इंसाफ का अंधेरा: 5 कैदियों ने रचा जेल में कैसा खेल – भाग 3

‘‘4 घंटे की ड्यूटी में कोई एक पुलिस वाला अंदर का गेट पार कर के पेशाब के लिए तो जाएगा ही. हमें उसी समय अंदर का गेट बंद कर देना है. एक सिपाही रहेगा. बहुत आसानी रहेगी. और अगर किसी तरह हम मेन गेट के संतरी को अपने काम करने वाले कमरे तक ला सके और उसे किसी तरह कमरे में बंद कर दिया तो हमें ज्यादा समय मिल सकता है. बोलो, तैयार हो?’’

सब ने सहमति जताई. यह योजना बाकी चारों को बहुत पसंद आई थी. वे अब बारीक निगाहों से समय का, गेट के संतरी का, चाबी का, इमर्जैंसी सायरन पर ध्यान देने लगे थे.

इधर बूढ़े बाप के शरीर में अब इतनी ताकत नहीं थी कि वह चलफिर सके. बेटे की जिंदगी को ले कर जो इच्छाएं मन में थीं, वे तो खत्म होने के कगार पर थीं. बस यही आखिरी इच्छा थी कि मरने से पहले बेटा कैद से बाहर आ जाए.

बाप को बेटे की शादी की तो उम्मीद नहीं थी. कौन देगा जेल गए बेटे को अपनी लड़की? खेतीबारी बिक चुकी थी. मजदूरी करने की शरीर में ताकत नहीं थी. इस बुढ़ापे में वह मंदिर के पास पड़ा रहता. वकील से भी बहुत पहले कह दिया था कि हाईकोर्ट का जो फैसला हो, खबर भेज देना. वकील की एकमुश्त फीस दी जा चुकी थी.

आज मौका मिल ही गया उन पांचों को. दोपहर 2 बजे एक संतरी ने अपने साथ ड्यूटी करने वाले संतरी से कहा, ‘‘मैं हलका हो कर आता हूं.’’

जैसे ही उन्हें अंदर का गेट खोलने की आवाज आई, वे पांचों फुरती से बाहर निकले. एक ने दौड़ कर अंदर का गेट बंद किया. 2 लोग कैंची अड़ा कर संतरी को अंदर कमरे में ले गए. जो कपड़े सिल कर तैयार थे, उन्होंने पहन लिए थे. उस ने चाबी छीन कर मेन गेट पर लगाई.

एक कैदी ने इमर्जैंसी सायरन बंद करने की कोशिश की, लेकिन बात बन नहीं पाई. मेन गेट खुलते ही उस ने बाकी चारों से कहा, ‘‘जल्दी निकलो,’’ और वे तेज कदमों से बाहर की ओर बढ़े.

किसी काम से आते हुए एक संतरी ने उन्हें देख लिया. उसे हैरानी हुई. उस ने सोचा, ‘शायद पांचों की जमानत हो गई है या हाईकोर्ट से बरी हो गए हैं. लेकिन इन्हें तो शाम को छोड़ा जाता…’

उसे कुछ शक हुआ. वह तेजी से जेल की तरह बढ़ा. मेन गेट का दरवाजा खुला हुआ था और अंदर से दोनों संतरियों के चीखने की आवाजें आ रही थीं.

वह संतरी अंदर गया. उस ने अंदर के गेट का दरवाजा खोला. दोनों ने सारी बातें बताईं और तुरंत इमर्जैंसी सायरन के स्विच पर उंगली रखी.

सायरन की आवाज उन पांचों के कानों में पड़ी. वे मेन सड़क तक आ चुके थे. उन्होंने सामने से आती हुई बस देखी और बस के पीछे लटक गए. बसस्टैंड के आने से पहले ही वे पांचों अलगअलग हो गए.

उस ने पहले गांव जाने पर विचार किया, फिर तुरंत अपना इरादा बदला. वह पैदल ही शहर की भीड़भाड़ से गुजरते हुए आगे बढ़ता रहा. वह कहां जा रहा था, उसे खुद पता नहीं था.

वह शहर के बाहर चलते हुए खेतखलिहानों को पार करते हुए एक पहाड़ी पर पहुंचा. पहाड़ी पर एक उजाड़ सा मंदिर बना हुआ था. वह वहीं एक पत्थर पर बैठ गया. उसे नींद आई या वह बेहोश हो गया.

अचानक उस की नींद खुल गई. उसे कुछ खतरे का आभास हुआ. उस ने उजाड़ मंदिर की दीवार की आड़ से देखा. दर्जनभर हथियारबंद पुलिस वाले उसे तेजी से अपनी तरफ बढ़ते हुए दिखाई दिए. वह भागा. नीचे गहरी खाई थी. बड़ीबड़ी चट्टानों के बीच बहती हुई नदी थी. सिपाही उस पर बंदूकें ताने हुए थे.

एक सबइंस्पैक्टर था. उस ने उसे अपनी रिवौल्वर के निशाने पर लेते हुए कहा, ‘‘बचने का कोई रास्ता नहीं है. रुक जाओ, नहीं तो मारे जाओगे.’’

उस ने अपनेआप को पहाड़ से नीचे गिरा दिया. सैकड़ों फुट की ऊंचाई से गिरता हुआ वह पथरीली चट्टान से टकराया. तत्काल उस की मौत हो गई.

जेल से भागने के एक घंटे पहले ही हाईकोर्ट ने उसे बाइज्जत बरी कर दिया था. उस की रिहाई के आदेश जारी कर दिए गए थे. बूढ़े बाप तक वकील ने खुद गांव जा कर खबर सुनाई.

पर थोड़ी देर में गांव की चौकी से एक पुलिस वाले ने आ कर उस से कहा, ‘‘तुम्हारा बेटा 4 लोगों के साथ जेल तोड़ कर भागा था. 3 पकड़े गए हैं. एक भागते हुए ट्रक के नीचे आ गया और तुम्हारे बेटे ने पुलिस से बचने के लिए पहाड़ी से छलांग लगा दी और मर गया.’’

कुछ देर तक बाप सकते में रहा, फिर उस ने अपनेआप से कहा, ‘‘मेरी चिंता खत्म. आज सचमुच रिहा हो गया मेरा बेटा और मैं भी.’’ बाप भी लड़खड़ा कर गिर पड़ा और फिर दोबारा न उठ सका.

खुशी का गम : पति ने किया खिलवाड़ – भाग 3

अब व्यापार के काम के बहाने मैं हफ्तों फ्लोरेंस के घर पड़ा रहता था. धीरेधीरे शिलांग के साडि़यों के शोरूम की पूरी बागडोर उस ने अपने हाथों में ले ली थी. इधर मुझे यह खुशखयाली भी रहने लगी कि फ्लोरेंस की सारी जमीन अब मेरी है. मैं ही उस का असली मालिक हूं.

फ्लोरेेंस से मेरे संबंधों की खबर खुशी और मेरे परिवार वालों को लग गई थी जिस की वजह से खुशी बहुत दुखी रहने लगी थी. मैं जब भी घर जाता, वह मुझ से कहती, ‘देखो, तुम क्यों उस खासी युवती को इतनी अहमियत दे रहे हो? क्या मुझे और मेरे बेटे को तुम्हारा साथ, तुम्हारा वक्त नहीं चाहिए? आज तुम मानो या न मानो पर देखना, एक दिन वह खासी औरत तुम्हारा साड़ियों का शोरूम हड़प लेगी. तुम ने यहां का शोरूम भी नौकरों के भरोसे छोड़ दिया है. वहां की आमदनी पहले से आधी रह गई है. तुम क्यों अपना सर्वनाश करने पर तुले हुए हो?’

खुशी की बातें सुन कर मैं गुस्से में भर उठा था और उस को चांटा मार कर घर से बाहर निकल आया था.

उसी दिन मैं शिलांग चला गया था. समय पंख लगा कर उड़ता चला गया और मेरा बेटा बड़ा हो चला था. जैसेजैसे वह समझदार होता जा रहा था, वह भी मुझ से दूर होता जा रहा था. मैं उसे अपने करीब लाने की भरसक कोशिश करता, पर वह मुझ से हमेशा अनमना सा रहता और अजनबियों की तरह पेश आता.

फ्लोरेंस से भी मेरा एक बेटा था जिसे मैं बेहद प्यार करता था. जैसेजैसे वह बड़ा हो रहा था वह भी मेरे नियंत्रण से बाहर होता जा रहा था.

इधर पिछले कुछ सालों से खुशी का कुछ दूसरा ही रूप मुझे देखने को मिल रहा था. गुवाहाटी वाला साडि़यों का शोरूम अब खुशी संभाल रही थी. उस के देखभाल करने के बाद वहां की बिक्री लगभग दोगुनी हो गई थी.

अब मेरा बेटा आकाश भी बड़ा हो चला था और कालिज के बाद वह भी शोरूम में बैठने लगा था, लेकिन एक बात जो मुझे खाए जा रही थी वह यह कि खुशी के प्रति मेरे अवमाननापूर्ण व्यवहार के प्रतिक्रियास्वरूप वह मुझ से बहुत कटाकटा सा रहने लगा था और दुकान की तिजोरी की चाबी भी वह अपने पास रखने लगा था. इस वजह से मैं रुपएपैसे के मामले में उन का मोहताज हो गया था. जब कभी मुझे रुपएपैसों की जरूरत होती, खुशी ही मुझे थोड़ेबहुत रुपए दे देती. इस तरह रुपयों के लिए पूरी तरह खुशी पर निर्भर होने की वजह से मेरे आत्मसम्मान को बहुत ठेस पहुंची थी और मुझ में धीरेधीरे हीनता की भावना घर करती जा रही थी.

उधर जिस जमीन के लालच में मैं ने फ्लोरेंस से रिश्ता जोड़ा था, उस जमीन के कागजों की फ्लोरेंस ने मुझे हवा तक नहीं लगने दी. न जाने वह उन्हें कहां छिपा कर रखती थी. उस पर कई महीनों से फ्लोरेंस से मेरी गंभीर अनबन चल रही थी. वह मुझ पर बहुत जोर डाल रही थी कि मैं खुशी को तलाक दे कर उस से अदालत में शादी कर लूं. लेकिन मैं खुशी को तलाक नहीं देना चाहता था. शायद इस की वजह यह थी कि मैं खुशी से भावनात्मक रूप से बहुत जुड़ा हुआ था. इस वजह से फ्लोरेंस और मुझ में झगड़ा बढ़ता ही गया और एक दिन फ्लोरेंस और उस के बेटे हनी ने मिल कर शिलांग वाले साडि़यों के शोरूम पर पूरी तरह से अपना कब्जा जमा लिया था. मैं जब भी शिलांग वाले शोरूम में जाता, हनी मुझे तिजोरी को हाथ तक न लगाने देता.

अब मुझे एहसास होने लगा था कि फ्लोरेंस के साथ रिश्ता कायम कर के मैं ने जिंदगी के हर क्षेत्र में नुकसान उठाया था. फ्लोरेंस की वजह से मैं ने खुशी और आकाश की उपेक्षा और अवहेलना की. मैं ने अपनी पत्नी की उपेक्षा की जिस की वजह से मेरे बेटे ने मुझे कभी पिता का आदरमान नहीं दिया और मैं अपने ही घर में बेगाना बन कर रह गया.

फ्लोरेंस से रिश्ता रखने की वजह से मेरे परिवार वालों ने मुझे पुश्तैनी संपत्ति से बेदखल कर उसे खुशी और आकाश के नाम कर दिया था. मेरी लापरवाही के चलते मेरा गुवाहाटी का शोरूम भी खुशी और आकाश के कब्जे में चला गया था. अब मुझे एहसास हो रहा था कि मैं जिंदगी की लड़ाई में बुरी तरह से हार गया था.

एक वक्त था जब कुदरत ने मुझे दुनिया की हर नियामत बख्शी थी. सुशील पत्नी, एक प्यारा सा बेटा, चलता हुआ व्यापार, सामाजिक प्रतिष्ठा, लेकिन मैं ने यह सबकुछ अपनी ही बेवकूफी से गंवा दिया था. शायद यही मेरी गलतियों की सजा है, लेकिन अब मुझे अपनी गलतियों का एहसास हो चला है और इस के लिए मैं खुशी और आकाश से माफी मांगूंगा. फ्लोरेंस से अपने सारे संबंध हमेशा के लिए तोड़ लूंगा. दोबारा से शोरूम में बैठ कर व्यापार संभालूंगा. खुशी बहुत अच्छी है. वह जरूर मुझे माफ कर देगी.

शोरूम में बैठ कर काम संभालने के खयाल ने मुझे बहुत सुकून दिया था. फिर भी मन के एक कोने में कहीं यह डर छिपा हुआ था कि क्या आकाश और खुशी मुझे फिर से व्यापार संभालने देंगे? क्या वे दोनों मेरी पिछली भूलों को नजरअंदाज कर पाएंगे?

इसी डर और आशंका के साथ मैं शोरूम पर पहुंचा और खुशी से बोला, ‘खुशी, मैं ने पूरी जिंदगी तुम्हारे साथ बहुत अन्याय किया. अपने गलत आचरण से तुम्हारे दिल को बहुत दुखाया. मैं वादा करता हूं कि पुरानी भूलों को अब कभी नहीं दोहराऊंगा. मैं ने फ्लोरेंस और हनी से सारे रिश्ते तोड़ लिए हैं. बस…तुम मुझे एक बार माफ कर दो.’

खुशी तो कुछ नहीं बोली लेकिन आकाश बोल पड़ा, ‘अब आप को अपनी गलतियों का एहसास हो रहा है. मेरी मां ने कितने दिन और कितनी रातें आप की वजह से रोरो कर गुजारी हैं, यह मैं ने अपनी आंखों से देखा है और अब आप माफी मांग रहे हैं. नहीं, बिलकुल नहीं. आप हमारी माफी के बिलकुल भी हकदार नहीं हैं. इतने सालों तक हम ने बिना आप के सहारे के अकेले, अपने दम पर जिंदगी जी है, आगे भी जी लेंगे. अब आप कारोबार संभालने की बात कर रहे हैं, जबकि पहले आप ने ही सारा कारोबार चौपट कर दिया था. यह शोरूम बंद होने के कगार पर आ पहुंचा था. आप यहां से जाइए, हम दोनों की जिंदगी में अब आप की कोई जगह नहीं है.’

आकाश की इन कड़वी पर सच बातों को सुन कर मेरा दिल बैठ गया और मैं ने हताश कदमों व टूटे दिल से वापस लौटने के लिए कदम बढ़ाए थे कि तभी खुशी बोल पड़ी, ‘आकाश बेटा, पापा से ऐसा नहीं कहते. गलतियां किस से नहीं होतीं? पापा को अपनी गलतियों का एहसास हो गया, यही बहुत है. सुबह का भूला शाम को घर आ जाए तो उसे भूला नहीं कहते. हां, पर अब आप को मेरी एक बात माननी पडे़गी कि आप भविष्य में फ्लोरेंस और हनी से कोई रिश्ता नहीं रखेंगे और न उन से मिलने शिलांग जाएंगे.’

‘खुशी, अगर तुम्हें मेरी बातों पर यकीन है तो मैं तुम्हारी कसम खा कर कहता हूं कि भविष्य में मैं उन से कोई संबंध नहीं रखूंगा. मैं ने उन से हमेशाहमेशा के लिए अपने रिश्ते तोड़ लिए हैं.’

यह सुन कर खुशी के चेहरे पर संतुष्टि के भाव परिलक्षित हुए. फिर अपनी कुरसी से उठते हुए उस ने मुझ से कहा, ‘यह जगह आप की है. आप आइए, यहां बैठिए.’

मैं एक बार फिर खुशी की अच्छाइयों के सामने नतमस्तक हो गया था. मुझ में एक बार फिर से जिंदगी जीने की तमन्ना जाग उठी थी.

औक्टोपस कैद में : औरतों का शिकारी नेता

ज्यों ही वंदना से उस का सामना हुआ, वह अपना आपा खो बैठी. उस ने वंदना को धिक्कारते हुए कहा, ‘‘तुम ने तो अपनी इमेज खराब कर ली, लेकिन तुम ने मेरे बारे में यह कैसे सोच लिया कि मैं भी तुम्हारे रास्ते चल पडूंगी.’’

‘‘क्यों… क्या हो गया?’’ वंदना ने ऐसे पूछा, जैसे वह कुछ जानती ही न हो.

‘‘वही हुआ, जो तुम ने सोचा था. मैं भी तुम्हारी तरह लालची और डरपोक होती तो शायद बच कर नहीं निकल पाती…’’ सुभांगी ने अपनी उफनती सांसों पर काबू पाते हुए कहा.

वंदना समझ गई कि सुभांगी उस की सचाई को जान गई है. उस ने पैतरा बदलते हुए कहा, ‘‘देखो सुभांगी, अगर तुम को आगे बढ़ना है, तो कई जगह समझौते करने पड़ेंगे. फिर क्या हर्ज है कि किसी एक पहुंच वाले आदमी के आगे  झुक लिया जाए. मुझे देखो, आज मैं मंत्रीजी की वजह से ही इस मुकाम तक पहुंची हूं…’’

वंदना मंत्री से अपने संबंधों के चलते ही ब्लौक प्रमुख बनी थी. पहली बार जब वह आंगनबाड़ी में नौकरी करने की गरज से मंत्री के पास गई थी, तो उस का सामना एक भयंकर दुर्घटना से हुआ था.

उस की मजबूरी को भुनाते हुए मंत्री ने भरी दोपहरी में उस की इज्जत लूटी थी. एक बार तो उस को ऐसा सदमा लगा कि खुदकुशी का विचार उस के मन में आ गया था, लेकिन मंत्री ने उस के गालों को सहलाते हुए कहा था, ‘नौकरी कर के क्या करोगी… मुझे कभीकभार यों ही खुश कर दिया करो. बदले में मैं तुम्हें वह पहचान और पैसा दिलवा दूंगा, जिस की तुम ने कभी कल्पना भी न की हो.’

उस समय वंदना भी मंत्री के मुंह पर थूक कर भाग आई थी, लेकिन घर पहुंचने पर उस के मन में कई तरह के खयाल आए थे. कभी उस को लगता था कि फौरन जा कर पुलिस को सूचित करे और मंत्री के खिलाफ जंग का बिगुल बजा दे, लेकिन अगले ही पल उसे लगा कि मंत्री के खिलाफ लड़ने का अंजाम आखिरकार उस को ही भुगतना पड़ेगा.

जिन दिनों वंदना मंत्री के कारनामे से आहत हो कर घर में गुमसुम बैठी थी, उन्हीं दिनों उस की मुलाकात अर्चना से हुई थी. अर्चना कहने को तो टीचर थी, लेकिन उस के कारनामे बस्ती में काफी मशहूर थे.

अर्चना ने वंदना को सम झाया था, ‘औरत को तो हर जगह  झुकना ही होता है बहन. कुछ लोग मजे ले कर चले जाते हैं और कुछ एहसान का बदला चुकाते हैं. मंत्रीजी ने जो किया, वह बेशक गलत था, लेकिन अब वे अपने किए का मुआवजा भी तो तुम को दे रहे हैं. झगड़ा मोल लोगी तो पछताओगी और अगर समझौता करोगी, तो आगे बढ़ती चली जाओगी.’

अर्चना ने वंदना को इतने हसीन सपने दिखाए थे कि उस से मना करते हुए नहीं बना. उस के साथ वह राजधानी पहुंची और कई दिनों तक मंत्री के लिए मनोरंजन का साधन बनी रही.

अब वंदना को पता चला कि मंत्री की एक रखैल अर्चना भी है. अर्चना की सेवा से खुश हो कर मंत्री ने उसे उसी स्कूल का प्रिंसिपल बना दिया, जिस में कभी मंत्री की मेहरबानी से वह टीचर बनी थी.

वंदना सत्ता के सपनीले गलियारों में कुछ यों उल झी कि उस को अपने पति से खिलाफत करते हुए भी  झिझक नहीं हुई.

मंत्री के कारनामों से उस के पति अनजान नहीं थे. नौकरी के सिलसिले में वे अकसर घर से बाहर ही रहते थे, लेकिन अपनी बीवी की हर चाल से वे वाकिफ थे. पानी जब सिर से ऊपर गुजरने लगा, तो उन्होंने वंदना को रोकने की कोशिश की.

बच्चों का हवाला देते हुए उन्होंने वंदना से कहा था, ‘तुम 2 बच्चों की मां हो. बच्चों की पढ़ाई और परवरिश के लिए मैं जो कमाता हूं, वह काफी है. इज्जत की कमाई थोड़ी ही सही, लेकिन अच्छी लगती है.

‘‘ईमान और इज्जत बेच कर कोई लाखों रुपए भी कमा ले, तो दुनिया की थूथू से बच नहीं सकता. अभी देर नहीं हुई, मैं तुम्हारे अब तक के सारे गुनाह माफ करने को तैयार हूं, बशर्ते तुम इस गलत रास्ते से वापस लौट आओ…’

वंदना अब इतनी आगे बढ़ चुकी थी कि उस का किसी से कोई वास्ता नहीं रहा था. उस ने पति को दोटूक शब्दों में कह दिया था, ‘मैं जिंदगीभर तुम्हारी दासी बन कर नहीं रह सकती. अब तक मैं ने जो चुपचाप सहा, वह मेरी भूल थी. अब मुझे अपने रास्ते चलने दो.’

यह सुन कर वंदना का पति चुप हो गया था. उस को लगा कि वंदना को रोकना अब खतरनाक हो सकता है. उस की वजह से घर में क्लेश बढ़ सकता था. उस ने दोनों बच्चों को अपने साथ ले जाने का फैसला किया और वंदना को उसी के हाल पर छोड़ दिया.

वंदना ने भी पति के फैसले में कोई दखल नहीं दिया. अब उस के ऊपर बच्चों की देखरेख करने का जिम्मा भी नहीं रहा.

तमाम जिम्मेदारियों से छूट कर वंदना अब मंत्री की सेवा में खुद को पूरी तरह सौंप चुकी थी. बाहुबली मंत्री ने पंचायत चुनावों में अपने आपराधिक संपर्कों का इस्तेमाल कर वंदना को ब्लौक प्रमुख बना दिया. मंत्री से अपने संबंधों को उस ने जम कर भुनाया.

वंदना अपने दबदबे का इस्तेमाल जनता की भलाई के लिए करती तो लोगों का समर्थन हासिल करती, लेकिन लालच में अंधी हो कर उस ने मंत्री के दलाल की भूमिका निभानी शुरू कर दी.

अफसरों से पैसा वसूलना और अपने गुरगों को ठेके दिलवाने के अलावा अब वह आसपास के गांवों की भोलीभाली लड़कियों को नौकरी का लालच दे कर अपने आका के बैडरूम तक पहुंचाने लगी थी.

सुभांगी उस इलाके में अपनी स्वयंसेवी संस्था चलाती थी. वह पढ़ीलिखी और जु झारू थी. अपनी संस्था के जरीए वह औरतों और बच्चों को पढ़ाने की मुहिम चला रही थी.

वंदना और सुभांगी की मुलाकात एक सरकारी कार्यक्रम में हुई. शातिर वंदना की नजर सुभांगी पर लग चुकी थी. उस ने सुभांगी से दोस्ती बढ़ानी शुरू कर दी.

एक दिन मौका पा कर वंदना ने सुभांगी से पूछा, ‘तुम इतनी मेहनत करती हो. चंदा जुटा कर औरतों और बच्चों को पढ़ाती हो. ऐसे कामों के लिए सरकार अनुदान देती है. तुम खुद क्यों नहीं इस दिशा में कोशिश करती?’

‘सरकारी मदद लेने के लिए तो आंकड़े चाहिए और मेरी समस्या यह है कि मैं जमीन पर रह कर यह काम करती हूं, लेकिन फर्जी आंकड़े नहीं जुटा सकती…’ सुभांगी ने जवाब दिया.

‘तुम को फर्जी आंकड़े जुटाने की क्या जरूरत है? तुम्हारे पास तो ढेर सारे आंकड़े पहले से ही मौजूद हैं. तुम कहो तो मैं तुम्हारी मदद कर सकती हूं. इस इलाके के विधायक सरकार में मंत्री हैं और उन से मेरे अच्छे ताल्लुकात हैं,’ वंदना ने अपना जाल बिछाते हुए कहा.

सुभांगी को वंदना के असली कारनामों की जानकारी नहीं थी. वह उस की बातों में आ गई. उस ने सोचा कि चंदा वसूल कर अगर वह इतनी बड़ी मुहिम चला सकती है, तो सरकारी मदद मिलने पर इस को और भी सही ढंग से चला सकेगी.

उस शाम वंदना सुभांगी को ले कर मंत्री के घर पहुंची. उस का परिचय कराने के बाद वह तो कमरे से बाहर आ गई, लेकिन सुभांगी को वहीं छोड़ गई.

सुभांगी ने मंत्री की तरफ अपनी फाइल बढ़ाते हुए कहा, ‘इस में मेरे अब तक के काम का पूरा ब्योरा है. काम तो मैं यों भी कर ही रही हूं, लेकिन सरकार मदद दे दे तो मैं और भी बेहतर काम कर पाऊंगी.’

‘चिंता न करो, हम तुम को अच्छा अनुदान देंगे…’ मंत्री के मुंह से शराब की बदबू का भभका आया, तो सुभांगी के कान खड़े हो गए. वह फौरन कुरसी से उठी और बोली, ‘आप मेरी फाइल देख लीजिए… अभी मैं चलती हूं.’

सुभांगी दरवाजे की ओर मुड़ी ही थी कि नशे में धुत्त मंत्री ने उस को पीछे से दबोचते हुए कहा, ‘फाइल से पहले मैं तुम को तो देख लूं मेरी रानी…’

मंत्री ने सुभांगी को अपनी बांहों में मजबूती से जकड़ लिया. सुभांगी उस की गिरफ्त से बचने के लिए ऐसे छटपटाने लगी, जैसे कोई मजबूर मछली औक्टोपस की कैद से निकलने के लिए छटपटाती है.

देर तक सुभांगी मंत्री के चंगुल से निकलने के लिए छटपटाती रही और जब उस की ताकत जवाब दे गई, तो वह निढाल हो कर फर्श पर गिर पड़ी.

इस से पहले कि वह खूंख्वार शैतान उस की देह पर बिछता, उस ने चालाकी से अपने जूड़े में फंसी पिन मंत्री के मोटे गाल में घोंप दी. मंत्री की चीख निकल गई और वह एक किनारे हो गया. इस बीच सुभांगी बच कर भाग निकली.

मंत्री के कमरे से निकलते ही सुभांगी का सामना वंदना से हुआ. वह वंदना की सचाई समझ चुकी थी. उस को डपट कर वह पुलिस थाने पहुंची.

एक जवान लड़की को यों बदहवास भागते देख कर लोग सकते में आ गए. मीडिया को भी खबर लग गई. देखते ही देखते थाने में भीड़ जुट गई. दबाव में आ कर पुलिस ने न चाहते हुए भी रिपोर्ट दर्ज कर ली.

अगले दिन मंत्री के कारनामों की खबरें अखबारों में हैडलाइन बन कर छपीं. विपक्षी पार्टियों के दबाव में आ कर मंत्री को गिरफ्तार किया गया.

पुलिस जांच में पता चला कि सुभांगी के अलावा मंत्री ने कई मजबूर लड़कियों को अपनी हवस का शिकार बनाया और इस की सूत्रधार थी वंदना. वंदना को भी गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया.

आज वंदना जेल की कोठरी में कैद है. उस की सारी इच्छाएं खत्म हो चुकी हैं. अब उस को अपना अतीत याद आता है, जब उस के पति ने उस को बारबार सम झाया था कि गलत रास्ता छोड़ दे, लेकिन उस समय उस की आंखों पर पट्टी बंधी थी. वह खुद को सबकुछ समझ बैठी थी. सुभांगी की तरह उस ने भी हिम्मत कर मंत्री को सबक सिखाया होता, तो आज यह दिन न देखना पड़ता.

वंदना अब घुटघुट कर जी रही है. उस के पास अपनी करनी पर पछतावा करने के अलावा कोई और चारा नहीं है. उस को अब अपने बच्चों की याद सताती है. पति से अपने गुनाहों के लिए माफी मांगने के लिए वह छटपटाती रहती है, लेकिन उस का कोई अपना उस से मिलने को तैयार नहीं है.

दूसरी तरफ सुभांगी के हिम्मत की चारों ओर तारीफ हो रही है. राजधानी के नागरिक सुरक्षा मंच ने उस को सम्मानित ही नहीं किया, बल्कि अपनी महिला शाखा का प्रधान भी बना दिया.

आज सुभांगी को तमाम सम्मानों से उतनी खुशी नहीं मिलती, जितनी कि इस बात से कि उस के एक हिम्मती कारनामे ने उस दुष्ट औक्टोपस को कैद करवा दिया, जो सालों से मजबूर लड़कियों को जकड़ता चला आ रहा था.

उस को खुशी है तो इस बात की कि न तो उस ने वंदना और अर्चना की तरह समझौता किया और न ही उस ने हार मानी. उस ने हिम्मत से उस भयंकर औक्टोपस का सामना किया, जो तमाम मछलियों पर घात लगाए बैठा था.

बोया पेड़ बबूल का : मांबेटी का द्वंद्व- भाग 3

एक दिन पिताजी ने दुखी हो कर कहा था, ‘संगीता, जिन संबंधों को बना नहीं सकते उन्हें ढोने से क्या फायदा. इस से बेहतर है कि कानूनी तौर पर अलग हो जाओ.’ इस बात का मां और भैया ने जम कर विरोध किया.

मां का कहना था कि यदि मेरी बेटी सुखी नहीं रह सकती तो मैं उसे भी सुखी नहीं रहने दूंगी. तलाक देने का मतलब है वह जहां चाहे रहे और ऐसा मैं होने नहीं दूंगी.

मुझे भी लगा यही ठीक निर्णय है. पिताजी इसी गम में दुनिया से ही चले गए और साल बीततेबीतते मां भी नहीं रहीं. मैं ने कभी सोचा भी न था कि मैं भी कभी अकेली हो जाऊंगी.

मैं ने अब तक अपनेआप को इस घर में व्यवस्थित कर लिया था. सुबह भाभी के साथ नाश्ता बनाने के बाद कालिज चली जाती. शाम को मेरे आने के बाद वह बच्चों में व्यस्त हो जातीं. मैं मन मार कर अपने कमरे में चली जाती. भैया के आने के बाद ही हम लोग पूरे दिन की दिनचर्या डायनिंग टेबल पर करते. मेरा उन से मिलना बस, यहीं तक सिमट चुका था.

जयपुर के निकट एक गांव में पति द्वारा पत्नी पर किए गए अत्याचारों की घटना की उस दिन बारबार टीवी पर चर्चा हो रही थी. खाना खाते हुए भैया बोले, ‘ऐसे व्यक्तियों को तो पेड़ पर लटका कर गोली मार देनी चाहिए.’

‘तुम अपना खाना खाओ,’ भाभी बोलीं, ‘यह काम सरकार का है, उसे ही करने दो.’

‘सरकार कुछ नहीं करती. औरतों को ही जागरूक होना चाहिए. अपनी संगीता को ही देख लो, संदीप को ऐसा सबक सिखाया है कि उम्र भर याद रखेगा. तलाक लेना चाहता था ताकि अपनी जिंदगी मनमाने ढंग से बिता सके. हम उसे भी सुख से नहीं रहने देंगे,’ भैया ने तेज स्वर में मेरी ओर देखते हुए कहा, ‘क्यों संगीता.’

‘तुम यह क्यों भूलते हो कि उसे तलाक न देने से खुद संगीता भी कभी अपना घर नहीं बसा सकती. मैं ने तो पहले ही इसे कहा था कि इस खाई को और न बढ़ाओ. तब मेरी सुनी ही किस ने थी. वह तो फिर भी पुरुष है, कोई न कोई रास्ता तो निकाल ही लेगा. वह अकेला रह सकता है पर संगीता नहीं.’

‘मैं क्यों नहीं घर बसा सकती,’ मैं ने प्रश्नवाचक निगाहें भाभी पर टिका दीं.

‘क्योंकि कानूनी तौर पर बिना उस से अलग हुए तुम्हारा संबंध अवैध है.’

भाभी की बातों में कितना कठोर सत्य छिपा हुआ था यह मैं ने उस दिन जाना. मुझे तो जैसे काठ मार गया हो.

उस रात नींद आंखों से दूर ही रही. मैं यथार्थ की दुनिया में आ गिरी. कहने के लिए यहां अपना कुछ भी नहीं था. मैं अब अपने ही बनाए हुए मकड़जाल में पूरी तरह फंस चुकी थी.

इस तनाव से मुक्ति पाने के लिए मैं ने एक रास्ता खोजा और वहां से दूर रहने लायक एक ठिकाना ढूंढ़ा. किसी का कुछ नहीं बिगड़ा और मैं रास्ते में अकेली खड़ी रह गई.

मेरी जिंदगी की दूसरी पारी शुरू हो चुकी थी. जाने वह कैसी मनहूस घड़ी थी जब मां की बातों में आ कर मैं ने अपना बसाबसाया घर उजाड़ लिया था. फिर से जिंदगी जीने की जंग शुरू हो गई. मैं ने संदीप को ढूंढ़ने का निर्णय लिया. जितना उसे ढूंढ़ती उतना ही गम के काले सायों में घिरती चली गई.

उस के आफिस के एक पुराने कुलीग से मुझे पता चला कि उस दिन जो युवती संदीप से मिलने घर आई थी वह उस के विभाग की नई हेड थी. संदीप चाहता था कि उसे अपना घर दिखा सके ताकि कंपनी द्वारा दी गई सुविधाओं को वह भी देख सके. किंतु उस दिन की घटना के बाद मैं ने फोन से जो कीचड़ उछाला था वह संदीप की तरक्की के मार्ग को बंद कर गया. वह अपनी बदनामी का सामना नहीं कर पाया और चुपचाप त्यागपत्र दे दिया. यह उस का मुझ से विवाह करने का इनाम था.

फिर तो मैं ने उसे ढूंढ़ने के सारे यत्न किए, पर सब बेकार साबित हुए. मैं चाहती थी एक बार मुझे संदीप मिल जाए तो मैं उस के चरणों में माथा रगड़ूं, अपनी गलती के लिए क्षमा मांगूं, लेकिन मेरी यह इच्छा भी पूरी नहीं हुई. न जाने किस सुख के प्रलोभन के लिए मैं उस से अलग हुई. न खुद ही जी पाई और न उस के जीने के लिए कोई कोना छोड़ा.

अब जब जीवन की शाम ढलने लगी है मैं भीतर तक पूरी तरह टूट चुकी हूं. उस के एक परिचित से पता चला था कि वह तमिलनाडु के सेलम शहर में है और आज इस पत्र के आते ही मेरा रहासहा उत्साह भी ठंडा हो गया.

कोई किसी की पीड़ा को नहीं बांट सकता. अपने हिस्से की पीड़ा मुझे खुद ही भोगनी पड़ेगी. मन के किसी कोने में छिपी हीन भावना से मैं कभी छुटकारा नहीं पा सकती.

पहली बार महसूस किया कि मैं ने वह वस्तु हमेशा के लिए खो दी है जो मेरे जीवन की सब से महत्त्वपूर्ण निधि थी. काश, संदीप कहीं से आ जाए तो मैं उस से क्षमादान मांगूं. वही मुझे अनिश्चितताओं के इस अंधेरे से बचा सकता है.

प्यार अपने से: जब प्यार ने तोड़ी मर्यादा- भाग 3

संध्या ने कोई जवाब नहीं दिया. इसी बीच एक बार सोमेन के दोस्त ने उन्हें खबर दी कि उस ने रिया और गोपाल को एकसाथ सिनेमाघर से निकलते देखा है.

इस के कुछ ही दिनों बाद संध्या के रिश्ते के एक भाई ने बताया कि उस ने गोपाल और रिया को रैस्टौरैंट में लंच करते देखा है.

सोमेन ने अपनी पत्नी संध्या से कहा, ‘‘रिया और गोपाल दोनों को कई बार सिनेमाघर या होटल में साथ देखा गया है. उसे समझाओ कि उस के लिए अच्छे घरों से रिश्ते आ रहे हैं. सिर्फ उस के हां कहने की देरी है.’’

संध्या बोली, ‘‘रिया ने मुझे बताया था कि वह गोपाल से प्यार करती है.’’

सोमेन चौंक पड़े और बोले, ‘‘क्या? रिया और गोपाल? यह तो बिलकुल भी नहीं हो सकता.’’

अगले दिन सोमेन ने रिया से कहा, ‘‘बेटी, तेरे रिश्ते के लिए काफी अच्छे औफर हैं. तू जिस से बोलेगी, हम आगे बात करेंगे’’

रिया ने कहा, ‘‘पापा, मैं बहुत दिनों से सोच रही थी कि आप को बताऊं कि मैं और गोपाल एकदूसरे को चाहते हैं. मैं ने मम्मी को बताया भी था कि पीजी पूरा कर के मैं शादी करूंगी.’’

‘‘बेटी, कहां गोपाल और कहां तुम? उस से तुम्हारी शादी नहीं हो सकती, उसे भूल जाओ. अपनी जाति के अच्छे रिश्ते तुम्हारे सामने हैं.’’

‘‘पापा, हम दोनों पिछले 5 सालों से एकदूसरे को चाहते हैं. आखिर उस में क्या कमी है?’’

‘‘वह एक आदिवासी है और हम ऊंची जाति के शहरी लोग हैं.’’

‘‘पापा, आजकल यह जातपांत, ऊंचनीच नहीं देखते. गोपाल भी एक अच्छा डाक्टर है और उस से भी पहले बहुत नेक इनसान है.’’

सोमेन ने गरज कर कहा, ‘‘मैं बारबार तुम्हें मना कर रहा हूं… तुम समझती क्यों नहीं हो?’’

‘‘पापा, मैं ने भी गोपाल को वचन दिया है कि मैं शादी उसी से करूंगी.’’

उसी समय संध्या भी वहां आ गई और बोली, ‘‘अगर रिया गोपाल को इतना ही चाहती है, तो उस से शादी करने में क्या दिक्कत है? मुझे तो गोपाल में कोई कमी नहीं दिखती है.’’

सोमेन चिल्ला कर बोले, ‘‘मेरे जीतेजी यह शादी नहीं हो सकती. मैं तो कहूंगा कि मेरे मरने के बाद भी ऐसा नहीं करना. तुम लोगों को मेरी कसम.’’

रिया बोली, ‘‘ठीक है, मैं शादी ही नहीं करूंगी. तब तो आप खुश हो जाएंगे.’’

सोमेन बोले, ‘‘नहीं बेटी, तुझे शादीशुदा देख कर मुझे बेहद खुशी होगी. पर तू गोपाल से शादी करने की जिद छोड़ दे.’’

‘‘पापा, मैं ने आप की एक बात मान ली. मैं गोपाल को भूल जाऊंगी. परंतु आप भी मेरी एक बात मान लें, मुझे किसी और से शादी करने के लिए मजबूर नहीं करेंगे.’’

ये बातें फिलहाल यहीं रुक गईं. रात में संध्या ने पति सोमेन से पूछा, ‘‘क्या आप बेटी को खुश नहीं देखना चाहते हैं? आखिर गोपाल में क्या कमी है?’’

सोमेन ने कहा, ‘‘गोपाल में कोई कमी नहीं है. उस के आदिवासी होने पर भी मुझे कोई एतराज नहीं है. वह सभी तरह से अच्छा लड़का है, फिर भी…’’

रिया को नींद नहीं आ रही थी. वह भी बगल के कमरे में उन की बातें सुन रही थी. वह अपने कमरे से बाहर आई और पापा से बोली, ‘‘फिर भी क्या…? जब गोपाल में कोई कमी नहीं है, फिर आप की यह जिद बेमानी है.’’

सोमेन बोले, ‘‘मैं नहीं चाहता कि तेरी शादी गोपाल से हो.’’

‘‘नहीं पापा, आखिर आप के न चाहने की कोई तो ठोस वजह होनी चाहिए. आप प्लीज मुझे बताएं, आप को मेरी कसम. अगर कोई ऐसी वजह है, तो मैं खुद ही पीछे हट जाऊंगी. प्लीज, मुझे बताएं.’’

सोमेन बहुत घबरा उठे. उन को पसीना छूटने लगा. पसीना पोंछ कर अपनेआप को संभालते हुए उन्होंने कहा, ‘‘यह शादी इसलिए नहीं हो सकती, क्योंकि…’’

वे बोल नहीं पा रहे थे, तो संध्या ने उन की पीठ सहलाते हुए उन को हिम्मत दी और कहा, ‘‘हां बोलिए आप, क्योंकि… क्या?’’

सोमेन बोले, ‘‘तो लो सुनो. यह शादी नहीं हो सकती है, क्योंकि गोपाल रिया का छोटा भाई है.

‘‘जब मैं हजारीबाग में अकेला रहता था, तब मुझ से यह भूल हो गई थी.’’

रिया और संध्या को काटो तो खून नहीं. दोनों हैरानी से सोमेन को देख रही थीं. रिया की आंखों से आंसू गिरने लगे. कुछ देर बाद वह सहज हुई और अपने कमरे में चली गई.

रात में ही उस ने गोपाल को फोन कर के कहा, ‘‘गोपाल, क्या तुम मुझ से सच्चा प्यार करते हो?’’

गोपाल बोला, ‘क्या इतनी रात गए यही पूछने के लिए फोन किया है?’

‘‘तुम ने सुना होगा कि प्यार सिर्फ पाने का नाम नहीं है, इस में कभी खोना भी पड़ता है.’’

गोपाल ने कहा, ‘हां, सुना तो है.’’

‘‘अगर यह सही है, तो तुम्हें मेरी एक बात माननी होगी. बोलो मानोगे?’’ रिया बोली.

गोपाल बोला, ‘यह कैसी बात कर रही हो आज? तुम्हारी हर जायज बात मैं मानूंगा.’

‘‘तो सुनो. बात बिलकुल जायज है, पर मैं इस की कोई वजह नहीं बता सकती हूं और न ही तुम पूछोगे. ठीक है?’’

‘ठीक है, नहीं पूछूंगा. अब बताओ तो सही.’

रिया बोली, ‘‘हम दोनों की शादी नहीं हो सकती. यह बिलकुल भी मुमकिन नहीं है. वजह जायज है और जैसा कि मैं ने पहले ही कहा है कि वजह न मैं बता सकती हूं, न तुम पूछना कभी.’’

गोपाल ने पूछा, ‘तो क्या हमारा प्यार झूठा था?’

रिया बोली, ‘‘प्यार सच्चा है, पर याद करो, हम ने तय किया था कि शादी नहीं होने तक हमारा प्यार ‘अधूरा प्यार’ रहेगा. बस, यही समझ लो.

‘‘अब तुम कहीं भी शादी कर लो, पर मेरातुम्हारा साथ बना रहेगा और तुम चाहोगे भी तो भी मैं कभी भी तुम्हारे घर आ धमकूंगी,’’ इतना कह कर रिया ने फोन रख दिया.

रफू की हुई ओढ़नी : घूमर वाली मेघा – भाग 3

“तुम्हें भी शहर की हवा लग गई लगती है,” एक रोज मेघा ने सिगरेट के छल्ले उड़ाते विनोद से पूछा.

“जैसा देस, वैसा भेष,” विनोद ने एक हिंदी फिल्म का नाम लिया और हंस दिया.

“बिना भेष बदले क्या उस देस में रहने नहीं दिया जाता?” मेघा ने फिर पूछा जिस का जवाब विनोद को नहीं सूझा. वह चुपचाप नाक से धुआं खींचता मुंह से निकालता रहा.

मेघा चाह तो रही थी कि उस के हाथ से सिगरेट खींच ले लेकिन किस अधिकार से? बेशक विनोद के प्रति उस की कोमल भावनाएं हैं लेकिन इकतरफा भावनाओं की क्या अहमियत. मेघा पराजित सी खड़ी थी.

कुछ खास मौके ऐसे होते हैं जो महानगरों में बड़े शोरशराबे के साथ मनाए जाते हैं, वही छोटे शहर के लोग इन्हें हसरत के साथ ताका करते हैं. वैलेंटाइन डे भी ऐसा ही खास दिन है जिस का युवा दिलों को सालभर से इंतजार रहता है. मेघा भी बहुत उत्साहित थी कि उसे भी यह सुनहरा मौका मिला है जब वह प्रत्यक्ष रूप से इस अवसर की साक्षी बनने वाली है. अन्य लड़कियों की तरह वह गुलाब इकट्ठे करने वाली भीड़ का हिस्सा तो नहीं बन रही थी लेकिन एक गुलाब की प्रतीक्षा तो उसे भी थी ही.

प्रेम दिवस पर पूरे कालेज में गहमागहमी थी. लड़कियां बड़े मनोयोग से सजीसंवरी थी तो लड़के भी कुछ कम नहीं थे. किसी के हाथ में गुलाब तो किसी के पास चौकलेट, कोई टैडीबीयर हाथ में थामे था तो कोई मंदमंद मुसकान के साथ कार्ड में लिखे जज्बात पढ़ रहा था.

कोई जोड़ा कहीं किसी कैंटीन में सटा बैठा था तो कोई किसी कार की पिछली सीट पर प्रेमालाप में मगन था. कुछ जोड़े मोटरसाइकिल पर ऐसे चिपक कर घूम रहे थे कि मेघा को झुरझुरी सी हो आई. मेघा की आंखें ये नजारे देखदेख कर चकाचौंध हुई जा रही थी.

सुबह से दोपहर होने को आई लेकिन विनोद का कहीं अतापता नहीं था.

‘मेरे लिए गुलाब या गिफ्ट लेने गया होगा,’ से ले कर ‘पता नहीं कहां चला गया’ तक के भाव आ कर चले गए. लेकिन नहीं आया तो केवल विनोद.

‘क्यों न चल कर मैं ही मिल लूं,” सोचते हुए मेघा ने कालेज के बाहर अस्थाई रूप से लगी फूलों की दुकान से पीला गुलाब खरीदा और विनोद की तलाश में डिपार्टमैंट की तरफ चल दी.

“अभीअभी विनय के साथ निकला है,” किसी ने बताया.

विनय उन दोनों का कौमन फ्रैंड है. असाइनमैंट बनाने के चक्कर में तीनों कई बार विनय के कमरे पर मिल चुके हैं. मेघा सोच में पड़ गई.

‘क्या किया जाए, इंतजार या फिर विनय के कमरे पर धावा…’ आखिर मेघा ने विनोद को सरप्राइज देना तय किया और विनय के रूम पर जाने के लिए औटो में बैठ गई.

दिल उछल कर बाहर आने की कोशिश में था. औटो की खड़खड़ भी धड़कनों के शोर को दबा नहीं पा रही थी. पीला गुलाब उस ने बहुत सावधानी के साथ पकड़ा हुआ था. कहीं हवा के झोंके से पंखुड़ियां क्षतिग्रस्त न हो जाएं. आज वह जो करने जा रही है वह उस ने कभी सोचा तक नहीं था.

‘पता नहीं मुझे यह करना चाहिए या नहीं. कहीं विनोद इसे गलत न समझ ले. मेरा यह अतिआधुनिक रूप कहीं विनोद को ना भाया तो?’ ऐसे कितने ही प्रश्न थे जो मेघा को 2 कदम आगे और 4 कदम पीछे धकेल रहे थे.

ऊहापोह में घिरी मेघा के हाथ कमरे के बाहर लगी घंटी के बटन की तरफ बढ़ गए. तभी अचानक भीतर से आ रही आवाजों ने उसे ठिठकने को मजबूर कर दिया.

“अरे यार, आज तूने किसी को कोई लाल गुलाब नहीं दिया,” विनय के प्रश्न का जवाब सुनने के लिए मेघा अधीर हुई जा रही थी. अपने नाम का जिक्र सुनने की प्रतीक्षा उस की आंखों में लाली सी उतर आई. उस ने कान दरवाजे से सटा दिए.

“कोई जमी ही नहीं. सानिया पर दिल आया था लेकिन उसे तो कोई और ले उड़ा,” विनोद का जवाब सुन कर मेघा को यकीन नहीं हुआ.

“सानिया? वह तो तेरेमेरे जैसों को घास भी ना डाले,” विनोद ने ठहाका लगाया.

“मैं तो मेघा के बारे में बात कर रहा था. तुम दोनों की तो खूब घुटती थी ना, इसीलिए मैंने अंदाजा लगाया,” विनय ने आगे कहा.

उस के मुंह से अपना जिक्र सुन कर मेघा फिर से उत्सुक हुई.

“कौन? वह गांवड़ी? अरे नहीं यार, यहां आ कर भी अपने लिए कोई गांवड़ी ही ढूंढ़ी तो फिर क्या खाक तीर मारा,” विनोद ने लापरवाही से कहा तो मेघा के कान सुन्न से हो गए. उसे यकीन नहीं हो रहा था कि जो उस ने सुना वह सच है.

उस ने एक निगाह अपने हाथ में सहेजे पीले गुलाब पर डाली. फूल भी उसे अपने किरदार सा बेरौनक लगा. मेघा वापस मुड़ गई.

‘दिल टूटा क्या?’ कोई भीतर से कुनमुनाया.

‘ना रे, बिलकुल भी नहीं. मेरा दिल इतना कमजोर थोड़ी है. वैसे भी मैं यहां दिल तोड़ने या जोड़ने नहीं आई हूं,’ अपने भीतर को जवाब दे कर वह जोर से खिलखिलाई और फिर अपना दुपट्टा हवा में लहरा दिया.

मेघा हंसतेहंसते बुदबुदा रही थी, ‘गांवड़ी.’

औटो में बैठी मेघा ने 1-2 बार पीले गुलाब को खुद ही सूंघा और फिर उसे औटो में ही छोड़ कर नीचे उतर गई. फटी ओढ़नी बहुत नफासत के साथ रफू हो गई थी.

शिकार: किसने उजाड़ी मीना की दुनिया – भाग 3

‘‘श्याम मेरे भाई, हमारा प्लान तो यही था कि उसे कार में इधरउधर घुमाते रहेंगे और अपना मतलब साध लेंगे. पर मांगी हुई कार ससुरी बीच रास्ते में टें बोल गई और लाचारी में हमें टैक्सी करनी पड़ी. अब टैक्सी में तो ये सब संभव नहीं था. लिहाजा हमें मीरा को अपने घर लाना पड़ा.’’

‘‘अब मैं मीरा को कैसे मनाऊं, कैसे समझाऊं. वह भरी बैठी है, पुलिस में जाने पर तुली है. अगर उसने थाने में रपट लिखाई तो पुलिस फौरन यहां आ धमकेगी और तुम सब को हथकड़ी लग जाएगी.’’

‘‘पुलिस?’’ वे घबरा कर बोले, ‘‘अरे यार इतना अंधेर तो न कर. अगर पुलिस ने हमें धर लिया तो हम सब बेमौत मर जाएंगे. हमारी जिंदगी तबाह हो जाएगी, नौकरी चली जाएगी, जेल में सड़ना पड़ेगा. और बदनामी होगी अलग से. हम तेरे पैर पकड़ते हैं. हमें इतनी बड़ी सजा न दिलवा. किसी भी तरह हमें पुलिस से बचा ले.’’

‘‘मैं भरसक कोशिश करूंगा कि वह पुलिस में न जाए पर पता नहीं वह मेरी बात मानेगी या नहीं. वह भोलीभाली गांव की गोरी तो है नहीं, जो रोधो कर, इस सब को अपनी किस्मत का खेल मान कर चुप हो जाएगी. खैर, मैं जरा जल्दी में हूं. तुम लोग जल्दी से मेरे पैसे निकालो.’’

‘‘ले भाई,’’ उन्होंने उस के हाथ में कुछ नोट थमा दिए.

‘‘ये क्या,’’ वह आग बबूला हुआ, ‘‘सिर्फ 4 हजार? मेरे तो 4 लाख रुपए बनते हैं. तुम सब ने 1-1 लाख देने का वादा किया था.’’

‘‘श्याम मेरे भाई, हम पर रहम कर. एक लाख बहुत बड़़ी रकम होती है. हमारे पास एक लाख न कभी हुए थे और न होंगे. हम सब छोटीमोटी नौकरी वाले हैं, रोज कुंआ खोदना और रोज पानी पीना.’’

‘‘तुम लोग पैदाइशी कमीने हो,’’ श्याम ने दांत पीस कर कहा, ‘‘जब देने की औकात नहीं थी तो वादा क्यों किया? बेकार में ये सब ड्रामा करना पड़ा. मेरी फजीहत करवाई. अगर मेरी पत्नी को असलियत मालूम हो गई तो वह मुझे कभी माफ नहीं करेगी. उम्र भर मुझे कोसती रहेगी. मुझे तो माया मिली न राम. और हां, तुम लोग अपनी खैरियत चाहते हो तो कुछ दिनों के लिए इधरउधर कहीं खिसक जाओ. मीरा गुस्से से उबल रही है. अगर उस ने पुलिस में जाने की जिद की तो मैं कुछ नहीं कर सकूंगा.’’

‘‘लेकिन यार सारा कुसूर हमारा थोड़े ही न है. हम ने तुझ से करार लिया था कि हम चारों एक बार तेरी पत्नी से सहवास करेंगे और इस के एवज में हर एक तुझे एकएक लाख रुपए देगा. ये सब तेरी मरजी से ही तो हुआ है. तुझ से इजाजत न मिलती तो क्या हम ऐसा कदम उठाने की जुर्रत करते? इस मामले में तू भी उतना ही दोषी है, जितना कि हम.’’

श्याम का चेहरा उतर गया. वह उस शाम की याद कर के मन ही मन तिलमिला उठा. श्याम अतीत में खो गया. नाम श्याम पर काम किया उस ने विनाश का शादी की शाम वह अपने दोस्तों के साथ बैठा शराब पी रहा था. सब के सब सुरूर में थे, नशे में झूम रहे थे.

‘‘मान गए यार श्याम,’’ उस के दोस्त बोले, ‘‘तेरी ससुराल वाले बड़े दरियादिल हैं. हम बारातियों की क्या खातिरदारी की है उन्होंने. तबीयत बागबाग हो गई.’’

‘‘ऊंह, कोरी खातिरदारी अपने किस काम की,’’ श्याम ने मुंह बना कर कहा, ‘‘मेरे पिताजी ने मुझसे कहा था कि वे मेरे ससुर से बात कर चुके हैं, उन्होंने मुझे शादी में कार देने का वादा किया है. लेकिन ससुर जी ने शादी में दिया ठेंगा, कहने लगे कि इतना पैसा खर्च करने की उन की सामर्थ्य नहीं है. वे मुझे एक स्कूटर दे कर टरकाना चाहते थे, पर मैं ने मना कर दिया. मुझे तो इतना गुस्सा आया कि उन से कह दूं, अपनी बेटी को भी अपने ही पास सहेज कर रखें.’’

‘‘पागल न बन यार. तेरी पत्नी तो रूप की खान है. वह एक बेशकीमती हीरा है, जिसे पा कर कोई भी अपना भाग सराहेगा. हम ने तो जब से उसे देखा है, तब से तेरी खुशकिस्मती पर रश्क कर रहे हैं. आहें भर रहे हैं कि हमें ऐसी परी क्यों नहीं मिली.’’

‘‘परी है सो ठीक है. लेकिन मुझे कार न मिलने का बहुत मलाल है.’’ श्याम कुढ़ कर बोला, ‘‘मैं ने तो मौडल और रंग भी पसंद कर रखा था. सोच रहा था कि शादी के बाद शान से कार चलाता हुआ घर पहुंचूंगा तो मोहल्ले वालों पर धाक जम जाएगी. अपने दिन तो तंगी और फाकामस्ती में गुजरते हैं. कार खरीदने की सामर्थ्य अपने में नहीं है.’’

‘‘मेरे दिमाग में एक बात आई है,’’ अनंत बोला, ‘‘अगर तू बुरा न माने तो कहूं.’’

‘‘बोल न. बेधड़क बोल.’’

‘‘एक तरीका है, जिस से तू कार के दाम हासिल कर सकता है. बाप ने न दिया न सही, उस की बेटी से वसूल ले.’’

‘‘क्या मतलब.’’

फिर नशे में धुत सब ने वह विनाशकारी प्लान बनाया था. अपने ही बुने जाल में फंस गया . श्याम उल्टे पांव घर लौटा. रास्ते भर वह अपने आप को धिक्कारता रहा. कैसी भयानक भूल कर दी थी उस ने. कैसा बचकाना काम किया था. अब वह अपने ही बुने जाल में कैसे निकलेगा? बिगड़ी बात कैसे बनाएगा? उसेबारबार अपनीपत्नी का आंसुओं से भीगा चेहरा याद आ रहा था.

उसे पश्चाताप हो रहा था कि क्या मीरा अपने इस कटु अनुभव से कभी उबर  सकेगी या उन दोनों के विवाहित जीवन को ग्रहण लग जाएगा?

उस ने खुद अपने सुखी संसार में आग लगा दी थी. अपने विवाहित जीवन में जहर घोल दिया था. उस का लालच उसे ले डूबा. अब वह कैसे इस भूल का सुधार करेगा. क्या मीरा उसे क्षमा कर देगी?

घर पहुंच कर उस ने मोटरसाइकिल पार्क की. उसे देख कर चौकीदार दौड़ा आया, ‘‘साहब, मेमसाहब बाहर गई हैं. बोलीं कि साहब आएं तो बता देना.’’

‘‘कहां गई हैं?’’

‘‘वे बोलीं कि साहब से कह देना, पुलिस स्टेशन गई हैं.’’

श्याम को काटो तो खून नहीं. वह वहीं जमीन पर धम से बैठ गया.

सजा के बाद सजा : भाग 2

कोई कहता कि तुम ने यह सोच कर किया होगा कि किसी को पता नहीं चलेगा. लड़की बदनामी के डर से चुप रहेगी. तुम नौकरी, परिवार, बालबच्चेदार आदमी थे, तुम पर कोई आरोप नहीं लगाएगा. तुम डराधमका कर, प्यार से, पैसों से सब का मुंह बंद कर दोगे. लेकिन जब किस्मत खराब होती है, तब कोई काम नहीं आता.

जेल का एक हवलदार विनय से सब से ज्यादा चिढ़ता था, जो खुद उसी लड़की की जाति का था. उसे लगता था कि उस की जाति के साथ आज भी वही नाइंसाफी हो रही है, जो सदियों से होती आई है. वह विनय को गालियां देता रहता था.

जेल के अंदर हर सिपाही और हवलदार की ड्यूटी 4-4 घंटे की होती है. जब वह हवलदार अपनी ड्यूटी कर के चला जाता, तब विनय को राहत मिलती थी.

वह हवलदार पहले सिपाही था, लेकिन आरक्षित कोटे में आने से उस का जल्दी प्रमोशन हो गया था. जनरल कोटे वाले सिपाही के सिपाही ही बने रहे. वे उस हवलदार से चिढ़ते थे. उन के अंदर गुस्सा था कि हम 12 साल से नौकरी कर रहे हैं और सिपाही के सिपाही हैं और यह 5 साल पहले भरती हुआ और आज हवलदार बन गया. अगले 5 सालों में फिर प्रमोशन. वाह रे सरकार… वाह रे संविधान.

उन सिपाहियों की नाराजगी के चलते विनय को एक तरह का सपोर्ट रहता.

4 घंटे में जो कुछ सहना पड़े, वही काफी होता. मांबहन की गालियां. काम का ज्यादा दबाव. कभीकभी लातजूतों से मारपीट भी.

एक दिन एक सिपाही ने विनय को सलाह दी, ‘‘डरते क्यों हो? पोस्टकार्ड मिलता है न. लिख दो मानवाधिकार आयोग को. सारी गरमी उतर जाएगी.’’

एक तरह से विनय असंतोष से भरे उन सिपाहियों का मोहरा भी था और खुद भी पीडि़त था. उस ने अपनी पीड़ा लिख कर एक सिपाही को चिट्ठी दे दी.

कुछ दिनों बाद वही हवलदार विनय के सामने दीन बना हुआ खड़ा था और अपनी गलतियों के लिए माफी मांग रहा था.

वह गुजारिश कर रहा था, ‘‘मानवाधिकार आयोग की टीम आई हुई है. मेरी नौकरी चली जाएगी. तुम कह देना कि जो लिखा, वह गलत है. तुम्हारे साथ ऐसा कुछ भी नहीं हुआ. आगे से मैं ऐसा कुछ भी नहीं करूंगा.’’

विनय ने वही कह दिया, जैसा हवलदार ने कहा था.

विनय नौकरी छूटने पर घर टूटने का दर्द समझते थे. सब के घर में छेद हैं. कोई किसी के घर में सांप छोड़ने की कोशिश न करे. कोई दूसरा भी कर सकता है. सब के घर में शीशे हैं. पत्थर कोई भी फेंक सकता है. घर किसी का भी टूट सकता है. बेहतर है कि एकदूसरे के घरों की रखवाली करें.

हवलदार एहसानमंद भी था और शर्मिंदा भी. उस ने विनय को परेशान करना बंद कर दिया, बल्कि उन से कभीकभी अच्छे से बात भी कर लेता. अब वह उन से उतना ही काम लेता, जितना दूसरों से. कभीकभी छूट भी दे देता. पूछ भी लेता, ‘‘कैसे हो भाई? सब ठीक है न? घर से कोई आया मिलने?’’

विनय ‘जी हां’, ‘जी नहीं’ में जवाब दे देते.

एक दिन दूसरे सिपाहियों से जेल में खबर फैली कि हवलदार की पत्नी किसी के साथ भाग गई. खबर सही थी. हवलदार की उदासी, पीड़ा, बेइज्जती उस के चेहरे पर साफ दिख रही थी.

जो शख्स कल तक ऊंची जाति का दुश्मन था, आज वह मुसलिमों को कोस रहा था.

कुछ लोगों की आदत होती है. गलती करे एक, भुगतें पूरी जाति के बेकुसूर लोग. फिर वही बेकुसूर सताए हुए लोग हथियार उठाते हैं, तो अपराधी कहलाते हैं. उन्हें अपराधी बनाता कौन है? उस हवलदार जैसी सोच के लोग.

अब वह हवलदार मुसलिमों से चिढ़ता था. उन्हें आतंकवादी कहता था. लेकिन पीठ पीछे. सामने कहने की हिम्मत नहीं पड़ती थी.

इस जेल का जेलर भी मुसलिम था. अगर कहीं शिकायत हो गई, तो आ गई मुसीबत.

खैर, एक बचा तो दूसरा फंसा. मुसलिम बचे, तो सिख विरोधी दंगे हो गए. फिर पंजाब शांत हुआ, तो गोधरा कांड हो गया. यह सिलसिला थमने वाला नहीं लगता था.

विनय से कोई मिलने नहीं आता था. न पत्नी, न बच्चे. न उन्हें यह पता था कि उन की बेटी की शादी हुई या नहीं. बेटे की नौकरी लगी या नहीं. वे कहां हैं और कैसे हैं.

विनय ने जेल से कई चिट्ठियां लिखीं, लेकिन कोई जवाब नहीं आया. आखिर में उन्होंने खुद को अकेला समझ कर इस जेल को ही अपना घर मान लिया.

आज का इंसान ऐसा क्यों : जिंदगी का है फलसफा – भाग 2

‘‘ऐसा जीवन बारबार जीना चाहता हूं मैं. कोई भी ऐसी इच्छा नहीं है मेरी जो पूरी न हुई हो. संतुष्ट हूं मैं. बारबार थोड़े ही मरूंगा. एक बार ही तो मरना है…जब उस की इच्छा हो…मैं तैयार हूं.’’

मित्र का सीधासादा मध्यवर्गीय परिवार है. अपने छोटे से फ्लैट में वह पत्नी के साथ रहता है. बेटा नई पीढ़ी का है… परेशान रहता है. अच्छी कंपनी में नौकरी करता है. जितना पिता ने नौकरी के आखिरी दिनों में कमाया होगा उस से कहीं ज्यादा वह आज हर महीने कमाता है फिर भी सुखी नहीं है.

‘‘पता नहीं आज के बच्चों को चैन क्यों नहीं है. सबकुछ है फिर भी खुश नजर नहीं आते. हम ने जो सब धीरेधीरे बनाया था उस को यह शुरू के 4-5 साल में ही बना लेते हैं. कर्ज पर घर बना लिया, कर्ज पर गाड़ी, कर्ज पर घर का सारा सामान. कभी इस के घर जा कर देखो क्या नहीं है मगर सब कर्ज पर है. महीने के शुरू में ही कंगाल नजर आता है क्योंकि पूरी तनख्वाह तो किस्तों में बंट कर अपनीअपनी जगह पर चली जाती है. अभी अकेला है, खानापीना हमारे पास चल जाता है. कल को शादी होगी तो घर कैसे चलाएगा, मेरी तो समझ में नहीं आता.’’

‘‘बीवी भी तो कमाएगी न. रोजीरोटी वह चला लेगी घर इस ने बना ही लिया है. सब प्लान बना रखा है बच्चों ने, तुम क्यों परेशान…’’

‘‘अरे, नहीं बाबा, मैं परेशान नहीं हो रहा…मैं तो खुश हूं कि आज भी अपने कमाऊ बेटे को पाल रहा हूं. आज भी उस पर बोझ नहीं हूं. इस से बड़ा संतोष मेरे लिए और क्या होगा कि मेरे शरीर में स्थापित कैंसर भी मुझे तंग नहीं कर रहा. इतनी खतरनाक बीमारी पेट में लिए घूम रहा हूं पर क्या मजाल मुझे जरा सी भी तकलीफ हो.

‘‘मुझे जीवन से कोई शिकायत नहीं है. हम पतिपत्नी अपने फ्लैट में आराम से रह रहे हैं. सौरभ ने अपना घर ले रखा है. रात वहीं चला जाता है सोने. मेरी औलाद भी अपने पैरों पर खड़ी है. बेटी अपने घर में खुश है. मेरे बाद मेरी पत्नी भी किसी का मुंह नहीं देखेगी, इतना प्रबंध कर रखा है. सौरभ भी मां का खयाल रखेगा पूरा विश्वास है मुझे.

” देखो विजय, इंसान को अगर खुश रहना है तो उसे अपनी सोच को बदलना होगा. अंधी दौड़ में रहेगा तो कभी भी खुश नहीं रह पाएगा. स्वर्ग मरने के बाद नहीं मिलता और न मरने के बाद नरक ही होता है. सब यहीं है, इसी जन्म में. कुछ हमारे द्वारा बोए गए कर्म कुछ उन का फल, कुछ संयोग और कुछ हादसे यही सब मिला कर ही तो हमारा जीवन बनता है. हमें यह जीवन जीना है और इसे जिए बिना गुजारा नहीं है तो क्यों न इस तरह जिएं कि किसी को हमारी वजह से तकलीफ न हो.’’

‘‘ऐसा कैसे हो सकता है. कहीं न कहीं, कभी न कभी तो ऐसा होता ही है. समाज में रह कर हम सब के साथ जीते हैं. हम सब को सुख ही दे पाएं ऐसा नहीं होता. यदि कोई हमें पसंद ही न करे तो हम कैसे उसे भी खुश रखें. संसार में रहते हुए सब को सुख देना आसान नहीं होता. लाख यत्न करो, कहीं न कहीं कुछ न कुछ छूट ही जाता है.’’

‘‘जो तुम्हें पसंद नहीं करता तुम उस से दूर रहो ऐसा भी तो हो सकता है न. गुजारे लायक ही उस के पास जाओ. एक जायज और सम्मानजनक दूरी रखो. जितना कम वास्ता पड़ेगा उतनी कम तकलीफ होगी.’’

‘‘यदि रिश्ता ही ऐसा हो कि दूरी रखना संभव न हो…’’

‘‘तो उसे स्वीकार कर लो. उस इंसान की वजह से दुखी होना ही छोड़ दो. उस के सामने चिकने घड़े बन जाओ.’’

‘‘तुम्हारा मतलब है ढीठ बन जाओ, क्योंकि तुम्हें अपने मन की शांति के साथ जीना है…इस के लिए क्या बदतमीज ही बन जाना पड़ेगा.’’

‘‘बदतमीज और ढीठ बनने को कौन कह रहा है. उस इंसान को एक सीमा तक नकार दो. अपना दायित्व निभाते रहो. एक उचित दूरी रख कर शांति से रहा जा सकता है.’’

‘‘एक स्वार्थी इंसान के साथ शांति से कैसे रहना?’’

‘‘स्वार्थी इंसान तो हर पल अपनी आग में जलता ही रहता है. कम से कम हम उसे नकार कर अपनी जान तो बचा लें, उस की सोच का प्रभाव हम पर क्यों हो. हम उसे बदल नहीं सकते. उसे कुदरत ने ऐसा ही बनाया है तो क्यों उसे बदलने की कोशिश करें. हम भी इन्सान हैं यार…क्यों बिना वजह औरों की गलती की सजा भोगें.

‘‘मेरे बड़े भाई साहब को ही देख लो, सारी उम्र उन्होंने पिताजी की शराफत और कमजोरी का फायदा उठाया और उन की धनसंपदा पर ऐश किया. हम घर से बाहर हैं नौकरी पर. जितनी चादर थी उतने ही पैर पसारे. भाई साहब की तरह शानोशौकत में रहते तो गुजारा ही न चलता. मैं ने कभी पिता से कुछ नहीं मांगा.

‘‘इन दिनों भाई साहब नाराज चल रहे हैं. सारी जायदाद बेच कर खा चुके हैं. मुझ से मदद चाहते हैं. अब तुम्हीं बताओ, मैं उन की मदद कैसे करूं? अपनी मौत का इंतजार करता मैं उस भाई की सहायता कैसे करूं जिस ने सदा मुझे बेवकूफ बनाया और समझा भी. जिस के पैर सदा चादर से बाहर रहे, क्या मैं भी उस भाई के लिए नंगा हो जाऊं.

‘‘सारी उम्र मैं सादगी में जिआ, इसीलिए न कि कभी किसी के आगे हाथ न फैलाना पडे़े…तो क्या उन की मदद कर मैं भी सड़क पर आ जाऊं. सो नकार दिया है मैं ने उन की नाराजगी को. नहीं तो न सही. वह मुझे मिलने नहीं आते न आएं, मैं क्यों अपने मन को जलाऊं. मैं दुखी नहीं होता क्योंकि मैं जानता हूं मेरी सामर्थ्य से बाहर है उन की मदद करना. 3-3 बिगड़े बेटों के पिता हैं वह. परिवार में 4 जन हैं कमाने वाले और मैं अकेला और बीमार. क्या मुझ से मदद मांगना उन्हें शोभा देता है? स्वार्थ की पराकाष्ठा नहीं है यह तो और क्या है?

खुशी का गम : पति ने किया खिलवाड़ – भाग 2

दिन गुजरने के साथ जैसेजैसे उस के व्यक्तित्व का यह पहलू मेरे सामने आ रहा था वैसेवैसे उस के प्रति मेरा मोहभंग होता जा रहा था. जहां वह मानसिक रूप से दिन पर दिन मेरे करीब आती जा रही थी, वहीं मैं जानबूझ कर अपने को उस से दूर करता जा रहा था, क्योंकि मैं जानता था कि उस के और मेरे रिश्ते का कोई भविष्य नहीं है. मुझे एहसास होता जा रहा था कि यदि हम ने शादी कर ली तो मैं उस के साथ कभी सुखी नहीं रह पाऊंगा. यह सोच कर मैं ने धीरेधीरे उस से मिलना कम कर दिया. लेकिन नेहा से मुझे पता चला कि मेरे इस रवैये से वह बहुत दुखी और परेशान रहने लगी थी, क्योंकि वह मुझ से भावनात्मक तौर पर जुड़ चुकी थी.

नेहा ने तो मुझे यह भी बताया कि अगर मैं खुशी से शादी नहीं करूंगा तो वह अपनी जान दे देगी, लेकिन किसी और लड़के से शादी नहीं करेगी. नेहा की इस बात से मैं परेशान हो गया था, और एक दिन खुशी को मैं ने अपने और उस के विरोधाभास के बारे में बताया कि हम दोनों के स्वभाव में जमीनआसमान का अंतर होने की वजह से वह कभी मेरे साथ सुखी नहीं रह पाएगी. इसलिए बेहतर यही होगा कि हम अपने रास्ते  अलग कर लें.

मेरी इस बात को सुन कर खुशी बहुत रोई थी और उस दिन घर जा कर उस ने अपने दोनों हाथों की नसें काट कर खुदकुशी करने का प्रयास किया था.

उस दिन खुशी के घर वालों को मेरी और खुशी की दोस्ती के बारे में पता चल गया. अगले ही दिन उस के घर वाले उस की और मेरी शादी का प्रस्ताव ले कर मेरे मातापिता से मिले थे.

नेहा ने मेरी और खुशी की दोस्ती के बारे में पहले ही मेरे मातापिता को सबकुछ बता दिया था, सो मेरे मातापिता ने मेरी राय बिना पूछे उस से मेरा रिश्ता पक्का कर दिया था. बाद में मैं ने अपने मातापिता से इस रिश्ते को तोड़ने की लाख मिन्नतेंकीं लेकिन उन्होंने मेरी बातों पर ध्यान नहीं दिया और आखिरकार मेरी शादी खुशी से हो गई.

विवाह के बाद खुशी ने मुझे वे सारी खुशियां दी थीं जिन की एक पति को अपने पत्नी से अपेक्षा होती है. शादी के बाद के पहले 2-3 वर्ष बहुत अच्छे बीते. वक्त के साथ मैं एक प्यारे से बेटे का पिता बन गया था. उस को गोद में उठा कर मैं बेपनाह खुशियों से भर जाता. उसे लाड़दुलार कर मुझे बहुत सुकून मिलता लेकिन लगभग 3 सालों के विवाहित जीवन के बाद हमारे दांपत्य जीवन में कुछ ठहराव सा आने लगा था. हमारे संबंधों में एकरसता और ऊब की शुष्कता पसरती जा रही थी.

मैं शुरू से ही रसिक स्वभाव का था. नईनई लड़कियों से दोस्ती करना मेरा प्रिय शगल था.

गुवाहाटी में मेरा काफी पुराना अच्छा- खासा साडि़यों का शोरूम था. मुझे व्यापार के लिए अधिक समय नहीं देना पड़ता था, पुराने कर्मचारी मेरी दुकान बहुत अच्छी तरह से संभाल रहे थे. गुवाहाटी के अलावा शिलांग में भी मेरा साडि़यों का एक बड़ा शोरूम था, सो मैं सप्ताह में एक बार शिलांग जरूर जाया करता था. वहां कई लड़कियां मेरी मित्र थीं. शिलांग में एक दोस्त के यहां मेरा परिचय फ्लोरेंस नाम की एक खासी जाति की लड़की से हुआ था. पहली ही नजर में वह लड़की मेरी निगाहों में चढ़ गई थी. उस से पहले मैं जितनी खासी लड़कियों के संपर्क में आया वे सब महज कागजी गुडि़याएं थीं, जिन के जीवन का उद्देश्य सिर्फ मौजमस्ती तथा सैरसपाटा हुआ करता था, लेकिन फ्लोरेंस बेहद जिंदादिल और बिंदास होने के साथसाथ मानसिक रूप से बहुत परिपक्व थी. वह कभी अर्थहीन बातें नहीं करती थी. उस का व्यक्तित्व बहुत प्रभावशाली था.

एक दिन बातों ही बातों में फ्लोरेंस ने मुझे बताया कि वह एक अच्छी नौकरी की तलाश में है, क्योंकि वह कंपनी, जिस में वह काम कर रही थी, उस की शिलांग की शाखा बंद होने वाली थी.

फ्लोरेंस ने जैसे ही मुझे यह बताया मैं ने उसे अपने शिलांग वाले साड़ी के शोरूम में मैनेजर के पद पर रख लिया था. अब जैसेजैसे मैं उस के संपर्क में आ रहा था, मेरा उस के प्रति खिंचाव बढ़ता ही जा रहा था. दूसरी लड़कियां जहां मेरी अमीरी और आकर्षक व्यक्तित्व की वजह से मेरे आसपास तितलियों की तरह मंडराया करती थीं वहीं फ्लोरेंस मुझ से पर्याप्त दूरी बनाए रखती, जिस की वजह से मैं उस की ओर शिद्दत से खिंचता जा रहा था.

इधर उस की ओर मेरे खिंचाव का एक कारण और था. फ्लोरेंस के नाम कई एकड़ जमीन थी. अगर मैं फ्लोरेंस से रिश्ता कायम कर लेता तो मैं उस की जमीन का मालिक बन जाता. सो जमीन के लालच में मैं उस से रिश्ता कायम करना चाहता था और एक दिन मुझे वह मौका मिल गया जिस की मुझे चाहत थी.

उस दिन फ्लोरेंस मेरे पास बहुत खराब मूड में आई और मेरे कुरेदने पर रो पड़ी. मुझ से बोली, ‘मेरे भाई बहुत जल्लाद हैं. हम खासियों में मां परिवार की मुखिया होती है. बेटियां वंश आगे चलाती हैं. बेटियों को ही मां की जमीनजायदाद मिलती है. मैं अपनी मां की इकलौती बेटी हूं. इसलिए मां की सारी जमीन मुझे मिली है. मेरे दोनों भाइयों की निगाहें मेरी जमीन पर उगने वाले फलों से होने वाली आमदनी पर गड़ी हुई हैं.

‘मैं तो नौकरी पर आ जाती हूं तो मेरे भाई ही खेतों में मजदूरों से काम करवाते हैं. खेती से होने वाली आमदनी पर अपना नियंत्रण रखने के लिए मेरे भाई मेरी शादी एक निकम्मे, नाकारा खासी आदमी से कराने पर जोर दे रहे हैं.’

उसे इस तरह रोते देख मैं ने उसे अपनी बांहों में भर लिया और उस से बोला, ‘अरे, मेरे होते हुए तुम क्यों चिंता करती हो? मैं तुम्हारे भाइयों से बातें करूंगा और उन्हें धमकाऊंगा. तुम बिलकुल भी मत डरो. मेरे होते हुए कोई तुम पर अपनी मरजी नहीं थोप सकेगा.’

यह कह कर मैं ने उसे चूमना शुरू कर दिया. तब फ्लोरेंस ने मेरे चंगुल से छूटने के लिए बहुत हाथपांव मारे लेकिन उस दिन मेरे ऊपर उस का नशा इस कदर हावी था कि मैं ने उस की एक न सुनी और आखिरकार कुछ प्यार और कुछ जोरजबरदस्ती करते हुए मैं ने उसे आत्मसमर्पण करने पर विवश कर दिया. उस दिन मैं ने महसूस किया कि मेरी इस जबरदस्ती से फ्लोरेंस बहुत अधिक नाराज नहीं थी. धीरेधीरे वह मुझे दिलोजान से चाहने लगी थी.

फ्लोरेंस के शोख बिंदास व्यक्तित्व के सामने खुशी का सीधासादा व्यक्तित्व मुझे नीरस लगने लगा था. फ्लोरेंस बातें करने में इतनी वाक्पटु थी कि मामूली बात को भी वजनदार और आकर्षक बना कर सामने रखती. मुझे उस से महज बातें करना बहुत अच्छा लगता था.

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