परदे के पीछे भी हिट है खेसारी और आम्रपाली की जोड़ी, शेयर किया वीडियो

भोजपुरी फिल्मों की हिट एक्ट्रेस आम्रपाली दुबे इन दिनों मीडिया की लाइमलाइम में छाई हुई है. आम्रपाली सोशल मीडिया पर काफी एक्टिव रहती है सोशल मीडिया पर वो समय-समय पर लाइव और फोटो शेयर करती रहती है. लेकिन इन दिनों लाइमलाइट में आने की वजह उनकी जल्द ही आने वाली फिल्म है जिसके को -एक्टर खेसारी लाल यादव है उनकी जल्द ही आशिकी फिल्म आने वाली है इसी बीच फिल्म के प्रोमोशन के लिए आम्रपाली ने एक वीडियो शेयर किया है जो तेज़ी से सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है. इस देख आप अपनी हंसी नहीं रोक पाएंगे.

 

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आपको बता दे, कि भोजपुरी सिनेमा की सुपर हिट जोड़ी है आम्रपाली दुबे और खेसारी लाल यादव की. पर्दे पर जितनी हिट है ये जोड़ी उससे कही ज्यादा पर्दे के पिछे हिट रहती है साथ ही मस्ती भी किया करती है. हाल ही में अपनी आनी वाली फिल्म के प्रोमोशन को लेकर सोशल मीडिया पर एक वीडियो शेयर किया है जिसमें वो अपने को-एक्टर खेसारी लाल के बारे में बयान देती नजर आ रही है लेकिन वीडियो बेहद ही मजाकिया है जिससे देख आप भी अपनी हंसी नहीं रोक पाएंगे.

 

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बता दे, कि जब एक्ट्रेस इंस्टाग्राम पर लाइव आई तो की यूजर्स ने उनसे सवाल किए है इसी दौरान एक ने पूछा कि सेट पर सबसे ज्यादा मस्ती कौन करता है? तो इस पर एक्ट्रेस ने जवाब देते हुए कहा कि खेसारी लाल यादव सेट पर सबसे ज्यादा मस्ती करते है, असल जिंदगी में वह इतने मजाकिया हैं कि कई बार शूटिंग करते समय मुझे अपना मुंह तक छुपाना पड़ जाता है, ताकि मुझे हंसी ना आ जाए और मैं डायलॉग्स ना भूल जाऊं.

कब हुई फिल्म रिलीज

‘आशिकी’ फिल्म को लेकर खेसारी लाल यादव बेहद ही एक्साइटेड हैं.कोरोना काल में लगे लॉकडाउन के दौरान से ही एक्टर इस फिल्म की तैयारी कर रहे हैं. अब जल्द ही यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर तूफान मचाएगी.  बता दें कि खेसारी लाल यादव और आम्रपाली दुबे स्टारर फिल्म ‘आशिकी’ 4 मार्च को सिनेमाघरों में रिलीज हुई. इस फिल्म को लेकर फैंस में काफी एक्साइटमेंट है.

गुटबाजी का शिकार हुआ भोजपुरी सिनेमा

भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री में नैपोटिज्म तो नहीं है, लेकिन गुटबाजी का जम कर बोलबाला है. यहां हीरोवाद, हीरोइनवाद, कंपनीवाद, निर्मातावाद, निर्देशकवाद, गायकवाद और वितरकवाद हावी है.

भोजपुरी सिनेमा में ग्रुपबाजी का सब से ज्यादा शिकार नए हीरोहीरोइन और गायक हो रहे हैं. भोजपुरी सिनेमा में अगर कोई गायन में तेजी से उभर रहा है, तो बड़े गायक और ऐक्टर उस के गाने और फिल्में रिलीज होने से रोकने के लिए पूरे जतन करते हैं.

भोजपुरी सिनेमा 2 सब से बड़े ग्रुपों में बंटा हुआ है, जिस में पहला खेसारीलाल का ग्रुप है और दूसरा पवन सिंह का ग्रुप है. इन दोनों ऐक्टरों के खेमों के अपनेअपने निर्माता और निर्देशक हैं. गाने रिलीज करने वाली म्यूजिक कंपनियां हैं और दोनों खेमों के अपनेअपने पसंदीदा सपोर्टिंग ऐक्टर व टैक्निशियन भी हैं. इन ऐक्टरों के

साथ कुछ खास हीरोइनों को ही काम मिलता है.

इस के अलावा छोटे और मझोले ऐक्टरों के भी अपनेअपने गुट हैं, जो अलगअलग लोगों के साथ ही फिल्में शूट करते हैं.

भोजपुरी सिनेमा की जानीमानी हीरोइन अक्षरा सिंह भी ग्रुपबाजी का शिकार हो चुकी हैं. उन्होंने 25 जून, 2020 को अपने यूट्यूब और दूसरे सोशल मीडिया एकाउंट पर 25 मिनट, 37 सैकंड का वीडियो जारी कर भोजपुरी में गुटबाजी पर खुल कर बोला था कि भोजपुरी सिनेमा में गुटबाजी इस कदर हावी है कि इस का शिकार छोटेबड़े कलाकार और सपोर्टिंग ऐक्टर तक हो चुके हैं.

अक्षरा सिंह ने उस वीडियो में खुल कर आरोप लगाया था कि ‘जब मैं किसी एक हीरो के साथ काम करती थी, तो दूसरे ग्रुप के हीरो मुझे फिल्म में काम नहीं करने देते थे. इस गुटबाजी का शिकार सिर्फ हीरोहीरोइन ही नहीं होते, बल्कि इस का शिकार फिल्म निर्देशक और टैक्निशियन भी होते हैं.’

अक्षरा सिंह ने भोजपुरी सिनेमा में होने वाली गुटबाजी को ले कर आगे कहा कि ‘मुझे गुटबाजी के चलते कई फिल्मों से निकाल दिया गया. जो लोग मेरा सहयोग करना चाहते थे, वे दूसरे ग्रुप से जुड़े होने के चलते चाह कर भी सहयोग नहीं कर पा रहे थे.’

अक्षरा सिंह ने वीडियो में यह भी बताया कि जब ग्रुपबाजी का शिकार होने के बाद उन के पास फिल्मों में करने के लिए कोई काम नहीं था, तो मुंबई में पैर जमाए रखने के लिए उन्होंने अलबम में गीत गाने शुरू कर दिए.

जब अक्षरा सिंह के गाने हिट होने शुरू हुए और पैसे आने शुरू हो गए, तो ग्रुपों में बंटे बड़े ऐक्टर और गायक म्यूजिक कंपनियों से उन के गाने रिलीज होने से रोकने लगे.

उन्होंने आरोप लगाया कि कई म्यूजिक कंपनियों के मालिकों ने फोन कर के कहा कि वे उन के गाने रिलीज नहीं कर सकते हैं, क्योंकि कई बड़े ऐक्टरों और गायकों ने उक्त कंपनी के लिए गाने और फिल्में करने से मना कर दिया है.

यह सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि जब भोजपुरी सिनेमा में अक्षरा सिंह जैसी बड़ी कलाकार ग्रुपबाजी का शिकार हो सकती हैं, तो इंडस्ट्री में नया कदम रखने वाले लोग किस कदर शिकार होते होंगे.

एक फिल्म निर्माता ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री ऐसी है, जो सिर्फ आपसी खींचतान और गुटबाजी के लिए जानी जाती है. इस का नतीजा यह होता है कि गुट के लोगों को ही काम मिलता है, दूसरा कितना ही टैलेंटेड क्यों न हो, उसे काम नहीं दिया जाता है.

अगर कोई नया हीरो, गायक, राइटर, टैक्निशियन आगे बढ़ने की कोशिश करता है, तो भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री में जिन की तूती बोलती है और जो बड़े चेहरे हैं, वे म्यूजिक कंपनियों को घुटने टेकने पर मजबूर कर देते हैं. फिर चाहे कोई लाख बड़ा गायक हो, लाख अच्छी ऐक्टिंग आती हो, आप के न गाने रिलीज हो पाएंगे और न ही इंडस्ट्री में काम मिलेगा.

हीरो तय करता है…

भोजपुरी सिनेमा के एक उभरते हुए ऐक्टर ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि भोजपुरी सिनेमा में फिल्म की कास्टिंग में सब से ज्यादा दखलअंदाजी गायक से नायक बने बड़े ऐक्टरों की है.

उन्होंने आरोप लगाया कि ये बड़े ऐक्टर ही तय करते हैं कि उन की फिल्म में कौन सी हीरोइन रहेगी, कौन फिल्म का निर्देशन करेगा, कौनकौन से लोग सपोर्टिंग ऐक्टर के रूप में काम करेंगे और कौन फिल्म में टैक्निशियन के रूप में काम करेगा.

भोजपुरी सिनेमा में कभी काजल राघवानी के पास फिल्मों की लाइन लगी रहती थी. इस की वजह यह थी कि उन की और खेसारीलाल यादव की जोड़ी हिट मानी जाती थी. ऐसे में काजल को खेसारीलाल की फिल्मों के साथ उन के गुट के दूसरे निर्माताओं की फिल्मों में भी काम मिलता था. लेकिन खेसारीलाल और काजल के विवाद के बाद जब दोनों की जोड़ी टूट गई, तो अब काजल राघवानी के पास फिल्मों में काम न के बराबर है.

इस की महज यही वजह है कि खेसारीलाल की भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री में तूती बोलती है और उन के नाराज होने के डर से कोई भी फिल्मकार काजल को अपनी फिल्म में काम देने से डरता है.

यही हाल कमोबेश अक्षरा सिंह का भी हुआ था. पवन सिंह के साथ विवाद होने के बाद अक्षरा सिंह के पास काम ही नहीं रह गया था. तब उन्होंने गायन का रास्ता अख्तियार किया और बाद में जा कर वे कुछ हद तक भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री में वापसी कर पाईं.

जातियों में बंटे फैन

भोजपुरी सिनेमा में जातिवाद का बोलबाला सब से ज्यादा है. जहां एक तरफ पिछड़ी जातियों के लोग खेसारीलाल के समर्थक हैं, वहीं अगड़ी जातियों के समर्थक पवन सिंह, रितेश पांडेय, प्रदीप पांडेय ‘चिंटू’ वगैरह के समर्थक हैं. कई बार ये समर्थक इन ऐक्टरों के सोशल मीडिया पोस्ट पर ही आपस में भिड़ जाते हैं और गालीगलौज व धमकियां देने पर उतर आते हैं.

अहंकार भी है वजह

भोजपुरी सिनेमा में गुटबाजी की जो खास वजह सामने आती है, वह बड़े और चर्चित कलाकारों की लोकप्रियता और अहम भी है, जो अकसर विवाद की वजह बनते हैं. अगर हम खेसारीलाल, पवन सिंह, रितेश पांडेय के आपसी टकराव पर नजर डालें, तो अकसर इस को ले कर बयान सामने आते रहते हैं.

एक वीडियो में खेसारीलाल ने अपशब्द बोलते हुए कहा था कि प्रमोद प्रेमी, रितेश, ‘कल्लू’ और समर सिंह की औकात 5 लाख से ज्यादा की नहीं है.

खेसारीलाल के इस वीडियो के बाद भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री के कई ऐक्टरों ने विरोध जताया था. इस मसले पर ऐक्टर और गायक रितेश पांडेय ने सोशल मीडिया पर जवाब देते हुए लिखा था कि इन में से किस के घर का खर्च आप चलाते हैं? अपने से छोटों को आप इस नजरिए से देखते हैं. बहुत घटिया है आप की मानसिकता.

फिल्म जानकारों का मानना है कि कई नामीगिरामी म्यूजिक कंपनियां और प्रोडक्शन हाउस भोजपुरी के कुछ चुनिंदा ऐक्टरों के इशारों और रहमोकरम पर ही चल रहे हैं. ऐसे में भोजपुरी इंडस्ट्री में खेमेबाजी तो आम बात है.

भोजपुरी सिनेमा में गदराए बदन वाली हीरोइनों का जमाना नहीं रहा- सुनील मांझी

बौलीवुड और दक्षिण भारत की फिल्में अब सिनेमाघरों के अलावा डिजिटल प्लेटफार्म पर भी खूब रिलीज की जा रही हैं. यह बदलाव भोजपुरी सिनेमा में कब तक आएगा?

भोजपुरी का नया दौर साल 2000 के बाद शुरू हुआ, जबकि बौलीवुड और दक्षिण का सिनेमा पहले से मजबूत रहा है, इसलिए दूसरी इंडस्ट्री ने नई चीजों को जल्दी स्वीकार किया. भोजपुरी सिनेमा भी धीरेधीरे बदलाव की तरफ बढ़ रहा है. वैसे, अब भोजपुरी फिल्में यूट्यूब पर खूब रिलीज की जाने लगी हैं.

ज्यादातर फिल्मों की कहानियां दूसरे की लिखी होती हैं, फिर उस कहानी को अपने मुताबिक ढाल कर एक डायरैक्टर के तौर पर क्याक्या तैयारियां करनी पड़ती हैं?

दूसरे की लिखी कहानियों पर एक डायरैक्टर के तौर पर डायरैक्शन के लिए खुद को तैयार करने के लिए सीन में खुद को ढालना पड़ता है. जो बाद में ऐक्टरों को उन्हीं हालात में ऐक्टिंग करने लिए तैयार कर लेता है.

जब ऐक्टर एक ही सीन के लिए कई बार रीटेक करते हैं, तो क्या आप को गुस्सा आता है?

सीन में कई बार रीटेक होने का मतलब यह नहीं है कि सामने वाले को ऐक्टिंग नहीं आती है, बल्कि वह जितना बेहतर सीन दे पाए, उस के लिए रीटेक करवाना पड़ता है. ऐसे में गुस्सा आने का सवाल ही नहीं है.

कुछ साल पहले तक भोजपुरी सिनेमा में गदराए बदन वाली हीरोइनों को ज्यादा पसंद किया जाता था, पर आज स्लिम और फिट हीरोइनें फिल्मों में ज्यादा नजर आती हैं. यह बदलाव कैसे आया?

दर्शकों का मिजाज समय के हिसाब से बदलता रहता है. भोजपुरी का दर्शक भी अब दूसरी भाषा की फिल्मों की हीरोइनों से भोजपुरी हीरोइनों की तुलना करने लगा है. ऐसे में वह भी स्लिम और फिट हीरोइनों को फिल्मों में देखना चाहता है.

भोजपुरी फिल्मों में अकसर आइटम नंबर होते ही हैं. क्या यह दर्शकों की मांग है या फिल्मों के कामयाब होने के लिए ऐसा किया जाता है?

भोजपुरी फिल्मों में आइटम नंबर होना पहले की फिल्मों के लिए कामयाबी का पैमाना माना जा सकता है, पर अब बन रही फिल्मों में आइटम नंबर का होना फिल्म की कहानी से जुड़ा है, न कि दर्शकों की मांग पर.

भोजपुरी एक्ट्रेस श्रुति राव ने बताई अपने दिल की बात- ‘मुझे जेंटलमैन लड़के पसंद हैं’

 बृहस्पति कुमार पांडेय

भोजपुरी सिनेमा के चर्चित हीरो दिनेशलाल यादव ‘निरहुआ’ और खेसारीलाल यादव के अपोजिट काम कर चुकी हीरोइन श्रुति राव इन दिनों काफी चर्चा में हैं. खेसारीलाल यादव के साथ हाल ही में रिलीज हुई फिल्म ‘लिट्टीचोखा’ में उन की ऐक्टिंग को काफी सराहा गया है.

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श्रुति राव ने अभी तक दर्जनों फिल्मों में बतौर हीरोइन काम किया है. इन सभी फिल्मों में वे अलगअलग लुक में नजर आई हैं. उन की ऐक्टिंग में निखरने की झलक साफ दिखाई पड़ती है. यही वजह है कि उन्हें बड़े बैनर और बड़े ऐक्टरों के साथ काम करने का औफर मिलता रहा है. उन के फिल्मी कैरियर को ले कर हुई बातचीत में उन्होंने अपने बारे में खुल कर बात की. पेश हैं, उसी के खास अंश :

आप दिनेशलाल यादव ‘निरहुआ’ और खेसारीलाल यादव जैसे कलाकारों के साथ काम कर चुकी हैं. दोनों कलाकारों की नेचर में क्या अंतर पाती हैं?

खेसारीलाल यादव के साथ काम कर के मुझे जो सब से बड़ी सीख मिली, वह है कि अपने काम के प्रति जुनूनी होना. उन का कैरियर के पीछे पागलपन और लक्ष्य को पाने के लिए एक कर देना मुझे सब से ज्यादा प्रभावित करने वाला लगा.

ये सारी चीजें दिनेशलाल यादव में भी हैं, लेकिन उन में जो चीज है, सब से अलग हट कर है, वे अपने सीनियर और जूनियर दोनों की इज्जत करना जानते हैं.

आप को क्या लगता है कि भोजपुरी इंडस्ट्री में लड़कियां मर्दों के बराबर हैं?

फिल्म इंडस्ट्री में महिलाओं का काम, सहयोग और योगदान पुरुषों से जरा भी कमतर नहीं है. यह सिर्फ सिनेमा तक ही सीमित नहीं है, बल्कि देश की लड़कियां हर क्षेत्र में अपने हुनर का लोहा मनवा रही हैं. कई मामलों में तो वह पुरुषों से भी बेहतर कर पाने में सक्षम हुई हैं. लेकिन इस सब के बावजूद भोजपुरी सिनेमा में जो मेहनताना हीरो को मिलता है, उस से काफी कम हीरोइन को दिया जाता है, इसलिए इस मामले में भी बराबरी होनी ही चाहिए.

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क्या आप मानती हैं कि भोजपुरी सिनेमा में लव स्टोरी हमेशा बिकने वाला विषय रहा है?

ऐसा पहले था, जब लव स्टोरी वाली फिल्में ज्यादा पसंद की जाती थीं. लेकिन अब समय बदल चुका है.

हाल के दशकों में कई ऐसी फिल्में आईं, जिन में हीरोहीरोइन के इश्क वाली कहानियां नहीं थीं, फिर भी इन फिल्मों को दर्शकों का भरपूर प्यार मिला और कमाई के रिकौर्ड भी टूटे.

आप का हीरोइन बनने का शौक था या सपना या इत्तिफाक ने आप को हीरोइन बना दिया?

मैं ने कभी सोचा ही नहीं था कि मैं हीरोइन बनूंगी और न ही मेरा परिवार फिल्म इंडस्ट्री से जुड़ा था. मेरा सपना तो यह था कि मैं आईपीएस अफसर बनूं. हां, यह जरूर था कि मैं शौकिया गाती थी.

एक बार ऐसा हुआ कि मैं एक स्टेज शो के कार्यक्रम में गई थी और वहां फीमेल सिंगर नहीं आई थी. ऐसे में मैं ने उस दिन परफौर्मैंस किया, तो लोगों को बहुत पसंद आया. इस के बाद मैं स्टेज शो करने लगी. इसी दौरान मैं ने कई अलबमों में भी काम किया और काम के दौरान मुझे फिल्मों का औफर आने लगा. फिर मुझे लगा कि फिल्मों में काम करना चाहिए.

अकसर फिल्मों में यह देखा जाता है कि हीरोइन हीरो के ऐक्शन देख कर प्रभावित हो जाती है, आप असल जिंदगी में लड़कों की किनकिन चीजों से प्रभावित होती हैं?

फिल्मों में हीरो का ऐक्शन सीन तो कहानी के मुताबिक होता है, लेकिन मैं इस पर बेबाकी से जवाब देना चाहूंगी कि मैं ने असल जिंदगी में किसी को डेट नहीं किया. जहां तक मेरी चौइस के हिसाब से देखा जाए, तो मुझे जेंटलमैन लड़के ज्यादा पसंद हैं.

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मैं ऐसा मानती हूं कि लड़कों का पढ़ालिखा होना, उन का बौडी लैंग्वेज सही हो, क्योंकि मुझे रफटफ टाइप से इतर साधारण लड़के ज्यादा अच्छे लगते हैं, जो अपने काम से मतलब रखते हैं और मैच्योर सोच के लड़के ज्यादा अच्छे होते हैं. लेकिन इस तरह का कोई लड़का अभी तक मेरी जिंदगी में नहीं आया है. जब भी ऐसा लड़का मेरी जिंदगी में आएगा, तो जरूर बताऊंगी.

राजनीति में महिलाओं की भागीदारी सिर्फ दिखावा बन कर रह गई है. आप राजनीति में महिलाओं के हालात को ले कर किस तरह के बदलाव की उम्मीद करती हैं?

अगर कोई महिला राजनीति में आती है, तो लोग उसे और जिम्मेदारी सौंपते हैं. उसे आजाद हो कर काम करना चाहिए. अभी भी राजनीति में आजादी से काम करने वाली महिलाएं बहुत कम हैं, फिर भी मायावती इस का अच्छा उदाहरण हैं.

आप की जिंदगी में उलट हालात कब आए और उन पर किस तरह जीत हासिल की?

मेरे जीवन में 2 बार ऐसे हालात आए, जिन को ले कर मैं काफी असहज हो गई थी. पहला, जब मैं भोजपुरिया में ‘दम बा’ की शूटिंग कर रही थी, तब मेरी दादी की डैथ हो गई थी. ऐसे में मेरे सामने असमंजस की हालत बनी हुई थी. लेकिन मैं ने अपने दिल की सुनी और फिल्म को एक दिन के लिए छोड़ कर घर जाना ज्यादा उचित समझा

दूसरा तब हुआ, जब मैं ने अच्छी कहानियों वाली 5 फिल्में साइन की थीं, लेकिन अचानक ही ये सभी फिल्में हाथ से चली गईं. इस वजह से मुझे दिमागी रूप से अपसैट भी होना पड़ा. इस के बावजूद मैं ने खुद को नैगेटिव चीजों पर काबू किया और फिर से वापसी की.

क्या हासिल करने की जिद में आप ने कुछ खोया भी है?

मेरी सोच थी कि मैं कहीं भी काम करूं तो 8 घंटे की ड्यूटी के बाद खुद के परिवार को समय दूं. लेकिन फिल्मों में आने के बाद समय की बेहद कमी हो गई है. ऐसे में मेरा मानना है कि फिल्मों में आने के बाद मैं परिवार को पूरा समय नहीं दे पाती हूं.

भोजपुरी फिल्मों की ‘ड्रीमगर्ल’ : शुभी शर्मा

जो लोग छोटे शहरों से निकल कर सिनेमा से जुड़े वह मुंबई जैसे शहरों के हो कर रह गए हैं. ऐसे में अपनी जड़ों से जुड़े रहने के लिए आप क्या कोशिश करती हैं?

मेरा मानना है कि जहां से आप ने उठ कर इतनी बड़ी इमेज बनाई है, उस से जुड़ाव रखना बहुत जरूरी है. यह जरूरी ही नहीं, बल्कि अपनी जन्मभूमि, अपनी मिट्टी के लिए कुछ न कुछ करते रहना चाहिए. मैं बलिया के एक गांव से हूं. लेकिन मैं जितना समय मुंबई और दिल्ली में देती हूं, उस से ज्यादा समय अपने गांव को भी देती हूं.

Rani Chatterjee इस टीवी सीरियल में लगाई ठुमके, पढ़ें खबर

भोजपुरी जगत की चर्चित अदाकारा रानी चटर्जी ने अब टीवी पर भी कदम रख दिया है.हाल ही में उन्होने ‘‘दंगल टीवी’’ पर रात नौ बजे प्रसारित हो रहे सीरियल ‘‘सिंदूर की कीमत’’ में नए साल के जश्न मनाने के खास अवसर पर डांस करके इस सीरियल का हिस्सा बनी हैं.

वास्तव में अवस्थी परिवार की दादी के जन्मदिन के साथ ही नए व-ुनवजर्या का भी जश्न मनाने के लिए अवस्थी परिवार ने खास आयोजन किया था.ऐसे में रानी चटर्जी के बवाल डांस और उनके ठुमकों ने परिवार के हर सदस्य को उत्सव के रंग में रंग दिया.रानी चटर्जी के साथ अवस्थी परिवार के सारे लोगों ने जम कर ठुमके लगाए.

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धमाकेदार -सजयंग से सभी ने नया साल मनाया और केक काटकर इस खुशी के मौके का भव्य जश्न मना. केक भी काटा गया. अपने इस खास डांस नंबर के लिए रानी चटर्जी ने कातिलाना कास्ट्यूम पहन रखी थी.

नीले रंग की पोषाक में वह वास्तव में लोगों के दिलों को लूटती नजर आ रही हैं.कपड़ों से मैच करती चूड़ियां, माथे पे ज्वेलरी और आक-ुनवजर्याक-हजयुमके के साथ जब रानी ने ठुमके लगाने शुरू किए,तो हर कोई मंत्रमुग्ध हो गया.

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सीरियल ‘‘सिंदूर की कीमत’’ में रानी चटर्जी का आगमन भले ही खास डांस के साथ हुआ हो. मगर इसकी पृष्भूठमि में रोचक कहानी है. रानी चटर्जी चैरिटी कर धन जमा करती हैं और वह यह धन उस आश्रम को दान करती थी,जहां सीरियल की अहम किरदार मिश्री का पालन-ंउचयपो-ुनवजयाण हुआ था, इस तरह वह मिश्री को जानती हैं.रानी का डांस परफॉर्मेंस मिश्री के साथ उनके जुड़ाव की वजह से है.

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भोजपुरी सिनेमा में अभिनेत्री रानी चटर्जी का अपना एक अलग मुकाम है. पिछले सत्रह व-ुनवजर्या के अपने कैरियर में वह ‘‘ससुरा बड़ा पैसा वाला’’,‘‘देवरा बड़ा सतावेला’’ ‘‘दामादजी’’,‘‘कर्ज’,‘वकालत’,रंगबाज’, ‘इच्छाधारी’,‘छोटी ठकुराइन’ सहित पचास से अधिक भोजपुरी फिल्मों में अपने अभिनय का जलवा दिखाकर जबरदस्त शोहरत बटोर चुकी हैं.

भोजपुरी सिंनेमा में उनकी गिनती ग्लैमरस अदाकारा के रूप में होती हैे.गत व-ुनवजर्या वह वेब सीरीज ‘मस्तराम’में भी नजर आयी थी.वहीं वह कलर्स टीवी पर रियालिटी शो ‘‘खतरों के खिलाड़ी’’में भी प्रतिस्पर्धी बनकर आ चुकी हैं. और अब वह टीवी सीरियल का हिस्सा बनी हैं. रानी चटर्जी कहती हैं-ंमुझे किसी भी माध्यम में काम करने से परहेज नहीं है. मैं टीवी,फिल्म व ओटीटी पर भी काम करना चाहती हूं.बशर्ते  किरदार दमदार हो.

मुझे मौका मिले तो में थिएटर भी करना चाहती हॅूं.’’ सीरियल ‘‘सिंदूर की कीमत’’ में धवन,प्रतीक चैधरी, जसविंदर गार्डनर व माधवी गोगते जैसे कलाकार अहम भूमिकाओं में नजर आ रहे हैं.

भोजपुरी फिल्मों में ज्यादा है कास्टिंग काउच: सुप्रिया प्रियदर्शनी

सुप्रिया प्रियदर्शनी जहां एक ओर ऐक्टिंग में माहिर हैं, वहीं दूसरी ओर उन्हें गायन और एंकरिंग में भी महारत हासिल है. एक मुलाकात में उन के फिल्मी सफर पर लंबी बातचीत हुई. पेश हैं, उसी के खास अंश :

आप ने भोजपुरी सिनेमा में जुबली स्टार दिनेशलाल यादव ‘निरहुआ’ के साथ सुपरहिट फिल्म ‘निरहुआ हिंदुस्तानी 2’ से डैब्यू किया था. इस के पहले आप किस प्रोफैशन में थीं?

मु?ो बचपन से गाने और नाचने का शौक था. मैं ने महज 7 साल की उम्र में संगीत सीखना शुरू कर दिया था और 10 साल की उम्र में दूरदर्शन मऊ और गोरखपुर में लोकगीत गाना शुरू किया था. उस समय सोशल मीडिया नहीं था, इसलिए उतनी मशहूरी नहीं मिल पाई थी.

लेकिन साल 2001 में मुझे पहला भोजपुरी सीरियल ‘पिया का घर प्यारा लगे’ में सैकंड लीड के तौर पर सरिता का किरदार मिला था. इस के बाद ईटीवी बिहार के ‘अंगना में आइल बहार’ समेत कई टैलीविजन सीरियलों में काम करने का मौका मिला.

कोरोना की दूसरी लहर आने के पहले आप की 3 फिल्मों का मुहूर्त हुआ था. अब देशभर में लौकडाउन के हालात हैं. ऐसे में इन फिल्मों पर क्या असर पड़ा?

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हालात सुधरने तक फिल्म का निर्माण रोक दिया गया है. लेकिन तीनों फिल्मों के प्रीप्रोडक्शन का काम चल रहा है. जैसे ही हालात संभलेंगे, हम शूटिंग स्टार्ट करेंगे.

आप ने कई टैलीविजन सीरियल में काम किया है. आप के हिसाब से सीरियल में काम करना कितना इंट्रैस्टिंग है और कितना चैलेंजिंग?

सच कहूं, तो टैलीविजन सीरियल में काम करना ज्यादा इंट्रैस्टिंग है, क्योंकि इस के जरीए आप ज्यादा लोगों तक अपनी पहुंच बनाने में कामयाब हो पाते हैं. कभीकभी जब टैलीविजन सीरियल बहुत हिट हो जाते हैं, तो वे सालों तक प्रसारित होते रहते हैं.

उदाहरण के तौर पर, ‘तारक मेहता का उलटा चश्मा’, ‘सीआईडी’ जैसे तमाम धारावाहिक हैं, जिन के किरदार लोगों के दिलोदिमाग में जगह बनाने में कामयाब रहे हैं.

अगर चैलेंज की बात करें, तो आप को छोटे परदे पर काम करने के लिए समय का और फिटनैस पर ज्यादा ध्यान देना होता है.

टैलीविजन सीरियल और भोजपुरी सिनेमा पर यह आरोप लगता रहता है कि प्रोड्यूसर आर्टिस्टों का पैसा मार लेते हैं. क्या यह आरोप सही है?

जी, यह बिलकुल सही बात है. भोजपुरी इंडस्ट्री में पैसे बकाया हो जाते हैं. निर्देशक और निर्माता सिर्फ हीरो और हीरोइन को ही अहमियत देते हैं, बाकी कलाकारों और टैक्नीशियनों का पैसा मार लेते हैं.

मुझे खुद बहुत सी जगह पर पैसा नहीं मिला और जब पैसा मांगा, तो बोले कि अगली फिल्म में मैनेज हो जाएगा. उस के बाद जब पैसे के लिए फोन करो, तो फोन उठाना बंद.

फिल्म ‘निरहुआ हिंदुस्तानी 2’ में निर्देशन मंजुल ठाकुर ने भी यही किया, जबकि प्रोडक्शन ‘निरहुआ’ का था. आप सोचिए, दोनों ही नाम बड़े हैं, पर आज तक पैसा नहीं दिया और न ही फोन उठाते हैं. जब सेठ लोगों का यह हाल है, तो बाकी छोटे प्रोडक्शन वालों का क्या हाल होगा.

भोजपुरी सिनेमा में अगर 10 दिन के काम का एग्रीमैंट किया जाता है, तो लोकेशन पर जाने पर 20 दिन तक भी काम करना पड़ता है, लेकिन पैसा 10 दिन के एग्रीमैंट का ही मिलता है. इस को ले कर जब प्रोड्यूसर से बात की जाती है, तो वे तो सीधा हाथ खड़ा कर देते हैं.

उन का कहना होता है कि आप को निर्देशक ने साइन किया है, इसलिए इस बारे में मु?ा से बात न करें. अगर आप हक के लिए ज्यादा बोलते हैं और आवाज उठाते हैं, तो लोग आप को इंडस्ट्री से आउट करने लगते हैं.

आप ग्लैमर इंडस्ट्री से जुड़ी हुई हैं. आप का अनुभव क्या कहता है कि ग्लैमर इंडस्ट्री में महिलाओं को किस तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है?

मेरे हिसाब से ग्लैमर इंडस्ट्री से जुड़ी लड़कियों पर हमेशा फिट और स्लिम दिखने का दबाव होता है. साथ ही, फैन और इंडस्ट्री से जुड़े लोग चाहते हैं कि ग्लैमर से जुड़ी सभी लड़कियां हमेशा जवान दिखें.

अगर आप इस कसौटी पर खरी नहीं उतर पाती हैं, तो आप को दरकिनार कर दिया जाता है, इसलिए खूबसूरती को बरकरार रखने के लिए ऐक्सरसाइज और खानपान पर खास ध्यान देना पड़ता है.

आप को ऐक्टिंग के अलावा गायन, एंकरिंग और डांस में भी महारत हासिल है. यह सब आप ने कहां से सीखा?

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जी, मैं ने ऐक्टिंग की कोई ट्रेनिंग नहीं ली है. संगीत मैं ने भातखंडे गोरखपुर से सीखा. उस समय स्कूल में भी सिखाया जाता था. इस के अलावा कथक मैं ने दिल्ली के श्रीराम कला केंद्र से व ‘पद्मश्री’ बिरजू महाराज के सानिध्य में लखनऊ घराना से 5 साल सीखा.

भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री में कास्टिंग काउच का आरोप कितना सही है?

कास्टिंग काउच हर इंडस्ट्री में है. पर भोजपुरी में ज्यादा है, वैसे, कास्टिंग काउच का मतलब है शोषण. और शोषण तो हर फील्ड में है. फिल्म इंडस्ट्री में ज्यादा है. फिलहाल भोजपुरी में इसलिए ज्यादा है कि वहां ज्यादातर लोग पढ़ेलिखे नहीं हैं.

भोजपुरी गीतों में टाइटिल की नकल का चलन इन दिनों जोरों पर है. इस से रोज नएनए विवाद जन्म लेते हैं. भोजपुरी सिनेमा पर किस तरह का असर इस से पड़ सकता है?

अगर हम भोजपुरी सिनेमा और गीतों में नकल के चलन की बात करें, तो यह फिल्मों और एलबम दोनों में ही है. यहां चोरी का बोलबाला है, जिस से भोजपुरी सिनेमा का स्तर गिर रहा है और बिजनैस पर भी असर हो रहा है.

भोजपुरी फिल्मों में अंग प्रदर्शन को ले कर एक वर्ग विरोध करता है, तो वहीं एक दूसरा वर्ग भी है, जो सपोर्ट भी करता है. आप के हिसाब से क्या सही है?

सपोर्ट और विरोध की अहम वजह यह है, एक बड़ा वर्ग इस से जुड़ा है और एक वर्ग चाहता है कि भोजपुरी से अश्लीलता मुक्त हो, पर जो वर्ग अश्लीलता को सपोर्ट करता है, उस के द्वारा फिल्मों का निर्माण ज्यादा होता  है. इस में हीरोहीरोइन, निर्मातानिर्देशक, संगीतकारगीतकार वगैरह सभी  शामिल हैं.

जहां तक मेरे हिसाब से सही होने की बात है, तो फिल्मों में सीन फिल्म की कहानी के हिसाब से होने चाहिए, न कि जबरदस्ती डाले जाएं.

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किसी से कम नहीं हैं भोजपुरी फिल्में

उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश और नेपाल के तराई इलाकों के साथसाथ हिंदी बैल्ट में भोजपुरी सिनेमा देखने वालों की भरमार है. छोटे बजट की इन फिल्मों के गीत घरघर में सुनाई देते हैं. फिल्म की कहानी और कलाकारों की मेहनत का ही नतीजा है कि सिनेमाघर में बैठे दर्शक सीटी बजाबजा कर फिल्म देखने का लुत्फ उठाते हैं.

इस सब के बावजूद पिछले कुछ सालों तक भोजपुरी सिनेमा को दोयम दर्जे का ही समझ जाता था. इन फिल्मों पर अश्लील होने और गानों के नाम पर बेहूदगी परोसने के लांछन लगते थे. हिंदी, बंगाली, मराठी, पंजाबी और दक्षिण भारतीय फिल्मों के मुकाबले भोजपुरी फिल्में कहीं नहीं ठहरती थीं.

पर, अब माहौल थोड़ा बदल गया है. भले ही ये फिल्में कम बजट की होती हैं, पर इन की क्वालिटी में गजब का सुधार हुआ है.

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अब इन फिल्मों का हीरो भी हवा में उड़ता हुआ विलेन और उस के गुरगों की धुनाई करता है, तेज रफ्तार कार किसी गहरी खाई को भी आसानी से लांघ जाती है. गानों की कोरियोग्राफी पर मेहनत की जाती है.

कहने का मतलब है कि नई तकनीकी के इस्तेमाल के चलते इन फिल्मों को दर्शक खूब पसंद कर रहे हैं.

यह बदलाव साल 2004 में तब हुआ था, जब भोजपुरी गायक और नायक मनोज तिवारी ‘मृदुल’ की फिल्म ‘ससुरा बड़ा पइसावाला’ ने भोजपुरी बैल्ट से बाहर निकल कर दूसरे राज्यों के सिनेमाघरों में धमाल मचाया था. तकरीबन 30 लाख रुपए के बजट से बनी इस फिल्म ने अव्वल दर्जे की टैक्नोलौजी का इस्तेमाल होने के चलते 9 करोड़ रुपए की कमाई की थी.

इस के बाद भोजपुरी फिल्मों में तकनीकी पक्ष को मजबूत किए जाने पर खासा जोर दिया गया था, जिस के चलते बहुत सी फिल्मों ने अच्छी कमाई भी की थी.

यही वजह है कि आज भोजपुरी फिल्मों में रवि किशन, पवन सिंह, दिनेशलाल यादव ‘निरहुआ’, अरविंद अकेला ‘कल्लू’, रितेश पांडेय, विराज भट्ट, प्रदीप पांडेय ‘चिंटू’, शुभम तिवारी जैसे नामचीन हीरो और रानी चटर्जी, नगमा, काजल राघवानी, प्रियंका पंडित, आम्रपाली दुबे, अक्षरा सिंह, कनक यादव जैसी हीरोइनों का जलवा पूरे देश पर छा रहा है.

आज भोजपुरी फिल्में महंगी वीएफएस व क्रोमा जैसी तकनीकी के इस्तेमाल की तरफ कदम बढ़ा रही हैं. ऐसे में ऐक्शन, डांस, लाइटिंग, ग्राफिक्स, स्पैशल इफैक्ट्स का पक्ष बेहद मजबूत हुआ है. इस के लिए दक्षिण के ऐक्शन मास्टरों का इस्तेमाल किया जा रहा है.

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कार्यकारी निर्माता संतोष वर्मा ने अपनी फिल्म ‘वांटेड’ के बारे में बताया कि इस फिल्म में आधुनिक साउंड तकनीकी का इस्तेमाल भी किया गया है, क्योंकि फिल्मों के सीन में अगर साउंड और बैकग्राउंड म्यूजिक न डाला जाए, तो ये फिल्में दर्शकों को मूक फिल्मों जैसी लगेंगी.

नई तकनीकी का कमाल है

आजकल भोजपुरी में हौरर फिल्में भी बनने लगी हैं. रितेश पांडेय की फिल्म ‘बलमा बिहारवाला 2’ में भी इसी तरह की बेहतरीन टैक्नोलौजी का इस्तेमाल किया गया था, जिस से डरावने सीन ने फिल्म में जान डाल दी थी.

अब डांस और कोरियोग्राफी पर भी नजर डालते हैं. आज के दौर में भोजपुरी फिल्मों में भी आइटम डांस खूब चलन  में हैं.

आजमगढ़ जिले की अदाकारा सनी सिंह के मुताबिक, कभीकभी एक आइटम डांस गाना ही फिल्म के हिट होने की वजह बन सकता है.

आइटम गर्ल राखी सांवत ने रवि किशन और पवन सिंह की फिल्म ‘कट्टा तनल दुपट्टा पर’ में दमदार आइटम डांस दिखाया था.

भोजपुरी फिल्मों ने हिंदी फिल्म वालों पर भी अपना जादू चलाया है. हीरोइन प्रियंका चोपड़ा ने दिनेशलाल यादव ‘निरहुआ’ और आम्रपाली दुबे को साथ ले कर फिल्म ‘बमबम बोल रहा काशी’ में अपना पैसा लगाया था.

इस फिल्म में इस्तेमाल की गई बेहतरीन फिल्मांकन तकनीकी, लाइट विजुअल व साउंड इफैक्ट के चलते फिल्म के रिलीज होने के 3 दिन के भीतर ही पूरी लागत निकाल ली थी.

नई टैक्नोलौजी से यह साबित होता है कि भोजपुरी फिल्मों में बजट की कमी इन के आगे बढ़ने में आड़े नहीं आ सकती है.

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वीडियो और आर्ट डायरैक्टर आशीष यादव ने बताया कि हाल के सालों में भोजपुरी फिल्मों के फिल्मांकन में टैक्नोलौजी का इस्तेमाल तेजी से बढ़ा है. अब भोजपुरी बैल्ट के सिनेमाघरों में दर्शक भोजपुरी फिल्मों को देखने में वही रोमांच महसूस करते हैं, जो बौलीवुड व हौलीवुड की फिल्में देखने पर मिलता है.

यही वजह है कि बौलीवुड के अमिताभ बच्चन, मिथुन चकवर्ती, शक्ति कपूर, रजा मुराद जैसे बड़े कलाकार भी भोजपुरी फिल्मों में दिखाई देते रहे हैं.

भोजपुरी सिनेमा को दिलाई पहचान: बृजेश त्रिपाठी

भोजपुरी सिनेमा के शुरुआती दौर से जुड़े कलाकारों की जब भी बात आती है, तो उन में सब से ऊपर एक ही नाम आता है और वे हैं भोजपुरी के सब से सीनियर कलाकार बृजेश त्रिपाठी. वे भोजपुरी सिनेमा से उस दौर से जुड़े हुए हैं, जब भोजपुरी में गिनीचुनी फिल्में ही बनती थीं.

भोजपुरी सिनेमा के उस दौर से लेकर आज तक बृजेश त्रिपाठी ने सैकड़ों फिल्मों में काम कर के चरित्र कलाकार और खलनायक के रूप में अपनी अलग ही पहचान बनाई है. उन के बिना भोजपुरी की फिल्में अधूरी सी लगती हैं.

ऐसी थी शुरुआत

‘भोजपुरी के गौडफादर’ कहे जाने वाले बृजेश त्रिपाठी ने अपने फिल्मी कैरियर की शुरुआत 11 सितंबर, 1978 को हिंदी फिल्म ‘टैक्सी चोर’ से की थी, जिस में लीड रोल में मिथुन चक्रवती थे और हीरोइन थीं जरीना वहाब.

यह फिल्म साल 1980 में 29 अगस्त को रिलीज की गई थी. इस फिल्म में उन के रोल को इतना ज्यादा पसंद किया गया था कि उन्हें इस के बाद राज बब्बर के साथ दूसरी फिल्म में काम करने का मौका मिल गया था, जिस का नाम था ‘पांचवीं मंजिल’. इस फिल्म में भी जरीना वहाब ही हीरोइन थीं.

इस के बाद तो बृजेश त्रिपाठी सिनेमा के हो कर रह गए. इस दौरान उन्हें हिंदी के धारावाहिकों और फिल्मों में काम करने का मौका मिला, लेकिन उन की सही पहचान भोजपुरी फिल्मों से हुई. उन दिनों पद्मा खन्ना भोजपुरी की बहुत बड़ी हीरोइन हुआ करती थीं. उन के सैक्रेटरी शुभकरण अग्रवाल बृजेश त्रिपाठी के बहुत अच्छे दोस्त थे.

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उन्होंने बृजेश त्रिपाठी को साल 1979 में पहली भोजपुरी फिल्म ‘सइयां तोहरे कारन’ में काम दिलाया था, जिस में राकेश पांडेय हीरो थे और पद्मा खन्ना हीरोइन थीं. इस फिल्म में बृजेश त्रिपाठी ने एक बिगड़ैल लड़के का रोल किया था.

इस फिल्म के बाद बृजेश त्रिपाठी की हीरो राकेश पांडेय के साथ अच्छी दोस्ती हो गई थी. राकेश पांडेय ने जब साल 1982 में एक फिल्म बनाई थी, तो उस में बृजेश त्रिपाठी को मेन विलेन का रोल दिया गया था. उस फिल्म में पद्मा खन्ना और प्रेमा नारायण मुख्य भूमिकाओं में नजर आई थीं. इस के बाद उन का भोजपुरी फिल्मों  में ऐक्टिंग का कारवां आगे बढ़ा तो बढ़ता ही गया और वे भोजपुरी की कई कामयाब फिल्मों में मेन विलेन के रूप में नजर आए.

रवि किशन को लाए

बृजेश त्रिपाठी भोजपुरी के ऐसे चेहरे के रूप में स्थापित होने लगे थे, जो भोजपुरी के बड़े कलाकारों की इमेज पर भी भारी पड़ रहे थे. इस की खास वजह यह थी कि 90 के दशक में जब भोजपुरी की फिल्में बननी बंद हो गई थीं या कह लिया जाए कि इक्कादुक्का फिल्में ही बनती थीं, तब इस दौरान के सन्नाटे को तोड़ने के लिए भोजपुरी के बड़े डायरैक्टर मोहन जी. प्रसाद ने उन के सामने भोजपुरी और बंगला भाषा में एक फिल्म का औफर रखा. उन्होंने इस फिल्म का हीरो चुनने की जिम्मेदारी भी बृजेश त्रिपाठी के ऊपर छोड़ दी थी.

बृजेश त्रिपाठी ने उस समय रवि किशन को इस फिल्म में बतौर हीरो लिए जाने की सलाह दी, जो मोहन जी. प्रसाद को पसंद आ गई और आखिरकार भोजपुरी के तीसरे दौर की पहली कामयाब फिल्म ‘सईयां हमार’ में रवि किशन को बतौर लीड हीरो के रूप में काम करने का मौका मिल ही गया.

इस फिल्म में उदित नारायण और कुमार सानू ने गीत गए थे. गीत विनय बिहारी ने लिखे थे.

इस फिल्म ने कामयाबी का नया इतिहास रच दिया था. यहीं से भोजपुरी फिल्मों के बनने का नया दौर चल पड़ा और लगातार 14 कामयाब फिल्मों में रवि किशन हीरो और बृजेश त्रिपाठी विलेन रहे.

बढ़ती गई पहचान

बृजेश त्रिपाठी 2000 के दशक में भोजपुरी के बड़े विलेन के रूप में अपनी पहचान बना चुके थे, लेकिन धीरेधीरे उम्र बढ़ने के साथसाथ विलेन के रूप में ऐक्शन फिल्मों को करने में कुछ मुश्किलें आने लगीं तो उन्होंने इमोशनल के साथ ही सीरियस और कैरेक्टर रोल भी करने का फैसला लिया और इस की शुरुआत उन्होंने मनोज तिवारी के साथ भोजपुरी फिल्म ‘धरतीपुत्र’ से की. यह फिल्म भी हिट साबित हुई.

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फिर क्या था, वे अपनी विलेन वाले इमेज से निकल कर एक और भोजपुरी फिल्म ‘पूरब’ में भी सीरियस रोल में नजर आए, जिस में उन के रोल को काफी सराहा गया.

इस के बाद तो भोजपुरी की ज्यादातर फिल्में बृजेश त्रिपाठी के साथ ही बनीं.

आज वे भोजपुरी सिनेमा के सब से उम्रदराज कलाकारों में शुमार हैं, इस के बावजूद उन का शैड्यूल इतना बिजी रहता है कि एक फिल्म खत्म होते ही उन की दूसरी फिल्म शुरू हो जाती है.

भोजपुरी सिनेमा के 60 साल का सुनहरा सफर

भले ही भोजपुरी फिल्मों पर तरहतरह के आरोप लगते रहे हों, पर यह भी सच है कि भोजपुरी सिनेमा में बन रही फिल्में रिलीज होने के पहले ही चर्चा में आ जाती हैं. यही वजह है कि भोजपुरी फिल्में तकरीबन 35 करोड़ लोगों के दिलों पर राज कर रही हैं.

भोजपुरी सिनेमा को यह मुकाम यूं ही नहीं मिला है, बल्कि इसकी शुरुआत 60 साल पहले भोजपुरी की पहली फिल्म ‘गंगा मइया तोहे पियरी चढ़इबो’ से हो गई थी. भोजपुरी में बनी यह पहली फिल्म इतनी सुपरडुपर हिट रही थी कि इस फिल्म को देखने के लिए लोग बैलगाडि़यों पर लद कर सिनेमाघरों तक पहुंचे थे.

भोजपुरी सिनेमा का दौर

यह भोजपुरी सिनेमा का पहला दौर था, जिस ने इस फिल्म के रिलीज के साथ ही सुनहरे युग की शुरुआत कर दी थी.

इस फिल्म को तब के राष्ट्रपति  डा. राजेंद्र प्रसाद की प्रेरणा से बनाया गया था. वे चाहते थे कि दूसरी भाषाओं की तरह भोजपुरी में भी फिल्म बने. जब उन्होंने इस की इच्छा आजाद हिंद फौज के सिपाही रहे नजीर हुसैन से जाहिर की, तो उन्होंने विधवा पुनर्विवाह पर आधारित भोजपुरी फिल्म ‘गंगा मइया तोहे पियरी चढ़इबो’ की पटकथा लिखी.

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इस के बाद आरा के रहने वाले कारोबारी विश्वनाथ प्रसाद शाहाबादी ने इस फिल्म में अपना पैसा लगाने का ऐलान किया. फिर इस फिल्म को बनाने का काम शुरू हो गया.

फिल्म ‘गंगा मइया तोहे पियरी चढ़इबो’ के डायरैक्शन का काम कुंदन कुमार ने किया था, तो इस में गाने को आवाज देने का काम लता मंगेशकर और मोहम्मद रफी जैसे मशहूर गायकों ने किया था. फिल्म के गाने मशहूर गीतकार शैलेंद्र और भिखारी ठाकुर ने लिखे थे. इसी के साथ फिल्म में म्यूजिक देने का काम संगीतकार आनंदमिलिंद के पिता चित्रगुप्त ने किया था.

फिल्म में लीड रोल हिंदी फिल्मों की मशहूर हीरोइन कुमकुम ने किया था, जो भोजपुरी फिल्मों की पहली हीरोइन  बनी थीं.

इस के अलावा कुमकुम के अपोजिट असीम कुमार हीरो थे. फिल्म में विलेन का किरदार बिहार के रहने वाले रामायण तिवारी ने निभाई थी. इस फिल्म में पद्मा खन्ना, हेलेन, लीला मिश्रा, टुनटुन वगैरह भी प्रमुख भूमिकाओं में नजर आए थे.

यह फिल्म 22 फरवरी, 1963 को पटना के वीणा सिनेमा में रिलीज हुई थी, जिस ने कामयाबी के इतने ज्यादा रिकौर्ड तोड़े कि महीनों तक दर्शकों की लाइन ही नहीं टूटी.

इस फिल्म के बाद भोजपुरी में दूसरी फिल्म ‘लागी नाही छूटे राम’ आई थी. यह फिल्म भी साल 1963 में ही रिलीज हुई थी, जिस का डायरैक्शन कुंदन कुमार ने किया था और निर्माता रामायण तिवारी रहे थे. फिल्म में मुख्य भूमिका असीम कुमार, नसीर हुसैन और कुमकुम ने निभाई थी.

इस फिल्म के बाद फिल्म ‘बिदेसिया’ बनी थी, जिस के हीरो सुजीत कुमार और हीरोइन बेबी नाज थीं. साल 1964-65 में एसएन त्रिपाठी के डायरैक्शन में बनी यह फिल्म सुपरडुपर हिट रही थी. इस के बाद भोजपुरी में कुछ छिटपुट फिल्में बनीं, जो बहुत ज्यादा नहीं चल पाईं और यही भोजपुरी सिनेमा का पहला दौर खत्म सा हो गया. इस के बाद 10 साल तक भोजपुरी सिनेमा में सन्नाटा सा छाया रहा था.

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ऐसे टूटा सन्नाटा

10 साल के सूखे के बाद भोजपुरी सिनेमा के दूसरे दौर की शुरुआत नजीर हुसैन ने फिर से कर दी और उन्होंने उस समय की सब से बड़ी हिट फिल्म ‘बलम परदेसीया’ बनाई, जिस में मुख्य भूमिका राकेश पांडेय और पद्मा खन्ना ने निभाई थी.

बौलीवुड के जानेमाने म्यूजिक डायरैक्टर नदीमश्रवण ने भोजपुरी फिल्म ‘दंगल’ से अपने म्यूजिक कैरियर की शुरुआत की थी.

यह फिल्म साल 1977 में रिलीज  हुई थी. इस फिल्म में सुजीत कुमार  और प्रेमा नारायण समेत उस वक्त के कई भोजपुरी फिल्म कलाकारों ने काम  किया था.

यह फिल्म उस दौर की सुपरहिट फिल्म साबित हुई थी. इस फिल्म के प्रोड्यूसर बच्चू भाई शाह थे. इस फिल्म में म्यूजिक देने के बाद नदीमश्रवण बौलीवुड में छा गए थे.

इस के बाद भोजपुरी में कई सुपरहिट फिल्में बनी थीं, जिन में साल 1980 में बनी भोजपुरी फिल्म ‘धरती मैया’ से भोजपुरी के सुपरस्टार कुणाल सिंह की ऐंट्री हुई.

इस फिल्म में राकेश पांडेय और पद्मा खन्ना के साथ गौरी खुराना प्रमुख भूमिकाओं में नजर आए थे. इस के बाद ‘गंगा किनारे मोरा गांव’, ‘बसुरिया बाजे गंगा तीर’, ‘दूल्हा गंगा पार के’, ‘माई’ जैसी ब्लौकबस्टर फिल्में आई थीं.

भोजपुरी सिनेमा के दूसरे दौर में इन फिल्मों के अलावा दर्जनों फिल्में बनी थीं, लेकिन यह फिल्में चल नहीं पाईं और धीरेधीरे 90 का दशक आतेआते भोजपुरी सिनेमा सन्नाटे में चला गया.

बुलंदियों का तीसरा दौर

भोजपुरी सिनेमा के लिए साल 2000 का दशक बदलाव का दौर रहा. इस दौर ने भोजपुरी फिल्मों के क्षेत्र में क्रांति लाने का काम किया. रवि किशन और मनोज तिवारी जैसे भोजपुरी के कई सुपरस्टार इस दौर ने दिए, बल्कि भोजपुरी सिनेमा से पूरी तरह से कट चुके दर्शकों को जोड़ने का काम भी किया.

इस दौर की पहली फिल्म साल 2000 में आई, जिस का नाम था ‘सईयां हमार’, जिस में मुख्य भूमिका में रवि किशन थे. इस फिल्म में बृजेश त्रिपाठी मुख्य विलेन की भूमिका में नजर आए थे.

साल 2004 में मनोज तिवारी की फिल्म ‘ससुरा बड़ा पइसावाला’ बनी थी, जिस ने कमाई के सारे रिकौर्ड तोड़ दिए थे.

इस के बाद रवि किशन के लीड रोल में ही ‘सईयां से कर द मिलनवा हे राम’ और ‘पंडितजी बताई न बियाह कब होई’ फिल्में बनी थीं, जो साल 2005 की सब से बड़ी हिट फिल्में रही थीं.

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इस दौर की बड़ी हिट फिल्मों में ‘गंगा जइसन माई हमार’, ‘दरोगा बाबू आई लव यू’, ‘देहाती बाबू’, ‘धरतीपुत्र’, ‘दीवाना’, ‘लगल रहा हे राजाजी’, ‘देवरा बड़ा सतावेला’ वगैरह शामिल रहीं.

इन्होंने दी बड़ी पहचान

साल 2010 के बाद का दशक गायक से नायक बने कई ऐक्टरों के नाम रहा, जिस में दिनेशलाल यादव ‘निरहुआ’, पवन सिंह, खेसारीलाल जैसे दर्जनों नाम शामिल हैं. इन ऐक्टरों ने पिछले 10 सालों में सैकड़ों हिट फिल्में दी हैं. आज इन्हीं ऐक्टरों से भोजपुरी सिनेमा की पहचान है.

वहीं अगर ऐक्ट्रैस की बात की जाए, तो रानी चटर्जी, नगमा, आम्रपाली दुबे, काजल राघवानी जैसे कई नाम हैं, जिन के करोड़ों दीवाने हैं. भोजपुरी सिनेमा में कई हिट डायरैक्टरों के नाम है, जिन में राजकुमार आर. पांडेय, संजय श्रीवास्तव, पराग पाटिल जैसे दर्जनों नाम शामिल हैं. वहीं निगेटिव रोल में संजय पांडेय, अवधेश मिश्र, देव सिंह, सुशील सिंह, कौमेडी में संजय महानंद, धामा वर्मा, लोटा तिवारी जैसे सैकड़ों नाम  शामिल हैं.

आज के दौर में भोजपुरी में बन रही फिल्मों और दर्शकों की तादाद के आधार पर यह कहा जा सकता है कि भोजपुरी आज दूसरी फिल्मों की अपेक्षा टौप पर है.

बनाया नया मुकाम

भोजपुरी फिल्मों की बढ़ती लोकप्रियता के बीच इस पर अश्लीलता फैलाने के आरोप भी लगते रहे हैं. लेकिन ये आरोप भोजपुरी सिनेमा के दर्शकों की तरफ से नहीं, बल्कि भोजपुरी सिनेमा को न देखने वालों की तरफ से लगाए जाते रहे हैं, जबकि आज की भोजपुरी फिल्में भोजपुरी बैल्ट के दर्शकों के मूड को देखते हुए ही बन रही हैं.

भोजपुरी बैल्ट के दर्शकों के हिसाब से जो भी फिल्में बन रही हैं, उतना हंसीमजाक भोजपुरी बैल्ट में आम  बात है.

दी कड़ी टक्कर

भोजपुरी सिनेमा के तीसरे दौर में बहुतकुछ बदल चुका है, जहां भोजपुरी की फिल्मों के कंटैंट पर अच्छाखासा ध्यान दिया जाने लगा है, वहीं इस में इस्तेमाल होने वाली टैक्नोलौजी में बहुत ज्यादा बदलाव आ चुका है.

इस दौर में आई फिल्मों में ‘निरहुआ रिकशावाला’, ‘निरहुआ हिंदुस्तानी’, ‘विवाह’, ‘कसम पैदा करने वाले की 2’, ‘दोस्ताना’, ‘जुगजुग जिया हो ललनवा’ जैसी सैकड़ों फिल्मों ने भोजपुरी फिल्मों के प्रति लोगों के नजरिए में बदलाव लाने का बड़ा काम किया है.

इस आधार पर यह कहा जा सकता है कि फिल्म ‘गंगा मइया तोहे पियरी चढ़इबो’ से शुरू हुआ भोजपुरी सिनेमा का यह दौर बुलंदियों का दौर है, जहां कम बजट में अच्छी फिल्में बन रही हैं.

पोपुलैरिटी को देख कर बौलीवुड के नामचीन कलाकारों ने किया काम

भोजपुरी के तीसरे दौर में फिल्मों की पोपुलैरिटी और दर्शकों की बढ़ती तादाद को देखते हुए बौलीवुड के कई नामचीन कलाकार खुद को काम करने से रोक नहीं पाए.

साल 2013 में आई भोजपुरी फिल्म ‘देशपरदेश’ में धर्मेंद्र प्रमुख भूमिका में नजर आए थे. इसी के साथ भोजपुरी फिल्म ‘गंगा’ में रवि किशन और मनोज तिवारी के साथ अमिताभ बच्चन और हेमा मालिनी नजर आए तो दिनेशलाल यादव ‘निरहुआ’ की फिल्म ‘गंगा देवी’ में अमिताभ बच्चन और जया बच्चन ने काम कर के भोजपुरी सिनेमा की अहमियत को और भी बढ़ा दिया था.

इस के अलावा फिल्म ‘धरती कहे पुकार के’ में अजय देवगन, ‘बाबुल प्यारे’ में राज बब्बर, ‘भोले शंकर’ में मिथुन चक्रवर्ती, ‘हम हई खलनायक’ में जैकी श्रौफ, ‘एगो चुम्मा दे दा राजाजी’ में भाग्यश्री जैसे नामचीन कलाकारों ने काम किया. आज भी रजा मुराद, शक्ति कपूर, गुलशन ग्रोवर जैसे दर्जनों बौलीवुड कलाकार लगातार काम कर रहे हैं.

नेताओं ने बड़ा आयोजन बताया

28फरवरी, 2021 की शाम ‘अयोध्या महोत्सव’ को एक नया रंग देने वाली थी. खूबसूरत गुलाबी पंडाल में भारी तादाद में जमा हुए दर्शक अपने चहेते भोजपुरी कलाकारों को देखने के लिए उतावले हो रहे थे. जैसेजैसे ‘सरस सलिल भोजपुरी सिने अवार्ड 2020’ खुद को आकार दे रहा था, वैसेवैसे भीड़ का जोश बढ़ता जा रहा था.

इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि हरीश द्विवेदी थे, जो लगातार 2 बार से बस्ती, उत्तर प्रदेश से सांसद हैं. भाजपा की नई राष्ट्रीय कार्यकारिणी में उन्हें राष्ट्रीय मंत्री बनाया गया है. फेम इंडियाएशिया पोस्ट द्वारा किए गए सर्वे 2020 में वे देश के 25 बेहतरीन सांसदों में चुने गए थे. इतना ही नहीं, वे उत्तर प्रदेश यूनिट के भारतीय जनता युवा मोरचा के अध्यक्ष रहे हैं.

अपने स्वागत भाषण में सांसद हरीश द्विवेदी ने अवार्ड मिलने वाले सभी भोजपुरी कलाकारों को अग्रिम बधाई दी और कहा कि ‘सरस सलिल’ और दिल्ली प्रैस की दूसरी पत्रिकाएं उन्होंने खूब पढ़ी हैं और ‘सरस सलिल’ द्वारा भोजपुरी फिल्मों के कलाकारों और दूसरे लोगों को अवार्ड देना तारीफ का काम है. इस से भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री का दायरा बढ़ेगा और भविष्य में उसे काफी फायदा भी होगा.

इतना ही नहीं, सांसद हरीश द्विवेदी ने इस कार्यक्रम को काफी समय तक देखने का लुत्फ लिया और कलाकारों को अपने हाथों से अवार्ड दे कर उन्हें सम्मानित भी किया.

बिहार की लौरिया विधानसभा से  3 बार के विधायक विनय बिहारी ने भी इस कार्यक्रम की शोभा बढ़ाई थी. नेता होने से पहले विनय बिहारी का नाम भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री को आगे बढ़ाने के तौर पर भी याद किया जाता है.

जब साल 1990 से साल 2000 तक भोजपुरी सिनेमा अपने बुरे दौर से गुजर रहा था, तब उन्होंने ही अपने गीतों से भोजपुरी कला जगत को जिंदा रखा था.

विनय बिहारी ने ‘ससुरा बड़ा पइसावाला’, ‘पंडितजी बताई न बियाह कब होई’, ‘कन्यादान’ समेत 300 फिल्मों में बतौर गीतकार और 50 से ज्यादा फिल्मों में पटकथा लेखक, कहानीकार और संवाद लेखक का काम किया है.

विनय बिहारी इस कार्यक्रम से बेहद खुश दिखे और कहा कि उन्होंने इतने बड़े लैवल पर भोजपुरी का कोई अवार्ड शो नहीं देखा है. इस तरह के सम्मान से कलाकारों का मनोबल बढ़ता है. ऐसे कार्यक्रम जनता और कलाकारों के बीच पुल बांधने का काम करते हैं.

इस कार्यक्रम में उत्तर भारत के ही नहीं, बल्कि नेपाल के नेता भी आए थे. वहां से विधायक सहसराम यादव, पूर्व मंत्री दान बहादुर चौधरी और मेयर बजरंगी चौधरी ने भी शिरकत की थी.

उन नेताओं ने बताया कि नेपाल के तराई वाले इलाकों में जिसे मधेश इलाका भी कहा जाता है, हिंंदीभाषी लोग ज्यादा रहते हैं. वे ‘सरस सलिल’ पत्रिका पढ़ते हैं और भोजपुरी और हिंदी फिल्मों को बड़े चाव से देखते हैं. वहां भोजपुरी गाने भी सुने जाते हैं और कलाकारों को खूब पसंद किया जाता है.

विधायक सहसराम यादव ने नेपाल से बुलाए गए नेताओं की तरफ से ‘सरस सलिल’ का शुक्रिया अदा किया और इच्छा जाहिर कि भविष्य में भी ऐसे कार्यक्रम होते रहेंगे.

इस कार्यक्रम में नेता ही नहीं, बल्कि सामाजिक कार्यकर्ता भी मौजूद थे. बुंदेलखंड में ‘जलयोद्धा’ के नाम से मशहूर उमाशंकर पांडेय को इस कार्यक्रम में विशेष सम्मान दिया गया था. उन्होंने मेंड़बंदी जैसे पारंपरिक तरीके को अपना कर पानी की जो बचत की है, वह एक सराहनीय काम है.

‘जलयोद्धा’ उमाशंकर पांडेय दिल्ली प्रैस की पत्रिकाओं के हमेशा से मुरीद रहे हैं. उन्होंने इस अवार्ड शो को एक शानदार कदम बताया और उम्मीद जताई कि ऐसे आयोजन लोगों और भोजपुरी कलाकारों को एकदूसरे से जोड़ते हैं. अपने चहेते कलाकारों को सामने से देखने में जनता को जो खुशी मिलती है, उसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता है.

– सुनील 

‘बाजी’ से भोजपुरी सिनेमा में वापसी करेंगे मोनालिसा के पति विक्रांत सिंह

भोजपुरी फिल्मों के सर्वाधिक चर्चित कलाकार विक्रांत सिंह अब फिल्म ‘‘बाजी’’में बहुत सशक्त किरदार में बतौर हीरो रूपहले परदे पर नजर आने वाले हैं. हकीकत में ‘बाजी’से भोजपुरी सिनेमा में विक्रांत सिंह की वापसी होने जा रही है. यह फिल्म उनके फिल्मी करियर के लिए टर्निंग प्वाइंट साबित होगी.

इस फिल्म में उनके साथ अक्षरा सिंह और राकेश मिश्रा भी होंगे. दो हीरो और एक हीरोइन वाली इस फिल्म की कहानी का ताना बाना प्रेम त्रिकोण के इर्द गिर्द बुना गया है. जो कि दर्शकों को रोमांच से भर देगी.विक्रांत सिंह का दावा है कि इस रोमांचक प्रेम कहानी को देखकर दर्शक दांतो तले उंगली दबाने को मजबूर हो जाएंगे. संगीत प्रधान फिल्म‘‘बाजी’’ में बतौर खलनायक देव सिंह नजर आएंगे.

VIKRANT SINGH

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ज्ञातब्य है कि कुछ दिन पहले फिल्म के निर्माता सुरेश जोशी, कमलेश सिंह और राघवेंद्र प्रताप सिंह ने पटना,बिहार में अक्षरा सिंह और राकेश मिश्रा की मौजूदगी में प्रेस कांफ्रेंस कर फिल्म ‘बाजी’ के निर्माण की घोषणा की थी. उस वक्त तक दूसरे हीरो के किरदार के लिए विक्रांत सिंह का नाम तय नही हो पाया था. पर अब इस फिल्म के साथ विक्रांत सिंह को बतौर हीरो अनुबंधित किया गया है. विक्रांत सिंह इस फिल्म में अहम भूमिका में दिखाई देंगे.

हकीकत में विक्रांत सिंह फिल्म ‘‘बाजी’’से भोजपुरी सिनेमा में वापसी कर रहे हैं. और छोटे शहरों की पृष्ठभूमि की कहानी वाली फिल्म ‘बाजी’ की शूटिंग मई में उत्तर प्रदेश और झारखंड के रमणीय क्षेत्रों में की जाएगी.

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संगीत प्रधान फिल्म ‘‘बाजी’’ का निर्माण  माइलस्टोन फिल्म एंड एंटरटेनमेंट प्रा.लि. के बैनर तले किया जा रहा है. फिल्म के निर्देशक कमलेश सिंह,कथा, पटकथा व संवाद लेखक रजनीश वर्मा, संगीतकार विनय बिहारी एवं मधुकर आनंद,गीतकार विनय बिहारी, प्यारेलाल यादव कवि, मनोज मतलबी और आजाद सिंह, मार्केटिंग हेड विजय यादव हैं.

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फिल्म ‘बाजी’ के निर्देशक कमलेश सिंह कहते हैं-‘‘फिल्म की कहानी पटना और बनारस जैसे शहरों पर आधारित है.यह एक एक म्यूजिकल फिल्म है. हम इस फिल्म को बौलीवुड की बड़ी फिल्मों की तरह फिल्माने वाले हैं.एक्शन और इमोशन पर आधारित यह एक सोशल फिल्म है, जो सभी वर्ग के दर्शकों को ध्यान में रखकर बनाई जा रही है. इस फिल्म में मधुर व कर्णप्रिय संगीत का भी समावेश है.’’

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