हिप हॉप क्वीन राजा कुमारी ने रिलीज किया अपने हिट गानों का कलेक्शन

राजा कुमारी विश्व स्तर पर सबसे अधिक दिखाई देने वाली हिप-हॉप आवाज के रूप में अपनी जगह बनाई हुई हैं और वह संगीत बनाने के लिए जानी जाती हैं जो उनकी अमेरिकी परवरिश को उनकी भारतीय जड़ों के साथ जोड़ती है. राजा कुमारी ने एक बैंड के साथ प्रस्तुत अपने पिछले गीतों का संकलित संस्करण जारी किया है. द कैटलॉग रीइमेजिनेड शीर्षक से, राजा कुमारी आपको 30 मिनट की एक बहुत ही मधुर और प्रेरक अनुभव यात्रा की ओर ले जाएगी. ग्रैमी-नॉमिनेटेड रैपर पूरे भारत के दर्शकों के लिए गोवा में लाइव परफॉर्म करती नजर आएंगी.

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वीडियो में, राजा कुमारी एक रेशमी सफेद रंग की स्लिट ड्रेस पहने हुए दिखाई दे रही है, इसे सफेद फूलों के साथ बालों में एक्सेसरीज की तरह लगाया गया है। अपने सफ़ेद पहनावे में रंग जोड़ते हुए, राजा कुमारी ने इसे नीले झुमके और एक स्टेटमेंट बिंदी के साथ पूरा किया है. राजा कुमारी के कई उल्लेखनीय गीत हैं जिसमें जजमेंटल है क्या से द वखरा स्वैग, ज़ीरो से हुस्न परचम, द कम अप से द सिटी स्लम्स, जिन्होंने हम सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया है. नवीनतम वीडियो गीत में द कम अप, आई डिड इट, कौन है तू, शांति, मीरा, बिंदी और चूड़ियां, एनआरआई, अटेंशन एवरीबॉडी, कर्मा, बिलीव इन यू, म्यूट, शुक और सिटी स्लम सहित उनके हिट गाने शामिल हैं.

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अपने उत्साह को व्यक्त करते हुए, राजा कुमारी कहती हैं, “यह एक कठिन समय था जब कोई संगीत कार्यक्रम नहीं हो रहा था, मुझे लगा कि दूसरा लॉकडाउन होने से पहले दुनिया कोई संगीत का उपहार देना चहिए.

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संगीत रिकॉर्ड किया गया था और लॉकडाउन के दौरान हम एडिटिंग और मिक्सिंग में जुटे हुए थे. यह मेरे पसंदीदा गानों में से एक है, गोवा में एक लाइव बैंड के साथ प्रदर्शन करने का एक अद्भुत अनुभव था. 30-मिनट में वे हिट शामिल हैं जिन्हें दुनिया भर के श्रोताओं ने पसंद किया है. मैं इसी बैंड के साथ पूरे भारत में अपने लाइव कॉन्सर्ट टूर की घोषणा करते हुए खुशी हो रही है. मैं स्टूडियो अलंकरण के बिना श्रोताओं के साथ लाइव संगीत साझा करने में सक्षम होने के लिए खुश और आभारी हूं। यह एक संगीतमय भेंट हैं।”

राहुल तिवारी: वेटर से फिल्म एडिटर…

राइटर- सुनील शर्मा

जब भी फिल्मों की बात होती है, तब आम लोगों का ध्यान स्टार हीरो हीरोइन समेत दूसरे बड़े कलाकारों पर ही रहता है, पर जब कभी किसी फिल्म की समीक्षा की जाती है, तब यह भी देखा जाता है कि अमुक फिल्म के एडिटर ने कैसी काटछांट की है और उस पर फिल्म को उम्दा बनाने का सब से ज्यादा बोझ रहता है, क्योंकि जब कोई फिल्म बनती है तब उस की लंबाई बहुत ज्यादा होती है, पर उसे रोचक कैसे रखना है और किस सीन पर पब्लिक सीटी बजाएगी और किस सीन पर सिर पीट लेगी, इस की पूरी समझ एडिटर को होनी चाहिए.

आज हम आप की मुलाकात एक ऐसे ही फिल्म एडिटर राहुल तिवारी से कराते हैं, जिन की जिंदगी का सफर भी फिल्मी रहा है. एक समय मुंबई में गुजरबसर करने के लिए उन्होंने फिल्म कलाकारों को वेटर के रूप में खाना भी खिलाया है. आज उन्हीं के बीच वे फिल्म की एडिटिंग करते हैं, अपनी अदाकारी का हुनर दिखाते हैं और डायरैक्टर की सीट पर भी बैठते हैं. वे उन लोगों को चुप करा देते हैं, जिन्होंने बचपन में उन्हें ‘नचनिया’ कहा था.

‘नचनिया’ क्यों कहा

राहुल तिवारी का जन्म 2 दिसंबर, 1982 को इलाहाबाद के एक आम परिवार में हुआ था. उन के पिता की एक साधारण सी नौकरी थी. उन की प्राइमरी तक की पढ़ाई सरस्वती शिशु मंदिर से हुई थी और आगे 12वीं तक की पढ़ाई केंद्रीय विद्यालय से की थी. उन्होंने ग्रेजुएशन पूर्वांचल यूनिवर्सिटी से की थी, पर उन का रझान बचपन से ऐक्टिंग की तरफ रहा था, तभी तो उन्होंने ‘इलाहाबाद उत्तरमध्य सांस्कृतिक केंद्र’ से थिएटर किया था. इस के बाद वे इलाहाबाद आकाशवाणी से जुड़े, जहां वे कवि गोष्ठी, नाटक वगैरह करते थे. राहुल तिवारी ने बताया, ‘‘जब से मैं खुद को जानता हूं, तब से मेरे भीतर सिनेमा को ले कर लगाव है. मुझे फिल्म डायरैक्टर बनना था और अच्छा डायरैक्टर बनने के लिए फिल्म एडिटिंग भी आनी चाहिए. ‘‘मैं ने बचपन में स्कूल का कोई नाटक नहीं छोड़ा. मेरा नाम पहले से ही लिस्ट में शामिल होता था. 26 जनवरी, 15 अगस्त पर मैं भाषण देता था. मैं ने तब परेड को लीड किया. मैं बिगुल और ड्रम अच्छा बजाता था. कहीं न कहीं मेरे भीतर एक कलाकार था. ‘‘पर, उन्हीं दिनों मेरे आसपास के बहुत से लोग मुझे ‘छिछोरा’ और ‘नचनिया’ समझते थे, क्योंकि मैं नाटकों में ऐक्टिंग करता था. मु झे ‘भड़वा’ तक कहा गया. नुक्कड़ नाटकों में रोड पर नाचगाना होता था और अगर कोई मेरा परिचित देख लेता था, तो घर जा कर बता देता था कि आप का लड़का तो ‘भड़वागीरी’ करता है. ऐसी चीजें मुझे दर्द देती थीं. ‘‘पता नहीं क्यों लोगों की नजरों में मैं ‘आवारा’ था. जब मैं ने मुंबई आने की बात की, तब और जब मेरी शादी होने वाली थी, तब भी लोग मुझे ‘आवारा’ ही बोलते थे, जबकि स्कूल में मैं अच्छा छात्र था.’’

मुंबई में वेटरगीरी अपने स्ट्रगल के दिनों को याद करते हुए राहुल तिवारी ने बताया, ‘‘मैं मुंबई आ तो गया था, पर यहां रहना इतना आसान नहीं है. अगर कोई जुगाड़ नहीं है तो बहुत तकलीफ होती है. शुरूशुरू में मैं भूखा रहा, कम खा कर रहा.’’ उन्होंने आगे बताया, ‘‘पहले एक साल तक (साल 2000 में) मैं ने जुहू में एक मिलिटरी क्लब में बतौर वेटर का काम किया. अगर आप को फिल्म इंडस्ट्री में कुछ पाना है, तो साइड वर्क करना पड़ेगा. इसी दौड़ में मैं ने फिल्म एडिटिंग को सीखा. कोई एडिटिंग स्टूडियो वाला पूरे दिन का 10 रुपए दे देता था, कोई सिर्फ खाना खिला देता था और रातभर मैं उस का सीरियल, फिल्म लाइनअप करता था, औडियो मिलाता था, एडिट करता था. ‘‘6-7 साल तक जब तक मैं असिस्टैंट रहा, तब तक बहुत तकलीफ झेली. लोग मुझे पैसे नहीं देते थे, मैं मुंबई के झोंपड़े में रहा, पर हर पल मुझे कुछ पाने की तमन्ना थी, जिसे मैं ने कभी मरने नहीं दिया.’’ धीरेधीरे मिला काम राहुल तिवारी ने अपने अब तक के सफर में बताया, ‘‘मैं ने फिल्म ‘सरकार’ का ट्रेलर एडिट किया था. मैं रामगोपाल वर्मा की फिल्म ‘कंपनी’ का क्रिएटिव डायरैक्टर रहा. मैं ने हीरोइन ऋषिता भट्ट की फिल्म ‘ऐक्स जोन’ एडिट की थी. मैं फिल्म ‘जीनियस’ में एसोसिएट था. मैं ने ‘द लास्ट सेल्समैन’ का ट्रेलर एडिट किया है. ‘रेस 2’ का मैं ने ट्रेलर एडिट किया. ‘जेम्स’, ‘बनारस’ और ‘आमो आखा एक से’ फिल्में की थीं. ‘‘ऐक्टर नवाजुद्दीन सिद्दीकी की निर्माण की हुई फिल्म ‘मियां कल आना’ को मैं ने एडिट किया था, जिस के डायरैक्टर शमास नवाब सिद्दीकी थे, जिसे ‘कांस फिल्म फैस्टिवल’ में तारीफ मिली थी. मशहूर ईरानी डायरैक्टर माजिद मजीदी ने यह फिल्म देख कर कहा था कि यह तो एडिटर की ही फिल्म है. ‘‘सीरियल ‘भाग्य विधाता’ में मैं ने बतौर विलेन काम किया था. वैब सीरीज ‘ह्यूमन’ में मैं हीरोइन कीर्ति कुल्हारी का पिता बना हूं. अभी अजय देवगन की आने वाली एक फिल्म ‘मैदान’ में मुझे छोटा सा किरदार भी मिला है.’’ एडिटिंग की अहमियत राहुल तिवारी के मुताबिक, ‘‘अच्छा एडिटर जानता है कि उसे कैसे कहानी को, कैसे संवाद को, कैसे सीन को, कैसे कलाकार के काम को तराश कर एडिट करना है, उसे सीन वाइज सजाना है. एडिटर को इन सारी बातों का ध्यान रखना पड़ता है. इस काम को करने में उसे पूरी छूट मिलनी चाहिए. ‘‘जहां तक मेरी बात है, तो मैं डायरैक्टर के सामने अपना पक्ष रखता हूं. किस सीन को हटाना है, किस संवाद को रखना है, फिल्म की लंबाई कितनी रहनी चाहिए, इस का ध्यान बहुत ज्यादा रखना पड़ता है. ‘‘अनिल शर्मा की फिल्म ‘जीनियस’ की एडिटिंग में मेरी उन से काफी बहस भी हुई थी कि फिल्म की लंबाई इतनी ज्यादा न हो जाए कि दर्शक बोर फील करें.

अच्छा एडिटर फिल्म को शानदार बना देता है और बुरा एडिटर फिल्म को कूड़ा कर सकता है.’’ कोरोना काल और मुसीबतें राहुल तिवारी ने कोरोना काल का अपना अनुभव साझा करते हुए बताया, ‘‘इस बुरे दौर में यह जरूर समझ में आया कि आप का परिवार और चंद लोग ही अपने होते हैं, जो मुश्किल समय में आप के साथ खड़े होते हैं. सोशल मीडिया पर ‘वैरी गुड’ या ‘नाइस’ का कमैंट कह देने से कोई आप का हमदर्द नहीं हो जाता है. सुखदुख में तो घूमफिर कर 20-25 लोग ही जीवन में आप के साथ कंधे से कंधा मिला कर खड़े होते हैं. कोरोना काल में ऐसे ही लोग एकदूसरे का हौसला बढ़ाते दिखे. ‘‘इतना ही नहीं, लोग कोरोना काल में कुदरत से जुड़े और उस की अहमियत को समझ . जब सबकुछ बंद हो गया था, तब पर्यावरण एकदम साफ हो गया था. जहां मैं रहता हूं, वहां पहले चिडि़या के चहचहाने की आवाज नहीं आती थी, लौकडाउन में मैं ने वह सब सुना. ‘‘कोरोना काल में मैं ने सोशल मीडिया के जरीए जरूरतमंद लोगों को बताया कि अगर किसी को भी खानेपीने की कोई दिक्कत हो, तो उसे खाना उपलब्ध करा दिया जाएगा. अपने दोस्तों से भी कहा कि जितना आप से हो सकता है, लोगों की मदद करें. ‘‘दिक्कत यह भी है कि फिल्म इंडस्ट्री वालों को सरकार की तरफ से कोई सुविधा नहीं मिलती है. घर, मैडिकल आदि की बेसिक सुविधा तक नहीं है. जो हमारा तथाकथित बौलीवुड है न, यह चंद स्टारों से नहीं बना है. इस में हजारोंलाखों टैक्नीशियन भी हैं. ‘‘चंद बड़े सितारों को कोरोना से कोई ज्यादा फर्क नहीं पड़ता है, क्योंकि उन के पास तो इतना पैसा है कि अगले 50-100 साल भी खत्म न हो. ‘‘उन की कई पीढि़यां जी सकती हैं, लेकिन बाकी जो छोटे कलाकार, लेखक, एडिटर, डायरैक्टर, म्यूजिशियन, आर्ट डायरैक्टर, स्पौटबौय, मेकअपमैन वगैरह बहुत सीमित पैसों में जीवनभर रहते हैं, रोजाना खातेकमाते हैं, जबकि हमारी सरकार उन्हें कोई छोटी सी भी सुविधा नहीं देती है. ‘‘अपने ही एक उदाहरण से बताता हूं कि हाल ही में मैं ने एक वैब सीरीज ‘ह्यूमन’ में अभिनय किया था, जिस के विपुल अमृतलाल शाह डायरैक्टर थे. इस की शूटिंग के लिए मैं मुंबई लोकल ट्रेन से जा रहा था. चूंकि कोरोना में तकरीबन सब बंद था, तो मैं ने अपनी फिल्म एसोसिएशन का कार्ड टिकट कलक्टर को दिखाया और टिकट मांगा तो उस ने टिकट देने से मना कर दिया और मुझ पर हंसा भी कि यह सब क्या है. उस कार्ड की उस ने कोई वैल्यू नहीं समझ‘‘दरअसल, जो हमारी एसोसिएशन है न, वह बहुत ही कमजोर है और हमारी सरकार को इसे इंडस्ट्री का दर्जा देना चाहिए. बौलीवुड समाज को मनोरंजन देता है, लाखों लोगों को रोजगार देता है, अगर समाज से फिल्में छीन ली जाएं, संगीत बंद कर दिया जाए, तो समाज कहीं न कहीं बेरंग हो जाएगा. हम उस में रंग भरते हैं. लिहाजा, हिंदी फिल्मों से जुड़े लोगों को बेसिक सुविधाएं तो सरकार को देनी ही चाहिए.’’ कुछ यादगार पल अपने फिल्मी सफर के कुछ यादगार पलों को याद करते हुए राहुल तिवारी बताते हैं, ‘‘मैं ने फिल्म डायरैक्टर अशोक गायकवाड़ के साथ काम की शुरुआत की थी. उन्होंने ‘दूध का कर्ज’, ‘राजा की आएगी बरात’, ‘इज्जत’ व ‘गैर’ जैसी फिल्मों का डायरैक्शन किया है. वे मेरे गुरु हैं. उन के साथ मेरा बहुत अच्छा समय बीता. ‘‘इस के अलावा फिल्म डायरैक्टर शाहरुख मिर्जा साहब, जिन्होंने ‘सलामी’ फिल्म बनाई थी, से मेरा दोस्ताना संपर्क रहा है. वे मेरे लिए खरीदारी तक करते थे. कपड़े लाते थे. मेरे पैर का नंबर पूछ कर जूता खरीद कर लाते थे. वे अपने बेटे की तरह मुझे चाहते थे. ‘‘वे एक फिल्म कर रहे थे, जिस में महेश भट्ट साहब प्रोड्यूसर थे. एक बार हमें उन के साथ मीटिंग करनी थी. इस के बाद शूटिंग करने के लिए कनाडा जाना था. ‘‘जब महेश भट्ट साहब आए, तो शाहरुख मिर्जा साहब ने मेरा नाम ले कर कमरे में बुलाना चाहा, तो भट्ट साहब ने कहा कि यहां पर हम दोनों के अलावा कोई तीसरा नहीं बैठेगा. उन्हें एकांत चाहिए था. उन्हें खास लोगों के बीच ही बैठना पसंद था. पर शाहरुख मिर्जा साहब ने कहा कि यह मेरा एडिटर है और यह भी बैठेगा और आप को अच्छा लगेगा. ‘‘जब मैं उन के बीच गया, तो भट्ट साहब ने एक बार तो मुझे देखा ही नहीं, फिर धीरेधीरे सीन पर बातें होने लगीं. हालांकि वह फिल्म बन नहीं पाई, क्योंकि शाहरुख मिर्जा साहब का अचानक निधन हो गया था, पर भट्ट साहब से हुई मेरी वह मुलाकात यादगार रही थी. ‘‘ऐसे ही जब मैं जुहू मिलिटरी क्लब में वेटर था, तब मैं ने नाना पाटेकर, आमिर खान और उन के पिता ताहिर हुसैन, शिल्पा शेट्टी, आयशा जुल्का, मिथुन चक्रवर्ती, रमेश सिप्पी, जीपी सिप्पी, जैकी श्रौफ, अनिल कपूर, प्रियंका चोपड़ा, ऐश्वर्या राय के अलावा और भी न जाने कितने कलाकारों को खाना खिलाया था, डांट भी खाई थी. ‘‘फिर उन्हीं लोगों के बीच मैं बतौर एडिटर भी बैठा. वे हैरान हो जाते थे कि एक वेटर अब फिल्म एडिटिंग भी कर रहा है. पर मुझे तो फिल्म इंडस्ट्री में किसी तरह बने रहना था. घर से पैसे नहीं आते थे, क्योंकि मेरे पिताजी उत्तर प्रदेश जल निगम में छोटी सी नौकरी में थे. ‘‘पर, मैं इतना जरूर कहूंगा कि अगर आप को अपना मुकाम हासिल करना है, तो किसी भी काम को करने में हिचक महसूस न करें. मैं शाम को 6 बजे से ले कर रात के साढ़े 12 बजे तक वेटर का काम करता था और दिन में फिल्म इंडस्ट्री में काम मांगता था. ‘‘सच कहूं, तो मेरी यही स्ट्रगल आज मुझे इस मुकाम तक लाई है. अभी तो मुझे बड़ीबड़ी फिल्में बनानी हैं. मैं अपनी फिल्म ‘यूपी’ और ‘अमेरिका कहां है’ को बनाना चाहता हूं. जल्द ही मेरी एक शौर्ट फिल्म ‘राजवीर’ भी रिलीज होने वाली है, जिस में मैं ने क्रिएटिव डायरैक्शन व एडिटिंग तो की ही है, लीड रोल भी मेरा ही है.’’

बौलीवुड में हुई ‘‘मैंने प्यार किया’’ फेम भाग्यश्री की बेटी की एंट्री, खूबसूरती में मां मात को देती हैं अवंतिका दसानी

शांतिस्वरूप त्रिपाठी  

वक्त वक्त की बात है.एक वक्त वह था,जब अपने कैरियर की पहली और सफलतम फिल्म ‘मैंने प्यार किया‘ के बाद भाग्यश्री को हिमालय दसानी से अभिनय को अलविदा कहना पड़ा था.यह एक अलग बात है कि कुछ वर्ष पहले भाग्यश्री ने अभिनय में वापसी की.बहरहाल,पिछले चार वर्ष से उनका बेटा अभिमन्यू दसानी अभिनय जगत में अपने पैर जमाने के लिए संघर्ष कर रहा है। और अब भाग्यश्री अपनी बेटी को भी फिल्म उद्योग से जुड़ने से नहीं रोक पायीं.

भाग्यश्री की बेटी अवंतिका दसानी इन दिनों रोहण सिप्पी निर्देषित साइकोलॉजिकल थ्रिलर-ड्रामा वेब सीरीज ‘मिथ्या‘ के साथ बौलीवुड में कदम रखने जा रही हैं.इसका पोस्टर बाजार में आ चुका है,जिसमें अवंतिका दसानी बौलीवुड अदाकारा हुमा कुरैशी के साथ नजर आ रही हैं.देखना है कि क्या भाग्यश्री की बेटी अवंतिका ग्लैमर की दुनिया में उन्ही की तरह पहली फिल्म से ही अपना परचम लहरा पाती हैं या नहीं…

‘‘मिथ्या’’ के जारी हुए पोस्टर में अवंतिका दसानी संजीदा लुक में नजर आ रही है .जो एक तरह से इस मनोवैज्ञानिक थ्रिलर-ड्रामा के अंधेरे और पेचीदा पक्ष को दर्शकों के सामने रख रहा है.दो हीरोईनों के अभिनय से सजी ट्विस्टेड कहानी के साथ एक अनकन्वेंशनल और प्रयोगात्मक किरदार का चयन कर अवंतिका दसानी ने खुद को उत्कृष्ट अभिनेत्री होने का दावा करती हैं.

अभिनय कैरियर की शुरुआत से उत्साहित अवंतिका दसानी कहती हैं-‘‘कैरियर की शुरुआत में ही इस तरह के चुनौतीपूर्ण किरदार निभाने और दिलचस्प कहानी का हिस्सा बनना मेरे लिए सबसे बड़ा रोमांच रहा.पहली वेब सीरीज में ही प्रतिभाषाली कलाकारों और तकनीषियन के साथ काम करने का अवसर मिलना मेरे लिए सौभाग्य की ही बात है.आज ओटीटी प्लेटफॉर्म पर दर्शक अपने सबसे एक्ससिटिंग एक्सपीरियंस और अच्छी कहानियों की तलाश में आते हैं और मुझे अपनी यात्रा यहां से शुरू करने में और इस सफर का हिस्सा बनकर वाकई खुशी हो रही है! मुझे उम्मीद है कि दर्शकों को भी वेब सीरीज ‘मिथ्या’देखने में मजा आएगा.’’

एक डाक्टर और एक सीबीआई अफसर के अनुशासन में काफी अंतर है: डॉ. आशिष गोखले

कोरोना महामारी ने हर इंसान को बहुत कुछ सिखाया. इस महामारी के दौरान बहुतो ने अपने प्रियजन खोए. जबकि कोविड 19 के दौरान तमाम डाक्टर मरीजों की जिंदगी बचाने के लिए दिन रात काम करते रहे. ऐसे ही डाक्टरो में से एक डॉ. आशिष गोखले भी ‘कोविड 19’’ के दौरान मुंबई के एक निजी अस्पताल में आईसीयू और आई सीसीयू में चैबिसों घंटे कार्यरत रहकर लोगों की जिंदगी बचाने के साथ ही लॉक डाउन के चलते परेशान 250 डेली वेजेस वर्करों को स्वयं हर दिन मुफ्त में खाना भी खिलाते रहे.

‘कोविड 19’ के दौरान डाॅ. आषिष गोखले को कोरोना पीड़ितों का इलाज करते हुए देखकर काफी लोग आशचर्य चकित भी हो रहे थे. क्योंकि डॉ. आशिष गोखले डॉक्टर के रूप में प्रैक्टिस करने के साथ साथ पिछले छह सात वर्षों से अभिनय के क्षेत्र में सक्रिय हैं. लोग उन्हे हिंदी सीरियल ‘कुमकुम भाग्य’’ व मराठी सीरियल ‘‘ मोगरा फुलेला’ सहित कई सीरियलों व फिल्मों में बतौर अभिनेता देख चुके है. पर अब डॉ. आशिष गोखले एक बार फिर अभिनय के क्षेत्र में काफी सक्रिय हो गए हैं. फिलहाल वह 17 दिसंबर से ‘जी 5’ पर स्ट्रीम होने वाली फिल्म ‘‘ 420 आई पी सी ’’को लेकर सूर्खियों में हैं, जिसमें उन्होने मुख्य सीबीआई अफसर का किरदार निभाया है.

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प्रस्तुत है डा. आशिष गोखले से हुई

एक्सक्लूसिव बातचीत के अंश…

आप तो डाक्टरी पेशे से जुड़े हुए हैं,फिर यह अभिनय का चस्का कब लग गया?

-डाक्टरी पेशा तो मेरी रगों में बसा हुआ है.मैं महाराष्ट् के कोंकण इलाके के वेलनेष्वर, रत्नागिरी का रहने वाला हॅूं.मेरे परिवार में सभी डाक्टर हैं.मेरे पिता डा. ध्रुव गोखले, मां उषा गोखले व छोटी बहन भी डाक्टर है.मेरे माता पिता का वेलनेष्वर में ही ‘आषिष अस्पताल’ नामक अस्पताल है.मैंने पुणे से डाक्टरी की पढ़ाई पूरी की.फिर मैं अपने सपनों को पूरा करने के लिए मुंबई आ गया और मुंबई के मल्टीपल स्पेसियालिटी अस्पताल में आईसीयू और्र आइसीसीयू में इमर्जेंसी फिजीशियन डाक्टर के रूप में कार्यरत हॅूं.मगर मुझे बचपन से ही अभिनय का षौक रहा है. मैंने स्कूल के दिनों से ही थिएटर करना शुरू कर दिया था.

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जब बचपन से अभिनय का शौक था, तो फिर डाक्टरी की पढ़ाई??

-जैसा कि मैने पहले ही बताया कि मेरे माता पिता डाक्टर हैं और उनका अपना अस्पताल भी है.इसलिए उनका दबाव रहा.माता पिता ने मुझे एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी करने के लिए कहा.मैने पुणे के मेडीकल कालेज से एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी की.डाक्टी की डाॅक्टरी की पढ़ाई पूरी होने के बाद मैंने डाॅक्टर के रूप में प्रैक्टिस करना षुरू किया था.लेकिन अभिनय का कीड़ा अंदर से हिलोरे मार रहा था.इसलिए मैने अपने पिता से मंुबई जाने की इजाजत मांगी.इस पर मेरे पिता कुछ नाराज हुए.बाद में कहा कि ‘यदि मंुबई जाओगे,तो आर्थिक मदद की उम्मीद मत करना.मैं तुझे एक फूटी कौड़ी नही दॅूंगा.तुझे अपने बलबूते पर संघर्ष करना पड़ेगा.’उस वक्त मैं डाक्टरी की पढ़ाई पूरी करके प्रैक्टिस शुरू ही की थी.इसलिए मेरे पास आर्थिक बचत नही थी.पर मैं अपने सपने को पूरा करने के लिए मंुबई आ गया.मैं मंुबई के जुहू स्थित एक निजी अस्पताल में रात में बतौर डाक्टर काम करने लगा.तथा दिन में अभिनय के लिए संघर्ष करना षुरू किया.मेरी मेहनत रंग लायी.2015 -2016 में मुझे ‘प्यार को हो जाने दो’ तथा ‘कुमकुम भाग्य’ सीरियलों में अभिनय करने का अवसर मिला. ‘कुमकुम भाग्य’ में कैमियो किया था.2016 में फिल्म ‘गब्बर इज बैक’ में छोटा सा किरदार निभाया.इस फिल्म के सेट पर कई लोगों से मेरी अच्छी दोस्ती हो गयी.मुझे फिल्मी दुनिया की कार्यषैली, आॅडीषन देने के बारे में विस्तृत जानकारी मिली.2017 में फिल्म ‘लव यू फैमिली’की, जिसमें मैने मनोज जोषी के बेटे का किरदार निभाया था.इसके बाद मंैने भारत का पहले ड्ामा रियालिटी षो ‘तारा फ्र्राम सितारा’ किया.इसमें मेरा वरुण माने का किरदार काफी लोकप्रिय हुआ.इसके अलावा ‘भौकाल’ व ‘साइड हीरो’ जैसी वेब सीरीज की.‘मोगरा फुलेला’, ‘कंडीषंस अप्लाय’,‘रेडी मिक्स’,बाला’ सहित कुछ मराठी फिल्में की.अब मैने वेब फिल्म ‘‘ 420 आईपीसी’’की है.

थिएटर पर क्या क्या किया?

-थिएटर काफी किया है.मैने मराठी, हिंदी व उर्दू भाषा के नाटकों में अभिनय किया है.मैने बीस वर्ष कह उम्र में‘स्वामी विवेकानंद’ नामक नाटक में स्वामी विवेकानंद का यंग उम्र के स्वामी विवेकानंद का किरदार निभाया.मैने इसमें उनके संन्यासी बनने से पहले का किरदार निभाया.इसके कन्या कुमारी,कानपुर, दिल्ली, अहमदाबाद सहित कई शहरों में इसके षो किए.उस वक्त मैं इस नाटक के षो करते हुए डाक्टरी की पढ़ाई भी कर रहा था. उन दिनों मैं फैशन शो में माॅडलिंग करता था. कई प्रोडक्ट के लिए रैंपवाॅक भी किया.इसके चलते कालेज दिनों में मैं पुणे में काफी मषहूर था.

दो हिंदी,तीन मराठी और एक उर्दू नाटक में अभिनय किया.हर नाटक के काफी षो हुए.मैंने ख्ुाद भी एक नाटक का लेखन व निर्देशन व उसमें अभिनय किया.मैने कुछ एक पात्रीय नाटक भी किए.मराठी नाटक ‘‘नाते जुड़ा दे मणाषी मणाषी’ काफी लोकप्रिय रहा.एक पात्रीय नाटक ‘बैक टू स्कूल’ भी लोकप्रिय हुआ.यह सारे नाटक 2007 से 2011 के बीच ज्यादा किए.

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आपकी मातृभाषा तो मराठी है?

-जी हाॅ!लेकिन मैने पंजाबी,हिंदी व उर्दू भाषाएं लिखना व पढ़ना सीखा. मैने पुणे के कैंट इलाके के गुरूद्वारा में जाकर सरदार जी से पंजाबी भाषा सीखी.इसलिए मेरी हिंदी में आपको मराठी एसेंट नही मिलेगा.मैं षुद्ध हिंदी व

उर्दू में बात कर सकता हॅूं. फिल्म ‘‘ 420 आई पी सी ’’ से जुड़ना कैसे हुआ?

-एक अभिनेता के तौर पर संघर्ष करते हुए मैने कई प्रोडकशन हाउस में अपनी तस्वीरें भेज रखी हैं. फिल्म ‘‘420 आई पी सी’’ के प्रोडकशन हाउस में भी तस्वीरें भेज रखा था.कोविड के वक्त मैं बहुत व्यस्त था.दिन में पांच सौ फोन आते थे.मैने कई मरीजों का मुफ्त में इलाज किया. खैर,सितंबर 2020 में प्रोडक्षन हाउस से मेरे पास आॅडीषन करके वीडियो भेजने का फोन आया.उस वक्त मैं अस्पताल में था.तो मंैने कह दिया कि मैं रात में भेज पाउंगा.देर रात मैने आॅडीषन भेजा और मेरा चयन हो गया.

फिल्म ‘‘ 420 आई पी सी ’’ में आपका किरदार क्या है?

-मैने इसमें मुख्य सीबीआई आफिसर मिस्टर अचलेकर का किरदार निभाया है.जो कि एक बहुत बड़े घोटाले में षामिल मिस्टर केसवानी को गिरफ्तार करता है. केसवानी को सजा देने के बाद रिहा किया जाता हे.उसके बाद कोर्ट केस चलता है. सीबीआई अफसर का किरदार निभाने के लिए किस तरह की तैयारी की?

-निर्देषक मनीष गुप्ता ने मुझसे कहा कि मुझे सीबीआई आफिसर के लिए अपनी बाॅडी लैंगवेज को बदलना पड़ेगा.मुझे उनका उठना, बैठना,चलना फिरना वगैरह सब कुछ सीखना पड़ेगा.अब यह मेरे लिए सबसे बड़ी चुनौती थी.क्योकि सीबीआई आफिसर आसानी से मिलते नही है.यह लोग तो बताते भी नही है कि वह सीबीआई आफिसर हैं.पुलिस अफसर तो हमारे आसपास नजर आते हैं.इसलिए हम इनके बारे में सब कुछ आसानी से जान सकते हैं.सीबीआई आफिसर मीडिया में भी नही आते.तो यह जानना बहुत मुष्किल था कि उनकी बाॅडी लैंगवेज कैसी होती है?वह किसी भी परिस्थिति में किस तरह से रिएक्ट करते हैं.इस वेब सीरीज के सीबीआई आफिसर के किरदार में एक्षन व रिएक्षन काफी है.कोविड का वक्त था,इसलिए किसी सीबीआई आफिसर से मिलने भी नही जा पाया.मगर मैं कुछ पुलिस अफसरों को जानता हॅू,तो उनकी मदद से एक दो सीबीआई आफिसर का फोन नंबर लेकर उनसे फोन पर बात कर सारी चीजें समझी.बाॅडी लैंगवेज बदलने के लिए मुझे काफी मषक्कत करनी पड़ी.मैं अस्पताल में भी उसी तरह से रहने का प्रयास करता.तो मेरे सहकर्मी डाक्टरांे ने सवाल भी किया कि डाॅ.अषीष आपके अंदर कुछ बदलाव आ गया है.मेरे चलने का ढंग बदल चुका था.अब मैं गंभीर रहने लगा था.पहले मैं बहुत हंस हंस कर बात करता था,पर अब चुप रहने लगा था.वास्तव में मैं हमेशा चाहता हॅंू कि मैं जिस किरदार को निभाउं,उसमें पूरी तरह घुसकर उसे न्यायसंगत तरीके से परदे पर साकार करुं.इसलिए मैं अपने हर निर्देशक से किरदार के संबंध में कई सवाल करता हॅूं.मैं हमेषा हर किरदार को कैमरे के सामने पूरी षिद्दत के साथ जीता हॅूं. डाक्टर भी अनुषासित होते हैं.

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सीबीआई आफिसर भी अनुषासित होते हैं.इस बात ने आपको सीबीआई आफिर का किरदार निभाने में कितनी मदद की?

-देखिए,दोनो अनुषासन के साथ अपने काम को अंजाम देते हैं.मगर दोनो मंे सबसे बड़ा विरोधाभास यह है कि एक सीबीआई आफिसर अपराधी के आत्म विष्वास को डिगाकर उससे सच उगलवाता है.जबकि एक डाक्टर अपने मरीज के आत्मविष्वास को बढ़ाने के लिए आवष्यक बातें करता है.जब मरीज का आत्मविष्वास बढ़ता है,तभी वह जल्दी ठीक होता है.सीबीआई आफिसर की तरह डाक्टर गंभीर नही रहता.वह मरीज की बीमारी की रिपोर्ट देखकर भी चेहरे पर भाव नहीं आने देता.बल्कि यही कहता है कि कोई गंभीर बात नही है.डाक्टर अपने मरीज को हंसाता है.उसका आत्मविष्वास बढ़ाता है.बीमारी की गंभीरता को अहसास करते हुए डाक्टर इस बात को अपने चेहरे के हाव भाव से जाहिर नहीं होने देता.

इसके अलावा कुछ नया कर रहे हैं?

-जी हाॅ! दो तीन प्रोजेक्ट है.अभी एक फिल्म की षूटिंग हैदराबाद में कर रहा हॅूं.जबकि अमेजाॅन के लिए वेब सीरीज की है.पर इनके संबंध में अभी ज्यादा नहीं बता सकता.

शौक क्या है?

-संगीत सुनना,लिखना.कविताएं,चुटकुले व कहानियंा लिखता हॅूं.सामज सेवा के कार्य करता हॅूं.

सोशल वर्क?

-पहले लाॅक डाउन के वक्त मैं हर दिन 250 लोगों को मुफ्त में भोजनकराता था.कई मरीजों का मुफ्त में इलाज किया.उन दिनों मैने सोशल मीडिया पर वीडियो डालकर लोगों को हर डेलीवेजेस की मदद करने के लिए प्रेरित करने का काम किया.होम क्वारंटाइन करने का काम किया.

Review: ‘वेल्ले’- समय व पैसे की बर्बादी

रेटिंग: एक़ स्टार

निर्माताः अभिषेक नामा, सुनील एस सैनी, नंदिनी शर्मा, गणेश एम सिंह, जोहरी टेलर

निर्देशकः देवेन मुंजाल

लेखकः पंकज मट्टा

कलाकारः करण देओल, आन्या सिंह, अभय देओल, मौनी रॉय, जाकिर हुसैन, विशेष तिवारी,  सावंत सिंह प्रेमी, राजेश कुमार, महेश ठाकुर,  अनुराग अरोड़ा व अन्य

अवधिः दो घंटा चार मिनट

धर्मंन्द्र के पोते और सनी देओल के बेटे करण देओल असफल फिल्म ‘‘पल पल दिल के पास’’ के बाद अब हास्य फिल्म ‘‘वेल्ल’े ’ में नजर आ रहे हैं,जो कि 2019 में प्रदर्शित तेलगू फिल्म ‘‘ब्रोचेवारेवारूरा’’ का हिंदी रीमेक है. वेले का मतलब हाते है ऐसे लोग जिनके पास र्काइे काम नहीं होता. फिल्म ‘वेले’ में भी करण देओल अपने अभिनय का जलवा दिखाने में बुरी तरह से असफल रहे हैं.

काश करण देओल धड़ाधड़ फिल्में करने की बनिस्बत अपनी अभिनय प्रतिभा को निखारने पर वक्त देते.

कहानीः

लेखक व निर्देशक ऋषि सिंह  अभय देआ देओल अपनी नई कहानी पर फिल्म बनाने के लिए निर्माता की तलाश के साथ ही अपनी इस फिल्म में मशहूर अदाकारा रोहिणी, मौनी रॉय को हीरोइन लेना चाहते है. ऋषि सिंह अभिनेत्री रोहिणी को कहानी सुनाने बैठते हैं. वह कहानी सुना रहे है.

यह कहानी 12 वीं कई वर्षां  से पढ़ रहे तीन दोस्तों- राहुल- करण देओल, राम्बो- सावंत सिंह प्रेमी और राजू- विशेष तिवारी के गैंग की है. यह वही गैंग है यानी कि ‘वेल्ले’  जो सिर्फ मस्ती करते हैं. इनकी जिंदगी का मकसद रिलैक्स करने के साथ मौज मस्ती करना है. यह तीनों जिस स्कूल में पढ़ते हैं, वहां के सख्त प्रिंसिपल राधेश्याम 1की बेटी रिया को अपने गैंग का हिस्सा बनाकर अपने गैंग को ‘आर 4’ नाम देते हैं.वास्तव मं े रिया की मां नही है.उसे पढ़ने की बजाय नृत्य का शौक है.पर रिया के पिता नृत्य के खिलाफ हैं.राहुल अपने दोस्त रितेषदीप की मदद से नृत्य का परषिक्षण दिलाने की बात करता है. पर पैसा नही है. तब रिया एक योजना बनाती है. जिसमें राहुल,रम्बो व राजू फंस जाते हैं. रिया की येाजना के अनुरूप यह लोग रिया का अपहरण कर रिया के पिता से आठ लाख रूपए वसूलते है. फिर रिया घर से भागकर राहुल के मित्र रितेषदीप की मदद से नृत्य की कोचिंग क्लासेस में प्रवेश लेती है.

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इसी बीच एक गैंग रिया का अपहरण कर रिया के कहने पर राहुल को फाने कर दस लाख रूपए की मांग करता है अन्यथा वह रिया को बेच देने की धमकी देता है.उधर ऋषि सिंह के पिता अस्पताल पहुंच गए हैं, जिनके ऑपरेशन के लिए दस लाख रूपए चाहिए.

रोहिणी उसे दस लाख रूपए देने के साथ ही ऋषि सिंह के साथ अस्पताल रवाना होती है.रास्ते में राहुल व उसके साथी यह दस लाख रूपए छीन लते हैं. फिर कई घटनाक्रम तेजी से बदलते हैं. अंततः राधेश्याम का अपनी बेटी रिया के प्रति प ्रेम उमड़ता है.राहुल ,ऋषि सिंह व राधेश्याम को पैसे वापस दे देत.सभी सुधर जाते हैं.

लेखन व निर्दशनः

इस फिल्म की सबसे बड़ी कमजारे कड़ी इसकी कथा व पटकथा तथा कथा कथन शैली है. फिल्मकार एक बात भूल जाते है कि दक्षिण भारत की कहानी को उत्तर भारत के दशर्क के लिए ज्यो का त्यों नही परासे जाना चाहिए. इसके लिए पटकथा में आवशयकक बदलाव करने के लिए मेहनत की जानी चाहिए, जो कि लेखक व निर्देशको ने नहीं किया. इतना ही नही किरदारों के लिए कलाकारो का चयन भी गलत रहा. फिल्म के निर्देशक दवे ने मुंजाल बुरी तरह से मात खा गए हैं.

फिल्म देखते समय कई जगह ऐसा लगता है कि निर्देशक ने कलाकारो से कह दिया कि कुछ करते रहा. हिसाब से करना है,यह बताना भलू गए या वह स्वयं नहीं समझ पाए.कई दृष्यों का दोहराव भी अजीबो गरीब तरीके से किया गया है. बतौर निर्देशक देवेन मुंजाल फिल्म के किरदारों और फिल्म के मूल संघर्ष को स्थापित करने में विफल रहे हैं. एडीटर ने भी अपने काम को सही ढंग से अंजाम नही दिया.

अभिनयः

राहुल के किरदार में करण दोओल ने बुरी तरह से निराश किया है. उनके चेहरे पर न भाव है और न ही किरदार के अनुरूप उनकी बौडी लैंगवेज है. करण देओल को अपनी संवाद अदायगी पर भी मेहनत करने की जरुरत है. महज सुंदर हाने से अभिनय नही आ जाता. करण देओल की बनिस्बत उनके दास्त बने विशेष तिवारी व सावंत सिंह ज्यादा बेहतर नजर आए है.

ऋषि सिंह के किरदार में अभय देओल के लिए करने को कुछ खास रहा नही. जो कुछ दृश्य उनके हिस्से आए, वह लेखक व निर्देशक की महे रबानी से उभर नही पाए. अभिनेत्री रोहिणी के किरदार में मौनी रॉय भी निराश करती है.

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मौनी रॉय खुद को सदैव सूर्खियां में रखने के लिए उल जलूल खबरें फैलाने में अपना वक्त व पैसा बर्बाद करने के अभिनय को निखारने पर ध्यान देती. मौनी रॉय की बनिस्बत रिया के किरदार में आन्या सिंह बाजी मार ले जाती है. आन्या सिंह कई दृश्यों में लोगों का ध्यान अपनी तरफ खींचन में सफल रही है. राजेश कुमार जैसे प्रतिभाशली व अनुभवी कलाकार ने यह फिल्म क्यों की,  यह समझ से परे है.

Film Review- बली: अस्पताल व डाक्टरी पेशे से जुड़े अहम मुद्दे को ‘रहस्य व रोमांच की चाशनी में’

रेटिंग: दो स्टार

निर्माता: अर्जुन सिंह बरन,कार्तिक निशानदर

निर्देशक: विशाल फूरिया

कलाकार: स्वप्निल जोशी,पूजा सावंत, बाल कलाकार

समर्थ जाधव, बाल कलाकार अभिषेक

बचनकर,प्रीतम कगने,रोहित कोकटे, संजय रणदिवे,

श्रृद्धा कौल, महेश बोडस

अवधि: एक घंटा 44 मिनट

ओटीटी प्लेटफार्म: अमजाॅन प्राइम वीडियो

कुछ समय पहले प्रदर्शित फिल्म ‘‘छोरी’’ के निर्देशक विशाल फुरिया अब एक मराठी भाषा की रहस्य व रोमांच से भरपूर फिल्म ‘‘बली’’ लेकर आए हैं, जो कि नौ दिसंबर 2021 से ‘अमेजाॅन प्राइम वीडियो’’ पर स्ट्रीम हो रही है.

फिल्म ‘बली’ में डाक्टरी पेशे से जुड़े एक अहम मुद्दे को उठाकर अस्पतालों में आम इंसानों के साथ होने वाली ठगी आदि का चित्रण है.

कहानीः

कहानी के केंद्र में मध्यम वर्गीय श्रीकांत साठे और उनका सात वर्षीय बेटा मंदार साठे है.श्रीकांत साठे की पत्नी की मौत हो चुकी है.श्रीकांत ही मंदार का पालन पोषण कर रहे हैं.मंदार अच्छा क्रिकेट खेलता है.एक दिन क्रिकेट खेलते हुए मंदार बेहोश होकर गिर पड़ता है. मंदार को जन संजीवनी अस्पताल में भर्ती किया जाता है,जहां वह एक रहस्यमयी एलिजाबेथ नामक नर्स से बातें करना शुरू करता है.

मंदार के अनुसार यह नर्स जन संजीवनी अस्पताल की पुरानी इमारत में रहती है,जो कि आठ माह से बंद पड़ी है.कहानी ज्यों ज्यों आगे बढ़ती है, त्यों त्यों रहस्य गहराता जाता है.अंततः जो सच सामने आता है,उससे इंसान दहल जाता है.

लेखन व निर्देशनः

लेखक व निर्देशक ने डाक्टरी पेशा व अस्पतालों से जुड़े एक अहम मुद्दे को रहस्य व रोमांच के ताने बाने के तहत पेश किया है. फिल्म में डाक्टरी की पढ़ाई में असफल रहे इंसान का डाक्टर के रूप में अपने पिता के अस्पताल का मुखिया बनकर लोगों को मौत के मुंह में ढकेलने से लेकर गलत रिपोर्ट के आधार पर एनजीओ से पैसे ऐठने तक के मुद्दे उठाए हैं. पर वह इसे सही अंदाज में पेश करने में बुरी तरह से असफल रहे हैं.फिल्म की गति काफी धीमी है.

निर्देशक ने बेवजह के बोझिल दृष्य पिरोकर फिल्म को लंबा खींचने के साथ ही बेकार कर दिया.वैसे निर्देषक विषाल फुरिया ने दर्शकों को डराने के मकसद से अत्यधिक कूदने वाले या भयानक भूतों के चेहरों का इस्तेमाल नहीं किया.जबकि कई दृष्यों को भयवाहता के साथ पेश करने की जरुरत थी.पर फिल्म की कहानी का रहस्य और मूल मुद्दा सब कुछ अंतिम बीस मिनट में ही समेट दिया है.

अभिनयः

सात वर्षीय बेटे के पिता श्रीकांत साठे के किरदार में स्वप्निल जोशी का अभिनय उत्कृष्ट है.मंदार के किरदार में समर्थ जाधव अपने अभिनय से लोगों को अपनी तरफ आकर्षित करता है.वह उन दृश्यों और स्थितियों में भी अत्यधिक अभिव्यंजक हैं,जो केवल सर्वश्रेष्ठ की मांग करते हैं.बाकी कलाकारों का अभिनय ठीक ठाक है.डा.राधिका के किरदार में पूजा सावंत सुंदर नजर आयी हैं,मगर अभिनय के लिए उन्हे काफी मेहनत करने की आवश्यकता है.

अभिनेता व निर्देशक समीर सोनी बने लेखक

‘कैलिफोर्निया वि-रु39यवविद्यालय (लॉस एंजिल्स) से स्नातक तथा मेरिल लिंच में एक वित्तीय विश्लेषक के रूप में दो वर्ष की नौकरी करने के बाद अभिनय की ओर रुख करने वाले समीर सोनी ने फिल्म,टीवी व थिएटर पर अभिनय करते हुए कई पुरस्कार अपनी -हजयोली में डाले. फिर समीर सोनी ने मई 2018 में फिल्म बर्थडे सॉन्ग’ का लेखन व निर्देषन कर बतौर लेखक व निर्दे-रु39याक के रूप में अपनी शुरुआत की.

अब एक कदम आगे ब-सजय़ाते हुए समीर सोनी ने अपने दिल की बातों को बतौर लेखक किताब ‘‘माय एक्सपीरियंस विथ द सायलेंस’’ लेकर आए हैं. यह किताब 27 नवंबर से हर बुक स्टाॅल पर उपलब्ध है. वास्तव में समीर ने खामो-रु39याी में एकांतपन का आभास किया और अपने जीवन के सबसे चुनौतीपूर्ण दिनों के दौरान खुद को आराम देने के लिए अपनी डायरी की ओर रुख किया.

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अंतमुर्खी स्वभाव के समीर ने अपनी इस पुस्तक के माध्यम से बहिर्मुखी दुनिया से इस बात को सा-हजया किया है कि उनके अंतर्मुखी दिमाग में क्या चलता रहा है और उसके बीच उन्होने कैसे अपना रास्ता अपनाया.

इस पुस्तक के माध्यम से समीर सोनी ने अपने पाठकों को यह याद दिलाने का प्रयास किया है कि जब तक कोई खुद की खोज नहीं कर लेता, तब तक वह किसी और का जीवन जी रहा है, जिसे समाज द्वारा निर्धारित किया गया है.इस किताब में यह भी बताया गया है कि कैसे स्वयं को खोजने के लिए आ-रु39याा और निरा-रु39याा के बीच निरंतर संघ-ुनवजर्या करना पड़ता है.

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अपनी किताब की चर्चा करते हुए खुद समीर सोनी कहते हैं-ंउचय‘‘यह डायरी पूरी तरह से अंतर्मुखी लोगों‘ के संबंध में है, जो यह बताती है कि मैं दुनिया को कैसे देखता हूं, कैसे मैंने -रु39याोबिज के माध्यम से अपना रास्ता बनाया है.एक ऐसा व्यक्ति जो कभी बाहर जाने वाला नहीं है.मैंने अपनी इस किताब में अपना दिल खोलकर एक साथ रखा है.ऐसे समय में जब लोग मान्यता चाहते हैं,मैंने अपनी सुरक्षित जगह,अपनी डायरी की ओर रुख करना सही सम-हजया और इस तरह मैं खुद को -सजयूं-सजय पाया.”

समीर आगे कहते हैं-ंउचय‘‘मैं एक ऐसा -रु39याख्स हूं, जो सामाजिक रूप से बहुत ज्यादा सक्रिय नहीं है, जो ज्यादातर मामलों में नुकसान का कारण होता है. लेकिन अभिनेता के तौर पर यह मेरे लिए फायदा था.क्योंकि इसने मु-हजये अपने

किरदार से बेहतर तरीके से जुड़ने के लायक बनाया.जब मु-हजये अपना पहला पुरस्कार मिला और मेरे नाम की घो-ुनवजयाणा हुई, तो सन्नाटा फैला हुआ था, मेरे लिए कोई ताली नहीं बजा रहा था और मेरी डायरी ने मु-हजये ऐसे दिनों से गुजरने में मदद की.मैंने इतनी कमियों के बावजूद खुद को वहां से बाहर निकाला है, लेकिन अंत में, मैं अपने अच्छे दिनों के लिए भी आभारी हूँ, और मेरी डायरी ने असल में इस सब में मेरी मदद की है.’

Film Review- बंटी और बबली 2: पुराने स्थापित ब्रांड को भुनाने की असफल कोशिश

रेटिंग: डेढ़ स्टार

निर्माता: यशराज फिल्मस

लेखक व निर्देशक: वरूण वी शर्मा

कलाकार: रानी मुखर्जी, सैफ अली खान, सिद्धांत चतुर्वेदी,  शारवरी वाघ, यशपाल शर्मा, पंकज त्रिपाठी

अवधि: 2 घंटे 13 मिनट

यशराज फिल्मस की 2005 में कान फिल्म ‘‘बंटी और बबली’’ ने बॉक्स आफिस पर जबरदस्त सफलता बटोरी थी- इस फिल्म में बंटी के किरदार में अभिषेक बच्चन और बबली के किरदार में रानी मुखर्जी थीं- छोटे शहर के इन बंटी और बबली की चालाकी व धुर्ततता ने दर्शकों का दिल जीत लिया था-अब 16 वर्ष बाद यशराज फिल्मस अपनी इसी फिल्म का सिक्वअल ‘‘बंटी और बबली2’’ लेकर आया है,जिसमें बबली के किरदार में रानी मुखर्जी हैं, मगर बंटी के किरदार में अभिषेक बच्चन की जगह पर

सैफ अली खान आ गए हैं. इसी के साथ नई  पीढ़ी के बंटी के किरदार में सिद्धांत चतुर्वेदी और बबली के किरदार में शारवरी वाघ हैं.  मगर सिक्वअल फिल्म ‘‘बंटी और बबली 2’’ की वजह से पुराने ब्रांड को नुकसान पहुंचाता है.

कहानीः

अब बंटी और बबली धुर्ततता छोड़कर फुरसगंज में रह रहे हैं- बंटी यानी कि राकेश त्रिवेदी ( सैफ अली खान) अब रेलवे में नौकरी कर रहे हैं-बबली यानी कि विम्मी त्रिवेदी (रानी मुखर्जी)  अब एक साधारण गृहिणी  हैं- उनका अपना एक बेटा है- अचानक एक दिन पता चलता है कि बंटी और बबली की तर्ज पर काम करने वाले कुणाल सिंह (सिद्धांत चतुर्वेदी) और सोनिया कपूर (शारवरी वाघ) नामक दो ठग पैदा हो गए हैं.

जिन्होने बंटी और बबली स्टाइल में ठगी करने के बाद लोगों के पास  पास बंटी और बबली का पुराना लेबल छोड़ देते हैं. यह दोनों कम्प्यूटर इंजीनियर हैं, मगर नाकैरी न मिलने के कारण इस काम में लग गए हैं. अब उनका मूल मंत्र ठगों और ऐश करो हो गया है. मगर ठगी के 16 वर्ष पुराने वाले तरीके  ही आजमा रहे हैं- नए बंटी  और बबली के कारनामों के चलते पुलिस विभाग  हरकत में आता है- अब दशरथ सिंह के रिटायरमेट की वजह से पुलिस अफसर जटायु सिंह (पंकज त्रिपाठी) इसकी जांच शुरू करते हैं, उन्हं लगता है कि पुराने बंटी और बबली वापस अपनी कारगुजारी दिखा रहे हैं, इसलिए, वह इन्हें पकड़ कर जेल में डाल देता है- लेकिन न, बंटी और बबली दूसरी ठगी करते हैं, तब जटायु सिंह को अहसास हो जाता है कि जिन्हे उन्होंने जिसे जेल में बंद किया है, वह निर्दोष हैं- तब वह इन्हें नए बंटी और बबली को पकड़ने की जिम्मेदारी देता है- अब चूहे बिल्ली का खेल शुरू होता है-फिर कहानी फुरसत गंज से आबू धाबी व दिल्ली तक जाती है-इस बीच जटायु सिंह की बेवकूफियां भी उजागर होती रहती ह हैं-

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लेखन व निर्देशनः

इस नई सिक्वअल फिल्म से उम्मीद थी कि बंटी और बबली नए अंदाज में ठगी ,छल, धोखा देने वाला काम करेंगे पर वह तो वही 16 वर्ष पुराना तरीका ही अपनाते हुए नजर आते हैं- यह फिल्म डिजिटल युग  में बनी हैं-इ सके बंटी और बबली कम्प्यूटर इंजीनियर हैं, मगर वह इटंरनेट का उपयोग कर ठगी नहीं करते हैं- पिछली फिल्म में बंटी आ और बबली ने ताजमहल बेचा था तो  नए  बंटी और बबली ने गंगा का पानी बेच दिया. मगर नए बंटी और बबली कुछ भी नया करते हुए  नजर नहीं आते- फिल्म की सबसे बड़ी कमजारे यह है कि 16 साल पुरानी फिल्म के मसालों से पुरानी कढ़ी में उबाल लान का  असफल प्रयास किया गया है- निर्देशक वरुण वी शर्मा अपना कमाल नही दिखा पाया- ‘यशराज फिल्मस’ के आदित्य चोपड़ा ने अपने स्थापित ब्राडं को तहस नहस करने के अलावा कुछ नही किया- संवाद बहुत साधारण है- ठगी के दृ’य भी रोमाचंक या फनी नहीं है. पटकथा काफी कमजार है- इसका एक भी गाना करणप्रिय नहीं है. फिल्म की गति काफी धीमी है- होली का दृश्य भी मजा किरकिरा करता है-

अभिनय:

सैफअली खान व रानी मुखर्जी  का अभिनय औसत दर्जे का ही है-पुरानी फिल्म के अनुरूप इस फिल्म में बंटी व बबली के रूप में सैफ अली खान व रानी मुखर्जी के बीच कमिस्ट्री जम नहीं पायी है.

शारवरी वाघ महज खूबसूरत नजर आती हैं, मगर उनका अभिनय काफी कमजोर है- सिद्धांत चतुर्वेदी भी कुछ खास कमाल नही दिखा पाया  हैं-जटायु सिंह के किरदार में अभिनेता पंकज त्रिपाठी अपने आपको दोहराते हुए नजर आये हैं. यशपाल शर्मा  ने यह फिल्म क्यो की, यह समझ से परे है.

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सिद्धांत चतुर्वेदी किस रोमांटिक दृश्य को करने से हिचक रहे थे?

2005 में रानी मुखर्जी और अभिषेक बच्चन अभिनीत यशराज फिल्मस’ की फिल्म ‘‘बंटी और बबली’’  ने सफलता के झंडे गाड़े थे- अब पूरे सोलह साल बाद यशराज फिल्मस ‘बंटी और बबली’’ का सिक्वअल ‘‘बंटी और बबली 2’’ लेकर आ रहा है, जिसमें अभिनेता सिद्धांत चतुर्वेदी के साथ नवोदित अदाकारा ’ाारवरी वा?ा हैं- इस हंसी मजाक और गुदगुदाने वाली वाली मनोरंजक पारिवारिक फिल्म के निर्देषक वः.ा वी- ’ार्मा हैं-जो कि ‘सुल्तान’ और ‘टाइÛर जिंदा है’  में सहायक निर्देशक के:प में काम कर चुके हैं- इस फिल्म में न्यू बंटी के किरदार में सिद्धांत चतुर्वेदी तथा न्यू बबली के किरदार में ’ाारवरी वा?ा हैं-

फिल्म ‘‘बंटी और बबली 2’’ की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इस फिल्म के लिए सिद्धांत चतुर्वेदी और ’ाारवरी वा?ा पर ,क रोमांटिक Ûाना ‘‘ लव जू’’ को अंडर वाटर यानी कि पानी के अंदर फिल्माया गया है. इस गाने में दोनों कलाकारों के बीच किसिंग  सीन के साथ ही कई अंतरंदृश्यों को भी फिल्माया गया है.

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यह गाना सोशल मीडिया और इंटरनेट पर वायरल हो चुका है- मजेदार बात यह है कि पहले इस चुनौतीर्पूण रोमांटिक गाने के अंडर वाटर फिल्मांकन के लिए अभिनेता सिद्धांत चतुर्वेदी तैयार नहीं थे-

मगर निर्देशिका वैभवी मर्चेंट ने उन्हे इसके लिए सहज कर लिया- खुद अभिनेता सिद्धांत चतुर्वेदी कहते हैं-‘‘ फिल्म ‘बंटी और बबली 2’  मेरी और ’ाारवरी वा?ा की मुख्य भूमिका यानी कि मेन लीउ वाली पहली फिल्म है- जिसमें अंडर वाटर मुश्किल रोमांटिक अंतरदृश्यों को फिल्माने के बारे में हमने सोचा ही नहीं था और हम दोनों इसके लिए सहज नहीं थे- इस पानी के भीतर फिल्माया गया और हमें पानी के भीतर लिप सिंक करने के साथ ही अपनी सांस रोककर रखना था और भावुक चुंबन साझा करना था-हम इसे करने के लिए  सहज नहीं थे-मगर नृत्य निर्देशिका वैभवी मर्चेंट ने हम दोनों का हौसला बढ़ाया-फिर हम दोनों ने एक-दूसरे पर पूरी तरह भरोसा करके वैभवी मर्चेंट के वीजन के सामने आत्मसमर्पण कर इस मुश्किल रोमांटिक गाने को फिल्माया.

सिद्धांत चतुर्वेदी  आगे कहते हैं- ‘‘ इस गाने के रोमांटिक दृश्य की शूटिंग  के दौरान मैंने हाइड्रोफोबिया से लड़ाई लड़ी थी-पर जब  हमने शूटिंग  के बाद के दृश्य देखे, तो हमें जितनी भी मुश्किलें झेलनी पड़ीं थी. वह खुद में बदल दिया.

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19 नवंबर 2021 को प्रदर्शित होने वाली इस फिल्म में सिद्धांत चतुर्वेदी के अलावा सैफ अली खान और रानी मुखर्जी ने ओजी बंटऔर बबली की भूमिका निभाई है.

Film Review- ‘‘बबलू बैचलर”: शर्मन जोशी का बेहतरीन अभिनय भी फिल्म को स्तरीय नहीं बनाती!

निर्माता: राफत फिल्मस

निर्देशक और कैमरामैन: अग्निदेव चटर्जी

कलाकार: शर्मन जोशी, पूजा चोपड़ा, तेज श्री प्रधान, राजेश शर्मा, लीना प्रभू, मनोज जोशी, लीना भट्ट,राजू खेर , स्वीटी वालिया, सुमित गुलाटी व अन्य

अवधि: दो घंटे दस मिनट

प्यार व शादी को लेकर कई फिल्में बन चुकी हैं. अब फिल्मकार परफैक्ट जीवन साथी की तलाष को लेकर एक फिल्म ‘‘बबलू बैचलर’’ लेकर आए हैं, जो कि 22 अक्टूबर को सिनेमाघरों में पहुंची है. वैसे यह फिल्म 22 मार्च 2020 को सिनेमाघरों मंे आने को तैयार थी, मगर 17 मार्च 2020 से ही पूरे देश के सिनेमाघर बंद हो जाने से यह फिल्म प्रदर्शित नहीं हो पायी थी. अब यह फिल्म प्रदर्शित हुई है.

कहानीः

फिल्म की कहानी के केंद्र में लखनउ शहर में रह रहे जमींदार ठाकुर साहब(राजेश शर्मा) के बेटे बबलू (शर्मन जोशी ) के इर्द गिर्द घूमती है. बबलू पिछले सात साल से परफैक्ट जीवन साथी की तलाश में लगे हुए हैं. शादी कराने वाले मशहूर एजेंट तिवारी(असरानी) भी उनकी मदद नही कर पाते. तिवारी, बबलू व उनके परिवार को अवंतिका(पूजा चोपड़ा )से मिलवाते हैं.

लेकिन अवंतिका का अपना बॉयफ्रेंड है, पर वह अपने माता पिता से इस बारे में नहीं बताती, जिसके चलते अवंतिका और बबलू की शादी तय हो जाती है. मगर दूसरे दिन अवंतिका, बबलू को मिलने के लिए बुलाती है और उसे सच बताते हुए शादी तोड़ने के लिए कहती है. बबलू अपने घर पर ऐेलान कर देता है कि वह अवंतिका से शादी नहीं करेगा. फिर अपने फूफा की बेटी की शादी में बबलू की मुलाकात महत्वाकांक्षी व फिल्म हीरोईन बनने का सपना देख रही स्वाती (तेजश्री प्रधान) से होती है.जिससे बबलू को प्यार हो जाता है.

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और बबलू अपने घर पर स्वाती को अपनी बचपन की प्रेमिका बताकर षादी कर लेता है. एक रियालिटी शो के लिए ऑडिशन दे चुकी स्वाती को उसके परिणाम की प्रतीक्षा है, इसलिए वह पहली रात हनीमून मनाने से इंकार कर देती है.फिर दोनों हनीमून मनाने के लिए दूसरी जगह जाते हैं, पर रियालिटी शो में चयन हो जाने के कारण वह बबलू को नींद की गोली मिश्रित दूध पिलाती है,कुछ देर में बबलू सो जाते हैं और बबलू के नाम पत्र लिखकर स्वाती मंुबई चली जाती है.अपनी पत्नी को वापस लाने के लिए बबलू मंुबई जाता है,जहां उसकी मुलाकात फिर से अवंतिका से होती है,जो कि अब पत्रकार और एक टीवी चैनल की हेड बन चुकी है.

अवंतिका,बबलू को स्वाती तक पहुंचाती है. मगर स्वाती, बबलू संग वापस आने से इंकार कर देती है.बबलू को अवंतिका से और अवंतिका को बबलू से प्यार भी हो जाता है. मगर स्वाती की वजह से बबलू अवंतिका के प्यार को स्वीकार किए बगैर लखनउ वापस आ जाता है. इधर अवंतिका का सहायक चैनल पर स्वाती के षादीषुदा होने की खबर चला देता है.

अचानक एक दिन पता चलता है कि ठाकुर साहब ने बबलू की पुनः स्वाती से शादी करने की तैयारी कर ली है, तभी वहां पर अवंतिका भी पहुंचती है. फिर काफी कुछ घटता है.

लेखन व निर्देशनः

अग्निदेव चटर्जी अच्छे कैमरामैन हैं, मगर निर्देशन में वह मात खा गए. उनका निर्देशन किसी भी दृश्य में प्रभावी नहीं लगता. फिल्म की पटकथा भी काफी बिखरी हुई और कमजोर है. फिल्म की शुरूआत रेडियो पर प्रसारित हो रहे शादी कराने वाले एक एप के विज्ञापन से होती है, पर उसका फिल्म की कहानी में कोई योगदान नही होता.इसका उपयोग ही गलत -सजयंग से किया गया है.

कहानीकार सौरभ पांडे ने उत्तर प्रदेश की पृष्ठभूमि में परफैक्ट जीवन साथी की तलाश की एकदम सही उठायी, मगर बाद में कई तरह के उपदेश ठूंसते हुए पटकथा बहुत गड़बड़ कर दी. सारे दृश्य घिसे पिटे हैं. मसलन,बबलू और उनके पिता का सिगरेट पीने वाला दृष्य जिसमें स्वाती के घर से भाग जाने पर बात करते हुए पिता, बबलू से उसे वापस लेकर आने के लिए कहते हैं. मुंबई में जब बबलू , अवंतिका के साथ स्वाति के घर पर मिलता है,तो स्वाती जिस तरह का व्यवहार करती है, वह बहुत ही हास्यास्पद है.

इंटरवल से पहले कुछ हद तक फिल्म ठीक है,मगर इंटरवल के बाद जिस तरह से फिल्म आगे ब- सजय़ती है, उसे देखते हुए दर्शक सोचने लगता है कि यह कब खत्म होगी. क्लायमेक्स तक पहुंचते पहुंचते फिल्म दम तोड़ चुकी होती है.फिल्म के ज्यादातर संवाद बेकार है. अवंतिका के सहायक द्वारा स्वाती के षादीषुदा होने की खबर को जिस -सजयंग से दिखाया गया है, उसका भी कहानी में कोई योगदान नजर नही आता.पटकथा लेखक व फिल्मकार ने रायता काफी फैलाया, मगर उसे समेटने में बुरी तरह से विफल रहे हैं.

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अभिनयः

कुंवारे बबलू के किरदार में शर्मन जोशी ने बेहतरीन अभिनय किया है. वह विभिन्न भावनाओं को व्यक्त करने में सफल रहे हैं. लेकिन पब के अंदर के गाने में वह जमते नही है. मगर शर्मन जोशी का उत्कृ-ुनवजयट अभिनय फिल्म को डूबने से बचाने में समर्थ नहीं है.

अवंतिका के किरदार में पूजा चोपड़ा अपने अभिनय की छाप छोड़ जाती हैं. स्वाती के किरदार में तेजश्री प्रधान कुछ खास जलवा नही दिखा पायीं.

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