Valentine’s Special: प्यार और रोमांस एक ही सिक्के के दो पहलू

रोमांस का मतलब केवल प्यारमुहब्बत और दैहिक सुख ही प्राप्त करना नहीं है, बल्कि रोमांस का अर्थ है दो युवा दिलों का एकसाथ धड़कना, एकदूसरे की भावनाओं को समझना. जिस प्रेम में निष्ठा हो उस में ही रोमांस प्राप्त होता है. अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए निष्ठा व प्रेम जरूरी हैं. कोई व्यक्ति अपने लक्ष्य में तभी कामयाबी पाता है जब उस के मन में कुछ कर पाने की इच्छा और लगन होती है.

रोमांस यानी अपने प्यार को दिलोजान से पाने का एहसास. कोई ऐसा साथी मिले, जो प्यारी सी मीठी बातें या फिर छेड़छाड़ करे जो तनमन में स्पंदन जगा कर रोमरोम को पुलकित कर दे यानी रोमांस एक खूबसूरत एहसास भर देता है.

एक मल्टीनैशनल कंपनी में कार्यरत सुजाता का मानना है कि रोमांस के बिना जिंदगी अधूरी होती है. मैं नहीं जानती कि रोमांस की उत्पत्ति कब और कहां से हुई, पर मैं इतना जरूर कहूंगी कि रोमांस अपने प्यार के प्रति दीवानगी को बढ़ाता है.

आकर्षण है रोमांस

एक महिला सामाजिक संगठन से जुड़ी जया की मानें तो रोमांस ऐसा आकर्षण है जो अपने प्रिय को अपनी ओर आकर्षित करता है, जो कम समय में ही अपने प्यार को सम्मोहन में जकड़ लेता है.

अकेलेपन की स्थिति में रोमांस जीवन में रंग भरने का काम करता है. एकदूसरे का सामीप्य रोमांस की संभावनाओं को और बढ़ा देता है. रोमांस के बिना लाइफ में सबकुछ अधूराअधूरा सा लगता है.

सिक्के के दो पहलू

प्रेम और रोमांस एक ही सिक्के के दो पहलू हैं. एक निजी स्कूल संचालिका गीता का कहना है, ‘‘रोमांस के बिना प्यार संभव ही नहीं है, क्योंकि ये दोनों ही व्यक्ति को प्यार की राह पर आगे बढ़ने को मजबूर करते हैं.

‘‘प्यार अगर मंजिल है तो रोमांस उस तक पहुंचने का रास्ता है. बिना रामांस के प्यार को परवान तक पहुंचा पाना मुश्किल होता है. रोमांस प्रेम में तभी बदलता है जब एकदूसरे के प्रति रोमांस के भाव उत्पन्न हों. हम यह कह सकते हैं कि रोमांस दो प्रेम पथिकों को एकदूसरे से जोड़ने का सरल व सुंदर माध्यम है.’’

उत्साह है जरूरी

रोमांस में उत्साह का होना बहुत जरूरी है. बिना उत्साह के इस का रसपान करना संभव नहीं है. उत्साह ही रोमांस को जोशीला बनाता है, तनमन की गहराइयों का एहसास कराता है. सुरेश और संगीता अपने रोमांस को ले कर काफी उत्साहित थे. इसीलिए आज वे दोनों रोमांस करने के बाद, अच्छे साथी बन कर एक सफल गृहस्थ बन जीवनयापन कर रहे हैं.

वास्तविक प्रेम

प्रेम और रोमांस में वास्तविकता होनी बहुत जरूरी है. प्रेम में खुशबू है और खुशबू की तरह प्रेम को भी छिपाया नहीं जा सकता. दो युवा दिल अपने बदन की खुशबू को बखूबी पहचानते हैं, महसूस करते हैं. खुशबूरूपी वास्तविकता प्यार में ताजगी बनाए रखती है. इसलिए प्रेम में वास्तविकता संजीवनी का काम करती है. फिर कहा भी जाता है कि प्रेम में अमीरीगरीबी नहीं देखी जाती.

स्पंदन का एहसास

डा. सुरेंद्र सरदाना का कहना है, ‘‘रोमांस एक एहसास है, जिस की गहराई महसूस की जा सकती है. अपने चाहने वाले के लिए जिस प्रकार दिल की धड़कनें रुकने का नाम नहीं लेतीं, ठीक उसी प्रकार प्यार में रोमांस के बिना मजा किरकिरा हो जाता है. किसी अपने चहेते, जो दिल ही दिल आप को चाहता है, उस से मिलने की इच्छा तीव्र हो जाती है. प्रिय से निगाहें मिलने पर तनमन में स्पंदन सा महसूस होता है और तब प्यार के सागर में डुबकी लगाने को मन करता है. यही तो है रोमांस आप का. रोमांस तभी आनंदित करता है, जब उस में एकदूसरे का एहसास हो.’’

कुल मिला कर यही कहा जा सकता है कि प्रेम और रोमांस एक सिक्के के दो पहलू हैं. प्रेम के बिना रोमांस अधूरा है. रोमांस दो शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता. रोमांस का भाव स्थायी नहीं, संचारी होता है, क्योंकि यह प्रेमियों के तनमन में संचारित होता रहता है.

प्यार न हो कम

– लड़कियां जब प्यार करती हैं तो अपने प्रेमी के सिवा कुछ सोचना नहीं चाहतीं, जबकि लड़के कुछ पर्सनल स्पेस चाहते हैं. सो, उन्हें स्पेस देती रहें. इस से आप में उन की दिलचस्पी बनी रहेगी और वे ज्यादा खुश रहेंगे.

– हर लड़का चाहता है कि उसे वह इज्जत मिले जिस के लिए वह डिजर्व करता है. यह इज्जत तब और भी खास हो जाती है जब अपने चाहने वाले से मिले. अगर आप उसे इज्जत नहीं देंगी तो वह रिश्ते को कहीं न कहीं बोझ समझने लगेगा.

– प्यार में उत्साह बनाए रखना जरूरी है. इस के लिए रोमांस के नएनए तरीके, शरारत, अदाओं को करने में कोई कसर न छोड़ें.

– अपने वर्तमान की तुलना कभी भी अतीत से न करें.

– पार्टनर से कुछ पाने की चाहत रखने के बजाय उसे कुछ देने पर ध्यान दें, चाहे वह छोटा सा गुलाब हो.

– कोई भी व्यक्ति परफैक्ट नहीं होता पर अपने पार्टनर को अपने लिए हमेशा परफैक्ट मानें.

– पार्टनर को रोमांस के मामले में सौफ्टली हैंडल करें. रोमांस करने में उसे कुछ भय है तो प्यार, मनुहार और फोरप्ले द्वारा उसे तैयार करें. तभी आप दोनों रोमांस के पलों का आनंद उठा पाएंगे.

Valentine’s Day 2024: क्यों कम हाइट की लड़कियों को पसंद करते हैं लड़के, जानें 7 कारण

शादी के लिये रिश्ते करते समय लड़के-लड़की के रंग-रूप और कद-काठी पर भी ध्यान दिया जाता है. कोशिश होती है कि लड़के-लड़की के कद में अधिक अंतर न हो. लेकिन दक्षिण कोरिया में हुई एक रिसर्च के मुताबिक कद का अंतर प्यार बढ़ाता है.

7850 महिलाओं पर किए गए सर्वे में यह सामने आया कि जिन पतियों की लंबाई पत्नी की तुलना में बहुत ज्यादा होती है, वह पुरुष अच्छे पति साबित होते हैं और ऐसी बीवियां भविष्य में बहुत ही खुशहाल जीवन बिताती हैं.

हम यहां बता रहे हैं 7 कारण जिसकी वजह से पुरुष छोटे कद की महिला को पसंद करते हैं.

1-पुरुष खुद को ताकतवर महसूस करते हैं

किसी रिश्ते का सही तरह से आगे बढ़ना या न बढ़ना काफी हद तक एक-दूसरे की सोच पर निर्भर करता है. अपने से कम हाइट की महिलाओं पार्टनर को पाकर पुरुष ताकतवर मेहसूस करने लगता है. उन्हें लगता है कि वो अपने कद की वजह महिलाओं से अपनी बात आसानी से मनवा सकते हैं. ऐसे मामलों में पुरुष न चाहते हुए भी धीरे-धीरे डोमिनेटिंग नेचर के बन जाते हैं.

2-खुद को सुरक्षित महसूस करते हैं

लंबे पुरुषों को लगता है कि उनकी कम कद की पार्टनर को हर वक्त उनके प्रोटेक्शन की जरूरत है जिससे वो उन्हें एक्स्ट्रा केयर और प्रोटेक्शन देते हैं. ऐसी महिला  के साथ वो किसी भी तरह से असुरक्षित महसूस नहीं करते. कई मामलों में देखा गया है कि कम हाइट की महिलाएं भले ही दिखने में ज्यादा सुंदर हों लेकिन पुरुष अपने लंबे कद की वजह से इसे बैलेंस कर देते हैं.

3-झप्पी देना लगता है अच्छा

ज्यादातर पुरुषों को कम हाइट की महिलाओं को गले लगाना अच्छा लगता है. ऐसी महिलाओं को गले लगाने से उन्हें अपनेपन का अहसास होता है जिसका मौका वो कभी नहीं चूकते.

4- महिलाओं के लंबे कद से लगता है डर

लंबी महिलाएं अपनी हर बात को लेकर बहुत ही कॉन्फिडेंट होती हैं लेकिन उनका कॉन्फिडेंस इगो और घमंड का भरा होता है. पुरुषों में भी इगो वाला नेचर देखा जा सकता है लेकिन वो इसे शो नहीं करते. इसीलिये लंबे कद वाली महिलाओं को पुरुष पसंद नहीं करते.

5-खास होती हैं छोटे कद की महिलाएं

अपने कद को अपने व्यक्तित्व की कमी मानने वाली महिलाएं कई बार इस बात से अंजान होती हैं कि उनके बाकी फीचर्स कितने अलग हैं जो दूसरों को अट्रैक्ट करने के लिए काफी हैं. सरल, मासूम और काइन्ड नेचर होने के साथ कम हाइट की महिलाएं अक्सर रोमांटिक नेचर की होती हैं.

6-करती हैं सेक्स लाइफ को एन्जॉय

पुरुषों को कम हाइट की महिलाएं इसलिए भी ज्यादा पसंद आती हैं क्योंकि वो सेक्स को अच्छे से एन्जॉय करती हैं. कम हाइट की वजह से उनका वजन भी उतना ज्यादा नहीं होता जो पुरुषों के लिए अच्छा होता है. अपनी सेक्सुअल लाइफ को एन्जॉय करने में लिए खासतौर से पुरुष ऐसी महिलाओं को पसंद करते हैं.

7-साथ घूमना-फिरना है आसान

पुरुषों के रोमांटिक नेचर को असल में कम हाइट की महिलाओं के साथ देखा जा सकता है. उन्हें बहुत ही अच्छा लगता है ऐसी महिलाओं को उठाकर घूमना. हनीमून ट्रिप हो या डेट वो ऐसे किसी मौके को हाथ से जाने नहीं देते.

Valentine’s Day 2024 : 1 नहीं 5 तरह का होता है एकतरफा प्यार

अमूमन जब हम किसी से प्यार करते हैं तो बदले में उस व्यक्ति से भी प्यार पाना चाहते हैं, तब भी जब उसे हममे कोई भी रूचि नहीं होती. वैज्ञानिकों ने हाल में किये कुछ शोधों के आधार पर पांच तरह के एकतरफा प्यार का खुलासा किया है और बताया है कि यह सच्चे प्यार से किस तरह अलग होता है.

आप और आपकी दोस्त एक दूसरे को तीन सालों से जानते हैं. आप अपनी दोस्त के प्रति इतने ज्यादा आकर्षित हैं कि आपके दोस्त उसे आपकी गर्लफ्रेंड ही मानने लगे हैं. काश यह सच होता. आप पूरी तरह उसके प्यार में हैं और आप हर वक्त उसी के बारे में सोचते रहते हैं. लेकिन आपको यह अच्छे से पता है कि वो आपसे प्यार नहीं करती है क्योंकि जब भी कोई उससे आपके बारे में पूछता है तो वह बताती है कि आप दोनों महज दोस्त हैं. इसका मतलब यह है कि आप एकतरफा प्यार में हैं.

मीठा दर्द

जब आपको मालूम है कि उसको आपमें कोई दिलचस्पी नहीं है, तो आपको क्यों लगता है कि एक दिन उसका दिल पसीज जाएगा. आप उस व्यक्ति के साथ एक ऐसे एकतरफा प्यार में हैं जिसके लिए सिर्फ आपके दिल में रोमांटिक ख्याल आ रहे हैं लेकिन वह आपकी तरह कुछ भी महसूस नहीं कर रही है. दुःख की बात यह है कि एकतरफा प्यार के किस्से काफी आम हैं.

ऐसी स्थिति में क्या एकतरफा प्यार में भी वैसा महसूस करने की संभावना है जैसा कि लोग दोतरफा प्यार में महसूस करते हैं.

इसका जवाब ढूंढने के लिए अमेरिकी शोधकर्ताओं ने पांच तरह के एकतरफा प्यार पर अध्ययन किया. उन्होंने पता लगाया कि जिस व्यक्ति को आप प्यार करते हैं और उसे हासिल करना चाहते हैं, वह आपको किस तरह प्रभावित करता है और आप एक दूसरे के जीवन में क्या महत्व रखते हैं. अपने शोध के आधार पर उन्होंने पांच तरह के एकतरफा प्यार का जिक्र किया है. आइये उनके बारे में जानते हैं:

एकतरफा प्यार के पांच प्रकार 

सेलेब्रिटी या हीरो से प्यार

आपको किसी ऐसे व्यक्ति से प्यार है जिसे आप व्यक्तिगत रूप से नहीं जानते हैं ना ही कभी जानने की संभावना है, जैसे फिल्म स्टार, रौकस्टार या एथलीट. किशोरावस्था में कई लड़के फिल्म अभिनेत्रियों के प्रति ऐसा प्यार महसूस करते हैं उन्हें लगता है कि उनसे ज्यादा इस हीरोइन को प्यार करने वाला दूसरा कोई नहीं.

बहुत करीब फिर भी बहुत दूर

किसी ऐसे व्यक्ति के प्रति प्यार जिसे आप अच्छी तरह जानते हैं लेकिन किसी वजह से आप उससे अपने मन की बात नहीं कह पाते हैं. ऐसा कई लड़के लड़कियों के साथ होता है कि उन्हें अपने क्लासरूम या औफिस में कोई पसंद होता है, लेकिन वे किसी डर या किसी अन्य वजह से उससे कुछ कह नहीं पाते. यह भी एकतरफा प्यार का एक टाइप है.

प्यार पाने की पूरी कोशिश करना

एक ऐसा रिश्ता जिसमें आप किसी व्यक्ति को बहुत प्यार करते हैं, लेकिन बदले में आपको उस व्यक्ति का प्यार हासिल नहीं हो पाता है.

पुराना प्रेम संबंध

कोई ऐसा प्रेम संबंध जो किसी कारणवश खत्म हो चुका हो, लेकिन आपके दिल में अभी भी उसके प्रति प्यार बना हो लेकिन अब उसके पास लौटने की कोई गुंजाइश न हो.

बेदर्द प्यार

आप अपने की तुलना में उससे ज़्यादा प्यार करते हैं और उसके प्रति ज़्यादा वफ़ादार हैं. ऐसे रिश्तों में ताजगी बनाए रखने के लिए आप अपने पार्टनर से ज्यादा प्रयत्न करते हैं.

सबके साथ होता है

शोधकर्ताओं ने तीन सौ हाईस्कूल और विश्वविद्यालय के छात्रों पर अध्ययन किया और पिछले दो वर्षों में उनके एकतरफा प्यार के अनुभवों के बारे में पूछा. शोधकर्ताओं ने यह भी जानने का प्रयत्न किया कि भावनात्मक रूप से एक से सात तक के पैमाने उनकी भावनाएं कितनी चरम पर थीं.

शोधकर्ताओं ने 450 छात्रों पर दूसरा अध्ययन किया और उनसे पूछा कि एकतरफा प्यार में जूनून और वफादारी के अलावा अन्य सकारात्मक पहलू क्या होते हैं.

शोधकर्ताओं ने पाया कि छात्रों को दोतरफा प्यार की तुलना में एकतरफ़ा प्यार चार गुना अधिक होता है. करीब नब्बे प्रतिशत लोग उनके लिए रोए थे जो पिछले दो सालों में अपने प्यार को किसी मुकाम पर नहीं पहुंचा पाए.

शोध में पाया गया कि किसी ऐसे व्यक्ति के प्रति गहरा आकर्षण जिसे आप जानते हैं लेकिन उससे अपने दिल की बात कह नहीं सकते, एकतरफा प्यार में होने वाली सबसे आम घटना है. दो प्यार करने वालों के बीच एक दूसरे के प्रति बराबर प्यार ना होना भी आम पाया गया.

दुःख तो होता ही है

स्टडी में पाया गया कि हर तरह के एकतरफा प्यार में दोतरफा प्यार की अपेक्षा कम गहराई होती है. दो लोगों के बीच प्रेम संबंध जूनून, अंतरंगता और एक दूसरे का ख्याल रखने से ही प्रगाढ़ होता है.

लेकिन जिस व्यक्ति को आप प्यार करते हैं उसके प्रति आपकी भावनाएं कितनी गहरी हैं यह इस पर निर्भर करता है कि आप किस तरह के एकतरफा प्यार में हैं. किसी फिल्म स्टार के प्रति गहरे आकर्षण की तुलना आपकी पुराने गर्लफ्रेंड से नहीं की जा सकती है जिसके साथ आप फिर से जुड़ना चाहते हैं.

रिसर्च ने इस सिद्धांत को खारिज कर दिया है कि एकतरफा प्यार किसी भी तरह दोतरफा प्यार के कुछ सकारात्मक पहलुओं को प्रदान करता है, जैसे उस व्यक्ति के लिए पागलपन, उससे अंतरंगता और शारीरिक संबंध बनाने की इच्छा और रिश्ते में बिना किसी उतार चढ़ाव के उसके साथ रहने की इच्छा. एकतरफा प्यार असुविधाजनक और निश्चित रूप से असंतुष्ट स्थिति है.

एकतरफा प्यार क्यों होता है?

एक समय ऐसा आता है जब हम किसी व्यक्ति के साथ रोमांस करने को तरसते हैं लेकिन हम जिससे प्यार करते हैं उसे हममें कोई दिलचस्पी ही नहीं होती है. यह जानते हुए भी हम उसकी सभी बातें आसानी से बर्दाश्त कर लेते हैं.

शोधकर्ताओं ने तीन सिद्धांत दिए हैं:

प्यार का एहसास होना अच्छा है

आप किसी ऐसे व्यक्ति से प्यार करते हैं जिसे आपमें रूचि नहीं है लेकिन आप उससे वह प्यार हासिल करना चाहते हैं जो दोस्ती के रिश्ते में आप कभी नहीं पा सकते हैं. उदाहरण के लिए एकतरफा प्यार और वास्तविक प्यार दोनों में किसी के लिए पागल होना आम बात है. किसी के साथ रिश्ता जुड़ने का ख्याल और उसका होने का सपना देखना भावनात्मक रूप से अच्छा है बजाय इसके कि कोई ख्याल ही ना आए.

खुद को जानने का मौका

एकतरफा प्यार आपके जीवन का एक ऐसा अनुभव है जो एक समय में गलत साबित जरूर हो सकता है लेकिन इससे आपको यह जानने में सहायता मिलती है कि आप कैसे हैं और आपको किस तरह के पार्टनर की जरूरत है.

जीत इसी में है

अंत में, शोधकर्ताओं का कहना है कि एकतरफ़ा प्यार देरी से मिलने वाले किसी मुनाफ़े जैसा है. हालांकि यह थोड़ी देर के लिए बेचैन कर देता है लेकिन भविष्य में रिश्ते जुड़ने की संभावना भी इसी से बनती है.

Valentine Special 2024: क्या आप भी शादी से बोर हो गए हैं?

Sex News in Hindi: ‘‘मेरा पति मुझे प्यार करता है, मेरी पूरी इज्जत करता है, मेरा पूरा ध्यान रखता है, इस बात का विश्वास दिलाता है कि वह मुझे धोखा नहीं देगा, विश्वासघात नहीं करेगा, लेकिन अपने मन की बहुत सी बातें मुझ से शेयर करता हुआ वह यह भी कहता है कि वह अन्य औरतों की ओर आकर्षित होता है. ‘‘यह बात मुझे हैरान भी करती है और परेशान भी. हैरान इसलिए कि वह मुझे अपने मन की सचाई बता रहा है, लेकिन वह शादीशुदा होते हुए अन्य महिलाओं की ओर आकर्षित कैसे हो सकता है, यह बात मुझे परेशान करती है.’’

वैवाहिक संबंधों की एक सलाहकार के सामने बैठी महिला उन्हें यह बता कर अपनी समस्या का समाधान ढूंढ़ने का प्रयास कर रही है. मैरिज काउंसलर का इस बारे में कहना है, ‘‘मुझे पता है कि किसी भी पत्नी के लिए अपने पति का अन्य महिलाओं की ओर आकर्षित होना परेशानी व ईर्ष्या का विषय है. पत्नी के लिए यह मानसिक आघात व पीड़ादायक स्थिति होती है.

‘‘लेकिन पति आप से अपने इस आकर्षण के बारे में बात करता है, तो वह सच्चा है, आप के प्रति ईमानदार है. इस के विपरीत वे पुरुष, जो अन्य महिलाओं की तरफ आकर्षित होते हैं, उन से रिश्ता रखते हैं, लेकिन पत्नी से छिपाते हैं, झूठ बोलते हैं, वे ईमानदार पतियों की श्रेणी में नहीं आते. ऐसी बात तो पत्नियों के लिए चिंता का विषय है.’’

कुछ भी गलत नहीं

आप चाहे किसी जानीमानी हीरोइन जैसी दिखती हों पर अगर कोई दूसरी आकर्षक शख्सियत कमरे में आएगी तो आप के पति का उस की ओर आकर्षित होना स्वाभाविक है. यह स्थिति परेशान करती है पर बदलेगी नहीं, क्योंकि यह प्राकृतिक है. इस में कुछ भी गलत नहीं है. क्या पत्नियां आकर्षक सजीले पुरुषों की ओर आकर्षित नहीं होतीं, उन्हें नहीं निहारतीं, उन की तारीफ नहीं करतीं? अगर आप के सामने कोई जानामाना शख्स होगा तो आप भी अपने पति को छोड़ कर उसे निहारेंगी, उस की ओर आकर्षित होंगी.

सहजता से लें

किसी भी सुंदर, अच्छी चीज की ओर आकर्षण मानव का स्वभाव है. यह हमारे जींस में है. यह एक हैल्दी धारणा है. आप शादी के बंधन में बंध गए तो आप किसी अन्य महिला या पुरुष की ओर नहीं देखेंगे, यह किसी ग्रंथ या किताब में लिखा भी है तो भी प्रकृति का दिया नहीं है. इसलिए जब कभी कोई एक किसी अन्य को देख कर उस की तरफ निहारे तो कोपभाजन में न जा कर उसे सहजता से लें. देखने भर से अगर किसी को सुकून मिलता है तो इस में आप का कुछ बिगड़ नहीं जाता. आप एक नई कार खरीदते हैं पर आप सड़क पर चल रही अन्य बड़ी, आकर्षक कारों की ओर आकर्षित भी होते हैं, तारीफ भी करते हैं, बल्कि उसे अपना बनाने की चाहत भी रखते हैं. यह तो कार की बात है, लेकिन रिश्ते में आकर्षण यानी विपरीत सैक्स की ओर आकर्षण स्वाभाविक है.

नीरसता को तोड़ता है

मैनेजमैंट के 2 छात्र आकांक्षा व प्रतीक अपना कोर्स खत्म हो जाने के बाद अपनीअपनी जिंदगी में व्यस्त हो गए. सालों बाद जब फेसबुक पर वे मिले तो दोनों ने एकदूसरे के बारे में जाना. दोनों की शादी हो गई थी, लेकिन दोनों एकदूसरे की ओर आकर्षित हुए. हां, दोनों ने अपनी अपनी सीमाओं का अतिक्रमण नहीं किया. थोड़ा सा रोमानी हो जाना रुटीन की नीरसता को तोड़ता है. आकांक्षा को सास की टोकाटाकी, घर की जिम्मेदारियों व पति के असहयोगी रवैए की अपेक्षा प्रतीक काफी सुलझा हुआ, नारी की स्वतंत्रता में विश्वास रखने वाला लगा. वहीं प्रतीक को बेतरतीबी से रहने वाली अपनी पत्नी की अपेक्षा आकांक्षा कहीं अधिक सजग व आकर्षक लगी. दोनों के बीच मैसेज और औनलाइन चैटिंग होने लगी. दोनों अपने कालेज, दोस्तों, परिवार, समस्याओं और भावनाओं को एकदूसरे के साथ बांटने लगे. दोनों को एकदूसरे का साथ अच्छा लगने लगा. धीरेधीरे दोनों को एकदूसरे की आदत सी हो गई.

जीवन का हिस्सा

प्रतीक की पत्नी सीमा और आकांक्षा के पति गौरव को यह आकर्षण, यह मेलजोल बिलकुल नहीं सुहाता था, लेकिन गौरव और सीमा को अगर कोई पुराना दोस्त मिलेगा और उस में उन्हें आकर्षण नजर आएगा, तो क्या वे आकर्षित हुए बिना रह पाएंगे? हर इंसान एक रुटीन वाली दिनचर्या से नजात चाहता है, जिंदगी में नयापन चाहता है. ऐसे में क्या शादी हो जाने का मतलब अपनी सोचसमझ खो कर सिर्फ एकदूसरे की जिंदगी में बेवजह शक करना और रोज की किचकिच को वैवाहिक जीवन का हिस्सा बनाना है?

परिवर्तन के लिए

आज जब कामकाज के मामले में स्त्रीपुरुष में भेद करना रूढिवादिता है, ऐसे में जब स्त्रीपुरुष दोनों घर से बाहर निकलते हैं, तो उन में यौनाकर्षण होना स्वाभाविक है. चाहे प्राइवेट औफिस हो या विश्वविद्यालय, पुरुष अपनी भावनाओं, अनुभवों को साथ बांटने वाली स्त्री के साथ समीपता महसूस करता है, जो पत्नी के साथ संभव नहीं होता. औरत अकेलेपन से घबराती है, इसलिए वह किसी के साथ ऐसा रिश्तानाता जोड़ती है. घर से बाहर का पुरुष, जिस का स्वभाव उस से मिलता जुलता है, जो उसे घरेलू समस्याओं से दूर रखता है, उस की दिलचस्पी वाले विषयों पर उस से बातें करता है, उस के साथ बैठ कर कामकाजी महिला को थोड़े समय के लिए मानसिक और शारीरिक तनाव से मुक्ति मिलती है, उसे घर की कैद से राहत की सांस मिलती है, जो उसे मानसिक सुकून देती है. घर में साफसफाई, बच्चों की जिम्मेदारी, घर के खर्च, बजट, मैनेजमैंट आदि के मुद्दे पतिपत्नी के अहंकारों के टकराने का कारण बनते हैं, जिस से जीवन प्रेमविहीन होने लगता है. ऐसे में पुरुष व महिलाओं के एकदूसरे की ओर आकर्षण को अपराध मानना गलत है और एकदूसरे को शक के कठघरे में खड़ा करना शादीशुदा जीवन का अंत बन जाता है.

आकर्षण स्वस्थ धारणा है

आप ने बहुत सैक्सी ड्रैस पहनी है. आप के पति आप से पूछेंगे कहां जा रही हो? आप न कहेंगी तो वे हैरान होंगे कि आप ऐसे तैयार क्यों हुई हैं और आप की ओर आकर्षित होंगे ताकि कोई और आप की ओर आकर्षित न हो. आकर्षण एक स्वस्थ धारणा है, इसे शक के दायरे में ला कर इस की खूबसूरती को बदसूरत बनाना समझदारी नहीं है. आप एक नई ड्रैस खरीदती हैं, लेकिन अगर किसी और ने अधिक अच्छी ड्रैस पहनी है तो क्या आप उस ड्रैस की ओर नहीं देखेंगी या उस की ओर आकर्षित नहीं होंगी. यह मानवीय स्वभाव है कि जब आप किसी बंधन में बंध जाते हैं तो आप आजाद हो कर नियम तोड़ना चाहते हैं. ऐसे में विपरीत सैक्स की ओर आकर्षण प्राकृतिक है, यह बेईमानी या विश्वासघात नहीं है. वास्तविकता यह है कि आप का पति बेहद आकर्षक है लेकिन उन के आगे आप को कोई मशहूर शख्स अधिक आकर्षक लगेगा. ऐसा ही पुरुषों के साथ भी होता है.

मजे के लिए

जब पतिपत्नी में से कोई विपरीत सैक्स की ओर आकर्षित होता है, फ्लर्ट करता है तो इस का अर्थ यह नहीं है कि उन में से कोई पति या पत्नी को छोड़ देगा. उन से रिश्ता तोड़ देगा. साथी आकर्षित हो कर फ्लर्ट सिर्फ जिंदगी में नएपन या मजे के लिए करता है और आप को इस की जानकारी है तो इसे स्वस्थ और सकारात्मक नजरिए से देखिए. अगर पतिपत्नी एकदूसरे के प्रति जिम्मेदार हैं, दोनों को एकदूसरे पर विश्वास है, तो परपुरुष या परस्त्री की ओर आकर्षित होना अपराध नहीं है.

वादियों का प्यार: कैसे बन गई शक की दीवार – भाग 3

और मैं ने अचानक निश्चय कर लिया कि मैं अभी इसी वक्त अपने मायके चली जाऊंगी. साकेत से मुझे कोई स्पष्टीकरण नहीं चाहिए. इतना बड़ा धोखा मैं कैसे बरदाश्त कर सकती थी? और मैं दोपहर को ही बिना किसी से कुछ कहेसुने अपने मायके के लिए चल पड़ी. आते समय एक नोट जल्दी में गुस्से में लिख कर अपने तकिए के नीचे छोड़ आई थी :

‘मैं जा रही हूं. वजह तुम खुद जानते हो. मुझे धोखे में रख कर तुम सुख चाहते थे पर यह नामुमकिन है. अपने जीवनसाथी के साथ विश्वासघात करते तुम को शर्म नहीं आई? क्या मालूम और कितनी लड़कियां ऐसे फांस चुके हो. मुझे तुम से नफरत है. मिलने की कोशिश मत करना.   -सुनीता’

घर आ कर मम्मीपापा को मैं ने यह सब बताया तो उन्होंने सिर धुन लिया. पापा गुस्से में बोले, ‘उस की यह हिम्मत, इतना बड़ा जुर्म और जबान तक न हिलाई. अब मैं भी उसे जेल भिजवा कर रहूंगा.’

मैं यह सब सुन कर जड़ सी हो गई. यद्यपि मैं साकेत को जेल भिजवाना नहीं चाहती थी पर पापा मुकदमा करने पर उतारू थे.

मेरी समझ को तो जैसे लकवा मार गया था और पापा ने कुछ दिनों बाद ही साकेत पर इस जुर्म के लिए मुकदमा ठोंक दिया. मैं भी पापा के हर इशारे पर काम करती रही और साकेत को दूसरा विवाह करने के अपराध में 3 वर्षों की सजा हो गई.

मेरे सासससुर ने साकेत को बचाने के लिए बहुत हाथपैर मारे, पर सब बेकार.

इस फैसले के बाद मैं गुमसुम सी रहने लगी. कोर्ट में आए हुए साकेत की उखड़ीउखड़ी शक्ल याद आती तो मन भर आता, न जाने किन निगाहों से एकदो बार उस ने मुझे देखा कि घर आने पर मैं बेचैन सी रही. न ठीक से खाना खाया गया और न नींद आई.

साकेत के साथ बिताया, हुआ हर पल मुझे याद आता. क्या सोचा था और क्या हो गया.

इन सब उलझनों से मुक्ति पाने के लिए मैं ने स्थानीय माध्यमिक विद्यालय में अध्यापिका की नौकरी कर ली.

दिन गुजरते गए और अब स्कूल की तरफ से ही शिमला आ कर मुझे पिछली यादें पागल बनाए दे रही थीं.

बाहर लड़कियों के खिलखिलाने के स्वर गूंज रहे थे. मैं अचानक वर्तमान में लौट आई. निर्मला जब मेरे करीब आई तो वह हंसहंस कर ऊंचीनीची पहाडि़यों से हो कर आने की और लड़कियों की बातें सुनाती रही और मैं निस्पंद सी ही पड़ी रही.

दूसरे दिन से एनसीसी का काम जोरों से शुरू हो गया. लड़कियां सुबह होते ही चहलपहल शुरू कर देतीं और रात तक चुप न बैठतीं.

एक दिन लड़कियों की जिद पर उन्हें बस में मशोबरा, फागू, कुफरी और नालडेरा वगैरह घुमाने ले जाया गया. हर जगह मैं साकेत की ही याद करती रही, उस के साथ जिया हरपल मुझे पागल बनाए दे रहा था.

हमारे कैंप के दिन पूरे हो गए थे. आखिरी दिन हम लोग लड़कियों को ले कर माल रोड और रिज की सैर को गए.

मैं पुरानी यादों में खोई हुई हर चीज को घूर रही थी कि सामने भीड़ में एक जानापहचाना सा चेहरा दिखा. बिखरे बाल, सूजी आंखें, बढ़ी हुई दाढ़ी पर इस सब के बावजूद वह चेहरा मैं कभी भूल सकती थी भला? मैं जड़ सी हो गई. हां, वह साकेत ही थे. खोए, टूटे और उदास से.

मुझे देख कर देखते ही रहे, फिर बोले, ‘‘क्या मैं ख्वाब देख रहा हूं? तुम और यहां? मैं तो यहां तुम्हारे साथ बिताए हुए क्षणों की याद ताजा करने के लिए आया था पर तुम? खैर, छोड़ो. क्या मेरी बात सुनने के लिए दो घड़ी रुकोगी?’’

मेरी आंखें बरस पड़ने को हो रही थीं. निर्मला से सब लड़कियों का ध्यान रखने को कह कर मैं भीड़ से हट कर किनारे पर आ गई. मुझे लगा साकेत आज बहुतकुछ कहना चाह रहे हैं.

सड़क पार कर साकेत सीढि़यां उतर कर नीचे प्लाजा होटल में जा बैठे, मैं भी चुपचाप उन के पीछे चलती रही.

साकेत बैठते ही बोले, ‘‘सुनीता, तुम मुझ से बगैर कुछ कहेसुने चली गईं. वैसे मुझे तुम को पहले ही सबकुछ बता देना चाहिए था. उस गलती की मैं बहुत बड़ी सजा भुगत चुका हूं. अब यदि मेरे साथ न भी रहना चाहो तो मेरी एक बात जरूर सुन लो कि मेरी शादी मधु से हुई जरूर थी पर पहले दिन ही मधु ने मेरे पैर पकड़ कर कहा था, ‘आप मेरा जीवन बचा सकते हैं. मैं किसी और से प्यार करती हूं और उस के बच्चे की मां बनने वाली हूं. यह बात मैं अपने पिताजी को समझासमझा कर हार गई पर वे नहीं माने. उन्होंने इस शादी तक मुझे एक कमरे में बंद रखा और जबरदस्ती आप के साथ ब्याह दिया.

‘‘‘मैं आप की कुसूरवार हूं. मेरी वजह से आप का जीवन नष्ट हो गया है पर मैं आप के पैर पड़ती हूं कि मेरे कारण अपनी जिंदगी खराब मत कीजिए. आप तलाक के लिए कागजात ले आइए, मैं साइन कर दूंगी और खुद कोर्ट में जा कर सारी बात साफ कर दूंगी. आप और मैं जल्दी ही मुक्त हो जाएंगे.’

‘‘यह कह कर मधु मेरे पैरों में गिर पड़ी. मेरी जिंदगी के साथ भी खिलवाड़ हुआ था पर उस को जबरदस्ती अपने गले मढ़ कर मैं और बड़ी गलती नहीं करना चाहता था, इसलिए मैं ने जल्दी ही तलाक के लिए अरजी दे दी. मुझे तलाक मिल भी जाता, पर तभी तुम जीवन में आ गईं.’’

‘‘मैं स्वयं चाह कर भी अपनी तरफ से तुम्हें मैसेज नहीं लिख रहा था पर जब तुम्हारा मैसेज आया तो मैं समझ गया कि आग दोनों तरफ लगी है और मैं अनचाहे ही तुम्हें भावभरे मैसेज भेजता गया.

‘‘फिर तुम्हारे पापा ने जब सगाई करनी चाही तो मैं अपनी बात कहने के लिए इसलिए मुंह नहीं खोल पाया कि कहीं इस बात से बनीबनाई बात बिगड़ न जाए और मैं तुम्हें खो न बैठूं.

‘‘बस, वहीं मुझ से गलती हुई. तुम्हें पा जाने की प्रबल अभिलाषा ने मुझ से यह जुर्म करवाया. शिमला की रंगीनियां कहीं फीकी न पड़ जाएं, इसलिए यहां भी मैं ने तुम्हें कुछ नहीं बताया. उस के बाद मुझे लगा कि यह बात छिपाई जा सकती है और तलाक मिलने पर तुम्हें बता दूंगा पर वह नौबत ही नहीं आई. तुम अचानक कहीं चली गईं और मिलने से भी मना कर गईं.

‘‘जेल की जिंदगी में मैं ने जोजो कष्ट सहे, वे यह सोच कर दोगुने हो जाते थे कि अब तुम्हारा विश्वास कभी प्राप्त न कर सकूंगा और इस विचार के आते ही मैं पागल सा हो जाता था.

‘‘पिछले महीने ही मैं सजा काट कर आया हूं पर घर में मन ही नहीं लगा. तुम्हारे साथ बिताए हर पल दोबारा याद करने के लालच में ही मैं यहां आ गया.’’

और साकेत उमड़ आए आंसुओं को अपनी बांह से पोंछने लगे, फिर झुक कर बोले, ‘‘हाजिर हूं, जो सजा दो, भुगतने को तैयार हूं. पर एक बार, बस, इतना कह दो कि तुम ने मुझे माफ कर दिया.’’

मैं बौराई हुई सी साकेत की बातें सुन रही थी. अब तक सिर्फ श्रोता ही बनी रही. भर आए गले को पानी के गिलास से साफ कर के बोली, ‘‘क्या समझते हो, मैं इस बीच बहुत सुखी रही हूं? मुझे भी तुम्हारी हर याद ने बहुत रुलाया है. बस, दुख था तो यही कि तुम ने मुझ से इतनी बड़ी बात छिपाई.

‘‘यदि एक बार, सिर्फ एक बार मुझे अपने बारे में खुल कर बता देते तो यहां तक नौबत ही न आती. पतिपत्नी में जब विश्वास नाम की चीज मर जाती है तब उस की जगह नफरत ले लेती है. इसी वजह से मैं ने तुम्हें मिलने को भी मना कर दिया था पर तुम्हारे बिना रह भी नहीं पाती थी.

‘‘जब तुम्हें सजा हुई तब मेरे दिल पर क्या बीती, तुम्हें क्या बताऊं. 3-4 दिनों तक न खाना खाया और न सोई, पर खैर उठो…जो हुआ, सो हुआ, विश्वास के गिर जाने से जो खाई बन गई थी वह आज इन वादियों में फिर पट गई है. इन वादियों के प्यार को हलका न होने दो.’’

और हम दोनों एकएक कप कौफी पी कर हाथ में हाथ डाले होटल से बाहर आ गए माल रोड की चहलपहल में खो जाने के लिए, एकदूसरे की जिंदगी में समा जाने के लिए.

वादियों का प्यार: कैसे बन गई शक की दीवार – भाग 2

कहीं ऐसा तो नहीं कि साकेत ने पहले कोई लड़की पसंद कर के उस से सगाई कर ली हो और फिर तोड़ दी हो या फिर प्यार किसी से किया हो और शादी मुझ से कर ली हो? आखिर हम ने साकेत के बारे में ज्यादा जांचपड़ताल की ही कहां है. जीजाजी भी उस के काफी वक्त बाद मिले थे. कहीं तो कुछ गड़बड़ है. मुझे पता लगाना ही पड़ेगा.

पता नहीं इसी उधेड़बुन में मैं कब तक खोई रही और फिर यह सोच कर शांत हो गई कि जो कुछ भी होगा, साकेत से पूछ लूंगी.

किंतु रात को अकेले होते ही साकेत से जब मैं ने यह बात पूछनी चाही तो साकेत मुझे बाहों में भर कर बोले, ‘देखो, कल रात कालका मेल से शिमला जाने के टिकट ले आया हूं. अब वहां सिर्फ तुम होगी और मैं, ढेरों बातें करेंगे.’ और भी कई प्यारभरी बातें कर मेरे निखरे रूप का काव्यात्मक वर्णन कर के उन्होंने बात को उड़ा दिया.

मैं ने भी उन उन्मादित क्षणों में यह सोच कर विचारों से मुक्ति पा ली कि ज्यादा से ज्यादा यह होगा कि प्यार किसी और से किया होगा पर विवाह तो मुझ से हो गया है. और मैं थकान से बोझिल साकेत की बांहों में कब सो गई, मुझे पता ही न चला.

दूसरे दिन शिमला जाने की तैयारियां चलती रहीं. तैयारियां करते हुए कई बार वही सवाल मन में उठा लेकिन हर बार कोई न कोई बात ऐसी हो जाती कि मैं साकेत से पूछतेपूछते रह जाती. रात को कालका मेल से रिजर्व कूपे में हम दोनों ही थे. प्यारभरी बातें करतेकरते कब कालका पहुंच गए, हमें पता ही न चला. सुबह 7 बजे टौय ट्रेन से शिमला पहुंचने के लिए उस गाड़ी में जा बैठे.

घुमावदार पटरियों, पहाड़ों और सुरंगों के बीच से होती हुई हमारी गाड़ी बढ़ी जा रही थी और मैं साकेत के हाथ पर हाथ धरे आने वाले कल की सुंदर योजनाएं बना रही थी. मैं बीचबीच में देखती कि साकेत कुछ खोए हुए से हैं तो उन्हें खाइयों और पहाड़ों पर उगे कैक्टस दिखाती और सुरंग आने पर चीख कर उन के गले लग जाती.

खैर, किसी तरह शिमला भी आ गया. पहाड़ों की हरियाली और कोहरे ने मन मोह लिया था. स्टेशन से निकल कर हम मरीना होटल में ठहरे.

कुछ देर आराम कर के चाय आदि पी कर हम माल रोड की सैर को निकल पड़े.

साकेत सैर करतेकरते इतनी बातें करते कि ऊंची चढ़ाई हमें महसूस ही न होती. माल रोड की चमकदमक देख कर और खाना खा कर हम अपने होटल लौट आए. लौटते हुए काफी रात हो गई थी व पहाड़ों की ऊंचाईनिचाई पर बसे होटलों व घरों की बत्तियां अंधेरे में तारों की झिलमिलाहट का भ्रम पैदा कर रही थीं. दूसरे दिन से घूमनेफिरने का यही क्रम रहने लगा. इधरउधर की बातें करतेकरते हाथों में हाथ दिए हम कभी रिज, कभी माल रोड, कभी लोअर बाजार और कभी लक्कड़ बाजार घूम आते.

दर्शनीय स्थलों की सैर के लिए तो साकेत हमेशा टैक्सी ले लेते. संकरी होती नीचे की खाई देख कर हम सिहर जाते. हर मोड़ काटने से पहले हमें डर लगता पर फिर प्रकृति की इन अजीब छटाओं को देखने में मग्न हो जाते.

इस प्रकार हम ने वाइल्डफ्लावर हौल, मशोबरा, फागू, चैल, कुफरी, नालडेरा, नारकंडा और जाखू की पहाड़ी सभी देख डाले.

हर जगह ढेरों फोटो खिंचवाते. साकेत को फोटोग्राफी का बहुत शौक था. हम ने वहां की स्थानीय पोशाकें पहन कर ढेरों फोटो खिंचवाईं. मशोबरा के संकरे होते जंगल की पगडंडियों पर चलतेचलते साकेत कोई ऐसी बात कह देते कि मैं खिलखिला कर हंस पड़ती पर आसपास के लोगों के देखने पर हम अचानक अपने में लौट कर चुप हो जाते.

नारकंडा से हिमालय की चोटियां और ग्लेशियर देखदेख कर प्रकृति के इस सौंदर्य से और उन्मादित हो जाते.

इस प्रकार हर जगह घूम कर और माल रोड से खापी कर हम अपने होटल लौटने तक इतने थक जाते कि दूसरे दिन सूरज उगने पर ही उठते.

इस तरह घूमतेघूमते कब 10 दिन गुजर गए, हमें पता ही न चला. जब हम लौट कर वापस दिल्ली पहुंचे तो शिमला की मस्ती में डूबे हुए थे.

साकेत अब अपनी वर्कशौप जाने लगे थे. मैं भी रोज दिन का काम कराने के लिए रसोई में जाने लगी.

एक दिन चुपचाप मैं अपने कमरे में खिड़की पर बैठी थी कि साकेत आए. मैं अभी कमरे में उन के आने का इंतजार ही कर रही थी कि मेरी सासूजी की आवाज आई, ‘साकेत, कल काम पर मत जाना, तुम्हारी तारीख है.’ और साकेत का जवाब भी फुसफुसाता सा आया, ‘हांहां, मुझे पता है पर धीरे बोलो.’

उन लोगों की बातचीत से मुझे कुछ शक सा हुआ. एक बार आगे भी मन में यह बात आई थी लेकिन साकेत ने टाल दिया था. मुझे खुद पर आश्चर्य हुआ, पहले दिन जिस बात को साकेत ने प्यार से टाल दिया था उसे मैं शिमला के मस्त वातावरण में पूछना ही भूल गई थी. खैर, आज जरूर पूछ कर रहूंगी. और जब साकेत कमरे में आए तो मैं ने पूछा, ‘कल किस बात की तारीख है?’

साकेत सहसा भड़क से उठे, फिर घूरते हुए बोले, ‘हर बात में टांग अड़ाने को तुम्हें किस ने कह दिया है? होगी कोई तारीख, व्यापार में ढेरों बातें होती हैं. तुम्हें इन से कोई मतलब नहीं होना चाहिए. और हां, कान खोल कर सुन लो, आसपड़ोस में भी ज्यादा आनेजाने की जरूरत नहीं. यहां की सब औरतें जाहिल हैं. किसी का बसा घर देख नहीं सकतीं. तुम इन के मुंह मत लगना.’ यह कह कर साकेत बाहर चले गए.

मैं जहां खड़ी थी वहीं खड़ी रह गई. एक तो पहली बार डांट पड़ी थी, ऊपर से किसी से मिलनेजुलने की मनाही कर दी गई. मुझे लगा कि दाल में अवश्य ही कुछ काला है. और वह खास बात जानने के लिए मैं एड़ीचोटी का जोर लगाने के लिए तैयार हो गई.

दूसरे दिन सास कहीं कीर्तन में गई थीं और साकेत भी घर पर नहीं थे. काम वाली महरी आई. मैं उस से कुछ पूछने की सोच ही रही थी कि वह बोली, ‘मेमसाहब, आप से पहले वाली मेमसाहब की साहबजी से क्या खटरपटर हो गई थी कि जो वे चली गईं, कुछ पता है आप को?’

यह सुन कर मेरे पैरों तले जमीन खिसकने लगी. कुछ रुक कर वह धीमी आवाज में मुझे समझाती हुई सी बोली, ‘साहब की एक शादी पहले हो चुकी है. अब उस से कुछ मुकदमेबाजी चल रही है तलाक के लिए.’ सुन कर मेरा सिर चकरा गया.

सगाई और शादी के समय साकेत का खोयाखोया रहना, सगाई के लिए मांबाप तक को न लाना और शादी में सिर्फ 5 आदमियों को बरात में लाना, अब मेरी समझ में आ गया था. पापा खुद सगाई के बाद आ कर घरबार देख गए थे. जा कर बोले थे, ‘भई, अपनी सुनीता का समय बलवान है. अकेला लड़का है, कोई बहनभाई नहीं है और पैसा बहुत है. राज करेगी यह.’

उन को भी तब इस बात का क्या गुमान था कि श्रीमान एक शादी पहले ही रचाए हुए हैं.

जीजाजी भी तब यह कह कर शांत हो गए थे, ‘लड़का मेरा जानादेखा है पर पिछले 5 वर्षों से मेरी इस से मुलाकात नहीं हुई, इसलिए मैं इस से ज्यादा क्या बता सकता हूं.’

इन्हीं विचारों में मैं न जाने कब तक खोई रही और गुस्से में भुनभुनाती रही कि वक्त का पता ही न चला. अपने संजोए महल मुझे धराशायी होते लगे. साकेत से मुझे नफरत सी होने लगी.

कंवल और केवर की प्रेम कहानी- भाग 3

कैद में पड़ी कंवल को रहरह कर केवर की याद सताए जा रही थी. चिंता में डूबी जमीन पर पड़ी कंवल के सामने एकदम से टुन्ना मानो कहीं से प्रकट हो गई. कंवल ने उसे देख कर हैरानी से पूछा, ‘‘तुम यहां कैसे आई?’’ टुन्ना ने हड़बड़ी में कंवल से कहा, ‘‘मैं और सां झी यहां दासदासी बन कर आए हैं.

कल ही मैं ने यहां दासी की नौकरी ली है. केवर सिंह को भी बंदी बनाया गया है. मैं तु झ तक सारे संदेश पहुंचाती रहूंगी, तू बस सब्र रखना. हम तुम दोनों को जल्द ही छुड़ा कर ले जाएंगे.’’ केवर के बंदी बनाए जाने की खबर सुन कंवल को खूब चोट पहुंची.

उसे अब यह महसूस होने लगा कि शायद दोनों की कहानी यहीं इसी कैद में सिमट कर खत्म हो जाएगी कि तभी कुछ सोचविचार कर टुन्ना ने इधरउधर नजरें दौड़ा कर माहौल का मुआयना करते हुए कंवल के कान में एक योजना सुनाते हुए कहा, ‘‘देख कंवल, मैं और सां झी एक बहुत बड़ी योजना के साथ यहां आए हैं, तो सुन…’’ टुन्ना ने सारी योजना कंवल को कह सुनाई. उस रात ही टुन्ना खाना ले कर केवर सिंह की कोठरी में पहुंची. खाने की थाली के नीचे टुन्ना ने एक कटार को ठीक से पकड़ रखा था.

जैसे ही टुन्ना ने थाली को केवर सिंह की ओर सरकाया, साथ में कटार भी सरका दी.  केवर सिंह टुन्ना को वहां देख कर अवाक से रह गया. टुन्ना ने आंखें बड़ी करते हुए केवर को चुप रहने का इशारा किया और बाहर खड़े सिपाही फालूदा खां को एक गिलास भांग पकड़ाते  हुए बोली, ‘‘यह तुम्हारे लिए है  फालूदा खां.’’ ‘‘मेरे लिए… पर क्यों?’’ ‘‘नहीं चाहिए, तो लाओ वापस ले जाती हूं.’’

‘‘अरे, नहींनहीं अब पी ही लेता हूं,’’ फालूदा खां ने एक सांस में सारी भांग गटकते हुए टुन्ना को धन्यवाद दिया, पर इतना कहते ही वह सिपाही खूनी उलटी करता हुआ वहीं ठंडा पड़ गया.

कोठरी में बैठा हुआ केवर सबकुछ देख रहा था. सिपाही के दम तोड़ते ही वह इस सब का मतलब सम झ चुका था. उन्होंने वह कटार उठाई और किसी तरह से उस कोठरी से निकल गया.

अ गले दिन केवर के कोठरी से भाग जाने की खबर पूरे दरबार में फैल गई. बादशाह ने अब केवर को जिंदा या मुरदा लाने का आदेश दे डाला.  आदेश मिलते ही औसाफ खां नामक दरबारी ने केवर को मारने का जिम्मा उठा लिया. उधर केवर मेवाड़ के एक सरहदी गांव के मुखिया गंगो भील से मदद की संधि करने पहुंचा.  गंगो भील ने उसे भरोसा दिया कि अगर लड़ाई हुई तो उसे 60 गांवों के भीलों का पूरा समर्थन रहेगा.  औसाफ खां केवर की तलाश कर के थक चुका था.

उस ने बड़े भारी मन से महमूद को जा कर अपनी नाकामी की खबर सुनाई.  महमूद ने पूरे गुजरात में केवर की धर पकड़ शुरू करवा दी. बाहर से आने वाली हर पालकी, हर घुड़सवार, व्यापारी, हर किसी की तलाशी ले कर ही उसे सरहद के भीतर आने दिया जाता.  योजना के मुताबिक दूसरी पारी खेलने की बारी कंवल की थी. कंवल ने महमूद से कहा, ‘‘बादशाह, मैं अब केवर का इंतजार करकर के थक चुकी हूं. मैं नामसम झ थी जो आप के शादी के प्रस्ताव को ठुकरा कर केवर के पीछे पागल थी, पर अब इस बेवकूफ कंवल को सम झ आ चुका है कि उस ने कितनी बड़ी भूल की है.

आप मु झे माफ कर दीजिए और एक बार मु झे अपनी गलती सुधारने का मौका दीजिए.’’ ‘‘तुम ने सही सम झा. अब तक उस केवर की लाश कहीं पड़ी सड़ रही होगी. बस एक सपना अधूरा रह गया हमारा कि हम उस के सामने तुम से निकाह करना चाहते थे,’’ बादशाह महमूद खुद को काफी नरमदिल और महान दिखाने की कोशिश में लगा था, पर अंदर ही अंदर वह भी कंवल जैसी खूबसूरत लड़की  को जल्द से जल्द अपनी बेगम बनाना चाहता था.  कंवल धीरे से बोली, ‘‘लेकिन मेरी कुछ शर्तें हैं.’’ ‘‘कैसी शर्तें?’’ कंवल ने शर्तें बतानी शुरू कीं, ‘‘पहली, हमारी शादी एकादशी वाले दिन ही होगी.

दूसरी, विवाह हिंदू रीतिरिवाज से ही होगा. तीसरी, शादी के दिन जब आप बुलंद गुंबज में पधारें तो खूब आतिशबाजियां हों और आखिरी शर्त यह कि हमारी शादी देखने का हक सब को होना चाहिए. मेरी मां भी पालकी में बैठ कर बुलंद गुंबज में आएं.’’

‘‘हमें तुम्हारी सारी शर्तें मंजूर हैं,’’ महमूद उस दिन काफी खुश था. कंवल को मालूम था कि सां झी और केवर मेवाड़ में उस का अगला संदेशा आने का इंतजार कर रहे होंगे.

अब टुन्ना को महल से निकालने की बारी थी, सो उसी के हाथ यह आखिरी संदेशा भिजवाना रह गया था.  कंवल ने टुन्ना से कहा, ‘‘केवर से कहना कि एकादशी को मारवाड़ के व्यापारी मूंदड़ा की बरात अजमेर से अहमदाबाद आएगी. रास्ते में आप उसी बरात में वेश बदल कर शरीक हो जाना, ताकि बरात के साथसाथ आप भी दरबार में प्रवेश कर सकें.

‘‘यही एक रास्ता है अहमदाबाद में घुसने का, क्योंकि अब भी यहां आप की छानबीन खूब जोरशोर से चल रही है. आगे की योजना अहमदाबाद पहुंचने  के बाद.’’ जाने से पहले टुन्ना ने कंवल को एक बार गले लगा कर कहा, ‘‘अब कुछ ही दिनों की बात है कंवल…’’

एकादशी का दिन भी नजदीक था, उधर टुन्ना के मुंह से यह संदेशा सुन कर केवर और सां झी ने अपने दूसरे दोस्तों के साथ अहमदाबाद में घुसने की तैयारियां शुरू कीं. महमूद भी कंवल से अपनी शादी की तैयारियों में दिल से जुटा हुआ था. वह आखिरी घड़ी आज आ चुकी थी और हथियारों से लैस केवर और उस के साथी तयशुदा समय और योजना के मुताबिक बरात में जा मिले.

उधर महमूद के लिए हाथी सजाया जा चुका था. बरात के आगेपीछे शहनाई वादक थे, नगाड़े बज रहे थे, ढोल की थाप सब के जी में खड़े हो कर नाचने की उमंग भर रही थी. बीच मे हाथी पर सवार महमूद के आगे सिपाहियों के घोड़े और हाथी थे.

उधर कंवल की मां जवाहर पातुर के घर पर अपनी योजना के मुताबिक केवर तैयार बैठा था. पालकी वाले जवाहर पातुर को बुलंद गुंबज में ले जाने को आ चुके थे.  टुन्ना ने पालकी वालों का ध्यान भटकाए रखा और उधर केवर साड़ी पहने पालकी के भीतर जा बैठा.

बुलंद गुंबज पहुंचते ही कंवल पालकी देख खुशी से  झूम उठी. सैनिकों ने पालकी को जमीन पर रखा कि टुन्ना ने उन्हें बाहर भेज दिया. केवर बाहर निकला. साड़ी में होने के चलते उस पर किसी को कोई शक नहीं हुआ.  सैनिक बाहर जा चुके थे. अब अंदर सिर्फ केवर और कंवल ही थे. इतने दिनों बाद एकदूसरे को आमनेसामने देख दोनों के सब्र का बांध टूट गया.

कंवल से रहा न गया और वह दौड़ती हुई केवर से जा मिली. दोनों ने खूब आंसू बहाए. तभी टुन्ना के कानों में पटाकों की आवाज सुनाई पड़ी.  कंवल ने कहा, ‘‘महमूद शाह आ गया है.’’ केवर जा कर पीछे वाली एक मीनार के पीछे छिप गया. कंवल सहजता के भाव लिए अपनी जगह पर पहुंच गई.

अब थोड़ी ही देर में गुंबज के भीतर सिर्फ 4 जने ही थे टुन्ना, कंवल, केवर और बादशाह महमूद.  महमूद अपनी बेगम से मिलने को उतावला उस के कमरे में जाने ही वाला था कि उधर से केवर ने महमूद की गरदन को अपनी बगल में भींचते हुए उस का दम निकलना चाहा.

महमूद का चेहरा अब पीला पड़ने लगा था. उस की आंखें बाहर को निकल आईं कि तभी महमूद अपनी तलवार तक अपना हाथ पहुंचाने में कामयाब हो गया, पर उस की तलवार का वार केवर के सिर के ऊपर से गुजर गया.  क ेवर दांवपेंच में कुशल था, सो निहत्था ही चंद मिनटों की गहमागहमी के बाद महमूद पर काबू पा गया.  महमूद की चीखें सुनने वाला कोई न था.

बाहर आतिशबाजी और कारतूसों के धमाके उस की चीखें दबा रहे थे. अपनी ही तलवार के वार से महमूद के प्राण पखेरू उड़ गए.  टुन्ना ने किसी के अंदर आने से पहले ही कंवल और केवर को पालकी में बैठा दिया और पालकी वालों को बुला कर कहा, ‘‘लो जवाहर पातुर को उन के घर छोड़ दो. आज बादशाह  रानी कंवल के साथ यहीं रुकेंगे तो  उन्हें परेशान न कीजिएगा,’’ कह कर टुन्ना भी फटाफट जवाहर पातुर के घर पहुंच गई. जवाहर पातुर के घर पहुंच कर कंवल और केवर ने उन के चरणों में गिर कर आशीर्वाद मांगा. बाहर सां झी  3 घोड़े लिए तैयार खड़ा था.  सां झी ने टुन्ना और केवर ने कंवल को अपने साथ अपने घोड़े पर बैठाया और पीछेपीछे जवाहर पातुर भी अपनी नई आजाद जिंदगी इज्जत से जीने की चाह लिए घोड़े पर चली जा रही थी.

कंवल और केवर की प्रेम कहानी- भाग 2

केवर सिंह के नाम के जयकारे लगाने वाली एक तरफ की प्रजा जैसे शांत सी हो गई हो, वहीं दूसरी तरफ वाली प्रजा की रगों में जैसे अपने साथी हुक्काम को जीतता देख खून बिजली की रफ्तार से दौड़ने लगा.  अब चारों ओर ‘हुक्काम’ का शोर था, पर आखिर में एक विचित्र से दांव के साथ हुक्काम को रेतीली जमीन पर पटकनी देते हुए केवर सिंह ने खेल का सारा नतीजा ही बदल दिया.

केवर के हुक्काम को पटकने की देरी ही थी कि प्रजा अखाड़े में कूद कर केवर सिंह को कंधों पर चढ़ाए मस्ती से ?ामने लगी. नगाड़े बजने लगे और लोग मस्ती से ?ामने लगे.  केवर सिंह की नजर कंवल पर पड़ी ही थी कि वह एक मुसकान के साथ शरमा कर रह गई.  ‘‘अरे कंवल, तुम यहां. आज भी…’’ केवर और कंवल अभी कल ही मिले थे. आज भी उसे यहां देख कर केवर ने कंवल से पूछा. ‘‘हां, मैं ने सुना कि आप रोजरोज ही अपना बलप्रदर्शन कर रहे हैं, तो आज भी देखने चले आई,’’ कंवल ने अल्हड़पने में जवाब दिया. ‘‘अरे नहीं, ऐसा कुछ नहीं,’’ केवर ने ?ोंपते हुए कहा और कंवल को अपने गले लगा लिया.

सारा दिन सैरसपाटे और बाग में घूमने के बाद शाम हो चली थी. कंवल की सहेली टुन्ना ने अब कंवल से वापस चलने को कहा.  कंवल केवर सिंह को छोड़ कर यों जाना तो नहीं चाहती थी, पर उसे भी रात होने से पहले घर पहुंचना था.  क ेवर सिंह ने कंवल और टुन्ना से कहा कि उन्हें अब जल्द ही निकलना चाहिए. सां?ा ने केवर सिंह से कहा, ‘‘केवर, अब अंधेरा होने ही वाला है, इसलिए मु?ो लगता है कि हमें इन के साथ एक सिपाही भी भेजना चाहिए.’’

टुन्ना और कंवल ने इस के लिए इनकार किया, पर केवर ने हामी भरी और दोनों सहेलियों के लिए एक हथियारबंद सिपाही को बुलाया गया और कहा कि तुम्हें इन दोनों लड़कियों के साथ जाना है. इन को महफूज पहुंचाना तुम्हारी जिम्मेदारी है.

वह सिपाही अपने प्यासे घोड़े को तुरंत पानी पिलाने ले गया और जाने  की तैयारी करने लगा. उतने में ही केवर सिंह ने कंवल को अपने बाहुपाश में भरते हुए आखिरी बार उस के माथे को चूमते हुए उसे घोड़े पर बैठाया और  उधर सां?ा और टुन्नी का भी फिलहाल अपने प्यार को विराम देने का समय  आ चुका था. सब चलने को तैयार थे.

आगे दोनों लड़कियां और पीछे हथियारबंद सिपाही. जवाहर पातुर आज कंवल को बादशाह के संग शादी करने के लिए मनाने की सोच कर घर के लिए निकली थी, पर घर पर कंवल को न देखने के बाद उस के कानों में महमूद की वह बात गूंजने लगी, ‘तुम दिनभर यहां रहती हो. तुम्हारी बेटी सुबह से शाम तक कहां जाती है, क्या करती है, इस की तुम्हें क्या खबर…’  पातुर को अब लगने लगा था कि शायद महमूद की बात ठीक थी.  अब कंवल की शादी कर देना ही  ठीक रहेगा.

कंवल और टुन्ना के घोड़े कंवल के दरवाजे पर आ कर रुके. टुन्ना का घर अभी और आगे था, सो वह वहां से चलती बनी.  जवाहर पातुर घर से बाहर निकली तो तैश में थी, पर साथ में सिपाही को देख कर बेटी को उस के सामने डांटना ठीक न सम?ा.  सिपाही जाने की तैयारी करने लगा, तो जवाहर पातुर ने सामने से कहा, ‘‘रात काफी हो चुकी है.

अभी मीलों का सफर तय करना खतरे से खाली नहीं और  तुम्हें भूख भी लगी होगी, तो आज  रात यहीं रुको. कल सवेरे जल्दी  निकल जाना.’’ कंवल ने भी कहा, तो वह सिपाही रुकने को तैयार हो गया. रात को भोजन करने के बाद आरामकक्ष में उस के सोने का इंतजाम कर दिया गया.

रात को मौका देख कर जवाहर पातुर ने बेटी कंवल से आज हुई सारी घटना सुना दी.   मां की बात सुन कर कंवल ने कहा, ‘‘क्या… मैं उस महमूद से शादी कर लूं… उस अधेड़ से. मां, तुम ने देखा नहीं कि वह किस गलत नजर से वह मेरी तरफ देख रहा था.

मैं तो उस के हावभाव से  ही पहचान गई थी कि यह इनसान ठीक नहीं है.  ‘‘और क्या 2 लाख रुपए मैं वह आप से मेरा सौदा करना चाहता है. अरे, उस से कहना कि केवर सिंह के सामने उस का सारा साम्राज्य कम है.’’ ‘‘बेटी, तू सम झ नहीं रही है… तू जवाहर पातुर की बेटी है. तू इतने बड़े सपने न देख. खेलकूद अलग चीज है और जिंदगी अलग.’’ ‘‘उस महमूद से कहना कि जिस ने शेर केवर सिंह को गले लगाया हो वह गीदड़ महमूद को अपना पति नहीं बना सकती,’’

कंवल बोली. कंवल की बेपरवाही पर जवाहर पातुर ने एक जोर का तमाचा उस के गाल पर जड़ दिया. कंवल अपनी मां की कठोरता पर फूटफूट कर रोने लगी.  करुणा के आगे क्रोध कहां ठहर पाता है. अपने प्रेम के लिए तड़पती बेटी का दुख मां से न देखा गया.

उसे याद आया कि कैसे उसे भी उस जालिम महमूद ने अपने प्रेमजाल में फांस कर बड़ेबड़े सपने दिखाए थे, उसे अपने दरबार में जगह दी थी, पर इस सब की कीमत  उस महमूद ने उसे वेश्या बना कर वसूल की थी.  जवाहर पातुर को सम झ आ चुका था कि यही गलती वह इस बार फिर करने जा रही है. उस ने अपनी बेटी कंवल को हिम्मत देते हुए कहा, ‘‘बेटी, तू उसी घराने में शादी करेगी जहां तेरी इच्छा है. तु झे मेरी ओर से पूरी छूट है. तु झे अपनी जिंदगी को अपने मनमुताबिक जीने का पूरा हक है.’’

अगले दिन अपने विवाह प्रस्ताव के ठुकरा दिए जाने की खबर सुन कर बादशाह महमूद शाह की आंखों में मानो खून उतर आया. उस ने कंवल और केवर को कैद करने का हुक्म देते हुए कहा, ‘‘तुम लोगों में से जो भी केवर को बंदी बना कर मेरे पास लाएगा,

उसे केवर की जागीर का नया मालिक बना दिया जाएगा.’’ क ंवल को तो कैद कर लिया गया पर केवर को कैदी बनाने की हिम्मत हर किसी में न थी. पर बादशाह महमूद को खुश करने के लिए और केवर की जागीर के लालच में जलाल नामक दरबारी ने केवर को कैद करने का वचन दे डाला. जलाल को मालूम था कि हिंदुओं में होली का त्योहार बहुत धूमधाम से बनाया जाता है.

होली के दिन जलाल केवर की जागीर में होली का  झूठा निमंत्रण ले कर केवर के महल पहुंच गया.  केवर सिंह ने भी बादशाह महमूद का निमंत्रण स्वीकार करते हुए कहा, ‘‘बादशाह से कहना कि हमारी इस बार की होली हम उन्हीं के साथ मनाएंगे.’’ होली में अब कुछ ही दिन बाकी थे.

उधर कंवल को महल में रख बादशाह ने बहुत बड़ी गलती की थी. बादशाह चाहता था कि वह केवर के सामने ही कंवल से शादी करेगा.  होली का दिन आ चुका था. बादशाह के यहां केवर सिंह को लाया गया, पर महल में घुसते ही उस के गले और हाथों में लोहे की भारीभारी बेडि़यां डाल दी गईं. केवर की सम झ में नहीं आया कि यह सब क्या हो रहा है. बादशाह ने केवर सिंह को कैद में डाल दिया. उधर उस की जागीर पूरी तरह से बादशाह के कब्जे में ली जा चुकी थी.

कंवल और केवर की प्रेम कहानी- भाग 1

जवाहर पातुर ने कई बार कंवल को चेताया… तू इस महल में नहीं आएगी. कोई बात होगी तो तभी बताना, जब मैं घर आ जाया करूं…’’ कंवल का रूपरंग भी अपनी मां से कहीं ज्यादा बढ़ कर था. जवाहर पातुर यह कभी नहीं चाहती थी कि उस की फूल सी बच्ची पर उस नामुराद महमूद शाह की काली छाया पड़े. उन दिनों बादशाह महमूद शाह के राजघराने में वेश्याओं का अच्छाखासा तांता लगा रहता था. बादशाह के हरम में हुस्न की कोई कमी न थी. उन्हीं में से एक रूपवती थी जवाहर पातुर. बादशाह महमूद शाह के साम्राज्य में वेश्या जवाहर पातुर की खूबसूरती का बोलबाला था.

सब ने यही सुना था कि बादशाह के हरम में कई आईं और गईं, पर एक जवाहर पातुर ही है, जिसे हरम में रानी के समान ही सारी सहूलियतें मुहैया थीं.  जवाहर पातुर की बेटी कंवल भी कभीकभी अपनी मां से मिलने महल में आ जाया करती थी, पर पातुर को यह पसंद न था. वैसे अब तक ऐसा नहीं हुआ कि महमूद और कंवल ने एकदूसरे को आमनेसामने देखा हो, पर आज वह महमूद की नजरों से बच न सकी.  महमूद ने इस से पहले ऐसी बला की खूबसूरती न देखी थी.

कंवल अपनी सहेली टुन्ना के साथ अपनी मां के कमरे में बैठ बाटिया के जागीर कुंवर केहर सिंह चौहान के मल्लयुद्ध में बड़ेबड़े पहलवानों को पस्त करने के दांवपेंचों का शब्दचित्र खींच कर अपनी मां को सुना ही रही थी कि उसी वक्त महमूद का मन पातुर के साथ समय बिताने को किया, तो वह दनदनाते हुए उस के कमरे में चला आया. उस दिन यह कंवल और महमूद शाह की पहली मुलाकात थी.

दोनों ने पहली बार एकदूसरे को आमनेसामने देखा था.  महमूद ने बड़ी गर्मजोशी से कंवल का स्वागत करते हुए कहा, ‘‘अरे पातुर, तुम ने आज तक बताया क्यों नहीं कि तुम्हारी बेटी इतनी बड़ी हो गई है और इन्हें महल भी इतने दिन बाद ले कर आई हो. कभी हम से तो मिलवाने के लिए ले आती.’’ ‘‘जी हुजूर, पर यह हाथ ही कहां आती है. दिनभर तो अपनी सहेलियों के साथ मटरगश्ती में लगी रहती है,’’ जवाहर पातुर ने चापलूसी वाली हंसी हंसते हुए टुन्ना की ओर देखते हुए कहा.  ‘‘चलिए, कोई बात नहीं. अब आप को यहां आते रहना है. कभी किसी चीज की कमी हो, तो बे?ि?ाक बता देना. और तुम्हें हम से मिलने के लिए किसी की इजाजत लेने की भी जरूरत नहीं है,’’ महमूद ने कंवल की पीठ पर हाथ फेरते हुए कहा.  कंवल हड़बड़ी में अपनी मां और महमूद से विदा ले कर अपनी सहेली टुन्ना के संग वहां से निकल गई. महमूद ने कंवल को थोड़ी देर और रोकना चाहा, पर फिर कुछ सोच कर रुक गया.

उस दिन सारी रात महमूद शाह किसी गहरी सोच में डूबा रहा. वह कभी इस ओर करवट लेता, तो कभी उस ओर. और कभी बारबार एक ?ाटके से उठ कर बैठ जाया करता.  अगले दिन किसी अनमनी सी सोच में उल?ा महमूद फिर जवाहर पातुर के कमरे में गया और थोड़ी देर इधरउधर की बात करने के बाद उसे बाजुओं से पकड़ता हुआ बोला, ‘‘देखो पातुर, मैं तुम्हें कुछ बताने के लिए आया हूं…’’ मानो महमूद के मन में क्या है, उस का अंदाजा वह लगा पा रही हो, पर फिर भी अपने अंदेशे को अपने ही अंदर छिपाते हुए बोली, ‘‘हुजूर, कुछ कहना था तो मु?ो बुला लिया होता.

अब बादशाह  को किसी को कुछ कहने के लिए  उस के पास जाना पड़े, यह तो कोई बात नहीं हुई.’’ ‘‘तुम वह सब छोड़ो पातुर और यह बताओ कि क्या तुम अपनी बेटी कंवल को मेरी रानी बनाना चाहोगी?’’ पातुर मानो यही सुनने के लिए रुकी थी. उसे मालूम था कि कल जिस तरह से महमूद ने उस की बेटी की पीठ को हाथ से सहलाया था, वह उस का दिखावा मात्र था.

वह बोली, ‘‘लेकिन हुजूर, वह अभी काफी छोटी है. उस के लिए अभी भी राजपाठ ऐशोआराम से कहीं ज्यादा बढ़ कर अपनी सहेलियां और दोस्त हैं. उसे अभी इस हरम में न डालिए.

मैं आप को मना नहीं कर रही हूं, बस थोड़ा रुकने को कह रही हूं.’’ जवाहर पातुर को जो अंदेशा था, ठीक वही हुआ. वह कल ही सम?ा चुकी थी कि महमूद की आवारा नजर उस की बेटी पर पड़ चुकी है और कभी भी महमूद की यह मांग हो सकती है कि उसे अब कंवल से निकाह करना है. ‘‘देखो, मां को अपने बच्चे हमेशा छोटे ही लगते हैं, पर किसी और से पूछो तो वह बताएगा कि कंवल अब कितनी बड़ी हो चुकी है. तुम समाज के बारे में सोचो… दिनभर तुम यहां रहती हो, उधर वह पूरे दिन क्या करती है, किस से मिलती है, कौन जानता है. इधर एक रानी की हैसियत से इस महल में रहेगी, तो तुम सोच ही सकती हो कि क्या शान होगी तुम लोगों की.  ‘‘खैर, चलो छोड़ो. अभी फिलहाल उस से कहना कि बादशाह ने उसे 2 लाख रुपए सालाना जागीर देने का फैसला किया है,’’ महमूद घेरने में माहिर था. वह अपना काम निकलवाने के लिए अपनी जबान का इस्तेमाल करना बखूबी जानता था.

2 लाख रुपयों का लालच पातुर की आन को तोड़ने लगा था. उस ने बादशाह से कहा, ‘‘ठीक है हुजूर, मैं बात करूंगी कंवल से.’’ ‘‘मैं जानता हूं पातुर कि तुम मेरी ख्वाहिश पूरी करने में जान लगा दोगी. आज तक तुम ने यही तो किया है,’’ कहते हुए बादशाह पातुर के कमरे से बाहर आ गया.

उधर सूरज को आसमान में चढ़े थोड़ी ही देर हुई थी कि कंवल अपनी सखी टुन्ना के संग घोड़ों पर सवार हो कर गुजरात की छोटी सी जागीर बारिया के मालिक कुंवर केवर सिंह चौहान के बाहुबल का कारनामा देखने उन की जागीर में जा रही थी.

आज केवर सिंह की हुक्काम से कुश्ती की प्रतियोगिता थी. यह जागीर बादशाह महमूद शाह के साम्राज्य के अधीन ही थी.  कंवल को महल पहुंचने में थोड़ी देर हो गई थी. उधर कुश्ती का खेल शुरू हो चुका था. कंवल और उस की सहेली टुन्ना को आता देख कुंवर केवर सिंह के दोस्त सां?ा ने उन्हें दर्शकों की भीड़ में रास्ता बना कर आगे की ओर ला कर अलग जगह पर बैठा दिया, जहां से सिर्फ राजघराने के लोगों को ही कार्यक्रम देखने की इजाजत थी.

केवर सिंह को हुक्काम सिंह पर भारी पड़ते देख कंवल खुशी के मारे सभी के साथ जोर से शोर मचाती, तालियां पीटती. उस की सहेली टुन्ना और सां?ा कंवल की यह बचकानी हरकत को देख उस पर ठहाके लगाते और उस का मजाक बनाते.  खेल के मिजाज से यह साफ जाहिर था कि आज केवर सिंह का दिन ठीक नहीं है.

वादियों का प्यार: कैसे बन गई शक की दीवार – भाग 1

नैशनल कैडेट कोर यानी एनसीसी की लड़कियों के साथ जब मैं कालका से शिमला जाने के लिए टौय ट्रेन में सवार हुई तो मेरे मन में सहसा पिछली यादों की घटनाएं उमड़ने लगीं.

3 वर्षों पहले ही तो मैं साकेत के साथ शिमला आई थी. तब इस गाड़ी में बैठ कर शिमला पहुंचने तक की बात ही कुछ और थी. जीवन की नई डगर पर अपने मनचाहे मीत के साथ ऐसी सुखद यात्रा का आनंद ही और था.

पहाडि़यां काट कर बनाई गई सुरंगों के अंदर से जब गाड़ी निकलती थी तब कितना मजा आता था. पर अब ये अंधेरी सुरंगें लड़कियों की चीखों से गूंज रही हैं और मैं अपने जीवन की काली व अंधेरी सुरंग से निकल कर जल्द से जल्द रोशनी तलाश करने को बेताब हूं. मेरा जीवन भी तो इन सुरंगों जैसा ही है- काला और अंधकारमय.

तभी किसी लड़की ने पहाड़ी के ऊपर उगे कैक्टस को छूना चाहा तो उस की चीख निकल गई. साथ आई हुई एनसीसी टीचर निर्मला उसे फटकारने लगीं तो मैं अपने वर्तमान में लौटने का प्रयत्न करने लगी.

तभी सूरज बादलों में छिप गया और हरीभरी खाइयां व पहाड़ और भी सुंदर दिखने लगे. सुहाना मौसम लड़कियों का मन जरूर मोह रहा होगा पर मुझे तो एक तीखी चुभन ही दे रहा था क्योंकि इस मौसम को देख कर साकेत के साथ बिताए हुए लमहे मुझे रहरह कर याद आ रहे थे.

सोलन तक पहुंचतेपहुंचते लड़कियां हर स्टेशन पर सामान लेले कर खातीपीती रहीं, लेकिन मुझे मानो भूख ही नहीं थी. निर्मला के बारबार टोकने के बावजूद मैं अपने में ही खोई हुई थी उन 20 दिनों की याद में जो मैं ने विवाहित रह कर साकेत के साथ गुजारे थे.

तारा के बाद 103 नंबर की सुरंग पार कर रुकतीचलती हमारी गाड़ी ने शिमला के स्टेशन पर रुक कर सांस ली तो एक बार मैं फिर सिहर उठी. वही स्टेशन था, वही ऊंचीऊंची पहाड़ियां, वही गहरी घाटियां. बस, एक साकेत ही तो नहीं था. बाकी सबकुछ वैसा का वैसा था.

लड़कियों को साथ ले कर शिमला आने का मेरा बिलकुल मन नहीं था, लेकिन प्रिंसिपल ने कहा था, ‘एनसीसी की अध्यापिका के साथ एक अन्य अध्यापिका का होना बहुत जरूरी है. अन्य सभी अध्यापिकाओं की अपनीअपनी घरेलू समस्याएं हैं और तुम उन सब से मुक्त हो, इसलिए तुम्हीं चली जाओ.’

और मुझे निर्मला के साथ लड़कियों के एनसीसी कैंप में भाग लेने के लिए आना पड़ा. प्रिंसिपल बेचारी को क्या पता कि मेरी घरेलू समस्याएं अन्य अध्यापिकाओं से अधिक गूढ़ और गहरी हैं पर खैर…

लड़कियां पूर्व निश्चित स्थान पर पहुंच कर टैंट में अपनेअपने बिस्तर बिछा रही थीं. मैं ने और निर्मला ने भी दूसरे टैंट में अपने बिस्तर बिछा लिए. खानेपीने के बाद मैं बिस्तर पर जा लेटी.

थकान न तो लड़कियों को महसूस हो रही थी और न निर्मला को. वह उन सब को ले कर आसपास की सैर को निकल गई तो मैं अधलेटी सी हो कर एक पत्रिका के पन्ने पलटने लगी.

यद्यपि हम लोग शिमला के बिलकुल बीच में नहीं ठहरे थे और हमारा कैंप भी शिमला की भीड़भाड़ से काफी दूर था फिर भी यहां आ कर मैं एक अव्यक्त बेचैनी महसूस कर रही थी.

मेरा किसी काम को करने का मन नहीं कर रहा था. मैं सिर्फ पत्रिका के पन्ने पलट रही थी, उस में लिखे अक्षर मुझे धुंधले से लग रहे थे. पता नहीं कब उन धुंधले हो रहे अक्षरों में कुछ सजीव आकृतियां आ बैठीं और इस के साथ ही मैं तेजी से अपने जीवन के पन्नों को भी पलटने लगी…

वह दिन कितना गहमागहमी से भरा था. मेरी बड़ी बहन की सगाई होने वाली थी. मेरे होने वाले जीजाजी आज उस को अंगूठी पहनाने वाले थे. सभी तरफ एक उल्लास सा छाया हुआ था. पापा अतिथियों के स्वागतसत्कार के इंतजाम में बेहद व्यस्त थे. सब अपेक्षित अतिथि आए. उस में मेरे जीजाजी के एक दोस्त भी थे.

जीजाजी ने दीदी के हाथ में अंगूठी पहना दी, उस के बाद खानेपीने का दौर चलता रहा. लेकिन एक बात पर मैं ने ध्यान दिया कि जीजाजी के उस दोस्त की निगाहें लगातार मुझ पर ही टिकी रहीं.

यदि कोई और होता तो इस हरकत को अशोभनीय कहता, किंतु पता नहीं क्यों उन महाशय की निगाहें मुझे बुरी नहीं लगीं और मुझ में एक अजीब सी मीठी सिहरन भरने लगी. बातचीत में पता चला कि उन का नाम साकेत है और उन का स्वयं का व्यापार है.

सगाई के बाद पिक्चर देखने का कार्यक्रम बना. जीजाजी, दीदी, साकेत और मैं सभी इकट्ठे पिक्चर देखने गए. साकेत ने बातोंबातों में बताया, ‘तुम्हारे जीजाजी हमारे शहर में 5 वर्षों पहले आए थे. हम दोनों का घर पासपास था, इसलिए आपस में कभीकभार बातचीत हो जाती थी पर जब उन का तबादला मेरठ हो गया तो हम लोगों की बिलकुल मुलाकात न हो पाई.

‘मैं अपने काम से कल मेरठ आया था तो ये अचानक मिल गए और जबरदस्ती यहां घसीट लाए. कहो, है न इत्तफाक? न मैं मेरठ आता, न यहां आता और न आप लोगों से मुलाकात होती,’ कह कर साकेत ठठा कर हंस दिए तो मैं गुदगुदा उठी.

सगाई के दूसरे दिन शाम को सब लोग चले गए, लेकिन पता नहीं साकेत मुझ पर कैसी छाप छोड़ गए कि मैं दीवानी सी हो उठी.

घर में दीदी की शादी की तैयारियां हो रही थीं पर मैं अपने में ही खोई हुई थी. एक महीने बाद ही दीदी की शादी हो गई पर बरात में साकेत नहीं आए. मैं ने बातोंबातों में जीजाजी से साकेत का मोबाइल नंबर ले लिया और शादी की धूमधाम से फुरसत पाते ही मैसेज किया.

साकेत का रिप्लाई आ गया. व्यापार की व्यस्तता की बात कह कर उन्होंने माफी मांगी थी.

और उस के बाद हम दोनों में मैसेज का सिलसिला चलता रहा. मैं तब बीएड कर चुकी थी और कहीं नौकरी की तलाश में थी, क्योंकि पापा आगे पढ़ाने को राजी नहीं थे. मैसेज के रूप में खाली वक्त गुजारने का बड़ा ही मोहक तरीका मुझे मिल गया था.

साकेत के प्रणयनिवेदन शुरू हो गए थे और मैं भी चाहती थी कि हमारा विवाह हो  जाए पर मम्मीपापा से खुद यह बात कहने में शर्म आती थी. तभी अचानक एक दिन साकेत का मैसेज मेरे मोबाइल पर मेरी अनुपस्थिति में आ गया. मैं मोबाइल घर पर छोड़ मार्केट चली गई, पापा ने मैसेज पढ़ लिया.

मेरे लौटने पर घर का नकशा ही बदला हुआ सा लगा. मम्मीपापा दोनों ही बहुत गुस्से में थे और मेरी इस हरकत की सफाई मांग रहे थे.

लेकिन मैं ने भी उचित अवसर को हाथ से नहीं जाने दिया और अपने दिल की बात पापा को बता दी. पहले तो पापा भुनभुनाते रहे, फिर बोले, ‘उस से कहो कि अगले इतवार को हम से आ कर मिले.’

और जब साकेत अगले इतवार को आए तो पापा ने न जाने क्यों उन्हें जल्दी ही पसंद कर लिया. शायद बदनामी फैलने से पहले ही वे मेरा विवाह कर देना चाहते थे. जब साकेत भी विवाह के लिए राजी हो गए तो पापा ने उसी दिन मिठाई का डब्बा और कुछ रुपए दे कर हमारी बात पक्की कर दी. साकेत इस सारी कार्यवाही में पता नहीं क्यों बहुत चुप से रहे, जाते समय बोले, ‘अब शादी अगले महीने ही तय कर दीजिए. और हां, बरात में हम ज्यादा लोग लाने के हक में नहीं हैं, सिर्फ 5 जने आएंगे. आप किसी तकल्लुफ और फिक्र में न पड़ें.’

और 1 महीने बाद ही मेरी शादी साकेत से हो गई. सिर्फ 5 लोगों का बरात में आना हम सब के लिए एक बहुत बड़ा आदर्श था.

किंतु शादी के बाद जब मैं ससुराल पहुंची तो मुंहदिखाई के वक्त एक उड़ता सा व्यंग्य मेरे कानों में पड़ा, ‘भई, समय हो तो साकेत जैसा, पहली भी कम न थी लेकिन यह तो बहुत ही सुंदर मिली है.’

मुझे समझ नहीं आया कि इस का मतलब क्या है? जल्दी ही सास ने आनेजाने वालों को विदा किया तो मैं उलझन में डूबनेउतरने लगी.

नैशनल कैडेट कोर यानी एनसीसी की लड़कियों के साथ जब मैं कालका से शिमला जाने के लिए टौय ट्रेन में सवार हुई तो मेरे मन में सहसा पिछली यादों की घटनाएं उमड़ने लगीं.

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