शिकार: किसने उजाड़ी मीना की दुनिया – भाग 1

Family Story in Hindi: चेन्नई एक्सप्रेस तेजी से अपने गंतव्य की ओर दौड़ी जा रही थी. श्याम ने गाड़ी के डिब्बे की खिड़की से बाहर झांकते हुए कहा, ‘‘बस, थोड़ी ही देर में हम चेन्नई के सेंट्रल स्टेशन पर पहुंचने वाले हैं.’’ फिर उस ने अपनी नव विवाहिता पत्नी के चेहरे को गौर से निहारा. उसे अभी भी विश्वास नहीं हो रहा था कि उसे इतनी सुंदर और पढ़ीलिखी पत्नी मिली है. जब उसे अपने पिता का पत्र मिला था कि उन्होंने अपने मित्र की बेटी से उस की शादी तय कर दी है तो उसे बहुत गुस्सा आया था. लेकिन मीरा की एक झलक देखने के बाद उस का गुस्सा हवा हो गया था. श्याम को अपनी ओर निहारते देख मीरा लजा गई. पर वह मन ही मन खुश थी. लेकिन उस वक्त उसे श्याम को यह जताना उचित नहीं लगा कि उस के मन में भी अपने विवाह को ले कर ढेर सारी शंकाएं थीं. एक अनजान व्यक्ति से शादी के गठबंधन में बंध कर उस के साथ पूरा जीवन बिताने के खयाल से ही वह भयभीत थी और मातापिता से विद्रोह करना चाहती थी.

लेकिन श्याम को देख कर उसे थोड़ा इत्मीनान हुआ. उस का चेहरामोहरा भी अच्छा था और वह स्मार्ट भी था. श्याम चेन्नई में एक निजी कंपनी में कार्यरत था. मीरा को ऐसा लगा कि श्याम के साथ उस की अच्छी भली निभ जाएगी और दोनों की जिंदगी आराम से कटेगी.

रेलगाड़ी से उतर कर श्याम और मीरा एक बेंच पर बैठ गए. श्याम ने अपना मोबाइल निकाला और मीरा की ओर देख कर बोला, ‘‘ओह, मेरे मोबाइल की बैटरी तो बिलकुल खत्म हो गई है. मैं ने अपने एक दोस्त को हमें पिक करने को कह दिया था, लेकिन वह कहीं दिख नहीं रहा. जरा अपना मोबाइल तो देना. मैं उसे फोन करता हूं, अभी तक आया क्यों नहीं?’’

फोन लगाने के कुछ देर बाद वह बोला, ‘‘ताज्जुब है, उस का फोन औफ है. जरा मैं बाहर देख कर आता हूं कि वह आया है कि नहीं. तुम यहीं ठहरो.’’

‘‘लेकिन मैं यहां अकेली…’’ मीरा ने चिंता जताई.

‘‘ओह… अकेली कहां हो. चारों ओर इतनी भीड़भाड़ है. फिर अपना सामान भी तो है. इस की निगरानी कौन करेगा? बस, मैं यों गया, यों आया.’’

श्याम तुरंत बाहर की ओर चला गया.

मीरा के चेहरे पर थोड़ी परेशानी झलक आई. एक तो सफर की थकान, दूसरे एकदम अजनबी शहर. वह अपने बक्सों पर नजर गड़ाए एक बैंच पर सिकुड़ कर बैठ गई. बारबार उस की नजरें बाहर वाले उस गेट की तरफ उठ जातीं, जहां से उस का पति बाहर गया था. पलपल उस की अधीरता बढ़ती जा रही थी. श्याम को गए काफी समय हो गया था और उस का कोई अतापता नहीं था. उस ने कुढ़ कर सोचा, ‘कहां रह गए.’

सहसा उस ने देखा कुछ युवक उस के पास आ कर रुके. ‘‘भाभी.’’ एक ने कहा, ‘‘आप मीरा भाभी ही हैं न, श्याम की पत्नी?’’

‘‘हां, लेकिन आप लोग कौन?’’ उस ने सवालिया नजरें उन पर गड़ा दीं.

‘‘हम उस के जिगरी दोस्त हैं, हम लोग श्याम की बारात में मुंबई आए थे न. आप ने हमें पहचाना नहीं क्या? मैं अनंत हूं और ये तीनों मनोहर, प्रेम और मुरुगन. हम आप दोनों को लेने निकले थे, लेकिन रास्ते में हमारी गाड़ी खराब हो गई. हमें टैक्सी कर के आना पड़ा, पहुंचने में थोड़ी देरी हो गई… खैर, श्याम कहां हैं?’’

‘‘वो तो आप को ही खोजने गए हैं.’’

‘‘ओह, हमारी नजर उस पर नहीं पड़ी. कोई बात नहीं, चलिए चलते हैं. श्याम को बाहर से ले लेंगे.’’

उन्होंने मीरा को कुछ बोलने का अवसर नहीं दिया और उसे लगभग खदेड़ कर साथ ले चले.

‘‘श्याम कहीं दिखाई दे नहीं रहा है,’’ अनंत ने कहा, ‘‘कोई हर्ज नहीं, हम में से कोई एक यहां रुक जाएगा, और उसे अपने साथ औटो में ले आएगा. वैसे भी टैक्सी में 4 से अधिक सवारी नहीं बैठ सकतीं.’’

धोखे का शिकार हुई नवविवाहिता मीरा उन्होंने मीरा को गाड़ी में बिठाया और आननफानन में टैक्सी चल पड़ी. मीरा के मन में धुकधुकी सी होने लगी. ये लोग उसे कहां लिए जा रहे हैं? अनजान शहर, अनजाने लोग. उस की घबराहट को भांप कर उस के साथ बैठा युवक हंसा, ‘‘भाभी, आप जरा भी न घबराएं. हम पर भरोसा कीजिए. हम चारों श्याम के बचपन के दोस्त हैं. अब तक हम बेसांटनगर में साथ ही रहते थे. अब उस ने अड्यार में किराए के एक दूसरे फ्लैट में शिफ्ट कर लिया है.’’

कुछ देर बाद टैक्सी रुकी.

‘‘आइए भाभी.’’ अनंत ने कहा.

मीरा ने चारों तरफ नजरें घुमाते हुए पूछा, ‘‘ये कौन सी जगह है?’’

‘‘ये हमारा घर है. आप को यहां थोड़ी देर रुकना पड़ेगा.’’

मीरा थोड़ी असहज हो गई, ‘‘लेकिन क्यों? और मेरे पति कहां रह गए?’’  उस ने पूछा.

‘‘बस, थोड़ी देर की बात है.’’ कहते हुए वे मीरा को घर के अंदर ले गए.

‘‘श्याम भी आता ही होगा. आप बैठिए. मैं आप के लिए कौफी बना कर लाता हूं.’’ अनंत ने कहा.

‘‘आप के घर में कोई महिला नहीं है क्या?’’ मीरा ने सवाल किया.

अनंत हंस दिया, ‘‘नहीं, हम चारों अभी कुंवारे हैं.’’

थोड़ी देर में कौफी आ गई. मीरा ने अनिच्छा से कौफी को मुंह लगाया. उस के मन में एक अनजाना सा डर बैठ गया था. वह सोच रही थी, ‘आखिर श्याम कहां रह गया और उस ने अब तक उस से फोन पर बात क्यों नहीं की?’

‘‘भाभी,’’ अनंत आत्मीयता से बोला, ‘‘हमारी कुटिया में आप के चरण पड़े. आप के साथ हमारी थोड़ी पहचान भी हो गई. हमें बड़ा अच्छा लगा. बाद में तो मिलनामिलाना होता ही रहेगा.’’

अनंत उस से जबरन नजदीकियां बनाना चाह रहा था. मीरा ने चिढ़ कर सोचा. यह जबरन उस के गले पड़ रहा है. बात इतनी ही नहीं है. इन सब ने एक तरह से उसे स्टेशन से अगवा कर लिया था और उस की मरजी के बगैर उसे वहां रोक रखा था. वे चारों उस के इर्दगिर्द शिकारी कुत्तों की तरह मंडरा रहे थे, पर उस से आंखें मिलाने से कतरा रहे थे.

उन के संदिग्ध व्यवहार से साफ लग रहा था कि उन के इरादे नेक नहीं हैं. उन की नीयत में खोट है. मीरा के मन में भय का संचार हुआ. उस ने उन लोगों के साथ आ कर बड़ी भूल की. अब वह उन के जाल से कैसे छूटेगी?

वह भयभीत थी. तभी अनंत ने अचानक अपने चेहरे से भलमनसाहत का मुखौटा उतार फेंका. उस के होंठों पर एक कुटिल मुसकान खेल रही थी, आंखों में वासना की लपटें दहक रही थीं.

पति के दोस्त ही निकले दरिंदे एकाएक उस ने मीरा पर धावा बोल दिया. मीरा की चीख निकल गई.

‘‘ये क्या कर रहे हैं आप?’’ उसने अपने आप को छुड़ाने की कोशिश की, ‘‘आप अपने होश में तो हैं न?’’

‘‘होश में था. अब तो मैं मदहोश हूं, आप के रूप ने मुझे दीवाना बना दिया है. भाभी, आप नहीं जानतीं कि आप की मदमाती आंखें कितना कहर ढा रही हैं. जब से हम लोगों ने शादी में आप की एक झलक देखी, तभी से हम आप पर बुरी तरह लटटू हो गए थे.’’

मीरा उस की बांहों में छपटपटाने लगी. लेकिन अनंत के बलिष्ठ बाजू उस के इर्दगिर्द कसते गए. आखिर उस ने मीरा को अपनी हवस का शिकार बना ही लिया. कुछ देर बाद वह उसे छोड़ कर चला गया. दरवाजा खुला और एक और व्यक्ति ने कमरे में प्रवेश किया. उसे देख कर मीरा के होश उड़ गए. ‘‘नहीं…’’ वह प्राणपण से चीख उठी. लेकिन उस की गुहार सुनने वाला वहां कोई नहीं था.

इज्जतआबरू लुटा कर असहाय रह गई मीरा बिस्तर पर असहाय सी पड़ी थी. उस की आंखों से झरझर आंसू बह रहे थे. उस ने सोचा, अब वह इस नर्क से कैसे निकलेगी? वह अपने पति को क्या मुंह दिखाएगी? क्या कोई उस की बात पर यकीन करेगा? दोस्ती का दम भरने वाले अपने दोस्त की पत्नी से ऐसा घृणित आचरण कैसे कर सकते हैं? ये तो अमानत में खयानत हुई. क्या सभ्य समाज के सदस्य इस हद तक गिर सकते हैं? क्या दुनिया में इंसानियत बिलकुल मर गई है?

वे लोग मीरा के बदन से तब तक खेले, जब तक उन का मन नहीं भर गया. फिर उसे श्याम के घर पहुंचा दिया गया.

‘‘अपने नए घर में तुम्हारा स्वागत है मीरा,’’ श्याम ने हुलस कर कहा, ‘‘बताओ कैसा लगा तुम्हें ये घर? मैं ने थोड़ीबहुत साफसफाई करवा दी है और राशनपानी भी ले आया हूं. मैं ने बाथरूम में गीजर चला दिया है. तुम नहा धो लो.’’

मीरा जड़वत, गुमसुम बैठी रही.

‘‘चाय पिओगी? क्या बात है, तुम इतनी चुप क्यों हो? क्या नाराज हो मुझ से? सौरी, मुझे अचानक किसी जरूरी काम से जाना पड़ गया था. पर मैं जानता था कि मेरे दोस्त तुम्हें सहीसलामत यहां पहुंचा देंगे.’’

भग्न हृदय, मीरा मुंह नीचा किए कठघरे में खड़े मुलजिम की तरह बैठी रही. श्याम ने उसे झकझोरा, ‘‘क्या हुआ भई, तुम कुछ बोलती क्यों नहीं?’’

अचानक वह फूट पड़ी और बिलखबिलख कर रोने लगी.

‘‘अरे ये क्या? रो क्यों रही हो? क्या हुआ, कुछ तो बोलो?’’

कूरियर बौय, विधवा रुखसार और वह रात

मुंबई में जुलाई का मौसम. रुखसार सुबह उठ कर रसोईघर में चाय बना ही रही थी कि हलकी बारिश होने लगी. उस ने चाय के साथसाथ गरमागरम पकौड़े भी तल दिए. इस के बाद तौलिया और नहाने के बाद पहनने वाले अंदरूनी कपड़े बाथरूम में रख दिए. बैडरूम में टैलीविजन पर कोई म्यूजिक चैनल चल रहा था.

पकौड़े तलने के बाद रुखसार ने खिड़की बंद कर दी और टैलीविजन की आवाज तेज कर दी. वह डांस करने लगी और मस्ती में खुद को दीवार पर लगे बड़े आईने में देखने लगी.

रुखसार ने काले रंग की नाइटी पहनी हुई थी. 35 साल की विधवा होते हुए भी उस ने अपने बदन को काफी मेंटेन किया हुआ था.

रुखसार मस्ती में डांस कर ही रही थी कि तभी दरवाजे की बैल बजी. उस ने टीवी की आवाज कम कर दी और एक दुपट्टा सिर पर रख लिया.

रुखसार ने दरवाजा खोला. बाहर कूरियर वाला था. 25 साल का जवान लड़का. वह कहने लगा, ‘‘कूरियर है… रुखसार खान के नाम से.’’

रुखसार को याद आया कि उस ने औनलाइन शौपिंग साइट से अपने लिए एक मोबाइल फोन बुक किया था. वह बोली, ‘‘मेरा ही नाम रुखसार है.’’

लड़के ने दस्तखत करने के लिए उसे पैन दिया. पैन देते समय उस के हाथ रुखसार की उंगलियों को छू गए थे. रुखसार ने एक नजर उस की ओर देखा और दस्तखत कर दिए.

रुखसार ने 52 सौ रुपए दिए तो लड़के ने 2 सौ रुपए वापस कर दिए और बोला, ‘‘2 सौ रुपए डिस्काउंट चल रहा है.’’

रुखसार ने उस लड़के को ध्यान से देखा, जिस ने आज के बेईमानी के जमाने में भी ईमानदारी से सच कहा और 2 सौ रुपए वापस कर दिए.

थोड़ी देर बाद वह लड़का बोला, ‘‘थोड़ा पानी मिलेगा?’’

रुखसार ने पूरा दरवाजा खोला और बोली, ‘‘तुम तो काफी भीग भी गए हो. अंदर आ जाओ.’’

रुखसार ने मोबाइल वाला डब्बा अलमारी में रखा और रसोईघर में पानी लेने चली गई. उस ने अपनी छाती से दुपट्टे को अलग कर दिया था.

कुछ देर बाद रुखसार ने लड़के को पानी दिया. पानी देते समय जैसे ही वह थोड़ा झुकी, लड़के की नजर उस के उभारों पर जा टिकी. उस की आंखें बड़ीबड़ी हो गईं.

पानी पीतेपीते वह लड़का नजर बचा कर रुखसार के उभारों को देख रहा था कि अचानक उस ने छींक दिया.

रुखसार बोली, ‘‘तुम्हें तो सर्दी लग गई है. अभी बारिश भी तेज है. तुम चाहो तो थोड़ी देर यहां रुक सकते हो.

‘‘तुम्हारे कपड़े भी काफी भीग गए हैं. चाहो तो बाथरूम में जा कर फ्रैश हो सकते हो.’’

वह लड़का बाथरूम में चला गया. दरवाजा बंद कर के लाइट जलाई. वहां रुखसार ने नहाने के लिए तौलिया और अंदरूनी कपड़े पहले से ही रखे हुए थे.

लड़के ने कमीज निकाल कर उस तौलिए को पहले चूमा, फिर उसी से अपने बदन को पोंछा. उस ने रुखसार के ब्रा को अपने हाथ में लिया ही था कि तभी दरवाजे पर दस्तक हुई. उस ने ब्रा को वहीं पर रख दिया और थोड़ा सा दरवाजा खोला.

रुखसार ने उस को काले रंग का कुरता दिया और बोली, ‘‘यह लो, इसे पहन लेना.’’

लड़के ने वह कुरता पहन लिया और अपनी कमीज सूखने के लिए डाल दी.

वह बैडरूम में जा कर टैलीविजन देखने लगा. रुखसार रसोईघर से चाय और पकौड़े ले आई और उस से पूछा, ‘‘क्या नाम है तुम्हारा?’’

लड़का बोला, ‘‘जुनैद.’’

‘‘कहां के रहने वाले हो तुम?’’

‘‘आजमगढ़.’’

‘‘मैं भी आजमगढ़ की रहने वाली हूं. आजमगढ़ में कहां से हो तुम?’’

‘‘लालगंज तहसील.’’

‘‘मैं निजामाबाद की रहने वाली हूं. लालगंज में हमारे काफी रिश्तेदार रहते हैं. अम्मीं की भी वहां की पैदाइश है.

‘‘और कौनकौन रहता है आप के साथ?’’

‘‘सिर्फ मैं.’’

‘‘और आप के शौहर?’’

‘‘उन की मौत हो गई है.’’

‘‘माफ करना, पर कैसे?’’

रुखसार ने बताया कि साल 2013 में हुए मुजफ्फरनगर दंगे में उस के शौहर के साथ ससुराल के सभी लोग मारे गए थे.

यह बताते हुए रुखसार की आंखें नम हो गईं. जुनैद ने उस का दुख बांटने की कोशिश की और अपने बारे में बताया कि उस ने आजमगढ़ से बीटैक की पढ़ाई की है और वह मालवणी में अपने चाचा के साथ पिछले एक साल से रह रहा है. जब उसे अपनी फील्ड मेकैनिकल इंजीनियरिंग में कोई नौकरी नहीं मिली, तो उस ने कूरियर कंपनी में नौकरी शुरू कर दी.

उन दोनों को बातें करतेकरते एक घंटा हो गया था. रुखसार जुनैद को अपने निकाह की तसवीरें दिखाने लगी. जुनैद बोला, ‘‘तब आप किसी खूबसूरत अप्सरा से कम नहीं थीं.’’

रुखसार ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘अच्छा…’’ और वह खाली प्लेट और कप ले कर रसोईघर में चली गई. अब वह नहाने की तैयारी कर रही थी.

जुनैद उस समय की खूबसूरती को निहार रहा था. वह नहाने के लिए जा ही रही थी कि तभी वापस बैडरूम में गई. जुनैद हैरान रह गया.

रुखसार ने पूछा, ‘‘कैसे लगी निकाह की अलबम?’’

जुनैद बोला, ‘‘बहुत खूबसूरत,’’

वह रुखसार के गले के नीचे देख रहा था, ‘‘वैसे अभी भी आप कुछ कम नहीं हैं.’’

यह सुन कर रुखसार एक खास अदा में मुसकरा दी.

रुखसार नहाने चली गई. कुछ देर बाद बाथरूम से आवाज आई, ‘‘मैं अपना तौलिया लेना भूल गई हूं. दे दो मुझे.’’

जुनैद ने रुखसार को तौलिया दे दिया. कुछ देर बाद पानी की आवाज आने लगी.

जुनैद ने सोचा कि रुखसार अब नहाने लगी है. वह अपने खूबसूरत बदन पर साबुन लगा रही होगी.

कुछ देर बाद पानी की आवाज धीमी हो कर बंद हो गई. रुखसार नहा कर बाहर आई. उस ने काले रंग का लहंगा और काले रंग की चोली पहनी थी. छाती पर दुपट्टा था और सिर पर तौलिया बंधा हुआ था.

जुनैद रुखसार को देख कर भी अनजान बना टीवी देख रहा था. रुखसार आईने के सामने खड़ी थी. उस ने अपने पूरे बाल खोल दिए थे. खुले हुए लंबे बाल उस की खूबसूरती को बढ़ा रहे थे.

जुनैद के मन में आया कि वह चुपके से उठ कर रुखसार की कमर पकड़ कर उसे पूरी तरह दबा दे. तभी रुखसार ने जुनैद की तरफ देखा. इस से जुनैद घबरा गया और अपनी चोर नजरों को टीवी पर लगा दिया.

कुछ देर बाद रुखसार ने अलमारी से वह मोबाइल निकाला, जो जुनैद ले कर आया था. वह उस के फीचर के बारे में जुनैद से पूछने लगी और उस के पास आ कर बैठ गई.

जुनैद ने रुखसार को वह फोन चलाना सिखाया. वह अपनी उंगलियों से उस की मुलायम उंगलियों को पकड़ कर मोबाइल के अलगअलग फीचर बताने लगा.

बीचीबीच में जुनैद का हाथ रुखसार के हाथ को छू भी जाता था, पर रुखसार ने बुरा नहीं माना.

इस से जुनैद हिम्मत की बढ़ गई. अब वह जानबूझ कर उस के हाथ को छूने लगा. धीरेधीरे उस की नजरें मोबाइल से हट कर रुखसार के गले के निचले हिस्से की तरफ गईं.

इसी तरह दोपहर के 2 बज गए. बारिश धीमी हो गई थी. वे दोनों खाना खाने लगे.

जुनैद ने पूछा, ‘‘आप दोबारा निकाह क्यों नहीं कर लेतीं?’’

रुखसार बोली, ‘‘तुम ने क्यों नहीं किया अभी तक निकाह?’’

‘‘अम्मी तो कई बार जिद करती रहती हैं निकाह के लिए, पर मैं ही टाल देता हूं कि अभी तक कोई लड़की पसंद नहीं आई. जब पसंद आएगी, तो कर लूंगा.’’

‘‘तो कैसी लड़की पसंद है तुम्हें?’’ रुखसार ने पूछा.

‘‘वही जो आप की तरह समझदार हो. घरेलू काम जानती हो. जो मुझे रोज गरमागरम चाय और बिलकुल आप जैसे पकौड़े बना कर खिला सके.’’

रुखसार उस का भाव समझते हुए बोली, ‘‘मैं तो तुम से 10 साल बड़ी हूं और विधवा भी हूं.’’

जुनैद बोला, ‘‘तो क्या हुआ?’’

‘‘पर क्या तुम्हारे अब्बू और अम्मी मानेंगे?’’

‘‘अरे, निकाह मुझे करना है या अम्मीअब्बू को. तुम ने वह कहावत नहीं सुनी कि जब मियांबीवी राजी, तो क्या करेगा काजी…’’

शाम के 5 बज चुके थे. तभी जुनैद का फोन आया. उस की अम्मी ने फोन किया था. वह बात करने के लिए रसोईघर में चला गया.

रुखसार दीवार से कान लगाए जुनैद की बातें सुन रही थी. जुनैद ने भांप लिया था कि रुखसार पास ही है.

तभी जुनैद बोला, ‘‘नहीं अम्मी, अब लड़की देखने की जरूरत नहीं है. मुझे एक लड़की पसंद है.’’

यह सुन कर रुखसार शरमा गई और नजरें बचा कर जुनैद को देखने लगी.

इस के बाद जुनैद ने फोन काट दिया. रुखसार पीछे से आ कर उस से लिपट गई. जुनैद ने उसे अपनी बांहों में भर लिया.

रुखसार बोली, ‘‘तुम ने तो अपनी अम्मी से बात कर ली है, मुझे भी अपने अम्मीअब्बू से बात करनी होगी. अच्छा, तुम्हें घर नहीं जाना क्या? रात के 7 बज चुके हैं.’’

जुनैद ने बताया, ‘‘चाचा किसी काम से आज ही बाहर गए हैं. घर में कोई नहीं है. खाना भी बाहर ही खाना होगा.’’

तभी बारिश दोबारा शुरू हो गई. रुखसार ने जुनैद को रोका. वह बोली, ‘‘अगर बुरा न मानो, तो आज यहीं रुक जाओ.’’

जुनैद का भी मन कर रहा था उस के साथ पूरी रात रुकने का.

रुखसार ने खीर, पूरी और तरकारी बनाई थी. शायद इसी खुशी में कि उसे जुनैद जैसा जीवनसाथी मिला था.

जुनैद ने खाना खाते हुए कहा, ‘‘रुखसार, तुम खाना बहुत अच्छा बनाती हो, बिलकुल मेरी अम्मी की तरह.’’

रुखसार ने जुनैद के मुंह से पहली बार अपना नाम सुना. उसे बहुत अच्छा लगा.

थोड़ी देर बाद रुखसार अपने अब्बू से फोन पर बात करने बाहर चली गई.

जब वह वापस आई, तो जुनैद बोला, ‘‘क्या कहा उन्होंने?’’

‘‘उन्होंने कहा कि अगर लड़का हमारी बिरादरी का है, नेक है और अपने पैरों पर खड़ा है, तो उन्हें कोई एतराज नहीं,’’ इतना कह कर रुखसार के चेहरे पर शर्म वाली मुसकराहट आ गई.

रात के 10 बजे रुखसार बोली, ‘‘मैं रसोईघर में सो जाती हूं, तुम यहीं बैडरूम में सो जाओ.’’

‘‘नहीं, मैं वहां सो जाऊंगा. और तुम बैडरूम में सोना, क्योंकि यह घर तो तुम्हारा है.’’

‘‘पर निकाह के बाद तो तुम्हारा भी हो जाएगा,’’ रुखसार के मुंह से निकल गया.

यह सुन कर जुनैद ने उसे गले से लगा लिया और उस के गालों पर एक जोरदार चुंबन जड़ दिया. उस ने उस की छाती से दुपट्टा अलग कर दिया.

रुखसार भी जुनैद से पूरी तरह लिपट गई. जुनैद ने अपने होंठ उस के गुलाबी होंठों पर रख दिए. रुखसार की आंखें बंद हो गईं. उस के बाद जुनैद ने कमरे की लाइट बंद कर दी.

दुविधा: क्या संगिता और सौमिल की जोड़ी बेमेल थी?

देवकुमार सुबह से ही काफी खुश नजर आ रहे थे. उन की बेटी संगीता को देखने के लिए लड़के वाले आने वाले थे. घर की पूरी साफसफाई तो उन्होंने कल ही कर डाली थी. फ्रूट्स, ड्राइफ्रूट्स तथा अच्छी क्वालिटी की मिठाई आज ले आए थे. लड़का रेलवे में इंजीनियर है, अच्छी तनख्वाह पाता है. लड़के के साथ उस के भाईभाभी व मातापिता भी आ रहे थे.

वैसे, लड़के के मातापिता ने तो संगीता को पहले ही देख लिया था और पसंद भी कर लिया था. पसंद आती भी क्यों न? संगीता सुंदर तो है ही, बहुत व्यवहारकुशल भी है. उस ने भी इंजीनियरिंग की है तथा बैंक में काम कर रही है.

देवकुमार सरकारी मुलाजिम थे और उन की पत्नी अंजना सरकारी विद्यालय में शिक्षिका. इकलौती बेटी होने से उन दोनों की इच्छा थी कि जानेपहचाने परिवार में रिश्ता हो जाए, तो बहुत अच्छा होगा. लड़के वाले पास ही के शहर के थे और उन के दूर के रिश्तेदार, जिन के माध्यम से शादी की बात शुरू हुई थी, देवकुमारजी के भी दूर के रिश्ते में लगते थे. देवकुमार ने अपनी बहन व बहनोई को भी बुला लिया था ताकि उन की राय भी मिल सके.

ठीक समय पर घर के सामने एक कार आ कर रुकी. देवकुमार और उन के बहनोई ने दौड़ कर उन का स्वागत किया. ड्राइंगरूम में आ कर सभी सोफे पर बैठ गए. लड़का थोड़ा दुबला लगा लेकिन स्मार्ट, चैक वाली हाफशर्ट तथा जींस पहने हुए, छोटी फ्रैंचकट दाढ़ी. बड़े भाई का एक छोटा सा बच्चा भी था, वे उसे खिलाने में ही व्यस्त रहे.

लड़के के पिता बैंक मैनेजर थे. उन्हें सेवानिवृत्त होने में एक वर्ष बचा था. काफी बातूनी लगे. बच्चों के जन्म से ले कर उन की पढ़ाई और फिर नौकरी तक की बातें बता डालीं. संगीता भी इसी बीच आ चुकी थी. लड़के की मां व भाभी उस से पूछताछ करती रहीं.

लड़के की मां ने सुझाव दिया कि एक अलग कमरे में सौमिल और संगीता को बैठा दें ताकि वे एकदूसरे को सम झ सकें. संगीता की मां दोनों को बगल के कमरे में छोड़ कर आईं. इधर नाश्ते के साथसाथ मैनेजर साहब की बातों में पता ही न चला कि कब एक घंटा बीत गया. तब तक संगीता और सौमिल भी वापस आ चुके थे.

मैनेजर साहब और उन का परिवार आवभगत से संतुष्ट नजर आए. चलते समय देवकुमार के कंधे पर हाथ रख कर बोले, ‘‘हम लोगों को दोतीन दिनों का वक्त दीजिए ताकि घर में सब बैठ कर चर्चा कर सकें और आप को निर्णय बता सकें.’’

उन्हें आत्मीयता से विदा कर देवकुमार का परिवार फिर ड्राइंगरूम में बैठ कर सौमिल और उस के परिवार का विश्लेषण करने लगे. सभी की राय एकमत थी कि परिवार अच्छा व संभ्रांत है. लड़का थोड़ा दुबला है लेकिन सुंदर और स्मार्ट है. उस की सोच व विचार कैसे हैं, यह तो संगीता ही बता पाएगी कि उस से क्या बातें हुईं.

संगीता ने अपनी मां को जो बताया उसे लगा कि उस के विचार सौमिल के विचारों से मेल नहीं खाते. संगीता को घूमनेफिरने, मस्ती करने, डांस करने, पार्टियों में जाना तथा फैशनेबल कपड़े पहनना पसंद है. सौमिल को शांत वातावरण, एकांत, साधारण रहनसहन एवं पुस्तकें पढ़ना पसंद है.

लड़के की मां को ऐसी बहू चाहिए जो अच्छा खाना बनाना जानती हो, गृहस्थी के कार्यों में कुशल हो. उन्हें बहू से नौकरी नहीं करानी. उन्होंने संगीता से कम से कम 4-5 बार पूछा कि क्या वह खाना बना लेती है? क्याक्या बना लेती है?

लड़के के विचार संगीता को पसंद नहीं आए, यह सुन कर देवकुमार चिंता में पड़ गए. अभी तक वे बहुत खुश थे कि बिना इधरउधर भटके अच्छा घर तथा अच्छा वर मिल रहा है.

थोड़ी देर के लिए शांति छा गई, फिर अंजना ने कहा कि अब यदि उन का फोन आता है तो उन्हें क्या जवाब देना है? सभी ने निर्णय संगीता पर ही छोड़ने को तय किया. आखिर उसे पूरी जिंदगी निर्वाह करना है. 3 दिन बीत जाने पर भी जब कोई फोन नहीं आया तो सभी अपनेअपने अनुमान लगाने लगे.

संगीता के फूफाजी बोले, ‘‘मुझे लगता है कि लड़के के बड़े भाई और भाभी को संगीता पसंद नहीं आई, वे दोनों एकदूसरे से आंखोंआंखों के इशारों से पसंद आने न आने का पूछ रहे थे. मैं ने देखा कि बड़े भाई ने नकारात्मक इशारा किया था. आप लोगों ने नोटिस किया होगा, बड़ा भाई एक शब्द भी नहीं बोला पूरे समय, अपने बच्चे को खिलाने में ही लगा रहा था.’’

संगीता की मां बोली, ‘‘हमारी लड़की के सामने तो लड़का कुछ भी नहीं. गोरे रंग और सुंदरता में तो हमारी संगीता इक्कीस ही ठहरती है.’’

संगीता हंसती हुई बोली, ‘‘हम दोनों की जिस तरह से बातें हुई हैं, वह घबरा गया होगा, कभी हामी नहीं भरेगा.’’

संगीता के उठ कर चले जाने के बाद देवकुमार बोले, ‘‘यदि उन की तरफ से रिश्ता स्वीकार नहीं होता है तो हमारी संगीता के मन पर चोट पड़ेगी. पहली बार ही उस को दिखाया है और उन के मना कर देने पर मनोवैज्ञानिक असर तो पड़ेगा ही, उसे सदमा भी लगेगा.’’

संगीता की बूआजी बोली, ‘‘देखो,  2 लोगों के एकजैसे विचार हों, यह तो संभव ही नहीं. जब 2 सगे भाईबहनों के विचार नहीं मिलते, तो ये तो दूसरे परिवार का मामला है. विवाह तो समन्वय बनाने की कला है, प्रेम और त्याग का रिश्ता है. और यह तो सदियों से होता चला आ रहा है कि लड़की को ही निभाना पड़ता है. हमारी संगीता सब कर लेगी. शांत मन से मैं कल उस से बात करूंगी.’’

देवकुमार को पूरी रात नींद नहीं आई. उन्हें संगीता की बूआजी की बातें तर्कसंगत लगीं. वे सोचने लगे कि संगीता को एडजस्ट करना ही होगा. यदि कल शाम तक बैंक मैनेजर साहब का फोन नहीं आता है तो मैं स्वयं फोन लगा कर बात करूंगा.

दूसरे दिन बुआजी ने संगीता को सम झाने की कोशिश की किंतु व्यर्थ.

संगीता बोली, ‘‘बूआजी, उन्हें सिर्फ खाना बनाने वाली बाई चाहिए तो शादी क्यों कर रहे हैं? एक नौकरानी रख लें. एडजस्टमैंट एक तरफ से संभव नहीं, दोनों तरफ से होना चाहिए. यह 21वीं सदी का दौर है. जमाना बदल गया है. उन की मम्मीजी ने कम से कम दस बार यही पूछा, ‘खाना बना लेती हो, क्याक्या बना लेती हो? हमारा लड़का खाने का बहुत शौकीन है, अभी होटल का खाना खाखा कर 3-4 किलो वजन कम हो गया है उस का.’’

देवकुमार शाम को बाजार से घर पहुंचे ही थे कि मैनेजर साहब का फोन आ गया. बड़े ही साफ शब्दों में उन्होंने पूरी बात बताई कि संगीता सभी को अच्छी लगी है. सौमिल का कहना है कि उन दोनों की सोच और विचार मेल नहीं खाते हैं, फिर भी यदि संगीता को एडजस्ट करने में कोई दिक्कत न हो तो उसे कोई आपत्ति नहीं है.

‘‘आप सब सोचसम झ कर जो भी फैसला लें, मुझे 6-7 दिनों में बता दीजिएगा,’’ मैनेजर साहब ने बड़ी विनम्रता से अपनी बात समाप्त की.

अब गेंद देवकुमार के पाले में आ गई थी. कल रात कैसेकैसे खयाल आते रहे थे. बेटी के मन पर सदमे का सोचसोच कर परेशान थे. मैनेजर साहब कितने सुलझे हुए और स्पष्टवादी हैं. संगीता को समझना होगा. एक अच्छी और स्ट्रेट फौरवर्ड फैमिली है.

रात में खाना खाते समय मन में एक ही बात घूमफिर कर बारबार आ रही थी कि कैसे संगीता को अपने मन की बात समझाऊं. मैं ने और अंजना ने जो चाहा था, सब मिल रहा है. लड़का अच्छा पढ़ालिखा, अच्छी नौकरी वाला, सुंदर और स्मार्ट है. जानापहचाना परिवार है. और सब से बड़ी बात, पास के शहर में रहेगी तो कभी भी बुला लो या जा कर मिल आओ. वे बारबार संगीता को देखते, उस के मन में क्या चल रहा होगा, फिर सोचते, नहीं अपने स्वार्थ के लिए उस की इच्छा पर अपनी इच्छा नहीं लाद सकते.

खाने के बाद सब ड्राइंगरूम में बैठे. देवकुमार ने मैनेजर साहब के जवाब से संगीता को अवगत कराते हुए कहा, ‘‘बेटे, अब हम लोग बड़ी दुविधा में हैं, सबकुछ हम लोगों के मनमाफिक है पर अंतिम निर्णय तो तुम्हारी इच्छा से ही होगा. तुम चाहो तो सौमिल से मोबाइल पर और बात कर सकती हो.’’

संगीता पापा से कहना चाहती थी कि आज 4 दिन हो गए, यदि सचमुच मैं पसंद हूं उन्हें तो क्या सौमिल को नहीं चाहिए था कि वह मुझ से बात करता? इस में भी उस का ईगो है? मोबाइल पर बात करने की शुरुआत करने में भी मुझे ही एडजस्ट करना है? लेकिन उस ने कुछ नहीं कहा, चुपचाप उठ कर अपने कमरे में चली गई. देवकुमार चुपचाप उसे जाते देखते रहे.

कभी अलविदा न कहना : पिता से झूठ बोल कर फौज में जाने वाला लड़का

वरुण के बदन में इतनी जोर का दर्द हो रहा था कि उस का जी कर रहा था कि वह चीखे, पर वह चिल्लाता कैसे. वह था भारतीय सेना का फौजी अफसर. अगर वह चिल्लाएगा, तो उस के जवान उस के बारे में क्या सोचेंगे कि यह कैसा अफसर है, जो चंद गोलियों की मार नहीं सह सकता.

वरुण की आंखों के सामने उस की पूरी जिंदगी धीरेधीरे खुलने लगी. उसे अपना बचपन याद आने लगा. उस के 5वें जन्मदिन पर उसे फौजी वरदी भेंट में मिली थी, जिसे पहन कर वह आगेपीछे मार्च करता था और सेना में अफसर बनने के सपने देखता था.

‘पापा, मैं बड़ा हो कर फौज में भरती होऊंगा,’ जब वह ऐसा कहता, तो उस के पापा अपने बेटे की इस मासूमियत पर मुसकराते, लेकिन कहते कुछ नहीं थे.

वरुण के पापा एक बड़े कारोबारी थे. उन का इरादा था कि वरुण कालेज खत्म करने के बाद उन्हीं के साथ मिल कर खुद एक मशहूर कारोबारी बने. उन्होंने सोच रखा था कि वे वरुण को फौज में तो किसी हालत में नहीं जाने देंगे.

अचानक वरुण के बचपन की यादों में किसी ने बाधा डाली. उस के कंधे पर एक नाजुक सा हाथ आया और उस के साथ किसी की सिसकियां गूंज उठीं. तभी एक मधुर सी आवाज आई, ‘मेजर वरुण…’ और फिर एक सिसकी सुनाई दी. फिर सुनने में आया, ‘मेजर वरुण…’

वरुण ने सिर घुमा कर देखा कि एक हसीन लड़की उस के पास खड़ी थी. उस के हाथ में एक खूबसूरत सा लाल गुलाब भी था.

‘वाह हुजूर, अब आप मुझे पहचान नहीं रहे हैं…’

वरुण को हैरानी हुई. उस ने सोचा, ‘कमाल है यार, मैं फौजी अफसर हूं और यह जानते हुए भी यह मुझे बहलाफुसला कर अपने चुंगल में फंसाने के लिए मुझ से जानपहचान बनाना चाह रही है. मैं इस से बात नहीं करूंगा. अपना समय बरबाद नहीं होने दूंगा,’ और उस ने अपना सिर घुमा लिया.

वरुण की जिंदगी की कहानी फिर उस की आंखों के सामने से गुजरने लगी. जब वह सीनियर स्कूल में पहुंचा, तो एनसीसी में भरती हो गया. वह फौज में जाने की पूरी तैयारी कर रहा था.

स्कूल खत्म होने के बाद वरुण के पापा ने उसे कालेज भेजा. कालेज तो उसी शहर में था, पर उन्होंने वरुण का होस्टल में रहने का बंदोबस्त किया. वह इसलिए कि वरुण के पापा का खयाल था कि होस्टल में रह कर उन का बेटा खुद अपने पैरों पर खड़ा होना सीखेगा.

उस जमाने में मोबाइल फोन तो थे नहीं, इसलिए वरुण हफ्ते में एक बार घर पर फोन कर सकता था, अपना हालचाल बताने और घर की खबर लेने के लिए.

उस के पापा उस से हमेशा कहते, ‘बेटे, याद रखो कि कालेज खत्म करने के बाद तुम कारोबार में मेरा हाथ बंटाओगे. आखिर एक दिन यह सारा कारोबार तुम्हारा ही होगा.’

वरुण को अपनी आंखों के सामने फौजी अफसर बनने का सपना टूटता सा दिखने लगा. वह हिम्मत हारने लगा. फिर एक दिन अचानक एक अनोखी घटना घटी, जिस से उस की जिंदगी का मकसद ही बदल गया.

वरुण के होस्टल का वार्डन ईसाई था. उस के पिता फौज के एक रिटायर्ड कर्नल थे, जो पत्नी की मौत के चलते अपने बेटे के साथ रहते थे. एक दिन 90 साल की उम्र में उन की मौत हो गई.

वार्डन होस्टल के लड़कों की अच्छी देखभाल करता था. इस वजह से होस्टल के सारे लड़कों ने तय किया कि वे सब वार्डन के पिता की अंत्येष्टि में शामिल होंगे.

जब लड़के कब्रिस्तान पहुंचे, तो उन्होंने एक अजीब नजारा देखा. वार्डन के पिता का शव कफन के अंदर था, पर कफन के दोनों तरफ गोल छेद काटे गए थे, जिन में से उन के हाथ बाहर लटक रहे थे.

एक लड़के ने पास खड़े उन के एक रिश्तेदार से पूछा कि ऐसा क्यों किया गया है.

जवाब मिला, ‘यह उन की मरजी थी और उन की वसीयत में भी लिखा था कि उन को इस हालत में दफनाया जाए. लोग देखें कि वे इस दुनिया में खाली हाथ आए थे और खाली हाथ जा रहे हैं.’

वरुण यह जवाब सुन कर हैरान हो गया. उस ने सोचा कि अगर खाली हाथ ही जाना है, तो क्या फर्क पड़ेगा कि वह अपने मन की मुराद पूरी कर के फौजी अफसर की तनख्वाह कमाए, बनिस्बत कि अपने पिता के साथ करोड़ों रुपए का मालिक बने. उस ने पक्का इरादा किया कि वह फौजी अफसर ही बनेगा.

वरुण जानता था कि उस के पापा उसे कभी अपनी रजामंदी से फौज में जाने नहीं देंगे.

काफी सोचविचार के बाद वरुण ने अपने पिता को राजी कराने के लिए एक तरकीब निकाली.

एक दिन जब देर शाम वरुण के पापा घर लौटे और उस के कमरे में गए, तो उन्होंने उस की टेबल पर एक चिट्ठी पाई. लिखा था:

‘पापा, मैं घर छोड़ कर अपनी प्रमिका के साथ जा रहा हूं. वैसे तो उम्र में वह मुझ से 10 साल बड़ी है, पर इतनी बूढ़ी लगती नहीं है. वह पेट से भी है, क्योंकि उस के एक दोस्त ने शादी का वादा कर के उसे धोखा दिया.

‘हम दोनों किसी मंदिर में शादी कर लेंगे और कहीं दूर जा कर रहेंगे. जब एक साल के बाद हम वापस आएंगे, तो आप अपनी पोती या पोते का स्वागत करने के लिए एक बड़ी पार्टी जरूर दीजिएगा.

‘आप का आज्ञाकारी बेटा,

‘वरुण.’

वरुण को पीछे पता चला कि उस की चिट्ठी पढ़ने के बाद उस के पापा की आंखों के सामने अंधेरा सा छाने लगा. तब तक उस के कमरे में उस की मां आ गईं.

‘वरुण कहां है?’ मां ने पूछा, तो वरुण के पापा की आवाज बड़ी मुश्किल से उन के गले से निकली. ‘पता नहीं…’

वरुण की मां ने कहा, ‘तकरीबन एक घंटे पहले उस ने कहा था कि वह बाहर जा रहा है और शायद देर से लौटेगा. पर बात क्या है? आप की तबीयत कुछ ठीक नहीं लग रही है.’

वरुण के पापा ने बिना कुछ बोले जमीन पर गिरी चिट्ठी की ओर इशारा किया. उस की मां ने चिट्ठी उठाई और पढ़ने लगीं.

‘मेरे प्यारे पापा,

‘जो इस चिट्ठी के पिछली तरफ लिखा है, वह सरासर झूठ है. मेरी कोई प्रेमिका नहीं है और न ही मैं किसी के साथ आप से दूर जा रहा हूं. मैं अपने दोस्त मनोहर के घर पर हूं. हम देर रात तक टैलीविजन पर क्रिकेट मैच देखेंगे और फिर मैं वहीं सो जाऊंगा.

‘मैं ने मनोहर के मम्मीपापा को बताया है कि मुझे उन के यहां रात बिताने में कोई दिक्कत नहीं है. मैं आप लोगों से कल सुबह मिलूंगा.

‘मैं ने जो पिछली तरफ लिखा है, वह तो इसलिए, ताकि आप को महसूस हो कि मेरा फौज में जाना बेहतर होगा, इस से पहले कि मैं कोई गड़बड़ी वाला काम कर लूं.’

वरुण के पापा ने ठंडी सांस भरी और मन ही मन में बोले, ‘तू जीत गया मेरे बेटे, मैं हार गया.’

वरुण ने यूपीएससी का इम्तिहान आसानी से पास किया. सिलैक्शन बोर्ड के इंटरव्यू में भी उस के अच्छे नंबर आए. फिर देहरादून की मिलिटरी एकेडमी में उस ने 2 साल की तालीम पाई. उस के बाद उस के बचपन का सपना पूरा हुआ और वह फौजी अफसर बन गया.

कुछ साल बाद कारगिल की लड़ाई छिड़ी. वरुण की पलटन दूसरे फौजी बेड़ों के साथ वहां पहुंची. वरुण उस समय छुट्टी पर था… उस की छुट्टियां कैंसिल हो गईं. वह लौट कर अपनी पलटन में आ गया.

वरुण ने अपनी कंपनी के साथ दुश्मन पर धावा बोला. भारतीय अफसरों की परंपरा के मुताबिक, वरुण अपने सिपाहियों के आगे था. दुश्मन ने अपनी मशीनगनें चलानी शुरू कीं. वरुण को कई गोलियां लगीं और वह गिर गया…

फिर वही सिसकियों वाली आवाज वरुण के कानों में गूंज उठी, ‘वरुण, मैं आप का इंतजार कब तक करती रहूंगी? आप मुझे क्यों नहीं पहचान रहे हैं?’

वह लड़की घूम कर वरुण के सामने आ कर खड़ी हो गई. वरुण की सहने की ताकत खत्म हो गई.

‘हे सुंदरी….’ वरुण की आवाज में रोब भरा था, ‘मैं जानता नहीं कि तुम कौन हो और तुम्हारी मंशा क्या है. पर अगर तुम एक मिनट में यहां से दफा नहीं हुईं, तो मैं…’

‘आप मुझे कैसे भूल गए हैं? आप ने खुद मुझसे मिलने के लिए कदम उठाया था.’

वरुण ने सोचा, ‘अरे, एक बार मिलने पर क्या तुम्हें कोई अपना दिल दे सकता है,’ पर वह चुप रहा.

इस से पहले कि वह अपनी निगाहें सुंदरी से हटा लेता, वह फिर बोली, ‘अरे फौजी साहब, आप के पापा ने आप के मेजर बनने की खुशी में पार्टी दी थी. आप के दोस्त तो उस में आए ही, पर उन से बहुत ज्यादा आप के मम्मीपापा के ढेरों दोस्त आए हुए थे.

‘मेरे पापा आप के पापा के खास दोस्तों में हैं. वे मुझे भी साथ ले गए थे.

‘आप के पापा ने मेरे मम्मीपापा से आप को मिलवाया था. मैं भी उन के साथ थी. आप ने मुझे देखा और मुझे देखते ही रह गए. बाद में मुझे लगा कि आप की आंखें मेरा पीछा कर रही हैं. मुझे बड़ा अजीब लगा.’

वह कुछ देर चुप रही. वरुण उसे एकटक देखता ही रहा.

‘मैं ने देखा कि बहुत से लोग आप को फूलों के गुलदस्ते भेंट कर रहे थे. मैं दूर जा कर एक कोने में दुबक कर बैठ गई. जब आप शायद फारिग हुए होंगे, तो आप मुझे ढूंढ़ते हुए आए. मेरे सामने झुक कर एक लाल गुलाब आप ने मुझे भेंट किया.’

वरुण के मन में एक परदा सा उठा और उसे लगा कि वह लड़की सच ही कह रही थी. तभी उसे आगे की बातेंयाद आईं. उस की मम्मी ठीक उसी समय वहां पहुंच गईं. उन्होंने शायद सारा नजारा देख लिया था, इसलिए उन्होंने मुसकराते हुए वरुण की पीठ थपथपाई. वे काफी खुश लग रही थीं. वे शायद उस के पापा के पास चली गईं और उन्हें सारी बातें बता दी होंगी.

तभी वरुण के माइक पर सभी लोगों से कहा, ‘आज की पार्टी मेरे बेटे वरुण के मेजर बनने की खुशी में है,’ उन्होंने वरुण की ओर देख कर उसे बुलाया. जब वरुण स्टेज पर पहुंच गया, तब वे माइक पर आगे बोले, ‘और इस मौके पर उसे मैं एक भेंट देने जा रहा हूं.’

उन्होंने एक हाथ बढ़ा कर वरुण का हाथ थामा और दूसरे हाथ से अपने दोस्त राम कुमार की बेटी का हाथ पकड़ा और बोले, ‘वरुण को हमारी भेंट है… भेंट है उस की होने वाली दुलहन विनीता, जो मेरे दोस्त राम कुमार की बेटी है.’

उन्होंने वरुण को विनीता का हाथ थमा दिया. सारा माहौल खुशी की लहरों और तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा.

विनीता शरमा कर अपना हाथ वरुण के हाथ से छुड़ाने की कोशिश करने लगी. वरुण ने हाथ नहीं छोड़ा और विनीता के कान के पास कहा, ‘सगाई में मैं तुम्हारे लिए एक अंगूठी देख लूंगा. अभी मेरी छुट्टी के 45 दिन बाकी हैं.’

अफसोस, लड़ाई छिड़ने के चलते वरुण की छुट्टियां कैंसिल हो गईं…

फौजी डाक्टर ने वरुण के शरीर की पूरी जांचपड़ताल की. उस के पास ही वरुण के कमांडिंग अफसर खड़े थे, जिन के चेहरे पर भारी आशंका छाई हुई थी.

‘‘मुबारक हो सर,’’ डाक्टर ने उन को संबोधित कर के कहा, ‘‘आप के मेजर को 4 गोलियां लगी हैं, पर कोई भी जानलेवा नहीं है. खून काफी बह चुका है, पर वे जिंदा हैं. आप के ये अफसर बड़े मजबूत हैं. मैं इन्हें जल्द ही अस्पताल पहुंचा दूंगा. मुझे पक्का यकीन है कि चंद हफ्तों में ये बिलकुल ठीक हो जाएंगे.’’

‘‘मुझे भी यही लग रहा है,’’ वरुण के कमांडिंग अफसर ने जवाब दिया.

ईंट का जवाब पत्थर से : नंदन की हवस का अनोखा नतीजा

चित्रा सोने की चिड़िया थी. मातापिता की एकलौती लाड़ली. उस के पिता लाखों रुपए कमाने वाले एक वकील थे. मां पूजापाठ के लिए मंदिरों के चक्कर लगाती रहती थीं.

चित्रा पर किसी का कंट्रोल नहीं था. उस की मनमानी चलती थी.

चित्रा कालेज में बीए के फर्स्ट ईयर में पढ़ रही थी. वह बहुत खूबसूरत थी. उस के एकएक अंग से जवानी फूटती थी. वह अपने जिस्म को ढकने के बजाय दिखाने में ज्यादा यकीन करती थी.

चित्रा का बैग रुपयों से भरा रहता था, इसलिए उस की सहेलियां गुड़ की मक्खी की तरह उस से चिपकी रहती थीं. लड़के उस की जवानी का मजा लेने के लिए पीछे पड़े रहते थे.

इसी बात का फायदा उठा कर चित्रा कालेज में ग्रुप लीडर बन गई. इस से वह और भी ज्यादा घमंडी हो गई.

चित्रा के कालेज में सैकंड ईयर में नंदन नाम का एक लड़का पढ़ता था. वह उस इलाके के सांसद का बेटा था. रोजाना नई कार से कालेज आना उस का शौक था.

सच तो यह था कि नंदन कालेज नाम के लिए आता था. लड़कियों को अपने इश्क के जाल में फंसा कर उन से मन बहलाना उस का शौक था. वह एक नंबर का जुआरी था. शराब पीना उस का रोजमर्रा का काम था.

एक दिन नंदन की नजर चित्रा पर पड़ी. दरअसल, उस ने कालेज के इलैक्शन में हिस्सा लिया था. चित्रा भी उन्हीं के ग्रुप में शामिल थी. दोनों ने खूब प्रचार किया. नंदन ने पानी की तरह पैसा बहाया और जीत गया.

इसी जीत की खुशी में नंदन ने अपने फार्महाउस में शानदार पार्टी दी थी. चित्रा और उस के दोस्त भी वहां पहुंच गए थे. रातभर शराब पार्टी चली. सब ने खूब मौजमस्ती की.

तभी से नंदन और चित्रा ने क्लबों में घूमना शुरू कर दिया. फिर वे दोनों नंदन के फार्महाउस में मिलने लगे और उन्होंने हमबिस्तरी भी की. इसी तरह एक साल बीत गया. वे दोनों हवस के सागर में गोते लगाते रहे.

अचानक ही चित्रा को एहसास हुआ कि पिछले 3 महीने से उसे माहवारी नहीं आई है. वह डाक्टर के पास गई. डाक्टर ने बताया कि वह 3 महीने के पेट से है. यह सुन कर चित्रा मानो मस्ती के आसमान से नीचे गिर पड़ी.

चित्रा ने नंदन से इस बारे में बात की और उस पर शादी करने का दबाव डाला. नंदन लड़कियों के साथ हमबिस्तरी तो करता था, पर चित्रा से शादी करने की उस ने कभी नहीं सोची थी. अपने नेता पिता की तरह वह लड़कियों से प्यार के वादे तो करता था, पर उन्हें निभाता नहीं था.

नंदन चित्रा की बात सुन कर सतर्क हो गया. उस ने चित्रा से मिलनाजुलना बंद कर दिया. जब वह फोन पर उस से बात करना चाहती, तो टाल देता.

लेकिन एक दिन चित्रा ने नंदन को पकड़ ही लिया. बहुत दिनों तक बातचीत न होने से नंदन भी थोड़ा नरम पड़ गया था. बातें करतेकरते वे दोनों नंदन के फार्महाउस जा पहुंचे.

वह फार्महाउस दोमंजिला था. वे दोनों दूसरी मंजिल पर गए. वहां एक खूबसूरत बैडरूम था. वे दोनों एक सोफे पर जा कर बैठ गए.

चित्रा बहुत खूबसूरत लग रही थी. उसे देख कर नंदन की हवस जाग गई. वह बोला, ‘‘डार्लिंग, शुरू हो जाएं क्या?’’ इतना कह कर उस ने चित्रा की कमर पर अपना हाथ रख दिया.

चित्रा ने नंदन के रंगढंग देख कर कहा, ‘‘नंदन, पहले मु झे तुम से कुछ जरूरी बातें करनी हैं, बाकी काम बाद में,’’ इतना कह कर चित्रा ने नंदन का हाथ अपनी कमर से हटा दिया.

‘‘अच्छा कहो, क्या कहना चाहती हो तुम?’’ नंदन ने पूछा.

‘‘वही बात. शादी के बारे में क्या सोचा है तुम ने? मेरा पेट दिन ब दिन फूल रहा है. घर में पता चल गया, तो पता नहीं मेरा क्या होगा. मेरा दिमाग काम नहीं कर रहा है. ऊपर से तुम भी मु झ से बात नहीं करते हो,’’ कहते हुए चित्रा रोने लगी.

‘‘रोती क्यों हो… मेरे पापा विदेश गए हुए हैं. उन के आते ही हम शादी कर लेंगे,’’ नंदन ने इतना कह कर चित्रा को अपनी बांहों में भरना चाहा.

लेकिन चित्रा छिटक कर दूर हो गई और बोली, ‘‘नंदन, आज मु झे यह सब करने का मन नहीं है. पहले हमारी शादी का फैसला होना चाहिए. हम किसी मंदिर में जा कर शादी कर लेते हैं. हमारे घर चलते हैं. मेरे पापा बुरा नहीं मानेंगे. वे बहुत अमीर हैं. हम शानोशौकत में जीएंगे. हम कोई नया कामधंधा भी शुरू कर लेंगे.’’

‘‘डियर चित्रा, यों चोरीछिपे मंदिर में शादी करना मु झे पसंद नहीं है. हम सब के सामने शान से शादी करेंगे. मेरे पापा इस इलाके के सांसद हैं. हम उन की हैसियत की शादी करेंगे.

‘‘सब से पहले तो तुम यह बच्चा गिरवा लो. इतनी जल्दी बच्चे की क्या जरूरत है. अभी तो हम पढ़ रहे हैं. मैं पूरा इंतजाम करा दूंगा. थोड़े दिनों के बाद हम फिर से मस्ती मारेंगे.’’

‘‘क्या मतलब है तुम्हारा?’’ यह सुन कर चित्रा ने गुस्से में पूछा.

‘‘मतलब यह है कि अभी से शादी और बच्चे की बातें क्यों? अभी तो हमारे मस्ती के दिन हैं.’’

‘‘नंदन, शादी करने के बाद हम खुलेआम मस्ती करेंगे.’’

‘‘लेकिन, अभी मु झे शादी नहीं करनी है.’’

‘‘क्यों?’’ चित्रा ने जोर दे कर सख्ती से पूछा.

‘‘सच कहूं, तो मेरे पापा ने अपने एक सांसद दोस्त की बेटी से मेरी शादी तय कर रखी है.’’

‘‘यह तुम क्या कह रहे हो? इतने दिनों तक मेरे तन के साथ खेल कर अब दूर जाना चाहते हो?’’

‘‘नहीं, हम पहले की तरह प्यार करते रहेंगे, पर शादी नहीं. वैसे भी मैं अकेला कुसूरवार नहीं हूं. तुम भी तो मेरा जिस्म पाना चाहती थी. हम ने एकदूसरे की जरूरत पूरी की. लेकिन अब तुम नहीं चाहती, तो मैं अपने रास्ते और तुम अपने रास्ते,’’ नंदन ने दोटूक कह दिया.

‘‘दिखा दी न अपनी औकात. लेकिन, मैं दूसरी लड़कियों की तरह नहीं हूं. हमारी शादी तो हो कर ही रहेगी, नहीं तो…’’

‘‘नहीं तो क्या… चुपचाप यहां से चली जाओ. तुम्हारी कुछ अश्लील वीडियो क्लिप मेरे पास हैं. मैं उन को मोबाइल फोन पर अपलोड कर के अपने दोस्तों में भेज दूंगा. तुम्हारी इज्जत को सरेआम नीलाम कर दूंगा.’’

‘‘तो यह है तुम्हारा असली चेहरा. लड़कियों को फूलों की तरह मसलना तुम्हारा शौक है. लेकिन अगर तुम मेरे पेट में पल रहे बच्चे के बाप नहीं बने, तो मैं तुम्हारी जिंदगी बेहाल कर दूंगी,’’ इतना कह कर चित्रा ने अपने बैग से एक लिफाफा निकाला और नंदन के मुंह पर फेंक दिया.

‘‘यह सब क्या ड्रामा है?’’ नंदन ने बौखलाहट में पूछा.

‘‘खुद देख लो,’’ चित्रा बोली.

नंदन ने लिफाफा खोला, तो उस में से निकल कर कुछ तसवीरें जमीन पर जा गिरीं. उन तसवीरों में नंदन और चित्रा हवस का खेल खेल रहे थे.

नंदन गुस्से से भर उठा और चिल्लाते हुए बोला, ‘‘ये तसवीरें तुम्हारे पास कहां से आईं?’’

‘‘चिल्लाओ मत. अकेले तुम ही शातिर नहीं हो. अगर तुम मेरी बेहूदा वीडियो क्लिप बना सकते हो, तो मैं भी तुम्हारी ऐसी तसवीरें खींच सकती हूं.’’

यह सुन कर नंदन भड़क गया और चिल्लाते हुए बोला, ‘‘बाजारू लड़की, मैं तुम्हारा रेप कर के यहीं बगीचे में जिंदा गाड़ दूंगा,’’ कह कर उस ने चित्रा को पकड़ना चाहा.

चित्रा उस की पकड़ में नहीं आई और गरजी, ‘‘अक्ल से काम लो और मेरे साथ शादी कर लो, नहीं तो मैं तुम्हारी जिंदगी बरबाद कर दूंगी. तुम्हारे पापा भी तुम्हें बचा नहीं पाएंगे. मु झे ऐसीवैसी मत सम झना. मैं एक वकील की बेटी हूं.’’

‘‘वकील की बेटी हो, तो तुम मेरा क्या कर लोगी. मैं अभी तुम्हारा गला दबा कर इस कहानी को यहीं खत्म कर देता हूं,’’ इतना कह कर नंदन चित्रा पर  झपट पड़ा.

लेकिन चित्रा तेजी से खिड़की के पास चली गई और बोली, ‘‘जरा यहां से नीचे तो देखना.’’

झल्लाया नंदन खिड़की के पास गया और बाहर झांका. नीचे मेन गेट पर पुलिस की गाड़ी खड़ी थी. एक सबइंस्पैक्टर अपने 4 सिपाहियों के साथ ऊपर ही देख रहा था.

‘‘देख लिया… अगर मुझ पर हाथ डाला, तो तुम भी नहीं बचोगे. मैं यहां आने से पहले ही सारा इंतजाम कर के आई थी.

‘‘अब तुम ज्यादा मत सोचो और जल्दी से मेरे साथ शादी के दफ्तर में पहुंचो. मेरे पापा वहीं पर तुम्हारा बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं,’’ इतना कह कर चित्रा अपना बैग और वे तसवीरें ले कर बाहर चली गई.

नंदन भीगी बिल्ली बना चित्रा के साथ शादी के दफ्तर पहुंच गया.

हार : अंधी मुहब्बत का घिनौना नतीजा

जारा की उम्र उस समय महज 16 साल की थी, जब उसे अहमद से प्यार हो गया था. अहमद कोई और नही, बल्कि उस की फूफी का लड़का था और वह अकसर जारा के घर आताजाता रहता था.

अहमद एक अमीर बाप की औलाद था. उन की एक आलीशान कोठी और कपड़ों का एक बड़ा कारखाना था. इस के साथसाथ अहमद देखने में भी काफी हैंडसम था. यही वजह थी कि जारा की अम्मी बचपन से ही उस के सामने अपने शौहर से कहती रहती थीं कि हम जारा की शादी अहमद से करेंगे.

उन की ये बातें सुन कर जारा का दिल भी अहमद के लिए मचलने लगा और वह अंदर ही अंदर उस की दीवानी बन गई.

अहमद भी उस की तरफ खिंचने लगा था. वह उसे पाने के लिए बेकरार रहने लगा था. रहता भी क्यों नहीं, जारा थी ही ऐसी बला की खूबसूरत. बड़ीबड़ी आंखें, गुलाबी होंठ, सुर्ख गाल और काले घने लंबे बाल उस की खूबसूरती में चार चांद लगा देते थे.

एक दिन जारा के घर में उस के सिवा कोई न था और अचनाक अहमद आ गया. अहमद जैसे ही घर के अंदर आया, जारा ने उसे अपनी बांहों में भर लिया. अहमद ने भी उसे अपने आगोश में ले लिया और दोनों यों ही एकदूसरे की बांहों में पड़े रहे.

अब जब भी अहमद को मौका मिलता, वह जारा से मिलने आ जाता. दोनों साथ जीनेमरने की कसम खाते और एकदूसरे से मिल कर बहुत खुश होते, पर अहमद को क्या पता था कि उस के प्यार से अनजान उस के घर वालों को जब जारा के बारे में पता चलेगा, तो घर में भूचाल आ जाएगा.

दरअसल, जारा के अब्बा एक दिन अहमद के अब्बा से 5 लाख रुपए एक महीने के लिए उधार ले कर गए थे, पर आज उन्हें इन रुपयों को लिए हुए 4 साल हो गए थे.

अहमद के अब्बा जब भी जारा के अब्बा से अपने पैसे मांगते थे, वे कोई न कोई बहाना बना लेते थे, जिस की वजह से उन दोनों में अनबन चल रही थी.

जारा के अब्बा कुछ दिन पहले ही अहमद के अब्बा से मिलने गए थे कि तभी अहमद के अब्बा ने उन से अपने पैसे का तकादा किया, तो जारा के अब्बा फौरन भड़क गए और बोले, ‘‘मैं तुम्हारे पैसे ले कर कोई भाग थोड़ा ही रहा हूं. जब मेरे पास होंगे दे दूंगा. तुम ने पैसे क्या दिए, मेरा जीना हराम कर दिया. जब भी मिलते हो, पैसों का तकादा करते हो.’’

अहमद के अब्बा को जारा के अब्बा के ये अल्फाज बहुत बुरे लगे और उन्होंने उन से हर तरह के ताल्लुकात तोड़ दिए. उन से साफ कह दिया, ‘‘न मुझे पैसा चाहिए और न तुम जैसा बदतमीज रिश्तेदार.’’

जारा के अब्बा घर आ गए और उन्होंने सारी बात अपनी बीवी को बताई. उस ने भी जारा के अब्बा से यह नहीं कहा कि जब तुम्हारे पास पैसे हैं तो दे क्यों नहीं देते. अभी तो बाग बेचा है. उस के काफी पैसे मिले हैं.

जारा की अम्मी ने अपने शौहर को समझाने के बजाय अहमद के अब्बा को बुराभला कहा.

अब दोनों परिवारों का एकदूसरे के घर आनाजाना बंद हो गया. जारा और अहमद एकदूसरे से मिलने के लिए बेकरार रहने लगे. उन दोनों की समझ में नहीं आ रहा था कि वे कैसे एकदूसरे से मिलें.

जब जारा को इस बात का पता चला, तो उस ने अपने अब्बा से कहा, ‘‘अब्बा, उन के पैसे दे दो. काफी टाइम हो गया है और आप के पास पैसे हैं भी…’’

यह सुनते ही जारा के अब्बा आगबबूला हो गए और जारा को बुराभला कहने लगे. साथ में जारा की अम्मी भी उसे डांटने लगी, ‘‘तू कौन होती है हमें नसीहत करने वाली?’’

जारा चुपचाप एक कोने में बैठ कर रोने लगी. उसे साफ नजर आ रहा था कि अब उस का अहमद से मिलना नामुमकिन है.

वे दोनों एकदूसरे के लिए तड़पते रहे कि तभी अहमद जारा की दादी और चाचा के घर आ गया जो अहमद के भी मामू और नानी लगते थे. अहमद और जारा के प्यार से वे अनजान थे. अहमद ने हिम्मत कर के जारा की दादी को सब बता दिया और उन से कहा कि किसी तरह उन दोनों की शादी करवा दो.

दादी ने किसी को भेज कर जारा को अपने घर बुला लिया और उस से मालूम किया तो जारा ने हां कर दी. दादी ने यह रिश्ता कराने का बीड़ा उठाया.

अब जारा और अहमद को जब भी मौका मिलता, दोनों दादी की मदद से वहीं मिलते और अपनी शादी के सपने देखते हुए एकदूसरे को अपनी बांहों में भर कर खूब प्यार करते. अब जारा की उम्र भी 18 साल की हो गई थी.

जब जारा की दादी ने उस के अब्बू से अहमद और जारा की शादी की बात की और उन के प्यार के बारे में उन्हें बताया तो उन्हें गुस्सा आ गया, क्योंकि अहमद के अब्बा से उन की बोलचाल बंद थी, पर जब जारा की अम्मी ने उन्हें समझाया कि लड़का अच्छा है, घरबार भी अच्छा है, अपनी लड़की वहां जा कर राज करेगी तो उन के दिमाग में बात आ गई और वे इस शादी के लिए राजी हो गए और अगले ही दिन अहमद के अब्बा के पास जारा का रिश्ता ले कर पहुंच गए.

उन्होंने जैसे ही अहमद और जारा के प्यार के बारे में उन्हें बताया, तो वे गुस्सा हो गए और साफसाफ कह दिया, ‘‘मेरे जीतेजी तुम्हारी बेटी इस घर में कदम भी नहीं रख सकती.’’

जारा के अम्मीअब्बू वहां से चुपचाप आ गए और अब्बू ने जारा को सख्त हिदायत दे दी, ‘‘आज के बाद अहमद से मिलने की कोशिश मत करना और उसे अपनी जिंदगी से निकाल दे. उस के अब्बा ने तुम्हें अपनी बहू बनाने से साफ मना कर दिया.’’

जारा ने जब यह सुना, तो उस ने तपाक से बोल दिया, ‘‘यह सब तुम्हारी गलती से हुआ है. अगर तुम उन के पैसे दे देते, तो आज हमारा प्यार तुम्हारे पैसे और नफरत की भेंट न चढ़ता.’’

यह सुनते ही जारा के अब्बू आगबबूला हो गए और तपाक से उसे एक थप्पड़ रसीद कर दिया. जारा रोते हुए अपने कमरे में चली गई.

उधर अहमद को जब इस बात का पता चला, तो उस ने अपने अब्बा से साफ बोल दिया कि वह शादी करेगा तो सिर्फ जारा से, भले ही उस के लिए यह घर क्यों न छोड़ना पड़े.

अहमद और जारा दोनों किसी भी कीमत पर एकदूसरे से अलग नहीं होना चाहते थे. वे दोनों एकदूसरे से मिलने के लिए मौके की तलाश में लगे हुए थे.

कुछ दिन बाद जारा की दादी की मदद से दोनों एकदूसरे से मिल गए और मौका देख कर अहमद जारा को अपने साथ कहीं ले गया. इस बात का सिर्फ जारा की दादी को पता था कि वे दोनों कहां गए हैं.

जारा के अम्मीअब्बू को जब जारा के घर से भागने का पता चला तो उन्हें अपनी गलती का अहसास हुआ, पर वे कर भी क्या सकते थे. उधर अहमद के अब्बा शादी के लिए किसी भी कीमत पर तैयार न थे.

जारा के अब्बा ने अहमद के बड़े भाई और बहनोई से बात की और उन दोनों का घर से यों गायब होने के बारे में बताया और कहा, ‘‘अगर इन की शादी नहीं की गई, तो हमारी कितनी बदनामी होगी. कैसे भी कर के इन दोनों को बुला कर इन का निकाह कर दिया जाए.’’

जारा की दादी से मिल कर अहमद के बहनोई और भाई ने बात की और उन दोनों को बुला कर निकाह करा दिया.

अहमद निकाह कर के जारा को अपने बहनोई के ही घर पर ले गया. उस के बहनोई और भाई ने अहमद को समझाया कि जब तक अब्बा नहीं मान जाते, तुम यहीं रहो.

अहमद कुछ दिन जारा के साथ अपने बहनोई के घर पर ही रहा, फिर अपने भाई और बहनोई से पैसे ले कर जारा को घुमाने मुंबई ले गया और वहीं अपने एक दोस्त की मदद से एक कमरा किराए पर ले लिया और रोजगार के लिए खुद टैक्सी चलाने लगा.

इस तरह जारा और अहमद पुणे में ही रहने लगे. दोनों कुछ महीने तक तो बड़े प्यार से रह रहे थे, पर समय के साथसाथ कमाई कम और खर्चा ज्यादा होने से उन में छोटीछोटी बातों पर झगड़ा होने लगा.

अहमद के दोस्त उस के घर पर आने लगे, वहीं महफिल जमने लगी. कभी बिरयानी तो कभी पुलाव की दावत होने लगी. अहमद जो भी कमाता, उसे अपने यारदोस्तों पर लुटा देता. जारा उसे रोकने की कोशिश करती, तो वह उस के साथ मारपीट करने पर उतारू हो जाता.

अहमद ने अब कामधंधा छोड़ दिया. वह हर समय दोस्तों के साथ ताश खेलता रहता, गपशप करता रहता. घर में खाने के लाले पड़ने लगे. वह खुद तो दोस्तों के साथ बाहर खाना खा आता था, पर जारा भूखी रहती. उसे उस की कोई परवाह न थी. अहमद अब कभीकभार शराब भी पी कर आने लगा.

एक दिन जब जारा ने उसे रोकने की कोशिश की, तो उस ने उसे भद्दीभद्दी गालियां देनी शुरू कर दीं. जारा के सारे सपने चकनाचूर हो कर रह गए.

एक दिन अहमद अपने दोस्तों के साथ घर पर ही शराब पी रहा था, तभी उस के एक दोस्त ने कहा, ‘‘यार, भूख लगी है. आज भाभी के हाथ की बिरयानी खिलवा दो, तो मजा आ जाए.’’

अहमद ने जारा को बिरयानी बनाने को कहा, पर वह झुंझला कर बोली, ‘‘बिरयानी कहां से बनाऊं… घर में कुछ है ही नहीं. दिनभर तो तुम अपने इन आवारा दोस्तों के साथ गपशप लड़ाने, शराब पीने में गुजार देते हो, कामधंधा कुछ करते नहीं और फरमाइश राजामहाराजा की तरह करते हो.’’

इतना सुनते ही अहमद भड़क गया और चिल्लाया, ‘‘मैं किसी महाराजा से कम नहीं था. जब से तू मेरी जिंदगी में आई है, मेरी यह हालत हो गई है. तेरी वजह से मेरे बाप ने मुझे घर से निकाल दिया…’’

इस के बाद अहमद ने अपने दोस्तों के सामने ही जारा की जम कर पिटाई की.

जारा से अब बरदाश्त करना मुश्किल हो गया था. उस ने अपने घर जाने का इरादा कर लिया और अहमद से कहा, ‘‘मुझे मेरे घर छोड़ दो.’’

अहमद जारा को उस के गांव के बाहर ही छोड़ कर अपने अब्बा के पास चला गया. जारा रोते हुए अपने घर पहुंची और अपने अम्मीअब्बा को सब हालात से वाकिफ किया.

उस के अब्बा ने समझाते हुए कहा, ‘‘कुछ दिन रुको. उस का गुस्सा भी शांत हो जाएगा और उसे अपनी गलती का भी अहसास होगा, तब वह तुम्हें लेने जरूर आएगा.’’

इस तरह कई महीने गुजर गए, लेकिन अहमद जारा को लेने नहीं आया. जारा अहमद के प्यार में इतनी पागल थी कि वह अभी भी उस का इंतजार कर रही थी और उस के बिछड़ने के गम में खानापीना भी कम कर दिया था.

बड़ी मुश्किल से जब जारा की अम्मी उसे खाना खिलाती तो वह बस इतना ही खाती जितना जीने के लिए जरूरी होता और हर समय गुमसुम रहती.

जारा के अम्मीअब्बू से उस की यह हालत देखी नहीं गई और वे जारा को ले कर अहमद के घर पहुंच गए, पर अहमद के अब्बू ने उन्हें वहीं रोक दिया और अहमद को आवाज लगाई, ‘‘यह लड़की कौन है?’’

अहमद ने जवाब दिया, ‘‘मेरी बीवी जारा है, जो मेरे दोस्तों के बिस्तर गरम करती थी. यह बदचलन है और मेरा इस से अब कोई रिश्ता नहीं. मैं इसे आप सब के सामने तलाक देता हूं… तलाक… तलाक… तलाक…’’

जारा अहमद के ये अल्फाज सुन कर हैरान रह गई. अम्मीअब्बा उसे अपने घर ले आए. जारा की हालत ऐसी हो गई जैसे वह कोई जिंदा लाश हो. उसे अहमद से ऐसी उम्मीद न थी. जो जिंदगीभर साथ जीनेमरने की कसमें खाता था, वह इतना घटिया इनसान निकलेगा, उस ने सपने में भी नहीं सोचा था.

जारा सोच रही थी, ‘मैं दुनिया की सब से बदनसीब इनसान हूं, जो मेरा प्यार जीत कर भी हार गया. मैं ने अहमद की खातिर अपने मांबाप से बगावत की, अपने प्यार की जीत की खातिर, अपने मांबाप को समाज में बेइज्जत कर के अहमद के साथ घर छोड़ कर भागी.

‘लेकिन अफसोस, हमारा प्यार जीत कर भी हार गया, इसलिए प्यार में जीत कर भी मेरी हार हो गई. क्या यही थी मेरी हार, मेरे प्यार की हार?’

 

हवस : कैसे इस आग ने उसे जला दिया

कार्तिक पूरी तरह से टूट चुका था. हवस की आग ने उसे जला दिया था. अब उस की जिंदगी के अगले कई साल जेल की सलाखों के पीछे गुजरेंगे. हवस की इस आग में उस के सपने, मांबाप के अरमान सब भस्म हो गए. उस का दिल बारबार बस यही सोचता कि काश, वह अपने मन को हवस के दलदल में न फंसने देता और अपनी पढ़ाईलिखाई पर ध्यान देता…

6 महीने पहले की ही तो बात है. कल्पना गुमला से रांची आई थी. कार्तिक की उस से कालेज में जानपहचान हुई थी जो धीरेधीरे दोस्ती में बदल गई थी.

कार्तिक कल्पना के साथ कभी फिल्म देखने जाता तो कभी पार्क में घूमने. कल्पना हर बात में, हर काम में उस का साथ देती थी.

गांव से आई कल्पना भोलीभाली लड़की थी. कार्तिक उस की हर इच्छा पूरी करता था. मोटरसाइकिल से घुमाना, सिनेमा दिखाना, होटल में खिलाना, गिफ्ट देना सबकुछ, पर उस के मन में कभी भी कल्पना के प्रति प्यार नहीं था. वह तो उस के गदराए बदन का मजा लेना चाहता था. पर शायद कल्पना इसे प्यार समझने लगी थी.

जब कार्तिक को लगा कि कल्पना उस के प्रेमजाल में फंस चुकी है तो उस ने धीरेधीरे अपने पर फैलाने शुरू किए. पहले हाथों से छूना, फिर चूमना, गले लगाना और धीरेधीरे सबकुछ. यहां तक कि पार्क के कोने में उस ने कल्पना के साथ हर तरह का शारीरिक सुख भोग लिया था. इसी तरह कभी सिनेमाघर में, तो कभी किसी होटल में वह अपनी ख्वाहिश को पूरा करता रहता था.

कार्तिक कल्पना के शरीर के बदले उस पर खर्च करता था और उस की नजर में हिसाब बराबर हो रहा था. पर कल्पना की बात अलग थी. वह कार्तिक को अपना प्रेमी मानती थी और उस से शादी करना चाहती थी.

एक बार कल्पना को महसूस हुआ कि कार्तिक के साथ जिस्मानी रिश्ता बनाने से वह पेट से हो गई है. उस ने उसे बताया था, ‘कार्तिक, मैं तुम्हारे बच्चे की मां बनने वाली हूं.’

यह सुन कर कार्तिक चौंका था, पर जल्दी ही सहज हो कर उस ने कहा था, ‘अभी हम दोनों को पढ़ाई पूरी करनी है. किसी लेडी डाक्टर से मिल कर इस समस्या से छुटकारा पा लेते हैं.’

‘मुझे कोई एतराज नहीं, पर आगे चल कर हमें शादी करनी ही है तो अगर हम अभी शादी कर बच्चे को आने दें तो इस में क्या हर्ज है?’ कल्पना ने प्रस्ताव रखा था.

‘शादी…’ कार्तिक चौंका था, पर यह सोच कर कि कहीं कल्पना का शरीर दोबारा न मिले इसलिए बोला था, ‘अभी पढ़ाई, फिर कैरियर, उस के बाद शादी.’

कल्पना ने इसे शादी की रजामंदी मान कर लेडी डाक्टर से मिल कर बच्चा गिरवा दिया था. कार्तिक और कल्पना पहले की तरह मजे से रहने लगे थे. पर अब कार्तिक सावधान था. बच्चा न ठहरे, इस के लिए वह उपाय कर लेता था.

इसी बीच कल्पना को भनक लग गई कि कार्तिक उस से नहीं बल्कि उस के शरीर से प्यार करता है. उस की शादी की बात कहीं और चल रही है. उस ने फोन कर कार्तिक को रेलवे स्टेशन बुलाया.

रेलवे स्टेशन से कुछ ही दूरी पर एक सुनसान जगह थी जहां वे पहले भी कई बार मिले थे. कार्तिक ने वहां झाडि़यों के पीछे उस के साथ जिस्मानी रिश्ते भी बनाए थे. कार्तिक मन में जिस्मानी सुख पाने की उमंग लिए वहां जा पहुंचा.

कल्पना के चेहरे पर तनाव देख कर वह हंस कर बोला, ‘क्या हुआ, फिर लेडी डाक्टर के पास चलना पड़ेगा क्या? पर अब तो हम काफी संभल कर चल रहे हैं.’

‘सीरियस हो जाओ कार्तिक. तुम मुझ से शादी करोगे न?’ कल्पना ने उदास हो कर पूछा था.

‘पागल हो रही हो. अभी शादी की बात कैसे सोच सकते हैं हम?’ कार्तिक जोश में आ कर बोला था.

कहां वह जिस्मानी मजा लेने की बात सोच कर आया था, कहां कल्पना उसे दूसरी बातों में उलझाए हुए थी.

‘मैं अभी की बात नहीं कर रही… 4 साल बाद ही सही, पर शादी तुम मुझ से ही करोगे. मैं ने तुम्हें अपना सबकुछ इसीलिए सौंपा है,’ कल्पना बोली थी.

‘दोस्ती अलग चीज है, शादी अलग चीज है. मैं तुम्हारी दोस्ती की कीमत अदा करता रहा हूं. शादी की बात तो सोचो ही मत,’ कार्तिक ने बेरुखी से कहा था. उस का मन उचाट हो आया था. सारा जोश जाता रहा था.

‘मैं अपना सबकुछ तुम्हें तुम्हारी कीमत के चलते नहीं प्यार के चलते सौंपती रही, लेकिन मुझे नहीं पता था कि तुम मेरे प्यार को पैसे से तोल रहे हो. पर अगर तुम प्यार को पैसे से खरीद रहे थे तो मैं भी अपने प्यार को ताकत के बल पर पा लूंगी. मेरे चाचा और मामा नक्सली हैं. जब चाहें तुम्हें और तुम्हारे परिवार को मिटा सकते हैं,’ कहते हुए कल्पना को गुस्सा आ गया था.

कार्तिक कल्पना की बात सुन कर डर गया था. वह जानता था कि कल्पना जहां से आई है, वहां नक्सलियों का अड्डा है. वह आएदिन नक्सली वारदातों की खबरें अखबार में पढ़ता था.

कुछ दिन पहले ही कार्तिक के परिवार वालों ने किसी लड़की से उस की शादी की बात भी चला रखी थी. उसे लगा, अगर कल्पना जिंदा रहेगी तो रंग में भंग डालेगी. उस ने झपट कर कल्पना की गरदन पकड़ ली और उस पर तब तक दबाव बनाता गया जब तक कि उस ने शरीर ढीला नहीं छोड़ दिया.

कार्तिक को अभी भी यकीन नहीं हुआ कि कल्पना ने दम तोड़ दिया है तो उस ने अपनी बैल्ट से फिर उस का गला दबा दिया व चुपचाप अपने घर आ गया.

कार्तिक मन ही मन घबराया हुआ था पर जिस जगह पर उस ने कल्पना की लाश छोड़ी थी उधर किसी का आनाजाना न के बराबर होता था. कौएकुत्ते उसे नोंच कर खा जाएंगे यही सोच कर वह अपने मन को संतोष देता था. पर 2 दिनों के बाद एकाएक पुलिस ने उसे दबोच लिया. शायद किसी ने लाश की सूचना पुलिस को दे दी थी और पुलिस उस तक पहुंच गई.

छोटे शहर की लड़की : जब पूजा ने दी दस्तक- भाग 4

‘‘आसमान से भी ऊंचे सपने व्यक्ति देख सकता है, परंतु न तो वह आसमान में उड़ सकता है, न आसमान में घर बना कर रहना उस के लिए संभव है. तो क्या तुम इस छोटे शहर से अलग हो गए?’’ ‘‘नहीं, परंतु यहां मेरे सपनों के लिए कोई जगह नहीं है,’’ उस ने साफ किया.

‘‘क्या प्यार के लिए भी नहीं…’’ ‘‘प्यार तो समय और परिस्थिति के अनुसार बदलता रहता है.’’

‘‘तुम बहुत कठोर हो.’’ ‘‘हो सकता है.’’

‘‘पहले तो ऐसे नहीं थे.’’ ‘‘पहले मैं छोटे शहर में रहता था और यहां की लड़कियां मुझे डराती थीं.’’

‘‘तो तुम ने डर कर मुझ से प्यार किया था? लेकिन अब तुम बड़े शहर में रहते हो. वहां की लड़कियां तो छोटे शहर की लड़कियों से भी अधिक तेज होती हैं. क्या वहां की लड़कियों से तुम्हें डर नहीं लगता?’’ ‘‘लड़कियों से मुझे डर नहीं लगता, बस उन के प्यार से डर लगता है.’’

‘‘तो तुम मुझे प्यार नहीं करते?’’ ‘‘शायद… मुझे संदेह है,’’ उस ने पूजा की भावनाओं की परवा न करते हुए स्पष्ट रूप से कहा.

‘‘तो क्या तुम मुझे छोड़ दोगे?’’ वह लगभग रोंआसी हो गई थी. ‘‘मुझे मेरा सपना पूरा करने दो. उस के बाद ही मैं कुछ कह पाऊंगा. अभी मेरे और मेरे सपनों के बीच में और कुछ नहीं है.’’

‘‘पूजा का दिल टूट गया. उसे लगा कि सबकुछ समाप्त हो गया है.’’ छुट्टियां भी एक दिन समाप्त होनी थीं. पूजा हताश और निराश हो गई थी. उस ने विनोद के घर आना बंद कर दिया था. उस से फोन पर भी बात नहीं करती थी और न उस से बाहर मिलने के लिए जिद करती थी.

दिल्ली जाने से एक दिन पहले विनोद ने पूजा को फोन किया, ‘‘क्या कर रही हो?’’ ‘‘कुछ नहीं… मेरे पास करने के लिए है भी क्या?’’

‘‘तो फिर वहीं आ जाओ. जहां हम मिलते हैं.’’ ‘‘क्या जरूरी है, मेरा मन नहीं कर रहा है,’’ उस ने उपेक्षा जाहिर की.

‘‘बहुत जरूरी है, नहीं आओगी तो जीवनभर पछताओगी.’’ ‘पता नहीं क्या बात है‘, सोच कर पूजा मिलने के लिए आ गई. वह उदास थी, अपने सूखे होंठों पर जीभ फेरते हुए वह उसे देखने लगी. विनोद मुसकरा रहा था. पूजा को उस की मुसकराहट का भेद समझ में नहीं आया. विनोद ने बेझिझक उस के कंधों पर हाथ रख दिया और उसे लगभग अपनी तरफ खींचता हुआ बोला, ‘‘तुम बहुत दुखी हो.’’

वह कुछ नहीं बोली. उस ने अपना एक हाथ उस के सिर के पीछे रख उस का सिर अपने सीने पर दबा लिया और उस के बालों को सहलाते हुए बोला, ‘‘स्वाभाविक है, मेरी तरफ से तुम्हारा मन उचट गया हो, परंतु मैं भी क्या करता? एक डरपोक लड़के को तुम ने प्यार किया. मैं तुम्हारे लायक नहीं था. मैं एक किताबी कीड़ा था और समझता था इन्हीं में मेरा जीवन है.

जीवन में सपने देखने के सिवा मैं ने और कुछ नहीं किया. जब तुम ने मुझे प्यार किया तो मैं इतना डर गया था कि समझ नहीं पा रहा था कि क्या करूं. तुम्हारे प्यार में पड़ कर कहीं मेरे सपने चकनाचूर न हो जाएं. इसी असमंजस में दिन गुजर रहे थे. दिल्ली गया तो लगा कि मेरा सपना मेरी पकड़ से बहुत दूर नहीं है, परंतु तुम्हारी यादें बीच में बाधा उत्पन्न कर रही थीं,’’ वह चुप हो कर अपनी सांसों को संयत करने लगा.

पूजा ने अपना सिर उठा कर उस के चेहरे की तरफ देखा. ‘‘परंतु इन छुट्टियों में मेरे प्रति तुम्हारी दीवानगी और प्यार ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया. मैं नहीं समझता कि जीवन में बिना प्यार के कोई भी सपना पूरा हो सकता है. मैं अपने चाहे जितने सपने पूरे कर लूं, वे सभी अधूरे रहेंगे, अगर मेरे जीवन में किसी का प्यार नहीं है. तुम्हारा अपने प्रति अटूट प्यार देख कर मेरा आत्मबल और विश्वास दोगुना हो गया है. मुझे लगता है कि तुम्हारा प्यार पा कर मैं अपना सपना जल्दी ही पूरा कर लूंगा. इस में ज्यादा दिन नहीं लगेंगे.’’

अब पूजा उस से अलग हो कर उस की तरफ तीखी नजरों से देखने लगी थी. विनोद की आंखों में प्रेम का गहरा समुद्र हिलोरें मार रहा था. पूजा का हृदय अनायास धड़क उठा, बिलकुल उसी तरह जिस प्रकार पहली बार विनोद के लिए धड़का था. ‘‘मैं ने तुम्हें बहुत सताया है,’’ उस ने भावुक हो कर कहा.

उस का सिर नीचे झुक गया. वह सुबकने लगी. ‘‘आशा है, तुम मेरी बात का मतलब समझ गई होगी. मैं अधिक कुछ नहीं कह सकता. बस, एक बात पूछना चाहता हूं, क्या मेरा सपना पूरा होने तक तुम मेरा इंतजार कर सकती हो?’’

पूजा ने अपना मुंह उस के सीने में छिपा लिया और उस की पीठ पर अपनी बांहें कसती हुई बोली, ‘‘आज तुम ने मुझे पूरी तरह से जीत लिया. मैं तुम्हारा इंतजार करूंगी. मैं छोटे शहर की लड़की हूं और सच्चे मन से तुम्हें प्यार करती हूं, तुम अपना सपना पूरा कर के आओ, फिर हम दोनों घर वालों की सहमति से विवाह कर के अपना घर बसा लेंगे.’’ विनोद ने भी उसे अपनी बांहों में कस लिया, ‘‘ऐसा मत कहो कि तुम छोटे शहर की लड़की हो. तुम्हारा दिल बहुत बड़ा है.’’

‘‘तुम ने एक दिन कहा था कि छोटे शहर की लड़कियों की सोच ऐसी ही होती है. यह तुम्हारी बात का जवाब था.’’ ‘‘लेकिन ऐसा नहीं है कि केवल छोटे शहर की लड़कियां ही सच्चा प्यार करती हैं. बड़े शहर की लड़कियां भी अपने प्रेमियों का इंतजार करती हैं. प्रेम सच्चा हो, तो सब कुछ संभव है. हां, जीवन का बड़ा सपना केवल बड़े शहरों में ही पूरा होता है, परंतु प्यार का सपना तो कहीं भी, किसी भी जगह पूरा हो सकता है.’’

‘‘सचमुच… आज मैं इस बात को समझ गई हूं. तुम ने मेरे सारे भ्रम दूर कर दिए.’’ ‘‘और मेरे मन से भी सारी दुविधाएं दूर हो गई हैं. मुझे पूरी आशा है कि मेरे दोनों सपने… आईएएस बनने का और तुम से शादी करने का… जल्दी ही पूरे हो जाएंगे. फिर तुम्हें ज्यादा दिन तक विरह के आंसू नहीं बहाने होंगे.’’

…और उन के मन में हजारों दीपक जल कर मुसकराने लगे, जिन का प्रकाश चारों तरफ फैल गया.

छोटे शहर की लड़की : जब पूजा ने दी दस्तक- भाग 3

विनोद दिल्ली चला गया. समय का पहिया दूसरी तरफ घूम गया. पूजा को विनोद से बिछुड़ने पर बहुत दुख हुआ, परंतु वह कर भी क्या सकती थी. उस ने विनोद से वचन लिया था कि वह नियमित रूप से उसे फोन करता रहेगा. कुछ दिन तक उस ने यह वादा निभाया भी, परंतु धीरेधीरे उस के फोन करने में अंतराल आता गया.

इस का कारण उस ने बताया था दिन में कालेज अटैंड करना, शाम को कोचिंग क्लास और फिर रात में पढ़ाई… ऐसे में उसे वक्त ही नहीं मिलता. यूपीएससी की परीक्षा पास करना कोई आसान काम नहीं था. रातदिन की मेहनत से ही इस में सफलता प्राप्त हो सकती थी. प्यार के चक्कर में वह अपने लक्ष्य से भटक सकता था. पूजा ने कहा था, ‘‘प्यार मनुष्य को अपना लक्ष्य प्राप्त करने की ताकत देता है, उसे भटकाता नहीं है.’’

‘‘मैं मानता हूं, परंतु केवल प्यार के बारे में सोच कर किसी परीक्षा में सफलता प्राप्त नहीं की जा सकती. इस के लिए आंखें फोड़नी पड़ती हैं.’’

‘‘तुम मुझ से दूर जाने के लिए बहाना तो नहीं बना रहे?’’ उस के मन में शंका के बादल उमड़ आए. ‘‘नहीं, परंतु तुम मेरी तैयारी में बाधा न उत्पन्न करो, यह तुम्हारा मुझ पर एहसान होगा,’’ उस ने सख्त स्वर में कहा था. पूजा का दिल विनोद की बात से बैठने लगा था. पूजा समझती थी कि उस से दूर जाने के बाद विनोद उस के दिल से भी दूर हो गया था.

दिल्ली जा कर किसी और लड़की के चक्कर में पड़ गया होगा, इसीलिए उस की उपेक्षा कर रहा था और उस से संबंध तोड़ने के लिए इस तरह के बहाने बना रहा था. ऐसी स्थिति में हर लड़की अपने प्रेमी के बारे में इसी तरह की सोच रखती है. इस में पूजा का कोई दोष नहीं था.

वह रोज दीप्ति के पास आती, उस के साथ विनोद की बातें करती और अपने मन को सांत्वना देने का प्रयास करती कि एक दिन जब विनोद लौट कर आएगा तो इतने दिनों की दूरियों का सारा हिसाब चुकता कर लेगी. उसे इतना प्यार करेगी कि वह दोबारा दिल्ली जाने का नाम नहीं लेगा. ‘‘क्या वह रोज घर में फोन करता है?’’ उस ने दीप्ति से पूछा था.

‘‘नहीं, रोज नहीं करता. हम ही फोन कर के उस का हालचाल पूछ लेते हैं,’’ दीप्ति ने सहज भाव से बताया. ‘‘मुझे भी फोन नहीं करता. कहीं वह किसी और को प्यार तो नहीं करने लगा?’’

‘‘क्या पता?’’ दीप्ति ने मुंह बिचका कर कहा. पूजा दीप्ति का मुंह ताकती ही रह गई. दीप्ति को अभी किसी से प्यार नहीं हुआ था न, इसलिए वह पूजा के दिल का दर्द नहीं समझ पा रही थी. दीप्ति पूजा के मन को समझती थी, परंतु उस के हाथ में था भी क्या? वह नहीं जानती थी कि किस तरह से पूजा के मन को तसल्ली दे. इस बारे में उस की भैया से कोई बात नहीं होती थी.

उस से जब भी बात होती थी, मम्मीपापा पास में होते थे. फिर भी एक दिन चोरी से उस ने पूजा की विनोद से बात कराई थी. उस ने बात तो की, परंतु बाद में कह दिया कि फोन कर के उसे डिस्टर्ब मत किया करे, पढ़ाई का हर्ज होता है और पूजा मन मसोस कर रह गई.

विनोद दीवाली में घर आया था, परंतु पूजा से एकांत में मुलाकात नहीं हो सकी. दीप्ति ने भैया से कहा, ‘‘भैया, एक बार पूजा से मिल तो लो.’’ उस ने दीप्ति को अर्थपूर्ण निगाहों से देखते हुए कहा, ‘‘मिल लूंगा, परंतु तुम उस के लिए परेशान न हो,’’ और बात आईगई हो गई.

फिर वह होली पर घर आया और उसी प्रकार पूजा से बिना मिले ही चला गया. पूजा उस के घर आती थी, परंतु दोनों एकांत में नहीं मिल पाते थे. विनोद कोई न कोई बहाना बना कर उस से दूर रहता था. पूजा ने उसे घेरने की कोशिश की तो उस ने निरपेक्ष भाव से कहा, ‘‘पूजा, मैं जब गरमी की छुट्टियों में आऊंगा तो तुम से रोज मिला करूंगा. अभी मुझे अकेला छोड़ दो.’’ उस ने मान लिया.

गरमी की छुट्टियों में मिलते ही पूजा ने पहला सवाल किया, ‘‘तुम बदल गए हो?’’ ‘‘नहीं तो…’’ उस ने बात को टालने वाले अंदाज में कहा.

‘‘नहीं, क्या… मैं देख नहीं रही? तुम अब पहले जैसे भोले नहीं रहे. इधर मैं तुम्हारे प्यार में संजीदा हो गईर् हूं. अपनी सारी चंचलता मैं ने खो दी, परंतु तुम दिल्ली जा कर मुखर ही नहीं चंचल भी हो गए हो. यह तुम्हारे हावभाव से ही दिख रहा है.’’ ‘‘आदमी समय के अनुसार बदल जाता है. इस में आश्चर्य की कोई बात नहीं है.’’

‘‘मुझे आश्चर्य नहीं है, परंतु आश्चर्य तब होगा, जब तुम मेरे प्यार को भुला दोगे. यह भी भुला दोगे कि मैं ने तुम्हें प्यार करना सिखाया था वरना कोई लड़की तुम्हें घास न डालती और अगर तुम कोशिश भी करते तो भी कोई लड़की तुम्हारे फंदे में नहीं फंसती,’’ उस ने कुछ चिढ़ कर कहा. ‘‘तुम छोटे शहर की लड़कियों की यही गंदी सोच है. इस के आगे तुम कुछ सोच ही नहीं सकती.

सभी लड़कों को तुम बुद्धू और भोंदू समझती हो. तुम सोचती हो कि लड़कों से प्यार कर के तुम उन के ऊपर एहसान कर रही हो, क्योंकि लड़के इस लायक ही नहीं होते कि वे किसी लड़की को प्यार कर सकें या कोई लड़की उन के ऊपर अपना प्यार लुटा सके. तुम्हें अपने रूप पर घमंड जो होता है.’’

पूजा विनोद की बातों से आहत हो गई, ‘‘मैं ऐसा नहीं सोचती, परंतु तुम से सच कहती हूं. एक दिन इसी बात को ले कर मेरी सहेलियों से शर्त लगी थी.’’ ‘‘क्या शर्त लगी थी?’’ उस ने उत्सुकता से पूछा.

‘‘महल्ले की सारी लड़कियां तुम्हें भोंदू और बुद्धू कहती थीं. वे तुम्हें ले कर मजाक करती रहती थीं कि यह मिट्टी का माधो कभी किसी लड़की को प्यार नहीं कर सकेगा. पहली बात तो यह कि कोई लड़की ही तुम्हें प्यार नहीं करेगी और किसी का मन तुम पर आ भी गया तो भी तुम लड़की को अपने प्यार में बांध नहीं पाओगे.’’ ‘‘तो फिर.’’

‘‘मैं ने इस चुनौती को स्वीकार किया था, क्योंकि मैं मन ही मन तुम्हें प्यार करने लगी थी. मुझे तुम्हारी सादगी और भोलापन पसंद था. अन्य लड़कों की तरह तुम में कोई छिछोरापन नहीं था और तुम उन की तरह लड़कियों के पीछे नहीं भागतेफिरते थे, इसलिए मैं ने तय किया कि मैं तुम्हारा प्यार पा कर रहूंगी. मैं ने उन से कहा था कि विनोद एक दिन मेरे प्यार में पागल हो जाएगा, परंतु अब मुझे ऐसा नहीं लगता. जब तक तुम दिल्ली नहीं गए थे, मुझे लगता था कि तुम भी मुझ से प्यार करने लगे हो और सहेलियों से मैं ने बड़े फख्र से कहा था कि मैं ने तुम्हारा प्यार हासिल कर लिया है.

परंतु लगता है, मैं अपनी शर्त हार गई हूं,’’ उस की आवाज भीग गई थी. विनोद हतप्रभ रह गया. उस की समझ में नहीं आया कि वह पूजा से क्या कहे, उसे किस प्रकार सांत्वना दे और कैसे बताए कि वह उसे प्यार करता है, क्योंकि इस बारे में उसे स्वयं पर संदेह था. जबलपुर में रहते हुए विनोद पूजा को डरतेडरते प्यार करता था, जैसे कोई पूजा से जबरदस्ती प्यार करने के लिए कह रहा था. दिल्ली में एक साल रहने के बाद वह आजाद पंछी की तरह हो गया था और पूजा की गिरफ्त से उसे छुटकारा मिल गया था.

वह एक किताबी कीड़ा था और किताबों में ही उस का मन लगता था. लड़कियां उसे लुभाती थीं और वह उन्हें पसंद भी करता था. चोर निगाहों से उन की सुंदरता की प्रशंसा भी करता था, परंतु खुल कर किसी लड़की को पटाने का साहस उस के पास नहीं था. यही कारण था कि जबलपुर में भी पूजा ने ही पहल की थी और चूंकि उस के जीवन में आने वाली वह पहली लड़की थी, वह भी डरतेडरते उसे प्यार करने लगा था, परंतु एक बार दूर जाते ही उस के मन से पूजा का प्यार फूटे गुब्बारे की तरह हवा हो गया था.

फिर भी उन दोनों का मिलना जारी रहा. गरमी की लंबी छुट्टियां थीं. उस की एक साल की कोचिंग समाप्त हो गई थी, परंतु एमए का फाइनल ईयर था. उस ने यूपीएससी की सिविल सर्विसेज का फार्म भी भर रखा था, जिस की प्रारंभिक परीक्षा जुलाई में ही होनी थी. एमए की क्लासेज भी जुलाई में प्रारंभ होनी थीं, अत: उन दोनों के पास मिलने के लिए गरमी के ढेर सारे लंबेलंबे दिन थे और सोचने के लिए ढेरों छोटीछोटी रातें. कहना बड़ा मुश्किल था कि विनोद के मन में क्या था, परंतु पूजा को डर लगने लगा था.

बरसात आने में अभी देर थी, परंतु उन के घरों के पीछे खेतों में किसानों ने मकई बो दी थी. उन के पौधे अब काफी बड़े हो गए थे. उन में भुट्टे भी आने लगे थे, परंतु उन के पकने में अभी देर थी. खेतों के बीच की कच्ची सड़क पर घूमना पूजा को अच्छा लगता था. वह जिद कर के विनोद को उधर ले जाती थी. खेतों के बीच का वह पेड़ जिस के नीचे बैठ कर वे दोनों चोरी से भुट्टे तोड़ कर खाते थे, उन के मिलन के प्रारंभिक दिनों का गवाह था.

वह अपनी जगह पर निश्चल खड़ा था. वे लड़कियां भी जो उन्हें प्यार से भुट्टे भून कर खाने के लिए देती थीं, अपनेअपने खेतों की रखवाली के लिए आने लगी थीं और उन दोनों को देख कर मंदमंद मुसकराती थीं.

अभी भुट्टे पके नहीं थे और पूजा को लगने लगा था कि अभी उन के प्यार में भी परिपक्वता नहीं आई. सुस्ताने के लिए वे पेड़ की छाया तले बैठे तो पूजा ने कहा, ‘‘तुम्हारे सपने बड़े हो गए हैं.’’ ‘‘फिलहाल तो मेरा एक ही सपना है, आईएएस बनना और जब तक यह सपना पूरा नहीं हो जाता, मेरे लिए बाकी सभी सपने बहुत छोटे हैं.’’

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