
कभीकभीजिंदगी में वही शख्स आप को सब से ज्यादा दुख पहुंचाता है, जिसे आप सब से ज्यादा प्यार करते हैं. विसंगति यह कि आप उस से कुछ कह भी नहीं पाते, क्योंकि आप को हक ही नहीं उस से कुछ कहने का. जब तक रिश्ते को नाम न दिया जाए कोई किसी का क्या लगता है? कच्चे धागों सा प्यार का महल एक झटके में टूट कर बिखर जाता है.
‘इन बिखरे एहसासों की किरचों से जख्मी हुए दिल की उदास दहलीज के आसपास आप का मन भटकता रह जाता है. लमहे गुजरते जाते हैं पर दिल की कसक नहीं जाती.’ एक जगह पढ़ी ये पंक्तियां शैली के दिल को गहराई से छू गई थीं. आखिर ऐसे ही हालात का सामना उस ने भी तो किया था. किसी को चाहा पर उसी से कोई सवाल नहीं कर सकी. चुपचाप उसे किसी और के करीब जाता देखती रही.
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‘‘हैलो आंटी, कहां गुम हैं आप? तैयार नहीं हुईं? हमें चलना है न मंडी हाउस, पेंटिंग प्रदर्शनी में मम्मी को चीयर अप करने?’’ सोनी बोली.
‘‘हां, बिलकुल. मैं आ रही हूं मेरी बच्ची’’, शैली हड़बड़ा कर उठती हुई बोली.
आज उस की प्रिय सहेली नेहा के जीवन का बेहद खास दिन था. आज वह पहली दफा वर्ल्ड क्लास पेंटिंग प्रदर्शन में हिस्सा ले रही थी.
हलके नीले रंग का सलवार सूट पहन कर वह तैयार हो गई.
अब तक सोनी स्कूटी निकाल चुकी थी. बोली, ‘‘आओ आंटी, बैठो.’’
वह सोनी के पीछे बैठ गई. स्कूटी हवा से बातें करती मिनटों में अपने नियत स्थान पर
पहुंच गई.
शैली बड़े प्रेम से सोनी को देखने लगी. स्कूटी किनारे लगाती सोनी उसे बहुत स्मार्ट और प्यारी लग रही थी.
सोनी उस की सहेली नेहा की बेटी थी. दिल में कसक लिए घर बसाने की इच्छा नहीं हुई थी शैली की. तभी तो आज तक वह तनहा जिंदगी जी रही थी. नेहा ने सदा उसे सपोर्ट किया था. नेहा तलाकशुदा थी, दोनों सहेलियां एकसाथ रहती थीं. नेहा का रिश्ता शादी के बाद टूटा था और शैली का रिश्ता तो जुड़ ही नहीं सका था.
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पेंटिंग्स देखतेदेखते शैली नेहा के साथ काफी आगे निकल गई. नेहा की एक पेटिंग क्व1 लाख 70 हजार में बिकी तो शैली ने हंस कर कहा, ‘‘यार, मुझे तो इस पेटिंग में ऐसा कुछ भी खास नजर नहीं आ रहा.’’
‘‘वही तो बात है शैली,’’ नेहा मुसकराई, ‘‘किसी शख्स को कोई पेंटिंग अमूल्य नजर आती है तो किसी के लिए वही आड़ीतिरछी रेखाओं से ज्यादा कुछ नहीं होती. जरूरी है कला को समझने की नजरों का होना.’’
‘‘सच कहा नेहा. कुछ ऐसा ही आलम जज्बातों का भी होता है न. किसी के लिए जज्बातों के माने बहुत खास होते हैं तो कुछ के लिए इन का कोई मतलब ही नहीं होता. शायद जज्बातों को महसूस करने वाला दिल उन के पास होता ही नहीं है.’’
शैली की बात सुन कर नेहा गंभीर हो गई. वह समझ रही थी कि शैली के मन में कौन सा तूफान उमड़ रहा है. यह नेहा ही तो थी जिस ने सालों विराज के खयालों में खोई शैली को देखा था और दिल टूटने का गम सहती शैली को फिर से संभलने का हौसला भी दिया था. शैली ने आज तक अपने जज्बात केवल नेहा से ही तो शेयर किए थे.
नेहा ने शैली का कंधा थपथपाते हुए कहा, ‘‘नो शैली. उन यादों को फिर से खुद पर हावी न होने दो. बीता कल तकलीफ देता है. उसे कभी याद नहीं करना चाहिए.’’
‘‘कैसे याद न करूं नेहा जब उसी कल ने मेरे आज को बेस्वाद बना दिया. उसे कैसे भूल सकती हूं मैं? जानती हूं कि जिस विराज की खातिर आज तक मैं सीने में इतना दर्द लिए जी रही हूं, वह दुनिया के किसी कोने में चैन की नींद सो रहा होगा, जिंदगी के सारे मजे ले रहा होगा.’’
‘‘तो फिर तू भी ले न मजे. किस ने मना किया है?’’
‘‘वही तो बात है नेहा. उस ने हमारे इस प्यार को महसूस कर के भी कोई अहमियत नहीं दी. शायद जज्बातों की कोई कद्र ही नहीं थी. मगर मैं ने उन जज्बातों की बिखरी किरचों को अब तक संभाले रखा है.’’
‘‘तेरा कुछ नहीं हो सकता शैली. ठंडी सांस लेती हुई नेहा बोली तो शैली मुसकरा पड़ी.
‘‘चल, अब तेरी शाम खराब नहीं होने दूंगी. अपनी प्रदर्शनी की सफलता का जश्न मना ले. आखिर रिश्तों और जज्बातों के परे भी कोई जिंदगी होती है न,’’ नेहा ने कहा.
शैली और नेहा बाहर आ गईं. सोनी किसी लड़के से बातें करने में मशगूल थी. मां को देख उस ने लड़के को अलविदा कहा और इन दोनों के पास लौट आई.
‘‘सोनी, यह कौन था?’’ नेहा ने पूछा.
‘‘ममा, यह मेरा फ्रैंड अंकित था.’’
‘‘खास फ्रैंड?’’
‘‘ऐसा कुछ नहीं है ममा. बट हां, थोड़ा खास है,’’ कह कर वह हंस पड़ी.
तीनों ने रात का खाना बाहर ही खाया.
रात में सोते वक्त शैली फिर से पुरानी यादों में खो गई. एक समय था जब उस के सपनों में विराज ही विराज था. शालीन, समझदार और आकर्षक विराज पहली नजर में ही उसे भा गया था. मगर बाद में पता चला कि वह शादीशुदा है. शैली क्या करती? उस का मन था कि मानता ही नहीं था.
नेहा ने तब भी उसे टोका था, ‘‘यह गलत है शैली. शादीशुदा शख्स के बारे में तुम्हें कुछ सोचना ही नहीं चाहिए.’’
तब, शैली ने अपने तर्क रखे थे, ‘‘मैं क्या करूं नेहा? जो एहसास मैं ने उसे के लिए
महसूस किया है वह कभी किसी के लिए नहीं किया. मुझे उस के विवाहित होने से क्या वास्ता? मेरा रिश्ता तो भावनात्मक स्तर पर है दैहिक परिधि से परे.’’
‘‘पर यह गलत है शैली. एक दिन तू भी समझ जाएगी. आज के समय में कोई इस तरह के रिश्तों को नहीं मानता.’’
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‘‘यह क्या राजीव, तुम अभी तक कंप्यूटर में ही उलझे हुए हो?’’ रिया घर में घुसते ही तीखे स्वर में बोली थी.
‘‘कंप्यूटर में उलझा नहीं हूं, काम कर रहा हूं,’’ राजीव ने उतने ही तीखे स्वर में उत्तर दिया था.
‘‘ऐसा क्या कर रहे हो सुबह से?’’
‘‘हर बात तुम्हें बतानी आवश्यक नहीं है और कृपया मेरे काम में विघ्न मत डालो,’’ राजीव ने झिड़क दिया तो रिया चुप न रह सकी.
‘‘बताने को है भी क्या तुम्हारे पास? दिन भर बैठ कर कंप्यूटर पर गेम खेलते रहते हो. कामधंधा तो कुछ है नहीं. मुझे तो लगता है कि तुम काम करना ही नहीं चाहते. प्रयत्न करने पर तो टेढ़े कार्य भी बन जाते हैं पर काम ढूंढ़ने के लिए हाथपैर चलाने पड़ते हैं, लोगों से मिलनाजुलना पड़ता है.’’
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‘‘तो अब तुम मुझे बताओगी कि काम ढूंढ़ने के लिए मुझे क्या करना चाहिए?’’
‘‘ठीक कहा तुम ने. मैं होती कौन हूं तुम से कुछ कहने वाली. मैं तो केवल घर बाहर पिसने के लिए हूं. बाहर काम कर के लौटती हूं तो घर वैसे का वैसा पड़ा मिलता है.’’
‘‘ओह, मैं तो भूल ही गया था कि अब तुम ही तो घर की कमाऊ सदस्य हो. मुझे तो सुबह उठते ही तुम्हें साष्टांग प्रणाम करना चाहिए और हर समय तुम्हारी सेवा में तत्पर रहना चाहिए. मैं अपनी तरफ से भरसक प्रयत्न कर भी रहा हूं कि महारानीजी को कोई कष्ट न पहुंचे. फिर भी कोई कोरकसर रह जाए तो क्षमाप्रार्थी हूं,’’ राजीव का व्यंग्यपूर्ण स्वर सुन कर छटपटा गई थी रिया.
‘‘क्यों इस प्रकार शब्दबाणों के प्रयोग से मुझे छलनी करते हो राजीव? अब तो यह तनाव मेरी सहनशक्ति को चुनौती देने लगा है,’’ रिया रो पड़ी थी.
‘‘यह क्यों नहीं कहतीं कि बेकार बैठे निखट्टू पति को तुम सह नहीं पा रही हो. दिन पर दिन कटखनी होती जा रही हो.’’
क्रोधित स्वर में बोल राजीव घर से बाहर निकल गया था. रिया अकेली बिसूरती रह गई थी.
मातापिता को आपस में तूतू मैंमैं करते देख दोनों बच्चे किशोर और कोयल अपनी किताबें खोल कर बैठ गए थे और कनखियों से एकदूसरे को देख कर इशारों से बात कर रहे थे. शीघ्र ही इशारों का स्थान फुसफुसाहटों ने ले लिया था.
‘‘मम्मी बहुत गंदी हैं, घर में घुसते ही पापा पर बरस पड़ीं. पापा कितना भी काम करें मम्मी उन्हें चैन से रहने ही नहीं देतीं,’’ कोयल ने अपना मत व्यक्त किया था.
‘‘मम्मी नहीं पापा ही गंदे हैं, घर में काम करने से कुछ नहीं होता. बाहर जा कर काम करने से पैसा मिलता है और उसी से घर चलता है. मम्मी बाहर काम न करें तो हम सब भूखे मर जाएं.’’ किशोर ने प्रतिवाद किया तो कोयल उस पर झपट पड़ी थी और दोचार थप्पड़ जमा दिए थे. फिर तो ऐसा महाभारत मचा कि दोनों के रोनेबिलखने पर ही समाप्त हुआ था.
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कोहराम सुन कर रिया दौड़ी आई थी. वह पहले से ही भरी बैठी थी. उस ने दोनों बच्चों की धुनाई कर दी और उन का कं्रदन धीरेधीरे सिसकियों में बदल गया था.
रिया बच्चों को मारपीट कर देर तक शून्य में ताकती रही थी, जबकि चारों ओर फैला अस्तव्यस्त सा उस का घर उसे मुंह चिढ़ा रहा था.
‘मेरे हंसतेखेलते घर को न जाने किस की नजर लग गई,’ उस ने सोचा और फफक उठी. कभी वह स्वयं को संसार की सब से भाग्यशाली स्त्री समझती थी.
आर्थिक मंदी के कारण 6 माह पूर्व राजीव की नौकरी क्या गई घर की सुखशांति को ग्रहण ही लग गया था. वहीं से प्रारंभ हुआ था उन की मुसीबतों का सिलसिला.
80 हजार प्रतिमाह कमाने वाले व्यक्ति के बेरोजगार हो जाने का क्या मतलब होता है. यह राजीव को कुछ ही दिनों में पता चल गया था.
जो नौकरी रिया ने शौकिया प्रारंभ की थी इस आड़े वक्त में वही जीवन संबल बन गई थी. न चाहते हुए भी उसे अनेक कठोर फैसले लेने पड़े थे.
उच्ववर्गीय पौश इलाके के 3 शयनकक्ष वाले फ्लैट को छोड़ कर वे साधारण सी कालोनी के दो कमरे वाले फ्लैट में चले आए थे. पहले खाना बनाने, कपड़े धोने तथा घर व फर्नीचर की सफाई, बरतन धोने वाली अलगअलग नौकरानियां थीं पर अब एक से ही काम चलाना पड़ रहा था. नई कालोनी में 2 कारों को खड़े करने की जगह भी नहीं थी. ऊपर से पैसे की आवश्यकता थी अत: एक कार बेचनी पड़ी थी.
सब से कठिन निर्णय था किशोर और कोयल को महंगे अंतर्राष्ट्रीय स्कूल से निकाल कर साधारण स्कूल में डालने का. रियाराजीव ने बच्चों को यही समझाया था कि पढ़ाई का स्तर ठीक न होने के कारण ही उन्हें दूसरे स्कूल में डाल रहे हैं पर जब एक दिन किशोर ने कहा कि वह मातापिता की परेशानी समझता है और अच्छी तरह जानता है कि वे उसे महंगे स्कूल में नहीं पढ़ा पाएंगे तो राजीव सन्न रह गया था. रिया के मुंह से चाह कर भी कोई बोल नहीं फूटा था.
इस तरह की परिस्थिति में संघर्ष करने वाला केवल उन का ही परिवार नहीं था, राजीव के कुछ अन्य मित्र भी वैसी ही कठिनाइयों से जूझ रहे थे. वे सभी मिलतेजुलते, एकदूसरे की कठिनाइयों को कम करने का प्रयत्न करते. इस तरह हंसतेबोलते बेरोजगारी का दंश कम करने का प्रयत्न करते थे.
अपनी ओर से रिया स्थिति को संभालने का जितना ही प्रयत्न करती उतनी ही निराशा के गर्त्त में गिरती जाती थी. पूरे परिवार को अजीब सी परेशानी ने घेर लिया था. बच्चे भी अब बच्चों जैसा व्यवहार कहां करते थे. पहले वाली नित नई मांगों का सिलसिला तो कब का समाप्त हो गया था. जब से उन्हें महंगे अंतर्राष्ट्रीय स्कूल से निकाल कर दूसरे मध्यवर्गीय स्कूल में डाला गया था, वे न मित्रों की बात करते थे और न ही स्कूल की छोटीमोटी घटनाओं का जिक्र ही करते थे.
रिया को स्वयं पर ही ग्लानि हो आई थी. बिना मतलब बच्चों को धुनने की क्या आवश्यकता थी. न जाने उन के कोमल मन पर क्या बीत रही होगी. भाईबहनों में तो ऐसे झगड़े होते ही रहते हैं. कम से कम उसे तो अपने होश नहीं खोने चाहिए थे पर नहीं, वह तो अपनी झल्लाहट बच्चों पर ही उतारना चाहती थी.
रिया किसी प्रकार उठ कर बच्चों के कमरे में पहुंची थी. किशोर और कोयल अब भी मुंह फुलाए बैठे थे.
रिया ने दोनों को मनायापुचकारा, ‘‘मम्मी को माफ नहीं करोगे तुम दोनों?’’ बच्चों का रुख देख कर रिया ने झटपट क्षमा भी मांग ली थी.
‘‘पर यह क्या?’’ डांट खा कर भी सदा चहकती रहने वाली कोयल फफक पड़ी थी.
‘‘अब हमारा क्या होगा मम्मी?’’ वह रोते हुए अस्पष्ट स्वर में बोली थी.
‘‘क्या होगा का क्या मतलब है? और ऐसी बात तुम्हारे दिमाग में आई कैसे?’’
‘‘पापा की नौकरी चली गई मम्मी. अब आप उन्हें छोड़ दोगी न?’’ कोयल ने भोले स्वर में पूछा था.
‘‘क्या? किस ने कहा यह सब? न जाने क्या ऊलजलूल बातें सोचते रहते हो तुम दोनों,’’ रिया ने किशोर और कोयल को झिड़क दिया था पर दूसरे ही क्षण दोनों बच्चों को अपनी बाहों में समेट कर चूम लिया था.
‘‘हम सब का परिवार है यह. ऐसी बातों से कोई किसी से अलग नहीं होता. हमसब का बंधन अटूट है. पापा की नौकरी चली गई तो क्या हुआ? दूसरी मिल जाएगी. तब तक मेरी नौकरी में मजे से काम चल ही रहा है.’’
‘‘कहां काम चल रहा है मम्मी? मेरे सभी मित्र यही कहते हैं कि अब हम गरीब हो गए हैं. तभी तो प्रगति इंटरनेशनल को छोड़ कर हमें मौडर्न स्कूल में दाखिला लेना पड़ा. ‘टाइगर हाइट्स’ छोड़ कर हमें जनता अपार्टमेंट के छोटे से फ्लैट में रहना पड़ रहा है.’’ किशोर उदास स्वर में बोला तो रिया सन्न रह गई थी.
‘‘ऐसा नहीं है बेटे. तुम्हारे पुराने स्कूल में ढंग से पढ़ाई नहीं होती थी इसीलिए उसे बदलना पड़ा,’’ रिया ने समझाना चाहा था. पर अपने स्वर पर उसे स्वयं ही विश्वास नहीं हो रहा था. बच्चे छोटे अवश्य हैं पर उन्हें बातों में उलझाना बच्चों का खेल नहीं था.
कुछ ही देर में बच्चे अपना गृहकार्य समाप्त कर खापी कर सो गए थे पर रिया राजीव की प्रतीक्षा में बैठे हुए ऊंघने लगी थी.
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मेरी पत्नी शिखा की कविता मौसी रविवार की सुबह 11 बजे बिना किसी पूर्व सूचना के जब मेरे घर आईं तब रितु भी वहीं थी. उन दोनों का परिचय कराते हुए मैं कुछ घबरा उठा था.
2 मिनट रितु से बातें कर के जब वे पानी पीने के लिए रसोई की तरफ चलीं तो मैं भी उन के पीछे हो लिया.
‘‘शिखा कहां गई है?’’ उन्होंने शरारती अंदाज में सवाल किया तो मेरी घबराहट कुछ और बढ़ गई.
‘‘वह मायके गई हुई है, मौसीजी,’’ मैं ने अपनी आवाज को सामान्य रखते हुए जवाब दिया.
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‘‘रहने के लिए?’’
‘‘हां, मौसीजी.’’
‘‘कब लौटेगी?’’
‘‘अगले रविवार को.’’
‘‘बालक, शिखा के पीछे यह कैसा चक्कर चला रहे हो? यह रितु कौन है?’’
मौसी की झटके से कैसा भी खुराफाती सवाल पूछ लेने की आदत से मैं पहले से परिचित न होता तो जरूर हकला उठता. पर मुझे ऐसे किसी सवाल के पूछे जाने का अंदेशा था, इसलिए उन के जाल में नहीं फंसा था.
मैं ने बड़े संजीदा हो कर जवाब दिया, ‘‘मौसीजी, यह रितु शिखा की ही सहेली है. यह पड़ोस में रहती है और उसी से मिलने आई थी. आप उस के और मेरे बारे में कोई गलत बात न सोचें. मैं वफादार पतियों में से हूं.’’
‘‘वे तो सभी होते हैं… जब तक पकड़े न जाएं,’’ अपने मजाक पर जब मौसी खूब जोर से हंसीं तो मैं भी उन का साथ देने को झेंपी सी हंसी हंस पड़ा.
फ्रिज में से ठंडे पानी की बोतल निकालते हुए उन्होंने मुझे फिर से छेड़ा,
‘‘बालक, तुम दोनों की शादी को मुश्किल से 3 महीने हुए हैं और तुम ने उसे घर भेज रखा है? क्या तुम्हें मनचाही पत्नी नहीं मिली है?’’
‘‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है, मौसीजी. शिखा को मैं बहुत प्यार करता हूं. वही जिद कर के मायके भाग जाती है. मेरा बस चले तो मैं उसे 1 रात के लिए भी कहीं न छोड़ूं,’’ मैं ने अपनी आवाज को इतना भावुक बना लिया कि वे मेरी नीयत पर किसी तरह का शक कर ही न सकें.
‘‘देखो, अगर तुम दोनों के बीच कोई मनमुटाव पैदा हो गया है तो मुझे सब सचसच बता दो. मैं तुम्हारी प्रौब्लम यों चुटकी बजा कर हल कर दूंगी,’’ उन्होंने बड़े स्टाइल से चुटकी बजाई.
‘‘हमारे बीच प्यार की जड़ें बहुत मजबूत हैं. आप किसी तरह की फिक्र न करो, मौसीजी,’’ मैं ने यह जवाब दिया तो वे मुसकरा उठीं.
‘‘यू आर ए गुड बौय, नीरज. मेरी बातों का कभी बुरा नहीं मानना,’’ कह उन्होंने आगे बढ़ कर मुझे गले से लगाया और फिर पीने के लिए बोतल से गिलास में पानी डालने लगीं.
ड्राइंगरूम में लौट कर उन्होंने बिना कोई भूमिका बांधे रितु की मुसकराते हुए तारीफ कर डाली, ‘‘रितु, तुम बहुत सुंदर हो.’’
‘‘थैंक यू, मौसीजी,’’ रितु खुश हो गई.
‘‘तुम ने शादी करने के लिए कोई लड़का देख रखा है या मैं तुम्हारे लिए कोई अच्छा सा रिश्ता ढूंढ़ कर लाऊं?’’
‘‘न कोई लड़का ढूंढ़ रखा है न मैं अभी शादी करना चाहती हूं, मौसीजी.’’
‘‘अरे, शादी करने में बहुत ज्यादा देर मत कर देना. शादी के बाद भी लड़की बहुत ऐश कर सकती है. फिर कभीकभी ऐसा भी हो जाता है कि बाद में अच्छे लड़कों के रिश्ते आने बंद हो जाते हैं. मेरी सलाह तो यही है कि तुम शादी के लिए अब फटाफट हां कर दो.’’
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‘‘आप इतना जोर दे कर समझा रही हैं तो मैं राजी हो ही जाती हूं मौसीजी. अब आप ढूंढ़ ही लाइए मेरे लिए कोई अच्छा सा रिश्ता,’’ उस ने नाटकीय ढंग से शरमाने का बढि़या अभिनय किया तो मौसीजी खिलखिला कर हंस पड़ीं.
‘‘तुम सुंदर होने के साथसाथ स्मार्ट और आत्मविश्वास से भरी हुई लड़की भी हो. तुम जिसे मिलोगी वह सचमुच खुशहाल इंसान होगा,’’ मौसीजी ने भावविभोर हो उसे प्यार से गले लगा कर आशीर्वाद दिया और फिर अचानक पूछा, ‘‘तुम कौन सा सैंट लगाती हो, रितु? बड़ी अच्छी महक आ रही है.’’
‘‘यह सैंट मैं ने आर्चीज की शौप से लिया है, मौसीजी. ज्यादा महंगा भी नहीं है.’’
‘‘मैं भी यह सैंट जरूर खरीद कर लाऊंगी. आज तो नीरज और शिखा के साथ कहीं घूम आने की इच्छा ले कर मैं घर से निकली थी. अब मुझे यह साफसाफ बता दो कि तुम दोनों ने पहले से कहीं जाने का कोई प्रोग्राम तो नहीं बना रखा है?’’
‘‘कोई प्रोग्राम नहीं है हमारा. मैं अब चलती हूं. शिखा के आने पर फिर आऊंगी,’’ रितु जाने को उठ खड़ी हुई.
मैं ने उसे रोकने की कोई कोशिश नहीं करी तो वह मौसीजी को नमस्ते कर अपने घर चली गई.
उस के जाते ही मौसीजी ने मुझे फिर छेड़ा, ‘‘मुझे ऐसा क्यों लग रहा है कि मैं ने बिना बताए यहां आ कर रंग में भंग डाल दिया है?’’
‘‘मौसीजी, आप भी बस बेकार में मुझ पर शक किए जा रही हो. शिखा के सामने ऐसा कोई मजाक मत कर देना नहीं तो वह बेकार ही मुझ पर शक करने लग जाएगी,’’ मैं कुछ नाराज हो उठा था.
‘‘तुम टैंशन मत लो, क्योंकि मेरी मजाक करने की आदत से वह भलीभांति परिचित है, बालक. अच्छा, अब तुम मेरे साथ चलने के लिए जल्दी से तैयार हो जाओ.’’
‘‘हमें जाना कहां हैं, मौसीजी?’’
‘‘मैं आज तुम्हारी मुलाकात बड़े खास इंसान से करवाने जा रही हूं,’’ वे रहस्यमयी अंदाज में मुसकरा उठी थीं.
‘‘कौन है यह इंसान, मौसीजी?’’
‘‘क्या तुम्हें पता है कि मैं ने तुम्हारे मौसाजी से दूसरी शादी करी है?’’
‘‘आप मुझ से मजाक मत करो?’’ मैं
चौंक पड़ा.
‘‘अरे, मैं सच बता रही हूं. अपनी पहली शादी के 6 महीने बाद ही मैं ने अपने पहले पति राजीव से तलाक लेने का मन बना लिया था.’’
‘‘क्यों?’’
‘‘कारण बाद में बताऊंगी. हम उन्हीं से मिलने चल रहे हैं.’’
‘‘आप उन से मिलती रहती हैं.’’
‘‘हां. आज के दिन तो जरूर ही मैं उन से मिलने जाती हूं, क्योंकि आज उन का जन्मदिन है.’’
‘‘तलाक होने के बावजूद उन से आप ने अपने संबंध पूरी तरह से खत्म नहीं किए हैं?’’
‘‘करैक्ट.’’
‘‘बस, यह और समझा दो कि आप मुझे उन से क्यों मिलाने ले चल रही हैं?’’
‘‘अरे, अपने भूतपूर्व पति से अकेले मिलने जाना क्या मेरे लिए समझदारी की बात होगी? पता नहीं शराब पी कर मारपीट करने का शौकीन वह बंदा किस मूड में हो? अपनी हिफाजत के लिए मैं तुम्हें साथ ले जा रही हूं, बालक.’’
‘‘इस का मतलब यह हुआ कि उन की शराब पी कर मारपीट करने की आदत के कारण आप ने उन्हें तलाक दिया था?’’
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‘‘यह नंबर 2 पर आने वाला महत्त्वपूर्ण कारण था.’’
‘‘और नंबर 1 वाला कारण क्या था?’’
‘‘वह कारण तुम्हें उन से मिलाने के बाद बताऊंगी,’’ उन्होंने इस विषय पर आगे कोई चर्चा न करते हुए मुझे तैयार हो जाने के लिए बैडरूम की तरफ धकेल दिया था.
घंटेभर बाद घंटी बजाए जाने पर मौसीजी के पहले पति राजीव के घर का दरवाजा उन के पुराने नौकर रामदीन ने खोला. वह मौसीजी को पहचानता था. मैं ने नोट किया कि वह उन्हें देख कर खुश नहीं हुआ. मौसीजी उस से कोई बात किए बिना ड्राइंगरूम की तरफ बढ़ गईं.
लेखक- परशीश
शेखर के लिए मन लगा कर चाय बनाई थी, पर बाहर जाने की हड़बड़ी दिखाते हुए एकदम झपट कर उस ने प्याला उठा लिया और एक ही घूंट में पी गया. घर से बाहर जाते वक्त लड़ा भी तो नहीं जाता. वह तो दिनभर बाहर रहेगा और मैं पछताती रहूंगी. ऐसे समय में उसे घूरने के सिवा कुछ कर ही नहीं पाती.
मैं सोचती, ‘कितना अजीब है यह शेखर भी. किसी मशीन की तरह नीरस और बेजान. उस के होंठों पर कहकहे देखने के लिए तो आदमी तरस ही जाए. उस का हर काम बटन दबाने की तरह होता है.’ कई बार तो मारे गुस्से के आंखें भर आतीं. कभीकभी तो सिसक भी पड़ती, पर कहती उस से कुछ भी नहीं.
शादी को अभी 3 साल ही तो गुजरे थे. एक गुड्डी हो गई थी. सुंदर तो मैं पहले ही थी. हां, कुछ दुबली सी थी. मां बनने के बाद वह कसर भी पूरी सी हो गई. आईने में जब भी अपने को देखती हूं तो सोचती हूं कि शेखर अंदर से अवश्य मुरदा है, वरना मुझे देख कर जरा सी भी प्रशंसा न करे, असंभव है. कालिज में तो मेरे लिए नारा ही था, ‘एक अनार सौ बीमार.’
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दूसरी ओर पड़ोस में ही किशोर बाबू की लड़की थी नीरू. बस, सामान्य सी कदकाठी की थी. सुंदरता के किसी भी मापदंड पर खरी नहीं उतरती थी. परंतु वह जिस से प्यार करती थी वह उस की एकएक अदा पर ऐसी तारीफों के पुल बांधता कि वह आत्मविभोर हो जाती. दिनरात नीरू के होंठों पर मुसकान थिरकती रहती. कभीकभी उस की बहनें ही उस से जल उठतीं.
नीरू मुझ से कहती, ‘‘क्या करूं, दीदी. वह मुझ से खूब प्यार भरी बातें करता है. हर समय मेरी प्रशंसा करता रहता है. मैं मुसकराऊं कैसे नहीं. कल मैं उस के लिए गाजर का हलवा बना कर ले गई तो उस ने इतनी तारीफ की कि मेरी सारी मेहनत सफल हो गई.’’
वास्तव में नीरू की बात गलत न थी. अब कोई मेहनत कर के आग की आंच में पसीनेपसीने हो कर खाना बनाए और खाने वाला ऐसे खाए जैसे कोई गुनाह कर रहा हो तब बनाने वाले पर क्या गुजरती है, यह कोई भुक्तभोगी ही जान सकता है.
जाने शेखर ही ऐसा क्यों है. कभीकभी सोचती हूं, उस की अपनी परेशानियां होंगी, जिन में वह उलझा रहता होगा. दफ्तर की ही क्या कम भागदौड़ है. बिक्री अधिकारी है. आज यहां है तो कल वहां है. आज इस समस्या से उलझ रहा है तो कल किसी दूसरी परेशानी में फंसा है. परंतु फिर यह तर्क भी बेकार लगता है. सोचती हूं, ‘एक शेखर ही तो बिक्री अधिकारी नहीं है, हजारों होंगे. क्या सभी अपनी पत्नियों से ऐसा ही व्यवहार करते होंगे?’
वैसे आर्थिक रूप से शेखर बहुत सुरक्षित है. उस का वेतन हमारी गृहस्थी के लिए बहुत अधिक ही है. वह एक भरेपूरे घर का ऐसा मालिक भी नहीं है कि रोज नईनई उलझनों से पाला पड़े. परिवार में पतिपत्नी के अलावा एक गुड्डी ही तो है. सबकुछ तो है शेखर के पास. बस, केवल नहीं हैं तो उस के होंठों में शब्द और एक प्रेमी अथवा पति का उदार मन. इस के साथ नीरू तो दो पल भी न रहे.
मुझे याद नहीं पड़ता कि कभी शेखर ने मुंह पर मेरे व्यवहार या सुंदरता की तारीफ की हो. मुझ पर कभी मुग्ध हो कर स्वयं को सराहा हो.
अब उस दिन की ही बात लो. नीरू ने गहरे पीले रंग की साड़ी पहन ली थी, जोकि उस के काले रंग पर बिलकुल ही बेमेल लग रही थी. परंतु रवि जाने किस मिट्टी का बना था कि वह नीरू की प्रशंसा में शेर पर शेर सुनाता रहा.
नीरू को तो जैसे खुशी के पंख लग गए थे. वह आते ही मेरी गोद में गिर पड़ी थी. मैं ने घबरा कर पूछा, ‘‘क्या हुआ नीरू, कोई बात हुई?’’
‘‘बात क्या होगी,’’ नीरू ने मेरी बांह में चिकोटी काट कर कहा, ‘‘आज क्या मैं सच में पीली साड़ी में कहर बरपा रही थी. कहो तो.’’
मैं क्या उत्तर देती. पीली साड़ी में वह कुछ खास अच्छी न लग रही थी, पर उसे खुश करने की गरज से कहा, ‘‘हां, सचमुच तुम आज बहुत सुंदर लग रही हो.’’
‘‘बिलकुल ठीक,’’ नीरू चहक उठी, ‘‘रवि भी ऐसा ही कहता था. बस, वह मुझे देखते ही कवि बन जाता है.’’
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मुझे याद है, एक बार पायल पहनने का फैशन चल पड़ा था. ऐसे में मुझे भी शौक चढ़ा कि मैं भी पायल पहन लूं. मेरे पैर पायलों में बंध कर निहायत सुंदर हो उठे थे. जिस ने भी उन दिनों मेरे पैर देखे, बहुत तारीफ की. पर चाहे मैं पैर पटक कर चलूं या साड़ी उठा कर चलूं, पायलों का सुंदर जोड़ा चमकचमक कर भी शेखर को अपनी ओर न खींच पाया था. एक दिन तो मैं ने खीझ कर कहा, ‘‘कमाल है, पूरी कालोनी में मेरी पायलों की चर्चा हो रही है, पर तुम्हें ये अभी तक दिखाई ही नहीं दीं.’’?
‘‘ऐं,’’ शेखर ने चौंक कर कहा, ‘‘यह वही पायलों का सेट है न, जो पिछले महीने खरीदा था. बिलकुल चांदी की लग रही हैं.’’
अब कैसे कहती कि चांदी या पायलों को नहीं, शेखर साहब, मेरे पैरों के बारे में कुछ कहिए. असल बात तो पैरों की तारीफ की है, पर कह न पाई थी.
यह भी तो तभी की बात है. नीरू ने भी मेरी पसंद की पायलें खरीदी थीं. उन्हें पहन कर वह रवि के पास गई थी. बस, जरा सी ही तो उन की झंकार होती थी, मगर बड़ी दूर से ही वे रवि के कानों में बजने लगी थीं. रवि ने मुग्ध भाव से उस के पैरों की ओर देखते हुए कहा था, ‘‘तुम्हारे पैर कितने सुंदर हैं, नीरू.’’
कितनी छोटीछोटी बातों की समझ थी रवि में. सुनसुन कर अचरज होता था. अगर नीरू ने उस से शादी कर ली तो दोनों की जिंदगी कितनी प्रेममय हो जाएगी.
मैं नीरू को सलाह देती, ‘‘नीरू, रवि से शादी क्यों नहीं कर लेती?’’
पर नीरू को मेरी यह सलाह नहीं भाती. मुसकरा कर कहती, ‘‘रवि अभी प्रेमी ही बना रहना चाहता है, जब तक कि उस के मन की कविता खत्म न हो जाए.’’
‘‘कविता?’’ मैं चौंक कर रह जाती. रवि का मन कविता से भरा है, तभी उस से इतनी तारीफ हो पाती है. कितना आकुल रहता है वह नीरू के लिए. शेखर के मन में कविता ही नहीं बची है, वह तो पत्थर है, एकदम पत्थर. सामान्य दिनों को अगर मैं नजरअंदाज भी कर दूं तो भी बीमारी आदि होने पर तो उसे मेरा खयाल करना ही चाहिए. इधर बीमार पड़ी, उधर डाक्टर को फोन कर दिया. फिर दवाइयां आईं और मैं दूसरे दिन से ही फिर रसोई के कामों में जुट गई.
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लेखक- आर. केशवन
अचानक जया की नींद टूटी और वह हड़बड़ा कर उठी. घड़ी का अलार्म शायद बजबज कर थक चुका था. आज तो सोती रह गई वह. साढ़े 6 बज रहे थे. सुबह का आधा समय तो यों ही हाथ से निकल गया था.
वह उठी और तेजी से गेट की ओर चल पड़ी. दूध का पैकेट जाने कितनी देर से वैसे ही पड़ा था. अखबार भी अनाथों की तरह उसे अपने समीप बुला रहा था.
उस का दिल धक से रह गया. यानी आज भी गंगा नहीं आएगी. आ जाती तो अब तक एक प्याली गरम चाय की उसे नसीब हो गई होती और वह अपनी दिनचर्या में व्यस्त हो जाती. उसे अपनी काम वाली बाई गंगा पर बहुत जोर से खीज हो आई. अब तक वह कई बार गंगा को हिदायत दे चुकी थी कि छुट्टी करनी हो तो पहले बता दे. कम से कम इस तरह की हबड़तबड़ तो नहीं रहेगी.
वह झट से किचन में गई और चाय का पानी रख कर बच्चों को उठाने लगी. दिमाग में खयाल आया कि हर कोई थोड़ाथोड़ा अपना काम निबटाएगा तब जा कर सब को समय पर स्कूल व दफ्तर जाने को मिलेगा.
नल खोला तो पाया कि पानी लो प्रेशर में दम तोड़ रहा?था. उस ने मन ही मन हिसाब लगाया तो टंकी को पूरा भरे 7 दिन हो गए थे. अब इस जल्दी के समय में टैंकर को भी बुलाना होगा. उस ने झंझोड़ते हुए पति गणेश को जगाया, ‘‘अब उठो भी, यह चाय पकड़ो और जरा मेरी मदद कर दो. आज गंगा नहीं आएगी. बच्चों को तैयार कर दो जल्दी से. उन की बस आती ही होगी.’’
पति गणेश उठे और उठते ही नित्य कर्मों से निबटने चले गए तो पीछे से जया ने आवाज दी, ‘‘और हां, टैंकर के लिए भी जरा फोन कर दो. इधर पानी खत्म हुआ जा रहा है.’’
‘‘तुम्हीं कर दो न. कितनी देर लगती है. आज मुझे आफिस जल्दी जाना है,’’ वह झुंझलाए.
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‘‘जैसे मुझे तो कहीं जाना ही नहीं है,’’ उस का रोमरोम गुस्से से भर गया. पति के साथ पत्नी भले ही दफ्तर जाए तब भी सब घरेलू काम उसी की झोली में आ गिरेंगे. पुरुष तो बेचारा थकहार कर दफ्तर से लौटता है. औरतें तो आफिस में काम ही नहीं करतीं सिवा स्वेटर बुनने के. यही तो जबतब उलाहना देते हैं गणेश.
कितनी बार जया मिन्नतें कर चुकी थी कि बच्चों के गृहकार्य में मदद कर दीजिए पर पति टस से मस नहीं होते थे, ऊपर से कहते, ‘‘जया यार, हम से यह सब नहीं होता. तुम मल्टी टास्किंग कर लेती हो, मैं नहीं,’’ और वह फिर बासी खबरों को पढ़ने में मशगूल हो जाते.
मनमसोस कर रह जाती जया. गणेश ने उस की शिकायतों को कुछ इस तरह लेना शुरू कर दिया?था जैसे कोई धार्मिक प्रवचन हों. ऊपर से उलटी पट्टी पढ़ाता था उन का पड़ोसी नाथन जो गणेश से भी दो कदम आगे था. दोनों की बातचीत सुन कर तो जया का खून ही खौल उठता था.
‘‘अरे, यार, जैसे दफ्तर में बौस की डांट नहीं सुनते हो, वैसे ही बीवी की भी सुन लिया करो. यह भी तो यार एक व्यावसायिक संकट ही है,’’ और दोनों के ठहाके से पूरा गलियारा गूंज उठा था.
जया के तनबदन में आग लग आई थी. क्या बीवीबच्चों के साथ रहना भी महज कामकाज लगता?था इन मर्दों को. तब औरतों को तो न जाने दिन में कितनी बार ऐसा ही प्रतीत होना चाहिए. घर संभालो, बच्चों को देखो, पति की फरमाइशों को पूरा करो, खटो दिनरात अरे, आक्यूपेशन तो महिलाओं के लिए है. बेचारी शिकायत भी नहीं करतीं.
जैसेतैसे 4 दिन इसी तरह गुजर गए. गंगा अब तक नहीं लौटी थी. वह पूछताछ करने ही वाली थी कि रानी ने कालबेल बजाते हुए घर में प्रवेश किया.
‘‘बीबीजी, गंगा ने आप को खबर करने के लिए मुझ से कहा था,’’ रानी बोली, ‘‘वह कुछ दिन अभी और नहीं आ पाएगी. उस की तबीयत बहुत खराब है.’’
रानी से गंगा का हाल सुना तो जया उद्वेलित हो उठी. यह कैसी जिंदगी थी बेचारी गंगा की. शराबी पति घर की जिम्मेदारियां संभालना तो दूर, निरंतर खटती गंगा को जानवरों की तरह पीटता रहता और मार खाखा कर वह अधमरी सी हो गई थी.
‘‘छोड़ क्यों नहीं देती गंगा उसे. यह भी कोई जिंदगी है?’’ जया बोली.
माथे पर ढेर सारी सलवटें ले कर हाथ का काम छोड़ कर रानी ने एकबारगी जया को देखा और कहने लगी, ‘‘छोड़ कर जाएगी कहां वह बीबीजी? कम से कम कहने के लिए तो एक पति है न उस के पास. उसे भी अलग कर दे तो कौन करेगा रखवाली उस की? आप नहीं जानतीं मेमसाहब, हम लोग टिन की चादरों से बनी छतों के नीचे झुग्गियों में रहते हैं. हमारे पति हैं तो हम बुरी नजर से बचे हुए हैं. गले में मंगलसूत्र पड़ा हो तो पराए मर्द ज्यादा ताकझांक नहीं करते.’’
अजीब विडंबना थी. क्या सचमुच गरीब औरतों के पति सिर्फ एक सुरक्षा कवच भर ?हैं. विवाह के क्या अब यही माने रह गए? शायद हां, अब तो औरतें भी इस बंधन को महज एक व्यवसाय जैसा ही महसूस करने लगी हैं.
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गंगा की हालत ने जया को विचलित कर दिया था. कितनी समझदार व सीधी है गंगा. उसे चुपचाप काम करते हुए, कुशलतापूर्वक कार्यों को अंजाम देते हुए जया ने पाया था. यही वजह थी कि उस की लगातार छुट्टियों के बाद भी उसे छोड़ने का खयाल वह नहीं कर पाई.
रानी लगातार बोले जा रही थी. उस की बातों से साफ झलक रहा?था कि गंगा की यह गाथा उस के पासपड़ोस वालों के लिए चिरपरिचित थी. इसीलिए तो उन्हें बिलकुल अचरज नहीं हो रहा था गंगा की हालत पर.
जया के मन में अचानक यह विचार कौंध आया कि क्या वह स्वयं अपने पति को गंगा की परिस्थितियों में छोड़ पाती? कोई जवाब न सूझा.
‘‘यार, एक कप चाय तो दे दो,’’ पति ने आवाज दी तो उस का खून खौल उठा.
जनाब देख रहे हैं कि अकेली घर के कामों से जूझ रही हूं फिर भी फरमाइश पर फरमाइश करे जा रहे हैं. यह समझ में नहीं आता कि अपनी फरमाइश थोड़ी कम कर लें.
जया का मन रहरह कर विद्रोह कर रहा था. उसे लगा कि अब तक जिम्मेदारियों के निर्वाह में शायद वही सब से अधिक योगदान दिए जा रही थी. गणेश तो मासिक आय ला कर बस उस के हाथ में धर देता और निजात पा जाता. दफ्तर जाते हुए वह रास्ते भर इन्हीं घटनाक्रमों पर विचार करती रही. उसे लग रहा था कि स्त्री जाति के साथ इतना अन्याय शायद ही किसी और देश में होता हो.
दोपहर को जब वह लंच के लिए उठने लगी तो फोन की घंटी बज उठी. दूसरी ओर सहेली पद्मा थी. वह भी गंगा के काम पर न आने से परेशान थी. जैसेतैसे संक्षेप में जया ने उसे गंगा की समस्या बयान की तो पद्मा तैश में आ गई, ‘‘उस राक्षस को तो जिंदा गाड़ देना चाहिए. मैं तो कहती हूं कि हम उसे पुलिस में पकड़वा देते हैं. बेचारी गंगा को कुछ दिन तो राहत मिलेगी. उस से भी अच्छा होगा यदि हम उसे तलाक दिलवा कर छुड़वा लें. गंगा के लिए हम सबकुछ सोच लेंगे. एक टेलरिंग यूनिट खोल देंगे,’’ पद्मा फोन पर लगातार बोले जा रही थी.
पद्मा के पति ने नौकरी से स्वैच्छिक अवकाश प्राप्त कर लिया था और घर से ही ‘कंसलटेंसी’ का काम कर रहे थे. न तो पद्मा को काम वाली का अभाव इतनी बुरी तरह खलता था, न ही उसे इस बात की चिंता?थी कि सिंक में पड़े बर्तनों को कौन साफ करेगा. पति घर के काम में पद्मा का पूरापूरा हाथ बंटाते थे. वह भी निश्चिंत हो अपने दफ्तर के काम में लगी रहती. वह आला दर्जे की पत्रकार थी. बढि़या बंगला, ऐशोआराम और फिर बैठेबिठाए घर में एक अदद पति मैनसर्वेंट हो तो भला पद्मा को कौन सी दिक्कत होगी.
वह कहते हैं न कि जब आदमी का पेट भरा हो तो वह दूसरे की भूख के बारे में भी सोच सकता?है. तभी तो वह इतने चाव से गंगा को अलग करवाने की योजना बना रही थी.
पद्मा अपनी ही रौ में सुझाव पर सुझाव दिए जा रही थी. महिला क्लब की एक खास सदस्य होने के नाते वह ऐसे तमाम रास्ते जया को बताए जा रही थी जिस से गंगा का उद्धार हो सके.
जया अचंभित थी. मात्र 4 घंटों के अंतराल में उसे इस विषय पर दो अलगअलग प्रतिक्रियाएं मिली थीं. कहां तो पद्मा तलाक की बात कर रही?थी और उधर सुबह ही रानी के मुंह से उस ने सुना था कि गंगा अपने ‘सुरक्षाकवच’ की तिलांजलि देने को कतई तैयार नहीं होगी. स्वयं गंगा का इस बारे में क्या कहना होगा, इस के बारे में वह कोई फैसला नहीं कर पाई.
जब जया ने अपना शक जाहिर किया तो पद्मा बिफर उठी, ‘‘क्या तुम ऐसे दमघोंटू बंधन में रह पाओगी? छोड़ नहीं दोगी अपने पति को?’’
जया बस, सोचती रह गई. हां, इतना जरूर तय था कि पद्मा को एक ताजातरीन स्टोरी अवश्य मिल गई थी.
महिला क्लब के सभी सदस्यों को पद्मा का सुझाव कुछ ज्यादा ही भा गया सिवा एकदो को छोड़ कर, जिन्हें इस योजना में खामियां नजर आ रही थीं. जया ने ज्यादातर के चेहरों पर एक अजब उत्सुकता देखी. आखिर कोई भी क्यों ऐसा मौका गंवाएगा, जिस में जनता की वाहवाही लूटने का भरपूर मसाला हो.
प्रस्ताव शतप्रतिशत मतों से पारित हो गया. तय हुआ कि महिला क्लब की ओर से पद्मा व जया गंगा के घर जाएंगी व उसे समझाबुझा कर राजी करेंगी.
गंगा अब तक काम पर नहीं लौटी थी. रानी आ तो रही?थी, पर उस का आना महज भरपाई भर था. जया को घर का सारा काम स्वयं ही करना पड़ रहा था. आज तो उस की तबीयत ही नहीं कर रही थी कि वह घर का काम करे. उस ने निश्चय किया कि वह दफ्तर से छुट्टी लेगी. थोड़ा आराम करेगी व पूर्व निर्धारित योजना के अनुसार पद्मा को साथ ले कर गंगा के घर जाएगी, उस का हालचाल पूछने. यह बात उस ने पति को नहीं बताई. इस डर से कि कहीं गणेश उसे 2-3 बाहर के काम भी न बता दें.
रानी से बातों ही बातों में उस ने गंगा के घर का पता पूछ लिया. जब से महिला मंडली की बैठक हुई थी, रानी तो मानो सभी मैडमों से नाराज थी, ‘‘आप पढ़ीलिखी औरतों का तो दिमाग चल गया है. अरे, क्या एक औरत अपने बसेबसाए घर व पति को छोड़ सकती है? और वैसे भी क्या आप लोग उस के आदमी को कोई सजा दे रहे हो? अरे, वह तो मजे से दूसरी ले आएगा और गंगा रह जाएगी बेघर और बेआसरा.’’
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40 साल की रानी को हाईसोसाइटी की इन औरतों पर निहायत ही क्रोध आ रहा था.
लेखक- रतनलाल शर्मा ‘मेनारिया’
नींद में ही बड़बड़ाते हुए राधेश्याम ने फोन उठाया और कहा, ‘‘कौन बोल रहा है?’’
उधर से रोने की आवाज आने लगी. बहुत दर्दभरी व धीमी आवाज में कहा, ‘पापा, मैं लाजो बोल रही हूं… उदयपुर से.’
राधेश्याम घबराता हुआ बोला, ‘‘बेटी लाजो क्या हुआ? तुम्हारी तबीयत तो ठीक है न? तुम इतना धीरेधीरे क्यों बोल रही हो? सब ठीक है न?’’
लाजवंती ने रोते हुए कहा, ‘पापा, कुछ भी ठीक नहीं है. आप जल्दी से मु झे लेने आ जाओ. अगर आप नहीं आए, तो मैं मर जाऊंगी.’
राधेश्याम घबरा कर बोला, ‘‘बेटी लाजो, ऐसी बात क्यों कह रही है? दामाद ने कुछ कहा क्या?’’
लाजवंती बोली, ‘पापा, आप जल्दी आ जाना. अब मैं यहां रहना नहीं चाहती. मैं रेलवे स्टेशन पर आप का इंतजार करूंगी.’
फोन कट गया. दोनों पतिपत्नी बहुत परेशान हो गए.
तुलसी ने रोते हुए कहा, ‘‘मैं आप को हमेशा से कहती रही हूं कि एक बार लाजो से मिल कर आ जाते हैं, लेकिन आप को फुरसत कहां है.’’
राधेश्याम ने कहा, ‘‘मु झे लगता है, दामाद ने ही लाजो को बहुत परेशान किया होगा.’’
तुलसी ने रोते हुए कहा, ‘‘अब मैं कुछ सुनना नहीं चाहती हूं. आप जल्दी उदयपुर जा कर बेटी को ले आओ. न जाने वह किस हाल में होगी.’’
‘‘अरे लाजो की मां, अब रोना बंद कर. वह मेरी भी तो बेटी है. जितना दुख तु झे हो रहा है, उतना ही दुख मु झे भी है. तुम औरतें दुनिया के सामने अपना दुख दिखा देती हो, हम मर्द दुख को मन में दबा देते हैं, दुनिया के सामने नहीं कर रख पाते हैं.’’
राधेश्याम उसी समय उदयपुर के लिए रेल से निकल गया. उस के मन में बुरे विचार आने लगे थे. वह पुरानी यादों में खो गया.
लाजवंती राधेश्याम और तुलसी की एकलौती संतान थी. दोनों पतिपत्नी लाजवंती को प्यार से लाजो कह कर पुकारते थे. उन्होंने उस की हर ख्वाहिश पूरी की थी.
लाजवंती की उम्र शादी के लायक हो चुकी थी, इसीलिए राधेश्याम को थोड़ी चिंता हुई. वह दौड़भाग कर लाजवंती के लिए अच्छा वर तलाश करने लगा, पर जहां वर अच्छा मिलता और वहां खानदान अच्छा नहीं मिलता. जहां खानदान अच्छा मिलता, वहां वर अच्छा नहीं मिलता.
बहुत दौड़भाग के बाद राधेश्याम ने चित्तौड़गढ़ शहर में लाजवंती का रिश्ता तय कर दिया.
लाजवंती का ससुर भूरालाल वन विभाग से कुछ महीने पहले रिटायर हुआ था. उस के 2 बेटे थे. बड़ा बेटा मनोज चित्तौड़गढ़ में ही बैंक में कैशियर के पद पर काम करता था, जबकि छोटा बेटा दीपक उदयपुर में एक प्राइवेट कंपनी में काम करता था. उसी से लाजवंती का रिश्ता तय हुआ था.
भूरालाल की पत्नी की मौत हो चुकी थी. वह दीपक की कुछ गलत आदतों से चिंतित था. जब लाजवंती जैसी होनहार व पढ़ीलिखी लड़की के साथ शादी
हो जाएगी तो दीपक सभी बुरी आदतों को भूल जाएगा, इसलिए भूरालाल चिंता से कुछ मुक्त हुआ.
राधेश्याम ने धूमधाम से लाजवंती की शादी की. दहेज भी खूब दिया. विदाई के बाद वे दोनों घर में अकेले रह गए.
जब लाजवंती पहली बार ससुराल आई तो उसे ससुराल में जितना प्यार मिलना चाहिए था, नहीं मिला. वह मायूस हो गई. लाजवंती की जेठानी का बरताव उस के प्रति अच्छा नहीं था, न ही उस के पति का बरताव अच्छा था.
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शादी होते ही दीपक उदयपुर में नौकरी पर चला गया. वह लाजवंती को साथ में नहीं ले गया था.
जब लाजवंती दोबारा ससुराल आई, तो ससुर भूरालाल का विचार था कि बहू दीपक के साथ रहे, लेकिन दीपक उसे अपने साथ नहीं रखना चाहता था.
जब भूरालाल ने दीपक को सम झाया व उस को भलाबुरा कहा, तब जा कर मजबूरी में वह लाजवंती को अपने साथ ले गया.
उदयपुर में वे किराए के मकान में रहने लगे. दीपक की सब से बुरी आदत थी जुआ खेलना व शराब पीना, जिस से वह घर पर हमेशा देर रात तक पहुंचता था. इस बात से लाजवंती बहुत परेशान थी. दीपक की तनख्वाह भी जुए व शराब में खर्च होने लगी थी, इसलिए महीने के अंत में कुछ नहीं बच पाता था.
एक दिन ससुर भूरालाल अचानक उदयपुर दीपक के घर पहुंच गया. उस समय लाजवंती पेट से थी.
बहू लाजवंती की ऐसी दयनीय हालत देख कर भूरालाल ने रोते हुए कहा, ‘बेटी, मैं तेरा गुनाहगार हूं. मेरी वजह से तेरी यह हालत हुई है. मु झे माफ कर देना.’
लाजवंती ने अपने ससुर को सम झाते हुए कहा, ‘इस में आप का कोई कुसूर नहीं है, आप मत रोइए. मैं आप के बेटे को सुधार नहीं सकी. मैं ने पूरी कोशिश की, लेकिन नाकाम रही.’
भूरालाल बेमन से चित्तौड़गढ़ लौट गया. लाजवंती की ऐसी हालत देख वह दुखी था. इसी गहरी चिंता की वजह से एक दिन भूरालाल को अचानक हार्टअटैक आ गया और उस की मौत हो गई.पर भूरालाल की मौत से दीपक की जिंदगी में कोई बदलाव नहीं आया.
समय पंख लगा कर उड़ने लगा. लाजवंती के एक बेटा हो गया, जो अब 5 साल का हो गया था. लाजवंती सिलाई कर के अपना घरखर्च चला रही थी.
कुछ महीने बाद दीपक की नौकरी छूट गई, क्योंकि वह हमेशा शराब पी कर औफिस जाने लगा था, इसलिए कंपनी वालों ने उसे नौकरी से निकाल दिया. उस को घर बैठे एक महीना बीत गया.
एक दिन दीपक ने लाजवंती के सोने के कंगन चुरा कर बाजार में बेच दिए. जब लाजवंती को पता चला तो दोनों के बीच लड़ाई झगड़ा हुआ. उस ने लाजवंती को मारापीटा.
एक दिन दीपक घर देरी से पहुंचा. उस समय लाजवंती दीपक के आने का इंतजार कर रही थी. दीपक ने बहुत ज्यादा शराब पी रखी थी. आज वह जुए में 10,000 रुपए हार गया था. आज उस का लाजवंती से कुछ और चीज छीनने का इरादा था.
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