दिल की दहलीज पर: मधुरा का सपना क्यों चकनाचूर हो गया?

‘‘आहा,चूड़े माशाअल्लाह, क्या जंच रही हो,’’ नवविवाहिता मधुरा की कलाइयों पर सजे चूड़े देख दफ्तर के सहकर्मी, दोस्त आह्लादित थे. मधुरा का चेहरा शर्म से सुर्ख पड़ रहा था. शादी के 15 दिनों में ही उस का रूप सौंदर्य और निखर गया था. गुलाबी रंगत वाले चेहरे पर बड़ीबड़ी कजरारी आंखें और लाल रंगे होंठ…

कुछ गहने अवश्य पहने थे मधुरा ने, लेकिन उस के सौंदर्य को किसी कृत्रिम आवरण की आवश्यकता न थी. नए प्यार का खुमार उस की खूबसूरती को चार चांद लगा चुका था.

‘‘और यार, कैसी चल रही है शादीशुदा जिंदगी कूल या हौट?’’ सहेलियां आंखें मटकामटका कर उसे छेड़ने लगीं. सच में मनचाहा जीवनसाथी पा मानों उसे दुनिया की सारी खुशियां मिल गई थीं. मातापिता के चयन और निर्णय से उस का जीवन खिल उठा था.

‘‘वैसे क्या बढि़या टाइम चुना तुम ने अपनी शादी का. क्रिसमस के समय वैसे भी काम कम रहता है… सभी जैसे त्योहार को पूरी तरह ऐंजौय करने के मूड में होते हैं,’’ सहेलियां बोलीं.

‘‘इसीलिए तो इतनी आसानी से छुट्टी मिल गई 15 दिनों की,’’ मधुरा की हंसी के साथसाथ सभी सहकर्मियों की हंसी के ठहाकों से सारा दफ्तर गुंजायमान हो उठा.

तभी बौस आ गए. उन्हें देख सभी चुप हो अपनीअपनी सीट पर चले गए.

‘‘बधाई हो, मधुरा. वैलकम बैक,’’ कहते हुए उन्होंने मधुरा का दफ्तर में पुन: स्वागत किया.

सभी अपनेअपने काम में व्यस्त हो गए.

‘‘मधुरा, शादी की छुट्टी से पहले जो तुम ने टर्न की प्रोजैक्ट किया था कैरी ऐंड संस कंपनी के साथ, उस का क्लोजर करना शेष है. तुम्हें तो पता हैं हमारी कंपनी के नियम… जो रिसोर्स कार्य आरंभ करता है वही कार्य को पूरी तरह समाप्त कर वित्तीय विभाग से उस का पूर्ण भुगतान करवा कर, फाइल क्लोज करता है. लेकिन बीच में ही तुम्हारे छुट्टी पर जाने के कारण उन का भुगतान अटका हुआ है. उस काम को जल्दी पूरा कर देना,’’ कह कर बौस ने फोन काट दिया.

मधुरा ने फाइल एक बार फिर से देखी. भुगतान के सिवा और कार्य शेष न था. फाइल पूरी करने हेतु उसे कैरी ऐंड संस कंपनी के प्रबंधक जितेन से एक बार फिर मिलना होगा और फिर वह जितेन के विचारों में खो गई.

शाम को घर लौट कर रात के भोजन की तैयारी कर मधुरा अपने कमरे में हृदय के दफ्तर से लौटने की प्रतीक्षा कर रही थी. समय काटने के लिए उस ने अपनी डायरी उठा ली. पुराने पन्ने पलटने लगी. पुराने पन्ने उसे स्वत: ही पुरानी यादों में ले गए…

29 जुलाई

आज इंप्लोई मीटिंग में बौस ने मेरे काम की तारीफ की. कितनी खुशी हुई, मेरे परिश्रम का परिणाम दिखने लगा है. नए क्लाइंट कैरी ऐंड संस कंपनी का प्रोजैक्ट भी मुझे मिल गया. इस प्रोजैक्ट को मैं निर्धारित समयसीमा में पूरा कर अपने परफौर्मैंस अप्रेजल में पूरे अंक लाऊंगी.

30 जुलाई

क्या बढि़या दफ्तर है कैरी ऐंड संस कंपनी का. मुझे आज तक अपना दफ्तर कितना एवन लगता था, लेकिन आज उन का दफ्तर देख कर मेरे होश फाख्ता हो गए. इंटीरियर डिजाइनर का काम लाजवाब है. इतने बढि़या दफ्तर में अकसर आनाजाना लगा रहेगा. मजा आ जाएगा.

31 जुलाई

सारे विभाग बहुत अच्छी तरह नियंत्रित हैं और आपस में अच्छा समन्वय स्थापित है. कैरी ऐंड संस कंपनी का आईटी विभाग प्रशंसा के काबिल है. आज अपने काम की शुरुआत की मैं ने. लोगों से मिल ली. किंतु जिन के साथ मिल कर काम करना है यानी जितेन, उन से मिलना रह गया. कल उन से भी मिल लूंगी.

1 अगस्त

मैं ने सपने में भी नहीं सोचा था कि ऐसे हीरो जैसा बंदा दफ्तर में टकराएगा मुझ से.

उफ, कितना खूबसूरत नौजवान है जितेन. लंबाचौड़ा, सुंदर… लगता है सीधे ‘मिल्स ऐंड बून्स’ के उपन्यासों से बाहर आया है… मेरे सपनों का राजकुमार.

6 अगस्त

आज पूरे हफ्ते भर बाद फिर से जितेन से मुलाकात हुई. वे इतना व्यस्त रहते हैं कि मुलाकात ही नहीं हो पाती. इतने ऊंचे पद पर हैं… अभी तक ठीक से बात भी नहीं हो पाई है. पता नहीं कब हम दोनों को बातचीत करने का मौका मिलेगा. अभी तो मैं जितेन को अपने कार्य के बारे में भी ढंग से नहीं बता पाई हूं.

16 अगस्त

जितना देखती हूं उतना ही दीवानी होती जा रही हूं मैं जितेन की. एक बार मेरी ओर देख भर ले वह… मेरी सांस गले में ही अटक जाती है. लगता है जो बोल रही हूं, जो काम कर रही हूं, सब भूल जाऊंगी. इतना स्वप्निल मैं ने स्वयं को कभी नहीं पाया पहले. यह क्या हो जाता है मुझे जितेन के समक्ष. लेकिन वह है कि मुझे समय

ही नहीं देता. बस 4-5 मिनट कुछ काम के बारे में पूछ कर चला जाता है. कब समझेगा वह मेरे दिल का हाल? क्या मेरी आंखों में कुछ नहीं दिखता उसे?

3 सितंबर

आज घर लौटते समय एफएम, पर ‘सत्ते पे सत्ता’ मूवी का गाना सुना, ‘प्यार हमें किस मोड़ पे ले आया. कि दिल करे हाय, कोई तो बताए क्या होगा… गाड़ी चलाते समय पूरा गला खोल कर गाना गाने का मजा ही कुछ और है…’ फिर आज तो गाना भी मेरे दिल का हाल बयां कर रहा था. न जाने जितेन के साथ पल दो पल कब मिलेंगे और मैं अपने दिल का हाल कब कह पाऊंगी.

हृदय के कमरे में आने की आहट से मधुरा अतीत की स्मृतियों से वर्तमान में लौट आई.

‘‘कैसा रहा दफ्तर में शादी के बाद पहला दिन?’’ हृदय ने पूछा.

मधुरा को हृदय की यह बात भी बहुत भाती थी कि वह उस की हर गतिविधि, हर भावना, हर बात का खयाल रखता है. दोनों ने बातचीत की, खाना खाया और अगली सुबह के लिए अलार्म लगा कर सो गए.

अगले दिन मधुरा अपने क्लाइंट कैरी ऐंड संस कंपनी पहुंची. आज उस ने फाइल क्लोजर की पूरी तैयारी कर ली थी. फाइनल पेमैंट का चैक देने वह जितेन के कक्ष में पहुंची. उस के हाथों में चूड़े देख जितेन ने उसे बधाई दी, ‘‘मुझे आप की कंपनी से पता चला था कि आप अपनी शादी हेतु छुट्टियों पर गई हैं.’’

कार्य पूरा करने के बाद मधुरा ने अपने दफ्तर लौटने के लिए कैब बुला ली. सारे रास्ते उस के मनमस्तिष्क में जितेन घूमता रहा. किस औपचारिकता से बात कर रहा था आज… उसे याद हो आया वह समय जब जितेन और मधुरा की मित्रता भी हो गई थी और वह ‘सिर्फ अच्छे दोस्त’ की श्रेणी से कुछ आगे भी बढ़ चुके थे.

मधुरा तब कैरी ऐंड संस कंपनी जाने के बहाने खोजती रहती. जितेन भी हर शाम उसे उस के दफ्तर से पिक करता और दोनों कहीं कौफी पीते समय व्यतीत करते. दोनों को ही एकदूसरे का साथ बेहद भाता था. मधुरा के चेहरे की चमक बढ़ती रहती और जितेन कुछ गंभीर स्वभाव का होने के बावजूद उसे देख मुसकराता रहता. जितेन आए दिन मधुरा को तोहफे देता रहता. कभी ‘शैनेल’ का परफ्यूम तो कभी ‘हाई डिजाइन’ का हैंडबैग.

‘‘जितेन, क्यों इतने महंगे तोहफे लाते हो मेरे लिए? मैं हर बार घर और दफ्तर में झूठ बोल कर इन की कीमत नहीं छिपा सकती.’’

‘‘तो सच बता दिया करो न… मैं ने कब रोका है तुम्हें?’’

‘‘तुम तो जानते हो कि हमारी कंपनी में भरती के समय हर मुलाजिम से कौंफिडैंशियलिटी ऐग्रीमैंट भरवाया जाता है. चूंकि तुम एक क्लाइंट हो, मैं तुम्हें न तो डेट कर सकती हूं और न ही तुम से शादी. इतना ही नहीं मैं तुम्हारी कंपनी अगले 2 वर्षों तक भी जौइन नहीं कर सकती हूं… तुम से शादी के बाद मैं नौकरी से त्यागपत्र दे कहीं और नौकरी ढूंढ़ूंगी…’’

‘‘शादी के बाद? हैंग औन,’’ मधुरा की बात को बीच में ही काटते हुए जितेन ने कहा, ‘‘शादी तक कहां पहुंच गईं तुम? हम एक कपल हैं, बस, मैं अभी शादीवादी के बारे में सोच भी नहीं सकता… वैसे भी शादी तो मां अपने सर्कल की किसी लड़की से करवाना चाहेंगी… तुम समझ रही हो न?’’

मधुरा के माथे पर चिंता की लकीरें और चेहरे पर असमंजस के भाव पढ़ कर जितेन ने आगे कहा, ‘‘तुम इस समय का लुत्फ उठाओ न… ये महंगे तोहफे, ये बढि़या रेस्तरां, अथाह शौंपिंग… ये सब तुम्हें खुश करने के लिए ही तो हैं… कूल?’’

उस शाम मधुरा को पता चला कि सामाजिक स्तर का भेदभाव केवल कहानियों में नहीं, अपितु वास्तविक जीवन में भी है. उस ने सोचा न था कि उसे भी इस भेदभाव का सामना करना पड़ेगा. उस के बाद जब कभी जितेन टकराया, बस एक फीकी सी मुसकान मधुरा के पाले में आई. खैर, उस का भी मन नहीं हुआ कि जितेन से बात करे. उस का मन खट्टा हो चुका था.

फिर उस की मम्मी ने उसे रमा आंटी के बेटे से मिलवाया. अच्छा लगा था मधुरा को वह. खास कर उस का नाम-हृदय. शांत, सुशील और विनम्र. घरपरिवार तो देखाभाला था ही, रहता भी इसी शहर में था. चलो, ‘मिल्स ऐंड बून्स’ के हीरो को भी देख लिया और अब वास्तविकता के नायक को भी. पर क्या करें. जीवन तो वास्तविक है. इस में सपनों से अधिक वास्तविकता का पलड़ा भारी रहना स्वाभाविक है.

जब से मधुरा की मुलाकात हृदय से हुई थी तभी से कितने अच्छे और मिठास भरे मैसेज भेजने लगा था वह. हृदय ने उस का मन पिघला दिया था. जल्दी ही हामी भर दी उस ने इस रिश्ते के लिए. उस की मम्मी और आंटी कितनी खुश हुईं. उस का मन भी खुश था. मन की तहों ने जहां एक तरफ जितेन को छाना था वहीं दूसरी तरफ हृदय को भी टटोल कर देखा था. मधुरा जैसी रुचिर, लुभावनी और मेधावी लड़की आगे बढ़ चुकी थी.

हर अनुभव जीवन में कुछ सबक लाता है और कुछ यादें छोड़ जाता है. चलते रहने का नाम ही जीवन है. मधुरा अपने दफ्तर पहुंच चुकी थी. आज वह अपने परफौर्मैंस अप्रेजल में अपने पूरे किए प्रोजैक्ट को भरने वाली थी.

दिल्लगी बन गई दिल की लगी

Story in Hindi

अब आओ न मीता- भाग 4: क्या सागर का प्यार अपना पाई वह

फैक्टरी की गोल्डन जुबली थी उस दिन. सुबह से ही कड़ाके की सर्दी थी. 6 बजने को थे. मीता जल्दीजल्दी तैयार हो कर फैक्टरी की ओर चल दी. घर से निकलते ही थोड़ी दूर पर सागर उसी ओर आता दिखाई दिया.

‘अरे आप तो तैयार भी हो गईं…मैं आप ही को देखने आ रहा था.’

‘तुम तैयार नहीं हुए?’

‘धोबी को प्रेस के लिए कपड़े दिए हैं. बस, ला कर तैयार होना बाकी है. चलिए, आप को स्पेशल कौफी पिलाता हूं, फिर हम चलते हैं.’

दोनों सागर के घर आ गए. मीता ने कहा, ‘मैं जब तक कौफी बनाती हूं, तुम कपड़े ले आओ.’’

बसंती रंग की साड़ी में मीता की सादगी भरी सुंदरता को एकटक देखता रह गया सागर.

‘एक बात कहूं आप से?’

मीता ने हामी भरते हुए गरदन हिलाई…

‘बड़ा बदकिस्मत रहा आप का पति जो आप के साथ न रह पाया. पर बड़ा खुशनसीब भी रहा जिस ने आप का प्यार भी पाया और फिर आप को भी.’

‘और तुम, सागर?’

‘मुझ से तो आप को मिलना ही था.’

एक ठंडी सांस ली मीता ने.

उस दिन सागर के घर पर ही इतनी देर हो गई कि उन्हें फैक्टरी के फंक्शन में जाने का प्रोग्राम टालना पड़ा था. उफ, यह मुलाकात कितने सारे सवाल छोड़ गई थी.

दूसरे दिन सागर जब मीता से मिला तो एक नई मीता उस के सामने थी…सागर को देखते ही अपने बदन के हर कोने पर सागर का स्पर्श महसूस होने लगा उसे. भीतर ही भीतर सिहर उठी वह. आंखें खोलने का मन नहीं हो रहा था उस का, क्योंकि बीती रात का अध्याय जो समाया था उस में. इतने करीब आ कर, इतने करीब से छू कर जो शांति और सुकून सागर से मिला था वह शब्दों से परे था…ज्ंिदगी ने सूद सहित जो कुछ लौटाया वह अनमोल था मीता के लिए. सागर ने बांहें फैलाईं और मीता उन में जा समाई… दोनों ही मौन थे…लेकिन उन के भीतर कुछ भी मौन न था…जैसे रात की खामोशी में झील का सफर…कश्ती अपनी धीमीधीमी रफ्तार में है और चांदनी रात का नशा खुमारी में बदलता जाता है.

शाम का अंधेरा घिरने लगा था. जंगल, गांव, पेड़ और सड़क सब पीछे छूटते जा रहे थे. टे्रन अपनी गति में थी. अधिकांश यात्री बर्थ खोल कर सोने की तैयारी में थे. मीता ने भी बैग से कंबल निकाल कर उस की तहें खोलीं. एअर पिलो निकाल कर हवा भरी और आराम से लेट गई. अभी तो सारी रात का सफर है. सुबह 10 बजे के आसपास घर पहुंचेगी.

कंबल को कस कर लपेटे वह फिर पिछली बातों में खोई हुई थी. मन की अंधेरी सुरंग पर तो बरसों से ताला पड़ा था. पहले वह मानती थी कि यह जंग लगा ताला न कभी खुलेगा, न उसे कभी चाबी की जरूरत पड़ेगी. लेकिन ऐसा हुआ कि न सिर्फ ताला टूटा बल्कि बरसों बाद मन की अंधेरी सुरंग में ठंडी हवा का झोंका बन कर कोई आया और सबकुछ बदल गया.

सफर में एकएक पल मीता की आंखों से गुजर रहा था.

जिंदगी के पाताल में कहां क्या दबा है, क्या छुपा है, कब कौन उभर कर ऊपर आ जाएगा, कौन नीचे तल में जा कर खो जाएगा, पता नहीं. विश्वास नहीं होता इस अनहोनी पर, जो सपनों में भी हजारों किलोमीटर दूर था वह कभी इतना पास भी हो सकता है कि हम उसे छू सकें…और यदि न छू पाएं तो बेचैन हो जाएं. जिंदगी की अपनी गति है गाड़ी की तरह. कहीं रोशनी, कहीं अंधेरा, कहीं जंगल, कहीं खालीपन.

यहां आशा दी के पास आना था. होली भी आने वाली है. बच्चों के एग्जाम भी थे और इस बीच किराए का मकान भी शिफ्ट किया था. उसे सेट करना था. सागर 3-4 दिन से अस्पताल में दाखिल था.

पीलिया का अंदेशा था. वह सागर को भी संभाले हुए थी. एक ट्रिप सामान मेटाडोर में भेज कर दूसरी ट्रिप की तैयारी कर सामान पैक कर के रख दिया. सोचा, सामान लोड करवा कर अस्पताल जाएगी, सागर को देख कर खाना पहुंचा देगी फिर लौट कर सामान सेट होता रहेगा. लेकिन तभी सागर खुद वहां आ पहुंचा.

‘अरे, तुम यहां. मैं तो यहां से फ्री हो कर तुम्हारे ही पास आ रही थी. लेकिन तुम आए कैसे? क्या डिस्चार्ज हो गए?’

‘डिस्चार्ज नहीं हुआ पर जबरदस्ती आ गया हूं डिस्चार्ज हो कर.’

‘क्यों, जबरदस्ती क्यों?’

‘आप अकेली जो थीं. इतना सारा काम था और आप के साथ तो कोई नहीं है मदद के लिए…’

‘खानाबदोश ज्ंिदगी ने आदी बना दिया है, सागर. ये काम तो ज्ंिदगी भर के हैं, क्योंकि कोई भी मकान मालिक एक या डेढ़ साल से ज्यादा रहने ही नहीं देता है.’

‘नहीं, ज्ंिदगी भर नहीं. अब आप को एक ही मकान में रहना होगा. बहुत हो गया यह बंजारा जीवन.’

‘हां, सोच तो रही हूं… फ्लैट बुक कर लूंगी, साल के भीतर कहीं न कहीं.’

सागर खाली मकान में चुपचाप दीवार से टिका हुआ था. मीता को उस ने अपने पास बुलाया. मीता उस के करीब जा खड़ी हुई.

सागर पर एक अजीब सा जुनून सवार था. उस ने कहा, ‘मैं चाहता हूं कि इस घर से आप यों न जाएं, क्योंकि इस से हमारी बहुत सी यादें जुड़ी हैं.’

‘तो कैसे जाऊं, तुम्हीं बता दो.’

‘ऐेसे,’ सागर ने अपना पीछे वाला हाथ आगे किया और हाथ में रखे स्ंिदूर से मीता की मांग भर दी.

अचानक इस स्थिति के लिए तैयार न थी मीता. सागर की भावनाएं वह जानती थी…स्ंिदूर की लालिमा उस के लिए कालिख साबित हुई थी और अब सागर…उफ. निढाल हो गई वह. सागर ने संभाल लिया उसे. मीता की थरथराती और भरी आंखें छलकना चाह रही थीं.

ट्रेन की रफ्तार कम होने लगी थी. अतीत और भविष्य का अनोखा संगम है यह सफर. सागर और राजन. एक भविष्य एक अतीत. कल सागर से मिलूंगी

तो पूछूंगी, क्यों न मिल गए थे 14 साल पहले. मिल जाते तो 14 सालों

का बनवास तो न मिलता. ज्ंिदगी की बदरंग दीवारें अनारकली की तरह तो न चिनतीं मुझे.

मुसकरा उठी मीता. सागर से माफी मांग लूंगी दिल तोड़ कर जो आई थी उस का. सागर की याद आई तो उस की बोलती सी गहरी आंखें सामने आ गईं. 5 दिनों में 5 युगों का दर्द बसा होगा उन आंखों में.

टे्रन रुकी तो चायकौफी वालों की रेलपेल शुरू हो गई. मीता ने चाय पी और फिर कंबल ओढ़ कर लेट गई इस सपने के साथ कि सुबह 10 बजे जब टे्रन प्लेटफार्म पर रुकेगी…तो सागर उस के सामने होगा. नीलेश और यश उसे सरप्राइज देने आसपास कहीं छिपे होंगे.

लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ. सुबह भी हुई, मीता की आंखें भी खुलीं, उस ने प्लेटफार्म पर कदम भी रखा, पर वहां न सागर, न नीलेश और न यश. थोड़ी देर उस ने इंतजार भी किया, लेकिन दूरदूर तक किसी का कोई पता न था. रोंआसी और निराश मीता ने अपना सामान उठाया और बाहर निकल कर आटो पकड़ा. क्या ज्ंिदगी ने फिर मजाक के लिए चुन लिया है उसे?

पूरे शहर में होली का हुड़दंग था. इन रंगों का वह क्या करे जब इंद्रधनुष के सारे रंग न जाने कहां गुम हो गए थे.

बहुत भीड़ थी रास्ते में. घर के सामने आटो रुका तो घर पर ताला लगा था. वह परेशान हो गई. अचानक घर के ऊपर नजर गई तो वहां ‘टुलेट’ का बोर्ड लगा था. उसी आटो वाले को सागर के घर का पता बता कर वापस बैठी मीता. अनेक आशंकाओं से घिरा मन रोनेरोने को हो गया.

सागर के घर के आगे बड़ी चहलपहल थी. टैंट लगा था. सजावट, वह भी फूलों की झालर और लाइटिंग से…गार्डन के सारे पेड़ों पर बल्बों की झालरें

लगी थीं…

खाने और मिठाइयों की सुगंध चारों ओर बिखरी थी. आटो के रुकते ही लगभग दौड़ती बदहवास मीता भीतर की ओर दौड़ी. भीतर पहुंचने से पहले ही जड़ हो कर वह जहां थी वहीं खड़ी रह गई.

दरवाजे पर आरती का थाल लिए सागर की मां और सुहाग जोड़ा, मंगलसूत्र और लाल चूडि़यों से भरा थाल पकड़े सागर की छोटी बहन खड़ी थी. नीचे की सीढ़ी पर हाथ जोड़ कर स्वागत करता सागर का छोटा भाई मुसकरा रहा था.

मीता ने देखा झकाझक सफेद कुरतापाजामा पहने, लाल टीका लगाए सागर उसी सोफे पर बैठा यश को तैयार कर रहा था जहां उस शाम दोनों की जिंदगी ने रुख बदला था.

रोहित मस्ती में झूमता मीता की ओर आने लगा…

सागर ने मीता को देखते ही आवाज लगाई, ‘‘नीलेश बेटे.’’

‘‘जी, पापा.’’

‘‘जाओ, आटो से मम्मी का सामान उतारो और आटो वाले को पैसे भी दे दो.’’

‘‘जी, पापा.’’

नीलेश बाहर आने लगा तो सागर ने फिर आवाज दी, ‘‘और सुनो, आटो वाले को मिठाई जरूर देना…’’

‘‘जी, पापा.’’

मीता बुत बनी सागर को एकटक देख रही थी. सागर की गहरी आंखें कह रही थीं…इंजीनियर जरूर आधा हूं लेकिन घर पूरा बनाना जानता हूं. है न? अब आओ न मीता…

प्यार की खातिर: मोहन और गीता की कहानी

प्यार कभी भी और कहीं भी हो सकता है. प्यार एक ऐसा अहसास है, जो बिन कहे भी सबकुछ कह जाता है. जब किसी को प्यार होता है तो वह यह नहीं सोचता कि इस का अंजाम क्या होगा और ऐसा इसलिए होता है क्योंकि वह इनसान किसी के प्यार में इतना खो जाता है कि बस प्यार के अलावा उसे कुछ दिखाई नहीं देता है. तभी तो कहते हैं कि प्यार अंधा होता है. सबकुछ लुटा कर बरबाद हो कर भी नहीं चेतता और गलती पर गलती करता चला जाता है.

मोहन हाईस्कूल में पढ़ने वाला एक 16 साल का लड़का था. वह एक लड़की गीता से बहुत प्यार करने लगा. वह उस के लिए कुछ भी कर सकता था, लेकिन परेशानी की बात यह थी कि वह उसे पा नहीं सकता था, क्योंकि मोहन के पापा गीता के पापा की कंपनी में एक मामूली सी नौकरी करते थे. मोहन बहुत ज्यादा गरीब घर से था, जबकि गीता बहुत ज्यादा अमीर थी. वह सरकारी स्कूल में पढ़ता था और गीता शहर के नामी स्कूल में पढ़ती थी.

लेकिन उन में प्यार होना था और प्यार हो गया. मोहन गीता से कहता, ‘‘तुम मुझ से कभी दूर मत जाना क्योंकि मैं तुम्हारे बिना एक पल भी नहीं रह पाऊंगा.’’ ‘‘हां नहीं जाऊंगी, लेकिन मेरे घर वाले कभी हमें एक नहीं होने देंगे,’’ गीता ने कहा.

‘‘क्यों?’’ मोहन ने पूछा. ‘‘क्योंकि तुम सब जानते हो. हमारा समाज हमें कभी एक नहीं होने देगा,’’ गीता बोली.

‘‘हम इस दुनिया, समाज सब को छोड़ कर दूर चले जाएंगे,’’ मोहन ने कहा. ‘‘नहींनहीं, मैं यह कदम नहीं उठा सकती. मैं अपने परिवार को समाज के सामने शर्मिंदा होते नहीं देख सकती,’’ गीता ने अपने मन की बात कही.

‘‘ठीक है, तो तुम मेरा तब तक इंतजार करना, जब तक मैं इस लायक न हो जाऊं और तुम्हारे पापा के सामने जा कर उन से तुम्हारा हाथ मांग सकूं. बोलो मंजूर है?’’ मोहन ने कहा. गीता हंसी और बोली, ‘‘क्या होगा, अगर मैं तुम से शादी कर के एकसाथ न रह सकी? हम चाहें दूर रहें या पास, मेरे दिल में तुम्हारा प्यार कभी कम नहीं होगा. तुम हमेशा मेरे दिल में रहोगे.’’

यह सुन कर मोहन दिल ही दिल में रो पड़ा और सोच में पड़ गया. ‘‘क्या तुम मुझे छोड़ कर किसी और से शादी कर लोगी? मुझे भूल जाओगी? मुझ से दूर चली जाओगी?’’ मोहन ने पूछा.

‘‘ऐसा तो मैं सोच भी नहीं सकती कि तुम्हें भूल जाऊं. मैं मरते दम तक तुम्हें नहीं भूल पाऊंगी,’’ गीता बोली. ‘‘फिर मेरा दिल दुखाने वाली बात क्यों करती हो? कह दो कि तुम मेरी हो कर ही रहोगी?’’ मोहन ने कहा.

समय अपनी रफ्तार से चल रहा था. मोहन दिनरात मेहनत कर के खुद को गीता के काबिल बनाने में लगा था, ताकि एक दिन उस के पिता के पास जा कर गीता का हाथ मांग सके. इधर गीता यह सोचने लगी, ‘मोहन मेरी अमीरी की खातिर मुझ से दूर जा रहा है. वह मुझे पा नहीं सकता इसलिए दूरी बना रहा है.’

इधर गीता के घर वाले उस के लिए लड़का देखने लगे और उधर मोहन जीजान से पढ़ाई में लगा हुआ था. उसे पता भी नहीं चला और गीता की शादी तय हो गई. जब यह बात मोहन को पता चली तो वह गीता की खुशी की खातिर चुप लगा गया, क्योंकि उस की शादी शहर के बहुत बड़े खानदान में हो रही थी. उस का होने वाला पति एक बड़ी कंपनी का मालिक था.

यह सब जानने और सुनने के बाद मोहन अपने प्यार की खुशी की खातिर उस से दूर जाने की कोशिश करने लगा, लेकिन यह तो नामुमकिन था. वह किसी भी कीमत पर जीतेजी उस से दूर नहीं हो सकता था. सचाई जाने बगैर ही उस ने एक गलत कदम उठाने की सोच ली. गीता अंदर ही अंदर बहुत दुखी थी और परेशान थी क्योंकि वह भी तो मोहन को बहुत प्यार करती थी.

जिस दिन गीता की शादी थी उसी दिन मोहन ने एक सुसाइड नोट लिखा और फांसी लगा ली. ठीक उसी समय गीता ने भी एक सुसाइड नोट लिखा और जब सब लोग बरात का स्वागत करने में लगे थे उस ने खुद को फांसी लगा कर खत्म कर लिया.

प्यार की खातिर 2 परिवार दुख के समंदर में डूब गए. बस उन दोनों की जरा सी गलतफहमी की खातिर. हम मिटा देंगे खुद को प्यार की खातिर जी नहीं पाएंगे पलभर तुम से दूर रह कर. कर के सबकुछ समर्पित प्यार के लिए बिखरते हैं कितना हम टूटटूट कर. विश्वास बहुत बड़ी चीज होती है. हमें अपनों पर और खुद पर भरोसा करना चाहिए, ताकि जो उन दोनों के साथ हुआ वैसा किसी के साथ न हो. अगर प्यार करो तो निभाना भी चाहिए और बात कर के गलतफहमियों को मिटाना भी चाहिए, क्योंकि प्यार वह अहसास है जो हमें जीने की वजह देता है.

अगर इस दुनिया में प्यार नहीं तो कुछ भी नहीं. प्यार अमीरीगरीबी, ऊंचनीच, धर्म, जातपांत कुछ भी नहीं देखता. अगर किसी को एक बार प्यार हो जाए तो वह उस की खुशी की खातिर अपनी जिंदगी की भी परवाह नहीं करता. प्यार तो कभी भी कहीं भी किसी से भी हो सकता है, पर सच्चा प्यार होना और मिलना बहुत मुश्किल होता है. खुद पर और अपने प्यार पर हमेशा भरोसा बनाए रखना चाहिए, क्योंकि इस फरेबी दुनिया में सच्चा प्यार बहुत मुश्किल से मिलता है.

अब आओ न मीता- भाग 3: क्या सागर का प्यार अपना पाई वह

दिनोंदिन घर का सूनापन भरने लगा था. मीता ने इस बदलाव पर आशा दी को पत्र लिखा. तुरंत उन का जवाब आया, ‘शायद कुदरत अपनी गलती पर पछता रही हो…मीता, जो होगा, अच्छा होगा.’

सागर के रूप में उसे अपना एक हमदर्द मिला तो जीवन जीना सहज होने लगा, फिर भी हर वक्त एक आशंका और डर छाया रहता…सब कुछ वक्त के हवाले कर के आंखें मूंद ली थीं मीता ने.

‘‘आंटी, आप का पर्स नीचे गिरा है बहुत देर से,’’ आवाज से स्मृतियों की यात्रा में पड़ाव आ गया. सामने की सीट पर बैठी एक युवती मीता को जगा रही थी. उसे लगा मीता सो रही है. मीता ने पर्स उठाया और उसे थैंक्यू बोला.

कितनी अजीब होती हैं सफर की स्थितियां. या तो हम अतीत में होते हैं या भविष्य में. गाड़ी के  पहिए आगे बढ़ते और यादें पीछे लौटती हैं. पीछे छूटे लोगों की गंध और चेहरे साथ चलते महसूस होते हैं.

चलते वक्त आशा दी की आंखें रोरो कर लाल हो गई थीं. फिर किसी तरह स्वयं को संयत कर बोली थीं, ‘आज पहली बार लग रहा है मीता कि मैं अपनी बहन नहीं, बेटी को बिदा कर रही हूं. अब जब आएगी तो अपने परिवार के संग आएगी…तेरा सुख देखने को आंखें तरस गईं, मीता. सागर तो फरिश्ता बन कर आया है मेरे लिए वरना राजन ने तो…’

‘छोड़ो न आशा दी… मत याद करो वह सब. मत दिल दुखाओ.’ मीता रो उठी. दोनों बहनें एकदूसरे के गले लग कर बहुत देर तक रोती रहीं.

‘आशा दी, आप एक बार आ कर सागर से मिलो तो. अब कुछ पा कर भी खो देने का डर बारबार मन में समा जाता है. अपनी किस्मत पर विश्वास नहीं रहा अब.’

‘पगली, ज्ंिदगी में सच्ची चाहत सब को नसीब नहीं होती. चाहत की, चाहने वाले की कद्र करनी चाहिए. उम्र के फासले को भूल जा, क्योंकि  प्यार उम्र को नहीं दिल को जानता है…सच के सामने सिर झुका दे मेरी बहन…नीलेश और यश के लिए भी सागर से बेहतर और कोई नहीं हो सकता.’

सागर को डाक्टर के पास चेकअप के लिए ले जाना था. मीता फैक्टरी से सीधी सागर के घर चली आई. आज फिर घर में अंधेरा था…भीतर वाले कमरे में सागर सोफे पर लेटे थे. टेप रिकार्डर आन था

‘तुझ बिन जोगन मेरी रातें,

तुझ बिन मेरे दिन बंजारे…’

अंधेरे में गूंजता अकेलापन मीता की बरदाश्त से बाहर था. लाइट आन की तो सागर की पलकों की कोरें गीली थीं. मीता को देखा तो उठ कर बैठ गए.

‘यह गाना क्यों सुन रहे हो?’

‘हमेशा यही तो सुनता रहा हूं.’

‘जो चीज रुलाए उसे दूर कर देना चाहिए कि उसे और गले लगा कर रोना चाहिए?’

‘लेकिन जो चीज आंसू के साथ शांति भी दे उस के लिए क्या करे कोई?’

‘क्या मतलब?’

‘अच्छा छोडि़ए, डाक्टर के यहां चलना है न? मैं तैयार होता हूं…’

‘नहीं, पहले बात पूरी कीजिए.’

‘पिछले 3 सालों से…’ सागर की गहरी आंखें मीता पर टिकी थीं.

‘आगे बोलिए.’

‘मुझे आप के आकर्षण ने बांध रखा है… मैं ने पागलों की तरह आप के बारे में सोचा है. आप के अतीत को जान कर, आप के संघर्ष, आप के ज्ंिदगी जीने के अंदाज को मन ही मन सराहा है. पिछले 3 सालों का हर पल आप के पास आने की ख्वाहिश में बीता है…ये गीत मेरे दर्द का हिस्सा हैं…’

‘यह जानते हुए भी कि मैं उम्र में आप से बड़ी, 2 बच्चों की मां और एक शादीशुदा औरत हूं. मेरी शादी सफल नहीं हो पाई. मैं ने अकेले ही अपने बच्चों के भविष्य को संभाला है और किसी सहारे की दूरदूर तक गुंजाइश नहीं मेरे जीवन में. अपने बच्चों की नजरों में मैं अपना सम्मान नहीं खोना चाहती. हमारे बीच जो कुछ भी है, वह जो कुछ भी हो पर प्यार नहीं हो सकता.’

‘मैं ने कब कहा कि आप की चाहत चाहिए मुझे…प्यार का बदला प्यार ही हो यह जरूरी नहीं…यश, नीलेश और आप का साथ जो मुझे अपनी बीमारी के दौरान मिला, उस ने मेरा जीवन बदल दिया है. आप मेरे करीब, मेरे सामने हों. मैं जी लूंगा इसी सहारे से.’

‘मेरे साथ आप का कोई भविष्य नहीं. आप की ज्ंिदगी में अच्छी से अच्छी लड़कियां आ सकती हैं. अपना घर बसाइए…मेरी ज्ंिदगी जैसे चल रही है चलने दीजिए, सागर. ओह, सौरी.’

‘नहीं, सौरी नहीं. आप ने मेरा नाम लिया. इस के लिए शुक्रिया.’

फिर सागर तैयार होने भीतर चला गया और मीता वहीं सोफे पर बैठी कुछ सोचती रही.

सागर को सिविल इंजीनियर बनाना चाहते थे उस के डाक्टर पापा. असमय ही सिर से पिता का साया क्या उठा सागर रातोंरात बड़प्पन की चादर ओढ़ घर का बड़ा और जिम्मेदार सदस्य हो गया. 2-3 साल तक इंजीनियरिंग की डिगरी का इंतजार, फिर नौकरी की तलाश करना उस के लिए नामुमकिन था, इसलिए अपनी मंजिल को गुमनामी में धकेल कर सब से पहले फाइनल में पढ़ रही छोटी बहन सोनल के हाथ पीले किए उस ने…पापा के अधूरे कामों को पूरा करने का बीड़ा उठाया था सागर ने. सारी जमीनजायदाद का हिसाब कर के सारा पैसा बैंक में जमा कर रोहित का मेडिकल में एडमीशन करा कर वह यहां आ गया. मां को सारा उत्तरदायित्व सौंप कर वह निश्ंिचत था. अपने लिए कुछ सोचना उस की फितरत में न था. बहन अपने घर में खुश थी राहुल का कैरियर बनना निश्चित था. मां को आर्थिक सुरक्षा दे वह अकेला हो कर ज्ंिदगी जीने लगा.

बिल्ंिडग, पुल और सड़क बनाने वाली आंखें यहां शर्ट बनते देखने लगी थीं. मशीनों के शोर में वह सबकुछ भूल जाना चाहता था. कपड़ों की कतरनों में उसे अपने ध्वस्त सपनों के अक्स नजर आते. किनारे पर आ कर जहाज डूबा था उस का… बड़ा जानलेवा दर्द होता है किनारे पर डूबने का…

फिर यहां मीता को देखा. उस की समझौते भरी ज्ंिदगी का हश्र देखा तो ठगा सा रह गया वह. एक अकेली औरत का साहस देख कर कायल हो गया उस का मन. उस की प्रतिभा, शिक्षा और संस्कार का एहसास हर मिलने वाले को पहली नजर में ही हो जाता. दूसरों के मन को समझने वाली पारखी नजर मीता की विशेषता थी, न होती तो सागर के भीतर बसा खालीपन वह कैसे महसूस कर पाती भला

मीता अपनी सीमा जानती थी. उस ने सबकुछ वक्त और हालात पर छोड़ दिया था. लेकिन मीता जानने लगी थी, सागर वह नहीं है जो नजर आता है, कई बार उस की गहरी आंखें कुछ सोचने पर विवश कर देतीं मीता को. मीता झटक देती जल्दी से अपना सिर…नहीं, उसे यह सब सोचने का हक नहीं. पर सिर झटकने से क्या सबकुछ छिटक जाता है. इनसान अकेलापन तो बरदाश्त कर लेता है लेकिन भीड़ के बीच अकेलापन बहुत भारी होता है.

पहले कम से कम उस का जीवन एक ढर्रे पर तो था. अपने बारे में उस ने सोचना ही बंद कर दिया था. लेकिन सागर का साथ पा कर कमजोर होने लगी थी वह. दूसरी ओर एक जिम्मेदार मां है वह…यह भी नहीं भूलती थी. अनिश्चय के झूले में झूल रही थी मीता. भावनाओं का चक्रवात उसे निगलने को आतुर था.

कांटे गुलाब के – भाग 3 : अमरेश और मिताली की प्रेम कहानी

स्वाति की शादी के बाद मोबाइल ठीक करा लिया तो अमरेश का फोन आ गया, ‘‘2 दिनों से परेशान हूं. तुम्हारा मोबाइल स्विचऔफ बता रहा था. बात क्या है?’’

उस ने मुंबई आने की बात अमरेश से छिपा ली. उस से कहा कि एक सहेली की शादी में दिल्ली आई हूं.

2 दिनों बाद लौट जाऊंगी.

अमरेश से हमेशा जिस तरह बात करती थी, उसी तरह से बात की. उसे यह संदेह नहीं होने दिया कि उसे उस की बेवफाई का पता चल गया है. अमरेश ने उस के साथ बेवफाई क्यों की? दुबई में नौकरी करने को बता कर दूसरी शादी कर मुंबई में क्यों रह रहा था? आखिर उस की क्या गलती थी? ये सारी बातें जानने के लिए उसे सारिका से मिलना जरूरी था.

स्वाति ससुराल चली गई थी. उस की मां से बहाना बना कर और सुमित को उन के हवाले कर चौधरी साहब की बिल्डिंग पर दोपहर में गई. उसे अनुमान था कि उस समय अमरेश घर पर नहीं रहता होगा. गार्ड से बात करने पर इस बात की पुष्टि भी हो गई. अमरेश उस समय औफिस में रहता था. गार्ड को उस ने अपना परिचय जर्नलिस्ट के रूप में दिया. कहा, ‘‘अमरेश सर ने सारिका का इंटरव्यू लेने के लिए बुलाया था.’’

गार्ड ने इंटरकौम द्वारा सारिका से बात की. उस की भी बात करवाई. उस के बाद उसे अंदर जाने की इजाजत मिल गई. अंदर गई तो सारिका ने उस का स्वागत किया. अपना परिचय देते हुए उसे सोफे पर बैठाया. बगैर समय गंवाए उस ने कहा, ‘‘अमरेश सर का कहना है कि उन की जिंदगी में यदि आप नहीं आतीं तो वे ऊंचाई के मुकाम पर नहीं पहुंच पाते. बताइए कि अमरेश सर से आप की शादी कब और कैसे हुई?’’

नौकर कोल्डड्रिंक ले आया. कोल्डड्रिंक पीते हुए जैसेजैसे बातों का सिलसिला आगे बढ़ता गया, वैसेवैसे अमरेश से शादी करने की जानकारी सारिका देती गई. सारिका अपने मातापिता की इकलौती संतान थी. मुंबई में ही उस ने ग्रेजुएशन की थी. पिता उस की शादी ऐसे लड़के से करना चाहते थे जो अमीर खानदान से हो और घरजमाई बन कर उन का बिजनैस संभाल सके.

सारिका सांवली थी. नाकनक्श भी अच्छे नहीं थे. कद भी छोटा था. शायद इसीलिए अमीर खानदान का कोई युवक चौधरी साहब का घरजमाई बनने के लिए तैयार नहीं था. गरीब युवकों में से कई सारिका से शादी करना चाहते थे, मगर चौधरी गरीब को पसंद नहीं करते थे. सारिका के ग्रेजुएशन करने के बाद चौधरी साहब ने उस की पढ़ाई छुड़वा दी थी और उस के लिए वर की तलाश शुरू कर दी थी. 3 साल बीत जाने के बाद भी मनपसंद वर नहीं मिला. उस के बाद सारिका की जिंदगी में अचानक अमरेश आ गया. हुआ यों कि सारिका मातापिता के साथ एक रिश्तेदार की शादी में 3 साल पहले कोलकाता गईर् थी. समारोह में अमरेश से उस की मुलाकात हुई थी.

अमरेश जिस कंपनी में काम करता था, उस के मैनेजिंग डायरैक्टर की बेटी की शादी थी. सारे स्टाफ को बुलाया गया था. पार्टी में अमरेश सारिका के आगेपीछे घूमने लगा तो मौका देख कर सारिका ने उस से पूछा, ‘आप मेरे आगेपीछे क्यों घूम रहे हैं, मुझ से चाहते क्या हैं?’

अमरेश ने बगैर किसी संकोच के कह दिया, ‘पहली नजर में ही मुझे आप से प्यार हो गया है. आप से शादी करना चाहता हूं.’

सारिका को अमरेश बड़ा दिलचस्प लगा. उस का व्यक्तित्व उस के दिल को छू गया. मुसकरा कर बोली, ‘आप ने मुझ में ऐसा क्या देखा कि मेरे दीवाने हो गए?’

‘आप बहुत सुंदर हैं. आप की सुंदरता मेरे दिल में उतर गई है. जब तक आप से शादी नहीं होगी, मुझे चैन नहीं मिलेगा.’

‘मैं गोरी नहीं, सांवली हूं, फिर सुंदर कैसे हो सकती हूं. आप झूठ बोल रहे हैं?’

‘मैं सच कह रहा हूं. सांवली होते हुए भी आप इतनी सुंदर हैं कि गोरी से गोरी लड़की भी सुंदरता में आप के सामने घुटने टेक देगी.’

अमरेश से सारिका प्रभावित हो गई. उस से उस की सारी जानकारी लेने के बाद उसे अपना परिचय दिया. फिर कहा, ‘घर जा कर मम्मीपापा से बात करूंगी. पापा तो नहीं चाहेंगे कि किसी गरीब लड़के से मेरी शादी हो. मैं आप से शादी करने की पूरी कोशिश करूंगी. दरअसल, मुझे भी आप से पहली नजर में ही प्यार हो गया है.’

अमरेश ने सारिका को बताया था कि वह कुंआरा है. दुनिया में उस का कोई नहीं है. वह छोटा था, तभी उस के मातापिता का देहांत हो गया था. मामा ने परवरिश की, उन्होंने ही पढ़ायालिखाया. मामा का अचानक देहांत हो गया तो उन के बेटों ने उसे घर से निकाल दिया. ऐसे में उस के एक दोस्त प्रभात ने उसे सहारा दिया. उस की बदौलत ही उसे नौकरी मिली. वह उस के साथ गोल पार्क में रहता है. उस का परिवार गांव में रहता है.

घर जा कर सारिका ने मम्मीपापा को अमरेश के बारे में बताया तो दोनों ने शादी से साफ मना कर दिया. सारिका अमरेश से हर हाल में विवाह करना चाहती थी. इसलिए उस ने घर में बवाल कर दिया. आत्महत्या करने की धमकी दी तो चौधरी साहब को उस की बात मान लेनी पड़ी. कोलकाता जा कर अमरेश से मिलने के 10 दिनों बाद चौधरी साहब ने सारिका की शादी अमरेश से कर दी. अमरेश अच्छा पति साबित हुआ. सारिका को कभी किसी तरह का कष्ट नहीं दिया. चौधरी साहब का बिजनैस भी संभाल लिया. वर्तमान में सारिका

2 महीने से प्रेग्नैंट थी. अमरेश की सचाई जान कर मिताली के दिमाग में जैसे हथौड़े चलने लगे थे. मन में आया कि इसी पल सबकुछ सारिका को बता दे. धोखेबाज अमरेश की कलई खोल कर रख दे. पर ऐसा न कर सकी. जबान तालू से चिपक गई थी. लगा, जैसे ही सारिका को अमरेश की सचाई बताऊंगी उस की जिंदगी में बहार के बाद पतझड़ वाली स्थिति आ जाएगी. न जाने क्यों वह उसे दुख नहीं देना चाहती थी.

वहां रुकना उस के लिए ठीक नहीं था. ‘‘जल्दी ही इंटरव्यू प्रकाशित होगा,’’ कह कर चली आई. तत्काल कोई फैसला लेना आसान नहीं था. अपने साथसाथ सुमित की जिंदगी का भी सवाल था. इसलिए चुपचाप कोलकाता लौट आई. वह प्रभात को जानती थी. वह अमरेश का दोस्त था. अमरेश के साथ उस के घर 3-4 बार जा चुकी थी. अमरेश की उपस्थिति में वह भी कई एक बार घर आ चुका था. कोलकाता में जिस कंपनी में अमरेश जौब करता था, प्रभात भी उसी कंपनी में था.

अमरेश से शादी किए हुए एक वर्ष हुआ था तब की बात है, एक दिन बातोंबातों में प्रभात ने बताया था, ‘अमरेश आप को बहुत प्यार करता है. इसीलिए उस ने आप से शादी की, नहीं तो वह अपनी ख्वाहिश पूरी करता.’

‘कैसी ख्वाहिश?’ उत्सुकतावश पूछ लिया था मैं ने.

‘वह ऐशोआराम की जिंदगी चाहता था. बेहिसाब धनदौलत का मालिक बनना चाहता था. इस के लिए वह कुछ भी कर गुजरने के लिए तैयार था. मौका नहीं मिला तो 20 हजार रुपए महीने की नौकरी कर आप से शादी कर ली.

‘आप से शादी करने के बाद भी उस ने हिम्मत नहीं हारी है. वह हर हाल में अथाह दौलत का मालिक बनना चाहता है. इसलिए अब भी मौके की तलाश कर रहा है. जिस दिन मौका उस के हाथ आएगा, अंजाम की परवा किए बिना अवसर को हथिया लेगा.’

प्रभात ने जिस अवसर की बात की थी, उस समय समझ नहीं पाई थी. अब सबकुछ समझ गई थी. वह किसी अमीर लड़की से शादी कर अपनी ख्वाहिश पूरी करना चाहता था. मामला शायद ऐसा था, कोलकाता की पार्टी में अमरेश को किसी सोर्स से सारिका की जानकारी मिली होगी. उस के बाद अपनी मंजिल पाने के लिए चिकनीचुपड़ी बातों से सारिका का दिल जीत कर उस से शादी की और मिताली से दुबई जाने की बात कह कर वह सारिका के साथ रहने लगा था.

इस में कोई शक नहीं था कि उस के प्रति अमरेश का प्यार मात्र छलावा था. मिताली दोराहे पर थी. फैसला लेना आसान नहीं था. तलाक लेने की स्थिति में उस की जिंदगी में तो बदलाव आता ही, सुमित की जिंदगी भी एकदम से बदल जाती. वह समझ नहीं पा रही थी कि क्या करे, क्या न करे. इसी उधेड़बुन में कई दिन गुजर गए. इस बीच फोन पर अमरेश से बिलकुल सामान्य तरीके से बात की. उसे किसी तरह का संदेह नहीं होने दिया. 10 दिनों बाद की बात है. एक दिन शाम के 6 बजे सुमित को पढ़ा रही थी कि डोरबैल बज उठी. जा कर दरवाजा खोला, तो अमरेश था. वह जब भी आता था बगैर सूचना दिए ही आता था. 10-15 दिनों के लिए मुंबई से बाहर जाने के लिए उसे सारिका से कुछ अच्छा बहाना भी तो बनाना पड़ता होगा. सटीक बहाने के लिए उसे समय की प्रतीक्षा करनी होती होगी. इसीलिए आने की पूर्व सूचना नहीं दे पाता होगा.

अमरेश को किसी तरह का शक न हो, इसलिए सदैव की तरह वह उस से लिपट गई और उस का स्वागत किया. फिर उसे अंदर ले गई. आवाज सुन कर सुमित भी दौड़ कर आ गया. अमरेश के चेहरे पर सदैव की तरह खुशनुमा भाव था. जरा भी नहीं लगा कि वह दोहरी जिंदगी जी रहा है. हर बार की तरह इस बार भी उस ने मिताली पर अपना प्यार बरसाने में कोई कमी नहीं की. उस के मन में कई बार आया कि उस की बेवफाई का राज खोल दे. कह दे कि प्यार का नाटक बंद कर दो. पर कह नहीं  सकी. 10 दिनों बाद वह चला गया. प्रति महीना 50 हजार रुपए तो भेजता ही था. इस बार जाते समय उस ने 5 लाख रुपए यह कह कर दिए कि अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखना और सुमित की पढ़ाई में कोई कमी नहीं आने देना.

सदा अन्याय का मुकाबला करो, अपने हक के लिए सदा लड़ो, समाज में पनपती बुराइयों पर अंकुश लगाओ. यह सब स्कूल और कालेज में पढ़ाया गया था. मिताली ने सीखा भी था. पर जिंदगी की पाठशाला में तो कुछ और ही देखने को मिल रहा था. अमरेश के प्रति जबान खोलती तो कई जिंदगियां बरबाद हो जातीं.  मातापिता का कोई सहारा न था क्योंकि उन्होंने एक तरह से साफ कह दिया, अपनी जिंदगी खुद भुगतो.

इसलिए अमरेश के जाने के बाद उस ने फैसला किया कि जब तक उस का अभिनय सफलतापूर्वक चलता रहेगा, तब तक चुपचाप सहती रहेगी, ठीक उसी तरह जिस तरह उस की जैसी हजारों महिलाएं चुपचाप सहती रहती हैं. क्या उस का फैसला सही था? अगर वह हल्ला मचाती तो सारिका भी टूटती, सुमित भी टूटता, अमरेश भी बेकार होता और वह खुद अदालतों के चक्करों में पिस जाती. सारिका या वह कौन असली पत्नी है, कानूनी है, यह तो अभी नहीं पता, पर इस बोझ को ले कर चलना ही ठीक है.

 

दुलहन वही जो पिया मन भाए – भाग 3

एक सुंदर सपना, आंख खुलने तक टूट चुका था. खुशी एक झलक दिखा पीठ मोड़ चुकी थी. सुहानी के सुहाने सपने दिल में लिए सत्यम अपनी नौकरी पर लौट गया. हर वक्त उमंग में रहने वाला सत्यम इस बार दुखी हृदय से लौटा. शरीर से भले वह लौट आया, परंतु बहुतकुछ इस बार घर पर ही छूट गया. सब से पहले तो उस का पहला प्यार छूटा, फिर मां और घरवालों की बेतुकी बातों से मन टूटा.

सुहानी की वह पहली झलक वहीं उस कमरे में ही रह गई थी. मांपापा पर उस के अटूट विश्वास की धज्जियां भी तो वहीं उड़ गईं. उस को अपनी मां का अंधविश्वास इस बार बहुत महंगा लगा, जिस का मोल उस की ख्वाहिशों की चिंदियों से चुकाया गया. क्षणभर में बन गए स्वप्नसलोने घरौंदे के मानो तिनकेतिनके बिखर गए थे. सब वहीं घर पर रह गया था. बस, अरमानों और ख्वाबों के भस्म लपेट लौटा था वह इस बार.

हर उम्र की एक मांग होती है. सत्यम का मन एक हमसफर के लिए अब तड़प रहा था. उस के साथ के अधिकतर लड़केलड़कियों की शादी हो चुकी थी. ज्यादातर उन्होंने अपनी पसंद के जीवनसाथी का चुनाव किया था. पहले हर रविवार जहां सब दोस्त मिलते थे, अब समाप्तप्राय ही था क्योंकि अधिकांश दोस्तों की शादी हो चुकी थी और सत्यम अब उन सब के साथ असहज महसूस करता था. अब उन की बातों का रुख घरपरिवार होता.

अकेलापन सत्यम पर हावी होने लगा था. वक्त गुजर रहा था और एकाकीपन अब उस के मानस पर चढ़ बैठा था. कोई 2 सालों से वह घर भी नहीं गया था.

उस के घरवालों द्वारा बहू की खोज जारी थी. उस खोज में अब पुरोहितजी और मां के कुछ और नए पंडे भी शामिल हो गए थे. इतने लोगों के मत के मद्देनजर न कभी एकमत होना था न हुआ.

मां परेशान हो और पूजापाठ में लगी रहतीं कि उस के बेटे की शादी हो जाए. धूर्त पंडितों के बिछाए जाल में फंस वे रूठे हुए काल्पनिक ग्रहनक्षत्रों की मनावन में लगी रहतीं. फिर एक दिन सत्यम को फोन आया कि दादी बहुत बीमार हैं, जल्दी घर आ जाओ.

सत्यम जब घर पहुंचा तो देखा कि घर में काफी बड़े पैमाने पर किसी हवन का आयोजन है. दादी हाथ जोड़े बिलकुल स्वस्थ बैठीं हवन की समिधा के कारण बहते आंसुओं को पोंछ रही हैं.

‘‘अब तुम ऐसे तो 2 साल से घर आ ही नहीं रहे थे, तो मुझे झूठ बोलना पड़ा,’’ मां सत्यम को गले लगाते हुए बोलीं.

‘‘मां, ऐसा नहीं करना चाहिए. यह सब क्या हो रहा है?’’ आयोजन की तरफ इंगित करते हुए उस ने पूछा.

‘‘बेटा, तुम्हारा बृहस्पति और दूसरे ग्रह भी कमजोर हैं, इसलिए विवाह तय होने में मुश्किलें आ रही हैं. इस विशेष पूजा के बाद सारे ग्रहों की चाल सुधर जाएगी. चलो, जल्दी से नहा कर आओ, पूजा पर तुम्हें ही तो बैठना है,’’ मां ने कहा.

सत्यम की निगाह 4 मोटे हट्टेकट्टे, गोरेचिट्टे जनेऊधारियों पर पड़ी जो सारे आयोजनों के कर्ताधर्ता बने हवनकुंड के पास बैठे हुए हैं. उन में वह धूर्त भी उसे दिख गया जिस ने सुहानी के पिता के साथ मोलभाव किया था. उस का सर्वांग सुलग उठा उसे देख, जिस ने उस के जीवन में आग लगाई थी.

‘‘मां, तुम कब बंद करोगी तमाशा करना. तुम्हें एहसास ही नहीं कि धर्म के नाम पर ये कितना पाखंड करवा रहे हैं. मां, जरा विज्ञान की किताबों को भी पढ़ा करो. इंसान ग्रहों तक पहुंच गया और तुम आज भी इन की पुरातन पोथियों को ही आधार माने जी रही हो. मां, यह इन का धंधा है. तुम जैसे अंधविश्वासी, भयभीत और अज्ञानी लोग इन के चंगुल में फंस अपना पैसा और वक्त दोनों बरबाद करते हैं,’’ सत्यम बोले जा रहा था, ‘‘मां, अगर तुम ने यह आयोजन जारी रखा तो मैं एक पल भी यहां नहीं रुकूंगा.’’ सत्यम ने मां को धमकी दी.

2 वर्षों बाद बेटे को देख रही मां कुछ ही क्षणों के बाद पंडों से माफी मांगते हुए उन्हें विदा किया. बमुश्किल उन्हें विदा कर सत्यम की मां भयभीत हिरनी सी सत्यम की बगल में कांपती हुई सी बैठ रोने लगीं. सत्यम ने उन की हिम्मत को बढ़ाते हुए सुहानी के पिता के साथ मां के पुरोहित की सारी बनियागीरी का बखान कर दिया.

‘‘जानती हो, अभी पिछले ही दिनों मैं ने सुहानी को उस के पति और बच्चे के साथ देखा. सुहानी ने मेरा परिचय भी कराया अपने पति से, ‘इन से मिलो, बहुत उच्चशिक्षित हैं पर मंगल, बृहस्पति, शनि की चाल से अपने जीवन के फैसले लेते हैं. मैं ने बताया था न इन के विषय में.’ तो उस के पति ने हंसते हुए कहा, ‘मैं आप को धन्यवाद देना चाहता हूं कि आप की इसी सोच की वजह से मुझे सलोनी जैसी लड़की मिल सकी, अन्यथा…’

‘‘मां, आज भी उन के ठहाके मेरे कानों में गूंज रहे हैं,’’ बोलता हुआ सत्यम भावुक हो गया.

मां आश्चर्य से उस का चेहरा तक रही थीं. उन्हें बेटे की चाहत का आज अनुभव हुआ. तभी सत्यम के पिता और घर के अन्य सदस्य भी आ कर बैठ गए.

सब को आया देख सत्यम ने अपने दिल की बात सामने रखी, ‘‘यह सच बात है कि मैं सलोनी को कभी नहीं भूल पाऊंगा. शायद मुझे ही हिम्मत दिखानी थी. पर आप सब को खुश करने के चक्करों में मैं अपनी खुशी से हाथ धो बैठा. अपनी उस कायरता और नासमझी का मुझे हमेशा अफसोस रहेगा.’’ सत्यम की बात सुन सब एकदूसरे को देखने लगे. उस के पिता ने कहा, ‘‘तुम्हारी मां और दादी तुम्हारे लिए लड़की देख रही हैं, तुम चिंता न करो.’’

‘‘नहीं, अब मुझे अपने जीवन के फैसले लेने की आजादी दें. मेरे साथ मेरे दफ्तर में निशा नाम की लड़की काम करती है. वह अपनी शादी के 3 महीने बाद ही विधवा हो गई थी. उस के घरवालों ने कुंडली का मिलान कर उस का विवाह किया था. निशा कुशाग्र और व्यवहारकुशल है. हम दोनों एकदूसरे को पसंद भी करते हैं. अगले महीने की 3 तारीख को हम कोर्ट मैरिज करने वाले हैं. आप लोग तो उसे स्वीकार करेंगे नहीं…’’ कहता सत्यम भावुक हो उठा और कमरे में चला गया.

उस दिन देर शाम तक किसी ने किसी को कुछ नहीं कहा. एक सन्नाटा सा पसरा रहा. सब इतनी खामोशी से एकदूजे से मुंह छिपाए पड़े थे कि मानो सन्नाटा बोल पड़ेगा. सत्यम तो बोल कर जाने कब का चुप हो चुका था, पर शायद घरवाले अभी तक उसे सुन रहे थे, गुन रहे थे. सब के मन में विचारों की आंधी चल रही थी कि क्या वाकई वे गुनहगार हैं सत्यम के. मां, पापा, दादी, दादाजी, बूआ, चाचा सब यही सोच रहे थे कि अनजाने में ही भले, अपने अंधविश्वासों के चलते उन्होंने अपने आंख के तारे की हसरतों को तारतार कर दिया.

आखिर चुप्पी तोड़ी दादी ने, ‘‘बेटा सत्यम, तुम सही कह रहे हो. हम सब तुम्हारे अपराधी हैं.’’

‘‘ठीक है, हो सकता है पुरोहितजी से उस वक्त गणना करते वक्त कोई भूल हुईर् होगी. पर इस बार फिर जीतेजी मक्खी निगलना,’’ यह मां थीं जिन के मन में धर्म के नाम पर अंधविश्वासों की गहरी जड़ें फैली हुई थीं.

‘‘सत्यम की मां, वक्त के साथ अपनी सोच बदलो. इंसान जिंदगीभर सीखता रहता है. कोई जरूरी नहीं कि तुम्हारे पुरोहित ने जो कहा वह अंतिम सत्य हो जाए. विचारों की उन्नयन अतिआवश्यक है,’’ सत्यम के पापा ने अपने विचार रखे.

‘‘भाभी, जब धर्म और रीतिरिवाज व्यक्ति के जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव डालने लगें, तो उन्हें किसी के व्यक्तिगत जीवन का अतिक्रमणकर्ता मान त्याग देना चाहिए,’’ चाचाजी ने कहा.

‘‘सत्यम दिखा तो निशा की तसवीर, जब तुम्हारे साथ ही नौकरी कर रही है तो पढ़ीलिखी तो काफी होगी,’’ कहते हुए बूआ सत्यम के पास जा बैठीं.

मां का खेमा अब खाली था, पीछे मुड़ कर देखा सुबह की पूजा व्यवस्था यों ही बिखरी पड़ी हुई थी, और आगे पूरा परिवार सत्यम को घेरे निशा कि तसवीरें लैपटौप पर देखने में मशगूल दिखा, यानी पूरा परिवार दल बदल चुका था.

मां अकेली धर्म का ताला लिए खड़ी थीं अपनी पार्टी के दरवाजे पर. कुछ देर सोचती हुई उन्होंने पूजाघर की तरफ रुख कर मन में सोचा, ‘अब तुम्हारी पूजा कल करूंगी. चलूं मैं भी अपनी होने वाली बहू की तसवीरों को देख लूं, वरना कहीं सब मुझे छोड़ बरात ले, निकल ही न जाएं.’

समझौता- भाग 3 : आखिर क्यों परेशान हुई रिया

राजीव लगभग 10 बजे घर लौटे थे.

‘‘यह क्या है? कल छह बजे घर से निकल कर अब घर लौटे हो. एक फोन तक नहीं किया,’’ रिया ने देखते ही उलाहना दिया था.

‘‘क्या फर्क पड़ता है रिया. मैं रहूं या न रहूं. तुम तो अपने पावों पर खड़ी हो.’’

‘‘ऐसी बात मुंह से फिर कभी मत निकालना और किसी का तो पता नहीं पर मैं तो जीतेजी मर जाऊंगी,’’ रिया फफक उठी थी.

‘‘यह संसार ऐसे ही चलता रहता है रिया. देखो न, मनोज हमें छोड़ कर चला गया पर संसार अपनी ही गति से चल रहा है. न मनोज के जाने का दुख है और न ही उस के लिए किसी की आंखों में दो आंसू,’’ राजीव रो पड़ा था.

पहली बार रिया ने राजीव को इस तरह बेहाल देखा था. वह बच्चों के सामने ही फूटफूट कर रो रहा था.

रिया उसे अंदर लिवा ले गई थी. किशोर और कोयल आश्चर्यचकित से खड़े रह गए थे.

‘‘तुम दोनों यहीं बैठो. मैं चाय बना लाती हूं,’’ रिया हैरानपरेशान सी बच्चों को बालकनी में बिठा कर राजीव को सांत्वना देने लगी थी. वह नहीं चाहती थी कि राजीव की इस मनोस्थिति का प्रभाव बच्चों पर पड़े.

‘‘ऐसा क्या हो गया जो मनोज हद से गुजर गया. पिछले सप्ताह ही तो सपरिवार आया था हमारे यहां. इतना हंसमुख और मिलनसार व्यक्ति अंदर से इतना उदास और अकेला होगा यह भला कौन सोच सकता था,’’ रिया के स्वर में भय और अविश्वास साफ झलक रहा था.

उत्तर में राजीव एक शब्द भी नहीं बोला था. उस ने रिया पर एक गहरी दृष्टि डाली थी और चाय पीने लगा था.

‘‘मनोज की पत्नी और बच्चे का क्या होगा?’’ रिया ने पुन: प्रश्न किया था. वह अब भी स्वयं को समझा नहीं पाई थी.

‘‘उस के पिता आ गए हैं वह ही दोनों को साथ ले जाएंगे. पिता का अच्छा व्यवसाय है. मेवों के थोक व्यापारी हैं. वह तो मनोज को व्यापार संभालने के लिए बुला रहे थे पर यह जिद ठाने बैठा था कि पिता के साथ व्यापार नहीं करेगा.’’

रिया की विचार शृंखला थमने का नाम ही नहीं ले रही थी. मनोज की पत्नी मंजुला अकसर अपनी पुरातनपंथी ससुराल का उपहास किया करती थी. पता नहीं उन लोगों के साथ कैसे रहेगी. उस के दिमाग में उथलपुथल मची थी. कहीं कुछ भी होता था तो उन के निजी जीवन से कुछ इस प्रकार जुड़ जाता था कि वह छटपटा कर रह जाती थी.

राजीव भी अपने मातापिता की इकलौती संतान है. वे लोग उसे बारबार अपने साथ रहने को बुला रहे हैं. उस के पिता बंगलौर के जानेमाने वकील हैं पर रिया का मन नहीं मानता. न जाने क्यों उसे लगता है कि वहां जाने से उस की स्वतंत्रता का हनन होगा. धीरेधीरे जीवन ढर्रे पर आने लगा था. केवल एक अंतर आ गया था. अब रिया ने पहले की तरह कटाक्ष करना छोड़ दिया था. वह अपनी ओर से भरसक प्रयास करती कि घर की शांति बनी रहे.

उस दिन आफिस से लौटी तो राजीव सदा की तरह कंप्यूटर के सामने बैठा था.

‘‘रिया इधर आओ,’’ उस ने बुलाया था. वह रिया को कुछ दिखाना चाहता था.

‘‘यह तो शुभ समाचार है. कब हुआ था यह साक्षात्कार? तुम ने तो कुछ बताया ही नहीं,’’ रिया कंप्यूटर स्क्रीन पर एक जानीमानी कंपनी द्वारा राजीव का नियुक्तिपत्र देख कर प्रसन्नता से उछल पड़ी थी.

‘‘इतना खुश होने जैसा कुछ नहीं है एक तो वह आधे से भी कम वेतन देंगे, दूसरे मुझे बंगलौर जा कर रहना पड़ेगा. यहां नोएडा में उन का छोटा सा आफिस है अवश्य, पर मुझे उन के मुख्यालय में रहना पड़ेगा.’’

‘‘यह तो और भी अच्छा है. वहां तो तुम्हारे मातापिता भी हैं. उन की तो सदा से यही इच्छा है कि हमसब साथ रहें.’’

‘‘मैं सोचता हूं कि पहले मैं जा कर नई नौकरी ज्वाइन कर लेता हूं. तुम कोयल और किशोर के साथ कुछ समय तक यहीं रह सकती हो.’’

‘‘नहीं, न मैं अकेले रह पाऊंगी न ही कोयल और किशोर. सच कहूं तो यहां दम घुटने लगा है मेरा. मेरे मामूली से वेतन में 6-7 महीने से काम चल रहा है. तुम्हें तो उस से दोगुना वेतन मिलेगा. हमसब साथ चलेंगे.’’

कोयल और किशोर सुनते ही प्रसन्नता से नाच उठे थे. उन्होंने दादादादी के घर में अपने कमरे भी चुन लिए थे.

राजीव के मातापिता तो फोन सुनते ही झूम उठे थे.

‘‘वर्षों बाद कोई शुभ समाचार सुनने को मिला है,’’ उस की मां भरे गले से बोली थीं और आशीर्वादों की झड़ी लगा दी थी.

‘‘पर तुम्हारी स्वतंत्रता का क्या होगा?’’ फोन रखते ही राजीव ने प्रश्न किया था.

‘‘इतनी स्वार्थी भी नहीं हूं मैं कि केवल अपने ही संबंध में सोचूं. तुम ने साथ दिया तो मैं भी सब के खिले चेहरे देख कर समझौता कर लूंगी.’’

‘‘समझौता? इतने बुरे भी नहीं है मेरे मातापिता, आधुनिक विचारों वाले पढ़ेलिखे लोग हैं और मुझ से अधिक मेरे परिवार पर जान छिड़कते हैं.’’

इतना कह कर राजीव ने ठहाका लगाया तो रिया को लगा कि इस खुशनुमा माहौल के लिए कुछ बलिदान भी करना पड़े तो वह तैयार है.

अधूरी प्यास – भाग 3: नव्या पर लगा हवस का चसका

‘‘तुम रात में कहां सोओगी?’’‘‘मम्मी के पास.’’‘‘यहीं आ जाना, कुछ देर बातें करेंगे…’’‘‘बातें?’’‘‘और भी बहुतकुछ, आओगी न?’’‘‘आऊंगी… चलो, अब डिनर कर लो. मम्मी बुला रही हैं.’’खाने की टेबल पर रोहित और नव्या की आंखोंआंखों में बातें हो रही थीं. तनुजा और नव्या के पापा सुकेश इन सब बातों से अनजान खाना खा रहे थे.रात को नव्या मम्मीपापा के सो जाने का इंतजार करने लगी.

जब वह पूरी तरह यकीन हो गया कि वे दोनों सो चुके हैं, तो आहिस्ता से रोहित के कमरे में जा पहुंची. उस ने नाइट गाउन पहन रखा था.‘‘हैलो, स्वीटहार्ट…’’ नव्या फुसफुसाते हुए बोली.‘‘वैलकम डियर, मैं कब से तुम्हारा इंतजार कर रहा था. बहुत देर लगा दी तुम ने,’’ रोहित ने बेसब्री से कहा.‘‘तुम्हारे मौसाजी और मौसी के सोने का इंतजार कर रही थी… और कहो क्या इरादा है?’’

नव्या ने होंठ चबाते हुए कहा.‘‘तुम बोलो…’’‘‘अच्छा जी, अब वह सब भी मैं ही बोलूं…’’‘‘तो फिर?’’‘‘चलो, अब ये नाटक छोड़ो.’’‘‘सच में… छोड़ दूं नाटक, तो यह लो छोड़ दिया,’’ कह कर रोहित ने झटके से नव्या को अपनी बांहों में भर लिया.‘‘बहन हूं तुम्हारी…’’‘‘हां यार, लेकिन क्या करूं… यह दिल है कि मानता नहीं, इतनी हौट जो हो,’’ रोहित ने उसे गोद में उठा लिया. फिर शुरू हो गया हवस का गंदा खेल. रोहित और नव्या दोनों ने ही रिश्ते को दरकिनार कर जिस्मानी रिश्ते बना लिए.

बिस्तर पर नव्या के रंगढंग देख कर रोहित ने नव्या को लिवइन में रहने का प्रपोजल दे डाला.नव्या ने सोचा कि यह ऐक्सपीरियंस लेने में क्या जाता है… रोहित अच्छा कमाता है, कोई बुराई भी नहीं है. अगर उस के साथ लिवइन में रहूं, तो मम्मीपापा के बंधन से भी छुटकारा पा जाऊंगी और सैक्स भी ऐंजौय कर सकूंगी.3 दिनों में रोहित का औफिशियल काम भी खत्म हो गया.

नव्या और रोहित ने सब तैयारी कर ली. नव्या रोहित के साथ बालाघाट जाने के लिए पूरी तरह तैयार थी. दोनों ने फैसला किया कि कल घर वालों को अपने इरादों से वाकिफ करवा कर वे बालाघाट निकल जाएंगे.अगली सुबह घर में हंगामा मचा हुआ था. नव्या ने अपने फैसले को बहुत ही बेशर्मी से मातापिता को बता दिया.‘‘कुछ तो शर्म करो… हम दुनिया और समाज को क्या जवाब देंगे..

. क्या कहूंगी तेरी मौसी से… कुछ तो सोच, और तेरी उम्र तो देख, अभी तो पढ़नेलिखने के दिन हैं,’’ तनुजा भरी आंखों से बोली.‘‘मम्मी, अब इन सब बातों का कोई मतलब नहीं है. मेरा फैसला नहीं बदलने वाला… और फिर यह मेरी जिंदगी है, मुझे पूरा हक है कि इसे मैं कैसे जीऊं.

मैं रोहित के साथ बालाघाट जा रही हूं. वहीं उस की पोस्टिंग है. अपने मांबाप को वह बता देगा,’’ नव्या ने तुनक कर कहा और कमरे में चली गई.‘‘तनुजा, अब कोई फायदा नहीं इसे समझाने का. बालिग हो चुकी है वह और इसी बात का फायदा उठा रही है. उस के कदम बहक चुके हैं. क्या पता बात कहां तक बढ़ चुकी है. हमतुम तो शायद वहां तक सोच भी न सकें, क्योंकि जिस बुलंदी से नव्या ने यह बताया है, उस से तो लगता है कि इन दोनों के जिस्मानी…’’

तनुजा के पति हताश स्वर में बोले.‘‘क्या यही दिन देखना बाकी था… हम तो किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं रहे. क्या इसी दिन के लिए नाजों से पाला था इस को… इतनी आज़ादी दी थी. यह कहां की हवा लग गई इसे कि आंखों की शर्म तक खत्म हो गई…‘‘और रोहित, वह भी… अरे,

अब उसे क्या कहें, जब अपना सिक्का ही खोटा निकला,’’ तनुजा लगातार रोते हुए बोली.नव्या और रोहित परिवार व समाज के गाल पर तमाचा मार कर चले गए. पीछे रह गए 2 परिवार और शर्मसार मातापिता. सैक्स और ऐयाशी की चाहत में बच्चों ने घर वालों को एक ऐसा नासूर दे दिया, जो हर पल कसकता रहेगा.

आहत- भाग 3: एक स्वार्थी का प्रेम

लंबेलंबे डग भरता वह होटल में शालिनी के कमरे की तरफ बढ़ा. खूबसूरत फूलों का गुलदस्ता उस के हाथों में था. दिल में शालिनी को खुश करने की चाहत लिए उस ने कमरे पर दस्तक देने के लिए हाथ उठाया ही था कि अंदर से आती शालिनी और किसी पुरुष की सम्मिलित हंसी ने उसे चौंका दिया.

बदहवास सा सौरभ दरवाजा पीटने लगा. अंदर से आई एक आवाज ने उसे स्तब्ध कर दिया था.

‘‘कौन है बे… डू नौट डिस्टर्ब का बोर्ड नहीं देख रहे हो क्या? जाओ अभी हम अपनी जानेमन के साथ बिजी हैं.’’

परंतु सौरभ ने दरवाजा पीटना बंद नहीं किया. दरवाजा खुलते ही अंदर का नजारा देख कर सौरभ को चक्कर आ गया. बिस्तर पर पड़ी उस की अर्धनग्न पत्नी उसे अपरिचित निगाहों से घूर रही थी.

जमीन पर बिखरे उस के कपड़े सौरभ की खिल्ली उड़ा रहे थे. कहीं किसी कोने में विवाह का बंधन मृत पड़ा था. उस का अटल विश्वास उस की इस दशा पर सिसकियां भर रहा था और प्रेम वह तो पिछले दरवाजे से कब का बाहर जा चुका था.

‘‘शालिनी….’’ सौरभ चीखा था.

परंतु शालिनी न चौंकी न ही असहज हुई, बस उस ने विमल को कमरे से बाहर जाने का इशारा कर दिया और स्वयं करवट ले कर छत की तरफ देखते हुए सिगरेट पीने लगी.

‘‘शालिनी… मैं तुम से बात कर रहा हूं. तुम मेरे साथ ऐसा कैसे कर सकती हो?’’ सौरभ दोबारा चीखा.

इस बार उस से भी तेज चीखी शालिनी, ‘‘क्यों… क्यों नहीं कर सकती मैं तुम्हारे साथ ऐसा? ऐसा है क्या तुम्हारे अंदर जो मुझे बांध पाता?’’

‘‘तुम… विमल से प…प… प्यार करती हो?’’

‘‘प्यार… हांहां… तुम इतने बेवकूफ हो सौरभ इसलिए तुम्हारी तरक्की इतनी स्लो है… यह लेनदेन की दुनिया है. विमल ने अगर मुझे कुछ दिया है तो बदले में बहुत कुछ लिया भी है. कल अगर कोई इस से भी अच्छा औप्शन मिला तो इसे भी छोड़ दूंगी. वैसे एक बात बोलूं बिस्तर में भी वह तुम से अच्छा है.’’

‘‘कितनी घटिया औरत हो तुम, उस के साथ भी धोखा…’’

‘‘अरे बेवकूफ विमल जैसे रईस शादीशुदा मर्दों के संबंध ज्यादा दिनों तक टिकते नहीं. वह खुद मुझ से बेहतर औप्शन की तलाश में होगा. जब तक साथ है है.’’

‘‘तुम्हें शर्म नहीं आ रही?’’

‘‘शर्म कैसी पतिजी… व्यापार है यह… शुद्घ व्यापार.’’

‘‘शालिनी…’’

‘‘आवाज नीची करो सौरभ. बिस्तर में चूहा मर्द आज शेर बनने की ऐक्टिंग कर रहा है.’’

सौरभ रोते हुए बोला ‘‘शालिनी मत करो मेरे साथ ऐसा. मैं तुम से बहुत प्यार करता हूं.’’

‘‘सौरभ तुम मेरा काफी वक्त बरबाद कर चुके हो. अब चुपचाप लौट जाओ… बाकी बातें घर पर होंगी.’’

‘‘हां… हां… देखेंगे… वैसे मेरा काम आसान करने के लिए धन्यवाद,’’ कह बाहर निकलते सौरभ रमा से टकरा गया.

‘‘आप सब कुछ जानती थीं न’’ उस ने पूछा.

‘‘हां, मैं वह परदा हूं, जिस का इस्तेमाल वे दोनों अपने रिश्ते को ढकने के लिए कर रहे थे.’’

‘‘आप इतनी शांत कैसे हैं?’’

‘‘आप को क्या लगता है शालिनी मेरे पति के जीवन में आई पहली औरत है? न वह पहली है और न ही आखिरी होगी.’’

‘‘आप कुछ करती क्यों नहीं? इस अन्याय को चुपचाप सह क्यों रही हैं?’’

‘‘आप ने क्या कर लिया? सुधार लिया शालिनी को?’’

‘‘मैं उसे तलाक दे रहा हूं…’’

‘‘जी… परंतु मैं वह नहीं कर सकती.’’

‘‘क्यों, क्या मैं जान सकता हूं?’’

‘‘क्योंकि मैं यह भूल चुकी हूं कि मैं एक औरत हूं, किसी की पत्नी हूं. बस इतना याद है कि मैं 2 छोटी बच्चियों की मां हूं. वैसे भी यह दुनिया भेडि़यों से भरी हुई है और मुझ में इतनी ताकत नहीं है कि मैं स्वयं को और अपनी बेटियों को उन से बचा सकूं.’’

‘‘माफ कीजिएगा रमाजी अपनी कायरता को अपनी मजबूरी का नाम मत दीजिए. जिन बेटियों के लिए आप ये सब सह रही हैं उन के लिए ही आप से प्रार्थना करता हूं, उन के सामने एक गलत उदाहरण मत रखिए. यह सब सह कर आप 2 नई रमा तैयार कर रही हैं.’’

औरत के इन दोनों ही रूपों से सौरभ को वितृष्णा हो गई थी. एक अन्याय करना अपना अधिकार समझती थी तो दूसरी अन्याय सहने को अपना कर्तव्य.

दिल्ली छोड़ कर सौरभ इतनी दूर अंडमान आ गया था. कोर्ट में उस का केस चल रहा था. हर तारीख पर सौरभ को दिल्ली जाना पड़ता था. शालिनी ने उस पर सैक्स सुख न दे पाने का इलजाम लगाया था.

सौरभ अपने जीवन में आई इस त्रासदी से ठगा सा रह गया था, परंतु शालिनी जिंदगी में नित नए विकल्प तलाश कर के लगातार तरक्की की नई सीढि़यां चढ़ रही थी.

आज सुबह प्रज्ञा, जो सौरभ की वकील थी का फोन आया था. कोर्ट ने तलाक को मंजूरी दे दी थी, परंतु इस के बदले काफी अच्छी कीमत वसूली थी शालिनी ने. आर्थिक चोट तो फिर भी जल्दी भरी जा सकती हैं पर मानसिक और भावनात्मक चोटों को भरने में वक्त तो लगता ही है.

सौरभ अपनी जिंदगी के टुकड़े समेटते हुए सागर के किनारे बैठा रेत पर ये पंक्तियां लिख रहा था:

‘‘मुरझा रहा जो पौधा उसे बरखा की आस है,

अमृत की नहीं हमें पानी की प्यास है,

मंजिल की नहीं हमें रास्तों की तलाश है.’’

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