जामुन: फल एक, सेहत से जुड़ें फायदे अनेक

बारिश में जहां एक ओर गरमागरम पकोड़े और भजिएं लोगों की पहली पसंद होते है जो आपकी सेहत के लिए बीमारी का घर बन सकता है. वही इस मौसम के फल आपके शरीर को कई बीमारी से दूर रखने में काफी असरकारक हो सकते है. बारिश के मौसम में सबसे ज्यादा दिखने वाले फलों में जामुन है, जो बारिश में ही देखने को नसीब होता है.खट्टे-मीठे स्वाद के कारण जामुन की कई डिशेज बनाई जाती हैं. वैसे तो जामुन खाने के ढेर सारे फायदे हैं। मगर डायबिटीज रोगियों के लिए जामुन विशेष फायदेमंद होता है. जामुन खाने से ब्लड शुगर घटता है और इंसुलिन की मात्रा नियंत्रित रहती है. इस सिजनेबल फल को जितना हो सके आपने खाने में इस्तेमाल करें.

 पौष्टिक तत्वों से भरपूर है जामुन

जामुन में कैल्शियम, आयरन, मैग्नीशियम, फास्फोरस, पोटैशियम जैसे मिलिरल्स है जिसकी समय समय पर हमारे शरीर को जरुरत होती है. इसके अलावा जामुन में विटामिन्स और फाइबर भी भरपूर पाए जाते हैं. जामुन में ग्लूकोज और फ्रक्टोज पाया जाता है, मगर फाइबर होने के कारण यह बहुत धीरे-धीरे खून में घुलता है.

 पेट संबंधी समस्या और कैंसर के लिए भी फायदेमंद

जामुन खाने से आपका डाईजेशन अच्छा होता है साथ ही  जामुन खाने से पेट सं‍बंधित समस्या कम होती हैं. शुगर के उपचार के लिए जामुन बहुत ही फायदेमंद माना जाता है. शुगर के रोगी को जामुन की गुठलियों को सुखाकर, पीसकर उनका सेवन करें. इससे शुगर लेवल कंट्रोल में रहता है. आपको जानकर हैरानी होगी पर जामुन में कैंसर से भी निपटने की क्षमता है. कीमोथेरेपी और रेडिएशन थेरेपी के बाद जामुन खाना चाहिए, इससे फायदा होता है.

पथरी और छालों को रखें दूर

जामुन खाने से पथरी में फायदा होता है. जामुन की गुठली के चूर्ण को दही के साथ मिलाकर खाने से पथरी में फायदा होता है वही मुंह में छाले होने पर जामुन के रस का प्रयोग करने से लाभ होता है.

खूनी दस्त में है रामवाण

दस्त या खूनी दस्त होने पर जामुन का सेवन करना चहिए. दस्त होने पर जामुन के रस को सेंधानमक के साथ मिलाकर खाने से दस्त बंद हो जाता है.

टोंड या फुल क्रीम: जानें सेहत के लिए कौन सा दूध है बेहतर

मार्केट में जब भी दूध लेने जाते है तो तरह तरह के दूध वहा मौजूद होते है. कई लोग तो इस के अंतर और फायदे को जानते है पर ज्यादातर लोग इस बात से अनजान रहते है की फूल क्रीम और टोंड मिल्‍क में क्या अंतर होता है. वजन बढ़ने और अन्‍य कई समस्‍याओं के लिए हमेशा फुल क्रीम दूध को दोष दिया जाता है, लेकिन क्‍या ये सही है. इन्ही सब के चलते आज हम दूध से जुड़े कुछ ऐसी बाते बताएंगे जो आपके जानना जरुरी है. तो चलिए जानते है..

क्या आप जानते है फैक्ट

फुल-फैट वाले डेयरी उत्पाद वास्तव में आपके वजन घटाने के लक्ष्यों को पूरा करने में आपकी मदद कर सकते हैं, जबकि लोग ऐसा नहीं मानते हैं. 18,000 मिडिल एज की स्वस्थ वजन वाली महिलाओं पर किए गए दस साल के लंबे रिसर्च में पाया गया कि जिन महिलाओं ने अधिक दूध का सेवन किया और पूर्ण फैट वाले डेयरी उत्पादों का सेवन किया, उनमें उन महिलाओं की तुलना में अधिक वजन और मोटापे की संभावना कम थी, जिन्होंने पूर्ण फैट वाले डेयरी का सेवन नहीं किया था.

फुल क्रीम दूध की दैनिक खपत ने प्रतिभागी के एचडीएल कोलेस्ट्रौल (अच्छे कोलेस्ट्रौल) के स्तर में वृद्धि की, जबकि टोंड मिल्‍क पीने वाली महिलाओं ये लाभ नहीं दिखा। कुछ अन्य अध्ययनों में पाया गया कि जो बच्चे फुल क्रीम दूध का सेवन करते हैं, उनमें बाकी बच्‍चों (जो कम फैट वाले दूध पीते हैं) के मुकाबले विटामिन डी का स्तर बेहतर था. शोधकर्ताओं ने पाया कि दूध में पाई जाने वाला फैट शरीर को अधिक विटामिन डी अवशोषित करने में मदद करती है.

फैट-फ्री और स्किम मिल्क संतोषजनक नहीं होते हैं और फैट रहित दही अतिरिक्त शर्करा से भरे होते हैं और ये हमें फैट वाले डेयरी उत्‍पादों से मिलने वाले स्वास्थ्य लाभों से भी वंचित रखते हैं. जब लोग फैट को कम करने पर ध्यान केंद्रित करते हैं, तो वे विकल्प के रूप में ज्‍यादा रिफाइंड कार्ब्‍स और शुगर खाने लगते हैं, जिसके अपने कई स्वास्थ्य जोखिम होते हैं.

आखिर कहां से आया टोंड मिल्क का कौनसेप्ट

1990 के दशक के दौरान, पोषण विशेषज्ञों और स्वास्थ्य पेशेवरों ने लोगों को अपने आहार से फैट में कटौती करने की सलाह दी जिसमें दूध और अन्‍य डेयरी उत्‍पाद शामिल थे. जिसके कारण अधिक से अधिक लोग कम फैट और फैट रहित डेयरी उत्‍पादों का विकल्प चुनने लगे. इसके बाद डेयरी उत्‍पाद के निर्माताओं ने अपने उत्पादों में आर्टीफिशियल इंग्रीडिएंट और चीनी मिलाना शुरू कर दिया, ताकि लोगों को बेहतर स्वाद मिल सके. इसके कारण हमें फ्लेवर्ड दूध, मीठी दही और अन्‍य उत्‍पाद मार्केट में मिलने लगे.

चोट व जले के दर्द से राहत देता है पान, जानें इसके कई अन्य फायदे

शादी सहित अन्य समारोह में भोज पान के बिना अधूरा है. ज्यादतर लोग स्वाद के लिए पान खाते हैं लेकिन उनको पता नहीं होता कि पान खाने से उनको कई अन्य फायदे भी होते हैं. पान के पत्ते में कई ऐसे तत्व होते हैं जो बैक्टीरिया के प्रभाव को कम करने में सहायक होते हैं. जिन लोगों के मुंह से बदबू आती है उनके लिए भी पान का सेवन काफी फायदेमंद होता है. इसमें इस्तेमाल होने वाले मसाले जैसे लौंग, कत्था और इलायची भी मुंह को फ्रेश रखने में सहायक होते हैं. पान खाने वालों के लार में एस्कॉर्बिक एसिड का स्तर भी सामान्य बना रहता है, जिससे मुंह संबंधी कई बीमारियां होने का खतरा कम हो जाता है.

पान में अल्प मात्रा में कपूर की मात्रा के साथ 3-4 बार चबाने से पायरिया दूर होता है. लेकिन यह बात ध्यान रखें की पान की पीक पेट में नहीं जानी चाहिए. अगर आपको खांसी आ रही हो तो आप पान के पत्ते में अजवाइन डालकर चबाएं. इससे आपको खांसी से भी आराम मिलेगा. किडनी खराब होने पर भी आप पान का सेवन कर सकते हैं. पान खाने से किडनी खराब होने का खतरा कम होता है.

मसूड़ों में सूजनपर या गांठ आ जाने पर

मसूड़े में गांठ या फिर सूजन हो जाने पर पान का इस्तेमाल काफी फायदेमंद होता है. पान में पाए जाने तत्व इन उभारों को कम करने का काम करते हैं. मुंह में छाले पड़ जाने पर पान के रस को देशी घी से लगाने पर प्रयोग करने से फायदा होता है.


पाचन में सहायक

पान खाना पाचन क्रिया के लिए फायदेमंद है. ये सैलिवरी ग्लैंड को सक्रिय करके लार बनाने का काम करता है जोकि खाने को छोटे-छोटे टुकड़ों में तोड़ने का काम करता है. कब्ज की समस्या से जूझ रहे लोगों के लिए भी पान की पत्ती चबाना काफी फायदेमंद है. गैस्ट्र‍िक अल्सर को ठीक करने में भी पान खाना काफी फायदेमंद है.

 

साधारण बीमा‍रियों और चोट लगने पर

अगर आपको सर्दी हो रखी है तो ऐसे में पान के पत्ते आपके लिए फायदेमंद रहेंगे. इसे शहद के साथ मिलाकर खाने से फायदा होता है. साथ ही पान में मौजूद एनालजेसिक गुण सिर दर्द में भी आराम देता है. चोट लगने पर पान का सेवन घाव को भरने में मदद करता है. चोट पर पान को गर्म करके बांध लेना चाहिए. इससे दर्द में आराम मिलता है. जले हुए जगह पर पान लगाने से भी फायदा मिलता है.

कामोत्तेजना बढ़ाने में

पान के पत्ते कामोत्तेजना बढ़ाने में भी सहायक होते हैं. अंतरंग पलों को और खुशनुमा बनाने के लिए आप पान के पत्तों को इस्तेमाल कर सकते हैं.

4 टिप्स: जाने क्यों है ब्लैक टी आपके लिए फायदेमंद

सुबह की चाय हम में से अमुमन सभी की पहली पसंद होती है. चाय की चुस्की से की दिन शुरुआत पुरे दिन  को तरेताजगा कर देता है. चाय के शौकीन लोगों के लिए जरुरी है की वो किस प्रकार की चाय पी रहे है इसपर ध्यान दे. दूध वाली चाय, ग्रीन चाय या काली चाय सभी का अपना अपना स्वाद होता है. ये बात जानना बेहद है की सुबह खाली पेट दूध वाली चाय पीना आपके स्वास्थ्य के लिए हानिकारक साबित हो सकती है. इससे आपको डाईजेशन में तो समस्या होती ही है साथ ही और भी कई समस्या से दो चार होना पड़ता हैं. ऐसे में अगर आप दूध वाली चाय की जगह काली चाय पिएंगे तो ये आपकी सेहत के लिए काफी लाभदायक होगी. ब्लैक टी हृदय रोगों, दस्त, पाचन समस्याओं, हाई ब्लड प्रेशर, टाइप 2 शुगर और अस्थमा जैसी बीमारियों से लड़ने में मदद करती हैं. इसलिए हम आपको ब्लैक टी पीने के ऐसे चार फायदे बता रहे हैं, जिसके जरिए आप अपनी सेहत में सुधार कर सकते हैं और कई रोगों से दूर रहे सकते हैं.

शरीर की बदबू को दूर रखे ब्लैक टी

जिन्हें बहुत ज्यादा पसीना आता है और आपके आस-पास के लोग आपके पसीने की दुर्गंध से परेशान रहते हैं तो आपके लिए ब्लैक टी एक बेहद अच्छी है. ब्लैक टी बैक्टीरिया को पनपने नहीं देती, जिसके कारण पसीने से बदबू नहीं आती.

ब्लैक टी रखे टेंशन को रखे दूर

ब्लैक टी तनाव पैदा करने वाले हार्मोन के उत्पादन में कमी लाती है और इसे सामान्य बनाए रखने में सहायता करती है. एक अध्ययन के मुताबिक ब्लैक टी में मौजूद अमीनो एसिड और एल-थीनिन तनाव कम करता है और आपके शरीर को आराम भी देता है.

ब्लैक टी करें हृदय को बेहतर

शरीर का सबसे महत्वपूर्ण अंग है दिल. ब्लैक टी में मौजूद फ्लेवोन दिल के स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में बेहद उपयोगी है. वैज्ञानिक भी इस बात की पुष्टि करते हैं कि रोजाना तीन या उससे अधिक कप ब्लैक टी पीने से कोरोनरी हार्ट डिसीज का जोखिम कम हो जाता है. अगर आप भी अपनी डाइट में एंटीऑक्सिडेंट को शामिल करना चाहते हैं तो आप ब्लैक टी के साथ ऐसा कर सकते हैं.

शुगर को रखें दूर ब्लैक टी

मधुमेह(शुगर) एक ऐसी बीमारी है, जो सबसे तेजी से फैलने वाली बीमारियों में से एक है. मधुमेह का इलाज अगर प्रारंभिक चरण में हो तो इस रोग को प्रबंधित करना आसान होता है. हालांकि कुछ सावधानियों के साथ इस रोग का निदान आसान है. वैज्ञानिकों ने एक अध्ययन में पाया है कि ब्लैक टी टाइप 2 डायबिटीज के जोखिम को कम करती है क्योंकि इसमें पाए जाने वाला कैटेचिन और थायफ्लाविंस शरीर के इंसुलिन स्तर के संतुलन को बनाए रखने में मदद करता है.

रेड वाइन है सेहत के लिए फायदेमंद, जानें कैसे

हाल ही में एक रिसर्च के अनुसार रेड वाइन में मौजूद एक ऐसा यौगिक (Compound) पाया है जो डीप्रेशन और टेंशन से निपटने की क्षमता रखता है. इस वाइन को रोज अगर आप सिमित मात्रा में ले तो आप काफी रोगों से सुरक्षित रहेंगे. रेड वाइन रेसवेराट्रोल का होता है. इस कंपोउंड में एंटीऔक्सिडेंट गुण होता है जो आपको टेंशन से दूर रखता हैं. ध्यान देने वाली बात ये है की रेड वाइन में अल्कोहल होता है- जिसका अगर अधिक मात्रा में सेवन किया जाए तो यह आपके संपूर्ण स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है. रेड वाइन का कभी-कभार सेवन जब आप थोड़ा बहुत तनाव महसूस करते हैं तो सहायक हो सकता है.

अब तक, कंपाउन्ड में एंटी-डिप्रेसेंट के समान प्रभाव पाए गए थे. लेकिन इसके संबंध फौस्फोडाइस्टरेज़ 4 के साथ थे, जोकि स्‍ट्रेस हार्मोन कौर्टिकौस्टेरौन से प्रभावित एक एंजाइम थे. अंगूर और जामुन रेड वाइन की तुलना में रेसवेराट्रौल का एक बेहतर सौर्स हैं.

  • रेस्वेराट्रोल (Resveratrol) आपके हृदय स्वास्थ्य को बढ़ावा दे सकता है और कैंसर और यहां तक कि दृष्टि हानि से सुरक्षा प्रदान कर सकता है.
  • रेड वाइन प्लाज्मा और लाल रक्त कोशिकाओं में ओमेगा-3 फैटी एसिड के स्तर में वृद्धि कर सकता है. ओमेगा-3 फैटी एसिड हृदय स्वास्थ्य के लिए अच्छे हैं.
  • अध्ययनों से पता चला है कि एक ग्लास रेड वाइन पीने से टाइप 2 डायबिटीज वाले लोगों में कार्डियोमेटाबोलिक जोखिम को कम किया जा सकता है. बहरहाल, डायबिटीज के रोगियों को अपने डाक्टर से परामर्श लेने के बाद ही वाइन पीना चाहिए.
  • ब्रिटेन स्थित वैज्ञानिकों ने पाया कि रेड वाइन में मौजूद प्रोसेनिडिन्स रक्त वाहिकाओं को स्वस्थ रखने में मदद कर सकते हैं. वाइन जो पारंपरिक उत्पादन विधियों के साथ तैयार की जाती है, रेड वाइन यौगिकों को निकालने में अधिक प्रभावी प्रतीत होती है, इस प्रकार वाइन में प्रोसीएनिडिन के उच्च स्तर तक ले जाती है.
  • जौन्स हौपकिंस यूनिवर्सिटी स्कूल औफ मेडिसिन के शोधकर्ताओं का कहना है कि रेस्वेराट्रोल, मस्तिष्क को स्ट्रोक से होने वाले नुकसान से बचा सकता है.

गंभीर स्वास्थ समस्या के लिए भी असरकारक है मुलेठी

इस भागदौड़ भरी जिंदगी सेहत से जुड़ी समस्या का होना एक आम बात है. सर्दी जुखाम एक ऐसी समस्या है जो मौसम के बदलने पर सभी को हो ही जाती है और इसे एक हफ्ता या उससे भी ज्यादा समय लग जाता है  खत्म होने में. कई बार तो हम इन छोटी-छोटी समस्या के लिए डाक्टर की सलाह भी नही लेते. आयुर्वेद ने हम ऐसी कई औषधी से मिलाया है जिसके इस्तेमाल से एक दो नहीं बल्कि कई बीमारियों में फायदेमंद शाबित हो सकती है. जी हां हम बात कर रहे है स्वाद में मीठी मुलेठी की. आमतौर पर मुलेठी का इस्‍तेमाल पान में किया जाता हैं. मुलेठी सर्दी-जुखाम जैसी छोटी बीमारियों के साथ-साथ आपकी कई अन्‍य बड़ी बीमारियों में भी वरदान साबित हो सकती है. तो चलिए जानते है मुलठि के फायदें…

बच्चे को स्‍तनपान के संबंध में

अधिकतर महिलाओं में गर्भावस्‍था के बाद दूध का उत्‍पादन र्प्‍याप्‍त नहीं हो पाता। ऐसी स्थिति में आप मुलेठी का सेवन कर सकते हैं. इसके लिए आप 2 चम्‍मच मुलेठी पाउडर, 3 चम्‍मच शतावरी पाउडर और 2 ग्राम मिश्री को एक गिलास उबले दूध में मिलाकर पिएं. इससे महिला के दूध उत्‍पादन में वृद्धि होती है और बच्‍चे के लिए र्प्‍याप्‍त मां का दूध मिल पाता है.

अल्‍सर और कमजोरी के लिए रामबाण

अगर आप हमेशा थका हुआ महसूस करते हैं, तो आप 2 ग्राम मुलेठी चूर्ण के साथ 1 चम्‍मच घी और 1 चम्‍मच शहद को गर्म दूध के साथ मिलाकर पिएं. इससे आपकी थकान व कमजोरी दूर होगी. इसके अलावा पेट में अल्‍सर की समस्‍या होने पर आप 1 गिलास दूध के साथ 1 चम्‍मच मुलेठी चूर्ण मिलाकर दिन में 2 या 3 बार मिलाकर पी सकते हैं.

दिल की समस्या के लिए असरकारक

अगर आप दिल की बीमारी से परेशान है तो इसके लिए आप 2 ग्राम मुलेठी और 2 ग्राम कुटकी का चूर्ण,  ग्राम मिश्री लें और इसे एक गिलास पानी में घोल लें. इसे आप प्रतिदिन दो बार से अधिक न पिएं. अगर आपको दिल की बीमारियों के अलावा भी कोई रोग या समस्या है, तो उसमें भी आपको इससे फायदा मिलेगा.

एक ग्लास पानी करे सभी समस्याओं को दूर, जानें कैसे

पानी का महत्व यूं तो हम सभी जानते है. पानी हमारे जीवन की उन औषधियों में से एक है जिसके पीने मात्र से कई सारी बीमारियों को हम खुद से दूर रख सकते है. अगर आप नियमित रुप से पानी पीते है और दिनभर में कम से कम 1.5 लि. पानी पीते है तो यकीन मानिएं आप कई सभी शरिरीक समस्या से बच सकते है. तो चलिएं जानते है पानी कैसे और की समस्या के लिए फायदेमंद है…

1. अगर करना है वजन कम तो पिएं पानी

वजन कम करने का सबसे अच्छा और आसान तरीका है कि आप आपने सभी ड्रिंक्‍स को पानी के साथ बदल दें. जब आप ज्यादा पानी का सेवन करते हैं तो आपका वजन तेजी से कम होता है. आप सभी पेय को नौ दिनों के लिए पानी से बदल देते हैं तो आप दिन में 8 किमी दौड़ते के बाराबर कैलोरी बर्न करते हैं.

2. मेटाबौलिज्‍म को बढ़ाता है पानी

पानी के साथ अपने सभी पेय को बदलने से आपके डाईजेशन सुधरेगा और आपकी ऊर्जा का स्तर बढ़ेगा. इसलिए दिन भर खूब पानी पिएं और पूरे दिन एनर्जेटिक बने रहें. यह दिन-प्रतिदिन के कार्यों को करने के लिए आपकी दक्षता (Efficiency) में भी सुधार करेगा.

3. ब्रेन के लिए हेल्दी है पानी पीना

ह्यूमन ब्रेन का 75% से 85% तक पानी है, इसलिए अधिक पानी पीने से आपको बेहतर ध्यान केंद्रित करने में मदद मिलेगी. आप डेली के सभी काम को जल्दी और कुशलता से करेंगे.

4. क्रैविंग से दूर रखे पानी

जब आप पानी पीते हैं तो आप कम खाते हैं. यदि आपमें कैलोरी लेने की तीव्र इच्‍छा होती है, तो बस एक गिलास पानी पिएं. यह आपके वजन को प्रबंधित करने और आपको स्वस्थ रखने में आपकी मदद करेगा. कभी-कभी प्यास cravings को ट्रिगर करती है. हर समय अपने साथ पानी रखें और अनावश्यक कैलोरी को अलविदा कहें.

भरपूर पानी पीने से कई बीमारियों और हाई ब्लडप्रेशर, हृदय रोगों, मूत्राशय की स्थिति और डाईजेशन से संबंधी जैसी गंभीर स्वास्थ्य स्थितियों का खतरा कम हो जाता है. इसलिए अधिक पानी पीकर डाक्टर के पास जाने के अपने अवसरों को कम करें और स्वस्थ जीवन जिएं.

बौडी में क्यों है इम्युनिटी की जरूरत, जानें यहां

स्वस्थ रहने की पहली शर्त यह है कि शरीर में बीमारियों से लड़ने की क्षमता हो. शरीर बीमार न पड़े, यह अच्छी बात है, लेकिन ऐसा होता नहीं है. शरीर में मजबूत रोग प्रतिरोधक क्षमता नहीं है तो बीमारी आप को दबोच लेगी. यानी बीमार पड़ने और बीमार न पड़ने के बीच की सब से मजबूत दीवार है रोग प्रतिरोधक क्षमता या बौडी इम्यून. जिस का बौडी इम्यून जितना ताकतवर होगा उस के सेहतमंद रहने और लंबी उम्र तक जीने के उतने ही ज्यादा आसार होंगे.

आज की तेज रफ्तार जीवनशैली ने इंसान की रोग प्रतिरोधक क्षमता को पहले के मुकाबले कमजोर कर दिया है. नियमित ऐक्सरसाइज, संतुलित आहार व समय पर भोजन के चौतरफा सुझाव मिलते हैं ताकि मानसिक व शारीरिक रूप से स्वस्थ रहा जा सके लेकिन मल्टीनैशनल कल्चर के इस दौर में हम अपने खानपान व सेहत संबंधी कार्यक्रमों को जानतेबूझते हुए भी नियमित व अनुशासित नहीं कर पाते. ऐसी स्थिति में शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता या इम्यूनिटी का कमजोर होना स्वाभाविक है. नतीजतन, शरीर में विभिन्न प्रकार के भौतिक व पर्यावरणीय तनावों को सह पाने की क्षमता नहीं होती.

आज अनुशासित जीवन जीना बहुत ज्यादा कठिन है फिर भी अगर बेहतर स्वास्थ्य चाहिए तो इस कठिन अनुशासन को भी अपनाना ही पड़ेगा. ऐसे में यह जरूरी हो जाता है कि हम अपने शरीर को रोग प्रतरोधात्मक क्षमता के नजरिए से ऐसा बनाएं कि वह तमाम रोगों से लड़ सके और उन्हें शरीर में प्रविष्ट न होने दे. इस के लिए जरूरी है कि व्यक्ति अपनी सेहत, जीवनशैली और कार्यस्थल के माहौल पर विशेष ध्यान दे.

1. मजबूत प्रतिरोधात्मक क्षमता

दरअसल, जब शरीर की प्रतिरोधात्मक क्षमता कम होती है तो तापमान के गिरने या बढ़ने से या संक्रामक रोगों के फैलने से हम फौरन बीमार पड़ जाते हैं जबकि जिन की प्रतिरोधात्मक क्षमता मजबूत होती है वे कभीकभार ही बीमार पड़ते हैं. यह सही है कि इम्यूनिटी काफी हद तक वंशानुगत यानी जैनेटिक होती है लेकिन हमारे वातावरण में जो कीटाणु यानी जर्म्स होते हैं उन का सामना करने से यह बढ़ जाती है. जितने अधिक प्रकारों के कीटाणुओं का हम सामना करेंगे जाहिर है उतना ही मजबूत हमारा इम्यून सिस्टम हो जाएगा क्योंकि हमारा शरीर न केवल कीटाणुओं को पहचानने लगेगा बल्कि उन का प्रतिरोध भी करने लगेगा. इसलिए टीकाकरण महत्त्वपूर्ण हो जाता है. टीकाकरण के अतिरिक्त कोई और जरिया नहीं है जिस से विरासत में मिली इम्यूनिटी को मजबूत किया जा सके. लेकिन हम अपने वातावरण को जरूर परिवर्तित कर सकते हैं.

इम्यून कोशिकाएं शरीर में त्वचा से ले कर अंदर तक सभी जगह होती हैं. आमतौर से वयस्कों का इम्यून सिस्टम बहुत मजबूत होता है जिस में हजारों कीटाणुओं की मेमोरी होती है. लेकिन पर्यावरण की वजह से इन इम्यून कोशिकाओं का स्तर प्रभावित हो सकता है और अध्ययनों से मालूम हुआ है कि अस्वस्थ जीवनशैली, कान व तनाव भी इम्यूनिटी को कम कर देते हैं. शायद यही वजह है कि मधुमेह या डायबिटीज व हृदय रोगों को ‘जीवनशैली रोग’ कहा जाता है. यह अच्छी बात है कि जीवनशैली रोगों से हम अपनी जीवनशैली में सुधार कर के अच्छी तरह से निबट सकते हैं क्योंकि इस के जरिए हम अपने शरीर की रोग प्रतिरोधात्मक क्षमता को बढ़ा सकते हैं.

सक्रिय जीवनशैली सेहत के लिए हमेशा अच्छी होती है. स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते भी हैं कि आप दिन में कम से कम आधा घंटा कोई न कोई ऐसा काम अवश्य करें जिस से शरीर हरकत में रहे, जैसे

तेज चहलकदमी करना, जिम, स्पोर्ट्स, साइकिलिंग, ऐरोबिक्स इत्यादि. ऐक्सरसाइज का सब से बड़ा फायदा यह है कि पसीने के जरिए शरीर से जहरीले पदार्थ यानी टौक्सिन बाहर निकल जाते हैं और शरीर के भीतर एंड्रोफिन्स हार्मोन जारी होते हैं जो तनाव स्तर को नियंत्रित रखते हैं. ध्यान रहे कि तनाव से इम्यूनिटी बहुत अधिक प्रभावित होती है. ऐक्सरसाइज का चयन हमेशा अपनी आयुवर्ग व खानपान के हिसाब से करें.

पुरानी कहावत पूरी तरह से सही है कि ‘हम जैसा खाएंगे अन्न वैसा ही बनेगा मन और शरीर.’ अगर हम पौष्टिक व संतुलित आहार लेते हैं तो शरीर में ऐसे लोगों के मुकाबले ज्यादा बेहतर रोग प्रतिरोधक क्षमता होगी जो संतुलित व पौष्टिक भोजन नहीं लेते.

2. संतुलित आहार

पौष्टिक और संतुलित भोजन हमें रोगों से लड़ने की क्षमता प्रदान करता है. संतुलित आहार का अर्थ है वह भोजन जिस में सब्जियों और प्रोटीन का अच्छा मिश्रण होता है. पौष्टिक आहार का अर्थ है, ऐसा भोजन जिस में पर्याप्त मात्रा में विटामिंस व खनिज मौजूद हों ताकि शरीर की प्रतिरोधात्मक क्षमता को मजबूत किया जा सके. जिन फूड्स में विटामिन ए, बी, सी व ई, फोलेट और कैरोनाइड्स व खनिज जैसे जिंक, क्रोमियम व सेलिनियम होते हैं वे न केवल इम्यूनिटी बढ़ाते हैं बल्कि स्वस्थ इम्यून सिस्टम के लिए भी जरूरी हैं. प्रोटीन के लिए चिकन, फिश और दाल (विशेष रूप से मूंग व मसूर) खाएं ताकि शरीर को ईंधन मिले. विटामिन सी के लिए संतरा, मौसमी, आंवला, नीबू आदि लें और अपनी इम्यूनिटी का स्तर बढ़ाएं.

शरीर की इम्यूनिटी बढ़ाने में 5 खाद्य  पदार्थों को 5 वंडर फूड्स की संज्ञा दी गई है. इस में दही को पहले नंबर पर इसलिए रखा गया है कि वह प्रोबायोटिक्स, अच्छे बैक्टीरिया जो पाचन में मदद करते हैं, का अच्छा स्रोत है. बाकी अन्य 4 फूड्स हैं – संतरा, पालक, मछली व नट्स.

वहीं, यह भी आवश्यक है कि जो भी फूड्स हम लें वे ताजे अवश्य हों. रैफ्रिजरेटर में रखे या प्रोसैस्ड फूड सांस व पेट की परेशानियां पैदा कर सकते हैं. दमा या कुछ प्रकार की एलर्जियां पहले विरासत में मिले रोग समझे जाते थे लेकिन अब ये जीवनशैली रोगों में शामिल हो गए हैं क्योंकि हम ऐसी चीजें खाने लगे हैं जिन में कृत्रिम रंग या प्रिजर्वेटिव्स होते हैं.

3. संतुलित जीवन

इम्यूनिटी का मन व शरीर से गहरा संबंध है. अगर हम तनावग्रस्त होंगे तो बहुत आसानी से हमें संक्रामक रोग पकड़ लेंगे. डिप्रैशन या तनावग्रस्त होने पर हम अपने आहार और जीवनशैली पर भी ध्यान नहीं दे पाते. मानसिक थकान की वजह से नींद नहीं आती और हम रोगों से लड़ने के लायक नहीं रहते. इसलिए यह बहुत जरूरी है कि तनाव को नियंत्रित रखें या तनावमुक्त रहें. तनावमुक्त रहने के लिए यह सुनिश्चित करें कि रोजमर्रा की स्थितियों पर हमारी प्रतिक्रिया संतुलित हो. हास्य, ऐक्सरसाइज व सैक्स के जरिए हम अपने मस्तिष्क में अच्छे रसायनों का स्तर बढ़ा सकते हैं और तनावमुक्त रह सकते हैं.

बहरहाल, ऐक्सरसाइज, संतुलित व पौष्टिक आहार और तनावमुक्त रहने से हम अपने शरीर की रोग प्रतिरोधात्मक क्षमता या इम्यूनिटी को मजबूत कर लेते हैं और इस तरह हमारा शरीर ऐसा कवच बन जाता है जो हमें रोगों से दूर रखता है, फिर चाहे मौसम का मिजाज कितना ही बदलता रहे.

विशेषज्ञों का कहना है कि दिन में 3 बार पेट भर कर खाने से बेहतर है छोटेछोटे मील दिन में 4 या 5 बार लिए जाएं जिन में विशेष रूप से फल, सब्जियां, ओमेगा-3 युक्त मछली, थोड़ा सा जैतून का तेल विशेष रूप से शामिल हो. अदरक व लहसुन को नियमित सप्लीमैंट के तौर पर लेना चाहिए. यह भी सुनिश्चित कर लें कि हमें पर्याप्त मात्रा में ऐंटीऔक्सिडैंट विटामिन सी और ई मिल रहे हैं. सक्रिय जीवनशैली भी बहुत जरूरी है.

सांस की तकलीफ को ना करें अनदेखा, हो सकती है ये खतरनाक बीमारी

सिगरेट पीने से ना सिर्फ आपके लंक्स खराब होते है बल्की इसके चलते आपको कई घातक बीमारियों से भी दो चार होना पड़ता है. सिगरेट पीने से सबसे ज्यादा देखी जाने वाली बीमारी है क्रौनिक औब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज.

1. क्या है क्रौनिक औब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज

क्रौनिक औब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (COPD) एक क्रौनिक इंफ्लेमेटरी लंग डिजीज है, जो फेफड़ों से हवा के बहाव को बाधित करती है. लक्षणों में सांस लेने में कठिनाई, खांसी, बलगम (थूक) का उत्पादन और घरघराहट शामिल हैं. यह लंबे समय तक एक्सपोजर गैसों या सूक्ष्म कणों के कारण होता है, जो कि ज्यादातर सिगरेट के धुएं से होता है. सीओपीडी वाले लोगों में निमोनिया, हृदय रोग, फेफड़ों के कैंसर और कई अन्य स्थितियों के विकास का खतरा होता है. एम्फिसीम (वातस्फीति) और क्रोनिक ब्रोंकाइटिस दो प्रकार के क्रौनिक औब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज हैं और दोनों ही आमतौर पर धूम्रपान के कारण होते हैं. धुएं में विषाक्त पदार्थों के कारण, फेफड़े के ऊतक क्षतिग्रस्त हो जाते हैं और सांस की हवा से औक्सीजन को रक्त प्रवाह में स्थानांतरित करने की अपनी क्षमता खो देते हैं।

2. क्या है सीओपीडी के लक्षण

सीओपीडी एक ऐसी घातक बीमारी है जिसका शुरुआती समय में पता ही नहीं चलता. इसके लक्षण अक्सर तब तक प्रकट नहीं होते हैं जब तक कि पूरी तरह से फेफड़ों खराब ना हो जाएं. हालांकि वे आमतौर पर समय के साथ खराब हो जाते हैं, खासकर अगर धूम्रपान करना आप जारी रखते है तो. क्रोनिक ब्रोंकाइटिस के के मुख्‍य लक्षण में रोजाना की खांसी और बलगम का उत्पादन शामिल है यह लगातार दो साल तक या कम से कम तीन महीने तक होता है.

3. कैसे पहचाने सीओपीडी

  1. सांस की तकलीफ, खासकर शारीरिक गतिविधियों के दौरान
  2. घरघराहट
  3. सीने में जकड़न
  4. आपके फेफड़ों में अतिरिक्त बलगम
  5. होंठ या नाखूनों का नीलापन (सायनोसिस)
  6. बार-बार श्वसन संबंधी संक्रमण
  7. शक्ति की कमी
  8. वजन में कमी (बाद के चरणों में)
  9. टखनों, पैरों या पैरों में सूजन

4. सीओपीडी के कारण

विकसित देशों में सीओपीडी का मुख्य कारण तंबाकू धूम्रपान है. विकासशील देशों में, सीओपीडी अक्सर खराब हवादार घरों में खाना पकाने और हीटिंग के लिए जलने वाले ईंधन से धुएं के संपर्क में आने वाले लोगों में होता है.

केवल 20 से 30 प्रतिशत लोग जो लंबे समय से धूम्रपान कर रहे हैं उनमें स्‍पष्‍ट रूप से सीओपीडी विकसित हो सकता है. हालांकि लंबे धूम्रपान इतिहास वाले लोगों में धूम्रपान से फेफड़ों के कार्यों में बाधा पैदा करते है.

5. किन लोगों को हो सकता है सीओपीडी रोग 

  1. धूम्रपान करने वालों के संपर्क में रहने वालों को ये समस्‍या हो सकती है।
  2. जो लोग अस्‍थमा से पीडि़त हैं और स्‍मोक करते हैं।
  3. ऐसे लोग जो केमिकल और धुएं युक्‍त फैक्ट्रियों के आस-पास रहते हैं।

अंडकोष के दर्द को अनदेखा करना हो सकता है खतरनाक, जानें कैसे

अंडकोष के कैंसर पर नई रिसर्च करने वाले अमेरिका के आर्मी मैडिकल सैंटर के यूरोलौजी औंकोलौजिस्ट विभाग के प्रमुख डा. जूड डब्लू मोले का कहना है कि पुरुष अंडकोष के दर्द को सामान्य रूप में लेते हैं जिस की वजह से वे डाक्टर के पास देर से जाते हैं. कुछ डाक्टर के पास जाते भी हैं तो डाक्टर पहचानने में गलती कर जाते हैं. साधारण बीमारी समझ कर उस का इलाज कर देते हैं. कैंसर विशेषज्ञ डा. एम के राणा का कहना है कि अधिकतर भारतीय पुरुष अंडकोष के कैंसर से अनजान हैं जिस की वजह से वे अपने अंडकोष में आए परिवर्तन की ओर ध्यान नहीं देते हैं. जब समस्या बढ़ जाती है तब डाक्टर के पास पहुंचते हैं.

हर पुरुष को चाहिए कि वह अपने अंडकोष में आए परिवर्तन पर ध्यान रखे. अंडकोष में दर्द, सूजन, आसपास भारीपन, अजीब सा महसूस होना, लगातार हलका दर्द बना रहना, अचानक अंडकोष के साइज में काफी अंतर महसूस करना, अंडकोष पर गांठ, अंडकोष का धंसना आदि लक्षण दिखाई देने पर तुरंत डाक्टर से मिलना चाहिए. पुरुषों में यह समस्या किसी भी उम्र में हो सकती है.

अंडकोष कैंसर के कारण

-किसी भी व्यक्ति के अंडकोष में कैंसर उत्पन्न हो सकता है. इस के होने की कुछ वजहें ये हैं :

क्रिस्टोरचाइडिज्म : यदि किसी युवक के बचपन से ही अंडकोष शरीर के अंदर धंसे रहें तो उसे अंडकोष कैंसर की समस्या हो सकती है. क्रिप्टोरचाइडिज्म का इलाज बचपन में ही करवा लेना चाहिए ताकि बड़े होने पर उसे खतरनाक समस्या से न जूझना पड़े. सर्जन छोटा सा औपरेशन कर के अंडकोष को बाहर कर देते हैं.

  • आनुवंशिकता : यदि पिता, चाचा, नाना, भाई आदि किसी को अंडकोष के कैंसर की समस्या हुई हो तो सावधान हो जाना चाहिए. टीएसई यानी टैस्टीक्युलर सैल्फ एक्जामिनेशन द्वारा अंडकोष की जांच करते रहना चाहिए.
  • बचपन की चोट : बचपन में खेलते वक्त कभी किसी बच्चे को यदि अंडकोष में चोट लगी है तो बड़े होने पर उसे अंडकोष के कैंसर की समस्या उत्पन्न हो सकती है. बचपन में चोट लगने वाले पुरुषों के अंडकोष में किसी तरह का दर्द, सूजन आदि महसूस होने पर तुरंत डाक्टर को दिखाना चाहिए.
  • हर्निया : हर्निया की समस्या की वजह से भी किसीकिसी के अंडकोष में दर्द व सूजन उत्पन्न हो जाती है. ऐसे में डाक्टर से शीघ्र मिलना चाहिए.
  • हाइड्रोसील : हाइड्रोसील की समस्या होने पर अंडकोष की थैली में पानी जैसा द्रव्य जमा हो जाता है. इस में अंडकोष में दर्द भले ही न हो लेकिन थैली के भारीपन से अंडकोष प्रभावित हो जाते हैं जिस की वजह से अंडकोष का कैंसर हो सकता है.
  • इंपोटैंसी : नई खोज के अनुसार, इंपोटैंसी की वजह से भी अंडकोष के कैंसर की समस्या उत्पन्न हो सकती है. डा. जूड मोले बताते हैं कि जिन लोगों को अंडकोष कैंसर की समस्या पाई गई है उन में से अधिकतर पुरुष इंपोटैंसी यानी नपुंसकता के शिकार थे.
  • अंडकोष का इलाज : अंडकोष में असामान्यता दिखाई देने पर तुरंत डाक्टर से मिलना चाहिए. डा. राना का कहना है कि ब्लड, यूरिन टैस्ट व अल्ट्रासाउंड द्वारा बीमारी का पता लगा लिया जाता है. बीमारी की स्थिति के मद्देनजर मरीज को दवा, कीमोथेरैपी या सर्जरी की सलाह दी जाती है. जिस तरह से महिला अपने स्तन का सैल्फ टैस्ट करती है उसी प्रकार पुरुष अपने अंडकोष का सैल्फ टैस्ट कर के जोखिम से बच सकते हैं.

सावधानी

विपरीत पोजिशन में संबंध बनाते वक्त ध्यान रखें कि अंडकोष में चोट न लगे.

तेज गति से हस्तमैथुन न करें, इस से अंडकोष को चोट लग सकती है.

किसी भी हालत में शुक्राणुओं को न रोकें. उन्हें बाहर निकल जाने दें नहीं तो यह शुक्रवाहिनियों में मर कर गांठ बना देते हैं. आगे चल कर कैंसर जैसी समस्या उत्पन्न हो सकती है.

क्रिकेट, हौकी, फुटबाल, कुश्ती आदि खेल खेलते समय अपने अंडकोष का ध्यान रखें. उस में चोट न लग जाए. चोट लगने पर तुरंत डाक्टर को दिखाएं.

टाइट अंडरवियर न पहनें, लंगोट बहुत अधिक कस कर न बांधें. इस से अंडकोष पर अधिक दबाव पड़ता है.

सूती और हलके रंग के अंडरवियर पहनें. नायलोन के अंडरवियर पहनने से अंडकोष को हवा नहीं मिल पाती है. गहरे रंग का अंडरवियर अंडकोष को गरमी पहुंचाता है.

हमेशा अंडरवियर पहन कर न रहें. रात के वक्त उसे उतार दें जिस से अंडकोष को हवा लग सके.

अधिक गरम जगह जैसे भट्ठी, कोयला इंजन के ड्राइवर, लंबी दूरी के ट्रक ड्राइवर आदि अपने अंडकोष को तेज गरमी से बचाएं.

अंडकोष पर किसी प्रकार के तेल की तेजी से मालिश न करें. यह नुकसान पहुंचा सकता है.

बहरहाल, अंडकोष में किसी भी प्रकार की तकलीफ या फर्क महसूस करने पर खामोश न रहें. डाक्टर से सलाह लें. अंडकोष की हर तकलीफ कैंसर नहीं होती लेकिन आगे चल कर वह कैंसर को जन्म दे सकती है इसलिए इस से पहले कि कोई तकलीफ गंभीर रूप ले, उस का निदान कर लें.

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