‘‘क्या करूं, वह मेरी बचपन की सहेली है,’’ अनसुना करते हुए दुर्गा बोली.
‘‘देख दुर्गा, आखिरी बार कह रहा हूं कि अब तू मानमल की लुगाई से कभी नहीं मिलेगी…’’ एक बार फिर समझाते हुए रामेश्वर बोला, ‘‘बोलती है और कभीकभार हलवापूरी भी भिजवा देती है. बड़ा प्रेम दिखाने लगी है आजकल उस से.’’
‘‘अरे, मनुष्य योनि में जन्म लिया है तो प्रेम से रहना चाहिए,’’ दुर्गा एक बार फिर समझाते हुए बोली.
‘‘बड़ी आई प्रेम दिखाने वाली…’’ गुस्से से रामेश्वर बोला, ‘‘वहां उस का प्रेम कहां गया था, जब मानमल ने अपना रास्ता बंद किया? हम ने थाने में रपट लिखवा दी. अदालत में पेशी चल रही है. वह हमारा दुश्मन है, फिर भी उन से प्रेम जताती है.’’
‘‘देखो, वह अदालती दुश्मनी है…’’ समझाते हुए दुर्गा बोली, ‘‘यह क्यों नहीं समझते कि वह पैसे वाला है. हम से ऊंची जात का भी है.’’
‘‘हम से ऊंची जात का हुआ तो क्या हुआ. क्या हम ढोर हैं. देख दुर्गा, कान खोल कर अच्छी तरह सुन ले. अब तू उस दुश्मन की औरत से नहीं बोलेगी और न ही मिलेगी.’’
‘‘झगड़ा तुम्हारा मानमल से है, उस की औरत से तो नहीं है,’’ दुर्गा बोली.
‘‘मानमल और उस की लुगाई क्या अलगअलग हैं?’’ गुस्से से रामेश्वर बोला, ‘‘है तो उस की लुगाई.’’
‘‘झगड़ा झगड़े की जगह होता है. तुम मत बोलो, मैं तो बोलूंगी.’’
‘‘रस्सी जल गई, मगर ऐंठन नहीं गई,’’ रामेश्वर गुस्से से बोला.
‘‘तुम एक बात कान खोल कर सुन लो. तुम्हारा लाड़ला मांगीलाल, जो 12वीं में पढ़ रहा है और मानमल का लड़का भी 12वीं जमात में मांगीलाल के साथ पढ़ रहा है. दोनों में गहरी दोस्ती है. वे साथसाथ स्कूल जाते हैं और आते भी हैं. मुझे तो रोक लोगे, उसे कैसे रोकोगे?’’
‘‘अरे, तुम मांबेटे दोनों मिल कर दुश्मन से कहीं मुकदमे को हरवा न दो,’’ शक जाहिर करते हुए रामेश्वर बोला.
‘‘जैसा तुम सोच रहे हो मांगीलाल के बापू, वैसा नहीं है. हम में मुकदमे संबंधी कोई बात नहीं होती…’’ एक बार फिर दुर्गा बोली, ‘‘हमारे बीच घरेलू बातें
ही होती हैं.’’
‘‘मतलब, तुम उस से मिलनाजुलना बंद नहीं करोगी?’’ रामेश्वर ने पूछा और कहा, ‘‘जैसी तेरी मरजी. अब मैं कुछ भी नहीं कहूंगा.’’
इस के बाद रामेश्वर झल्लाते हुए घर से बाहर निकल गया.
यह कहानी जिस गांव की है उस गांव का नाम है रिंगनोद जो पिंगला नदी के किनारे बसा हुआ है. एक जमाना था जब यह नदी 12 महीने बहती रहती थी. उस जमाने में इस नदी में पुल नहीं बना हुआ था, इसलिए शहर जाने के लिए नदी में से हो कर जाना पड़ता था. मगर आज तो यह नदी गरमी आतेआते सूख जाती है. अब तो इस के ऊपर बड़ा पुल बन गया है, तो गांव शहर से पूरी तरह जुड़ गया है.
इसी गांव के रहने वाला रामेश्वर जाति से अनुसूचित है और मानमल बनिया है. उस की गांव में किराने की दुकान के साथ खेती भी है. वह ज्यादा पैसे वाला है, इसलिए अच्छा दबदबा है. रामेश्वर के पास केवल खेती है.
वह इसी पर ही निर्भर है. बापदादा के जमाने से दोनों के खेत असावती रोड पर पासपास हैं. जावरा से सीतामऊ तक कंक्रीट की रोड बन गई है, जो उन के खेत के पास से ही निकली है. इसी सड़क से लगा हुआ एक रास्ता है, जो दोनों की सुविधा के लिए था. दोनों का अपने खेत पर जाने के लिए यही एक रास्ता था.
रामेश्वर के खेत थोड़े से अंदर थे और मानमल के खेत सड़क से लगे हुए थे. उस रास्ते को ले कर अभी तक दोनों में कभी कोई झगड़ा नहीं हुआ, मगर जब से पक्का रोड बना है, तब से मानमल के भीतर खोट आ गया. वह अपनी जमीन पर होटल खोलना चाहता था. अगर वह दीवार बना कर निकलने का गलियारा देता, जो होटल के लिए कम जमीन पड़ती इसलिए उस ने अपनी दबंगता के बल पर जहां से रामेश्वर के खेत शुरू होते हैं, वहां रातोंरात दीवार खिंचवा दी.
रामेश्वर ने एतराज किया कि इस जमीन पर उस का भी हक है. बापदादा के जमाने से यह रास्ता बना हुआ है. मगर मानमल बोला था, ‘‘देख रामेश्वर, यह सारी जमीन मेरी है.’’
‘‘तेरी कैसे हो गई भई?’’ रामेश्वर ने पूछा.
‘‘मेरी जमीन सड़क से शुरू होती है और जो सड़क से शुरू हुई वह मेरी हुई न,’’ मानमल ने कहा.
‘‘मगर, मैं अब कहां से निकलूंगा?’’
‘‘यह तुझे सोचना है. अरे, बापदादा ने गलती की तो इस की सजा क्या मैं भुगतूंगा?’’
‘‘देखो मानमलजी, आप बड़े लोग हो. मैं आप से जरा नीचा हूं. इस का यह मतलब नहीं है कि नाजायज कब्जा कर लें.’’
‘‘अरे, आप की जमीन है तो
कागज दिखाओ? मेरी तो यहां दीवार बनेगी.’’
‘‘मैं दीवार नहीं बनने दूंगा,’’ विरोध जताते हुए रामेश्वर बोला.
‘‘कैसे नहीं बनने देगा. जमीन मेरी है. इस पर चाहे मैं कुछ भी करूं, तुम कौन होते हो मुझे रोकने वाले?’’
‘‘मतलब, तुम दीवार बनाओगे और मेरा रास्ता रोकोगे?’’
‘‘पटवारी ने भी इस जमीन का मालिक मुझे बना रखा है.’’
‘‘देखो, मैं आखिरी बार कह रहा हूं, तुम यहां दीवार मत बनाओ.’’
‘‘मैं तो दीवार बनाऊंगा… तुझ से जो हो कर ले.’’
‘‘ठीक है, मैं तुझे कोर्ट तक खींच कर ले जाऊंगा.’’
‘‘ठीक है, ले जा.’’
फिर मानमल के खिलाफ रामेश्वर ने थाने में शिकायत दर्ज कर दी. पुलिस ने चालान बना कर कोर्ट में पेश कर दिया. कोर्ट ने फैसला आने तक जैसे हालात थे, वैसे रहने का आदेश दिया.
पुलिस ने मुकदमा कायम कर दिया. पूरे 5 साल हो गए, पर कोई फैसला न हो पाया. तारीख पर तारीख बढ़ती गई. दोनों परिवारों में पैसा खर्च होता रहा.
रामेश्वर इस मुकदमे से टूट गया. पैसा अलग खर्च हो रहा था और मानमल फैसला जल्दी न मिले, इसलिए पैसे दे कर तारीखें आगे बढ़वाता रहा ताकि रामेश्वर टूट जाए और मुकदमा हार जाए.
मगर रामेश्वर की जोरू दुर्गा मानमल की लुगाई से संबंध बढ़ा रही है. उस के घर भी काफी आनाजाना करती है. कभीकभार मिठाइयां भी खिला रही है, जबकि रामेश्वर और मानमल एकदूसरे को देखना भी पसंद नहीं करते थे, बल्कि कोर्ट में जब भी तारीख लगती थी और मानमल से उस का सामना होता था, तब मानमल उसे देख कर हंसता था. यह जताने की कोशिश करता था कि मुकदमा लड़ने की हैसियत नहीं है, फिर भी लड़ रहा है.
मुकदमा तो वे ही लड़ सकते हैं, जिन के पास पैसों की ताकत है.10 साल तक अगर और मुकदमा चलेगा तो जमीन बिक जाएगी. मुकदमा लड़ना हंसीखेल नहीं है. मानमल तो चाहता है कि रामेश्वर बरबाद हो जाए.
5 साल के मुकदमे ने रामेश्वर की कमर तोड़ दी. अब भी न जाने कितने साल तक चलेगा. वकील का घर भरना है. वह तो केवल खेती के ऊपर निर्भर है, जबकि मानमल के किराने की दुकान भी अच्छी चल रही है और भी न जाने क्याक्या धंधा कर रहा है. खेती भी उस से ज्यादा है, इसलिए मुकदमे के फैसले से वह निश्चिंत है.
मगर, रामेश्वर जब भी तारीख पर जाता है, तारीख आगे बढ़ जाती है और जब तारीख आगे बढ़ जाती है, तब मानमल मन ही मन हंसता है. उस की हंसी में बहुत ही गहरा तंज छिपा हुआ रहता है.
‘‘चाय पी लो,’’ दुर्गा चाय का कप लिए खड़ी थी. तब रामेश्वर अपनी सोच से बाहर निकला.
‘‘क्या सोच रहे थे?’’ दुर्गा ने पूछा.
‘‘इस मुकदमे के बारे में?’’ हारे हुए जुआरी की तरह रामेश्वर ने जवाब दिया.
‘‘बस सोचते रहना, पहले ही कोई समझौता कर लेते, तब ये दिन देखने को नहीं मिलते,’’ दुर्गा ने कहा.
रामेश्वर नाराज हो कर बोला, ‘‘तुम जले पर नमक छिड़क रही हो? एक तो मैं इस मुकदमे से टूट गया हूं, फिर न जाने कब फैसला होगा. मानमल पैसा दे कर तारीख पर तारीख बढ़ाता जा रहा है और तुझे मजाक सूझ रहा है.’’
‘‘मेरा यह मतलब नहीं था,’’ दुर्गा ने सफाई दी.
‘‘तब क्या मतलब था तेरा? एक तो दुश्मन की औरत से बोलती हो… कितनी बार कहा है कि तुम उस से संबंध
मत बनाओ, मगर मेरी एक भी नहीं सुनती हो.’’
‘‘देखोजी, उस से संबंध बनाने से मेरा भी लालच है.’’
‘‘क्या लालच है?’’
‘‘जैसे आप टूट रहे हो न, वैसे मानमल भी चाहता है कि कोई बीच का रास्ता निकल जाए.’’
‘‘तुझे कैसे मालूम?’’
‘‘मानमल की जोरू बताती रहती है,’’ दुर्गा बोली.
‘‘समझौता क्यों नहीं कर
लेता है? रास्ता क्यों बंद कर
रहा है?’’
‘‘वह रास्ता देने को
तैयार है.’’
‘‘जब वह देने को तैयार है, तब तारीखें क्यों बढ़वाता है? यह तो वही हुआ कि आप खावे काकड़ी और दूसरे को दे आकड़ी,’’ नाराजगी से रामेश्वर बोला.
‘‘आप कहें तो मैं उस की जोरू से बात कर के देखती हूं,’’ दुर्गा ने रामेश्वर को सलाह दी.
‘‘कोई जरूरत नहीं है उस से बात करने की. अब तो अदालत से ही फैसला होगा…’’ इनकार करते हुए रामेश्वर बोला, ‘‘तू औरत जात ठहरी. मानमल की चाल को तू क्या समझे.’’
‘‘ठीक है तो लड़ो मुकदमा और वकीलों का भरो पेट,’’ दुर्गा ने कहा, फिर उन के बीच सन्नाटा पसर गया.
रामेश्वर इसलिए नाराज है कि दुर्गा अपने दुश्मन की जोरू से पारिवारिक संबंध बनाए हुए है. दुर्गा इसलिए नाराज है कि हर झगड़ा अदालत से नहीं निबटा जा सकता है. थोड़ा तुम झुको, थोड़ा वह झुके. मगर मांगीलाल के पापा तो जरा भी झुकने को तैयार नहीं हैं.
मगर इसी बीच एक घटना घट गई.
मानमल और उस की पत्नी का अचानक उन के घर आना.
मानमल की जोरू बोली, ‘‘दुर्गा, हम इसलिए आए हैं कि हम दोनों जमीन
के जिस टुकड़े के लिए अदालत में
लड़ रहे हैं, उस का फैसला तो न जाने कब होगा.’’
‘‘हां बहन,’’ दुर्गा भी हां में हां मिलाते हुए बोली, ‘‘अदालत में सालों लग जाते हैं फैसला होने में.’’
‘‘भाई रामेश्वर, हम आपस में मिल कर ऐसा समझौता कर लें कि सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे,’’ मानमल समझाते हुए बोला.
‘‘कैसा समझौता? मैं समझा नहीं,’’ रामेश्वर नाराजगी से बोला.
‘‘तुम नाराज मत होना. मैं ने बहुत सोचसमझ कर यह फैसला लिया है कि तुम्हें 5 फुट जमीन का गलियारा देता हूं ताकि तुम्हें अपने खेत में आनेजाने के लिए कोई तकलीफ न पड़े…’’ समझाते हुए मानमल बोला, ‘‘मैं 5 फुट छोड़ कर दीवार बना लेता हूं.’’
‘‘वाह मानमलजी, वाह, खूब फैसला लिया. मुझे इतना बेवकूफ समझ लिया कि बाकी की 10 फुट जमीन खुद रख रहे हो. मुझे आधी जमीन चाहिए,’’ रामेश्वर भी गुस्से से अड़ गया.
‘‘देखो नाराज मत होना. जिस जमीन के लिए तुम अदालत में लड़ रहे हो. अदालत देर से सही मगर फैसला मेरे पक्ष में देगी. मैं ने सारे सुबूत लगा रखे हैं, जबकि मैं अपनी मरजी से तुम्हें गलियारा दे रहा हूं, इसलिए ले लो वरना बाद में पछताना न पड़े.’’
‘‘देखोजी, इतना भी मत सोचो, कोर्ट का फैसला तो न जाने कब आएगा. अगर हमारे खिलाफ आएगा, तब हमें 5 फुट जमीन से भी हाथ धोना पड़ेगा,’’
दुर्गा समझाते हुए बोली.
‘‘हां भाई साहब, मत सोचो, जो हम दे रहे हैं वह कबूल कर लो…’’ मानमल की पत्नी ने प्रस्ताव रखते हुए कहा, ‘‘हम तो आप की भलाई की बात कर रहे हैं ताकि हमारे बीच अदालत का फैसला खत्म हो जाए.’’
‘‘मैं फायदे का सौदा कर रहा हूं रामेश्वर,’’ एक बार फिर समझाते हुए मानमल बोला, ‘‘इस के बावजूद तुम्हें लगे कि कोर्ट के फैसले तक इंतजार करूं, तब भी मुझे कोई एतराज नहीं है,’’ कह कर मानमल ने गेंद रामेश्वर के पाले में फेंक दी.
रामेश्वर के लिए इधर खाई उधर कुआं थी. शायद मानमल को यह एहसास हो गया हो कि 15 फुट जमीन, जिस के लिए सारी लड़ाई है, वह खुद ही हार रहा हो, इसलिए फैसला आए उस के पहले ही यह समझौता कर रहा है. बड़ा चालाक है मानमल. यह इस तरह कभी हार मानने वाला नहीं है.
लगता है कि अपनी हार देख कर ही यह फैसला लिया हो. वह कचहरी के चक्कर काटतेकाटते हार गया है. इस ने अपनी जमीन पर होटल बना लिया है. जो चल भी रहा है. इस ने कहा भी है कि इस तरफ दीवार खींच कर पूरा इंतजाम करना चाहता है. तभी तो समझौता करने के लिए आगे आया है. इस में भी इस का लालच है.
उसे चुप देख कर मानमल एक बार फिर बोला, ‘‘अब क्या सोच रहे हो?’’
‘‘ठीक है, मुझे यह समझौता मंजूर है. यह घूंट भी पी लेता हूं,’’ कह कर रामेश्वर ने अपने हथियार डाल दिए.
यह सुन कर मानमल खुशी से खिल उठा. उस ने रामेश्वर को गले से लगा लिया. फिर उन दोनों ने यह भी फैसला लिया कि अगली तारीख पर कोर्ट से मुकदमा वापस ले लेंगे. कोर्ट से दोनों के समझौते के मुताबिक कागज ले लेंगे. इस के बाद वे दोनों चले गए.
चुप्पी तोड़ते हुई दुर्गा बोली, ‘‘अच्छा हुआ जो समझौता कर लिया?’’
‘‘मानमल की गरज थी तो उस ने समझौता किया है?’’ चिढ़ कर रामेश्वर बोला.
‘‘उस की तो पूरी की पूरी जमीन हड़पने की योजना थी. मगर, यह सब मैं ने मानमल की बीवी को समझाया था.
‘‘उस ने ही मानमल को मनाया था. इसी वजह से मैं ने संबंध बनाए थे, आप के लाख मना करने के बाद भी. 5 फुट का गलियारा देने के लिए मैं ने ही मानमल की बीवी के सामने प्रस्ताव रखा था,’’ कह कर दुर्गा ने अपनी बात पूरी कर दी. रामेश्वर कोई जवाब नहीं दे पाया. द्य