कायर – भाग 2 : क्या घना को मिल पाया श्यामा का प्यार

घना सोचने लगा कि श्यामा का गांव यहां से थोड़ी ही दूर पर है. क्यों न एक बार फिर कोशिश की जाए. आज उसे किसी बात का डर नहीं था. न मरने का डर, न जंगली जानवरों का डर. लिहाजा, वह श्यामा के घर की तरफ चल पड़ा.

घना मास्टर बिछन दास के घर के सामने रुक गया.

खड़कोट गांव के एक हिस्से में ब्राह्मण और एक हिस्से में दलित रहते हैं. इसी गांव के दलित टोले के बिछन दास मास्टर की बेटी श्यामा सेंदुल कालेज में बीए के आखिरी साल में पढ़ रही थी.

मास्टर बिछन दास नजदीक के ही एक गांव में मिडिल स्कूल के हैडमास्टर थे. खेतीबारी ज्यादा नहीं थी, इसलिए पत्नी भी अकसर उन के साथ ही

रहती थी.

बिछन दास का स्कूल बहुत ज्यादा दूर न होने के चलते वे हर 15 दिन बाद घर आ जाते थे. श्यामा अपनी बूढ़ी दादी मां के साथ गांव में रहती थी.

करीब के गांव का होने की वजह से और श्यामा में घना की खास दिलचस्पी होने के चलते उसे श्यामा और उस के घर के बारे में बहुतकुछ पता था.

घना जानता था कि श्यामा की मां अकसर उस के पिता के साथ ही रहती हैं. घर में उस की बूढ़ी दादी मां न साफ देखती हैं और न साफ सुनती हैं. उसे यह भी पता था कि श्यामा घर की अलग कोठरी में पढ़ाई करती है. हो सकता है कि वह अभी भी पढ़ रही हो.

घना जब श्यामा के घर के चौक में पहुंचा, तब उस ने देखा कि ऊपरी मंजिल की एक कोठरी में अभी भी रोशनी थी. वह जानता था कि श्यामा इसी कोठरी में पढ़ रही होगी.

घना ने दरवाजा खटखटाया. कमरे में कोई भी हलचल नहीं हुई. उस ने फिर दरवाजा खटखटाया.

‘‘कौन है?’’ कोठरी से श्यामा की आवाज आई.

‘‘मैं… घना.’’

‘‘घना?’’

‘‘हां, घना.’’

‘‘इतनी रात में…’’

‘‘हां, दरवाजा खोल दो. अपनी बात कर के मैं यहां से चला जाऊंगा.’’

श्यामा ने घड़ी की ओर देखा. रात के 2 बज रहे थे. वह सोचने लगी, ‘क्या करूं? दरवाजा खोलूं, तो कहीं यह कोई ?ां?ाट न खड़ा कर दे. अपनी बात कहने के अलावा यह और क्या कर सकता है? यह मेरा घर है. एक दलित लड़की के घर में इतनी रात को… इसे भी तो अपनी इज्जत का खयाल होगा.’

श्यामा ने दरवाजा खोल दिया. दरवाजे पर घना खड़ा था. कपड़े फटे हुए, चेहरे पर खरोंचों के निशान, जिन से खून निकल रहा था.

श्यामा को उस पर तरस आ गया. उस ने उसे अंदर आने दिया. वह ठंड से बुरी तरह कांप रहा था. उस के चेहरे पर पीड़ा साफ ?ालक रही थी.

‘‘यह सब क्या है?’’ श्यामा ने हैरान होते हुए पूछा.

घना ने श्यामा के साथ कालेज से घर आते समय रास्ते में जो बातचीत हुई थी, उस के बाद की सारी घटना बता दी.

‘‘मैं क्या करूं श्यामा? मैं अपने को संभाल नहीं पा रहा हूं. तुम्हारे बिना मैं अब जी नहीं सकूंगा.’’

‘‘क्या मतलब है तुम्हारा? यह तो जबरदस्ती है. मैं तो ऐसा सोच भी नहीं सकती. ऐसा कभी नहीं हो सकता. मैं ने आप से पहले भी कहा था.’’

‘‘ठीक है, तब फिर चलता हूं. मैं तुम्हारा नुकसान नहीं करना चाहता. ज्यादा क्या कहूं… शायद यह मेरी जिंदगी की आखिरी रात है,’’ कह कर घना उठने को हुआ.

‘‘इतनी रात को तुम कहां जाओगे?’’ श्यामा ने डर कर पूछा.

‘‘कहां जाऊंगा? जहां एक दिन सभी को जाना है. क्यों न मैं आज ही भिलंगना नदी में डूब जाऊं. मैं जी कर क्या करूंगा, खुद भी नहीं जानता. पर मैं तुम से माफी मांगता हूं. मैं ने तुम्हें बहुत तकलीफ दी है, मु?ो माफ कर देना.’’

घना ने दरवाजे की तरफ कदम रखा ही था कि श्यामा ने उस की बांह थाम कर उसे कुरसी पर बैठा दिया.

कुंआरी ख्वाहिशें-भाग 2 : हवस के चक्रव्यूह में फंसी गीता

‘ठीक है जाओ, लेकिन कल ज्यादा देर रुकना. पापा से कहना कि ऐक्स्ट्रा क्लास है,’’ सागर ने कहा.

‘‘मैं ने आप को यह तो नहीं कहा कि मैं कल आऊंगी…’’ गीता ने चौंक कर कहा.

‘‘मैं जानता हूं कि तुम कल भी आओगी. जैसे मुझे पता था कि तुम आज मुझ से मिलने आओगी…. तो ठीक है फिर कल मिलते हैं.’’

‘‘ठीक है,’’ कह कर गीता कालेज चली गई और इतने में उस के पापा आ गए. अगले दिन फिर वही सिलसिला शुरू हो गया.

बंटी ठीक हो गया और इत्तिफाक से उसे वहीं पंजाबी बाग में ही

अच्छी नौकरी मिल गई. गीता की तो बल्लेबल्ले. अब तो अकेले ही बस पर जाने की छूट. उधर सागर भी फ्री हो गया कि अब न बंटी मिलेगा और न ही उसे पता चलेगा कि सागर कब औफिस गया और कब नहीं.

सागर और गीता के प्यार की पेंग ऊंची और ऊंची चढ़ने लगी. दोनों को एकदूसरे के बिना एक पल भी चैन नहीं.

सागर तो प्यासा भंवरा कली का रस चूसने को उतावला, लेकिन गीता अभी तक डर के मारे बची हुई थी और उसे ज्यादा करीब आने का मौका नहीं दिया.

गीता चाहती कि सागर भाई से शादी की बात करे, क्योंकि गीता नहीं जानती थी कि सागर शादीशुदा है, पर बंटी जानता था.

सागर हर बार गीता को कहता, ‘‘तुम बंटी से अभी कुछ मत बताना, क्योंकि उस का सपना है कि वह तुम्हें बहुत बड़े घर में ब्याहे और मैं ठहरा मिडिल क्लास… वह नहीं मानेगा हमारी शादी के लिए, इसलिए मौका देख कर मैं खुद अपने तरीके से बात करूंगा, ताकि वह मान जाए.’’गीता सागर की बातों में आ गई.एक दिन भंवरे ने कली का रस चूस लिया… सागर ने प्यार से गीता को बहलाफुसला कर उस का कुंआरापन खत्म कर दिया और कर ली अपने मन की पूरी.

कुछ दिनों तक यह खेल फिर चलता और एक दिन गीता बोली, ‘‘सागर, ऐसा न हो कि भाई को कहीं किसी और से हमारे बारे में पता चले. इस से अच्छा है कि हम खुद ही बता दें. भाई फिर मम्मीपापा से खुद बात कर लेगा.’’

सागर बोला, ‘‘गीता, अगर तुम मेरी बात मानो तो हम कोर्ट मैरिज कर लेते हैं और फिर मैं आऊंगा तुम्हारे घर और दोनों बात करेंगे. जब हमारे पास कोर्ट मैरिज का सर्टिफिकेट होगा, फिर कोई मना ही नहीं कर पाएगा.

‘‘और सोचो, तुम्हें अगर बच्चा ठहर गया, तब क्या कोई तुम से शादी करेगा… तुम्हें तो तुम्हारे घर वाले मार ही डालेंगे. फिर क्या मैं जी सकूंगा तुम्हारे बिना… मुझे मौत से डर नहीं लगता, बस मेरी छोटी बहन, बूढ़े मांबाप बेचारे किस के सहारे जिएंगे…’’

इस तरह सागर ने गीता को समझा दिया और वह बेचारी एक दिन घर से मां के जेवर और कुछ नकदी ले कर अपने सागर के पास चली गई.

‘‘सागर, चलो कोर्ट और अभी इसी समय शादी कर के फिर घर चलते हैं… और ये लो पैसे और जेवर, जितना खर्च हो कर लो.’’

सागर इन सब के लिए पहले से तैयार था. उस ने अपना परिवार कहीं और शिफ्ट कर दिया था. नौकरी से भी इस्तीफा दे दिया था. गीता को वह अपने किराए वाले घर में ले गया.

गीता ने देखा कि घर पर कोई नहीं है, तो उस ने पूछा, ‘‘सागर, मांबाबूजी और तुम्हारी बहन कहां हैं? यह घर खालीखाली क्यों है?’’

‘‘ओहो गीता, मैं तो तुम्हें बताना ही भूल गया, मुझे दूसरे औफिस से अच्छा औफर आया है और मैं नौकरी बदल रहा हूं, इसलिए सारा सामान नए घर में शिफ्ट कराया है. मांबाबूजी और छुटकी हमारे रिश्ते के चाचा की बेटी की शादी मेंगए हैं.

तुम चिंता मत करो. आज शादी होना मुश्किल है, क्योंकि अभी तक हमारी अर्जी पास नहीं हुई. कल हो जाएगी. आज रात तुम यहीं रुको, कल शादी करते ही हम तुम्हारे घर चलेंगे.’’

अभी भी न समझ पाई गीता और सबकुछ सौंप दिया सागर को. 2 दिन बाद कमरा भी बदल लिया. इस तरह सागर कई दिनों तक गीता को बेवकूफ बनाता रहा.

इधर शाम को गीता के कालेज में न मिलने पर उस के पापा परेशान हो गए. उस की सहेली से पूछा तो पता चला कि गीता तो पिछले कुछ दिनों से कालेज में कम ही आई है. बस शाम के समय बाहर नजर आती थी. उसे एक लड़का छोड़ने आता था.

पापा सारा माजरा समझ गए. उन्होंने बंटी को बताया. वे अब मान चुके थे

कि कोई गीता को बहलाफुसला कर ले गया है.

गीता के साथियों से पूछने पर अंदाजा लगाया कि ये सब शायद सागर की बात कर रहे हैं. सागर को फोन मिलाया तो फोन बंद मिला. सागर ने वह नंबर बंद कर के दूसरा नंबर ले लिया था.

बंटी जा पहुंचा सागर के घर. वहां से पूछताछ की तो मकान मालिक ने बताया कि बीवी को पहले ही मायके भेज दिया था. वह एक लड़की लाया था. 2 दिन बाद उसे ले कर कहां गया, पता नहीं.

लड़की के हुलिए से वे समझ गए कि गीता ही थी. बंटी को अपनी दोस्ती पर अफसोस होने लगा कि उस ने आस्तीन में सांप पाल लिया था

इंग्लिश रोज- भाग 1 : क्या सच्चा था विधि के लिए जौन का प्यार

वह आज भी वहीं खड़ी है. जैसे वक्त थम गया है. 10 वर्ष कैसे बीत जाते हैं…? वही गांव, वही शहर, वही लोग…यहां तक कि फूल और पत्तियां तक नहीं बदले. ट्यूलिप्स, सफेद डेजी, जरेनियम, लाल और पीले गुलाब सभी उस की तरफ ठीक वैसे ही देखते हैं जैसे उस की निगाह को पहचानते हों. चौश्चर काउंटी के एक छोटे से गांव नैनटविच तक सिमट कर रह गई उस की जिंदगी. अपनी आरामकुरसी पर बैठ वह उन फूलों का पूरा जीवन अपनी आंखों से जी लेती है. वसंत से पतझड़ तक पूरी यात्रा. हर ऋतु के साथ उस के चेहरे के भाव भी बदल जाते हैं, कभी उदासी, कभी मुसकराहट. उदासी अपने प्यार को खोने की, मुसकराहट उस के साथ समय व्यतीत करने की. उसे पूरी तरह से यकीन हो गया था कि सभी के जीवन का लेखाजोखा प्रकृति के हाथ में ही है. समय के साथसाथ वह सब के जीवन की गुत्थियां सुलझाती जाती है. वह संतुष्ट थी. बेशक, प्रकृति ने उसे, क्वान्टिटी औफ लाइफ न दी हो किंतु क्वालिटी औफ लाइफ तो दी ही थी, जिस के हर लमहे का आनंद वह जीवनभर उठा सकेगी.

यह भी तो संयोग की ही बात थी, तलाक के बाद जब वह बुरे वक्त से निकल रही थी, उस की बड़ी बहन ने उसे छुट्टियों में लंदन बुला लिया था. उस की दुखदाई यादों से दूर नए वातावरण में, जहां उस का मन दूसरी ओर चला जाए. 2 महीने बाद लंदन से वापसी के वक्त हवाईजहाज में उस के साथ वाली कुरसी पर बैठे जौन से उस की मुलाकात हुई. बातोंबातों में जौन ने बताया कि रिटायरमैंट के बाद वे भारत घूमने जा रहे हैं. वहां उन का बचपन गुजरा था. उन के पिता ब्रिटिश आर्मी में थे. 10 वर्ष पहले उन की पत्नी का देहांत हो गया. तीनों बच्चे शादीशुदा हैं. अब उन के पास समय ही समय है. भारत से उन का आत्मीय संबंध है. मरने से पहले वे अपना जन्मस्थान देखना चाहते हैं, यह उन की हार्दिक इच्छा है. उन्होंने फिर उस से पूछा, ‘‘और तुम?’’

‘‘मैं भारत में ही रहती हूं. छुट्टियों में लंदन आई थी.’’

‘‘मैं भारत घूमना चाहता हूं. अगर किसी गाइड का प्रबंध हो जाए तो मैं आप का आभारी रहूंगा,’’ जौन ने निवेदन करते कहा.

‘‘भाइयों से पूछ कर फोन कर दूंगी,’’ विधि ने आश्वासन दिया. बातोंबातों में 8 घंटे का सफर न जाने कैसे बीत गया. एकदूसरे से विदा लेते समय दोनों ने टैलीफोन नंबर का आदानप्रदान किया. दूसरे दिन अचानक जौन सीधे विधि के घर पहुंच गए. 6 फुट लंबी देह, कायदे से पहनी गई विदेशी वेशभूषा, काला ब्लेजर और दर्पण से चमकते जूते पहने अंगरेज को देख कर सभी चकित रह गए. विधि ने भाइयों से उस का परिचय करवाते कहा, ‘‘भैया, ये जौन हैं, जिन्हें भारत में घूमने के लिए गाइड चाहिए.’’

‘‘गाइड? गाइड तो कोई है नहीं ध्यान में.’’

‘‘विधि, तुम क्यों नहीं चल पड़ती?’’ जौन ने सुझाव दिया. प्रश्न बहुत कठिन था. विधि सोच में पड़ गई. इतने में विधि का छोटा भाई सन्नी बोला, ‘‘हांहां, दीदी, हर्ज की क्या बात है.’’

‘‘थैंक्यू सन्नी, वंडरफुल आइडिया. विधि से अधिक बुद्धिमान गाइड कहां मिल सकता है,’’ जौन ने कहा. 2 सप्ताह तक दक्षिण भारत के सभी पर्यटन स्थलों को देखने के बाद दोनों दिल्ली पहुंचे. उस के एक सप्ताह बाद जौन की वापसी थी. जाने से पहले तकरीबन रोज मुलाकात हो जाती. किसी कारणवश जौन की विधि से बात न हो पाती तो वह अधीर हो उठता. उस की बहुमुखी प्रतिभा पर जौन मरमिटा था. वह गुणवान, स्वाभिमानी, साहसी और खरा सोना थी. विधि भी जौन के रंगीले, सजीले, जिंदादिल व्यक्तित्व से बहुत प्रभावित हुई. उस की उम्र के बारे में सोच कर रह जाती. जौन 60 वर्ष पार कर चुका था. विधि ने अभी 35 वर्ष ही पूरे किए थे. लंदन लौटने से 2 दिन पहले, शाम को टहलतेटहलते भरे बाजार में घुटनों के बल बैठ कर जौन ने अपने मन की बात विधि से कह डाली, ‘‘विधि, जब से तुम से मिला हूं, मेरा चैन खो गया है. न जाने तुम में ऐसा कौन सा आकर्षण है कि मैं इस उम्र में भी बरबस तुम्हारी ओर खिंचा आया हूं.’’ इस के बाद जौन ने विधि की ओर अंगूठी बढ़ाते हुए प्रस्ताव रखा, ‘‘विधि, क्या तुम मुझ से शादी करोगी?’’

विधि निशब्द और स्तब्ध सी रह गई. यह तो उस ने कभी नहीं सोचा था. कहते हैं न, जो कभी खयालों में हमें छू कर भी नहीं गुजरता, वो, पल में सामने आ खड़ा होता है. कुछ पल ठहर कर विधि ने एक ही सांस में कह डाला, ‘‘नहींनहीं, यह नहीं हो सकता. हम एकदूसरे के बारे में जानते ही कितना हैं, और तुम जानते भी हो कि तुम क्या कह रहे हो?’’ ‘‘हांहां, भली प्रकार से जानता हूं, क्या कह रहा हूं. तुम बताओ, बात क्या है? मैं तुम्हारे संग जीवन बिताना चाहता हूं.’’ विधि चुप रही.

जौन ने परिस्थिति को भांपते कहा, ‘‘यू टेक योर टाइम, कोई जल्दी नहीं है.’’ 2 दिनों बाद जौन तो चला गया किंतु उस के इस दुर्लभ प्रश्न से विधि दुविधा में थी. मन में उठते तरहतरह के सवालों से जूझती रही, ‘कब तक रहेगी भाईभाभियों की छत्रछाया में? तलाकशुदा की तख्ती के साथ क्या समाज तुझे चैन से जीने देगा? कौन होगा तेरे दुखसुख का साथी? क्या होगा तेरा अस्तित्व? क्या उत्तर देगी जब लोग पूछेंगे इतने बूढ़े से शादी की है? कोई और नहीं मिला क्या?’ इन्हीं उलझनों में समय निकलता गया. समय थोड़े ही ठहर पाया है किसी के लिए. दोनों की कभीकभी फोन पर बात हो जाती थी एक दोस्त की तरह. कालेज में भी खोईखोई रहती. एक दिन उस की सहेली रेणु ने उस से पूछ ही लिया, ‘‘विधि, जौन के जाने के बाद तू तो गुमसुम ही हो गई. बात क्या है?’’

‘‘जाने से पहले जौन ने मेरे सामने विवाह का प्रस्ताव रखा था.’’

‘‘पगली…बात तो गंभीर है पर गौर करने वाली है. भारतीय पुरुषों की मनोवृत्ति तो तू जान ही चुकी है. अगर यहां कोई मिला तो उम्रभर उस के एहसानों के नीचे दबी रहेगी. उस के बच्चे भी तुझे स्वीकार नहीं करेंगे.

जौन की आंखों में मैं ने तेरे लिए प्यार देखा है. तुझे चाहता है. उस ने खुद अपना हाथ आगे बढ़ाया है. अपना ले उसे. हटा दे जीवन से यह तलाक की तख्ती. तू कर सकती है. हम सब जानते हैं कि बड़ी हिम्मत से तू ने समाज की छींटाकशी की परवा न करते हुए अपने पंथ से जरा भी विचलित नहीं हुई. समाज में अपना एक स्थान बनाया है. अब नए रिश्ते को जोड़ने से क्यों हिचकिचा रही है. आगे बढ़. खुशियों ने तुझे आमंत्रण दिया है. ठुकरा मत, औरत को भी हक है अपनी जिंदगी बदलने का. बदल दे अपनी जिंदगी की दिशा और दशा,’’ रेणु ने समझाते हुए कहा. ‘‘क्या करूं, अपनी दुविधाओं के क्रौसरोड पर खड़ी हूं. वैसे भी, मैं ने तो ‘न’ कर दी है,’’ विधि ने कहा. ‘‘न कर दी है, तो हां भी की जा सकती है. तेरा भी कुछ समझ में नहीं आता. एक तरफ कहती है, जौन बड़ा अलग सा है. मेरी बेमानी जरूरतों का भी खयाल रखता है. बड़ी ललक से बात करता है. छोटीछोटी शरारतों से दिल को उमंगों से भर देता है. मुझे चहकती देख कर खुशी से बेहाल हो जाता है. मेरे रंगों को पहचानने लगा है. तो फिर झिझक क्यों रही है?’’

‘‘उम्र देखी है? 60 वर्ष पार कर चुका है. सोच कर डर लगता है, क्या वह वैवाहिक सुख दे पाएगा मुझे?’’ ‘‘आजमा कर देख लेती? मजाक कर रही हूं. यह समय पर छोड़ दे. यह सोच कि तेरी आर्थिक, सामाजिक, शारीरिक सभी समस्याओं का समाधान हो जाएगा. तेरा अपना घर होगा जहां तू राज करेगी. ठंडे दिमाग से सोचना…’’ ‘‘डर लगता है कहीं विदेशी चेहरों की भीड़ में खो तो नहीं जाऊंगी. धर्म, सोच, संस्कृति, सभ्यता, कुछ भी तो नहीं है एकजैसा हमारा. फिर इतनी दूर…’’ ‘‘प्रेम उम्र, धर्म, भाषा, रंग और जाति सभी दीवारों को गिराने की शक्ति रखता है. मेरी प्यारी सखी, प्यार में दूरियां भी नजदीकियां हो जाती हैं. अभी ईमेल कर उसे, वरना मैं कर देती हूं.’’

‘‘नहींनहीं, मैं खुद ही कर लूंगी,’’ विधि ने मुसकराते हुए कहा.

‘‘डियर जौन,

कायर – भाग 1 : क्या घना को मिल पाया श्यामा का प्यार

घना जानता था कि श्यामा निचली जाति की लड़की है, पर उस के अच्छे बरताव की वजह से वह उस के प्रति खिंचता चला गया था. यहां तक कि वह श्यामा से शादी करने को भी तैयार था.

वैसे, घना जाति प्रथा को भारतीय समाज के लिए अभिशाप मानता था और अकसर अपने दोस्तों के साथ अंधविश्वास, जाति प्रथा जैसी बुराइयों पर बड़ीबड़ी बातें भी करता था.

घना कई बार अपने मन की बात श्यामा तक पहुंचाने की कोशिश कर चुका था, पर श्यामा ने उसे कभी भी आगे बढ़ने का मौका नहीं दिया था.

आज घना को श्यामा से अकेले में बात करने का मौका मिल गया था और वह इस मौके को खोना नहीं चाहता था.

श्यामा आ रही थी. घना ने अपने गांव के दोस्तों को पहले ही चले जाने के लिए कह दिया था और खुद श्यामा का इंतजार कर रहा था.

जैसे ही श्यामा उस के करीब से गुजरी, घना ने उसे रुकने को कहा.

‘‘श्यामा,’’ घना ने अपना गला साफ करते हुए कहा.

‘‘जी,’’ श्यामा ने एक पल के लिए घना की ओर देखा और आगे बढ़ गई.

‘‘आज मौसम बहुत खराब है,’’ घना बोला.

श्यामा ने कुछ नहीं कहा.

‘‘श्यामा, मैं तुम से कुछ बात कहना चाहता हूं.’’

श्यामा फिर भी चुप रही. घना श्यामा के बहुत करीब आ गया.

श्यामा घना की बात को अच्छी तरह से सम?ा रही थी. उस ने गुस्से से घना की तरफ देखा.

घना थोड़ा सा सहम गया था, पर वह सोचने लगा कि अगर आज नहीं कहेगा, तो वह अपनी बात कभी नहीं कह पाएगा.

‘‘श्यामा… मैं…मैं… तुम से बहुत प्यार करता हूं.’’

‘‘क्या मतलब?’’ जैसे कि श्यामा घना की बात का मतलब न सम?ा हो.

‘‘श्यामा, मैं तुम्हें बहुत चाहता हूं.’’

‘‘यह जानते हुए भी कि मैं निचली जाति की हूं और आप ऊंची जाति वाले.’’

‘‘हां.’’

‘‘मैं इस तरह की किसी भी बहस

में नहीं उल?ाना चाहती. अगर किसी ने यह सब सुन लिया, तो आप की बहुत बदनामी होगी.’’

‘‘श्यामा, मैं तुम से बहुत प्यार

करता हूं और तुम्हीं से शादी भी करना चाहता हूं.’’

‘‘और तुम्हारे गांव के सब बराती निचली जाति वालों के हाथ का पका खाना खाएंगे? जो लोग निचली जाति वालों की छाया से भी दूर रहते हैं, क्या वे एक अछूत लड़की को अपने घर की बहू बनाएंगे?

‘‘घना, मु?ा गरीब पर दया करो. मैं किसी किस्सेकहानी का पात्र नहीं

बनना चाहती हूं. आप ऊंची जाति वालों की नजर में भले ही हमारी कोई इज्जत नहीं है, पर अपनी नजर में हमारी बहुत इज्जत है.

‘‘मेरे पिता एक स्कूल में मास्टर हैं. समाज में उन की भी कुछ इज्जत है. मैं तुम्हारे पैर पड़ती हूं कि मेरे साथ आगे से ऐसी हरकत कभी मत करना.’’

श्यामा का ऐसा चेहरा देख कर घना सकते में आ गया. वह कुछ न बोल सका और चुपचाप वहीं खड़ा रह गया. श्यामा तेज कदमों से आगे बढ़ गई.

श्यामा जा चुकी थी, पर उस के कहे गए शब्द घना के कानों मेें बारबार गूंज रहे थे.

घना ने आसमान की ओर देखा. आसमान में घने बादल छाए हुए थे. वह सोचने लगा कि आज की रात फिर बर्फबारी होने वाली है. वह बहुत निराश था. क्या करे? कहां जाए? खुदकुशी कर ले? समाज की रूढि़यों, जाति प्रथा के चलते ही तो श्यामा ने उस के प्यार

को ठुकरा दिया था, वरना उस में क्या कमी थी.

घना को लगा कि यह जिंदगी ही बेकार है. वह बदहवास सा रास्ते से हट कर ऊपर पहाड़ी पर चढ़ने लगा. चारों तरफ अंधेरा बढ़ने लगा था. जब वह चलतेचलते थक गया, तो सुस्ताने के लिए एक बड़े पत्थर पर बैठ गया.

रात अब काफी हो चुकी थी. काफला और खड़कोट, दोनों गांवों के बीच, जहां पर खेत खत्म हो जाते हैं, वहां पर एक बेसिक स्कूल था. इस के बाद जंगल शुरू हो जाता था. बस्ती से दूर होने के चलते रात में स्कूल में कोई नहीं रहता था.

घना सोचने लगा कि आज की रात वह इसी स्कूल में बिता देगा. कल देखा जाएगा. अंधेरे में चलते, गिरतेपड़ते, ?ाडि़यों से गुजरते हुए उस का बदन बुरी तरह से छिल गया था. कई खरोंचें भी लग गई थीं.

जब घना स्कूल में पहुंचा, तब वहां भयंकर सन्नाटा पसरा हुआ था. वह स्कूल के बरामदे के एक कोने में सिकुड़ कर बैठ गया. ठंड से उस की हड्डियां तक कांप रही थीं. श्यामा का एहसास उस के दिलोदिमाग से हटने का नाम नहीं ले रहा था.

कुंआरी ख्वाहिशें-भाग 1 : हवस के चक्रव्यूह में फंसी गीता

‘‘गीता, ओ गीता. कहां है यार, मैं लेट हो रहा हूं औफिस के लिए. जल्दी चल… तुझे कालेज छोड़ने के चक्कर में मैं रोज लेट हो जाता हूं.’’

‘‘आ रही हूं भाई, तैयार तो होने दो, कितनी आफत मचा कर रखते हो हर रोज सुबह…’’

‘‘और तू… मैं हर रोज तेरी वजह से लेट हो जाता हूं. पता नहीं, क्या लीपापोती करती रहती है. भूतनी बन जाती है.’’

इतने में गीता तैयार हो कर कमरे से बाहर आई, ‘‘देखो न मां, आप की परी जैसी बेटी को एक लंगूर भूतनी कह रहा है… आप ने भी न मां, क्या मेरे गले में मुसीबत डाल दी है. मैं अपनेआप कालेज नहीं जा सकती क्या? मैं अब छोटी बच्ची नहीं हूं, जो मुझे हर वक्त सहारे की जरूरत पड़े.’’

मां ने कहा, ‘‘तू तो मेरी परी है. यह जब तक तेरे साथ न लड़े, इसे खाना हजम नहीं होता. और अब तू बड़ी हो गई है, इसलिए तुझे सहारे की जरूरत है. जमाना बहुत खराब है बच्चे, इसलिए तो कालेज जाते हुए तुझे भाई छोड़ता जाता है और वापसी में पापा लेने आते हैं. अब जा जल्दी से, भाई कब से तेरा इंतजार कर रहा है.’’

‘‘हांहां, जा रही हूं. पता नहीं ये मांएं हर टाइम जमाने से डरती क्यों हैं?’’ गीता बड़बड़ाते हुए बाहर चली गई.

 

गीता बीबीए के पहले साल में पढ़ रही थी. उस का भाई बंटी उस से

 

6 साल बड़ा था और नौकरी करता था. गीता का छोटा सा परिवार था. मम्मीपापा और एक बड़ा भाई, जो पंजाबी बाग, दिल्ली में रहते थे.

गीता के पापा का औफिस नारायणा में था और भाई नेहरू प्लेस में नौकरी करता था. गीता का राजधानी कालेज पंजाबी बाग में ही था, मगर घर से तकरीबन 10-15 किलोमीटर दूर, इसीलिए बस से जाने के बजाय वह भाई के साथ जाती थी.

वैसे भी जब से गीता ने कालेज में एडमिशन लिया था, मां ने सख्त हिदायत दी थी कि उसे अकेला नहीं छोड़ना, जमाना खराब है. कल को कोई ऊंचनीच हो गई, तो कौन जिम्मेदार होगा, इसलिए अपनी चीज का खयाल तो खुद ही रखना होगा न.

गीता को कालेज छोड़ने के बाद बंटी रास्ते से अपने औफिस के साथी सागर को नारायणा से ले लेता था.

एक दिन सागर ने कहा, ‘‘यार, मुझे अच्छा नहीं लगता कि तू रोज मुझे ले कर जाता है. तू परेशान न हुआ कर, मैं बस से चला जाऊंगा.’’

इस पर बंटी बोला, ‘‘यार, मेरा तो रास्ता है इधर से. मैं अकेला जाता हूं, अगर तू पीछे बाइक पर बैठ जाता है, तो क्या फर्क पड़ता है…’’

‘‘फिर भी यार, तुझे परेशानी तो होती ही है.’’

‘‘यार भी कहता है और ऐसी बातें भी करता है. देख, अगर बस के बजाय मेरे साथ जाएगा तो बस का किराया बचेगा न, वह तेरे काम आएगा. मैं जानता हूं, तेरा बड़ा परिवार है और तनख्वाह कम पड़ती है.’’

यह सुन कर सागर चुप हो गया.

इसी तरह यह सिलसिला चलता रहा. एक बार बंटी बहुत बीमार हो गया और लगातार कुछ दिनों तक औफिस नहीं गया.

सागर ने तो फोन कर के हालचाल पूछा, मगर उसे मिले बिना चैन कहां, यारी जो दिल से थी. एक दिन छुट्टी के बाद वह पहुंच गया बंटी से मिलने.

इधर जब बंटी बीमार था, तो गीता को कालेज छोड़ने कौन जाता, क्योंकि पापा तो सुबहसुबह ही काम पर चले जाते थे. लिहाजा, गीता बस से कालेज जाने लगी. बंटी ने समझा दिया था कि किस जगह से और कौन से नंबर की

बस पकड़नी है. वापसी में तो उसे पापा ले आते.

सागर ने बंटी के घर की डोरबैल बजाई, तो दरवाजा गीता ने खोला. अपने सामने 6 फुट लंबा बंदा, जो थोड़ा सांवला, मगर तीखे नैननक्श, घुंघराले बाल, जिस की एक लट माथे पर झूलती हुई, भूरी आंखें… देख कर गीता खड़ी की खड़ी रह गई.

यही हाल सागर का था. जैसे ही उस ने गीता को देखा तो हैरान रह गया. उसे लगा मानो कोई शहजादी हो या कोई परी धरती पर उतर आई हो.

सागर ने गीता को अपने बारे में बताया, तो वह उसे भीतर ले गई.

सागर बंटी के साथ बैठ कर बातें कर रहा था. मां और गीता चायपानी का इंतजाम कर रही थीं, मगर बीचबीच में सागर गीता को और गीता सागर को कनखियों से देख रहे थे. घर जा कर सागर सारी रात नहीं सो सका, इधर गीता उस के खयालों में खोई रही.

अगले दिन गीता को न जाने क्या सूझा कि बस से कालेज न जा कर नारायणा बस स्टैंड पर उतर गई, क्योंकि शाम को वह बातोंबातों में जान चुकी थी कि सागर नारायणा में रहता है, जिसे बंटी अपने साथ नेहरू प्लेस ले जाता था.जैसे ही गीता नारायणा बस स्टैंड पर उतरी, तकरीबन 5 मिनट बाद ही सागर भी वहां आ गया.

‘‘हैलो…’’ सागर ने औपचारिकता दिखाते हुए कहा.

‘‘हाय, औफिस जा रहे हैं आप?’’ गीता ने ‘हैलो’ का जवाब देते हुए और बात आगे बढ़ाते हुए कहा.

‘‘जी हां, जा तो रहा था, मगर अब मन करता है कि न जाऊं,’’ सागर आंखों में शरारत और होंठों पर मुसकान लाते हुए बोला.

‘‘कहते हैं कि मन की बात माननी चाहिए,’’ गीता ने भी कुछ ऐसे अंदाज से कहा कि सागर ने मस्ती में आ कर उस का हाथ पकड़ लिया.

‘‘अरे सागरजी, छोडि़ए… कोई देख न ले…’’ गीता ने घबरा कर कहा.

‘‘ओफ्फो, यहां कौन देखेगा… चलिए, कहीं चलते हैं,’’ सागर ने कहा और गीता चुपचाप उस के साथ चल दी.

‘‘आज आप भी कालेज नहीं गईं?’’ सागर ने गीता के मन की थाह पाने

की कोशिश करते हुए कहा.

‘‘बस, आज मन नहीं किया,’’ कह कर गीता ने शरमा कर आंखें झुका लीं.

सागर और गीता सारा दिन घूमते रहे, लेकिन शाम होते ही गीता बोली, ‘‘सागर, मुझे जाना है. पापा कालेज

लेने आएंगे. अगर मैं न मिली तो वे परेशान होंगे.’’

Valentine’s Special- लव गेम: क्या शीना जीत पाई प्यार का खेल?

जिंदगी मौसम की तरह होती है. कभी गरमी की तरह गरम तो कभी सर्दी की तरह सर्द तो कभी बारिश के मौसम की तरह रिमझिमरिमझिम बरसती बूंदों सी सुहानी. जैसे मौसम रंग बदलता है, वैसे ही जिंदगी भी वक्तबेवक्त रंग बदलती रहती है. लेकिन जिंदगी में कभीकभी कुछ सवालों का जवाब देना बड़ा मुश्किल हो जाता है.

यह कहानी भी कुछ ऐसी ही है. बदलते मौसम की तरह रंग बदलती हुई भी और उन रंगों में से चटख रंगों को चुराती हुई भी. आइए देखें, इस कहानी के पलपल बदलते रंगों को, जो खुदबखुद फीके पड़ कर गायब होते जाते हैं.

कंट्री क्लब में एक पार्टी का आयोजन किया गया था, जिस में आयोजकों ने अपने मैंबर्स में से कुछ ऐसे यंग कपल्स के लिए पार्टी रखी थी, जिन की शादी को अभी ज्यादा से ज्यादा 5 साल हुए थे

 

इस पार्टी में करीब 50 यंग कपल्स शामिल हुए. सभी बहुत खूबसूरत थे, जो सजधज कर पार्टी में आए थे. उन सभी के छोटेछोटे बच्चे भी थे. लेकिन आर्गनाइजर्स ने बच्चों को पार्टी में लाने की परमिशन नहीं दी थी, इसलिए सब लोग अपने बच्चे घर पर ही छोड़ कर आए थे.

कई यंग कपल्स ऐसे भी थे, जो एकदूसरे को अच्छी तरह जानतेपहचानते थे, इसलिए पार्टी में आते ही वे बड़ी गर्मजोशी के साथ मिले और एकदूसरे से घुलमिल गए. पार्टी के शुरुआती दौर में स्टार्टर, कौकटेल, मौकटेल, वाइन और सौफ्ट ड्रिंक वगैरह का जम कर दौर चला. इस के बाद सब ने खाना खाया. खाना बहुत लजीज था.

खाने के बाद पार्टी में कपल्स के साथ कई तरह के गेम खेले गए. हर गेम के अपने नियम थे. बहुत ही सख्त. गेम का संचालन एक एंकर कर रहा था. जिस हौल में पार्टी चल रही थी, वहीं एक फुट ऊंचा बड़ा सा पोडियम बना था. उसी पोडियम पर गेम खेले जा रहे थे. आखिर में एक गेम और खेला गया.

एंकर ने एक यंग ब्यूटीफुल लेडी को पोडियम पर इनवाइट किया, जिस की शादी को अभी सिर्फ 4 साल हुए थे और उस का 2 साल का एक बेटा भी था. उस लेडी का नाम शीना था.

शीना पोडियम पर जा कर वहां रखी एक चेयर पर बैठ गई. पोडियम पर वाइट कलर का बड़ा सा एक बोर्ड लगा था. एंकर ने शीना से कहा, ‘‘आप बोर्ड पर ऐसे 40 नाम लिखिए, जिन से आप सब से ज्यादा प्यार करती हैं.’’

हौल में जितने भी कपल्स थे, वे सभी पोडियम के आसपास एकत्र हो गए और बड़ी बेचैनी से यह सोच कर एंकर तथा उस महिला की तरफ देखने लगे कि आखिर अब कौन सा गेम होने वाला है. गेम के बारे में किसी को कुछ नहीं मालूम था.

यहां तक कि वह महिला भी नहीं जानती थी कि वह किस तरह के गेम का हिस्सा बनने जा रही है. वह तो मस्तीमस्ती में पोडियम पर आ कर बैठ गई थी.

लेकिन एंकर की बात सुनते ही वह अनईजी हो गई.

‘‘च…चालीस ऐसे लोगों के नाम…’’ शीना कंफ्यूज्ड हो कर बोली, ‘‘जिन से मैं सब से ज्यादा प्यार करती हूं?’’

‘‘यस.’’ एंकर के होठों पर उस समय एक शरारती मुसकराहट खिल रही थी, ‘‘क्या आप की जिंदगी में 40 ऐसे इंसान नहीं हैं, जिन से आप बेहद प्यार करती हों?’’

‘‘नहीं…नहीं.’’ शीना जल्दी से हड़बड़ा कर बोली, ‘‘म…मेरे कहने का मतलब यह नहीं है. 40 क्या, मेरी लाइफ में तो ऐसे बहुत से लोग हैं, जिन से मैं बेहद प्यार करती हूं और वे सब भी मुझ से बहुत प्यार करते हैं.’’

‘‘गुड.’’ एंकर उत्साहित हो कर बोला, ‘‘आप को सब के नाम नहीं लिखने हैं, जो आप की लिस्ट में सब से ऊपर हों, सिर्फ वही नाम लिखिए. इस गेम का नाम लव गेम है.’’

‘‘लव गेम.’’ पोडियम के चारों तरफ एकत्र लोगों के चेहरे पर मुसकराहट दौड़ी, ‘‘इंटरेस्टिंग.’’

शीना भी अब चेयर छोड़ कर खड़ी हो गई थी. उस ने बड़े उत्साह से मार्कर पैन उठा लिया और वाइट बोर्ड के पास जा कर उस पर जल्दीजल्दी नाम लिखने लगी. शीना ने सच कहा था. उस की जिंदगी में वाकई ऐसे काफी लोग थे, जिन से वह बहुत प्यार करती थी. यह बात उस के नाम लिखने की स्पीड से पता चल रही थी. उसे इस बारे में ज्यादा सोचना नहीं पड़ा.

कुछ ही मिनट में उस ने 40 नाम लिख दिए. उस लिस्ट में उस के रिलेटिव, फ्रैंड्स, ब्रदर, सिस्टर, मदर, फादर, हसबैंड और उस का 2 साल का बेटा भी था. नाम लिख कर वह विक्ट्री स्माइल बिखेरती हुई एंकर की तरफ मुड़ी.

‘‘क्यों, लिख दिए न मैं ने 40 नाम.’’ वह इस अंदाज में बोली, जैसे उस ने गेम जीत लिया हो.

‘‘यस.’’ एंकर मुसकराया, ‘‘लेकिन गेम अभी खत्म नहीं हुआ मैम. गेम तो अभी शुरू हुआ है.’’

‘‘मतलब?’’

‘‘मतलब अभी आप को इन में से 20 ऐसे नाम कट करने हैं, जिन से आप कम प्यार करती हैं. मान लीजिए, आप इन 40 लोगों के साथ बीच समुद्र में किसी ऐसी बोट में सवार हों, जो डूबने वाली हो. अगर 40 में से 20 लोगों को बीच समुद्र में फेंक दिया जाए तो बोट बच सकती है. ऐसी हालत में वह 20 लोग कौन होंगे, जिन्हें आप बीच समुद्र में फेंक कर बाकी के 20 लोगों की जान बचाएंगी?’’

शीना अब कंफ्यूज्ड नजर आने लगी.

फिर भी वह दोबारा वाइट बोर्ड के पास पहुंची और उस ने ऐसे 20 लोगों के नाम काट दिए, जिन्हें बीच समुद्र में फेंक कर वह बाकी के अपने 20 लोगों की जान बचा सकती थी. अब वाइट बोर्ड पर जो नाम बचे, उन में उस के बहुत करीबी, रिलेटिव, ब्रदर, सिस्टर, मदर, फादर, हसबैंड और उस का 2 साल का बेटा था.

‘गुड.’’ एंकर मुसकराया, ‘‘अब इन में से 10 नाम और काट दीजिए.’’

‘‘म…मतलब?’’ हक्कीबक्की शीना ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘सिंपल है,’’ एंकर बोला, ‘‘अब सिर्फ 10 ऐसे नाम चुनें, जिन्हें आप सब से ज्यादा प्यार करती हों और उन 10 लोगों को बचाने के लिए आप बाकी के 10 को बीच समुद्र में फेंक सकती हैं. याद रहे, आप सब बोट पर सवार हैं और वहां जिंदगी और मौत की फाइट चल रही है.’’

शीना वापस वाइट बोर्ड के पास पहुंची और उस ने 10 और नाम काट दिए. लेकिन वे 10 नाम काटना उस के लिए पहले जितना आसान नहीं था. उस ने बहुत सोचसमझ कर 10 नाम काट दिए. पोडियम के आसपास एकत्र लोग भी अब बड़ी बेचैनी से शीना की तरफ देखने लगे. सब जानना चाहते थे कि शीना अब किस के नाम काटेगी.

वाइट बोर्ड पर जो बाकी 10 नाम बचे थे, उन में उस के कुछ खास रिलेटिव, ब्रदर, सिस्टर, मदर, फादर, हसबैंड और बेटा था.

‘‘हूं.’’ एंकर ने गहरी सांस ली.

शीना 10 नाम काट कर के अभी टर्न भी नहीं हुई थी कि उस से पहले ही एंकर बोल पड़ा, ‘‘अब इन में से 6 नाम और काट दो. सिर्फ 4 रहने दो. बोट इतने लोगों का वजन भी नहीं संभाल पा रही है. अभी तुरंत 6 लोगों को और समुद्र में फेंकना पड़ेगा, वरना बोट डूब जाएगी.’’

शीना ने वाइट बोर्ड पर लिखे नाम देखे. वह अब इमोशनल होने लगी. बहरहाल उस ने 6 नाम और काट दिए. बोर्ड पर अब सिर्फ शीना के मदर, फादर, हसबैंड और उस के 2 साल के बेटे का नाम बचा था. दूसरी ओर उसे अपने ब्रदर, सिस्टर के नाम भी काटने पड़े. पूरे हौल में सन्नाटा पसर गया था. सभी लोग इमोशनल हो गए.

‘‘अब अगर इन में से भी 2 नाम और काटने पड़ें…’’ एंकर बहुत धीमी आवाज में बोला, ‘‘तो वे कौन से नाम होंगे, जो आप काटेंगी. किन 2 लोगों को बचाएंगी आप?’’

अब वाकई शीना की हालत बहुत बुरी हो गई. मस्तीमस्ती में शुरू हुआ गेम अचानक बहुत इमोशनल हो गया था. शीना किसी गहरी सोच में डूब गई.

पोडियम के चारों तरफ जमे कपल्स भी यह जानने के लिए बेचैन हो उठे कि आखिर अब शीना कौन से 2 नाम काटेगी? मदर फादर का या फिर हसबैंड और बेटे का?

हौल में सन्नाटा और गहरा गया. शीना की आंखों में भी आंसू आ गए. पोडियम के नीचे खड़ा शीना का हसबैंड उसी तरफ देख रहा था. उसे खुद भी मालूम नहीं था कि शीना अब कौन से 2 नाम काटने वाली है.

शीना ने कांपते हाथों से अपने मातापिता का नाम बोर्ड से मिटा दिया. देख कर सब सन्न रह गए. किसी को उम्मीद नहीं थी कि शीना अपने मातापिता का नाम बोर्ड से मिटा देगी. मातापिता तो जीवन देने वाले होते हैं, वह उन का नाम कैसे काट सकती थी? अब वाइट बोर्ड पर सिर्फ 2 नाम चमक रहे थे, हसबैंड और उस के बेटे का नाम.

‘‘प्लीज…’’ शीना रो पड़ी, ‘‘अब मुझ से कोई और नाम काटने के लिए मत कहना.’’

‘‘बस अब यह गेम खत्म होने वाला है.’’ एंकर बोला, ‘‘बिलकुल लास्ट है. अगर आप से कहा जाए कि इन दोनों में से भी आप किस से ज्यादा प्यार करती हैं तो आप किसे चुनेंगी? वह एक कौन होगा, जिसे बचाने के लिए आप दूसरे को बीच समुद्र में फेंक देंगी, हसबैंड या बेटा?’’

‘‘मैं खुद समुद्र में कूदना पसंद करूंगी.’’ शीना भावविह्वल हो कर बोली, ‘‘लेकिन इन दोनों में से किसी को भी अपने से अलग नहीं करूंगी.’’

‘‘नहीं…आप नहीं,’’ एंकर बोला, ‘‘आप को इन दोनों में से कोई एक नाम काटना है.’’

अब शीना की हालत बहुत बुरी हो गई थी. हौल में मौजूद हर आंख शीना पर ही टिकी थी. हर कोई यह जानना चाहता था कि अब वह किस का नाम काटेगी? हसबैंड या बेटे में से वह किसे चुनेगी?

शीना ने कांपते हाथों से वाइट बोर्ड पर लिखा अपने बेटे का नाम मिटा दिया. सब सन्न रह गए. हर कोई सोच रहा था कि वह अपने हसबैंड का नाम मिटाएगी, क्योंकि हम दुनिया में सब से ज्यादा अपने बच्चों से ही प्यार करते हैं.

‘‘क्यों?’’ एंकर ने बेचैनी के साथ पूछ ही लिया, ‘‘आप ने अपने हसबैंड को ही क्यों चुना?’’

‘‘जानते हो…’’ शीना पोडियम पर खड़ीखड़ी बहुत इमोशनल हो कर बोली, ‘‘जिस दिन मेरी शादी हुई, उस दिन मम्मीपापा ने मेरे हसबैंड के हाथ में मेरा हाथ देते हुए कहा था, ‘आज से यही आदमी जिंदगी के आखिरी सांस तक तुम्हारा साथ देगा. तुम कभी इस का साथ न छोड़ना. जिस तरह सुखदुख में वह तुम्हारा साथ दे, उसी तरह तुम भी हर सुखदुख में उस का साथ देना.’ मैं ने अपने मम्मीपापा की बात मानी.

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‘‘अपने हसबैंड के लिए मैं ने अपने उन्हीं मम्मीपापा तक को त्याग दिया. यहां तक कि जब अपने बेटे और हसबैंड में से भी किसी एक को चुनने का समय आया तो मैं ने अपने हसबैंड को ही चुना. मैं अपने बेटे से बहुत प्यार करती हूं. लेकिन हसबैंड के रहते मुझे बेटा तो दूसरा मिल सकता है, पर हसबैंड दूसरा नहीं मिल सकता. पतिपत्नी का यह रिश्ता अनमोल है, अटूट है. हमें हमेशा इस रिश्ते का सम्मान करना चाहिए.’’

शीना की बातें सुन कर पूरा हौल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा. सभी की आंखों में आंसू थे. शीना का हसबैंड भी बेहद इमोशनल हो गया था. एकाएक वह शाम बेहद खास हो गई. लव गेम ने सभी हसबैंड वाइफ के रिलेशन को और मजबूत कर दिया था.

रूह का स्पंदन – भाग 3: क्या था दीक्षा ने के जीवन की हकीकत

अचानक सुदेश की नजर दक्षा पर पड़ी तो दोनों की नजरें मिलीं. ऐसा लगा, दोनों एकदूसरे को सालों से जानते हों और अचानक मिले हों. दोनों के चेहरों पर खुशी छलक उठी थी.

खातेपीते दोनों के बीच तमाम बातें हुईं. अब वह घड़ी आ गई, जब दक्षा अपने जीवन से जुड़ी महत्त्वपूर्ण बातें उस से कहने जा रही थी. वहां से उठ कर दोनों एक पार्क में आ गए थे, जहां दोनों कोने में पेड़ों की आड़ में रखी एक बेंच पर बैठ गए. दक्षा ने बात शुरू की, ‘‘मेरे पापा नहीं हैं, सुदेश. ज्यादातर लोगों से मैं यही कहती हूं कि अब वह इस दुनिया में नहीं है, पर यह सच नहीं है. हकीकत कुछ और ही है.’’

इतना कह कर दक्षा रुकी. सुदेश अपलक उसे ही ताक रहा था. उस के मन में हकीकत जानने की उत्सुकता भी थी. लंबी सांस ले कर दक्षा ने आगे कहा, ‘‘जब मैं मम्मी के पेट में थी, तब मेरे पापा किसी और औरत के लिए मेरी मम्मी को छोड़ कर उस के साथ रहने के लिए चले गए थे.

‘‘लेकिन अभी तक मम्मीपापा के बीच डिवोर्स नहीं हुआ है. घर वालों ने मम्मी से यह कह कर उन्हें अबार्शन कराने की सलाह दी थी कि उस आदमी का खून भी उसी जैसा होगा. इस से अच्छा यही होगा कि इस से छुटकारा पा कर दूसरी शादी कर लो.’’

दक्षा के यह कहते ही सुदेश ने उस की तरफ गौर से देखा तो वह चुप हो गई. पर अभी उस की बात पूरी नहीं हुई थी, इसलिए उस ने नजरें झुका कर आगे कहा, ‘‘पर मम्मी ने सभी का विरोध करते हुए कहा कि जो कुछ भी हुआ, उस में पेट में पल रहे इस बच्चे का क्या दोष है. यानी उन्होंने गर्भपात नहीं कराया. मेरे पैदा होने के बाद शुरू में कुछ ही लोगों ने मम्मी का साथ दिया. मैं जैसेजैसे बड़ी होती गई, वैसेवैसे सब शांत होता गया.

‘‘मेरा पालनपोषण एक बेटे की तरह हुआ. अगलबगल की परिस्थितियां, जिन का अकेले मैं ने सामना किया है, उस का मेरी वाणी और व्यवहार में खासा प्रभाव है. मैं ने सही और गलत का खुद निर्णय लेना सीखा है. ठोकर खा कर गिरी हूं तो खुद खड़ी होना सीखा है.’’

अपनी पलकों को झपकाते हुए दक्षा आगे बोली, ‘‘संक्षेप में अपनी यह इमोशनल कहानी सुना कर मैं आप से किसी तरह की सांत्वना नहीं पाना चाहती, पर कोई भी फैसला लेने से पहले मैं ने यह सब बता देना जरूरी समझा.

‘‘कल कोई दूसरा आप से यह कहे कि लड़की बिना बाप के पलीबढ़ी है, तब कम से कम आप को यह तो नहीं लगेगा कि आप के साथ धोखा हुआ है. मैं ने आप से जो कहा है, इस के बारे में आप आराम से घर में चर्चा कर लें. फिर सोचसमझ कर जवाब दीजिएगा.’’

सुदेश दक्षा की खुद्दारी देखता रह गया. कोई मन का इतना साफ कैसे हो सकता है, उस की समझ में नहीं आ रहा था. अब तक दोनों को भूख लग आई थी. सुदेश दक्षा को साथ ले कर नजदीक की एक कौफी शौप में गया. कौफी का और्डर दे कर दोनों बातें करने लगे तभी अचानक दक्षा ने पूछा था, ‘‘डू यू बिलीव इन वाइब्स?’’

सुदेश क्षण भर के लिए स्थिर हो गया. ऐसी किसी बात की उस ने अपेक्षा नहीं की थी. खासकर इस बारे में, जिस में वह पूरी तरह से भरोसा करता हो. वाइब्स अलौकिक अनुभव होता है, जिस में घड़ी के छठें भाग में आप के मन को अच्छेबुरे का अनुभव होता है. किस से बात की जाए, कहां जाया जाए, बिना किसी वजह के आनंद न आए और इस का उलटा एकदम अंजान व्यक्ति या जगह की ओर मन आकर्षित हो तो यह आप के मन का वाइब्स है.

यह कभी गलत नहीं होता. आप का अंत:करण आप को हमेशा सच्चा रास्ता सुझाता है. दक्षा के सवाल को सुन कर सुदेश ने जीवन में एक चांस लेने का निश्चय किया. वह जो दांव फेंकने जा रहा था, अगर उलटा पड़ जाता तो दक्षा तुरंत मना कर के जा सकती थी. क्योंकि अब तक की बातचीत से यह जाहिर हो गया था. पर अगर सब ठीक हो गया तो सुदेश का बेड़ा पार हो जाएगा.

सुदेश ने बेहिचक दक्षा से उस का हाथ पकड़ने की अनुमति मांगी. दक्षा के हावभाव बदल गए. सुदेश की आंखों में झांकते हुए वह यह जानने की कोशिश करने लगी कि क्या सोच कर उस ने ऐसा करने का साहस किया है. पर उस की आंखो में भोलेपन के अलावा कुछ दिखाई नहीं दिया. अपने स्वभाव के विरुद्ध उस ने सुदेश को अपना हाथ पकड़ने की अनुमति दे दी.

दोनों के हाथ मिलते ही उन के रोमरोम में इस तरह का भाव पैदा हो गया, जैसे वे एकदूसरे को जन्मजन्मांतर से जानते हों. दोनों अनिमेष नजरों से एकदूसरे को देखते रहे. लगभग 5 मिनट बाद निर्मल हंसी के साथ दोनों ने एकदूसरे का हाथ छोड़ा. दोनों जो बात शब्दों में नहीं कह सके, वह स्पर्श से व्यक्त हो गई.

जाने से पहले सुदेश सिर्फ इतना ही कह सका, ‘‘तुम जो भी हो, जैसी भी हो, किसी भी प्रकार के बदलाव की अपेक्षा किए बगैर मुझे स्वीकार हो. रही बात तुम्हारे पिछले जीवन के बारे में तो वह इस से भी बुरा होता तब भी मुझ पर कोई फर्क नहीं पड़ता. बाकी अपने घर वालों को मैं जानता हूं. वे लोग तुम्हें मुझ से भी अधिक प्यार करेंगे. मैं वचन देता हूं कि बचपन से ले कर अब तक अधूरे रह गए सपनों को मैं हकीकत का रंग देने की कोशिश करूंगा.’’

खूबसूरत लम्हे – भाग 1 : क्या शेखर को मिला उसका प्यार

शेखर इस नए शहर में जिंदगी की नई शुरुआत करने आ पहुंचा था. आईएएस पूरी करने के बाद उस की पत्नी की पोस्टिंग इसी शहर में हुई. वैसे भी अमृतसर आ कर वह काफी खुश था. इस शहर में वह पहली बार आया था, पर उसे ऐसा लगता कि वह अरसे से इस शहर को जानता है. आज वह बाजार की तरफ निकला ताकि अपनी जरूरत का सामान खरीद सके. अचानक एक डिपार्टमैंटल स्टोर में शेखर को एक जानापहचाना चेहरा नजर आया. हां, वह संगीता थी और साथ में था शायद उस का पति. शेखर गौर से उसे देखता रहा. संगीता शायद उसे देख नहीं पाई या फिर जानबूझ कर उस ने देख कर भी अनदेखी कर दी. वह जब तक संगीता के करीब पहुंचा, संगीता स्टोर से निकल कर अपनी कार में जा बैठी और चली गई. शेखर उसे देख कर अतीत में खो गया.

नयानया शहर, नया कालेज, शेखर के लिए सबकुछ अपरिचित और अजनबी था. वह क्लास में पीछे वाली बैंच पर बैठ गया. कालेज की चहलपहल उसे काफी अच्छी लगी. यहां तो पुस्तकें ही उस की साथी थीं. वह बस, मन में उठे भावों को कागज पर उतारता और स्वयं ही उन्हें पढ़ कर काफी खुश होता. कालेज के वार्षिक सम्मेलन में जब उस की कविता को प्रथम पुरस्कार मिला तो वह सब का चहेता बन गया. प्रोग्राम खत्म होते ही एक लड़की उस से आ कर बोली, ‘‘बधाई हो, तुम तो छिपे रुस्तम निकले… इतना अच्छा लिख लेते हो. तुम्हारी रचना काफी अच्छी लगी… इस की एक कौपी दोगे.’’

शेखर तब उस के आग्रह को टाल न सका. उस ने पहली बार गौर से उस की खूबसूरती को निहारा. गोरा रंग, गुलाबी गाल, मदभरे तथा मुसकराते अधर और सब से खूबसूरत लगीं उस की आंखें. उस की आंखें बिना काजल के ही कजरारी लगीं. आंखें शोख और शरारत भरी थीं. शेखर ने तो उस की खूबसूरती को शब्दों में कैद कर गीत का रूप दे डाला और संगीता की खिलखिलाहट ने उस के गीत को संगीत का रूप दे डाला, पर ये सब तो कालेज के सांस्कृतिक कार्यक्रम का हिस्सा था. संगीता के स्वर में एक अजीब सी कशिश, एक अजीब सा जादू दिखा.

शेखर जीवन में हमेशा बहुत बड़े और सुनहरे सपने देखता रहता. पढ़ाई और लेखन बस 2 ही तो उस के साथी हैं. मध्यवर्गीय परिवार में पलाबढ़ा शेखर हमेशा यही सोचता कि खूब पढ़लिख कर एक काबिल इंसान बनूं और सब की झोली खुशियों से भर दूं. शेखर कालेज की लाइब्रेरी में बैठा अध्ययन कर रहा था. तभी संगीता उस के सामने आ कर बैठ गई. शेखर को यह ठीक नहीं लगा. उसे पढ़ाई के दौरान किसी का डिस्टर्ब करना अच्छा नहीं लगता था. संगीता का धीरेधीरे गुनगुनाना उसे अच्छा नहीं लगा. वह गुस्से से उठा और जोर से पुस्तक बंद कर चल पड़ा. तभी एक मधुर खिलखिलाहट उसे सुनाई पड़ी. पीछे मुड़ कर देखा तो संगीता शरारत भरी मुसकान हंस रही थी. गुस्सा तो कम हो गया पर अपने अहंकार में डूबा शेखर चला गया.

दूसरे दिन भी वह लाइब्रेरी में बैठा अपनी पढ़ाई कर रहा था, पर आज उस के मन में अजीब हलचल मची थी. उसे बारबार ऐसा आभास होता कि संगीता आ कर बैठेगी, बारबार उस की निगाहें दरवाजे की तरफ उठ जातीं. थोड़ी देर बाद संगीता आती दिखाई पड़ी पर आज वह किसी और टेबल पर बैठी. तब शेखर चाह कर भी कुछ न कर पाया, पर आज उस का मन पढ़ने में नहीं लगा. फिर उस ने उठ कर गुस्से में पुस्तक बंद कर दी.

वह लाइबे्ररी से उठ कर जाने लगा, लेकिन तभी संगीता उठ कर सामने आ गई और उसे घूरघूर कर ऊपर से नीचे तक निहारती रही और मुसकराती रही. यह देख कर शेखर का पारा चढ़ने लगा. संगीता तब बहुत ही सहज भाव से बोली, ‘‘सरस्वती का अपमान करना ठीक नहीं. जब पुस्तक की कद्र करोगे तभी तो मंजिल मिलेगी. मैं ईर्ष्या से नहीं मुसकराई बल्कि तुम्हारी नादानी पर मुझे हंसी आ जाती है. वैसे सदा मुसकराते रहना ही मेरी फितरत है.’’

फिर थोड़ा सीरियस हो कर उस ने आंखों में आंखें डाल कर इस कदर देखा कि शेखर चुपचाप पीछे खिसकता चला गया और संगीता आगे बढ़ती रही.

अंतत: शेखर दोबारा उसी बैंच पर बैठ गया और संगीता भी सामने बैठ गई. दोनों बस खामोश रहे. शेखर संगीता के इशारे पर पुस्तक खोल कर पढ़ने लगा और संगीता पुस्तक खोल कर मुसकराने लगी.

शेखर संगीता की समीपता भी चाहता और उसे उस से बात करने में घबराहट भी होती. कालेज के कुछ लोग संगीता की सुंदरता के इस कदर दीवाने थे कि शेखर उन्हें खटकने लगा. शेखर को उन की नफरत भरी नजरों से डर लगने लगा. वह कभीकभी सोचता कि क्या वह संगीता को कभी पा सकेगा या नहीं.

शेखर कालेज के गार्डन में अकेला बैठा विचारों में खोया था, तभी वहां संगीता आ पहुंची. वह एकदम करीब बैठ गई और उलाहने भरे स्वर में बोली, ‘‘मैं लाइबे्ररी का चक्कर लगा कर आ रही हूं, लगता है आज पढ़ने का नहीं लिखने का मूड है तभी गार्डन में आ कर बैठे हो.’’

शेखर जिस की याद में खोया था. उस का करीब आना उसे अच्छा लगा. संगीता ने तब बैग खोल कर टिफिन बौक्स निकाला और शरारती अंदाज में बोली, ‘‘आ मुंडे, आलू दे परांठे खाएं, तेरी तबीयत चंगी हो जाएगी.’’

जब मूड होता तो संगीता अपनी मातृभाषा पंजाबी बोलती. तब शेखर वाकई में खुल कर हंस पड़ा. उस के सामने जब संगीता ने टिफिन बौक्स खोला तो परांठों की महक सूंघ कर ही शेखर खुश हो गया.

दोनों ने जी भर कर परांठे खाए. परांठे खाने के बाद संगीता बोली, ‘‘चलो, अब लस्सी पिलाओ.’’

शेखर सकुचाते हुए बोला, ‘‘अभी क्लास शुरू होने वाली है, लस्सी कल पी लेंगे.’’

संगीता बेधड़क बोली, ‘‘बड़े कंजूस बाप के बेटे हो यार, लस्सी पीने का मन आज है और तुम अगले जन्म में पिलाने की बात करते हो. मेरी कुछ कद्र है कि नहीं. अभी यदि एक आवाज दूं तो लस्सी की दुकान से ले कर यहां तक लस्सी लिए लड़कों की लाइन लग जाए.’’

शेखर फिर मुसकरा कर रह गया. संगीता टिफिन बौक्स समेटती हुई बोली, ‘‘ठीक है, चलो मैं ही पिलाती हूं. मेरा बाप बड़े दिल वाला है. मिलिट्री औफिसर है. एक बार पर्स में हाथ डालते हैं और जितने नोट निकल आते हैं, वे मुझे दे देते हैं. किसी की इच्छा पूरी करना सीखो शेखर, बस किताबी कीड़ा बने रहते हो. लाइफ औलवेज नीड्स सम चेंज.’’

‘‘ठीक है, चलो पिलाता हूं लस्सी, अब भाषण देना बंद करो,’’ शेखर आग्रह भरे स्वर में बोला.

‘‘मुझे नहीं पीनी है अब लस्सी,’’ संगीता मुसकराते हुए बोली, ‘‘जिस ने पी तेरी लस्सी वह समझो फंसी, मैं तो नहीं ऐसी.’’

फिर कालेज कंपाउंड से निकल कर दोनों बाजार की ओर चल पड़े. चौक पर ही लस्सी की दुकान थी. कुरसी पर बैठते ही संगीता ने एक लस्सी का और्डर दिया. शेखर तब कुतुहल भरी दृष्टि से संगीता को निहारने लगा. संगीता ने टेबल पर सर्व किए गए लस्सी के गिलास को देख कर शेखर की तरफ देखा और जोर से हंस पड़ी.

शेखर धीरेधीरे उस की शोखी और शरारत से वाकिफ हो गया था. अत: वह लस्सी के गिलास को न देख कर दुकान की छत की ओर निहारने लगा. संगीता ने उस से चुटकी बजाते हुए कहा, ‘‘शेखर, लस्सी इधर टेबल पर है आसमान में नहीं है, ऊपर क्या देख रहे हो.’’

उस ने आवाज दे कर मैनेजर को बुलाया. उस के करीब आते ही वह उस पर बरस पड़ी, ‘‘इस टेबल पर कितने लोग बैठे हैं?’’

‘‘2,’’ मैनेजर ने संक्षिप्त सा उत्तर दिया.

‘‘फिर लस्सी एक ही क्यों भेजी, तुम्हारे आदमी को समझ में नहीं आता है,’’ संगीता के तेवर गरम हो गए.

मैनेजर गरजते हुए बोला, ‘‘अरे, ओ मंजीते, तेरा ध्यान किधर है, कुड़ी द खयाल कर और एक लस्सी ला.’’

मंजीत कहना चाहता था कि मैडम ने एक ही और्डर दिया था, पर कह न सका और उसे काफी डांट पड़ी.

रूह का स्पंदन – भाग 2: क्या था दीक्षा ने के जीवन की हकीकत

‘मम्मी, मैं तो यह कह रही थी कि यदि वह अपने ही क्षेत्र का होता तो अच्छा रहता.’’ दक्षा ने मन की बात कही. लड़का गढ़वाली ही नहीं, अपने इलाके का ही है. मां ने बताया तो दक्षा खुश हो उठी.

दक्षा मां से बातें कर रही थी कि उसी समय वाट्सऐप पर मैसेज आने की घंटी बजी. दक्षा ने फटाफट बायोडाटा और फोटोग्राफ्स डाउनलोड किए. बायोडाटा परफेक्ट था. दक्षा की तरह सुदेश भी अपने मांबाप की एकलौती संतान था. न कोई भाई न कोई बहन. दिल्ली में उस का जमाजमाया कारोबार था. खाने और ट्रैवलिंग का शौक. वाट्सऐप पर आए फोटोग्राफ्स में एक दाढ़ी वाला फोटो था.

दक्षा को जो चाहिए था, वे सारे गुण तो सुदेश में थे. पर दक्षा खुश नहीं थी. उस के परिवार में जो घटा था, उसे ले कर वह परेशान थी. उसे अपनी मर्यादाओं का भी पता था. साथ ही स्वभाव से वह थोड़ी मूडी और जिद्दी थी. पर समय और संयोग के हिसाब से धीरगंभीर और जिम्मेदारी भी थी.

दक्षा का पालनपोषण एक सामान्य लड़की से हट कर हुआ था. ऐसा नहीं करते, वहां नहीं जाते, यह नहीं बोला जाता, तुम लड़की हो, लड़कियां रात में बाहर नहीं जातीं. जैसे शब्द उस ने नहीं सुने थे, उस के घर का वातावरण अन्य घरों से कदम अलग था. उस की देखभाल एक बेटे से ज्यादा हुई थी. घर के बिजली के बिल से ले कर बैंक से पैसा निकालने, जमा करने तक का काम वह स्वयं करती थी.

दक्षा की मां नौकरी करती थीं, इसलिए खाना बनाना और घर के अन्य काम करना वह काफी कम उम्र में ही सीख गई थी. इस के अलावा तैरना, घुड़सवारी करना, कराटे, डांस करना, सब कुछ उसे आता था. नौकरी के बजाए उसे बिजनैस में रुचि ही नहीं, बल्कि सूझबूझ भी थी. वह बाइक और कार दोनों चला लेती थी. जयपुर और नैनीताल तक वह खुद गाड़ी चला कर गई थी. यानी वह एक अच्छी ड्राइवर थी.

दक्षा को पढ़ने का भी खासा शौक था. इसी वजह से वह कविता, कहानियां, लेख आदि भी लिखती थी. एकदम स्पष्ट बात करती थी, चाहे किसी को अच्छी लगे या बुरी. किसी प्रकार का दंभ नहीं, लेकिन घरपरिवार वालों को वह अभिमानी लगती थी. जबकि उस का स्वभाव नारियल की तरह था. ऊपर से एकदम सख्त, अंदर से मीठी मलाई जैसा.

उस की मित्र मंडली में लड़कियों की अपेक्षा लड़के अधिक थे. इस की वजह यह थी कि लिपस्टिक या नेल पौलिश के बारे में बेकार की चर्चा करने के बजाय वह वहां उठनाबैठना चाहती थी, जहां चार नई बातें सुननेसमझने को मिलें. वह ऐसी ही मित्र मंडली पसंद करती थीं. उस के मित्र भी दिलवाले थे, जो बड़े भाई की तरह हमेशा उस के साथ खड़े रहते थे.

सब से खास मित्र थी दक्षा की मम्मी, दक्षा उन से अपनी हर बात शेयर करती थी. कोई उस से प्यार का इजहार करता तो यह भी उस की मम्मी को पता होता था. मम्मी से उस की इस हद तक आत्मीयता थी. रूप भी उसे कम नहीं मिला था. न जाने कितने लड़के सालों तक उस की हां की राह देखते रहे.

पर उस ने निश्चय कर लिया था कि कुछ भी हो, वह प्रेम विवाह नहीं करेगी. इसीलिए उस की मम्मी ने बुआ के कहने पर मेट्रोमोनियल साइट पर उस की प्रोफाइल डाल दी थी. जबकि अभी वह शादी के लिए तैयार नहीं थी. उस के डर के पीछे कई कारण थे.

सुदेश और दक्षा के घर वाले चाहते थे कि पहले दोनों मिल कर एकदूसरे को देख लें. बातें कर लें और कैसे रहना है, तय कर लें. क्योंकि जीवन तो उन्हें ही साथ जीना है. उस के बाद घर वाले बैठ कर शादी तय कर लेंगे.

घर वालों की सहमति से दोनों को एकदूसरे के मोबाइल नंबर दे दिए गए. उसी बीच सुदेश को तेज बुखार आ गया, इसलिए वह घर में ही लेटा था. शाम को खाने के बाद उस ने दक्षा को मैसेज किया. फोन पर सीधे बात करने के बजाय उस ने पहले मैसेज करना उचित समझा था.

काफी देर तक राह देखने के बाद दक्षा का कोई जवाब नहीं आया. सुदेश ने दवा ले रखी थी, इसलिए उसे जब थोड़ा आराम मिला तो वह सो गया. रात करीब साढ़े 10 बजे शरीर में दर्द के कारण उस की आंखें खुलीं तो पानी पी कर उस ने मोबाइल देखा. उस में दक्षा का मैसेज आया हुआ था. मैसेज के अनुसार, उस के यहां मेहमान आए थे, जो अभीअभी गए हैं.

सुदेश ने बात आगे बढ़ाई. औपचारिक पूछताछ करतेकरते दोनों एकदूसरे के शौक पर आ गए. यह हैरानी ही थी कि दोनों के अच्छेबुरे सपने, डर, कल्पनाएं, शौक, सब कुछ काफी हद इस तरह से मेल खा रहे थे, मानो दोनों जुड़वा हों. घंटे, 2 घंटे, 3 घंटे हो गए. किसी भी लड़की से 10 मिनट से ज्यादा बात न करने वाला सुदेश दक्षा से बातें करते हुए ऐसा मग्न हो गया कि उस का ध्यान घड़ी की ओर गया ही नहीं, दूसरी ओर दक्ष ने भी कभी किसी से इतना लगाव महसूस नहीं किया था.

सुदेश और दक्षा की बातों का अंत ही नहीं हो रहा था. दोनों सुबह 7 बजे तक बातें करते रहे. दोनों ने बौलीवुड हौलीवुड फिल्मों, स्पोर्ट्स, पौलिटिकल व्यू, समाज की संरचना, स्पोर्ट्स कार और बाइक, विज्ञान और साहित्य, बच्चों के पालनपोषण, फैमिली वैल्यू सहित लगभग सभी विषयों पर बातें कर डालीं. दोनों ही काफी खुश थे कि उन के जैसा कोई तो दुनिया में है. सुबह हो गई तो दोनों ने फुरसत में बात करने को कह कर एकदूसरे से विदा ली.

घर वालों की सहमति पर सुदेश और दक्षा ने मिल कर बातें करने का निश्चय किया. सुदेश सुबह ही मिलना चाहता था, लेकिन दक्षा ने ब्रेकफास्ट कर के मिलने की बात कही. क्योंकि वह पूजापाठ कर के ही ब्रेकफास्ट करती थी. सुदेश में दक्षा से मिलने के लिए गजब का उत्साह था. दक्षा की बातों और उस के स्वभाव ने आकर्षण तो पैदा कर ही दिया था. इस के अलावा दक्षा ने अपने जीवन की कुछ महत्त्वपूर्ण बातें मिल कर बताने को कहा था. वो बातें कौन सी थीं, सुदेश उन बातों को भी जानना चाहता था.

निश्चित की गई जगह पर सुदेश पहले ही पहुंच गया था. वहां पहुंच कर वह बेचैनी से दक्षा की राह देख रहा था. वह काले रंग की शर्ट और औफ वाइट कार्गो पैंट पहन कर गया था. रेस्टोरेंट में बैठ कर वह हैडफोन से गाने सुनने में मशगूल हो गया. दक्षा ने काला टौप पहना था, जिस के लिए उस की मम्मी ने टोका भी था कि पहली बार मिलने जा रही है तो जींस टौप, वह भी काला.

तब दक्षा ने आदत के अनुसार लौजिकल जवाब दिया था, ‘‘अगर मैं सलवारसूट पहन कर जाती हूं और बाद में उसे पता चलता है कि मैं जींस टौप भी पहनती हूं तो यह धोखा देने वाली बात होगी. और मम्मी इंसान के इरादे नेक हों तो रंग से कोई फर्क नहीं पड़ता.’’

तर्क करने में तो दक्षा वकील थी. बातों में उस से जीतना आसान नहीं था. वह घर से निकली और तय जगह पर पहुंच गई. सढि़यां चढ़ कर दरवाजा खोला और रेस्टोरेंट में अंदर घुसी. फोटो की अपेक्षा रियल में वह ज्यादा सुंदर और मस्ती में गाने के साथ सिर हिलाती हुई कुछ अलग ही लग रही थी.

खूबसूरत लम्हे – भाग 2 : दो प्रमियों की कहानी

जब मूड होता तो संगीता अपनी मातृभाषा पंजाबी बोलती. तब शेखर वाकई में खुल कर हंस पड़ा. उस के सामने जब संगीता ने टिफिन बौक्स खोला तो परांठों की महक सूंघ कर ही शेखर खुश हो गया.

दोनों ने जी भर कर परांठे खाए. परांठे खाने के बाद संगीता बोली, ‘‘चलो, अब लस्सी पिलाओ.’’

शेखर सकुचाते हुए बोला, ‘‘अभी क्लास शुरू होने वाली है, लस्सी कल पी लेंगे.’’

संगीता बेधड़क बोली, ‘‘बड़े कंजूस बाप के बेटे हो यार, लस्सी पीने का मन आज है और तुम अगले जन्म में पिलाने की बात करते हो. मेरी कुछ कद्र है कि नहीं. अभी यदि एक आवाज दूं तो लस्सी की दुकान से ले कर यहां तक लस्सी लिए लड़कों की लाइन लग जाए.’’

शेखर फिर मुसकरा कर रह गया. संगीता टिफिन बौक्स समेटती हुई बोली, ‘‘ठीक है, चलो मैं ही पिलाती हूं. मेरा बाप बड़े दिल वाला है. मिलिट्री औफिसर है. एक बार पर्स में हाथ डालते हैं और जितने नोट निकल आते हैं, वे मुझे दे देते हैं. किसी की इच्छा पूरी करना सीखो शेखर, बस किताबी कीड़ा बने रहते हो. लाइफ औलवेज नीड्स सम चेंज.’’

‘‘ठीक है, चलो पिलाता हूं लस्सी, अब भाषण देना बंद करो,’’ शेखर आग्रह भरे स्वर में बोला.

‘‘मुझे नहीं पीनी है अब लस्सी,’’ संगीता मुसकराते हुए बोली, ‘‘जिस ने पी तेरी लस्सी वह समझो फंसी, मैं तो नहीं ऐसी.’’

फिर कालेज कंपाउंड से निकल कर दोनों बाजार की ओर चल पड़े. चौक पर ही लस्सी की दुकान थी. कुरसी पर बैठते ही संगीता ने एक लस्सी का और्डर दिया. शेखर तब कुतुहल भरी दृष्टि से संगीता को निहारने लगा. संगीता ने टेबल पर सर्व किए गए लस्सी के गिलास को देख कर शेखर की तरफ देखा और जोर से हंस पड़ी.

शेखर धीरेधीरे उस की शोखी और शरारत से वाकिफ हो गया था. अत: वह लस्सी के गिलास को न देख कर दुकान की छत की ओर निहारने लगा. संगीता ने उस से चुटकी बजाते हुए कहा, ‘‘शेखर, लस्सी इधर टेबल पर है आसमान में नहीं है, ऊपर क्या देख रहे हो.’’

उस ने आवाज दे कर मैनेजर को बुलाया. उस के करीब आते ही वह उस पर बरस पड़ी, ‘‘इस टेबल पर कितने लोग बैठे हैं?’’

‘‘2,’’ मैनेजर ने संक्षिप्त सा उत्तर दिया.

‘‘फिर लस्सी एक ही क्यों भेजी, तुम्हारे आदमी को समझ में नहीं आता है,’’ संगीता के तेवर गरम हो गए.

मैनेजर गरजते हुए बोला, ‘‘अरे, ओ मंजीते, तेरा ध्यान किधर है, कुड़ी द खयाल कर और एक लस्सी ला.’’

मंजीत कहना चाहता था कि मैडम ने एक ही और्डर दिया था, पर कह न सका और उसे काफी डांट पड़ी.

शेखर को यह सब पसंद नहीं आया. वह संगीता से नाराजगी भरे लहजे में बोला, ‘‘तुम ने और्डर तो एक ही लस्सी का दिया था फिर उसे डांट क्यों खिलवाई?’’

संगीता शरारती लहजे में बोली, ‘‘तुम्हें इतना बुरा क्यों लगा. वह तुम्हारा सगा है क्या? तुम को मालूम है, मैं जब भी अकेले लस्सी पीने आती हूं तो वह मुझे घूरघूर कर देखता है, लस्सी देर से देता है या फिर स्पर्श के लिए लस्सी हाथ में पकड़वाने की कोशिश करता है. आज उसे सबक मिला. अब लस्सी पीओ और दिमाग बिलकुल कूल करो.’’

शेखर ने लस्सी पीते हुए कहा, ‘‘तुम हो ही इतनी खूबसूरत कि लोग तुम्हें निहारे बिना रह नहीं सकते.’’

‘‘फिर चौराहे पर खड़ा कर के नोच डालो न मुझे, यह समाज तो मर्दों का है न, खूबसूरत होना क्या गुनाह है,’’ संगीता गुस्से में बोली. शेखर तब उसे बहलाने के खयाल से बोला, ‘‘अरे, लस्सी पी कर लोग कूल होते हैं, पर तुम तो गरम हो रही हो.’’

फिर शांत मन से संगीता लस्सी पीते हुए बोली, ‘‘अगर मेरा वश चले तो तुम्हें सिर्फ एक दिन के लिए लड़की बना दूं. तब तुम सब की नजरों को अपने पर देखो, उन के चेहरे के भाव समझो, उन की नीयत पहचानो, क्योंकि अभी तो तुम्हें सिर्फ कजरारे नयन और मधुर मुसकान नजर आती है.’’

शेखर एक कड़वी सचाई को सुन कर एकदम चुप हो गया.

कई दिन से संगीता कालेज में नजर नहीं आई. शेखर काफी परेशान हो गया. न कालेज में, न घर में, न अकेले में, कहीं भी उस का दिल न लगता. किसी तरह उस की एक सहेली से पता चला कि वह बीमार है और नर्सिंगहोम में भरती है. वह दौड़ पड़ा नर्सिंगहोम की ओर, काफी रात हो चुकी थी. संगीता बैड पर लेटी थी. नर्स से पता चला कि वह अभी दवा खा कर सोई है. कई रात से वह सो न सकी, नर्स शेखर की बदहवासी देख पूछ बैठी, ‘‘जगा दूं क्या?’’

पर शेखर का अंतर्मन बोला, ‘सोने दो मेरी जान को, कितनी हसीन लग रही है,’ नींद में भी चेहरे पर मुसकान थी. उस ने नर्स को एक गुलदस्ता और एक छोटी डायरी दे कर कहा, ‘‘जब संगीता नींद से जागे तो उसे दे देना.’’

‘‘आप का नाम?’’ नर्स ने पूछा.

‘‘कहना तुम्हारा मीत आया था,’’ कल फिर आऊंगा.

वह दूसरे दिन भी गया. पता चला कि संगीता को एक्सरे रूम में ले जाया गया है. वहां उस के मम्मीपापा और काफी रिश्तेदार आ गए. अब शेखर को रुकना उचित नहीं लगा. उस ने दोबारा फल, रजनीगंधा के फूल और मैगजीन सब नर्स को सौंपते हुए कहा, ‘‘मेरा कालेज का वक्त हो गया है, ये सब उसे दे दीजिएगा और…’’

‘‘और कह दूंगी तुम्हारे मीत ने दिया है,’’ नर्स ने मुसकराते हुए वाक्य पूरा किया और शेखर भी मुसकराते हुए लौट गया.

2 दिन बाद शेखर दोबारा हौस्पिटल आया. संगीता अपने बैड पर बैठी थी. शेखर को देखते ही उस के चेहरे पर मुसकान खिल उठी. शेखर बैड के करीब आ कर बोला, ‘‘सौरी, मैं 2-3 बार आया पर…’’

संगीता बीच में ही बोल पड़ी, ‘‘मुझे सब मालूम है, यह डायरी, यह फल, रजनीगंधा के फूल सब मेरे मीत के ही हैं. वैसे भी मैं तुम से सदा अकेले में ही मिलना चाहती हूं, भीड़ में गर तुम न ही मिलो तो अच्छा है.’’

वैसे भी मम्मीडैडी तुम्हें लाइक नहीं करते, वे धर्म के पक्के अनुयायी हैं.

शेखर उस की खैरियत जानना चाहता था. संगीता मुसकराते हुए बोली, ‘‘अरे, मुझे कुछ नहीं हुआ, मैं बिलकुल ठीक हूं, थोड़ा फीवर हुआ था. तुम्हें बहुत परेशान करती रहती हूं न, इसीलिए भुगतना पड़ा.’’

‘‘पर तुम्हारी बीमारी की खबर सुन कर तो मेरी नींद ही उड़ गई,’’ शेखर चिंता भरे लहजे में बोला.

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