उड़ीसा के बालासोर में 3 ट्रेनों के एक्सीडैंट में 300 लोगों के मरने की खबर है पर बहुत से लोग जनरल बोगियों में मरे लोगों की मौतों की बात नहीं कर रही जिन का कोई रिकार्ड नहीं रहता. सोशल मीडिया पर कहा जा रहा है कि खुली खिड़कियों वाले इन डिब्बों में मजदूर लोग सफर करते हैं और वे बिना रिजर्वेशन वाले टिकट लेते हैं.

यह बात इस से साबित होती है कि  एक औरत ने अपने 3 बच्चों को खिडक़ी से बाहर साथ में उगी घास पर फेंक दिया था जिस से वे बच गए. बच तो वह औरत और उस का मर्द भी गया. उस का मर्द चैन्नै में पलंबर का काम करता है.

रेल मंत्रालय ने बड़े गर्व से कहा है कि रिजर्व कंपार्टमैंटों में बहुत कम मौतें हुई हैं क्योंकि जो डिब्बें दो सवारी गाडिय़ों के चपेट में आए वे जनरल बोगियां थीं. ऊंचे पैसे वालों के बचने पर रेल मंत्रालय राहत की सांस ले रहा है. मजदूरों के मरने की गिनती नहीं हो पा रही तो यह प्रधानमंत्री, मंत्री और रेलवे के लिए अच्छा है. क्योंकि उन के लिए तो वे सफर करें तो पैदल ही करें तो ठीक.

यह न भूलें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तावड़तोड़ ऊंचे लोगों के लिए वंदेभारत ट्रेनों का उद्घाटन कर रहे हैं जिन की रफ्तार आम ट्रेनों से 10-20 किलोमीटर रखें प्रति घंटा ही ज्यादा है पर दाम बहुत ज्यादा हैं ताकि मजदूर किस्म के लोग उस में सफर न कर सकें.

आजकल नई ट्रेनों, स्टेशनों, प्लेटफार्मों, तीर्थ यात्रियों के दल जाने पर प्रधानमंत्री खुद मौजूद रहते हैं इसलिए रेलवे की सारी सोच इस पर है कि रेलें नईनई चलाई जाएं, स्टेशनों में एयरकंडीशंड लाउंज बनें, लक्जरी सामान बिके, खाना मंहगा हो, पिज्जा, वर्गर मिले. पहले की तरह प्लेटफार्म पर ठेलों पर कुछ रुपए में 6 पूरी और सब्जी मिलना बंद हो गया है. यही हाल ट्रेन में डब्बों का है. ट्रेनें अमीरों के लिए चह रही हैं जिन्हें दिखावट चाहिए, सुरक्षा का ख्याल भी नहीं करते वे.

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