Story In Hindi: समसपुर पंचायत में चौधरी साहब का काफी दबदबा था. आखिर हो भी क्यों न. मुसहर टोले का शायद ही कोई ऐसा आदमी था, जो चौधरी साहब का कर्जदार न हो या उन के खेत और ईंटभट्ठे में मजदूरी न करता हो.
देवन भी चौधरी साहब का खेतिहर मजदूर था. इंदिरा आवास योजना के तहत उस के पास रहने को पक्का मकान था. वह कभी चौधरी साहब के खेत में तो कभी ईंटभट्ठे पर मजदूरी किया करता था. मजदूरी से जो भी अनाज या पैसा मिलता था, उसी से देवन का गुजारा होता था.
3 साल पहले टीबी के मरीज देवन ने अपनी बीमारी के इलाज के लिए 10,000 रुपए सैकड़ा की दर से 5,000 रुपए चौधरी साहब से उधार लिए थे. वह हर महीने ब्याज का बाकायदा भुगतान भी कर दिया करता था.
पर पिछले 2 महीने से लगातार बीमार रहने के चलते देवन चौधरी साहब के ईंटभट्ठे पर नहीं जा रहा था. इस वजह से वह मूलधन तो दूर 2 महीने से ब्याज तक नहीं चुका पाया था.
चौधरी साहब जितनी आसानी से ब्याज पर रुपए लगाते थे, उस से कई गुना सख्ती से वसूली करने के लिए भी बदनाम थे. 2 महीने तक देवन जब काम पर नहीं पहुंचा और ब्याज भी नहीं भिजवाया, तो एक शाम चौधरी साहब खुद 4 लठैतों को ले कर मुसहर टोले की ओर चल दिए.
देवन की झोपड़ी के पास पहुंच कर चौधरी साहब के एक लठैत ने आवाज लगाई, ‘‘अरे देवना, कहां है रे… निकल बाहर…’’
आवाज सुन कर देवन किसी तरह लाठी टेकता हुआ बाहर निकला.
37 साल का गबरू जवान दिखने वाला देवन आज टीबी की वजह से 60 साल की उम्र वाला हड्डियों का ढांचा सा दिख रहा था.
‘‘अरे, मालिक आप…पाय लागूं …’’ बोल कर देवन ने चौधरी साहब के जूते को पकड़ लिया.
चौधरी साहब पैर से देवन के हाथों को ?ाटकते हुए चिल्लाए, ‘‘अरे, छू कर मेरा धरम भ्रष्ट करेगा क्या?’’
एक लठैत देवन द्वारा छुए गए चौधरी साहब के जूते को गमछे से साफ करने लगा.
‘‘ए देवना, चल फटाफट निकाल दो महीने का ब्याज… 1,000 रुपए,’’ चौधरी साहब चिल्लाए.
‘‘आप को तो पता ही है मालिक, 2 महीने से लगातार तबीयत बिगड़ी हुई है. दवादारू के चक्कर में ही जमा किया हुआ सारा रुपयापैसा खर्च हो गया,’’ देवन ने अपनी मजबूरी जाहिर की.
‘‘ऐ सुन… हम यहां तुम्हारी रामकथा सुनने नहीं, बल्कि सूद लेने आए हैं,’’ चौधरी साहब ने हड़काया.
‘‘मालिक, 3 साल से तो हर महीने समय पर 500 रुपए दे ही देते थे, बस इधर 2 महीने से तबीयत ज्यादा बिगड़ गई, तो काम पर नहीं जा सके, इसलिए ब्याज रुक गया…’’ देवन बोला.
‘‘चल, तलाशी दे… कितना माल छिपा रखा है अपनी अंटी में,’’ कमर से बंधी अंटी पर नजर टिकाते हुए चौधरी साहब ने बीच में टोकते हुए पूछा.
देवन ने अंटी से सौ के 3, पचास के 3, बीस के 2 और एक दस का एक नोट निकाल कर दिखाते हुए हाथ जोड़ कर गिड़गिड़ाते हुए कहा, ‘‘मालिक, अभी हमारे पास ब्याज देने के पैसे नहीं हैं. ये बस 500 रुपए हैं, जिन से आज इलाज की आखिरी दवा लेने शहर में डाक्टर के पास जाना है.
‘‘डाक्टर साहब ने कहा है कि आज आखिरी खुराक लेने के एक हफ्ते बाद मैं पूरी तरह से ठीक हो जाऊंगा… मालिक, एक बार तबीयत ठीक हो जाने दीजिए, फिर मैं आप के ईंटभट्ठे पर काम कर के आप की पाईपाई चुका दूंगा.’’
‘‘चल ड्रामेबाज, गांव की सरकारी डिस्पैंसरी में इलाज न करा कर शहर में जाएगा डाक्टर को दिखाने…’’ इतना कह कर चौधरी साहब ने एक लठैत को कुछ इशारा किया.
उस लठैत ने एक झटके में 500 रुपए देवन के हाथ से छीन कर चौधरी साहब को थमा दिए.
‘‘यह तो हुआ एक महीने का ब्याज, बाकी एक महीने का भी निकाल फटाफट,’’ नोटों को उलटपुलट कर जांचते हुए चौधरी साहब गुर्राए.
‘‘सच कह रहे हैं मालिक, बच्चे की कसम… ये पैसे मुझे दे दीजिए, दवा मंगवानी है साहब… ठीक होने के बाद मैं आप का सारा कर्जा चुका दूंगा,’’ गिड़गिड़ाते हुए देवन रोने लगा.
बाहर होहल्ला सुन कर देवन की बीवी गोद में 8 महीने के बेटे को ले कर बाहर निकल आई. वह सारी बात को समझ चुकी थी.
वह भी पति के साथ गिड़गिड़ाने लगी, ‘‘हुजूर, एक भी पैसा नहीं है अभी… आप यह पैसा हमारे मालिक को दे दीजिए… दवा लानी है… बाद में ये मजदूरी कर के धीरेधीरे आप का सारा पैसा लौटा देंगे.’’
चौधरी साहब ने ऊपर से नीचे तक देवन की बीवी को ताड़ा. गठीले शरीर वाली गोरीचिट्टी देवन की बीवी ने एक मैलीकुचैली साड़ी से किसी तरह अपने अधनंगे बदन को ढका हुआ था. गोद में लिए हुए बच्चे के अंग पर कोई भी कपड़ा नहीं था.
बिना ब्लाउज के साड़ी से ढकी छाती पर आंखें गड़ाते हुए चौधरी साहब कुटिलता से मुसकराए, फिर बोले, ‘‘क्या रे, तुम दोनों प्राणी हम को बेवकूफ सम?ाते हो… पैसा घर में छिपा कर रखा है और यहां मगरमच्छ के आंसू बहा रहे हो.’’
‘‘सच कहते हैं हुजूर, एक भी रुपया नहीं है घर में,’’ देवन ने जवाब दिया.
‘‘तो चल तलाशी दे घर की,’’ इतना बोल कर चौधरी साहब ने देवन की बीवी की गोद से बच्चा ले कर देवन को थमा दिया और उस की पत्नी की बांह पकड़ कर झोपड़ी के अंदर ले जाने लगे.
थोड़ी देर पहले देवन को अछूत कहने वाले चौधरी साहब को उस की बीवी का शरीर छूते समय छूतअछूत से कोई मतलब नहीं था.
‘‘मालिक, रुक्मिणी को छोड़ दीजिए, हम चलते हैं साथ में,’’ देवन टोकते हुए बोला.
चौधरी साहब के इशारे पर लठैतों ने देवन को घेर लिया. तलाशी के नाम पर चौधरी साहब देवन की बीवी के साथ घर के अंदर चले गए और दरवाजे को अंदर से बंद कर दिया.
आधा घंटे बाद चौधरी साहब कुरते के बटन लगाते हुए बाहर निकले और बोला, ‘‘सही कह रहा था देवना… पैसा नहीं था अंदर…’’
गोद में बच्चा लिए देवन बिलखबिलख कर रो रहा था. अंदर निढाल पड़ी उस की बीवी, जो कल तक अछूत मानी जाती थी, आज पराए मर्द की छुअन से खुद को दूषित महसूस कर रही थी.
चौधरी साहब ने लठैतों को चलने का इशारा किया और मूंछ पर उंगली फेरते हुए देवन से कहा, ‘‘तुझे पता है न देवन, मैं सूद से समझौता नहीं करता… इस बार तो 2 महीने का ब्याज बराबर हो गया, बाकी अगले महीने से समय पर दे देना, नहीं तो हमें आ कर इसी तरह घर की तलाशी लेनी पड़ेगी.’’ Story In Hindi