नन्हा मेहमान: क्या दोबारा मिला खोया डौगी

‘‘मम्मी… मम्मी,’’ चिल्लाता 10 वर्षीय ऋषभ तेजी से मकान की दूसरी मंजिल में पहुंच गया. उस के पीछेपीछे 8 वर्षीय छोटी बहन मान्या भी खुशीखुशी अपनी स्कर्ट को संभालती चली आ रही थी.

अल्मोड़ा शहर की ऊंचीनीची, घुमावदार सड़कों से बच्चे रोज ही लगभग 2 किलोमीटर पैदल चल कर अपने मित्रों के संग कौंवैंट स्कूल आतेजाते हैं. सभी बच्चे हंसतेबोलते कब स्कूल से घर और घर से स्कूल पहुंच जाते, उन्हें इस का एहसास ही नहीं होता, जबकि पीठ में बस्ते का भार भी रहता. रितिका भी दोपहर तक बच्चों के घर पहुंचने के दौरान अपने सारे काम निबटा लेती. बच्चों को खिलापिला कर होमवर्क करने को बैठा देती. तभी दो घड़ी अपनी आंख   झपका पाती.

आज ऋ षभ की आवाज सुन कर कमरे से निकल बरामदे में आ गईं. मन में अनेक आशंकाओं ने इतनी देर में जन्म भी ले लिया. सड़क दुर्घटना, हादसा और भी तमाम खयालात दिमाग में दौड़ गए.

‘‘यह देखो मैं क्या लाया?’’ शरारती ऋ षभ ने अपने हाथों में थामे हुए लगभग 2 महीने के पिल्ले को   झुलाते हुए कहा.

मान्या अपनी मम्मी के मनोभावों को पढ़ने में लगी हुई थी. उसे मम्मी खुश दिखती तो वह अपना योगदान भी जाहिर करती, नहीं तो सारा ठीकरा ऋ षभ के सिर फोड़ देती.

‘‘सड़क से पिल्ला क्यों उठा कर लाए? अभी इस की मां आती होगी, जब तुम्हें काटेगी तभी तुम सुधरोगे,’’ रितिका गुस्से से बोली.

‘‘सड़क का नहीं है मम्मी, हमारे स्कूल में जो आया हैं, उन्होंने दिया है. ये स्कूल में पैदा हुए हैं. आयाजी ने कहा है जिन्हें पालने हैं वे ले जाएं. स्कूल में तो पहले ही 4 भोटिया डौग हैं,’’ ऋ षभ ने सफाई देते हुए उसे फर्श पर रख दिया. पिल्ला सहम कर कोने में बैठ गया और अपने भविष्य के फैसले का इंतजार करने लगा.

‘‘चलो हाथमुंह धोलो, खाना खाओ. इसे कल स्कूल वापस ले जाना. हम नहीं रखेंगे. तुम्हारे पापा को कुत्तेबिल्ले बिलकुल पसंद नहीं हैं.’’

‘‘पर पापा के घर में गाय तो है न, दादी गाय पालती हैं,’’ मान्या बीच में बोली.

‘‘गाय दूध देती है,’’ रितिका ने तर्क दिया.

‘‘कुत्ता भौंक कर चौकीदारी करता है,’’ मान्या का तर्क सुन कर ऋ षभ की आंखों में चमक आ गई.

‘‘मु  झे इस पिल्ले पर कोई एतराज नहीं है, मगर तुम्हारे पापा डांटेंगे तो मेरे पास मत आना.’’

मम्मी की बात सुन कर दोनों के मुंह उतर गए.

रितिका पुराने प्लास्टिक के कटोरे में दूध में ब्रैड के टुकड़े डाल कर ले आई, जिसे देख कर पिल्ला लपक कर कटोरी के बगल में खड़ा हो गया. ऋ षभ और मान्या की तरफ ऐसे देखने लगा मानो उन से इजाजत ले रहा हो और अगले ही पल कटोरे पर टूट पड़ा. कटोरे को पूरा चाट कर खुशी से अपनी दुम हिलाने लगा.

‘‘आंटी, आंटी…’ की तेज आवाज नीचे आंगन से आ रही थी. रितिका ने ऊपर बरामदे से नीचे   झांका. नीचे आगन से ऋ षभ की उम्र की 2 लड़कियां स्कूल ड्रैस पहने खड़ी थी.

‘‘क्या हुआ बेटा?’’ रितिका ने उन दोनों को पहले कभी नहीं देखा था.

‘‘आंटी ऋ षभ हमारा पिल्ला ले कर भाग आया,’’ उन दोनों में से एक ने कहा.

‘‘  झूठ… इसे आयाजी ने मु  झे दिया था,’’ ऋषभ ने सफाई दी.

‘‘मम्मी यह पिल्ला स्कूल से ही लाया गया है. रास्ते में हम चारों ने इसे बारीबारी गोद में पकड़ा था. जब घर पास आने लगा तो तृप्ति इसे अपने घर ले जाने लगी तो भैया इसे अपनी गोद में ले कर भागता हुआ घर आ गया,’’ मान्या ने स्पष्टीकरण दिया.

‘‘आंटी ऋ षभ ने पहले कहा था कि तुम चाहो तो अपने घर ले जा सकती हो, लेकिन वह बाद में भाग गया,’’ वह फिर बोली.

रितिका को कुछ सम  झ ही नहीं आया कि वह किसे क्या सम  झाए.

‘‘मैं तो अब इसे किसी को भी नहीं दूंगा. मैं ने इस पर बहुत खर्चा कर दिया है,’’ ऋ षभ ने फैसला सुनाया.

‘‘क्या खर्चा किया?’’ उस ने नीचे से पूछा.

‘‘एक कटोरा दूध और ब्रैड मैं इसे खिला चुका हूं. अब यह मेरा है,’’ ऋषभ ने जिद पकड़ ली.

‘‘सुनो बेटा, आज तुम इसे यही रहने दो. घर जा कर अपनी मम्मी से पूछ लेना कि वे पिल्ले को घर में रख लेंगी. वे अगर सहमत होंगी तो मैं यह पिल्ला तुम्हें दे दूंगी. यहां तो ऋषभ के पापा इसे नहीं रखने देंगे. कल तुम्हें लेना होगा तो बता देना वरना वापस स्कूल चला जाएगा,’’ रितिका ने सम  झाया तो दोनों लड़कियों ने सहमति में सिर हिला दिया और वापस चली गईं.

‘‘खबरदार यह पिल्ला घर के अंदर नहीं आना चाहिए. इसे यही बरामदे में गद्दी डाल कर रख दो. तुम दोनों अंदर आ जाओ.’’

रितिका की बात सुन कर ऋषभ ने उसे पतली डोरी से दरवाजे से बांध दिया. उस के पास गद्दी बिछा कर कटोरे में पानी भर दिया. भोजन के बाद दोनों अपना होमवर्क करने लगे. बाहर पिल्ला लगातार कूंकूं करने लगा. दोनों बच्चे अपनी मम्मी का मुंह ताकते कि शायद वे रहम खा कर उसे अंदर आने दें, मगर रितिका ने उन्हें अपनी पढ़ाई पर ध्यान देने को कहा. कुछ देर बाद पिल्ले ने कूंकूं करना बंद कर दिया.

होमवर्क खत्म होते ही दोनों लपक कर बरामदे में आ गए, ‘मम्मीमम्मी’ इस बार मान्या और ऋ षभ दोनों एकसाथ पुकार रहे थे.

रितिका को   झपकी सी आ गई थी. शोर सुन कर वह तुरंत बाहर को लपकी.

‘‘मम्मी हमारा पिल्ला खो गया,’’ दोनों रोआंसे स्वर में एकसाथ बोले. पिल्ले के गले से बंधी डोरी की गांठ खुली पड़ी थी. डोरी की गांठ ढीली थी, जो पिल्ले की जोरआजमाइश करने के कारण खुल गई थी.

‘‘यहीं कहीं होगा, मेजकुरसी के नीचे देखो.’’

‘‘सीढि़यों से नीचे तो नहीं गया?’’ ऋ षभ ने शंका जताई.

रितिका ने सीढि़यों की तरफ देखा. सीढि़यां नीचे सड़क को जाती हैं.

‘‘मम्मी कहीं वह किसी गाड़ी के नीचे न आ जाए,’’ मान्या को चिंता हुई.

‘‘मु  झे नहीं लगता कि वह सीढि़यां उतर पायेगा, लेकिन अगर बरामदे में नहीं है तो नीचे आंगन में देखो.

वह अखरोट और नारंगी के पौधे के नीचे जो   झाडि़यां हैं हो सकता है उन में छिपा हो.’’

रितिका के ऐसा कहते ही वे दोनों सीढि़यों से नीचे को दौड़ पड़े. उन के पीछे रितिका भी उतर कर आ गई.

उसे भी मन ही मन अफसोस हो रहा था कि काश वह उसे कमरे के अंदर अपनी आंखों के सामने ही रखती.

नीचे की मंजिल में रहने वाले किराएदार के बच्चे भी पिल्ला खोजो अभियान में  शामिल हो गए 2 घंटे बीत गए. सूर्य के ढलने के साथ ही अंधेरा छाने लगा तो रितिका बच्चों को ऊपर ले आई. बच्चों के चेहरे पर छाई उदासी से उस का मन दुखी हो गया. बच्चों को बहलाते हुए बोली, ‘‘अब तुम्हारे पापा के घर लौटने का समय हो गया है. पिल्ले की बात मत करना. अच्छा हुआ वह खुद चला गया.’’

दोनों बच्चे टीवी के आगे बैठ कर कार्टून देखने लगे. मन ही मन वे बेहद दुखी हो रहे थे.

पापा ने घर आने के कुछ देर बाद उन से पूछा, ‘‘होमवर्क कंप्लीट कर लिया?’’

‘‘हां पापा,’’ मान्या ने तुरंत जवाब दिया.

‘‘आज क्या मिला होमवर्क में?’’ प्रकाश ने पूछा.

‘‘पापा आज केवल मैथ्स और इंग्लिश में रिटेन होमवर्क मिला था. ओरल भी सब याद कर लिया है,’’ मान्या अपनी कौपी निकाल कर पापा को दिखाने लगी.

‘‘पापा इंग्लिश में ऐस्से लिखना था- माई पैट एनिमल’’ मान्या रोआंसी हो कर बोली.

‘‘तो क्या नहीं लिखा अभी तक?’’ प्रकाश ने पूछा.

‘‘लिख लिया माई पैट डौग,’’ मान्या का गला रुंध गया. उसे पिल्ला याद आ गया.

‘‘पापा मेरा भी होमवक चैक कर लीजिए,’’ ऋषभ भी अपनी कौपी उठा लाया. उस ने मान्या को वहां से चले जाने का इशारा किया. मान्या अपनी कौपी उठा कर रसोई में अपनी मम्मी के पास आ गई.

मम्मी रात के भोजन की तैयारी में व्यस्त थी. मान्या को देख कर बोली, ‘‘भूख लगी है मान्या? बस 5 मिनट रुको.’’

‘‘नहीं मेरा कुछ भी खाने का मन नहीं है. वह पिल्ला अंधेरे में कितना डर रहा होगा न. मम्मी आज आप ने डौग के ऊपर निबंध लिखवाया. मु  झे पूरा याद भी हो गया पिल्ले की वजह से. उस की लैग्स, उस की टेल, उस की आईज.’’

रितिका ने पलट कर मान्या के बालों को प्यार से सहला दिया. रात को  सोते समय दोनों बच्चे रितिका के पास आ गए.

‘‘जाओ तुम दोनों अपनेअपने कमरे में,’’ रितिका ने कहा.

आज दोनों बच्चों को नींद नहीं आ रही थी. उन को उदास देख कर रितिका ने कहा, ‘‘आज मैं तुम्हें एक सच्ची कहानी सुनाती हूं.’’

‘‘किस की कहानी है?’’ ऋ षभ ने पूछा.

‘‘कुत्ते और बिल्ली की,’’ रितिका ने कहा.

‘‘हां मैं सम  झ गया आप अपनी बिल्ली और मामाजी के कुत्ते की कहानी सुनाएंगी. मैं ने उन दोनों के साथ में बैठे हुए फोटो देखा है,’’ ऋ षभ ने कहा.

‘‘हां मैं ने भी देखा है. दोनों एक ही पोज में कालीन पर बैठे हुए हैं,’’ मान्या बोली.

‘‘सुनो कुत्ते और बिल्ली के हमारे घर में आने की कहानी,’’ रितिका हंस कर बोली.

जुलाई का महीना था. बाहर बारिश हो रही थी. सड़कों के गड्ढे भी पानी से भर गए थे. तभी म्याऊंम्याऊं करती आवाज ने सब का ध्यान आकर्षित कर लिया. नन्हे से भीगे हुए बिल्ली के बच्चे को देख कर मैं अपने को रोक न सकी. उसे कपड़े से पकड़ कर अंदर ले आई. सब ने सोचा बारिश बंद हो जाएगी तो चला जाएगा. मगर वह नहीं गया. हमारे ही घर में रहने लगा. हां कभीकभी घर से घंटों गायब भी रहता, मगर शाम तक लौट आता.’’

‘‘मम्मी मामाजी के डौग शेरू से उस की लड़ाई नहीं हुई?’’ मान्या बोली.

‘‘नहीं जब मेरी पूसी 1 साल की हो गई उन्हीं दिनों हम शेरू को रोड से उठा कर घर लाए थे. वह तो पूसी से डरता था. पूसी अपना अधिकार सम  झती थी. उस के ऊपर खूब गुर्राती. बाद में उस के साथ खेलने लगी. दोनों में दोस्ती हो गई. जब शेरू का आकार पूसी से बड़ा भी हो गया वह तब भी पूसी से डरता था. अब उस बेचारे को क्या मालूम कि वह कुत्ता है और बिल्ली को उस से डरना चाहिए. वह अपनी पूरी जिंदगी बिल्ली से डरता रहा,’’ रितिका बोली.

यह सुन कर दोनों बच्चे हंसने लगे.

‘‘चलो बच्चों देर हो गई जा कर सो जाओ,’’ पापा अपना लैपटौप बंद कर बोले. बच्चे तुरंत उठ कर चले गए.

आधी रात को खटरपटर सुन कर प्रकाश की नींद खुल गई. उस ने कमरे की बत्ती जलाई और इधरउधर देखने लगा.

रितिका ने पूछा, ‘‘क्या हो गया?’’

‘‘मु  झे बहुत देर से कुछ आवाजें सुनाई दे रही हैं.’’

‘‘कैसी आवाजें? वह चोर के छिपे होने की आशंका से घबराई और उठ कर बैठ गई.’’

तभी बैड के नीचे से पिल्ला निकल कर  कूंकूं करने लगा. उसे देख कर प्रकाश को   झटका लगा.

‘‘यह पिल्ला कहां से अंदर आ गया?’’ वह आश्चर्य से चीख पड़ा.

बच्चे पापा की आवाज सुन कर भागते हुए आ गए. पिल्ले ने उन्हें देख कर दुम हिलानी शुरू कर दी.

‘‘पापा इसे हम स्कूल से ले कर आए थे. मगर यह हमें शाम को नहीं मिला. हम ने सोचा यह खो गया है,’’ ऋषभ ने बताया.

‘‘पापा लगता है यह शैतान तो चुपके से अंदर आ गया और आप के बैड के नीचे सो गया मान्या ने कहा,’’ मान्या ने कहा.

‘‘हां बेचारा चिल्लाचिल्ला के थक गया होगा,’’ ऋषभ ने कहा.

‘‘कल बच्चे इसे स्कूल छोड़ आएंगे,’’ रितिका ने सफाई दी.

‘‘पापा क्या हम इसे पाल नहीं सकते?’’ मान्या ने पूछा.

प्रकाश ने एक पल अपने बच्चों के आशंकित चेहरों को देखा फिर हामी भर दी.

‘‘थैंक्स पापा. मैं इस का नाम ब्रूनो रखूंगी,’’ मान्या बोली.

‘‘नहीं इस का नाम शेरू होगा,’’ ऋ षभ ने कहा.

जो पिल्ले को घुमाने ले जाएगा, उस की पौटी साफ करेगा उसी को नाम रखने का अधिकार होगा,’

’ रितिका की बात सुन कर ऋ षभ और मान्या एकदूसरे का मुंह देखने लगे.

निर्णय आपका: सास से परेशान दामाद की कहानी

संसार में शायद मुझ से अधिक कोई बदनसीब नहीं होगा. विवाह में सब को दहेज में गाड़ी, सोफा, फ्रिज मिलता है, सुंदर पत्नी घर आती है, लेकिन हमारे साथ ऐसा नहीं हुआ. हमारा विवाह हुआ, पत्नी भी आई और दहेज में सास मिल गई.

हम ने सोचा 1-2 दिन की परेशानी होगी सो भोग लो, किंतु हमारी सोच एकदम गलत साबित हुई. हमें पत्नीजी ने बताया कि आप की सास को यहां का हवापानी काफी जम गया है सो वह अब यहीं रहेंगी. यहां की जलवायु से उन का ब्लड प्रेशर भी सामान्य हो गया है.

हम ने सुना तो हमारा ब्लड प्रेशर बढ़ गया, लेकिन यदि विरोध करते तो तलाक की नौबत आ जाती. हो सकता है ससुराल पक्ष के व्यक्ति दहेज लेने का, प्रताड़ना का मुकदमा ठोंक देते. इसलिए मन मार कर हम ने यह सोच कर कि आज का दौर एक पर एक फ्री का है, सास को भी स्वीकार कर लिया.

2-3 माह तक दिल पर पत्थर रख कर हम अपनी सास को सहन करते रहे, लेकिन सोचा कि आखिर यह छाती पर पत्थर रख कर हम कब तक जीवित रह पाएंगे? सो हम ने पत्नीजी से सास की पसंद एवं नापसंद वस्तुओं को जान लिया. हमारी सास को कुत्ते, बिल्ली से सख्त नफरत थी. बचपन में उन की मां का स्वर्गवास कुतिया के काटने से हुआ था. पिताजी का नरकवास बिल्ली के पंजा मारने से हुआ था. हम ने भी मन ही मन ठान लिया कि कुत्ता, बिल्ली जल्दी से लाएंगे ताकि सासूजी प्रस्थान कर जाएं और हम अपनी जिंदगी को सुचारु रूप से चला सकें.

हम ने अपने अभिन्न मित्र मटरू से अपनी समस्या बताई और वह महल्ले से एक खजिया कुत्ते का पिल्ला और एक मरियल बिल्ली को ले आए. हम उन्हें खुशीखुशी झोले में डाल कर अपने घर ले आए. हमारी पत्नी ने देखा तो दहाड़ मार कर पीछे हट गई. सासूमां ने बेटी की दहाड़ सुनी तो दौड़ती आईं. हमारे झोले से खजिया कुत्ता एवं बिल्ली को देखा. हम खुश हो गए कि अब तो हमारी सास आधे घंटे बाद घर छोड़ कर प्रस्थान कर जाएंगी लेकिन मनुष्य जो सोचता है वह कब पूरा होता है?

सास ने उन 2 निरीह प्राणियों को देखा तो चच्चच् कर के वहीं जमीन पर बैठ गईं और हमारी ओर बड़ी दया की नजरों से देख कर कहा, ‘‘सच में दामाद हो तो तुम जैसा.’’

‘‘क्यों, ऐसा हम ने क्या कर दिया सासूमां?’’ हम ने प्रसन्नता को मन में छिपाते हुए पूछा.

‘‘अरे, दामादजी, तुम इन निरीह प्राणियों को ऐसी स्थिति में उठा लाए, ये काम बिरले व्यक्ति ही कर सकते हैं. मैं पहले जानवरों से बहुत नफरत करती थी, लेकिन जब से जानवरों की रक्षा करने वाली संस्था की सदस्य बनी हूं तब से  मेरा दृष्टिकोण ही बदल गया. तुम खड़े क्यों हो…आटोरिकशा लाओ?’’ सासूजी ने आदेश दिया.

‘‘आटोरिकशा किसलिए?’’

‘‘अस्पताल चलना है.’’

‘‘क्यों? यह (पत्नीजी उठ बैठी थीं) तो ठीकठाक हैं?’’ हम ने भोलेपन से कहा.

‘‘दामादजी, इन कुत्तेबिल्ली के बच्चों को ले कर चलना है, जल्दी करो,’’ सासूमां ने आर्डर दिया. हम दिल पर पत्थर रख कर चले गए. आगे की घटना बड़ी छोटी है.

आटोरिकशा आया, उस के रुपए हम ने दिए. वेटनरी डाक्टर को दिखाया उस के रुपए हम ने दिए. जानवरों के लिए 1 हजार रुपए की दवा खरीदी वह रुपए देतेदेते हमें चक्कर आने लगे थे. कुल जमा 1,500 रुपयों पर हमें हमारे दोस्त मटरू ने उतार दिया था. घर ला कर उन जानवरों के लिए दूध, ब्रेड की व्यवस्था भी की, और जब ओवर बजट होने लगा तो एक रात चुपके से हम ने दोनों को थैली में बंद कर के मटरू के?घर में छोड़ दिया.

हमारी सास जब सुबह उठीं तो बड़ी दुखी थीं कि पालतू जानवर कहां चले गए? हमारा दुर्भाग्य देखो कि मटरू स्कूटर से सुबह ही आ धमका, ‘‘अरे, गोपाल, ये दोनों मेरे घर आ गए थे. मैं इन्हें ले आया हूं,’’ कह कर उस ने मुझे शादी के तोहफे की तरह कुत्ते का पिल्ला और बिल्ली दी. सासूमां खुशी से झूम उठीं. हम मन ही मन कुढ़ कर रह गए. आखिर किस से अपने मन की व्यथा कहते?

कुत्ते का पिल्ला ठीक हो गया था. उस की खुराक भी हमारी सास की खुराक की तरह बढ़ रही थी. हम खून के आंसू रो रहे थे. सास को जमे 6 माह हो चुके थे. पत्नी थीं कि उन्हें घर भेजने का नाम ही नहीं ले रही थीं.

हम अपने दोस्त मटरू के पास गए. उस के सामने खूब रोएधोए. उसे हमारी दशा पर दया आ गई. उस ने मुझे एक प्लान बताया जिसे सुन कर हम खुश हो गए. उस प्लान में एक ही गड़बड़ी थी कि श्रीमती को ले कर मुझे बाहर जाना था, लेकिन वह सास के बिना माफ करना, अपनी मां के बिना जाने को तैयार ही नहीं होती थीं.

हम ने अपने मित्र मटरू को वचन दिया कि उस की दी गई तारीख को केवल सास ही घर में रहेंगी. मैं और पत्नी सिनेमा देखने जाएंगे. इन 3-4 घंटों में वह काम निबटा कर सब ठीक कर लेगा.

हम ने मौका देख कर पत्नी की प्रशंसा की, उस के साथ कुछ पल तन्हातन्हा गुजारने की मनोकामना प्रकट की. वह थोड़ा लजाई, थोड़ा घबराई, मां की याद भी आई, लेकिन हमारे प्यार ने जोर मारा और वह तैयार हो गई कि मैं और वह शाम को फिल्म देखने चलेंगे.

हालांकि सासूमां को अकेला छोड़ कर जाने पर उन्होंने आपत्ति प्रकट की लेकिन पत्नी ने उन्हें समझाया कि टिक्कू कुत्ता, दीयापक बिल्ली है इसलिए अकेलापन खलेगा नहीं. बुझे मन से उन्होंने भी जाने की इजाजत दे दी.

हम ने खट से मटरू को मोबाइल से यह खबर दे दी कि हम शाम को निकल रहे हैं, देर से लौटेंगे. रात 10 से 1 के बीच सासूमां का काम निबटा ले. मटरू भी तैयार हो गया?था. हम भी खुश थे कि चलो, बला टलेगी, लेकिन पति हमेशा से ही बदकिस्मत पैदा होता है.

प्लान यह था कि मटरू रात में साढ़े 10 बजे के बीच घर में प्रवेश करेगा और मुंह पर कपड़ा बांध कर सासूमां को डरा कर चोरी कर लेगा. सासूमां डर के मारे या तो भाग जाएंगी या हमारे घर से हमेशा के लिए बायबाय कर लेंगी.

हम पत्नी को 4 घंटे की एक फिल्म दिखलाने शहर से बाहर ले गए. रात 10 बजे फिल्म छूटी. हम ने भोजन किया. फोन से मटरू को खबर भी कर दी कि जल्दी से अपने आपरेशन को अंजाम दे. हमारी पत्नी अपनी मां को ले कर काफी चिंतित थी. हम ने आटोरिकशा वाले को पटा कर 50 रुपए अधिक दिए ताकि वह घर पर लंबे रास्ते से धीमी गति से पहुंचे.

रात साढ़े 12 बजे जब हम अपने घर पहुंचे तो घर के बाहर भीड़ जमा थी. पुलिस की एक वैन खड़ी थी. चंद पुलिस वाले भी थे. हमारा माथा ठनका कि मटरू ने कहीं जल्दबाजी में सासूमां का मर्डर तो नहीं कर दिया?

हम जब आटोरिकशा से उतरे तो महल्ले के निवासी काफी घबराए थे. पत्नी अपनी मां की याद में रोने  लगी तभी अंदर से सासूमां पुलिस इंस्पेक्टर के साथ बाहर हंसतीखिलखिलाती निकलीं. उन्हें हंसते देख हमारा माथा ठनका कि भैया आज मटरू पकड़ा गया और हमारा प्लान ओपन हुआ. बस, तलाक के साथसाथ पूरा महल्ला थूथू करेगा सो अलग. सब कहेंगे, ‘‘ऐसे टुच्चे दोस्त हैं जो ऐसी सलाह देते हैं.’’

हम शर्म से जमीन में गड़ गए. मन ही मन विचार किया, कभी ऐसा गंदा प्लान नहीं बनाएंगे. अचानक हमारे कान में मटरू की आवाज सुनाई पड़ी. देखा कि वह तो भीड़ में खड़ा तमाशा देख रहा है. अब हमारी बारी चक्कर खा कर गिरने की आ गई थी.

हम हिम्मत कर के आगे बढ़े तो देखते हैं कि पुलिस एक चोर को पकड़ कर बाहर आ रही थी. हमें देख कर सासूमां ने कहा, ‘‘लो दामादजी, इसे पकड़ ही लिया, पूरा शहर इस की चोरियों से परेशान था.’’

पुलिस इंस्पेक्टर ने हमें बधाई दी और कहा, ‘‘आप की सास वाकई बड़ी हिम्मती हैं. इन्होंने एक शातिर चोर को पकड़वाया है. इन्हें सरकार से इनाम तो मिलेगा ही लेकिन हमें आज आप के भाग्य पर ईर्ष्या हो रही है कि ऐसी सास हमारे भाग्य में क्यों नहीं थी?’’ हम ने सुना तो गद्गद हो गए. हमारी पत्नी ने लपक कर अपनी मां को गले से लगा लिया.

किस्सा यों हुआ कि हमारे मटरू दोस्त को आने में देर हो गई थी. उस की जगह उस रात अचानक असली चोर घुस आया. सासूमां ने पुराना घी खाया था, सो बिना घबराए अपने कुत्ते के साथ उसे धोबी पछाड़ दे दी. महल्ले वालों को आवाज दे कर बुलाया, पुलिस आ गई. इस तरह सासूमां ने एक शातिर चोर को पकड़ लिया. अगले दिन समाचारपत्रों में फोटो सहित सासूमां का समाचार छपा हुआ था.

अब आप ही विचार करें, ऐसी प्रसिद्ध सासूमां को कौन घर से जाने को कहेगा? आप ही निर्णय करें कि हम भाग्यशाली हैं या दुर्भाग्यशाली? आप जो भी निर्णय लें लेकिन हमारी सासूमां जरूर सौभाग्यशाली हैं जिन्हें ऐसा दामाद मिला…

ध्रुवा: क्या आकाश के माता-पिता को वापस मिला बेटा

हर मातापिता की तरह आकाश के मातापिता ने भी अपने 25 वर्षीय बेटे की शादी के ढेर सारे सपने संजो रखे थे जिन्हें आकाश के एक फैसले ने मिट्टी में मिला दिया था.

“बेटा आकाश, मिश्रा जी हमारे जवाब के इंतज़ार में हैं, उन की बेटी सुकन्या एमबीए कर के,” मां इंद्रा देवी ने बात शुरू ही की थी कि “मां, आप ने सोच भी कैसे लिया कि मैं ध्रुवा को भूल जाऊंगा, उस का और मेरा साथ आज का नहीं, जन्मजन्मांतर का है. कभी तभी तो सोचिए न मां, कि इतनी भीड़भरी दुनिया में वही क्यों मिली मुझे,” आकाश ने मां की बात को बीच में ही काटा.

“इस में सोचने वाली तो कोई बात ही नहीं. तुम पैसे वाले हो, देखने में स्मार्ट हो. इस से ज्यादा एक लड़की को और क्या चाहिए. उस ने सोचसमझ कर तुम पर डोरा डाला है,” मां इंद्रा देवी ने क्रोधित होते हुए कहा.

“मां, मैं गया था उस के पीछे. उस ने तो महीनों तक मुड़ कर भी नहीं देखा था मेरी ओर,” आकाश हारना नहीं चाहता था, उसे हर हाल में अपने प्यार की जीत चाहिए थी.

“हां, तो तुम्हें कोई अपनी बिरादरी की नहीं मिली. वही एक हूर की परी है दुनिया में,” मां अब भी अपनी संस्कृति, रीतिरिवाज का मोरचा संभाले बोली.”

“जो होना था वह हो चुका. कल उस के मातापिता आ रहे हैं आप लोगों से मिलने के लिए और मैं नहीं चाहता आने वाले समय की बुनियाद में थोड़ी सी भी खटास शामिल हो,” आकाश ने दृढ़ निश्चय लेते हुए कहा.

“कल क्लाइंट के साथ मेरी इंपौर्टेंट मीटिंग है,” आकाश के पिता ने अपनी नाराजगी को अमलीजामा पहनाने की कोशिश की.

“और मेरी महिला समिति की किटी पार्टी है,” मां ने मोबाइल में आंखें गड़ाए कहा.

“समझ गया, आप लोग किसी भी हाल में ध्रुवा को नहीं अपनाने वाले. लेकिन मैं भी कह देता हूं आने वाली परिस्थिति के जिम्मेदार आप लोग ही होंगे,” आकाश का चेहरा गुस्से से तमतमा रहा था. अपनी बात कह कर आकाश कमरे से निकल गया.

मातापिता की रजामंदी न मिलने से खीझा हुआ तो वह पहले से ही था, रहीसही कसर दोस्त मनीष के कोरोना पौजिटिव होने की खबर ने पूरी कर दी जिस के संसर्ग में वह भी पिछले कई दिनों से रह रहा था. लेकिन फिलहाल समस्या यह थी कि वह ध्रुवा से क्या कहेगा… रोज उस के सामने अपने मातापिता के खुले विचारों वाले होने के सौ किस्से सुनाया करता था और आज जब सही में खुले विचार से बेटे की खुशियां समेटने की बारी आई तो वे मुकर गए थे.

यही सब सोचता उन कड़ियों को जोड़ने लगा जहां से इस सारे अफसाने की शुरुआत हुई थी. असम राज्य के शिवसागर जिला अपनी खूबसूरती के साथसाथ कई और संस्कृतियों को भी अपनी गोद में उसी प्रकार बढ़नेपनपने देता है जैसे कि वे वहीं की हों. वहीं के एक कौन्वैंट स्कूल में आकाश पढ़ता था. हिंदी फिल्मों के शौकीन आकाश ने गर्लफ्रैंड बनाने के कई प्रयास किए पर हर बार नाकामयाब रहा. उसी समय ध्रुवा ने उसी स्कूल में दाखिला लिया. वैसे तो ध्रुवा के मातापिता की कहीं से औकात न थीं इतने बड़े स्कूल में पढ़ाने की लेकिन ध्रुवा इतनी अच्छी पेंटिंग करती थी कि उसे उस स्कूल के लिए स्कौलरशिप मिली थी और यहीं से शुरुआत हुई थी उन दोनों के प्रेम कहानी की. हुआ यों था कि एक दिन ध्रुवा को कक्षा में डांट पड़ रही थी. ‘ओहो, ध्रुवा, तुम ने फिर होमवर्क नहीं किया,’ राधिका मैम ने उस की कौपी डैस्क पर पटकते हुए कहा. 10वीं कक्षा के सभी विद्यार्थियों की नजर ध्रुवा पर गई- गोरा सा मुखड़ा, बड़ीबड़ी कजरारी आंखें, हलके गुलाबी रंग के होंठ.

‘बोलो, बोलती क्यों नहीं,’ राधिका मैम ने फिर धमकाया.

‘मैडम, मुझे मैथ्स अच्छी नहीं लगती. वैसे भी ए प्लस बी होलस्कवैर का इस्तेमाल जीवन के किस मोड़ पर होता है, मुझे बताएं जरा,’ ध्रुवा ने मासूमियत से उत्तर दिया.

‘बस ध्रुवा, एक तो तुम ने होमवर्क नहीं किया, ऊपर से बड़ीबड़ी बातें…’

‘मैडम, आप ने कभी रंगों के साथ खेला है. उन्हें कागज या कपड़ों पर उकेरा है…’ ध्रुवा अपनी बात पूरी भी नहीं कर पाई थी कि छुट्टी की घंटी बज गई और सभी कक्षा से बाहर निकल गए.

ध्रुवा का मासूम, सुंदर सा चेहरा, बेबाक हो कर बोलना और नुमाइश में लगी ध्रुवा की पेंटिंग जिस की खूब तारीफ हो रही थी. इन सारी बातों ने आकाश के मन को मोह लिया था.

आकाश चौधरी ध्रुवा की कक्षा का हैड बौय था. कसरती बदन, ऊंचा मस्तक, घुंघराले बालों वाला यह लड़का लड़कियों के बीच हमेशा चर्चा का विषय बना रहता. दरअसल, आकाश हमेशा से स्कूल टौपर भी था.

‘आप को मैथ्स अच्छी नहीं लगती?’ एक दिन ध्रुवा को लाइब्रेरी में अकेला पा कर आकाश ने पूछा.

‘क्या आप रंगों की भाषा जानते हैं? ध्रुवा ने चिढ़ कर जवाब दिया जैसे किसी ने उस की दुखती रग पर हाथ रख दिया हो.

उसी का तो मैं दीवाना हो गया हूं, आकाश के मन की आवाज थी जो उस के मन में ही दब कर रह गई. पहली मुलाकात में भला कैसे कह सकता है इतनी सारी बातें.

‘आप की पेंटिंग देखी हैं मैं ने, बहुत अच्छा बनाती हैं आप,’ संयोग से मिले अंतरंग पलों को भला कैसे जाने दे सकता था आकाश.

‘क्या फायदा मैथ्स में तो फिसड्डी हूं न,’ ध्रुवा ने होंठों को टेढ़ा करते हुए कहा.

‘आप कहें तो मैं आप की मदद कर सकता हूं,’ आकाश ने अपनी ओर से पहल करते हुए कहा.

‘सच्ची, फिर ठीक है,’ ध्रुवा लगभग उछल पड़ी थी.

स्कूल का टौपर लड़का उस की मदद करना चाह रहा था. इस से अच्छी बात क्या हो सकती थी भला.

इस तरह अपनीअपनी ख्वाहिशों को जरूरतों का नाम दे कर दोनों जीवन के उस राह पर चलने लगे जिसे ज्ञानी लोग बकवास और साधारण लोग पवित्र प्रेम का दर्जा देते हैं. और इस तरह धीरेधीरे दोनों का प्यार परवान चढ़ने लगा.

शुरुआत में तो मुलाकातें छोटी होती थीं पर सपने बड़े होते थे. फिर एक शाम की सिंदूरी बेला में अपने प्यार को सचाई का जामा पहनाने की कोशिश में आकाश का पुरुषत्व हावी हो बैठा जिसे ध्रुवा ने भी नादानी में स्वीकार कर लिया और नदी का अस्तित्व सागर में विलीन हो गया.

इस समर्पण के सिलसिले को रोकने की कोशिश दोनों में से किसी ने न की. नतीजा यह निकला कि ध्रुवा अपनी पढ़ाई भी संपन्न न कर पाई. उसे अपने गर्भवती होने का पता लग चुका. उस ने आकाश को बताने में तनिक भी देरी न की. साधारणतया ऐसी परिस्थितियों में लड़का चिल्लाता है, मुकर जाता है या भागने की कोशिश करता है लेकिन आकाश चौधरी ने इस खुशी को उतने ही प्रसन्नता से स्वीकार किया जितना शायद वह विवाह के बाद स्वीकार करता.

कमी इतनी ही थी की ध्रुवा के मांग में उस के नाम का सिंदूर नहीं था. लोक, समाज की तो जैसे आकाश को परवा ही न थी. उसे, बस, इतना लग रहा था वह पिता बनने वाला है और वह उस जिम्मेदारी को निभाने के लिए पूर्णरूप से तैयार है. ध्रुवा से वह सचमुच प्यार करता था.

आकाश के पिता महेश चौधरी कंप्यूटर कंपनी के मालिक थे जिस का इकलौता वारिस आकाश ही था. अपने पिता के व्यवसाय को उसे आगे ले जाना है, यह बात उसे बचपन से ही घुट्टी की तरह पिलाई गई थी और उस ने भी उसे स्वीकार कर लिया था और व्यवसाय को आगे बढ़ाने के लिए मेहनत भी करता था. आज जब उस ने अपने मातापिता के सामने ध्रुवा से विवाह करने का प्रस्ताव रखा तो मातापिता ने जातिवाद को ऊपर रखते हुए इस विवाह से साफ इनकार कर दिया.

अब चिंता की लकीरें आकाश के माथे पर खिंचने लगी थीं क्योंकि इकलौता बेटा होने की वजह से उसे लगता था वह जो चाहेगा मातापिता उस के लिए सहर्ष इजाजत दे देंगे लेकिन मातापिता ने साफ इनकार कर दिया. फिर भी उस ने कदम पीछे नहीं किया. देरसवेर मातापिता मान जाएंगे, यह सोच कर कुछ दोस्तों की मदद से शादी करने का फैसला ले लिया और मन ही मन ध्रुवा को दुलहन के जोड़े में देख मुसकराने लगा.

24 मार्च की शाम को आकाश ने ध्रुवा को फोन किया, ‘बस, कल भर की देरी है, फिर हम दोनों और हमारा मुन्ना…’

ध्रुवा ने बीच में टोका, ‘मुन्ना क्यों, मुन्नी…’

‘चलो ठीक है मुन्नी, फिर हम तीनों एकसाथ होंगे. मैं तुम्हें हर वह खुशी देने की कोशिश करूंगा जिस की चाहत तुम ने सपने में भी की होगी,’ आकाश बोला.

मुझे यकीन है तुम पर, आकाश,’ ध्रुव तो निहाल हुई जा रही थी.

‘ध्रुवा, तुम्हें मुझ पर यकीन तो है न,’ कहतेकहते आकाश एकदो बार खांसने लगा.

‘अपनेआप से ज्यादा,’ ध्रुवा ने मोबाइल को चूमते हुए कहा जैसे वह मोबाइल को नहीं, अपने उस विश्वास को चूम रही थी जो नैटवर्क के दूसरे छोर पर खांस रहा था.

अचानक से आकाश की खांसी बढ़ने लगी, वह बोला, ‘अभी रखता हूं, फिर बाद में बात करते हैं.’

‘ठीक है, थोड़ा पानी पी लो, खांसी ठीक हो जाएगी,’ ध्रुवा ने कहा.

एक सप्ताह पहले से ही 25 मार्च, 2020 का दिन शादी के लिए तय किया गया. शिवसागर का औडिटोरियम बड़ा ही भव्य और विशालकाय है जिस में दोनों सात फेरे लेने वाले थे. सबकुछ योजना के मुताबिक चल रहा था. लेकिन नियति ने अपनी अलग नीति बनाई थी जिस के बारे में किसी को कुछ पता न था.

रात होतेहोते आकाश की खांसी बढ़ने लगी और शरीर तपने लगा. रात के 12 बजतेबजते आकाश को अस्पताल ले जाने की नौबत आ गई. ऐसे में ध्रुवा को खबर देने की जरूरत किसी ने महसूस न की.

अस्पताल पहुंच कर पता चला आकाश कोरोना पौजीटिव है और उसे औक्सीजन की सख्त जरूरत है. मातापिता का रोरो कर बुरा हाल था. उन्होंने इलाज में कोई कसर न छोड़ी. वैंटिलेटर पर भी रखा गया लेकिन बहुत देर हो चुकी थी. अगले दिन शाम के 4 बजतेबजते आकाश ने आखिरी सांस ले ली और मातापिता के सामने उन की दुनिया उजड़ गई. सबकुछ इतनी जल्दी हो गया कि किसी को यकीन नहीं हो रहा था.

जिस वक्त सात फेरे लेने का समय था उस वक्त उस के पिता उसे मुखाग्नि दे रहे थे.

आखिर एक दोस्त की मदद से ध्रुवा तक खबर पहुंची जो सुबह से औडिटोरियम में इंतजार कर रही थी. आकाश के मोबाइल पर कई बार कौल की जो आकाश के घर में बैड के साइड की टेबल पर रखा था. अब ध्रुवा को काटो तो खून नहीं, अब क्या होगा उस का. चारों तरफ सबकुछ बंद. घर जाने तक की गुंजाइश न थी. शादी के बाद जिस घर जाने की बात थी, अब वह रहा नहीं. पेट में 3 महीने का बच्चा लिए अंधेरे रास्ते से गुजर रही थी. दहाड़े मार कर आकाश का नाम लेले कर रोए जा रही थी. पर कोई सुनने वाला न था. पागलों की तरह अपने शरीर से कपड़े, गहने नोचनोच कर फेंक रही थी.

सवाल था, जाए तो कहां जाए? इसी कशमकश में चली जा रही थी. रात अपने घर के सीढ़ियों पर गुजारी. मातापिता अलग नाराज थे. सुबह हुई तो मां ने स्थिति जान कर थोड़ी सहानुभूति दिखाई. लौकडाउन की वजह से सबकुछ बंद हो चुका था. गर्भपात कराने की भी गुंजाइश नहीं रह गई थी. ऐसे में अब उसे एक ही रास्ता सूझ रहा था जिस रास्ते से गुजर कर वह आकाश के पास पहुंच सकती थी. उस ने दिल पर पत्थर रख कर वही रास्ता चुन लिया. बस, सही तरीका अपना कर अंजाम देना चाहती थी.

कहते हैं, मृत्यु जब तक बांहें न फैलाए तब तक कोई अपनी मरजी से उस की आगोश में नहीं जा सकता और वही हुआ. हर कोशिश नाकाम रही. अकेली जान होती, तो रोचिल्ला कर रह लेती. लेकिन उस की कोख में आकाश की निशानी पल रही थी और उस के साथ वह कोई नाइंसाफी नहीं होने देना चाहती थी. अगली सुबह उस ने थोड़ी हिम्मत जुटाई. दृढ़ निश्चय किया और मातापिता को साथ ले कर आकाश के घर पहुंची. निकलते समय बैग में जीवन को

खत्म करने की सामग्री रखना न भूली. वाचमैन ने गेट पर ही रोक दिया. ध्रुवा जो ठान कर आई थी, उसे अंजाम दिए बगैर वापस जाना नहीं चाहती थी.

उस ने एक कागज़ के टुकड़े पर लिखा, ‘मां, आप अपना इकलौता बेटा खो चुकी हैं, कम से कम उस की आखिरी निशानी को तो बचा लीजिए.’

आकाश के मातापिता, जो बेटे को खो कर अपने लिए जीने की वजह खो चुके थे, उस कागज के टुकड़े को पढ़ते ही दौड़ कर बाहर आए. कहने के लिए शब्द नहीं थे. सभी के आंसुओं ने अपनीअपनी बात कही. इंदिरा देवी का जातिवाद बेटे को खो कर खामोश हो चुका था. ध्रुवा को घर के अंदर लेते वक्त सभी ने आकाश को अपने आसपास महसूस किया जैसे उन का बेटा लौट आया हो.

खुल गई आंखें : कैसी थी रवि की पत्नी गुंजा

दफ्तर से अपने बड़े सरकारी बंगले पर जाते हुए उस दिन अचानक एक ट्रक ने रवि की कार को जोरदार टक्कर मार दी थी. कार का अगला हिस्सा बुरी तरह से टूटफूट गया था.

खून से लथपथ रवि कार के अंदर ही फंसा रह गया था. वह काफी समय तक बेहोशी की हालत में कार के अंदर ही रहा, पर उस की जान बचाने वाला कोई भी नहीं था.

हां, उस के आसपास तमाशबीनों की भीड़ जरूर लग गई थी. सभी एकदूसरे का मुंह ताक रहे थे, पर किसी में उसे अस्पताल ले जाने या पुलिस को बुलाने की हिम्मत नहीं हो रही थी.

भला हो रवि के दफ्तर के चपरासी रामदीन का, जो भीड़ को देख कर उसे चीरता हुआ रवि के पास तक पहुंच गया था. बाद में उसी ने पास के एसटीडी बूथ से 100 नंबर पर फोन कर पुलिस को बुला लिया था.

जब तक पुलिस रवि को ले कर पास के नर्सिंगहोम में पहुंची तब तक उस के शरीर से काफी खून बह चुका था. रामदीन काफी समय तक अस्पताल में ही रहा था. उस ने फोन कर के दफ्तर से सुपरिंटैंडैंट राकेश को भी बुला लिया था जो वहीं पास में रहते थे.

रवि के एक रिश्तेदार भी सूचना पा कर अस्पताल पहुंच गए थे. गांव दूर होने व बूढ़े मांबाप की हालत को ध्यान में रखते हुए किसी ने उस के घर सूचना भेजना उचित नहीं सम  झा था. वैसे भी उस के गांव में संचार का कोई खास साधन नहीं था. इमर्जैंसी में तार भेजने के अलावा और कोई चारा नहीं होता था.

रवि की पत्नी गुंजा अपने सासससुर व देवर रघु के साथ गांव में ही रहती थी. वह 2 साल पहले ही गौना करा कर अपनी ससुराल आई थी. रवि के साथ उस की शादी बचपन में तभी हो गई थी, जब वे दोनों 10 साल की उम्र भी पार नहीं कर पाए थे.

गांव में रहने के चलते गुंजा की पढ़ाई 8वीं जमात के बाद ही छूट गई थी पर रवि 5वीं जमात पास कर के अपने चाचा के पास शहर में ही पढ़ने आ गया था. उस ने अच्छीखासी पढ़ाई कर ली थी. शहर में पढ़ाई करने के चलते उस का मन चंचल हो गया था. वैसे भी वह गुंजा से हर मामले में बेहतर था.

शादी के समय तो रवि को कोई सम  झ नहीं थी, पर जब गौने के बाद विदा हो कर गुंजा उस के घर आई थी और पहली बार जवान और भरपूर नजरों से उस ने उसे देखा था तभी से उस का मन उस से उचट गया था.

गुंजा कामकाज में भी उतनी माहिर नहीं थी जितनी रवि ने अपनी पत्नी से उम्मीद की थी. यहां तक कि सुहागरात के दिन भी वह गुंजा से दूर ही रहा था.

गुंजा गांव की पलीबढ़ी लड़की थी. शक्लसूरत और पढ़ाईलिखाई में कम होने के बावजूद मांबाप से उसे अच्छे संस्कार मिले थे. उस ने रवि की अनदेखी के बावजूद उस के बूढ़े मांबाप और रवि के छोटे भाई रघु का साथ कभी नहीं छोड़ा.

मांबाप के लाख कहने के बावजूद रवि जब उसे अपने साथ शहर ले जाने को राजी नहीं हुआ तब भी उस ने उस से कोई खास जिद नहीं की, न ही अकेले शहर जाने का उस ने कोई विरोध किया.

शहर में आ कर रवि अपने दफ्तर और रोजमर्रा के कामों में ऐसा बिजी हुआ कि गांव जाना ही भूल गया. उसे अपने मांबाप से भी कुछ खास लगाव नहीं रह गया था क्योंकि वह अपनी बेढंगी शादी के लिए काफी हद तक उन्हीं को कुसूरवार मानता था.

तनख्वाह मिलने पर घर पर पैसा भेजने के अलावा रवि कभीकभार चिट्ठी लिख कर मांबाप व भाई का हालचाल जरूर पूछ लेता था, पर इस से ज्यादा वह अपने घर वालों के लिए कुछ भी नहीं कर पाता था.

3-4 दिन आईसीयू में रहने के बाद अब रवि को प्राइवेट वार्ड में शिफ्ट कर दिया था. दफ्तर के अनेक साथी तन, मन और धन से उस की सेवा में लगे हुए थे. बड़े साहब भी लगातार उस की सेहत पर नजर रखे हुए थे.

नर्सिंगहोम में जहां सीनियर सर्जन डाक्टर अशोक लाल उस के इलाज पर ध्यान दे रहे थे, वहीं वह वहां की सब से काबिल नर्स सुधा चौहान की चौबीसों घंटे की निगरानी में था.

सुधा चौहान जितना नर्सिंगहोम के कामों में माहिर थी, उतना ही सरल उस का स्वभाव भी था. शक्लसूरत से भी वह किसी फिल्मी नर्स से कम नहीं थी. उस की रातदिन की सेवा और बेहतर इलाज के चलते रवि को जल्दी ही होश आ गया था.

उस समय सुधा ही उस के पास थी. उसे बेचैन देख कर सुधा ने सहारा दिया और उस के सिरहाने तकिया रख दिया. अगले ही पल नर्स सुधा ने शीशी से एक चम्मच दवा निकाल कर आहिस्ता से उस के मुंह में डाल दी.

रवि कुछ कहने के लिए मुंह खोलना चाहता था, पर पूरे चेहरे पर पट्टी बंधी होने के चलते वह कुछ भी कह पाने में नाकाम था. सुधा ने हलकी मुसकान के साथ उसे इशारेइशारे में चुप रहने को कहा.

सुधा की निजी जिंदगी भी बहुत खुशहाल नहीं थी. उस का पति मनीष इस दुनिया में नहीं था. उस की रिया नाम की 5 साल की एक बेटी थी जो उस के साथ ही रहती थी.

मनीष सेना में कैप्टन था. जब रिया मां के पेट में थी उन्हीं दिनों बौर्डर पर सिक्योरिटी का जायजा लेते समय आतंकियों के एक हमले में उस की जान चली गई थी. इस के बाद सुधा टूट कर रह गई थी. पर मनीष की निशानी की खातिर वह जिंदा रही. अब उस ने लोगों की सेवा को ही अपने जीने का मकसद बना लिया था.

थोड़ी देर तक शांत रहने के बाद रवि कुछ बुदबुदाया. शायद उसे प्यास लग रही थी. सुधा उस के बुदबुदाने का मतलब सम  झ गई थी. उस ने 8-10 चम्मच पानी उस को पिला दिया. पानी पिला कर उस ने रूमाल से रवि के होंठों को पोंछ दिया था. फिर वह पास ही रखे स्टूल पर बैठ कर आहिस्ताआहिस्ता उस का सिर सहलाने लगी थी. यह देख कर रवि की आंखें नम हो गई थीं.

सुधा को रवि के बारे में मालूम था. डाक्टर अशोक लाल ने उसे रवि के बारे में पहले से ही सबकुछ बता दिया था. नर्सिंगहोम में रवि के दफ्तर से आनेजाने वालों का जिस तरह से तांता लगा रहता, उसे देख कर उस के रुतबे का अंदाजा लग जाता था.

कुछ दिनों के इलाज के बाद बेशक अभी भी रवि कुछ बोल पाने में नाकाम था, पर उस के हाथपैर हिलनेडुलने लगे थे. अब वह किसी चिट पर लिख कर अपनी कोई बात सुधा या डाक्टर के सामने आसानी से रख पा रहा था. कभी जब सुधा की रात की ड्यूटी होती तब भी वह पूरी मुस्तैदी से उस की सेवा में लगी रहती.

एक दिन सुबह जब सुधा अपनी ड्यूटी पर आई तो रवि बहुत खुश नजर आ रहा था. सुधा के आते ही रवि ने उसे एक चिट दी, जिस पर लिखा था, ‘आप बहुत अच्छी हैं, थैंक्स.’

चिट के जवाब में सुधा ने जब उस के सिर पर हाथ फेरते हुए मुसकरा कर ‘वैलकम’ कहा तो उस की आंखें भर आई थीं. उस दिन रवि के धीरे से ‘आई लव यू’ कहने पर सुधा शरमा कर रह गई थी.

सुधा का साथ पा कर रवि के मन में जिंदगी को एक नए सिरे से जीने की इच्छा बलवती हो उठी थी. जब तक सुधा उस के पास रहती, उस के दिल को बड़ा ही सुकून मिलता था.

एक दिन सुधा की गैरहाजिरी में जब रवि ने वार्ड बौय से उस के बारे में कुछ जानना चाहा था तो वार्ड बौय ने सुधा की जिंदगी की एकएक परतें उस के सामने खोल कर रख दी थीं.

सुधा की कहानी सुन कर रवि भावुक हो गया था. उस ने उसी पल सुधा को अपनाने और एक नई जिंदगी देने का मन बना लिया था. उस ने तय कर लिया था कि वह कैसे भी हो, सुधा को अपनी पत्नी बना कर ही दम लेगा. पर सवाल यह उठता था कि एक पत्नी के होते हुए वह दूसरी शादी कैसे करता?

उस दिन अस्पताल से छुट्टी मिलते ही रवि दफ्तर के कुछ काम निबटा कर सीधा अपने गांव चला गया था. जब वह सुबह अपने गांव पहुंचा तब घर वाले हैरान रह गए थे. बूढे़ मांबाप की आंखों में तो आंसू आतेआते रह गए थे.

पूरे घर में अजीब सा भावुक माहौल बन गया था. आसपास के लोग रवि के घर के दरवाजे पर इकट्ठा हो कर घर के अंदर का नजारा देखे जा रहे थे.

रवि बहुत कम दिनों के लिए गांव आया था. वह जल्दी से जल्दी गुंजा को तलाक के लिए तैयार कर शहर लौट जाना चाहता था. पर घर का माहौल एकदम से बदल जाने के चलते वह असमंजस में पड़ गया था. उस दिन पूरे समय गुंजा उस की खातिरदारी में लगी रही. वह उसे कभी कोई पकवान बना कर खिलाती तो कभी कोई. पर रवि पर उस की इस मेहमाननवाजी का कोई असर नहीं हो रहा था.

दिनभर की भीड़भाड़ से जू  झतेजू  झते और सफर की रातभर की थकान के चलते उस रात रवि को जल्दी ही नींद आ गई थी. गुंजा ने अपना व उस का बिस्तर एकसाथ ही लगा रखा था, पर इस की परवाह किए बगैर वह दालान में पड़े तख्त पर ही सो गया था. पर थोड़ी ही देर में उस की नींद खुल गई थी. उसे नींद आती भी तो कहां से. एक तो मच्छरमक्खियों ने उसे परेशान कर रखा था, उस पर से भविष्य की योजनाओं ने थकान के बावजूद उसे जगा दिया था.

रवि देर रात तक सुधा और अपनी जिंदगी के तानेबाने बुनने में ही लगा रहा. रात के डेढ़ बजे उस पर दोबारा नींद की खुमारी चढ़ी कि उसे अपने पैरों के पास कुछ सरसराहट सी महसूस हुई. उसे ऐसा लगा मानो किसी ने उस के पैरों को गरम पानी में डुबो कर रख दिया हो.

रवि हड़बड़ा कर उठ बैठा. उस ने देखा, गुंजा उस के पैरों पर अपना सिर रखे सुबक रही थी. पास में ही मच्छर भगाने वाली बत्ती चारों ओर धुआं छोड़ रही थी. उस के उठते ही गुंजा उस से लिपट गई और फिर बिलखबिलख कर रोने लगी.

गुंजा रोते हुए बोले जा रही थी, ‘‘इस बार मु  झे भी शहर ले चलो. मैं अब अकेली गांव में नहीं रह सकती. भले ही मु  झे अपनी दासी बना कर रखना, पर अब अकेली छोड़ कर मत जाना, नहीं तो मैं कुएं में कूद कर मर जाऊंगी.’’

गुंजा की यह दशा देख कर अचानक रवि उस के प्रति कुछ नरम होते हुए भावुक हो उठा. वह अपने दिलोदिमाग में हाल में बने गए सपनों को भूल कर अचानक गुंजा की ओर मुखातिब हो चला था.

गुंजा ने जब बातों ही बातों में रवि को बताया कि उस ने शहर चलने के लिए एबीसीडी समेत अंगरेजी की कई कविताएं भी मुंहजबानी याद कर रखी हैं तो रवि उस के भोलेपन पर मुसकरा उठा.

आज पहली बार उसे गुंजा का चेहरा बहुत अच्छा लगा था और उस के मन में गुंजा के प्रति प्यार का ज्वार उमड़ पड़ा था. वह उस की कमियों को भूल कर पलभर में ही उस के आगोश में समाता चला गया था.

रवि गुंजा के बदन से खेलता रहा और वह आंखों में आंसुओं का समंदर लिए उस के प्यार का जवाब देती रही.

एक ही रात और कुछ समय के प्यार ने ही रवि के कई सपनों को जहां तोड़ दिया था वहीं उस के दिलोदिमाग में कई नए सपने भी बुनते चले गए थे. वह गुंजा को तन, मन व धन से अपनाने को तैयार हो गया था, पर सवाल यह था कि शहर जा कर वह सुधा को क्या जवाब देगा. जब सुधा को यह पता चलेगा कि वह पहले से ही शादीशुदा है और जब उस को अब तक का उस का प्यार महज नाटक लगेगा तो उस के दिल पर क्या बीतेगी.

इसी उधेड़बुन के साथ रवि अगली सुबह शहर को रवाना हो चला था. गुंजा को उस ने कह दिया था कि वह अगले हफ्ते उसे लेने गांव आएगा.

शहर पहुंचते ही रवि किसी तरह से सुधा से मिल कर उस से अपनी गलतियों व किए की माफी मांगना चाहता था. अपने बंगले पर पहुंच कर वह नहाधो कर सीधा नर्सिंगहोम पहुंचा, पर वहां सुधा से उस की मुलाकात नहीं हो पाई.

पता चला कि आज वह नाइट ड्यूटी पर थी. वह वहां से किसी तरह से पूछतापूछता सुधा के घर जा पहुंचा, पर वहां दरवाजे पर ताला लटका मिला. किसी पड़ोसी ने बताया कि वह अपनी बेटी के स्कूल गई हुई है.

मायूस हो कर रात को नर्सिंगहोम में सुधा से मिलने की सोच कर रवि सीधा अपने दफ्तर चला गया. आज उस का दिन बड़ी मुश्किल से कट रहा था. वह चाहता था कि किसी तरह से जल्दी से रात हो और वह सुधा से मिल कर उस से माफी मांग ले.

रात के 8 बजने वाले थे. सुधा के नर्सिंगहोम आने का समय हो चुका था, इसलिए तैयार हो कर रवि भी नर्सिंगहोम की ओर बढ़ चला था. मन में अपनी व सुधा की ओर से आतेजाते सवालों का जवाब ढूंढ़तेढूंढ़ते वह कब नर्सिंगहोम के गेट पर जा पहुंचा था, उसे पता ही नहीं चला.

रिसैप्शन पर पता चला कि सुधा प्राइवेट वार्ड के 4 नंबर कमरे में किसी मरीज की सेवा में लगी है. किसी तरह से इजाजत ले कर वह सीधा 4 नंबर कमरे में घुस गया, पर वहां का नजारा देख कर वह पलभर को ठिठक गया. सुधा एक नौजवान मरीज के अधनंगे शरीर को गीले तौलिए से पोंछ रही थी.

रवि को आगे बढ़ता देख उस ने उसे दरवाजे पर ही रुक जाने का इशारा किया. रवि दरवाजे पर ही ठिठक गया था.

मरीज का बदन पोंछने के बाद सुधा ने उसे दूसरे धुले हुए कपड़े पहनाए. उसे अपने हाथों से एक कप दूध पिलाया और कुछ बिसकुट भी तोड़तोड़ कर खिलाए. फिर वह उसे अपनी बांहों के सहारे से बिस्तर पर सुलाने की कोशिश करने लगी.

मरीज को नींद नहीं आते देख सुधा उस के सिर पर हाथ फेरते हुए व थपकी दे कर उसे सुलाने की कोशिश करने लगी थी. उस के ममता भरे बरताव से मरीज को थोड़ी ही देर में नींद आ गई थी.

जैसे ही मरीज को नींद आई, रवि लपक कर सुधा के करीब आ गया था. उस ने सुधा को अपनी बांहों में भरने की कोशिश की, पर सुधा छिटक कर उस से दूर हो गई.

‘‘अरे, यह आप क्या कर रहे हैं. आप वही हैं न, जो कुछ दिन पहले यहां एक सड़क हादसे के बाद दाखिल हुए थे. अब आप को क्या दिक्कत है?’ सुधा ने उस से पूछा.

‘‘अरे, यह क्या कह रही हो तुम? ऐसे अजनबियों जैसी बातें क्यों कर रही हो? मैं तुम्हारा वही रवि हूं जिस ने तुम्हारे प्यार के बदले में तुम से भी उतना ही प्यार किया था और हम जल्दी ही शादी करने वाले थे,’’ कहता हुआ रवि उस के करीब आ गया.

रवि की बातों के जवाब में सुधा ने कहा, ‘‘मिस्टर आप रवि हैं या कवि, आप की बातें मेरी सम  झ से परे हैं. आप किस प्यार और किस शादी की बात कर रहे हैं, मैं सम  झ नहीं पा रही हूं.

‘‘देखिए, मैं एक नर्स हूं. मेरा काम यहां मरीजों की सेवा करना है. भला इस में प्यार और शादी कहां से आ गई.’’

‘‘तो क्या आप ने मुझे भी महज एक मरीज के अलावा कुछ नहीं सम  झा?’’ रवि बौखलाते हुए बोला.

सुधा ने अपने मरीज की ओर देखते हुए रवि को धीरेधीरे बोलने का इशारा किया और उसे खींचते हुए दरवाजे तक ले गई. वह उस को सम  झाते हुए बोली, ‘‘आप को गलतफहमी हुई है. हम यहां प्यार करने नहीं बल्कि अपने मरीजों की सेवा करने आते हैं.

‘‘अगर हम भी प्यारव्यार और शादीवादी के चक्कर में पड़ने लगे तो हमारे घर में हर दिन एक नया पति दिखाई देगा.

‘‘प्लीज, आप यहां से जाइए और मेरे मरीज को चैन से सोने दीजिए.’’

इस बीच मरीज ने अपनी आंखें खोल लीं. उस ने सुधा से पानी पीने का इशारा किया. सुधा तुरंत जग में से पानी निकाल कर चम्मच से उसे पिलाने बैठ गई. पानी पिलातेपिलाते वह मरीज के सिर को भी सहलाए जा रही थी.

रवि सुधा से अपनी जिस बात के लिए माफी मांगने आया था, वह बात उस के दिल में ही रह गई. उसे तसल्ली हुई कि सुधा के मन में उस के प्रति ऐसी कोई बात कभी आई ही नहीं थी, जिसे सोच कर उस ने दूर तक के सपने देख लिए थे.

सुधा रवि से ‘सौरी’ कहते हुए अपने मरीज की तीमारदारी में लग गई. रवि ने कमरे से बाहर निकलते हुए एक नजर सुधा व उस के मरीज पर डाली. मरीज को लगी हुई पेशाब की नली शायद निकल गई थी, इसलिए वह कराह रहा था. सुधा उसे प्यार से पुचकारते हुए फिर से नली को ठीक करने में लग गई थी.

सुधा की बातों और आज के उस के बरताव ने रवि के मन का सारा बो  झ हलका कर दिया था.

आज रात रवि को जम कर नींद आई थी. एक हफ्ते तक दफ्तर के कामों में बिजी रहने के बाद रवि दोबारा अपने गांव जाने वाली रेल में सवार था. उस की रेल भी उसे गुंजा तक जल्दी पहुंचाने के लिए पटरियों पर सरपट दौड़ लगाती हुई आगे बढ़ी चली जा रही थी. जो गांव उसे कल तक काटता था और जिस की ओर वह मुड़ कर भी नहीं देखना चाहता था, आज उस के आगोश में समाने को बेताब था.

तृप्ति : क्या था काली डायरी का राज

मैं सुकु बाई, आज 4 महीने की छुट्टी के बाद काम पर वापस गई, तो दीदी ने दरवाजा खोला. उन्होंने मुझे अंदर बुलाया और हालचाल पूछा. मेरे घर वालों की खैरखबर ली.

मैं इस घर में 15 साल से काम कर रही हूं. पिछले दिनों मैं अपने गांव चली गई थी. बेटे को बड़े स्कूल में दाखिल कराना था.

जब से मेरे पति की मौत हुई है, तब से मेरे बेटे को देखने वाला मेरे अलावा और कोई नहीं है. एक दूर की बूढ़ी ताई हैं, जिन के पास उसे छोड़ा हुआ है. ताई को खर्चापानी भेजती रहती हूं.

पर इस बार मुझे गांव जाना पड़ा, क्योंकि बेटे का स्कूल बदली कराना ताई के बस की बात नहीं थी. रोजीरोटी का सवाल है, जिस की वजह से मुझे गांव से कोसों दूर यहां दिल्ली में रहना पड़ता है, वरना किस का मन नहीं करता अपने बच्चों के बीच रहने का.

दीदी और भैया बहुत अच्छे लोग हैं खासतौर पर भैया. बहुत बड़ा दिल है भैया का. मुझे जब कभी जरूरत पड़ती है, तो मैं भैया से ही पैसे मांगती हूं. कभी मना नहीं करते और न ही कभी पैसे लौटाने की बात करते हैं.

भैया हंस कर कहते हैं, ‘दे देना सुकु बाई, जब तुम्हारा बेटा बड़ा हो जाए और कमाने लगे तब लौटा देना.’

दीदी ने बताया कि मेरे पीछे जो काम वाली रखी थी, वह बहुत ही चालू काम करती थी. फिर वे मुझे काम बता कर किसी जरूरी मीटिंग के लिए बाहर चली गईं. फिलहाल मेरे सिवा घर में कोई और नहीं था. दीदी का एकलौता बेटा बाहर पढ़ता है.

मैं ने घर में झाड़ूपोंछा किया, रसोई साफ की, रात के लिए खाना बनाया और फिर कमरों की झाड़पोंछ शुरू कर दी. घर वाकई बहुत गंदा पड़ा था.

काम करतेकरते मैं थक गई. सोचा कि थोड़ा सुस्ता लिया जाए. अपने घर में वैसे भी कौन मेरा इंतजार कर रहा था. खाली पड़ा था.

मगर फिर आसपास देखा तो मन हुआ कि बैठेबैठे क्या करना, थोड़ी और धूलमिट्टी झाड़ ली जाए. मैं झाड़न लेकर बैडरूम में घुसी. बिस्तर पर बहुत सी किताबें बिखरी पड़ी थीं. न जाने कौन से दफ्तर में दीदी काम करती थीं कि जब देखो लिखती ही रहती थीं. मैं बिखरी किताबें समेटने लगी.

मैं ने देखा कि बिस्तर के बीचोंबीच कंबल के नीचे नंगी औरतों की तसवीरों वाली एक मैगजीन पड़ी थी. जाने दीदी और भैया में से कौन इसे देखता होगा. मैं ने उसे उठा कर तकिए के नीचे रख दिया.

एक काली डायरी भी मिली, जिस पर दीदी का नाम था. उस के पन्ने पलटे तो पाया कि उस में बहुत से किस्सेकहानियां लिखे हुए हैं.

मैं 8वीं पास हूं. हिंदी पढ़ लेती हूं. दीदी की डायरी पढ़ना नहीं चाहती थी, मगर उस में कुछ ऐसा लिखा था, जिस ने मुझे उन की डायरी पढ़ने पर मजबूर कर दिया :

मैं और मेरे पति प्रताप बहुत अच्छे दोस्त बन चुके हैं. हमारी उम्र 50 को टापने वाली है. मुझे सैक्स में ज्यादा दिलचस्पी नहीं है, मगर प्रताप को है. इन की तो यह हालत है कि इस उम्र में भी अगर किसी कमसिन लड़की को देख लें, तो इन की नजर बदल जाती है. मुझ से भी 3 दिन से ज्यादा दूर नहीं रह पाते. और जब कभी मूड में आते हैं, तो देर रात तक सोने नहीं देते और फिर उस के बाद 2 दिन तक शरीर में दर्द रहता है…

मुझे ऐसी निजी बातें पढ़ कर अजीब सा लगा. क्या एक विधवा को यह सब करना ठीक था? हरगिज नहीं. मैं उठ कर दरवाजे की तरफ गई, मगर वहां कोई नहीं था. मैं वापस बैडरूम में आ कर बैठ गई और डायरी खोल ली :

पिछली दफा जब मेरा दिल किया कि इन के साथ बैठ कर प्यारभरी बातें की जाएं, इन के दिल में कोई नया ही खयाल घूम रहा था. कहने लगे कि चलो इस बार कुछ अलग करते हैं.

‘क्या?’

‘किसी लड़की को बुलाते हैं.’

‘कहां से आएगी लड़की?’

‘अरे, इस की फिक्र तुम मत करो. यह लो उस का नंबर और मिलाओ.’

मुझे हलकी सी जलन हुई कि भला यह क्या बात हुई. मेरे पल किसी और को? गलत बात है यह. फिर मैं ने सोचा कि चलो छोड़ो. इन को सैक्स की तलब रहती है और मेरी डायरी को कहानियों की. किसी को बदला नहीं जा सकता. पति जैसा है उसे वैसे ही स्वीकारने में गृहस्थ जीवन की खुशी है.

जब मुझे पहली बार शक हुआ था कि प्रताप शादी के बाद भी बाहर मुंह मारते हैं, मुझे बहुत बुरा लगा था. फिर मैं ने सोचा था, बहुत सोचा और इस निचोड़ पर पहुंची कि इन का अगर एक यह ऐब नजरअंदाज कर दिया जाए, तो इन में और कोई कमी नहीं. दरियादिल हैं, पैसा कमाना खूब जानते हैं, एक अच्छे बेटे, बाप और भाई हैं. बस, एक अच्छे पति नहीं हैं. अगर मैं इन्हें ऐसे ही स्वीकार लूं, तो मेरे अहम को दबना सीखना होगा और बाकी का निजाम जैसा है वैसा ही दिखेगा और चलता रहेगा.

मुझे यह फायदा होगा कि मैं जान पाऊंगी कि अपना अहम खत्म करने के बाद जो सुनहरा मंजर है, जिस के बारे में धर्मग्रंथों में बारबार बोला गया है, आखिर क्या चीज है. फिर आखिर में तो हर औरत एक मां ही है, तो अपने पति के लिए क्यों नहीं.

हर 4-6 महीनों में दोस्तों के साथ घूमने जाना. कभी जकार्ता, कभी चीन, कभी मलयेशिया, कभी सिंगापुर… और कुछ नहीं इन के औरतबाजी करने के रास्ते थे. एक बार तो अपने दोस्तों के साथ भारत में ही किसी शहर में घूमने निकल गए, यह कह कर कि इन का दोस्त और उस के 2 रिश्तेदार ही साथ में होंगे.

सफर के दौरान जब मैं ने हालचाल पूछने के लिए फोन किया, तो पीछे से किसी लड़की के हंसने की आवाजें आ रही थीं. जब सफर से वापस आए तो 2 दिन तक रंगीले मिजाज में रहे. बिस्तर में भी नईनई हरकतें आजमाते रहे.

बीवी हूं, समझ गई, इन के बिना कुछ कहे. बहुत सोचविचार किया और हार कर इस नतीजे पर पहुंची कि मुझे इन का दोस्त बन कर जीना सीखना होगा. तलाक मुझ अनाथ के बस की बात नहीं और न ही कलहक्लेश करना. ये जैसे थे, इन्हें वैसे ही स्वीकारना पड़ा.

जब इन्होंने मुझे लड़की को फोन कर के बुलाने को कहा, तो मैं ने सोचा कि चलो देखते हैं, अपने पति को किसी दूसरी औरत से प्यार करते अपनी आंखों से देखना कैसा लगता है. और कुछ नहीं तो एक नया अनुभव ही सही. मेरी डायरी की भूख भी तो बेअंत है. अपना पेट भरवाने के लिए मुझे कुछ भी दिखाने को तैयार हो गई.

मैं ने फोन कर के लड़की को बुला लिया. थोड़ी देर में घर की घंटी बजी. दरवाजा खोला तो एक 20-22 बरस की जवान लड़की को सामने खड़ा पाया. उस ने फूलों वाला लंबा सा फ्रौक पहना था, जिस में उस की उभरी हुई छाती मुश्किल से छिप रही थी. तीखे नैननक्श और गोरा रंग, पर्स कंधे पर लटका हुआ.

मैं ने उसे अंदर बुला लिया और उसे ले कर बैडरूम में आ गई. प्रताप तब बैडरूम में बैठे किसी से फोन पर बात कर रहे थे. हमें देखते ही वे फोन उठा कर घर से बाहर निकल गए. शायद कोई जरूरी बात करनी थी.

प्रताप कारोबार के आगे सैक्स को कुछ नहीं समझाते. सही भी है. पैसा उड़ाने से पहले कमाना जरूरी है.

मैं लड़की को ले कर पीछे आंगन में चली गई और वक्त बिताने के लिए उसे बातों में लगा लिया. मुझे सुनने का शौक था और उसे बोलने का. वह बहुत बोली. अपने किस्से सुनाने लगी. एक से एक बेहूदा और फूहड़. सारा समय बोलती रही.

उस की बातें बंद ही नहीं हो रही थीं. ग्राहकों की लंबीलंबी गाडि़यों में घूमना, मर्दों का उस के साथ वह सब करना जो वे अपनी बीवियों के साथ नहीं कर सकते, पार्टियों में जाम से जाम टकराना, महफिलों में नंगे नाचना उस के लिए आम बातें थीं.

उस ने बताया था, ‘अरे, एक पार्टी में तो मुझे 3-4 आदमियों ने इकट्ठा पकड़ लिया, एक यहां से शुरू हो गया और दूसरा वहां से. आप मानोगे नहीं कि 60-70 साल के बूढ़े भी मलाई लगा कर चाटते हैं.’

मैं ने पूछा कि कभी पुलिस से पाला नहीं पड़ता, तो वह बोली, ‘पड़ता है न. एक पुलिस ही है, जिस से बिना नागा पाला पड़ता रहता है. हफ्ता भी लेती है और रोब भी जमाती है. कई बार तो मुफ्त में ले कर चलती बनती है.’

एक बार पुलिस ने उसे और उस की 2 सहेलियों को पकड़ लिया और बुरी तरह पीटा. तीनों की साड़ियां एकदूसरे की साड़ी से बांध दीं. भागें तो कपड़े उतरें और न भागें तो डंडे पड़ें. बड़ी मुश्किल से वह समय कटा और आज तक जेहन से उस का खौफ नहीं निकला. बड़ा ही दर्दनाक हादसा था.

‘कभी कोई वहशी भी मिला है? तुम्हें तो कई तरह के लोग मिलते होंगे?’

उस ने बताया कि एक दफा उसे 2 आदमी ले गए थे. दोनों के दोनों लंबेचौड़े मुस्टंडे जिन्हें देख कर वह घबरा गई. फिर उस ने अपनेआप को संभाला और कहा कि 1-1 कर के आएं. मगर वे नहीं माने.

दोनों एकसाथ ही उस पर टूट पड़े और ऐसे लूटा कि उस की सुधबुध खो गई. तृप्ति होने के बाद उन्होंने उसे उस की बस्ती में छोड़ दिया.

‘कैसी बस्ती?’

‘हिजड़ों की बस्ती. वहीं तो रहती हूं मैं. मैं हिजड़ा हूं.’

‘पर, तुम्हारा शरीर?’

‘यह तो सर्जरी का कमाल है.’

मैं ने मन ही मन सोचा कि यह सही रही. प्रताप का यह शौक भी मुझे सहना होगा.

थोड़ी देर बाद हम घर के अंदर वापस आ गए. प्रताप की फोन पर हो रही बात खत्म हो चुकी थी और वे बेसब्री से हमारा इंतजार कर रहे थे. एकदम तैयार बैठे थे.

हमें देखते ही वे हमें बैडरूम के अंदर ले गए और दरवाजा बंद कर लिया. मैं पास ही में बैठ गई.

प्रताप ने एक बड़ा जाम बना कर लड़की को दिया और फिर अपने लिए भी ठीक वैसा ही पैग बनाया. मुझे देने लगे तो मैं ने मना कर दिया कि मेरा मूड नहीं है.

शराब का सुरूर चढ़ते ही प्रताप उस लड़की से चिपट गए और एक घंटा वे उस के जिस्म से खेलते रहे. मैं चुपचाप लिखती रही. फारिग हो कर उन्होंने लड़की को पैसे दे कर भेज दिया और मेरे पास आ कर एक बच्चे की तरह बेफिक्र सो गए.

अगले दिन मैं ने प्रताप को चाय का प्याला देते हुए उठाया और लड़की का सच बताया.

‘मुझे क्या बता रही हो शारदा, मैं ने ही तो उस की सर्जरी करवाई थी…’

तभी घर के बाहर गाड़ी रुकने की आवाज आई. लगता था दीदी वापस आ गई थीं. मैं ने जल्द ही डायरी वापस रखी और उठ कर अपनी आंखें धोईं.

‘इन बड़े लोगों में क्याक्या चलता रहता है,’ सोचते हुए मैं दरवाजा खोलने चल दी.

औलाद की चाहत : कैसे भरी सायरा की कोख

उस्मान की शादी को 5 साल हो गए थे, मगर अभी भी उसे बाप होने का सुख नहीं मिला था. उस्मान की बीवी सायरा की गोद नहीं भरी तो उस्मान के अब्बा बेचैन रहने लगे. उन्हें यह चिंता सताने लगी कि वे पोते या पोती का मुंह देखे बिना ही इस दुनिया से चले जाएंगे.

तभी किसी ने उन्हें बताया कि पास वाले गांव में एक पहुंचे हुए मुल्लाजी आए हुए हैं. वे जिस किसी को भी तावीज देते हैं, उस की हर मुराद पूरी हो जाती है.

इतना सुनना था कि उस्मान के अब्बा अगले ही दिन उन मुल्लाजी के पास पहुंच गए.

मुल्लाजी ने कहा, ‘‘मैं घर आ कर पहले आप की बहू को देखूंगा कि उस पर किस का साया है. और हां, साए को दूर करने में खर्चा भी आएगा.’’

‘‘आप पैसे की परवाह मत करो, बस मेरे बेटे और बहू को औलाद का सुख दे दो.’’

उस्मान के अब्बा उसी वक्त मुल्लाजी को अपने साथ ले आए और उन्हें बैठक में बिठा कर उन्होंने उस्मान व सायरा को बताया, ‘‘इन मुल्लाजी के तावीज से तुम्हारी औलाद की चाहत जरूर पूरी होगी, बस तुम दोनों को इन की हर बात माननी पड़ेगी.’’

थोड़ी देर के बाद उस्मान की बीवी सायरा को बैठक में बुलाया गया. जैसे ही मुल्लाजी की नजर सायरा पर पड़ी, वे उसे पाने के लिए बेताब हो गए. हों भी क्यों न, सायरा थी ही इतनी खूबसूरत. सुर्ख गाल, गुलाबी होंठ, गदराया बदन जिसे देखते ही कोई भी मदहोश हो जाए.

मुल्लाजी किसी भी कीमत पर सायरा को अपनी बांहों में भरना चाहते थे, इसलिए उन्होंने अपनी चाल चली और उस के मखमली पेट पर हाथ रखते हुए उस्मान के अब्बा से कहा, ‘‘तुम्हारे एक दुश्मन ने जादूटोने से इस की

गोद बांध रखी है. जब तक इस को खोला नहीं जाएगा, तब तक यह मां नहीं बन पाएगी.

‘‘इस काम में 3 दिन लगेंगे और यह काम रात को 12 बजे अकेले में बंद कमरे में करना पड़ेगा और इस में काफी पैसा भी लगेगा, क्योंकि जाफरान से 3 तावीज बनाने पड़ेंगे.’’

उस्मान और सायरा को तो औलाद की इतनी ज्यादा चाहत थी कि उन्होंने फौरन हां कर दी. उस्मान के अब्बा ने 50,000 रुपए उस ढोंगी मुल्लाजी को दे दिए. उन्होंने उन के घर में से एक कमरा ले लिया और कहा, ‘‘जब तक पूरा इलाज न हो, तब तक कोई भी कमरे में मेरी बिना इजाजत के अंदर न आए.’’

मुल्लाजी शाम ढलते ही कमरे के अंदर लुबान जला कर कुछ बुदबुदाने लगे. कभी उन की आवाज तेज हो जाती, तो कभी शांत.

मुल्लाजी कभी किसी से बात करने का नाटक करते और चिल्लाते, ‘‘तू इसे छोड़ कर चला जा, वरना तु?ो यहीं भस्म कर दूंगा. क्यों इस बच्ची की कोख पर बैठा है? क्यों इसे मां नहीं बनने दे रहा है? इस मासूम ने तेरा क्या बिगाड़ा है?’’

इस तरह मुल्लाजी ने कई घंटे तक यह नाटक जारी रखा और रात ढलते ही उन्होंने सायरा को अपने कमरे में बुलाया और उसे एक तावीज देते हुए बोले, ‘‘इसे अपनी शर्मगाह में रख लो और चुपचाप लेट जाओ. एक घंटे तक बिलकुल भी हिलनाडुलना नहीं.

‘‘और हां, इस एक घंटे के लिए अपने बदन पर कोई भी सिला हुआ कपड़ा मत पहनना. बिना सिला हुआ कपड़ा जैसे चादर वगैरह से अपना बदन ढक लो.’’

सायरा तो औलाद की चाहत में अंधी हो चुकी थी. वह उस पाखंडी मुल्लाजी की हवस भरी नजरों को भांप नहीं पा रही थी. सायरा ही क्या, उस का शौहर और ससुर भी औलाद की चाहत में कुछ नहीं सम?ा पा रहे थे, इसलिए उन्होंने सायरा को उस पाखंडी मुल्लाजी के पास अकेले बंद कमरे में भेज दिया था. उन की आंखों पर अंधविश्वास की पट्टी जो बंधी हुई थी.

उधर बंद कमरे में सायरा ने अपने बदन से सारे कपड़े अलग किए और चादर ओढ़ कर एक चटाई पर लेट गई.

उस पाखंडी मुल्लाजी ने सायरा के पास आ कर अगरबत्ती जलाई, पूरे कमरे को खुशबू से महकाया और कुछ बुदबुदाने लगे. फिर वे सायरा से बोले, ‘‘अपनी आंखें बंद कर के चुपचाप लेटी रहो और कुछ भी बोलने की कोशिश

मत करना, वरना सारा कियाधरा बेकार हो जाएगा, फिर तुम कभी भी मां नहीं बन पाओगी.’’

सायरा चुपचाप लेटी थी और पाखंडी मुल्लाजी तावीज ले कर उस के होंठों से रगड़ते हुए कुछ बुदबुदाने का नाटक करते हुए धीरेधीरे उस के बदन को सहलाने लगे. उन की इस हरकत पर सायरा हैरान थी, पर औलाद पाने की चाहत में वह कुछ बोलने की हिम्मत नहीं कर पा रही थी, जिस का वे पाखंडी मुल्लाजी फायदा उठा रहे थे.

मुल्लाजी सायरा का बदन सहलाते रहे और उस तावीज को उस की शर्मगाह के पास ले जा कर छेड़छाड़ करने लगे. जल्द ही सायरा की जवानी उफान पर आ गई और वह मुल्लाजी की इस हरकत से मदहोश होने लगी.

सायरा की हवस जाग उठी थी. पाखंडी मुल्लाजी की इस हरकत ने उस के अंदर जोश भर दिया और इस का फायदा उठा कर उस मुल्लाजी ने उस के साथ खूब मजा किया. औलाद पाने की चाहत में सायरा उन के सामने पूरी तरह से बिछ चुकी थी.

इसी तरह उन पाखंडी मुल्लाजी ने 3 दिन तक सायरा की देह के मजे लिए और उस के जिस्म से खूब खेला. 3 दिन बाद उन्होंने उस्मान और उस के अब्बू से कहा, ‘‘जल्दी ही तुम्हें खुशखबरी मिल जाएगी,’’ और वहां से चले गए.

एक हफ्ता गुजर गया, पर सायरा को उम्मीद की कोई किरण नजर न आई. वह सम?ा चुकी थी कि उन पाखंडी मुल्लाजी ने दौलत के साथसाथ उस की इज्जत भी लूट ली है.

उस्मान और उस के अब्बू हैरान थे कि उन की बहू अभी भी पेट से नहीं हुई. उन्होंने पास के गांव जा कर उन मुल्लाजी से मिलना चाहा, तो पता चला कि वे तो यहां एक परिवार से लाखों रुपए ले कर भाग गए हैं.

अब उस्मान और उस के अब्बा को अपने ऊपर पछतावा हो रहा था कि वे क्यों पाखंडी मुल्लाजी की बातों में आ गए. बाद में उन्होंने एक अस्पताल में जा कर एक लेडी डाक्टर से सायरा का चैकअप कराया, तो उन्होंने बताया कि सायरा की बच्चेदानी में सूजन है,

जिस की वजह से वह मां नहीं बन पा रही है. 2-3 महीने के इलाज से सब ठीक हो जाएगा.

और हुआ भी यही. 3 महीने के इलाज के बाद सायरा को बच्चा ठहर गया और वक्त पूरा होने के बाद उस ने एक प्यारी सी बेटी को जन्म दिया.

इस तरह न जाने कितनी सायरा औलाद की चाहत में अपनी इज्जत गंवा बैठती हैं और न जाने कितने उस्मान दौलत के साथसाथ अपने घर की आबरू भी पाखंडी मुल्लाओं को सौंप देते हैं.

पति जो ठहरे: शादी के बाद कैसा था सलोनी का हाल

सलोनी की शादी के पीछे सब हाथ धो कर पड़े थे. कुछ तो अंधविश्वासी टाइप के लोग मुफ्त की सलाह भी देते,” देखो, शादी समय से होनी चाहिए नहीं तो बड़ी मुसीबत होगी और अच्छा पति भी नहीं मिलेगा. इसलिए 16 सोमवार का व्रत करो, वैभव लक्ष्मी का 11 शुक्रवार भी, शादी आराम से हो जाएगी…”

सलोनी ने सारे व्रतउपवास कर लिए. अब इंतजार था कि कोई राजकुमार आएगा और उसे घोड़े पर बैठा कर ले जाएगा और जिंदगी हो जाएगी सपने जैसी. प्रतीक्षा को विराम लगा और आ गए राजकुमार साहब, मगर घोड़ा नहीं कार पर चढ़ कर.

अब शादी के पहले का हाल भी बताना जरूरी है…

सगाई के बाद ही सलोनी को यह राजकुमार साहब लगे फोन करने. घंटों बतियाते, चिट्ठी भी लिखतेलिखाते. सलोनी के तो पौ बारह, पढ़ालिखा बांका जवान जो मिल गया था. खैर, शादी धूमधाम से हुई. सलोनी के पैर जमीन पर नहीं पङ रहे थे.

राजकुमार साहब भी शुरुआत में हीरो की माफिक रोमांटिक थे पर पति बनते ही दिमाग चढ़ गया सातवें आसमान पर,”मैं पति हूं…” सलोनी भी हक्कीबक्की कि इन महानुभाव को हुआ क्या? अभी तक तो बड़े सलीके से हंसतेमुसकराते थे, लेकिन पति बनते ही नाकभौं सिकोड़ कर बैठ गए. प्रेम के महल में हुक्म की इंतहा…. यह बात कुछ हजम नहीं हुई पर शादी की है तो हजम करना ही पड़ेगा. फिर तो सलोनी ने अपना पूरा हाजमा ठीक किया पर पति को यह कैसे बरदाश्त कि पत्नी का हाजमा सही हो रहा है, कुछ तो करना पड़ेगा वरना पति बनने का क्या फायदा?

“कपड़े क्यों नहीं फैलाए अभी तक?” पति महाशय ने हेकङी दिखाते हुए पूछा.

बेचारी सलोनी ने सहम कर कहा,”भूल गई थी.”

“कैसे भूल गईं? फेसबुक, व्हाट्सऐप, किताबें याद रहती हैं… यह कैसे भूल गईं?”

‘अब भूल गई तो भूल गई. भूल सुधार ली जाएगी,’ सलोनी मन ही मन बोली.

“कितनी बड़ी गलती है यह तो. अब जाओ, आइंदे से मेरा कोई काम मत करना, मैं खुद कर लूंगा,” पति महाशय ने ऐलान कर दिया.

‘ठीक है जनाब, कर लो… बहुत अच्छा. ऐसे भी मुझे कपड़े फैलाने पसंद नहीं,’ सलोनी ने मन में सोचा.

पति महाशय ने मुंह फुला लिया तो अब बात नहीं करेंगे. बात नहीं करेंगे तो वह भी कुछ घंटों नहीं बल्कि पूरे 3-4 दिनों तक. अब सलोनी का हाजमा कहां से ठीक हो, अब तो ऐसिडिटी होना ही है फिर सिरदर्द.

एक बार सलोनी पति महाशय के औफिस के टूअर पर साथ आई थी. पति महाशय ने रात को गैस्ट हाउस के कमरे में साबुन मांगा. सलोनी ने साबुनदानी पकड़ाई पर यह क्या, उस में तो पिद्दी सा साबुन का टुकड़ा था. पति महाशय का गुस्सा सातवें आसमान पर. फिर तो पूरे 1 हफ्ते बात नहीं की. औफिस के टूअर में घूमने आई सलोनी की घुमाई गैस्ट हाउस में ही रह गई, आखिर इतनी बड़ी भूल जो कर दी थी.

उस के बाद से सलोनी कभी साबुन ले जाना नहीं भूली. पति महाशय गर्व से सीना तान लिए कि सलोनी की इस गलती को उन्होंने सुधार दी. सलोनी ने भी सोचा कि पति के इस तरह मुंह फुलाने की गलती को सुधारा जाए पर पति कहां सुधरने वाले. उन का मुंह गुब्बारे जैसा फूला तो जल्दी पिचकेगा नहीं, आखिर पति जो ठहरे.

सलोनी एक बार घूमने गई थी बड़े शौक से. पति महाशय ने ऊंची एड़ी की सैंडिल खरीदी. सलोनी सैंडिल पहन कर ज्यों ही घूमने निकली कि ऊंची एड़ी की चप्पल गई टूट और पति महाशय गए रूठ. उस पर से ताना भी मार दिया,”कभी इतनी ऊंची एड़ी की चप्पलें पहनी नहीं तो खरीदी क्यों? अब चलो, बोरियाबिस्तर समेट वापस चलो. सलोनी हो गई हक्कीबक्की कि इतनी सी बात पर इतना बवाल? आखिर चप्पल ही है दूसरी ले लेंगे. पति महाशय का मुंह तिकोना हो गया तो सीधा होने में समय लगता है पर सलोनी को भी ऐसे आड़ेतिरछे सीधा करना खूब आता है. फिर तो “सौरी…” बोल कर मामला रफादफा किया.

कभीकभी पति महाशय का स्वर चाशनी में लिपटा होता है पर ऐसा बहुत कम ही होता है. एक बार बड़े प्यार से सलोनी को जन्मदिन पर घुमाने का वादा कर औफिस चले गए और लौटने पर सलोनी के तैयार होने में सिर्फ 5 मिनट की देरी पर बिफर पड़े. नाकभौं सिकोड़ कर ले गए मौल लेकिन मुंह से एक शब्द भी नहीं फूटा… सलोनी ने अपनी फूटी किस्मत को कोसा कि ऐसे नमूने पति मिले थे उसे.

सलोनी पति की प्रतीक्षा में थी कि पति टूअर से लौट कर आएंगे तो साथ में खाना खाएंगे. पति महाशय लौटे 11 बजे. जैसे ही सुना कि सलोनी ने खाना नहीं खाया तो बस जोर से डपट दिया और पूरी रात मुंह फुलाए लेटे रहे. सलोनी ने फिल्मों में कुछ और ही देखा था पर हकीकत तो कुछ और ही था.

वह दिन और आज का दिन सलोनी ने पति की प्रतीक्षा किए बगैर ही खाने का नियम बना लिया. अब भला कौन भूखे पेट को लात मारे और भूखे रह कर कौन से उसे लड्डू मिलने वाले थे.

कभीकभी भ्रम का घंटा मनुष्य को अपने लपेटे में ले ही लेता है. सलोनी को लगा कि पति महाशय का त्रिकोण अब सरलकोण में तब्दील होने लगा है पर भरम तो भरम ही होता है सच कहां होता है? सलोनी को प्रतीत हुआ कि उस का इकलौता पति भी सलोना हो गया है पर सूरत और सीरत में फर्क होता है न… सूरत से सलोना और सीरत… व्यंग्यबाण चला दिया,”आजकल बस पढ़तीलिखती ही रहती हो, घर का काम भी मन से कर लिया किया करो. नहीं तो कोई जरूरत नहीं करने की…”

सलोनी ने कुछ ऊंचे स्वर में कहा,”दिखता नहीं है कि मैं कितना काम करती हूं…” इतना कहना था कि पति जनाब ने फिर से मुंह फुला लिया. इस बार सलोनी ने भी ठान लिया कि वह पति को नहीं मनाएगी. पर हमेशा की तरह सलोनी ने ही मनाया.

सलोनी ने एक दिन अपनी माता से अपनी व्यथा कथा कह डाली,”मां, पापा तो ऐसे हैं नहीं?”

मां मुसकराईं,”बेटी, तुम्हारे पापा बहुत अच्छे हैं पर पति कैसे हैं उस का दुखड़ा अब तुम से क्या बताऊं…मेरी दुखती रग पर तुम ने हाथ रख दिया….दरअसल, यह पति नामक प्रजाति होती ही ऐसी है. इस प्रजाति में कोई भी जैविक विकास की अवधारणा लागू नहीं होती, इसलिए जो है जैसा है, इन्हीं से उलझे रहो. ये कभी सुलझने वाले नहीं. लड़के प्रेमी, भाई, मित्र, पिता सब रूप में अच्छे हैं पर पति बनते ही बौरा जाते हैं. सलोनी को वह गाना याद आने लगा, ‘भला है, बुरा है, जैसा भी है मेरा पति मेरा…’

“पर मां, स्त्री के अधिकारों का क्या और स्त्री विमर्श का प्रश्न?” सलोनी ने पूछा.

“सलोनी, तुम्हारा पति त्रिकोण ही सही पर तिकोना समोसा खिलाता है न…”

“हां, वह तो खिलाते हैं…”

“बस, फिर कोई बात नहीं, उस की बातें एक कान से सुनो और दूसरे से निकाल दो. अपना काम धीरेधीरे करते चलो…”

सलोनी ने एक ठंडी आह भरी और मुंह से निकला,”ओह, पति जो ठहरे.”

जूही: आसिफ के साथ मास्टर साहब ने क्या किया?

आसिफ दुकान बंद कर के जब अपने घर पहुंचा, तो ड्राइंगरूम के दरवाजे पर जा कर ठिठक गया. अंदर से उस के अम्मीअब्बा के बोलने की आवाजें आ रही थीं.

‘‘दुलहन तो मुश्किल से 16-17 साल की है और मास्टर साहब 40-50 के. बेचारी…’’

इतना सुनते ही आसिफ जल्दी से दीवार की आड़ में हो गया और सांस रोक कर सारी बातें बड़े ध्यान से सुनने लगा.

‘‘ऐसी शादी से तो बेहतर होता कि लड़की के मांबाप उसे जहर दे कर ही मार डालते,’’ आसिफ की अम्मी सलमा ने कहा.

‘‘तुम नहीं जानती सलमा, लड़की के मांबाप तो बचपन में ही चल बसे थे. गरीब मामामामी ने ही उस की परवरिश की है. 4-4 लड़कियां ब्याहने को हैं,’’ अब्बा ने बताया.

‘‘यह भी कोई बात हुई. कम से कम उस की जोड़ का लड़का तो ढूंढ़ लेते.

‘‘इतनी हसीन और कमसिन लड़की को इस बूढ़े के पल्ले बांधने की क्या जरूरत आ पड़ी थी, जिस के पहले ही 4-4 बच्चे हैं.

‘‘हाय, मुझे तो उस की जवानी पर तरस आ रहा है. कैसे देख रही थी वह मेरी तरफ. इस समय उस पर क्या बीत रही होगी,’’ अम्मी ने कहा.

आसिफ इस से आगे कुछ और सुनने की हिम्मत नहीं जुटा पाया. वह धीरे से अपने कमरे में जा कर कुरसी पर बैठ गया.

आसिफ आंखें मूंद कर सोने लगा, ‘क्या वाकई वह 16-17 साल की है? क्या सचमुच वह हसीन है? अगर वह खूबसूरत लगती होगी तो क्या मास्टर साहब की कमजोर आंखें उस के हुस्न की चमक बरदाश्त कर पाएंगी? आज की रात क्या वह… क्या मास्टर साहब…’ यह सोचतेसोचते उस का सिर चकराने लगा और वह कुरसी से उठ कर कमरे में टहलने लगा.

थोड़ी देर बाद आसिफ की अम्मी खाना रख गईं, मगर उस से खाया न गया. बड़ी मुश्किल से वह थोड़ा सा पानी पी कर बिस्तर पर लेट गया, पर उसे नींद भी नहीं आई. रातभर करवटें बदलते हुए वह न जाने क्याक्या सोचता रहा.

सुबह हुई तो आसिफ मुंह में दातुन दबाए छत पर चढ़ गया और बेकरारी से टहलटहल कर मास्टर साहब के आंगन में झांकने लगा. कुछ ही देर में आंगन में एक परी दिखाई दी.

उसे देख कर आसिफ अपने होशोहवास खो बैठा. फिर कुछ संभलने के बाद उस की खूबसूरती को एकटक देखने लगा. परी को भी लगा कि कोई उसे देख रहा है. उस ने निगाहें ऊपर उठाईं तो आसिफ को देख कर वह शरमा गई और छिप गई.

लेकिन आसिफ उस का मासूम चेहरा आंखों में लिए देर तक उस के खयालों में डूबा रहा. उस की धड़कनें तेज हो गई थीं. दिल में नई चाहत सी उमड़ पड़ी थी. वह फिर उस परी को देखना चाहता था, पर वह नजर न आई.

इस के बाद आसिफ रोज सुबहसुबह मुंह में दातुन दबाए छत पर चढ़ जाता. परी आंगन में आती. उस की निगाह आसिफ की निगाह से टकराती. फिर वह शरमा कर छिप जाती.

लेकिन एक दिन आसिफ को देख कर उस की निगाह झुकी नहीं. वह उसे देखती रही. आसिफ भी उसे देखता रहा. फिर उन के चेहरे पर मुसकराहटें फूटने लगीं और बाद में तो उन में इशारेबाजी भी होने लगी.

अब उन दोनों के बीच केवल बातें होनी बाकी थीं. पर इस के लिए आसिफ को ज्यादा इंतजार नहीं करना पड़ा.

मास्टर साहब सुबहसवेरे घर से निकलते थे तो स्कूल से शाम को ही लौटते थे. उन के बच्चे भी स्कूल चले जाते थे. घर में केवल मास्टर साहब की अंधीबहरी मां रह जाती थीं.

एक दिन उस परी का इशारा पा कर आसिफ नजर बचा कर उन के घर में घुस गया. वह उसे बड़े प्यार से अपने कमरे में ले गई और पलंग पर बैठने का इशारा कर के खुद भी पास बैठ गई.

थोड़ी घबराहट के साथ उन में बातचीत शुरू हुई. उस ने अपना नाम जूही बताया. आसिफ ने भी उसे अपना नाम बताया. फिर दोनों ने यह जाहिर किया कि वे एकदूसरे पर दिलोजान से मरते हैं.

आसिफ ने जूही के हाथों पर अपना हाथ रख दिया. वह सिहर उठी. उस पर नशा सा छाने लगा. आसिफ उस के जिस्म पर हाथ फेरने लगा. वह खामोश रही और खुद को आसिफ के हवाले करती चली गई.

कुछ देर बाद जब वे दोनों एकदूसरे से अलग हुए तो जूही अपना दुखड़ा ले कर बैठ गई. ऐसा दुख जिस का आसिफ को पहले से अंदाजा था. लेकिन उस के मुंह से सुन कर आसिफ को पूरा यकीन हो गया. इस से उस का हौसला और भी बढ़ गया.

वह जूही को बांहों में भरते हुए बोला, ‘‘अब मैं तुम्हें कभी दुखी नहीं होने दूंगा.’’

उस के बाद तो उन के इस खेल का सिलसिला सा चल पड़ा. इस चक्कर में आसिफ अब सुबह के बजाय दोपहर

को दुकान पर जाने लगा. वह रोज सुबह 10 बजे तक मास्टर साहब और उन के बच्चों के स्कूल जाने का इंतजार करता. जब वे चले जाते तो जूही का इशारा पा कर वह उस के पास पहुंच जाता.

एक दिन वह मास्टर साहब के बैडरूम में पलंग पर लेट कर रेडियो पर गाने सुन रहा था. जूही उस के लिए रसोईघर में चाय बना रही थी. दरवाजा खुला हुआ था, जबकि रोज वह अंदर से बंद कर देती थी.

अचानक मास्टर साहब आ गए. उन का कोई जरूरी कागज छूट गया था.

आसिफ को अपने पलंग पर आराम से पसरा देख मास्टर साहब के तनबदन में आग लग गई, पर उन्होंने सब्र से काम लिया और फाइल से कागज निकाल कर चुपचाप रसोईघर में चले गए.

‘‘आसिफ यहां क्या कर रहा है?’’ उन्होंने जूही से पूछा.

अचानक मास्टर साहब की आवाज सुन कर जूही का पूरा जिस्म कांप गया और चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं. लेकिन जल्दी ही वह संभलते हुए बोली, ‘‘जी, कुछ नहीं. जरा रेडियो का तार टूट गया था. मैं ने ही उसे बुलाया है.’’

मास्टर साहब फिर कुछ न बोले और चुपचाप घर से बाहर निकल गए.

मास्टर साहब के बाहर जाने के बाद ही जूही की जान में जान आई. वह चाय छोड़ कर कमरे में आ गई. आसिफ अभी तक पलंग पर सहमा हुआ बैठा था.

आसिफ ने कांपती आवाज में पूछा, ‘‘वे गए क्या…?’’

‘‘हां,’’ जूही ने कहा.

‘‘दरवाजा बंद नहीं किया था क्या?’’ आसिफ ने पूछा.

‘‘ध्यान नहीं रहा,’’ जूही बोली.

‘‘अच्छा हुआ कि हम…’’ वह एक गहरी सांस ले कर बोला.

‘‘लगता है, उन्हें शक हो गया है,’’ जूही चिंता में डूबते हुए बोली.

‘‘कुछ नहीं होगा…’’ आसिफ ने उस का कंधा दबाते हुए कहा, ‘‘अच्छा, अब मुझे चलना चाहिए,’’ इतना कह कर वह दुकान पर चला गया.

उस के बाद उन्होंने कुछ दिनों तक मिलने से परहेज किया. जब वे मास्टर साहब की तरफ से पूरी तरह बेफिक्र हो गए, तो यह खेल फिर से

चल पड़ा और हफ्तोंमहीनों नहीं, बल्कि सालों तक चलता रहा. उस दौरान जूही 2 बच्चों की मां भी बन गई.

एक दिन मास्टर साहब काफी गुस्से में घर में दाखिल हुए. किसी ने जूही के खिलाफ उन के कान भर दिए थे.

जूही को देखते ही मास्टर साहब उस पर बरस पड़े, ‘‘क्या समझती हो अपनेआप को. जो तुम कर रही हो, उस का मुझे पता नहीं है. आज के बाद अगर आसिफ यहां आया तो उसे जिंदा न छोड़ूंगा.’’

यह सुन कर जूही डर गई और कुछ भी नहीं बोली. फिर मास्टर साहब गुस्से में आसिफ के अब्बा के पास जा कर चिल्लाने लगे, ‘‘अपने लड़के को समझा दीजिए, मेरी गैरमौजूदगी में वह मेरे घर में घुसा रहता है. आज के बाद उसे वहां देख लिया तो गोली मरवा दूंगा.’’

आसिफ के अब्बा निहायत ही शरीफ इनसान थे, इसलिए उन्होंने अपने बेटे को खूब डांटाफटकारा. इस का नतीजा यह हुआ कि एक दिन आसिफ ने मास्टर साहब को रास्ते में रोक लिया.

‘‘अब्बा से क्या कहा तुम ने? मुझे गोली मरवाओगे? तुम्हारी खोपड़ी उड़ा दूंगा, अगर उन से कुछ कहा तो,’’ आसिफ ने मास्टर साहब का गरीबान पकड़ कर धमकी दी.

उस के बाद न तो मास्टर साहब ने आसिफ को गोली मरवाई और न ही आसिफ ने मास्टर साहब की खोपड़ी उड़ाई.

धीरेधीरे बात पुरानी हो गई. जिस्मों का खेल बंद हो गया. लेकिन आंखों का खेल जारी रहा और आसिफ इंतजार करता रहा जूही के बुलावे का.

पर जूही ने उसे फिर कभी नहीं बुलाया. हां, उस ने एक खत जरूर आसिफ को भिजवा दिया जिस में लिखा था:

‘तुम तो जानते हो कि मैं अपनी किस मजबूरी के चलते इस अधेड़ आदमी से ब्याही गई हूं. अगर यह भी मुझे छोड़ देंगे तो फिर मुझे कौन अपनाएगा? अब मेरे बच्चे भी हैं, उन्हें कौन सहारा देगा? यह सब सोच कर डर सा लगता है. उम्मीद है, तुम मेरी मजबूरी को समझने की कोशिश करोगे.’

खत पढ़ने के बाद आसिफ ने दरवाजे पर खड़ेखड़े बड़ी बेबसी से जूही की तरफ देखा और भारी कदमों से दुकान की तरफ बढ़ गया.

ऐसे रिश्ते का यह खात्मा तो होना ही था. वह तो मास्टर साहब की भलमनसाहत थी कि जूही और आसिफ सहीसलामत रह गए.

बहू-बेटी का फर्क : बहू के नाम पर सास के क्यों बदले तेवर

जब से वे सपना की शादी कर के मुक्त हुईं तब से हर समय प्रसन्नचित्त दिखाई देती थीं. उन के चेहरे से हमेशा उल्लास टपकता रहता था. महरी से कोई गलती हो जाए, दूध वाला दूध में पानी अधिक मिला कर लाए अथवा झाडू पोंछे वाली देर से आए, सब माफ था. अब वे पहले की तरह उन पर बरसती नहीं थीं. जो भी घर में आता, उत्साह से उसे सुनाने बैठ जातीं कि उन्होंने कैसे सपना की शादी की, कितने अच्छे लोग मिल गए, लड़का बड़ा अफसर है, देखने में राजकुमार जैसा. फिर भी एक पैसा दहेज का नहीं लिया. ससुर तो कहते थे कि आप की बेटी ही लक्ष्मी है और क्या चाहिए हमें. आप की दया से घर में सब कुछ तो है, किसी बात की कमी नहीं. बस, सुंदर, सुसंस्कृत व सुशील बहू मिल गई, हमारे सारे अरमान पूरे हो गए.

शादी के बाद पहली बार जब बेटी ससुराल से आई तो कैसे हवा में उड़ी जा रही थी. वहां के सब हालचाल अपने घर वालों को सुनाती, कैसे उस की सास ने इतने दिनों पलंग से नीचे पांव ही नहीं धरने दिया. वह तो रानियों सी रही वहां. घर के कामों में हाथ लगाना तो दूर, वहां तो कभी मेहमान अधिक आ जाते तो सास दुलार से उसे भीतर भेजती हुई कहती, ‘‘बेचारी सुबह से पांव लगतेलगते थक गई, नातेरिश्तेदार क्या भागे जा रहे हैं कहीं. जा, बैठ कर आराम कर ले थोड़ी देर.’’ और उस की ननद अपनी भाभी को सहारा दे कर पलंग पर बैठा आती.

यह सब जब उन्होंने सुना तो फूली नहीं समाईं. कलेजा गज भर का हो गया. दिन भर चाव से रस लेले कर वे बेटी की ससुराल की बातें पड़ोसिनों को सुनाने से भी नहीं चूकतीं. उन की बातें सुन कर पड़ोसिन को ईर्ष्या होती. वे सपना की ससुराल वालों को लक्ष्य कर कहतीं, ‘‘कैसे लोग फंस गए इन के चक्कर में. एक पैसा भी दहेज नहीं देना पड़ा बेटी के विवाह में और ऐसा शानदार रोबीला वर मिल गया. ऊपर से ससुराल में इतना लाड़प्यार.’’

उस दिन अरुणा मिलने आईं तो वे उसी उत्साह से सब सुना रही थीं, ‘‘लो, जी, सपना को तो एम.ए. बीच में छोड़ने तक का अफसोस नहीं रहा. बहुत पढ़ालिखा खानदान है. कहते हैं, एम.ए. क्या, बाद में यहीं की यूनिवर्सिटी में पीएच.डी. भी करवा देंगे. पढ़नेलिखने में तो सपना हमेशा ही आगे रही है. अब ससुराल भी कद्र करने वाला मिल गया.’’

‘‘फिर क्या, सपना नौकरी करेगी, जो इतना पढ़ा रहे हैं?’’ अरुणा ने उन के उत्साह को थोड़ा कसने की कोशिश की.

‘‘नहीं जी, भला उन्हें क्या कमी है जो नौकरी करवाएंगे. घर की कोठी है.  हजारों रुपए कमाते हैं हमारे दामादजी,’’ उन्होंने सफाई दी.

‘‘तो सपना इतना पढ़लिख कर क्या करेगी?’’

‘‘बस, शौक. वे लोग आधुनिक विचारों के हैं न, इसलिए पता है आप को, सपना बताती है कि सासससुर और बहू एक टेबल पर बैठ कर खाना खाते हैं. रसोई में खटने के लिए तो नौकरचाकर हैं. और खानेपहनाने के ऐसे शौकीन हैं कि परदा तो दूर की बात है, मेरी सपना तो सिर भी नहीं ढकती ससुराल में.’’

‘‘अच्छा,’’ अरुणा ने आश्चर्य से कहा.

मगर शादी के महीने भर बाद लड़की ससुराल में सिर तक न ढके, यह बात उन के गले नहीं उतरी.

‘‘शादी के समय सपना तो कहती थी कि मेरे पास इतने ढेर सारे कपड़े हैं, तरहतरह के सलवार सूट, मैक्सी और गाउन, सब धरे रह जाएंगे. शादी के बाद तो साड़ी में गठरी बन कर रहना होगा. पर संयोग से ऐसे घर में गई है कि शादी से पहले बने सारे कपड़े काम में आ रहे हैं. उस के सासससुर को तो यह भी एतराज नहीं कि बाहर घूमने जाते समय भी चाहे…’’

‘‘लेकिन बहनजी, ये बातें क्या सासससुर कहेंगे. यह तो पढ़ीलिखी लड़की खुद सोचे कि आखिर कुंआरी और विवाहिता में कुछ तो फर्क है ही,’’ श्रीमती अरुणा से नहीं रहा गया.

उन्होंने सोचा कि शायद श्रीमती अरुणा को उन की पुत्री के सुख से जलन हो रही है, इसीलिए उन्होंने और रस ले कर कहना शुरू किया, ‘‘मैं तो डरती थी. मेरी सपना को शुरू से ही सुबह देर से उठने की आदत है, पराए घर में कैसे निभेगी. पर वहां तो वह सुबह बिस्तर पर ही चाय ले कर आराम से उठती है. फिर उठे भी किस लिए. स्वयं को कुछ काम तो करना नहीं पड़ता.’’

‘‘अब चलूंगी, बहनजी,’’ श्रीमती अरुणा उठतेउठते बोलीं, ‘‘अब तो आप अनुराग की भी शादी कर डालिए. डाक्टर हो ही गया है. फिर आप ने बेटी विदा कर दी. अब आप की सेवाटहल के लिए बहू आनी चाहिए. इस घर में भी तो कुछ रौनक होनी ही चाहिए,’’ कहतेकहते श्रीमती अरुणा के होंठों की मुसकान कुछ ज्यादा ही तीखी हो गई.

कुछ दिनों बाद सपना के पिता ने अपनी पत्नी को एक फोटो दिखाते हुए कहा, ‘‘देखोजी, कैसी है यह लड़की अपने अनुराग के लिए? एम.ए. पास है, रंग भी साफ है.’’

‘‘घरबार कैसा है?’’ उन्होंने लपक कर फोटो हाथ में लेते हुए पूछा.

‘‘घरबार से क्या करना है? खानदानी लोग हैं. और दहेज वगैरा हमें एक पैसे का नहीं चाहिए, यह मैं ने लिख दिया है उन्हें.’’

‘‘यह क्या बात हुई जी. आप ने अपनी तरफ से क्यों लिख दिया? हम ने क्या उसे डाक्टर बनाने में कुछ खर्च नहीं किया? और फिर वे जो देंगे, उन्हीं की बेटी की गृहस्थी के काम आएगा.’’

अनुराग भी आ कर बैठ गया था और अपने विवाह की बातों को मजे ले कर सुन रहा था. बोला, ‘‘मां, मुझे तो लड़की ऐसी चाहिए जो सोसाइटी में मेरे साथ इधरउधर जा सके. ससुराल की दौलत का क्या करना है?’’

‘‘बेशर्म, मांबाप के सामने ऐसी बातें करते तुझे शर्म नहीं आती. तुझे अपनी ही पड़ी है, हमारा क्या कुछ रिश्ता नहीं होगा उस से? हमें भी तो बहू चाहिए.’’

‘‘ठीक है, तो मैं लिख दूं उन्हें कि सगाई के लिए कोई दिन तय कर लें. लड़की दिल्ली में भैयाभाभी ने देख ही ली है और सब को बहुत पसंद आई है. फिर शक्लसूरत से ज्यादा तो पढ़ाई- लिखाई माने रखती है. वह अर्थशास्त्र में एम.ए. है.’’

उधर लड़की वालों को स्वीकृति भेजी गई. इधर वे शादी की तैयारी में जुट गईं. सामान की लिस्टें बनने लगीं.

अनुराग जो सपना के ससुराल की तारीफ के पुल बांधती अपनी मां की बातों से खीज जाता था, आज उन्हें सुनाने के लिए कहता, ‘‘देखो, मां, बेकार में इतनी सारी साड़ियां लाने की कोई जरूरत नहीं है, आखिर लड़की के पास शादी के पहले के कपड़े होंगे ही, वे बेकार में पड़े बक्सों में सड़ते रहें तो इस से क्या फायदा.’’

‘‘तो तू क्या अपनी बहू को कुंआरी छोकरियों के से कपड़े यहां पहनाएगा?’’ वह चिल्ला सी पड़ीं.

‘‘क्यों, जब जीजाजी सपना को पहना सकते हैं तो मैं नहीं पहना सकता?’’

वे मन मसोस कर रह गईं. इतने चाव से साड़ियां खरीद कर लाई थीं. सोचा था, सगाई पर ही लड़की वालों पर अच्छा प्रभाव पड़ गया तो वे बाद में अपनेआप थोड़ा ध्यान रखेंगे और हमारी हैसियत व मानसम्मान ऊंचा समझ कर ही सबकुछ करेंगे. मगर यहां तो बेटे ने सारी उम्मीदों पर ही पानी फेर दिया.

रात को सोने के लिए बिस्तर पर लेटीं तो कुछ उदास थीं. उन्हें करवटें बदलते देख कर पति बोले, ‘‘सुनोजी, अब घर के काम के लिए एक नौकर रख लो.’’

‘‘क्यों?’’ वह एकाएक चौंकीं.

‘‘हां, क्या पता, तुम्हारी बहू को भी सुबह 8 बजे बिस्तर पर चाय पी कर उठने की आदत हो तो घर का काम कौन करेगा?’’

वे सकपका गईं.

सुबह उठीं तो बेहद शांत और संतुष्ट थीं. पति से बोलीं, ‘‘तुम ने अच्छी तरह लिख दिया है न, जी, जैसी उन की बेटी वैसी ही हमारी. दानदहेज में एक पैसा भी देने की जरूरत नहीं है, यहां किस बात की कमी है, मैं तो आते ही घर की चाबियां उसे सौंप कर अब आराम करूंगी.’’

‘‘पर मां, जरा यह तो सोचो, वह अच्छी श्रेणी में एम.ए. पास है, क्या पता आगे शोधकार्य आदि करना चाहे. फिर ऐसे में तुम घर की जिम्मेदारी उस पर छोड़ दोगी तो वह आगे पढ़ कैसे सकेगी?’’ यह अनुराग का स्वर था.

उन की समझ में नहीं आया कि एकाएक क्या जवाब दें.

कुछ दिन बाद जब सपना ससुराल से आई तो वे उसे बातबात पर टोक देतीं, ‘‘क्यों री, तू ससुराल में भी ऐसे ही सिर उघाड़े डोलती रहती है क्या? वहां तो ठीक से रहा कर बहुओं की तरह और अपने पुराने कपड़ों का बक्सा यहीं छोड़ कर जाना. शादीशुदा लड़कियों को ऐसे ढंग नहीं सुहाते.’’

सपना ने जब बताया कि वह यूनिवर्सिटी में दाखिला ले रही है तो वे बरस ही पड़ीं, ‘‘अब क्या उम्र भर पढ़ती ही रहेगी? थोड़े दिन सासससुर की सेवा कर. कौन बेचारे सारी उम्र बैठे रहेंगे तेरे पास.’’

आश्चर्यचकित सपना देख रही थी कि मां को हो क्या गया है?

नीला पत्थर : आखिर क्या था काकी का फैसला

‘‘कहीं नहीं जाएगी काकी…’’ पार्वती बूआ की कड़कती आवाज ने सब को चुप करा दिया. काकी की अटैची फिर हवेली के अंदर रख दी गई. यह तीसरी बार की बात थी. काकी के कुनबे ने फैसला किया था कि शादीशुदा लड़की का असली घर उस की ससुराल ही होती है. न चाहते हुए भी काकी मायका छोड़ कर ससुराल जा रही थी.

हालांकि ससुराल से उसे लिवाने कोई नहीं आया था. काकी को बोझ समझ कर उस के परिवार वाले उसे खुद ही उस की ससुराल फेंकने का मन बना चुके थे कि पार्वती बूआ को अपनी बरबाद हो चुकी जवानी याद आ गई. खुद उस के साथ कुनबे वालों ने कोई इंसाफ नहीं किया था और उसे कई बार उस की मरजी के खिलाफ ससुराल भेजा था, जहां उस की कोई कद्र नहीं थी.

तभी तो पार्वती बूआ बड़ेबूढ़ों की परवाह न करते हुए चीख उठी थी, ‘‘कहीं नहीं जाएगी काकी. उन कसाइयों के पास भेजने के बजाय उसे अपने खेतों के पास वाली नहर में ही धक्का क्यों न दे दिया जाए. बिना किसी बुलावे के या बिना कुछ कहेसुने, बिना कोई इकरारनामे के काकी को ससुराल भेज देंगे, तो वे ससुरे इस बार जला कर मार डालेंगे इस मासूम बेजबान लड़की को. फिर उन का एकाध आदमी तुम मार आना और सारी उम्र कोर्टकचहरी के चक्कर में अपने आधे खेतों को गिरवी रखवा देना.’’

दूसरी बार काकी के एकलौते भाई की आंखों में खून उतर आया था. उस ने हवेली के दरवाजे से ही चीख कर कहा था, ‘‘काकी ससुराल नहीं जाएगी. उन्हें आ कर हम से माफी मांगनी होगी. हर तीसरे दिन का बखेड़ा अच्छा नहीं. क्या फायदा… किसी की जान चली जाएगी और कोई दूसरा जेल में अपनी जवानी गला देगा. बेहतर है कि कुछ और ही सोचो काकी के लिए.’’

काकी के लिए बस 3 बार पूरा कुनबा जुटा था उस के आंगन में. काकी को यहीं मायके में रखने पर सहमति बना कर वे लोग अपनेअपने कामों में मसरूफ हो गए थे. उस के बाद काकी के बारे में सोचने की किसी ने जरूरत नहीं समझी और न ही कोई ऐसा मौका आया कि काकी के बारे में कोई अहम फैसला लेना पड़े.

काकी का कुसूर सिर्फ इतना था कि वह गूंगी थी और बहरी भी. मगर गूंगी तो गांव की 99 फीसदी लड़कियां होती हैं. क्या उन के बारे में भी कुनबा पंचायत या बिरादरी आंखें मींच कर फैसले करती है? कोई एकाध सिरफिरी लड़की अपने बारे में लिए गए इन एकतरफा फैसलों के खिलाफ बोल भी पड़ती है, तो उस के अपने ही भाइयों की आंखों में खून उतर आता है. ससुराल की लाठी उस पर चोट करती है या उस के जेठ के हाथ उस के बाल नोंचने लगते हैं.

ऐसी सिरफिरी मुंहफट लड़की की मां बस इतना कह कर चुप हो जाती है कि जहां एक लड़की की डोली उतरती है, वहां से ही उस की अरथी उठती है. यह एक हारे हुए परेशान आदमी का बेमेल सा तर्क ही तो है. एक अकेली छुईमुई लड़की क्या विद्रोह करे. उसे किसी फैसले में कब शामिल किया जाता है. सदियों से उस के खिलाफ फतवे ही जारी होते रहे हैं. वह कुछ बोले तो बिजली टूट कर गिरती है, आसमान फट पड़ता है.

अनगनित लोगों की शादियां टूटती हैं, मगर वे सब पागल नहीं हो जाते. बेहतर तो यही होता कि अपनी नाकाम शादी के बारे में काकी जितना जल्दी होता भूल जाती. ये शादीब्याह के मामले थानेकचहरी में चले जाएं, तो फिर रुसवाई तो तय ही है. आखिर हुआ क्या? शीशा पत्थर से टकराया और चूरचूर हो गया.

काकी का पति तो पहले भी वैसा ही था लंपट, औरतबाज और बाद में भी वैसा ही बना रहा. काकी से अलग होने के बाद भी उस की जिंदगी पर कोई खास असर नहीं पड़ा.

काकी के कुनबे का फैसला सुनने के बाद तो वह हर तरफ से आजाद हो चुका था. उस के सुख के सारे दरवाजे खुल गए, मगर काकी का मोह भंग हो गया. अब वह खुद को एक चुकी हुई बूढ़ी खूसट मानने लगी थी.

भरी जवानी में ही काकी की हर रस, रंग, साज और मौजमस्ती से दूरी हो गई थी. उस के मन में नफरत और बदले के नागफनी इतने विकराल आकार लेते गए कि फिर उन में किसी दूसरे आदमी के प्रति प्यार या चाहत के फूल खिल ही न सके.

किसी ने उसे यह नहीं समझाया, ‘लाड़ो, अपने बेवफा शौहर के फिर मुंह लगेगी, तो क्या हासिल होगा तुझे? वह सच्चा होता तो क्या यों छोड़ कर जाता तुझे? उसे वापस ले भी आएगी, तो क्या अब वह तेरे भरोसे लायक बचा है? क्या करेगी अब उस का तू? वह तो ऐसी चीज है कि जो निगले भी नहीं बनेगा और बाहर थूकेगी, तो भी कसैली हो जाएगी तू.

‘वह तो बदचलन है ही, तू भी अगर उस की तलाश में थानाकचहरी जाएगी, तो तू तो वैसी ही हो जाएगी. शरीफ लोगों का काम नहीं है यह सब.’

कोई तो एक बार उसे कहता, ‘देख काकी, तेरे पास हुस्न है, जवानी है, अरमान हैं. तू क्यों आग में झोंकती है खुद को? दफा कर ऐसे पति को. पीछा छोड़ उस का. तू दोबारा घर बसा ले. वह 20 साल बाद आ कर तुझ पर अपना दावा दायर करने से रहा. फिर किस आधार पर वह तुझ पर अपना हक जमाएगा? इतने सालों से तेरे लिए बिलकुल पराया था. तेरे तन की जमीन को बंजर ही बनाता रहा वह.

‘शादी के पहले के कुछ दिनों में ही तेरे साथ रहा, सोया वह. यह तो अच्छा हुआ कि तेरी कोख में अपना कोई गंदा बीज रोप कर नहीं गया वह दुष्ट, वरना सारी उम्र उस से जान छुड़ानी मुश्किल हो जाती तुझे.’

कुनबे ने काकी के बारे में 3 बार फतवे जारी किए थे. पहली बार काकी की मां ने ऐसे ही विद्रोही शब्द कहे थे कि कहीं नहीं जाएगी काकी. पहली बार गांव में तब हंगामा हुआ था, जब काकी दीनू काका के बेटे रमेश के बहकावे में आ गई थी और उस ने उस के साथ भाग जाने की योजना बना ली थी. वह करती भी तो क्या करती.

35 बरस की हो गई थी वह, मगर कहीं उस के रिश्ते की बात जम नहीं रही थी. ऐसे में लड़कियां कब तक खिड़कियों के बाहर ताकझांक करती रहें कि उन के सपनों का राजकुमार कब आएगा. इन दिनों राजकुमार लड़की के रंगरूप या गुण नहीं देखता, वह उस के पिता की जागीर पर नजर रखता है, जहां से उसे मोटा दहेज मिलना होता है.

गरीब की बेटी और वह भी जन्म से गूंगीबहरी. कौन हाथ धरेगा उस पर? वैसे, काकी गजब की खूबसूरत थी. घर के कामकाज में भी माहिर. गोरीचिट्टी, लंबा कद. जब किसी शादीब्याह के लिए सजधज कर निकलती, तो कइयों के दिल पर सांप लोटने लगते. मगर उस के साथ जिंदगी बिताने के बारे में सोचने मात्र की कोई कल्पना नहीं करता था.

वैसे तो किसी कुंआरी लड़की का दिल धड़कना ही नहीं चाहिए, अगर धड़के भी तो किसी को कानोंकान खबर न हो, वरना बरछे, तलवारें व गंड़ासियां लहराने लगती हैं. यह कैसा निजाम है कि जहां मर्द पचासों जगह मुंह मार सकता था, मगर औरत अपने दिल के आईने में किसी पराए मर्द की तसवीर नहीं देख सकती थी? न शादी से पहले और शादी के बाद तो कतई नहीं.

पर दीनू काका के फौजी बेटे रमेश का दिल काकी पर फिदा हो गया था. काकी भी उस से बेपनाह मुहब्बत करने लगी थी. मगर कहां दीनू काका की लंबीचौड़ी खेती और कहां काकी का गरीब कुनबा. कोई मेल नहीं था दोनों परिवारों में.

पहली ही नजर में रमेश काकी पर अपना सबकुछ लुटा बैठा, मगर काकी को क्या पता था कि ऐसा प्यार उस के भविष्य को चौपट कर देगा.

रमेश जानता था कि उस के परिवार वाले उस गूंगी लड़की से उस की शादी नहीं होने देंगे. बस, एक ही रास्ता बचा था कि कहीं भाग कर शादी कर ली जाए.

उन की इस योजना का पता अगले ही दिन चल गया था और कई परिवार, जो रमेश के साथ अपनी लड़की का रिश्ता जोड़ना चाहते थे, सब दिशाओं में फैल गए. इश्क और मुश्क कहां छिपते हैं भला. फिर जब सारी दुनिया प्रेमियों के खिलाफ हो जाए, तो उस प्यार को जमाने वालों की बुरी नजर लग जाती है.

काकी का बचपन बड़े प्यार और खुशनुमा माहौल में बीता था. उस के छोटे भाई राजा को कोई चिढ़ाताडांटता या मारता, तो काकी की आंखें छलछला आतीं. अपनी एक साल की भूरी कटिया के मरने पर 2 दिन रोती रही थी वह. जब उस का प्यारा कुत्ता मरा तो कैसे फट पड़ी थी वह. सब से ज्यादा दुख तो उसे पिता के मरने पर हुआ था. मां के गले लग कर वह इतना रोई थी कि मानो सारे दुखों का अंत ही कर डालेगी. आंसू चुक गए. आवाज तो पहले से ही गूंगी थी. बस गला भरभर करता था और दिल रेशारेशा बिखरता जाता था. सबकुछ खत्म सा हो गया था तब.

अब जिंदा बच गई थी तो जीना तो था ही न. दुखों को रोरो कर हलका कर लेने की आदत तब से ही पड़ गई थी उसे. दुख रोने से और बढ़ते जाते थे.

रमेश से बलात छीन कर काकी को दूर फेंक दिया गया था एक अधेड़ उम्र के पिलपिले गरीब किसान के झोंपड़े में, जहां उस के जवान बेटों की भूखी नजरें काकी को नोंचने पर आमादा थीं.

काकी वहां कितने दिन साबुत बची रहती. भाग आई भेडि़यों के उस जंगल से. कोई रास्ता नहीं था उस जंगल से बाहर निकलने का.

जो रास्ता काकी ने खुद चुना था, उस के दरमियान सैकड़ों लोग खड़े हो गए थे. काकी के मायके की हालत खराब तो न थी, मगर इतने सोखे दिन भी नहीं थे कि कई दिन दिल खोल कर हंस लिया जाए. कभी धरती पर पड़े बीजों के अंकुरित होने पर नजरें गड़ी रहतीं, तो कभी आसमान के बादलों से मुरादें मांगती झोलियां फैलाए बैठी रहतीं मांबेटी.

रमेश से छिटक कर और फिर ससुराल से ठुकराई जाने के बाद काकी का दिल बुरी तरह हार माने बैठा था. अब काकी ने अपने शरीर की देखभाल करनी छोड़ दी थी. उस की मां उस से अकसर कहती कि गरीब की जवानी और पौष की चांदनी रात को कौन देखता है.

फटी हुई आंखों से काकी इस बात को समझने की कोशिश करती. मां झुंझला कर कहती, ‘‘तू तो जबान से ही नहीं, दिल से भी बिलकुल गूंगी ही है. मेरे कहने का मतलब है कि जैसे पूस की कड़कती सर्दी वाली रात में चांदनी को निहारने कोई नहीं बाहर निकलता, वैसे ही गरीब की जवानी को कोई नहीं देखता.’’

मां चल बसीं. काकी के भाई की गृहस्थी बढ़ चली थी. काकी की अपनी भाभी से जरा भी नहीं बनती थी. अब काकी काफी चिड़चिड़ी सी हो गई थी. भाई से अनबन क्या हुई, काकी तो दरबदर की ठोकरें खाने लगी. कभी चाची के पास कुछ दिन रहती, तो कभी बूआ काम करकर के थकटूट जाती थी. काकी एक बार खाट से क्या लगी कि सब उसे बोझ समझने लगे थे.

आखिरकार काकी की बिरादरी ने एक बार फिर काकी के बारे में फैसला करने के लिए समय निकाला. इन लोगों ने उस के लिए ऐसा इंतजाम कर दिया, जिस के तहत दिन तय कर दिए गए कि कुलीन व खातेपीते घरों में जा कर काकी खाना खा लिया करेगी.

कुछ दिन तक यह बंदोबस्त चला, मगर काकी को यों आंखें झुका कर गैर लोगों के घर जा कर रहम की भीख खाना चुभने लगा. अपनी बिरादरी के अब तक के तमाम फैसलों का काकी ने विरोध नहीं किया था, मगर इस आखिरी फैसले का काकी ने जवाब दिया. सुबह उस की लाश नहर से बरामद हुई थी. अब काकी गूंगीबहरी ही नहीं, बल्कि अहल्या की तरह सर्द नीला पत्थर हो चुकी थी.

काकी का पति तो पहले भी वैसा ही था लंपट, औरतबाज और बाद में भी वैसा ही बना रहा. काकी से अलग होने के बाद भी उस की जिंदगी पर कोई खास असर नहीं पड़ा.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें