मौन: जब दो जवां और अजनबी दिल मिले – भाग 1

सर्द मौसम था, हड्डियों को कंपकंपा देने वाली ठंड. शुक्र था औफिस का काम कल ही निबट गया था. दिल्ली से उस का मसूरी आना सार्थक हो गया था. बौस निश्चित ही उस से खुश हो जाएंगे.

श्रीनिवास खुद को काफी हलका महसूस कर रहा था. मातापिता की वह इकलौती संतान थी. उस के अलावा 2 छोटी बहनें थीं. पिता नौकरी से रिटायर्ड थे. बेटा होने के नाते घर की जिम्मेदारी उसे ही निभानी थी. वह बचपन से ही महत्त्वाकांक्षी रहा है. मल्टीनैशनल कंपनी में उसे जौब पढ़ाई खत्म करते ही मिल गई थी. आकर्षक व्यक्तित्व का मालिक तो वह था ही, बोलने में भी उस का जवाब नहीं था. लोग जल्दी ही उस से प्रभावित हो जाते थे. कई लड़कियों ने उस से दोस्ती करने की कोशिश की लेकिन अभी वह इन सब पचड़ों में नहीं पड़ना चाहता था.

श्रीनिवास ने सोचा था मसूरी में उसे 2 दिन लग जाएंगे, लेकिन यहां तो एक दिन में ही काम निबट गया. क्यों न कल मसूरी घूमा जाए. श्रीनिवास मजे से गरम कंबल में सो गया.

अगले दिन वह मसूरी के माल रोड पर खड़ा था. लेकिन पता चला आज वहां टैक्सी व बसों की हड़ताल है.

‘ओफ, इस हड़ताल को भी आज ही होना था,’ श्रीनिवास अभी सोच में पड़ा ही था कि एक टैक्सी वाला उस के पास आ कानों में फुसफुसाया, ‘साहब, कहां जाना है.’

‘अरे भाई, मसूरी घूमना था लेकिन इस हड़ताल को भी आज होना था.’

‘कोई दिक्कत नहीं साहब, अपनी टैक्सी है न. इस हड़ताल के चक्कर में अपनी वाट लग जाती है. सरजी, हम आप को घुमाने ले चलते हैं लेकिन आप को एक मैडम के साथ टैक्सी शेयर करनी होगी. वे भी मसूरी घूमना चाहती हैं. आप को कोई दिक्कत तो नहीं,’ ड्राइवर बोला.

‘कोई चारा भी तो नहीं. चलो, कहां है टैक्सी.’

ड्राइवर ने दूर खड़ी टैक्सी के पास खड़ी लड़की की ओर इशारा किया.

श्रीनिवास ड्राइवर के साथ चल पड़ा.

‘हैलो, मैं श्रीनिवास, दिल्ली से.’

‘हैलो, मैं मनामी, लखनऊ से.’

‘मैडम, आज मसूरी में हम 2 अनजानों को टैक्सी शेयर करना है. आप कंफर्टेबल तो रहेंगी न.’

‘अ…ह थोड़ा अनकंफर्टेबल लग तो रहा है पर इट्स ओके.’

इतने छोटे से परिचय के साथ गाड़ी में बैठते ही ड्राइवर ने बताया, ‘सर, मसूरी से लगभग 30 किलोमीटर दूर टिहरी जाने वाली रोड पर शांत और खूबसूरत जगह धनौल्टी है. आज सुबह से ही वहां बर्फबारी हो रही है. क्या आप लोग वहां जा कर बर्फ का मजा लेना चाहेंगे?’

मैं ने एक प्रश्नवाचक निगाह मनामी पर डाली तो उस की भी निगाह मेरी तरफ ही थी. दोनों की मौन स्वीकृति से ही मैं ने ड्राइवर को धनौल्टी चलने को हां कह दिया.

गूगल से ही थोड़ाबहुत मसूरी और धनौल्टी के बारे में जाना था. आज प्रत्यक्षरूप से देखने का पहली बार मौका मिला है. मन बहुत ही कुतूहल से भरा था. खूबसूरत कटावदार पहाड़ी रास्ते पर हमारी टैक्सी दौड़ रही थी. एकएक पहाड़ की चढ़ाई वाला रास्ता बहुत ही रोमांचकारी लग रहा था.

बगल में बैठी मनामी को ले कर मेरे मन में कई सवाल उठ रहे थे. मन हो रहा था कि पूछूं कि यहां किस सिलसिले में आई हो, अकेली क्यों हो. लेकिन किसी अनजान लड़की से एकदम से यह सब पूछने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था.

मनामी की गहरी, बड़ीबड़ी आंखें उसे और भी खूबसूरत बना रही थीं. न चाहते हुए भी मेरी नजरें बारबार उस की तरफ उठ जातीं.

मैं और मनामी बीचबीच में थोड़ा बातें करते हुए मसूरी के अनुपम सौंदर्य को निहार रहे थे. हमारी गाड़ी कब एक पहाड़ से दूसरे पहाड़ पर पहुंच गई, पता ही नहीं चल रहा था. कभीकभी जब गाड़ी को हलका सा ब्रेक लगता और हम लोगों की नजरें खिड़की से नीचे जातीं तो गहरी खाई देख कर दोनों की सांसें थम जातीं. लगता कि जरा सी चूक हुई तो बस काम तमाम हो जाएगा.

जिंदगी में आदमी भले कितनी भी ऊंचाई पर क्यों न हो पर नीचे देख कर गिरने का जो डर होता है, उस का पहली बार एहसास हो रहा था.

‘अरे भई, ड्राइवर साहब, धीरे… जरा संभल कर,’ मनामी मौन तोड़ते हुए बोली.

‘मैडम, आप परेशान मत होइए. गाड़ी पर पूरा कंट्रोल है मेरा. अच्छा सरजी, यहां थोड़ी देर के लिए गाड़ी रोकता हूं. यहां से चारों तरफ का काफी सुंदर दृश्य दिखता है.’

बचपन में पढ़ते थे कि मसूरी पहाड़ों की रानी कहलाती है. आज वास्तविकता देखने का मौका मिला.

गाड़ी से बाहर निकलते ही हाड़ कंपा देने वाली ठंड का एहसास हुआ. चारों तरफ से धुएं जैसे उड़ते हुए कोहरे को देखने से लग रहा था मानो हम बादलों के बीच खड़े हो कर आंखमिचौली खेल रहे होें. दूरबीन से चारों तरफ नजर दौड़ाई तो सोचने लगे कहां थे हम और कहां पहुंच गए.

अभी तक शांत सी रहने वाली मनामी धीरे से बोल उठी, ‘इस ठंड में यदि एक कप चाय मिल जाती तो अच्छा रहता.’

‘चलिए, पास में ही एक चाय का स्टौल दिख रहा है, वहीं चाय पी जाए,’ मैं मनामी से बोला.

हाथ में गरम दस्ताने पहनने के बावजूद चाय के प्याले की थोड़ी सी गरमाहट भी काफी सुकून दे रही थी.

मसूरी के अप्रतिम सौंदर्य को अपनेअपने कैमरों में कैद करते हुए जैसे ही हमारी गाड़ी धनौल्टी के नजदीक पहुंचने लगी वैसे ही हमारी बर्फबारी देखने की आकुलता बढ़ने लगी. चारों तरफ देवदार के ऊंचेऊंचे पेड़ दिखने लगे थे जो बर्फ से आच्छादित थे. पहाड़ों पर ऐसा लगता था जैसे किसी ने सफेद चादर ओढ़ा दी हो. पहाड़ एकदम सफेद लग रहे थे.

पहाड़ों की ढलान पर काफी फिसलन होने लगी थी. बर्फ गिरने की वजह से कुछ भी साफसाफ नहीं दिखाई दे रहा था. कुछ ही देर में ऐसा लगने लगा मानो सारे पहाड़ों को प्रकृति ने सफेद रंग से रंग दिया हो. देवदार के वृक्षों के ऊपर बर्फ जमी पड़ी थी, जो मोतियों की तरह अप्रतिम आभा बिखेर रही थी.

गाड़ी से नीचे उतर कर मैं और मनामी भी गिरती हुई बर्फ का भरपूर आनंद ले रहे थे. आसपास अन्य पर्यटकों को भी बर्फ में खेलतेकूदते देख बड़ा मजा आ रहा था.

‘सर, आज यहां से वापस लौटना मुमकिन नहीं होगा. आप लोगों को यहीं किसी गैस्टहाउस में रुकना पड़ेगा,’ टैक्सी ड्राइवर ने हमें सलाह दी.

‘चलो, यह भी अच्छा है. यहां के प्राकृतिक सौंदर्य को और अच्छी तरह से एंजौय करेंगे,’ ऐसा सोच कर मैं और मनामी गैस्टहाउस बुक करने चल दिए.

‘सर, गैस्टहाउस में इस वक्त एक ही कमरा खाली है. अचानक बर्फबारी हो जाने से यात्रियों की संख्या बढ़ गई है. आप दोनों को एक ही रूम शेयर करना पड़ेगा,’ ड्राइवर ने कहा.

‘क्या? रूम शेयर?’ दोनों की निगाहें प्रश्नभरी हो कर एकदूसरे पर टिक गईं. कोई और रास्ता न होने से फिर मौन स्वीकृति के साथ अपना सामान गैस्टहाउस के उस रूम में रखने के लिए कह दिया.

समाधान: अंजलि की कैसी थी तानाशाही

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प्रेम न बाड़ी उपजै : लीला का चैन किसने छीना

लीला ने जब से उस को देखा था, तब से ही उस के दिल में चैन ओ करार था ही नहीं. यह लड़का मनोज उस का सब सुकून छीन रहा था. इतना ही नहीं, सपनों में भी वह आ रहा था, पर वो जैसे कमजोर पड़ रही थी और आसक्ति में फंस कर खुद कुछ नहीं कर पा रही थी या शायद करना ही नहीं चाहती थी.

लीला कोई गईगुजरी तो थी नहीं. वह खुद एक दौलतमंद महिला थी. उस की इतनी लंबीचैड़ी जमींदारी थी, फिर भी वह साधना के पथ पर अपना आध्यात्मिक काम भी कर रही थी. वह जगहजगह यात्रा कर रही थी और प्रेम की कार्यशाला चला रही थी.

यों सच्ची बात यह थी कि साधना, वार्ता वगैरह यह सब वह अपने अकेलेपन की सूखी नदी को भरने के लिए ही कर रही थी. समाज उस को इतनी गपशप करने नहीं देता, मगर इस बहाने कितने चेहरे कितनी रसभरी बातें सब काम हो रहे थे. साथ ही, उस पर एक आवरण लग गया था त्याग करती महिला का, वह अपनी प्रेम पिपासा को ढंक कर, छिपा कर बहुत ही मजे में पूरा कर रही थी.

मगर, आज सुबह 3 बजे अचानक ही भद्देपन से फिर मनोज सपने में आ धमका और उस ने ही प्रीत की अगन जलाई और लीला को तत्परता से अपनी देह में भर कर यहांवहां टटोलने लगा. वह खुद भी बेसुध हो सब भूल सा गई थी. पुरुषोचित शौर्य से सम्मोहित वह कितनी पागल कैसी मोहित हो गई थी.

पर, आज वह 5 बजे जाग कर फिर से यही सोच रही थी कि कहीं कुछ जाहिर न हो जाए. मनोज को रोकना होगा. वह बेकार के लफडे़ में ही क्यों पड़ रही है, जबकि वह इस से पहले इसी तरह अचानक वहां, जहां उस के प्रवचन और वार्ता ही भलीभांति प्यास बुझा सकती हैं, कितने भी दर्जी बदल लो, न कपड़ा बदलता है, न तन और न ही मन. तो…, तो फिर खुद लीला क्या देहचक्र के साथ इतनी तेजी से खुद ही गोलगोल घूम रही थी?

यही सब सोचतेसोचते 6 बज गए. वह यों ही बाहर आंगन में निकल आई. देखा, अरे, मनोज  एक कुरसी पर बुत बना बैठा है. कम उजाले में अनिश्चितता में, उस के पदचाप सुन कर वह उठ खड़ी हुई और हंस दी.

यह हंसी मनोज की किसी सांस में झनझना उठी. वह चुपचाप उस के निकट गया. शायद वह देखना चाहता था, उस को आत्मा के भीतर बिलकुल उस की गहराई में देखना चाहता हो, पर यह तो, हमारा खयाल है, लीला ने एक मंत्र कहा और आवाज के तीव्र एकरस प्रकाश से उस का मुख एकबारगी चकाचौंध सा हो गया.

नहीं… यह खयाल नहीं है. मैं अभीअभी खेतों से चल कर यहां आया हूं.

और भरोसा दिलाने के लिए मनोज ने तिलमिला कर लीला को थाम लिया. उस की उंगली को 2-3 बार चूस कर छोड़ दिया.

‘‘ओह, बस… बस, मनोज बस… बहुत हुआ,‘‘ कह कर लीला ने हाथ छुड़ा लिया.

अब वे दोनों ही वहीं बैठ गए और फिर कोई जादू सा छाने लगा. उस खामोशी में जैसे मनोज अपने अंक में लीला को अचानक एक क्षण में पा गया.

‘‘फिर मिलेंगे. आज मैं चली जाऊंगी. अंतिम सत्र है आज मेरा,‘‘ वह जैसे इन एकएक शब्दों की सूक्ष्म ध्वनि नहीं, स्थूल शरीर दांतों से चबाना चाहती है. यह सुन कर मनोज जैसे हताश सा हो गया.

‘तो लीला, तुम्हारे आगे क्या इरादे हैं?’ जैसे इसी प्रश्न को करने के लिए शब्दों का दास बना हुआ है मनोज. जैसे उसे यह प्रश्न करने का निर्विवाद अधिकार है. लीला ने निर्विकार कहा, ‘कुछ… नहीं, नहीं.’

यह सुन कर वह चौंक उठा. एक विचित्र संतोष से, जैसे यह उत्तर पाने के लिए ही उस ने यह प्रश्न किया था, फिर बोला, ’क्या तुम मुझ से बंधी नहीं हो?’

‘बंधी’,  मैं तो जाने कब से जीवन के हर बंधन के मुंह पर थूक रही हूं. वह बोली, जैसे वह कुछ और कहना चाहती थी, ‘‘तो मुझे अभी और इसी समय प्रेम का रहस्य जानना है,‘‘ कह कर वह उस के पैरों से लिपट गया.

‘‘मगर, अभी तो भोर हुई है बस. ये क्या तमाशा कर रहे हो… यहां गेस्ट हाउस के नौकरचाकर आते ही होंगे,‘‘ लीला कुछ परेशान सी हो रही थी.

‘‘आने दो… आ जाते हैं तो भला हो क्या जाएगा? लीला, मैं तो तुम्हारा भक्त हो गया हूं. अब मैं अपनी देवी के पास जब चाहे आ सकता हूं… मुझे कोई डर नहीं है, कोई भय नहीं है.‘‘

सचमुच लीला यही सुनना चाहती थी. वह भी तो मन ही मन मनोज की दीवानी हो गई थी. उस ने यह भी नहीं पूछा कि 9 बजे का सत्र है. तुम इतनी सुबह क्यों खेतों से और कैसे पैदलपैदल ही आ धमके,‘‘ वह उस के गाल सहलाती हुई बोली, ‘‘मनोज, तुम बच्चे नहीं हो. तुम को यह पता होना चाहिए कि प्रेम करने की कला या किसी के प्यार में डूब जाने का गुर, किसी भी कार्यशाला में सीखे जाने लायक कौशल या हुनर बिलकुल नहीं है.”

‘‘हां… हां, जानता हूं,‘‘ मनोज ने बीच में टोका और कहने लगा, ‘‘लीला, ये बात अलग है कि कई विदेशी और भारतीय मीडिया में ‘क्रिएटिव लव’ यानी जादुई अटैचमेंट के फार्मूले सिखलाने के रसीले कोर्स बाकायदा चलाए जाते आ रहे हैं, और वे अकेले पड़ गए मनोज जैसे संकोची जीवों के बीच लोकप्रिय भी हैं.‘‘

‘‘लीला, मुझे मालूम है कि अकेले में मैं ने ही यही कोई 3,000 वैबसाइट देख रखी हैं, जो प्यार कैसे करें का बाकायदा लज्जतदार मसाला बना कर अनोखा आनंद भी देती हैं,‘‘ मनोज के  मुंह से निकल पड़ा.

यह सुनते ही लीला ने भी तपाक से कहा, ‘‘मनोज, मेरा मतलब प्रेम का आनंद आकर्षित करने वाली कुछ जरूरी चीजों की याद दिलाने की कोशिश तक ही सीमित नहीं है. मैं प्यार की कला के बारे में वे छोटीमोटी बातें कहूंगी, जिन्हें हम सब जानते हैं, पर जिन्हें हम अकसर भूल जाते हैं, इसलिए… और इस वार्ता के अंत में होने वाली निराशा के लिए मैं खासतौर पर मनोज तुम जैसे प्रेमियों से क्षमादान की उम्मीद करती हूं, जिन्होंने अपने दिल में ये छाप लिया है कि मैं तुम को आज प्यार करने के जादुई गुर सिखाने जा रही हूं… दुनिया में अनेक आविष्कार हुए हैं, पर प्यार करने, उस में डूबने का फार्मूला आज तक नहीं बना.‘‘

‘‘अच्छा… तो कब बनेगा? ऐसा करो, तुम ही बना दो ना,’’ मनोज ने उस की कलाई थाम ली.

‘‘मनोज, जहां तक सुंदर देह को सोचने का सवाल है, हमारे प्राचीन रसिकों ने, प्रेमशास्त्रियों ने 2 बातें जोर दे कर कही हैं- एक तो कल्पना और दूसरी लगाव. तुम जानते ही होगे या कभी सुना तो होगा ना…’’

‘‘क्या सुना होगा? साफसाफ कहो लीला?‘‘

‘‘वही मनोज, ‘करतकरत अभ्यास के जड़मति होत सुजान’. मनोज, मेरा मतलब है कि देह की  आहट सुनो… भाव को दफनाओ मत.‘‘

यह सुन कर मनोज जोरों से हंस पड़ा. लीला समझ गई तो वह भी खिलखिला कर हंस पड़ी.

‘‘मन में कोई देवी स्थापित कर लो मनोज इस की तर्ज पर, न सिर्फ अकेली सौंदर्य कला का आनंद मिल जाता है. साथ में लगाव का अभ्यास करते जाने से, बल्कि दोनों के आदर्श मेल से सुकून ही सुकून… इसलिए प्रेम प्रतिभा को भी युद्ध अभ्यास की तरह जरूरी बतलाया गया है.”

‘‘ओह, अच्छा,’’ कह कर मनोज ने अपनी दोनों आंखों को बंद कर लिया.

‘‘देखो, तबला बजाना सीखना है, तो इस कला में  ‘रियाज’ का असाधारण महत्त्व है. मुझे लगता है, प्रेम में भी अभ्यास या रियाज शायद उतना ही उपयोगी और जरूरी चीज होनी चाहिए, मुझे उम्मीद है कि संकल्प ही प्रेम को झरने की तरह प्रस्फुटित करता है, बहने देता है. प्रेम की हर गली में नयापन खोजने की संभावना है? इस मामले में कल, आज और कल कोई पगडंडी नहीं है.

“इसलिए जादुई अहसास में डूबने को राजी मन, उस की कल्पनाशक्ति और गंध महसूस करना यही एक बेहतरीन प्रेमी होने के लिए 3 जरूरी औजार हैं,‘‘ लीला कहती रही.

‘‘मनोज, सुन लो, यह भी एक विचार है, सौंदर्य और आनंद को ‘देखने’ की आदत से बंधा विचार, जो यह बतलाता है कि हम कितना कम देखते हैं.‘‘

‘‘लीला, यह लगाव और देखने के अलावा एक और बात है, खुद अपनी देह की जरूरत उस से प्रेम करने की निरंतरता, अनिवार्यता, यही ना लीला,‘‘ मनोज ने कहा, तो लीला ने सहमति में सिर हिला दिया.

वह फिर उस का माथा चूम कर बोली, ‘‘सुनो मनोज, कोई और दूसरा रास्ता नहीं बचा है… और हां, एक बात और सुन लो, याद भी रखना, अचार, चटनी बेशक कम खाएं,  पर अच्छा खाएं.

‘‘यह लालसा भी वही है… समझे, यानी तुम्हारी सलाह है, प्रेमी, आशिक बेशक कम ही डूबें, पर शानदार ढंग से.‘‘

मनोज ने सवाल किया, “केवल आकर्षण के जोर से या केवल जरूरत के चमत्कार भर से कोई अच्छा प्रेम पूरा हो पाएगा, मुझे संदेह है.‘‘

मनोज के इस सवाल पर लीला ने उस को संकेत किया कि उसे तैयार होना है क्योंकि सत्र का समय हो रहा है और उसे आज यहां से लौट कर भी जाना था. आज इस गेस्ट हाउस में उस का अंतिम दिन था. अब वह यहां कब वापस लौटेगी, कुछ पता नहीं था.

मनोज ने सत्र में रुकना उचित नहीं समझा. वह किसान था. अब उस को फसल कटवानी थी. मजदूरों की व्यवस्था करनी थी. वह भी लौट चला. जब तक अपने खेतों मे पहुंचा, याद करता रहा कि लीला क्या कह रही थी…

‘‘मनोज, प्रेम की दुनिया वैसी ही दुनिया है, जिस में अनगिनत महकतेगमकते चित्रों का असमाप्त मेला है, हर कोने में हर कदम पर आप का साबका तसवीरों से पड़ता है, पर जिन के बारे में आप तब तक जागरूक नहीं होते, जब तक आप उन्हें देखने की सही कोशिश और अभ्यास न करें, जैसा रोमियो जैसे समर्पित प्रेमी ने कभी जूलियट से कहीं कहा था. हमें चाहिए कि हम थोडा सा रुकें और वे अद्भुतअनूठे चित्र देखें, जो सिर्फ प्रेम ही हमें दिखला सकता है.’’

‘‘हर पल, हर समय आनंद आने तक रोज कई घंटे बस एक ही रंगरूप का विचार इस बात का सब से बड़ा उदाहरण है… अब भले ही वह युद्ध जैसा उतना कठोर और भयानक न हो, पर हौलेहौले उस रूप को दिल की कल्पना की किताब में रोज लिख रहा था और यथासंभव कलापूर्ण तरीके से उस में अपने अनुभव लिखना प्रेम रियाज की एक शुरुआत हो चुकी थी. यह चौंकाने वाला अनुभव वह झरोखा बन गया, जो उस को घरबैठे संसारभर के आनंद  दिखला रही थी.

अब मनोज विधिवत अपना कामधंधा देख रहा था. अनाज मंडी जा रहा था. रुपया आ रहा था. धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष सब सिद्ध हो गए. हर काम हो रहा था. सबकुछ आसान था.

जहां जैसी जरूरत होती है, वो अपनी कल्पना का वैसा ही उपयोग कर रहा था. जैसी उस पल की मांग होती, पर अब उस के दिमाग में कल्पना का भंडार ही इतना चटपटा था कि अभिव्यक्ति भी वैसी ही होने लगी थी.

अब तो कल्पना की कामधेनु को वह कितना दुह सकता, यह उस की कलाकारी थी. अब वह माहिर हो गया तो वह जान चुका था कि कैसे आती है सुंदरी किसी दृश्य, किसी आवाज, किसी गंध, किसी आकृति, किसी याद, किसी स्पर्श में सुंदरी की आत्मा एक पल के हजारवें हिस्से में दिखती है और सांस की तरह उस में दाखिल हो जाती है… पर, वह जानता था कि वह बहुत देर रुकने वाला अनुभव नहीं. फौरन वह उस आत्मा को अपनी हैरत, अचरज के आभूषण पहना कर सफलतम लाभ ले लिया करता था. अब तो हर जादुई अनुभव उस के निकट उस अनुभव को व्यक्त करने की, ‘’मोहिनी विद्या का खुशबूदार- प्रस्ताव भी साथ ही लिए आता रहा.”

मरजाना : आखिर क्या हुआ उन के प्यार का अंजाम

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चार रोटियां : ललिया के आंचल की चार रोटियां

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वह फांकी वाली : सुनसान गलियों की प्रेम कहानी

वह एक उमस भरी दोपहर थी. नरेंद्र बैठक में कूलर चला कर लेटा हुआ था. इस समय गलियों में लोगों का आनाजाना काफी कम हो जाता था और कभीकभार तो गलियां सुनसान भी हो जाती थीं.

उस दिन भी गलियां सुनसान थीं. तभी गली से एक फेरी वाली गुजरते हुए आवाज लगा रही थी, ‘‘फांकी ले लो फांकी…’’

जैसे ही आवाज नरेंद्र की बैठक के नजदीक आई तो उसे वह आवाज कुछ जानीपहचानी सी लगी. वह जल्दी से चारपाई से उठा और गली की तरफ लपका. तब तक वह फेरी वाली थोड़ा आगे निकल गई थी.

नरेंद्र ने पीछे से आवाज लगाई, ‘‘लच्छो, ऐ लच्छो, सुन तो.’’

उस फेरी वाली ने मुड़ कर देखा तो नरेंद्र ने इशारे से उसे अपने पास बुलाया. वह फेरी वाली फांकी और मुलतानी मिट्टी बेचने के लिए उस के पास आई और बोली, ‘‘जी बाबूजी, फांकी लोगे या मुलतानी मिट्टी?’’

नरेंद्र ने उसे देखा तो देखता ही रह गया. दोबारा जब उस लड़की ने पूछा, ‘‘क्या लोगे बाबूजी?’’ तब उस की तंद्रा टूटी.

नरेंद्र ने पूछा, ‘‘तुम लच्छो को जानती हो, वह भी यही काम करती है?’’

उस लड़की ने मुसकरा कर कहा, ‘‘लच्छो मेरी मां है.’’

नरेंद्र ने कहा, ‘‘वह कहां रहती है?’’

उस लड़की ने कहा, ‘‘वह यहीं मेरे साथ रहती है. आप के गांव के स्कूल के पास ही हमारा डेरा है. हम वहीं रहते हैं. आज मां पास वाले गांव में फेरी लगाने गई है.’’

नरेंद्र ने उस लड़की को बैठक में बिठाया, ठंडा पानी पिलाया और उस से कहा कि कल वह अपनी मां को साथ ले कर आए. तब उन का सामान भी खरीदेंगे और बातचीत भी करेंगे.

अगले दिन वे मांबेटी फेरी लगाते हुए नरेंद्र के घर पहुंचीं. उस ने दोनों को बैठक में बिठाया, चायपानी पिलाया. इस के बाद नरेंद्र ने लच्छो से पूछा, ‘‘क्या हालचाल है तुम्हारा?’’

लच्छो ने कहा, ‘‘तुम देख ही रहे हो. जैसी हूं बस ऐसी ही हूं. तुम सुनाओ?’’

नरेंद्र ने कहा, ‘‘मैं बिलकुल ठीक हूं. अभी 2 साल पहले रिटायर हुआ हूं. 2 बेटे हैं. दोनों सर्विस करते हैं. बेटीदामाद भी भी सर्विस में हैं.

‘‘पत्नी छोटे बेटे के पास चंडीगढ़ गई है. मैं यहां इस घर की देखभाल करने के लिए. तुम अपने परिवार के बारे में बताओ,’’ नरेंद्र ने कहा.

लच्छो बोली, ‘‘तुम से बाबा की नानुकर के बाद हमारी जात में एक लड़का देख कर बाबा ने मेरी शादी करा दी थी. पति तो क्या था, नशे ने उस को खत्म कर रखा था.

‘‘यह मेरी एकलौती बेटी है सन्नो. इस के जन्म के 2 साल बाद ही इस के पिता की मौत हो गई थी. तब से ले कर आज तक अपनी किस्मत को मैं इस फांकी की टोकरी के साथ ढो रही हूं.’’

उन दोनों के जाने के बाद नरेंद्र यादों में खो गया. बात उन दिनों की थी जब वह ग्राम सचिव था. उस की पोस्टिंग राजस्थानहरियाणा के एक बौर्डर के गांव में थी. वह वहीं गांव में एक कमरा किराए पर ले कर रहता था.

वह कमरा गली के ऊपर था. उस के आगे 4-5 फुट चौड़ा व 8-10 फुट लंबा एक चबूतरा बना हुआ था. उस चबूतरे पर गली के लोग ताश खेलते रहते थे. दोपहर में फेरी वाले वहां बैठ कर आराम करते थे यानी चबूतरे पर रात तक चहलपहल बनी रहती थी.

राजस्थान से फांकी, मुलतानी मिट्टी, जीरा, लहसुन व दूसरी चीजें बेचने वाले वहां बहुत आते थे. कड़तुंबा, काला नमक, जीरा वगैरह के मिश्रण से वे लोग फांकी तैयार करते थे जो पेटदर्द, गैस, बदहजमी जैसी बीमारियों के लिए इनसानों व पशुओं के लिए बेहद गुणकारी साबित होती है.

उस दिन भी गरमी की दोपहर थी. फेरी वाली गांव में फेरी लगा कर कमरे के बाहर चबूतरे पर आ कर आराम कर रही थी. उस ने किवाड़ की सांकल खड़काई. नरेंद्र ने दरवाजा खोल कर देखा कि 18-20 साल की एक लड़की राजस्थानी लिबास में चबूतरे पर बैठी थी.

नरेंद्र ने पूछा था, ‘क्या बात है?’

उस ने मुसकरा कर कहा था, ‘बाबूजी, प्यास लगी है. पानी है तो दे देना.’

नरेंद्र ने मटके से उस को पानी पिलाया था. पानी पी कर वह कुछ देर वहीं बैठी रही. नरेंद्र उस के गठीले बदन के उभारों को देखता रहा. वह लड़की उसे बहुत खूबसूरत लगी थी.

नरेंद्र ने उस से पूछ लिया, ‘तुम्हारा नाम क्या है?’

उस ने कहा था, ‘लच्छो.’

‘तुम लोग रहते कहां हो?’ नरेंद्र के यह पूछने पर उस ने कहा था, ‘बाबूजी,  हम खानाबदोश हैं. घूमघूम कर अपनी गुजरबसर करते हैं. अब कई दिनों से यहीं गांव के बाहर डेरा है. पता नहीं, कब तक यहां रह पाएंगे,’ समय बिताने के बहाने नरेंद्र लच्छो के साथ काफी देर तक बातें करता रहा था.

अगले दिन फिर लच्छो चबूतरे पर आ गई. वे फिर बातचीत में मसरूफ हो गए. धीरेधीरे बातें मुलाकातों में बदलने लगीं. लच्छो ने बाहर चबूतरे से कमरे के अंदर की चारपाई तक का सफर पूरा कर लिया था.

दोपहर के वीरानेपन का उन दोनों ने भरपूर फायदा उठाया था. अब तो उन का एकदूसरे के बिना दिल ही नहीं लगता था.

नरेंद्र अभी तक कुंआरा था और लच्छो भी. वह कभीकभार लच्छो के साथ बाहर घूमने चला जाता था. लच्छो उसे प्यारी लगने लगी थी. वह उस से दूर नहीं होना चाहता था. उधर लच्छो की भी यही हालत थी.

लच्छो ने अपने मातापिता से रिश्ते के बारे में बात की. वे लगातार समाज की दुहाई देते रहे और टस से मस नहीं हुए. गांव के सरपंच से भी दबाव बनाने को कहा.

सरपंच ने उन को बहुत समझाया और लच्छो का रिश्ता नरेंद्र के साथ करने की बात कही लेकिन लच्छो के पिताजी नहीं माने. ज्यादा दबाव देने पर वे अपने डेरे को वहां से उठा कर रातोंरात कहीं चले गए.

नरेंद्र पागलों की तरह मोटरसाइकिल ले कर उन्हें एक गांव से दूसरे गांव ढूंढ़ता रहा लेकिन वे नहीं मिले.

नरेंद्र की भूखप्यास सब मर गई. सरपंच ने बहुत समझाया, लेकिन कोई फायदा नहीं. बस हर समय लच्छो की ही तसवीर उन की आंखों के सामने छाई रहती. सरपंच ने हालत भांपते हुए नरेंद्र की बदली दूसरी जगह करा दी और उस के पिताजी को बुला कर सबकुछ बता दिया.

पिताजी नरेंद्र को गांव ले आए. वहां गांव के साथियों के साथ बातचीत कर के लच्छो से ध्यान हटा तो उन की सेहत में सुधार होने लगा. पिताजी ने मौका देख कर उस का रिश्ता तय कर दिया और कुछ समय बाद शादी भी करा दी.

पत्नी के आने के बाद लच्छो का बचाखुचा नशा भी काफूर हो गया था. फिर बच्चे हुए तो उन की परवरिश में वह ऐसा उलझा कि कुछ भी याद नहीं रहा.

आज 35 साल बाद सन्नो की आवाज ने, उस के रंगरूप ने नरेंद्र के मन में एक बार फिर लच्छो की याद ताजा कर दी.

आज लच्छो से मिल कर नरेंद्र ने आंखोंआंखों में कितने गिलेशिकवे किए.  लच्छो व सन्नो चलने लगीं तो नरेंद्र ने कुछ रुपए लच्छो की मुट्ठी में टोकरी उठाते वक्त दबा दिए और जातेजाते ताकीद भी कर दी कि कभी भी किसी चीज की जरूरत हो तो बेधड़क आ कर ले जाना या बता देना, वह चीज तुम तक पहुंच जाएगी.

लच्छो का भी दिल भर आया था. आवाज निकल नहीं पा रही थी. उस ने उसी प्यारभरी नजर से देखा, जैसे वह पहले देखा करती थी. उस की आंखें भर आई थीं. उस ने जैसे ही हां में सिर हिलाया, नरेंद्र की आंखों से भी आंसू बह निकले. वह अपने पहले की जिंदगी को दूर जाता देख रहा था और वह जा रही थी.

नो प्रौब्लम : रितिका के साथ राघव ने क्या किया..

‘‘प्लीज राघव, मैं अब सोने जा रही हूं. बाहर काफी ठंड है. बाद में बात करते हैं,’’ रितिका ने राघव को समझाया.

सचमुच रितिका को ठंड लग गई थी. पूरा दिन औफिस में खटने के बाद कमरे में मोबाइल पर बात करना तक संभव नहीं था. कारण, वह पीजी में रहती थी. एक कमरा 3 युवतियां शेयर करती थीं. वह तो पीजी की मालकिन अच्छी थीं जो ज्यादा परेशान नहीं करती थीं वरना रितिका इस से पहले 3 पीजी बदल चुकी थी.

राघव को उस की परेशानी का भान था पर फिर भी वह उसे बिलकुल नहीं समझता था. रितिका ने राघव को कई बार दबे स्वर में विवाह के लिए कहना शुरू कर दिया था परंतु वह बड़ी सफाई से बात घुमा देता था.

रितिका डेढ़ साल पहले करनाल से दिल्ली नौकरी करने आई थी. रहने के लिए रितिका ने एक पीजी फाइनल किया. जहां उस की रूममेट रिंपी थी जो पंजाब से थी. कमरा भी ठीक था. नई नौकरी में रितिका ने खूब मेहनत की.

रितिका तो दिन भर औफिस में रहती थी, पर रिंपी के पास कोई काम नहीं था. सो वह दिन भर पीजी में ही रहती थी. कभीकभी बाहर जाती तो देर रात ही वापस आती. ऐसे में रितिका चुपके से उस के लिए दरवाजा खोल देती.

धीरेधीरे दोनों की दोस्ती गहरी होती जा रही थी. अब रिंपी ने अपने दोस्तों से रितिका को भी मिलवाना शुरू कर दिया था. राघव से भी रिंपी के जरिए ही मुलाकात हुई. तीनों शौपिंग करते, लेटनाइट डिनर और डिस्क में जाते.

पीजी मालकिन ने अचानक दोनों युवतियों को लेटनाइट आते देख लिया. उस ने कुछ कहा तो रितिका ने पीजी मालकिन से झगड़ा कर दिया. उस दिन उस ने शराब पी रखी थी.

फिर क्या था, रितिका को पीजी छोड़ना पड़ा. उस के बाद रितिका ने 2 पीजी और बदले. रिंपी भी पंजाब वापस चली गई थी. उस के मातापिता ने उस का रिश्ता पक्का कर दिया था.

आज शाम को रितिका को राघव के साथ बाहर जाना था. राघव ने फोन पर कई बार उस से कहा था कि अपनी फ्रैंड्स को भी साथ में लाए.

फ्री की शराब और डिनर के लिए शाइना तैयार हो गई. शाइना को देख कर राघव बहुत खुश हुआ. बेहद खूबसूरत शाइना को देख कर राघव रितिका को बिलकुल भूल ही गया.

कार का दरवाजा भी शाइना के लिए राघव ने ही खोला. डिनर और शराब भी शाइना की पसंद की हीमंगवाई गई, लेकिन इस से रितिका को अपना तिरस्कार लगा और रितिका की आंखों में आंसू आ गए.

पीजी आ कर रितिका पूरी रात रोती रही. अगले दिन इतवार था. राघव ने रितिका को एक फोन भी नहींकिया. तभी रात को शाइना रितिका के पास आ कर कहने लगी, ‘‘प्लीज रितिका, तुम अपने बौयफ्रैंड को समझा लो. देखो, कितनी मिस्ड कौल पड़ी हैं. मैं अपनी लाइफ में तुम्हारे स्टुपिड राघव की वजह से कोई प्रौब्लम नहीं चाहती. मेरा बंदा वैसे ही बहुत पजैसिव है मेरे लिए.’’

रितिका को बहुत बुरा लग रहा था. उस ने शाइना को सुझाव दिया कि वह राघव को ब्लौक कर दे. अब राघव ने रितिका को फोन किया. पहले तो उस ने फोन नहीं उठाया, फिर राघव का मैसेज पढ़ा, ‘‘डार्लिंग, तैयार हो जाओ. मैं तुम्हें अपने मम्मीपापा से मिलवाना चाहता हूं.’’

बस, रितिका तुरंत पिघल गई. उस ने पीजी में सभी लड़कियों को सुनासुना कर आगे का मैसेज पढ़ा.

‘‘मैं तुम्हें जैलेस यानी जलाना चाहता था. तुम्हें छोड़ कर मैं किसी लड़की की तरफ नजर भी नहीं डालता. आई लव यू सो मच.’’

रितिका ने गुलाबी रंग का सूट और हलकी ज्वैलरी पहनी. हलके मेकअप में वह बेहद खूबसूरत लग रही थी. उसे देखते ही राघव बौखला गया, ‘‘यह क्या है. ये सब पहन कर चलोगी मेरे साथ. जाओ, चेंज कर के आओ.’’

‘‘पर तुम अपने पेरैंट्स से मिलवाने वाले थे न,’’ रितिका हैरानी से बोली.

‘‘ओह हां, मेरी मां मौडर्न हैं. आज अचानक मम्मीपापा किसी रिश्तेदार को देखने अस्पताल गए हैं,’’ राघवको गुस्सा आ रहा था.

रितिका ने ड्रैस चेंज कर ली. राघव ने बहलाफुसला कर रितिका को समझा दिया था. फिर एक दिन रितिका के पापा ने उसे फोन कर के बताया कि उन्होंने रितिका के लिए लड़का पसंद कर लिया है.

उस ने राघव को फौरन अपने मम्मीपापा से मिलवाने को कहा. राघव ने उसे फिर से फुसला कर चुप कराना चाहा, ‘‘मेरे मम्मीपापा यूरोप गए हैं. 2 महीने बाद ही लौटेंगे.’’

‘‘ठीक है, तो मेरे पापा से मिल लो,’’ इस पर राघव बिना कोई जवाब दिए रितिका को कल मिलने की बात कह कर चला गया.

रितिका बेहद परेशान थी. राघव के साथ वह सारी हदें पार कर चुकी थी. पीजी में रहना तो उस की मजबूरी थी. राघव ने एक छोटे से फ्लैट का इंतजाम किया हुआ था. वहीं रितिका और राघव अपना समय बिताते थे.

उस ने रिंपी को फोन किया. राघव के बरताव के बारे में सबकुछ बताया. रिंपी भी दोस्त न हो कर ऐसे बात कर रही थी मानो अजनबी हो, ‘‘देखो रितिका, मुझे नहीं पता तुम क्या कह रही हो. राघव तो शादीशुदा है. वह तुम से कैसे शादी कर सकता है.’’

‘‘तुम ने मुझे ऐसे लड़के के साथ क्यों फंसाया,’’ रितिका ने रोना शुरू कर दिया था.

‘‘उस के पैसे से तुम घूमीफिरी, ऐश किया और इलजाम मुझ पर. मुझे आगे से फोन मत करना,’’ रिंपी ने टका सा जवाब दे कर फोन काट दिया, ‘‘और हां, पापा की मरजी से शादी कर लो. अरेंज मैरिज सब से अच्छी होती है. पापा भी खुश और तुम भी खुश. नो प्रौब्लम एट औल.’’

रितिका भी दोचार दिन रोनेधोने के बाद संभल गई. फोन कर के मम्मीपापा को पूछने लगी कि घर कब आना है. इस जमाने में दिल्ली जैसे महानगर में भी पापा की मरजी से शादी करने वाली लड़की पा कर मातापिता निहाल हो गए थे. रितिका ने भी अपनी प्रौब्लम सुलझा ली थी.

एहसास सच्ची मुहब्बत का

कल विवेक ने मुझे प्रपोज किया. मन ही मन मैं भी उसे पसंद करती थी. वह देखने में हैंडसम है, पढ़ालिखा है और एक अच्छी कंपनी में नौकरी करता है. उस के अंदर वे सारे गुण हैं, जो एक कामयाब इनसान में होने चाहिए.

तकरीबन 3 साल पहले ही मुझे यह अंदाजा हो गया था कि विवेक मुझे पसंद करता है और मुझ से बहुत प्यार करता है, लेकिन कहने से डरता है. फिर मैं भी तो यही चाहती थी कि विवेक पहले मुझ से अपने दिल की बात कहे, तब मैं कुछ कहूंगी. पर क्या पता था कि इंतजार की ये घडि़यां 3 साल लंबी हो जाएंगी और कल विवेक ने साफ लफ्जों में कह दिया, ‘अंजलि, मैं पिछले 3 साल से तुम्हें पसंद करता हूं, पर पता नहीं क्यों मैं तुम से कुछ कह नहीं पाता हूं. लेकिन अब मेरा सब्र जवाब दे गया है. मैं तुम से बहुत प्यार करता हूं और अब बहुत जल्द तुम से शादी करना चाहता हूं.

‘मुझे यह तो मालूम है अंजलि कि तुम्हारे दिल के किसी कोने में मेरे लिए मुहब्बत है, लेकिन फिर भी मैं एक बार तुम्हारे मुंह से सुनना चाहता हूं.’

विवेक इतना कह कर मेरे जवाब का इंतजार करने लगा. लेकिन मुझे खामोश देख कर कहने लगा, ‘ठीक है अंजलि, मैं तुम्हें 2 दिन का वक्त देता हूं. तुम सोचसमझ कर बोलना.’

मेरा दिल सोच के गहरे समंदर में डूबने लगा. मैं जब 8 साल की थी तो मेरी मम्मी चल बसी थीं और फिर

2 साल के बाद पापा भी हमें अकेला छोड़ गए थे. मुझे से बड़े मेरे भैया थे और मुझ से छोटी एक बहन थी, जिस का नाम नेहा था.

मम्मीपापा के चले जाने के बाद हम तीनों भाईबहन की देखभाल मेरी बूआ ने की थी. वे बहुत गरीब थीं उन का भी एक बेटा और एक बेटी थीं.

नेहा मानसिक और शारीरिक दोनों रूप से कमजोर थी. उस के इलाज और मेरी पढ़ाई में भैया ने कोई कसर नहीं छोड़ी थी. मेरी पढ़ाई पूरी होने के बाद भैया ने मेरे लिए रिश्ता ढूंढ़ना शुरू कर दिया था, लेकिन मैं आगे भी पढ़ना चाहती थी, इसलिए शादी से इनकार कर दिया.

भैया ने मेरी बात मान ली, क्योंकि हमारे घर में एक औरत की जरूरत थी. इसलिए भैया ने अपनी शादी रचा ली. मेरी भाभी भी मेरी बैस्ट फ्रैंड की तरह थी. फिर वह दिन भी आ गया, जब मैं बूआ बन गई. एक नन्ही सी गुडि़या भी हमारे घर आ गई. मेरे भैया मेरे किसी भी ख्वाहिश को मेरी जबान पर आते ही पूरा कर देते थे.

हमारा परिवार बहुत खुशहाल था कि एक दिन कुदरत ने हम से हमारी दुनिया ही छीन ली. भैयाभाभी और नन्ही सी गुडि़या एक कार हादसे में मारे गए. हमें अब संभालने वाला कोई नहीं था. नेहा तो कुछ समझ नहीं पाई, बस सबकुछ देखती रही.

भैया जब तक जिंदा थे, तब तक मैं यह भी नहीं जानती थी कि भैया की तनख्वाह कितनी है, पर उन की मौत के बाद धीरेधीरे उन के सारे जमा पैसों का पता चलता गया. उन्होंने हम दोनों बहनों के नाम पर भारी रकम जमा की थी और भाभी और अपने नाम पर जो इंश्योरैंस कराया था, वह अलग. इन पैसों के बारे में कुछ रिश्तेदारों को भनक लगी, तो कुछ लोगों ने हम दोनों बहनों की देखरेख का जिम्मा उठाना चाहा. पर मैं उन लोगों की गिद्ध जैसी नजरों को पहचान गई और इनकार कर दिया.

लेकिन विवेक ने आखिर अब इतनी जल्दबाजी क्यों की? अभी तो इस हादसे को 2 महीना ही हुआ है. क्या विवेक भी उन में से एक है? क्या उसे भी मेरे पैसों से मुहब्बत है? यही सोचसोच कर मेरा दिल एकदम से बेचैन था. मैं रातभर ठीक से सो भी नहीं पाई.

फिर 2 दिन के बाद जब विवेक ने मुझे फोन किया और मेरा जवाब जानना चाहा तो मैं ने यही कहा कि अगर मैं शादी कर लूंगी तो नेहा अकेली हो जाएगी.

‘‘पगली क्या हम नेहा को उसी घर में अकेले छोड़ देंगे? उसे भी तुम्हारे साथ अपने घर ले आएंगे.’’

इस बात से मेरा दिल और भी दहशत में डूब गया. नेहा के नाम पर भी इतना पैसा और जायदाद है, तो क्या नेहा पर विवेक की नजर है? मुझे तो हमेशा से पैसे के लालची लोगों से नफरत है. अब विवेक के चेहरे पर भी उन्हीं लोगों का चेहरा नजर आता है.

मैं रातभर इसी सोच में डूबी रही. कब आंख लगी, पता ही नहीं चला. मेरी आंख तब खुली, जब बूआ ने आ कर आवाज दी कि अंजलि उठो. विवेक आया है. मैं जल्दी से उठी और फ्रैश हो कर नीचे आ गई.

‘‘अंजलि, क्या बात है. आज 4 दिन हो गए हैं और तुम ने कोई जवाब नहीं दिया मेरी बातों का?’’

‘‘विवेक, आखिर तुम्हें जवाब की इतनी जल्दी क्या पड़ गई है, अभी तो हमारे घर में इतना बड़ा हादसा हुआ है.’’

‘‘अंजलि, यही तो वजह है कि तुम अब अकेली हो गई हो और मैं जल्द से जल्द तुम्हारा सहारा बनना चाहता हूं. मैं तुम्हें इस घर में अकेले नहीं छोड़ना चाहता हूं.’’

‘‘विवेक, मैं ने अपनी जिंदगी के लिए कुछ फैसले लिए हैं और उन के बारे में तुम्हें बताना चाहती हूं.

‘‘हां हां, जरूर बताओ,’’ विवेक ने कहा.

‘‘मैं तुम से शादी करने के लिए राजी हूं. मेरी बूआ ने हम दोनों की हमेशा देखभाल की. मम्मीपापा के जाने के बाद उन्होंने कभी भी उन की कमी महसूस नहीं होने दी.

‘‘मैं चाहती हूं कि मैं अपनी आधी जायदाद उन के नाम कर दूं, ताकि उन के बच्चों का भविष्य सुधर जाए.

‘‘विवेक, मेरा सहारा तो तुम हो, लेकिन नेहा तो मानसिक और शारीरिक दोनों रूप से कमजोर है और उस के इलाज में भारी रकम खर्च होती है.

‘‘मुझे अब पैसों की क्या जरूरत है. विवेक कहो, मेरा फैसला ठीक है या गलत है?’’

विवेक कुछ देर चुप था, बस अंजलि को देख रहा था.

अंजलि को लग रहा था कि उस का यह फैसला सुनने के बाद अभी दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा.

‘‘अंजलि, मैं ने तुम्हें जो समझ कर प्यार किया, तुम वह नहीं हो,’’ विवेक बोला.

‘‘मैं समझी नहीं विवेक, तुम क्या समझते हो मुझे और मैं क्या हूं?’’

‘‘मैं तो सिर्फ इतना समझता था कि तुम एक खूबसूरत लड़की हो, मैं ने सिर्फ आज तक तुम्हारे चेहरे की खूबसूरती को देखा था, लेकिन आज तुम्हारे मन की खूबसूरती को देख रहा हूं.

‘‘एक लाचार बहन पर अपना सबकुछ कुरबान कर देना और एक गरीब बूआ के बच्चों के अच्छे भविष्य के बारे में सोचना…

‘‘आज पहली बार मुझे तुम से मुहब्बत करने पर गर्व हो रहा है अंजलि, जहां आज इस पापी दुनिया में लोग दूसरों का हक छीन कर खाते हैं, वहीं इसी दुनिया में तुम्हारे जैसे लोग भी मौजूद हैं, जो दूसरों के लिए अपना सबकुछ कुरबान कर देते हैं.

‘‘मुझे तुम्हारा फैसला मंजूर है, बस तुम तैयार रहो. मैं जल्दी ही डोली ले कर तुम्हारे घर आ रहा हूं.’’

अंजली विवेक की बात सुन कर मुसकरा दी. उसे आज ऐसा महसूस हुआ, जैसे सालों से दिल में गड़ा हुआ कांटा निकल गया हो.

आज उसे विवेक की सच्ची मुहब्बत का एहसास हो गया था. ऐसा लग रहा था कि उसे नई जिंदगी मिल गई. मैं भी तो विवेक को नहीं जानती थी कि उस के मन में भी इतना अच्छा इनसान छिपा था और मैं भी कितनी पागल थी कि उस पर शक कर रही थी.

मैं ने खिड़की का परदा हटाया. देखा, एक नई सुबह मेरा इंतजार कर रही थी जिस में सचाई थी, मुहब्बत थी और सबकुछ था, जो मुझे जीने के लिए चाहिए था.

लेखिका- तबस्सुम बानो

नई शुरुआत: सुमन क्यों जलने लगी थी बॉयफ्रेंड राजीव से

सुमन और राजीव दोनों एक ही कालेज में पढ़ते थे. दोनों बीएससी फाइनल में होने के बावजूद अलगअलग सैक्शन में पढ़ रहे थे. उन दोनों की पहली मुलाकात एक लाइब्रेरी में हुई थी. राजीव ने अपनी तरफ से नोट्स देने में सुमन की पूरी मदद की थी. यह बात सुमन को छू गई थी. राजीव वैसे भी लड़कियों से दूर ही रहता था. स्वभाव से शर्मीले राजीव को सुमन का सलीके से रहना पसंद आ गया था.

‘‘राजीव सुनो, क्या तुम मुझे एक कप चाय पिला सकते हो? मेरा सिरदर्द से फटा जा रहा है,’’ असल में सिर दर्द का तो बहाना था, सुमन राजीव के साथ कुछ देर रहना चाहती थी.

‘‘वैसे, मैं चाय नहीं पीता, लेकिन चलो तुम्हारे साथ पी लूंगा,’’ राजीव कहते हुए थोड़ा झेंप सा गया, तो सुमन मुसकरा दी. कालेज की कैंटीन की बैंच पर बैठ कर राजीव ने 2 कप चाय और्डर कर दी. सुमन बातचीत का सिलसिला शुरू करने की कोशिश करने लगी, ‘‘तुम्हारे, मेरा मतलब है कि आप के घर में और कौनकौन है?’’

‘‘जी, मेरा एक बड़ा भाई है और मांबाबूजी,’’ राजीव ने नजरें झुका कर जवाब दिया.

‘यह लड़का कहीं पिछले जन्म में लड़की तो नहीं था?’ राजीव की झिझक और शराफत देख कर सुमन सोचने लगी.

‘‘जी, आप ने मुझ से कुछ कहा?’’ राजीव ने सवाल किया, तो वह कुछ अचकचा सी गई.

‘‘बिलकुल नहीं जनाब, आप से नहीं कहूंगी तो क्या इस कैंटीन की छत से कहूंगी?’’ सुमन बोली.

इतने में बैरा चाय ले आया. राजीव ने कालेज के दूसरे लड़कों की तरह न तो बातचीत का सिलसिला आगे बढ़ाया और न ही कोई ऐसीवैसी हरकत करने की कोशिश की.

‘‘चलो चलें, पीरियड का समय हो गया है शायद,’’ अपनी चाय खत्म करते हुए राजीव बोला, तो मजबूरी में सुमन को भी अपनी चाय जल्दीजल्दी पीनी पड़ी.

इस मीटिंग के बाद न राजीव ने कोई दिलचस्पी दिखाई और न ही सुमन को राजीव से बात करने का मौका मिला.

‘‘तू ने तीर तो बिलकुल सही निशाने पर लगाया है राजीव. सुमन की एक झलक पाने के लिए लड़के लाइन लगाए खड़े रहते हैं, पर उस ने केवल तुझे घास डाली है,’’ राजीव की क्लास के दोस्त उसे छेड़ते.

‘‘तुम जैसा समझ रहे हो, वैसा कुछ नहीं है. उस ने मुझ से नोट्स मांगे थे और मैं ने दे दिए. बस, इस से ज्यादा कुछ भी नहीं,’’ राजीव झल्ला कर कहता.

‘‘तुम ने न जाने उस लल्लू कबूतर में ऐसा क्या देखा है जानेमन? एक नजर हम पर भी डाल दो. न जाने कब से लाइन लगा कर खड़े हैं तुम्हारे दीदार के लिए,’’ राजीव के साथ सुमन को देख कर दूसरे लड़कों के सीने पर भी सांप लोट जाता.

‘‘राजीव, चलो न कहीं घूम आते हैं. वैसे भी आज गुप्ता सर का पीरियड नहीं होने वाला है, क्योंकि वे आउट औफ स्टेशन हैं,’’ एक दिन सुमन ने राजीव को अपने पास बुला कर कहा.

‘‘पीरियड खाली है तो चलो लाइब्रेरी में चलते हैं, वहीं बैठ कर कुछ समय का सही इस्तेमाल करते हैं,’’ राजीव ने घमूने जाने के अरमान पर पानी फेरते हुए कहा, तो सुमन ने इसे अपनी हेठी समझ और पैर पटकते हुए राजीव को अकेला छोड़ कर चली गई.

सुमन को राजीव द्वारा इस तरह साफ इनकार करना बिलकुल पसंद नहीं आया. अपने साथ हुई इस बेइज्जती का बदला लेने के लिए वह तड़प उठी.

बहुत जल्दी ही सुमन को राजीव से अपनी बेइज्जती का बदला लेने का मौका भी मिल गया. एक दिन जब राजीव लाइब्रेरी से निकल कर अपनी क्लास की तरफ जा रहा था, तभी उस का ध्यान कहीं और होने के चलते वह एक लड़की नीलम से टकरा गया.

अचानक लगी इस टक्कर से नीलम खुद को संभाल न पाई और जमीन पर गिर गई. हालांकि उन दोनों ने ‘आई एम सौरी’ कह कर इस घटना को तूल नहीं दिया, पर सुमन ने बात का बतंगड़ बना कर हंगामा मचा दिया.

देखते ही देखते लड़कों की भीड़ वहां जमा हो गई और उन्होंने राजीव का कौलर पकड़ कर उसे नीलम से माफी मांगने के लिए मजबूर कर दिया.

राजीव को अपराधी की तरह खड़ा देख कर लड़कियों को बहुत मजा आ रहा था. बेचारा राजीव क्या करता, उसे कान पकड़ कर न केवल

माफी मांगनी पड़ी, बल्कि इतने सारे छात्रों के सामने जलील भी होना पड़ा.

सुमन को यह सब देख कर बहुत अच्छा लग रहा था, क्योंकि उस ने अपनी बेइज्जती का बदला जो राजीव से ले लिया था.

इस घटना को कई दिन बीत गए. राजीव हमेशा अपने काम से काम रखता था. यही बात सुमन को चुभ जाती थी और उसे रिएक्ट करने के लिए मजबूर कर देती थी.

दरअसल, सुमन यह चाहती थी कि राजीव उस के आसपास मंडराए और उस की जीहुजूरी करे. उसे ऐसा ही बौयफ्रैंड चाहिए था, जो उस के नखरे सह सके.

कुछ ही दिनों में छात्र संघ के चुनाव होने जा रहे थे. राजीव के दोस्त चाहते थे कि वह छात्र संघ अध्यक्ष का चुनाव लड़े. राजीव ऐसा नहीं चाहता था, पर दोस्तों के दबाव में उसे राजी होना ही पड़ा. उस का मुकाबला मोहित से था.

मोहित दबंग किस्म का हुल्लड़बाज लड़का था, जो किसी भी तरह अध्यक्ष पद पर काबिज होना चाहता था. लड़कों को अपने पक्ष में करने के लिए उस ने पैसा पानी की तरह बहाना शुरू कर दिया था, जबकि राजीव के पास लगाने के लिए ज्यादा पैसा नहीं था.

सुमन भी बढ़चढ़ कर मोहित के पक्ष में वोटिंग कराने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रही थी. राजीव को दब्बू, नकारा और कबूतर साबित करने के लिए उस ने झूठीसच्ची कहानियां भी छात्रों को सुनाईं, ताकि वह हार जाए और एक बार फिर उस के कलेजे को ठंडक पहुंचे.

चुनाव नतीजे आए, तो सब ने दांतों तले उंगली दबा ली. राजीव जीत गया था. सुमन के सारे अरमान हवा हो गए. जीत की खुशी में दोस्तों ने राजीव को अपने कंधे पर उठा लिया और गुलाल उड़ाते हुए कालेज का चक्कर लगाने लगे.

‘‘जीत मुबारक हो राजीव. मुझे पता था कि तुम ही यह चुनाव जीतोगे,’’ सुमन ने रस्मीतौर पर राजीव को बधाई देते हुए कहा, तो उस ने हाथ जोड़ दिए.

राजीव के रवैए से सुमन समझ गई कि वह उस की असलियत को जान चुका है, इसलिए उस ने अब राजीव के बारे में सोचना बंद कर दिया था. उसे अब राजीव से कोई मतलब नहीं रह गया था.

इधर सुमन के घर वाले भी अब उस का रिश्ता पक्का करना चाहते थे. उन्होंने कई लड़के सुमन को दिखाए भी, पर उन में से कोई भी उसे नहीं जंच रहा था. उधर राजीव अपनी ग्रेजुएशन पूरी कर के अच्छी नौकरी पर लग चुका था. एक तरह से सुमन उसे भुला ही चुकी थी.

‘‘सुमन, जल्दी से तैयार हो जाओ. लड़के वाले तुम्हें देखने आ रहे हैं. उन के आने का समय हो गया है,’’ एक शाम जब सुमन दोपहर में सो कर उठी, तो उस की मम्मी ने आ कर बताया.

सुमन अब एक तरह से लड़कों के आ कर देखे जाने से उकता चुकी थी. उसे अब इन बातों में इंटरैस्ट कम होता जा रहा था.

‘‘कौन है वह? और क्या करता है?’’ खुद को आईने में देखते हुए सुमन ने अपनी मां से पूछा, तो उन्होंने बताया कि लड़का अच्छी पोस्ट पर है और अच्छे खानदान से है.

खैर, सुमन को तो यह सब झेलने की आदत हो चुकी थी. बाहर कार का हौर्न बजा तो घर वाले सतर्क हो गए. सुमन ने भी एक बार अपने मेकअप और ड्रैस को अच्छे से देख कर सही कर लिया.

अब सुमन को चाय की ट्रे ले कर ड्राइंगरूम में जाना था. जैसे ही वह ट्रे ले कर वहां पहुंची, उस की नजर उसे देखने आए लड़के पर गई. उसे देखते ही वह बुरी तरह से चौंक गई और चाय की ट्रे उस के हाथ से गिरतेगिरते बची.

‘‘राजीव. तुम…?’’ दोनों शब्द उस के होंठों में फंस कर रह गए थे.

राजीव ने अपनी आदत के मुताबिक खड़े हो कर पहले हाथ जोड़े और फिर उसे हैलो कहा. उस का अंदाज बिलकुल नपातुला था.

बातों ही बातों में सुमन को पता चला कि राजीव एक अच्छी फर्म में मैनेजर हो चुका है और अच्छीखासी तनख्वाह पा रहा है.

‘‘सुमनजी, क्या आप को लगता है कि मैं आप का लाइफ पार्टनर बनने के काबिल हूं? अगर आप का दिल इस बात की गवाही देता हो तो ही आप हां करना, वरना साफ इनकार कर देना.’’

एकांत में जब राजीव ने सुमन से बड़े ही अदब के साथ पूछा, तो सुमन जैसे शर्म के मारे जमीन में गड़े जा रही थी. उसे लगा, जैसे राजीव ने उस से अपनी सारी बेइज्जती का बदला इस एक सवाल से ले लिया हो.

‘‘यह सवाल तो मुझे आप से करना चाहिए था. मेरी इतनी गलतियों को माफ करने के बाद भी अगर आप मुझे अपनाने के बारे में सोच रहे हैं, तो यह आप की महानता है. मैं आप की गुनाहगार हूं, आप जो चाहे सजा मुझे दे सकते हैं,’’ सुमन के चेहरे पर शर्मिंदगी के भाव साफ नजर आ रहे थे.

‘‘अरे, आप तो रोने लगीं. माफी चाहता हूं कि मेरी वजह से आप का दिल दुखा. शादीब्याह कोई गुड्डेगुडि़या का खेल नहीं होता. मैं नहीं चाहता कि पुरानी यादें हमारी नई जिंदगी की शुरुआत में रोड़ा अटकाएं, इसलिए जो भी फैसला करो, सोचसमझ कर ही करना,’’ कह कर राजीव जाने को तैयार हुआ, तो सुमन उस के पैरों में गिर पड़ी.

‘‘यह आपआप क्या लगा रखी है राजीव? तुम्हारी बीवी बन कर मैं अपने सारे पापों का पछतावा करना चाहती हूं. क्या तुम मुझे यह मौका दोगे?’’

‘‘सोचेंगे…’’ उस समय बस इतना ही कह कर राजीव वापस ड्राइंगरूम में चला गया और अपनी मां के कान में कुछ फुसफुसा दिया.

‘‘भई, मेरे बेटे और हमें तो लड़की पसंद है. अगर सुमन को कोई एतराज न हो, तो आप दोनों की शादी तय कर दीजिए,’’ राजीव की मम्मी के कहे ये शब्द सुमन के कानों में मिश्री की तरह घुलते जा रहे थे. उस के मन की घबराहट अब धीरेधीरे खत्म होती जा रही थी.

कम्मो डार्लिंग : कमली के साथ क्या हुआ

‘‘नीतेश…’’ जानीपहचानी आवाज सुन कर नीतेश के कदम जहां के तहां रुक गए. उस ने पीछे घूम कर देखा, तो हैरत से उस की आंखें खुली की खुली रह गईं.

‘‘क्या हुआ नीतेश? मुझे यहां देख कर हैरानी हो रही है? अच्छा, यह बताओ कि तुम मुंबई कब आए?’’ उस ने नीतेश से एकसाथ कई सवाल किए, लेकिन नीतेश ने उस के किसी भी सवाल का कोई जवाब नहीं दिया और चुपचाप आगे बढ़ गया. वह भी उस के साथसाथ आगे बढ़ गई.

कुछ दूर नीतेश के साथ चलते हुए उस ने झिझकते हुए कहा, ‘‘नीतेश, मैं काफी अरसे से दिल पर भारी बोझ ले कर जी रही हूं. कई बार सोचा भी कि तुम से मिलूं और मन की बात कह कर दिल का बोझ हलका कर लूं, मगर… ‘‘आज हम मिल ही गए हैं, तो क्यों न तुम से दिल की बात कह कर मन हलका कर लूं.’’

‘‘नीतेश, मैं पास ही में रहती हूं. तुम्हें कोई एतराज न हो, तो हम वहां थोड़ी देर बैठ कर बात कर लें?’’ नीतेश के पैर वहीं ठिठक गए. उस ने ध्यान से उस के चेहरे को देखा. उस के चेहरे पर गुजारिश के भाव थे, जो नीतेश की चुप्पी को देख कर निराशा में बदल रहे थे.

‘‘नीतेश, अगर तुम्हारी इच्छा नहीं है, तो रहने दो,’’ उस ने मायूस होते हुए कहा. नीतेश ने उस के मन के दर्द को महसूस करते हुए धीरे से कहा, ‘‘कहां है तुम्हारा घर?’’

‘‘उधर, उस चाल में,’’ उस ने सामने की तरफ इशारा कर के कहा. ‘‘लेकिन मैं ज्यादा देर तक तुम्हारे साथ रुक नहीं पाऊंगा. जो कहना हो जल्दी कह देना.’’

उस ने ‘हां’ में गरदन हिला दी. ‘‘ठीक है, चलो,’’ कह कर नीतेश उस के साथ चल दिया.

नीतेश का साथ पा कर उस को जो खुशी हो रही थी, उसे कोई भी महसूस कर सकता था. खुशी से उस के चेहरे की लाली ऐसे चमकने लगी, मानो सालों से बंजर पड़ी जमीन पर अचानक हरीभरी फसल लहलहाने लगी हो. उस के रूखे और उदास चेहरे पर एकदम ताजगी आ गई. थोड़ी दूर चलने के बाद वह चाल में बने छोटे से घर के सामने आ कर रुकी और दरवाजे पर लटके ताले को खोल कर नीतेश को अंदर ले गई.

‘‘नीतेश, तुम यहां बैठो, मैं अभी आई,’’ कह कर वह दूसरे कमरे में चली गई. जमीन पर बिछे बिस्तर पर बैठा नीतेश उस छोटे से कमरे की एकएक चीज को ध्यान से देखने लगा. तभी उस की नजर सामने मेज पर रखे एक फोटो फ्रेम पर जा कर अटक गई, जिस में नीतेश के साथ उस का फोटो जड़ा हुआ था. वह फोटो उस ने अपनी शादी के एक महीने बाद कसबे की नुमाइश में खिंचवाया था, अपनी मां के कहने पर.

मां ने तब उस से कहा था, ‘बेटा, तेरी नईनई शादी हुई है, जा, कमली को नुमाइश घुमा ला. और हां, नुमाइश में कमली के साथ एक फोटो जरूर खिंचवा लेना. पुराना फोटो देख कर गुजरे समय की यादें ताजा हो जाती हैं.’ मां की बात याद आते ही नीतेश का मन भर आया. एक तो पिता की अचानक मौत का दुख, दूसरे नौकरी के लिए उस का गाजियाबाद चले जाना, मां को अंदर ही अंदर दीमक की तरह चाटने लगा था. नतीजतन, वे धीरेधीरे बिस्तर पर आ गईं.

नीतेश ने कई बार मां को अपने साथ शहर ले जा कर किसी अच्छे डाक्टर से उन का इलाज करवाने को भी कहा, लेकिन वे गांव से हिलने के लिए भी राजी नहीं हुईं. वह तो शुक्र हो उस के पड़ोस में रहने वाली कमली का, जो मां की तीमारदारी कर दिया करती थी. कमली कोई खास पढ़ीलिखी नहीं थी. गांव के ही स्कूल से उस ने 6 जमात पढ़ाई की थी, पर थी बहुत समझदार. शायद इसीलिए वह उस की मां के मन को भा गई और उन्होंने उसे अपने घर की बहू बनाने का फैसला कर लिया था, यह बात मां ने नीतेश को तब बताई थी, जब वह एक दिन उन से मिलने गांव आया था.

मां ने उस से कहा था, ‘बेटा, कमली मुझे बहुत अच्छी लगती है. तेरे पीछे वह जिस तरह मेरी देखभाल करती है, उस तरह तो मेरी अपनी बेटी होती, तो वह भी नहीं कर पाती. मैं ने सोच लिया है कि तेरी शादी मैं कमली से ही कराऊंगी, क्योंकि मुझे पूरा यकीन है कि वह तेरा घर अच्छी तरह संभाल लेगी. नीतेश मन से अभी शादी करने को तैयार नहीं था. उस की इच्छा थी कि पहले वह अच्छा पैसा कमाने लगे. शहर में किराए के मकान को छोड़ कर अपना मकान बना ले, कुछ पैसा इकट्ठा कर ले, ताकि भविष्य में पैसों के लिए किसी का मुंह न ताकना न पड़े. लेकिन मां की खुशी के लिए उसे अपनी इच्छाओं का गला घोंट कर कमली से शादी करनी पड़ी.

शादी के कुछ ही महीनों बाद अचानक नीतेश की मां की तबीयत बिगड़ गई. काफी इलाज के बाद भी वे बच नहीं पाईं. नीतेश कमली को अपने साथ शहर ले आया. वहां कमली के रहनसहन, खानपान, बोलचाल और पहननेओढ़ने में एकदम बदलाव आ गया. उसे देख कर लगता ही नहीं था कि वह गांव की वही अल्हड़ और सीधीसादी कमली है, जो कभी सजनासंवरना भी नहीं जानती थी.

कमली में आए इस बदलाव को देख कर नीतेश को जितनी खुशी होती, उतना ही दुख भी होता था, क्योंकि वह दूसरों की बराबरी करने लगी थी. पड़ोस की कोई औरत 2 हजार रुपए की साड़ी खरीदती, तो वह 3 हजार रुपए की साड़ी मांगती. किसी के घर में 10 हजार रुपए का फ्रिज आता, तो वह 15 हजार वाले फ्रिज की डिमांड करती. नीतेश ने कई बार कमली को समझाया भी कि दूसरों की बराबरी न कर के हमें अपनी हैसियत और आमदनी के मुताबिक ही सोचना चाहिए, लेकिन उस के ऊपर कोई असर नहीं हुआ, जिस का नतीजा यह निकला कि वह अपनी इच्छाओं को पूरा करने की खातिर एक ऐसे भंवरजाल में जा फंसी, जिसे नीतेश ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था.

एक दिन शाम को नीतेश अपनी ड्यूटी से वापस आया, तो घर के दरवाजे पर ताला लटका हुआ था. उस ने सोचा कि कमली किसी काम से कहीं चली गई होगी, इसलिए वह बाहर खड़ा हो कर उस का इंतजार करने लगा. इस बीच उस ने कई बार कमली को फोन भी मिलाया, लेकिन उस का फोन बंद था. रात के तकरीबन 12 बज चुके थे, तभी उस के दरवाजे के सामने एक चमचमाती कार आ कर रुकी, जिस में से कमली नीचे उतरी. उस के कदम लड़खड़ा रहे थे. उस के लड़खड़ाते कदमों को देख कर कार में बैठा शख्स बोला, ‘‘कम्मो डार्लिंग, संभल कर.’’

कमली उस की ओर देख कर मुसकराई. वह शख्स भी मुसकराया और बोला, ‘‘ओके कम्मो डार्लिंग, बाय.’’ इतना कह कर वह वहां से चला गया. यह देख कर नीतेश हैरान रह गया. उस का दिल टूट गया. उसे कमली से नफरत हो गई. उस के जी में तो आया कि वह अपने हाथों से उस का गला घोंट दे, मगर…

कमली शराब के नशे में इस कदर चूर थी कि उसे घर का ताला खोलना भी मुश्किल हो रहा था. नीतेश ने उस से चाबी छीनी और दरवाजा खोल कर अंदर चला गया. विचारों की कश्ती में सवार सोफे पर बैठा नीतेश खुद से सवाल कर रहा था और खुद ही उन के जवाब दे रहा था. उसे खामोश देख कर कमली ने कहा, ‘‘नीतेश, मुझ से यह नहीं पूछोगे कि मैं इतनी रात को कहां से आ रही हूं? मेरे साथ कार में कौन था और मैं ने शराब क्यों पी है?’’

‘‘कमली, अगर बता सकती हो तो सिर्फ इतना बता दो कि मेरे प्यार में ऐसी कौन सी कमी रह गई थी, जिस ने तुम्हें कमली से कम्मो डार्लिंग बनने के लिए मजबूर कर दिया?’’ ‘‘नीतेश, मैं तुम्हें अंधेरे में नहीं रखना चाहती. सबकुछ साफसाफ बता देना चाहती हूं. मैं आकाश से प्यार करने लगी हूं.’’

‘‘प्यार…?’’ चौंकते हुए नीतेश ने कहा. ‘‘हां, नीतेश. यह वही आकाश है, जिस के साड़ी इंपोरियम से हम एक बार साड़ी खरीदने गए थे. तुम्हें याद होगा िमैं ने गुलाबी रंग की साड़ी पसंद की थी और तुम ने उस साड़ी को महंगा बता कर खरीदने से इनकार कर दिया था. तब आकाश ने तुम से कहा था कि साड़ी महंगी बता कर भाभीजी का दिल मत तोड़ो. भाभीजी की खूबसूरती के सामने 3 हजार तो क्या 20 हजार की साड़ी भी सस्ती होगी. लेकिन तुम आकाश की बातों में नहीं आए, जिस से मेरा दिल टूट गया.’’

‘‘दिल टूट गया और तुम आकाश से प्यार करने लगीं?’’ ‘‘नीतेश, हर लड़की की तरह मेरे भी कुछ सपने हैं. मैं भी ऐश की जिंदगी जीना चाहती हूं. महंगी से महंगी साड़ी और गहने पहनना चाहती हूं. मगर मैं जानती हूं कि तुम जैसे तंगदिल और दकियानूसी इनसान के साथ रह कर मेरा यह अरमान कभी पूरा नहीं होगा, इसलिए मैं सोचने लगी कि काश, मैं आकाश की पत्नी होती. वह कितने खुले दिन का इनसान है. कितनी खुशनसीब होगी वह लड़की, जो आकाश की पत्नी होगी. कितना प्यार करता होगा आकाश अपनी पत्नी को. लेकिन आकाश शादीशुदा नहीं है, यह तो मुझे तब पता चला, जब एक दिन आकाश से अचानक मेरी मुलाकात बाजार में हो गई और उस ने मुझ से अपने साथ कौफी पीने को कहा. मैं खुद को रोक नहीं पाई और उस के साथ कौफी पीने चली गई.’’

कौफी पीते समय आकाश ने मुझ से कहा था, ‘‘भाभीजी, उस दिन आप वह गुलाबी रंग की साड़ी नहीं खरीद पाईं. इस का मुझे आज भी अफसोस है. मेरा तो मन था कि वह साड़ी मैं आप को गिफ्ट कर दूं, लेकिन मैं आप के पति की वजह से ऐसा नहीं कर पाया था.’’ मैं ने आकाश से कहा था, ‘‘छोडि़ए आकाशजी, मेरे नसीब में वह साड़ी नहीं थी.’’

आकाश बोला था, ‘‘बात नसीब की नहीं होती है भाभीजी, बात होती है प्यार की. काश, आप मेरी पत्नी होतीं, तो मैं आप के लिए एक साड़ी तो क्या दुनियाजहान की खुशियां ला कर आप के कदमों में डाल देता. सचमुच, आप की हर ख्वाहिश, पूरी करता.’’ ‘‘आकाश की आंखों में अपने लिए इतना प्यार देख कर मैं खुद को रोक नहीं पाई. मैं ने कहा था, ‘‘आकाश, सचमुच अगर मैं तुम्हारी पत्नी होती, तो तुम मुझ से इतना ही प्यार करते…?’’

वह बोला था, ‘‘भाभीजी, एक बार आप मेरे प्यार की गहराई नाप कर तो देखिए, आप को खुद पता चल जाएगा कि इस दिल में आप के लिए कितना प्यार है.’’ ‘‘बस, उसी दिन से मैं आकाश के प्यार में डूबती चली गई.’’

‘‘नीतेश, मैं तो तुम्हें छोड़ कर आकाश के पास चली गई थी, लेकिन वह चाहता था कि मैं तुम्हें अंधेरे में न रख कर अपने प्यार के बारे में बता दूं. मगर मैं तुम्हें कुछ भी बताने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही थी, इसीलिए मुझे शराब का सहारा लेना पड़ा.’’ ‘‘कमली, मैं तुम से यह नहीं कहूंगा कि तुम ने मेरे साथ बेवफाई की है, क्योंकि यह सब कहने का कोई फायदा भी नहीं होगा. हां, इतना जरूर कहूंगा कि आकाश जैसे पैसे वाले लोगों के पास दिल नहीं होता है, वे अपनी दौलत के बल पर तुम जैसी बेवकूफ और लालची औरतों के जिस्म से तो खेल सकते हैं, लेकिन उन्हें अपनी जिंदगी में शामिल नहीं कर सकते.’’

‘‘आकाश उन लोगों में से नहीं है. वह मुझ से सच्ची मुहब्बत करता है.’’ ‘‘ऐसा तुम इसलिए कह रही हो, क्योंकि इस समय तुम्हारे दिमाग पर आकाश और उस की दौलत का नशा छाया हुआ है, पर हकीकत जल्दी ही तुम्हारे सामने आ जाएगी. लिहाजा, कोई भी कदम उठाने से पहले एक बार अच्छी तरह सोच लेना.’’

इतना कह कर नीतेश कमली के पास से उठ कर दूसरे कमरे में चला गया. उस ने सोचा कि जब कमली का नशा उतर जाएगा, तो उसे अपनी भूल का एहसास जरूर होगा और वह कोई भी गलत कदम नहीं उठाएगी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं. अगले दिन सुबह जब नीतेश सो कर उठा, तो कमली को दुलहन की ड्रैस में देख कर चौंक गया. वह कमली से कुछ कहता, इस से पहले ही वह बोल पड़ी, ‘‘नीतेश, अच्छा हुआ तुम जाग गए, वरना मैं तुम से मिले बिना ही चली जाती.’’

‘‘चली जाती…. कहां चली जाती?’’ ‘‘आज आकाश ने मुझे एक अलग फ्लैट ले कर दे दिया है. मैं और वह साथ रहेंगे.’’

कमली की यह बात सुन कर नीतेश को ऐसा झटका लगा, जैसे उस के कान पर किसी ने बम फोड़ दिया हो. उसी समय आकाश ने कार का हौर्न बजा दिया, जिसे सुन कर कमली उठ खड़ी हुई और अपना ब्रीफकेस उठा कर बोली, ‘‘मैं जा रही हूं. हो सके, तो मुझे माफ कर देना.’’

नीतेश चुपचाप उसे जाता हुआ देखता रह गया. वह चाहता तो उसे रोक भी सकता था, फिर भी उस ने ऐसा नहीं किया, क्योंकि वह जानता था कि जिस कमली ने अपनी इच्छाओं को पूरा करने की गरज से उस की भावनाओं को भी नहीं समझा, उसे रोकने से भी क्या फायदा. ‘‘नीतेश…’’ कमली की आवाज ने नीतेश की यादों की कड़ी को तोड़ दिया. ऐसा लगा, जैसे 15 साल पहले मिले जख्म फिर से हरे हो गए, जिन की टीस को वह बरदाश्त नहीं कर पाया और चुपचाप वहां से उठ कर जाने लगा.

कमली ने मायूस हो कर कहा, ‘‘नीतेश, जो जख्म मैं ने तुम्हें दिए हैं, मैं उन की दवा तो नहीं बन सकती, लेकिन इतना जरूर है कि बेवफाई का जो जहर मैं ने तुम्हारी जिंदगी में घोला था, उस की कड़वाहट से मेरा वजूद जरूर कसैला हो चुका है.’’ ‘‘तुम ने ठीक ही कहा था नीतेश कि अमीरजादों के पास धनदौलत और ऐश करने की चीजें तो होती हैं, लेकिन प्यार करने वाला दिल नहीं होता. काश, उस समय मैं तुम्हारी बात मान लेती और अपनी इच्छाओं को काबू कर पाती, तो आकाश जैसा धोखेबाज, चालबाज और मक्कार इनसान मेरी जिंदगी बरबाद नहीं कर पाता. वह मुझे बड़ेबड़े सपने दिखा कर तब तक मेरी जिंदगी से खेलता रहा, जब तक मुझ से उस का दिल नहीं भर गया. इस के बाद उस ने मुझे उस दलदल में धकेलने की कोशिश की, जहां औरत मर्दों का दिल बहलाने वाला खिलौना बन कर रह जाती है. लेकिन मैं उस के नापाक इरादों को भांप गई और उस के चंगुल से निकल आई.’’

‘‘यहां आ कर मैं एक अनाथ आश्रम में गरीब और बेसहारा बच्चों की देखभाल करने लगी, क्योंकि इस के अलावा मैं कुछ कर भी नहीं सकती थी. तुम्हारे पास आने के सारे हक मैं पहले ही खो चुकी थी, इसलिए तुम्हारे पास आने की भी हिम्मत नहीं जुटा पाई.’’ ‘‘मैं जीना नहीं चाहती थी, पर यही सोच कर अब तक जिंदा थी कि कभी तुम से मुलाकात होगी, तो तुम से माफी मांग कर मरूंगी. तुम चाहते, तो मुझे आकाश के साथ जाने से रोक सकते थे. मेरे साथ मारपीट भी कर सकते थे, पर तुम ने ऐसा नहीं किया. चुपचाप अपनी दुनिया को लुटता हुआ देखते रहे, सिर्फ मेरी खुशी के लिए.

‘‘नीतेश, मैं ने तुम्हारी हंसतीखेलती दुनिया को बरबाद किया है, हो सके तो मुझे माफ कर देना.’’ नीतेश ने ज्यादा बात नहीं की, उसे समझ नहीं आ रहा था कि क्या कहे, क्या करे. वह खुद कमली के जाने के बाद अकेला था, पर उसे मालूम न था कि कमली पर भरोसा करा जा सकता है. उस ने उठ कर कहा, ‘‘अच्छा, मैं चलता हूं. फिर आऊंगा, तब बात करेंगे.’’

कमली ने कहा, ‘‘चलो, मैं आटोस्टैंड तक छोड़ आती हूं. मुझे लौटते हुए कुछ खरीदना भी है.’’ दोनों चाल से बाहर आए. नीतेश का ध्यान कमली की बातों में था और उस ने देखा ही नहीं कि बाएं से एक बस तेजी से आ रही है. वह बस उसे कुचल देती कि कमली ने उसे अपनी ओर खींच लिया. उस की जान बच गई, पर कमली को दाएं से आते एक आटो ने जोर से टक्कर मार दी.

यह देख नीतेश घबरा गया और तुरंत उसे अस्पताल ले गया. कई घंटों की मेहनतमशक्कत के बाद डाक्टरों ने कमली को खतरे से बाहर बताया, तो नीतेश ने राहत की सांस ली. इन घंटों में वह कमली के पास बैठा यही सोचता रहा कि जितनी गुनाहगार कमली है, उतना ही गुनाहगार वह खुद भी है. क्योंकि कमली तो दुनिया की भीड़ में भटक गई थी, लेकिन उस ने भी तो उसे सही रास्ता नहीं दिखाया. हो सकता है, उस समय वह उसे आकाश के पास जाने से रोक लेता, तो शायद आज कमली को घर छोड़ने जैसा काम करने की जरूरत ही न होती.

हलकी सी कराह के साथ कमली ने आंखें खोलीं, तो नीतेश ने उस से कहा, ‘‘अब कैसा महसूस कर रही हो?’’ ‘‘तुम ने मुझे क्यों बचाया? मुझे मर जाने दिया होता.’’

‘‘पगली कहीं की. एक गलती के बाद दूसरी गलती. यह कहां की समझदारी है. अरे, अपने बारे में नहीं तो कम से कम मेरे बारे में तो सोचा होता.’’ नीतेश की इस बात पर कमली हैरान सी आंखें फाड़ कर उसे देखने लगी. उसे इस तरह अपनी तरफ देखते हुए नीतेश ने कहा, ‘‘हां कमली, तुम से मिलने के बाद और तुम्हारी सचाई जानने के बाद तो मैं ने भी जीने का मन बना लिया.’’

इतना सुनते ही कमली खुद को रोक नहीं पाई और नीतेश से लिपट कर सिसक पड़ी.

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