आज मेरी चोरी पकड़ ली गई थी. दिल धक से धड़क कर रह गया. वह सिर उठा कर अपनी बड़ीबड़ी गोलगोल आंखों से मुझे देख रही थी और मैं इस बात से लापरवाह कि रंगे हाथों पकड़ा गया हूं, उस की आंखों में डूब जाने की हद तक उस की नजर से नजर मिलाए हुए था.
मैं उस की आंखों की जद से बाहर तब निकला, जब उस ने एक पल को अपनी पलकें झपकाई थीं. उस समय मेरी आंखें उस के गुलाबी होंठों और संगमरमरी गरदन की राह से फिसल कर उस के बड़े उभारों पर उस तरह ठहर गईं, जैसे उठी हुई चोटियों ने किसी पर्वतारोही का रास्ता रोक दिया हो.
इस समय वह ऊपर की तरफ देख रही थी, इसलिए यों लगा कि किसी परी के सीने पर 2 उजले कबूतर बैठे हैं, जो बस पंख फड़फड़ा कर उड़ना चाहते हैं.
मेरी आंखें उन उजले कबूतर के जोड़े में ही उलझी हुई थीं कि उस ने मेरी आंखों की शरारत को पहचान लिया और अगले ही पल अलगनी पर टंगे तौलिए से उस ने अपने बदन को ढक लिया.
उस समय मुझे यों लगा जैसे कबूतर किसी शिकारी की आहट पर अपने दड़बे में दुबक गए हों.
दुबक तो मैं गया था. 16 साल के मेरे मन ने समझ लिया था कि तूफान आएगा और इसी तूफान के डर से मैं तमाम दिन दबासहमा अपने कमरे में दुबका रहा. दिन ढल के शाम आ चुकी थी, पर तूफान ने अब तक दस्तक नहीं दी थी.
रात का अंधेरा अब पूरी तरह छा चुका था. मैं ने देखा कि वह दीदी के साथ घर आ गई थी. सच पूछो तो मैं उस का इंतजार भी करता था. इंतजार तो आज भी कर रहा था, पर उसे देखते ही मेरा दिल धड़क गया था.
ट्यूबलाइट की दूधिया रोशनी में उस की पहनी हुई सफेद उजली शर्ट उस की गोरी रंगत में चार चांद लगा रही थी और रात के अंधेरे की कालिमा उस की पहनी हुई काली सलवार से आंखें लड़ा कर उस की जुल्फों की काली रंगत में इजाफा कर रही थी.
‘‘ऋषि, जरा एक गिलास पानी तो पिलाना,’’ जब उस ने यह कहा, तो मेरा ध्यान टूटा.
पानी देते समय जब उस की उंगलियां मेरे हाथ से टकरा रही थीं, तब मेरे दिल में यह सोच बुलंदी पर थी कि अब वह मेरी दीदी के सामने ही मुझ से मेरी चोरी का जिक्र करेगी, पर उस ने ऐसा नहीं किया और थोड़ी देर में वह चली गई.
बीए फाइनल ईयर के एग्जाम दे कर वह अपने मामा के घर गरमियों की छुट्टियां बिताने आई थी. मेरे और उस के मामा का घर बिलकुल अगलबगल था.
वह 19-20 साल की एक गोरी, छरहरी और खूबसूरत लड़की थी. उस का नाम ज्योति था.
ज्योति के मामा के घर बाथरूम नहीं था, इसलिए वह नहाने के लिए मेरे घर आ जाया करती थी.
एक दिन जब वह बाथरूम में थी, मैं अपने बेचैन दिल के साथ टहलते हुए छत पर पहुंच गया. छत पर टहलते हुए मेरी नजर बाथरूम की छत के उस हिस्से पर पड़ी, जिसे पापा ने दूसरी मंजिल पर पानी ले जाने के लिए नल का इंतजाम करवाने के लिए ठीक किया था. इस समय वह हिस्सा एक टीन के टुकड़े से ढका था.
मैं ने धड़कते दिल से घुटनों के बल बैठ कर टीन के टुकड़े को हलका सा एक तरफ सरका दिया. मेरी नजरों ने नीचे बाथरूम में झांका और मुझे यों
लगा जैसे बाथरूम में कमल का फूल खिला हो.
फिर तो यह मेरा रोज का शगल हो गया. उधर ज्योति मलमल कर नहाती रहती और इधर में उस के रूप सागर में डुबकी लगाता रहता.
पर आज वह कुछ देर से आई. मैं तो उस का इंतजार ही कर रहा था. उस के बाथरूम में जाने के कुछ देर बाद मैं ने छत पर जा कर टीन को सरकाया, पर तभी सूरज की रोशनी हजार वाट के बल्ब की तरह बाथरूम में कौंधी.
ज्योति ने चौंक कर रोशनी आने के रास्ते को देखा तो वहां पर मुझे उकड़ू बैठा पाया. मेरी चोरी आज उस के सामने थी, पर अब तक उस ने इस का जिक्र किसी से नहीं किया, यहां तक कि मुझ से भी नहीं.
एक शाम को मैं घर पर अकेला कुछ लिख रहा था. लिखतेलिखते अचानक मुझे लगा जैसे सामने कोई बैठा है. नजरें उठाईं, तो सामने ज्योति थी.
‘‘क्या लिख रहे हो?’’ पूछते हुए उस ने वह कागज अपनी ओर खींच लिया.
उस कागज के टुकड़े पर मैं ने क्या लिखा था, सिवा उस के नाम ‘ज्योति’ के.
ज्योति ने तह कर के वह कागज अपनी स्कर्ट की जेब में रख लिया और फिर मुसकरा कर बोली, ‘‘हमें भी वह जगह दिखाओ, जहां से तुम हमें देखा करते थे.’’
उस की बात सुन कर मेरा दिल धड़क उठा. वह छत की तरफ जाने वाले जीने की तरफ चल दी और मैं उस पीछे.
खिलते तारों की उस रात को हम दोनों एकदूसरे की बांहों में थे. ज्योति भले ही मुझ से बड़ी थी, पर वह भी सैक्स से अनजान ही थी. और मेरी तो बात ही क्या, मैं ने तो सोलह ही सावन देखे थे.
खुले आसमान तले हम एकदूसरे को पाने को उतावले थे, पर हमारी नादानी हमारा इम्तिहान ले रही थी.
मुझे अपने सीने में भींच कर ज्योति बोली, ‘‘ऋषि…’’ और उस के होंठों से निकले मेरे नाम की गरमी ने कामयाबी की राह मजबूत कर दी.