दिल्ली चुनाव: बहुत हुई विकास की बात, अबकी बार शाहीन बाग… क्या BJP का होगा बेड़ा पार?

दिल्ली चुनाव के लिए मतदान होने में अब ज्यादा वक्त नहीं बचा. इन चुनावों में कांग्रेस कहीं भी नजर नहीं आ रही है. लड़ाई आप और बीजेपी के बीच है. इन चुनावों की घोषणा हुई तो लोगों ने कहा कि इस बार तो केजरीवाल ही सरकार बनाएगा. उसके पीछे का कारण है दिल्ली में विकास. सीएम केजरीवाल अब तो मंजे हुए नेता बन गए हैं लेकिन जब वो सीएम के पद पर बैठे थे तब वो राजनीति के दांव-पेंच से वाकिफ़ नहीं थे. फिर भी दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने शिक्षा, स्वास्थ्य पर अच्छा काम किया. इसके अलावा 200 यूनिट तक बिजली फ्री और पानी भी फ्री. इससे जनता को बहुत बड़ी राहत मिली. चुनाव आते-आते महिलाओं के लिए डीटीसी बस सेवा को भी मुफ्त कर दिया गया. ये भी सोने पर सुहागा.

इन सब कामों के आगे ‘रिंकिया के पापा’ की एक नहीं चल पा रही. सभी सर्वे एक सुर में यही कह रहे थे कि इस बार भी केजरीवाल को 60 से ऊपर सीटें मिलेंगी. फिर बीजेपी ने अपनाया अपना ब्रम्हास्त्र रूपी राष्ट्रवाद. दिल्ली में बीजेपी 2500 से ज्यादा छोटी बड़ी रैली कर चुकी है. गृह मंत्री अमित शाह दिल्ली में शाहीन बाग का मसला बार-बार उठा रहे हैं. शाहीन बाग में लोग सीएए-एनआरसी के विरोध में पिछले 50 दिनों से धरने पर बैठे हुए हैं. बीजेपी ने दिल्ली के चुनाव इसी पर केंद्रित कर दिया है.

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भाजपा की हताशा इसी बात से समझ लीजिए कि अब तक जो पार्टी विकास-विकास का राग अलापती थी वो अब शाहीन बाग-शाहीन बाग चिल्ला रही है. भाजपा ने शाहीन बाग को ही चुनावी मुद्दा बना लिया है और वो काफी हद तक इसमें कामयाब भी होती दिख रही है लेकिन इससे चुनाव जीत लिया जाएगा ये कहना मुश्किल होगा. दिल्ली में भले ही केजरीवाल की सरकार हो लेकिर यहां की पुलिस तो केंद्र सरकार के अंडर में हैं. केंद्र में मोदी सरकार और इस सरकार के गृह मंत्री हैं अमित शाह. शाह खुद कई जगह भाषणों में शाहीन बाग के प्रदर्शनकारियों को कोसते रहते हैं लेकिन जब यहां की पुलिस आपके अंडर है तो फिर आप क्यों नहीं उठवा देते. लेकिन वो ऐसा नहीं करेंगे.

भाजपा नेता और वित्त राज्य मंत्री ने बयान दिया ‘देश के गद्दारों को गोली मारो सालों को’. जिसके बाद एक नाबालिग युवक ने उसी दिन गोली चलाई जिसदिन नाथूराम गोडसे ने बापू को गोली मारी थी. गोली मारी गई जामिया के पास. पहले जामिया में गोली चली, फिर शाहीन बाग में और अब फिर से जामिया में. पहले गोली चलाने वाले दोनों ही लड़के कोई पेशेवर अपराधी नहीं हैं. उनके नाम कोई पुराना अपराध का रिकॉर्ड नहीं है. अब दोनों ही अपराधी हैं और भारत के भविष्य भी. एक नाबालिग है जबकि दूसरा भी महज 25 साल का. रविवार रात को हुई तीसरी घटना में उन दो स्कूटी सवारों की तलाश है, जो फायरिंग कर भाग निकले. इस तीसरी घटना को अंजाम देने वालों की सोच भी पहले दो से अलग होगी, ऐसा लगता नहीं.

शाहीन बाग में फायरिंग करने वाला कपिल कहता है कि इस देश में सिर्फ हिन्दुओं की चलेगी, किसी और की नहीं. जामिया में गोली चलाने वाला नाबालिग भगवान राम की भक्ति के लिए नहीं, बल्कि हिंसक भावावेश के साथ ‘जय श्री राम’ के नारे लगाता है. नागरिकता कानून के विरोधियों को गोली मारकर ‘आजाद’ कर देने की बात करता है. ये सब क्यों हो रहा है इसके पीछे महज एक ही कारण है कि इन लोगों के दिलों पर महज नफरत भर दी गई है.

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फिजूल की बातें हैं. गलत आरोप हैं. जामिया के गोलीबाज को किसी ने कट्टा नहीं थमाया. शाहीन बाग के सिरफिरे को भी किसी ने हथियार नहीं दिया. शरजील को भी किसी राजनीतिक दल ने एएमयू में दिया उसका भाषण लिखकर नहीं दिया. मुंबई के आजाद मैदान में शरजील के समर्थन में नारे किसी राजनीतिक खेमे ने नहीं लगवाए. हमारे राजनीतिक दल और नेता इतनी टुच्ची बातें और काम नहीं करते. वे तो एक साथ लाखों लोगों पर असर डालने वाले प्रपंच करते हैं. फिर उसी असर में कोई शरजील देश विरोधी नारे लगाता है, तो कोई सिरफिरा (वस्तुत: बेचारा) शाहीन बाग या जामिया में कट्टा लहराता है.

अब भाजपा दिल्ली के हर तबके को साधना चाहती है. इसके लिए पार्टी अध्यक्ष ने नेताओं की फौज इकट्ठा कर दी है. इन नेताओं को वहां-वहां भेजा जा रहा है जहां की जनता या तो उनको पहचानती है या फिर उनका क्षेत्रीय या जातीय रिश्ता हो. दिल्ली में बिहार से आए लोगों की संख्या खूब है इसलिए नीतीश कुमार ने यहां की जनता को लुभाया. उसके बाद यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ तो हैं हीं स्टार और फायरब्रांड नेता. वो दिल्ली क्या पूरे देश में कहीं भी चुनाव होता है तो बीजेपी उनको भेजती है. दिल्ली में पूर्वांचली और जाटों के बाद दक्षिण भारत के लोगों की संख्या सबसे ज्यादा है. तकरीबन 12 लाख मतदाता दक्षिण भारत के बताए जा रहे हैं. ऐसे में इन बिखरे हुए वोटरों को साधने के लिए भाजपा ने दक्षिण भारत के अपने 42 सांसदों के साथ लगभग 100 बड़े नेताओं को चुनावी मैदान में उतारा है.

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पौलिटिकल राउंडअप : दिल्ली में चुनावी फूहड़ता

दिल्ली. फरवरी की 8 तारीख को दिल्ली में विधानसभा चुनाव होंगे. लिहाजा, दिल्ली चुनावी रंग में रंगने लगी है. इसी सिलसिले में यहां की बड़ी सियासी पार्टियों ने सोशल मीडिया का नए अंदाज में इस्तेमाल किया. किसी ने कार्टून बनाया तो कोई मीम बनाने लगा. बात तीखे, मजेदार और फनी वीडियो तक जा पहुंची.

13 जनवरी को भारतीय जनता पार्टी हिंदी फिल्म ‘नायक’ का ऐडिट किया गया ऐसा वीडियो सामने ले कर आई जिस में अरविंद केजरीवाल को अमरीश पुरी के रूप में दिखाया गया. इस के जवाब में आम आदमी पार्टी ने फिल्म ‘नायक’ का अपना वीडियो पेश किया, जिस में अरविंद केजरीवाल को ठेकेदारों को फटकार लगाते देखा गया.

वेंकैया का हिंदूवादी बयान

चेन्नई. नागरिकता संशोधन कानून और नैशनल रजिस्टर औफ सिटीजंस पर पूरे देश के विरोध के साथसाथ सियासी तकरार लगातार बढ़ती ही जा रही है. इसी बीच 12 जनवरी को देश के उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू ने श्री रामकृष्ण मठ द्वारा छपने वाली तमिल मासिक ‘श्री रामकृष्ण विजयम’ के शताब्दी समारोह और स्वामी विवेकानंद जयंती के मौके पर हुए एक कार्यक्रम में कहा कि भारत में कुछ लोगों को हिंदू शब्द से एलर्जी है. हाल?ांकि यह ठीक नहीं है, फिर भी उन्हें इस तरह का नजरिया रखने का हक है.

एम. वेंकैया नायडू ने कहा कि धर्मनिरपेक्षता का मतलब दूसरे धर्मों की बेइज्जती नहीं है.

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गरजीं मायूस मायावती

लखनऊ. उत्तर प्रदेश में अपनी सियासी जमीन तलाश रही बसपा सुप्रीमो मायावती का कभी पूरे प्रदेश में राजकीय उत्सव सा जन्मदिन मनाया जाता था. इस 15 जनवरी को वैसा माहौल तो नहीं दिखा, पर 64 किलो के केक ने सब का ध्यान जरूर खींचा कि हाथी अभी उतना भी कमजोर नहीं हुआ है.

उस दिन मायावती ने केंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि वे नागरिकता संशोधन कानून का विरोध करती हैं. साथ ही यह भी कहा, ‘‘आज देश की तकरीबन 130 करोड़ जनता के सामने जो तकलीफें और तनाव खड़े हैं, उन के चलते देश में हर जगह गरीबी और बेरोजगारी फैली हुई है. देश में माली मंदी बीमार हालत में पहुंच गई है. यह भी कड़वा सच है कि देश की जनता ने ऐसी खराब हालत पहले कांग्रेस की सरकार में देखी है.’’

पर सच यह है कि मायावती अब न जाने क्यों सरकार को हाथी पर सवारी देने की तैयारी में लगती हैं.

किताब पर मचा बवाल

मुंबई. भाजपा का एक पैतरा उसी पर तब भारी पड़ गया, जब छत्रपति शिवाजी महाराज के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तुलना वाली किताब ‘आज के शिवाजी: नरेंद्र मोदी’ पर पार्टी ने यह कहते हुए दूरी बना ली कि पार्टी का इस पब्लिकेशन से कुछ भी लेनादेना नहीं है और इस किताब में लेखक के अपने ‘निजी विचार’ हैं.

14 जनवरी को भाजपा में मीडिया विभाग के सहइंचार्ज संजय मयूख ने कहा कि किताब के लेखक जय भगवान गोयल, जो भाजपा के एक सदस्य हैं, ने अपनी किताब वापस मंगाने की भी बात कही है.

याद रहे कि जय भगवान गोयल ने भाजपा से जुड़ने से पहले लंबे वक्त तक दिल्ली में शिव सेना के लिए काम किया था और वे कहते हैं कि किताब में जिस हिस्से को ले कर विपक्ष के नेताओं को दिक्कत है, उसे सुधार दिया जाएगा.

ममता बनर्जी का घेराव

कोलकाता. देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लोहा लेने वाली पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी अपने ही राज्य में वामपंथियों से घिर गईं.

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दरअसल, संशोधित नागरिकता कानून के खिलाफ 11 जनवरी को कोलकाता में हुई ममता बनर्जी की रैली में वामपंथी छात्र कार्यकर्ताओं ने उन्हें घेरा था, जिस के बाद 150 अज्ञात लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया था. इन में नुकसान पहुंचाने, आपराधिक धमकी देने के साथसाथ गैरजमानती धाराएं भी शामिल थीं और साथ ही, एक जनसेवक को उस की ड्यूटी करने से रोकने का मामला भी शामिल था.

इस के उलट माकपा से जुड़े छात्र संगठन एसएफआई ने आरोप लगाया कि उस ने ममता बनर्जी के खिलाफ इसलिए प्रदर्शन किया, क्योंकि उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ बैठक कर सीएए के खिलाफ लड़ाई कमजोर कर दी थी.

दिग्विजय सिंह की सफाई

भोपाल. भाजपा के प्रवक्ता गौरव भाटिया ने कांग्रेस पार्टी और दिग्विजय सिंह पर आरोप लगाया था कि कांग्रेस बड़े पैमाने पर इसलामिक उपदेशक जाकिर नाइक की फाउंडेशन से डोनेशन लेती है और उन के बीच हमेशा से ही अच्छे संबंध रहे हैं.

इस पर कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने सफाई दी कि भाजपा की तरफ से लगाया गया यह आरोप एकदम गलत है. कांग्रेस ने कभी भी आधिकारिक रूप से डाक्टर जाकिर नाइक का समर्थन नहीं किया.

वैसे, दिग्विजय सिंह ने माना कि उन्होंने मुंबई में जाकिर नाइक के मंच से एक सांप्रदायिक सद्भाव सम्मेलन को संबोधित किया था.

लालू की खरीखरी

पटना. जेल में बंद लालू प्रसाद यादव बिहार की प्रदेश सरकार के साथसाथ केंद्र सरकार को घेरने का कोई भी मौका नहीं छोड़ते हैं. उन्होंने मंगलवार,

14 जनवरी को फिर से बिहार और केंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए ट्वीट किया कि देश में प्यार लगातार घट रहा है, जबकि नफरत बढ़ रही है.

उन्होंने आगे कहा कि आजादी घटी है, जबकि तानाशाही बढ़ी है. विकास घटा विनाश बढ़ा, ईमान घटा बेईमानी बढ़ी काम घटा बेरोजगारी बढ़ी.

ऐसा पहली बार नहीं हुआ है. इस से पहले नीतीश कुमार और भाजपा पर तंज कसते हुए लालू प्रसाद यादव ने ट्वीट किया था, ‘एक गिरगिटिया दूसरा खिटपिटिया…कुल जोड़ मिला के शासन घटिया.’

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पुलिस पदक लिया वापस

श्रीनगर. अर्श से फर्श पर. 15 जनवरी को जम्मूकश्मीर प्रशासन ने आतंकवादियों को जम्मूकश्मीर से बाहर निकलने में पैसे ले कर मदद करने के आरोप में गिरफ्तार किए गए पुलिस उपाधीक्षक देविंदर सिंह को बहादुरी के लिए दिया गया पुलिस पदक  ‘शेर ए कश्मीर’ वापस ले लिया.

याद रहे कि वहां की पुलिस ने शनिवार, 11 जनवरी को देविंदर सिंह को दक्षिणी कश्मीर के कुलगाम जिले के मीर बाजार में हिजबुल मुजाहिदीन के 2 आतंकवादियों के साथ गिरफ्तार किया था.

इसी बीच देविंदर सिंह ने आरोप लगाया था कि पुलिस बल में तैनात एक और बड़ा अफसर आतंकवादियों के लिए काम कर रहा है.

गंगा यात्रियों को खाना खिलाने का काम करेंगे शिक्षक

उत्तर प्रदेश की राजनीति में गाय और गंगा दोनो का बहुत महत्व है. गाय को सडक पर आने से रोकने के लिये पीडब्ल्यूडी विभाग ने अपने ही इंजीनियरों को रस्सी लेकर छुट्टा जानवरों को पकडने का आदेश जारी किया तो शिक्षा विभाग ने अपने स्कूल में खाना बनाने का काम करने वाले रसोइयों और शिक्षकों को कहा है कि वह गंगा यात्रा करने वालों को खाना खिलानेे की जिम्मेदारी संभाले. इस तरह के आदेश से शिक्षक और इंजीनियरों में असंतोष में है. मजेदार बात यह है कि आलोचनाओं के बाद एक आदेश लिखित में वापस होता है तो दूसरा आदेश जारी हो जाता है. छुट्टा जानवर पकडने का आदेश वापस हुआ तो अगले ही दिन गंगा यात्रा करने वालों को खाने खिलाने का आदेश जारी हो गया.

शिक्षा विभाग से जारी हुआ आदेश हरदोई जिले से जुडा हुआ है. जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी हरदोई के द्वारा यह आदेश जारी हुआ है. इसमें लिखा है कि ‘गंगा यात्रा के आयोजन में गंगा किनारे स्थित ग्राम पंचायतों में 30 जनवरी को गंगा दल यात्री प्रवास करेगे. गंगा दल के ठहरने, नाश्ते और आदि की व्यवस्था विद्यालयों में कार्यरत शि़क्षकों और रसोइयों द्वारा की जानी है.‘ आदेश में ही बिलग्राम और सांडी ब्लाक में आने वाले स्कूलों के नाम भी लिखे है. शिक्षा विभाग का कोई भी अधिकारी और कर्मचारी इस आदेश पर बोलने को तैयार नहीं है. यह पत्र खंड शिक्षा अधिकारी बिलग्राम और सांडी के द्वारा जारी किया गया है.

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गंगा यात्रा की शुरूआत उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के द्वारा 27 जनवरी को बिजनौर और राज्यपाल आंनदी बेन ने बलिया से शुरू की गई. गंगा यात्रा दो हिस्सो में पूरी हो रही है. गंगा यात्रा को सफल बनाने के लिये पार्टी और सरकार स्तर पर काम किया जा रहा है. बिजनौर से कानपुर बैराज तक यह यात्रा 579 किलोमीटर लंबी सडक मार्ग से गुजरेगी. 657 किलोमीटर बलिया से कानुपर तक यह यात्रा गुजरेगी. कुल 1338 किलोमीटर यात्रा 27 जिलों से होकर निकल रही है. इसमें 21 नगर पंचायत और 1038 ग्राम पंचायते पडेगी. उत्तर प्रदेश में गंगा की कुल लंबाई 1140 किलोमीटर है. पावन गंगा यात्रा के व्यापक प्रचार प्रसार की व्यवस्था भी गई है.

हरदोई शिक्षा विभाग के पत्र से पता चलता है कि लोगो के खाने की व्यवस्था स्कूलों को सौंपी गई है. इस आदेश से स्कूल में पढाने वाले शिक्षको की हालत के बारे पता चलता है. शिक्षकों से पढाने के अलावा बहुत सारे काम लिये जाते है. इस बात को लेकर शिक्षकों में गुस्सा भी है. पर खुलकर वह कह नहीं पा रहे. शिक्षकों की यह हालत तब है जब उत्तर प्रदेश के दो डिप्टी सीएम में से एक डाक्टर दिनेश शर्मा खुद लखनऊ विश्वविद्यालय में शिक्षक है. शिक्षकों को उम्मीद थी कि वह शिक्षकों की मजबूरियों को समझते होगे. इसके बाद भी कभी शिक्षकों की डयूटी दुल्हनों को सजाने पर लगा दिया जाता है तो कभी गंगा दल के खाने की व्यवस्था को देखने के लिये.

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डर के साए में अवाम

केंद्र सरकार की मनमरजी से लागू हुई नीतियों, संशोधनों और नए कानूनों ने माली मोरचे पर सब से ज्यादा कमर कामधंधा करने वालों की तोड़ी है. अनुच्छेद 370 हो, नोटबंदी हो, जीएसटी हो, या फिर ताजा नागरिकता संशोधन कानून ने देशभर में कामधंधों को सिरे से तबाह कर दिया है.

उत्तर प्रदेश के गोसाईंगंज इलाके में नागरिकता संशोधन कानून से उपजे दंगे के बाद अघोषित कर्फ्यू ने चूड़ी उद्योग व उस से जुड़े गोदामों व ट्रांसपोर्ट कंपनियों में काम कर रहे हजारों मजदूरों के सामने दो जून की रोटी का संकट खड़ा कर दिया है.

तनाव के चलते शहर के अलगअलग हिस्सों में चलने वाले चूड़ी गोदाम बंद हैं. चूड़ी उद्योग से जुड़े काम ठप होने के चलते नगर के ट्रांसपोर्टर भी हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं.

नगर क्षेत्र की सीमा में 50-60 चूड़ी कारखाने हैं. इन कारखानों में दिहाड़ी पर काम करने वाले मजदूरों की तादाद 40,000 से ज्यादा है. 8-8 घंटे की

3 शिफ्टों में 300 से 500 रुपए वाले दिहाड़ी मजदूरों के घरों में चूल्हे की तपिश पैसे की कमी के चलते ठंडी पड़ चुकी है.

बेनूर पर्यटन का बाजार

उत्तराखंड जैसे राज्य की माली तरक्की बहुत हद तक पर्यटन पर टिकी है. मसूरी, नैनीताल जैसे कई शहर इस समय पर्यटकों की राह देखते हैं. इस समय की आमदनी अगले कुछ महीनों के लिए राहत ले कर आती है. लेकिन इस समय नैनीताल के लोग नागरिकता संशोधन कानून रद्द करने की मांग कर रहे हैं.  झील किनारे यह बैनर फहराया जा रहा है कि ‘वे तुम्हें हिंदुमुसलिम बताएंगे, लेकिन तुम भारतीय होने पर अड़े रहना’.

नैनीताल में कई संगठनों के अलावा हर धर्म और वर्ग से जुड़े शहर के आम लोगों ने मौन जुलूस निकाला. सीएए और एनआरसी के विरोध में इस जुलूस में शामिल लोगों ने मल्लीताल पंत पार्क में संविधान की शपथ ली और तल्लीताल में गांधीजी की मूर्ति के पास ‘भारत माता की जय’ के नारों के साथ जुलूस पूरा हुआ.

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इस बारे में नैनीताल होटल एसोसिएशन के अध्यक्ष दिनेश शाह कहते हैं, ‘‘नए कानून से हमारे कारोबार पर बहुत बुरा असर पड़ा है. हमारे लिए दिसंबरजनवरी माह का महीना कारोबार के लिहाज से अमूमन काफी अच्छा रहता है. लेकिन रामपुर में लोग सड़कों पर हैं. हल्द्वानी में लोग अपनी नागरिकता बचाने के लिए प्रदर्शन कर रहे हैं. नैनीताल आने के सभी रास्तों पर विरोध प्रदर्शन चल रहा है, तो इस का असर बुरा पड़ रहा है.

‘‘होटलों की बुकिंग कैंसिल हो रही हैं. जो होटल इस समय 80-90 फीसदी तक बुक रहते थे, उन की 30-35 फीसदी तक ही बुकिंग है.

‘‘रामनगर में जिम कौर्बेट टाइगर रिजर्व आने वाले पर्यटकों की संख्या भी प्रभावित हुई है. हरिद्वार आने वाले पर्यटक भी इस समय ठिठके हुए हैं.’’

टे्रडर्स ऐंड वैलफेयर एसोसिएशन के प्रैसिडैंट रजत अग्रवाल कहते हैं कि क्रिसमस और नए साल को देखते हुए इस बार अब तक कारोबार में 30-35 फीसदी तक की गिरावट देखी जा रही है.

रजत अग्रवाल आगे कहते हैं कि दिल्ली, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान जैसे राज्यों से ज्यादा पर्यटक आते हैं. उत्तराखंड आने के लिए सभी को उत्तर प्रदेश से हो कर आना पड़ता है. वहां अभी कई जगह धारा 144 लगी है. माहौल शांत नहीं है. दिसंबरजनवरी माह तक आमतौर पर मसूरी में अच्छा कारोबार चलता है, लेकिन अभी लोग सफर करने में खुद को असहज महसूस कर रहे हैं.

रजत अग्रवाल बताते हैं कि साल 2013 में केदारनाथ आपदा के समय पर्यटन के लिहाज से व्यापारियों को सब से ज्यादा नुकसान हुआ था. उस के बाद नोटबंदी ने सबकुछ ठप कर दिया था. उस समय व्यापारियों का कारोबार 50 फीसदी तक प्रभावित हुआ था. अब यह नया कानून आम आदमी की रोजीरोटी को प्रभावित कर रहा है.

नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2019 को ले कर देशवासियों में उपजे असंतोष को देखते हुए संयुक्त राष्ट्र संघ के अलावा कनाडा, यूनाइडेट किंगडम, सऊदी अरब, रूस, आस्ट्रेलिया और इजराइल ने अपने देशवासियों को सावधान किया है. खासतौर पर पूर्वोत्तर के राज्यों में जाने से बचने की सलाह दी है.

बेजार हर कारोबार

पहले नोटबंदी हुई, जीएसटी लागू हुई और फिर जम्मूकश्मीर में अनुच्छेद 370 रद्द होने के बाद बंद हुए व्यापार और अब नागरिकता संशोधन विधेयक ने उद्योगपतियों और व्यापारियों को बेजार कर दिया है. यूसीपीएम के चेयरमैन डीएस चावला कहते हैं कि इन दिनों जो नुकसान लुधियाना की इंडस्ट्री का हो रहा है, उस की भरपाई में बहुत समय लगेगा.

फोपासिया के अध्यक्ष बदिश जिंदल के मुताबिक, केंद्र की नीतियां और नएनए कानून माली रूप से हमें खोखला कर रहे हैं.

लुधियाना के कारोबारी हलकों में फैला सन्नाटा बहुतकुछ कहता है. जिन राज्यों में नागरिकता संशोधन विधेयक का पुरजोर विरोध हो रहा है, उन्हीं राज्यों के सड़क और रेल मार्ग लुधियाना के उद्योगों के लिए एक तरह से ‘कौरिडोर’ का काम करते हैं. उन राज्यों में तो माल की सप्लाई और कारोबार एकदम बंद है ही, भूटान, नेपाल और बंगलादेश वगैरह की सप्लाई भी पूरी तरह से ठप हो गई है. अमृतसर के भी लुधियाना सरीखे हालात हैं.

गौरतलब है कि पंजाब से असम, उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, तेलंगाना, कर्नाटक, केरल के रास्ते भूटान व दूसरे नजदीकी देशों को सड़क और रेल मार्ग के जरीए हौजरी, कपड़ा, साइकिल और साइकिल पार्ट, मशीनरी टूल, नटबोल्ट, खराद, सिलाई मशीनें व सिलाई मशीनों के कलपुरजे व विभिन्न दूसरी किस्म के सामान भेजे जाते हैं. नागरिकता संशोधन विधेयक के विरोध में जारी आंदोलन का सब से ज्यादा असर इन में से कुछ राज्यों में हो रहा है. अब इन राज्यों के रास्तों से माल नहीं जा रहा.

लुधियाना के एक बड़े कारोबारी और सीसू के प्रधान उपकार सिंह आहूजा कहते हैं, ‘‘हमारे साथसाथ औद्योगिक संस्थानों में काम करने वाले मजदूर और कर्मचारी भी मुश्किल में हैं.’’

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अमृतसर के कपड़ा व्यापारी नंदलाल शर्मा भी इस बारे में ऐसा ही कुछ कहते हैं, ‘‘अमृतसर से कपड़ा, बडि़यां, अचार, मुरब्बे, पापड़ और मसाले भी दूसरे राज्यों और नेपाल, भूटान और बंगलादेश जाते हैं. सब जगह की सप्लाई फिलहाल रुकी हुई है और हम ने नया माल बनाना बंद कर दिया है. कारीगरों और ढुलाई का काम करने वाले मजदूरों को मजदूरी नहीं मिल रही. ज्यादातर ऐसे हैं, जो दिहाड़ी मजदूर के तौर पर काम करते हैं, लेकिन अब वे बेकार हैं.’’

एक मजदूर रोशनलाल ने बताया कि उस के घर की रोटी चलनी मुश्किल हो रही है. जून, 1984 में अमृतसर के व्यापारिक जगत में ऐसे हालात तब पैदा हुए थे, जब मजदूरों को रोटी के लाले पड़ गए थे और अब वैसा ही सबकुछ है.

लुधियाना की सिलाई मशीन डवलपमैंट क्लब के प्रधान जगबीर सिंह सोखी कहते हैं, ‘‘नागरिकता संशोधन विधेयक के बाद जिन राज्यों में तनाव है, वहां न तो हम जा पा रहे हैं और न हमारा माल. बैंक किस्तों के लिए दबाव बना रहे हैं. सम झ नहीं आ रहा कि बैंक के कर्ज की किस्त कैसे चुकाएं. नया माल जा नहीं रहा और पुराने माल की रकम की वापसी नहीं हो रही. इंटरनैट सेवाएं बंद होने से ट्रांजैक्शन भी रुक गई है.’’

अमृतसर के 80,000 से ज्यादा परिवार और व्यापारी भारतपाकिस्तान के बीच व्यापार बंद होने के चलते तगड़ी माली दिक्कतों से जूझ रहे हैं. 17 फरवरी के बाद अटारी आईसीसी के जरीए होने वाले कपड़े, सीमेंट, मसालों और मेवों का आनाजाना समूचे तौर पर बंद है.

सिर्फ आईसीपी पर ही 3,300 कुली, 2,000 सहायक, 550 क्लियरिंग एजेंट और 6,000 से ज्यादा ट्रांसपोर्टर काम करते थे. उन का धंधा अब छूट गया है. इस से बदहाली का अंदाजा लगाया जा सकता है.

सांसद गुरजीत सिंह ओंजला ने बताया कि वे भारतपाक ट्रेड ठप होने से बद से बदतर हुए हालात के मद्देनजर केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी से कई बार मिले, लेकिन सबकुछ जस का तस है.

कश्मीर में हरे हैं जख्म

‘‘बीते 4-5 महीने में मेरा तकरीबन 10 लाख रुपए का नुकसान हो चुका है. अपने काम को फिर से जिंदा करने के लिए मु झे श्रीनगर छोड़ कर जम्मू आना पड़ा है.’’

फोन पर अपनी परेशानी बयां करते हुए शारिक अहमद कुछ इस तरह बात की शुरुआत करते हैं. वे कहते हैं, ‘‘काम के सिलसिले में मु झे 8,000 रुपए का एक कमरा किराए पर लेना पड़ा है. नए ब्रौडबैंड कनैक्शन के 2,000 रुपए हर महीने देने होंगे. घर से दूर बाकी खर्चे भी ज्यादा करने होंगे.’’

पिछले एकडेढ़ महीने से शारिक अहमद जम्मू में हैं. वे श्रीनगर में टूर ऐंड टै्रवल से जुड़ी एक दुकान चलाते थे. नए शहर में नए तरीके से काम जोड़ने पर खर्च बढ़ेंगे. इस से ज्यादा चिंता उन्हें अपने बीवीबच्चों की है, जिन्हें श्रीनगर में ही छोड़ कर आना पड़ा.

5 अगस्त को अनुच्छेद 370 हटाए जाने के साथ ही भारत प्रशासित जम्मूकश्मीर में इंटरनैट सेवा को बंद कर दिया गया था. इस से कश्मीर घाटी के आम शहरियों के कामधंधे तकरीबन चौपट हो चुके हैं.

श्रीनगर के सानी हुसैन एक बुक स्टोर चलाते हैं. इंटरनैट सेवा बंद होने की वजह से नई किताबों के और्डर के लिए उन्हें हाल ही में दिल्ली जाना पड़ा. वे कहते हैं, ‘‘श्रीनगर से एक बार दिल्ली जाने का मतलब है 30,000 रुपए खर्च करना. किताबों के व्यापार में इतना तो मार्जिन भी नहीं बनता. 5 अगस्त से पहले किताबें लेने के लिए मु झे कभी दिल्ली नहीं जाना पड़ा था. मैं ने हमेशा ही इंटरनैट के जरीए किताबें और्डर कीं.’’

5 अगस्त, 2019 को जब अनुच्छेद 370 हटाए जाने की घोषणा हुई थी, तब इंटरनैट और दूरसंचार सेवाएं सब से पहले प्रभावित हुई थीं. इन के अलावा कसबों और गांवों तक में कर्फ्यू लगा दिया गया था. स्कूलकालेज बंद करा दिए गए थे. साथ ही, बंद हो गए थे सब छोटे व्यापार.

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हालांकि श्रीनगर में स्थानीय बाजार अब सामान्य हालात में लौट चुके हैं. पोस्टपेड मोबाइल और लैंडलाइन फोन सेवाएं शुरू हो चुकी हैं, लेकिन घाटी में इंटरनैट और प्रीपेड मोबाइल सेवा का शुरू होना अभी बाकी?है.

इसी मुद्दे पर उमर कहते हैं, ‘‘जब अनुच्छेद 370 पर फैसला होने वाला था तो मैं ने विदेश में रह रहे अपने रिश्तेदारों को सब से पहले सूचित किया. मैं ने उन्हें बताया कि मेरी वैबसाइट बंद होने वाली है. मेरे काम का एक बड़ा हिस्सा इंटरनैट पर आधारित है. औनलाइन और्डर वहीं से मिलते हैं.

‘‘तकरीबन डेढ़ महीने तक वैबसाइट बंद रही. बाद में हम ने दिल्ली में एक टीम रखी, जो वैबसाइट को चला सके. वैबसाइट बंद रहने के चलते इस सीजन में हमें 70 फीसदी का नुकसान हुआ है.’’

हिंदू राष्ट्र की राह पर

राम मंदिर बनाने का मामला हो या हिंदुत्व का मामला हो, अनुच्छेद 370 को हटाना हो, तीन तलाक या फिर नागरिकता संशोधन कानून, हर मामले में भाजपा का एकमात्र एजेंडा मुसलिमों के खिलाफ माहौल बना कर अपने परंपरागत हिंदू वोट बैंक को एकजुट करना रहा है. जामिया मिल्लिया इसलामिया यूनिवर्सिटी में पुलिस का कहर भी इसी बात को दिखाता है.

भाजपा में अटल बिहारी वाजपेयी, राजनाथ सिंह, सुषमा स्वराज, अरुण जेटली को उदारवादी हिंदुओं की श्रेणी में रख कर देखा जाता रहा है. लाल कृष्ण आडवाणी ने भाजपा में जो पौध तैयार की, वह कट्टर हिंदुत्व की राह पर चलने वाली?है.

राजनीति की गहरी सम झ रखने वाले लोग तभी सम झ गए थे, जब नरेंद्र मोदी ने राजनाथ सिंह को गृह मंत्री पद से हटा कर अपने पुराने सहयोगी अमित शाह को गृह मंत्री बनाया था कि अब वे दोनों मिल कर गुजरात का एजेंडा पूरे देश में लागू करेंगे.

जब देश में बेरोजगारी, भुखमरी, महंगाई और कानून व्यवस्था जैसे मुद्दे विकराल समस्या का रूप धारण कर चुके हैं, ऐसे समय में मोदी सरकार ने सारे मुद्दों को दरकिनार कर उन मुद्दों को प्राथमिकता के आधार पर लिया, जो सीधे मुसलिमों के खिलाफ जा कर हिंदुओं की हमदर्दी बटोरने वाले थे.

अनुच्छेद 370 हटाने के बाद गृह मंत्री अमित शाह की भाषा उन के भाषण में देखिए तो वह बारबार इस बात पर जोर दे रहे थे कि अनुच्छेद 370 के हटने पर विपक्ष कह रहा था कि देश में खून की नदियां बह जाएंगी, पर देश में तो एक पटाका भी नहीं फूटा है.

उन का मतलब साफ था कि उन्होंने विपक्ष के साथ ही देश के मुसलिमों को भी इतना डरा दिया है कि अब ये लोग कुछ भी करेंगे, तब भी कोई चूं नहीं करेगा.

दूसरी बार प्रचंड बहुमत में आने के बाद भले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सब को साथ ले कर चलने की बात कही हो, पर उन के दूसरे कार्यकाल में अब तक जो कुछ भी हुआ है, वह धर्म और जाति के आधार पर हुआ है. हकीकत यह है कि मोदी सरकार में ऐसा कुछ नहीं हुआ, जिस से देश का मुसलिम अपने को सुरक्षित महसूस करता.

यदि देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह का थोड़ा सा भी ध्यान देश के भाईचारे पर होता तो सुप्रीम कोर्ट के राम मंदिर बनने का रास्ता पक्का करने के तुरंत बाद ये लोग नागरिकता संशोधन कानून न लाते.

प्रचंड बहुमत का मतलब यह नहीं है कि आप कुछ भी कर सकते हैं. इन लोगों ने यह सोच लिया था कि अब उन के डर से पूरा देश सहमा हुआ है, जो मरजी आए करो. देश और संविधान की रक्षा के लिए बनाए गए तंत्रों विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका और मीडिया उन की कठपुतली की तरह काम कर रहे हैं.

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जो लोग नागरिकता संशोधन कानून के विरोध को मुसलिमों का विरोध सम झ रहे हैं, वे गलती कर रहे हैं. इस आंदोलन में मुसलिम के साथ ही दलित, पिछड़ों के अलावा सवर्ण समाज के लोग भी हैं.

दरअसल, यह वह गुस्सा है, जिसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने दमनकारी नीतियों के चलते दबा रखा था. इस आंदोलन में बड़ी संख्या में बेरोजगार नौजवान हैं, जो मोदी सरकार से नाराज हैं.

पूर्वोत्तर के बाद जब यह आंदोलन दिल्ली और उत्तर प्रदेश में आया तो इस ने विकराल रूप ले लिया. उत्तर प्रदेश में 21 लोगों के मरने की खबर है.

एनआरसी के समर्थन में पूरे देश में भाजपा व कुछ चरमपंथी संगठन रैलियां कर रहे हैं और प्रधानमंत्री व गृह मंत्री कह रहे हैं कि एनआरसी पर अभी तक कोई चर्चा तक नहीं हुई है. खैर, जो भी हो,  झूठ पकड़ा गया और देश ने सच जान लिया है.

यह तानाशाहों की सोच होती?है कि भारी विरोध को देखते हैं, तो अपने फैसलों पर दोबारा सोचने के बजाय  झूठ बोलने लग जाते हैं, क्योंकि उन को हार कभी स्वीकार नहीं होती है.

जरमनी बरबाद हो रहा था, मगर हिटलर ने गलती स्वीकार नहीं की और आखिर में चाहे खुदकुशी करनी पड़ी हो, मगर हारा हुआ मानना उस को स्वीकार नहीं था.

विपक्ष में राजनीतिक दलों के बजाय इस बार नागरिक समाज है और नागरिक समाज विपक्ष की भूमिका में खड़ा होता है तो भागने की लाख कोशिश कर लो, मगर असली मुद्दे पर ला कर खड़ा कर ही दिया जाएगा.

महाराष्ट्र राजनीति में हो सकता है गठबंधन का नया ‘सूर्योदय’, राज ठाकरे ने बदला झंडा और चिन्ह

महाराष्ट्र में महा अघाडी गठबंधन के बाद जिस बात के कयास लगाए जा रहे थे वो अब हकीकत बनने के नजदीक पहुंच गया. राजनीति में 13 सालों के अतीत के बाद महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) ने नए झंडे, चिन्ह और नई विचारधारा के साथ नई शुरुआत की. मनसे अध्यक्ष राज ठाकरे ने पार्टी के नए झंडे का अनावरण किया, जो गहरे भगवा रंग का है. इसके साथ छत्रपति शिवाजी महाराज के शासन की मुद्रा (रौयल सील) को चिन्ह के तौर पर जारी किया गया. पार्टी का भव्य सम्मेलन गोरेगांव में एनएसई ग्राउंड में अयोजित किया गया.

पिछले दिनों महाराष्ट्र की राजनीति में कैसी उठा पटक रही पूरे देश ने देखी और समझी. सीएम उद्धव ठाकरे के पिता बाला साहेब ठाकरे की कट्टर हिंदुत्व वाली राजनीति के विपरीत जाकर फैसला किया कि वो स्टेट में सरकार बनाए. हुआ भी कुछ ऐसा ही. काफी ड्रामेबाजी के बाद एनसीपी, कांग्रेस और शिवसेना ने मिलकर सरकार बनाई. इसके बाद से एक बात का अंदेशा लग रहा था. कई राजनीतिक पंडितों का अनुमान था कि अब हो सकता है कि बीजेपी और मनसे चीफ राज ठाकरे की कुछ न कुछ नजदीकियां हो जाएं. और अब कुछ वैसा ही हो रहा है.

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राज ठाकरे ने मुंबई में कहा कि भगवा झंडा साल 2006 से मेरे दिल में था. हमारे डीएनए में भगवा है. मैं मराठी हूं और एक हिंदू हूं. साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि मुसलमान भी अपने हैं. उन्होंने इस दौरान नागरिकता संशोधन कानून का समर्थन किया. मनसे प्रमुख ने कहा कि मैं हमेशा कहता रहा हूं कि पाकिस्तान और बांग्लादेश के घुसपैठियों को देश से बाहर फेंक देना चाहिए.

शिवसेना पर निशाना साधते हुए राज ठाकरे ने बोला कि मैं रंग बदलने वाली सरकारों के साथ नहीं जाता. राज ठाकरे का निशाना शिवसेना की तरफ था जिसने कुछ माह पहले कांग्रेस और एनसीपी के साथ सरकार बनाई है. राज ठाकरे ने यह भी कहा कि जिन दलों ने सीएए के खिलाफ मोर्चा खोला है, उनकी पार्टी मनसे उनके खिलाफ मोर्चा खोलेगी. सीएए के बारे में उन्होंने कहा कि जो लोग बाहर से अवैध ढंग से आए हैं, उन्हें क्यों शरण दी जानी चाहिए?

नया झंडा पेश किए जाने के साथ हालांकि विरोध भी शुरू हो गया. संभाजी ब्रिगेड, मराठा क्रांति मोर्चा व अन्य ने राज ठाकरे से राजनीतिक उद्देश्यों के लिए शिवाजी के ‘रॉयल सील’ का उपयोग न करने और संयम बरतने का आह्वान किया. संभाजी ब्रिगेड ने पुणे पुलिस में शिकायत दर्ज कराई, जबकि मराठा क्रांति मोर्चा ने मनसे को कोर्ट में खींचने की धमकी दी.

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इस मौके पर राज ठाकरे ने अपने बेटे अमित ठाकरे को औपचारिक रूप से पार्टी में शामिल किया और अपनी अगली पीढ़ी के लिए राजनीति में रास्ता बनाया. मनसे के एक वरिष्ठ नेता ने राज ठाकरे के नया ‘हिंदू हृदय सम्राट’ होने का दावा किया. इस पर भी विवाद छिड़ गया. शिवसेना के संस्थापक दिवंगत बालासाहेब ठाकरे को आमतौर पर ‘हिंदू हृदयसम्राट’ के रूप में जाना जाता था.

शिवसेना के वरिष्ठ नेता अनिल परब ने कहा कि केवल दिवंगत बाला साहेब ठाकरे ही ‘हिंदू हृदय सम्राट’ हैं और उनकी जगह लेने का कोई और दावा नहीं कर सकता. मनसे अब विपक्षी भारतीय जनता पार्टी के साथ तालमेल बिठा रही है और भाजपा से शिवसेना के अलग होने के बाद ‘हिंदुत्व’ की रिक्तता को भरने का प्रयास कर रही है. राज ठाकरे ने लोकसभा चुनाव के समय हालांकि ‘मोदी-शाह’ के खिलाफ जनसभाएं की थीं और अपने भाषणों का वीडियो जारी किया था.

विधानसभा चुनाव 2019: सरकार में हेमंत, रघुवर बेघर

रघुवर दास ने नरेंद्र मोदी के चुनावी नारे ‘घरघर मोदी’ की नकल कर के  झारखंड विधानसभा चुनाव में ‘घरघर रघुवर’ का नारा दिया था, लेकिन  झारखंड की जनता ने उन्हें पूरी तरह से बेघर कर दिया. एक तरफ उन की मुख्यमंत्री की कुरसी गई तो वहीं दूसरी तरफ उन्होंने विधायकी भी गंवा दी. भाजपा के ही बागी नेता सरयू राय ने उन्हें जमशेदपुर पूर्व सीट पर पटकनी दे दी. उस सीट से रघुवर दास पिछले 24 सालों से लगातार जीत रहे थे.

रघुवर दास ने ‘जन आशीर्वाद यात्रा’ शुरू कर जनता से 64 से ज्यादा सीटें जीतने का आशीर्वाद भी मांगा था, पर जनता ने उन पर अपना गुस्सा ही निकाला और उन्हें 25 सीटों पर ही समेट दिया.

वहीं विपक्ष किसी आदिवासी को मुख्यमंत्री बनाने की रणनीति में कामयाब रहा. राष्ट्रीय जनता दल के नेता तेजस्वी यादव समेत महागठबंधन के सभी नेताओं ने किसी आदिवासी को मुख्यमंत्री बनाए जाने की पुरजोर वकालत की थी. गौरतलब है कि रघुवर दास  झारखंड के पहले गैरआदिवासी मुख्यमंत्री बने थे.

झामुमो के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन की ‘बदलाव यात्रा’ कामयाब रही और राज्य की जनता ने उन पर भरोसा करते हुए बदलाव की इबारत लिख डाली.

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हेमंत सोरेन रघुवर दास के ‘घरघर रघुवर’ के नारे का मजाक उड़ाते हुए कहते थे कि घरघर में चूहा होता है, चूहे को चूहेदानी में डाल कर वे छत्तीसगढ़ में छोड़ आएंगे.

गौरतलब है कि रघुवर दास मूल रूप से छत्तीसगढ़ के रहने वाले हैं. हेमंत सोरेन की इन बातों को जनता ने हकीकत में बदल दिया.

झारखंड का हाथ से फिसलना भाजपा के लिए बड़ा  झटका है. महाराष्ट्र को खोने और हरियाणा में हार के दर्द से भाजपा अभी उबर भी नहीं पाई थी कि  झारखंड भी उसे बड़ा जख्म दे गया.

भाजपा के ‘चाणक्य’ माने जाने वाले अमित शाह को अपनी रणनीति पर नए सिरे से सोचने की दरकार है. केंद्र में तो उन की रणनीति कामयाब रही, लेकिन राज्यों में उन की रणनीति फेल हो रही है या फिर वे जनता की नब्ज पकड़ने और लोकल मुद्दों को सम झने में पूरी तरह से नाकाम रहे हैं.

राम मंदिर, अनुच्छेद 370, तीन तलाक, नागरिकता संशोधन कानून जैसे नैशनल मुद्दों को राज्यों में भी भुनाने की सोच ने ही भाजपा को जोर का  झटका जोर से दिया है. वहीं दूसरी ओर  झामुमो, कांग्रेस और राजद ने  झारखंड के आदिवासियों की तरक्की और रघुवर सरकार की नाकामियों को उजागर कर जनता का दिल जीत लिया.

81 सीटों वाली  झारखंड विधानसभा में  झामुमो को 30, कांग्रेस को 16 और राजद को एक सीट मिली.  झामुमो को पिछले विधानसभा चुनाव के मुकाबले 11 सीटें और कांग्रेस को 10 सीटों की बढ़त मिली. राजद ने एक सीट खोई.

भाजपा को 25 सीटें हासिल हुईं और उसे 12 सीटों का नुकसान हुआ. बाबूलाल मरांडी को 3, आजसू को 2 और निर्दलीय को 4 सीटें मिली हैं. पिछले चुनाव के मुकाबले बाबूलाल मरांडी ने 5 और आजसू ने 3 सीटें गंवाईं.

काफी खींचतान के बाद बने  झामुमो, कांग्रेस और राजद के महागठबंधन को जनता का साथ मिला. इस गठबंधन ने समय रहते सीटों का बंटवारा कर लिया था, जबकि भाजपा अपनों में ही उल झी रही. बड़े नेता सरयू राय और राधाकृष्ण किशोर का टिकट काट कर पार्टी के अंदर ही बखेड़ा खड़ा कर लिया था.

पार्टी के कई बड़े नेता मानते हैं कि अमित शाह और रघुवर दास की अहंकारी सोच ने ही राज्य में भाजपा की लुटिया डुबो दी. कार्यकर्ताओं को दरकिनार कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषणों के दम पर चुनाव जीतने की सोच ही भाजपा का बेड़ा गर्क कर रही है.

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प्रदेश भाजपा द्वारा सरयू राय और संसदीय मामलों के बड़े जानकार राधाकृष्ण किशोर को दरकिनार कर भानुप्रताप शाही और ढुल्लू महतो जैसे विवादास्पद नेताओं को आगे करना बड़ी भूल रही. 11 सीटिंग विधायकों के टिकट काट कर भाजपा आलाकमान ने खुद ही अपनी कब्र खोद ली थी.

इस का नतीजा यह हुआ कि 33.37 फीसदी वोट हासिल करने के बाद भी भाजपा 25 सीटें ही जीत सकी, जबकि  झामुमो के खाते में 18.74 फीसदी ही वोट पड़े और उस ने 30 सीटें जीत लीं. पिछले विधानसभा चुनाव के मुकाबले भाजपा का वोट फीसदी तो बढ़ा, पर सीटें घट गईं. वहीं पिछले चुनाव में  झामुमो को 20.78 फीसदी वोट मिले थे, उस हिसाब से इस बार  झामुमो के वोट शेयर में गिरावट आई.

साल 1995 में पहली बार जमशेदपुर पूर्वी विधानसभा सीट पर रघुवर दास को 1,101 वोटों से जीत मिली थी. उस के बाद से वे लगातार इस सीट से जीतते रहे थे. पिछले विधानसभा चुनाव में उन्होंने अपने विरोधी को 70 हजार वोटों से हराया था. इस बार उन के ही साथी और रणनीतिकार रहे सरयू राय ने उन के विजय रथ को रोक डाला.

यह चोला उतारे भाजपा

भाजपा को अपनी रणनीति के साथ ही प्रदेश अध्यक्षों और मुख्यमंत्रियों के रवैए पर सोचने की जरूरत है. धर्म, पाखंड, मंदिर जैसी काठ की हांड़ी से अब उसे किनारा कर जनता के मसलों पर ध्यान देने की ज्यादा जरूरत है. 2 साल पहले 20 राज्यों में राजग की सरकार थी, जो अब सिमट कर 11 पर रह गई है. राजग ने पिछले 2 सालों में 7 राज्य गंवा दिए. सब से पहले 2017 में पंजाब उस के हाथ से निकल गया. उस के बाद 2018 में 3 राज्य से उस की सत्ता चली गई. राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में राजग को सत्ता खोनी पड़ी. साल 2019 में महाराष्ट्र और  झारखंड से भी उस का दखल खत्म हो गया.

फिलहाल उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, बिहार, कर्नाटक, त्रिपुरा, मणिपुर, हिमाचल प्रदेश, गुजरात, गोवा, असम, हरियाणा और अरुणाचल प्रदेश में भाजपा या राजग की सरकारें हैं.

जनता का भरोसा नहीं टूटने दूंगा : हेमंत सोरेन

रघुवर दास के अहंकारी रवैए पर हेमंत सोरेन की सादगी भारी पड़ी. रघुवर दास और भाजपा आलाकमान केवल नैशनल मसलों के भरोसे चुनाव जीतने की बात करते रहे, वहीं हेमंत सोरेन जनता और आदिवासियों की सरकार बनने का ऐलान करते रहे.

हेमंत सोरेन दावा करते हैं कि उन की सरकार गरीबों, आदिवासियों और वंचित तबके के लिए खास काम करेगी. आदिवासियों को उन का हक दिलाना और राज्य की खनिज संपदा को दोहन से बचाना उन की प्राथमिकता है.  झारखंड की जनता ने उन के ऊपर जो भरोसा जताया है, उसे वे टूटने नहीं देंगे.

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40 साल के हेमंत सोरेन अपने पिता की अक्खड़ और उग्र सियासत के उलट शांत, हंसमुख और हमेशा मुसकराने वाले नेता हैं. वे हर किसी की बात को गौर से सुनते हैं और उस के बाद ही अपनी बात कहते हैं.

बीआईटी (मेसरा) से मेकैनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने वाले इस युवा नेता ने साल 2003 में सियासत के अखाड़े में कदम रखा था और  झामुमो के  झारखंड छात्र मोरचा के अध्यक्ष के तौर पर राजनीति की एबीसीडी सीखना शुरू किया था. साल 2005 में अपने पिता की सीट दुमका से चुनावी राजनीति की शुरुआत की, पर मुंह की खानी पड़ी. साल 2009 में दुमका विधानसभा सीट से चुनाव जीत कर पहली बार विधानसभा पहुंचे. उस के बाद अर्जुन मुंडा की सरकार में 11 सितंबर, 2010 को उपमुख्यमंत्री बने. 13 जुलाई को मुख्यमंत्री बने और 14 दिसंबर, 2014 तक उस कुरसी पर रहे.

पौलिटिकल राउंडअप : सरकारी सर्कुलर पर विवाद

मैंगलुरु. सीएए और एनआरसी के खिलाफ 19 दिसंबर, 2019 को कर्नाटक के मैंगलुरु में प्रदर्शन हुए थे. उस से कुछ घंटे पहले ही जारी किए गए एक सर्कुलर में कहा गया था कि दक्षिण कन्नड़ जिले के कालेज उन छात्रों पर नजर रखें, जो केरल के रहने वाले हैं.

दरअसल, ये प्रदर्शन हिंसक हो उठे थे. आरोप है कि कई लोग पुलिस की गोली से भी मारे गए थे. लेकिन असली विवाद तो बाद में इस सर्कुलर के चलते पैदा हो गया. राजनीतिक पार्टियों, छात्रों और शिक्षाविदों ने इस की बुराई करते हुए इसे भेदभाव वाला बताया, जबकि सरकारी अफसरों का कहना था कि सर्कुलर का मकसद केरल के छात्रों की सिक्योरिटी के लिए था, उन्हें बदनाम करने का नहीं था.

अपनों में बढ़ी दरार

पटना. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ज्यादा पसंद नहीं हैं, पर चूंकि वे राजग में शामिल हैं, इसलिए भाजपा का गुणगान कर ही देते हैं.

हालिया माहौल पर नीतीश कुमार के ‘चाणक्य’ प्रशांत किशोर ने बयान दे डाला कि इस बार जनता दल (यू) बिहार विधानसभा चुनाव में ज्यादा सीटों पर लड़े, क्योंकि कई राज्यों में मिली हार के बाद भाजपा बैकफुट पर है.

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नीतीश कुमार ने 2-4 दिन इस डिमांड को पनपने दिया, पर इस का कोई असर नहीं दिखा. फिर भाजपाई सुशील कुमार मोदी और प्रशांत किशोर की आपसी दरार के बाद नीतीश कुमार ने नए साल पर कह दिया कि गठबंधन में सब ठीक है. पर यह अब भाजपा के दिमाग में रहेगा कि चुनाव के समय जद (यू) अपना दावा ठोंकेगा.

कांग्रेस अध्यक्ष का दावा

जम्मू. अगर जम्मू के सारे हिंदू भाजपा की तरफ हैं, तो आप की यह सोच एकदम गलत है. वहां के कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष और प्रवक्ता रवींद्र शर्मा ने 31 दिसंबर, 2019 को दावा किया कि जम्मू क्षेत्र और दक्षिण कश्मीर के विभिन्न भागों की प्रस्तावित यात्रा से पहले यहां कांग्रेस पार्टी की ही जम्मूकश्मीर इकाई के अध्यक्ष जीए मीर और कई दूसरे बड़े नेताओं को नजरबंद कर दिया गया.

रवींद्र शर्मा ने कहा, ‘‘एक तरफ तो सरकार जम्मूकश्मीर में सामान्य हालात होने का दावा करती है, वहीं दूसरी तरफ वह राजनीतिक गतिविधियों के लिए विपक्ष को इजाजत नहीं दे रही है. सामान्य हालात होने का उस का दावा खोखला है.’’

निरंजन ज्योति के बिगड़े बोल

लखनऊ. उत्तर प्रदेश की राजनीति में प्रियंका गांधी बहुत ज्यादा सक्रिय हो गई हैं. उन्होंने भाजपा को आड़े हाथ लिया हुआ है. इसी सिलसिले में उन्होंने भगवा कपड़े को ले कर वहां के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर निशाना साधा.

कांग्रेस की महासचिव प्रियंका गांधी के इस बयान पर पलटवार करते हुए केंद्रीय मंत्री साध्वी निरंजन ज्योति ने एक विवादित बात कही. पिछले साल के आखिर में वे बोलीं कि प्रियंका गांधी भगवा रंग का मतलब नहीं समझ सकतीं, क्योंकि वे नकली गांधी हैं. उन्हें अपने नाम के आगे से गांधी हटा लेना चाहिए और अपना नाम प्रियंका फिरोज कर लेना चाहिए.

अगर नामों का इतना महत्व ही है तो आदित्यनाथ और निरंजन अपने नाम के आगेपीछे पुछल्ले क्यों लगाए रखते हैं?

भागवत के खिलाफ शिकायत

हैदराबाद. मोहन भागवत ने 25 दिसंबर, 2019 को यहां एक जनसभा में कहा था कि धर्म और संस्कृति पर ध्यान दिए बिना, जो लोग राष्ट्रवादी भावना रखते हैं और भारत की संस्कृति और उस की विरासत का सम्मान करते हैं, वे हिंदू हैं और संघ देश के 130 करोड़ लोगों को हिंदू मानता है.

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मोहन भागवत के इस बयान पर कांग्रेस नेता वी. हनुमंत राव ने 30 दिसंबर, 2019 को उन के खिलाफ एक शिकायत दर्ज कराई और आरोप लगाया, ‘‘भागवत के बयान से न केवल मुसलिमों, ईसाइयों, सिखों, पारसियों वगैरह की भावनाओं और आस्था को ठेस पहुंची है, बल्कि यह भारतीय संविधान की मूल भावना के खिलाफ भी है.’’

जजपा में घमासान

चंडीगढ़. हरियाणा की राजनीति में ‘दादा’ के नाम से मशहूर नेता रामकुमार गौतम ने अपनी पार्टी जननायक जनता पार्टी के खिलाफ बागी तेवर दिखाए और इस्तीफा देते हुए अपने नेता दुष्यंत चौटाला को कोसते हुए कहा था कि उन्हें मंत्री न बनाए जाने का गम नहीं है, लेकिन दुख इस बात का है कि गुरुग्राम के मौल में जो गुप्त समझौता हुआ है, उस के लिए बलि का बकरा उन्हें क्यों बनाया गया? उपमुख्यमंत्री ने 11 विभाग अपने पास रखे हैं, जबकि पार्टी के मात्र एक विधायक को एक कनिष्ठ मंत्री बनाया गया.

शिव सेना के बागी तेवर सफल होते देख दुष्यंत चौटाला भी किसी दिन अपने विधायकों के गुस्से को शांत करने के लिए कांग्रेस से समझौता कर सकते हैं.

तू डालडाल मैं पातपात

नई दिल्ली. दिल्ली में होने वाले विधानसभा चुनाव के मद्देनजर 26 दिसंबर, 2019 को निर्वाचन आयोग की पहली बैठक होने के साथ ही केंद्र और राज्य सरकारों के बीच अपनेअपने किए गए कामों को गिनाने की रेस शुरू हो गई. पिछले 5 साल से अटके बहुत से प्रोजैक्टों की केजरीवाल सरकार और केंद्रीय शहरी विकास मंत्रालय ने या तो बुनियाद रखी या फिर उन का उद्घाटन किया.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तकरीबन 1,700 कच्ची कालोनियों को पक्का करने का ऐलान किया, तो मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी अपने 5 साल के कामों का रिपोर्टकार्ड जारी किया और 65,000 झुग्गी वालों को पक्का मकान बना कर देने का सर्टिफिकेट दिया.

मोदी सरकार को कच्ची कोलोनियों को तो 4 साल पहले ही पक्का कर देना चाहिए था. अब तक क्या कर रही थी?

सावित्रीबाई फुले का दर्द

लखनऊ. भारतीय जनता पार्टी से सांसद रही सावित्रीबाई फुले ने नाराज हो कर पार्टी को छोड़ दिया था और बड़ी ठसक के साथ वे कांग्रेसी हो गई थीं. पर अब उन्होंने कांग्रेस का दामन भी छोड़ दिया है.

26 दिसंबर, 2019 को कांग्रेस से इस्तीफा देने से पहले सावित्रीबाई फुले ने आरोप लगाया कि पार्टी में उन की बात नहीं सुनी जाती है. इतना ही नहीं, कांग्रेस को अलविदा कहते हुए उन्होंने दावा किया है कि वे खुद की पार्टी बनाएंगी.

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सावित्रीबाई फुले का यह फैसला सही है, क्योंकि जब खुद की पार्टी होगी तो यह भगवाधारी नेता किसी की अनसुनी का शिकार तो कतई नहीं होगी.

दीपिका की “छपाक”… भूपेश बघेल वाया भाजपा-कांग्रेस!

दिल्ली स्थित जेएनयू हिंसा के पश्चात छात्रों के बीच पहुंची दीपिका पादुकोण की फिल्म छपाक का बहिष्कार करने के लिए भाजपा समर्थकों ने सोशल मीडिया में अभियान चल रहा है. जिसके प्रतिउत्तर में मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री कमलनाथ के द्वारा फिल्म ‘छपाक’ को टैक्स मुक्त करने के बाद, छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने राज्य में फिल्म को टैक्स फ्री करने की घोषणा कर दी है.

देश प्रदेश में दीपिका पादुकोण को लेकर एक तमाशा चल रहा है. दीपिका पादुकोण जब जेएनयू में प्रकट होती है तो देश की मीडिया उनकी सिंपैथी दिखाकर, यह बताने का प्रयास करती है कि दीपका कितनी संवेदनशील है. दूसरी तरफ केंद्र सरकार और उनके नुमाइंदे मानो दीपका पर पिल पड़े ऐसी स्थिति में जवाबी तलवारबाजी तो होनी ही थी और खूब हो रही है.

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छत्तीसगढ़ में भी मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कमलनाथ के पद चिन्हों पर चलते हुए छपाक फिल्म को टैक्स मुक्त कर दिया है. संपूर्ण घटनाक्रम को देखकर कई प्रश्न खड़े हो जाते हैं जिनका प्रतिउत्तर आम जनमानस के पास नहीं होता. क्योंकि वह संपूर्ण घटनाक्रम की पीछे की राजनीति को, आज चल रही विचारधारा की लड़ाई को नहीं समझ पाती. छत्तीसगढ़ में दीपिका पादुकोण की फिल्म छपाक के बरअक्स इस मसले को हम समझने का प्रयास करते हैं-

क्या यह ढर्रा देशहित हित में है!

मेघना गुलजार निर्देशित और दीपिका पादुकोण अभिनीत ऐसिड अटैक सर्वाइवर पर बनी फिल्म “छपाक “10 जनवरी को देश भर के सिनेमाघरों में रिलीज हो गई . इधर फिल्म के रिलीज होने के पूर्व दीपिका पादुकोण दिल्ली के जेएनयू पहुंच गई, उनका समर्थन में खड़ा होना एक प्रश्न चिन्ह बना दिया गया. जहां एक और केंद्रीय सरकार के मंत्री दीपिका से नाराज दिखे, वहीं कांग्रेस और अन्य राजनीतिक दल खुलकर दीपिका के पक्ष में खड़े हो गए हैं. अब यह अवाम को सोचना है कि क्या आप आक्रमणकारियों के के पक्ष में खड़े होंगे या आक्रमणकारियों के विरोध में.

देश में इन दिनों बन रही लघु मानसिकता तो यही कहती है कि आप चाहे कोई भी हो. आम आदमी या सेलिब्रिटी अगर आप केंद्र सरकार के मंशा के खिलाफ खड़े हैं तो आप को देश में रहने का अधिकार नहीं! आप देशद्रोही हैं. यह ढर्रा देश को किस दिशा में ले जाएगा यह फिल्म छपाक के इस विवाद के बरअक्स उठे विवाद से, आगे की मंजिलें बताएगी. यहां मजेदार बात यह है कि छत्तीसगढ़ में अब यह भाजपा मांग उठाने लगी है कि अजय देवगन की फिल्म “तानाजी” को भी टैक्स मुक्त किया जाए…

अब सीधी सी बात है कि कांग्रेस सरकार भला भाजपा की सोच पर अपनी मोहर क्यों लगाएगी. मगर आपको यह समझना होगा कि तानाजी का मतलब सीधे सीधे हिंदू वोट बैंक भी है. कुल जमा फिल्मों को लेकर घात प्रतिघात का दौर, भाजपा और कॉन्ग्रेस यह मध्य जारी है.

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भूपेश बघेल से यही उम्मीद थी!

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने ट्वीट कर फिल्म को टैक्स फ्री किये जाने की जानकारी सार्वजनिक की. उन्होंने ट्वीट कर कहा, “समाज में महिलाओं के ऊपर तेजाब से हमले करने जैसे जघन्य अपराध को दर्शाती हैं . हमारे समाज को जागरूक करती हिंदी फिल्म “छपाक” को सरकार ने छत्तीसगढ़ प्रदेश में टैक्स फ्री करने का निर्णय लिया है. आप सब भी सपरिवार जाएं.”

यहां सवाल यह भी उठता है कि नकाबपोश गुंडों द्वारा जेएनयू में छात्रों के ऊपर लाठी और रॉड से हमला किया गया था. इस हमले में छात्र संघ अध्यक्ष आइशी घोष सहित कई छात्रों को गंभीर चोटें आई थी. जेएनयू छात्रों ने इस हमले के पीछे एबीवीपी को जिम्मेदार बताया था. हमले से जुड़े कई वीडियो भी सामने आए.
छात्रों के ऊपर हुए हमले के बाद दीपिका पादुकोण जेएनयू पहुंची थीं, जहां वे हिंसा के खिलाफ छात्रों के बीच खड़ी थी. दीपिका के सामने आने के बाद कई बॉलीवुड सितारों ने भी हमले की निंदा की थी. उधर दीपिका के इस कदम के बाद सोशल मीडिया में उनकी फिल्म छपाक को बॉयकॉट करने का अभियान चलाया जा रहा है. जो अपने उफान पर है. देश भक्ति का मतलब ही आजकल, देश में भाजपा और केंद्र सरकार के समर्थन में खड़े होना है.

क्या देशभक्ति ऐसी होती है कि आप किसी फिल्म को न देखें और उसका बाय काट करें. मगर यही हो रहा है फिल्म छपाक को लेकर दो ध्रुव बन गए हैं ऐसे में कमलनाथ सरकार के फिल्म को टैक्स फ्री करने के बाद भूपेश बघेल बघेल को तो ऐसा करना ही था और उन्होंने किया प्रश्न यह खड़ा हो जाता है क्या दीपिका पादुकोण जेएनयू नहीं जाती तो हमारे प्रदेश और देश की सरकार जो कांग्रेस नीत से जुड़ी हैं फिल्म को टैक्स मुक्त करती? शायद कभी नहीं. इधर दीपिका पादुकोण को घेरते हुए केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने उन्हें कांग्रेसी मानसिकता का बताते हुए नया मोर्चा खोल दिया है.

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असम से बुलंद हुआ बगावत का  झंडा

हाजगह : असम के गुवाहाटी का हातीगांव. तारीख : 12 दिसंबर, 2019. समय : शाम के 6.15 बजे.

स्कूल में पढ़ने वाला एक 16 साला छात्र सैम स्टेफर्ड अपनी मां से मोबाइल फोन पर कहता है, ‘‘मां, नागरिकता कानून का विरोध करने के लिए सभी लोग गुवाहाटी की सड़कों पर उतर आए हैं. मैं भी वहीं हूं. मेरी चिंता मत करना.’’

सैम स्टेफर्ड तलासील प्लेग्राउंड में हो रहे विरोध प्रदर्शन में ‘नो कैब’ का नारा लगाते हुए अपने घर लौट रहा था कि अचानक पुलिस की गोली चली और कुछ देर छटपटाने के बाद सैम स्टेफर्ड का शरीर शांत हो गया.

दिसंबर का महीना असम के लिए अच्छा नहीं रहा. पूरा गुवाहाटी शहर 10 दिसंबर से परेशान था. इस परेशानी की वजह नागरिकता संशोधन विधेयक, 2019 को लोकसभा में पास कराना था. इस के विरोध में उत्तरपूर्व क्षेत्रीय छात्र संघ ने 11 घंटे का पूर्वोत्तर बंद रखा था.

नया नागरिकता बिल पास होने के बाद इस के विरोध में लोग सड़कों पर उतर आए और रैलियां निकालीं. सड़कों पर टायर जला कर विरोध प्रदर्शन के साथ असम के मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल और वित्त मंत्री हिमंत विश्व सरमा मुरदाबाद के नारे लगाए गए.

पूर्वोत्तर में चारों तरफ नागरिकता कानून के विरोध की आग भड़की. दिसपुर सचिवालय के सामने सरेआम उपद्रवियों ने गाडि़यों में आग लगाई. अहिंसक आंदोलन को हिंसा का रूप लेने में देर नहीं लगी. पुलिस ने बारबार लाठीचार्ज किया और आंसू गैस के गोले छोडे़.

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इस के बाद सेना को सड़कों पर उतारा गया और कर्फ्यू लगाने के साथ इंटरनैट सेवा बंद कर दी गई. यही रवैया ऊपरी असम के तिनसुकिया, डिब्रूगढ़, चबुआ, गोलाघाट, तेजपुर समेत पूर्वोत्तर में यह आंदोलन और ज्यादा बढ़ा.

क्या है नागरिकता कानून

नागरिकता कानून, 2019 के मुताबिक, सीमा से सटे पड़ोसी देश बंगलादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के गैरमुसलिमों को भारतीय नागरिकता मिलेगी. इतिहास गवाह है कि इन नागरिकों का बो झ अकेले असम को उठाना पड़ेगा. ऐसे में असमिया समाज के वजूद पर सवालिया निशान लगना लाजिमी है.

नागरिकता के सवाल पर जिस तरीके से विरोध जताया जा रहा है, वह दिन दूर नहीं जब एक बार फिर 6 साल तक चले असम आंदोलन की शुरुआत हो सकती है. नागरिकता कानून, 2019 को ले कर राज्य की विभिन्न राजनीतिक पार्टियां, संगठन, शिल्पी समाज, वरिष्ठ नागरिकों और पढे़लिखे लोगों के बीच यह मुद्दा तूल पकड़ता जा रहा है.

भूल आखिर कहां हुई

पूर्वोत्तर बंद के दौरान आल असम छात्र संघ की जिम्मेदारी थी कि सबकुछ शांतिपूर्वक रहे, लेकिन इस संघ ने इस ओर ध्यान नहीं दिया. इस के बदले डिब्रूगढ़ में असम कृषक मुक्ति संग्राम समिति के नेता अखिल गोगोई ने कहा था कि 11 दिसंबर को यह बिल राज्यसभा में पास होगा. ऐसे में असम की जनता अपने घरों से बाहर निकल कर रेल, सड़क, केंद्र व राज्य सरकार के कामकाज में बाधा पहुंचाए.

मीडिया का रोल

नागरिकता कानून, 2019 को ले कर हो रहे आंदोलन पर राज्य के इलैक्ट्रौनिक मीडिया ने निष्पक्षता के साथ खबरें पेश नहीं कीं. लोगों ने देखा कि सड़कों पर विरोध जता रहे प्रदर्शनकारी चिल्ला रहे थे, हालात बेकाबू हो रहे थे.

उस समय ज्यादातर टैलीविजन रिपोर्टर चिल्लाचिल्ला कर बोल रहे थे कि आप सभी अपने घरों से निकल आएं, असम की रक्षा का सवाल है.

असमझौते का पालन

नागरिकता कानून, 2019 का विरोध पूर्वोत्तर में तूल पकड़ता जा रहा है. राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री और असम गण परिषद  के विधायक प्रफुल्ल कुमार महंत ने वही पुराना राग दोहराते हुए कहा कि यह कानून स्थानीय निवासियों का विरोध और गैरमुसलिम घुसपैठियों का समर्थन करता है. हम ने इस का विरोध किया है. असम आंदोलन में 855 लोग शहीद हुए थे. बाद में केंद्र सरकार और आसू के बीच सम झौता हुआ. इस सम झौते का पूरी तरह से पालन होना चाहिए.

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हिंसा भड़काने वाला कौन

नागरिकता कानून, 2019 के खिलाफ और असमिया जाति की सुरक्षा को ले कर राज्य की जनता सड़कों पर उतर आई है. उस दिन भी कुछ ऐसा ही हुआ था. लोग विरोध जताते हुए गुवाहाटी महानगर की सड़कों पर नारेबाजी करते हुए दिसपुर सचिवालय की ओर बढ़ रहे थे. इस बीच कुछ शरारती तत्त्व तैयारी के साथ भीड़ में घुस आए और विरोध के नाम पर हिंसा की आग कुछ इस कदर फैलाई थी कि सरकारी संपत्तियों का नुकसान हुआ.

पुलिस और केंद्र को यह गुमान है कि पिछले कुछ सालों की तरह वह लोगों को डराधमका कर हर तरह की नाराजगी को नजरअंदाज किया जा सकता है. यह गरूर है.

अब तक 5 मारे गए

विरोध जताने के लिए सड़कों पर उतरे लोगों पर पुलिस को मजबूर हो कर फायरिंग करनी पड़ी, क्योंकि उग्र भीड़ हिंसा पर उतारू हो गई थी. पुलिस की गोली से मारे गए लोगों में 16 साल का सैम स्टेफर्ड, 18 साल का दीपांजल दास, 25 साल का ईश्वर नायक, 25 साल का अब्दुल आलिम और डिब्रूगढ़ में मारा गया 32 साल का विजेंद्र पांगि शामिल है.

राज्य सरकार की भूल

गुवाहाटी शहर जब आग की लपटों में था, मशाल अंतिम सीमा पार कर चुकी थी, तब राज्य की भाजपा सरकार की नींद खुली. मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल समेत इन के मंत्री, विधायकों और आला अधिकारी सो कर उठे. दरअसल, इस कानून को ले कर राज्य के 80 फीसदी लोगों के पास सही जानकारी नहीं है.

प्रदेश भाजपा सरकार के पास अपना सूचना और जनसंपर्क विभाग है. इस विभाग के रहते हुए भी इस बारे में राज्य की जनता को जानबू झ कर सही जानकारी नहीं दी गई. या यों कहिए कि भाजपा सरकार इस मामले में भी ऐसे ही नाकाम रही है, जैसे विकास के मामले में पिछड़ रही है.

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पौलिटिकल राउंडअप: अब नई दलित पार्टी

साल 2017 में सहारनपुर में हुई हिंसा के बाद सुर्खियों में आई भीम आर्मी के संस्थापक चंद्रशेखर आजाद ने कहा कि बहुजन समाज पार्टी मुद्दों से भटक गई है. लिहाजा, उन के नए सियासी दल में ईमानदार और समर्पित नौजवानों की भागीदारी रहेगी. वे ‘एक नोट एक वोट’ के फार्मूले पर अपनी पार्टी की बुनियाद रखेंगे. ऐसा माना जा रहा है कि कांशीराम का जन्मदिन 15 मार्च को है, उस दिन या उस से पहले इस का ऐलान कर दिया जाएगा.

यह दलित वोटों में विभाजन करेगा और वे भारतीय राजनीति में निरर्थक हो जाएंगे.

बागी हुए प्रशांत किशोर

पटना. अपनी चाणक्य वाली सोच से बड़ेबड़े नेताओं को तारने वाले प्रशांत किशोर फिलहाल बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सारथी बने हुए हैं, पर कब तक उन का साथ देंगे, कह नहीं सकते.

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दरअसल, इस नए नागरिकता संशोधन विधेयक को समर्थन देने के मामले में जनता दल (यूनाइटेड) के उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर पार्टी की चेतावनी के बाद भी अपने रुख से पीछे नहीं हटे और उन्होंने 13 दिसंबर को दोबारा नागरिकता संशोधन कानून को ले कर अपनी नाराजगी जाहिर कर दी.

पार्टी ने प्रशांत किशोर को ऐसी बयानबाजी से बचने की सलाह दी, पर वे अपने रुख से पीछे नहीं हटने का मन बना चुके हैं और इसी बीच उन के ऐसे बगावती तेवर को देखते हुए विपक्षी दलों ने अपने महागठबंधन में उन्हें आने का न्योता दिया है. वैसे, उन के आम आदमी पार्टी से मिलने के भी कयास लगाए गए.

नेताजी के बोल बचन

सतना. यों तो भारतीय जनता पार्टी के बहुत से नेता अपने बयानों से देश की जनता का मनोरंजन करते रहते हैं, पर मध्य प्रदेश के सतना से भाजपा सांसद गणेश सिंह ने 11 दिसंबर को दावा किया है कि संस्कृत बोलने से इनसानी नर्वस सिस्टम बेहतर होता है और डायबिटीज और कोलैस्ट्रौल कंट्रोल में रहता है. इस के लिए उन्होंने अमेरिका के एक अकादमिक संस्थान के शोध का हवाला दिया.

सांसदजी यहीं पर नहीं रुके, बल्कि उन्होंने यह भी दावा किया कि यूएस स्पेस रिसर्च और्गनाइजेशन नासा के शोध के मुताबिक, अगर कंप्यूटर प्रोग्रामिंग संस्कृत में की जाए तो उस में कोई रुकावट नहीं होगी.

राजस्थान में ‘जन आधारकार्ड’

जयपुर. राजस्थान सरकार ने अपने नागरिकों को सरकारी योजनाओं का फायदा देने के लिए एक नए ‘जन आधारकार्ड’ को शुरू करने की तैयारी की है. प्रदेश के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अपनी सरकार का एक साल पूरा होने के मौके पर 18 दिसंबर को जयपुर में इस योजना की शुरुआत की और अगले साल 1 अप्रैल से यही कार्ड मान्य होगा.

इस योजना के तहत राज्य के हर परिवार को 10 अंक की परिवार पहचान संख्या वाला ‘जन आधारकार्ड’ दिया जाएगा. परिवार में 18 साल या इस से ज्यादा उम्र की महिला को मुखिया बनाया जाएगा. महिला नहीं है तो 21 साल या इस से ज्यादा उम्र का पुरुष मुखिया होगा.

पिनराई विजयन ने चेताया

तिरुअनंतपुरम. देशभर में हिंसा की आग सुलगा चुके नागरिकता संशोधन कानून को ले कर केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने कहा कि वर्तमान माहौल को भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने पैदा किया और वे देश में अपना एजेंडा लागू करना चाहते हैं. केरल नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ खड़ा है.

मंगलवार, 10 दिसंबर को लोकसभा में इस बिल के पास होने पर पिनराई विजयन ने कहा था कि नागरिकता संशोधन विधेयक देश के धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक चरित्र पर एक हमला है. यह लोगों को सांप्रदायिक आधार पर बांटने की कवायद है.

फारूक की हिरासत बढ़ी

श्रीनगर. जम्मूकश्मीर राज्य के 3 बार मुख्यमंत्री रह चुके फारूक अब्दुल्ला की हिरासत 14 दिसंबर को 3 महीने के लिए और बढ़ा दी गई. वे तकरीबन जेल बना दिए गए अपने घर में नजरबंद रहेंगे.

याद रहे कि केंद्र सरकार ने इसी साल 5 अगस्त को जम्मूकश्मीर राज्य का विशेष दर्जा हटाने और उसे बांटने का ऐलान किया था और उसी दिन से फारूक अब्दुल्ला हिरासत में हैं.

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कांग्रेस ने भरी हुंकार

दिल्ली. जहां एक तरफ केजरीवाल सरकार ‘अब की बार 67 पार’ का नारा लगा रही है, वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस दिल्ली में मोदी सरकार को घेरने के नाम पर अपनी ताकत आजमा रही है. इसी सिलसिले में कांग्रेस ने 14 दिसंबर को ‘भारत बचाओ रैली’ निकाली, जिस का मकसद भाजपा की देश को बांटने वाली नीतियों को उजागर करना था.

इस रैली में कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी, राहुल गांधी, प्रियंका गांधी के अलावा पार्टी के तमाम नेताओं ने मोदी सरकार के खिलाफ हल्ला बोला. कांग्रेस का दावा है कि बेरोजगारी, बेकारी, भूख, किसानों की बदहाली और माली मंदी की वजह से आम आदमी का जीना मुश्किल हो गया है.

यह कांग्रेस का एक तीर से दो शिकार करना रहा. मोदी सरकार को तो कोसा ही, दिल्ली में भीड़ इकट्ठी कर के अरविंद केजरीवाल की भी परेशानियां बढ़ा दीं.

आंध्र प्रदेश ने दिखाई ‘दिशा’

हैदराबाद. हाल ही में एक महिला डाक्टर से गैंगरेप, हत्या और फिर लाश जला देने की वारदात के बाद राज्य समेत पूरे देश में गुस्से का उफान था. इसी के मद्देनजर आंध्र प्रदेश विधानसभा ने 13 दिसंबर को ‘दिशा’ बिल पास कर दिया है, जिस के तहत रेप और गैंगरेप के अपराध के लिए ट्रायल को तेज किए जाने, 21 दिन के अंदर फैसला देने और मौत की सजा का प्रावधान है.

इस बिल में आईपीसी की धारा 354 में संशोधन कर के नई धारा 354(ई) बनाई गई है. लिहाजा, रेप के मामले में मौत की सजा का प्रावधान देने वाला आंध्र प्रदेश देश का पहला राज्य बन गया है.

पूर्वोत्तर में बदलाव की चिनगारी

गुवाहाटी. नागरिकता संशोधन अधिनियम के खिलाफ असम एक रणभूमि बना और सुलग गया. दिसंबर में वहां जमा हुई भीड़ की ‘होहो’ की गूंज, असमिया ‘गमछा’ और ‘जय आई असोम’ के नारे ने केंद्र सरकार के इस फैसले का पुरजोर विरोध किया. प्रदर्शनकारियों ने कहा कि इस नागरिकता कानून से असम की पहचान को खतरा है.

इतना ही नहीं, असम के पड़ोसी राज्य सिक्किम में भी नागरिकता बिल का विरोध किया गया. देश के नामचीन फुटबाल खिलाड़ी और हामरो सिक्किम पार्टी के संस्थापक और अध्यक्ष बाइचुंग भूटिया ने कहा कि वे नागरिकता संशोधन विधेयक, 2019 से हताश हैं. सिक्किम के मूल निवासियों को सिरे से गायब कर दिया गया है और उन पर लगातार खतरा बना हुआ है.

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