Family Story In Hindi: बदलाव की आंधी – गंगाप्रसाद के घर आया कैसा तूफान

Family Story In Hindi: ‘‘मुन्ना के पापा सुनो तो, आज मुन्ना नया घर तलाशने की बात कर रहा था. काफी परेशान लग रहा था. मुझ से बोला कि मैं आप से बात कर लूं.’’

‘‘मगर, मुझ से तो कुछ नहीं बोला. बात क्या है मुन्ना की अम्मां. खुल कर बोलो. कई सालों से बिल्डिंग को ले कर समिति, किराएदार, मालिक और हाउसिंग बोर्ड के बीच लगातार मीटिंग चल रही है, यह तो मैं जानता हूं, पर आखिर में फैसला क्या हुआ?’’

‘‘वह कह रहा था कि हमारी बिल्डिंग अब बहुत पुरानी और जर्जर हो चुकी है, इसलिए बरसात के पहले सभी किराएदारों को घर खाली करने होंगे. सरकार की नई योजना के मुताबिक इसे फिर से बनाया जाएगा, पर तब तक सब को अपनीअपनी छत का इंतजाम खुद करना होगा. वह कुछ रुपयों की बात कर रहा था. जल्दी में था, इसलिए आप से मिले बिना ही चला गया.’’

गंगाप्रसाद तिवारी अब गहरी सोच में डूब गए. इतने बड़े शहर में बड़ी मुश्किल से घरपरिवार का किसी तरह से गुजारा हो रहा था. बुढ़ापे के चलते उन की अपनी नौकरी भी अब नहीं रही. ऐसे में नए सिरे से नया मकान ढूंढ़ना, उस का किराया देना नाकों चने चबाने जैसा है. गैलरी में कुरसी पर बैठेबैठे तिवारीजी यादों में खो गए थे.

उन की आंखों के सामने 30 साल पहले का मंजर किसी चलचित्र की तरह चलने लगा.

2 छोटेछोटे बच्चे और मुन्ने की मां को ले कर जब वे पहली बार इस शहर में आए थे, तब यह शहर अजनबी सा लग रहा था. पर समय के साथ वे यहीं के हो कर रह गए.

सेठ किलाचंदजी ऐंड कंपनी में मुनीम की नौकरी, छोटा सा औफिस, एक टेबल और कुरसी. मगर कारोबार करोड़ों का था, जिस के वे एकछत्र सेनापति थे.

सेठजी की ही मेहरबानी थी कि उस मुश्किल दौर में बड़ी मुश्किल से लाखों की पगड़ी का जुगाड़ कर पाए और अपने परिवार के लिए एक छोटा सा आशियाना बना पाए. दिनभर की थकान मिटाने के लिए अपने हक की छोटी सी जमीन, जहां सुकून से रात गुजर जाती थी और सुबह होते ही फिर वही रोज की आपाधापी भरी तेज रफ्तार वाली शहर की जिंदगी.

पहली बार मुन्ने की मां जब गांव से निकल कर ट्रेन में बैठी, तो उसे सबकुछ सपना सा लग रहा था. 2 रात का सफर करते हुए उसे लगा, जैसे वह विदेश जा रही हो. धीरे से वह कान में फुसफुसाई, ‘‘अजी, इस से तो अच्छा अपना गांव था. सभी अपने थे वहां. यहां तो ऐसा लगता है, जैसे हम किसी पराए देश में आ गए हों? कैसे गुजारा होगा यहां?’’

‘‘चिंता मत करो मुन्ने की अम्मां, सब ठीक हो जाएगा. जब तक मन करेगा, यहां रहेंगे, और जब घुटन होने लगेगी तो अपने गांव लौट जाएंगे. गांव का घर, खेत, खलिहान सब है. अपने बड़े भाई के जिम्मे सौंप कर आया हूं. बड़ा भाई पिता समान होता है.’’

इन 30 सालों में इस अजनबी शहर में हम ऐसे रचबस गए, मानो यही अपनी कर्मभूमि है. आज मुन्ने की मां भी गांव में जा कर बसने का नाम नहीं लेती. उसे इस शहर से प्यार हो गया है. उसे ही क्यों? खुद मेरे और दोनों बच्चों के रोमरोम में यह शहर बस गया है. माना कि अब वे थक चुके हैं, मगर अब बच्चों की पढ़ाई पूरी हो गई है. उन्हें ढंग की नौकरी मिल जाएगी तो उन के ब्याह कर देंगे और जिंदगी की गाड़ी फिर से पटरी पर अपनी रफ्तार से दौड़ने लगेगी. अचानक किसी की आवाज ने तिवारीजी की सोच भंग की. देखा तो सामने मुन्ने की मां थी.

‘‘अजी, आप किस सोच में डूबे हो? सुबह से दोपहर हो गई. चलो, अब भोजन कर लो. मुन्ना भी आ गया है. उस से पूरी बात कर लो और सब लोग मिल कर सोचो कि आगे क्या करना है? आखिर कोई हल तो निकालना ही पड़ेगा.’’

भोजन के समय तिवारीजी का पूरा परिवार एकसाथ बैठ कर सोचविचार करने लगा.

मुन्ना ने बताया, ‘‘पापा, हमारी बिल्डिंग का हाउसिंग बोर्ड द्वारा रीडवलपमैंट किया जा रहा है. सबकुछ अब फाइनल हो गया है. एग्रीमैंट के मुताबिक हमें मालिकाना अधिकार का 250 स्क्वायर फुट का फ्लैट मुफ्त में मिलेगा. मगर वह काफी छोटा पड़ेगा, इसलिए अगर कोई अलग से या मौजूदा कमरे में जोड़ कर एक और कमरा लेना चाहता हो, तो उसे ऐक्स्ट्रा कमरा मिलेगा, पर उस के लिए बाजार भाव से दाम देना होगा.’’

‘‘ठीक कहते हो मुन्ना, मुझे तो लगता है कि यदि हम गांव की कुछ जमीन बेच दें, तो हमारा मसला हल हो जाएगा और एक कमरा अलग से मिल जाएगा. ज्यादा रुपयों का इंतजाम हो जाए, तो यह बिलकुल मुमकिन है कि हम अपना एक और फ्लैट खरीद लेंगे,’’ तिवारीजी बोले.

बरसात से पहले तिवारीजी ने डवलपमैंट बोर्ड को अपना रूम सौंप दिया और पूरे परिवार के साथ अपने गांव आ गए. गांव में शुरू के दिनों में बड़े भाई और भाभी ने उन की काफी खातिरदारी की, पर जब उन्हें पूरी योजना के बारे में पता चला तो वे लोग पल्ला झाड़ने लगे.

यह बात गंगाप्रसाद तिवारी की समझ में नहीं आ रही थी. उन्हें कुछ शक हुआ. धीरेधीरे उन्होंने अपनी जगह की खोजबीन शुरू की. हकीकत का पता चलते ही उन के पैरों तले की जमीन ही सरक गई.

‘‘अजी क्या बात हैं? खुल कर बताते क्यों नहीं? दिनभर घुटते रहते हो? अगर जेठजी को हमारा यहां रहना भारी लग रहा है, तो वे हमारे हिस्से का घर, खेत और खलिहान हमें सौंप दें, हम खुद अपना बनाखा लेंगे.’’

‘‘धीरे बोलो भाग्यवान, अब यहां हमारा गुजारा नहीं हो पाएगा. हमारे साथ धोखा हुआ है. हमारे हिस्से की सारी जमीनजायदाद उस कमीने भाई ने जालसाजी से अपने नाम कर ली है.  झूठे कागजात बना कर उस ने दिखाया है कि मैं ने अपने हिस्से की सारी जमीनजायदाद उसे बेच दी है.

‘‘हम बरबाद हो गए मुन्ना की अम्मां. अब तो एक पल के लिए भी यहां कोई ठौरठिकाना नहीं है. हम से भूल यह हुई कि साल 2 साल में एकाध बार यहां आ कर अपनी जमीनजायदाद की कोई खोजखबर नहीं ली.’’

‘‘अरे, यह तो घात हो गया. अब हम कहां रहेंगे? कौन देगा हमें सहारा? कहां जाएंगे हम अपने इन दोनों बच्चों को ले कर? बच्चों को इस बात की भनक लग जाएगी, तो बड़ा अनर्थ हो जाएगा,’’ विलाप कर के मुन्ना की मां रोने लगी.

पूरा परिवार शोक में डूब गया. नहीं चाहते हुए भी तिवारीजी के मन में घुमड़ती पीड़ा की गठरी आखिर खुल ही गई थी.

इस के बाद तिवारी परिवार में कई दिनों तक वादविवाद, सोचविचार होता रहा. सुकून की रोटी जैसे उन के सब्र का इम्तिहान ले रही थी. अपने ही गांवघर में अब गंगाप्रसाद का परिवार बेगाना हो चुका था. उन्हें कोई सहारा नहीं दे रहा था. वे लोग जान चुके थे कि उन्हें लंबी कानूनी लड़ाई लड़नी होगी. पर इस समय गुजरबसर के लिए छोटी सी झुग्गी भी उन के पास नहीं थी. उसी के चलते आज वे दरदर की ठोकरें खाने को मजबूर थे.

उसी गांव में निचली जाति के मधुकर नामक आदमी का अमीर दलित परिवार था. गांव में उन की अपनी बड़ी सी किराने की दुकान थी. बड़ा बेटा रामकुमार पढ़ालिखा और आधुनिक खयालात का नौजवान था. जब उसे छोटे तिवारीजी के परिवार पर हो रहे नाइंसाफी के बारे में पता चला, तो उस का खून खौल उठा, पर वह मजबूर था. गांव में जातिपाति की राजनीति से वह पूरी तरह परिचित था. एक ब्राह्मण परिवार को मदद करने का मतलब अपनी बिरादरी से पंगा लेना था. पर दूसरी तरफ उसे शहर से आए उस परिवार के प्रति लगाव भी था. उस दिन घर में उस के पिताजी ने तिवारीजी को ले कर बात छेड़ी.

‘‘जानते हो तुम लोग, हमारा वही परिवार है, जिस के पुरखे किसी जमाने में उसी तिवारीजी के यहां पुश्तों से चाकरी किया करते थे. तिवारीजी के दादाजी बड़े भले इनसान थे. जब हमारा परिवार रोटी के लिए मुहताज था, तब इस तिवारीजी के दादाजी ने आगे बढ़ कर हमें गुलामी की दास्तां से छुटकारा दे कर अपने पैरों पर खड़े होने का हौसला दिया था. उस अन्नदाता परिवार के एक सदस्य पर आज विपदा की घड़ी आई है. ऐसे में मुझे लगता है कि हमें उन के लिए कुछ करना चाहिए. आज उसी परिवार की बदौलत गांव में हमारी दुकान है और हम सुखी हैं.’’

‘‘हां बाबूजी, हमें सच का साथ देना चाहिए. मैं ने सुना है कि बैंकों के राष्ट्रीयकरण के बाद जब बैंक के दरवाजे सामान्य लोगों के लिए खुले, तब बड़े तिवारीजी ने हमें राह दिखाई थी. यह उसी बदलाव के दौर का नतीजा है कि कभी दूसरों के टुकड़ों पर पलने वाला गांव का यह परिवार आज अमीर परिवारों में गिना जाता है और शान से रहता है,’’ रामकुमार ने अपनी जोरदार हुंकार भरी.

रामकुमार ताल ठोंक कर अब छोटे तिवारीजी के साथ खड़ा हो गया था. काफी सोचसमझ कर इस परिवार ने छोटे तिवारीजी से बातचीत की.

‘‘हम आप को दुकान खुलवाने और सिर पर छत के लिए जगह, जमीन, पैसाकौड़ी की हर मुमकिन मदद करने के लिए तैयार हैं. आप अपने पैरों पर खड़े हो जाएंगे, तो यह लड़ाई और आसान  हो जाएगी. एक दिन आप का हक  जरूर मिलेगा.’’

उस परिवार का भरोसा और साथ मिल जाने से तिवारी परिवार का हौसला बढ़ गया था. रामकुमार के सहारे अंकिता अपनी दुकानदारी को बखूबी संभालने लगी थी. इस से घर में पैसे आने लगे थे. धीरेधीरे उन के पंखों में बल आने लगा और वे अपने पैरों पर खड़े हो जाते हैं.

तिवारीजी की दुकानदारी का भार उन की बिटिया अंकिता के जिम्मे था, क्योंकि तिवारीजी और उन का बड़ा बेटा मुन्ना अकसर कोर्टकचहरी और शहर के फ्लैट के काम में बिजी रहते थे.

इस घटना से गांव के ब्राह्मण घरों में  जातपांत की राजनीति जन्म लेने लगी. कुंठित निचली बिरादरी के लोग भी रामकुमार और अंकिता को ले कर साजिश रचने लगे. चारों ओर तरहतरह की अफवाहें रंग  लेने लगीं, पर बापबेटे ने पूरे गांव को खरीखोटी सुनाते हुए अपने हक की लड़ाई जारी रखी. इस काम में रामकुमार तन, मन और धन से उन के साथ था. उस ने जिले के नामचीन वकील से तिवारीजी की मुलाकात कराई और उस की सलाह पर ही पुलिस में शिकायत भी दर्ज कराई.

छोटीमोटी इस उड़ान को भरतेभरते अंकिता और रामकुमार कब एकदूसरे को दिल दे बैठे, इस का उन्हें पता  ही नहीं चला. इस बात की भनक पूरे गांव को लग जाती है. लोग इस बेमेल प्यार को जातपांत का रंग दे कर  तिवारी और चौहान परिवार को  बदनाम करने की कोशिश करते हैं. इस काम में अंकिता के ताऊजी सब से आगे थे.

गंगाप्रसादजी के परिवार को जब  इस बात की जानकारी होती?है, तो वे राजीखुशी इस रिश्ते को स्वीकार कर लेते हैं. इतने सालों तक बड़े शहर में रहते  हुए उन की सोच भी बड़ी हो चुकी होती है. जातपांत के बजाए सम्मान, इज्जत और इनसानियत को वे तवज्जुह देना जानते थे.

जमाने के बदलते दस्तूर के साथ बदलाव की आंधी अब अपना रंग जमा चुकी थी. अंकिता ने अपना फैसला सुनाया, ‘‘बाबूजी, मैं रामकुमार से प्यार करती हूं और हम शादी के बंधन में बंध कर अपनी नई राह बनाना चाहते हैं.’’

‘‘बेटी, हम तुम्हारे फैसले का स्वागत करते हैं. हमें तुम पर पूरा भूरोसा है. अपना भलाबुरा तुम अच्छी तरह से जानती हो. इन के परिवार के हम पर बड़े उपकार हैं.’’

आखिर में दोनों परिवारों ने आपसी रजामंदी से उसी गांव में विरोधियों की छाती पर मूंग दलते हुए अंकिता और रामकुमार की शादी बड़े धूमधाम से करा दी.

एक दिन वह भी आया, जब गंगाप्रसादजी अपनी जमीनजायदाद की लड़ाई जीत गए. जालसाजी के केस में उन के बड़े भाई को जेल की हवा खाने की नौबत भी आ गई थी. Family Story In Hindi

Hindi Family Story: महक वापस लौटी – दोस्त ने की दोस्त की मदद

Hindi Family Story: सुमि को रोज 1-2 किलोमीटर पैदल चलना बेहद पसंद था. वह आज भी बस न ले कर दफ्तर के बाद अपने ही अंदाज में मजेमजे से चहलकदमी करते हुए, तो कभी जरा सा तेज चलती हुई दफ्तर से लौट रही थी कि सामने से मनोज को देख कर एकदम चौंक पड़ी.

सुमि सकपका कर पूछना चाहती थी, ‘अरे, तुम यहां इस कसबे में कब वापस आए?’

पर यह सब सुमि के मन में ही कहीं  रह गया. उस से पहले मनोज ने जोश में आ कर उस का हाथ पकड़ा और फिर तुरंत खुद ही छोड़ भी दिया.

मनोज की छुअन पा कर सुमि के बदन में जैसे कोई जादू सा छा गया हो. सुमि को लगा कि उस के दिल में जरा सी झनझनाहट हुई है, कोई गुदगुदी मची है.

ऐसा लगा जैसे सुमि बिना कुछ  बोले ही मनोज से कह उठी, ‘और मनु, कैसे हो? बोलो मनु, कितने सालों के बाद मिले हो…’

मनोज भी जैसे सुमि के मन की बात को साफसाफ पढ़ रहा था. वह आंखों से बोला था, ‘हां सुमि, मेरी जान. बस अब  जहां था, जैसा था, वहां से लौट आया, अब तुम्हारे पास ही रहूंगा.’

अब सुमि भी मन ही मन मंदमंद मुसकराने लगी. दिल ने दिल से हालचाल पूछ लिए थे. आज तो यह गुफ्तगू भी बस कमाल की हो रही थी.

पर एक सच और भी था कि मनोज को देखने की खुशी सुमि के अंगअंग में छलक रही थी. उस के गाल तक लाल हो गए थे.

मनोज में कोई कमाल का आकर्षण था. उस के पास जो भी होता उस के चुंबकीय असर में मंत्रमुग्ध हो जाता था.

सुमि को मनोज की यह आदत कालेज के जमाने से पता थी. हर कोई उस का दीवाना हुआ करता था. वह कुछ भी कहां भूली थी.

अब सुमि भी मनोज के साथ कदम से कदम मिला कर चलने लगी. दोनों चुपचाप चल रहे थे.

बस सौ कदम चले होंगे कि एक ढाबे जैसी जगह पर मनोज रुका, तो सुमि भी ठहर गई. दोनों बैंच पर आराम से बैठ गए और मनोज ने ‘2 कौफी लाना’ ऐसा  कह कर सुमि से बातचीत शुरू कर दी.

‘‘सुमि, अब मैं तुम से अलग नहीं रहना चाहता. तुम तो जानती ही हो, मेरे बौस की बरखा बेटी कैसे मुझे फंसा कर ले गई थी. मैं गरीब था और उस के जाल में ऐसा फंसा कि अब 3 साल बाद यह मान लो कि वह जाल काट कर आ गया हूं.’

यह सुन कर तो सुमि मन ही मन हंस पड़ी थी कि मनोज और किसी जाल में फंसने वाला. वह उस की नसनस से वाकिफ थी.

इसी मनोज ने कैसे अपने एक अजीज दोस्त को उस की झगड़ालू पत्नी से छुटकारा दिलाया था, वह पूरी दास्तान जानती थी. तब कितना प्रपंच किया था इस भोले से मनोज ने.

दोस्त की पत्नी बरखा बहुत खूबसूरत थी. उसे अपने मायके की दौलत और पिता के रुतबे पर ऐश करना पसंद था. वह हर समय पति को मायके के ठाठबाट और महान पिता की बातें बढ़ाचढ़ा कर सुनाया करती थी.

मनोज का दोस्त 5 साल तक यह सहन करता रहा था, पर बरखा के इस जहर से उस के कान पक गए थे. फिर एक दिन उस ने रोरो कर मनोज को आपबीती सुनाई कि वह अपने ही घर में हर रोज ताने सुनता है. बरखा को बातबात पर पिता का ओहदा, उन की दौलत, उन के कारनामों में ही सारा बह्मांड नजर आता है.

तब मनोज ने उस को एक तरकीब बताई थी और कहा था, ‘यार, तू इस जिंदगी को ऐश कर के जीना सीख. पत्नी अगर रोज तुझे रोने पर मजबूर कर रही है, तो यह ले मेरा आइडिया…’

फिर मनोज के दोस्त ने वही किया. बरखा को मनोज के बताए हुए एक शिक्षा संस्थान में नौकरी करने का सुझाव दिया और पत्नी को उकसाया कि वह अपनी कमाई उड़ा कर जी सकती है. उस को यह प्रस्ताव भी दिया कि वह घर पर नौकर रख ले और बस आराम करे.

दोस्त की मनमौजी पत्नी बरखा यही चाहती थी. वह मगन हो कर घर की चारदीवारी से बाहर क्या निकली कि उस मस्ती में डूब ही गई.

वह दुष्ट अपने पति को ताने देना ही भूल गई. अब मनोज की साजिश एक महीने में ही काम कर गई. उस संस्थान का डायरैक्टर एक नंबर का चालू था. बरखा जैसी को उस ने आसानी से फुसला लिया. बस 4 महीने लगे और  मनोज की करामात काम कर गई.

दोस्त ने अपनी पत्नी को उस के बौस के साथ पकड़ लिया और उस के पिता को वीडियो बना कर भेज दिया.

कहां तो दोस्त को पत्नी से 3 साल अपने अमीर पिता के किस्सों के ताने सुनने पड़े और कहां अब वह बदनामी नहीं करने के नाम पर उन से लाखों रुपए महीना ले रहा था.

ऐसा था यह धमाली मनोज. सुमि मन ही मन यह अतीत याद कर के अपने होंठ काटने लगी. उस समय वह मनोज के साथ ही नौकरी कर रही थी. हर घटना उस को पता थी.

ऐसा महातिकड़मी मनोज किसी की चतुराई का शिकार बनेगा, सुमि मान नहीं पा रही थी.

मगर मनोज कहता रहा, ‘‘सुमि, पता है मुंबई मे ऐश की जिंदगी के नाम पर बौस ने नई कंपनी में मुझे रखा जरूर, मगर वे बापबेटी तो मुझे नौकर समझने लगे.’’

सुमि ने तो खुद ही उस बौस की  यहां कसबे की नौकरी को तिलांजलि दे दी थी. वह यों भी कुछ सुनना नहीं चाहती थी, मगर मजबूर हो कर सुनती रही. मनोज बोलता रहा, ‘‘सुमि, जानती हो मुझ से शादी तो कर ली, पद भी दिया, मगर मेरा हाथ हमेशा खाली ही रहता था. पर्स बेचारा शरमाता रहता था. खाना पकाने, बरतन मांजने वाले नौकरों के पास भी मुझ से ज्यादा रुपया होता था.

‘‘मुझे न तो कोई हक मिला, न कोई इज्जत. मेरे नाम पर करोड़ों रुपया जमा कर दिया, एक कंपनी खोल दी, पर मैं ठनठन गोपाल.

‘‘फिर तो एक दिन इन की दुश्मन कंपनी को इन के राज बता कर एक करोड़ रुपया इनाम में लिया और यहां आ गया.’’

‘‘पर, वे तुम को खोज ही लेंगे,’’ सुमि ने चिंता जाहिर की.

यह सुन कर मनोज हंसने लगा, ‘‘सुमि, दोनों बापबेटी लंदन भाग गए हैं. उन का धंधा खत्म हो गया है. अरबों रुपए का कर्ज है उन पर. अब तो वे मुझ को नहीं पुलिस उन को खोज रही है. शायद तुम ने अखबार नहीं पढ़ा.’’

मनोज ने ऐसा कहा, तो सुमि हक्कीबक्की रह गई. उस के बाद तो मनोज ने उस को उन बापबेटी के जोरजुल्म की ऐसीऐसी कहानियां सुनाईं कि सुमि को मनोज पर दया आ गई.

घर लौटने के बाद सुमि को उस रात नींद ही नहीं आई. बारबार मनोज ही खयालों में आ जाता. वह बेचैन हो जाती.

आजकल अपने भैयाभाभी के साथ रहने वाली सुमि यों भी मस्तमौला जिंदगी ही जी रही थी. कालेज के जमाने से मनोज उस का सब से प्यारा दोस्त था, जो सौम्य और संकोची सुमि के शांत मन में शरारत के कंकड़ गिरा कर उस को खुश कर देता था.

कालेज पूरा कर के दोनों ने साथसाथ नौकरी भी शुरू कर दी. अब तो सुमि के मातापिता और भाईभाभी सब यही मानने लगे थे कि दोनों जीवनसाथी बनने का फैसला ले चुके हैं.

मगर, एक दिन मनोज अपने उसी बौस के साथ मुंबई चला गया. सुमि को अंदेशा तो हो गया था, पर कहीं उस का मन कहता जरूर कि मनोज लौट आएगा. शायद उसी के लिए आया होगा.

अब सुमि खुश थी, वरना तो उस को यही लगने लगा था कि उस की जिंदगी जंगल में खिल रहे चमेली के फूल जैसी हो गई है, जो कब खिला, कैसा खिला, उस की खुशबू कहां गई, कोई नहीं जान पाएगा.

अगले दिन सुमि को अचानक बरखा दिख गई. वह उस की तरफ गई.

‘‘अरे बरखा… तुम यहां? पहचाना कि नहीं?’’

‘‘कैसी हो? पूरे 7 साल हो गए.’’ कहां बिजी रहती हो.

‘‘तुम बताओ सुमि, तुम भी तो नहीं मिलतीं,’’ बरखा ने सवाल का जवाब सवाल से दिया.

दोनों में बहुत सारी बातें हुईं. बरखा ने बताया कि मनोज आजकल मुंबई से यहां वापस लौट आया है और उस की सहेली की बहन से शादी करने वाला है.

‘‘क्या…? किस से…?’’ यह सुन कर सुमि की आवाज कांप गई. उस को लगा कि पैरों तले जमीन खिसक गई.

‘‘अरे, वह थी न रीमा… उस की बहन… याद आया?’’

‘‘मगर, मनोज तो…’’ कहतेकहते सुमि रुक गई.

‘‘हां सुमि, वह मनोज से तकरीबन 12 साल छोटी है. पर तुम जानती हो न मनोज का जादुई अंदाज. जो भी उस से मिला, उसी का हो गया.

‘‘मेरे स्कूल के मालिक, जो आज पूरा स्कूल मुझ पर ही छोड़ कर विदेश जा बसे हैं, वे तक मनोज के खास दोस्त हैं.’’

‘‘अच्छा?’’

‘‘हांहां… सुमि पता है, मैं अपने मालिक को पसंद करने लगी थी, मगर मनोज ने ही मुझे बचाया. हां, एक बार मेरी वीडियो क्लिप भी बना दी.

‘‘मनोज ने चुप रहने के लाखों रुपए लिए, लेकिन आज मैं बहुत ही खुश हूं. पति ने दूसरी शादी रचा ली है. मैं अब आजाद हूं.’’

‘‘अच्छा…’’ सुमि न जाने कैसे यह सब सुन पा रही थी. वह तो मनोज की शादी की बात पर हैरान थी. यह मनोज फिर उस के साथ कौन सा खेल खेल रहा था.

सुमि रीमा का घर जानती थी. पास में ही था. उस के पैर रुके नहीं. चलती गई. रीमा का घर आ गया.

वहां जा कर देखा, तो रीमा की मां मिलीं. बताया कि मनोज और खुशी तो कहीं घूमने चले गए हैं.

यह सुन कर सुमि को सदमा लगा. खैर, उस को पता तो लगाना ही था कि मनोज आखिर कर क्या रहा है.

सुमि ने बरखा से दोबारा मिल कर पूरी कहानी सुना दी. बरखा यह सुन कर खुद भौंचक सी रह गई.

सुमि की यह मजबूरी उस को करुणा से भर गई थी. वह अभी इस समय तो बिलकुल समझ नहीं पा रही थी कि कैसे होगा.

खैर, उस ने फिर भी सुमि से यह वादा किया कि वह 1-2 दिन में जरूर कोई ठोस सुबूत ला कर देगी.

बरखा ने 2 दिन बाद ही एक मोबाइल संदेश भेजा, जिस में दोनों की  बातचीत चल रही थी. यह आडियो था. आवाज साफसाफ समझ में आ रही थी.

मनोज अपनी प्रेमिका से कह रहा था कि उस को पागल करार देंगे. उस के घर पर रहेंगे.

सुमि यह सुन कर कांपने लगी. फिर भी सुमि दम साध कर सुन रही थी. वह छबीली लड़की कह रही थी कि ‘मगर, उस को पागल कैसे साबित करोगे?’

‘अरे, बहुत आसान है. डाक्टर का  सर्टिफिकेट ले कर?’

‘और डाक्टर आप को यह सर्टिफिकेट क्यों देंगे?’

‘अरे, बिलकुल देंगे.’ फिक्र मत करो.

‘महिला और वह भी 33 साल की, सोचो है, न आसान उस को उल्लू बनाना, बातबात पर चिड़चिड़ापन पैदा करना कोई मुहिम तो है नहीं, बस जरा माहौल बनाना पड़ेगा.

‘बारबार डाक्टर को दिखाना पड़ेगा. कुछ ऐसा करूंगा कि 2-4 पड़ोसियों के सामने शोर मचा देगी या बरतन तोड़ेगी पागलपन के लक्षण यही तो होते हैं. मेरे लिए बहुत आसान है. वह बेचारी पागलखाने मत भेजो कह कर रोज गिड़गिड़ा कर दासी बनी रहेगी और यहां तुम आराम से रहना.’

‘मगर ऐसा धोखा आखिर क्यों? उस को कोई नुकसान पहुंचाए बगैर, इस प्रपंच के बगैर भी हम एक हो सकते  हैं न.’

‘हांहां बिलकुल, मगर कमाई के  साधन तो चाहिए न मेरी जान. उस के नाम पर मकान और दुकान है. यह मान लो कि 2-3 करोड़ का इंतजाम है.

‘सुमि ने खुद ही बताया है कि शादी करते ही यह सब और कुछ गहने उस के नाम पर हो जाएंगे. अब सोचो, यह इतनी आसानी से आज के जमाने में कहां मिल पाता है.

‘यह देखो, उस की 4 दिन पहले की तसवीर, कितनी भद्दी. अब सुमि तो बूढ़ी हो रही है. उस को सहारा चाहिए. मातापिता चल बसे हैं. भाईभाभी की  अपनी गृहस्थी है.

‘मैं ही तो हूं उस की दौलत का सच्चा रखवाला और उस का भरोसेमंद हमदर्द. मैं नहीं करूंगा तो वह कहीं और जाएगी, किसी न किसी को खोजेगी.

‘मैं तो उस को तब से जानता हूं, जब वह 17 साल की थी. सोचो, किसी और को पति बना लेगी तो मैं ही कौन सा खराब हूं.’

रिकौर्डिंग पूरी हो गई थी. सुमि को बहुत दुख हुआ, पर वह इतनी भी कमजोर नहीं थी कि फूटफूट कर रोने लगती.

सुमि का मन हुआ कि वह मनोज का  गला दबा दे, उस को पत्थर मार कर घायल कर दे. लेकिन कुछ पल बाद ही सुमि ने सोचा कि वह तो पहले से ही ऐसा था. अच्छा हुआ पहले ही पता लग गया.

कुछ देर में ही सुमि सामान्य हो गई. वह जानती थी कि उस को आगे क्या करना है. मनोज का नाम मिटा कर अपना हौसला समेट कर के एक स्वाभिमानी जिद का भरपूर मजा  उठाना है. Hindi Family Story

Hindi Kahani: गियर वाली साइकिल – विक्रम साहब की ठाठ

Hindi Kahani: ‘टनटनटन…’ साइकिल की घंटी बजती तो दफ्तर के गार्ड विक्रम साहब की साइकिल को खड़ी करने के लिए दौड़ पड़ते. विक्रम साहब की साइकिल की इज्जत और रुतबा किसी मर्सडीज कार से कम न था. विक्रम साहब ठसके से साइकिल से उतरते. अपने पाजामे में फंसाए गए रबड़ बैंड को निकाल कर उसे दुरुस्त करते, साइकिल पर टंगा झोला कंधे पर टांगते और गार्डों को मुन्नाभाई की तरह जादू की झप्पी देते हुए अपनी सीट की तरफ चल पड़ते.

विक्रम साहब एक अजीब इनसान थे. साहबी ढांचे में तो वे किसी भी एंगल से फिट नहीं बैठते थे या यों कहें कि अफसर लायक एक भी क्वालिटी नहीं थी उन में. न चाल में, न पहनावे में, न बातचीत में, न स्टेटस में. 90 हजार रुपए महीना की तनख्वाह उठाते थे विक्रम साहब, पर अपने ऊपर वे 2 हजार रुपए भी खर्च न करते थे. दाल, चावल, सब्जी, रोटी खाने के अलावा उन्होंने दुनिया में कभी कुछ नहीं खाया था.

अपने मुंह से तो यह सब वे बताते ही थे, उन के डीलडौल को देख कर लगता भी यही था कि उन्होंने रूखी रोटी और सूखी सब्जी के अलावा कभी कुछ खाया भी नहीं होगा. काग जैसा रूप था उन का, पर अपनी बोली को उन्होंने कोयल जैसी मिठास से भर दिया था. औरतों के तो वे बहुत ही प्रिय थे. मर्द होते हुए भी औरतें उन से बेझिझक अपनी निजी बातें शेयर कर सकती थीं. उन्हें कभी नहीं लगता था कि वे अपने किसी मर्द साथी से बात कर रही हैं. लगता था जैसे अपनी किसी प्रिय सखी से बातें कर रही हैं. उन्हें विक्रम साहब के चेहरे पर कभी हवस नहीं दिखती थी.

दफ्तर में 10 मर्दों के साथ 3 औरतें थीं. बाकी 7 के 7 मर्द विक्रम साहब की तरह औरतों में लोकप्रिय बनने के अनेक जतन करते, पर कोई भी कामयाब न हो पाता था. विक्रम साहब सीट पर आते ही सब से पहले डस्टर ले कर अपनी मेज साफ करने लगते थे, फिर पानी का जग ले कर वाटर कूलर की तरफ ऐसे दौड़ लगाते थे जैसे अपने गांव के कुएं से पानी भरने जा रहे हों.

चपरासी शरमाते हुए उन के पीछे दौड़ता, ‘‘साहब, आप बैठिए. मैं पानी लाता हूं.’’ विक्रम साहब उसे मीठी डांट लगाते, ‘‘नहीं, तुम भी मेरी तरह सरकारी नौकर हो. तुम को मौका नहीं मिला इसलिए तुम चपरासी बन गए. मुझे मौका मिला इसलिए मैं अफसर बन गया. इस का मतलब यह नहीं है कि तुम मुझे पानी पिलाओगे. तुम्हें सरकार ने सरकारी काम के लिए रखा है और पानी या चाय पिलाना सरकारी काम नहीं है.’’

विक्रम साहब के सामने के चारों दांत 50 की उम्र में ही उन का साथ छोड़ गए थे. लेकिन कमाल था कि अब 59 साल की उम्र में भी उन के चश्मा नहीं लगा था.

दिनभर लिखनेपढ़ने का काम था इसलिए पूरा का पूरा स्टाफ चश्मों से लैस था. एक अकेले विक्रम साहब नंगी आंखों से सूई में धागा भी डाल लेते थे. फुसरत के पलों में जब सारे लोग हंसीमजाक के मूड में होते तो विक्रम साहब से इस का राज पूछते, ‘‘सर, आप के दांत तो कब के स्वर्ग सिधार गए, पर आंखों को आप कौन सा टौनिक पिलाते हैं कि ये अभी भी टनाटन हैं?’’

विक्रम साहब सब को उलाहना देते, ‘‘मैं तुम लोगों की तरह 7 बजे सो कर नहीं उठता हूं और फिर कार या मोटरसाइकिल से भी नहीं चलता हूं. मैं दिमाग को भी बहुत कम चलाता हूं, केवल साइकिल चलाता हूं रोज 40 किलोमीटर…’’

विक्रम साहब के पास सर्टिफिकेटों को अटैस्ट कराने व करैक्टर सर्टिफिकेट बनाने के लिए नौजवानों की भीड़ लगी रहती थी. बहुत से गजटेड अफसरों के पास मुहर थी, पर वे ओरिजनल सर्टिफिकेट न होने पर किसी की फोटोकौपी भी अटैस्ट नहीं करते थे. डर था कि किसी गलत फोटोकौपी पर मुहर व दस्तखत न हो जाएं.

लेकिन विक्रम साहब के पास कोई भी आता, उन की मुहर हमेशा तैयार रहती थी उस को अटैस्ट कर देने के लिए. वे कहते थे, ‘‘मेरी शक्ल अच्छी तरह याद कर लो. जब तुम डाक्टर बन जाओगे तो मैं अपना इलाज तुम्हीं से कराऊंगा.’’ नौजवानों के वापस जाते ही वे

सब से कहते, ‘‘ये नौजवान ऐसे ही बेरोजगारी का दंश झेल रहे हैं. फार्म पर फार्म भरे जा रहे हैं. हम इन्हें नौकरी तो नहीं दे सकते हैं, पर कम से कम इन के सर्टिफिकेट को अटैस्ट कर के इन का मनोबल तो बढ़ा ही सकते हैं.’’ सब उन की सोच के आगे खुद को बौना महसूस कर अपनेअपने काम में बिजी होने की ऐक्टिंग करने लगते.

विक्रम साहब में गुण ठसाठस भरे हुए थे. वे कभी किसी पर नहीं हंसते थे, दुनिया के सारे जुमलों को वे खुद में दिखा कर सब का मनोरंजन करते थे. विक्रम साहब जिंदादिली की मिसाल थे. दफ्तर में हर कोई हाई ब्लडप्रैशर

की दवा, कोई शुगर की टिकिया, कोई थायराइड की टेबलेट खाखा कर अपनी जिंदगी को तेजी से मौत के मुंह में जाने से थामने की कोशिश में लगा था, पर विक्रम साहब को इन बीमारियों के बारे में जानकारी तक नहीं थी. उन्हें कभी किसी ने जुकाम भी होते नहीं देखा था. विक्रम साहब चकरघिन्नी की तरह दिनभर काम के चारों ओर चक्कर काटा करते थे. वे अपने अलावा दूसरों के काम के बोझ तले दबे रहते थे. सारा काम खत्म करने के बाद शाम 5 बजे वे लंच के लिए अपने झोले से रोटियां निकालते थे.

यों तो विक्रम साहब की कभी किसी से खिटपिट नहीं होती थी लेकिन आखिर थे तो वे इनसान ही. बड़े साहब के अडि़यल रवैए ने उन को एक बार इतना खिन्न कर दिया था कि उन्होंने अपनी सीट के एक कोने में हनुमान की मूरत रख ली थी और डंके की चोट पर ऐलान कर दिया था,

‘‘जब एक धर्म वालों को अपने धार्मिक काम पूरे करने के लिए दिन में 2-2 बार काम बंद करने की इजाजत है तो उन को क्यों नहीं? उन के यहां त्रिकाल संध्या का नियम है. वे दफ्तर नहीं छोड़ेंगे त्रिकाल संध्या के लिए, लेकिन दोपहर की संध्या के लिए वे एक घंटा कोई काम नहीं करेंगे.’’

विक्रम साहब के इस सवाल का किसी के पास कोई जवाब नहीं था. दफ्तर में धर्म के नाम पर सरकारी मुलाजिम समय का किस तरह गलत इस्तेमाल करते हैं, इस का गुस्सा सालों से लोगों के अंदर दबा पड़ा था. विक्रम साहब ने उस गुस्से को आवाज दे

दी थी. महीने के तीसों दिन रात के 8 बजे तक दफ्तर खुलता था. रोटेशन से सब की ड्यूटी लगती थी. इस में तीनों औरतों को भी बारीबारी से ड्यूटी करनी पड़ती थी.

रात 8 बजे तक और छुट्टियों में ड्यूटी करने में वे तीनों औरतें खुद को असहज पाती थीं. उन्होंने एक बार हिम्मत कर के डायरैक्टर के सामने अपनी समस्या रखी थी. डायरैक्टर साहब ने उन्हें टका सा जवाब दिया था, ‘‘जब आप ऐसी छोटीमोटी परेशानी भी नहीं उठा सकतीं तो नौकरी में आती ही क्यों हैं?’’

साथी मर्द भी उन औरतों पर तंज कसते, ‘‘जब आप को तनख्वाह मर्दों के बराबर मिल रही है तो काम आप को मर्दों से कम कैसे मिल सकता है?’’ लेकिन विक्रम साहब के आने के बाद औरतों की यह समस्या खुद ही खत्म हो गई थी. वे पता नहीं किस मिट्टी के बने थे, जो हर रोज रात के

8 बजे तक काम करते और हर छुट्टी के दिन भी दफ्तर आते थे. 6 बजते ही वे तीनों औरतोें को कहते, ‘‘आप जाएं अपने घर. आप की पहली जिम्मेदारी है आप का परिवार. आप के ऊपर दोहरी जिम्मेदारियां हैं. हमारी तरह थोड़े ही आप को घर जा कर बनाबनाया खाना मिलेगा.’’

विक्रम साहब की इस हमदर्दी से सारे दूसरे मर्द कसमसा कर रह जाते थे. विक्रम साहब न तो जवान थे, न हैंडसम और न ही रसिकमिजाज, इसलिए औरतों के प्रति उन की इस दरियादली पर कोई छींटाकशी करता तो लोगों की नजर में खुद ही झूठा साबित हो जाता.

विक्रम साहब की इस दरियादिली का फायदा धीरेधीरे किसी न किसी बहाने दूसरे मर्द साथी भी उठाने लगे थे.

विक्रम साहब जब सड़क पर साइकिल से चलते तो वे एक साधारण बुजुर्ग से नजर आते थे. कोई साइकिल चलाने वाला भरोसा भी नहीं कर सकता था कि उन के बगल में साइकिल चला रहा यह आदमी कोई बड़ा सरकारी अफसर है.

‘वर्ल्ड कार फ्री डे’ के दिन कुछ नेता व अफसर अपनीअपनी कारें एक दिन के लिए छोड़ कर साइकिल से या पैदल दफ्तर जाने की नौटंकी करते हुए अखबारों में छपने के लिए फोटो खिंचवा रहे थे. विक्रम साहब के पास कुछ लोगों के फोन भी आ रहे थे कि वे सिफारिश कर के किसी बड़े अखबार में उन के फोटो छपवा दें. विक्रम साहब अपनी साइकिल पर बैठ कर उस दिन दिनभर दौड़भाग में लगे थे,

उन लोगों के फोटो छपवाने के लिए, पर उस 59 साल के अफसर की ओर न अपना फोटो छपवाने वालों का ध्यान गया था और न छापने वालों का, जो चाहता तो लग्जरी कार भी खरीद सकता था. पर जिस ने इस धरती को बचाने की चिंता में अपने 35 साल के कैरियर में हर रोज साइकिल चलाई थी, उस ने अपनी जिंदगी के हर दिन को ‘कार फ्री डे’ बना रखा था.

विक्रम साहब के रिटायरमैंट में बहुत कम समय रह गया था. सब उदास थे खासकर औरतें. उन्हें अच्छी तरह मालूम था कि विक्रम साहब के जाने के बाद उन्हें पहले की तरह 8 बजे तक और छुट्टियों में भी अपनी ड्यूटी करनी पड़ेगी. वे सब चाहती थीं कि विक्रम साहब किसी भी तरह से कौंट्रैक्ट पर दूसरे लोगों की तरह नौकरी करते रहें.

विक्रम साहब कहां मानने वाले थे. उन्होंने सभी को अपने भविष्य की योजना बता दी थी कि वे रिटायरमैंट के बाद सभी लोगों को साइकिल चलाने के फायदे बताएंगे खासकर नौजवानों को वे साइकिल चलाने के लिए बढ़ावा देंगे. विक्रम साहब ने एक बुकलैट भी तैयार कर ली थी, जिस में दुनियाभर की उन हस्तियों की तसवीरें थीं, जो रोज साइकिल से अपने काम करने की जगह पर जाती थीं. उस में उन्होंने दुनिया के उन आम लोगों को भी शामिल किया था, जो साइकिल चलाने के चलते पूरी जिंदगी सेहतमंद रहे थे.

विक्रम साहब ने अपनी खांटी तनख्वाह के पैसों में से बहुत सी रकम बुकलैट की सामग्री इकट्ठा करने व उस की हजारों प्रतियां छपवाने में खर्च कर डाली थीं. उन तीनों औरतों ने भी विक्रम साहब के रिटायरमैंट पर अपनी तरफ से उन्हें गियर वाली साइकिल गिफ्ट करने के लिए रकम जमा करनी शुरू कर दी थी. उन की दिली इच्छा थी कि विक्रम साहब रिटायरमैंट के बाद गियर वाली कार में न सही, गियर वाली साइकिल से तो जरूर चलें. Hindi Kahani

Story In Hindi: सीवर का ढक्कन – जब बन गया नरक रास्ता

Story In Hindi: आज तीसरे दिन कर्फ्यू में 4 घंटे की छूट दी गई थी. इंस्पैक्टर राकेश अपनी पुलिस टीम के साथ हालात पर काबू पाने के लिए गश्त पर निकले हुए थे. रास्ते में आम लोगों से ज्यादा रैपिड ऐक्शन फोर्स के जवान नजर आ रहे थे. सड़कों के किनारे लगे अधजले, अधफटे बैनरपोस्टर दंगों की निशानदेही कर रहे थे.

अपनी गाड़ी से आगे बढ़ते हुए इंस्पैक्टर राकेश ने देखा कि एक सीवर का ढक्कन ऊपरनीचे हो रहा था. उन्होंने फौरन गाड़ी रुकवाई.

सीवर के करीब पहुंचने पर मालूम हुआ कि अंदर से कोई सीवर के ढक्कन को खोलने की कोशिश कर रहा था. इंस्पैक्टर राकेश ने जवानों से ढक्कन हटाने को कहा.

सीवर का ढक्कन खुलने के बाद जब पुलिस का एक सिपाही अंदर झांका तो दंग रह गया. वहां 2 नौजवान गंदे पानी में उकड़ू बैठे हुए थे. उन के कपड़े कीचड़ में सने हुए थे. उन के चेहरे पर मौत का खौफ साफ नजर आ रहा था.

ढक्कन खुलते ही वे दोनों नौजवान हाथ जोड़ कर रोने लगे. उन के गले से ठीक ढंग से आवाज भी नही निकल पा रही थी. उन में से एक ने किसी तरह हिम्मत कर के कहा, “सर… हमें बाहर निकालें…”

बहरहाल, कीचड़ से लथपथ और बदबू में सने हुए उन दोनों लड़कों को बाहर निकाला गया. इस बीच एंबुलैंस भी वहां आ चुकी थी.

बाहर निकलने के बाद वे दोनों लड़के गहरीगहरी सांसें लेने लगे. दोनों के पैरों को कीड़ेमकोड़ों ने काट खाया था, जिन से अभी भी खून बह रहा था. उन के शरीर के कई हिस्सों पर जोंक चिपकी हुई खून पी रही थीं और तिलचट्टे व कीड़े रेंग रहे थे. उन्हें झाड़ने या हटाने की भी ताकत उन में नहीं बची थी.

उन दोनों को जल्दीजल्दी एंबुलैंस में लिटाया गया. एंबुलैंस चलने के पहले ही एक नौजवान बोल पड़ा, “अंदर 2 जने और हैं सर…”

पुलिस टीम को यह समझते देर नहीं लगी कि सीवर में 2 और लोग फंसे हुए हैं. पुलिस का एक जवान सीवर में झांकते हुए बोला, “सर, अंदर 2 डैड बौडी नजर आ रही हैं.”

इंस्पैक्टर राकेश के मुंह से अचानक निकला, “उफ…”

बड़ी मशक्कत से उन दोनों लाशों को बाहर निकाला गया, जो पानी में फूल कर सड़ने लगी थीं. बदबू के मारे नाक में दम हो गया था.

अगले दिन जिंदा बचे उन दोनों लड़कों के बयान से मालूम हुआ कि उन में से एक का नाम महेश और दूसरे का नाम मकबूल है. मरने वाले माजिद और मनोहर थे.

उन में से एक ने बताया, “हम लोग नेताजी का भाषण सुनने आए थे. अभी भाषण शुरू भी नहीं हुआ था कि सभा स्थल के बाहर कहीं से धमाके की आवाज सुनाई पड़ी. पलक झपकते ही अफवाहों का बाजार गरम हो गया और लोगों में भगदड़ मच गई. ‘आतंकवादी हमला’ का शोर सुन कर हम लोग भी भागने लगे.

“लोग अपनी जान बचाने के लिए जिधर सुझाई दे रहा था, उधर भागे जा रहे थे. उसी भगदड़ में कुछ लोग मौके का फायदा उठा कर लूटपाट करने में मसरूफ हो गए.

“हालात की गंभीरता को देखते हुए घंटेभर में कर्फ्यू का ऐलान होने लगा.
पुलिस की गाड़ियों के सायरन चीखने लगे. साथ छूटने के डर से हम चारों ने एकदूसरे का हाथ पकड़ रखा था.

“घरों और दुकानों के दरवाजे बंद हो चुके थे. कहां जाएं, किस के घर में घुसें… कौन इस आफत में हमें पनाह देगा, यह समझ में नही आ रहा था.

“यह सोचते हुए हम चारों दोस्त भागे जा रहे थे कि तभी पीछे गली से गुजर रही पुलिस की गाड़ी से फायरिंग की आवाज आई. ऐसा लगा जैसे वह फायरिंग हम लोगों पर की गई थी.

“हम लोग हांफ भी रहे थे और कांप भी रहे थे. दौड़ने के चक्कर में हम में से किसी एक का पैर सीवर के अधखुले ढक्कन से टकराया. वह लड़खड़ा कर गिरने लगा. हाथ पकड़े होने के चलते हम चारों ही एकसाथ गिर पड़े.

“हम लोगों को तत्काल छिपने के लिए सीवर ही महफूज जगह लगा. इस तरह एक के बाद एक हम चारों लोग सीवर में उतरते चले गए और उस का ढक्कन किसी तरह से बंद कर लिया… और फिर…” इतना कह कर वह लड़का रोने लगा.

देखते ही देखते वही सीवर 2 नौजवानों की कब्रगाह जो बन गया था. Story In Hindi

Hindi Romantic Story: प्यार के साइड इफैक्ट – इश्क के मारे बनवारी बेचारे

Hindi Romantic Story: बनवारी की अभी शादी नहीं हुई थी, क्योंकि पढ़ाई करतेकरते आधी से ज्यादा उम्र खत्म हो गई थी और बाकी कसर नौकरी पाने की तैयारी ने निकाल दी थी.

आंखों पर ज्यादा नंबर के चश्मे ने बनवारी को जवान से धीरेधीरे अंकल की श्रेणी में ला खड़ा कर दिया था, क्योंकि अब उन्हें लड़कियां भैया नहीं अंकल कहने लगी थीं.

बनवारी शादीशुदा नहीं था, पर लड़कियों को कैसे सुबूत दिया जाए कि अभी वे भैया की श्रेणी में हैं यानी कुंआरे हैं. कोई सिंदूर तो लगा नहीं था माथे पर.

नौकरी को अभी 6 महीने भी नहीं बीते थे कि बनवारी को आज अपनेआप पर गुमान हो आया. जो तमन्ना औफिस में पहले ही दिन घर कर गई थी, वह लगता था कि जल्दी ही पूरी होने वाली है. इस की भी एक वजह थी.

आज बनवारी के औफिस की छुट्टी थी. शाम का वक्त था कि तभी उन के फोन की घंटी बज उठी. एक अनजान नंबर से फोन आ रहा था. बनवारी जल्दी से कोई अनजान नंबर उठाते नहीं थे, पर न जाने क्या मन हुआ कि उन्होंने फोन उठा लिया.

उधर से शहद में घुली मीठी आवाज आई, ‘हैलो… हैलो… आप बनवारी बोल रहे हैं?’

बनवारी भी झट से बोल दिए, ‘‘हां, मैं बनवारी बोल रहा हूं. हैलो… हैलो…’’ इतना कह कर वे आवाज पहचानने की कोशिश कर रहे थे, पर उस लड़की की आवाज पहचान नहीं पा रहे थे. फिर उधर से ही आवाज आई, ‘मैं… प्रिया… बोल रही हूं.’’

अब बनवारी ने ट्रैक पकड़ लिया और सोचने लगे, ‘यह तो मेरे औफिस की ही लड़की है, जिस को मैं इतने दिनों से लाइन मार रहा था.’

प्रिया बोली, ‘बनवारी, मुझे आप से कुछ काम है, इसीलिए मैं ने आप को फोन किया. मु झे एक सिमकार्ड लेना है. अगर आप अपना आधारकार्ड दे दें तो…’

बनवारी सोच में पड़ गए, ‘आजकल तो हर कोई डाटा चोरी की बात कह रहा है. अगर किसी ने मेरा आधारकार्ड ले कर गलत इस्तेमाल कर लिया, तो मैं तो फंस जाऊंगा.

‘मान लीजिए, अगर इस लड़की का किसी आतंकवादी से संबंध हो तो, कहीं मु झे यह लड़की फंसा न दे. हो सकता है कि यह मेरा गलत इस्तेमाल कर ले.’

बनवारी काफी डर गए थे. बस सिमकार्ड के लिए आधारकार्ड मांगने से ही उन का जमीर किसी भी तरह आधारकार्ड देने को राजी न हुआ.

वे सोच कर बोले, ‘‘आधारकार्ड तो अभी आया ही नहीं है.’’

किसी तरह से प्रिया की बात को टाल कर बनवारी ने राहत की सांस ली.

दूसरे दिन बनवारी जब औफिस गए तो प्रिया मिल गई. वह बोली, ‘‘बनवारी, मेरा काम हो गया. वह गौतम है न, उस ने मु झे अपना सिमकार्ड दे दिया. आप से तो आधारकार्ड मांग रही थी, पर आप ने नहीं दिया. कोई बात नहीं.’’

प्रिया अपने मोबाइल में ह्वाट्सएप चला रही थी. बनवारी को लगा कि जैसे आधारकार्ड न दे कर उन्होंने कोई भारी गुनाह कर दिया हो.

प्रिया की उलाहना भरी बात उन के दिल में तीर, कटार, खंजर नहीं, बल्कि गोली जैसी लग रही थी. प्रिया बनवारी की छटपटाहट देख कर मुसकरा दी थी.

उसी दिन जब शाम को बनवारी घर आए तो उन्होंने अपने मोबाइल से प्रिया को फेसबुक पर फ्रैंड रिक्वैस्ट भेज दी. उन की रिक्वैस्ट स्वीकार भी हो गई. लगे हाथ ह्वाट्सएप पर कनैक्ट हो गए. अब तो बनवारी का फेसबुक और ह्वाट्सएप पर ‘गुड मौर्निंग’, ‘गुड ईवनिंग’ और ‘गुड नाइट’ के मैसेज करना रोज का शगल हो गया जैसे कि कोई रोज सुबह की चाय, नाश्ता और दोपहर और रात का खाना हो. ड्यूटी से जब वे घर आते तो उन के हाथ से मोबाइल एक सैकंड के लिए नहीं छूटता था, जैसे कि इस के बिना उन को बदहजमी हो जाएगी.

जब से प्रिया ने बनवारी को फोन किया था, तभी से उन के दिल में प्रिया के लिए कुछकुछ हो गया था. वे हर वक्त प्रिया की खुशामद किया करते थे. चाय पीना हो या नाश्ता करना हो, बनवारी प्रिया का बहुत ही ज्यादा खयाल रखते थे.

कुछ दिन बहुत मजे से गुजरे होंगे, पर उन पर अचानक आफत का पहाड़ आ गिरा. इतवार का दिन था. बनवारी अभी कहीं घूमने का प्लान बना रहे थे कि तभी प्रिया का फोन आ गया. यह तो बिल्ली के भाग्य से छींका टूटने वाली बात थी.

वे मन ही मन में सोचने लगे, ‘आज तो प्रिया को मल्टीप्लैक्स में नई मूवी दिखाऊंगा, फिर रैस्टोरैंट में खाना खाएंगे, फिर हम लोग कुछ शौपिंग वगैरह करेंगे, उस के बाद देर रात घर लौट आएंगे.’

प्रिया फोन पर बोली, ‘बनवारी, आप से मुझे कुछ काम है. आप मना तो नहीं करेंगे न? मैं जानती हूं कि आप बहुत अच्छे इनसान हैं. मु झे कुछ रुपयों की मदद चाहिए. मैं जानती हूं कि आप मना नहीं करेंगे?’

बनवारी उलझन में पड़ गए. अभी तो कुछ देर पहले ही हवा में उड़ रहे थे, पर अब उन के पंख पानी से गीले हो गए थे.

बनवारी प्रिया को दुखी नहीं करना चाह रहे थे, क्योंकि वे एक मौका चूक गए थे. वे तपाक से बोले, ‘‘तुम्हें कितना पैसा चाहिए?’’

यह सुन कर प्रिया खुश होते हुए बोली, ‘मु झे डेढ़ लाख रुपए की जरूरत है. मैं आप की पाईपाई चुका दूंगी. मु झे घर में कुछ जरूरत है.

‘मैं ने यह बात सिर्फ आप ही से कही है, क्योंकि आप तो जानते ही हैं कि आजकल लड़की देखी नहीं कि हर कोई उस का फायदा लेना चाहता है.’

बनवारी को अपनेआप में थोड़ा भरोसा बढ़ रहा था, फिर भी उन के मुंह से आखिर निकल ही गया, ‘‘ये तो बहुत  ज्यादा रकम है.’’

प्रिया पहले थोड़ी नाराज हुई, पर फिर बोली, ‘अगर आप एक लाख रुपए भी दे देते हैं, तो बाकी का मैं और कहीं से जुगाड़ कर लूंगी.’

बनवारी ने दूसरे दिन ही बैंक से रुपए निकाल कर प्रिया को दे दिए. उन को ऐसा लग रहा था, जैसे वे कोई अच्छा काम कर के आ रहे हों. लोग पुण्य कमाने के लालच में ढोंगी पंडे पुजारी, मुल्लामौलवी और फकीर को दानदक्षिणा देते हैं, कुछ उसी तरह की अनुभूति बनवारी को हो रही थी.

वे रुपए दे कर यही सोच रहे थे कि इतने दिनों तक जिस की आस में लगे रहे, वह फल अब जा कर उन की  झोली में गिरा है.

दूसरे दिन जब बनवारी औफिस गए तो उन का ध्यान प्रिया की कुरसी की तरफ गया. प्रिया की कुरसी खाली थी. मालूम करने पर पता चला कि उस ने तो 15 दिन की छुट्टी ले ली है.

बनवारी प्रिया का प्यार पाने के लिए उतावले रहते थे, पर अब औफिस में प्रिया को न पा कर उन को बड़ी निराशा हुई.

औफिस से 15 दिनों की छुट्टी बीतने के बाद भी प्रिया ने ड्यूटी जौइन नहीं की थी. अब बनवारी बेचैन हो उठे. वे प्रिया को फोन लगातेलगाते परेशान हो गए, पर वह फोन उठाने का नाम नहीं ले रही थी.

तकरीबन एक महीने बाद प्रिया घर से लौटी थी. जब वह औफिस में पहुंची तो बनवारी तो जैसे आंखें बिछाए उस का इंतजार ही कर रहे थे. वे प्रिया से बात करने की लाख कोशिश करते, पर वह उन्हें भाव ही नहीं दे रही थी.

बनवारी ने सोचा था कि रुपए का लालच पा कर प्रिया शायद उन के करीब आ जाएगी, पर ऐसा हो न सका.

बनवारी के मन में प्यार पाने की लालसा धीरेधीरे अब खत्म हो चली थी, क्योंकि रुपए लेने के बावजूद प्रिया बनवारी के मन की इच्छा पूरी न कर सकी थी. अब तो यह हाल था कि  औफिस में आमनेसामने देखने के बावजूद लगता था कि प्रिया उन्हें पहचानती ही न हो.

बनवारी को अब लग रहा था कि प्रिया का प्यार तो मिलने से रहा, अब किसी तरह रुपए ही वापस मिल जाएं तो बहुत बड़ी बात होगी.

बनवारी उस दिन प्रिया से औफिस में कुछ नहीं बोले, पर जब घर गए तो प्रिया को फोन लगाया. बहुत देर बाद प्रिया ने फोन उठाया.

बनवारी बोले, ‘‘प्रिया, मु झे रुपयों की जरूरत है, अगर मेरे रुपए लौटा दो तो…’’

यह सुन कर प्रिया का मूड खराब हो गया. वह तुनक कर बोली, ‘‘मैं आप से बोली थी कि रुपए 5-6 महीने में लौटा दूंगी और आप इतनी जल्दबाजी कर रहे हैं. इस से तो अच्छा था कि आप रुपए देते ही नहीं.’’

बनवारी कुछ बोल नहीं पाए.

धीरेधीरे 6 नहीं, 8 महीने बीत गए. पर बनवारी के रुपए नहीं मिले. वे जैसे बेचारे बन गए थे. अपने ही रुपए दे कर ऐसा लगता था कि कोई भारी अपराध कर दिया हो. उन को तो खजाना भी लुट गया था और वे अपराधी भी बन गए थे.

एक दिन फिर बनवारी प्रिया से रुपयों के बारे में बोले, क्योंकि प्यार के बारे में तो बोल नहीं सकते थे. आजकल लड़की न जाने कौन से अपराध में फंसा दे.

झूठी छेड़खानी में ही फंसा दे. रुपए तो जाएंगे ही, समाज में बदनामी भी होगी.

तकरीबन डेढ़ साल बाद बनवारी को टुकड़ोंटुकड़ों यानी किस्तों में रुपए मिले.

3 महीने का वादा कर के प्रिया डेढ़ साल बाद रुपए लौटा रही थी.

रुपए पा कर आज बनवारी को ऐसा लगा, जैसे उन्होंने प्रशांत महासागर को पार कर लिया हो.

अब बनवारी का प्यार के प्रति मोह भंग हो गया था. रुपए मिल गए, वही बहुत बड़ी बात थी.

इस घटना के सालभर बाद ही बनवारी की शादी हो गई. पर अब भी कभी जवान लड़कियों को देखते हैं, तो उन्हें बरबस उन खूबसूरत भोलीभाली लड़कियों में एक अलग इमेज दिखाई देती है. शायद और किसी को पता भी नहीं चलता होगा, पर बनवारी की नजर ऐक्सरे, सीटी स्कैन नहीं, बल्कि सीएमआरआई की सी हो गई थी लड़कियों को पहचानने में.

बनवारी पर इस तरह के ‘प्यार का साइड इफैक्ट’ पड़ना मुश्किल ही नहीं, अब नामुमकिन था. Hindi Romantic Story

Hindi Family Story: जाग सके तो जाग – प्रवचनों का सच

Hindi Family Story: घर के ठीक सामने वाले मंदिर में कोई साध्वी आई हुई थीं. माइक पर उन के प्रवचन की आवाज मेरे घर तक पहुंच रही थी. बीचबीच में ‘श्रीराम…श्रीराम…’ की धुन पर वे भजन भी गाती जा रही थीं. महिलाओं का समूह उन की आवाज में आवाज मिला रहा था.

अकसर दोपहर में महल्ले की औरतें हनुमान मंदिर में एकत्र होती थीं. मंदिर में भजन या प्रवचन की मंडली आई ही रहती थी. कई साध्वियां अपने प्रवचनों में गीता के श्लोकों का भी अर्थ समझाती रहती थीं.

मैं सरकारी नौकरी में होने की वजह से कभी भी दोपहर में मंदिर नहीं जा पाती थी. यहां तक कि जिस दिन पूरा भारत गणेशजी की मूर्ति को दूध पिला रहा था, उस दिन भी मैं ने मंदिर में पांव नहीं रखा था. उस दिन भी तो गांधीजी की यह बात पूरी तरह सच साबित हो गई थी कि भीड़ मूर्खों की होती है.

एक दिन मंदिर में कोई साध्वी आई हुई थीं. उन की आवाज में गजब का जादू था. मैं आंगन में ही कुरसी डाल उन का प्रवचन सुनने लगी. वे गीता के एक श्लोक का अर्थ समझा रही थीं…

‘इस प्रकार मनुष्य की शुद्ध चेतना उस के नित्य वैरी, इस काम से ढकी हुई है, जो सदा अतृप्त अग्नि के समान प्रचंड रहता है. मनुस्मृति में उल्लेख है कि कितना भी विषय भोग क्यों न किया जाए, पर काम की तृप्ति नहीं होती.’ थोड़ी देर बाद प्रवचन समाप्त हो गया और साध्वीजी वातानुकूलित कार में बैठ कर चली गईं.

दूसरे दिन घर के काम निबटा, मैं बैठी ही थी कि दरवाजे की घंटी बजी, मन में आया कि कहला दूं कि घर पर नहीं हूं. पर न जाने क्यों, दूसरी घंटी पर मैं ने खुद ही दरवाजा खोल दिया.

बाहर एक खूबसूरत युवती और मेरे महल्ले की 2 महिलाएं नजर आईं. उस खूबसूरत लड़की पर मेरी निगाहें टिकी की टिकी रह गईं, लंबे कद और इकहरे बदन की वह लड़की गेरुए रंग की साड़ी पहने हुए थी.

उस ने मोहक आवाज में पूछा, ‘‘आप मंदिर नहीं आतीं, प्रवचन सुनने?’’

मैं ने सोचा, यह बात उसे मेरी पड़ोसिन ने ही बताई होगी, वरना उसे कैसे पता चलता.

मैं ने कहा, ‘‘मेरा घर ही मंदिर है. सारा दिन घर के लोगों के प्रवचनों में ही उलझी रहती हूं. नौकरी, घर, बच्चे, मेरे पति… अभी तो इन्हीं से फुरसत नहीं मिलती. दरअसल, मेरा कर्मयोग तो यही है.’’

वह बोली, ‘‘समय निकालिए, कभी अकेले में बैठ कर सोचिए कि आप ने प्रभु की भक्ति के लिए कितना समय दिया है क्योंकि प्रभु के नाम के सिवा आप के साथ कुछ नहीं जाएगा.’’

मैं ने कहा, ‘‘साध्वीजी, मैं तो साधारण गृहस्थ जीवनयापन कर रही हूं क्योंकि मुझे बचपन से ही सृष्टि के इसी नियम के बारे में सिखाया गया है.’’

मालूम नहीं, साध्वी को मेरी बातें अच्छी लगीं या नहीं, वे मेरे साथ चलतेचलते बैठक में आ कर सोफे पर बैठ गईं.

तभी एक महिला ने मुझ से कहा, ‘‘साध्वीजी के चरण स्पर्श कीजिए और मंदिरनिर्माण के लिए कुछ धन भी दीजिए. आप का समय अच्छा है कि साध्वी माला देवी स्वयं आप के घर आई हैं. इन के दर्शनों से तो आप का जीवन बदल जाएगा.’’

मुझे उस की बात बड़ी बेतुकी लगी. मैं ने साध्वी के पैर नहीं छुए क्योंकि सिवा अपने प्रियजनों और गुरुजनों के मैं ने किसी के पांव नहीं छुए थे.

धर्म के नाम पर चलाए गए हथकंडों से मैं भलीभांति परिचित थी. इस से पहले कि साध्वी मुझ से कुछ पूछतीं, मैं ने ही उन से सवाल किया, ‘‘आप ने संन्यास क्यों और कब लिया?’’

साध्वी ने शायद ऐसे प्रश्न की कभी आशा नहीं की थी. वे तो सिर्फ बोलती थीं और लोग उन्हें सुना करते थे. इसलिए मेरे प्रश्न के उत्तर में वे खामोश रहीं, साथ आई महिलाओं में से एक ने कहा, ‘‘साध्वीजी ने 15 बरस की उम्र में संन्यास ले लिया था.’’

‘‘अब इन की उम्र क्या होगी?’’ मेरी जिज्ञासा बराबर बनी हुई थी, इसीलिए मैं ने दूसरा सवाल किया था.

‘‘साध्वीजी अभी कुल 22 बरस की हैं,’’ दूसरी महिला ने प्रवचन देने के अंदाज में कहा.

मैं सोच में पड़ गई कि भला 15 बरस की उम्र में साध्वी बनने का क्या प्रयोजन हो सकता है? मन को ढेरों सवालों ने घेर लिया कि जैसे, इन के साथ कोई अमानुषिक कृत्य तो नहीं हुआ, जिस से इन्हें समाज से घृणा हो गई या धर्म के ठेकेदारों का कोई प्रपंच तो नहीं.

कुछ माह पहले ही हमारे स्कूल की एक सिस्टर (नन) ने विवाह कर लिया था. कुछ सालों में उस का साध्वी होने का मोहभंग हो गया था और वह गृहस्थ हो गई थी. एक जैन साध्वी का एक दूध वाले के साथ भाग जाने का स्कैंडल मैं ने अखबारों में पढ़ा था.

‘जिंदगी के अनुभवों से अनजान इन नादान लड़कियों के दिलोदिमाग में संन्यास की बात कौन भरता है?’ मैं अभी यह सोच ही रही थी कि साध्वी उठ खड़ी हुईं, उन्होंने मुझ से दानस्वरूप कुछ राशि देने के लिए कहा. मैं ने 100 रुपए दे दिए.

थोड़ी सी राशि देख कर, साध्वी ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘तुम में तो इतनी सामर्थ्य है, चाहे तो अकेले मंदिर बनवा सकती हो.’’

मैं ने कहा, ‘‘साध्वीजी, मैं नौकरीपेशा हूं. मेरी और मेरे पति की कमाई से यह घर चलता है. मुझे अपने बेटे का दाखिला इंजीनियरिंग कालेज में करवाना है. वहां मुझे 3 लाख रुपए देने हैं. यह प्रतियोगिता का जमाना है. यदि मेरा बेटा कुछ न कर पाया तो गंदी राजनीति में चला जाएगा और धर्म के नाम पर मंदिर, मसजिदों की ईंटें बजाता रहेगा.’’

तभी मेरी सहेली का बेटा उमेश घर में दाखिल हुआ. साध्वी को देखते ही उस ने उन के चरणों का स्पर्श किया.

साध्वी के जाने के बाद मैं ने उसे डांटते हुए कहा, ‘‘बेशर्म, उन के पैर क्यों छू रहा था?’’

‘‘अरे मौसी, तुम पैरों की बात करती हो, मेरा बस चलता तो मैं उस का…अच्छा, एक बात बताओ, जब भक्त इन साध्वियों के पैर छूते होंगे तो इन्हें मर्दाना स्पर्श से कोई झनझनाहट नहीं होती होगी?’’

मैं उमेश की बात का क्या जवाब देती, सच ही तो कह रहा था. जब मेरे पति ने पहली बार मेरा स्पर्श किया था तो मैं कैसी छुईमुई हो गई थी. फिर इन साध्वियों को तो हर आम और खास के बीच में प्रवचन देना होता है. अपने भाषणों से तो ये बड़ेबड़े नेताओं के सिंहासन हिला देती हैं, सारे राजनीतिक हथकंडे इन्हें आते हैं. भीड़ के साथ चलती हैं तो क्या मर्दाना स्पर्श नहीं होता होगा? मैं उमेश की बात पर बहुत देर तक बैठी सोचती रही.

त को कोई 8 बजे साध्वी माला देवी का फोन आया. वे मुझ से मिलना चाहती थीं. मैं उन के चक्कर में फंसना नहीं चाहती थी, इसलिए बहाना बना, टाल दिया. पर कोई आधे घंटे बाद वे मेरे घर पर आ गईं, उन्हीं गेरुए वस्त्रों में. उन का शांत चेहरा मुझे बरबस उन की तरफ खींच रहा था. सोफे पर बैठते ही उन्होंने उच्च स्वर में रामराम का आलाप छेड़ा, फिर कहने लगीं, ‘‘कितनी व्यस्त हो सांसारिक झमेलों में… क्या इन्हें छोड़ कर संन्यास लेने का मन नहीं होता?’’

मैं ने कहा, ‘‘माला देवी, बिलकुल नहीं, आप तो संसार से डर कर भागी हैं, लेकिन मैं जीवन को जीना चाहती हूं. आप के लिए जीवन खौफ है, पर मेरे लिए आनंद है. संसार के सारे नियम भी प्रकृति के ही बनाए हुए हैं. बच्चे के जन्म से ले कर मृत्यु, दुख, आनंद, पीड़ा, माया, क्रोध…यह सब तो संसार में होता रहेगा, छोटी सी उम्र में ही जिंदगी से घबरा गईं, संन्यास ले लिया… दुनिया इतनी बुरी तो नहीं. मेरी समझ में आप अज्ञानवश या किसी के छल या बहकावे के कारण साध्वी बनी हैं?’’

वे कुछ देर खामोशी रहीं. जो हमेशा प्रवचन देती थीं, अब मूक श्रोता बन गई थीं. वे समझ गई थीं कि उन के सामने बैठी औरत उन भेड़ों की तरह नहीं है जो सिर नीचा किए हुए अगली भेड़ों के साथ चलती हैं और खाई में गिर जाती हैं.

मेरे भीतर जैसे एक तूफान सा उठ रहा था. मैं साध्वी को जाने क्याक्या कहती चली गई. मैं ने उन से पूछा, ‘‘सच कहना, यह जो आप साध्वी बनने का नाटक कर रही हैं, क्या आप सच में भीतर से साध्वी हो गई हैं? क्या मन कभी बेलगाम घोड़े की तरह नहीं दौड़ता? क्या कभी इच्छा नहीं होती कि आप का भी कोई अपना घर हो, पति हो, बच्चे हों, क्या इस सब के लिए आप का मन अंदर से लालायित नहीं होता?’’

मेरी बातों का जाने क्या असर हुआ कि साध्वी रोने लगीं. मैं ने भीतर से पानी ला कर उन्हें पीने को दिया, जब वे कुछ संभलीं तो कहने लगीं, ‘‘कितनी पागल है यह दुनिया…साध्वी के प्रवचन सुनने के लिए घर छोड़ कर आती है और अपने भीतर को कभी नहीं खोज पाती. तुम पहली महिला हो, जिस ने गृहस्थ हो कर कर्मयोग का संन्यास लिया है, बाहर की दुनिया तो छलावा है, ढोंग है. सच, मेरे प्रवचन तो उन लोगों के लिए होते हैं, जो घरों से सताए हुए होते हैं या जो बहुत धन कमा लेने के बाद शांति की तलाश में निकलते हैं. इन नवधनाढ्य परिवारों में ही हमारा जादू चलता है. तुम ने तो देखा होगा, हमारी संतमंडली तो रुकती ही धनाढ्य परिवारों में है. लेकिन तुम तो मुझ से भी बड़ी साध्वी हो, तुम्हारे प्रवचनों में सचाई है क्योंकि तुम्हारा धर्म तुम्हारे आंगन तक ही सीमित है.’’

एकाएक जाने क्या हुआ, साध्वी ने मेरे चरणों को स्पर्श करते हुए कहा, ‘‘मैं लोगों को संन्यास लेने की शिक्षा देती हूं, पर तुम से अपने दिल की बात कह रही हूं, मैं संसारी होना चाहती हूं.’’

उन की यह बात सुन कर मैं सुखद आश्चर्य में डूब गई. Hindi Family Story

Best Hindi Kahani: फरेब – जिस्म के लिए मालिक और पति ने दिया धोखा

Best Hindi Kahani: मुसकान की नजरें भीड़ में उस शख्स को तलाश रही थीं, जो पिछले कई महीनों से उस के पीछे पड़ा था. जहां भी उस का प्रोग्राम होता, वह वहां पहुंच जाता और बड़ी खामोशी से उस का प्रोग्राम देखता. जब प्रोग्राम खत्म होने को होता, तो उसे फूलों का एक खूबसूरत गुलदस्ता भेंट कर चुपचाप लौट जाता. शुरूशुरू में तो मुसकान ने उस की ओर ध्यान नहीं दिया, पर जब वह उस के हर प्रोग्राम में आने लगा, तो उस के मन में उस नौजवान के लिए एक जिज्ञासा जाग उठी कि आखिर वह कौन है? वह उस के हर प्रोग्राम में क्यों होता है? उसे उस के हर अगले प्रोग्राम की तारीख और जगह की जानकारी कैसे हो जाती है? वगैरह.

नट जाति से ताल्लुक रखने वाली मुसकान एक कुशल नाचने वाली थी. अपने बौस के आरकैस्ट्रा ग्रुप के साथ वह आएदिन नएनए शहरों में अपना प्रोग्राम देने जाती रहती थी.

लंबा कद, गोरा रंग और खूबसूरत चेहरे वाली मुसकान जब स्टेज पर नाचती थी, तो लोग दिल थाम लेते थे. उस के बदन की लोच, कातिल अदाएं और होंठों पर छाई रहने वाली मुसकान ने हजारों लोगों को अपना दीवाना बना रखा था, पर उस की दीवानगी में आहें भरने वालों में शायद ही कोई यह जानता था कि उस की मुसकान के पीछे उस के दिल में कितना दर्द छिपा हुआ है.

मुसकान महज 15 साल की थी, तब उस के मांबाप ने उसे इसी आरकैस्ट्रा ग्रुप के मालिक के हाथों बेच दिया था. तब उस का नाच में माहिर होना ही उस का शाप बन गया था. वैसे भी उन दलित परिवारों में बेटियों का बिकना आम था. बहुत सी तो खुद ही भाग जाती थीं.

मुसकान से कहा गया था कि गु्रप का मालिक उस के नाच से प्रभावित हो कर उसे अपने ग्रुप में शामिल कर रहा है और इस के लिए उस ने उस के मांबाप को एक मोटी रकम दी है. तब उसे उस की यह शर्त थोड़ी अटपटी जरूर लगी थी कि उसे उस के साथ ही रहना होगा.

जब मुसकान ने इस बात पर एतराज जताया था, तो ग्रुप के मालिक महेश ने उसे यह कह कर भरोसा दिलाया था कि वह जब चाहे अपने मांबाप से मिलने जा सकती है. मुसकान को आरकैस्ट्रा ग्रुप में शामिल हुए सालभर बीतने को आया था. इस बीच वह कई जगह अपने प्रोग्राम दे चुकी थी. उसे इज्जत के साथ पैसे भी मिलते थे.

इस के बाद तो मुसकान को बारबार बेचा गया. कभी उस की भावनाओं का सौदा हुआ, तो कभी उस के जिस्म का. बीतते दिनों के साथ यह हकीकत उस के सामने आई कि महेश न सिर्फ अपने ग्रुप में शामिल लड़कियों की देह बेचता है, बल्कि उन के जिस्म का भी सौदा करता है. अगर कोई लड़की उस की इस बात की खिलाफत करती है, तो उसे बुरी तरह सताया जाता है.

पर मुसकान इस की शिकायत किस से करती. वह भी उन हालात में, जब उस के मांबाप ने ही उसे इस जलालतभरी जिंदगी में धकेल दिया था. उसे कुछ दिनों में ग्राहकों से भी शिकायत नहीं रही. मुसकान दलदल में फंसी एक बेबस और बेजान जिंदगी जी रही थी कि वह नौजवान उस की जिंदगी में आया. उस ने मुसकान की जिंदगी में एक हलचल सी मचा दी थी.

मुसकान ने तय किया था कि वह उस से अकेले में मिलेगी. वह पूछेगी कि आखिर वह उस के पीछे क्यों पड़ा है? कल फिर मुसकान का प्रोग्राम था. उसे इस बात का पक्का यकीन था कि वह नौजवान कल भी आएगा. देखा जाए, तो मुसकान अकसर लोगों से मिलती रहती थी. इन में अच्छे लोग भी होते थे और बुरे लोग भी. पर सच कहा जाए, तो बुरे लोगों की तादाद ज्यादा होती थी. वे लोग उस के रंगरूप और जवानी के दीवाने होते थे. उन के लिए वह एक खूबसूरत जिस्म थी, जिस वे भोगना चाहते थे.

मुसकान ने एक आदमी भेज कर उसे बुला लिया था. वह उस के सामने चुपचाप बैठा था. मुसकान कुछ देर तक उस के बोलने का इंतजार करती रही, फिर बोली, ‘‘मैं देख रही हूं कि पिछले तकरीबन एक साल से तुम मेरे हर प्रोग्राम में रहते हो, मुझे गुलदस्ता भेंट करते हो और लौट जाते हो. मैं जान सकती हूं कि क्यों?’’

‘‘क्योंकि मुझे आप पसंद हैं…’’ वह गंभीर आवाज में बोला, ‘‘मैं आप को चाहने लगा हूं.’’ ‘‘ऐसा ही होता है. कई बार लोग हमारी जैसी नाचने वाली किसी लड़की की किसी खास अदा पर फिदा हो कर उसे चाहने लगते हैं. पर उन की यह चाहत थोड़ी देर की होती है, जो बीतते समय के साथ खत्म हो जाती है.’’

‘‘परंतु, मेरी चाहत ऐसी नहीं है. सच तो यह है कि आप को अपनी जिंदगी में शामिल करना चाहता हूं.’’

‘‘यह मुमकिन नहीं है.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘क्योंकि जिन लोगों के साथ मैं काम करती हूं, वे यह हरगिज पसंद नहीं करेंगे कि मैं उन का साथ छोड़ कर जाऊं.’’

‘‘सवाल यह नहीं कि लोग क्या चाहते हैं. सवाल यह है कि आप क्या चाहती हैं?’’

‘‘मतलब?’’

‘‘बतलाऊंगा, पर इस के पहले आप यह बताइए कि क्या आप अपनी इस मौजूदा जिंदगी से खुश हैं?’’

मुसकान उस के इस सवाल का जवाब न दे सकी. वह कुछ देर तक चुपचाप उसे देखती रही, फिर बोली, ‘‘अगर मैं कहूं कि नहीं तो…?’’

‘‘तो मैं कहूंगा कि आप इस जिंदगी को ठोकर मार दीजिए.’’

‘‘और…?’’

‘‘और मेरी चाहत को कबूल कर मेरी जिंदगी में शामिल हो जाइए.’’

‘‘मैं फिर कहूंगी कि तुम्हारा यह प्रस्ताव भावुकता में दिया गया प्रस्ताव है, जिसे मैं स्वीकार नहीं कर सकती.’’

‘‘ऐसा नहीं है…’’ वह बोला, ‘‘और मैं समीर इसे आप के सामने साबित कर के रहूंगा,’’ कहने के बाद वह उठ खड़ा हुआ और चला गया. इस के बाद भी समीर मुसकान से मिलता रहा. वह जब भी उस से मिलता, अपना प्रस्ताव उस के सामने जरूर दोहराता.

सच तो यह था कि मुसकान भी उस के प्रस्ताव को स्वीकार कर अपनी इस जलालत भरी जिंदगी से आजाद होना चाहती थी, पर यह बात भी वह अच्छी तरह जानती थी कि महेश इतनी आसानी से उसे अपने चंगुल से आजाद नहीं होने देगा. वह उस के लिए सोने का अंडा देने वाली मुरगी जो थी.

पर समीर की चाहत और लगाव देख कर मुसकान ने फैसला कर लिया कि वह समीर का प्रस्ताव स्वीकार करेगी. जब मुसकान ने अपने इस फैसले की जानकारी समीर को दी, तो खुशी से उस की आंखें चमक उठीं. मुसकान पलभर तक खुशी से चमकते उस के चेहरे को देखती रही, फिर गंभीर आवाज में बोली, ‘‘पर समीर, महेश इतनी आसानी से मुझे छोड़ने वाला नहीं.’’

‘‘मैं उसे मुंहमांगी कीमत दूंगा और तुम्हें उस से खरीद लूंगा.’’

‘‘ठीक है, बात कर के देखो. शायद वह तुम्हारी बात मान जाए.’’

समीर ने मुसकान को साथ ले कर महेश से बात की और उसे बताया कि वह हर कीमत पर मुसकान को हासिल करना चाहता है.

‘‘हर कीमत पर…’’ महेश ‘कीमत’ शब्द पर जोर देता हुआ बोला.

‘‘हां…’’ समीर बोला, ‘‘तुम कीमत बोलो?’’

‘‘10 लाख…’’ महेश ने उस की आंखों में झांकते हुए कहा.

‘‘मंजूर है,’’ समीर बिना एक पल गंवाए बोला.

समीर महेश को मुंहमांगी कीमत दे कर मुसकान को अपने आलीशान घर में ले आया. घर की सजावट देख मुसकान हैरान हो कर बोली, ‘‘यह घर तुम्हारा है?’’

‘‘हां…’’ समीर उस के खूबसूरत चेहरे को प्यार से देखता हुआ बोला, ‘‘और अब तुम्हारा भी.’’

‘‘मेरा कैसे?’’

‘‘वह ऐसे कि तुम मेरी पत्नी बनने वाली हो.’’

‘‘सच?’’

‘‘बिलकुल सच…’’ समीर उसे अपनी बांहों में भरता हुआ बोला, ‘‘हम कल ही शादी कर लेंगे.’’

समीर ने मुसकान से शादी कर ली. मुसकान को लगा था कि समीर को पा कर उस ने दुनियाजहान की खुशियां पा ली हों. वह दिलोजान से उस पर न्योछावर हो गई थी. समीर भी उसे दिल की गहराइयों से चाहता था.

कुछ दिनों तक तो मुसकान को अपनी यह दुनिया बेहद भली और खुशगवार लगी थी, परंतु फिर वह इस से ऊबने लगी थी. उसे ऐसा लगने लगा था, जैसे उस की जिंदगी एक ढर्रे में बंध गई हो. ऐसे में उसे अपनी स्टेज की दुनिया याद आने लगी थी. उस की उस दुनिया में कितना रोमांच, कितना ग्लैमर था.

एक दिन अचानक मुसकान के आरकैस्ट्रा ग्रुप के मालिक महेश ने उस के सामने अपने ग्रुप की ओर से एक जगह प्रोग्राम देने का प्रस्ताव रखा और उस के बदले उसे एक मोटी रकम देने का वादा किया, तो वह इनकार न कर सकी.

‘‘प्रोग्राम कब है?’’ मुसकान ने पूछा.

‘‘कल.’’

‘‘कल…?’’ मुसकान के चेहरे पर निराशा के भाव फैले, ‘‘पर, समीर तो यहां नहीं हैं. वे कारोबार के सिलसिले में 4 दिनों के लिए शहर से बाहर गए हुए हैं. मुझे इस प्रोग्राम के लिए उन से इजाजत लेनी होगी.’’

‘‘अरे, डांस का प्रोग्राम ही तो देना है…’’ महेश बोला, ‘‘किसी अमीरजादे का बिस्तर तो नहीं गरम करना. भला इस में समीर को क्या एतराज हो सकता है?’’

‘‘फिर भी…’’

‘‘मान भी जाओ मुसकान.’’

‘‘ठीक है,’’ मुसकान ने हामी भर दी.

मुसकान ने डरे हुए मन से यह प्रोग्राम कर लिया. उसे उम्मीद थी कि वह समीर को इस के लिए मना लेगी, परंतु उस का ऐसा सोचना, उस की कितनी बड़ी भूल थी. इस का अहसास उसे समीर के लौटने पर छुआ.

‘‘यह मैं क्या सुन रहा हूं,’’ समीर मुसकान को गुस्से से घूरता हुआ बोला.

‘‘क्या…?’’

‘‘तुम ने फिर से डांस का प्रोग्राम किया.’’

‘‘आप को किस ने बताया?’’

‘‘मेरे एक दोस्त ने, जो तुम्हें अच्छी तरह से जानता है.’’ मुसकान को जिस बात का डर था, वही हुआ.

‘‘इस में खराबी क्या है…’’ मुसकान समीर का गुस्सा कम करने की कोशिश करते हुए बोली, ‘‘आजकल तो अच्छे घरानों की लड़कियां भी ऐसे प्रोग्राम करती हैं. फिर महेश ने इस के लिए मुझे एक मोटी रकम भी दी है.’’

‘‘मतलब, तुम ने पैसों के लिए प्रोग्राम किया है?’’

‘‘हां समीर…’’

‘‘आखिर तुम ने अपनी औकात दिखा ही दी और तुम ने यह भी साबित कर दिया कि तुम निचली जाति से ताल्लुक रखती हो.’’

‘‘समीर, अब तुम मेरी बेइज्जती कर रहे हो…’’ मुसकान तल्ख आवाज में बोली, ‘‘मैं नहीं समझती कि मैं ने यह प्रोग्राम दे कर कोई गलती की है. सच तो यह है कि डांस मेरा जुनून है और इस जुनून से मैं अपनेआप को ज्यादा दिनों तक दूर नहीं रख सकती.’’ समीर पलभर तक उसे गुस्से में घूरता रहा, फिर पैर पटकता हुआ कमरे से बाहर चला गया.

‘‘समीर, आखिर तुम मेरी इस छोटी सी गलती के लिए मुझ से कब तक नाराज रहोगे?’’ तीसरे दिन रात की तनहाई में मुसकान समीर की ओर करवट लेते हुए बोली.

‘‘तुम्हारे लिए यह छोटी सी गलती है, पर तुम्हारी यही छोटी सी गलती मेरी बदनामी का सबब बन गई है. लोग यह कह कर मेरा मजाक उड़ाते हैं कि देखो समीर की पत्नी स्टेज पर नाचती फिरती है.’’

‘‘लोगों का क्या है, उन का तो काम ही कुछ न कुछ कहना है. अगर हम उन के कहे मुताबिक चलने लगे, तो हमारी जिंदगी मुश्किल हो जाएगी.’’

‘‘इस का मतलब यह कि तुम दिल से चाहती हो कि तुम डांस प्रोग्राम करती रहो.’’

‘‘हां, बशर्ते तुम इस की इजाजत दो,’’ मुसकान बोली.

समीर कुछ देर तक चुपचाप मुसकान के खूबसूरत चेहरे और भरेभरे बदन को देखता रहा, फिर बोला, ‘‘ठीक है, मैं तुम्हें इस की इजाजत दूंगा, पर इस के लिए मेरे काम भी कर देना.’’

‘‘कैसे काम?’’

‘‘तुम कभीकभी मेरे कारोबार से संबंधित अमीर लोगों से मिल लेना.’

‘‘क्या कह रहे हो तुम?’’ यह सुन कर मुसकान हैरान रह गई.

‘‘तुम मेरी पत्नी हो, तभी तो मैं तुम से ऐसी बातें कह रहा हूं…’’ समीर अपनी आवाज में मिठास घोलता हुआ बोला, ‘‘देखो मुसकान, अगर तुम ऐसा करती हो, तो हमें उन लोगों से अपनी कंपनी के लिए बड़े और्डर मिलेंगे, जिस से हमारा लाखों का मुनाफा होगा.

‘‘एक पत्नी होने के नाते क्या तुम्हारा यह फर्ज नहीं कि तुम अपने पति का कारोबार बढ़ाने में उस की मदद करो और फिर तुम ऐसा पहली बार तो नहीं कर रही हो?

‘‘तुम्हारी जाति में तो ऐसा होता ही रहता है. तुम ही तो कह रही थीं कि कितनी ही लड़कियों को ऊंची जाति वाले उठा कर ले जाते थे और सुबह पटक जाते थे.’’

समीर ने मुसकान की दुखती नस पर हाथ रख दिया था और ऐसे में वह चाह भी इस से इनकार नहीं कर सकी.

‘‘ठीक है,’’ मुसकान बुझे मन से बोली.

समीर एक दबदबे वाले शख्स को अपने घर लाया और न चाहते हुए भी मुसकान को उस की बात माननी पड़ी. फिर तो यह सिलसिला चल पड़ा. समीर हर दिन किसी अमीर शख्स को अपने साथ लाता और मुसकान को उसे खुश करना पड़ता.

यह बात तो मुसकान को बाद में मालूम हुई कि असल में समीर, जिन्हें अपने कारोबार से संबंधित लोग बतलाता था, वे उस के हुस्न और जवानी के खरीदार थे और समीर उन को अपनी पत्नी का खूबसूरत जिस्म सौंपने के लिए उन से एक मोटी रकम वसूलता था.

मुसकान ने जिसे भी अपना समझा, उसी ने उसे बेचा. पहले उस के मांबाप ने उसे बेचा और अब उस का पति उसे बेच रहा था. लेकिन दोनों अब पैसे में जो खेल रहे थे. Best Hindi Kahani

Hindi Kahani: टिट फौर टैट – जैसे को तैसा

Hindi Kahani: साल की बैस्ट कहानी का अवार्ड लेते ही पूरा हौल तालियों से गूंज उठा था. विजयी लेखिका अरुंधती ने डायस पर आ कर धन्यवाद प्रेषित किया और अपनी कहानी के बारे में बताना शुरू किया-

“आप सब का बहुत शुक्रिया जो आप ने मेरी कहानी को वोट कर के इसे नंबर वन कहानी होने का खिताब दिलवाया. यह इस बात की तस्दीक भी करता है कि मेरी कहानी सिर्फ कहानीभर नहीं, बल्कि बहुत सी औरतों के जीवन की सचाई भी है.

“इस कहानी में एक ऐसी खूबसूरत व हसीन लड़की है जो अपने पति को एक महिला के साथ जिस्मानी संबंध बनाते देख लेती है और पति से इस बात की शिकायत करने पर उस के पति के कानों पर जूं तक नहीं रेंगती, बल्कि वह और भी बेशर्म व निडर हो जाता है. और अब तो वह खुलेआम दूसरी औरत को घर में भी लाने लगता है. मेरी नायिका दूसरी भारतीय नारियों की तरह इस घटना से रोती नहीं, टूटती नहीं, बल्कि अपने पति को सबक सिखाती है. अगर उस का शादीशुदा पति किसी औरत से शारीरिक संबंध बनाता है तो उसे भी पूरा हक है कि वह अपने पति से तलाक ले और अपनी शर्तों पर जीवन जिए.”

अरुंधती ने कहना जारी रखा-

“मेरी कहानी की नायिका अपने पति की बेवफाई से आहत है. प्रतिशोध लेने के लिए वह एक के बाद एक 4 युवकों से दोस्ती कर लेती है. उन में से 2 युवक शादीशुदा हैं जो अपनी विवाहित जिंदगी से परेशान हैं, जबकि 2 लड़के कुंआरे हैं. और देखिए कि मेरी नायिका पुरुषों की कामुक प्रवत्ति को पहचान कर उन सब को एकसाथ कैसे हैंडल करती है.

“‘हंसिका, मैं कब से तुम्हारा इंतज़ार कर रहा हूं, तुम अभी तक पहुची क्यों नहीं?’ शेखर ने फोन पर परेशान आवाज़ में हंसिका से कहा.

“‘ओह, आई एम सो सौरी. मैं तुम्हें बता नहीं पाई, आज कंपनी के काम से औफिस में ही देर हो जाएगी मुझे.’

“‘पर मैं ने तो आज शाम का पूरा मूड बना लिया था,’ शेखर परेशान हो उठा था.

“‘कोई बात नहीं, तुम अपना मूड बनाए रखो, मैं तुम्हारी कल की शाम हसीन बना दूंगी,’ हंसिका ने फोन पर शेखर को दिलासा देते हुए कहा.

“‘किस से बात कर रही हो जानेमन,’ होटल के कमरे में घुसते हुए आर्यन ने पूछा.

“‘कोई नहीं, बस, ऐसे ही एक सहेली थी.’

“‘साफ क्यों नहीं कहती कि वह बेचारा भी मेरी तरह ही तुम्हारे हुस्न की गरमी का सताया हुआ आशिक है. न जाने तुम में कौन सी कशिश है जो हम आशिकों को तुम्हारे पास बारबार आने को मजबूर करती है.

“‘हम परवानों की बस इतनी सी इबादत है,

बस, तेरे हुस्न में झुलसने की आदत है.’

“यह कह कर आर्यन ने अपनी हंसिका को बांहों में भरा. हंसिका उस की आगोश में सिमटती चली गई. कुछ देर बाद कमरे में कामोत्तेजक सिसकारियां गूंजने लगी थीं. हंसिका और आर्यन एकदूसरे के जिस्म में समा गए थे. जब दोनों का जोश ठंडा हुआ तब हंसिका ने आर्यन के सीने पर सिर रखा और उस से पूछने लगी-

“‘तुम्हारी बीवी तो मुझ से भी खूबसूरत है. फिर भी तुम मेरे आगेपीछे क्यों डोलते रहते हो?’

“आर्यन ने अपनी बीवी का जिक्र आते ही बुरा सा मुंह बनाया और कहने लगा- ‘कहावत है कि मर्द के दिल का रास्ता उस के पेट से हो कर जाता है. पर, मेरे लिए मेरे दिल तक आने का रास्ता इस बैड से हो कर जाता है. मुझे सैक्स में थोड़ा पावर और हीट गेम चाहिए पर वह बैड पर किसी ज़िंदा लाश की तरह पड़ी रहती है.’

“‘तो क्या, तुम्हें बिस्तर पर एक ऐथलीट की ज़रूरत है?’ हंसिका ने उस को बीच में रोकते हुए कहा.

“‘नहीं, पर मर्द और औरत के रिश्तों के लिए एक अच्छी सैक्सलाइफ बहुत ज़रूरी होती है. यह बात तो तुम भी मानोगी न,’ यह कह कर आर्यन ने हंसिका को चूम लिया.

“वैसे, हंसिका इन मर्दों का अश्लील वीडियो बनाना नहीं भूलती थी, क्या पता किस मोड़ पर काम आ जाएं.

“हंसिका पूरी रात आर्यन के साथ गुज़ारने के बाद सुबह अपने औफिस गई और फिर पूरा दिन काम करने के बाद अपने फ्लैट पर जाने से पहले उसने ब्यूटीपार्लर जाना जरूरी समझा. उस के साथ में उस की औफिसमेट माया थी.

“‘अरे हंसिका, अभी तूने 2 दिनों पहले ही तो अपने बालों को स्ट्रेट कराया था. और आज फिर से इन्हें कर्ली क्यों करा रही है,’ माया ने पूछा.

“‘क्योंकि आज मेरी आकाश के साथ डेट है,’ मुसकराते हुए हंसिका ने कहा.

“‘आकाश के साथ? पर तेरे बौयफ्रैंड का नाम तो युवराज है.’ चौंक पड़ी थी माया.

“‘तुम नहीं समझोगी, माया. अच्छा बताओ, इंद्रधनुष में कितने रंग होते हैं?’ हंसिका ने पूछा.

“‘सात.’

“‘और एक हफ्ते में कितने दिन?’

“‘सात,’

“‘तो फिर, बौयफ्रैंड एक क्यों, सात क्यों नहीं?’ अपने होंठों पर हलकी सी मुसकराहट लाते हुए हंसिका ने कहा.

“‘अरे, तू क्या सच में सात मान बैठी. सात नहीं, बल्कि सिर्फ 4 बौयफ्रैंड हैं मेरे.’

“‘ओफ्फो, तुझे समझना बहुत मुश्किल है.’

“यह कह कर माया बाहर की ओर जाने लगी, तो हंसिका ने उसे पास बुलाया और बोली, ‘सुन तो, देख, अजीब ज़रूर लग रहा होगा पर आर्थिकरूप से स्वतंत्र रहने का यही तो मज़ा है. चाहे जैसे रहो, कोई टोकने वाला नहीं. और ज़िन्दगी में ऐश करो. पति के सहारे रहने व उस की बेवफाई सहने में भला रखा ही क्या है.’ हंसिका का दर्द छलक आया था. उस ने सिगरेट सुलगाई. माया ने सहमति में सिर हिला दिया.

“करीब 5 फुट 9 इंच की हाइट वाली हंसिका का व्यक्तित्व देखते ही बनता था. गोरा रंग, पतला चेहरा और सुतवां नाक. इस के साथ उस के बाल कमर तक लहराते हुए. अपने बौडीमास को भी बहुत अच्छी तरह से मेन्टेन किया हुआ था हंसिका ने और इस के लिए वह सप्ताह में कम से कम 3 दिन जिम जाती थी.

“हंसिका एक मौडलिंग एजेंसी में काम करती थी जो बेंगलुरु जैसे शहर में अच्छी आय का स्रोत था और इसी पैसे के चलते हंसिका मनचाहे अंदाज़ से अपना जीवन जी रही थी.

“जो दिखता है वाही बिकता है के सिद्धांत को मानने वाली हंसिका अपने यौवन का भरपूर दिखावा करना अच्छी तरह से जानती थी. अपने अलगअलग बौयफ्रैंड्स के साथ वह सैक्स करने में पीछे कभी नहीं हटती. अलगअलग दिनों में हंसिका के शारीरिक संबंध अलगअलग बौयफ्रैंड से बनते.

“हंसिका के बौयफ्रैंड यह बात अच्छी तरह जानते थे कि हंसिका के संबंध उन लोगों के अलावा और लोगों से भी हैं पर उन्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता था क्योंकि हंसिका जैसी खूबसूरत लड़की पर एकाधिकार दिखा कर वे उसे खोना नहीं चाहते थे. उन के लिए तो हंसिका जैसी दिलकश हसीना के शरीर को भोग लेना ही बहुत बड़ी बात थी.

“आज हंसिका की डेट आकाश नाम के व्यक्ति के साथ थी. आकाश एक समय में हंसिका का फेसबुक फ्रैंड था. आकाश शादीशुदा था. वह अपनी पत्नी की बेवफाई से दुखी था. उस की पत्नी का स्कूल के एक टीचर के साथ अफेयर था जिस के बारे में उसे भनक लग गई थी और दुखी हो कर आत्महत्या के बारे तक में सोचने लगा था. अपनी निराशा से जुड़ी बातें आकाश ने फेसबुक मैसेंजर पर हंसिका से शेयर कीं तो हंसिका को मामले की गंभीरता के बारे में पता चला.

“उस ने अपनी बातों से टूटे हुए आकाश को दिलासा दी और उसे मिलने के लिए बुलाया. दोनों में मुलाकातें होने लगीं. वहीं से आकाश पूरी तरह से हंसिका के रूप का दीवाना हो गया. और हंसिका ने उसे भी अपनी देह का स्वाद चखाने में देर नहीं की. हंसिका अपने इन बौयफ्रैंड्स को अच्छी तरह यूज़ करना जानती थी. कब किस से कितने पैसे की डिमांड करनी है, इस का अच्छी तरह ज्ञान था उस को.

“हंसिका अनचाहे गर्भ से बचने के लिए कंडोम का प्रयोग एक अनिवार्य शर्त बना देती थी. पर इस बार पता नहीं किस से और कैसे चूक हुई कि हंसिका गर्भवती हो गई थी. अपने गर्भवती हो जाने की बात हंसिका ने किसी भी बौयफ्रैंड को नहीं बताई. दिन बीतते रहे. अपनी व्यस्त जीवनशैली के कारण जब हंसिका अपना गर्भपात कराने के लिए डाक्टर के पास पहुंची तो डाक्टर ने यह कह कर गर्भपात करने से मना कर दिया कि समय अधिक हो गया है, अब यह संभव नहीं है, इसलिए आप को बच्चे को जन्म देना ही होगा.

“हंसिका ने सब से पहले यह बात अपने एक पुराने बौयफ्रैंड आर्यन से बताई, ‘सुनो आर्यन, यार, बड़ीड़ा प्रौब्लम हो गई है.’

“‘ऐसा भी क्या हो गया मेरी जान जो तुम इतना घबरा कर बोल रही हो,’ आर्यन ने कहा.

“‘यू नो, आई एम प्रैग्नैंट,’ हंसिका ने फुसफुसा कर कहा.

“‘बधाई हो, मिठाई खिलाओ भाई,’ आर्यन ने चुटकी ली.

“‘मज़ाक मत करो, मैं बहुत परेशान हूं,’ हंसिका चिड़चिड़ा रही थी.

“‘अब तुम कोई दूध पीती बच्ची तो नहीं जो तुम्हें बताना पड़ेगा कि अगर तुम शादी से पहले प्रैग्नैंट हो गई हो तो बच्चे को अबौर्ट करवा दो.’

“‘तुम्हें क्या लगता है कि मैं डाक्टर के पास नहीं गई थी? गई थी पर डाक्टर ने गर्भपात करने से मना कर दिया. अब मुझे बच्चे को जन्म देना ही होगा.’

“ओह्ह, तो यह बात है,’ आर्यन ने गहरी सांस छोड़ते हुए कहा और चुप हो गया. कुछ देर बाद आर्यन ने ही कहना शुरू किया, ‘कोई बात नहीं, तुम फिक्र मत करो. अस्पताल का सारा खर्चा मैं देने के लिए तैयार हूं. पर क्या यह बच्चा वास्तव में मेरा ही है?’

“‘ये कैसी बातें कर रहे हो आर्यन, क्या मतलब है तुम्हारा?’

“‘मेरा मतलब है कि मेरे अलावा तुम्हारे पति का भी तो हो सकता है?’ आर्यन ने कहा. जबकि, उसे अच्छी तरह पता था कि हंसिका अपने पति से अलग रह रही है और उस ने पति से तलाक लेने का मुकदमा दायर कर रखा है.

“‘अगर भरोसा नहीं है तो बच्चे का डीएनए टैस्ट करवा लो.’

“डीएनए टैस्ट करवाने की बात तो आर्यन के मन में भी आई थी पर अगर डीएनए टैस्ट में बच्चा किसी और का निकलता तो बहुत मुमकिन था कि आर्यन को हंसिका से विरक्ति हो जाती और वह उसे खो देता.

“‘अरे, ऐसी कोई बात नहीं है. तुम तो ज़रा सी बात में नाराज़ हो गई. मैं तो मज़ाक कर रहा था,’ आर्यन ने बात बनाते हुए कहा.

“हंसिका के संबंध कई मर्दों से थे. सभी मर्द इस बात को अच्छी तरह से जानते भी थे. हंसिका जैसी चिड़िया किसी एक पिंजरे में बंद हो कर नहीं रह सकती पर वे सब हंसिका जैसी सैक्सी व दिलकश लड़की को छोड़ना नहीं चाहते थे. इसलिए, वे सब उस की लगभग हर बात मानते थे.

हंसिका ने इसी तरह बारीबारी अपने सभी बौयफ्रैंड्स को अपने गर्भवती होने की बात बताई. और उन सब ने कमोबेश यही कहा कि हंसिका, बच्चे को अस्पताल में जन्म दे और वे लोग उसे हर तरह का खर्चा देने के लिए तैयार हैं.

“जब अपने चारों बौयफ्रैंड्स से हंसिका ने बात कर के उन से पैसे मिलने की बात कन्फर्म कर ली, तब जा कर उस को सुकून मिला और वह अपने होने वाले बच्चे के भविष्य को ले कर आश्वस्त हो गई.

“मेरी नायिका हंसिका ने अपने औफिस से मैटरनिटी लीव ली और समय आने पर बच्चे को जन्म दिया.

“हंसिका अपने हर बौयफ्रैंड को अलगअलग यही एहसास कराती रहती कि जैसे यह बच्चा उस का ही है और उन लोगों से अलगअलग बच्चे के पालनपोषण के लिए पैसे भी लेती रही.

“कालांतर में हंसिका के अविवाहित बौयफ्रैंड्स की शादी भी हो गई और कुछ समय बाद बच्चे भी. पर उन प्रेमियों ने हंसिका व उस के बच्चे का ध्यान रखना नहीं छोड़ा.

“हंसिका के कई पुरुषों से संबंध को दुश्चरित्रता इसलिए भी नहीं कहा जा सकता क्योंकि मर्दों के इस समाज में हंसिका ने ‘टिट फौर टैट’ अर्थात ‘जैसे को तैसा’ वाला आचरण दिखा कर एक नई मिसाल पेश की है. और फिर, अगर एक औरत अपने पति की किसी भी तरह की बेवफ़ाई के खिलाफ किसी भी तरह का सार्थक कदम उठाती है तो उस का स्वागत किया जाना चाहिए. और मुझे पता है कि इस समाज में हंसिका जैसी बहुत औरते हैं जो पति की बेवफाई सह रही हैं. भले ही वे सब अपने मर्द के खिलाफ कुछ न कर पा रही हों पर मेरी इस कहानी को पसंद कर उन्होंने इस साल की बैस्ट कहानी बना कर हंसिका का साथ देने की मूक स्वीकृति तो दे ही दी है.”

हौल में लगातार तालियां बजे जा रही थीं हंसिका जैसी नायिका के लिए. पर यह बात केवल अरुंधती ही जानती थी कि हंसिका की यह कहानी किसी और की नहीं, बल्कि उस की अपनी है. Hindi Kahani

Hindi Family Story: झगड़ा – आखिर क्यों बैठी थी उस दिन पंचायत

Hindi Family Story: रात गहराने लगी थी और श्याम अभीअभी खेतों से लौटा ही था कि पंचायत के कारिंदे ने आ कर आवाज लगाई, ‘‘श्याम, अभी पंचायत बैठ रही?है. तुझे जितेंद्रजी ने बुलाया है.’’

अचानक क्या हो गया पंचायत क्यों बैठ रही है? इस बारे में कारिंदे को कुछ पता नहीं था. श्याम ने जल्दीजल्दी बैलों को चारापानी दिया, हाथमुंह धोए, बदन पर चादर लपेटी और जूतियां पहन कर चल दिया.

इस बात को 2-3 घंटे बीत गए थे. अपने पापा को बारबार याद करते हुए सुशी सो गई थी. खाट पर सुशी की बगल में बैठी भारती बेताबी से श्याम के आने का इंतजार कर रही थी.

तभी किसी ने दरवाजा खटखटाया, तो भारती ने सांकल खोल दी. थके कदमों से श्याम घर में दाखिल हुआ.

भारती ने दरवाजे की सांकल चढ़ाई और एक ही सांस में श्याम से कई सवाल कर डाले, ‘‘क्या हुआ? क्यों बैठी थी पंचायत? क्यों बुलाया था तुम्हें?’’

‘‘मुझे जिस बात का डर था, वही हुआ,’’ श्याम ने खाट पर बैठते हुए कहा.

‘‘किस बात का डर…?’’ भारती ने परेशान लहजे में पूछा.

श्याम ने बुझी हुई नजरों से भारती की ओर देखा और बोला, ‘‘पेमा झगड़ा लेने आ गया है. मंगलगढ़ के खतरनाक गुंडे लाखा के गैंग के साथ वह बौर्डर पर डेरा डाले हुए है. उस ने 50,000 रुपए के झगड़े का पैगाम भेजा है.’’

‘‘लगता है, वह मुझे यहां भी चैन से नहीं रहने देगा… अगर मैं डूब मरती तो अच्छा होता,’’ बोलते हुए भारती रोंआसी हो उठी. उस ने खाट पर सोई सुशी को गले लगा लिया.

श्याम ने भारती के माथे पर हाथ रखा और कहा, ‘‘नहीं भारती, ऐसी बातें क्यों करती हो… मैं हूं न तुम्हारे साथ.’’

‘‘फिर हमारे गांव की पंचायत ने क्या फैसला किया? क्या कहा जितेंद्रजी ने?’’ भारती ने पूछा.

‘‘सच का साथ कौन देता है आजकल… हमारी पंचायत भी उन्हीं के साथ है. जितेंद्रजी कहते हैं कि पेमा का झगड़ा लेने का हक तो बनता है…

‘‘उन्होंने मुझ से कहा कि या तो तू झगड़े की रकम चुका दे या फिर भारती को पेमा को सौंप दे, लेकिन…’’ इतना कहतेकहते श्याम रुक गया.

‘‘मैं तैयार हूं श्याम… मेरी वजह से तुम क्यों मुसीबत में फंसो…’’ भारती ने कहा.‘‘नहीं भारती… तुम्हें छोड़ने की बात तो मैं सोच भी नहीं सकता… रुपयों

के लिए अपने प्यार की बलि कभी नहीं दूंगा मैं…’’‘‘तो फिर क्या करोगे? 50,000 रुपए कहां से लाओगे?’’ भारती ने पूछा.

‘‘मैं अपना खेत बेच दूंगा,’’ श्याम ने सपाट लहजे में कहा.

‘‘खेत बेच दोगे तो खाओगे क्या… खेत ही तो हमारी रोजीरोटी है… वह भी छिन गई तो फिर हम क्या करेंगे?’’ भारती ने तड़प कर कहा.

यह सुन कर श्याम मुसकराया और प्यार से भारती की आंखों में देख कर बोला, ‘‘तुम मेरे साथ हो भारती तो मैं कुछ भी कर सकता हूं. मैं मेहनतमजदूरी करूंगा, लेकिन तुम्हें भूखा नहीं मरने दूंगा… आओ खाना खाएं, मुझे जोरों की भूख लगी है.’’

भारती उठी और खाना परोसने लगी. दोनों ने मिल कर खाना खाया, फिर चुपचाप बिस्तर बिछा कर लेट गए.

दिनभर के थकेहारे श्याम को थोड़ी ही देर में नींद आ गई, लेकिन भारती को नींद नहीं आई. वह बिस्तर पर बेचैन पड़ी रही. लेटेलेटे वह खयालों में खो गई.

तकरीबन 5 साल पहले भारती इस गांव से विदा हुई थी. वह अपने मांबाप की एकलौती औलाद थी. उन्होंने उसे लाड़प्यार से पालपोस कर बड़ा किया था. उस की शादी मंगलगढ़ के पेमा के साथ धूमधाम से की गई थी.

भारती के मातापिता ने उस के लिए अच्छा घरपरिवार देखा था ताकि वह सुखी रहे. लेकिन शादी के कुछ दिनों बाद ही उस की सारी खुशियां ढेर हो गई थीं, क्योंकि पेमा का चालचलन ठीक नहीं था. वह शराबी और जुआरी था. शराब और जुए को ले कर आएदिन दोनों में झगड़ा होने लगा था.

पेमा रात को दारू पी कर घर लौटता और भारती को मारतापीटता व गालियां बकता था. एक साल बाद जब सुशी पैदा हुई तो भारती ने सोचा

कि पेमा अब सुधर जाएगा. लेकिन न तो पेमा ने दारू पीना छोड़ा और न ही जुआ खेलना.

पेमा अपने पुरखों की जमीनजायदाद को दांव पर लगाने लगा. जब कभी भारती इस बात की खिलाफत करती तो वह उसे मारने दौड़ता.

इसी तरह 3 साल बीत गए. इस बीच भारती ने बहुत दुख झेले. पति के साथ कुदरत की मार ने भी उसे तोड़ दिया. इधर भारती के मांबाप गुजर गए और उधर पेमा ने उस की जिंदगी बरबाद कर दी. घर में खाने के लाले पड़ने लगे.

सुशी को बगल में दबाए भारती खेतों में मजदूरी करने लगी, लेकिन मौका पा कर वह उस की मेहनत की कमाई भी छीन ले जाता. वह आंसू बहाती रह जाती.

एक रात नशे की हालत में पेमा अपने साथ 4 आवारा गुंडों को ले कर घर आया और भारती को उन के साथ रात बिताने के लिए कहने लगा. यह सुन कर उस का पारा चढ़ गया. नफरत और गुस्से में वह फुफकार उठी और उस ने पेमा के मुंह पर थूक दिया.

पेमा गुस्से से आगबबूला हो उठा. लातें मारमार कर उस ने भारती को दरवाजे के बाहर फेंक दिया.

रोती हुई बच्ची को भारती ने कलेजे से लगाया और चल पड़ी. रात का समय था. चारों ओर अंधेरा था. न मांबाप, न कोई भाईबहन. वह जाती भी तो कहां जाती. अचानक उसे श्याम की याद आ गई.

बचपन से ही श्याम उसे चाहता था, लेकिन कभी जाहिर नहीं होने दिया था. वह बड़ी हो गई, उस की शादी हो गई, लेकिन उस ने मुंह नहीं खोला था.

श्याम का प्यार इतना सच्चा था कि वह किसी दूसरी औरत को अपने दिल में जगह नहीं दे सकता था. बरसों बाद भी जब वह बुरी हालत में सुशी को ले कर उस के दरवाजे पर पहुंची तो उस ने हंस कर उस के साथ पेमा की बेटी को भी अपना लिया था.

दूसरी तरफ पेमा ऐसा दरिंदा था, जिस ने उसे आधी रात में ही घर से बाहर निकाल दिया था. औरत को वह पैरों की जूती समझता था. आज वह उस की कीमत वसूलना चाहता है.

कितनी हैरत की बात है कि जुल्म करने वाले के साथ पूरी दुनिया है और एक मजबूर औरत को पनाह देने वाले के साथ कोई नहीं है. बीते दिनों के खयालों से भारती की आंखें भर आईं.

यादों में डूबी भारती ने करवट बदली और गहरी नींद में सोए हुए श्याम के नजदीक सरक गई. अपना सिर उस ने श्याम की बांह पर रख दिया और आंखें बंद कर सोने की कोशिश करने लगी.

दूसरे दिन सुबह होते ही फिर पंचायत बैठ गई. चौपाल पर पूरा गांव जमा हो गया. सामने ऊंचे आसन पर गांव के मुखिया जितेंद्रजी बैठे थे. उन के इर्दगिर्द दूसरे पंच भी अपना आसन जमाए बैठे थे. मुखिया के सामने श्याम सिर झुकाए खड़ा था.

पंचायत की कार्यवाही शुरू

करते हुए मुखिया जितेंद्रजी ने कहा, ‘‘बोल श्याम, अपनी सफाई में तू क्या कहना चाहता है?’’

‘‘मैं ने कोई गुनाह नहीं किया है मुखियाजी… मैं ने ठुकराई हुई एक मजबूर औरत को पनाह दी है.’’

यह सुन कर एक पंच खड़ा हुआ और चिल्ला कर बोला, ‘‘तू ने पेमा की औरत को अपने घर में रख लिया है श्याम… तुझे झगड़ा देना ही पड़ेगा.’’

‘‘हां श्याम, यह हमारा रिवाज है… हमारे समाज का नियम भी है… मैं समाज के नियमों को नहीं तोड़ सकता,’’ जितेंद्रजी की ऊंची आवाज गूंजी तो सभा में सन्नाटा छा गया.

अचानक भारती भरी चौपाल में आई और बोली, ‘‘बड़े फख्र की बात है मुखियाजी कि आप समाज का नियम नहीं तोड़ सकते, लेकिन एक सीधेसादे व सच्चे इनसान को तोड़ सकते हैं…

‘‘आप सब लोग उसी की तरफदारी कर रहे हैं जो मुझे बाजार में बेच देना चाहता है… जिस ने मुझे और अपनी मासूम बच्ची को आधी रात को घर से धक्के दे कर भगा दिया था… और वह दरिंदा आज मेरी कीमत वसूल करने आ खड़ा हुआ है.

‘‘ले लीजिए हमारा खेत… छीन लीजिए हमारा सबकुछ… भर दीजिए उस भेडि़ए की झोली…’’ इतना कहतेकहते भारती जमीन पर बेसुध हो कर लुढ़क गई.

सभा में खामोशी छा गई. सभी की नजरें झुक गईं. अचानक जितेंद्रजी अपने आसन से उठ खड़े हुए और आगे बढ़े. भारती के नजदीक आ कर वह ठहर गए. उन्होंने भारती को उठा कर अपने गले लगा लिया.

दूसरे ही पल उन की आवाज गूंज उठी, ‘‘सब लोग अपनेअपने हथियार ले कर आ जाओ. आज हमारी बेटी पर मुसीबत आई है. लाखा को खबर कर दो कि वह तैयार हो जाए… हम आ रहे हैं.’’

जितेंद्रजी का आदेश पा कर नौजवान दौड़ पड़े. देखते ही देखते चौपाल पर हथियारों से लैस सैकड़ों लोग जमा हो गए. किसी के हाथ में बंदूक थी तो किसी के हाथ में बल्लम. कुछ के हाथों में तलवारें भी थीं.

जितेंद्रजी ने बंदूक उठाई और हवा में एक फायर कर दिया. बंदूक के धमाके से आसमान गूंज उठा. दूसरे ही पल जितेंद्रजी के साथ सभी लोग लाखा के डेरे की ओर बढ़ गए.

शराब के नशे में धुत्त लाखा व उस के साथियों को जब यह खबर मिली कि दलबल के साथ जितेंद्रजी लड़ने आ रहे हैं तो सब का नशा काफूर हो गया. सैकड़ों लोगों को अपनी ओर आते देख वे कांप गए. तलवारों की चमक व गोलियों की गूंज सुन कर उन के दिल दहल उठे.

यह नजारा देख पेमा के तो होश ही उड़ गए. लाखा के एक इशारे पर उस के सभी साथियों ने अपनेअपने हथियार उठाए और भाग खड़े हुए. Hindi Family Story

Best Hindi Kahani: अग्निपरीक्षा – जिंदगी के तूफान में फंसी श्रेष्ठा

Best Hindi Kahani: जीवन प्रकृति की गोद में बसा एक खूबसूरत, मनोरम पहाड़ी रास्ता नहीं है क्या, जहां मानव सुख से अपनों के साथ प्रकृति के दिए उपहारों का आनंद उठाते हुए आगे बढ़ता रहता है.

फिर अचानक किसी घुमावदार मोड़ पर अतीत को जाती कोई संकरी पगडंडी उस की खुशियों को हरने के लिए प्रकट हो जाती है. चिंतित कर, दुविधा में डाल उस की हृदय गति बढ़ाती. उसे बीते हुए कुछ कड़वे अनुभवों को याद करने के लिए मजबूर करती.

श्रेष्ठा भी आज अचानक ऐसी ही एक पगडंडी पर आ खड़ी हुई थी, जहां कोई जबरदस्ती उसे बीते लमहों के अंधेरे में खींचने का प्रयास कर रहा था. जानबूझ कर उस के वर्तमान को उजाड़ने के उद्देश्य से.

श्रेष्ठा एक खूबसूरत नवविवाहिता, जिस ने संयम से विवाह के समय अपने अतीत के दुखदायी पन्ने स्वयं अपने हाथों से जला दिए थे. 6 माह पहले दोनों परिणय सूत्र में बंधे थे और पूरी निष्ठा से एकदूसरे को समझते हुए, एकदूसरे को सम्मान देते हुए गृहस्थी की गाड़ी उस खूबसूरत पहाड़ी रास्ते पर दौड़ा रहे थे. श्रेष्ठा पूरी ईमानदारी से अपने अतीत से बाहर निकल संयम व उस के मातापिता को अपनाने लगी थी.

जीवन की राह सुखद थी, जिस पर वे दोनों हंसतेमुसकराते आगे बढ़ रहे थे कि अचानक रविवार की एक शाम आदेश को अपनी ससुराल आया देख उस के हृदय को संदेह के बिच्छु डसने लगे.

श्रेष्ठा के बचपन के मित्र के रूप में अपना परिचय देने के कारण आदेश को घर में प्रवेश व सम्मान तुरंत ही मिल गया, सासससुर ने उसे बड़े ही आदर से बैठक में बैठाया व श्रेष्ठा को चायनाश्ता लाने को कहा.

श्रेष्ठा तुरंत रसोई की ओर चल पड़ी पर उस की आंखों में एक अजीब सा भय तैरने लगा. यों तो श्रेष्ठा और आदेश की दोस्ती काफी पुरानी थी पर अब श्रेष्ठा उस से नफरत करती थी. उस के वश में होता तो वह उसे अपनी ससुराल में प्रवेश ही न करने देती. परंतु वह अपने पति व ससुराल वालों के सामने कोई तमाशा नहीं चाहती थी, इसीलिए चुपचाप चाय बनाने भीतर चली गई. चाय बनाते हुए अतीत के स्मृति चिह्न चलचित्र की भांति मस्तिष्क में पुन: जीवित होने लगे…

वषों पुरानी जानपहचान थी उन की जो न जाने कब आदेश की ओर से एकतरफा प्रेम में बदल गई. दोनों साथ पढ़ते थे, सहपाठी की तरह बातें भी होती थीं और मजाक भी. पर समय के साथ श्रेष्ठा के लिए आदेश के मन में प्यार के अंकुर फूट पड़े, जिस की भनक उस ने श्रेष्ठा को कभी नहीं होने दी.

यों तो लड़कियों को लड़कों मित्रों के व्यवहार व भावनाओं में आए परिवर्तन का आभास तुरंत हो जाता है, परंतु श्रेष्ठा कभी आदेश के मन की थाह न पा सकी या शायद उस ने कभी कोशिश ही नहीं की, क्योंकि वह तो किसी और का ही हाथ थामने के सपने देख, उसे अपना जीवनसाथी बनाने का वचन दे चुकी थी.

हरजीत और वह 4 सालों से एकदूजे संग प्रेम की डोर से बंधे थे. दोनों एकदूसरे के प्रति पूर्णतया समर्पित थे और विवाह करने के निश्चय पर अडिग. अलगअलग धर्मों के होने के कारण उन के परिवार इस विवाह के विरुद्घ थे, पर उन्हें राजी करने के लिए दोनों के प्रयास महीनों से जारी थे. बच्चों की जिद और सुखद भविष्य के नाम पर बड़े झुकने तो लगे थे, पर मन की कड़वाहट मिटने का नाम नहीं ले रही थी.

किसी तरह दोनों घरों में उठा तूफान शांत होने ही लगा था कि कुदरत ने श्रेष्ठा के मुंह पर करारा तमाचा मार उस के सपनों को छिन्नभिन्न कर डाला.

हरजीत की एक सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो गई. श्रेष्ठा के उजियारे जीवन को दुख के बादलों ने पूरी तरह ढक लिया. लगा कि श्रेष्ठा की जीवननैया भी डूब गई काल के भंवर में. सब तहसनहस हो गया था. उन के भविष्य का घर बसने से पहले ही कुदरत ने उस की नींव उखाड़ दी थी.

इस हादसे से श्रेष्ठा बूरी तरह टूट गई  पर सच कहा गया है समय से बड़ा चिकित्सक कोई नहीं. हर बीतते दिन और मातापिता के सहयोग, समझ व प्रेमपूर्ण अथक प्रयासों से श्रेष्ठा अपनी दिनचर्या में लौटने लगी.

यह कहना तो उचित न होगा कि उस के जख्म भर गए पर हां, उस ने कुदरत के इस दुखदाई निर्णय पर यह प्रश्न पूछना अवश्य छोड़ दिया था कि उस ने ऐसा अन्याय क्यों किया?

सालभर बाद श्रेष्ठा के लिए संयम का रिश्ता आया तो उस ने मातापिता की इच्छापूर्ति के लिए तथा उन्हें चिंतामुक्त करने के उद्देश्य से बिना किसी उत्साह या भाव के, विवाह के लिए हां कह दी. वैसे भी समय की धारा को रोकना जब वश में न हो तो उस के साथ बहने में ही समझदारी होती है. अत: श्रेष्ठा ने भी बहना ही उचित समझा, उस प्रवाह को रोकने और मोड़ने के प्रयास किए बिना.

विवाह को केवल 5 दिन बचे थे कि अचानक एक विचित्र स्थिति उत्पन्न हो गई. आदेश जो श्रेष्ठा के लिए कोई माने नहीं रखता था, जिस का श्रेष्ठा के लिए कोई वजूद नहीं था एक शाम घर आया और उस से विवाह करने की इच्छा व्यक्त की. श्रेष्ठा व उस के पिता ने जब उसे इनकार कर स्थिति समझाने का प्रयत्न किया तो उस का हिंसक रूप देख दंग रह गए.

एकतरफा प्यार में वह सोचने समझने की शक्ति तथा आदरभाव गंवा चुका था. उस ने काफी हंगामा किया. उस की श्रेष्ठा के भावी पति व ससुराल वालों को भड़का कर उस का जीवन बरबाद करने की धमकी सुन श्रेष्ठा के पिता ने पुलिस व रिश्तेदारों की सहायता से किसी तरह मामला संभाला.

काफी देर बाद वातावरण में बढ़ी गरमी शांत हुई थी. विवाह संपन्न होने तक सब के मन में संदेह के नाग अनहोनी की आशंका में डसते रहे थे. परंतु सभी कार्य शांतिपूर्वक पूर्ण हो गए.

बैठक से तेज आवाजें आने के कारण श्रेष्ठा की अतीत यात्रा भंग हुई और वह बाहर की तरफ दौड़ी. बैठक का माहौल गरम था. सासससुर व संयम तीनों के चेहरों पर विस्मय व क्रोध साफ झलक रहा था. श्रेष्ठा चुपचाप दरवाजे पर खड़ी उन की बातें सुनने लगी.

‘‘आंटीजी, मेरा यकीन कीजिए मैं ने जो भी कहा उस में रत्तीभर भी झूठ नहीं है,’’ आदेश तेज व गंभीर आवाज में बोल रहा था. बाकी सब गुस्से से उसे सुन रहे थे.

‘‘मेरे और श्रेष्ठा के संबंध कई वर्ष पुराने हैं. एक समय था जब हम ने साथसाथ जीनेमरने के वादे किए थे. पर जैसे ही मुझे इस के गिरे चरित्र का ज्ञान हुआ मैं ने खुद को इस से दूर कर लिया.’’

आदेश बेखौफ श्रेष्ठा के चरित्र पर कीचड़ फेंक रहा था. उस के शब्द श्रेष्ठा के कानों में पिघलता शीशी उड़ेल रहे थे.

आदेश ने हरजीत के साथ रहे श्रेष्ठा के पवित्र रिश्ते को भी एक नया ही

रूप दे दिया जब उस ने उन के घर से भागने व अनैतिक संबंध रखने की झूठी बात की. साथ ही साथ अन्य पुरुषों से भी संबंध रखने का अपमानजनक लांछन लगाया. वह खुद को सच्चा साबित करने के लिए न जाने उन्हें क्याक्या बता रहा था.

आदेश एक ज्वालामुखी की भांति झूठ का लावा उगल रहा था, जो श्रेष्ठा के वर्तमान को क्षणभर में भस्म करने के लिए पर्याप्त था, क्योंकि हमारे समाज में स्त्री का चरित्र तो एक कोमल पुष्प के समान है, जिसे यदि कोई अकारण ही चाहेअनचाहे मसल दे तो उस की सुंदरता, उस की पवित्रता जीवन भर के लिए समाप्त हो जाती है. फिर कोई भी उसे मस्तक से लगा केशों में सुशोभित नहीं करता है.

श्रेष्ठा की आंखों के सामने अंधेरा छाने लगा. क्रोध, भय व चिंता के मिश्रित भावों में ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे हृदय की धड़कन तेज दौड़तेदौड़ते अचानक रुक जाएगी.

‘‘उफ, मैं क्या करूं?’’

उस पल श्रेष्ठा के क्रोध के भाव 7वें आसमान को कुछ यों छू रहे थे कि यदि कोई उस समय उसे तलवार ला कर दे देता तो वह अवश्य ही आदेश का सिर धड़ से अलग कर देती. परंतु उस की हत्या से अब क्या होगा? वह जिस उद्देश्य से यहां आया था वह तो शायद पूरा हो चुका था.

श्रेष्ठा के चरित्र को ले कर संदेह के बीज तो बोए जा चुके थे. अगले ही पल श्रेष्ठा को लगा कि काश, यह धरती फट जाए और वह इस में समा जाए. इतना बड़ा कलंक, अपमान वह कैसे सह पाएगी?

आदेश ने जो कुछ भी कहा वह कोरा झूठ था. पर वह यह सिद्घ कैसे करेगी? उस की और उस के मातापिता की समाज में प्रतिष्ठा का क्या होगा? संयम ने यदि उस से अग्निपरीक्षा मांगी तो?

कहीं इस पापी की बातों में आ कर उन का विश्वास डोल गया और उन्होंने उसे अपने जीवन से बाहर कर दिया तो वह किसकिस को अपनी पवित्रता की दुहाई देगी और वह भी कैसे? वैसे भी अभी शादी को समय ही कितना हुआ था.

अभी तो वह ससुराल में अपना कोई विशेष स्थान भी नहीं बना पाई थी. विश्वास की डोर इतनी मजबूत नहीं हुई थी अभी, जो इस तूफान के थपेड़े सह जाती. सफेद वस्त्र पर दाग लगाना आसान है, परंतु उस के निशान मिटाना कठिन. कोईर् स्त्री कैसे यह सिद्घ कर सकती है कि वह पवित्र है. उस के दामन में लगे दाग झूठे हैं.

जब श्रेष्ठा ने सब को अपनी ओर देखते हुए पाया तो उस की रूह कांप उठी. उसे लगा सब की क्रोधित आंखें अनेक प्रश्न पूछती हुई उसे जला रही हैं. अश्रुपूर्ण नयनों से उस ने संयम की ओर देखा. उस का चेहरा भी क्रोध से दहक रहा था. उसे आशंका हुई कि शायद आज की शाम उस की इस घर में आखिरी शाम होगी.

अब आदेश के साथ उसे भी धक्के दे घर से बाहर कर दिया जाएगा. वह चीखचीख कर कहना चाहती थी कि ये सब झूठ है. वह पवित्र है. उस के चरित्र में कोई खोट नहीं कि तभी उस के ससुरजी अपनी जगह से उठ खड़े हुए.

स्थिति अधिक गंभीर थी. सबकुछ समझ और कल्पना से परे. श्रेष्ठा घबरा गई कि अब क्या होगा? क्या आज एक बार फिर उस के सुखों का अंत हो जाएगा? परंतु उस के बाद जो हुआ वह तो वास्तव में ही कल्पना से परे था. श्रेष्ठा ने ऐसा दृश्य न कभी देखा था और न ही सुना.

श्रेष्ठा के ससुरजी गुस्से से तिलमिलाते हुए खड़े हुए और बेकाबू हो उन्होंने आदेश को कस कर गले से पकड़ लिया, बोले, ‘‘खबरदार जो तुमने मेरी बेटी के चरित्र पर लांछन लगाने की कोशिश भी की तो… तुम जैसे मानसिक रोगी से हमें अपनी बेटी का चरित्र प्रमाणपत्र नहीं चाहिए. निकल जाओ यहां से… अगर दोबारा हमारे घर या महल्ले की तरफ मुंह भी किया तो आगे की जिंदगी हवालात में काटोगे.’’

फिर संयम और ससुर ने आदेश को धक्के दे कर घर से बाहर निकाल दिया. ससुरजी ने श्रेष्ठा के सिर पर हाथ रख कहा, ‘‘घबराओ नहीं बेटी. तुम सुरक्षित हो. हमें तुम पर विश्वास है. अगर यह पागल आदमी तुम्हें मिलने या फोन कर परेशान करने की कोशिश करे तो बिना संकोच तुरंत हमें बता देना.’’

सासूमां प्यार से श्रेष्ठा को गले लगा चुप करवाने लगीं. सब गुस्से में थे पर किसी ने एक बार भी श्रेष्ठा से कोई सफाई नहीं मांगी.

घबराई और अचंभित श्रेष्ठा ने संयम की ओर देखा तो उस की आंखें जैसे कह रही थीं कि मुझे तुम पर पूरा भरोसा है. मेरा विश्वास और प्रेम इतना कमजोर नहीं जो ऐसे किसी झटके से टूट जाए. तुम्हें केवल नाम के लिए ही अर्धांगिनी थोड़े माना है जिसे किसी अनजान के कहने से वनवास दे दूं.

तुम्हें कोई अग्निपरीक्षा देने की आवश्यकता नहीं. मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूं और रहूंगा. औरत को अग्निपरीक्षा देने की जरूरत नहीं. यह संबंध प्यार का है, इतिहास का नहीं.

श्रेष्ठा घंटों रोती रही और आज इन आंसुओं में अतीत की बचीखुची खुरचन भी बह गई. हरजीत की मृत्यु के समय खड़े हुए प्रश्न कि यह अन्याय क्यों हुआ, का उत्तर मिल गया था उसे.

पति सदासदा के लिए अपना होता है. उस पर भरोसा करा जा सकता है. पहले क्या हुआ पति उस की चिंता नहीं करते उस का जीवन सफल हो गया था.

पुराणों के देवताओं से कहीं ज्यादा श्रेष्ठकर संयम की संगिनी बन कर सासससुर के रूप में उच्च विचारों वाले मातापिता पा कर स्त्री का सम्मान करने वाले कुल की बहू बन कर नहीं, बेटी बन कर उस रात श्रेष्ठा तन से ही नहीं मन से भी संयम की बांहों में सोई. उसे लगा कि उस की असल सुहागरात तो आज है. Best Hindi Kahani

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