नो प्रौब्लम : रितिका के साथ राघव ने क्या किया..

‘‘प्लीज राघव, मैं अब सोने जा रही हूं. बाहर काफी ठंड है. बाद में बात करते हैं,’’ रितिका ने राघव को समझाया.

सचमुच रितिका को ठंड लग गई थी. पूरा दिन औफिस में खटने के बाद कमरे में मोबाइल पर बात करना तक संभव नहीं था. कारण, वह पीजी में रहती थी. एक कमरा 3 युवतियां शेयर करती थीं. वह तो पीजी की मालकिन अच्छी थीं जो ज्यादा परेशान नहीं करती थीं वरना रितिका इस से पहले 3 पीजी बदल चुकी थी.

राघव को उस की परेशानी का भान था पर फिर भी वह उसे बिलकुल नहीं समझता था. रितिका ने राघव को कई बार दबे स्वर में विवाह के लिए कहना शुरू कर दिया था परंतु वह बड़ी सफाई से बात घुमा देता था.

रितिका डेढ़ साल पहले करनाल से दिल्ली नौकरी करने आई थी. रहने के लिए रितिका ने एक पीजी फाइनल किया. जहां उस की रूममेट रिंपी थी जो पंजाब से थी. कमरा भी ठीक था. नई नौकरी में रितिका ने खूब मेहनत की.

रितिका तो दिन भर औफिस में रहती थी, पर रिंपी के पास कोई काम नहीं था. सो वह दिन भर पीजी में ही रहती थी. कभीकभी बाहर जाती तो देर रात ही वापस आती. ऐसे में रितिका चुपके से उस के लिए दरवाजा खोल देती.

धीरेधीरे दोनों की दोस्ती गहरी होती जा रही थी. अब रिंपी ने अपने दोस्तों से रितिका को भी मिलवाना शुरू कर दिया था. राघव से भी रिंपी के जरिए ही मुलाकात हुई. तीनों शौपिंग करते, लेटनाइट डिनर और डिस्क में जाते.

पीजी मालकिन ने अचानक दोनों युवतियों को लेटनाइट आते देख लिया. उस ने कुछ कहा तो रितिका ने पीजी मालकिन से झगड़ा कर दिया. उस दिन उस ने शराब पी रखी थी.

फिर क्या था, रितिका को पीजी छोड़ना पड़ा. उस के बाद रितिका ने 2 पीजी और बदले. रिंपी भी पंजाब वापस चली गई थी. उस के मातापिता ने उस का रिश्ता पक्का कर दिया था.

आज शाम को रितिका को राघव के साथ बाहर जाना था. राघव ने फोन पर कई बार उस से कहा था कि अपनी फ्रैंड्स को भी साथ में लाए.

फ्री की शराब और डिनर के लिए शाइना तैयार हो गई. शाइना को देख कर राघव बहुत खुश हुआ. बेहद खूबसूरत शाइना को देख कर राघव रितिका को बिलकुल भूल ही गया.

कार का दरवाजा भी शाइना के लिए राघव ने ही खोला. डिनर और शराब भी शाइना की पसंद की हीमंगवाई गई, लेकिन इस से रितिका को अपना तिरस्कार लगा और रितिका की आंखों में आंसू आ गए.

पीजी आ कर रितिका पूरी रात रोती रही. अगले दिन इतवार था. राघव ने रितिका को एक फोन भी नहींकिया. तभी रात को शाइना रितिका के पास आ कर कहने लगी, ‘‘प्लीज रितिका, तुम अपने बौयफ्रैंड को समझा लो. देखो, कितनी मिस्ड कौल पड़ी हैं. मैं अपनी लाइफ में तुम्हारे स्टुपिड राघव की वजह से कोई प्रौब्लम नहीं चाहती. मेरा बंदा वैसे ही बहुत पजैसिव है मेरे लिए.’’

रितिका को बहुत बुरा लग रहा था. उस ने शाइना को सुझाव दिया कि वह राघव को ब्लौक कर दे. अब राघव ने रितिका को फोन किया. पहले तो उस ने फोन नहीं उठाया, फिर राघव का मैसेज पढ़ा, ‘‘डार्लिंग, तैयार हो जाओ. मैं तुम्हें अपने मम्मीपापा से मिलवाना चाहता हूं.’’

बस, रितिका तुरंत पिघल गई. उस ने पीजी में सभी लड़कियों को सुनासुना कर आगे का मैसेज पढ़ा.

‘‘मैं तुम्हें जैलेस यानी जलाना चाहता था. तुम्हें छोड़ कर मैं किसी लड़की की तरफ नजर भी नहीं डालता. आई लव यू सो मच.’’

रितिका ने गुलाबी रंग का सूट और हलकी ज्वैलरी पहनी. हलके मेकअप में वह बेहद खूबसूरत लग रही थी. उसे देखते ही राघव बौखला गया, ‘‘यह क्या है. ये सब पहन कर चलोगी मेरे साथ. जाओ, चेंज कर के आओ.’’

‘‘पर तुम अपने पेरैंट्स से मिलवाने वाले थे न,’’ रितिका हैरानी से बोली.

‘‘ओह हां, मेरी मां मौडर्न हैं. आज अचानक मम्मीपापा किसी रिश्तेदार को देखने अस्पताल गए हैं,’’ राघवको गुस्सा आ रहा था.

रितिका ने ड्रैस चेंज कर ली. राघव ने बहलाफुसला कर रितिका को समझा दिया था. फिर एक दिन रितिका के पापा ने उसे फोन कर के बताया कि उन्होंने रितिका के लिए लड़का पसंद कर लिया है.

उस ने राघव को फौरन अपने मम्मीपापा से मिलवाने को कहा. राघव ने उसे फिर से फुसला कर चुप कराना चाहा, ‘‘मेरे मम्मीपापा यूरोप गए हैं. 2 महीने बाद ही लौटेंगे.’’

‘‘ठीक है, तो मेरे पापा से मिल लो,’’ इस पर राघव बिना कोई जवाब दिए रितिका को कल मिलने की बात कह कर चला गया.

रितिका बेहद परेशान थी. राघव के साथ वह सारी हदें पार कर चुकी थी. पीजी में रहना तो उस की मजबूरी थी. राघव ने एक छोटे से फ्लैट का इंतजाम किया हुआ था. वहीं रितिका और राघव अपना समय बिताते थे.

उस ने रिंपी को फोन किया. राघव के बरताव के बारे में सबकुछ बताया. रिंपी भी दोस्त न हो कर ऐसे बात कर रही थी मानो अजनबी हो, ‘‘देखो रितिका, मुझे नहीं पता तुम क्या कह रही हो. राघव तो शादीशुदा है. वह तुम से कैसे शादी कर सकता है.’’

‘‘तुम ने मुझे ऐसे लड़के के साथ क्यों फंसाया,’’ रितिका ने रोना शुरू कर दिया था.

‘‘उस के पैसे से तुम घूमीफिरी, ऐश किया और इलजाम मुझ पर. मुझे आगे से फोन मत करना,’’ रिंपी ने टका सा जवाब दे कर फोन काट दिया, ‘‘और हां, पापा की मरजी से शादी कर लो. अरेंज मैरिज सब से अच्छी होती है. पापा भी खुश और तुम भी खुश. नो प्रौब्लम एट औल.’’

रितिका भी दोचार दिन रोनेधोने के बाद संभल गई. फोन कर के मम्मीपापा को पूछने लगी कि घर कब आना है. इस जमाने में दिल्ली जैसे महानगर में भी पापा की मरजी से शादी करने वाली लड़की पा कर मातापिता निहाल हो गए थे. रितिका ने भी अपनी प्रौब्लम सुलझा ली थी.

एहसास सच्ची मुहब्बत का

कल विवेक ने मुझे प्रपोज किया. मन ही मन मैं भी उसे पसंद करती थी. वह देखने में हैंडसम है, पढ़ालिखा है और एक अच्छी कंपनी में नौकरी करता है. उस के अंदर वे सारे गुण हैं, जो एक कामयाब इनसान में होने चाहिए.

तकरीबन 3 साल पहले ही मुझे यह अंदाजा हो गया था कि विवेक मुझे पसंद करता है और मुझ से बहुत प्यार करता है, लेकिन कहने से डरता है. फिर मैं भी तो यही चाहती थी कि विवेक पहले मुझ से अपने दिल की बात कहे, तब मैं कुछ कहूंगी. पर क्या पता था कि इंतजार की ये घडि़यां 3 साल लंबी हो जाएंगी और कल विवेक ने साफ लफ्जों में कह दिया, ‘अंजलि, मैं पिछले 3 साल से तुम्हें पसंद करता हूं, पर पता नहीं क्यों मैं तुम से कुछ कह नहीं पाता हूं. लेकिन अब मेरा सब्र जवाब दे गया है. मैं तुम से बहुत प्यार करता हूं और अब बहुत जल्द तुम से शादी करना चाहता हूं.

‘मुझे यह तो मालूम है अंजलि कि तुम्हारे दिल के किसी कोने में मेरे लिए मुहब्बत है, लेकिन फिर भी मैं एक बार तुम्हारे मुंह से सुनना चाहता हूं.’

विवेक इतना कह कर मेरे जवाब का इंतजार करने लगा. लेकिन मुझे खामोश देख कर कहने लगा, ‘ठीक है अंजलि, मैं तुम्हें 2 दिन का वक्त देता हूं. तुम सोचसमझ कर बोलना.’

मेरा दिल सोच के गहरे समंदर में डूबने लगा. मैं जब 8 साल की थी तो मेरी मम्मी चल बसी थीं और फिर

2 साल के बाद पापा भी हमें अकेला छोड़ गए थे. मुझे से बड़े मेरे भैया थे और मुझ से छोटी एक बहन थी, जिस का नाम नेहा था.

मम्मीपापा के चले जाने के बाद हम तीनों भाईबहन की देखभाल मेरी बूआ ने की थी. वे बहुत गरीब थीं उन का भी एक बेटा और एक बेटी थीं.

नेहा मानसिक और शारीरिक दोनों रूप से कमजोर थी. उस के इलाज और मेरी पढ़ाई में भैया ने कोई कसर नहीं छोड़ी थी. मेरी पढ़ाई पूरी होने के बाद भैया ने मेरे लिए रिश्ता ढूंढ़ना शुरू कर दिया था, लेकिन मैं आगे भी पढ़ना चाहती थी, इसलिए शादी से इनकार कर दिया.

भैया ने मेरी बात मान ली, क्योंकि हमारे घर में एक औरत की जरूरत थी. इसलिए भैया ने अपनी शादी रचा ली. मेरी भाभी भी मेरी बैस्ट फ्रैंड की तरह थी. फिर वह दिन भी आ गया, जब मैं बूआ बन गई. एक नन्ही सी गुडि़या भी हमारे घर आ गई. मेरे भैया मेरे किसी भी ख्वाहिश को मेरी जबान पर आते ही पूरा कर देते थे.

हमारा परिवार बहुत खुशहाल था कि एक दिन कुदरत ने हम से हमारी दुनिया ही छीन ली. भैयाभाभी और नन्ही सी गुडि़या एक कार हादसे में मारे गए. हमें अब संभालने वाला कोई नहीं था. नेहा तो कुछ समझ नहीं पाई, बस सबकुछ देखती रही.

भैया जब तक जिंदा थे, तब तक मैं यह भी नहीं जानती थी कि भैया की तनख्वाह कितनी है, पर उन की मौत के बाद धीरेधीरे उन के सारे जमा पैसों का पता चलता गया. उन्होंने हम दोनों बहनों के नाम पर भारी रकम जमा की थी और भाभी और अपने नाम पर जो इंश्योरैंस कराया था, वह अलग. इन पैसों के बारे में कुछ रिश्तेदारों को भनक लगी, तो कुछ लोगों ने हम दोनों बहनों की देखरेख का जिम्मा उठाना चाहा. पर मैं उन लोगों की गिद्ध जैसी नजरों को पहचान गई और इनकार कर दिया.

लेकिन विवेक ने आखिर अब इतनी जल्दबाजी क्यों की? अभी तो इस हादसे को 2 महीना ही हुआ है. क्या विवेक भी उन में से एक है? क्या उसे भी मेरे पैसों से मुहब्बत है? यही सोचसोच कर मेरा दिल एकदम से बेचैन था. मैं रातभर ठीक से सो भी नहीं पाई.

फिर 2 दिन के बाद जब विवेक ने मुझे फोन किया और मेरा जवाब जानना चाहा तो मैं ने यही कहा कि अगर मैं शादी कर लूंगी तो नेहा अकेली हो जाएगी.

‘‘पगली क्या हम नेहा को उसी घर में अकेले छोड़ देंगे? उसे भी तुम्हारे साथ अपने घर ले आएंगे.’’

इस बात से मेरा दिल और भी दहशत में डूब गया. नेहा के नाम पर भी इतना पैसा और जायदाद है, तो क्या नेहा पर विवेक की नजर है? मुझे तो हमेशा से पैसे के लालची लोगों से नफरत है. अब विवेक के चेहरे पर भी उन्हीं लोगों का चेहरा नजर आता है.

मैं रातभर इसी सोच में डूबी रही. कब आंख लगी, पता ही नहीं चला. मेरी आंख तब खुली, जब बूआ ने आ कर आवाज दी कि अंजलि उठो. विवेक आया है. मैं जल्दी से उठी और फ्रैश हो कर नीचे आ गई.

‘‘अंजलि, क्या बात है. आज 4 दिन हो गए हैं और तुम ने कोई जवाब नहीं दिया मेरी बातों का?’’

‘‘विवेक, आखिर तुम्हें जवाब की इतनी जल्दी क्या पड़ गई है, अभी तो हमारे घर में इतना बड़ा हादसा हुआ है.’’

‘‘अंजलि, यही तो वजह है कि तुम अब अकेली हो गई हो और मैं जल्द से जल्द तुम्हारा सहारा बनना चाहता हूं. मैं तुम्हें इस घर में अकेले नहीं छोड़ना चाहता हूं.’’

‘‘विवेक, मैं ने अपनी जिंदगी के लिए कुछ फैसले लिए हैं और उन के बारे में तुम्हें बताना चाहती हूं.

‘‘हां हां, जरूर बताओ,’’ विवेक ने कहा.

‘‘मैं तुम से शादी करने के लिए राजी हूं. मेरी बूआ ने हम दोनों की हमेशा देखभाल की. मम्मीपापा के जाने के बाद उन्होंने कभी भी उन की कमी महसूस नहीं होने दी.

‘‘मैं चाहती हूं कि मैं अपनी आधी जायदाद उन के नाम कर दूं, ताकि उन के बच्चों का भविष्य सुधर जाए.

‘‘विवेक, मेरा सहारा तो तुम हो, लेकिन नेहा तो मानसिक और शारीरिक दोनों रूप से कमजोर है और उस के इलाज में भारी रकम खर्च होती है.

‘‘मुझे अब पैसों की क्या जरूरत है. विवेक कहो, मेरा फैसला ठीक है या गलत है?’’

विवेक कुछ देर चुप था, बस अंजलि को देख रहा था.

अंजलि को लग रहा था कि उस का यह फैसला सुनने के बाद अभी दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा.

‘‘अंजलि, मैं ने तुम्हें जो समझ कर प्यार किया, तुम वह नहीं हो,’’ विवेक बोला.

‘‘मैं समझी नहीं विवेक, तुम क्या समझते हो मुझे और मैं क्या हूं?’’

‘‘मैं तो सिर्फ इतना समझता था कि तुम एक खूबसूरत लड़की हो, मैं ने सिर्फ आज तक तुम्हारे चेहरे की खूबसूरती को देखा था, लेकिन आज तुम्हारे मन की खूबसूरती को देख रहा हूं.

‘‘एक लाचार बहन पर अपना सबकुछ कुरबान कर देना और एक गरीब बूआ के बच्चों के अच्छे भविष्य के बारे में सोचना…

‘‘आज पहली बार मुझे तुम से मुहब्बत करने पर गर्व हो रहा है अंजलि, जहां आज इस पापी दुनिया में लोग दूसरों का हक छीन कर खाते हैं, वहीं इसी दुनिया में तुम्हारे जैसे लोग भी मौजूद हैं, जो दूसरों के लिए अपना सबकुछ कुरबान कर देते हैं.

‘‘मुझे तुम्हारा फैसला मंजूर है, बस तुम तैयार रहो. मैं जल्दी ही डोली ले कर तुम्हारे घर आ रहा हूं.’’

अंजली विवेक की बात सुन कर मुसकरा दी. उसे आज ऐसा महसूस हुआ, जैसे सालों से दिल में गड़ा हुआ कांटा निकल गया हो.

आज उसे विवेक की सच्ची मुहब्बत का एहसास हो गया था. ऐसा लग रहा था कि उसे नई जिंदगी मिल गई. मैं भी तो विवेक को नहीं जानती थी कि उस के मन में भी इतना अच्छा इनसान छिपा था और मैं भी कितनी पागल थी कि उस पर शक कर रही थी.

मैं ने खिड़की का परदा हटाया. देखा, एक नई सुबह मेरा इंतजार कर रही थी जिस में सचाई थी, मुहब्बत थी और सबकुछ था, जो मुझे जीने के लिए चाहिए था.

लेखिका- तबस्सुम बानो

नई शुरुआत: सुमन क्यों जलने लगी थी बॉयफ्रेंड राजीव से

सुमन और राजीव दोनों एक ही कालेज में पढ़ते थे. दोनों बीएससी फाइनल में होने के बावजूद अलगअलग सैक्शन में पढ़ रहे थे. उन दोनों की पहली मुलाकात एक लाइब्रेरी में हुई थी. राजीव ने अपनी तरफ से नोट्स देने में सुमन की पूरी मदद की थी. यह बात सुमन को छू गई थी. राजीव वैसे भी लड़कियों से दूर ही रहता था. स्वभाव से शर्मीले राजीव को सुमन का सलीके से रहना पसंद आ गया था.

‘‘राजीव सुनो, क्या तुम मुझे एक कप चाय पिला सकते हो? मेरा सिरदर्द से फटा जा रहा है,’’ असल में सिर दर्द का तो बहाना था, सुमन राजीव के साथ कुछ देर रहना चाहती थी.

‘‘वैसे, मैं चाय नहीं पीता, लेकिन चलो तुम्हारे साथ पी लूंगा,’’ राजीव कहते हुए थोड़ा झेंप सा गया, तो सुमन मुसकरा दी. कालेज की कैंटीन की बैंच पर बैठ कर राजीव ने 2 कप चाय और्डर कर दी. सुमन बातचीत का सिलसिला शुरू करने की कोशिश करने लगी, ‘‘तुम्हारे, मेरा मतलब है कि आप के घर में और कौनकौन है?’’

‘‘जी, मेरा एक बड़ा भाई है और मांबाबूजी,’’ राजीव ने नजरें झुका कर जवाब दिया.

‘यह लड़का कहीं पिछले जन्म में लड़की तो नहीं था?’ राजीव की झिझक और शराफत देख कर सुमन सोचने लगी.

‘‘जी, आप ने मुझ से कुछ कहा?’’ राजीव ने सवाल किया, तो वह कुछ अचकचा सी गई.

‘‘बिलकुल नहीं जनाब, आप से नहीं कहूंगी तो क्या इस कैंटीन की छत से कहूंगी?’’ सुमन बोली.

इतने में बैरा चाय ले आया. राजीव ने कालेज के दूसरे लड़कों की तरह न तो बातचीत का सिलसिला आगे बढ़ाया और न ही कोई ऐसीवैसी हरकत करने की कोशिश की.

‘‘चलो चलें, पीरियड का समय हो गया है शायद,’’ अपनी चाय खत्म करते हुए राजीव बोला, तो मजबूरी में सुमन को भी अपनी चाय जल्दीजल्दी पीनी पड़ी.

इस मीटिंग के बाद न राजीव ने कोई दिलचस्पी दिखाई और न ही सुमन को राजीव से बात करने का मौका मिला.

‘‘तू ने तीर तो बिलकुल सही निशाने पर लगाया है राजीव. सुमन की एक झलक पाने के लिए लड़के लाइन लगाए खड़े रहते हैं, पर उस ने केवल तुझे घास डाली है,’’ राजीव की क्लास के दोस्त उसे छेड़ते.

‘‘तुम जैसा समझ रहे हो, वैसा कुछ नहीं है. उस ने मुझ से नोट्स मांगे थे और मैं ने दे दिए. बस, इस से ज्यादा कुछ भी नहीं,’’ राजीव झल्ला कर कहता.

‘‘तुम ने न जाने उस लल्लू कबूतर में ऐसा क्या देखा है जानेमन? एक नजर हम पर भी डाल दो. न जाने कब से लाइन लगा कर खड़े हैं तुम्हारे दीदार के लिए,’’ राजीव के साथ सुमन को देख कर दूसरे लड़कों के सीने पर भी सांप लोट जाता.

‘‘राजीव, चलो न कहीं घूम आते हैं. वैसे भी आज गुप्ता सर का पीरियड नहीं होने वाला है, क्योंकि वे आउट औफ स्टेशन हैं,’’ एक दिन सुमन ने राजीव को अपने पास बुला कर कहा.

‘‘पीरियड खाली है तो चलो लाइब्रेरी में चलते हैं, वहीं बैठ कर कुछ समय का सही इस्तेमाल करते हैं,’’ राजीव ने घमूने जाने के अरमान पर पानी फेरते हुए कहा, तो सुमन ने इसे अपनी हेठी समझ और पैर पटकते हुए राजीव को अकेला छोड़ कर चली गई.

सुमन को राजीव द्वारा इस तरह साफ इनकार करना बिलकुल पसंद नहीं आया. अपने साथ हुई इस बेइज्जती का बदला लेने के लिए वह तड़प उठी.

बहुत जल्दी ही सुमन को राजीव से अपनी बेइज्जती का बदला लेने का मौका भी मिल गया. एक दिन जब राजीव लाइब्रेरी से निकल कर अपनी क्लास की तरफ जा रहा था, तभी उस का ध्यान कहीं और होने के चलते वह एक लड़की नीलम से टकरा गया.

अचानक लगी इस टक्कर से नीलम खुद को संभाल न पाई और जमीन पर गिर गई. हालांकि उन दोनों ने ‘आई एम सौरी’ कह कर इस घटना को तूल नहीं दिया, पर सुमन ने बात का बतंगड़ बना कर हंगामा मचा दिया.

देखते ही देखते लड़कों की भीड़ वहां जमा हो गई और उन्होंने राजीव का कौलर पकड़ कर उसे नीलम से माफी मांगने के लिए मजबूर कर दिया.

राजीव को अपराधी की तरह खड़ा देख कर लड़कियों को बहुत मजा आ रहा था. बेचारा राजीव क्या करता, उसे कान पकड़ कर न केवल

माफी मांगनी पड़ी, बल्कि इतने सारे छात्रों के सामने जलील भी होना पड़ा.

सुमन को यह सब देख कर बहुत अच्छा लग रहा था, क्योंकि उस ने अपनी बेइज्जती का बदला जो राजीव से ले लिया था.

इस घटना को कई दिन बीत गए. राजीव हमेशा अपने काम से काम रखता था. यही बात सुमन को चुभ जाती थी और उसे रिएक्ट करने के लिए मजबूर कर देती थी.

दरअसल, सुमन यह चाहती थी कि राजीव उस के आसपास मंडराए और उस की जीहुजूरी करे. उसे ऐसा ही बौयफ्रैंड चाहिए था, जो उस के नखरे सह सके.

कुछ ही दिनों में छात्र संघ के चुनाव होने जा रहे थे. राजीव के दोस्त चाहते थे कि वह छात्र संघ अध्यक्ष का चुनाव लड़े. राजीव ऐसा नहीं चाहता था, पर दोस्तों के दबाव में उसे राजी होना ही पड़ा. उस का मुकाबला मोहित से था.

मोहित दबंग किस्म का हुल्लड़बाज लड़का था, जो किसी भी तरह अध्यक्ष पद पर काबिज होना चाहता था. लड़कों को अपने पक्ष में करने के लिए उस ने पैसा पानी की तरह बहाना शुरू कर दिया था, जबकि राजीव के पास लगाने के लिए ज्यादा पैसा नहीं था.

सुमन भी बढ़चढ़ कर मोहित के पक्ष में वोटिंग कराने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रही थी. राजीव को दब्बू, नकारा और कबूतर साबित करने के लिए उस ने झूठीसच्ची कहानियां भी छात्रों को सुनाईं, ताकि वह हार जाए और एक बार फिर उस के कलेजे को ठंडक पहुंचे.

चुनाव नतीजे आए, तो सब ने दांतों तले उंगली दबा ली. राजीव जीत गया था. सुमन के सारे अरमान हवा हो गए. जीत की खुशी में दोस्तों ने राजीव को अपने कंधे पर उठा लिया और गुलाल उड़ाते हुए कालेज का चक्कर लगाने लगे.

‘‘जीत मुबारक हो राजीव. मुझे पता था कि तुम ही यह चुनाव जीतोगे,’’ सुमन ने रस्मीतौर पर राजीव को बधाई देते हुए कहा, तो उस ने हाथ जोड़ दिए.

राजीव के रवैए से सुमन समझ गई कि वह उस की असलियत को जान चुका है, इसलिए उस ने अब राजीव के बारे में सोचना बंद कर दिया था. उसे अब राजीव से कोई मतलब नहीं रह गया था.

इधर सुमन के घर वाले भी अब उस का रिश्ता पक्का करना चाहते थे. उन्होंने कई लड़के सुमन को दिखाए भी, पर उन में से कोई भी उसे नहीं जंच रहा था. उधर राजीव अपनी ग्रेजुएशन पूरी कर के अच्छी नौकरी पर लग चुका था. एक तरह से सुमन उसे भुला ही चुकी थी.

‘‘सुमन, जल्दी से तैयार हो जाओ. लड़के वाले तुम्हें देखने आ रहे हैं. उन के आने का समय हो गया है,’’ एक शाम जब सुमन दोपहर में सो कर उठी, तो उस की मम्मी ने आ कर बताया.

सुमन अब एक तरह से लड़कों के आ कर देखे जाने से उकता चुकी थी. उसे अब इन बातों में इंटरैस्ट कम होता जा रहा था.

‘‘कौन है वह? और क्या करता है?’’ खुद को आईने में देखते हुए सुमन ने अपनी मां से पूछा, तो उन्होंने बताया कि लड़का अच्छी पोस्ट पर है और अच्छे खानदान से है.

खैर, सुमन को तो यह सब झेलने की आदत हो चुकी थी. बाहर कार का हौर्न बजा तो घर वाले सतर्क हो गए. सुमन ने भी एक बार अपने मेकअप और ड्रैस को अच्छे से देख कर सही कर लिया.

अब सुमन को चाय की ट्रे ले कर ड्राइंगरूम में जाना था. जैसे ही वह ट्रे ले कर वहां पहुंची, उस की नजर उसे देखने आए लड़के पर गई. उसे देखते ही वह बुरी तरह से चौंक गई और चाय की ट्रे उस के हाथ से गिरतेगिरते बची.

‘‘राजीव. तुम…?’’ दोनों शब्द उस के होंठों में फंस कर रह गए थे.

राजीव ने अपनी आदत के मुताबिक खड़े हो कर पहले हाथ जोड़े और फिर उसे हैलो कहा. उस का अंदाज बिलकुल नपातुला था.

बातों ही बातों में सुमन को पता चला कि राजीव एक अच्छी फर्म में मैनेजर हो चुका है और अच्छीखासी तनख्वाह पा रहा है.

‘‘सुमनजी, क्या आप को लगता है कि मैं आप का लाइफ पार्टनर बनने के काबिल हूं? अगर आप का दिल इस बात की गवाही देता हो तो ही आप हां करना, वरना साफ इनकार कर देना.’’

एकांत में जब राजीव ने सुमन से बड़े ही अदब के साथ पूछा, तो सुमन जैसे शर्म के मारे जमीन में गड़े जा रही थी. उसे लगा, जैसे राजीव ने उस से अपनी सारी बेइज्जती का बदला इस एक सवाल से ले लिया हो.

‘‘यह सवाल तो मुझे आप से करना चाहिए था. मेरी इतनी गलतियों को माफ करने के बाद भी अगर आप मुझे अपनाने के बारे में सोच रहे हैं, तो यह आप की महानता है. मैं आप की गुनाहगार हूं, आप जो चाहे सजा मुझे दे सकते हैं,’’ सुमन के चेहरे पर शर्मिंदगी के भाव साफ नजर आ रहे थे.

‘‘अरे, आप तो रोने लगीं. माफी चाहता हूं कि मेरी वजह से आप का दिल दुखा. शादीब्याह कोई गुड्डेगुडि़या का खेल नहीं होता. मैं नहीं चाहता कि पुरानी यादें हमारी नई जिंदगी की शुरुआत में रोड़ा अटकाएं, इसलिए जो भी फैसला करो, सोचसमझ कर ही करना,’’ कह कर राजीव जाने को तैयार हुआ, तो सुमन उस के पैरों में गिर पड़ी.

‘‘यह आपआप क्या लगा रखी है राजीव? तुम्हारी बीवी बन कर मैं अपने सारे पापों का पछतावा करना चाहती हूं. क्या तुम मुझे यह मौका दोगे?’’

‘‘सोचेंगे…’’ उस समय बस इतना ही कह कर राजीव वापस ड्राइंगरूम में चला गया और अपनी मां के कान में कुछ फुसफुसा दिया.

‘‘भई, मेरे बेटे और हमें तो लड़की पसंद है. अगर सुमन को कोई एतराज न हो, तो आप दोनों की शादी तय कर दीजिए,’’ राजीव की मम्मी के कहे ये शब्द सुमन के कानों में मिश्री की तरह घुलते जा रहे थे. उस के मन की घबराहट अब धीरेधीरे खत्म होती जा रही थी.

कम्मो डार्लिंग : कमली के साथ क्या हुआ

‘‘नीतेश…’’ जानीपहचानी आवाज सुन कर नीतेश के कदम जहां के तहां रुक गए. उस ने पीछे घूम कर देखा, तो हैरत से उस की आंखें खुली की खुली रह गईं.

‘‘क्या हुआ नीतेश? मुझे यहां देख कर हैरानी हो रही है? अच्छा, यह बताओ कि तुम मुंबई कब आए?’’ उस ने नीतेश से एकसाथ कई सवाल किए, लेकिन नीतेश ने उस के किसी भी सवाल का कोई जवाब नहीं दिया और चुपचाप आगे बढ़ गया. वह भी उस के साथसाथ आगे बढ़ गई.

कुछ दूर नीतेश के साथ चलते हुए उस ने झिझकते हुए कहा, ‘‘नीतेश, मैं काफी अरसे से दिल पर भारी बोझ ले कर जी रही हूं. कई बार सोचा भी कि तुम से मिलूं और मन की बात कह कर दिल का बोझ हलका कर लूं, मगर… ‘‘आज हम मिल ही गए हैं, तो क्यों न तुम से दिल की बात कह कर मन हलका कर लूं.’’

‘‘नीतेश, मैं पास ही में रहती हूं. तुम्हें कोई एतराज न हो, तो हम वहां थोड़ी देर बैठ कर बात कर लें?’’ नीतेश के पैर वहीं ठिठक गए. उस ने ध्यान से उस के चेहरे को देखा. उस के चेहरे पर गुजारिश के भाव थे, जो नीतेश की चुप्पी को देख कर निराशा में बदल रहे थे.

‘‘नीतेश, अगर तुम्हारी इच्छा नहीं है, तो रहने दो,’’ उस ने मायूस होते हुए कहा. नीतेश ने उस के मन के दर्द को महसूस करते हुए धीरे से कहा, ‘‘कहां है तुम्हारा घर?’’

‘‘उधर, उस चाल में,’’ उस ने सामने की तरफ इशारा कर के कहा. ‘‘लेकिन मैं ज्यादा देर तक तुम्हारे साथ रुक नहीं पाऊंगा. जो कहना हो जल्दी कह देना.’’

उस ने ‘हां’ में गरदन हिला दी. ‘‘ठीक है, चलो,’’ कह कर नीतेश उस के साथ चल दिया.

नीतेश का साथ पा कर उस को जो खुशी हो रही थी, उसे कोई भी महसूस कर सकता था. खुशी से उस के चेहरे की लाली ऐसे चमकने लगी, मानो सालों से बंजर पड़ी जमीन पर अचानक हरीभरी फसल लहलहाने लगी हो. उस के रूखे और उदास चेहरे पर एकदम ताजगी आ गई. थोड़ी दूर चलने के बाद वह चाल में बने छोटे से घर के सामने आ कर रुकी और दरवाजे पर लटके ताले को खोल कर नीतेश को अंदर ले गई.

‘‘नीतेश, तुम यहां बैठो, मैं अभी आई,’’ कह कर वह दूसरे कमरे में चली गई. जमीन पर बिछे बिस्तर पर बैठा नीतेश उस छोटे से कमरे की एकएक चीज को ध्यान से देखने लगा. तभी उस की नजर सामने मेज पर रखे एक फोटो फ्रेम पर जा कर अटक गई, जिस में नीतेश के साथ उस का फोटो जड़ा हुआ था. वह फोटो उस ने अपनी शादी के एक महीने बाद कसबे की नुमाइश में खिंचवाया था, अपनी मां के कहने पर.

मां ने तब उस से कहा था, ‘बेटा, तेरी नईनई शादी हुई है, जा, कमली को नुमाइश घुमा ला. और हां, नुमाइश में कमली के साथ एक फोटो जरूर खिंचवा लेना. पुराना फोटो देख कर गुजरे समय की यादें ताजा हो जाती हैं.’ मां की बात याद आते ही नीतेश का मन भर आया. एक तो पिता की अचानक मौत का दुख, दूसरे नौकरी के लिए उस का गाजियाबाद चले जाना, मां को अंदर ही अंदर दीमक की तरह चाटने लगा था. नतीजतन, वे धीरेधीरे बिस्तर पर आ गईं.

नीतेश ने कई बार मां को अपने साथ शहर ले जा कर किसी अच्छे डाक्टर से उन का इलाज करवाने को भी कहा, लेकिन वे गांव से हिलने के लिए भी राजी नहीं हुईं. वह तो शुक्र हो उस के पड़ोस में रहने वाली कमली का, जो मां की तीमारदारी कर दिया करती थी. कमली कोई खास पढ़ीलिखी नहीं थी. गांव के ही स्कूल से उस ने 6 जमात पढ़ाई की थी, पर थी बहुत समझदार. शायद इसीलिए वह उस की मां के मन को भा गई और उन्होंने उसे अपने घर की बहू बनाने का फैसला कर लिया था, यह बात मां ने नीतेश को तब बताई थी, जब वह एक दिन उन से मिलने गांव आया था.

मां ने उस से कहा था, ‘बेटा, कमली मुझे बहुत अच्छी लगती है. तेरे पीछे वह जिस तरह मेरी देखभाल करती है, उस तरह तो मेरी अपनी बेटी होती, तो वह भी नहीं कर पाती. मैं ने सोच लिया है कि तेरी शादी मैं कमली से ही कराऊंगी, क्योंकि मुझे पूरा यकीन है कि वह तेरा घर अच्छी तरह संभाल लेगी. नीतेश मन से अभी शादी करने को तैयार नहीं था. उस की इच्छा थी कि पहले वह अच्छा पैसा कमाने लगे. शहर में किराए के मकान को छोड़ कर अपना मकान बना ले, कुछ पैसा इकट्ठा कर ले, ताकि भविष्य में पैसों के लिए किसी का मुंह न ताकना न पड़े. लेकिन मां की खुशी के लिए उसे अपनी इच्छाओं का गला घोंट कर कमली से शादी करनी पड़ी.

शादी के कुछ ही महीनों बाद अचानक नीतेश की मां की तबीयत बिगड़ गई. काफी इलाज के बाद भी वे बच नहीं पाईं. नीतेश कमली को अपने साथ शहर ले आया. वहां कमली के रहनसहन, खानपान, बोलचाल और पहननेओढ़ने में एकदम बदलाव आ गया. उसे देख कर लगता ही नहीं था कि वह गांव की वही अल्हड़ और सीधीसादी कमली है, जो कभी सजनासंवरना भी नहीं जानती थी.

कमली में आए इस बदलाव को देख कर नीतेश को जितनी खुशी होती, उतना ही दुख भी होता था, क्योंकि वह दूसरों की बराबरी करने लगी थी. पड़ोस की कोई औरत 2 हजार रुपए की साड़ी खरीदती, तो वह 3 हजार रुपए की साड़ी मांगती. किसी के घर में 10 हजार रुपए का फ्रिज आता, तो वह 15 हजार वाले फ्रिज की डिमांड करती. नीतेश ने कई बार कमली को समझाया भी कि दूसरों की बराबरी न कर के हमें अपनी हैसियत और आमदनी के मुताबिक ही सोचना चाहिए, लेकिन उस के ऊपर कोई असर नहीं हुआ, जिस का नतीजा यह निकला कि वह अपनी इच्छाओं को पूरा करने की खातिर एक ऐसे भंवरजाल में जा फंसी, जिसे नीतेश ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था.

एक दिन शाम को नीतेश अपनी ड्यूटी से वापस आया, तो घर के दरवाजे पर ताला लटका हुआ था. उस ने सोचा कि कमली किसी काम से कहीं चली गई होगी, इसलिए वह बाहर खड़ा हो कर उस का इंतजार करने लगा. इस बीच उस ने कई बार कमली को फोन भी मिलाया, लेकिन उस का फोन बंद था. रात के तकरीबन 12 बज चुके थे, तभी उस के दरवाजे के सामने एक चमचमाती कार आ कर रुकी, जिस में से कमली नीचे उतरी. उस के कदम लड़खड़ा रहे थे. उस के लड़खड़ाते कदमों को देख कर कार में बैठा शख्स बोला, ‘‘कम्मो डार्लिंग, संभल कर.’’

कमली उस की ओर देख कर मुसकराई. वह शख्स भी मुसकराया और बोला, ‘‘ओके कम्मो डार्लिंग, बाय.’’ इतना कह कर वह वहां से चला गया. यह देख कर नीतेश हैरान रह गया. उस का दिल टूट गया. उसे कमली से नफरत हो गई. उस के जी में तो आया कि वह अपने हाथों से उस का गला घोंट दे, मगर…

कमली शराब के नशे में इस कदर चूर थी कि उसे घर का ताला खोलना भी मुश्किल हो रहा था. नीतेश ने उस से चाबी छीनी और दरवाजा खोल कर अंदर चला गया. विचारों की कश्ती में सवार सोफे पर बैठा नीतेश खुद से सवाल कर रहा था और खुद ही उन के जवाब दे रहा था. उसे खामोश देख कर कमली ने कहा, ‘‘नीतेश, मुझ से यह नहीं पूछोगे कि मैं इतनी रात को कहां से आ रही हूं? मेरे साथ कार में कौन था और मैं ने शराब क्यों पी है?’’

‘‘कमली, अगर बता सकती हो तो सिर्फ इतना बता दो कि मेरे प्यार में ऐसी कौन सी कमी रह गई थी, जिस ने तुम्हें कमली से कम्मो डार्लिंग बनने के लिए मजबूर कर दिया?’’ ‘‘नीतेश, मैं तुम्हें अंधेरे में नहीं रखना चाहती. सबकुछ साफसाफ बता देना चाहती हूं. मैं आकाश से प्यार करने लगी हूं.’’

‘‘प्यार…?’’ चौंकते हुए नीतेश ने कहा. ‘‘हां, नीतेश. यह वही आकाश है, जिस के साड़ी इंपोरियम से हम एक बार साड़ी खरीदने गए थे. तुम्हें याद होगा िमैं ने गुलाबी रंग की साड़ी पसंद की थी और तुम ने उस साड़ी को महंगा बता कर खरीदने से इनकार कर दिया था. तब आकाश ने तुम से कहा था कि साड़ी महंगी बता कर भाभीजी का दिल मत तोड़ो. भाभीजी की खूबसूरती के सामने 3 हजार तो क्या 20 हजार की साड़ी भी सस्ती होगी. लेकिन तुम आकाश की बातों में नहीं आए, जिस से मेरा दिल टूट गया.’’

‘‘दिल टूट गया और तुम आकाश से प्यार करने लगीं?’’ ‘‘नीतेश, हर लड़की की तरह मेरे भी कुछ सपने हैं. मैं भी ऐश की जिंदगी जीना चाहती हूं. महंगी से महंगी साड़ी और गहने पहनना चाहती हूं. मगर मैं जानती हूं कि तुम जैसे तंगदिल और दकियानूसी इनसान के साथ रह कर मेरा यह अरमान कभी पूरा नहीं होगा, इसलिए मैं सोचने लगी कि काश, मैं आकाश की पत्नी होती. वह कितने खुले दिन का इनसान है. कितनी खुशनसीब होगी वह लड़की, जो आकाश की पत्नी होगी. कितना प्यार करता होगा आकाश अपनी पत्नी को. लेकिन आकाश शादीशुदा नहीं है, यह तो मुझे तब पता चला, जब एक दिन आकाश से अचानक मेरी मुलाकात बाजार में हो गई और उस ने मुझ से अपने साथ कौफी पीने को कहा. मैं खुद को रोक नहीं पाई और उस के साथ कौफी पीने चली गई.’’

कौफी पीते समय आकाश ने मुझ से कहा था, ‘‘भाभीजी, उस दिन आप वह गुलाबी रंग की साड़ी नहीं खरीद पाईं. इस का मुझे आज भी अफसोस है. मेरा तो मन था कि वह साड़ी मैं आप को गिफ्ट कर दूं, लेकिन मैं आप के पति की वजह से ऐसा नहीं कर पाया था.’’ मैं ने आकाश से कहा था, ‘‘छोडि़ए आकाशजी, मेरे नसीब में वह साड़ी नहीं थी.’’

आकाश बोला था, ‘‘बात नसीब की नहीं होती है भाभीजी, बात होती है प्यार की. काश, आप मेरी पत्नी होतीं, तो मैं आप के लिए एक साड़ी तो क्या दुनियाजहान की खुशियां ला कर आप के कदमों में डाल देता. सचमुच, आप की हर ख्वाहिश, पूरी करता.’’ ‘‘आकाश की आंखों में अपने लिए इतना प्यार देख कर मैं खुद को रोक नहीं पाई. मैं ने कहा था, ‘‘आकाश, सचमुच अगर मैं तुम्हारी पत्नी होती, तो तुम मुझ से इतना ही प्यार करते…?’’

वह बोला था, ‘‘भाभीजी, एक बार आप मेरे प्यार की गहराई नाप कर तो देखिए, आप को खुद पता चल जाएगा कि इस दिल में आप के लिए कितना प्यार है.’’ ‘‘बस, उसी दिन से मैं आकाश के प्यार में डूबती चली गई.’’

‘‘नीतेश, मैं तो तुम्हें छोड़ कर आकाश के पास चली गई थी, लेकिन वह चाहता था कि मैं तुम्हें अंधेरे में न रख कर अपने प्यार के बारे में बता दूं. मगर मैं तुम्हें कुछ भी बताने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही थी, इसीलिए मुझे शराब का सहारा लेना पड़ा.’’ ‘‘कमली, मैं तुम से यह नहीं कहूंगा कि तुम ने मेरे साथ बेवफाई की है, क्योंकि यह सब कहने का कोई फायदा भी नहीं होगा. हां, इतना जरूर कहूंगा कि आकाश जैसे पैसे वाले लोगों के पास दिल नहीं होता है, वे अपनी दौलत के बल पर तुम जैसी बेवकूफ और लालची औरतों के जिस्म से तो खेल सकते हैं, लेकिन उन्हें अपनी जिंदगी में शामिल नहीं कर सकते.’’

‘‘आकाश उन लोगों में से नहीं है. वह मुझ से सच्ची मुहब्बत करता है.’’ ‘‘ऐसा तुम इसलिए कह रही हो, क्योंकि इस समय तुम्हारे दिमाग पर आकाश और उस की दौलत का नशा छाया हुआ है, पर हकीकत जल्दी ही तुम्हारे सामने आ जाएगी. लिहाजा, कोई भी कदम उठाने से पहले एक बार अच्छी तरह सोच लेना.’’

इतना कह कर नीतेश कमली के पास से उठ कर दूसरे कमरे में चला गया. उस ने सोचा कि जब कमली का नशा उतर जाएगा, तो उसे अपनी भूल का एहसास जरूर होगा और वह कोई भी गलत कदम नहीं उठाएगी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं. अगले दिन सुबह जब नीतेश सो कर उठा, तो कमली को दुलहन की ड्रैस में देख कर चौंक गया. वह कमली से कुछ कहता, इस से पहले ही वह बोल पड़ी, ‘‘नीतेश, अच्छा हुआ तुम जाग गए, वरना मैं तुम से मिले बिना ही चली जाती.’’

‘‘चली जाती…. कहां चली जाती?’’ ‘‘आज आकाश ने मुझे एक अलग फ्लैट ले कर दे दिया है. मैं और वह साथ रहेंगे.’’

कमली की यह बात सुन कर नीतेश को ऐसा झटका लगा, जैसे उस के कान पर किसी ने बम फोड़ दिया हो. उसी समय आकाश ने कार का हौर्न बजा दिया, जिसे सुन कर कमली उठ खड़ी हुई और अपना ब्रीफकेस उठा कर बोली, ‘‘मैं जा रही हूं. हो सके, तो मुझे माफ कर देना.’’

नीतेश चुपचाप उसे जाता हुआ देखता रह गया. वह चाहता तो उसे रोक भी सकता था, फिर भी उस ने ऐसा नहीं किया, क्योंकि वह जानता था कि जिस कमली ने अपनी इच्छाओं को पूरा करने की गरज से उस की भावनाओं को भी नहीं समझा, उसे रोकने से भी क्या फायदा. ‘‘नीतेश…’’ कमली की आवाज ने नीतेश की यादों की कड़ी को तोड़ दिया. ऐसा लगा, जैसे 15 साल पहले मिले जख्म फिर से हरे हो गए, जिन की टीस को वह बरदाश्त नहीं कर पाया और चुपचाप वहां से उठ कर जाने लगा.

कमली ने मायूस हो कर कहा, ‘‘नीतेश, जो जख्म मैं ने तुम्हें दिए हैं, मैं उन की दवा तो नहीं बन सकती, लेकिन इतना जरूर है कि बेवफाई का जो जहर मैं ने तुम्हारी जिंदगी में घोला था, उस की कड़वाहट से मेरा वजूद जरूर कसैला हो चुका है.’’ ‘‘तुम ने ठीक ही कहा था नीतेश कि अमीरजादों के पास धनदौलत और ऐश करने की चीजें तो होती हैं, लेकिन प्यार करने वाला दिल नहीं होता. काश, उस समय मैं तुम्हारी बात मान लेती और अपनी इच्छाओं को काबू कर पाती, तो आकाश जैसा धोखेबाज, चालबाज और मक्कार इनसान मेरी जिंदगी बरबाद नहीं कर पाता. वह मुझे बड़ेबड़े सपने दिखा कर तब तक मेरी जिंदगी से खेलता रहा, जब तक मुझ से उस का दिल नहीं भर गया. इस के बाद उस ने मुझे उस दलदल में धकेलने की कोशिश की, जहां औरत मर्दों का दिल बहलाने वाला खिलौना बन कर रह जाती है. लेकिन मैं उस के नापाक इरादों को भांप गई और उस के चंगुल से निकल आई.’’

‘‘यहां आ कर मैं एक अनाथ आश्रम में गरीब और बेसहारा बच्चों की देखभाल करने लगी, क्योंकि इस के अलावा मैं कुछ कर भी नहीं सकती थी. तुम्हारे पास आने के सारे हक मैं पहले ही खो चुकी थी, इसलिए तुम्हारे पास आने की भी हिम्मत नहीं जुटा पाई.’’ ‘‘मैं जीना नहीं चाहती थी, पर यही सोच कर अब तक जिंदा थी कि कभी तुम से मुलाकात होगी, तो तुम से माफी मांग कर मरूंगी. तुम चाहते, तो मुझे आकाश के साथ जाने से रोक सकते थे. मेरे साथ मारपीट भी कर सकते थे, पर तुम ने ऐसा नहीं किया. चुपचाप अपनी दुनिया को लुटता हुआ देखते रहे, सिर्फ मेरी खुशी के लिए.

‘‘नीतेश, मैं ने तुम्हारी हंसतीखेलती दुनिया को बरबाद किया है, हो सके तो मुझे माफ कर देना.’’ नीतेश ने ज्यादा बात नहीं की, उसे समझ नहीं आ रहा था कि क्या कहे, क्या करे. वह खुद कमली के जाने के बाद अकेला था, पर उसे मालूम न था कि कमली पर भरोसा करा जा सकता है. उस ने उठ कर कहा, ‘‘अच्छा, मैं चलता हूं. फिर आऊंगा, तब बात करेंगे.’’

कमली ने कहा, ‘‘चलो, मैं आटोस्टैंड तक छोड़ आती हूं. मुझे लौटते हुए कुछ खरीदना भी है.’’ दोनों चाल से बाहर आए. नीतेश का ध्यान कमली की बातों में था और उस ने देखा ही नहीं कि बाएं से एक बस तेजी से आ रही है. वह बस उसे कुचल देती कि कमली ने उसे अपनी ओर खींच लिया. उस की जान बच गई, पर कमली को दाएं से आते एक आटो ने जोर से टक्कर मार दी.

यह देख नीतेश घबरा गया और तुरंत उसे अस्पताल ले गया. कई घंटों की मेहनतमशक्कत के बाद डाक्टरों ने कमली को खतरे से बाहर बताया, तो नीतेश ने राहत की सांस ली. इन घंटों में वह कमली के पास बैठा यही सोचता रहा कि जितनी गुनाहगार कमली है, उतना ही गुनाहगार वह खुद भी है. क्योंकि कमली तो दुनिया की भीड़ में भटक गई थी, लेकिन उस ने भी तो उसे सही रास्ता नहीं दिखाया. हो सकता है, उस समय वह उसे आकाश के पास जाने से रोक लेता, तो शायद आज कमली को घर छोड़ने जैसा काम करने की जरूरत ही न होती.

हलकी सी कराह के साथ कमली ने आंखें खोलीं, तो नीतेश ने उस से कहा, ‘‘अब कैसा महसूस कर रही हो?’’ ‘‘तुम ने मुझे क्यों बचाया? मुझे मर जाने दिया होता.’’

‘‘पगली कहीं की. एक गलती के बाद दूसरी गलती. यह कहां की समझदारी है. अरे, अपने बारे में नहीं तो कम से कम मेरे बारे में तो सोचा होता.’’ नीतेश की इस बात पर कमली हैरान सी आंखें फाड़ कर उसे देखने लगी. उसे इस तरह अपनी तरफ देखते हुए नीतेश ने कहा, ‘‘हां कमली, तुम से मिलने के बाद और तुम्हारी सचाई जानने के बाद तो मैं ने भी जीने का मन बना लिया.’’

इतना सुनते ही कमली खुद को रोक नहीं पाई और नीतेश से लिपट कर सिसक पड़ी.

शक्ति प्रदर्शन

विजयकांत जब अपने बैडरूम में घुसा, तो रात के 10 बज रहे थे. उस की पत्नी सीमा बिस्तर पर बैठी टैलीविजन पर एक सीरियल देख रही थी. विजयकांत को देखते ही सीमा ने टैलीविजन की आवाज कम करते हुए कहा, ‘‘आप खाना खा लीजिए.’’

‘‘मैं खाना खा कर आ रहा हूं. मीटिंग के बाद कुछ दोस्त होटल में चले गए थे. कल गांधी पार्क में शक्ति प्रदर्शन का प्रोग्राम होगा. उसी के बारे में मीटिंग थी. कल देखना कितना जबरदस्त कार्यक्रम होगा. पूरे जिले से पार्टी के पांचों विधायक अपने दलबल के साथ यहां गांधी पार्क में पहुंचेंगे.’’ ‘‘चुनाव आने वाले हैं, इसीलिए प्रदेश सरकार ने प्रदेश में शक्ति प्रदर्शन का कार्यक्रम शुरू कराया है, ताकि इतने जनसमूह को देख कर विरोधी दलों के हौसले पस्त हो जाएं. जनता हमारी ताकत देख कर अगली बार भी हमारी सरकार बनवाए,’’ विजयकांत ने बिस्तर पर बैठते हुए कहा.

सीमा ने चैनल बदल कर खबरें लगाते हुए कहा, ‘‘आप का कार्यक्रम कितने घंटे का रहेगा?’’ ‘‘11 बजे से 3 बजे तक,’’ विजयकांत ने टैलीविजन की ओर देखते हुए कहा.

सीमा चुप रही. विजयकांत ने सीमा के बढ़े हुए पेट की तरफ देखते हुए पूछा, ‘‘कब तक सुना रही हो खुशखबरी? डाक्टर ने कब की तारीख दे रखी है?’’ ‘‘बस, 5-7 दिन ही बाकी हैं,’’ सीमा बोली.

‘‘हमें यह खुशी कई साल बाद मिल रही है. बेटा ही होगा, क्योंकि डाक्टर मीनाक्षी सक्सेना ने जांच कर के बता दिया था कि पेट में बेटा है. मैं ने तो उस का नाम भी पहले ही सोच लिया, ‘कमलकांत’,’’ विजयकांत खुश हो कर कह रहा था. तभी मोबाइल फोन की घंटी बजने लगी. उस ने स्क्रीन पर नाम पढ़ा, माधुरी वर्मा. वह बोल उठा, ‘‘कहिए मैडम, कैसी हो? मातृ शक्ति से बढ़ कर कोई शक्ति नहीं है, इसलिए आप को भी अपने महिला मोरचा की ओर से भरपूर शक्ति प्रदर्शन करना है, क्योंकि आप पार्टी की महिला मोरचा की नगर अध्यक्ष हैं. आप के कंधों पर बहुत बड़ी जिम्मेदारी है.’’

‘सो तो है. एक बात है, जिस के लिए फोन किया है,’ उधर से आवाज आई. ‘‘कहिए?’’ विजयकांत बोला.

‘आज शाम हमारी पार्टी की एक सदस्या के साथ एक सिपाही ने बेहूदा हरकत कर दी. उस ने मुझे मोबाइल पर सूचना दी, तो मैं ने थाना चंदनपुर के इंस्पैक्टर को बताया, लेकिन उस ने ढंग से बात ही नहीं की.’ ‘‘मैडम, इस इंस्पैक्टर का बुरा समय आ गया है. अरे, वह तो पुलिस इंस्पैक्टर ही है, हम तो एसपी और डीएम की भी परवाह नहीं करते. आज हमारी सरकार है, हमारे हाथ में शक्ति है. हम जिस अफसर को जहां चाहें फिंकवा सकते हैं.

‘‘कमाल है मैडम, आप सत्तारूढ़ पार्टी में होते हुए भी हमारे इन नौकरों से परेशान हुई हो. आप कहिए, तो मैं अभी आप के साथ चल कर उस इंस्पैक्टर को लाइन हाजिर और सिपाही को संस्पैंड करा दूं?’’ ‘कल का प्रोग्राम हो जाने दो, परसों इन दोनों का दिमाग ठीक कर देंगे,’ उधर से आवाज आई.

‘‘मैडम, आप जरा भी चिंता न करें. अभी तो आप को भी राजनीति की बहुत ऊंचाई तक जाना है. अब आप आराम करें, गुडनाइट,’’ विजयकांत ने कहा और मोबाइल बंद कर के सीमा की ओर देखा. वह सो चुकी थी. विजयकांत की उम्र 40 साल थी. वह सत्तारूढ़ पार्टी का नगर अध्यक्ष था. रुपएपैसे की उसे चिंता न थी. उसी के दम पर ही वह नगर अध्यक्ष बना था.

2 मंत्री उस के रिश्तेदार थे. विजय ऐंड कंपनी के नाम से शहर में उस का एक बड़ा सा दफ्तर था, जहां फाइनैंस व जमीनजायदाद की खरीदबिक्री का काम होता था. उस ने एक गैरकानूनी कालोनी तैयार कर करोड़ों रुपए बना लिए थे. विजयकांत की पत्नी सीमा खूबसूरत और कुशल गृहिणी थी. उसे राजनीति में कोई दिलचस्पी नहीं थी.

अजयकांत उस का छोटा भाई था, जिस ने पिछले साल एमबीए किया था. वह कुंआरा था. उस के रिश्ते आ रहे थे, पर वह अभी शादी नहीं करना चाहता था. उस का कहना था कि पहले कोई अच्छी सी नौकरी मिल जाए, बाद में शादी कर लेगा. वह विजय ऐंड कंपनी में मैनेजर के पद पर बैठ कर सारा कामकाज देख रहा था. विजयकांत की अम्मांजी की उम्र 65 साल थी. इतनी उम्र में भी वे बहुत चुस्त थीं. वे भी एक कुशल गृहिणी थीं. उन्हें अपना खाली समय समाजसेवा में बिताना पसंद था. तकरीबन 7 साल पहले विजयकांत, उस के पिता महेशकांत, अम्मांजी अपने 5 साला पोते राजू के साथ कार में जा रहे थे. कार विजयकांत ही चला रहा था. एक साइकिल सवार को बचाने के चक्कर में कार एक पेड़ से टकरा गई थी. इस हादसे में पिता महेशकांत व बेटे राजू की मौके पर ही मौत हो गई थी.

इस हादसे से उबरने में उन सभी को काफी समय लग गया था. 2 साल पहले विजयकांत को जब पता चला कि सीमा मां बनने वाली है, तो उस ने डाक्टर मीनाक्षी सक्सेना के यहां जा कर जांच कराई. पता चला कि पेट में बेटी है, तब उस ने सीमा को साफ शब्दों में कह दिया था, ‘मुझे बेटी नहीं, बेटा चाहिए.’

उस के सामने सीमा व अम्मांजी की बिलकुल नहीं चली थी. सीमा को मजबूर हो कर बच्चा गिराना पड़ा था. अब फिर सीमा पेट से हुई थी. पहले ही जांच करा कर पता कर लिया था कि पेट में पलने वाला बच्चा बेटा ही है.

अगले दिन नाश्ता करने के बाद विजयकांत ने अजयकांत से कहा, ‘‘मैं नगर विधायक राजेश्वर प्रसाद के यहां पहुंच रहा हूं. वहीं से हमें इकट्ठा हो कर जुलूस के रूप में गांधी पार्क पहुंचना है. तुम समय पर दफ्तर पहुंच जाना. आज शक्ति प्रदर्शन का यह बहुत बड़ा कार्यक्रम है. इस से विरोधी दलों की भी आंखें फटी की फटी रह जाएंगी.’’ अजयकांत ने खुश हो कर कहा, ‘‘मैं भी थोड़ी देर बाद गांधी पार्क में पहुंच जाऊंगा.’’

‘‘ठीक है, आ जाना. मैं मंच पर ही मिलूंगा,’’ विजयकांत ने कहा और कमरे से बाहर निकल गया. कुछ देर बाद अजयकांत भी दफ्तर पहुंच गया. तकरीबन एक घंटे बाद कमरे में बैठी सीमा को प्रसव का दर्द होने लगा. उस ने अम्मांजी को पुकारा.

आते ही अम्मांजी ने सीमा का चेहरा देखते हुए कहा, ‘‘लगता है, अभी नर्सिंग होम जाना पड़ेगा. तुम बैठो, मैं जाने की तैयारी करती हूं. तुम ऐसा करो कि विजय को फोन कर दो, आ जाएगा,’’ कह कर अम्मांजी कमरे से चली गईं. सीमा ने विजयकांत को मोबाइल पर सूचना देनी चाही. घंटी जाने की आवाज सुनाई देती रही, पर जवाब नहीं मिला. उस ने कई बार फोन मिलाया, पर कोई जवाब नहीं मिला.

अम्मांजी ने कमरे में घुसते ही पूछा, ‘‘विजय से बात हुई क्या? क्या कहा उस ने? कितनी देर में आ रहा है?’’ ‘‘अम्मांजी, घंटी तो जा रही है, लेकिन वे मोबाइल नहीं उठा रहे हैं. जुलूस के शोर में उन को पता नहीं चल पा रहा होगा.’’

‘‘अजय को फोन मिला दो. वह दफ्तर से गाड़ी ले कर आ जाएगा,’’ अम्मांजी ने कहा. सीमा ने तुरंत अजयकांत को फोन मिला दिया. उधर से आवाज आई, ‘हां भाभीजी, कहिए?’

‘‘तुम गाड़ी ले कर घर आ जाओ. अभी नर्सिंग होम चलना है. तुम्हारे भैया से फोन पर बात नहीं हो पा रही है.’’ ‘मैं अभी पहुंचता हूं. एक मिठाई का डब्बा लेता आऊंगा. वहां सभी का मुंह मीठा कराया जाएगा.’

‘‘वह बाद में ले लेना. पहले तुम जल्दी से यहां आ जाओ.’’ ‘बस, अभी पहुंच रहा हूं,’ अजयकांत ने कहा.

अम्मांजी ने एक बैग में कुछ जरूरी सामान रख लिया. तभी घरेलू नौकरानी कमला रसोई से निकल कर आई और बोली, ‘‘अम्मांजी, घर की आप जरा भी चिंता न करना. बस, जल्दी से बहूरानी को अस्पताल ले जाओ.’’

‘‘हां कमला, जरा ध्यान रखना. मैं तुझे खुश कर दूंगी. सोने की चेन, कपड़े, मिठाई सब दूंगी. इतने सालों से हमारी सेवा जो कर रही है,’’ अम्मांजी ने कहा. कुछ ही देर में अजयकांत गाड़ी ले कर घर आ गया.

‘‘अब जल्दी चलो, देर न करो. सीमा, तुम गाड़ी में बैठो,’’ कहते हुए अम्मांजी ने कमला की ओर देखा, ‘‘कमला, ठीक से ध्यान रखना. घर पर कोई नहीं है. पूरा घर तेरे ऊपर छोड़ कर जा रही हूं. कोई बात हो, तो हमारे मोबाइल की घंटी बजा देना.’’ ‘‘आप बेफिक्र हो कर जाओ अम्मांजी. बहुत जल्द मुझे भी फोन पर खुशखबरी सुना देना,’’ कमला ने खुशी से कहा.

कार में पीछे की सीट पर अम्मांजी व सीमा बैठ गईं. अजयकांत कार चलाने लगा. बच्चा होने का दर्द सीमा के चेहरे पर साफ दिखाई दे रहा था. कार चलाते हुए अजयकांत देख रहा था कि आज सड़क पर कुछ ज्यादा ही रौनक दिखाई दे रही है. ट्रैक्टरट्रौली, आटोरिकशा सड़कों पर दौड़े जा रहे थे. इन में लदे हुए लोग पार्टी के झंडे हाथों में लिए जोरदार आवाज में नारे लगा रहा थे, ‘जन विकास पार्टी, जिंदाबाद.’

अजयकांत रेलवे का पुल पार कर जैसे ही आगे बढ़ा, तो वहां जाम लगा हुआ था. उसे कार रोकनी पड़ी. सामने पटेल चौक था, जहां से पार्टी के एक विधायक का जुलूस जा रहा था. एक ट्रक पर ऊपर की ओर फूलमालाओं से लदा हुआ विधायक जनता की ओर हाथ हिलाहिला कर अभिवादन स्वीकार कर रहा था और कभी खुद भी हाथ जोड़ रहा था. उस के बराबर में पार्टी के दूसरे पदाधिकारी बैठे और कुछ खड़े थे.

कुछ के गले में फूलमालाएं थीं. ट्रक में पीछे लोग लदे हुए थे. ट्रक पटेल चौक में रुक गया. विधायक खड़ा हो कर नमस्कार करने लगा. कार में पीछे बैठी अम्मांजी ने पूछा, ‘‘यह किस पार्टी का जुलूस है? नगर विधायक राजेश्वर प्रसाद का है क्या?’’

‘‘नहीं अम्मां, यह तो जीवनदास का है, जो रामगढ़ का विधायक है. हो सकता है कि राजेश्वर प्रसाद का जुलूस गांधी पार्क में पहुंच गया हो या किसी दूसरे रास्ते से जा रहा हो. भैया भी तो राजेश्वर प्रसाद के बराबर में बैठे होंगे. भैया से फोन पर बात नहीं हो सकती. जुलूस में शोर ही इतना है,’’ अजयकांत ने जवाब दिया. कुछ ही देर में अजयकांत की कार के बहुत पीछे तक जाम लग चुका था. पैदल निकलने का रास्ता भी न बचा था. कोई अपनी जगह से हिल भी न सकता था. सभी को लग रहा था, मानो किसी चक्रव्यूह में फंस गए हों. कोई मन ही मन नेताओं को कोस रहा था, कोई जोरदार आवाज में गालियां दे रहा था.

सीमा दर्द को सहन करने की भरसक कोशिश कर रही थी. अम्मांजी ने सीमा के चेहरे की ओर देखा, तो मन ही मन तड़प उठीं. उन्होंने अजयकांत से कहा, ‘‘ओह, बहुत देर लगा दी इस जुलूस ने. पता नहीं, कितनी देर और लगाए?’’

‘‘लगता है, 10-15 मिनट और लग जाएंगे. अगर मुझे पता होता कि यहां ऐसा जाम लग जाएगा, तो मैं इस तरफ गाड़ी ले कर ही न आता,’’ अजयकांत ने दुखी मन से कहा. ‘‘अजय, तू यहां से जल्दी कार निकालने की कोशिश कर.’’

‘‘कैसे निकलें अम्मां? सभी तो फंसे खड़े हैं. सभी परेशान हैं, पर कोई कुछ नहीं कर सकता?’’ ‘‘सब की बात अलग है. तेरी भाभी की हालत ठीक नहीं है. किसी पुलिस वाले से बात कर. हो सकता है कि वह हमारी गाड़ी निकलवा दे.’’

अजयकांत ने देखा कि हर ओर भीड़ ही भीड़, मानो पूरे शहर का जनसमूह यहां आ कर इकट्ठा हो गया हो. वह बोल उठा, ‘‘वहां पटेल चौक में खड़े हैं पुलिस वाले. वहां तक पैदल जाना क्या आसान है? और फिर वे हमारी गाड़ी कैसे निकालेगी? आसमान में तो कार उड़ नहीं सकती.’’ ‘‘तो अब क्या होगा?’’ अम्मांजी ने घबराई आवाज में कहा.

अजयकांत चुप रहा. उस के पास कोई जवाब न था, जबकि वह जानता था कि देर होने से गड़बड़ भी हो सकती है. उस ने तो सपने में भी न सोचा था कि वह आज इस तरह जाम में फंस जाएगा. अजयकांत की कार के पीछे खड़ा एक रिकशे वाला बराबर में खड़े टैंपो ड्राइवर से कह रहा था, ‘‘इन नेताओं ने हमारे देश का बेड़ा गर्क कर दिया है. जब देखो शहर में जुलूस निकाल कर जाम लगा देते हैं. हम गरीबों को मजदूरी भी नहीं करने देते. एक सवारी मिली थी, जाम के चलते वह भी बिना पैसे दिए चली गई.’’

‘‘अरे यार, इन नेताओं के पास तो हराम की कमाई आती है. इन्हें कौन सी मेहनतमजदूरी कर के बच्चे पालने हैं. आजकल तो जिसे देखो, खद्दर का लंबा कुरतापाजामा पहन कर हाथ में मोबाइल ले कर बहुत बड़ा नेता बना फिरता है. मेरे टैंपो में भी 4-5 ऐसे ही उठाईगीर नेता बैठे थे. वे भी ऐसे ही उतर कर चले गए, मानो उन के बाप का टैंपो हो,’’ टैंपो ड्राइवर ने बुरा सा मुंह बना कर कहा. अजयकांत पिंजरे में फंसे किसी पंछी की तरह मन ही मन तड़प उठा.

जाम खुलने में एक घंटा लग गया. अजयकांत ने डाक्टर मीनाक्षी सक्सेना को मोबाइल पर सूचना दे दी थी कि वे जल्दी ही पहुंच रहे हैं. नर्सिंग होम में कार रोक कर अजयकांत तेजी से डाक्टर मीनाक्षी सक्सेना के पास पहुंचा. वे उस के साथ बाहर आईं. कार में सीमा निढाल सी हो चुकी थी.

अजयकांत ने कहा, ‘‘पटेल चौक पर जाम में फंसने के चलते हमें इतनी देर हो गई.’’ ‘‘यह जाम आप की पार्टी के शक्ति प्रदर्शन की वजह से लगा था. इस जाम से पता नहीं कितने लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ा होगा. खैर, आप चिंता न करें, मैं देखती हूं,’’ डाक्टर मीनाक्षी सक्सेना ने कहा.

सीमा को स्ट्रैचर पर लिटा कर औपरेशन थिएटर में ले जाया गया. कुछ देर बाद डाक्टर मीनाक्षी सक्सेना बाहर निकलीं और दुख भरी आवाज में बोलीं, ‘‘आप लोगों के आने में देर हो गई. अम्मांजी, आप की बहू सीमा और पोता बच नहीं सके.’’

अम्मांजी के मुंह से दुखभरी चीख निकली. अजयकांत फूटफूट कर रोने लगा. तकरीबन 3 बजे अजयकांत के मोबाइल की घंटी बजी. उस ने मोबाइल में नाम देखा, विजयकांत. अजयकांत के मुंह से आवाज नहीं निकली.

‘‘हैलो अजय, अभीअभी कार्यक्रम खत्म हुआ है. मैं ने मोबाइल चैक किया, तो सीमा और तुम्हारी बहुत मिस काल थीं. मुझे पता नहीं लग पाया. कोई बहुत जरूरी बात थी क्या?’’ उधर से विजयकांत की आवाज सुनाई दी. अजयकांत कुछ कह नहीं पाया और रोने लगा.

‘‘अजय… क्या हुआ?’’ उधर से विजयकांत की आवाज में चिंता का भाव था. अम्मांजी ने अजय से मोबाइल ले कर दुखी लहजे में कहा, ‘‘विजय, सब बरबाद हो गया. सीमा और मेरा पोता बच नहीं पाए, तुम्हारे शक्ति प्रदर्शन की बलि चढ़ गए.’’

‘‘ओह नहीं… यह क्या कह रही हो अम्मां? मैं अभी पहुंच रहा हूं नर्सिंग होम,’’ विजयकांत बोला. कुछ ही देर बाद 2 कारें नर्सिंग होम के बाहर रुकीं. कार से विधायक राजेश्वर प्रसाद, विजयकांत और 5-6 नेता बाहर निकले.

सभी उस कमरे में पहुंचे, जहां सीमा व नवजात बेटे की लाश थी. विजयकांत को अब भी विश्वास नहीं हो रहा था कि सीमा उसे हमेशा के लिए छोड़ कर जा चुकी है. उस ने सीमा का हाथ अपने हाथ में लिया और सीमा को देखता रहा.

जिस शक्ति प्रदर्शन को वह एक यादगार मान कर खुश हो रहा था, वहीं उस के लिए दुखद यादगार बन गया. उस की अपनी सरकार है. हजारों लोग उस के साथ हैं. उस के पास इतनी ताकत होते हुए भी वह आज बुरी तरह टूट चुका था. आज के प्रदर्शन ने न जाने कितने लोगों को नुकसान पहुंचाया होगा? हो सकता है कि किसी दूसरे के साथ भी ऐसी ही दुखद घटना हुई हो.

जिस्म का मुआवजा

जुलूस शहर की बड़ी सड़क से होता हुआ आगे बढ़ता जा रहा था. औरतों के हाथों में बैनर थे, जिन में से एक पर मोटेमोटे अक्षरों में लिखा हुआ था, ‘हम जिस्मफरोश नहीं हैं. हमें भी जीने का हक है. औरत का जिस्म खिलौना नहीं है…’ लोग उन्हें पढ़ते, कुछ पढ़ कर चुपचाप निकल जाते, कुछ मनचले भद्दे इशारे करते, तो कुछ मनचले जुलूस के बीच घुस कर औरतों की छातियों पर चिकोटी काट लेते. औरतें चुपचाप सहतीं, बेखबर सी नारे लगाती आगे बढ़ती जा रही थीं.

वे सब मुख्यमंत्री के पास इंसाफ मांगने जा रही थीं. इंसाफ की एवज में अपनी इज्जत की कीमत लगाने, अपने उघड़े बदन को और उघाड़ने, गरम गोश्त के शौकीनों को ललचाने. शायद इसी बहाने उन्हें अपने दर्द का कोई मरहम मिल सके. उन के माईबाप सरकार को बताएंगे कि उन की बेटी, बहन, बहू के साथ कब, क्या और कैसे हुआ? करने वाला कौन था? उन की देह को उघाड़ने वाला, नोचने वाला कौन था?

औरतों के जिस्म का सौदा हमेशा से होता रहा है और होता रहेगा. ये वे अच्छी तरह जानती हैं, लेकिन वे सौदे में नुकसान की हिमायती नहीं हैं. घर वाले बतातेबताते यह भूल जाएंगे कि शब्दों के बहाने वे खुद अपनी ही बेटियोंऔरतों को चौराहों पर, सभाओं में या सड़कों पर नंगा कर रहे हैं. उन की इज्जत के चिथड़े कर रहे हैं, लेकिन जुलूस वालों की यह सोच कहां होती है? उन्हें तो मुआवजा चाहिए, औरत की देह का सरकारी मुआवजा.

अखबार के पहले पेज पर मुख्यमंत्रीजी के साथ छपी तसवीर ही शायद उन के दर्द का मरहम हो. चाहे कुछ भी हो, लेकिन लोग उन्हें देखेंगे, पढ़ेंगे और यकीनन हमदर्दी जताने के बहाने उन के घर आ कर उन के जख्म टटोलतेटटोलते खुद कोई चीरा लगा जाएंगे. भीड़ में इतनी सोच और समझ कहां होती है. पर मगनाबाई इतनी छोटी सी उम्र में भी सब समझने लगी थी. लड़की जब एक ही रात में औरत बना दी जाती है, तब न समझ में आने वाली बातें भी समझ में आने लगती हैं. मर्दों के प्रति उस का नजरिया बदल जाता है.

15 साल की मगनाबाई 8 दिन की बच्ची को कंधे से चिपकाए जुलूस में चल रही थी. उस के साथ उस जैसी और भी लड़कियां थीं. किसी की सलवार में खून लगा था, कपड़े फटे और गंदे थे. किसी के गले और मुंह पर खरोंचों के निशान साफ नजर आ रहे थे. अंदर जाने कितने होंगे. किसी का पेट बढ़ा था. क्या ये सब अपनीअपनी देह उघाड़ कर दिखाएंगी? कैसे बताएंगी कि उस रात कितने लोगों ने…

मगनाबाई का गला सूखने लगा. कमजोरी के चलते उसे चक्कर आने लगे. लगा कि कंधे से चिपकी बच्ची छूट कर नीचे गिर जाएगी और जुलूस उस को कुचलता हुआ निकल जाएगा. जो कुचली जाएगी, उस के साथ किसी की भी हमदर्दी नहीं होगी. मगनाबाई ने साथ चलती एक औरत को पकड़ लिया. उस औरत ने मगनाबाई पर एक नजर डाली, उस की पीठ थपथपाई, ‘‘बच्ची, जब इतनी हिम्मत की है, तो थोड़ी और सही. अब तो मंजिल के करीब आ ही गए हैं. भरोसा रख. कहीं न कहीं तो इंसाफ मिलेगा…’’

कहने वाली औरत को मगनाबाई ने देखा. मन हुआ कि हंसे और पूछे, ‘भला औरत की भी कोई मंजिल होती है? किस पर भरोसा रखे? भेडि़यों से इंसाफ की उम्मीद तुम्हें होगी, मुझे नहीं,’ नफरत से उस ने जमीन पर थूक दिया. कंधे से चिपकी बच्ची रोए जा रही थी. मगनाबाई का मन हुआ कि जलालत के इस मांस के लोथड़े को पैरों से कुचल जाने के लिए जमीन पर गिरा दे. उसे लगा कि बच्ची बहुत भारी होती जा रही है. उस के कंधे बोझ उठाने में नाकाम लग रहे थे. जुलूस के साथ पैरों ने आगे बढ़ने से मना कर दिया था.

मगनाबाई कुछ देर वहीं खड़ी रही. जुलूस को उस ने आगे बढ़ जाने दिया. सड़क खाली हुई, तो उस की नजर सड़क के किनारे लगे हैंडपंप पर पड़ी. उस ने दौड़ कर किसी तरह बच्ची को गोद में उठाए ही पानी पीया. फिर वह एक बंद दुकान के चबूतरे पर रोती बच्ची को लिटा कर दीवार की टेक लगा कर बैठ गई. बच्ची ने लेटते ही रोना बंद कर दिया. मगनाबाई को भी सुकून मिला. कुनकुनी धूप उसे भली लगी. वह भी बच्ची के करीब लेट गई. उस की आंखें मुंदने लगीं.

मगनाबाई इस जुलूस के साथ आना नहीं चाहती थी. गप्पू भाई और भोला चाचा ही उसे बिस्तर से घसीट कर जुलूस के साथ ले आए. उस की आंखों के सामने बस्ता ले कर स्कूल जाती चंपा, गंगा और जूही नाच उठीं, लेकिन अब उस का बस्ता छूट गया और बस्ते की जगह इस बच्ची ने ले ली. गप्पू भाई और भोला चाचा कहते थे कि मगनाबाई पहले की तरह स्कूल जा सकेगी. इस बच्ची को किसी अनाथालय में डाल देंगे. वह फिर पहले की तरह हो जाएगी. बस, मुख्यमंत्री से मुआवजा मिल जाए. वे दोनों इन औरतों को दलदल से निकालने वाली संस्था के पैरोकार थे. जब भी पुलिस की रेड पड़नी होती थी, वे दोनों और उन की रखैलें इन औरतों के साथ बदसलूकी न हो, इसलिए साथ होते. जब भी वे दोनों साथ होते, तो पुलिस वाले रहम से पेश आते थे. आमतौर पर प्रैस रिपोर्टर भी पहुंचे होते थे. वे दोनों कई बार गोरी चमड़ी वाली लड़कियों को भी लाते थे.

उन दोनों का खूब रोब था, क्योंकि दलालों को अगर डर लगता था, तो उन से ही. उन दोनों ने मुख्यमंत्री के सामने धरनेप्रदर्शन का प्रोग्राम बनाया था और पुलिस से मिल कर जुलूस का बंदोबस्त करा था. क्या मजाल है कि ये मिलीजुली जिस्म बेचने वाली थुलथुल लड़कियां इस तरह बाजार में निकल सकें. मगनाबाई को कहा गया था कि वे दोनों मुआवजा मांग रहे हैं. इस से स्कूल खुलवाएंगे. इन की जिंदगी खुशहाल होगी. तभी मगनाबाई के विचारों को झटका लगा. मुआवजा किस बात का? किसे मिलेगा? क्या इसलिए कि 9 महीने तक इस बच्ची को बस्ते की जगह पेट में लादे घूमती रही थी? बारीबारी से लोगों का वहशीपन सहती रही थी? या फिर मुआवजे के रूप में गप्पू और भोला की पीठ ठोंकी जाएगी कि उन्होंने बेटी और बहन को अपनी मर्दानगी से परिचित कराया? सरकार उस की भी पीठ ठोंकेगी कि वह स्कूल जाने की उम्र में मां बनना सीख गई?

क्या सरकार उस से पूछेगी कि उसे मां किस तरह बनाया गया? क्या वह बता पाएगी कि उस के भाई ने पहली बार उस के हाथपैर खाट की पाटियों से बांध कर उसे चाचा को सौंप दिया था? चाचा ने भी इस के बदले भाई को मुआवजा दिया था और फिर भाई ने भी चाचा की तरह वही सब उस के साथ दोहराया था. यही सिलसिला कई दिनों तक चलता रहा. उसे डर दिखाया जाता कि अगर किसी से इस बात का जिक्र किया, तो काट कर फेंक दिया जाएगा. मुआवजे के रूप में यह बच्ची उस की कोख में आ गई. पता नहीं, दोनों में से किस की थी? क्या इन तमाम औरतों के साथ भी इसी की तरह…

बच्ची दूध पी कर सो गई थी. तभी किसी ने बाल पकड़ कर मगनाबाई को झकझोरा, ‘‘तो यहां है नवाबजादी?’’ मगनाबाई ने मुड़ कर देखा. भोला चाचा जलती आंखों से उसे देख रहा था.

‘‘मैं नहीं जाऊंगी. अब मुझ से नहीं चला जाता,’’ मगनाबाई ने कहा. ‘‘चला तो तुझ से अभी जाएगा. चलती है या उतारूं सब के सामने…’’

लोग सुन कर हंस पड़े. वे चटपटी बात सुन कर मजेदार नजारा देखने के इच्छुक थे. उसे लगा कि यहां मर्द नहीं, महज जिस्मफरोश हैं. डरीसहमी मगनाबाई बच्ची को उठा कर धीरेधीरे उन के पीछे चल दी.

भोला चाचा ने मगनाबाई को पीछे से जोरदार लात मारी. उस के मुंह से निकला, ‘‘हम जिस्मफरोश नहीं हैं. हमारी मांगें पूरी करो… पूरी करो…’’

प्यार का चसका : अमित और रंभा ने की मस्ती

शहर के कालेज में पढ़ने वाला अमित छुट्टियों में अपने गांव आया, तो उस की मां बोली, ‘‘मेरी सहेली चंदा आई थी. वह और उस की बेटी रंभा तुझे बहुत याद कर रही थीं. वह कह गई है कि तू जब गांव आए तो उन से मिलने उन के गांव आ जाए, क्योंकि रंभा अब तेरे साथ रह कर अपनी पढ़ाई करेगी.’’

यह सुन कर दूसरे दिन ही अमित अपनी मां की सहेली चंदा से मिलने उन के गांव चला गया था.

जब अमित वहां पहुंचा, तो चंदा और उन के घर के सभी लोग खेतों पर गए हुए थे. घर पर रंभा अकेली थी. अमित को देख कर वह बहुत खुश हुई थी.

रंभा बेहद खूबसूरत थी. उस ने जब शहर में रह कर अपनी पढ़ाई करने की बात कही, तो अमित उस से बोला, ‘‘तुम मेरे साथ रह कर शहर में पढ़ाई करोगी, तो वहां पर तुम्हें शहरी लड़कियों जैसे कपड़े पहनने होंगे. वहां पर यह चुन्नीवुन्नी का फैशन नहीं है,’’ कह कर अमित ने उस की चुन्नी हटाई, तो उस के हाथ रंभा के सुडौल उभारों से टकरा गए. उस की छुअन से अमित के बदन में बिजली के करंट जैसा झटका लगा था.

ऐसा ही झटका रंभा ने भी महसूस किया था. वह हैरान हो कर उस की ओर देखने लगी, तो अमित उस से बोला, ‘‘यह लंबीचौड़ी सलवार भी नहीं चलेगी. वहां पर तुम्हें शहर की लड़की की तरह रहना होगा. उन की तरह लड़कों से दोस्ती करनी होगी. उन के साथ वह सबकुछ करना होगा, जो तुम गांव की लड़कियां शादी के बाद अपने पतियों के साथ करती हो,’’ कह कर वह उस की ओर देखने लगा, तो वह शरमाते हुए बोली, ‘‘यह सब पाप होता है.’’

‘‘अगर तुम इस पापपुण्य के चक्कर में फंस कर यह सब नहीं कर सकोगी, तो अपने इस गांव में ही चौकाचूल्हे के कामों को करते हुए अपनी जिंदगी बिता दोगी,’’ कह कर वह उस की ओर देखते हुए बोला, ‘‘तुम खूबसूरत हो. शहर में पढ़ाई कर के जिंदगी के मजे लेना.’’

इस के बाद अमित उस के नाजुक अंगों को बारबार छूने लगा. उस के हाथों की छुअन से रंभा के तनबदन में बिजली का करंट सा लग रहा था. वह जोश में आने लगी थी.

रंभा के मांबाप खेतों से शाम को ही घर आते थे, इसलिए उन्हें किसी के आने का डर भी नहीं था. यह सोच कर रंभा धीरे से उस से बोली, ‘‘चलो, अंदर पीछे वाले कमरे में चलते हैं.’’ यह सुन कर अमित उसे अपनी बांहों में उठा कर पीछे वाले कमरे में ले गया. कुछ ही देर में उन दोनों ने वह सब कर लिया, जो नहीं करना चाहिए था.

जब उन दोनों का मन भर गया, तो रंभा ने उसे देशी घी का गरमागरम हलवा बना कर खिलाया. हलवा खाने के बाद अमित आराम करने के लिए सोने लगा. उसे सोते हुए देख कर फिर रंभा का दिल उसके साथ सोने के लिए मचल उठा.

वह उस के ऊपर लेट कर उसे चूमने लगी, तो वह उस से बोला, ‘‘तुम्हारा दिल दोबारा मचल उठा है क्या?’’

‘‘तुम ने मुझे प्यार का चसका जो लगा दिया है,’’ रंभा ने अमित के कपड़ों को उतारते हुए कहा. इस बार वे कुछ ही देर में प्यार का खेल खेल कर पस्त हो चुके थे, क्योंकि कई बार के प्यार से वे दोनों इतना थक चुके थे कि उन्हें गहरी नींद आने लगी थी.

शाम को जब रंभा के मांबाप अपने खेतों से घर लौटे, तो अमित को देख कर खुश हुए.

रंभा भी उस की तारीफ करते नहीं थक रही थी. वह अपने मांबाप से बोली, ‘‘अब मैं अमित के साथ रह कर ही शहर में अपनी पढ़ाई पूरी करूंगी.’’

यह सुन कर उस के पिताजी बोले, ‘‘तुम कल ही इस के साथ शहर चली जाओ. वहां पर खूब दिल लगा कर पढ़ाई करो. जब तुम कुछ पढ़लिख जाओगी, तो तुम्हें कोई अच्छी सी नौकरी मिल जाएगी. तुम्हारी जिंदगी बन जाएगी.’’

‘‘फिर किसी अच्छे घर में इस की शादी कर देंगे. आजकल अच्छे घरों के लड़के पढ़ीलिखी बहू चाहते हैं,’’ रंभा की मां ने कहा, तो अमित बोला, ‘‘मैं दिनरात इसे पढ़ा कर इतना ज्यादा होशियार बना दूंगा कि फिर यह अच्छेअच्छे पढ़ेलिखों पर भारी पड़ जाएगी.’’

रंभा की मां ने अमित के लिए खाने को अच्छेअच्छे पकवान बनाए. खाना खाने के बाद बातें करते हुए उन्हें जब रात के 10 बज गए, तब उस के सोने का इंतजाम उन्होंने ऊपर के कमरे में कर दिया.

जब अमित सोने के लिए कमरे में जाने लगा, तो चंदा रंभा से बोली, ‘‘कमरे में 2 पलंग हैं. तुम भी वहीं सो जाना. वहां पर अमित से बातें कर के शहर के रहनसहन और अपनी पढ़ाईलिखाई के बारे में अच्छी तरह पूछ लेना.’’

यह सुन कर रंभा मुसकराते हुए बोली, ‘‘जब से अमित घर पर आया है, तब से मैं उस से खूब जानकारी ले चुकी हूं. पहले मैं एकदम अनाड़ी थी, लेकिन अब मुझे इतना होशियार कर दिया है कि मैं अब सबकुछ जान चुकी हूं कि असली जिंदगी क्या होती है?’’

यह सुन कर चंदा खुशी से मुसकरा उठी. वे दोनों ऊपर वाले कमरे में सोने चले गए थे. कमरे में जाते ही वे दोनों एकदूसरे पर टूट पड़े. शहर में आ कर अमित ने रंभा के लिए नएनए फैशन के कपड़े खरीद दिए, जिन्हें पहन कर वह एकदम फिल्म हीरोइन जैसी फैशनेबल हो गई थी. अमित ने एक कालेज में उस का एडमिशन भी करा दिया था.

जब उन के कालेज खुले, तो अमित ने अपने कई अमीर दोस्तों से उस की दोस्ती करा दी, तो रंभा ने भी अपनी कई सहेलियों से अमित की दोस्ती करा दी. गांव की सीधीसादी रंभा शहर की जिंदगी में ऐसी रम गई थी कि दिन में अपनी पढ़ाई और रात में अमित और उस के दोस्तों के साथ खूब मौजमस्ती करती थी.

जब रंभा शहर से दूसरी लड़कियों की तरह बनसंवर कर अपने गांव जाती, तब सभी लोग उसे देख कर हैरान रह जाते थे. उसे देख कर उस की दूसरी सहेलियां भी अपने मांबाप से उस की तरह शहर में पढ़ने की जिद कर के शहर में ही पढ़ने लगी थीं.

अब अमित उस की गांव की सहेलियों के साथ भी मौजमस्ती करने लगा था. उस ने रंभा की तरह उन को भी प्यार का चसका जो लगा दिया था.

फलक तक : कैसे चुना स्वर्णिमा ने अपना नया भविष्य -भाग 3

स्वर्णिमा ने नजरें उठा कर राघव के चेहरे  पर टिका दीं. कितना कुछ था उन निगाहों में पढ़ने के लिए, कितने भाव उतर आए थे. पर उन भावों को तब न पढ़ा, अब तो वह पढ़ना भी नहीं चाहती थी.

‘‘आती है राघव, क्यों नहीं आएगी भला, दोस्तों की याद. यादें तो इंसान की सब से बड़ी धरोहर होती हैं,’’ कह कर स्वर्णिमा उठ खड़ी हुई, ‘‘चलती हूं राघव, समय ने चाहा तो इसी तरह किसी पुस्तक मेले में फिर मुलाकात हो जाएगी.’’

‘‘स्वर्ण,’’ राघव भी उठ खड़ा हुआ, ‘‘कुछ कहना चाहता हूं तुम से,’’ उस के चेहरे पर निगाहें टिकाता हुआ वह बोला, ‘‘दोबारा ऐसी स्वर्ण से नहीं मिलना चाहता हूं मैं. कहां खो गई वह स्वर्णिमा जिस के होंठों से ही नहीं, चेहरे और आंखों के हावभावों से भी कविता बोलती थी. स्वर्ण, अगर पौधा गमले की सीमाएं तोड़ कर जड़ें जमीन की तरफ फैलाने की कोशिश नहीं करेगा, तो माली पौधे की बेचैनी कैसे समझेगा. परिंदा उड़ने के लिए पंख फैलाने की कोशिश नहीं करेगा, पंख नहीं फड़फड़ाएगा तो दूसरे तक उस की फड़फड़ाहट पहुंचेगी कैसे. कोशिश तो खुद ही करनी पड़ती है.

‘‘स्वर्ण, परिस्थितियों से हार मत मानो,’’ वह क्षणभर रुक कर फिर बोला, ‘‘मैं यह नहीं कहता कि जिंदगी को उलटपलट कर रख दो, अपनी गृहस्थी को आग लगा दो या अपने वैवाहिक जीवन को बरबाद कर दो पर अपने पंखों को विस्तार देने की कोशिश तो करो. कितनी बार रोक सकेगा कोई तुम को. अपनी जड़ों को फैलाने की कोशिश तो करो. बढ़ने दो टहनियों को, कितनी बार काटेगा माली. थक जाएगा वह भी. कोई साथ नहीं देता तो अकेले चलो स्वर्ण. तुम्हें चलते देख, साथ चलने वाला, साथ चलने लगेगा.’’

स्वर्णिमा एकटक राघव का चेहरा देख रही थी.

‘‘स्वर्ण, कवि सम्मेलनों में शिरकत करो, बाहर निकलो, अपनी कविताओं का संकलन छपवाने की दिशा में प्रयास करो. कवि सम्मेलनों में दूसरे कविकवयित्रियों से मिलनेजुलने से तुम्हारे लेखन को विस्तार मिलेगा, नया आयाम मिलेगा, तुम्हारा लेखन बढ़ेगा, विचार बढ़ेंगे, प्रेरणा मिलेगी और जानकारियां बढ़ेंगी तुम्हारी.

‘‘और मुझ से कोई मदद चाहिए तो निसंकोच कह सकती हो. मुझे बहुत खुशी होगी. मेरी किताबों के पीछे मेरा फोन नंबर व पता लिखा है, जब चाहे संपर्क कर सकती हो. मेरी बात याद रखना स्वर्ण, तुम्हारा शौक व जनून तुम्हें खुश व जिंदा रखता है, स्वस्थ रखता है…अभिनय, नृत्य, संगीत, गाना, लेखन ये सब विधाएं कला हैं, हुनर हैं, जो प्रकृतिदत्त हैं. ये हर किसी को नहीं मिलतीं. ये सब कलाएं नियमित अभ्यास से ही फलतीफूलती व निखरती हैं. यह नहीं कि जब कभी पात्र भर जाए, मन आंदोलित हो जाए तो थोड़ा सा छलक जाए. बस, उस के बाद चुप बैठ जाओ. किसी भी कला से लगातार जुड़े रहने से कला को विस्तार मिलता है, लिखते रहने से नए विचार मिलते हैं.

‘‘अपने शौक को मारना, मरने जैसा है. खुद को मत मारो स्वर्ण.’’

‘‘मैं तुम्हारी बात का ध्यान रखूंगी राघव,’’ स्वर्णिमा किसी तरह बोली. उस का कंठ अवरुद्ध हो गया था. उस ने किताबों का बैग उठाया और जाने के लिए पलट गई. थोड़ी दूर गई. राघव उसे जाते हुए देख रहा था. एकाएक कुछ सोच कर स्वर्णिमा पलट कर वापस राघव के पास आ गई.

‘‘मुझे माफ कर देना राघव. दरअसल, उम्र का वह वक्त ही ऐसा होता है जब हम अपने निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र नहीं होते.’’

आंसू छलक आए राघव की आंखों में. स्वर्णिमा की हथेली अपने हाथों में ले कर थपक दी उस ने. ‘‘नहीं स्वर्ण, तुम माफी क्यों मांग रही हो. मैं भी तो कुछ नहीं बोल पाया था तब. बहुतों के साथ ऐसा हो जाता होगा जिन के दिल का एक कोना अनकहा, अव्यक्त और कुंआरा ही रह जाता है, सबकुछ बेमेल और गड्डमड्ड सा हो जाता है जीवन में.’’

दोनों ने एकदूसरे को एक बार भरीआंखों से निहारा. स्वर्णिमा पलटी और चली गई. राघव सजल, धुंधलाती निगाहों से उसे जाते देखता रहा. पता नहीं कहां किस मोड़ पर जिंदगी अनचाहा मोड़ ले लेती है. इंसान समझ नहीं पाता और पूरी जिंदगी उसी मोड़ पर चलते रहना पड़ता है. समान रुचि वाले 2 इंसान हमसफर क्यों नहीं बन पाते. उस ने लंबी सांस खींच कर अपनी उंगलियों से अपनी आंखों को जोर से दबा कर आंसू पोंछ डाले.

स्वर्णिमा घर पहुंची तो वीरेन औफिस से आ चुका था, ‘‘बहुत देर कर दी तुम ने, मैं ने फोन भी मिलाया था. पर तुम मोबाइल घर पर ही छोड़ गई थीं.’’

‘‘हां, भूल गई थी,’’ स्वर्णिमा व्यस्तभाव से बोली.

‘‘यह क्या उठा लाई हो?’’ उस के हाथों में बैग देख कर वीरेन बोले.

‘‘किताबें हैं, पुस्तक मेले से खरीदी हैं,’’ वह किताबें बाहर निकाल कर मेज पर रखती हुई बोली.

वीरेन ने एक उड़ती हुई नजर किताबों पर डाली. स्वर्णिमा जानती थी कि वीरेन की किताबों में कोई दिलचस्पी नहीं है. इसलिए उस की बेरुखी पर उसे कोई ताज्जुब नहीं हुआ. वह किचन में गई, 2 कप चाय बना कर ले आई और वीरेन के सामने बैठ गई.

‘‘वीरेन, मैं कल देहरादून जा रही हूं 2 दिनों के लिए.’’

‘‘देहरादून? क्या, क्यों, किसलिए, क्या मतलब, किस के साथ,’’ वीरेन उसे घूरने लगा.

‘‘इतने सारे क्या, क्यों किसलिए वीरेन,’’ वह मुसकराई, ठंडे स्वर में बोली, ‘‘वहां एक कवि सम्मेलन है, मुझे भी निमंत्रण आया है,’’ वह निमंत्रणपत्र उस के हाथ में पकड़ाते हुए बोली.

‘‘क्या जरूरत है वहां जाने की. कवि सम्मेलनों में ऐसा क्या हो जाता है?’’ वह तल्ख स्वर में बोला, ‘‘यहां भी कवि सम्मेलन होते रहते हैं, तब तो तुम नहीं गईं.’’

‘‘वही गलती हो गई वीरेन. पर कल मैं जा रही हूं. जहां तक साथ की जरूरत है, तो हमारी कुंआरी खूबसूरत जवान बेटी कानपुर से चंड़ीगढ़ अकेली आतीजाती है, तब तुम नहीं डरते. मेरे लिए इतना डरने की क्या जरूरत है. किसी एक दिन तो कोई काम पहली बार होता ही है, फिर आदत पड़ जाती है.’’

यह कह कर स्वर्णिमा उठ खड़ी हुई और कमरे में जा कर अपना बैग तैयार करने लगी. वीरेन चुप खड़ा स्वर्णिमा की कही बात को सोचता रह गया. इतनी मजबूती से स्वर्णिमा ने अपनी बात पहले कभी नहीं कही थी.

दूसरे दिन सुबह जल्दी उठ कर वीरेन के लिए सभी तैयारियां कर खुद भी तैयार हुई. अपना बैग ले कर बाहर आई तो लौबी में वीरेन खड़ा था.

‘‘तुम कहां जा रहे हो?’’ वह आश्चर्य से बोली.

‘‘तुम्हें बसस्टौप तक छोड़ देता हूं. कैसे जाओगी, पहले बताती तो मैं भी देहरादून चलता तुम्हारे साथ,’’ वीरेने की आवाज धीमी व पछतावे से भीगी हुई थी.

वीरेन की भीगी आवाज से उस का दिल भर आया. उस का हाथ सहलाते हुए बोली, ‘‘नहीं वीरेन, इस बार तो मैं अकेले ही जाऊंगी. अब तो इधरउधर आतीजाती रहूंगी. कितनी बार जाओगे तुम मेरे साथ. मैं ने आटो वाले को फोन कर दिया था, वह बाहर आ गया होगा गेट पर. मुझे कोई दिक्कत नहीं होगी. मोबाइल पर बात करते रहेंगे.’’

और स्वर्णिमा निकल गई. बाहर लौन में देखा तो माली काम कर रहा था, ‘‘आज बहुत जल्दी आ गए माली, क्या कर रहे हो?’’

‘‘कुछ नहीं मेमसाहब, इस पौधे की जड़ों ने गमला तोड़ दिया है नीचे से. और जड़ें बाहर फैलने लगी हैं. अभी तक यह पौधा 4 गमले तोड़ चुका है, इसलिए मैं ने थकहार कर इसे जमीन पर लगा दिया है. लगता है, अब यह गमले में नहीं रुकेगा.’’

माली बड़बड़ा रहा था और वह खुशी से उस पौधे को देख रही थी जो जमीन पर लग कर लहरा व इठला रहा था. वह भी अपने अंदर एक नई स्वर्णिमा को जन्म लेते महसूस कर रही थी, जो अपनी जड़ों को मजबूती देगी और टहनियों को विस्तार देगी. यह सोच कर उस ने गेट खोला और एक नई उमंग व स्फूर्ति के साथ बाहर निकल गई.

मौन : जब दो जवां और अजनबी दिल मिले – भाग 2

गैस्टहाउस का वह कमरा खासा बड़ा था. डबलबैड लगा हुआ था. इसे मेरे संस्कार कह लो या अंदर का डर. मैं ने मनामी से कहा, ‘ऐसा करते हैं, बैड अलगअलग कर बीच में टेबल लगा लेते हैं.’

मनामी ने भी अपनी मौन सहमति दे दी.

हम दोनों अपनेअपने बैड पर बैठे थे. नींद न मेरी आंखों में थी न मनामी की. मनामी के अभी तक के साथ से मेरी उस से बात करने की हिम्मत बढ़ गई थी. अब रहा नहीं जा रहा था,  बोल पड़ा, ‘तुम यहां मसूरी क्या करने आई हो.’

मनामी भी शायद अब तक मुझ से सहज हो गई थी. बोली, ‘मैं दिल्ली में रहती हूं.’

‘अच्छा, दिल्ली में कहां?’

‘सरोजनी नगर.’

‘अरे, वाट ए कोइनस्टिडैंट. मैं आईएनए में रहता हूं.’

‘मैं ने हाल ही में पढ़ाई कंप्लीट की है. 2 और छोटी बहनें हैं. पापा रहे नहीं. मम्मी के कंधों पर ही हम बहनों का भार है. सोचती थी जैसे ही पढ़ाई पूरी हो जाएगी, मम्मी का भार कम करने की कोशिश करूंगी, लेकिन लगता है अभी वह वक्त नहीं आया.

‘दिल्ली में जौब के लिए इंटरव्यू दिया था. उन्होंने सैकंड इंटरव्यू के लिए मुझे मसूरी भेजा है. वैसे तो मेरा सिलैक्शन हो गया है, लेकिन कंपनी के टर्म्स ऐंड कंडीशंस मुझे ठीक नहीं लग रहीं. समझ नहीं आ रहा क्या करूं?’

‘इस में इतना घबराने या सोचने की क्या बात है. जौब पसंद नहीं आ रही तो मत करो. तुम्हारे अंदर काबिलीयत है तो जौब दूसरी जगह मिल ही जाएगी. वैसे, मेरी कंपनी में अभी न्यू वैकैंसी निकली हैं. तुम कहो तो तुम्हारे लिए कोशिश करूं.’

‘सच, मैं अपना सीवी तुम्हें मेल कर दूंगी.’

‘शायद, वक्त ने हमें मिलाया इसलिए हो कि मैं तुम्हारे काम आ सकूं,’ श्रीनिवास के मुंह से अचानक निकल गया. मनामी ने एक नजर श्रीकांत की तरफ फेरी, फिर मुसकरा कर निगाहें झुका लीं.

श्रीनिवास का मन हुआ कि ठंड से कंपकंपाते हुए मनामी के हाथों को अपने हाथों में ले ले लेकिन मनामी कुछ गलत न समझ ले, यह सोच रुक गया. फिर कुछ सोचता हुआ कमरे से बाहर चला गया.

सर्दभरी रात. बाहर गैस्टहाउस की छत पर गिरते बर्फ से टपकते पानी की आवाज अभी भी आ रही है. मनामी ठंड से सिहर रही थी कि तभी कौफी का मग बढ़ाते हुए श्रीनिवास ने कहा, ‘यह लीजिए, थोड़ी गरम व कड़क कौफी.’

तभी दोनों के हाथों का पहला हलका सा स्पर्श हुआ तो पूरा शरीर सिहर उठा. एक बार फिर दोनों की नजरें टकरा गईं. पूरे सफर के बाद अभी पहली बार पूरी तरह से मनामी की तरफ देखा तो देखता ही रह गया. कब मैं ने मनामी के होंठों पर चुंबन रख दिया, पता ही नहीं चला. फिर मौन स्वीकृति से थोड़ी देर में ही दोनों एकदूसरे की आगोश में समा गए.

सांसों की गरमाहट से बाहर की ठंड से राहत महसूस होने लगी. इस बीच मैं और मनामी एकदूसरे को पूरी तरह कब समर्पित हो गए, पता ही नहीं चला. शरीर की कंपकपाहट अब कम हो चुकी थी. दोनों के शरीर थक चुके थे पर गरमाहट बरकरार थी.

रात कब गुजर गई, पता ही नहीं चला. सुबहसुबह जब बाहर पेड़ों, पत्तों पर जमी बर्फ छनछन कर गिरने लगी तो ऐसा लगा मानो पूरे जंगल में किसी ने तराना छेड़ दिया हो. इसी तराने की हलकी आवाज से दोनों जागे तो मन में एक अतिरिक्त आनंद और शरीर में नई ऊर्जा आ चुकी थी. मन में न कोई अपराधबोध, न कुछ जानने की चाह. बस, एक मौन के साथ फिर मैं और मनामी साथसाथ चल दिए. सर्द मौसम था, हड्डियों को कंपकंपा देने वाली ठंड. शुक्र था औफिस का काम कल ही निबट गया था. दिल्ली से उस का मसूरी आना सार्थक हो गया था. बौस निश्चित ही उस से खुश हो जाएंगे.

श्रीनिवास खुद को काफी हलका महसूस कर रहा था. मातापिता की वह इकलौती संतान थी. उस के अलावा 2 छोटी बहनें थीं. पिता नौकरी से रिटायर्ड थे. बेटा होने के नाते घर की जिम्मेदारी उसे ही निभानी थी. वह बचपन से ही महत्त्वाकांक्षी रहा है. मल्टीनैशनल कंपनी में उसे जौब पढ़ाई खत्म करते ही मिल गई थी. आकर्षक व्यक्तित्व का मालिक तो वह था ही, बोलने में भी उस का जवाब नहीं था. लोग जल्दी ही उस से प्रभावित हो जाते थे. कई लड़कियों ने उस से दोस्ती करने की कोशिश की लेकिन अभी वह इन सब पचड़ों में नहीं पड़ना चाहता था.

श्रीनिवास ने सोचा था मसूरी में उसे 2 दिन लग जाएंगे, लेकिन यहां तो एक दिन में ही काम निबट गया. क्यों न कल मसूरी घूमा जाए. श्रीनिवास मजे से गरम कंबल में सो गया.

अगले दिन वह मसूरी के माल रोड पर खड़ा था. लेकिन पता चला आज वहां टैक्सी व बसों की हड़ताल है.

‘ओफ, इस हड़ताल को भी आज ही होना था,’ श्रीनिवास अभी सोच में पड़ा ही था कि एक टैक्सी वाला उस के पास आ कानों में फुसफुसाया, ‘साहब, कहां जाना है.’

‘अरे भाई, मसूरी घूमना था लेकिन इस हड़ताल को भी आज होना था.’

‘कोई दिक्कत नहीं साहब, अपनी टैक्सी है न. इस हड़ताल के चक्कर में अपनी वाट लग जाती है. सरजी, हम आप को घुमाने ले चलते हैं लेकिन आप को एक मैडम के साथ टैक्सी शेयर करनी होगी. वे भी मसूरी घूमना चाहती हैं. आप को कोई दिक्कत तो नहीं,’ ड्राइवर बोला.

‘कोई चारा भी तो नहीं. चलो, कहां है टैक्सी.’

ड्राइवर ने दूर खड़ी टैक्सी के पास खड़ी लड़की की ओर इशारा किया.

श्रीनिवास ड्राइवर के साथ चल पड़ा.

‘हैलो, मैं श्रीनिवास, दिल्ली से.’

‘हैलो, मैं मनामी, लखनऊ से.’

‘मैडम, आज मसूरी में हम 2 अनजानों को टैक्सी शेयर करना है. आप कंफर्टेबल तो रहेंगी न.’

‘अ…ह थोड़ा अनकंफर्टेबल लग तो रहा है पर इट्स ओके.’

इतने छोटे से परिचय के साथ गाड़ी में बैठते ही ड्राइवर ने बताया, ‘सर, मसूरी से लगभग 30 किलोमीटर दूर टिहरी जाने वाली रोड पर शांत और खूबसूरत जगह धनौल्टी है. आज सुबह से ही वहां बर्फबारी हो रही है. क्या आप लोग वहां जा कर बर्फ का मजा लेना चाहेंगे?’

मैं ने एक प्रश्नवाचक निगाह मनामी पर डाली तो उस की भी निगाह मेरी तरफ ही थी. दोनों की मौन स्वीकृति से ही मैं ने ड्राइवर को धनौल्टी चलने को हां कह दिया.

गूगल से ही थोड़ाबहुत मसूरी और धनौल्टी के बारे में जाना था. आज प्रत्यक्षरूप से देखने का पहली बार मौका मिला है. मन बहुत ही कुतूहल से भरा था. खूबसूरत कटावदार पहाड़ी रास्ते पर हमारी टैक्सी दौड़ रही थी. एकएक पहाड़ की चढ़ाई वाला रास्ता बहुत ही रोमांचकारी लग रहा था.

बगल में बैठी मनामी को ले कर मेरे मन में कई सवाल उठ रहे थे. मन हो रहा था कि पूछूं कि यहां किस सिलसिले में आई हो, अकेली क्यों हो. लेकिन किसी अनजान लड़की से एकदम से यह सब पूछने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था.

चार रोटियां : ललिया के आंचल की चार रोटियां – भाग 3

राजू चीख रहा था. पुलिस  वालों की मंशा उसे समझते देर नहीं लगी. राजू अपना सामान वहीँ छोड़ कर जीप के पीछे दौड़ रहा था…बेतहाशा…पागलों की तरह. पर भला एक थके हुए आदमी के पैरों और एक जीप का क्या मुकाबला. कुछ देर बाद राजू सड़क पर ही गिर गया,  बेहोश हो गया. वह  कितनी देर बेहोश रहा, उसे नहीं पता.

पीछे से आते मजदूरों के जत्थे ने उसे उठाया और पानी आदि पिलाया. होश में आते ही राजू ललिया…ललिया कह कर चिल्लाते हुए वहां से तेज़ी से चल दिया.

राजू अब खाली  हाथ था. उसे अपने सामान की फ़िक्र नहीं थी. उसे तो अपनी ललिया की चिंता थी. उस की चिंता तब दूर हुई जब उस ने ललिया को सड़क के किनारे अपने पैरों में सिर डाल कर बैठे  देखा.

“का हुआ ललिया,” राजू ने ललिया के कंधे पकड़ कर हुए कहा.

ललिया का चेहरा आंसुओं से भीगा हुआ था. उस के बदन पर खरोंच के निशान थे.

राजू ने ललिया को अपने सीने में भींच लिया. न यहां किसी प्रश्न की गुंजाइश थी और न ही किसी उत्तर की. ललिया की सिसकियों ने ही सबकुछ बयां कर दिया था.

राजू की बेटी भी रोए जाती थी. शायद कुछ गलत हुआ है, इस का एहसास उस को भी हो गया था.

राजू और ललिया का अब सबकुछ लुट चुका  था. पीछे जाते न बनता था. और आगे जाने की शक्ति नहीं बची थी. पर फिर भी आगे बढ़ने के अलावा कोई चारा न था. किसी से कुछ कहने से कुछ होने वाला भी  न था. राजू अच्छी तरह जानता था कि किसी थाने में रिपोर्ट लिखाने से और भी परेशानी हो सकती है, इसलिए इस दुर्घटना को राजू ने भूल जाना ही उचित समझा. तभी ललिया की नज़र सड़क पर लगे एक सरकारी नल पर गई. ललिया राजू से हाथ छुड़ा कर नल पर गई और उसे चलाने लगी और जब पानी की धार बह निकली तो अपने शरीर को उस के नीचे कर दिया और रगड़रगड़ कर अपने  को धोने लगी. उस की आंखों में गुस्सा और लाचारी के भाव आजा रहे थे.

राजू ने इस समय ललिया को रोका नहीं. वह भीगी आंखों से सब देखता रहा. गरीब और बेजबान जानवर में कोई अंतर नहीं होता. जिस तरह जानवर का मन हो न हो पर मालिक के चाहने पर उसे काम में लगना ही पड़ता है वैसा ही मज़दूर होता है. उस का अपना कोई मन नहीं होता. वह तो, बस, जीता रहता है पिसने और मरने के लिए.

राजू और ललिया के सामने गांव जाने के अलावा कोई चारा नज़र न आता था, इसलिए वे बस चले जाते थे. उन के पास का खाना खत्म हो गया था. आगे कुछ मज़दूर बैठे हुए खाना खा रहे थे. उन्होंने राजू और ललिया की आंखों में लाचारी देखी तो एक कागज में 4 रोटी और नमक लपेट कर मुनिया बेटी को पकड़ाते हुए बोले, “ले लो बिटिया, गांव अभी दूर है. जब भूख लगे तब इसे खा लेना.”

बेटी ने वो रोटियां ललिया की तरफ बढ़ा दीं. ललिया ने रोटियों को आंचल में बांध लिया यह सोच कर कि आगे राह में जब बेटी को भूख लगेगी तब इसे खिला देंगे. पर  बिटिया को भूख लगना तो दूर, उसे उलटी ज़रूर हो गई. उसे बुखार चढ़ आया था. राजू के पास दवा नहीं थी. आसपास कोई दवाखाना भी नहीं दिखता था. अब पैदल चलना  भी मुहाल हो रहा था. राजू को शहर से निकले हुए पूरे 2 दिन हो गए थे और इन 2 दिनों में उसे परेशानी के अलावा कुछ नहीं मिला था. सरकार की तरफ से कई वादे किए जा रहे थे पर वे सिर्फ टीवी पर और कागजों पर ही थे. जनपलायन करने वालों के लिए तो ज़मीनी हकीकत कुछ और ही थी.  न ही इन मज़दूरों के लिए खाना था और न ही पानी. अलबत्ता, उन पर राजनीति जम कर हो रही थी.

रात हुई, तो राजू ने फिर  डेरा डाल दिया. पास में चार रोटियां थीं. पर बेटी की हालत देख कर निवाला किसी के गले से नीचे नहीं उतरा. बेटी आंख न खोलती थी. कहीं से कोई मदद नहीं थी. सुबह हुई तो बेटी का शरीर में से ताप पूरी तरह जा चुका था. उस का शरीर बर्फ हो चुका था. बिटिया की मृत्यु पर राजू और पत्नी चीख कर रो भी नहीं पा रहे थे. शरीर में थकान ने अपना डेरा बना लिया था. अभी कल ही तो उन की बेटी साथ में थी और आज नहीं है. इस कोरोना ने तो राजू से उस का सबकुछ ही छीन लिया था.

बिटिया की मृतदेह सामने थी. रोने से काम नहीं चलने वाला था. राजू ने अपने अंदर के पुरुष के साहस को जगाया. “हमें  बेटी की देह को ज़मीन में दबाना होगा,” राजू ने कहा.

सड़क के किनारे कच्ची ज़मीन थी. पर हाथ से मिट्टी न खुदती थी. राजू की जेब में कैंची और उस्तरा था. उस ने कैंची निकाली और गड्ढा करने लगा. अभी राजू काम में लगा ही था कि चारपांच लोग गले में गमछा डाले हुए आ गए, जो शायद छुटभैये नेताटाइप के थे. “ए, यह क्या कर रहा है ?”

“साहब, बिटिया के शव का संस्कार कर रहा हूं.”

“हां, पर कोरोना से मरे हुए मरीजों को दबाने से तो तुम हमारे भी गांव में कोरोना फैला दोगे. इसे दबाओ नहीं, बल्कि इसे जला दो.”

“नहीं सरकार, यह तो बुखार से मरी है, कोरोना से नहीं,” राजू लाचारी से कह रहा था

“ झूठ बोलता है, साफ़साफ़ क्यों नहीं कहता कि तेरे पास क्रिया के  पैसे नहीं हैं. पर बिना अंतिमक्रिया के तो आत्मा भटकती रहेगी. ठीक है भाई, हम इतने बुरे नहीं है. अगर तू नहीं कर पा रहा है तो हम ही इस को अग्नि दे देते हैं,” इतना कह कर एक लड़का अपने साथ लाई हुई मोटरसाइकिल से पैट्रोल निकालने लगा. पैट्रोल निकाल कर उस नन्ही जान के शव पर छिड़क
दिया.

और इससे पहले कि राजू और ललिया कुछ समझ पाते, एक लड़के ने जलती हुई माचिस की तीली बेटी के शव की तरफ उछाल दी. भक की आवाज़ के साथ शरीर जलने लगा. उधर शव जल रहा था, इधर राजू और ललिया के कलेजे में आग जल रही थी.

“ले भाई हो गया अंतिम संस्कार तेरी लड़की का. अब हमें आशीर्वाद देना कि हम ने तुम्हारी मदद की है. वैसे, कौन से गांव जाना है तुम्हें ?”

“बिजुरिया,” बड़ी मुश्किल से ही बोल पाया था राजू.

“हां, तो बिजुरिया, यहां से क्यों जा रहे हो? वह देखो, उस तरफ रेल की जो पटरी जा रही हैं न, वह सीधे तुम्हारे गांव होते हुए जाएगी. वहां से जाओ, जल्दी पहुंच जाओगे,” उन में से एक बोला.

नन्ही बेटी का शव अब भी जल रहा था. पुलिस की गाड़ियों की गश्त सड़कों पर तेज़ हो चली थी. राजू ने ललिया का हाथ पकड़ा और बेटी को अधजला छोड़ कर वहां से रेलपटरी की तरफ चल दिया.

राजू और ललिया के दिमाग पूरी तरह से शून्य थे. उन की आंखों में रेल की पटरियां ही दिख रही थीं. आगे चलने पर, कुछ मज़दूर और मिल गए. “सुनो, हम सब का मकसद अपनेअपने गांव पहुंचना है. अब रात होने वाली है. सब लोग यहीं आराम करो. भोर होते ही हम फिर चलेंगे,” एक मज़दूर बोला और सब वहीँ पटरियों पर बैठ गए.

राजू ने ललिया की तरफ देखा. अभी कुछ दिनों पहले ही तो दोनों अपनी ज़िंदगी में कितने बेफिक्र और खुश थे. सैलून खोलने की तैयारी और बेटी के भविष्य के सपनों को कोरोना संकट ने रौंद दिया था. अब कल क्या होगा, न ही राजू को समझ आ रहा था और न ही ललिया को.

दोनों ने पानी पिया और वहीँ रेल की पटरी पर सिर रख लिया और आंखें मूंद लीं. उन्हें  कब थकान से नींद आ गई और वे कब सो गए, यह कोई नहीं जानता. हां, अगली सुबह लोग इतना ही जान पाए कि मालगाड़ी ने पटरी पर सोए हुए मजदूरों को रौंद दिया. उन के कटे हुए शरीर एक ओर पड़े हुए थे.

कुछ ही दूरी पर राजू का उस्तरा और कैंची बिखरे हुए थे. पास ही पड़ी थीं ललिया के आंचल में बंधी हुई चार रोटियां.

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