Hindi Story: दूसरा मौका

Hindi Story: सदैव की प्रेमिका शीरी उस से उम्र में बड़ी थी और निचली जाति की भी. बड़ी मुश्किलों से उन की शादी हुई, पर ससुराल में शीरी को ज्यादा इज्जत नहीं मिली. बाद में वह औफिस में भी तरक्की करती गई, तो सदैव को यह बाद खटकने लगी. उस ने एक प्लान के तहत शीरी से शादी की थी. क्या था वह प्लान?

लखनऊ शहर के बाहरी छोर पर बना हुआ यह एक ओपन एयर रैस्टोरैंट था. ओपन एयर यानी सबकुछ खुला हुआ, यहां तक कि किचन में बनने वाली डिश को भी ग्राहक अपनी आंखों के सामने देख सकता था.

रैस्टोरैंट के बीच में अमलतास का एक पेड़ था, जिस के पीले रंग के फूल अपनी छठा बिखेर रहे थे. इस पेड़ के चारों तरफ कुरसियों और टेबलों को सजाया गया था और किनारे की क्यारियों में देशीविदेशी फूल लगे हुए थे.

एक किनारे पर आर्टिफिशियल झरना बना हुआ था, जिस से गिरता हुआ पानी आंखों को सुकून देता था. कभीकभी जब हवा का झौंका आता तो मिलेजुले फूलों की खुशबू फैल जाती. तब यहां बैठे प्रेमी जोड़ों का मन और भी रूमानी हो उठता था.

सदैव और शीरी ने किनारे वाली टेबल चुनी थी और दोनों अपने लिए मनपसंद चीजों का और्डर भी दे चुके थे. उन के यहां आने का मकसद सिर्फ टेस्टी खाना ही नहीं था, बल्कि अपने भविष्य के बारे में संजीदा बातें भी करना था.

सदैव और शीरी दोनों एक ही न्यूज चैनल ‘खबर तक’ में काम करते थे. सदैव एसोसिएट प्रोड्यूसर था, जबकि शीरी न्यूज रिपोर्टर थी.

साथ काम करतेकरते कब दोनों को एकदूसरे से प्यार हो गया पता ही नहीं चला और दोनों एकदूसरे के प्यार को 4 साल तक ईमानदारी की कसौटी पर जांचतेपरखते रहे और फिर जब दोनों ने समझ लिया कि उन के प्यार का रंग पक्का है, जिस पर पानी की कोई बौछार कोई असर नहीं डालेगी, तब उन दोनों ने शादी के बंधन में बंध जाने का फैसला कर लिया.

पर सदैव और शीरी के लिए शादी की राह इतनी आसान नहीं हो जाने वाली थी. सदैव अभी 25 साल का था और शीरी 27 साल की. उन दोनों का अलगअलग जाति से होना भी समस्या था, क्योंकि सदैव ब्राह्मण कुल से था, जबकि शीरी लोहार जाति की थी.

सदैव साधारण मिडिल क्लास परिवार का था. उस के परिवार वालों ने सदैव को पढ़ाने के लिए बैंक से
लोन लिया था, जिसे वे कई सालों तक चुकाते रहे थे, दूसरी तरफ शीरी मिर्जापुर के एक अमीर परिवार से ताल्लुक रखती थी.

शीरी के पापा एक मेकैनिकल वर्कशौप चलाते थे और तकरीबन 15 लोगों का स्टाफ था उन की वर्कशौप पर और इसी के सामने उन का आलीशान मकान बना हुआ था.

सदैव और शीरी दोनों जानते थे कि दूसरी जाति में शादी करना अब भी उतना आसान नहीं है, पर शीरी बहुत आशावादी लड़की थी. उस का मानना था कि अच्छा सोचने से अच्छा होता है, जबकि सदैव पर नैगेटिव सोच हावी रहती थी, क्योंकि जिस परिवार से वह ताल्लुक रखता था, वह परिवार भी छोटी सोच से अभी तक ऊपर नहीं उठ पाया था.

हालांकि, शीरी और सदैव ने जब शादी करने का फैसला किया था उस के बाद से शीरी अकसर ही सदैव की मां से, सदैव के दोस्त की हैसियत से फोन पर बात किया करती और उन का हालचाल लिया करती थी.

सदैव की मां भी बड़े प्यार से शीरी से बातें करती थीं, पर तब तक ही जब तक उन्हें यह नहीं पता चला कि उन का बेटा शीरी से शादी करना चाहता है.

‘‘क्या, अब उस लोहारिन से शादी करेगा तू, हमारा धर्म नष्ट कराएगा तू… नीच जाति की लड़की को घर लाएगा,’’ बम फूट गया था जैसे सदैव के घर में और कई बार बेटे और मातापिता में शादी को ले कर तीखी बहस भी हुई.

मिर्जापुर में जब शीरी ने फोन पर अपने मांबाप को उस की उम्र से छोटे और एक ब्राह्मण लड़के से शादी करने की बात बताई थी, तो उसे भी नाराजगी और गुस्सा ही झेलना पड़ा था.

शीरी के मांबाप ने खूब खरीखोटी सुनाई. उन्हें लोहार जाति का होने पर कोई अफसोस नहीं था और इसीलिए वे लोग चाहते थे कि शीरी अपनी जाति वाले किसी लड़के से ही शादी करे, ब्राह्मण जाति का लड़का उन्हें बिलकुल लुभा नहीं रहा था.

पर शीरी अपने मन और सदैव के प्यार के आगे मजबूर थी, सो उस ने अपने घर में साफ कर दिया था कि सदैव के अलावा वह किसी और से शादी नहीं करेगी.

‘‘तो क्या तुम अपनी ब्राह्मण सास से अपने लिए ‘लोहारिन’ और ‘छोटी जाति’ जैसे शब्द सुन पाओगी?’’

शीरी की मां ने कहा तो शीरी ने बदले जमाने और नई सोच का हवाला देते हुए कहा, ‘‘आप लोग अपने मन से कहानियां मत बनाओ. जहां तक सदैव के घर वालों की बात है तो सदैव उन्हें मना लेगा, पर पहले आप लोग तो मान जाओ.’’

सदैव ने भी अपने घर में अल्टीमेटम दे दिया था कि अगर उस की शादी शीरी से नहीं होगी तो वह खुदकुशी कर लेगा. उस की बात सुन कर मांबाप दोनों सन्न रह गए थे और बेटे की इस बात ने उन्हें कुछ सोचने पर मजबूर कर दिया था.

दोनों परिवार आपस में मिले. उन लोगों की मुलाकात के समय काफी तनाव का माहौल था, पर दोनों परिवार ही अपने बच्चों की जिद के आगे मजबूर थे, इसलिए तमाम जद्दोजेहद और उठापटक के बाद बड़े बेमन से दोनों तरफ से शादी के लिए हां तो कर दी गई.

लेकिन सदैव के मांबाप चाहते थे कि शादी के कार्ड पर लड़की के नाम के आगे ‘विश्वकर्मा’ की जगह ‘शर्मा’ लिखवा दिया जाता तो ठीक रहता, क्योंकि उत्तर प्रदेश के पश्चिमी इलाके में एक ब्राह्मण वर्ग शर्मा नामक सरनेम का इस्तेमाल करता है, जिस से ब्राह्मण परिवार की साख बनी रहती और रिश्तेदारी में लड़की के लोहार होने की बात दब जाती.

पर अपना सरनेम बदला जाना शीरी के मांबाप को कतई मंजूर नहीं हुआ और उन्होंने इस बात से साफ इनकार कर दिया.

इस बात पर सदैव ने भी नाराजगी जताई तो सदैव की शादीशुदा बहन रोमी ने बीच का रास्ता बताया कि वे लोग 2 तरह के कार्ड छपवाएं. एक पर ‘विश्वकर्मा’ सरनेम हो जो लड़की वालों का रियल सरनेम है, इसलिए वे कार्ड उन्हें दिखा दिए जाएं, जबकि जो कार्ड उन्हें अपनी रिश्तेदारी में बांटने हैं उस पर वे लोग ‘शर्मा’ सरनेम डलवा दें और इस कार्ड की भनक लड़की वालों को न दी जाए.

बहन की इस सलाह पर ही अमल किया गया और इसे बड़ी चालाकी से अंजाम दिया गया.

शादी के कर्मकांड में भी कई रुकावटें आईं, पर सदैव के पापा सब बातों को सुलझे दिमाग से संभालते गए और शीरी और सदैव की शादी हो गई.

सदैव और शीरी को शादी के बाद सदैव के पुश्तैनी घर यानी मनमीत नगर जाना था जो नोएडा से तकरीबन 550 किलोमीटर की दूरी पर तराई इलाके में बसा हुआ था.

शीरी ने कार में बैठेबैठे ही सदैव के मकान पर नजर डाली जो एक छोटा सा साधारण मकान था. अंदर जा कर देखने पर भी घर और घर के लोग सामान्य से ही लगे, पर इस से शीरी को रत्तीभर भी फर्क नहीं पड़ा, क्योंकि उसे तो कुछ दिन यहां रुकने के बाद वापस नोएडा अपने 3 बीएचके के फ्लैट में ही जाना था, जिसे सदैव ने किराए पर ले रखा है.

पहलेपहल ही शीरी का स्वागत अच्छा नहीं हुआ. उस को लंबा घूंघट न करने के लिए डांट पड़ी और किचन में घुसने को मना कर दिया गया, जबकि शीरी पहले से ही इन सब बातों के लिए तैयार थी.

शीरी किसी आदर्श बहू की तरह रोज सुबह 5 बजे जाग जाती और घर का झाड़ूपोंछा करने के बाद नहाती, फिर नाश्ते की तैयारी करने लगती, जबकि घर के सभी लोग तब तक सोते ही रहते. सास के जागने के बाद वह उन्हें रात की भीगी हुई मेथी का पानी देती और ससुर को अंकुरित स्प्राउट, जबकि देवर का नाश्ता रोज बदल कर देने का फरमान था सास का, सो देवर के लिए रोज इंटरनैट से देख कर नया नाश्ता बना देती.

‘‘ये चावल किस ने पकाए हैं? जरूर शीरी भाभी ने पकाए होंगे,’’ किचन में ननद की आवाज गूंज रही थी.
पर शीरी ने बिना सब्र खोए कहा, ‘‘दीदी, अगर आप को दूसरे चावल खाने हैं, तो मैं दोबारा पका देती हूं.’’

इस बात के बदले में ननद से कुछ न बोला गया. वह किचन से बाहर पैर पटकती चली गई.

जब तक शीरी अपनी ससुराल में रही, तब तक कोई ऐसा दिन नहीं गया होगा कि उस के काम में कोई कमी नहीं निकाली गई हो.

पर फिर भी शीरी अपनी जबान को दांतों तले दबाए रही और किसी के खिलाफ कुछ भी नहीं कहा.

आज शीरी और सदैव को नोएडा अपने काम पर लौटना था, इसलिए शीरी किसी विजेता की तरह नोएडा वापस आ रही थी. दोनों ने वापस आ कर औफिस जौइन कर लिया था.

अपनी शादी से पहले शीरी ने कश्मीर में हुए एक आतंकी हमले के दौरान तमाम खतरों के बीच जा कर बहुत शानदार रिपोर्टिंग की थी. आज काम पर लौटते ही उस के क्रिएटिव हैड ने अपने केबिन में बुला कर उसे शादी की बधाई देने के बाद शाबाशी दी और साथ ही उस की बेहतर और बेबाक रिपोर्टिंग के लिए उसे ‘न्यूज स्टार’ नामक अवार्ड मिलने की बधाई भी दी.

शीरी ने तुरंत ही यह बात बताने के लिए सदैव को फोन लगाया तो उस ने फोन काट दिया. उस की किसी गलती पर बौस ने उसे डांटा था. शाम को भी वह अनमना सा था.

‘‘यह सब होता रहता है,’’ शीरी ने कहा तो सदैव को बुरा लग गया.

‘‘तुम्हें तो अवार्ड दिया जा रहा है, इसलिए तुम खुश हो,’’ सदैव ने झंझलाते हुए कहा.

सदैव का यह रूप देख कर शीरी ने शांत हो जाना ही ठीक समझा. अगले 2-3 दिन तक घर का माहौल काफी बोझिल सा रहा.

अगले दिन सदैव ने शीरी से अपनी मंशा जाहिर कर दी कि उन के फ्लैट का किराया बहुत ज्यादा जाता है, तो क्यों न वे कोई फ्लैट खरीद लें. शीरी को इस में कोई बुराई नहीं नजर आई.

सदैव और शीरी ने अपने अपार्टमैंट्स से कुछ दूरी पर बने ‘शालीमार अपार्टमैंट्स’ में एक फ्लैट बुक कर दिया और 50 फीसदी रकम का भुगतान कर के बाकी पैसों की मासिक किस्त बनवा ली. शीरी ने अपनी सैलेरी से ईएमआई का पेमेंट करना स्वीकार कर लिया था.

कुछ दिनों के बाद ही शीरी ने अंबेडकरनगर में जा कर गरीब बच्चों के दुखदर्द को सामने लाने के लिए रिपोर्टिंग की, जिस की खूब तारीफ हुई और अब स्टाफ के लोगों को लगने लगा था कि हो न हो बहुत जल्दी ही शीरी को उस के लगातार अच्छे काम के लिए प्रमोशन दिया जाएगा.

और हुआ भी वही, शीरी को प्रमोट कर दिया गया, जबकि सदैव का साधारण सा इन्क्रीमेंट ही किया गया.
शाम को जब सदैव घर आया तो चाय पीते समय काफी गुस्से में लग रहा था और बौस और मैनेजमैंट के भेदभाव वाले रवैए के बारे में अनापशनाप बोल रहा था.

कहीं न कहीं सदैव के मुंह से यह बात भी निकल गई कि शीरी का अवार्ड और प्रमोशन उस के लड़की होने के चलते है, क्योंकि लड़कियों के लिए बहुत सारी चीजें पाना आसान हो जाता है. बौस लोग लड़कियों को पसंद करते हैं और उन्हें आगे बढ़ाने से उन का भी उल्लू सीधा होता है.

‘‘उल्लू सीधा होने से क्या मतलब है सदैव? तुम भी मेहनत करो तो तुम भी आगे बढ़ सकोगे,’’ शीरी का सब्र जवाब दे रहा था, इसलिए उस ने सवाल किया.

‘‘अरे, यह बात तुम अच्छी तरह समझती हो. अब भला उस अंबेडकरनगर वाली रिपोर्टिंग में तो ऐसी कोई खास बात नहीं थी, जिस के लिए वाहवाही की जाए.

‘‘पर आजकल तो दलित जाति के लिए दो हमदर्दी भरे शब्द बोल कर कोई भी लाइमलाइट में आ सकता है,’’ सदैव गुस्से में बक रहा था.

कितना जहर भरा था सदैव के मन और उस की बातों में, यह शीरी को अब धीरेधीरे पता चल रहा था, पर उस के पास सदैव के इस बरताव पर सिर्फ अवाक और दुखी होने के अलावा और कोई रास्ता नहीं था.

4 महीने बीत चुके थे और इन्हीं खट्टीमीठी बातों के बीच शीरी को पता चला कि वह पेट से है. तुरंत ही उस ने यह खबर सदैव को सुनाई.

बाप बनने की खबर सुन कर सदैव भी खुशी से फूला नहीं समाया और शीरी ने जल्द ही अपनी मां को फोन लगा कर यह खुशखबरी सुना दी.

मां ने ढेर सारी सावधानियां रखने की ताकीद करनी शुरू कर दी, जबकि अभी तो शीरी का पेट से होना शुरुआती दौर में था.

7 महीने हो गए और अब शीरी को औफिस से मैटरनिटी लीव ले कर घर पर ही रहना था.

एक दिन शीरी ने कहा, ‘‘सासू मां यहां आ जातीं, तो ठीक रहता.’’

इस बात पर सदैव ने भी रजामंदी जताई और अपनी मां को नोएडा आ कर रहने को कहा, पर उसे अपनी मां की तरफ से कड़वे शब्द ही सुनने को मिले, ‘‘तो तू क्या चाहता है कि अब मैं आ कर तेरी बीवी की सेवा करूं और जब उस का बच्चा हो तो नौकरानी की तरह काम करूं?’’

सदैव समझ गया था कि उस की मां नोएडा नहीं आएंगी, इसलिए उस ने शीरी से मिर्जापुर से अपनी मां को ही बुला लेने को कहा.

शीरी ने अपनी मां को बुला लिया और उस की मां ने आते ही किचन और शीरी की देखभाल का जिम्मा संभाल लिया.

समय आने पर शीरी ने एक खूबसूरत सी बेटी को जन्म दिया. सदैव बहुत खुश हुआ, पर उस की मां और पापा की तरफ से कड़वे शब्द ही आए कि ‘एक तो करेला ऊपर से नीम चढ़ा. ऊंचे कुल की लड़की से शादी करता तो लड़का पैदा होता. इस ने तो लड़की पैदा कर के रख दी है. और करो नीची जाति की लड़की से शादी’.

सदैव को अपने मांबाप से ऐसी उम्मीद तो नहीं थी, पर अब तो शीरी से शादी कर के वह भी जैसे परेशान ही हो रहा था.

औफिस में शीरी का बढ़ता हुआ कद और फिर लड़की पैदा होने पर अपने घर वालों द्वारा कोसे जाने से तो सदैव परेशान था ही कि इसी समय एक घटना और हो गई.

शीरी के चचेरे भाई हर्ष का उस की पत्नी से घरेलू विवाद के चलते तलाक हो गया, जिस के चलते शीरी परेशान थी, तो सदैव ने कहा, ‘‘तलाक के मामले हम लोगों में बहुत कम होते हैं, जबकि तुम लोगों में तो बातबात में तलाक हो जाता है.’’

सदैव की इस बात पर शीरी ने एतराज जताते हुए ‘हम लोग’ और ‘तुम लोग’ जैसे शब्दों का मतलब पूछा, जिस पर सदैव ने ‘हम लोग’ का मतलब ऊंची जाति और ‘तुम लोग’ का मतलब नीची जाति बताया.

शीरी को सम?ा में आ रहा था कि सदैव भले ही अच्छी नौकरी कर रहा था, देखने में भी अच्छा था, पर उस की सोच बहुत छोटी थी और वह उस सोच से ऊपर भी नहीं बढ़ पा रहा था.

न जाने कितनी बार शीरी ने सदैव से कहा कि अगर उसे औफिस में तरक्की नहीं मिल पा रही है, तो उसे किसी दूसरे चैनल में नौकरी करनी चाहिए, पर सदैव तो जहां था वहीं पड़े रहना चाहता था, उलटे शीरी की ये बातें उसे बुरी लग जाती थीं, तो वह उस से सीधे मुंह बात नहीं करता था.

2 दिन बाद शीरी का बर्थडे था. शीरी बहुत खुश थी, पर सदैव के चेहरे पर खुशी का कोई नामोनिशान नहीं था. हालांकि, उस ने बेमन से शीरी को विश जरूर किया और औफिस के लिए निकल गया.

शाम को सदैव जल्दी नहीं आया तो पूछने पर उस ने बताया कि वह औफिस में बिजी है. सदैव रात के 10 बजे घर आया. उस ने शराब पी हुई थी. वह सीधा अपने कमरे में चला गया. उस के इस बरताव पर शीरी का सब्र जवाब दे गया था.

शीरी ने सदैव से बात शुरू की, ‘‘मैं ने तो अपनी जाति और अपनी उम्र नहीं छिपाई थी. तुम्हारे परिवार से जो भी दर्द मिला, वह भी मैं ने सब हंस कर सहा, पर शादी के बाद तुम्हारे बरताव और प्यार में जमीनआसमान का फर्क क्यों आया?’’

शीरी आज सबकुछ साफ कर लेना चाहती थी. सदैव ने भी लड़खड़ाती जबान में उसे जवाब दिया, ‘‘दरअसल, तुम से शादी करना मेरा एक कैलकुलेशन था.

‘‘कैसा कैलकुलेशन?’’ शीरी ने पूछा, जिस के बदले में सदैव ने जो बताया उसे सुन कर शीरी चौंक गई थी.

सदैव ने नशे की झांक में शीरी को बताया कि उस ने शीरी से शादी सिर्फ इसलिए की है, क्योंकि आमतौर पर उस जैसी अमीर लड़की से उस की शादी नहीं हो पाती, वह नोएडा में कभी अपना फ्लैट नहीं खरीद पाता. मतलब, सदैव ने शीरी के परिवार के रुतबे और पैसे को देखते हुए सोचासमझा जाल बिछाया और शीरी से शादी की.

शीरी की समझ में आ रहा था कि उस ने सदैव से शादी कर के भारी भूल कर दी है. उस ने तो सदैव से प्यार किया था पर सदैव ने उसे अपना झूठा चेहरा ही दिखाया था.

लेकिन आज सदैव शराब के नशे में था, इसलिए न चाहते हुए भी उस की जबान चल रही थी, ‘‘और सच कहूं तो मुझे लगता है कि यह बच्चा मेरा नहीं है. मुझे तुम्हारे उस कलीग आशु पर शक है. आखिर वह भी तो छोटी जाति काही है.’’

सदैव ने यह बात कह कर एक हिचकी ली, पर उस के इन शब्दों ने मानो शीरी के कानों में पिघला सीसा उड़ेल दिया था. उसे लगा कि अपने गुस्से को संभालने में उस के शरीर का सारा जोर लगा जा रहा है.

शीरी के नथुने फड़कने लगे थे और पीछे खड़ी उस की मां की आंखों से आंसू लगातार बहे जा रहे थे.

‘‘मुझ से बहुत बड़ी गलती हो गई. मुझ से तुम को समझने में भूल हो गई,’’ शीरी यह कहते हुए उठ खड़ी हुई थी.

अगली सुबह ही शीरी ने सदैव के खिलाफ घरेलू हिंसा और दिमागीतौर पर परेशान का केस दायर कर दिया और सदैव के पास तलाक के कागजात भिजवा दिए.

पहले तो सदैव ने इस बात को हलके में लिया, पर जब उसे लगातार कोर्ट के चक्कर लगाने पड़े और केस और वकीलों का खर्चा उठाना पड़ा, तो उस की जेब जवाब देने लगी. अभी तो उसे शीरी का खर्चा देना था और अपनी बेटी को हर महीने तय रकम भी देनी थी… और अब तो उस के हाथ से उस का फ्लैट भी निकल जाएगा.

सदैव ने शीरी से माफी मांग कर समझौता करना चाहा, पर शीरी अपने फैसले पर अडिग थी.

‘‘मैं ने तुम्हें समझने में पहली बार तो भूल कर दी थी, पर दूसरी बार भूल नहीं करूंगी. बड़ी मुश्किल से दूसरा मौका मिला है अपनी जिंदगी को संवारने का,’’ शीरी के चेहरे पर कठोर भाव थे.

शीरी ने ठीक मौके पर सदैव को पहचान लिया था, जिस ने प्रेम का जाल सिर्फ इसलिए फैलाया ताकि शीरी जैसी अमीर लड़की को अपनी पत्नी बना कर उस के पैसे पर ऐश कर सके.

जाति और ऊंचनीच के ढेर में पड़े हुए सदैव को तलाक दे कर शीरी ने खुद की जिंदगी को दूसरा मौका दिया था. Hindi Story

Story In Hindi: 2 नाव की सवारी

Story In Hindi: इम्तियाज की शादी शकीला से बड़ी धूमधाम से हुई थी. शकीला भी कोई ऐसेवैसे घर की लड़की नहीं थी, बल्कि एक अच्छे परिवार की पढ़ीलिखी लड़की थी. भले ही उस का रंग सांवला था, पर उस के चेहरे पर एक अजीब सी कशिश थी.

लंबे डीलडौल की और ऊंची उठी हुई छातियों की मलिका होने के साथसाथ शकीला की आवाज भी बड़ी मधुर थी. उस के काले घनेलंबे बालों का तो कहना ही क्या था.

बायोलौजी में बीएससी कर शकीला ट्यूशन पढ़ा कर अपना खर्च खुद उठाने के काबिल थी.

इम्तियाज मुंबई के सांताक्रूज इलाके में शकीला के साथ अकेला रहता था. दोनों में बहुत गहरा प्यार था. शकीला इम्तियाज पर जान छिड़कती थी, क्योंकि इम्तियाज भी शकीला के घर के कामों में काफी मदद करता था और उस की हर खुशी का खूब खयाल रखता था.

इम्तियाज एक सौफ्टवेयर इंजीनियर था, लेकिन खूबसूरत लड़की देख कर अकसर उस का दिल मचलने लगता था.

शकीला जब पेट हुई तो उस की अम्मी ने शकीला की देखभाल के लिए अपनी छोटी बेटी सानिया को उस के घर भेज दिया.

डिलीवरी होने में अभी एक हफ्ता बाकी था. सानिया ने पहले ही आ कर शकीला के घर की जिम्मेदारी अच्छी तरह संभाल ली थी और अपनी बहन शकीला को आराम देने में पूरी मदद करने लगी थी.

इम्तियाज ने जब शकीला की बहन सानिया को देखा तो उस का दिल मचलने लगा और वह उसे पाने के सपने संजोने लगा.

सानिया बला की खूबसूरत थी. एकदम गोरीचिट्टी, बड़ीबड़ी आंखें, गुलाबी होंठ, सुर्ख गाल और मदमस्त उठी हुई छातियां देख कर इम्तियाज तो उस का ऐसा दीवाना हुआ कि बस उसे पाने के लिए जुगत भिड़ाने लगा.

कुछ दिनों बाद शकीला ने आपरेशन के जरीए एक प्यारे से बेटे को जन्म दिया. इस वजह से शकीला को एक हफ्ते तक अस्पताल में भरती रहने को कहा गया.

इम्तियाज ने औफिस से छुट्टी ले ली और शकीला और बच्चे की अच्छी तरह देखभाल करने लगा.

2 दिन तक इम्तियाज ढंग से सो नहीं पाया, तो शकीला बोली, ‘‘आप आज रात घर पर जा कर आराम कर लो. वैसे भी सानिया घर में अकेली है.’’

इम्तियाज बोला, ‘‘ठीक है, मैं थोड़ा आराम कर के सवेरे जल्दी आ जाऊंगा. तुम अपना खयाल रखना.’’

देर रात घर पहुंच कर इम्तियाज ने डोरबैल बजाई तो सानिया नींद से उठती हुई दरवाजा खोलने आई.

सानिया ने जैसे ही दरवाजा खोला, उस की उभरी हुई छातियां देख कर इम्तियाज के मन में हलचल मचने लगी.

इम्तियाज सानिया से बोला, ‘‘मैं काफी थका हुआ हूं. थोड़ा आराम कर के मुझे सुबह 4 बजे जल्दी अस्पताल जाना है. अगर मेरी आंख नहीं खुली, तो मुझे 4 बजे उठा देना.’’

सानिया ने कहा, ‘‘ठीक है जीजाजी, आप आराम करो. मैं आप को 4 बजे उठा दूंगी,’’ और फिर वह ड्राइंगरूम में ही अपने बिस्तर पर लेट गई.

इम्तियाज बाथरूम जा कर फ्रैश होने लगा. जब वह बाथरूम से निकला, तो ड्राइंगरूम में सानिया को लेटे देख कर उस का मन डोलने लगा.

इम्तियाज काफी देर तक सानिया को यों ही निहारता रहा, फिर धीरे से उस के करीब जा कर उस ने सानिया के उभारों पर अपना हाथ रख दिया और उन्हें सहलाने लगा.

सानिया चौंक कर उठ गई और अपने जीजा से अलग होते हुए बोली, ‘‘यह आप क्या कर रहे हो…’’

इम्तियाज ने कहा, ‘‘कुछ नहीं. मै देख रहा हूं कि तुम्हारे इस संगमरमरी बदन को कुदरत ने बड़ी फुरसत से बनाया है. मैं इसे चूमना चाहता हूं. तुम्हारे इस दूधिया बदन से प्यार करना चाहता हूं.’’

सानिया बोली, ‘‘आप को शर्म नहीं आती जीजाजी… आप मेरी सगी बहन के शौहर हैं और आप उन्हें कैसे धोखा दे सकते हैं…’’

इम्तियाज ने कहा, ‘‘मैं शकीला को धोखा नहीं दे रहा हूं. मैं तो बस तुम्हारे साथ कुछ समय गुजारना चाहता हूं.’’

‘‘यह गलत है. आप मुझ से दूर हो जाओ. मैं अपनी बहन को धोखा नहीं दे सकती,’’ सानिया ने कहा.

‘‘पर मैं तो तुम दोनों को ही अपने साथ जिंदगीभर रखना चाहता हूं,’’ कहते हुए इम्तियाज ने सानिया के रसभरे गुलाबी होंठों को चूमना शुरू कर दिया.

सानिया इम्तियाज से अलग होने के लिए छटपटाने लगी कि तभी इम्तियाज ने उस के उभारों पर अपना हाथ फेरना शुरू कर दिया.

थोड़ी सी नानुकर के बाद सानिया सिसकियां भरने लगी. वह इम्तियाज को अपने ऊपर खींचने लगी, तो इम्तियाज को यह समझते देर न लगी कि सानिया गरम हो चुकी है.

इम्तियाज ने सानिया को अपनी बांहों में जकड़ लिया और उसे प्यार करने लगा. सानिया भी अब पूरा मजा लेने लगी. कुछ देर तक वे दोनों यों ही एकदूसरे के जिस्म से खेलते रहे, फिर चरमसुख पर पहुंच कर अलग हो गए.

सानिया मुसकराते हुए बोली, ‘‘जीजाजी, आप ने तो मुझे वह खुशी दी है, जिस की मैं ने कभी कल्पना भी नहीं की थी. अब मैं आप के बिना नहीं रह सकती. यह खुशी मुझे आप से बारबार चाहिए.’’

इम्तियाज बोला, ‘‘तुम फिक्र मत करो. तुम्हारा जब भी दिल करेगा, मैं तुम्हारे लिए हाजिर रहूंगा.’’

सानिया ने कहा, ‘‘पर जब कुछ दिनों के बाद मैं यहां से चली जाऊंगी, तब आप मुझे यह खुशी कैसे दोगे?’’

इम्तियाज बोला, ‘‘हम दोनों शादी कर लेंगे, क्योंकि मुझे तुम बहुत अच्छी लगती हो. मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकता.’’

सानिया ने सवाल किया, ‘‘यह कैसे हो सकता है? मैं अपनी ही बहन का घर नहीं उजाड़ सकती.’’

इम्तियाज बोला, ‘‘तुम फिक्र मत करो. जब तक हम दोनों को शादी करने का मौका नहीं मिलता, हम यों ही एकदूसरे के जिस्म की जरूरत पूरी करते रहेंगे.’’

तभी 4 बज गए. इम्तियाज जल्दी से उठा और फ्रैश हो कर अस्पताल की तरफ भागा.

अस्पताल पहुंच कर इम्तियाज ने देखा कि शकीला गहरी नींद में सो रही थी. उस ने उस के माथे को चूमा तो उस की आंख खुल गई.

शकीला ने इम्तियाज का हाथ अपने हाथ में ले कर कहा, ‘‘आ गए आप. मेरी वजह से आप को कितनी तकलीफ हो रही है. आप को बिलकुल भी आराम नहीं मिल रहा है. मैं कितनी खुशनसीब हूं, जो आप जैसा शौहर मुझे मिला.’’

इम्तियाज बोला, ‘‘खुशनसीब तो मैं हूं जो तुम्हारे जैसी मुहब्बत करने वाली बीवी मुझे मिली है और जिस ने मुझे बाप बनने का नसीब अता किया है. साथ ही, तुम मुझे दिलोजान से प्यार करती हो.’’

शकीला ने कहा, ‘‘आप भी बस कुछ भी बोल देते हो. आप खुद मुझे इतना प्यार देते हो, उस के सामने मेरा प्यार तो कुछ भी नहीं.’’

इस तरह इम्तियाज दो नाव की सवारी करने लगा. उसे जब भी मौका मिलता, वह सानिया के जिस्म के मजे लूटता.

फिर एक दिन ऐसा भी आया जब इम्तियाज की असलियत सब के सामने आ गई.

हुआ यों कि शकीला के घर आने के बाद काफी दिनों तक इम्तियाज को सानिया से मिलने का मौका नहीं मिला, तो एक रात जब शकीला गहरी नींद में सो गई तो इम्तियाज चुपके से उठा और सानिया के कमरे में चला गया.

सानिया पहले तो इम्तियाज को अपने कमरे में देख कर घबरा गई, पर जब इम्तियाज ने उसे अपनी बांहों में पकड़ कर चूमना शुरू किया, तो उस के भी सब्र का बांध टूट गया और उस ने अपनेआप को इम्तियाज के हवाले कर दिया.

इसी बीच अचानक शकीला की आंख खुल गई. आवाज सुन कर जब वह सानिया के कमरे में पहुंची तो इम्तियाज और सानिया का जिस्मानी खेल देख कर उस के होश उड़ गए.

शकीला ने चीख कर इम्तियाज को कहा, ‘‘तुम्हें शर्म नहीं आती… अपनी बीवी के होते हुए किसी दूसरी लड़की के साथ यह हरकत करते हुए… मैं तुम्हें एक शरीफ इनसान सम?ाती थी, पर तुम तो एकदम घटिया निकले.

‘‘मैं ने तुम पर आंख मूंद कर भरोसा किया और तुम ने मेरी ही छोटी बहन को अपने जाल में फंसा लिया.’’
इम्तियाज बोला, ‘‘मेरी बात तो सुनो मेरी जान.’’

शकीला ने कहा, ‘‘अब क्या रह गया सुनने को. मैं तो तुम्हारा चेहरा भी नहीं देखना चाहती. मुझे नफरत है ऐसे मर्दों से जो अपनी बीवी को धोखा देते हैं.’’

इम्तियाज बोला, ‘‘मैं तुम से भी प्यार करता हूं और सानिया से भी. मैं वादा करता हूं कि तुम दोनों का बहुत खयाल रखूंगा. मैं सानिया से भी निकाह कर के उसे अपने साथ रखूंगा. तुम मुझे सानिया दे दो, मैं तुम्हारे पैर चूमूंगा.’’

शकीला ने इम्तियाज के गाल पर एक जोरदार थप्पड़ रसीद करते हुए कहा, ‘‘बेशर्म इनसान, तुझे शर्म नहीं आती अपनी बीवी के सामने ही उस की छोटी बहन से निकाह करने को कहने की. तू ने ऐसा सोच भी कैसे लिया…

‘‘मैं जा रही हूं अपने बेटे को ले कर तुम्हारी जिंदगी से दूर. मैं इस पर तुम जैसे घटिया बाप का साया भी नहीं पड़ने देना चाहती.’’

डरीसहमी सानिया ने भी अपना सामान पैक किया और शकीला के साथ चलने को तैयार हो गई.

इम्तियाज अपने किए पर पछता रहा था, ‘‘मुझे माफ कर दो. मैं आइंदा ऐसा कोई काम नहीं करूंगा जिस से तुम्हारा दिल दुखे.’’

शकीला ने कहा, ‘‘मैं अब तुम्हें ऐसा मौका कभी नहीं दूंगी. मेरा तो दिल टूट चुका है तुम्हारी इस हरकत से. तुम ने क्या सोचा था कि एकसाथ दो नाव में सवारी कर के जिंदगी का मजा ले लोगे… यही हरकत अगर मैं करती तो तुम मुझे बदचलन कहते और दुनियाभर के इलजाम लगाते.

‘‘मैं उन औरतों में से नहीं हूं जो अपने शौहर के जुल्म को बरदाश्त करती है. मैं अगर इज्जत देना जानती हूं, तो सामने वाले से भी इज्जत ही चाहती हूं.

‘‘तुम्हें यह घमंड था कि दोनों बहनों से निकाह कर के उन के जिस्म से खेलते रहोगे और तुम्हें कोई रोकेगा भी नहीं. मैं आज के बाद तुम्हारी सूरत भी नहीं देखूंगी. तुम्हें तलाक का नोटिस मिल जाएगा. अब मैं तुम्हारे साथ एकपल भी नहीं रह सकती.’’

इस तरह शकीला ने इम्तियाज से तलाक ले लिया और जो थप्पड़ उस ने इम्तियाज के मुंह पर मारा, उस का असर इम्तियाज के दिल और जिंदगी पर भी एक गहरी छाप छोड़ गया.

इम्तियाज के दो नाव में सवारी करने के चक्कर में उस के हाथ से सानिया तो गई ही, उसे अपनी बीवी शकीला और बेटे से भी हाथ धोना पड़ा.

शकीला ने अपने शौहर को छोड़ कर यह साबित कर दिया कि औरत किसी से कम नहीं होती. हमें गर्व है शकीला जैसी औरतों पर. Story In Hindi

Family Story In Hindi: फर्क

Family Story In Hindi: गरीब झांझन की छोटी सी दुकान थी. एक वक्त ऐसा था जब अमीर जगदंबा बाबू ने उस की बहन की इज्जत लूट ली थी. पर अब वे लकवे के शिकार हो थे. उन का परिवार दानेदाने को मुहताज था. इसी बात का फायदा उठा कर झांझन ने उन की बेटी से अपनी बहन का बदला लेना चाहा. क्या उस की नीयत में खोट आ गया था?

जब बारिश और सर्द हवाओं ने जनवरी की ठंड का रंग और जमा दिया, तो गांव में सांझ ढले ही सन्नाटा होने लगा. लेकिन झांझन की दुकान काफी देर तक खुली रहती, क्योंकि जरूरतमंद गरीब लोग दिन में मजदूरी कर के आटा, दाल, चावल वगैरह खरीदने वहां पहुंच जाते थे.

झांझन की चांदी हो चली थी. वह भी मनमाने दाम पर चीजें बेच कर वक्त की नजाकत का फायदा उठाता.
धंधे में वह कतई बेमुरब्बत था, इसीलिए लोग कहते कि जगदंबा बाबू के घर एड़ी रगड़ कर भी इसे गरीबी के दुख का एहसास नहीं है. चार दिन से चार पैसे हो गए, तो गरीबों को ही खा जाने की नीयत हो गई.

मगर झांझन पर इस का कोई असर नहीं होता. हालांकि उस ने बिना पैसे की दुनिया देखी थी. वह दिनभर जगदंबा बाबू की भैंसें चराता था और एक गिलास मट्ठे के साथ 2 रोटियां खा कर उसे संतोष करना पड़ता था. तब इस दुकान और घर की जगह झोंपड़ी थी, पर चेहरे पर मस्ती थी.

भैंस चराने जाते समय कंधे पर रखी लाठी को झांझन राइफल से कम नहीं समझता था. यह काम वह कभी नहीं छोड़ता, अगर जगदंबा बाबू ने मजदूरी के लिए गई हुई उस की जवान बहन पर हाथ न डाल दिया होता और सबकुछ लुटा कर उस ने पिछवाड़े के पोखर में कूद कर अपनी जान न दे दी होती.

उस दिन के बाद लाख धमकाने, फुसलाने के बाद भी झांझन जगदंबा बाबू के घर काम पर नहीं गया.

जगदंबा बाबू का सर्वनाश देखना उस की जिंदगी की सब से बड़ी तमन्ना हो गई. वह गांव छोड़ कर पंजाब चला गया. मेहनतमजदूरी कर के कुछ रुपए जोड़े और गांव में लौट आया.

गांव आ कर जगदंबा बाबू के बारे में मालूम हुआ कि वे लकवे के शिकार हो कर चारपाई पर पड़े रहते हैं. उन से उठना, बोलना बिलकुल नहीं हो पाता. इस बात ने उसे तसल्ली दी.

दरअसल, जगदंबा बाबू ने जमींदारी जाने के बाद भी अपनी आदतें नहीं छोड़ीं और शराब व ऐयाशी में उन की सफेदी झड़ कर रह गई थी. ऊपर से 4-4 जवान बेटियां. 3 के ब्याहों में खेतीबारी उतनी ही रह गई, जितने से साधारण किसान पेट पाल सकता था.

बेटियों के बाद बेटे मधुकर की शादी में वे खास धूमधड़ाका तो नहीं कर पाए, मगर कर्ज में तकरीबन सारा खेत रेहन हो गया. जेवर वगैरह तो पहले ही साफ हो चुके थे.

मधुकर गांव में ही मजदूरी कर नहीं सकता था, इसलिए वह अंबाला चला गया. वहां से आए मनीऔर्डर से ही पूरे घर की गुजर होती थी.

दुकान बंद करते समय झांझन जगदंबा बाबू के घर की ओर देखता कि गरीबों की जानमाल व इज्जतआबरू पी जाने वाले जगदंबा बाबू कब तक मटियामेट होते हैं. उन के घर की दीवारों के गिरने का उसे बेसब्री से इंतजार था. वैसे तो वह उन्हें साफ ही कर देता, मगर मधुकर और दूसरे पट्टीदारों की कुछ दहशत अभी बाकी थी.

झांझन मन को समझा लेता कि अब तो जगदंबा बाबू खुद अपाहिज हैं, ऐसे को मारना बेकार है.

झांझन को हैरानी होती कि दानेदाने की मुहताजी झेलते दूसरे परिवारों की तरह इस दुष्ट का कोई बरतन तक उस के यहां गिरवी नहीं हुआ. ऐसा हो जाता, तो वह उसे औरों को शान से दिखादिखा कर जगदंबा बाबू को नीचा दिखा सकता.

यही वजह थी कि दुकानदारी निबट जाने के घंटाभर बाद ही वह दुकान बंद करता था, ताकि झूठी शान में बरबाद होने वाले जगदंबा बाबू के परिवार वाले शायद अकेले में ही कुछ गिरवी रख कर आटा वगैरह ले जाएं या फिर उधार ही मांगने आएं.

आखिर एक दिन जगदंबा बाबू की पत्नी सब ग्राहकों के चले जाने के बाद दुकान पर आईं. उन्हें आते देख कर झांझन को अपनी आंखों पर यकीन नहीं हुआ. उस ने आंखें मलीं और जब यकीन हो गया कि वही हैं, तो नोट गिनने लग गया.

जगदंबा बाबू की पत्नी हसरत से नोटों को देखती रहीं कि इतने सारे नोट यह करमजला लिए बैठा है. नोटों की गरमी में ही तो उन्हें देख नहीं रहा.

जब देर तक झांझन ने उन की ओर निगाह नहीं डाली, तो बेइज्जत होने के बावजूद उन्हें बोलना पड़ा, ‘‘झांझन भैया, कुछ मेरी भी सुन लेते.’’

‘‘ओह, आप हैं भाभीजी… बताइए, क्या सौदा दूं?’’ झांझन ने चौंकने का नाटक किया.

‘‘सौदा तो आटा, दाल, तेल, चीनी सबकुछ चाहिए, मगर जेब में पैसे भी तो होने चाहिए,’’ उन्होंने लाचारी बयान की.

‘‘तो कोई जेवर, बरतन वगैरह ही लिए आतीं. दुकानदारी में तो सब काम हिसाब से चलता है,’’ वह उन के अंगअंग को घूरता हुआ बोला.

जगदंबा बाबू की पत्नी ने रुकरुक कर जो बात कही, उस का मतलब यह था कि घर में बेचने लायक और गिरवी रखने लायक कुछ भी नहीं बचा. 2 दिन से घर में चूल्हा नहीं जला और बच्चे भूख से मुरदा जैसे पड़े हैं. पोतापोती दोनों ही बुखार से तप रहे हैं, वरना वे आती ही नहीं.

उन के मुंह से बेबसी में निकल गया, ‘‘अब तो इस देह के सिवा कुछ भी नहीं बचा है.’’

‘‘भाभीजी, अब आप की देह में इतना कसाव नहीं बचा है. बहू या

सरोज को भेज देतीं, वे ही सामान ले जातीं,’’ झांझन की आंखों में शरारत चमक रही थी.

जगदंबा बाबू की पत्नी सबकुछ सुन कर और समझ कर भी होंठ दाब कर रह गईं. उन से कुछ कहा नहीं गया और धरती पर हाथ लगा कर उठने लगीं.

झांझन ने उन्हें 2 किलो आटा दे दिया और कहा, ‘‘आगे से जरूरत हो, तो आप कतई न आना.’’

जगदंबा बाबू की पत्नी के जाने के बाद झांझन सरोज के छरहरे बदन और मादक अंगों की कल्पना करता, कभी बहू के उस अनदेखे रूप की, जिस के लिए मधुकर अंबाला कमाने गया था. उस की अपनी पत्नी थी, बच्चे थे, मगर जगदंबा बाबू से बदले की भावना उसे कल्पना की इन गलियों में भटका रही थी. वैसे इधरउधर मुंह मारना उस की आदत भी नहीं थी.

जगदंबा बाबू की पत्नी ने उस रात खानेपीने के बाद अकेले में बहू को समझाया, ‘‘कल सब ग्राहकों के चले जाने के बाद तू झांझन की दुकान पर चली जाना… कोई जानेगा भी नहीं.’’

‘‘नहीं अम्मां, मैं इज्जत बेच कर जिंदा नहीं रहना चाहूंगी. ऐसा होने से पहले अपनी जान दे दूंगी,’’ बहू ने बिफर कर कहा.

‘‘तब इज्जत बनी रहेगी, जब तू भूख के मारे हमें बदनाम करेगी. लोग कहेंगे कि पेट की खातिर बहू ने जान दे दी. आखिर यह समय तो हमेशा बना नहीं रहेगा.

‘‘इस समय जान बचाने का सवाल है. तू कहे तो मैं झांझन को यहीं बुला दूंगी… न चोर जानेगा, न साह बताएगा.’’

‘‘चोर जाने या न जाने, मैं यह नहीं कर पाऊंगी. मुझे माफ करो और मायके भेज दो,’’ बहू सुबकने लगी.

‘‘मायके भेजने के लिए 400 रुपए होते, तो यह दिन क्यों देखना पड़ता. तू बैठी रह अपने हठ पर… मर जाने दे गोद के बच्चों को,’’ बड़बड़ाती हुई सास ने बहू को छोड़ बेटी से धीमेधीमे बात करनी शुरू कर दी.

अगले दिन ग्राहक छंट जाने पर कुत्तों से बचने को डंडा लिए हुए जगदंबा बाबू की पत्नी झांझन की दुकान पर आईं.

उन्हें देख कर झांझन के मुंह का जायका बिगड़ गया. दुकान में ताला लगाने की तैयारी कर के वह बोला, ‘‘आप फिर आ गईं?’’

‘‘मैं सौदा लेने नहीं आई हूं,’’ वे बोलीं.

‘‘फिर क्या करने आई हैं?’’ झांझन रुखाई से बोला.

‘‘तुम्हें बुलाने मेरी बेटी यहां आई और किसी ने देख लिया, तो कितनी जगहंसाई होगी.’’

‘‘अच्छा, ठीक है, यही सही. थोड़ा सामान तुम ले जाओ, बाकी मैं ले आऊंगा,’’ झांझन बागबाग था.

‘‘खाली सामान नहीं, 1,000 रुपए की भी जरूरत है. अगर तैयार हो तो बोलो?’’ कह कर वे जैसे चलने को तैयार थीं.

‘‘हां, तैयार हूं. मगर वहां मुझे आना कब है?’’ झांझन ने दिल कड़ा कर के पूछा.

‘‘तुम एक घंटे बाद आना. सरोज की कोठरी दरवाजे के बाएं ही है… दरवाजे खाली भिड़े होंगे,’’ कह कर आटा, दाल उठा कर वे इस तरह चलीं, जैसे रत्नों का ढेर लिए जा रही हों.

झांझन को खुशी के साथसाथ हैरानी भी हो रही थी कि इसी औरत को कभी आटा, दाल तो दूर, घी, दूध को देखने की भी फुरसत नहीं थी. नौकरचाकर जो चाहते, करते. अब यह भूख के लिए सबकुछ करने को तैयार है. अब उस का कलेजा ठंडा होगा, बहन का बदला ले कर.

झांझन ने 1,000 रुपए जेब में रखे और जगदंबा बाबू के घर की ओर कदम बढ़ा दिए.

झांझन जगदंबा बाबू के घर के सामने खड़ा था. सरोज के कमरे से उसे सिसकियों की आवाजें सुनाई दीं. जिस सरोज की अल्हड़ हंसी को ही वह पहचानता था, उस की सिसकियों ने उसे हिला कर रख दिया. उस की बहन की इज्जत से तो जगदंबा बाबू खेले थे, सरोज का क्या कुसूर था? सिर्फ यही न कि सरोज उन की बेटी है.

हो सकता है कि ऐसी ही किसी बेबसी का शिकार उस की बहन भी बनी हो. जब झांझन भी वही करेगा, जो जगदंबा बाबू ने किया, तो दोनों में फर्क ही क्या रह जाएगा.

इसी तरह ब्याह से पहले उस की बहन के अरमान कुचले गए थे. सरोज की भी अभी शादी नहीं हुई है. अगर उस ने भी मजबूरी में अपना सबकुछ सौंप कर परिवार को बचा कर बाद में उस की बहिन जैसा ही किया, तो झांझन की हालत भी क्या जगदंबा बाबू जैसी नहीं हो जाएगी?

झांझन सिहर उठा. उस ने धीरे से सरोज के कमरे का दरवाजा खोला.

सरोज ने सिसकते हुए कहा, ‘‘चले आओ.’’

‘‘नहीं, अपनी अम्मां को बुलाओ,’’ झांझन ने कहा.

‘‘अम्मां क्यों… तुम्हारा मतलब तो मुझ से है न,’’ सरोज ने आंसू पोंछते हुए कहा.

‘‘मैं ने कहा न, अम्मां को बुलाओ.’’

जगदंबा बाबू की पत्नी, जो दरवाजे के पास ही खड़ी थीं, पास आ कर बोलीं, ‘‘अब भी कुछ बाकी है झांझन ? अब तो तुम्हारे मन की हो रही है.’’

‘‘बहुतकुछ बाकी है अभी… मैं तो तुम्हें तौल रहा था. यह लो 1,000 रुपए… बुरे दिन तो आदमी पर आते ही रहते हैं, इन्हें हौसले से झेलना चाहिए और धनदौलत पा कर इनसानियत से नहीं खेलना चाहिए,’’ रुपयों की गड्डी जगदंबा बाबू की पत्नी को दे कर वह सीधे अपनी राह चल दिया.

दोनों मांबेटी हैरान हो कर उसे जाते देख रही थीं. Family Story In Hindi

Hindi Story: 911 – लव मैरिज क्यों बनीं जी का जंजाल

Hindi Story: रात के 2 बजे थे. हलकीहलकी ठंड पड़ रही थी. दशहरा और दिवाली की छुट्टियां खत्म हो गई थीं. धनबाद स्टेशन के प्लेटफार्म नंबर 2 पर बहुत भीड़ थी. इस में ज्यादातर विद्यार्थियों की भीड़ थी, जो त्योहार में दिल्ली से धनबाद आए थे. धनबाद, बोकारो और आसपास के बच्चे प्लस टू के बाद आगे की पढ़ाई के लिए दिल्ली पढ़ने जाते हैं. इस एरिया में अच्छे कालेज न होने से बच्चे अपने उज्ज्वल भविष्य के लिए स्कूल के बाद दिल्ली जाना चाहते हैं. दिल्ली में कोचिंग की भी अच्छी सुविधा है. वहां वे इंजीनियरिंग, मैडिकल आदि की कोचिंग भी लेते हैं. कुछ तो टेंथ बोर्ड के बाद ही दिल्ली चले जाते हैं. वे वापस दिल्ली लौट रहे थे.

वे सभी कालका मेल के आने का इंतजार कर रहे थे. अनेकों के पास रिजर्वेशन नहीं था. वे वेटिंग टिकट ले कर किसी भी थ्री टियर में चढ़ने वाले थे. जिस के पास रिजर्वेशन होता, उसी की बर्थ पर 4 या 5 जने किसी तरह एडजस्ट कर दिल्ली पहुंचते. इस तरह के सफर की उन्हें आदत थी. अकसर सभी छुट्टियों के बाद यही नजारा होता. कुछ अमीरजादे तत्काल या एजेंट से ब्लैक में टिकट लेते, तो कुछ एसी कोच में जाते. पर ज्यादातर बच्चे थ्री टियर कोच में जाते थे और सब के लिए रिजर्वेशन मुमकिन नहीं था.

रात के 11 बज रहे थे. अभी भी ट्रेन आने में एक घंटा रह गया था. ट्रेन कुछ लेट थी. रोहित कंधों पर बैकपैक लिए चहलकदमी कर रहा था. उस की निगाहें किसी जानपहचान वाले को तलाश रही थीं, जिस के पास रिजर्व टिकट हो. उस की नजर मनोज पर पड़ी, तो उस ने पूछा, “तुम्हारी बर्थ है क्या?“

“नहीं यार, पर अपने महल्ले वाली सुनीता को जानता है न? S-7 कोच में उस का रिजर्वेशन है. वो देख… आ रही है अपने पापा के साथ.”

प्लेटफार्म पर वे बेटी के साथ खड़े थे. मनोज ने उन से कहा, “अंकल नमस्ते. आप वापस जा सकते हैं. हम लोग हैं न. सुनीता को कोई दिक्कत नहीं होने देंगे.”

तभी अनाउंस हुआ, “कालका मेल अपने निश्चित समय से 45 मिनट की देरी से चल रही है. यात्रियों की असुविधा के लिए हमें खेद है.”

सुनीता ने कहा, “हां पापा, आप जाइए. अभी हमारे पड़ोस की मनीषा भी आ रही होगी. उस की बर्थ भी हमारे ही कोच में है. और भी जानपहचान के फ्रैंड्स हैं. आप परेशान न हों. घर लौट जाइए. हम लोग मैनेज कर लेंगे.”

सुनीता के पापा लौट गए. थोड़ी देर में मनीषा भी आ गई. रोहित, मनोज, सुनीता और मनीषा चारों एक ही कालोनी में रहते थे, पर अलगअलग सैक्टर में. दोनों लड़के इंजीनियरिंग सेकंड ईयर में थे और लड़कियां ग्रेजुएशन कर रही थीं. इन में सुनीता ही सब से ज्यादा धनी परिवार से थी. रोहित और मनोज दोनों के पिता कोल इंडिया में क्लर्क थे. मनीषा के पिता कोल इंडिया में ही लेबर अफसर और सुनीता के पिता ठेकेदार थे. देश के अनेक भागों में कोयला भेजते थे.

रोहित बोला, “मेरे और मनोज के पास रिजर्व टिकट नहीं हैं. तुम लोग मदद करना. तुम दोनों एक बर्थ पर हो लेना और दूसरी बर्थ पर हम दोनों रहेंगे. अगर कोस्ट शेयर करना हुआ तो वो भी शेयर कर लेंगे.”

सुनीता ने कहा, “क्या बेवकूफों जैसी बात कर रहे हो? ऐसा क्या पहली बार हुआ है? इस के पहले भी तुम लोग हमारी बर्थ पर गए हो. क्या हम ने पैसा लिया है कभी? फिर ऐसी बात न करना. मगर, इस बार हम दोनों को लेडीज कोटे से बर्थ मिली है.“

मनीषा बोली, “हां, S-7 में बर्थ नंबर 1 से 8 तक लेडीज कोटा है. हम तो शेयर कर लेंगे, पर बाकी औरतों ने कहीं शोर मचाया तब क्या करोगे? “

मनोज बोला, “हम लोग पहले भी ये सिचुएशन झेल चुके हैं. इस को हम पर छोड़ दो, हैंडल कर लेंगे.”

ट्रेन आने पर सभी कोच में जा बैठे. लेडीज कोटे में एक बुजुर्ग महिला भी थी. उस ने कहा, “तुम दोनों लड़के यहां नहीं बैठ सकते हो.”

सुनीता ने कहा, “आंटी, आप तो इधर की ही लगती हैं. आप को पता होगा इस पीरियड में यहां से दिल्ली स्टूडेंट्स जाते हैं और इतनी भीड़ में हमें एडजस्ट करना पड़ता है.”

“अच्छा ठीक है, चुपचाप बैठो. तुम लोग न खुद सोते हो और न औरों को सोने देते हो.”

थोड़ी देर में टीटी आया. टिकट चेक करने के बाद उस ने लड़कों से कुछ कड़ी आवाज में कहा, “तुम लोग यहां नहीं बैठ सकते हो. एक तो वेटिंग की टिकट और ऊपर से लेडीज कोटा में आ बैठो हो. अगले स्टेशन गोमो में तुम लोग उतर जाना.”

मनोज बोला, “शायद आप हमें नहीं जानते. आप का बेटा भी अगले साल दिल्ली जाएगा पढ़ने. उस की ऐसी रैगिंग करूंगा कि वह रोते हुए वापस इसी ट्रेन से धनबाद आएगा. बाकी आप की मरजी.”

टीटी ने कहा, “तुम लोग तो गजब ही हो. जो चाहे करो, पर मैं तो मुगलसराय में उतर जाऊंगा. उस के बाद तुम जानो.”

“आगे भी हम देख लेंगे. पर, आप अपने रिलीवर को भी हमें तंग न करने को कह देते तो अच्छा होता.”

सुबह के 7 बजे ट्रेन मुगलसराय पहुंची. वहां ट्रेन कुछ देर रुकती है. रोहित और मनोज दोनों प्लेटफार्म पर उतर कर टी स्टाल पर सिगरेट पी रहे थे. उन्हें देख सुनीता और मनीषा भी उतर गईं. सुनीता ने मनीषा से कहा, “चल, 1-2 फूंक हम भी मार लेते हैं.”

दोनों उन के निकटआईं. सुनीता बोली, “क्या अकेलेअकेले पी रहे हो?“

“आओ, तुम भी पीओ,” मनोज ने कहा और चाय वाले से 2 कप चाय ले कर उन की ओर बढ़ा दिया.

सुनीता बोली, “और सिगरेट? “

मनोज ने अपना सिगरेट बढ़ाते हुए कहा, “लो, दो कश तुम भी ले लो. अगर मनीषा को भी चाहिए तो…?“

“नहीं, मुझे नहीं चाहिए” मनीषा बोली.

सुनीता ने कहा, “मैं शेयर नहीं करूंगी. मुझे अलग से नया सिगरेट दो.”

मनोज ने उसे सिगरेट जला कर दिया. दोतीन कश लेने के बाद सुनीता ने सिगरेट फेंक कर उसे सैंडल से बुझा दिया.

यह देख कर मनोज बोला, “तुम्हें पीते देख कर यह नहीं लगा कि तुम पहली बार पी रही हो. फिर तुम ने नाहक ही मेरा सिगरेट बरबाद कर दिया.”

“पैसे चाहिए सिगरेट के?“

“तुम से बहस करना बेकार है.”

खैर, सभी वापस ट्रेन में जा बैठे. रात के करीब 9 बजे ट्रेन दिल्ली पहुंची. चारों एक टैक्सी में बैठे. मनीषा और सुनीता को उन के होस्टल में छोड़ मनोज और रोहित अपने होस्टल पहुंचे. चारों एक ही शहर और कालोनी के रहने वाले थे, इसलिए छुट्टियों में ट्रेन में आनाजाना अकसर साथ होता था.

मनोज और रोहित के ब्रांच अलग थे. मनीषा और सुनीता के कॉम्बिनेशन एक ही थे, इसलिए उन में कुछ दोस्ती थी. सुनीता नेचर से ज्यादा फ्रैंक और डोमिनेटिंग थी. किसी से अनचाहा एनकाउंटर होने से या कोई मनीषा को तंग करता तो वह मनीषा को प्रोटेक्ट किया करती थी. मनीषा अंतर्मुखी थी.

इसी तरह ये चारों कभी ट्रेन में मिलते, तो कभी किसी मौल या मल्टीप्लेक्स में तो देर तक आपस में बातें करते.

मनोज और मनीषा के स्वभाव में अंतर था, फिर भी दोनों एकदूसरे के करीब आए.

रोहित और मनोज दोनों ने बीटैक पूरा किया और मनीषा और सुनीता ने पीजी. मनोज ने नोएडा में नौकरी ज्वाइन किया.

मनोज और मनीषा ने मातापिता की मरजी के विरुद्ध कोर्ट मैरेज किया. रोहित और सुनीता उन की शादी में आए थे.

एक साल बाद दोनों अमेरिका चले गए. मनोज अपने जौब वीजा H 1 B पर गया था और मनीषा उस की आश्रित H 4 वीजा पर. कुछ दिनों बाद मनीषा को भी EAD मिला, जिस से वह भी नौकरी कर सकती थी. उस ने भी नौकरी ज्वाइन की. उन्हें 2 बेटियां थीं. मनीषा का काम वर्क फ्राम होम होता था. यह उस के लिए एक वरदान था, वह अपनी बेटियों का भी ध्यान रख सकती थी. उन दिनों रोहित और मनोज और सुनीता और मनीषा के बीच रेगुलर संपर्क बना रहा, विशेषकर मनीषा और सुनीता के बीच.

इधर रोहित और सुनीता दोनों ने पुणे में नौकरी ज्वाइन किया. कुछ महीने बाद दोनों की शादी हुई. इस शादी में उन के मातापिता की सहमति थी. कुछ दिनों के बाद रोहित और सुनीता कनाडा चले गए. यहां भी मनीषा और सुनीता के बीच अच्छा संपर्क बना रहा.

इधर कुछ समय से मनीषा और मनोज के रिश्ते में कुछ खटास आने लगी थी. मनोज रोज रात को शराब पीता और मनीषा को भी पीने को कहता. पर मनीषा ने उस के लाख कहने के बावजूद शराब को होठों से नहीं लगाया. इस के चलते मनोज उस से बहुत नाराज रहता. कभीकभी वह गालीगलौज पर भी उतर आता. धीरेधीरे उन के बीच कड़वाहट बढ़ती गई, पर मनीषा ने अपना दुख सुनीता के सामने जाहिर नहीं किया.

एक बार तो मनोज ने मनीषा पर हाथ तक उठा दिया था. इसी तरह लड़तेझगड़ते करीब 10 साल गुजर गए.

एक बार जब मनीषा और सुनीता वीडियो चैट कर रही थीं, उसी बीच मनोज ने कालबेल बजाया. मनीषा को दरवाजा खोलने में कुछ वक्त लगा. उस ने फोन हाथ में लिए दरवाजा खोला. दरवाजा खुलते ही मनोज उस पर गरज पड़ा, “बिच, तुम को डोर खोलने में इतना टाइम क्यों लगा?“

मनीषा ने झट से फोन काट दिया. पर तब तक बहुत देर हो चुकी थी और सुनीता को मामला समझने में देर नहीं लगी.

सुनीता के मन में अपनी सहेली के लिए चिंता हुई. कुछ दिनों बाद वह खुद मनीषा से मिलने अमेरिका आई. वह दो दिनों तक रही. इस बीच मनीषा और मनोज में बातचीत हां, नहीं या यस, नो तक सिमट कर रह गई थी.

जब मनोज औफिस गया था और बच्चे स्कूल, तब सुनीता ने मनीषा से पूछा, “मनोज आजकल कुछ नाराज दिख रहा है. कुछ खास बात है तो मुझे बताओ.“

“नहीं, कुछ ख़ास नहीं. कल से ही हम दोनों एकदूसरे से नाराज हैं और बातचीत करीब बंद है. फिर अपने ही एकदो दिन में ठीक हो जाएगा.“

“आर यू श्योर ? तुम कहो तो मैं मनोज से कुछ बात करूं? “

“नहींनहीं, इस की जरूरत नहीं है. कहीं ऐसा न हो बात और बिगड़ जाए. मैं मैनेज कर लूंगी.“

“ओके. फिर भी देखना, जरूरत पड़ने पर मैं या रोहित अगर तुम्हारे कुछ काम आ सके तो बहुत खुशी होगी हमें.“

सुनीता कनाडा लौट आई. उस ने रोहित को मनोज और मनीषा के बारे में बताया. सुनीता बोली, “मैं मनीषा को बहुत पहले से और अच्छी तरह जानती हूं. वह अंतर्मुखी है, अपने मन की बात जल्द किसी को नहीं बताती है. रोहित क्या हमें उस की मदद नहीं करनी चाहिए.“

“जरूर करनी चाहिए बशर्ते वह मदद मांगे. मियांबीवी के बीच में यों ही दखल देना ठीक नहीं है. फिलहाल लेट अस वेट एंड वाच.“

कुछ दिनों बाद सुनीता ने मनीषा को फोन किया. फोन उस की बेटी ने उठाया. सुनीता को बेटी की आवाज सुनाई पड़ी, “मम्मा, सुनीता आंटी का फोन है. क्या बोलूं ?”

‘बोल दे, मम्मा अभी सो रही है.“

सुनीता ने फोन काट दिया. उसे दाल में कुछ काला लगा. एक तो यह उस के सोने का टाइम नहीं था और दूसरे मनीषा की आवाज रोआंसी थी. उस ने समझ लिया कि जरूर आज फिर मनीषा के साथ कुछ बुरा घटा होगा.

रोहित कभी मनोज को फोन करता, तो रोहित महसूस करता कि उसे बातचीत करने में कोई दिलचस्पी नहीं है. थोड़ी देर इधरउधर की बात कर मनोज कहता, ‘और सब ठीक है, बाद में बात करते हैं,’ पर मनोज कभी काल नहीं करता था, बल्कि रोहित ही 10 – 15 दिनों में एक बार हालचाल पूछ लेता.

कुछ दिनों बाद एक बार सुनीता ने मनीषा को फोन कर पूछा, “कैसी हो मनीषा? तुम तो खुद कभी फोन करती नहीं हो.“

“क्या कहूं…? बस जीना एक मजबूरी हो गई है, इसलिए जिए जा रही हूं.“

“ऐसा क्यों बोल रही हो? अभी तुम्हारी उम्र ही क्या हुई है? अभी आगे बहुत लंबी जिंदगी पड़ी है. सुखदुख तो आतेजाते रहते हैं.“

“दुख हो तो झेल लूं, पर मेरा जीवन नासूर बन गया है सुनीता,“ मनीषा ने कहा.

“ऐसी कोई बात नहीं. आजकल हर ज़ख्म का इलाज है. तू बोल तो सही.“

मनीषा को कुछ देर खामोश देख कर सुनीता बोली, “तुम चुप क्यों हो गई हो? जब तक बोलोगी नहीं, मुझे तेरी तकलीफ का कैसे पता चलेगा. वैसे, मुझे कुछ अहसास है कि मनोज तुम्हें जरूरत से ज्यादा तंग करता है.“

मनीषा ने सिसकते हुए कहा, “2-2 बेटियां हैं, उन के लिए जीना मेरी मजबूरी है. पहले बात सिर्फ गालीगलौज तक रहती थी, अब तो अकसर बेटियों के सामने हाथ भी उठा देता है. वह भी बिना वजह.“

“आखिर वह चाहता क्या है? “

“तू तो जानती है, मेरा जौब वर्क फ्रॉम होम होता है. मुझे घर से बाहर ज्यादा जाने की जरूरत नहीं पड़ती है. मुझे ज्यादा तामझाम पसंद नहीं है.“

“तो इस से क्या हुआ?“

“मनोज को चाहिए कि मैं भी जींसशॉर्ट्स पहनूं, स्विमिंग सूट पहन कर स्विम करूं, उस के और उस के दोस्तों के साथ शराब पीऊं और डांस करूं. मुझ से यह सब नहीं होगा. उस के साथ कहीं पार्टी में जाती हूं, तो मैं अपने इंडियन ड्रेस में होती हूं.“

“इस में गलत क्या है, इस के लिए कोई तुम्हें फोर्स नहीं कर सकता है.“

“यह सब किताबों की बात है, प्रैक्टिकल लाइफ में नहीं. अब मनोज को साथ काम करने वाली शादीशुदा क्रिश्चियन औरत अमांडा मिल गई है, जो उस की मनपसंद है. कभी वह घर आती है तो उस के सामने भी मेरा अपमान करता है.“

“तो तुम बरदाश्त क्यों करती हो?“

“नहीं करूं तो रोज मार खाऊं? “

“तुम अमेरिका में रह कर ऐसी बात करती हो? एक काल 911 को कर, उस की सारी हेकड़ी निकल जाएगी.“

“नहीं, मुझ से नहीं होगा.“

“तो तू मर घुटघुट के,“ बोल कर सुनीता ने गुस्से में फोन काट दिया.

इस के कुछ ही दिनों के बाद सुनीता और रोहित अमेरिका गए. वे दोनों दूसरे शहर में होटल में रुके थे. सुनीता ने मनीषा को फोन किया. मनीषा का फोन बेडरूम में था. उस की बड़ी बेटी वहीं थी. उस ने कहा, “वन मिनट, मैं मम्मा को देती हूं.“

फोन वीडियो काल था. बेटी फोन लिए लिविंग रूम में आई, जहां मनोज और अमांडा शराब पी कर म्यूजिक पर डांस कर रहे थे. मनीषा मनोज को अमांडा को घर से बाहर निकालने के लिए बोल रही थी. इस पर मनोज मनीषा को गालियां दे रहा था और बोल रहा था, “यह नहीं जाएगी. तुझे जाना होगा,“ बोल कर वह मनीषा को घसीटने लगा. अमांडा भी उस का साथ दे रही थी. मनीषा को दरवाजे के बाहर निकाल कर मनोज ने दरवाजा बंद कर दिया. उधर सुनीता यह सब देख रही थी और रिकौर्ड कर रही थी.

सुनीता को यह सब सहन नहीं हुआ. उस ने फोन काट दिया और तुरंत 911 पर काल कर पूरी बात बता दी. कुछ ही मिनटों के अंदर मनीषा के घर पुलिस पहुंच गई, “यहां मनीषा कौन है?“

“मैं ही हूं. क्या बात है?“

“हमें सुनीता ने फोन कर आप की मदद करने के लिए कहा है. वैसे, सुनीता ने वीडियो क्लिप भी भेजी है. आप अपना स्टेटमेंट रिकौर्ड करवा दें. मनोज कौन है?“

“वे मेरे पति हैं और अंदर हैं.“

पुलिस के बेल दबाने पर मनोज ने दरवाजा खोला, तो उसे देख कर हक्काबक्का रह गया. पुलिस ने कहा, “आप को मेरे साथ थाने चलना होगा.“

मनोज को पुलिस ले गई. सुनीता ने फोन पर मैसेज भेजा था, “तुम दोनों बेटियों के साथ कनाडा आ जाओ. वहां से अपनी नई जिंदगी की शुरुआत करना.“ Hindi Story

Story In Hindi: कलंक – आखिर किसने किया रधिया की बेटी गंगा को मैला

Story In Hindi: अपनी बेटी गंगा की लाश के पास रधिया पत्थर सी बुत बनी बैठी थी. लोग आते, बैठते और चले जाते. कोई दिलासा दे रहा था तो कोई उलाहना दे रहा था कि पहले ही उस के चालचलन पर नजर रखी होती तो यह दिन तो न देखना पड़ता.

लोगों के यहां झाड़ूबरतन करने वाली रधिया चाहती थी कि गंगा पढ़ेलिखे ताकि उसे अपनी मां की तरह नरक सी जिंदगी न जीनी पड़े, इसीलिए पास के सरकारी स्कूल में उस का दाखिला करवाया था, पर एक दिन भी स्कूल न गई गंगा. मजबूरन उसे अपने साथ ही काम पर ले जाती. सारा दिन नशे में चूर रहने वाले शराबी पति गंगू के सहारे कैसे छोड़ देती नन्ही सी जान को?

गंगू सारा दिन नशे में चूर रहता, फिर शाम को रधिया से पैसे छीन कर ठेके पर जाता, वापस आ कर मारपीट करता और नन्ही गंगा के सामने ही रधिया को अपनी वासना का शिकार बनाता.

यही सब देखदेख कर गंगा बड़ी हो रही थी. अब उसे अपनी मां के साथ काम पर जाना अच्छा नहीं लगता था. बस, गलियों में इधरउधर घूमनाफिरना… काजलबिंदी लगा कर मतवाली चाल चलती गंगा को जब लड़के छेड़ते, तो उसे बहुत मजा आता.

रधिया लाख कहती, ‘अब तू बड़ी हो गई है… मेरे साथ काम पर चलेगी तो मुझे भी थोड़ा सहारा हो जाएगा.’

गंगा तुनक कर कहती, ‘मां, मुझे सारी जिंदगी यही सब करना है. थोड़े दिन तो मुझे मजे करने दे.’

‘अरी कलमुंही, मजे के चक्कर में कहीं मुंह काला मत करवा आना. मुझे तो तेरे रंगढंग ठीक नहीं लगते. यह क्या… अभी से बनसंवर कर घूमतीफिरती रहती है?

इस पर गंगा बड़े लाड़ से रधिया के गले में बांहें डाल कर कहती, ‘मां, मेरी सब सहेलियां तो ऐसे ही सजधज कर घूमतीफिरती हैं, फिर मैं ने थोड़ी काजलबिंदी लगा ली, तो कौन सा गुनाह कर दिया? तू चिंता न कर मां, मैं ऐसा कुछ न करूंगी.’

पर सच तो यही था कि गंगा भटक रही थी. एक दिन गली के मोड़ पर अचानक पड़ोस में ही रहने वाले 2 बच्चों के बाप नंदू से टकराई, तो उस के तनबदन में सिहरन सी दौड़ गई. इस के बाद तो वह जानबूझ कर उसी रास्ते से गुजरती और नंदू से टकराने की पूरी कोशिश करती.

नंदू भी उस की नजरों के तीर से खुद को न बचा सका और यह भूल बैठा कि उस की पत्नी और बच्चे भी हैं. अब तो दोनों छिपछिप कर मिलते और उन्होंने सारी सीमाएं तोड़ दी थीं.

पर इश्क और मुश्क कब छिपाए छिपते हैं. एक दिन नंदू की पत्नी जमना के कानों तक यह बात पहुंच ही गई, तो उस ने रधिया की खोली के सामने खड़े हो कर गंगा को खूब खरीखोटी सुनाई, ‘अरी गंगा, बाहर निकल. अरी कलमुंही, तू ने मेरी गृहस्थी क्यों उजाड़ी? इतनी ही आग लगी थी, तो चकला खोल कर बैठ जाती. जरा मेरे बच्चों के बारे में तो सोचा होता. नाम गंगा और काम देखो करमजली के…’

3 दिन के बाद गंगा और नंदू बदनामी के डर से कहीं भाग गए. रोतीपीटती जमना रोज गंगा को कोसती और बद्दुआएं देती रहती. तकरीबन 2 महीने तक तो नंदू और गंगा इधरउधर भटकते रहे, फिर एक दिन मंदिर में दोनों ने फेरे ले लिए और नंदू ने जमना से कह दिया कि अब गंगा भी उस की पत्नी है और अगर उसे पति का साथ चाहिए, तो उसे गंगा को अपनी सौतन के रूप में अपनाना ही होगा.

मरती क्या न करती जमना, उसे गंगा को अपनाना ही पड़ा. पर आखिर तो जमना उस के बच्चों की मां थी और उस के साथ उस ने शादी की थी, इसलिए नंदू पर पहला हक तो उसी का था.

शादी के 3 साल बाद भी गंगा मां नहीं बन सकी, क्योंकि नंदू की पहले ही नसबंदी हो चुकी थी. यह बात पता चलते ही गंगा खूब रोई और खूब झगड़ा भी किया, ‘क्यों रे नंदू, जब तू ने पहले ही नसबंदी करवा रखी थी तो मेरी जिंदगी क्यों बरबाद की?’

नंदू के कुछ कहने से पहले ही जमना बोल पड़ी, ‘आग तो तेरे ही तनबदन में लगी थी. अरी, जिसे खुद ही बरबाद होने का शौक हो उसे कौन बचा सकता है?’

उस दिन के बाद गंगा बौखलाई सी रहती. बारबार नंदू से जमना को छोड़ देने के लिए कहती, ‘नंदू, चल न हम कहीं और चलते हैं. जमना को छोड़ दे. हम दूसरी खोली ले लेंगे.’

इस पर नंदू उसे झिड़क देता, ‘और खोली के पैसे क्या तेरा शराबी बाप देगा? और फिर जमना मेरी पत्नी है. मेरे बच्चों की मां है. मैं उसे नहीं छोड़ सकता.’

इस पर गंगा दांत पीसते हुए कहती, ‘उसे नहीं छोड़ सकता तो मुझे छोड़ दे.’

इस पर गंगू कोई जवाब नहीं देता. आखिर उसे 2-2 औरतों का साथ जो मिल रहा था. यह सुख वह कैसे छोड़ देता. पर गंगा रोज इस बात को ले कर नंदू से झगड़ा करती और मार खाती. जमना के सामने उसे अपना ओहदा बिलकुल अदना सा लगता. आखिर क्या लगती है वह नंदू की… सिर्फ एक रखैल.

जब वह खोली से बाहर निकलती तो लोग ताने मारते और खोली के अंदर जमना की जलती निगाहों का सामना करती. जमना ने बच्चों को भी सिखा रखा था, इसलिए वे भी गंगा की इज्जत नहीं करते थे. बस्ती के सारे मर्द उसे गंदी नजर से देखते थे.

मांबाप ने भी उस से सभी संबंध खत्म कर दिए थे. ऐसे में गंगा का जीना दूभर हो गया और आखिर एक दिन उस ने रेल के आगे छलांग लगा दी और रधिया की बेटी गंगा मैली होने का कलंक लिए दुनिया से चली गई. Story In Hindi

Hindi Story: वक्त का दोहराव – शशांक को आखिर कौन सी बात याद आई

Hindi Story: शशांक दबे पांव छत पर पहुंचा. पूरे महल्ले में निस्तब्धता छाई हुई थी. कहीं आग से झुलसे मकान, टूटी दुकानें, सड़कों पर टूटी लाठियां, ईंटपत्थर और कहींकहीं तो खून के धब्बे भी नजर आ रहे थे. कितना खौफनाक मंजर था. हिंदू-मुसलिम दंगे ने नफरत की ऐसी आग लगाई है कि इंसान सभ्यता की सभी हदों को लांघ कर दरिंदगी पर उतर आता है.

राजनीतिबाज न जाने कब बाज आएंगे अपनी रोटियां सेंकने से. शशांक के अंतर में अपने दादाजी के कहे वो शब्द याद आ रहे थे कि नेता लोग राजनीति खेल जाते हैं और कितने ही लोग अपनी जान से खेल जाते हैं…

भारत-पाकिस्तान का बंटवारा. मानो एक हंसतेखेलते परिवार का दोफाड़ कर दिया गया. कौन अपना, कौन पराया. हिंदू-मुसलमानों के मन में ऐसा जहर घोला कि देखते ही देखते कल तक एक ही थाली में साथसाथ खाते दोस्त एकदूसरे की जान के दुश्मन बन बैठे. अपने पिताजी के मुंह से सुनी थी उस ने उस वक्त की दास्तान. आज वही कहानी फिर से उस की आंखों के सामने पसरने लगी थी…

हवेलीनुमा दोमंजिला घर और बहुत बड़ा चौक, चौक को पार कर के एक बहुत बड़ा दरवाजा, दरवाजा क्या था, पूरा किले का दरवाजा था, बड़ीबड़ी सांकल, सेफ पोल, बड़ेबड़े ताले उस दरवाजे को खोलना व बंद करना हर एक के बस की बात नहीं थी. मास्टर जीवन लाल ही उसे अपने मुलाजिमों के साथ मिल कर खोलते व बंद करते थे.

लेकिन आज यह क्या, वही दरवाजा, ऐसे लगता था कि बस अब गिरा तब गिरा. लगता भी क्यों न, आज एक बहुत बड़ा झुंड उस दरवाजे को धकेल रहा था, पीट रहा था, यह कैसा झुंड था?

मास्टर जीवनलाल जिन का इस पूरे शहर में नाम था, इज्जत थी, रुतबा था, आज वही मास्टरजी अपने पूरे परिवार के साथ इस हवेली में सांस रोके बैठे हैं.

परिवार में पत्नी, 3 बेटे, 3 बेटियां, बहू, सालभर का एक पोता सभी तो हैं, हंसता खेलता परिवार है.

कुछ समय से चल रही हिंदू मुसलमानों की आपस की दूरियां दिख तो रही थीं पर हालात ऐसे हो जाएंगे, किसी ने सोचा भी न था.

मुसलमान और हिंदू एकदूसरे के खून के प्यासे हो गए थे, आपस में इतनी नफरत होगी, कभी किसी ने सोचा भी न था. यह क्या हो गया भाइयो, जन्मजन्म से एकदूसरे के साथ रहते आए परिवार एकदूसरे से इतनी नफरत क्यों करने लगे.

हालात ऐसे हो गए थे कि जवान लड़कियों को उठा कर ले जाया जा रहा था.  बूढ़ों को मार दिया जा रहा था. मास्टर जीवन लाल अपनी तीनों जवान लड़कियों और बहू को हवेली की ऊपर वाली मंजिल पर पलंग के नीचे छिपाए हुए थे और दरवाजे की तरफ टकटकी लगाए देख रहे थे. कभी भी दरवाजा टूट सकता था.

मास्टर जीवन लाल का बड़ा बेटा, कटार लिए खड़ा था कि दरवाजा खुलते ही वह अपनी तीनों बहनों व पत्नी को इसलिए मार डालेगा कि कोई उन्हें उठा कर नहीं ले जा पाए. बहनें व पत्नी सामने मौत खड़ी देख ऐसे कांप रही थीं जैसे आंधी में डाल पर लगा पत्ता फड़फड़ा रहा हो.

पर यह क्या, दरवाजे के पीटने और धकेलते रहने के बीच एक आवाज उभरी. वह आवाज थी मास्टर जीवन लाल के किसी विद्यार्थी की. वह कह रहा था कि अरे, क्या कर रहे हो. यह तो मेरे मास्टरजी का घर है. इस घर को छोड़ दो. आगे चलो, और देखते ही देखते बाहर कुछ शांति हो गई.

रात का यह तूफान जब गुजर गया तो मास्टर जीवन लाल ने सोचा कि यहां से अपने पूरे परिवार को सहीसलामत कैसे बाहर निकाला जाए. इस सोच में वे दरवाजा खोल कर बाहर निकले तो बाहर का भयानक दृश्य देख कर रो पड़े. लाशें पड़ी हैं, कोई तड़प रहा है, कोई पानी मांग रहा है. जिस गली में वे और उन का परिवार बड़ी शान से होली, दीवाली, ईद मनाते थे, पड़ोसियों के साथ हंसीमजाक, मौजमस्ती होती थी, वही गली आज खून से नहाई हुई है. सभी आज कितने बेबस व लाचार हैं, किस को पानी पिलाएं, किस को अस्पताल पहुंचाएं. रात आए तूफान से घबराए, आगे आने वाले तूफान से अपने परिवार को बचाने के लिए वे क्या करें. अपनी तीनों जवान बेटियों को आगे आने वाले तूफान से बचाने की गरज से सबकुछ अनदेखा कर के वे आगे बढ़ गए.

मास्टर जीवन लाल जब बाहर का जायजा लेने निकले तो उन्हें पता चला कि हिंदुओं से यह जगह खाली कराई जा रही है. हिंदुओं को किसी तरह लाहौर तक पहुंचाया जा रहा है और वहां से आगे.

मास्टर जीवन लाल ने यह सुना तो वे जल्दी ही अपने परिवार की हिफाजत के लिए वापस मुड़े और घर पहुंच कर उन्होंने बीवी व बच्चों से कहा कि घर खाली करने की तैयारी करो. अब यहां से सबकुछ छोड़छाड़ कर जाना होगा.

इतना सुनते ही पूरा परिवार शोक में डूब गया. ऐसा होना लाजिमी भी है. सालों से यहां रह रहे थे. यहीं पैदा हुए, यहीं बड़े हुए, यहीं पढ़े और फिर उन से कहा जाए कि यहां तुम्हारा कुछ नहीं है, तुम यहां से जाओ, कैसा लगेगा. खैर, मास्टर जीवन लाल ने हिम्मत दिखाते हुए सब को तैयार किया और जरूरी कागजात व कुछ पैसे लिए. फिर उस आलीशान हवेली को हमेशा के लिए आंसुओं से अलविदा किया.

पैर हवेली के बाहर निकले तो इतने भारी थे कि उठ ही नहीं रहे थे. दिल हाहाकार कर रहा था. परंतु फिर भी उन्होंने अपने परिवार को देखा हिम्मत की और चल पड़े.

अब मास्टर जीवन लाल बिना छत, बेसहारा अपने परिवार के साथ खुले आसमान के नीचे खड़े थे. अब उन के पास कुछ न था. हाय समय का फेर देखो, कुछ समय पहले तो खुशियों की लहरें उठ रही थीं और अब यह क्या हो गया. यह कैसा तूफान था. इस तूफानी बवंडर में कैसे फंस गए. कब बाहर निकलेंगे इस तूफान से, पता नहीं.

अब मास्टर जीवन लाल के पास एक ही मकसद था कि अपने परिवार को सहीसलामत हिंदुस्तान पहुंचाया जाए. मास्टर जीवन लाल को पता चला कि ट्रक भर कर लोगों को लाहौर तक पहुंचाया जा रहा है. बहुत कोशिश के बाद मास्टर जीवन लाल की बहू व पत्नी को एक ट्रक में जगह मिल गई. और पीछे रह गईं मास्टरजी की बेटियां व बेटे.

उफ्फ अब क्या करें अब जो रह गए उन्हें किस के सहारे छोड़ें और जो चले गए उन्हें आगे का कुछ पता नहीं. मास्टरजी इस कशमकश में खड़े थे कि फिर लोगों का जनून उभरा. मार डालो, काट डालो की आवाजें. मास्टरजी फिर से परेशान हो गए. अब वे बेटियों को कहां छिपाएं. मास्टरजी की आंखों से आंसू बह निकले.

इतने में मास्टरजी को एक फरिश्ते की आवाज सुनाई दी. सलाम अलैकम, भाईजान. मास्टरजी ने जब उस ओर देखा तो मास्टरजी के सामने चलचित्र की तरह पुरानी घटनाएं याद आ गईं. दो जिस्म एक जान हुआ करते थे. दोनों परिवार एकसाथ सारे तीजत्योहार एकसाथ मनाते थे. फिर अचानक सलीम भाई को विदेश जाना पड़ गया. और अब मिले तो इस हाल में. न हवेली अपनी थी, न ही देश अपना रह गया था. सबकुछ खत्म हो चुका था. मास्टरजी लुटेपिटे खड़े थे.

सलीम भाई ने मास्टरजी को गले लगा लिया. मास्टरजी का हाल देख कर सलीम भाई भी रो पड़े. सलीम भाई ने मास्टरजी को एक बहुत बड़ी तसल्ली दी, कहा कि भाईजान, आप की बेटियां मेरी बेटियां. अब तुम इन की फिक्र छोड़ो और लाहौर जा कर भाभीजी और बहू को खोजो. मास्टरजी के पास अब कोई चारा भी नहीं था. सलीम भाई का विश्वास ही था, और वे आगे बढ़ गए.

कितना सहा होगा उस वक्त लोगों ने जब अपनी जड़ों से उखड़ कर रिफ्यूजी बन गए होंगे. धर्म क्या यही सिखाता है हमें, तोड़ दो रिश्तों को, मानवीय संवेदनाओं का खून कर दो.

बरसों पुरानी हिंदू, मुसलमान की वह नफरत आज भी बरकरार है तो इन नेताओं की वजह से, धर्म के ठेकेदारों की वजह से, अंधविश्वास की गठरी उठाए लोगों की अंधभक्ति की वजह से.

काश, जल्दी ही हमें समझ में आ जाए कि धर्म तो दिलों को मिलाता है, चोट पर मरहम लगाता है. खून की नदियां नहीं बहाता, बच्चों को रुलाता नहीं, औरतों की इज्जत नहीं उतारता, बसेबसाए घरों को उजाड़ता नहीं. काश, यह बात आने वाली हमारी पीढ़ी जल्दी ही समझ जाए. Hindi Story

Hindi Family Story: व्यापार

Hindi Family Story: सरजू स्टेशन पर कुलीगीरी करता था और सारी कमाई गांजे में उड़ा देता था. उस की पत्नी तारा मजदूरी कर के जैसेतैसे परिवार का पेट पालती थी. एक बार सरजू एक पाड़ी खरीद लाया. जब वह हट्टीकट्टी भैंस हुई तो सरजू ने वह कर दिया, जो तारा ने सपने में भी नहीं सोचा था.

हलकीहलकी बूंदाबांदी हो रही थी. पछुआ हवा के थपेड़ों को अपने नंगे बदन पर झेलते हुए कमर में अधटंगी धोती बांधे सरजू जब अपनी झोंपड़ी के नजदीक आया, तो उस के नथुनों में मांस भुनने की खुशबू आने लगी.

झोंपड़ी के बाहर जरा सी खुली जमीन की पट्टी पर एक तरफ बेटी मालती झोंटा बिखेरे आटा गूंद रही थी. दूसरी तरफ चूल्हे पर रखी देगची में उस की बीवी तारा कलछी से शायद मांस भून रही थी. लक्ष्मण और राधा मां से सटे बैठे लोभी निगाहों से देगची को देख रहे थे.

‘‘आज पैसा मिल गया?’’ सरजू की करारी आवाज से तारा चौंक गई. उस ने एक उचटती नजर उस पर डाली और दोबारा मांस भूनने में लग गई.

सरजू का जी जलभुन गया. वह सोचने लगा, ‘यही तो इस की सब से बुरी आदत है. कभी कुछ पूछो तो बोलेगी नहीं, जैसे बोलने में टका खर्च होता है. पैसा तो मिल ही गया होगा, तभी तो आज मांस बन रहा है.’

फिर इधरउधर देख कर सरजू ने बेटी मालती से पूछा, ‘‘क्यों री, अशोक कहां गया है?’’

मालती सुघड़ सयानी बन कर घर के काम में हाथ बंटा रही थी. वैसे तो रोज काम के नाम पर वह बहाना बनाती थी, पर अब महीनों बाद घर में सालन जो बन रहा था, तो उस के मुंह में पानी आ रहा था. गले में थूक गटक कर उस ने कहा, ‘‘क्या मालूम.’’

‘‘अच्छा, जा तू ही दुकान से पुडि़या लेती आना.’’

आटा अधगुंदा छोड़ कर मालती उठ खड़ी हुई. सरजू ने 20 रुपए का नोट दिया, ‘‘3 पुडि़या लाना, एक बंडल बीड़ी भी.’’

पुडि़या, यानी गांजा. 3 पुडि़यां सरजू की 24 घंटे की खुराक थीं. पहले तो बहुत पीता था, पर इधर महंगाई बढ़ गई थी, इसलिए 3 में ही संतोष करना पड़ता था.

‘‘छोटुआ कह रहा था कि यहीं 5 कोस पर एक गांव है… नाम नहीं याद पड़ रहा है. वहां मवेशी बिकने आते हैं. सोच रहा हूं एक पाड़ी ले आऊं. अशोक सारा दिन खेलता रहता है, तो वह पाड़ी को चराएगा. 2 साल में भैंस बन जाएगी तो दूध का सुभीता हो जाएगा और पैसा भी होगा.’’

तारा चुप रही. घर में सरजू की ही मरजी चलती थी. उस ने जो ठान लिया सो ठान लिया. कुछ कहने से पिटाई ही पल्ले पड़ती थी. वह समझ रही थी कि यह सब उस से रुपया मांगने की चाल है.

तारा सरकारी फार्म में मजदूरी करती थी. साढ़े 16 रुपए रोज के हिसाब से मजदूरी मिलती थी. इस बार 8 हफ्तों की मजदूरी मिली थी. ठंड पड़ने लगी थी. बच्चों के पास कपड़े नहीं थे. सोचा था, एकएक कपड़ा चारों के लिए बनवा देगी. लेकिन सूदखोर महाजन की तरह सरजू पैसा उगाहने आ गया था. वह पाईपाई का हिसाब रखता था. तारा ने कमर से सब रुपए खोल कर उस के आगे फेंक दिए.

सरजू ने बेहयाई से सब नोटों को उठा कर गिना. फिर बोला, ‘‘डेढ़ सौ रुपए कम हैं.’’

तारा खीज उठी. अपनी ही कमाई का हिसाब देना अखर गया. सरजू जानता था कि फार्म के पास वाली चाय की दुकान पर वह दोपहर की छुट्टी में चाय पीती है. बच्चों को भी कभीकभार बिसकुट दिला देती है.

पैसा मिलने पर उस की उधारी चुका कर एक वक्त के खाने के लिए कुछ अच्छी चीज ले आती है. बाकी पूरा महीना तो नमक और रोटी पर ही बीतता है.

‘‘हां, 70 रुपए चाय वाले को दिए, बाकी से मांस, तेल, मसाला और आटा आया है. मांस भी तो 55 रुपए किलो है,’’ तारा बोली.

‘‘क्या जरूरत थी, मांस लाने की… आलूगोभी नहीं ला सकती थी?’’ सरजू ने कहा.

तारा ने कुछ जवाब न दिया. झुक कर चूल्हे की लकड़ी ठीक करते हुए सोचने लगी, ‘अभी ऐसे कह रहा है, खाने बैठेगा तो यह नहीं सोचेगा कि दूसरे को भी खाना है.’

सरजू मन ही मन में हिसाब लगा रहा था, ‘पाड़ी खरीदने में 3-4 सौ तो लग ही जाएंगे. इधर 2-3 दिनों से उस की आमदनी भी कुछ कम हुई है. कहीं से कुछ रुपयों का जुगाड़ करना पड़ेगा.’

सरजू स्टेशन पर कुलीगीरी करता था. वह लाइसैंस वाला कुली नहीं था. लाइसैंस के लिए बहुत दौड़धूप करनी पड़ती थी और फीस भी लगती थी. साथ ही घूस भी देनी पड़ती थी.

उस के जैसे बिना लाइसैंस वाले कई कुली थे. स्टेशन के आउटर सिगनल के पास उन का जमाव रहता.

व्यापारी लोग सामान ले कर आते तो चुंगी से बचने के लिए ट्रेन की जंजीर खींच कर उतर पड़ते थे. उन का सामान जल्दी से उतरवा देने पर अच्छे पैसे बन जाते थे.

हां, पुलिस को जरूर मिला कर रखना पड़ता था. वैसे, हवलदार साहब उस से खुश ही रहते थे. गांजे के वे भी शौकीन थे. सरजू उन्हें भी पिला देता था.

दूसरे दिन शाम ढलने लगी थी. जब एक हाथ में रस्सी थामे आगेआगे सरजू और पीछेपीछे बड़ी बकरी से कुछ ऊंची पाड़ी गली में घुसी. अंधेरे में सरजू का काला रंग पाड़ी के रंग से बिलकुल मिल रहा था. छोटू भी साथ में था.

‘‘अरी, जल्दी से तेल, सिंदूर ले आ… घर में लक्ष्मी आई है,’’ सरजू की आवाज में खुशी झलक रही थी.

10 कोस की थकान भी उसे महसूस नहीं हो रही थी.

तारा ने एक निगाह पाड़ी पर डाली और उठ खड़ी हुई. पाड़ी के माथे पर तेल, सिंदूर लगाया और एक लोटा पानी सामने के दोनों पैरों के पास डाला.

उस का सख्त चेहरा देख कर सरजू को खीज आई. किंतु अभी उस की खुशी गुस्से पर हावी थी.

वह बोला, ‘‘अशोक, जल्दी से यहां एक खूंटा गाड़… इसे बांधना है. अभी देहरी नहीं पहचानती है न.

बच्चे भी खुश थे, पाड़ी की देखरेख में वे इतने मगन थे कि भूखप्यास भूल गए थे.

‘‘भौजी, अब कुछ चायपानी कराओ. देखो, तुम्हारे लिए आज सारा दिन दौड़े हैं,’’ छोटू ने कहा.

तारा को मौका मिल गया. घर में खाने को कुछ नहीं था, सारे पैसे सरजू ले गया था. उस ने सरजू से कहा, ‘‘रुपया दो, तो चायपानी ले आएं, आटा भी लाना है.’’

सरजू ने सुनीअनसुनी करते हुए कहा, ‘‘चल छोटू, हम दोनों स्टेशन पर ही चाय पी लेंगे.’’

उन दोनों को जाते हुए देख कर तारा ने दोबारा टोका, ‘‘आज घर में खर्च नहीं है. सरजू एक पल ठिठका, ‘‘जा कर उधारी आटा ले आओ. मेरा नाम ले देना, कल रुपए दे देंगे.’’

तारा चुपचाप उन दोनों को जाते हुए देखती रही. पाड़ी खरीदने से जो रुपया बचा होगा, उस से गांजा आएगा. चाय के साथ गांजे का दम लगा कर वह दूसरी दुनिया में खो जाएगा. जब घर लौटेगा, उस समय तक भूखे बच्चे पानी पी कर सो जाएंगे.

सरजू जानता है कि चक्की वाला आटा उधार कभी नहीं देता है. तारा को पछतावा हो रहा था कि कल क्यों गुस्से में सारे नोट फेंक दिए. कम से कम एक 20 का नोट बचा लिया होता.

रोज सवेरे बच्चे रात की बासी रोटी खा लेते थे. फिर उधरउधर भटकते हुए सरकारी क्वार्टरों में लगे फल चुरा कर खाते हुए उन का दिन कटता. पानी पीपी कर वे सांझ की बाट जोहते, जब मां चूल्हा जोड़ कर रोटी बनाती.

तारा के साथ की दूसरी मजदूरिनें भी थीं. पर उन की इतनी बुरी हालत नहीं थी. उन के मर्द कमा कर नोट उन के हाथ पर रखते. अपनी कमाई से वे अपने शौक पूरे करती थीं. सब के बदन पर ढंग के कपड़ेलत्ते होते थे. एक वही थी, जो ठंड में एक फटी धोती से तन को ढक कर खेतों में काम करती थी.

बच्चे अभी तक पाड़ी में लगे हुए थे. लक्ष्मण छोटी बालटी में पानी ले कर उस के मुंह से लगा रहा था. 3 साल की राधा भी अपने नन्हें हाथों में घास लिए उसे खिलाने की कोशिश कर रही थी.

अशोक और मालती महल्ले के बच्चों को डांट कर भगा रहे थे, ‘पाड़ी को तंग मत करो, इतनी दूर से आई है.’

तारा ने हांड़ी में से धान निकाला. वह फार्म से थोड़ाथोड़ा धान उठा लाती थी, सभी मजदूरिनें ले जाती थीं. बाबू लोग हर समय चौकसी थोड़े ही करते थे.

3 पाव के लगभग धान था. उसे कूट कर सूखी कड़ाही में भूना. बच्चों ने और उस ने एकएक मुट्ठी फांक कर पानी पिया और सो गए.

रात काफी हो गई थी, जब सरजू ने उसे झंझोड़ कर जगाया और कहा, ‘‘ला, खाने को दे.’’

‘‘कहां से दूं? सब तो ऐसे ही सो रहे हैं,’’ तारा बोली.

गांजे के नशे में लाललाल आंखें किए सरजू ने उसे पीटने को हाथ उठाया और बोला, ‘‘तेरी यही आदत अच्छी नहीं लगती है. कहा था न कि आटा उधार ले आना.’’

‘‘उधार नहीं देता है.’’

‘‘नहीं देता है… अभी बताता हूं कि कैसे देता है.’’

तब तक पाड़ी रंभाई. सरजू के उठे हाथ थम गए. वह बोला, ‘‘अच्छाअच्छा, भूख लगी है न, तुझे भी थोड़े ही कुछ मिला होगा, मैं जानता था. इसीलिए तेरे खाने के लिए लाया हूं.’’

गमछे को खोल कर भूसी चूनी निकाली और बालटी में घोल कर पाड़ी के सामने रखी. जब तक वह पीती रही, प्रेम से वह उस का माथा, पीठ सहलाता रहा. मुसीबत टली देख तारा ने चैन की सांस ली और बच्चों के बीच आ कर लेट गई.

कुछ दिनों तक पाड़ी को चराने, नहलाने और खिलाने के लिए बच्चे आपस में झगड़ते थे, पर धीरेधीरे यह काम भी तारा के जिम्मे आ गया. फार्म से दोपहर की छुट्टी में आती तो भूखप्यास से टूटी देह से कुएं से पानी खींचखींच कर उसे नहलाती. सामने गांजे का सुट्टा खींचते हुए सरजू लाट साहब की तरह बैठा रहता.

पहले कभीकभार ही ऐसा वक्त आ पड़ता था, जब घर में रोटी नहीं बनती थी. किंतु अब तो अकसर ही ऐसा हो जाता था, परिवार भले ही आधा पेट खा कर रहे, पर पाड़ी भूखी नहीं रहनी चाहिए, यह उस घर का कायदा बन गया था, क्योंकि पाड़ी सरजू को बच्चों से भी ज्यादा प्यारी थी.

3 सालों में पाड़ी बढ़ कर खूब हट्टीकट्टी भैंस बन गई थी. उस की कालीचिकनी चमड़ी दूर से ही चमकती थी. अब तक उसे गाभिन हो जाना चाहिए था, पर नहीं हुई थी.

आखिर सरजू एक दिन उसे जानवरों के डाक्टर के पास ले गया. डाक्टर ने बताया, ‘‘इसे खुराक जरूरत से ज्यादा दी गई है, इसी से पेट पर चरबी चढ़ गई है. दाना कम दिया करो.’’

जब तारा को यह बात मालूम हुई, तो उदासी में भी उसे हंसी आ गई और सोचने लगी, ‘भूखे बच्चे दुबले होते जा रहे हैं और भैंस पर चरबी चढ़ गई.’

शायद सरजू भी यही कुछ सोच रहा था. तारा की मुसकान से वह चिढ़ गया. वह उसे घुड़क कर बोला, ‘‘इस में हंसने की क्या बात है? औरतें मोटी नहीं हो जाती हैं?’’

भैंस जब गाभिन हुई तो सरजू की ममता भरी चिंता देखते ही बनती थी. तारा को याद नहीं पड़ता था कि कभी गर्भ ठहरने पर उस की इतनी संभाल हुई हो.

आखिरकार वह दिन आ ही गया. घर में खुशी का माहौल था. तारा भी खुश नजर आ रही थी. यह दिन भी उस की जिंदगी में आएगा, इस का उसे यकीन नहीं था.

वह सोचने लगी, ‘बच्चे अब जी भर कर दूध पिया करेंगे. अभी एकाध महीना वह दूध नहीं बेचेगी. सरजू की देह भी टूटती जा रही है, गांजा गरम होता है, दूध पीना उस के लिए भी जरूरी है.’

10 दिन इसी तरह की खुशियों, उम्मीदों में गुजर गए. वह भी एक उदास धुंधली सांझ थी, जब सरजू के साथ 4 लोग भैंस के पास आ खड़े हुए…

सरजू ने झटपट उन लोगों के सामने भैंस दुही. दूध देख कर मोलभाव शुरू हुआ और देखते ही देखते भैंस और पाड़ा सरजू ने उन लोगों के हवाले कर दिए.

तारा के रोटी पकाते हाथ थम चुके थे. बच्चों को भी खबर लग चुकी थी. सब उदास मुख से चुपचाप भैंस को जाते देख रहे थे. उस रात रोटी पकी रखी रह गई, किसी से खाई नहीं गई. तारा की आंखों के सामने भैंस के आने का दिन घूम गया. उस दिन कितनी खुशी थी कि सब भूख भूल गए थे और आज कितनी उदासी कि रोटी पकी रखी रह गई.

सरजू को तो भैंस प्राणों से भी प्यारी थी, पर फिर ऐसा क्यों हुआ?

रात गए गांजे के नशे में चूर बहकते हुए कदमों से सरजू घर लौटा. उस वक्त तक तारा दरवाजे पर ही बैठी थी, उस का भी दिल नहीं हो रहा था.

बड़ी हिम्मत बटोर कर तारा ने पूछा, ‘‘क्या बात हो गई जो भैंस को बेच दिया?’’

‘‘तुम्हें इस से मतलब? हमारी चीज थी, हम ने बेच दी, तू कौन होती है पूछने वाली?’’

गांजे के नशे में सरजू अपने को बादशाह से कम नहीं समझता था. वह बड़बड़ाता जा रहा था, ‘‘फिर एक पाड़ी लाएंगे. 300 की पाड़ी आ जाएगी…

4 हजार की भैंस बिकेगी. कितने फायदे का सौदा है. इसे कहते हैं, व्यापार… तू क्या समझेगी?’’

तारा की आंखों में आंसू आ गए.

300 को 4 हजार बनाने में उस का और बच्चों का कितना खून लगा, पिछले 3 सालों में कितनी रातें भूखे, पेट रह कर काटी थीं. बच्चे कितने दुबले हो गए थे और वह खुद? खेतों में काम करतेकरते आंखों के सामने अंधेरा छा जाता था और रुपया? क्या रुपया रहेगा? जब तक हाथ में रुपया रहेगा, सरजू कामधंधा छोड़ कर गांजे और जुए में मस्त रहेगा.

सरजू बोलता जा रहा था, ‘‘अरी, इस व्यापार से तुझे रानी बना दूंगा… रानी. हां, बस जरा हंस कर बोला कर, हर वक्त मनहूस सूरत बना कर घूमती है तो जी जलता है. हां, खुश रहा कर. देख, मेरे पास कितना रुपया है. अब तुझे क्या चाहिए बोल, मैं कल ही खरीद दूंगा.’’

सरजू अपनी आवाज को भरसक मुलायम बना रहा था. मुलायम स्वर किस मतलब के लिए है, इसे समझते हुए उस ने एक गहरी सांस ले कर उदासी के पुराने कवच से अपने को दोबारा ढक लिया. वह सोचने लगी, ‘अब कुछ भी हो, उस पर कुछ असर नहीं होगा.’ Hindi Family Story

Hindi Funny Story: प्रेमी और प्रेमिका ध्यान दें

Hindi Funny Story: इस इश्तिहार के जरीए मैं अ ब स पुत्र, श्री क ख ग, गांव, पंचायत, तहसील, जिला त थ द अपने आसपास के शादी करने के इच्छुक तमाम प्रेमियों को सूचना देते हुए प्राउड फील कर रहा हूं कि मैं इस इश्तिहार से ठीक 15 दिन बाद कुमारी ट ठ ड, पुत्री श्रीमान य र ल, गांव, पंचायत, तहसील, जिला च छ ज के साथ शादी के बंधन में बंधने की हिमाकत करने जा रहा हूं.

याद रहे, 4 महीने पहले हमारी सगाई हो चुकी है, पर यह कोई गंभीर इश्यू नहीं है. सगाई ही हुई है, तबाही तो नहीं.

हालांकि, सगाई के वक्त मैं ने अपनी मंगेतर से मिलने पर यह नहीं पूछा था कि उसे खाना बनाना आता है कि नहीं. खाना बनाना नहीं आता तो कोई बात नहीं, बाहर से मंगवा लिया करेंगे.

यह भी नहीं पूछा था कि शादी के बाद वह मेरे मातापिता को अपने साथ रखेगी कि नहीं. शादी के बाद कौन बहू अपने सासससुर को अपने साथ रख कर खुश होती है?

मैं ने यह भी नहीं पूछा था कि वह घर के काम में मेरा हाथ बंटाएगी या नहीं, क्योंकि मुझे पता है शादी के बाद घर के सारे काम मुझे ही करने हैं.

पर मैं ने उस से यह जरूर पूछा था कि उस का कोई प्रेमी वगैरह है या नहीं? मैं अपनी मंगेतर के सारे नखरे उठा सकता हूं, पर उस के प्रेमी को शादी के बाद बिलकुल भी नहीं उठा सकता. उसे उठाने का मतलब अपनेआप दुनिया से उठा जाना है.

ऐसा नहीं है कि मैं ही अपनी मंगेतर की ओर से एतराज दायर करने का इश्तिहार दे रहा हूं. इस से पहले मेरी मंगेतर ने भी मुझ से शादी करने से पहले एक इश्तिहार दे कर मेरी प्रेमिकाओं के एतराज मांगे थे कि अगर जिस किसी से मैं प्रेम करता होऊं, उसे मेरी मंगेतर को मुझ से शादी करने में एतराज हो तो वह अपना एतराज तय सीमा के भीतर दर्ज करे. बेकार में मेरी तरह वह भी पंगे में नहीं पड़ना चाहती.

पर मैं खुश हूं कि मेरी किसी भी प्रेमिका ने इस बारे कोई एतराज दर्ज नहीं किया और मुझे क्लीन चिट दे दी. वजह, मैं ही सब से प्रेम करता था, कोई मुझ से प्रेम नहीं करती थी.

मैं मानता हूं कि किसी और चीज को ले कर पतिपत्नी में क्लियैरिटी हो या न, पर कम से कम शादी के बारे में दोनों में क्लियैरिटी होनी चाहिए, ताकि बाद में उन्हें एकदूसरे के प्रेमियों से मंदिर में जा कर अपने हाथों से उन का ब्याह करा कर अपने पतिपत्नी होने की जिम्मेदारी से बाप की तरह सिसकतेसिसकते मुक्त न होना पड़े.

मेरे इस हिमाकत भरे कदम पर अगर मेरे सुश्री ट ठ ड से शादी करने पर अगर उस के किसी प्रेमी को एतराज हो तो वह अखबार में इश्तिहार छपने के 10 दिनों के भीतर इश्तिहार में दिए मोबाइल नंबर पर मुझे फोन कर के या मुझ से पर्सनली मिल कर अपना एतराज दर्ज करा सकता है, ताकि मैं शादी के बाद किसी भी तरह की मुसीबत में न पड़ूं.

मैं यकीन दिलाता हूं कि प्रेमी के हर एतराज को सिरमाथे लिया जाएगा. मेरा यकीन कीजिए, मैं अपनी मंगेतर के प्रेमी के फायदे में शादी करने से साफ इनकार कर दूंगा.

अपनी प्रेमिका की शादी हो जाने के बाद भी अपनी प्रेमिका के साथ रहने के लिए तैयार उस के पति को मारने वाले प्रेमियों, मैं इस दुनिया में जीने आया हूं अपनी मंगेतर के प्रेमी के हाथों मरने नहीं. मैं समय से पहले मरना नहीं चाहता. मैं अपने बूढ़े मातापिता के साथ कुंआरा ही रह लूंगा, पर अपनी मंगेतर के प्रेमी के हाथों मरने का पंगा बिलकुल न लूंगा.

अगर 10 दिनों के भीतर किसी ने एतराज दर्ज नहीं किया तो मैं मान लूंगा कि मेरी मंगेतर का कोई प्रेमी नहीं है. फिर भी अगर कोई हो तो उस के बाद प्लीज अपने को कंट्रोल में रखे, क्योंकि मैं उस के बाद सौ फीसदी यह मान कर चलूंगा कि मेरी मंगेतर का केवल मैं ही एकलौता मंगेतर हूं. उस के बाद प्लीज, मुझे मारने की किसी को सुपारी न दें.

इस सिलसिले में मैं अपनी मंगेतर से भी आखिरी बार दोनों हाथ जोड़ कर अर्ज करता हूं कि अगर उस का कहीं और शादी करने का मन हो और किसी वजह से वह वहां शादी नहीं कर पा रही हो तो प्लीज मुझे बेझिझक बताए.

अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा है. मैं उस के परिवार जनों से बात कर इस बारे में उस की मदद करने को तैयार हूं. बाद में किसी भी तरह का विवाद शादी के हक में मैं कतई नहीं चाहता.

मैं शादी कर के स्वर्ग चाहता हूं, नरक नहीं. कोई बात नहीं, मैं कहीं और ट्राई कर लूंगा. Hindi Funny Story

Hindi Kahani: तेंदूपत्ता – क्या था शर्मिष्ठा का असली सच

Hindi Kahani: शर्मिष्ठा ने कार को धीमा करते हुए ब्रैक लगाई. झटका लगने से सहयात्री सीट पर बैठी जेनिथ, जो ऊंघ रही थी, की आंखें खुल गईं, उस ने आंखें मिचका कर आसपास देखा. समुद्रतट के साथ लगते गांव का कुदरती नजारा. बड़ेबड़े, ऊंचेऊंचे नारियल और पाम के पेड़, सर्वत्र नयनाभिराम हरियाली.

‘‘आप का गांव आ गया?’’

‘‘लगता तो है.’’ सड़क के किनारे लगे मील के पत्थर को पढ़ते शर्मिष्ठा ने कहा. दोढाई फुट ऊंचे, आधे सफेद आधे पीले रंग से रंगे मील के पत्थर पर अंगरेजी और मलयाली भाषा में गांव का नाम और मील की संख्या लिखी थी.

‘‘यहां भाषा की समस्या होगी?’’ जेनिथ ने पूछा.

‘नहीं, सारे भारत में से केरल सर्वसाक्षर प्रदेश है. यहां अंगरेजी भाषा सब बोल और समझ लेते हैं. मलयाली भाषा के साथसाथ अंगरेजी भाषा में बोलचाल सामान्य है.’’

‘‘तुम यहां पहले कभी आई हो?’’

‘‘नहीं, यह मेरा जन्मस्थान है, ऐसा बताते हैं. मगर मैं ने होश अमेरिका की ईसाई मिशनरी में संभाला था.’’ शर्मिष्ठा ने कहा.

‘‘तुम्हारी मेरी जीवनगाथा बिलकुल एकसमान है.’’

कार से उतर कर दोनों ने इधरउधर देखा. चारों तरफ फैले लंबेचौड़े धान के खेतों में धान की मोटीभारी बालियां लिए ऊंचेऊंचे पौधे लहरा रहे थे.

समुद्र से उठती ठंडी हवा का स्पर्श मनमस्तिष्क को ताजा कर रहा था. धान के खेतों से लगते बड़ेबड़े गुच्छों से लदे केले के पेड़ भी दिख रहे थे.

एक वृद्ध लाठी टेकता उन के समीप से गुजरा.

‘‘बाबा, यहां गांव का रास्ता कौन सा है?’’ थोड़े संकोचभरे स्वर में शर्मिष्ठा ने अंगरेजी में पूछा.

लाठी टेक कर वृद्ध खड़ा हो गया, बोला, ‘‘आप यहां बाहर से आए हो?’’ साफसुथरी अंगरेजी में उस वृद्ध ने पूछा.

‘‘जी हां.’’

‘‘यहां किस से मिलना है?’’

‘‘कौयिम्मा नाम की एक स्त्री से.’’

‘‘वह नाथर है या नादर? इस गांव में 2 कौयिम्मा हैं. एक सवर्ण जाति की है, दूसरी दलित है. पहली, आजकल सरकारी डाकबंगले में मालिन है, खाली समय में तेंदूपत्ते तोड़ कर बीडि़यां बनाती है. दूसरी, मरणासन्न अवस्था में बिस्तर पर पड़ी है.’’

फिर उस वृद्ध ने उन को एक कच्चा वृत्ताकार रास्ता दिखाया जो सरकारी डाकबंगले को जाता था. दोनों ने उस वृद्ध, जिस का नाम जौन मिथाई था और जो धर्मांतरण कर के ईसाई बना था, का धन्यवाद किया.

कार मंथर गति से चलती, डगमगाती, कच्चे रास्ते पर आगे बढ़ चली.

डाकबंगला अंगरेजों के जमाने का बना था व विशाल प्रागंण से घिरा था. चारदीवारी कहींकहीं से खस्ता थी. मगर एकमंजिली इमारत सदियों बाद भी पुख्ता थी. डाकबंगले का गेट भी पुराने जमाने की लकड़ी का बना था. गेट बंद था.

कार गेट के सामने रुकी. ‘‘यहां सुनसान है. दोपहर ढल रही है. यहां कहीं होटल होता?’’ जेनिथ ने कहा.

शर्मिष्ठा खामोश रही. उस ने कार से बाहर निकल डाकबंगले का गेट खोला और प्रागंण में झांका, सब तरफ सन्नाटा था.

एक सफेद सन के समान बालों वाली स्त्री एक क्यारी में खुरपी लिए गुड़ाई कर रही थी. उस ने सिर उठा कर शर्मिष्ठा की तरफ देखा और सधे स्वर में पूछा, ‘‘आप किस को देख रही हैं?’’

‘‘यहां कौन रहता है?’’

‘‘कोई नहीं. सरकारी डाकबंगला है. कभीकभी कोई सरकारी अफसर यहां दौरे पर आते हैं. तब उन के रहने का इंतजाम होता है,’’ वृद्ध स्त्री ने धीमेधीमे स्वर में कहा.

‘‘आप कौन हो?’’

‘मैं यहां मालिन हूं. कभीकभी खाना भी पकाना पड़ता है.’’

‘‘आप का नाम क्या है?’’

‘‘मैं कौयिम्मा नाथर हूं’’

शर्मिष्ठा खामोश नजरों से क्यारी में सब्जियों की गुड़ाई करती वृद्धा को देखती रही.

उस को अपनी मां की तलाश थी. मगर उस का पूरा नाम उस को मालूम नहीं था. कौयिम्मा नाथर या कौयिम्मा नादर.

‘‘आप को यहां डाकबंगले में  ठहरना है?’’ वृद्धा ने हाथ में पकड़ी खुरपी को एक तरफ रखते हुए कहा.

‘‘यहां कोई होटल या धर्मशाला है?’’

‘‘नहीं, यहां कौन आता है?’’

‘‘खानेपीने का इंतजाम क्या है?’’

‘‘रसोईघर है, मगर खाली बरतन हैं. लकड़ी से जलने वाला चूल्हा है. गांव की हाट से सामान ला कर खाना पका देते हैं.’’

‘‘बिस्तर वगैरा?’’

‘‘उस का इंतजाम अच्छा है.’’

‘‘यहां का मैनेजर कौन है?’’

‘‘कोई नहीं, सरकारी रजिस्टर है. ठहरने वाला खुद ही रजिस्टर में अपना नाम, पता, मकसद सब दर्ज करता है,’’ वृद्धा साफसुथरी अंगरेजी बोल रही थी.

‘‘आप अच्छी अंगरेजी बोलती हैं. कितनी पढ़ीलिखी हैं?’’

‘‘यहां मिडिल क्लास तक का सरकारी स्कूल है. ज्यादा ऊंची कक्षा तक का होता तो ज्यादा पढ़ जाती,’’ वृद्धा ने अपने मात्र मिडिल कक्षा यानी 8वीं कक्षा तक ही पढ़ेलिखे होने पर जैसे अफसोस किया.

शर्मिष्ठा और उस की अमेरिकन साथी जेनिथ को मात्र 8वीं कक्षा तक पढ़ीलिखी स्त्री को इतनी साफसुथरी अंगरेजी बोलने पर आश्चर्य हुआ.

वृद्धा ने एक बड़ा कमरा खोल दिया. साफसुथरा डबलबैड, पुराने जमाने का

2 बड़ेबड़े पंखों वाला खटरखटर करता सीलिंग फैन, आबनूस की मेज, बेत की कुरसियां.

चंद मिनटों बाद 2 कप कौफी और चावल के बने नमकीन कुरमुरे की प्लेट लिए कौयिम्मा नाथर आई.

‘‘आप पैसा दे दो, मैं गांव की हाट से सामान ले आऊं.’’

शर्मिष्ठा ने उस को 500 रुपए का एक नोट थमा दिया. एक थैला उठाए कौयिम्मा नाथर सधे कदमों से हाट की तरफ चली गई.

कौयिम्मा नाथर अच्छी कुक थी. उस ने शाकाहारी और मांसाहारी भोजन पकाया. मीठा हलवा भी बनाया. खाना खा दोनों सो गईं.

शाम को दोनों घूमने निकलीं. कौयिम्मा नाथर साथसाथ चली. बड़े खुले प्रागंण में ऊंचेऊंचे कगूंरों वाला मंदिर था.

‘‘यह प्राचीन मंदिर है. यहां दलितों प्रवेश निषेध है.’’

थोड़ा आगे खपरैलों से बनी हौलनुमा एक बड़ी झोंपड़ी थी. उस के ऊपर बांस से बनी बड़ी बूर्जि थी. उस पर एक सलीब टंगी थी.

‘‘यह चर्च है. जिन दलितों को मंदिर में प्रवेश नहीं मिलता था, वे सम्मानजनक जीवन जीने के लिए हिंदू धर्म को छोड़ कर ईसाई बन गए. उन सब ने मिल कर यह चर्च बनाया. हर रविवार को ईसाइयों का एक बड़ा समूह यहां मोमबत्ती जलाने आता है,’’ कौयिम्मा नाथर के स्वर में धर्मपरिवर्तन के लिए विवश करने वालों के प्रति रोष झलक रहा था.

मंथर गति से चलती तीनों गांव घूमने लगीं. सारा गांव बेतरतीब बसा था. कहींकहीं पक्के मकान थे, कहींकहीं खपरैलों से बनी छोटीबड़ी झोंपडि़यां.

एक बड़े मकान के प्रागंण में थोड़ीथोड़ी दूरी पर छोटीछोटी झोंपडि़यां बनी थीं.

‘‘प्रागंण की ये झोंपडि़यां क्या नौकरों के लिए हैं?’’

‘‘नहीं, ये बेटी और जंवाई की झोंपड़ी कहलाती हैं.’’

‘‘मतलब?’’

‘‘अधिकांश इलाके में मातृकुल का प्रचलन है. यहां बेटियों के पति घरजंवाई बन कर रहते आए हैं. अब इस परंपरा में धीरेधीरे परिवर्तन आ रहा है,’’ कौयिम्मा नाथर ने बताया.

‘‘मगर अलगअलग स्थानों पर झोंपडि़यां?’’

‘‘यहां बेटियां बहुतायत में होती हैं. आधा दर्जन या दर्जनभर बेटियां सामान्य बात है. शादी की रस्म साधारण सी है. जो पुरुष या लड़का, बेटी को पसंद आ जाता है उस से एक धोती लड़की को दिला दी जाती है. बस, वह उस की पत्नी बन जाती है.’’

‘‘और अगर संबंधविच्छेद करना हो तो?’’

‘‘वो भी एकदम सीधे ढंग से हो जाता है. पति का बिस्तर और चटाई लपेट कर झोंपड़ी के बाहर रख दी जाती है. पति संबंधविच्छेद हुआ समझा जाता है. वह चुपचाप अपना रास्ता पकड़ता है.’’

कौयिम्मा नाथर ने विद्रूपताभरे स्वर में कहा, ‘‘मानो, पति नहीं कोई खिलौना हो जिस को दिल भरते फेंक दिया जाता है.’’ वृद्धा ने आगे कहा, ‘‘मगर इस खिलौने की भी अपनी सामाजिक हैसियत है.’’

‘‘अच्छा, वह क्या?’’ जेनिथ, जो अब तक खामोश थी, ने पूछा.

‘‘मातृकुल परंपरा में भी पिता नाम के व्यक्ति का अपना स्थान है. समाज में अपना और संतान का सम्मान पाने के लिए किसी भद्र पुरुष की पत्नी होना या कहलाना जरूरी है.’’

शर्मिष्ठा और जेनिथ को कौयिम्मा नाथर का मंतव्य समझ आ रहा था.

‘‘आप का मतलब है कि स्त्री के गर्भ में पनप रहा बच्चा चाहे किसी असम्मानित व्यक्ति का हो मगर बच्चे को समाज में सम्मान पाने के लिए उस की माता का किसी सम्मानित पुरुष की पत्नी कहलाना जरूरी है,’’ जेनिथ ने कहा.

कौयिम्मा नाथर खामोश रही. शाम का धुंधलका गहरे अंधकार में बदल रहा था. तीनों डाकबंगले में लौट आईं.

अगली सुबह कौयिम्मा नाथर उन को नाश्ता करवाने के बाद तेंदूपत्ते की पत्तियां गोल करती, उन में तंबाकू भरती बीडि़यां बनाने बैठ गई. दोनों अपनेअपने कंधे पर कैमरा लटकाए गांव की तरफ निकलीं.

एक भारतीय लड़की और एक अंगरेज लड़की को गांव घूमते देखना ग्रामीणों के लिए सामान्य ही था. ऐसे पर्यटक वहां आतेजाते रहते थे.

चर्च का मुख्य पादरी अप्पा साहब बातूनी था. साथ ही, उस को गांव के सवर्ण या उच्च जाति वालों से खुंदक थी. सवर्ण जाति वालों के अनाचार और अपमान से त्रस्त हो कर उस ने धर्मपरिवर्तन कर ईसाईर् धर्म अपनाया था.

उस ने बताया कि कौयिम्मा नाथर एक सवर्ण जाति के परिवार से है जो गरीब परिवार था. गांव में सैकड़ों एकड़ उपजाऊ जमीन थी. जिस को आजादी से पहले तत्कालीन राजा के अधिकारी और कानूनगो ने जबरन गांव के अनेक परिवारों के नाम चढ़ा दी थी.

विवश हो उन परिवारों को खेती कर या मजदूरों से काम करवा कर राजा को लगान देना पड़ता था. एक बार लगान की वसूली के दौरान कानूनगो रास शंकरन की नजर नईनई जवान हुई कौयिम्मा नाथर पर पड़ी. उस ने उस को काबू कर लिया था.

जब उस को गर्भ ठहर गया तब कानूनगो ने कौयिम्मा को अपने एक कारिंदे कुरू कुनाल नाथर से धोती दिला दी थी. इस प्रकार कुरू नाथर कौयिम्मा का पति बन कर उस की झोंपड़ी में सोने लगा था.

जब कौयिम्मा नाथर को बेटी के रूप में एक संतान हो गई तब उस ने एक दोपहर कुरू कुनाल नाथर का बिस्तर और चटाई दरवाजे के बाहर रख दी. शाम को जब कुरू कुनाल नाथर लौटा तब उस को दरवाजा बंद मिला. तब वह चुपचाप अपना बिस्तर उठा किसी अन्य स्त्री को धोती देने चला गया.

बेटी का भविष्य भी मेरे ही समान न हो, इस आशय से कौयिम्मा नाथर ने एक रोज अपनी बेटी को ईसाई मिशनरी के अनाथालय में दे दिया था. वहां से वह बेटी केंद्रीय मिशनरी के अनाथालय में चली गई थी.

इतना वृतांत बताने के बाद पादरी खामोश हो गए. आगे की कहानी शर्मिष्ठा को मालूम थी. ईसाई मिशनरी के केंद्रीय अनाथालय से उस को अमेरिका में रहने वाले निसंतान दंपती ने गोद ले लिया था.

अब शर्मिष्ठा मल्टीनैशनल कंपनी में कार्यरत थी. जब उस को पता चला था कि वह घोष दंपती की गोद ली संतान है तो वह अपने वास्तविक मातापिता का पता लगाने के लिए भारत चली आई.

माता का पता चल गया था. पिता दो थे. एक जिस ने माता को गर्भवती किया था. दूसरा, जिस ने माता को समाज में सम्मान बनाए रखने के लिए धोती दी थी.

अजीब विडंबनात्मक स्थिति थी. सारे गांव को मालूम था. कौयिम्मा नाथर का असल पति कौन था. धोती देने वाला कौन था. तब भी थोथा सम्मान थोथी मानप्रतिष्ठा.

रिटायर्ड कानूनगो बीमार पड़ा था. उस के बड़े हवेलीनुमा मकान में पुरुषों की संख्या की अपेक्षा स्त्रियों की संख्या काफी ज्यादा थी. अपने सेवाकाल में पद के रोब में कानूनगो ने पता नहीं कितनी स्त्रियों को अपना शिकार बनाया था. बाद में बच्चे की वैध संतान कहलाने के लिए उस स्त्री को किसी जरूरतमंद से धोती दिला दी थी.

बाद में वही संतान अगर लड़की हुई, तो उस को बड़ी होने पर कोई प्रभावशाली भोगता और बाद में उस को धोती दिला दी जाती.

यह बहाना बना कर कि वे दोनों पुराने जमाने की हवेलियों पर पुस्तक लिख रही हैं, शर्मिष्ठा और जेनिथ हवेली और उस के कामुक मालिक को देख कर वापस लौट गईं.

धोती देने वाला पिता मंदिर के प्रागंण में बने एक कमरे में आश्रय लिए पड़ा था. उस को मंदिर से रोजाना भात और तरकारी मिल जाती थी. उस की इस स्थिति को देख कर शर्मिष्ठा दुखी हुई. मगर वह क्या कर सकती थी. दोनों चुपचाप डाकबंगले में लौट आईं.

दोनों पिताओं में किसी को भी शर्मिष्ठा अपना पिता नहीं कह सकती थी. मगर क्या माता उस को स्वीकार कर अपनी बेटी कहेगी? यह देखना था.

‘‘मुझे अपनी मां को पाना है, वे इसी गांव की निवासी हैं, क्या आप मदद कर सकती हैं?’’ अगली सुबह नाश्ता करते शर्मिष्ठा ने वृद्धा से सीधा सवाल किया.

‘‘उस का नाम क्या है?’’

‘‘कौयिम्मा.’’

‘‘नाथर या नादर?’’

‘‘मालूम नहीं. बस, इतना मालूम है कि कौयिम्मा है. उस ने मुझे यहां कि ईसाई मिशनरी के अनाथालय में डाल दिया था.’’

‘‘अब आप कहां रहती हो?’’

‘‘मैं अमेरिका में एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में हूं. मुझे गोद लेने वाले मातापिता अमीर और प्रतिष्ठित हैं.’’

‘‘मां को ढूंढ़ कर क्या करोगी?’’

‘‘मां, मां होती है.’’

बेटी के इन शब्दों को सुन कर मां की आंखें भर आईं, वह मुंह फेर कर बाहर चली आई. रसोई में काम करते कौयिम्मा सोच रही थी, क्या करे, क्या उस को बताए कि वह उस की मां थी. मगर ऐसे में उस का भविष्य नहीं बिगड़ जाएगा.

अनाथालय ने ब्लैकहोल के समान शर्मिष्ठा के बैकग्राउंड, उस के अतीत को चूस कर उस को सिर्फ एक अनाथ की संज्ञा दे दी थी. जिस का न कोई धर्म था न कोई जाति या वर्ग. वहां वह सिर्फ एक अनाथ थी.

अब वह एक सम्मानित परिवार की बेटी थी. वैल स्टैंड थी. कौयिम्मा नाथर द्वारा यह स्वीकार करने पर कि वह उस कि मां थी, उस पर एक अवैध संतान होने का धब्बा लग सकता था.

एक निश्चय कर कौयिम्मा नाथर रसोई से बाहर आई. ‘‘मेम साहब,

आप को शायद गलतफहमी हो गई है. इस गांव में 2 कौयिम्मा हैं. एक मैं कौयिम्मा नाथर, दूसरी कौयिम्मा नादर. दोनों ही अविवाहित हैं. आप ने गांव कौन सा बताया है?’’

‘‘अप्पा नाडू.’’

‘‘यहां 3 गांवों के नाम अप्पा नाडू हैं. 2 यहां से अगली तहसील में पड़ते हैं. वहां पता करें.’’

शर्मिष्ठा खामोश थी. जेनिथ भी खामोश थी. मां बेटी को अपनी बेटी स्वीकार नहीं कर रही थी. कारण? कहीं उस का भविष्य न बिगड़ जाए. पिता को पिता कैसे कहे? कौन से पिता को पिता कहे.

कार में बैठने से पहले एक नोटों का बंडल बिना गिने बख्शिश के तौर पर शर्मिष्ठा ने अपनी जननी को थमाया और उस को प्रणाम कर कार में बैठ गई. कार वापस मुड़ गई.

‘‘कोई मां इतनी त्यागमयी भी होती है?’’ जेनिथ ने कहा.

‘‘मां मां होती है,’’ अश्रुपूरित नेत्रों से शर्मिष्ठा ने कहा. कार गति पकड़ती जा रही थी. Hindi Kahani

News Story: खौफनाक दांत

News Story: यह छोटा सा होटल शहर से दूर था. आज विजय और अनामिका दोपहर से ही यहीं पर थे. लंच से ले कर डिनर तक. इस बीच उन दोनों ने भरपूर प्यार भी किया था. फिलहाल वे दोनों बिस्तर पर लेटे हुए थे. डिनर हो चुका था और थोड़ी देर बाद वे अपनेअपने घर जाने वाले थे.

रात के 9 बजे वे दोनों होटल से बाहर निकले. विजय बोला, ‘‘मैं तुम्हें घर छोड़ देता हूं. यह सड़क थोड़ी सुनसान लगती है.’’

‘‘अरे, तुम क्यों तकलीफ करते हो. मैं अकेले ही चली जाऊंगी. मैं ने रैपिडो बाइक बुला ली है. बाइक वाले ने कहा था कि वह इस बड़ी सड़क से दूसरी तरफ खड़ा मिलेगा. 2 मिनट का ही तो रास्ता है. तुम निकलो. सुबह लाइब्रेरी में मिलते हैं, ठीक 8 बजे,’’ अनामिका ने विजय के होंठों को चूमते हुए कहा.

विजय ने अनामिका को ‘बाय’ कहा और बाइक स्टार्ट करने लगा.

अनामिका सड़क के दूसरी तरफ चलने लगी. अभी वह कुछ ही दूर गई थी कि अचानक रात के अंधेरे से कुछ आवारा कुत्ते निकल आए. वे भौंक नहीं रहे थे, बल्कि अनामिका को देख कर गुर्रा रहे थे.

अनामिका संभलती, उस से पहले ही एक कुत्ते ने उस पर हमला कर दिया. पीछे हटने की हड़बड़ाहट में अनामिका गिर गई और उस के बाद कई कुत्ते उस पर झपट पड़े.

अनामिका ने होश नहीं खोया, बल्कि एक हाथ में कस कर बैग पकड़ कर उस ने कुत्तों को मारना शुरू किया और दूसरे हाथ से मोबाइल पर विजय का नंबर डायल कर दिया.

विजय ने फोन उठाया तो उसे अनामिका की दबी सी आवाज आई, ‘‘जल्दी आओ, मुझ पर कुछ कुत्ते झपट पड़े हैं.’’

विजय को लगा कि अनामिका कुछ बदमाशों को ‘कुत्ता’ कह रही है और उस की इज्जत पर आंच आई है. उस ने जल्दी से अपनी बाइक मोड़ी और तेज रफ्तार से अनामिका की तरफ बढ़ गया.

इस बीच रैपीडो बाइक वाला लड़का भी वहां आ गया था. उस ने शोर मचा कर कुत्तों को भगाना चाहा, पर वे कुत्ते उस पर भी झपटने लगे, लेकिन काट नहीं पाए.

इस बीच अनामिका को थोड़ा समय मिल गया और वह किसी तरह उठ कर वहां से जाने लगी. उसे कुत्तों ने काट खाया था. वह दर्द से तड़प रही थी.

तभी विजय वहां आ गया और उस ने झट से अनामिका को अपनी बाइक पर बिठाया और पास के प्राइवेट अस्पताल की तरफ चल दिया. तब तक रैपीडो बाइक वाला भी वहां से निकल गया था.

अस्पताल में डाक्टर ने अनामिका के जख्म देख कर कहा, ‘‘आवारा कुत्तों के खौफनाक दांतों का कहर बढ़ने लगा है. अब तो इस तरह के केस बढ़ने लगे हैं. आप चिंता मत करें. हम रेबीज का टीका लगा देंगे और आप के घाव अच्छे से साफ कर देंगे.’’

‘‘डाक्टर साहब, मैं तो कहता हूं कि आवारा कुत्तों के साथसाथ उन कुत्तों पर भी बैन लगना चाहिए, जिन्हें लोग अपने घरों में पालते हैं. मैं ने कुछ वीडियो देखे हैं, जिन में आवारा कुत्ते ही नहीं, बल्कि पालतू कुत्ते भी अचानक से किसी पर भी हमला कर देते हैं. कुत्तों की कुछ नस्लें तो इतनी ज्यादा खतरनाक हैं कि अगर वे बिदक जाएं, तो अपने मालिक को भी काटने से गुरेज नहीं करती हैं,’’ विजय बोला.

‘‘बात सिर्फ कुत्तों के काटने की नहीं है, बल्कि उन से होने वाले लाइलाज रोग रेबीज की भी है. जिसे होता है वह तो अपनी जान से जाता ही है, दूसरों में भी दहशत हो जाती है,’’

डाक्टर के पास खड़ी एक नर्स ने कहा.

‘‘पर डाक्टर साहब, यह रेबीज बला क्या है?’’ विजय ने सवाल किया.

डाक्टर ने बताया, ‘‘आसान भाषा में समझें तो रेबीज एक खतरनाक वायरस है जो कुत्ते, लोमड़ी, बंदर या बिल्ली जैसे जानवरों के काटने से फैल सकता है. अगर किसी इनसान के घाव पर संक्रमित जानवर की लार लग जाए, तो वह रेबीज से संक्रमित हो सकता है. इस का एक ही इलाज है कि तुरंत रेबीज से बचाव का टीका लगवाएं.

‘‘आप को बता दूं कि उत्तर प्रदेश के बदायूं जिले में रेबीज संक्रमण फैलने से एक मासूम की मौत हो गई थी. कुत्ते द्वारा उस का घाव चाटने के कुछ दिनों बाद 2 साल के अदनान की जान चली गई थी. इस घटना के बाद पूरे गांव में दहशत फैल गई थी. यह एक मामला नहीं है, बल्कि हर जगह से ऐसी खबरें आती रहती हैं.’’

‘‘रेबीज से पीडि़त कुत्ते की पहचान क्या होती है?’’ विजय ने दूसरा सवाल किया.

‘‘रेबीज से पीडि़त कुत्ते की पहचान कुछ साफसाफ लक्षणों से होती है, जैसे बिना उकसाए बारबार काटना, आवाज बदलना या भौंकने में दिक्कत, मुंह से झाग निकलना, अजीब चाल, गिरनालड़खड़ाना, इलाके को न पहचान पाना, जबड़ा ढीला होना, आंखों में खालीपन और अजीबोगरीब बरताव.

‘‘अगर कोई कुत्ता रेबीज से संक्रमित होता है, तो वह सिर्फ इनसानों को नहीं, बल्कि किसी भी चीज को काट सकता है. ऐसे कुत्तों का जीवनकाल बहुत छोटा होता है,’’ डाक्टर ने बताया.

‘‘मैं ने भी एक खबर पढ़ी थी कि किस तरह आवारा कुत्तों का खौफ दिल्ली जैसे बड़े शहरों में भी बढ़ गया है.

‘‘उस खबर के मुताबिक, गलीमहल्ले में आवारा कुत्तों के बढ़ते आतंक को ले कर केंद्रीय मंत्री रह चुके और लोक अभियान के अध्यक्ष विजय गोयल ने 15 मार्च, 2023 को जंतरमंतर पर धरना भी दिया था. उन्होंने तब कहा था कि कुत्तों के डर से लोग पार्कों और गलियों में नहीं जा सकते हैं. उन्होंने बताया कि 28 फरवरी, 2023 को उन्होंने इसे ले कर उपराज्यपाल को चिट्ठी भी लिखी थी,’’ विजय बोला.

‘‘पर डाक्टर साहब, आवारा कुत्तों के आक्रामक होने की वजहें क्या होती हैं?’’ इस बार अनामिका ने डाक्टर से सवाल किया.

‘‘आवारा कुत्तों के आक्रामक बरताव की कई वजहें हैं. अगर ऐसे कुत्तों को लगता है कि कोई शख्स उन्हें नुकसान पहुंचा सकता है, तो वे उस पर हमला कर सकते हैं. आवारा कुत्तों के निशाने पर बच्चे और बुजुर्ग ही होते हैं. जैसे ही उन्हें मौका मिलता है, वे उन पर हमला कर देते हैं. इस के अलावा कुत्तों के इलाकों में कोई जाता है, तो भी उन्हें अटपटा लगता है और वे लोगों पर हमला कर देते हैं.

‘‘अगर आप को आवारा कुत्ते देखते ही भौंकने लगें, तो आप सतर्क हो जाएं. इस के अलावा अगर कोई आवारा कुत्ता परेशान सा घूम रहा हो, तो भी सतर्क हो जाएं. अगर बच्चे बाहर खेलने जाएं, तो वहां किसी बड़े को भी जरूर होना चाहिए,’’ डाक्टर ने बताया.

‘‘यही वजह है कि यह मामला सुप्रीम कोर्ट में गया. आवारा कुत्ते रेबीज की बढ़ती घटनाओं की बड़ी वजहों में से एक हैं और सुप्रीम कोर्ट ने इस पर चिंता जताई है.

‘‘रेबीज और आवारा कुत्तों की समस्या दुनियाभर में है. इस को ले कर सब से अहम सवाल यह उठता है कि भारत और दुनियाभर में आवारा कुत्तों पर काबू पाने के लिए किस तरह की नीति का पालन किया जाता है?

‘‘वर्ल्ड हैल्थ और्गेनाइजेशन का कहना है कि भारत में रेबीज के असली आंकड़ों की जानकारी नहीं है, लेकिन मुहैया जानकारी के मुताबिक, हर साल इस से 18 हजार से 20 हजार मौतें होती हैं.

‘‘सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, भारत में साल 2024 में रेबीज से 54 मौतें दर्ज की गईं, जो साल 2023 में दर्ज 50 मौतों से ज्यादा थीं,’’ विजय ने बताया.

यह सुन कर नर्स बोली, ‘‘जस्टिस विक्रम नाथ ने कहा था कि इस समस्या की सब से बड़ी वजह जिम्मेदार महकमों की लापरवाही है. लोकल अथौरिटी को अपनी जिम्मेदारी निभानी होगी.’’

विजय ने बात को आगे बढ़ाते हुए कहा, ‘‘11 अगस्त, 2025 को जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर. महादेवन की 2 जजों वाली खंडपीठ ने आवारा कुत्तों से जुड़े मसले पर फैसला सुनाते हुए सख्त निर्देश दिया था कि पशु जन्म नियंत्रण नियम, 2023 (एबीसी नियम) के तहत एक बार पकड़े जाने और नसबंदी किए जाने के बाद आवारा कुत्तों को उन के इलाकों में वापस नहीं छोड़ा जाना चाहिए.

‘‘इस के बाद देशभर में डौग लवर्स ने एक मुहिम चलाई कि यह आवारा कुत्तों के साथ नाइंसाफी है. हर कुत्ते को शहर में या कहीं भी इनसान के साथ रहने का हक है.

‘‘इस दलील पर सुप्रीम कोर्ट ने अपने पहले आदेश में बदलाव करते हुए नया निर्देश दिया कि दिल्ली में सभी आवारा कुत्तों को पकड़ कर नसबंदी और टीकाकरण किया जाएगा. उन्हें जहां से उठाया गया है, वहीं छोड़ दिया जाएगा.

‘‘रेबीज से संक्रमित और आक्रामक कुत्तों को सड़क पर नहीं छोड़ा जाएगा. इस के अलावा नगरनिगम को कुत्तों के लिए अलग फीडिंग पौइंट बनाने होंगे और सड़क या सार्वजनिक जगहों पर खाना खिलाना मना रहेगा. यह आदेश पूरे देश में लागू होगा.

‘‘आवारा कुत्तों पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता का कहना है कि यह फैसला जनता को राहत देने वाला है और सरकार ईमानदारी से इस समस्या का समाधान करेगी.

‘‘दूसरी ओर दिल्ली के मेयर इकबाल सिंह ने बताया है कि दिल्ली नगरनिगम के पास कोई शैल्टर होम नहीं हैं. हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि दिल्ली नगरनिगम के पास 10 नसबंदी केंद्र हैं, जिन्हें बढ़ाया जा सकता है और कुछ शैल्टर होम बनाए जाएंगे.’’

‘‘यह तो सरकारी काम हुआ न. पर क्या इस से आवारा कुत्तों की समस्या से छुटकारा मिल जाएगा? क्या दिल्ली जैसे बड़े शहर आवारा पशुओं के रहने लायक बचे हैं? कुत्तों के साथसाथ गाय और सांड़ भी खुलेआम सड़कों पर घूमते दिखते हैं. कई बार तो उन्हें बचाने के चक्कर में सड़क पर हादसे भी हो जाते हैं.

2 सांड़ों की लड़ाई में कोई बेकुसूर इनसान भी घायल हो जाता है,’’ अनामिका ने अपनी बात रखी.

इस पर विजय ने कहा, ‘‘तुम सही कहती हो. दिल्ली जैसे शहर जहां हर जगह कंक्रीट की सड़कें बन गई हैं, वहां आवारा कुत्तों का रहना ही सब से बड़ी समस्या बन गया है. वे सड़कों पर ही गंदगी करते हैं, जिस से लोगों का चलना तक दूभर हो जाता है. रात को उन के भौंकने से नींद में खलल पड़ता है. पार्कों में भी आवारा कुत्ते घूमते रहते हैं.

‘‘यही समस्या कुत्ते पालने वालों के साथ भी है. पहले घर ज्यादा मंजिला नहीं होते थे, तो उन्हें संभालना इतना मुश्किल नहीं था, पर अब बहुमंजिला इमारतों का जमाना है. अपार्टमैंट्स कल्चर में हमें अपनी सुविधा के साथसाथ दूसरों की सहूलियत भी देखनी पड़ती है.

‘‘पर लोग समझते ही नहीं हैं. वे अपने कुत्तों को टहलाने के बहाने कहीं भी गंदगी करा देते हैं और साफ भी नहीं करते हैं. इस बात पर आएदिन उन का दूसरों के साथ झगड़ा होता है.

‘‘कई बार तो लोग लिफ्ट से अपने पालतू कुत्ते को ले जाते हैं. क्या लिफ्ट पालतू कुत्तों के लिए बनी है? बिलकुल नहीं, पर वे इसे अपना हक समझते हैं और जब कुत्ता किसी को काट ले, तो वे पीडि़त पर ही दोष लगाते हैं कि तुम बाद में लिफ्ट में आ जाते.’’

डाक्टर ने अनामिका को रेबीज का टीका लगा दिया था और जख्मों पर मरहमपट्टी भी कर दी थी. उन्होंने कहा, ‘‘एक बात और यह कि दिल्ली और एनसीआर क्षेत्र में तकरीबन 10 लाख आवारा कुत्ते हैं, इसलिए सभी के लिए तय फीडिंग स्पौट बनाना बहुत मुश्किल काम है.

‘‘इन हालात में जरूरी है कि नगरनिगम, एनजीओ और ऐक्टिविस्ट मिल कर ऐसे समाधान खोजें, जो आवारा जानवरों के फायदे में हों और साथ ही प्रशासन के लिए भी अपना काम करना आसान हो जाए.

‘‘केवल आपसी सहयोग और समझदारी से ही यह समस्या हल हो सकेगी. वैसे भी कुत्ते हमारे दुश्मन
नहीं है, बल्कि ये बहुत प्यारे होते हैं और सदियों से इनसान के साथ रहते आए हैं.’’ News Story

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