सेक्स का डबल मजा लेना चाहते हैं तो आज ही आजमाएं ‘डर्टी टौकिंग’

यों तो भारतीय समाज का एक बड़ा तबका सेक्स पर खुल कर बात नहीं पसंद करता व सेक्स आनंद की चीज है, यह तो पता होता है पर सिर्फ रात के अंधेरे में ही. कमरे की बत्तियों को बुझा कर सेक्स का लुत्फ उठाने वालों के लिए यह भले ही एक सामान्य प्रक्रिया लगती हो, पर विशेषज्ञों का मानना है कि सेक्स में नए नए प्रयोग शारीरिक सुख के साथ साथ मानसिक खुशी भी देती है.

लंबे सेक्स लाइफ के दौरान उब गए हों, कुछ नयापन चाहते हों, सेक्स संबंध के दौरान चुहूलबाजी कर उसे और भी मजेदार बनाना चाहते हों, तो डर्टी टौकिंग विद सेक्स संबंधों में गरमाहट ला देगी.

क्या है डर्टी टौकिंग

सेक्स के दौरान डर्टी टौकिंग न तो गाली है न ही ऐसी कोई बात कहनी होती है, जो सेक्स पार्टनर को बुरी लगे. सेक्स में डर्टी टौकिंग सेक्स क्रिया के दौरान साथी के अंगों को निहारना, सहलाना, हलकी छेड़छाड़ व खुल कर बातचीत करनी होती है.

कैसे बनाएं मजेदार

अगर आप को अपने प्यार भरे शब्दों के बाण से साथी को घायल करने में थोङी भी महारत हासिल है, तो डर्टी टौकिंग का कुछ इस तरह अंदाज गुदगुदी का एहसास कराएगी-

* सेक्स के दौरान कमरे की बत्तियों को जलने दें. संभव हो तो रंगीन बल्व जलाएं.

* हलका म्यूजिक चला दें. इस से मदहोशी का आलम बना रहेगा.

* एकदूसरे के अंगों को अपलक निहारें और उन की तारीफ करें.

* सेक्स के दौरान बातचीत उस पल को और हसीन बनाता है. आप चाहें तो तेज स्वर में भी बातचीत कर सकते हैं.

* अंगों का खुल कर नाम लें और बताएं कि वे आप को कितने पसंद हैं. सेक्स पार्टनर से भी ऐसा ही करने को कहें.

* इस दौरान सेक्स पार्टनर को अपनी आंखें खुली रखने के लिए बोलें.

* किचन में, बाथरूम में, बाथटब में बनाए सेक्स संबंधों को याद करें और खूब हंसें.

* कंडोम्स को ले कर भी खुल कर बात करें कि आप के सेक्स पार्टनर को कौन सी पसंद हैं.

* मार्केट में कई फ्लेवर्स व रंगों के कंडोम्स उपलब्ध हैं. उन पर खुल कर बात करिए और उन्हें आजमाइए भी.

यकीन मानिए, सेक्स की उपरोक्त क्रियाएं तनाव व भागदौड़ भरी जिंदगी से अलग ही सुकून देंगी और न सिर्फ रोमांचक लगेंगी, रिश्तों में नई जान व ताजगी का एहसास भी कराएंगी. याद रखिए कि सेक्स कुदरत का दिया एक अनमोल तोहफा है.

नीला पत्थर : आखिर क्या था काकी का फैसला

‘‘कहीं नहीं जाएगी काकी…’’ पार्वती बूआ की कड़कती आवाज ने सब को चुप करा दिया. काकी की अटैची फिर हवेली के अंदर रख दी गई. यह तीसरी बार की बात थी. काकी के कुनबे ने फैसला किया था कि शादीशुदा लड़की का असली घर उस की ससुराल ही होती है. न चाहते हुए भी काकी मायका छोड़ कर ससुराल जा रही थी.

हालांकि ससुराल से उसे लिवाने कोई नहीं आया था. काकी को बोझ समझ कर उस के परिवार वाले उसे खुद ही उस की ससुराल फेंकने का मन बना चुके थे कि पार्वती बूआ को अपनी बरबाद हो चुकी जवानी याद आ गई. खुद उस के साथ कुनबे वालों ने कोई इंसाफ नहीं किया था और उसे कई बार उस की मरजी के खिलाफ ससुराल भेजा था, जहां उस की कोई कद्र नहीं थी.

तभी तो पार्वती बूआ बड़ेबूढ़ों की परवाह न करते हुए चीख उठी थी, ‘‘कहीं नहीं जाएगी काकी. उन कसाइयों के पास भेजने के बजाय उसे अपने खेतों के पास वाली नहर में ही धक्का क्यों न दे दिया जाए. बिना किसी बुलावे के या बिना कुछ कहेसुने, बिना कोई इकरारनामे के काकी को ससुराल भेज देंगे, तो वे ससुरे इस बार जला कर मार डालेंगे इस मासूम बेजबान लड़की को. फिर उन का एकाध आदमी तुम मार आना और सारी उम्र कोर्टकचहरी के चक्कर में अपने आधे खेतों को गिरवी रखवा देना.’’

दूसरी बार काकी के एकलौते भाई की आंखों में खून उतर आया था. उस ने हवेली के दरवाजे से ही चीख कर कहा था, ‘‘काकी ससुराल नहीं जाएगी. उन्हें आ कर हम से माफी मांगनी होगी. हर तीसरे दिन का बखेड़ा अच्छा नहीं. क्या फायदा… किसी की जान चली जाएगी और कोई दूसरा जेल में अपनी जवानी गला देगा. बेहतर है कि कुछ और ही सोचो काकी के लिए.’’

काकी के लिए बस 3 बार पूरा कुनबा जुटा था उस के आंगन में. काकी को यहीं मायके में रखने पर सहमति बना कर वे लोग अपनेअपने कामों में मसरूफ हो गए थे. उस के बाद काकी के बारे में सोचने की किसी ने जरूरत नहीं समझी और न ही कोई ऐसा मौका आया कि काकी के बारे में कोई अहम फैसला लेना पड़े.

काकी का कुसूर सिर्फ इतना था कि वह गूंगी थी और बहरी भी. मगर गूंगी तो गांव की 99 फीसदी लड़कियां होती हैं. क्या उन के बारे में भी कुनबा पंचायत या बिरादरी आंखें मींच कर फैसले करती है? कोई एकाध सिरफिरी लड़की अपने बारे में लिए गए इन एकतरफा फैसलों के खिलाफ बोल भी पड़ती है, तो उस के अपने ही भाइयों की आंखों में खून उतर आता है. ससुराल की लाठी उस पर चोट करती है या उस के जेठ के हाथ उस के बाल नोंचने लगते हैं.

ऐसी सिरफिरी मुंहफट लड़की की मां बस इतना कह कर चुप हो जाती है कि जहां एक लड़की की डोली उतरती है, वहां से ही उस की अरथी उठती है. यह एक हारे हुए परेशान आदमी का बेमेल सा तर्क ही तो है. एक अकेली छुईमुई लड़की क्या विद्रोह करे. उसे किसी फैसले में कब शामिल किया जाता है. सदियों से उस के खिलाफ फतवे ही जारी होते रहे हैं. वह कुछ बोले तो बिजली टूट कर गिरती है, आसमान फट पड़ता है.

अनगनित लोगों की शादियां टूटती हैं, मगर वे सब पागल नहीं हो जाते. बेहतर तो यही होता कि अपनी नाकाम शादी के बारे में काकी जितना जल्दी होता भूल जाती. ये शादीब्याह के मामले थानेकचहरी में चले जाएं, तो फिर रुसवाई तो तय ही है. आखिर हुआ क्या? शीशा पत्थर से टकराया और चूरचूर हो गया.

काकी का पति तो पहले भी वैसा ही था लंपट, औरतबाज और बाद में भी वैसा ही बना रहा. काकी से अलग होने के बाद भी उस की जिंदगी पर कोई खास असर नहीं पड़ा.

काकी के कुनबे का फैसला सुनने के बाद तो वह हर तरफ से आजाद हो चुका था. उस के सुख के सारे दरवाजे खुल गए, मगर काकी का मोह भंग हो गया. अब वह खुद को एक चुकी हुई बूढ़ी खूसट मानने लगी थी.

भरी जवानी में ही काकी की हर रस, रंग, साज और मौजमस्ती से दूरी हो गई थी. उस के मन में नफरत और बदले के नागफनी इतने विकराल आकार लेते गए कि फिर उन में किसी दूसरे आदमी के प्रति प्यार या चाहत के फूल खिल ही न सके.

किसी ने उसे यह नहीं समझाया, ‘लाड़ो, अपने बेवफा शौहर के फिर मुंह लगेगी, तो क्या हासिल होगा तुझे? वह सच्चा होता तो क्या यों छोड़ कर जाता तुझे? उसे वापस ले भी आएगी, तो क्या अब वह तेरे भरोसे लायक बचा है? क्या करेगी अब उस का तू? वह तो ऐसी चीज है कि जो निगले भी नहीं बनेगा और बाहर थूकेगी, तो भी कसैली हो जाएगी तू.

‘वह तो बदचलन है ही, तू भी अगर उस की तलाश में थानाकचहरी जाएगी, तो तू तो वैसी ही हो जाएगी. शरीफ लोगों का काम नहीं है यह सब.’

कोई तो एक बार उसे कहता, ‘देख काकी, तेरे पास हुस्न है, जवानी है, अरमान हैं. तू क्यों आग में झोंकती है खुद को? दफा कर ऐसे पति को. पीछा छोड़ उस का. तू दोबारा घर बसा ले. वह 20 साल बाद आ कर तुझ पर अपना दावा दायर करने से रहा. फिर किस आधार पर वह तुझ पर अपना हक जमाएगा? इतने सालों से तेरे लिए बिलकुल पराया था. तेरे तन की जमीन को बंजर ही बनाता रहा वह.

‘शादी के पहले के कुछ दिनों में ही तेरे साथ रहा, सोया वह. यह तो अच्छा हुआ कि तेरी कोख में अपना कोई गंदा बीज रोप कर नहीं गया वह दुष्ट, वरना सारी उम्र उस से जान छुड़ानी मुश्किल हो जाती तुझे.’

कुनबे ने काकी के बारे में 3 बार फतवे जारी किए थे. पहली बार काकी की मां ने ऐसे ही विद्रोही शब्द कहे थे कि कहीं नहीं जाएगी काकी. पहली बार गांव में तब हंगामा हुआ था, जब काकी दीनू काका के बेटे रमेश के बहकावे में आ गई थी और उस ने उस के साथ भाग जाने की योजना बना ली थी. वह करती भी तो क्या करती.

35 बरस की हो गई थी वह, मगर कहीं उस के रिश्ते की बात जम नहीं रही थी. ऐसे में लड़कियां कब तक खिड़कियों के बाहर ताकझांक करती रहें कि उन के सपनों का राजकुमार कब आएगा. इन दिनों राजकुमार लड़की के रंगरूप या गुण नहीं देखता, वह उस के पिता की जागीर पर नजर रखता है, जहां से उसे मोटा दहेज मिलना होता है.

गरीब की बेटी और वह भी जन्म से गूंगीबहरी. कौन हाथ धरेगा उस पर? वैसे, काकी गजब की खूबसूरत थी. घर के कामकाज में भी माहिर. गोरीचिट्टी, लंबा कद. जब किसी शादीब्याह के लिए सजधज कर निकलती, तो कइयों के दिल पर सांप लोटने लगते. मगर उस के साथ जिंदगी बिताने के बारे में सोचने मात्र की कोई कल्पना नहीं करता था.

वैसे तो किसी कुंआरी लड़की का दिल धड़कना ही नहीं चाहिए, अगर धड़के भी तो किसी को कानोंकान खबर न हो, वरना बरछे, तलवारें व गंड़ासियां लहराने लगती हैं. यह कैसा निजाम है कि जहां मर्द पचासों जगह मुंह मार सकता था, मगर औरत अपने दिल के आईने में किसी पराए मर्द की तसवीर नहीं देख सकती थी? न शादी से पहले और शादी के बाद तो कतई नहीं.

पर दीनू काका के फौजी बेटे रमेश का दिल काकी पर फिदा हो गया था. काकी भी उस से बेपनाह मुहब्बत करने लगी थी. मगर कहां दीनू काका की लंबीचौड़ी खेती और कहां काकी का गरीब कुनबा. कोई मेल नहीं था दोनों परिवारों में.

पहली ही नजर में रमेश काकी पर अपना सबकुछ लुटा बैठा, मगर काकी को क्या पता था कि ऐसा प्यार उस के भविष्य को चौपट कर देगा.

रमेश जानता था कि उस के परिवार वाले उस गूंगी लड़की से उस की शादी नहीं होने देंगे. बस, एक ही रास्ता बचा था कि कहीं भाग कर शादी कर ली जाए.

उन की इस योजना का पता अगले ही दिन चल गया था और कई परिवार, जो रमेश के साथ अपनी लड़की का रिश्ता जोड़ना चाहते थे, सब दिशाओं में फैल गए. इश्क और मुश्क कहां छिपते हैं भला. फिर जब सारी दुनिया प्रेमियों के खिलाफ हो जाए, तो उस प्यार को जमाने वालों की बुरी नजर लग जाती है.

काकी का बचपन बड़े प्यार और खुशनुमा माहौल में बीता था. उस के छोटे भाई राजा को कोई चिढ़ाताडांटता या मारता, तो काकी की आंखें छलछला आतीं. अपनी एक साल की भूरी कटिया के मरने पर 2 दिन रोती रही थी वह. जब उस का प्यारा कुत्ता मरा तो कैसे फट पड़ी थी वह. सब से ज्यादा दुख तो उसे पिता के मरने पर हुआ था. मां के गले लग कर वह इतना रोई थी कि मानो सारे दुखों का अंत ही कर डालेगी. आंसू चुक गए. आवाज तो पहले से ही गूंगी थी. बस गला भरभर करता था और दिल रेशारेशा बिखरता जाता था. सबकुछ खत्म सा हो गया था तब.

अब जिंदा बच गई थी तो जीना तो था ही न. दुखों को रोरो कर हलका कर लेने की आदत तब से ही पड़ गई थी उसे. दुख रोने से और बढ़ते जाते थे.

रमेश से बलात छीन कर काकी को दूर फेंक दिया गया था एक अधेड़ उम्र के पिलपिले गरीब किसान के झोंपड़े में, जहां उस के जवान बेटों की भूखी नजरें काकी को नोंचने पर आमादा थीं.

काकी वहां कितने दिन साबुत बची रहती. भाग आई भेडि़यों के उस जंगल से. कोई रास्ता नहीं था उस जंगल से बाहर निकलने का.

जो रास्ता काकी ने खुद चुना था, उस के दरमियान सैकड़ों लोग खड़े हो गए थे. काकी के मायके की हालत खराब तो न थी, मगर इतने सोखे दिन भी नहीं थे कि कई दिन दिल खोल कर हंस लिया जाए. कभी धरती पर पड़े बीजों के अंकुरित होने पर नजरें गड़ी रहतीं, तो कभी आसमान के बादलों से मुरादें मांगती झोलियां फैलाए बैठी रहतीं मांबेटी.

रमेश से छिटक कर और फिर ससुराल से ठुकराई जाने के बाद काकी का दिल बुरी तरह हार माने बैठा था. अब काकी ने अपने शरीर की देखभाल करनी छोड़ दी थी. उस की मां उस से अकसर कहती कि गरीब की जवानी और पौष की चांदनी रात को कौन देखता है.

फटी हुई आंखों से काकी इस बात को समझने की कोशिश करती. मां झुंझला कर कहती, ‘‘तू तो जबान से ही नहीं, दिल से भी बिलकुल गूंगी ही है. मेरे कहने का मतलब है कि जैसे पूस की कड़कती सर्दी वाली रात में चांदनी को निहारने कोई नहीं बाहर निकलता, वैसे ही गरीब की जवानी को कोई नहीं देखता.’’

मां चल बसीं. काकी के भाई की गृहस्थी बढ़ चली थी. काकी की अपनी भाभी से जरा भी नहीं बनती थी. अब काकी काफी चिड़चिड़ी सी हो गई थी. भाई से अनबन क्या हुई, काकी तो दरबदर की ठोकरें खाने लगी. कभी चाची के पास कुछ दिन रहती, तो कभी बूआ काम करकर के थकटूट जाती थी. काकी एक बार खाट से क्या लगी कि सब उसे बोझ समझने लगे थे.

आखिरकार काकी की बिरादरी ने एक बार फिर काकी के बारे में फैसला करने के लिए समय निकाला. इन लोगों ने उस के लिए ऐसा इंतजाम कर दिया, जिस के तहत दिन तय कर दिए गए कि कुलीन व खातेपीते घरों में जा कर काकी खाना खा लिया करेगी.

कुछ दिन तक यह बंदोबस्त चला, मगर काकी को यों आंखें झुका कर गैर लोगों के घर जा कर रहम की भीख खाना चुभने लगा. अपनी बिरादरी के अब तक के तमाम फैसलों का काकी ने विरोध नहीं किया था, मगर इस आखिरी फैसले का काकी ने जवाब दिया. सुबह उस की लाश नहर से बरामद हुई थी. अब काकी गूंगीबहरी ही नहीं, बल्कि अहल्या की तरह सर्द नीला पत्थर हो चुकी थी.

काकी का पति तो पहले भी वैसा ही था लंपट, औरतबाज और बाद में भी वैसा ही बना रहा. काकी से अलग होने के बाद भी उस की जिंदगी पर कोई खास असर नहीं पड़ा.

बोझ : अपनो का बोझ भी क्या बोझ होता है

मां ने फुसफुसाते हुए मेरे कान में कहा, ‘‘साफसाफ कह दो, मैं कोई बांदी नहीं हूं. या तो मैं रहूंगी या वे लोग. यह भी कोई जिंदगी है?’’

इस तरह की उलटीसीधी बातें मां 2 दिनों से लगतार मुझे समझा रही थी. मैं चुपचाप उस का मुख देखने लगी. मेरी दृष्टि में पता नहीं क्या था कि मां चिढ़ कर बोली, ‘‘तू मूर्ख ही रही. आजकल अपने परिवार का तो कोई करता नहीं, और तू है कि बेगानों…’’

मां का उपदेश अधूरा ही रह गया, क्योंकि अनु ने आ कर कहा, ‘‘नानीअम्मा, रिकशा आ गया.’’ अनु को देख कर मां का चेहरा कैसा रुक्ष हो गया, यह अनु से भी छिपा नहीं रहा.

मां ने क्रोध से उस पर दृष्टि डाली. उस का वश चलता तो वह अपनी दृष्टि से ही अनु, विनू और विजू को जला डालती. फिर कुछ रुक कर तनिक कठोर स्वर में बोली, ‘‘सामान रख दिया क्या?’’

‘‘हां, नानीअम्मा.’’

अनु के स्वर की मिठास मां को रिझा नहीं पाई. मां चली गई किंतु जातेजाते दृष्टि से ही मुझे जताती गई कि मैं बेवकूफ हूं.

मां विवाह में गई थी. लौटते हुए 2 दिन के लिए मेरे यहां आ गई. मां पहली बार मेरे घर आई थी. मेरी गृहस्थी देख कर वह क्षुब्ध हो गई. मां के मन में इंजीनियर की कल्पना एक धन्नासेठ के रूप में थी. मां के हिसाब से घर में दौलत का पहाड़ होना चाहिए था. हर भौतिक सुख, वैभव के साथसाथ सरकारी नौकरों की एक पूरी फौज होनी चाहिए थी. इन्हीं कल्पनाओं के कारण मां ने मेरे लिए इंजीनियर पति चुना था.

मां की इन कल्पनाओं के लिए मैं कभी मां को दोषी नहीं मानती. हमारे नानाजी साधारण क्लर्क थे, लेकिन वे तनमन दोनों से पूर्ण क्लर्क थे. वेतन से दसगुनी उन की ऊपर की आमदनी थी. पद उन का जरूर छोटा था किंतु वैभव की कोई कमी नहीं थी. हर सुविधा में पल कर बड़ी हुई मां ने उस वैभव को कभी नाजायज नहीं समझा. यही कारण था कि मेरे नितांत ईमानदार मास्टर पिता से मां का कभी तालमेल नहीं बैठा.

मुझे अब भी याद है कि मैं जब भी मायके जाती, मां खोदखोद कर इन की कमाई का हिसाब पूछती. घुमाफिरा कर नानाजी के सुखवैभव की कथा सुना कर उसी पथ पर चलने का आग्रह करती, किंतु हम सभी भाईबहनों की नसनस में पिता की शिक्षादीक्षा रचबस गई थी. विवाह भी हुआ तो पति पिता के मनोनुकूल थे.

मां के इन 2 दिनों के वास ने मेरी खुशहाल गृहस्थी में एक बड़ा कांटा चुभो दिया. आज जब सभी अपने काम पर चले गए तो रह गई हैं रचना और मां की बातों का जाल.

रचना को दूध पिला कर सुला देने के बाद मैं घर में बाकी काम निबटाने लगी. ज्यादातर काम तो अनु ही निबटा जाती है, फिर भी गृहस्थी के तो कई अनदेखे काम हैं. सब कामों से निबट कर जब मैं अकेली बैठी तो मां की बातें मुझे बींधने लगीं. ‘क्या हम ने गलत किया है? क्या मैं रचना और आशीष का हक छीन रही हूं? क्या उन की इच्छाओं को मैं पूर्ण कर पा रही हूं? मुझे अपने पति पर क्रोध आने लगा. सचमुच मैं मूढ़ हूं. कितनी लच्छेदार बातें बना कर मुझ से इतनी बड़ी जिम्मेदारी उठवा दी. मुझे अपनी स्थिति अत्यंत दयनीय नहीं, असह्य लगने लगी. मां के आने से पूर्व भी तो परिस्थितियां यही थीं. सब बच्चे अनु, विनू और विजू साथ रहे किंतु आज उन का रहना असह्य क्यों लग रहा है?’

मन बारबार अतीत में भटकने लगा है. 3 साल पहले की घटना मेरे मनमस्तिष्क पर भी स्पष्ट रूप से अंकित थी. रचना तब होने वाली थी. होली की छुट्टियां हो चुकी थीं. उसी दिन हमें अपनी बड़ी ननद  के यहां जाना था. किंतु वह जाना सुखद नहीं हुआ. उस दिन बिजली का धक्का लगने से उन्हें बचाते हुए जीजी और भाईसाहब दोनों मृत्यु के ग्रास बन गए. रह गए बिलखते, विलाप करते उन के बच्चे अनु, विनू और विजू, सबकुछ समाप्त हो गया. आज के युग में हर व्यक्ति अपने ही में इतना लिप्त है कि दूसरे की जिम्मेदारी का करुणक्रंदन मन को विचलित किए दे रहा था.

रात्रि के सूनेपन में मेरे पति ने मुझ से लगभग रोते हुए कहा, ‘आभा, क्या तुम इन बच्चों को संभाल सकोगी?’

मैं पलभर के लिए जड़ हो गई. कितनी जोड़तोड़ से तो अपनी गृहस्थी चला रही हूं और उस पर 3 बच्चों का बोझ.

मैं कुछ उत्तर नहीं दे पाई. अपना स्वार्थ बारबार मन पर हावी हो जाता. वे अतीत की गाथाएं गागा कर मेरे हृदय में सहानुभूति जगाना चाह रहे थे. अंत में उन्होंने कहा, ‘अपने लिए तो सभी जीते हैं, किंतु सार्थक जीवन उसी का है जो दूसरों के लिए जिए.’

अंततोगत्वा बच्चे हमारे साथ आ गए. घरबाहर सभी हमारी प्रशंसा करते. किंतु मेरा मन अपने स्वार्थ के लिए रहरह कर विचलित हो जाता. फिर धीरेधीरे सब कुछ सहज हो गया. इस में सर्वाधिक हाथ 17 वर्षीय अनु का था.

उन लोगों के आने के बाद हम पारिवारिक बजट बना रहे थे, तभी ‘मामी आ जाऊं?’ कहती हुई अनु आ गई थी. उस समय उस का आना अच्छा नहीं लगा था, किंतु कुछ कह नहीं पाई. ‘मामी,’ मेरी ओर देख कर उस ने कहा था, ‘आप को बजट बनाते देख कर चली आई हूं. अनावश्यक हस्तक्षेप कर रही हूं, बुरा नहीं मानिएगा.’

‘नहींनहीं बेटी, कहो, क्या कहना चाहती हो?’

‘आप रामलाल की छुट्टी कर दें. एक आदमी के खाने में कम से कम 2,000 रुपए तो खर्च हो ही जाते हैं.’

मेरे प्रतिरोध के बाद भी वह नहीं मानी और रामलाल की छुट्टी कर दी गई. अनु ने न केवल रामलाल का बल्कि मेरा भी कुछ काम संभाल लिया था.

उस के बाद रचना का जन्म हुआ. रचना के जन्म पर अनु ने मेरी जो सेवा की उस की क्या मैं कभी कीमत चुका पाऊंगी?

रचना के आने से खर्च का बोझ बढ़ गया. उसी दिन शाम को अनु ने आ कर कहा, ‘‘मम्मा, मेरी एक टीचर ने बच्चों के लिए एक कोचिंग सैंटर खोला है. प्रति घंटा 300 रुपए के हिसाब से वे अभी पढ़ाने के लिए देंगी. बहुत सी लड़कियां वहां जा रही हैं. मैं भी कल से जाऊंगी.’’

हम लोगों ने कितना समझाया पर वह नहीं मानी. अपनी बीए की पढ़ाई, घर का काम, ऊपर से यह मेहनत, किंतु वह दृढ़ रही. इन के हृदय में अनु के इस कार्य के लिए जो भाव रहा हो, पर मेरे हृदय में समाज का भय ही ज्यादा था. दुनिया मुझे क्या कहेगी? बड़े यत्न से अच्छाई का जो मुखौटा मैं ने ओढ़ रखा है, वह क्या लोगों की आलोचना सह सकेगा?

पर वह प्रतिमाह अपनी सारी कमाई मेरे हाथ पर रख देती. कितना कहने पर भी एक पैसा तक न लेती. यह देख कर मैं लज्जित हो उठती.

विनू भी पढ़ाई के साथसाथ पार्टटाइम ट्यूशन करता. इन्होंने बहुत मना किया, पर बच्चों का एक ही नारा था-  ‘मेहनत करते हैं, चोरी तो नहीं.’

3 साल देखतेदेखते बीत गए. आशीष और रचना दोनों की जिम्मेदारियों से मैं मुक्त थी. वह अपने अग्रजों के पदचिह्नों पर चल रहा था. कक्षा में वह कभी पीछे नहीं रहा. मेरी आंखों के सामने बारीबारी से अनु, विनू और विजू का चेहरा घूम जाता. उस के साथसाथ आशीष का भी. क्या इन बच्चों को घर से निकाल दूं?

मेरा बाह्य मन हां कहता. 3 का खर्च तो कम होगा. किंतु अंतर्मन मुझे धिक्कारता. कल अगर हम दोनों नहीं रहे तो आशीष और रचना भी इसी तरह फालतू हो जाएंगे. मैं फफकफफक कर रोने लगी.

‘‘क्या बात है, मामी, रो क्यों रही हैं?’’ अनु के कोमल स्वर से मेरी तंद्रा भंग हो गई. शाम हो चुकी थी.

मां ने कितना अत्याचार किया मात्र 2 दिनों में. आशीष और रचना को छिपा कर हर चीज खिलाना चाहती थी. बारबार बच्चों को उलटीसीधी बातें सिखाती.

मैं अनु की ओर देखने लगी. मुझे लगा अनु नहीं, मेरी रचना बड़ी हो गई है और हम दोनों के अभाव में मां की दी हुई मानसिक यातनाएं भोग रही है.

मैं ने अनु को हृदय से लगा लिया. ‘‘नहींनहीं, मैं तुम्हें नहीं जाने दूंगी.’’

‘‘मुझे आप से अलग कौन कर रहा है?’’ अनु ने हंस कर कहा.

‘‘किंतु इसे जाना तो होगा ही,’’ यह करुण स्वर मेरे पति का था. पता नहीं कब वे आ गए थे.

‘‘क्या?’’ मैं ने अपराधी भाव से पूछा.

‘‘अनु का विवाह पक्का हो गया है. मेरे अधीक्षक ने अपने पुत्र के लिए स्वयं आज इस का हाथ मांगा है. दहेज में कुछ नहीं देना पड़ेगा.’’

अनु सिर झुका कर रोने लगी. मेरे हृदय पर से एक बोझ हट गया. उसे हृदय से लगा कर मैं भी खुशी में रो पड़ी.

शापित: आखिर रश्मि अपने बेटे के साथ क्यों नहीं रहना चाहती थी

‘‘रश्मि, कहां हो तुम?

‘‘भई यह करेलों का मसाला तो कच्चा ही रह गया है.’’

फिर थोड़ी देर रुक कर भूपिंदर हंसते हुए बोला, ‘‘सतीशजी जिस दिन कुक नहीं आती हैं, ऐसा ही कच्चापक्का खाना बनता है.’’

ये सब बातें करतेकरते भूपिंदर यह भी भूल गया था कि आज रश्मि कोई नईनवेली दुलहन नहीं है, बल्कि सास बनने वाली है और आज जो खाने की मेज पर मेहमान बैठे हैं वे उस की होने वाली बहू के मातापिता हैं.

मम्मी के हाथों में करेले पकड़ाते हुए आदित्य बोला, ‘‘क्या जरूरत थी सोनाक्षी के मम्मीपापा को घर पर बुलाने की? ‘‘आप को पता है न वे कैसे हैं?’’

जैसे ही आदित्य बाहर आया तो भूपिंदर बोला, ‘‘भई, यह आदित्य तो अब तक मम्मा बौय है, सोनाक्षी को बहुत मेहनत करनी पड़ेगी.’’

आदित्य भी बिना लिहाज करे बोला, ‘‘मैं ही नहीं पापा, सोनाक्षी भी मम्मा गर्ल ही बनेगी.’’

तभी रश्मि खिसियाते हुए डाइनिंगटेबल पर फिर से करेलों की प्लेट ले कर आ गई. नारंगी और हरी तात कौटन की साड़ी में रश्मि बहुत ही सौम्य और सलीकेदार लग रही थी. खाना अच्छा ही बना हुआ था और डाइनिंगटेबल पर बहुत सलीके से लगा भी हुआ था, परंतु भूपिंदर फिर भी कभी नैपकिन के लिए तो कभी नमकदानी के लिए रश्मि को टोकता ही रहा.

माहौल में इतना अधिक तनाव था कि अच्छेखासे खाने का जायका खराब हो गया था. खाने के बाद भूपिंदर सतीश को ले कर ड्राइंगरूम में चला गया तो पूनम मीठे स्वर में रश्मि से बोली, ‘‘खाना बहुत अच्छा बना था और लगा भी बहुत सलीके से था.’’

‘‘परंतु लगता है भाईसाहब कुछ ज्यादा ही परफैक्शनिस्ट हैं.’’

रश्मि की बड़ीबड़ी शरबती आंखों में आंसू दरवाजे पर ही अटके हुए थे, उन्हें पीते हुए धीरे से बोली, ‘‘पूनमजी पर मेरा आदित्य अपने पापा से एकदम अलग हैं… हम आप की सोनाक्षी को कोई तकलीफ नहीं होने देंगे.’’

पूनम अच्छी तरह समझ सकती थी कि रश्मि के मन पर क्या बीत रही होगी.

आदित्य और सोनाक्षी दोनों रोहिणी के जयपुर गोल्डन हौस्पिटल में डाक्टर हैं. दोनों एकदूसरे को पसंद करते हैं और जैसेकि आजकल होता है परिवार ने उन की पसंद पर सहमति की मुहर लगा दी थी. आज विवाह की आगे की बातचीत के लिए पूनम और सतीश आदित्य के घर खाने पर आए थे. भूपिंदर का यह रूप उन्हें अंदर तक हिला गया था. आदित्य का गुस्सा भी उन से छिपा नही था.

रास्ते में पूनम से रहा न गया, तो सतीश से बोली, ‘‘सबकुछ ठीक है, पर क्या तुम्हें लगता है कि आदित्य ठीक रहेगा अपनी सोनाक्षी के लिए?’’

‘‘उस के पापा उस की मम्मी को कितना बेइज्जत करते हैं. लड़का वही देख कर बड़ा हुआ है. मुझे तो डर है कि कहीं आदित्य भी सोनाक्षी के साथ ऐसा ही व्यवहार न करे.’’

सतीश बोला, ‘‘देखो हम सोनाक्षी को सब बता देंगे, उस की जिंदगी है, फैसला भी उसी का होगा.’’

उधर रश्मि को लग रहा था कि कहीं भूपिंदर के व्यवहार के कारण सोनाक्षी और आदित्य के विवाह में रुकावट न आ जाए.

आदित्य सोनाक्षी के मम्मीपापा के जाते ही भूपिंदर पर उबल पड़ा, ‘‘क्या जरूरत थी आप को सोनाक्षी के मम्मीपापा के सामने ऐसा व्यवहार करने की?’’

भूपिंदर बोला, ‘‘घर मेरा है, मैं जो चाहूं करूं. इतनी ही दिक्कत है तो अलग रह सकते हो.’’

तभी आदित्य ने दरवाजे पर खटखट की, तो रश्मि मुसकराते हुए बोली, ‘‘अंदर आ

जा, खटखट क्यों कर रहा है.’’

आदित्य बोला, ‘‘मम्मी, पापा का यह व्यवहार और तुम्हारा चुपचाप सब सहन करना मुझे अंदर तक आहत कर जाता है. आज मैं सोनाक्षी के मम्मीपापा के सामने आंख भी नहीं उठा पाया हूं. गुलाम बना कर रखा हुआ है इन्होंने हमें.’’

रश्मि आदित्य के सिर पर हाथ फेरते हुए बोली, ‘‘आदित्य शिखा तेरी छोटी बहन तो गोवा में मैडिकल की पढ़ाई कर रही है और तू बेटा शादी के बाद अलग घर ले लेना.’’

आदित्य बोला, ‘‘मम्मी और आप? मैं क्या इतना स्वार्थी हूं कि आप को अकेला छोड़ कर चला जाऊंगा?’’

रश्मि उदासी से बोली, ‘‘मैं तो शापित हूं, इस साथ के लिए बेटा. पर मैं बिलकुल नहीं चाहती कि तुम या सोनाक्षी ऐसे डर के साथ जिंदगी व्यतीत करो.’’

आदित्य का हौस्पिटल जाने का समय हो गया था. आज उस की नाइट शिफ्ट थी. फिर रश्मि आंखें बंद कर के सोने का प्रयास करने लगी पर नींद थी कि आंखों से कोसों दूर. आदित्य की शादी की उस के मन में कितनी उमंगें थीं. मगर वो अच्छी तरह जानती थी. हर बार गहनेकपड़ों के लिए उसे भूपिंदर

के आगे हाथ फैलाना पड़ेगा. भूपिंदर कितनी लानत भेजेगा और साथ ही साथ वह यह भी जोड़ेगा कि उस ने आदित्य की मैडिकल की पढ़ाई में क्व25 लाख खर्च किए हैं.

रश्मि का कितना मन करता था कि वह अपनी पसंद के कपड़े ले, परंतु भूपिंदर ही उस के लिए कपड़े खरीदता था, क्योंकि उस के हिसाब से रश्मि को तमीज ही नहीं है अच्छे कपड़े खरीदने की.

रश्मि के वेतन की पाईपाई का हिसाब भूपिंदर ही रखता था. जब कोई भी रश्मि के कपड़ों की तारीफ करता तो भूपिंदर छूटते ही बोलता, ‘‘मैं जो खरीदता हूं अन्यथा यह तो दलिद्र ही खरीदती और पहनती है.’’

रिश्तेदारों और पड़ोसियों को लगता था कि भूपिंदर जैसा शाहखर्च कौन हो सकता है, जो अपनी बीवी का वेतन उस के गहनेकपड़ों पर ही खर्च करता है. आजकल के जमाने में ऐसे पतियों की कमी नहीं है जो अपनी पत्नी के वेतन से घर खर्च चलाते हैं. रश्मि कैसे समझाए किसी को, गहने, कपड़ों से अधिक महत्त्व सम्मान का होता है.

यह जरूर था कि भूपिंदर अपने काम का पक्का था, इसलिए दिनदूनी और रात चौगुनी तरक्की कर रहा था. इस तरक्की के साथसाथ उस का अहम भी सांप के फन की तरह फुफकारने लगा था. शादी के कुछ वर्षों के बाद ही रश्मि के कानों में भूपिंदर के अफेयर की बातें पड़ने लगी थीं. पर जब भी अलग होने की सोचती तो आदित्य और शिखा का भविष्य दिखने लगता. कैसे पढ़ा पाएगी वह दोनों बच्चों को दिल्ली जैसे शहर की इस विकराल महंगाई में. नालायक ही सही पर सिर पर बाप का साया तो रहेगा.

रश्मि के हथियार डालते ही भूपिंदर उस पर और हावी हो गया था. रातदिन वह रश्मि को कोंचता रहता था पर अब उस हिमशिला पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता था.

घर 3 कोणों में बंट गया था, एक पाले में रश्मि, आदित्य और दूसरे पाले में था भूपिंदर. शिखा आज के दौर की स्मार्ट लड़की थी इसलिए वह किसी भी पाले में नहीं थी, वह अपने हिसाब से पाला बदलती रहती थी. आदित्य बेहद ही संवेदनशील युवक था. रातदिन के तनाव का प्रभाव आदित्य पर पड़ रहा है. 30 वर्ष की कम उम्र में ही उसे पाइपर टैंशन रहने लगी थी.

आदित्य जैसे ही अस्पताल पहुंचा, सोनाक्षी वहीं खड़ी थी. वह धीमे स्वर में बोली, ‘‘आदित्य, कल ड्यूटी के बाद मुझे तुम से जरूरी बात करनी है. आदित्य को पता था कि सोनाक्षी क्या कहना चाहती है.

सुबह आदित्य और सोनाक्षी जब कैंटीन में आमनेसामने थे तो सोनाक्षी बोली, ‘‘आदित्य देखो मुझे गलत मत समझना पर मैं  ऐसे माहौल में ऐडजस्ट नहीं कर सकती हूं. क्या हम विवाह के बाद अलग फ्लैट ले कर रह सकते हैं?’’

आदित्य बोला, ‘‘सोना, मुझे मालूम है तुम अपनी जगह सही हो, पर मैं अपनी मम्मी को अकेले उस घर में नहीं छोड़ सकता हूं.’’

सोनाक्षी बोली, ‘‘अगर तुम्हारी मम्मी हमारे साथ रहना चाहें, तो मुझे कोई प्रौब्लम नहीं है.’’

जब आदित्य ने यह बात घर पर बताई तो भूपिंदर गुस्से से आगबबूला हो उठा. गुस्से में बोला, ‘‘तुम्हारा तो यही होना था गोबर गणेश. जो लड़का मां का पल्लू पकड़ कर चलता है वह बीवी के इशारों पर ही नाचेगा.’’

आदित्य बोला, ‘‘पापा आप चिंता न करो. आप को मुझे से और मम्मी से बहुत प्रौब्लम है न तो मैं मम्मी को भी अपने साथ ले जाऊंगा. ऐसा लगता है, घर घर नहीं है एक जेल है और हम सब कैदी.’’

भूपिंदर दहाड़ उठा, ‘‘हां यह जेल है न तो रिहाई की भी कीमत है. अपनी मम्मी को क्या ऐसे ही ले कर चला जाएगा वह मेरी पत्नी है और सुन लड़के, तेरी पढ़ाई पर क्व25 लाख खर्च हुए हैं, पहले वे वापस दे देना और फिर अपनी मम्मी को रिहा कर ले जाना.’’

आदित्य के विवाह की तिथि निश्चित हो गई थी और भूपिंदर न चाहते हुए भी जोरशोर से तैयारी में जुटा था.

जब नवयुगल हनीमून से वापस आ जाएंगे तो वह अलग फ्लैट में शिफ्ट हो जाएंगे. आदित्य किसी भी कीमत पर अपनी मम्मी को अकेले उस यातनागृह में नहीं छोड़ना चाहता था. इसलिए आदित्य ने किसी तरह से क्व20 लाख का बंदोबस्त कर लिया था.

विवाह बहुत धूमधाम से संपन्न हो गया. 14 दिन बाद आदित्य और सोनाक्षी सिंगापुर से घूम कर लौट आए थे. आदित्य ने मां को सूचित कर दिया था कि वह अपना सारा सामान ले कर उन के पास आ जाए.

मगर रश्मि का फोन आया कि आदित्य रविवार को एक बार घर आ जाए. उस के बाद ही वह आदित्य के पास रहने आ जाएगी. आदित्य को लग रहा था कि शायद मम्मी को निर्णय लेने में मुश्किल हो रही है या फिर पापा उन्हें ताने मार रहे होंगे.

जब आदित्य और सोनाक्षी घर पहुंचे तो देखा घर पर मरघट सी शांति छाई हुई थी. आदित्य ने देखा मां बहुत थकीथकी लग रही थीं.

आदित्य बोला, ‘‘मम्मी कमाल करती हो, तुम आज भी पापा के कारण निर्णय नहीं ले पा रही हो. आप चिंता मत करो, मैं ने क्व20 लाख का बंदोबस्त कर लिया है.’’

रश्मि बोली, ‘‘बेटे तेरे पापा को 5 दिन पहले लकवा मार गया था.

‘‘रातदिन वह बिस्तर पर ही रहते हैं, अब बता उन्हें ऐसी स्थिति में छोड़ कर कैसे आ सकती हूं और तुम लोगों से बात करे बिना मैं भूपिंदर को ले कर तुम्हारे घर कैसे आ सकती थी?’’

इस से पहले आदित्य कुछ कहता सोनाक्षी बोल उठी, ‘‘मम्मी, आप यहीं रहिए, हमारा फ्लैट तो बहुत छोटा है.’’

‘‘पापा की अच्छी तरह देखभाल नहीं हो पाएगी, हम एक के बजाय 2 नर्स ड्यूटी पर लगा देंगे. फिर मम्मी मैं घर पर भी हौस्पिटल जैसा माहौल नहीं चाहती हूं.’’

आदित्य बोला, ‘‘मम्मी, नर्स का इंतजाम मैं कर दूंगा. आप चलो यहां से, बहुत कर लिया आप ने पापा के लिए.’’

रश्मि बोली, ‘‘आदित्य बेटा तू मेरी चिंता मत कर… पर मैं भूपिंदर को इस हाल

में छोड़ कर नहीं जा सकती हूं.’’

आदित्य बोला, ‘‘मम्मी कब तक तुम पापा के कारण जिंदगी से दूर रहोगी.’’

रश्मि बोली, ‘‘बेटा, तू खुश रह, मैं तो इस साथ के लिए शापित हूं, पहले मानसिक यातना भोगती थी अब अकेलापन भोगने के लिए शापित हूं.’’

आदित्य बोला, ‘‘मम्मी यह शापित जीवन आप ने खुद ही चुना है, अपने लिए. सामने खुला आकाश है पर आप को इस पिंजरे में रहना ही पसंद है,’’ कह कर आदित्य क्व20 लाख मेज पर रख कर तीर की तरह निकल गया.

जानें आखिर क्या है सेक्सरिंग: कहीं प्यार के नाम पर आप भी ना फंस जाएं

युवाओं का पहला आकर्षण प्रेम ही होता है. शायद ही कोई ऐसा युवा होगा जो रोमांस के इस फेज में न फंसा हो. कोई अपना लव इंटरैस्ट अपनी क्लासमेट में ढूंढ़ता है तो कोई पासपड़ोस की ब्यूटीफुल युवती पर फिदा हो जाता है. युवावस्था के आकर्षण से जुड़े हारमोंस ही हमें किसी विपरीतलिंग की तरफ आकर्षित करते हैं.

हालांकि हर बार यह प्यार सच्चा हो, इस की कोई गारंटी नहीं. प्यार के नाम पर कैमिकल लोचा भी हो सकता है, प्यार एकतरफा भी हो सकता है और कई बार लव को लस्ट यानी वासना की शक्ल में भी देखा जाता है. इन सब प्यार की अलगअलग कैटेगरीज से गुजरता हर युवा मैच्योर होतेहोते सीखता है कि लव के असल माने क्या हैं?

इस रोमांटिक फेज में उपरोक्त कैटेगरीज के अलावा एक और खतरनाक फेज होता है सेक्सरिंग का यानी प्यार के नाम पर जब कोई युवती किसी युवा को फंसा ले तो वह सेक्सरिंग में उलझ कर रह जाता है.

प्यार में सौदा नहीं

अचानक लड़की आप के करीब आ जाए तो उस पर लट्टू होने के बजाय जरा दिमाग लगा कर सोचिए कि इस नजदीकी की वजह प्यार है या आप की मोटी जेब, क्योंकि प्यार कोई सौदेबाजी नहीं होती. जो लड़की आप से प्यार करेगी वह बातबात पर महंगे गिफ्ट्स नहीं मांगेगी और न ही हर समय आप की जेब ढीली करेगी. अगर आप की गर्लफ्रैंड भी आप से ज्यादा आप के तोहफों पर ध्यान देती है तो समझ जाइए कि आप भी सेक्सरिंग में फंसने वाले हैं.

सिंगल होना शर्मिंदगी नहीं

सेक्सरिंग का सब से आसान शिकार युवतियां ज्यादातर उन युवकों को बनाती हैं जो सिंगल होते हैं. साइकोलौजिस्ट भी मानते हैं कि हमारे समाज व युवाओं का रवैया कुछ ऐसा है कि जो लड़के सिंगल होते हैं उन का मजाक बनाया जाता है, उन पर जल्द से जल्द गर्लफ्रैंड बनाने का दबाव डाला जाता है. मानो किसी युवक की गर्लफ्रैंड नहीं है तो उस में कोई न कोई कमी होगी.

इस मनोवैज्ञानिक दबाव के तले दब कर युवक अपनी सोचसमझ खो कर एक अदद युवती की तलाश में जुट जाता है जो जल्दी से जल्दी उस की गर्लफ्रैंड बनने को तैयार हो. भले इस के लिए उसे कोई भी कीमत चुकानी पड़े. इसी जल्दबाजी व मनोवैज्ञानिक दबाव का फायदा चालाक व शातिर युवतियां उठाती हैं और सिंगल युवकों को झूठे प्यार के सेक्सरिंग में फांस कर उन की जेबें ढीली करती हैं. कई मामलों में तो उन की पढ़ाईलिखाई व कैरियर तक बरबाद कर डालती हैं.

युवाओं को यह समझने की जरूरत है कि सिंगल होना कोई  शर्मिंदगी की बात नहीं है. जब तक कोई ईमानदार या सच्चा प्यार करने वाली युवती न मिले, सिंगल रहना बेहतर है. पढ़ाई, कैरियर, शौक व दोस्तों को समय दे कर सेक्सरिंग से बचने में ही समझदारी दिखाने वाले युवा कुछ बन पाते हैं.

इमोशनल अत्याचार के साइड इफैक्ट्स

अकसर युवतियों से धोखा खाए या यों कहें कि सेक्सरिंग के शिकार युवक भावनात्मक तौर पर टूट जाते हैं और प्रतिक्रियास्वरूप कुछ ऐसा कर बैठते हैं जो उन के भविष्य को खतरे में डाल देता है.

जनवरी 2017, दिल्ली के कृष्णा नगर इलाके के रोहन को जब एक युवती ने झूठे प्यार के जाल में फंसा कर चूना लगाया तो उस ने उस से बदला लेने की ठान ली व एक दिन स्कूल से लौटते समय युवती के चेहरे पर ब्लैड मार दिया.

घायल युवती के परिजनों ने रोहन के खिलाफ पुलिस में शिकायत कर दी. इस तरह मामला उलटा पड़ गया. युवती का तो कुछ नहीं बिगड़ा, रोहन को जरूर हवालात की हवा खानी पड़ी.

अकसर सेक्सरिंग के शिकार युवा इमोशनली इतने डिस्टर्ब हो जाते हैं कि धोखा खाए प्रेमी की तरह उस युवती से बदला लेने की ठान लेते हैं. आएदिन हम प्रेम में ठुकराए प्रेमियों की आपराधिक कृत्यों की खबरें पढ़ते रहते हैं. कोई तेजाब से हमला करता है तो कोई युवती का अपहरण तक कर डालता है. कोई सेक्स संबंधों की  पुरानी तसवीरों, सेक्स क्लिप्स या प्रेमपत्रों के नाम पर लड़की को सबक सिखाना चाहता है.

प्यार से अपराध की ओर न जाएं

याद रखिए ये तमाम हिंसात्मक व अनैतिक रास्ते अपराध की उन गलियों की ओर ले जाते हैं, जहां से युवाओं के लिए वापस आना नामुमकिन सा हो सकता है. एक तो पहले ही युवती ने फंसा कर आप का धन व समय बरबाद कर दिया. उस पर उस से बदला लेने के लिए अतिरिक्त समय, धन व भविष्य दांव पर लगाना कहां की समझदारी है?

बेहतर यही है कि उस बात को भूल कर आप अपने कैरियर पर ध्यान दें. एक न एक दिन आप को सच्चा प्यार जरूर मिलेगा. इस धोखेभरी लवस्टोरी से इतना जरूर सीखिए कि अगली बार जब कोई युवती आप की भावनाओं से खिलवाड़ कर आप पर सेक्सरिंग का वार करे तो उस के झांसे में न आएं.

सेक्सरिंग के लक्षण

कोई युवती आप से सचमुच प्यार करती है या फंसा रही है, उसे समझने के लिए सेक्सरिंग के कुछ लक्षण समझना जरूरी है. निम्न पौइंट्स से समझिए कि कौन सी युवती स्वाभाविक तौर पर सेक्सरिंग के जाल में आप को फंसाना चाहती है :

–       जब बातबात पर शौपिंग, पार्टी या महंगे गिफ्ट्स की डिमांड करे.

–       जब खुद से जुड़ी जानकारियां छिपाए व आप की हर बात जानना चाहे.

–       आप के दोस्तों या परिवार से मिलने से कतराए.

–       अपने फैमिली या फ्रैंड सर्किल से मिलवाते वक्त आप की पौकेट खाली करवाए.

–       बातबात पर आप की तारीफ करे और आप की हर बात पर सहमति जताए.

–       हर जरूरत पर आर्थिक मदद की डिमांड करे.

–       झगड़े की वजहों में पैसों का ताना मारे.

–       आप के अमीर व संपन्न दोस्तों से करीबी बढ़ाए.

–       आप की आर्थिक मदद करने से कतराए या बहाने बनाए.

–       प्यार के नाम पर भावनात्मक सहारे के बजाय सिर्फ फिजिकल रिलेशन को तरजीह दे.

अगर इन तमाम पौइंट्स पर आप की गर्लफ्रैंड खरी उतर रही हो तो सावधान हो जाइए. आप पर सेक्सरिंग फेंका जा चुका है. सही मौका पाते ही सेक्सरिंग का छल्ला गले से निकाल फेंकिए और ब्रेकअप सौंग पर जम कर अपनी फेक लवर से आजादी का जश्न मनाइए.

तमाचा : क्या सानिया ले पाई अपना बदला

सानिया की सहेलियों को उस से जलन हो रही थी. किसी ने सपने में भी नहीं सोचा था कि सानिया का रिश्ता इतने बड़े घर में हो जाएगा.

सानिया के अब्बा एक मामूली से फोटोग्राफर थे, जबकि उस के होने वाले ससुर एक बड़े बिजनेसमैन थे. सानिया को उस की सास ने एक शादी में देखा था और तभी उसे पसंद कर लिया था. फिर जल्दी ही उस का रिश्ता भी तय हो गया.

आज सानिया की शादी थी. लाल जोड़े में उस का हुस्न और निखर आया था. सभी सहेलियां उसे घेर कर बैठी थीं और हंसीमजाक कर रही थीं.

‘‘सानिया, तुझे पति नहीं लखपति मिल रहा है,’’ सानिया की खास सहेली रिंकी ने कहा.

‘‘काश, हमें भी कोई ऐसा ही मोटा मुरगा मिल जाए, तो जिंदगी ऐश से कटे,’’ टीना ने अपने दिल पर हाथ रख कर कहा.

‘‘रुपएपैसे का लालच मुझे नहीं है. मैं तो सिर्फ यह चाहती हूं कि मेरा होने वाला पति तनमन से मेरा हो, सिर्फ मेरा,’’ सानिया ने धीरे से कहा.

‘‘जब वह तुम से शादी कर रहा है, तो तुम्हारा ही हुआ न,’’ रिंकी ने कहा.

‘‘शादी करना और सिर्फ बीवी का हो कर रहने में फर्क है रिंकी डियर,’’ सानिया ने कहा.

‘‘अच्छा, अपने विचार अपने पास रख,’’ रिंकी ने कहा, तो सभी सहेलियां खिलखिला कर हंस पड़ीं.

शादी के बाद जब सानिया अपनी ससुराल पहुंची, तो वहां की शानोशौकत देख कर वह भी सोचने पर मजबूर हो गई कि आखिर उस की सास ने उसे ही क्यों चुना? यह ठीक था कि वह शक्लसूरत से अच्छी थी, पर उस जैसी तो और भी बहुत होंगी.

शादी के बाद कुछ दिन तो हंसीखुशी से बीत गए. उस का पति नादिर अपने मांबाप का एकलौता बेटा था, इसलिए उसे लाड़प्यार से पाला गया था.

नादिर अपना ज्यादा समय घर से बाहर ही गुजारता था. सानिया इस बारे में कभी पूछती, तो नादिर कह देता कि काम के सिलसिले में उसे बाहर रहना पड़ता है. एक दिन सानिया की तबीयत कुछ खराब थी. उस ने नादिर से कहा कि वह उसे डाक्टर को दिखा लाए, तो नादिर ने कहा कि वह अकेली चली जाए, क्योंकि उसे कुछ जरूरी काम है.

सानिया डाक्टर को दिखाने चली गई. रास्ते में अचानक सानिया ने एक सिनेमाहाल के पास नादिर को एक लड़की के साथ घूमते देखा. वह वहां का नजारा देख कर सबकुछ समझ गई.

सानिया की हालत अजीब हो गई. किसी तरह वह घर वापस आई. शाम को जब नादिर आया, तो सानिया ने पूछा, ‘‘आज आप कहां थे?’’

‘‘मैं काम के सिलसिले में बाहर गया था,’’ नादिर ने साफ झूठ बोला.

‘‘मैं ने अपनी आंखों से आप को एक लड़की के साथ कहीं घूमते देखा था,’’ सानिया बोली.

‘‘ओह… तो तुम ने देख लिया,’’ नादिर ने लापरवाही से कहा.

‘‘कौन थी वह?’’ सानिया ने पूछा.

‘‘किसकिस के नाम पूछोगी? मैं बाहर क्या करता हूं, इस से तुम्हें क्या लेना? तुम्हें बीवी का हक तो मिल रहा है न,’’ नादिर ने कहा.

‘‘तुम्हारे इस रूप के बारे में मैं सोच भी नहीं सकती थी,’’ सानिया ने कहा.

‘‘जैसे तुम दूध की धुली हो. शादी से पहले क्याक्या गुल खिलाए होंगे, कौन जानता है,’’ नादिर ने बेशरमी से कहा.

‘‘अगर मैं यह कहूं कि मैं दूध की धुली हूं, तो…’’ सानिया ने कहा.

‘‘इस का क्या सुबूत है तुम्हारे पास?’’ नादिर ने पूछा.

सानिया ने नादिर के सवाल का जवाब नहीं दिया. उस ने तय किया कि वह अपने सासससुर को नादिर की हरकतों के बारे में सबकुछ बताएगी. आखिर उन्हें भी तो मालूम होना चाहिए कि उन का बेटा घर के बाहर क्याक्या गुल खिलाता है.

रात को सानिया दूध ले कर सासससुर के कमरे की तरफ गई. ‘‘कहीं सानिया को नादिर की हरकतों का पता न चल जाए,’’ ससुर की आवाज सुन कर सानिया के कदम दरवाजे पर ही ठहर गए.

‘‘पता चल जाएगा, तो कौन सी कयामत आ जाएगी. आखिर हम एक गरीब घर की लड़की इसीलिए तो लाए हैं. उसे अपनी जबान बंद रखनी होगी. उस का काम सिर्फ इस घर का वारिस पैदा करना है,’’ सास ने कठोर आवाज में कहा.

सासससुर की बातें सुन कर सानिया हैरान रह गई. उस ने सपने में भी नहीं सोचा था कि इतने ऊंचे घराने के लोगों के खयाल इतने नीचे होंगे.

उस की सेवा, त्याग और प्यार का उन की नजरों में कोई मोल नहीं था. ऊपर से तो वह शांत थी, लेकिन उस के दिलोदिमाग में एक तूफान मचा था.

‘मैं भी दिखा कर रहूंगी कि मैं क्या कर सकती हूं,’ सानिया ने मन ही मन सोचा.

धीरेधीरे समय गुजरने लगा. इस बीच सानिया कई बार अपने मायके भी गई, लेकिन उस ने अपने मांबाप से कुछ नहीं कहा. सानिया मां बनने वाली है, यह मालूम होते ही पूरे घर में खुशी छा गई. गोद भराई की रस्म के लिए लोगों को बुलाया गया. सानिया कीमती जोड़े और जेवरों से लदी बैठी थी.

गोद भराई की रस्म के बाद सास ने सानिया की बलाएं ली और उसे गले लगाया. ‘‘बहुत जल्द तू इस घर को वारिस देने वाली है. मेरे बेटे का चिराग इस घर को रोशन करेगा. मैं दादी बनूंगी,’’ सास ने खुश होते हुए कहा.

‘आप दादी जरूर बनेंगी और इस घर को वारिस भी जरूर मिलेगा, लेकिन वह आप के बेटे का चिराग नहीं होगा.  इस राज भरी बात को तो सिर्फ मैं ही जानती हूं कि इस बच्चे का बाप आप का बेटा नहीं, कोई और है. यह करारा तमाचा आप लोगों के मुंह पर लगा कर मैं ने अपना बदला ले लिया है,’ सानिया ने कुटिलता से मुसकराते हुए सोचा.

Mother’s Day 2024- कन्याऋण : कन्याऋण : क्या नेहा की शादी का फैसला सही साबित हुआ? – भाग 2

अनुभा की सलाह का उस की सास पर कोई असर नहीं हुआ. वह बोलीं, ‘बहू, यह जरूरी नहीं है कि जो तुम्हारी मौसेरी बहन के साथ हुआ, वैसा ही नेहा के साथ भी घटित हो. मुझे गोमती जीजी ने भरोसा दिया है कि उन के रिश्तेदार बहुत भले और नेक इनसान हैं, वे हमारी नेहा को बहुत प्यार से रखेंगे.’

‘मांजी दूसरे लोगों की बातों से तो हम अपनी नेहा के भविष्य का फैसला नहीं कर सकते,’ अनुभा बोली, ‘नेहा की शादी कर के हमें क्या लाभ होगा? कल को शादी के बाद वह गर्भवती हो गई और उस की संतान भी उस जैसी ही होगी तो कितनी मुसीबत हो जाएगी?’

अनुभा की बात सुन कर सास और भी झल्ला गईं. वह आवेश में बोलीं, ‘वाह बहू, तुम भी कितनी दूर की सोचती हो, तुम्हारी अपनी कोई बेटी नहीं है न इसीलिए तुम क्या जानो, कन्यादान का धर्म क्या होता है? कोई भी मां अपनी बेटी को जीवन भर कुंआरी नहीं रख सकती. मैं तो अब तक यही समझ रही थी कि नेहा को उस की दोनों छोटी भाभियां तो नहीं चाहतीं पर कम से कम तुम तो उस को दिल से चाहती हो पर आज तुम्हारी बातों को सुन कर लगा कि वह मेरा भ्रम था.

‘तुम्हें शायद इस बात की चिंता है कि नेहा की शादी के लिए तुम्हारे पति को 2-4 लाख रुपए की व्यवस्था करनी पड़ेगी पर तुम्हें घबराने की जरूरत नहीं है. तुम्हारे ससुरजी ने नेहा के जन्म के समय ही उस के विवाह के लिए 25 हजार की एफ.डी. करवा दी थी जो अब ब्याज समेत 5 लाख की है. मैं उसी से नेहा के विवाह की सारी व्यवस्था कर लूंगी.’

नवीन इतनी देर तक मौन रह कर दोनों की बातें सुन रहा था. अंत में वह अनुभा को डांटते हुए बोला, ‘तुम मां से क्यों बहस कर रही हो. जब उन को तुम्हारी बात ठीक नहीं लग रही है तो इस विषय पर चर्चा बंद करो.’

फिर नवीन मां से बोला, ‘मां, आप जो भी फैसला करेंगी, मुझे मान्य है. नेहा के विवाह के लिए रुपए की व्यवस्था की चिंता करने की आप को जरूरत नहीं है, मैं सारा इंतजाम कर दूंगा.’

2 माह बाद नेहा के विवाह की तारीख तय हो गई. इस बीच नवीन और उस के दोनों भाई नेहा के ससुराल जा कर लड़के और उस के परिवार से मिल आए. वहां से वापस लौटने के बाद नवीन ने नेहा की ससुराल वालों के लालचीपूर्ण रवैये और लड़के के दब्बूपन के बारे में मां को बता कर अपना असंतोष दिखाया था पर मां अपने निर्णय पर दृढ़ रही थीं.

विवाह की तैयारियों में व्यस्त अनुभा जब भी नेहा को देखती, उस की आंखें भर आतीं. नेहा शादीविवाह का असली मतलब क्या है, इस बात से पूरी तरह अनजान थी पर अपने लिए आए ढेर सारे सामान को देख कर उस की आंखें खुशी से चमक उठती थीं. वह बारबार अनुभा से पूछती, ‘भाभी, यह सारी चीजें मेरी हैं न? भाभी, बबलू, टीना, रीना और मिनी मुझे अपनी चीजें छूने नहीं देते. दोनों भाभियां भी मुझे अपना सामान नहीं देखने देतीं, अब मैं भी अपना सामान किसी को छूनेनहीं दूंगी.’ कभी नेहा कहती, ‘भाभी, शादी में मुझे भी घाघराचुन्नी पहनाओगी न.

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हां, साथ में

मैचिंग चूडि़यां भी पहनाना. मुझे लाल रंग बहुत अच्छा लगता है.’

नेहा की बालसुलभ जिज्ञासाएं देख कर कभी अनुभा सोचती, चलो, नेहा के जीवन में कभी तो खुशी के क्षण आए, चाहे थोडे़ समय के लिए ही सही. उस ने शादी के पहले नेहा को उस के वैवाहिक जीवन के बारे में भी जानकारी देने का प्रयास किया. उस का, अपने पति तथा ससुराल के दूसरे सदस्यों से कैसा व्यवहार हो, इस बारे में भी उसे विस्तार से समझाया.

नेहा उस की बातें सुन कर कुछ क्षण तो गंभीर हो जाती पर फिर अपनी वही बालसुलभ बातें और हरकतें करने लगती.

अनुभा को यह देख कर हैरानी होती कि ज्यादातर रिश्तेदार नेहा की शादी के फैसले पर उस की सास को बधाइयां देते हुए कहते, ‘चलो जी, आप ने तो बेटी की शादी कर के बहुत अच्छा किया. अब आप कन्याऋण से उऋण हो जाएंगी.’ उन की बातें सुन कर उस की सास अपने चेहरे पर गर्वीली मुसकान लाते हुए उस की ओर नजर डालती, ताकि उस को एहसास हो कि नेहा के विवाह का विरोध कर वह कितनी बड़ी गलती कर रही थी.

नेहा के ससुराल जाने के बाद घर एकदम सूना हो गया. उस की बालसुलभ हरकतें रहरह कर अनुभा को याद हो आतीं. मांजी भी नेहा के जाने के बाद से उदास रहने लगी थीं. यद्यपि वे सब के सामने अपनी मनोदशा जाहिर नहीं करतीं पर सब की तरह उन के मन में भी यह आशंका जरूर थी कि नेहा ससुराल में एडजस्ट हो पाएगी कि नहीं.

नेहा को ससुराल गए एक माह से अधिक हो गया था. शुरूशुरू में तो उस से हर दिन ही फोन पर बात हो जाती थी और वह खुश भी लगती थी पर धीरेधीरे उस की आवाज में उदासी छलकने लगी. अब फोन पर वह बोलने लगी थी, ‘भाभी, मुझे यहां अच्छा नहीं लगता. यह लोग सारे समय मुझे देख कर हंसते हैं और मुझे पागल कह कर चिढ़ाते हैं. ये सब बहुत गंदे हैं, राजेश भी इन के साथ मेरा मजाक उड़ाता है.’

नेहा की बातें सुन कर अनुभा को थोड़ी चिंता होनी लगी थी पर वह नेहा को यही समझाती कि वह जिद न करे. सब की बात माने.

पिछले एक सप्ताह से वे जब भी फोन करते नेहा के ससुराल वाले कोई न कोई बहाना बना कर उस से बात नहीं होने देते. कभी कहते, नेहा बाजार गई है, कभी बाथरूम में है तो कभी सो रही है. एक दिन नवीन ने राजेश से बात करने की कोशिश की पर वह भी उन से बात करने से कतराता रहा.

उस दिन रविवार था. नवीन, मांजी और अनुभा ड्रांइगरूम में बैठे नेहा की ही बात कर रहे थे कि नवीन बोला, ‘मां, आज एक बार मैं फिर नेहा से बात करने की कोशिश करता हूं, यदि आज भी उस से बात नहीं हो पाती है तो मैं कल नेहा को कुछ दिनों के लिए उस के ससुराल से ले कर आने की सोच रहा हूं.’

इतना कह कर नवीन नेहा के ससुराल फोन डायल करने लगा. संयोग से उस दिन नेहा ने ही फोन उठाया था.

नवीन की आवाज सुनते ही वह फोन पर ही जोरजोर से रो पड़ी, ‘भैया, आप लोग फोन क्यों नहीं करते? आप यहां से मुझे ले जाओ. ये लोग बहुत खराब हैं. मुझे बहुत तंग करते हैं. मैं इन के पास नहीं रहूंगी.’

नेहा आगे कुछ कहती उस के पहले ही किसी ने रिसीवर उस के हाथ से छीन कर रख दिया था.

अब तो कुछ सोचने का प्रश्न ही नहीं था. उन लोगों ने तय किया कि शाम की ट्रेन से ही नवीन और अनुभा नेहा के ससुराल जा कर एक बार वस्तुस्थिति की जानकारी लें. नेहा की बात सुन कर घर में सब का ‘मूड’ खराब हो गया था.

सुबह अचानक अपने घर में नवीन और अनुभा को देख कर नेहा के ससुराल वाले सकपका गए. नेहा को जब उन के आने का पता चला तो वह दौड़ती हुई आई और नवीन को देखते ही उस से लिपट गई. नेहा की आंखों में दहशत और खौफ देख कर दोनों घबरा गए और अनुभा ने ज्यों ही उस की पीठ पर हाथ फेरा, वह जोरजोर से सुबक पड़ी. बारबार एक ही बात दोहरा रही थी, ‘भाभी, मुझे अपने साथ ले चलो, ये सब लोग बहुत गंदे हैं. मैं इन के घर कभी नहीं आऊंगी.’

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Mother’s Day 2024- कन्याऋण : नेकन्याऋण : क्या नेहा की शादी का फैसला सही साबित हुआ? – भाग 3

नेहा को इस तरह रोते देख कर एक बार तो उस की सास और ससुराल के दूसरे लोग घबरा गए पर तुरंत ही उस की सास अपने को संभालती उन पर हावी होने का प्रयास करते हुए बोली, ‘आप लोगों ने मेरे साथ बहुत बड़ा धोखा किया है. मुझ से कहा गया था कि लड़की थोड़ी भोली और नादान है पर शादी के बाद पता चला कि आप की बहन तो मानसिक रूप से अविकसित है. हम लोगों ने फिर भी इस को समझाने और निभाने की बहुत कोशिश की पर यह तो बहुत ही जिद्दी और ढीठ है. अच्छा हुआ, आप खुद अपनी बहन को लेने आ गए, वरना हमें इस को आप के पास पहुंचाना पड़ता.’

नेहा की सास को समझाने का प्रयास करते हुए नवीन ने कहा, ‘मांजी, हम लोगों ने तो गौतमी मौसी के माध्यम से सारी बातों का पहले ही खुलासा कर दिया था पर उस समय तो आप ने इस रिश्ते से इनकार नहीं किया बल्कि नेहा को अपनाने के एवज में हम से दहेज के अलावा 3 लाख रुपए नकद अलग से मांगे थे, जो हम ने आप को दिए, फिर धोखे में रखने का प्रश्न ही कहां उठता है?’

‘3 लाख रुपए दे कर आप ने मुझ पर कोई एहसान नहीं किया है,’ नेहा के जेठ ने जोर से कहा, ‘राजेश के लिए तो इस से भी अधिक दहेज देने वालों के प्रस्ताव आ रहे थे पर मेरी ही मति फिर गई थी कि मैं आप के झांसे में आ गया. अब मुझे आप से कोई बहस नहीं करनी, आप अपनी बहन को ले कर लौट जाएं तो बेहतर होगा.’

इसी बीच नेहा के ससुर और ननदोई भी आ गए. नवीन और अनुभा को अचानक अपने घर में देख कर वे हैरान लग रहे थे. नेहा के ससुर ने उस के ननदोई का जैसे ही नवीन से परिचय कराया और वह हाथ मिलाने के लिए नवीन की तरफ बढ़ा, नेहा नवीन को अपनी ओर खींचते हुए चिल्ला पड़ी, ‘भैया, इस के पास मत जाना, यह बहुत खराब है. इस ने जैसे मुझे काटा था, आप को भी काट लेगा.’

नेहा क्या कह रही है, एक बार तो किसी को समझ में नहीं आया. लेकिन उस के ननदोई जरूर सकपका गए थे पर नेहा फिर उस की ओर इशारा करते हुए बोली, ‘भैया, इस को मारो, यह बहुत गंदा है. जब राजेश अपनी मां के साथ बाहर गया हुआ था तो इस ने जबरन मेरे कमरे में घुस कर मेरे साथ बहुत गंदी हरकतें कीं और मैं ने जब इसे रोका तो इस ने मुझे काटा और मेरे सारे कपड़े उतार कर मेरे साथ जबरदस्ती की,’ इतना बताते हुए नेहा अपनी साड़ी का पल्ला फेंकते हुए अपने ब्लाउज को खोल अपने शरीर पर जगहजगह काटे और खरोंचों के निशान दिखाने लगी.

नेहा के इस रहस्योद्घाटन से कमरे में सन्नाटा सा छा गया. उस के ससुराल वालों की निगाहें झुक गईं. खासकर उस के ननदोई का तो बुरा हाल था. नवीन ने दोनों हाथों से अपनी आंखों को ढांपते हुए अनुभा से कहा, ‘अनुभा प्लीज, नेहा को कमरे में ले जा कर उस के कपड़े ठीक करो. अब हमें एक पल भी यहां नहीं ठहरना है.’

नेहा के ससुर ने इतना कुछ हो जाने पर भी नेहा की बात को झुठलाने की कोशिश करते हुए कहा, ‘नेहा एकदम झूठ बोल रही है. हमारे जवांई बाबू तो बहुत नेक और शरीफ इनसान हैं, वह भला ऐसी गंदी हरकत क्यों करेंगे?’

नवीन ने उन की ओर घृणा से देखते हुए कहा, ‘मुझे आप की कोई सफाई नहीं सुननी है. मेरी बहन कभी भी झूठ नहीं बोलती. मेरी बहन के साथ जो घिनौना और वहशियाना कुकर्म आप के घर में हुआ है, उस के लिए शर्मिंदगी या अफसोस जाहिर करने के बजाय आप फिर झूठ बोल कर मुझ पर हावी होना चाहते हैं, धिक्कार है आप लोगों को. पिछले सप्ताह भर से आप नेहा को हम से बात नहीं करने दे रहे थे, तभी मुझे दाल में कुछ काला होने का शक हो गया था पर अपने ही घर की बहूबेटियों के साथ ऐसा दुर्व्यवहार आप लोग करेंगे, इस की मैं ने सपने में भी कल्पना नहीं की थी.’

नवीन ने वहां से उठते हुए बेहद दुखी मन से कहा, ‘आज से हमारे बीच के सारे रिश्ते खत्म हो गए. ऐसे दरिंदे और हैवान लोगों के बीच अपनी बहन को छोड़ने के बजाय मैं उसे आजीवन अपने घर में रखना बेहतर समझूंगा. पर यह याद रखें, मैं इतनी आसानी से आप को छोड़ने वाला नहीं. आप की इस हरकत के लिए आप को जेल की हवा नहीं खिलाई तो मेरा भी नाम नवीन नहीं.’

नवीन की इस धमकी से नेहा के सासससुर घबरा गए. उन्होंने हाथ जोड़ कर नवीन को शांत करने का प्रयास किया पर वह यह कहते हुए उठ गया कि मुझे आप से अब कोई बहस नहीं करनी है. मैं अपनी बहन को हमेशा के लिए ले कर जा रहा हूं.

नेहा के साथ भारी मन से वे घर लौट आए थे. मांजी ने जब नेहा को देखा और उस के साथ हुए हादसे के बारे में सुना तो वह सिर थाम कर बैठ गई थीं.

बहुत देर बाद जब वे सामान्य हुईं तो बोलीं, ‘बेटा, यह सब मेरी वजह से हुआ है. मैं मां होते हुए भी अपनी बेटी का सब से बड़ा अहित कर गई. तुम लोगों की बात मान कर नेहा के  विवाह के लिए जिद नहीं करती तो आज मेरी बेटी की यह दुर्दशा नहीं होती. कन्याऋण से उऋण होने के बदले मैं तो तन, मन, धन तीनों से हाथ धो बैठी.’

नेहा के बारे में सोचतेसोचते अनुभा इतनी खो गई कि उस को समय का पता ही नहीं चला. नेहा ने जब आ कर उसे बताया कि मां बुला रही हैं तो वह यथार्थ की दुनिया में वापस आई.

अनुभा मांजी को गंभीर देख कर उन के पास जा कर बैठ गई. मांजी की आंखों में अभी भी आंसू थे. अपने आंसू पोंछते हुए वह बोलीं, ‘‘अनुभा, तुम जब से नेहा को डाक्टर के पास दिखा कर आई हो, मुझे चिंता लग रही है. बेटी, तुम मुझ से लाख छिपाओ पर मैं हकीकत जान गई हूं.’’

मांजी से नजरें चुराते अनुभा बोली ‘‘मांजी आप व्यर्थ ही चिंता कर रही हैं…’’

मांजी ने उस को बीच में ही टोका, ‘‘बेटी, उम्र में तुम से बड़ी होने के कारण मेरे जीवन के अनुभव भी तुम से अधिक हैं. तुम्हारा नजरें चुरा कर मुझ से बात करना मेरे विश्वास को पुख्ता करता है. मैं चाहती हूं कि अब अधिक समय सोचने में नष्ट करने से बेहतर है कि इस समस्या का अविलंब समाधान हो.’’ अपना गला साफ कर के मांजी फिर बोलीं, ‘‘नेहा जब अपना रखरखाव भी ठीक से करने में असमर्थ है तो इस स्थिति में वह मां बनने की जिम्मेदारी कैसे संभाल सकती है? ससुराल के लोग कैसे हैं यह तुम देख कर आई हो. इसीलिए मैं ने सारी स्थितियों पर विचार कर के ही यह फैसला किया है कि हम जितनी जल्दी नेहा को इस समस्या से मुक्ति दिलवा दें, उतना ही बेहतर है. यह शायद मेरा सब से बड़ा प्रायश्चित होगा.’’

अनुभा, मांजी में आए इस अप्रत्याशित बदलाव को देख कर हैरान थी. डेढ़ 2 माह पहले जो महिला कन्यादान के ऋण से उऋण होने तथा किसी भी हालत में बेटी को कुंआरी नहीं रखने की पुरातन विचारधारा में विश्वास करती थी, आज वह अचानक ही इतनी आधुनिक और व्यावहारिक कैसे हो गईं? खैर, जो भी हो मांजी का यह बदलाव उसे बहुत समयोचित लगा.

सलाहकार: कैसे अपनों ने उठाया शुचिता का फायदा

छात्रछात्राओं का प्रिय शगल हर एक अध्यापक- अध्यापिका को कोई नाम देना होता है और चाहे अध्यापक हों या प्राध्यापक, सब जानबूझ कर इस तथ्य से अनजान बने रहते हैं, शायद इसलिए कि अपने जमाने में उन्होंने भी अपने गुरुजनों को अनेक हास्यास्पद नामों से अलंकृत किया होगा. ऋतिका इस का अपवाद थीं. वह अंगरेजी साहित्य की प्रवक्ता ही नहीं होस्टल की वार्डन भी थीं, लेकिन न तो लड़कियों ने खुद उन्हें कोई नाम दिया और न ही किसी को उन के खिलाफ बोलने देती थीं.

मिलनसार, आधुनिक और संवेदनशील ऋतिका का लड़कियों से कहना था : ‘‘देखो भई, होस्टल के कायदे- कानून मैं ने नहीं बनाए हैं, लेकिन मुझे इस होस्टल में रह कर पीएच.डी. करने की सुविधा इसलिए मिली है कि मैं किसी को उन नियमों का उल्लंघन न करने दूं. मैं नहीं समझती कि आप में से कोई भी लड़की होस्टल के कायदेकानून तोड़ कर मुझे इस सुविधा से वंचित करेगी.’’

इस आत्मीयता भरी चेतावनी के बाद भला कौन लड़की मैडम को परेशान करती? वैसे लड़कियों की किसी भी उचित मांग का ऋतिका विरोध नहीं करती थीं. खाना बेस्वाद होने पर वह स्वयं कह देती थीं, ‘‘काश, मुझ में होस्टल की मैनेजिंग कमेटी के सदस्यों को दावत पर बुला कर यह खाना खिलाने की हिम्मत होती.’’

लड़कियां शिकायत करने के बजाय हंसने लगतीं. ऋतिका मैडम का व्यवहार सभी लड़कियों के साथ सहृदय था. किसी के बीमार होने पर वह रात भर जाग कर उस की देखभाल करती थीं. पढ़ाई में कोई दिक्कत होने पर अपना विषय न होते हुए भी वह यथासंभव सहायता कर देती थीं, लेकिन अगर कभी कोई लड़की व्यक्तिगत समस्या ले कर उन के पास जाती थी तो बजाय समस्या सुनने या कोई हल सुझाने के वह बड़ी बेरुखी से मना कर देती थीं.

लड़कियों को उन की बेरुखी उन के स्वभाव के अनुरूप तो नहीं लगती थी फिर भी किसी ने इसे कभी गंभीरता से नहीं लिया. मनोविज्ञान की छात्रा श्रेया ने कुछ दिनों में ही यह अटकल लगा ली कि ऊपर से सामान्य लगने वाली ऋतिका मैम, भीतर से बुरी तरह घायल थीं और जिंदगी को सजा समझ कर जी रही थीं.

मगर उन से पूछने का तो सवाल ही नहीं था क्योंकि अगर उस का प्रश्न सुन कर ऋतिका मैडम जरा सी भी उदास हो गईं तो सब लड़कियां उन का होस्टल में रहना मुश्किल कर देंगी. एम.ए. की छात्रा होने के कारण श्रेया अन्य लड़कियों से उम्र में बड़ी और ऋतिका मैडम से कुछ ही छोटी थी, सो प्राय: हमउम्र होने के कारण दोनों में दोस्ती हो गई और दोनों एक ही कमरे में रहने लगीं.

एक दिन एक पत्रिका द्वारा आयोजित निबंध लेखन प्रतियोगिता में भाग ले रही छात्रा रश्मि उन के कमरे में आई. ‘‘मुझे समझ में नहीं आ रहा कि मैं हिंदी में निबंध लिखूं या अंगरेजी में?’’

‘‘लिखना तो उसी भाषा में चाहिए जिस में तुम सुंदरता से अपने भाव व्यक्त कर सको,’’ श्रेया बोली.

‘‘दोनों में ही कर सकती हूं.’’

‘‘इस की दोनों भाषाओं पर अच्छी पकड़ है,’’ ऋतिका मैडम के स्वर में सराहना थी जिसे सुन कर रश्मि का उत्साहित होना स्वाभाविक ही था.

‘‘इस प्रतियोगिता में मैं प्रथम पुरस्कार जीतना चाहती हूं, सो आप सलाह दें मैडम, कौन सी भाषा में लिखना अधिक प्रभावशाली रहेगा?’’ रश्मि ने ऋतिका से मनुहार की.

‘‘तुम्हारी शिक्षिका होने के नाते बस, इतना ही कह सकती हूं कि तुम अच्छी अंगरेजी लिखती हो और सलाह तो मैं किसी को देती नहीं,’’ ऋतिका मैडम ने इतनी रुखाई से कहा कि रश्मि सहम कर चली गई.

‘‘जब आप को पता है कि उस की अंगरेजी औसत से बेहतर है, तो उसे उसी भाषा में लिखने को कहना था क्योंकि अंगरेजी में जीत की संभावना अधिक है,’’

श्रेया बोली. ‘‘इतनी समझ रश्मि को भी है.’’

‘‘फिर भी बेचारी आश्वस्त होने आप के पास आई थी और आप ने दुत्कार दिया,’’ श्रेया के स्वर में भर्त्सना थी, ‘‘मैडम, आप से सलाह मांगना तो सांड को लाल कपड़ा दिखाना है.’’

ऋतिका ने अपनी हंसी रोकने का असफल प्रयास किया, जिस से प्रभावित हो कर श्रेया पूछे बगैर न रह सकी : ‘‘आखिर आप सलाह देने से इतना चिढ़ती क्यों हैं?’’

‘‘चिढ़ती नहीं श्रेया, डरती हूं,’’ ऋतिका मैडम आह भर कर बोलीं, ‘‘मेरी सलाह से एकसाथ कई जीवन बरबाद हो चुके हैं.’’ ‘‘किसी आतंकवादी गिरोह की आप सदस्या रह चुकी हैं?’’ श्रेया ने उन की ओर कृत्रिम अविश्वास से देखा. ऋतिका ने गहरी सांस ली,

‘‘असामाजिक तत्त्व ही नहीं शुभचिंतक भी जिंदगियां तबाह कर सकते हैं, श्रेया.’’

‘‘वह कैसे?’’

‘‘बड़ी लंबी कहानी है.’’

‘‘मैडम, आज पढ़ाई यहीं बंद करते हैं. कल रविवार को कहीं घूमने न जा कर पढ़ाई कर लेंगे,’’ कह कर श्रेया उठी और उस ने कमरे का दरवाजा बंद किया, बत्ती बुझा कर बोली, ‘‘अब आप शुरू हो जाओ. कहानी सुनाने से आप का दिल हलका हो जाएगा और मेरी जिज्ञासा शांत.’’

‘‘मेरा दिल तो कभी हलका नहीं होगा मगर चलो, तुम्हारी जिज्ञासा शांत कर देती हूं.

‘‘शुचिता मेरी स्कूल की सहपाठी थी. जब वह 7वीं में पढ़ती थी तो उस के डाक्टर मातापिता उसे दादी के पास छोड़ कर मस्कट चले गए थे. जब भी वह उन्हें याद करती, दादी प्रार्थना करने को कहतीं या उसे दिलासा देने को राह चलते ज्योतिषियों से कहलवा देती थीं कि उस के मातापिता जल्दी आएंगे.

‘‘मस्कट कोई खास दूर तो था नहीं, सो दादी से शुचि की उदासी के बारे में सुन कर अकसर उस के मातापिता में से कोई न कोई बेटी से मिलने आता रहता था. इस तरह शुचि भाग्य और भविष्यवक्ताओं पर विश्वास करने लगी. विदेश से लौटने पर उस के आधुनिक मातापिता ने शुचि को बहुत समझाया मगर उस की अंधविश्वास के प्रति आस्था नहीं डिगी.

‘‘रजत शुचि का पड़ोसी और मेरे पापा के दोस्त का बेटा था, सो एकदूसरे के घर आतेजाते मालूम नहीं कब हमें प्यार हो गया, लेकिन यह हम दोनों को अच्छी तरह मालूम था कि सही समय पर हमारे मातापिता सहर्ष हमारी शादी कर देंगे, मगर अभी से इश्क में पड़ना गवारा नहीं करेंगे.

लेकिन मिले बगैर भी नहीं रहा जाता था, सो मैं पढ़ने के बहाने शुचि के घर जाने लगी. शुचि के मातापिता नर्सिंग होम में व्यस्त रहते थे इसलिए रजत बेखटके वहां आ जाता था. जिंदगी मजे में गुजर रही थी. मैं शुचि से कहा करती थी कि प्यार जिंदगी की अनमोल शै है और उसे भी प्यार करना चाहिए. तब उस का जवाब होता था, ‘करूंगी मगर शादी के बाद.’

‘‘‘उस में वह मजा नहीं आएगा जो छिपछिप कर प्यार करने में आता है.’

‘‘‘न आए, मगर जब मैं अपने मम्मीपापा को यह वचन दे चुकी हूं कि मैं शादी उन की पसंद के डाक्टर लड़के से करूंगी, जो उन का नर्सिंग होम संभाल सके तो फिर मैं किसी और से प्यार कैसे कर सकती हूं?’

‘‘असल में शुचि के मातापिता उसे डाक्टर बनाना चाहते थे लेकिन शुचि की रुचि संगीत साधना में थी, सो दामाद डाक्टर पर समझौता हुआ था. हम सब बी.ए. फाइनल में थे कि रजत का चचेरा भाई जतिन एम.बी.ए. करने वहां आया और रजत के घर पर ही रहने लगा.

‘‘एक रोज शुचिता पर नजर पड़ते ही जतिन उस पर मोहित हो गया और रजत के पीछे पड़ गया कि वह उस की दोस्ती शुचिता से करवाए. रजत के असलियत बताने का उस पर कोई असर नहीं हुआ. मालूम नहीं जतिन को कैसे पता चल गया कि रजत मुझ से मिलने शुचिता के घर आता है. उस ने रजत को ब्लैकमेल करना शुरू कर दिया कि या तो वह उस की दोस्ती शुचिता के साथ करवाए नहीं तो वह हमारे मातापिता को सब बता देगा.

‘‘इस से बचने की मुझे एक तरकीब समझ में आई कि शुचिता के अंधविश्वास का फायदा उठा कर उस का चक्कर जतिन के साथ चला दिया जाए. रजत के रंगकर्मी दोस्त सुधाकर को मैं ने अपने और शुचिता के बारे में सबकुछ अच्छी तरह समझा दिया. एक रोज जब मैं और शुचिता कालिज से घर लौट रहे थे तो साधु के वेष में सुधाकर हम से टकरा गया और मेरी ओर देख कर बोला कि मैं चोरी से अपने प्रेमी से मिलने जा रही हूं. उस के बाद उस ने मेरे और रजत के बारे में वह सब कहना शुरू कर दिया जो हम दोनों के अलावा शुचिता को ही मालूम था, सो शुचिता का प्रभावित होना स्वाभाविक ही था.

‘‘शुचिता ने साधु बाबा से अपने घर चलने को कहा. वहां जा कर सुधाकर ने भविष्यवाणी कर दी कि शीघ्र ही शुचिता के जीवन में भी उस के सपनों का राजकुमार प्रवेश करेगा. सुधाकर ने शुचिता को आश्वस्त कर दिया कि वह कितना भी चाहे प्रेमपाश से बच नहीं सकेगी क्योंकि यह तो उस के माथे पर लिखा है. उस ने यह भी बताया कि वह कहां और कैसे अपने प्रेमी से मिलेगी.

‘‘शुचिता के यह पूछने पर कि उस की शादी उस व्यक्ति से होगी या नहीं, सुधाकर सिटपिटा गया, क्योंकि इस बारे में तो हम ने उसे कुछ बताया ही नहीं था, सो टालने के लिए बोला कि फिलहाल उस की क्षमता केवल शुचिता के जीवन में प्यार की बहार देखने तक ही सीमित है. वैसे जब प्यार होगा तो विवाह भी होगा ही. सच्चे प्यार के आगे मांबाप को झुकना ही पड़ता है.

‘‘उस के बाद जैसे सुधाकर ने बताया था उसी तरह जतिन धीरेधीरे उस के जीवन में आ गया. शुचिता का खयाल था कि जब साधु बाबा की कही सभी बातें सही निकली हैं तो मांबाप के मानने वाली बात भी ठीक ही निकलेगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ. जतिन ने यहां तक कहा कि उसे उन का एक भी पैसा नहीं चाहिए…वे लोग चाहें तो किसी गरीब बच्चे को गोद ले कर उसे डाक्टर बना कर अपना नर्सिंग होम उसे दे दें. शुचिता ने भी जतिन की बात का अनुमोदन किया. शुचिता के मातापिता को मेरी और अपनी बेटी की गहरी दोस्ती के बारे में मालूम था, सो एक रोज वह दोनों हमारे घर आए.

‘‘‘देखो ऋतिका, शुचि हमारी इकलौती बेटी है. हम ने रातदिन मेहनत कर के जो इतना बढ़िया नर्सिंग होम बनाया है या दौलत कमाई है इसीलिए कि हमारी बेटी हमेशा राजकुमारियों की तरह रहे. जतिन अच्छा लड़का है लेकिन उस की एक बंधीबधाई तनख्वाह रहेगी. वह एक डाक्टर जितना पैसा कभी नहीं कमा पाएगा और फिर हमारे इतनी लगन से बनाए नर्सिंग होम का क्या होगा? अपनी बेटी के रहते हम किसी दूसरे को कैसे गोद ले कर उसे सब सौंप दें? हम ने शुचि के लिए डाक्टर लड़का देखा हुआ है जो हर तरह से उस के उपयुक्त है और उस के साथ वह बहुत खुश रहेगी. तुम भी उसे जानती हो.’

‘‘‘कौन है, अंकल?’

‘‘‘तुम्हारा भाई कुणाल. उस के अमेरिका से एम.एस. कर के लौटते ही दोनों की शादी कर देंगे.’ ‘‘ ‘मैं ठगी सी रह गई. शुचिता मेरी भाभी बन कर हमेशा मेरे पास रहे इस से अच्छा और क्या होगा? जतिन तो आस्ट्रेलिया जाने को कटिबद्ध था.

‘‘‘आप ने यह बात छिपाई क्यों?’ मैं ने पूछा, ‘क्या पता भैया ने वहीं कोई और पसंद कर ली हो.’

‘‘‘उसे वहां इतनी फुरसत ही कहां है? और फिर मैं ने कुणाल और तुम्हारे मम्मीपापा को साफ बता दिया था कि मैं कुणाल को अमेरिका जाने में जो इतनी मदद कर रहा हूं उस की वजह क्या है. उन सब ने तभी रिश्ता मंजूर कर लिया था. तुम्हें बता कर क्या ढिंढोरा पीटना था?’

‘‘अब मैं उन्हें कैसे बताती कि मुझे न बताने से क्या अनर्थ हुआ है. तभी मेरे दिमाग में बिजली सी कौंधी. शुचिता के जिस अंधविश्वास का सहारा ले कर मैं ने उस का और जतिन का चक्कर चलवाया था, एक बार फिर उसी अंधविश्वास का सहारा ले कर उस चक्कर को खत्म भी कर सकती थी लेकिन अब यह इतना आसान नहीं था.

रजत कभी भी मेरी मदद करने को तैयार नहीं होता और अकेली मैं कहां साधु बाबा को खोजती फिरती? मैं ने शुचिता की मम्मी को सलाह दी कि वह शुचि के अंधविश्वास का फायदा क्यों नहीं उठातीं? उन्हें सलाह पसंद आई. कुछ रोज के बाद उन्होंने शुचिता से कहा कि वह उस की और जतिन की शादी करने को तैयार हैं मगर पहले दोनों की जन्मपत्री मिलवानी होगी. अगर कुछ गड़बड़ हुई तो ग्रह शांति की पूजा करा देंगे.

‘‘अंधविश्वासी शुचिता तुरंत मान गई. उस ने जबरदस्ती जतिन से उस की जन्मपत्री मंगवाई. मातापिता ने एक जानेमाने पंडित को शुचिता के सामने ही दोनों कुंडलियां दिखाईं. पंडितजी देखते ही ‘त्राहिमाम् त्राहिमाम्’ करने लगे. ‘‘‘इस कन्या से विवाह करने के कुछ ही समय बाद वर की मृत्यु हो जाएगी. कन्या के ग्रह वर पर भारी पड़ रहे हैं.’

‘‘‘उन्हें हलके यानी शांत करने का कोई उपाय जरूर होगा पंडितजी. वह बताइए न,’ शुचिता की मम्मी ने कहा. ‘‘ ‘ऐसे दुर्लभ उपाय जबानी तो याद होते नहीं, कई पोथियां देखनी होंगी.’

‘‘‘तो देखिए न, पंडितजी, और खर्च की कोई फिक्र मत कीजिए. अपनी बिटिया की खुशी के लिए आप जो पूजा या दान कहेंगे हम करेंगे.’

‘‘‘मगर पूजा से अमंगल टल जाएगा न पंडितजी?’ शुचिता ने पूछा.

‘‘‘शास्त्रों में तो यही लिखा है. नियति में लिखा बदलने का दावा मैं नहीं करता,’ पंडितजी टालने के स्वर में बोले.

‘‘‘ऐसा है बेटी. जैसे डाक्टर अपने इलाज की शतप्रतिशत गारंटी नहीं लेते वैसे ही यह पंडित लोग अपनी पूजा की गारंटी लेने से हिचकते हैं,’ शुचिता के पापा हंसे.

‘‘उस के बाद शुचिता ने कुछ और नहीं पूछा. अगली सुबह उस के कमरे से उस की लाश मिली. शुचिता ने अपनी कलाई की नस काट ली थी. उस ने अपने अंतिम पत्र में लिखा था कि पंडितजी की बात से साफ जाहिर है कि उस की जिंदगी में जतिन का साथ नहीं लिखा है, वह जतिन से बेहद प्यार करती है.

उस के बगैर जीने की कल्पना नहीं कर सकती और न ही उस का अहित चाहती है, सो आत्महत्या के सिवा उस के पास कोई और विकल्प नहीं है. ‘‘शुचिता की आत्महत्या के लिए उस के मातापिता स्वयं को अपराधी मानते हैं, मगर असली दोषी तो मैं हूं जिस की सलाह पर पहले एक नकली ज्योतिषी ने शुचिता का जतिन से प्रेम करवाया और मेरी सलाह से ही उस प्रेम संबंध को तोड़ने के लिए फिर एक झूठे ज्योतिषी का सहारा लिया गया.

‘‘शुचिता के मातापिता और उस से अथाह प्यार करने वाला जतिन तो जिंदा लाश बन ही चुके हैं. मगर मेरे कुणाल भैया, जो बचपन से शुचिता से मूक प्यार करते थे और जिस के कारण ही वह बजाय इंजीनियर बनने के डाक्टर बने थे, बुरी तरह टूट गए हैं और भारत लौटने से कतरा रहे हैं इसलिए मेरे मातापिता भी बहुत मायूस हैं. यही नहीं मेरे इस तरह क्षुब्ध रहने से रजत भी बेहद दुखी हैं. तुम ही बताओ श्रेया, इतना अनर्थ कर के, इतने लोगों को संत्रास दे कर मैं कैसे खुश रह सकती हूं या सलाहकार बनने की जुर्रत कर सकती हूं?’’

 

Mother’s Day 2024- कन्याऋण : कन्याऋण : क्या नेहा की शादी का फैसला सही साबित हुआ? – भाग 1

नेहा के ससुराल से लौट कर आने के बाद से ही मांजी बहुत दुखी और परेशान लग रही हैं. बारबार वह एक ही बात कहती हैं, ‘‘अनुभा बेटी, काश, मैं ने तुम्हारी बात मान ली होती तो आज मुझे यह दिन नहीं देखना पड़ता. तुम ने मुझे कितना समझाया था पर मैं अपने कन्याऋण से उऋण होने की लालसा में नेहा की जिंदगी से ही खिलवाड़ कर बैठी. अब तो अपनी गलती सुधारने की गुंजाइश भी नहीं रही.’’

अनुभा समझ नहीं पा रही थी कि मांजी को कैसे धीरज बंधाए. जब से उस ने नेहा को सुबहसुबह बाथरूम में उलटियां करते देखा उस का माथा ठनक गया था और आज जब डा. ममता ने उस के शक की पुष्टि कर दी तो लगता है अनर्थ ही हो गया.

डाक्टर के यहां से लौटने के बाद मांजी ने जब उस से पूछा तो उन की मानसिक अवस्था को देखते हुए वह उन से सच नहीं बोल पाई और यह कह दिया कि एसिडिटी के कारण नेहा को उलटियां हो रही थीं. लेकिन अनुभा को लगा था कि उस की सफाई से मांजी के चेहरे से शक और संदेह के बादल छंट नहीं पाए थे. उन्हें सच क्या है, इस का आभास हो गया था.

सहसा अनुभा की नजरें नेहा की ओर उठीं. वह सारी चिंताओं से अनजान अपनी गुडि़या से खेल रही थी. उस के साथ क्या हो रहा था और आगे क्या होगा? उस का जरा सा भी एहसास उसे नहीं था. अबोध नेहा को देख कर तो उस का मन यह सोच कर और भी खराब हो गया कि कैसे वह भविष्य में आने वाली मुश्किलों का सामना कर पाएगी.

यद्यपि नेहा उस की ननद है पर अनुभा ने सदैव उसे अपनी बेटी की तरह ही समझा है. जब शादी होने के बाद अनुभा ससुराल आई थी, उस समय नेहा 4 साल की रही होगी.

ससुराल आने पर अनुभा ने जब पहली बार नेहा को देखा, तभी उस के प्रति उस के मन में सहानुभूति और प्रेम जाग उठा था, क्योंकि मायके में उस के घर के पास ही मंदबुद्धि और मानसिक रूप से विकलांग बच्चों का एक स्कूल था. इस कारण ऐसे बच्चों के मनोभावों से उस का पूर्व परिचय रहा था. वह जानती थी कि नेहा का बौद्धिक और शैक्षणिक विकास आम बच्चों की तरह नहीं हो सकता इसलिए नेहा की सारी जिम्मेदारियां उस ने शुरू से ही अपने ऊपर ले ली थीं.

अनुभा ने नेहा को मानसिक रूप से अविकसित बच्चों के विशेष मनो- चिकित्सा केंद्र में प्रवेश भी दिलवाया था ताकि अपने समान बच्चों के बीच रह कर उस में किसी प्रकार की हीनभावना नहीं आ पाए. वह नेहा को घर पर भी उस की समझ के अनुसार कभी माला पिरोने, कभी पेंटिंग करने तो कभी घर के छोटेमोटे कामों में व्यस्त रखती थी.

नेहा को भी शुरू से ही अनुभा से गहरा लगाव हो गया था. वह हर समय भाभीभाभी कह कर उस के इर्दगिर्द घूमती रहती. जबकि नेहा की नासमझी की हरकतों से तंग आ कर कई बार मांजी अपना आपा खो कर उस पर हाथ उठा देतीं. उस के भाई तथा दूसरी भाभियां भी नेहा को बातबात में टोकते या डांटते रहते थे.

नेहा उम्र में जरूर बड़ी हो रही थी पर उस की बुद्धि और समझ तो 5-6 साल के बच्चे जितनी हो कर ठहर गई थी. घर में नेहा को किसी की भी डांट पड़ती तो वह भाग कर अनुभा के पास चली आती. वह कभी उसे प्यार से समझाती तो कभी गंभीर हो कर उस की गलती का एहसास करवाने का प्रयास करती.

नेहा 18 वर्ष की हो गई. उस की हमउम्र लड़कियों के जब शादीविवाह होने लगे तो वह भी कभीकभी बहुत भोलेपन से उस से पूछती, ‘भाभी, मेरा विवाह कब होगा? मेरा दूल्हा घोड़ी पर बैठ कर कब आएगा?’

वह नेहा को समझाती, ‘अभी तो तुम्हें पढ़लिख कर बहुत होशियार बनना है, फिर कहीं जा कर तुम्हारा विवाह होगा.’ नेहा उस के इस तरह समझाने पर संतुष्ट हो कर सबकुछ भूल कर खेलने में व्यस्त हो जाती पर नेहा के ऐसे सवाल उसे अकसर भविष्य की चिंता में डाल जाते.

एक दिन सास ने उस के पति नवीन के सामने नेहा के विवाह का प्रसंग छेड़ते हुए बताया कि उन की पड़ोसिन गोमती देवी ने अपने रिश्ते के चाचा के बेटे के लिए नेहा के रिश्ते की बात चलाई है. मांजी के मुंह से अचानक नेहा के विवाह की चर्चा सुन कर नवीन और अनुभा दोनों ही अवाक् रह गए.

नवीन ने कहा भी, ‘मां, नेहा जिस स्थिति में है, उस का विवाह करना क्या उचित होगा? दूसरे, क्या वे लोग नेहा के बारे में सबकुछ जानते हैं. यदि उन लोगों को अंधेरे में रख कर हम ने विवाह किया तो यह रिश्ता कितने दिन निभ पाएगा?’

नवीन की बातों को सुन कर मांजी एक बार तो गंभीर हो गईं, फिर कुछ सोच कर बोलीं, ‘बेटा, मैं ने गोमती देवी से सारी बात स्पष्ट करने के बाद ही तुम्हारे सामने इस रिश्ते की बात छेड़ी है. लड़के के एक पांव में पोलियो होने की वजह से वह बैसाखी से चलता है. उन लोगों ने इस संबंध को स्वीकार करने के बदले में 3 लाख रुपए नकद मांगे हैं, बाकी जो कुछ दहेज में हम नेहा को दें, वह हमारी इच्छा है. अब जब अपनी बेटी में ही कमी है तो हमें थोड़ा झुकना तो पडे़गा ही.’

मांबेटे की बातचीत सुन रही अनुभा अब स्वयं को रोक नहीं सकी और बोली, ‘मांजी, बीच में बोलने के लिए मैं क्षमा चाहूंगी पर मैं एक बात जरूर कहना चाहूंगी कि नेहा के विवाह का फैसला करने से पहले हमें एक बार सारी स्थितियों पर गंभीरता से विचार कर लेना चाहिए.’

‘सारी स्थितियों को स्पष्ट करने से तुम्हारा तात्पर्य क्या है बहू?’ मांजी ने उसे टोकते हुए पूछा.

‘मांजी, मेरे कहने का मतलब है कि दूसरों के बहलावे में आ कर हमें नेहा की शादी का फैसला नहीं करना चाहिए. मैं ने तो अपनी मौसी की लड़की को देखा है. उस की स्थिति भी कमोबेश नेहा जैसी ही थी. मेरी मौसी ने रुपयों का लालच दे कर एक गरीब घर के लड़के से अपनी बेटी का विवाह कर दिया पर शादी के 2 माह बाद ही उस के ससुराल वालों ने उसे यह कहते हुए वापस लौटा दिया कि उस कम दिमाग लड़की के साथ उन के बेटे का निभाव नहीं हो सकता. उन्होंने मेरी मौसी के रुपए भी हड़प लिए और उन की बेटी को भी वापस भेज दिया. मांजी, मुझे डर है कि हमारी नेहा के साथ भी ऐसा ही कुछ न घट जाए.’

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