तो क्या विकास की राजनीति के आगे फीकी पड़ गई शाहीन बाग की राजनीति

लुटियंस दिल्ली की आवाम ने इस बार भी अरविंद केजरीवाल की दिल खोलकर वोट दिए. विरोधी पार्टियों के खेमों में मातम पसरा हुआ है. भाजपा लगातार हिंदी बेल्टों में चुनाव हारती जा रही है. फिलहाल दिल्ली के चुनावों में दो पार्टियों के बीच ही टक्कर देखने को मिली. भाजपा और आप. भाजपा के पास न तो चेहरा और न ही काम. वहीं इसके उलट आप नेता सीएम केजरीवाल के पास खुद का उनका चेहरा था और पांच साल में दिल्ली में किया गया विकास. इसमें कोई दोराय नहीं कि दिल्ली में सरकारी स्कूलों की हालत बेहतर हुई है. दिल्ली में 24 घंटे बिजली आई और 200 यूनिट तक फ्री बिजली. इसके साथ ही साथ एक ईमानदार छवि.

लगभग 21 दिनों तक चले आक्रामक प्रचार के बावजूद दिल्ली में भाजपा की नैया डूब गई. भाजपा ने ध्रुवीकरण की आक्रामक पिच तैयार कर रखी थी, इसके बावजदू पार्टी को सफलता नहीं मिली. शाहीनबाग में प्रदर्शन से मानों भाजपा को मुंहमागी मुराद जैसा कुछ हाथ लग गया था. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर गृहमंत्री अमित शाह और राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा सहित अन्य छोटे से लेकर बड़े नेता हर रैली और सभाओं में शाहीनबाग का मुद्दा उछालते रहे. सभाओं में ये नेता जनता के बीच सवाल उछालते रहे कि आप शाहीनबाग के साथ हैं या खिलाफ?

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इसके अलावा शरजील इमाम के असम वाले बयान, जेएनयू, जामिया हिंसा को भी भाजपा ने मुद्दा बनाकर बहुसंख्यक मतदाताओं को साधने की कोशिश की. छोटे से केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली के लिए भाजपा ने जितनी ताकत झोंक दी, उतनी बड़े-बड़े राज्यों के विधानसभा चुनाव में भी पार्टी ने मेहनत नहीं की थी. लगभग 4500 सभाओं का आयोजन किया गया. भाजपा ने गली-गली मुख्यमंत्री, पूर्व मुख्यमंत्री, केंद्रीय मंत्री, सांसद-विधायकों की फौज दौड़ा दी. कोई मुहल्ला नहीं बचा, जहां बड़े नेताओं ने नुक्कड़ सभाएं नहीं कीं. भाजपा ने अपने पक्ष में जबरदस्त माहौल बनाने की कोशिश की, लेकिन आम आदमी पार्टी की मुफ्त बिजली-पानी देने की योजना पर पार नहीं पा सकी.

दिल्ली भाजपा के एक बड़े नेता ने नाम जाहिर न करने की शर्त पर कहा, “केंद्रीय नेतृत्व ने जबरदस्त उत्साह के साथ काम किया. सिर्फ केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने केवल 11 दिनों में 53 सभाएं की, दूसरी तरफ भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने 63 सभाएं की. केंद्रीय नेतृत्व ने महज 21 दिन में चुनाव को टक्कर का बना दिया. लेकिन पूरे पांच साल तक दिल्ली भाजपा सोती रही, जिसकी वजह से हम हार गए.”

भाजपा के नेता मानते हैं कि केजरीवाल ने जिस तरह से दो सौ यूनिट बिजली, महीने में 20 हजार लीटर पानी मुफ्त कर दिया, उससे आम जन और गरीब परिवारों की जेब पर भार कम हुआ है. लाभ पाने वाला गरीब तबका चुनाव में साइलेंट वोटर बना नजर आया.

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बिजली कंपनियों के आंकड़ों की बात करें, तो एक अगस्त को योजना की घोषणा होने के बाद दिल्ली में कुल 52 लाख 27 हजार 857 घरेलू बिजली कनेक्शन में से 14,64,270 परिवारों का बिजली बिल शून्य आया. लाभ पाने वालों ने झाड़ू पर बटन दबाया. दूसरी तरफ, भाजपा का यह भी मानना है कि शाहीनबाग से हुए ध्रुवीकरण का फायदा आप सरकार को हुआ. नागरिकता संशोधन कानून आने के बाद से मुस्लिमों की बड़ी आबादी के मन में डर बैठ गया है. मुसलमानों ने उस पार्टी को जमकर वोट दिया जो भाजपा को हराने में सक्षम थी.

कांग्रेस दिल्ली चुनाव में कहीं नजर नहीं आई, ऐसे में मुसलमानों का अधिकतर वोट आम आदमी पार्टी को गया. यहां तक कि चांदनी चौक, सीलमपुर, ओखला आदि सीटों पर मुस्लिमों का वोट कांग्रेस को न जाकर आम आदमी पार्टी को गया. आम आदमी पार्टी ने महिलाओं पर भी फोकस किया, और इसके जवाब में भाजपा ने कुछ नहीं किया. केजरीवाल सरकार ने बसों में 30 अक्टूबर को भैयादूज के दिन से मुफ्त सफर की महिलाओं को सौगात दी. एक आंकड़े के मुताबिक, प्रतिदिन करीब 13 से 14 लाख महिलाएं दिल्ली में बसों में सफर करती हैं.

स्कूलों की वजह से दिल्ली का एक बड़ा तबका प्रभावित हुआ है. दिल्ली सरकार ने सबसे ज्यादा लाभ निजी स्कूलों की फीस पर अंकुश लगाकर मध्यमवर्गीय जनता को दिया. गौरतलब है कि अधिकांश स्कूल कांग्रेस और भाजपा नेताओं के हैं. ऐसे में केजरीवाल ने फीस पर नकेल कस दी. इसका लाभ मध्यमवर्गीय परिवारों को हुआ है और चुनाव में जिसका सीधा फायदा आप को हुआ.

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भाजपा नेता मानते हैं कि अनाधिकृत कॉलनियों का मुद्दा काम नहीं आया. उलटे ‘जहां झुग्गी, वहां मकान’ का मुद्दा पार्टी के लिए सिरदर्द बन गया. इस योजना को लेकर झुग्गियों में खूब अफवाह फैलाया गया. भाजपा का एक बड़ा वर्ग का यह भी मानना है कि भाजपा का हद से ज्यादा आक्रामक चुनाव प्रचार फायदा देने की जगह नुकसान कर गया. केजरीवाल खुद भाजपा की भारी-भरकम बिग्रेड का बार-बार हवाला देते हुए खुद को अकेला बताते रहे. ऐसे में जनता की केजरीवाल के प्रति सहानुभूति उमड़ी और भाजपा को नुकसान हुआ.

भाजपा को ये समझना पड़ेगा कि सिर्फ राष्ट्रवाद के सहारे चुनाव नहीं जीते जा सकते. चुनाव के लिए आपके पास काम का भी लंबा चिट्ठा सामने होना चाहिए. भाजपा के हाथ से लगातार बड़े राज्य छूटते गए हैं. बात करें तो मध्य प्रदेश, राजस्थान, झारखंड, महाराष्ट्र और अब दिल्ली में भाजपा को करारी हार मिली है. कहीं न कहीं जनता को समझ आ गया है कि केंद्र और  राज्य की राजनीति में फर्क क्या होता है. इसी दिल्ली के लोगों ने पीएम मोदी को सात की सात सीटें लोकसभा में दी थी लेकिन वहीं विधानसभा चुनावों में जीत का सेहरा आप को पहनाया.

छत्तीसगढ़ : सुपर सीएम भूपेश चले अमेरिका!

छत्तीसगढ़ के सुपर सीएम बन चुके भूपेश बघेल अपनी प्रथम विदेश यात्रा पर “अमेरिका” के लिए निकल पड़े हैं. भूपेश बघेल 11 फरवरी  अर्थात आज से अमेरिका के दौरे पर रहेंगे. इस दौरान  मुख्यमंत्री सैनफ्रांसिस्को, बोस्टन और न्यूयौर्क में कुछ  कार्यक्रमों में शामिल होंगे. 15 से 16 फरवरी को हार्वर्ड में आयोजित ‘इंडिया कॉन्फ्रेंस’ के विशेष चर्चा में शिरकत करेंगे , जहां ‘लोकतांत्रिक भारत में जाति और राजनीति’ विषय पर व्याख्यान भी देंगे.

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की अमेरिका यात्रा इन दिनों छत्तीसगढ़ में चर्चा में है जहां सरकार यह बता रही है कि यह यात्रा अमेरिका के उद्योगपतियों को निवेश के लिए मील का पत्थर बनेगी  वहीं भाजपा नेताओं सहित  पहले  के सुपर  मुख्यमंत्री  रहे अजीत जोगी ने गहरे तंज किए हैं.अजीत जोगी ने यात्रा के एक दिन पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के साथ छत्तीसगढ़ में पेंड्रा जिला के उद्घाटन मौके पर तंज का बाण चलाते हुए कहा – भूपेश बघेल अमेरिका जा रहे हैं,आज पेंड्रा जिला का उद्घाटन है उनसे आग्रह है कि “पेंड्रा जिला” को भी अमेरिका जैसा बना दें! अजीत जोगी आजकल भूपेश बघेल पर संकेतिक हमले कर रहे हैं. उनके इस तंज में छिपा हुआ है कि मुख्यमंत्री जी अमेरिका तो जा रहे हैं पेंड्रा और छत्तीसगढ़ क्या अमेरिका जैसा बन पाएगा!

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और यह सभी जानते हैं कि छत्तीसगढ़ ना कभी लंदन बन सकता है, अमेरिका या जापान अथवा चीन मगर राजनेता देशों का दौरा करके चाहते हैं हमारा राज्य भी विकसित हो जाए. यह कैसे होगा कब होगा यह जनता को सोचना होगा.अजीत जोगी के मेहमान स्वरूप उपस्थिति और तंज के बाद मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने शालीनता से कहा कि पेंड्रा जिला को “अमेरिका” बनाने के लिए सभी का सहयोग चाहिए. जाहिर है मुख्यमंत्री ने सच को स्वीकार किया और यह संकेत दिया कि सत्ता के साथ-साथ विपक्ष के ताल पर ही छत्तीसगढ़ का “विकास” हो सकता है.

दरियादिल  मुख्यमंत्री भूपेश!

आपको बताते चलें कि छत्तीसगढ़ का मुख्यमंत्री बने भूपेश बघेल को लगभग सवा साल  हो गए हैं और यह आपकी पहली विदेश यात्रा है. जब इस अमेरिका यात्रा का समाचार सुर्खियों में आया तो विधानसभा अध्यक्ष डॉक्टर चरणदास महंत ने  बिना झिझक मुख्यमंत्री से आग्रह किया कि वह भी अमेरिका चलना चाहेंगे. मुख्यमंत्री ने दरियादिली दिखाते हुए अपने साथ अपने अग्रज राजनेता और वर्तमान में विधानसभा अध्यक्ष डॉ चरणदास को भी ले लिया है.इस तरह छत्तीसगढ़ के 2 बड़े राजनीतिज्ञ अमेरिका के राजकीय दौरे पर निकल पड़े हैं . ऐसे में याद आता है डॉ रमन सिंह के विदेश भ्रमण के अनेक दौरे, जो उन्होंने मुख्यमंत्री मंत्री रहते हुए किए थे और जनता ने इन दोनों का इस्तकबाल किया था.

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मुख्यमंत्री भूपेश बघेल  10 दिवसीय अमेरिका प्रवास पर हार्वर्ड में आयोजित ‘इंडिया कॉन्फ्रेंस’ में शामिल होने के साथ ही उद्योग से जुड़े विभिन्न प्रतिनिधियों से चर्चा कर उन्हें छत्तीसगढ़ में निवेश के लिए आकर्षित करेंगे, मुख्यमंत्री अमेरिका में रहने वाले छत्तीसगढ़ियों से भी मुलाक़ात करेंगे. इसके अलावा बोस्टन के गवर्नर और नोबल विजेता अभिजीत बनर्जी से मुलाक़ात का भी कार्यक्रम है.

भूपेश बघेल का ‘दिल’

बता दें ‘इंडिया कॉन्फ्रेंस’ मूल रूप से संयुक्त राज्य अमेरिका में भारत पर ध्यान केंद्रित करने वाले सबसे बड़े छात्र-सम्मेलन में से एक है. यह हार्वर्ड बिजनेस स्कूल और हार्वर्ड केनेडी स्कूल में हार्वर्ड विश्वविद्यालय के स्नातक छात्रों द्वारा आयोजित किया जाता है. इनकी 17वीं वर्षगांठ पर 15 और 16 फरवरी को भूपेश बघेल व डाक्टर  चरणदास महंत  कार्यक्रम में शामिल होंगे. यहां उल्लेखनीय है कि जब मुख्यमंत्री भूपेश बघेल  अमेरिका जाने ही वाले थे जब पत्रकारों ने उन्हें घेरा और अमेरिका यात्रा पर बातचीत की तब भूपेश बघेल ने कहा वे भले ही 10 दिनों के लिए अमेरिका जा रहे हैं मगर उनका “दिल” तो छत्तीसगढ़ में ही रहेगा.

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इलाहाबाद में तिरंगे के साथ धरना

इलाहाबाद से प्रयागराज हुए इस शहर के रोशनबाग इलाके में पिछले 100 साल की ठंड का रिकौर्ड असर भी प्रदर्शनकारियों के हौसले के आगे हार गया. प्रशासन की मानमनौव्वल के बाद भी एनआरसी, सीएए और एनपीआर को ले कर रविवार, 12 जनवरी, 2020 को दोपहर के 3 बजे से शुरू हुआ प्रदर्शन तीसरे दिन भी जोश और जज्बे के साथ रहा. लगातार भीड़ बढ़ती जा रही थी.

सब से बड़ी बात यह थी कि इस प्रदर्शन में वे औरतें भी बढ़चढ़ कर हिस्सा ले रही थीं, जो अपने घरों से बहुत कम बाहर निकलती हैं. धरना पूरे दिन और पूरी रात चलता रहा.

इस आंदोलन की यह भी खासीयत है कि यह शांति से हो रहा था और पार्क के अंदर था. आंदोलनकारी अपने बैनर सड़क पर लगाना चाह रहे थे, लेकिन पुलिस द्वारा कानून का हवाला देने पर उन्हें वहां से हटा लिया गया.

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विरोध जता रहे लोगों के हाथों में तिरंगा भी था. वे मानते हैं कि तिरंगे का साया उन्हें ताकत देता है.

इस आंदोलन में आई एक औरत ने कहा, ‘‘देश की शान तिरंगा हमें एक राष्ट्र, एक देश और एक समाज के रूप में बांधता है. हम कभी अशांति नहीं फैलाएंगे.’’

दिल्ली से चला यह प्रदर्शन अब छोटे शहरों में भी फैल रहा है. प्रयागराज में रात में प्रदर्शनकारियों की भीड़ बढ़ रही थी. लोग रजाईगद्दे ले कर आ रहे थे.

इस आंदोलन की शुरुआत करने वाली सायरा को समर्थन देने के लिए औरतें बड़ी तादाद में दुधमुंहे बच्चों के साथ पहुंच रही थीं. मर्द व बूढ़े भी आंदोलन में बराबर से भागीदारी निभा रहे थे.

सै. मो. अस्करी ने बताया कि खुलदाबाद थाना क्षेत्र के मंसूर अली पार्क में चल रहे प्रदर्शन में तिरंगे  झंडे, भीमराव अंबडेकर की तसवीर व एनआरसी, सीएए और एनपीआर जैसे काले कानून को वापस लेने की मांग से शहर के पुराने इलाके रोशनबाग का ऐतिहासिक मंसूर अली पार्क दिल्ली का शाहीन बाग बन गया था.

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क्षेत्रीय पार्षद रमीज अहसन, अब्दुल्ला तेहामी, काशान सिद्दीकी, मोहम्मद हमजा वगैरह प्रदर्शनकारियों का हौसला बढ़ा रहे थे. इस के अलावा वे खाने और पानी, चाय व अलाव के इंतजाम के साथसाथ लोगों की मदद में दिनरात जुटे हुए थे.

प्रदर्शनकारियों का कहना था कि वे कोई भी दस्तावेज नहीं दिखाएंगे. वे हिंदुस्तानी हैं और कई पुश्तों से यहां रह रहे हैं. उन के बापदादा, परदादा सब इसी जमीन में दफन हैं और वे भी इसी जमीन में दफन होंगे, लेकिन वे न तो एनसीआर और एनपीआर का विरोध करना छोड़ेंगे और न ही किसी कागजात पर दस्तखत करेंगे. उन का आंदोलन तब तक जारी रहेगा, जब तक सरकार यह काला कानून वापस नहीं ले लेती.

सीमेंट : भूपेश, विपक्ष और अफवाहें

छत्तीसगढ़ के मुखिया भूपेश बघेल सीमेंट के मसले पर इन दिनों विपक्ष भाजपा और आम जनता के निशाने पर है. कांग्रेस की सरकार आने के बाद अब धीरे-धीरे ही सही माफियाओं के मुंह खुलने लगे हैं. जिनमें सबसे आगे है- सीमेंट के बड़े कारोबारी और फैक्ट्रियां.  यह चर्चा सरगम है कि फैक्ट्रियों को खुली छूट दे दी गई है, की दाम आप बढ़ा लो! सत्ता और सीमेंट किंग आपस में एक हो चुके हैं. परिणाम स्वरूप सीमेंट के भाव बेतहाशा बढ़ते चले गए. लगभग प्रति बैग 20 रुपये  का अतिरिक्त भार अब उठाना होगा.

प्रदेश में इस मसले पर एक तरह से हाहाकार मचा हुआ है सीमेंट के साथ-साथ रेत माफिया भी करोड़ों रुपए का खेल कर रहा है. वहीं यह भी खबर आ रही है कि स्टील के दाम भी बढ़ने जा रहे हैं. यह सब भूपेश बघेल की सरकार के समय हो रहा है जिन्होंने लंबे समय तक विपक्ष की राजनीति करते हुए इन्हीं मसलों पर डॉक्टर रमन सरकार को घेरा था.

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इधर सीमेंट की कीमतों में हो चुके  इजाफे से  सियासत गरमाते जा रही है. नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक ने कीमतों में बढ़ोत्तरी को लेकर राज्य सरकार पर उद्योगपतियों से सांठगांठ का खुला  आरोप लगा दिया  है. कौशिक ने कहा कि महीनेभर के भीतर दो बार सीमेंट के दाम बढ़ना कई सवाल खड़ा करता है. उद्योगपतियों और सरकार की मिलीभगत से छत्तीसगढ़ की जनता के जेब मे “डाका” डाला जा रहा है.कौशिक ने कहा कि सरकार जिस प्रकार से गुपचुप तरीके से उनके साथ बैठकें कर रही है, उस समय आरोप लगाया था कि सीमेंट के दामों में वृध्दि होगी. लेकिन उनके प्रवक्ता ने कहा था कि धरमलाल कौशिक के पास कोई काम नहीं है. मैं जिस बात को बोलता हूं प्रमाणिकता के साथ बोलता हूं, आज वो बात सच साबित हो गई कि ये लोग सीमेंट के रेट को कैसे बढ़ा रहे हैं. सरकार ने उद्योगपतियों के सामने घुटने टेक दिए हैं, इसका क्या कारण है वो मैं नहीं जानता लेकिन इनकी मिलीभगत से ये संभव नहीं है.

एक करोड़ का डाका!!

धरमलाल कौशिक ने जो आरोप लगाए हैं वह सोचने को विवश करते हैं और सच्चाई के निकट प्रतीत होते हैं  उन्होंने कहा,  छत्तीसगढ़ में सीमेंट के जो उपभोक्ता हैं खासकर प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत जो काम चल रहा है, अब उसका रेट बढ़ेगा. छत्तीसगढ़ के लोगों के जेब से 1 करोड़ प्रतिदिन के हिसाब से डाका डाला जा रहा है.

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महीने के हिसाब से छत्तीसगढ़ के लोगों के जेब से निकाला जा रहा है ये अत्यंत दुर्भाग्य जनक घटना है.  भूपेश सरकार को इस पर रोक लगानी होगी मै उद्योगपतियों से भी आग्रह करूंगा कि रेट कम करें. छत्तीसगढ़ की फिजा में सीमेंट रेट  स्टील चर्चा का सबब बने हुए हैं गली चौराहे और नुक्कड़ पर सीमेंट की बेतहाशा दाम बढ़ने पर चर्चा हो गई है सीधे-सीधे इसका असर कांग्रेश की भूपेश सरकार की छवि पर पड़ रहा है.

सीमेंट के दाम पर घमासान

छत्तीसगढ़ में सीमेंट के बढ़ते  दाम  सियासी मुद्दा बन जाते हैं. छत्तीसगढ़ राज्य बनने के पश्चात मुख्यमंत्री अजीत जोगी के समय काल 2003 में यहां सीमेंट की कीमत  प्रति बैग सौ स्र्पये से  भी कम थी.राजनीति  घुसी तो 2004 में दाम सीधे 120 स्र्पये प्रति बैग हो गया. 2005 के शुरूआत में डॉ रमन सिंह के आशीर्वाद से सीमेंट के दाम 155  रुपए और 2006 में यह दाम सीधे 200 के पार पहुंच गया.

जब- जब दाम बढ़े तब-तब इसका विरोध भी होता  है .आगे सन 2008 में दाम सीधे 250 से 300 पहुंच गये.अजीत जोगी  और जनता ने इस वृद्धि का  तीव्र विरोध  किया.भाजपा  सरकार पर सीमेंट कंपनियों से मिलीभगत सरंक्षण  का आरोप लगा. आगे  आर्थिक मंदी के कारण सीमेंट के दाम गिर कर  250 तक पहुंच गये. दिसंबर 2018 में छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव के समय दाम 225 से 230 रुपये ही था.

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तानाशाह है सरकार एसआर दारापुरी: रिटायर्ड आईपीएस और सामाजिक कार्यकर्ता

साल 1972 के बैच के आईपीएस एसआर दारापुरी पुलिस की सर्विस से साल 2003 में आईजी के पद से रिटायर हुए थे. वे अब उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ की इंदिरानगर कालोनी में रहते हैं.

पुलिस से रिटायर होने के बाद एसआर दारापुरी ने सामाजिक कार्यकर्ता और राजनीतिक पार्टी के जरीए जनता की सेवा का काम करना शुरू किया.

उन की पहचान दलित चिंतक के रूप  में भी है.

76 साल के एसआर दारापुरी आल इंडिया पीपुल्स फ्रंट के राष्ट्रीय प्रवक्ता  हैं. नागरिकता कानून के विरोध प्रदर्शन में पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार किया था.

14 दिन जेल में रहने के बाद वे जेल से छूट कर वापस आए और कहा, ‘‘सरकार के दमन का हमारे ऊपर कोई असर नहीं हुआ है. हम ने नागरिकता कानून का पहले भी विरोध किया था, आज भी कर रहे हैं और आने वाले कल में भी करेंगे. हम ने पहले भी हिंसा नहीं की, आज भी नहीं कर रहे और आगे भी नहीं करेंगे. शांतिपूर्ण तरीके से हम अपना विरोध दर्ज कराते रहेंगे.’’

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गैरकानूनी थी हिरासत

एसआर दारापुरी अपनी गिरफ्तारी पर जानकारी देते हुए कहते हैं, ‘‘5 दिसंबर, 2019 को नागरिकता कानून के खिलाफ हजरतगंज पर बनी डाक्टर अंबेडकर की प्रतिमा के नीचे धरना दिया गया था. वहां बहुत सारे सामाजिक संगठनों के लोग थे. वहां पर 19 दिसंबर, 2019 को नागरिकता कानून के विरोध की घोषणा हुई थी.

‘‘बाद में हमारे इस अभियान में दूसरे कई राजनीतिक लोग भी जुड़ गए थे.

19 दिसंबर, 2019 को विरोध प्रदर्शन को देखते हुए मुझे अपने घर में पुलिस ने नजरबंद कर दिया था.

‘‘19 दिसंबर की सुबह 7 बजे जब मैं अपने घर से टहलने के लिए सामने बने पार्क में गया तो गाजीपुर थाने के पुलिस के 2 सिपाही वहां बैठे मिले. इस की मुझे पहले से कोई जानकारी नहीं थी. जब मैं वापस आया और सिपाहियों से पूछा तो बोले कि हमें थाने से यहां ड्यूटी पर भेजा गया है.

‘‘तकरीबन 2 घंटे के बाद सीओ गाजीपुर और एसओ गाजीपुर यहां जीप से आए. उस समय मुझे यह बताया कि घर से बाहर नहीं जाना है. तब मैं ने घर से अपने हाउस अरैस्ट होने और नागरिकता कानून के विरोध का फोटो अपने फेसबुक पेज पर पोस्ट किया.

‘‘शाम के तकरीबन 5 बजे मुझे नागरिकता कानून के विरोध और हिंसा की खबरें मिलीं तो मैं ने अपने कुछ साथियों से पीस कमेटी बना कर काम करने के लिए कहा, जिस में यह तय हुआ कि शनिवार को हम लोग प्रशासन से मिल कर इस काम को अंजाम देंगे.

‘‘20 दिसंबर की सुबह 11 बजे पुलिस मेरे घर आई. सीओ और एसओ गाजीपुर ने मुझे थाने चलने के लिए कहा. मैं ने उन से पूछा कि क्या मुझे गिरफ्तार किया जा रहा है? तो वे बोले कि नहीं, आप को थाने चलना है.

‘‘मैं अपने साधारण कपड़ों में ही पुलिस की जीप में बैठ कर थाने चला आया. मुझे लगा कि शाम तक वापस छोड़ देंगे. मैं दिनभर गाजीपुर थाने में बैठा रहा. शाम के तकरीबन 6 बजे मुझे हजरतगंज थाने चलने के लिए बोला गया.

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‘‘मैं पुलिस के साथ हजरतगंज थाने आ गया. वहां मैं ने फिर अपनी गिरफ्तारी की बात पूछी तो इंस्पैक्टर हजरतगंज ने कहा कि 39 पहले हो चुके हैं, आप 40वें हैं. उम्र में बड़ा होने या पहले पुलिस में रहने के चलते मुझे बैठने के लिए कुरसी दे दी गई थी, पर खाने के लिए कुछ नहीं दिया गया.

‘‘रात को तकरीबन 11 बजे मुझे रिमांड मजिस्ट्रेट के सामने पेश होने के लिए रिवर बैंक कालोनी ले जाया गया. वहां मजिस्ट्रेट के सामने मैं ने पूरी बात बताई. पुलिस ने मुझ पर हिंसा की साजिश रचने की धारा 120 बी का मुकदमा कायम किया था. पुलिस तथ्यों और अपनी बात से मजिस्ट्रेट को सहमत नहीं कर पाई. ऐसे में मजिस्ट्रेट ने रिमांड नहीं दी.’’

नहीं दिया कंबल

‘‘रात तकरीबन 12 बजे मुझे वापस हजरतगंज थाने लाया गया. उस समय तक मुझे सर्दी लगने लगी थी. मैं साधारण कपड़ों में था. मैं ने कंबल मांगा, तो पुलिस ने नहीं दिया.

‘‘मैं ने किसी तरह से घर पर फोन कर बेटे को कंबल लाने के लिए कहा, तो वह डरा हुआ था. उस को यह जानकारी मिल रही थी कि जो भी ऐसे लोगों से मिलने जा रहा है, उस को पकड़ा जा रहा है. इस डर के बाद भी वह किसी तरह से कंबल ले कर घर से थाने आया.

‘‘इस दौरान मुझे खाने के लिए कुछ भी नहीं दिया गया था. मेरे पास पानी की बोतल थी, वही पी कर प्यास बुझा रहा था. पुलिस ने मनगढं़त लिखापढ़ी की और बताया कि रिमांड मजिस्ट्रेट मिले नहीं थे. फिर मेरी गिरफ्तारी को घर से न दिखा कर महानगर के किसी पार्क से होना दिखाया.

‘‘21 दिसंबर की शाम मुझे जेल भेजा गया. जेल में रिमांड मजिस्ट्रेट के सामने मुझे पेश किया गया. जेल में जाने के समय रात के 9 बज गए थे. मैं रात को भूखा ही सो गया. 22 दिसंबर की सुबह मुझे जेल में नाश्ता मिला.

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‘‘तकरीबन 37 घंटे मुझे पुलिस ने बिना किसी तरह के खाने के रखा. मेरा 161 का बयान नहीं कराया गया.

‘‘जेल में मुझे तमाम ऐसे लोग मिले, जिन को लखनऊ में दंगा फैलाने के आरोप में पकड़ा गया था. ऐसे लोगों को शारीरिक प्रताड़ना की भी जानकारी मिली.

‘‘मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के दंगा करने वालों से बदला लेने के बयान के बाद पुलिस बेहद क्रूर हो गई. हिंसा में पकड़े गए लोगों को हजरतगंज थाने से अलग ले जा कर मारा गया.

‘‘एक पुलिस अधिकारी ने कहा कि इन को इतना मारो कि पीठ डेढ़ इंच से कम सूजी नहीं होनी चाहिए. जेल में दिखे कई लोगों के चेहरे ऐसे सूजे थे कि वे पहचान में नहीं आ रहे थे.’’

निचली अदालत से जमानत खारिज होने के बाद एसआर दारापुरी को सैशन कोर्ट से जमानत मिली.

एसआर दारापुरी जितने दिनों जेल में थे, उन की बीमार पत्नी घर पर थीं. इस बीच कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी उन से मिलने उन के घर भी गई थीं.

इन की मिलीभगत

एसआर दारापुरी कहते हैं, ‘‘हमारा नागरिकता कानून का विरोध शांतिपूर्ण था. इस को दबाने के लिए हिंसा फैलाई गई. सदफ जफर नामक महिला फेसबुक पर लाइव करते पुलिस से कह रही थीं कि इन लोगों को पकड़ो. पुलिस ने उन को नहीं पकड़ा. थाने में लाने के बाद भी कुछ लोगों को छोड़ दिया गया.

‘‘जिन के बारे में सुना गया कि वे लोग भाजपा समर्थन के चलते छोड़ दिए गए. ऐसे में साफ है कि पुलिस की मिलीभगत से भाजपा और आरएसएस के लोगों ने यह काम कराया.’’

एसआर दारापुरी लखनऊ पुलिस को खुलेआम चुनौती देते हुए कहते हैं, ‘‘अगर पुलिस ने सही लोगों को पकड़ा है तो 19 दिसंबर के दंगे के सारे वीडियो फुटेज सार्वजनिक करे. यह दिखाए कि जिन लोगों को पकड़ा है, ये वही लोग हैं जो दंगा फैलाने में शामिल थे. पूरे मामले की उच्चस्तरीय जांच होनी चाहिए.

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‘‘यही नहीं, लखनऊ की हिंसा में मारा गया वकील नामक आदमी पुलिस की गोली से ही मरा है. अगर ऐसा नहीं है तो पुलिस वीडियो के जरीए यह क्यों नहीं दिखाती कि वह किस की गोली से मरा है. मरने वाले का परिवार पुलिस के दबाव में है.’’

एसआर दारापुरी कहते हैं, ‘‘यह सरकार का एक दमनकारी कदम है, जो मानवाधिकार, लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला है. यह तानाशाही सरकार है. यह तो खुला दमन है. योगी राज में पुलिस पूरी तरह से क्रूर और हत्यारी हो चुकी है. इस सरकार के दौरान पुलिस के ऐनकाउंटर में 95 फीसदी मामले झूठे हैं. पुलिस जब घटना के दिन वाले वीडियो जारी करेगी, तो सच खुद सामने आ जाएगा.’’

भूपेश बघेल: धान खरीदी का दर्द!

छत्तीसगढ़ में  किसान के लिए धान बेचना एक दर्द, यातना बन गया है, तो मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के लिए धान खरीदी सरदर्द बन चुकी है. सरकार का एक ऐसा कदम, जिसके लिए कहा जा सकता है कि “ना उगलते बने न निगलते बने”. छत्तीसगढ़ को धान का कटोरा कहा जाता है, यहां  धान की खरीदी समर्थन मूल्य पर, सरकार बोनस के साथ किया करती थी.

एक उत्सव के रूप में, गांव गांव में किसान खुशहाल दिखाई देते थे.धान मंडियों में किसानों का मेला लगा रहता था. रमन सिंह के समयकाल में  2100 रुपए कुंटल में सरकार धान खरीदी किया करती थी. मगर किसानों को खुश करने के लिए भूपेश बघेल ने एक बड़ा दांव चला कि कांग्रेस सरकार आती है तो 2500 रुपये  क्विंटल धान का दिया जाएगा. और 2018 के विधानसभा चुनाव में इसी मुद्दे पर भाजपा का सूपड़ा ही साफ हो गया. अब स्थितियां बदल रही है भूपेश सरकार के पास किसानों के लिए  25 सौ रुपये  तो है नहीं, हां! आश्वासन का एक बड़ा पिटारा जरूर है.

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इस रिपोर्ट में हम धान खरीदी को लेकर के ग्राउंड की सच्चाई को आपके सामने प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे. हमारे संवाददाता ने छत्तीसगढ़ के 4 जिलों रायपुर, बेमेतरा,  जांजगीर, कोरबा  के किसानों से बातचीत की जिस का सारांश प्रस्तुत है-

भाजपा-कांग्रेस आमने-सामने 

धान खरीदी मामले को लेकर भाजपा कांग्रेस  आमने-सामने है. भाजपा ने कांग्रेस पर निशाना साधा है. खाद्य मंत्री अमरजीत भगत के बयान को लेकर बीजेपी ने बड़ा आरोप लगाया है. प्रदेश अध्यक्ष विक्रम उसेंडी ने कहा कि मंत्री अमरजीत भगत का ये कहना कि खरीदी की तारीख नहीं बढ़ाई जाएगी!कांग्रेस सरकार की किसान विरोधी मानसिकता को दर्शाती है. उन्होंने कहा कि “पंचायत चुनाव” निपटते कांग्रेस का नकाब उतर गया है. कांग्रेस ने अब अपना असल चेहरा दिखा दिया है. कांग्रेस का यही चरित्र है. बीजेपी लगातार कांग्रेस की मंशा को लेकर सवाल उठाती रही है.

उसेंडी ने कहा कि किसानों को धान ख़रीदी के नाम पर “ख़ून के आँसू” रुलाने वाली सरकार ने धान ख़रीदी की मियाद नहीं बढ़ाने का एलान करके अपने अकर्मण्यता का  परिचय दिया है. भूपेश सरकार द्वारा पहले धान ख़रीदी एक माह विलंब से शुरू की गई और किसानों का पूरा धान 25सौ रुपए प्रति क्विंटल की दर पर ख़रीदने से बचने के लिए नित-नए नियमों के तुगलकी फ़रमानों का छल-प्रपंच रचा गया, धान की लिमिट तय करके किसानों को चिंता में डाला, धान का रक़बा घटाने तक का  कृत्य तक किया, ख़रीदी केंद्रों से धान का समय पर उठाव नहीं करके धान ख़रीदी में दिक़्क़तें पैदा कीं और इस तरह पिछले वर्ष के मुक़ाबले इस साल लाखों मीटरिक टन धान कम ख़रीदा गया.

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भाजपा के एक बड़े नेता शिवरतन शर्मा ने ने कहा कि खाद्य मंत्री का यह एलान किसानों के साथ दग़ाबाज़ी का प्रदेश सरकार द्वारा लिखा गया काला अध्याय है और कांग्रेस को इस दग़ाबाज़ी की समय पर भारी क़ीमत  चुकानी  पड़ेगी.

भाजपा के समय काल में संसदीय सचिव रहे लखन देवांगन कहते हैं  पंचायत चुनावों के दौरान प्रदेश के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने धान ख़रीदी की समय-सीमा बढ़ाने की बात कही थी, तो अब मुख्यमंत्री को यह सफाई देनी ही होगी कि उनके वादे के बावजूद उनकी सरकार के मंत्री किस आधार पर समय-सीमा नहीं बढ़ाने की बात कह रहे हैं?

छत्तीसगढ़ में भाजपा के बड़े नेता चाहे वे डॉ रमन सिंह हों अथवा विक्रम उसेंडी सभी एक सुर में भूपेश बघेल सरकार को धान खरीदी के मसले पर घेर चुके हैं. मगर कहते हैं ना सत्ता कठोर होती है वह हाथी की मदमस्त चाल से अपनी ही धुन में चलती है वही सत्य छत्तीसगढ़ में भी दिखाई दे रहा है.

किसानों के चेहरे मुरझाए क्यों हैं?

छत्तीसगढ़ में धान खरीदी के दरमियान किसान और आम आदमी जहां प्रसन्न दिखाई देता था वहीं आजकल किसान और गांव के आम आदमी दुखी, पीड़ित दिखाई देते हैं. किसान को पटवारी के यहां, राजस्व निरीक्षक के यहां, तहसीलदार के यहां कई कई चक्कर लगाने पड़ रहे हैं. खाद्य अधिकारियों की नकेल कसी हुई है. एसडीएम और कलेक्टर की निगाह एक एक किसान पर लगी हुई है. कहीं कोई किसान पीछे दरवाजे से सरकार को इधर उधर का धान न थमा दे.

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किसानों की ऐसी निगरानी की जा रही है, मानो किसान कोई अपराधी हो. एक किसान ने बताया कि स्थिति इतनी बदतर है कि हमारे बच्चों के लिए चॉकलेट खरीदने के लिए भी हमारे पास पैसे नहीं हैं! एक अन्य  किसान के अनुसार त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में धान बिक नहीं पाया तो चुनाव में हम कुछ भी खर्च  नहीं कर पाए. इन्हीं विसंगतियों के बीच धान खरीदी का उपक्रम जारी है. जो मात्र अब 10 दिन बच गया है. मगर बीते दो महीने किसानों के लिए एक त्रासदी, पीड़ा और दर्द छोड़ कर गया है जो शायद किसान कभी नहीं भूल पाएगा.

इस दरमियान छत्तीसगढ़ सरकार की धान खरीदी नीतियों के खिलाफ छत्तीसगढ़ की अनेक जिलों में किसानों ने चक्का जाम किया आंदोलन किया मगर सरकार के कान में जूं तक नहीं रेंगी .  शायद भूपेश बघेल सरकार यह कहना चाहती है कि हे किसान! अगर पच्चीस सौ रुपये कुंटल में धान बचोगे तो सरकार के नियम कायदे रूपी प्रताड़ना से तो गुज़रना ही होगा. अंतिम  मे यह कि भूपेश बघेल स्वयं को किसान कहते हैं उनसे यही गुजारिश है कि एक  दिन भेष बदलकर किसी अनजान गांव, अनजान किसानों के बीच पहुंच जाएं और उनसे बात कर ले तो सारा सच उनके सामने खुली किताब की तरह होगा.

दिल्ली चुनाव: बहुत हुई विकास की बात, अबकी बार शाहीन बाग… क्या BJP का होगा बेड़ा पार?

दिल्ली चुनाव के लिए मतदान होने में अब ज्यादा वक्त नहीं बचा. इन चुनावों में कांग्रेस कहीं भी नजर नहीं आ रही है. लड़ाई आप और बीजेपी के बीच है. इन चुनावों की घोषणा हुई तो लोगों ने कहा कि इस बार तो केजरीवाल ही सरकार बनाएगा. उसके पीछे का कारण है दिल्ली में विकास. सीएम केजरीवाल अब तो मंजे हुए नेता बन गए हैं लेकिन जब वो सीएम के पद पर बैठे थे तब वो राजनीति के दांव-पेंच से वाकिफ़ नहीं थे. फिर भी दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने शिक्षा, स्वास्थ्य पर अच्छा काम किया. इसके अलावा 200 यूनिट तक बिजली फ्री और पानी भी फ्री. इससे जनता को बहुत बड़ी राहत मिली. चुनाव आते-आते महिलाओं के लिए डीटीसी बस सेवा को भी मुफ्त कर दिया गया. ये भी सोने पर सुहागा.

इन सब कामों के आगे ‘रिंकिया के पापा’ की एक नहीं चल पा रही. सभी सर्वे एक सुर में यही कह रहे थे कि इस बार भी केजरीवाल को 60 से ऊपर सीटें मिलेंगी. फिर बीजेपी ने अपनाया अपना ब्रम्हास्त्र रूपी राष्ट्रवाद. दिल्ली में बीजेपी 2500 से ज्यादा छोटी बड़ी रैली कर चुकी है. गृह मंत्री अमित शाह दिल्ली में शाहीन बाग का मसला बार-बार उठा रहे हैं. शाहीन बाग में लोग सीएए-एनआरसी के विरोध में पिछले 50 दिनों से धरने पर बैठे हुए हैं. बीजेपी ने दिल्ली के चुनाव इसी पर केंद्रित कर दिया है.

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भाजपा की हताशा इसी बात से समझ लीजिए कि अब तक जो पार्टी विकास-विकास का राग अलापती थी वो अब शाहीन बाग-शाहीन बाग चिल्ला रही है. भाजपा ने शाहीन बाग को ही चुनावी मुद्दा बना लिया है और वो काफी हद तक इसमें कामयाब भी होती दिख रही है लेकिन इससे चुनाव जीत लिया जाएगा ये कहना मुश्किल होगा. दिल्ली में भले ही केजरीवाल की सरकार हो लेकिर यहां की पुलिस तो केंद्र सरकार के अंडर में हैं. केंद्र में मोदी सरकार और इस सरकार के गृह मंत्री हैं अमित शाह. शाह खुद कई जगह भाषणों में शाहीन बाग के प्रदर्शनकारियों को कोसते रहते हैं लेकिन जब यहां की पुलिस आपके अंडर है तो फिर आप क्यों नहीं उठवा देते. लेकिन वो ऐसा नहीं करेंगे.

भाजपा नेता और वित्त राज्य मंत्री ने बयान दिया ‘देश के गद्दारों को गोली मारो सालों को’. जिसके बाद एक नाबालिग युवक ने उसी दिन गोली चलाई जिसदिन नाथूराम गोडसे ने बापू को गोली मारी थी. गोली मारी गई जामिया के पास. पहले जामिया में गोली चली, फिर शाहीन बाग में और अब फिर से जामिया में. पहले गोली चलाने वाले दोनों ही लड़के कोई पेशेवर अपराधी नहीं हैं. उनके नाम कोई पुराना अपराध का रिकॉर्ड नहीं है. अब दोनों ही अपराधी हैं और भारत के भविष्य भी. एक नाबालिग है जबकि दूसरा भी महज 25 साल का. रविवार रात को हुई तीसरी घटना में उन दो स्कूटी सवारों की तलाश है, जो फायरिंग कर भाग निकले. इस तीसरी घटना को अंजाम देने वालों की सोच भी पहले दो से अलग होगी, ऐसा लगता नहीं.

शाहीन बाग में फायरिंग करने वाला कपिल कहता है कि इस देश में सिर्फ हिन्दुओं की चलेगी, किसी और की नहीं. जामिया में गोली चलाने वाला नाबालिग भगवान राम की भक्ति के लिए नहीं, बल्कि हिंसक भावावेश के साथ ‘जय श्री राम’ के नारे लगाता है. नागरिकता कानून के विरोधियों को गोली मारकर ‘आजाद’ कर देने की बात करता है. ये सब क्यों हो रहा है इसके पीछे महज एक ही कारण है कि इन लोगों के दिलों पर महज नफरत भर दी गई है.

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फिजूल की बातें हैं. गलत आरोप हैं. जामिया के गोलीबाज को किसी ने कट्टा नहीं थमाया. शाहीन बाग के सिरफिरे को भी किसी ने हथियार नहीं दिया. शरजील को भी किसी राजनीतिक दल ने एएमयू में दिया उसका भाषण लिखकर नहीं दिया. मुंबई के आजाद मैदान में शरजील के समर्थन में नारे किसी राजनीतिक खेमे ने नहीं लगवाए. हमारे राजनीतिक दल और नेता इतनी टुच्ची बातें और काम नहीं करते. वे तो एक साथ लाखों लोगों पर असर डालने वाले प्रपंच करते हैं. फिर उसी असर में कोई शरजील देश विरोधी नारे लगाता है, तो कोई सिरफिरा (वस्तुत: बेचारा) शाहीन बाग या जामिया में कट्टा लहराता है.

अब भाजपा दिल्ली के हर तबके को साधना चाहती है. इसके लिए पार्टी अध्यक्ष ने नेताओं की फौज इकट्ठा कर दी है. इन नेताओं को वहां-वहां भेजा जा रहा है जहां की जनता या तो उनको पहचानती है या फिर उनका क्षेत्रीय या जातीय रिश्ता हो. दिल्ली में बिहार से आए लोगों की संख्या खूब है इसलिए नीतीश कुमार ने यहां की जनता को लुभाया. उसके बाद यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ तो हैं हीं स्टार और फायरब्रांड नेता. वो दिल्ली क्या पूरे देश में कहीं भी चुनाव होता है तो बीजेपी उनको भेजती है. दिल्ली में पूर्वांचली और जाटों के बाद दक्षिण भारत के लोगों की संख्या सबसे ज्यादा है. तकरीबन 12 लाख मतदाता दक्षिण भारत के बताए जा रहे हैं. ऐसे में इन बिखरे हुए वोटरों को साधने के लिए भाजपा ने दक्षिण भारत के अपने 42 सांसदों के साथ लगभग 100 बड़े नेताओं को चुनावी मैदान में उतारा है.

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पौलिटिकल राउंडअप : दिल्ली में चुनावी फूहड़ता

दिल्ली. फरवरी की 8 तारीख को दिल्ली में विधानसभा चुनाव होंगे. लिहाजा, दिल्ली चुनावी रंग में रंगने लगी है. इसी सिलसिले में यहां की बड़ी सियासी पार्टियों ने सोशल मीडिया का नए अंदाज में इस्तेमाल किया. किसी ने कार्टून बनाया तो कोई मीम बनाने लगा. बात तीखे, मजेदार और फनी वीडियो तक जा पहुंची.

13 जनवरी को भारतीय जनता पार्टी हिंदी फिल्म ‘नायक’ का ऐडिट किया गया ऐसा वीडियो सामने ले कर आई जिस में अरविंद केजरीवाल को अमरीश पुरी के रूप में दिखाया गया. इस के जवाब में आम आदमी पार्टी ने फिल्म ‘नायक’ का अपना वीडियो पेश किया, जिस में अरविंद केजरीवाल को ठेकेदारों को फटकार लगाते देखा गया.

वेंकैया का हिंदूवादी बयान

चेन्नई. नागरिकता संशोधन कानून और नैशनल रजिस्टर औफ सिटीजंस पर पूरे देश के विरोध के साथसाथ सियासी तकरार लगातार बढ़ती ही जा रही है. इसी बीच 12 जनवरी को देश के उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू ने श्री रामकृष्ण मठ द्वारा छपने वाली तमिल मासिक ‘श्री रामकृष्ण विजयम’ के शताब्दी समारोह और स्वामी विवेकानंद जयंती के मौके पर हुए एक कार्यक्रम में कहा कि भारत में कुछ लोगों को हिंदू शब्द से एलर्जी है. हाल?ांकि यह ठीक नहीं है, फिर भी उन्हें इस तरह का नजरिया रखने का हक है.

एम. वेंकैया नायडू ने कहा कि धर्मनिरपेक्षता का मतलब दूसरे धर्मों की बेइज्जती नहीं है.

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गरजीं मायूस मायावती

लखनऊ. उत्तर प्रदेश में अपनी सियासी जमीन तलाश रही बसपा सुप्रीमो मायावती का कभी पूरे प्रदेश में राजकीय उत्सव सा जन्मदिन मनाया जाता था. इस 15 जनवरी को वैसा माहौल तो नहीं दिखा, पर 64 किलो के केक ने सब का ध्यान जरूर खींचा कि हाथी अभी उतना भी कमजोर नहीं हुआ है.

उस दिन मायावती ने केंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि वे नागरिकता संशोधन कानून का विरोध करती हैं. साथ ही यह भी कहा, ‘‘आज देश की तकरीबन 130 करोड़ जनता के सामने जो तकलीफें और तनाव खड़े हैं, उन के चलते देश में हर जगह गरीबी और बेरोजगारी फैली हुई है. देश में माली मंदी बीमार हालत में पहुंच गई है. यह भी कड़वा सच है कि देश की जनता ने ऐसी खराब हालत पहले कांग्रेस की सरकार में देखी है.’’

पर सच यह है कि मायावती अब न जाने क्यों सरकार को हाथी पर सवारी देने की तैयारी में लगती हैं.

किताब पर मचा बवाल

मुंबई. भाजपा का एक पैतरा उसी पर तब भारी पड़ गया, जब छत्रपति शिवाजी महाराज के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तुलना वाली किताब ‘आज के शिवाजी: नरेंद्र मोदी’ पर पार्टी ने यह कहते हुए दूरी बना ली कि पार्टी का इस पब्लिकेशन से कुछ भी लेनादेना नहीं है और इस किताब में लेखक के अपने ‘निजी विचार’ हैं.

14 जनवरी को भाजपा में मीडिया विभाग के सहइंचार्ज संजय मयूख ने कहा कि किताब के लेखक जय भगवान गोयल, जो भाजपा के एक सदस्य हैं, ने अपनी किताब वापस मंगाने की भी बात कही है.

याद रहे कि जय भगवान गोयल ने भाजपा से जुड़ने से पहले लंबे वक्त तक दिल्ली में शिव सेना के लिए काम किया था और वे कहते हैं कि किताब में जिस हिस्से को ले कर विपक्ष के नेताओं को दिक्कत है, उसे सुधार दिया जाएगा.

ममता बनर्जी का घेराव

कोलकाता. देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लोहा लेने वाली पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी अपने ही राज्य में वामपंथियों से घिर गईं.

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दरअसल, संशोधित नागरिकता कानून के खिलाफ 11 जनवरी को कोलकाता में हुई ममता बनर्जी की रैली में वामपंथी छात्र कार्यकर्ताओं ने उन्हें घेरा था, जिस के बाद 150 अज्ञात लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया था. इन में नुकसान पहुंचाने, आपराधिक धमकी देने के साथसाथ गैरजमानती धाराएं भी शामिल थीं और साथ ही, एक जनसेवक को उस की ड्यूटी करने से रोकने का मामला भी शामिल था.

इस के उलट माकपा से जुड़े छात्र संगठन एसएफआई ने आरोप लगाया कि उस ने ममता बनर्जी के खिलाफ इसलिए प्रदर्शन किया, क्योंकि उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ बैठक कर सीएए के खिलाफ लड़ाई कमजोर कर दी थी.

दिग्विजय सिंह की सफाई

भोपाल. भाजपा के प्रवक्ता गौरव भाटिया ने कांग्रेस पार्टी और दिग्विजय सिंह पर आरोप लगाया था कि कांग्रेस बड़े पैमाने पर इसलामिक उपदेशक जाकिर नाइक की फाउंडेशन से डोनेशन लेती है और उन के बीच हमेशा से ही अच्छे संबंध रहे हैं.

इस पर कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने सफाई दी कि भाजपा की तरफ से लगाया गया यह आरोप एकदम गलत है. कांग्रेस ने कभी भी आधिकारिक रूप से डाक्टर जाकिर नाइक का समर्थन नहीं किया.

वैसे, दिग्विजय सिंह ने माना कि उन्होंने मुंबई में जाकिर नाइक के मंच से एक सांप्रदायिक सद्भाव सम्मेलन को संबोधित किया था.

लालू की खरीखरी

पटना. जेल में बंद लालू प्रसाद यादव बिहार की प्रदेश सरकार के साथसाथ केंद्र सरकार को घेरने का कोई भी मौका नहीं छोड़ते हैं. उन्होंने मंगलवार,

14 जनवरी को फिर से बिहार और केंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए ट्वीट किया कि देश में प्यार लगातार घट रहा है, जबकि नफरत बढ़ रही है.

उन्होंने आगे कहा कि आजादी घटी है, जबकि तानाशाही बढ़ी है. विकास घटा विनाश बढ़ा, ईमान घटा बेईमानी बढ़ी काम घटा बेरोजगारी बढ़ी.

ऐसा पहली बार नहीं हुआ है. इस से पहले नीतीश कुमार और भाजपा पर तंज कसते हुए लालू प्रसाद यादव ने ट्वीट किया था, ‘एक गिरगिटिया दूसरा खिटपिटिया…कुल जोड़ मिला के शासन घटिया.’

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पुलिस पदक लिया वापस

श्रीनगर. अर्श से फर्श पर. 15 जनवरी को जम्मूकश्मीर प्रशासन ने आतंकवादियों को जम्मूकश्मीर से बाहर निकलने में पैसे ले कर मदद करने के आरोप में गिरफ्तार किए गए पुलिस उपाधीक्षक देविंदर सिंह को बहादुरी के लिए दिया गया पुलिस पदक  ‘शेर ए कश्मीर’ वापस ले लिया.

याद रहे कि वहां की पुलिस ने शनिवार, 11 जनवरी को देविंदर सिंह को दक्षिणी कश्मीर के कुलगाम जिले के मीर बाजार में हिजबुल मुजाहिदीन के 2 आतंकवादियों के साथ गिरफ्तार किया था.

इसी बीच देविंदर सिंह ने आरोप लगाया था कि पुलिस बल में तैनात एक और बड़ा अफसर आतंकवादियों के लिए काम कर रहा है.

गंगा यात्रियों को खाना खिलाने का काम करेंगे शिक्षक

उत्तर प्रदेश की राजनीति में गाय और गंगा दोनो का बहुत महत्व है. गाय को सडक पर आने से रोकने के लिये पीडब्ल्यूडी विभाग ने अपने ही इंजीनियरों को रस्सी लेकर छुट्टा जानवरों को पकडने का आदेश जारी किया तो शिक्षा विभाग ने अपने स्कूल में खाना बनाने का काम करने वाले रसोइयों और शिक्षकों को कहा है कि वह गंगा यात्रा करने वालों को खाना खिलानेे की जिम्मेदारी संभाले. इस तरह के आदेश से शिक्षक और इंजीनियरों में असंतोष में है. मजेदार बात यह है कि आलोचनाओं के बाद एक आदेश लिखित में वापस होता है तो दूसरा आदेश जारी हो जाता है. छुट्टा जानवर पकडने का आदेश वापस हुआ तो अगले ही दिन गंगा यात्रा करने वालों को खाने खिलाने का आदेश जारी हो गया.

शिक्षा विभाग से जारी हुआ आदेश हरदोई जिले से जुडा हुआ है. जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी हरदोई के द्वारा यह आदेश जारी हुआ है. इसमें लिखा है कि ‘गंगा यात्रा के आयोजन में गंगा किनारे स्थित ग्राम पंचायतों में 30 जनवरी को गंगा दल यात्री प्रवास करेगे. गंगा दल के ठहरने, नाश्ते और आदि की व्यवस्था विद्यालयों में कार्यरत शि़क्षकों और रसोइयों द्वारा की जानी है.‘ आदेश में ही बिलग्राम और सांडी ब्लाक में आने वाले स्कूलों के नाम भी लिखे है. शिक्षा विभाग का कोई भी अधिकारी और कर्मचारी इस आदेश पर बोलने को तैयार नहीं है. यह पत्र खंड शिक्षा अधिकारी बिलग्राम और सांडी के द्वारा जारी किया गया है.

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गंगा यात्रा की शुरूआत उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के द्वारा 27 जनवरी को बिजनौर और राज्यपाल आंनदी बेन ने बलिया से शुरू की गई. गंगा यात्रा दो हिस्सो में पूरी हो रही है. गंगा यात्रा को सफल बनाने के लिये पार्टी और सरकार स्तर पर काम किया जा रहा है. बिजनौर से कानपुर बैराज तक यह यात्रा 579 किलोमीटर लंबी सडक मार्ग से गुजरेगी. 657 किलोमीटर बलिया से कानुपर तक यह यात्रा गुजरेगी. कुल 1338 किलोमीटर यात्रा 27 जिलों से होकर निकल रही है. इसमें 21 नगर पंचायत और 1038 ग्राम पंचायते पडेगी. उत्तर प्रदेश में गंगा की कुल लंबाई 1140 किलोमीटर है. पावन गंगा यात्रा के व्यापक प्रचार प्रसार की व्यवस्था भी गई है.

हरदोई शिक्षा विभाग के पत्र से पता चलता है कि लोगो के खाने की व्यवस्था स्कूलों को सौंपी गई है. इस आदेश से स्कूल में पढाने वाले शिक्षको की हालत के बारे पता चलता है. शिक्षकों से पढाने के अलावा बहुत सारे काम लिये जाते है. इस बात को लेकर शिक्षकों में गुस्सा भी है. पर खुलकर वह कह नहीं पा रहे. शिक्षकों की यह हालत तब है जब उत्तर प्रदेश के दो डिप्टी सीएम में से एक डाक्टर दिनेश शर्मा खुद लखनऊ विश्वविद्यालय में शिक्षक है. शिक्षकों को उम्मीद थी कि वह शिक्षकों की मजबूरियों को समझते होगे. इसके बाद भी कभी शिक्षकों की डयूटी दुल्हनों को सजाने पर लगा दिया जाता है तो कभी गंगा दल के खाने की व्यवस्था को देखने के लिये.

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डर के साए में अवाम

केंद्र सरकार की मनमरजी से लागू हुई नीतियों, संशोधनों और नए कानूनों ने माली मोरचे पर सब से ज्यादा कमर कामधंधा करने वालों की तोड़ी है. अनुच्छेद 370 हो, नोटबंदी हो, जीएसटी हो, या फिर ताजा नागरिकता संशोधन कानून ने देशभर में कामधंधों को सिरे से तबाह कर दिया है.

उत्तर प्रदेश के गोसाईंगंज इलाके में नागरिकता संशोधन कानून से उपजे दंगे के बाद अघोषित कर्फ्यू ने चूड़ी उद्योग व उस से जुड़े गोदामों व ट्रांसपोर्ट कंपनियों में काम कर रहे हजारों मजदूरों के सामने दो जून की रोटी का संकट खड़ा कर दिया है.

तनाव के चलते शहर के अलगअलग हिस्सों में चलने वाले चूड़ी गोदाम बंद हैं. चूड़ी उद्योग से जुड़े काम ठप होने के चलते नगर के ट्रांसपोर्टर भी हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं.

नगर क्षेत्र की सीमा में 50-60 चूड़ी कारखाने हैं. इन कारखानों में दिहाड़ी पर काम करने वाले मजदूरों की तादाद 40,000 से ज्यादा है. 8-8 घंटे की

3 शिफ्टों में 300 से 500 रुपए वाले दिहाड़ी मजदूरों के घरों में चूल्हे की तपिश पैसे की कमी के चलते ठंडी पड़ चुकी है.

बेनूर पर्यटन का बाजार

उत्तराखंड जैसे राज्य की माली तरक्की बहुत हद तक पर्यटन पर टिकी है. मसूरी, नैनीताल जैसे कई शहर इस समय पर्यटकों की राह देखते हैं. इस समय की आमदनी अगले कुछ महीनों के लिए राहत ले कर आती है. लेकिन इस समय नैनीताल के लोग नागरिकता संशोधन कानून रद्द करने की मांग कर रहे हैं.  झील किनारे यह बैनर फहराया जा रहा है कि ‘वे तुम्हें हिंदुमुसलिम बताएंगे, लेकिन तुम भारतीय होने पर अड़े रहना’.

नैनीताल में कई संगठनों के अलावा हर धर्म और वर्ग से जुड़े शहर के आम लोगों ने मौन जुलूस निकाला. सीएए और एनआरसी के विरोध में इस जुलूस में शामिल लोगों ने मल्लीताल पंत पार्क में संविधान की शपथ ली और तल्लीताल में गांधीजी की मूर्ति के पास ‘भारत माता की जय’ के नारों के साथ जुलूस पूरा हुआ.

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इस बारे में नैनीताल होटल एसोसिएशन के अध्यक्ष दिनेश शाह कहते हैं, ‘‘नए कानून से हमारे कारोबार पर बहुत बुरा असर पड़ा है. हमारे लिए दिसंबरजनवरी माह का महीना कारोबार के लिहाज से अमूमन काफी अच्छा रहता है. लेकिन रामपुर में लोग सड़कों पर हैं. हल्द्वानी में लोग अपनी नागरिकता बचाने के लिए प्रदर्शन कर रहे हैं. नैनीताल आने के सभी रास्तों पर विरोध प्रदर्शन चल रहा है, तो इस का असर बुरा पड़ रहा है.

‘‘होटलों की बुकिंग कैंसिल हो रही हैं. जो होटल इस समय 80-90 फीसदी तक बुक रहते थे, उन की 30-35 फीसदी तक ही बुकिंग है.

‘‘रामनगर में जिम कौर्बेट टाइगर रिजर्व आने वाले पर्यटकों की संख्या भी प्रभावित हुई है. हरिद्वार आने वाले पर्यटक भी इस समय ठिठके हुए हैं.’’

टे्रडर्स ऐंड वैलफेयर एसोसिएशन के प्रैसिडैंट रजत अग्रवाल कहते हैं कि क्रिसमस और नए साल को देखते हुए इस बार अब तक कारोबार में 30-35 फीसदी तक की गिरावट देखी जा रही है.

रजत अग्रवाल आगे कहते हैं कि दिल्ली, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान जैसे राज्यों से ज्यादा पर्यटक आते हैं. उत्तराखंड आने के लिए सभी को उत्तर प्रदेश से हो कर आना पड़ता है. वहां अभी कई जगह धारा 144 लगी है. माहौल शांत नहीं है. दिसंबरजनवरी माह तक आमतौर पर मसूरी में अच्छा कारोबार चलता है, लेकिन अभी लोग सफर करने में खुद को असहज महसूस कर रहे हैं.

रजत अग्रवाल बताते हैं कि साल 2013 में केदारनाथ आपदा के समय पर्यटन के लिहाज से व्यापारियों को सब से ज्यादा नुकसान हुआ था. उस के बाद नोटबंदी ने सबकुछ ठप कर दिया था. उस समय व्यापारियों का कारोबार 50 फीसदी तक प्रभावित हुआ था. अब यह नया कानून आम आदमी की रोजीरोटी को प्रभावित कर रहा है.

नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2019 को ले कर देशवासियों में उपजे असंतोष को देखते हुए संयुक्त राष्ट्र संघ के अलावा कनाडा, यूनाइडेट किंगडम, सऊदी अरब, रूस, आस्ट्रेलिया और इजराइल ने अपने देशवासियों को सावधान किया है. खासतौर पर पूर्वोत्तर के राज्यों में जाने से बचने की सलाह दी है.

बेजार हर कारोबार

पहले नोटबंदी हुई, जीएसटी लागू हुई और फिर जम्मूकश्मीर में अनुच्छेद 370 रद्द होने के बाद बंद हुए व्यापार और अब नागरिकता संशोधन विधेयक ने उद्योगपतियों और व्यापारियों को बेजार कर दिया है. यूसीपीएम के चेयरमैन डीएस चावला कहते हैं कि इन दिनों जो नुकसान लुधियाना की इंडस्ट्री का हो रहा है, उस की भरपाई में बहुत समय लगेगा.

फोपासिया के अध्यक्ष बदिश जिंदल के मुताबिक, केंद्र की नीतियां और नएनए कानून माली रूप से हमें खोखला कर रहे हैं.

लुधियाना के कारोबारी हलकों में फैला सन्नाटा बहुतकुछ कहता है. जिन राज्यों में नागरिकता संशोधन विधेयक का पुरजोर विरोध हो रहा है, उन्हीं राज्यों के सड़क और रेल मार्ग लुधियाना के उद्योगों के लिए एक तरह से ‘कौरिडोर’ का काम करते हैं. उन राज्यों में तो माल की सप्लाई और कारोबार एकदम बंद है ही, भूटान, नेपाल और बंगलादेश वगैरह की सप्लाई भी पूरी तरह से ठप हो गई है. अमृतसर के भी लुधियाना सरीखे हालात हैं.

गौरतलब है कि पंजाब से असम, उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, तेलंगाना, कर्नाटक, केरल के रास्ते भूटान व दूसरे नजदीकी देशों को सड़क और रेल मार्ग के जरीए हौजरी, कपड़ा, साइकिल और साइकिल पार्ट, मशीनरी टूल, नटबोल्ट, खराद, सिलाई मशीनें व सिलाई मशीनों के कलपुरजे व विभिन्न दूसरी किस्म के सामान भेजे जाते हैं. नागरिकता संशोधन विधेयक के विरोध में जारी आंदोलन का सब से ज्यादा असर इन में से कुछ राज्यों में हो रहा है. अब इन राज्यों के रास्तों से माल नहीं जा रहा.

लुधियाना के एक बड़े कारोबारी और सीसू के प्रधान उपकार सिंह आहूजा कहते हैं, ‘‘हमारे साथसाथ औद्योगिक संस्थानों में काम करने वाले मजदूर और कर्मचारी भी मुश्किल में हैं.’’

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अमृतसर के कपड़ा व्यापारी नंदलाल शर्मा भी इस बारे में ऐसा ही कुछ कहते हैं, ‘‘अमृतसर से कपड़ा, बडि़यां, अचार, मुरब्बे, पापड़ और मसाले भी दूसरे राज्यों और नेपाल, भूटान और बंगलादेश जाते हैं. सब जगह की सप्लाई फिलहाल रुकी हुई है और हम ने नया माल बनाना बंद कर दिया है. कारीगरों और ढुलाई का काम करने वाले मजदूरों को मजदूरी नहीं मिल रही. ज्यादातर ऐसे हैं, जो दिहाड़ी मजदूर के तौर पर काम करते हैं, लेकिन अब वे बेकार हैं.’’

एक मजदूर रोशनलाल ने बताया कि उस के घर की रोटी चलनी मुश्किल हो रही है. जून, 1984 में अमृतसर के व्यापारिक जगत में ऐसे हालात तब पैदा हुए थे, जब मजदूरों को रोटी के लाले पड़ गए थे और अब वैसा ही सबकुछ है.

लुधियाना की सिलाई मशीन डवलपमैंट क्लब के प्रधान जगबीर सिंह सोखी कहते हैं, ‘‘नागरिकता संशोधन विधेयक के बाद जिन राज्यों में तनाव है, वहां न तो हम जा पा रहे हैं और न हमारा माल. बैंक किस्तों के लिए दबाव बना रहे हैं. सम झ नहीं आ रहा कि बैंक के कर्ज की किस्त कैसे चुकाएं. नया माल जा नहीं रहा और पुराने माल की रकम की वापसी नहीं हो रही. इंटरनैट सेवाएं बंद होने से ट्रांजैक्शन भी रुक गई है.’’

अमृतसर के 80,000 से ज्यादा परिवार और व्यापारी भारतपाकिस्तान के बीच व्यापार बंद होने के चलते तगड़ी माली दिक्कतों से जूझ रहे हैं. 17 फरवरी के बाद अटारी आईसीसी के जरीए होने वाले कपड़े, सीमेंट, मसालों और मेवों का आनाजाना समूचे तौर पर बंद है.

सिर्फ आईसीपी पर ही 3,300 कुली, 2,000 सहायक, 550 क्लियरिंग एजेंट और 6,000 से ज्यादा ट्रांसपोर्टर काम करते थे. उन का धंधा अब छूट गया है. इस से बदहाली का अंदाजा लगाया जा सकता है.

सांसद गुरजीत सिंह ओंजला ने बताया कि वे भारतपाक ट्रेड ठप होने से बद से बदतर हुए हालात के मद्देनजर केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी से कई बार मिले, लेकिन सबकुछ जस का तस है.

कश्मीर में हरे हैं जख्म

‘‘बीते 4-5 महीने में मेरा तकरीबन 10 लाख रुपए का नुकसान हो चुका है. अपने काम को फिर से जिंदा करने के लिए मु झे श्रीनगर छोड़ कर जम्मू आना पड़ा है.’’

फोन पर अपनी परेशानी बयां करते हुए शारिक अहमद कुछ इस तरह बात की शुरुआत करते हैं. वे कहते हैं, ‘‘काम के सिलसिले में मु झे 8,000 रुपए का एक कमरा किराए पर लेना पड़ा है. नए ब्रौडबैंड कनैक्शन के 2,000 रुपए हर महीने देने होंगे. घर से दूर बाकी खर्चे भी ज्यादा करने होंगे.’’

पिछले एकडेढ़ महीने से शारिक अहमद जम्मू में हैं. वे श्रीनगर में टूर ऐंड टै्रवल से जुड़ी एक दुकान चलाते थे. नए शहर में नए तरीके से काम जोड़ने पर खर्च बढ़ेंगे. इस से ज्यादा चिंता उन्हें अपने बीवीबच्चों की है, जिन्हें श्रीनगर में ही छोड़ कर आना पड़ा.

5 अगस्त को अनुच्छेद 370 हटाए जाने के साथ ही भारत प्रशासित जम्मूकश्मीर में इंटरनैट सेवा को बंद कर दिया गया था. इस से कश्मीर घाटी के आम शहरियों के कामधंधे तकरीबन चौपट हो चुके हैं.

श्रीनगर के सानी हुसैन एक बुक स्टोर चलाते हैं. इंटरनैट सेवा बंद होने की वजह से नई किताबों के और्डर के लिए उन्हें हाल ही में दिल्ली जाना पड़ा. वे कहते हैं, ‘‘श्रीनगर से एक बार दिल्ली जाने का मतलब है 30,000 रुपए खर्च करना. किताबों के व्यापार में इतना तो मार्जिन भी नहीं बनता. 5 अगस्त से पहले किताबें लेने के लिए मु झे कभी दिल्ली नहीं जाना पड़ा था. मैं ने हमेशा ही इंटरनैट के जरीए किताबें और्डर कीं.’’

5 अगस्त, 2019 को जब अनुच्छेद 370 हटाए जाने की घोषणा हुई थी, तब इंटरनैट और दूरसंचार सेवाएं सब से पहले प्रभावित हुई थीं. इन के अलावा कसबों और गांवों तक में कर्फ्यू लगा दिया गया था. स्कूलकालेज बंद करा दिए गए थे. साथ ही, बंद हो गए थे सब छोटे व्यापार.

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हालांकि श्रीनगर में स्थानीय बाजार अब सामान्य हालात में लौट चुके हैं. पोस्टपेड मोबाइल और लैंडलाइन फोन सेवाएं शुरू हो चुकी हैं, लेकिन घाटी में इंटरनैट और प्रीपेड मोबाइल सेवा का शुरू होना अभी बाकी?है.

इसी मुद्दे पर उमर कहते हैं, ‘‘जब अनुच्छेद 370 पर फैसला होने वाला था तो मैं ने विदेश में रह रहे अपने रिश्तेदारों को सब से पहले सूचित किया. मैं ने उन्हें बताया कि मेरी वैबसाइट बंद होने वाली है. मेरे काम का एक बड़ा हिस्सा इंटरनैट पर आधारित है. औनलाइन और्डर वहीं से मिलते हैं.

‘‘तकरीबन डेढ़ महीने तक वैबसाइट बंद रही. बाद में हम ने दिल्ली में एक टीम रखी, जो वैबसाइट को चला सके. वैबसाइट बंद रहने के चलते इस सीजन में हमें 70 फीसदी का नुकसान हुआ है.’’

हिंदू राष्ट्र की राह पर

राम मंदिर बनाने का मामला हो या हिंदुत्व का मामला हो, अनुच्छेद 370 को हटाना हो, तीन तलाक या फिर नागरिकता संशोधन कानून, हर मामले में भाजपा का एकमात्र एजेंडा मुसलिमों के खिलाफ माहौल बना कर अपने परंपरागत हिंदू वोट बैंक को एकजुट करना रहा है. जामिया मिल्लिया इसलामिया यूनिवर्सिटी में पुलिस का कहर भी इसी बात को दिखाता है.

भाजपा में अटल बिहारी वाजपेयी, राजनाथ सिंह, सुषमा स्वराज, अरुण जेटली को उदारवादी हिंदुओं की श्रेणी में रख कर देखा जाता रहा है. लाल कृष्ण आडवाणी ने भाजपा में जो पौध तैयार की, वह कट्टर हिंदुत्व की राह पर चलने वाली?है.

राजनीति की गहरी सम झ रखने वाले लोग तभी सम झ गए थे, जब नरेंद्र मोदी ने राजनाथ सिंह को गृह मंत्री पद से हटा कर अपने पुराने सहयोगी अमित शाह को गृह मंत्री बनाया था कि अब वे दोनों मिल कर गुजरात का एजेंडा पूरे देश में लागू करेंगे.

जब देश में बेरोजगारी, भुखमरी, महंगाई और कानून व्यवस्था जैसे मुद्दे विकराल समस्या का रूप धारण कर चुके हैं, ऐसे समय में मोदी सरकार ने सारे मुद्दों को दरकिनार कर उन मुद्दों को प्राथमिकता के आधार पर लिया, जो सीधे मुसलिमों के खिलाफ जा कर हिंदुओं की हमदर्दी बटोरने वाले थे.

अनुच्छेद 370 हटाने के बाद गृह मंत्री अमित शाह की भाषा उन के भाषण में देखिए तो वह बारबार इस बात पर जोर दे रहे थे कि अनुच्छेद 370 के हटने पर विपक्ष कह रहा था कि देश में खून की नदियां बह जाएंगी, पर देश में तो एक पटाका भी नहीं फूटा है.

उन का मतलब साफ था कि उन्होंने विपक्ष के साथ ही देश के मुसलिमों को भी इतना डरा दिया है कि अब ये लोग कुछ भी करेंगे, तब भी कोई चूं नहीं करेगा.

दूसरी बार प्रचंड बहुमत में आने के बाद भले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सब को साथ ले कर चलने की बात कही हो, पर उन के दूसरे कार्यकाल में अब तक जो कुछ भी हुआ है, वह धर्म और जाति के आधार पर हुआ है. हकीकत यह है कि मोदी सरकार में ऐसा कुछ नहीं हुआ, जिस से देश का मुसलिम अपने को सुरक्षित महसूस करता.

यदि देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह का थोड़ा सा भी ध्यान देश के भाईचारे पर होता तो सुप्रीम कोर्ट के राम मंदिर बनने का रास्ता पक्का करने के तुरंत बाद ये लोग नागरिकता संशोधन कानून न लाते.

प्रचंड बहुमत का मतलब यह नहीं है कि आप कुछ भी कर सकते हैं. इन लोगों ने यह सोच लिया था कि अब उन के डर से पूरा देश सहमा हुआ है, जो मरजी आए करो. देश और संविधान की रक्षा के लिए बनाए गए तंत्रों विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका और मीडिया उन की कठपुतली की तरह काम कर रहे हैं.

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जो लोग नागरिकता संशोधन कानून के विरोध को मुसलिमों का विरोध सम झ रहे हैं, वे गलती कर रहे हैं. इस आंदोलन में मुसलिम के साथ ही दलित, पिछड़ों के अलावा सवर्ण समाज के लोग भी हैं.

दरअसल, यह वह गुस्सा है, जिसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने दमनकारी नीतियों के चलते दबा रखा था. इस आंदोलन में बड़ी संख्या में बेरोजगार नौजवान हैं, जो मोदी सरकार से नाराज हैं.

पूर्वोत्तर के बाद जब यह आंदोलन दिल्ली और उत्तर प्रदेश में आया तो इस ने विकराल रूप ले लिया. उत्तर प्रदेश में 21 लोगों के मरने की खबर है.

एनआरसी के समर्थन में पूरे देश में भाजपा व कुछ चरमपंथी संगठन रैलियां कर रहे हैं और प्रधानमंत्री व गृह मंत्री कह रहे हैं कि एनआरसी पर अभी तक कोई चर्चा तक नहीं हुई है. खैर, जो भी हो,  झूठ पकड़ा गया और देश ने सच जान लिया है.

यह तानाशाहों की सोच होती?है कि भारी विरोध को देखते हैं, तो अपने फैसलों पर दोबारा सोचने के बजाय  झूठ बोलने लग जाते हैं, क्योंकि उन को हार कभी स्वीकार नहीं होती है.

जरमनी बरबाद हो रहा था, मगर हिटलर ने गलती स्वीकार नहीं की और आखिर में चाहे खुदकुशी करनी पड़ी हो, मगर हारा हुआ मानना उस को स्वीकार नहीं था.

विपक्ष में राजनीतिक दलों के बजाय इस बार नागरिक समाज है और नागरिक समाज विपक्ष की भूमिका में खड़ा होता है तो भागने की लाख कोशिश कर लो, मगर असली मुद्दे पर ला कर खड़ा कर ही दिया जाएगा.

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