काले इल्म का काला कारोबार, कितना खतरनाक

Crime News in Hindi: भोपाल, मध्य प्रदेश के पिपलानी इलाके में रहने वाली ममता बाई (बदला नाम) की शादी को 10 साल हो चुके थे. उस के कोई औलाद नहीं थी. एक दिन वह अखबार में छपे गारंटी व मनचाही औलाद देने का दावा करने वाले एक तांत्रिक के पास गई और उसे अपनी समस्या बताई. अगले दिन ही तांत्रिक उस के घर आया और पूजापाठ, तंत्रमंत्र का पाखंड कर के ममता से बोला, ‘‘घर में रखे जेवरों में खराबी आ गई है. उन में खतरनाक ब्रह्म राक्षस का वास हो गया है. उन्हें शुद्ध करना पड़ेगा.’’

तांत्रिक के कहने पर ममता घर में रखे सारे जेवर ले आई. जेवर देख कर तांत्रिक ने कहा, ‘‘घर में और भी जेवर रखे हैं, उन्हें भी ले आओ.’’

ममता ने बताया, ‘‘वे जेवर तो मेरी सास के हैं.’’ लेकिन तांत्रिक ने उन जेवरों को भी लाने के लिए कहा.

ममता ने सास के जेवरों का बौक्स ला कर तांत्रिक के सामने रख दिया. तांत्रिक ने जेवरों की पूजा की, जिस से कमरे में धुआं हो गया.

पूजा करने के बाद तांत्रिक ने जेवरों का बौक्स लौटाते हुए कहा, ‘‘3 दिन बाद तुम इस डब्बे को खोलना.’’

3 दिन बाद जब ममता ने जेवरों का बौक्स खोला, तो देखा कि उस में जेवर नहीं थे. वह तांत्रिक 6 लाख रुपए के जेवर ले कर चलता बना था.

मुंबई के एक तांत्रिक ने खुद को काले इल्म का जानकार बताया और एक तलाकशुदा औरत की परेशानी दूर करने के बहाने उस से रुपए ऐंठता रहा. इस के साथ ही वह उस का जिस्मानी शोषण भी करता रहा.

यही नहीं, उस तांत्रिक ने उस औरत की 2 बेटियों को भी नहीं छोड़ा. जब वे नाबालिग बेटियां पेट से हो गईं, तो वह वहां से फरार हो गया.

पुलिस ने जब उसे पकड़ा, तो पता चला कि वह करोड़ों रुपयों का मालिक है. मुंबई, सूरत और उत्तर प्रदेश के कुछ इलाकों में उस की आलीशान कोठियां हैं, जिन की कीमत करोड़ों रुपए में है.

आज के जमाने में भी लोगों का  वशीकरण व काला जादू जैसी बातों पर यकीन है. इस के चलते काले इल्म का कारोबार काफी बढ़ रहा है.

भारत के छोटेबड़े शहरों से निकलने वाले अखबारों, पत्रिकाओं और टैलीविजन में टोनाटोटका करने वाले बाबाओं के इश्तिहार सब से ज्यादा छपते हैं.

ऐसे इश्तिहारों में सौ फीसदी गारंटी, तुरंत असर, काम न होने पर पैसा वापस करने जैसी बातें कही जाती हैं. इन बातों को पढ़ कर लोग तांत्रिकों के पास दौड़ेदौड़े पहुंच जाते हैं. एक बार जो इन के पास पहुंच गया, तो समझो वह बरबाद हो गया.

बाबा समस्या दूर करने के बजाय उस की जिंदगी में नई समस्या पैदा कर देते हैं. वे पूजापाठ के नाम पर लोगों से पैसा वसूलते हैं.

समस्या का समाधान न होने पर बड़ी समस्या बता कर बड़ी पूजा यानी बड़ा खर्च बताते हैं. पूजा न करवाने पर उलटा लोगों पर असर होने का डर दिखा कर पैसा ऐंठते हैं.

ये तथाकथित बाबा अपने नाम के आगे मुल्ला, फकीर, तांत्रिक, पंडित, भक्त, उपासक, सूफी, काले इल्म के माहिर, आलिमों के आलिम, सच्चा फकीर, पहुंचे हुए तांत्रिक, खानदानी मियां जैसी बातें लिखते हैं.

इस के अलावा मुठमारन विशेषज्ञ, काली शक्ति के उपासक, बाबा सम्राट जैसी बातें लिखी होती हैं. इन्हें पढ़ कर लगता है, जैसे ये उन की डिगरियां हैं.

अब तो ये बाबा 100 परसैंट की गारंटी नहीं, बल्कि 5000-11000 परसैंट की गारंटी देते हैं. मेरे से पहले जो काम कर के दिखाएगा, उसे

51 लाख रुपए का इनाम दिया जाएगा. और तो और एक तांत्रिक ने तो 54 टाइम गोल्ड मैडल विजेता लिख रखा था. पता नहीं, इन्हें कौन गोल्ड मैडल बांट रहा है.

एक बाबा ने दावा किया है कि अब तक वह 76,586 केस हल कर चुका है. उस की बात पर यकीन करें, तो कह सकते हैं कि उस के पास इतने बेवकूफ पहुंच चुके हैं.

इन बाबाओं के चेले शहर या महल्ले में घूमघूम कर प्रचार करते हैं. पान की गुमटी, चाय की दुकान वगैरह जगहों पर इन बाबाओं की झठी खूबियों का बखान कर के वे लोगों को अपनी ओर करते हैं.

इन बाबाओं का टारगेट ज्यादातर ऐसे लोग होते हैं, जिन के पास खूब पैसा होता है, पर परेशान रहते हैं. जो  पति से परेशान हैं, प्यार में नाकाम हैं,  जिस लड़की की शादी नहीं हो रही है,  उन्हें अपनी बातों में ले कर वे बाबाओं तक पहुंचा देते हैं.

बाबा धीरेधीरे उसे अपने असर में लेने लगता है. इन बाबाओं की बातों के जाल में फंसा शख्स अगर इन्हें छोड़ने की कोशिश भी करता है, तो वे इतना डरा देते हैं कि उन से अलग होने की वह सोच भी नहीं सकता है.

ऐसे बाबाओं की नजर उस शख्स की जमीनजायदाद और औरतों के जिस्म पर भी होती है. अनेक बाबा तो मांबेटी के जिस्म लूटते पाए गए हैं.

काले इल्म की काट व पलट के बेताज बादशाह, बुखरी खानदान की खिदमत में 163 साल, बुजुर्गों के ताबे (काबू) में लिए हुए जिन्नात (जिन) के जरीए एक खास अमल (सिद्ध क्रिया) करता है, जिस में जीत के तमाम रास्ते खुल जाते हैं.

मेरी अमल से संगदिल से संगदिल महबूब बेपनाह मुहब्बत करने वाला बन जाएगा. आलिमों के आलिम, जिन्नात द्वारा मनचाहा काम करवाने की बात लिखी होती है. उन का दावा है कि किसी की आवाज, हाथ से लिखा परचा, पहना हुआ कपड़ा, शरीर के किसी भी हिस्से के बाल या नाखून, फोटो होने पर उस के ऊपर कोई भी काम किया जा सकता है.

कहा जाता है, बेवकूफ बनने के लिए लोग तैयार बैठे हैं. बस, उन्हें बेवकूफ बनाने वाला चाहिए. इस की वजह से काले इल्म वाले बाबाओं की काली दुकानदारी जम कर चल रही है.

बेहयाई का सागर : अवैध संबंधों ने ली जान

रविवार को छुट्टी होने की वजह से फैक्ट्रियों में काम करने वाले अधिकांश कामगार अपने घरों की साफ सफाई और कपड़े आदि धोने का काम करते हैं. 25 साल का सागर और उस का छोटा भाई सरवन भी घर की साफसफाई में लगे थे. दोनों भाई एक गारमेंट फैक्ट्री में काम करते थे. शाम 5 बजे के करीब सारा काम निपटा कर सरवन कमरे में लेट कर आराम करने लगा तो सागर छत पर हवा खाने चला गया.

7 बजे सागर आया और नीचे सरवन से खाना बनाने को कहा. छोटेमोटे काम करा कर वह फिर छत पर चला गया. सरवन खाना बना रहा था. दोनों भाई लुधियाना के फतेहगढ़ मोहल्ले में पाली की बिल्डिंग में तीसरी मंजिल पर किराए का कमरा ले कर रहते थे.

इस बिल्डिंग में 30 कमरे थे, जिसे मकान मालिक ने प्रवासी कामगारों को किराए पर दे रखे थे. पास ही मकान मालिक की राशन की दुकान थी. सभी किराएदार उसी की दुकान से सामान खरीदते थे. इस तरह उस की अतिरिक्त आमदनी हो जाया करती थी. साढ़े 7 बजे के करीब पड़ोस में रहने वाले संजय ने आ कर सरवन को बताया कि सागर खून से लथपथ ऊपर के जीने में पड़ा है.

संजय का इतना कहना था कि सरवन खाना छोड़ कर छत की ओर भागा. ऊपर जा कर उस ने देखा सागर के शरीर पर कई घाव थे, जिन से खून बह रहा था. हैरानी की बात यह थी कि छत पर दूसरा कोई नहीं था. वह सोच में पड़ गया कि सागर को इस तरह किस ने घायल किया.

लेकिन यह वक्त ऐसी बातें सोचने का नहीं था. संजय व और अन्य लोगों की मदद से सरवन अपने घायल भाई को पास के राम चैरिटेबल अस्पताल ले गया, जहां डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया. इस बीच किसी ने पुलिस को इस मामले की सूचना भी दे दी. यह 9 अप्रैल, 2017 की घटना है.

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सूचना मिलते ही थाना डिवीजन-4 के थानाप्रभारी मोहनलाल अपनी टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए थे. उन्होंने वहां रहने वाले किराएदारों से पूछताछ शुरू कर दी. दूसरी ओर अस्पताल द्वारा भी पुलिस को सूचित कर दिया गया था. 2 पुलिसकर्मियों को घटनास्थल पर छोड़ कर थानाप्रभारी राम चैरिटेबल अस्पताल पहुंच गए.

उन्होंने सागर की लाश का मुआयना किया तो पता चला कि किसी नुकीले और धारदार हथियार से उस पर कई वार किए गए थे. जरूरी काररवाई कर के पुलिस ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. घटना की सूचना उच्चाधिकारियों को भी दे दी गई थी.

अस्पताल से फारिग होने के बाद थाना प्रभारी सरवन को साथ ले कर घटनास्थल पर पहुंचे. अब तक सूचना पा कर एसीपी सचिन गुप्ता व क्राइम टीम भी घटनास्थल पर पहुंच गई थी. घटनास्थल का गौर से निरीक्षण किया गया. बिल्डिंग के बाहर मुख्य दरवाजे के पास गली में खून सने जूतों के हलके से निशान दिखाई दिए थे.

छत और जीने में भी काफी मात्रा में खून फैला था. बिल्डिंग के बाहर गली में करीब 2 दरजन साइकिलें खड़ी थीं, जो वहां रहने वाले किराएदारों की थीं. काफी तलाश करने पर भी वहां से कोई खास सुराग नहीं मिल सका.

लुधियाना में ऐसे कामगार मजदूरों के मामलों में अकसर 2 बातें सामने आती हैं. ऐसी हत्याएं या तो रुपएपैसे के लेनदेन में होती हैं या फिर अवैध संबंधों की वजह से. सब से पहले थानाप्रभारी मोहनलाल ने रुपयों के लेनदेन वाली थ्यौरी पर काम शुरू किया. पता चला कि मृतक सीधासादा इंसान था. उस का किसी से कोई लेनदेन या दुश्मनी नहीं थी.

इस के बाद थानाप्रभारी ने इस मामले की जांच एएसआई जसविंदर सिंह को करने के निर्देश दिए. उन्होंने मामले की जांच शुरू की तो उन्हें पता चला कि मृतक के कई रिश्तेदारों के लड़के यहां रह कर काम करते हैं, जिन में एक अशोक मंडल है, जो मृतक के ताऊ का बेटा है.

अशोक मंडल टिब्बा रोड की किसी सिलाई फैक्ट्री में काम करता था और उस का मृतक के घर काफी आनाजाना था. इसी के साथ यह भी पता चला कि अशोक का किसी बात को ले कर मृतक से 2-3 बार झगड़ा भी हुआ था.

एएसआई जसविंदर सिंह ने हवलदार अमरीक सिंह को अशोक मंडल के बारे में जानकारी जुटाने का काम सौंप दिया. थानाप्रभारी अपने औफिस में बैठ कर जसविंदर सिंह से इसी केस के बारे में चर्चा कर रहे थे, तभी उन्हें चाबी का ध्यान आया.

दरअसल घटनास्थल का निरीक्षण करने के दौरान बिल्डिंग के बाहर खड़ी साइकिलों के पास उन्हें एक चाबी मिली. वह चाबी वहां खड़ी किसी साइकिल के ताले की थी.

थानाप्रभारी ने उस समय उसे फालतू की चीज समझ कर उस पर ध्यान नहीं दिया, लेकिन अब न जाने क्यों उन्हें वह चाबी कुछ महत्त्वपूर्ण लगने लगी. वह एएसआई जसविंदर सिंह और कुछ पुलिसकर्मियों को साथ ले कर उसी समय पाली की बिल्डिंग पहुंचे. साइकिलें अब भी वहीं खड़ी थीं.

उन्होंने बिल्डिंग में रहने वाले सभी किराएदारों को बुलवा कर कहा कि अपनीअपनी साइकिलों के ताले खोल कर इन्हें एक तरफ हटा लो.

सभी किराएदार अपनीअपनी साइकिलों का ताला खोल कर उन्हें हटाने लगे. सभी ने अपनी साइकिलें हटा लीं, फिर भी एक साइकिल वहां खड़ी रह गई.

‘‘यह किस की साइकिल है ’’ एएसआई जसविंदर सिंह ने पूछा. सभी ने अपनी गरदन इंकार में हिलाते हुए एक स्वर में कहा, ‘‘साहब, यह हमारी साइकिल नहीं है.’’

इस के बाद थानाप्रभारी मोहनलाल ने अपनी जेब से चाबी निकाल कर जसविंदर को देते हुए कहा, ‘‘जरा देखो तो यह चाबी इस साइकिल के ताले में लगती है या नहीं ’’

जसविंदर सिंह ने वह चाबी उस साइकिल के ताले में लगाई तो ताला झट से खुल गया. यह देख कर मोहनलाल की आंखों में चमक आ गई. उन्होंने उस साइकिल के बारे में सब से पूछा. पर उस के बारे में कोई कुछ नहीं बता सका.

इसी पूछताछ के दौरान पुलिस की नजर सामने की दुकान पर लगे सीसीटीवी कैमरे पर पड़ी. पुलिस कैमरे की फुटेज निकलवा कर चैक की तो पता चला कि घटना वाले दिन शाम को करीब पौने 7 बजे एक युवक वहां साइकिल खड़ी कर के पाली की बिल्डिंग में गया था. इस के लगभग 25 मिनट बाद वही युवक घबराया हुआ तेजी से बिल्डिंग के बाहर आया और साइकिलों से टकरा कर नीचे गिर पड़ा. फिर झट से उठ कर अपनी साइकिल लिए बगैर ही चला गया.

पुलिस ने वह फुटेज मृतक के भाई सरवन को दिखाई तो सरवन ने उस युवक को पहचानते हुए कहा, ‘‘यह तो मेरे ताऊ का बेटा अशोक मंडल है.’’

‘‘अशोक मंडल कल शाम तुम्हारे कमरे पर आया था क्या ’’ थानाप्रभारी ने पूछा.

‘‘नहीं साहब, जब से भैया (मृतक) से इन का झगड़ा हुआ है, तब से यह हमारे कमरे पर नहीं आते हैं और न ही हम दोनों भाई इन के कमरे पर जाते थे.’’ सरवन ने कहा.

इस के बाद जसविंदर ने मुखबिरों द्वारा अशोक मंडल के बारे में पता कराया तो उन का संदेह विश्वास में बदल गया. उन्होंने सिपाही को भेज कर अशोक मंडल को थाने बुलवा लिया. थाने में उस से पूछताछ की गई तो हर अपराधी की तरह उस ने भी खुद को बेगुनाह बताया. उस ने कहा कि घटना वाले दिन वह शहर में ही नहीं था. लेकिन थानाप्रभारी मोहनलाल ने उसे सीसीटीवी कैमरे की फुटेज दिखाई तो वह बगलें झांकने लगा.

आखिर उस ने सागर की हत्या का अपना अपराध स्वीकार कर लिया. उस का बयान ले कर पुलिस ने उसे सक्षम न्यायालय में पेश कर 2 दिनों के पुलिस रिमांड पर ले लिया. पुलिस रिमांड के दौरान अशोक मंडल से पूछताछ में सागर की हत्या की जो कहानी प्रकाश में आई, वह अवैध संबंधों पर रचीबसी थी—

अशोक मंडल मूलरूप से बिहार के अररिया का रहने वाला था. कई सालों पहले वह काम की तलाश में लुधियाना आया. जल्दी से लुधियाना में उस का काम जम गया था. वह एक्सपोर्ट की फैक्ट्रियों में ठेके ले कर सिलाई का काम करवाता था. उसे कारीगरों की जरूरत पड़ी तो गांव से अपने बेरोजगार चचेरे भाइयों व अन्य को ले आया. सभी सिलाई का काम जानते थे, इसलिए सभी को उस ने काम पर लगा दिया.

अन्य लोगों को रहने के लिए अशोक ने अलगअलग कमरे किराए पर ले कर दे दिए थे, लेकिन सागर को उस ने अपने कमरे पर ही रखा. अशोक शादीशुदा था. कुछ महीने बाद जब रोटीपानी की दिक्कत हुई तो अशोक गांव से अपनी पत्नी राधा को लुधियाना ले आया.

राधा एक बच्चे की मां थी. उस के आने से खाना बनाने की दिक्कत खत्म हो गई. सभी भाई डट कर काम में लग गए थे. इस बीच सागर ने अपने छोटे भाई सरवन को भी लुधियाना बुला लिया था.

देवरभाभी होने के नाते सागर और राधा के बीच हंसीमजाक होती रहती थी, जिस का अशोक ने कभी बुरा नहीं माना. पर देवरभाभी का हंसीमजाक कब सीमाएं लांघ गया, इस की भनक अशोक को नहीं लग सकी, दोनों के बीच अवैध संबंध बन गए थे.

सागर कभी बीमारी के बहाने तो कभी किसी और बहाने से घर पर रुकने लगा. चूंकि अशोक ठेकेदार था, इसलिए उसे अपने सभी कारीगरों और फैक्ट्रियों को संभालना होता था. इस की वजह से वह कभीकभी रात को भी कमरे पर नहीं आ पाता था. ऐसे में देवरभाभी की मौज थी.

लेकिन इस तरह के काम ज्यादा दिनों तक छिपे नहीं रहते. अशोक ने एक दिन दोनों को आपत्तिजनक स्थिति में देख लिया. उस समय उसे गुस्सा तो बहुत आया, पर इज्जत की खातिर वह खामोश रहा. सागर और राधा ने भी उस से माफी मांग ली. अशोक ने उन्हें आगे से मर्यादा में रहने की हिदायत दे कर छोड़ दिया.

अशोक ने पत्नी और चचेरे भाई पर विश्वास कर लिया कि अब वे इस गलती को नहीं दोहराएंगे. पर यह उस की भूल थी. इस घटना के कुछ दिनों बाद ही उस ने दोनों को फिर से रंगेहाथों पकड़ लिया. इस बार भी सागर और राधा ने उस से माफी मांग ली. अशोक ने भी यह सोच कर माफ कर दिया कि गांव तक इस बात के चर्चे होंगे तो उस के परिवार की बदनामी होगी.

लेकिन जब तीसरी बार उस ने दोनों को एकदूजे की बांहों में देखा तो उस के सब्र का बांध टूट गया. इस बार अशोक ने पहले तो दोनों की जम कर पिटाई की, उस के बाद उस ने सागर को घर से निकाल दिया. अगले दिन उस ने पत्नी को गांव पहुंचा दिया. यह अक्तूबर, 2016 की बात है.

अशोक से अलग होने के बाद सागर ने अपने छोटे भाई सरवन के साथ पाली की बिल्डिंग में किराए पर कमरा ले लिया. वह गांधीनगर स्थित एक फैक्ट्री में काम करता था. बाद में उस ने उसी फैक्ट्री में सिलाई का ठेका ले लिया. वहीं पर उस का छोटा भाई सरवन भी काम करने लगा.

सागर को घर से निकाल कर और पत्नी को गांव पहुंचा कर अशोक ने सोचा कि बात खत्म हो गई, पर बात अभी भी वहीं की वहीं थी. शरीर से भले ही देवरभाभी एकदूसरे से दूर हो गए थे, पर मोबाइल से वे संपर्क में थे.

अशोक को जब इस बात का पता चला तो उसे बहुत गुस्सा आया. समझदारी से काम लेते हुए उस ने सागर को समझाया पर वह अपनी हरकतों से बाज नहीं आया.

अब तक गांव में भी उन के संबंधों की खबर फैल गई थी. लोग चटखारे लेले कर उन के संबंधों की बातें करते थे. गांव में अशोक के घर वालों की बदनामी हो रही थी. इस से अशोक बहुत परेशान था. वह सागर को एक बार फिर समझाना चाहता था.

9 अप्रैल, 2017 की शाम को फोन कर के उस ने सागर से पूछा कि वह कहां है  सागर ने उसे बताया कि वह छत पर है. अशोक अपने कमरे से साइकिल ले कर सागर को समझाने के लिए निकल पड़ा. नीचे स्टैंड पर साइकिल खड़ी कर उस में ताला लगा कर वह सीधे छत पर पहुंचा.

इत्तफाक से उस समय सागर फोन से अशोक की बीवी से ही बातें कर रहा था. उस की पीठ अशोक की तरफ थी. सागर राधा से अश्लील बातें करने में इतना लीन था कि उसे अशोक के आने का पता ही नहीं चला.

अशोक गया तो था सागर को समझाने, पर अपनी पत्नी से फोन पर अश्लील बातें करते सुन उस का खून खौल उठा. वह चुपचाप नीचे आया और बाजार से सब्जी काटने वाला चाकू खरीद कर सागर के पास पहुंच गया. कुछ करने से पहले वह एक बार सागर से बात कर लेना चाहता था.

उस ने सागर को समझाने की कोशिश की तो वह उस की बीवी के बारे में उलटासीधा बोलने लगा. फिर तो अशोक की बरदाश्त करने की क्षमता खत्म हो गई. उस ने सारे रिश्तेनाते भुला कर अपने साथ लाए चाकू से सागर पर ताबड़तोड़ वार करने शुरू कर दिए. वार इतने घातक थे कि सागर लहूलुहान हो कर जीने पर गिर पड़ा.

सागर के गिरते ही अशोक घबरा गया, क्योंकि वह कोई पेशेवर अपराधी तो था नहीं. उसी घबराहट में वह अपनी साइकिल उठाए बिना ही भाग गया.

रिमांड अवधि के दौरान पुलिस ने अशोक से वह चाकू बरामद कर लिया था, जिस से उस ने सागर की हत्या की थी. रिमांड अवधि खत्म होने पर अशोक को पुन: अदालत में पेश किया गया, जहां से उसे न्यायिक हिरासत में जिला जेल भेज दिया गया.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

खूबसूरत औरत को प्रैग्नैंट करो, लाखों कमाओ, पर जरा संभल कर जनाब

Crime News in Hindi: आज सोशल मीडिया (Social Media) हमारी जिंदगी पर इतना ज्यादा हावी हो गया है कि हम उस पर आंख मूंद कर भरोसा (Trust) करने लगे हैं, फिर भले हमें ही चूना क्यों न लग जाए. लेकिन अगर किसी खूबसूरत औरत को प्रैग्नैंट (Pregnant) कर के लाखों कमाने की बात आए, तो बांके नौजवानों की तो यह सुन कर ही बांछें खिल जाएंगी. पर अगर आप को भी यह ललचाता औफर आया है, तो सावधान हो जाएं. अगर यकीन नहीं होता तो चलो आप को बताते हैं एक ऐसा ही मामला जहां ठगों ने लोगों के सामने एक ऐसा जोरदार आइटम पेश किया है कि कहने ही क्या. हद तो यह है कि ऐसे शातिरों ने ठगी के इस नएनवेले कांड को एक और्गेनाइजेशन का नाम दिया हुआ था.

क्या है पूरा मामला

दरअसल, बिहार में एक ऐसा स्कैम चल रहा है कि किसी खूबसूरत औरत को प्रैग्नैंट करो और उस के बदले में लाखों रुपए कमाओ. मामला बेशक बिहार का लग रहा है, पर इस गिरोह का जाल पूरे देश में फैला है.

एक जानकारी के मुताबिक, बिहार में नवादा पुलिस ने साइबर अपराधियों के खिलाफ बड़ी कार्यवाही की है. पुलिस ने जिले के मुफस्सिल थाना क्षेत्र में छापेमारी की और 8 साइबर ठगों को गिरफ्तार कर लिया. उन के पास से 9 मोबाइल फोन और एक प्रिंटर मिला.

इस मामले पर पुलिस का कहना है कि गिरफ्तार किए गए आरोपी ‘आल इंडिया प्रैग्नैंट जौब (बेबी बर्थ सर्विस)’ के नाम पर पैसों का लालच देते थे और लोगों को ठगी का शिकार बनाते थे.

शातिरों का यह ग्रुप लोगों को फंसाने के लिए सोशल मीडिया का सहारा ले रहा था. ठगों ने मर्दों को इस लच्छेदार स्कीम के बारे में बता कर उन्हें फंसाया, इस के बाद उन से रजिस्ट्रेशन के नाम पर पैसे वसूले.

इन ठगों ने मर्दों से कहा कि ‘बेबी बर्थ सर्विस’ में आप को बेऔलाद औरतों को प्रैग्नैंट करना होगा, जिस के लिए आप को बड़ी रकम मिलेगी. झांसे में आए मर्दों से शुरू में 799 रुपए लिए गए. इस के बाद उन से बतौर सिक्योरिटी मनी 5,000 से 20,00 रुपए मांगे जाते थे.

नवादा पुलिस की एसआईटी ने मुन्ना कुमार नाम के शख्स के यहां छापा मारा. पुलिस के मुताबिक, मुन्ना कुमार ही इस पूरे गिरोह का सरगना है. दरअसल, आज से तकरीबन 5 साल पहले नवादा के गांव गुरम्हा का रहने वाला मुन्ना कुमार नौकरी के लिए राजस्थान के मेवाड़ में गया था. वहां उस की मुलाकात जामताड़ा जैसे कुछ गिरोहबाजों से हुई, जहां उस ने बाकायदा साइबर ठगी की ट्रेनिंग ली थी.

गांव लौट कर मुन्ना कुमार ने अपना दफ्तर खोला. इसी बीच उस ने गांव के 20-30 लड़कों को चुपचाप से ट्रेनिंग दी ट्रेनिंग पूरी होने के बाद उस ने कंपनी शुरू की और सोशल मीडिया की मदद से ‘आल इंडिया प्रैग्नैंट जौब’ के इश्तिहार जारी किए, जिन में लिखा होता था कि कुछ ऐसी औरतें हैं, जो शादी के बरसों बाद भी मां नहीं बन पा रही हैं. वे मां बनना चाहती हैं.

हमारी संस्था ऐसी औरतों के लिए काम करती है. यह सारा काम कानूनी होता है. जो भी इच्छुक हैं, वे ऐसी औरतों को प्रैग्नैंट कर उन्हें मां बनने का सुख दे सकते हैं. इस के लिए उन्हें बाकायदा पैसे भी मिलेंगे. यह रकम 10 से 13 लाख की होगी. अगर औरत प्रैग्नैंट नहीं हो पाती, तो भी 5 लाख रुपए तो मिलेंगे ही.

क्यों फंसते हैं नौजवान

आज देश में बेरोजगारी का आलम यह है कि नौजवान किसी भी खबर पर बिना सोचेसमझे यकीन कर लेते हैं और अगर उन्हें किसी खूबसूरत औरत से मजे ले कर उसे मां बनाने का औफर मिले तो वे लार टपकाने लगते हैं. उन्हें लगता है कि यह तो पैसे कमाने का गरमागरम तरीका है. फिर सरकार भी तो किसी को रोजगार नहीं दे पा रही है, यहीं पर ही अपनी भड़ास निकाल लेते हैं.

ठग बेरोजगार लोगों की इसी दुखती नस पर हाथ रखते हैं और रोजगार देना तो दूर, उन्हें ही अपना शिकार बना लेते हैं. इस तरह उन्हें न तो देह सुख मिलता है और न ही वे पैसा कमा पाते हैं. लुट भले ही जाते हैं.

शादी जो मौत बन कर आई, कौन लाया यह तबाही

Crime News in Hindi: किसी परिवार में विवाह की तैयारियां चल रही हों तो खुशियां देखते ही बनती है. लियाकत का परिवार भी ऐसी ही खुशियों से सराबोर था. क्योंकि उस ने अपने बेटे आदिल का रिश्ता न सिर्फ पक्का कर दिया था, बल्कि चंद रोज बाद वह बारात ले कर भी जाने वाला था. लियाकत उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के सहारनपुर जिले के कस्बा मिर्जापुर (Mirzapur) में परिवार के साथ रहता था. उस के पास गुजारे लायक खेती की जमीन थी. बेटे आदिल की शादी उत्तराखंड (Uttrakhand) के देहरादून (Dehradun) के थाना विकासनगर (Vikas Nagar) के गांव कुंजाग्रांट की हिना से तय हुई थी.

14 मार्च, 2017 को उन के निकाह की तारीख भी तय कर दी गई थी. 19 फरवरी को हिना के लिए शादी का जोड़ा भी जाना था. इन खुशियों से हर कोई खुश था, लेकिन खुशियां किसी की मोहताज नहीं होतीं. वक्त कब कौन सी करवट ले ले, इस बात को कोई नहीं जानता. दुलहन के जोड़ा खुलने की रश्म पूरी हो पाती उस से पहले ही लियाकत का परिवार एक नाउम्मीद मुसीबत में फंस गया.

18 फरवरी की शाम आदिल अचानक लापता हो गया. वह शाम को घर से कुछ देर में आने की बात कह कर गया था, लेकिन वापस नहीं आ सका. उस का मोबाइल फोन भी स्विच औफ आ रहा था. वह इस तरह अचानक कहां लापता हो गया, यह बात किसी की समझ में नहीं आ रहा थी.

घर वालों ने अपने स्तर से उसे बहुत खोजा, लेकिन उस का कुछ पता नहीं चला. थकहार कर उन्होंने इस की सूचना थाना मिर्जापुर को दे दी. थानाप्रभारी पंकज त्यागी ने उस के बारे में पूरी जानकारी ले कर पूछा, ‘‘किसी से कोई झगड़ा या रंजिश तो नहीं थी?’’

‘‘नहीं साहब, हम सीधेसादे लोग हैं. आदिल का स्वभाव भी ऐसा नहीं था.’’ जवाब में लियाकत ने कहा.

‘‘कहीं ऐसा तो नहीं कि जिस लड़की से तुम आदिल की शादी कर रहे हो, वह लड़की उसे पसंद न हो.’’ थानाप्रभारी ने अगला सवाल किया.

‘‘बिलकुल नहीं साहब. उस ने ऐसा कभी जाहिर नहीं किया. वह तो बहुत खुश था. वह खुद भी शादी का जोड़ा खुलने की रस्म की तैयारियों में लगा था.’’ लियाकत ने कहा.

‘‘फिर तुम लोगों को क्या लगता है?’’ थानाप्रभारी ने पूछा.

‘‘साहब, लगता है, हमारे बेटे का अपहरण किया गया है.’’ लियाकत ने आशंका जताई.

‘‘यह अंदाजा किस बात से लगाया?’’ थानाप्रभारी ने पूछा.

‘‘साहब, हमें कुछ लोगों ने बताया है कि आदिल को 2 लोगों के साथ मोटरसाइकिल पर जाते देखा गया है.’’

‘‘कौन थे वे लोग?’’

‘‘यह पता नहीं साहब.’’ लियाकत ने कहा.

आदिल के दोस्तों आदि के बारे में जानकारी ले कर थानाप्रभारी ने लियाकत को जरूरी काररवाई का आश्वासन दे कर घर भेज दिया.

लियाकत की आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं थी कि फिरौती के लिए आदिल का अपहरण करता. जांच में पता चला कि आदिल जिस मोटरसाइकिल पर गया था, उस पर स्पोर्ट्स लिखा था. गांव वालों से पूछा गया तो लोगों ने बताया कि पूरे गांव में किसी के पास ऐसी मोटरसाइकिल नहीं है.

आदिल के लापता होने से लोगों में आक्रोश बढ़ने लगा था. एसएसपी लव कुमार को इस की जानकारी हुई तो उन्होंने केस के खुलासे के लिए अपराध शाखा की टीम को भी थाना पुलिस के साथ लगा दिया.

पुलिस ने आदिल के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स और लोकेशन हासिल कर ली थी. उस की अंतिम लोकेशन नजदीकी गांव सोफीपुर की पाई गई थी. इस के बाद उस का मोबाइल औन नहीं हुआ था.

आदिल की काल डिटेल्स में कोई संदिग्ध नंबर नहीं मिला था. पुलिस अभी माथापच्ची कर ही रही थी कि सी ने बताया कि स्पोर्ट्स लिखी मोटरसाइकिल गांव के एक व्यक्ति के रिश्तेदार अफरोज की थी, जो देहरादून के पास स्थित गांव कुंजाग्रांट में रहता था. वह गांव आताजाता भी रहता था. कुंजाग्रांट की ही हिना से आदिल की शादी होने वाली थी.

अब पुलिस को यह मामला प्रेमप्रसंग से जुड़ा लगने लगा. पुलिस ने किसी तरह अफरोज का मोबाइल नंबर हासिल कर के काल डिटेल्स निकलवा ली. जिस दिन आदिल लापता हुआ था, उस दिन अफरोज की 2 नंबरों पर बातें हुई थीं. खास बात यह थी कि वे दोनों नंबर अफरोज के ही गांव के शाकिर और मारुफ के थे. इतना ही नहीं, उन की लोकेशन भी उस शाम मिर्जापुर गांव की पाई गई.

सुराग और सबूत पुख्ता होते ही अगले दिन यानी 20 फरवरी, 2017 को एक पुलिस टीम कुंजा ग्रांट के लिए रवाना हो गई और अफरोज, शाकिर तथा मारुफ को शक के आधार पर हिरासत में ले कर थाने आ गई. उन से पूछताछ की गई तो उन्होंने बताया कि 18 फरवरी को वे मिर्जापुर आए ही नहीं थे.

पुलिस के पास उन के फोन नंबरों की लोकेशन और डिटेल्स थी. इस से साफ था कि वे झूठ बोल रहे थे. पुलिस ने सख्त रुख अख्तियार किया तो अफरोज टूट गया. उस ने जो कुछ बताया, उसे सुन कर पुलिस हैरान रह गई. क्योंकि वे तीनों आदिल के खून से अपने हाथ रंग चुके थे.

तीनों ने आदिल की हत्या कर के उस के शव को सफीपुरा गांव के जंगल के एक गड्ढे में छिपा दिया था. पुलिस ने उन की निशानदेही पर आदिल का शव बरामद कर लिया. उस के सिर व चेहरे पर घावों के निशान थे. शव के नजदीक ही खून से सने पत्थर पड़े थे. पुलिस ने बतौर सबूत उन्हें कब्जे में ले लिया.

आदिल की मौत की खबर से उस के घर में कोहराम मच गया. पुलिस ने उस के शव का पंचनामा भर कर पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया, साथ ही तीनों आरोपियों के खिलाफ भादंवि की धाराओं 302, 201 व 120 बी के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया.

पुलिस ने हत्यारोपियों से विस्तार से पूछताछ की तो एक ऐसे प्रेमी की कहानी निकल कर सामने आई, जो नहीं चाहता था कि उस की प्रेमिका किसी और के नाम का शादी का जोड़ा पहने. उस की प्रेमिका भी मौत के इस षडयंत्र में शामिल थी.

करीब 2 साल पहले अफरोज और हिना की आंखें चार हुईं तो दोनों एकदूसरे के दिल में उतर गए. दोनों ने प्यार के खुशनुमा सफर की शुरुआत कर दी और किसी को खबर भी नहीं लगी. जब कोई इंसान किसी को प्यार करे तो उस के लिए ढेरों सुनहरे ख्वाब सजाता है. उन्होंने भी ख्वाबों का एक महल बना लिया था.

जवानी के जोश में दोनों ने मर्यादा की दीवार भी गिरा दी और हमेशा एक होने का फैसला भी कर लिया. दोनों ही अक्सर एकदूसरे का हमसफर होने की कसमें खाते थे. एक दिन दोनों मिले तो अफरोज ने हिना से पूछा, ‘‘हिना यह बताओ कि तुम कभी मेरा सथ तो नहीं छोड़ दोगी?’’

‘‘कैसी बात करते हो अफरोज, तुम तो मेरी सांसों में बसे हो. मैं कभी बुरे ख्वाबों में भी ऐसा नहीं सोच सकती. एक दिन मुझे पूरी तरह तुम्हारी होना है.’’ हिना ने कहा.

‘‘लेकिन पता नहीं क्यों, मुझे डर लगता है कि वक्त आने पर तुम बदल न जाओ.’’ अफरोज ने कहा.

‘‘ऐसा कभी नहीं होगा. मैं तुम से सच्चा प्यार करती हूं.’’ हिना ने उस की आंखों में हसरतों से देखते हुए जवाब दिया तो अफरोज बेहद खुश हुआ.

जनवरी, 2017 में हिना का रिश्ता सहारनपुर के कस्बा मिर्जापुर के आदिल के साथ तय हो गया. घर वालों से वह इस रिश्ते का विरोध करने का साहस नहीं कर सकी. उस की मरजी के खिलाफ रिश्ता तो पक्का हो गया, पर वह दिल से इस रिश्ते के लिए खुश नहीं थी.

रिश्ता तय होने पर हिना और अफरोज दोनों ही परेशान थे. अब अफरोज को अपने ख्वाब टूटते नजर आने लगे. वह परेशान रहने लगा. हिना के घर वालों के सामने हकीकत बयां करने की हिम्मत उस में भी नहीं थी. बावजूद इस के वह किसी भी सूरत में हिना को खोना नहीं चाहता था. इस मुद्दे पर एक दिन उस ने हिना से बात की, ‘‘यह सब क्या हो गया हिना? हम दोनों ने तो साथ जीनेमरने की कसमें खाई थीं.’’

‘‘मैं खुद भी परेशान हूं अफरोज. समझ में नहीं आ रहा कि क्या करूं?’’ हिना बोली, ‘‘कुछ तो करना ही पड़ेगा. कहीं ऐसा तो नहीं कि तुम्हारे दिल में अपने मंगेतर के लिए जगह बन गई हो?’’ अफरोज ने मायूसी के साथ कहा.

‘‘ऐसा क्यों कह रहे हो, क्या तुम मेरे प्यार का इम्तिहान ले रहे हो?’’ हिना ने नाराजगी जाहिर की.

उधर रिश्ता तय हो जाने पर आदिल हिना के ख्वाब देखने लगा था. वह बेहद खुश था और अक्सर हिना से फोन पर बातें किया करता था. हिना के दिल में अफरोज की तसवीर थी. वह नाखुशी से आदिल से बात करती थी. उस ने आदिल को जरा भी शक नहीं होने दिया था कि वह उस के बजाय किसी और से प्यार करती है.

जैसे जैसे समय बीत रहा था, अफरोज और हिना की बेचैनी बढ़ती जा रही थी. अफरोज के कई दिन इसी उधेड़बुन में बीत गए कि वह इस रिश्ते को कैसे तुड़वाए. उसे सीधा कोई रास्ता नजर नहीं आया तो मन ही मन उस ने खतरनाक निर्णय ले लिया.

एक दिन उस ने अपने दिल की बात हिना से भी जाहिर कर दी, ‘‘हिना मैं ने सोच लिया है कि अब क्या करना है?’’

‘‘क्या?’’ वह चौंकी.

‘‘मैं आदिल को रास्ते से हटा दूंगा.’’

‘‘इस में खतरा हो सकता है?’’ हिना ने आशंका जाहिर की.

‘‘ऐसा कुछ नहीं होगा. मैं काम पूरी प्लानिंग से करूंगा.’’ अफरोज ने आत्मविश्वास से कहा.

हिना इस कदर बहक चुकी थी कि उसे अंदाजा भी नहीं था कि किस खतरनाक षडयंत्र का हिस्सा बन रही है और बाद में उसे इस की क्या कीमत चुकानी पड़ सकती है. शायद इसी वजह से एक दिन उस ने अफरोज से कहा, ‘‘अफरोज, मुझे नहीं लगता कि अब हम कभी एक हो पाएंगे.’’

‘‘क्यों?’’ अफरोज ने पूछा.

‘‘देखो, चंद दिनों बाद 20 तारीख को मेरी  शादी का जोड़ा खुलने की रश्म होने जा रही है.’’ हिना मायूस हो कर बोली.

यह सुन कर अफरोज आगबबूला हो गया. उस ने तिलमिला कर कहा, ‘‘तुम चिंता मत करो, मैं जल्दी ही कुछ करता हूं. मेरा तुम से वादा है कि मैं तुम्हें किसी और के नाम का शादी का जोड़ा नहीं पहनने दूंगा.’’

अफरोज आदिल को रास्ते से हटाने का फैसला तो कर चुका था, लेकिन यह काम उस के अकेले के वश का नहीं था. गांव में ही उस के रिश्ते का मामा शाकिर और दोस्त मारुफ रहते थे. उस ने उन दोनों को अपना इरादा बता कर उन से आदिल को रास्ते से हटाने में मदद मांगी. वे उस का साथ देने को तैयार हो गए.

अफरोज की आदिल के गांव में रिश्तेदारी थी. वह वहां अपनी मोटरसाइकिल से आताजाता रहता था. इस नाते उस की आदिल से भी अच्छी जानपहचान थी. कई बार ऐसा भी हुआ था कि दोनों ने साथ बैठ कर शराब भी पी थी. फरवरी के दूसरे सप्ताह में वह मिर्जापुर गया तो रास्ते में उस की मुलाकात आदिल से हो गई. वह उस से काफी खुशमिजाज अंदाज में मिला, ‘‘मुबारक हो आदिल भाई, तुम्हारा निकाह हमारे ही गांव में होने जा रहा है.’’

‘‘शुक्रिया भाईजान.’’ आदिल मुसकरा दिया.

‘‘चलो अच्छा है इस बहाने मुलाकात होती रहेगी. किसी दिन फुरसत में आऊंगा तो साथ बैठ कर दावत करेंगे.’’ अफरोज ने कहा तो वह खुश हो गया.

यह अफरोज की योजना का एक हिस्सा था. वह नहीं चाहता था कि अचानक साथ बैठने में आदिल उस पर शक करे. योजना के मुताबिक 18 फरवरी की शाम ढले अफरोज शाकिर और मारुफ अलगअलग मोटरसाइकिलों से मिर्जापुर पहुंच गए. इत्तेफाक से उन्हें सड़क पर ही आदिल मिल गया. शराब की दावत के बहाने उन्होंने उसे अपने साथ ले लिया.

आदिल आसानी से उन के झांसे में आ गया. ठेके से उन्होंने शराब तथा दुकान से सोडे की बोतल आदि सामान लिया और सफीपुर गांव के जंगल में पहुंच गए. वहां सभी ने बैठ कर शराब पी. उन्होंने जानबूझ कर आदिल को ज्यादा शराब पिलाई थी. उसे पता नहीं था कि जिन्हें वह अपना दोस्त समझ रहा है, वास्तव में वे उस के दुश्मन हैं.

अधिक शराब पीने से वह नशे में हो गया. अफरोज बहाने से उठा और एक पत्थर उठा कर आदिल के सिर पर पीछे से दे मारा. अचानक हुए हमले से आदिल चीख कर  लुढ़क गया. इस के बाद बाकी ने भी उस के सिर व मुंह पर पत्थरों से प्रहार किए.

आदिल लहूलुहान हो गया. वह जिंदा न बच सके, इस के लिए उन्होंने उस का गला भी दबा दिया. कुछ ही देर में आदिल की सांसों की डोर टूट गई. जब उन्हें विश्वास हो गया कि उस की मौत हो चुकी है तो उन्होंने उस के शव को गड्डे में ठिकाने लगा दिया. उस का मोबाइल भी स्विच औफ कर के फेंक दिया.

इस के बाद तीनों देहरादून चले गए. अफरोज ने सोचा था कि उस की राह का कांटा आदिल हमेशा के लिए हट गया. मामला शांत होने के बाद वह मौका देख कर हिना के परिवार वालों से अपने रिश्ते की बात कर के अपने प्यार की दुनिया आबाद करेगा. उस की सोच थी कि वह कभी पकड़ा नहीं जाएगा.

लेकिन पुलिस के पहुंचते ही उस की यह गलतफहमी दूर हो गई. पुलिस ने पूछताछ के बाद उस की प्रेमिका हिना को भी गिरफ्तार कर लिया. अपने प्यार को पाने की गरज में अफरोज का कदम सरासर गलत था. प्यार को पाने का यह कोई तरीका नहीं था. जबकि आदिल तो हर हकीकत से पूरी तरह अंजान था. न उस का कोई गुनाह था न कोई अफरोज से सीधी रंजिश.

अफरोज के गलत निर्णय से न सिर्फ एक घर का चिराग हमेशा के लिए बुझ गया, बल्कि खुद उस का और हिना का भविष्य भी खराब हो गया. दोनों भविष्य में एक हो भी जाएं तो भी यह कसक दिलों से कहां जाएगी कि उन के हाथ किसी निर्दोष के खून से रंगे हैं.

विस्तृत पूछताछ के बाद पुलिस ने आरोपियों को न्यायालय में पेश किया, जहां से तीनों को न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक किसी की भी जमानत नहीं हो सकी थी. आदिल के परिवार वाले उन्हें सख्त सजा दिलाए जाने की मांग कर रहे थे.

हिजड़ों की गुंडागीरी, हो जाएं सावधान

हिजड़ा समाज सभी जगह अपनी मनमानी करने के लिए बहुत बदनाम है. अंधश्रद्धा में डूबा हमारा समाज भी न जाने क्यों इन से इतना डरता है कि जानेअनजाने में ही इन की हर बात चुपचाप सहन कर लेता है. शायद लोगों को डर रहता है कि कहीं इन का दिया हुआ शाप लग गया, तो जिंदगी ही बरबाद हो जाएगी. यही वजह है कि हिजड़े भी इसी बात का भरपूर फायदा उठाने लगे हैं.

ये हर जगह दादागीरी करते दिखाई देते हैं. ये कभी सिगनल पर पैसा मांगते खड़े मिल जाते हैं, कभी बसों में, तो कभी ट्रेन में. कभीकभी तो ये घरों में घुस कर तीजत्योहार पर पैसा मांगने चले आते हैं.

अगर इन को न कह दिया जाए, तो ये गालीगलौज पर उतर आते हैं. रास्ते में ये उलटीसीधी व बेहूदा हरकतें करने लगते हैं और लोग डर के मारे इन की बात मान कर खिसकने में ही अपनी भलाई समझते हैं.

जवानी में तो हर तरह की दादागीरी से हर हिजड़े का काम हो जाता है, लेकिन ढलती उम्र में जिंदगी दोजख सी हो जाती है. अपने गुजारे के लिए तो इन्हें भीख मांगने तक की नौबत आ जाती है. अपने ही समाज से ये दुत्कार दिए जाते हैं. इन्हें नौजवान हिजड़ों की दया पर जीना पड़ता है.

इस के नतीजे में इन के द्वारा सैक्स, चोरी, लूटपाट, अपहरण जैसे किस्से ज्यादा बढ़ने लगे हैं.

हाल ही में भावनगर के तलाजा तालुका के सोसिया और कठवा गांव में हिजड़ों ने 2 नौजवानों को बहलाफुसला कर उन का अपहरण कर लिया. बाद में उन्हें भुज ले जा कर प्राइवेट अस्पताल में हिजड़ा बना दिया.

पूरे भावनगर इलाके में चर्चा का मुद्दा बनी इस वारदात में सोसिया गांव के 18 साला लालजी बाबूभाई वेगड और कठवा गांव के 18 साला मुकेश भगवानभाई सरवैया को रामदेवपीर व्याख्यान मंडल के सदस्य जतीन चीथरभाई गोहिल ने रामदेवपीर के आख्यान के बहाने भुज चलने को कहा. साथ में भावनगर से फिरोज और कड़ला नाम के 2 और हिजड़ों को भी ले लिया.

भुज ले जा कर उन्हें कैद में रखा. वहां से सानिया नाम के एक दूसरे हिजड़े की मदद से किसी प्राइवेट अस्पताल में डाक्टर से उन को हिजड़ा बनवा दिया. बाद में जोरजबरदस्ती से सौ रुपए के स्टांप पेपर पर उन दोनों से लिखवा लिया कि वे खुद अपनी मरजी से हिजड़े बने हैं.

15 दिनों तक उन की कैद में बंद दोनों नौजवान जैसेतैसे इन के चंगुल से भाग कर भावनगर लौट आए. परिवार के लोग इन दोनों को इलाज के लिए भावनगर के सर टी. अस्पताल ले कर गए, तब जा कर बात का भांड़ा फूटा.

भावनगर की पुलिस गुनाहगारों को पकड़ने में नाकाम रही, तब जा कर केस भुज ट्रांसफर किया गया.

भुज पुलिस ने सानिया हिजड़े को गिरफ्तार कर लिया है. इस मामले की तहकीकात अभी चल रही है. पुलिस को इस मामले में और लोगों के भी शामिल होने का शक है. पुलिस जानना चाहती है कि इन लोगों के अंगों को कहां रखा गया है? अस्पताल और डाक्टर के बारे में भी पता लगाना बाकी है.

यह समाज में किसी भी शख्स का दिल दहला देने वाली घटना है. पुलिस की लापरवाही और ढीली कार्यवाही से ही ऐसे असामाजिक लोगों को खुली छूट मिलती है.

गुजरात में चोरी, बलात्कार, अपहरण, हत्या, गुंडागीरी के किस्से रोजाना बढ़ते जा रहे हैं. केंद्र सरकार को आड़े हाथ लेने वाले मुख्यमंत्री अपने राज्य की तरफ कब देखेंगे?

तंत्रमंत्र से पत्नी की मौत

कई बार कोई जानलेवा बीमारी किसी इनसान को तंत्रमंत्र के रास्ते पर ले जाती है. आज हम भले ही मौडर्न जमाने में जीने की बातें करते हों, फिर भी समाज में अंधविश्वास की जड़ें इतनी गहरी हैं कि लोग कई बार इलाज कराने के बदले तंत्रमंत्र के चक्कर में पड़ जाते हैं और आखिर में नतीजा उन की बरबादी के रूप में ही सामने आता है.

एक ऐसे ही मामले में गरीब आटोरिकशा ड्राइवर को पैर की बीमारी से पीडि़त अपनी पत्नी का 6 महीने तक इलाज कराने पर भी जब कोई नतीजा हाथ न लगा, तो उस ने तंत्रमंत्र का सहारा लिया, जो उस की पत्नी के लिए जानलेवा साबित हुआ.

दरअसल, आनंदनगर चार रास्ता के कृष्ण अपार्टमैंट्स में रहने वाले देशराजभाई सरोज की पत्नी खुशियाल

6 महीने से पैर के दर्द से परेशान थी. पहले तो फैमिली डाक्टर से दवा ली, बाद में प्राइवेट अस्पताल मेें इलाज कराया, लेकिन पैर के दर्द से राहत न मिली.

इस से देशराज और खुशियाल बहुत परेशान हो गए. इस दौरान उन को किसी ने बताया कि शायद गठिया का दर्द होगा. उन को पता चला कि जूना वाडज में गठिया की बीमारी का इलाज होता है.

देशराज अपनी पत्नी खुशियाल को रविवार के दिन सुबह जूना वाडज में गठिया के इलाज के लिए ले गया. वहां मिले आदमी ने खुशियाल को शाहपुर में कालू शहीद की दरगाह पर ले जाने की सलाह दी.

देशराज और खुशियाल को तो जैसे डूबते को तिनके का सहारा मिल गया. कालू शहीद की दरगाह पर खुशियाल के ऊपर तंत्रमंत्र का काम शुरू हो गया.

खुशियाल को एक कमरे में ले जाया गया. कमरे का दरवाजा बंद कर दिया गया. बाद में अंदर जलते कोयले में लाल रंग का कोई पाउडर डाल कर इलाज  शुरू हुआ.

इस दौरान खुशियाल बेहोश हो गई. थोड़ी देर बाद उस आदमी ने खुशियाल को घर ले जाने को कहा और यह भी कहा कि वह जल्दी ही ठीक हो जाएगी.

देशराज अपनी पत्नी खुशियाल को आटोरिकशा में घर ले जा रहा था, तब रास्ते में ही उस की हालत बिगड़ने लगी.

खुशियाल का इलाज पहले जिस अस्पताल में चल रहा था, उसे वहां ले जाया गया, लेकिन अस्पताल पहुंचने पर डाक्टर ने खुशियाल को मरा हुआ बता दिया.

यह सुन कर देशराज की तो मानो दुनिया ही लुट गई. अपनी पत्नी की मौत से दुखी और गुस्साए देशराज ने आनंदनगर पुलिस स्टेशन में तंत्रमंत्र करने वाले शख्स के खिलाफ रिपोर्ट लिखाई.

देशराज को इंसाफ मिलेगा या नहीं, यह तो बाद की बात है, लेकिन उस ने तंत्रमंत्र के चक्कर में पड़ कर अपनी पत्नी को जरूर खो दिया.

4 साल के बच्चे का कत्ल, कातिल जान कर उड़ जाएंगे होश

Crime News in Hindi: 39 साल की सूचना सेठ 6 जनवरी को गोवा के सोल बनयान ग्रांडे होटल में अपने 4 साल के बेटे के साथ आई थीं. 8 जनवरी को जब उन्होंने होटल से चैकआउट किया, तब उन का बेटा साथ नहीं था. होटल स्टाफ ने बेटे के बारे में पूछा तो सूचना सेठ ने कहा कि वह गोवा के फातोर्डा में एक रिश्तेदार के घर पर है. इस के बाद सूचना सेठ ने रिसैप्शनिस्ट से कहा कि वह उन के लिए बैंगलुरु जाने के लिए कोई टैक्सी बुक करवा दे. रिसैप्शनिस्ट ने कहा कि टैक्सी महंगी पड़ेगी, आप फ्लाइट ले कर चली जाइए, वह सस्ती होगी.

मगर सूचना सेठ ने बाई रोड जाने पर ही जोर दिया तो उन के लिए एक कैब बुक करा दी गई. सूचना सेठ अपना सामान ले कर निकलीं. उधर हाउसकीपिंग स्टाफ जब उन का छोड़ा गया कमरा साफ करने पहुंचा, तो उस को वहां खून के धब्बे मिले.

स्टाफ ने इस की सूचना होटल के मालिक को दी और मालिक ने तुरंत पुलिस को बता दिया. पुलिस ने उस कैब ड्राइवर को फोन लगाया और कोंकणी भाषा में बात करते हुए उस से कहा कि जिन मैडम को वह ले कर जा रहा है उन्हें बताए बिना वह कैब को कर्नाटक के चित्रदुर्ग पुलिस स्टेशन ले जाए.

ड्राइवर ने पुलिस के कहे मुताबिक गाड़ी पुलिस स्टेशन पर ला कर खड़ी कर दी, जहां सूचना सेठ को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया. उन के सामान की तलाशी लेने पर उस के बच्चे की लाश पुलिस को उस के एक बैग में मिली.

सूचना सेठ ने अपने बच्चे की हत्या क्यों की? इस सवाल के जवाब में जो कहानी निकल कर आई वह एक ऐसी औरत को सामने लाती है जो एक तरफ बहुत पढ़ीलिखी, मेहनती और समाज में अपनी हैसियत रखने वाली औरत है, तो वहीं दूसरी तरफ वह सामाजिक और पारिवारिक चक्रव्यूह में फंसी, टूटन, तनाव, गुस्से, बेइज्जती, नफरत, झगड़े, कानूनी पचड़े में घिरी औरत, जिस के अंदर अपने पति से बदला लेने का लावा उबाल मार रहा था, जिस के चलते उन्होंने अपने बेटे को मौत की नींद सुला दिया.

हत्या की वजह जानने से पहले सूचना सेठ की पढ़ाईलिखाई पर एक नजर डालते हैं. वे एक एथिक ऐक्सपर्ट (नैतिकता विशेषज्ञ) और डाटा वैज्ञानिक है, जिन के पास डाटा विज्ञान टीमों को सलाह देने और स्टार्टअप व उद्योग अनुसंधान प्रयोगशालाओं में मशीन लर्निंग समाधानों को स्केल करने का 12 साल से ज्यादा का अनुभव है. वे एआई ऐथिक्स लिस्ट में 100 प्रतिभाशाली महिलाओं में से एक हैं. वे डाटा ऐंड सोसाइटी में मोजिला फैलो, हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के बर्कमैन क्लेन सैंटर में फैलो और रमन रिसर्च इंस्टिट्यूट में रिसर्च फैलो रही हैं और उन के पास प्राकृतिक भाषा (नैचुरल लैंग्वेज) प्रसंस्करण में पेटेंट भी है. ऐसी प्रतिभाशाली लड़की की शादी साल 2010 में वेंकटरमन से हुई थी, जो एक एआई डैवलपर हैं.

शादी के बाद दोनों में वैसी ही नोकझोंक चलती रही जैसी आमतौर पर भारतीय घरों में होती है. शादी के 9 साल बाद 2019 में सूचना सेठ ने एक बेटे को जन्म दिया. मगर बेटे के जन्म के बाद से पतिपत्नी में झगड़े काफी बढ़ गए. साल 2020 से सूचना सेठ और उस के पति के वेंकटरमन के बीच झगड़ा इतना बढ़ गया कि दोनों ने तलाक ले लिया.

कोर्ट ने बच्चे की कस्टडी सूचना सेठ को दी और आदेश दिया था कि वेंकटरमन अपने बच्चे से हर रविवार को मिल सकते हैं. मगर सूचना अपने पति वेंकटरमन से इतनी नफरत करने लगी थीं कि वे नहीं चाहती थीं कि वेंकटरमन अपने बेटे से मिलने आएं और उन की नजरों के सामने पड़ें.

इस नफरत ने सूचना सेठ की अक्ल बंद कर दी और वे एक ऐसे घिनौने अपराध की तरफ बढ़ गईं, जिस को सुन कर एकदम मुंह से यही निकलता है कि यह कैसी मां है?

न रहेगा बांस, न बजेगी बांसुरी कहावत को सच साबित करते हुए सूचना सेठ ने बच्चे को ही खत्म करने का भयावह प्लान बना डाला. उन्होंने अपने बेटे को गोवा घुमाने का लालच दिया. 4 साल का मासूम बच्चा घूमने की बात सुन कर खुश हो उठा.

सूचना सेठ बेटे को साथ ले कर गोवा गईं और वहां होटल के कमरे में उस का कत्ल कर के लाश ठिकाने लगाने के मकसद से बैग में भर कर टैक्सी से बैंगलुरु के लिए रवाना हो गईं. यह तो होटल स्टाफ की तेजतर्रारी काम आ गई और सूचना सेठ को बीच राह में ही पुलिस ने लाश के साथ दबोच लिया.

यह आपराधिक वारदात भारतीय समाज में विवाह संस्था में भर चुकी सड़ांध, इनसान की नैतिक गिरावट और आपसी टकराव को उजागर करती है. ऐसी तमाम बातें भारतीय समाज में बहुत तेजी से बढ़ रही हैं जहां मांबाप के बीच चल रहे झगड़े का खमियाजा उन के मासूम बच्चों को उठाना पड़ रहा है.

मांबाप की रोजरोज की लड़ाइयों का ही असर है कि उन के बच्चे उग्र स्वभाव के और आपराधिक हरकतों से जुड़ जाते हैं. घर के सदस्यों के बीच का तनाव बच्चों को शराब और ड्रग्स की तरफ धकेल रहा है.

Crime: मुजीब ने उस लड़की के साथ रची खौफनाक साजिश

Crime : वह पहले लड़कियों से दोस्ती करता, फिर उन से लगातार फोन पर बातें करता. बाद में शादी की तैयारियों का ढोंग रचा कर उन्हें किसी एकांत जगह पर बुलाता और शादी की बात करता और एक कामयाब जिंदगी जीने की योजनाएं बनाता. इस के बाद वह ‘घर तलाश रहा हूं’ कह कर उन लड़कियों से कुछ रुपए मांगता और आखिर में उन के गहने वगैरह लूट कर वहां से रफूचक्कर हो जाता. इस तरह 7 से ज्यादा लड़कियों को धोखे में रख कर चंपत होने वाले शख्स का नाम मुजीब है.

38 साल का त्रिशूर नलिकुलम नंबानकड़व पुतियाविट्टील मुजीब कम उम्र से अपराध की राह पर चल पड़ा था. घर वालों से अलग होने के बाद वह जिंदगी गुजारने के लिए कई जगहों पर भटका. कई जगह पर उस ने दिहाड़ी पर काम किया था, पर इस से उस का गुजारा नहीं चलता था.

इसी बीच मुजीब कोच्चि पहुंचा. वहां उस ने एट्टुमानूर स्वदेशी मंजू नाम की एक लड़की से कलूर में दोस्ती की. वह अपनी दादी के साथ रह रही थी. उस के मांबाप अलग रह रहे थे.

रची खौफनाक साजिश

एक दिन मुजीब ने किसी इश्तिहार में ‘गुरदा चाहिए’ लिखा देखा. उस ने फोन नंबर मिला कर गुरदा देने की बात कही. इस के लिए कोल्लम स्वदेशी शिवकुमार को जरीया भी बनाया था.

दरअसल, मुजीब उस लड़की मंजू का गुरदा बेचने की चाल चल रहा था. दोनों को एकसाथ रहने के लिए घर व जमीन की जरूरत है, यह कह कर मुजीब ने मंजू को समझया कि अगर वह अपना एक गुरदा दे देगी, तो 10 लाख रुपए मिलेंगे, जिन से वे घर खरीद सकते?हैं.

एक अच्छी जिंदगी जीने का सपना बुनने वाली मंजू ने एतराज नहीं किया. शिवकुमार ने ही अस्पताल का जुगाड़ किया और तिरुअनंतपुरम के किम्स अस्पताल में मंजू का गुरदा निकाला गया.

रुपए मिलते ही मुजीब वहां से रफूचक्कर हो गया. ठगी गई मंजू ने उस के खिलाफ साल 2010 में पुलिस में केस दर्ज किया. इस बीच शिवकुमार भी वहां से फरार हो गया था.

पुलिस ने बहुत जांचपड़ताल की, पर दोनों का पता नहीं चला. इसी बीच परुंबावूर स्वदेशिनी बिंदु नाम की लड़की को भी मुजीब ने गुरदा देने के धंधे के जाल में फंसा लिया था.

और भी चालबाजियां

मुजीब उन लड़कियों के बारे में पहले ही सबकुछ पता कर लेता था, जो अच्छे जीवनसाथी और खुशहाल जिंदगी का सपना देखती थीं. वह अपनी मीठी बातों में उन्हें फंसा कर उन से रुपए व गहने ले कर रफूचक्कर हो जाता था.

एरुमेली स्वदेशी बैमा नाम की जवान लड़की के साथ भी उस ने कुछ दिन गुजारे थे. दोनों का एक बच्चा भी?है. बीच में मुजीब ने उस लड़की को एर्णाकुलम में एक काम भी दिला दिया था. इस के बाद उस लड़की ने मुजीब को दोबारा कभी नहीं देखा.

मुजीब कोषिकोड्ड के पास कुट्टीकाटूर के एक अरेबिक कालेज में रसोइए का काम करता था, तब उस के साथ एक लड़की भी थी. कालेज की कैंटीन के पास ही उन्हें ठहरने की सुविधा भी मिली थी. वे दोनों पिछले 2 महीने से आम जिंदगी बिता रहे थे.

रसोइए के रूप में काम करने के बीच भी मुजीब धोखेबाजी के बारे में ही सोचता रहा. जल्द ही पैसा पा कर अमीर बनने का लालच उस के मन में था.

तब उस ने अपने साथ रह रही उस लड़की को नशीली दवा दे कर बेहोश किया, फिर उस के साढ़े 3 लाख रुपए के कीमती गहने चुरा लिए.

वहां से रफूचक्कर होने के बाद मुजीब के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली. उस लड़की ने कोषिकोड्ड पुलिस थाने में शिकायत दर्ज करा दी.

इस के बाद मैडिकल कालेज सीआई प्रेमदास की अगुआई में मुजीब को पुलिस द्वारा पालकाड्ड बसअड्डे के पास से पकड़ लिया गया.

पुलिस कस्टडी में आने के बाद मुजीब द्वारा किए गए कई छलकपट सामने आए. लेकिन तब भी उस ने अपना सही नामपता नहीं बताया. उस के पास जितने भी आईकार्ड थे, सब नकली थे.

मुजीब के मांबाप बीमार थे और तमिलनाडु के एरवाडी इलाके में तकरीबन 10 साल पहले मर गए थे.

बाद में गुरदे बेचने के जुर्म में मुजीब का साथ देने वाला शख्स शिवकुमार भी पकड़ा गया.

मालती चौहान की आत्महत्या, चकाचौंधी इन्फ्लुएंसर्स को सबक

Crime News in Hindi: लाइक्स, सब्सक्राइब, बेल आइकन के खेल उत्तर प्रदेश की मालती चौहान के अंत की कहानी भी बन गए. इस से बाकी यूट्यूबर (YouTuber) कुछ समझों या न, पर मालती चौहान की आत्महत्या (Suicide) उन के लिए सबक जरूर है. डिजिटल वर्ल्ड (Digital World) ने एक चीज तबीयत से की कि इंसान भले स्मार्ट हो या न, लेकिन स्मार्टफोन (Smart Phone) हर हाथ में जरूर हो. इस ने एक का दूसरे तक एक्सैस आसान कर दिया है. वह चाहे दिल्ली (Delhi) के वसंत कुंज (Vasant Kunj) जैसी पौश कालोनी में रहने वाली धृति हो या उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के संत कबीर नगर (Sant kabir Nagar) इलाके के किसी कच्चे मकान में रहने वाली मालती चौहान.

लेकिन भूख चाहे जितनी हो, निवाला तो तभी निगला जा सकता है जब जबान उस की गरमाहट झोलने लायक हो जाए. कभीकभी डिजिटल वर्ल्ड की चकाचौंध की गिरफ्त में इन्फ्लुएंसर इसे भूल जाते हैं और उन की जबान जल ही जाती है.

ईंट-बदरपुर से बने कच्चे मकान में रहने वाली मालती चौहान, जिस ने गरीबी देखी, टूटी खाट, टपकती छत, बिखरे सपने और बेतरतीब जीवन देखा, ने बहुत कम समय में यूट्यूब इन्फ्लुएंसर के तौर पर खासा नाम भी कमाया. लेकिन इन सब के बावजूद मालती ऐसी उदाहरण बन गई जिसे सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर कभी नहीं चाहेंगे कि उन के साथ भी ऐसा हो क्योंकि इसी नेम, फेम और चरमोत्कर्ष पर पहुंच कर उसे आखिरकार मौत को गले लगाना पड़ा.

यह पूरा खेल डिजिटल चकाचौंध, कमाई की भूख, नेम, फेम और नंबरों का था. महज 4 साल में ही गरीब परिवार की मालती ने अपने पति विष्णु राज के साथ यूट्यूब पर नाम कमा कमा लिया. दोनों की शादी 2020 में हुई थी. 6 मिलियन यानी 60 लाख से ऊपर फौलोअर्स बना लिए और चैनल में ढेरों देसी रील्स व वीडियो बना लिए.

वीडियो हर एंगल से बनाए, मालती बिस्तर पर लेटी रहती, कभी बरतन धो रही होती, कभी बच्चों को खाना खिला रही होती, पति विष्णुराज उस के विशेष अंगों पर कैमरा जूम-इन और जूम-आउट करता. कभी होंठों की लाली दिखाता, कभी खिसके दुपट्टे को.

पैसों की गाड़ी चल पड़ी तो शादीविवाह, मुंडन पर इस कपल को इन्फ्लुएंसर के तौर पर बुलाया जाने लगा. भोजपुरी के बाजार में जहां अश्लीलता ही मेनस्ट्रीम है, वहां इस कपल के लिए थोड़ीबहुत अश्लीलता दिखा कर अपनी पहचान बनाना आसान न था. लेकिन फिर भी इस कपल ने अपनी कोशिश जारी रखी.

वीडियो चल पड़ी तो टीम बढ़ा ली. टीम में अर्जुन की एंट्री हो गई. अर्जुन के आते ही एक बच्चे की मां मालती उस से दिल लगा बैठी. जिस अश्लीलता से वीडियो में शुरुआत हुई थी वह अश्लीलता इन की निजी जिंदगी में घुस गई. वीडियो बनाने के नाम पर पतिपत्नी दोनों के एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर चलने लगे. औडियंस को लगा स्क्रिप्टेड कंटैंट है. लेकिन रिश्तों के हर जायजनाजायज चीजों पर हिट, लाइक, कमैंट बटोरने की भूख रिश्तों को भी बाजार में नीलाम कर ही देते हैं.

पति ने सोचा कि इस पर भी व्यूज बटोरे जाएं. विष्णुराज ने पत्नी की शादी औन-कैमरा अपने ही चैनल पर चला कर अर्जुन से करवा दी. लेकिन जीवन कोई रेल की पटरी जैसी नहीं कि सीधी चलती रहे. एक बार फिर मालती का मन अर्जुन के साथ नहीं लगा तो उस ने विष्णुराज से पुनर्मिलन कर लिया.

लेकिन यह पुनर्मिलन प्यार और ग्लानी से कहीं आगे उस चकाचौंध की थी जो दोनों की एकदूसरे के बगैर अधूरी थी. डिजिटल दुनिया ने इन्हें वह जिंदगी दे दी थी जो ये सपने में भी नहीं सोच सकते थे लेकिन पेंच यह कि वफा की पिच में दोनों तरफ ही बेवफाई चल पड़ी थी. जब मालती वापस आई तो तकरार फिर से बढ़ने लगी. दोनों तरफ से आरोप लगने लगे.

लाइक्स, सब्सक्राइब, बेल आइकन के खेल में ये दोनों ऐसे उलझे कि यही इन के अंत की कहानी भी बन गई. मालती ने अपने यूट्यूब चैनल पर एक वीडियो डाली कि उस के साथ कोई भी अनहोनी हो सकती है. इस वीडियो को लोगों ने देखा और लाइक किया. लेकिन एक सुबह मालती की सास ज्ञानमती मालती के कमरे का बंद दरवाजा खोलने पहुंची तो मालती की लाश साड़ी के फंदे से लटकी मिली. मालती के पिता दीपचंद के अनुसार, उस की बेटी की हत्या हुई और विष्णुराज गुनाहगार है. ऊपरी तौर पर देखने में यह आत्महत्या का मामला है, लेकिन इस के पीछे सोशल मीडिया की वह क्रूर हकीकत जान पड़ती है जिसे लोग नजरअंदाज कर रहे हैं.

वजह चाहे जो हो, अब यूपीबिहार का हर दूसरा छछूंदर यूट्यूबर मौत के इस कंटैंट पर वीडियो बना कर लाखों व्यूज बटोरने के लिए मार्केट में बना हुआ है. हर कोई इस मौके को भुनाने पर लगा हुआ है. नंबरों का खेल यहां भी मालती का पीछा नहीं छोड़ रहा है. डेली ब्लौग के नाम पर मालती और उस का पति जो सौफ्ट पोर्न व्यूज बटोरने के लिए बनाते थे, अब उसी के फैलोअर्स यूट्यूबर उसी की कहानी को बेच खा रहे हैं.

सोशल मीडिया में चरित्र दिखाया जाता है और उधेड़ा भी जाता है, जैसे यहां अश्लीलता का बाजार है वैसे ही चरित्र हनन का भी बाजार है. मालती व विष्णु की कहानी सोशल मीडिया में पनपे लव, सैक्स व धोखा सरीखी है. जिस मालती के चलतेफिरते वीडियो बना करते थे, अब यूट्यूबरों में भी उस की मौत के बाद उस की निजी जिंदगी, औडियो कौल रिकार्डिंग, सुबूतों की लिस्ट सबकुछ दिखाने का कंपीटिशन चल चुका है. देश के ज्यादातर यूट्यूबरों के लिए यही ग्राउंड रिपोर्टिंग है, यही यूट्यूब जर्नलिज्म है.

पति की हत्या करने वाली पत्नी की खुली पोल

Crime News in Hindi: कभीकभी कोई रात आदमी के लिए इतनी भारी हो जाती है कि उसे काटना मुश्किल हो जाता है. जयलक्ष्मी गुरव (Jai laxmi Gurav) के लिए भी वह रात ऐसी ही थी. उस पूरी रात वह पलभर के लिए भी नहीं सो सकी थी. कभी वह बिस्तर पर करवटें बदलती तो कभी उठ कर कमरे में टहलने लगती. उस के मन में बेचैनी थी तो आंखों में भय था. एकएक पल उसे एकएक साल के बराबर लग रहा था. किसी अनहोनी की आशंका से उस का दिल कांप उठता था. सवेरा होते ही जयलक्ष्मी बेटे के पास पहुंची और उसे झकझोर कर उठाते हुए बोली, ‘‘तुम यहां आराम से सो रहे हो और तुम्हारे पापा रात से गायब हैं. वह रात में गए तो अभी तक लौट कर नहीं आए हैं. वह घर से गए थे तो उन के पास काफी पैसे थे, इसलिए मुझे डर लग रहा है कि कहीं उन के साथ कोई अनहोनी तो नहीं घट गई?’’

जयलक्ष्मी बेटे को जगा कर यह सब कह रही थी तो उस की बातें सुन कर उस की ननद भी जाग गई, जो बेटे के पास ही सोई थी. वह भी घबरा कर उठ गई. आंखें मलते हुए उस ने पूछा, ‘‘क्या हुआ भाभी, भैया कहां गए थे, जो अभी तक नहीं आए. लगता है, तुम रात में सोई भी नहीं हो?’’

‘‘मैं सोती कैसे, उन की चिंता में नींद ही नहीं आई. उन्हीं के इंतजार में जागती रही. मेरा दिल बहुत घबरा रहा है.’’ कह कर जयलक्ष्मी रोने लगी.

बेटा उठा और पिता की तलाश में जगहजगह फोन करने लगा. लेकिन उन का कहीं पता नहीं चला. उस के पिता विजय कुमार गुरव के बारे में भले पता नहीं चला, लेकिन उन के गायब होने की जानकारी उन के सभी नातेरिश्तेदारों को हो गई. इस का नतीजा यह निकला कि ज्यादातर लोग उन के घर आ गए और सभी उन की तलाश में लग गए.

जब सभी को पता चला विजय कुमार के गायब होने के बारे में

विजय कुमार गुरव के गायब होने की खबर मोहल्ले में भी फैल गई थी. मोहल्ले वाले भी मदद के लिए आ गए थे. हर कोई इस बात को ले कर परेशान था कि आखिर विजय कुमार कहां चले गए? इसी के साथ इस बात की भी चिंता सता रही थी कि कहीं उन के साथ कोई अनहोनी तो नहीं घट गई. क्योंकि वह घर से गए थे तो उन के पास कुछ पैसे भी थे. किसी ने उन पैसों के लिए उन के साथ कुछ गलत न कर दिया हो.

38 साल के विजय कुमार महाराष्ट्र के सिंधुदुर्ग जिले की तहसील सावंतवाड़ी के गांव भड़गांव के रहने वाले थे. उन का भरापूरा शिक्षित और संपन्न परिवार था. सीधेसादे और मिलनसार स्वभाव के विजय कुमार गडहिंग्लज के एक कालेज में अध्यापक थे. अध्यापक होने के नाते समाज में उन का काफी मानसम्मान था. गांव में उन का बहुत बड़ा मकान और काफी खेती की जमीन थी. लेकिन नौकरी की वजह से उन्होंने गडहिंग्लज में जमीन खरीद कर काफी बड़ा मकान बनवा कर उसी में परिवार के साथ रहने लगे थे.

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विजय कुमार के परिवार में पत्नी जयलक्ष्मी के अलावा एक बेटा था. पत्नी और बेटे के अलावा उन की एक मंदबुद्धि बहन भी उन्हीं के साथ रहती थी. मंदबुद्धि होने की वजह से उस की शादी नहीं हुई थी. बाकी का परिवार गांव में रहता था. विजय कुमार को सामाजिक कार्यों में तो रुचि थी ही, वह तबला और हारमोनियम बहुत अच्छी बजाते थे. इसी वजह से उन की भजनकीर्तन की अपनी एक मंडली थी. उन की यह मंडली गानेबजाने भी जाती थी.

दिन कालेज और रात गानेबजाने के कार्यक्रम में कटने की वजह से वह घरपरिवार को बहुत कम समय दे पाते थे. उन की कमाई ठीकठाक थी, इसलिए घर में सुखसुविधा का हर साधन मौजूद था. आनेजाने के लिए मोटरसाइकिलों के अलावा एक मारुति ओमनी वैन भी थी.

इस तरह के आदमी के अचानक गायब होने से घर वाले तो परेशान थे ही, नातेरिश्तेदारों के अलावा जानपहचान वाले भी परेशान थे. सभी उन की तलाश में लगे थे. काफी प्रयास के बाद भी जब उन के बारे में कुछ पता नहीं चला तो सभी ने एकराय हो कर कहा कि अब इस मामले में पुलिस की मदद लेनी चाहिए.

इस के बाद विजय कुमार का बेटा कुछ लोगों के साथ थाना गडहिंग्लज पहुंचा और थानाप्रभारी को पिता के गायब होने की जानकारी दे कर उन की गुमशुदगी दर्ज करा दी. यह 7 नवंबर, 2017 की बात है.

पुलिस ने भी अपने हिसाब से विजय कुमार की तलाश शुरू कर दी. लेकिन पुलिस की इस कोशिश का कोई सकारात्मक परिणाम नहीं निकला. पुलिस ने लापता अध्यापक विजय कुमार की पत्नी जयलक्ष्मी से भी विस्तार से पूछताछ की.

पत्नी ने क्या बताया पुलिस को

जयलक्ष्मी ने पुलिस को जो बताया, उस के अनुसार रोज की तरह उस दिन कालेज बंद होने के बाद 7 बजे के आसपास वह घर आए तो नाश्तापानी कर के कमरे में बैठ कर पैसे गिनने लगे. वे पैसे शायद फीस के थे, जिन्हें अगले दिन कालेज में जमा कराने थे. पैसे गिन कर उन्होंने पैंट की जेब में वापस रख दिए और लेट की टीवी देखने लगे.

रात का खाना खा कर साढ़े 11 बजे के करीब विजय कुमार पत्नी के साथ सोने की तैयारी कर रहे थे, तभी दरवाजे पर किसी ने दस्तक दी. जयलक्ष्मी ने सवालिया निगाहों से पति की ओर देखा तो उन्होंने कहा, ‘‘देखता हूं, कौन है?’’

विजय कुमार ने दरवाजा खोला तो शायद दस्तक देने वाला विजय कुमार का कोई परिचित था, इसलिए वह बाहर निकल गए. थोड़ी देर बाद अंदर आए और कपड़े पहनने लगे तो जयलक्ष्मी ने पूछा, ‘‘कहीं जा रहे हो क्या?’’

‘‘हां, थोड़ा काम है. जल्दी ही लौट आऊंगा.’’ कह कर वह बाहर जाने लगे तो जयलक्ष्मी ने क हा, ‘‘गाड़ी की चाबी तो ले लो?’’

‘‘चाबी की जरूरत नहीं है. उन्हीं की गाड़ी से जा रहा हूं.’’ कह कर विजय कुमार चले गए. वह वही कपड़े पहन कर गए थे, जिस में पैसे रखे थे. इस तरह थोड़ी देर के लिए कह कर गए विजय कुमार गुरव लौट कर नहीं आए.

पुलिस ने विजय कुमार के बारे में पता करने के लिए अपने सारे हथकंडे अपना लिए, पर उन की कोई जानकारी नहीं मिली. 3 दिन बीत जाने के बाद भी थाना पुलिस कुछ नहीं कर पाई तो घर वाले कुछ प्रतिष्ठित लोगों को साथ ले कर एसएसपी दयानंद गवस और एसपी दीक्षित कुमार गेडाम से मिले. इस का नतीजा यह निकला कि थाना पुलिस पर दबाव तो पड़ा ही, इस मामले की जांच में सीआईडी के इंसपेक्टर सुनील धनावड़े को भी लगा दिया गया.

जब सीआईडी के इंसपेक्टर को सौंपी गई जांच

सुनील धनावड़े जांच की भूमिका बना रहे थे कि 11 नवंबर, 2017 को सावंतवाड़ी अंबोली स्थित सावलेसाद पिकनिक पौइंट पर एक लाश मिलने की सूचना मिली. सूचना मिलते ही एसपी दीक्षित कुमार गेडाम, एसएसपी दयानंद गवस इंसपेक्टर सुनील धनावड़े पुलिस बल के साथ उस जगह पहुंच गए, जहां लाश पड़ी होने की सूचना मिली थी.

यह पिकनिक पौइंट बहुत अच्छी जगह है, इसलिए यहां घूमने वालों की भीड़ लगी रहती है. यहां ऊंचीऊंची पहाड़ियां और हजारों फुट गहरी खाइयां हैं. किसी तरह की अनहोनी न हो, इस के लिए पहाडि़यों पर सुरक्षा के लिए लोहे की रेलिंग लगाई गई है.

दरअसल, यहां घूमने आए किसी आदमी ने रेलिंग के पास खून के धब्बे देखे तो उस ने यह बात एक दुकानदार को बताई. दुकानदार ने यह बात चौकीदार दशरथ कदम को बताई. उस ने उस जगह का निरीक्षण किया और मामले की जानकारी थाना पुलिस को दे दी.

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पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल के निरीक्षण में सैकड़ों फुट गहरी खाई में एक शव को पड़ा देखा. शव बिस्तर में लिपटा था. वहीं से थोड़ी दूरी पर एक लोहे की रौड पड़ी थी, जिस में खून लगा था. इस से पुलिस को लगा कि हत्या उसी रौड से की गई है. पुलिस ने ध्यान से घटनास्थल का निरीक्षण किया तो वहां से कुछ दूरी पर कार के टायर के निशान दिखाई दिए.

इस से साफ हो गया कि लाश को कहीं बाहर से ला कर यहां फेंका गया था. पुलिस ने रौड और बिस्तर को कब्जे में ले कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया.

सीआईडी इंसपेक्टर सुनील धनावड़े विजय कुमार गुरव की गुमशुदगी की जांच कर रहे थे, इसलिए उन्होंने लाश की शिनाख्त के लिए जयलक्ष्मी को सूचना दे कर अस्पताल बुला लिया.

लाश तो मिली पर नहीं हो सकी पुख्ता शिनाख्त

लाश की स्थिति ऐसी थी कि उस की शिनाख्त आसान नहीं थी. फिर भी कदकाठी से अंदाजा लगाया गया कि वह लाश विजय कुमार गुरव की हो सकती है. चूंकि उन के घर वालों ने संदेह व्यक्त किया था, इसलिए पुलिस ने लाश की पुख्ता शिनाख्त के लिए डीएनए का सहारा लिया. जिस बिस्तर में शव लिपटा था, उसे जयलक्ष्मी को दिखाया गया तो उस ने उसे अपना मानने से इनकार कर दिया.

भले ही लाश की पुख्ता शिनाख्त नहीं हुई थी, लेकिन पुलिस उसे विजय कुमार की ही लाश मान कर जांच में जुट गई. जिस तरह मृतक की हत्या हुई थी, उस से पुलिस ने अंदाजा लगाया कि यह हत्या प्रेमसंबंधों में हुई है. पुलिस ने विजय कुमार और उन की पत्नी जयलक्ष्मी के बारे में पता किया तो जानकारी मिली कि विजय कुमार और जयलक्ष्मी के बीच संबंध सामान्य नहीं थे.

इस की वजह यह थी कि जयलक्ष्मी का चरित्र संदिग्ध था, जिसे ले कर अकसर पतिपत्नी में झगड़ा हुआ करता था. जयलक्ष्मी का सामने वाले मकान में रहने वाले सुरेश चोथे से प्रेमसंबंध था, इसलिए घर वालों का मानना था कि विजय कुमार के गायब होने के पीछे इन्हीं दोनों का हाथ हो सकता है.

यह जानकारी मिलने के बाद सुनील धनावड़े समझ गए कि विजय कुमार के गायब होने के पीछे उन की पत्नी जयलक्ष्मी और उस के प्रेमी सुरेश का हाथ है. उन्होंने जयलक्ष्मी से एक बार फिर पूछताछ की. वह उस की बातों से संतुष्ट नहीं थे, लेकिन कोई ठोस सबूत न होने की वजह से वह उसे गिरफ्तार नहीं कर सके. उन्होंने सुरेश चोथे को भी थाने बुला कर पूछताछ की. उस ने भी खुद को निर्दोष बताया. उस के भी जवाब से वह संतुष्ट नहीं थे, इस के बावजूद उन्होंने उसे जाने दिया.

उन्हें डीएनए रिपोर्ट का इंतजार था, क्योंकि उस से निश्चित हो जाता कि वह लाश विजय कुमार की ही थी. पुलिस डीएनए रिपोर्ट का इंतजार कर ही रही थी कि पुलिस की सरगर्मी देख कर जयलक्ष्मी अपने सारे गहने और घर में रखी नकदी ले कर सुरेश चोथे के साथ भाग गई. दोनों के इस तरह घर छोड़ कर भाग जाने से पुलिस को शक ही नहीं, बल्कि पूरा यकीन हो गया कि विजय कुमार के गायब होने के पीछे इन्हीं दोनों का हाथ है.

शक के दायरे में आई पत्नी और उस का प्रेमी

पुलिस सुरेश चोथे और जयलक्ष्मी की तलाश में जुट गई. पुलिस उन की तलाश में जगहजगह छापे तो मार ही रही थी, उन के फोन भी सर्विलांस पर लगा दिए थे. इस से कभी उन के दिल्ली में होने का पता चलता तो कभी कोलकाता में. गुजरात और महाराष्ट्र के शहरों की भी उन की लोकेशन मिली थी. इस तरह लोकेशन मिलने की वजह से पुलिस कई टीमों में बंट कर उन का पीछा करती रही थी.

आखिर पुलिस ने मोबाइल फोन के लोकेशन के आधार पर जयलक्ष्मी और सुरेश को मुंबई के लोअर परेल लोकल रेलवे स्टेशन से गिरफ्तार कर लिया. उन्हें थाना गडहिंग्लज लाया गया, जहां एसएसपी दयानंद गवस की उपस्थिति में पूछताछ शुरू हुई. अब तक डीएनए रिपोर्ट भी आ गई थी, जिस से साफ हो गया था कि सावलेसाद पिकनिक पौइंट पर खाई में मिली लाश विजय कुमार की ही थी. पुलिस के पास सारे सबूत थे, इसलिए जयलक्ष्मी और सुरेश ने तुरंत अपना अपराध स्वीकार कर लिया. दोनों के बताए अनुसार, विजय कुमार की हत्या की कहानी इस प्रकार थी.

कैसे हुआ जयलक्ष्मी और सुरेश में प्यार

34 साल का सुरेश चोथे विजय कुमार गुरव के घर के ठीक सामने रहता था. उस के परिवार में पत्नी और 2 बच्चों के अलावा मातापिता, एक बड़ा भाई और भाभी थी. वह गांव की पंचसंस्था में मैनेजर के रूप में काम करता था. घर में पत्नी होने के बावजूद वह जब भी जयलक्ष्मी को देखता, उस के मन में उसे पाने की चाहत जाग उठती.

37 साल की जयलक्ष्मी थी ही ऐसी. वह जितनी सुंदर थी, उतनी ही वाचाल और मिलनसार भी थी. उस से बातचीत कर के हर कोई खुश हो जाता था, इस की वजह यह थी कि वह खुल कर बातें करती थी. ऐसे में हर कोई उस की ओर आकर्षित हो जाता था. पड़ोसी होने के नाते सुरेश से उस की अकसर बातचीत होती रहती थी.

बातचीत करतेकरते ही वह उस का दीवाना बन गया था. जयलक्ष्मी का बेटा 18 साल का था, लेकिन उस के रूपयौवन में जरा भी कमी नहीं आई थी. शरीर का कसाव और चेहरे के निखार से वह 25 साल से ज्यादा की नहीं लगती थी. उस के इसी यौवन और नशीली आंखों के जादू में सुरेश कुछ इस तरह खोया कि अपनी पत्नी और बच्चों को भूल गया.

कहा जाता है कि जहां चाह होती है, वहां राह मिल ही जाती है. जयलक्ष्मी तक पहुंचने की राह आखिर सुरेश ने खोज ही ली. विजय कुमार से दोस्ती कर के वह उस के घर के अंदर तक पहुंच गया था. इस के बाद धीरेधीरे उस ने जयलक्ष्मी से करीबी बना ली. भाभी का रिश्ता बना कर वह उस से हंसीमजाक करने लगा. हंसीमजाक में जयलक्ष्मी के रूपसौंदर्य की तारीफ करतेकरते उस ने उसे अपनी ओर इस तरह आकर्षित किया कि उस ने उसे अपना सब कुछ सौंप दिया.

विजय कुमार गुरव दिन भर नौकरी पर रहते और रात में गानेबजाने की वजह से अकसर बाहर ही रहते थे. इसी का फायदा जयलक्ष्मी और सुरेश उठा रहे थे. जयलक्ष्मी को अपनी बांहों में पा कर जहां सुरेश के मन की मुराद पूरी हो गई थी, वहीं जयलक्ष्मी भी खुश थी. दोनों विजय कुमार की अनुपस्थिति में मिलते थे, इसलिए उन्हें पता नहीं चल पाता था.

लेकिन आसपास वालों ने विजय कुमार के घर में न रहने पर सुरेश को अकसर उस के घर आतेजाते देखा तो उन्हें शंका हुई. उन्होंने विजय कुमार को यह बात बता कर शंका जाहिर की तो विजय कुमार हैरान रह गए. उन्हें तो पत्नी और पड़ोसी होने के नाते सुरेश पर पूरा भरोसा था.

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इस तरह दोनों विजय कुमार के भरोसे का खून कर रहे थे. उन्होंने पत्नी और सुरेश से इस विषय पर बात की तो दोनों कसमें खाने लगे. उन का कहना था कि उन के आपस में संबंध खराब करने के लिए लोग ऐसा कह रहे हैं.

भले ही जयलक्ष्मी और सुरेश ने कसमें खा कर सफाई दी थी, लेकिन विजय कुमार जानते थे कि बिना आग के धुआं नहीं उठ सकता. लोग उन से झूठ क्यों बोलेंगे? सच्चाई का पता लगाने के लिए वह पत्नी और सुरेश पर नजर रखने लगे. इस से जयलक्ष्मी और सुरेश को मिलने में परेशानी होने लगी, जिस से दोनों बौखला उठे. इस के अलावा सुरेश को ले कर विजय कुमार अकसर जयलक्ष्मी की पिटाई भी करने लगे थे.

इस तरह बनी विजय कुमार की हत्या की हत्या की योजना

इस से जयलक्ष्मी तो परेशान थी ही, प्रेमिका की पिटाई से सुरेश भी दुखी था. वह प्रेमिका की पिटाई सहन नहीं कर पा रहा था. जयलक्ष्मी की पिटाई की बात सुन कर उस का खून खौल उठता था. प्रेमी के इस व्यवहार से जयलक्ष्मी ने एक खतरनाक योजना बना डाली. उस में सुरेश ने उस का हर तरह से साथ देने का वादा किया.

योजना के अनुसार, घटना वाले दिन जयलक्ष्मी ने खाने में नींद की गोलियां मिला कर पति, ननद और बेटे को खिला दीं, जिस से सभी गहरी नींद सो गए. रात एक बजे के करीब सुरेश ने धीरे से दरवाजा खटखटाया तो जयलक्ष्मी ने दरवाजा खोल दिया. सुरेश लोहे की रौड ले कर आया था. उसी रौड से उस ने पूरी ताकत से विजय कुमार के सिर पर वार किया. उसी एक वार में उस का सिर फट गया और उस की मौत हो गई.

विजय कुमार की हत्या कर के लाश को दोनों ने बिस्तर में लपेट दिया. इस के बाद जयलक्ष्मी ने लाश को अपनी मारुति वैन में रख कर उसे सुरेश से सावंतवाड़ी के अंबोली सावलेसाद पिकनिक पौइंट की गहरी खाइयों में फेंक आने को कहा.

सुरेश लाश को ठिकाने लगाने चला गया तो जयलक्ष्मी कमरे की सफाई में लग गई. उस के बाद सुरेश लौटा तो जयलक्ष्मी ने वैन की भी ठीक से सफाई कर दी. इस के बाद उस ने विजय कुमार की गुमशुदगी की झूठी कहानी गढ़ डाली. लेकिन उस की झूठी कहानी जल्दी ही सब के सामने आ गई.

पूछताछ के बाद पुलिस ने जयलक्ष्मी के कमरे का बारीकी से निरीक्षण किया तो दीवारों पर भी खून के दाग नजर आए. पुलिस ने उन के नमूने उठवा लिए. इस तरह साक्ष्य एकत्र कर के पुलिस ने दोनों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

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