उच्चतम न्यायालय : एक अदृश्य शिकंजा

देश में आजकल राजनीतिक मंच पर एक रोचक प्रहसन चल रहा है. जिसे देश देख रहा है. इसमें देश के उच्चतम न्यायालय अर्थात सुप्रीम कोर्ट पर अपना प्रभाव नहीं देखकर, प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी की सरकार के कानून मंत्री लगातार अलग-अलग वेशभूषा में आकर कभी कहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट का वे सम्मान करते हैं ,कभी कहते हैं कि हमारा उच्चतम न्यायालय स्वतंत्र है और धीरे से स्थितियां यह बनाने का प्रयास किया जा रहा है कि देश का उच्चतम न्यायालय पूरी तरह उनके अंकुश में आ जाए.

दरअसल ,यह सरकार के अनुरूप,  पूर्ववर्ती परंपराओं और कॉलेजियम सिस्टम के कारण नहीं हो पा रहा है. आज केंद्र में बैठी सरकार की सारी कवायद इसी में लगी हुई है कि किसी भी तरह उच्चतम न्यायालय पर अपना अंकुश हो जाए.

वर्तमान में न्यायाधीशों की नियुक्ति एक कॉलेजियम सिस्टम के तहत हो रही हैं जिसमें सरकार का कोई दखल नहीं है. ऐसे में नरेंद्र दामोदरदास मोदी की सरकार चाहती है कि किसी तरह कुछ ऐसी बात बन जाए कि जिस तरह अन्य संवैधानिक संस्थाओं सहित सीबीआई प्रवर्तन निदेशालय में नियुक्ति की डोर केंद्र सरकार के पास है वैसा ही कुछ उच्चतम न्यायालय में भी हो जाए तो अपने मनमाफिक न्यायाधीश बैठाकर देश को अपनी  एकांगी  मंशा के अनुरूप देश पर स्वतंत्र रूप से सत्ता संचालन किया जाए. आज यह प्रयास इसी पटकथा के तहत किया जा रहा है. इस तरह हम कह सकते हैं कि देश आज एक जैसे चौराहे पर खड़ा है जो लोकतंत्र के लिए खतरनाक है. ऐसे में देश में लोकतंत्र को बचाने वली शक्तियों को आज अपनी भूमिका निभानी होगी.

नरेंद्र मोदी के कानून मंत्री किरेन रिजीजू ने मौका मिलते ही 22 जनवरी 2022 को  को हाई कोर्ट के एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश के विचारों का समर्थन करने की कोशिश की है, उनके मुताबिक -“सुप्रीम कोर्ट ने खुद न्यायाधीशों की नियुक्ति का फैसला कर संविधान का ‘अपहरण’ किया है.”

देश जानता है कि हालिया समय में उच्च न्यायपालिका में न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रक्रिया को लेकर सरकार और न्यायपालिका के बीच टकराव बढ़ा है. ऐसे समय में यह बयान आना यह बताता है कि कौन-कौन कितना गिर और  उठ सकता है. अगर सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम सिस्टम के तहत नियुक्तियां कर रही है  तो आज केंद्र में बैठे हुए सत्ताधारिओं को पीड़ा क्यों हो रही है.

कानून मंत्री की मंशा

कानून मंत्री किरण रिजीजू ने दिल्ली हाई कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति आरएस सोढ़ी (सेवानिवृत्त) के एक साक्षात्कार का वीडियो साझा करते हुए कहा -” यह एक न्यायाधीश की आवाज है और अधिकांश लोगों के इसी तरह के समझदारीपूर्ण ‘विचार’ हैं. यहां यह भी समझना आवश्यक है कि आज केंद्र सरकार आंख बंद कर चाहती है कि उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीशों की नियुक्ति उसके मुंहर से होनी चाहिए. समझने वाली बात यह है कि अगर कोई एक पार्टी जो सत्ता में आ जाती है और उसे 5 साल के लिए उसे जनादेश मिला है वह अपने लाभ के लिए लंबे समय तक का कोई फैसला कैसे ले सकती है.

साक्षात्कार में न्यायमूर्ति सोढ़ी ने यह भी कहा कि शीर्ष अदालत कानून नहीं बना सकती, क्योंकि उसके पास ऐसा करने का अधिकार नहीं है. उन्होंने कहा कि कानून बनाने का अधिकार संसद का है. मंत्री ने ट्वीट किया कि चुने हुए प्रतिनिधि लोगों के हितों का प्रतिनिधित्व करते हैं और कानून बनाते हैं. हमारी न्यायपालिका स्वतंत्र है और हमारा संविधान सर्वोच्च है.

रिजीजू ने पूर्व न्यायमूर्ति सोढीं का खुलकर समर्थन करते हुए कहा यह ‘एक न्यायाधीश की आवाज’ है और अधिकांश लोगों के इसी तरह के समझदारीपूर्ण ‘विचार’ हैं.

किरण रिजिजू कानून मंत्री से यह पूछना चाहिए कि आप समझदारी भरी बातें क्यों नहीं कर रहे हैं एक न्यायाधीश कहता है तो आप ताली बजा रहे हैं सिस्टम काम कर रहा है तो आप गाल बजा रहे हैं. एक पूर्व न्यायाधीश कुछ कहता है तो आप समर्थन में खड़े हो जाते हैं देश का उच्चतम न्यायालय का पूरा ढांचा चल रहा है तो आपको तकलीफ होती है. कोई इनसे पूछे कि आपको आखिर तकलीफ क्यों है क्या आपको पता नहीं है कि अगर संसद कोई गलत कानून बनाती है जो सविधान की मंशा के खिलाफ है तो उसे सुप्रीम कोर्ट रोक सकती है, क्या आपको यह पता नहीं है कि अगर संसद कानून बना सकती है तो फिर देश का उच्चतम न्यायालय भी कानून बनाता है और यह अधिकार संविधान से उसे मिला अधिकार है.

पाठकों को याद होगा कि पिछले दिनों उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने इसी शैली में राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम और एक संबंधित संविधान संशोधन को रद्द करने के लिए शीर्ष अदालत पर सवाल उठाया है . स्मरण रहे -आप वही धनदीप जगदीप धनखड़ हैं जिन्होंने राज्यसभा में एक विवादित अध्यादेश पास करवा दिया था और जो बाद में सरकार को वापस देना पड़ा था . कुल मिलाकर के देश में माहौल उच्चतम न्यायालय के कालेजियम प्रणाली के विरोध में बनाने का प्रयास जारी है एक अंकुश लगाने की कोशिश की जा रही है जिसके परिणाम आने वाले समय में सकते हैं.

रिजीजू ने खुलकर  न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए कालेजियम प्रणाली को भारतीय संविधान के प्रतिकूल बताया है. वहीं, उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम और एक संबंधित संविधान संशोधन को रद्द करने के लिए शीर्ष अदालत पर सवाल उठाया है. इधर सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में न्यायाधीशों की नियुक्तियों को मंजूर देने में देरी पर भी शीर्ष अदालत ने सरकार से सवाल किया है. भारतीय जनता पार्टी की सरकार सुप्रीम कोर्ट पर जैसा प्रभाव चाहती है तो वह भूल जाती है कि आने वाले समय में अगर सत्ता हाथ से निकल गई तो जो पार्टी सत्ता में आएगी वह इसका गलत उपयोग करेगी, तब आप पछताएंगे.

चुनाव और लालच : रोग बना महारोग

सुरेश चंद्र रोहरा

चुनाव का सीधा मतलब अब कोई न कोई लालच देना हो गया है. तकरीबन सभी राजनीतिक पार्टियां वोटरों को ललचाने का काम कर रही हैं और यह सीधासीधा फायदा नकद रुपए और दूसरी तरह के संसाधनों का है, जिसे सारा देश देख रहा है और संवैधानिक संस्थाएं तक कुछ नहीं कर पा रही हैं.

क्या हमारे संविधान में कोई ऐसा प्रावधान है कि राजनीतिक दल देश के वोटरों को किसी भी हद तक लुभाने के लिए आजाद हैं और वोटर अपनी समझ गिरवी रख कर के अपने वोट ऐसे नेताओं को बेच देंगे, जो सत्तासीन हो कर 5 साल तक उन्हें भुला बैठते हैं?

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क्या यह उचित है कि चुनाव जीतने के लिए लैपटौप, स्कूटी, मोबाइल, रुपएपैसे दिए जाना जरूरी हो? क्या अब विकास का मुद्दा पीछे रह गया है? क्या देश के दूसरे अहम मसले पीछे रह गए हैं कि हमारे नेताओं को रुपएपैसे का लौलीपौप वोटरों को देना जरूरी हो गया है या फिर यह सब गैरकानूनी है?

अब देश के सुप्रीम कोर्ट ने इस मसले पर ऐक्शन ले लिया है और अब देखना यह है कि आगेआगे होता है क्या? क्या रुपएपैसे के लोभलालच पर अंकुश लग जाएगा या फिर और बढ़ता चला जाएगा? यह सवाल आज हमारे सामने खड़ा है.

25 जनवरी, 2022 को सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘चुनाव में राजनीतिक दलों द्वारा मुफ्त सुविधाएं देने के वादे करना एक गंभीर मद्दा है.’

चीफ जस्टिस एनवी रमण, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस हिमा कोहली की पीठ ने इस मामले को ले कर देश में चुनाव कराने वाली संवैधानिक संस्था भारतीय चुनाव आयोग और केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर दिया है.

चुनाव में ‘माले मुफ्त दिल ए बेरहम’ जैसी हरकतें कर रहे राजनीतिक दलों  की मान्यता रद्द करने की मांग करने वाली एक याचिका पर सुनवाई करते हुए पीठ ने यह कदम उठाया. इस के बाद अब यह बहुतकुछ मुमकिन है कि आने वाले समय में कोई ठोस नतीजा सामने आ जाए.

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आप को यह बताते चलें कि सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस एनवी रमण ने कहा, ‘अदालत जानना चाहती है कि इसे कानूनी रूप से कैसे नियंत्रित किया जाए? क्या ऐसा इन चुनावों के दौरान किया जा सकता है या इसे अगले चुनाव के लिए किया जाए? निश्चित ही यह एक गंभीर मुद्दा है, क्योंकि मुफ्त बजट तो नियमित बजट से भी तेज है.’

दरअसल, देश की चुनाव व्यवस्था और राजनीतिक दलों की मुफ्त घोषणाओं पर यह सुप्रीम कोर्ट का खास और गंभीर तंज है.

नींद में चुनाव आयोग

लंबे समय से देश में चुनाव आयोग वोटरों को लुभाने के लिए राजनीतिक दलों द्वारा की जा रही घोषणाओं पर एक तरह से चुप्पी साध कर बैठा हुआ है. लोकसभा हो या विधानसभा चुनाव उसे निष्पक्ष तरीके से पूरा कराने की जिम्मेदारी देश के संविधान ने चुनाव आयोग को सौंपी है और यह चुनाव आयोग केंद्र सरकार की मुट्ठी में रहा है.

ऐसे में राजनीतिक दलों द्वारा किए जा रहे असंसदीय बरताव और कानून की नजर से गलतसलत बरताव को देखते हुए भी अनदेखा करता रहा है, वरना तकरीबन 40 साल पहले शुरू हुए वोटरों को लुभाने की कोशिशों पर शुरुआत में ही अंकुश लगाया जा सकता था.

दक्षिण भारत के बड़े नेता अन्नादुरई ने बहुत सस्ते में वोटरों को चावल देने की घोषणा के साथ इस चुनावी लालच के सफर की शुरुआत की थी, जिस के बाद एनटी रामाराव ने आंध्र प्रदेश में इस चलन को आगे बढ़ाया.

वर्तमान में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में, जो अपने शबाब पर है, अखिलेश यादव ने वोटरों को लुभाने के लिए घोषणाओं की झड़ी लगा दी है कि अगर हमारी सरकार आई तो हम यह देंगे, वह देंगे. इसी तरह कांग्रेस की चुनाव कमान संभालने वाली प्रियंका गांधी वाड्रा ने भी उत्तर प्रदेश चुनाव में वोटरों को कांग्रेस की सरकार बनने पर बहुतकुछ फ्री में देने का ऐलान कर दिया है.

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पंजाब में कांग्रेस के नवजोत सिंह सिद्धू ने भी पीछे मुड़ कर नहीं देखा और फ्री में बहुतकुछ देने की योजनाएं जारी कर दी हैं. अब यह रोग देशभर में महारोग बन चुका है. यही वजह है कि सुप्रीम कोर्ट ने इसे गंभीरता से लिया है.

आप को यह बताते चलें कि चुनाव आयोग ने राजनीतिक दलों के साथ एक बैठक कर उन से उन के विचार जानने चाहे थे और फिर यह मुद्दा ठंडे बस्ते में चला गया था.

सुप्रीम कोर्ट में वोटरों को लालच देने के मुद्दे वाली यह याचिका भारतीय जनता पार्टी के नेता और वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय ने दायर की है. याचिका में कहा गया है कि राजनीतिक दलों के चुनाव के समय मुफ्त चीजें देने की घोषणाएं वोटरों को गलत तरीके से प्रभावित करती हैं. इस से चुनाव प्रक्रिया भी प्रभावित होती है और यह निष्पक्ष चुनाव के लिए ठीक नहीं है.

पीठ ने सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट के सुब्रह्मण्यम बालाजी बनाम तमिलनाडु सरकार मामले के एक पुराने फैसले का भी जिक्र किया. उस में अदालत ने कहा था कि चुनावी घोषणापत्र में किए गए वादों को जन प्रतिनिधित्व कानून, 1951 की धारा 123 के तहत भ्रष्ट आचरण के रूप में नहीं माना जा सकता है.

इस बारे में अदालत ने चुनाव आयोग को राजनीतिक दलों की सलाह से आदर्श आचार संहिता में शामिल करने की सलाह दी थी.

याचिकाकर्ता की तरफ से एक सीनियर वकील ने दलील दी कि इस मामले में केंद्र सरकार से हलफनामा तलब करना चाहिए. राजनीतिक दल किस के पैसे के बल पर रेवडि़यां बांटने के वादे कर रहे हैं. कैसे राजनीतिक दल मुफ्त उपहार की पेशकश कर रहे हैं. हर पार्टी एक ही काम कर रही है.

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इस पर चीफ जस्टिस एनवी रमण ने उन्हें टोका और पूछा कि अगर हर पार्टी एक ही काम कर रही है, तो आप ने अपने हलफनामे में केवल 2 पार्टियों का ही नाम क्यों लिया है.

जवाब में उन वकील ने कहा कि वे पार्टी का नाम नहीं लेना चाहते. पीठ में शामिल जस्टिस हिमा कोहली ने उन से पूछा कि आप के बयानों में काफीकुछ स्पष्ट है. याचिकाकर्ता के वकील का सुझाव था कि इस तरह की गतिविधि में शामिल पार्टी को मान्यता नहीं देनी चाहिए.

अब देखिए कि आगे क्या होता है. क्या सुप्रीम कोर्ट के इस कदम से देश में आने वाले चुनाव में वोटरों को ललचाने का खेल बंद होगा या फिर यह बढ़ता ही चला जाएगा?

सियासत : इत्र, काला धन और चुनावी शतरंज

शैलेंद्र सिंह

गांवदेहात की एक बहुत पुरानी कहावत है, ‘कहता तो कहता, सुनता ब्याउर’. इस का मतलब है कि कहने वाला तो जैसा है वैसा है ही, सुनने वाला भी अपना दिमाग नहीं इस्तेमाल करता. वह भी झूठ को सच मान लेता है.

कुछ इसी तर्ज पर उत्तर प्रदेश की ‘इत्र नगरी’ कन्नौज में इत्र और गुटके का कारोबार करने वाले पीयूष जैन के यहां इनकम टैक्स का छापा पड़ा. पीयूष जैन पर टैक्स न अदा करने और काला धन रखने का आरोप लगा. उन के यहां से बहुत सारा पैसा नकदी के रूप में मिला.

इस को ले कर राजनीति होने लगी. भारतीय जनता पार्टी के नेता पीयूष जैन को समाजवादी पार्टी का नेता बताते हुए कहते हैं कि ‘समाजवादी इत्र बनाने वाले कारोबारी के घर से काला धन निकला है’.

इस के बाद केवल छोटेमोटे लोकल नेता ही नहीं, बल्कि प्रधानमंत्री, गृह मंत्री और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री तक इस का जिक्र करने लगते हैं. एक तरह से ‘इत्र’ की खुशबू को काले धन की ‘बदबू’ में बदल दिया जाता है. झूठ बोलने में न तो कहने वाला कुछ संकोच कर रहा है और न समझने वाला अपना दिमाग लगाना चाह रहा है.

क्या भारतीय जनता पार्टी का यह ‘मिथ्या प्रचार’ कामयाब हो गया? वैसे, किसी ने यह जानने और समझने की कोशिश नहीं की कि पीयूष जैन कौन हैं? उन का समाजवादी पार्टी के साथ किसी भी तरह का संबंध है भी या नहीं? समाजवादी इत्र किस ने बनाया था?

पीयूष जैन के जरीए समझा जा सकता है कि सोशल मीडिया के जमाने में राजनीतिक दलों के लिए काम करने वाली आईटी सैल किस तरह से सच को झूठ में बदल सकती है. ऐसा अकेले पीयूष जैन के ही साथ नहीं हुआ है, बल्कि बहुत सारे ऐसे नेताओं के साथ हुआ है, जो भाजपा और उस की विचारधारा के खिलाफ खड़े होने की हिम्मत दिखाते हैं.

इस का एक बहुत बड़ा उदाहरण कांग्रेस नेता राहुल गांधी हैं. राहुल गांधी को आईटी सेल की ताकत ने ‘पप्पू’ में बदल दिया. इस दिशा में बहुत सारे नाम हैं, जिन्हें आईटी सैल ने हीरो से विलेन बना दिया.

याद रहे कि पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव के ठीक पहले भी वहां पर केंद्र सरकार की एजेंसियों ने ममता बनर्जी पर शिकंजा कसने की कवायद की थी, पर पश्चिम बंगाल की जनता ने केंद्र की ‘डबल इंजन’ सरकार को धो डाला था.

अब कन्नौज के रहने वाले पीयूष जैन पर आते हैं. उन का कुसूर इतना था कि वे उस महल्ले में रहते हैं, जहां समाजवादी पार्टी के विधायक पुष्पराज जैन उर्फ पंपी जैन भी रहते हैं. वे दोनों ही जैन हैं और इत्र व गुटके के कारोबार से जुड़े हैं. जैसे ही पीयूष जैन के यहां छापा पड़ा और तथाकथित काला धन मिला, भाजपा की आईटी सैल ने पीयूष जैन को सपा विधायक पुष्पराज जैन के रूप में बदनाम करना शुरू कर दिया.

छापा और बरामदगी

यह बात सच है कि पीयूष जैन के घर से जो पैसा बरामद हुआ, वह आंखें खोल देने वाला था. पर इस छापे में मिली रकम से 2 बातें भी साफ होती हैं कि सरकार नोटबंदी के बाद जिस काले धन के खत्म होने की बात कर रही थी, वह सही नहीं है. नोटबंदी से काले धन को रोकने में कोई मदद नहीं मिली, उलटे छोटे कारोबारी खत्म हो गए, क्योंकि अगर काले धन पर लगाम लग गई होती तो पीयूष जैन के यहां से इतना पैसा नहीं निकलता.

दूसरी बात यह कि भाजपा सरकार ने यह दावा भी किया था कि जीएसटी के बाद टैक्स चोरी खत्म हो गई है या न के बराबर रह गई है, पर यहां भी वह मात खा गई.

बहरहाल, पीयूष जैन को टैक्स चोरी के आरोप में अहमदाबाद की जीएसटी इंटैलिजैंस टीम ने 50 घंटे की लंबी पूछताछ के बाद गिरफ्तार किया. उन्हें सीजीएसटी ऐक्ट की धारा-69 के तहत गिरफ्तार कर पूछताछ के लिए कानपुर से अहमदाबाद ले जाया गया.

सर्विस ऐंड सर्विसेज टैक्स के अफसरों ने बताया कि छापामारी में इत्र कारोबारी के घर के अंदर एक बड़ा तहखाना मिला और 16 बेशकीमती प्रोपर्टी के दस्तावेज मिले. इन में कानपुर में 4, कन्नौज में 7, मुंबई में 2, दिल्ली में एक और दुबई की 2 प्रोपर्टी के दस्तावेज शामिल हैं.

इस के अलावा 18 लौकर और 500 चाबियां मिलीं. कुलमिला कर शुरुआती 120 घंटे की कार्यवाही में पीयूष जैन के ठिकानों से 257 करोड़ रुपए नकद और कई किलो सोना बरामद हुआ.

पीयूष जैन के घर में इतने पैसे मिले कि नोट गिनने के लिए मशीनें लाई गईं. कुल 8 मशीनों के जरीए पैसे को गिना गया.

कैसे खुला काला सच

अहमदाबाद की जीएसटी टीम को पुख्ता जानकारी मिली थी कि कानपुर में एक ट्रांसपोर्ट बिजनैसमैन टैक्स चोरी करता है. दरअसल, अहमदाबाद में एक ट्रक पकड़ा गया था. इस ट्रक में जा रहे सामान का बिल फर्जी कंपनियों के नाम पर बनाया गया था. सभी बिल 50,000 रुपए से कम के थे. टीम ने उस ट्रांसपोर्टर के घर और दफ्तर पर छापा मारा. वहां पर डीजीजीआई को तकरीबन 200 फर्जी बिल मिले. वहीं से पीयूष जैन और फर्जी बिलों के कनैक्शन का पता लगा. इस के बाद पीयूष जैन के घर पर छापामारी की गई.

पीयूष जैन कन्नौज की मशहूर इत्र वाली गली में इत्र का कारोबार करते हैं. इन के मुंबई में भी औफिस हैं. इनकम टैक्स को इन की तकरीबन 40 से ज्यादा ऐसी कंपनियां मिली हैं, जिन के जरीए पीयूष जैन अपना इत्र कारोबार चला रहे थे. वे गुटके के कारोबार से भी जुड़े हैं. कानपुर के ज्यादातर पान मसाला बनाने वाले उन के ग्राहक हैं. वे पीयूष जैन से ही पान मसाला कंपाउंड खरीदते हैं. गुटके के बिजनैस का कारोबार बढ़ने की वजह से ही पीयूष जैन को कन्नौज छोड़ कर कानपुर जाना पड़ा.

पीयूष जैन के पिता महेश चंद्र जैन कैमिस्ट की अच्छी जानकारी रखते हैं और उन का कारोबार भी इत्र से न जुड़ा हो कर कैमिस्ट की कंपाउंडिंग से जुड़ा हुआ है. पीयूष जैन के एक और भाई हैं अमरीश जैन. वे दोनों ही भाई कभी कन्नौज तो कभी कानपुर के घर पर रहते हैं. इन के पिताजी महेश चंद्र जैन ज्यादातर कन्नौज के मकान में रहते हैं.

50 साल के पीयूष जैन एक बहुत ही लोप्रोफाइल बिजनैसमैन हैं, जो एक आम जिंदगी बिताते हैं. वे अभी भी स्कूटर पर चलते हैं. उन के घर से सोना और नकदी बरामद होने के बाद और टैक्स चोरी के आरोप में कोर्ट ने उन्हें 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया है.

जब पीयूष जैन के कानपुर वाले घर पर डीजीजीआई टीम की छापेमारी हुई, उस के बाद से उन का संबंध समाजवादी पार्टी और कन्नौज से समाजवादी पार्टी के एमएलसी पुष्पराज जैन उर्फ पंपी जैन से जोड़ा जाने लगा. ऐसे में जब इस बात की पड़ताल की गई, तो पता चला कि पीयूष जैन और पुष्पराज जैन का आपस में कोई संबंध नहीं है. बस, इतना ही संबंध है कि वे दोनों एक ही जगह महल्ला छिपट्टी के रहने वाले हैं. वे दोनों जैन हैं और इत्र कारोबारी भी हैं. उन की आपस में न तो कोई रिश्तेदारी है और न ही कोई राजनीतिक संबंध.

समाजवादी इत्र को पुष्पराज जैन उर्फ पंपी जैन ने लौंच किया था. इस से पीयूष जैन का कोई संबंध नहीं था. 60 साल के पुष्पराज जैन को कन्नौज में ‘परोपकारी’ और ‘राजनेता’ कहा जाता है. उन के पास एक पैट्रोल पंप और कोल्ड स्टोरेज यूनिट है. वे खेतीबारी से भी कमाई करते हैं और उन के पास मुंबई में भी घर और दफ्तर हैं. पुष्पराज जैन को साल 2016 में इटावाफर्रुखाबाद से एमएलसी के रूप में चुना गया था. वे प्रगति अरोमा औयल डिस्टिलर्स प्राइवेट लिमिटेड के सहमालिक हैं. उन के इस बिजनैस की शुरुआत उन के पिता सवाई लाल जैन ने साल 1950 में की थी.

पुष्पराज जैन और उन के 3 भाई कन्नौज में कारोबार चलाते हैं और एक ही घर में रहते हैं. उन के 3 भाइयों में से 2 भी मुंबई औफिस में काम करते हैं, जबकि तीसरा भाई उन के साथ कन्नौज में मैन्युफैक्चरिंग सैटअप पर काम करता है.

साल 2016 में पुष्पराज जैन के चुनावी हलफनामे के मुताबिक, पुष्पराज और उन के परिवार के पास 37.15 करोड़ रुपए की चल संपत्ति और 10.10 करोड़ रुपए की अचल संपत्ति है. उन का कोई आपराधिक रिकौर्ड नहीं है और उन्होंने कन्नौज के स्वरूप नारायण इंटरमीडिएट कालेज में 12वीं जमात तक पढ़ाई की है.

इन का है समाजवादी इत्र

समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव ने ‘इत्र नगरी’ कन्नौज से सांसद होने का सफर शुरू किया तो उन के साथ इत्र कारोबारी पुष्पराज जैन उर्फ पंपी जैन भी पार्टी में शामिल हो गए और धीरेधीरे उन की गिनती अखिलेश यादव के करीबी नेताओं में होने लगी. इस के बाद उन्होंने समाजवादी इत्र का निर्माण कर उसे लौंच किया और पार्टी से एमएलसी का चुनाव लड़ कर जीत हासिल की.

पुष्पराज जैन उर्फ पंपी जैन शुरू से ही अपने पुश्तैनी घर पर रहे हैं और घर के पास ही इत्र का कारखाना लगाए हुए हैं, जहां से इत्र तैयार हो कर देशविदेश में भेजा जाता है.

पीयूष जैन के घर हुई छापेमारी के बाद पुष्पराज जैन उर्फ पंपी जैन भी सुर्खियों में आ गए. भाजपा के लोगों ने पीयूष जैन को ही समाजवादी पार्टी का नेता बताना शुरू कर दिया, तो अखिलेश यादव ने उन पर आरोप लगाते हुए कहा कि भाजपा ने पुष्पराज उर्फ पंपी जैन के घर छापा मारने के लिए कहा था, पर अफसर गलती से पीयूष जैन के घर पर छापा मार बैठे. पीयूष जैन के घर जो काला धन मिला है, उस से सपा का कोई मतलब नहीं है. यह सारा पैसा भाजपा के नेताओं का है. अफसरों की गलती से भाजपा का सच बाहर आ गया है.

अखिलेश यादव ने दावा किया कि भाजपा की अगुआई वाली राजग सरकार का असली निशाना पुष्पराज जैन थे, जिन्होंने हमारे लिए परफ्यूम बनाया था. उन्होंने (भाजपा) मीडिया के जरीए विज्ञापन दिया कि जिस पर छापा मारा गया, वह आदमी सपा का है. बाद में लोग सम?ा गए कि सपा के एमएलसी का इस से कोई लेनादेना नहीं है. भाजपा के लोग ‘सपा के इत्र कारोबारी पर छापा’ को सोशल मीडिया पर पोस्ट करने लगे. यह सब ‘डिजिटल इंडिया’ की गलती की तरह लग रहा था.

काले धन पर प्रधानमंत्री का निशाना

समाजवादी पार्टी को बदनाम करने के लिए काले धन के आरोपी पीयूष जैन को सपाई नेता साबित करने की लड़ाई में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी कूद पड़े. नरेंद्र मोदी का भाषण देश के प्रधानमंत्री का भाषण होता है. इस के तथ्यों में गलतियां नहीं होनी चाहिए. पीयूष जैन और पुष्पराज जैन के बीच के फर्क को पीएमओ के लोग भी नहीं समझ पाए या उत्तर प्रदेश में चुनावी फायदे के लिए इस फर्क को जानबूझ कर मिटाने का काम किया गया.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पीयूष जैन के घर हुई छापेमारी का इशारे से जिक्र किया, जिस में 194 करोड़ रुपए से ज्यादा की नकदी बरामद हुई है और समाजवादी पार्टी पर सत्ता में अपने कार्यकाल के दौरान पूरे उत्तर प्रदेश में ‘भ्रष्टाचार का इत्र’ छिड़कने का आरोप लगाया.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पीयूष जैन पर मारे गए छापे का जिक्र किया और कहा कि उन्होंने (सपा) साल 2017 से पहले पूरे उत्तर प्रदेश में भ्रष्टाचार की इत्र बिखेर दी थी, जो सभी के सामने है, मगर अब वे अपना मुंह बंद रखे हुए हैं और के्रडिट लेने के लिए आगे नहीं आ रहे हैं. नोटों का पहाड़, जिसे पूरे देश ने देखा है, यही उन की उपलब्धि और हकीकत है.

झूठ को सच में बदलने के लिए छापेमारी

बाद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस भाषण की आलोचना होने लगी. समाजवादी पार्टी ने भाजपा के इस झूठ को मुद्दा बना लिया. इस के बाद अचानक समाजवादी पार्टी के एमएलसी पुष्पराज जैन उर्फ पंपी जैन के कारोबारी ठिकानों पर भी इनकम टैक्स वालों की छापेमारी होने लगी. इस को अखिलेश यादव ने पकडे़ गए झूठ को सच में बदलने की कोशिश बताया.

सपा नेता रामगोपाल यादव ने कहा कि जबजब चुनाव आता है, तो छापे मारने वाले अफसरों की गाडि़यों पर लिख दिया जाता है, ‘आल इलैक्शन ड्यूटी’. तो ये तो इलैक्शन ड्यूटी पर हैं. वे अपना काम कर रहे हैं. अगर वे प्रोफैशनली करना चाहते थे, तो चुनाव से ठीक पहले यह छापे क्यों मारे जा रहे हैं? इस से पहले क्या इनकम टैक्स विभाग सो रहा था? सरकारी एजेंसियां दबाव में भी काम कर रही हैं. पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी को कितनी परेशानी उठानी पड़ी, पर जीत ममता की हुई, भाजपा को मुंह की खानी पड़ी. उत्तर प्रदेश में भी यही होगा. जनता भाजपा को सबक सिखाने के लिए तैयार है.

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