नरेंद्र मोदी का जादू

नरेंद्र मोदी का जादू जो सिर पर चढ़ कर इतने साल बोला अब लगता है कि धीमा पडऩे लगा है क्योंकि भारतीय जनता पार्टी खुद अपने से नाराज होकर गई पाॢटयों को दोबारा बुला रही है. 18 जुलाई को हुई एक मीङ्क्षटग में कई पुराने साथी आए जो पहले कतार में लगे थे पर बाद में उन्होंने भाजपा से नाता  तोड़ लिया.

भाजपा की धर्म फौज रातदिन नरेंद्र मोदी को देवताओं को अवतार बनाने में लगी रही है और अगर फ्रांस के म्यूजियम में खाना भी वह खा आएं तो सुॢखयां बनवाता है जबकि इस म्यूजियम को कोई भी खाना खिलाने के लिए किराए पर ले सकता है. भारतीय जनता पार्टी कोई कसर नहीं छोड़ रही साबित करने में कि नरेंद्र मोदी में देश को एक चमत्कारी नेता मिला है.

नरेंद्र मोदी चमत्कारी है, इस में शक नहीं है, उन्होंने 2016 चमत्कार से 500 रुपए और 1000 रुपए के नोट गायब कर दिए और पूरे देश को बैंकों के आगे लाइनों में लगवा दिया. रातोंरात चमत्कार से मजदूरों के अधड़ में रखे गाड़ी कमाई के रुपए कोरे कागज में बदल गए.

जब कोरोना आया तो रातोंरात उन्होंने चमत्कार से लौकडाउन थोप दिया चाहे इस की जरूरत थी या नहीं और लाखों मजदूर जो चलना भूल चुके थे सैंकड़ों मील पैदल तपती धूप में चलने लगे. उन्होंने चमत्कार से थालीताली बजवा कर बता दिया कि इस से कोरोना पर 17 दिनों में जीत हासिल हो जाएगी का फायदा कर डाला और यह चमत्कार ही है कि पूरा देश हल्ला मचाने लगा. शायद चीन अमेरिका तक गूंज पहुंची होगी.

उन के राज में चमत्कार हुए कि खालिस कांग्रेसी नेता सरदार वल्लभ भाई पटेल और सुभाष चंद्र बोस मरने के 50 साल बाद भारतीय जनता पार्टी के सदस्य बन गए और एक की मूॢत गुजरात में लगा दी गई दूसरे की इंडिया गेट पर. दोनों ने जीवन भर ङ्क्षहदू महासभा और आरएसएस को गलत माना पर नमस्कार के कारण वह इतिहास अब भुला दिया गया.

चमस्कार के कारण देश भर खुले में शौच खत्म हो गया और घरघर में शौचालय बन गया. जिस में किया गया शौच वहीं पड़ापड़ा घर में बदबू फैलाता है और बिना पानी के न जाने कहां गायब हो जाता है. चमत्कारों में सीवर अपनेआप डालना शायद मोदी भूल गए. उज्जवला गैस का चमत्कार हुआ कि करोड़ों कारों गैस के सिलेंडर पहुंच गए और अब उन पर गोबर के उपले रख कर खाना बनाया जाता है.

ऐसे चमत्कारी नेता को 2024 में तो जीतना ही है भारतीय जनता पार्टी अब रातदिन इस मेहनत में लगी है जो इन चमत्कारों को नहीं मानते उन्हें किसी तरह ङ्क्षहदू धर्म से निकाल दिया जाए और वे अगर कोई धर्म अपनाएं तो जेल में बंद कर दिया जाएं. भाजपा को छोड़ कर गए नेताओं को ट्र्वाला टाइप का ईडी, सीबीआई थाप का डर दिखा कर कहा जा रहा है कि सीधेसीधे चमत्कारी पार्टी में आ जाओ. जहां आने पर सब ऐसे ही शुरू हो जाते हैं जैसे गांव में नहाने से इस में भाजपा को सफलता मिलेगी इस की पूरी गारंटी है.

विपक्षी एकता डरी सत्ता

साल 2024 के लोकसभा चुनाव को देखते हुए देश की सभी बड़ी विपक्षी पार्टियां जैसे कांग्रेस, राष्ट्रीय जनता दल, जनता दल (यूनाइटेड), आम आदमी पार्टी यानी जो भारतीय जनता पार्टी से इतर विचारधारा रखती हैं, एक हो कर अलगअलग जगह बैठक कर रही हैं. इस से देश को एक संदेश देने की कोशिश की जा रही है कि विपक्ष एकसाथ है.

यह भी सच है कि विपक्ष की एकता का आगाज बहुत पहले हो गया था, मगर इस के साथ ही मानो भारतीय जनता पार्टी की कुंभकर्णी नींद टूट गई और आननफानन में वह उन राजनीतिक दलों को एक करने में जुट गई है, जिन्हें सत्ता के घमंड में आ कर उस ने कभी तवज्जुह नहीं दी थी.

सब से बड़ा उदाहरण है रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी का, जबकि उन के बेटे चिराग पासवान आंख बंद कर के नरेंद्र मोदी की भक्ति करते देखे गए हैं. यही नहीं, नीतीश कुमार के साथ भी भाजपा ने दोयम दर्जे का बरताव किया था. इस तरह गठबंधन का धर्म नहीं निभा कर भारतीय जनता पार्टी में एक तरह से अपने सहयोगियों के साथ धोखा किया था, जिसे सत्ता के लालच में आज छोटीछोटी पार्टियां भूल गई हैं. इस की क्या गारंटी है कि साल 2024 में नरेंद्र  मोदी की सत्ता आने के बाद इन के साथ समान बरताव किया जाएगा?

कहा जाता है कि एक बार धोखा खाने के बाद समझदार आदमी सजग हो जाता है, मगर भारतीय जनता पार्टी के भुलावे में आ कर 38 उस के साथ आ कर खड़े हो गए हैं. मगर यह सच है कि यह सिर्फ एक छलावा और दिखावा मात्र है. एक तरफ विपक्ष अभी 26 दलों का गठबंधन बना पाया है, वहीं भारतीय जनता पार्टी खुद को हमेशा की तरह बड़ा दिखाने के फेर में छोटेछोटे दलों को भी आज नमस्ते कर रही है.

भाजपा का देश को यह सिर्फ आंकड़ा दिखाने का खेल है. वह यह बताना चाहती है कि उस के पास देश के सब से ज्यादा राजनीतिक दलों का समर्थन है और विपक्ष जो आज एकता की बात कर रहा है वह उन के सामने नहीं ठहर सकता है, जबकि असलियत यह है कि यह सब भाजपा डर के मारे कर रही है ताकि आने वाले समय में उस के हाथों से देश की केंद्रीय सत्ता निकल न जाए.

कांग्रेस के नेतृत्व में

10 साल की राजग सरकार के भ्रष्टाचार और घोटालों का एक खाका खींचने के मद्देनजर विपक्षी गठबंधन के लिए एक साझा न्यूनतम कार्यक्रम बनाया जा रहा है और आपसी तालमेल के साथ रैलियां, सम्मेलन, आंदोलन करने जैसे मुद्दों को ले कर मसौदा तैयार करने के लिए एक उपसमिति बनाने का भी प्रस्ताव है.

विपक्षी दल साल 2024 के लोकसभा चुनावों में भाजपा के खिलाफ एकजुट हो कर लड़ने के लिए अपनी रणनीति तैयार करेंगे. कांग्रेस के मुताबिक अगले लोकसभा चुनाव के लिए भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ विपक्षी दलों की एकजुटता भारत के राजनीतिक दृश्य के लिए बदलाव वाली साबित होगी और जो लोग अकेले विपक्षी पार्टियों को हरा देने का दंभ भरते थे, वे इन दिनों ‘राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के भूत’ में नई जान फूंकने कोशिश में लगे हुए हैं.

कुल जमा कहा जा सकता है कि विपक्ष की एकता से भारतीय जनता पार्टी के माथे पर पसीना उभर आया है और उसे यह समझते देर नहीं लगी है कि अगर वह सोती रहेगी तो राहुल गांधी के नेतृत्व में विपक्ष भारी पड़ सकता है.

बड़ी लाइन खींचने की कोशिश

भारतीय जनता पार्टी ने जब देखा कि केंद्र की सत्ता उस के हाथों से निकल सकती है तो वह आननफानन में उन राजनीतिक दलों को अपने साथ मिलाने मिल गई है, जो कभी उस के रूखे बरताव और सत्ता के घमंड को देख कर छोड़ कर चले गए थे.

मंगलवार, 18 जुलाई, 2023 को भारतीय जनता पार्टी ने दिल्ली में अपने साथी राजनीतिक दलों के नेताओं की बैठक आयोजित की, जिस से जनता में संदेश जाए कि हम किसी से कम नहीं हैं.

दरअसल, यह बैठक सत्तारूढ़ गठबंधन के शक्ति प्रदर्शन के रूप में देखी गई. इस बैठक में भाजपा के कई मौजूदा और नए सहयोगी दल मौजूद रहे. सत्तारूढ़ पार्टी ने हाल के दिनों में नए दलों को साथ लेने और गठबंधन छोड़ कर जा चुके पुराने सहयोगियों को वापस लाने के लिए कड़ी मेहनत की है.

भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के मुताबिक, हम ने अपने सहयोगियों को न पहले जाने के लिए कहा था और न अब आने के लिए मना कर रहे हैं. उन्होंने कहा जो हमारी विचारधारा और देशहित में साथ आना चाहता है, आ सकता है.

हालांकि जनता दल (यूनाइटेड), उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिव सेना और अकाली दल जैसे अपने कई पारंपरिक सहयोगियों को खोने के बाद भाजपा महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिव सेना, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के अजित पवार के नेतृत्व वाले गुट, उत्तर प्रदेश में ओम प्रकाश राजभर के नेतृत्व वाली सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी, जीतनराम मांझी के नेतृत्व वाले हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (सैक्युलर) और उपेंद्र कुशवाला के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय लोक जनता दल के साथ गठबंधन करने में कामयाब रही है.

मगर यह देखना खास है कि ये सारे दल देश की राजनीति में कोई ज्यादा अहमियत नहीं रखते हैं और भाजपा का सिर्फ कोरम पूरा करने का काम कर रहे हैं.

राजनीति में ऐसे टिकें

रा जनीति में जाने वालों के लिए सब से बड़ी दिक्कत की बात यह है कि राजनीति में कैरियर कैसे बनाएं, यह बताने वाला कोई नहीं है. इस की पढ़ाई कहीं नहीं होती. ऐसे में राजनीति में कैरियर बनाने वालों के लिए मुश्किलें ज्यादा हैं. उन को लगता है कि केवल नेताओं के पीछे घूमने से ही काम हो सकता है. ऐसा नहीं है.

राजनीति में कैरियर बनाने के लिए जरूरी है कि आप सफल नेताओं के बारे में पढ़ें, उन को सम?ों, उन गुणों को अपने अंदर पैदा करें. आप को खुद से सीखना है, यह बड़ी चुनौती है.

सब के नाम याद रखें

उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव का नाम हर किसी को पता है. गरीब परिवार में पैदा हुए, लेकिन उन्होंने अपनी प्रतिभा के बल पर राजनीति में सब से बड़ा परिवार बना लिया. एक दौर वह था कि भारत में जनता द्वारा चुने गए पदों पर सब से अधिक लोग मुलायम परिवार के थे. 40-50 साल के राजनीतिक जीवन में उन्होंने यह चमत्कार कैसे किया?

राजनीति में कैरियर बनाने वाले हर युवा को मुलायम सिंह यादव की राजनीतिक यात्रा को सम?ाना और स्टडी करना चाहिए. सब से बड़ी बात कि उन के प्रबल विरोधी भी उन के कायल थे. मुलायम सिंह का सब से बड़ा गुण था कि वे बेहद सरल स्वभाव के थे. उन को अपने हर कार्यकर्ता का नाम याद रहता था. वे सभा के बीच भी किसी आम कार्यकर्ता का नाम ले कर बुलाते थे.

किसी के घर कोई अवसर होता था, सुख या दुख का, तो वे पहुंचते जरूर थे. उन के दौर में एक जगह से दूसरी जगह जाने के लिए पैदल, साइकिल, किराए की कार जैसे साधन थे तब भी और जब सरकारी सुविधा मिली तब भी, वे एकजैसा बरताव करते थे.

कानपुर देहात के एक गांव में एक देशराज नाम का साधारण कार्यकर्ता मुलायम सिंह यादव को अपने घर कई बार बुला चुका था. वे नहीं पहुंच पाए थे. साल 2002 के आसपास की बात है.

देशराज का अपना तिलक समारोह था. उस ने मुलायम सिंह को निमंत्रणपत्र दे कर बुलाया. उसे लगा कि नेताजी आएंगे तो हैं नहीं, तो वह अपने घर कामकाज में लग गया.

सरलता सब से बड़ा गुण

जिस दिन देशराज का तिलक था, सुबह 8 बजे उस के क्षेत्र के थाने का दारोगा उस के घर पहुंचा. तब मोबाइल इतना प्रयोग में नहीं होता था. दारोगा ने कहा कि 10 बजे मुलायम सिंह का कार्यक्रम आप के घर पर है. अभी एसपी साहब का मैसेज आया है. देशराज हैरान कि कैसे इतनी जल्दी इंतजाम होगा. समारोह तो शाम का था. वह जैसेतैसे मैनेज करने लगा.

सुबह 10 बजे मुलायम सिंह यादव अपने काफिले के साथ उस के घर आ गए. वे बिना किसी उम्मीद के साथ सहज भाव से मौजूद रहे. गांव और वहां मौजूद लोगों से मिलते रहे. आज भी पूरे इलाके में इस बात की चर्चा होती है. अपने कार्यकर्ता की इज्जत तब ज्यादा होती है, जब नेता पर्सनल बरताव रखता है.

बिहार के नेता लालू प्रसाद यादव का भी ऐसा ही स्वभाव था. होली में फाग वे सब के बीच में आ कर खेलते थे. अपने कार्यकर्ता से ही मांग कर खैनी खा लेते थे. कार्यकर्ता से खैनी मांगने में कोई संकोच नहीं होता था उन्हें.

आज के दौर में तमाम नेता हैं, जो पद हासिल होते ही अपने कार्यकर्ता को सब से पहले भूल जाते हैं. ऐसे में वे कभी भी लंबी रेस की राजनीति नहीं कर पाते. नए नेताओं में तेजस्वी यादव का स्वभाव भी इसी तरह का है.

बिहार में वे अपने एक कार्यकर्ता के घर पर शादी में गए, तो वहां गाली गाने का रिवाज था. महिलाएं थोड़ा संकोच कर रही थीं. तेजस्वी को जैसे ही गानों का मजा लेते सुना, वे गाली गाने लगीं. तेजस्वी यादव ने संकोचसंकोच में ही डांस में भी साथ दिया.

कार्यकर्ता से जुड़ने के लिए यह जरूरी नहीं कि केवल पैसा खर्च हो, उस के ज्यादातर मामलों में उन के बीच जा कर उन की हंसीखुशी में हिस्सा ले कर भी जुड़ा जा सकता है.

ऐसी आदत डालें

भारतीय जनता पार्टी के संगठन मंत्री हैं नागेंद्र. अभी वे बिहार में संगठन मंत्री हैं. पहले उत्तर प्रदेश में सगठन मंत्री रहे. उन को कार्यकर्ताओं और नेताओं के बीच काम करना होता है. वे अपने पास एक छोटी सी नोटबुक रखते हैं, जिस में हर नेता और कार्यकर्ता का नाम व उस का ब्योरा एक पेज पर लिखा होता है. जब वे जिस क्षेत्र रहते हैं, वहां के नेता और कार्यकर्ता से बात कर उस से मिलने की कोशिश करते हैं.

जो लोग राजनीति में अपना कैरियर बनाना चाहते हैं, उन को इन टिप्स को ध्यान रखना चाहिए. मोबाइल के इस जमाने में डायरी रखना लोग बंद कर चुके हैं. डायरी में लिखना पड़ता है.

मनोविज्ञानी मानते हैं कि जो बातें लिखी जाती हैं, वे लंबे समय तक याद रहती हैं. ऐसे में डायरी लिखना जरूरी होता है. डायरी में अपनी रोज की गतिविधियों को लिखना चाहिए.

डायरी लिखने के साथ ही साथ राजनीति में कदम रखने वालों को पढ़ना भी चाहिए. पढ़ने से विचार बनते हैं, जिन को बोलने से सामने वाले पर असर  पड़ता है. नेता के लिए जरूरी होता है कि लोग उस के बोलने को सुनें. जैसे  प्रधानमंत्री रह चुके अटल बिहारी वाजपेयी के बारे में कहा जाता है कि वे कठोर से कठोर बात भी बड़े सहज लहजे में कह जाते थे. उन के बोलने की ताकत ऐसी थी कि गंभीर बहस के बीच भी हंसी छूट जाए. इस की वजह यह थी कि वे लिखते और पढ़ते दोनों ही बहुत थे.

एक बार संसद में बहस चल रही थी. विपक्ष के नेताओं ने आवाजें करनी शुरू कर दीं. माहौल को हलका करने के लिए अटल बिहारी वाजपेयी बोले, ‘मेरा नाम केवल अटल नहीं है, मैं बिहारी भी हूं.’ यह सुनते ही पूरे सदन की हंसी छूट गई. माहौल बदल गया.

बड़े काम की छोटीछोटी बातें राजनीति में अगर कैरियर बनाने जा रहे हैं, तो छोटीछोटी बातें बहुत काम की हैं. जिन कार्यक्रमों में आप को बुलाया गया है, वहां तो जाएं ही, साथ ही जहां आप को कैरियर के हिसाब से बेहतर लग रहा हो, वहां जरूर जाएं. जिन नए लोगों से मिलें, उन के नाम और परिचय ले लें, जिस से आगे मेलजोल बना रहे.

कभी भी ?ागड़ा न करें. ?ागड़ा करने से फालतू का तनाव ?ोलना पड़ता है, अपने काम की जगह पर थानाकचहरी करनी पड़ती है. कई बार छोटी सी गलती कैरियर को खत्म कर सकती है.

समाजवादी पार्टी के नेता आजम खान इस का उदाहरण हैं. वे बोलते हैं तो ऐसा लगता है कि शायद छुरी से वार हो रहा हो. चुनाव के दौरान अधिकारियों को ले कर कहे गए ऐसे ही शब्द उन के गले में फांस बन गए.

दमदार नेताओं से अपने संबंध रखें, लेकिन एक सावधानी रखें कि उन के साथ सैल्फी या फोटो सोशल मीडिया पर न डालें. सोशल मीडिया पर डालने से विरोधी को पता चल जाता है कि आप के किस से संबंध हैं. आप का विरोध करने वाले इस का लाभ उठाने में नहीं चूकते.

अपने से छोटे कार्यकर्ता के साथ संबंध अच्छे रखें. उन का हौसला बढ़ाते रहें और समयसमय पर बिना काम के भी बैठक करते रहें. कार्यकताओं पर खर्च भी करते रहें. अगर कहीं से पैसा मिल रहा है, तो उसे बचा कर रखें. उस का इस्तेमाल राजनीति में आगे बढ़ने के लिए करें. गलत तरह से पैसा न कमाएं.

उत्तर प्रदेश के पिछले चुनाव में डाक्टर राजेश्वर सिंह और असीम अरुण पुलिस अफसर की नौकरी छोड़ कर विधायक बनने के लिए चुनाव लड़े. दोनों ही चुनाव जीत गए. असीम अरुण तो योगी सरकार में मंत्री भी बन गए. दिल्ली में आम आदमी पार्टी में वे ही विधायक बने, जो कुछ दिनों पहले तक एनजीओ चला रहे थे. इस तरह से दूसरे कैरियर में कामयाब होने के बाद भी राजनीति में कामयाब हो सकते हैं.

पश्चिम बंगाल पंचायत चुनाव नतीजे : भारतीय जनता पार्टी के ‘मिशन 24’ पर गाज

अब से कुछ साल पहले तक ऐसा माना जाता था कि पंचायत चुनाव गांव की सरहद तक सीमित रहते हैं, पर अब ऐसा नहीं है. आज की तारीख में हर बड़ा सियासी दल पूरी ताकत से इन चुनाव में अपना दमखम दिखाता है और अगर लोकसभा चुनाव नजदीक हों तो पंचायत चुनाव नतीजों की अहमियत बहुत ज्यादा बढ़ जाती है.

इस बात को पश्चिम बंगाल में हुए पंचायत चुनाव से समझते हैं, जहां ममता बनर्जी को मिली बंपर जीत से पूरी तृणमूल कांग्रेस की बांछें खिली हुई हैं और अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव से पहले बिखरे विपक्ष में थोड़ी उम्मीद जगी है कि केंद्र की ‘डबल इंजन’ सरकार की चूलें हिल सकती हैं, बशर्ते आपसी मतभेद भूल कर भारतीय जनता पार्टी के झूले में झूलते राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन का डट कर सामना किया जाए.

पश्चिम बंगाल में 8 जुलाई, 2023 को एक चरण में ग्राम पंचायत, पंचायत समिति और जिला परिषद की कुल 73,887 सीटों के लिए चुनाव हुए. नतीजों में तृणमूल कांग्रेस सब पर भारी पड़ी. उस ने भारतीय जनता पार्टी, कांग्रेस और वामपंथी दलों को रगड़ कर रख दिया.

ममता बनर्जी का जलवा बरकरार

कोई कुछ भी कहे, पर पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी को टक्कर देना फिलहाल बड़ा मुश्किल दिख रहा है. इस की सब से बड़ी वजह ममता बनर्जी के शासनकाल में पश्चिम बंगाल के लोगों के लिए चलाई गई कल्‍याणकारी योजनाएं हैं, जिन का फायदा आम लोगों तक पहुंच रहा है.

राजनीतिक जानकारों के मुताबिक, गांवदेहात के इलाकों में ‘लक्ष्मी भंडार’ जैसी महिला सशक्तीकरण योजना ने महिला वोटरों को पार्टी से बांधे रखने में अहम रोल निभाया है. इस योजना के तहत सरकार सामान्य श्रेणी के परिवारों को 500 रुपए हर महीने और एससीएसटी श्रेणी के परिवारों को 1,000 रुपए हर महीने देती है.

इस के अलावा राज्य के लोगों को ममता बनर्जी के जुझारू तेवर पसंद आते हैं. वे सादगी से भरी जिंदगी जीती हैं और जनता की नब्ज पकड़ने में माहिर हैं. उन्होंने ‘मां, माटी, मानुष’ का जबरदस्त नारा द‍िया था और इसी के दम पर पश्चिम बंगाल में साल 2011 का विधानसभा चुनाव जीता था.

शिक्षकों की भरती और मवेशी व कोयला तस्करी रैकेट जैसे कई भ्रष्टाचार घोटालों के इलजाम लगने के बावजूद वोटरों ने तृणमूल कांग्रेस का साथ नहीं छोड़ा. याद रहे कि भ्रष्टाचार के इन मामलों में केंद्रीय जांच ब्यूरो और प्रवर्तन निदेशालय द्वारा एक प्रमुख कैबिनेट मंत्री, विधायकों, युवा नेताओं और सरकार के करीबी बड़े सरकारी अफसरों की गिरफ्तारी हुई थी.

भाजपा के साथ हुआ ‘खेला’

भारतीय जनता पार्टी को पंचायत चुनाव में भले ही पहले से ज्यादा सीटें मिली हों, पर नतीजे मनमुताबिक नहीं रहे. वहां पर राज्य भाजपा में टूट होती भी दिखी. पंचायत चुनाव से ठीक पहले भाजपा को बड़ा झटका देते हुए पार्टी विधायक सुमन कांजीलाल सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गए थे. अलीपुरद्वार निर्वाचन क्षेत्र की नुमाइंदगी करने वाले सुमन कांजीलाल को तृणमूल कांग्रेस पार्टी के महासचिव अभिषेक बनर्जी ने कोलकाता में एक समारोह में टीएमसी का झंडा सौंपा था.

पिछले कुछ समय से उत्तर बंगाल में मजबूत होती जा रही भाजपा को इस पंचायत चुनाव में झटका लगा. साल 2019 के लोकसभा चुनाव में उत्तर बंगाल में भाजपा ने शानदार प्रदर्शन किया था, जबकि इस बार के पंचायत चुनाव में उसे मनचाहे नतीजे नहीं मिले. कुछ जगहों पर अच्छा प्रदर्शन करने के बावजूद यह पार्टी उत्तर बंगाल में अच्छा रिजल्ट नहीं दे पाई.

साल 2019 के लोकसभा और साल 2021 के विधानसभा चुनाव में प्रदर्शन को पैमाना मानें तो भारतीय जनता पार्टी को इस बार सीटों की तादाद में काफी बढ़ोतरी की उम्मीद थी, लेकिन ऐसा हो नहीं पाया. पूर्व मेदिनीपुर, कूचबिहार, उत्तर 24 परगना के मतुआ बहुल इलाकों और पूर्व मेदिनीपुर में नंदीग्राम छोड़ कर हर जगह उस के प्रदर्शन में काफी गिरावट आई.

दार्जिलिंग पर्वतीय क्षेत्र की एकमात्र लोकसभा सीट पर भाजपा का लंबे समय से कब्जा रहा है, लेकिन इलाके में स्थानीय भारतीय गोरखा प्रजातांत्रिक मोरचा ने भाजपा की अगुआई वाले गठबंधन को काफी पीछे छोड़ दिया. भारतीय गोरखा प्रजातांत्रिक मोरचा के अध्यक्ष अनित थापा ने कहा, “यह जीत लोगों की जीत है. उन्होंने हमें काम करने का मौका दिया है और हम इसे पूरा करेंगे.”

भारतीय जनता पार्टी ने तृणमूल कांग्रेस पर भ्रष्टाचार के तमाम आरोप लगाए थे और सोचा था कि जनता इसे मुद्दा बना कर भाजपा के हक में वोट डालेगी, पर यहां भी उस की दाल नहीं गली. प्रदेश में भारीभरकम 81 फीसदी के आसपास वोट पड़े, जो तृणमूल कांग्रेस की झोली भर गए.

भाजपा जानती है कि पश्चिम बंगाल जैसे प्रदेश में सत्ता की चाबी गांवदेहात के वोटरों के हाथ में है और फिलहाल यह वोटर ममता बनर्जी के पक्ष में खड़ा है. यहीं से उस की चिंता बढ़नी शुरू हो जाती है, क्योंकि अब ममता बनर्जी और ज्यादा मजबूत हो गई हैं और देशभर में विपक्ष को एकसाथ करने में खासा रोल निभा सकती हैं. यह बात भाजपा के ‘मिशन 24’ के लिए खतरे की घंटी है.

प्राइवेट स्कूलों पर भारी है सराकरी स्कूल!

आमतौर पर समझा यही जाता है कि आईआईटी, मेडिकल कालेजों, इंजीनियङ्क्षरग कालेजों में पढ़ाई के दरवाजे सिर्फ प्राइवेट इंग्लिश मीडियम स्टूडेंट्स के लिए खुली हैं. दिल्ली के सरकारी स्कूलों के 2200 से ज्यादा सरकारी स्कूलों के युवाओं ने नीट, जेईई मेन व जेईई एडवांस एक्जाम क्वालीफाई करके साबित किया है कि स्कूल या मीडिया नहीं स्कूल चलाने बालों की मंशा ज्यादा बड़ा खेल खेलती है.

अरङ्क्षवद केजरीवा की आम आदमी पार्टी जो एक तरफ धर्मभीरू है, भाजपा की छवि लिए घूमती है, दूसर और भाजपा की केंद्र सरकार और उस के  दूत उपराज्यपाल के लगातार दखल से परेशान रहती है, कुछ चाहे और न करे, स्कूलों का ध्यान बहुत कर रही है. सरकारी स्कूलों के एक शहर के इतने सारे युवा इन एक्जाम में पास हो जाएं जिन के लिए अमीर घरों के मांबाप लाखों तो कोङ्क्षचग में खर्च करते हैं, बहुत बड़ी बात है.

यह पक्का साबित करता है कि गरीबी गुरबत और ज्ञान न होना जन्मजात नहीं, पिछले जन्मों के कर्मों का फल नहीं, ऊंचे समाज की साजिश है. एक बहुत बड़ी जनता को गरीबी में ही नहीं मन से भी फटेहाल रख कर ऊंचे लोगों ने अनपढ़ सेवकों की एक पूरी जमात तैयार कर रखी है जो मेहनत करते हैं, क्या करते हैं पर उस में स्विल की कमी है, लिखनेपढऩे की समझ नहीं हैै.

सरकारी स्कूल ही उन के लिए एक सहारा है पर गौ भक्त राज्यों में ऊंची जातियों के टीचर नीची जातियों के छात्रों के पहले दिन से ऊंट फटका कर निकम्मा बना देते हैं कि उन में पढऩे का सारा जोश ठंडा पड़ जाता है और वे या तो गौर रक्षक बन डंडे चलाना शुरू कर देते हैं या कांवड ढोने लगते हैं. केजरीवाल की सरकार के स्कूलों में उन्हें पढऩे की छूट दी, लगातार नतीजों पर नजर रखी. ये लोग चाहे जैसे भी घरों से लाए, पढऩे की तमन्ना थी और जरा सा हाथ पकडऩे वाले मिले नहीं कि सरकारी स्कूलों ने 2000 से ज्यादा को इंजीनियङ्क्षरग और मेडिकल कालेजों की खिड़कियां खोल दीं.्र

यह अपनेआप एक अच्छी बात है और यदि सही मामलों में देश में लोकतंत्र आना है तो जरूरी है कि स्कूली शिक्षा सब के एि एक समान हो, चाहे जिस भी भाषा में हो पर अंग्रेजी में न हो, प्राईवेट कोङ्क्षचग स्कूली शिक्षा के दौरान न हो.

सत्ता में बराबर की भागीदारी चाहिए तो वोटरों को खयाल रखना होगा कि जो पौराणिक तरीके चाहते हैं उन्हें सत्ता में रखे या जो पुराणों में बनाई गई ऊंची खाईयों को पाटने वालों को वोट दें. वोट से पढ़ाई का स्टैंडर्ड बदला जा सकता है. यूपी, मध्य प्रदेश के सरकारी स्कूलों को हाल क्या है, इस को दूसरों राज्यों के स्कूलों से मुकाबला कर के देखा जा सकता है कि जयश्रीराम का नारा काम का है. ज्ञानविज्ञान और तर्क का नारा.

ऊंची जाति के लोग गरीबों को मानते है गटर

दलितों, गरीबों, पिछड़ों को ऊंची जातियों के लोग किस तरह से गटर की और गंदे नाले की तरह का मानते हैं, यह एक बहुत ही बेचैन करने वाले वीडियो से समाने आया, मध्यप्रदेश के भारतीय जनता पार्टी केदारनाथ शुक्ला के एक वर्कर परवेश पर आरोप है कि उस ने खुलेआम चुपचाप बैठे एक आदिवासी लडक़े…..करा और उस दौरान आराम से सिगरेट के कश लगाता रहा. यह किस ने वीडियो में कैच कर के जगजाहिर कर दिया, वह असल में सिटिजन जर्नलस्टि अवार्ड का हकदार है क्योंकि आमतौर पर ऊंची जातियों के लोग अक्सर पिछड़ों, दलितों और गरीबों पर ही नहीं, अपनी ही जाति की औरतों को  बेइज्जत करने के लिए करते रहते हैं पर कोई रिकार्ड नहीं रहता.

यह तो नहीं कहा जा सकता कि पार्टी की नीति ऐसी है कि खुलेआम आदिवासियों के इस कदर बेइज्जत किया जाए पर यह पक्का है कि जो सनातन धर्म का नाम ले कर पौराणिक कहानियों में भरोसा ही नहीं करते, कुछ ऐसा सा करने वालों की पूछा करते है और आज सरकारें उन्हें पैसा और सुविधाएं दोनों दे रही हैं.

हमारे धर्म ग्रंथ ऐसी कहानियों से भरे हैं जिस में तरहतरह के श्राप औरतों और नीची जातियों के लोगों को दिए जाते हैं या उन्हें नीचा दिखाने के लिए पाप योनि का हकदार धर्मग्रंथों के हिसाब से माना जाता है, जो पिछड़े और दलित है वे मानते हैं कि उन्होंने पिछले जन्मों में कुछ पाप किए होंगे इसलिए वे इस जन्म में बूढ़े से भी गएबीते हैं. 75 साल के संविधान और 200 साल की पढ़ाई और साइंस की जानकारी भी देश की बड़ी जनता को इस दलदल से निकाल नहीं पाई.

ङ्क्षहदी फिल्म ‘श्री इडियट’ में रैङ्क्षगग के दौरान एक लडक़े का दूसरे नए लडक़े के कमरे के दरवाजे पर भूलना भी इसी सोच का नतीजा है. पुलिस थानों में नीची जातियों के अपराधियों पर अक्सर इस तरह पेशाब करने के किस से छपते रहते हैं.

जो समाज गौमूत्र की पावन मानता हो, उस के मन में कहीं बैठ जाता है कि वह नीची जाति के जने पर पेशाब कर के बड़ा गलत काम नहीं कर रहा. पिछड़ी और निचली जातियों के लोगों को अपने घरों की दीवारों पर पेशाब करना पड़ता है क्योंकि और जगह नहीं होतीं. समाज ने पेशाब को इस तरह का ढांचा बनाया है कि कुछ आदमी जानवरों की तरह अपने ही मलमूत्र में पड़े रहने के आदी हो जाएं.

एक नई, चुनी हुई, साइंस के गुणगान करने वाली, अपने को विश्वगुप्त बनाने वाली सरकार के मुंह पर ही मध्य प्रदेश के सघि जिले का यह वीडियो एक तमाचा है पर जिस बेफ्रिकी से वह भक्त पेशाब करता है, साबित करता है कि एक ताकतवर कौम किस तरह देश के गरीबों की बेइज्जती करना अपना पैदाइशी हक समझती है.

कमजोर होती भाजपा

खेमेबाजी हमारे देश के हर गांव की एक खासियत है. 1000 घरों के गांव में 4.5 खीमे होना आम बात है और जाति, धर्म, काम, पैसे के नाम पर बने ये खेमे एकदूसरे से लड़ते ज्यादा रहते हैं, गांव की देखभाल, आम जगहों को बनवाने, सिक्योरिटी पर कम ध्यान देते है. हर खेमा दूसरे से लड़ता रहता है और दूसरे में सेंध लगाना रहता है कि कैसे उसे कमजोर किया जाए. गांव के भले की सोचने की फुर्सत किसी को नहीं होती.

हमारी राजनीति में यह अर्से से चल रहा है पर 2014 में वादा किया गया था कि भारतीय जनता पार्टी को मिली भारी भरकम जीत के बाद दलबदल खत्म हो जाएगा क्योंकि देश की कट्टर हो चुकी ङ्क्षहदू जनता के बड़े हिस्से ने नरेंद्र मोदी को वोट दिया था.

अफसोस यही है कि 2014 के बाद सुॢखयों नहीं बनती हैं कि भाजपा ने सरकारी मशीनरी का इस्तेमाल दूसरी पाॢटयों को तोडऩे और अपने में मिलाने में किया और ङ्क्षहदूङ्क्षहदू करते हुए भी उस के हाथ से सत्ता फिसलती नजर आती रही.

उस की वह जनता के पास जा कर नहीं, खेमों में सेंध लगा कर या पुलिस को दूसरे खेमों के सरगनों को परेशान करने में लगाती रही. देश का कल्याण तो हवा हो गया है, पार्टी का कल्याण ही अकेला मकसद बच गया है.

महाराष्ट्र में 2 साल पहले जब पुराने साथी शिवसेना के उद्धव ठाकरे से समझौता नहीं हुआ और शिवसेना ने नेशनल कांग्रेस और इंडियन कांग्रेस के साथ मिल कर सरकार बना ली तो बजाए अगले चुनाव तक इंतजार करने के उस ने खीज में आ कर तीनों पाॢटयों के विधायकों की खरीद शुरू कर दी. पहले एकनाथ ङ्क्षशदे को शिवसेना को तोड़ा और अब एनसीपी के अजीत पंवार को तोड़ कर एक टेढ़ीमेढ़ी ऊंची इमारत बना ली.

ऐसा काम पहले ही वह कर्नाटक व मध्य प्रदेश जैसे बड़े राज्यों और गोवा, मेघालय, मिजोरम, अरुणांचल में कर चुकी है.

यह साबित करता है भाजपा के खेमे की हवेली चाहे कितनी बड़ी दिखती हो, उस के सामने से गुजरने वाले चाहे चप्पल को बगल में दबा कर और सलाम कर के गुजरते हो, मन में लोगों को कोई भरोसा नहीं है कि खेमेदार कुछ भला करेगा. इसलिए भाजपा के खेमेदारों को लाठी और पैसे के दम पर हमारे खेमों में तोडफ़ोड़ करनी पड़ रही है.

यह भारतीय जनता पार्टी की कमजोरी दिखाती है कि उसे केंद्र में भारी सीटें मिलने के बावजूद राज्यों में दलबदलूओं के सहारे सरकारें चलाना पड़ रहा है. मतलब यह है कि पार्टी को जनता से डर  लगता है जीते हुए विधायकों और सांसदों से नहीं.

महाराष्ट्र में जो हुआ वह वैसे पौराणिक युकों से ङ्क्षहदू राजा करते आए हैं पर हमेशा उन्होंने छल से राज्य किया है. अमृत मंथन में भी दस्युओं को मिला कर देवताओं ने अमृत निकाला पर बजाए बांटने के सारा हड़प गए. यही आज हो रहा है.

संसद में कर्मकांड और प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी

देश के नए संसद भवन के उद्घाटन के दरमियान प्राचीन रीति-रिवाजों के नाम पर जिस तरह कर्मकांड दुनिया और हमने देखे हैं उससे यह संदेश गया है कि आजाद भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु की वैज्ञानिक सोच से इतर आज का भारत यह है जो हवन और कर्मकांड में विश्वास रखता है . क्योंकि इसके बगैर न तो देश की तरक्की हो सकती है और न ही समाज की. संभवत नरेंद्र दामोदरदास मोदी को यह विश्वास और आस्था है कि पंडित पुरोहितो के सामने समर्पण करने से देश दुनिया का सरताज बन सकता है और तथाकथित रूप से विश्व गुरु भी.

यह सब देखने के बाद कहा जा सकता है कि आज देश उस चौराहे पर खड़ा है जहां से एक बार फिर पोंगा पंथ और पुरातन पंथी विचारधारा को  सरकार और  सबसे ज्यादा प्रधानमन्त्री का प्रश्रय मिला है.

दरअसल, यह देश में  हिंदुओं की तुष्टिकरण के कारण और बहुलता के कारण यह सब किया जा रहा है. जो सीधे-सीधे संविधान और अंग्रेजों से लड़ते हुए शहीद हो जाने वाले लाखों लोगों का अवमान है. यह बताता है कि लोकतंत्र में सत्ता के लिए वोटों की राजनीति का भयावह चित्र कैसा हो सकता है. हमारे देश के संविधान में स्पष्ट रूप से अंकित है कि लोकतांत्रिक गणराज्य है. मगर आज हिंदुत्व वाली सोच कि भारतीय जनता पार्टी की सरकार के प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र दामोदरदास मोदी संविधान की भावना से हटकर के वह सब कर रहे हैं जो इसके पहले 75 वर्षों में कभी भी नहीं हुआ. और मजे‌ बात की लोग कह रहे हैं कि नए भारत का आगाज हो गया है. यह हास्यास्पद है की ऐसा महसूस कराया जा रहा है मानो बीते 75 साल हमारे देश के लिए अंधकार के समान थे और नरेंद्र मोदी की सत्ता आने के बाद देश सही अर्थों में आजाद हुआ है विकास की ओर बढ़ रहा है और दुनिया का नेतृत्व करेगा. मगर यह सब बातें मीडिया का हो हल्ला है. सच्चाई यह है कि देश जिस तरह अपनी संविधान की सीमाओं से हटकर के पीछे की ओर जा रहा है उससे देश की छवि दुनियां में पूरी तरह से बदल रही है जो भविष्य के लिए अच्छी नहीं कही जा सकती.

नेहरू और नरेन्द्र मोदी

तथ्य यह  है कि प्रधानमंत्री मोदी विपक्ष को सम्मान नहीं देते और उनके कार्य व्यवहार से महसूस होता है मानो विपक्ष को समाप्त कर देना चाहते हैं.  नरेंद्र मोदी बारंबार विपक्ष को नजरअंदाज कर और हंसी उड़ाते दिखाई देते हैं. अगर ऐसा नहीं है तो जब संसद के निर्माण का विचार नरेंद्र मोदी सरकार को आया तो उन्होंने विपक्ष से मिल बैठकर विचार विमर्श क्यों नहीं किया. जब उद्घाटन का समय आया तब उन्होंने विपक्ष के साथ विचार-विमर्श क्यों नहीं किया. देश सत्ता और विपक्ष के माध्यम से ही चलता है.  मगर नरेंद्र दामोदरदास मोदी की सोच  है कि विपक्ष को पूरी तरह से खत्म कर दिया जाए. यही कारण है कि नई संसद के उद्घाटन के दरमियान कांग्रेस और अन्य राजनीतिक दलों ने संसद भवन के उद्घाटन का बहिष्कार कर दिया. मगर उन्हें मनाने के लिए सकारात्मक   पहल नरेंद्र मोदी सरकार ने नहीं की. बल्कि  हुआ यह कि सरकार के चर्चित चेहरों द्वारा चाहे वह राजनाथ सिंह को या फिर स्मृति ईरानी द्वारा विपक्ष का मजाक बनाया गया और उन पर प्रश्नचिन्ह उठाए गए. इस संदर्भ में शरद पवार ने जो कहा है वह सौ फीसदी दी सच है.

राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के प्रमुख शरद पवार के मुताबिक,- “नए संसद भवन के बनाने से मैं खुश नहीं हूं. मैंने सुबह कार्यक्रम देखा है, अच्छा है मैं वहां नहीं गया. नई संसद मे जो कार्यक्रम हुआ उससे हम देश को पीछे ले जा रहे हैं.”

शरद पवार देश वरिष्ठ राजनेता है अगर उन्होंने उद्घाटन समारोह पर यह टिप्पणी की है तो यह देश की दुनिया की आवाज ही कही जा सकती है. उनके मुताबिक -“उद्घाटन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी  की विभिन्न रस्मों से यह प्रदर्शित हुआ  की देश को दशकों पीछे ले जाया जा रहा है , देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने वैज्ञानिक सोच रखने वाले समाज की परिकल्पना की थी, लेकिन नए संसद भवन के उद्घाटन समारोह में जो कुछ हुआ वह इसके ठीक उलट है.”

सचमुच यह दुखद है और जिसका टेलीकास्ट दुनियाभर में हुआ है सारी दुनिया जानती है कि भारत एक लोकतांत्रिक देश है जहां सभी जाति समुदाय के लोग प्रेम और सद्भाव के साथ रहते हैं, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी के एक कार्यक्रम से मानो सब कुछ मिट्टी पलीद हो गया.

संसद भवन का उद्घाटन के दौरान वहां हवन किया गया तथा लोकसभा अध्यक्ष के आसन के निकट राजदंड (सेंगोल) स्थापित किया गया. यह साला ढकोसला दुनिया ने देखा है और इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया है. जिसका दूरगामी असर भारत की राजनीति पर भविष्य पर पड़ने वाला है.

दरअसल,प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू द्वारा आधुनिक भारत की अवधारणा की बात करने और नई दिल्ली में नए संसद भवन में की गई विभिन्न रस्मों में बहुत बड़ा अंतर है. जो सिर्फ हिंदुत्व की स्थापना और हिंदू तुष्टीकरण के कारण किया गया है. यह पूरी तरह संविधान की भावना के विपरीत है. वस्तुत: यह लोग ऐसे हैं कि अगर आज हिंदुओं की जगह कोई दूसरा जाति समुदाय बहुसंख्यक हो जाए तो यह लोग उनके पैरों में भी लोटने लगेंगे.

नए संसद भवन के उद्घाटन के अवसर पर देश के सभी छोटे बड़े नेताओं बुद्धिजीवियों ने अपने विचार रखे हैं ,ऐसे समय में शरद पवार का बयान अत्यंत महत्वपूर्ण है नए संसद भवन के उद्घाटन के संपूर्ण कार्यक्रम पर उनका यह कहना कि विज्ञान पर समझौता नहीं किया जा सकता. नेहरू ने वैज्ञानिक सोच वाले समाज का निर्माण करने की ओर निरंतर प्रयास किया. लेकिन आज नए संसद भवन के उद्घाटन समारोह में जो कुछ हुआ, वह उससे ठीक उलट है जिसकी नेहरू ने परिकल्पना की थी.

उड़ीसा मेंं हुआ ट्रेन हादसा

उड़ीसा के बालासोर में 3 ट्रेनों के एक्सीडैंट में 300 लोगों के मरने की खबर है पर बहुत से लोग जनरल बोगियों में मरे लोगों की मौतों की बात नहीं कर रही जिन का कोई रिकार्ड नहीं रहता. सोशल मीडिया पर कहा जा रहा है कि खुली खिड़कियों वाले इन डिब्बों में मजदूर लोग सफर करते हैं और वे बिना रिजर्वेशन वाले टिकट लेते हैं.

यह बात इस से साबित होती है कि  एक औरत ने अपने 3 बच्चों को खिडक़ी से बाहर साथ में उगी घास पर फेंक दिया था जिस से वे बच गए. बच तो वह औरत और उस का मर्द भी गया. उस का मर्द चैन्नै में पलंबर का काम करता है.

रेल मंत्रालय ने बड़े गर्व से कहा है कि रिजर्व कंपार्टमैंटों में बहुत कम मौतें हुई हैं क्योंकि जो डिब्बें दो सवारी गाडिय़ों के चपेट में आए वे जनरल बोगियां थीं. ऊंचे पैसे वालों के बचने पर रेल मंत्रालय राहत की सांस ले रहा है. मजदूरों के मरने की गिनती नहीं हो पा रही तो यह प्रधानमंत्री, मंत्री और रेलवे के लिए अच्छा है. क्योंकि उन के लिए तो वे सफर करें तो पैदल ही करें तो ठीक.

यह न भूलें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तावड़तोड़ ऊंचे लोगों के लिए वंदेभारत ट्रेनों का उद्घाटन कर रहे हैं जिन की रफ्तार आम ट्रेनों से 10-20 किलोमीटर रखें प्रति घंटा ही ज्यादा है पर दाम बहुत ज्यादा हैं ताकि मजदूर किस्म के लोग उस में सफर न कर सकें.

आजकल नई ट्रेनों, स्टेशनों, प्लेटफार्मों, तीर्थ यात्रियों के दल जाने पर प्रधानमंत्री खुद मौजूद रहते हैं इसलिए रेलवे की सारी सोच इस पर है कि रेलें नईनई चलाई जाएं, स्टेशनों में एयरकंडीशंड लाउंज बनें, लक्जरी सामान बिके, खाना मंहगा हो, पिज्जा, वर्गर मिले. पहले की तरह प्लेटफार्म पर ठेलों पर कुछ रुपए में 6 पूरी और सब्जी मिलना बंद हो गया है. यही हाल ट्रेन में डब्बों का है. ट्रेनें अमीरों के लिए चह रही हैं जिन्हें दिखावट चाहिए, सुरक्षा का ख्याल भी नहीं करते वे.

यह सोच गहरे नीचे तक रेल कर्मचारियों में पहुंच गई है. तेज चलो, सुरक्षा तो भगवान के हाथ में है. आखिर इतने मंदिर क्यों बन रहे हैं. उड़ीसा जहां यह हादसा हुआ तो मंदिर से पटा हुआ हर नेता, हर अफसर ऊंची जाति का पूजापाठी है. वहां तो भगवान तो वरदान देते हैं या दंड देते हैं.

जरूर यह गलती उन मरने वालों मजदूरों की है जो बिना दानपुण्य किए ट्रेन में चले. साष्टांग प्रणाम करने वाले, धर्माचार्यों के साए में रहने वाले प्रधानमंत्री, रेलमंत्री, रेल बोर्ड के चेयरमैन थोड़े ही दूसरों के पापों के जिम्मेदार होंगे.

देश की गरीबी

इस देश की गरीबी की वजह इस को मुगलों या अंगरेजों का लूटना नहीं है जो आज भी हमारे नेता कहते रहते हैं. असली वजह तो निकम्मापन है और अपना कीमती समय बेमतलब के कामों में बिताना है. खाली बैठे खंभे पर चढ़ना और उतरना ही यहां काम कहा जाता है और यह समाज, घर और सरकार में हर समय दिखता है.

जहां इन में किसी भी नई चीज का पहले शिलान्यास शामिल है और फिर भूमि पूजन, महीनों में बनने वाली चीज में बरसों लगाना और फिर उद्घाटन करना और आखिर में बारबार मरम्मत करने के लिए बंद करना भी शामिल है. 2,000 के 2016 में चालू किए नोट सिर्फ 7 साल में बदलने का हुक्म इसी निकम्मेपन की निशानी है. पूरे देश को 2016 की तरह फिर फिरकनी की तरह घुमा दिया है कि अपने बक्सों को खंगालो कि कहीं कोई 2,000 का मुड़ातुड़ा नोट इधरउधर न पड़ा हो और उसे बदलवाओ.

गनीमत यह अखंड 100 दिन का जागरण थोड़े कम पैमाने पर है. इसलिए नहीं कि सरकार समझदार हो गई है, इसलिए कि नोट कम हैं और काफी महीनों से नोट बैंकों से ही नहीं दिए जा रहे थे. पूरे देश का कितना समय इस पूरे पागलपन में बरबाद होगा, इसे गिनना असंभव है पर यह देश तो वह है जहां एक जेसीबी चलती है तो देखने वाले 100-200 खाली बैठे लोग मिल जाते हैं. यहां बेकार, बेरोजगार, धर्म के नाम पर घंटों वही लाइनें किसी मूर्ति के सामने आंख बंद कर के बैठने वालों के लिए इस समय की कीमत कैसी है, यह जांचना मुश्किल है.

सरकार ने पहले 2,000 के नोट थोपे, जब जरूरत नहीं थे और अब वापस लिए जब यह भी जरूरी नहीं थे. हाल के सालों में करोड़ों की रिश्वतें भी 500 रुपए के नोटों से लीदी जा रही थीं. सोशल मीडिया पर टैक्स अफसरों द्वारा जारी फोटो इस बात का सुबूत हैं कि 500 रुपए के नोटों में रिश्वत का पैसा रखना ही एक परंपरा बन गई थी. अब महीनों तक कई करोड़ नोटों को बेमतलब में घरों से बैंकों तक, बैंकों से वाल्टों तक, वाल्टों से रिजर्व बैंक तक और रिजर्व बैंक में इन्हें संभालने में लोग लगे रहेंगे.

गरीब देश के लोगों के आटे में पानी जबरन डाल दिया गया है कि अब उसे सुखाओ, फिर सड़े को छांटो और फिर दोबारा पीसो. यह सरकार निकम्मी है यह तो मालूम है पर पूरे देश को भी निकम्मा मानती है इस का एक और उदाहरण है. निकम्मों को बेबात में काम पर लगाना इस देश में बहुत आता है और इसी वजह से इस देश का आम आदमी अमेरिकी से  30-32 गुना कम पैसे वाला है. चीनी भी भारतीय से आज 8 गुना अमीर हैं, जबकि 1960 के आसपास दोनों बराबर थे.

यह ऐसे ही नहीं हो रहा. इस के लिए सरकार तरहतरह से मेहनत करती है. सूबों की परीक्षा 2 बार ली जाने लगी है, एक बोर्ड की और एक क्यूट की. पेपर लीक हो गया कह कर बारबार परीक्षा टाली जाती है, फिर दोबारा साल 2 साल में होती है. अदालतों में मामले 10 साल से कम तो चलते ही नहीं. टूटीगंदी सड़कों पर ध्यान तब जाता है जब टैंडर से पैसा निकलवाने की साजिश हो और वहां भी सड़क जो 4 दिन में बननी चाहिए 4 महीने में बनती है, फिर कोई और विभाग तोड़ने आ  जाता है.

निकम्मेपन को थोपने वाली सरकार को बारबार वोट मिलते हैं. पहले कांग्रेस को मिलते रहे, अब भाजपा को मिल रहे हैं. 2,000 के नोटों को वापस लेना निकम्मेपन की पटेल जैसी मूर्ति बनाना है. गुजरात के पटेल जैसी सैकड़ों मूर्तियां देशभर में बन रही हैं. उतनी बड़ी नहीं, पर खासी वही और सब 2,000 के नोटों के बदलने वाली बेमतलब की निकम्मी सोच की निशानी हैं.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें