
वह और सुमित परेशान हो गए. नीचे जा कर उस ने मनीषा को अपनी परेशानी बताई व सुमित ने ऊपर वाले फ्लैट में जा कर संजना के पति से फिलहाल उस वाले बाथरूम को इस्तेमाल न करने की प्रार्थना की. पर मनीषा, जो पहले से ही नाराज चल रही थी, सुनते ही भड़क गई. ‘‘हमारे यहां तो कोई दिक्कत नहीं…तुम्हारे यहां है, तुम जानो.’’ ‘‘मैं यह नहीं कह रही मनीषा कि तुम्हारे कारण दिक्कत है… समस्या तो कहीं बीच में है… प्लंबर को बुलाने जा रहे हैं सुमित… पर थोड़ी दिक्कत तुम्हें भी होगी… प्लंबर यहां भी आएगा… देखेगा कि आखिर दिक्कत कहां है…’’ ‘‘मुझे तो आज बाहर जाना है… घर पर नहीं हूं.’’ ‘‘उफ, तो ऐसा करो तुम मुझे चाबी दे जाना… मैं खुद यहां पर खड़ी हो कर काम करवा लूंगी.’’ ‘‘अरे ऐसे कैसे चाबी दे दूं… पता नहीं कौन प्लंबर है… हर ऐरेगैरे नत्थु खैरे को घर में घुसा दो,’’ मनीषा बड़बड़ाने लगी. ‘‘देखो मनीषा, प्लंबर को दिखाना तो पड़ेगा… यह परेशानी भुगती तो नहीं जा सकती… ठीक तो करवानी ही पड़ेगी,’’ कह कर राशि ऊपर आ गई. उस दिन मनीषा के पति रोनित ने बात संभाल ली. प्लंबर आया. मनीषा के फ्लैट से ही उसे पाइप की प्रौबलम ठीक करनी पड़ी.
लेकिन मनीषा का राशि से उखड़ा मूड और भी उखड़ गया. शिवानी के नीचे वाले फ्लैट में रहने वाली रजनी भी कुछ कम नहीं थी. शिवानी तो इन तीनों से कई बार उलझ भी पड़ती, फिर ठीक भी हो जाती. पर राशि के बस का नहीं था ये सब कि कभी झगड़ा कर पीठ पीछे बुराइयां करो और फिर साथ बैठ कर कौफी पी लो. छोटीछोटी बातों पर किसी से झगड़ा करना नहीं आता था. एक दिन कूड़े वाला राशि की कूड़े की थैली उठा कर ले गया और रजनी के दरवाजे के सामने रख कर भूल गया.
रजनी ने शोर मचा दिया, ‘‘न जाने किस बदतमीज ने रख दिया यहां कूड़ा… शर्म नहीं आती… अनपढ़गंवार कहीं के…’’ बाहर शोर सुन कर राशि भी बाहर निकल आई. राशि दरवाजे पर रखी अपनी कूड़े की थैली तुरंत पहचान गई. जल्दी से नीचे उतर कर उस ने थैली उठा ली, ‘‘सौरी रजनी… लगता है कूड़ेवाला भूल से छोड़ गया,’’ पर रजनी के चेहरे के भाव व पहले सुने गए शब्द उसे अंदर तक अपमानित कर गए थे. अपार्टमैंट में होने वाले होली, दीवाली, नए साल, क्रिसमस के प्रोग्राम राशि को भी अच्छे लगते, खुशी देते पर ये छोटीछोटी परेशानियां उसे अंदर तक आहत कर देतीं.
सुमित राशि को समझाता, ‘‘मैं तो सोसाइटी के फ्लैट में आना ही नहीं चाहता था पर अब आ गए हैं तो सब के स्वभाव को झेलने की आदत बना लो… शिवानी भी तो यहीं रह रही है… इतना सैंसिटिव होने की जरूरत नहीं है. सब की अपनी फितरत होती है… कोई हमारी तरह का नहीं हो सकता… जो जैसा है उसे वैसे ही स्वीकार कर लो… और क्या कर सकते हैं…’’ ‘‘पर फिर भी सुमित… आतेजाते ऐसे तनाव भरे चेहरे देख कर अच्छा नहीं लगता… थोड़े दिन ठीक रहती हैं ये तीनों, फिर लड़ पड़ती हैं किसी न किसी बात पर… अब फ्लैट्स इतने जुड़े होते हैं कि किसी से बिना मतलब रखे भी नहीं रहा जा सकता.’’
‘‘जैसे उस से रहा जाता है वैसे ही तुम भी रहो… तुम हर बात की परवाह क्यों करती हो. कुछ न कुछ प्रौबलम तो सब जगह होगी.’’ ऐसे ही छोटेछोटे सुखदुख के बीच जिंदगी बीत रही थी. राशि को भी धीरेधीरे 1 साल रहते होने को आ गया था. सुमित का प्रमोशन हुआ तो उस ने 16 परिवारों से सिर्फ 16 लेडीज को चाय पर बुला लिया. सब आईं सिवा मनीषा, रजनी व संजना के. बाकी सब ने कारण पूछा तो राशि को कारण ठीक से पता हो तो बताए. इतने छोटेछोटे भी कोई कारण होते हैं न्योता ठुकराने के. शिवानी को इन सब बातों से फर्क नहीं पड़ता था.
जब वे तीनों ठीक रहतीं तो वह भी अच्छे से बात कर लेती, जब नहीं रहतीं तो वह भी खुद मुंह पलट कर चली जाती. ‘‘लगता है, रजनी के घर आजकल मेहमान आए हैं. काफी चहलपहल रहती है,’’ एक दिन सुबह चाय पीती हुई राशि सुमित से कह रही थी कि तभी 3-4 बार जल्दीजल्दी घंटी बज उठी. ‘‘इतनी सुबह ऐसी घंटी कौन बजा रहा है,’’ हड़बड़ाहट में दोनों दरवाजे की तरफ बढ़े. रजनी की कामवाली खड़ी थी, ‘‘भाभीजी, जल्दी नीचे चलिए रजनी भाभी के ससुरजी गुजर गए.’’ ‘‘ससुरजी गुजर गए… उन के सासससुर आए हुए थे क्या?’’ ‘‘हां, जल्दी चलिए… रात में उन की तबीयत खराब हुई… भैया अस्पताल ले कर गए थे… सुबह गुजर गए. घर में सिर्फ भाभीजी और उन की सास हैं…भैया अभी अस्पताल में ही हैं.’’ सुमित और राशि हड़बड़ाहट में सीढि़यां उतर गए.
अंदर दोनों सासबहू विलाप कर रही थीं. राशि दोनों को सांत्वना देने लगी. थोड़ी देर में पार्थिव शरीर घर आ गया. फ्लैट रिश्तेदारों व जानपहचान वालों से भरने लगा. राशि ने रजनी के दोनों बच्चों की जिम्मेदारी सहर्ष अपने ऊपर ले ली. वह उन्हें अपने घर ले आई. जितनी मदद कर सकती थी उस ने सारे पूर्वाग्रह भूल कर उन की 13 दिन तक की. 13वीं हो गई. इस मुसीबत के वक्त राशि का सहयोग रजनी के दिल को छू गया. अब वह संजना व मनीषा की परवाह करे बगैर राशि से ठीक से रिश्ता रखने लगी. संजना से राशि का आमनासामना तब भी कम होता था पर मनीषा से अकसर हो जाता था. इसलिए मनीषा का दुर्व्यवहार उसे बहुत अखरता था. संजना का बेटा मयंक और मनीषा की बेटी खुशी एक ही स्कूल में पढ़ते व एक ही रिकशे से स्कूल आतेजाते थे.
उस दिन सुमित की छुट्टी होने के कारण राशि और सुमित मार्केट से लौट रहे थे तो रास्ते में सड़क में भीड़ देख कर वे भी रुक गए. ‘‘क्या हुआ? उन्होंने एक राहगीर से पूछा.’’ ‘‘ऐक्सीडैंट हुआ है… एक रिकशे को कार ने टक्कर मार दी… 2 बच्चे बैठे थे रिकशे में…’’ ‘‘उफ, बच्चे तो ठीक हैं.’’ ‘‘चोटें आई हैं काफी.’’ सुमित उतर कर देखने चला गया. घायल मयंक व खुशी सड़क पर बैठे रो रहे थे. रिकशे वाले व कार चालक के बीच लड़ाई हो रही थी.
औफिस के काम से सनोबर 2 दिनों के लिए बाहर गई थी. आज उसे रात को आना था पर उस का काम सुबह ही हो गया तो वह दिन में ही फ्लाइट से आ गई. इस समय बेटी स्कूल में होगी, पति औफिस में और बाई तो 5 बजे आएगी. वह अपनी चाबी से दरवाजा खोल कर अंदर आई तो देखा लाईट जल रही है. बैडरूम
से कुछ आवाज आई तो वह दबे पैर बैडरूम तक गई तो देख कर अवाक रह गई. साहिल और बाई एक साथ…
वह वापस ड्राइंगरूम में आ गई. साहिल दौड़ता हुआ आया और बाई दबे पैर खिसक ली.
साहिल सनोबर को सफाई देने लगा, ‘‘मेरा ऐसा कोई इरादा नहीं था. मेरी तबीयत खराब थी तो वह सिर दबाने लगी और मैं बहक गया. उस ने भी मना नहीं किया.’’
वह और भी जाने क्याक्या कहता रहा. सनोबर बुत बनी बैठी रही. वह माफी मांगता रहा.
सनोबर धीरे से उठी और अपने और अपनी बच्ची के कुछ कपड़े बैग में डालने लगी. बच्ची आई तो उसे ले कर अपनी अम्मी के पास चली गई. साहिल उसे रोकता रहा, माफी मांगता रहा पर सनोबर को कुछ सुनाई नहीं दे रहा था.
घर आ कर मां से सारी बात बताई और फफक कर रो पड़ी, ‘‘साहिल ने मुझे धोखा दिया. अब मैं उस के साथ नहीं रह सकती.’’
बड़ी बेगम का दिल रो पड़ा. वर्षों पहले जिस आग में उन का घर जला था आज उन की बेटी के घर पर उस की आंच आ गई.
निकाह में शर्तें रखने से भी क्या हुआ? सब मर्द एकजैसे होते हैं, जब जिसे मौका मिल जाए कोई नहीं चूकता.
बड़ी बेगम ने बेटी को संभाला, ‘‘बेटी मैं तुम्हारा दुख समझ सकती हूं. तुम सो जाओ.’’ और उस का सिर अपनी गोद में रख कर सहलाने लगीं.
दूसरे दिन जब सनोबर औफिस गई और बच्ची स्कूल तो साहिल आया. जानता था बड़ी बेगम अकेली होगी. नौकरानी ने बैठाया. बड़ी बेगम को सलाम कर के बैठ गया. धीरे से बोला, ‘‘खालाजान, मुझ से बड़ी गलती हो गई. मैं एक कमजोर पल में बहक गया था. मुझ से गलती हो गई. मैं कसम खाता हूं अब कभी ऐसा नहीं होगा. मुझे माफ कर दीजिए, सनोबर से माफ करवा दीजिए,’’ इतना सब वह एक सांस में ही कह गया था.
बड़ी बेगम चुप रहीं. उन को बहुत दुख था और गुस्सा भी. साहिल की बातों और आंखों में शर्मिंदगी और पछतावा था. वे धीरे से बोलीं, ‘‘मैं कुछ नहीं कर सकती, जैसा सनोबर चाहे.’’
‘‘खालाजान मेरा घर टूट जाएगा, मेरी बेटी मेरे बारे में क्या सोचेगी? मैं सनोबर के बिना जी नहीं सकता.’’
बड़ी बेगम कुछ न कह सकीं.
शाम को जब सनोबर औफिस से आई तो बड़ी बेगम ने बताया कि साहिल आया था और माफी मांग रहा था.
सनोबर ने गुस्सा किया, ‘‘आप ने उसे आने क्यों दिया? हमारा कोई रिश्ता नहीं उस से. मैं तलाक लूंगी.’’
बड़ी बेगम को याद आया जब वकील साहब दूसरी बीवी ले आए थे तो वे भी मायके जाना चाहती थीं पर उन का न तो कोई सहारा था न वे अपने पैरों पर खड़ी थीं. आज सनोबर अपने पैरों पर खडी है. अपने फैसले खुद ले सकती है. फिर सोचने कि लगीं तलाक से इस मासूम बच्ची का क्या होगा? मां या बाप किसी एक से कट जाएगी. अगर दोनों ने दूसरी शादी कर ली तो इस का क्या होगा? वे अंदर ही अंदर डर गईर्ं. अपने बेटे को सनोबर और साहिल के बारे में बताया तो वह दूसरे दिन ही आ गया. दोनों बहनभाई की एक ही राय थी कि तलाक ले लिया जाए. साहिल रोज फोन करता, मैसेज भेजता पर सनोबर जवाब न देती.
साहिल बड़ी बेगम से मिन्नतें करता, ‘‘खालाजान, आप सब ठीक कर सकती हैं. एक बार मुझे माफ कर दीजिए और सनोबर से भी माफ करवा दीजिए. मैं अपनी गलती के लिए बहुत शर्मिंदा हूं.’’
एक दिन सनोबर औफिस से अपने फ्लैट पर कुछ सामान लेने गई तो उस ने देखा घर बिखरा है. किचन में भी कुछ बाहर का खाना पड़ा है. वह समझ गई बाई नहीं आ रही है. घर में हर तरफ लिखा था, ‘आई एम सौरी, वापस आ जाओ सनोबर.’ सनोबर को लगा साहिल 40 साल का नहीं, कोई नवयुवक हो और उसे मना रहा हो.
धीरेधीरे कई कोशिशों के बाद साहिल ने बड़ी बेगम को विश्वास दिला दिया कि यह एक कमजोर पल की भूल थी. उस ने पहले कभी कोई बेवफाई नहीं की. बड़ी बेगम ने सोचा यह तो सच है कि साहिल से भूल हो गई, अपनी गलती पर उसे शर्मिंदगी भी है, माफी भी मांग रहा है. प्रश्न बच्ची का भी है. वह दोनों में से किसी एक से छिन जाएगी. तो क्या इसे एक अवसर देना चाहिए?
बड़ी बेगम ने साहिल को बताया कि सनोबर तलाक लेने की तैयारी कर रही है. यह सुनते ही साहिल दौड़ादौड़ा आया, ‘‘खालाजान, अगर सनोबर ने तलाक की अर्जी डाली तो मैं मर जाऊंगा, मुझे एक मौका दीजिए और बच्चों की तरह रोने लगा.’’
बड़ी बेगम को दया आने लगी बोलीं, ‘‘तुम रो मत मैं आज बात करूंगी.’’
सनोबर बोली, ‘‘औफकोर्स अम्मी.’’
बड़ी बेगम ने भूमिका बांधी, ‘‘जब तुम्हारे अब्बू दूसरी बीवी ले आए थे तो मैं भी उन्हें छोड़ना चाहती थी पर सामने तुम दोनों बच्चे थे.’’
‘‘आप की बात अलग थी मैं खुद को और अपनी बच्ची को संभाल सकती हूं. उस की गलती की सजा उसे मिलना ही चाहिए, सनोबर बोली.’’
‘‘उस की गलती की सजा उस के साथसाथ तुम्हारी बेटी को भी मिलेगी या तो उस का बाप छिनेगा या मां और अगर तुम दोनों ने दूसरी शादी कर ली तो इस का क्या होगा?’’
‘‘अम्मी एक शादी से दिल नहीं भरा जो दूसरी करूंगी? रह गया पिता तो ऐसे पिता के होने से ना होना भला,’’ सनोबर के मन की सारी कड़वाहट होंठों पर आ गई.
दूसरे दिन शाम को मधु आलोक के घर पहुंची. आलोक की मां ने उस का स्वागत मुसकराते हुए किया और कहा, ‘आओ मधु, तुम्हारे बारे में मुझे आलोक बता चुका है.’ मधु ड्राइंगरूम में सोफे पर आलोक की मां के साथ बैठ गई.
अंशु भी आवाज सुन कर वहां आ गया.
‘आंटी को पहली बार देखा है. कौन हैं, क्या आप दिल्ली में ही रहती हैं?’ अंशू ने पूछा.
‘हां, मैं दिल्ली में ही रहती हूं, मेरा नाम मधु है. अगर तुम्हें अच्छा लगेगा तो मैं तुम से मिलने आया करूंगी,’ अंशू की ओर निहारते हुए बड़े प्यार से मधु ने उस से कहा, ‘तुम अपने बारे में बताओ, कौन से गेम खेलते हो, किस क्लास में पढ़ते हो?’
शरमाते हुए अंशू ने कहा, ‘मैं क्लास थर्ड में पढ़ता हूं. नाम तो आप जानते ही हो. घर में दादादादी हैं, पापा हैं.’ उस की आंखें आंसुओं से भर आई थीं. उस ने आगे कहा, ‘आंटी, मैं मम्मी की फोटो आप को दिखाऊंगा. मेरी मां का नाम सुहानी था जो….’ आगे वह नहीं बोल पाया.
अंशू को मधु ने गले लगा लिया, ‘बेटा, ऐसा मत कहो, मां जहां भी हैं वे तुम्हारे हर काम को ऊपर से देखती हैं. वे हमेशा तुम्हारे आसपास ही कहीं होती हैं. मैं तुम्हें बहुत प्यार करूंगी. तुम्हारी अच्छी दोस्त बन कर रोज तुम्हारे पास आया करूंगी, ढेर सारी चौकलेट, गिफ्ट और गेम्स ला कर तुम्हें दूंगी. बस, तुम रोना नहीं. मुझे तुम्हारी स्वीट स्माइल चाहिए. बोलो, दोगे न?’ एक बार फिर मधु ने अंशू को गले से लगा लिया. आलोक की मम्मी ने चाय बना ली थी. चाय पीने के बाद मधु वापस अपने घर चली गई.
आलोक की मां ने उसे मधु के बारे में बताते हुए कहा, ‘मुझे मधु बहुत अच्छी लगी. अंशू से बातचीत करते समय मुझे उस की आंखों में मां की ममता साफ दिखाई दी.’ इस के जवाब में आलोक ने मां को सुझाव दिया, ‘अभी कुछ दिन हमें इंतजार करना चाहिए. मधु को अंशू से मेलजोल बढ़ाने का मौका देना चाहिए ताकि यह पता चले कि वह मधु को स्वीकार कर लेगा.’
इस के बाद मधु ने स्कूटी पर अंशू के पास जानाआना शुरू कर दिया. वह अच्छाखासा समय उस के साथ बिताती थी. कभी कैरम खेलती थी तो कभी उस के साथ अंत्याक्षरी खेलती थी. उस की पसंद की खाने की चीजें पैक करवा कर उस के लिए ले जाती तो कभी उसे मूवी दिखाने ले जाती थी. एक महीने में अंशू मधु के साथ इतना घुलमिल गया कि उस ने आलोक से कहा, ‘पापा, आप आंटी को घर ले आओ, वे हमारे घर में रहेंगी, तो मुझे बहुत अच्छा लगेगा.’
मधु और आलोक का विवाह हो गया. विवाह की धूमधाम में अंशू ने हर लमहे को एंजौय किया, जो निराशा और मायूसी पहले उस के चेहरे पर दिखती थी, वह अब मधुर मुसकान में बदल गई थी. वह इतना खुश था कि उस ने सुहानी की तुलना मधु से करनी बंद कर दी. सुहानी की फोटो भी शैल्फ से हटा कर अपनी किताबों वाली अलमारी में कहीं छिपा कर रख दी. आलोक ने महसूस किया जिद्दी अंशू अब खुद को नए माहौल में ढाल रहा था.
मधु ने आलोक का संबोधन तुम से आप में बदल दिया. उस ने आलोक से कहा, ‘‘तुम्हें अंशू के सामने तुम कह कर बुलाना ठीक नहीं लगेगा, इसलिए मैं आज से तुम्हें आप के संबोधन से बुलाऊंगी.’’ अपनी बात जारी रखते हुए उस ने आगे कहा, ‘‘हम अपने प्यार और रोमांस की बातें फिलहाल भविष्य के लिए टाल देंगे. पहले अंशू के बचपन को संवारने में जीजान से लग जाएंगे. वह अपनी क्लास में फर्स्ट पोजिशन में आता है, इंटैलीजैंट है. जब यह सुनिश्चित हो जाएगा कि अब वह मानसिक तौर पर मुझे मां के रूप में पूरी तरह स्वीकार कर चुका है, तब हम हनीमून के लिए किसी अच्छे स्थान पर जाएंगे.’’
यह सुन कर आलोक को अपनी हमसफर मधु पर गर्व महसूस हो रहा था. खुश हो कर उस ने उस का हाथ अपने हाथ में ले कर चूम लिया. वे दोनों शादी के बाद दिल्ली के एक रैस्तरां में कैंडिललाइट में डिनर ले रहे थे. घर लौटते समय उन्होंने कनाट प्लेस से अंशू की पसंद की पेस्ट्री पैक करवा ली थी.
वे दोनों आश्चर्यचकित थे जब वापसी पर अंशू ने मधु से कहा, ‘‘मम्मा, आप ने देर कर दी, मैं कब से आप का इंतजार कर रहा था.’’
मधु ने पेस्ट्री का पैकेट उसे पकड़ाते हुए कहा, ‘‘अंशु, यह लो तुम्हारी पसंद की पेस्ट्री. तुम्हें यह बहुत अच्छी लगेगी.’’ अंशू की खुशी उस के चेहरे पर फैल गई.
अंशू चौथी कक्षा बहुत अच्छे अंकों के साथ पास कर चुका था. मधु की मां की ममता अपने शिखर पर थी. उस ने अपने बगीचे में अंशू की पसंद के फूलों के पौधे माली से कह कर लगवा दिए थे. जैसेजैसे ये पौधे फलफूल रहे थे, मधु को लगता था वह भी माली की तरह अपने क्यूट से बेटे की देखरेख कर रही है. आत्मसंतुष्टि क्या होती है, उस ने पहली बार महसूस किया.
शाम के समय जब आलोक घर आता था तो अंशू उस का फूलों के गुलदस्ते से स्वागत करता था. मधु का ध्यान अंशू की पढ़ाई के साथ उस की हर गतिविधि पर था. उस ने उसे तैयार किया कि वह स्कूल में होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रमों में बढ़चढ़ कर हिस्सा ले. अंशू के स्टडीरूम में शैल्फ पर कई ट्रौफियां उस ने सजा कर रख ली थीं. सब खुशियों के होते हुए पिछले 2-3 साल अंशू ने अपना बर्थडे यह कह कर मनाने नहीं दिया कि ऐसे मौके पर उसे सुहानी मां की याद आ जाती है.
दूसरे के बच्चे को पालना कितना मुश्किल होता है, यह महसूस करते हुए उस ने तय किया कि कभी वह अंशू को सुहानी मां के साथ बिताए लमहों के बारे में हतोत्साहित नहीं करेगी. अंशू का विकास वह सामान्य परिस्थिति में करना चाहती थी. जैसेजैसे उस का शोध कार्य प्रगति पर था उसे अभिप्रेरणा मिलती रही कि सब्र के साथ हर बाधा को पार कर वह अंशू के समुचित विकास के काम में विजेता के रूप में उभरे. उसे उम्मीद थी कि जितना वह इस मिशन में कामयाब होगी, उतना ही उसे आलोक और सासससुर का प्यार मिलेगा. दोनों के रिश्ते की बुनियाद दोस्ती थी. प्यार और रोमांस के लिए भविष्य में समय उपलब्ध था.
आलोक मधु की अब तक भूमिका से इतना खुश था कि उस की इच्छा हुई किसी रैस्तरां में शाम को कुछ समय उस के साथ बिताए. कनाट प्लेस की एक ज्वैलरी शौप से उस की पसंद के कुछ जेवर खरीद कर उसे गिफ्ट करते हुए उस ने कहा, ‘‘मधु, वैसे तो तुम्हारे पास काफी गहने हैं लेकिन मैरिज एनिवर्सरी न मना पाने के कारण हम कोई खास खुशी तो मना नहीं पाते हैं, यह गिफ्ट तुम यही समझ कर रख लो कि आज हम ने अपने विवाह की वर्षगांठ मना ली है. मम्मीपापा को इस के विषय में बता सकती हो. हम धूमधाम से तभी एनिवर्सरी मनाएंगे जब अंशू अपना जन्मदिन खुशी के साथ दोस्तों को बुला कर मनाना शुरू कर देगा.’’
रैस्तरां में उन दोनों की बातचीत बड़ी प्यारभरी हुई. डिनर के बाद जब वे रैस्तरां से बाहर निकले तो आलोक ने मधु का हाथ अपने हाथ में ले कर उस का स्पर्श महसूस करते हुए कहा, ‘‘मधु, मैं इंतजार में हूं कि कब हम लोग हनीमून के लिए किसी हिलस्टेशन पर जाएंगे. जब ऐसा तुम भी महसूस करो, मुझे बता देना. हम लोग इसी बहाने अंशू को भी साथ ले चल कर घुमा लाएंगे.’’
‘‘तुम यहां झगड़ा करने लगे हो… बच्चों के कितनी चोटें लगी हैं… तुम से यह नहीं दिख रहा. इन्हें पहले तुरंत अस्पताल ले जाओ,’’ सुमित रिकशे वाले पर बरस पड़ा. रिकशे वाला उसे पहचानता था. बोला, ‘‘साहब, मेरा रिकशा तो पूरी तरह टूट गया… जब तक भरपाई नहीं होगी तब तक नहीं छोड़ूंगा इन को.’’ ‘‘चाहे बच्चों का नुकसान हो जाए,’’ सुमित दहाड़ते हुए बोला, ‘‘मैं बच्चों को अस्पताल ले कर जा रहा हूं,’’ कह वह बच्चों को अपने साथ कार तक ले आया. बच्चों को इस हाल में देख कर राशि भी घबरा गई, ‘‘यह क्या हुआ?’’ ‘‘ऐक्सीडैंट हो गया… बच्चे इस समय स्कूल से लौट रहे होंगे,’’ सुमित बोला, ‘‘तुम मनीषा व संजना को फोन कर दो. मैं कार मोड़ कर इन्हें अस्पताल ले जाता हूं. उन्हें वहीं आने के लिए कह दो,’’ और फिर सुमित बच्चों को अस्पताल ले गया. जब तक दोनों बच्चों के मातापिता अस्पताल पहुंचे तब तक मयंक के सिर पर टांके और खुशी के हाथ में प्लास्टर चढ़ चुका था. संजना व मनीषा और उन के पतियों के कृतज्ञन चेहरे बिना कहे भी बहुत कुछ कह रहे थे.
‘‘अभी तो स्थिति कुछ ऐसी बन गई है कि तुम्हारी तीनों सहेलियों के मुंह से फिलहाल बोल नहीं फूटेंगे…’’ सुमित हंस कर राशि की खिंचाई करते हुए बोला, ‘‘फिलहाल कुछ दिन तक तो बहुत मिठास घोल कर बातें करने वाली हैं तीनों… कम से कम जब तक बच्चे ठीक नहीं हो जाते.’’ ‘‘हां, यह तो है. थोड़े दिन की टैंशन खत्म, राशि हंसने लगी.’’ आजकल सबकुछ बहुत अच्छा चल रहा है. शिवानी, संजना, मनीषा, राशि चारों नीचे टहलती हुई मिल जातीं तो बढि़या बातें होतीं. चारों में हंसीमजाक होती, चुहलबाजी भी होती. राशि को अच्छा लग रहा था कि चलो अब सब अच्छा रहेगा. 2 महीने गुजर गए. एक दिन सुबह राशि ने दूध लेने के लिए दरवाजा खोला तो दरवाजे के बीचोंबीच कुत्ते की पौटी पड़ी थी, उफ, राशि मन ही मन भड़क गई कि फिर वही… अब कुछ कहेगी तो मनीषा फिर भड़क जाएगी और नहीं कहती है तो रोज पौटी साफ करनी पड़ेगी. दूसरे दिन सुबह थोड़ा जल्दी उठ कर राशि ने दरवाजा खोल दिया और ऐसे बैठ गई कि यदि कुत्ता पौटी करने आए तो उसे दिखाई दे.
थोड़ी देर में मनीषा का कुत्ता सचमुच आ गया. राशि ने जोर से डांट कर भगा दिया. इसी बीच दूध वाला भी आ गया. दूध वाले से बोली, ‘‘भैया, जरा नीचे की घंटी बजा कर बता देना कि आप का डौगी फिर यहां दरवाजे के आगे पौटी करने लगा है.’’ दूसरे दिन राशि नीचे टहल रही थी, तो मनीषा ने उसे देख कर फिर मुंह फेर लिया. ‘उफ, अब संजना और रजनी भी यही करेंगी.’
वह मन ही मन बड़बड़ाई. फिर उस ने भी तय कर लिया कि वह भी किसी की परवाह नहीं करेगी और फिर मुंह पलट टहलने दूसरी तरफ चली गई. रात को सुमित से बोली, ‘‘तुम ठीक कहते थे… मुझे भी यहां रहना अच्छा नहीं लग रहा… यह फ्लैट बेच कर कहीं इंडीपैंडैंट घर देखो.’’ सुमित ने थोड़ी देर उस के चेहरे को निहारा, फिर बोला, ‘‘ठीक है, कल ही बात करता हूं किसी प्रौपर्टी डीलर से.’’ सुमित के गालब्लैडर में पथरी थी. काफी समय से डाक्टर उसे औपरेशन के लिए कह रहे थे. पर आजकल करतेकरते सुमित टाल रहा था. लेकिन इस बार जब उसे दोबारा से दर्द हुआ तो डाक्टर ने उसे औपरेशन कराने की सख्त हिदायत दे डाली. आखिर सुमित औपरेशन के लिए तैयार हो गया. औपरेशन की डेट फिक्स कर उस ने औफिस से छुट्टी ले ली.
राशि के दोनों बच्चे बहुत छोटे तो नहीं थे, पर उन के खानेपीने की समस्या तो थी ही. औपरेशन के विषय में उस ने सिर्फ शिवानी को ही बताया था, पर यह खबर जंगल में आग की तरह पूरे अपार्टमैंट में फैल गई. सुमित औपरेशन के लिए अस्पताल में ऐडमिट हुआ तो सारा ‘अनामिका अपार्टमैंट’ जैसे वहीं आ गया. सुमित का औपरेशन ठीकठाक हो गया. अस्पताल में कहां से उस के लिए खाना पहुंच रहा है, कहां से सूप, दलिया, खिचड़ी पहुंच रही है, उस के बच्चे कहां खाना खा रहे हैं, बच्चे स्कूल कैसे जा रहे हैं, उन को टिफिन कौन बना कर दे रहा है, घर में काम करने वाली से काम कौन करवा रहा है ये सब सोचने की राशि को फुरसत नहीं थी. बस सारे काम हो रहे थे.
शिवानी के साथ रजनी, संजना, मनीषा बढ़चढ़ कर सब कुछ कर रही थीं. कहीं से नहीं लग रहा था कि वे कभी नाराज भी होती होंगी. सुमित घर आ गया और फिर ठीक हो कर औफिस भी जाने लगा. लेकिन राशि की सोच इस बीच रास्ता बदल चुकी थी. कहीं नहीं जाना है उसे यहां से. यहीं रहेगी. अजीब सा दिल जुड़ गया है इन सब के साथ… छोटेछोटे सुखदुख हैं सब के साथ रहने में… सब जगह कुछ न कुछ होंगे… चलता है. उस ने सोचा सुमित को आज ही न करना पड़ेगा. शिवानी का तरीका सही है, सब के साथ भी और सब से अलग भी सोच कर राशि मुसकरा पड़ी.
चपरासी तो इसलिए खुश हैं कि बाबुओं की तीमारदारी से उन्हें अब कुछ राहत मिलेगी. मेकैनिक खुश हैं कि शिवेन दत्त तकनीकी जानकारी रखते हैं और उन का चयन योग्यता के आधार पर हुआ है, किसी की सिफारिश से नहीं.
दूर संचार विभाग के मैनेजर पद पर आंखें तो बहुत से लोग गड़ाए बैठे थे मगर इन में से एक भी तकनीकी जानकारी नहीं रखता था और विभाग को ऐसे इंजीनियर की तलाश थी जो आज के तेज रफ्तार संचार माध्यमों का सही ढंग से संचालन कर सके. इसीलिए चयन कार्यक्रम में पूरी तरह से पारदर्शिता बरती गई.
दूर संचार विभाग में काम करने वाली महिलाओं का अपना एक संगठन भी था जिस की अध्यक्ष स्वर्णा कपूर थी. वह बोलती कम पर लिखती अधिक थी. आएदिन किसी न किसी पुरुषकर्मी की शिकायत लिख कर वह अधिकारी के पास भेजती रहती थी और पुरुषकर्मी अपना शिकायतीपत्र पी.ए. को कुछ दे कर हथिया लेते थे. कहने का मतलब यह कि स्वर्णा कपूर किसी का कुछ भी बिगाड़ नहीं सकी.
नई झाड़ू जरा जोरदार सफाई करती है. इस कहावत को ध्यान में रखते हुए सभी पुरुषकर्मी कुछ अधिक चौकन्ने हो गए थे.
शिवेन दत्त ने स्वर्णा कपूर को पहली बार तब देखा जब वह लंबी छुट्टी मांगने उन के पास आई. साड़ी का पल्लू शौल की तरह लपेटे वह किसी मूर्ति की तरह मेज के पास जा खड़ी हुई. शिवेन दत्त खामोशी की उस मूर्ति को देखते ही हतप्रभ रह गए.
स्वर्णा पलकें झुकाए दृढ़ स्वर में बोली, ‘‘अगर आप छुट्टी मंजूर नहीं करेंगे तो मैं नौकरी से इस्तीफा दे दूंगी, क्योंकि मैं कभी छुट्टी नहीं लेती हूं.’’
शिवेन दत्त जैसे जाग पड़े, ‘‘तो फिर आज क्यों? और वह भी इतनी लंबी छुट्टी ली जा रही है?’’
‘‘एम.ए. फाइनल की परीक्षा देनी है मुझे.’’
शाम को काम खत्म कर शिवेन जाने लगे तो अपने पी.ए. से पूछ बैठे, ‘‘कब से हैं मिसेज कपूर यहां?’’
‘‘5 बरस तो हो ही गए हैं. पर सर, आप इन्हें मिसेज नहीं मिस कहिए.’’
‘‘शटअप,’’ शिवेन ने डांट दिया.
बचपन में मैनिंजाइटिस होने से स्वर्णा का मुंह टेढ़ा हो गया और जवानी में वह हताश व कुंठित थी, क्योंकि दोनों छोटी बहनों की शादी हो चुकी थी.
स्वर्णा को सितार सिखाने वाली महिला, जिसे पति की जगह दूर संचार विभाग में नौकरी मिली थी, ने स्वर्णा को दूर संचार विभाग में काम करने का रास्ता दिखाया और वह टेलीफोन आपरेटर बन गई.
शिवेन का अपने विभाग पर ऐसा दबदबा कायम हुआ कि हर बात में निंदा करने वाले भी अब उन की बात मानने लगे. यही नहीं, उन्होंने अपनी मेजकुरसी हाल में ही एक ओर लगवा ली ताकि सब को उन के होने का एहसास बना रहे. उन से खार खाने वाले अधेड़ उम्र के सहकर्मी भी उन के विनम्र स्वभाव से दब गए.
3 महीने पलक झपकते ही निकल गए. स्वर्णा जब लौट कर दफ्तर आई तो किसी पुराने मनचले ने फब्ती कसी, ‘‘डिगरी पर डिगरी लिए जाओ, बरात नहीं आने वाली.’’
इस फब्ती से प्रथम श्रेणी में डिगरी हासिल करने का गर्व व खुशी मटियामेट हो गई. स्वर्णा ने एक बार फिर अपने आंसू पी लिए.
शिवेन के पी.ए. ने जा कर जब यह छिछोरा व्यंग्य उन्हें सुनाया तो वह भी तिलमिला पड़े पर वह जानते थे कि स्वर्णा उन से कहने नहीं आएगी.
अगली बार वह स्वर्णा के सामने से गुजरे तो अनायास रुक गए और एक अभिभावक की तरह उन्होंने नम्र स्वर में पूछा, ‘‘पास हो गईं?’’
‘‘जी,’’ स्वर्णा ने गरदन नीची किए ही उत्तर दिया.
‘‘मिठाई नहीं खिलाओगी?’’
‘‘जी, पापाजी से कह दूंगी.’’
अगले दिन स्वर्णा मिठाई का कटोरदान ले कर शिवेन की मेज के सामने जा खड़ी हुई तो वह कुछ झेंप से गए.
‘‘अरे, आप…मैं ने तो यों ही कह दिया था.’’
‘‘मैं ने खुद बनाए हैं,’’ स्वर्णा उत्साह से बोली.
शिवेन ने 1 लड्डू उठा लिया और कहा कि बाकी लड्डुओं को अपने सहकर्मियों में बांट दो.
इस के कुछ दिन बाद ही सरकारी आदेश आया कि रात की ड्यूटी के लिए कुछ टेलीफोन आपरेटर रखे जाएंगे जिन्हें तनख्वाह के अलावा अलग से भत्ता मिलेगा. मौजूदा कर्मचारियों को प्राथमिकता दी जाएगी. स्वर्णा ने रात की शिफ्ट में काम करने का मन बनाया तो मिसेज ठाकुर भी उस के साथ हो लीं. तय हुआ कि रात को आते समय दफ्तर के ही सरकारी चौकीदार को कुछ रुपए महीना दे देंगी ताकि वह उन को घर तक छोड़ जाया करेगा. यह सबकुछ इतना गोपनीय ढंग से हुआ कि विभाग में किसी को पता ही नहीं चला.
‘‘यह क्या है शैलेश? तुम्हें मना किया था न कि अगली बार लेट होने पर क्लास में एंट्री नहीं मिलेगी,’’ प्रोफैसर महेंद्र सिंह गुस्से से चीख उठे.
‘‘सौरी सर, आज आखिरी दिन था मजार में हाजिरी लगाने का, आज 40 दिन पूरे हो गए हैं, कल से मैं समय से पहले ही हाजिरी दर्ज करा लूंगा.’’
‘‘यह क्या मजार का चक्कर लगाते रहते हो? इतना पढ़नेलिखने के बाद भी अंधविश्वासी बने हो,’’ प्रोफैसर ने व्यंग्य किया.
‘‘सर, ऐसा न कहिए,’’ एक छात्र बोल उठा. ‘‘सर, आप को रेलवे स्टेशन पर बनी मजार की ताकत का अंदाजा नहीं है,’’ दूसरे छात्र ने हां में हां मिलाई. ‘‘सर, आप ने देखा नहीं, मजार 2 प्लेटफौर्म्स के बीच में बनी है, तीसरे, चौथे, 5वें प्लेटफौर्म्स जगह छोड़ कर बनाए गए हैं,’’ एक कोने से आवाज आई.
‘‘सर, अंगरेजों के जमाने से ही इस मजार का बहुत नाम है, 40 दिनों की नियम से हाजिरी लगाने पर हर मनोकामना पूरी हो जाती है,’’ किसी छात्र ने ज्ञान बघारा.
आज भौतिकी की क्लास में मजार का पूरा इतिहासभूगोल ही चर्चा का विषय बना रहा. प्रोफैसर भी इस वार्त्तालाप को सुनते रहे.
महेंद्र सिंह का पूरा छात्रजीवन व नौकरी के शुरू के वर्ष भोपाल में बीते हैं. पिछले वर्ष उन्हें इस छोटे से जिले से प्रोफैसर का औफर आया तो वे अपनी पत्नी को ले कर इस कसबेनुमा जिले परसिया में चले आए, जहां सुविधा व स्वास्थ्य के मूलभूत साधन भी उपलब्ध नहीं हैं. इस कसबे को जिले में बदलने के 5 वर्ष ही हुए हैं, इसलिए विकास के नाम पर तहसील, जिला अस्पताल व सड़कों का विस्तार कार्य अभी पूरा नहीं हुआ है.
सरकारी अस्पताल में जरूरी उपकरण और विशेषज्ञ डाक्टर्स की कमी बनी हुई है. बेतरतीब तरीकों से बने मकानों के बीच में, कहींकहीं सड़कें बन गई हैं तो सीवर और नाली का अभी कोईर् अतापता नहीं है.
आसपास के गांवों के समर्थ लोग इस शहर में मकान बना कर रहने तो लगे हैं पर मानसिकता और आचरण से वे
अभी भी गंवई विचारधारा से जुड़े हैं. केवल 3 से 4 किलोमीटर के दायरे में इस कसबेनुमा शहर की हद सिमट कर रह गई है. इस दायरे से बाहर नदी है, जंगल हैं और हैं शुद्ध प्राकृतिक हवा के संग हरेभरे खेतखलिहान के नजारे. जो भी बैंक, तहसील व दूसरे विभागों से ट्रांसफर हो कर, दूरदराज से यहां आते हैं, वे अच्छे बाजार, संचार साधनों की असुविधा, यातायात के साधनों की कमी से उकता कर जल्दी ही इस जगह से भाग जाना चाहते हैं.
नए खुले आईटीआई में महेंद्र सिंह को उन के अनुभव के आधार पर प्रोफैसर के पद का औफर मिला, तो वे मना न कर सके और भोपाल के अपने संयुक्त परिवार को छोड़ कर अपनी पत्नी को साथ लिए यहां चले आए. पत्नी सुजाता बेहद आधुनिक व उच्च शिक्षित है, इसीलिए कभीकभार वह भी कालेज में गैस्ट फैकल्टी बन क्लास लेने आ जाती.
सुजाता जब भी कालेज में आती, छात्रों की बांछें खिल जातीं. वैसे तो यह कोएड इंस्टिट्यूट है किंतु लड़कियों की संख्या उंगलियों में गिनी जा सकती है. लड़कियां साधारण ढंग से तैयार हो कर कालेज आती हैं. फैशन से उन का दूरदूर तक कोई नाता नहीं हैं. बस, बालों की खजूरी चोटी या पफ उठा बाल बना भर लेने से उन का शौक पूरा हो जाता है.
नीले कुरते और सफेद सलवारदुपट्टा डाले 18 से 20 वर्षीया सहपाठिनों के सामने 35 वर्षीया सुजाता भारी पड़ती. नाभि दिखने वाली साड़ी, खुले और करीने से कटे बाल, गहरी लिपस्टिक से सजे होंठ और आंखों में गहरा काजल सजाए वह जब भी क्लास लेने आती, लड़कों में मैम को प्रभावित करने की होड़ मच जाती. वे उसे फिल्मी हीरोइन से कम न समझते.
महेंद्र सिंह अपने साथी शिक्षकों के बीच गर्व से गरदन अकड़ा कर घूमते, मानो चुनौती सी देते हों कि मेरी बीवी से बढ़ कर तुम्हारी बीवियां हैं क्या. साथी शिक्षक पीठ पीछे सुजाता और महेंद्र का मजाक बनाते, मगर उन के सामने उन की जोड़ी की तारीफ में कसीदे काढ़ते.
उस दिन महेंद्र जब घर लौटे तो चाय पीते हुए, दिनभर की चर्चा में मजार का जिक्र करना न भूले. यह सुनते ही निसंतान सुजाता की आंखें एक आस से चमक उठीं कि हो सकता है कि इसीलिए ही समय उसे यहां परसिया खींच लाया है.
सुजाता जितनी वेशभूषा से आधुनिक थी उतनी ही धार्मिक थी. आएदिन घर में महिलाओं को बुला कर धार्मिक कार्यक्रम करवाना उस की दिनचर्या में शामिल था. इसी वजह से वह अपने महल्ले वालों में काफी लोकप्रिय हो गईर् थी.
आसपास के मकानों में ज्यादातर नजदीकी गांव से आ कर बसने वाले परिवार थे. वे दोचार सालों के भीतर ही परसिया में अपने छोटेबड़े बच्चों को पढ़ाने के लिए घर बना कर रहने आ गए थे. उन में से कुछ पंडित, कुछ पटेल तो एकदो राठौर परिवार थे.
फ्लाइट बैंगलुरु पहुंचने ही वाली थी, विहान पूरे रास्ते किसी कठिन फैसले को लेने में उलझा हुआ था, इसी बीच मोबाइल पर आते उस नंबर को भी वह लगातार इग्नोर करता रहा.
अब नहीं सींच सकता था वो प्यार के उस पौधे को, उस का मुरझा जाना ही बेहतर है. इसलिए जितना मुमकिन हो सका, उस ने मिशिका को अपनी फोन मैमोरी से रिमूव कर दिया. मुमकिन नहीं था यादों को मिटाना, नहीं तो आज वो उसे दिल की मैमोरी से भी डिलीट कर देता सदा के लिए.
‘‘सदा के लिए… नहींनहीं… हमेशा के लिए नहीं, मैं मिशी को एक मौका और दूंगा,‘‘ विहान मिशी के दूर होने के खयाल से ही डर गया.
‘‘शायद, ये दूरियां ही हमें पास ले आएं,‘‘ बस यही सोच कर उस ने मिशी की लास्ट फोटो भी डिलीट कर दी.
इधर मिशिका परेशान हो गई थी, 5 दिन से विहान से कोई कौंटेक्ट नहीं हुआ था.
‘‘हैलो दी, विहान से बात हुई क्या? उस का ना मोबाइल फोन लग रहा है और ना ही कोई मैसेज पहुंच रहा है. औफिस में एक दिक्कत आ गई है. जरूरी बात करनी है,‘‘ मिशी बिना रुके बोलती गई.
‘‘नहीं, मेरी कोई बात नहीं हुई, और दिक्कत को खुद ही सुलटाना सीखो,‘‘ पूजा ने इतना कह कर फोन काट दिया.
मिशी को दी का ये रवैया अच्छा नहीं लगा, पर वह बेपरवाह सी तो हमेशा से ही थीं तो उस ने दी की बात पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया.
मिशिका (मिशी) मुंबई में एक कंपनी में जौब करती है. उस की बड़ी बहन है पूजा, जो अपने मौमडैड के साथ रहते हुए कालेज में पढ़ाती है. विहान ने अभी बैंगलुरु में नई मल्टीनेशनल कंपनी ज्वाइन की है, उस की बहन संजना अभी स्टडी कर रही है. मिशी और विहान के परिवारों में बड़ा प्रेम है. वे पड़ोसी थे. विहान का घर मिशी के घर से कुछ ही दूरी पर था. दो परिवार होते हुए भी वे एक परिवार जैसे ही थे. चारों बच्चे साथसाथ बड़े हुए.
गुजरते दिनों के साथ मिशी की बेपरवाही कम होने लगी थी. विहान से बात न हुए आज पूरे 3 महीने बीत गए थे. मिशी को खालीपन लगने लगा था. बचपन से अब तक ऐसा कभी नहीं हुआ था. जब पास थे तो वे दिन में कितनी ही बार मिलते थे, और जब जौब के कारण दूर हुए तो फोन और चैट का हिसाब लगाना भी आसान काम न था.
2-3 महीने गुजरने के बाद मिशी को विहान की बहुत याद सताने लगी थी. वह जब भी घर पर फोन करती, तो मम्मीपापा, दीदी सभी से विहान के बारे में पूछती, आंटीअंकल से बात होती, तब भी… जवाब एक ही मिलता…वह तो ठीक है, पर तुम दोनों की बात नहीं हुई, ये कैसे मुमकिन है. अकसर जब मिशी कहती कि महीनों से बात नहीं हुई, तो सब झूठ ही समझते थे.
दशहरा आ रहा था, मिशी जितनी खुश घर जाने को थी, उस से कहीं ज्यादा खुश यह सोच कर थी कि अब विहान से मुलाकात होगी. इन छुट्टियों में वह भी तो आएगा.
‘‘बहुत झगड़ा करूंगी, पूछूंगी उस से, ये क्या बचपना है, अच्छी खबर लूंगी, क्या समझता है अपनेआप को… ऐसे कोई करता है क्या?‘‘ ऐसे ही अनगिनत बातों को दिल में समेटे वह घर पहुंची. त्योहार की रौनक मिशी की उदासी कम ना कर सकी. छुट्टियां खत्म हो गईं. वापसी का समय आ गया, पर नहीं आया तो वह, जिस का मिशी बेसब्री से इंतजार कर रही थी. दोनों घरों की दूरियां नापते मिशी को दिल की दूरियों का अहसास होने लगा था. अब इंतजार के अलावा उस के पास कोई रास्ता नहीं था.
मिशी दीवाली की शाम ही घर पहुंच पाई थी. लक्ष्मी पूजन के बाद डिनर की तैयारियां चल रही थीं. त्योहारों पर दोनों फैमिली साथ ही समय बिताती गपशप, मस्ती, खाना, सब खूब ऐंजौय करते थे.
आज विहान की फैमिली आने वाली थी. मिशी खुशी से झूम उठी थी. आज तो विहान से बात हो ही जाएगी. पर उस रात जो हुआ उस का मिशी को अंदाजा भी नहीं था. दोनों परिवारों ने सहमति से पूजा और विहान का रिश्ता तय कर दिया. मिशी को छोड़ सभी बहुत खुश थे.