करमवती- भाग 3 : राजपाल प्लंबर कहा गिरा था

उस ने ओपन यूनिवर्सिटी से 2 साल में बीऐड भी कर लिया. जिस दिन उस का बीऐड का नतीजा आया, उस दिन मैं ने खुशी से महल्ले में मिठाई बांटी. उस की कामयाबी मेरी कामयाबी थी. ‘‘करमवती के स्कूल की प्रबंधन समिति ने उस से पहले ही बोल दिया था कि अगर उस ने बीऐड कर लिया, तो वे उस की नियुक्ति प्रवक्ता के पद पर कर देंगे और इंटर की क्लास पढ़ाने के लिए दे देंगे.

उस का यह सपना भी पूरा हो गया. उसी दिन हम ने अपने मकान की बुनियाद रख दी और कुछ महीने बाद उस में शिफ्ट हो गए.’’ ‘‘बड़े कमाल की कहानी है राजपाल तुम्हारी. शराब पीते रहते तो कहीं गटर में होते या फिर किसी हादसे का शिकार हो जाते. करमवती ने तुम्हें दोनों ही चीजों से बचा लिया.’’ ‘‘बाबूजी, अभी मैं ने आप को नाली में पड़े होने से ले कर अब तक 13 साल की कहानी सुनाई है. अभी और भी साल बाकी हैं. कहो तो वह भी सुना दूं.’’ मैं ने कहा, ‘‘जरूर सुनाओ. ऐसी कामयाबी की कहानी कौन नहीं सुनना चाहेगा.’’ ‘‘बाबूजी, करमवती ने निश्चय किया कि वह सरकारी नौकरी करेगी.

2 साल उस ने कड़ी मेहनत की. किताब बाद में लाती, चट पहले कर जाती. फिर पता क्या हुआ बाबूजी?’’ ‘‘क्या हुआ राजपाल? बताओ.’’ ‘‘पिछले महीने उसे सरकारी नौकरी का नियुक्तिपत्र मिला. धामपुर के बालिका कालेज में वह प्रवक्ता हो गई. बाबूजी, 30,000 की पगार से 70,000 की पगार पर,’’ यह कहतेकहते राजपाल भावुक हो गया. उस के औजार रुक गए. वह अपने आंसू पोंछने लगा, ‘‘पता है बाबूजी, अब वह क्या कहती है?’’ राजपाल की बात सुन कर अब मैं असमंजस में पड़ गया. किसी फिल्मी कहानी की तरह मैं उस की कहानी सुन रहा था.

मुझे लगा कि किसी फिल्मी कहानी की तरह करमवती कामयाबी के शिखर पर चढ़ कर राजपाल को अपने लायक न समझ कर उसे छोड़ने की बात करने लगी होगी. मैं अब राजपाल के मुंह से बद से बदतर बात सुनने को तैयार था. करमवती मुझे कहानी की खलनायिका नजर आने लगी. मेरी पूरी हमदर्दी राजपाल के साथ थी. मुझे लगा कि उस के आंसू खुशी के नहीं दुख के थे. मैं ने पूछा, ‘‘क्या कहती है अब करमवती? क्या तुम अब उस के लायक नहीं रहे?’’ ‘‘नहीं बाबूजी, आप यहां गलत सोच रहे हैं.’’ फिर उस ने बड़े गर्व से आगे की कहानी सुनाई, ‘‘अब करमवती कहती है कि मुझे अब इन औजारों का थैला उठाने की जरूरत नहीं है. वह कहती है कि वह जल्दी ही मुझे प्लंबरी के सामान की बड़ी सी दुकान खुलवाएगी. उस दुकान से भी बड़ी, जिस दुकान के लालाजी ने आप को मेरे पास भेजा था.

‘‘वह कहती है कि यह तो अभी हमारी नई जिंदगी की शुरुआत?है, आगेआगे देखो क्या होता?है.’’ राजपाल का काम लगभग खत्म होने को था, तभी उस के घर से फोन आया. उस ने बताया कि उस का काम खत्म होने ही वाला है. जब राजपाल का काम खत्म हो गया, तो मैं ने उस का हिसाब कर दिया. तभी घर के सामने एक कार आ कर रुकी. ड्राइविंग सीट पर कोई औरत बैठी थी और पिछली सीट पर 2 बड़े बच्चे. मुझे लगा कि कोई मेहमान आया है. तभी पिछली सीट से बड़ा लड़का नीचे उतरा. उस ने मुझे नमस्ते की और राजपाल का औजारों का थैला हाथ से पकड़ते हुए कहा, ‘‘लाओ पापा, यह मुझे दो.’’ मुझे समझते देर न लगी कि कार किस की है. तभी राजपाल बोला,

‘‘बाबूजी, यही है मेरी करमवती. और ये हैं हमारे बच्चे.’’ करमवती ने कार से उतर कर मुझे नमस्ते की. उस की आंखों में अथाह आत्मविश्वास था. ‘‘करमवती, ये वही बाबूजी हैं, जिन्होंने मुझे नाली में से खींचा था.’’ ‘‘मैं उस बात के लिए आज भी बाबूजी की एहसानमंद हूं,’’ करमवती ने हाथ जोड़ते हुए सिर झुका कर कहा. ‘‘अच्छा बाबूजी नमस्ते,’’ राजपाल ने कार की अगली सीट पर बैठते हुए कहा. ‘‘नमस्ते,’’ मैं ने कहा. उस के बाद करमवती ने कार आगे बढ़ा दी. मैं हैरानी से उस कार को तब तक आगे बढ़ते देखता रहा, जब तक वह मेरी आंखों से ओझल नहीं हो गई. मैं सोच रहा था, ‘समझदारी और हौसला हो, तो आदमी आसमान छू सकता है. करमवती कामयाबी की मिसाल है.’

करमवती- भाग 2 : राजपाल प्लंबर कहा गिरा था

‘‘मेरी घरवाली करमवती ने जैसेतैसे हाथ जोड़ कर मकान मालिक को मनाया. वह इस शर्त पर राजी हुआ कि अगर उस दिन के बाद मैं शराब पी कर आया, तो वह किसी सूरत में फिर अपने मकान में नहीं रखेगा.’’ ‘‘लेकिन, तुम शराब पीने से बाज तो नहीं आए होगे राजपाल?’’ मैं ने ताना कसा. ‘‘बाबूजी, मैं शर्मिंदा तो बहुत था, लेकिन आप को क्या बताऊं, हम शराबियों को शराब पीने की ऐसी आदत पड़ जाती है कि कितना भी चाहें पीए बिना रहा नहीं जाता. हम मजदूरों की क्या इज्जत और क्या बेइज्जती. लेकिन बाबूजी, करमवती को यह सब बरदाश्त न हुआ…’’

राजपाल काम करता गया और कहानी को आगे बढ़ाता गया. ‘‘अगले दिन मेरी हिम्मत काम पर जाने की नहीं हो रही थी, लेकिन करमवती ने मेरा हौसला बढ़ाया. उस ने एक हाथ में बच्चे को गोद में लिया और दूसरे हाथ में मेरे औजारों का थैला उठाया और कहा, ‘चलो.’ ‘‘मैं उसे ऐसा करते देख हैरान था. मैं ने उस से औजारों वाला थैला ले लिया. लेकिन उस ने काम पर मुझे अकेले न जाने दिया. मेरे लाख मना करने के बावजूद वह मेरे साथ चल दी. ‘‘काम में उस ने मेरी मदद की और शाम को काम निबटा कर मेरे साथ ही घर वापस आई. शराबी दोस्तों से मिलने के उस ने रास्ते बंद कर दिए. ‘‘वह अब रोज मेरे साथ काम पर जाने लगी. काम में वह मेरी पूरी मदद करती. अब मेरा 8 घंटे का काम 5-6 घंटे में निबटने लगा. इस से मैं ने अपना काम और बढ़ा लिया, जिस से मेरी आमदनी बढ़ने लगी. ‘

‘आप को तो मालूम होगा ही बाबूजी कि हम मजदूर तबके के लोग शाम को मजदूरी करने के बाद थकान मिटाने के बहाने शराब पीने बैठ जाते हैं और फिर पीने की कोई हद नहीं होती. दिनभर की कमाई मिनटों में स्वाहा हो जाती है. ‘‘कभीकभी तो इस चक्कर में एक पैसा भी घर नहीं पहुंचता, बल्कि कई बार तो उधारी और चढ़ जाती है. लेकिन करमवती के साथ होने से ये सब चीजें बंद हो गईं. ‘‘शराब पीने की फुजुलखर्ची घटी तो बचत अपनेआप बढ़ गई. बचत किसे खुशी नहीं देती. मैं मजदूरी का पैसा करमवती को देता. वह घर चलाती और बचत का पैसा अपने खाते में जमा कर आती. घर में अच्छा खाना, पहनना होने लगा. मेरे शराबी दोस्त मुझे ताना मारते ‘जोरू का गुलाम’, पर मैं एक कान से सुन कर दूसरे कान से निकाल देता.’’ ‘‘अच्छा, फिर तो करमवती ने तुम्हारी जिंदगी बदल दी, लेकिन आज तुम करमवती को ले कर नहीं आए?’’ मैं ने पूछा. ‘‘बाबूजी, आगे तो सुनिए. अभी तो मेरी कहानी शुरू हुई है. करमवती भी आएगी, जरूर आएगी.’’ राजपाल ने अपनी कहानी फिर आगे बढ़ा दी.

‘‘बाबूजी, करमवती से जब मेरी शादी हुई, तब वह 8वीं पास थी. वह और पढ़ना चाहती थी, लेकिन उस के गरीब मांबाप ने उस की पढ़ाई रोक कर घर के कामकाज में झोंक दिया और फिर उसे मेरे पल्ले बांध दिया. ‘‘फिर वह और 3 साल मेरे साथ ऐसे ही घिसटती रही. तब उस के मन में आगे पढ़ने का विचार आया. उस ने 10वीं का प्राइवेट फार्म भरा और वह अच्छे नंबरों से पास हो गई. हमारा बच्चा भी अब 3 साल का हो गया था और हमारी शादी को 5 साल. ‘‘अब तक मेरी समझ में यह आ गया था कि शराब कितनी बुरी चीज होती?है. हम मजदूरों के लिए तो यह किसी जहर से कम नहीं. ‘‘गरीब मजदूर सोचता है कि वह शराब पी कर अपने दुख मिटा रहा होता है, लेकिन सच तो यह है बाबूजी, शराब पी कर वह अपने दुख बढ़ा रहा होता है. वह शराब पी कर तबाह होता है और गरीबी के नरक में सड़ता है. करमवती की वजह से मैं उस नरक में सड़ने से बच गया.’’ ‘‘राजपाल, तुम्हारी कहानी रोचक है. आगे बताओ, फिर तुम्हारी जिंदगी में क्या हुआ?’’ मैं ने पूछा.

‘बाबूजी, करमवती को अब यकीन हो चला था कि अब मैं शराब नहीं पीऊंगा, तो उस ने मेरे साथ जाना छोड़ छोटे बच्चों को ट्यूशन पढ़ाना शुरू कर दिया. इस से हमारी आमदनी और भी बढ़ गई. अब हम ने 2 कमरों का मकान किराए पर ले लिया. एक कमरे में करमवती ट्यूशन पढ़ाती और दूसरे कमरे में हम रहते. ‘‘लेकिन बाबूजी, करमवती का पढ़ाई का शौक अभी छूटा नहीं था. 2 साल में उस ने 12वीं भी पास कर ली. अब उस के पास इतने ट्यूशन हो गए कि घर का खर्चा ट्यूशन की आमदनी से आराम से चलने लगा. मेरी कमाई बैंक में जमा होने लगी. ‘‘ट्यूशन के बच्चों के सामने मुझे बीड़ी पीना अच्छा नहीं लगता था, तो मैं ने वह भी छोड़ दी. चाय की लत भी बहुत बुरी थी. मैं ने ठान लिया और फिर चाय पीना भी छोड़ दिया.’’ ‘‘वाह राजपाल. इतना सुधार, ऐसा निश्चय.’’ ‘‘बाबूजी, बस उस करमवती की करामात है.’’ ‘‘तो अब तो ट्यूशन वगैरह काफी अच्छी चल रही होगी और तुम्हारी बचत भी अच्छी हो रही होगी?’’ राजपाल फिर अपनी जिंदगी की कहानी सुनाने लगा और मैं भी बड़ी दिलचस्पी के साथ मगन हो कर उस की कहानी सुनने लगा. ‘‘फिर करमवती ने पहले बेटे के जन्म के 5 साल बाद एक बेटी को जन्म दिया और फिर नसबंदी करा ली. उस ने कहा,

‘छोटा परिवार, सुखी परिवार. हम इन 2 बच्चों की परवरिश ठीक से करेंगे. और बच्चों की जरूरत नहीं.’ ‘‘बाबूजी, आप भी सुन कर हैरान होंगे, करमवती ने 3 साल में बीए भी कर लिया और वह एक प्राइवेट स्कूल में मास्टरनी हो गई. बाबूजी, पूछो मत. जिस दिन करमवती स्कूल में मास्टरनी हुई, उस दिन मैं खुशी से रो पड़ा था. लोग उस दिन से मुझे ‘मास्टरनी का हसबैंड’ कहने लगे. ‘‘गरीब आदमी की आमदनी में दो पैसे बढ़ जाएं, तो उस से बड़ा सेठ कौन. यहां तो लोग अब इज्जत से भी पेश आने लगे थे.’’ ‘‘अरे वाह, ‘मास्टरनी के हसबैंड’ तुम्हारी करमवती ने तो कमाल ही कर दिया. उस के साथ तुम भी पढ़ लेते,’’ मैं ने कहा. ‘‘बाबूजी, करमवती यहीं नहीं रुकी. उस ने एमए भी पास किया और फिर तो वह इंटर कालेज में पढ़ाने लगी. अब हमारी इतनी बचत हो चुकी थी कि हम ने महल्ले में ही 100 गज का प्लौट खरीद लिया. हमारे बच्चे अच्छे स्कूल में पढ़ने लगे. ‘‘बच्चों को बनठन कर स्कूल जाते देखता, तो मेरा कलेजा खुशी से चौगुना हो जाता. मैं और मेहनत करता. करमवती मेरी मेहनत को सलाम करती, मेरा हौसला बढ़ाती. ‘‘लेकिन बाबूजी, करमवती तो रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी.

 

मुंहबोली बहनें

मुंहबोली बहनें- भाग 2 : रोहन ने अपनी पत्नी को क्यों दे डाली धमकी

‘‘हां, जैसे मुझे समझ में नहीं आता कि आप क्यों उन का काम करते हैं. उन पर अच्छा प्रभाव डालने के लिए भला इस से अच्छा मौका और कहां मिलेगा आप को.’’ ‘‘अब तुम ही बताओ मम्मा, इस चुहिया की कुछ सहेलियां मेरे पास आ कर कहती हैं, प्लीज रोहन भैया, हमारा फलां काम करवा दीजिए तो मैं भला कैसे मना कर सकता हूं उन्हें? जब उन्होंने मुझे भैया कह दिया तो मेरी मुंहबोली बहनें हो गईं न और बहनों के प्रति भाई की कुछ जिम्मेदारी बनती है कि नहीं? और कुछ कहती हैं, ‘रोहनजी, प्लीज हमारा फलां काम… रोहनजी प्लीज’ कहने वालों के प्रति तो मेरी जिम्मेदारी और भी बढ़ जाती है कि न जाने भविष्य में इन में से किस के साथ मेरा रिश्ता जुड़ जाए, इसलिए उन के काम तो मैं अपनी तथाकथित बहनों के काम से भी ज्यादा रुचि और मन से करता हूं.’’

‘‘रोहन, तू सचमुच बिगड़ रहा है, जरूरत से ज्यादा नटखटपन अच्छी बात नहीं है, सोनाली तेरी बहन है तो इस की सहेलियां भी तेरी छोटी बहन ही हुईं. तुझे हरएक के साथ तमीज से पेश आना चाहिए,’’ ताईजी उन्हें समझाते हुए बोलीं. ‘‘मम्मा, अब आप भी सोनाली की भाषा न बोलिए. जिस ने मुझे भैया कह दिया वह तो मेरे लिए सोनाली के ही समान हो जाती है पर जो खुद ही मुझे भैया न कहना चाहे, ‘रोहनजी प्लीज…’ कहे तो वहां मैं नटखट कैसे हो गया? नटखट तो वह हुई न?’’

मुझे पता था कि रोहन भैया से बहस में जीतना असंभव है. उन की वाक्पटुता ने ही तो उन के व्यक्तित्व में चार चांद लगा कर उन्हें हमारे कालेज का हीरो बना कर मेरे लिए मुसीबत खड़ी कर दी थी. कालेज में उन के चाहने वालों की एक लंबी कतार है.

इसीलिए बहुत सी युवतियां मुझे पुल बना कर उन तक पहुंचने की कोशिश में किसी न किसी बहाने मेरे आगेपीछे लग कर मेरा जीना मुश्किल करती रहती हैं. फिर जिन को रोहन भैया थोड़ा भी भाव दे देते हैं, वे तो तारीफों के पुल बांध कर उन्हें आकाश पर बैठा देतीं और जिन पर उन की नजरें इनायत नहीं होतीं वे उन में दस दोष निकाल देती हैं, मेरे लिए दोनों ही तरह की बातें सुनना बरदाश्त के बाहर हो जाता है और कई बार अनायास ही मैं लड़कियों से बहस कर बैठती हूं. ‘‘रोहन भैया, कालेज तक तो ठीक था पर अब तो आप ने मेरी सहेलियों के घर के चक्कर काटना और उन के घर जाना भी शुरू कर दिया है. आखिर क्या चाहते हैं आप?’’ सोनाली ने नाराजगी जाहिर करते हुए कहा.

‘‘ऐ छिपकली, तेरी कौन सी सहेली हूर की परी है जिस के घर के चक्कर मैं काटने लगा. जरा मैं भी तो सुनूं,’’ रोहन भैया अपनी हेकड़ी जमाते हुए बोले. ‘‘कल अनाइका के घर नहीं गए थे आप?’’ मैं ने खा जाने वाली नजरों से उन्हें घूरा.

‘‘अच्छा जिस के घर कल मैं गया था, उस का नाम अनाइका है? तब तो निश्चय ही वह हूर की परी होगी. अच्छा किया तुम ने मुझे बता दिया. अब कल उसे कालेज में गौर से देखूंगा,’’ कह कर रोहन भैया जोरजोर से हंसने लगे. ‘‘हद हो गई रोहन भैया, आप की बेशर्मी की,’’ मैं ने भी चिढ़ कर अपनी मर्यादा की सीमा लांघते हुए कहा.

‘‘देख सोनाली, मैं तेरी बात को हंस कर टाल रहा हूं तो इस का मतलब यह नहीं कि तू जो मन में आए बोलती जाए और एक बात साफसाफ सुन ले, मैं नहीं गया था किसी अनाइका के घर का चक्कर काटने. मैं अपने दोस्त संवेग के घर गया था. तेरी उस हूर की परी का घर भी वहीं था, उस ने मुझे देख कर अपने घर आने को कहा तो मैं चला गया. इस में मेरी क्या गलती है?’’ ‘‘आप की गलती यही है कि आप उस के घर गए. उस ने आप को बुलाया या आप वहां गए, मैं नहीं जानती पर आप का अनाइका के घर जाना ही आज कालेज में दिन भर चर्चा का विषय बना रहा था.

सब बोल रहे थे कि अनाइका और रोहन के बीच कुछ चल रहा है. आप सोच भी नहीं सकते कि यह सब सुन कर मेरा दिमाग कितना खराब होता है. रोज किसी न किसी के साथ आप का नाम जोड़ा जाता है. मुझे लग रहा था अब आप सुधर रहे हैं कि तभी अनाइका का नाम लिस्ट में जुड़ गया.’’

 

मुंहबोली बहनें- भाग 1 : रोहन ने अपनी पत्नी को क्यों दे डाली धमकी

आज अनाइका के मुंह से यह सुन कर कि कल रोहन भैया उस के घर गए थे, मेरा दिमाग खराब हो गया. मैं ने मन ही मन तय किया कि आज कालेज से सीधा ताईजी के घर जाऊंगी और रोहन भैया की अच्छी खबर लूंगी. नाक में दम कर रखा है भैया ने अपनी हरकतों से. लाख बार समझा चुकी हूं उन्हें, पर उन के कान पर जूं तक नहीं रेंगती.

अपनी इज्जत का तो फालूदा बना ही रहे हैं साथ ही मेरी भी छीछालेदर करवा रहे हैं. कालेज में सारा दिन मैं तमतमाई सी ही रही और कालेज छूटते ही मैं ने अपनी स्कूटी ताईजी के घर की ओर मोड़ ली. ताईजी मुझे देख कर बहुत खुश हुईं, ‘‘अरे सोनाली, तू इस समय? लगता है सीधा कालेज से ही आ रही है, तब तो तुझे भी जोर की भूख लगी होगी. चल, फटाफट हाथमुंह धो कर आ जा, मैं रोहन का खाना ही लगाने जा रही थी, वह भी बस अभीअभी कालेज से आया है.’’

‘‘ताईजी, खाना तो आप रोहन भैया को ही खिलाइए, मैं तो आज उन का खून पी कर ही अपना पेट भरूंगी,’’ कह कर मैं धड़धड़ाती हुई रोहन भैया के कमरे में घुस गई. ‘‘अरे मम्मा, आप ने इस भूखी शेरनी को मेरे कमरे में क्यों भेज दिया? यह तो लगता है मुझे कच्चा ही चबाने आई है,’’ मेरे तेवर और हावभाव देख कर रोहन भैया पलंग और कुरसी लांघते हुए भाग कर किचन में ताईजी की बगल में आ खड़े हुए.

‘‘ताईजी, आप रोहन भैया को समझा दीजिए, मेरा दिमाग और खराब न करें वरना मैं या तो इन्हें जान से मार डालूंगी या खुद आत्महत्या कर लूंगी, पक गई हूं मैं इन की हरकतों से.’’ ‘‘बहन, तू मुझे मारने का आइडिया दिमाग से निकाल दे, उस में काफी प्लानिंग की जरूरत पड़ेगी, ऐसा कर तू ही आत्महत्या कर ले, वही तेरे लिए सरल और परिवार के लिए कम दुखद होगा. मेरे पीछे क्यों पड़ी है तू? और हां, तुझे रस्सी, चूहा मारने की दवा या रेल समयसारिणी जो भी चाहिए बता देना, मैं सब उपलब्ध करा दूंगा. मेरे होते हुए तू भागदौड़ न करना,’’ रोहन भैया ने ऐसा कह कर मेरे गुस्से की आग में 4 चम्मच घी और उड़ेल दिए.

‘‘देखा ताईजी, कैसा जी जलाते हैं, भैया. आप भी इन्हें कुछ नहीं कहतीं इसीलिए तो बिगड़ते जा रहे हैं.’’ ‘‘हुआ क्या है, पहले तू मुझे कुछ बताए, तब तो मैं समझूं. तू तो जब से आई है बस, खूनखराबे की ही बातें किए जा रही है. मैं कुछ समझूं तब तो कुछ बोलूं,’’ ताईजी हंसते हुए बोलीं.

‘‘ताईजी, आप इन्हें समझा दीजिए कि मेरी सहेलियों का पीछा करना छोड़ दें,’’ सोनाली गुस्से से बोली. ‘‘ओए कद्दू, कौन करता है तेरी सहेलियों का पीछा? वही मेरे पीछे पड़ी रहती हैं. कोई कहती है, ‘रोहनजी, प्लीज मेरा लाइब्रेरी कार्ड बनवा दीजिए, रोहन भैया काउंटर पर बड़ी लंबी कतार लगी है, आप प्लीज मेरी फीस जमा करा दीजिए,’ अब कोई इतने प्यार से विनती करे तो मैं कोई पत्थर दिल तो हूं नहीं, जो पिघलूं न? छोटेमोटे काम कर देता हूं. क्या करूं मेरा दिल ही कुछ ऐसा है, किसी को मना कर ही नहीं पाता हूं,’’ अपनी विवशता बताते हुए रोहन बोला.

 

बंधन टूट गए : भाग 2

पर कालिंदी उस की बात ही नहीं मान रही थी, मानो वह अपने बाड़े से निकलना ही नहीं चाह रही हो. सुहानी देवी कुछ देर तक यह सब देखती रही, पर जब उस से नहीं रहा गया तो खुद उस नौजवान के पास गई और बोली, ‘‘तुम्हारा नाम क्या है और इसे क्यों घसीट रहे हो?’’ ‘‘मालकिन, मेरा नाम बातुल है. मालिक ने मुझे जानवरों की साफसफाई के लिए रखा है.’’ ‘‘यह क्या कर रहे हो?’’ उस नौजवान ने बड़े अदब से जवाब दिया, ‘‘दरअसल, कालिंदी ने इस रस्सी को अपने गले में उलझा लिया है. हम इसे बाहर ला कर इस के बंधन को सुलझाना चाहते हैं, पर यह है कि अपने फंदे में ही फंसी रहना चाह रही है. यह खुद भी परेशान है, पर फिर भी निकलना नहीं चाहती.’’ बातुल की बातें सुहानी देवी के कानों से टकराईं और सीधा उस के मन में उतरती चली गईं. ‘‘ठीक है, ठीक है… पर यह नाम बड़ा अजीब सा है, बातुल…’’ बोलते हुए हंस पड़ी थी सुहानी. बातुल ने बताया कि उसे बचपन से ही बहुत बोलने की आदत है,

इसलिए गांव में सब उसे ‘बातुल’ कह कर ही बुलाते हैं. बातोंबातों में बातुल ने यह भी बताया कि गांव वापस आने से पहले वह शहर में भी काम कर चुका है. बातुल के मुंह से शहर का नाम सुन कर सुहानी देवी के मन में जैसे कुछ जाग उठा था. बातुल के रूप में ठकुराइन को बात करने वाला कोई मिल गया था. ठाकुर भवानी सिंह के जाने के बाद सुहानी देवी अपनी सास से कुछ बहाना कर के हवेली की छत पर चली जाती और बातुल को काम करते देखती रहती और फिर खुद ही बातुल से कुछ न कुछ काम बताती. आज ठाकुर साहब सुबहसुबह ही शहर चले गए और बातुल को शाम के लिए मछली लाने को बोल गए. दोपहर में बातुल अपने कंधे पर मछली पकड़ने वाला जाल ले कर आता दिखा. उस में कई सारी मछलियां फंसी हुई थीं और तड़प रही थीं. बातुल ने जाल जमीन पर पटक दिया और सभी मछलियों को निकाल कर पास ही बने एक कच्चे गड्ढे में डाल दिया और उस में ऊपर तक पानी भर दिया, ताकि वे सब शाम तक जिंदा रहें और ठाकुर साहब के आने पर उन्हें पकाया जा सके.

सुहानी देवी ने देखा कि जो मछलियां अब तक पानी के बिना तड़प रही थीं, वे पानी पाते ही कितनी तेज तैर रही थीं मानो उन्होंने जिंदगी ही पा ली हो. सुहानी देवी अभी मछलियों को देख ही रही थी कि तेज बारिश शुरू हो गई. सुहानी देवी ने आवाज लगा कर बातुल को हवेली के अंदर आने को कहा और खुद बारिश का मजा लेने लगी. बारिश मूसलाधार हो रही थी. चारों तरफ पानी भर गया था और उस मछली वाले गड्ढे और बाहर आंगन में पानी का लैवल बराबर हो जाने के चलते गड्ढे की मछलियां जलधारा के साथ बाहर बह चली थी. यह सीन देख कर सुहानी देवी भूल गई थी कि वह एक ठकुराइन है. वह खुश हो कर ताली बजाने लगी और बातुल के कंधे पर हाथ रख दिया. एक ठकुराइन के छुए जाने के चलते एकसाथ कई सवाल बातुल की आंखों में तैर गए थे और उस की नसों में दौड़ते खून की तेजी में उतारचढ़ाव आने लगा था. बारिश रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी.

सुहानी देवी का मन किया कि वह बाहर आंगन में जा कर भीगे, अपने सारे गहने उतार कर नहाए, पर ठकुराइन की मर्यादा ने उसे रोके रखा था. ठाकुर शहर से वापस नहीं लौटेंगे, क्योंकि बारिश तेज है और बातुल को भी इसी वजह से आज हवेली में ही रुकना होगा. सास सो गई थीं. बातुल खाना खा कर हवेली के नीचे वाले हिस्से में सोने चला गया था. सुहानी देवी ने सोने से पहले अपने कमरे का दरवाजा जानबूझ कर क्यों खुला छोड़ दिया था, इस का जवाब खुद उस के पास भी नहीं था. उसी दरवाजे से दबे पैर कोई आया और सीधा सुहानी देवी से लिपट गया. वह भी किसी लता की तरह लिपट गई और फुसफुसाते हुए बोली, ‘‘कौन हो तुम?’’ ‘‘हां, जैसे तुम जानती नहीं…’’ उस की यह बात सुन कर सुहानी देवी ने बातुल का सिर अपने सीने के बीचोंबीच भींच लिया और दोनों सैक्स का मजा लेने लगे. एक बार, 2 बार… 3 बार… न जाने कितनी बार हवेली के उस कमरे में ज्वालामुखी का उबाल आया था. आज वहां ऊंचनीच और जातिधर्म की दीवार गिर गई थी. सुहानी देवी को बातुल से प्यार हो गया था. उस दिन के बाद से तो न जाने कितनी बार बातुल और सुहानी देवी ने अपने इस प्यार को भोगा था. अगले दिन सुहानी देवी फिर से भारी गहनों और कपड़ों में लदी हुई थी. बातुल आया, तो उस के एक हाथ में सांप की केंचुली थी.

‘‘यह क्या है?’’ सुहानी ने पूछा. ‘‘केंचुली है ठकुराइन… जब यह पुरानी हो जाती है, तो सांप इस में एक बंधन महसूस करता है और ठीक समय पर वह पुरानी केंचुली को उतार फेंक छुटकारे का अहसास करता है.’’ सुहानी देवी बातुल की बातों को सुन रही थी. उस के दिमाग में बंधन, मुक्ति जैसे शब्द लगातार गूंज रहे थे. 2 दिन बाद ठाकुर भवानी सिंह शहर से लौटे थे. वे सुहानी देवी के लिए सच्चे मोतियों का एक हार लाए थे. उन्होंने वह हार सुहानी देवी के गले में डाल दिया, पर उस के चेहरे को देखा तक नहीं. ठाकुर भवानी सिंह अपने चमचों के बीच बैठ कर रैडलाइट एरिया की बातें करते रहते. इस बार उन के मुंह से कुछ औरतों के नाम भी निकल रहे थे. एक अनजाने सौतिया डाह में जल उठी थी सुहानी देवी. ‘‘अगर गंदे एरिया में जा कर रासरंग ही करना था ठाकुर को तो फिर मुझ से ब्याह ही क्यों रचाया? मैं परंपरा निभाने और दिखावे के लिए मात्र एक गुडि़या की तरह हूं,’’ गुस्से की ज्वाला धधक उठी थी सुहानी देवी के मन में.

ठाकुर भवानी सिंह का शहर जा कर रैडलाइट एरिया में मजे करना बदस्तूर जारी रहा, पर अब सुहानी देवी को भी इस बात की कोई चिंता नहीं थी. उसे तो बातुल के रूप में एक प्यार करने वाला मिल गया था, जिस से वह अपने मन का हर दर्द कह सकती थी और उस की बांहों में अपने अंदर की औरत को महसूस कर सकती थी. पर, आज पूरे 3 दिन बीत गए थे, बातुल हवेली की दहलीज पर सलाम बजाने भी नहीं आया था. ‘कहीं कुछ गलत तो नहीं हो गया बातुल के साथ?’ सुहानी देवी का बेचैन मन बारबार हवेली के दरवाजे की तरफ देख रहा था. रात हो चली थी.

ठाकुर को तो आज आना नहीं था. बातुल से बात करने का मन कर रहा था, उस की खैरियत की भी चिंता हो रही थी. लिहाजा, सास के सो जाने के बाद सुहानी देवी पिछले दरवाजे से बाहर निकली और सीधा बातुल के घर के बाहर जा पहुंची. दरवाजा अंदर से बंद था, पर भीतर से बातुल की आवाज बाहर तक आ रही थी. सुहानी देवी ने दरवाजे की झिर्री से आंख सटा दी. अंदर का सीन देख कर वह दंग रह गई थी. बातुल किसी दूसरी औरत से मजे ले रहा था. ‘‘ठकुराइन ने मुझे बहुत मजा दिया, बहुत मस्त थी उस की जवानी… ठाकुर की रैडलाइट एरिया में मुंह मारने की आदत का मैं ने खूब फायदा उठाया…’’ ‘‘इस का मतलब… तुम नमकहराम हो. जिस थाली में खाया, उसी में छेद किया,’’ बातुल की बांहों में लेटी औरत ने कहा. ‘‘नहीं, मैं एक व्यापारी हूं… जिसे जो चाहिए था, मैं ने उसे वह दिया और फिर ठाकुर भी तो शहर में जा कर मुंह मारता है, तो मैं नमकहराम कैसे?’’

 

करमवती- भाग 1 : राजपाल प्लंबर कहा गिरा था

15साल पहले… उस समय मैं ने उसे एक शाम एक गंदी नाली में औंधे मुंह पड़े देखा था. उस ने इतनी दारू पी ली थी कि उसे कुछ होश न था. शराबी से आदमी वैसे ही घबराता है, इसलिए कोई उसे गंदी नाली में से भी खींचने को तैयार न था. तब मैं ने उस पर तरस खा कर और इनसानियत का फर्ज निभाते हुए नाली में से खींच कर सड़क पर डाल दिया था. किसी ने पैर से उसे सीधा किया. उस का चेहरा कीचड़ से सना हुआ था, फिर भी भीड़ में से हर कोई उसे पहचानने की कोशिश करने लगा. ‘‘अरे, यह तो राजपाल प्लंबर है. गली नंबर 8 वाला,’’ भीड़ में से एक ने चौंकते हुए कहा.

तब किसी ने जा कर राजपाल के घर सूचना दी. राजपाल की पत्नी अपने बच्चे को गोद में लिए दौड़ी चली आई थी. महल्ले वालों ने उस के कहने पर राजपाल को एक रिकशा में डाल कर उस के घर पहुंचाया था. उस दिन भीड़ में कोई ऐसा न था, जिस ने राजपाल को उस की इस हालत पर कोसा न हो और उस की पत्नी पर तरस न खाया हो. 15 साल पहले घटी इस घटना को मैं तकरीबन भूल चुका था, लेकिन जब प्लंबरी का सामान बेचने वाले लालाजी से मैं ने किसी प्लंबर का नंबर देने को कहा,

तो उन्होंने खुद फोन पर बात कर के कहा, ‘‘आप के महल्ले का ही राजपाल प्लंबर है. रामदीन हलवाई की दुकान के सामने वह मिल जाएगा. मैं ने बोल दिया है और यह उस का नंबर है.’’ ‘राजपाल’ कुछ सुनासुना सा नाम लग रहा था. फिर यह सोच कर कि राजपाल नाम के न जाने कितने लोग हैं, मैं मोटरसाइकिल उठा कर चल दिया. रामदीन हलवाई की दुकान के सामने जैसे ही मैं ने मोटरसाइकिल रोकी, तो एक आदमी मुसकराता हुआ मेरी ओर आया. मैं ने अंदाजा लगाया कि यही राजपाल होगा. ‘‘तुम्हारा चेहरा कुछ जानापहचाना सा लग रहा है,’’ मैं ने उस के पास आने पर कहा.

‘‘बाबूजी, मैं राजपाल प्लंबर. आप मुझे पहचानें या न पहचानें, मैं आप को अच्छी तरह पहचानता हूं. आप ने तो मुझे एक ही बार देखा है, लेकिन मैं ने आप को कई बार देखा है.’’ उस को ऐसे बातें करते देख कर मैं मुसकरा पड़ा, फिर मैं ने उस से कहा, ‘‘कुछ याद तो दिलाओ?’’ ‘‘बाबूजी याद करो कि तकरीबन 15 साल पहले आप ने किसी शराबी को गंदी नाली में से बाहर निकाला था.’’ ‘‘हांहां, मुझे याद आ रहा है.’’ ‘‘बाबूजी, मैं नशे में चूर था. बाद में लोगों ने मुझे बताया था कि कोई मुझे नाली में से भी खींचने को तैयार न था. तब आप ने यह काम किया था.’’ मुझे याद आया कि हां, कभी किसी शराबी को मैं ने नाली से बाहर जरूर खींचा था, लेकिन मेरे लिए यह इतनी खास बात नहीं थी कि मैं यह याद रखता कि कब और कितने साल पहले मैं ने यह काम किया था. मैं ने तो उस शराबी की हालत देख कर यही सोचा था कि यह पियक्कड़ या तो किसी दिन ज्यादा शराब पी कर मर जाएगा या फिर किसी दिन नशे की हालत में किसी हादसे का शिकार हो जाएगा.

मेरी नजर में उस की जिंदगी के गिनेचुने दिन बचे थे. लेकिन उस महाशराबी को आज अपने सामने हट्टाकट्टा देख कर मुझे हैरानी जरूर हुई कि कोई टैंकर (महाशराबी) इतना सेहतमंद कैसे हो सकता है. खैर, उसे ले कर मैं अपने घर आ गया. राजपाल घर आते ही अपने काम में जुट गया. 2 घंटे बाद मैं ने उस से पूछा, ‘‘राजपाल चाय पीओगे?’’ ‘‘नहीं बाबूजी, मैं चाय नहीं पीता.’’ ‘‘हां भाई, तुम गरम चाय कहां पीओगे, तुम तो नमकीन के साथ ठंडी चाय पीने वालों में से हो,’’ मैं ने मजाक के लहजे में कहा. ‘‘नहीं बाबूजी, ऐसी बात नहीं है. ‘ठंडी चाय’ तो मैं ने कब की पीनी छोड़ दी.’’ मैं हैरानी से उसे देखने लगा कि एक टैंकर भी शराब पीनी छोड़ सकता है.

‘‘ऐसा कैसे हुआ राजपाल? दारू की लत वाले लोगों का तो दारू छोड़ना बड़ा मुश्किल होता है?’’ राजपाल ने काम करतेकरते अपनी कहानी शुरू की. मैं भी कुरसी डाल कर उसी के पास बैठ गया. ‘‘बाबूजी, उस रात मेरी घरवाली सोई नहीं. वह रातभर जागती रही और मुझे होश में लाने की कोशिश करती रही. उस दिन साथियों के साथ कुछ ज्यादा ही चढ़ा ली थी. भोर के समय जा कर कहीं मेरा नशा टूटा था. ‘‘तभी मकान मालिक आ धमका था. उस ने शाम तक कमरा खाली करने का फरमान सुना दिया. भला बाबूजी, मेरे जैसे शराबी को कौन अपने घर में किराए पर रखता.

मुंहबोली बहनें- भाग 3 : रोहन ने अपनी पत्नी को क्यों दे डाली धमकी

‘‘मेरे और अनाइका के बीच कुछ चल रहा है, यह बात अनाइका ने मुझे क्यों नहीं बताई? इतनी बड़ी बात मुझ से छिपा कर रखी? मुझे भी बता देती तो मैं थोड़ा अपने पर इतरा लेता,’’ रोहन भैया ने चिंतित मुद्रा में मुंह बना कर कहा, ‘‘सोनाली, कमी मुझ में नहीं उन लड़कियों की सोच में है. किसी से दो बातें कर लो तो सीधा ‘चक्कर चलना’ ही मान बैठती हैं.’’ रोहन भैया मेरी किसी बात को गंभीरता से लेने को तैयार ही नहीं थे. मैं झक मार कर वहां से उठ ही गई, ‘‘ठीक है रोहन भैया, आप के लिए तो हर बात बस, मजाक ही होती है, पर कालेज में होने वाली बातों का मुझ पर असर पड़ता है. कोई मेरे भाई के बारे में अनापशनाप कहे तो मैं बरदाश्त नहीं कर पाती हूं. अगले साल मैं अपना कालेज ही बदल लूंगी. न आप के कालेज में रहूंगी, न आप के बारे में कुछ सुनूंगी और न ही मेरा दिमाग खराब होगा,’’ कह कर मैं अपना बैग उठा कर वहां से निकल पड़ी.

‘‘ओए मधुमक्खी, कालेज बदलना तो अकेली ही जाना, अपनी सहेलियों को मत ले जाना वरना मेरे कालेज में तो पतझड़ आ जाएगा,’’ कह कर रोहन भैया फिर होहो कर के हंसने लगे. मुझे पता था कि रोहन भैया चिकने घड़े हैं. मेरी किसी बात का उन पर कोई असर नहीं पड़ेगा. फिर भी हर 10-15 दिन में मैं उन से इस बात को ले कर बहस कर ही बैठती थी.

12वीं के बाद बीकौम में जब मुझे दीनदयाल डिग्री कालेज में ऐडमिशन मिला था तो मैं फूली नहीं समाई थी. नामीगिरामी कालेज में ऐडमिशन पाने की खुशी के साथसाथ एक सुकून का एहसास यह सोचसोच कर भी हो रहा था कि रोहन भैया के होते हुए मुझे किसी काम के लिए भागदौड़ नहीं करनी पड़ेगी. मेरा सारा काम बैठेबिठाए हो जाएगा. रोहन भैया उसी कालेज से एमकौम कर रहे थे और कालेज में उन के रोब के किस्से उन के मुंह से सालों से सुनती चली आ रही थी.

कालेज पहुंची तो सचमुच रोहन भैया की कालेज में पहचान देख कर मैं दंग रह गई. छात्रसंघ के सक्रिय सदस्य होने के कारण सारे प्रोफैसर और विद्यार्थी न केवल उन्हें अच्छी तरह जानते थे बल्कि वाक्पटुता और आकर्षक व्यक्तित्व के कारण उन्हें पसंद भी बहुत करते थे. युवतियों के तो वे खासकर सर्वप्रिय नेता माने जाते थे. उन में वे किशन कन्हैया के नाम से मशहूर थे. लड़कियां उन के इर्दगिर्द मंडराने के अवसर तलाशती रहती थीं.

कालेज में उन के जलवे देख कर मैं भी अपना सिक्का जमाने के लिए सभी के सामने रोब जमाते हुए यह कहने लगी कि रोहन मेरे भैया हैं और मुझे बहुत प्यार करते हैं, लेकिन उस के बाद से ही मेरी मुसीबतों का सिलसिला शुरू हो गया. रोज कोई न कोई युवती अपना कोई न कोई काम ले कर मेरे पास

सिया के आंसू : भाग 1

लेखक- नीरज कुमार मिश्रा  

22 साल की एक पढ़ीलिखी लड़की थी, जो बीटैक कर रही थी. वह एक कामयाब यूट्यूबर थी, जो अपनी कार खुद चलाना पसंद करती थी और देश के ज्वलंत मुद्दों पर भी अपनी राय बड़ी बेबाकी से सब के सामने रखती थी, पर किसी इनसान में इतनी अच्छाइयों का होना यह नहीं साबित करता है कि वह अंधविश्वासी नहीं होगा.

 

सिया के मन पर भी उस के बचपन से ही बताए गए रीतिरिवाजों और धर्मांधता का पूरा असर था. हां, पर जो उस का इन अंधविश्वासों में साथ नहीं देता था, वह था सिया के बचपन का दोस्त वीरेन. वीरेन से सिया की सगाई भी हो चुकी थी और शादी की तारीख भी दिसंबर महीने की थी, पर उस से पहले वीरेन और सिया अपने दोस्तों नताशा और तान्या के साथ एक धार्मिक जगह सिद्धनाथ के दर्शन करने जाना चाहते थे.

बाकी के दिन तो सफर की तैयारियों में कब निकल गए, सिया को पता ही नहीं चला और फिर वह दिन भी आ गया, जब वे चारों सफर पर निकल पड़े और रास्ते की सारी दिक्कतों को झेलते हुए वे सिद्धनाथ पहुंच गए. अभी उन लोगों की गाड़ी पूरी तरह से रुक भी नहीं पाई थी कि उन की गाड़ी के चारों तरफ अनजान लड़कों और आदमियों की भीड़ जमा हो गई.

‘‘हां जी मैडम… रुकने के लिए कमरा चाहिए… बहुत सस्ते में दिला देंगे… एसी वाला रूम… कम कीमत में…’’ उन में से कुछ लड़के साधुसंतों जैसे लग रहे थे. ‘‘बहनजी… हमारी धर्मशाला में कमरा ले लो… एकदम मुफ्त मिलेगा… और वह भी सारी सुविधाओं के साथ…’’ उन में से एक बोला.

‘‘मुफ्त… तुम लोग मुफ्त में कमरा क्यों दे रहे हो भाई?’’ वीरेन ने पूछा. ‘‘अरे भाई… यह सब तो धर्म को बढ़ावा देने के लिए है… हम आप को कमरा देते हैं और बदले में आप हमारे दानपात्र में कुछ पैसे डाल देना… मंदिर जाने के लिए प्रसाद हमारे यहां से ही लेना…’’ दूसरा लड़का बोला.

पता नहीं क्यों जहां पर भी धर्म और दानपात्र दोनों एकसाथ आते हैं, वहां पर वीरेन को एक अलग ही गंध आने लगती है, पर साधुसंतों द्वारा चलाई जा रही धर्मशाला में कमरा ले कर रहने में धर्म की सेवा होगी, ऐसा सोच कर सिया मचलने लगी, ‘‘वीरेन, सही तो कह रहे हैं ये लोग… आखिर धर्मशाला में कमरा ले कर रहने में बुराई ही क्या है?’’

‘‘हां, ठीक है, पर अगर कमरे हमारे रहने लायक नहीं होंगे, तो हम फिर किसी और होटल में चलेंगे,’’ वीरेन ने फैसला सुनाया और सिर हिला कर नताशा और तान्या ने उस पर अपनी मुहर लगा दी. आगेआगे वे लड़के चल रहे थे और पीछेपीछे ये चारों. कुछ देर पैदल चलने के बाद ही वे उस धर्मशाला के सामने खड़े थे, जिस में उन्हें रहना था. बाहर से तो एक एकदम साधारण सी बिल्डिंग लग रही थी, पर अंदर कदम रखते ही उन चारों की समझ में आ गया कि यह धर्मशाला किसी होटल से कम नहीं है.

उस धर्मशाला के एक तरफ जगमग करता हुआ मंदिर बना था और दूसरी तरफ कमरे बने हुए थे. मतलब साफ था कि वे लोग धर्मशाला का टैग लगा कर एक होटल चला रहे थे. चारों तरफ एक अलग सी सुगंध फैली हुई थी. सिया ने अपने लिए गए फैसले पर इठलाते हुए उन तीनों की तरफ देखा मानो यह कहना चाह रही हो कि देखा मेरा फैसला कितना सही था.

वीरेन अकेला एक कमरे में ठहर गया, जबकि बाकी तीनों लड़कियां दूसरे कमरे में. आज रातभर उन को आराम कर के कल सुबह ही उन लोगों को सिद्धनाथ बाबा के मंदिर के लिए निकलना था. अगली सुबह वे सभी जल्दी ही जाग गए और मंदिर दर्शन की तैयारी करने लगे. नताशा बाथरूम में नहाने गई थी, पर कुछ देर बाद ही वह बाथरूम से हड़बड़ाती हुई निकली और बाहर की ओर भागी. उसे इस तरह भागता देख कर कोई कुछ भी समझ नहीं पाया.

 

‘‘क्या हुआ नताशा…? तू इतनी परेशान क्यों है?’’ पीछे से आते हुए तान्या ने पूछा.‘‘पता है, जब मैं बाथरूम में नहा रही थी, तभी खिड़की से कोई मोबाइल के कैमरे से मेरी वीडियो शूट कर रहा था. मैं ने उसे देख कर जल्दी से कपड़े पहने  और पकड़ने के लिए बाहर लपकी, पर वहां पर कोई नहीं था. मैं इस बात की शिकायत यहां के मैनेजर से करने जा रही हूं,’’ कहने के साथ ही नताशा सीधे मैनेजर के पास पहुंची, जहां पर एक गंजा साधु बैठा हुआ था.

‘‘देखिए, यह एक तीर्थस्थल है… यहां आ कर तो सभी के मन का मैल अपनेआप धुल जाता है और फिर हमारे यहां ऐसा काम कौन करेगा भला… देखो बेटी, तुम से कोई भूल हुई है, फिर भी आप लोगों को कोई असुविधा हुई है, तो मैं आप लोगों का कमरा बदलवा देता हूं,’’ उस साधु ने कहा.

 

वह साधु मैनेजर ये बातें कहते हुए बारबार मंदिर की ओर देख कर हाथ जोड़ता और एक छोटी सी माला को हाथ में घुमा रहा था.

 

मुंहबोली बहनें- भाग 4 : रोहन ने अपनी पत्नी को क्यों दे डाली धमकी

भाभी सुंदर और समझदार थीं. शादी के बाद रोहन भैया के स्वभाव में भी बहुत परिवर्तन आ गया. अब वे काफी शांत और गंभीर रहने लगे थे. कालेज के समय वाली उच्छृंखलता अब कहीं उन के स्वभाव में नहीं दिखती थी. साल भर तक तो उन का दांपत्य जीवन बहुत अच्छी तरह चला पर अचानक न जाने क्या हुआ कि भैयाभाभी के बीच दूरियां बढ़ने लगीं. उन के बीच अकसर बहस होने लगी. ताईजी के लाख पूछने पर भी दोनों में से कोई भी कुछ बताने को तैयार नहीं होता. उसी दौरान मैं मायके गई थी तो ताईजी के यहां भी सब से मिलने चली गई. ताईजी ने उन लोगों के बिगड़ते रिश्ते के बारे में बताते हुए मुझे भाभी से बात कर के कारण जानने को कहा. पहले तो भाभी ने बात को टालना चाहा किंतु मेरे हठ पकड़ लेने पर उन्होंने जो कहा उस पर यकीन करना मुश्किल था.

भाभी ने कहा, ‘‘रोहन का शक्की स्वभाव उन के वैवाहिक जीवन पर ग्रहण लगा रहा है. मेरे एक मुंहबोले भाई को ले कर इन के मन में शक का कीड़ा कुलबुला रहा है. मैं उन्हें हर तरह से समझा चुकी हूं कि उस के साथ मेरा भाईबहन के अलावा और किसी तरह का कोई संबंध नहीं है पर इन्हें मेरी किसी बात पर यकीन ही नहीं है. मेरी हर बात के जवाब में बस यही कहते हैं, ‘ये मुंहबोले भाईबहन का रिश्ता क्या होता है मुझे न समझाओ. किसी अमर्यादित रिश्ते पर परदा डालने के लिए मुंहबोला भाई और मुंहबोली बहन का जन्म होता है.’ इन का कहना है कि या तो अपने मुंहबोले भाई से ही रिश्ता रख लो या मुझ से. अब तुम ही बताओ इतने सालों का रिश्ता क्या कह कर खत्म करूं? कितने अपमान की बात है मेरे लिए इतना बड़ा आरोप सहना.’’

मैं ने भाभी को आश्वस्त करते हुए कहा कि आप चिंता न करें मैं भैया से बात करती हूं. मैं जब रोहन भैया से इस बारे में बात करने गई तो बात शुरू करने से पहले ही उन्होंने मेरा मुंह यह कह कर बंद कर दिया, ‘‘सोनाली, अगर तुम मुझे कुछ समझाने आई हो तो बेहतर होगा कि वापस चली जाओ.’’ रोहन भैया के रूखे व्यवहार के आगे तो मेरी बात शुरू करने की हिम्मत ही नहीं हुई. बातबात पर उन से झगड़ने और बहस कर बैठने वाली मुझ सोनाली की बोलती ही बंद हो गई. पर बात चूंकि उन के वैवाहिक रिश्ते को बचाने की थी इसलिए हिम्मत कर के मैं उन के पास बैठ गई.

‘‘रोहन भैया, बात इतनी बड़ी नहीं है कि आप ने अपना और भाभी का रिश्ता दावं पर लगा दिया है. भाभी कह रही हैं कि उन का मुंहबोला भाई है तो उन की बात का आप यकीन क्यों नहीं करते? आखिर कालेज में आप की भी तो कई मुंहबोली बहनें थीं फिर…’’ मैं आगे कुछ और बोलूं उस से पहले ही रोहन भैया वहां से उठ खड़े हुए, ‘‘हां, सोनाली, मेरी कई मुंहबोली बहनें थीं और मैं कइयों का मुंहबोला भाई था इसीलिए इस रिश्ते की हकीकत मुझ से ज्यादा कोई नहीं जानता. कह दो अपनी भाभी से या तो मैं या वह मुंहबोला भाई, जिसे चुनना है चुन ले.’’ मैं अवाक सी भैया का मुंह देखती रह गई. कालेज वाले भैया तो वे थे ही नहीं जिन से मैं कुछ बहस कर सकती. ‘रोहन भैया, रोहन भैया’ कहने वाली कालेज की बहनों का उन्हें देख कर आहें भरना मैं भी कहां भूल पाई थी कि किसी तरह का तर्क दे कर उन की सोच को झुठलाने की कोशिश करने की हिम्मत जुटा पाती.

मेरे पास भाभी को समझाने के अलावा और कोई रास्ता शेष नहीं बचा था. रोहन भैया का शक उन के अपने अनुभव पर आधारित था. न जाने मुंहबोले भाईबहन के रिश्तों को उन्होंने किस तरह जिया था. दुनिया को तो वे अपने ही अनुभव के आधार पर देखेंगे. ‘‘रिश्ता बचाना है तो आप के सामने रोहन भैया की शर्त मानने के अलावा और कोई रास्ता नहीं है भाभी, क्योंकि उन का शक उन के अनुभव पर आधारित है और अपने ही अनुभव को भला वे कैसे नकार सकते हैं. रिश्ता बचाने के लिए त्याग आप को ही करना पड़ेगा,’’ भारी मन से भाभी से यह सब कह कर मैं चुपचाप अपने घर की ओर चल दी.

 

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