अब कोई नाता नहीं : अतुल-सुमित कौन बना अपना – भाग 3

कांता प्रसाद और राम प्रसाद की नम आंखों में भी हंसी चमक उठी. कांता प्रसाद ने अतुल को इशारे से अपने करीब बुलाया और अपने पास बैठाते हुए कहा, “समझे. मैं जल्दी ही वकील से यह दुकान तुम्हारे नाम करवाने के लिए बात कर लूंगा.’’

अतुल बीच में बोल पड़ा, ‘‘नहीं ताऊजी, मेरी अपनी दुकान अच्छी चल रही है. प्लीज, आप ऐसा न करें.’’

‘‘अरे अतुल, मुझे पता है, तेरी दुकान कितनी अच्छी चलती है, एक कोने में तेरी छोटी सी दुकान है और अस्पताल से बहुत दूर भी. बस, तू मेरी बात मान ले. अपने ताऊजी से बहस न कर,’’ कांता प्रसाद ने मुसकराते हुए अतुल को डांट दिया.

‘‘भाईसाहब, आप ऐसा न करें, दुकान भले ही चलाने के लिए हमें किराए पर दे दें पर इसे अतुल के नाम पर न करें, सुमित…’’

राम प्रसाद भविष्य का विचार करते हुए सुझाव देने लगे तो कांता प्रसाद किंचित आवेश में बीच में बोल पड़े, ‘‘अरे रामू, यह मेरी प्रौपर्टी है, मैं चाहे जिसे दे दूं. सुमित से अब हम कोई नाता नहीं रखना नहीं चाहते हैं. अब वह हमारा नहीं रहा. सुमित ने तो अपनी अलग दुनिया बसा ली है. उसे हम दोनों की कोई जरूरत नहीं है. अब तो अतुल ही हमारा बेटा है.’’

कांता प्रसाद की आंखें फिर छलक गईं. राम प्रसाद ने इस समय बात को और आगे बढ़ाना उचित न समझा.

कुछ ही देर में निशा और दिशा किचन से नाश्ता ले कर बाहर आ गईं. रमा ने निशा और दिशा को अपने पास बैठाया. दोनों रमा के दाएंबाएं बैठ गईं. रमा ने दोनों के सिर पर हाथ रखते हुए कहा, ‘‘ये जुड़वां बहनें जब छोटी थीं तब दोनों छिपकली की तरह मुझ से चिपकी रहती थीं. रात को सरला बेचारी सो नहीं पाती थी. तब मैं एक को अपने पास सुलाती थी. इन का पालनपोषण करना सरला के लिए तार पर कसरत करने के समान था.

‘‘देखो, अब ये कितनी बड़ी हो गई हैं.’’ यह कहते हुए रमा निशा और दिशा का माथा चूमने लगी, फिर कांता प्रसाद की ओर मुखातिब होते हुए बोली, ‘‘आप ने बहुत बातें कर लीं जी, अब मेरी बात भी सुन लो. मैं ने निशा और दिशा का कन्यादान करने का निर्णय लिया है. इन दोनों के विवाह का संपूर्ण खर्च मैं करूंगी. अतुल इन्हें जितना पढ़ना है, पढ़ने देना और अगर तुम प्राइवेटली आगे पढ़ना चाहो तो पढ़ सकते हो. अब तुम्हें और तुम्हारे मम्मीपापा को निशादिशा की चिंता करने की जरूरत नहीं है.’’

‘‘रमा, तुम ने तो मेरे मुंह की बात छीन ली है. मैं भी यही कहने वाला था. हम तो बेटी के लिए तरस रहे थे. ये अपनी ही तो बेटियां हैं.’’

कांता प्रसाद ने उत्साहित होते हुए कहा तो उन का चेहरा खुशी से चमक उठा मगर उन की बातें सुन कर राम प्रसाद और मूकदर्शक बन कर बैठी सरला की आंखों से आंसुओं की धारा धीरेधीरे बहने लग गई.

माहौल फिर गंभीर बन रहा था, इस बार निशा ने माहौल को हलकाफुलका करते हुए कहा, ‘‘आप सब तो बस बातें करने में ही मशगूल हो गए हैं. चाय की ओर किसी का ध्यान ही नहीं है. देखो, यह ठंडी हो गई है. मैं फिर से गरम कर के लाती हूं.’’ यह कहते हुए निशा उठी तो उस के साथसाथ दिशा भी खड़ी हो गई. दिशा ने सभी के सामने रखी नाश्ते की खाली प्लेटें उठाईं तो निशा ने ठंडी चाय से भरे कप उठाए. फिर दोनों किचन की ओर मुड़ गईं जिन्हें कांता प्रसाद और रमा अपनी नजरों से ओझल हो जाने तक डबडबाई आंखों से देखते रहे.

प्यार की राह में : क्या पूरा हुआ अंशुला- सुनंदा का प्यार – भाग 3

मैं अपना वादा नहीं निभा पाया. मैं तुम से शादी नहीं कर सकता हूं. मैं अपने मातापिता का दिल दुखा कर तुम्हें खुशी नहीं दे पाऊंगा. ‘अगर मैं ने तुम से शादी की, तो मेरी मां अपनी जान दे देंगी. मैं अपनी मां की मौत की वजह नहीं बनना चाहता. तुम अपना ध्यान रखना. यूपीएससी की तैयारी मन लगा कर करना. मुझे उम्मीद है कि तुम एक अच्छी आईएएस साबित होगी. किसी काबिल लड़के से शादी कर के जिंदगी में आगे बढ़ जाना.’ खत पढ़ते हुए सुनंदा की आंखों से लगातार आंसू बहने लगे. आंसुओं से खत भी भीग गया. सुनंदा के खत पढ़ने के बाद वह औरत बोली,

‘‘अब रोना बंद करो और अंशुल को भुला कर अपनी जिंदगी में आगे बढ़ो.’’ इतना कह कर जब वह औरत मुड़ कर अपनी कार की तरफ जाने लगी, सुनंदा ने पीछे से आवाज लगाई, ‘‘शालिनी दीदी…’’ इतना सुन कर उस औरत के कदम थम गए और वह पीछे मुड़ी. वह कुछ कहती, इस से पहले सुनंदा बोली, ‘‘मैं आप को पहचान गई हूं दीदी. मैं ने जरूर आप को कभी नहीं देखा, लेकिन जिस तरह अंशुल के शब्दों से, बातों से आप मेरी आकृति पहचान गईं, ठीक वैसे ही मैं ने भी आप की छवि पा ली. ‘‘यहां से जाने से पहले बस इतना बता दीजिए कि अंशुल कैसा है और कहां है? मैं आप से वादा करती हूं कि मैं कभी भी उस से मिलने की कोशिश नहीं करूंगी.’’ सुनंदा के इतना कहते ही शालिनी की आंखें भर आईं और वे लंबी सांस लेते हुए बोलीं, ‘‘सुनंदा… सच तो यह है कि अंशुल तुम से बेइंतहा प्यार करता था और तुम से ही शादी करना चाहता था, लेकिन जब उस ने मम्मीपापा को तुम्हारे बारे में बताया, तो वे दोनों ही इस शादी के लिए राजी नहीं हुए.

‘‘मम्मी ने अंशुल को धमकी दी कि अगर वह तुम से शादी करेगा, तो वे अपनी जान दे देंगी. हार कर अंशुल ने मम्मी से वादा किया कि न तो वह तुम से बात करेगा और न शादी, लेकिन बात यहां पर खत्म नहीं हुई. अंशुल के वादा करते ही मम्मीपापा ने उस से बिना पूछे उस की शादी तय कर दी. अंशुल इस शादी के लिए तैयार नहीं था, लेकिन मम्मी ने जिद पकड़ ली और अंशुल शादी के लिए मान गया. ‘‘शादी के ठीक एक रात पहले अंशुल ने मुझे यह चिट्ठी दी और कहा कि मैं यह चिट्ठी तुम तक पहुंचा दूं.

मुझे नहीं पता था कि उस की शादी का जोड़ा उस का कफन बन जाएगा और शादी का जश्न मातम में बदल जाएगा. ‘‘अंशुल ने इस बेरहम दुनिया को अलविदा कहने के लिए अपनी ही शादी का दिन चुना. बरात निकलने से पहले अंशुल ने जहर खा लिया और लाख कोशिशों के बावजूद उसे बचाया नहीं जा सका.’’ इतना कह कर शालिनी तेज कदमों से चल कर कार में जा बैठी और वहां से चली गई. सुनंदा जिंदा लाश सी वहीं खड़ी रही. ‘‘मैडमजी, आप की अदरकइलायची वाली चाय….’’ औफिस बौय के ऐसा कहने पर सुनंदा की तंद्रा भंग हुई. आज पूरे 7 साल के बाद सुनंदा फिर उसी शहर में थी, जहां से उस ने अपनी पढ़ाई पूरी की थी और आज वह एसपी बन गई है. अंशुल आज भी सुनंदा के दिल में उस की धड़कन बन कर जिंदा है और वह अपनी जिंदगी के रास्ते पर बिना किसी हमराही के अकेले चल रही है.

प्यार की राह में : क्या पूरा हुआ अंशुला- सुनंदा का प्यार – भाग 2

सुनंदा भी पढ़ने में तेज थी और वह खुद भी कुछ करना चाहती थी, कुछ बनना चाहती थी, इसलिए 12वीं क्लास पास करने के बाद उस ने एक सरकारी कालेज में दाखिला ले लिया था. उस दिन सड़क की सफाई करने के बाद अपनी मां के लिए दवाएं ले कर जब सुनंदा घर पहुंची थी, तो उस ने देखा कि उस के महल्ले के एकलौते सरकारी नल के आगे लंबी कतार लगी थी. इतनी बड़ी आबादी वाले महल्ले में केवल एक ही नल था. समय पर पानी भरना भी जरूरी था,

नहीं तो पानी ही नहीं मिलेगा. ऐसी हालत में लोग आपस में लड़ेंगे नहीं तो और क्या करेंगे. सरकारी नल के सामने लगी कतार में आधा घंटा खड़े होने के बाद सुनंदा को पानी मिला. पानी भरने और घर के दूसरे काम निबटाने के बाद सुनंदा अपनी बीमार मां को दवा खिला कर कालेज पहुंची थी. कालेज में सुनंदा की ज्यादा सहेलियां नहीं थीं, क्योंकि कोई भी एक ऐसी लड़की से दोस्ती करना पसंद नहीं करता, जिस की मां या वह लड़की खुद सड़क पर झाड़ू लगाने का काम करती हो. इस कालेज में सुनंदा की बस एक ही सहेली थी सरोज, जिस ने सुनंदा की सारी सचाई और उस के घर की हालत को जानते हुए सुनंदा से दोस्ती की थी, लेकिन उस दिन सरोज भी कालेज नहीं आई थी.

कालेज में सारे लैक्चर अटैंड करने के बाद जब सुनंदा घर के लिए निकली, तो कालेज के बाहर ही उसे अंशुल मिल गया था और उस ने पूछा था, ‘अरे, आप यहां…? क्या आप इस कालेज में पढ़ती हैं?’ सुनंदा अपने कदम बिना रोके ही बोली थी, ‘जी, मैं बीए फर्स्ट ईयर की स्टूडैंट हूं.’ ‘अरे वाह… मतलब, आप काम भी करती हैं और पढ़ाई भी,’ अंशुल ने हैरान होते हुए कहा था. जवाब में सुनंदा ने कहा था, ‘मेरी मां सड़क पर झाड़ू लगाने का काम करती हैं. किसी वजह से जब वे काम पर नहीं जा पाती हैं, तभी मैं उन के बदले काम पर जाती हूं.’ ‘ओह… मगर, आप पढ़ाई और काम दोनों साथसाथ कैसे कर लेती हैं?’ यह सुन कर एक पल के लिए सुनंदा के कदम ठहर गए थे और वह होंठों पर थोड़ा व्यंग्यात्मक मुसकान लाते हुए बोली थी, ‘गरीबी, जरूरतें और कुछ करने की चाह इनसान से कुछ भी करा सकती है.’

इतना कह कर सुनंदा तेज कदमों से आगे बढ़ गई थी और सुनंदा से ऐसा जवाब सुन कर अंशुल पलभर के लिए वहीं ठहर गया था. अंशुल और सुनंदा का कालेज भले ही एक नहीं था, लेकिन दोनों का कालेज रूट एक ही था. सुनंदा के गर्ल्स कालेज से कुछ ही दूर अंशुल का बौयज कालेज था और कालेज का समय भी एक ही था. इस वजह से वे दोनों अकसर रास्ते में टकरा जाते थे और उन के बीच बातें होने लगी थीं. धीरेधीरे सुनंदा के दिल में अंशुल के प्रति प्रेम के अंकुर फूटने लगे थे, लेकिन सुनंदा अपने और अंशुल के बीच जो जाति और हैसियत का फासला था, उसे भी जानती थी, इसलिए वह अंशुल से हमेशा एक दूरी बना कर रखती थी. इस तरह एक साल बीत गया था. एक दिन जब सरोज कालेज पहुंची, तो उस की आंखें सूजी हुई थीं. यह देख कर सुनंदा ने उस से पूछा था,

‘अरे, तुझे क्या हुआ…? तेरी आंखें ऐसी क्यों लग रही हैं?’ इस पर सुनंदा के गले लग कर सरोज फूटफूट कर रोने लगी थी. सुनंदा उसे शांत कराते हुए बोली थी, ‘बात क्या है? कुछ तो बता. या यों ही रोती रहेगी?’ इस पर सरोज सिसकारियां भरते हुए बोली थी, ‘इस हफ्ते मेरी सगाई है और अगले महीने शादी.’ यह सुन कर सुनंदा हैरानी से बोली थी, ‘और तेरी पढ़ाई का क्या होगा?’ ‘पापा कह रहे हैं कि अब जो करना है, अपनी ससुराल में जा कर ही करना,’ सरोज रोते हुए बोली थी. इधर सुनंदा अपनी पक्की सहेली सरोज की शादी और उस की पढ़ाई को ले कर परेशान थी, उधर अंशुल का दिल भी सुनंदा के लिए धड़कने लगा था, जिसे छिपा पाना अब अंशुल के लिए मुश्किल हो गया था. इसी बीच एक दिन सरोज अपनी शादी से 15 दिन पहले कालेज में अपनी शादी का कार्ड देने आई थी. वह सुनंदा से हाथ जोड़ कर माफी मांगते हुए बोली थी, ‘मैं तुझे अपनी शादी में नहीं बुला पाऊंगी,

क्योंकि पापा ने तुझे शादी में बुलाने से मना किया है.’ यह सुन कर सुनंदा को बहुत दुख हुआ कि वह अपनी एकलौती सहेली की शादी में शामिल नहीं हो पाएगी, लेकिन उसे जरा भी बुरा नहीं लगा, क्योंकि वह जातिवाद, ऊंचनीच का भेदभाव और लोगों का अपने प्रति इस तरह का बरताव बचपन से झेलती आई थी. अब तो वह इस की आदी हो चुकी थी. सरोज की शादी हो गई और सुनंदा अकेली रह गई. ऐसे समय में अंशुल बना सुनंदा का साथी और फिर यही साथी सुनंदा का हमसफर बनने का भी दम भरने लगा था. धीरेधीरे सुनंदा को भी अंशुल पर यकीन होने लगा था और वे दोनों साथ जीनेमरने की कसमें खाने लगे थे. सुनंदा पटिया पर बैठी टकटकी लगाए आसमान को देखती यही सब सोच रही थी. रहरह कर उस के मन में बस यही सवाल आ रहा था कि अंशुल सहीसलामत तो होगा न और यह खत उसे किस ने भेजा होगा? जिस ने भी भेजा है, वह खुद अब तक क्यों नहीं आया है? थर्ड ईयर का फाइनल एग्जाम देने और यूपीएससी इम्तिहान की तैयारी के लिए कोचिंग इंस्टीट्यूट में एडमिशन लेने के बाद अंशुल दिल्ली से कानपुर अपने घर चला गया था,

लेकिन उस के बाद न कभी वह कानपुर से लौटा और न ही कभी उस का कोई फोन आया. सुनंदा ने अंशुल के कुछ दोस्तों और उस के रूममेट से जानने की कोशिश की थी कि आखिर अंशुल है कहां, पर किसी के पास कोई जवाब नहीं था. सुनंदा ने कई बार उसे फोन भी किया, पर हर बार अंशुल का फोन स्विच औफ ही बताता था. सुनंदा पूरी तरह से निराश हो चुकी थी, लेकिन इस के बावजूद उसे अंशुल और अपने प्यार पर पूरा यकीन था. उसे यह भी यकीन था कि अंशुल उसे इस तरह अकेले छोड़ कर कभी नहीं जाएगा, वह जरूर लौटेगा. अचानक 6 महीने के बाद सुनंदा को यह गुमनाम खत मिला, जिसे पढ़ कर अंशुल के बारे में जानने के लिए सुनंदा यहां आ गई. सुनंदा अपने ही विचारों में गुम थी कि तभी वहां एक लंबी कार आ कर रुकी,

जिस में से तकरीबन सुनंदा के उम्र से थोड़ी सी बड़ी एक शादीशुदा औरत उतरी. माथे पर बड़ी सी लाल बिंदी, मांग में सिंदूर, गले में लंबा सा मंगलसूत्र… उस औरत को देख कर सुनंदा हैरत में पड़ गई. उस औरत ने बिलकुल वैसी ही साड़ी पहनी थी, जैसी साड़ी सुनंदा ने दिल्ली के कमला मार्केट से पसंद कर के अंशुल को दी थी… जब अंशुल ने कहा था कि ‘मुझे एक साड़ी खरीदनी है अपने किसी खास के लिए’. उस समय सुनंदा अंशुल से यह पूछ नहीं पाई थी कि उसे साड़ी किस के लिए खरीदनी है. वह औरत सुनंदा के एकदम सामने आ कर खड़ी हो गई और बोली, ‘लगता है कि तुम अंशुल और उस के प्यार को अब तक भूली नहीं हो और आज भी उसे पाने की चाह रखती हो, तभी तो खत पढ़ते ही यहां दौड़ी चली आई. ‘‘तुम्हें क्या लगता है कि तुम जैसी सड़कों पर झाड़ू लगाने वाली लड़की किसी ऊंचे खानदान की बहू बन सकती है? या फिर यह लगता है कि अंशुल पूरे परिवार से बगावत कर के अपने घर की इज्जत ताक पर रख कर तुम से शादी कर लेगा? अगर ऐसा कोई भी विचार तुम्हारे मन में है, तो अंशुल का यह खत पढ़ लो… अब वह कभी भी तुम्हारे पास लौट कर नहीं आएगा,’’ इतना कह कर उस औरत ने खत सुनंदा की ओर बढ़ा दिया. सुनंदा कंपकंपाते हाथों से वह खत खोल कर पढ़ने लगी, जिस में लिखा था: ‘मुझे माफ कर दो सुनंदा

वो भूली दास्तां लो फिर याद आ गई: भाग 1

कभी कभी जिंदगी में कुछ घटनाएं ऐसी भी घटती हैं, जो अपनेआप में अजीब होती हैं. ऐसा ही वाकिआ एक बार मेरे साथ घटा था, जब मैं दिल्ली से हैदराबाद जा रहा था. उस दिन बारिश हो रही थी, जिस की वजह से मुझे एयरपोर्ट पहुंचने में 10 मिनट की देरी हो गई थी और काउंटर बंद हो चुका था. आज पूरे 2 साल बाद जब मैं दिल्ली एयरपोर्ट पर उतरा और बारिश को उसी दिन की तरह मदमस्त बरसते देखा, तो अचानक से वह भूला हुआ किस्सा न जाने कैसे मेरे जेहन में ताजा हो गया.

मैं खुद हैरान था, क्योंकि पिछले 2 सालों में शायद ही मैं ने इस किस्से को कभी याद किया होगा.

एक बड़ी कंपनी में ऊंचे पद पर होने के चलते काम की जिम्मेदारियां इतनी ज्यादा हैं कि कब सुबह से शाम और शाम से रात हो जाती है, इस का हिसाब रखने की फुरसत नहीं मिलती. यहां तक कि मैं इनसान हूं रोबोट नहीं, यह भी खुद को याद दिलाना पड़ता है.

लेकिन आज हवाईजहाज से उतरते ही उस दिन की एकएक बात आंखों के सामने ऐसे आ गई, जैसे किसी ने मेरी जिंदगी को पीछे कर उस दिन के उसी वक्त पर आ कर रोक दिया हो. चैकआउट करने के बाद भी मैं एयरपोर्ट से बाहर नहीं निकला या यों कहें कि मैं जा ही नहीं पाया और वहीं उसी जगह पर जा कर बैठ गया, जहां 2 साल पहले बैठा था.

मेरी नजरें भीड़ में उसे ही तलाशने लगीं, यह जानते हुए भी कि यह सिर्फ मेरा पागलपन है. मेन गेट की तरफ देखतेदेखते मैं हर एक बात फिर से याद करने लगा.

टिकट काउंटर बंद होने की वजह से उस दिन मेरे टिकट को 6 घंटे बाद वाली फ्लाइट में ट्रांसफर कर दिया गया था. मेरा उसी दिन हैदराबाद पहुंचना बहुत जरूरी था. कोई और औप्शन मौजूद न होने की वजह से मैं वहीं इंतजार करने लगा.

बारिश इतनी तेज थी कि कहीं बाहर भी नहीं जा सकता था. बोर्डिंग पास था नहीं, तो अंदर जाने की भी इजाजत नहीं थी और बाहर ज्यादा कुछ था नहीं देखने को, तो मैं अपने आईपैड पर किताब पढ़ने लगा.

अभी 5 मिनट ही बीते होंगे कि एक लड़की मेन गेट से भागती हुई आई और सीधा टिकट काउंटर पर आ कर रुकी. उस की सांसें बहुत जोरों से चल रही थीं. उसे देख कर लग रहा था कि वह बहुत दूर से भागती हुई आ रही है, शायद बारिश से बचने के लिए. लेकिन अगर ऐसा ही था तो भी उस की कोशिश कहीं से भी कामयाब होती नजर नहीं आ रही थी. वह सिर से पैर तक भीगी हुई थी.

यों तो देखने में वह बहुत खूबसूरत नहीं थी, लेकिन उस के बाल कमर से 2 इंच नीचे तक पहुंच रहे थे और बड़ीबड़ी आंखें उस के सांवले रंग को संवारते हुए उस की शख्सीयत को आकर्षक बना रही थीं.

तेज बारिश की वजह से उस लड़की की फ्लाइट लेट हो गई थी और वह भी मेरी तरह मायूस हो कर सामने वाली कुरसी पर आ कर बैठ गई. मैं कब किताब छोड़ उसे पढ़ने लगा था, इस का एहसास मुझे तब हुआ, जब मेरे मोबाइल फोन की घंटी बजी.

ठीक उसी वक्त उस ने मेरी तरफ देखा और तब तक मैं भी उसे ही देख रहा था. उस के चेहरे पर कोई भाव नहीं था. मैं सकपका गया और उस पल की नजर से बचते हुए फोन को उठा लिया.

फोन मेरी मंगेतर का था. मैं अभी उसे अपनी फ्लाइट मिस होने की कहानी बता ही रहा था कि मेरी नजर मेरे सामने बैठी उस लड़की पर फिर से पड़ी. वह थोड़ी घबराई हुई सी लग रही थी. वह बारबार अपने मोबाइल फोन पर कुछ चैक करती, तो कभी अपने बैग में.

मैं जल्दीजल्दी फोन पर बात खत्म कर उसे देखने लगा. उस ने भी मेरी ओर देखा और इशारे में खीज कर पूछा कि क्या बात है? मैं ने अपनी हरकत पर शर्मिंदा होते हुए उसे इशारे में ही जवाब दिया कि कुछ नहीं.

उस के बाद वह उठ कर टहलने लगी. मैं ने फिर से अपनी किताब पढ़ने में ध्यान लगाने की कोशिश की, पर न चाहते हुए भी मेरा मन उस को पढ़ना चाहता था. पता नहीं, उस लड़की के बारे में जानने की इच्छा हो रही थी.

कुछ मिनट ही बीते होंगे कि वह लड़की मेरे पास आई और बोली, ‘सुनिए, क्या आप कुछ देर मेरे बैग का ध्यान रखेंगे? मैं अभी 5 मिनट में चेंज कर के वापस आ जाऊंगी.’

‘जी जरूर. आप जाइए, मैं ध्यान रख लूंगा,’ मैं ने मुसकराते हुए कहा.

‘थैंक यू. सिर्फ 5 मिनट… इस से ज्यादा टाइम नहीं लूंगी आप का,’ यह कह कर वह बिना मेरे जवाब का इंतजार किए वाशरूम की ओर चली गई.

10-15 मिनट बीतने के बाद भी जब वह नहीं आई, तो मुझे उस की चिंता होने लगी. सोचा जा कर देख आऊं, पर यह सोच कर कि कहीं वह मुझे गलत न समझ ले. मैं रुक गया. वैसे भी मैं जानता ही कितना था उसे. और 10 मिनट बीते. पर वह नहीं आई.

अब मुझे सच में घबराहट होने लगी थी कि कहीं उसे कुछ हो तो नहीं गया. वैसे, वह थोड़ी बेचैन सी लग रही थी. मैं उसे देखने जाने के लिए उठने ही वाला था कि वह मुझे सामने से आती हुई नजर आई. उसे देख कर मेरी जान में जान आई. वह ब्लैक जींस और ह्वाइट टौप में बहुत अच्छी लग रही थी. उस के खुले बाल, जो शायद उस ने सुखाने के लिए खोले थे, किसी को भी उस की तरफ खींचने के लिए काफी थे.

वह अपना बैग उठाते हुए एक फीकी सी हंसी के साथ मुझ से बोली, ‘सौरी, मुझे कुछ ज्यादा ही टाइम लग गया. थैंक यू सो मच.’

मैं ने उस की तरफ देखा. उस की आंखें लाल लग रही थीं, जैसे रोने के बाद हो जाती हैं. आंखों की उदासी छिपाने के लिए उस ने मेकअप का सहारा लिया था, लेकिन उस की आंखों पर बेतरतीबी से लगा काजल बता रहा था कि उसे लगाते वक्त वह अपने आपे में नहीं थी. शायद उस समय भी वह रो रही हो.

प्यार की राह में : क्या पूरा हुआ अंशुला- सुनंदा का प्यार – भाग 1

शहर की सैंट्रल लाइब्रेरी से निकल कर सुनंदा सीधे शेयरिंग आटोरिकशा ले कर शहर से 30 किलोमीटर दूर हाईवे के किनारे बनी एक टपरीनुमा चाय की दुकान पर पहुंच गई, क्योंकि लाइब्रेरी के पते में उसे अपने नाम का एक ऐसा बेनाम खत मिला था, जिस में लिखा था कि अगर तुम अंशुल के बारे में जानना चाहती हो तो वहीं आ जाओ, जहां तुम हमेशा उस से मिला करती थी. उस खत को पढ़ने के बाद सुनंदा सीधे यहां आ गई, लेकिन यहां कोई नहीं था. सुनंदा को देख कर चाय वाले ने कहा,

‘‘अरे बिटिया, महीनों बाद आई हो और अंशुल बेटा नहीं आए तुम्हारे साथ?’’ यह सुन कर सुनंदा अपनी घबराहट और बेचैनी को छिपाते हुए बोली, ‘‘नहीं काका, मैं अकेली ही आई हूं.’’ ‘‘तुम्हारे लिए वही तुम्हारी पसंद की बगैर इलायची वाली अदरक की चाय बना दूं?’’ चाय वाले ने बड़े अपनेपन से पूछा. ‘‘नहीं काका, थोड़ी देर से बना देना. अभी रहने दो,’’ ऐसा कह कर सुनंदा वहीं टपरी के बाहर लकड़ी की बनी पटिया पर बैठ गई. कालेज के दिनों में सुनंदा और अंशुल अकसर यहां आते थे. सुनंदा बिना इलायची की अदरक वाली चाय पिया करती थी और अंशुल अदरक इलायची वाली. दोनों चाय पीने के बाद घंटों अपने सुनहरे भविष्य की कल्पनाओं में खो जाया करते थे. अंशुल हमेशा कहता था, ‘सुनंदा, तुम जानती हो, जब मैं यूपीएससी क्लियर कर के एसपी बनूंगा, तो मैं अपने परिवार का पहला एसपी रहूंगा…’ इस पर सुनंदा हंसते हुए कहती थी, ‘अरे त्रिपाठीजी,

आप तो अपने परिवार के पहले एसपी होंगे, लेकिन मैं तो अपनी बिरादरी की पहली ग्रेजुएट लड़की और पहली प्रथम दर्जे की सरकारी अफसर रहूंगी…’ सुनंदा जैसे ही यह कहती, अंशुल उसे छेड़ते हुए कहता था, ‘और त्रिपाठी परिवार की पहली विजातीय बहू भी…’ यह सुन कर सुनंदा का चेहरा शर्म से लाल हो जाता था. सुनंदा को आज भी अंशुल से अपनी पहली मुलाकात याद है. पहली बार किसी ने सड़क पर झाड़ू लगाती हुई लड़की से बड़ी इज्जत से कहा था, ‘जरा सुनिए, इस स्ट्रीट में भारद्वाजजी का मकान कौन सा है?’ सुनंदा ने हिचकते हुए कहा था, ‘जी, यहां से तीसरा.’ ‘थैंक यू….’ इतना कह कर अंशुल वहां से मुसकराते हुए आगे बढ़ गया था, लेकिन सुनंदा का सिर अंशुल के प्रति इज्जत से मन ही मन झुक गया था. इस तरह पहली बार सुनंदा से किसी ने बात की थी, वरना कोई उसे ‘अरे लड़की’, तो कोई ‘ऐ सुनंदा’ कह कर ही बुलाया करता था. कई तो उसे ऐसी भूखी नजरों से देखते थे,

जैसे कोई भेड़िया अपने शिकार को देखता है. वैसे, सुनंदा हर रोज सड़क की सफाई करने नहीं जाया करती थी. जब कभी उस की मां को कोई काम होता था या वे किसी वजह से काम पर नहीं जा पाती थीं, उन्हीं हालात में सुनंदा अपनी मां की जगह काम पर जाती थी. कहने को तो सुनंदा का बाप आटोरिकशा चलाता था, लेकिन आटो चलाने से ज्यादा वह शराब के नशे में चूर हो कर कहीं न कहीं पड़ा रहता था. दलित तबके के तमगे और गरीबी से जूझने के बावजूद सुनंदा की मां उसे पढ़ालिखा कर कुछ बनाना चाहती थीं. वे अपनी बेटी को यह नरक जैसी जिंदगी नहीं देना चाहती थीं.

नन्हा सा मन: कैसे बदल गई पिंकी की हंसतीखेलती दुनिया

Story in Hindi

नन्हा सा मन: कैसे बदल गई पिंकी की हंसतीखेलती दुनिया – भाग 3

थोड़े दिनों तक सब ठीक रहा. फिर वही झगड़ा शुरू हो गया. पिंकी सोचती, ‘उफ, ये मम्मीपापा तो कभी नहीं सुधरेंगे, हमेशा झगड़ा करते रहेंगे. वह इस घर को छोड़ कर कहीं दूर चली जाएगी. तब पता चलेगा दोनों को कि पिंकी भी कुछ है. अभी तो उस की कोई कद्र ही नहीं है.’

वह सामने के घर में रहने वाला भोलू घर छोड़ कर चला गया था तब उस के मम्मीपापा जगहजगह ढूंढ़ते फिर रहे थे. वह भी ऐसा करेगी, पर वह जाएगी कहां? जब वह छोटी थी तो शारदा आंटी बताती थीं कि बच्चों को कभी एकदम अकेले घर से बाहर नहीं जाना चाहिए. बाहर बच्चों को पकड़ने वाले बाबा घूमते रहते हैं जो बच्चों को झोले में डाल कर ले जाते हैं, उन के हाथपांव काट कर भीख मंगवाते हैं. ना बाबा ना, वह घर छोड़ कर नहीं जाएगी. फिर वह क्या करे?

पिंकी अब गुमसुम रहने लगी थी. वह किसी से बात नहीं करती थी. अब वह मम्मी व पापा से किसी खिलौने की भी मांग नहीं करती. हां, कभीकभी उस का मन करता है तो वह अकेली बैठी खूब रोती है. वह अब सामान्य बच्चों की तरह व्यवहार नहीं करती. स्कूल में किसी की कौपी फाड़ देती, किसी का बस्ता पटक देती. उस की क्लासटीचर ने उस की मम्मी को फोन कर के उस की शिकायत की थी.

एक दिन उस ने अपने सारे खिलौने तोड़ दिए थे. तब मम्मी ने उसे खूब डांटा था, ‘न पढ़ने में मन लगता है तेरा और न ही खेलने में. शारदा बता रही थी कि तुम उस का कहना भी नहीं मानतीं. स्कूल में भी उत्पात मचा रखा है. मैं पूछती हूं, आखिर तुम्हें हो क्या गया है?’

वह कुछ नहीं बोली. बस, एकटक नीचे जमीन की ओर देख रही थी. उसे अब सपने भी ऐसे आते कि मम्मीपापा आपस में लड़ रहे हैं. वह किसी गहरी खाई में गिर गई है और बचाओबचाओ चिल्ला रही है. पर मम्मीपापा में से कोईर् उसे बचाने नहीं आता और वह सपने में भी खुद को बेहद उदास, मजबूर पाती. वह किसी को समझ नहीं सकती, न मम्मी को, न पापा को.

वह अपनी मम्मी से यह नहीं कह सकती कि खुशबू आंटी को ले कर पापा से मत झगड़ा किया करो. क्या हुआ अगर पापा ने उन्हें कार में बिठा लिया या उन्हें शौपिंग करा दी. और न ही वह पापा से कह सकती है कि जब मम्मी को बुरा लगता है तो खुशबू आंटी को घुमाने क्यों ले जाते हो. वह जानती है कि वह कुछ भी कहेगी तो उस की बात कोई नहीं सुनेगा. उलटे, उस को दोचार थप्पड़ जरूर पड़ जाएंगे. मम्मी अकसर कहती हैं कि बड़ों की बातों में अपनी टांग मत अड़ाया करो.

पिंकी के मन में भय बैठता जा रहा था. वह भयावह यंत्रणा झेल रही थी. धीरेधीरे पिंकी का स्वास्थ्य गिरने लगा. वह अकसर बीमार रहने लगी. मम्मी और पापा दोनों उसे डाक्टर के पास ले गए. डाक्टर ने खूब सारे टैस्ट किए जिन की रिपोर्ट नौर्मल निकली. डाक्टर ने उस से कई सवाल पूछे, पर पिंकी एकदम चुप रही. उन्होंने कुछ दवाइयां लिख दीं, फिर पापा से बोले, ‘लगता है इसे किसी बात की टैंशन है या किसी बात से डरी हुई है. आप इसे किसी अच्छे मनोचिकित्सक को दिखाएं जिस से इस की परेशानी का पता चल सके.’

पिंकी को उस के मम्मीपापा दूसरे डाक्टर के पास ले गए. करीब एक सप्ताह तक वे पिंकी को मनोचिकित्सक के पास ले जाते रहे. वे डाक्टर आंटी बहुत अच्छी थीं, उस से खूब बातें करती थीं. शुरूशुरू में तो पिंकी ने गुस्से में उन का हाथ झटक दिया था, उन की मेज पर रखा गिलास भी तोड़ दिया था. पर वे कुछ नहीं बोलीं, जरा भी नाराज नहीं हुईं.

वे डाक्टर आंटी उस के सिर पर प्यार से हाथ फेरतीं, उसे दुलार करतीं और उस के गालों पर किस्सी दे कर उसे चौकलेट देतीं. फिर कहतीं, ‘बेटा, अपने मन की बात बताओ. तुम बताओगी नहीं, तो मैं कैसे तुम्हारी परेशानी दूर कर पाऊंगी?’ उन्होंने पिंकी को आश्वासन दिया कि वे उस की परेशानी दूर कर देंगी. नन्हा सा मन आश्वस्त हो कर सबकुछ बोल उठा.

रोतेरोते पिंकी ने डाक्टर आंटी को बता दिया कि वह मम्मीपापा दोनों के बिना नहीं रह सकती. जब मम्मीपापा लड़ते हैं तो वह बहुत भयभीत हो उठती है, एक डर उस के दिल में घर कर लेता है जिस से वह उबर नहीं पाती. उस का दिल मम्मीपापा दोनों के लिए धड़कता है. दोनों के बिना वह जी नहीं सकती. उस दिन वह खूब रोई थी और डाक्टर आंटी ने उसे अपने सीने से चिपका कर खूब प्यार किया था.

बाहर आ कर उन्होंने पिंकी के मम्मीपापा को खूब फटकारा था. आप दोनों के झगड़ों ने बच्ची को असामान्य बना दिया है. अगर बच्ची को खुश देखना चाहते हैं तो आपस के झगड़े बंद करें, उसे अच्छा माहौल दें, वरना बच्ची मानसिक रूप से अस्वस्थ होती चली जाएगी और आप अपनी बच्ची की बीमारी के जिम्मेदार खुद होंगे.

उस दिन पिंकी ने सोचा था कि आज उस ने डाक्टर आंटी को जो कुछ बताया है, उस बात को ले कर घर जा कर उसे मम्मी और पापा दोनों खूब डांटेंगे, खूब चिल्लाएंगे. वह डरी हुई थी, सहमी हुई थी. पर उस के मम्मीपापा ने उसे एक शब्द नहीं कहा. डाक्टर आंटी के फटकारने का एक फायदा तो हुआ कि उस के मम्मी और पापा दोनों बिलकुल नहीं झगड़े, लेकिन आपस में बोलते भी नहीं थे.

उस ने जो सारे खिलौने तोड़ दिए थे, उन की जगह उस के पापा नए खिलौने ले आए थे. मम्मी उस का बहुत ध्यान रखने लगी थीं. रोज रात उसे अपने से चिपका कर थपकी दे कर सुलातीं. पापा भी उस पर जबतब अपना दुलार बरसाते. पर पिंकी भयभीत और सहमीसहमी रहती. वह कभीकभी खूब रोती. तब उस के मम्मीपापा दोनों उसे चुप कराने की हर कोशिश करते.

एक रात पिंकी को हलकी सी नींद आई थी कि पापा की आवाज सुनाई दी. वे मम्मी से भर्राए स्वर में कह रहे थे, ‘तुम मुझे माफ कर दो. मैं भटक गया था. भूल गया था कि मेरा घर, मेरी गृहस्थी है और एक प्यारी सी बच्ची भी है. पिंकी की यह हालत मुझ से देखी नहीं जाती. इस का जिम्मेदार मैं हूं, सिर्फ मैं.’ पापा यह कह कर रोने लगे थे. उस ने पहली बार अपने पापा को रोते हुए देखा था. उस की मम्मी एकदम पिघल गईं, ‘आप रोइए मत, अब भी कुछ नहीं बिगड़ा है. पिंकी भी हम दोनों के प्यार से ठीक हो जाएगी. अपने झगड़े में हम ने इस पर जरा भी ध्यान नहीं दिया.’

थोड़ी देर वातावरण में गहरी चुप्पी छाई रही. फिर मम्मी बोलीं, ‘अपनी नौकरी के चक्कर में मैं ने आप पर भी ज्यादा ध्यान नहीं दिया. औफिस का काम भी घर ले आती थी. आप एकदम अकेले पड़ गए थे, इसीलिए खुशबू…’ इस से आगे उन के शब्द गले में ही अटक कर रह गए थे.

‘नहींनहीं, मैं ही गलत था. अब मैं पिंकी की कसम खा कर कहता हूं कि मैं खुशबू से कोई संबंध नहीं रखूंगा. मेरी पिंकी एकदम अच्छी हो जाए और तुम खुश रहो, इस के अलावा मुझे कुछ नहीं चाहिए.’ पापा धीरेधीरे मम्मी के बालों में उंगलियां फेर रहे थे और मम्मी की सिसकियां वातावरण में गूंज रही थीं.

पिंकी मन ही मन कह रही थी, ‘मम्मी मत रो, देखो न, पापा अपनी गलती मान रहे हैं. पापा, आप दुनिया के सब से अच्छे पापा हो, आई लव यू पापा. और मम्मी आप भी बहुत अच्छी हैं. मैं आप को भी बहुत प्यार करती हूं, आई लव यू मौम.’

पिंकी की आंखें भर आई थीं पर ये खुशी के आंसू थे. अब उसे किसी अलादीन के चिराग की जरूरत नहीं थी. उस के नन्हे से मन में दुनिया की सारी खुशियां सिमट कर समाहित हो गई थीं. आज उस का मन खेलना चाहता है. दौड़ना चाहता है, और इन सब से बढ़ कर दूर बहुत दूर आकाश में उड़ना चाहता है.

नन्हा सा मन: कैसे बदल गई पिंकी की हंसतीखेलती दुनिया – भाग 2

‘हां कुछकुछ,’ निशा बोली थी. ‘क्या वह चिराग मुझे मिल सकता है?’‘क्यों, तू उस का क्या करेगी?’ निशा ने पूछा था.‘उस चिराग को घिसूंगी, फिर उस में से जिन्न निकलेगा. फिर मैं उस से जो चाहूंगी, मांग लूंगी,’ पिंकी बोली.

‘अब वह चिराग तो पता नहीं कहां होगा, तुझे जो चाहिए, मम्मी पापा से मांग ले. मैं तो यही करती हूं.’पिंकी चुप रही. वह उसे कैसे बताए कि अपने लिए नहीं, मम्मीपापा के लिए कुछ मांगना चाहती है. मम्मीपापा का यह रोज का ? झगड़ा उसे पागल बना देगा. एक बार उस की इंग्लिश की टीचर ने भी उसे खूब डांटा था, ‘मैं देख रही हूं तुम पहले जैसी होशियार पिंकी नहीं रही, तुम्हारा तो पढ़ाई में मन ही नहीं लगता.’

पिछले साल का रिजल्ट देख कर टीचर पापामम्मी पर नाराज हुए थे, ‘तुम पिंकी पर जरा भी ध्यान नहीं देतीं, देखो, इस बार इस के कितने कम नंबर आए हैं.’

‘हां, अगर अच्छे नंबर आए तो सेहरा आप के सिर कि बेटी किस की है. अगर कम नंबर आए तो मैं ध्यान नहीं देती. मैं पूछती हूं आप का क्या फर्ज है? पर पहले आप को फुरसत तो मिले अपनी सैक्रेटरी खुशबू से.’

‘पिंकी की पढ़ाई में यह खुशबू कहां से आ गई?’ पापा चिल्लाए.बस, पिंकी के मम्मीपापा में लड़ाई शुरू हो गई. उस दिन उस ने जाना था कि खुशबू आंटी को ले कर दोनों झगड़ते हैं. वह समझ नहीं पाई थी कि खुशबू आंटी से मम्मी क्यों चिढ़ती हैं. एक दो बार वे घर आ चुकी हैं. खुशबू आंटी तो उसे बहुत सुंदर, बहुत अच्छी लगी थीं, गोरी चिट्टी, कटे हुए बाल, खूब अच्छी हाइट. और पहली बार जब वे आई थीं तो उस के लिए खूब बड़ी चौकलेट ले कर आई थीं. मम्मी पता नहीं खुशबू आंटी को ले कर पापा से क्यों झगड़ा करती हैं.

पिंकी के पापा औफिस से देर से आने लगे थे. जब मम्मी ने पूछा तो कहा, ‘ओवरटाइम कर रहा हूं, औफिस में काम बहुत है.’ एक दिन पिंकी की मम्मी ने खूब शोर मचाया. वे चिल्लाचिल्ला कर कह रही थीं, ‘कार में खुशबू को बिठा कर घुमाते हो, उस के साथ शौपिंग करते हो और यहां कहते हो कि ओवरटाइम कर रहा हूं.’

‘हांहां, मैं ओवरटाइम ही कर रहा हूं. घर के लिए सारा दिन कोल्हू के बैल की तरह काम करता हूं और तुम ने खुशबू को ले कर मेरा जीना हराम कर दिया है. अरे, एक ही औफिस में हैं, तो क्या आपस में बात भी नहीं करेंगे,’ पिंकी के पापा ने हल्ला कर कहा था.

‘उसे कार में घुमाना, शौपिंग कराना, रैस्टोरैंट में चाय पीना ये भी औफिस के काम हैं?’

उन दोनों में से कोई चुप होने का नाम नहीं ले रहा था. दोनों का झगड़ा चरमसीमा पर पहुंच गया था और गुस्से में पापा ने मम्मी पर हाथ उठा दिया था. मम्मी खूब रोई थीं और पिंकी सहमीसहमी एक कोने में दुबकी पड़ी थी. उस का मन कर रहा था वह जोरजोर से चीखे, चिल्लाए, सारा सामान उठा कर इधरउधर फेंके, लेकिन वह कुछ नहीं कर सकी थी. आखिर इस झगड़े का अंत क्या होगा, क्या मम्मीपापा एकदूसरे से अलग हो जाएंगे, फिर उस का क्या होगा. वह खुद को बेहद असहाय और असुरक्षित महसूस करने लगी थी.

उस दिन वह आधी रात एक बुरा सपना देख कर अचानक उठ गई और जोरजोर से रोने लगी थी. उस के मम्मीपापा घबरा उठे. दोनों उसे चुप कराने में लग गए थे. उस की मम्मी पिंकी की यह हालत देख कर खुद भी रोने लगी थीं, ‘चुप हो जा मेरी बच्ची. तू बता तो, क्या हुआ? क्या कोई सपना देख रही थी?’ पिंकी की रोतेरोते घिग्घी बंध गई थी. मम्मी ने उसे अपने सीने से कस कर चिपटा लिया था. पापा खामोश थे, उस की पीठ सहला रहे थे.

पिंकी को पापा का इस तरह सहलाना अच्छा लग रहा था. चूंकि मम्मी ने उसे छाती से चिपका लिया था, इसलिए पिंकी थोड़ा आश्वस्त हो गई थी. इस घटना के बाद पिंकी के मम्मीपापा पिंकी पर विशेष ध्यान देने लगे थे. पर पिंकी जानती थी कि ये दुलार कुछ दिनों का है, फिर तो वही रोज की खिचखिच. उस का नन्हा मन जाने क्या सोचा करता. वह सोचती कि माना खुशबू आंटी बहुत सुंदर हैं, लेकिन उस की मम्मी से सुंदर तो पूरी दुनिया में कोई नहीं है. उस को अपने पापा भी बहुत अच्छे लगते हैं. इसीलिए जब दोनों झगड़ते समय अलग हो जाने की बात करते हैं तो उस का दिल धक हो जाता है. वह किस के पास रहेगी? उसे तो दोनों चाहिए, मम्मी भी, पापा भी.

पिंकी ने मम्मी को अकसर चुपकेचुपके रोते देखा है. वह मम्मी को चुप कराना चाहती है, वह मम्मी को दिलासा देना चाहती है, ‘मम्मी, रो मत, मैं थोड़ी बड़ी हो जाऊं, फिर पापा को डांट लगाऊंगी और पापा से साफसाफ कह दूंगी कि खुशबू आंटी भले ही देखने में सुंदर हों पर उसे एक आंख नहीं सुहातीं. अब वह खुशबू आंटी से कभी चौकलेट भी नहीं लेगी. और हां, यदि पापा उन से बोले तो मैं उन से कुट्टी कर लूंगी.’ पर वह अपनी मम्मी से कुछ नहीं कह पाती. जब उस की मम्मी रोती हैं तो उस का मन मम्मी से लिपट कर खुद भी रोने का करता है. वह अपने नन्हे हाथों से मम्मी के बहते आंसुओं को पोंछना चाहती है, वह मम्मी के लिए वह सबकुछ करना चाहती है जिस से मम्मी खुश रहें. पर वह अपने पापा को नहीं छोड़ सकती, उसे पापा भी अच्छे लगते हैं.

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