देश में आजकल राजनीतिक मंच पर एक रोचक प्रहसन चल रहा है. जिसे देश देख रहा है. इसमें देश के उच्चतम न्यायालय अर्थात सुप्रीम कोर्ट पर अपना प्रभाव नहीं देखकर, प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी की सरकार के कानून मंत्री लगातार अलग-अलग वेशभूषा में आकर कभी कहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट का वे सम्मान करते हैं ,कभी कहते हैं कि हमारा उच्चतम न्यायालय स्वतंत्र है और धीरे से स्थितियां यह बनाने का प्रयास किया जा रहा है कि देश का उच्चतम न्यायालय पूरी तरह उनके अंकुश में आ जाए.

दरअसल ,यह सरकार के अनुरूप,  पूर्ववर्ती परंपराओं और कॉलेजियम सिस्टम के कारण नहीं हो पा रहा है. आज केंद्र में बैठी सरकार की सारी कवायद इसी में लगी हुई है कि किसी भी तरह उच्चतम न्यायालय पर अपना अंकुश हो जाए.

वर्तमान में न्यायाधीशों की नियुक्ति एक कॉलेजियम सिस्टम के तहत हो रही हैं जिसमें सरकार का कोई दखल नहीं है. ऐसे में नरेंद्र दामोदरदास मोदी की सरकार चाहती है कि किसी तरह कुछ ऐसी बात बन जाए कि जिस तरह अन्य संवैधानिक संस्थाओं सहित सीबीआई प्रवर्तन निदेशालय में नियुक्ति की डोर केंद्र सरकार के पास है वैसा ही कुछ उच्चतम न्यायालय में भी हो जाए तो अपने मनमाफिक न्यायाधीश बैठाकर देश को अपनी  एकांगी  मंशा के अनुरूप देश पर स्वतंत्र रूप से सत्ता संचालन किया जाए. आज यह प्रयास इसी पटकथा के तहत किया जा रहा है. इस तरह हम कह सकते हैं कि देश आज एक जैसे चौराहे पर खड़ा है जो लोकतंत्र के लिए खतरनाक है. ऐसे में देश में लोकतंत्र को बचाने वली शक्तियों को आज अपनी भूमिका निभानी होगी.

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