Short Story 2025 : आखिर क्यूं लगाया उसने मौत को गले

Short Story 2025 : सोनिया तब बच्ची थी. छोटी सी मासूम. प्यारी, गोलगोल सी आंखें थीं उस की. वह बंगाली बाबू की बड़ी बेटी थी. जितनी प्यारी थी वह, उस से भी कहीं मीठी उस की बातें थीं. मैं उस महल्ले में नयानया आया था. अकेला था. बंगाली बाबू मेरे घर से 2 मकान आगे रहते थे. वे गोरे रंग के मोटे से आदमी थे. सोनिया से, उन से तभी परिचय हुआ था. उन का नाम जयकृष्ण नाथ था.

वे मेरे जद्दोजेहद भरे दिन थे. दिनभर का थकामांदा जब अपने कमरे में आता, तो पता नहीं कहां से सोनिया आ जाती और दिनभर की थकान मिनटों में छू हो जाती. वह खूब तोतली आवाज में बोलती थी. कभीकभी तो वह इतना बोलती थी कि मुझे उस के ऊपर खीज होने लगती और गुस्से में कभी मैं बोलता, ‘‘चलो भागो यहां से, बहुत बोलती हो तुम…’’

तब उस की आंखें डबडबाई सी हो जातीं और वह बोझिल कदमों से कमरे से बाहर निकलती, तो मेरा भावुक मन इसे सह नहीं पाता और मैं झपट कर उसे गोद में उठा कर सीने से लगा लेता. उस बच्ची का मेरे घर आना उस की दिनचर्या में शामिल था. बंगाली बाबू भी कभीकभी सोनिया को खोजतेखोजते मेरे घर चले आते, तो फिर घंटों बैठ कर बातें होती थीं.

बंगाली बाबू ने एक पंजाबी लड़की से शादी की थी. 3 लोगों का परिवार अपने में मस्त था. उन्हें किसी बात की कमी नहीं थी. कुछ दिन बाद मैं उन के घर का चिरपरिचित सदस्य बन चुका था. समय बदला और अंदाज भी बदल गए. मैं अब पहले जैसा दुबलापतला नहीं रहा और न बंगाली बाबू ही अधेड़ रहे. बंगाली बाबू अब बूढ़े हो गए थे. सोनिया भी जवान हो गई थी. बंगाली बाबू का परिवार भी 5 सदस्यों का हो चुका था. सोनिया के बाद मोनू और सुप्रिया भी बड़े हो चुके थे.

सोनिया ने बीए पास कर लिया था. जवानी में वह अप्सरा जैसी खूबसूरत लगती थी. अब वह पहले जैसी बातूनी व चंचल भी नहीं रह गई थी. बंगाली बाबू परेशान थे. उन के हंसमुख चेहरे पर अकसर चिंता की रेखाएं दिखाई पड़तीं.

वे मुझ से कहते, ‘‘भाई साहब, कौन करेगा मेरे बच्चों से शादी? लोग कहते हैं कि इन की न तो कोई जाति है, न धर्म. मैं तो आदमी को आदमी समझता हूं… 25 साल पहले जिस धर्म व जाति को समुद्र के बीच छोड़ आया था, आज अपने बच्चों के लिए उसे कहां से लाऊं?’’ जातपांत को ले कर कई बार सोनिया की शादी होतेहोते रुक गई थी. इस से बंगाली बाबू परेशान थे. मैं उन्हें विश्वास दिलाना चाहता था, लेकिन मैं खुद जानता था कि सचमुच में समस्या उलझ चुकी है.

एक दिन बंगाली बाबू खीज कर मुझ से बोले, ‘‘भाई साहब, यह दुनिया बहुत ढोंगी है. खुद तो आदर्शवाद के नाम पर सबकुछ बकेगी, लेकिन जब कोई अच्छा कदम उठाने की कोशिश करेगा, तो उसे गिरा हुआ कह कर बाहर कर देगी… ‘‘आधुनिकता, आदर्श, क्रांति यह सब बड़े लोगों के चोंचले हैं. एक

60 साल का बूढ़ा अगर 16 साल की दूसरी जाति की लड़की से शादी कर ले, तो वह क्रांति है… और न जाने क्याक्या है? ‘‘लेकिन, यह काम मैं ने अपनी जवानी में ही किया. किसी बेसहारा को कुतुब रोड, कमाठीपुरा या फिर सोनागाछी की शोभा बनाने से बचाने की हिम्मत की, तो आज यही समाज उस काम को गंदा कह रहा है.

‘‘आज मैं अपनेआप को अपराधी महसूस कर रहा हूं. जिन बातों को सोच कर मेरा सिर शान से ऊंचा हो जाता था, आज वही बातें मेरे सामने सवाल बन कर रह गई हैं. ‘‘क्या आप बता सकते हैं कि मेरे बच्चों का भविष्य क्या होगा?’’ पूछते हुए बंगाली बाबू के जबड़े भिंच गए थे.

इस का जवाब मैं भला क्या दे पाता. हां, उन के बेटे मोनू ने जरूर दे दिया. जीवन बीमा कंपनी में नौकरी मिलने के 7 महीने बाद ही वह एक लड़की ले आया. वह एक ईसाई लड़की थी, जो मोनू के साथ ही पढ़ती थी और एक अस्पताल में स्टाफ नर्स थी. कुछ दिन बाद दोनों ने शादी कर ली, जिसे बंगाली बाबू ने स्वीकार कर लिया. जल्द ही वह घर के लोगों में घुलमिल गई. मोनू बहादुर लड़का था. उसे अपना कैरियर खुद चुनना था. उस ने अपना जीवनसाथी भी खुद ही चुन लिया. पर सोनिया व सुप्रिया तो लड़कियां हैं. अगर वे ऐसा करेंगी, तो क्या बदनामी नहीं होगी घर की? बातचीत के दौर में एक दिन बंगाली बाबू बोल पड़े थे.?

लेकिन, जिस बात का उन्हें डर था, वह एक दिन हो गई. सुप्रिया एक दिन एक दलित लड़के के साथ भाग गई. दोनों कालेज में एकसाथ पढ़ते थे. उन दोनों पर नए जमाने का असर था. सारा महल्ला हैरान रह गया.

लड़के के बाप ने पूरा महल्ला चिल्लाचिल्ला कर सिर पर उठा लिया था, ‘‘यह बंगाली न जात का है और न पांत का है… घर का न घाट का. इस का पूरा खानदान ही खराब है. खुद तो पंजाबी लड़की भगा लाया, बेटा ईसाई लड़की पटा लाया और अब इस की लड़की मेरे सीधेसादे बेटे को ले उड़ी.’’ लड़के के बाप की चिल्लाहट बंगाली बाबू को भले ही परेशान न कर सकी हो, लेकिन महल्ले की फुसफुसाहट ने उन्हें जरूर परेशान कर दिया था. इन सब घटनाओं से बंगाली बाबू अनापशनाप बड़बड़ाते रहते थे. वे अपना सारा गुस्सा अब सोनिया को कोस कर निकालते.

बेचारी सोनिया अपनी मां की तरह शांत स्वभाव की थी. उस ने अब तक 35 सावन इसी घर की चारदीवारी में बिताए थे. वह अपने पिता की परेशानी को खूब अच्छी तरह जानती थी. जबतब बंगाली बाबू नाराज हो कर मुझ से बोलते, ‘‘कहां फेंकूं इस जवान लड़की को, क्यों नहीं यह भी अपनी जिंदगी खुद जीने की कोशिश करती. एक तो हमारी नाक साथ ले कर चली गई. उसे अपनी बड़ी बहन पर जरा भी तरस नहीं आया.’’

इस तरह की बातें सुन कर एक दिन सोनिया फट पड़ी, ‘‘चुप रहो पिताजी.’’ सोनिया के अंदर का ज्वालामुखी उफन कर बाहर आ गया था. वह बोली, ‘‘क्या करते मोनू और सुप्रिया? उन के पास दूसरा और कोई रास्ता भी तो नहीं था. जिस क्रांति को आप ने शुरू किया था, उसी को तो उन्होंने आगे बढ़ाया. आज वे जैसे भी हैं, जहां भी हैं, सुखी हैं. जिंदगी ढोने की कोशिश तो नहीं करते. उन की जिंदगी तो बेकार नहीं गई.’’

बंगाली बाबू ने पहली बार सोनिया के मुंह से यह शब्द सुने थे. वे हैरान थे. ‘‘ठीक है बेटी, यह मेरा ही कुसूर है. यह सब मैं ने ही किया है, सब मैं ने…’’ बंगाली बाबू बोले.

सोनिया का मुंह एक बार खुला, तो फिर बंद नहीं हुआ. जिंदगी के आखिरी पलों तक नहीं… और एक दिन उस ने जिंदगी से जूझते हुए मौत को गले लगा लिया था. उस की आंखें फैली हुई थीं और गरदन लंबी हो गई थी. सोनिया को बोझ जैसी अपनी जिंदगी का कोई मतलब नहीं मिल पाया था, तभी तो उस ने इतना बड़ा फैसला ले लिया था.

मैं ने उस की लाश को देखा. खुली हुई आंखें शायद मुझे ही घूर रही थीं. वही आंखें, गोलगोल प्यारा सा चेहरा. मेरे मानसपटल पर बड़ी प्यारी सी बच्ची की छवि उभर आई, जो तोतली आवाज में बोलती थी. खुली आंखों से शायद वह यही कह रही थी, ‘चाचा, बस आज तक ही हमारा तुम्हारा रिश्ता था.’ मैं ने उस की खुली आंखों पर अपना हाथ रख दिया था.

Love Story 2025 : मजुरिया का सपना

Love Story 2025 : ‘‘बहनजी, इन का भी दाखिला कर लो. सुना है कि यहां रोज खाना मिलता है और वजीफा भी,’’ 3 बच्चों के हाथ पकड़े, एक बच्चा गोद में लिए एक औरत गांव के प्राइमरी स्कूल में बच्चों का दाखिला कराने आई थी.

‘‘हांहां, हो जाएगा. तुम परेशान मत हो,’’ मैडम बोली. ‘‘बहनजी, फीस तो नहीं लगती?’’ उस औरत ने पूछा.

‘‘नहीं. फीस नहीं लगती. अच्छा, नाम बताओ और उम्र बताओ बच्चों की. कौन सी जमात में दाखिला कराओगी?’’ ‘‘अब बहनजी, लिख लो जिस में ठीक समझो.

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‘‘बड़ी बेटी का नाम मजुरिया है. इस की उम्र 10 साल है. ये दोनों दिबुआ और शिबुआ हैं. छोटे हैं मजुरिया से,’’ बच्चों की मां ने मुसकराते हुए कहा. ‘‘नाम मंजरी. उम्र 8 साल. देव. उम्र 7 साल और शिव. उम्र 6 साल. मजुरिया जमात 2 में और देव व शिव का जमात एक में दाखिला कर लिया है. अब मैं तुम्हें मजुरिया नहीं मंजरी कह कर बुलाऊंगी,’’ मैडम ने कहा.

मजुरिया तो मानो खुशी से कूद पड़ी, ‘‘मंजरी… कितना प्यारा नाम है. अम्मां, अब मुझे मंजरी कहना.’’ ‘‘अरे बहनजी, मजुरिया को मंजरी बना देने से वह कोई रानी न बन जाएगी. रहेगी तो मजदूर की बेटी ही,’’ मजुरिया की अम्मां ने दुखी हो कर कहा.

‘‘नहीं अम्मां, मैं अब स्कूल आ गई हूं, अब मैं भी मैडम की तरह बनूंगी. फिर तू खेत में मजदूरी नहीं करेगी,’’ मंजरी बनते ही मजुरिया अपने सपनों को बुनने लगी थी. मजुरिया बड़े ध्यान से पढ़ती और अम्मां के काम में भी हाथ बंटाती.

मजुरिया पास होती गई. उस के भाई धक्का लगालगा कर थोड़ाबहुत पढ़े, पर मजुरिया को रोकना अब मुश्किल था. वह किसी को भी शिकायत का मौका नहीं देती थी और अपनी मैडम की चहेती बन गई थी. ‘‘मंजरी, यह लो चाबी. स्कूटी की डिक्की में से मेरा लंच बौक्स निकाल कर लाना तो. पानी की बोतल भी है,’’ एक दिन मैडम ने उस से कहा.

मजुरिया ने आड़ीतिरछी कर के डिक्की खोल ही ली. उस ने बोतल और लंच बौक्स निकाला. वह सोचने लगी, ‘जब मैं पढ़लिख कर मैडम बनूंगी, तो मैं भी ऐसा ही डब्बा लूंगी. उस में रोज पूरी रख कर लाया करूंगी. ‘मैं अम्मां के लिए साड़ी लाऊंगी और बापू के लिए धोतीकुरता.’

मजुरिया मैडम की बोतल और डब्बा हाथ में लिए सोच ही रही थी कि मैडम ने आवाज लगाई, ‘‘मंजरी, क्या हुआ? इतनी देर कैसे लगा दी?’’ ‘‘आई मैडम,’’ कह कर मजुरिया ने मैडम को डब्बा और बोतल दी और किताब खोल कर पढ़ने बैठ गई.

अब मजुरिया 8वीं जमात में आ गई थी. वह पढ़ने में होशियार थी. उस के मन में लगन थी. वह पढ़लिख कर अपने घर की गरीबी दूर करना चाहती थी. उस की मां मजुरिया को जब नए कपड़े नहीं दिला पाती, तो वह हंस कर कहती, ‘‘तू चिंता मत कर अम्मां. एक बार मैं नौकरी पर लग जाऊं, फिर सब लोग नएनए कपड़े पहनेंगे.’’

‘‘अरे, खुली आंख से सपना न देख. अब तक तो तेरी फीस नहीं जाती है. कौपीकिताबें मिल जाती हैं. सो, तू पढ़ रही है. इस से आगे फीस देनी पड़ेगी.’’ अम्मां मजुरिया की आंखों में पल रहे सपनों को तोड़ना नहीं चाहती थी, पर उस के मजबूत इरादों को थोड़ा कम जरूर करना चाहती थी. वह जानती थी कि अगर सपने कमजोर होंगे, तो टूटने पर ज्यादा दर्द नहीं देंगे.

और यही हुआ. मजुरिया की 9वीं जमात की फीस उस की मैडम ने अपने ही स्कूल के सामने चल रहे सरकारी स्कूल में भर दी. मजुरिया तो खुश हो गई, लेकिन कोई भी मजुरिया आज तक इस स्कूल

में पढ़ने नहीं आई थी. एक दिन जब मजुरिया स्कूल पढ़ने गई और वहां के टीचरों ने उस की पढ़ाई की तारीफ की, तो वहां के ठाकुर बौखला गए. ‘‘ऐ मजुरिया की अम्मां, उधार बहुत बढ़ गया है. कैसे चुकाएगी?’’

‘‘मालिक, हम दिनरात आप के खेत पर काम कर के चुका देंगे.’’ ‘‘वह तो ठीक है, पर अकेले तू कितना पैसा जमा कर लेगी? मजुरिया को क्यों पढ़ने भेज रही है? वह तुम्हारे काम में हाथ क्यों नहीं बंटाती है?’’ इतना कह कर ठाकुर चले गए.

मजुरिया की अम्मां समझ गई कि निशाना कहां था. लेकिन इन सब से बेखबर मजुरिया अपनी पढ़ाई में खुश थी. पर कोई और भी था, जो उस के इस ख्वाब से खुश था. पल्लव, बड़े ठाकुर का बेटा, जो मजुरिया से एक जमात आगे गांव से बाहर के पब्लिक स्कूल में पढ़ता था. वह मजुरिया को उस के स्कूल तक छोड़ कर आगे अपने स्कूल जाता था.

‘‘तू रोज इस रास्ते से क्यों स्कूल जाता है? तुझे तो यह रास्ता लंबा पड़ता होगा न?’’ मजुरिया ने पूछा. ‘‘हां, सो तो है, पर उस रास्ते पर तू नहीं होती न. तू उस रास्ते से आने लगे, तो मैं भी उसी से आऊंगा,’’ पल्लव ने मुसकराते हुए कहा.

‘‘न बाबा न, वहां तो सारे ठाकुर रहते हैं. बड़ीबड़ी मूंछें, बाहर निकली हुई आंखें,’’ मजुरिया ने हंस कर कहा. ‘‘अच्छा, तो तू ठाकुरों से डरती है?’’ पल्लव ने पूछा.

‘‘हां, पर मुझे ठकुराइन अच्छी लगती हैं.’’

‘‘तू ठकुराइन बनेगी?’’ ‘‘मैं कैसे बनूंगी?’’

‘‘मुझ से शादी कर के,’’ पल्लव ने मुसकराते हुए कहा. ‘‘तू पागल है. जा, अपने स्कूल. मेरा स्कूल आ गया है,’’ मजुरिया ने पल्लव को धकेलते हुए कहा और हंस कर स्कूल भाग गई.

उस दिन मजुरिया के घर आने पर उस की अम्मां ने कह दिया, ‘‘आज से स्कूल जाने की जरूरत नहीं है. ठाकुर का कर्ज बढ़ता जा रहा है. अब तो तुझे स्कूल में खाना भी नहीं मिलता है. कल से मेरे साथ काम करने खेत पर चलना.’’ मजुरिया टूटे दिल से अम्मां के साथ खेत पर जाने लगी.

वह 2 दिन से स्कूल नहीं गई, तो पल्लव ने खेत पर आ कर पूछा, ‘‘मंजरी, तू स्कूल क्यों नहीं जा रही है? क्या मुझ से नाराज है?’’ ‘‘नहीं रे, ठाकुर का कर्ज बढ़ गया है. अम्मां ने कहा है कि दिनरात काम करना पड़ेगा,’’ कहते हुए मजुरिया की आंखों में आंसू आ गए.

‘‘तू परेशान मत हो. मैं तुझे घर आ कर पढ़ा दिया करूंगा,’’ पल्लव ने कहा, तो मजुरिया खुश हो उठी. अम्मां जानती थी कि ठाकुर का बेटा उन के घर आ कर पढ़ाएगा, तो हंगामा होगा. पर वह छोटे ठाकुर की यह बात काट नहीं सकी.

पल्लव मजुरिया को पढ़ाने घर आने लगा. लेकिन उन के बीच बढ़ती नजदीकियों से अम्मां घबरा गई. अम्मां ने अगले दिन पल्लव से घर आ कर पढ़ाने से मना कर दिया. मजुरिया कभीकभी समय मिलने पर स्कूल जाती थी. पल्लव रास्ते में उसे मिलता और ढेर सारी बातें करता. कब

2 साल गुजर गए, पता ही नहीं चला. आज मजुरिया का 10वीं जमात का रिजल्ट आएगा. उसे डर लग रहा था.

पल्लव तेजी से साइकिल चलाता हुआ गांव में घुसा, ‘‘मजुरिया… मजुरिया… तू फर्स्ट आई है.’’ मजुरिया हाथ में खुरपी लिए दौड़ी, उस का दुपट्टा उस के कंधे से उड़ कर दूर जा गिरा. उस ने पल्लव के हाथ से अखबार पकड़ा और भागते हुए अम्मां के पास आई, ‘‘अम्मां, मैं फर्स्ट आई हूं.’’

अम्मां ने उस के हाथ से अखबार छीना और हाथ पकड़ कर घर ले गई. पर उस की आवाज बड़े ठाकुर के कानों तक पहुंच ही गई. ‘‘मजुरिया की मां, तेरी लड़की जवान हो गई है. अब इस से खेत पर काम मत करवा. मेरे घर भेज दिया कर…’’ ठाकुर की बात पूरी नहीं हो पाई थी, उस से पहले ही अम्मां ने उसे घूर कर देखा, ‘‘मालिक, हम खेतिहर मजदूर हैं. किसी के घर नहीं जाते,’’ इतना कह कर अम्मां घर चली गई.

घर पर अम्मां मजुरिया को कमरे में बंद कर प्रधान के घर गई. उन की पत्नी अच्छी औरत थीं और उसे अकसर बिना सूद के पैसा देती रहती थीं. ‘‘मालकिन, मजुरिया के लायक कोई लड़का है, तो बताओ. हम उस के हाथ पीले करना चाहते हैं.’’

प्रधानजी की पत्नी हालात भांप गईं. ‘‘हां मजुरिया की अम्मां, मेरे मायके में रामदास नौकर है. पुरखों से हमारे यहां काम कर रहे हैं. उस का लड़का है. एक टांग में थोड़ी लचक है, उस से शादी करवा देते हैं. छठी जमात पास है.

‘‘अगर तू कहे, तो आज ही फोन कर देती हूं. मेरे पास 2-3 कोरी धोती रखी हैं. तू परेशान मत हो, बाकी का इंतजाम भी मैं कर दूंगी.’’ मजुरिया की अम्मां हां कह कर घर आ गई.

7वें दिन बैलगाड़ी में दूल्हे समेत 3 लोग मजुरिया को ब्याहने आ गए. बिना बाजे और शहनाई के मजुरिया

को साड़ी पहना कर बैलगाड़ी में बैठा दिया गया. मजुरिया कुछ समझ पाती, तब तक बैलगाड़ी गांव से बाहर आ गई. उस ने इधरउधर नजर दौड़ाई और बैलगाड़ी से कूद कर गांव के थाने में पहुंच गई.

‘‘कुछ लोग मुझे पकड़ कर ले जा रहे हैं,’’ मजुरिया ने थानेदार को बताया. पुलिस ने मौके पर आ कर उन्हें बंद कर दिया. मजुरिया गांव वापस आ गई. जब सब को पता चला, तो उसे बुराभला कहने लगे. मां ने उसे पीट कर घर में बंद कर दिया.

मजुरिया के घर पर 2 दिन से न तो चूल्हा जला और न ही वे लोग घर से बाहर निकले. पल्लव छिप कर उस के लिए खाना लाया. उस ने समझाया, ‘‘देखो मंजरी, तुम्हें ख्वाब पूरे करने के लिए थोड़ी हिम्मत दिखानी पड़ेगी. बुजदिल हो कर, रो कर तुम अपने सपने पूरे नहीं कर सकोगी…’’

पल्लव के इन शब्दों ने मजुरिया को ताकत दी. वह अगले दिन अपनी मैडम के घर गई. उन्होंने उसे 12वीं जमात का फार्म भरवाया. इस के बाद पल्लव मंजरी को रास्ता दिखाता रहा और उस ने बीए कर लिया. पल्लव की नौकरी लग गई.

‘‘मंजरी, मैं अहमदाबाद जा रहा हूं. क्या तुम मुझ से शादी कर के मेरी ठकुराइन बनोगी?’’ पल्लव ने मंजरी का हाथ पकड़ कर कहा. ‘‘अगर मैं ने दिल की आवाज सुनी और तुम्हारे साथ चल दी, तो फिर कभी कोई मजुरिया दोबारा मंजरी बनने का ख्वाब नहीं देख पाएगी. फिर कभी कोई टीचर किसी मजुरिया को मंजरी बनाने की कोशिश नहीं करेगी.

‘‘एक मंजरी का दिल टूटने से अगर हजार मजुरियों के सपने पूरे होते हैं, तो मुझे यह मंजूर है,’’ मजुरिया ने कड़े मन से अपनी बात कही. पल्लव समझ गया और उसे जिंदगी में आगे बढ़ने की प्रेरणा दे कर वहां से चला गया.

Family Story 2025 : जवानी का हिसाब लगाती शालिनी

Family Story 2025 : शालिनी ने हिसाब लगाया. उस ने पूरी रात खन्ना, तिवारी और शर्मा के साथ गुजारी है. सुबह होते ही उस ने 10 हजार रुपए झटक लिए. वे तीनों उस के रंगरूप, जवानी के दीवाने हैं. शहर के माने हुए रईस हैं. तीनों की शहर में और शहर से बाहर कईकई प्लाईवुड की फैक्टरियां हैं. तीनों के पास माल आता भी 2 नंबर में है. तैयार प्लाई भी 2 नंबर में जाती है. वे सरकार को करोड़ों रुपए के टैक्स का चूना लगाते हैं. शालिनी ने उन तीनों के साथ रात गुजारने के 25 हजार रुपए मांगे थे. सुबह होने पर तिवारी के पास ही 10 हजार रुपए निकले. खन्ना और शर्मा खाली जेबों में हाथ घुमाते नजर आए. कमबख्त तीनों रात को 5 हजार रुपए की महंगी शराब पी गए थे. उस ने जब अपने बाकी के 15 हजार रुपए के लिए हंगामा किया, तो खन्ना ने वादा किया कि वह दोपहर को आ कर उस के दफ्तर से पैसे ले जाए.

सुबह के 10 बजने को थे. शालिनी ने पहले तो सस्ते से होटल पर ही पेट भर कर नाश्ता किया. कमरे पर जाना उस ने मुनासिब नहीं समझा. सोचा कि अगर कमरे पर गई, तो चारपाई पर लेटते ही नींद आ जाएगी. फिर तो बस्ती के कमरे से इंडस्ट्रियल एरिया आने का मन नहीं करेगा. पूरे 7 किलोमीटर दूर है. अभी खन्ना के दफ्तर से 15 हजार भी वसूल करने थे. गरमी बहुत हो रही थी. शालिनी ने सोचा कि रैस्टोरेंट में जा कर आइसक्रीम खाई जाए. एसी की ठंडक में घंटाभर गुजारा जाए. इतने में दोपहर हो जाएगी, फिर वह अपने रुपए ले कर ही कमरे पर जा कर आराम करेगी. रेस्टोरैंट में अगर कोई चाहने वाला मिल गया, तो खाना भी मुफ्त में हो जाएगा. अगली रात भी 5-10 हजार रुपए में बुक हो जाएगी. वैसे तो उस ने अपना मोबाइल नंबर 5-6 दलालों को दे रखा था.

शालिनी आइसक्रीम खा कर पूरे 2 घंटे के बाद रैस्टोरैंट से निकली. अगली 2 रातों के लिए एडवांस पैसा भी मिल गया था. पूरे 5 हजार रुपए. मोबाइल में समय देखा, तो दोपहर के एक बजने को था. शालिनी रिकशा पकड़ कर खन्ना के दफ्तर पहुंचना चाहती थी. शहर के चौराहे पर रिकशे के इंतजार में थी कि तभी थानेदार जालिम सिंह ने उस के सामने गाड़ी रोक दी. थानेदार जालिम सिंह को देख शालिनी ने निगाहें घुमा लीं, मानो उस ने पुलिस की गाड़ी को देखा ही न हो. वह जालिम सिंह को अच्छी तरह जानती थी. अपने नाम जैसा ही उस का बरताव था. रात में मजे लूटने को तो बुला लेगा, पर सुबह जाते समय 50 रुपए का नोट तक नहीं निकालता. उलटा दारू भी पल्ले से पिलानी पड़ती है. बेवजह अपना जिस्म कौन तुड़वाए. शालिनी वहां से आगे जाने लगी, तो जालिम सिंह ने रुकने को कहा.

शालिनी ने बहाना बनाया, ‘‘आज तबीयत ठीक नहीं है. रातभर बुखार से तपती रही हूं. किसी डाक्टर के पास दवा लेने जा रही हूं. अच्छा हुआ कि आप मिल गए. एक हजार रुपए चाहिए मुझे. अगर आप…’’ जालिम सिंह ने शालिनी की बाजू पकड़ी और उस के चेहरे को गौर से देखते हुए बड़ी बेशर्मी से गुर्राया, ‘‘हम पुलिस वालों को बेवकूफ बना रही है. रातभर मजे लूटे हैं. गाल पर दांत गड़े नजर आ रहे हैं. हमें बता रही है कि बीमार है. तुझे शहर में धंधा करना है या भागना है?’’

‘‘ठीक ही तो कह रही हूं. कभी 10-20 रुपए तो हम मजदूरों पर तुम खर्च नहीं करते,’’ शालिनी बोली. ‘‘तुझे धंधा करने की इजाजत दे दखी है, वरना हवालात में तड़पती नजर आएगी. आज हमारे लिए भी मजे लूटने वाला काम कर. पूरे 5 सौ रुपए दूंगा, लेकिन काम पूरा होने पर,’’ जालिम सिंह ने अपना इरादा जाहिर किया.

शालिनी समझ गई कि यह कमबख्त कोई खतरनाक साजिश रचने वाला है, तभी तो 5 सौ रुपए खर्च करने को कह रहा है, वरना 10 रुपए जेब से खर्च नहीं करता. शालिनी ने सोचा कि काम के बदले मोटी रकम की मांग करे. शायद मुरगा फंस जाए. मौका हाथ आया था.

शालिनी के पूछने पर थानेदार जालिम सिंह ने कहा, ‘‘तुम को एक प्रैस फोटोग्राफर अर्जुन की अक्ल ठिकाने लगानी है. उसे अपनी कातिल अदाओं का दीवाना बना कर अपने कमरे पर बुला लेना. नशा वगैरह पिला कर तुम वीडियो फिल्म बना कर उस की प्रैस पत्रकारिता पर फुल स्टौप लगाना है.’’ ‘‘अर्जुन ने ऐसा क्या कर दिया, जो आप इतना भाव खा रहे हैं?’’ शालिनी ने शरारत भरी अदा से जालिम सिंह की आंखों में झांकते हुए पूछा.

शालिनी के चाहने वाले बताया करते हैं कि उस की बिल्लौरी आंखों में जाद है. जिसे भी गहरी नजरों से देखती है, चारों खाने चित हो जाता है. जालिम सिंह भी उस के असर में आ गया था. ‘‘अरे, रात को अग्रसेन चौक पर नाका लगा रख था. 2 नंबर वाली गाडि़यों से थोड़ा मालपानी बना रहे थे. बस, पता नहीं अर्जुन को कैसे भनक लग गई. उस ने हमारी वीडियो फिल्म बना ली. कहता है कि पहले मुख्यमंत्री को दिखाऊंगा, फिर टैलीविजन चैनल पर और अखबार में खबर देगा. हमें सस्पैंड कराने का उस ने पूरा इंतजाम कर रखा है. एक बार उसे नंगा करो, फिर मैं उसे कहीं का नहीं छोड़ूंगा.’’

‘‘पहले तो तुम मुझे अपनी गाड़ी में बैठा कर खन्ना के दफ्तर ले चलो. कुछ हिसाब करना है. उस के बाद तुम्हारे काम को करूंगी. अभी मेरा दिमाग काम नहीं कर रहा,’’ शालिनी ने मोबाइल फोन पर समय देखते हुए अपनी बात कही. ‘‘इधर अपना समय खराब चल रहा है और तेरे भाव ऊपर आ गए हैं. आ, बैठ गाड़ी में,’’ झुंझलाते हुए जालिम सिंह बोला.

वह शालिनी को खन्ना के दफ्तर ले गया. वहां से उस ने रुपए लिए. अब वे दोनों कमानी चौक पर आ गए. ‘‘तुम अर्जुन को जानती हो न?’’ जालिम सिंह ने पूछा.

‘‘हांहां, वही प्रैस फोटोग्राफर, जिस ने पिछले महीने पुलिस चौकी में हुए बलात्कार की वीडियो फिल्मी चैनल पर दिखा कर तहलका मचा दिया था,’’ शालिनी ने मुसकराते हुए उस के कारनामे का बखान किया, तो जालिम सिंह भद्दी सी गाली बकते हुए गुर्राया, ‘‘तू पहले उसे अपने जाल में फंसा, फिर तो उस की जिंदगी जेल में कटेगी.’’ ‘‘इस काम के मैं पूरे 50 हजार रुपए लूंगी और 10 हजार रुपए एडवांस,’’ शालिनी ने अपनी मांग रखी, तो जालिम सिंह उछल पड़ा, ‘‘अरे, कुछ तो लिहाज कर. तू हमें जानती नहीं?’’

‘‘लिहाज कर के ही तो 50 हजार रुपए मांगे हैं. इस काम का मेहनताना तो एक लाख रुपए है,’’ शालिनी भी बेशर्मी से सौदेबाजी पर उतर आई. ‘‘मजाक मत कर शालिनी. यह काम 5 हजार रुपए का है. ये संभाल एक हजार रुपए.’’

‘‘10 हजार पहले लूंगी, 40 बाद में. नकद. वरना तुम्हारी सारी मेहनत पर पानी फेर दूंगी. अगर रुपए नहीं दोगे, तो मैं अर्जुन को तुम्हारी साजिश के बारे में बता सकती हूं,’’ शालिनी ने शातिराना अंदाज में थानेदार जालिम सिंह को खौफजदा कर दिया. थानेदार ने 10 हजार रुपए शालिनी को दिए और चेतावनी भी दी कि अगर उस का काम नहीं हुआ, तो उस की फिल्म खत्म हुई समझे.

इस के बाद थानेदार जालिम सिंह शालिनी को गाड़ी से उतार कर चलता बना. शालिनी अपने पर्स में पूरे 25 हजार रुपए संभाले हुए थी. उस के 15 साल के बेटे ने मोटरसाइकिल लेने की जिद पकड़ रखी थी 2-4 दिन में वह बेटे को मोटरसाइकिल ले कर देगी. शालिनी गांव की रहने वाली थी, लेकिन उस का रहनसहन, पहनावा वगैरह रईस अमीर औरतों जैसा था. उस की शादी गांव के मजदूर आदमी से हुई थी. पति उसे जरा भी पसंद नहीं था. उस की बेरुखी के चलते पति मेहनतमजदूरी कर के जो कमाता, उस रुपए की शराब पी जाता था. शालिनी देहधंधा कर के अमीर बनना चाहती थी. बेटा आवारा हो गया था. स्कूल नहीं जाता था. सारासारा दिन आवारा लड़कों के साथ नशा करता रहता था. वह छोटेमोटे अपराध भी करने लगा था.

बाप शराबी और मां बदचलन हो, तो बेटे का भविष्य इस से बढ़ कर क्या हो सकता है? शालिनी अपने बिगड़ते परिवार से बेखबर पराए मर्दों की रातें रंगीन कर रही थी. अभी शालिनी का कमरा 4 किलोमीटर दूर था. सामने पेड़ की छांव में एक रिकशे वाला सीट पर बैठा रुपए गिन रहा था. उस के हाथों में नोट देख कर शालिनी की आंखों में चमक आ गई. शालिनी ने अपने पहने कसे ब्लाउज का ऊपर वाला हुक खोला और उस के सामने आ कर खड़ी हुई.

रिकशे वाला भी शालिनी की उम्र का था. उस की कामुक निगाहें भी उस के उभारों पर ठहर गईं. उस का दिल धड़क रहा था. अपने रुपए पर्स में रखे और पर्स को पतलून की पीछे वाली जेब में लापरवाही से ठूंस दिया. उस ने शालिनी को रोमांटिक नजरों से देखते हुए पूछा, ‘‘मैडम, आप को कहां चलना है?’’ ‘‘मोती चौक चलना है. कितने रुपए लोगे?’’

‘‘जो मरजी दे देना. मुझे भी उसी तरफ जाना है. मेरा कमरा भी उसी तरफ है. अकेला रहता हूं,’’ रिकशे वाले ने जवाब दिया, तो शालिनी समझ गई कि वह उस पर मरमिटा है. वह रिकशे पर बैठ गई और रिकशे वाले से मीठीमीठी बातें करने लगी. तभी उस ने देखा, रिकशे वाले की पतलून के पीछे वाली जेब से पर्स बाहर खिसका हुआ था. उसे बातों में उलझा कर शालिनी ने पर्स खिसका लिया.

मोती चौक आ गया था. शालिनी अपने कमरे से पहले ही चौराहे पर उतर गई. उस ने रिकशे वाले को किराया देना चाहा, मगर रिकशे वाले ने तो उस के मनचले उभारों को देखते हुए पैसे लेने से इनकार कर दिया. शालिनी चोर भी थी. वह तो पलक झपकते ही कालोनी की गलियों में गुम हो गई. शालिनी आज बहुत खुश थी. उस की अच्छीखासी कमाई हो गई थी. कमरा खोला. निढाल सी चारपाई पर लेट गई. पूरी रात और दिनभर की थकी हुई थी. कुछ देर बाद वह कपड़े उतार कर पहले अच्छी तरह नहाई. भूख लगी थी. खाना बनाने की हिम्मत नहीं थी. होटल से खाना पैक करा लाई और खा कर सो गई. इतनी गहरी नींद आई कि रात कैसे गुजरी, कुछ पता न चला.

शालिनी सुबह उठी, तो चायनाश्ता करते हुए उस ने रिकशे वाले का चुराया पर्स खोला. उस में छोटेबड़े नोटों की मोटी गड्डी थी. गिनने पर पूरे 4 हजार रुपए निकले. उस का मन खुश हो गया. उन रुपयों के साथ एक चिट्ठी भी थी, जो रिकशे वाले की घरवाली ने उसे लिखी थी. उस में लिखा था कि उस का बेटा बहुत बीमार है. अस्पताल में दाखिल कराया है. जितनी जल्दी हो सके, 10 हजार रुपए ले कर फौरन गांव आ जाओ. बेटे का इलाज रुक गया है. डाक्टर का कहना है कि अगर बच्चे की जिंदगी बचानी है, तो फौरन इलाज कराओ. जो 1-2 गहने थे, वे सब बेटे के इलाज की भेंट चढ़ गए हैं. जितना जल्दी हो सके, पैसे ले कर आ जाओ.

चिट्ठी पढ़ कर शालिनी को धक्का सा लगा. उस ने यह क्या किया? लालच में आ कर उस ने एक मजदूर आदमी की जेब काट कर उस के मासूम बेटे की जिंदगी को मौत के दलदल में धकेल दिया. पता नहीं, उस के बेटे का क्या हाल होगा? वह अपने बेटे को मोटरसाइकिल ले कर देने के लिए उलटेसीधे तरीके से पैसा इकट्ठा कर रही है, यह पाप की कमाई न जाने कैसा असर दिखाएगी? शालिनी ने रिकशे वाले को तलाश कर उस के रुपए वापस देने का मन बना लिया. वह यहां तक सोच रही थी कि उस गरीब को 10 हजार रुपए देगी, ताकि उस के बेटे का इलाज हो सके.

शालिनी सारा दिन पागलों की तरह रिकशे वाले को ढूंढ़ती रही, मगर वह नहीं मिला. जैसे कि वह रिकशे वाला शहर से गायब हो गया था. थानेदार जालिम सिंह का कितनी बार फोन आ चुका था. वह बारबार धमकी दे रहा था कि उस का काम कर, नहीं तो उसे टपका दिया जाएगा. मगर शालिनी ने थानेदार जालिम सिंह की धमकी को ठोकर पर रखा. वह जानती थी कि जालिम सिंह उस का कुछ नहीं बिगाड़ सकता, उलटा प्रैस फोटोग्राफर को बलात्कार के अपराध में फंसाने की सुपारी देने का मामला बनवा देगी.

2 दिन से शालिनी ने अपना धंधापानी भी बंद कर रखा था. उस के कितने चाहने वालों के फोन आ चुके थे. उस ने सब को न में जवाब दे दिया था. उस ने तीसरे दिन भी रिकशे वाले को तलाश करने की मुहिम जारी रखी. उस दिन उस ने अखबार में खबर पढ़ी कि थानेदार जालिम सिंह को 2 नंबर का सामान लाने वाली गाडि़यों से वसूली करने के आरोप में सस्पैंड कर दिया गया. अखबार में पत्रकार अर्जुन की खोजी पत्रकारिता की तारीफ हो रही थी.

अभी शालिनी अखबार में छपी यह खबर पढ़ ही रही थी कि तभी उस की नजर सड़क पर आते हुए उसी रिकशे वाले पर पड़ी. वह लपक कर आगे बढ़ी और उस का रिकशा रुकवा कर बोली, ‘‘अरे रिकशे वाले, मुझे माफ करना. मैं ने 3 दिन पहले तेरा पर्स चुराया था. उस में तेरे 4 हजार रुपए थे. अपनी गलती मानते हुए मैं तुम्हें 10 हजार रुपए वापस दे रही हूं. फौरन जाओ और अपने बेटे का इलाज कराओ.’’ रिकशा वाला खामोशी से उस की तरफ देखता रहा. जबान से कुछ नहीं बोला. शायद उस की आंखों से बहते आंसुओं ने समूची कहानी बता दी थी. मगर शालिनी अभी तक सचाई समझ न पाई. पर वह उस की खामोशी से सहम गई थी.

‘‘देखो भैया, पुलिस में शिकायत मत करना. तुम्हारे रुपए मैं ज्यादा कर के दे रही हूं. अपने बेटे का किसी बड़े अस्पताल में इलाज कराना,’’ शालिनी ने 10 हजार रुपए उस के सामने कर दिए. ‘‘अब रुपए ले कर क्या करूंगा मैडम. मेरा बेटा तो इलाज की कमी में मर गया. उस के गम में पत्नी भी चल बसी. अब तुम इतनी मेहरबानी करो कि किसी गरीब की जेब मत काटना, वरना किसी का मासूम बेटा फिर मरेगा,’’ भर्राई आवाज में रिकशे वाले ने कहा और रुपए लिए बिना ही आगे बढ़ गया.

अब शालिनी को अपनी बुरी आदतों पर भारी पछतावा हो रहा था.

Funny Story 2025 : एक राजनीतिज्ञ बंदर से मुलाकात

Funny Story 2025 : मेरा एक प्रेरणास्रोत है. आप कहेंगे- सभी के अपने-अपने प्रेरणास्रोत होते हैं, इसमें नयी बात क्या है? आपकी बात सही है, मगर सुनिए तो, मेरा प्रेरणास्रोत एक ईमानदार बंदर है …मर्कट है.

पड़ गए न आश्चर्य में ? दोस्तों !  अब मनुष्य, मानव , महामानव कहां रहे, कहिए क्या मैं गलत कहता हूं.अब तो प्रेरणा लेने का समय उल्लू, मच्छर, चूहे, श्वान इत्यादि से लेने का आ गया है.

जी हां! मेरी बात बड़ी गंभीर है. मैं ईमानदारी से कहना चाहता हूं कि पशु- पक्षी हमारे बेहतरीन प्रेरणास्रोत हो सकते हैं. और इसमे ईमानदारी का पुट हो जाए तो फिर बात ही क्या ?

तो, आइये आपको अपने प्रेरणास्रोत ईमानदार बंदर जी से मुलाकात करवाऊं…। आइये, मेरे साथ हमारे शहर के अशोक वाटिका में, जहां बंदर जी एक वृक्ष पर बैठे हुए हैं .

दोस्तों..!यह आम का वृक्ष है. देखिए ! ऊपर एक डाल पर, दूर कहीं, एक बंदर बैठा है. मगर बंदर तो बहुतेरे बैठे हैं. पेड़ पर चंहु और बंदर ही बंदर बैठे हैं. देखो ! निराश न हो…। देखो दूर एक मोटा तगड़ा नाटे कद का बंदर बैठा है न ! मैं अभी उसे बुलाता हूं . -“नेताजी…! नेताजी !!”मैंने जोर की आवाज दी .

वृक्ष की ऊंची डाल पर आम्रकुंज में पके आम खाता और नीचे फेंकता एक बंदर मुस्कुराता नीचे उतर आया- “अरे आप हैं, बहुत दिनों बाद दिखे, कहां थे . उसने मुझे आत्मीयता से गले लगाते हुए कहा.

‘ नेताजी .’ मैंने उदिग्नता से कहा- ‘मैं आप से बड़ा प्रेरणास्रोत ढूंढ रहा था .मगर नहीं मिला. अंततः एक दिन आपके बारे में मित्रों को बताया, तो सभी आपसे मिलने को उत्सुक हुए, देखिए इन्हें भी ले आया हूं .’

बंदर के चेहरे पर मुस्कुराहट घनी हो उठी-” मैं नाचीज क्या हूं. यह तो आप की महानता है जो मुझसे इंप्रेस बारंबार होते हो, मैं तो अपने स्वभाव के अनुरूप इस डाल से उस डाल, इस पेड़ से उस पेड़, उछलता गीत गाता रहता हूं भई..!हमारी इतनी प्रशंसा कर जाते हो कि मैं शर्म से पानी-पानी हो जाता हूं .’ बंदर ने सहज भाव से अपना पक्ष रखा .

-“यही तो गुण हैं जो हमें प्रेरित करता है .सच, ईमान से कहता हूं मैं आज जिस मुकाम पर हूं, वह नेता जी आपकी कृपा दृष्टि अर्थात प्रेरणा का प्रताप है .”

बंदर जी मुस्कुराए- “आप मुझे नेताजी ! क्यों कहते हैं.”

‘ देखिए ! यह सम्मानसूचक संबोधन है.हम आप में नेतृत्व का गुण धर्म देखते हैं और इसके पीछे कोई गलत भावना नहीं है.’ मैंने दीर्घ नि:श्वास लेकर कहा-

‘ अच्छा आपके तो बहुतेरे संगी साथी हो गए हैं .नए नए चेहरे, पुराने नहीं दिख रहे हैं’

‘ मैं आपकी तरह मुड़कर नहीं देखता.’ मैंने हंस कर कहा

‘अच्छा इनका परिचय.’ बंदर जी बोले

‘ ओह माफ करिए नेताजी! ये हैं हमारे पूज्यनीय, महाराज राजेंद्र भैय्या अभी हमारी पार्टी के अध्यक्ष हैं और यह हैं भैय्या लखनानंद शहर के पूर्व मेयर. और और पीछे खड़ी है हमारी बहन उमा देवी .आप पार्टी की महिला विंग की अध्यक्ष है, बाकी कार्यकर्ता हैं जिनका परिचय मैंने चिरपरिचित शैली में हंसते-हंसते कहा.

‘ मगर आपने यह तो बताया नहीं अभी किस पार्टी में है ।’ बंदर जी ने सकुचाते आंखों को गोल घुमाते हुए पूछा ।

‘ अरे मैं यह तो बताना भूल ही गया । क्षमा… नेताजी… क्षमा! मैं इन दिनों भगवाधारी पार्टी का वरिष्ठ नेता हूं .’

‘अरे वाह ! क्या गजब ढातें हो… क्या सचमुच  में ।’

‘ जी हां नेताजी, आपसे क्या छुपाना . ‘

-‘क्या बात है… अभी प्रदेश में भगवा पार्टी ही सत्तासीन है न ? बंदर जी ने कहा ।

‘ ‘हां नेताजी, उन्हीं की सरकार है . ‘ मैंने सकुचाकर कहा

‘ वाह ! तुम सचमुच मुझसे इंप्रेस हो यह मैं आज मान गया । समय की नजाकत को ताड़ना और निर्णय लेना कोई छोटी मोटी बात नहीं. मनुष्य का भविष्य इसी पर निर्भर करता है. छोटी सी भूल और जीवन अंधकारमय.’ बंदर जी ने उत्साहित भाव से ज्ञान प्रदर्शित किया.

‘ नेताजी ! आपने पीठ ठोंकी है तो मैं आश्वस्त हुआ कि मैंने सही निर्णय लिया है ।’ मैंने साहस कर कहा.

‘ मगर सतर्क भी रहना, ऐसा नहीं की इसी में रम गये ।’

‘अजी नहीं. मैं स्थिति को सूंघने की क्षमता भी रखता हूं. जैसे ही मुझे अहसास होगा पार्टी का समय अंधकारमय है मैं कुद कर दूसरी पार्टी ज्वाइन कर लूंगा .’

‘ ठीक मेरी तरह .’बंदर जी ने हंसकर कहा और उछलकर वृक्ष की एक मजबूत फलदार डाल पर बैठ गया और मीठा आम तोड़ खाने लगा.

‘ लेकिन नेताजी ! मैं कब तक पार्टियां बदलता रहूंगा. कभी आयाराम कभी गयाराम कभी …. आखिर कब तक…।’

बंदर ने पेड़ से मीठे फल तोड़कर मेरी और उछाले मैंने कैच कर दोस्तों को बांटे और स्वयं भी रस लेकर खाने लगा मेरे प्रेरणा पुरुष बंदर जी… ओह नेता जी के श्रीमुख से स्वर गूंजा- ‘जब तक कुर्सी न मिले तब तक.’ मैं मित्रों सहित बंदर को नमन कर लौट पड़ा.

Romantic Story 2025 : क्या एक हो पाए विजय और निम्मो?

Romantic Story 2025 : नैशनल हाईवे की उस सुनसान सड़क पर ट्रक ड्राइवर ने जब विजय को उस के गांव से 8 किलोमीटर पहले उतारा, तो विजय को इस बात की तसल्ली थी कि गांव न सही, लेकिन गांव के करीब तो पहुंच ही गया. लेकिन इस बात का मलाल भी था कि जहां किराएभाड़े के तौर पर पहले 400-500 रुपए लगा करते थे, वहीं आज उसे 4,000 रुपए देने पर भी अपने गांव पहुंचने के लिए 8 किलोमीटर पैदल चल कर जाना पड़ेगा.

अब विजय सुनसान दोपहर में गरम हवाओं के थपेड़े सहता हुआ नैशनल हाईवे से तेजी से अपने गांव की तरफ बढ़ रहा था. चारों तरफ सन्नाटा पसरा था. सामान के नाम पर साथ में बस एक बैग था, जिसे अपने कंधे पर लटकाए पसीने से तरबतर वह लगातार चल रहा था.

अभी गांव कुछ ही दूरी पर था कि एक ठंडी हवा के झोंके से उस का धूप से झुलस कर मुरझाया चेहरा खिल उठा.

गांव से पहले पड़ने वाले अपने खेत में लहलहाती फसल देख कर विजय के तेजी से चल रहे कदमों ने दौड़ना शुरू कर दिया. वह दौड़ते हुए ही अपने खेत में दाखिल हुआ और वहां काम कर रहे अपने बाबा से लिपट गया.

‘‘अरे, देखो तो कौन आया है…’’  विजय के बाबा ने खेत में बनी झोंपड़ी में काम कर रही उस की मां को आवाज लगाई.

‘‘अरे विजय बेटा, कैसा है तू? और यह क्या हालत बना ली… देख, कितना दुबलापतला हो गया है,’’ कहते हुए विजय की मां झोंपड़ी से भाग कर के पास आई.

‘‘इतने दिनों के बाद देखा है न मां, इसीलिए ऐसा लग रहा है तुम्हें. और वैसे भी अब तो गांव में तुम्हारे हाथों का ही बना खाना मिलेगा, खिलापिला कर कर मुझे कर देना मोटाताजा,’’ कहते हुए विजय ने मां को गले से लगा लिया.

‘‘धूप में चल कर आया है, देख कितना गरम हो गया है. यहां ज्यादा मत रुक, घर जा कर आराम कर ले… और हां, निम्मो को भी लेता जा साथ में, वह तुझे खाना बना कर खिला देगी.’’

‘‘निम्मो.. निम्मो यहां क्या कर रही है?’’ विजय ने चौंकते हुए पूछा.

‘‘अरे, तुझे तो मालूम है कि निम्मो के मांबाबा हमारे गांव में बाहर से आ कर बसे हैं. उन का खुद का खेत तो है नहीं, इसलिए वे लोग काम करने किसी दूसरे के खेत में जाते हैं. निम्मो उन के साथ नहीं जाती.

‘‘निम्मो का भाई अपने मामा के यहां बिजली का काम सीखने शहर चला गया. यह बेचारी घर में बैठी बोर हो जाती है…’’

मां ने आगे कहा, ‘‘एक दिन मैं और तेरे बाबा खेत के लिए निकल रहे थे तो यह मुझ से बोली, ‘काकी, आते वक्त अपने खेत से बेर लेती आना, मुझे बेरी के बेर बहुत भाते हैं…’

‘‘तो मैं बोली, ‘खुद ही आ कर तोड़ ले और जितने मरजी ले जा…’

‘‘तब से जब भी मन करता है, यह हमारे खेत चली आती है,’’ कह कर मां ने निम्मो को आवाज लगाई.

बेर की गुठली थूकते हुए जैसे ही निम्मो झोंपड़ी से बाहर आई, विजय हैरान रह गया. गांव के सरकारी स्कूल में उसी की क्लास में पढ़ने वाली निम्मो अब काफी बदल चुकी थी. पहले तो न कपड़ों का कोई अतापता था, न बालों की कोई सुधबुध होती थी.

लेकिन आज निम्मो की खूबसूरती देख कर विजय को यकीन नहीं हुआ. खुले बाल, गोरा रंग, भरापूरा बदन और बिना किसी मेकअप के चेहरे पर लाली दमक रही थी.

विजय भी यह सोच कर हैरान था कि इतने कम समय में इतना बदलाव कैसे आ सकता है. हालांकि पिछले 3 सालों में वह 2 बार गांव आया था, लेकिन दोनों बार ही निम्मो अपने मामा के यहां गई हुई थी.

‘‘हां काकी…’’ पास आ कर निम्मो विजय की मां से बोली.

‘‘तू विजय के साथ घर जा और इसे खाना बना कर खिला देना, फिर भले ही अपने घर चली जाना. हम लोग भी थोड़ा जल्दी आने की कोशिश करेंगे,’’ मां ने निम्मो से कहा, तो निम्मो ने हां में सिर हिलाया और इकट्ठा किए हुए बेरों से भरी अपनी थैली लेने झोंपड़ी की ओर चली गई.

जब वह वापस आई तो विजय की ओर देख कर बोली, ‘‘चलिए.’’

मांबाबा को जल्दी घर आने की कह कर विजय निम्मो के साथ घर के लिए निकल पड़ा.

रास्ते में निम्मो बेर निकाल कर विजय की तरफ बढ़ाते हुए बोली, ‘‘ये लो बेर खाओ, रास्ते में अच्छा टाइमपास हो जाएगा.’’

विजय ने उस के हाथों से बेर ले लिए और चलते हुए उस की नजरों से बच कर उसे देखने लगा.

निम्मो थैली से बेर निकालती और उसे तब तक चूसती, जब तक उस का सारा रस न निकल जाता और फिर फीका पड़ने पर थूक देती.

विजय भी निम्मो के अंदाज में बेर खाते हुए उस के साथ चल रहा था. चलते वक्त निम्मो के सीने पर होने वाली हलचल बारबार उस का ध्यान खींच रही थी.

निम्मो की जब इस पर नजर पड़ी तो उस ने दुपट्टे से ढक लिया. लेकिन दुपट्टा भी विजय की नीयत की तरह बारबार फिसल रहा था.

‘‘लौकडाउन हुआ तो गांव की याद आ गई, वरना तुम्हारे तो दर्शन ही दुर्लभ थे,’’ बेर की गुठली थूकते हुए निम्मो बोली.

‘‘इस से पहले भी 2 बार आया था, लेकिन तू नहीं मिली. काकी से पूछा तो बोली मामा के यहां गई हुई है,’’ विजय ने भी शिकायती लहजे में कहा.

‘‘और जिस दिन मैं आई तो काकी बोली कि विजय आज सुबह ही शहर के लिए निकला है. मतलब, इस थोड़े से फासले की वजह से तुम्हारे दर्शन नहीं हो पाए,’’ निम्मो ने मुसकराते हुए कहा.

‘‘हां, ऐसा ही समझो,’’ विजय ने कहा.

पूरे रास्ते निम्मो तीखे सवाल करती तो विजय उन का मीठा सा जवाब दे देता और विजय कोई मीठा सवाल करता तो निम्मो उस का खट्टामीठा जवाब दे देती.

बातों का यही स्वाद चलतेचलते एकदूसरे के दिलों में झांकने का जरीया बना और इसी की बदौलत दोनों एकदूसरे के दिल का हाल जान पाए.

बेरों से भरी थैली भी तकरीबन आधी हो चुकी थी और अब घर भी आ गया था.

घर पहुंच कर विजय नहाने चला गया और निम्मो रसोई में खाने की तैयारी करने लगी.

विजय नहाधो कर आया, तब तक खाना भी तैयार था. निम्मो ने उसे खाना खिलाया, फिर विजय ने उसे चाय बनाने को कह दिया और खुद कमरे में अपना बैग खोल कर उस में नीचे दबा कर लाए हुए कुछ रुपए अलमारी में रख कर निढाल हो कर बिस्तर पर गिर पड़ा. थकावट की वजह से कब उस की आंख लग गई और उसे पता ही नहीं चला.

निम्मो जब तक चाय ले कर आई, तब तक विजय को नींद आ चुकी थी. निम्मो ने उसे उठाना मुनासिब नहीं समझा और वापस रसोई की ओर मुड़ी. तभी उस की नजर विजय के बैग के पास बिखरे सामान पर पड़ी तो वह हैरान रह गई. उस के सामान के साथ कुछ गरमागरम पत्रिकाएं भी पड़ी थीं.

यह देख एक बार तो निम्मो को बहुत गुस्सा आया, लेकिन बाद में उस ने धीरे से चाय की ट्रे नीचे रखी और उन पत्रिकाओं को उठा कर देखने लगी.

उस ने बैग के अंदर हाथ डाला तो

2-4 पत्रिकाएं और निकलीं, जो कुछ हिंदी में तो कुछ इंगलिश में थीं.

निम्मो ने एक के बाद एक उन के पन्ने पलटने शुरू किए. हर पलटते पन्ने के साथ उस के सांसों की रफ्तार भी बढ़ने लगी. सांसों में गरमाहट महसूस करते

हुए वह कभी बिस्तर पर लेटे विजय की ओर देखती, तो कभी मैगजीन में छपी बोल्ड तसवीरें.

कुछ तसवीरें देख कर तो वह ऐसे ठहर जाती मानो यह सब उसी के साथ हो रहा हो, जबकि कुछ तसवीरों ने तो उस के दिलोदिमाग में घर कर लिया था.

तभी अचानक विजय ने करवट बदली तो वह सहम गई, जिस से उस के हाथ से मैगजीन छूट कर चाय की ट्रे पर जा गिरी.

इस आवाज से विजय की आंख खुली और निम्मो के हाथ में मैगजीन देख वह चौंक कर खड़ा हो गया.

एक बार तो निम्मो भी शर्म से पानीपानी हो गई थी. विजय अपनी सफाई में कुछ कहता, उस से पहले निम्मो ने आगे बढ़ कर उसे अपनी बांहों में भर लिया.

‘‘कमबख्त शहर में यही सब करते हो क्या तुम?’’ निम्मो ने पूछा.

खुद को निम्मो की बांहों में पा कर विजय हैरान तो था, साथ ही वह उस की मंशा जान चुका था.

विजय ने अपनी सफाई में कहा, ‘‘ये सब मेरी नहीं हैं, उस ट्रक ड्राइवर की हैं, जिस ने मुझे सड़क तक छोड़ा था. ट्रक में रखी इन पत्रिकाओं को देख कर मैं ने लौकडाउन में टाइमपास के लिए पढ़ने के लिए मांगी तो उस ने दे दीं.’’

‘‘जरा भी शर्म है तुम में? मेरे होते हुए इन से टाइमपास करोगे तुम? पता है, कितनी तरसी हूं मैं तुम्हारे लिए… हर दूसरे दिन काकी से तुम्हारे बारे में पूछती रहती थी. यह तो अच्छा हुआ कि मुझे मांबाबा ने फोन नहीं दिलाया वरना मैं फोन कर के रोज तुम्हें परेशान करती,’’ विजय को अपनी बांहों में जकड़ते हुए निम्मो ने कहा, तो विजय ने उसे बिस्तर पर धकेल दिया.

निम्मो के अंगों को प्यार से सहलाते हुए विजय ने कहा, ‘‘मैं भी तुझे बहुत चाहता हूं पगली, पर अब तक यह सोच कर चुप रहा कि न जाने तेरे मन में क्या होगा.’’

‘‘अब तो पता चल गया न कि मेरे मन में क्या है?’’ निम्मो ने पूछा, तो विजय पागलों की तरह उसे चूमने लगा और इस प्यार की सारी हदें पार करने के बाद विजय के साथ चादर में लिपटी निम्मो बोली, ‘‘विजय… आज तुम्हारा प्यार पा कर निम्मो विजयी हुई.’’

विजय ने निम्मो के माथे को चूमते हुए फिर से उसे अपनी बांहों में भर लिया.

लेखक – पुखराज सोलंकी

Family Story 2025 : बदलते रिश्ते

Family Story 2025 : मेरे बचपन का दोस्त रमेश काफी परेशान और उत्तेजित हालत में मुझ से मिलने मेरी दुकान पर आया और अपनी बात कहने के लिए मुझे दुकान से बाहर ले गया. वह नहीं चाहता था कि उस के मुंह से निकला एक शब्द भी कोई दूसरा सुने.

‘‘मैं अच्छी खबर नहीं लाया हूं पर तेरा दोस्त होने के नाते चुप भी नहीं रह सकता,’’ रमेश बेचैनी के साथ बोला.

‘‘खबर क्या है?’’ मेरे भी दिल की धड़कनें बढ़ने लगीं.

‘‘वंदना भाभी को मैं ने आज शाम नेहरू पार्क में एक आदमी के साथ घूमते देखा है. वह दोनों 1 घंटे से ज्यादा समय तक साथसाथ थे.’’

‘‘इस में परेशान होने वाली क्या बात है?’’ मेरे मन की चिंता काफी कम हो गई पर बेचैनी कायम रही.

‘‘संजीव, मैं ने जो देखा है उसे सुन कर तू गुस्सा बिलकुल मत करना. देख, हम दोनों शांत मन से इस समस्या का हल जरूर निकाल लेंगे. मैं तेरे साथ हूं, मेरे यार,’’ रमेश ने भावुक हो कर मुझे अपनी छाती से लगा लिया.

‘‘तू ने जो देखा है, वह मुझे बता,’’ उस की भावुकता देख मैं, मुसकराना चाहा पर गंभीर बना रहा.

‘‘यार, उस आदमी की नीयत ठीक नहीं है. वह वंदना भाभी पर डोरे डाल रहा है.’’

‘‘ऐसा तू किस आधार पर कह रहा है?’’

‘‘अरे, वह भाभी का हाथ पकड़ कर घूम रहा था. उस के हंसनेबोलने का ढंग अश्लील था…वे दोनों पार्क में प्रेमीप्रेमिका की तरह घूम रहे थे…वह भाभी के साथ चिपका ही जा रहा था.’’

जो व्यक्ति वंदना के साथ पार्क में था, उस के रंगरूप का ब्यौरा मैं खुद रमेश को दे सकता था पर यह काम मैं ने उसे करने दिया.

‘‘क्या तू उस आदमी को पहचानता है?’’ रमेश ने चिंतित लहजे में प्रश्न किया.

मैं ने इनकार में सिर दाएंबाएं हिला कर झूठा जवाब दिया.

‘‘अब क्या करेगा तू?’’

‘‘तू ही सलाह दे,’’ उस की देखादेखी मैं भी उलझन का शिकार बन गया.

‘‘देख संजीव, भाभी के साथ गुस्सा व लड़ाईझगड़ा मत करना. आज घर जा कर उन से पूछताछ कर पहले देख कि वह उस के साथ नेहरू पार्क में होने की बात स्वीकार भी करती हैं या नहीं. अगर दाल में काला होगा… उन के मन में खोट होगा तो वह झूठ का सहारा लेंगी.’’

‘‘अगर उस ने झूठ बोला तो क्या करूं?’’

‘‘कुछ मत करना. इस मामले पर सोचविचार कर के ही कोई कदम उठाएंगे.’’

‘‘ठीक है, पूछताछ के बाद मैं बताता हूं तुझे कि वंदना ने क्या सफाई दी है.’’

‘‘मैं कल मिलता हूं तुझ से.’’

‘‘कल दुकान की छुट्टी है रमेश, परसों आना मेरे पास.’’

रमेश मुझे सांत्वना दे कर चला गया. घर लौटने तक मैं रहरह कर धीरज और वंदना के बारे में विचार करता रहा.

हमारी शादी को 5 साल बीत चुके हैं. वंदना उस समय भी उसी आफिस में काम करती थी जिस में आज कर रही है. धीरज वहां उस का वरिष्ठ सहयोगी था. शादी के बाद जब भी वह आफिस की बातें सुनाती, धीरज का नाम वार्तालाप में अकसर आता रहता.

वंदना मेरे संयुक्त परिवार में बड़ी बहू बन कर आई थी. आफिस जाने वाली बहू से हम दबेंगे नहीं, इस सोच के चलते मेरे मातापिता की उस से शुरू से ही नहीं बनी. उन की देखादेखी मेरा छोटा भाई सौरभ व बहन सविता भी वंदना के खिलाफ हो गए.

सौरभ की शादी डेढ़ साल पहले हुई. उस की पत्नी अर्चना, वंदना से कहीं ज्यादा चुस्त व व्यवहारकुशल थी. वह जल्दी ही सब की चहेती बन गई. वंदना और भी ज्यादा अलगथलग पड़ गई. इस के साथ सब का क्लेश व झगड़ा बढ़ता गया.

अर्चना के आने के बाद वंदना बहुत परेशान रहने लगी. मेरे सामने खूब रोती या मुझ से झगड़ पड़ती.

‘‘आप की पीठ पीछे मेरे साथ बहुत ज्यादा दुर्व्यवहार होता है. मैं इस घर में नहीं रहना चाहती हूं,’’ वंदना ने जब अलग होने की जिद पकड़ी तो मैं बहुत परेशान हो गया.

मुझे वंदना के साथ गुजारने को ज्यादा समय नहीं मिलता था. उस की छुट्टी रविवार को होती और दुकान के बंद होने का दिन सोमवार था. मुझे रात को घर लौटतेलौटते 9 बजे से ज्यादा का समय हो जाता. थका होने के कारण मैं उस की बातें ज्यादा ध्यान से नहीं सुन पाता. इन सब कारणों से हमारे आपसी संबंधों में खटास और खिंचाव बढ़ने लगा.

यही वह समय था जब धीरज ने वंदना के सलाहकार के रूप में उस के दिल में जगह बना ली थी. आफिस में उस से किसी भी समस्या पर हुई चर्चा की जानकारी मुझे वंदना रोज देती. मैं ने साफ महसूस किया कि मेरी तुलना में धीरज की सलाहों को वंदना कहीं ज्यादा महत्त्वपूर्ण, सार्थक और सही मानती थी.

‘‘आप का झुकाव अपने घर वालों की तरफ सदा रहेगा जबकि धीरज निष्पक्ष और सटीक सलाह देते हैं. मेरे मन की अशांति दूर कर मेरा हौसला बढ़ाना उन्हें बखूबी आता है,’’ वंदना के इस कथन से मैं भी मन ही मन सहमत था.

घर के झगड़ों से तंग आ कर वंदना ने मायके भाग जाने का मन बनाया तो धीरज ने उसे रोका. घर से अलग होने की वंदना की जिद उसी ने दूर की. उसी की सलाह पर चलते हुए वह घर में ज्यादा शांत व सहज रहने का प्रयास करती थी.

इस में कोई शक नहीं कि धीरज की सलाहें सकारात्मक और वंदना के हित में होतीं. उस के प्रभाव में आने के बाद वंदना में जो बदलाव आया उस का फायदा सभी को हुआ.

पत्नी की जिंदगी में कोई दूसरा पुरुष उस से ज्यादा अहमियत रखे, ये बात किसी भी पति को आसानी से हजम नहीं होगी. मैं वंदना को धीरज से दूर रहने का आदेश देता तो नुकसान अपना ही होता. दूसरी तरफ दोनों के बीच बढ़ती घनिष्ठता का एहसास मुझे वंदना की बातों से होता रहता था और मेरे मन की बेचैनी व जलन बढ़ जाती थी.

धीरज को जाननासमझना मेरे लिए अब जरूरी हो गया. तभी मेरे आग्रह पर एक छुट्टी वाले दिन वंदना और मैं उस के घर पहुंच गए. मेरी तरह उस दिन वंदना भी उस के परिवार के सदस्यों से पहली बार मिली.

धीरज की मां बड़ी बातूनी पर सीधीसादी महिला थीं. उस की पत्नी निर्मला का स्वभाव गंभीर लगा. घर की बेहतरीन साफसफाई व सजावट देख कर मैं ने अंदाजा लगाया कि वह जरूर कुशल गृहिणी होगी.

धीरज का बेटा नीरज 12वीं में और बेटी निशा कालिज में पढ़ते थे. उन्होंने हमारे 3 वर्षीय बेटे सुमित से बड़ी जल्दी दोस्ती कर उस का दिल जीत लिया.

कुल मिला कर हम उन के घर करीब 2 घंटे तक रुके थे. वह वक्त हंसीखुशी के साथ गुजरा. मेरे मन में वंदना व धीरज के घनिष्ठ संबंधों को ले कर खिंचाव न होता तो उस के परिवार से दोस्ती होना बड़ा सुखद लगता.

‘‘तुम्हें धीरज से अपने संबंध इतने ज्यादा नहीं बढ़ाने चाहिए कि लोग गलत मतलब लगाने लगें,’’ अपनी आंतरिक बेचैनी से मजबूर हो कर एक दिन मैं ने उसे सलाह दी.

‘‘लोगों की फिक्र मैं नहीं करती. हां, आप के मन में गलत तरह का शक जड़ें जमा रहा हो तो साफसाफ कहो,’’ वंदना ध्यान से मेरे चेहरे को पढ़ने लगी.

‘‘मुझे तुम पर विश्वास है,’’ मैं ने जवाब दिया.

‘‘और इस विश्वास को मैं कभी नहीं तोड़ूंगी,’’ वंदना भावुक हो गई, ‘‘मेरे मानसिक संतुलन को बनाए रखने में धीरज का गहरा योगदान है. मैं उन से बहुत कुछ सीख रही हूं…वह मेरे गुरु भी हैं और मित्र भी. उन के और मेरे संबंध को आप कभी गलत मत समझना, प्लीज.’’

धीरज के कारण वंदना के स्वभाव में जो सुखद बदलाव आए उन्हें देख कर मैं ने धीरेधीरे उन के प्रति नकारात्मक ढंग से सोचना कम कर दिया. अपनी पत्नी के मुंह से हर रोज कई बार उस का नाम सुनना तब मुझे कम परेशान करने लगा.

उस दिन रात को भी वंदना ने खुद ही मुझे बता दिया कि वह धीरज के साथ नेहरू पार्क घूमने गई थी.

‘‘आज किस वजह से परेशान थीं तुम?’’ मैं ने उस से पूछा.

‘‘मैं नहीं, बल्कि धीरज तनाव के शिकार थे,’’ वंदना की आंखों में चिंता के भाव उभरे.

‘‘उन्हें किस बात की टैंशन है?’’

‘‘उन की पत्नी के ई.सी.जी. में गड़बड़ निकली है. शायद दिल का आपरेशन भी करना पड़ जाए. अभी दोनों बच्चे छोटे हैं. फिर उन की आर्थिक स्थिति भी मजबूत नहीं है. इन्हीं सब बातों के कारण वह चिंतित और परेशान थे.’’

कुछ देर तक खामोश रहने के बाद वंदना ने मेरा हाथ अपने हाथों में लिया और भावुक लहजे में बोली, ‘‘जो काम धीरज हमेशा मेरे साथ करते हैं, वह आज मैं ने किया. मुझ से बातें कर के उन के मन का बोझ हलका हुआ. मैं एक और वादा उन से कर आई हूं.’’

‘‘कैसा वादा?’’

‘‘यही कि इस कठिन समय में मैं उन की आर्थिक सहायता भी करूंगी. मुझे विश्वास है कि आप मेरा वादा झूठा नहीं पड़ने देंगे. हमारे विवाहित जीवन की सुखशांति बनाए रखने में उन का बड़ा योगदान है. अगर उन्हें 10-20 हजार रुपए देने पड़ें तो आप पीछे नहीं हटेंगे न?’’

वंदना के मनोभावों की कद्र करते हुए मैं ने सहज भाव से मुसकराते हुए जवाब दिया, ‘‘अपने गुरुजी के मामलों में तुम्हारा फैसला ही मेरा फैसला है, वंदना. मैं हर कदम पर तुम्हारे साथ हूं. हमारा एकदूसरे पर विश्वास कभी डगमगाना नहीं चाहिए.’’

अपनी आंखों में कृतज्ञता के भाव पैदा कर के वंदना ने मुझे ‘धन्यवाद’ दिया. मैं ने हाथ फैलाए तो वह फौरन मेरी छाती से आ लगी.

इस समय वंदना को मैं ने अपने हृदय के बहुत करीब महसूस किया. धीरज और उस के दोस्ताना संबंध को ले कर मैं रत्ती भर भी परेशान न था. सच तो यह था कि मैं खुद धीरज को अपने दिल के काफी करीब महसूस कर रहा था.

धीरज को अपना पारिवारिक मित्र बनाने का मन मैं बना चुका था.

2 दिन बाद रमेश परेशान व उत्तेजित अवस्था में मुझ से मिलने पहुंचा. वक्त की नजाकत को महसूस करते हुए मैं ने भी गंभीरता का मुखौटा लगा लिया.

‘‘क्या वंदना भाभी ने उस व्यक्ति के साथ नेहरू पार्क में घूमने जाने की बात तुम्हें खुद बताई, संजीव?’’ रमेश ने मेरे पास बैठते ही धीमी, पर आवेश भरी आवाज में प्रश्न पूछा.

‘‘हां,’’ मैं ने सिर हिलाया.

‘‘अच्छा,’’ वह हैरान हो उठा, ‘‘कौन है वह?’’

‘‘उन का नाम धीरज है और वह वंदना के साथ काम करते हैं.’’

‘‘उस के साथ घूमने जाने का कारण भाभी ने क्या बताया?’’

‘‘किसी मामले में वह परेशान थे. वंदना से सलाह लेना चाहते थे. उस से बातें कर के मन का बोझ हलका कर लिया उन्होंने,’’ मैं ने सत्य को ही अपने जवाब का आधार बनाया.

‘‘मुझे तो वह परेशान या दुखी नहीं, बल्कि एक चालू इनसान लगा है,’’ रमेश भड़क उठा, ‘‘उस ने भाभी का कई बार हाथ पकड़ा… कंधे पर हाथ रख कर बातें कर रहा था. मैं यकीन के साथ कह सकता हूं कि भाभी को ले कर उस की नीयत खराब है.’’

‘‘मेरे भाई, तेरा अंदाजा गलत है. वंदना धीरज को अपना शुभचिंतक व अच्छा मित्र मानती है,’’ मैं ने उसे प्यार से समझाया.

‘‘मित्र, पराए पुरुष के साथ शादीशुदा औरत की मित्रता कैसे हो सकती है?’’ उस ने आवेश भरे लहजे में प्रश्न पूछा.

‘‘एक बात का जवाब देगा?’’

‘‘पूछ.’’

‘‘हम दोस्तों में सब से पहले विकास की शादी हुई थी. अनिता भाभी के हम सब लाड़ले देवर थे. उन का हाथ हम ने अनेक बार पकड़ कर उन से अपने दिल की बातें कही होंगी. क्या तब हमारे संबंधों को तुम ने अश्लील व गलत समझा था?’’

‘‘नहीं, क्योंकि हम एकदूसरे के विश्वसनीय थे. हमारे मन में कोई खोट नहीं था,’’ रमेश ने जवाब दिया.

‘‘इस का मतलब कि स्त्रीपुरुष के संबंध को गलत करार देने के लिए हाथ पकड़ना महत्त्वपूर्ण नहीं है, मन में खोट होना जरूरी है?’’

‘‘हां, और तू इस धीरज…’’

‘‘पहले तू मेरी बात पूरी सुन,’’ मैं ने उसे टोका, ‘‘अगर मैं और तुम हाथ पकड़ कर घूमें… या वंदना तेरी पत्नी के साथ हाथ पकड़ कर घूमे…फिल्म देख आए…रेस्तरां में कौफी पी ले तो क्या हमारे और उन के संबंध गलत कहलाएंगे?’’

‘‘नहीं, पर…’’

‘‘पहले मुझे अपनी बात पूरी करने दे. हमारे या हमारी पत्नियों के बीच दोस्ती का संबंध ही तो है. देख, पहले की बात जुदा थी, तब स्त्रियों का पुरुषों के साथ उठनाबैठना नहीं होता था. आज की नारी आफिस जाती है. बाहर के सब काम करती है. इस कारण उस की जानपहचान के पुरुषों का दायरा काफी बड़ा हुआ है. इन पुरुषों में से क्या कोई उस का अच्छा मित्र नहीं बन सकता?’’

‘‘हमें दूसरों की नकल नहीं करनी है, संजीव,’’ मेरे मुकाबले अब रमेश कहीं ज्यादा शांत नजर आने लगा, ‘‘हम ऐसे बीज बोने की इजाजत क्यों दें जिस के कारण कल को कड़वे फल आएं?’’

‘‘मेरे यार, तू भी अगर शांत मन से सोचेगा तो पाएगा कि मामला कतई गंभीर नहीं है. पुरानी धारणाओं व मान्यताओं को एक तरफ कर नए ढंग से और बदल रहे समय को ध्यान में रख कर सोचविचार कर मेरे भाई,’’ मैं ने रमेश का हाथ दोस्ताना अंदाज में अपने हाथों में ले लिया.

कुछ देर खामोश रहने के बाद उस ने सोचपूर्ण लहजे में पूछा, ‘‘अपने दिल की बात कहते हुए जैसे तू ने मेरा हाथ पकड़ लिया, क्या धीरज को भी वंदना भाभी का वैसे ही हाथ पकड़ने का अधिकार है?’’

‘‘बिलकुल है,’’ मैं ने जोर दे कर अपनी राय बताई.

‘‘स्त्रीपुरुष के रिश्ते में आ रहे इस बदलाव को मेरा मन आसानी से स्वीकार नहीं कर रहा है, संजीव,’’ उस ने गहरी सांस खींची.

‘‘क्योंकि तुम भविष्य में उन के बीच किसी अनहोनी की कल्पना कर के डर रहे हो. अब हमें दोस्ती को दोस्ती ही समझना होगा…चाहे वह 2 पुरुषों या 2 स्त्रियों या 1 पुरुष 1 स्त्री के बीच हो. रिश्तों के बदलते स्वरूप को समझ कर हमें स्त्रीपुरुष के संबंध को ले कर अनैतिकता की परिभाषा बदलनी होगी.

‘‘देखो, किसी कुंआरी लड़की के अपने पुरुष प्रेमी से अतीत में बने सैक्स संबंध उसे आज चरित्रहीन नहीं बनाते. शादीशुदा स्त्री का उस के पुरुष मित्र से सैक्स संबंध स्थापित होने का हमारा भय या अंदेशा उन के संबंध को अनैतिकता के दायरे में नहीं ला सकता. मेरी समझ से बदलते समय की यही मांग है. मैं तो वंदना और धीरज के रिश्ते को इसी नजरिए से देखता हूं, दोस्त.’’

मैं ने साफ महसूस किया कि रमेश मेरे तर्क व नजरिए से संतुष्ट नहीं था.

‘‘तेरीमेरी सोच अलगअलग है यार. बस, तू चौकस और होशियार रहना,’’ ऐसी सलाह दे कर रमेश नाराज सा नजर आता दुकान से बाहर चला गया.

मेरा उखड़ा मूड धीरेधीरे ठीक हो गया. बाद में घर पहुंच कर मैं ने वंदना को शांत व प्रसन्न पाया तो मूड पूरी तरह सुधर गया.

हां, उस दिन मैं जरूर चौंका था जब हम रामलाल की दुकान में गए थे और वहां रमेश की पत्नी किसी के हाथों से गोलगप्पे खा रही थी और रमेश मजे में आलूचाट की प्लेट साफ करने में लगा था. यह आदमी कौन था मैं अच्छी तरह जानता था. वह रमेश के मकान में ऊपर चौथी मंजिल पर रहता है और दोनों परिवारों में खासी पहचान है. मैं ने गहरी सांस ली, एक और चेला, गुरु से आगे निकल गया न.

लेखक- डा. सुधीर शर्मा

Love Story 2025 : प्यार की खातिर

Love Story 2025 : प्यार कभी भी और कहीं भी हो सकता है. प्यार एक ऐसा अहसास है, जो बिन कहे भी सबकुछ कह जाता है. जब किसी को प्यार होता है तो वह यह नहीं सोचता कि इस का अंजाम क्या होगा और ऐसा इसलिए होता है क्योंकि वह इनसान किसी के प्यार में इतना खो जाता है कि बस प्यार के अलावा उसे कुछ दिखाई नहीं देता है. तभी तो कहते हैं कि प्यार अंधा होता है. सबकुछ लुटा कर बरबाद हो कर भी नहीं चेतता और गलती पर गलती करता चला जाता है.

मोहन हाईस्कूल में पढ़ने वाला एक 16 साल का लड़का था. वह एक लड़की गीता से बहुत प्यार करने लगा. वह उस के लिए कुछ भी कर सकता था, लेकिन परेशानी की बात यह थी कि वह उसे पा नहीं सकता था, क्योंकि मोहन के पापा गीता के पापा की कंपनी में एक मामूली सी नौकरी करते थे. मोहन बहुत ज्यादा गरीब घर से था, जबकि गीता बहुत ज्यादा अमीर थी. वह सरकारी स्कूल में पढ़ता था और गीता शहर के नामी स्कूल में पढ़ती थी.

लेकिन उन में प्यार होना था और प्यार हो गया. मोहन गीता से कहता, ‘‘तुम मुझ से कभी दूर मत जाना क्योंकि मैं तुम्हारे बिना एक पल भी नहीं रह पाऊंगा.’’ ‘‘हां नहीं जाऊंगी, लेकिन मेरे घर वाले कभी हमें एक नहीं होने देंगे,’’ गीता ने कहा.

‘‘क्यों?’’ मोहन ने पूछा. ‘‘क्योंकि तुम सब जानते हो. हमारा समाज हमें कभी एक नहीं होने देगा,’’ गीता बोली.

‘‘हम इस दुनिया, समाज सब को छोड़ कर दूर चले जाएंगे,’’ मोहन ने कहा. ‘‘नहींनहीं, मैं यह कदम नहीं उठा सकती. मैं अपने परिवार को समाज के सामने शर्मिंदा होते नहीं देख सकती,’’ गीता ने अपने मन की बात कही.

‘‘ठीक है, तो तुम मेरा तब तक इंतजार करना, जब तक मैं इस लायक न हो जाऊं और तुम्हारे पापा के सामने जा कर उन से तुम्हारा हाथ मांग सकूं. बोलो मंजूर है?’’ मोहन ने कहा. गीता हंसी और बोली, ‘‘क्या होगा, अगर मैं तुम से शादी कर के एकसाथ न रह सकी? हम चाहें दूर रहें या पास, मेरे दिल में तुम्हारा प्यार कभी कम नहीं होगा. तुम हमेशा मेरे दिल में रहोगे.’’

यह सुन कर मोहन दिल ही दिल में रो पड़ा और सोच में पड़ गया. ‘‘क्या तुम मुझे छोड़ कर किसी और से शादी कर लोगी? मुझे भूल जाओगी? मुझ से दूर चली जाओगी?’’ मोहन ने पूछा.

‘‘ऐसा तो मैं सोच भी नहीं सकती कि तुम्हें भूल जाऊं. मैं मरते दम तक तुम्हें नहीं भूल पाऊंगी,’’ गीता बोली. ‘‘फिर मेरा दिल दुखाने वाली बात क्यों करती हो? कह दो कि तुम मेरी हो कर ही रहोगी?’’ मोहन ने कहा.

समय अपनी रफ्तार से चल रहा था. मोहन दिनरात मेहनत कर के खुद को गीता के काबिल बनाने में लगा था, ताकि एक दिन उस के पिता के पास जा कर गीता का हाथ मांग सके. इधर गीता यह सोचने लगी, ‘मोहन मेरी अमीरी की खातिर मुझ से दूर जा रहा है. वह मुझे पा नहीं सकता इसलिए दूरी बना रहा है.’

इधर गीता के घर वाले उस के लिए लड़का देखने लगे और उधर मोहन जीजान से पढ़ाई में लगा हुआ था. उसे पता भी नहीं चला और गीता की शादी तय हो गई. जब यह बात मोहन को पता चली तो वह गीता की खुशी की खातिर चुप लगा गया, क्योंकि उस की शादी शहर के बहुत बड़े खानदान में हो रही थी. उस का होने वाला पति एक बड़ी कंपनी का मालिक था.

यह सब जानने और सुनने के बाद मोहन अपने प्यार की खुशी की खातिर उस से दूर जाने की कोशिश करने लगा, लेकिन यह तो नामुमकिन था. वह किसी भी कीमत पर जीतेजी उस से दूर नहीं हो सकता था. सचाई जाने बगैर ही उस ने एक गलत कदम उठाने की सोच ली. गीता अंदर ही अंदर बहुत दुखी थी और परेशान थी क्योंकि वह भी तो मोहन को बहुत प्यार करती थी.

जिस दिन गीता की शादी थी उसी दिन मोहन ने एक सुसाइड नोट लिखा और फांसी लगा ली. ठीक उसी समय गीता ने भी एक सुसाइड नोट लिखा और जब सब लोग बरात का स्वागत करने में लगे थे उस ने खुद को फांसी लगा कर खत्म कर लिया.

प्यार की खातिर 2 परिवार दुख के समंदर में डूब गए. बस उन दोनों की जरा सी गलतफहमी की खातिर. हम मिटा देंगे खुद को प्यार की खातिर जी नहीं पाएंगे पलभर तुम से दूर रह कर. कर के सबकुछ समर्पित प्यार के लिए बिखरते हैं कितना हम टूटटूट कर. विश्वास बहुत बड़ी चीज होती है. हमें अपनों पर और खुद पर भरोसा करना चाहिए, ताकि जो उन दोनों के साथ हुआ वैसा किसी के साथ न हो. अगर प्यार करो तो निभाना भी चाहिए और बात कर के गलतफहमियों को मिटाना भी चाहिए, क्योंकि प्यार वह अहसास है जो हमें जीने की वजह देता है.

अगर इस दुनिया में प्यार नहीं तो कुछ भी नहीं. प्यार अमीरीगरीबी, ऊंचनीच, धर्म, जातपांत कुछ भी नहीं देखता. अगर किसी को एक बार प्यार हो जाए तो वह उस की खुशी की खातिर अपनी जिंदगी की भी परवाह नहीं करता. प्यार तो कभी भी कहीं भी किसी से भी हो सकता है, पर सच्चा प्यार होना और मिलना बहुत मुश्किल होता है. खुद पर और अपने प्यार पर हमेशा भरोसा बनाए रखना चाहिए, क्योंकि इस फरेबी दुनिया में सच्चा प्यार बहुत मुश्किल से मिलता है.

Family Story 2025 : क्या जूही ने समझौता किया

Family Story 2025 : डाक्टर के हाथ से परचा लेते ही जूही की आंखों के आगे अंधेरा छाने लगा. बेचारी आज बहुत परेशान थी. होती भी क्यों न, मां को कैंसर की बीमारी जो थी. इधर 6 महीने से तो उन की सेहत गिरती ही जा रही थी. वे बेहद कमजोर हो गई थीं.

पिछले महीने मां को अस्पताल में भरती कराना पड़ा. ऐसे में पूरा खर्चा जूही के ऊपर आ गया था. मां का उस के अलावा और कौन था. पिता तो बहुत पहले ही चल बसे थे. तब से मां ने ही जूही और उस के दोनों भाइयों को पालापोसा था.

तभी जूही के कानों में मां की आवाज सुनाई दी, ‘‘बेटी जूही, जरा पानी तो पिला दे. होंठ सूखे जा रहे हैं मेरे.’’

अपने हाथों से पानी पिला कर जूही मां के पैर दबाने लगी. परचा पकड़ते ही वह परेशान हो गई, ‘अब क्या करूं?’

रिश्तेदारों ने भी धीरेधीरे उन से कन्नी काट ली थी. जैसेजैसे वक्त बीतता जा रहा था, खर्चे तो बढ़ते ही जा रहे थे. सबकुछ तो बिक गया था. अब क्या था जूही के पास?

तभी जूही को सुभाष का ध्यान आया. उस की परचून की दुकान थी. वह शादीशुदा और 2 बच्चों का बाप था. जूही उस की दुकान की तरफ चल दी. सुभाष जूही को देख कर चौंका और उस के अचानक इस तरह से आने की वजह पूछी, ‘‘आज मेरी याद कैसे आ गई?’’ कह कर सुभाष उस की कमर पर हाथ फेरने लगा.

जूही ने कहा, ‘‘वह… लालाजी… मां की तबीयत काफी खराब है. मैं आप से मदद मांगने आई हूं. दवा तक के पैसे नहीं हैं मेरे पास,’’ कहते हुए वह हिचकियां ले कर रोने लगी.

जूही की मजबूरी में सुभाष को अपनी जीत नजर आई, ‘‘बोल न क्या चाहती है? मैं तो हर वक्त तैयार हूं. बस, तू मेरी इच्छा पूरी कर दे,’’ बोलते हुए सुभाष ने उस की तरफ ललचाई नजरों से ऐसे देखा, जैसे कोई गिद्ध अपने शिकार को देखता है. जूही सुभाष की आंखों में तैर रही हवस को पढ़ चुकी थी. वह तो खुद ही समर्पण के लिए आई थी. हालात से हार मान कर वह उस के सामने जमीन पर बैठ गई. आखिर चारा भी क्या था, उस के पास समझौते के सिवा. जीत की खुशबू पा कर सुभाष की हवस दोगुनी हो गई थी. उस ने अपने मन की कर डाली.

थोड़ी देर बाद सुभाष ने जूही को रुपए देते हुए कुटिल मुसकराहट के साथ कहा, ‘‘कभी भी, कैसी भी जरूरत हो, मैं तुम्हारी मदद के लिए तैयार हूं. बस, एक रात के लिए तू मेरे पास आ जाना.’’

खुद को ठगा हुआ महसूस करते हुए जूही वापस अस्पताल आ गई. उस ने दवा और अस्पताल के बिल चुकाए. वह मन ही मन सोच रही थी, ‘आज तो मैं ने समझौता कर के मां की दवाओं का इंतजाम कर दिया, लेकिन अब आगे क्या होगा?’

यही नहीं, जूही को अपने दोनों भाइयों की पढ़ाई और खानेपीने के खर्च की भी चिंता सताने लगी थी.

अब जब भी पैसों की जरूरत होती, जूही सुभाष के पास चली जाती और कुछ दिन के लिए परेशानी आगे टल जाती. वह अकसर अपने को दलदल में फंसा हुआ महसूस करती, लेकिन जानती थी कि रुपएपैसे के बिना गुजारा नहीं है.

धीरेधीरे मां की सेहत में सुधार होने लगा. भाइयों की पढ़ाई भी पूरी हो गई. नौकरी मिलते ही दोनों भाइयों ने अपनीअपनी पसंद की लड़कियों से शादी कर ली.

मां ने जब भाइयों से घर की जिम्मेदारी लेने को कहा, तो उन्होंने खर्चा देने से मना कर दिया. अपनी जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ कर वे अलग हो गए.

घर का खर्च, मां की बीमारी, डाक्टर की फीस व दवाओं का खर्च… इन जिम्मेदारियों को निभाने के लिए जूही को बस एक सहारा दिखता था सुभाष.

लेकिन, जूही अब थक कर टूट चुकी थी. एक दिन मां ने उसे उदास देखा तो वे पूछे बिना न रह सकीं, ‘‘क्या हुआ आज तुझे? तू इतनी चुप क्यों हैं?’’ और उस की पीठ पर प्यार भरा हाथ फेरा.

जूही सिसकसिसक कर रोने लगी. वह मां से लिपट कर बहुत रोई. मां हैरान भी हुईं और परेशान भी, क्योंकि सिर्फ वे ही जानती थीं कि जूही ने इस घर के लिए क्याक्या कुरबानियां दी हैं.

कुछ दिन बाद जूही की मां हमेशा के लिए इस दुनिया से चली गईं. उन के जाने के बाद जूही बहुत अकेली रह गई. इधर सुभाष को भी उस में कोई खास दिलचस्पी नहीं रह गई थी. जिस मकान में जूही रहती थी, वह भी बिक गया. सब सहारे साथ छोड़ कर जा चुके थे.

जूही ने एक कच्ची बस्ती में एक छोटा सा कमरा किराए पर ले लिया और लोगों के घरों में रोटी बनाने लगी. रोज सपने बुनती, जो सुबह उठने तक टूट जाते थे, फिर भी उस ने हिम्मत नहीं हारी. पर शरीर भी कब तक साथ देता.

अब जूही बीमार रहने लगी थी. तेज बुखार होने की वजह से एक दिन सांसें थमीं तो दोबारा चालू ही नहीं हो पाईं. आज उस ने फिर एक नया समझौता किया था मौत के साथ. वह मौत के आगोश में हमेशाहमेशा के लिए चली गई थी…

Short Story 2025 : रोहरानंद बहुत दुखी है

Short Story 2025 : योग गुरु का पैंतरा फिर खाली चला गया, कोरोना को लेकर कोरोनिल बनाई थी. सरकार ने उसे अवैध घोषित कर दिया. योग गुरु देश को, दुनिया को कोरोना से बचाना चाहते हैं अब सरकार उन्हें रोक रही है. रोहरानंद बहुत दुखी है.

योग गुरु ने अपना जीवन मानव उत्थान के लिए समर्पित कर दिया है, मगर  कांग्रेस सरकार ने योग गुरु को समझा और ना ही अब उनकी अपनी सरकार उन्हें समझने को तैयार है. इसलिए रोहरानंद बहुत दुखी है.

एक दफे योग गुरु ने काला धन वापस लाने के लिए  अनशन शुरू कर दिया था. ऐसा प्रतीत होता था मानो इस संत,महात्मा की तपस्या से इंद्रलोक कांपने लगेगा. मगर ऐसा कुछ नहीं हो रहा था. देवलोक कांप उठता उससे पहले योग गुरु कांपने लगे और  उनके शुभचिंतक, पार्षद स्वरूप श्री श्री रविशंकर आदि प्रकट हो गए .इन साधु संतों ने रिक्वेस्ट  कर के योग गुरु को जूस पिलाकर उनका अनशन तुड़वा डाला. और राष्ट्र की बड़ी क्षति कर डाली.

अगरचे,आमरण अनशन चलता रहता, तो देश का बड़ा भला होता .मगर योग गुरु के प्रति संवेदनशील साधु संतों ने बेड़ा गर्क कर डाला .घबरा गए .सोचा अगर केंद्र सरकार नहीं झुकी तो….

तो योग गुरु के पार्षद गण  का पल्स रेट बढ़ने लगा. इधर बाबा का, अनशन पर पल्स रेट बढ़ रहा था. इधर योग गुरु के पार्षद गणों का चिंता  में पल्स रेट बढ़ता जा रहा था.रोहरानंद दुखी था . भई! योग गुरु तो समाज को धैर्य रखने और प्रभु प्राप्ति के लिए स्वयं को उस में विलीन करने के लिए लंबे चौड़े भाषण टीवी के सारे चैनलों में दिया करता था . फिर जब अपने पर आयी तो पल्स रेट बढ़ गया.

तो, रोहरानंद दुखी था. अगर श्री श्री रविशंकर जो स्वयं बहुत बड़े शख्सियत के स्वामी हैं और दुनिया में आर्ट ऑफ लिविंग के पुरोधा माने जाते हैं . जीवन कैसे कला की भांति व्यतीत किया जाए इसका ज्ञान देते हैं . किस कला के साथ आने वाली चुनौतियों का सामना किया जाए ,बड़ी भारी भरकम फीस लेकर बताते हैं. ऐसे महान ज्ञानी, साधु संत एक हो गए और समझ गए कि रामदेव बाबा का अनशन से उठ जाना ही श्रेयस्कर है. क्योंकि केंद्र सरकार तो आंखें बंद किए है .मुंह सीये बैठी है. आंखें बंद करके बैठी है.अनशन के संदर्भ में एक शब्द नहीं बोलेगी कि तोड़ो.

क्यों ? क्योंकि जैसे दो भाई जमीन जायदाद या दो मित्र लव ट्रंगल में एक दूसरे से नाराज हो जाते हैं. फिर कसम खाते हैं -आज से तू मेरे लिए नहीं रह गया. बस केंद्र सरकार के लिए भी बाबा रामदेव उस दिन चलता हो गए. जिस दिन से मांग मनवाने, चुनौती शैली में आमरण अनशन पर बैठ गए थे.

श्री श्री रविशंकर मध्यस्थता करने गए. कानून मंत्री वीरप्पा मोइली से मुलाकात की.कहा- मोइली ! बाबा रामदेव का अनशन तोडवा दो, चला जाएगा.

वीरप्पा मोइली मुंह फुलाए बैठे थे- ‘गुरु जी ! कांग्रेस और सरकार बाबा से नाराज है.’

‘ कुछ करो, भाई, बाबा चला जाएगा ।’

‘ चला ही जाए तो अच्छा. सरकार कुछ नहीं करेगा.’

‘ बाबा चला गया तो सरकार पर कलंक लग जाएगा .’

‘ हमारे लिए तो बाबा उसी क्षण चला गया, जब आरएसएस से हाथ मिलाया था.’

‘ मानवता भी कोई चीज है .’

‘ हमारी जमीन जायदाद ( सरकार ) को लूटने के खातिर भाजपा और संघ इसको भेजा, हम सब जानता.’कानून मंत्री ने कहा होगा.

‘ अब सब छोड़िए भी,  गुरु रविशंकर आया है, मैडम सोनिया गांधी को बताओ.’

‘ मैडम खूब नाराज. पहले बोल रखा, बाबा का अब कोई सिफारिश नहीं चलेगा, जो करेगा वो….’

श्री श्री रविशंकर का प्रयास भी धरा का धरा रह गया. राष्ट्रीय स्तर का आमरण अनशन और सरकार के कान में जूं तक नहीं रेंगी. बाबा का अनशन पांचवें… छठवें सातवें, आठवें दिन तक पहुंच गया.

समर्थकों को लगा था, सत्याग्रह में बड़ी ताकत होती है. स्वयं राम बाबा ने देखा था अन्ना हजारे का अनशन. तीन-चार दिन में सारे देश दुनिया में हडबोंग मच गई, सरकार की चूलें हिलने लगी थी. लोग स्वप्रेरणा से अनशन पर बैठने लगे थे. सरकार कांप रही थी.

और जब मैं बैठूंगा… मेरे तो लाखों समर्थक हैं. कैडर है. भाजपा आरएसएस का समर्थन है. मैं अगर बैठा तो सरकार तो एक पैर से योगा करने लगेगी. बाबा रामदेव ने सहज, दो और दो को जोड़ा और चार का परिणाम महसूस कर प्रसन्न चित्त. बाहों में तेल लगा कर, उदृघोषणा कर दी. एक करोड़ जनता जनार्दन का जन समुंद्र सत्याग्रह पर उतरेगा…. जीत सुनिश्चित है .

रोहरानंद बेहद दुखी है. एक- 5 जून को सरकार ने लाठियां भांजकर अनशन तुड़वाया. दूसरा हरिद्वार मे चल रहे अनशन से न तो सरकार कांपी  ना घबरायी. लगा था- आमरण अनशन से केंद्र सरकार थरथरा जाएगी .हाथ जोड़ हाथ में जूस का गिलास लेकर विनम्र भाव से निवेदन करेगी- ‘ ‘  ‘ बाबा…बाबा जी प्लीज अनशन तोड़ दीजिए, हम तो आपके बच्चे हैं.’

मगर हुआ उलट. सरकार आंखें बंद खुर्राटे भर रही थी. बाबा के प्रतिनिधि हाथ जोड़ कातर स्वर में बोल रहे थे-  ‘सरकार । बाबा का अनशन…’

सरकार – ‘( मुंदी आंख ) करने दीजिए! अभी तो आठ-नौ दिन हुए हैं .’

मध्यस्थ-‘ बाबा की हालत बिगड़ रही है .”

सरकार- “योगी है, कुछ नहीं होगा , साल भर तो कुछ नहीं होगा, हम जानते हैं .”

मध्यस्थ- “हुजूर, चले जाएंगे.”

सरकार- ‘ तो पोल खुल जाएगी. योगी होकर टें बोल गये. योगी तो वर्षों खाना न खाये तो जिंदा रह ले.’

मध्यस्थ- ‘ सरकार ! अब जिद छोड़िए भी.’

सरकार- “अभी वक्त नहीं है.

कौन बोले कौन जाये, कौन संवेदना दिखाये. अभी हम सो रहे हैं .” सरकार ने आंख मूंद ली.

अब तो अपनी सरकार है, बड़े-बड़े योग करके योग गुरु ने इस सरकार को स्थापित किया है, और अब मानवता को उपहार देने के लिए ही मानो कोरोनिल बनाई है. मगर सरकार ने अवैध घोषित कर दिया.ओह… रोहरानंद बहुत दुखी है.

Love Story : कितना करूं इंतजार

Love Story : कितना करूं इंतजार

मुझे गुमसुम और उदास देख कर मां ने कहा, ‘‘क्या बात है, रति, तू इस तरह मुंह लटकाए क्यों बैठी है? कई दिन से मनोज का भी कोई फोन नहीं आया. दोनों ने आपस में झगड़ा कर लिया क्या?’’

‘‘नहीं, मां, रोज रोज क्या बात करें.’’

‘‘कितने दिनों से शादी की तैयारी कर रहे थे, सब व्यर्थ हो गई. यदि मनोज के दादाजी की मौत न हुई होती तो आज तेरी शादी को 15 दिन हो चुके होते. वह काफी बूढ़े थे. तेरहवीं के बाद शादी हो सकती थी पर तेरे ससुराल वाले बड़े दकियानूसी विचारों के हैं. कहते हैं कि साए नहीं हैं. अब तो 5-6 महीने बाद ही शादी होगी.

‘‘हमारी तो सब तैयारी व्यर्थ हो गई. शादी के कार्ड बंट चुके थे. फंक्शन हाल को, कैटरर्स को, सजावट करने वालों को, और भी कई लोगों को एडवांस पेमेंट कर चुके थे. 6 महीने शादी सरकाने से अच्छाखासा नुकसान हो गया है.’’

‘‘इसी बात से तो मनोज बहुत डिस्टर्ब है, मां. पर कुछ कह नहीं पाता.’’

‘‘बेटा, हम भी कभी तुम्हारी उम्र के थे. तुम दोनों के एहसास को समझ सकते हैं, पर हम चाह कर भी कुछ नहीं कर सकते. मैं ने तो तेरी सास से कहा भी था कि साए नहीं हैं तो क्या हुआ, अच्छे काम के लिए सब दिन शुभ होते हैं…अब हमें शादी कर देनी चाहिए.

‘‘मेरा इतना कहना था कि वह तो भड़क गईं और कहने लगीं, आप के लिए सब दिन शुभ होते होंगे पर हम तो सायों में भरोसा करते हैं. हमारा इकलौता बेटा है, हम अपनी तरफ से पुरानी मान्यताओं को अनदेखा कर मन में कोई वहम पैदा नहीं करना चाहते.’’

रति सोचने लगी कि मम्मी इस से ज्यादा क्या कर सकती हैं और मैं भी क्या करूं, मम्मी को कैसे बताऊं कि मनोज क्या चाहता है.

नर्सरी से इंटर तक हम दोनों साथसाथ पढ़े थे. किंतु दोस्ती इंटर में आने के बाद ही हुई थी. इंटर के बाद मनोज इंजीनियरिंग करने चला गया और मैं ने बी.एससी. में दाखिला ले लिया था. कालिज अलग होने पर भी हम दोनों छुट्टियों में कुछ समय साथ बिताते थे. बीच में फोन पर बातचीत भी कर लेते थे. कंप्यूटर पर चैट हो जाती थी.

एम.एससी. में आते ही मम्मीपापा ने शादी के लिए लड़का तलाशने की शुरुआत कर दी. मैं ने कहा भी कि मम्मी, एम.एससी. के बाद शादी करना पर उन का कहना था कि तुम अपनी पढ़ाई जारी रखो, शादी कौन सी अभी हुई जा रही है, अच्छा लड़का मिलने में भी समय लगता है.

शादी की चर्चा शुरू होते ही मनोज की छवि मेरी आंखों में तैर गई थी. यों हम दोनों एक अच्छे मित्र थे पर तब तक शादी करने के वादे हम दोनों ने एकदूसरे से नहीं किए थे. साथ मिल कर भविष्य के सपने भी नहीं देखे थे पर मम्मी द्वारा शादी की चर्चा करने पर मनोज का खयाल आना, क्या इसे प्यार समझूं. क्या मनोज भी यही चाहता है, कैसे जानूं उस के दिल की बात.

मुलाकात में मनोज से मम्मी द्वारा शादी की पेशकश के बारे में बताया तो वह बोला, ‘‘इतनी जल्दी शादी कर लोगी, अभी तो तुम्हें 2 वर्ष एम.एससी. करने में ही लगेंगे,’’ फिर कुछ सोचते हुए बोला था, ‘‘सीधेसीधे बताओ, क्या मुझ से शादी करोगी…पर अभी मुझे सैटिल होने में कम से कम 2-3 वर्ष लगेंगे.’’

प्रसन्नता की एक लहर तनमन को छू गई थी, ‘‘सच कहूं मनोज, जब मम्मी ने शादी की बात की तो एकदम से मुझे तुम याद आ गए थे…क्या यही प्यार है?’’

‘‘मैं समझता हूं यही प्यार है. देखो, जो बात अब तक नहीं कह सका था, तुम्हारी शादी की बात उठते ही मेरे मुंह पर आ गई और मैं ने तुम्हें प्रपोज कर डाला.’’

‘‘अब जब हम दोनों एकदूसरे से चाहत का इजहार कर ही चुके हैं तो फिर इस विषय में गंभीरता से सोचना होगा.’’

‘‘सोचना ही नहीं होगा रति, तुम्हें अपने मम्मीपापा को इस शादी के लिए मनाना भी होगा.’’

‘‘क्या तुम्हारे घर वाले मान जाएंगे?’’

‘‘देखो, अभी तो मेरा इंजीनियरिंग का अंतिम साल है. मेरी कैट की कोचिंग भी चल रही है…उस की भी परीक्षा देनी है. वैसे हो सकता है इस साल किसी अच्छी कंपनी में प्लेसमेंट मिल जाए क्योंकि कालिज में बहुत सी कंपनियां आती हैं और जौब आफर करती हैं. अच्छा आफर मिला तो मैं स्वीकार कर लूंगा और जैसे ही शादी की चर्चा शुरू होगी मैं तुम्हारे बारे में बता दूंगा.’’

प्यार का अंकुर तो हमारे बीच पनप ही चुका था और हमारा यह प्यार अब जीवनसाथी बनने के सपने भी देखने लगा था. अब इस का जिक्र अपनेअपने घर में करना जरूरी हो गया था.

मैं ने मम्मी को मनोज के बारे में बताया तो वह बोलीं, ‘‘वह अपनी जाति का नहीं है…यह कैसे हो सकता है, तेरे पापा तो बिलकुल नहीं मानेंगे. क्या मनोज के मातापिता तैयार हैं?’’

‘‘अभी तो इस बारे में उस के घर वाले कुछ नहीं जानते. फाइनल परीक्षा होने तक मनोज को किसी अच्छी कंपनी में जौब का आफर मिल जाएगा और रिजल्ट आते ही वह कंपनी ज्वाइन कर लेगा. उस के बाद ही वह अपने मम्मीपापा से बात करेगा.’’

‘‘क्या जरूरी है कि वह मान ही जाएंगे?’’

‘‘मम्मी, मुझे पहले आप की इजाजत चाहिए.’’

‘‘यह फैसला मैं अकेले कैसे ले सकती हूं…तुम्हारे पापा से बात करनी होगी…उन से बात करने के लिए मुझे हिम्मत जुटानी होगी. यदि पापा तैयार नहीं हुए तो तुम क्या करोगी?’’

‘‘करना क्या है मम्मी, शादी होगी तो आप के आशीर्वाद से ही होगी वरना नहीं होगी.’’

इधर मेरा एम.एससी. फाइनल शुरू हुआ उधर इंजीनियरिंग पूरी होते ही मनोज को एक बड़ी कंपनी में अच्छा स्टार्ट मिल गया था और यह भी करीबकरीब तय था कि भविष्य मेें कभी भी कंपनी उसे यू.एस. भेज सकती है. मनोज के घर में भी शादी की चर्चा शुरू हो गई थी.

मैं ने मम्मी को जैसेतैसे मना लिया था और मम्मी ने पापा को किंतु मनोज की मम्मी इस विवाह के लिए बिलकुल तैयार नहीं थीं. इस फैसले से मनोज के घर में तूफान उठ खड़ा हुआ था. उस के घर में पापा से ज्यादा उस की मम्मी की चलती है. ऐसा एक बार मनोज ने ही बताया था…मनोज ने भी अपने घर में ऐलान कर दिया था कि शादी करूंगा तो रति से वरना किसी से नहीं.

आखिर मनोज के बहनबहनोई ने अपनी तरह से मम्मी को समझाया था, ‘‘मम्मी, आप की यह जिद मनोज को आप से दूर कर देगी, आजकल बच्चों की मानसिक स्थिति का कुछ पता नहीं चलता कि वह कब क्या कर बैठें. आज के ही अखबार में समाचार है कि मातापिता की स्वीकृति न मिलने पर प्रेमीप्रेमिका ने आत्महत्या कर ली…वह दोनों बालिग हैं. मनोज अच्छा कमा रहा है. वह चाहता तो अदालत में शादी कर सकता था पर उस ने ऐसा नहीं किया और आप की स्वीकृति का इंतजार कर रहा है. अब फैसला आप को करना है.’’

मनोज के पिता ने कहा था, ‘‘बेटा, मुझे तो मनोज की इस शादी से कोई एतराज नहीं है…लड़की पढ़ीलिखी है, सुंदर है, अच्छे परिवार की है… और सब से बड़ी बात मनोज को पसंद है. बस, हमारी जाति की नहीं है तो क्या हुआ पर तुम्हारी मम्मी को कौन समझाए.’’

‘‘जब सब तैयार हैं तो मैं ही उस की दुश्मन हूं क्या…मैं ही बुरी क्यों बनूं? मैं भी तैयार हूं.’’

मम्मी का इरादा फिर बदले इस से पहले ही मंगनी की रस्म पूरी कर दी गई थी. तय हुआ था कि मेरी एम.एससी. पूरी होते ही शादी हो जाएगी.

मंगनी हुए 1 साल हो चुका था. शादी की तारीख भी तय हो चुकी थी. मनोज के बाबा की मौत न हुई होती तो हम दोनों अब तक हनीमून मना कर कुल्लूमनाली, शिमला से लौट चुके होते और 3 महीने बाद मैं भी मनोज के साथ अमेरिका चली जाती.

पर अब 6-7 महीने तक साए नहीं हैं अत: शादी अब तभी होगी ऐसा मनोज की मम्मी ने कहा है. पर मनोज शादी के टलने से खुश नहीं है. इस के लिए अपने घर में उसे खुद ही बात करनी होगी. हां, यदि मेरे घर से कोई रुकावट होती तो मैं उसे दूर करने का प्रयास करती.

पर मैं क्या करूं. माना कि उस के भी कुछ जजबात हैं. 4-5 वर्षों से हम दोस्तों की तरह मिलते रहे हैं, प्रेमियों की तरह साथसाथ भविष्य के सपने भी बुनते रहे हैं किंतु मनोज को कभी इस तरह कमजोर होते नहीं देखा. यद्यपि उस का बस चलता तो मंगनी के दूसरे दिन ही वह शादी कर लेता पर मेरा फाइनल साल था इसलिए वह मन मसोस कर रह गया.

प्रतीक्षा की लंबी घडि़यां हम कभी मिल कर, कभी फोन पर बात कर के काटते रहे. हम दोनों बेताबी से शादी के दिन का इंतजार करते रहे. दूरी सहन नहीं होती थी. साथ रहने व एक हो जाने की इच्छा बलवती होती जाती थी. जैसेजैसे समय बीत रहा था, सपनों के रंगीन समुंदर में गोते लगाते दिन मंजिल की तरफ बढ़ते जा रहे थे. शादी के 10 दिन पहले हम ने मिलना भी बंद कर दिया था कि अब एकदूसरे को दूल्हादुलहन के रूप में ही देखेंगे पर विवाह के 7 दिन पहले बाबाजी की मौत हमारे सपनों के महल को धराशायी कर गई.

बाबाजी की मौत का समाचार मुझे मनोज ने ही दिया था और कहा था, ‘‘बाबाजी को भी अभी ही जाना था. हमारे बीच फिर अंतहीन मरुस्थल का विस्तार है. लगता है, अब अकेले ही अमेरिका जाना पडे़गा. तुम से मिलन तो मृगतृष्णा बन गया है.’’

तेरहवीं के बाद हम दोनों गार्डन में मिले थे. वह बहुत भावुक हो रहा था, ‘‘रति, तुम से दूरी अब सहन नहीं होती. मन करता है तुम्हें ले कर अनजान जगह पर उड़ जाऊं, जहां हमारे बीच न समाज हो, न परंपराएं हों, न ये रीतिरिवाज हों. 2 प्रेमियों के मिलन में समाज के कायदे- कानून की इतनी ऊंची बाड़ खड़ी कर रखी है कि उन की सब्र की सीमा ही समाप्त हो जाए. चलो, रति, हम कहीं भाग चलें…मैं तुम्हारा निकट सान्निध्य चाहता हूं. इतना बड़ा शहर है, चलो, किसी होटल में कुछ घंटे साथ बिताते हैं.’’

जो हाल मनोज का था वही मेरा भी था. एक मन कहता था कि अपनी खींची लक्ष्मण रेखा को अब मिटा दें किंतु दूसरा मन संस्कारों की पिन चुभो देता कि बिना विवाह यह सब ठीक नहीं. वैसे भी एक बार मनोज की इच्छा पूरी कर दी तो यह चाह फिर बारबार सिर उठाएगी, ‘‘नहीं, यह ठीक नहीं.’’

‘‘क्या ठीक नहीं, रति. क्या तुम को मुझ पर विश्वास नहीं? पतिपत्नी तो हमें बनना ही है. मेरा मन आज जिद पर आया है, मैं भटक सकता हूं, रति, मुझे संभाल लो,’’ गार्डन के एकांत झुटपुटे में उस ने बांहों में भर कर बेतहाशा चूमना शुरू कर दिया था. मैं ने भी आज उसे यह छूट दे दी थी ताकि उस का आवेग कुछ शांत हो किंतु मनोज की गहरीगहरी सांसें और अधिक समा जाने की चाह मुझे भी बहकाए उस से पूर्व ही मैं उठ खड़ी हुई.

‘‘अपने को संभालो, मनोज. यह भी कोई जगह है बहकने की? मैं भी कोई पत्थर नहीं, इनसान हूं…कुछ दिन अपने को और संभालो.’’

‘‘इतने दिन से अपने को संभाल ही तो रहा हूं.’’

‘‘जो तुम चाह रहे हो वह हमारी समस्या का समाधान तो नहीं है. स्थायी समाधान के लिए अब हाथपैर मारने होंगे. चलो, बहुत जोर से भूख लगी है, एक गरमागरम कौफी के साथ कुछ खिला दो, फिर इस बारे में कुछ मिल कर सोचते हैं.’’

रेस्टोरेंट में बैरे को आर्डर देने के बाद मैं ने ही बात शुरू की, ‘‘मनोज, तुम्हें अब एक ही काम करना है… किसी तरह अपने मातापिता को जल्दी शादी के लिए तैयार करना है, जो बहुत मुश्किल नहीं. आखिर वे हमारे शुभचिंतक हैं, तुम ने उन से एक बार भी कहा कि शादी इतने दिन के लिए न टाल कर अभी कर दें.’’

‘‘नहीं, यह तो नहीं कहा.’’

‘‘तो अब कह दो. कुछ पुराना छोड़ने और नए को अपनाने में हरेक को कुछ हिचक होती है. अपनी इंटरकास्ट मैरिज के लिए आखिर वह तैयार हो गए न. तुम देखना बिना सायों के शादी करने को भी वह जरूर मान जाएंगे.’’

मनोज के चेहरे पर खुशी की एक लहर दौड़ गई थी, ‘‘तुम ठीक कह रही हो रति, यह बात मेरे ध्यान में क्यों नहीं आई? खाने के बाद तुम्हें घर पर छोड़ देता हूं. कोर्ट मैरिज की डेट भी तो पास आ गई है, उसे भी आगे नहीं बढ़ाने दूंगा.’’

‘‘ठीक है, अब मैरिज वाले दिन कोर्ट में ही मिलेंगे.’’

‘‘मेरे आज के व्यवहार से डर गईं क्या? इस बीच फोन करने की इजाजत तो है या वह भी नहीं है?’’

‘‘चलो, फोन करने की इजाजत दे देते हैं.’’

रजिस्ट्रार के आफिस में मैरिज की फार्र्मेलिटी पूरी होने के बाद हम दोनों अपने परिवार के साथ बाहर आए तो मनोज के जीजाजी ने कहा, ‘‘मनोज, अब तुम दोनों की शादी पर कानून की मुहर लग गई है. रति अब तुम्हारी हुई.’’

‘‘ऐ जमाई बाबू, ये इंडिया है, वह तो वीजा के लिए यह सब करना पड़ा है वरना इसे हम शादी नहीं मानते. हमारे घर की बहू तो रति विवाह संस्कार के बाद ही बनेगी,’’ मेरी मम्मी ने कहा.

‘‘वह तो मजाक की बात थी, मम्मी, अब आप लोग घर चलें. मैं तो इन दोनों से पार्टी ले कर ही आऊंगा.’’

होटल में खाने का आर्डर देने के बाद मनोज ने अपने जीजाजी से पूछा, ‘‘जीजाजी, मम्मी तक हमारी फरियाद अभी पहुंची या नहीं?’’

‘‘साले साहब, क्यों चिंता करते हो. हम दोनों हैं न तुम्हारे साथ. अमेरिका आप दोनों साथ ही जाओगे. मैं ने अभी बात नहीं की है, मैं आप की इस कोर्ट मैरिज हो जाने का इंतजार कर रहा था. आगे मम्मी को मनाने की जिम्मेदारी आप की बहन ने ली है. इस से भी बात नहीं बनी तो फिर मैं कमान संभालूंगा.’’

‘‘हां, भैया, मैं मम्मी को समझाने की पूरी कोशिश करूंगी.’’

‘‘हां, तू कोशिश कर ले, न माने तो मेरा नाम ले कर कह देना, ‘आप अब शादी करो या न करो भैया भाभी को साथ ले कर ही जाएंगे.’’’

‘‘वाह भैया, आज तुम सचमुच बड़े हो गए हो.’’

‘‘आफ्टर आल अब मैं एक पत्नी का पति हो गया हूं.’’

‘‘ओके, भैया, अब हम लोग चलेंगे, आप लोगों का क्या प्रोग्राम है?’’

‘‘कुछ देर घूमघाम कर पहले रति को उस के घर छोडूंगा फिर अपने घर जाऊंगा.’’

मेरे गले में बांहें डालते हुए मनोज ने शरारत से देखा, ‘‘हां, रति, अब क्या कहती हो, तुम्हारे संस्कार मुझे पति मानने को तैयार हैं या नहीं?’’

आंखें नचाते हुए मैं चहकी, ‘‘अब तुम नाइंटी परसेंट मेरे पति हो.’’

‘‘यानी टैन परसेंट की अब भी कमी रह गई है…अभी और इंतजार करना पडे़गा?’’

‘‘उस दिन का मुझे अफसोस है मनोज…पर अब मैं तुम्हारी हूं.’’

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