Family Story In Hindi: झूठी शान

Family Story In Hindi: अपने फ्लैट की बालकनी में दीपा खड़ी दिखाई दी. वह वहीं से आवाज देती हाथ के इशारे से बुला रही थी, ‘‘दीदी, ओ दीदी. कहां जा रही हो? आओ न… बगल से आने की सीढ़ी है.’’

रेखा चंद पलों तक दीपा को देखती रह गई. पहले से उस का रंग साफ हो गया था. जिस्म पर मांस भी चढ़ आया था. गाल भर आए थे. बाल भी ढंग से संवार रखे थे. कत्थई रंग की साड़ी और नीले ब्लाउज में वह खिल रही थी.

पहले दीपा गंवारों की तरह रहती थी. बातें भी बेवकूफों की तरह करती थी. चेहरा हमेशा तना रहता. अपने को ‘किराएदार’ समझ कर दुखी रहती. कभीकभार ऐंठ कर कह भी देती, ‘‘भाड़ा दे कर रहती हूं मुफ्त में नहीं…’’ तब वह रेखा के मकान में ही किराएदार की हैसियत से रहती थी.

तब रेखा ने दीपा को मकान देने से पहले सोचा था कि दोनों सहेलियों की तरह रहेंगी. उस ने कभी मकान मालकिन होने का रोब भी नहीं गांठा था. पर न जाने क्यों दीपा हमेशा दबीदबी रहती थी. अपने पति रमेश को डब्बा थमा कर कारखाने भेजती और कमरे में कैद हो जाती, टैलीविजन से दिल बहलाती.

कभीकभी दीपा सुनाती, ‘‘मेरा अपना मकान होता तो उसे सलीके से सजाती, कीमती साजसामान रखती.’’
रेखा कह देती, ‘‘हम ने तो मकान बनाने में ही इतने रुपए खर्च कर दिए कि नया और कीमती सामान खरीद ही नहीं पाए. प्रशांत की नौकरी से मकान बन गया, यही काफी है. अब आधा हिस्सा भाड़े पर उठा दिया है कि हाथ तंग न रहे.’’

भाड़े का नाम सुनते ही दीपा भड़क उठती. मुंह टेढ़ा कर लेती. तब रेखा कहती, ‘‘दीपा, मैं ने तुम्हें भाड़े के लिए नहीं, साथ हंसनेबोलने और अकेलापन दूर करने के लिए रखा है. प्रशांत दफ्तर जाते हैं तो मैं अकेली घर में रहती हूं. कोई दूसरा तो है नहीं कि गपशप मारूंगी. तुम्हारे पति भी दिन में काम पर जाते हैं. क्यों नहीं आ जाती मेरे पास… या अपने दरवाजे खुले रखो, मैं ही आ बैठूंगी.’’

‘‘मैं बंद कमरे में किसी दूसरे को ले कर पड़ी तो नहीं रहती न दीदी. कामकाज से थकी रहती हूं बस, आंख लग जाती है.’’

‘‘हंसनेबोलने से भी थकान दूर हो जाती है.’’

‘‘तुम अपने को बड़ी गुणी और तेज समझती हो दीदी… यही मुझे अच्छा नहीं लगता,’’ दीपा की बातों से रेखा झुंझला जाती.

‘‘दीपा, तुम्हें अगर मैं अच्छी नहीं लगती और तुम सहेली बन कर नहीं रह सकती तो कहीं और मकान ढूंढ़ लो.’’

तब दीपा ऐंठ कर बोलती, ‘‘दिखाने लगी न मालिकाना रुख.’’

फिर कुछ महीने बाद दीपा दूसरे मकान में चली गई. उस की जगह सुधा आ गई. वह बातबात में हंसनेहंसाने वाली और सलीकेदार औरत थी.

रेखा सुधा के साथ सीढि़यां चढ़ कर ऊपर आई. दीपा ने मुसकराते हुए पूछा, ‘‘आप कौन?’’ उस ने सुधा के बारे में जानना चाहा.

सुधा बोली, ‘‘मैं दीदी की किराएदारिन हूं. बड़ा सुखचैन है इन के यहां…’’

‘‘सुखचैन?’’ दीपा हंस पड़ी, ‘‘यहां जैसा तो नहीं होगा. यहां कंपनी की बिजली और पानी है. वहां की तरह बारबार बिजली गायब नहीं हो जाती कि अंधेरे में रहो और गरमी सहो. फिर वहां तो कुएं का पानी पीना पड़ता है.’’

रेखा को दीपा की बात तीर सी लगी. उसे महसूस हुआ जैसे दीपा ने शायद उसे जलील करने के लिए बुलाया है. सच ही उस का मकान कंपनी के इलाके से बाहर था, इसलिए सरकारी बिजली लेनी पड़ी थी, जो आतीजाती रहती थी.

दीपा ने दोनों को सोफे पर बैठाया. पहले सोफा नहीं था. शायद फ्लैट में आने के बाद नया ले लिया था.

फिर दीपा दूसरे कमरे में गई और 2 गिलासों में फ्रिज का ठंडा पानी ले आई. 2 प्लेटों में बिसकुट और नमकीन भी थी.

‘‘दीदी, चाय बनाऊं या कौफी? कहो तो शरबत…?’’

‘‘नहींनहीं… यही काफी?है,’’ रेखा जल्दी से बोली.

‘‘मेरी बचत की न सोचो दीदी, भले ही खुद बचत कर के कोठी बना लो,’’ दीपा हंस कर बोली. रेखा भला क्या बोलती, वह सुधा की ओर देखने लगी.

पानी पीते हुए रेखा पूछ बैठी, ‘‘दीपा, क्या कंपनी की ओर से यह फ्लैट मिला है?’’

‘‘नहीं, भाड़े पर लिया है. इन के एक दोस्त को मिला था. पर उस का अपना मकान है, बस्ती में. वह फ्लैट में आना नहीं चाहता था, सो हमें भाड़े पर दे दिया. 1 लाख रुपए ‘पगड़ी’ दे कर 5,000 देने पड़ते हैं हर महीने.

‘‘बड़ा आराम है यहां. न कोई झिकझिक न कोई दबाव और न ही कोई ‘किराएदार’ कहने वाला. हम तो अपने रहनसहन को ऊंचा उठाने में लगे हुए हैं.’’

फिर वह ताना सा देती हुई बोली, ‘‘दीदी, हमारे ठाटबाट देख कर जलन तो तुम्हें हो ही रही होगी. तुम भी न जाने क्यों बस्ती में रहने पर तुली हो. अरे, अपना मकान है तो क्या हुआ ऐसा सुख तो नहीं है न वहां? देखो, चारों ओर कितना खुलाखुला है.’’

रेखा भी थोड़ी देर के लिए उदास दिल से सोचने लगी, ‘सच, अब तक मकान बनाने में रुपए फेंकती रही, कभी बढि़या सामान से घर भरने के लिए सोचा ही नहीं. सिर्फ टैलीविजन, पंखा, कुरसी, मेज होने से क्या होता है, फ्रिज, कूलर, सोफा वगैरह भी होना चाहिए.

‘पता नहीं क्यों, प्रशांत के सिर पर शानदार मकान बनाने का भूत सवार है. अब तो दूसरी मंजिल की तैयारी चल रही है.’

‘‘दीपा, अब मैं चलती हूं,’’ थोड़ी देर बाद रेखा बोली.

‘‘क्यों, सिरदर्द होने लगा है क्या?’’

‘‘नहीं, बाजार जाना है.’’

‘‘क्यों दीदी, तुम्हारे पति को कंपनी की ओर से कब तक फ्लैट मिलेगा?’’

‘‘अभी कुछ पता नहीं.’’

रेखा मन पर ढेर सारा बोझ ले कर बाहर आ गई. सुधा पर भी शायद असर हुआ था. वह बोली, ‘‘दीदी, मेरे पति को भी क्वार्टर मिलेगा तो चली जाऊंगी.’’

‘‘चली जाना, रोकूंगी नहीं.’’

‘‘बुरा तो नहीं मान गईं?’’

‘‘नहीं, जो सच है, उसे मानना ही होगा न.’’

रेखा का दिल दुखी सा हो गया. वह थोड़ी सी सब्जी ले कर घर लौट आई.

प्रशांत घर में ही था. वह मिस्तरी से ऊपरी मंजिल के बारे में बात कर रहा था.

‘‘क्या बात है रेखा? उदासउदास सी क्यों लग रही हो?’’ प्रशांत उस के पास आ खड़ा हुआ.

‘‘दीपा मिली थी… अरे वही, पहले वाली किराएदारिन.’’

‘‘तो क्या हुआ?’’

‘‘उस के ठाट देखते ही बनते हैं. क्या नहीं है उस के घर में? फ्लैट में रहती है. फ्रिज, कूलर, सोफा, अलमारी, मिक्सी सब है. अपने यहां क्या है? तुम तो सिर्फ घर बनाने में लगे हो.’’

प्रशांत हंस पड़ा, ‘‘रेखा, कहो तो काम बंद कर दूं और कल ही उठा लाऊं सब सामान. पर सोचता हूं कि पहले शानदार मकान पूरा हो जाए. इस से हमारी शान बढ़ेगी, दोस्तों और रिश्तेदारों में इज्जत होगी.’’

रेखा ने प्रशांत से बहस न की. वह महसूस करने लगी कि वह अपनी जगह सही है पर दीपा के ताने उसे अब भी कांटों से चुभ रहे थे.

रेखा यह भी सोच रही थी, ‘प्रशांत को जब कंपनी की ओर से फ्लैट या क्वार्टर मिलेगा तो उस में जा कर रहनसहन को ऊंचा उठाने की कोशिश करेगी.’

उस ने एक दिन प्रशांत से पूछा, ‘‘तुम्हें कब क्वार्टर मिलने वाला है?’’

‘‘क्या तुम यहां से भागना चाहती हो? दीपा ने शायद तुम्हें दुखी कर दिया है?’’ प्रशांत बोला.

अपनी कमजोरी पकड़ी जाती देख वह उठ कर पानी पीने लगी. फिर बोली, ‘‘कुएं का पानी कुछ खारा लगता है. साफ करा देना या ब्लीचिंग पाउडर डलवा देना.’’

‘‘4 महीने पहले ही तो कुआं साफ कराया था.’’

‘‘एक फ्रिज लेना ठीक रहेगा.’’

‘‘ले लेंगे. वैसे कुएं का पानी गरमी में ठंडा और जाड़े में गरम रहता है.’’

एक दिन सुधा बोली, ‘‘दीदी, एक अच्छी सी साड़ी खरीदनी है… बाजार चलो न.’’

सुधा की जिद पर रेखा तैयार होने लगी. उसे कीमती साड़ी में देख सुधा पूछ बैठी, ‘‘दीदी, हम किसी बरात में तो नहीं जा रहे हैं?’’

‘‘अरे दीपा मिल गई तो मुझे टोक देगी. साधारण साड़ी में देख फब्ती कसेगी. उस का ठिकाना नहीं कि कब क्या बोल दे.’’

दोनों चल पड़ीं. दीपा का फ्लैट निकट आता जा रहा था.

‘‘दीदी, दीपा के घर के सामने औरतों की भीड़ क्यों है? चलो देखें तो,’’ सुधा बोली. फिर दोनों उधर बढ़ गई.

कुछ औरतें एक सब्जी बेचने वाले को घेर कर खड़ी थीं. उन के बीच दीपा का चेहरा लाल हो रहा था.

रेखा और सुधा को देख कर दीपा झल्ला कर बोली, ‘‘अरे सब्जी वाले, मैं भाग तो नहीं रही हूं. सिर्फ 300 के लिए मेरी बेइज्जती पर उतर आए हो. तनख्वाह मिलते ही पूरा चुकता कर दूंगी.’’

‘‘आप तो हर महीने यही कहती हैं बहनजी. पर देती नहीं… उलटे उधार लेती जाती हैं,’’ सब्जी वाला भुनभुनाता हुआ चला गया. दूसरी औरतें भी हंसती हुई चली गईं.

दीपा रेखा और सुधा को ऊपर ले गई. उन के बैठते ही बोली, ‘‘देखा न दीदी, बेइज्जती कर गया वह. ठीक
ही कहा गया है कि छोटों के मुंह नहीं लगना चाहिए.’’

‘‘तुम कौन सी बड़ी हो? बड़ी होती तो उधार नहीं लेती,’’ रेखा की बात से दीपा तिलमिला उठी. वह बोली, ‘‘तंगी तो हर किसी को होती है. सरकार भी उधार लेतीदेती है.’’

फिर दीपा ट्रे में 2 गिलास ठंडा पानी ले आई और बोली, ‘‘उन को बिसकुट लाने के लिए बोला था, पर नहीं लाए. रुकोगी तो शरबत बना दूंगी.’’

‘‘चलो, मैं तुम्हें बाजार में आइसक्रीम खिलाऊंगी,’’ रेखा ने कहा तो दीपा साथ चलने को तैयार हो गई. उस ने भी कीमती साड़ी पहन ली.

दुकान में घुसते ही मालिक दीपा की ओर देख कर बोला, ‘‘बहनजी, हम उधार देने से रहे… पहले ही 2,000 चढ़े हैं.’’

दीपा का चेहरा लाल हो उठा.

रेखा बोल उठी, ‘‘भाई साहब, हम नकद लेने आई हैं.’’

दीपा बीचबीच में रेखा को देख लेती थी. उस से नजर मिलाने की उस की हिम्मत नहीं हो रही थी.

आइसक्रीम खाते वक्त रेखा ने पूछ लिया, ‘‘क्यों दीपा, ज्यादा कर्ज तो नहीं चढ़ा लिया है, तू ने?’’

‘‘इस की परवाह मुझे नहीं. धीरेधीरे दूंगी. अपने को रुपयों की कमी नहीं. अभी हाथ तंग है. पिछले महीने मैं ने प्रेमलाल का उधार चुकता किया था.’’

‘‘प्रेमलाल को किसी प्यारेलाल से ले कर दिया होगा, यही हेराफेरी है न?’’ रेखा हंस पड़ी. दीपा का चेहरा देखते ही बनता था.

सुधा को भी हंसी आ गई, पर मुंह पर पल्लू रख लिया.

‘‘दीदी, इस में छिपाना क्या… तुम तो अपनी हो. एक बात कहूं?’’ दीपा बोली.

‘‘कहो,’’ रेखा ने कहा.

‘‘तुम मुझे 10,000 दे दो तो दूसरों के सारे कर्ज उतार दूं. उन लोगों से बातें तो नहीं सुननी पड़ेंगी. तुम्हारा कर्ज धीरेधीरे उतार दूंगी.’’

‘‘कहीं रुपए ले कर कीमती साड़ी खरीद लाई तो कर्जे रह जाएंगे. वैसे भी मैं मकान की दूसरी मंजिल बनाने में लगी हूं.’’

दीपा झुंझला गई, ‘‘तुम तो हमेशा मकान में ही रुपए लगाती रहती हो कि भाड़ा आता रहे. किसी की मदद करने से पहले भी तुम दूर रहती थीं. यह ठीक नहीं कि देखसुन कर भी बहाना बनाया जाए. अपना तो वह, जो दुख में साथ दे.’’

दीपा का साथ छूटते ही रेखा हंसने लगी. सुधा ने भी उस का साथ दिया.

घर में प्रशांत ने भी सुना तो हंस पड़ा. वह बोला, ‘‘रेखा, तुम्हारी बुनियाद मजबूत है और उन की खोखली.’’

मकान का काम पूरा हो गया तो रेखा ऊपरी मंजिल में रहने लगी. नीचे का हिस्सा किराए पर देने की सोच ही रही थी कि एक दिन दीपा आ गई.

रेखा ने पूछा, ‘‘कहो, कैसे आना हुआ?’’

‘‘तुम्हारे कुएं का पानी मीठा लग रहा है न, सो मेरा मन यहां आने को करने लगा है.’’ दीपा बोली.

‘‘मजाक मत करो.’’ रेखा बोली.

‘‘दीदी, तुम नीचे के 2 कमरे हमें ही किराए पर दे दो न… आधे में सुधा है ही. हम तीनों सहेलियों की तरह रह लेंगी. मजा भी आएगा.’’

‘‘बात क्या है, साफसाफ कहो?’’ रेखा ने पूछा.

‘‘फ्लैट मालिक हमें वह घर खाली करने को कह रहा है.’’

‘‘तुम्हारा दिल यहां नहीं लगेगा. फिर रहनसहन में भी फर्क आ जाएगा.’’

‘‘यह कहो न कि देने का मन नहीं. सोचती हूं कि तुम ही ठीक हो. तुम्हारा अपना मकान है, किसी का रोबदाब नहीं. भाड़े का झंझट नहीं… कहीं भाड़े का मकान खोजने की भागदौड़ नहीं.’’ दीपा बोली.

रेखा समझ न सकी कि क्या जवाब दे. वह उस की आदतें अच्छी तरह जानती थी.

प्रशांत ने ही हल ढूंढ़ निकाला. वह बोला, ‘‘4-5 महीने में मुझे कंपनी की ओर से क्वार्टर मिल जाएगा. तुम उसे ही ले लेना. इस से तुम्हारा रहनसहन भी ऊंचा रहेगा.’’

‘‘कितनी पगड़ी देनी होगी?’’ दीपा ने पूछा

ढाई लाख का रेट चल रहा है, ऊपर से भाड़े के 6,000 रुपए.’’

‘‘मैं पगड़ी तो नहीं दे सकूंगी. वैसे आप सब अपने हैं… और अपनों से क्या लेना. हां, भाड़े के दे दूंगी.’’

‘‘अगर रहनसहन ऊंचा बनाए रखना है तो खर्च से डर क्यों? क्वार्टर लेने के लिए लोग पगड़ी और भाड़ा ले कर पीछे घूमते रहते हैं,’’ प्रशांत मुसकराया.

फिर एक दिन पता चला कि दीपा पर ढेर सारा कर्ज है. उस ने कर्ज चुकाने के लिए फ्रिज, अलमारी और सोफा बेच दिया है.

एक बार रेखा सुधा के साथ दीपा के फ्लैट पर गई तो पता चला कि वह वहां से एक बस्ती में रहने चली गई है. वहां अब वह एक कमरे में ही रह रही है, 2,000 रुपए किराया दे कर.

रहनसहन ऊंचा करने के चक्कर में कर्जदार हो कर वह नीचे ही गिरी थी. Family Story In Hindi

Social Story In Hindi: जाति क्यों नहीं जाती

Social Story In Hindi, लेखक – शकील प्रेम

रघुराम छोटी जाति का था. उस का बेटा सिपाही भरती हुआ, तो उस ने भोज कराया, पर ऊंची जाति का जानकीदास भोज में नहीं आया. उसे निराशा हुई. इसी बीच जानकीदास और एक ठेकेदार गंगू में घर की बिजली का ठेका हुआ, पर जानकीदास ने उसे कम पैसे दिए. यह मामला डीएम तक गया. क्या मामला सुलझ पाया?

रघुराम के बेटे का सिपाही पद के लिए सिलैक्शन हुआ था. घर वाले बहुत खुश थे. उन्हें अपने होनहार लड़के पर गर्व था. दौड़ में वह पूरे राज्य में 9वें नंबर पर आया था. 2 दिन पहले लड़के का जौइनिंग लैटर भी आ चुका था. तब से रघुराम के परिवार में खुशी का माहौल था. यह अलग बात थी कि घूस देने में जमीन चली गई थी, लेकिन अब रघुराम को इस का कोई मलाल नहीं था.

गांव की जिस बस्ती में रघुराम रहता था, वहां के लिए यह बहुत बड़ी बात थी, क्योंकि उन लोगों की पूरी बस्ती में एक भी सरकारी नौकरी वाला नहीं था. पहली बार उन की जाति का कोई लड़का सिपाही बनने वाला था.

हालांकि, उसी गांव के कई दबंग परिवारों में बड़ीबड़ी नौकरियां थीं. कोई प्रोफैसर, तो कोई दारोगा. टीचर तो कई थे. कुछ रेलवे में भी थे, लेकिन इस दलित बस्ती में यह पहली सरकारी नौकरी थी.

रघुराम ने इस खुशी में भोज का आयोजन किया, जिस में उस ने बड़े लोगों को भी न्योता दिया. जानकीदास को भी न्योता दिया गया, लेकिन उस के घर से कोई नहीं आया, तो रघुराम को इस बात से बहुत दुख पहुंचा.

रघुराम अगले कई दिनों तक अपनी बस्ती के लोगों से कहता रहा, ‘‘अरे, ये बड़े लोग जब भी कोई काम कहते हैं हम बिना मोलभाव किए कर देते हैं, लेकिन आज मेरे बेटे की नौकरी से इन की छाती सुलग गई है.

‘‘अब देखते हैं, इन बड़े लोगों का काम कौन करता है? अब सब से पहले दिहाड़ी तय होगी, उस के बाद ही कोई काम होगा.’’

रघुराम ने पूरी बस्ती को चेता दिया था कि उन लोगों का कोई भी काम हो तो नहीं करना है. अगर करना ही पड़ जाए तो पहले मजदूरी तय कर के ही करना है. किसी से अब कोई लागलपेट नहीं रखना है.

रघुराम अपनी बस्ती में पहले से ही रोबदाब रखता था. अब तो वह एक सिपाही बेटे का बाप हो चुका था, इसलिए बस्ती पर उस का रोब सीधे डबल हो गया था.

एक महीने के बाद एक सुबह रघुराम हाथ में थैला लिए घर का सामान लेने पास की किराना की दुकान की ओर जा रहा था कि तभी उस के कानों में आवाज आई, ‘‘रघु चाचा…’’

रघुराम ने मुड़ कर देखा तो वह गंगू था जो उस की ओर साइकिल लिए चला आ रहा था.

‘‘चाचा, तुम से एक जरूरी काम है,’’ गंगू बोला.

‘‘इतना भी क्या जरूरी काम है? मैं दुकान से कुछ सामान लेने जा रहा हूं,’’ रघुराम बोला.

‘‘चाचा, तुम सामान ले कर आ जाओ, मैं तुम्हारे घर बैठा हूं,’’ गंगू ने कहा.

‘‘ठीक है, तू घर चल. मैं 10 मिनट में आ रहा हूं,’’ रघुराम बोला.

एक घंटे के बाद रघुराम हाथमुंह धो कर घर की चारपाई पर गंगू के साथ बैठा चाय पी रहा था.

‘‘हां गंगू, अब बोल कि तुझे क्या परेशानी है?’’ रघुराम ने पूछा.

‘‘चाचा, जानकीदास का जो नया मकान बना है न, मैं ने उस मकान में बिजली का ठेका लिया था, जो 20,000 रुपए में तय हुआ था. लेकिन अब काम पूरा हो गया तो जानकीदास ने 6,000 रुपए थमाए और बोला कि इस से ज्यादा की मेरी औकात नहीं है.’’

गंगू के मुंह से इतना सुनते ही रघुराम को गुस्सा आ गया और वह बोला, ‘‘मैं ने पहले ही तुम लोगों से कहा था कि इन ऊंचे लोगों का कोई भी काम मेरे बिना पूछे नहीं करना है, लेकिन अब मेरी सुनता कौन है. अब जाओ रोओ, मरो मैं क्या कर सकता हूं…

‘‘अगर तुम ने मुझे पहले बताया होता तो जानकीदास की इतनी मजाल नहीं होती…’’ रघुराम ने कहा.

गंगू ने कहा, ‘‘चाचा, मुझ से गलती हो गई. मुझे माफ कर दो और मेरा बकाया पैसा दिलवा दो. पूरा नहीं तो 6,000 रुपए और मिल जाएंगे, तो मेरा काम बन जाएगा.’’

‘‘ठीक है, पहले तू चाय पी ले, उस के बाद चल मेरे साथ,’’ रघुराम ने कुछ सोचते हुए कहा.

जानकीदास के घर पर रघु ने काफी हंगामा खड़ा किया.

जानकीदास बोला, ‘‘इस गंगू ने मेरे पूरे मकान का सत्यानाश कर दिया. जब इस को बिजली का काम आता ही नहीं तो क्यों जिम्मेदारी ली. बल्ब का बटन दबाओ तो पंखा चलता है. बाथरूम में भी ठीक से वायरिंग नहीं की. बाकी सारा काम भी उलटासीधा किया है. सब दोबारा करवाना पड़ेगा.’’

गंगू बोला, ‘‘नहीं रघु चाचा. यह सरासर ?ाठ है. मैं पिछले 5 साल से यही काम कर रहा हूं. गुजरात, दिल्ली और पंजाब तक में मैं ने काम किया है. पिछले महीने ही महाराष्ट्र से काम खत्म कर के आया हूं.

‘‘मैं गांव आया तो इन्होंने ही मु?ा से कहा कि बिजली की फिटिंग का काम बाकी है. चलो, तुम कर दो. 20,000 रुपए में ठेका हुआ. काम पूरा हो गया तो इन्होंने खुद ही कनैक्शन उलटासीधा कर दिया, ताकि मेरे काम में गलती निकाल कर पूरे पैसे न देने पड़ें.’’

रघुराम ने गंगू की ओर से जानकीदास पर अपनी सारी भड़ास निकाल दी. बात बनने के बजाय और बिगड़ गई. मामला बातचीत से शुरू हो कर हाथापाई तक पहुंच गया. किसी तरह मास्टरजी के बीचबचाव के बाद दोनों अलग हुए.

इस के बाद जानकीदास ने एक फूटी कौड़ी और देने से इनकार कर दिया और बोला, ‘‘तेरा बेटा सिपाही बना है तो इतना घमंड और अगर वह ससुरा कलक्टर बन गया होता तब तू न जाने क्या करता. जा, तुझे जो करना है कर ले, अब एक फूटी कौड़ी भी मैं इस गंगू को नहीं दूंगा.’’

रघुराम के लिए अब बात महज चंद रुपयों की नहीं रह गई थी, बल्कि उस की इज्जत का सवाल बन गया था. उसे अब हर हाल में जानकीदास को सबक सिखाना था.

रघुराम अपनी बस्ती के कुछ लोगों को ले कर थाने पहुंचा और हरिजन ऐक्ट में मारपीट का मामला दर्ज कराने की कोशिश की, लेकिन दारोगा को पहले ही खबर मिल चुकी थी. उस ने रघुराम को समझाया और किसी तरह उसे वापस घर भेज दिया.

घर पहुंच कर रघुराम को लगा कि दारोगा और जानकीदास की जाति एक होने की वजह से दारोगा ने उस की नहीं सुनी.

अगले दिन रघुराम अपने साथ कुछ लोगों को ले कर सीधे डीएम के यहां पहुंचा. डीएम से मुलाकात होने पर रघुराम ने कहा, ‘‘हमारे गांव के कुछ ऊंची जाति के लोगों ने हमारा जीना दूभर किया हुआ है. वे हम से छुआछूत करते हैं और काम करवा कर पूरा पैसा नहीं देते हैं. पैसा मांगने जाओ तो मारते हैं.’’

डीएम ने कहा, ‘‘कल हमारा उस तरफ का दौरा भी है, इसलिए हम कल 12 बजे तक तुम्हारे गांव आएंगे. तुम अभी जाओ.’’

रघुराम घर लौट आया, लेकिन उसे डीएम की बात पर रत्तीभर भी यकीन नहीं था. उसे लगा कि उस ने उसे बेवकूफ बना कर भगा दिया है.

अगले दिन रघुराम अपनी चारपाई पर बैठा बस्ती के कुछ लोगों के साथ बात कर रहा था कि तभी गंगू हड़बड़ाता हुआ उस के दरवाजे पर पहुंचा और चिल्ला कर बोला, ‘‘डीएम साहब आए हैं. प्रधान के यहां बैठे हैं. तुम्हें बुला रहे है. दारोगा भी हैं साथ में और डीएम साहब ने जानकीदास को भी बुलाया है.’’

थोड़ी देर में प्रधान के घर लोगों का मजमा लगा हुआ था. बाहर डीएम की गाड़ी के साथ 4-5 गाडि़यां और लगी हुई थीं. डीएम साहब सामने कुरसी पर बैठे थे. दारोगा और प्रधान दोनों चारपाई पर बैठे थे. सामने वाली चारपाई पर जानकीदास और कुछ और लोग थे.

रघुराम ने दारोगा की ओर देखे बिना सीधे डीएम साहब को नमस्कार किया और खाली पड़ी कुरसी पर बैठ गया.

डीएम साहब की फटकार के बाद जानकीदास ने गंगू के बकाया पैसे दे दिए. डीएम साहब ने रघुराम से कहा, ‘‘अब से कोई भी मजदूरी रोके तो सीधे डीएम औफिस चले आना, सब को ठीक कर दूंगा. अब तो तुम्हें कोई शिकायत नहीं होनी चाहिए, फिर भी और कोई शिकायत है, तो अभी बता दो.’’

रघुराम ने कहा, ‘‘ये लोग हम से छुआछूत करते हैं. हमारे यहां भोज नहीं करते, क्योंकि हम निचली जाति के हैं. इस जानकीदास से पूछो. मेरे बेटे की नौकरी लगने की खुशी में मैं ने भोज किया था. जानकीदास को न्योता भेजा था, लेकिन यह नहीं आया, क्योंकि मैं छोटी जाति से हूं न.’’

डीएम साहब ने पूछा, ‘‘तुम किस जाति से हो?’’

रघुराम ने जवाब दिया, ‘‘मल्लाह.’’

डीएम ने फिर पूछा, ‘‘तुम्हारी बस्ती में और कौनकौन सी जातियां हैं?’’

रघुराम बोला, ‘‘हमारी बस्ती में केवल हमारी जाति के ही लोग रहते हैं. दूसरी छोटी जाति के लोगों का टोला अलग है.’’

डीएम ने बाल्मीकि टोले से एक आदमी को बुलाया और उस से पूछा, ‘‘तुम्हारा नाम क्या है?’’

‘‘जी हुजूर, मेरा नाम भुवन है,’’ उस आदमी ने हाथ जोड़ कर कहा.

डीएम साहब ने कहा, ‘‘भुवन, जाओ और अपने घर से एक थाली में खिचड़ी बनवा लाओ.’’

भुवन ने आदेश का पालन किया. थोड़ी देर में वह थाली हाथ में लिए हाजिर था, जो अब भी थोड़ी गरम थी. सब लोग इस नजारे को हैरत भरी निगाहों से देख रहे थे.

डीएम ने प्रधान के यहां से चम्मच मंगवाया और पहले खुद 2-3 चम्मच खिचड़ी खाई, फिर दारोगा को बोला
कि खाओ तो दारोगा ने भी 2 चम्मच खिचड़ी निगल ली. उस के बाद डीएम ने जानकीदास से कहा, ‘‘लो भई, तुम भी खाओ.’’

न चाहते हुए जानकीदास ने भी एक चम्मच खिचड़ी खा ही ली. अब बारी रघुराम की थी. डीएम ने थाली उस के आगे बढ़ा दी और बोले, ‘‘लो, तुम भी खाओ. भुवन ने बड़ी स्वाद खिचड़ी बनाई है.’’

भुवन ने कहा, ‘‘नहीं सरकार, मैं ने नहीं बनाई, बल्कि मेरी बीवी ने बनाई है. जल्दबाजी में शायद थोड़ी कच्ची रह गई है.’’

डीएम साहब ने कहा, ‘‘अरे नहीं भुवन, ऐसी खिचड़ी तो मैं ने जिंदगी में पहली बार खाई है. लाजवाब है.’’

डीएम साहब ने थाली रघुराम के सामने रख दी, लेकिन उसे तो जैसे सांप सूंघ गया था. उस के सामने खिचड़ी पड़ी रही, लेकिन उस ने उसे हाथ तक नहीं लगाया.

थोड़ी देर इंतजार करने के बाद डीएम साहब ने रघुराम के सामने से थाली उठा ली और प्रधान के यहां से थोड़ा अचार मंगा कर खुद ही बची हुई खिचड़ी डकार गए.

डीएम साहब जाने लगे तो उन्होंने जानकीदास से कहा, ‘‘जातिवाद हमारे समाज की काली सचाई है. जब तक तुम जैसे लोग अपने श्रेष्ठ होने का भरम पाले रखोगे, तब तक यह सामाजिक कलंक बना रहेगा, इसलिए जितनी जल्दी हो सके अपना जातीय दंभ छोड़ कर इनसान बन जाओ.’’

जातेजाते डीएम साहब ने रघुराम से भी कहा, ‘‘जातिवाद खुद को दूसरों से श्रेष्ठ समझने की एक दिमागी बीमारी भी है, जिस से पूरा समाज ग्रसित है. तुम दूसरों के बदलने की उम्मीद तब तक नहीं कर सकते, जब तक तुम खुद इस बीमारी से न निकल जाओ, इसलिए आज के बाद कभी भी किसी से भी जातिवाद या छुआछूत की शिकायत मत करना.

‘‘पहले तुम खुद इस बीमारी से नजात पा जाओ, उस के बाद ही किसी और से इस की उम्मीद करना. जब तक तुम्हारा बरताव तुम से नीचे के लोगों के प्रति जायज नहीं है, तब तक तुम्हें अपने से ऊपर के लोगों पर उंगली उठाने का कोई हक नहीं है.’’

शर्मिंदा रघुराम नजरें नीची किए वहीं खड़ा रहा. Social Story In Hindi

Funny Story In Hindi: नाक के नीचे

Funny Story In Hindi: दुनिया में बहुत तरह की नाक होती हैं. लंबी नाक, मोटी नाक, पतली नाक वगैरह. नाक की बनावट भौगोलिक हालात और आबोहवा के असर के चलते भी अलगअलग होती है.

हमारे देश में बहुत सी बातें कहीं गई हैं, जो मुहावरों में देखीसुनी और पढ़ी जाती हैं. नाक का बाल होना. मतलब बहुत ही खास शख्स होना. नाकों चने चबवाना. मतलब बहुत ज्यादा परेशान करना. क्रिकेट और दूसरे खेलों में लोग देश की इज्जत बचाने की बात को नाक बचाना कह लेते हैं.

अजीब बात है कि जिस नाक को हम जिंदगीभर बहुत देर तक देख भी नहीं पाते, उस को ले कर जान दिए रहते हैं. दिनभर में एक बार अगर गलती से भी अपनी नाक को कभी ढंग से हम देख पाएं, तो शायद यह बहुत बड़ी बात होगी. ऐसा सब के साथ होता है.

कभी आप रोजमर्रा की जिंदगी से समय निकाल कर देखिएगा. आप अपनी नाक को एक मिनट भी ठीक से नहीं देख पाते. जिस नाक को हम अपनी दोनों आंखों की पुतलियों को बहुत सीधा कर के भी नहीं देख पाते, उसी नाक के लिए हम जिंदगीभर लड़ते रहते हैं.

यह आखिर है क्या? यकीनन हमारी खीझ. इसी को हम नाक कहते हैं. जब हम बेबस हो जाते हैं और अपनी खीझ को नहीं मिटा पाते हैं, तो नाक का सवाल बना लेते हैं. अपनों से, खासकर रिश्तेदारों से हम मनमुटाव कर लेते हैं. उन के जैसा मकान, उन के जैसी कार, उन के जितनी पगार, उन के जितना बैंक बैलेंस जब तक नहीं हो जाता, तब तक हम नाक उठा कर नहीं चल सकते. हमारे सामने भला उन की औकात ही क्या है?

इसी नाक के लिए आदमी तीन की जगह तेरह देने को तैयार हो जाता है. टैंडर मुझे मिलना चाहिए. नुकसान होगा तो होगा. बहुत कमाया है. इस बार घर से घाटा देंगे, लेकिन तुम को खत्म कर देंगे. बच्चू, तुम को यह टैंडर नहीं लेने देंगे. तुम को नाकों चने चबवा देंगे. हो किस फेर में. अपना माल खरीद के दाम पर बचेंगे, लेकिन तुम को नहीं बेचने देंगे.

लोग आन में कान कटाने को तैयार रहते हैं, लेकिन आन में कान नहीं कटता, बल्कि नाक कट जाती है और उन को पता भी नहीं चलता.

खापों में नाक बहुत ऊंची है. उन के फैसले नाक के लिए किए जाते हैं. वहां औनर किलिंग आम बात है. नाक के लिए जिंदा लोग टांग दिए जाते हैं, नहीं तो टंग जाते हैं. हुक्कापानी बंद होने का खतरा है. समाज से खदेड़े जाने का डर. रोटीपानी, दियासलाई न मिल पाने का दुख.

कहते हैं कि कुत्ते की नाक बहुत तेज होती है, लेकिन कुत्तों में नाक के लिए लड़ाई नहीं होती. कुत्ते नाक के लिए नहीं लड़ते. आदमी नाक के लिए लड़ता है. इतना लड़ता है कि लड़तेलड़ते वह आदमी से कब जानवर बन जाता है, उस को पता ही नहीं चलता. इस मामले में कुत्ते आदमी से ज्यादा समझदार हैं. कम से कम बेअक्ल हो कर अक्ल वालों को मात दे रहे हैं.

औरतों की नाक बहुत तेज होती है. वे गांवसमाज में सूंघ लेती हैं कि किस का किस से चक्कर चल रहा है. किस का पेट कितने महीने का है. किस के घर में बाप और बेटे की नहीं बन रही है. किस घर में सासबहू में अनबन है. गांवसमाज की औरतों के नाक के सूंघने की ताकत सब से ज्यादा होती है.

सत्तासीन या सरकार में बैठे लोग बड़ेबड़े घोटालों को अंजाम दे देते हैं और यह उसी नाक का कमाल है कि जिन प्रशासनिक अमलों की नाक के नीचे यह सब होता है, उन को कुछ पता ही नहीं होता है. Funny Story In Hindi

Story In Hindi: घुसपैठिए

Story In Hindi: सरहद पर पहुंचते ही सरगना ने कहा, ‘‘देखो, तुम सब घुसपैठिए हो. सामने हिंदुस्तान नाम की बहुत बड़ी सराय है. एक बार किसी तरह सीमा सुरक्षा बल से बच कर दाखिल हो जाएं, उस के बाद उस भीड़ भरे देश में कहीं भी समा जाओ. शासन और प्रशासन भ्रष्ट हैं ही. पैसा फेंको और अपने सारे कागजात बनवा लो.

राशनकार्ड, वोटरकार्ड और इस देश की नागरिकता हासिल.’’

एक घुसपैठिए ने पूछा, ‘‘आप तो कह रहे थे कि सरहद पार करवाने के लिए भारतीय सेना में हमारे कुछ मददगार हैं?’’

सरगना बोला, ‘‘हां हैं, लेकिन अभी उन की ड्यूटी नहीं है. मुझे दूसरी घुसपैठिया खेप भी भेजनी है. बहुत ज्यादा लोगों को एकसाथ नहीं भेज सकते. मेरा रोज का काम है. हर पड़ोसी देश से घुसपैठिए घुसते हैं.

कभी मीडिया वाले ज्यादा हल्ला मचाते हैं, तो कुछ सख्ती हो जाती है.’’

‘‘लेकिन अगर हम पकड़े गए तो?’’ घुसपैठिए ने पूछा.

‘‘कुछ नहीं होगा. तुम्हें वापस भेज दिया जाएगा. वैसे ऐसा होगा नहीं. कब, किस समय सरहद पार करनी है, मुझे सारी जानकारी है. एक बार घुस गए तो बात खत्म.

‘‘हां, अगर वहां पहुंच कर पहचानपत्र बनवाने में कोई समस्या हो तो फोन करना. अपने एजेंट हैं. सब हो जाएगा. चिंता करने की जरूरत नहीं.’’

यह नजारा भारतबंगलादेश की सरहद का है. यह नजारा भारत और पाकिस्तान की सरहद का भी हो सकता है. भारतश्रीलंका, भारतनेपाल की सरहद का भी. नेपालियों को तो वैसे भी खुली छूट है. इस देश में कोई भी कहीं से भी आ कर बस सकता है. घुसपैठिया बन कर घुसता है, फिर मूल निवासी बन कर अपने लोगों को बुलाता है, बसाता है और बसनेबसाने का यह सिलसिला लगातार जारी रहता है.

अचानक सरगना ने इशारा किया और घुसपैठिए भारत की सरहद में दाखिल हो गए. यहां काम दिलाने, बसाने के लिए उन के धर्म, जाति, भाषा वाले पहले से ही थे. फिर दलाल तो हैं ही. उन की आमदनी का जरीया है. उन का धंधा है.

न जाने कितने पाकिस्तानी, बंगलादेशी, नेपाली, श्रीलंकाई भारत के मूल निवासी बन कर यहां की आबादी बढ़ा रहे हैं. मूल निवासी की भूख और बेकारी पहले से ही है. उन की अपनी समस्याएं तो हैं ही, उस पर ये घुसपैठिए जो पूरा बैलेंस बिगाड़ कर रख देते हैं.

शरणार्थी आ ही रहे हैं. जो नियम से चलते हैं. कानून का पालन करते हैं, सो आज सालों बाद भी शरणार्थी बने हुए हैं. उन का अपना निजी कुछ भी नहीं है. जो गैरकानूनी तरीका अपनाते हैं वे मूल निवासी बन जाते हैं.

17 लाख शरणार्थी अकेले जम्मू में हैं. घुसपैठिए भी अपने देश की भूख बेकारी से दुखी हो कर रोटी, छत
की तलाश में घुसते हैं, वरना किसे पड़ी है अपनी जमीन, अपना देश छोड़ कर जाने की.

पूर्वोत्तर के इस राज्य में लाखों घुसपैठिए यहां की नागरिकता ले कर पूरे का पूरा शहर बसा चुके थे. इन्हें
20 सालों से ज्यादा हो गए यहां रहते हुए. इस धरती पर उन्होंने मकान बनाया. खेतीबारी की. जमीन खरीद कर किसान बने. उन के बच्चे यहीं की आबोहवा में पल कर बड़े हुए. यहीं उन की शादी हुई. उन के बच्चे हुए.

नेताओं को यह बात मालूम थी. वे इन्हें अपने वोट बैंक के रूप में भुनाते रहे और यह भरोसा देते रहे कि उन की सरकार बनी तो उन्हें यहीं का निवासी माना जाएगा. हर पार्टी यही कहती और सरकार बनने के बाद चुप्पी साध लेती.

40 साल के आसपास हो चुके थे, जब अहमद खान पूर्वोत्तर के इस राज्य में बसे थे. जब वे आए थे तो अपने कुछ रिश्तेदारों और साथियों के साथ यहां आ कर मजदूरी करना शुरू किया था. धीरेधीरे अपनी मेहनत से उन्होंने जमीन खरीदी. मकान खरीदा.

उस समय यहां के स्थानीय निवासियों ने भी उन की मदद की. यहीं उन की शादी हुई, फिर उन के बच्चों की शादियां हुईं. अब भरापूरा परिवार था. बंगलादेश को तो वे भूल चुके थे. उन का वहां कोई था भी नहीं.

जो थे उन्हें खोने में 40 साल का समय बहुत होता है. इसी धरती को वे अपना मानते थे. इसी को सलाम करते थे.

अब जबकि राजनीति दलों का दलदल बन चुकी थी. केंद्र और राज्य सरकार से ज्यादा क्षेत्रीय भाषा, जाति की राजनीति होने लगी थी. आबादी बढ़ने से क्षेत्रीय लोग पिछड़े और गरीब रह गए थे. उन के पास न जमीन थी, न रोजगार. वे दिल्ली में बैठी सरकार को कोसते रहते थे कि दूर पड़े किनारे के राज्यों के लिए सरकार ने कुछ नहीं किया.

यह कोसना उन्हें वहां के स्थानीय नेताओं ने सिखाया था. स्थानीय नेताओं के पास पड़ोसी देश से हासिल हथियार थे और बेरोजगार की फौज उन के पास थी. जो असंतुष्ट हो कर हथियार भी उठा चुके थे. जो हथियार उठाने की हिम्मत नहीं कर पाए, वे उन हथियारधारियों के समर्थन में थे. अपना विरोध वे अहिंसक तरीके से करते थे. नारा था भूमिपुत्र का.

भूमिपुत्र वे जो इस प्रांत, क्षेत्र का स्थायी निवासी है. भाषा, बोली, संस्कार, उस का है. जो उस जाति, धर्म से संबंधित है. यह ठीक वैसा ही नारा था जो आंध प्रदेश और महाराष्ट्र में उठता रहा है. बाहरियों को खदेड़ो. जो इसी देश के दूसरे क्षेत्रों से आए थे. रोजगार के लिए वे तो चले गए. मजदूर बन कर आए थे.

लेकिन अहमद खान जैसे लोग कहा जाएं? उन के पास तो यही जमीन, यही मकान, दुकान उन का मुल्क था. फिर उन्हें क्या पता था कि 40 साल बाद स्थानीय लोग ही जो कभी उन के मददगार थे, भाषा, भूमिपुत्र आंदोलन के नाम पर उन के दुश्मन बन जाएंगे.

हत्याओं, बम, धमाकों की खबर पूरे राज्य में फैल रही थी. दहशत का माहौल छाया हुआ था. अहमद खान खुद को बेवतन महसूस कर रहे थे. न जाने कब वे इस हिंसक आंदोलन की बलि चढ़ जाएं. वे करें तो क्या करें. जाएं तो कहां जाएं. उन के पास कोई रास्ता भी नहीं था. आखिर उन के पास संदेशा आ ही गया. वे उल्फा के कमांडर के सामने हाथ जोड़े खड़े थे.

कमांडर ने कहा, ‘‘यह धरती भूमिपुत्रों की है. खाली करो.’’

‘‘मैं 40 साल से यहां रह रहा हूं. यह धरती मेरी भी है. मैं भी भूमिपुत्र हुआ.’’

‘‘नहीं, न तो तुम असमिया हो, न तुम्हारे पूर्वज यहां के हैं. तुम्हारे रहने से हमारे हितों पर असर पड़ता है. यहां केवल यहां के लोग रहेंगे.’’

‘‘मैं नहीं जाऊंगा. पूरी जिंदगी यहीं गुजर गई.’’

‘‘नहीं जाओगे तो मरोगे,’’ कमांडर ने अपनी बात खत्म कर दी.

अहमद खान सोचते रहे कि उन का मुल्क कौन सा है? कुछ सालों में तो किसी भी देश की नागरिकता मिल जाती है, फिर उन्हें तो पूरे 40 साल हो गए. इस जगह के अलावा उन का कहीं कुछ भी नहीं है. वे अपना घरद्वार छोड़ कर जाएं तो कहां जाएं? क्या करेंगे? कहां रहेंगे?

टैलीविजन, रेडियो पर सरकार की तसल्ली आती रही कि सब ठीक हो जाएगा. डरने की कोई बात नहीं. आपसी बातचीत जारी है. पर सरकार की तसल्ली हर बार की तरह झूठी और खोखली रही.

एक रात भूमिपुत्र, विद्रोही अपने लावलश्कर के साथ उन की बस्ती में घुस आए. गोलियों, बमों की आवाजों के साथ चीखों की आवाज भी माहौल में गूंजने लगी.

अहमद खान अपनी जगह से टस से मस नहीं हुए. उन्होंने तय कर लिया था कि जहां 40 साल, सुख, परिवार के साथ गुजारे. वहां मौत आती है तो मौत ही सही. कोई माने या न माने, वे भी इस भूमि के पुत्र हैं. वे कहीं नहीं जाएंगे.

माहौल में बारूद की गंध फैलने लगी. मकान धूंधूं कर जलने लगे. औरतों और बच्चों की चीखें गूंजने लगीं.

चारों ओर खून ही खून बहने लगा. तभी 2-3 गोलियां अहमद खान के सीने में लगीं. एक लंबी कराह के साथ उन्होंने दम तोड़ दिया. Story In Hindi

Long Hindi Story: वे दो अनमोल दिन – आखिरी भाग

Long Hindi Story, लेखक – शकील प्रेम

पिछले अंक में आप ने पढ़ा था : विनय किराए की गाड़ी चलाता था. एक बार वह एक परिवार को मोतिहारी से पटना के रेलवे स्टेशन छोड़ने गया. उन में सुमन नाम की एक शादीशुदा औरत थी, जिस से परिवार वालों का रवैया बहुत गलत था. पटना रेलवे स्टेशन पर सुमन की ट्रेन छूट गई. उसे चेन्नई जाना था. फिर वह वापस विनय के साथ उस के घर चली गई, क्योंकि चेन्नई की गाड़ी 2 दिन बाद की थी. वहां सुमन और विनय में नजदीकियां बढ़ गईं. अब पढि़ए आगे…

घर पहुंच कर सभी ने साथ बैठ कर दोपहर का खाना खाया और खाना खाने के बाद विनय लता से बोला, ‘‘लता, तुम सुमन का खयाल रखना. मैं गाड़ी सर्विस करवाने जा रहा हूं. शाम तक वापस आ जाऊंगा.’’
विनय की बात सुन कर सुमन उदास हो गई. विनय भी सुमन की भावनाओं को समझ गया, लेकिन वह रुका नहीं.

शाम को 7 बजे विनय घर लौट आया. विनय को घर में देख कर सुमन के चेहरे पर ताजगी आ गई. सभी ने रात का खाना साथ खाया और काफी देर तक बातें करने के बाद सुमन को ले कर लता अपने कमरे में सोने चली गई और विनय अपने कमरे में बिस्तर पर लेट कर नींद आने का इंतजार करने लगा.

अगली सुबह नाश्ता करते वक्त विनय ने सुमन से कहा, ‘‘सुमन, तुम्हारी ट्रेन शाम 5 बजे की है, लेकिन हमें
10 बजे ही निकलना होगा. तुम जल्दी से तैयार हो जाओ.’’

सुमन इस घर से अलग कहीं नहीं जाना चाहती थी. विनय का छोटा सा परिवार उसे अपने परिवार जैसा लगने लगा था. चेन्नई के नाम से ही सुमन को नफरत थी, लेकिन वह जाती भी कहां?

4 बजे तक विनय पटना स्टेशन पर पहुंच चुका था. सुमन और विनय ने स्टेशन के पास वाले एक रैस्टोरैंट में खाना खाया और प्लेटफार्म नंबर एक पर आ कर ट्रेन का इंतजार करने लगे.

विनय सम?ा ही नहीं पा रहा था कि वह अपनी सब से कीमती चीज को ऐसी जगह क्यों भेज रहा है, जहां वह नहीं जाना चाहती. समय पर गाड़ी प्लेटफार्म पर लग गई और रिजर्वेशन के हिसाब से विनय ने सुमन को उस की सीट पर बिठा दिया.

सुमन ने विनय से कहा, ‘‘विनय, तुम मुझे अपने घर ले गए. तुम ने मेरी टिकट करवाई और फिर मुझे ट्रेन तक छोड़ने आए. तुम्हारा यह सारा कर्ज मैं जल्द तुम्हें लौटा दूंगी.’’

विनय ने कहा, ‘‘यह कर्ज नहीं, बल्कि मेरा फर्ज है. तुम पहुंच कर मुझे फोन कर देना.’’

ट्रेन खिसकनी शुरू हुई, तो विनय ने सुमन से विदा ली और सुमन का चेहरा देखे बिना ट्रेन से नीचे उतर गया. इस बीच वह सुमन का फोन नंबर भी नहीं ले पाया. यह पल विनय के लिए बेहद मुश्किल था.

ट्रेन खिसकनी शुरू हुई, लेकिन विनय काफी देर तक प्लेटफार्म पर ही बैठा रहा और उन पलों को याद करता रहा, जब सुमन उस के साथ थी.

विनय ट्रेन के पूरी तरह आंखों से ओझल हो जाने का इंतजार करता रहा कि तभी ट्रेन रुक गई. विनय प्लेटफार्म की बैंच से उठा और सुमन की एक झलक देखने के लिए उस के डब्बे की ओर दौड़ पड़ा, तभी उस ने देखा कि सुमन अपना सूटकेस लिए ट्रेन से नीचे उतर रही थी.

नजदीक पहुंच कर विनय ने हैरानी भरी आवाज में सुमन से पूछा, ‘‘सुमन, क्या हुआ? तुम ट्रेन से उतर क्यों गई?’’

सुमन ने विनय की ओर देखा और बोली, ‘‘मुजे चेन्नई नहीं जाना, इसलिए मैं ने ट्रेन की चेन खींच दी. मुझे घर ले चलो.’’

सुमन के मुंह से ‘मुझे घर ले चलो’ सुन कर विनय ने उसे गले से लगा लिया और उस का सूटकेस हाथों में थाम कर स्टेशन से बाहर निकल आया.

रात के 11 बजे विनय घर पहुंच गया. सुमन को दोबारा घर मे देख कर लता बेहद खुश थी. वह बोली, ‘‘मुझे पूरा यकीन था कि सुमनजी की ट्रेन फिर मिस हो जाएगी.’’

सुमन पहले से शादीशुदा थी. उसे विनय से शादी करने से पहले भगीरथ से तलाक लेना पड़ता, लेकिन एक औरत के लिए पति से तलाक हासिल करना इतना भी आसान नहीं था.

सुमन पढ़ीलिखी थी और कानून के बारे में उसे थोड़ीबहुत जानकारी थी. बिना शादी के सुमन और विनय एक छत के नीचे साथ भी नहीं रह सकते थे.

धीरेधीरे 15 दिन बीत गए. इस बीच भगीरथ ने सुमन को कई बार फोन किया. भगीरथ ने सुमन को डरायाधमकाया, लेकिन सुमन चेन्नई जाने को राजी नहीं हुई.

विनय सुमन से प्यार करता था और सुमन भी विनय को चाहने लगी थी, लेकिन बिना शादी के घर में साथ रहना मुश्किल था. एक शादीशुदा जवान औरत का घर में रहना विनय की मां को भी पसंद नहीं आ रहा था. विनय के जानने वाले भी तरहतरह की बातें बनाने लगे थे.

एक दिन सुमन ने विनय से कहा, ‘‘विनय, मेरे पास कुछ गहने हैं और कुछ कैश भी है. मुझे मोतिहारी मार्केट में किराए पर एक दुकान दिलवा दो. मैं लेडी गारमैंट्स की दुकान खोलना चाहती हूं. दुकान के आसपास ही मुझे एक कमरे का फ्लैट भी दिलवा देना, मैं वहीं रह लूंगी.’’

विनय को सुमन का यह आइडिया अच्छा लगा, लेकिन वह सुमन के गहने बेच कर उस की मदद नहीं करना चाहता था.

विनय अगले ही दिन बैंक गया. लता की शादी के लिए विनय ने बैंक में 10 लाख की एफडी करवाई थी, वह पूरी रकम निकलवा ली और अगले हफ्ते में ही मोतिहारी के जानपुल रोड पर सुमन की दुकान खुल चुकी थी. पास में ही सुमन के रहने के लिए एक फ्लैट भी मिल गया था.

सुमन बेहद खुश थी, लेकिन अब वह पूरी तरह विनय की कर्जदार हो चुकी थी.

लेडी गारमैंट्स की दुकान का फैसला सुमन के लिए बेहद अच्छा साबित हुआ. आमदनी होने लगी. हर महीने दुकान और फ्लैट का किराया देने के बाद भी सुमन के पास काफी रुपया बच जाता, जिसे वह अपने बिजनैस में लगा देती.

सुमन ने तय किया था कि लता की शादी के वक्त तक वह विनय के 10 लाख रुपए लौटा देगी. सुमन की तरक्की को देख कर विनय भी बेहद खुश था.

रविवार को सुमन की दुकान बंद रहती और उस दिन विनय भी छुट्टी कर लेता. दोनों पूरे दिन साथ रहते. पढ़ाई से वक्त निकाल कर लता भी सुमन की दुकान पर उस का हाथ बंटाती और कई बार सुमन अपनी दुकान बंद करने के बाद विनय के घर पहुंच जाती. सभी रात का खाना साथ खाते और खाना खा लेने के बाद विनय सुमन को उस के फ्लैट पर छोड़ आता.

धीरेधीरे 6 महीने बीत गए. एक दिन सुबह विनय अपने बिस्तर से उठा ही था कि घर के दरवाजे पर ‘खटखट’ की तेज आवाज उस के कानों तक आई.

विनय की मां ने दरवाजा खोला, तो सामने पुलिस को खड़ा देख वे डर गईं. तभी विनय दरवाजे पर आ गया. सामने खड़े पुलिस वाले ने पूछा, ‘‘सुमन कहां है?’’

विनय ने कहा, ‘‘सुमन तो अपने फ्लैट पर होगी. आखिर बात क्या है?’’

पुलिस वाले ने उस से कहा, ‘‘तुम्हारे खिलाफ मोतिहारी थाने में रिपोर्ट दर्ज करवाई गई है. तुम्हें अभी मेरे साथ थाने चलना होगा और सुमन को भी फोन करो. उसे भी थाने चलना होगा.’’

थोड़ी देर में विनय और सुमन थाने में महिला दारोगा अंजलि के सामने बैठे थे.

अंजलि ने सुमन से सवाल किया, ‘‘क्या तुम शादीशुदा हो?’’

सुमन ने कहा, ‘‘जी, हां.’’

अंजलि ने उस से कहा, ‘‘तुम पिछले 6 महीने से अपने पति भगीरथ को धोखा दे कर इस आदमी के साथ फरार हो.’’

सुमन ने कहा, ‘‘नहीं, मैं अपनी मरजी से यहां हूं और यहीं मेरी दुकान भी है.’’

अंजलि ने कहा, ‘‘तुम्हारे पति भगीरथ ने तुम दोनों के खिलाफ थाने में एफआईआर लिखवाई है.’’

सुमन बोली, ‘‘मैडम, क्या आप मुझे यह बता सकती हैं कि भगीरथ ने जो रिपोर्ट दर्ज करवाई है, उस की बुनियाद क्या है?’’

‘‘एफआईआर के मुताबिक, तुम ने भगीरथ को धोखा दिया है. शादीशुदा होने के बावजूद तुम पिछले 6 महीने से पति को छोड़ कर इस आदमी के साथ यहां हो और भगीरथ के 5 लाख के गहने भी तुम चोरी कर के भागी हो.’’

‘‘हां, मैं शादीशुदा हूं और कानूनी रूप से भगीरथ मेरा पति है, लेकिन मैं भगीरथ के साथ न रहूं, यह कोई जुर्म तो नहीं है.

‘‘अगस्त, 2022 के सुप्रीम कोर्ट के एक जजमैंट के मुताबिक, शादीशुदा औरत अगर बिना तलाक के अपने पति से अलग रहती है, तो इस के लिए वह पूरी तरह आजाद है. ऐसे किसी औरत को कोई भी पति के साथ जबरदस्ती रहने को मजबूर नहीं कर सकता.

‘‘भगीरथ को मेरे अलग रहने से दिक्कत है, तो वह मुझे तलाक दे सकता है. मैं ने इस 6 महीने के दौरान भगीरथ से फोन पर तलाक की बात की, लेकिन वह ऐसा करने को राजी नहीं है. ऐसे में मैं क्या करूं बताइए?

‘‘मुझे भगीरथ के साथ नहीं रहना है और रही 5 लाख के गहनों की बात, तो ये गहने मेरे घर वालों ने मेरी शादी में मुझे दिए थे. इन गहनों पर भगीरथ का कोई हक नहीं है. अगर वह यह साबित कर दे कि मेरे पास जो गहने हैं, ये उस ने मुझे खरीद कर दिए हैं, तो मैं चोरी की सजा भुगतने को तैयार हूं.’’

सुमन की बात सुन कर थानेदार अंजलि समझ गई कि सुमन को कानून की अच्छी जानकारी है.

अंजलि ने कहा, ‘‘सुमन, विनय के साथ तुम्हारा क्या रिश्ता है? तुम पिछले 6 महीने से एक गैरमर्द के साथ हो… क्या यह सही है?’’

‘‘मैडम, विनय के साथ मेरा क्या रिश्ता है, यह बताने के लिए मुझे कोई भी कानून मजबूर नहीं कर सकता. मैं पिछले 6 महीने से अलग फ्लैट में रहती हूं और अगर मेरा विनय के साथ कोई रिश्ता है भी तो इस पर टिप्पणी करने का हक किसी को नहीं है.’’

अंजलि ने पूछा, ‘‘सुमन, कानून की बात छोड़ो. एक शादीशुदा औरत का किसी गैरमर्द के साथ रिलेशन बनाना क्या यह सामाजिक तौर पर सही है?’’

‘‘मैडम, हमारा समाज तो पुराने दकियानूसी रिवाजों पर चलता है. समाज औरत और मर्द को शादी के बंधन में बांध कर परंपरा की मुहर लगा देता है और शादी के बाद की जिम्मेदारियों और समस्याओं को दरकिनार कर देता है.

‘‘शादियों के नाम पर औरतों के साथ जो भी हो, समाज इस की परवाह नहीं करता. शादी के बाद औरत के साथ बुरा बरताव हो या शादी के बाद एक औरत के इनसान होने की गरिमा तारतार हो, समाज को कोई फर्क नहीं पड़ता.

‘‘ऐसे समाज में हर कदम पर औरतों के लिए कई लक्ष्मण रेखाएं खींची गई हैं. मर्दों के लिए कोई रुकावट नहीं. वह औरत पर जुल्म करे तो भी वह कुसूरवार नहीं, लेकिन औरत अगर अपना रास्ता खुद तय करे, तो समाज सामने खड़ा हो जाता है. समाज की साख डूबने लगती है.

‘‘मेरी जिंदगी में विनय की क्या अहमियत है, यह मैं जानती हूं. जब मैं दरदर की ठोकरें खा रही थी, तब समाज ने मेरा साथ नहीं दिया था, बल्कि यह विनय ही था जिस ने मुझ में एक इनसान को देखा और मेरे साथ इनसानियत का रिश्ता निभाया.

‘‘आज मेरे और विनय के बीच कौन सा रिलेशन है और यह रिलेशन सही है या गलत, यह तय करने का हक सिर्फ मुझे है, समाज को नहीं.’’

सुमन की बातों को सुनने के बाद थानेदार अंजलि अपनी कुरसी छोड़ कर उठ खड़ी हुई और सुमन के करीब जा कर उस के कंधों पर हाथ रखते हुए बोली, ‘‘सुमन, तुम बिलकुल सही हो. अब तुम दोनों जा सकते हो.’’ Long Hindi Story

Best Hindi Story: शक

Best Hindi Story: रोमा बचपन से ले कर जवानी तक कसबे में ही पलीबढ़ी थी. जब उस का ब्याह कमल से हुआ तब वह बेहद रोमांचित थी.

कमल एक होनहार नौजवान था. उस ने राजधानी दिल्ली में एक अच्छी नौकरी पा ली थी. शादी के बाद वह रोमा को अपने साथ दिल्ली ले गया.

रोमा को दिल्ली की यह नई जिंदगी अनोखी ही लगी. एक साल तो जैसे पलक ?ापकते ही गुजर गया.

कमल सुबह 7 बजे घर से निकल जाता था और शाम के 7 बजे के बाद ही वापस घर लौट कर आता था. रोमा का एक साल तो घर को सजाने और संभालने में ही बीत गया था. उस के बाद उसे अपनी दिनचर्या में बदलाव करने की इच्छा होने लगी थी.

वैसे, कमल उस से कभी भी कुछ नहीं कहता था. उस ने रोमा पर कभी भी कोई बंधन या दबाव नहीं डाला कि वह उस की मरजी से कुछ करे.

कमल जब 27 साल का था, तो रोमा महज 23 साल की थी. वह रोमा पर जबरदस्ती कोई विचार थोपना नहीं चाहता था.

रोमा को क्राफ्ट का काम बहुत अच्छी तरह आता था. कालेज में वह अपनी सहेलियों के लिए पर्स, हैंडबैग वगैरह तैयार कर के गिफ्ट में दिया करती थी.

रोमा अब अपनी इसी कला को निखारना चाहती थी. उस ने सब से पहले आसपास के क्लब वगैरह का बारीकी से मुआयना किया. जल्दी ही उस ने 1-2 जगह की सदस्यता भी ले ली. अब वह सब से खुल कर मिलनेजुलने लगी. औरों को भी रोमा का अच्छा बरताव बहुत पसंद आया था.

रोमा ने उन को अपनी क्राफ्ट कला के बारे में बताया. वह इस हुनर में बहुत अच्छी थी, ऐसा उस की बातों से साफ महसूस होता था.

रोमा एक समूह बना कर इस काम को आगे ले जाना चाहती थी. पर्स और हैंडबैग बनाने के नए तरीके सीखने के लिए सभी उतावली हो गईं. सीखनेसिखाने का मजा ही कुछ अलग था, इसलिए रोमा का समय शानदार तरीके से गुजरने लगा. कमल को भी खुशी हुई कि रोमा अपने समय का सही इस्तेमाल कर रही है.

इसी बीच कमल का प्रमोशन हो गया. कंपनी ने तनख्वाह बढ़ाई, तो एक कमरे का यह मकान छोड़ कर कुछ दूरी पर एक फ्लैट किराए पर ले लिया. यह 8 मंजिल की एक शानदार बिल्डिंग थी. तकरीबन सारे ही फ्लैट भरे हुए थे.

रोमा और कमल के पास कम सामान था, इसीलिए शिफ्ट करना बहुत आसान था. फटाफट सब हो गया. उन के ठीक सामने वाले फ्लैट में ताला लगा था. रोमा और कमल ने सोचा कि वे शायद कहीं बाहर गए होंगे.

2 दो दिन बाद घर सैट हो गया, इसलिए रोमा और कमल ने एक शानदार पार्टी दी. पार्टी में उस ने अपने समूह की सहेलियों को भी न्योता दिया.

फ्लैट के आसपास किसी से इतनी ज्यादा जानपहचान नहीं थी, इसलिए अभी उन में से किसी को नहीं बुलाया था. सामने वाले फ्लैट की कविता एक सुबह मिली थी. वह सिंगल थी. एयरलाइंस में नौकरी करती थी, इसलिए वह बाहर ही रहती थी. वह कम बोलती थी, इसलिए रोमा और कमल ने भी खुद को सीमित ही रखा.

इस बिल्डिंग में लिफ्ट भी थी. कुलमिला कर अच्छा था यह फ्लैट. सभी सहेलियों को रोमा ने अपने बनाए हैंडबैग गिफ्ट में दिए. रोमा सचमुच हैंडबैग बनाने में माहिर थी. खानापीना हुआ. मजा ही आ गया था.

कमल ने भी सब से मेलमुलाकात की. बहुत अच्छा लगा. पार्टी के बाद जब कमल और रोमा हंसतेहंसते बाहर निकल रहे थे, तो सीढ़ी चढ़ते हुए झरनाजी ने देख लिया. वे इन सब को शकभरी नजर से देखने लगीं. रोमा ने उन का चेहरा पढ़ लिया था.

हौलेहौले सब से जानपहचान होने लगी. अब रोमा को पता लगा कि झरनाजी इस बिल्डिंग में सब से पुरानी हैं और वे किराएदार नहीं हैं. वे इस चौथी मंजिल के एक फ्लैट की मालकिन हैं. बुजुर्ग हैं, इसलिए अपनी चलाती हैं.

झरनाजी रोमा और उस की सहेलियों की खूब जासूसी करती थीं. एक दिन तो लिफ्ट के लिए इंतजार करती रोमा और उस की सहेलियों को झरनाजी ने लिफ्ट में घुसने नहीं दिया. वे बोलीं, ‘‘मेरे पास बहुत सारा सामान है. जरा रुको. बाद में जाना.’’

मगर काफी देर बाद भी लिफ्ट आई ही नहीं. रोमा समझ गई कि झरनाजी लिफ्ट को रोके हुए हैं. खैर, तीसरी मंजिल पर जाना था. वे सब सीढि़यों से चली गईं.

रोमा झरनाजी की इस हरकत को भूल गई. दरअसल, रोमा को बहुत काम करना था. अब उन का समूह ‘एंजिल ग्रुप’ के नाम से हैंडबैग बना रहा था.

कुछ दिन बाद वे लोग झुग्गी बस्ती में जा कर हैंडबैग बनाने की वर्कशौप करने वाले थे. इसी सिलसिले में रोमा के घर पर अकसर बैठक होती थी.

झरनाजी की किटी में सदस्य कम हो रहे थे. रोमा उन के जाल में फंस ही नहीं रही थी, इसलिए झरनाजी उस से मन ही मन जलने लगी थीं.

एक दोपहर रोमा और उस की सभी सखियों की मीटिंग चल रही थी कि तभी घंटी बजी.

रोमा ने दरवाजा खोला. वह हैरान रह गई. महिला पुलिस का जत्था उस के फ्लैट के बाहर था.

‘‘हमें तलाशी लेनी है. शिकायत मिली है कि इस जगह गलतसलत काम हो रहा है,’’ एक पुलिस वाली ने धमकाते हुए कहा.

रोमा ने यह सुना तो उसे चक्कर से आने लगे. वह सदमे से एकदम खामोश हो गई.

महिला पुलिस ने रोमा के फ्लैट का मुआयना किया. वहां तो क्राफ्ट का सामान, होनहार और मेहनती औरतों के सिवा कुछ न मिला.

अब तक रोमा भी होश में आ चुकी थी. महिला पुलिस ने रोमा से माफी मांगी. तब तक कमल भी वहां पहुंच
गया था.

महिला पुलिस ने कमल से भी माफी मांगी, ‘‘ये सब तो इतनी मेहनती हैं. मगर इस फोन नंबर से हमें शिकायत मिली थी कि आप के फ्लैट में गलत काम किया जा रहा है. हम सचमुच शर्मिंदा हैं कि इतनी हुनरमंद महिलाओं पर छापा मारने आ गए.’’

इतना ही नहीं, महिला पुलिस ने रोमा के ‘एंजिल ग्रुप’ के बारे में जाना. उन सब के मोबाइल नंबर लिए. उन का काम देखा और सब ने मिल कर पूरे 50 हैंडबैग खरीद कर उसी समय उन को नकद भुगतान भी कर दिया.

यह सब देख कर कमल की खुशी का ठिकाना न था. रोमा ने तो अपने हुनर के दम पर नाम कर लिया था, वह भी इतनी जल्दी.

मेहनत की कमाई के इतने सारे रुपए देख कर रोमा की सभी सहेलियां भी खुशी से झूम उठीं. पुलिस की सभी महिला सदस्य उन की बारबार तारीफ करते हुए वापस लौट गईं.

अब कमल ने वह नंबर चैक किया, जिस नंबर से महिला पुलिस को शिकायत की गई थी. यह नंबर ?ारनाजी का था.

‘‘ओह, यानी झरनाजी की इतनी गिरी हुई हरकत,’’ कमल और रोमा हैरान थे.

कुछ देर बाद सभी सहेलियां चली गईं. शाम हो गई थी. कमल लौट कर दफ्तर नहीं गया. उस ने बाकी का सारा काम घर से ही किया.

रोमा का मन कुछ उदास था. वह सोच रही थी कि झरनाजी को आखिर ऐसा करने की क्या सूझा.

मगर कमल ने रोमा को दिलासा दिया और कहा, ‘‘इस में फायदा तो तुम को ही मिला. नाम का नाम हुआ, दाम भी हाथोंहाथ मिला. आगे का रास्ता भी बन गया.’’

‘‘ओह हां, सचमुच कमल. झरनाजी की चाल तो उलटी पड़ गई,’’ रोमा की आंखों में तो उस के हुनर का आत्मविश्वास झलक रहा था.

उधर झरनाजी शर्म के मारे बिल्डिंग में किसी को अपना मुंह तक नहीं दिखा पा रही थीं. Best Hindi Story

Long Hindi Story: वे दो अनमोल दिन – पहला भाग

Long Hindi Story, लेखक – शकील प्रेम

विनय के पास इनोवा जैसी 2 गाडि़यां थीं. एक वह खुद चलाता था और दूसरी गाड़ी किराए पर दी हुई थी. विनय बिहार के दूरदराज इलाकों तक सवारियों को ले जाता था. हालांकि, ज्यादातर सवारियां रेलवे स्टेशन तक की होती थीं.

सुबह ही विनय की गाड़ी को भगीरथ नाम के एक आदमी ने बुक किया था, जो इस वक्त ड्राइवर की पिछली सीट पर बैठा था. 7 सीटों वाली इनोवा कार में विनय समेत कुल 8 लोग बैठे थे, जिन्हें मोतिहारी से पटना तक जाना था. वे सभी भगीरथ के परिवार के लोग थे. मोतिहारी से पटना का सफर 6 घंटे का था.

गाड़ी के अंदर लगे बैक मिरर पर विनय की नजर पड़ी, तो उस में एक खूबसूरत सा चेहरा नजर आया.

सवारियों में एक शादीशुदा खूबसूरत औरत थी, जिस के बगल में ही भगीरथ बैठा था, जो शायद उस खूबसूरत औरत का पति था.

विनय ने गाड़ी स्टार्ट की और मोतिहारी की भीड़ भरी सड़कों से आगे हाईवे पर आ गया. कभीकभार वह बैक मिरर में झांक कर उस खूबसूरत औरत को देख लेता था.

पीछे बैठी उस औरत के चेहरे पर एक अजीब सी खामोशी थी. यह खामोशी थी या उदासी विनय समझ नहीं पा रहा था.

मुजफ्फरपुर हाईवे पर गाड़ी पहुंचते ही विनय ने म्यूजिक सिस्टम को औन किया. एक रोमांटिक गाना बजना शुरू हुआ, ‘प्यार कभी कम नहीं करना…’

यह गाना बजना शुरू ही हुआ था

कि पीछे बैठी वह खूबसूरत औरत झल्लाते हुए बोली, ‘‘प्लीज… यह गाना बंद कर दो.’’

विनय ने तुरंत उंगली से म्यूजिक सिस्टम का अगला बटन दबा दिया और ‘जिंदगी का सफर, है ये कैसा सफर, कोई समझ नहीं, कोई जाना नहीं…’ गीत बजने लगा.

इस गाने के बजने के साथ ही विनय ने आवाज को कम कर दिया, तभी फिर वही आवाज विनय के कानों में आई, ‘‘आवाज क्यों कम की?’’

आवाज को तेज करते हुए विनय समझ गया था कि पीछे बैठी औरत को शायद पुराने गाने पसंद हैं.

विनय की गाड़ी मुजफ्फरपुर हाईवे पर तेजी से दौड़ रही थी. टोल आने से पहले ही विनय को गाड़ी रोकनी पड़ी, क्योंकि पीछे बैठी एक बूढ़ी औरत को उलटियां होने लगी थीं. गाड़ी की पिछली सीट पर बैठे तीनों लोग नीचे उतरे और उस बूढ़ी औरत को संभालने लगे.

भगीरथ अपनी पत्नी को डांटते हुए बोला, ‘‘सुमन, तुम्हें सुबहसुबह परांठे बनाने की क्या जरूरत थी… तुम मेरी मां को मारना चाहती हो.’’

सुमन कुछ नहीं बोली और पानी से अपनी सास के मुंह को अच्छी तरह साफ कर उन्हें थामते हुए गाड़ी में
ले आई.

जब सुमन की सास गाड़ी में बैठ गईं, तो सुमन ने अपने हाथ धोए और पानी पीने के बाद उस ने विनय की ओर पानी की बोतल बढ़ाते हुए कहा, ‘‘पानी पी लीजिए.’’

भगीरथ के साथ आया एक लड़का विनय के बराबर में बैठा था, जिसे सुमन की यह हरकत पसंद नहीं आई. वह सुमन की ओर देखते हुए बोला, ‘‘भाभी, ड्राइवर को प्यास लगेगी तो वह खुद पानी पी लेगा. तुम्हें ज्यादा मदर टैरेसा बनने की जरूरत नहीं है.’’

विनय ने गाड़ी स्टार्ट की और आगे बढ़ गया. पीछे बैठा भगीरथ धीमी आवाज में सुमन से कुछ कह रहा था और सुमन सिर नीचे किए सुने जा रही थी.

एक घंटे के बाद भगीरथ के कहने पर विनय ने मुजफ्फरपुरपटना हाईवे के किनारे एक रैस्टोरैंट पर गाड़ी रोक दी. भगीरथ का परिवार गाड़ी से उतर कर सीधा रैस्टोरैंट की ओर बढ़ गया.

सब से आगे भगीरथ अपनी मां के हाथ को थामे चल रहा था, उस के पीछे परिवार के बाकी लोग थे और सब से पीछे सुमन थी.

सुमन को देख कर कोई कह नहीं सकता था कि वह भी भगीरथ के परिवार का हिस्सा है. भगीरथ को तो अपनी पत्नी की जरा भी परवाह नहीं थी और ऐसा लगता था कि सुमन ने भी परिवार की परवाह करना छोड़ दिया था.

रैस्टोरैंट में अंदर दाखिल होने से पहले सुमन ने विनय की ओर देखा और हाथ के इशारे से कुछ खा लेने को कह कर वह अंदर दाखिल हो गई.

विनय के लिए यह लमहा बेहद भावुकता भरा था. विनय की उम्र 27 साल थी और उस की 3 साल पहले शादी हो चुकी थी, लेकिन शादी के 2 महीने बाद ही विनय की बीवी मीनाक्षी अपने पहले प्रेमी के साथ चली गई थी.

विनय तभी से औरतों से नफरत करता था, लेकिन सुमन जैसी औरत को देख कर उसे एहसास हुआ कि कुछ औरतों के वजूद में ही मुहब्बत की खुशबू होती है.

सुमन के प्रति विनय का खिंचाव हर पल बढ़ता जा रहा था, लेकिन उसे पता था कि बस कुछ ही देर में मुहब्बत की यह खुशबू दुनिया की भीड़ में हमेशा के लिए खो जाएगी.

रैस्टोरैंट से निकलते भगीरथ को देख कर विनय ने गाड़ी का दरवाजा खोल दिया. विनय की नजरें सब से पीछे चल रही सुमन को ढूंढ़ रही थीं. सभी के गाड़ी में बैठने के बाद सुमन भी बैठ गई और विनय ने गाड़ी को स्टार्ट कर वहां से आगे बढ़ा ली.

पीछे बैठा भगीरथ सुमन पर चिल्ला रहा था, ‘‘तुम्हारे मांबाप ने यही सिखाया है कि किसी की इज्जत न करो. अरे, अगर तुम मां के साथ टौयलेट में चली जाती तो छोटी हो जाती. मेरी किस्मत ही खराब थी, जो तुम जैसी औरत मेरे गले पड़ गई.’’

भगीरथ गुस्से में था. अपने बेटे के गुस्से को शांत करने के बजाय भगीरथ की मां उस के गुस्से को और भड़काने में लगी थीं, ‘‘जाने दे बेटा, किस्मत तो मेरी फूटी थी, जो मैं ने सोहनलाल की बेटी के रिश्ते को ठुकरा कर इस नकचढ़ी से तेरी शादी कराई.’’

दोनों मांबेटे के बीच बैठी सुमन बिलकुल खामोश थी. उस की आंखों में आए आंसू भी सूख चुके थे. विनय के लिए सुमन के साथ होने वाला यह बरताव बरदाश्त से बाहर की बात थी, लेकिन वह कुछ कर नहीं सकता था.

तभी भगीरथ की तेज आवाज विनय तक आई, ‘‘भैया, थोड़ा तेज चलाओ.

5 बज कर 10 मिनट पर हमें पटना से चेन्नई की ट्रेन पकड़नी है. और 4 यहीं बज गए हैं.’’

विनय ने कहा, ‘‘आप चिंता न कीजिए. मुझे खुद भी जल्दी है, क्योंकि आप लोगों को स्टेशन छोड़ने के बाद मुझे घर भी लौटना है.’’

विनय ने गाड़ी की स्पीड बढ़ाई और थोड़ी देर में ही वह गांधी सेतु पर पहुंच गया. भयंकर ट्रैफिक जाम से निकलते ही पटना स्टेशन आ गया.

विनय ने गाड़ी की छत से सामान उतारना शुरू किया. गाड़ी की छत पर सुमन का सूटकेस भी था, जिस के लिए वह खड़ी थी.

तभी भगीरथ सुमन के करीब आया और उस ने एक जोरदार थप्पड़ सुमन के गाल पर जड़ दिया, ‘‘तुम्हें अपने सूटकेस की पड़ी है और गाड़ी में जो सामान है, उस की कोई चिंता नहीं. वह सामान क्या तुम्हारा बाप उठाएगा.’’

विनय के मन में आया कि वह अभी छत से नीचे उतरे और भगीरथ को जान से मार दे, लेकिन तभी सुमन ने उस की ओर देखा जैसे कह रही हो कि ‘गुस्से पर काबू पाओ विनय’.

सुमन के कंधे पर एक भारी बैग था और उस के हाथ में एक सूटकेस था, जिसे वह घसीटते हुए भगीरथ के परिवार के पीछेपीछे चल रही थी. भगीरथ सामान उठाने के लिए कुली भी कर सकता था, लेकिन उस ने ऐसा नहीं किया. भगीरथ सारा सामान परिवार वालों के हाथों में दे कर खुद खाली हाथ चल रहा था.

विनय को अपनी गाड़ी का किराया मिल चुका था. अब वह अपनी गाड़ी ले कर घर जा सकता था, लेकिन सुमन अभी उस की आंखों से ओझल नहीं हुई थी.

प्लेटफार्म नंबर एक की ओर मुड़ते हुए सुमन ने पीछे मुड़ कर विनय की ओर देखा और फिर विनय की आंखों से ओझल हो गई.

विनय ने गाड़ी स्टार्ट की और उसे सड़क पर एक साइड में खड़ी कर प्लेटफार्म नंबर एक की ओर बढ़ गया. विनय को खुद नहीं मालूम था कि वह प्लेटफार्म पर क्यों जा रहा है. उसे न गाड़ी की फिक्र थी और न ही अपनी कोई चिंता थी. वह तो सुमन के सम्मोहन में खोया हुआ था.

ऐसा नहीं था कि विनय सुमन की खूबसूरती के सम्मोहन में उस के पीछे चल पड़ा था, बल्कि विनय को सुमन की चिंता सता रही थी, इसलिए वह प्लेटफार्म नंबर एक की तरफ बढ़ गया.

पटना स्टेशन के प्लेटफार्म नंबर एक पर खड़ी चेन्नई जाने वाली ट्रेन खचाखच भरी हुई थी. विनय ने भीड़ में सुमन को ढूंढ़ना शुरू किया. इसी बीच गाड़ी तेज हौर्न के साथ प्लेटफार्म से खिसकना शुरू हो गई. बहुत से लोग तेजी से चलती ट्रेन में घुस रहे थे.

विनय को लगा कि सुमन और उस का परिवार ट्रेन में बैठ चुका है, फिर भी वह गाड़ी को प्लेटफार्म से पूरी तरह चले जाने का इंतजार करने लगा.

जब ट्रेन पूरी तरह आंखों से ओझल हो गई, तब ही विनय प्लेटफार्म से बाहर जाने के लिए एक तरफ मुड़ा, तभी उस के सामने सुमन खड़ी नजर आई.

सुमन को देख कर विनय बुरी तरह चौंक गया. सुमन के हाथों में सिर्फ उस का सूटकेस था. विनय ने सूटकेस अपने हाथों में लिया और बोला, ‘‘सुमनजी, लगता है, आप की ट्रेन छूट गई है. आप अपने घर फोन कर दीजिए, मैं आप को आप के घर तक छोड़ दूंगा.’’

सुमन ने अपने हाथ में पकड़ी पानी की बोतल विनय की ओर बढ़ाते हुए कहा, ‘‘मेरा कोई घर नहीं है.’’

विनय ने हैरानी भरी आवाज में कहा, ‘‘आप ऐसा क्यों बोल रहीं हैं? आप लोग मोतिहारी से बैठे थे न. वहीं आसपास आप की ससुराल होगी. ससुराल नहीं जाना हो तो मायके चली जाइएगा. बताइए, मैं आप को कहां तक छोड़ दूं?’’

सुमन ने विनय से पूछा, ‘‘क्या यहां आसपास कोई लौज होगा? चेन्नई की अगली ट्रेन 2 दिन के बाद इसी प्लेटफार्म से खुलेगी, तब तक के लिए मुझे स्टेशन के नजदीक के किसी लौज में ठहरने का बंदोबस्त कर दीजिए.’’

विनय ने कहा, ‘‘क्या आप का पति अगले स्टेशन पर उतर कर आप को यहां से नहीं ले जाएगा?’’

सुमन ने कहा, ‘‘मेरे पैरों में दर्द है, जिस की वजह से ट्रेन खुलते समय मैं पीछे रह गई. उन्होंने मुड़ कर भी नहीं देखा. ट्रेन खुल गई तो मैं ने उन्हें फोन किया, तो उन्होंने कहा कि नजदीक के लौज में ठहर जाओ, अगली ट्रेन से चेन्नई आ जाना.

मुझे कल सुबह तत्काल में अगली ट्रेन की रिजर्वेशन भी करवानी है, इसलिए स्टेशन के पास ही कोई लौज मिल जाए तो बेहतर होगा.’’

विनय ने कहा, ‘‘क्या आप के पति आप की टिकट करवा कर आप के ह्वाट्सएप पर नहीं भेज सकते? यह जिम्मेदारी तो उन की है न…’’

सुमन ने कहा, ‘‘प्लीज, आप लौज दिलवा दीजिए.’’

विनय ने कहा, ‘‘देखिए सुमनजी, यहां लौज तो मिल जाएगा, लेकिन आप अकेली हैं और यहां के माहौल से
भी आप बिलकुल अनजान हैं. अगर आप को मुझ पर भरोसा हो, तो आप मेरे घर चल सकती हैं. वहां मेरी मां और मेरी छोटी बहन हैं. उन के साथ आप का मन लग जाएगा. कल सुबह मैं ही आप की तत्काल टिकट निकलवा दूंगा और आप को यहां से ट्रेन में भी बिठा दूंगा.’’

सुमन काफी देर सोचती रही, फिर विनय के साथ उस के घर जाने को तैयार हो गई. एक अजनबी शहर में एक अजनबी के साथ अनजानी राहों पर सुमन की जिंदगी की गाड़ी विनय की गाड़ी के साथ चल रही थी. जिंदगी के इस सफर में सुमन को एक अनजाना सा हमराही मिल गया था, जिस पर उसे न जाने क्यों पूरा भरोसा था.

पटना से मोतिहारी के 6 घंटे के सफर में सुमन विनय के बगल वाली सीट पर खामोशी से बैठी रही. इस बीच विनय ने भी उस से कोई सवाल नहीं किया. जिस औरत की जिंदगी ही एक सवाल हो, उस से दूसरा सवाल भी क्या करना?

विनय की इनोवा की अगली सीट पर बैठी सुमन की आंखे बंद थीं. शायद थकान की वजह से वह सो गई थी या आंखें बंद कर अपनी जिंदगी की दुश्वारियों में खो चुकी थी.

विनय बारबार सुमन के खूबसूरत चेहरे को देखता और फिर नजरें घुमा लेता.

रात के 12 बज चुके थे. विनय ने सोती हुई सुमन को आवाज दी, ‘‘सुमनजी, मेरा घर आ गया है.’’

विनय सूटकेस ले कर घर में दाखिल हुआ. सामने विनय की मां और उस की बहन लता खड़ी थीं. विनय के साथ एक खूबसूरत औरत को देख कर वे दोनों काफी हैरान थीं.

विनय ने अपनी मां से कहा, ‘‘मां, ये सुमनजी हैं. इन की ट्रेन छूट गई है, तो मैं इन्हें अपने घर ले आया हूं. 2 दिन बाद अगली ट्रेन है, उस से ये चली जाएंगी.’’

सुमन का सूटकेस लता ने अपने हाथों में लिया और सुमन को ले कर अपने कमरे में चली गई.

अगली सुबह विनय को बहुत सारा काम था. सुमन का तत्काल टिकट करवाना था और सुमन के साथ कुछ वक्त भी गुजारना था, वरना वह 2 अजनबी महिलाओं के साथ बोरियत महसूस करती.

विनय की बहन लता सुमन के साथ घुलमिल गई थी. वह तो सुमन से ऐसे खुश थी जैसे सुमन उस की भाभी हो. सुमन नहाधो कर फ्रैश हो चुकी थी. नए सूट में वह और भी खूबसूरत लग रही थी.

मां ने सुबह का नाश्ता तैयार कर दिया और चारों ने साथ बैठ कर नाश्ता किया. सुमन के घर में आने से घर की रौनक बढ़ गई थी, लेकिन यह रौनक सिर्फ अगले दिन के लिए ही तो थी.

नाश्ते के बाद विनय सुबहसवेरे सुमन की तत्काल टिकट निकलवा लाया और सुमन के हाथों में टिकट रखते हुए वह धीरे से बोला, ‘‘यह लीजिए, कल शाम 5 बज कर 10 मिनट पर चेन्नई की टिकट.’’

सुमन ने विनय के हाथों से टिकट थामते हुए विनय की ओर देखा और बोली, ‘‘टिकट के कितने रुपए देने हैं?’’

विनय ने कहा, ‘‘आप रुपयों की टैंशन छोडि़ए, जब सहीसलामत चेन्नई पहुंच जाना, तो मुझे एक फोन कर देना. बस, वही मेरा मेहनताना होगा.’’

टिकट को मुट्ठी में भींचे सुमन कमरे की ओर बढ़ गई. टिकट कंफर्म होने की कोई खुशी सुमन के चेहरे पर नहीं थी, बल्कि वह चेन्नई जाने का नाम सुन कर ही उदास हो गई थी.

विनय ने लता को आवाज दी और कहा, ‘‘लता, देखो मौसम कितना सुहाना है, तुम सुमन को नदी के किनारे वाले हमारे बगीचे में घुमा लाओ. उन्हें अच्छा लगेगा और दिन भी कट जाएगा. दोपहर तक आ जाना, तब तक खाना तैयार हो जाएगा. फिर सब साथ ही बैठ कर खाएंगे.’’

विनय की बात सुमन ने भी सुन ली थी. वह बोली, ‘‘लता के साथ आप भी चलो न बगीचे में.’’

सुमन की बात सुन कर लता मन ही मन मुसकराई और बोली, ‘‘भैया, आप और सुमनजी दोनों ही बगीचे में चले जाओ. मुझे पढ़ाई करनी है. 2 दिन बाद मेरा इम्तिहान है.’’

थोड़ी ही देर में विनय और सुमन नदी के किनारे बैठे थे. हवा का तेज झांका जब भी सुमन के चेहरे पर पड़ता, उस के खूबसूरत बाल हवा में लहराने लगते. सुहाना मौसम, नदी का किनारा और विनय जैसे आदमी का साथ पा कर सुमन बहुत खुश थी और विनय के लिए भी यह जिंदगी का सब से खूबसूरत पल था.

तभी सुमन की खूबसूरत आवाज विनय के कानों तक आई, ‘‘विनय, पता है, आसमान और जमीन कभी नहीं मिल पाते, लेकिन ये बादल और यह मौसम ही दोनों को मिला देते हैं. आसमान में उठती हवाएं और आसमान के बादलों से बरसती बूंदें कुछ पल के लिए आसमान और जमीन को एक कर देती हैं.’’

विनय को सुमन की बातों की गहराई सम?ा नहीं आई. वह बोला, ‘‘सुमनजी, क्या मैं आप के बारे में कुछ जान सकता हूं?’’

सुमन ने गहरी सांस ली और कहा, ‘‘भगीरथ से मेरी शादी पिछले साल ही हुई थी. मैं गोपालगंज की रहने वाली हूं और भागीरथ का गांव मोतिहारी है.

2 साल पहले जब मैं बीए में थी, तभी भागीरथ का रिश्ता आया. उस वक्त मैं प्रकाश से प्यार करती थी.
प्रकाश गरीब परिवार से था और जाति भी उस की अलग थी. वह आजीविका के लिए बच्चों को ट्यूशन पढ़ाता था. भगीरथ सरकारी नौकरी में था और पिछले कई सालों से चेन्नई में पोस्टैड था.

‘‘सरकारी नौकरी के चक्कर में मेरे घर वालों ने भगीरथ से मेरी शादी कर दी. मैं चाह कर भी कुछ न कर पाई.

10 दिन पहले भगीरथ के पापा का देहांत हुआ, तो वह अपने परिवार के साथ गांव आया था.

‘‘मैं शादी के बाद भगीरथ के संग चेन्नई चली गई. शादी के बाद मैं भी बहुत खुश थी, लेकिन मेरी यह खुशी जल्दी ही खत्म हो गई. भगीरथ में प्यार नाम की कोई चीज नहीं है. वह छोटीछोटी बात पर मुझे डांटता है और कई बार हाथ उठा देता है. उस के घर वाले भी उसी का साथ देते हैं. भगीरथ के घर में नौकरानी से ज्यादा मेरी कोई औकात नहीं.’’

‘‘मायके में मेरे भैयाभाभी के अलावा कोई नहीं है. मां पहले ही मर चुकी थीं और मेरी शादी के अगले महीने ही मेरे पिताजी भी गुजर गए. तब मैं चेन्नई में थी और भगीरथ ने मुझे अपने पिता के अंतिम संस्कार में भी नहीं आने दिया था.’’

इतना कह कर सुमन फफकफफक कर रोने लगी. विनय को समझ नहीं आ रहा था कि सुमन को बिना हाथ लगाए चुप कैसे कराए. आखिरकार विनय ने सुमन के सिर पर हाथ रखा और बोला, ‘‘सुमन, चुप हो जाओ. थोड़ी देर में बारिश होने वाली है. हमें घर चलना चाहिए.’’ Long Hindi Story

Hindi Funny Story: गिरगिर रिकौर्ड गिर

Hindi Funny Story: जबजब सज्जनों की तर्ज पर मैं गलती से सच्ची में नेकी वाला कोई काम करता हूं, तो हफ्ताभर शर्म से सिर नीचा किए रहता हूं. यह सोच कर कि जन्मजात समाज विरोधी काम करने वाले गधे, यह तू ने क्या कर दिया? इसे आप सीधेसीधे यों भी कह सकते हैं कि शायद मुझे नेकी का काम करते हुए शर्म आती है.

दरअसल, मैं अपने हाथ चलाता बुरे काम के लिए हूं और उन से गलती से यों अच्छा काम हो ही जाता है. इसे आप मेरी नहीं, बल्कि मेरे हाथों की लापरवाही भी कह सकते हैं.

अच्छा काम गलती से हो जाने के बाद पछतावे के तौर पर सिर नीचा किए मैं सुबह सैर को निकला था कि सामने रुपया गिरने की बेशर्मी के सारे रिकौर्ड तोड़़ने के बाद भी गर्व से सिर ऊंचा किए सीना ताने चला आ रहा था जौगिंग करता हुआ.

मैं दिमाग से ही नहीं, दिल से भी मानता हूं कि आज समाज में बेशर्मों की जयजयकार का जमाना है. मैं दिमाग से ही नहीं, दिल से भी मानता हूं कि आज समाज में बेशर्मों की हुंकार का जमाना है. फिर भी पता नहीं क्यों आप से यों ही पूछ रहा हूं कि ये बेशर्म टाइप के लोग ऐसे क्यों होते होंगे भाई साहब? इन्हें इज्जतबेइज्जती में कोई फर्क नजर आता होगा कि नहीं?

कर ले प्यारे रुपए, अपने आज तक के अपने सब से निचले स्तर पर गिरने के बाद भी इतराते हुए जितनी चाहे जौगिंग. कर ले प्यारे रुपए, अपने आज तक के निचले स्तर पर गिरने के बाद भी इतराते हुए जितनी चाहे अपनी सेहत सुधारने के लिए सैर. गले में स्मार्ट वाच लटकाए रोज 10 हजार स्टैप्स चल, चाहे 20 हजार. अपनी सेहत के हित में जिस की सेहत बिगाड़ने वाले सड़क से संसद तक बैठे हों, उस की सेहत में सुधार वह खुद तो क्या, कुदरत भी नहीं कर सकती.

वह चाहे कितनी ही जौगिंग कर ले. वह चाहे कितनी ही सैर कर ले. वह कितने ही अपनी सेहत सुधार के लिए स्वदेशी से ले कर विदेशी टौनिक ले ले. उस की अपनी सेहत सुधार के लिए हर इंपोर्टेड टौनिक उस की सेहत बिगाड़ने वालों को ही लगते हैं. टौनिक वह लेता है और हट्टेकट्टे वे होते हैं बिस्तर पर लेटेलेटे. इन दिनों पेट मेहनत की खाने वालों के बढ़ते देखे गए हैं, दूसरों के हिस्से की खाने वालों के नहीं.

खुद हद का गिरा हुआ होने के बावजूद भी हर टाइप के गिरे हुए की तरह उस गिरे हुए से भी बात करने को मन तो नहीं हो रहा था, फिर भी पता नहीं उस से क्यों बात कर बैठा? मतलबी से मतलबी आदमी किसी से बात किए बिना आखिर कब तक रह सकता है.

‘रुपया भाई, एक बात तो बताना बुरा न लगे तो, रिकौर्ड स्तर पर गिरने के बाद भी तुम इतनी जिंदादिली से यह सब कैसे कर लेते हो? रोजरोज गिरते हुए तुम्हें शर्म नहीं आती क्या? अब तो जनता पर रहम करो.

‘अरे यार, मेरी तरह ऊपर उठ नहीं सकते तो कम से कम कुछ दिनों के लिए वहां तो रुक जाया करो जहां गिरते हो. मुझे तुम्हारा सबकुछ पसंद है, लेकिन रोजरोज गिरना कतई पसंद नहीं.

‘अपने हो, इसलिए कह रहा हूं. पड़ोसी होते तो कुछ न कहता. जितना गिरना होता गिरते रहते, मेरी
बला से.’

इस पर रुपए ने कहा, ‘रहम करें वे जो मुझे गिरातेगिराते ऊपर से ऊपर उठे जा रहे हैं. वैसे डियर, गिरा हुआ यहां कौन नहीं? यहां पलपल कौन नहीं गिर रहा बंधु. यहां नंदू से ले कर चंदू तक सब तो गिर रहे हैं.

‘किसी का यहां ईमान गिर रहा है, तो किसी का सम्मान. कोई अपने कर्म से गिर रहा है, तो कोई जीने के मर्म से. यहां गिरना सच है तो ऊपर उठना ?ाठ. ऐसे में मु?ा गिरे हुए को काहे की शर्म? शर्म वे करें जिन्हें गिरने में शर्म महसूस होती हो.

‘हां, शुरूशुरू में गिरने पर शर्म जरूर महसूस होती थी. पर जब कोई बारबार गिरने लग जाए तो वह शर्म से ऊपर उठ जाता है. बारबार गिरने की लत लग जाने के बाद उसे नैतिकता की कितनी ही ब्रांडेड घुट्टियां पिला लो, उसे उठने को जोर देने के लिए कितने ही प्रवचन सुना लो, पर तब वह पलपल गुनगुनाता हुआ, इतराता हुआ गिरता ही जाता है, क्योंकि तब उस की जिंदगी का एकलौता मकसद बचता है, बस गिरना… गिरना… गिरना…

‘अब तो हर गिरने वाले की तरह मुझे भी अपने रोजाना गिरने पर खुशी नहीं, बहुत खुशी होती है. अब सब की तरह चाहता हूं कि मैं अपने गिरने के रोज अपने रिकौर्ड अपनेआप ही तोड़ता रहूं, इसलिए जबजब पिछले गिरने के रिकौर्ड से और नीचे गिरता हूं, तो अपने गिरने पर जम कर अब्दुल्ला हो नागिन डांस कर लेता हूं. खुद को खुद की बांहों में जी भर लेता हूं.

‘दोस्त, इज्जत की कुरसियों पर लेटे रोजाना गिरने वालों से पूछो तो पता चले कि आज गिरने में कितना मजा छिपा है.

‘आज मेहनत करतेकरते ऊपर उठना सब से बड़ी गलती है. दूसरे, मेहनत करते हुए कोई आज ऊपर उठ भी नहीं सकता. मेहनत के बाद भी गिरे किसी को कहां उठने देते हैं? गिरने के लिए कोई मेहनत नहीं करनी पड़ती.

तुम्हारे पास दूर तक देखने की नजर नहीं है तो लो, मेरी दूरबीन से देखो, यहां जो आज जितना गिरा हुआ है, वह आज उतना ही इज्जत से उठा हुआ है.

‘आज इज्जत ऊपर उठने वालों की नहीं, गिरने वालों की है. समाज आज इज्जत ऊपर उठने वालों को नहीं, गिरने वालों को देता है. ऐसे में रिकौर्ड गिरने के बाद भी जो मैं शान से फिट रहने की कोशिश कर रहा हूं, तो तुम्हारे पेट में मरोड़ क्यों उठ रही है?’ रुपए ने मेरे माथे पर आया पसीना पोंछा और नकटा आगे हो लिया.

बेशर्मों के क्या सींग होते हैं भाई साहब… Hindi Funny Story

Family Story In Hindi: सोमा

Family Story In Hindi, लेखक – रंगनाथ द्विवेदी

सोमा अपने 2 कमरे के मकान में बिलकुल अकेली रहती थी. ऐसा नहीं है कि अकेले रहना उस का कोई शौक था. दरअसल, उस के मांबाप उसे बचपन में ही अकेला छोड़ कर इस दुनिया से चले गए थे. उन के मरने के बाद सोमा घर में बिलकुल अकेली रह गई थी.

सोमा के मम्मीपापा ने गैरजातीय ब्याह किया था, जिस की नाराजगी की वजह से सोमा के मम्मीपापा से उन के घर वालों ने अपना सारा रिश्ता हमेशाहमेशा के लिए खत्म कर लिया था.

अनाथ और बेसहारा सोमा ने मेहनतमजदूरी कर के खुद को बिना किसी सहारे के पालापोसा था. अब वह पूरे 24 साल की हो चुकी थी. उस का रंग यों तो सांवला था, लेकिन उसे कुदरत ने इतनी अच्छी शक्लसूरत दी थी कि वह किसी भी गोरी लड़की से ज्यादा खूबसूरत लगती थी.

एक तरह से कहूं तो सोमा मुझे मन ही मन बहुत पसंद थी, लेकिन अपने दिल की बात उस से कहने की कभी मेरी हिम्मत ही नहीं पड़ती थी.

इस की सब से बड़ी वजह थी सोमा का झगड़ालू स्वभाव. अकसर जब मैं दफ्तर जाने के लिए तैयार हो कर अपने घर से निकलता था, तो उसे रोजाना महल्ले में किसी न किसी से जोरजोर से लड़तेझगड़ते हुए देखता था.

कभीकभार तो सोमा औरतों और मर्दों को ऐसीऐसी गालियां दे देती थी कि अच्छेअच्छे गाली देने वालों तक की टैं बोल जाए. सच तो यह था कि पूरी कालोनी ही उस के इस झगड़ालू स्वभाव की वजह से उस से बचती थी.

यहां तक कि महल्ले के ऐसे जवानजहान लड़के भी सोमा को देखते ही अपना रास्ता बदल लेते थे, जो दूसरी जवान लड़कियों पर दिनभर डोरे डालने की फिराक में रहा करते थे. उन्हें हमेशा यह डर लगा रहता था कि कहीं गलती से भी अगर सोमा की तरफ उन की आंख उठ गई, तो उन की इज्जत की खैर नहीं. न जाने कब वह चप्पल निकाल कर उन की धुनाई शुरू कर दे और लड़?ागड़ कर पूरे महल्ले को अपने सिर पर उठा ले.

आज लगातार यह चौथा दिन था, जब मेरे दफ्तर जाते समय मैं ने कालोनी में किसी औरत या मर्द से सोमा के झगड़ने और गालीगलौज देने की आवाज नहीं सुनी. शाम को जब मैं अपने दफ्तर से घर के लिए निकला, तो रास्तेभर यह सोचता हुआ अपने कमरे पर लौटा कि किसी तरह हिम्मत कर के आज मैं यह जानने की कोशिश करूंगा कि आखिर सोमा 3-4 दिन से कहां है?

यह एक तरह से मेरे दिल में सोमा के लिए छिपा हुआ वह प्यार ही था जो मुझे कहीं न कहीं सोमा की खोजखबर लेने के लिए बढ़ावा दे रहा था. लेकिन सवाल यह था कि मैं सोमा के बारे में कालोनी में किस से पूछूंगा कि आखिर वह 3-4 दिनों से दिख क्यों नहीं रही? क्या कोई बात है या कहीं वह किसी नातेरिश्तेदार के आने पर उस के साथ चली गई है?

लेकिन नातेरिश्तेदार वाला सवाल मेरे मन को जमा नहीं, क्योंकि जितना मैं ने सोमा के बारे में लोगों से जाना और सुना था, उस के मुताबिक ऐसा होना मुमकिन नहीं था.

फिर कुछ देर यों ही सोचते रहने के बाद मैं खुद ही डरता और मन ही मन कांपता हुआ सोमा के उस 2 कमरे की मकान की तरफ चल पड़ा.

जब मैं उस के मकान के पास पहुंचा तो लगा कि जैसे अभी सोमा धड़धड़ाते हुए अपने कमरे का दरवाजा खोलेगी और मुझ से बिना कुछ पूछे बेतहाशा झगड़ पड़ेगी.

लेकिन यह मेरा भरम ही साबित हुआ, क्योंकि सोमा का दरवाजा बिना खटखटाए ही भला वह कैसे जान सकती थी कि मैं उस के दरवाजे के पास खड़ा हूं.

फिर थोड़ी देर मैं ने खुद को सोमा के घर के दरवाजे के सामने सामान्य हो लेने दिया. जब खुद को काफी सामान्य महसूस किया, तो मैं ने हिम्मत कर के उस के दरवाजे की सांकल खटखटा कर पूछा, ‘‘कोई है?’’

लेकिन मेरे ‘कोई है?’ कहने में वह दम नहीं था, जो अगले को साफ सुनाई दे. एक बार फिर मैं ने किसी तरह जोर से सांकल बजाने के साथ ही कहा, ‘‘कोई है?’’

इस बार शायद मेरी आवाज को सोमा ने सुन लिया लिया था, क्योंकि अंदर से आवाज आई, ‘‘कौन है?’’
मैं ने जब गौर किया तो मुझे एकबारगी यकीन ही नहीं आया कि यह उसी सोमा की आवाज थी, जो अगर एक बार बोल देती थी तो कालोनी के किसी भी आदमी या औरत की घिग्गी बंध जाती थी.

सोमा ने फिर कहा, ‘‘कौन है?’’

मैं ने कहा, ‘‘जी मैं.’’

‘‘अरे, कौन मैं?’’ इस बार सोमा ने अपनी आवाज कड़क करने की पूरी कोशिश की थी, लेकिन मुझे साफसाफ लग रहा था कि उस दबंग सोमा की आवाज यह भी नहीं थी.

कुछ देर बाद पता नहीं सोमा ने क्या सोचा और कहा, ‘‘अच्छा, ठीक है. अंदर आ जाओ.’’

जब मैं कमरे के अंदर सोमा के पास पहुंचा, तो मैं ने उसे एक पुराने से बिस्तर पर लेटे हुए देखा. मैं यह अच्छे से समझ गया था कि सोमा की तबीयत ठीक नहीं है.

फिर सोमा धीरे से बोली, ‘‘अरे, अंबर तुम.’’

हालांकि सोमा ने चौंकने की कोशिश की थी, लेकिन मैं यह पहले ही जान गया था कि सोमा पहचान गई थी.
‘‘आओ, बैठो,’’ सोमा ने एक खाली पड़े हुए एक पुराने से स्टूल की तरफ इशारा किया.

मैं उस स्टूल पर बैठ तो गया, लेकिन चुपचाप अपना सिर नीचे किए रहा.

मेरी यह हालत देखने के बाद सोमा ने मुझ से खुद ही पूछा, ‘‘और बताओ अंबर, तुम मेरे पास किसलिए आए हो?’’

सोमा को इस तरह से बोलते हुए देख कर मुझे भी थोड़ी सी हिम्मत हुई, तो मैं ने कहा, ‘‘तुम 3-4 दिनों से दिखी नहीं, इसलिए मैं ने सोचा कि क्यों न तुम्हारे घर चल कर तुम्हारा हालचाल जान लिया जाए.’’

मेरे इतना कहने के बाद सोमा कुछ देर अपलक मेरे चेहरे की तरफ देखती रही, जैसे वह मेरे चेहरे को पढ़ने की कोशिश कर रही हो.

कुछ देर के बाद सोमा बोली, ‘‘तुम झूठ बोल रहे हो अंबर. तुम ने 3-4 दिनों से महल्ले में मुझे किसी से लड़तेझगड़ते या गालीगलौज देते हुए नहीं देखा, इसलिए तुम मेरे बारे में जानने के लिए घर चले आए.

‘‘लेकिन अंबर, यह भी तुम्हारा आधा ही सच है, पूरा नहीं. सच तो यह है कि तुम्हारे मन में कुछ और भी है, जिसे तुम केवल इसलिए मुझ से कह पाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हो कि कहीं मैं तुम्हारी बात सुन कर तुम से लड़नेझगड़ने न लगूं. यही बात है न अंबर?’’

मैं ने सिर झुकाए हुए ही छोटा सा अपना जवाव उसे ‘जी हां’ में दिया.

‘‘अंबर, तुम मुझ से साफसाफ क्यों नहीं कहते कि तुम मुझ से मन ही मन बहुत प्यार करते हो…’’

एक बार फिर मेरे मुंह से ‘जी हां’ निकल गया. और फिर जैसे मेरी हिम्मत जवाब दे गई और लगा कि यह मैं क्या कह गया? कहीं सच में सोमा मुझ से लड़नेझगड़ने और गाली न देने लगे.

लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ, बल्कि सोमा अचानक से सुबक कर किसी मासूम सी बच्ची की तरह रोने लगी. मैं टुकुरटुकुर सोमा के चेहरे की तरफ देखता ही रहा. उसे चुप कराने की मेरी हिम्मत ही नहीं पड़ रही थी.

कुछ देर रो लेने के बाद एक बार फिर सोमा बोली, ‘‘जानते हो अंबर… मैं पैदा होने के बाद पता नहीं कब और किस उम्र में रोई थी, इस का मुझे कुछ पता नहीं. मैं तो यह तक नहीं जानती थी कि ये आंखें रोने के लिए भी होती है. आज पहली बार तुम्हारी वजह से मेरी इन सूनी आंखों को रोने का सुख मिला है अंबर.’’

मैं ने पहली बार सोमा का ऐसा रूप देखा था, इसलिए मैं कुछ भी कह पाने की हालत में नहीं था.

सोमा फिर बोली, ‘‘मैं बहुत पहले से जानती हूं कि तुम मन ही मन मुझ से प्यार करते हो. अंबर, लेकिन मेरे स्वभाव की वजह से तुम्हारी हिम्मत कुछ कहने की नहीं हो पा रही थी. और मैं भला एक लड़की हो कर इतनी बेहया कैसे हो सकती थी कि तुम से अपने दिल की बात खुद कहती.

‘‘अंबर, मैं ने चाहे जैसा भी स्वभाव लोगों के मन में गढ़ा हो, वह एक तरह से मेरी मजबूरी थी, क्योंकि अगर मैं ऐसा न करती तो मुझे घर में अकेली जान कर इसी महल्ले के शरीफ और इज्जतदार लोग मु?ो कहीं का नहीं छोड़ते.

‘‘दूसरी आम लड़कियों की तरह मेरे भी अरमान हैं, लेकिन मेरे अनाथ होने का एहसास मुझे अंदर तक तोड़ देता है. तुम खुद सोचो अंबर, अगर मैं अनाथ न होती तो आज पूरे 4 दिनों से बुखार से तपतीतड़पती क्या मैं अकेले पड़ी होती. आज मेरे आसपास कोई यह तक पूछने वाला नहीं है कि मेरी तबीयत कैसी है?

‘‘यह देखो अंबर…’’ इतना कह कर सोमा ने अपना हाथ मेरी तरफ बढ़ा दिया.

जब मैं ने सोमा का हाथ छुआ, तो बरबस ही मेरा हाथ उस के माथे पर भी पड़ गया. सोमा का माथा किसी गरम तवे की तरह जल रहा था.

मैं बोला, ‘‘अरे, सोमा. तुम्हें तो बहुत तेज बुखार है और तुम चुपचाप घर में पड़ी हो. क्या तुम्हें अपने तबीयत की जरा भी फिक्र नहीं है…’’

सोमा तेज बुखार में भी मुसकराई और बोली, ‘‘बैठ जाओ अंबर. मुझे कुछ भी नहीं हुआ है. मैं 2-4 दिनों में ठीक हो जाऊंगी.’’

‘‘नहीं सोमा. तुम्हें तो किसी अच्छे डाक्टर को दिखाना चाहिए. यह शायद सोमा के प्रति अंबर का प्यार ही था, जो वह उस से इस हक से बोला, ‘‘अच्छा, तुम जल्दी से तैयार हो जाओ. मैं तुम्हें किसी अच्छे डाक्टर को दिखा लाता हूं.’’

‘‘नहीं अंबर, मैं ऐसे ही ठीक हूं. तुम अपने घर जाओ. तुम्हें परेशान होने की कोई जरूरत नहीं है,’’ सोमा बोली.

थोड़ा रुक कर सोमा ने कहा, ‘‘तुम्हें नहीं पता जब कालोनी वाले मुझे तुम्हारे साथ अकेला जाते हुए देखेंगे तो वे मुझे चरित्रहीन भी समझना और कहना शुरू कर देंगे. तब शायद मैं इतनी बड़ी गाली बरदाश्त न कर पाऊं…’’

अंबर ने एक लंबी सांस ली, फिर वह बोला, ‘‘सोमा, ऐसी कोई नौबत ही नहीं आएगी. तुम इस की जरा भी चिंता मत करो.’’

सोमा बोली, ‘‘क्यों?’’

अंबर ने कहा, ‘‘क्योंकि तुम जैसे ही बुखार से ठीक होगी, हम उस के तीसरे ही दिन शादी कर लेंगे. तुम मेरी बात का यकीन करो और जल्दी से डाक्टर के यहां चलने के लिए तैयार हो जाओ.’’

सोमा धीरे से बिस्तर से उठी, लेकिन अंबर को लगा कि सोमा को खड़े होने में दिक्कत होगी, इसलिए उस ने सोमा को सहारा दे कर खड़ा किया.

सोमा चुपचाप दूसरे कमरे में चली गई. थोड़ी देर बाद जब वह उस कमरे से अपने कपड़े बदल कर बाहर निकली, तो उसे देख कर अंबर ने कहा, ‘‘चलो सोमा.’’

सोमा हलके से मुसकरा दी. उसे सबकुछ बड़ा अजीब सा लग रहा था. लगता भी क्यों न, आखिर आज पहली बार वह किसी के साथ कहीं बाहर जा रही थी. वह भी एक झगड़ालू, गालीगलौज देने वाली सोमा बन कर नहीं, बल्कि किसी के दिल की रानी बन कर. Family Story In Hindi

News Kahani: क्या सोनम ही बेवफा है

News Kahani: चांदनी को छत्तीसगढ़ गए एक महीना हो गया था. अनामिका का जन्मदिन आने वाला था. उस ने सोचा कि क्यों न इस बार विजय को सरप्राइज दिया जाए. इधर विजय भी अनामिका के जन्मदिन की तैयारी कर रहा था. उस ने सोचा था कि दिल्ली में ही कोई होटल बुक करा कर रातभर मस्ती करेंगे. पर अनामिका के इरादे कुछ और ही थे. थोड़े से एडवैंचर से भरे.

जन्मदिन से एक दिन पहले विजय और अनामिका एक कैफे में कौफी पी रहे थे. तभी अनामिका बोली, ‘‘विजय, कल सुबह 11 बजे तैयार रहना. हमें कहीं जाना है.’’

विजय ने पूछा, ‘‘कहां? कोई खास काम?’’ वह आज जन्मदिन का जिक्र नहीं करना चाहता था, वरना उस का सरप्राइज खुल सकता था.

‘‘है कोई खास जगह. हम वहां स्कूटी से चलेंगे,’’ अनामिका बोली.

‘‘ओह, तो मैडम मुझे किसी  सीक्रेट जगह ले जाना चाहती हैं,’’

विजय ने अनामिका का हाथ पकड़ कर कहा.

‘‘ज्यादा रोमांटिक बनने की जरूरत नहीं है. हां, हम कल जिस जगह जा रहे हैं, वह किसी जन्नत से कम नहीं है और हां, हम शाम तक वहां से वापस भी आ जाएंगे,’’ अनामिका ने अपना हाथ छुड़ाते हुए कहा.

अगले दिन विजय और अनामिका स्कूटी पर निकल पड़े अपनी उस जन्नत की तरफ.

‘‘सुनो, हम फरीदाबाद से चलेंगे. वहां से गुड़गांव के पहाड़ी वाले रास्ते पर अपनी मंजिल है. रास्ते में हनुमान की मूर्ति भी देखनी है. सुना है, बहुत बड़ी है,’’ अनामिका बोली.

‘‘हमें इतनी दूर जाना है… ऐसा क्या है उन सूखी पहाडि़यों में… सुनसान इलाका है,’’ विजय ने पूछा.

‘‘तुम चलो तो सही मेरी जान…’’ अनामिका ने विजय को गुदगुदी करते हुए कहा.

‘‘यार, स्कूटी चलाते हुए मुझे गुदगुदी मत किया करो. कहीं स्कूटी ठोंक दूंगा तो फिर मत कहना,’’ विजय ने नकली गुस्सा दिखाते हुए कहा.

‘‘ओह, साहब को गुदगुदी हो रही है,’’ इतना कह कर अनामिका विजय से चिपक गई.

सवा घंटे के बाद वे दोनों हनुमान की मूर्ति के आगे खड़े थे. सड़क किनारे थोड़ी ऊंचाई पर बड़े से हनुमान बैठे हुए थे. एक हाथ में गदा और दूसरे हाथ से आशीर्वाद देते हुए. उन के सिर पर कोई छत नहीं.

‘‘देख लिया… अब चलें?’’ विजय ने अनामिका से पूछा.

‘‘तुम्हें पता है हनुमान के ज्यादातर मंदिरों में वे ऐसे बिना छत के क्यों रहते हैं?’’ अचानक से अनामिका
ने पूछा.

‘‘मुझे पता था यह सवाल जरूर आएगा. तुम ईश्वर को तो मानती नहीं, फिर भी यहां आई, कोई तो चक्कर है,’’ विजय ने कहा.

‘‘वह बात नहीं है. पर तुम ने मेरे सवाल का जवाब नहीं दिया,’’ अनामिका एकदम से बोली.

‘‘पता नहीं. मैं ने कभी इस नजरिए से सोचा नहीं,’’ विजय बोला.

‘‘पता नहीं क्यों, मुझे ऐसा लगता है कि हनुमान को राम का दास बताया है, इसलिए वे आज भी दास की तरह ऐसे बिना छत के मूर्ति के रूप में बैठे या खड़े रहते हैं. गरीबों को ऐसे ही दास देवताओं की पूजा करने का हक दिया जाता है,’’ अनामिका बोली.

‘‘क्या तुम भी अपने जन्मदिन पर इतनी गंभीर सोच में पड़ गई. इस मुद्दे पर फिर कभी बहस करेंगे. मुझे अच्छा लगेगा हनुमान की मूर्ति पर चर्चा करने में,’’ विजय ने कहा.

‘‘जैसे हमारे प्रधानमंत्री परीक्षा पर चर्चा करते हैं,’’ अनामिका हंसते हुए बोली.

‘‘अब चलें, शाम तक वापस भी आना है,’’ विजय बोला.

वहां से निकल कर वे दोनों पहले तो कुछ देर फरीदाबादगुड़गांव रोड पर चलते रहे, फिर आगे जा कर बाईं तरफ कैंप वाइल्ड रोड की तरफ मंगर गांव की ओर बढ़ गए. वहीं पर उन की मंजिल थी होटल ललित मंगर.

कैंप वाइल्ड रोड एकदम सुनसान थी. दोनों तरफ अरावली का जंगल.

कुछ ही देर में वे दोनों होटल ललित मंगर पहुंच गए. बड़ा ही खूबसूरत  होटल था.

होटल के दरबान ने उन दोनों को स्कूटी पर देखा, तो उसे लगा कि शायद यहां भटक कर आ गए हैं, क्योंकि वहां तो अमूमन लोग बड़ी गाडि़यों में ही आते थे.

जब वे दोनों स्कूटी को पार्किंग में लगा कर भीतर जाने लगे, तो दरबान ने अदब से पूछा, ‘‘जी, यहां कैसे?’’

विजय पहले ही थक चुका था और अनामिका के सरप्राइज से भी बेखबर था, तो झल्ला गया और बोला, ‘‘क्यों, यहां आना बैन है क्या? इन मैडम से पूछिए कि इस सुनसान जंगल में मुझे क्यों लाई हैं…’’

अनामिका हंसी और दरबान से बोली, ‘‘हम ने 2 लोगों के लंच का रिजर्वेशन करा रखा है.’’

‘‘जी मैडम,’’ इतना कह कर दरबान ने उन को ‘वैलकल’ कहा.

होटल बहुत शानदार था. रैस्टोरैंट भी खूबसूरत था. अनामिका ने वहां के मैनेजर से बात की और विजय के साथ अपनी रिजर्व्ड सीट पर आ कर बैठ गई. थोड़ी देर में एक वेटर केक ले आया.

विजय केक देख कर हैरान रह गया. उसे सब समझ में आ गया. अनामिका ने केक काटा. फिर उन दोनों ने लंच किया.

विजय को बहुत अच्छा लगा. वह बोला, ‘‘वाह अनामिका, यह सरप्राइज तो शानदार था. पर यार, यहां तो बहुत देर हो गई. 3 बजने वाले हैं. अब निकलते हैं. घर भी टाइम से पहुंचना है.’’

‘‘इतनी भी क्या जल्दी है. मैं अभी आई,’’ इतना कह कर अनामिका विजय से थोड़ा दूर जा कर खड़ी हो गई और फोन पर किसी से बातें करने लगी.

‘‘किस से बात कर रही थी?’’ जब अनामिका पास आई, तो विजय ने पूछा.

‘‘पापा से,’’ अनामिका बोली और विजय का हाथ पकड़ कर होटल घूमने की जिद करने लगी कि यहां आए हैं तो कुछ फोटो ही क्लिक कर लेते हैं. अपनी यादगार के लिए.

विजय बेमन से उठा और अनामिका के साथ चल दिया. अनामिका ने वेटर से कहा कि यह केक पैक कर दो, फिर वे होटल में यहांवहां घूमते हुए फोटो क्लिक करने लगे.

इस तरह वहीं शाम के 5 बज गए. विजय ने घड़ी देख कर कहा, ‘‘अब चलें… घर जातेजाते रात के 8 बज जाएंगे.’’

‘‘ठीक है, हम अब चलते हैं,’’ अनामिका ने फोन में कोई मैसेज करते हुए कहा.

अभी वे दोनों स्कूटी से कुछ दूर गए ही थे कि अनामिका बोली, ‘‘जरा स्कूटी रोकना. मुझे वाशरूम जाना है.’’

‘‘पर यहां जंगल में कहां वाशरूम मिलेगा…’’ विजय ने कहा.

‘‘अरे, इतना बड़ा जंगल है. यहीं कर लेती हूं. तुम बस स्कूटी रोक दो,’’ अनामिका बोली.

‘‘तुम भी न यार,’’ इतना कह कर विजय ने सड़क किनारे स्कूटी रोक दी. अनामिका जंगल के कुछ अंदर चली गई.

जब कुछ देर हो गई और अनामिका बाहर नहीं आई, तो विजय को चिंता हुई. वह जंगल के अंदर जाने ही वाला था कि सामने से एक कार आई. उस में 4 मुस्टंडे टाइप लड़के बैठे थे.

‘‘अबे, यहां अकेले में क्या कर रहा है?’’ कार रोक कर एक लड़के ने पूछा.

‘‘तुम से मतलब…’’ विजय ने कहा.

इतने में अनामिका भी वहां आ गई. उसे देख कर दूसरे लड़के ने कहा, ‘‘यहां तो जंगल में मंगल हो रहा है और यह लड़का हम से कह रहा है कि तुम से मतलब. जहां लड़की, वहां हम.’’

इस के बाद उन लड़कों ने कार सड़क किनारे रोक दी और बाहर आ कर अनामिका से बदतमीजी करने लगे. यह देख विजय घबरा गया.

इतने में उन में से 2 लड़कों ने अनामिका को कस कर पकड़ा और जबरदस्ती जंगल में ले जाने लगे.

अनामिका चिल्लाई और बोली, ‘‘मुझे हाथ भी लगाया, तो विजय तुम सब को जिंदा नहीं छोड़ेगा.’’

पर सच कहें तो विजय की घिग्घी बंधी हुई थी. वह अकेला क्या कर लेता. उस की तो आवाज भी नहीं निकल पा रही थी. उस ने हाथ जोड़ कहा, ‘‘इसे कुछ मत करो. आज इस का जन्मदिन है. यह मेरे भरोसे यहां आई है.’’

तभी एक लड़के ने विजय को तमाचा जड़ दिया और बोला, ‘‘अबे, कैसा आशिक है तू. तेरी गर्लफ्रैंड को तुझ पर इतना भरोसा है और तू डर के मारे थरथर कांप रहा है. क्यों अनामिका, क्या किया जाए तेरे विजय बाबू के साथ?’’

‘‘तुम हम दोनों का नाम कैसे जानते हो?’’ विजय ने हैरान हो कर पूछा.

विजय का इतना कहना था कि वे सब खिलखिला कर हंस दिए. अनामिका सब से ज्यादा हंस रही थी. वह बोली, ‘‘अरे, मेरे डरपोक आशिक. ये सब मेरे दोस्त हैं. हम सब ने तुम्हारे साथ प्रैंक किया है.’’

यह सुन कर विजय की सांस में सांस आई. अनामिका ने उन सब का परिचय विजय से कराया. दरअसल, वे अनामिका के दोस्त थे, जिन्हें विजय नहीं जानता था. उन सब ने विजय से ‘सौरी’ बोलते हुए कहा कि दिल पर मत लेना. हम ने तो वही किया, जो अनामिका ने हम से कहा था.

‘‘पर विजय, मुझे तुम से यह उम्मीद नहीं थी. तुम तो कुछ ज्यादा ही घबरा गए,’’ अनामिका बोली.

‘‘मुझे तुम्हारी चिंता थी,’’ विजय धीरे से बोला.

‘‘क्यों… मुझे क्या हो जाता? ओह, शायद तुम्हें शिलांग वाला मामला याद आ गया, जिस में लड़के की लाश मिली और लड़की गायब…’’ अनामिका बोली.

‘‘कौन सा मामला? मैं समझा नहीं?’’ विजय ने पूछा.

‘‘चलो, कहीं बैठ कर बात करते हैं,’’ अनामिका ने कहा.

‘‘हमारा केक तो बचा कर लाई है न?’’ उन चारों में से एक लड़के ने अनामिका से पूछा.

‘‘लाई हूं बाबा, हम ने पैक करा लिया था,’’ अनामिका बोली.

अब वे 6 जने एक सस्ते से ढाबे पर बैठ कर चाय पी रहे थे.

विजय ने अनामिका से पूछा, ‘‘यह शिलांग वाला मामला क्या है?’’

अनामिका ने कहा, ‘‘यह बड़ा ही खौफनाक कांड है. एक जोड़ा हनीमून मनाने शिलांग गया था, पर वहां कुछ ऐसा घटा कि सुनने वाले के रोंगटे खड़े हो जाएं.’’

‘‘यार, खबरिया चैनलों की तरह सनसनी मत फैलाओ. जो भी बात है वह बताओ न…’’ विजय ने पूछा.

‘‘तो सुनो… राजा रघुवंशी मर्डर केस की कहानी मध्य प्रदेश से शुरू होती है. जानकारी के मुताबिक, राजा और सोनम की शादी 11 मई को इंदौर में हुई थी. उस के बाद दोनों पतिपत्नी 20 मई को हनीमून के लिए मेघालय जाते हैं. यहीं से कहानी मोड़ लेती है.’’

‘‘क्या मोड़ लेती है?’’ इस बार अनामिका के एक दोस्त ने उस से पूछा.

‘‘मेघालय पहुंचने के बाद ऐसा कुछ हुआ कि इन दोनों की अपने परिवार वालों से कोई बातचीत नहीं होती है. न फोन आता है और न ही फोन जाता है. इस से राजा और सोनम के परिवार  वालों को चिंता सताने लगी कि क्या हुआ. ये लोग पुलिस के पास शिकायत ले कर पहुंचे.

‘‘पुलिस ने तेजी दिखाते हुए ऐक्शन शुरू किया. सभी सीसीसटी फुटेज देखे गए. कुछ दिन बाद पुलिस को एक स्कूटी मिली, जो सोनम और राजा ने किराए पर ली थी.

‘‘पुलिस ने मामले को संदिग्ध मानते हुए तलाशी अभियान तेज कर दिया. जंगलों में भी सर्च आपरेशन चलाया गया.’’

‘‘ओह, देश में इतना सनसनीखेज कांड हो गया और हमें भनक तक नहीं लगी,’’ अनामिका के दूसरे दोस्त ने कहा.

‘‘तुम ने पिछली बार अखबार कब पढ़ा था?’’ अनामिका ने सवाल किया.

‘‘याद नहीं. मुझे तो यह भी नहीं मालूम कि हमारे घर में अखबार कौन सा आता है,’’ उस दोस्त ने जवाब दिया.

अनामिका ने उस दोस्त को घूरा, फिर आगे बोली, ‘‘28 मई को पुलिस को जंगल में 2 बैग लावारिस हालत में मिले. इन की पहचान कराई गई, तो सोनम के भाई और राजा की मां ने एकएक बैग को पहचान लिया.

‘‘अब तो यह मामला और ज्यादा पेचीदा होने लगा था कि आखिर सोनम और राजा कहां गए? फिर अचानक 2 जून को विजाडोंग इलाके से राजा रघुवंशी की लाश मिली. राजा की बौडी पर बने एक टैटू के चलते उस की पहचान हो सकी.

‘‘वहीं, राजा की लाश के पास से एक सफेद शर्ट, मोबाइल की टूटी स्क्रीन भी पुलिस ने बरामद की. पोस्टमार्टम रिपोर्ट से खुलासा हुआ कि राजा की मौत हादसा नहीं, बल्कि हत्या है.

‘‘पुलिस को अब सोनम की तलाश थी. उस का कुछ भी अतापता नहीं चल रहा था. ऐसा माना जा रहा था कि सोनम भी किसी हादसे का शिकार हो गई है. ऐसी भी अफवाह उड़ी थी कि राजा को मार कर हत्यारे सोनम को बंगलादेश ले गए होंगे. लेकिन पुलिस सभी तथ्यों पर जांच कर रही थी.’’

‘‘करनी भी चाहिए. लोग शादी के बाद हनीमून मनाने के लिए इसलिए कहीं जाते हैं कि पतिपत्नी एकदूसरे को समझ सकें. उन का बंधन और ज्यादा मजबूत हो जाए,’’ विजय ने कहा.

इस पर अनामिका ने कहा, ‘‘पर यहां तो इस कांड में नया मोड़ आने वाला था.  मेघालय के मुख्यमंत्री कौनराड के. संगमा ने ट्वीट कर के बताया कि 7 दिन की मशक्कत के बाद मेघालय पुलिस को बड़ी कामयाबी मिली है. पुलिस ने 4 हमलावरों को गिरफ्तार किया है. वहीं, एक औरत ने भी सरैंडर किया है.’’
‘‘किस औरत ने?’’ विजय ने पूछा.

‘‘मेघालय की डीजीपी ने बताया कि राजा रघुवंशी की हत्या में उस की पत्नी सोनम का हाथ है. उसी ने हत्या करवाई है. इस के बाद मोड़ तब आया जब सोनम ने गाजीपुर, उत्तर प्रदेश के एक ढाबे से अपने घर फोन किया और बताया कि वह यहां है.

‘‘सोनम के भाई ने तुरंत इंदौर पुलिस को इस बात की जानकारी दी. पुलिस ने गाजीपुर पुलिस से संपर्क किया और सोनम को वन स्टौप सैंटर भेज दिया गया.

पुलिस ने सोनम का सब से पहले मैडिकल कराया. उस में पता चला कि सोनम के शरीर पर कहीं भी चोट का एक निशान नहीं है यानी उस के साथ कोई जोरजबरदस्ती नहीं की गई.

‘‘पुलिस ने फौरन सोनम को हिरासत में लिया और पूछताछ शुरू कर दी. पुलिस यह भी जानना चाहती थी कि वह गाजीपुर तक कैसे पहुंची.’’

‘‘पर यह तो पुलिस बोल रही है. सोनम क्या कहती है और इस हत्याकांड के पीछे की असली वजह क्या है?’’ विजय ने पूछा.

अनामिका बोली, ‘‘सोनम तो खुद को बेकुसूर बता रही है. पर अगर पुलिस की मानें तो सोनम और राज नाम के एक लड़के के बीच प्रेम प्रसंग चल रहा था. पिता के हार्ट पेशेंट होने से सोनम लवमैरिज नहीं कर पा रही थी.

‘‘पिता अपने समाज में उस की शादी करना चाहते थे, इसलिए उस ने राजा से शादी को हां कर ली थी. उस ने पहले ही तय कर लिया था कि शादी के बाद राजा को मार कर राज के साथ रहने लगेगी.

‘‘सोनम ने राज से कहा था कि जब मैं विधवा हो जाऊंगी, फिर तुम मुझ से शादी कर लेना. तब मेरे परिवार वाले भी हमारी शादी के लिए मान जाएंगे.’’

‘‘यह क्राइम स्टोरी तो बड़ी पेचीदा है. जब तक यह केस किसी ठोस नतीजे पर नहीं पहुंचेगा, तब तक कुछ न कुछ नया ही सुनने को मिलेगा,’’ अनामिका के एक दोस्त ने कहा.

‘‘तब की तब देखेंगे, फिलहाल तो हमें निकलना चाहिए. हम पहले ही लेट हो गए हैं,’’ विजय ने कहा.
अनामिका बोली, ‘‘ठीक है, अब घर चलते हैं.’’ News Kahani

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें