योगी सरकार ने शिल्पियों के हुनर दी अंतर्राष्ट्रीय पहचान

वाराणसी. योगी  सरकार ने देश के शिल्पियों के हुनर को जीआई उत्पाद के रूप में विश्व में पहचान दिलाई है. जिससे  कोरोना काल में भी जीआई उत्पादों पर लोगों का भरोसा रहा और  मांग बनी  रही. लॉकडाउन में जब दुकानें बंद रही तब भी इस उत्पाद की  बिक्री देश और विदेशों  में ऑनलाइन  माध्यम से होती रही. वाराणसी के एक उद्यमी ने योगी सरकार के स्टार्टअप योजना का लाभ उठाते हुए कोविड काल में जीआई उत्पादों का लाखों का क़ारोबार कर लिया है. आप को जानकर ताज़्जुब होगा की ये कोराबार सिर्फ़ ऑनलाइन हुआ है. प्रतीक बी सिंह नाम के इस युवा उद्यमी के वेब साइट पर सिर्फ जीआई उत्पाद ही बिकते है. लेकिन अब प्रतीक ने कुछ ओडीओपी उत्पादों को भी ऑनलाइन प्लेटफार्म देना शुरू किया  है.

आईएएस बनने की चाह रखने वाले इस युवा को स्टार्टअप योजना ने आसमान में उड़ने की राह दिखा दी है. अब प्रतीक उन हुनरमंद लोगों को भी प्लेटफार्म दे रहे हैं, जिन्होंने अपने हुनर का लोहा पूरी दुनिया से  मनवाया है. 370 जीआई उत्पादों में से देश के 299 जीआई उत्पादों (जिनमे से  उत्तर प्रदेश से अकेले 27 जीआई उत्पाद है)  को एक जग़ह शॉपिंगकार्ट 24 नामक इ -कॉमर्स की साईट पर लाकर भारत के हस्तकला शिल्पियों की  हुनर को पूरे विश्व में पहुँचा रहे है. खाने, सजाने, संगीत, खिलौने, पहनने से लेकर हर रोज़ इस्तेमाल होने वाली जीआई  उत्पादों की ऑनलाइन बिक्री देश और विदेशो में खूब हो रही है. वाराणसी का लकड़ी का ख़िलौना, बनारसी साड़ी, गुलाबी मीनाकारी , पंजादारी, ज़री जरदोजी , सिद्धार्थ नगर का काला नमक चावल, गोरखपुर का टेराकोटा, गाज़ीपुर की वाल हैंगिंग आदि उत्पादों की अमेरिका समेत कई देशों में भारी मांग है. जीआई उत्पाद की ख़ास बात ये होती  कि ये सभी उत्पाद हैंडलूम व हैंडीक्राफ्ट उत्पाद होते हैं.

प्रतीक ने बताया कि उन्होंने 2016 में  अपनी स्टार्टअप कंपनी शुरु की थी. उसके बाद जीआई उत्पादों को धीरे-धीरे ऑनलाइन प्लेटफार्म पर लाना शुरू किया. कोरोना काल में लॉकडाउन ने जब दुकानें खुलना बंद हुई तो प्रतीक ने ऑनलाइन बाज़ार का दरवाजा दुनिया के लिए खोल दिया. प्रतीक अप्रैल से अब तक करीब 7 लाख का जीआई उत्पाद देश और विदेशों  में बेच चुके हैं. प्रतीक ने बताया कि पहले  काशी के जीआई टैगिंग प्राप्त उत्पादों को ऑनलाइन बेचना शुरू किया. फिर वो यूपी के 27 प्रोडक्ट्स को ऑनलाइन  प्लेटफार्म पर लेकर आए. इनकी कंपनी से  डिपार्टमेंट ऑफ़ प्रमोशन ऑफ़ इंडस्ट्रीज़ एंड इंटरनल ट्रेड( DPIIT ) से  मान्यता प्राप्त है. जिससे ई-कॉमर्स में मदद मिलती  है. अपने कस्टमर के लिए ये कंपनी हुनरमंद कलाकारों के लाइव प्रदर्शन भी करवाती है. जिसे बाद में सोशल मीडिया के माध्यम से उनकी कला को और लोगों तक पहुंचने में भी मदद मिलती है. शिल्पियों को ट्रिपल “ई” एजुकेट ,एम्पॉवर,एनरिच  के फॉर्मूले से समृद्ध  करते है. जीआई ( जियोग्राफिकल  इंडिकेशन) जीआई उत्पाद यानी भौगोलिक संकेतक या जियोग्राफिकल इंडिकेशन ऐसे उत्पादों होते है  जिनका एक विशिष्ट भौगोलिक मूल क्षेत्र होता है. इन उत्पादों की विशिष्ट विशेषता एवं प्रतिष्ठा भी इसी मूल क्षेत्र के कारण होती है. इस तरह का संबोधन उत्पाद की गुणवत्ता और विशिष्टता का एहसास देता है.

यूपी में कोरोना कर्फ्यू खत्म होने टीकाकरण और ट्रेसिंग पर जोर

लखनऊ . उत्तर प्रदेश के अपर मुख्य सचिव ‘सूचना’ श्री नवनीत सहगल ने बताया कि मुख्यमंत्री जी नेतृत्व में प्रदेश में 3 टी के अभियान से प्रदेश में अन्य प्रदेशों की तुलना में कोविड संक्रमण सबसे कम समय में नियत्रण में आया है. देश में सबसे कम समय में प्रतिदिन आने वाले सक्रिय मामलों में कमी आई है. उन्होंने कहा कि प्रदेश का 3 टी अभियान अन्य प्रदेशों के लिए एक माॅडल के रूप में सामने आया है.

सर्विलांस से ट्रेसिंग :

सर्विलांस के माध्यम से निगरानी समितियों द्वारा ट्रेसिंग के तहत घर-घर जाकर संक्रमण की जानकारी ली जा रही है. उन्होंने बताया कि इसके साथ-साथ 05 मई, 2021 से ग्रामीण क्षेत्रों में एक विशेष अभियान चलाकर, जिसमें निगरानी समितियों द्वारा घर-घर जाकर उन लोगों का जिनमें किसी प्रकार के संक्रमण के लक्षण होने पर उनका एन्टीजन टेस्ट भी कराया जा रहा है. अगर एन्टीजन टेस्ट निगेटिव आ रहा है और लक्षण हैं तो उनका आरटीपीसीआर टेस्ट भी कराया जा रहा है, इसके साथ-साथ उनको 11 लाख से अधिक मेडिकल किट भी बांटी गयी है.

प्रदेश में संक्रमण कम होने पर भी कोविड-19 के टेस्टों की संख्या में निरन्तर बढ़ोत्तरी की जा रही है, ताकि संक्रमित व्यक्ति की पहचान करके इलाज किया जा सके. उन्होंने बताया कि 31 मार्च से अब तक 70 प्रतिशत टेस्ट ग्रामीण क्षेत्रों में किये गये है.

श्री सहगल ने बताया कि प्रदेश के सभी जनपदों में कोविड के एक्टिव केसों की संख्या 600 से कम होने पर जनपदों में आंशिक कोरोना कफ्र्यू हटाकर पूर्व की तरह साप्ताहिक बंदी लागू कर दी गयी है. उन्होंने बताया कि साप्ताहिक बंदी के दौरान ग्रामीण क्षेत्रों व शहरी क्षेत्रों मंे फोगिंग, सैनेटाइजेशन व साफ-सफाई का अभियान चलाया जा रहा है. इस अभियान में लगभग 1.50 लाख से अधिक कर्मचारी लगाये गये है. प्रदेश में कोविड टीकाकरण अभियान तेजी से चलाया जा रहा है.

टीकाकरण पर जोर :

माह जून में 01 करोड़ टीकाकरण का लक्ष्य रखा गया है. अगले माह से प्रतिदिन 10 लाख से अधिक टीके लगाने का लक्ष्य रखा गया है. बड़े औद्योगिक ईकाइयों को कहा गया है कि वे अपनी ईकाइयों में कार्य कर रहे कर्मचारियों का टीकाकरण करायें सरकार द्वारा आवश्यक सहयोग दिया जायेगा. उन्होंने बताया कि प्रदेश में आॅक्सीजन युक्त बेडों की संख्या मंे निरन्तर बढ़ोत्तरी की जा रही है. जिसके क्रम में कल 106 बेडों की बढ़ोत्तरी की गयी है. कोविड-19 संक्रमण से बच्चों के उपचार के लिए पीकू/नीकू बेड भी तैयार किये जा रहे है.

श्री सहगल ने बताया कि आंशिक कोरोना कफ्र्यू के बावजूद भी औद्योगिक गतिविधियां में तेजी से कार्य किया जा रहा है. प्रदेश में आने वाले नये निवेशकों के प्रस्तावों पर सहमति अथवा अनुमति तत्काल दिये जाने के निर्देश मुख्यमंत्री जी द्वारा दिये गये हैं. लगभग 66,000 करोड़ के नये प्रस्ताव पर कार्यवाही चल रही है.

उन्होंने बताया कि एमएसएमई एक्ट में संसोधन करते हुए नये उद्योगों को लगाने को सरल किया गया है, जिसमें 1000 दिन तक किसी प्रकार के कागज की आवश्यकता नहीं है. जो एमओयू किये गये हैं उन्हें धरातल पर उतारा जा रहा है. उन्होंने बताया कि ग्रामीण क्षेत्रों में 15 लाख मजदूर मनरेगा के तहत कार्य कर रहे हैं. मुख्यमंत्री जी द्वारा मनरेगा के माध्यम से स्थानीय स्तर पर रोजगार देने के कार्यों का और तेजी से अमल में लाने के निर्देश दिये गये हैं.

कमजोर वर्गों पर नजर :

श्री सहगल ने बताया कि मुख्यमंत्री जी द्वारा कल संगठित और असंगठित श्रमिकों को 1000 रुपये भत्ता दिया जा रहा है, जिसके तहत डीबीटी के माध्यम से 30 लाख से अधिक लोगों को सीधे उनके खातों में भत्ता दिया जायेगा. उन्होंने बताया कि प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के तहत अब तक 2 करोड़ 17 लाख पात्र लोगों को खाद्यान्न वितरित किया गया है.

प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के तहत 3 करोड़ 20 लाख से अधिक पात्र लोगों को खाद्यान्न वितरण किया जाना है. उन्होंने बताया कि प्रदेश सरकार द्वारा भी पात्र लोगों को खाद्यान्न वितरण किया जायेगा. मुख्यमंत्री हेल्पलाइन के माध्यम से कोविड संक्रमित मरीजों का हालचाल जानने के साथ-साथ खाद्यान्न योजना का भी फीडबैक लिया जा रहा है. सीएम हेल्पलाइन के माध्यम से 41 हजार लोगों से वार्ता की गई है.

श्री सहगल ने बताया कि प्रदेश सरकार किसानों के हितों के लिए कृतसंकल्प है और किसानों से न्यूनतम समर्थन मूल्य पर उनकी फसल को खरीदे जाने की प्रक्रिया कोविड प्रोटोकाल का पालन करते हुए तेजी से चल रही है. 01 अप्रैल से 15 जून, 2021 तक गेहँू खरीद का अभियान जारी रहेगा. गेहँू क्रय अभियान में 10 लाख से अधिक किसानों से 46,96,521.87 मी0 टन गेहूँ खरीदा गया है, जो विगत वर्ष से डेढ़ गुना अधिक है.

कोरोना काल में कुपोषित बच्चों और गर्भवती महिलाओं का ‘सहारा’ बनी योगी सरकार

लखनऊ . मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की पहल पर यूपी में कुपोषण के खात्मे के लिए पोषण अभियान चलाया जा रहा है. इस अभियान में कुपोषितों को पोषण युक्त आहार मिल रहा है. वहीं, गांवों में काम कर रही स्वयं सहायता समूहों की महिलाओं को रोजगार भी मिला है. कोरोना काल में भी कुपोषित बच्चों और गर्भवती महिलाओं का ‘सहारा’ योगी सरकार बनी है.

सीएम योगी के निर्देश पर प्रदेश से कुपोषण के खात्मे के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में उत्तर प्रदेश राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत संचालित स्वयं सहायता समूहों की महिलाएं भी जुटी हैं. प्रदेश के 75 जिलों के सभी विकास खंडों में 63,000 स्वयं सहायता समूहों की महिलाओं द्वारा कोटेदार के यहां से ड्राई राशन, गेहूं, चावल और नाफेड से मिले चना, दाल, एडिबले आयल का उठान कर उसकी पैकिंग की जा रही है. छह माह से तीन वर्ष तक के बच्चों, तीन से छह साल तक के बच्चों, गर्भवती एवं धात्री महिलाओं, अति कुपोषित बच्चों और किशोरी बालिकाओं के कुल 1,47,99,150 लाभार्थियों के लिए 1,64,714 आंगनबाड़ी केन्द्रों से ड्राई राशन वितरित किया जा रहा है. सरकार की ओर से शुरू की गई ड्राई राशन परियोजना से करीब 6,30,000 महिलाओं को रोजगार भी मिला है.

राज्य सरकार कोरोना काल में भी कुपोषण की शिकार मां, बच्चे और लड़कियों के स्वास्थ्य में सुधार के लिए सभी आवश्यक कदम उठा रही है. बाल विकास सेवा एवं पुष्टाहार विभाग को इसके लिए सरकार ने महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंपी है. प्रदेश में आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों और स्वयं सहायता समूह के सदस्यों को फील्ड में कुपोषित बच्चों और गर्भवती महिलाओं को पोषक आहार वितरण में लगाया गया है. पोषण का लाभार्थियों को वितरण के लिए ऑनलाइन मॉनीटरिंग भी की जा रही है.

3060 महिलाओं को और मिलेगा रोजगार, आय में होगी वृद्धि

रेसिपी बेस्ट टेक होम राशन के लिए प्रदेश के 43 जिलों के 204 विकास खंडों में उत्पादन ईकाई की स्थापना कर 15 से 20 महिलाओं द्वारा रेसिपी तैयार कर आंगनबाड़ी केंद्रों में वितरित किया जाना है. प्रथम चरण में फतेहपुर के विकास खंड मलवां और उन्नाव के विकास खंड बीघापुर में उत्पादन ईकाई की स्थापना की गई है. शेष 202 विकास खंडों में भी जल्द उत्पादन ईकाई की स्थापना होने वाली है. हर ईकाई में 15 से 20 महिलाएं काम करेंगी, जिससे करीब 3060 महिलाओं को रोजगार मिलेगा और उनकी आय में वृद्धि होगी.

सरकार के लगातार प्रयासों से कुपोषण में आ रही कमी

योगी सरकार ने कोरोना काल में कुपोषित बच्चों और गर्भवती महिलाओं को पोषण युक्त आहार पहुंचाने के लिए हाल ही में तीन महीने की राशि जारी की है. कुपोषित बच्चों और गर्भवती महिलाओं को अनाज, दाल, घी और दूध पाउडर बांटा जाता है. सरकार के लगातार किए जा रहे प्रयासों से गांवों में लगातार कुपोषण में कमी आ रही है.

बॉम्बे हाईकोर्ट ने भी सराहा ‘यूपी मॉडल’

लखनऊ. उत्तर प्रदेश में कोरोना संक्रमण से लोगों तथा बच्चों को बचाने और कोरोना महामारी पर अंकुश लगाने के लिए प्रदेश की सरकार ने जो मॉडल अपनाया है उसका अब बॉम्बे हाईकोर्ट भी कायल हो गया हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) और देश का नीति आयोग कोविड प्रबंधन के लिए उत्तर प्रदेश सरकार के ‘यूपी मॉडल’ की तारीफ कर चुका है. आयोग ने यूपी के इस मॉडल को अन्य राज्यों के लिए नज़ीर बताया है. वही बॉम्बे हाईकोर्ट ने यूपी मॉडल के तहत बच्चों को कोरोना से बचाने के लिए किए गए प्रबंधों का जिक्र करते हुए वहां की सरकार से यह पूछा है कि महाराष्ट्र सरकार यहां ऐसा करने पर विचार क्यों नहीं करती?

यूपी सरकार ने कोरोना संक्रमण से बच्चों का बचाव करने के लिये सूबे के हर बड़े शहर में 50 से 100 बेड के पीडियाट्रिक बेड (पीआईसीयू) बनाने का फैसला किया है. यूपी सरकार के इस फैसले को डॉक्टर बच्चों के लिये वरदान बता रहे हैं. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बच्चों को बीमारी से बचाने को लेकर हमेशा ही बेहद गंभीर रहे हैं. इंसेफेलाइटिस जैसी जानलेवा बीमारी से बच्चों को बचाने के लिए उन्होंने इस बीमारी के खात्मे को लेकर जो अभियान चलाया उससे समूचा पूर्वांचल वाकिफ हैं.

इसी क्रम में जब मुख्यमंत्री कोरोना संक्रमण से लोगों को बचाने के लिए ट्रिपल टी यानि ट्रेस, टेस्ट और ट्रीट की रणनीति तैयार करा रहे थे, तब ही उन्होंने कोरोना संक्रमण से बच्चों को बचाने के लिए चिकित्सा विशेषज्ञों को अलग से एक योजना तैयार करने का निर्देश दिया. जिसके तहत ही चिकित्सा विशेषज्ञों ने उन्हें बताया कि कोरोना संक्रमण से बच्चों बचाने और उनका इलाज करने के लिए हर जिले में आईसीयू की तर्ज पर सभी संसाधनों से युक्त पीडियाट्रिक बेड की व्यवस्था अस्पताल में की जाए. चिकित्सा विशेषज्ञों की इस सलाह पर मुख्यमंत्री ने सूबे के सभी बड़े शहरों में 50 से 100 बेड के पीडियाट्रिक बेड (पीआईसीयू) बनाने के निर्देश दिये हैं. यह बेड विशेषकर एक महीने से ऊपर के बच्चों के लिए होंगे. इनका साइज छोटा होगा और साइडों में रेलिंग लगी होगी. गंभीर संक्रमित बच्चों को इसी पर इलाज और ऑक्सीजन की सुविधा उपलब्ध कराई जाएगी.

सूबे में बच्चों के इलाज में कोई कमी न आए इसके लिए सभी जिलों को अलर्ट मोड पर रहने के लिये कहा गया है. इसके तहत ही मुख्यमंत्री अधिकारियों को बच्चों के इन अस्पतालों के लिए मैन पावर बढ़ाने के भी आदेश दिये हैं. मुख्यमंत्री ने कहा है कि जरूरत पड़े तो इसके लिए एक्स सर्विसमैन, रिटायर लोगों की सेवाएं ली जाएं. मेडिकल की शिक्षा प्राप्त कर रहे छात्रों को ट्रेनिंग देकर उनसे फोन की सेवाएं ले सकते हैं. लखनऊ में डफरिन अस्पताल के बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. सलमान खान ने उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से तत्काल सभी बड़े शहरों में 50 से 100 पीडियाट्रिक बेड बनाने के निर्णय को बच्चों के इलाज में कारगर बताया है. उन्होंने बताया कि एक महीने से ऊपर के बच्चों के लिए पीआईसीयू (पेडरिएटिक इनटेन्सिव केयर यूनिट), एक महीने के नीचे के बच्चों के उपचार के लिये एनआईसीयू (नियोनेटल इनटेन्सिव केयर यूनिट) और महिला अस्पताल में जन्म लेने वाले बच्चों के लिये एसएनसीयू (ए सिक न्यू बार्न केयर यूनिट) बेड होते हैं. जिनमें बच्चों को तत्काल इलाज देने की सभी सुविधाएं होती हैं.

बच्चों के इलाज को लेकर यूपी के इस मॉडल का खबर अखबारों में छपी. जिसका बॉम्बे हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति गिरीश कुलकर्णी की खंडपीठ ने संज्ञान लिया. और बीते दिनों  इन न्यायाधीशों की खंडपीठ ने कहा कि यूपी में कोरोना की तीसरी लहर में बच्चों को खतरा होने की आशंका के चलते एक अस्पताल सिर्फ बच्चों के लिए आरक्षित रखा गया है. महाराष्ट्र सरकार यहां ऐसा करने पर विचार क्यों नहीं करती. महाराष्ट्र में दस साल की उम्र के दस हजार बच्चे कोरोना का शिकार हुए हैं. जिसे लेकर हो रही सुनवाई के दौरान खंडपीठ ने यह महाराष्ट्र सरकार से यह सवाल पूछा हैं.

जाहिर है कि हर अच्छे कार्य की सराहना होती हैं और कोरोना से बच्चों को बचाने तथा उनके इलाज करने की जो व्यवस्था यूपी सरकार कर रही है, उसे बॉम्बे हाईकोर्ट ने उचित माना और उसका जिक्र किया. ठीक इसी तरह से विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) और नीति आयोग ने भी कोविड प्रबंधन के लिए उत्तर प्रदेश सरकार के ‘यूपी मॉडल’ की जमकर तारीफ की है. इस दोनों की संस्थाओं ने कोरोना मरीजों का पता लगाने और संक्रमण का फैलाव रोकने के किए उन्हें होम आइसोलेट करने को लेकर चलाए गए ट्रिपल टी (ट्रेस, टेस्ट और ट्रीट) के महाअभियान और यूपी के ऑक्सीजन ट्रांसपोर्ट ट्रैकिंग सिस्टम की खुल कर सराहना की. नीति आयोग ने तो यूपी के इस मॉडल को अन्य राज्यों के लिए भी नज़ीर बताया है. यह पहला मौका है जब डब्लूएचओ और नीति आयोग ने कोविड प्रबंधन के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की देखरेख में तैयार कराए गए यूपी मॉडल की सराहना की है. और उसके बाद अब बॉम्बे हाईकोर्ट बच्चों का इलाज करने को लेकर यूपी मॉडल’  का कायल हुआ है.

ब्लैक फंगस से निपटने को योगी सरकार ने कसी कमर

लखनऊ . उत्तर प्रदेश में कोविड संक्रमण की धीमी होती रफ्तार के बीच पैर-पसारते ब्लैक फंगस नाम की बीमारी से बचाव की तैयारी सरकार ने शुरू कर दी है.

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के निर्देश पर एसजीपीजीआई, लखनऊ में ब्लैक फंगस के मरीजों के उपचार की दिशा तय करने के लिए 12 सदस्यीय वरिष्ठ चिकित्सकों की टीम गठित कर दी गई है. इस टीम से अन्य चिकित्सक मार्गदर्शन भी ले सकेंगे.

एसजीपीजीआई के निदेशक डॉ. आरके धीमन की अध्यक्षता में विशेष टीम ने प्रदेश के विभिन्न सरकारी व निजी मेडिकल कॉलेजों, अस्पतालों के डॉक्टरों को इलाज के बारे में प्रशिक्षण दिया. ऑनलाइन प्रशिक्षण कार्यशाला में डॉक्टरों को ब्लैक फंगस के रोगियों की पहचान, इलाज, सावधानियों आदि के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई.

इंतजाम में देरी नहीं: मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने प्रदेश में ब्लैक फंगस की स्थिति की जानकारी लेते हुए इस मामले में ‘प्रो-एक्टिव’ रहने के निर्देश दिए है. सीएम योगी ने कहा कि विशेषज्ञों के मुताबिक कोविड से उपचारित मरीजों खासकर अनियंत्रित मधुमेह की समस्या से जूझ रहे लोगों में ब्लैक फंगस की समस्या देखने मे आई है. उन्होंने स्वास्थ्य विभाग और चिकित्सा शिक्षा विभाग को निर्देश दिए कि विशेषज्ञों के परामर्श के अनुसार इसके उपचार में उपयोगी दवाओं की उपलब्धता तत्काल सुनिश्चित कराई जाए. उन्होंने कहा है कि लोगों में जागरूकता बढ़ाने के लिए आवश्यक गाइडलाइन जारी कर दी जाएं. सभी जिलों के जिला अस्पतालों में इसके उपचार की सुविधा दी जाए.

प्लास्टिक सर्जन डॉ. सुबोध कुमार सिंह बताते हैं कि म्यूकर माइकोसिस अथवा ब्लैक फंगस, चेहरे, नाक, साइनस, आंख और दिमाग में फैलकर उसको नष्ट कर देती है. इससे आँख सहित चेहरे का बड़ा भाग नष्ट हो जाता है और जान जाने का भी खतरा रहता है. इसके लक्षण दिखते ही तत्काल उचित चिकित्सकीय परामर्श लेना बेहतर है. लापरवाही भारी पड़ सकती है.

इन मरीजों को बरतनी होगी खास सावधानी:

1- कोविड इलाज के दौरान जिन मरीजों को स्टेरॉयड दवा जैसे, डेक्सामिथाजोन, मिथाइल प्रेड्निसोलोन इत्यादि दी गई हो.

2- कोविड मरीज को इलाज के दौरान ऑक्सीजन पर रखना पड़ा हो या आईसीयू में रखना पड़ा हो.

3.डायबिटीज का अच्छा नियंत्रण ना हो.

4.कैंसर, किडनी ट्रांसप्लांट इत्यादि के लिए दवा चल रही हो.

यह लक्षण दिखें तो तुरंत लें डॉक्टरी सलाह:-

1.बुखार आ रहा हो, सर दर्द हो रहा हो, खांसी हो, सांस फूल रही हो.

2. नाक बंद हो. नाक में म्यूकस के साथ खून आ रहा हो.

3. आँख में दर्द हो. आँख फूल जाए, एक वस्तु दो दिख रही हो या दिखना बंद हो जाए.

4. चेहरे में एक तरफ दर्द हो , सूजन हो या सुन्न हो (छूने पर छूने का अहसास ना हो)

5. दाँत में दर्द हो, दांत हिलने लगें, चबाने में दर्द हो.

6. उल्टी में या खांसने पर बलगम में खून आये.

क्या करें :-

कोई भी लक्षण होने पर तत्काल सरकारी अस्पताल में या किसी अन्य विशेषज्ञ डॉक्टर से तत्काल परामर्श करें. नाक, कान, गले, आँख, मेडिसिन, चेस्ट या प्लास्टिक सर्जरी विशेषज्ञ से संपर्क कर तुरंत इलाज शुरू करें.

बरतें यह सावधानियां :-

  1. स्वयं या किसी गैर विशेषज्ञ डॉक्टर के, दोस्त मित्र या रिश्तेदार की सलाह पर स्टेरॉयड दवा कतई शुरू ना करें.

2. लक्षण के पहले 05 से 07 दिनों में स्टेरॉयड देने से दुष्परिणाम होते हैं. बीमारी शुरू होते ही स्टेरॉयड शुरू ना करें.

इससे बीमारी बढ़ जाती है.

3. स्टेरॉयड का प्रयोग विशेषज्ञ डॉक्टर कुछ ही मरीजों को केवल 05-10 दिनों के लिए देते हैं, वह भी बीमारी शुरू होने के 05-07 दिनों बाद केवल गंभीर मरीजों को. इसके पहले बहुत सी जांच आवश्यक है.

4. इलाज शुरू होने पर डॉक्टर से पूछें कि इन दवाओं में स्टेरॉयड तो नहीं है. अगर है, तो ये दवाएं मुझे क्यों दी जा रही हैं?

5. स्टेरॉयड शुरू होने पर विशेषज्ञ डॉक्टर के नियमित संपर्क में रहें.

6. घर पर अगर ऑक्सीजन लगाया जा रहा है तो उसकी बोतल में उबाल कर ठंडा किया हुआ पानी डालें या नार्मल सलाइन डालें. बेहतर हो अस्पताल में भर्ती हों.

अभ्युदय योजना से प्रदेश के युवाओं को प्रतियोगी परीक्षाओं में मिलेगी मदद

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा है कि अभ्युदय योजना प्रदेश के युवाओं के उत्कर्ष का मार्ग प्रशस्त करने की राज्य सरकार की एक अभिनव योजना है. यह योजना प्रदेश के युवाओं के लिए समर्पित है. अभ्युदय योजना राज्य के युवाओं के लिए मील का पत्थर साबित होगी. जब बड़ी-बड़ी प्रतियोगी परीक्षाओं में प्रदेश का प्रतिनिधित्व बढ़ेगा, तो उसका लाभ भी प्रदेश को होगा.

मुख्यमंत्री ने अपने सरकारी आवास पर अभ्युदय योजना का शुभारम्भ करने के पश्चात इस योजना के बारे में विस्तार से जानकारी दी. उन्होंने ने कहा कि युवाओं को प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए निःशुल्क कोचिंग प्रदान करने के उद्देश्य से उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा एक अभिनव पहल करते हुए यह योजना प्रारम्भ की गयी है. अभ्युदय योजना के अन्तर्गत 16 फरवरी, 2021 को बसन्त पंचमी से प्रदेश में क्लासेज शुरू हुई. जिन युवाओं का टेस्ट के माध्यम से चयन हुआ है, उन्हें मण्डल मुख्यालय में साक्षात क्लास अटेण्ड करने का अवसर मिलेगा. शेष अभ्यर्थी वर्चुअल माध्यम से ऑनलाइन क्लास से जुड़ सकेंगे. उन्होंने कहा कि युवाओं को जिस भी फील्ड में जाना हो, उसकी शुरुआत अच्छे से करें. मजबूत बुनियाद ही मजबूत इमारत का आधार होती है. अभ्युदय योजना को लेकर यही भाव रखा गया है.

मुख्यमंत्री ने कहा कि 50 लाख से अधिक लोगों ने इस योजना में रुचि दिखायी है. 05 लाख से अधिक लोगों ने पंजीकरण कराया, जो योजना की लोकप्रियता को स्वतः दर्शाता है. अभ्युदय योजना के माध्यम से प्रतियोगी युवाओं को आईएएस, आईपीएस, आईएफएस, पीसीएस, सहित मेडिकल, आईआईटी के विशेषज्ञों का मार्गदर्शन प्राप्त होगा. अभ्युदय योजना को सफल बनाने के उद्देश्य से बेहतर फैकल्टी की व्यवस्था की जा रही है. मुख्यमंत्री ने कहा कि जीवन में यह बात सदैव याद रखनी चाहिए कि सकारात्मक सोच ही व्यक्ति को बड़ा बना सकती है. उन्होंने कहा कि आप सभी ने बेसिक शिक्षा के विद्यालयों में व्यापक परिवर्तन देखा होगा. इस परिवर्तन का आधार एक जिलाधिकारी की सोच का परिणाम है. आज प्रदेश के 90 हजार से अधिक विद्यालयों का कायाकल्प किया जा चुका है.

मुख्यमंत्री ने कहा कि अभ्युदय योजना के माध्यम से आत्मनिर्भर भारत बनाने की नींव और मजबूत होगी. अभ्युदय योजना को पहले चरण में 18 मण्डल मुख्यालयों में प्रारम्भ किया जा रहा है. आने वाले समय में इसका विस्तार जनपदों में भी किया जाएगा.

इस योजना में साप्ताहिक, मासिक टेस्ट भी होंगे, जिसके आधार पर स्क्रीनिंग की जाएगी.

मुख्यमंत्री ने कहा कि उत्तर प्रदेश में प्रतिभा की कमी नहीं है. आवश्यकता है एक योग्य मार्गदर्शक की. अभ्युदय योजना के माध्यम से इस कार्य को एक स्वरूप प्रदान किया जा रहा है. उत्तर प्रदेश में इन्फ्रास्ट्रक्चर की कोई कमी नहीं है. प्रदेश के सभी जनपदांे में विश्वविद्यालय, महाविद्यालय, इंजीनियरिंग कॉलेज या अन्य संस्थान हैं, जिनमें अभ्युदय की कोचिंग संचालित की जा सकेगी. योजना को तकनीक के साथ जोड़ना होगा. फिजिकली क्लास में 50 से 100 विद्यार्थी इसका लाभ ले सकेंगे, वहीं सरकार का लक्ष्य वर्चुअली माध्यम से एक करोड़ युवाओं को योजना से जोड़ने का है.

मुख्यमंत्री ने कहा कि अभ्युदय योजना प्रदेश के युवाओं को समर्पित योजना है. प्रदेश का युवा योजना के माध्यम से अपनी प्रतिभा का लोहा देश व दुनिया में मनवा सकेगा. वर्तमान राज्य सरकार द्वारा बड़ी संख्या में युवाओं को रोजगार के अवसर उपलब्ध कराये गये हैं. अब तक चार लाख से अधिक युवाओं को सरकारी सेवाओं में निष्पक्ष एवं पारदर्शी चयन प्रक्रिया के माध्यम से नियुक्ति प्रदान की गयी है. इस अवसर पर मुख्यमंत्री जी ने अभ्युदय योजना में 05 मण्डलों के पंजीकृत अभ्यर्थियों से संवाद किया. इसके अन्तर्गत उन्होंने जनपद वाराणसी के कपिल दुबे, जनपद गोरखपुर की साक्षी पाण्डेय, जनपद प्रयागराज की शिष्या सिंह राठौर, जनपद मेरठ के हिमांशु बंसल से वर्चुअल माध्यम से संवाद किया. जनपद लखनऊ कीप्रियांशु मिश्रा व अनामिका सिंह से मुख्यमंत्री ने साक्षात संवाद किया. पंजीकृत अभ्यर्थियों से संवाद के दौरान मुख्यमंत्री जी ने जीवन में सफल होने के कुछ मंत्र दिये. उन्होंने कहा कि सकारात्मक सोच से एकाग्रता आती है. व्यक्ति को संयमित जीवनचर्या रखनी चाहिए. विपत्ति में व्यक्ति का सबसे बड़ा मित्र धैर्य होता है.

संवाद के दौरान एक अभ्यर्थी द्वारा ओडीओपी पर पूछे गये प्रश्न का उत्तर देते हुए मुख्यमंत्री जी ने कहा कि ओडीओपी देश में परम्परागत उत्पाद को आगे बढ़ाने की एक महत्वपूर्ण योजना है. ओडीओपी योजना देश को आत्मनिर्भर बनाने में अहम भूमिका निभा रही है.

एक अन्य अभ्यर्थी के प्रश्न का उत्तर देते हुए मुख्यमंत्री जी ने कहा कि वर्तमान केन्द्र सरकार व राज्य सरकार किसानों के हितों में कार्य कर रही है. उन्होंने कहा कि आजादी के बाद पहली बार किसानों की चिन्ता का समाधान प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी द्वारा किया गया है. प्रधानमंत्री जी द्वारा मृदा स्वास्थ्य कार्ड के माध्यम से जमीन का स्वास्थ्य परीक्षण कराया गया.

मुख्यमंत्री ने कहा कि भारत की कृषि मानसून आधारित है, ऐसे में कभी-कभी कृषकांे को काफी नुकसान होता है. इसके दृष्टिगत प्रधानमंत्री जी ने प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के माध्यम से उन्हें सम्बल प्रदान करने का कार्य किया है. कृषि को तकनीक से जोड़कर किसानों के जीवन को बेहतर बनाने का कार्य किया गया है. किसानों को एमएसपी का लाभ दिया जा रहा है. प्रधानमंत्री जी किसानों के हित में तीन नये कृषि कानून लाये हैं, जिससे किसानों को काफी लाभ होगा. उन्होंने कहा कि वर्तमान सरकार कृषि विविधीकरण को बढ़ावा दे रही है. झांसी में स्ट्रॉबेरी की खेती इसी का परिणाम है.

एक अभ्यर्थी द्वारा कोविड प्रबन्धन के विषय में पूछे गये प्रश्न का उत्तर देते हुए मुख्यमंत्री जी ने कहा कि प्रदेश सरकार द्वारा कोरोना के प्रसार को रोकने के लिए एक रणनीति तैयार की गयी थी, जिसका परिणाम था कि प्रदेश में कोरोना पर प्रभावी अंकुश लगा. जब प्रदेश में पहला कोरोना केस आया था, तब प्रदेश में कोविड-19 की जांच की लैब नहीं थी. लेकिन आज प्रदेश में प्रतिदिन 02 लाख कोरोना जांच की क्षमता विकसित की गयी है. सभी जनपदों में डेडिकेटेड कोविड हॉस्पिटल और इन्टीग्रेटेड कमाण्ड एण्ड कण्ट्रोल सेण्टर ने कोरोना को रोकने में महती भूमिका निभायी.

उप मुख्यमंत्री डॉ0 दिनेश शर्मा ने कहा कि मुख्यमंत्री जी के कुशल नेतृत्व में प्रदेश का सर्वांगीण विकास हो रहा है. उन्होंने कहा कि अभ्युदय योजना प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे विद्यार्थियों के लिए एक अच्छा प्लैटफॉर्म है. इससे उनका आत्मविश्वास भी बढ़ेगा. उन्होंने कहा कि वर्तमान सरकार ने प्रदेश में नकलविहीन परीक्षा सम्पन्न कराने का कार्य किया है. विद्यार्थियों को प्रतियोगी परीक्षाओं में सफलता प्राप्त हो सके, इसके लिए पाठ्यक्रमों में भी व्यापक बदलाव किया गया है.

समाज कल्याण मंत्री श्री रमापति शास्त्री ने कहा कि मुख्यमंत्री जी अन्तिम पायदान पर खड़े व्यक्ति को लाभान्वित करने के लिए संकल्पित हैं. निश्चित ही अभ्युदय योजना आर्थिक रूप से कमजोर विद्यार्थियों के लिए वरदान साबित होगी.

इस अवसर पर मुख्य सचिव श्री आरके तिवारी, अपर मुख्य सचिव गृह श्री अवनीश कुमार अवस्थी, अपर मुख्य सचिव एमएसएमई एवं सूचना श्री नवनीत सहगल, पुलिस महानिदेशक श्री हितेश सी अवस्थी, प्रमुख सचिव मुख्यमंत्री एवं सूचना श्री संजय प्रसाद, मण्डलायुक्त लखनऊ श्री रंजन कुमार, आईजी रेन्ज लखनऊ श्रीमती लक्ष्मी सिंह सहित अन्य वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित थे.

सरकारी अस्‍पतालों में बेटियों का जन्‍मदिन मनाएगी योगी सरकार

उत्‍तर प्रदेश में पहली बार महिलाओं व बेटियों के लिए शुरू किए गए इस वृहद अभियान से उनमें उत्‍साह देखने को मिल रहा है. आधी आबादी को सशक्‍त बनाने के सरकारी प्रयास जमीनी स्‍तर पर रंग ला रहे हैं. प्रदेश की महिलाओं व बेटियों को इस अभियान से न सिर्फ सरकारी योजनाओं की जानकारी मिल रही है बल्कि उनको इन योजनाओं का लाभ भी सीधे तौर पर मिल र‍हा है.

इस दिशा में एक सकारात्‍मक कदम उठाते हुए 22 जनवरी को सरकारी अस्‍पतालों में जन्‍म लेने वाली बेटियों का जन्‍मदिवस मनाए जाने का फैसला लिया गया है जिसके तहत योगी सरकार की ओर से मां व बेटी को उपहार भी दिए जाएंगे.

 गुड्डा- गुड्डी बोर्ड

मिशन शक्ति के तहत बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ मुहिम को बढ़ावा देते हुए यूपी के जनपदों में एक जनवरी से 20 जनवरी तक जन्‍म लेने वाली बेटियों की संख्‍या के बराबर वृक्षारोपण का कार्य भी किया जाएगा. बता दें कि इन वृक्षों के संरक्षण का दायित्‍व पुरूषों को सौंपा जाएगा. बालिकाओं के निम्‍न लिंगानुपात वाले ब्‍लॉकों की सभी ग्राम सभाओं से डिजिटल एनालॉग गुड्डा-गुड्डी बोर्ड की शुरूआत की जाएगी. इसका क्रियान्‍वन करते हुए समस्‍त ग्राम पंचायतों में छह माह के अंदर बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ के साथ-साथ ग्राम पंचायत विकास योजनाओं में भी इसे शामिल किया जाएगा.

उत्‍तर प्रदेश में लगेगी प्रशासन की पाठशाला

प्रदेश में बेटियों के मनोबल को बढ़ाने के लिए अभियान के जरिए प्रशासन की पाठशला कार्यक्रम का आयोजन किया जाएगा. जिसके तहत उन बालिकाओं और महिलाओं की काउंसलिंग की जाएगी जो विभिन्‍न प्रशासनिक सेवाओं जैसे पुलिस, फौज, एयरफोर्स समेत मेडिकल, इंजीनियरिंग व उद्योग जगत में आगे बढ़ने का सपना देख रहीं हैं. कार्यक्रम में जिलाधि‍कारियों व उच्‍चधिकारियों द्वारा ऑफलाइन व ऑनलाइन कैरियर काउंसलिंग शिविरों का आयोजन कर उनकी काउंसलिंग की जाएगी.

हक की बात जिलाधिकारी के साथ

मिशन शक्ति अभियान के तहत हक की बात जिलाधिकारी के साथ कार्यक्रम का आयोजन प्रदेश स्‍तर पर 24 फरवरी को किया जाएगा. इस बार जिलाधिकारी किशोरियों व महिलाओं से दो घंटें तक संवाद स्थापित कर यौन शोषण, लैंगिक असमानता, घरेलू हिंसा, कन्‍या भ्रूण हत्‍या, कार्यस्‍थल पर लैगिंक हिंसा और दहेज उत्‍पीड़न जैसे मुद्दों पर बात करेंगे. इन मुद्दों पर महिलाओं व बेटियों को संरक्षण, सुरक्षा, सुझाव और सहायता भी देंगें. उत्‍तर प्रदेश के सभी जनपदों के जिलाधिकारी वेबिनार, चौपालों, ऑनलाइन बैठक और वीडियो कान्‍फ्रेंसिंग के जरिए किशोरियों व महिलाओं से रूबरू होगें.

लोकतंत्र से गैंगरेप

हाथरस में गैंगरेप की घटना को प्रदेश सरकार के हठ ने देश के सामने ‘लोकतंत्र से गैंगरेप‘ सा बना दिया. लड़की की चिता की राख भले ही बुझ गई हो, पर इस से भड़का विरोध ठंडा नहीं पड़ेगा. कोर्ट से ले कर बिहार के चुनाव तक तमाम सवाल भाजपा को सपने में भी डराते रहेंगे.

उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर ‘ठाकुरवाद’ को ले कर पक्षपात करने का आरोप गहरा होता चला जा रहा है. कुलदीप सेंगर और स्वामी चिन्मयानंद के बाद हाथरस कांड में यह साबित हो गया है. ऐसे में योगी आदित्यनाथ का मुख्यमंत्री की कुरसी पर बैठे रहना भाजपा के लिए नुकसानदायक होगा.

उत्तर प्रदेश के हाथरस में एक एससी समाज की लड़की के साथ दंबगों द्वारा बाजरे के खेत में सुबहसुबह किया गया गैंगरेप भले की समाज की आंखों के सामने नहीं हुआ, पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की पुलिस ने सब की आंखों के सामने लड़की की लाश को जबरन जला कर ‘लोकतंत्र से गैंगरेप‘ किया है.

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गैंगरेप की शिकार हाथरस की रहने वाली 20 साल की उस लड़की को गंभीर हालत में 28 सितंबर को दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में भरती कराया गया था जहां अगले दिन उस की मौत हो गई. उत्तर प्रदेश पुलिस ने मौत के इस राज को दफन करने के लिए लड़की की लाश उस के घर वालों को नहीं सौंपने का फैसला किया. पुलिस ने सफदरजंग अस्पताल से ही लड़की की लाश को अपने कब्जे में ले लिया. घर वालों को इस बात का डर पहले से हो रहा था. इस वजह से उन्होंने मीडिया में यह शिकायत करनी शुरू कर दी थी कि उत्तर पुलिस इंसाफ नहीं कर रही है.

उस लड़की के साथ 14 सितंबर को गैंगरेप से ले कर 28 सितंबर तक अस्पताल में जिस तरह से उस के साथ लापरवाही की जा रही थी, उस से लड़की के परिवार वालों को उत्तर प्रदेश की योगी सरकार पर भरोसा नहीं रह गया था. यही वजह थी कि वे हाथरस से 200 किलोमीटर दूर दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में लड़की को इलाज के लिए ले कर गए. उन को पता था कि अगर हाथरस से 400 किलोमीटर दूर लखनऊ जाएंगे तो वहां उन के हालात को किसी के सामने नहीं आने दिया जाएगा.

दिल्ली में मीडिया की चर्चा में आने के बाद भी उत्तर प्रदेश पुलिस ने पूरी तानाशाही की. लाश को ले कर एंबुलैंस सीधे लड़की के गांव के लिए निकल गई. अस्पताल में ही उस के परिवार वालों को लडकी की लाश देखने तक नहीं दी गई. लड़की के परिवार के साथ मीडिया की कुछ गाड़ियों ने एंबुलैंस का पीछा किया.

लड़की के भाई संदीप ने कहा, ‘हम लोगों को चेहरा तक नहीं दिखाया. उलटा भारी पुलिस बल उन्हें रोकने के लिए लगा दिया. पुलिस ने जानवर का रूप ले लिया था और वह दरिंदों के साथ खड़ी हो गई. मां अपनी बेटी की लाश देखना चाहती थी और वह पुलिस से गिड़गिड़ाती रही, पर पुलिस ने मुंह तक नहीं देखने दिया. मां आंचल फैला कर भीख मांगती रही पर पुलिस ने संवेदनहीनता की सारी हदें पार दीं.’

और भी दर्द दिया

हाथरस तक पहुंचने के लिए पुलिस ने पुराने रास्ते का इस्तेमाल किया, जबकि लड़की के परिवार वाले और मीडिया दूसरे रास्ते से गांव पहुंच रहे थे. एंबुलैंस में लाश ले कर पुलिस जब लड़की के घर के सामने से गुजर रही थी तो वहां मौजूद उस के घर वालों ने गाड़ी को बीच में रोक लिया.

लड़की की मां और उस की भाभी गाड़ी के ऊपर ही सिर पीटपीट कर रो रही थीं. मां का कहना था, ‘हम बेटी की अंतिम क्रिया से पहले उस को नहला कर नए कपड़े पहना कर हलदी लगाने की रस्म अदा करने के बाद अंतिम संस्कार करेगे.’

पर पुलिस यह बात मानने को तैयार नहीं थी. यही नहीं पुलिस लड़की की भाभी की इस बात को भी सुनने को तैयार नहीं थी कि लड़की के पिता और भाई दिल्ली से आ जाएं तब कोई फैसला हो. पुलिस ने लड़की के घर वालों की बात तो सुनी ही नहीं, बल्कि वह घर वालों को जबरन साथ ले जाना चाहती थी कि किसी तरह से वे उस का अंतिम संस्कार कर दें.

घर वाले जब इस के लिए तैयार नहीं हुए तो पुलिस लाश को ले कर सीधे गांव के बाहर श्मशान ले गई. अभी तक आधी रात का समय बीत रहा था और लड़की के पिता और मीडिया वहां तक नहीं पहुंचे थे. जो लोग पहुंचे थे उन को पुलिस ने गांव के बाहर ही रोक लिया था. गांव के अंदर आने वाली कच्ची सड़क को पूरी तरह से बंद कर दिया गया था.

गांव में 13 थाने का पुलिस बल और बाकी अफसर तैनात कर दिए गए थे. पूरा गांव एक तरह से छावनी में बदल दिया गया था.

पैट्रोल से जला दी लडकी

हिंदू धर्म के रीतिरिवाजों में किसी  की अंतिम क्रिया से पहले लाश को नहलाया जाता है. इस के बाद उस को नए कपड़े पहना कर चिता पर लिटाया जाता है. चिता को लकड़ी से तैयार किया जाता है. किसी करीबी परिजन जैसे पिता, पति या भाई द्वारा चिता को अग्नि दी जाती है.

हिंदू धर्म में ऐसा कहा जाता है कि अंतिम क्रिया विधिवत करने से मरने वाले की आत्मा को मुक्ति मिलती है. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ हिंदू धर्म के ब्रांड एंबैसेडर माने जाते हैं. इस के बाद भी योगी की पुलिस ने धर्म, रीतिरिवाज, मानवाधिकार, कानून किसी का भी साथ नही दिया.

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लड़की की लाश को जंगल के बीच रख कर उसे गोबर के उपलों और कुछ लकड़ियों से ढक दिया गया. पैट्रोल और मिट्टी का तेल छिड़क कर रात के तकरीबन ढाई बजे आग लगा दी गई. इस के बाद वहां किसी तरह पहुंचे मीडिया वालों को पुलिस ने यह नहीं बताया कि क्या जल रहा है?

अंतिम संस्कार को ले कर पीड़िता के चाचा और बाबा ने बताया कि जब पुलिस जबरन दाह संस्कार कर रही थी, तब उन्हें वहां जाने नहीं दिया गया. जो भी किया पुलिस ने किया था. जब कुछ देर के लिए पुलिस वहां नहीं थी, तो वे 2-4 उपले डालने के लिए गए थे. तभी पुलिस वालों ने उनकी फोटो खींच ली. अब इसी को पुलिस बता रही है कि परिवार वाले अंतिम संस्कार में शामिल हुए थे.

कोर्ट ने लिया संज्ञान

लड़की की लाश जलने के साथ ही साथ उस की अस्थियां और चिता की राख तक को समय पर नहीं विसर्जित किया जा सका. बुलगढी गांव के बाहर सड़क किनारे चिता की राख का ढेर, अधजले उपले, बिखरी अस्थियां तीसरे दिन तक पड़ी रहीं. हिंदू रीतिरिवाजों के मुताबिक तीसरे दिन तक इन का विसर्जन हो जाना चाहिये. गुरुवार को अस्थियां विसर्जित नहीं की जाती हैं, पर शुक्रवार शाम तक अस्थियां विसर्जित नहीं की गई थीं. ऐसे में साफ है कि न केवल लड़की के जिंदा रहते उस की बेइज्जती की गई, बल्कि मरने के बाद भी कदमकदम पर उस का अपमान किया गया.

पुलिस ने दावा किया किया कि लड़की का अंतिम संस्कार रात 2 बजे के आसपास परिवार वालों की रजामंदी से पुलिस बल की मौजूदगी में किया गया. पुलिस की इस बात पर किसी को भरोसा नहीं हो पा रहा था. चारों तरफ पुलिस और योगी सरकार की आलोचना शुरू हो गई. यही नहीं इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने रात में लड़की की लाश को जलाने के मामले में मौलिक अधिकारों का मुददा मान कर खुद संज्ञान में लिया. जस्टिस राजन राय और जस्टिस जसप्रीत सिंह ने कहा कि रात के ढाई बजे अंतिम संस्कार बेहद क्रूर और असभ्य तरीके से किया गया. यह कानून और संविधान से चलने वाले देश में कतई स्वीकार्य नही है.

कोर्ट ने सरकार और अफसरों को सुनने के साथ ही साथ लडकी के परिवार को भी सुनने का फैसला किया. पहली बार कोर्ट ने खुद रजिस्टार को आदेश दिया कि वह इस संबंध में पीआईएल दाखिल करे.

तानाशाह बनी सरकार

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बरताव कोे जो लोग जानते हैं वे कहते है कि योगी गुस्से में किसी बात की परवाह नहीं करते हैं. नागरिकता कानून विरोध के समय विरोध करने वालों को ‘ठीक से समझाने‘ का संदेश उन्होंने दिया था. अपराधियों से निबटने के लिए उन्हें ‘ठोंक दो’ के अलावा कानपुर कांड में विकास दुबे के घर को गिराना हो, डाक्टर कफील और आजम खां को जेल भेजना हो उन का गुस्सा हर जगह देखने को मिला.

उत्तर प्रदेश के अपराधियों में मुख्तार अंसारी और अतीक अहमद के घर को गिराने का मामला ऐसा ही था. हाथरस कांड में भी मुख्यमंत्री पर अपराधियों को बचाने का आरोप लगा. आम आदमी पार्टी के नेता संजय सिंह ने कहा कि आरोपी ठाकुर बिरादरी के हैं, ऐसे में मुख्यमंत्री योगी उन को बचाने के लिए हर गलत काम करने को तैयार हैं.

विरोधी दल ही नहीं भाजपा की नेता उमा भारती ने भी इस बात का विरोध दर्ज कराते हुए कहा कि इस से पार्टी की छवि खराब हुई है. मुख्यमंत्री को चाहिए कि वे लड़की के परिवार से मीडिया और विपक्ष के लोगों को मिलने दे.

कांग्रेस नेता राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने हाथरस जाने का प्रयास किया पर उन को रोक दिया गया. बाद में मिलने की मंजूरी दी गई. बसपा नेता मायावती ने बयान दे कर विरोध दर्ज कराते हुए मुख्यमंत्री योगी से अपने पद से इस्तीफा देने को कहा. कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने पूरे प्रदेश में धरनाप्रदर्शन किया.

उत्तर प्रदेश सरकार ने मामले की जांच के लिए एसआईटी यानी स्पैशल टास्क फोर्स का गठन किया और उस की रिपोर्ट पर पुलिस महकमे के कुछ अफसरों को निलंबित कर दिया. सभी पक्षों के नार्को टेस्ट कराने का भी आदेश दिया. बाद में जांच सीबीआई को सौंपने की बात कही.

इस के बावजूद हाथरस की आग को विपक्ष बुझने नहीं देगा. बिहार चुनाव में इस को मुददा बनाने की तैयारी हो रही है. ऐसे में बिहार में भाजपा की सहयोगी जनता दल (यूनाइटेड) ने भी योगी सरकार की आलोचना की है. जद(यू) नेता केसी त्यागी ने कहा, ‘क्या देश में दलित वंचितों के साथ दुष्कर्म के मामले में न्याय के लिए प्रधानमंत्री को हस्तक्षेप करना पड़ेगा हाथरस में जो हुआ वह उत्तर प्रदेश सरकार के लिए शर्मनाक है. यह उत्तर प्रदेश सरकार के लिए डूब मरने जैसी बात होगी.’

बस लिखापढ़ी करती रही पुलिस

हाथरस जिले से आगरामथुरा नैशनल हाईवे 93 पर 14 किलोमीटर दूर चंदपा कसबा है. यह बेहद छोटा सा कसबा है. यहां के लोग खरीदारी करने हाथरस ही जाते है. चंदपा कसबे से 2 किलोमीटर दूर बूलगढ़ी गांव है. यह भी बेहद गरीब गांव है. यहां पहुंचने के कच्चे रास्ते हैं. इस गांव में विभिन्न जातियों के 300 परिवार रहते हैं. इस गांव में एससी तबके और ठाकुर जाति के परिवार भी रहते हैं.

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14 सितंबर की सुबह 9 बजे के करीब गांव में रहने वाले ओम प्रकाश की बेटी 20 साला मनीषा अपनी मां रमा देवी और भाई सत्येंद्र के साथ घास काटने खेतों में गई थी. घास का एक बोझ ले कर लड़की का भाई उसे रखने घर चला आया था और मां और बेटी वहीं खेतों में घास काटने लगीं.

कुछ देर में मां ने बेटी के चिल्लाने की आवाज सुनी तो बेटे को आवाज देती लड़की की तरफ गई. तब मां ने देखा कि बेटी खेत में अंदर की तरफ बेहोश पड़ी थी. उस के गले और शरीर पर चोट के निशान थे.

मां ने आवाज लगाई तो गांवघर के लोग वहां आ गए. पुलिस को सूचना दी गई. घायल बेटी को घर पर रखने के कुछ देर बाद चंदपा थाने ले आए.

मनीषा के भाई सत्येंद्र ने लिखित तहरीर में पुलिस को बताया कि मनीषा और मां घास काट करे थे तभी गांव का ही रहने वाला संदीप वहां आया और मनीषा को खींच कर खेत में ले गया. उस का गला दबा कर हत्या करने की कोशिश की गई. मनीषा ने शोर मचाया तो मां और भाई को आता देख आरोपी संदीप भाग गया.

पुलिस ने इसी तहरीर पर आरोपी संदीप पुत्र गुड्डू के खिलाफ धारा 307 और एसएसीएसटी ऐक्ट में मुकदमा कायम कर लिया. कोतवाली चंदपा के प्रभारी दारोगा डीके वर्मा ने तहरीर के आधार पर मुकदमा दर्ज कर के आरोपी की तलाश शुरू कर दी.

पुलिस की सूचना पा कर सीओ सिटी राम शब्द मौका ए वारदात पर पहुंचे और मनीषा की खराब हालत देख कर उसे इलाज के लिए हाथरस के जिला अस्पताल भेज दिया. इन दोनों पक्षों के बीच पहले भी रंजिश हो चुकी थी. मुकदमा कायम था और मामला कोर्ट में दाखिल था. ऐसे में पुलिस ने मामले की विवचेना शुरू कर दी.

19 सितंबर को पुलिस ने आरोपी संदीप को पकड़ा और सीओ सिटी ने जांच के बाद मुकदमे में छेड़खानी की धारा 354 को बढ़ा भी दिया. 20 सितंबर  को सीओ सादाबाद के रूप में ब्रह्म सिंह ने चार्ज लिया. सीओ सिटी की जगह अब वे मुकदमे की विवेचना देखने लगे.

22 सितंबर को ब्रह्म सिंह ने लड़की से बातचीत के आधार पर मुकदमे में धारा 376 डी को बढ़ाया. लडकी ने 22 तारीख को दिए अपने बयान में आरोपी संदीप के साथ कुछ और लोगों का नाम लिया था और गैंगरेप की बात कही थी.

गैंगरेप के आरोप में पुलिस ने इसी गांव के 3 और आरोपियों लवकुश पुत्र रामवीर, रवि पुत्र अतर सिंह, रामकुमार पुत्र राकेश का नाम भी मुकदमे में शामिल कर लिया. पुलिस ने 23 सितंबर को लवकुश को पकड लिया. 25 सितंबर को रवि और 26 सितंबर को रामकुमार को पकड़ लिया. मुख्य आरोपी संदीप को पहले की पकड़ लिया गया था.

मामले में ढिलाई बरतने के आरोप में कोतवाली निरीक्षक चंदपा को लाइन हाजिर कर दिया गया था. 28 सितंबर को लड़की को बेहद नाजुक हालत में अलीगढ़ मैडिकल कालेज से दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल भेज दिया गया. 29 सितंबर को दिल्ली में लड़की की मौत हो गई. मौत के बाद लड़की की लाश के साथ जो हुआ वह किसी तरह के गैंगरेप से कम नहीं था.

पिसते दलित परिवार

ठाकुर बिरादरी में 2 गुट हैं. इन की आपसी लड़ाई में दलित परिवार पिसते रहते हैं. 1996 में जब मायावती उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री थी. बाल्मीकि समाज के लोगों से ठाकुर परिवार का झगड़ा हुआ था. झगड़े की वजह गांव के बाहर कूड़ा डालने की जगह थी. एससी परिवार का कहना था कि उन की जगह पर कूड़ा डाला जा रहा है. इस को ले कर दोनों ही परिवारों में झगड़ा हुआ था, जिस में एससी परिवार के लोगों ने दलित ऐक्ट, मारपीट और सिर फोड़ने की रिपोर्ट दर्ज कराई थी, जिस में ठाकुर परिवार को जेल जाना पड़ा था. इनब्के बीच साल 2006 में आपसी मारपीट का मुकदमा लिखा गया था. कुछ समय के बाद इन के बीच आपसी समझौता भी हुआ, पर आपस में दुश्मनी बनी रही.

जब भी ये लोग आपस में सुलह की बात करते थे ठाकुर बिरादरी का ही दूसरा पक्ष किसी न किसी बहाने मामले को उलझा देता था. कुछ समय से लड़की और आरोपी संदीप के परिवार के बीच की 19 साल की दुश्मनी कम होने लगी थी. परिवार के लोग आपस में भले ही नहीं बोलते थे, पर संदीप और लड़की में बातचीत होने लगी थी. यह बात उन दोनों के परिवार वालों को पसंद नहीं थी. घटना के कुछ दिन पहले लड़की के परिवार वालों ने इस बात की शिकायत भी की थी, जिस से संदीप के पिता ने अपने लड़के की पिटाई भी की थी. ऐसे में आपसी विवाद में एक एससी परिवार तबाह हो गया.

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बलात्कार का सच

उत्तर प्रदेश पुलिस इस बात का दावा कर रही है कि लड़की के साथ बलात्कार की पुष्टि नहीं हुई. कानून के जानकार कहते हैं कि पुलिस के दावे से कोई बचाव नहीं होगा. लड़की का बयान ही अंतिम माना जाएगा. 14 सितंबर को लड़की के साथ बलात्कार हुआ, मैडिकल नहीं हुआ. लड़की के अंदर के अंगों से छेड़छाड़ हुई.

कानून कहता है कि रेप साबित करने के लिए केवल 4 दिन का ही समय होता है. स्पर्म केवल 4 दिन तक ही अंग पर दिखते हैं. नाजुक अंगों पर नाखून के निशान, आधा नंगा या पूरा नंगा पाया जाना भी रेप माना जाता है. रेप की पुष्टि के लिए स्पर्म मिलना अनिवार्य नहीं होता है.

किसी महिला के नाजुक अंग पर पूरी तरह से या बिलकुल न के बराबर मर्द के अंग का स्पर्श भी बलात्कार माना जाता है. 14 दिन के बाद रेप के सुबूत नहीं मिलते, लेकिन अंगों पर चोट के निशान मिल जाते हैं. अस्पताल में एडमिट होने के समय अंगों से बहने वाला खून भी सुबूत होता है. उस समय यह जानने की कोशिश क्यों नहीं की गई कि यह क्यों हो रहा है. ऐसे में रेप की पुष्टि कानून की नजर में कोई बड़ा मसला नहीं है. ऐसे हालात ही सुबूत के तौर पर पेश हो सकते हैं.

दिल्ली-लखनऊ में हिंसा आर या पार, नागरिकता बिल पर बवाल

19 दिसंबर की दिल्ली की ये हिंसा इस कदर हावी हो गई की लोगों के मन में डर बैठ गया है. लोग सहम रहे हैं. इस हिंसा को देख तो यही लगता है कि अब तो दिल्ली की ये हिंसा आर या पार. इस बढ़ती हिंसा के चलते राजधानी दिल्ली के कई मेट्रो स्टेशनों को बंद कर दिया गया, जिसमें भगवान दास, राजीव चौक, जनपथ, वसंत विहार, कल्याण मार्ग, मंडी हाउस, खान मार्केट, जामा मस्जिद, लालकिला, जामिया विश्वनिद्याल, मुनेरका, केंदीय सचिवालय, चांदनी चौक, शाहीन बाग ये सभी मेट्रो स्टेशन शामिल हैं.

लालकिला, मंडीहाउस समेत कई ऐसे क्षेत्र हैं दिल्ली के जहां पर गुरुवार को उग्र प्रदर्शनकारियों ने जमकर प्रदर्शन किया और जगह-जगह पर आगजनी, तोड़-फोड़, पथराव किया. पुलिस को लाठीचार्ज करनी पड़ी, आंसू गैस के गोले छोड़ने पड़े. ऐसा नहीं है कि इस प्रदर्शन में केवल विद्यार्थी ही शामिल हैं बल्कि इस प्रदर्शन में कुछ नेता भी शामिल हैं. एक खबर के मुताबिक इतिहासकार रामचंद्र गुहा और बेंगलुरु में लेखक को तो हिरासत में लिया गया साथ ही योगेंद्र यादब, उमर खालिद, संदीप दीक्षित, प्रशांत भूषण जैसे नेताओं को भी हिरासत में लिया गया है.

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ये सभी नेता नागरिकता बिल को लेकर प्रदर्शन में शामिल है. मेंट्रो के बंद हो जाने के कारण आम जनता को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि लोगों को आवाजाही में दिक्कत हो रही है. तो वहीं राजधानी दिल्ली में कई इलाकों में इंटरनेट सेवा को बंद कर दिया गया है. कालिंग सुविधा बंद कर दी गई है. एसएमएस तक पर रोक लगा दी गई है. ताकि हिंसा को बढ़ावा देने वाले कुछ अवांछनीय तत्व जो अफवाह फैला रहे हैं वो ना कर पाए. लेकिन ऐसे में उन क्षेत्रों में रहने वाले आम नागरिक परेशानी उठा रहे हैं.

इधर जामिया हिंसा को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार और दिल्ली पुलिस को नोटिस जारी करते हुए कहा कि इस पर सुनवाई अब चार फरवरी को होगी. एक तरफ दिल्ली में हिंसा उग्र होती जा रही है तो वहीं गुरुवार को लखनऊ में भी हिंसा अपने चरम पर पहुंचता हुआ नजर आया. वहां पर प्रदर्शनकारी उग्र हो उठे. कई जगहों पर आगजनी, तोड़फोड़ की और इतना ही नहीं बल्कि एक ओबी वैन को भी आग के हवाले कर दिया. कई गाड़ियां धू-धू कर जल रहीं थीं. रोडवेज बसों को भी आग के हवाले कर दिया.

हालांकि जहां पर भी सार्वजनिक संपत्ति को प्रदर्शनकारियों ने नुकसान पहुंचाया है वहां पर सरकार कड़ा रुख अपनाते हुए सख्त कार्रवाई करेगी. लखनऊ के डालीगंज इलाके में हिंसा इतनी तेज हो गई कि पुलिस को लाठीचार्ज करना पड़ा और आंसू गैस के गोले भी छोड़ने पड़ें. लखनऊ के इस बढ़ती हिंसा में दो पुलिस बूथ भी बुरी तरह से स्वाहा हो गए. वहां पर इस हिंसा को देखते हुए इंटरनेट सेवा बंद कर दी गई है. हिंसा का ये रूप देखकर कोई भी सहम जाए. पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच में झड़प हो रही है. प्रदर्शनकारी पुलिस पर उल्टा पथराव करने पर उतारू हैं.

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खबरों के मुताबिक सीएम योगी इन सब को देख कर काफी नाराज हैं और उन्होंने कहा है कि जो भी उपद्रवी सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचा रहे हैं उन सबको भरपाई करनी पड़ेगी. उन पर सख्त कार्रवाई की जाएगी. उन्होंने इस इस पर चर्चा के लिए बैठक भी बुलाई है. शायद ये कड़ा रुख अपनाना जरूरी भी था. उपद्रवीयों ने लखनऊ में 20 बाइक, 10 कार व 3 बसों को जला डाला. इतना ही नहीं कवर करने के लिए गई चार मीडियो ओबी वैन को भी आग के हवाले कर दिया. ना जाने ये प्रदर्शन कब तक चलेगा और देश को कब तक इसमें जलना पड़ेगा, क्योंकि ये हिंसा बहुत ही खतरनाक रूप लेती जा रही है और सरकार को जल्द ही इस पर कोई कड़ा रूख अपनाना होगा.

भाजपा की नई चाल: मूर्ति में सिमटी मंदिर की राजनीति

अयोध्या में शिव सेना का ‘संत सम्मान’ और भारतीय जनता पार्टी की ‘धर्म संसद’ खत्म हो चुकी है. इस बीच अयोध्या का जनजीवन पूरी तरह से ठप हो गया था. सब से ज्यादा बुरा असर स्कूली बच्चों पर पड़ा. निजी स्कूलों और कई सरकारी स्कूलों में पढ़ाई बंद रही.

शिव सेना के ‘संत सम्मान’ में उद्धव ठाकरे पूरे परिवार के साथ हावी रहे. अयोध्या में पहली बार शिव सेना प्रमुख आए थे. इस के बाद भी जनता का समर्थन उन को नहीं मिला.

शिव सेना ने हमेशा से ही मुंबई में उत्तर भारतीयों का विरोध किया है. ऐसे में उत्तर प्रदेश के लोगों ने शिव सेना को अपना समर्थन नहीं दिया.

‘धर्म संसद’ का आयोजन वैसे तो विश्व हिंदू परिषद का था, पर इस में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा की पूरी ताकत लगी थी. संतों से ज्यादा भाजपा नेताओं और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के ऊपर सब की नजर थी.

‘धर्म संसद’ में राम मंदिर को ले कर कोई ठोस बात नहीं हुई. उत्तर प्रदेश की सरकार ने अयोध्या में राम की मूर्ति लगाने का ऐलान किया. ऐसे में राम मंदिर की बात को राम की मूर्ति में बदल दिया गया.

उत्तर प्रदेश सरकार ने 800 करोड़ रुपए की लागत से 221 मीटर ऊंची मूर्ति बनाने की बात कही. इस काम को करने में साढ़े 3 साल का समय बताया गया है.

साल 2014 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने राम मंदिर को हाशिए पर रखा था, पर देश के पहले गृह मंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल की मूर्ति लगाने की बात कही थी.

4 साल में गुजरात में सरदार सरोवर बांध के पास वल्लभभाई पटेल की 182 मीटर ऊंची मूर्ति लगाई गई. राम की मूर्ति इस से भी बड़ी होगी.

बेअसर रही अयोध्या

अयोध्या की जनता इसे बेमकसद की कवायद बताती है. यहां के लोग मानते हैं कि भीड़ जुटाने से कोर्ट के फैसले पर कोई असर नहीं पड़ता है. इस से केवल अयोध्या में रहने वालों को परेशानी होती है.

इसी तरह साल 1992 के पहले कई साल तक कारसेवा के बहाने भीड़ जुटाई जाती थी. अब फिर से मंदिर के नाम पर भीड़ जुटाई जा रही है. इस से अयोध्या के रामकोट महल्ले में रहने वाले लोगों को अपने घरों में आनेजाने में परेशानी का सामना करना पड़ता है.

अयोध्या में रहने वाले व्यापारी भी इस तरह की बंदी से काफी परेशान होते हैं. इन दिनों यहां कारोबार ठप पड़ जाता है. कारोबारी नेता मानते हैं कि अयोध्या के नाम पर पूरे देश में राजनीति होती है, पर इस का बुरा असर केवल अयोध्या के कारोबार पर पड़ता है.

अयोध्या के विनीत मौर्य मानते हैं

कि अयोध्या अब धार्मिक नहीं बल्कि राजनीतिक मुद्दा बन कर रह गया है. मंदिर पर राजनीति अब बंद होनी चाहिए.

साफ दिख रहा है कि भाजपा का मकसद मंदिर मुद्दे को साल 2019 के आम चुनावों तक गरम बनाए रखने का है. अयोध्या के बाद ऐसे आयोजन दिल्ली और प्रयाग में भी होंगे.

जनवरी, 2019 में प्रयागराज में कुंभ का आयोजन हो रहा है. यह मार्च, 2019 तक चलेगा. इसी दौरान अदालत में मंदिर मुद्दे की सुनवाई भी चलेगी. इस से समयसमय पर अयोध्या मुद्दा आम लोगों की जिंदगी पर असर करता रहेगा.

हिंदुत्व की राजनीति करने वाले लोग इस का फायदा लेना चाहेंगे, जबकि मंदिर के मुद्दे को देखें तो भाजपा और उस के साथी संगठनों ने मंदिर को ले कर केवल होहल्ला ही मचाया है, कोई ठोस कदम नहीं उठाए हैं.

इस बार मंदिर मुद्दे पर विरोधी दलों की राजनीति बदली हुई है. वे खामोश रह कर भाजपा की शतरंजी चालों को देख रहे हैं.

साल 1998 के बाद भाजपा के नेता अटल बिहारी वाजपेयी 2 बार देश के प्रधानमंत्री बने थे. उन के समय में भी मंदिर बनाने की दिशा में कोई ठोस काम नहीं हुआ था. उस समय भाजपा ने कहा था कि अटल सरकार बहुमत की सरकार नहीं है, इसलिए मंदिर बनवाने की दिशा में कोई कानून नहीं बनाया जा सकता.

लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद नरेंद्र मोदी की अगुआई में तो केंद्र में भाजपा की बहुमत वाली सरकार बन गई है. इस के बाद भी 4 साल से ज्यादा का समय बीत चुका है और अब जब 2019 के लोकसभा चुनाव आने वाले हैं तो उसे राम मंदिर की याद आई है. उस ने राम मंदिर बनाने की जगह पर फैजाबाद जिले का नाम बदल कर अयोध्या कर दिया. अब वह राम मंदिर से दूर सरयू नदी के किनारे राम की मूर्ति लगानेकी बात कर रही है. ऐसे में साफ दिखता है कि भाजपा के लिए राम मंदिर एक चुनावी मुद्दे से ज्यादा कुछ नहीं है.

मंदिर और अदालत

राजनीतिक फायदे की नजर से अयोध्या राजनीति के केंद्र में है. भाजपा मंदिर मुद्दे पर जनता को ऐसा बताती है कि जैसे सुप्रीम कोर्ट में यह मुकदमा मंदिर बनाने के लिए है. कोर्ट में मंदिर को ले कर केवल हिंदूमुसलिम ही आमनेसामने हैं.

यह सच नहीं है, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट का मुकदमा इस बात के लिए है कि विवादित जगह किस की है.

दरअसल, इस मुकदमे के 3 पक्षकार हैं. इन में से 2 पक्षकार रामलला विराजमान और निर्मोही अखाड़ा हिंदुओं की पार्टी है. मुकदमे की तीसरी पक्षकार सुन्नी वक्फ बोर्ड ही मुसलिम पक्षकार है.

सुप्रीम कोर्ट का जो भी फैसला होगा, वह इन तीनों पक्षकारों में से ही किसी के हक में होगा. अगर मंदिर के पक्ष में भी फैसला हो गया तो 2 हिंदू पक्षकारों को राजी करना होगा.

समझने वाली बात यह है कि भारतीय जनता पार्टी या विश्व हिंदू परिषद ने साल 2010 में हाईकोर्ट का फैसला आने के बाद भी रामलला विराजमान और निर्मोही अखाड़े से बात करने की कोशिश नहीं की है.

अगर हालिया केंद्र सरकार दोनों हिंदू पक्षकारों से ही बात कर उन्हें एकजुट कर लेती तो भी लगता कि मंदिर बनाने की दिशा में उस ने सही कदम उठाया है.

भाजपा जिस संत समाज की बात कर रही है उस में भी बड़ी तादाद ऐसे संतों की है जो विश्व हिंदू परिषद के विरोधी हैं. ऐसे में यह सवाल उठ रहा है कि मंदिर बनाने में भाजपा का क्या रोल होगा?

60 साल की कानूनी लड़ाई के बाद अयोध्या में राम मंदिर का फैसला इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बैंच ने 30 सितंबर, 2010 को सुनाया था. यह फैसला 3 जजों की स्पैशल बैंच द्वारा 8189 पन्नों में सुनाया गया था. फैसला देने वालों में जस्टिस सुधीर अग्रवाल, जस्टिस एसयू खान और जस्टिस धर्मवीर शर्मा शामिल थे.

सब से बड़ा फैसला जस्टिस सुधीर अग्रवाल ने सुनाया था. 5238 पन्नों के फैसले में उन्होंने कहा था, ‘विवादित ढांचे का मध्य गुंबद हिंदुओं की आस्था और विश्वास के अनुसार राम का जन्मस्थान है. यह पता नहीं चल सका कि मसजिद कब और किस ने बनाई लेकिन यह मसजिद इसलाम के मूल सिद्धांतों के खिलाफ बनी है, लिहाजा मसजिद का दर्जा नहीं दिया जा सकता.’

2666 पन्नों के फैसले में जस्टिस धर्मवीर शर्मा ने कहा था, ‘पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग के नतीजों से साफ है कि विवादित ढांचा पुराने निर्माण को गिरा कर बनाया गया था. एएसआई ने साबित किया है कि यहां पर पहले हिंदुओं का बड़ा धार्मिक ढांचा रहा है यानी यहां हिंदुओं का कोई बड़ा निर्माण था.’

285 पन्नों के फैसले में जस्टिस एसयू खान ने कहा, ‘जमीन पर हिंदू, मुसलमान और निर्मोही अखाड़े का बराबर हक है. इसे तीनों में बराबर बांटा जाना चाहिए. अगर किसी पार्टी का हिस्सा कम पड़ता है तो उस की भरपाई केंद्र सरकार द्वारा अधिगृहीत जमीन से दे कर करनी चाहिए.’

अदालत के फैसले के बाद रामलला विराजमान पक्ष को अधिकार मिला कि रामलला जहां पर हैं वहीं विराजमान रहेंगे. जहां रामलला की पूजाअर्चना हो रही है वह स्थल राम जन्मभूमि है.  रामलला को एकतिहाई जमीन भी दी गई.

निर्मोही अखाड़े को रामचबूतरा और सीता रसोई दी गई. साथ ही, एकतिहाई जमीन भी दी गई.

इसी तरह मुकदमे के तीसरे पक्ष सुन्नी वक्फ बोर्ड को भी एकतिहाई जमीन दी गई है. कोर्ट ने सुन्नी वक्फ बोर्ड की अपील को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि 1949 में जब मूर्तियां वहां पर रखी गईं, तब मुकदमा दाखिल क्यों नहीं किया गया?

अयोध्या का यह फैसला जितना रामलला विराजमान, निर्मोही अखाड़े और सुन्नी वक्फ बोर्ड के लिए अहम है उस से ज्यादा अहम राजनीतिक दलों के लिए भी है. ऐसे में चुनाव के समय यह राजनीतिक मुद्दा बन जाता है.

अयोध्या मामला: एक नजर में

1528: मुगल बादशाह बाबर ने मसजिद बनवाई. हिंदुओं का दावा है कि इस जगह पर पहले राम मंदिर था.

1859: ब्रिटिश अफसरों ने एक अलग बोर्ड बना कर पूजा स्थलों को अलगअलग कर दिया. अंदर का हिस्सा मुसलिमों को और बाहर का हिस्सा हिंदुओं को दिया.

1885: महंत रघुवर दास ने याचिका दायर कर राम चबूतरे पर छतरी बनवाने की मांग की.

1949: मसजिद के भीतर राम की प्रतिमा प्रकट हुई. मुसलिमों का कहना है कि प्रतिमा हिंदुओं ने रखी.  सरकार ने उस जगह को विवादित बता कर ताला लगा दिया.

1950: मालिकाना हक के लिए गोपाल सिंह विशारद ने पहला मुकदमा दायर किया. अदालत ने प्रतिमा को हटाने पर रोक लगा कर पूजा की इजाजत दी.

1959: निर्मोही अखाड़े ने भी मुकदमा दाखिल किया. उस ने सरकारी रिसीवर हटाने और खुद का मालिकाना हक देने की बात कही.

1961: उत्तर प्रदेश सुन्नी सैंट्रल बोर्ड औफ वक्फ भी विवाद में शामिल हुआ.

1986: फैजाबाद जिला अदालत ने मसजिद के फाटक खोलने और राम दर्शन की इजाजत दी. मुसलिमों ने बाबरी मसजिद ऐक्शन कमेटी बनाई.

1989: विश्व हिंदू परिषद ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में मुकदमा दायर कर मालिकाना हक राम के नाम पर ऐलान करने की गुजारिश की. फैजाबाद जिला कोर्ट में चल रहे सारे मामले इलाहाबाद हाईकोर्ट भेजे गए.

इसी साल विश्व हिंदू परिषद ने विवादित जगह के पास ही राम मंदिर का शिलान्यास किया.

1990: विश्व हिंदू परिषद की अगुआई में कारसेवकों ने विवादित जगह पर बने राम मंदिर में तोड़फोड़ की. मुलायम सरकार ने गोलीबारी की.

1992: विवादित जगह पर कारसेवकों ने तीनों गुंबद ढहा दिए.

2002: अदालत ने एएसआई को खुदाई कर यह पता लगाने के लिए कहा कि विवादित जगह के नीचे मंदिर था या नहीं. इसी साल हाईकोर्ट के 3 जजों ने मामले की सुनवाई शुरू की.

2010: इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बैंच ने विवादित जगह को 3 हिस्सों में बांटने का आदेश दिया.

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