‘‘बहुत मुश्किल से किसी तरह दवा लाने का बहाना कर के मैं गांव से निकली. फोन पर सौरभ को सारी बातें बताईं. उस ने कहा कि मैं रात में बनारस पहुंच जाऊं. सुबह वहीं से मुंबई के लिए ट्रेन पकड़ लेंगे. उस ने रिजर्वेशन भी करा लिया है. उस का एक दोस्त वहां रहता है. मुझे दोस्त के पास रख कर वह लौट आएगा, फिर पत्नी को तलाक दे कर मुझ से शादी कर लेगा.’’
‘‘ओह… तो तुम मुंबई जाने की तैयारी कर के आई हो?’’ तृप्ति ने कहा.
‘‘हां.’’
‘‘माधुरी, तुम समझदार हो, इसलिए तुम को मैं समझा तो नहीं सकती… और फिर अपनी जिंदगी अपने ढंग से जीने का हक सभी को है, पर हम आपस में इस बारे में बात तो कर ही सकते हैं, जिस से सही दिशा मिल सके और तुम समझ पाओ कि जानेअनजाने में तुम से कोई गलत फैसला तो नहीं हो रहा है.’’
‘‘बोल तृप्ति, समय कम है, मुझे सुबह निकलना भी है. यह तो मुझे भी एहसास हो रहा है कि मैं कुछ गलत कर रही हूं. पर मेरे सामने इस के अलावा कोई रास्ता भी तो नहीं है,’’ माधुरी की चिंता उस के चेहरे से साफ झलक रही थी.
‘‘अच्छा माधुरी, सौरभ के पिता से गहनों की कीमत में छूट कराने के लिए तुम्हें सौरभ से कहना पड़ा था न?’’
‘‘हां.’’
‘‘सौरभ से तुम्हारी जानपहचान भी नहीं थी. सिर्फ इतना ही कि तुम्हारे साथ सौरभ भी एक ही स्कूल में पढ़ता था.’’
‘‘हां.’’
‘‘सौरभ के पास पैसे की कोई कमी नहीं थी. काफी सारा पैसा उस के बैंक अकाउंट में था, जिसे खर्चने के लिए उसे अपने पिता की इजाजत लेने की जरूरत नहीं थी.’’
‘‘यह भी सही है.’’
‘‘सौरभ की शादी उस की मरजी से नहीं हुई थी. गूंगीबहरी होने के चलते अपनी पत्नी को वह पसंद नहीं करता था. कहीं न कहीं उस के मन में किसी दूसरी सुंदर लड़की की चाह थी.’’
‘‘तुम्हारी बातों में सचाई है. कई बार उस ने ऐसा कहा था. लेकिन तुम जिरह बहुत अच्छा कर लेती हो. देखना, तुम अच्छी वकील बनोगी.’’
‘‘वह खुद जवान और सुंदर है और तुम भी उस की सुंदरता की ओर खिंचने लगी थी.’’
‘‘यह भी सही है.’’
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‘‘फिर अब तो तुम मानोगी कि तुम से ज्यादा तुम्हारी शारीरिक सुंदरता उसे अपनी ओर खींच रही थी और पहली ही झलक में उस ने तुम में अपनी हवस पूरी की इच्छा की संभावना तलाश ली होगी. और जब तुम ने उस की सोने की महंगी अंगूठी स्वीकार कर ली तब वह पक्का हो गया कि अब तुम उस के जाल में आसानी से फंस सकती हो.
‘‘फिर वही हुआ, अपने पैसे का उस ने भरपूर इस्तेमाल किया और तुम पर बेतहाशा खर्च किया, जिस के नीचे तुम्हारा विवेक भी मर गया. तुम्हारी समझ कुंठित हो गई और तुम ने अपनी जिंदगी का सब से बड़ा धन गंवा दिया, जिसे कुंआरापन कहते हैं.’’
माधुरी के माथे पर पसीने की बूंदें छलक आईं.
‘‘बोल तृप्ति बोल, अपने मन की बात खुल कर मेरे सामने रख,’’ माधुरी उत्सुकता से उस की बातें सुन रही थी.
‘‘माधुरी, अब जिस सैक्स सुख के लिए मर्द शादी तक इंतजार करता है, वही उसे उस के पहले ही मिल जाए और उसे यह विश्वास हो जाए कि अपने पैसों से तुम्हारी जैसी लड़कियों को आसानी से इस्तेमाल किया जा सकता है, तो वह अपनी पत्नी को तलाक देने और दूसरी से शादी करने का झंझट क्यों मोल लेगा?
‘‘फिर वह अच्छी तरह जानता है कि उस की पत्नी की बदौलत ही उस के पास इतनी दौलत है और उसे तलाक देते ही उस को इस जायदाद से हाथ धोना पड़ जाएगा. मुकदमे का झंझट होगा, सो अलग.
‘‘मुझे तो लगता है, तुम किसी बड़ी साजिश की शिकार होने वाली हो. तुम से उस का मन भर गया है. अब वह तुम्हें अपने दोस्त को सौंपना चाहता है.’’
‘‘नहींनहीं…’’ अचानक माधुरी के मुंह से चीख सी निकली.
‘‘पर, इस सब में केवल सौरभ ही कुसूरवार नहीं है, तुम भी हो. तुम ने क्या सोच कर अंगूठी अपने जीजाजी और मां से छिपाई.
‘‘जीजाजी के सामने ही क्यों नहीं कहा कि सौरभ, यह अंगूठी तुम्हें उपहार में दे रहा है. मां को भी क्यों नहीं बताया कि लाख मना करने पर भी सौरभ ने अंगूठी नहीं ली.
‘‘अगर तुम ने ऐसा किया होता तो फिर सौरभ समझ जाता कि उस ने गलत जगह अपनी गोटी डाली है और वह आगे बात न बढ़ाता. जवानी और पैसे के लालच में तुम्हारी मति मारी गई थी. तुम गलत को सही और सही को गलत समझने लगी थी.
‘‘तुम्हारी मां गहनों में छूट चाहती थीं. हर ग्राहक की चाहत सस्ता खरीदने की होती है, उन की भी थी. लेकिन वे नाजायज कुछ नहीं चाहती थीं. उन्होंने धूप में अपने बाल सफेद नहीं किए हैं. उन को सौरभ की अंगूठी देने के पीछे की मंशा पता चल गई थी, इसीलिए ऐसे लोगों से दूर रहने की सलाह दी थी.
‘‘अब तुम्हारी शादी जिस लड़के से तय हुई है, तुम उस से बात करती. उस के स्वभाव, व्यवहार और चरित्र का पता लगाती. अगर पसंद नहीं आता तो साफ इनकार कर देती. यह एक सही कदम होता. इस के लिए कई लोग तुम्हारी मदद में आगे आ जाते. तुम्हारा आत्मविश्वास बना रहता और मनोबल भी ऊंचा रहता.’’
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माधुरी बोली, ‘‘एक गिलास पानी पिला तृप्ति. अब मैं सब समझ गई हूं. कल घर लौट जाऊंगी. मां से बोल दूंगी, आगे की पढ़ाई के लिए समझने मैं तृप्ति के पास आई थी. मां पूछेंगी तो तुम भी यही कह देना.’’
तृप्ति ने कहा, ‘‘कल सुबह मैं चाची को फोन कर के बता दूंगी. सौरभ को अभी तुम बोल दो. अभी वह भी सोया न होगा. बनारस आने की तैयारी में लगा होगा. उस से कहो कि मैं अब गांव लौट रही हूं. मांबाबूजी का दिल दुखाना नहीं चाहती. तुम्हारा घर तोड़ कर किसी की आह नहीं लेना चाहती.
‘‘मुझे पूरा भरोसा है कि सौरभ खुश होगा कि बला उस के सिर से टलेगी.’’
तृप्ति ने सच ही कहा था. सौरभ अभी जाग रहा था और थोड़ी देर पहले ही मुंबई वाले अपने दोस्त से कहा था, ‘यार, अब इस बला को तुम संभालो. वह सुंदर है. खर्च करोगे तो तुम्हारी हो जाएगी. जब मन भर जाएगा तो कुछ दे कर उस के गांव वाली ट्रेन पर बिठा देना. अब मुझे एक दूसरी मिल गई है.’
सौरभ ने एक छोटा सा जवाब दिया था, ‘जैसी तुम्हारी इच्छा. मैं रिजर्वेशन कैंसिल करा देता हूं.’
माधुरी का मन अब हलका था, ‘‘तृप्ति, अब एक काम और कर दे. कल क्यों आज ही घर में फोन कर दे. अभी रात के 12 बजे हैं. मांबाबूजी बहुत चिंतित होंगे. मैं चुपके से यहां आ गई हूं.’’
‘‘अच्छा, बोलती हूं…’’ तृप्ति माधुरी की मां को समझा रही थी, ‘‘चिंता न करें आंटीजी. माधुरी मेरे पास आ गई है. वह आगे पढ़ना चाहती है. आप ने उस को घर से निकलने पर बंदिश लगा दी थी न, इसलिए… हां, उसे बता कर निकलना चाहिए था… अच्छा प्रणाम, माधुरी सो गई है, कल सुबह बात कर लेगी.’’
फोन कट गया. माधुरी को अपने किए पर पछतावा तो था, पर आगे साजिश में फंसने से बच जाने की खुशी भी थी. साथ ही, अपनी सहेली तृप्ति पर गर्व भी था. दोनों सहेलियां बात करतेकरते सो गईं.



