डेली व्लौग देखने का नशा, है बड़ा खतरनाक

सौरभ जोशी भारत के टौप डेली व्लौगरों में से एक है लेकिन उस के बनाए कंटैंट में ढूंढ़ने से भी कुछ काम का मिलना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन है. हजारों की संख्या में यूथ उसे देखते हैं, ये यूथ न सिर्फ अपना समय बरबाद कर रहे हैं बल्कि अपने कैरियर के साथ खिलवाड़ भी कर रहे हैं.

हल्द्वानी कहां है, यह किसी को पता हो या न हो पर यूथ को जरूर यह पता है कि सौरभ जोशी हल्द्वानी में रहता है. सौरभ जोशी खुद को इन्फ्लुएंसर कहता है पर उस की वीडियो में ऐसा कुछ नहीं होता जो किसी को इन्फ्लुएंस कर पाए. न तो सीखने के लिए कुछ है, न ही जानकारी लायक कुछ.

सौरभ जोशी कोई बौलीवुड स्टार, स्पोर्ट्स पर्सन या पौलिटीशियन नहीं है. वह है एक यूट्यूबर जो अपने घर की दीवारों, कंबल-रजाइयों, कपप्लेट, घर में क्या बन रहा है, क्या खा रहा है, कहां जा रहा है, उस की कार कौन सी है, कपड़े में सब्जी गिर गई, घर के सदस्य क्या कर रहे हैं जैसी फालतू बातें बताता है. बेसिकली वह अपनी दिनचर्या बताता है पर समझ से परे यह है कि इसे देखने वाले कैसे खलिहर हैं जो अपना कामधंधा छोड़ लगे रहते हैं इस की व्यूरशिप बढ़ाने में.

खुद को स्टार मानने वाला सौरभ कुछ सिखाता नहीं है बल्कि अपना डेली रूटीन दुनिया वालों को दिखाता है. वह क्या खाता है, क्या पीता है, कहां जाता है, बस यही सब कहता है उस का व्लौग.

सौरभ जोशी के व्लौग की बात करें तो उस ने 12 नवंबर, 2023 को एक व्लौग बनाया, जिस का टाइटल था ‘दीवाली गिफ्ट’.  नाम से ही पता चल रहा था कि ये पूरा व्लौग सिर्फ और सिर्फ इस विषय पर बना है कि दीवाली पर सब को क्याक्या गिफ्ट मिला. अब वह अपने रिश्तेदारों को क्या गिफ्ट दे रहा है, यह चिंता उसे करने दो, लेकिन नहीं, युवा अपने रिश्तेदारों की चिंता छोड़ लगे पड़े हैं वीडियो देखने.

व्लौग की शुरुआत में सौरभ मिठाई के डब्बे दिखाते हुए कहता है, ‘‘आज मुझे यह सब लोगों के घर देने जाना है. अभी सुबह के 9 बज रहे हैं और हम अपनी कार ले कर जा रहे हैं क्योंकि सुपरकार हर जगह नहीं जा पाएगी और रास्ते में गड्ढे भी हैं.’’ इस तरह के इन्फ्लुएंसर अपनी लग्जरी लाइफ का बखान करते नहीं थकते. वे युवाओं को अपनी महंगी कारों को दिखा कर रिझाने की कोशिश करते हैं.

इस के बाद व्लौग में उसे लोगों के घर जा कर उन्हें दीवाली की वेलविशेस और गिफ्ट देते हुए दिखाया जाता है. इस के बाद महल्ले के बच्चों को व्लौग में दिखाया जाता है. वह एक बौबी भइया नाम के एक शख्स को आईफोन गिफ्ट देता है. साथ में, स्टाफ मैंबर को दीवाली गिफ्ट देता है. उस की भी वीडियो क्लिप सौरभ अपने व्लौग में एड कर लेता है. इस के बाद घर वालों को गिफ्ट दिया जाता है. बस, यही कहता है सौरभ जोशी का व्लौग. अब इस वीडियो को कोई महाबेवकूफ ही हो जो देखे और लाइक करे. और यदि कोई फिर भी दिलचस्पी रख रहा है तो समझ जा सकता है कि कैसे अथाह बेरोजगारी में उस की मानसिक स्थिति हिली हुई है.

इसी तरह का उस का एक और व्लौग है, जिस का न सिर्फ टाइटल घटिया है बल्कि कंटैंट भी रद्दी है या कहें कंटैंट कहां है, पता नहीं. व्लौग के थंबनेल पर लिखा है, ‘यह क्या हो गया फौरचूनर को.’

इस व्लौग में वह फौरचूनर पर चढ़ी ब्लैक पीपीएफ को उतार कर उस के ओरिजिनल कलर में लाता है. पीपीएफ को पीयूष, जो कि सौरभ का छोटा भाई है और उस का चाचा का लड़का उतार रहा होता है और सौरभ व्लौग बना रहा होता है. फिर उस का चाचा भी आ जाता है. सौरभ अपने सब्सक्राइबर्स से पूछता है कि कौनकौन चाहता है कि चाचा सुपरकार चलाएं. कमैंट करो. फिर चाची और मम्मी व्लौग में आ जाती हैं. इस के बाद मम्मी से राय ली जाती है कि पीपीएफ को कितना उतारा जाए और कितना नहीं. इस के बाद कार के बारे में बताया जाता है.

अब यह कंटैंट ऐसा है कि सामान्य दिमाग वाला इंसान अपना सिर पीट ले. वीडियो के कंटैंट को समझाने के लिए या तो आप को आइंस्टीन होना पड़ेगा या बैलबुद्धि. आगे इस वीडियो में घर का सीन दिखाया जाता है, जिस में सब चाय ले कर बैठे हैं. लेकिन सौरभ के चाचा का बेटा दूध पी रहा है. सौरभ उस से पूछता है कि हम सभी शादी क्यों करते हैं? डैली व्लौगर ‘द ग्रेट सौरभ’ की बुद्धि का स्तर उस के इस सवाल से आंका जा सकता है. बच्चा जवाब देता है कि हमें किसी के साथ की जरूरत होती है, इसलिए हम शादी करते हैं. बच्चा आगे कहता है कि, ‘मैं ने यह सब यूट्यूब से सीखा है. मैं व्लौगर बनूंगा और सब का नाम रोशन करूंगा.’

इस के बाद सौरभ अपने पैट ओरियो को दिखाता है. फिर अपने डिनर की फोटो. इन सब के बाद वह कहता है, ‘मुझे बुखार है. अभी दवाई लूंगा. 2 दिनों बाद बाहर भी जाना है.’ यही था सौरभ का व्लौग. इस वीडियो पर 3 घंटे में 1,34,81,188 व्यूज थे.

आखिर, यह किस तरह का कंटैंट है जो सौरभ जोशी बना रहा है. अब इसे देख रहे युवाओं को इस पर विचार करना चाहिए कि यह कंटैंट है भी कि नहीं. क्या इस पर समय खर्च करना सही है.

सवाल यह भी कि क्या यूथ इतना फ्री बैठा है कि सौरभ या सौरभ जैसे दूसरे यूट्यूबरों के घर में उन की पर्सनल लाइफ में क्याक्या चल रहा है, लगे रहें घंटों देखने. यह भी कि सौरभ ब्रेकफास्ट, लंच और डिनर में क्या खा रहा है, टौयलेट कितने बजे जा रहा है, कौन सा टूथपेस्ट यूज कर रहा है, उस की गर्लफ्रैंड कौन है आदिआदि.

इस के आधे का आधा टाइम भी अगर युवा संसद में नेताओं की डिबेट में लगा लें तो देश के आधे मसले और झूठ बोल कर मलाई खा रहे नेताओं का सफाया यों ही हो जाए. उन्हें समझ आ जाएगा कि पकौड़े तलना रोजगार नहीं, बल्कि आजीविका है.

अगर यूथ इस तरह का फालतू कंटैंट देखेंगे वह भी पैसे दे कर तो अपना कैरियर क्या खाक बनाएंगे और जिन का थोड़ा बहुत कैरियर है वे भी अपने कैरियर की धज्जियां ही उड़ाएंगे.

सौमेंद्र जेना, जिन्हें यूट्यूब पर ‘सोमजैना’ के नाम से जाना जाता है, ने अपने हालिया वीडियो में से एक पर एक टिप्पणी के जवाब में अधिकांश भारतीय यूट्यूबर्स की सामग्री को ‘क्रिंज’ कहा है. उन्होंने कहा, ‘99 प्रतिशत भारतीय यूट्यूबर्स का कंटैंट घटिया है. लोगों की रुचि अच्छी नहीं है.’ सोम ने इस कमैंट का स्क्रीनशौट अपनी इंस्टाग्राम स्टोरी पर भी शेयर किया. आगे उन्होंने कहा कि यह भारतीय यूट्यूब दृश्यों का दुखद सच है.

यह सच भी है. जैसे सौरभ अपने एक व्लौग में अपने नए घर का डिजाइन दिखाता है. इस व्लौग थंबनेल में उस ने ‘फाइनली न्यू घर का डिजाइन आया’ के नाम से बनाया. इस व्लौग में सौरभ हल्द्वानी में बनने वाले अपने नए घर का 3डी डिजाइन दिखाता है. वीडियो में दिख रहा है कि घर चारमंजिला है. इस में गेमिंगरूम है, जिस में स्लाइड कर के नीचे हौल तक जाया जा सकता है.

घर में डिजिटल लौक है. पूरे घर में लकड़ियों की सीढ़ियां हैं. घर में एक लिफ्ट भी है. इतना ही नहीं, घर में फायर बेस भी है. मतलब पूरा लग्जरी घर.

ग्राउंडफ्लोर की बात करें तों ग्राउंडफ्लोर में बैठने, पार्किंग और बच्चों के खेलने की जगह है. पहले फ्लोर पर दादादादी का रूम है. उस के बाद सब के रूम. सौरभ के रूम से पूरे घर का व्यू दिखेगा. उन के रुम में एक स्टडी टेबल भी है. यहां से वह अपने पूरे घर का व्लौग भी बना सकता है.

अब यह देखनेदिखाने में मन को सुकून दे सकता है पर इस का एक साइड इफैक्ट यह है कि सौरभ ने अपने पूरे घर की जानकारी पब्लिकली कर दी. सवाल है कि इस से क्या समाज के आपराधिक और असामाजिक तत्त्व के कान खड़े नहीं होंगे? सारी जानकारी तो उन्हें सोशल मीडिया से मिल ही गई है, अब बस उन्हें ऐक्शन लेना है.

ऐसी ही एक घटना उस के साथ पहले हो भी चुकी है, जिस में सौरभ ने व्लौग बनाया कि वह आज सपरिवार पहाड़ पर जाएगा. बस, इसी का फायदा उठा कर चोरों ने उस के घर सेंधमारी की और करीब डेढ़ लाख रुपए के गहनों की चोरी कर ली. यह घटना 22 अक्तूबर, 2022 की है.

आप का अपना डेली रूटीन पब्लिकली करना आप के लिए किस तरह आफत बन सकता है, यह आप सौरभ जोशी के साथ हुई घटना से समझ सकते हैं. अगर उस के घर में उस वक्त कोई होता तो यह घटना मर्डर में भी तबदील हो सकती थी.

हम अगर सौरभ जोशी के व्लौग को खंगाले तो हमें उस के व्लौग में ऐसेऐसे थंबनेल मिलेंगे जिन से लगेगा कि यह कोई व्लौग न हो कर किसी व्यक्ति की दिनचर्या हो.

जैसे कुछ थंबनेल हैं, ‘तबीयत खराब है, बट, मैगी खानी है’, ‘स्कूल से लेने गया पीयूष’, ‘कुणाली को सुपरकार में’, ‘कुणाली का टौय कलैक्शन’, ‘पीयूष वर्सेस कुणाली कार रेस’, ‘न्यू घर की पार्किंग’, ‘अम्मा को सुपरकार में बैठाया’, ‘हमारी दीवाली की लाइटिंग’, ‘फौरचूनर ठुक गई नई दिल्ली में’, ‘बहुत टाइम बाद गेम खेली’, ‘सुपरकार को पहाड़ पर ले गए’ वगैरहवगैरह. इन वीडियोज में कुछ भी इंटरैस्टिंग नहीं है जिस के चलते व्लौग देखा जाए. लेकिन अंधा यूथ दबा के सौरभ जोशी के व्लौग देख रहा है.

यूट्यूब अब एक ऐसा अड्डा बन गया है जहां लोग अपनी डेली लाइफ को कैमरे पर दिखाने लगे हैं, चाहे वह घर का काम करती हुई महिला हो, ट्यूशन जाता हुआ बच्चा हो, शौपिंग करती हुई लड़कियां हो, गायभैंस की खानापानी करती महिला हो या फिर घर में खाना बनाता हुआ यंग बौय. सभी को व्लौगर बनने का चस्का लगा हुआ है.

कोई भी व्यक्ति कैमरा उठाता है और बोलना चालू कर देता है- ‘‘हैलो गाईज, मैं आज अपनी बूआ के घर जा रही हूं, आप भी देखिए कि मुझे आज रास्ते में क्याक्या देखने को मिलेगा?’’ लोग भी उन के सफर में शामिल हो जाते हैं और अपना कीमती समय बेकार की चीजों में जाया कर देते हैं.

डेली व्लौग बनाने वाले लोग अपनी प्राइवेसी के साथ खेल रहे हैं. वे अपने पलपल की खबर दे रहे हैं. कहां रहते हैं, कहां जा रहे हैं, कब आएंगे, घर में कितने दरवाजे हैं, घर में कौनकौन है, कौन कब आता है, जाता है, औफिस कहां है, कौन बीमार है, कौन नहीं आदिआदि. वे अपनी पर्सनल लाइफ, फिर चाहे उन की मां, बहन और पत्नी हो, को सब के सामने ला रहे हैं और जब ट्रोल होने लगते हैं, गालियां खाने लगते हैं तो रोने भी लग जाते हैं.

कई बार व्लौगर कंप्लेन करते हैं कि व्यूअर्स उन की पर्सनल लाइफ के बारे में बुराभला कह रहे हैं. उन की फैमिली को रोस्ट कर रहे हैं. पर्सनल लाइफ को पब्लिक भी इन्हीं क्रिएटर्स ने किया है तो प्रतिक्रियास्वरूप कुछ भी आ सकता है. सो, क्रिएटर्स को इस के लिए तैयार रहना चाहिए.

सौरभ जोशी के यूट्यूब पर 23.5 मिलियन सब्सक्राइबर्स हैं, यानी 2 करोड़ 35 लाख के आसपास. उस ने अपने चैनल पर डेढ़ हजार के करीब व्लौग बनाए हैं. उसे इंडिया का नंबर वन डेली व्लौगर कहा जाता है पर सिर्फ नंबर के आधार पर यह पदवी दे देना सवाल छोड़ता है.

बात करें अगर सौरभ की उम्र की तो सौरभ महज 23 साल का है और उस ने सिर्फ 12वीं तक ही पढ़ाई की है. सौरभ एक ड्राइंग आर्टिस्ट भी है.

क्या गुरुघंटाल है विवेक बिंद्रा

भटके हुए यूथ को बेवकूफ बनाना आसान होता है चाहे धर्म के नाम पर हो या कैरियर के नाम पर. आजकल इन्हीं दोनों का इस्तेमाल कर सोशल मीडिया पर मोटिवेशन के नाम पर अपनी दुकान चलाने वाले इन्फ्लुएंसरों की फौज खड़ी हो गई है जो बड़ीबड़ी बातें कर के करोड़ों छाप रहे हैं. ऐसा ही एक मोटिवेशनल स्पीकर विवेक बिंद्रा है जो अब विवादों में है.

पैसा कमाना गलत नहीं, लेकिन गलत हो कर पैसा कमाना गलत है. यह इस बात पर भी डिपैंड करता है कि आप का मीडियम क्या है और उन मीडियमों से आप कैसे सक्सैस हासिल करते हैं. आजकल यूथ ज्यादा और जल्दी पैसा कमाना चाहते हैं. सब को बड़ीबड़ी गाडि़यों में घूमना है, बड़ा घर चाहिए, नाम चाहिए, इज्जत चाहिए और ये सब मिल जाए तो एक अच्छी लड़की या लड़का किसे नहीं चाहिए भला. पर यह होगा कैसे, यह सवाल बारबार परेशान करता है. कभी यह सवाल नैया पार तो लगाता है पर बहुत बार इस से जू?ा रहा यूथ जल्दी किसी के लपेटे में भी आ जाता है.

यही कारण भी है कि इन को लपेटे में लेने के लिए सोशल मीडिया पर गुलाटियां खाने वाले मोटिवेशनल इन्फ्लुएंसर भरे पड़े हैं, जो खुलमखुल्ला लाखों रुपए महीने के कमाने के तरीके बताते हैं. आखिर ये शौर्टकट तरीके हैं क्या और इन की संभावनाएं कितनी हैं? क्या ये तरीके सही भी हैं?

इन्फ्लुएंसर विवेक बिंद्रा की कला

41 साल का विवेक बिंद्रा खुद को ‘डा. विवेक बिंद्रा : मोटिवेशनल स्पीकर’ के नाम से इंट्रोड्यूस करता है. इसी नाम से उस ने यूट्यूब चैनल बनाया हुआ है. इस चैनल में लगभग 2 करोड़ 13 लाख सब्सक्राइबर हैं. वहीं उस की हर वीडियो को लाखों लोग देखते हैं. सम?ा जा सकता है कि किस हद तक युवाओं के बीच इस ने पैठ बनाई है. इस के वीडियो के थंबनेल पर लिखा रहता है कि ‘फलाना अमीर कैसे बने’, ‘पैसों में खेलोगे’, ‘करोड़ों कैसे कमाएं’. यह युवा की इच्छा की नब्ज पर हाथ रखता है जिस के सपने वह युवा देखना शुरू कर देता है जिस की हलकी भूरी मूछदाढ़ी अभी आनी शुरू हुई है.

उस के बताए उदाहरण इतने लच्छेदार होते हैं कि कोई भी ट्रैप में फंस सकता है. जैसे, बिंद्रा ने एक वीडियो ‘चार्ली मुंगर’ पर बनाया है जो अमेरिकी बिसनैसमैन और इन्वैस्टर है. बिंद्रा बंदर की तरह उछलउछल कर बोलता है कि मुंगर 7 साल की उम्र में 10 घंटे ग्रौसरी की दुकान पर काम कर के पैसे कमाया करता था और वह 10 से 12 साल की उम्र तक आतेआते अपनी क्लास के बच्चों के होमवर्क, असाइनमैंट बना कर पैसे कमाया करता था.

बेसिरपैर के दावे

सवाल यह कि क्या किसी स्कूल का टीचर ऐसे तरीके बताएगा पैसे कमाने के? दूसरा, क्या कोई अपने 7 साल के बच्चे को इस उम्र में काम पर भेजेगा जब तक बड़ी मजबूरी न हो? दरअसल हकीकत यह है कि मुंगर ने अपनी टीनएज उम्र में जिस बफेट एंड सन ग्रौसरी शौप में काम किया उस का मालिक वारेन बफेट के दादा अर्नेस्ट पी बफेट थे. आगे चल कर मुंगर को वारेन बफेट की बर्कशायर हैथवे कंपनी का उपाध्यक्ष बनाया जाता है. मुंगर के दादा और पिता दोनों ही वकील थे. मुंगर का परिवार फाइनैंशियली व सोशियली रूप से पावरफुल था.

इस का प्रूफ यह कि जब चार्ली मुंगर ने अपने पिता के अल्मा मेटर,  हार्वर्ड लौ स्कूल में दाखिला लेने की कोशिश की तो डीन ने उसे ऐक्सैप्ट नहीं किया क्योंकि मुंगर ने ग्रेजुएशन की डिग्री पूरी नहीं की थी लेकिन हार्वर्ड लौ के पूर्व डीन और मुंगर परिवार के मित्र रोस्को पाउंड के आपसी संबंध अच्छे थे और उन के बीच हुई बातचीत के बाद कालेज के डीन नरम पड़ गए. बिंद्रा अपने वीडियो में बातों को तोड़मरोड़ कर बताता है. यही उस की कला है.

बिंद्रा ने अपने चैनल पर दावा किया है कि वह 10 दिनों में एमबीए कराएगा. एमबीए सुनते ही कान खड़े हो जाते हैं क्योंकि इस डिग्री की अहमियत जितनी है उस से ज्यादा इस की फीस है. फीस इतनी कि बाप को सड़क पर आना पड़ जाए. एमिटी और शारदा वाले तो खाल खींचे बगैर बात भी नहीं करते.

एमबीए एक प्रोफैशनल डिग्री है जिसे तभी कराया जा सकता है जब उस संस्था को यूजीसी से सर्टिफिकेशन प्राप्त हो. अगर आप किसी सरकारी यूनिवर्सिटी से भी एमबीए करने की सोचेंगे तो आप से पहले वह आप की क्वालिफिकेशन पूछेगी, आप का एग्जाम होगा और उस के बावजूद 1 प्रतिशत चांस है कि आप को पढ़ने को मिले वह भी तब जब इस की फीस दो से तीन लाख रुपए देने की आप में हिम्मत हो.

सवाल यह कि 2 साल का कोर्स 10 दिनों में औनलाइन कोई कैसे करा सकता है? कोई करा सकता है तो इस की औथेंटिसिटी क्या है? इस में क्या सिखाया जाता है और इस की कितनी वैल्यू है? सवाल यह भी कि क्या बिंद्रा कोई जादूगर है जो पलक झपकते एमबीए बना देता है?

असल में यह कोई एमबीए है ही नहीं. विवेक बिंद्रा, जो यूट्यूबर कम और एंटरप्रेन्योर ज्यादा कहलवाना पसंद करता है, का ‘बड़ा बिजनैस प्राइवेट लिमिटेड’ नाम से एक कंपनी है जो गोलमोल बातें कर बिजनैस स्ट्रैटेजी सिखाता है. वह मल्टी मार्केटिंग के नाम पर कोर्स बेचता है और पैसे कमाने का तरीका बताता है. यानी, आप का हजारों रुपए इस कोर्स में फंस चुका है और अगर अपना पैसा निकालना चाहते हैं तो और लोगों को इस जाल में फंसाइए. इसे ही पिरामिड स्कीम कहा जाता है.

इसे और आसान भाषा में सम?ाना है तो आप ने यूनिवर्सिटी, कालेज, स्कूल और नुक्कड़ों के आसपास सूटबूट पहने, टाई लगाए कुछ युवाओं को कोनोंखोंपचों में कुछ खुसरफुसर करते देखा होगा. ये लोग नैटवर्किंग मार्केट वाले कहलाते हैं. लंबीचौड़ी हांकते हैं, ?ाटपट अमीर बनने के नुस्खे बांटते हैं. आज बाइक-कार, कलपरसों मकान सब 10 मिनट की बात में दिलाने के सपने दिखा देते हैं. इन का लैवल डायमंड कैटेगरी तक बनने का होता है जो सब से ऊंचा पद होता है, जो ऊपर बैठ कर मलाई खाता है.

नाकामयाबी की गिरफ्त

विवेक बिंद्रा को देखनेसुनने वाले वे नौजवान हैं जो अपनेआप को जीवन में नाकामयाब सम?ाते हैं. उन्हें यह बताया जाता है कि बिजनैस से गरीब, अनपढ़ आदमी भी इन्वैस्टमैंट कर के महीने के लाखोंकरोड़ों रुपए कमा सकता है, एक कामयाब एंटरप्रेन्योर बन सकता है. बल्कि, सच यह है कि इन के पास कामयाब लोगों का कोई उदाहरण नहीं दिखता और जिसे सामने लाया जाता है वह खुद इन में से ही एक होता है. इन की भाषा बिलकुल दस का बीस, बीस का पचास, पचास का सौ जैसी होती है, बिलकुल वैसी जैसे दिल्ली के लालकिले के सामने लगने वाले चोर बाजार में मुंह में गुटका दबाए 20-21 साल का लड़का अपना सामान बेचने के लिए चिल्लाता है.

फैक्ट यह है कि देश में बेरोजगारी पिछले 50 वर्षों में आज सब से अधिक है. जिस हिसाब से जनसंख्या में बढ़ोतरी हुई है उस के हिसाब से नौकरियों को नहीं बढ़ाया गया है. बड़ीबड़ी कंपनियां सरकारी क्षेत्र और छोटे व्यापारियों के बाजार पर नियंत्रण के लिए अपने बाजार का विस्तार करने में लगे हुए हैं.

इस का मतलब यह हुआ कि एक आदमी की कामयाबी हजारोंलाखों लोगों की बरबादी से गुजरती है. उदहारण के लिए एक कुरसी है और हजारों लोगों से पूछा जाता है आप को कितनी चाहिए. हरेक व्यक्ति एक ही बोलता है क्योंकि चाहिए उसे एक ही और वह रेस में दौड़ पड़ता है. दौड़ के बाद एक व्यक्ति को कुरसी मिलती है और बाकी लोग बाहर हो जाते हैं. बिजनैस तभी चलेगा जब बाकियों का बिजनैस कम हो या वे बरबाद हो जाएं क्योंकि दर्शक और उपभोक्ताओं की संख्या सीमित है.

बाजार के इसी नियम से कई लोग बनते हैं और करोड़ों लोग बिखरते हैं. ऐसी समस्याओं के बीच विवेक बिंद्रा जैसे लोग ठगी का जाल बुन कर सैकड़ोंकरोड़ों का मुनाफा बनाते हैं. आजकल स्टार्टअप, एंटरप्रेन्योर का शोर मचा पड़ा है. सब को रातोंरात स्टार बनाने की बात की जा रही है. वैसे ही जैसे आप इंस्टाग्राम पर अपनी तसवीर के साथ शाहरुख खान का गाना लगा कर फील करते हैं और हकीकत उस से बहुत अलग होती है.

टाटा, अंबानी, बिड़ला आदि भारत के सब से बड़े बिजनैसमेन माने जाते हैं. ये बड़े कारखाने चलाते हैं, प्रोडक्शन करते हैं, कुछ मैटीरियल तैयार करते हैं जिन्हें लोग कंज्यूम करते हैं जिस पर लोग मुनाफा कमाते हैं. बिंद्रा की कंपनी कोई प्रोडक्शन नहीं करती. वह लोगों को बिजनैस आइडिया बेच कर अपना धंधा चलाती है.

विवेक बिंद्रा आज के समय में जन्मे बेरोजगारों को भटकाने का काम करता है. यह व्यक्ति मार्केट में जोखिम उठा कर लोगों को पैसे लगाने के लिए प्रोत्साहित करता है, इस में गलत नहीं पर उस के बाद उन की बदहाली से अपना मुंह फेर लेना किसी धोखे से कम नहीं. आप यूट्यूब पर ऐसे कई वीडियो देख सकते हैं जिन में लोगों का रुपया वापस नहीं मिलने की बात सामने आती है. ऐसी परिस्थिति में लोग और डिप्रैशन का शिकार होते हैं.

विवेक बिंद्रा एक न्यूज चैनल में इंटरव्यू देते कहता है, ‘‘बाजार को जो चाहिए वह हमारा स्कूली सिस्टम नहीं दे पाता.’’ सही है स्कूल में हर चीज नहीं सिखाई जाती, बेशक, यह लूटमार का अड्डा नहीं बन सकता, फ्रौड करने की दुकान तो बिलकुल नहीं बनना चाहिए. स्कूलों में 10 दिनों में एमबीए बनना और बनाने की ट्रेनिंग नहीं दी जाती.

धर्म के नाम पर सब बिकता है

बिंद्रा जैसे लोग अपने व्यापार में धर्म व आस्था का भरपूर इस्तेमाल करना जानते हैं जिस से लोग इन की गलत बातों का भी सही मतलब सम?ों. यह एक तरह का जस्टिफिकेशन बन जाता है जिसे लोग ऐक्सैप्ट कर लेते हैं. हकीकत में यह इन के जाल बिछाने का एक रास्ता है. धर्म के मामले में यूथ टची होने लगा है. उन्हें मूर्ख बनाना पहले से कहीं आसान हो गया है जिस का फायदा इन्फ्लुएंसर उठाने लगे हैं. (मुक्ता के दिसंबर 2023 इशू में एल्विश यादव का उदाहरण इसी संबंध में विस्तार से बताया गया).

दरअसल, पढ़नेलिखने की आदत कम होने से युवाओं की सोचनेसम?ाने की क्षमता कम होती जा रही है. वह किसी भी बेबुनियादी बात को सच मान लेते हैं खासकर तब जब उन्हें इसे धर्म के रैपर में लपेट कर दिया गया हो.

विवेक बिंद्रा वर्णव्यवस्था के संबंध में एक वायरल वीडियो में कहता है कि समाज में कुछ लोग आदेश को पालन करवाने और कुछ लोग आदेश का पालन करने में ज्यादा सक्षम होते हैं. एक तरफ आरक्षण को बिंद्रा गलत मानता है और दूसरी तरफ जाति आधारित शोषण पर अपनी चुप्पी बनाए रखता है. हकीकत में इस का जाति, गरीबी और किसी भी कारण से पिछड़े लोगों की समस्या से कोई लेनादेना नहीं है बल्कि हर साल यह अपने मुनाफे को कैसे कई गुना बढ़ा सके, यह इस की प्रायोरिटी रहती है.

घरेलू विवाद में फंसा

आज विवेक बिंद्रा अपनी निजी जिंदगी के कारण भी सुर्खियों में बना पड़ा है. 6 दिसंबर, 2023 को वह अपनी दूसरी पत्नी यानिका से विवाह करता है, जिस के अगले दिन बिंद्रा पर अपनी पत्नी से मारपीट और बदसलूकी का आरोप लगता है. एक वीडियो वायरल है जिस में यानिका बिंद्रा से उसे जाने देने की गुहार लगाती दिखाई दे रही है.

पहली पत्नी गीतिका के साथ भी बिंद्रा पर मारपीट करने का आरोप लगा था जिस के बाद उस ने बिंद्रा से तलाक ले लिया था. याद रहे, बिंद्रा एक मोटिवेशनल इन्फ्लुएंसर है जो युवाओं को ‘मोटिवेट’ करता है. अब सम?ों पत्नी पर डोमैस्टिक वायलैंस करने वाला कैसे बड़ेबड़े सैमिनारों के स्टेज पर फर्जी बातें करता रहा होगा? बिंद्रा अपनी दोनों पत्नियों के साथ मारपीट का आरोपी है. कई लोगों ने इस पर फ्रौड करने का आरोप लगाया है.

फ्रौड करने का आरोप

महेशवरी पेरी, जो ‘360 कैरियर’ के संस्थापक हैं, बताते हैं कि बिंद्रा की कंपनी की एक साल की कमाई 172 करोड़ रुपए है और 2 साल में कंपनी ने 308 करोड़ रुपए कमाए हैं. यह एक मल्टीलैवल मार्केटिंग कंपनी है. यह लोगों से ऐसे वादे करता है जिन को पूरा नहीं किया जा सकता. यह लोगों को महीने के लाख से 20 लाख कमाने का तरीका बताता है जबकि इस के खुद के एंपलौय मात्र 20-30 हजार रुपए महीने में काम कर रहे हैं.

इन की बातों में आप को एमबीए, एंटरप्रेन्योर, इंटरनैशनल कंसल्टैंट जैसे शब्द दिखेंगे जो छोटे शहरों के युवाओं के लिए बड़े सपने जैसा है. बिंद्रा की दुकान सपने बेच कर चलती है क्योंकि उस के बिना यह चलेगी ही नहीं. सोचिए, इस की जगह अगर वह स्किल डैवलपमैंट का इस्तेमाल करता तो कोई इतना ध्यान ही न देता.

सोशल मीडिया ने रास्ता दिखाने से ज्यादा लोगों को भटकाया है. जो सोशल मीडिया हमारी ताकत हो सकता था वह आज सोसाइटी को कमजोर व खोखला कर रहा है. लोग अपने आसपास के जीवन से दूर होते जा रहे हैं. लोगों को अकेला रहना बेहतर लगने लगा है.

देश में शिक्षा की स्थिति काफी खराब है. स्कूल पूरा होने से पहले ही स्टूडैंट्स का एक बड़ा हिस्सा बाहर निकल जाता है. पढ़ेलिखे लोगों को भी अच्छी नौकरी मिलना बहुत मुश्किल है. कहने का मतलब एकदम साफ यह है कि देश में कोई ऐसा सिस्टम ही नहीं है जो युवाओं को रास्ता दिखा सके और इसी का फायदा बिंद्रा जैसे इन्फ्लुएंसर उठा रहे हैं.

सा कमाना गलत नहीं, लेकिन गलत हो कर पैसा कमाना गलत है. यह इस बात पर भी डिपैंड करता है कि आप का मीडियम क्या है और उन मीडियमों से आप कैसे सक्सैस हासिल करते हैं. आजकल यूथ ज्यादा और जल्दी पैसा कमाना चाहते हैं. सब को बड़ीबड़ी गाडि़यों में घूमना है, बड़ा घर चाहिए, नाम चाहिए, इज्जत चाहिए और ये सब मिल जाए तो एक अच्छी लड़की या लड़का किसे नहीं चाहिए भला. पर यह होगा कैसे, यह सवाल बारबार परेशान करता है. कभी यह सवाल नैया पार तो लगाता है पर बहुत बार इस से जूझ रहा यूथ जल्दी किसी के लपेटे में भी आ जाता है.

यही कारण भी है कि इन को लपेटे में लेने के लिए सोशल मीडिया पर गुलाटियां खाने वाले मोटिवेशनल इन्फ्लुएंसर भरे पड़े हैं, जो खुलमखुल्ला लाखों रुपए महीने के कमाने के तरीके बताते हैं. आखिर ये शौर्टकट तरीके हैं क्या और इन की संभावनाएं कितनी हैं? क्या ये तरीके सही भी हैं?

इन्फ्लुएंसर विवेक बिंद्रा की कला

41 साल का विवेक बिंद्रा खुद को ‘डा. विवेक बिंद्रा : मोटिवेशनल स्पीकर’ के नाम से इंट्रोड्यूस करता है. इसी नाम से उस ने यूट्यूब चैनल बनाया हुआ है. इस चैनल में लगभग 2 करोड़ 13 लाख सब्सक्राइबर हैं. वहीं उस की हर वीडियो को लाखों लोग देखते हैं. समझ जा सकता है कि किस हद तक युवाओं के बीच इस ने पैठ बनाई है. इस के वीडियो के थंबनेल पर लिखा रहता है कि ‘फलाना अमीर कैसे बने’, ‘पैसों में खेलोगे’, ‘करोड़ों कैसे कमाएं’. यह युवा की इच्छा की नब्ज पर हाथ रखता है जिस के सपने वह युवा देखना शुरू कर देता है जिस की हलकी भूरी मूछदाढ़ी अभी आनी शुरू हुई है.

उस के बताए उदाहरण इतने लच्छेदार होते हैं कि कोई भी ट्रैप में फंस सकता है. जैसे, बिंद्रा ने एक वीडियो ‘चार्ली मुंगर’ पर बनाया है जो अमेरिकी बिसनैसमैन और इन्वैस्टर है. बिंद्रा बंदर की तरह उछलउछल कर बोलता है कि मुंगर 7 साल की उम्र में 10 घंटे ग्रौसरी की दुकान पर काम कर के पैसे कमाया करता था और वह 10 से 12 साल की उम्र तक आतेआते अपनी क्लास के बच्चों के होमवर्क, असाइनमैंट बना कर पैसे कमाया करता था.

बेसिरपैर के दावे

सवाल यह कि क्या किसी स्कूल का टीचर ऐसे तरीके बताएगा पैसे कमाने के? दूसरा, क्या कोई अपने 7 साल के बच्चे को इस उम्र में काम पर भेजेगा जब तक बड़ी मजबूरी न हो? दरअसल हकीकत यह है कि मुंगर ने अपनी टीनएज उम्र में जिस बफेट एंड सन ग्रौसरी शौप में काम किया उस का मालिक वारेन बफेट के दादा अर्नेस्ट पी बफेट थे. आगे चल कर मुंगर को वारेन बफेट की बर्कशायर हैथवे कंपनी का उपाध्यक्ष बनाया जाता है. मुंगर के दादा और पिता दोनों ही वकील थे. मुंगर का परिवार फाइनैंशियली व सोशियली रूप से पावरफुल था.

इस का प्रूफ यह कि जब चार्ली मुंगर ने अपने पिता के अल्मा मेटर,  हार्वर्ड लौ स्कूल में दाखिला लेने की कोशिश की तो डीन ने उसे ऐक्सैप्ट नहीं किया क्योंकि मुंगर ने ग्रेजुएशन की डिग्री पूरी नहीं की थी लेकिन हार्वर्ड लौ के पूर्व डीन और मुंगर परिवार के मित्र रोस्को पाउंड के आपसी संबंध अच्छे थे और उन के बीच हुई बातचीत के बाद कालेज के डीन नरम पड़ गए. बिंद्रा अपने वीडियो में बातों को तोड़मरोड़ कर बताता है. यही उस की कला है.

बिंद्रा ने अपने चैनल पर दावा किया है कि वह 10 दिनों में एमबीए कराएगा. एमबीए सुनते ही कान खड़े हो जाते हैं क्योंकि इस डिग्री की अहमियत जितनी है उस से ज्यादा इस की फीस है. फीस इतनी कि बाप को सड़क पर आना पड़ जाए. एमिटी और शारदा वाले तो खाल खींचे बगैर बात भी नहीं करते.

एमबीए एक प्रोफैशनल डिग्री है जिसे तभी कराया जा सकता है जब उस संस्था को यूजीसी से सर्टिफिकेशन प्राप्त हो. अगर आप किसी सरकारी यूनिवर्सिटी से भी एमबीए करने की सोचेंगे तो आप से पहले वह आप की क्वालिफिकेशन पूछेगी, आप का एग्जाम होगा और उस के बावजूद 1 प्रतिशत चांस है कि आप को पढ़ने को मिले वह भी तब जब इस की फीस दो से तीन लाख रुपए देने की आप में हिम्मत हो.

सवाल यह कि 2 साल का कोर्स 10 दिनों में औनलाइन कोई कैसे करा सकता है? कोई करा सकता है तो इस की औथेंटिसिटी क्या है? इस में क्या सिखाया जाता है और इस की कितनी वैल्यू है? सवाल यह भी कि क्या बिंद्रा कोई जादूगर है जो पलक झपकते एमबीए बना देता है?

असल में यह कोई एमबीए है ही नहीं. विवेक बिंद्रा, जो यूट्यूबर कम और एंटरप्रेन्योर ज्यादा कहलवाना पसंद करता है, का ‘बड़ा बिजनैस प्राइवेट लिमिटेड’ नाम से एक कंपनी है जो गोलमोल बातें कर बिजनैस स्ट्रैटेजी सिखाता है. वह मल्टी मार्केटिंग के नाम पर कोर्स बेचता है और पैसे कमाने का तरीका बताता है. यानी, आप का हजारों रुपए इस कोर्स में फंस चुका है और अगर अपना पैसा निकालना चाहते हैं तो और लोगों को इस जाल में फंसाइए. इसे ही पिरामिड स्कीम कहा जाता है.

इसे और आसान भाषा में सम?ाना है तो आप ने यूनिवर्सिटी, कालेज, स्कूल और नुक्कड़ों के आसपास सूटबूट पहने, टाई लगाए कुछ युवाओं को कोनोंखोंपचों में कुछ खुसरफुसर करते देखा होगा. ये लोग नैटवर्किंग मार्केट वाले कहलाते हैं. लंबीचौड़ी हांकते हैं, झटपट अमीर बनने के नुस्खे बांटते हैं. आज बाइक-कार, कलपरसों मकान सब 10 मिनट की बात में दिलाने के सपने दिखा देते हैं. इन का लैवल डायमंड कैटेगरी तक बनने का होता है जो सब से ऊंचा पद होता है, जो ऊपर बैठ कर मलाई खाता है.

नाकामयाबी की गिरफ्त

विवेक बिंद्रा को देखनेसुनने वाले वे नौजवान हैं जो अपनेआप को जीवन में नाकामयाब सम?ाते हैं. उन्हें यह बताया जाता है कि बिजनैस से गरीब, अनपढ़ आदमी भी इन्वैस्टमैंट कर के महीने के लाखोंकरोड़ों रुपए कमा सकता है, एक कामयाब एंटरप्रेन्योर बन सकता है. बल्कि, सच यह है कि इन के पास कामयाब लोगों का कोई उदाहरण नहीं दिखता और जिसे सामने लाया जाता है वह खुद इन में से ही एक होता है. इन की भाषा बिलकुल दस का बीस, बीस का पचास, पचास का सौ जैसी होती है, बिलकुल वैसी जैसे दिल्ली के लालकिले के सामने लगने वाले चोर बाजार में मुंह में गुटका दबाए 20-21 साल का लड़का अपना सामान बेचने के लिए चिल्लाता है.

फैक्ट यह है कि देश में बेरोजगारी पिछले 50 वर्षों में आज सब से अधिक है. जिस हिसाब से जनसंख्या में बढ़ोतरी हुई है उस के हिसाब से नौकरियों को नहीं बढ़ाया गया है. बड़ीबड़ी कंपनियां सरकारी क्षेत्र और छोटे व्यापारियों के बाजार पर नियंत्रण के लिए अपने बाजार का विस्तार करने में लगे हुए हैं.

इस का मतलब यह हुआ कि एक आदमी की कामयाबी हजारोंलाखों लोगों की बरबादी से गुजरती है. उदहारण के लिए एक कुरसी है और हजारों लोगों से पूछा जाता है आप को कितनी चाहिए. हरेक व्यक्ति एक ही बोलता है क्योंकि चाहिए उसे एक ही और वह रेस में दौड़ पड़ता है. दौड़ के बाद एक व्यक्ति को कुरसी मिलती है और बाकी लोग बाहर हो जाते हैं. बिजनैस तभी चलेगा जब बाकियों का बिजनैस कम हो या वे बरबाद हो जाएं क्योंकि दर्शक और उपभोक्ताओं की संख्या सीमित है.

बाजार के इसी नियम से कई लोग बनते हैं और करोड़ों लोग बिखरते हैं. ऐसी समस्याओं के बीच विवेक बिंद्रा जैसे लोग ठगी का जाल बुन कर सैकड़ोंकरोड़ों का मुनाफा बनाते हैं. आजकल स्टार्टअप, एंटरप्रेन्योर का शोर मचा पड़ा है. सब को रातोंरात स्टार बनाने की बात की जा रही है. वैसे ही जैसे आप इंस्टाग्राम पर अपनी तसवीर के साथ शाहरुख खान का गाना लगा कर फील करते हैं और हकीकत उस से बहुत अलग होती है.

टाटा, अंबानी, बिड़ला आदि भारत के सब से बड़े बिजनैसमेन माने जाते हैं. ये बड़े कारखाने चलाते हैं, प्रोडक्शन करते हैं, कुछ मैटीरियल तैयार करते हैं जिन्हें लोग कंज्यूम करते हैं जिस पर लोग मुनाफा कमाते हैं. बिंद्रा की कंपनी कोई प्रोडक्शन नहीं करती. वह लोगों को बिजनैस आइडिया बेच कर अपना धंधा चलाती है.

विवेक बिंद्रा आज के समय में जन्मे बेरोजगारों को भटकाने का काम करता है. यह व्यक्ति मार्केट में जोखिम उठा कर लोगों को पैसे लगाने के लिए प्रोत्साहित करता है, इस में गलत नहीं पर उस के बाद उन की बदहाली से अपना मुंह फेर लेना किसी धोखे से कम नहीं. आप यूट्यूब पर ऐसे कई वीडियो देख सकते हैं जिन में लोगों का रुपया वापस नहीं मिलने की बात सामने आती है. ऐसी परिस्थिति में लोग और डिप्रैशन का शिकार होते हैं.

विवेक बिंद्रा एक न्यूज चैनल में इंटरव्यू देते कहता है, ‘‘बाजार को जो चाहिए वह हमारा स्कूली सिस्टम नहीं दे पाता.’’ सही है स्कूल में हर चीज नहीं सिखाई जाती, बेशक, यह लूटमार का अड्डा नहीं बन सकता, फ्रौड करने की दुकान तो बिलकुल नहीं बनना चाहिए. स्कूलों में 10 दिनों में एमबीए बनना और बनाने की ट्रेनिंग नहीं दी जाती.

धर्म के नाम पर सब बिकता है

बिंद्रा जैसे लोग अपने व्यापार में धर्म व आस्था का भरपूर इस्तेमाल करना जानते हैं जिस से लोग इन की गलत बातों का भी सही मतलब समझें. यह एक तरह का जस्टिफिकेशन बन जाता है जिसे लोग ऐक्सैप्ट कर लेते हैं. हकीकत में यह इन के जाल बिछाने का एक रास्ता है. धर्म के मामले में यूथ टची होने लगा है. उन्हें मूर्ख बनाना पहले से कहीं आसान हो गया है जिस का फायदा इन्फ्लुएंसर उठाने लगे हैं. (मुक्ता के दिसंबर 2023 इशू में एल्विश यादव का उदाहरण इसी संबंध में विस्तार से बताया गया).

दरअसल, पढ़नेलिखने की आदत कम होने से युवाओं की सोचनेसमझने की क्षमता कम होती जा रही है. वह किसी भी बेबुनियादी बात को सच मान लेते हैं खासकर तब जब उन्हें इसे धर्म के रैपर में लपेट कर दिया गया हो.

विवेक बिंद्रा वर्णव्यवस्था के संबंध में एक वायरल वीडियो में कहता है कि समाज में कुछ लोग आदेश को पालन करवाने और कुछ लोग आदेश का पालन करने में ज्यादा सक्षम होते हैं. एक तरफ आरक्षण को बिंद्रा गलत मानता है और दूसरी तरफ जाति आधारित शोषण पर अपनी चुप्पी बनाए रखता है. हकीकत में इस का जाति, गरीबी और किसी भी कारण से पिछड़े लोगों की समस्या से कोई लेनादेना नहीं है बल्कि हर साल यह अपने मुनाफे को कैसे कई गुना बढ़ा सके, यह इस की प्रायोरिटी रहती है.

घरेलू विवाद में फंसा

आज विवेक बिंद्रा अपनी निजी जिंदगी के कारण भी सुर्खियों में बना पड़ा है. 6 दिसंबर, 2023 को वह अपनी दूसरी पत्नी यानिका से विवाह करता है, जिस के अगले दिन बिंद्रा पर अपनी पत्नी से मारपीट और बदसलूकी का आरोप लगता है. एक वीडियो वायरल है जिस में यानिका बिंद्रा से उसे जाने देने की गुहार लगाती दिखाई दे रही है.

पहली पत्नी गीतिका के साथ भी बिंद्रा पर मारपीट करने का आरोप लगा था जिस के बाद उस ने बिंद्रा से तलाक ले लिया था. याद रहे, बिंद्रा एक मोटिवेशनल इन्फ्लुएंसर है जो युवाओं को ‘मोटिवेट’ करता है. अब समझें पत्नी पर डोमैस्टिक वायलैंस करने वाला कैसे बड़ेबड़े सैमिनारों के स्टेज पर फर्जी बातें करता रहा होगा? बिंद्रा अपनी दोनों पत्नियों के साथ मारपीट का आरोपी है. कई लोगों ने इस पर फ्रौड करने का आरोप लगाया है.

फ्रौड करने का आरोप

महेशवरी पेरी, जो ‘360 कैरियर’ के संस्थापक हैं, बताते हैं कि बिंद्रा की कंपनी की एक साल की कमाई 172 करोड़ रुपए है और 2 साल में कंपनी ने 308 करोड़ रुपए कमाए हैं. यह एक मल्टीलैवल मार्केटिंग कंपनी है. यह लोगों से ऐसे वादे करता है जिन को पूरा नहीं किया जा सकता. यह लोगों को महीने के लाख से 20 लाख कमाने का तरीका बताता है जबकि इस के खुद के एंपलौय मात्र 20-30 हजार रुपए महीने में काम कर रहे हैं.

इन की बातों में आप को एमबीए, एंटरप्रेन्योर, इंटरनैशनल कंसल्टैंट जैसे शब्द दिखेंगे जो छोटे शहरों के युवाओं के लिए बड़े सपने जैसा है. बिंद्रा की दुकान सपने बेच कर चलती है क्योंकि उस के बिना यह चलेगी ही नहीं. सोचिए, इस की जगह अगर वह स्किल डैवलपमैंट का इस्तेमाल करता तो कोई इतना ध्यान ही न देता.

सोशल मीडिया ने रास्ता दिखाने से ज्यादा लोगों को भटकाया है. जो सोशल मीडिया हमारी ताकत हो सकता था वह आज सोसाइटी को कमजोर व खोखला कर रहा है. लोग अपने आसपास के जीवन से दूर होते जा रहे हैं. लोगों को अकेला रहना बेहतर लगने लगा है.

देश में शिक्षा की स्थिति काफी खराब है. स्कूल पूरा होने से पहले ही स्टूडैंट्स का एक बड़ा हिस्सा बाहर निकल जाता है. पढ़ेलिखे लोगों को भी अच्छी नौकरी मिलना बहुत मुश्किल है. कहने का मतलब एकदम साफ यह है कि देश में कोई ऐसा सिस्टम ही नहीं है जो युवाओं को रास्ता दिखा सके और इसी का फायदा बिंद्रा जैसे इन्फ्लुएंसर उठा रहे हैं.

लिवइन का साइड इफैक्ट, कैसे फंस गए ओए इंदौरी

इंदौर के एमआईजी थाने में 19 दिसंबर, 2023 को एक रेप केस दर्ज कराया गया. यह केस धारा 376 के तहत दर्ज किया गया और आरोपी बनाया गया हाल के समय में फेमस यूट्यूबर ओए इंदौरी को, जो अपने इंदौरी ऐक्सैंट के लिए फेमस है.

वैसे ओए इंदौरी का असली नाम रोबिन अग्रवाल जिंदल है जो कि इंदौर का रहने वाला है, इसलिए इस ने अपने यूट्यूब चैनल का नाम भी ‘ओए इंदौरी – अब हंसेगा इंडिया’ रखा है. उस पर अब तक 2,784,323,079 व्यूज हैं. इस ने अपना यूट्यूब चैनल 2017 में शुरू किया था लेकिन कोविड में जब सब अपनेअपने घरों में बंद थे तो लोगों ने खाली बैठेबैठे यूट्यूब का खूब इस्तेमाल किया. उसी समय ओए इंदौरी फेमस हो गया.

ओए इंदौरी के वीडियोज में कौमेडी और प्रैंक देखने को मिलता है. उस का एक इंस्टाग्राम अकाउंट भी है, जिस की आईडी है श4द्गट्ठद्बठ्ठस्रशह्म्द्ब. जिस पर उस के 7.4 मिलियन फौलोअर्स हैं. इस अकाउंट पर उस ने अब तक 1,413 पोस्ट की हैं. उस के इंस्टाग्राम बायो में लिखा है- ‘आई विल मेक यू लाफ.’ हालांकि जिस तरह के कंटैंट वह बनाता था उस पर हंसना तो दूर, उसे झेलना भी एक टास्क जैसा है.

ओए इंदौरी उर्फ रोबिन सोशल मीडिया पर सामान्य स्तर के व्यूअर्स के बीच फेमस चेहरा है. साल 2019 में कलर्स टीवी के एक शो में ओए इंदौरी ने अपनी मौजूदगी दर्ज कराई थी. बिना टैलेंट के बस फौलोअर्स के दम पर लोगों को भी मुकाम मिलता है, यह इस का सटीक उदाहरण ओए इंदौरी से समझ जा सकता है. उस शो को कौमेडियन भारती सिंह और उस के पति हर्ष लिम्बाचिया ने होस्ट किया था.

असल में विवाद तब खड़ा हुआ जब एक पीड़िता ने ओए इंदौरी उर्फ रोबिन अग्रवाल जिंदल पर रेप का केस दर्ज कराया. शिकायतकर्ता युवती खुद को तलाकशुदा बता रही है. उस का कहना है कि ओए इंदौरी ने उसे शादी का झांसा दे कर उस से शारीरिक संबंध बनाए हैं और बाद में किसी और लड़की से सगाई कर ली.

युवती ने कहा कि वह जब इंदौर आई थी तो उसे घर ढूंढ़ने में परेशानी हो रही थी. उस वक्त ओए इंदौरी ने उस की हैल्प की थी. बस, तभी से वे दोनों अच्छे दोस्त बन गए थे. उस के बाद ओए इंदौरी ने उस से अपने दिल की बात कही. वे दोनों लिवइन रिलेशनशिप में आ गए. उस दौरान उन के बीच फिजिकल रिलेशन बने. तब ओए इंदौरी ने उस से कहा था कि वह उस से ही शादी करेगा.

लेकिन 23 नंवबर को ओए इंदौरी की इंस्टाग्राम पोस्ट से पता चला कि उस की इंगेजमैंट किसी और से हो चुकी है. इस के बाद युवती ने पुलिस स्टेशन में केस दर्ज कराया. इस से पहले भी युवती ने मार्च के महीने में भी रिपोर्ट दर्ज कराई थी. लेकिन आपसी समझाता होने के बाद युवती ने केस वापस ले लिया. अब चूंकि ओए इंदौरी ने अपना वादा नहीं निभाया तो युवती फिर से पुलिस स्टेशन पहुंच गई. ओए इंदौरी के खिलाफ केस दर्ज कराने वाली युवती एक प्राइवेट कंपनी में जौब करती है.

गौरतलब है कि रोबिन ने कुछ समय पहले ही इंदौर के एक बड़े होटल में सगाई की है. उस की मंगेतर भी फेमस सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर है. उस का नाम अलिशा राजपूत है. उस के इंस्टाग्राम पर 7.31 मिलियन फौलोअर्स हैं. इस रिंग सैरेमनी में सोशल मीडिया की कई हस्तियां शामिल हुई थीं.

ओए इंदौरी पर लगे रेप आरोप के बारे में एमआईजी थाने के एसआई सचिन आर्य ने बताया कि रोबिन जिंदल पुत्र मिथिलेश अग्रवाल निवासी महालक्ष्मी नगर के खिलाफ शादी का झांसा दे कर रेप करने का मामला दर्ज किया गया है. केस दर्ज होने के बाद ओए इंदौरी फरार है. फिलहाल हम उस तक पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं. केस दर्ज होने के बाद ओए इंदौरी ने अग्रिम जमानत की याचिका दायर की थी, जिसे कोर्ट ने खारिज कर दिया है.

इस केस के बाद ओए इंदौरी बुरी तरह फंस गया है. साथ ही, उस का फेम भी खतरे में आ गया है. वैसे भी, किसी इन्फ्लुएंसर की लाइफ मुश्किल ही 6 महीने से ऊपर टिकती है. ओए इंदौरी जैसे किसी नामचीन इन्फ्लुएंसर के साथ यह होना अपवाद नहीं है. सोशल मीडिया की चमक, लोगों के बीच फेमस होना और खुद को बड़ा आदमी समझाने की भूल ऐसे लफड़ों में फंसा ही डालती है. लिवइन गलत नहीं पर संबंध किस से कैसे निभते हैं, यह समझ होना जरूरी है.

आजकल यंगस्टर्स बड़ी संख्या में लिव इनरिलेशनशिप को अपना रहे हैं. लिवइन रिलेशनशिप में रहते हुए आप ऐसे ही किसी केस में न फंसें, इस के लिए जरूरी है कि यंगस्टर्स को लिवइन रिलेशनशिप के बारे में सही जानकारी हो.

लिवइन के कंसीक्वेंसेस

लिवइन रिलेशनशिप का मतलब ‘शादी जैसा रिश्ता’ होता है. जब एक अनमैरिड लड़का और लड़की मैरिड कपल की तरह एक ही छत के नीचे रहते हैं तो उसे लिवइन रिलेशनशिप माना जाता है. लेकिन भारत के कानून में लिवइन रिलेशनशिप को ढंग से परिभाषित नहीं किया गया है. यहां लिवइन रिलेशनशिप को 2 अनमैरिड लोगों के बीच ‘नेचर औफ मैरिज’ के तौर पर रखा जाता है.

लिवइन रिलेशनशिप में रह रही महिला भी घरेलू हिंसा कानून का इस्तेमाल कर सकती है. सुप्रीम कोर्ट के अनुसार, ‘‘अगर कोई महिला किसी आदमी के साथ लिवइन में रहती है और महिला यह नहीं जानती कि आदमी पहले से मैरिड है तो इस सिचुएशन में दोनों पार्टनर्स के साथ रहने को ‘डोमैस्टिक रिलेशनशिप’ माना जाएगा.’’ ऐसी हालत में महिला को घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 के तहत गुजारा भत्ता लेने का अधिकार दिया गया है.

2011 में एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया था कि लिवइन रिलेशनशिप में रहने वाली महिला को सीआरपीसी की धारा 125 के तहत भरणपोषण पाने का अधिकार है और महिला को यह कह कर मना नहीं किया जा सकता कि उस ने कोई वैध शादी नहीं की थी.

अगर कोई लड़का और लड़की लिवइन में रहना चाहते हैं तो दोनों का अनमैरिड होना जरूरी है. अगर किसी पार्टनर की पहले शादी हुई है तो उस के डायवोर्स के पेपर जारी होने के बाद ही वह कानूनी रूप से लिवइन में रह सकता है वरना यह व्यभिचार में आएगा.

भारत में लिवइन रिलेशनशिप का कल्चर भी बढ़ रहा है. 2018 में एक सर्वे हुआ था. इस सर्वे में शामिल 80 फीसदी लोगों ने लिवइन रिलेशनशिप को सपोर्ट किया था. इन में से 26 फीसदी ने कहा था कि अगर मौका मिला तो वे भी लिवइन रिलेशन में रहेंगे.

सुप्रीम कोर्ट ने लता वर्सेस यूपी राज्य, एआईआर 2006 एससी 2522 में यह माना कि एक एडल्ट महिला अपनी पसंद के किसी भी व्यक्ति से शादी करने या अपनी पसंद के किसी भी व्यक्ति के साथ रहने के लिए आजाद थी. जैसेजैसे लोग लिवइन रिलेशनशिप को प्रायोरिटी देने लगे, रेप के झूठे केसेस बढ़ते चले गए. कई केसेस में ब्रेकअप के बाद महिला पार्टनर रेप की झठी एफआईआर फाइल कराती है.

बात करें अगर कानून की, तो भारतीय दंड संहिता 1860 के सैक्शन 375 के तहत रेप को डिफाइन किया गया है. इस में कहा गया है कि इन सिचुएशंस में माना जाएगा कि एक पुरुष ने एक महिला का ‘रेप’ किया है-

  1. अगर किसी महिला से शादी का झांसा दे कर संबंध बनाए गए हों.
  2. जब महिला के साथ उस की सहमति के बिना सैक्सुअल रिलेशन बनाया जाए.
  3. जब महिला फिजिकल रिलेशन बनाने के लिए इस डर के साथ सहमति दे कि ऐसा न करने पर उसे या उस के किसी प्रिय व्यक्ति को चोट या जान का खतरा है.
  4. जब ऐसा करने की सहमति देते समय महिला मन से अस्वस्थ हो या किसी भी तरह मानसिक रूप से बीमार हो.
  5. जब महिला नशे की वजह से या किसी अन्य मूर्खतापूर्ण या हानिकारक चीज की वजह से सैक्सुअल रिलेशन बनाने की प्रकृति और रिजल्ट्स को समझने में अक्षम है और सहमति देती है.
  6. जब महिला 16 साल की उम्र से कम है फिर चाहे सैक्स मरजी से हो या बिना मरजी के.

ओए इंदौरी के केस में देखा जाए तो शादी का झांसा दे कर फिजिकल रिलेशन बनाने के चार्जेज लग सकते हैं. अब देखना यह होगा कि इस मामले के आखिर में क्या होता है. सारे परिणाम इस सुझाव की तरफ इशारा करते हैं कि अगर आप लिवइन रिलेशनशिप में हैं या आने की सोच रहे हैं तो आप को इस के सारे कानून और अधिकार पता हों ताकि बाद में आप किसी पचड़े में न पड़ें.

निठारी हो या कॉलेज स्ट्रीट, जिस्मानी भूख की बलि चढ़ते मासूम

Society News in Hindi: देशभर में लड़कियों और छोटी बच्चियों के साथ घट रही सैक्स अपराध की तमाम घटनाओं से साबित हो चुका है कि हमारी बेटियां कहीं भी महफूज नहीं हैं. पड़ोस से ले कर घरपरिवार, रिश्तेदारों के बीच कब और कहां वे रेप की शिकार हो जाएं, कुछ कहा नहीं जा सकता.

अपनी दिमागी बीमारी और जिस्मानी भूख को अंजाम देने वाले सफेदपोश से ले कर सड़कछाप दरिंदे राजपथ से ले कर गलीमहल्लों तक में घूम रहे हैं.

दरअसल, ऐसी घटिया सोच वाले लोग डेढ़ साल से ले कर किशोर उम्र के बच्चों का इस्तेमाल अपने विकार को अंजाम देने के लिए करते हैं.

कुछ साल पहले निठारी कांड ने हमें चौंका दिया था. हालांकि मधुर भंडारकर की फिल्म ‘पेज-3’ के जरीए हम सफेदपोशों की सैक्स भूख को जान चुके हैं, लेकिन सैक्स से जुड़ी लोगों की घटिया सोच किस हद तक दरिंदगी का रूप ले सकती है, इस का पता हमें राजधानी नई दिल्ली समेत देश के अलगअलग हिस्सों में कुछ समय पहले घटी घटनाओं से चला है.

मध्य कोलकाता की कालेज स्ट्रीट में चौथी क्लास का एक बच्चा ट्यूशन पढ़ने के लिए ट्यूटर के घर जाने में हर रोज आनाकानी करता था. उस बच्चे ने कई बार बताने की कोशिश की कि वह ट्यूटर उसे अच्छा नहीं लगता, पर मां डांटडपट कर उसे ट्यूशन पढ़ने के लिए छोड़ आया करती थी.

एक दिन अचानक बच्चा जख्मी हालत में रोतेरोते घर पहुंचा, पर वह कुछ भी बताने से इनकार करता रहा. बाद में उस ने बताया कि शुरू से ही ट्यूटर उस की मासूमियत का फायदा उठा कर लाड़दुलार के बहाने इधरउधर हाथ लगाया करता था, पर आखिर में मामला जहां आ कर पहुंचा था, वह रोंगटे खड़े कर देने वाला था.

कुछ समय पहले पिंकी विरानी की एक किताब आई थी, ‘बिटर चौकलेट: चाइल्ड सैक्सुअल एब्यूज इन इंडिया’. इस में छपे सर्वे में बताया गया है कि

90 फीसदी मामलों में बच्चे घर पर अपने नौकरचाकर से ले कर ट्यूटर, बालिग, पारिवारिक सदस्यों से ले कर सगेसंबंधियों, यहां तक कि बाप की भी हैवानियत के शिकार होते हैं.

साल 2006 में निठारी कांड ने भी खास से ले कर आम लोगों के होश उड़ा दिए थे. मोनिंदर सिंह पंढेर और सुरेंद्र कोली पर बच्चों को अगवा कर उन का बलात्कार करने के बाद हत्या ही नहीं, बल्कि बच्चों का मांस पका कर खाने जैसी दरिंदगी के मामले ने सब को हिला दिया था.

नोएडा के पौश इलाके से सटे निठारी गांव से एक के बाद एक गरीब तबके के बच्चे गायब होते रहे.

जांच में 19 बच्चों का मामला सामने आया, जिन में से 14 साल की रिंपी हालदार के मामले में मोनिंदर सिंह पंढेर और सुरेंद्र कोली को विशेष सीबीआई अदालत ने फांसी की सजा सुनाई.

निठारी से सबक नहीं लिया

निठारी कांड से हम ने सबक नहीं लिया. अब तो आएदिन हमारी बेटियां न केवल रेप की शिकार हो रही हैं, बल्कि दरिंदगी की शिकार हो कर उन की जान पर भी बन आती है.

इस साल मार्च में मंगोलपुरी, दिल्ली में 7 साल की और फिर अप्रैल में संगम विहार में 8 साल की, गांधीनगर में 5 साल की, नजफगढ़ में 3 साल की, गोविंदपुरा में 5 साल की और एक चार्टर्ड बस में 10 साल की मासूम के साथ ऐसी घटनाएं सामने आईं. इन में मजदूर, पड़ोसी, बस ड्राइवर से ले कर स्कूली टीचर तक के नाम सामने आए.

वहीं मध्य प्रदेश में सिवनी, इंदौर, भोपाल और मारूगढ़ व उत्तर प्रदेश में अलीगढ़ में हाल में बच्चियों के साथ हुए रेप ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया.

मनोवैज्ञानिक नजरिया

कोलकाता में इंस्टीट्यूट औफ विहेवियरल साइंस की श्रीलेखा विश्वास का कहना है कि हाल में बच्चों के साथ भारत में हुई दरिंदगी ने पूरी दुनिया को हिला कर रख दिया है, लेकिन नाबालिगों के साथ सैक्स हिंसा केवल भारत में ही नहीं, बल्कि दुनिया के दूसरे हिस्सों में भी हो रही है. चिंता की बात यह है कि अभी भी इस बारे में भारत में जागरूकता की कमी है.

दरअसल, इस तरह के मामले दिमागी बीमारी के होते हैं और विहेवियरल साइंस में इसे ‘पेडोफिलिया’ कहते हैं. इस सोच वाले लोग छोटी सी उम्र के नन्हेमुन्ने बच्चों की नंगी तसवीर में भी अपने लिए ‘सुख’ ढूंढ़ लेते हैं.

श्रीलेखा आगे कहती हैं कि ज्यादातर मामलों में पाया गया है कि बच्चे पड़ोसियों और ट्यूटर जैसे परिचितों व पारिवारिक या दोस्तों द्वारा सैक्स की हिंसा के शिकार होते हैं.

इन का यह भी कहना है कि बच्चों को इस बात की खबर ही नहीं होती है कि सामने वाला शख्स किस नजर से इन्हें देख रहा है.

दरअसल, बच्चे सामने वाले के छूने को समझ ही नहीं पाते हैं. वे इसे लाड़दुलार समझ बैठते हैं. हर ऐसा आदमी जो सैक्स भावना से बच्चों को प्यारदुलार करता है, ‘पेडोफिलिक’ होता है.

ऐसी दिमागी बीमारी वाले लोग अकसर पहले बच्चों के प्राइवेट हिस्सों को छू कर उन्हें जोश में लाते हैं. कभीकभी बच्चे उन की इस हरकत का मजा लेने लगते हैं और तब इन का काम आसान हो जाता है. लेकिन अगर कभी पकड़े गए, तो सारा कुसूर बच्चों के सिर मढ़ देते हैं, इसलिए मांबाप को उन की किसी बात पर भरोसा नहीं करना चाहिए, बल्कि बच्चा कभी कोई शिकायत करे, तो तसल्ली से उस की बातों को सुनना चाहिए.

लेकिन यह दुख की बात है कि हमारे देश और समाज में बच्चों की भावना को तूल नहीं दिया जाता है. कई बार देखा जाता है कि बच्चे को किसी खास शख्स का लाड़दुलार रास नहीं आता है. कुछ सगेसंबंधियों को वे बिलकुल पसंद नहीं करते. बाकायदा कुछ लोगों से वे चिढ़ते हैं. वे उन के पास नहीं जाना चाहते हैं. बच्चा न चाहे तो ज्यादा जोर नहीं देना चाहिए.

हमारे आसपास हर जगह ऐसी तमाम मुखौटाधारी रिश्तेदार व दोस्त भरे पड़े हैं. जाने कब, कहां और कैसे हमारे बच्चे किसी की जिस्मानी भूख के शिकार हो जाएं, कहा नहीं जा सकता, इसीलिए मांबाप को खुद तो सचेत रहना ही चाहिए, साथ ही बच्चों को भी जागरूक बनाना चाहिए.

बच्चा अगर ऐसी किसी बात की ओर इशारा करता है या शिकायत करे, तो उस की बातों को गंभीरता से लें. उन के भीतर हिम्मत पैदा करें. अगर कभी कोई हादसा हो गया, तो हिम्मत से काम लें. बच्चे से खुल कर बात करें. अगर बच्चा खुल कर न कह पाए या कहना न चाहे, तो उस की अनकही बातों को समझाने की कोशिश करें.

एक समय के बाद बच्चों को यह समझना जरूरी है कि छिपा कर किया हुआ या मन को अच्छा नहीं लगने वाला कोई भी काम ठीक नहीं होता. ऐसे काम से दूर रहना चाहिए. अगर कोई और करे, तो चुप रह जाना चाहिए.

बच्चों को समझाना होगा कि अगर कोई प्यारदुलार के बहाने बदन के किसी हिस्से को हाथ लगाए, तो फौरन मांबाप को बताएं.

बच्चों का जिस्मानी शोषण केवल मर्द करते हैं, गलत है. आरतें भी बच्चों का यौन शोषण करती हैं.

अनजान लोग ही ऐसा काम करते हैं, ऐसा भी नहीं है. ज्यादातर मामलों में पारिवारिक सदस्य, जानने वाले लोग भी बच्चों का जिस्मानी शोषण करते हैं.

जानें कौन-से क्रिकेटर करते हैं अंधविश्वास पर यकीन, सचिन और कोहली भी हैं इसमें शामिल

21से 24 दिसंबर, 2023 को मुंबई के वानखेड़े स्टेडियम में भारत और आस्ट्रेलिया की महिला क्रिकेट टीम के बीच टैस्ट मैच हुआ था, जिसे भारत ने बहुत बड़े अंतर से जीत कर कमाल कर दिया था. महिला टैस्ट क्रिकेट के इतिहास में पहली बार भारत ने आस्ट्रेलिया को हराया था. इस से पहले दोनों देशों के बीच 10 टैस्ट मैच खेले गए थे, जिन में से आस्ट्रेलिया को 4 मुकाबलों में जीत मिली थी, जबकि 6 मैच बेनतीजा रहे थे.

पर असली खबर तो यह है कि इस जीत को भारतीय महिला क्रिकेट टीम की कप्तान और हैड कोच ने धार्मिक जामा पहना दिया. कप्तान हरमनप्रीत कौर ने 26 दिसंबर, 2023 को मुंबई के सिद्धि विनायक मंदिर में जा कर पूजाअर्चना की थी. उन के साथ टीम के हैड कोच अमोल मजूमदार भी मौजूद थे.

इतना ही नहीं, कभी भारतीय क्रिकेट टीम में सलामी बल्लेबाज रहे और अब भारतीय जनता पार्टी के सांसद गौतम गंभीर भी इसी साल के फरवरी महीने में उज्जैन के महाकाल मंदिर में दर्शन करने गए थे. उन्होंने वहां सुबह की भस्म आरती में भी हिस्सा लिया था.

हालिया भारतीय क्रिकेट टीम की रीढ़ की हड्डी कहे जाने वाले विराट कोहली कुछ समय पहले बिलकुल भी बल्लेबाजी नहीं कर पा रहे थे. उन की कप्तानी भी चली गई थी और सोशल मीडिया पर उन की खराब बल्लेबाजी की खूब खिंचाई भी हो रही थी. इस के बाद वे खबरों में इस बात को ले कर चर्चित हुए कि ‘इस मंदिर में जाते ही खुले भाग्य’.

बता दें कि इसी साल की शुरुआत में विराट कोहली अपनी पत्नी अनुष्का शर्मा के साथ उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर में दर्शन करने पहुंचे थे. इस दौरान उन दोनों ने तकरीबन डेढ़ घंटे तक मंदिर के नंदी हाल में बैठ कर भस्म आरती की थी और उस के बाद दोनों ने मंदिर के गर्भगृह में जा कर पंचामृत पूजन अभिषेक किया था.

यही नहीं, पिछले साल वे दोनों उत्तराखंड के नीम करौली बाबा के आश्रम में पहुंचे थे और जनवरी महीने में उन्हें वृंदावन में नीम करोली बाबा के समाधि स्थल पर भी देखा गया था. उन्हें वृंदावन के स्वामी प्रेमानंदजी महाराज के आश्रम में भी देखा गया था.

इस के बाद लोगों ने विराट कोहली की अच्छी बल्लेबाजी को बाबा और मंदिर जाने का कारनामा बता दिया. एक फैन ने सोशल मीडिया पर लिखा, ‘कोहली किस बाबा से मिला था, एड्रैस बताओ. एकदो ख्वाहिश पूरी करवानी हैं.’

इसी तरह सचिन तेंदुलकर का पूरा परिवार सत्य सांईं बाबा का परम भक्त कहा जाता है. जब बाबा का निधन हुआ था, तब वे हैदराबाद में थे. यह खबर मिलते ही उन्होंने खुद को होटल के कमरे में बंद कर लिया था. कहते हैं कि क्रिकेटर सुनील गावस्कर ने सचिन की मुलाकात सत्य सांईं बाबा से कराई थी.

सोशल मीडिया पर मंदिरों का प्रचार

जब कोई नामचीन क्रिकेटर या कोई दूसरा सैलेब्रिटी किसी मंदिर में जा कर माथा टेकता है और उस की खबर मीडिया में आती है, तो सोशल मीडिया उसे हाथोंहाथ लेता है. विराट कोहली जैसे नामचीन लोगों के किसी मंदिर, बाबा आदि के बारे में सोशल मीडिया पर किए गए कमैंट, फोटो और वीडियो आम लोगों के दिमाग पर गहरा असर करते हैं. वे मन में बिठा लेते हैं कि अगर बड़े लोगों के बिगड़े काम ऐसे बन रहे हैं, तो हमें भी वहीं जाना चाहिए.

अभी हाल ही में उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर, नीम करौली बाबा, वृंदावन के स्वामी प्रेमानंद के आश्रम और मुंबई के सिद्धि विनायक मंदिर सोशल मीडिया पर बहुत ज्यादा ट्रैंड कर रहे हैं और इस अंधविश्वास को बढ़ावा दे रहे हैं कि जब कोई राह न सूझे, तो किसी के दरबार में जा कर माथा टेक दो.

जो लोग क्रिकेटरों को अपने ‘भगवान’ का दर्जा देते हैं, वे तो आंख मूंद कर उन की हर चीज को फौलो करते हैं. तभी तो आज हर छोटेबड़े मंदिर, आश्रम में लोगों की भीड़ देखी जा सकती है. नतीजतन, लोग किसी से कर्ज ले कर भी ऐसी जगह जाते हैं, ताकि उन की मुसीबतें दूर हो जाएं, पर कर्ज लेने के बाद तो उन की मुश्किलें और ज्यादा बढ़ जाती हैं, यह उन्हें समझ में नहीं आता है.

घोर अंधविश्वासी क्रिकेटर

वैसे तो किसी न किसी तरह का अंधविश्वास हर देश के क्रिकेटर में देखा जा सकता है, पर कुछ क्रिकेटर अपनी पोंगापंथी हरकतों से चर्चा में बने रहते हैं. ‘क्रिकेट के भगवान’ के नाम से मशहूर महान भारतीय बल्लेबाज सचिन तेंदुलकर बल्लेबाजी करने के लिए मैदान में उतरने से पहले हमेशा बायां पैड पहनते थे, जबकि राहुल द्रविड़ जब बल्लेबाजी करने के लिए तैयार होते थे, तो हमेशा पहले दायां पैड पहनते थे.

एक जमाने के दिग्गज क्रिकेटर मोहिंदर अमरनाथ फील्डिंग करते समय अपनी पैंट की जेब में लाल रूमाल रखते थे. भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान रहे मोहम्मद अजहरुद्दीन के गले में काला तावीज बंधा रहता था. फील्डिंग के दौरान कई बार उन्हें वह तावीज चूमते हुए भी देखा जा सकता था.

एक बार ‘द कपिल शर्मा शो’ में आए वीरेंद्र सहवाग और मोहम्मद कैफ ने खुलासा किया था कि उन के कप्तान सौरव गांगुली बहुत ज्यादा अंधविश्वासी थे. मोहम्मद कैफ ने बताया कि एक बार तो सौरव गांगुली मैच में अपने गले में पहनी माला को पकड़े बैठे रहे थे और प्रार्थना करते रहे थे.

इसी तरह वीरेंद्र सहवाग ने कहा था कि दादा (सौरव गांगुली) के गले में जो चेन है, उस में दुनिया के जितने भगवान हैं उन की फोटो मिलेंगी आप को. दुनिया के जितने पत्थर होते हैं नीलम, मोंगा सब उन के पास हैं.

कहने का मतलब है कि जितने क्रिकेटर, उन के उतने ही अंधविश्वास. हैरत तो तब होती है, जब ये लोग अपने हुनर के आगे अपने अंधविश्वास को तरजीह देते हैं और आम लोगों के मन में भर देते हैं कि अगर आप का भाग्य खराब है तो खेल खराब होना तय है, जबकि खेल में हारजीत होना कोई नई बात नहीं है. कोई जीतता है, तो कोई हारता है.

अगर किस्मत और गंडेतावीज, बाबाआश्रम, मठमंदिर और पूजाअर्चना आदि इतने ही ताकतवर होते, तो पिछले वनडे वर्ल्ड कप में लगातार 10 मैच जीतने वाली भारतीय क्रिकेट टीम देशभर में हो रहे हवनपूजन के बावजूद फाइनल मुकाबले में नहीं हारती. लिहाजा, अपने हुनर और मेहनत पर यकीन करें और इन फुजूल के चक्करों में मत पड़ें.

तालिबान ने लड़कियों से ज्यादा पढ़ने का हक छीना

भा रत की केंद्र सरकार कितना ही गरीबों की भलाई की स्कीमों का ढोल पीट ले, पर एक कड़वी हकीकत यह भी है कि आज भी गरीबी और सामाजिक भेदभाव के चलते दलित और आदिवासी बच्चियों की पढ़ाई छोड़ने की दर सब से ज्यादा है. सरकारी स्कूलों में ऐसी बच्चियों के साथ मिड डे मील परोसने तक में भेदभाव किया जाता है.

कितनी हैरत और शर्म की बात है कि देश आजाद होने के इतने साल बाद आज भी कोई बच्चा नाम और जाति सब से पहले सीखता है और दूसरे बच्चे किस जाति के हैं, यह भी वह अपनेआप सीख जाता है. यही फर्क आगे स्कूली जीवन में भी दिखता है, तभी तो वंचित समाज की लड़कियां जल्दी पढ़ाई छोड़ देती हैं और उन के घर बैठने से या तो वे बाल मजदूरी करती हैं या फिर जल्दी ही कम उम्र में ब्याह दी जाती हैं.

पर भारत का पड़ोसी देश अफगानिस्तान तो एक कदम और आगे निकल गया है. आप ही सोचिए कि सालभर पढ़ाई करने के बाद जब कोई बच्चा इम्तिहान पास करता है, तो नई जमात में पहुंचने का जोश और खुशी हद पर होती है. भविष्य के सुंदर सपने आंखों में तैरते हैं, मगर अफगानिस्तान में छठी जमात पास करने वाली लड़कियों की आंखों में आंसू हैं. वजह, अफगानिस्तान का दमनकारी तालिबानी शासन छठी जमात के बाद लड़कियों को आगे पढ़ने की इजाजत नहीं देता.

अफगानिस्तान की राजधानी काबुल में रहने वाली 13 साला सेतायेश साहिबजादा अपने भविष्य को ले कर चिंतित है और अपने सपनों को पूरा करने के लिए स्कूल न जा पाने के चलते उदास है.

सेतायेश साहिबजादा कहती है, ‘‘मैं अपने पैरों पर खड़ी नहीं हो सकती. मैं टीचर बनना चाहती थी, लेकिन अब मैं पढ़ नहीं सकती, स्कूल नहीं जा सकती.’’

13 साल की बहारा रुस्तम काबुल के बीबी रजिया स्कूल में 11 दिसंबर, 2023 को आखिरी बार स्कूल गई थी. उसे पता है कि उसे अब आगे पढ़ने का मौका नहीं दिया जाएगा. तालिबान के राज में वह फिर से क्लास में कदम नहीं रख पाएगी. उस की सारी सहेलियां छूट जाएंगी. अब वह उन के साथ खेल नहीं पाएगी. उन से अपने सुखदुख नहीं बांट पाएगी.

लड़कियों की पढ़ाई पर रोक

अफगानी लड़कियां तालिबानी शासन, जो शरीयत पर चलता है, के तहत छठी जमात पास करने के बाद घरों में कैद कर दी जाएंगी. उन की शादी हो जाएगी, फिर वे बच्चे पैदा करेंगी, नौकरों की तरह ताउम्र किसी दूसरे के घर के काम करेंगी, मारीपीटी जाती रहेंगी, फिर एक दिन मर कर जलील जिंदगी से छुटकारा पा लेंगी.

अफगानी औरतें एक ऐसी जिंदगी जी रही हैं, जहां वे अपना कोई फैसला नहीं ले सकती हैं. किसी के आगे अपनी कोई राय नहीं रख सकती हैं. अपनी मरजी से कोई काम नहीं कर सकती हैं. उन्हें कोई हक नहीं है. वे सार्वजनिक जगहों पर नहीं जा सकतीं. उन्हें नौकरियों से बैन कर उन के घरों तक ही सिमटा दिया गया है.

अफगानिस्तान में इस साल लड़कियों व औरतों की एक पीढ़ी से पढ़ाईलिखाई का हक छीन लिया गया है. अगर यह सिलसिला जारी रहा, तो अफगानिस्तान में महिला डाक्टर, महिला नर्सें नहीं होंगी. महिलाओं की गर्भ संबंधी दिक्कतों का इलाज, बच्चे की डिलीवरी सब अशिक्षित घरेलू दवाएं करेंगी. वे बचेंगी या मरेंगी, इस की चिंता किसी को नहीं है. शरीयत का शासन अफगानी औरतों की जिंदगी को उस काल में धकेल रहा है, जब इनसान जंगलों में रहा करता था.

धर्म की सत्ता

धर्म की बुनियाद पर खड़े हुए देश और दुनिया में जहां भी धर्म सत्ता चला रहा है, उस देश और समाज में औरतों की औकात दासी की है. वे सिर्फ आदमी के हुक्म की गुलाम हैं. आदमी औरत को घर में कैद कर के रखे, जब चाहे उस के जिस्म को रौंदे, सालदरसाल उस से बच्चे पैदा करवाए, यह आदमी के लिए धर्मसम्मत है. वह हुक्म देता है कि औरत उस का घर साफ करे, उस के लिए लजीज खाना पकाए, बरतन मांजे, उस के बच्चे पाले, उस के घर वालों की खिदमत करे और अगर उस ने इस में कहीं कोई कोताही दिखाई, तो आदमी हंटरों की मार से उस का पूरा जिस्म लहूलुहान कर दे या उसे गोली से उड़ा दे, इस की इजाजत धर्म देता है.

औरत के लिए धर्म से बड़ा दुश्मन कोई नहीं है. अपनी बीवी का दूसरे मर्द से बलात्कार कराने का रास्ता धर्म बताता है. अपनी पत्नी को गर्भावस्था में छोड़ देने और उसे जंगल जाने के लिए मजबूर करने पर धर्म पुरुष की बुराई नहीं करता, बल्कि उसे पुरुषोत्तम बना देता है. एक स्त्री को भरी सभा में नंगा करने पर तमाम धार्मिक लोगों की जबान तालू से चिपक जाती है.

बड़ेबड़े हथियार उठाने वाले सूरमाओं के हाथों को लकवा मार जाता है, नसों का खून बर्फ हो जाता है. धर्म के हाथों औरत की इस बदहाली की कहानियों से धर्मग्रंथ भरे पड़े हैं और मूर्ख औरतें ऐसे धर्मग्रंथों को सिर पर उठाए फिरती हैं.

अफगानिस्तान में जब तालिबानी अपना दबदबा कायम करने की कोशिशों में थे, तब शरीयत का शासन चाहने वालों में औरतें भी शामिल थीं. हैरानी होती है कि जिस धर्म को हथियार बना कर प्राचीनकाल से मर्द औरत पर हावी रहा, उस पर जोरजुल्म करता रहा, उस को अपना गुलाम बनाए रखा, उस धर्म का त्याग करने के बजाय औरत दिनरात उस के महिमामंडन और प्रसार में क्यों लगी है?

दुनियाभर में चाहे कोई भी धर्म हो, औरतें बढ़चढ़ कर खुशीखुशी सारे कर्मकांडों को पूरा करती हैं. क्या औरतों को आज तक यह समझ में नहीं आया कि धर्म की जंजीरों में उन की खुशहाली और आजादी दम तोड़ रही हैं? क्या औरत कभी यह बात समझोगी कि अनपढ़ लोग कभी भी आजाद और खुशहाल नहीं हो सकते? फिर वह अफगानिस्तान हो या भारत.

साढ़ू से करें पक्का दोस्ताना, पर साली बन सकती है अड़चन

Society News in Hindi: आजकल सोशल मीडिया पर साढ़ू के रिश्ते को ले कर एक वीडियो बहुत देखा जा रहा है. इस में बताया जाता है कि ‘साढ़ू एक ही फैक्टरी से ठगे गए 2 इनसान होते हैं’. असल में पत्नी की बहन के पति को साढ़ू कहा जाता है, जिस का मतलब वीडियो में ऐसे निकाला गया है कि एक ही मां की 2 बेटियों से अलगअलग शादी करने वाले 2 इनसान रिश्ते में साढ़ू हो जाते है. जब संयुक्त परिवारों का दौर था, तब इस रिश्ते को बहुत अहमियत नहीं दी जाती थी, पर आज के समय में जब घरों में बच्चों की संख्या कम होने लगी है, ऐसे में साढ़ू का रिश्ता भी खास हो गया है.

ससुराल में साढ़ू का स्टेट्स एकजैसा होता है, जिस वजह से कई बार आपस में संबंध बिगड़ने का खतरा भी रहता है. जब नया दामाद ससुराल में आता है, तो पुराने की अहमियत थोड़ी कम हो जाती है. कई बार जो दामाद ज्यादा अमीर या दबदबे वाला होता है, उस की अहमियत ज्यादा होती है. ऐसे में साढ़ू की आपस में थोड़ी खींचतान हो जाती है.

जरूरत इस बात की होती है कि साढ़ू के साथ किसी भी तरह की होड़ न रखें. दोनों का ही ससुराल में बराबर का हक होता है. दिखावे में आपसी संबंध खराब न करें. एक ही उम्र के साढू के साथ भाई जैसा रिश्ता रखें. सोशल मीडिया के वीडियो केवल दिखावा होते हैं, यह समझ कर उन को देखें.

बदल गया है बहन का रिश्ता

पहले छोटी बहन और बड़ी बहन के बीच आपस में एक दूरी रहती थी. बड़ी बहन छोटी बहन को अनुशासन में रखती थी. कई बार उन के बीच उम्र का भी फर्क होता था. आज के दौर में 2 बहनों के बीच उम्र की दूरी कम हो गई है. कई बार दोनों ही अकेली होती हैं, तो उन के बीच नजदीकियां ज्यादा होती हैं. वे बहन से ज्यादा दोस्त की तरह हो जाती हैं. वे एकदूसरे की बातों को अच्छी तरह से समझती हैं. वे एकदूसरे की मदद भी करती हैं.

कुछ बहनों के बीच तो इतनी गहरी दोस्ती होती है कि वे एकदूसरे के हर राज जानती हैं. एकदूसरे के बौयफ्रैंड वाले रिश्तों को भी समझती हैं. शरीर में होने वाले बदलाव, कैरियर, दोस्ती, पढ़ाईलिखाई और घरेलू झगड़े दोनों मिलजुल कर बांटती हैं.

जिस तरह से 2 बहनों में अच्छी बनती है, उसी तरह से अगर इन के पतियों यानी साढ़ू के बीच बनने लगे, तो एकदूसरे पर भरोसा बन जाएगा और समाज में एक भरोसेमंद रिश्ता मिल जाएगा. जिस तरह से 2 बहनों के बीच आयु वर्ग एकजैसा होता है, वही साढ़ू के साथ भी होता है.

साढ़ू भी अमूमन एक ही उम्र के होते हैं. ज्यादा से ज्यादा आपस में 2-4 साल का फर्क होता है. ऐसे में उन के आपसी विचार मिलते हैं. जरूरत पड़ने पर वे एकदूसरे के काम आ सकते हैं. संयुक्त परिवार जैसा भरोसा कर सकते हैं. इस के बाद भी साढ़ू के साथ आपसी संबंधों में खिंचाव भी होता है. इस की वजह यह है कि साढ़ू की पत्नी साली होती है. समाज में जीजासाली के संबंध अलग तरह से देखे जाते हैं.

जीजासाली के संबंध डालते हैं दरार

साढ़ू के साथ आपसी संबंधों में दरार पड़ने की खास वजह जीजासाली के संबंध होते हैं. जीजासाली के संबंधों में खुलापन होता है. आपस में हंसीमजाक का भी रिश्ता होता है. कई बार आपस में गहरे संबंध भी जीजासाली के बीच होते हैं.

जीजासाली के गलत संबंधों को समाज हलके नजरिए से भले ही देखता हो, पर साढ़ू ऐसे रिश्ते को सही नहीं मानता. ऐसे में जब उस को यह अहसास भी होता है तो साढ़ू के साथ रिश्ते चल नहीं पाते हैं, इसलिए बड़े साढ़ू को इस बात का खयाल रखना चाहिए कि वह अपनी साली के साथ हंसीमजाक का दायरा न पार करे.

कई बार हंसीमजाक ही ऐसा हो जाता है, जिस का सही असर नहीं पड़ता. उस से आपस में शक बढ़ जाता है. जीजासाली के संबंधों के बीच आया शक साढ़ू के साथ रिश्तों में दरार डालने का काम करता है. कई मामलों में तो साढ़ू के साथ रिश्ता टूट सा भी जाता है.

देवरभाभी के बाद जीजासाली का ही रिश्ता इतना खतरनाक होता है, जिस को ले कर तमाम तरह की कहानियां सुनने और पढ़ने को मिलती हैं.

इस की 2 खास वजहें होती हैं. एक तो जीजासाली की बात हो या देवरभाभी की दोनों रिश्तों में ही आपस में उम्र का फासला कम होता है. दूसरे, दोनों ही रिश्तों में हंसीमजाक होता है. मजाकमजाक में बात आगे बढ़ती है. अगर बात सैक्स संबंधों तक नहीं पहुंची तो मसला मजाक का मान लिया जाता है. अगर बात मजाक से आगे बढ़ी तो सैक्स संबंधों तक पहुंच जाती है.

तीसरी एक बात और होती है कि दोनों को आपस में अकेले मिलने के तमाम मौके होते हैं. इस अकेलेपन का फायदा मिल जाता है. अगर बात घरपरिवार तक पहुंचती भी है तो वे आपस में ही इस को दबाने का काम करते हैं. ऐसे में ये रिश्ते खतरनाक बन जाते हैं.

ऐसे में यह बात साफ है कि साढ़ू के आपस में संबंध तभी अच्छे होंगे जब जीजासाली के बीच संबंध सहज होंगे. अगर वहां संबंध सहज नहीं हैं, तो साढ़ू के साथ भी रिश्ते नहीं बनेंगे. इन बातों को दरकिनार कर के देखें तो साढ़ू का आपस में रिश्ता बहुत अच्छा होता है. जरूरत होती है कि इस को दोस्त के जैसा रखा जाए.

ऐसे में साढ़ू एक फैक्टरी से ठगे गए 2 इनसान नहीं होते. अगर वे दोनों समझदार हैं तो उन में खून का रिश्ता न होते हुए भी उतना ही करीबी संबंध बन सकता है.

जब कोई तलाकशुदा मुसलिम औरत नया शौहर तलाशे, ऐसे मर्द से तो दूरी बनाए

कोई पढ़ीलिखी तलाकशुदा मुसलिम औरत नए मर्द में क्या देखती है? यही न कि वह उसे कितनी इज्जत दे सकता है या नहीं. वह देखती है कि सामने वाला मर्द अपने पैरों पर खड़ा हो. वह चाहती है कि उस का होने वाला शौहर पढ़ालिखा हो, इज्जतदार घराने से हो, क्योंकि कोई इज्जतदार शौहर ही अपनी बीवी को इज्जत दे सकता है और दूसरे लोगों से उसे इज्जत दिला भी सकता है.

कोई भी औरत मर्द के प्यार से ज्यादा इज्जत पाने की उम्मीद रखती है, क्योंकि मर्द के दिल में अगर औरत के प्रति इज्जत होगी, तो प्यार तो खुद से पैदा हो जाएगा. पर अगर किसी भी मर्द के मन में औरत के प्रति इज्जत नहीं होगी तो वह प्यार तो क्या पाएगी, बल्कि सिर्फ हवस का शिकार हो कर रह जाएगी.

ऐसे मर्द औरत को कमतर समझते हैं और उसे भोगने का साधन मानते हैं या उसे औलाद पैदा करने की मशीन समझ कर हर मोड़ पर उस की बेइज्जती करते हैं. वे उसे घर की ‘बाई’ की तरह इस्तेमाल करते हैं.

पढ़ीलिखी तलाकशुदा मुसलिम औरत कभी भी किसी मर्द की दूसरी बीवी न बने, क्योंकि मुसलिम समुदाय में यह रिवाज है कि मर्द 4 बीवी तक रख सकते हैं, इसलिए किसी की पहली बीवी हो तो उस की दूसरी या तीसरी बीवी कतई न बनें.

तलाकशुदा मुसलिम औरत को दूसरी शादी करने में बड़ी दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है. उसे जल्दबाजी में कोई गलत कदम नहीं उठाना चाहिए, बल्कि सब्र के साथ सही और ऐसा मर्द देखना चाहिए, जो उस की जिम्मेदारी अच्छी तरह से उठा सके.

किसी ऐसे मर्द का चुनाव नहीं करना चाहिए जो पहले से शादीशुदा हो और उस के बच्चे हों, क्योंकि अकसर यह देखा गया है कि कोई भी सौतेली मां अपने सौतेले बच्चों से कितना भी प्यार कर ले, शौहर और समाज के लोग उसे ‘सौतेली मां’ की ही संज्ञा देते हैं और समयसमय पर उसे ताने मरते हैं. यहां तक की उन मियांबीवी में बच्चों को ले कर हमेशा झगड़ा होने के चांस ज्यादा होते हैं, जिस से कभी भी घर बिखरने का खतरा बना रहता है.

कभी भी किसी ऐसे मर्द से निकाह न करें जो नशेड़ी हो. न कभी किसी कामचोर से ब्याह करने की सोचें.

बौडी लैंग्वेज बताती है हमारे विचार

बौडी लैंग्वेज हमारे विचारों के आदानप्रदान में बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करती है. कहते हैं कि ताश के खिलाड़ी अपनी चाल तय न कर पाने की वजह से एकदूसरे की ओर ताक लगाए बैठे रहते हैं, ताकि किसी भी तरह उन्हें अपने अगले दांव का सूत्र मिल जाए. इसी तरह से हमारे व्यक्तित्व की चाबी है बौडी लैंग्वेज, जो हमारी अंदरूनी भावनाओं को अभिव्यक्त करने में काफी कारगर होती है.

मनोवैज्ञानिकों के अनुसार, शब्द हमारी बातचीत का सिर्फ एकतिहाई हिस्सा हैं और जब तक शब्दों के साथ चेहरे की भंगिमाएं और हावभाव शुमार न हों, बातचीत अधूरी रह जाती है. जीवन में किसी भी इंसान की वर्तमान मानसिक स्थिति जानने के लिए उस के शब्दों और शरीर के विभिन्न अंगों की गतिविधियों को सूक्ष्मता से परखना होता है. ऐसे बहुत से शारीरिक संकेत हैं जिन का अर्थ काफी सीक्रेट होता है और वे हमें सामने वाले के प्रति और ज्यादा चौकन्ना कर देते हैं.

  1. शरीर के सभी अंग किसी तरह नकारात्मक या सकारात्मक संकेत देते हैं. इस में चेहरे को सब से ज्यादा अहमियत दी जाती है. सिर का हिलाना यानी किसी चीज के लिए सहमति देना होता है या फिर धैर्य रखना. सिर ऊपर उठा कर चलना या ऊपर की ओर सधी हुई नाक घमंड का द्योतक होता है या फिर एकांतता में यकीन करने का. कांपते होंठ दिल पर गहरी चोट पहुंचने का संकेत देते हैं.
  2. चमकती हुई आंखें, डरावनी आंखें, गहरी आंखें, गुस्से से भरी आंखें, इतने सारे भावों वाली होने के कारण आंखों को मन का आईना भी कहा जाता है. बातचीत के दौरान हम एकदूसरे की आंखों में जितना देखते हैं, संबंध उतने ही मजबूत बनते हैं. बंद आंखें सीक्रेसी या आराम करने की इच्छा जताती हैं. झुकी हुई, इधरउधर निहारती हुई आंखें कुछ छिपाने की कोशिश करती हैं. घूरती हुई आंखें किसी की आक्रामक प्रवृत्ति को प्रतिबिंबित करती हैं. अधखुली और बुझी हुई सी आंखें ऊब जाने की दशा जाहिर करती हैं. बातचीत के दौरान आंखें मिला कर बात न करना दर्शाता है कि व्यक्ति असुरक्षा का शिकार है या फिर लापरवा है.
  3. भौंहें भी किसी न किसी तरह भावनाएं शेयर करती हैं. ऊंची भौंहें इंसान की परेशानी की सूचक होती हैं.
  4. बातचीत के समय हाथपांवों की गतिविधियां हमारे व्यक्तित्व का मूल्यांकन करने में सहायक होती हैं. यह एक अच्छे वक्ता की पहचान है कि वह बोलते वक्त अपने हाथों और पांवों का भी इस्तेमाल करता हो.
  5. बातचीत के दौरान अपनी बांहें या टांगें क्रौस न करें, इस से आप की मुद्रा तनावग्रस्त नजर आएगी. अपने हाथ सिर के पीछे बांधना अतिरिक्त आत्मविश्वास का सूचक होता है. बातचीत के दौरान पैर हिलाना व टेबल पर उंगलियां फिराना घबराहट का सूचक होता है. हैंडशेक हलके हाथों से किया जाए तो यह कम उत्सुकता को दर्शाता है. कस कर, हाथों को दबा कर किया गया हैंडशेक व्यावसायिकता की पहचान है.
  6. मुंह के ऊपर या चेहरे पर हाथ रखना नकारात्मक बौडी लैंग्वेज का सूचक है.
  7. मुट्ठी भींचना गुस्से का सूचक होता है, वहीं मुट्ठी बंद करना डर का संकेत देता है. बातचीत के दौरान नाखून कुतरना और बारबार नाक को छूना सामने वाले की नर्वसनैस को दर्शाता है.

सोशल साइट्स पर कैसा हो रंगढंग

Society News in Hindi: सोशल नैटवर्किंग साइट्स ने कुछकुछ नहीं, बहुत कुछ बदल दिया है. तकनीक के जमाने में नैटवर्किंग की तमाम सोशल साइट्स हैं, जैसे फेसबुक, व्हाट्सऐप, ट्विटर, लिंक्डइन, इंस्टाग्राम आदि. इन सब से हम ऐक्टिव अकाउंट द्वारा जुड़ सकते हैं. जहां एक ओर इन के कई फायदे हैं, वहीं सब से बड़ा नुकसान नैगेटिव पौपुलैरिटी का है यानी बिना जानेसमझे सोशल नैटवर्किंग साइट्स पर सक्रियता आप पर बुराई का ठप्पा चस्पां सकती है. इसलिए आप को बता दें कि सिर्फ अकाउंट बनाना ही पर्याप्त नहीं है. नैगेटिव पौपुलैरिटी या बैड टैग का ठप्पा न लगे इस के लिए कुछ बेसिक मैनर्स को अपनाना पड़ता है.

प्राइवेसी मजबूत हो

किसी भी सोशल नैटवर्किंग साइट पर अकाउंट बनाएं, लेकिन अपनी प्राइवेसी मेंटेन करते रहें. ताकि कोई अनजान व्यक्ति आप के अकाउंट में ताकाझांकी न कर पाए. इस से बचने का उपाय है कि आप प्राइवेट अकाउंट और अपना पासवर्ड कठिन रखें. महीने में एक बार जरूर पासवर्ड बदलें, पासवर्ड किसी से शेयर न करें.

हेराफेरी न हो

यदि सोशल साइट्स पर आप के परिचित आप से जुड़े हैं, तो डींगे मत हांकिए, सही और सटीक जानकारी अपने प्रोफाइल में अपडेट करें. पब्लिक डिस्प्ले में क्या रखना है, क्या नहीं, यह पूरी तरह आप पर निर्भर करता है. प्रोफाइल फोटो से परहेज न करें. ऐसा करने से नैटवर्क से जुड़े लोग आप को करीब पाएंगे.

 

पर्सनल अलग, प्रोफैशनल अलग

सोशल नैटवर्किंग साइट्स फायदेमंद साबित हों, तो पर्सनल और प्रोफैशनल अकाउंट रखें वरना एक ही अकाउंट रखने से सब गुड़गोबर हो जाएगा. कई बार एक ही अकाउंट की वजह से हम जरूरी जानकारियों से अछूते रह जाते हैं और पर्सनल व प्रोफैशनल लाइफ में अंतर तथा सामंजस्य नहीं बिठा पाते.

संभल कर करें फोटो शेयर

सोशल नैटवर्किंग साइट्स ने फोटो अपलोड की सुविधा दे कर यादों को संजोना आसान कर दिया है. मौका चाहे त्योहार का हो या दोस्तों के साथ मस्ती करने का या फिर अपनों के साथ सैरसपाटे या फिल्म देखने का, हम हर मौके को कैमरे में कैद कर सोशल नैटवर्किंग साइट्स पर अपलोड कर सकते हैं. यहां तक तो सब ठीक है यदि फोटो सिर्फ आप की हैं, लेकिन मामला तब गड़बड़ा जाता है जब आप दूसरे का फोटो बिना उस से पूछे टैग या अपलोड करते हैं. याद रखें आप की इस छोटी सी हरकत से रिश्ते में दरार आ सकती है. कई लोगों को अपनी फोटो सार्वजनिक करना पसंद नहीं होता, इसलिए फोटो शेयर, टैग या अपलोड करने से पहले उस व्यक्ति की अनुमति जरूर लें.

संभल कर करें कमैंट

कम्युनिकेशन का बैस्ट औप्शन है सोशल साइट्स में कमैंट का औप्शन. पर्सनल और प्रोफैशनल अकाउंट में कमैंट ध्यान से करें. आपत्तिजनक शब्दों और अश्लील भाषा का प्रयोग कतई न करें. कमैंट लिखने के बाद दोबारा जरूर पढ़ें. यदि कुछ पर्सनल लिखना हो, तो मैसेजबौक्स का प्रयोग करें.

आंख बंद कर हामी न भरें

फ्रैंड रिक्वैस्ट की लाइन देख कर खुश न हों. भोलीभाली शक्ल में कोई शैतान छिपा हो सकता है. सोशल नैटवर्किंग साइट्स में हम काफी हद तक बच सकते हैं. मसलन, आंख बंद कर हर रिक्वैस्ट पर हामी न भरें. रिक्वैस्ट ऐक्सैप्ट करने से पहले उस व्यक्ति का अकाउंट अच्छी तरह देख लें. सोचसमझ कर ही फैसला लें. जिन्हें आप जानते हैं उन्हें ही फ्रैंड लिस्ट में शामिल करें. यदि कोई बारबार फ्रैंड रिक्वैस्ट भेजे जिसे आप जानते नहीं, तो उस रिक्वैस्ट को स्पैम में डाल दें.

सब की अलग पसंद

यदि आप को सोशल साइट्स पर कैंडी क्रश खेलना पसंद हो तो जरूरी नहीं आप के सभी वर्चुअल फ्रैंड्स को भी पसंद होगा. बेवजह दूसरों को ऐसे गेम्स खेलने की रिक्वैस्ट न भेजें.

फौलो हो सही प्रोफाइल

कुछ गलत नहीं यदि आप सैलिब्रिटी के प्रोफाइल को फौलो करते हैं, लेकिन सही प्रोफाइल को फौलो करें, सैलिब्रिटी के अधिकांश प्रोफाइल सोशल नैटवर्किंग साइट्स पर फेक होते हैं. ओरिजनल की पहचान नीले रंग का मार्क है. जिस सैलिब्रिटी के प्रोफाइल के आगे नीले रंग का निशान हो वह ओरिजनल है. नीले मार्क वाले प्रोफाइल को ही फौलो करें.

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