लिवइन का साइड इफैक्ट, कैसे फंस गए ओए इंदौरी

इंदौर के एमआईजी थाने में 19 दिसंबर, 2023 को एक रेप केस दर्ज कराया गया. यह केस धारा 376 के तहत दर्ज किया गया और आरोपी बनाया गया हाल के समय में फेमस यूट्यूबर ओए इंदौरी को, जो अपने इंदौरी ऐक्सैंट के लिए फेमस है.

वैसे ओए इंदौरी का असली नाम रोबिन अग्रवाल जिंदल है जो कि इंदौर का रहने वाला है, इसलिए इस ने अपने यूट्यूब चैनल का नाम भी ‘ओए इंदौरी – अब हंसेगा इंडिया’ रखा है. उस पर अब तक 2,784,323,079 व्यूज हैं. इस ने अपना यूट्यूब चैनल 2017 में शुरू किया था लेकिन कोविड में जब सब अपनेअपने घरों में बंद थे तो लोगों ने खाली बैठेबैठे यूट्यूब का खूब इस्तेमाल किया. उसी समय ओए इंदौरी फेमस हो गया.

ओए इंदौरी के वीडियोज में कौमेडी और प्रैंक देखने को मिलता है. उस का एक इंस्टाग्राम अकाउंट भी है, जिस की आईडी है श4द्गट्ठद्बठ्ठस्रशह्म्द्ब. जिस पर उस के 7.4 मिलियन फौलोअर्स हैं. इस अकाउंट पर उस ने अब तक 1,413 पोस्ट की हैं. उस के इंस्टाग्राम बायो में लिखा है- ‘आई विल मेक यू लाफ.’ हालांकि जिस तरह के कंटैंट वह बनाता था उस पर हंसना तो दूर, उसे झेलना भी एक टास्क जैसा है.

ओए इंदौरी उर्फ रोबिन सोशल मीडिया पर सामान्य स्तर के व्यूअर्स के बीच फेमस चेहरा है. साल 2019 में कलर्स टीवी के एक शो में ओए इंदौरी ने अपनी मौजूदगी दर्ज कराई थी. बिना टैलेंट के बस फौलोअर्स के दम पर लोगों को भी मुकाम मिलता है, यह इस का सटीक उदाहरण ओए इंदौरी से समझ जा सकता है. उस शो को कौमेडियन भारती सिंह और उस के पति हर्ष लिम्बाचिया ने होस्ट किया था.

असल में विवाद तब खड़ा हुआ जब एक पीड़िता ने ओए इंदौरी उर्फ रोबिन अग्रवाल जिंदल पर रेप का केस दर्ज कराया. शिकायतकर्ता युवती खुद को तलाकशुदा बता रही है. उस का कहना है कि ओए इंदौरी ने उसे शादी का झांसा दे कर उस से शारीरिक संबंध बनाए हैं और बाद में किसी और लड़की से सगाई कर ली.

युवती ने कहा कि वह जब इंदौर आई थी तो उसे घर ढूंढ़ने में परेशानी हो रही थी. उस वक्त ओए इंदौरी ने उस की हैल्प की थी. बस, तभी से वे दोनों अच्छे दोस्त बन गए थे. उस के बाद ओए इंदौरी ने उस से अपने दिल की बात कही. वे दोनों लिवइन रिलेशनशिप में आ गए. उस दौरान उन के बीच फिजिकल रिलेशन बने. तब ओए इंदौरी ने उस से कहा था कि वह उस से ही शादी करेगा.

लेकिन 23 नंवबर को ओए इंदौरी की इंस्टाग्राम पोस्ट से पता चला कि उस की इंगेजमैंट किसी और से हो चुकी है. इस के बाद युवती ने पुलिस स्टेशन में केस दर्ज कराया. इस से पहले भी युवती ने मार्च के महीने में भी रिपोर्ट दर्ज कराई थी. लेकिन आपसी समझाता होने के बाद युवती ने केस वापस ले लिया. अब चूंकि ओए इंदौरी ने अपना वादा नहीं निभाया तो युवती फिर से पुलिस स्टेशन पहुंच गई. ओए इंदौरी के खिलाफ केस दर्ज कराने वाली युवती एक प्राइवेट कंपनी में जौब करती है.

गौरतलब है कि रोबिन ने कुछ समय पहले ही इंदौर के एक बड़े होटल में सगाई की है. उस की मंगेतर भी फेमस सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर है. उस का नाम अलिशा राजपूत है. उस के इंस्टाग्राम पर 7.31 मिलियन फौलोअर्स हैं. इस रिंग सैरेमनी में सोशल मीडिया की कई हस्तियां शामिल हुई थीं.

ओए इंदौरी पर लगे रेप आरोप के बारे में एमआईजी थाने के एसआई सचिन आर्य ने बताया कि रोबिन जिंदल पुत्र मिथिलेश अग्रवाल निवासी महालक्ष्मी नगर के खिलाफ शादी का झांसा दे कर रेप करने का मामला दर्ज किया गया है. केस दर्ज होने के बाद ओए इंदौरी फरार है. फिलहाल हम उस तक पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं. केस दर्ज होने के बाद ओए इंदौरी ने अग्रिम जमानत की याचिका दायर की थी, जिसे कोर्ट ने खारिज कर दिया है.

इस केस के बाद ओए इंदौरी बुरी तरह फंस गया है. साथ ही, उस का फेम भी खतरे में आ गया है. वैसे भी, किसी इन्फ्लुएंसर की लाइफ मुश्किल ही 6 महीने से ऊपर टिकती है. ओए इंदौरी जैसे किसी नामचीन इन्फ्लुएंसर के साथ यह होना अपवाद नहीं है. सोशल मीडिया की चमक, लोगों के बीच फेमस होना और खुद को बड़ा आदमी समझाने की भूल ऐसे लफड़ों में फंसा ही डालती है. लिवइन गलत नहीं पर संबंध किस से कैसे निभते हैं, यह समझ होना जरूरी है.

आजकल यंगस्टर्स बड़ी संख्या में लिव इनरिलेशनशिप को अपना रहे हैं. लिवइन रिलेशनशिप में रहते हुए आप ऐसे ही किसी केस में न फंसें, इस के लिए जरूरी है कि यंगस्टर्स को लिवइन रिलेशनशिप के बारे में सही जानकारी हो.

लिवइन के कंसीक्वेंसेस

लिवइन रिलेशनशिप का मतलब ‘शादी जैसा रिश्ता’ होता है. जब एक अनमैरिड लड़का और लड़की मैरिड कपल की तरह एक ही छत के नीचे रहते हैं तो उसे लिवइन रिलेशनशिप माना जाता है. लेकिन भारत के कानून में लिवइन रिलेशनशिप को ढंग से परिभाषित नहीं किया गया है. यहां लिवइन रिलेशनशिप को 2 अनमैरिड लोगों के बीच ‘नेचर औफ मैरिज’ के तौर पर रखा जाता है.

लिवइन रिलेशनशिप में रह रही महिला भी घरेलू हिंसा कानून का इस्तेमाल कर सकती है. सुप्रीम कोर्ट के अनुसार, ‘‘अगर कोई महिला किसी आदमी के साथ लिवइन में रहती है और महिला यह नहीं जानती कि आदमी पहले से मैरिड है तो इस सिचुएशन में दोनों पार्टनर्स के साथ रहने को ‘डोमैस्टिक रिलेशनशिप’ माना जाएगा.’’ ऐसी हालत में महिला को घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 के तहत गुजारा भत्ता लेने का अधिकार दिया गया है.

2011 में एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया था कि लिवइन रिलेशनशिप में रहने वाली महिला को सीआरपीसी की धारा 125 के तहत भरणपोषण पाने का अधिकार है और महिला को यह कह कर मना नहीं किया जा सकता कि उस ने कोई वैध शादी नहीं की थी.

अगर कोई लड़का और लड़की लिवइन में रहना चाहते हैं तो दोनों का अनमैरिड होना जरूरी है. अगर किसी पार्टनर की पहले शादी हुई है तो उस के डायवोर्स के पेपर जारी होने के बाद ही वह कानूनी रूप से लिवइन में रह सकता है वरना यह व्यभिचार में आएगा.

भारत में लिवइन रिलेशनशिप का कल्चर भी बढ़ रहा है. 2018 में एक सर्वे हुआ था. इस सर्वे में शामिल 80 फीसदी लोगों ने लिवइन रिलेशनशिप को सपोर्ट किया था. इन में से 26 फीसदी ने कहा था कि अगर मौका मिला तो वे भी लिवइन रिलेशन में रहेंगे.

सुप्रीम कोर्ट ने लता वर्सेस यूपी राज्य, एआईआर 2006 एससी 2522 में यह माना कि एक एडल्ट महिला अपनी पसंद के किसी भी व्यक्ति से शादी करने या अपनी पसंद के किसी भी व्यक्ति के साथ रहने के लिए आजाद थी. जैसेजैसे लोग लिवइन रिलेशनशिप को प्रायोरिटी देने लगे, रेप के झूठे केसेस बढ़ते चले गए. कई केसेस में ब्रेकअप के बाद महिला पार्टनर रेप की झठी एफआईआर फाइल कराती है.

बात करें अगर कानून की, तो भारतीय दंड संहिता 1860 के सैक्शन 375 के तहत रेप को डिफाइन किया गया है. इस में कहा गया है कि इन सिचुएशंस में माना जाएगा कि एक पुरुष ने एक महिला का ‘रेप’ किया है-

  1. अगर किसी महिला से शादी का झांसा दे कर संबंध बनाए गए हों.
  2. जब महिला के साथ उस की सहमति के बिना सैक्सुअल रिलेशन बनाया जाए.
  3. जब महिला फिजिकल रिलेशन बनाने के लिए इस डर के साथ सहमति दे कि ऐसा न करने पर उसे या उस के किसी प्रिय व्यक्ति को चोट या जान का खतरा है.
  4. जब ऐसा करने की सहमति देते समय महिला मन से अस्वस्थ हो या किसी भी तरह मानसिक रूप से बीमार हो.
  5. जब महिला नशे की वजह से या किसी अन्य मूर्खतापूर्ण या हानिकारक चीज की वजह से सैक्सुअल रिलेशन बनाने की प्रकृति और रिजल्ट्स को समझने में अक्षम है और सहमति देती है.
  6. जब महिला 16 साल की उम्र से कम है फिर चाहे सैक्स मरजी से हो या बिना मरजी के.

ओए इंदौरी के केस में देखा जाए तो शादी का झांसा दे कर फिजिकल रिलेशन बनाने के चार्जेज लग सकते हैं. अब देखना यह होगा कि इस मामले के आखिर में क्या होता है. सारे परिणाम इस सुझाव की तरफ इशारा करते हैं कि अगर आप लिवइन रिलेशनशिप में हैं या आने की सोच रहे हैं तो आप को इस के सारे कानून और अधिकार पता हों ताकि बाद में आप किसी पचड़े में न पड़ें.

निठारी हो या कॉलेज स्ट्रीट, जिस्मानी भूख की बलि चढ़ते मासूम

Society News in Hindi: देशभर में लड़कियों और छोटी बच्चियों के साथ घट रही सैक्स अपराध की तमाम घटनाओं से साबित हो चुका है कि हमारी बेटियां कहीं भी महफूज नहीं हैं. पड़ोस से ले कर घरपरिवार, रिश्तेदारों के बीच कब और कहां वे रेप की शिकार हो जाएं, कुछ कहा नहीं जा सकता.

अपनी दिमागी बीमारी और जिस्मानी भूख को अंजाम देने वाले सफेदपोश से ले कर सड़कछाप दरिंदे राजपथ से ले कर गलीमहल्लों तक में घूम रहे हैं.

दरअसल, ऐसी घटिया सोच वाले लोग डेढ़ साल से ले कर किशोर उम्र के बच्चों का इस्तेमाल अपने विकार को अंजाम देने के लिए करते हैं.

कुछ साल पहले निठारी कांड ने हमें चौंका दिया था. हालांकि मधुर भंडारकर की फिल्म ‘पेज-3’ के जरीए हम सफेदपोशों की सैक्स भूख को जान चुके हैं, लेकिन सैक्स से जुड़ी लोगों की घटिया सोच किस हद तक दरिंदगी का रूप ले सकती है, इस का पता हमें राजधानी नई दिल्ली समेत देश के अलगअलग हिस्सों में कुछ समय पहले घटी घटनाओं से चला है.

मध्य कोलकाता की कालेज स्ट्रीट में चौथी क्लास का एक बच्चा ट्यूशन पढ़ने के लिए ट्यूटर के घर जाने में हर रोज आनाकानी करता था. उस बच्चे ने कई बार बताने की कोशिश की कि वह ट्यूटर उसे अच्छा नहीं लगता, पर मां डांटडपट कर उसे ट्यूशन पढ़ने के लिए छोड़ आया करती थी.

एक दिन अचानक बच्चा जख्मी हालत में रोतेरोते घर पहुंचा, पर वह कुछ भी बताने से इनकार करता रहा. बाद में उस ने बताया कि शुरू से ही ट्यूटर उस की मासूमियत का फायदा उठा कर लाड़दुलार के बहाने इधरउधर हाथ लगाया करता था, पर आखिर में मामला जहां आ कर पहुंचा था, वह रोंगटे खड़े कर देने वाला था.

कुछ समय पहले पिंकी विरानी की एक किताब आई थी, ‘बिटर चौकलेट: चाइल्ड सैक्सुअल एब्यूज इन इंडिया’. इस में छपे सर्वे में बताया गया है कि

90 फीसदी मामलों में बच्चे घर पर अपने नौकरचाकर से ले कर ट्यूटर, बालिग, पारिवारिक सदस्यों से ले कर सगेसंबंधियों, यहां तक कि बाप की भी हैवानियत के शिकार होते हैं.

साल 2006 में निठारी कांड ने भी खास से ले कर आम लोगों के होश उड़ा दिए थे. मोनिंदर सिंह पंढेर और सुरेंद्र कोली पर बच्चों को अगवा कर उन का बलात्कार करने के बाद हत्या ही नहीं, बल्कि बच्चों का मांस पका कर खाने जैसी दरिंदगी के मामले ने सब को हिला दिया था.

नोएडा के पौश इलाके से सटे निठारी गांव से एक के बाद एक गरीब तबके के बच्चे गायब होते रहे.

जांच में 19 बच्चों का मामला सामने आया, जिन में से 14 साल की रिंपी हालदार के मामले में मोनिंदर सिंह पंढेर और सुरेंद्र कोली को विशेष सीबीआई अदालत ने फांसी की सजा सुनाई.

निठारी से सबक नहीं लिया

निठारी कांड से हम ने सबक नहीं लिया. अब तो आएदिन हमारी बेटियां न केवल रेप की शिकार हो रही हैं, बल्कि दरिंदगी की शिकार हो कर उन की जान पर भी बन आती है.

इस साल मार्च में मंगोलपुरी, दिल्ली में 7 साल की और फिर अप्रैल में संगम विहार में 8 साल की, गांधीनगर में 5 साल की, नजफगढ़ में 3 साल की, गोविंदपुरा में 5 साल की और एक चार्टर्ड बस में 10 साल की मासूम के साथ ऐसी घटनाएं सामने आईं. इन में मजदूर, पड़ोसी, बस ड्राइवर से ले कर स्कूली टीचर तक के नाम सामने आए.

वहीं मध्य प्रदेश में सिवनी, इंदौर, भोपाल और मारूगढ़ व उत्तर प्रदेश में अलीगढ़ में हाल में बच्चियों के साथ हुए रेप ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया.

मनोवैज्ञानिक नजरिया

कोलकाता में इंस्टीट्यूट औफ विहेवियरल साइंस की श्रीलेखा विश्वास का कहना है कि हाल में बच्चों के साथ भारत में हुई दरिंदगी ने पूरी दुनिया को हिला कर रख दिया है, लेकिन नाबालिगों के साथ सैक्स हिंसा केवल भारत में ही नहीं, बल्कि दुनिया के दूसरे हिस्सों में भी हो रही है. चिंता की बात यह है कि अभी भी इस बारे में भारत में जागरूकता की कमी है.

दरअसल, इस तरह के मामले दिमागी बीमारी के होते हैं और विहेवियरल साइंस में इसे ‘पेडोफिलिया’ कहते हैं. इस सोच वाले लोग छोटी सी उम्र के नन्हेमुन्ने बच्चों की नंगी तसवीर में भी अपने लिए ‘सुख’ ढूंढ़ लेते हैं.

श्रीलेखा आगे कहती हैं कि ज्यादातर मामलों में पाया गया है कि बच्चे पड़ोसियों और ट्यूटर जैसे परिचितों व पारिवारिक या दोस्तों द्वारा सैक्स की हिंसा के शिकार होते हैं.

इन का यह भी कहना है कि बच्चों को इस बात की खबर ही नहीं होती है कि सामने वाला शख्स किस नजर से इन्हें देख रहा है.

दरअसल, बच्चे सामने वाले के छूने को समझ ही नहीं पाते हैं. वे इसे लाड़दुलार समझ बैठते हैं. हर ऐसा आदमी जो सैक्स भावना से बच्चों को प्यारदुलार करता है, ‘पेडोफिलिक’ होता है.

ऐसी दिमागी बीमारी वाले लोग अकसर पहले बच्चों के प्राइवेट हिस्सों को छू कर उन्हें जोश में लाते हैं. कभीकभी बच्चे उन की इस हरकत का मजा लेने लगते हैं और तब इन का काम आसान हो जाता है. लेकिन अगर कभी पकड़े गए, तो सारा कुसूर बच्चों के सिर मढ़ देते हैं, इसलिए मांबाप को उन की किसी बात पर भरोसा नहीं करना चाहिए, बल्कि बच्चा कभी कोई शिकायत करे, तो तसल्ली से उस की बातों को सुनना चाहिए.

लेकिन यह दुख की बात है कि हमारे देश और समाज में बच्चों की भावना को तूल नहीं दिया जाता है. कई बार देखा जाता है कि बच्चे को किसी खास शख्स का लाड़दुलार रास नहीं आता है. कुछ सगेसंबंधियों को वे बिलकुल पसंद नहीं करते. बाकायदा कुछ लोगों से वे चिढ़ते हैं. वे उन के पास नहीं जाना चाहते हैं. बच्चा न चाहे तो ज्यादा जोर नहीं देना चाहिए.

हमारे आसपास हर जगह ऐसी तमाम मुखौटाधारी रिश्तेदार व दोस्त भरे पड़े हैं. जाने कब, कहां और कैसे हमारे बच्चे किसी की जिस्मानी भूख के शिकार हो जाएं, कहा नहीं जा सकता, इसीलिए मांबाप को खुद तो सचेत रहना ही चाहिए, साथ ही बच्चों को भी जागरूक बनाना चाहिए.

बच्चा अगर ऐसी किसी बात की ओर इशारा करता है या शिकायत करे, तो उस की बातों को गंभीरता से लें. उन के भीतर हिम्मत पैदा करें. अगर कभी कोई हादसा हो गया, तो हिम्मत से काम लें. बच्चे से खुल कर बात करें. अगर बच्चा खुल कर न कह पाए या कहना न चाहे, तो उस की अनकही बातों को समझाने की कोशिश करें.

एक समय के बाद बच्चों को यह समझना जरूरी है कि छिपा कर किया हुआ या मन को अच्छा नहीं लगने वाला कोई भी काम ठीक नहीं होता. ऐसे काम से दूर रहना चाहिए. अगर कोई और करे, तो चुप रह जाना चाहिए.

बच्चों को समझाना होगा कि अगर कोई प्यारदुलार के बहाने बदन के किसी हिस्से को हाथ लगाए, तो फौरन मांबाप को बताएं.

बच्चों का जिस्मानी शोषण केवल मर्द करते हैं, गलत है. आरतें भी बच्चों का यौन शोषण करती हैं.

अनजान लोग ही ऐसा काम करते हैं, ऐसा भी नहीं है. ज्यादातर मामलों में पारिवारिक सदस्य, जानने वाले लोग भी बच्चों का जिस्मानी शोषण करते हैं.

जानें कौन-से क्रिकेटर करते हैं अंधविश्वास पर यकीन, सचिन और कोहली भी हैं इसमें शामिल

21से 24 दिसंबर, 2023 को मुंबई के वानखेड़े स्टेडियम में भारत और आस्ट्रेलिया की महिला क्रिकेट टीम के बीच टैस्ट मैच हुआ था, जिसे भारत ने बहुत बड़े अंतर से जीत कर कमाल कर दिया था. महिला टैस्ट क्रिकेट के इतिहास में पहली बार भारत ने आस्ट्रेलिया को हराया था. इस से पहले दोनों देशों के बीच 10 टैस्ट मैच खेले गए थे, जिन में से आस्ट्रेलिया को 4 मुकाबलों में जीत मिली थी, जबकि 6 मैच बेनतीजा रहे थे.

पर असली खबर तो यह है कि इस जीत को भारतीय महिला क्रिकेट टीम की कप्तान और हैड कोच ने धार्मिक जामा पहना दिया. कप्तान हरमनप्रीत कौर ने 26 दिसंबर, 2023 को मुंबई के सिद्धि विनायक मंदिर में जा कर पूजाअर्चना की थी. उन के साथ टीम के हैड कोच अमोल मजूमदार भी मौजूद थे.

इतना ही नहीं, कभी भारतीय क्रिकेट टीम में सलामी बल्लेबाज रहे और अब भारतीय जनता पार्टी के सांसद गौतम गंभीर भी इसी साल के फरवरी महीने में उज्जैन के महाकाल मंदिर में दर्शन करने गए थे. उन्होंने वहां सुबह की भस्म आरती में भी हिस्सा लिया था.

हालिया भारतीय क्रिकेट टीम की रीढ़ की हड्डी कहे जाने वाले विराट कोहली कुछ समय पहले बिलकुल भी बल्लेबाजी नहीं कर पा रहे थे. उन की कप्तानी भी चली गई थी और सोशल मीडिया पर उन की खराब बल्लेबाजी की खूब खिंचाई भी हो रही थी. इस के बाद वे खबरों में इस बात को ले कर चर्चित हुए कि ‘इस मंदिर में जाते ही खुले भाग्य’.

बता दें कि इसी साल की शुरुआत में विराट कोहली अपनी पत्नी अनुष्का शर्मा के साथ उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर में दर्शन करने पहुंचे थे. इस दौरान उन दोनों ने तकरीबन डेढ़ घंटे तक मंदिर के नंदी हाल में बैठ कर भस्म आरती की थी और उस के बाद दोनों ने मंदिर के गर्भगृह में जा कर पंचामृत पूजन अभिषेक किया था.

यही नहीं, पिछले साल वे दोनों उत्तराखंड के नीम करौली बाबा के आश्रम में पहुंचे थे और जनवरी महीने में उन्हें वृंदावन में नीम करोली बाबा के समाधि स्थल पर भी देखा गया था. उन्हें वृंदावन के स्वामी प्रेमानंदजी महाराज के आश्रम में भी देखा गया था.

इस के बाद लोगों ने विराट कोहली की अच्छी बल्लेबाजी को बाबा और मंदिर जाने का कारनामा बता दिया. एक फैन ने सोशल मीडिया पर लिखा, ‘कोहली किस बाबा से मिला था, एड्रैस बताओ. एकदो ख्वाहिश पूरी करवानी हैं.’

इसी तरह सचिन तेंदुलकर का पूरा परिवार सत्य सांईं बाबा का परम भक्त कहा जाता है. जब बाबा का निधन हुआ था, तब वे हैदराबाद में थे. यह खबर मिलते ही उन्होंने खुद को होटल के कमरे में बंद कर लिया था. कहते हैं कि क्रिकेटर सुनील गावस्कर ने सचिन की मुलाकात सत्य सांईं बाबा से कराई थी.

सोशल मीडिया पर मंदिरों का प्रचार

जब कोई नामचीन क्रिकेटर या कोई दूसरा सैलेब्रिटी किसी मंदिर में जा कर माथा टेकता है और उस की खबर मीडिया में आती है, तो सोशल मीडिया उसे हाथोंहाथ लेता है. विराट कोहली जैसे नामचीन लोगों के किसी मंदिर, बाबा आदि के बारे में सोशल मीडिया पर किए गए कमैंट, फोटो और वीडियो आम लोगों के दिमाग पर गहरा असर करते हैं. वे मन में बिठा लेते हैं कि अगर बड़े लोगों के बिगड़े काम ऐसे बन रहे हैं, तो हमें भी वहीं जाना चाहिए.

अभी हाल ही में उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर, नीम करौली बाबा, वृंदावन के स्वामी प्रेमानंद के आश्रम और मुंबई के सिद्धि विनायक मंदिर सोशल मीडिया पर बहुत ज्यादा ट्रैंड कर रहे हैं और इस अंधविश्वास को बढ़ावा दे रहे हैं कि जब कोई राह न सूझे, तो किसी के दरबार में जा कर माथा टेक दो.

जो लोग क्रिकेटरों को अपने ‘भगवान’ का दर्जा देते हैं, वे तो आंख मूंद कर उन की हर चीज को फौलो करते हैं. तभी तो आज हर छोटेबड़े मंदिर, आश्रम में लोगों की भीड़ देखी जा सकती है. नतीजतन, लोग किसी से कर्ज ले कर भी ऐसी जगह जाते हैं, ताकि उन की मुसीबतें दूर हो जाएं, पर कर्ज लेने के बाद तो उन की मुश्किलें और ज्यादा बढ़ जाती हैं, यह उन्हें समझ में नहीं आता है.

घोर अंधविश्वासी क्रिकेटर

वैसे तो किसी न किसी तरह का अंधविश्वास हर देश के क्रिकेटर में देखा जा सकता है, पर कुछ क्रिकेटर अपनी पोंगापंथी हरकतों से चर्चा में बने रहते हैं. ‘क्रिकेट के भगवान’ के नाम से मशहूर महान भारतीय बल्लेबाज सचिन तेंदुलकर बल्लेबाजी करने के लिए मैदान में उतरने से पहले हमेशा बायां पैड पहनते थे, जबकि राहुल द्रविड़ जब बल्लेबाजी करने के लिए तैयार होते थे, तो हमेशा पहले दायां पैड पहनते थे.

एक जमाने के दिग्गज क्रिकेटर मोहिंदर अमरनाथ फील्डिंग करते समय अपनी पैंट की जेब में लाल रूमाल रखते थे. भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान रहे मोहम्मद अजहरुद्दीन के गले में काला तावीज बंधा रहता था. फील्डिंग के दौरान कई बार उन्हें वह तावीज चूमते हुए भी देखा जा सकता था.

एक बार ‘द कपिल शर्मा शो’ में आए वीरेंद्र सहवाग और मोहम्मद कैफ ने खुलासा किया था कि उन के कप्तान सौरव गांगुली बहुत ज्यादा अंधविश्वासी थे. मोहम्मद कैफ ने बताया कि एक बार तो सौरव गांगुली मैच में अपने गले में पहनी माला को पकड़े बैठे रहे थे और प्रार्थना करते रहे थे.

इसी तरह वीरेंद्र सहवाग ने कहा था कि दादा (सौरव गांगुली) के गले में जो चेन है, उस में दुनिया के जितने भगवान हैं उन की फोटो मिलेंगी आप को. दुनिया के जितने पत्थर होते हैं नीलम, मोंगा सब उन के पास हैं.

कहने का मतलब है कि जितने क्रिकेटर, उन के उतने ही अंधविश्वास. हैरत तो तब होती है, जब ये लोग अपने हुनर के आगे अपने अंधविश्वास को तरजीह देते हैं और आम लोगों के मन में भर देते हैं कि अगर आप का भाग्य खराब है तो खेल खराब होना तय है, जबकि खेल में हारजीत होना कोई नई बात नहीं है. कोई जीतता है, तो कोई हारता है.

अगर किस्मत और गंडेतावीज, बाबाआश्रम, मठमंदिर और पूजाअर्चना आदि इतने ही ताकतवर होते, तो पिछले वनडे वर्ल्ड कप में लगातार 10 मैच जीतने वाली भारतीय क्रिकेट टीम देशभर में हो रहे हवनपूजन के बावजूद फाइनल मुकाबले में नहीं हारती. लिहाजा, अपने हुनर और मेहनत पर यकीन करें और इन फुजूल के चक्करों में मत पड़ें.

तालिबान ने लड़कियों से ज्यादा पढ़ने का हक छीना

भा रत की केंद्र सरकार कितना ही गरीबों की भलाई की स्कीमों का ढोल पीट ले, पर एक कड़वी हकीकत यह भी है कि आज भी गरीबी और सामाजिक भेदभाव के चलते दलित और आदिवासी बच्चियों की पढ़ाई छोड़ने की दर सब से ज्यादा है. सरकारी स्कूलों में ऐसी बच्चियों के साथ मिड डे मील परोसने तक में भेदभाव किया जाता है.

कितनी हैरत और शर्म की बात है कि देश आजाद होने के इतने साल बाद आज भी कोई बच्चा नाम और जाति सब से पहले सीखता है और दूसरे बच्चे किस जाति के हैं, यह भी वह अपनेआप सीख जाता है. यही फर्क आगे स्कूली जीवन में भी दिखता है, तभी तो वंचित समाज की लड़कियां जल्दी पढ़ाई छोड़ देती हैं और उन के घर बैठने से या तो वे बाल मजदूरी करती हैं या फिर जल्दी ही कम उम्र में ब्याह दी जाती हैं.

पर भारत का पड़ोसी देश अफगानिस्तान तो एक कदम और आगे निकल गया है. आप ही सोचिए कि सालभर पढ़ाई करने के बाद जब कोई बच्चा इम्तिहान पास करता है, तो नई जमात में पहुंचने का जोश और खुशी हद पर होती है. भविष्य के सुंदर सपने आंखों में तैरते हैं, मगर अफगानिस्तान में छठी जमात पास करने वाली लड़कियों की आंखों में आंसू हैं. वजह, अफगानिस्तान का दमनकारी तालिबानी शासन छठी जमात के बाद लड़कियों को आगे पढ़ने की इजाजत नहीं देता.

अफगानिस्तान की राजधानी काबुल में रहने वाली 13 साला सेतायेश साहिबजादा अपने भविष्य को ले कर चिंतित है और अपने सपनों को पूरा करने के लिए स्कूल न जा पाने के चलते उदास है.

सेतायेश साहिबजादा कहती है, ‘‘मैं अपने पैरों पर खड़ी नहीं हो सकती. मैं टीचर बनना चाहती थी, लेकिन अब मैं पढ़ नहीं सकती, स्कूल नहीं जा सकती.’’

13 साल की बहारा रुस्तम काबुल के बीबी रजिया स्कूल में 11 दिसंबर, 2023 को आखिरी बार स्कूल गई थी. उसे पता है कि उसे अब आगे पढ़ने का मौका नहीं दिया जाएगा. तालिबान के राज में वह फिर से क्लास में कदम नहीं रख पाएगी. उस की सारी सहेलियां छूट जाएंगी. अब वह उन के साथ खेल नहीं पाएगी. उन से अपने सुखदुख नहीं बांट पाएगी.

लड़कियों की पढ़ाई पर रोक

अफगानी लड़कियां तालिबानी शासन, जो शरीयत पर चलता है, के तहत छठी जमात पास करने के बाद घरों में कैद कर दी जाएंगी. उन की शादी हो जाएगी, फिर वे बच्चे पैदा करेंगी, नौकरों की तरह ताउम्र किसी दूसरे के घर के काम करेंगी, मारीपीटी जाती रहेंगी, फिर एक दिन मर कर जलील जिंदगी से छुटकारा पा लेंगी.

अफगानी औरतें एक ऐसी जिंदगी जी रही हैं, जहां वे अपना कोई फैसला नहीं ले सकती हैं. किसी के आगे अपनी कोई राय नहीं रख सकती हैं. अपनी मरजी से कोई काम नहीं कर सकती हैं. उन्हें कोई हक नहीं है. वे सार्वजनिक जगहों पर नहीं जा सकतीं. उन्हें नौकरियों से बैन कर उन के घरों तक ही सिमटा दिया गया है.

अफगानिस्तान में इस साल लड़कियों व औरतों की एक पीढ़ी से पढ़ाईलिखाई का हक छीन लिया गया है. अगर यह सिलसिला जारी रहा, तो अफगानिस्तान में महिला डाक्टर, महिला नर्सें नहीं होंगी. महिलाओं की गर्भ संबंधी दिक्कतों का इलाज, बच्चे की डिलीवरी सब अशिक्षित घरेलू दवाएं करेंगी. वे बचेंगी या मरेंगी, इस की चिंता किसी को नहीं है. शरीयत का शासन अफगानी औरतों की जिंदगी को उस काल में धकेल रहा है, जब इनसान जंगलों में रहा करता था.

धर्म की सत्ता

धर्म की बुनियाद पर खड़े हुए देश और दुनिया में जहां भी धर्म सत्ता चला रहा है, उस देश और समाज में औरतों की औकात दासी की है. वे सिर्फ आदमी के हुक्म की गुलाम हैं. आदमी औरत को घर में कैद कर के रखे, जब चाहे उस के जिस्म को रौंदे, सालदरसाल उस से बच्चे पैदा करवाए, यह आदमी के लिए धर्मसम्मत है. वह हुक्म देता है कि औरत उस का घर साफ करे, उस के लिए लजीज खाना पकाए, बरतन मांजे, उस के बच्चे पाले, उस के घर वालों की खिदमत करे और अगर उस ने इस में कहीं कोई कोताही दिखाई, तो आदमी हंटरों की मार से उस का पूरा जिस्म लहूलुहान कर दे या उसे गोली से उड़ा दे, इस की इजाजत धर्म देता है.

औरत के लिए धर्म से बड़ा दुश्मन कोई नहीं है. अपनी बीवी का दूसरे मर्द से बलात्कार कराने का रास्ता धर्म बताता है. अपनी पत्नी को गर्भावस्था में छोड़ देने और उसे जंगल जाने के लिए मजबूर करने पर धर्म पुरुष की बुराई नहीं करता, बल्कि उसे पुरुषोत्तम बना देता है. एक स्त्री को भरी सभा में नंगा करने पर तमाम धार्मिक लोगों की जबान तालू से चिपक जाती है.

बड़ेबड़े हथियार उठाने वाले सूरमाओं के हाथों को लकवा मार जाता है, नसों का खून बर्फ हो जाता है. धर्म के हाथों औरत की इस बदहाली की कहानियों से धर्मग्रंथ भरे पड़े हैं और मूर्ख औरतें ऐसे धर्मग्रंथों को सिर पर उठाए फिरती हैं.

अफगानिस्तान में जब तालिबानी अपना दबदबा कायम करने की कोशिशों में थे, तब शरीयत का शासन चाहने वालों में औरतें भी शामिल थीं. हैरानी होती है कि जिस धर्म को हथियार बना कर प्राचीनकाल से मर्द औरत पर हावी रहा, उस पर जोरजुल्म करता रहा, उस को अपना गुलाम बनाए रखा, उस धर्म का त्याग करने के बजाय औरत दिनरात उस के महिमामंडन और प्रसार में क्यों लगी है?

दुनियाभर में चाहे कोई भी धर्म हो, औरतें बढ़चढ़ कर खुशीखुशी सारे कर्मकांडों को पूरा करती हैं. क्या औरतों को आज तक यह समझ में नहीं आया कि धर्म की जंजीरों में उन की खुशहाली और आजादी दम तोड़ रही हैं? क्या औरत कभी यह बात समझोगी कि अनपढ़ लोग कभी भी आजाद और खुशहाल नहीं हो सकते? फिर वह अफगानिस्तान हो या भारत.

साढ़ू से करें पक्का दोस्ताना, पर साली बन सकती है अड़चन

Society News in Hindi: आजकल सोशल मीडिया पर साढ़ू के रिश्ते को ले कर एक वीडियो बहुत देखा जा रहा है. इस में बताया जाता है कि ‘साढ़ू एक ही फैक्टरी से ठगे गए 2 इनसान होते हैं’. असल में पत्नी की बहन के पति को साढ़ू कहा जाता है, जिस का मतलब वीडियो में ऐसे निकाला गया है कि एक ही मां की 2 बेटियों से अलगअलग शादी करने वाले 2 इनसान रिश्ते में साढ़ू हो जाते है. जब संयुक्त परिवारों का दौर था, तब इस रिश्ते को बहुत अहमियत नहीं दी जाती थी, पर आज के समय में जब घरों में बच्चों की संख्या कम होने लगी है, ऐसे में साढ़ू का रिश्ता भी खास हो गया है.

ससुराल में साढ़ू का स्टेट्स एकजैसा होता है, जिस वजह से कई बार आपस में संबंध बिगड़ने का खतरा भी रहता है. जब नया दामाद ससुराल में आता है, तो पुराने की अहमियत थोड़ी कम हो जाती है. कई बार जो दामाद ज्यादा अमीर या दबदबे वाला होता है, उस की अहमियत ज्यादा होती है. ऐसे में साढ़ू की आपस में थोड़ी खींचतान हो जाती है.

जरूरत इस बात की होती है कि साढ़ू के साथ किसी भी तरह की होड़ न रखें. दोनों का ही ससुराल में बराबर का हक होता है. दिखावे में आपसी संबंध खराब न करें. एक ही उम्र के साढू के साथ भाई जैसा रिश्ता रखें. सोशल मीडिया के वीडियो केवल दिखावा होते हैं, यह समझ कर उन को देखें.

बदल गया है बहन का रिश्ता

पहले छोटी बहन और बड़ी बहन के बीच आपस में एक दूरी रहती थी. बड़ी बहन छोटी बहन को अनुशासन में रखती थी. कई बार उन के बीच उम्र का भी फर्क होता था. आज के दौर में 2 बहनों के बीच उम्र की दूरी कम हो गई है. कई बार दोनों ही अकेली होती हैं, तो उन के बीच नजदीकियां ज्यादा होती हैं. वे बहन से ज्यादा दोस्त की तरह हो जाती हैं. वे एकदूसरे की बातों को अच्छी तरह से समझती हैं. वे एकदूसरे की मदद भी करती हैं.

कुछ बहनों के बीच तो इतनी गहरी दोस्ती होती है कि वे एकदूसरे के हर राज जानती हैं. एकदूसरे के बौयफ्रैंड वाले रिश्तों को भी समझती हैं. शरीर में होने वाले बदलाव, कैरियर, दोस्ती, पढ़ाईलिखाई और घरेलू झगड़े दोनों मिलजुल कर बांटती हैं.

जिस तरह से 2 बहनों में अच्छी बनती है, उसी तरह से अगर इन के पतियों यानी साढ़ू के बीच बनने लगे, तो एकदूसरे पर भरोसा बन जाएगा और समाज में एक भरोसेमंद रिश्ता मिल जाएगा. जिस तरह से 2 बहनों के बीच आयु वर्ग एकजैसा होता है, वही साढ़ू के साथ भी होता है.

साढ़ू भी अमूमन एक ही उम्र के होते हैं. ज्यादा से ज्यादा आपस में 2-4 साल का फर्क होता है. ऐसे में उन के आपसी विचार मिलते हैं. जरूरत पड़ने पर वे एकदूसरे के काम आ सकते हैं. संयुक्त परिवार जैसा भरोसा कर सकते हैं. इस के बाद भी साढ़ू के साथ आपसी संबंधों में खिंचाव भी होता है. इस की वजह यह है कि साढ़ू की पत्नी साली होती है. समाज में जीजासाली के संबंध अलग तरह से देखे जाते हैं.

जीजासाली के संबंध डालते हैं दरार

साढ़ू के साथ आपसी संबंधों में दरार पड़ने की खास वजह जीजासाली के संबंध होते हैं. जीजासाली के संबंधों में खुलापन होता है. आपस में हंसीमजाक का भी रिश्ता होता है. कई बार आपस में गहरे संबंध भी जीजासाली के बीच होते हैं.

जीजासाली के गलत संबंधों को समाज हलके नजरिए से भले ही देखता हो, पर साढ़ू ऐसे रिश्ते को सही नहीं मानता. ऐसे में जब उस को यह अहसास भी होता है तो साढ़ू के साथ रिश्ते चल नहीं पाते हैं, इसलिए बड़े साढ़ू को इस बात का खयाल रखना चाहिए कि वह अपनी साली के साथ हंसीमजाक का दायरा न पार करे.

कई बार हंसीमजाक ही ऐसा हो जाता है, जिस का सही असर नहीं पड़ता. उस से आपस में शक बढ़ जाता है. जीजासाली के संबंधों के बीच आया शक साढ़ू के साथ रिश्तों में दरार डालने का काम करता है. कई मामलों में तो साढ़ू के साथ रिश्ता टूट सा भी जाता है.

देवरभाभी के बाद जीजासाली का ही रिश्ता इतना खतरनाक होता है, जिस को ले कर तमाम तरह की कहानियां सुनने और पढ़ने को मिलती हैं.

इस की 2 खास वजहें होती हैं. एक तो जीजासाली की बात हो या देवरभाभी की दोनों रिश्तों में ही आपस में उम्र का फासला कम होता है. दूसरे, दोनों ही रिश्तों में हंसीमजाक होता है. मजाकमजाक में बात आगे बढ़ती है. अगर बात सैक्स संबंधों तक नहीं पहुंची तो मसला मजाक का मान लिया जाता है. अगर बात मजाक से आगे बढ़ी तो सैक्स संबंधों तक पहुंच जाती है.

तीसरी एक बात और होती है कि दोनों को आपस में अकेले मिलने के तमाम मौके होते हैं. इस अकेलेपन का फायदा मिल जाता है. अगर बात घरपरिवार तक पहुंचती भी है तो वे आपस में ही इस को दबाने का काम करते हैं. ऐसे में ये रिश्ते खतरनाक बन जाते हैं.

ऐसे में यह बात साफ है कि साढ़ू के आपस में संबंध तभी अच्छे होंगे जब जीजासाली के बीच संबंध सहज होंगे. अगर वहां संबंध सहज नहीं हैं, तो साढ़ू के साथ भी रिश्ते नहीं बनेंगे. इन बातों को दरकिनार कर के देखें तो साढ़ू का आपस में रिश्ता बहुत अच्छा होता है. जरूरत होती है कि इस को दोस्त के जैसा रखा जाए.

ऐसे में साढ़ू एक फैक्टरी से ठगे गए 2 इनसान नहीं होते. अगर वे दोनों समझदार हैं तो उन में खून का रिश्ता न होते हुए भी उतना ही करीबी संबंध बन सकता है.

जब कोई तलाकशुदा मुसलिम औरत नया शौहर तलाशे, ऐसे मर्द से तो दूरी बनाए

कोई पढ़ीलिखी तलाकशुदा मुसलिम औरत नए मर्द में क्या देखती है? यही न कि वह उसे कितनी इज्जत दे सकता है या नहीं. वह देखती है कि सामने वाला मर्द अपने पैरों पर खड़ा हो. वह चाहती है कि उस का होने वाला शौहर पढ़ालिखा हो, इज्जतदार घराने से हो, क्योंकि कोई इज्जतदार शौहर ही अपनी बीवी को इज्जत दे सकता है और दूसरे लोगों से उसे इज्जत दिला भी सकता है.

कोई भी औरत मर्द के प्यार से ज्यादा इज्जत पाने की उम्मीद रखती है, क्योंकि मर्द के दिल में अगर औरत के प्रति इज्जत होगी, तो प्यार तो खुद से पैदा हो जाएगा. पर अगर किसी भी मर्द के मन में औरत के प्रति इज्जत नहीं होगी तो वह प्यार तो क्या पाएगी, बल्कि सिर्फ हवस का शिकार हो कर रह जाएगी.

ऐसे मर्द औरत को कमतर समझते हैं और उसे भोगने का साधन मानते हैं या उसे औलाद पैदा करने की मशीन समझ कर हर मोड़ पर उस की बेइज्जती करते हैं. वे उसे घर की ‘बाई’ की तरह इस्तेमाल करते हैं.

पढ़ीलिखी तलाकशुदा मुसलिम औरत कभी भी किसी मर्द की दूसरी बीवी न बने, क्योंकि मुसलिम समुदाय में यह रिवाज है कि मर्द 4 बीवी तक रख सकते हैं, इसलिए किसी की पहली बीवी हो तो उस की दूसरी या तीसरी बीवी कतई न बनें.

तलाकशुदा मुसलिम औरत को दूसरी शादी करने में बड़ी दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है. उसे जल्दबाजी में कोई गलत कदम नहीं उठाना चाहिए, बल्कि सब्र के साथ सही और ऐसा मर्द देखना चाहिए, जो उस की जिम्मेदारी अच्छी तरह से उठा सके.

किसी ऐसे मर्द का चुनाव नहीं करना चाहिए जो पहले से शादीशुदा हो और उस के बच्चे हों, क्योंकि अकसर यह देखा गया है कि कोई भी सौतेली मां अपने सौतेले बच्चों से कितना भी प्यार कर ले, शौहर और समाज के लोग उसे ‘सौतेली मां’ की ही संज्ञा देते हैं और समयसमय पर उसे ताने मरते हैं. यहां तक की उन मियांबीवी में बच्चों को ले कर हमेशा झगड़ा होने के चांस ज्यादा होते हैं, जिस से कभी भी घर बिखरने का खतरा बना रहता है.

कभी भी किसी ऐसे मर्द से निकाह न करें जो नशेड़ी हो. न कभी किसी कामचोर से ब्याह करने की सोचें.

मजारों पर लुटते लोग, क्या है यह गोरखधंधा

Society News in Hindi: उत्तर प्रदेश के शहर रामपुर के पास 4 ऐसी कब्रों की निशानदेही की गई है, जिन के बारे में कहा जा रहा है कि वे कब्रें फर्जी हैं और इस के द्वारा लोगों की भावनाओं से खिलवाड़ किया जा रहा है, इसलिए लोगों को जागरूक किया जाए और उन्हें इस की सचाई बताई जाए, ताकि वे धोखा न खाएं.

यह काम कोई और नहीं, खुद बरेलवी उलेमा कर रहे हैं, जबकि ‘फायदा’ होने की खबर ने इस पूरे इलाके को गुलजार कर दिया है.

रामपुर की मजलिस फिक्र इसलामी के मुताबिक, जिला रामपुर के मिलन बिचौला नामक गांव में तकरीबन 6 महीने पहले एक शख्स ने सपने के आधार पर 4 फर्जी कब्रें बना लीं और उन्हें मजारों के तौर पर प्रचारित कर फायदे की अफवाह उड़ा दी. इस के बाद मजारों पर आने वालों का तांता लग गया.

नैनीताल हाईवे इस गांव से गुजर रहा है, जिस पर हर गुरुवार और सोमवार को रोड जाम रहता है. इस हाईवे से डेढ़ किलोमीटर की दूरी है, जिस के बाद एक किलोमीटर जंगल की ओर पोपलर के खेत में कब्रें बनाई गई हैं.

गुरुवार और सोमवार को यह पूरा डेढ़ किलोमीटर का रास्ता पैदल और दोपहिया वाहनों के लिए रहता है, जबकि चारपहिया वाहनों को पहले ही रोक दिया जाता है.

इस पूरे रास्ते में अगरबत्ती, तेल और पानी की सैकड़ों दुकानें लगी रहती हैं. किराए पर मजारों के आसपास की दुकानें नियमित रूप से लगती हैं. 2 बीघा जमीन पर साइकिल स्टैंड बना है. यहां पर 10 से 25 रुपए तक का किराया वसूला जाता है.

एक अंदाज के मुताबिक, हर गुरुवार को अकेले साइकिल स्टैंड से 20 हजार रुपए की आमदनी होती है. ये कब्रें जिस खेत में बनी हैं, वह 60 बीघे का है. इस खेत का मालिक अख्तर खां है. इसी ने सपने के आधार पर इन मजारों को बनाया था. लेकिन इस शख्स ने इन चारों मजारों का इंतजाम अपने हाथ में न ले कर 20 हजार रुपए महीने पर गांव के 3 लोगों को ठेके पर उठा दिया. उन लोगों इन कब्रों से कारोबार करना शुरू कर दिया. कुछ लोगों को फायदे की   झूठी अफवाह फैलाने के लिए किराए पर रख लिया, जो दिनभर इधरउधर घूम कर यह प्रचार करते हैं कि वहां जाने वाले की सारी मुसीबतें दूर हो जाती हैं.

साथ ही, कुछ जवान लड़कियों को भूतप्रेत का ढोंग करने और कब्रों के करीब चीखपुकार मचाने के लिए किराए पर रख लिया गया.

4 अनपढ़ मजदूर अलगअलग चारों कब्रों पर फातिहा के लिए बैठे हैं, जो हर आने वाले से कब्र के पास रखी गोलक में ज्यादा से ज्यादा रुपए डलवाते हैं. वहां 5 गोलकें रखी हुई?हैं. ठेकेदारों की इन कोशिशों का नतीजा यह हुआ कि इन कब्रों से डेढ़ से 2 लाख रुपए की आमदनी हर महीने होने लगी.

मजलिस फिक्र इसलामी के मोहम्मद नासिर रामपुरी के मुताबिक, गोलक की निगरानी करने वाले ब्रजलाल ने बताया कि शाम को पैसे मेरे सामने ही गिने जाते हैं. गुरुवार और सोमवार को हर गोलक से 9 से 10 हजार रुपए और आम दिनों में डेढ़ से 2 हजार रुपए निकलते हैं.

उस ने आगे यह भी बताया कि एक दिन एक शख्स एक गोलक ले कर भाग गया, जिस के बाद 2 सौ रुपए रोजाना की दिहाड़ी पर मु  झे निगरानी के लिए रखा गया है.

इन मजारों के करीब ही गांव का श्मशान घाट है. वहां एक समाधि भी बनी है. गांव के लोगों ने बताया कि ठेकेदार की तरफ से इन कब्रों के करीब 5वीं कब्र बनाने का ढोंग रचा गया.

एक शख्स मोटरसाइकिल से उस जगह आया और कब्रों के पास 2-4 लंबीलंबी सांसें खींच कर बोला कि 5वीं मजार यहां है. योजना के तहत वहां पर कब्र बना दी गई.

कब्र के पास मौजूद मुजाविरों ने उस पर एक चादर डाल दी और चिराग व अगरबत्ती जला दी, फिर अचानक एक लड़की कब्र के पास आई और भूतप्रेत होने का नाटक करने लगी.

मजारों पर आए कुछ लोगों को शक हुआ और उन लोगों ने ढोंगी को पकड़ कर उस की पिटाई कर दी. ऐसा देख लड़की भी खेत की ओर भाग गई.

चारों कब्रों के पास हजारों कागज के पुरजे, जिन पर मन्नतें लिखी हैं, मजार पर बैठा शख्स एक पुरजा लिखने के 25 रुपए लेता है. इस शख्स की दिहाड़ी रोजाना 2 सौ रुपए है और मन्नतों के लालहरे कपड़े बंधे हुए हैं.

ठेकेदार ने अपनी चालाकी से मजारों से आमदनी में बहुत बढ़ोतरी कर ली है, जिस के चलते जमीन मालिक ने इस को दोबारा नीलामी पर देने की बात की और नहीं मानने पर पुलिस में शिकायत की, लेकिन कुछ नहीं हुआ.

जब जमीन के मालिक ने देखा कि हर महीने के 20 हजार रुपए गए और मजार के नाम पर जमीन भी गई, तो उस ने कब्रों को फर्जी कहना शुरू कर दिया, लेकिन अब न तो ठेकेदार सुनने को तैयार है और न ही इन मजारों पर आने वाली जनता.

मोहम्मद नासिर रामपुरी, जो इन फर्जी कब्रों के खिलाफ मुहिम छेड़े हुए हैं, ने शहर के एसडीएम को एक मांगपत्र दिया है कि फर्जी कब्रें बनाने वालों के खिलाफ सख्त कार्यवाही की जाए.

6 महीने से यह खुला खेल चल रहा था और इस में लोगों को भटका कर जो रकम वसूल की गई है, वह भी उन से वापस ली जाए.

शादी को बेचैन इन कुंआरों की कौन सुनेगा

यों तो लड़कियों की घटती तादाद और बढ़ता लिंगानुपात एक अलग मुद्दा है, लेकिन देश के करोड़ों युवाओं को शादी के लिए लड़कियां क्यों नहीं मिल रही हैं, जान कर हैरान रह जाएंगे आप…

23 दिसंबर, 2023 को देव उठानी के दिन विष्णु सहित दूसरे देवीदेवता पांवड़े चटकाना तो दूर की बात है ढंग से अंगड़ाई भी नहीं ले पाए थे कि नीचे धरती पर कुंआरों ने हल्ला मचाना शुरू कर दिया कि अब यदि सचमुच में उठ गए हो तो हमारी शादी कराओ. बस, यह उन्होंने नहीं कहा कि अगर नहीं करवा सकते तो नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए अपने पद से त्यागपत्र दे दो.

ताजा हल्ला भारत भूमि के राज्य महाराष्ट्र के सोलापुर से मचा जहां सुबहसुबह कोई 50 कुंआरे सजधज कर लकदक दूल्हा बने घोड़ी पर बैठे बैंडबाजा, बरात के साथ डीएम औफिस की तरफ कूच कर रहे थे.

आजकल ऊपर विष्णुजी के पास सृष्टि के दीगर कामकाज जिन में अधिकतर प्रोटोकाल वाले हैं, कुछ ज्यादा ही बढ़ गए हैं इसलिए वे शादी जैसे तुच्छ मसले पर कम ही ध्यान दे पाते हैं जबकि उन्हें भजन, आरती गागा कर उठाया इसी बाबत जाता है कि हे प्रभु, उठो और सृष्टि के शुभ कार्यों के साथसाथ विवाह भी संपन्न कराओ जो रोजगार के बाद हर कुंआरे का दूसरा बड़ा टास्क है. इन युवाओं ने समझदारी दिखाते हुए शादी कराने का अपना ज्ञापन कलैक्टर को दिया, जो सही मानों में विष्णु का सजीव प्रतिनिधि धरती पर कलयुग में होता है.

ज्ञापन के बजाय विज्ञापन जरूरी

उम्मीद कम ही है कि ऊपर वाले देवता तक इन कुंआरों की करुण पुकार और रोनाधोना पहुंचा होगा. रही बात नीचे के देवता कि तो वह बेचारा मन ही मन हंसते हुए ज्ञापन ही ले सकता है. अगर थोड़ा भी संवेदनशील हुआ तो इन्हें इशारा कर सकता है कि भाइयो, ज्ञापन के बजाय विज्ञापन का सहारा लो और मेरे या ऊपर वाले के भरोसे मत रहो नहीं तो जिंदगी एक अदद दुलहन ढूंढ़ने में जाया हो जाएगी और इस नश्वर संसार से तुम कुंआरे ही टैं बोल जाओगे.

यह मशवरा भी उन के मन में ही कहीं दब कर रह गया होगा कि मर्द हो तो पृथ्वीराज बनो और अपनी संयोगिता को उठा कर ले जाओ. तुम ने सुना नहीं कि वीर भोग्या वसुंधरा चर्चा में बैचलर मार्च सोलापुर के इन दूल्हों की फौज को राह चलते लोगों ने दिलचस्पी और हैरानी से देखा.

कुछ को इन कुंआरे दूल्हों से तात्कालिक सहानुभूति भी हुई लेकिन सब मनमसोस कर रह गए कि जब ऊपर वाला ही इन बदनसीबों की नहीं सुन रहा तो हमारी क्या बिसात. हम तो खुद की जैसेतैसे कर पाए थे और अभी तक उसी को झांक रहे हैं. यह बात इन दीवानों को कौन सम?ाए कि भैया, मत पड़ो घरगृहस्थी के झमेले में, पछताना ही है तो बिना लड्डू खाए पछता लो. न समझ सकते न बचा सकते मगर यह भी मनोवैज्ञानिक सिद्धांत है कि जो आदमी खुदकुशी और शादी पर उतारु हो ही आए उसे ब्रह्माजी भी नहीं समझ और बचा सकते क्योंकि यह भाग्य की बात है. रही बात इन दीवानों की तो इन के बारे में तो तुलसीदास बहुत पहले उजागर कर गए हैं कि जाको प्रभु दारुण दुख देई, ताकी मति पहले हर लेई.

राहगीरों ने दर्शनशास्त्र के ये कुछ चौराहे क्रौस किए और इन दूल्हों में दिलचस्पी ली तो पता चला कि इन बेचारों को लड़कियां ही नहीं मिल रहीं और जिन को जैसेतैसे मिल जाती हैं वे इन्हें सड़े आम जैसे बेरहमी से रिजैक्ट कर देती हैं क्योंकि इन के पास रोजगार नहीं है.

जागरूक होती लड़कियां मुमकिन है कि यह नजारा देख कर कुछकुछ लोगों को वह प्राचीन काल स्मरण हो आया हो जब लड़कियां चूं भी नहीं कर पाती थीं और मांबाप जिस के गले बांध देते थे वे सावित्री की तरह उस के साथ जिंदगी गुजार देती थीं. फिर बेरोजगार तो दूर की बात है लड़का लूला, लंगड़ा, अंधा, काना हो तो भी वे उसे ‘भला है बुरा है जैसा भी है मेरा पति मेरा देवता है…’ वाले गाने की तर्ज पर उसी के लिए तीज और करवाचौथ जैसे व्रत करती रहती थीं. और तो और अगले जन्म के लिए भी उसी लंगूर को बुक कर लेती थीं.

जमाना बदल गया मगर अब जमाना और लड़कियां दोनों बदल गए हैं. लड़कियां शिक्षित, सम?ादार और स्वाभिमानी तथा जागरूक हो चली हैं. लिहाजा, उन्हें किसी ऐरेगिरे, तिरछेआड़े के गले नही बांधा जा सकता. पहले की लड़कियों को गऊ कहा जाता था. वे जिंदगीभर उसी खूंटे से बंधी रहती थीं जिस से पेरैंट्स बांध देते थे. मगर अब लड़कियां खुद खूंटा ढूंढ़ने लगी हैं यानी अपने लिए सुयोग्य वर तलाशने लगी हैं क्योंकि वे किसी की मुहताज नहीं हैं. अपने पैरों पर खड़ी हैं.

बेरोजगार जीवनसाथी उन की आखिरी प्राथमिकता भी नहीं है इसलिए समझ यह जाना चाहिए कि सोलापुर जैसे बैचलर मार्च दरअसल, बेरोजगारी के खिलाफ एक मुहिम है जिस के तहत दुलहन की आड़ में सरकार से रोजगार या नौकरी मांगी जा रही होती है. ऐसे मार्च देश के हर इलाके में देखने को मिल जाते हैं जहां इन कुंआरों का दर्द फूटफूट कर रिस रहा होता है.

कोई सस्ता तमाशा नहीं कर्नाटक की ब्रह्मचारीगलु पद्यात्रा ऐसा ही दर्द मार्च के महीने में कर्नाटक के मांड्या जिले से एक लड़के का फूटा था. सोलापुर में जिसे बैचलर मार्च कहा गया वह वहां ब्रह्मचारीगलु पद्यात्रा के खिताब से नवाजा गया था. इस यात्रा में करीब 60 कुंआरे लड़के 120 किलोमीटर की पद्यात्रा कर चामराजनगर जिले में स्थित महादेश्वर मंदिर पहुंचे थे. तब मानने वालों ने मान लिया था कि यह कोई सस्ता तमाशा या पब्लिसिटी स्टंट नहीं है बल्कि हकीकत में इन लड़कों के पास कोई नौकरी नहीं है. कुछकुछ जानकारों ने इस पद्यात्रा का आर्थिक पहलू उजागर करते हुए यह निष्कर्ष दिया था कि शादी योग्य इन लड़कों के पास कोई सलीके की नौकरी नहीं है और मूलतया ये पद्यात्री किसान परिवारों से हैं.

समस्या का दूसरा पहलू यह समझ आया था कि नए दौर की युवतियां शादी के बाद गांवों में नहीं रहना चाहतीं और खेतीकिसानी अब घाटे का धंधा हो चला है जिस में आर्थिक निश्चिंतता नहीं है इसलिए लड़की तो लड़की उस के पेरैंट्स भी रिस्क नहीं उठाते.

कर्नाटक ही नहीं बल्कि हर इलाके के किसानपुत्र इस से परेशान हैं और खेतखलिहान छोड़ कर शहरों की तरफ भाग रहे हैं. जितना वे गांव में अपने नौकरों को देते हैं उस से भी कम पैसे में खुद शहर में छोटीमोटी नौकरी कर लेते हैं ताकि शादी में कोई अड़चन पेश न आए.

लड़कियों को नहीं भाते ये लड़के इस बात की पुष्टि करते मांड्या के एक किसानपुत्र कृष्णा ने मीडिया को बताया भी था कि मुझे अब तक लगभग 30 लड़कियां रिजैक्ट कर चुकी हैं. वजह मेरे पास खेती कम है जिस से कमाई भी ज्यादा नहीं होती. यह एक गंभीर समस्या है जिस के बारे में खुलासा करते सोलापुर के ज्योति क्रांति परिषद जिस के बैनर तले बैचलर मार्च निकाला गया था के मुखिया रमेश बरास्कार बताते हैं कि महाराष्ट्र के हर गांव में 25 से 30 साल की उम्र के 100 से 150 लड़के कुंआरे बैठे हैं.

संगठित हो रहे कुंआरे हरियाणा के कुंआरे भी यह और इस से मिलतीजुलती मांगें उठाते रहे हैं लेकिन कोई हल कहीं से निकलता नहीं दिख रहा और न आगे इस की संभावना दिख रही. अब अच्छी बात यह है कि जगहजगह कुंआरे इकट्ठा हो कर सड़कों पर आ रहे हैं. अपने कुंआरेपन को ले कर उन में कोई हीनभावना या शर्मिंदगी नहीं दिखती तो लगता है कि समस्या बहुत गंभीर होती जा रही है लेकिन उस के प्रति कोई गंभीरता नहीं दिखा रहा.

एक अंदाजे के मुताबिक देश में करीब 5 करोड़, 63 लाख अविवाहित युवा हैं लेकिन उन पर युवतियों की संख्या महज 2 करोड़, 7 लाख है. लड़कियों की घटती तादाद और बढ़ता लिंगानुपात एक अलग बहस का मुद्दा है लेकिन महाराष्ट्र, कर्नाटक, हरियाणा और मध्य प्रदेश के जो युवा संगठित हो कर प्रदर्शन कर रहे हैं वे बेरोजगार, अर्धबेरोजगार और किसान परिवारों के हैं जिन का मानना है कि अगर अच्छी नौकरी या रोजगार हो तो छोकरी भी मिल जाएगी. ऊपर वाला तो सुनता नहीं इसलिए ये लोग नीचे वाले से आएदिन गुहार लगाते रहते हैं.

सरकार मस्त, जनता त्रस्त

जब सरकार ही धर्म और हिंदुमुसलिम के नाम पर बनती हो, तो आम जनता की चिंता कोई क्यों करेगा…

अंबाला कैंट में जनरल अस्पताल के गेट के सामने अकसर ऐक्सीडैंट होते रहते हैं. एक गेट के बिलकुल सामने तिराहा है तो दूसरे गेट के सामने चौराहा है. वहां पर न तो सिगनल लाइट्स हैं, न ही स्पीड ब्रेकर और न ही ट्रैफिक पुलिस खड़ी रहती है.

बेशक अस्पताल के एक गेट के पास पुलिस का कैबिन है, लेकिन इस में पुलिस का कोई व्यक्ति नजर नहीं आता.

17 फरवरी, 2023 को रात के करीब 10 बज कर 50 मिनट क्योंकि पेशैंट से हम 11 बजे ही मिल सकते थे, इसलिए टाइम पास करने के लिए हम अस्पताल के गेट से बाहर निकलते हैं और बड़ी मुश्किल से सड़क पार कर के दूसरी ओर चाय पीने के लिए जाते हैं क्योंकि अस्पताल में कोई कैंटीन या चाय तक की एक छोटी सी रेहड़ी तक नहीं जबकि इतना बड़ा अस्पताल है जहां हजारों पेशैंट हैं. हर पेशैंट के साथ कम से कम 2 लोग तो आते ही होंगे. उन्हें बाहर सड़क पार जाना होता है, जिस में बहुत जोखिम है.

हम बैठे चाय पी रहे थे कि अचानक जोर की आवाज के साथ सामने आग के गोले से दिखे. हम ने देखा एक बुलेट को एक कार ने इतनी जोर से टक्कर मारी कि बुलेट बीच में 2 टुकड़े हो गई और कार का आगे का हिस्सा पूरी तरह डैमेज हो गया.

हादसों का शहर

बुलेट सवार दोनों लड़कों को उसी समय अस्पताल के अंदर ले जाया गया जहां उन्हें सीरियस बता कर चंडीगढ़ पीजीआई रैफर किया गया. उस से कुछ दिन पहले भी एक मोटरसाइकिल सवार को एक ट्रक काफी दूर तक घसीटता ले गया और उस की मौत हो गई.

उद्योगपति नवीन जिंदल ने इस अस्पताल का जीर्णोद्धार करवा कर दिल्ली से हार्ट स्पैशलिस्ट यहां बुलवाए ताकि मरीजों का इलाज अच्छे से अच्छा हो. मगर क्या महज सर्जरी ही पेशैंट्स के लिए काफी है? कभी पेशैंट का चायकौफी का मन करता है, कभी जो साथ में रहता है या कभी कोई मिलनेजुलने आता है तो उस के लिए चायपानी की आवश्यकता होती है. इन सब के लिए बड़ी न सही छोटी सी कैंटीन तो होनी ही चाहिए. हर समय हाईवे रोड को पार कर के दूसरी तरह चायपानी के लिए जाना कितना खतरनाक है यह वहां आए दिन होने वाली दुर्घटनाओं से समझ जा सकता है.

जिंदल साहब अकसर निगरानी रखते हुए वहां चक्कर भी लगाते रहते हैं तो क्या उन्हें ये सब दिखाई नहीं देता? क्या इन हादसों की खबर उन्हें नहीं होती? क्या उन्हें इतना भी ज्ञान नहीं कि चौक पर अर्थात् चौराहे पर ट्रैफिक लाइट्स और ट्रैफिक पुलिस का होना आवश्यक नहीं है?

जब रात को यह हादसा हुआ तो अगले दिन सुबह 11 बजे के बाद वहां पर 2 पुलिस वाले तैनात दिखे जोकि केवल चालान काट रहे थे या किसी को रोक कर अपनी जेबें भरने का जुगाड़ कर रहे थे. लेकिन 2 दिन बाद फिर पुलिस वहां से गायब नजर आई.

पुलिस के कारनामे

आएदिन इस तरह के पुलिस के कारनामे सुनने को मिलते हैं कि पुलिस ने रोका और चालान न काट कर क्व500 ले कर छोड़ दिया. इस का क्या अर्थ है? क्या वह दोषी व्यक्ति फिर से वही गलती नहीं करेगा? जरूर करेगा क्योंकि वह जानता है कि क्व200-400 दे कर मामला रफादफा हो जाएगा. इसी कारण देश की आधी आबादी हैलमेट नहीं पहनती, स्कूटर, मोटरसाइकिल के पूरे कागज नहीं रखते, लाइसैंस नहीं बनवाती इत्यादि. इस वजह से हमारे कुछ भ्रष्ट पुलिस वालों की जेबें भरी रहती हैं.

यह मामला केवल अंबाला के उस एरिया का ही नहीं उस से आगे आइए अंबाला सिविल अस्पताल से ले कर यमुनानगर की तरफ आते हुए थाना छप्पर तक हर चौराहे का यही हाल है और इसी तरह से ही कई जगह और भी देखा गया है. बाकी देश का भी यही हाल है. आधे से ज्यादा लोग इसे ऊपर वाले की कृपा मान लेते हैं और कुछ वहां भीड़ में चीखचिल्ला कर भड़ास निकाल लेते हैं पर कभी ही कोई संबंधित अफसर को एक पत्र जनता की असुविधा पर लिखता है.

वसूल सको तो वसूल लो

जहां भी टोल टैक्स बैनर बना है, वहां पूरा स्टाफ रहता है ताकि टोल पूरा वसूल हो. जनता से पूरा टैक्स वसूल करना सरकार का हक है तो उस जनता की सुरक्षा सरकार का क्या फर्ज नहीं है? सरकार को बख्शा नहीं जाना चाहिए.

अकसर सुनते हैं कि रोड ऐक्सीडैंट में कोई न कोई मारा गया, किसी को ट्रक कुचल गया, किसी को बस कुचल गई और कभी फुटपाथ पर कोई कार वाला कार चढ़ा गया. जब कोई गरीब या साधारण जना मरता है तो किसी को कानोंकान खबर नहीं होती. लेकिन अगर किसी ऐक्सीडैंट में किसी अमीर के कुत्ते को भी चोट आ जाए तो हरजाना भरना पड़ता है, विक्टिम पर केस भी दर्ज किया जा सकता है.

क्या कोई जानता है इन रोजमर्रा के ऐक्सीडैंट्स का जिम्मेदार कौन है? इन ऐक्सीडैंट्स का जिम्मेदार सरकार या अन्य लोग भी उस बाइक चालक या कार, बस वाले को या शराब पी कर गाड़ी चलाने वाले को ही जिम्मेदार ठहराते हैं. लेकिन हर ऐक्सीडैंट के पीछे यह सचाई नहीं होती.

सुरक्षित नहीं सड़कें

माना कि सरकार ने बहुत से ब्रिज बनवाए, अधिकतर शहरों से बाहर ही हाई वे बना कर शहर का क्राउड कम किया, सड़कें भी काफी हद तक चौड़ी और नई बनाई हैं. सड़कें बना तो दीं, लेकिन क्या सड़कें सुव्यवस्थित ढंग से हैं अर्थात् उन की सुव्यवस्था है?

कहने का तात्पर्य यह है कि क्या हर सड़क पर स्ट्रीट लाइट है? क्या सड़कों के किनारे बनती दुकानों को दुर्घटनाओं के लिए जिम्मेदार ठहराया गया है? क्या हर चौराहे से पहले स्पीड ब्रेकर या रिफ्लैक्टर है? क्या हर चौराहे पर लाल, पीली और हरी बत्ती यानी ट्रैफिक सिगनल लाइट है? क्या हर चौराहे पर ट्रैफिक पुलिस तैनात है?

नहीं. तो फिर उन हाईवे और सड़कों को बड़ा बनाने का क्या फायदा क्योंकि जितनी सड़क स्मूद होंगी, चौड़ी होंगी व्हिकल उतना ही तेज रफ्तार से चलेंगे.

घटनाओं का जिम्मेदार कौन

अगर स्पीड ब्रेकर नहीं तो कम से कम रिफ्लैक्टर तो हों, जिन से आती हुई गाड़ी को दूर से अंदेशा हो जाए कि वहां कुछ अवरोधक हो सकता है, इसलिए स्पीड कम करनी चाहिए. लेकिन अधिकतर देखा गया है कि न स्पीड ब्रेकर, न ट्रैफिक सिगनल लाइट्स, न ही कोई ट्रैफिक वाला चोराहे पर होता है, जोकि हादसे का कारण बन जाता है.

केवल सड़कें चौड़ी कर देने से कुछ नहीं होगा, उन सड़कों पर सिगनल लाइट्स, स्पीड ब्रेकर भी अवश्य होने चाहिए.

इन सब ऐक्सीडैंट्स का जिम्मेदार कौन है? क्या सड़क पर स्पीड ब्रेकर न होने इन ऐक्सीडैंट्स के लिए जिम्मेदार नहीं? क्या उस चौराहे पर सिगनल लाइट नहीं होनी चाहिए थी?

हमारे देश का सिस्टम इतना ढीला क्यों है? इसलिए कि शासक अपनी कार्यशैली के कारण नहीं धर्म, पूजा, हिंदूमुसलिम के नाम पर बनती है. चुनाव आते ही मंदिरों की साजसज्जा चालू हो जाती है, सड़कों को दुरुस्त करने की फुरसत ही नहीं रहती क्योंकि वोट और सत्ता जब इन से नहीं मिलेगी तो कोई क्यों चिंता करेगा.

क्या जनता कभी अपनी जिम्मेदारी समझोगी?

सीमा कनौजिया – भद्दे डांस, चुटकुलिया बातचीत को किया मशहूर

Society News in Hindi: सोशल मीडिया (Social Media) पर इन्फ्लुएंसर (Influencer) सीमा कनौजिया अपने क्रिंज कंटैंट (cringe content) को ले कर खासा चर्चित रहती है. वह रील्स (Reels) के खेल को अच्छे से जानती है. स्किल्स (Skills) न होने के बावजूद उसे यह अच्छे से पता है कि सोशल मीडिया पर ऐसे लोगों की कमी नहीं जो उस के कंटैंट को पसंद कर ही लेंगे.

आज जिस को देखो वह मोबाइल फोन में आंखें गड़ाए बैठा रहता है. यह भी नहीं है कि लोग मोबाइल में कुछ नौलेजिबल कंटैंट देख रहे हों. वे देख रहे होते हैं नाली मे लेटते हुए आदमी को, वे देखते हैं मैट्रो में अजबगजब डांस करते हुए युवकयुवतियों को, वे देखते हैं भीड़भाड़ वाली मार्केट में घुस कर डांस व अजीबअजीब हरकतें करते युवाओं को.

इन सब से भी इन का पेट नहीं भरता तो ये लोग कच्ची हरीमिर्च खाने वाले और अपनी छाती पीटते हुए लोगों को देखते हैं. यही है आजकल का कंटैंट और इस तरह के कंटैंट को सोशल मीडिया की भाषा में क्रिंज कंटैंट कहते हैं.

असल में, क्रिंज कंटैंट का मतलब होता है कुछ ऐसी चीजें या वीडियो जिन्हें देख कर लोग अजीब महसूस करते हैं. इस तरह के कंटैंट आमतौर पर भद्दे डांस, चुटकुलिया बातचीत होते हैं. इन क्रिंज कंटैंट्स को देख कर लोग अनकम्फर्टेबल फील करते हैं. हालांकि इसे लोग मनोरंजन का एक साधन ही मानते हैं.
एक समय पर टिकटौक पर ऐसे वीडियोज खूब वायरल हुए थे, जिन्हें देख कर लोग क्रिंज फील करते थे. आजकल यही क्रिंज कंटैंट एक बार फिर अलगअलग सोशल प्लेटफौर्म्स पर वायरल हो रहे हैं.

इंडिया में ऐसे बहुत से लोग हैं जो क्रिंज कंटैंट पेश करते हैं, जैसे भुवन बाम (बीबी की वाइन्स), आशीष चंचलानी, कैरीमिनाटी, पुनीत सुपस्टार, जोगिंदर (थारा भाई जोगिंदर), दीपक कलाल, पूजा जैन (डिंचेक पूजा), एम सी स्टैन और सीमा कनौजिया.

लेकिन बात अभी यहां सीमा कनौजिया की करें तो वह अपनी वीडियोज में आखिर किस तरह का कंटैंट पेश करती है जो लोगों को क्रिंज लगता है. इंस्टाग्राम पर उस के डांस और दुलहन की तरह सजते हुए कई वीडियोज आप को देखने को मिल जाएंगे.

ऊटपटांग हरकतों के लिए चर्चित

बात करें अगर सीमा कनौजिया के वीडियोज की तो जहां कहीं भी कोई लड़की ऊटपटांग हरकतें करती हुई नजर आए तो समझ जाना चाहिए कि वह लड़की कोई और नहीं, बल्कि सीमा कनौजिया ही है.
वैसे, सीमा की एक खास पहचान भी है. वह पहचान है मुंह घुमा के ‘है है है है’ करते रहना, वह भी बेमतलब में, फालतू में. उस का यह ‘है है…’ करना अच्छेखासे इंसान को इरिटेट करने का दम रखता है. साथ ही, किसी भी व्यक्ति को गुस्सा दिला सकता है.

इस के अलावा उस का बेतुका डांस आप के सिरदर्द का कारण बन सकता है. उस के डांस और गाने के बीच में कोई तालमेल नहीं होता. तालमेल तो छोड़िए, उस के डांस में डांस ही नहीं.

वैसे तो टिकटौक के समय सीमा के बहुत से अजीबोगरीब वीडियोज वायरल हुए थे, जिन में कभी वह किचन में खाना बनाते हुए दिखती है और फिर एकदम से नाचने लगती है तो कभी किचन में खाना बनाते हुए कहती है, ‘है है, फ्रैंड्स लोग. आज मैं ने परांठे बनाए हैं, आओ खा लो. फ्रैंड्स लोग आज मैं भंडारे में जा रही हूं. क्या आप ने कभी भंडारे में खाना खाया है?’ कभी वह तरबूज और आम खाते हुए वीडियो बनाती है, वह भी भद्दे तरीके से.

वह इस से भी बाज नहीं आती तो गुसलखाने में कपड़े धोते हुए दिख जाती है तो कभी बरतन साफ करते हुए दिखती है. इतना ही नहीं, इन सब कामों को करते हुए वह हैलो फ्रैंड्स ‘है है है’ करना नहीं भूलती. उस के इस तरह के कंटैंट को ही लोग क्रिंज कहते हैं.

पब्लिक में ठुमके

आजकल लोग सीमा कनौजिया की एक वायरल वीडियो के बारे में बात कर रहे हैं. यह वीडियो दिल्ली मैट्रो की है. इस में सीमा मशहूर बौलीवुड गाने ‘अनदेखी अनजानी…’ पर डांस कर रही है. पहले वह मैट्रो के अंदर ठुमके लगाती है, फिर बाहर आ जाती है और प्लेटफौर्म पर नाचने लगती है. वीडियो में दिख रहा है कि कैसे उस के पीछे खड़े लोग उस का डांस देख कर हैरान हो रहे हैं. कई लोग तो उस का डांस देख कर अपनी हंसी तक नहीं रोक पा रहे हैं.

सीमा के इस डांस को देख कर कई लोगों ने कमैंट किया-

जिस में एक यूजर ने लिखा, ‘‘ये कौन सी बीमारी है.’’

एक और यूजर ने लिखा, ‘‘कृपया कोई इस को पागलखाने में डालो.’’

एक अन्य यूजर ने लिखा, ‘‘ये नहीं सुधरने वाली.’’

एक और यूजर ने लिखा, ‘‘इसे कौन सा दौरा पड़ता है. मैं जा रहा हूं पुलिस स्टेशन कंप्लेन करवाने. मुझे सोशल पर मानसिक रूप से बहुत सताया गया है.’’

एक अन्य यूजर ने लिखा, ‘‘मिरगी की बीमारी है, चप्पल सुंघाओ.’’

एक दूसरी वीडियो में सीमा रेलवे प्लेटफौर्म पर बौलीवुड के गाने ‘मेरा दिल तेरा दीवाना…’ पर लेटलेट कर डांस कर रही है. सीमा ने अपने इंस्टाग्राम हैंडल पर यह डांस वीडियो अपलोड किया था. इस वायरल वीडियो पर लोग तरहतरह के रिऐक्शन दे रहे हैं. कोई उस लड़की का ‘कौन्फिडैंस’ देख कर हैरान है तो कोई उसे अपने ‘दिमाग का इलाज’ कराने की सलाह दे रहा है.

एक यूजर ने लिखा, ‘‘कोई इसे उठा कर पटरी पर फेंक दो.’’

एक अन्य यूजर ने लिखा, ‘‘इस ने तो लेटलेट कर पूरा प्लेटफौर्म ही साफ कर दिया है.’’

एक और यूजर ने लिखा, ‘‘जिगर होना चाहिए पब्लिकली ऐसा डांस करने के लिए.’’

सीमा के इस वीडियो पर एक यूजर ने लिखा, ‘‘ईजी लगता है, ईजी लगता है, आर्ट है आर्ट ऐसा क्रिंज कंटैंट बनाना.’’

एक अन्य यूजर ने लिखा, ‘‘कौन्फिडैंस होना चाहिए इतना बकवास डांस करने के लिए.’’एक अन्य यूजर ने कमैंट किया, ‘‘किसकिस को ये बावली या पागल लगती है, लाइक करो.’’

उस की एक और वीडियो है जिस में वह फेरीवाले को अपना वीडियो दिखा रही है. हालांकि, वह फेरीवाला उस की वीडियो में इंटरैस्ट नहीं ले रहा. ऐसी ही उस की कई और वीडियोज हैं जिन में वह बस घर के घरेलू काम करती हुई नजर आती है. वह अपने एक वीडियो में भद्दी तरह से खाना खाती हुई भी दिखती है. अगर कोई उस की यह वीडियो देख ले तो बिना खाना खाए ही टेबल से उठ जाएगा.

उस की फौलो लिस्ट की बात करें तो सीमा के इंस्टाग्राम पर 4 लाख 62 हजार से ज्यादा फौलोअर्स हैं. उस की 2 हजार 3 सौ पोस्ट हैं. इन सभी पोस्ट में सब से ज्यादा उस की बेहूदा हरकतें करती हुई वीडियोज हैं जिन का कोई सिरपैर नहीं है. ये वीडियोज उस के यूट्यूब चैनल पर भी अपलोड हैं.

वह अकसर फैशन शो में रैंप वाक करती हुई दिखाई देती है. इस के अलावा वह मेकअप आर्टिस्ट के शो में चीफ गेस्ट के तौर पर भी जाती है और अपनी स्किन पर मेकअप भी करवाती है. इस तरह वह उन का प्रमोशन कर के भी पैसा छापती है.

असल में, क्रिंज कंटैंट क्रिएटर केवल यह चाहते हैं कि लोग उन के द्वारा बनाए गए कंटैंट पर हंसें. उन्हें क्रिंज कंटैंट बनाने के लिए यही लोग प्रेरित करते हैं. आखिर, उन्हें पहचान मिल रही है. पैसा मिल रहा है फिर क्यों भला वे इस फेम को खोना चाहेंगे. ऐसे में हम और आप लोगों को ही इस तरह का कंटैंट देखना बंद करना होगा. आखिर हमारे पास भी तो खाली समय और फ्री डेटा नहीं है.

अगर हम कहें कि लोग आखिर क्रिंज कंटैंट क्यों बनाते हैं तो इस का जवाब बहुत साफ और सरल है. बारबार क्रिंज कंटैंट को देखना ही इन्हें बनाने वालों को बढ़ावा देता है. इसी कारण कंटैंट क्रिएटर क्रिंज कंटैंट बनाते हैं. वे बेवकूफ नहीं हैं, उन्हें पता है कि वे क्या कर रहे हैं. सच तो यह है कि वे बहुत स्मार्ट हैं. वे जानते हैं कि जनता जो देखती है वह बिकता है. हमारी आबादी एक अरब से ज्यादा है और लोग हर तरह के कंटैंट देखते हैं.

क्रिंज कंटैंट का कंज्यूमर

लोकप्रियता और पहचान एक बात है, पैसा बिलकुल दूसरी बात है. अब जब घटिया कंटैंट सच में पैसा कमाने का मौका बन रहा है तो क्या कोई इस मौके को छोड़ेगा? कोई इस तरह के मौके को अपने हाथ से जाने देगा? सभी लोग कम समय में ज्यादा से ज्यादा पैसा कमाना चाहते हैं. साथ ही, वे सोशल फेम भी चाहते हैं. इसीलिए लोग क्रिंज कंटैंट से पैसा कमाने के लिए प्रेरित हो रहे हैं. कोई भी टैलेंट को इम्पोर्टेंस नहीं देता है. सभी पैसे के पीछे भाग रहे हैं जिस के कारण वे क्रिंज कंटैंट लोगों के सामने परोस रहे हैं और पैसा कमा रहे हैं.

इस के पीछे एक सामाजिक कारण भी है. वह है दूसरों के अजीब और शर्मनाक पल देख कर लोगों को खुशी मिलती है. इस के अलावा, एक टर्म है ‘शाडेनफ्रूड.’ यह एक जरमन शब्द है जिस का अर्थ है दूसरों के दुर्भाग्य या शर्मिंदगी में खुशी या मनोरंजन की तलाश करना. यह ज्यादा से ज्यादा कंटैंट देखने के लिए एक प्रेरणा हो सकता है.

दिमाग नहीं लगाना पड़ता

आखिर क्रिंज कंटैंट पर ज्यादा व्यूज क्यों आते हैं, इस का कारण है कि इस तरह के कंटैंट में जो दिखाया जाता है, कई बार हम वह सभी करना चाहते हैं लेकिन सोशल प्रैशर की वजह से हम यह सब नहीं कर पाते हैं. इस के अलावा हम लोग अपने दोस्तों से वाहवाही लूटना चाहते हैं. बहुत सारे लोग हैं जो कम समय में ज्यादा पैसा कमाना चाहते हैं. यही लोग आजकल क्रिंज कंटैंट का सहारा ले रहे हैं. इस में ज्यादा दिमाग भी नहीं लगाना पड़ता या यह कहें कि दिमाग घर छोड़ कर ही आना होता है.

ये लोग अच्छी तरह से जानते हैं कि युवाओं को ऊटपटांग हरकतें करना, जैसे अपने ऊपर नाली का पानी डालना, चीखनाचिल्लाना, उलटापुलटा डांस करना वगैरहवगैरह करना ही पसंद आ रहा है. वे लोग ऐसा ही कंटैंट देखना चाहते हैं और क्रिंज कंटैंटर को इस से पैसा भी मिलता है. इसलिए काफी लोग क्रिंज कंटैंट बना रहे हैं.

क्रिंज कंटैंट की बढ़ती संख्या को देखते हुए इंडियन इंस्टिट्यूट औफ मैनेजमैंट (आईआईएम) उदयपुर ने ‘क्रिंज कंटैंट की स्टडी के लिए एक टीम बनाई है. यह टीम कंटैंट बनाने वाले लोगों पर नजर रखेगी. आईआईएम उदयपुर की इस स्टडी में यह भी पता लगाया जाएगा कि रियल लाइफ में इन क्रिएटर्स को लोग कितना मानते हैं.

आईआईएम उदयपुर की यह स्टडी उत्तर प्रदेश के मैनपुरी, महाराष्ट्र के सांगली, पश्चिम बंगाल के सिलिगुड़ी, ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर, आंध्र प्रदेश के विशाखापत्तनम, राजस्थान के उदयपुर और असम के लाखीपुर में की जाएगी.

अभी तक आईआईएम की टीम के मुताबिक सफलता और फेम पाना छोटे शहरों के इन क्रिएटर्स का लक्ष्य होता है, इसलिए वे क्रिंज कंटैंट बनाने से भी नहीं कतराते हैं क्योंकि ऐसा करने से लोग उन्हें याद रखते हैं.

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