Family Story: बोझ

Family Story: महज 30 साल की उम्र में पंकज ने अपनी कारोबारी हैसियत का लोहा मनवा लिया था. पिता के टैंट हाउस के काम को वह नई ऊंचाई पर ले जा चुका था.

‘पंकज टैंट हाउस’ का नाम अब शहर से बाहर भी अपना डंका बजाने लगा था. बड़े आयोजन के लिए उस के काम का कोई सानी नहीं था. जहां उस के पिता 25 लोगों के स्टाफ के साथ अपना कारोबार चलाते थे, वहीं पंकज ने पिछले तकरीबन डेढ़ साल में 200 लोगों का स्टाफ अपने नीचे काम करने के लिए रख लिया था.

पैसों की बारिश के साथ सामाजिक इज्जत में भी भारी इजाफा हुआ था, पर इस शानशौकत, इज्जत, पैसे के एवज में पंकज न तो चैन की नींद ले पाता था, न ही ढंग से भोजन कर पाता था.

पंकज की शादी हुए भी 2 साल हो चुके थे, पर 3 दिन के हनीमून के अलावा उस के पास बीवी के लिए भी समय नहीं था. मातापिता और पत्नी उसे काम के फैलाव को समेटने के लिए समझाते, पर उस का जुनून उसे अपने काम के नशे से सरोबार रखता.

सारा दिन औफिस और साइट के बीच भागदौड़ और साथ ही मोबाइल पर लगातार बातचीत पंकज को एक पल के लिए भी अपने या परिवार के बारे में सोचने का मौका नहीं देता था. सुबह जल्दबाजी में नाश्ता कर घर छोड़ता, दिन में जो मिल जाता खा लेता और देर रात घर लौट कर जो भी उसे परोस दिया जाता, अपना ध्यान फोन पर उंगली फिराते हुए खा लेता.

ज्यादा मेहनत करने से पंकज की सेहत पर बुरा असर पड़ने लगा था. कभी सिरदर्द, तो कभी बदनदर्द, एयरकंडीशंड औफिस में भी काम करते समय कभी माथे पर पसीने की बूंदें चुहचुहा आती थीं.

एक दिन ऐसे ही बेचैनी में पंकज औफिस से उठ कर अपने गोदाम की ओर चल दिया. 4-5 मजदूर सामान को जमातेजमाते भोजन करने जमीन पर घेरा बना कर बैठे थे. कोई डब्बे में तो कोई थैली में से भोजन निकाल रहा था और हंसीठिठोली से माहौल में मस्ती घोल रहा था.

पंकज चुपचाप उन को निहारता रहा और उसे उन को देख कर ही सुकून मिलने लगा था.

‘‘ले… मेरे कटहल के अचार का स्वाद चख, मेरी नानी ने बना कर भिजवाया है,’’ एक मजदूर ने दूसरे को मनुहार से अपना खाना साझा किया, तो दूसरा मजदूर बोला, ‘‘मेरी बीवी भी प्याजपरवल की सब्जी बहुत अच्छी बनाती है, सब चख लो.’’

अचानक एक मजदूर की नजर पंकज पर पड़ी, तो सब चुप हो गए. वह धीरे से चल कर उन के पास आया, तो एक मजदूर सकपका कर बोला, ‘‘हम बस अभी खाना खाने बैठे हैं. जल्दी खा लेते हैं. कोई काम है, तो आप बताइए?’’

पंकज झिझकते हुए बोला, ‘‘क्या मैं भी आप लोगों के साथ बैठ कर भोजन कर सकता हूं?’’

कुछ देर की शांति के बाद एक जना अटकते हुए बोला, ‘‘हमारा भोजन शायद आप को पसंद न आए और फिर आप कहां बैठ कर खाएंगे? यहां तो बरतन भी नहीं हैं.’’

‘‘अरे, मैं यहीं तुम्हारे साथ बैठ कर भोजन करना चाहता हूं, अगर आप को एतराज न हो तो…?’’ एक मुसकराहट के साथ पंकज ने कहा, तो खुशीखुशी सभी लोगों ने सरक कर घेरा बड़ा कर लिया और उस के लिए जगह बना दी.

पंकज पूरे मजे के साथ एकएक कौर खाते हुए सोच रहा था कि इतनी दौलत होने के बाद भी उस ने जिंदगी में पिछली बार कब इतने शौक से भोजन किया था?

बहुत सोचने के बाद भी पंकज याद नहीं कर पाया. इस समय तो बारबार बजते फोन को भी उस ने साइलैंट मोड पर कर दिया था. उस के कारोबार के लिए मेहनत करने वाले कामगारों को वह पहली बार जाननेसमझने का मौका पा रहा था, जो सब मिल कर उसे अपनी बातों से अनोखा मजा दे रहे थे.

वहां से खाना खा कर जाते हुए पंकज यह सोच रहा था कि वह अपने सभी कामगारों को एक शानदार तोहफा देगा और काम से छुट्टी ले कर अपने परिवार के लिए भी रोज समय जरूर निकालेगा.

पंकज की चिंता और दर्द अब काफूर हो चुके थे और उसे लग रहा था कि उस ने अपने ऊपर जबरदस्ती का लादा हुआ बोझ उतार फेंका है.

News Story: सैकंड क्लास सिटीजन का अव्वल कारनामा

News Story: आज से तकरीबन 10 महीने पीछे चलते हैं. शहर दिल्ली और महीना जुलाई का. बारिश का मानो कहर सा बरपा था. ओल्ड राजेंद्र नगर इलाके के एक आईएएस कोचिंग सैंटर के बेसमेंट में बहुत से छात्र वहां बनी लाइब्रेरी में पढ़ाई कर रहे थे.

शाम के साढ़े 6 बजे थे कि वहां बैठे छात्रों को महसूस हुआ कि कुछ तो गड़बड़ है. अचानक से ही बेसमेंट में पानी भरने लगा. पानी का बहाव इतना तेज था कि यह देख कर छात्रों के मानो हाथपैर फूल गए.

‘‘यार, अब यह क्या नौटंकी है… यहां हर साल ऐसे ही पानी भरता है,’’ रजनी ने पूछा.

‘‘पर, आज का मामला कुछ और ही है. यह सिर्फ पानी भरना नहीं है, बल्कि कोई बड़ी समस्या है,’’ अनामिका बोली.

अनामिका एक पढ़ाकू लड़की थी. उम्र 23 साल. भरा बदन और सांवला रंग. वह ज्यादातर सूटसलवार पहनती थी और अपना ज्यादातर समय लाइब्रेरी में ही बिताती थी.

‘‘मुझे तो बड़ा डर लग रहा है. यह पानी तो रुकने का नाम ही नहीं ले रहा है,’’ जब घुटने से ऊपर पानी चला गया, तब विजय ने टेबल पर चढ़ते हुए कहा.

विजय का डर जायज था. चंद ही सैकंड में वहां बाढ़ का सा नजारा था. उसे तैरना नहीं आता था.

अनामिका समझ गई. उस ने हिम्मत नहीं खोई और जल्दी से विजय के पास तैर कर पहुंची और पीछे से कौलर पकड़ कर उसे खींचने लगी. उस का सिर भी पानी के ऊपर रखा और बेसमेंट के दरवाजे की तरफ उसे ले गई.

वहां ऊपर से कुछ लोगों ने रस्सियां फेंकी हुई थीं. अनामिका ने एक रस्सी विजय को पकड़ाई और बोली, ‘‘आप इसे मत छोड़ना. वे लोग आप को ऊपर खींच लेंगे.’’

पर विजय बहुत ज्यादा घबराया हुआ था. वह पानी में डुबकी लगाने लगा. लेकिन ऊपर खड़े लोगों ने उसे बहुत जल्दी ऊपर खींच लिया. अनामिका भी तब तक तैर कर ऊपर आ चुकी थी.

बाहर लोगों की भीड़ जमा थी. तब तक विजय बेहोश हो चुका था. शायद उस के पेट में पानी भर गया था, पर किसी को समझ नहीं आ रहा था कि क्या किया जाए.

इतने में अनामिका बोली, ‘‘सब लोग पीछे हो जाएं. थोड़ी हवा आने दें. मैं इन्हें देखती हूं.’’

इस के बाद अनामिका ने विजय के कपड़े ढीले कर दिए. उस की ठोढ़ी ऊपर उठा कर सिर पीछे झुकाया और फिर उस की नाक बंद कर मुंह पूरा खोल दिया. फिर उस ने अपना मुंह ढक्कन की तरह उस के मुंह पर फिट कर पूरी हवा मुंह में छोड़ दी. उस ने ऐसा हर 5 सैकंड बाद किया और तब तक करती रही, जब तक कि विजय की नाड़ी या धड़कन काम न करने लगी.

इस के बाद विजय के मुंह से पानी निकलने लगा. अनामिका ने उस की गरदन टेढ़ी कर के पानी निकाल दिया और फिर से उसे सांस देने लगी.

थोड़ी देर में ही विजय को थोड़ा होश आने लगा. इस के बाद उसे आननफानन ही पास के एक अस्पताल में ले जा कर भरती कराया गया.

अनामिका भी साथ में ही थी. वह सारी रात गीले कपड़ों में विजय के पास रही. उस के कपड़ों से बदबू तक आने लगी थी, पर वह विजय की ढाल की तरह वहीं जमी रही.

सुबह जब बारिश का जोर कम हुआ, तब विजय के मांबाप अस्पताल में आए. तब तक विजय को पूरी तरह होश आ चुका था.

विजय ने बताया, ‘‘मां, यह अनामिका है. इस ने ही मुझे डूबने से बचाया है.’’

मां कुछ बोलतीं, इस से पहले ही अनामिका ने कहा, ‘‘अरे, यह सब बताने की क्या जरूरत है. तुम ठीक हो, यही काफी है.’’

‘‘नहीं अनामिका, आप ने वाकई बड़ी बहादुरी दिखाई. डूबते को तिनके का सहारा होता है और आप तो एक ऐसी इनसान हैं, जिस ने अपनी जान की परवाह न करते हुए हमारे बेटे को न सिर्फ बचाया है, बल्कि सारी रात यहां अस्पताल में बिता दी,’’ विजय के पापा अमरनाथ बोले.

‘‘अनामिका, हम तुम्हारे लिए क्या कर सकते हैं,’’ विजय की मां लक्ष्मी देवी ने कहा.

‘‘मुझे कुछ नहीं चाहिए. यह तो मेरा फर्ज था. विजय अब ठीक है, यही मेरे लिए काफी है,’’ अनामिका बोली.

इस हादसे को बीते 10 महीने हो गए थे. अनामिका और विजय गहरे दोस्त बन गए थे. दोस्त से ज्यादा ही. उन में प्यार के बीज फूट पड़े थे. उन का यह दोस्ती का रिश्ता विजय के मांबाप भी जानते थे.

एक शाम को विजय और अनामिका एक कैफे में बैठे कौफी पी रहे थे. विजय ने पूछा, ‘‘यार, एक बात बताओ कि उस दिन तुम ने मुझे इतनी आसानी से कैसे बचा लिया था?’’

‘‘क्योंकि, मैं बहुत अच्छी तैराक हूं,’’ अनामिका ने झट से जवाब दिया.

‘‘तुम ने स्विमिंग कहां से सीखी?’’

‘‘नदी में. मैं तो 4 मिनट तक सांस रोक कर पानी के भीतर तैर सकती हूं.’’

‘‘वाह, पर ऐसा करने की जरूरत ही क्या है?’’

‘‘हमारा काम ही ऐसा है गांव में.’’

‘‘कैसा काम…? मैं अभी तक कुछ समझा नहीं,’’ विजय ने पूछा.

‘‘मैं मछुआरा जाति से हूं… हम मल्लाह हैं और बिहार के वैशाली जिले में रहते हैं. मेरे पिता केशवराम का यही पुश्तैनी कारोबार है. उन के पास 10 बड़ी नाव हैं. कई कोल्ड स्टोरेज हैं और वे मछली का होलसेल काम करते हैं.’’

‘‘तुम मछुआरा जाति से हो…?’’ विजय ने हैरान हो कर पूछा.

‘‘हां, जनाब. इस समाज का होना कोई गुनाह है क्या?’’ अनामिका ने पूछा.

‘‘गुनाह तो है. तुम ने मुझ से यह बात क्यों छिपाई?’’ विजय गुस्सा होते हुए बोला.

‘‘मैं ने कुछ भी नहीं छिपाया है. तुम ने आज पूछा, तो मैं ने सब सच बता दिया है.’’

‘‘पर, यह हम दोनों के रिश्ते के लिए अच्छी बात नहीं है. मुझे सोचना पड़ेगा हम दोनों के बारे में,’’ विजय बोला.

‘‘यह तुम कैसी बातें कर रहे हो? हम दोनों यूपीएससी का प्रिलिमिनरी ऐग्जाम क्लियर कर चुके हैं. एकदूसरे से प्यार करते हैं और शादी भी करेंगे. तुम्हारे मांबाप हम दोनों की दोस्ती के बारे में जानते हैं और आज तुम मेरी जाति पर सवाल उठा रहे हो. मेरी जाति से मुझे जज कर रहे हो,’’ अनामिका बोली.

‘‘यार, तुम मछुआरा जाति की हो और मैं ब्राह्मण लड़का हूं. मेरे मांबाप जब यह सुनेंगे, तब हंगामा मच जाएगा,’’ विजय बोला.

‘‘तुम ने आज जता और बता दिया कि एक पढ़ेलिखे लड़के के मन में भी जातिवाद का जहर किस कदर दिमाग में भरा हुआ है. तुम जानते हो कि यूपीएससी के प्रिलिमिनरी ऐग्जाम में मेरी रैंक कितनी अच्छी आई है. जनरल कैटेगरी वालों से भी अच्छी है.

‘‘मुझे यकीन है कि मैं आईएएस जरूर बनूंगी. तुम भी बनोगे, पर आज यह कितने शर्म की बात है कि तुम अपने मांबाप से हम दोनों के रिश्ते के बारे में बताने से हिचक रहे हो, जबकि वे जानते हैं कि हम कितने गहरे दोस्त हैं.’’

‘‘मेरा वह मतलब नहीं है. तुम मुझे पसंद हो, पर मम्मीपापा को मनाना बहुत पेचीदा काम है,’’ विजय ने कहा.

‘‘पता है, आज जब तुम ने मेरी जाति के बारे में सुनने के बाद जो रिऐक्शन दिया है, उस से कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी की एक बात को बहुत ज्यादा बल मिला है और उन्हें सच साबित करने में तुम ने कोई कोरकसर नहीं छोड़ी है,’’ अनामिका बोली.

‘‘कौन सी बात?’’ विजय ने पूछा.

‘‘अभी बिहार में कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा कि अगर आप अपर कास्ट नहीं हैं, तो इस देश में सैकंड क्लास सिटीजन हैं. दलित, पिछड़े, आदिवासी, अल्पसंख्यक, महिलाएं और ओबीसी सब इस में शामिल हैं. सिस्टम ने आप को घेर कर रखा है.’’

‘‘पर, यह तो बिहार विधानसभा चुनाव में वोट हासिल करने की कोई रणनीति भी हो सकती है,’’ विजय ने शक जाहिर किया.

‘‘यह सच है. राहुल गांधी ने इन सैकंड क्लास लोगों को संबोधित करते हुए आगे कहा कि जाति जनगणना समाज का एक्सरे है, जिस से आप को वंचित रखा जा रहा है. यह क्रांतिकारी कदम है, इसलिए आरएसएस और भाजपा इसे रोकना चाहती है, मगर अब दुनिया की कोई ताकत इसे नहीं रोक सकती है.

‘‘उन्होंने आगे कहा था कि तेलंगाना में जाति जनगणना हुई, आंकड़े आए तो हम ने आरक्षण बढ़ा दिया. यह डाटा मोदीजी आप को नहीं देना चाहते हैं. मैं मोदीजी से कहना चाहता हूं कि यह जो आप ने 50 फीसदी आरक्षण की झूठी दीवार बनाई है इसे हटाइए, नहीं तो हम इसे गिरा कर फेंक देंगे.’’

इस पर विजय बोला, ‘‘पर, यह तो एक सियासी भाषण है. राहुल गांधी ने पटना के श्रीकृष्ण मैमोरियल हाल में आयोजित संविधान सुरक्षा सम्मेलन में यह सब कहा था और उन्होंने माना कि पूर्व में कांग्रेस से गलती हुई है.

‘‘राहुल गांधी ने आगे कहा कि मैं पहला व्यक्ति हूं, जो यह कहेगा कि बिहार में कांग्रेस को जो काम करने चाहिए थे, जिस मजबूती और गति से करने चाहिए थे, वह हम ने नहीं किए. हम अपनी गलती को समझे हैं.

‘‘अब हम बिना रुके, पूरे शक्ति से कमजोर, गरीब, दलित, वंचितों, महिलाओं को ले कर आगे बढ़ेंगे.

‘‘बिहार में कांग्रेस और गठबंधन की यही भूमिका है कि वह गरीब, दलित, ओबीसी, ईबीसी को आगे बढ़ाए. मैं ने और अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने बिहार की टीम को साफसाफ बता दिया है कि गरीब व पिछड़ी जनता को प्रतिनिधित्व दीजिए.

‘‘हम दलितों और महिलाओं के लिए राजनीति का दरवाजा खोल कर बिहार का चेहरा बदलना चाहते हैं. हाल ही में हम ने कांग्रेस जिलाध्यक्षों की नई सूची जारी की है. पहले जिलाध्यक्षों की सूची में दोतिहाई अपर कास्ट के लोग थे, मगर अब जिलाध्यक्षों की नई सूची में दोतिहाई ईबीसी, ओबीसी, दलित, पिछड़े और अल्पसंख्यक समाज के लोग हैं.’’

‘‘तुम मेरी बात को ठीक से नहीं समझ रहे हो. यहां राहुल गांधी के सियासी भाषण की बात नहीं हो रही है, बल्कि मैं यह बताना चाहती हूं कि आजादी के इतने साल के बाद भी किसी नेता को यह कहना पड़ रहा है कि अगर आप अपर कास्ट नहीं हैं, तो इस देश में सैकंड क्लास सिटीजन हैं.

‘‘बिहार के अपने इस दौरे पर राहुल गांधी ने संविधान की प्रति दिखाते हुए कहा था कि अंबेडकर ने सचाई के लिए लड़ाई लड़ी. उन्होंने देश के गरीबों के लिए लड़ाई लड़ी. वे देश के दलितों को समझ पाए. वे उन के दुख को, उन की सचाई को समझ पाए. बाद में वे उसी सचाई को ले कर लड़े.

‘‘हम सचाई से दूर नहीं जा सकते. संविधान ही देश की सचाई का रक्षक है. हम सचाई की लड़ाई लड़ रहे हैं. अंबेडकर की विचारधारा हमारे खून के भीतर है और इसे कोई नहीं मिटा सकता.

‘‘राहुल गांधी ने आगे कहा कि देश में 95 फीसदी लोग दलित, पिछड़े, ईबीसी, ओबीसी और अति दलित हैं. लेकिन 5 फीसदी लोग इस पूरे देश को चला रहे हैं. बस, 10 से 15 लोग हैं, जिन्होंने पूरे कौरपोरेट इंडिया को पकड़ रखा है. आप का लाखोंकरोड़ों रुपया सीधा इन की जेबों में जा रहा है. इन लोगों ने पूरे सिस्टम को घेर कर रखा हुआ है.’’

विजय समझ गया था कि जाति की बात छेड़ कर उस ने गलत किया है, पर अब तो कमान से तीर निकल चुका था. अनामिका को यह कतई बरदाश्त नहीं था कि विजय उस की जाति पर सवाल उठाए, जबकि वह अपनी जाति पर गर्व महसूस करती थी.

अनामिका को अपने पिता के काम पर किसी तरह की कोई शर्म नहीं थी, क्योंकि उन्होंने अपनी मेहनत के दम पर यह सब कारोबार जमाया था. खुद कम पढ़ालिखा होने के बावजूद उन्होंने अपनी बेटी को पढ़ाया और उस की काबिलीयत को पहचाना.

विजय अब दोराहे पर खड़ा था. एक तरफ उसे अनामिका का गुस्सा शांत करना था, तो वहीं दूसरी तरफ उसे अपने मांबाप को यह कड़वी हकीकत बतानी थी. अनामिका कैफे से जा चुकी थी.

अगले दिन से ही अनामिका ने विजय को इग्नोर करना शुरू किया, पर विजय पर तो प्यार का रंग भी उतना ही चढ़ा था, जितना जाति का. उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह कैसे अनामिका को भरोसा दिलाए. उस ने मां से तो बात नहीं की, पर अपनी बड़ी बहन सुधा को फोन पर सब बता दिया, जो अनामिका से मिल चुकी थी और विजय की जान बचाने के किस्से को जानती थी.

सुधा के कहने पर विजय ने एक दिन अनामिका से प्यार जताने का फैसला कर लिया. अनामिका गर्ल्स होस्टल में रहती थी. विजय स्विगी डिलीवरीमैन की ड्रैस पहन कर उस के दरवाजे पर खड़ा हो गया और बोला, ‘‘मैडम, आप का केक…’’

Hindi Story: अजीब जिंदगी

Hindi Story: आंगन में बैठा प्रीतम ध्यान से हरी दूब और रंगबिरंगे फूलों में खो जाना चाहता था. मोना के इंतजार में दोपहर से शाम होने को आई थी. कभीकभार एकाध बादल आसमान पर आ जाता, तो उसे यों लगने लगता जैसे बादल उसे ही खिजा रहा है. कभीकभार हवा भी सरसराती कोई सवाल पूछती थी. शाम ने काजल लगा लिया था.

चश्मा उठा कर प्रीतम भी भीतर आ गया. बत्ती जलाई और टैलीविजन देखने लगा. किसी सीरियल में एक रोमांटिक सीन चल रहा था. प्रीतम ने चैनल नहीं बदला, मगर वह सीन गौर से देखा भी नहीं. उसे मोना याद आ रही थी. 4 बजे स्कूल की छुट्टी हो जाती है. अब 7 बजने को आए हैं, मगर उस का कुछ अतापता नहीं.

प्रीतम ने पिछले हफ्ते बुखार और जुकाम होने पर डाक्टर की सलाह ली थी.

‘यह इंफैक्शन भी हो सकता है. आप घर पर भी मास्क लगाओ. दफ्तर मत जाओ. औरों को भी मुसीबत में मत डालो. 7 दिन बाद एक दफा मिल लेना. अगर मैं ठीक समझूंगा तो दफ्तर चले जाना,’ डाक्टर ने अपना फैसला सुनाया.

सचमुच वह राय नहीं फैसला ही हुआ करता था. पिछले 8 साल से प्रीतम उन डाक्टर की ही शरण में जाता था. प्रीतम पर उन का इलाज तुरंत असर करता था.

न जाने किधर खोया हुआ प्रीतम अभी भी आशा की ज्योति जलाए हुए था कि मोना फोन तो करेगी कम से कम.

प्रीतम मन ही मन गुस्सा हो रहा था कि तभी अचानक मोना आई और कुरसी पर पसर गई. प्रीतम का जुकामबुखार कुछ नहीं पूछा. सीधा बोली, ‘‘अभी बाहर से खाना मंगवा लेती हूं. तुम में तो अब सुधार है. दाल मंगवा रही हूं. खा तो लोगे न…?’’ जवाब सुने बगैर उस ने खाना और्डर कर दिया.

कमाल की बात यह है कि प्रीतम और मोना उस के बाद 20 मिनट तक चुपचाप ही बैठे रहे. वहीं मेज पर पानी की बोतल रखी थी. मोना ने 2 बार पानी उसी बोतल से गले में उतार लिया था.

खाना आ गया था. मोना ने पूछा, तो प्रीतम ने खुद ही दूध में कौर्नफ्लैक्स मिला लिया. मोना ने थाली ली. रोटी और दाल मिला कर खाने लगी.

2 चम्मच दूध और कौर्नफ्लैक्स प्रीतम ने भी गले से नीचे उतार लिया. पेट में जरा भोजन गया, तो उन दोनों को तब जा कर कुछ दम आया शायद.

पहले मोना ही बताने लगी, ‘‘सुनो, आज मैडम जुत्सी का विदाई समारोह था. बहुत ही बढि़या हुआ, मगर ये प्रिंसिपल भी खूब पाखंड करते हैं. मैडम जुत्सी आज तक स्कूल में एक घंटा ऐक्स्ट्रा नहीं रुकीं, तो उन्होंने भी मैडम जुत्सी को ऐक्स्ट्रा भाव नहीं दिया.

5 मिनट में ही उठ कर चल दिए और बहाना बना दिया कि आज डीईओ के पास खास मीटिंग है. वहां जाना है.’’

प्रीतम मोना को सुन रहा था.

‘‘फिर मैं ने और बानी ने मिल कर सब संभाला. कमाल की बात तो यह कि हम को ही न चाय मिली, न समोसे. ऐसा ही होता है न,’’ कह कर मोना दो पल के लिए ठहर गई.

‘‘प्रीतम, तुम जरा सी दाल चख लो. एकदम सादा है. पेट को कुछ न होगा,’’ कह कर मोना ने स्नेह दिखाया और प्रीतम भी पिघल गया. उस ने मोना की ही थाली में से दाल और चपाती चख ली.

अब प्रीतम को मनुहार भरी परवाह से देखते हुए मोना ने उस से कौर्नफ्लैक्स की कटोरी और चम्मच ले लिया.

झूठे बरतन रसोई में सिंक के हवाले कर मोना हथेली में गुड़ के 2 टुकड़े रख कर लाई और बोली, ‘‘लो, एक खा लो यार. अच्छा लगेगा.’’

प्रीतम ने हथेली से उठा कर एक डली को मुंह में रख लिया.

‘‘कल से शायद दफ्तर जाना शुरू कर दूं,’’ प्रीतम ने गुड़ की मिठास में घुलते हुए बताया.

‘‘ओह, एक हफ्ता निकल गया यार, मैं ने तो एक दिन भी तुम्हारी सेवा नहीं की. कितना थका दिया स्कूल की नौकरी ने. कभी मन होता है कि इसी पल यह नौकरी छोड़ दी जाए, फिर लगता है कि काम के बिना चैन भी तो नहीं मिलता है न.’’

मोना यों ही उठ कर प्रीतम का सिर दबाने लगी और बोली, ‘‘इतने दिन बच्चों का पेपर सैट करना था. कोई होश ही नहीं था मुझे. ऊपर से 2 दिन बाद एक कंपीटिशन कराना है. उस का भी मुझे ही इंचार्ज बना दिया है.

‘‘मन तो करता है कि मैडम जुत्सी बन कर सब टाल कर चैन से रहा जाए, मगर जिन बच्चों को पढ़ाते हैं, उन के लिए कोई अच्छा काम नजरअंदाज नहीं किया जाता…’’

मोना प्रीतम के बाल जांचने लगी, ‘‘प्रीतम, मैं बालों में नारियल का तेल और कपूर मिला कर लगा देती हूं.

बहुत रूखे बाल हो रहे हैं. दवा का असर हो रहा है. चेहरा भी कैसा सुस्त सा हो गया है,’’ कहते हुए वह नारियल का तेल और कपूर की टिकिया ले आई. हाथ से ताली सी बजा कर उस ने दोनों को मिलाया.

‘‘गरदन जरा ढीली रखो यार,’’ कह कर मोना बालों की जड़ों को देख कर उन में तेल लगाने लगी.

कुछ सैकंड बाद पूरे माहौल में नारियल और कपूर की महक फैल गई थी. प्रीतम को मोना शुरू से ही बेहद पसंद थी. मोना का मन बेहद सच्चा है, कालेज के जमाने से ही. ऐसे ही प्रेम विवाह थोड़े ही न किया था उन दोनों ने.

खिड़की से चांद चमक रहा था. इस समय प्रीतम का घर दुनिया का सब से सुखी घर था.

Emotional Story: मां

Emotional Story: ऐसा शब्द मां, जिसे पुकारने के लिए बच्चा तड़प उठता है. मां के बिना जिंदगी अधूरी है. यों तो हर इनसान जी लेता है, पर मां की कमी उसे जिंदगी के हर मोड़ पर खलती है. हर इनसान को मां की ममता नसीब नहीं होती.

मां की कमी का दर्द वह ही बयां कर सकता है, जो मां की ममता से दूर रहा हो. हम दुनिया में भले ही कितनी तरक्की कर लें, पर मां की कमी हमें कभी न कभी किसी न किसी मोड़ पर रुला ही देती है. किसी दिन का कोई लम्हा ऐसा गुजरता होगा, जब हम अपनी मां को याद न करते हों.

यह भी इत्तिफाक ही है कि किस्मत से मेरे पापा का बचपन बिन मां के गुजरा. उस के बाद मेरा और मेरे बच्चों को भी मां का प्यार नसीब न हुआ.

हम सब छोटीछोटी तमन्नाओं को मार कर जीए. खानेपहनने, घूमने या फिर जिद करने की, वह मेरे पापा मुझ से और मेरे बच्चों से कोसों दूर रही, क्योंकि मेरे पापा, मैं और मेरे बच्चे ही क्या दुनिया में लाखों इनसान बिन मां के जिंदगी गुजारते हैं.

लेकिन मां की कमी का दर्द वह ही समझ सकता है, जिस के पास उस की मां न हो. जिन की मां बचपन में ही उन्हें छोड़ दे, उस पर क्या बीतती है, वह मुझ से बेहतर कौन जानता होगा.

मेरे पापा की मम्मी तो बचपन में ही इस दुनिया से चली गई थीं. उस के बाद मेरी मां भी बचपन में ही मुझे छोड़ कर चली गईं.

लेकिन मेरे बच्चों का नसीब देखो कि उन की मां अभी इस दुनिया में हैं, पर वह अपनी जिंदगी बेहतर और अपनी मरजी से जीने के लिए इन मासूम बच्चों को रोताबिलखता छोड़ कर चली गई, जिस से इन मासूमों का बचपना भी छिना, प्यार भी छिना और उन का भविष्य भी अंधकारमय हो कर रह गया.

दुनिया में कोई कितना भी मुहब्बत का दावा कर ले, लेकिन मां की ममता कोई नहीं दे सकता. वह सिर्फ सगी मां ही दे सकती है, जो बच्चों की एक आह पर तड़प उठती है.

आज से 30 साल पहले मैं ने अपनी मां को खोया था. मां को खोने के बाद मैं कितना तड़पा था, यह मैं ही जानता हूं. मेरी छोटीछोटी तमन्नाएं अधूरी रह गईं. मेरा खेलना, मेरा बचपना सबकुछ खामोशी में तबदील हो कर रह गया.

मां के गुजर जाने के बाद मेरे पापा ने दूसरी शादी नहीं की. उन्हें डर था कि कहीं सौतेली मां बच्चों के साथ फर्क न करे, उन्हें मां की ममता से दूर रखा, उन की पढ़ाई बंद करवा दी और उन्हें बचपन से ही मजदूरों की तरह काम करना पड़ा, वह भी भूखेप्यासे, क्योंकि नई बीवी के आने से दादाजी तो उन के पल्लू से बंध कर रह गए और वह अपने इन नए बच्चे जो मेरे पापा की नई मां से पैदा हुए थे, उन पर ही अपना प्यार लुटाने लगे और अपनी पहली बीवी के बच्चों को भूल गए.

नई मां ने उन का बचपन मजदूर में तबदील कर दिया. उन की पढ़ाई जहां की तहां रुक गई. खेलनेकूदने की उम्र में उन्हें उन की औकात से ज्यादा काम दिया जाने लगा.

यही वजह थी कि मेरे पापा की उम्र उस वक्त महज 40 साल थी, लेकिन फिर भी उन्होंने दूसरी शादी नहीं की, क्योंकि वे अपने बच्चों पर दूसरी मां का साया नहीं डालना चाहते थे.

पापा के इस बलिदान से हम सब भाई पढ़े भी और जिंदगी में कामयाबी भी हासिल की, पर मैं एक ऐसा शख्स था, जो मां की ममता के लिए हमेशा तड़पता रहा. मुझे न पढ़ाई अच्छी लगी और न ही घर में रहना. वैसे, जैसेतैसे मैं ने एमकौम कर लिया था, पर मां के जाने के बाद मैं मां की ममता के लिए एक साल अपनी चाची के पास रहा. वहां मुझे प्यार तो मिला, लेकिन सिर्फ इतना जितना मैं उन के घर का काम करता था. उन के घर का झाडूपोंछा, उन के छोटेछोटे बच्चों को खिलाना ही मेरी जिंदगी का हिस्सा बन कर रह गया था.

खाना उतना मिल जाता था, जिस से मैं जी सकता था. पत्राचार द्वारा ही मैं पढ़ा. उस का खर्च मेरे पापा उठाते रहे और समझाते रहे कि बेटा, अपने घर आ जाओ, लेकिन मां की मुहब्बत की चाह में मैं ने अपनी चाची के घर एक साल निकाल दिया.

इस एक साल में मैं अच्छी तरह समझ चुका था कि मां की ममता सिर्फ सगी मां ही दे सकती है और कोई नहीं. इस एक साल में मैं छोटीबड़ी हर बीमारी, हर जरूरत से खुद ही लड़ा. किसी को मेरी फिक्र नहीं थी. सब अपने सगे बच्चों को ही अहमियत देते हैं, दूसरों की औलाद को तो यतीम होने का ताना देते हैं और यतीम होने के नाते ही खाना देते हैं.

ये शब्द मैं ने कई बार अपनी चाची से सुने. उन्होंने तो बस सिर्फ अपने घर का काम करने और बच्चों की देखभाल के लिए मुझे रखा था. यही वजह थी कि मैं अपना गांव छोड़ कर मुंबई आ गया और सब रिश्तों से दूर हो गया.

यहां आ कर मैं ने एक बेकरी में काम किया. मेहनत बहुत थी, पर मैं ने हिम्मत नहीं हारी. भूख के वक्त या ज्यादा थक जाने के बाद मैं तन्हा बैठ कर रोता था और अपनी मां को याद करता था, लेकिन मेहनत करता रहा. यही वजह थी कि मैं जल्दी ही कामयाबी के रास्ते पर बढ़ता गया और कुछ ही साल में अपनी बेकरी ले ली और मुंबई यूनिवर्सिटी से मास कम्युनिकेशन ऐंड जर्नलिज्म का कोर्स कर लिया. कहानी लिखना मेरा शौक था, जो मैं ने जारी रखा.

कई साल बाद मैं अपने गांव गया और वहां मैं ने भी शादी कर ली. मुझे काफी खूबसूरत बीवी मिली. उस की खूबसूरती की जितनी तारीफ की जाए, कम थी. उस की और मेरी उम्र में 10 साल का फर्क था. उस की खूबसूरती ऐसी थी, मानो जन्नत से कोई हूर उतर कर जमीन पर आ गई हो. उस की बड़ीबड़ी आंखें, गुलाबी गाल, सुर्ख होंठ और काले घने लंबे बाल किसी भी इनसान को अपना दीवाना बनाने के लिए काफी थे.

यही वजह थी कि पहली ही नजर में मैं उस का दीवाना हो गया था और उस का हर हुक्म मानने के लिए हर वक्त तैयार रहता था. इस वजह से शादी के एक महीने बाद ही मैं उसे अपने साथ मुंबई ले आया और शादी के एक साल बाद ही मैं एक बच्ची का बाप बन गया.

हम दोनों एकदूसरे से काफी मुहब्बत करते थे. यही वजह थी कि शादी के हर एक साल बाद वह मां बनती रही और इस तरह मैं 3 बेटी और एक बेटे यानी 4 बच्चों का बाप बन गया.

शादी के 7 साल कैसे गुजर गए, हमें पता ही नहीं चला. मेरी बीवी और मैं अपने बच्चों से बेहद प्यार करते थे, लेकिन मेरी बीवी मुझ से ज्यादा बच्चों से प्यार करती थी. किसी के अंदर इतनी हिम्मत न थी कि कोई उस के बच्चों को तू भी कह सके. वह अपने बच्चों की हर छोटीबड़ी जरूरत का ध्यान रखती थी और अपने बच्चों को अपनी जान से ज्यादा प्यार करती थी.

वक्त गुजरता गया. फिर आखिर वह वक्त भी आ गया, जिस ने हमारी जिंदगी में तूफान ला खड़ा किया था और मेरे बच्चे तिनकों की तरह बिखर गए थे. उन की मां उन्हें तन्हा छोड़ कर चली गई थी. उन का बचपन, उन की पढ़ाई, सब अंधकारमय हो कर रह गया था और वे मां की ममता के लिए तड़पतड़प कर जीने को मजबूर हो गए.

इन बच्चों की इस तड़प के लिए जिम्मेदार कोई और नहीं, बल्कि वह मां थी, जिसे ममता की देवी कहा जाता है. जिस के साए में बच्चे अपनेआप को सुरक्षित महसूस करते हैं. जिस का प्यार पाने के लिए बच्चे बेचैन हो उठते हैं.

वह ‘मां…’ शब्द को शर्मसार कर के बच्चों को तन्हा छोड़ कर अपनी जिंदगी बनाने या यह समझ कि वह अपनी जवानी और खूबसूरती का फायदा उठा कर अकेले जीने के लिए चली गई.

कभीकभी इनसान गलत संगत में पड़ कर अपना घर बरबाद तो कर ही लेता है, लेकिन वह यह नहीं सोचता कि उस की इस गलती का खमियाजा कितने लोगों को भुगतना पड़ेगा, कितने लोगों की जिंदगी तबाह हो कर रह जाएगी.

मेरे और मेरे बच्चे के साथ भी यही हुआ था. हमारी खुशहाल जिंदगी में मेरी बीवी की दोस्त और उस की चचेरी बहन ने ऐसा ग्रहण लगाया कि मेरे बच्चे मां के लिए तरस कर रह गए.

दरअसल, हुआ यह कि मेरी बीवी की चचेरी बहन मुंबई घूमने आई थी और हमारे ही घर पर रुकी थी. मैं उस के बारे में ज्यादा नहीं जानता था और न ही मुझे जानने का वक्त था, क्योंकि मैं अपने कामों में बिजी रहता था.

मेरी बीवी की चचेरी बहन बिंदास, खुले विचारों वाली एक मौडर्न लड़की थी. उस ने कई बौयफ्रैंड बना रखे थे.

30 साल की होने के बावजूद उस ने अभी तक शादी नहीं की थी, क्योंकि वह अपनी मरजी की जिंदगी जीने वाली लड़की थी.

उसे शादी के बंधन में बंध कर अपनी आजादी खत्म नहीं करनी थी. वह जिंदगी के हर लम्हे का मजा लेना चाहती थी. उस का यह कहना था कि जिंदगी बारबार नहीं मिलती, एक बार मिलती है तो क्यों न उस का मजा लिया जाए. अपने हिसाब से जिया जाए, क्यों शादी के बंधन में बंध कर अपनी जिंदगी के मजे खराब कर के बच्चे पैदा किए जाएं और किचन में जा कर अपनी खूबसूरती पति और बच्चों के लिए बरबाद की जाए.

उस की इस मौडर्न जिंदगी ने मेरी बीवी को इतना प्रभावित किया कि वह यह भूल गई कि वह 4 बच्चों की मां है और किसी की बीवी भी है.

वह चचेरी बहन मेरी बीवी के सामने ही अपने बौयफ्रैंड से बातें करती रहती थी और जल्द ही उस ने मुंबई में भी कई बौयफ्रैंड बना लिए थे और उन के साथ होटलों में खाना, घूमना और उन से महंगेमहंगे गिफ्ट लेना और मेरी बीवी को दिखाना, उसे रिझाना और यह कहना कि तुम इतनी खूबसूरत हो कर क्या जिंदगी जी रही हो, कह कर ताने मारना शुरू कर दिया था.

बस, उस चचेरी बहन की बातें सुन कर मेरी बीवी ने पहले तो जिम ज्वाइन किया, उस के बाद उस ने भी जींस और टौप पहनना शुरू कर दिया, लेकिन वह इस पर भी न रुकी और जल्द ही उस ने घर का काम करना बंद कर दिया. वह अपनी चचेरी बहन के साथ देर रात आने लगी. उस का बच्चों से भी लगाव कम होता गया.

यहां तक कि वह डिस्को भी जाने लगी और अब उसे मुझ में भी कोई रुचि न रही. उसे तो अब मौडर्न बनने का भूत सवार हो चुका था. उस के जिम की कई मौडर्न सहेली भी घर पर ही आने लगीं, जो बारबार मेरी बीवी को भी यह तंज कसतीं कि तुम इतनी मौडर्न, इतनी खूबसूरत और तुम्हारा पति तो तुम्हारी पैर की जूती के बराबर भी नहीं.

मैं यह सुन कर चुप रहता, क्योंकि अपनी बीवी के सामने बात करने या कोई शिकायत करने की हिम्मत मैं आज तक न जुटा पाया था.

मैं उसे जितनी इज्जत दे रहा था, उतना ही वह मुझ से नफरत कर रही थी, क्योंकि उस के दिमाग में तो अब आजादी का भूत सवार हो चुका था. मैं इतना समझ गया था कि जब तक इस की चचेरी बहन यहां से नहीं जाएगी और इस का जिम जाना बंद नहीं होगा, तब तक इस का बच्चों पर न ध्यान रहेगा और न ही यह मुझे तवज्जुह देगी.

मैं यही दुआ कर रहा था कि इस की चचेरी बहन अपने घर चली जाए. उसे आए हुए एक महीना हो गया था, जल्द ही मेरी यह दुआ कबूल हो गई और उस ने घर जाने की तैयारी कर ली.

मैं यह सोच रहा था कि अब मेरी बीवी में जरूर कुछ बदलाव आएगा, पर मेरा यह सोचना गलत साबित हुआ. अब वह अपनी नई मौडर्न सहेलियों के साथ ज्यादातर वक्त बाहर गुजारने लगी. उसे न बच्चों की चिंता थी और न ही मेरी. आएदिन कोई न कोई फोटोग्राफर घर पर आने लगा. वह अपनी मौडलिंग की तैयारी में कभी बेहूदा फोटो खिंचवाती, तो कभी उन के साथ बाहर शूट करने चली जाती.

एक दिन अचानक मेरी बीवी घर छोड़ कर चली गई. मैं ने उसे फोन किया, तो उस ने नहीं उठाया. काफी
देर बाद उस का ही फोन आया और उस ने कहा कि मुझे ढूंढ़ने की कोशिश मत करना. अब मैं तुम्हारे साथ नहीं रहना चाहती.

मैं ने रोते हुए उस से कहा कि इन बच्चों का क्या होगा?

उस ने दोटूक जवाब दिया कि बच्चे तुम्हारे हैं, तुम समझ. मैं इन्हें अपने साथ घर से थोड़े ही लाई थी. अगर तुम ने थाने में रिपोर्ट की या किसी से भी मेरे लौट आने की सिफारिश की, तो मैं सब के सामने एक ही जवाब दूंगी कि मुझे तुम्हारे साथ नहीं रहना. इस से पहले कि मैं तुम पर कोई आरोप लगाऊं या तुम्हें नामर्द बोल कर बेइज्जत करूं, तुम खुद समझदार हो. मुझे ऐसा कुछ करने पर मजबूर मत करना. तुम अपनी मरजी की जिंदगी जीओ और मुझे भी अपनी जिंदगी जीने दो. तुम दूसरी शादी कर लो, मुझे कोई एतराज नहीं है. यह मेरी तुम से आखिरी बातचीत है. इस के बाद न मैं भविष्य में कभी तुम से बात करूंगी और न ही तुम्हारी जिंदगी में दखल दूंगी.

एक साल तक उस का इंतजार करने के बाद मैं पुलिस थाने में जा कर रिपोर्ट दर्ज कराने गया कि मेरी बीवी मेरे साथ नहीं रहती. एक साल से मुझे उस की कोई खबर भी नहीं है.

पुलिस ने मेरी बात सुनी और कहा कि तुम उसे ढूंढ़ना चाहते हो या नहीं. मैं ने उन से कहा कि ऐसी हालत में मुझे क्या करना चाहिए?

पुलिस ने कहा कि जब वह तुम्हारे साथ नहीं रहना चाहती तो उसे ढूंढ़ना बेकार है. वह अब नहीं आएगी. तुम अपनी शिकायत दर्ज करा दो कि उस के किसी भी गलत कदम का मैं जिम्मेदार नहीं हूं, क्योंकि वह एक साल से मुझ से अलग है.

मैं ने यह शिकायत लिख कर उस की एक कौपी अपने पास रख ली और मैं अपने बच्चों की परवरिश में लग गया.

मेरे लिए बच्चों की अकेले देखभाल करना बड़ा ही मुश्किल था, क्योंकि कामकाज का भी ध्यान रखना जरूरी था, ताकि बच्चों की अच्छी परवरिश हो सके.

मेरे दोस्तों ने मुझे दूसरी शादी करने की सलाह दी. बीवी के जाने के 2 साल बाद मैं ने एक बेवा से दूसरी शादी कर ली. उस के भी 2 बच्चे थे और मेरे भी 4 बच्चे थे.

इस तरह मेरे बच्चों को नई मां मिल गई. उस ने मेरे बच्चों का अच्छा खयाल रखा, लेकिन मेरे बच्चों को वह मां की मुहब्बत न मिल सकी, जो एक सगी मां से मिलती है. उन की पढ़ाई की जिम्मेदारी, उन के खानेपीने की जिम्मेदारी उन्हें नई मां से तो मिल गई, पर वह मां न मिल सकी, जो और बच्चों को मिलती है. दोष भी किस को दूं, जब सगी मां ने ही उन की परवाह न की तो किसी और से उम्मीद क्या की जाए.

मैं अपने बच्चों को दिल से लगाना चाहता हूं. पर अफसोस, मैं अब ऐसा नहीं कर पाता हूं. मैं उन्हें अच्छे स्कूल में पढ़ाना चाहता हूं, पर अब मेरे लिए यह मुमकिन नहीं. मैं उन्हें अच्छा खिलाना चाहता हूं, पर अफसोस, मैं उन्हें नहीं खिला सकता.

मैं उन बच्चों की जिद पूरी करना चाहता हूं, पर नहीं कर सकता, क्योंकि बाप और बच्चों में कुछ फासले पैदा हो गए, जिन्हें लांघना मेरे बस में नहीं और मेरे बच्चे ऐसे बदनसीब बन कर रह गए, जिन की सगी मां ने ही उन का साथ न दिया तो किसी और से क्या उम्मीद की जाए. कम से कम उन्हें दो वक्त का खाना तो मिल ही जाता था.

वह छोटीमोटी जिद तो अपनी इस नई मां से कर ही लेते हैं. उन की नई मां उन की पसंद का खाना तो बना ही देती है. उन की पढ़ाई का कुछ ध्यान तो रखती ही है. उन की सेहत का कुछ ध्यान तो रखती ही है.

बच्चे तो सहमे हुए हैं ही, क्योंकि उन्हें अपनी सगी मां की याद तो आती ही होगी. कभीकभार बंद कमरे में अपनी मां को याद कर के रोते ही हैं. भले ही वे मना करते हैं कि उन्हें अपनी सगी मां की याद नहीं आती.

पर, मैं बाप हूं, उन की आंखों की लाली और उस से टपकते हुए आंसू से इतना तो मालूम चल ही जाता है कि उन के बेवजह रोने की वजह क्या है? चुपचाप, शांत गुमसुम रहने की वजह क्या है? कभी खाना न खाने की वजह क्या है? होलीदीवाली या फिर ईद के त्योहार पर उन के गुमसुम रहने की वजह क्या है? वह अपनी मां की मुहब्बत को दिल में छिपाए रहते हैं. उन की हंसी कहां गायब हो गई, यह मैं बेहतर जानता हूं. उन का पढ़ाई में मन न लगना मैं अच्छी तरह सम?ाता हूं. यह सब 2 बड़े बच्चों में मिलता है, जो 7 और 8 साल के हैं. जो छोटे 4 और बच्चे हैं, जो 2 साल के हैं, उन्हें अपनी मां की याद नहीं आती और न ही उस की सूरत पहचानते होंगे, इसलिए वे खुश रहते हैं.

आज उन का भविष्य अधर में है, क्योंकि नई मां उन्हें समझ नहीं पाती. उन्हें अच्छी तालीम नहीं दे पाती. वह समझती है कि अगर वह कुछ कहेगी, तो मुझे बुरा लगेगा, इसलिए उस ने उन के खानेपीने, पढ़ाईलिखाई, अच्छाबुरा सब उन के ऊपर छोड़ दिया है. कोई खाए या नहीं, कोई पढ़े या नहीं, उसे सिर्फ मुझ से ताल्लुक है. वह सिर्फ मुझे खुश रखने की कोशिश करती है. पर, उसे क्या मालूम कि मेरी खुशी कहां है, मेरा सुकून कहां है, मेरी जिंदगी का मकसद क्या है. बच्चे ही मेरी जिंदगी हैं. काश, वह बीवी के साथसाथ एक जिम्मेदार मां भी बन जाए.

मुझे आज भी वह वक्त याद है, जब बच्चों की मां गलत संगत में नहीं पड़ी थी. किस तरह बच्चों की पढ़ाईलिखाई, उन के खानेपीने का ध्यान रखती थी. घर में कितनी खुशहाली थी, बच्चे कितने खुश थे, कितने साफसुथरे रहते थे.

मां के जाने के बाद बच्चों की जिंदगी थम सी गई. वे गुमसुम हो कर रह गए. ऐसा लगता जैसे उन का सबकुछ तबाह हो गया हो. वे सिसकसिसक कर जी रहे हैं. असल में तो वे उसी वक्त मर गए थे, जब उन की मां उन्हें बेसहरा छोड़ कर चली गई थी.

मां तो मां ही होती है, पर समझ में नहीं आता कि ऐसी भी मां होती है, जो सिर्फ अपने लिए जीती है.
फिर भी मेरे बच्चों के पास मां तो है, जो उन का खयाल रखती है. मेरे बच्चे तन्हा तो नहीं हैं. कोई तो है उन की फिक्र करने वाला. हर बच्चे को सबकुछ तो नहीं मिलता, फिर भी मेरे बच्चे हजारों से बुरे हैं तो लाखो से बेहतर भी हैं, क्योंकि उन के पास उन की नई मां जो है.

Hindi Story: रैन बसेरा

Hindi Story, लेखक – ए. सिन्हा

महीनों नहीं, सालों गुजर गए थे, उसे इसी तरह इंतजार करते हुए. वह सोचता था कि शायद किसी दिन रंजू मेम साहब का खत आ जाए. लेकिन इंतजार का मीठा फल उसे अभी तक नहीं मिला था. वह अब उसी होटल का मालिक हो गया था, जिस में कभी वह नौकर हुआ करता था.

उन दिनों रंजू अपनी सहेलियों के साथ इम्तिहान देने आई थी. वे सब उसी होटल में नाश्ता करती थीं, जहां वह बैरा था.

जब रंजू पहली बार होटल में आई थी, तो वही और्डर लेने गया था. वह दिन उसे अच्छी तरह याद था. उस के दिलोदिमाग पर उस दिन की सभी बातें जैसे अपनी अनोखी छाप छोड़ गई थीं.

‘‘जी मेम साहब,’’ वह मेज के पास जा कर बोला था.

‘‘4 जगह समोसे और कौफी,’’ सब से खूबसूरत लड़की बोली थी.

वह सामान मेज पर रख कर पास में ही खड़ा हो गया था. फिर तो यह रोज का काम हो गया था.

रंजू के आते ही वह सभी ग्राहकों को छोड़ कर उस की मेज के पास पहुंच जाता था. जाने क्यों, उसे वह बहुत अच्छी लगती थी.

उस के दिल की बात शायद रंजू के साथसाथ उस की सहेलियां भी भांप गई थीं. तभी तो एक दिन एक लड़की ने पूछा था, ‘‘तुम्हारा नाम क्या है?’’

‘‘अनु,’’ …छोटा सा जवाब उस ने दिया था.

‘‘अनु… वाह, क्या बात है. रंजू, तुम्हारे आशिक का नाम तो लाजवाब है. बहुत प्यारा है तुम्हारा आशिक,’’ एक दूसरी लड़की बोली थी.

इस बात पर सभी लड़कियां हंस दी थीं. तब अनु को ऐसा महसूस हुआ, मानो पायलों की झंकार गूंज उठी हो. तभी उस ने देखा कि रंजू भी तिरछी निगाहों से उस की ओर देख रही थी.

उस दिन बिल देने के बाद रंजू ने बाकी बचे पैसे लेने से इनकार कर दिया.

‘‘रख लो अनु… अपनी महबूबा के खत का जवाब कैसे दोगे?’’ एक लड़की बोली थी, तभी दूसरी लड़की ने कहा, ‘‘क्यों रंजू, खत लिखोगी न अपने भोले आशिक को?’’

‘‘हांहां, क्यों नहीं… अपने भोले आशिक को हम कैसे भूल सकते हैं,’’ रंजू ने मुसकराते हुए जवाब दिया था.
इसी मुसकुराहट पर तो वह दीवाना था.

पर उस दिन के बाद रंजू फिर कभी नहीं आई. कई साल गुजर गए, लेकिन उस का कोई खत नहीं आया. अनु सोचता, ‘रंजू मेमसाहब ने कहा था कि वे खत लिखेंगी. फिर अभी तक क्यों नहीं लिखा?’

एक रात वह खुद खत लिखने बैठ गया. पर चंद लाइनें लिखने के बाद ही उस ने वह खत फाड़ डाला. 2-3 बार कोशिश करने के बाद आखिर में वह एक शानदार खत लिखने में कामयाब हो गया. लेकिन तब उसे खयाल आया कि उस के पास तो रंजू मेमसाहब का पता ही नहीं है. तब मायूस हो कर उस ने वह खत भी फाड़ दिया.

अकसर वह डाकिए को देखता तो दौड़ कर उस के पास चला जाता, एक हसरत लिए हुए. एक दिन डाकिए ने उसे देखते ही डांट दिया, ‘‘तुम्हारे आगेपीछे कोई है ही नहीं… तब कौन लिखेगा तुम्हें खत? मेरा दिमाग मत चाटा करो… जाओ यहां से.’’

उस घड़ी वह बहुत मायूस हो गया था. उस का सिर शर्म से झुक गया था. भारी कदमों से वह अपने कमरे की तरफ लौट गया था.

कुछ दूर जाने पर डाकिए के मन में पछतावा हुआ कि उस ने क्यों बेचारे को बेकार में डांट दिया. पता नहीं, किस के खत का उसे इंतजार है? कल उस से पूछेगा. नहीं होगा, तो वह खुद लिख कर उसे दे देगा. कम से कम उस के दिल को ठंडक तो मिलेगी.

उसी रात अनु अपने पलंग पर लेटा था. कमरे का दरवाजा खुला था. बत्ती बुझी हुई थी. कमरा अंधेरे में डूबा हुआ था. इस वक्त भी वह रंजू के खयालों में खोया था. तभी एक साया तेजी से कमरे में दाखिल हुआ और उसी तेजी से पलंग के नीचे छिप गया, तभी और 4 साए कमरे में आए.

अनु ने बत्ती जला दी थी. वे चारों साए अब खतरनाक गुंडों की शक्ल में दिखाई देने लगे.

‘‘ऐ… इधर तू ने कोई लड़की देखी है क्या…?’’

‘‘धीरे बोलो भाई साहब, कोई सुनेगा तो हंसेगा. हम ने सालों से कोई लड़की नहीं देखी है.’’

‘‘ज्यादा होशियारी नहीं मारने का बच्चे… वरना हड्डीपसली एक कर दूंगा,’’ एक गुंडा बोला.

‘‘ऐ… धमकी किसी और को देना, अनु को नहीं… समझा क्या?’’

फिर तो वहां कुरुक्षेत्र का मैदान बन गया. अनु की आवाज सुन कर 7-8 पड़ोसी भी वहां पहुंच गए. सब ने मिल कर उन गुंडों की खूब धुनाई की. वे गालियां बकते हुए भाग गए.

अनु ने अब कमरे का दरवाजा अंदर से बंद किया और पलंग के पास झुक कर बोला, ‘‘आप जो भी हैं, बाहर आ जाइए… वे लोग चले गए हैं.’’

पलंग के नीचे से निकलने वाले साए को देख कर वह चौंका, क्योंकि उस के सामने रंजू मेमसाहब खड़ी थीं.

‘‘रंजू… मेमसाहब, आप?’’

‘‘मुझे छूना मत अनु, मैं किसी के काबिल नहीं रही.’’

‘‘किसी के काबिल रही हो या न रही हो, लेकिन अनु के काबिल तो तुम हमेशा ही रहोगी.’’

‘‘मैं मुजरिम हूं. मैं ने तुम्हारे मासूम प्यार का मजाक उड़ाया है… एक अमीरजादे से ब्याह रचा लिया, जिस का नतीजा यह मिला. मेरे मर्द ने मुझे तबाह कर दिया.’’

‘‘अब आगे कुछ मत कहो रंजू. मेरे लिए तुम अब भी वही चुलबुली रंजू मेमसाहब हो,’’ इतना कह कर अनु ने अपनी बांहें फैला दी थीं. कुछ सोचते हुए उन फैली हुई बांहों में रंजू समा गई.

अगले दिन डाकिया दरवाजे पर अनु को न पा कर बहुत दुखी हुआ. उस ने दरवाजा खटखटाया, तो अनु बाहर आया.

‘‘तुम खत के बारे में पूछते थे न… तुम्हें किस के खत का इंतजार है?’’ डाकिए ने पूछा.

‘‘चाचा, तुम्हारी एक ही फटकार ने मेरी जिंदगी बदल डाली. अब खत की जरूरत ही नहीं है… खत लिखने वाली मेरी महबूबा रंजू मेमसाहब खुद ही चली आई हैं. मेरा उजड़ा हुआ रैन बसेरा बस गया है चाचा.’’

पास ही रंजू खड़ी मन ही मन मुसकरा रही थी.

Hindi Story: अधूरी प्यास

Hindi Story: सुहाग सेज सजी थी. गुलशन दुलहन बनी अपने शौहर का बेसब्री से इंतजार कर रही थी. उसे तमाम रिश्तेदारों ने घेर रखा था. सभी लोग गुलशन की खूबसूरती की तारीफ करते नहीं थक रहे थे, पर गुलशन उन सब की बातों को अनसुना कर अपने शौहर का इंतजार कर रही थी.

रात के 11 बज चुके थे. मेहमानों का आनाजाना अब न के बराबर था. तभी बैडरूम का दरवाजा खुलने की आहट हुई, तो गुलशन ने तिरछी नजरों से देखा कि उस का शौहर शहजाद कमरे के भीतर आ रहा था.

गुलशन ने जल्दी से अपना मुंह पल्लू में छिपा लिया और शहजाद की अगली हरकत जानने के लिए चुपचाप बैठी रही.

तभी शहजाद ने कमरे के भीतर आ कर गुलशन को सलाम करते हुए कहा, ‘‘माफ करना. मेहमानों में घिरा होने की वजह से मुझे देर हो गई.’’

फिर शहजाद ने गुलशन के करीब आ कर उस का घूंघट उठाया और बोला, ‘‘क्या गजब की खूबसूरती पाई है आप ने.’’

शहजाद से अपनी तारीफ सुन कर गुलशन शरमा गई और अपनी हथेली से अपने मुंह को छिपाने लगी.

शहजाद ने फौरन गुलशन को अपनी बांहों में भरा और उस के रसभरे होंठों को चूमने लगा. साथ ही, वह गुलशन के कपड़ों को भी उस के तन से अलग करने लगा.

गुलशन का सफेद संगमरमर की तरह चमकता हुआ बदन देख कर शहजाद के तो मानो होश ही उड़ गए. वह अभी गुलशन के आगोश में गया ही था कि अचानक एक तरफ को लुढ़क गया. उस की सांसें तेज चलने लगीं.

शहजाद हांफते हुए बोला, ‘‘मैं आज बहुत ज्यादा थक गया हूं. मुझे नींद आ रही है. शादी में काम भी बहुत होता है.’’

गुलशन तड़प कर रह गई. उस की जिस्मानी प्यास अधूरी रह गई. उस ने तो अपनी सुहागरात को ले कर न जाने क्याक्या सपने देखे थे, जो पलभर में ही टूट कर रह गए. वह चुपचाप सो गई.

अगले दिन शहजाद बोला, ‘‘जानू, मुझे माफ करना. कल ज्यादा थकावट की वजह से मैं तुम्हें वह सुख नहीं दे पाया, जो एक औरत को अपने शौहर से उम्मीद रहती है, पर आज रात मैं तुम्हारी हर शिकायत दूर कर दूंगा.’’

यह सुन कर गुलशन के चेहरे पर उम्मीद की कुछ किरण नजर आई और वह मुसकरा कर वहां से अंदर चली गई.

रात हो चुकी थी. गुलशन बड़ी बेसब्री से शहजाद के आने का इंतजार कर रही थी. कुछ देर के इंतजार के
बाद शहजाद कमरे में आया और आते ही गुलशन को अपनी बांहों में भर कर चूमने लगा.

शहजाद की इस हरकत से गुलशन भी उसे अपने ऊपर खींचने लगी, पर जल्द ही वह पस्त हो कर एक तरफ लुढ़क गया.

अब गुलशन को यकीन हो गया कि अच्छी कदकाठी का गबरू जवान होने के बाद भी शहजाद बिस्तर के मामले में नाकाम है.

गुलशन को समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे, किस से अपना दुखड़ा रोए.

शादी को 3 महीने गुजर चुके थे. एक दिन शहजाद के चाचा का लड़का इमरान किसी काम से गांव से शहर आया. वह शहजाद के घर पर ही रुका.

एक दिन गुलशन भाभी को खामोश देख इमरान बोला, ‘‘क्या बात है भाभी, आप बहुत उदास रहती हो. न किसी से बात करती हो, न हंसती हो.’’

गुलशन बोली, ‘‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है. बस, तबीयत थोड़ी खराब है. सिर में दर्द है.’’

इमरान बोला, ‘‘तो इस में घबराने की क्या बात है. मैं आप के सिर की मालिश कर देता हूं.’’

गुलशन ने कहा, ‘‘नहीं, रहने दो. तुम्हारे भाई देखेंगे तो शायद उन्हें बुरा लग जाए.’’

‘‘अरे भाभी, शहजाद भाई बाहर गए हैं और शाम तक वापस आएंगे. क्या तब तक यों ही बेचैन रहोगी?’’ कहते हुए इमरान ने गुलशन को बिस्तर पर बैठाया और सरसों का तेल हलका गरम कर के लाते हुए बोला, ‘‘भाभी, आज आप के सिर की ऐसी मालिश करूंगा कि कभी दर्द नहीं होगा.’’

इमरान गुलशन के सिर पर मालिश करने लगा, तो वह छुअन पा कर सिहर उठी.

इमरान गुलशन के बालों में उंगलियां फेरते हुए बोला, ‘‘कैसा लग रहा है भाभी?’’

गुलशन बोली, ‘‘अच्छा लग रहा है. तुम्हारे हाथों में तो वाकई कमाल का जादू है.’’

गुलशन के सिर की मालिश करतेकरते इमरान उस के माथे और गरदन पर भी अपने हाथ फेरने लगा. फिर अपने हाथ को आगे बढ़ाते हुए उस ने गुलशन के उभारों को छुआ, तो गुलशन एक लंबी सांस लेते हुए बोली, ‘‘क्या कर रहे हो? मुझे कुछकुछ हो रहा है. बस करो.’’

इतना कह कर गुलशन कमरे में जाने लगी और बोली, ‘‘अब तुम रहने दो. मेरा दर्द ठीक है.’’

शाम के वक्त शहजाद घर आ गया. गुलशन, शहजाद और इमरान ने बैठ कर एकसाथ खाना खाया.

गुलशन आज इमरान से नजरें नहीं मिला पा रही थी. उसे यह सोचसोच कर अपनेआप पर गुस्सा भी आ रहा था कि आखिर अपनी अधूरी प्यास को पूरा करने के लिए उस ने इमरान को अपने जिस्म को क्यों छूने दिया.

शहजाद ने पूछा, ‘‘कैसा रहा भाई आज का दिन और कैसा लगा शहर?’’

इमरान ने कहा, ‘‘भाई, अच्छा दिन गुजरा, पर शहर तो अभी मैं घूमा ही नहीं. अकेला कहां जाता घूमने… मुझे कुछ मालूम नहीं.’’

शहजाद ने कहा, ‘‘देख भाई, मुझे तो वक्त नहीं मिलता और अगर तू चाहे तो अपनी भाभी के साथ घूमने चले जाना.’’

इमरान बोला, ‘‘यह ठीक रहेगा, पर क्या भाभी मुझे शहर घुमाएंगी?’’

‘‘अरे, कैसी बात कर रहा है. यह भी घर में पड़ीपड़ी बोर हो जाती है. इसे तो बहुत शौक है घूमने का, पर मुझे वक्त हीं नहीं मिलता.’’

इमरान ने कहा, ‘‘ठीक है भाई. तुम भाभी से बोल देना कि वे तुम्हें शहर दिखा लाए.’’

यह सुन कर गुलशन बोली, ‘‘नहीं, मैं कहीं नहीं जा रही हूं घूमनेफिरने. मुझे बस घर में ही रहने दो’’

शहजाद बोला, ‘‘मेरा भाई गांव से आया है. इसे कम से कम शहर की चकाचौंध तो दिखा दो.’’

गुलशन बोली, ‘‘ठीक है. जब आप बोल रहे हैं, तो कल मैं इमरान को कहीं घुमा लाती हूं.’’

अगले दिन गुलशन और इमरान जुहूचौपाटी पर घूमने चले गए. वहां का नजारा देख कर गुलशन शरमा उठी.

तभी इमरान ने कहा, ‘‘भाभी, यहां की औरतें तो बहुत एडवांस हैं. देखो, कैसेकैसे कपड़े पहन रखे हैं. मर्द और औरतें एकदूसरे की बांहों में बांहें डाल कर कैसे समंदर के किनारे लेटे हुए हैं.’’

गुलशन बोली, ‘‘देवरजी, यहां से और कहीं दूसरी जगह चलते हैं.’’

इमरान बोला, ‘‘भाभी, यहां कितना अच्छा लग रहा है. अभी यहीं बैठते हैं हम भी. सुना है कि मुंबई का नारियल पानी बहुत अच्छा है. वही पीते हैं,’’ कहते हुए इमरान 2 नारियल पानी ले आया. वे दोनों एक चटाई पर बैठ कर नारियल पानी पीने लगे.

तभी इमरान ने कहा, ‘‘भाभी वह देखो, दोनों कैसे एकदूसरे की बांहों में बांहें डाल कर जिंदगी के मजे ले रहे हैं.’’

गुलशन बोली, ‘‘ओह, कैसे लोग हैं, इन्हें तो बिलकुल भी शर्मोहया नहीं है.’’

इमरान ने गुलशन के हाथ पर हाथ रखा, तो गुलशन ने झट से अपना हाथ हटा लिया और बोली, ‘‘बस, चलो अब यहां से.’’

इमरान बोला, ‘‘भाभी, यहां कहीं बांद्रा बैंडस्टैंड भी तो है, मुझे वह भी दिखा दो. गांव में बहुतकुछ सुना है उस के बारे में.’’

गुलशन ने कहा, ‘‘नहीं, वह अच्छी जगह नहीं है.’’

इमरान ने पूछा, ‘‘क्यों भाभी, ऐसा क्या है वहां?’’

‘‘कुछ नहीं.’’

इमरान बोला, ‘‘तो ठीक है, वह बुरी जगह ही दिखा दो,’’ कहते हुए इमरान ने एक टैक्सी को रोका और बांद्रा बैंडस्टैंड के लिए रवाना हो गए.

बैंडस्टैंड का नजारा देख कर गुलशन और इमरान के बदन में जोश अपने पैर पसारने लगा, क्योंकि वहां बहुत से प्रेमीप्रेमिका एकदूसरे के होंठों का रसपान करते नजर आ रहे थे.

गुलशन शर्म से पानीपानी होने लगी, तभी इमरान बोला, ‘‘भाभी, आओ उस पत्थर पर बैठ कर यहां का नजारा देखते हैं,’’ और उस ने गुलशन की कमर में हाथ डाल कर उसे अपनी बांहों में भरते हुए एक पत्थर के पास ले गया.

गुलशन का प्यासा बदन तड़पने लगा और उस ने अपनेआप को इमरान से छुड़ाने की हलकी सी नाकाम कोशिश भी की, पर इमरान ने फौरन अपने गरम होंठ गुलशन के होंठों पर रख दिए और उन का रसपान करने लगा.

इमरान की इस हरकत से गुलशन का बदन अपनी प्यास बु?ाने के लिए छटपटाने लगा, पर वह समाज के डर और अपने शौहर की इज्जत की वजह से ?ाट इमरान से अलग होती हुई बोली, ‘‘अब हमें घर चलना चाहिए…’’ और वहां से उठते हुए वह टैक्सी की तरफ बढ़ने लगी और इमरान को ले कर वापस घर आ गई.

घर पहुंचते ही गुलशन अपने कमरे में चली गई. शाम का वक्त हुआ, तो शहजाद अपने काम से वापस आया और खाना खाने के बाद गुलशन से बोला, ‘‘कैसा रहा आज का घूमना?’’

गुलशन ने कहा, ‘‘अच्छा था.’’

शहजाद ने पूछा, ‘‘इमरान को अच्छी तरह घुमाया या यों ही वापस लौट आई हो?’’

गुलशन बोली, ‘‘अच्छी तरह घूमने के बाद ही हम लोग वापस आए हैं.’’

‘‘चलो अच्छा है, वरना मुझे यही डर सता रहा था कि वह पहली बार गांव से शहर आया है और मुझे उसे घुमाने का वक्त भी नहीं मिल पा रहा है…

‘‘कहीं चाची को पता चलता कि इमरान बस घर की चारदीवारी में ही रह कर लौट आया है, तो उन की नजरों में मेरी इज्जत गिर जाती,’’ कहते हुए शहजाद ने गुलशन को अपनी बांहों में भरा और प्यार करते हुए बोला, ‘‘तुम कितनी अच्छी हो, सब का कितना खयाल रखती हो.’’

गुलशन ने भी शहजाद को अपनी बांहों में जकड़ लिया और कामुक होती हुई बोली, ‘‘मेरा काम है तुम्हारा अच्छी तरह खयाल रखना.’’

शहजाद ने गुलशन को बिस्तर पर लिटा दिया और उस के होंठों को चूमता हुआ उसे प्यार करने लगा.

अभी गुलशन जोश में आ ही पाई थी कि शहजाद निढाल हो कर एक तरफ लुढ़क गया और बोला, ‘‘तुम भी सो जाओ, मुझे नींद आ रही है.’’

गुलशन का बदन तड़पने लगा. उस की प्यास अधूरी रह गई. उस की हवस भड़की हुई थी, पर शहजाद तो खर्राटे ले कर सो चुका था.

शहजाद को सोता देख गुलशन कमरे से निकली और वाशरूम की ओर जाने लगी. अभी वह कुछ ही दूर चली थी कि उस की नजर पास वाले कमरे में लेटे इमरान पर पड़ी, जो करवट बदल रहा था.

गुलशन हवस की आग में जल रही थी. आज उसे न तो शहजाद की और न ही समाज की कोई परवाह थी.

वह तो अपनी अधूरी प्यास बुझाना चाहती थी, पर समाज और दुनिया की खातिर उस ने अपनेआप को रोक रखा था, लेकिन आज उस की प्यास बुझाने वाला खुद उस के घर में मौजूद था, इसलिए गुलशन यह मौका गंवाना नहीं चाहती थी.

इमरान खुद पहल कर के गुलशन को न्योता दे रहा था, तो गुलशन ने भी आज उस का न्योता स्वीकार करने का मन बना लिया और कमरे में पहुंच कर इमरान के पास लेट गई और उस के बदन को सहलाने लगी.

फिर क्या था. इमरान ने झट गुलशन के उभारों को भींच दिया. गुलशन कामुक हो उठी. वह इमरान को अपने ऊपर खींचने लगी.

हकीकत में आज गुलशन को सुहागरात का असली मजा मिला और वह सुख भी मिला, जिस के लिए वह बरसों से तड़प रही थी. कुछ देर बाद उन दोनों के जिस्म एकदूसरे से अलग हुए.

गुलशन उठी और बोली, ‘‘तुम ने तो आज मुझे जन्नत की सैर करा दी,’’ कहते हुए उस ने इमरान के गाल पर एक प्यार भरा चुम्मा रसीद कर दिया और अपने कमरे मे वापस आ कर सो गई.

एक बार यह जिस्मानी रिश्ता बना, तो फिर जब तक इमरान वहां रहा, बनता ही गया. फिर एक दिन वह वक्त भी आ गया, जब इमरान को वहां से वापस अपने गांव आना पड़ा.

इमरान के जाने से गुलशन बहुत दुखी थी, पर उसे यह खुशी भी थी कि उस की अधूरी प्यास पूरी हो गई थी.

गुलशन ने अपनी अधूरी प्यास भले ही गलत तरीके से बुझाई थी, पर उसे इस पर कोई अफसोस नहीं था, क्योंकि वह अब पेट से हो गई थी. उस के पेट में इमरान का बच्चा पल रहा था, जिसे शहजाद अपना बच्चा समझ रहा था और गुलशन व उस के होने वाले बच्चे का बहुत खयाल रख रहा था.

शहजाद ने गुलशन का शुक्रिया भी अदा किया और बोला, ‘‘आखिर, तुम ने मुझे बाप बनने का मौका दे ही दिया. मैं बहुत खुश हूं.’’

Hindi Story: मेरी छतरी के नीचे आ जा

Hindi Story, लेखक – अशोक कुमार ‘सुमन’

बरसात का मौसम था. लेकिन आसमान में बादलों का कहीं नामोनिशान नहीं था, इसलिए मैं ने छाता लेना जरूरी नहीं समझा.

मुझे शाम को घूमने की आदत है. हमारी कालोनी से कुछ दूरी पर हराभरा मैदान है, जहां पर बच्चे खेलते हैं. मैदान से कुछ दूर हट कर एक पार्क है.

मैं ने घड़ी पर नजर डाली. शाम के 5 बजे थे. मैं घूमने निकल पड़ा. ज्यों ही मैं मैदान के पास पहुंचा, तभी आसमान में कालेकाले बादल मंडराने लगे. फिर ठंडी हवा बहने लगी. हलकी बूंदाबांदी होनी शुरू हो गई.

मैं ने इधरउधर देखा, कहीं छिपने की जगह नहीं थी. मैं तेजी से अपने घर की ओर दौड़ने लगा.

तभी कानों में रस घोलती एक मीठी सी आवाज सुनाई पड़ी, ‘‘ऐ मिस्टर…’’

मेरे पैर थम गए. पीछे मुड़ कर देखा, एक खूबसूरत जवान लड़की छाता लिए बुला रही थी. मैं कुछ देर तक उसे देखता रहा. वह बला की खूबसूरत थी.

उस के नजदीक आते ही इत्र की दिलकश खुशबू नाक में समाती चली गई. वह अपनी आवाज में शहद घोलते हुए बोली, ‘‘आप अपने घर पहुंचतेपहुंचते भीग जाएंगे. प्लीज, मेरे छाते के नीचे आ जाइए.’’

मेरे दिमाग में फिल्म ‘तहलका’ का गाना कौंध गया, ‘मेरी छतरी के नीचे आ जा, क्यों भीगे रे…’

अंधे को चाहिए दो आंखें. मैं उस के छाते के नीचे चला गया. बारिश भी तेज हो गई थी. मैं उस से कुछ हट कर चल रहा था. छाते से टपक रहा पानी मेरे कपड़ों को भिगो रहा था.

वह मेरे हाथ को तकरीबन खींचते हुए बोली, ‘‘नजदीक चले आइए, भीग क्यों रहे हैं? क्या पहली बार आप किसी लड़की के साथ चल रहे हैं?’’ कहते हुए वह मेरे जिस्म से सट गई.

उस के जिस्म की छुअन से मैं सिहर उठा. सांसों में संगीत घुल गया. दिल में घंटियां बजनी शुरू हो गईं.

‘‘क्या लड़कियों से आप बोलते नहीं हैं?’’ उस ने बेतकल्लुफी से मेरे हाथ को दबा कर कहा.

मैं भी चहका, ‘‘बोलता क्यों नहीं… लेकिन, कौए की तरह ‘कांवकांव’ करने के बजाय एक बार कोयल की तरह कूक लेना ही बेहतर समझता हूं.’’

मेरी बात का बुरा न मान कर वह मुसकराते हुए बोली, ‘‘शायद, आप का इशारा मेरी तरफ है?

‘‘नहींनहीं, आप बुरा न मानें. कहने का मतलब, इनसान को जरूरी हो, तभी बोलना चाहिए. आप की आवाज तो शहद की तरह मीठी है. सुनने वाले बागबाग हो जाते हैं,’’ मैं ने हौले से उस से कहा.

‘‘आप मेरी तारीफ कर रहे हैं या फिर मक्खन लगा रहे हैं?’’ कहते हुए अचानक दिलकश हंसी गूंजी.

मैं भी पूरी तरह खुल चुका था. मैं ने हंसते हुए कहा, ‘‘नहीं, आप डबलरोटी हैं क्या, जो मक्खन लगाऊंगा?’’

वह ठहाका लगा कर हंसी. फिर खास अंदाज के साथ वह बोली, ‘‘तारीफ के लिए शुक्रिया. मुझे माधुरी कहते हैं.’’

‘‘क्या मधुर नाम है. नाम माधुरी, चेहरा भी माधुरी, आवाज भी माधुरी. हाय, मैं कहां आ गया हूं? चारों ओर मीठा ही मीठा नजर आ रहा है,’’ मैं ने फिल्मी स्टाइल में कहा.

‘‘वाह, आप तो बहुत ही दिलचस्प आदमी हैं,’’ वह चहकी.

‘‘पहली बार मैं ने यह जाना है.’’

‘‘क्या मुझे आप अपना नाम नहीं बताएंगे?’’ उस ने पूछा.

‘‘बंदे को अविनाश कहते हैं,’’ मैं ने चहकते हुए कहा.

‘‘अच्छा नाम है अविनाशजी, क्या आप छाता कुछ देर तक पकड़ सकते हैं? मेरे हाथ थक गए हैं,’’ वह मेरे चेहरे की ओर देखते हुए बोली.

मैं ने उस का छाता पकड़ लिया. वह मेरा हाथ पकड़ कर इस तरह चलने लगी, जैसे सालों से जानपहचान हो. मैं ने बुरा न माना. भला, मैं एक खूबसूरत लड़की का हाथ कैसे झटक सकता था और वह भी इस खुशगवार मौसम में.

अचानक वह बोली, ‘‘कहीं आप को बुरा तो नहीं लग रहा है…?’’

‘‘नहींनहीं, इस में बुरा मानने की क्या बात है? अगर आप मुझे अपने छाते में जगह न देतीं, तो मैं पूरी तरह भीग जाता. इस के लिए मैं आप का बहुत ज्यादा शुक्रगुजार हूं.’’

‘‘छोडि़ए इन बातों को… आप ने कभी किसी लड़की से मुहब्बत की है या नहीं?’’ उस ने धमाका सा किया.

इस सवाल पर मैं चौंक गया, तभी मेरे होंठों पर मुसकान थिरक गई. मैं ने शायराना अंदाज में कहा, ‘‘हाय, जब मुहब्बत का नाम सुनता हूं, कितना मलाल होता है…’’ फिर मैं ने भी धमाका किया, ‘‘क्या मैं आप के प्यार के काबिल नहीं हूं?’’

वह इठलाते हुए बोली, ‘‘मुझ में ऐसी क्या खूबी है, जो दो पलों में आप को मुझ से प्यार हो गया है?’’

मैं ने फिर शायराना अंदाज में यह शेर पढ़ा, ‘‘आप के इश्क में न तनहा, न दीवाना बने. जो देखे आप की सूरत, वह परवाना बने.’’

यह सुनते ही वह खिलखिला कर हंस पड़ी. फिर बोली, ‘‘बात करना तो कोई आप से सीखे.’’

‘‘आप की अदाओं ने ही मुझे बोलना सिखाया है.’’

अचानक वह फिसल पड़ी. अगर मैं उसे थाम न लेता, तो वह गिर पड़ती. वह मेरे जिस्म से लिपट गई. मेरा बदन फिर एकबारगी कांप गया. इत्र की तेज महक तनमन में आग लगा रही थी.

मुझे हैरत हो रही थी कि चंद पलों की पहचान में यह लड़की इतनी खुल क्यों रही है? लेकिन वह तुरंत मुझ से अलग हो गई और हसीन अदा के साथ बोली, ‘‘अगर आप मुझे थाम न लेते, तो इस गंदे पानी में कपड़ों के साथसाथ मेरा चेहरा भी खराब हो जाता.’’

मैं ने चुटकी ली, ‘‘अगर चांद पर दाग पड़ जाए, तो भी उस की खूबसूरती कम नहीं होती.’’

मेरे इस जुमले पर वह केवल मुसकरा कर रह गई. अब हलकी बूंदाबांदी हो रही थी. लेकिन ठंडी हवा का असर अब भी था. हम लोग बाजार के नजदीक पहुंच चुके थे.

‘‘आइए, किसी होटल में चलते हैं. ठंड लग रही है. चाय से गरमी आ जाएगी,’’ वह लटों से खेलती हुई बोली.

हम दोनों एक होटल में जा कर बैठ गए. उस वक्त वहां सिर्फ 3-4 अजनबी लोग ही बैठे थे. मैं ने चैन की सांस ली. फिर आमलेट और चाय का और्डर दिया.

आमलेट खाने के बाद चाय लेते हुए वह बोली, ‘‘कल आप कब मिलेंगे?’’

मैं ने तुरंत ही कहा, ‘‘यहीं, इसी होटल में शाम के समय…’’

वह मेरे मुंह से बात छीनते हुए बोली, ‘‘जब पानी बरस रहा हो और मैं छाता लिए खड़ी हूं,’’ कह कर वह खिलखिला कर हंस पड़ी.

मैं ने भी हंसी में उस का साथ दिया. फिर पूछा, ‘‘आप रहती कहां हैं माधुरीजी?’’

वह मुसकराते हुए बोली, ‘‘रहने को घर नहीं है, सारा जहां हमारा.’’

वह मेरे सवाल को टाल गई. मैं ने भी कुरेदा नहीं.

वह अपनी नशीली आंखें मेरी आंखों में डाल कर बोली, ‘‘आप मुझे भूल तो नहीं जाएंगे न…?’’

मैं ने फिर एक बार शायराना अंदाज में कहा, ‘‘न कभी भूलूंगा आप को जिंदगी की छांव में. बसाए रखूंगा सदा यादों के गांव में. दो पल की मुलाकात रंग लाएगी एक दिन, हंसतीमुसकराती प्यार की छांव में.’’

वह खुश हो कर बोली, ‘‘आप से यही उम्मीद थी.’’

‘‘आप मुझे भले ही भूल जाएं, पर मैं इस मुलाकात को यादों के अलबम में हमेशा सजाए रखूंगा,’’ मैं तनिक भावुक हो कर बोला.

‘‘नहींनहीं, आप ऐसा क्यों बोलते हैं. मैं भी इस दिलकश मुलाकात को हमेशा याद रखूंगी,’’ वह भी उदास लहजे में बोली.

अब बारिश थम चुकी थी. मैं ने घड़ी पर नजर डाली, 6 बज चुके थे. मैं ने होटल का बिल चुकाने के लिए जेब में हाथ डाला, लेकिन बटुआ नदारद था.

मैं ने हड़बड़ा कर सभी जेबों में हाथ डाला, पर बटुए का कहीं पता नहीं था. मेरे तो होश ही उड़ गए.

वह आराम से बोली, ‘‘क्या पैसे नहीं हैं? मैं दे देती हूं.’’

मैं ने रोनी सूरत बना कर कहा, ‘‘नहींनहीं, बटुआ तो मैं लाया था. शायद, दौड़ते वक्त गिर गया हो.’’

वह दोबारा बोली, ‘‘छोडि़ए, मैं दे देती हूं. मैं किस दिन काम आऊंगी?’’

इतना कह कर उस ने पैसे दे दिए. मैं ने दिल ही दिल में उस की तारीफ की और महसूस किया कि सूरत के साथ उस की सीरत भी लाजवाब है.

होटल से दोनों बाहर आ गए. उस ने कल मिलने का वादा करते हुए अपना गोरा हाथ आगे बढ़ाया. मैं ने भी अपना हाथ आगे बढ़ा कर ज्यों ही उस के हाथ से मिलाया, उस ने हलके से मेरे हाथ को दबाते हुए कहा, ‘‘आप भी मुझे खूब याद करेंगे कि एक अजनबी लड़की से मुलाकात हुई थी,’’ और एक दिलकश अदा के साथ दाईं आंख दबा कर वह मुसकराते हुए चलती बनी.

मैं उसे जाते हुए ठगा सा देखता रह गया.

इत्र की दिलकश खुशबू दूर होती चली गई, पर उस मुलाकात की कसक दिल में कैद थी.

मैं एक पान की दुकान पर जा कर पान लगवाने लगा. दुकान में लगे लंबेचौड़े आईने में मेरी माशूका की ही तसवीर दिख रही थी. उस ने 15-20 कदम आगे जा कर जेब से जो बटुआ निकाला, तो मैं हैरत से भर गया. वह बटुआ मेरा ही था.

दिल पर हथौड़ा सा बजा. सारी उम्मीदें बालू के घरौंदे की तरह हवा में एक झोंके से भरभरा कर गिर गईं.

अब मेरी समझ में आया कि वह किसलिए मुझ से लिपटी थी. मासूम और सुंदर चेहरे भी इनसान को किस तरह से छलते हैं, पहली बार मालूम हुआ.

वह मेरी जेब से 1,000 रुपए साफ कर चुकी थी. उस की इस हरकत से मेरे दिल में ठेस सी लगी. पर इतनी हिम्मत नहीं हुई कि उस से पूछूं कि उस ने ऐसा क्यों किया?

चलतेचलते वह मेरी जेब साफ कर लेती तो मुझे इतना दुख न होता. लेकिन उस ने मीठीमीठी बातों में उलझा कर प्यार का एहसास जगा कर जेब साफ कर ली. इसी बात से मुझे काफी दुख हो रहा था.

बादल बिलकुल साफ हो चुके थे, जैसे मेरे जेब से बटुआ साफ हो गया था. उस ने बटुए से रुपए निकाल कर नाजुक उंगलियों से गिन कर उन्हें होंठों से लगा लिया. फिर बटुए को इस तरह नाली की ओर उछाल दिया, जैसे दिल और दिमाग से मुझे ही निकाल कर फेंक दिया हो.

मैं सड़क पर कुछ देर तक यों ही खड़ा रहा. होश तब आया, जब एक कार के पहिए गड्ढे में पड़ने से गंदा पानी मेरे चेहरे और कपड़ों पर पड़ा.

वहां मौजूद सभी लोग मेरी हालत देख कर हंसने लगे. मैं ने वहां से खिसकने में ही भलाई समझी.

तभी पनवाड़ी ने मुसकरा कर कहा, ‘‘भाई साहब, पान तो लेते जाइए.’’

लेकिन ऐसी हालत में मैं पान कैसे खाता, खिसिया कर एक सिक्का उस की तरफ उछाल दिया. मैं खिसकने को हुआ, तो पनवाड़ी ने मजा लेते हुए कहा, ‘‘वाह, आप कितने खूबसूरत लग रहे हैं. बस एक कमी है तो पान की, आप को देख कर तो कोई हसीना लट्टू की तरह नाचने लगेगी.’’

तभी दूसरी आवाज आई, ‘‘वाह, क्या पोज है, भागिएगा नहीं. भाई साहब, कैमरामैन को अभी बुलाता हूं,’’ यह बात सुन कर वहां मौजूद सभी आदमी ‘होहो’ कर के हंसने लगे.

जब मैं ने अपना चेहरा पनवाड़ी की दुकान में लगे आईने की तरफ उठाया, तो कीचड़ से भरे चेहरे को देख कर बुरी तरह झेंप गया.

मैं ने वहां और ज्यादा देर तक ठहरना मुनासिब नहीं समझा. वहां से इस तरह भागा कि जैसे लोगों का ठहाका काला नाग बन कर मेरा पीछा कर रहा हो.

जब मैं अपनी कालोनी में पहुंचा, तो वहां भी भरपूर ठहाका लगा. तब मैं और भी तेज रफ्तार से दौड़ा और गुसलखाने में जा कर ही दम लिया.

मुहब्बत का सारा नशा काफूर हो चुका था. मैं ने तय किया कि फिर कभी मैं इश्क और हुस्न के चक्कर में नहीं पड़ूंगा.

Love Story: फेसबुक का प्यार

Love Story, लेखक – शकील प्रेम

मेरी जेठानी गुलशन बहुत ही खूबसूरत थीं. 2 बच्चों की मां होने के बावजूद भी उन का रंगरूप ऐसा था कि कोई भी फिदा हो जाए. मैं ही क्या, रिश्तेदारी की ज्यादातर बहुएं उन से जलती थीं.

मेरे शौहर जुनैद और उन के बड़े भाई जावेद एक ही घर में रहते थे, लेकिन घर का बंटवारा हो चुका था. एक ही मकान के 2 हिस्से हो गए थे. एक तरफ मेरे जेठ रहते थे, तो वहीं दूसरी तरफ हम लोग. खाना अलगअलग बनता था, लेकिन बाकी चीजों में दोनों भाइयों की सांझा भागीदारी थी.

दोनों भाई अच्छी नौकरी में थे. बड़े भाई यानी मेरे जेठ जावेद अली मांबाप का खर्च उठाते थे, तो मेरे शौहर जुनैद पर मेरी ननद आएशा की पढ़ाई और उस की शादी की जिम्मेदारी थी. मेरी जेठानी गुलशन के दोनों बच्चे महंगे स्कूल में पढ़ते थे.

मेरी शादी को 5 साल हुए थे, लेकिन मेरे अभी कोई बच्चा नहीं हुआ था. इस के लिए मेरा इलाज चल रहा था. मैं ने पोस्ट ग्रेजुएशन की हुई थी. साथ ही, ब्यूटीशियन का एक साल का डिप्लोमा भी किया हुआ था.

मेरे शौहर जुनैद एक प्राइवेट बैंक में कैशियर की पोस्ट पर थे. शादी के बाद 6 महीने तक तो मैं ने कुछ नहीं किया, लेकिन जल्द ही मुझे एहसास हुआ कि घर में खाली पड़े रहना ठीक नहीं.

एक दिन मैं ने अपने शौहर जुनैद से कहा, ‘‘आप ड्यूटी पर चले जाते हैं, तो मैं दिनभर घर में रह कर बोर हो जाती हूं. हमारा जो बाहर वाला कमरा है, जिस में पहले आप के मम्मीपापा रहते थे. वे दोनों तो अब बड़े भैया के घर रहने चले गए हैं. कमरा बिलकुल खाली पड़ा है. वह कमरा बाहर सड़क से लगता है. मैं उस कमरे को दुकान के रूप में बदलने की सोच रही हूं, ताकि अपना ब्यूटीपार्लर खोल सकूं.’’

मेरे शौहर को भी मेरा यह आइडिया काफी पसंद आया और अगले ही दिन उन्होंने कमरे को दुकान में बदलने के लिए मजदूरों को काम पर लगा दिया.

2 हफ्तों के भीतर ही मेरी नई दुकान तैयार हो चुकी थी. मैं ने अपने शौहर से एक लाख रुपए लिए और दुकान में ब्यूटी का सारा सामान रख लिया.

कुछ ही समय में मेरी दुकान चलने लगी. अब पूरे दिन मैं अपनी दुकान संभालती और मेरी ननद आएशा भी मेरे साथ मेरा हाथ बंटाती.

मेरी जेठानी गुलशन को बननेसंवरने का खूब शौक था. मेरे ब्यूटीपार्लर से उन्हें बड़ा फायदा हुआ था. वे रोज ही दुकान पर आतीं और आएशा से अपना मेकअप करवा कर चली जातीं.

वैसे, मेरी जेठानी मुझ से ज्यादा खूबसूरत थीं, लेकिन मुझ से कम पढ़ीलिखी थीं. मैं अपनी जेठानी जितनी खूबसूरत तो नहीं थी, लेकिन मुझे इस बात की खुशी थी कि मैं अपनी जेठानी से ज्यादा पढ़ीलिखी थी.

मेरी जेठानी गुलशन की शादी को 10 साल बीत चुके थे. वे सब से यही कहती थीं कि जब वे 16 साल की थीं, तब उन की शादी हुई थी. इस हिसाब से मेरी जेठानी अभी केवल 26 साल की थीं. कई लोग तो उन की इस बात के झांसे में भी आ चुके थे, लेकिन मैं जानती थी कि मेरी जेठानी अपनी जिंदगी के कम से कम 10 साल छिपा रही हैं.

मेरी जेठानी गुलशन कुछ दिनों से फेसबुक पर बड़ी ऐक्टिव नजर आ रही थीं. उन का अकाउंट खंगाला तो मालूम हुआ कि वे गुलफाम के नाम से फेसबुक पर अभी हाल ही में ऐक्टिव हुई हैं.

मुझे शरारत करने की सूझी. अनवर के नाम से मैं ने अपनी एक फेक आईडी बनाई और जेठानी के फोटो पर लाइक और कमैंट करने लगी. इस तरह 2 महीने बीत गए.

जेठानी की फालतू शायरी को पसंद करने वाले लोगों में उन के मायके वालों के अलावा बस एक अनवर ही था और यह अनवर कोई और नहीं, बल्कि मैं थी.

2 महीने बाद एक दिन यों ही मैं ने जेठानी के मैसेंजर में जा कर लिख दिया, ‘गुलफामजी… आप का असली नाम गुलशन है. मैं आप को स्कूल के वक्त से जानता हूं. आप बहुत खूबसूरत हैं… मैं आप को दिल दे बैठा हूं… अगर आप को यह मैसेज अच्छा न लगे, तो आप मुझे ब्लौक कर दीजिएगा…’

इस मैसेज को मेरी जेठानी गुलशन ने पढ़ा, लेकिन रिप्लाई नहीं किया. मुझे लगा कि वे अनवर को यानी मुझे ब्लौक करेंगी, लेकिन 2 दिन बाद रिप्लाई आ गया. उन्होंने लिखा, ‘अनवरजी… आप को जान कर हैरानी होगी कि मैं शादीशुदा हूं और मेरे 2 बच्चे हैं.’

मैं ने भी अनवर की ओर से झट से रिप्लाई दे दिया. मैं ने लिखा, ‘मैं यह सब जानता हूं गुलशनजी, फिर भी आप से प्यार करता हूं. जरूरी नहीं कि आप भी मुझ से इश्क करें, लेकिन मैं तो आप को हमेशा चाहता रहूंगा.

‘हम दोनों हाईस्कूल में एकसाथ पढ़ते थे, तभी से मैं आप से प्यार करता हूं. आप मुझे नहीं जानती हैं, लेकिन मैं तो आप को पहचान गया था. आई लव यू गुलफामजी.’

इस मैसेज के बाद तो मुझे पक्का यकीन था कि मेरी जेठानी मुझे ब्लौक कर देंगी. लेकिन शाम को ही उन का रिप्लाई आया. उन्होंने लिखा, ‘मैं तो तुम्हें नहीं पहचान पा रही. हाईस्कूल के समय का अगर कोई फोटो हो, तो मुझे भेजो… शायद पहचान जाऊं.’

जेठानी के इस मैसेज के बाद मैं ने गूगल से किसी स्कूल की कुछ ग्रुप फोटो को ढूंढ़ा और जेठानी के इनबौक्स में सैंड करते हुए लिखा, ‘गुलशनजी, इन फोटो को देख कर याद करो. और अगर याद न आए तो मुझे भूल जाओ, लेकिन मैं तुम्हें कभी नहीं भूल पाऊंगा.’

शाम को जब मेरी जेठानी गुलशन मेकअप के लिए मेरी दुकान पर आईं, तो मैं ने उन से यों ही पूछा, ‘‘गुलशन बाजी, आजकल आप फेसबुक पर काफी ऐक्टिव नजर आ रही हैं. लगता है कि फेसबुक पर भी आप के दीवानों की कोई कमी नहीं है.’’

जेठानी गुलशन बोलीं, ‘‘बस यों ही खाली बैठ कर क्या करूं, तो फेसबुक पर ही थोड़ा समय दे देती हूं.’’

पूरे दिन मेरी ननद आएशा मेरे साथ मेरी दुकान पर ही रहती. आएशा का बौयफ्रैंड नौशाद जब भी उसे मिलने के लिए बुलाता, वह मुझे बता कर दुकान से निकल जाती.

दुकान खुलने के बाद से हम दोनों ननदभौजाई में काफी बनने लगी थी. मैं आएशा से अपने दिल की बातें शेयर करती, तो वह भी मुझे अपने इश्क की सारी बातें बताती.

आएशा और नौशाद की जोड़ी काफी अच्छी थी. जाति के अलावा दोनों की शादी में कोई अड़चन नहीं थी. मैं किसी तरह के जातिवाद को नहीं मानती थी. मेरे शौहर जुनैद को भी ये सब बातें फिजूल की लगती थीं, लेकिन बात जब आएशा की शादी की होती, तो मेरे जेठ समेत पूरे घर वालों के अंदर का जातिवाद जाग जाता.

बड़े भैया जावेद अली को अपने अशरफ मुसलमान होने का खासा गुरूर था. जेठानी गुलशन भी अपनी ऊंची जाति पर घमंड रखती थीं. समस्या यह थी कि आएशा का बौयफैं्रड नौशाद जाति से पसमांदा था.

एक दिन नौशाद कुछ किताबें देने के बहाने घर आया हुआ था और मेरी जेठानी ने नौशाद को आएशा के साथ घर में देख लिया था. नौशाद की जाति के बारे में जान कर गुलशन आगबबूला हो गई थीं और नौशाद को बेइज्जत कर घर से निकाल दिया था.

अगले दिन मैं अपनी दुकान पर एक महिला कस्टमर की थ्रैडिंग में लगी थी कि इनबौक्स में जेठानी का मैसेज देखा और मैं सामने बैठी महिला की थ्रैडिंग छोड़ कर जेठानी का मैसेज खोल कर पढ़ने लगी.

जेठानी गुलशन ने लिखा था, ‘अनवर, हाईस्कूल का फोटो देख कर मैं तुम्हें पहचान गई. आजकल क्या कर रहे हो?’

मैं ने रिप्लाई किया, ‘गुलशनजी, आजकल मैं दिल्ली में ही हूं. यहीं नौकरी कर रहा हूं और मुझे पता है कि आप भी द्वारका में ही रहती हैं. मैं ने भी आप के नजदीक ही फ्लैट लिया हुआ है. चाहो तो कल शाम को हम द्वारका सैक्टर 9 के पार्क में मिल सकते हैं.’

मैसेज के सैंड होने तक सामने बैठी महिला की आवाज मेरे कानों में आई, ‘‘मुझे जल्दी है. शाम को हमें शादी में जाना है.’’

मैं ने तुरंत फेसबुक बंद किया और अपने काम में लग गई.

थोड़ी देर में जेठानी का रिप्लाई आया कि कल शाम को वे सैक्टर 9 के पार्क में पहुंच जाएंगी.

अपने ब्यूटीपार्लर से थोड़ी फुरसत निकाल कर मैं बहाने से गुलशन के घर में गई, ताकि उन के चेहरे पर अनवर से इश्क की खुमारी को देख सकूं.

जेठानी अपने किचन में थीं. मैं ने कहा, ‘‘बाजी, आप के फ्रिज में दही हो, तो थोड़ी सी दो, मुझे दही की जरूरत है.’’

उन्होंने कहा, ‘‘फ्रिज में दही पड़ी होगी, निकाल लो.’’

फ्रिज से दही निकालते हुए मैं बोली, ‘‘कल फेसबुक पर जो आप ने अपना फोटो डाला है न. गजब लग रही हैं आप. मैं ने उस लाइक भी किया है.’’

मेरे मुंह से अपनी तारीफ सुन कर जेठानी मुसकरा दीं और बोलीं, ‘‘मैं आजकल थोड़ी मोटी हो गई हूं. मेरा मोटापा फोटो में साफ झलक रहा है.’’

मैं बोली, ‘‘अरे, नहीं दीदी. आप के जैसी फिगर तो हीरोइनों की भी नहीं है.’’

यह सुन कर गुलशन और जोर से मुसकरा दीं और बोलीं, ‘‘अरे, नहीं रेहाना. थोड़ी सी तो मोटी हो गई हूं, इसलिए सोच रही हूं कि कल शाम को तुम से थ्रैडिंग करवाने के बाद जौगिंग पर निकलूं. द्वारका सैक्टर 9 वाला पार्क यहां से कितनी दूर है?’’

जेठानी के मुंह से यह सुन कर मैं हैरान रह गई. मैं ने कहा, ‘‘नजदीक ही है. बाहर से बैटरी वाला रिकशा पकड़ लेना, 10 रुपए लेगा और द्वारका सैक्टर 9 के पार्क पर छोड़ देगा.

‘‘ऐसा करना, जब आप निकलो तो मुझे भी बता देना. मैं भी आप के साथ जौगिंग पर चलूंगी. तब तक आएशा दुकान संभाल लेगी.’’

जेठानी ने कहा, ‘‘मैं कल शाम को अकेली जा कर पहले पार्क का मुआयना कर आती हूं रेहाना. उस के अगले दिन से हम दोनों साथ चलेंगे…’’

जेठानी की बातों से मैं समझ गई थी कि मेरा तीर बिलकुल सही निशाने पर लगा है. मैं अपने घर पर लौट आई और सीधे दुकान पर गई, तो वहां आएशा एक औरत का मेकअप कर रही थी.

रात के 9 बज चुके थे और मेरे शौहर भी घर आ चुके थे, इसलिए मैं ने आएशा से दुकान बंद करने को कहा और अपने कमरे में आ गई, जहां मेरे शौहर रात का खाना खाने बैठ चुके थे.

मुझे कमरे में देखते ही उन्होंने कहा, ‘‘आएशा की शादी के लिए भैया ने अपनी कंपनी के मैनेजर से बात की है. उन के मैनेजर का एक बेटा अनवर है, जो बैंगलुरु में रहता है और अनवर इस वक्त दिल्ली आया हुआ है.’’

आएशा दुकान बंद कर अपने कमरे की ओर जा ही रही थी कि उस ने अपने भैया की बात सुन ली और यह सुन कर उस के कान खड़े हो गए. वह मेरे कमरे में आई और मेरी ओर देखने लगी.

‘‘मैं ने अपने शौहर जुनैद से कहा, ‘‘आएशा की शादी के लिए भैया को इतनी जल्दी क्यों है? अभी वह पढ़ रही है, साथ ही मेरे साथ ब्यूटीशियन का काम भी सीख रही है. फिर आएशा की शादी की जिम्मेदारी तो हमारे जिम्मे है, वे क्यों इतना टैंशन लेते हैं?

‘‘शादी का खर्च हमारे जिम्मे है, इस का यह मतलब नहीं कि भैया आएशा की शादी के बारे में न सोचें… आएशा उन की भी बहन है… भैया को लगता है कि आएशा की जल्द शादी न हुई तो…’’

मैं अपने शौहर की बात को बीच में ही काटते हुए बोल पड़ी, ‘‘तो वह भाग जाएगी और भैया की नाक कट जाएगी… यही न…’’

तभी आएशा अपने भैया के करीब आ गई और बोली, ‘‘भैया, आप बड़े भैया को किसी तरह समझा दीजिए… बड़े भैया को अपनी इज्जत की ज्यादा फिक्र है न… तो आप से वादा कर रही हूं कि मैं किसी के साथ भाग कर शादी नहीं करूंगी… लेकिन, मेरा रिश्ता कहीं और होगा, तो मेरी जिंदगी बरबाद हो जाएगी.’’

जुनैद ने अपनी छोटी बहन की बात सुन कर उसे प्यार से समझाते हुए कहा, ‘‘तू क्यों टैंशन ले रही है… तेरी शादी नौशाद से ही होगी… तू नौशाद से बोल कि वह अपने घर वालों को राजी करे.’’

आएशा बोली, ‘‘नौशाद और उस के घर वाले तो हमारी शादी के लिए कब से तैयार बैठे हैं… वे तो जब आप लोग कहेंगे, तब रिश्ता ले कर यहां पहुंच जाएंगे.’’

अगले दिन रविवार होने की वजह से दोनों भाइयों की छुट्टी थी. सुबहसुबह ही मेरे जेठ और मेरी जेठानी दोनों मेरे घर आ गए और आएशा के रिश्ते के बारे में बताने लगे.

जेठ बोले, ‘‘अनवर बहुत अच्छा लड़का है. मेरे मैनेजर का एकलौता बेटा है वह… बैंगलुरु में रहता है और एक अच्छी कंपनी में है… अभी वह दिल्ली आया हुआ है… आज दोपहर तक मैनेजर बाबू अपनी बीवी और बेटे अनवर के साथ आएशा को देखने के लिए यहां आ रहे हैं…

‘‘मेरे घर में ही उन लोगों की खातिरदारी का इंतजाम हो जाएगा… जब वे लोग आ जाएंगे, तो तुम दोनों मियांबीवी आएशा को ले कर मेरे घर ही आ जाना.’’

आएशा ने जब यह सुना, तो उस का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया. वह अपने कमरे में जा कर रोने लगी. मैं उसे समझाने उस के कमरे में गई और बोली, ‘‘आएशा, तू अपनी भाभी पर भरोसा कर. तेरी शादी नौशाद से ही होगी.’’

आएशा रोते हुए बोली, ‘‘लेकिन, कैसे भाभी…? बड़े भैया तो अनवर से मेरी शादी तय कर रहे हैं. दुनिया में ऐसा कोई नहीं है, जो बड़े भैया को समझा सके.’’

मैं ने आएशा के ऊपर हाथ रखते हुए कहा, ‘‘एक आदमी है, जो तुम्हारे भैया को समझा सकता है.’’

आएशा बोली, ‘‘कौन…?’’

मैं बोली, ‘‘तुम्हारी बड़ी भाभी गुलशन…’’

आएशा ने कहा, ‘‘लेकिन, गुलशन भाभी खुद ही घोर जातिवादी हैं. वे कहती हैं कि अपने से नीची जाति में शादी करने वाले की औलादें दोजख में जाती हैं. वे कैसे नौशाद से मेरी शादी के लिए राजी होंगी…? आप भूल गईं कि उस दिन कितना ड्रामा किया था बड़ी भाभी ने…’’

मैं ने कहा, ‘‘तुम अपने दिमाग पर ज्यादा जोर मत दो. सब मुझ पर छोड़ दो और बड़े भैया के घर जाने के लिए तैयार हो जाओ.’’

आएशा को मुझ पर पूरा भरोसा था, इसलिए वह बड़े भैया के घर जाने के लिए राजी हो गई. बड़े भैया के मैनेजर दोस्त के लड़के का नाम भी अनवर था, यह जान कर मेरे शैतानी दिमाग में एक जबरदस्त आइडिया घूमने लगा.

मैं ने अपनी जेठानी को मैसेज टाइप किया, ‘गुलशनजी, कल शाम पार्क का प्लान कैंसिल समझिए, क्योंकि मुझे अपने मांबाप के साथ द्वारका सैक्टर 2 में लड़की देखने जाना है, वहीं शाम हो जाएगी.’

इस मैसेज के सैंड होने के बाद जेठानी का तुरंत रिप्लाई आया, ‘द्वारका सैक्टर 2 में आप किस के यहां जा रहे हैं?’

मैं ने लिखा, ‘जावेद अली के यहां.’

जेठानी ने लिखा, ‘जावेद अली तो मेरे हसबैंड हैं… दरअसल, आप मेरी ननद आएशा को देखने आ रहे हैं.’

मैं ने अनवर बन कर लिखा, ‘ओह… गुलशनजी… असल में मैं कहीं शादी करना नहीं चाहता, क्योंकि मैं सिर्फ आप से प्यार करता हूं, लेकिन क्या करूं? यह बात मैं अपने पेरेंट्स को कैसे समझाऊं? घर वाले जबरदस्ती मुझे लड़की देखने ले जा रहे हैं…

‘देखिए, मैं आप की ननद से शादी नहीं कर सकता. कल दोपहर आप के घर आऊंगा जरूर. इसी बहाने आप के दीदार भी हो जाएंगे…’

जेठानी गुलशन ने लिखा, ‘आएशा मेरे जितनी खूबसूरत तो नहीं है, लेकिन बहुत ही अच्छी लड़की है. चाहो तो उसे पसंद कर लेना.’

मैं ने लिखा, ‘मैं आप के अलावा किसी और के बारे में सोच भी नहीं सकता… जो आप ने कल फेसबुक पर फोटो डाला था न… हो सके तो कल वही पीली वाली साड़ी पहन लेना.’

दोपहर तक आएशा और मैं तैयार हो कर बगल में जेठानी के घर पहुंच चुके थे. मेरी जेठानी ने पीली साड़ी पहनी हुई थी, जिस में वे बड़ी खूबसूरत लग रही थीं.

थोड़ी देर में ही घर के बाहर एक कार आ कर रुकी. उस में एक जवान लड़के के साथ 2-3 लोग और थे. वे अनवर और उस के मम्मीपापा थे.

अनवर काफी हैंडसम लग रहा था. अनवर को देखते ही मेरी जेठानी मचलने लगीं. किसी न किसी बहाने बारबार वे अनवर के सामने जातीं. मेरे सासससुर, जेठ और मेरे पति ड्राइंगरूम में बैठे हुए थे. अनवर के मम्मीपापा भी सामने ही बैठे थे.

थोड़ी देर में मेरी जेठानी भी अनवर के बिलकुल सामने बैठ गईं. मेहमानों की खातिरदारी अब मेरी और आएशा की जिम्मेदारी थी.

मेरे सासससुर को अनवर पसंद आया और अनवर के घर वालों को भी आएशा पसंद आ गई. लड़के वालों ने मेरे जेठ से कुछ वक्त मांगा और सभी विदा होने लगे. जेठानी तो अनवर के इर्दगिर्द से हट ही नहीं रही थीं.

सभी के चले जाने के बाद घर में देर तक अनवर और उस के परिवार वालों की बातें होती रहीं. मेरे जेठ तो अनवर के परिवार की तहजीब की बड़ाई करते थक नहीं रहे थे. लेकिन जेठानी खामोश थीं. वे न जाने किन खयालों में खोई हुई थीं. शायद इश्क का बुखार कुछ ज्यादा ही चढ़ गया था उन पर.

मैं वाशरूम में गई और जेठानी को एक मैसेज टाइप करते हुए लिखा, ‘गुलशन, मेरी जान… तुम तो गजब लग रही थी आज… तुम्हें देखने के बाद से मैं तो पागल हो गया हूं… मेरे घर वालों को आएशा पसंद है… इस वक्त कार में बैठे मेरे मम्मीपापा तुम्हारे घर के बड़प्पन की ही बातें कर रहे हैं…

‘मैं आप के प्यार में इस कदर डूब चुका हूं कि आप मुझे हर जगह पीली साड़ी में नजर आ रही हैं… ऐसा कुछ कीजिए न कि यह शादी न हो पाए. आई लव यू.’

जेठानी को मैसेज टाइप कर मैं ड्राइंगरूम में आई, तो जेठानी अपने चेहरे पर मुहब्बत की ताजगी लिए अनवर के मैसेज में गुम थीं.

मैं ने जेठानी से पूछा, ‘‘दीदी, आप को लड़का कैसा लगा?’’

वे बोलीं, ‘‘मैं क्या बोलूं? कुछ कहूंगी, तो तुम्हारे जेठजी को मिर्ची लग जाएगी.’’

वहीं बैठे जेठजी बोले, ‘‘अरे, बोलो गुलशन… तुम्हें यह रिश्ता पसंद नहीं आया क्या?’’

मेरी जेठानी बोलीं, ‘‘रिश्ते में कोई कमी नहीं है, लेकिन कभी आप ने आएशा के मन की बात जानने की कोशिश की है…? वह नौशाद से प्यार करती है… नौशाद हमारी आएशा के लिए एकदम अच्छा लड़का है… मैं तो मिली भी हूं उस से… लेकिन, तुम्हारे सिर पर जातिवाद का भूत चढ़ा है, इसलिए इतने अच्छे लड़के को तुम नकार रहे हो…’’

मेरी जेठानी के मुंह से ऐसी बातें सुन कर मेरे शौहर जुनैद तो हैरान थे ही, आएशा उन से ज्यादा हैरान थी. वह अपनी बड़ी भाभी का यह रूप देख कर हैरानी भरी मुसकान के साथ मेरी ओर देखने लगी.

मेरे सासससुर भी मेरी जेठानी की बातों से सहमत नजर आने लगे थे. कुछ ही देर में मेरी सास अपनी जगह से उठीं और अपने बड़े बेटे के हाथों को पकड़ कर बोलीं, ‘‘आएशा के लिए नौशाद ही बेहतर रहेगा बेटा… जिद छोड़ दे… और नौशाद से ही इस का रिश्ता पक्का कर दे.’’

थोड़ी देर सोचने के बाद भैया बोले, ‘‘जब घर में सभी की राय एक है, तो फिर मैं ही तहजीब का बोझ क्यों ढोता फिरूं?

‘‘आएशा, तू अगले संडे नौशाद के घर वालों को आने के लिए बोल दे… मैं अपने मैनेजर दोस्त को समझा दूंगा कि वह अनवर के लिए कोई दूसरी लड़की ढूंढ़ ले.’’

खुशीखुशी हम तीनों अपने घर लौट आए. घर आते ही आएशा मुझ से लिपट गई और बोली, ‘‘भाभी, तुम ने बड़ी भाभी गुलशन पर ऐसा कौन सा जादू कर दिया था कि उन के अंदर का जातिवादी जहर गायब हो गया? उन के मुंह से ऐसी बातें सुन कर मुझे तो यकीन ही नहीं हो रहा है.’’

मैं मुसकराते हुए बोली, ‘‘आएशा, तुम्हें यह जानने की जरूरत नहीं है… अपने कमरे में जाओ और नौशाद को खुशखबरी दे दो.’’

अगले दिन सुबहसुबह मोबाइल देखा, तो जेठानी के ढेर सारे मैसेज से इनबौक्स भरा हुआ था. आखिरी मैसेज रात के ढाई बजे का था. अनवर की मुहब्बत में डूबी मेरी जेठानी की रातों की नींद गायब हो चुकी थी.

रात ढाई बजे वाले आखिरी मैसेज में जेठानी ने अपनी मुहब्बत का इजहार करते हुए एक घिसापिटा सा शेर लिखा था :

‘हसीन ख्वाब से सोहबत हो गई है,
मुझे भी तुम से मुहब्बत हो गई है.
सुबह जब उठो तो रिप्लाई देना,
तुम से मिलने की हसरत हो गई है.’

मैं ने अनवर की ओर से रिप्लाई दिया, ‘गुलशन, मेरी जान… तुम्हारा मैसेज पढ़ कर मैं कितना खुश हूं, बता नहीं सकता… बस आज शाम तक का इंतजार करो… आज मुझे फिर एक जगह लड़की देखने जाना है… वहां से लौटते ही मैं तुम्हें मिलने की जगह बताऊंगा.’

जेठानी ने झट से रिप्लाई किया, ‘अब फिर से लड़की देखने क्यों जा रहे हो? मुझे अपना फोन नंबर दो…’

मैं ने लिखा, ‘शाम को मिलेंगे, तो सारी बात बता दूंगा…’

इस मैसेज को टाइप करने के बाद मैं बारबार जेठानी के यहां मुहब्बत में उन की बेकरारी का दीदार करने पहुंच जाती. वे मुझे मोबाइल में ही घुसी हुई मिलती थीं. उन्होंने पूरे दिन अनवर यानी मुझे मैसेज किया, लेकिन मैं ने कोई रिप्लाई नहीं किया… शाम हुई, तो जेठानी पीली साड़ी में सजधज कर तैयार हो चुकी थीं.

मैं उन के पास गई और बोली, ‘‘बाजी, कहीं जाने का इरादा है क्या आज?’’

वे बोलीं, ‘‘हां, बाजार तक जा रही हूं… संडे को नौशाद के घर वाले आएंगे, तो उन्हें देने के लिए कुछ शगुन वगैरह तो चाहिए ही न…’’

मैं ने कहा, ‘‘मैं भी आप के साथ चलूं क्या?’’

वे बोलीं, ‘‘आज नहीं… कल फिर जाऊंगी, तो तुम्हें ले चलूंगी…’’

जेठानी अपने उस आशिक का इंतजार कर रही थीं, जो असल में कहीं था ही नहीं. अब जेठानी के दिमाग पर चढ़े इश्क के भूत को उतारने का समय आ गया था. मैं अपने घर आई और मैं ने मैसेंजर औन किया, जो जेठानी के बेचैनी भरे मैसेज से भरा हुआ था.

मैं ने लिखा, ‘मिलने का प्लान फिर से कैंसिल…’

जेठानी ने तुरंत रिप्लाई किया, ‘क्यों, क्या हुआ? तुम घर नहीं पहुंचे क्या अभी तक?’

मैं ने लिखा, ‘मैं जो आज लड़की देख कर आ रहा हूं, वह मुझे भा गई है… पीली साड़ी में वह क्या मस्त लग रही थी… मैं तो पहली नजर में उसे देखते ही अपना दिल गंवा बैठा गुलशनजी… आज शाम को मैं उसी से मिलने जा रहा हूं… आप को जान कर हैरानी होगी कि उस लड़की का नाम भी गुलशन है… आई लव यू गुलशन…’

तुरंत ही रिप्लाई आया, ‘मेरी मुहब्बत का क्या होगा अनवर… तुम ने मुझे बहुत बड़ा धोखा दिया है…’

मैं ने लिखा, ‘तुम बहुत मोटी हो… जौगिंग करो और फिट हो जाओ… पीली साड़ी में तुम सरसों के खेत में खड़ी भैंस लगती हो… यह उम्र बच्चों को संभालने की है… इतने अच्छे हसबैंड के होते हुए इधरउधर मुंह मारना अच्छी बात नहीं है… बच्चों को पढ़ने दो और उन्हें इश्क करने दो… शायद, अब मैं तुम्हें कभी न मिलूं… अपना खयाल रखना गुलशनजी…’

यह मैसेज टाइप करने के आधे घंटे बाद मैं जेठानी गुलशन के पास गई… देखा तो हालात बदल चुके थे. इश्क का भूत पूरी तरह उतर चुका था.

जेठानी पहले की तरह सूटसलवार में थीं और सिर पर हाथ रखे हुए सोफे पर बैठी थीं. मेरे वहां जाते ही जेठानी ने मुझ से कहा, ‘‘फेसबुक डिलीट करना है. कैसे होगा?’’

मैं ने कहा, ‘‘क्यों बाजी? फेसबुक से तो आप को बड़ा प्यार था. अब क्या हुआ?’’

जेठानी गुलशन गुस्से में बोलीं, ‘‘यह प्यारव्यार कुछ नहीं होता रेहाना… सब फालतू की बातें हैं… धोखेबाजों की इस दुनिया में अपना घरपरिवार ही सब से बड़ी चीज होती है… फेसबुक पर समय खराब करने से अच्छा है कि मैं अपने परिवार को वक्त दूं.’’

Hindi Story: प्रमोशन

Hindi Story: आज फिर मुझे दफ्तर जाने में देर हो गई. पिछले 4 दिन से मैं लगातार देर से दफ्तर पहुंच रहा हूं. रोजाना की तरह साहब आज फिर नाराज होंगे, डांटेंगे और तांबे सा चेहरा बना कर कहेंगे, ‘नईनई शादी क्या हुई, रोज दफ्तर में देर से आने का नियम बना लिया. बीवी का पल्लू नहीं छूटता, तो नौकरी से इस्तीफा दे दो. न कोई सुनने वाला, न कोई कहने वाला.’

यह सच है कि मेरी शादी हुए अभी महीना भी नहीं हुआ है. दफ्तर पहुंचा, तो दस्तखत रजिस्टर अपनी तय जगह पर नहीं रखा था. बड़े बाबू से उस के बारे में पूछा, तो बड़े बाबू ने कहा कि साहब ने रजिस्टर अपने केबिन में मंगा लिया है. साहब ने कहा है कि जब भी आप आएं, पहले केबिन में भेज दें.

तब मैं दबे कदमों से बड़े साहब के केबिन में पहुंचा.

दरवाजे पर बैठा चपरासी मुझे देख कर मुसकराया. उस की कुटिल मुसकान से मैं समझ गया कि बड़े साहब मुझ से बहुत नाराज हैं.

जब मैं परदा हटा कर बड़े साहब के केबिन में पहुंचा, तब बड़े साहब मुझे खा जाने वाली निगाहों से देख रहे थे.

मैं एक अपराधी की तरह गरदन झुकाए बड़े साहब के सामने चुपचाप खड़ा था. वे गुस्से से चिल्ला कर बोले, ‘‘मिस्टर कमल सक्सेना, यह सरकारी दफ्तर है, तुम्हारा घर नहीं है. 4 दिन हो गए, तुम्हें देर से आतेआते. आज कौन सा बहाना बनाओगे?’’

तब बड़े साहब की बात का मैं कोई जवाब नहीं दे पाया. मैं अपराधी की मुद्रा में इसलिए खड़ा रहा कि गलती मेरी है कि क्यों देर से आया?

बड़े साहब फिर बोले, ‘‘मगर, आज तो तुम्हें देर से आने की सजा मिलेगी. उस सजा की अगर भरपाई नहीं करोगे, तब तुम्हारे होने वाले प्रमोशन को मैं रुकवा भी सकता हूं.’’

इतना कह कर साहब ने मेरी तरफ देखा, फिर पलभर रुक कर बोले, ‘‘क्या मेरे द्वारा दी गई सजा भुगतने को तैयार हो? बोलो, चुप क्यों हो?’’

‘‘मिस्टर कमल, कान खोल कर सुन लेना. आज की रात अपनी नईनवेली दुलहन को रैस्टहाउस में ले कर आ जाना, केवल 2 घंटे के लिए. मैं ठीक रात 8 बजे वहां इंतजार करूंगा. यही तुम्हारे देर से आने की सजा है.’’

तब मैं गरदन हिलाते हुए रजिस्टर पर दस्तखत कर अपने केबिन में आ कर बैठ गया, मगर मेरा मन फाइलें निबटाने में नहीं लगा.

बड़े साहब की सजा मेरे लिए गले की फांस बनी हुई थी. उन का ऐयाश चेहरा सारे दफ्तर के बाबू जानते हैं.

दफ्तर की प्रतिभा मैडम और शोभा मैडम कई बार साहब की ऐयाशी की शिकार हुई हैं. तभी बड़े साहब उन दोनों से कुछ नहीं कहते हैं.

अगर मैं अपनी पत्नी को बड़े साहब के पास रैस्टहाउस नहीं ले जाऊंगा, तब प्रमोशन में मेरी गलतियां लिख कर प्रमोशन रुकवा सकते हैं.

अपने प्रमोशन के लिए मुझे पत्नी की इज्जत दांव पर लगानी पड़ेगी. यह अपराध कर के मैं अपनी पत्नी की निगाह में गिरना नहीं चाहता. इस समय मैं अभिमन्यु की तरह ऐसे चक्रव्यूह में फंस गया हूं, जहां से निकलने का रास्ता ही नहीं दिख रहा.

तब मेरा ध्यान सुबह वाली घटना पर चला गया. जब दफ्तर जाने के लिए मेरे कदम जल्दीजल्दी उठ रहे थे, एक खूबसूरत भिखारिन, जो मटमैले कपड़े पहने थी, मगर थी जवान. वह हर उस जवान आदमी के आगे हथेली फैला कर 10-20 रुपए मांग रही थी. कुछ मनचले उस की 50 या 100 रुपए का नोट रख कर हथेली को छू रहे थे.

वह फटी गंदी साड़ी पहने हुए थी. बाल बिखरे हुए थे. वह उस के पीछेपीछे 10-20 रुपए की रट लगाती हुई चल रही थी.

दफ्तर जाने में देरी हो जाने के चलते मैं जल्दीजल्दी अपने कदम बढ़ा रहा था. मैं ने कई बार उसे दुत्कार दिया था. फिर भी वह मेरे पीछेपीछे चली आ रही थी.

तब मैं रुका और पीछे मुड़ कर गुस्से से बोला, ‘‘कह दिया न कि मेरे पास पैसे नहीं हैं, फिर भी तू बेशर्मी से मेरे पीछेपीछे चली आ रही है.

‘‘आप काहे को झूठ बोलते हो बाबूजी…’’ मेरी झिड़की सुन कर भी वह मुसकराते हुए बोली, ‘‘आप के पास पैसे नहीं हैं, यह मैं मान ही नहीं सकती.’’

‘‘अरे, तू हट्टीकट्टी हो कर भी भीख क्यों मांग रही हैं? तुझे जरा भी शर्म नहीं आती.’’

‘‘काहे की शरम बाबूजी. जो करे शरम, उस के फूटे करम,’’ उस ने लापरवाही से जवाब दिया.

‘‘अरे, तेरे हाथपैर सहीसलामत हैं, मेहनतमजदूरी कर.’’

‘‘बाबूजी, दे दो न. 10-20 रुपए देने से आप गरीब नहीं हो जाएंगे,’’ मेरी झिड़की के बावजूद भी वह बड़ी बेशर्मी से बोली.

‘‘अजीब औरत है, जो भीख के लिए मेरे पीछे ही पड़ी हैं,’’ जेब से 10 रुपए निकाल कर मैं उसे देते हुए बोला, ‘‘ले पिंड छोड़ मेरा, पैसों के लिए पीछे ही पड़ी हुई है,’’ कह कर मैं तो चल दिया, तब वह औरत मेरा रास्ता रोकते हुए बोली, ‘‘बाबूजी, मेरी आप को रात के लिए जरूरत पड़े, तब आप जहां बुलाएंगे, आ जाऊंगी. मेरा घर स्टेशन के पास झोंपड़पट्टी में है. मेरा नाम कमली है.’’

मैं तो बिना जवाब दिए आगे बढ़ गया. क्या नाम बताया था कमली? उसे अपनी पत्नी बना कर बड़े साहब के पास रैस्टहाउस में छोड़ आऊं. अभी बड़े साहब ने पत्नी को देखा कहां है. शादी की पार्टी के दिन वे दौरे पर चले गए थे. क्यों न उसी कमली से बात कर ली जाए.

शाम को छुट्टी होने के बाद मैं घर जाने के मूड में कतई नहीं था. स्टेशन पर चलना चाहिए और उस कमली को ढूंढ़ना चाहिए. मैं ने पत्नी को फोन किया. दफ्तर में काम ज्यादा होने के चलते मैं देर से घर आऊंगा.
जब मैं स्टेशन पर पहुंच कर जैसे ही झुग्गी बस्ती के पास पहुंचा कि झोंपड़ी के पास खड़ी वही सुबह वाली कमली मिल गई.

मैं तो पहचान नहीं पाया. सुबह वाली भिखारिन कमली और अब मेरे सामने खड़ी कमली में कितना फर्क है. इस समय सजधज कर खड़ी कमली रूप की मेनका लग रही थी.

तब वह मेरे पास आ कर बोली, ‘‘बाबूजी, मुझे नहीं पहचाना क्या आप ने? मैं सुबह वाली कमली हूं. मुझे मालूम था कि आप आओगे. बोलो, कहां ले चलोगे मुझे.’’

‘‘तुम ने मुझे कैसे पहचाना?’’ मैं ने कमली से पूछा.

‘‘जब सुबह आप से भीख मांगी थी, तभी मैं ने समझ लिया था,’’

कमली बोली, ‘‘फिर बाबूजी, भीख मांगने के पीछे मैं ग्राहक ढूंढ़ती हूं. कहिए, आप मुझे कहां ले जाएंगे.’’

‘‘मगर, ले जाने से पहले मेरी एक शर्त है?’’

‘‘कौन सी शर्त?’’

‘‘तुम्हें मेरी पत्नी बन कर चलना होगा.’’

‘‘आप की ऐसी कौन सी मजबूरी है बाबूजी?’’

‘‘यह सब मैं अपनी मजबूरी बाद में बता दूंगा,’’ मैं बोला.

तब मैं ने कमली को अपने बारे में सबकुछ बताया.

तब कमली झोंपड़ी के भीतर गई. एक पत्नी बन कर आई, मांग में सिंदूर, गले में मंगलसूत्र, कांच की हरी चूडि़यां, नई लाल साड़ी, कोई अनजान आदमी अगर देख ले, तो मेरी पत्नी ही समझे. क्योंकि इस की कीमत कमली ने पहले ही 2,000 रुपए तय की थी.

1,000 रुपए मैं पहले ही दे चुका था और 1,000 रुपए काम होने के बाद देने को कहा है.

तब तय समय के मुताबिक मैं कमली को पत्नी बना कर रैस्टहाउस में ले गया. बड़े साहब उसी का इंतजार कर रहे थे. बड़े साहब ने मुझे 2 घंटे बाद दोबारा बुलाया, ताकि मैं उसे ले जा सकूं.

मैं 2 घंटे इधरउधर भटकता रहा. इस समय कमली मेरे लिए सहारा बन कर आई. ढाई घंटे बाद जब मैं वापस रैस्टहाउस गया, बड़े साहब मेरा ही इंतजार कर रहे थे.

मैं कमली को ले कर सड़क पर आ गया. एकांत पा कर कमली बोली, ‘‘बाबूजी, मैं ने आप के बड़े साहब को खुश कर दिया.’’

‘‘हां कमली, तुम्हारा बहुतबहुत धन्यवाद,’’ जब मैं ने यह कहा, तब वह बोली, ‘‘कमली किसी का धन्यवाद नहीं लेती बाबूजी. इस पेट की खातिर मुझे यह सब करना पड़ रहा है. आप तो 1,000 रुपए दीजिए, ताकि मैं दूसरे ग्राहक ढूंढ़ सकूं.’’

मैं ने तत्काल 1,000 रुपए कमली को दे दिए. कमली रुपए ब्लाउज में खोंसते हुए बोली, ‘‘कभी फिर पत्नी बनने की जरूरत पड़े, तो मैं तैयार हूं.’’

मैं ने गरदन हिला कर रजामंदी दी. फिर हम दोनों के रास्ते जुदा हो गए.

अब जब भी मैं देर से दफ्तर पहुंचता हूं, बड़े साहब मुझे कुछ नहीं कहते. अब वे मुझ से खुश रहने लगे हैं. 15 दिन के भीतर ही उन्होंने मेरा प्रमोशन कर दिया और मैं दूसरे शहर में चला गया.

मुझे कमली की आज भी याद आती है. अगर वह कमली पत्नी बन कर मेरी जिंदगी में नहीं आती, तब मेरा प्रमोशन आगे और टल जाता.

Hindi Story: भूलभुलैया

Hindi Story, लेखक – प्रशांत

बगल में चमड़े का थैला दबाए, एक हाथ में छतरी थामे हरिया गांव की पगडंडी से हो कर गुजर रहा था. वह हर रोज सुबह इसी रास्ते से हो कर गुजरता था. कुछ दूरी पर एक छोटा सा बाजार था. वह वहीं दिनभर जूते बनाता था और शाम को कमाई समेत बस्ता समेट कर वापस घर लौट आता था. दिन मजे में गुजर रहे थे.

रास्ते में गांव का एक मंदिर पड़ता था. सुबह जाते वक्त पूजनअर्चना और शाम को लौटते समय संध्या की आरती की आवाज हरिया के कानों में पड़ती, तो वह खुश हो जाता था.

हरिया ललचाई नजरों से मंदिर की ओर निहारता, परंतु पास फटकने की हिम्मत न होती. पुराने जमाने से ही उस के गांव की परंपरा थी कि छोटी बिरादरी के लोगों को मंदिर में घुसने का हक नहीं है. वह भी कोई हिमाकत कर बड़ी जातियों के गुस्से की आग में जलना नहीं चाहता था.

एक जमाना था, जब मंदिर की खूबसूरती देखते ही बनती थी. बड़ी अच्छी सजावट होती थी. सुबह से ही देर रात तक भजनकीर्तन चलता रहता था. परंतु जमींदारी प्रथा का अंत होते ही मंदिर की ओर से जमींदारों का ध्यान उचटने लगा. धीरेधीरे देखरेख ठीक से न होने के चलते मंदिर उजाड़ होने के कगार पर आ पहुंचा.

मंदिर के पुजारी रामप्रसाद पूजापाठ तो करते रहे, परंतु चढ़ावे में दिनोंदिन कमी ही होती गई. कल तक वे दूध, मलाई के भोग लगाते थे, परंतु अब रूखीसूखी से ही गुजारा करना पड़ रहा था.

वक्त यों ही गुजरता गया. एक दिन रामप्रसाद हरिया की दुकान पर पहुंचे. हरिया जूते बनाने में लीन था.

‘हरिया, ओ हरिया,’ की आवाज ज्यों ही हरिया के कानों में पड़ी, उस की नजरें ऊपर उठ गईं. एकबारगी तो उसे यकीन ही नहीं हुआ कि पंडित रामप्रसाद उस की दुकान पर पधारे हैं.

बड़ी मुश्किल से हरिया अपनेआप को संभाल पाया और दौड़ कर पंडितजी के चरण छुए, फिर एक कुरसी पर उन्हें बिठाते हुए बोला, ‘‘बड़ा अच्छा संयोग है कि आप के चरण इस गरीब की दुकान पर पड़े.’’

‘‘हरिया, तू तो बड़ा भाग्यशाली है रे. देखतेदेखते तू ने कितनी तरक्की कर ली. कहां टूटी सी झोंपड़ी में पहले पुराने जूते सिलाई करता था और आज इतनी बड़ी दुकान खड़ी कर ली,’’ पंडितजी ने अपना राग छेड़ा.

‘‘सब आप लोगों की कृपा है पंडितजी,’’ हरिया बड़ा ही हीन बनते हुए बोला.

पंडितजी तो जैसे इसी बात के इंतजार में थे. वे बोले, ‘‘अरे नहीं, सब भगवान की माया है भैया. हम और तुम कुछ नहीं. वह जब जिसे जो चाहे दे दे. जिस से जो चाहे ले ले…’’

फिर थोड़ा रुक कर पुजारी रामप्रसाद बोले, ‘‘हरिया, कभी तुम्हारी इच्छा नहीं होती कि तुम भी मंदिर में आ कर भगवान के दर्शन करो?’’

‘‘बहुत होती है पंडितजी, परंतु हमारे ऐसे भाग्य कहां? पुरखों से जो परंपरा कायम है, उसे तो निबाहना ही पड़ेगा.’’

‘‘कहते तो ठीक हो, पर धरमकरम करने का तो सब को अधिकार है. सभी ईश्वर की संतान हैं. सब को उन की सेवा करनी चाहिए.’’

जमाने के ठुकराए, सताए व दबाए गए लोगों की बिरादरी के एक आदमी को पंडितजी बड़ी सावधानी से पटा रहे थे. बड़ी चालाकी से उस के दिमाग में दकियानूसी विचारों की खुराक भरी जा रही थी.

पंडितजी पक्के खिलाड़ी थे. किस तरह लोगों को बहकाया जा सकता है, किस तरह उन का दोहन कर अपनी जेब भरी जा सकती है, यह पंडितजी को बखूबी मालूम था, वरना जिन पंडितों ने हरिया की बिरादरी को चांडाल कह कर मंदिर के अहाते में भी घुसने पर पाबंदी लगा दी थी, उन्हीं में से एक पंडित उसे अपने बराबर होने का एहसास क्यों करा रहा था?

लोगों की भावनाओं का गलत फायदा उठा कर अपना उल्लू सीधा करना पंडितों का पुराना हथकंडा रहा है.

हरिया गदगद हो उठा था. पंडितजी की बातों को सुन कर गले से आवाज भी नहीं निकल पा रही थी.

पंडितजी आगे बोले, ‘‘कल भगवान ने मुझ से सपने में कहा कि हरिया मेरा भक्त है. उसे सही राह दिखाओ.

भैया, हम तो ठहरे उन के गुलाम. वे जो कहेंगे, मुझे तो करना ही पड़ेगा, वरना सोचो, क्या मैं तुम्हारे पास आ पाता? मंदिर चलाने वाले लोग मुझे क्या कहेंगे?’’

इस तरह की चिकनीचुपड़ी व चालाकी भरी बातों से पंडितजी ने हरिया को प्रभावित कर दिया. उस के अंदर जो शक की गुंजाइश थी, उसे भी खत्म कर दिया.

ठुकराए आदमी को जब मशहूर होने का मौका मिलता है, तो वह उसे किसी भी कीमत पर गंवाना नहीं चाहता. पंडितजी ने हरिया की दुखती रग को पहचान लिया था.

हरिया खुशी से फूला नहीं समा रहा था. किसी तरह अपने पर काबू रखते हुए हरिया बोला, ‘‘पंडितजी कहिए, मैं आप की क्या सेवा करूं?’’

‘‘मेरे जूते फट गए हैं भैया, जरा सिल दो.’’

‘‘छोडि़ए पंडितजी, कब तक इन फटे जूतों को घसीटते रहेंगे.’’

‘‘क्या करूं हरिया, काम चलाना ही होगा. फिर कभी देखेंगे.’’

‘‘नहीं पंडितजी, फिर कभी क्यों…? आज ही आप नए जूते ले जाइए,’’ कहते हुए हरिया जूते निकालने लगा.

‘‘रहने दे हरिया. अभी पैसे नहीं हैं. मुफ्त ले गया तो तुझे घाटा होगा.’’

‘‘उस की आप जरा भी फिक्र न करें पंडितजी. ये मेरी तरफ से दान समझ कर ले लें.’’

पंडितजी मन ही मन बहुत खुश हो रहे थे. वे अपनी योजना में कामयाब जो हो गए थे.

अगले दिन जंगल की आग की तरह यह बात पूरे गांव में फैल गई. हर जबान पर यही चर्चा थी. लोग दबी जबान से हंसी भी उड़ा रहे थे, परंतु जब सपने वाली बात सुनी तो सब चुप्पी साध गए. डर था कि कहीं ईश्वर गुस्सा हो कर नुकसान न कर दें.

चाहे असलियत जो भी हो, धर्म से डरने वाले लोग ईश्वर पर अधिक विश्वास दिखाते हैं. यदि फायदा होता है, तो उस की वजह ऊपर वाले की मेहरबानी मानी जाती है और नुकसान के लिए अपनी किस्मत को दोषी मानते हैं. वे चाह कर भी भगवान को कोई दोष नहीं दे सकते और न ही भगवान के भजन से मुख मोड़ सकते हैं. उन्हें डर रहता है कि कहीं भगवान गुस्सा हो कर उन का नाश न कर डाले. संयोग से कभी कोई अनहोनी हो भी जाती है, तो वे उसे उसी का नतीजा मान बैठते हैं.

यह अंधभक्ति कोई जन्म से होने वाली लाइलाज बीमारी नहीं है. दरअसल, इस का जहर उस माहौल से मिलता है, जहां आदमी आंख खोलता है. चारों तरफ धर्म से डरने वाले लोगों की संगत होती है. ऐसे में वह कुछ अलग भला कैसे सोचे, जहां चारों ओर एक ही चीज देखनेसुनने को मिलती है?

शाम को पंडित बिरादरी की जमात बैठी. हरिया को पूजा करने दी जाए या नहीं, इसी मुद्दे पर बातचीत हो रही थी.

किसी ने कहा, ‘‘हरिया को पूजापाठ करने देना ब्राह्मण समाज की तौहीन होगी. हम किसी भी कीमत पर यह सहन नहीं कर सकते.’’

पंडित रामप्रसाद बोले, ‘‘शांत रहें. ईश्वर की यही इच्छा है. फिर से यज्ञ द्वारा पवित्र भी किया जाएगा. शास्त्रों के मुताबिक उसे शुद्ध करने के पश्चात ही पूजापाठ करने का अधिकार दिया जाएगा और इस अवसर पर वह ब्राह्मण भोज भी देगा.’’

भोज का नाम सुनते ही सब के मुंह में पानी आ गया. थोड़ी देर की भिनभिनाहट के बाद वे सभी राजी हो गए.

मोचियों की बिरादरी में हरिया ही सब से धनी आदमी था. फिर इज्जत बढ़ाने के लिए 2-4 हजार रुपए का खर्च वह आसानी से कर सकता था.

वह राजी हो गया. एक खास तिथि को हवनपूजन कर के उसे ‘पवित्र’ बना दिया गया. भोज में ब्राह्मणों ने छक कर हलवापूरी खाई.

पूरी मोची बिरादरी में केवल हरिया को ही पूजापाठ में भाग लेने का अधिकार मिला था. एक तो इस वजह से और दूसरी धनी होने के कारण भी पूरी बिरादरी में उस की पूछ कुछ ज्यादा ही होने लगी थी. वह अपनी जाति का बड़ा आदमी बन गया था.

देखते ही देखते काफी बदलाव आ गया. लोग उस की राय की कद्र करते. कोई भी काम हो, उस से पूछे बगैर नहीं होता था. वह जो कहता, पूरी बिरादरी के लोग मानते थे.

एक मेहनतकश कारीगर पूजापाठ में लग गया. उस का ज्यादा समय भजनपूजन में बीतने लगा. दुकान पर उस का बेटा सुखिया बैठने लगा. फिर पंडित रामप्रसाद की सलाह पर शुरू हुईं तीर्थयात्राएं. पंडितजी तो उस के गुरु बन ही चुके थे. उन्हें भी हरिया के खर्च पर तीर्थाटन का सौभाग्य मिल गया.

हरिया की प्रसिद्धी और बढ़ी. वह रोज पूजा का सामान मंदिर भेजता. पंडितजी भी मजे में थे. जब जो खाने की इच्छा हुई, हरिया उस की व्यवस्था कर पंडितजी को खुश करता रहता. इन कामों में बहुत अधिक खर्च हुआ और हरिया को जमीन गिरवी रख कर कर्ज भी लेना पड़ गया.

जब भी हरिया कुछ हिचकिचाता, पंडितजी उस की भावनाओं को कुरेदने लगते. फिर सबकुछ भुला कर हरिया पंडितजी के बताए अनुसार पूजापाठ में लगा रहा.

वह अब अपना ज्यादातर समय पंडितजी के साथ ही बिताने लगा. पंडितजी को भी बातचीत के लिए साथी मिल गया. हरिया पंडितजी की सेवा करता, कभी पैर दबाता तो कभी सिर की मालिश करता. उस की हालत एक बेमोल नौकर की तरह थी.

लगातार खर्च बढ़ने और आमदनी में कमी के कारण हरिया का परिवार गरीबी की चपेट में आने लगा. हरिया का अकेला बेटा सुखिया कितना कमा पाता? बापबेटे दोनों कमाते, तो शायद दोगुनीतिगुनी तरक्की करते.

एक दिन सुखिया बोला, ‘‘पिताजी, सारा दिन यों ही पूजापाठ में बिताने के बजाय यदि आप मेरे साथ दुकान में काम करें, तो हमारी आय दोगुनी हो जाएगी. परिवार की हालत अच्छी हो जाएगी.’’

हरिया ने उपदेश के लहजे में जवाब दिया, ‘‘अरे बेटा, मुझ बूढ़े की क्या है? ईश्वर की कृपा बनी रही तो अपने आप ही बरकत होती जाएगी. ईश्वर की कृपा ही काफी है. पूजापाठ छोड़ दूं, तो भगवान नाराज हो जाएंगे. हमारा सर्वनाश हो जाएगा.’’

हरिया को बारबार पंडितजी का कहना याद आ रहा था, ‘‘ईश्वर को नाराज मत करना, नहीं तो नाश हो जाएगा.’’

सुखिया ने बहस करना ठीक नहीं समझा. वह चुपचाप अपना काम करता रहा, परंतु उतना कमा नहीं पाता था कि परिवार का भरणपोषण और पूजापाठ का खर्च चला कर गिरवी खेत छुड़ाए जा सकें.

2 साल गुजर गए. अचानक एक अनहोनी हो गई. एक रात बाजार की एक दुकान में आग लग गई. देखते ही देखते कई दुकानें जल कर राख हो गईं. उन में हरिया की दुकान भी थी.

यह खबर सुनते ही हरिया दौड़ता हुआ दुकान के पास गया. दुकान की ऐसी हालत देख कर वह रो पड़ा. अब परिवार की रोजीरोटी कैसे चलेगी, उस की समझ में नहीं आ रहा था.

जब साहूकार ने सुना कि हरिया की दुकान जल गई है, तो उस ने खेत भी जोत लिए, क्योंकि अब कर्ज वापस कर पाने की उम्मीद नहीं थी. भला वह लंबे अरसे तक इंतजार क्यों करता.

पंडितजी भी वहां जा पहुंचे. हिम्मत बंधाते हुए हरिया से बोले, ‘‘शांत हो जा हरिया, शांत हो जा. ईश्वर की इच्छा के खिलाफ हम कुछ नहीं कर सकते. उन की यही मरजी थी. तेरे नसीब में यही लिखा था.’’

हरिया उबल पड़ा, ‘‘क्या दिया है ईश्वर ने मुझे? आज तक मैं उस की सेवा करता रहा, उस के गुण गाता रहा, कर्जे लेले कर तीर्थ किए, चढ़ावे चढ़ाए. मैं तो उस का भक्त था. फिर मेरी दुकान क्यों जल गई? क्यों लुट गया मैं? मेरी जमीन क्यों चली गई?’’

अब बचा ही क्या था, जिस का नाश होने का डर हरिया को पूजापाठ के नाम पर पंडित की गुलामी करने के लिए बांधे रखता. उस ने पंडित की सेवा करना कम कर दिया, तो पंडितजी की रंगत भी बदल गई.

हरिया अकेले बैठा सोचने लगा, ‘ठीक कहता था मेरा बेटा सुखिया कि यह एक छलावा है. पुजारियों की अपनी जेबें भरने की चालें हैं. मुझे भी दुकान पर काम करना चाहिए था. भगवान के नाम पर लूटा गया है.

इसी तरह लोग लुटते हैं. मैं पूजापाठ के नाम पर ठगा गया हूं. आशीर्वाद पाने के लालच में हाथ पर हाथ धरे बैठ कर अपना सबकुछ मैं ने खुद ही लुटा दिया है.’

हरिया को उस दिन सचाई का ज्ञान हो गया. उस की आंखों पर से भरम का परदा हट गया था. उसे धार्मिक अंधविश्वास की आड़ में लूटा गया था. भगवान और उस की भक्ति एक भूलभुलैया सी लग रही थी, जिस में से आसानी से निकल पाना मुमकिन नहीं.

देर से ही सही, परंतु हरिया उस भूलभुलैया से निकल गया और फिर से अपनी रोजीरोटी कमाने लगा.

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