रोल पंप पर ही पैट्रोल भरवाने चला जाया करता था.

उन्हीं दिनों एक लड़की रानी, उस के पैट्रोल पंप पर काम करने आई. एक शाम को मैं उसी की गाड़ी में काम के सिलसिले में उस के साथ गया था.

उस दिन रमेश ने पहली बार रानी को देखा था. गठे हुए बदन की लंबीपतली थोड़ी सांवली सी थी वह, उम्र यही होगी कोई 23-24 साल यानी रमेश के बेटे से भी छोटी उम्र की थी.

रमेश ने मैनेजर को बुला कर पूछा, तो उस ने बताया कि यह नई लड़की है रानी, अपना काम भी बखूबी कर रही है. उस के बाद रमेश और मैं वापस आ गए.

3 महीने बाद मैनेजर का रमेश के पास फोन आया कि रानी आप से मिलना चाहती है. वह काम से हटने को तैयार नहीं है. उसे समझाने की बहुत कोशिश की, मगर कहती है कि एक बार मालिक से मिलवा दो, फिर चली जाऊंगी.

रमेश ने कहा, ‘‘उसे मेरे दफ्तर भेज देना.’’

दफ्तर आते ही रानी रमेश के पैरों में गिर गई और लगी जोरजोर से रोने, ‘‘मालिक, मुझे काम से मत निकालो. मेरे घर में कमाने वाली सिर्फ मैं ही हूं. बाप शराबी है. वह पैसे के लिए मुझे बेच देगा. 3 महीने से आधी तनख्वाह उस के हाथ में रख देती थी, तो शांत रहता था. बड़ी मुश्किल से अच्छी नौकरी और अच्छे लोग मिले थे. मैं आप के सब काम कर दिया करूंगी, ओवरटाइम भी करूंगी. उस के पैसे भी चाहे मत देना, पर मुझे काम से मत निकालो.’’

रमेश ने 1-2 बार उस से कहा भी कि उठो, ऐसे पैरों में मत गिरो, मगर वह पैरों को पकड़े रोती रही. आखिरकार रमेश को ही उसे उठाना पड़ा और मानना पड़ा कि वह उसे काम से नहीं निकालेगा.

ऐसा सुनते ही रानी ने रमेश का हाथ चूम लिया. 60 साल के बूढ़े रमेश के अंदर कमसिन रानी के चुंबन से एक सिहरन सी दौड़ गई.

रानी के जाने के बाद भी रमेश उसी के बारे में सोचता रहा. वह खुद को उस की तरफ खिंचता हुआ महसूस कर रहा था. 1-2 बार उस ने अपने इन विचारों को झटका भी कि वह यह क्या सोच रहा है. मगर रानी का गठीला बदन और उस का चुंबन रहरह कर उसे उस से मिलने को बेचैन कर रहे थे.

उस दिन के बाद से रमेश अकसर अपने पैट्रोल पंप पर जाने लगा. पहले वह वहां बैठता नहीं था. अब उस ने वहां बैठना भी शुरू कर दिया था.

रानी के दफ्तर आने वाली बात रमेश ने मुझे बताई थी और जब उस ने अपनी उस सोच के बारे में मुझे बताया, तभी मैं ने उसे समझाने की कोशिश की, ‘‘तुम रानी से दूर ही रहो. फिसलने की कोई उम्र नहीं होती. कीचड़ में कितना धंस जाओगे, खुद तुम्हें भी पता नहीं चलेगा.’’

मेरे समझाने के बाद से रमेश ने मुझ से रानी के बारे में बातें करना बंद कर दिया, मगर मैं बरसों पुराना दोस्त था उस का, उस की बदलती हरकतों को बखूबी देख पा रहा था.

अगले 3 महीने का समय भी इसी तरह निकल गया. अब रमेश ने रानी को बुला कर कहा, ‘‘देखो, अब मुझे तुम्हें यहां से हटाना होगा, नहीं तो बाकी की लड़कियां भी यही मांग करेंगी कि हमें भी काम से मत हटाओ.’’

‘‘मगर, मैं कहां जाऊंगी मालिक?’’

‘‘शहर से बाहर निकल कर हमारा एक फार्म हाउस है, वहां उस घर की देखभाल के लिए किसी की जरूरत है. मैं तुम्हें वहां नौकरी दे सकता हूं. चौबीस घंटे वहीं रहना होगा. खानापीना सब हम देंगे और तनख्वाह अलग.’’

रानी ने खुशीखुशी हां भर दी.

अब रानी फार्म हाउस में काम करने लगी. कभीकभी रमेश अपने दोस्तों को वहां ले जाता, तो रानी खाना भी बना देती थी सब के लिए.

रानी हर काम में माहिर थी. फार्म हाउस पूरा चमका दिया था उस ने. रमेश को यह देख कर बहुत अच्छा लगा.

एक बार कहीं बाहर से आते हुए रमेश फार्म हाउस पर चला गया. वहां जा कर पता चला कि चौकीदार छुट्टी पर है. तब रानी ही गेट खोलने आई. चायपानी, नाश्ता सब दे दिया और जाने लगी, तो रमेश ने पूछा, ‘‘तुम्हें यहां कोई दिक्कत तो नहीं है?’’

‘‘जितना चाहा था, उस से भी ज्यादा मिल गया मालिक. आप की वजह से ही मैं आज इज्जत की जिंदगी जी रही हूं, नहीं तो मेरा बाप कब का मुझे बेच देता,’’ कहतेकहते वह रोने लगी.

रमेश ने उस के आंसू पोंछे, तो रानी ने रमेश का हाथ पकड़ लिया, ‘‘सर, आप बहुत ही अच्छे इनसान हैं. आजकल अपने कर्मचारियों के बारे में कौन सोचता है.’’ और फिर से उस का हाथ चूमने लगी और बोली, ‘‘आप तो मेरे लिए सबकुछ हैं.’’

उस चुंबन की सिहरन ने रमेश के हाथों वह काम करवा दिया, जो रानी उस से कराना चाहती थी. उस के बाद से तो रमेश का हर हफ्ते का यही काम हो गया. वह हर हफ्ते काम का बहाना बना कर फार्म हाउस आ जाता.

रानी ने उसे अपनी बातों में इस कदर उलझा लिया था कि अब रमेश को अपने घर और बीवीबच्चों की भी चिंता नहीं थी.

इस बीच रमेश ने मुझ से मिलनाजुलना बंद कर दिया था. फिर अचानक एक दिन भाभी (रमेश की पत्नी) का फोन आया कि रमेश ने दूसरी शादी कर ली है.

यह सुन कर मैं हक्काबक्का रह गया. मुझे यह तो अंदाजा था कि कुछ गलत हो रहा है, मगर इस हद तक होगा, यह नहीं सोचा था.

शादी की उम्र तो उस के बेटों की थी, ऐसे में जब उन्हें अपने बाप की करतूत का पता चला, तो उन्होंने उन्हें घर से निकाल दिया.

रमेश ने पार्क आना बंद कर दिया. आता भी किस मुंह से. इतने सालों से कमाई इज्जत पल में मिट्टी में मिल गई. सारा समाज रमेश पर थूथू कर रहा था.

शादी के 6 महीने बाद ही रानी ने एक बच्चे को जन्म दे दिया. रमेश रानी के साथ फार्म हाउस में ही रह रहा था. एक दिन अचानक रात में रमेश मुझ से मिलने आया. वह जानता था कि उस की हरकत से मैं भी बहुत नाराज हूं.

मेरे कुछ कहने से पहले ही वह बोला, ‘‘मुझे मालूम है कि तुम मेरी शक्ल भी नहीं देखना चाहते, पर एक बार मेरी बात सुन लो. मैं यही चाहता हूं और कुछ नहीं. तुम्हारी माफी भी नहीं.’’

फिर रमेश ने शुरू से आखिर तक सारी बातें मुझे बताईं. रमेश ने यह भी बताया कि यह बच्चा उस का है ही नहीं. मगर रमेश ने रानी के साथ संबंध बनाए थे, उस का वीडियो रानी के आशिक ने चुपके से बना लिया था. रमेश पर शादी करने का दबाव डाला गया.

‘‘शादी के बाद ही उसे सारी सचाई का पता चल गया था. रानी ने सिर्फ पैसों के लिए उसे फंसाया था. यह उस की और उस के आशिक की सोचीसमझी चाल थी,’’ यह सब कह कर रमेश फूटफूट कर रोने लगा और मेरे घर से चला गया.

मैं तो यह सुन कर सन्न सा बैठा रह गया. अपने दोस्त की जिंदगी अपनी आंखों के सामने बरबाद होते हुए देख रहा था. जिसे रमेश प्यार समझ रहा था, वह केवल एक भरमजाल था. उस ने अपनी इज्जत, परिवार, दोस्तों को तो खोया ही, साथ ही उस प्यार से भी इतना बड़ा धोखा खाया.

काश, वह पहले ही समझ जाता, तो इतने सालों से कमाई हुई उस की इज्जत पर इतना बड़ा कलंक तो नहीं लगता. वह इतना समझता कि 60 साल की उम्र प्यार करने के लिए नहीं, बल्कि अपने परिवार के लिए होती है.

रिश्तों की मर्यादा: अपनों ने तोड़े माला के सपने

ढोलक पर बन्नाबन्नी गाते सब के बीच बैठी माला कोने में 20 वर्षीय भांजी रुचि की फुसफुसाहट सुनते ही तिलमिला उठी. वह तुरंत उठी और दुकान से सटे कमरे में जा कर देखा तो उस की 8 वर्षीय बेटी परी जेठानी के पिता की गोदी में बैठी थी और जिस तरह से कहानी सुनाते उन के हाथ उस मासूम के कोमल अंगों को छू रहे थे, माला की आंखों में खून उतर आया. उस की पिता की उम्र के उस व्यक्ति की नापाक हरकत कतई माफी योग्य नहीं थी. उस का जी चाहा कि बेटी के साथ ऐसा घिनौना खिलवाड़ करने वाले का मुंह नोच ले, पर समझदार माला शादी जैसे मौके पर रंग में भंग नहीं डालना चाहती थी.

वैसे भी मिनी उस की प्रिय भतीजी थी और उसी की शादी अटेंड करने वह इंदौर से इटावा अपने पति और बेटी के साथ आई थी. इसलिए जैसेतैसे अपनेआप को नियंत्रित कर उस ने तेज आवाज में बेटी को आवाज दी, “चलो, परी खेल हो चुका. अब आओ, हाथमुंह धुला कर तुम्हें तैयार कर दूं.”

मां की आवाज सुनते ही परी भाग कर आई और उस के पैरों से लिपट गई. तभी जेठानी के पिता की आंखें माला से जा मिलीं. उस की आंखों में घृणा मिश्रित क्रोध देख वे थोड़ा सकपकाते हुए बोले, “बच्चों ने जिद की तो उन्हें कहानी सुना रहा था.”

‘छि: कैसा बेशर्म इनसान है. रंगेहाथों पकड़े जाने पर भी वह बातें बना रहा है,’ माला उस के दुस्साहस पर हैरान थी. इस तरह अपनों की भीड़ में कोई व्यक्ति वो भी पिता जैसे सम्मानित ओहदे वाला ऐसी नीच हरकत करेगा, उस ने सपने में भी नहीं सोचा था.

रिश्तों की मर्यादा भंग होती देख मन का आक्रोश आंखों के रास्ते उमड़तेघुमड़ते बहने लगा. उफ्फ क्या करूं, क्या कवीश को बताना ठीक रहेगा. लेकिन, अगर उन्हें गुस्सा आ गया तो माहौल बिगड़ते समय न लगेगा. ठीक है, देखती हूं अगर उन्होंने फिर ऐसी हरकत दोहराई तो उन की उम्र और ओहदे का खयाल न रखूंगी… सोचते हुए माला ने जैसे मन ही मन कुछ ठान लिया.

वाशरूम में उस ने परी के हाथमुंह धुलाते समय उसे नाना से दूर रहने को कहा.

“पर क्यों मम्मी, नाना तो हमें प्यार करते हैं, चौकलेट भी देते हैं.”

“पर, उन्हें आप को यहांवहां छूना नहीं चाहिए. ये गलत होता है,” कहते हुए माला ने उसे अच्छेबुरे टच के बारे में समझाया.

“हां मम्मी, उन का छूना तो मुझे भी अच्छा नहीं लग रहा था. मैं उन की गोद में बैठना भी नहीं चाहती थी, लेकिन उन्होंने कहा कि कहानी सुनने के लिए तो सब को बारीबारी से उन की गोद में बैठना होगा.

“पर, अब मैं नाना से चौकलेट भी नहीं लूंगी और कहानी भी नहीं सुनूंगी, फिर आप सुनाओगी न मुझे कोई अच्छी सी कहानी,” नन्ही परी मचल उठी.

“हां, मैं अपनी परी को एक सुंदर सी कहानी सुनाऊंगी, पर रात को सोते समय.

“लेकिन, अब हमेशा ध्यान रखना है कि आप को रुचि दीदी के साथ ही रहना है. ठीक है?”

“ओके…” अपनी छोटीछोटी बांहें उस के गले में डाल परी झूल गई.

12 साल पहले 5 भाईबहनों वाले उस हवेलीनुमा घर में माला सब से छोटी बहू बन कर आई थी. सासससुर थे नहीं, इसलिए अपने से काफी बड़े जेठजेठानी को ही वह सासससुर सा सम्मान देती थी. उस से बड़ी 3 ननदें भी उस पर बहुत स्नेह लुटाया करती थीं.

माला को याद आया, जब वह नीता दीदी के पिता से पहली बार मिलने पर उन के पैर छूने झुकी थी, तो उन्होंने ये कहते हुए उसे पैर नहीं छूने दिया था कि “कहीं बिटियन से पांव छुआए जात हैं. अरे बिटिया तो देवी का अवतार होती हैं. उन के तो पांव पूजे जात हैं…” और आज एक बिटिया के अंदर उन्हें देवी के बजाय उस की देह का दर्शन हो रहा है.
कैसी दोगुली मानसिकता, कैसा पाखंड… माला विचारों के भंवर में गोते लगा ही रही थी कि बाहर से आती भतीजे की आवाज ने उसे चौंका दिया, “चाची क्या कर रही हो, चाचा कब से आवाज दिए जा रहे हैं.”

“आईईई…” परी के कपड़े बदल चुकी माला ने जवाब दिया और परी को दुलारते हुए बाहर भेजा और खुद भी जल्दीजल्दी तैयार होने लगी.

आज लेडीज संगीत था, जिस में उस की और कवीश की भी परफोर्मेंस थी. प्योर जोर्जेट की रेड कलर की बौर्डर वाली साड़ी में माला बेहद खूबसूरत लग रही थी. शादी के लिए बुक किया गया गार्डन घर से 5 मिनट के फासले पर था. वहीं संगीत का प्रोग्राम होना था. काफी बड़े स्टेज की सजावट देखते ही बनती थी. पीच कलर का गाउन पहने मिनी भी बिलकुल गुड़िया सी लग रही थी.
सब से पहले दुलहन की सहेलियों का डांस हुआ, फिर मिनी ने भी उन को ज्वाइन कर लिया.

“मम्मा, मम्मा, मुझे भी डांस करना है.”

काफी देर से परी जिद कर रही थी. फिर तो वह भी कमर पर दोनों हाथ रखे ठुमकठुमक कर सब के बीच खूब नाची. फिर बारी आई माला और कवीश की. पुराने गीतों की पैरोडी पर उन दोनों ने इतना मस्ती भरा डांस किया कि सभी मंत्रमुग्ध हो उन्हें देखते रह गए. फिर तो क्या बच्चे क्या बड़े सभी एकएक कर डांस की मस्ती में डूबते चले गए.
माला भी प्रोग्राम ऐंजौय कर रही थी, पर उस की पैनी नजरें अपनी बच्ची की सुरक्षा के लिए पूरी तरह मुस्तैद थीं. उस की नजर बराबर दीदी के पिताजी पर थी. परी को खाना खिलाने के दौरान उस का ध्यान थोड़ा भटका तो वे गायब थे. “दीदी, क्या बात है, पिताजी नजर नहीं आ रहे?”

“अरे, उन से ज्यादा देर बैठा नहीं जाता. कहने लगे कि तुम बच्चों का प्रोग्राम है, तुम लोग मस्ती करो. मुझ से अब बैठा नहीं जाएगा. सो, खाना खा कर घर निकल गए.”

“दीदी, मेरी तबियत भी कुछ ढीली लग रही है, शायद थकान का असर है. घर जा कर आराम करती हूं. परी को ले जा रही हूं. कवीश पूछे तो बता देना.”

“अरे, पर तू ने तो अभी कुछ खाया भी नहीं है.”

“अभी भूख नहीं है. अगर लगी तो किसी के हाथों घर पर ही मंगवा लूंगी. आप चिंता न करो,” कहते हुए माला ने परी का हाथ पकड़ा और लंबे डग भरती हुई घर की तरफ चल दी. वह बेहद परेशान थी, क्योंकि बात यहां सिर्फ उस की बच्ची के प्रति हुए अन्याय की नहीं थी, बल्कि ये एक अनाचार और व्यभिचार था, जिसे करने वाला बेहद करीबी रिश्ते में बंधा एक धूर्त व्यक्ति था. सभ्य समाज का दुश्मन ऐसा व्यक्ति कभी भी किसी भी निरीह को अपनी कुचेष्टाओं का शिकार बना सकता है. तो क्या मासूमों के दोषी को यों ही छोड़ देना सही है, क्या रिश्ते की आड़ में उस की धृष्टता क्षमा करने योग्य है? ऐसे अनेक प्रश्न उस के मन को मथ रहे थे.
उस की आंखों के आगे जेठानी नीता की तसवीर तैर गई. कितनी अच्छी हैं दीदी, अपने पिता की सचाई जान कर उन्हें कितनी तकलीफ होगी? फिलहाल वह समझ नहीं पा रही थी कि उसे क्या करना चाहिए. जानबूझ कर माला घर के सामने वाले गेट से न जा कर आंगन में बने पीछे वाले दरवाजे से अंदर घुसी. वहां नाइन और कामवाली अगले दिन की पूजा के लिए मंडप के नीचे कुछ तैयारी कर रही थीं. परी को उस ने हाल में ले जा कर चुपचाप बैठने को कहा.

आंगन से लगे लंबे गलियारे को पार करती हुई वह दुकान के पास वाले कमरे तक जा पहुंची, तभी उस के कानों में बच्चों के खिलखिलाने की आवाज पड़ी, “नानाजी, अब हमारी बारी है.”

“सब की बारी आएगी, तनिक धीरज रखो… नाना के हाथों की जादू वाली मालिश,” खरखराती आवाज में भद्दी सी हंसी सुन वह खड़ी न रह सकी. उटका हुआ दरवाजा हाथ से ठेलते ही खुल गया.
अंदर का नजारा देख उसे एक बार फिर अपनी आंखों पर विश्वास न हुआ. आसपड़ोस के बच्चे नाना कहे जाने वाले शख्स को घेरे बैठे थे और अपनी गोदी में 5-6 साल की बच्ची को उलटा लिटाए वो उस की मालिश करने की भावभंगिमा कर रहा था. लपक कर माला ने बच्ची को उस की गोद से लगभग छीना और सभी को प्यार से अपनेअपने घर जाने को कहा.

“तुम बहुत जल्दी आ गई बिटिया,” उस के चेहरे पर अभी भी कुटिल मुसकान तैर रही थी.

“आप को शर्म नहीं आती ये नीच हरकत करते हुए. कहने को आप पितातुल्य हैं, पर आप को पिता कहना उस पवित्र शब्द का अपमान होगा. उम्र में आप की पोतियों से भी छोटी हैं ये बच्चियां. सच बताएं, आप का विवेक मर चुका है क्या, जो इन के साथ इतनी घिनौनी हरकत करते वक्त आप के हाथ नही कांपे,” अत्यंत क्षोभ व गुस्से से वह फट पड़ी.

“तुम क्या कह रही हो, मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा. मुझ पर झूठा इलजाम लगाते तुम्हें शर्म आनी चाहिए.”

अचानक ही उस की बोली और सुर बदल चुका था. बेशर्मी की ये पराकाष्ठा देख माला दंग थी.

“सच में आप जैसे इनसान को चुल्लूभर पानी में डूब मरना चाहिए. जिस तरह की जलील हरकत आप ने की है, कायदे से आप को पुलिस में दे देना चाहिए, परंतु मैं सिर्फ समझाइश दे कर छोड़ रही हूं. वक्त रहते सुधर जाइए, नहीं तो दीदी और दूसरे लोगों को पता चला तो आप कहीं के नहीं रहेंगे,” आवेश में ऊंची होती उस की आवाज आंगन में काम कर रहे लोगों तक जा पहुंची.

“पागल हो क्या, बित्तेभर की छोकरी मुझे सबक सिखाने चली है, जानती नहीं कि कौन हूं मैं? तुझे तो…” तैश में उस ने माला पर अपना हाथ छोड़ दिया. पर उस उठे हाथ को किसी ने हवा में ही रोक लिया.

“खबरदार, जो माला पर हाथ उठाया. और सही कहा आप ने, वो मासूम आप को जानेगी भी कैसे? पर, मैं आप की भलेमानस वाली छवि के पीछे की घिनौनी हकीकत से भलीभांति वाकिफ हूं. आप इस संसार के सब से निकृष्ट व्यक्ति हैं, जिन्होंने अपनी घृणित वासना की पूर्ति के लिए अपनी बच्ची तक को न छोड़ा. सच में आप को पिता कहते मुझे लज्जा आती है,” गुस्से में नीता का चेहरा तमतमा रहा था.

“ये क्या कह रही हो दीदी, एक बाप अपनी बेटी के साथ ऐसा कैसे…”

“बाप… इस की दरिंदगी देख प्रकृति ने इसे बाप बनने का अवसर ही कहां दिया?

“एक अदद बच्चे की आस में इस की सहृदय पत्नी तमाम कोशिशें कर के हार गई. सब तरफ से निराश हो कर उस की जिद पर मुझे एक अनाथालय से गोद लिया गया था. लेकिन बेटी हो कर भी मैं इस की बेटी कभी न बन सकी.

“एक दिन इसे मेरे साथ गलत हरकत करते देख मां का दिल भारी पीड़ा से भर उठा. उस दिन मुझे अपने सीने से चिपटाए वे देर तक रोती रहीं. 2 दिन बाद ही उन्होंने अपने भाई को बुला कर मुझे उन के हाथों सौंप दिया. उन 2 दिनों में वे साए की तरह मेरे साथ रहीं. और मेरे जाने के महीनेभर बाद ही ये खबर आ गई कि घर के अहाते में बने कुएं में कूद कर उन्होंने आत्महत्या कर ली. शायद इन का ये भयावह रूप उन की बरदाश्त से बाहर हो चुका था…” कहते हुए नीता फफक पड़ी.

“काश, उस वक्त मैं अपनी मां के साथ मजबूती से खड़ी हो पाती और इसे इस के किए का दंड दिला पाती, तो आज मेरी मां जिंदा होती. मैं ने तो सदा ही इस से एक निश्चित दूरी बना रखी थी.

“मिनी की शादी में भी न बुलाती, पर तुम्हारे भैया ने कहा तो उन्हें कैसे मना करती. अपना हर जख्म उन से साझा करना पड़ता. फिर मुझे भी लगा कि उम्र के इस पड़ाव पर जीवन की काफी ठोकरें खाने के बाद शायद इन्हें कुछ समझ आ गई हो, पर नहीं, कुछ लोगों की फितरत कभी नहीं बदलती. सोचती हूं कि इन्हें न बुलाना ही सही होता. वो तो अच्छा हुआ, तुम्हारी बातों से मुझे कुछ संदेह हुआ और मैं तुम्हारे पीछे चल पड़ी. पर अब क्या करूं? इन की हैवानियत ने मुझे कहीं का नहीं छोड़ा, क्या बताऊंगी तुम्हारे भैया को. जी तो कर रहा है कि अपनेआप को ही खत्म कर लूं. मैं नहीं रहूंगी, तो इस घर से इन का रिश्ता भी हमेशा के लिए खत्म हो जाएगा.”

“गलती से भी ऐसा कभी मत सोचना. भुगतना तो उसे पड़ेगा, जिस ने ये जलील काम किया है. इन्हें इन के गुनाहों की सजा मिल कर रहेगी, ताकि ऐसी घिनौनी हरकत करने से पहले कोई सौ बार सोचे.”

दरवाजे पर नीता के पति खड़े थे.

“तुम यहां…?”

“हां, रुचि ने तुम दोनों को एक के बाद एक जाते देखा तो उस ने आज सुबह की घटना मुझे कह सुनाई और मैं सीधा यहां चला आया. तुम्हारी पूरी बात सुनते ही मैं ने कवीश को पुलिस को फोन करने को कहा है, पुलिस आती ही होगी,” कहते हुए नीता के कंधे को उन्होंने हौले से थपथपाया मानो उस के साथ खड़े रहने का भरोसा दे रहे हों.

“तुम अपने बाप को जेल भिजवाओगी?” इनसानी चोले के पीछे छिपे हैवान की आंखों में गहरा अविश्वास था.

“नहीं, मैं उस अनाचारी को जेल भेजूंगी, जिस ने रिश्तों की सभी मर्यादाओं को लांघ जाने का दुस्साहस किया है,” तल्ख स्वर में जवाब दे कर नीता ने घृणा से मुंह फेर लिया और भारी कदमों से अपने कमरे की ओर चल दी.

“मुझे माफ कर दो दीदी, तुम्हारे आंसुओं की जिम्मेदार हूं मैं. ऐसे मौके पर ये सब नहीं चाहती थी, पर…”

“कैसी बातें करती हो माला, तुम्हारी वजह से आज एक अपराधी अपनी सही जगह पहुंच जाएगा. शुक्रगुजार हूं तुम्हारी, आज तुम्हारे कारण ही मैं इतनी हिम्मत जुटा पाई और एक सही फैसला लिया है,” नीता उस की बात को काटते हुए बोली.

“सच में दीदी, गर्व है मुझे आप पर,” कहते हुए माला नीता के गले लग गई.

पुलिस की गाड़ी का सायरन धीरेधीरे पास हो कर तेज ध्वनि में तबदील हो रहा था.

आज के भूत : नीलम के जीवन में लगा था कैसा दाग

नीलम सुबहसवेरे ससुराल छोड़ कर मायके में आ गई थी. उसे अचानक घर में आते देख कर उस के मातापिता परेशान हो उठे.

उन्होंने उस से घर आने की वजह पूछी, तो उस ने जलती आंखों से देख कर कहा, ‘‘आप लोग किसी अच्छे डाक्टर से मेरा इलाज कराएं, तो बेहतर होगा.’’

वे दोनों बौखला कर उस का मुंह देखते रहे.

नीलम बेहद खूबसूरत थी. वह 12वीं जमात की छात्रा थी. डेढ़ महीने के बाद उस ने महसूस किया कि उस के पैर भारी हो गए हैं. फिर 3 महीने के बाद वह अपना पेट छिपाने लगी थी.

एक दिन जब रात में उसे नींद नहीं आ रही थी, तब उस का गुजरा वक्त उस की आंखों के सामने तैरने लगा.

नीलम की शादी हो गई थी. तब उसे एक बीमारी ने दबोच लिया था. उस का इलाज शहर के बड़े डाक्टर से हो रहा था. कई महीने तक उस का इलाज चलता रहा, मगर उसे कोई आराम नहीं मिला था.

एक दिन नीलम के पिता ने उस डाक्टर से नीलम के हालचाल के बारे में पूछा, तो उन्होंने सम?ाया कि नीलम को हिस्टीरिया नाम की बीमारी है. अभी उस का इलाज चलता ही रहेगा. हां, अगर वह अपने पति के साथ रहेगी, तो उस की यह बीमारी अपनेआप ठीक हो जाएगी.

पर उस डाक्टर की बात पिता की समझ में नहीं आई, क्योंकि वह पाखंडों का गुलाम था. उस के सिर पर यह भूत सवार हो गया कि नीलम पर किसी प्रेत का साया है, क्योंकि दौरे के दौरान वह देर तक आंखें फाड़ कर देखती थी.

नीलम अजीबोगरीब हावभाव से अपने हाथपैरों को ऐंठती?ाटकती और दांतों को किटकिटा कर चबाती थी. फिर डाक्टर से उस का इलाज बंद हो गया था.

उस के घर में एक से बढ़ कर एक ओ?ागुनी आए, मगर उसे जरा भी फायदा नहीं हुआ था. उस के पिता ने ओझाई पर पानी की तरह पैसा खर्च किया था.

एक दिन पिता को खबर मिली कि ताड़डीह में एक काफी मशहूर ओझा है. वह नीलम के साथ फौरन वहां जा पहुंचा.

मंदिर में भीड़ लगी थी. वहां पर तथाकथित भूतप्रेत से हैरानपरेशान कुछ औरतें और कुछ जवान लड़कियां थीं.

जब नीलम का नंबर आया, तब तक रात हो गई थी. वहां पर बल्ब की रोशनी थी. बाकी सभी लोग जा चुके थे.

रंगीन फूलों वाली रेशमी साड़ी में नीलम की जवानी साफ झलक रही थी. ओझा उस की रसभरी आंखों में देखता रहा. उस की शरारत पर नीलम ने शरमा कर अपनी नजरें झाका लीं.

वह ओझ मन ही मन मंत्र बुदबुदाने लगा. उस ने कुछ कौडि़यां हवा में उछालीं, चावल चारों दिशाओं में

फेंके और हवा में अपना त्रिशूल लहरा कर गरजा, ‘ऐ दुष्ट प्रेतो, तुम अपने निवास से चलो और इस पर सवार हो जाओ.’

काफी देर तक विचित्र हावभाव से वह ओझ ऊपर की तरफ मुंह कर के इशारेबाजी करता रहा, फिर नीलम ने उस के अनपढ़ पिता को समझाया,

‘3 दिशाओं की 3 खतरनाक प्रेतात्माएं इसे सता रही हैं. मेरी महिमा के डर से वे इस पर प्रकट नहीं हुई हैं.

‘खैर, मैं उन्हें हवन कुंड में जला कर भस्म कर दूंगा,’ कह कर उस ओझा ने हवा में अपना त्रिशूल लहराया और एक बड़ा सा जंतर नीलम के गले में डाल दिया.

इस के बाद उस ने नीलम के अंधविश्वासी पिता से कहा, ‘हवनजाप यहीं पर होगा. क्या तुम्हारे पास 15-20 हजार रुपए हैं?’

पिता ने कहा, ‘जी महाराज.’

उस ओझा ने उसे चेतावनी दी, ‘यह लड़की देवी मां की शरण में रहेगी, तो वे प्रेतात्माएं इसे सता नहीं पाएंगी. तुम

10 दिन बाद यहां रुपए ले कर आओ.’

उस ओझा की बात नीलम के पिता को जंच गई.

अगली सुबह वह नीलम को देवी

मां की शरण में छोड़ कर अपने गांव चला गया.

गांव में ओझा का हराभरा परिवार था. नीलम की उस ओझा की बड़ी बेटी काजल से दोस्ती हो गई थी. उस की गोद में एक साल का एक लड़का भी था.

जब रात में नीलम सोने के लिए कमरे में गई, तब ओझा का एक चेला उसे एक गिलास दूध दे कर बोला,

‘यह मां का प्रसाद है. इसे खा कर ही सोना.’

नीलम ने देखा कि दूध मे मेवा भी डाला गया था. बिना कुछ सोचेसमझे ही वह चटखारे लेले कर देवी मां का प्रसाद खा गई. उसे फौरन नींद की झपकियां आने लगीं और वह पलंग पर जा कर गहरी नींद में सो गई थी. फिर रात में उस के साथ क्या हुआ, उसे कुछ भी मालूम नहीं हो पाया था.

सुबह नीलम देर से जागी, तो हैरानपरेशान हो गई कि उस के कपड़े जमीन पर पड़े थे. उस का दिमाग चकरा कर रह गया. उसे एहसास हुआ कि किसी ने उस की इज्जत लूट ली है.

नीलम ने रात की यह घटना काजल को बताई, तो उस का भी दिमाग चकरा कर रह गया.

नीलम बोली, ‘मेरी इज्जत लूटने वाला वह भेडि़या यहां पर आया कैसे?’

यह सुन कर काजल ने कहा, ‘तुम चुप रहोगी, तो मैं उस भेडि़ए को रंगे हाथ पकड़ सकती हूं.’

फिर रात में वही चेला नीलम को एक गिलास दूध दे कर चला गया,

तभी उस के पास काजल आ गई. उस ने वह दूध एक बिल्ली को पीने के लिए दिया, तो वह बिल्ली दूध पी कर फौरन सो गई.

काजल बोली, ‘नीलम, इस में कुछ मिलाया गया है.’

जब घर के सभी लोग सो गए, तब खिड़की के रास्ते से कोई नीलम के कमरे में कूदा.

वह शख्स नीलम के पलंग की ओर बढ़ने लगा कि तभी एक कोने से उस पर टौर्च की तेज रोशनी पड़ी, तो वह बुरी तरह से बौखला उठा.

उस ने देखा कि पलंग पर काजल लेटी हुई थी. वह शख्स खिड़की के रास्ते से वापस भागा.

टौर्च की रोशनी में नीलम और काजल ने देखा कि वहां से भागने वाला ओ?ा था. दोनों की नजरों में उस ओ?ा की पोल खुल गई थी. नीलम अपनी यादों से बाहर निकल आई.

अगले दिन मां चुपके से नीलम को शहर के नर्सिंगहोम में ले गई, जहां एक लेडी डाक्टर ने हमेशा के लिए उसे इस पाप से छुटकारा दिला दिया.

लेकिन आज के उस भूत ने नीलम को जो दाग लगाया था, उसे कौन धो सकता है?

पाखंड का अंत : बिंदु का गौना

बिंदु के मातापिता बचपन में ही गुजर गए थे, पर मरने से पहले वे बिंदु का रिश्ता भमुआपुर के चौधरी हरिहर के बेटे बिरजू से कर गए थे.

उस समय बिंदु 2 साल की थी और बिरजू 5 साल का. बिंदु के मातापिता के मरने के बाद उसे उस के चाचा ने पालापोसा था.

बिंदु के चाचा बहुत ही नेकदिल इनसान थे. उन्होंने बिंदु को शहर में रख कर पढ़ायालिखाया था. यही वजह थी कि 17वें साल में कदम रख चुकी बिंदु 12वीं पास कर चुकी थी.

बिरजू के घर से गौने के लिए कई प्रस्ताव आए, लेकिन बिंदु के चाचा ने उन्हें साफ मना कर दिया था कि वे गौना उस के बालिग होने के बाद ही करेंगे.

उधर बिरजू भी जवान हो गया था. उस का गठीला बदन देख कर गांव की कई लड़कियां ठंडी आहें भरती थीं. पर  बिरजू उन्हें घास तक नहीं डालता था.

‘‘अरे, हम पर भले ही नजर न डाल, पर शहर जा कर अपनी जोरू को तो ले आ,’’ एक दिन चमेली ने बिरजू का रास्ता रोकते हुए कहा.

‘‘ले आऊंगा. तु झे क्या? चल, हट मेरे रास्ते से.’’

‘‘क्या तेरी औरत के संग रहने की इच्छा नहीं होती? कहीं वो तो नहीं है तू…?’’ चमेली ने एक आंख दबा

कर कहा, तो उस की हमउम्र सहेलियां खिलखिला कर हंस पड़ीं.

‘‘चमेली, ज्यादा मत बन. मैं ने कह तो दिया, मु झे इस तरह की बातें पसंद नहीं हैं,’’ कहते हुए बिरजू ने आंखें तरेरीं, तो वे सब भाग गईं.

उधर बिंदु की गदराई जवानी व अदाएं देख कर स्कूल के लड़के उस के आसपास मंडराते रहते थे.

गोरा बदन, आंखें बड़ीबड़ी, उभरी हुई छाती… जब बिंदु अपने बालों को  झटकती, तो कई मजनू आहें भरने लगते.

बिंदु को भी सजनासंवरना भाने लगा था. जब कोई लड़का उसे प्यासी नजरों से देखता, तो वह भी तिरछी नजरों से उसे निहार लेती.

बिंदु के रंगढंग और बिरजू के घर वालों के बढ़ते दबाव के चलते उस के चाचा ने गौने की तारीख तय कर दी और उसी दिन बिरजू आ कर अपनी दुलहन को ले गया.

शहर में पलबढ़ी बिंदु को गांव में आ कर थोड़ा अजीब तो लगा, पर बिरजू को पा कर वह सबकुछ भूल गई.

बिंदु को बहुत चाहने वाला पति मिला था. दिनभर खेत में जीतोड़ मेहनत कर के जब शाम को बिरजू घर आता, तो बिंदु उस का इंतजार करती मिलती.

रात होते ही मौका पा कर बिरजू बिंदु को अपनी मजबूत बांहों में कस कर पने तपते होंठ उस के नरम गुलाबी होंठों पर रख देता था.

कब 2 साल बीत गए, पता ही नहीं चला. बिंदु और बिरजू अपनी हसीन दुनिया में खोए हुए थे कि एक दिन बिंदु की सास अपने पति से पोते की चाहत जताते हुए बोलीं, ‘‘बहू के पैर अभी तक भारी क्यों नहीं हुए?’’

सचाई तो यह थी कि यह बात घर में सभी को चुभ रही थी.

‘‘सुनो,’’ एक दिन बिरजू ने बिंदु

के लंबे बालों को सहलाते हुए पूछा, ‘‘हमारा बच्चा कब आएगा?’’

‘‘मु झे क्या मालूम… यह तो तुम जानो,’’ कहते हुए बिंदु शरमा गई.

‘‘मां को पोते का मुंह देखने की बड़ी तमन्ना है.’’

‘‘और तुम्हारी?’’

‘‘वह तो है ही, मेरी जान,’’ बिरजू ने बिंदु को खुद से सटाते हुए कहा और बत्ती बु झा दी.

‘‘मु झे लगता है, बहू में कोई कमी है. 3 साल हो गए ब्याह हुए और अभी तक गोद सूनी है. जबकि अपने बिरजू के साथ ही गोपाल का गौना हुआ था, वह तो 2 बच्चों का बाप भी बन गया है,’’ एक दिन पड़ोस की काकी घर आईं और बोलीं.

बिंदु के कानों तक जब ऐसी बातें पहुंचतीं, तो वह दुखी हो जाती. वह भी यह सोचने पर मजबूर हो जाती कि आखिर हम पतिपत्नी तो कोई ‘बचाव’ भी नहीं करते, फिर क्या वजह है कि 3 साल होने पर भी मैं मां नहीं बन पाई?

इस बार जब वह अपने मायके गई, तो उस ने लेडी डाक्टर से अपनी जांच कराई. पता चला कि उस की बच्चेदानी की दोनों नलियां बंद हैं. इस वजह से बच्चा ठहर नहीं रहा है. यह जान कर बिंदु घबरा गई.

‘‘क्या अब मैं कभी मां नहीं बन पाऊंगी?’’ डाक्टर से पूछने पर बिंदु का गुलाबी चेहरा पीला पड़ गया.

‘‘ऐसी बात नहीं है. आजकल विज्ञान ने बहुत तरक्की कर ली है. तुम जैसी औरतें भी मां बन सकती हैं,’’ डाक्टर ने कहा, तो बिंदु को चेहरा खिल उठा.

गांव आ कर उस ने बिरजू को सारी बात बताई और कहा, ‘‘तुम्हें मेरे साथ कुछ दिनों के लिए शहर चलना होगा.’’

‘‘शहर तो हम लोग बाद में जाएंगे, पहले तुम आज शाम को बंगाली बाबा के आश्रम में जा कर चमत्कारी भभूत का प्रसाद ले आना. सुना है कि उस के प्रसाद से कई बां झ औरतों के बच्चे हो गए हैं,’’ बिरजू बोला.

‘‘यह तुम कैसी अनपढ़ों वाली बातें कर रहे हो? तुम्हें ऐसा करने को किस

ने कहा?’’

‘‘मां ने.’’

बिंदु ने कहा, ‘‘देखिए, मांजी तो पुराने जमाने की हैं, इसलिए वे इन बातों पर भरोसा कर सकती हैं, पर हम तो जानते हैं कि ये बाबा वगैरह एक नंबर के बदमाश होते हैं. भोलीभाली औरतों को चमत्कार के जाल में फंसा कर…

‘‘नहीं, मैं तो नहीं जाऊंगी किसी के पास,’’ बिंदु ने बहुत आनाकानी की, पर उस की एक न सुनी गई.

बिंदु सम झ गई कि अगर उस ने सू झबू झ से काम नहीं लिया, तो उस का घरसंसार उजड़ जाएगा. उस ने मजबूती से हालात का सामना करने की ठान ली.

बाबा के आश्रम में पहुंच कर बिंदु ने 2-3 औरतों से बात की, तो उस का शक सचाई में बदल गया.

उन औरतों में से एक ने उसे बताया, ‘‘बाबा मु झे अपने आश्रम के अंदरूनी हिस्से में ले गया, जहां घना अंधेरा था.’’

‘‘फिर क्या हुआ तुम्हारे साथ?’’

‘‘पहले तो बाबा ने मु झे शरबत जैसा कुछ पीने को दिया. शरबत पी कर मैं बेहोश हो गई और जब मैं होश में आई, तो ऐसा लगा जैसे मैं ने बहुत मेहनत का काम किया हो.’’

‘‘और भभूत?’’

‘‘वह पुडि़या यह रही,’’ कहते हुए महिला ने हाथ आगे बढ़ा कर भभूत की पुडि़या दिखाई, तो बिंदु पहचान गई कि वह केवल राख ही है.

अगले दिन बिंदु फिर आश्रम में गई, तभी एक सास अपनी जवान बहू को ले कर वहां आई. उसे भी बच्चा नहीं ठहर रहा था.

बाबा ने उसे अंदर आने को कहा. उस के बाद बिंदु की बारी थी, पर जैसे ही वह औरत बाबा के साथ अंदर गई, बिंदु भी नजर बचा कर अंदर घुस गई.

बाबा ने उस औरत को कुछ पीने को दिया. जब वह बेहोश हो गई, तो बाबा ने उस के कपड़े हटा कर…

बिंदु यह सब देख कर हैरान रह गई. उस ने इरादे के मुताबिक अपने कपड़ों में छिपाया हुआ कैमरा निकाला और कई फोटो खींच लिए.

वह औरत तो बेहोश थी और बाबा वासना के खेल में मदहोश था. भला कैमरे की फ्लैश पर किस का ध्यान जाता.

कुछ दिनों बाद बिंदु ने भरी पंचायत में थानेदार के सामने वे फोटो दिखाए. इस से पंचायत में खलबली मच गई.

बाबा को उस के चेलों समेत हवालात में बंद कर दिया गया, पर तब तक अपने  झूठे चमत्कार के बहाने वह न जाने कितनी ही औरतों की इज्जत लूट चुका था. खुद संरपच की बेटी विमला भी

उस पाखंडी के हाथों अपनी इज्जत लुटा चुकी थी.

पूरे गांव में बिंदु के हौसले और उस की सू झबू झ की चर्चा हो रही थी. जिस ने न केवल अपनी इज्जत बचा ली थी, बल्कि गांव की बाकी मासूम युवतियों की जिंदगी बरबाद होने से बचा ली थी.

शहर जा कर बिंदु ने डाक्टर से अपना इलाज कराया और महीनेभर बाद गांव लौटी.

तीसरे महीने जब वह उलटी करने के लिए गुसलखाने की तरफ दौड़ी, तो बिरजू की मां व पूरे घर वालों का चेहरा खुशी से खिल उठा.

 

 

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