लेखक- नीरज कुमार मिश्रा
बचपन में ही दानव के हाथों इस राजकुमारी को भी मसल दिया गया था.
बाप और बेटी के ठहाकों की आवाज़ें किचन तक आ रहीं थी,कभी रिया फुसफुसा कर कुछ कहती तो कभी ये धीरे से ये कुछ कहते ,और फिर अनवरत हँसी का फव्वारा छूट पड़ता.
बापबेटी अपने हँसी के समंदर में गोते लगा ही रहे थे ,कि गौरी भी कॉफी देने कमरे में गयी तो रिया गौरी से लिपटते हुए बोली
“अरे….माँ कभी हमारे साथ भी बैठ लिया करो और थोड़ा हँस भी लिया करो ….
आप अपने होठों को कैसे सीये रहती हो ,मेरा तो मुंह ही दर्द हो जाये और हाँ….माँ ….आपको तो अच्छे अच्छे जोक पर भी हँसी नहीं आती है ….कैसे माँ….तुम कभी हँसती क्यों नहीं हो….?”
रिया ने बात खत्म करी तो उसके समर्थन में ये भी उतर आये , और हसते रहने के महत्व पर पूरा लेक्चर ही दे डाला.
पर फिर भी गौरी चुप ही रही रिया ने अपने पापा की ओर देखा पर गौरी के मौन ने सब कुछ कह डाला ,और शायद ये बात विराम भी समझ गए ,इसीलिये तुरंत ही बात बदलकर रिया से उसके कॉलेज की राजनीति पर बात शुरू कर दी.
रिया जब भी कॉलेज से घर आती तो घर में ऐसा ही माहौल रहता ,पर उसके मासूम सवालों का उसके पास कोई जवाब नहीं होता,भला अपनी खमोशी और उदासी का क्या कारण बताती वह ,और अगर बताती भी तो पता नहीं रिया का क्या रिएक्शन होता गौरी के प्रति, इसलिए वह खामोश ही थी.
गौरी दोबारा जब कमरे में गयी तब तक रिया टीवी पर “टॉम और जैरी ” कार्टून फिल्म देख रही थी और ठहाके लगाकर हँस रही थी,गौरी को रिया ने खींचकर अपने पास बैठा लिया और शिकायती लहज़े में माँ से बोली
“हंसो न माँ ,देखो कितना अच्छा और मजेदार कार्टून आ रहा है ,अरे….तुम तो हँसती ही नहीं, मिस सीरियस ही बनी रहती हो”
“अरे ….क्या …हँसना और न हँसना…मेरे लिए अब तू आ गयी है ना यही सबसे बड़ी खुशी की बात है …” इतना कहकर गौरी किचन में आकर काम करने लगी.
ये भी पढ़ें- Serial Story: वह काली रात
अपने ही ख्यालों में खोयी हुई थी गौरी कि बाहर वाले कमरे से रिया की आवाज़ आयी जो अपने पापा के साथ मार्किट होकर आने की बात कह रही थी.
मोटरसाइकिल स्टार्ट होने की आवाज़ गौरी भी सुन सकती थी
” हाँ ….मिस सीरियस ही तो हूँ ….ज़िंदा हूँ …यही क्या कम है….”बुदबुदा उठी थी गौरी
गौरी ने किचन की खिड़की खोली ,सामने ही अमरुद का पेड़ था ,इस समय उस पर अमरुद भी फल हुए थे .
तभी तोतों का एक झुण्ड उड़ता हुआ आया और अमरुद के पेड़ को लगभग ढक ही लिया और सारे तोते एक ही साथ अमरुद खाने में मगन हो गए.
ये देख गौरी को अपने मायके वाले ‘मिठ्ठू मियाँ’ की याद आ गयी और अतीत के पन्ने पलटने लगे कितने प्यार से तो पापा उसके लिए लाए थे ये तोता,और हाँ वो साथ में सुनहरा सा पिंजरा भी तो लाये थे ,जिसे देख कितना खुश हुई थी गौरी,पिंजरे में रख सारा दिन घूमती , खाने को अमरुद और हरी मिर्च .
हरी मिर्च खाने से मिठ्ठू मियाँ जल्दी ही राम राम बोलने लगेगा और संतोषी चाची वाला मिठ्ठू तो उनका नाम भी रटता था .
पर जब एक दिन संतोषी चाची का मिठ्ठू पिजरा खुला पाकर उड़ गया तबसे वे दुखी होकर यही कहने लगी
“अरे….इन पंछियन की जात तो बड़ी बेवफा होत है ,इनकी आँखिन में कोई प्यार ममता नाही ,एक बार उडि पावें ,फिर नाइ आवै के”
पर संतोषी चाची की इन बातों से गौरी सहमत ना होती ,उसे तो यही गुमान था कि चाहे जो कुछ हो पर उसका मिठ्ठू मियाँ तो उसको छोड़कर कहीं नहीं जा सकता.
मिठ्ठू मियाँ अब राम-राम भी बोलने लगा था और गौरी -गौरी भी ,स्कूल से आने पर गौरी अपने मिठ्ठू के पास ही जाती और खूब खेलने के बाद ही उसके पास से हटती थी.
पर उस दिन जब गौरी स्कूल से लौटी तो अम्मा और पापा भागे जा रहे थे ,गौरी के पूछने पर ये ही बताया कि गांव के कोने पर रहने वाले सरवन की मौत हो गयी है ,अभी बस वहीँ जाकर आते हैं तू घर पहुँच और रोटी पानी खा ले जाकर .
गौरी घर आयी तो मिठ्ठू मियाँ का पिंजरा खाली था, वह अपना बस्ता वहीँ गिरा कर दौड़ी और पिंजरा हाथ में ले मिठ्ठू-मिठ्ठू चिल्लाकर इधरउधर भागने लगी.
“अरे तेरा मिठ्ठू मेरे यहां उड़कर आ गया है,ले…ले आकर “संतोषी चाची के पति बोल रहे थे
“क्या….चाचा …मिठ्ठू तुम्हारे यहाँ आ गया है …कहाँ …है ,कहाँ है”कहते कहते चाचा के आँगन में आ गयी थी गौरी
“हाँ …वो देख …आँगन के कोने वाली दीवार के ऊपर”
“कहाँ ….मुझे तो नहीं दिखता”
चाचा गौरी के पीछे आकर खड़े हो गए थे और गौरी के कंधे पर हाथ रखकर बोलने लगे
“अरे ….ध्यान से देख गौ…री…”चाचा के मुंह से अस्फुट से स्वर निकल रहे थे और उनका हाथ गौरी के हाथ से फिसलता हुआ उसके सीने तक जा पहुंचा.
अपने मिठ्ठू को अब भी ढूंढ रही थी गौरी पर अब उसके साथ चाचा कुछ ऐसा करने लगे जो उसे भी असहज हो रहा था.
क्या …ये वही काम है जो कुछ समय पहले उसके स्कूल के मास्टर ने संध्या के साथ किया था……पर वो संध्या तो मर गयी थी…..तब तो मैं भी मर जाऊंगी.
Women’s Day Special: टिट फौर टैट
पूरा जोर लगा दिया था गौरी ने ,पसीनेपसीने हो गयी ,कसमसाई भी ,चिल्लाई भी पर चाचा की गिरफ्त से आज़ाद न हो सकी .
ये बात किसी को भी बताने पर चाचा उसके छोटे भाई को मार देगा…. ऐसा बोलकर चाचा ने मासूम गौरी के मुँह पर ताला लगा दिया था
और ये ले तेरा मिठ्ठू …बिल्ली ने मार दिया था इसे मरा हुआ मिठ्ठू हाथ में ले रोती ही जा रही थी गौरी, सही कारण क्या है ये तो किसी को पता ही ना था .
अम्मा पापा यही सोच रहे थे कि मिठ्ठू के मरने से लड़की दुखी है तभी रोये जा रही है ,पर तेरह साल की गौरी को इतना तो आभास हो ही गया था कि जो भी उसके साथ हुआ है वो सही नहीं है.
वो अपना दुख कहती भी तो कैसे क्योंकि एक तरफ तो किसी को भी बता देने पर चाचा द्वारा छोटे भाई को मार दिए जाने का डर था और दूसरी तरफ जब संध्या की वो वाली बात सभी लोगों को पता चली थी तो भी गांव वाले संध्या के माँ बाबूजी को अजीब नज़रों से देखते थे और फिर गांव वालों ने अपनी बातों से ऐसे ताने कसे कि संध्या के घर वालों को अपना सामान ले गांव ही छोड़ जाना पड़ा.
गौरी के पापा गांव की साप्ताहिक बाज़ार में मसाले और थोड़ा मोड़ा गल्ले की दुकान लगाते थे,कल अचानक हुयी बारिश ने उनके मसालों को भिगो दिया था ,आज धूप हुयी तो माँ ने उन मसालों को छत के ऊपर सूखने को फैला दिया था और गौरी से यही छत पर बैठने को कहा .
आज सरवन की तेरवीं थी ,घर के लोग उसके घर भोज में गए हुए थे,पता नहीं ये बात संतोषी चाची के आदमी को कैसे पता चल गयी
“गौरी….ओ ..गौरी …अरे कहा है रे तू …
देख तो तेरे लिए दूसरा मिठ्ठू लाया हूँ